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तवारिख-तीर्थ शत्रुजय.
अवभीतुमाराधर्म-जोकि-तुमकोंजहुर देरहाहै. इसीलिये कहाजाताहै तीर्थमें आयेहो, वख्तगाफिलरहनेकानही, धर्मकरो,
दरबयान-पहाड-शत्रुजय, आमतीर्थीका शिरोताज शत्रुजयपहाड निहायतपुरानातीर्थ है, इसतीर्थकी बुजुर्गी सबसेज्यादह-जिसने इसतीर्थकी जियारतकिइ गोया ! दोजकसे अमन-वा-अमानहुवा, जैनमेंयहतीर्थ बहुतमशहूर और मारुफहै, जगहनिहायतपाक ! वल्कि पहाडक्याहै !! मानींदे बहिस्तका एकगुलजारबागहै. जमीनदिलकश खुशनुमाकाविलेदीदहै, तीर्थकर रिषभदेवमहाराज इसतीर्थपर पूरवननानुदफेआये, और यहांपर ध्यानसमाधिकिइ, इसीलिये ननानुयात्राकरनेका वाजयहां परनारीहुवा, भरतचक्रवर्ती जोकि-तमाममारतवर्षका बादशाहहुवा अयोध्यासें पैदल चलकर इसतीर्थकी जियारतकोंआयाथा, शाथमें बडेबडेराजेरहीस और लवाजमाथा. जवाहिरात-औरमोतीयोंके थालोसें उनोनेइसतीर्थका नसारकियाथा, (यानी) वधायाथा, और जियारतहासिलकिइथी. बडेबडेदौलतमंद और खुशनसीबयात्री यहांपरआचुके है, जैनोमेकाविल इसकेदुसरातीर्थनही. सिद्धाचल-विमलाचल-सिद्धक्षेत्र--तीर्थाधिराज--औरकंचनगिरी-येसबइसीतीर्थकेनामहै, पेस्तस्यहोपर पारसपथ्थर होताथाकि-जिसके लगानेसे सबधातमुन्ना होजातीथी. ऐसीऐसी जडीबूटीयां यहांपर पैदाहोतीथीकि-जिसकोघीसकरअगर बदनपरलगाइजायतो आदमी अदृश्यहोजाताथा. हरतालजैसे पीलेरंगके पथ्थरयांइसकिस्म के होतेथेजोधकेशाथ घीसकर बदनपरलगायेजाय तमामबीमारीयांरफा होजातीथी. ऐसीऐसीताकतवर बनास्पतियहांपर मौजूदथीकि
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