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( १८४ ) तवारिख-तीर्थ-हस्तिनापुर. ताकि-कबुतर-चिडीया वगेरा इसमें-न-जासके, मंदिरके पासजमीन-जहोंरीपरतापचंदजी पारसानकी खरिदीहुइ मौजूदहै अगर कोइ खुशनसीव यात्री यहां दुसरी धर्मशाला-या-मंदिरबनवाना चाहे बना सकते है, इसकी जेर निगरानी आजकल देहलीके जैनश्वेतांबर श्रावकोके ताल्लुकहै, जोकुछ चढापा मंदिरमें चढताहै भंडारमें जमाहोती है. और पूजारीकी तनखाह मुकररहै,
तीर्थकर रिषभदेव महाराजके कदमोकी छत्री-जो-उत्तरतर्फ सवामीलके फासलेपर बनीहुइहै, इसकी पूजावगेरेका इंतजामभी जैनश्वेतांबर संघके ताल्लुकहै, असलमें पुरानीजगह यही है, मंदिरसे छत्रीतकजाते रास्तेमें जो-नाला-आताहै, बहुतसे खजुरीके पेंड-और--ककडी-खरबुजे-कुष्मांड--घियावगेरा यहां कसरतसे पैदाहोते है. पानीयहांपर जमीनमें बहुतनजदीक अगर पांचहाथजमीन खोदीजावे फौरन ! पानी निकलआताहै, जगह सोहावनी और तरहतरहकी जडीबुटीयें यहांपरखडी है, छत्रीमें तीर्थकर रिषभदेव भगवानके कदमतख्तनशीनहै यात्री वहांजाकर दर्शनकरे, छत्री पुरानीहोजानेकी वजहसे इसकीमरम्मत होनादरकारहै, दिवारे इसकी टेडीपडगइहै और कहींकहीं दराजेभी नजरआती है. अगर कोइयात्री इसकी मरम्मत करानाचाहे करीब (५०००) रुपये लगेगे अतराफ छत्रीकेहाता लोहेकेसिकचोंका बनवादियाजाय-और-एक मजबूतदरवजा तयारकरके उसकेकिवाड वनादियेजाय-तो-छत्री की हिफाजतहोगी,-छत्रीपर वेठकर चारोतर्फ नजरकरते है तो शिवाय जंगलके दुसरीकोइचीज नजरनहीआती, चारकोशके फासलेपर गंगानदीकी धारा वहरही है और जगह बहुतही सुहावनी दिखाइदेती है जिसकेवडेभाग्यहो-ऐसे-तीर्थकी जियारतकरे, छत्रीके दर्शनकरके यात्री वापिस धर्मशालामें आवे. जहांसेगयेथे,
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