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(१३४ ) तवारिख-तीर्थ- बंभणबाड. एक-गोवालीयेने ऊनकेकानोमें दो-मेखां-लकडेकीलगाइ, और जब-वे-मध्यमअपापानगरीकोंगये वहांकरहनेवाले सिद्धार्थवणिक
और-खरकनामकेवैद्यने-ऊनोकेकानसे बडीकोशिकेशाथ मेखां निकाली, कल्पसूत्रका पाठ और सबहकीकत आगेचलकरलिखेगे जहांकि-मुल्कपूरवके जैनतीर्थोका क्यान करेंगे, असलवात मूल्क पूरवमें वनीथी पीछेसें यहां उनकी-नकल-किइगइहै, वंभणवाडसें यात्री नादियागांवको जावे, जोकि-दोकोशकेफासलेपरवाके है,
औरयहांपर तीर्थकरमहावीरस्वामीका बडाआलिशानमंदिर बनाहुवा है जियारतकरे, गांवनादियाके बहार एकछोटी पहाडीकी खोहमेंतीर्थकरमहावीरस्वामीकी मूर्ति पहाडमेऊकेरीहुइ-और-एकशिलापर सर्पका निशानबनाहै जिससांपकानाम चंडकौशिक था-और इन्होके पांवकों काटाथा, जब उससर्पको तालीमधर्मकीदिइ उसका गुस्सा उतरगयाथा, और-वहधर्मी होगयाथा. यह माजराभी मुकपूरवकाही है, जब तीर्थकरमहावीर श्वेतांबिकानगरीकों जातेथेकनकखलतापसाश्रमके पास-चंडकौशिकनामके सर्पनेऊनकेपांवकों काटाथा, ऊसकी नकल यहांपरवनाइगइहै, जैसे रायणक्ष (यानी) खिरनीद्ररुतके नीचे तीर्थकर रिषभदेवस्वामीका पधारना तीर्थशबुजयपरहुवाथा-मगर-स्थापना-उसकी औरभी कइजगह किइगइ है इसीतरह यहभी माजरा समझलो, ... कल्पसूत्रमे देखो साफवयानहै तीर्थकरमहावीर छदमस्थ-हालतमें-मुल्कपूरवतर्फही विचरतेरहे मारवाडमें नहीपधारे, नादिया आसपास-लोटाणा-अंजारी-शिरोहीवगेराभी जैनोकी आबादीके -मुकामहै, और बडेबडेजैनश्वेतांबरमंदिर वहांपरबनेहुवे है, अगरफुरसतहोतो वहांभी जानाचाहिये, अगर कमफुरसतहो-तो-नादियासे वापिस बंभणवाड-और-वंभणवाडसे उसीरास्ते देशनपींडवाड़ेआना,
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