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।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ५० ।।
अपद हि है। ता जोही आधार द्रश्यनामा मनुष्याण का है सोशी आय गाय पर्यायनिता है ऐसें अर्थकरि अभेदवृत्ति है । तथा जोही अभिन्नभावरूप तादात्म्यलक्षण संबंध मनुष्यपणांक है, सोही अन्य सर्व गुणनिकै है, ऐसें संबंधकरि अभेदवृत्ति है । तथा जोही उपकार मनुष्यपणांकरि अपने स्वरूप करणां है, सोही अन्य अवशेषगुणनिकरि कीजिये है, ऐसे उपकारकरि अभेदवृत्ति है। तथा जोही गुणीका देश मनुष्यपणांका है सोही अन्य गुणनिका है ऐसे गुणिदेशकरि अभेदवृत्ति है । | तथा जोही एक वस्तुस्वरूपकरि मनुष्यपणांका संसर्ग है, सोही अन्य अवशेष धर्मनिका है, ऐसे संसर्गकरि अभेदवृत्ति है । तथा जोही मनुष्य ऐसा शब्द मनुष्यस्वरूप वस्तूका वाचक है, सोही अन्य अवशेष अनेक धर्मोका है, ऐसे शब्दकरि अभेदवृत्ति है ॥ ऐसें पर्यायार्थिकनयके गौण होते द्रव्यार्थिकनयकी प्रधानतातें अभेदवृत्ति बणै है ॥
बहुरि द्रव्यार्थिक नय गौण होते पर्यायार्थिक प्रधान करतै कालादिककी अभेदवृत्ति अष्टप्रकार | न संभव है, सोभी कहिये है । क्षणक्षणप्रति मनुष्यपणां और और गुणपर्यायरूप है । तातें सर्वगुणपर्यायनिका भिन्न काल है । एककाल एकमनुष्यपणांविर्षे अनेकगुण संभवै नाही । जो संभवै तौ गुणनिका आश्रयरूप जो मनुष्यनामा वस्तु सो जेते गुणपर्याय है तेते ठहरै । तातें
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