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नसीहत-उल-आम.
( अनुष्टुप्-वृत्तम् ) कः कालः कानि मित्राणि-कोदेशः को व्ययागमौ, कश्चाहं काच मे शक्ति-इतिचिंत्यं मुहुर्मुहुःः, १,
हरेकशख्शकों लाजिमहै कोइबात मुहसे निकाले तो इतनीचीजोका खयाल अवलसे करलेव, जमाना कैसाहै ? मेरेदोस्त कौनकौनसेहै ? किसमुल्कमें-में-बेठाहुं ? कितनाखर्च और कितनीआमदहै ? में-कोनहुं और मेरी ताकात कितनी है ? इनबातोंको पहले सौचलेवे, दोस्ती उसकेशाथ रखनाचाहिये-जो-आलीहिंमतहो, जिसकादिल साफहै-वो-हमेशांपाकहै, बखील आदमी खर्चनहीकरसकता, अखबारवाले हमेशां कल्मसे जंगकियाकरतेहै, जो सभा जिसकामकेलिये मुकरर किगइहो-और-वह-उसकामको-न-करसकेतो उसको नाममात्र सभा कहना चाहिये,
११-जोलोग कहतेहै औरतकों इल्मपढाना नहीचाहिये यह उनकी भुलहै, मौसिमे जवानोमें जैसा कौनमर्द-या-औरतहै जोदामे इश्कमें-न-फसाहो, लेकिन ! तारीफ उसकी है,-जो-फंदेइश्कलें बचारहे, अगले जन्मकी नेककिस्मतसे आदमी खूबसुरत रुप पाताहै, ख्वाह ! मर्दहो -या-औरत ! मुवारकचहेरा-और-हुस्नोजमालभी एकतरहका जादु समझना चाहिये-कइलोग दुसरेकामोमे बहादुरी करसकतेहै लेकिन ! आलादर्नेका वहादुर-वो-है-इश्कसे फतेहपावे, हरेकशख्शको मुनासिबहै मावापकी फरमावरदारी करे
और यहभी याइरहे ! औरतकी त केदारीकरके मातपिताकों तकलीफ न-देवे,-जीव अनादिहे इसका बनानेवाला कोइनहो, आराम और तकलीफ अपने कियेहुवे-कर्मोका फलहै,-धर्मप्रवर्तक तीर्थकर सर्वज्ञ होते है, नेककामसे बहिस्त मिलताहै, और बदकामोंसें दौजक, दौ
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