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गुलदस्ते-जराफत. (३७५) देखातो बहुतसा नुकसान होगयाहै, पस नौकरको कमअकल जान कर उसीवख्त घरसे बहार निकलवा दिया, ऐसानौकर किसकामका-जो-कहोकुछ और समझे कुछ,
[ ऐक शुस्त आदमीका जिक्र, ] ४-किसी जंगलमें एक शुस्तआदमी बेंरके दरख्तकेनीचे लंबा होकर सोरहाथा, इत्तिफाकन ! एकौर दरख्तसे दुटकर उसकी छातीपर गिरा इस अर्सेमें एक आदमी थोडीदुरपर चलाजारहाथा शुस्त आदमीने उसको पुकाराकि-भाइसाहब ! जरा इधरहोतेजाना, उसने समझा सायत ! कोइ जरुरीकाम होगा इस खयालसे उस शुस्तकेपास आया, तब शुस्तने कहा-मेरी छातीपर जो-बेर-गिराहै उठाकर मेरेमुहमें डालदो, इसवातको सुनकर वह आयाहुवा आदमी बोला, अवे ! गवार ! क्या ! तेरेहायसे उठाकर मुहमे नहीडालाजाता ? जो मुजको बुलाया, उसने कहा माफकरना-में-जन्मका शुस्तआदमीहुं-यही-चजहहैकि-आपकों तकलीफदिइ, तब आयाहुवा आदमी कहताहै-में-तुजे तकलीफ देताहुं, तुं ! अपने हायसेही उठाकर बेंर खाले, एसा कहकर रास्तालिया और कहता जाताहै कि-क्या ! खूबआदमीहै-जो-छातीपर गिराहुवा-बेंरभी-उठा नहींसकता, बशर्तेकि-हाथपेर-दुरुस्तहै फिरभी यह हालतहै,
[एक कंजूसका किस्सा.] ५-एक कंजूस अपने घरमें रातकों अकेला सोरहाथा, इत्तिफाकन ! एक चूहा-उसके-पेटपर होकर इधरसे उधर चला गया, फौरन ! कंजूस नींदसे चौंक उठा, और कहनेलगा, हाय ! मान गये, हाय ! मान गये, इसतरह गाफिल होकर बेइख्तियार रोने
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