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( २२० ) तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. अंधेरा-न-हो, और राजाकी शर्तथीकि-जबतक-चिराग-न-बुझे इबादतकरतारहु, गरज कि-सवेरतक राजा इबादत करतारहा,
और नोकरके उपरविल्कुल नाराजी नही लाया, बल्कि ! उसकी खिदमत अपनी इबादतमें व-खूबी समझी.
तीर्थकर महावीर स्वामीके नवमें गणधर इसीअयोध्याके रहने वालेथे, करीब (४००) वर्ष पेस्तर जैनश्वेतांबर श्रावकोंके घर अयोध्या-बहुतथे, आजकल एकभी नहीरहा, फैजाबादसे (६) मील पूर्वोत्तर सरयूके दाहने कनारे अयोध्याकी आवादी फैलीहुइहै जमाने हालमें अयोध्याकी मर्दुमशुमारी करीब ( १४००० ) मनुप्योकी-बाजारमें हरेक किसमकी चीजें मिलसकती है, सरयूकनारे सोहावनेघाट बनेहुवे और बडीरवन्नक रहती है,-बगीचा अवध नरेशका-और-महल काबिलदेखनेकेहै, सरयूकी तरीसें वनास्पति यहां ज्यादह-और बंदरोकी तरक्की इसकदर बढीहुइहैकिजराभी नजर चुकजायतो हरेक चीज उठाजातेहै, कितनाही इंतजामकरो हाथमेसेभी चीज लेजानेकों मुस्तेज रहते है, अयोध्याके इर्दगीर्द-बहुतसी इमारतोंके निशान दूरदूरतक पायेजाते है इससे मालूमहोताहै पेस्तर बहुतवडी नगरीथी, जोकोइ जैनश्वेतांवरयात्री अयोध्यामें कदमरखे कटरामहोला तलाशकरे, जैनश्वेतांबर मंदिर धर्मशाला-और-कारखाना बनाहुवाहै, यात्री धर्मशालामें जाकर कयामकरे. और निहायत खूबसुरत शिखरबंद मंदिर जोकि-तीर्थकर अजितनाथ महाराजका बनाहुवाहै दर्शनकरे, मूलनायक तीर्थकर अजितनाथ महाराजकी मूर्ति करीव एकहाथ बडी इसमें तख्तनशीनहै. अलावा इसके तीन मूर्तिये औरभी इसमें जायेनशीनहै जिनके नाम रिषभदेव-अभिनंदन-और-महावीर स्वामी है,
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