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दिवाचा. राकोइ एसानिशान नहीपाया जाताकि-कोनसे मजहबवालोकी यह गुफाहै. मगर दोतीनसवुत एसेमिलते है जिससे मालूमहोताहैकियहगुफा जैनोकीथी, उपरलिखेहुवे शिलालेखकी शुरुआतमें नमोअरिहंताणं एसापाठलिखाहै, और बारहमी पंक्तिमें नंदराजनितस अगजिनस-एसा पाठभी मौजूदहै, इससे मालूम होताहै नंदराजाने लायाहुवा अग-या-अरनाथजिनका कुछहालहै, मगरअपसोसहैकि आगेका लेख टुटगया है, चौदहमी पंक्तिमें लिखाहैकि-कुमारी पवते अरहतोपनिवासे-निषिद्यां-एसालिखाहै, इसमें अरहदउपनिवासका वयानहै, इनसबुतोंसें पायाजाताहैकि-यह गुफा पेस्तर जैनोकीथी, मोर्यराज्यके संवत् (१६५) में यहलेख लिखागयाहै, इससे मालूम होताहैकि-खारवेलराजा इस्वीसनके (१५७ ) वर्स पेस्तर मौजूद था, अरहंतपसादानंकलिंगानंसमनानं-एसापाठहै, इससे मालूमहोता है, यहगुफा कलिंगमें रहनेवाले जैनश्रमणोके लिये बनाइ गइथी,चंद्रगुप्तकाबेटा बिंदुसारहुवा,यहभी जैनथा, बिंदुसारका बेटा अशोक हुवा, यहबौधथा, राजामियदर्शी अशोकके-शिलालेख-जो हिंदमें बौध धर्मफेबारेमें कइजगह देखतेहो, इसी अशोकके समजिये, अशोकका बेटा कुणालहुवा, और कुणालका बेटा राजासंपतिहुवा, तीर्थकर महावीरस्वामीकेबाद (२९०) वर्स पीछे राजासंपति मौजूदथा, और उसकी राजधानी शहर उजेनमें कायमथी, और यह जैनमजहबपर पावंदथा, जैनाचार्य आर्यमुहस्ती महाराजकी धर्मतालीमसें इसकों इसकदर दिलजमाइ होगइथीकि-दुनियामें आलादर्जेकी चीजधर्म है, इसने वहुतसे जैन मंदिर और जैनमूर्तिये तामीरकरवाइ, तीर्थशत्रुजय गिरनारपर अबभी उसकेबनायेहुवे-जैनमंदिर-मौजूदहै, तीर्थंकरमहावीरके निर्वाणवाद (४७०) वर्स पीछे, उज्जेनके तख्तपर विक्रमादित्यहवा, जिसका संवत् अबतक जारीहै, संवत् (१०८) में मुल्क
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