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तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. (२२१.) ___ मंदिरके बीच जो समवसरणका आकार बनाहुवाहै तीर्थकर अजितनाथ महाराजके केवल ज्ञानकल्याणककी स्थापना और कदम उसमे तख्तनशीनहै, उपरकीतर्फ एककोंनेमें अभिनंदनजीके कदम -एकमें मुमतिनाथजीके कदम-एकमें अनंतनाथजीके और-एकमें -रिषभदेव महाराजके कदम जायेनशीनहै, नीचेकी तर्फ एककोंनेमें पांचभगवानके चवन कल्याणक-एकमें पांचभगवानके जन्मकल्याक-एकमें चारभगवानके-दीक्षा कल्याणक-और-एकमें चारभगवानके गणधरोंके कदम और पांचभगवानके यक्षयक्षणी बनेहुवे है, अयोध्यामे तीर्थकर रिषभदेवजीके तीनकल्याणक चवन जन्मदीक्षा, अजितनाथजीके चारकल्याणक-चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञान, अभिनंदनजीके चारकल्याणक-सुमतिनाथजीके चारकल्याणक-और-अनंतनाथजीके चारकल्याणक--कुल्ल (१९) कल्या णक हुवे, तीर्थकर रिषभदेव महाराजका-केवलज्ञान कल्याणकभी यहांही हुवाथा. मगर वह इसजगहसे थोडी दूरपर पुरिमतालनामका शाखानगरथा इसलिये जुदागिनागया.
धर्मशाला यहांपर (२) बडीपुख्ता बनीहुइहै-एक रायबहादूर बुधसिंहजी-साकीन मुर्शिदाबादकी और-एक पंचायती, यात्री जहां मरजीहो ठहरे, तीर्थ अयोध्याका कारखाना-यहांपर बनाहुवा है, मुनीम-गुमास्ते-नोकर चाकर पूजारी चौकीदार वगेरा मौजूदहै यात्री इसमें जोकुछ देनाचाहे देवे. जिसके बडेभाग्यहो ऐसे तीर्थकी जियारतकरे, कइदफे तुम देहलीसे कलकत्ता-और-कलकत्तेसे देहली आयेगये, मगर अयोध्याकी जियारतसें मेहरूमरहे. अगर तुमारा खयालहोकि-फिरकभी जियारत करलेयगे तो यह खयाल गलतहै, जिंदगीका कोइभरूसा नही. जोकुछ धर्मकाम करलिया वही अपनाहै, वैदिकमजहबवालेभी अयोध्याको तीर्थ मानते है,
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