Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवसुत्ताणि लियं उत्तरज्झयणाणि नं दी अणुओगदाराई ववहारो निसी साहज्झयण आवस्सय दसवेआदि साओ कप्पा वन । वाचनाप्रमुरवः गणाधिपति तुलसी संपादकः आचार्य महाप्रज्ञ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादन का कार्य सरल नहीं है-यह उन्हें सुविदित है, जिन्होंने इस दिशा में कोई प्रयल किया है। दो-ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य और भी जटिल है, जिनकी भाषा और भाव-धारा आज की भाषा और भाव-धारा से बहुत व्यवधान पा चुकी है। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निग्गंथं पावयणं नवसुत्ताणि आवस्सयं • दसवेआलियं . उत्तरज्झयणाणि . नंदी • अणुओगदाराई • दसाओ • कप्पो • ववहारो • निसीहज्झयणं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक : आचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ © जैन विश्व भारती प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं-३४१३०६ सौजन्य : श्री छोटूलाल सेठिया चेरिटेबल ट्रस्ट संठिया हाऊस, २३/२४, राधा बाजार स्ट्रीट कलकत्ता-७००००१ प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया द्वितीय संस्करण : विक्रम संवत् २०५७ वीर निर्वाण संवत् २५२७ मार्च, २००० पृष्ठांक : १३०० मूल्य : ६६५ रुपये मद्रक : श्री वर्धमान प्रेस नवीन शाहदरा, दिल्ली-११००३२ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Niggantham Pavayanam NAVA SUTTĀNI ÄVASSAYAM. DASAVEĀLIYAM . UTTARAJJHAYANANI . NANDI. ANUOGDARĀIM. DASÃO. KAPPO. VAVAHARO. NISĪHAJJHAYANAM (Original Text Critically Edited) Vācana-pramukha : ACHARYA TULSI Editor : ACHARYA MAHAPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JAIN VISHVA BHARATI, Ladnun Publisher : JAIN VISHVA BHARATI Ladnun-341 306 Coustery : Shree Chhotulal Sethia Charitable Trust, Sethia House, 23/24, Radha Bazar Street, Calcatta-700001 Managing Editor : Shrichand Rampuria Second Edition : Vikram Samvat 2057 Veer Nirvan Samvat 2527 March, 2000 Pages : 1300 Price Rs. 695 Printers : Shree Vardhaman Press Naveen Shahdara, Delhi-110032 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित मनिकंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी श्रण उसमें लगे। संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अतः मेरे इस अन्तसन्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूँ, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है : संपादक : आचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल शब्दकोश : मुनि सुदर्शन, मुनि हीरालाल, मुनि श्रीचन्द संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने। आचार्य तुलसी Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुट्टो वि पण्णा-पुरिसो सुदखो आगा- पहाणी जणि जस्स निच्च सच्चप्पओ गे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणपुव्वं ॥ , विलोडिय आगमदुद्धमेव, लद्ध सुलद्ध णवणीयमच्छ । सज्झाय सज्झाण- रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स प्पणिहाणपुखं ॥ पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभूओ एस पवायणस्स कालुस्स तस्स पणिहाणपुर्व ॥ समर्पण जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था । सत्य योग में प्रवर वित्त था, उसी भिक्षु को बिमल भाव से जिसने आगम दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत सद्ध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है १. आगम-सुत्त ग्रंथमाला - मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । २. आगम- अनुसंधान ग्रंथमाला - मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम- अनुशीलन ग्रंथमाला-आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रंथमाला-आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद | ५. वर्गीकृत - आगम ग्रंथमाला - आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण । प्रथम आगम-सुत्त ग्रंथमाला में निम्न ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं (१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि (२) आयारो तह आयारचूला (३) निसीहज्झयणं (४) ओवाइयं (५) समवाओ (६) अंगसुत्ताणि (भाग १) - इसमें आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग-ये चार अंग हैं । (७) अंगसुत्ताणि ( भाग २ ) - इसमें पंचम अंग भगवती है। (८) अंगसुत्ताणि (भाग ३) - इसमें ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं । (६) उवंगसुत्ताणि (भाग 4, खंड १) - इसमें आपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम-ये तीन अंग हैं। (१०) उवंगसुत्ताणि ( भाग 4, खंड २ ) - इसमें प्रज्ञापना, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, निरयावलिया, कप्पिया, पुष्फिआ, पुप्फचुलिआ, वहिदशा-ये नव उपांग हैं। उक्त में से प्रथम पांच ग्रंथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुए हैं एवं अंतिम पांच ग्रंथ जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हैं । द्वितीय आगम- अनुसंधान ग्रंथमाला में निम्न ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं (१) दसवे आलिय (६) आयारो (७) आचारांग भाष्य (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १, २) (३) ठाणं (४) समवाओ (८) भगवई भाष्य (भाग १, २) (६) नंदी (५) सूयगडो (भाग १, २) (१०) अणुओगद्दाराइं उक्त ग्रंथ जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। 1 तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रंथमाला में निम्न दो ग्रंथ निकल चुके हैं (१) दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन, (२) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौथी आगम-कथा ग्रंथमाला में अभी तक कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं(१) दशवेकालिक वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं. १), (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं. २)। छठी ग्रंथमाला में केवल आगम हिन्दी अनुवाद ग्रंथमाला के संस्करण के रूप में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' ग्रंथ का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दशवेकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। प्रस्तुत प्रकाशन नवसुत्ताणि (भाग ५) में (१) आवस्सयं, (२) दसवेआलियं, (३) उत्तरज्झयणाणि, (४) नंदी, (५) अणुओगद्दाराई, (६) दसाओ, (७) कप्पो, (८) ववहारो, (६) निसीहज्झयणं-इन नी आगमों का पाठान्तर सहित मूलपाठ मुद्रित है। भूमिका में इन ग्रंथों का संक्षेप में परिचय प्राप्त है, अतः यहां इस विषय पर प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। इस खंड में प्रस्तुत नी आगमों की शब्दसूची भी संलग्न है। शोधकर्ताओं के लिए वह बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में अनेक महानुभवों का सहयोग रहा है। 'नवसत्ताणि' ग्रंथ का प्रस्तुत संस्करण श्री छोटूलाल सेठिया चेरिटेबल ट्रस्ट के सौजन्य से प्रकाशित किया जा रहा है। इस ग्रंथ का पहला संस्करण आचार्य तुलसी अमृत-महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित हुआ, दूसरा संस्करण, सन् २००० में प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में पहुंच रहा है। आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्यश्री तुलगी और प्रधान संपादक तथा विवेचक हैं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी। इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रंथ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है। श्रीचंद रामपुरिया जैन विश्व भारती १७/१/२००० लाडनूं (राज.) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत भाग आगम साहित्य का पांचवां भाग है। इसमें नौ आगम हैं---आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नंदी, अणुओगदाराई, दसाओ, कप्पो, ववहारो और निसीहज्झयणं । इसमें नौ मागम हैं, इसलिये इसका नाम 'नवसुत्ताणि' रखा गया है। इसमें नौ आगमों का पाठान्तर सहित मूलपाठ है। प्रारंभ में संक्षिप्त भूमिका है । विस्तृत भूमिका इसके साथ सम्बद्ध नहीं हैं। उसके लिए स्वतन्त्र भाग की परिकल्पना है। इस खंड में प्रस्तुत नौ आगमों की शब्दसूची भी संलग्न है। यह शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत उपयोगी होगी। सम्पादन का कार्य सरल नहीं है-यह उन्हें सुविदित है, जिन्होंने इस दिशा में कोई प्रयत्न किया है। दो-ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य और भी जटिल है, जिनकी भाषा और भाव-धारा आज की भाषा और भाव-धारा से बहुत व्यवधान पा चुकी है। इतिहास की यह अपवाद-शून्य गति है कि जो विचार या आचार जिस आकार में आरब्ध होता है, वह उसी आकार में स्थिर नहीं रहता । या तो वह बड़ा हो जाता है या छोटा । यह ह्रास और विकास की कहानी ही परिवर्तन की कहानी है। और कोई भी आकार ऐसा नहीं है, जो कृत है और परिवर्तनशील नहीं है। परिवर्तनशील घटनाओं, तथ्यों, विचारों और आचारों के प्रति अपरिवर्तनशीलता का आग्रह मनुष्य को असत्य की ओर ले जाता है। सत्य का केन्द्र-बिन्दु यह है कि जो कृत है, वह सब परिवर्तनशील है। कृत या शाश्वत भी ऐसा क्या है, जहां परिवर्तन का स्पर्श न हो। इस विश्व में जो है, वह वही है जिसकी सत्ता शाश्वत और परिवर्तन की धारा से सर्वथा विभक्त नहीं है। शब्द की परिधि में बंधने वाला कोई भी सत्य क्या ऐसा हो सकता है जो तीनों कालों में समान रूप से प्रकाशित रहे सके ? शब्द के अर्थ का उत्कर्ष या अपकर्ष होता है—भाषा-शास्त्र के इस नियम को जानने वाला यह आग्रह नहीं रख सकता कि दो हजार वर्ष पुराने शब्द का आज वही अर्थ सही है, जो आज प्रचलित है। 'पाषण्ड' शब्द को जो अर्थ आगम-ग्रन्थों और अशोक के शिलालेखों में है, वह आज के श्रमण-साहित्य में नहीं है। आज उसका अपकर्ष हो चुका है। आगमसाहित्य के सैकड़ों शब्दों की यही कहानी है कि वे आज अपने मौलिक अर्थ का प्रकाशन नहीं दे रहे हैं। इस स्थिति में हर चिन्तनशील व्यक्ति अनुभव कर सकता है कि प्राचीन साहित्य के सम्पादन का काम कितना दुरूह है। मनुष्य अपनी शक्ति में विश्वास करता है और अपने पौरुष से खेलता है, अतः वह किसी भी कार्य को इसलिए नहीं छोड़ देता कि वह दुरूह है। यदि यह पलायन की प्रवृत्ति होती तो प्राप्य की सम्भावना नष्ट ही नहीं हो जाती किन्तु आज जो प्राप्त है, वह अतीत के किसी भी क्षण में विलुप्त Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ हो जाता। आज से हजार वर्ष पहले नवांगी टीकाकार ( अभयदेव सूरि ) के सामने अनेक कठिनाइयां थीं । उन्होंने उनकी चर्चा करते हुए लिखा है :-' १. सत् संप्रदाय (अर्थ-बोध की सम्यक् गुरु-परम्परा ) प्राप्त नहीं है । २, सत् ऊह ( अर्थ की आलोचनात्मक कृति या स्थिति) प्राप्त नहीं है । ३. अनेक वाचनाएं (आगमिक अध्यापन की पद्धतियां ) हैं । ४, पुस्तकें अशुद्ध हैं । ५. कृतियां सूत्रात्मक होने के कारण बहुत गंभीर हैं । ६. अर्थ विषयक मतभेद भी हैं। इन सारी कठिनाइयों के उपरान्त भी उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोड़ा और वे कुछ कर गए । कठिनाइयां आज भी कम नहीं हैं । किन्तु उनके होते हुए भी आचार्य श्री तुलसी ने आगमसम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया। उनके शक्तिशाली हाथों का स्पर्श पा कर निष्प्राण भी प्राणवान् बन जाता है तो भला आगम- साहित्य जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बड़ी बात है ? बड़ी बात यह है कि आचार्य श्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साधुसाध्वियों की असमर्थ अंगुलियों द्वारा कराने का प्रयत्न किया है । सम्पादन कार्य में हमें आचार्यश्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है किन्तु मार्गदर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है । आचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए अपना पर्याप्त समय दिया है । उनके मार्गदर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का संबल पर हम अनेक दुस्तर धाराओं का पार पाने में समर्थ हुए हैं। नौ आगम-ग्रन्थ आवश्यक प्रस्तुत सूत्र का पाठ आवश्यकनिर्युक्ति, आवश्यकचूर्णि आवश्यक की हारिभद्रीयवृत्तितथा आवश्यक के आदर्शों के आधार पर निर्धारित किया है। दशवेकालिक : उत्तराध्ययन दशवेकालिक का जो पाठ हमने स्वीकार किया है, उसका मुख्य आधार 'ख' प्रति है । किन्तु पूर्णतः मुख्यता किसी की भी नहीं है । आदि से अन्त तक कोई भी प्रति शुद्ध नहीं मिलती । ५।१३११८ में 'कुमुदुप्पल नालिय' यह पाठ अगस्त्य चूर्णि में है । हमने वही स्वीकृत किया है । चूर्णि की भाषा में और की बहुलता है । जैसे - इत्थितो ( इत्थिओ ) (२/२), सतणाणि ( सयणाणि) (२२), जति जई (२६), त का लोप प्रायः नहीं किया गया है। ये प्रयोग प्राचीन अवश्य हैं पर हम लोग प्राकृत १. स्थानांगवृत्ति, प्रशस्ति, श्लोक १,२ : सत्सम्प्रदाय हीनत्वात् सदृहस्य वियोगतः । सर्वस्वपरशास्त्राणामवृष्टेरस्मृतेश्च मे ॥ वाचनानामनेकत्वात् पुस्तकानामशुद्धितः । सूत्राणामतिगाम्भीर्याव् मतभेदाच्च कुत्रचित् ॥ २. हेमशब्दानुशासन, ८।१।१७७ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ व्याकरण की सीमा में घिरे हुए हैं, इसलिए वे हमारे लिए अपरिचित हो गए हैं। 'ध' को 'ह' भी प्रायः नहीं किया गया है। जैसे- मधुकार (महुकार ११५ ), साधीणे ( साहीणे २।३) । सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया का प्रयोग हुआ है। जैसे - अहागडेहि (अहागडे ११४ ) | उत्तराध्ययन का पाठ भी आदि से अन्त तक किसी एक प्रति के आधार पर स्वीकृत नहीं किया गया है । पाठ संशोधन में प्रयुक्त सभी आदर्शों में ३६।६५ का एक शब्द 'पुहत्तेण' है । अर्थ की दृष्टि से यहां 'पुहुत्तेण' होना चाहिए। बृहद्वृत्ति (पत्र ६८६ ) में इसके तीन अर्थ किए गए हैं - महत्व, बहुत्व और सामस्त्य | ये तीनों पृथु शब्द के अर्थ हो सकते हैं, पृथक् शब्द के नहीं । अभिधान चिंतामणिकोष (६। ६५) में पृथु शब्द के पर्यायवाची नामों में महत् और बहु दोनों शब्द हैं । बृहद्वृत्ति ( पत्र ६८६ ) में पृथक्त्वेन मुद्रित हुआ है, वह सम्भवतः लिपि दोष के कारण हुआ है । उसका मुद्रित मूल पाठ 'पुहुत्ते"' है । उक्त अर्थ के पर्यालोचन और उपलब्ध मुद्रित पाठ के आधार पर हमने 'ते' पाठ स्वीकृत किया है । इस प्रकार और भी अनेक पाठ चूर्णि और बृहद्वृत्ति के अर्थालोचनपूर्वक स्वीकृत किए गए हैं । चौंतीसवें अध्ययन में 'पद्मलेश्या' के लिए 'पम्हलेस्सा' शब्द का प्रयोग हुआ है। पम्ह शब्द संस्कृत ' पक्ष्म' का प्राकृत रूपान्तर है । 'पद्म शब्द के दो प्राकृत रूप बनते हैं- पउम' और 'पम्म । किन्तु 'पम्ह' रूप नहीं बनता । गोम्मटसार के लेश्या मार्गणाधिकार में पद्मलेश्या के लिए पम्म और 'परम' - दोनों शब्द प्रयुक्त हुए हैं । हमने 'पम्ह' शब्द ही रखा है। क्योंकि पाठ संशोधन में प्रयुक्त या अन्य किसी भी आदर्श में पम्म' या पउम' शब्द नहीं मिला । दशवेकालिक और उत्तराध्ययन के उद्धृत पाठ दशवेकालिक और उत्तराध्ययन- ये दोनों सूत्र ने अपनी-अपनी रचनाओं से स्थान-स्थान पर इन्हें प्रारम्भ से ही बहुचर्चित रहें हैं । अनेक आचार्यों उद्धृत किया है । ये उद्धृत पाठ शब्द और भाषा की दृष्टि से कुछ परिवर्तित रूप में प्राप्त होते हैं। यह भिन्नता क्षेत्र, काल और परम्परा के भेद के कारण हुई, ऐसा प्रतीत होता । इन भिन्नताओं के कुछेक उदाहरण ये हैं : मूलपाठ वितहं पि तहामुत जं गिरं भासए नरो । तम्हा सो पुट्ठो पावेगं कि पुण जो मुसं वए ? ॥ ( दशकालिक ७/५ ) बृहत्कल्प भाष्य, भाग २, पृष्ठ २६० पर उद्धृत पाठवितहं पि तहामुति, जो तहा भासए नरो । सोविता पुट्ठो पावेगं कि पुणं जो मुसं वए ? "" मूलपाठ तिण्हमन्नयरागस्स निसेज्जा जस्स कप्पई । जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो ॥ ( दशवैकालिक ६:५६ ) १. हेमशब्दानुशासन, ८१११८७ २. गोम्मटसार ( जीवकाण्ड), गाथा ४६२,५०२ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनके द्वारा उनकी जाति का ग्रहण कर लेना चाहिए।' 'सव्वे बेइंदिया, सव्वे तेइंदिया, सव्वे चउरिदिया, सव्वे पंचिदिया'--ये व्याख्या के शब्द आगे चलकर मूल पाठ बन गए। इसलिए टीकाकार ने उन्हें मूल मानकर उनकी व्याख्या की है। इसी प्रकार महाव्रतों के सूत्र-पाठ में भी कुछ सम्मिश्रण होने का उल्लेख मिलता है।' (४) व्याख्या का पाठ रूप में परिवर्तन उत्तराध्ययन २२।२४ में 'पंचमुट्ठीहि' ऐसा पाठ आया है। वास्तव में यह पाठ 'पंचट्टा' था । 'अट्टा' का अर्थ है 'मुष्टि' । पंच अट्टा अर्थात् पंचमुष्टि । पंचट्ठा शब्द अपरिचित था। बृहद्वृत्ति (पत्र ४९२) में पंचट्ठा का अर्थ पंचमुष्टि है । कालान्तर में यह व्याख्यागत अर्थ ही मूल पाठ बन गया । अन्य आगमों में भी ऐसे अनेक उदाहरण हमें प्राप्त हए हैं। दशवकालिकः प्रति-परिचय (क) दशवकालिक पाठ और अवचूरी (हस्तलिखित) यह प्रति हमारे 'संघीय संग्रहालय' लाडनूं की है । इसके पत्र १७ व पृष्ठ ३४ हैं। प्रत्येक पत्र लगभग १०१ इंच लम्बा व ४३ इन्च चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पंक्तियां १२-१३ व प्रत्येक पंक्ति में ४६ से ५३ तक अक्षर हैं । अवचूरी पाठ के चारों तरफ लिखी हुई है । प्रति काली स्याही से व गाथाओं की संख्या लाल स्याही से लिखी हुई है । प्रति के अन्त में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति (पुष्पिका) है : ॥१० दशवकालिक समाप्तमिति ।ब। संवत् १५०३ वर्षे आषाढ़ मासे कृष्ण पक्षे चतुर्थी दिने शनिवारे ।। दशवैलिखितं ।। सुन्दरसंवेगगणि योग्यं ।। (ख) दशवकालिक पाठ और अवचूरी (हस्तलिखित) ____ यह प्रति भी हमारे ‘संघीय संग्रहालय' लाडनूं की है। इसके पत्र १६ व पृष्ठ ३८ हैं। प्रत्येक पत्र लगभग १०१ इंच लम्बा व ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पंक्तियां १३ व प्रत्येक १. अगस्त्यचूणि, पृष्ठ ७७ : कीडवयणेण तज्जातीयगहणमिति सव्वे बेइंदिया घेप्पंति । पयंगगहणेण चरिदिया। कंथ पिवीलियाभिहाणेण तिदिया। २. हारिभद्रीयटीका, पत्र १४२ : ये च कीटपतङ्गा इत्यत्र कीटा- कृमयः, 'एकग्रहणे तज्जातीयग्रहण' मिति द्वीन्द्रियाः शङ्कादयोऽपि गृह्यन्ते, पतङ्गा-शलभा, अत्रापि पूर्ववच्चतुरिन्द्रिया""सर्व एव गृह्यन्ते, अत एवाहसर्वे द्वीन्द्रियाः-कृम्यादयः, सर्वे श्रीन्द्रिया:--कुन्थ्वादयः, सर्वे चतुरिन्द्रिया:-पतङ्गादयः ।... सर्वे पञ्चेन्द्रियाः सामान्यतः । ३. अगस्त्यचूणि, पृष्ठ ८१: केति सुत्तमियं पढन्ति, केति वृत्तिगतं विसेसिति, जहा से तं पाणातिवाते चउविहे तं जहा दव्वतो, खेत्ततो, कालतो, भावतो । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ पंक्ति में ४४ से ४६ तक अक्षर हैं। अवचूरी पाठ के चारों तरफ लिखी हुई है। पाठ के अक्षर बड़े तथा अवचूरी के अक्षर छोटे हैं। प्रति काली स्याही से व गाथाओं की संख्या लाल स्याही से लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति (पुष्पिका) है : संवत् १४६६ वर्षे वशाख मासे प्रतिपदायां तिथौ रविवासरे ॥ लिखितं कर्मचन्द्रेण ॥ (ग) दशवकालिक पाठ और अवचूरी (हस्तलिखित) यह प्रति भी हमारे 'संघीय संग्रहालय' लाडनूं की है। इसके पत्र १६ व पृष्ठ ३२ हैं। प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पंक्तियां १४ व प्रत्येक पंक्ति में ५२ से ५७ तक अक्षर हैं । अवचूरी पाठ के चारों तरफ लिखी हुई है। पाठ के अक्षर बड़े तथा अवचूरी के अक्षर छोटे हैं। प्रति काली स्याही से व गाथाओं की संख्या व पद लाल स्याही से लिखे गए हैं। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति (पुष्पिका) है : दसवेयालियं सुयक्खंधो समत्तो ॥ब।। शिवमस्तु चिरं विजीयात् ।। सं० १४०० वर्षे भाद्रपद सुदि ११ तिथौ शुक्रवासरे समस्त देशाधिदेशे श्री मालवकाख्ये तन्मध्यवत्तिन्यां महापुर्यामवंत्यां पातसाह श्री महसुंदर राज्ये पं० श्री विशाल कीर्ति पूज्यानां पादप्रसादाद्देपाकेन लिखितमिति । (घ) दशवकालिक पाठ और अवचूरी (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास 'गधया संग्रहालय', सरदारशहर की है । इसके पत्र ३२ व पृष्ठ ६४ हैं। प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पंक्तियां ८ से १३ व प्रत्येक पंक्ति में २६ से ३२ तक अक्षर हैं। अवचरी पाठ के चारों तरफ लिखी हुई है। पाठ के अक्षर बड़े तथा अवचरी के अक्षर छोटे हैं। प्रति काली स्याही से व गाथाओं के संख्यांक लाल स्याही से लिखे हुए हैं। यह प्रति अनुमामत: १४ वीं शताब्दी की लिखी हई होनी चाहिए। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति (पुष्पिका) है : इति श्री दसवैकालिक सूत्रं समाप्तं । लिखितं ॥ बा० श्री साधु विजयगणिभिः कल्याणमस्तु सर्व-जंतोः लेखकपाठकयोः भद्रं भूयात् ।। (अचू) अगस्यसिंह स्थविर कृत (जैसलमेर भंडारस्थ) ताडपत्रीय दशवकालिक चूर्णि इसकी फोटो-प्रिन्ट प्रति 'सेठिया पुस्तकालय', सुजानगढ़ की है । इसकी पत्र-संख्या १६५ व पृष्ठ ३३० हैं। पत्र क्रमांक संख्या १७७ से ३४२ तक है। फोटो-प्रिन्ट पत्र-संख्या ३६ तथा एक पृष्ठ में करीब ९-१० पृष्ठों के फोटो हैं । किसी में ७-८ भी हैं । प्रत्येक पत्र १४ इंच लम्बा व ३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में ४ या ५ पंक्तियां हैं। कही पंक्तियां अधूरी हैं । प्रत्येक पंक्ति में १४८ के करीब अक्षर हैं । यह फोटो-प्रिन्ट प्रति मुनि श्री पुण्यविजयजी से उपलब्ध हुई है। (जि०) जिनदासमहत्तर कृत दशवैकालिक की चूणि (मुद्रित) श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी पेढी-मुकाम रतलाम, जैनबन्धु प्रिन्टिग प्रेस इन्दौर, वि० सं० १९८६ में प्रकाशित । पृष्ठ ३८० । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० (ह, हा, हाटी०) हारिभद्रीय दशवकालिक को टीका (मुद्रित) शाह नगीन भाई घेला भाई जव्हेरी, ४२६ जव्हेरी बाजार द्वारा निर्णयसागर मुद्रणालय कोल भाट गली बम्बई-२३ में मुद्रापित प्रकाशित । विक्रम संवत् १९७४ । पत्र २८६ । उत्तराध्ययन : प्रति-परिचय (अ) मूलपाठ सावचूरी (हस्तलिखित) यह प्रति हमारे 'संघीय-संग्रहालय' लाडनूं की है। इसके पत्र ६६ व पृष्ठ १६२ हैं । प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की ६ पंक्तियों से लेकर १४ पंक्तियां तक हैं । प्रत्येक पंक्ति में लगभग ३१ से ३४ तक अक्षर हैं। पाठ के चारों ओर अवचूरी लिखी हुई है। अवचरी से पाठ के अक्षर बड़े हैं । लिपि सुन्दर, शुद्ध एवं पढ़ने में स्पष्ट है। प्रति काली स्याही से व गाथाओं के संख्यांक व अध्ययनों की पूर्ति लाल स्याही से की गई है। यह विक्रम संवत् १५३८ में लिखी हई है । प्रति के अंत में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति (पुष्पिका) है : ।।इति षटत्रिंशदुत्तराध्ययनानामवचूरि समाप्ता: ।। श्री रस्तु ।। सं० १५३८ वर्षे विशाख सुदि १० रवि लिषितं ।। चिरं नंदंतु ॥१॥१ (आ) उत्तराध्ययन मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति छापर निवासी मोहनलाल दुधोडिया के संग्रहालय की है। इसके पत्र ८९ व पृष्ठ १७८ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर लगभग ३२ से ४० तक हैं । अक्षर बड़े तथा पढ़ने में स्पष्ट हैं। प्रति काली स्याही से व लेखक की प्रशस्ति लाल स्याही से लिखी हुई है। प्रशस्ति निम्न प्रकार है : ।संवत् १५६१ वर्षे श्री पत्तनपुरवरे श्री जिनवल्लभ सूरि संताने श्री खरतर गच्छेण नभोंगण दिनकर करणि सैद्धान्तिक सिरोमणि श्रीजिनभद्र सूरि श्री जिनचन्द्र सूरि तत्पट्ट प्रतिष्ठित श्री जिनभद्र सूरि पट्ट पूर्वाचल सहस्रकरावतार भाग्य सौभाग्य भंगी सुभग भालस्थल भट्टारक प्रभ श्री श्री श्री जिनहंस सूरि पट्टे श्री श्री श्री जिनमाणिक्य सूरिभिः सार्वभोग: वा० आणंद नंदन गणाय प्रसादी कृतेयं प्रति । (इ) उत्तराध्ययन मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति छापर निवासी मोहनलाल दुधोड़िया के संग्रहालय की है । इसके पत्र ३८ व पृष्ठ ७६ हैं । प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा व ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में १७ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर लगभग ५०-५१ हैं। अक्षर बड़े तथा पढ़ने में स्पष्ट हैं। प्रति काली स्याही से लिखी गई है। यह प्रति अनुमानत: १६ वीं शताब्दी में लिखी गई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति है : ॥इति श्रीमदुत्तराध्ययनश्रुतस्कंधः समाप्तः ।। परमाप्त प्रणीत: ।। छ । नियुक्तिकार एतन्माहात्म्यमाह ॥ जे किर भवसिद्धीया। परित्त संसारिया य जे भव्वा । ते किर पढंति एए छत्तीस उत्तरज्झाए तम्हा जिण पन्नत्ते। अणंतगम पज्जवेहिं संजुत्ते । अब्भाए जह जोगं। गुरुप्पसाया Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ अहिज्जिज्जा ॥२॥ जो ज्जागविहीइ वहित्ता एए जो लिहइ सुत्तं अच्छं व ॥ भासेइ य भवियजणो सो पालइ निज्जरा विउला ॥३॥ जस्साढत्ती एए कह विसमप्पंति विग्धरहियस्स । सो लक्खि ज्जइ भव्वो ॥ पुवरिसी एव भासंति ॥४॥छ।। शुभं भवतु ॥श्रीः।। (उ) उत्तराध्ययन पाठ व अवचूरी सहित (हस्तलिखित) यह प्रति जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, सरदारशहर की है। अनुमानत: सं० १५०० में लिखी हुई है। इसके पत्र ५६ व पृष्ठ ११८ हैं। पत्र १० इंच लम्बे और ४३ इंच चौड़े हैं। पत्र के दोनों तरफ । इंच का मार्जिन है। पाठ और अवचूरी काली स्याही से लिखी हुई हैं । श्लोकांक तथा माजिन को रेखाएं लाल स्याही में हैं। दोनों तरफ के मार्जिन के मध्य भाग में पाठ और चारों तरफ अवचरी है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की न्यूनतम ८ और अधिकतम १५ पंक्तियां हैं। प्रति के अन्त में निम्नलिखित प्रशस्ति है : इति श्री उत्तराध्ययनावचूरिः समाप्ता ॥ छ ।। श्री रस्तु ।। छ । ए प्रति भ० श्री विद्यासागर सूरि पूसरीया शिष्य शुयवाय कर्मसागरे प्रति लिधी कलकवल रहित सह । (श) उत्तराध्ययन पाठ व अवचूरी सहित (हस्तलिखित) यह प्रति जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, सरदारशहर की है। विक्रमाब्द १५३५ में लिखी गई है। इसके पत्र ७६ व पृष्ठ १५८ हैं। प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा और ४३ इंच चौड़ा है। यह प्रति काली स्याही से स्पष्ट लिखित है। इसके श्लोकांक तथा दोनों तरफ का मार्जिन लाल स्याही में है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की न्यूनतम ६ और अधिकतम १३ पंक्तियां हैं। अवचूरी मार्जिन तथा पाठ के ऊपर और नीचे के भाग में लिखी हुई है। अवचूरी के अक्षर से पाठ के अक्षर लगभग ड्योढे बड़े हैं। प्रति के अंत में निम्नलिखित प्रशस्ति है: लिखिता श्री उत्तराध्ययनावचूरिः स्वपरोपकृत्यः ।। शुभं भवतु ॥१।। सं० १५३५ वर्ष आसोज सुदि ५ भोमे अद्येह श्री। (स) उत्तराध्ययन सर्वार्थसिद्धि टीका सहित (हस्तलिखित) यह प्रति छापर निवासी मोहनलालजी दुधोडिया के संग्रहालय की है। इसके पत्र ३२३ और पृष्ठ ६४६ हैं किन्तु प्रारम्भ के १६ पत्र प्राप्त नहीं हैं। प्रति बहुत प्राचीन है। अनुमानत: १६वी शताब्दी में लिखी हुई होनी चाहिए। पत्र इतने जीर्ण हैं कि कभी-कभी हाथ के स्पर्श से खिरने लगते हैं। प्रति प्रायः बहुत शुद्ध लिखी हुई है। प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में १५ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में लगभग ५३-५४ अक्षर हैं। टीका और पाठ समान अक्षर में ही लिखा हुआ है। (सु) सुखबोधा टोका, नेमिचन्द्राचार्य कृत (मुद्रित) प्रकाशक :--देवचन्द्र लालभाई । (व) बृहद्वृत्ति 'शान्त्याचाय कृत' (मुद्रित-निर्णयसागर प्रेस, बम्बई) प्रकाशक :-देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धारे-ग्रन्थांक ३३ । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (चू) चूणि (गोपालिक महत्तर शिष्य कृत) श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धारे, ग्रंथांक ३३ । मोहमयीपत्तने वीर सम्वत् २४४२ । नंदो : प्रति-परिचय (क) नंदी मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र १५ व पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० करीब अक्षर हैं। यह प्रति १३१ इंच लम्बी तथा ५ इंच चौड़ी है। प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। पढ़ने में स्पष्ट व प्रायः शुद्ध है । लिपि सं० १५७६ । (ख) नंदी मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र २६ व पृष्ठ ५८ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० करीब अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है। प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट है। प्रति प्रायः शुद्ध है। लिपि सं० १६०० के करीब है। (ग) नंदी मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८७ व पृष्ठ १७४ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १६ पंक्तियां तथ। प्रत्येक पंक्ति में ७० करीब अक्षर है। यह प्रति १३३ इंच लम्बी तथा ५ इंच चौड़ी है । लिपि सं० १५७६ । (चू) चूणि मुद्रित मुनि पुण्य विजयजी द्वारा संपादित (पु) मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित नन्दी मूलपाठ (ह) मुनि पुण्यविजयजो द्वारा संपादित हारीभद्रीय टोका अनुयोगद्वार : प्रति-परिचय (क) अनुयोगद्वार मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र १७ और पृष्ठ ३४ हैं। प्रत्येक पत्र १३३ इंच लम्बा और करीब ५३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में १६ पंक्तियां हैं व प्रत्येक पंक्ति में पाठ के लगभग ७२ से ८० तक अक्षर हैं । अक्षर काली स्याही से लिखे गये हैं। प्रति के अंत में संवत् नहीं है किन्तु पत्रों को जीर्णता व लेखन शैली देखने से लगता है कि वि० सं० १५०० के लगभग लिखी गई हो। प्रति य प्रधान व संक्षिप्त पाठ की है। प्रति के अंत में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति (पुष्पिका) है अनुयोगद्वाराणि समाप्तानि ।। छ ।। ग्रंथाग्रं १५०० ।। छ ।। शोधिता प्रतिरियं वा० विमलकीति गणिना । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) बालावबोध सहित (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र १६२ और पृष्ठ ३२४ हैं। प्रत्येक पत्र ११ इंच लम्बा और ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में प्रायः १८ या १९ पंक्तियां हैं और किसी-किसी पृष्ठ में २-३.४ आदि १६ पंक्तियों में पाठ लिखा हुआ है। मध्य में पाठ व ऊपर-नीचे बालावबोध वात्तिका लिखी हुई है। पाठ के अक्षर कुछ बड़े और वात्तिका के अक्षर उसकी अपेक्षा से छोटे हैं। प्रत्येक पंक्ति में पाठ के लगभग २८ या २६ अक्षर हैं। प्रति अ प्रधान व विस्तीर्ण पाठ की है। पाठ के दोनों तरफ लाल स्याही की तीन-२ लाइनें खिची हुई हैं। और अक्षर काली स्याही से लिखे गए हैं। प्रति के अन्त में निम्नलिखित लेखक को प्रशस्ति है इति श्री अनुयोगद्वार सूत्र बालावबोधः समाप्तः ।। श्री मंगलं भूयात ॥ ॥ श्रीः।। ॥श्रीः ॥ ॥श्रीः॥ ॥ श्रीरस्तु ॥ ६ छ अणुओगदारा समत्ता ॥ छ । सोलस सयाणि चउरुत्तराणि, होंति उ इमंमि गाहाणं दुस्सहस्स मणुठ्ठभछंदवित्त परिमाणओ भणिओ १ णगर महादारा इव उवक्कम दाराणुओगवरदारा अक्खरबिंदु मत्ता लिहिआ दुक्खक्खयट्ठाए २ गाहा १६०४ अनुष्टुभ ग्रन्थ २००५ अनुयोगदारं सुत्तं समत्तं ॥ छ । श्री: ।। संवत्सरे ख निधि गज चन्द्र प्रमिते तपा मासे काया तिथौ मार्तण्ड सुत वासरे इयं पुस्तिका लिखिता जयपत्तने ।। ॥श्रीः ॥ ॥श्रीः ॥ ॥श्रीः ।। (ग) बालावबोध सहित त्रिपाठी (हस्तलिखित) यह प्रति तेरापंथी सभा, सरदारशहर की है। इसके पत्र १७५ पृष्ठ ३५० हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा व ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ पर १३ से १८ पंक्तियां हैं। मध्यभाग में पाठ व ऊपर नीचे वात्तिका लिखी हुई है। पाठ की पंक्तियां प्रायः १ से ८ तक है कहीं-कहीं १५ तक लिखी हई है। पाठ के अक्षर प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४५-४७ है। प्रति विस्तृत पाठ तथा अ प्रधान है । 'ख' प्रति तथा 'ग' प्रति दोनों एक वाचना की लगती है। 'क' प्रति अन्य वाचना की प्रतीत होती है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति है-- अणुओगदारा सम्मत्ता ॥ छ । सोलस सयाणि चउरुत्तराणि होति उ इमंमि गाहाणं दुसहस्समणुठ्ठभछंदवित्त परिमाणओ भणिओ १ णगर महादारा इव उवक्कमदाराणुओगवरदारा अक्खर-बिंदू-मत्ता लिहिआ दुक्खक्खयट्ठाए २ गाहा १६०४ अनुष्टुप ग्रन्थाग्र २००५ अणुओगदार सुत्तसमत्तं ।। छ । लिखित संवत् प्राप्त नहीं अनुमानिक १६ वीं शताब्दि की लिखी हई होनी चाहिए। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ (च्) अनुयोगद्वारचूर्ण जिनदासगणी रचित ( मुद्रित ) यह चूर्णी मुद्रित है । इसमें मूल पाठ नहीं दिया गया है। इसका प्रकाशन वीर सं० २४५४ विक्रम सं० १९८४ में रतलाम श्री ऋषभदेवजी केसरीमलजी श्वेताम्बर संस्था ने किया है यह पत्रा - कार है । इसके पृष्ठ ६१ हैं । यह प्रति जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा (कलकत्ता) की है । (हा) अनुयोगद्वारटीका हरिभद्र सूरि कृत ( मुद्रित ) यह वृत्ति मुद्रित है। इसमें मूल पाठ नहीं दिया गया है। इसका प्रकाशन रतलाम श्री ऋषभ - देवजी केसरीमलजी श्वेताम्बर संस्था ने किया है । यह पत्राकार है । इसके पृष्ठ १२८ है । वीर सं० २४५४ वि० सं० १९८४ । (हे ) मल्लधारी हेमचन्द्रसूरि कृत अनुयोगद्वारवृत्ति । मुद्रित । पत्राकार | प्रकाशक - श्री केशरबाई ज्ञानमंदिर, पाटण । वि० सं० १९६५ । ( क्वचित् ) (हस्तलिखित आदर्श ) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । हस्तलिखित वृत्ति : - पत्र १०५ पृ० २१० है । प्रत्येक पत्र में १८ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर हैं । प्रत्येक पत्र १३ इंच चौड़ा तथा ५ इंच लम्बा है । प्रशस्ति में लिखा है— सं० १५६४ वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्लपक्षे द्वितीयायां तिथो शनिवासरे मूलनक्षत्रे श्री योधपुर वरे राज श्री सूर्यमल्ल राज्ये विजयिनी लिखितमिदं लेखक माणिक्येन चिरं नंदतु वाच्यमानम् ||श्रीः || दशाश्रुतस्कंध : प्रति- परिचय (ग) मूलपाठ (हस्तलिखित) त्रिपाठी (ग) यह प्रति हमारे 'संघीय संग्रहालय' लाडनूं की है ? इसमें मूल पाठ की तक है । दोनों तरफ टीका की पंक्तियां ४ से २४ तक है । प्रत्येक पंक्ति में अक्षर अन्त में संवत् नहीं है । यह प्रति संभवतः १७ वीं शताब्दी की होनी चाहिए । ग्रंथाग्र १०३० इतना ही लिखा हुआ है । प्रति सुंदर है । (ता) ताड़पत्रीय फोटोप्रिंट (जेसलमेर भंडार ) पज्जोसवणाकप्पो प्रति- परिचय (क) मूलपाठ (सचित्र ) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय की है । इसके पत्र १५३ हैं । प्रत्येक पत्र में ७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में २० से २२ तक अक्षर हैं। प्रति बड़े अक्षरों में सुन्दर लिखी हुई है । इसमें करीब ५२ सुन्दर चित्र स्वर्ण स्याही से चित्रित हैं । प्रति प्रायः शुद्ध है । प्रति के अन्त में लिपि संवत् भादवा सुदी १२ लिखा हुआ है । परन्तु संवत् के अक्षर मूल अक्षरों से मेल नहीं खाते, इसलिए यह संवत् सही नहीं लगता । प्रति की लिपि के अनुसार संभवतः १६वीं शताब्दी की होनी चाहिए । (ख) मूलपाठ (सावचूरि ) पंचपाठी यह प्रति विनयसागर जयपुर द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ७३ य प्रत्येक पत्र में 8 पंक्तियां हैं पंक्तियां १ से १६ ६३-६८ तक हैं । अन्त में शुभं भवतु Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROO RE WHAT PostA Netrayal मधामस्वामी सायमा rajitneurga RAL परि मविवारसा तयामा फिलामजामायणाया अपरिणामसभणांसमसालासरसावरणाविहंगमावणे सादाणमा मारियानवयंचनिमि लामिात्याकान्सदमी हम मरतिपयुतमराटदामन कारसमाबाडतिष्ठाणिरियानापाऐंडरयाद शातिणदिसाजणाशीनामापकिदनुकासमा कांकाममनिवारणपएपपरिमायातासकएमवसे Maliवगंधमलकापसासयामाणियाबारदक्षिक निजात नासधारनवनीशाऊयकातीए वाला साहमिहिन सामागावयालणाम चाइनिजामालागारिबीता मियां निरशिक्षिा नसीमहीलानियोपियामा मानव निति ताविगावराणायायालयासी गलिक क्षमादाकमियररका विदाहिहासnिdles सादी मिसिमपरायणकादडलियोडासमरामाजिलियनयानाकालकायांप्रमाण CON" मनिवार RANDING MERICA masashurat areillanetHEORDERaptinentansatta STREEMharellamasan E YE MalamalenthemERRIERLDRANE ascende, men denaren asteanbie2MEERDERE की RALIAN TEACareenalrgAsaliliesty लि 'क' संज्ञक दसवेआलिय का प्रथम पृष्ठ (संघीय संग्रहालय, लाडनूं) Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'क' संज्ञक दसवेआलिय का अंतिम पृष्ठ (संघीय संग्रहालय, लाडन) M oveASAN PARTROUNDMENTENDERCORNERealesinIPREAL needINBalveeEpal Sangeelaetapelepeutral a Obsitarea/ HOUHame termila allayaNEMISHRESEARSurANatur chhaana Maintenepal JABARDAS AsplayTRALIANBHARATHISTAURRITERARMEReathereuatapattha. 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DEN uutensyel Satsale S uperficie Sa n destNSHAHRUNGDATTATRNFESenyaneInHEENISHMEDIEnjanema MEROLatestNELEBul y shataengapgaraalaayainatemel ARMERSATIOGR A MORRORRERMERREARNERINEETINEER nare HOME MEROPL Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mero कडाकपडाहाय नाकमा मासकामना निदेव बिसमामिलामाणीवितस्मसानहानद्याललिकानिनामदाटीप्रणाहिदायममैवापगोविद्यावावि मायानादिमिकामयसकमाणावरेवाविपरंप्रमाणाववासनादिवसियमसम्ममागणकिमि तमाशबाजधाणावर जाधवरनावारतकालिसपिरकाईचयागमणपणा किामका किवमकियाससकिी। मक्षणिकनममायरामिण किमयागंयाmasकिंववष्णोकिंवा खलिनविवजयामिचिएसमोद्ययासमाrmil पायानाविधका बावपासका णतकापणवाया नियकामानिजिमाष्टासतबीमा मारिकामानवियामिवश्कालीगाजासास्सिाजोगतिऽदिकस्यविमममरिमामनिवासमा लोपजीवी माजीबई मंसमजावि ध्याजवखमयोक्किावासविदियटिसममाविणसि अररिक संतापावासारिकामदास शिवमिदमिरमाण डिपपडिमासायदि सहामणगापिकामकालिग्रामविकादावला पाच मितानिहादियाद जायणाविद्यालिsan विद्यानबासकालिमाम 6 समासहिंसवीशकटामिणचाकमाणमाणीसम्मासापरिया धमकालावी समादा पदसणायकाहामिसबात दिसायलाकाठायविद्यालणासाउदा साखरकामासाथीसंवादवविद्याक्षामा लिएर यानिधार विवासरोलिखितकानि PRESEN 'ख' संज्ञक दसवेआलिय का अंतिम पृष्ठ (संघीय संग्रहालय, लाडनूं) Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COC कमयावधol महारणादायाणाशाज्ञासाम्यश्वकासालाणसायामाकाबंशाहाब्यात्यतरातदानमारतजमाशादविण्यादातराविया सातवाकादायमायणाय युणिमादिया। सदेचमाकरधोरिनियरुश्चनेतस्पनिहीं विकासकानावनादितिाएकार्पणासाकाविषमलातत्पश्चात्यायनवशमायालाई राणसालानाकावादिरिसदारयावका क्षामक्कररामीसिमिश्यातिानमा साबण्डनेसाबाजीमामाजादिबंधनावशवदासानलाईनाथताकारकावाया घाइत्यादिपरिमाननादिनिखकानादिस। विधरवितास्वत्यतिधाया अनगारस्या कासपीयरखानेतकारकरबदमातानचाद नादशाकायरुपमाचायादानाच्ययायननमालकायासाङागाविष्णमुक्करसणगाररसत्तामनिवामिवासनायिममा रणविण्यपानकरिस्मा माआपबिखणदामाश्याणाAMRATHI शनात्यारलागतेनिपुणामति गम्य प्रतिनिलिसवकमा निदसयारा यरूएंसा दवायकारणामयागारसंपने विनयी साधना सविनमारंवो। पवार के दिखला सविणीयतिखबई ग्राणायाणाहसया याकामादिवाशा सिवधयाकारवानादिवियरूरणमणवायका नायडिपीएंयसबाहधावणाएका रियामिप्रक यध्यामिक इलाकनादि अनायासाका घमित्याक्षायाका पूर्वायरिया शनिबावडाहास यमास्यरुगतान्यासयानाडाकाखाना कात्री निवासहाश्सवासावा पाहतबावरतीयाद्वितीया शता दितवाऽमिताकारसंपन्नासचिवालय उस्मालपडिणीसहरीनिकसिलामाकयाडयाचना कर्मयतानवसनासाजरसिमरवीका एखा वाताविनास्ताविनयविततिसूत्रपतवाञ्चविनीतासलवालवसरमाननास्पादायमावदानानिसानिराणनपराड्युरक्षमायाताबाभयानाच्या मजमानच्यातताधकरणादितिमाशाहोजायतकशावाशतिकसीनिमावयनकाशाएवाका निकावयानमवीनारकाव्यानुधमयावविख्यायितनवानाममा वनयधाममारणादायाणप्रत्यनाका दारागाछपदतवालसलावायस्यापरवामावदासलाकाापकारितयारिमकवयाततिमापातारास्वनयधारण प्रतिवनवासेना अविनयवान रस्यासुरवस्गासंबवलाधाविकामपातकालगरणाकातक्करमासोपवलीला उदाता 'अ' संज्ञक उत्तरज्झयणाणि का प्रथम पृष्ठ (संघीय संग्रहालय, लाडनूं) Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पपीतामाललियरकरवसायामहरिसिवरियाऽविविदवविद्याया आगमन लकवागायनापासामुक्षकक्षारकताविशारामाइविविद्धारा गाउदिवाणालावाणनिखरकरार नापिस्टागडायनामिछसमापनमा संयन्वाईविशारदिशक्षिा) स्तश्रीमावाद्याणवारवाललाया) सुपादसण्यामादिराया कीकीश्राधिकया अधमण्मक्षिणालाद एरिष्टतयाधण्याघेयाउरामायनसमवाधीलखितंविदारितंयमीरवरताल प्राझिनलघमाशिवाडिनसरियाहयामिनसमझारिदिडायगाछवायरनम ग्रामरासदारायाध्यायवाण्डायाकयाापाहायप धमादलासगणाना लिनुहिक निवामिनीवनमनिमलिसीविहिलाimaमारे। TAIN 'अ' संज्ञक उत्तरज्झयणाणि का अंतिम पृष्ठ (संघीय संग्रहालय, लाडनूं) Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MPLEASE BAnmol दारियाणानामामा एमामालासा यामापवनमुक्तार विसावसिण्डमेदवार 'क' संज्ञक पज्जोसणाकप्पो (कल्पसूत्र) का प्रथम पृष्ठ (जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय, लाडनूं) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DAISD9 Kn बाल 271422meme ESHPIMPAIN JUISPENSMISINI mcpanelelose kinerals मास्वकिया नाशिक AUR E RRE FACHAR १६मारवा मना होमवारणमाका वारीबापतीसावरा शतकर म साननियर यमनविवधु पाल्पोररूपराकाराजशिया रियर रक्षा यामध्यन्नमसिमिति प्रभावी बाददोष याकरण श कना 'क' संज्ञक पज्जोसणाकप्पो (कल्पसूत्र) का अंतिम पृष्ठ (जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रंथालय, लाडनूं) Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और प्रत्येक पंक्ति में लगभग ३२ अक्षर लिखे हए हैं। इसकी लंबाई १० व चौड़ाई ४३ इंच है। प्रति सुन्दर लिखी है । अन्त में लिपि संवत् नहीं है, अनुमानत: १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (ग) मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति विनयसागर जयपुर द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ५३ हैं, परन्तु प्रथम पत्र नहीं है । इसमें 8 पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४० अक्षर हैं। इसकी लंबाई १२ इंच व चौडाई ४१ इंच है । अन्त में निम्न पुष्पिका है ग्रन्थाग्र १२१६।। अहं श्री वीरवाक्याऽनुमतं सु पर्व कृतं यथा पर्युषणाख्यमेतत् । श्री कालिकाचार्यवरेण संघे तथा चतुर्था श्रृणु पंचमीत समग्र देशागत तसुवारं पु० । प्रति अनुमानत: १६वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (घ) मूलपाठ (हस्तलिखित) (घ) यह संक्षिप्त है। इसमें नमि से अजित तक वर्णन नहीं है। इसके स्थान पर इस प्रकार लिखा हुआ है-अथाग्रे चतुर्विशति २४ जिनानामं उत्तरकालम् । सूत्र १८३ से २२२ तक थेरावलि नहीं है। (चू०) चूणि (अ०) अवचूरि (कल्प कि) कल्पकिरणावलि कप्पो इसका प्रतिपरिचय प्रमादवश गुम हो गया, अत: उसका यहां समावेश नहीं हो पाया है । व्यवहार : प्रति-परिचय (क) व्यवहार मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्व भारती (लाडनूं) हस्तलिखित ग्रन्थालय की है। इसके पत्र १७ व प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४०-४३ अक्षर लिखे हुए हैं । यह प्रति ३ उद्देशक तक "ग" प्रति से प्रायः मिलती है और ३ उद्देशक के आगे ताड़पत्रीय प्रति के सदश है। इसकी लम्बाई १० व चौड़ाई ४ इंच है। प्रति सुन्दर लिखी हुई है । बीच में बावड़ी है । इसके अन्त में लिपि संवत नहीं है। अनुमानत: यह १७वीं शताब्दी की होनी चाहिए। अंतिम प्रशस्ति में लिखा हैग्रंथान ६८८ व्यवहार सुत्तं समत्तं ६८८ कल्याणमस्तु (शुभं भवत) छ।श्री (ख) व्यवहार मूलपाठ (हस्तलिखित टब्बा) यह प्रति भी उपर्युक्त ग्रन्थालय की है। इसके पत्र ४२ हैं । सुन्दर लिखी हुई है। लिपि संवत् १७६१ है। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ (ग) व्यवहार मूलपाठ यह प्रति भी उपर्युक्त ग्रन्थालय की है । इसके पत्र १० व प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं, और प्रत्येक पंक्ति में ५०-५३ तक अक्षर हैं। प्रति महीन व सुन्दर लिखी हुई है। बीच में बावड़ी है । इसकी लम्बाई १० व चौड़ाई ४ इंच है । अन्त में लिपि संवत् नहीं है । अनुमानत: १७वीं शताब्दी की होनी चाहिए । (ता) ताड़पत्रीय फोटोप्रिंट जैसलमेर भंडार लिपि संवत् १२२५ श्रावण बदी - ११ (भा) भाष्य । मुद्रित ( शु०) (शुब्रिंग) सम्पादित व्यवहार, बृहत्कल्प, निशीथ सूत्राणि ( जी०) जीवराज घेलाभाई मुद्रित (मवृ) व्यवहार सूत्र मलयगिरिवृत्तिः । (चू०) चूर्ण (हस्तलिखित) . यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर अहमदाबाद की है । इसके पत्र २५७ हैं । प्रति बड़े अक्षरों में सुन्दर लिखी है । प्रति किसी खंडित प्रति से लिखी हुई प्रतीत होती है | अनेक जगह खाली पत्र व पंक्तियां रिक्त हैं । प्रति प्राचीन लगती है । लिपि संवत् नहीं है । निशोथ निशीथ के पाठ - संशोधन में चार आदर्श प्रयुक्त किए गए हैं। उनमें 'अ' और 'ख' संकेतित आदर्श एक वर्ग के हैं और 'क' और 'ग' एक वर्ग के हैं। इस सभी आदर्शों तथा चूर्ण के संदर्भ में समीक्षापूर्वक पाठ स्वीकार किया गया है। निशीथ की दो वाचनाएं मिलती हैं। एक में पाठ संक्षिप्त है और दूसरी में कुछ विस्तृत । पूरा पाठ प्रयुक्त किसी भी आदर्श में नहीं है । हमने प्रायः सभी पाठ पूर्ण किए हैं। निशीथ के अधिकांश पाठ निशीथ से ही पूर्ण किए गए हैं। कहीं-कहीं उनकी पूर्ति आयार-चुला और व्यवहार से की गई है । कई उद्देशकों में सदृश पाठ - पूर्ति करने से आगम का आकार बढ़ा है, किन्तु उससे आशय की स्पष्टता हुई है । पाठक को इससे बहुत सुविधा होगी। डॉ० वाल्टर सुबिंग द्वारा सम्पादित निशीथ का भी हमने यथास्थान उपयोग किया है । उनकी संक्षिप्त शैली अवैज्ञानिक नहीं है, किन्तु उससे पाठ और पाठक की जटिलता कम नहीं होती। इसलिए हमने विस्तृत शैली का अनुसरण किया है। पुप्फभिक्खु द्वारा सम्पादित सुत्तागम को भी हमने सामने रखा है, किन्तु उसे देख कर बहुत आश्चर्य और खेद हुआ। निशीथ में जहां-जहां पुप्फभिक्खु को भावना के प्रतिकूल पाठांश थे, वे सब उन्होंने निकाल दिए । उदाहरण स्वरूप कुछ पाठांश प्रस्तुत किए जा रहे हैं निशीथ (शुबिंग द्वारा सम्पादित) १४ घण वा वसाए वा नवणीएण वा ११।८० जे भिक्खू मसाईयं वा मच्छाइयं वा मंस-खलं वा मच्छ-खलं वा आहेण वा० सुत्तागम (भाग-२) घण वा णवणीएण वा० १/४ ११।७२७ जे भिक्खु आहेणं वा० Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ १२।१ जे भिक्खू कोलुणपडियाए अन्नयरिं० १२।७४० जे भिक्खू अण्णयरिं० १९।१-७ जे भिक्खू वियडं० १६७ सूत्र नहीं है। इस कार्य से ग्रन्थ की मौलिकता समाप्त हो जाती है। अतः आधारभूत ग्रन्थों के प्रति इस प्रकार के व्यवहार को अतिसाहसिक कार्य कहा जा सकता है। पाठ-संशोधन कर लेने पर भी कहीं-कहीं प्रश्न-चिह्न रह जाता है । लिपि-दोष के कारण पाठ इतने अशुद्ध हो गए हैं कि कहीं-कहीं आशय पकड़ने में बड़ी कठिनाई होती है। नवें उद्देशक के ग्यारहवें सूत्र में 'जो तं अण्णं' पाठ है, किन्तु अर्थ की दृष्टि से विचार करने पर यह संगत नहीं लगता । 'जे भिक्खू' यह कर्ता है फिर दूसरी बार 'जो' इस कर्त-प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। 'उववृहणिय' का अर्थ 'अशन आदि' है फिर 'अण्णं' यावश्यक नहीं है। शेष 'त' रहता है । चूणिकार ने 'तं' की ही व्याख्या की है-'तं पुण पाहुडं' । इस प्रकार यह पाठ 'अव्वोच्छिण्णाए तं पडिग्गाहेति' होना चाहिए । किन्तु चूर्णि में सब शब्द व्याख्यात नहीं हैं और पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों में ऐसा पाठ उपलब्ध नहीं है। इसलिए 'जो तं अण्णं' इस आलोच्य पाठ को यथावत् स्थान देना पड़ा। . लिपि-कर्ता कहीं-कहीं पाठ को बहुत संक्षिप्त कर देते हैं। जैसे कामजलंसि ठाणं साति (१३।६) । इन शब्दों के आगे अपूर्णता सूचक संकेत भी नहीं है। इस प्रकार की संक्षिप्त लिपिकप्रवृत्ति के कारण पाठ-संशोधन में अनेक कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं। समर्पण-सूत्र संक्षिप्त पद्धति के अनुसार निशीथ में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं जाव-अंबं वा जाव चोयगं (१५।८)। एवं-एवं पिप्पलगाई (१।२४-२६)। अभिलावेण-एतेण अभिलावेण सो चेव गमओ भाणियव्वो जाव रएंत (३।२३-२७)। गमेण- एतेण गमेण णावागओ जलगयस्स णावागओ पंकगयस्स (१८१८-३२) । संख्या-असणं वा ४ (३।५)। प्रति-परिचय (अ) जैसलमेर भंडार को ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट), पत्र संख्या १५, अनुमानित संवत् १२वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध । (क) निशीथ मूलपाठ, चूणि (त्रिपाठी, तकार प्रधान) यह प्रति हमारे संघीय संग्रहालय लाडनूं की है। इसके पत्र ४३ और पृ०८६ है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में ६ से ७ तक पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ३८ से ४२ तक अक्षर हैं । प्रति के अन्त में लिखा है-“संवच्चन्द्र वसु मुनि भूमि वर्षे मिती आसोज कृष्ण अष्टम्यां तिथौ अर्कवारे श्री श्री नागौर मध्ये । श्री: श्री: श्रीः श्रीः (१७८१ सं०) (ख) निशोथ मूलपाठ, वृत्ति (पंचपाठी, यकार प्रधान) ___ यह प्रति भी उपर्युक्त संग्रहालय की है। इसके पत्र १५ तथा पृ० ३० है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में ११ से १३ तक पंक्तिया तथा पंक्तियों में ५२ से ६० तक अक्षर हैं। यह प्रति ताड़पत्रीय प्रति से प्रायः मिलती है और शुद्ध व सुवाच्य है । अन्तिम Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ प्रशस्ति में लिखा है-सम्बत् १७११ वर्षे आषाढ़ मासे कृष्ण पक्षे चतुर्दश्यां तिथौ आचार्य श्री ६ शिवजी तस्यानुचर मुनि वीरा तच्छिष्येन मुनिविष्णु दासेनालेखीयं प्रतिः स्व वाचनार्थं शुभं भूयाल्लेखकपाठकयोः श्रीरस्तुः कल्याणमस्तु (श्री) (छ) (श्री)। (ग) निशीथ मूलपाठ (तकार प्रधान) यह प्रति भी उपर्युक्त ग्रन्यालय की है। इसके पत्र १८ तथा पृ० ३६ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। बीच में बावडी है। अंतिम प्रशस्ति नहीं है, पर अनुमानित १८वीं शताब्दी की सी लगती (च) निशोथ चूणि -उपाध्याय अमर मुनि तथा मुनि कन्हैयालाल 'कमल' द्वारा सम्पादित। (शु) शुकिंग संपादित व्यवहार बृहत्कल्प निशोथसूत्राणि । शब्दान्तर और रूपान्तर ३।१ अचू व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन को दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। १. दशवकालिक : शब्दान्तर और रूपान्तर अध्ययन-१ स्थल मूलपाठ शब्दान्तर और रूपान्तर प्रति उक्किट्ठ उक्कट्ठ क,ग,ध, अचू २।२ आवियइ आवियती अचू, जिचू मुत्ता मुक्का ३१२ साहुणो साहवो अचू ४।३ अहागडेसु अहागडेहि अचू ४।३ रीयंति रीयंते घ, जिचू ४।४ पुप्फेसु पुप्फेहि अचू, जिचू ४।४ भमरा भमरो महु मधु अचू, जिचू अध्ययन-२ २।२ इत्थीओ इथिओ चाइ चागि ४।१ पेहाए पेहाइ क,ख निस्सरई नीसरई अचू, जिचू ४१४ विणएज्ज विणइज्ज क,ख,ग ५।१ आयावयाही आयावयाहि अचू, जिचू सोउमल्लं सोगमल्लं, सोगुमल्लं , क,ख,ग,घ, जिचू ५२१ २।४ अचू ४१२ १ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ५॥२ कमाहि वंतगं अचू, जिचू भुत्तुं ६।३ ८.१ ६२ १०१२ कमाही वन्तयं भोत्तुं रायस्स दच्छसि संजयाए करेन्ति भोगेसु 194d राइस्स दिच्छसि, दिच्छिसि संजयाइ करंति, करिति भोगेहिं क,ख,ग ख, ग, घ क, ख, ग, घ ११।३ अध्ययन-३ १२१ अचू १३ ४।१ ग, जिचू ख, अचू ख, अचू, जिचू ४।३ ५।३ ६।३ ६१ सुट्ठिअप्पाणं राइभत्ते नालीय पाणहा निसेज्जा तत्तानिव्वुड-भोइत्तं धूवणेत्ति वत्थीकम्म गायाभंग गिम्हेसु संलीणा "रिऊ सुद्वितप्पाणं रायभत्ते नालीए, णालीया पाहणा निसज्जा तत्तअनिव्वुड-भोतीत धूवणित्ति बत्थीकम्म, पत्थीकम्म गायब्भंग गिम्हासु 'संल्लीणा ख, अचू ६।२ ख, अचू जिचू अचू जिचू 'रिवू अचू ६।४ १२।१ १२।३ १३३१ १३।२ १३।२ १४१२ १४१३ अध्ययन-४ धुय' धूम' ख, ग जिइंदिया दुस्सहाई इत्थ जियंदिया दूसहाई एत्थ जिच सू०६ अभिक्कतं पडिक्कंतं अभिकंतं पडिकंतं डंड समारभेज्जा करेंतं गरहामि अचू, जिचू अचू, जिचू अचू रायं समारंभेज्जा करतं गरिहामि राई किलिंचेण सलागाए व सलाग ससिणिद्धं विहुयणेण कलिंचेण सिलागाए व सिलाग ससणिदं ससिणद्धं विहुवणेण ख, ग, घ, जिचू ख, ग क, ख, अचू अचू, जिचू Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , २३ जिचू १२।४ पिपीलियं हत्थेसि वा नाहीइ, नाही याणेइ, याण नाहीइ, नाहीय वियाणेइ निविदिय, निविदह भवइ पहोयस्स सायस्स सुगइ, सोग्गइ जिणि अचूपा ख, ग, घ ग, अचू क, ख, ग, घ ग, अचू क, ग, अचू __क, घ घ, अचू, जिचू क, घ क, ग, अच, जिचू हाटी, जिचू अचू पिवीलियं हत्थंसि वा १०।४ नाहि १२।१ याणाइ नाहि १३३१ वियाणाइ १६।३ निविदए २५०४ २६।३ पहोइस्स २६२ साइस्स २६।४ सुग्गइ २७१३ जिणं अध्ययन-५ (१) ३१३ वज्जतो ४।१ ओवायं ४।२ विज्जलं ८।२ पडतीए १०।१ अणायणे १३।३ इंदियाणि १६।२ रहस्सा २३।४ अयंपिरो २५॥३ वच्चस्स २६१ दग-मट्टिय २७।२ आहरे २८।१ आहरंति २८।३ देंतियं ३३।१ ससिणिद्धे ३४।२ कुक्कुस ४०१४ पुणुट्ठए ४२११ पिज्जेमाणी ४५१ दग-वारएण ४६।१ उभिदिया ५७।३ उम्मीसं ६७।३ ७१।३ सक्कुलि ७३१२ अणिमिसं अच् क, ग क, ख, ग, हाटी अचू वज्जैतो उवायं विजलं पडंतिए अणाययणे इंदियाई, इंदियायं रहसा अयंपुरो वुच्चस्स दग-मट्टी आहारे आहाती दितियं, दंतियं ससणिद्धे कुक्कस पुणट्ठए पेज्जमाणी, पज्जेमाणी दग-वारेण उभिदियं उम्मिसं मंच संकुलि अणमिसं क, ग, घ अचू क, ख, ग, घ घ, अचू अजू, जिचू क, हाटी क, ख, ग, घ क, अचू, जिचू क, ख, ग, घ, अचू ख ख, ग मंचं Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३/३ ७३।४ ७४/२ अत्थियं सिबलि धम्मिए भवेज्जा ७७/३ ७७ ४ ७८४ ८१।२ ८५।१ ६०१२ १६/२ ६७/३ ६८/३ १००/४ अध्ययन - ५ ( २ ) १।३ २३ ३३ ५।२ ५।४ ७३ १०१२ १३।२ १३।४ १४/३ २१।३ २२/३ २४।३ २५॥४ २६।१ ३२।१ ३७।१ ४६।१ ४७२ ५०/३ अध्ययन-६ १३।३ रोयए तण्हं अचित्तं निक्खिवे अव्वक्खित्तेण एक्कओ एय उल्लं सोग्गई दुगंध अयावयट्ठा 'उत्ते पडिले हसि गरिहसि त-उज्जुयं किविणं नियत्तिए व सच्चितं नीमं पिन्नागं विहेलगं ऊसढं इत्थियं अत्तट्ठ पिया वय मूययं हिदिए मत्तं ३१ अच्छियं संबलि, संबिलं धम्मए हविज्जा रोइए, रोवए तण्ह अच्चित्तं निखिये अवक्खित्तेण एगओ, इक्कओ एयं अल्लं सोग, सुम्बई दुग्गंध आयावयट्ठा "बुत्तेण पडिले हिसि गिरिहसि गिरिहिसि, गरहसि त-ओजुर्व किवणं नियत्तए वा सचितं नियम "पन्नागं विभेलगं, बिहेलगं उस्सढं इयिं अत्तट्ठा पियए वई भूयगं हिदिए मित्तं अचू, जिचू ध घ ख ख, ग ख ख, क, अनू क, ख, ग, अचू ख, ग, घ ख, ग, अनु घ अचू अच् ग क, ख, अचू ख ख, ग, अनू ख, घ ग ख, ग अबू घ, अचू, जिचू ख ख स, अचू अचू अनू क, ख, ग, घ हाटी, जिचू अनू ख, ग, घ क, घ, जि क, ख, ग, घ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८१ लोभस्सेसो अणुफासो क, ख, ग नाय २०१२ २०१४ २४३ ३७१३ ५१०२ ५११३ ५२।१ ५७४ ६०१३ ६११२ ६२४ ६३।३ ६४।१ दिया विइउ धोयण छन्नति पच्छा पडिकोहो वोक्कतो भिलुगासु "प्पिलावए 'व्वट्ट नगिणस्स लोभस्सेसणुफासे, लोभस्सेसणफासो लोभस्सेसणुफासो नाइ इय दिवा वीउ, वितु धोवण छिन्नति, छिप्पंति पच्छे परिकोहो, पलिकोहो वुक्कतो, ववकतो भिलगासु 'पलावए, 'प्पलावए वट्ट निगणस्स, नगणस्स, नगणिस्स, णिगिणस्स नवाणि पावाणि उडुपसण्णे क, ग क, ख, ग, घ अचू ग, अचू क, ख, अचू क, ख, ग, हाटी अचू अचू क, ख, म क, ख, ख, ग, घ, हाटी क, ग क, ग, घ, अचू अचू ६७१४ ६८३ नवाइ पावाई उउप्पसन्ने अच अध्ययन-७ अचू ख,अचू क,ग,घ २।३ ५।४ ८१ १२।२ १२।३ १२।४ १३३१ १४।२ १४।३ १५२२ १५।४ १६१ क,ख,ग,घ ऽणाइन्ना पुण कालम्मी पंडगे त्ति रोगि त्ति चोरे त्ति वट्ठण वसुले त्ति दम्मए दुहए माउस्सिय नत्तुणिए अन्नेत्ति भाइणेज्जति नत्तुणिय हले त्ति अणाइण्णा पुणो,पुणं कालम्मि पंडग त्ति पंडगु त्ति रोग त्ति चोरु त्ति अलैंण वसुल त्ति दुम्मए दूहए माउसिउ, माउसिय नत्तुणिय, नत्तुणए, नत्तुणिइ अन्नत्ति भायणिज्जति नत्तुणइ, नत्तुणिइ हल त्ति, हरे त्ति १८।३ १८।४ १६१ ग,घ,अचू Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१।१ २२२ २३|१ २४।३ २५।२ २७।२ ३१।४ ३२।१ ३३।२ ३३।४ ३६।४ ३६।१ ४१।२ ४२।१ ४२।१ ४५।१ ४७।१ ४८२ ५१।१ ५१।१ ५३।१ ५६।३ अध्ययन-5 ५।१ २ हा३ ६४ १४।१ १६।३ १८।३ १६।२ २०१४ २३।२ २५।१ मणुसं सरीसिवं परिवुड्ढे जोग त्ति घेणुं तोरणाणं गिहाण दरिसणि फलाई निवट्टमा रूवत्ति सुतित्थ वाहडा मडे पयत्त पक्के ति सुक्की तवा संजयं साहुणो वाओ वुट्ठ अंतलिक्खे धुन्न निसिए विहुयणेण वीएज्ज पोग्गलं कयराई अप्पमत्तो पडिले हित्ता पाणट्ठा मरिह अयं पिरो संतुट्ठे ३३ मणसं, मणसं सरसवं परिवुड्ढ, परिवूढ जोगि त्ति घेणू तोरणाणि गिहाणि दरिसण फलाणि निव्वडिमा, निव्वत्तिमा, निवट्टमा रूवित्ति सुतित्थे, सुतित्थि पाहडा मते पयत्ति पक्क ति सुक्कियं संज साधवो वाउ बुट्ठि अंतलिक्खं, अंतलिक्ख धुत्त निसीए विहुवणेण क, ख, ग, घ ख, ग क, ख, ग, अचू, जिचू, हाटी वीए पुग्गलं कतमाणि अप्पमत्ते पडिले हत्तु पाणत्था मरुति अयं पुरो संतुट्ठो ख, ग ख क, ग ख, ग, घ अचू ख, अचू, जिचू क, ख, ग ख, ग, घ अचू अचू क, घ क, ग, घ अचू अचू ख क, ख, ग ख, घ, हाटी, जीचू घ घ जिचू अचू क, ख, ग, घ अचू अचू अचू अचू अचू अचू अचू Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ २६१ ३५१ ३६१ ४०११ ४०११ सुभरे अतितणे पीडेइ अणिग्गिहिया रायणिए पयुंजे कुम्मु, कुम्मे मिधु अत्थं पिट्ठी ख, क,ग ख,ग,जिचू,हाटी अचू ख,ग,हाटी अचू क,ख,ग,घ,अचू अचू अचू ४०१३ सुहरे अतितिणे पीलेइ अणिग्गहीया राइणिए पउंजे कुम्मो मिहो अलैं पिट्टि अयंपिर वइ विग्गहिओ पडिच्छिन्नं मणुन्नेसु तण्हो सीई जंसि चंदिमा अचू अयंपुर ४१२३ ४२१४ ४६३ ४८३ ४६।३ ५३१२ ५५१ ५८।१ ५६।३ ५६४ ६२।३ ६३।४ अचू ख,जिचू वाय, वय विग्गहओ पलिच्छिन्नं मणुन्नेसु तिण्हो घ,अचू,जिचू क,ख,ग,घ सीत जंसे चंदिमि क,ख,जिचू अध्ययन-६ (१) ख,ग अचू २।२ ६।१ १२।१ १२।२ १४।३ १५१ १७।१ अप्पसुए पावगं जस्संतिए तस्संतिए अप्पसुय पावकं जस्संतियं तस्संतियं बुद्धीए जुत्ते मेहावि बुद्धिए क,ग जुत्तो मेहावी अध्ययन-६ (२) अचू २।३ १५॥३ २०१२ २३।१ २३।३ सिग्छ सककारेंति हेउहिं वत्ति ओह सग्धं सक्कारंति हेऊहिं वित्ति अचू ख,ग क,ख, क,ख,हाटी ओघ' Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्ययन- १ (३) ३१ राइ ३।३ निय ८२ १०/२ अध्ययन-२ ( ४ ) २४ आयट्ठिए सू० ७ बारहंतेहि अध्ययन - १० ४२ ६।२ ७४ 디 १२।१ १२/२ १८१ १८२ 73 11 चूलिका-१ सू० १स्थान २ इत्तरिया "1 31 11 31 "3 २।१ २३४ ६३ ६।३ १०१४ १०/४ "1 दुम्मणियं अपिणे निस्सियाणं हवेज्ज वय होही मसाणे भायए वएज्जासि जेणन्नो ६ पडियाइयणं १ बहाय १८ वेयइत्ता १८ अवेइयत्ता जया सेट्ठि गलं गिलिता "निरय सारिसो परिवाय ११४ १४१४ सुलभा १५/२ दुहोवणी १५।२ 'दत्तिणो १७।३ पयति राय नी ३५ दुम्मणयं अपिस्सुणे आययत्थीए आरुतिहि निसियाणं भवेज्ज वइ होहि सुसाणे भाए वज्जाहि जेणन्नु, जेणच इत्तिरिया पडिलावणं, पडिआयवर्ण बहाए बेदत्ता अवेइता जहा सिट्ठि गलि गलित्ता नरय सालिसो परियाइ सुलहा दुहोविणी वित्तिणो पयति ख. ग घ, जि ग क, ख, ग अनू لهم الله अनू क, ख, ग अनू क, अचू अपू अनू अनू ख क, ख, ग, घ ख, ग, घ, जिचू अचू क. ख.,ग,घ क क, ख, ग, घ, हाटी ख, घ ख, ग क, घ, हाटी क.ग क, ख, ग, घ क, ख, ग क, अनू क, ख, ग, घ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ चूलिका-२ ५२ पई पय ६।३ उसन्न ओसन्न एक्को ख,ग,घ अचू क,ख,ग,घ,अचू बीयं १०१३ ११।२ १३।१ १३।३ १४।१ १४१४ एको, एगो वितियं पस्सइ पस्समाणो अचू पास पासमाणो पासे आइन्नओ पस्से आइण्णो ad 4 44 क्वचित् उ,ऋ २. उत्तराध्ययन : शब्दान्तर और रूपान्तर अध्ययन-१ २।४ विणीए विणी ५२२ सूयरे सूयरो १३३३ पकरेन्ति पकरिन्ति पकरन्ति १४।३ कुव्वेज्जा कुविज्जा १५१४ परत्थ परत्त १७१३ रहस्से रहसे १८१४ पडिस्सुणे पडिसुणे २५२ निरठं निरत्थं २६।३ एगितिथए एगत्थिए ३६.१ सुकडे ति सुक्कडि त्ति ३६३ सुलढे त्ति सुलट्ठि त्ति ४०१४ तोत्त तुत्त ४१६४ पुणोत्ति पुणित्ति पुणत्ति ४२।४ गरह गरिहं ४४।३ सुकयं क्वचित् al anal उ,ऋ सुकडं अध्ययन-२ सू० ३ दिगिछा उसिणपरियावेणं पडिसंजले दिगंछा उसिणप्परियावेणं पइसंजले अ,उ उ,ऋ उ,ऋ २४।२ अध्ययन-३ ३२४ आहाकम्मेहि अहाकम्मेहि अ.स.स Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ २०१४ सासए सासवे अध्ययन-४ ३१२ किच्चइ ५२ ६२ ६४ १३३ परत्था वीससे भारुड दुगुंछमाणो कच्चई परत्थ वीस्ससे भारंड दुगंछमाणो लभ उ,ऋ असयं अध्ययन-५ ३२२ ८४ १६।४ २२१४ असई भूयग्गामं धुत्ते व कम्मई भूयगामं धुत्ते वा कमई उ,ऋ,बृ अ,उ,ऋ अध्ययन-७ १८१ सई सह सयं उम्मग्गा १८१३ उम्मज्जा M4 अ,उ,ऋ अध्ययन-८ दूपरिच्चइया ६।१ १६१४ दुपरिच्चया इइ इय अ,ऋ अ,ऋ अध्ययन-8 २४१४ ५८।२ वद्धमाण पेच्चा वड्डमाण पेच्छा पिच्चा पेच्च अध्ययन-१० पंडुयए ६।१ आउक्काय ८.१ वाउक्काय १४१३ इक्किक्क पंडुरए आयक्काय' वायक्काय एगेग अचू १६१२ १६।२ अ,ऋ एकेक्क आयरिअत्तं पुणरवि आरिअत्तं पुणरावि Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ अ,ऋ ऋ १७१ २७११ ३२।३ ३५०१ आरियत्तणं विसूइया विसोहिया अकलेवर आयरियत्तणं विसूचिया विसोहिउं अकडेवर चू,बृ अध्ययन-११ १०१ पन्नरसहिं १०३ नीयावत्ती अ,ऋ पन्नरसेहि नीयावित्ती अध्ययन-१२ १०३ जाणाहि १४।३ 'विहूणा १५१ तुभेत्थ २११४ जेणम्हि ३६४ पगरेह ४४।३ कम्म ४७।४ पत्त जाणाह "विहीणा तुम्हेत्थ जेणाम्हि पकरेह 44 कम्मे अ,ऋ पत्ति अ,उ,ऋ अध्ययन-१३ तुब्मे तुमे ल ८२ २६।३ ३११ पंचालराया तूरंति पंचालरायं तरंति नेव अध्ययन-१४ ३१३ तहोसुयारो १४२ किच्च इम २०१३ ओरुज्झमाणा २०१४ २४।४ अफला २५।४ सफला २७।३ जाणे २८१ पडिवज्जयामो २६२ भिक्खायरियाइ तहसुयारो किच्चमिम उ(अव) रज्जमाणा नेय अहला सहला जाणइ पडिवज्जेयामो भिक्खायरियाए भिक्खायरियाय "विहीणो पयहामि रागदोस ३०११ ३२२ ४३।४ "विहूणो पजहामि रागद्दोस अ,उ,ऋ,च Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ अध्ययन-१५ उ,ऋ श२ ६१ १२।४ कुओ जेण पुण वय-काय कओ जेणं पुणो 'वइ-काय 44 विचिकिच्छा इत्थी ' अध्ययन-१६ सू०३ वितिगिच्छा १२ थी' ३।१ संथवं थीहिं १२।१ कुइयं रुइयं १७१ निअए १७।४ तहापरे संथवित्थीहि कुवियं रुदितं निइए तहावरे अ,आ,इ अध्ययन-१८ भित्ता रायं अ,उ,ऋ ३१ १३।३ १३१४ २०१४ २७.२ ३६०२ ४२।२ पेच्चत्थं मणो मिच्छादिट्ठी महिड्डिओ निसूरणो छुब्भित्ता राय पिच्चत्थं मणं मिच्छदिट्ठी महड्डिओ "निसूदणो निसूअणो भव नीरइ ५३।४ हवइ ५३१४ नीरए अध्ययन-१६ ६।२ अणिमिसाए १८२ अपाहेओ 4444444 लभ लभभावक 'तण्हाए १८।४ २०१२ अणिमिसाइ अपाहेज्जो अपाहिओ अपाहिज्जो 'तिहाइ सपाहेज्जो सपाहिज्जो °तिण्हा अवयज्झा तुहेहि परित्ताओ सपाहेओ २०१४ २२।४ २३१४ २६३ तण्हा अवउज्झइ तुन्भेहि परिच्चाओ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महन्मरो गुरुओ गरुमओ अहे सांबलि' फाडिओ एगब्भूओ अम्ब तोहं दुक्खाण ३५॥२ महामरो ३५॥३ ३८।१ अही ५२।२ सिम्बलि ५४।३ फालिओ ७७।१ एगभूओ ८५३ अम्म अध्ययन-२० ३५१ ततो हं ३७४२ दुहाण अध्ययन-२१ ४२ पसवई १५३४ गरहं अध्ययन-२२ १३१२ उत्तिमाए ४४।२ दिच्छसि ४६।२ संजयाए अध्ययन-२३ २६।२ वंकजडा ४११२ निहन्तूण ४१०२ उवायओ अध्ययन-२४ पसूयई गरिहं उत्तमाइ दच्छसि संजइए वक्कजडा णिहणिऊण ओवायओ आहार उवहि बीइए विच्छिन्ने अ,उ,ऋ १११३ आहारोवहि १२।२ बीए १८१ वित्थिण्णे अध्ययन-२५ ६४ उत्तमट्ठ १७१२ पंजलिउडा २८३ तायन्ति ३२१२ सिणायओ ४१६४ सुक्को उ गोलओ अध्ययन-२६ २।२ निसीहिया उत्तिमट्ट पंजलियडा ताइन्ति सिणाइओ सुक्के उ गोलए निस्सीहिया Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ १३३१ १५॥३ पंचमा आसाढे मासे 'वइसाहेसु बीयतियंमी बीयं १८२ पंचमी आसाढमासे वयसाहेसु बिइयतइयंमि बितिए बिइयं छट्ठी पसढिल पडिक्कमित्ता छ । २६।४ २७।१ ४१३१ पसिढिल पडिक्कमित्त अ,ऋ अ,आ अध्ययन-२७ ३।२ विहम्माणो ६।२ एगेऽत्थ विहिम्माणो एगित्थ एगत्थ Mब अध्ययन-२८ १६।२ आणारुई ३४।४ एवमभंतरो आणरुई एमेवभंतरो एवमन्भिंतरो अ,उ, अध्ययन-२९ सू०१ रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता रोइता फासित्ता पालिता सू० १ तीरइत्ता तीरित्ता आराहइत्ता आराहित्ता सू० १ . गरहणया गरिहणया सू० ३ सिद्धिमग्गे सिद्धिमग्ग विणइत्ता विणयइत्ता सू० ६ "मिच्छादसण °मिच्छादरिसण सू०८ अपुरक्कारं अपुरेक्कारं थवथुइ थयथुइ विणियट्टणयाए विणिवट्टणयाए सू०७३ आणापाणु आणापाण सू० ७३ वेयणिज्जं वेयणियं अध्ययन-३० १८१ रच्छासु व रत्थासु य २०११ पोरुसीणं पोरिसीणं अ,उ,ऋ 4 सू० ३३ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्ययन- ३१ ५।२ अध्ययन- ३२ १३।१ १५/३ २५।२ २६।१ २६॥४ ३१।३ ३७/२ ३८।२ ३८/४ ३९।१ ५१।२ ६५।२ ७६।४ १०३॥४ १०८/३ ७।१ દાર ३१॥४ ३३॥४ ३४/२ ६०।१ अध्ययन- ३३ ६।२ २१/४ अध्ययन-३४ ४।१ तेरिन्छ' જામ बिराला "जोगं तंसि कखणे परिग्गहे आययई समाययंती अकालिय तंसि खणे अध्ययन-३५ अवरज्भई रुइरंसि तंसि क्खणे अतालिने गाहग्गहीए हिरिमे दंसण दंसणे अंतोतं हिंगुलुय सिरीस कुसुमाणं गुतिहि हंति तेतीसं अंत चितहर पंडुरुल्लोवं ४२ रिक्ख बिडाला' 'जोगं जुग्ग तस्सि खणे तणि खणे परिग्गमि आइयई समाइयंतो आकालिय तहख अवरुज्झइ रुइयंसि हंसी व आयालिसे गाहग्गिहीए हरिमे दरिसण" दरिसणे अंतमुहूतं हिगुलग सरसकुसमाणं О गुत्तिसु हवंति तित्तीसा अंतो चित्तधरं पंडरुल्लोयं अ बृ म 449 अ उ उ, ऋ अ 외 외 외 오 अ अ अ स कल अ अ, ऋ उ, ऋ उ, ऋ उ.क्र. स अ, ऋ ऊ, ऋ उ, ऋ उ, ऋ ऋ उ ऋ उ, ऋ अ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुज्जा ८.१ २१११ कुविज्जा निम्ममे निरहंकारे उ, ऋ अ, आ, इ, स निम्ममो निरहंकारो अध्ययन-३६ १११ पुहत्तण ३६१ गुरुए ५५३ बोन्दि पुहुत्तेण गरुए बोदि बुदि बुदि ६१।१ ६६३ १४६।४ १४७।१ १४७।२ १४७२ १४७।४ २०६३ २२८।४ २३७।४ २४०१ पंडुरा मुसुंढी ढिंकुणे कुंकुणे सिगिरीडी नंदावते विछिए विरली दिसा चउद्दस पणुवीसई अउणतीसं पंडरा मुसंढी ढिकुणे कंकणे सिंगिडिडि नंदापत्ते विच्छुए विरिली "दिसि चोदस पणवीस इगुणतीसं ३. निशीथ : शब्दान्तर और रूपान्तर सातिज्जति सूईए सिक्कगं लहुसगं पायं वेणु लेहेइ १११ ११५ २११२ २।१८ २।२४ २।२५ २१५८ ३।१३ ३३३५ ५१ ८।१६ ६।२७ १०१७ १०११३ साइज्जइ सूचीए, सूतीए सिक्ककं लहुसयं पातं वेलु लेहेति° वडियाए भगंदरं °मूले किमण गहण वाकरेति आएसं °पडियाए भगंदलं मूलंसि किविण ग्गहण वागरेति आदेसं Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०1३६ १११८ ११६५ १११८० १२।१५ १२।२५ १२/२६ १३।१२ १३।४२ १३।४५ १३।६७ १४।१ १४|४ १४.६ १४ / ८ १४ ४० पच्चोविलति सपच्चवायंसि बीभावेति भूतिप्यमाणं भायणेण माणि थेराणि कक्कडगं अरोगे ओसणं कोह किणेति अच्छेज्जं पडिग्गहं अधारणिज्जं उडुबद्धं सचित्तं १५.५ १६/३३ fotoafa १७/३ डियाए १८/१७ ● पिहेति ૪૪ पच्चोइलति सपच्चवादसि बीहावे हूतिष्यमाणं हायणेण पाणि ठेराणि कक्कडयं अरोति अरोगि आरोगि उसणं कोव किणति आच्छेज्जं अच्छिज्जं पडिग्गहकं अधारणियं उउबद सच्चित्तं णिक्खिवेति *वडियाए पेहिति अ, क, ख, ग अ अ अ अ स्व अ अ ख क ग क, ख, ग चू अ, चू अ क, ख अ, क, ख, ग ग अ, क, ग ग अ. सहयोगानुभूति जैन- परम्परा में, वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी थीं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए । उनकी पुनव्यवस्था के लिये आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी । आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिये प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका। अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण तटस्थदृष्टि समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारंभ हुआ । ख ख, ग अ हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है । हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन - कर्म के अनेक अंग हैं-पाठ का अनुसन्धान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदि-आदि । इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति बीज है। मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिये उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनें। प्रस्तुत नवसुत्ताणि के पाठ-सम्पादन में स्थायी सहयोगी मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। पाठ संशोधन कार्य में मुनि बालचन्दजी, मुनि मणिलालजी, स्व० जयचन्दलालजी कोठारी भी सहयोगी रहे हैं। प्रूफ संशोधन कार्य में मुनि सुदर्शनजी व मुनि हीरालालजी के अतिरिक्त साध्वी विमलप्रज्ञा, साध्वी सिद्धप्रज्ञा व समणी कुसुमप्रज्ञा का भी सहयोग रहा है । इसका ग्रन्थ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट) ने तैयार किया है । इसके परिशिष्ट मुनि हीरालालजी ने तैयार किए हैं। पाठ के पुननिरीक्षण के समय भी मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं। कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हैं। आगमविद् और आगम संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया (कुलपति-जैन विश्व भारती) प्रारंभ से ही आगम-कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृतसंकल्प और प्रयत्नशील हैं । अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर ये अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष खेमचन्दजी सेठिया और मंत्री श्रीचन्द बैंगानी का भी योग रहा है। संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद डॉ. नथमल टाटिया ने तैयार किया है। उसमें समणी स्थितप्रज्ञा व समणी उज्जवलप्रज्ञा भी संलग्न रही है। अमृत महोत्सव के पावन अवसर पर इसको प्रस्तुत करते हुए हमें अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। एक लक्ष्य के लिये समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूत्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। युवाचार्य महाप्रज्ञ तुलसी साधना शिखर राजसमंद (मेवाड़) २०-१२-१९८५ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक में नौ आगम हैं। उनमें प्रथम है आवस्सयं, दो मूलसूत्र हैं-दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, दो चूलिकासूत्र हैं--नंदी, अणुओगदाराइं और चार छेदसूत्र हैं-दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहज्झयणं । १. आवश्यक नामबोध प्रस्तुत सूत्र का नाम आवश्यक है । साधु और श्रावक के लिए यह अवश्य करणीय होता है, इसलिए इसका नाम आवश्यक है। अनुयोगद्वार में इसके आठ पर्यायवाची नाम बतलाए गए हैं:१. आवश्यक ५. अध्ययन षट्कवर्ग २. अवश्यकरणीय ६. न्याय ३. ध्र वनिग्रह ७. आराधना ४. विशोधि ८. मार्ग मूलाचार में आवश्यक का एक नाम आवासक भी मिलता है। आवश्यक यह नाम भगवती १. अणुओगदाराई २८, गा० २: समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वं हवइ जम्हा । अंतो अहो निसस्स उ, तम्हा आवस्सयं नाम । २. वही, २८ गा०१: आवस्सयं अवस्सकरणिज्ज, धुवनिग्गहो विसोही य । अज्झयणछक्क वग्गो, नाओ आराहणा मग्गो॥ मूलाचार, परिचत्ता परभावं, अप्पाणं झादि णिम्मलसहावं । अप्पसवो सो होदि ह, तस्स द् कम्म भणंति आवासं ॥ आवासएण होणो, पन्भट्ठो होदि चरणदो समणो । पुम्वत्तकमेण पुणो, तम्हा आवासएण कुज्जा ॥ ४, भगवई, १८१२०७ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानाङ्ग' और ज्ञाताधर्मकथा' में मिलता है । ज्ञाताधर्मकथा के प्रसंग से प्रतीत होता है कि आवश्यक भगवान् महावीर के शासनकाल में निर्मित आगम है। विषयवस्तु और रचनाकाल आवश्यक एक श्रुतस्कन्ध है, उसके छ: अध्ययन है। नन्दी की आगम सूची में किसी भी आगम के अध्ययनों के नाम निर्दिष्ट नहीं है. केवल आवश्यक के अध्ययनों के नाम ही निर्दिष्ट हैं। इससे सहज ही कल्पना होती है कि आवश्यक का एक ग्रंथ के रूप में संयोजन हो जाने पर भी नन्दी की रचना के समय तक उनके स्वतन्त्र अस्तित्व की स्मृति बनी रही। छह अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं-१. सामायिक २. चतुविशस्तव ३. वन्दना ४. प्रतिक्रमण ५. कायोत्सर्ग ६. प्रत्याख्यान'। दिगम्बर साहित्य में अध्ययनों के नाम और क्रम में किंचित् भेद भी मिलता है-१. समता २. स्तव ३. वंदना ४. प्रतिक्रमण ५. प्रत्याख्यान ६. विसर्ग । अनुयोद्वार में इन छह अध्ययनों के छह अधिकार (विषय वस्तु) बतलाए गए हैं। १. सामायिक सावद्ययोग विरति २. चतुर्विशस्तव उत्कीर्तन ३. वंदना गुणवान की प्रतिपत्ति ४. प्रतिक्रमण स्खलना की निंदा ५. कायोत्सर्ग व्रण-चिकित्सा ६. प्रत्याख्यान गुणधारण सामायिक का विशद वर्णन आवश्यक नियुक्ति में उपलब्ध है । कायोत्सर्ग की विशद जानकारी के लिए कायोत्सर्गशतक द्रष्टव्य है। प्रतिक्रमण के छह प्रकार १. ठाणं, २१०५। २. नायाधम्मकहाओ, शा१कार । ३. नंदी, सूत्र ७५ : से कि तं आवस्सयं? आवस्सयं छम्विहं पण्णत्तं, तं जहा-सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंक्षणयं, पडिक्कमणं. काउस्सगो, पच्चक्खाणं । सेतं आवस्सयं । ४. मूलाचार आराधना २२०: समदा थओ य वंवण पडिक्कमणं तहेव णावव्वं । पच्चक्खाण विसग्गो करणीयावासया छप्पि ॥ ५. अनुओगदाराई ७४: १. सावज्ज जोग विरई २. उक्कित्तणं ३. गुणवओ य पडिवत्ती। ४. खलियस्स निदंणा ५. वणतिगिच्छ ६. गुणधारणा चेव ।। ६. ठाणं, ६१२५॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. उच्चार प्रतिक्रमण २. प्रस्रवण प्रतिक्रमण ३. इत्यरिक प्रतिक्रमण दश कल्पों में आठवां कल्प प्रतिक्रमण है। भगवान् पार्श्व के समय में प्रतिक्रमण करने की अनिवार्यता नहीं थी । भगवान् महावीर ने उसे अनिवार्य कर दिया' । re पेढालपुत्र उदक भगवान् पाश्र्व के शिष्य थे। गणधर गौतम के संपर्क में आने के बाद उन्होंने भगवान् महावीर से पंच महाव्रतात्मक-सप्रतिक्रमण धर्म स्वीकार किया। भगवान् महावीर ने स्वयं कहा- मैंने श्रमण निर्बंधों के लिए पंच महाव्रतात्मक संप्रतिक्रमण धर्म का प्रतिपादन किया है। इस प्रतिपादन से यह स्पष्ट होता है कि प्रतिक्रमण महावीर की देन है । भगवान् पार्श्व के समय में सामायिक आवश्यक था किन्तु उसे षडावश्यक का रूप महावीर के शासनकाल में मिला । पहावश्यक के विषय का प्रतिपादन महावीर ने किया और उसका सूत्ररूप में गुम्फन गणधरों ने किया। मुख्य व्याख्या ग्रंथ कृत ), १. आवश्यकनियुक्ति, २. आवश्यकभाष्य, ३. आवश्यकचूणि, ४. बावश्यकवृत्ति (हरिभद्र५. आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि), ६. आवश्यकनियुक्तिदीपिका, ७. आवश्यकवृत्ति, आवश्यकविवरण ९. आवश्यक टिप्पणकम् ( मलधारी हेमचन्द्र ) । ३. ठाणं २६२ ४. यावत्कषिक प्रतिक्रमण ५. यत्किंचि मिथ्या प्रतिक्रमण ६. स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण २,३ दशवंकालिक और उत्तराध्ययन जैन आगमों में दशर्वकालिक और उत्तराध्ययम का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। श्वेताम्बर और दिगम्बर - दोनों परम्पराओं के आचार्यों ने इनका बार-बार उल्लेख किया है। दिगम्बर-साहित्य में अंग बाह्य के चौदह प्रकार बतलाए गए हैं । उनमें सातवां दशवेकालिक और आठवां उत्तराध्ययन है* । श्वेताम्बर साहित्य में अंग बाह्य श्रुत के दो मुख्य विभाग हैं - ( १ ) कालिक और १. देखें- ठाणं ६०१०३ का दिव्यण, पृष्ठ ७०२ । २. सूयगडो, २७/३८ : तणं से उदए पेढालपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंच महत्वइयं सपठिषकमणं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरद्द | से जहाणाम अजो ! पण्णत्ते । मए समणाणं णिग्गंचाणं पंचमहव्वतिए सपविकमणे अचेलए धम्मे ४. (क) कवापाड (जयधवला सहित) भाग १. पृष्ठ १३।२५ दसवेवालियं उत्तरज्भयणं । (ख) गोम्मटसार ( जीव-काण्ड), गाथा ३६७ : दसवेयालं च उत्तरज्भयणं । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्कालिक । कालिक सूत्रों की गणना में पहला स्थान उत्तराध्ययन का और उत्कालिक सूत्रों की गणना में पहला स्थान दशवकालिक का है। दशवैकालिक : आकार और विषय-वस्तु दशवकालिक के दस अध्ययन हैं और वह विकाल में रचा गया, इसलिए इसका नाम दशवकालिक रखा गया। इसके कर्ता श्रतकेवली शय्यंभव हैं। अपने पुत्र-शिष्य मनक के लिए उन्होंने इसकी रचना की । वीर सम्वत् ७२ के आस-पास 'चम्पा' में इसकी रचना हुई। इसकं। दो चूलिकाएं हैं। अध्ययनों के नाम, श्लोक, संख्या और विषय इस प्रकार हैं :---- श्लोक सूत्र विषय धर्म-प्रशंसा और माधुकरी वृत्ति । संयम में धृति और उसकी साधना । आचार और अनाचार का विवेक । २८ २३ अध्ययन १. द्रुमपुष्पिकार २. श्रामण्यपूर्वक ३. क्षुल्लकाचार ४. धर्म-प्रज्ञप्ति या षड्जीवनिका ५. पिण्डपणा ६. महाचार ७. वाक्यशुद्धि ८, आचार-प्रणिधि ६. विनय-समाधि १०. सभिक्षु चूलिका १. रतिवाक्या जीव-संयम तथा आत्म-संयम का विचार । गवेषणा, ग्रहणषणा और भोगषणा की शुद्धि । महाचार का निरूपण । भाषा-विवेक । आचार का प्रणिधान । विनय का निरूपण । भिक्षु के स्वरूप का वर्णन । - - सग्म में अस्थिर होने पर पुन: स्थिरीकरण का ध्यदेश। विविक्ता का उपदेश। २ विविक्तचर्या नियतिकार के अनुसार दशवकालिक का समावेश चरण करणायोग में होता है । इसका फलित अर्थ यह है कि इसका प्रतिपाद्य आचार है। वह दो प्रकार का रोता है-(१) चरण-व्रत आदि और (२) करण-पिण्ड-विशुद्धि आदि । १. नंदी, सूत्र ४३ : से कि तं कालियं ? कालिय अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा----उत्तरज्झयणाई....... । से कि तं उक्कालियं ? उक्कालियं अणेगविहं पण्णतं, तं जहा----दसवेयालियं..... । २. तत्त्वार्थवत्ति श्रतसागरीय, में इसका नाम 'वक्षकुसुम' दिया है-देखिए पृ० ११ पाटि०२। ३. दशवकालिकनियुक्ति गाथा ४: अपुहुत्तपुहुत्ताई, निहिसिउं एत्थ होइ अहिगारो । चरणकरणाणुओगेण, तस्स दारा इमे हंति ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ धवला ला के अनुसार दशर्वकालिक आचार और गोचरी की विधि का वर्णन करने वाला सूत्र है ।' गणपति के अनुसार इसका विषय गोचर - विधि और पिण्ड - विशुद्धि है ।" तत्त्वार्थवृत्ति श्रुतसागरीय में इसे कुसुम आदि का भेद कथक ओर यतियों के आधार का कथक कहा है । उक्त प्रतिपादन से दशर्वकालिक का स्थूल रूप हमारे सामने प्रस्तुत हो जाता है, किन्तु आचार्य शय्यभव ने आचार-गोचर की प्ररूपणा के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का निरूपण किया है । जीव-विद्या, योग-विद्या आदि के अनेक सूक्ष्म बीज इसमें विद्यमान हैं । उत्तराध्ययन - प्रस्तुत आगम का नाम 'उत्तराध्ययन' है । इसमें दो शब्द हैं- 'उत्तर' और 'अध्ययन' | समवायांग के — 'छत्तीसं उत्तरज्भयणा" इस वाक्य में उत्तराध्ययन के 'छत्तीस अध्ययन' प्रतिपादित नहीं हुए हैं, किन्तु 'छत्तीस उत्तर अध्ययन' प्रतिपादित हुए हैं। नंदी में भी 'उत्तरज्भयणाणि' यह बहुवचनात्मक नाम मिलता है। उत्तराध्ययन के अंतिम श्लोक में छत्तीसं उत्तरज्झाए - ऐसा बहुनाम मिलता है।' निर्मुक्तिकार ने 'उत्तराध्ययन' का हवन में प्रयोग किया है ।" चूर्णिकार ने छत्तीस उत्तराध्ययनों का एक श्रुतस्कन्ध ( एक ग्रन्थ रूप) स्वीकार किया है। फिर भी उन्होंने इसका नाम बहुवचनात्मक माना है। भी इस बहुवचनात्मक नाम से यह फलित होता है कि उत्तराध्ययन अध्ययनों का योग मात्र है, एक कर्तृक एक ग्रन्थ नहीं 'उत्तर' शब्द 'पूर्व' सापेक्ष है। चूर्णिकार ने प्रस्तुत अध्ययनों की तीन प्रकार से योजना १. षड्खंडागमः सत्प्ररूपणा (१।१।१), पृ० ६७ : दसवेयालियं आयार-गोयर - विहिं वण्णेइ । २. अंगपण्णत्ति, ३।२४ : जदि गोचरस्स विहि, पिंडविशुद्धि च मं परवेहि । दसवेलियसुतं दह काला जत्थ संवृत्ता ॥ ३. तस्वार्थवृत्ति श्रुतसागरीय, पृष्ठ ६७ : बृक्षकुसुमादीनां दशानां भेदकथकं यतीनामाचारकथनं च दशर्वकालिकम् । ४. समवाओ, समवाय ३६ । ५. नंदी, सूत्र ४३ ॥ ६. उत्तराध्ययन ३६।२६८ । ७. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा ४ - छत्तीसं उत्तरज्भयणा । ८. उत्तराध्ययनचूर्णि पृष्ठ ८: ऐसि चेद छत्तीसाए उत्तणा स्मुदगसमितिसमागमेणं उत्तरण्झयणभावसुतक्खंधेति लम्भ, साणि पुण । छत्तीसं उत्तर भणाणि इमेहि नामेहिं अणुगंतव्वाणि । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ की है(१) स-उत्तर -पहला अध्ययन (२) निरुत्तर .-छत्तीसवां अध्ययन (३) स-उत्तर-निरुत्तर -बीच के सारे अध्ययन किन्तु 'उत्तर' शब्द की यह अर्थ-योजना चूणि कार की दृष्टि में अधिकृत नहीं है । उनकी दृष्टि में अधिकृत अर्थ वही है जो नियुक्तिकार के द्वारा प्रस्तुत है । नियुक्तिकार के अनुसार प्रस्तुत अध्ययन आचारांग के उत्तरकाल में पढ़े जाते थे, इसलिए उन्हें 'उत्तर अध्ययन' कहा गया। श्रतकेवली शय्यंभव (वीर-निर्वाण सं०६८) के पश्चात ये अध्ययन दशकालिक के उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे। इसलिए ये 'उत्तर अध्ययन ही बने रहे। यह 'उत्तर' शब्द की संगत व्याख्या प्रतीत होती है। दिगम्बर-आचार्यों ने भी 'उत्तर' शब्द की अनेक दृष्टिकोणों से व्याख्या की है । धवलाकार (वि० ६ वीं शताब्दी) के मतानुसार 'उत्तराध्ययन' उत्तर-पदों का वर्णन करता है । यह 'उत्तर' शब्द समाधान सूचक है।' अंगपण्णत्ति (वि० १६ वीं शताब्दी) से 'उत्तर' शब्द के दो अर्थ फलित होते हैं (१) उत्तरकाल-किसी ग्रन्थ के पश्चात् पढ़े जाने वाले अध्ययन । (२) उत्तर--प्रश्नों का उत्तर देने वाले अध्ययन । ये अर्थ भी 'उत्तर' और 'अध्ययनों के सम्बन्ध की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हैं। उत्तराध्ययन में प्रश्नोत्तर-शैली से लिखित पांच अध्ययन हैं-६, १६, २३, २५ और २६ । आंशिक रूप में कुछ प्रश्नोत्तर अन्य अध्ययनों में भी हैं। इस दृष्टि से 'उत्तर' का समाधान-सूचक अर्थ संगत होते हुए भी पूर्णत: व्याप्त नहीं है। १. उत्तराध्ययनणि, पृष्ठ ६ : विणयसुयं सउत्तरं जीवाजीवाभिगमो णिरुत्तरो, सर्वोत्तर इत्यर्थः, सेसज्झयणाणि सउत्तराणि णिरुत्तराणि य, कहं ? परीसहा विणयसुयस्स उत्तरा चउरंगिज्जस्स तु पुव्वा इति का णिरुत्तरा। २. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा ३ : कमउत्तरेण पगयं आयारस्सेव उवरिमाइं तु । तम्हा उ उत्तरा खलु अझयणा हुंति णायव्वा ।। ३. उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति, पत्र ५: विशेषश्चायं यथा--शय्यम्भवं यावदेष क्रमः, तदाऽऽरतस्तु दशवकालिकोत्तरकालं पठ्यन्त इति । ४. धवला, पृष्ठ ६७ (सहारनपुर प्रति, लिखित) : उत्तरज्झयणं उत्तरपदाणि वण्णेइ । ५. अंगपण्णत्ति ३३२५, २६ : उत्तराणि अहिज्जंति, उत्तरज्झयणं पदं जिणिदेहि । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'उत्तरकाल' वाची अर्थ संगत होने के साथ-साथ पूर्णतः व्याप्त भी है, इसलिए इस 'उत्तर' का मुख्य अर्थ यही प्रतीत होता है । उत्तराध्ययन : आकार और विषय-वस्तु उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययन हैं। यह संकलित सूत्र है । इसका प्रारम्भिक संकलन वीरनिर्वाण की पहली शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ । उत्तरकालीन संस्करण देवद्धिगणी के समय में सम्पन्न हुआ। वर्तमान अध्ययनों के नाम समवायांग तथा उत्तराध्ययन नियुक्ति में मिलते हैं । उनमें क्वचित् थोड़ा अन्तर भी हैसमवायांग' उत्तराध्ययन नियुक्ति १. विणयसुयं विणयसुयं २. परीसह परीसह ३. चाउरंगिज्ज चउरंगिज्ज ४. असंखयं असंखयं ५. अकाममरणिज्ज अकाममरणं ६. पुरिसविज्जा नियंठ (खुड्डागनियंठ') ७. उरब्भिज्जं. ओरब्भं ८. काविलिज्जं काविलिज्ज ६. नमिपव्वज्जा णमिपब्वज्जा १०. दुमपत्तयं ११. बहुसुयपूजा बहुसुयपुज्ज १२. हरिएसिज्ज हरिएस १३. चित्तसंभूयं चित्तसंभूइ १४. उसुकारिज उसुआरिज १५. सभिक्खुगं सभिक्खु १६. समाहिठाणाई समाहिठाणं १७. पावसमणिज्ज पावसमणिज्ज १८. संजइज्ज संजईज्जं १६. मियचारिता मियचारिया २०. अणाहपव्वज्जा नियंठिज्ज (महानियंठ) दुमपत्तयं १. समवाओ, समवाय ३६ । २. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा १३-१७ । ३. वही, गाथा २४३ : एसा खलु निज्जुत्ती खुड्डागनियंठस्स सुत्तस्स । ४. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा ४२२ : एसा खलु निज्जुत्ती महानियंठस्स सुत्तस्स । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१. समुद्दपालिज्ज समुद्दपालिज २२. रहनेमिज्जं रहनेमीयं २३. गोयमकेसिज्ज केसिगोयमिज्ज २४. समितीओ समिइओ २५. जन्नतिज्जं जन्नइज्जं २६. सामायारी सामायारी २७. खलुकिज्ज खलुंकिज्ज २८. मोक्खमग्गगई मुक्खगई २६. अप्पमाओ अप्पमाओ ३. स्वोमग्गो तव गविही चरण ३२. पमायठाणाई पमायठाणं ३३. कम्मपगडी कम्मप्पयडी ३४. लेसज्झयणं लेसा ३५. अणगारमग्गे अणगारमग्गे ३६. जीवाजीवविभत्ती जीवाजीवविभत्ती नियुक्ति के अनुसार छत्तीस अध्ययनों का विषय-वर्णन इस प्रकार है : १. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा १८-२७ : पढमे विणओ बीए परिसहा दुल्लहंगया तइए । अहिगारो य चउत्थे होई पमायप्पमाएत्ति ॥ मरणविभत्ती पूण पंचम्मि विज्जा चरणं च छट्र अझयणे । रसगेहिपरिच्चाओ सत्तमे अमि अलाभे ॥ निक्कंपया या नवमे दसमे अणसासणोवमा भणिया । इक्कारसमे पूया तवरिद्धि चेव बारसमे ॥ तेरस नियाणं अनियाणं चेव होइ चउदसमे । भिक्खु पन्नरसे सोलसमे बंभगृत्तीओ। पावाण वज्जणा खलु सत्तरसे भोगिढिविजहणद्वारे । एगुणि अपरिकम्मे अणाहया चेव वीसइमे ।। चरिया य विचित्ता इक्कवीसि बावीसिमे थिरं चरणं । तेवीसहमे धम्मो सउदीसहमे य समिइओ ॥ बंभगुण पन्नवीसे सामायारी य होइ छठवीसे । सत्तावीसे असढया अट्ठावीसे य मुक्खगई ।। एगुणतीस आवस्सगप्पमाओ तवोय होई तीसइमे । चरणं इक्कतीसे बत्तीसि पमायठाणाई॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्ययन १ २ ३ ५ ६ ६ १० ' १२ १३ * १५ १६ १७ १८ १६ २० २१ २२ २३ २५ २६ २७ २८ २६ तेलीसइमे गुणा उत्तरम्भणाणेसो श्लोक ४८ 6 w m m 2 ४६ २० १३ ३२ १७ ३० २० १७ २१ ५३ ६८ ६० २४ ४६ ८६ २७ ४३ ५२ १७ ३६ सूत्र m १२ ७४ इत्तो shoori पुण अग्भवणं ५५ विषय विनय प्राप्त कष्ट सहन का विधान चार दुर्लभ अंगों का प्रतिपादन । प्रमाद और अप्रमाद का प्रतिपादन । मरण-विभक्ति-अकाम और सकाम मरण । विद्या और आचरण । रस-मृद्धि का परित्याग | लाभ और लोभ के योग का प्रतिपादन । संयम में निष्प्रकम्प भाव अनुशासन । बहुश्रुत तप क निद अनि भिक्षु के गुण । ब्रह्मचर्य की गुप्तियां । पाप-वर्जन | ना । ल्प । असंकल्प | भोग और ऋद्धि का त्याग । अपरिकर्म देहायास का परित्याग । अनाथता । विचित्र चर्या । चरण का स्थिरीकरण धर्म- चातुर्याम और समितियां-गुप्तियां | ब्राह्मण के गुण । सामाचारी । अशठता । मोक्ष-गति । आवश्यक में अप्रमाद । कम्म चउतीसइमे यहुति लेसाओ । पणती जीवाजीवा य छत्तीसे ॥ पडस्थो वणिओ समासेणं । किलस्थामि ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ३७ २१ ३६ अध्ययन श्लोक विषय ३० तप। चारित्र। १११ प्रमाद-स्थान । २५ कर्म । लेश्या । भिक्षु के गुण । २६८ जीव और अजीव का प्रतिपादन । नियुक्तिकार ने उत्तराध्ययन के प्रतिपाद्य के संक्षिप्त संकेत प्रस्तुत किए हैं। इनसे एक स्थूल-सी रूपरेखा हमारे सामने आ जाती है । विस्तार में जाएं तो उत्तराध्ययन का प्रतिपाद्य बहुत विशद है। भगवान् पार्श्व और भगवान महावीर की धर्म-देशनाओं का स्पष्ट चित्रण यहां मिलता है । वैदिक और श्रमण संस्कृति के मतवादों का संवादात्मक शैली में इतना व्यवस्थित प्रतिपादन अन्य आगमों में नहीं है । इसमें धर्म-कथाओं, आध्यात्मिक-उपदेशों तथा दार्शनिक-सिद्धान्तों का आकर्षक योग है। इसे भगवान् महावीर की विचार-धारा का प्रतिनिधि सूत्र कहा जा सकता है। मुख्य व्याख्या ग्रंथ दशवैकालिक १. दशवैकालिकनियुक्ति, २. दशवकालिकभाष्य, ३. दशवकालिकचूणि (अगस्त्यचूणि), ४. दशवकालिकचूणि (जिनदास महत्तर), ५. दशवकालिकअवचूरि, ६. दशवैकालिकदीपिका । उत्तराध्ययन १. उत्तराध्ययन नियुक्ति, २. • उत्तराध्ययनचूणि, ३. उत्तराध्ययनटीका (शांतिसूरि), ४. उत्तराध्ययनवृत्ति (नेमिचन्द्र)। ४. नंदी नामबोध प्रस्तुत आगम का नाम नन्दी है । नन्दी शब्द का अर्थ है-आनन्द । चूर्णिकार ने इसके तीन अर्थ किये हैं'---प्रमोद, हर्ष और कन्दर्प । ज्ञान सबसे बड़ा आनन्द है। प्रस्तुत आगम में ज्ञान का वर्णन है, इसलिए इसका नाम नन्दी रखा गया है। विशेषावश्यक भाष्य में भाव मंगल या भाव नंदी कहा गया है। ज्ञान सबसे बड़ा मंगल होता है, इस अवधारणा के आधार पर किया गया नामकरण १. नंदीचूणि, पृ० १ : णंदणं णंदी, णंदंति वा अणयेति गंदी, गंदंति वा गंदी, पमोदो हरिसो कंदप्पो इत्यर्थः । २. विशेषावश्यक भाष्य ७८ : मंगलमधवा गंदी चतुविधा मंगलं वा सा णेया । दवे तुरसमुदओ, भावम्मि य पंच णाणाई। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XO ज्ञान के मूल्यांकन का वास्तविक दृष्टिकोण है । रचनाकाल और रचनाकार प्रस्तुत सूत्र की रचना के साथ वाचनाओं का इतिहास जुड़ा हुआ है । नन्दी की चूर्णि में स्कन्दिलाचार्य की वाचना या माथुरी वाचना का उल्लेख मिलता है । स्कन्दिलाचार्य का अनुयोग 'अर्धभरत' में प्रचलित है ।" चूर्णिकार ने प्रश्न उपस्थित किया कि स्कन्दिलाचार्य का अनुयोग क्यों प्रचलित है ? उसका समाधान देते हुए कहा कि बारह वर्षीय भयंकर दुर्भिक्ष हुआ उस अवधि में आहार की सम्यग् उपलब्धि न होने के कारण मुनिजन श्रुत का ग्रहण, गुणन और अनुप्रेक्षा नहीं कर सके । फलस्वरूप श्रुत नष्ट हो गया । बारह वर्षों के बाद सुभिक्ष होने पर मथुरा में साधु-संघ का बड़ा सम्मेलन हुआ । उसमें स्कन्दिलाचार्य प्रमुख थे । सम्मेलन में भाग लेने वाले साधुओं में जो श्रुतधर साधु बचे थे और उनकी स्मृति में जितना श्रुत बचा था उसे संकलित कर कालिक श्रुत ( अंगप्रविष्ट श्रुत) का संकलन किया गया, इस संकलन को वाचना कहा जाता है । यह वाचना मथुरा में हुई। इस वाचना का नाम माथुरी वाचना है और वह वाचना स्कन्दिलाचार्य के नेतृत्व में हुई इसलिए उस वाचना में संकलित श्रुत को स्कन्दिलाचार्य का अनुयोग कहा गया । दूसरा अभिमत यह है कि उस समय श्रुत नष्ट नहीं हुआ था किन्तु अनुयोगधर आचार्य दिवंगत हो गये, केवल स्कन्दिलाचार्य बचे थे । उन्होंने मथुरा में साधु परिषद् में अनुयोग का प्रवर्तन किया इसलिए उनका अनुयोग माथुरी वाचना कहलाता है। और वह अनुयोग स्कन्दिलाचार्य का अनुयोग कहा जाता है । प्रस्तुत स्थविरावलि की चूर्णि में केवल स्कन्दिलाचार्य की वाचना का उल्लेख है । चतुर्थ वाचना देवद्धिगणी ने की थी। वे प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता हैं । स्थविरावलि में उनका और उनके द्वारा १. नंदी थेरावलि गा० ३२ : जेसि इमो अणुओगो पयरइ अज्जावि अड्डभरहम्मि । बहुनगर निग्गयजसे, ते वंदे खंदिलायरिए ॥ २. नन्दी चूर्णि पृ० & कहं पुण तेसि अणुओगो ? उच्प्रते - बारससंवच्छरिए महंते दुब्भिक्खकाले भत्तट्ठा अण्णणतो फिडिताणं गहण - गुणणा-ऽणुप्पेहाभावातो सुते विप्पणट्ठे पुणो सुभिक्खकाले जाते मधुराय महंते साहुसमुदए खंदिलायरियप्पमुहसंघेण "जो जं संभरति" त्ति एवं संप्रडितं कालिय सुतं । जम्हा य एतं मधुराए कतं तम्हा माधुरा वायणा भण्णति । सा य खंदिलायरियसम्मय त्ति कातुं तस्संतियो अणुओगो भणति अण्णे भांति जहा सुतं ण णट्ठ तम्मि दुब्भिक्खकाले जे अण्णे पहाणा अणुओगधरा ते विट्ठा, एगे खंदिलायरिए संधरे, तेण मधुराए अणुयोगो पुणो साधूनं पवित्तितो त्ति माधुरा वायणा भण्णति, तस्संतितो य अणियोगो भण्णति । नन्दी हारीभद्रयवृत्ति ( पृ० १७, १८) तथा मलयगिरि की नंदी वृत्ति (पत्र ५१ ) में भी चूर्ण का अभिमत उद्धृत है । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 폭력 कृत वाचना का उल्लेख न होना स्वाभाविक है । देवगण ने वीर निर्वाण की दसवीं शताब्दी (१८० या १९३ विक्रम की छठी शताब्दी) में आगम की वाचना की थी। उस वाचना में जो आगम व्यवस्थित किये तथा जिन आगमों के बारे में जानकारी उपलब्ध थी उनकी तालिका नन्दी मूत्र में दी गई। इससे सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि प्रस्तुत आगम की रचना वीर निर्वाण की दसवीं शताब्दी के दसवें दशक के आसपास हुई थी। चूर्णिकार के अनुसार प्रस्तुत आगम के कर्ता दृष्यगणि के शिष्य देववाचक हैं। उनका aftaraare वीर निर्वाण की दसवीं शताब्दी ( विक्रम की छठी शताब्दी का दूसरा दशक ) है । आवश्यक निर्मुक्ति में नन्दी सूत्र का उल्लेख मिलता है। देवगणी की आगम वाचना से पूर्व प्रस्तुत सूत्र की रचना हो चुकी थी। भगवती आदि में उपलब्ध नन्दी के उल्लेखों के आधार पर यह कल्पना की जा सकती है, फिर भी एक प्रश्न असमाहित रह जाता है कि भगवती आदि में नंदी सूत्र के उल्लेख स्वयं देवद्धिगणी ने किये अथवा उनके उत्तरकाल में किये गये । आगमों के संक्षेपीकरण का उपक्रम कई बार हुआ था। पं० बेचरदास दोशी के अनुसार पाठ संक्षेपीकरण देवद्विगणी क्षमाश्रमण ने किया था। उन्होंने लिखा है- देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने आगमों को ग्रन्थबद्ध करते समय कुछ महत्त्वपूर्ण बातें ध्यान में रखीं। जहां-जहां शास्त्रों में समान पाठ आये वहां-वहां उनकी पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए एक विशेष ग्रन्थ अथवा स्थान का निर्देश कर दिया। जैसे-"जहा उववाइए जहा पण्णवणाए" इत्यादि एक ग्रन्थ में वही बात बार-बार आने पर उसे पुनः न लिखते हुए "जाव" शब्द का प्रयोग करते हुए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया। जैसे - " नागकुमारा जाय विहरन्ति ते काले जाव परिसा विम्या" इत्यादि । इस परम्परा का प्रारंभ भले ही देवर्द्धिगणी ने किया हो, किन्तु इसका विकास उनके उत्तरवर्ती काल में भी होता रहा है। वर्तमान मे उपलब्ध आदर्शों में संक्षेपीकृत पाठ की एकरूपता नहीं है। एक आदर्श में कोई सूत्र संक्षिप्त है तो दूसरे में वह समग्र रूप से लिखित है। इसका उल्लेख भी किया है। उदाहरण के लिए औपपातिक सूत्र वा" तथा "अयबंधवाणि वा जाय अण्णवराई वा " ये दो पाठां मुख्य आदर्श थे, उनमें ये दोनों संक्षिप्त रूप में थे, किन्तु दूसरे आदर्शों में ये समग्र रूप में भी प्राप्त ये वृत्तिकार ने इसका उल्लेख किया है। लिपिकर्ता अनेक स्थलों में अपनी सुविधानुसार पूर्वागत पाठ को दूसरी बार नहीं लिखते और उत्तरवर्ती आदशों में उनका अनुगरण होता चला जाता । उदाहरण स्वरूप-रायपसेणइय सूत्र में "सन्दिडीए अकालपरिहीणा” ऐसा पाठ मिलता है। इस पाठ में अपूर्णता सूचक संकेत भी नहीं है। "सबिडिए" और "अकाल परिहीण" के मध्यवर्ती पाठ की पूर्ति करने पर समग्र पाठ इस प्रकार बनता है-"सबिडीए सव्वजुत्तीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वावरेणं सव्वभूविभूव्यसंमेणं व्यवस्थ-गंध-मनालंकारेण सम्वदिव्ववुडियस में टीकाकारों ने स्थान-स्थान पर "अयपायाणि वा जाव अण्णयराई मिलते हैं। वृत्तिकार के सामने जो १. पृ० १३ एवं कलमंगलवारो वेरावलिकमे य दंसिए अरिमु य दंसितेसु दुस्समणिसीसो देववायगो साहुजन हितट्ठाए इणमाह । २. आवश्यकनिर्मुक्ति गा० १०२ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्निवाएणं महया इड्ढीए मह्या जुइए मह्या बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसगग.. पप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुदक्क-मुरय-मुइंग-दंदुभि-निग्धोसनाइयरवेण णियगपरिवालसद्धि संपरिवुडा साइं साइं जाणविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणा" । संक्षेपीकरण की प्रक्रिया में अन्य आगमों में नन्दी सूत्र के उल्लेख उत्तरवर्ती आचार्यों द्वारा किये गये, इस संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, किन्त देवद्धिगणी ने आगमों को लिपिबद्ध करते समय संक्षिप्त पाठ की प्रणाली न अपनाई हो यह नहीं कहा जा सकता, इसलिए प्रस्तुत आगम की रचना आगम वाचना के पूर्व हुई, इन स्वीकृति में कोई बाधा प्रतीत नहीं होती। मुख्य व्याख्या ग्रंथ १. नंदीचूणि, २. नंदीटीका (हरिभद्र) ३. नंदीटीका (मलयगिरि) ५. अनुयोगद्वार नामबोध यह व्याख्या सूत्र है । अनुयोग का अर्थ है-याख्या। इस आगम का कोई स्वतंत्र प्रतिपाद्य विषय नहीं है । इसमें आगमसूत्रों की व्याख्या पद्धति का निर्देश है। रचनाकाल और रचनाकार प्रस्तुत आगम के कर्ता आर्यरक्षितसूरि माने जाते हैं। इनका समय विक्रम की दूसरी शताब्दी है। ये गृहस्थ-जीवन में नैयायिक-न्यायदर्शन के विद्वान् थे। इन्होंने न्यायदर्शन सम्मत चतुर्विध प्रमाण का समावेश किया। विषयवस्तु व्याख्या-पद्धति के चार अंग बताए गए हैं.---१. उपक्रम, २. निक्षेप, ३. अनुगम, ४. नय। नियुक्तियों ने निक्षेप पद्धति की प्रधानता रही है। प्रस्तुत आगम में उसकी स्वीकृति मिलती है। इसका प्रारम्भ पांच ज्ञान के निर्देश से होता है। प्रमाण के स्वार्थ और पार्थ चर्चा का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, किन्तु चार ज्ञान स्थाप्य हैं । उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा--ये सब श्रुतज्ञान के होते हैं। इससे फलित होता है कि चार ज्ञान स्वार्थ हैं और श्रुतज्ञान परार्थ है। आर्यरक्षितसूरि ने पांच ज्ञान और चार प्रमाणों का निर्देश किया है, किन्तु दोनों के समन्वय का प्रयत्न नहीं किया। उत्तरवर्ती जैन दार्शनिकों ने उपमान के स्वतंत्र प्रमाण होने का निरसन किया है। प्रत्यक्ष और परोक्ष---इस प्रमाण-द्वयी की परम्परा में अनुमान भी स्वतंत्र प्रमाण नहीं है। यह परोक्ष प्रमाण का ही एक अंग है। आचार्य देवद्धिगणी ने आर्थरक्षितसूरि द्वारा संगृहीत प्रमाण चतुष्टयी का स्थानांग' और भगवतीर--दोनों आगमों में संकलन किया है। भावप्रमाण के तीन प्रकार निर्दिष्ट हैं -१. गुणप्रमाण, २. नयप्रमाण. ३. संख्याप्रमाण । नयप्रमाण का विवेचन प्रस्थक, वसति और प्रदेश के दृष्टान्तों द्वारा किया गया है। आगम आहित्य में १. ठाणं ४।५०४॥ २. भगवती ५९७ । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नय का इस प्रकार का विवेचन यहीं हुआ है । नय की प्रकृति को समझने के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । मुख्य व्याख्या ग्रंथ १. अनुयोगद्वारणि २. अनुयोगद्वारवृत्ति ३ अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति (हरिभद्रसूरि ) ६. दशाश्रुतस्कन्ध ܪ नामबोध प्रस्तुत आगम के दो नाम उपलब्ध हैं । नंदी' की सूची में इसका नाम 'दशा' और स्थानांग में इसका नाम 'आयारदशा' मिलता है । इसके दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'दशा' रखा गया है । प्रतिपाद्य विषय की दृष्टि से इसका नाम 'आयारदशा' है । रचनाकार और रचनाकाल दशाश्रुतस्कंध चूर्णि के अनुसार इसका निर्यूहण प्रत्याख्यान पूर्व से किया गया है। इसके निर्यूह है— चतुर्दशपूर्वी आचार्य भद्रवाहस्वामी ।" प्रस्तुत आगम की आठवीं दशा का पाठ संक्षिप्त है । उसमें 'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्युत्तरे होत्था' - इस पाठ से सूत्र का प्रारम्भ होता है और 'जाव भुज्जो भुज्जो उपदंसद' इस पाठ से पूर्ण होता है। इस 'जान' पद के द्वारा पूरा पर्युषणाकल्प यहां संगृहीत है। -- कुछ आदशों में इस संक्षिप्त पाठ के स्थान पर पूरा पर्यापणाकल्प अध्ययन लिखा हुआ मिलता है। हमने पर्युषणाकल्प को परिशिष्ट में दिया है। प्रस्तुत अध्ययन के पांच विभाग हैं १. महावीर चरित्र--१-१०७ २. शेष तेवीस तीर्थंकरों का चरित्र - १०५ - १८१ ३. गणधरावलि - १०२-१८५ ४. स्थविरावलि - १८६-२२२ ५. पर्युषणाकल्प २२३-२०० हैं । दशाgतस्कंध के मुख्य तीन व्याख्याय १. निर्मुक्ति, २ चूर्ण ३. वृत्ति प्रस्तुत अध्ययन से संबद्ध निर्मुक्ति केवल पणाकल्प की है। इससे प्रतीत होता है कि नियुक्तिकार के सामने शेर्पा विषय प्रस्तुत अध्ययन के अंगभूत नहीं थे। नियुक्तिकार के अनुसार मंगलनिमित्त उनका प्रवचन किया १. नंदी, सूत्र ७८ । २. ठाणं १०।११५ । ३. दशा० चूर्णि पत्र २ : कतरं सुत्तं ? दसाओ कप्पो ववहारो य । कतरातो उद्धृतं ? उच्यते-पञ्चवाणपुवाओ । ४. दशाgतस्कन्धनियुक्ति गाथा १ वंदामि भवाहं, पाईणं चरिम सयलसुपनाणि । सुत्तस्स कारगमिसि वसासु कप्पे य ववहारे ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाता था। पुरिमचरिमाण कप्पो, मंगलं वद्धमाणतित्थम्मि । इह परिकहिया जिणगणहराइ थेरावलिचरित्तं ।। चूणि--'पुरिमचरिमाण य तित्थगराणं एस मग्गो चेव, जहा-वासावासं पज्जोसवेतव्वं, पडउ वा वासं मा वा । मज्झिमगाणं पुण भयणिज्जं । अवि य वद्धमाणतित्थ म्मि मंगलनिमित्तं जिणगणधरावलिया सव्वेसि च जिणाणं समोसरणाणि परिकाहिज्जति । चूणि में महावीर चरित्र के पश्चात् स्थविरावलि व्याख्यात है। मध्यवर्ती तीर्थंकरों के चरित्र व्याख्यात नहीं हैं। इन दोनों व्याख्याओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रस्तुत अध्ययन का 'पर्यषणाकल्प' मूल था। महावीरचरित्र और स्थविरावलि ये दोनों देवद्धिगणि की वाचना के समय जुड़े। इसका साक्ष्य महावीर चरित्र और स्थविरावलि का अंतिम सूत्र है-समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स नव वाससयाई विइक्कंताई दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरकाले गच्छइ । वायणंतरे पुण-अयं तेणउए संवच्छरकाले गच्छद--इति दीसइ ॥१०७।। थेरस्स णं अज्जपूसगिरिस्स कोसियगोत्तस्स अज्जफग्गुमित्ते थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते ।।२२२।। तेवीस तीर्थंकरों के विवरण की तथा स्थविरावलि की चूणि नहीं है।' इससे स्पष्ट है कि ये दोनों चूणि की रचना के पश्चात् इसके साथ जोड़े गए। मनि पूण्यविजयजी ने लिखा है---गणधर आदि स्थविरों की आवली तथा सामाचारी ग्रंथ होने की साक्षी निर्यक्तिकार और चणिकार—ये दोनों स्थविर 'पुरिमचरिमाण कप्पो...." (नि० गा ६२) और उसकी चणि द्वारा देते हैं। गणधरादि स्थविरों की आवली आज कल्पसूत्र में जिस रूप में देखने को मिलती है, वैसी और उतनी तो चतुर्दशपूर्वधर भगवान् श्री आर्य भद्रबाहुस्वामी प्रणीत कल्पसूत्र में हो ही नहीं सकती। इसलिए जब प्रस्तुत कल्पसूत्र को अयवा आगमों को पुस्तकारूढ़ किया, उस युग के स्थविरों ने इसे प्रस्तुत किया है-यह कहना ही आज विशेष उचित है। एक प्रश्न हमारे समक्ष उपस्थित होता है-आज की अति अर्वाचीन अर्थात् १६वीं १७वीं शताब्दी में लिखित प्रतियों में जो स्थविरावलि देखी जाती है, यह कहां से आई ? कारण कि खंभात, अहमदाबाद, पाटण, जैसलमेर आदि की अनेक ताडपत्रीय प्रतियों को देखा, परन्तु मुझे बाद के स्थविरों से संबद्ध स्थविरावली किसी भी प्रति में नहीं मिली। ऐसा होने पर भी यह मानने के लिए हमारा मन नहीं होता कि यह अंश निराधार है। इसलिए इस विषय में और अधिक अन्वेषण करना शेष रह जाता है। ___ नियुक्ति में जिन, गणधर और स्थविरावलि के कथन का उल्लेख है, किन्तु वे इस ग्रंथ के अंश १. दशाश्रुतस्कंध, मूलनियुक्ति चूणि, पत्र ६३ । २. वही, मूलनियुक्ति चूणि, पत्र ६५ । ३. पर्युषणाकल्प, सूत्र १०८-१८१ ४. वही, सूत्र १८६-२२२ ५. कल्पसूत्र, मुनि पुण्यविजयजी द्वारा लिखित भूमिका पृ० १० । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ हैं, यह नियुक्ति और चणि दोलों से फलित नहीं होता। यह संभव है कि इस उल्लेख के आधार पर जिनचरित्र, गणधरावलि और स्थविरावलि ये सब इसके साथ जोड़ दिए गए। महावीर चरित्र का भी नियुक्ति में उल्लेख नहीं है। पर्यषणाकल्प के पाठसंशोधन में प्रयुक्त 'ध' संकेतित आदर्श में पाठ संक्षिप्त है। उसमें नमि से अजित तक तीर्थंकरों का वर्णन नहीं है। उसके स्थान पर इस प्रकार लिखा हुआ है-अथाग्रे चतुविशति २४ जिनानां उत्तरकालम् । सुत्र १८३ से २२२ तक गणधरावलि और स्थविरावलि 'ता' संकेतित ताडपत्रीयादर्श में २१ से ३५ तक के सूत्र नहीं हैं । स्वप्नवर्णन संक्षिप्त है। उसका विस्तार बाद में हुआ है। मुनि पुण्यविजयजी ने भी स्वप्न के वर्णन को अर्वाचीन स्वीकार किया है। आज हमारे समक्ष कल्पगूत्र की जो प्रतियां हैं, उनमें 'खंभात' के 'श्री शांतिनाथ ताडपत्रीय भडार' की प्रति सबसे प्राचीन है। यह विक्रम संवत् १२४७ की है। इस प्रति में १४ स्वप्न विषयक में मन वर्णक ग्रन्थ बिल्कुल है ही नहीं। इसी प्रकार मैंने संशोधन के लिए जिन छह प्रतियों का संपूर्ण रूप से उपयोग किया है, उनमें से 'ग' और 'छ' संज्ञक इन दो प्रतियों में स्वप्न के विषय का वर्णक ग्रन्थ प्रकारान्तर से और अत्यन्त संक्षिप्तरूप में प्राप्त होता है। जबकि दूसरी प्रतियों में वर्तमान में प्रचलिन स्वप्न विषयक वर्णक ग्रन्थ अक्षरशः मिलता है। इस प्रकार चौदह स्वप्न विषयक तीन वाचनान्तर मेरे देखने में आए हैं। श्रीमान् चूणिकार और उनके पीछे-पीछे चलने वाले टिप्पणकार स्वप्न सम्बन्धी वर्णक ग्रन्थ के विषय में मौन है। स्वप्न संबंधी वर्णक ग्रंथ के एक भी शब्द की वे व्याख्या नहीं करते। यह सब देखकर स्वप्न संबंधी प्रचलित वर्णक ग्रंथ की मौलिकता के विषय में जरूर शंका होती है। किन्तु उसके साथ दूसरा प्रश्न यह उपस्थित होता है कि त्रिशला क्षत्रियाणी चौदह स्वप्न देखकर जागृत होती है और उन चौदह स्वप्नों के नाम के पश्चात् तत्काल "तए णं सा तिसला खत्तियाणी इमे एयारूवे ओराले चोद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा" यह सूत्र आता है। अर्थात् त्रिशला क्षत्रियाणी ये और इस प्रकार के उदार चौदह महास्वप्नों को देखकर जागृत हई, इस सूत्र में 'ये और इस प्रकार के उदार' ये वाक्य देखकर हमारे मन में यह सहज प्रश्न होता है कि इस प्रकार के उदार अर्थात् कैसे उदार ? इस प्रकार का प्रश्न या जिज्ञासा, हमें चौदह स्वप्न विषयक वर्णकग्रन्थ के अस्तित्व की कल्पना की ओर खींच ले जाती है। और इसी कारण से इस स्थान पर चौदह स्वप्न विषयक किसी न किसी प्रकार का वर्णक ग्रन्थ होना अनिवार्य हो जाता है। किन्तु जब तक हमारे समक्ष दूसरी प्राचीन प्रतियां न हों, तब तक वह वर्णकग्रन्थ कैसा होना चाहिए इसका निर्णय कठिन हो जाता है। वर्तमान में प्रचलित वर्णकग्रंथ की मौलिकता के विषय में शंका है, फिर भी इतना ध्यान रखना अति आवश्यक है कि प्रचलित स्वप्न विषयक वर्णकग्रन्थ अर्वाचीन हो तो भी वह अनुमानतः हजार वर्ष से अर्वाचीन तो नहीं ही है।' उक्त मीमांसा के आधार पर हम सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि “पर्युषणाकल्प" अनेक कालखण्डों में संकलित है। देवद्धिगणी की वाचना के उत्तरवर्ती संकलन को आगम की कोटि १. कल्पसूत्र, मुनि पुण्यविजयजी द्वारा लिखित भूमिका पृ० ६-१०। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में रखना एक समस्या है। यदि हम उत्तरवर्ती संकलनों को आगम की मान्यता दें तो आगम और उत्तरवर्ती साहित्य में भेदरेखा खींचना हमारे लिए कठिन हो जाता है। इस दृष्टि से हम "पर्युषणाकल्प" के समग्र रूप को आगम की कोटि में नहीं रख पाते। इसीलिए उसे दशाश्रुतस्कंध आगम के एक परिशिष्ट के रूप में रखा है। मुख्य व्याख्या-ग्रंथ १, दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति २. दशाश्रुतस्कंधचूणि ३. दशाश्रुतस्कंधवृत्ति । ७,८. कल्प और व्यवहार नामबोध ये दोनों छेदसूत्र हैं। पर्युषणाकल्प, प्रकल्प और कल्प-ये तीन नाम बहुत निकटवर्ती हैं। मध्यकाल में पर्युषणाकल्प 'कल्पसूत्र' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। संभवत: इसीलिए 'कल्पसूत्र' के लिए 'बृहत्कल्प' नाम प्रसिद्धि में आ गया । एक दूसरी संभावना पर भी ध्यान आकर्षित होना है कि कल्पसूत्र पर दो भाष्य लिखे गए-बृहत् और लघु । बृहत्कल्पभाष्य-इसमें कल्प के साथ बृहत्भाष्य का उल्लेख है किन्तु उत्तरकाल में वह 'बृहत्' शब्द कल्प के साथ जुड़ गया और कल्पसूत्र का नाम बृहत्कल्प हो गया। व्यवहार का अर्थ है-आलोचना शुद्धि या प्रायश्चित्त ।' आलोचना के आधार पर आलोच्य छेदसूत्र का नाम व्यवहार रखा गया । रचनाकाल और रचनाकार ___ कल्प और व्यवहार-इनका नवें पूर्व की तीसरी वस्तु से नि!हण किया गया है। निर्वृहणकार हैं चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु स्वामी। कल्पसूत्र के छह और व्यवहार के दस उद्देशक हैं । मुख्य व्याख्या ग्रन्थ कल्प-१. बृहत्कल्पनियुक्ति, २. बृहत्कल्पबृहद्भाष्य, ३. बृहत्कल्पलघुभाष्य ४. बृहत्कल्पचूणि, ५. बृहत्कल्पवृत्ति । व्यवहार--१. व्यवहारनियुक्ति, २. व्यवहारभाष्य, ३. व्यवहारवृत्ति (मलयगिरि), ४. व्यवहारविवरण। १. व्यवहारभाष्य उद्दे० २, गा०६० ववहारो आलोयणा सोही पच्छित्तमेव एगद्रा। २. वही, १०॥३४५ : सव्वं पिय पच्छित्तं, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थुम्मि । तत्तो वि य निच्छुढा पकप्पकप्पो य ववहारो॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. निशीथ प्रस्तुत सूत्र का नाम "निशीथ" है । "निशीथ" का अर्थ अप्रकाश है।' यह सूत्र अपवाद-बहुल है, इसलिए इसका यत्र-तत्र प्रकाशन नहीं किया जाता, हर किसी को नहीं पढाया जाता । पाठक तीन प्रकार के होते हैं अपरिणामक-जिनकी बुद्धि परिपक्व नहीं होती। परिणामक-जिनकी बुद्धि परिपक्व होती है । अतिपरिणामक-जिनकी बुद्धि कुतर्कपूर्ण होती है। अपरिणामक और अतिपरिणामक--ये दोनों निशीथ पढने के अधिकारी नहीं हैं। जो 'रहस्य' को धारण नहीं कर सकता वह निशीथ पढ़ने का अनधिकारी है। जो आजीवन रहस्य को धारण कर सकता है, वही पढने का अधिकारी है। यह भाष्यगत "रहस्य" शब्द निशीथ के अप्रकाशात्मक होने की प्रतिध्वनि है। निशीथ का कर्तृत्व जैन-आगमों की रचना के दो प्रकार प्राप्त होते हैं (१) कृत और (२) नियूंढ । जिनकी रचना स्वतंत्ररूप से हुई है, वे आगम कृत है । जैसे द्वादशांगी गणधर द्वारा कृत है तथा उपांग आदि आगम भिन्न-भिन्न स्थविरों द्वारा कृत हैं। निर्यढ आगम ये हैं-दशवकालिक २. आचार-चूला ३. निशीथ ४. दशाश्रुतस्कन्ध ५. बृहत्कल्प ६. व्यवहार । दशवकालिक चतुर्दशपूर्वी शय्यम्भवसूरि द्वारा नियूंढ है। शेष पांच आगम चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहुस्वामी द्वारा नियूंढ है। आकार और विषयवस्तु "निशीथ" आचारांग की पांचवीं चूला है। इसे एक अध्ययन के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसीलिए इसे "निशीथाध्ययन' भी कहा जाता है। इसके बीस उद्देशक हैं। उनमें से उन्नीस उद्देशकों में प्रायश्चित्त का विधान है और बीसवें उद्देशक में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया है। उद्देशक सूत्रांक प्रायश्चित्त मासिक अनुद्घातिक (गुरु मास) ५८ मासिक उद्घातिक (लघु मास) ८० ११५ १. निशीथभाष्य, श्लोक ६६ : जं होति अप्पगासं तं तु णिसोहं ति लोगसंसिद्धि । जं अप्पगासधम्म, अण्णे पि तयं निसीधं ति ॥ २. निशीथचूणि, पृ० १६५ : पुरिसो तिविहो-परिणामगो अपरिणामगो अतिपरिणामगो, तो एत्थ अपरिणामग-अतिपरिणामगाणं पडिसेहो। ३. निशीथभाष्य, ६७०२, ६७०३ । . Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * मासिक उद्घातिक (लघु मास) चातुर्मासिक अनुद्घातिक (गुरु चतुर्मास) चातुर्मासिक उद्घातिक (लघु चतुर्मास) १५३ ७३ . इन उद्देशकों का विभाजन (१) मासिक उद्घातिक (२) मासिक अनुद्घातिक (३) चातुर्मासिक उद्घातिक (४) चातुर्मासिक अनुद्घातिक और (५) आरोपणा-इन पांच विकल्पों के आधार पर किया गया है । स्थानांग में इन्हीं पांच विकल्पों को 'आचार-प्रकल्प" निशीथ कहा गया है।' वस्तुतः प्रायश्चित्त के दो ही प्रकार हैं-(१) मासिक और (२) चातुर्मासिक । द्विमासिक, त्रिमासिक, पंचमासिक और पाण्मासिक-ये प्रायश्चित्त आरोपण से बनते हैं। बीसवें उद्देशक का मुख्य विषय आरोपणा है। मुख्य व्याख्या ग्रंथ १. निशीथनियुक्ति २. निशीथभाष्य ३. निशीथचूणि (विशेष चूणि) कार्य-संपूर्ति इसके संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अहर्निश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरूतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलत: योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकडने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रमपरायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण-भाव ने इनकी प्रगति में बडा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है। १. ठाणं ५॥१४८ ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ इनकी कार्य-क्षमता और कर्त्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। प्रस्तुत आगमों के पाठ संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा । उन सबको मैं आशीर्वाद देता हं कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो । - अपने शिष्य साधु-साध्वियों के सहयोग से पाठ संशोधन का बृहत् कार्य सम्यग् रूप से सम्पन्न है, इसका मुझे परम हर्ष है। आचार्य तुलसी तेरापंथ भवन आमेट १४ नवम्बर १९८५ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Editorial The present volume is the fifth in the series of volumes related to the Agama literature published by the Jain Vishva Bharati. It comprises nine texts, viz. Avassayam, Dasaveäliyam, Uttarajjhayaṇāņi, Nandi, Anuogaddardim, Dasão, Kappo, Vavahdro and Nishajjhayaṇam. It has been styled Navasuttani, as it consists of nine suttas. It gives variant readings from different manuscripts, and a short introduction. An elaborate introduction and word index are not appended, as we propose to affix them to independent parts of the volume. It is well known to all working in this field that editing is the most difficult job, specially when the texts to be edited are separated by a gap of several millennia in respect of language, style and thought. It is unexceptionally true that a thought or a custom does not continue in its original shape through the ages. It invariably expands or contracts. The story of expansion and contraction is the story of change. "What is made up' is necessarily amenable to change. The insistence on the eternality of events, facts, thoughts and customs that are subject to change leads one to untruth and false imagination. The truth is what is made up' is necessarily transient. Whether 'made up' or 'eternal', it must needs be susceptible of change. Whatever there is must be of a nature that is not absolutely divorced from the stream of eternity and change. Is it possible that an idea or truth expressed by a particular word is capable of being expressed with its original connotation at all times? The semantic change is a necessary phenomenon and so no one with a knowledge of linguistics will insist that a word continues to have the same connotation through a period of two thousand years. For example, the expression päşanda has not the same meaning in modern framanic literature as it had in the times of the Agamas and Ashoka's inscriptions. It has acquired a derogatory nuance. Hundreds of words in the ancient Agama literature have shared the same fate. Under the circumstances, any thoughtful person will appreciate the difficulties in the task of an editor of ancient literature. Self-confidence is an innate virtue of human beings who take great pride in the exercise of their courage, and do not shirk from responsibility however ardous. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 Were escapism a human virtue, not only the achievement of any enduring value would have been impossible, but whatever had been achieved in the past would have been lost at any time. About a millennium ago, Abhayadevasûri, the great commentator of the nine Angas was confronted with a great many obstacles which he had detailed as follows: (0) Absence of authentic tradition (sampradāya, about the meaning of the texts). (ii) Lack of authentic ratiocination (ühå). (iii) Lack of direct or indirect knowledge of all the expositions in our own or other treatises. (iv) Conflicting modes of recitation (vacană). (v) Vitiated manuscripts. (vi) Unfathomable depth of the süt ras. (vii) Differences of opinion (about the readings and the meaning). In spite of all these difficulties and hurdles, he did not draw back from the Herculean task, but on the contrary achieved something that was of a permanent value. Even today the difficulties are not fewer, but as the work of editing has been taken up by Acārya Sri Tulsi himself, the task has acquired a new dimension. Any programme that is undertaken by him opens up new vistas, what to speak of the editing of the canonical literature which is by itself full of new possibilities. What is most conspicuous is that Ācārya Sri has ipfused life in the programme through me and my colleagues, monks and nuns, who were quite tyros in the field. Not only are his inarticulate blessings with us but also his concrete guidance and active cooperation are always available to us. He has given priority to the work and devoted plenty of time to it. Under his direction, deliberative counsel and encouragement, we could solve the problems, however formidable, that cropped up from time to time in the course of our difficult enterprise. Now we come to the texts edited in the present volume. AVASSAYA The texts of this sūtra have been constituted on the basis of the Avaśyakaniryukti, Avaśyaka-cūrni, Haribhadra's commentary on the Avassaya and the manuscripts available to us. 1 Sthānanga-Vrtti, praśasti, 1-2: satsampradāyahinatvāt sadūhasya viyogataḥ / sarvasvaparaśāstrāņām adrsterasmrtes ca me // vacanänämanekatvat pustakānam aśuddhitah 1 sütränam atigămbhriyad matabhedac ca kutracit il Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 Th . DASAVAIKĀLIKA & UTTARĀDHYAYANA The text of the Daśavaikālika has been constituted mainly on the basis of the 'kha' manuscript but absolute priority has not been given to any of the manuscripts, because no manuscript is correct from beginning to end. For instance, the reading “kumuduppala näliyam' (V. 118) that is available in the Agastyacūrņi has been accepted by us. In the version of the curņi 't' and 'dh' are most frequently used; for instance-itthito (itthio) (2/2), sataņāņi (sayaņāņi) (2/2), jati (jai) (2/9) -- here 't' has not been mostly dropped. These usages are definitely ancient. But these are unfamiliar to us, as we are generally used to be guided by the grammarians of the Prakrit language. dh' had not also been changed into 'h', for instance, madhukāra (mahukāra) (1/5), sådhīņe (sāhīme) (2/3) -- these words retain 'dh'. In some places one case is used for another. For instance, sometimes the instrumental is used for the locative, e.g. ahāgadehim for ahāgadesu. The text of the Uttarādhyayana has also not been constituted on the basis of any particular manuscript from beginning to end. In 36/65 all the manuscripts have puhatteņa. But from the standpoint of meaning the reading should be puhuttena. In the Brhadvrtti the word is explained as having three senses viz. mahattva, bahut va and sāmastya. All these three senses can be possible of the word prthu, and not prthak. In the Abhidhāna-cintämaņi-kośa (6/65) mahat and bahu have been given as synonyms of prthu. In the Brhadvriti (Folio 686) the word prthaktvena is found printed, but most probably that is due to the mistake committed by the scribe. The originally printed word is puhuttena In consideration of meaning and the available printed texts we have accepted the reading ‘puhutteņa'. In this way many a correct reading has been accepted from among the variants on the basis of a critical evaluation on the basis of the curni and the Brhadyrtti. In the thirty-fourth chapter we find the word 'pamhalessä' for 'padmaleśya.' Now pamha' is a Prakrit from of 'paksma'. The word 'padma' has two Prakrit forms, viz. 'pauma' and 'pamma', but 'pamha' cannot be derived from 'padma'. In the 'Leśyā' chapter of the Gommafasāra, both the words "pamma' and 'pauma' are used for 'padmaleśyā.3 We have however retained 'pumha', because neither in the manuscripts used by us nor in any other manuscripts, the word 'pamma' or pauma' is met with Quotations from Daśavaikälika and Uttaradhyayana A great number of passages from the Daśavaikälika and Uttaradhyayana has been frequently quoted by authors for the sake of discussion. Many acāryas 1 Hemaśabdānušāsana, 8/1/177. 2 Ibid, 8/1/187. 3 Gommafasāra (Jivakanda), gāthā 492, 502. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 have quoted them in their treatises. The readings of the excerpts quoted exhibit slightly different forms in respect of diction and grammar. This difference has taken place on account of the variety of region, time and tradition. We give here some instances of these variations. Original Reading in the Daśavaikälika (7/5). vitaba pi tahāmuttim jaṁ giram bhäsae naro/ tamhā so puttho pāveņaṁ kim puņa jo musam vae ? // Quoted Reading in the Brhatkalpa bhāşya, part II, p. 260 : vitabam pi tahāmuttim, jo tahā bhāsae naro / so vi tā puţtho pāvenam, kim puņam jo musam vae // Original Reading in the Daśavaikālika (6/59). tiņhamannayarāgassa nisejjā jassa kappai / jarãe abhibhūyassa vāhiyassa tavassiņo // Quoted Reading in the Brhatkalpa bhäsya, part II, p. 378 : tiņhamannayarāgassa nisijjā jassa kappai / jarãe abhibhūyassa vāhiyassä tavassiņo // Original Reading in the Daśavaikälika (6/64) : nagiņassa vã vi mundassa dīharomanahamsiņo / mehuņā uvasantassa kim vibhuske kāriyam // Quoted Reading in the Mülārādhanā, Aśvāsa 4, śloka 333, Vijayodayā Commentary, p. 611. nagganassa ya mundassa ya, dihalomaņakhassa ya 1 . mehunādo virattassa, kim vibhūsā karissadi // Original Reading in the Uttarridhyayana (23/29-30). acelago ya jo dhammo jo imo santaruttaro / desio vaddhamāņeņa pāseņa ya mahājasā il egakajjapavannāņam visese kim nu käraņam / linge duvihe mehāvi ! kabam vippaccao na te // Quoted Reading in the Mülārādhanā, Āśvāsa 4, śloka 333, Vijayodaya Commentary, p. 611 : ācelakko ya jo dhammo, jo vāyam puņa ruttaro / desido vaddhamāņeņa pāseņa ya mabappaņā // ega dhamme pavattānam duvidhā linga-kappaņā // ubhaesiṁ paditthāņa, maham samsayam āgadā // THE LONG TRADITION OF VARIANTS The main reasons for the variants available today are : 1. Difference in tradition. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 71 2. Faulty script (handwriting). 3. Intermixture of Text and Commentary. 4. Conversion of Commentary into text. 1. The Difference in Tradition Devarddhigaņi put the Agamas to writing a millennium after the nirvana of Mahāvīra. He compiled the variants that were extant at that time They are preserved in the Agamic commentaries even today! At the time of the composition of Agastya-cūrņi the traditional variants were current. There in many places variants are mentioned. This is exactly the situation in the Cūrni of Jinadāsa. The readings approved in the Agamic commentary literature however are quite different. The author of the Dipikä сommentary goes still further. Even the slokas that are not explained in Commentary are explained by the author of the Dipikā, assuming them to be original sūtras. The difference in the tradition is responsible for the difference between the authors of the Cūrm and Ţika regarding variants. But the difference of tradition does not appear to be responsible for the variants in the Dipika. That is due to the scribes. The writers of the manuscripts were very often the Jaina monks who also delivered sermons. The ślokas and gathās that were cited incidentally during the sermons were written in the margins of the manuscripts, and they were incorporated in the original. This has happened in the manuscripts of Daśavaikålika and Uttaradhyayana. The following sloka of the Daśavaikälika-niryukti has been written as a part of a original text vayachakkam kāyachakkam akappo gihibhāyaṇam / paliyankapisejjā ya, siņāņam sohavajjaņar // In a similar manner the Uttaradhyayana 24/12 is followed by a gåthå which is found incorporated in the manuscript samkappo saírambho, paritāvakaro bhave samārambho 1 ārambho uddhavao, suddhanayāṇam tu savvesim / The loss of memory has also contributed to this confusion. The monks who wrote manuscripts depending on memory could easily interchange syllables in the ślokas on account of faulty memory. The writers that followed repeated such mistakes that led to the stabilisation of the variants. 2. Faulty Script (Handwriting) This was the most conspicuous reason for variant-readings. The script changed gradually, and consequently the subsequent scribes could not read the 1 Jinādāsa-cūrni, p. 204 : nägajjunniya tu evam padhanti--'evam tu aguņappehi agunanam vivajjae'. 2 See Daśavaikälika, part II, 3/13; 5/1/7; 6/54 (commentary). Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 older script properly. And as the scribes were not necessarily learned, the syllables were interchanged. This has happened very frequently. 3. Intermixture of Text and Commentary When the custom of learning the scripture by rote was prevalent, the commentaries were also committed to memory. Some commentaries were read together with the original texts. In due course they became part and parcel of the original text. This conclusion easily follows from the situation observed in the Agastyacūrni, according to which in the fourth chapter of the Daśavaikälika, in the topic on trasa (sūtra 9), the following passage occurs-je ya kidapayangā, ja ya kunthupivīliya, savve devă. Here, the author of the cūrni writes that the word 'kida' represents the two sensed creatures and therefore the entire species of two-sensed living beings should be understood as referred to in the passage. In a similar manner patanga and kunthu also represent their own species. The following reading which forms the part of the commentary was incorporated in the original text at a subsequent period :-'savve beindiyā, savre teindiya, savye caurindiyā, savve poñcindiya. The author of the commentary consequently considered it a part of the original text and as such commented upon it.* In a similar fashion, there has been some confusion, according to the Agastyacūrni, in the text concerned with the mahävratas.3 4. Conversion of Commentary into Text In the Uttaradhyayana (22/24), we find the reading 'parcamuthihim. In fact, the original reading was 'paṁcatha', aspha standing for muşti. Parca atthā meant parch muşti. The word paṁcaffha became obsolete in due course. In the Brhadvrtti (folio 492) paíčatpha is explained as paṁcamuşti which subsequently replaced the former, Such instances of confusion are found in other scriptural texts also. DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED DAŠAVAIKĀLIKA 1. #Ms DASAVAIKĀLIKA: Text and Avacūri. Place : Order's Collection, Ladnun. 1 Agastyacūrni : kidavayapena tajjātīyagahanamiti savve beindiyā gheppanti. Payangagahaneņa caurindiya. kunthu piviliyabhihänena teiadiya. Haribhadriya fika, folio 142: ye ca kītapatanga ityatra kīță --kpmayaḥ, 'ekagrahane tajjātiyagrahana' miti dvindriyah sankhadayo'pi gshyante patanga-salabha, atrāpi pūrvavaccaturindriya...sarva eva gshyante, ata eväh-sarve dvindriyah-krmyadayah sarve trindriyah-kunthvādayah, sarve caturindriyäb ---patacgādayah...sar ve pancendriyāḥ samānyatah. 3 Agastyacūrni : keti suttamiyam padhanti; keti vsttigatam visesinti, jahā se tam pāņātivāto cauvvihe tam jaha-davvato, khettato, kālato, bhāvato. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Size: No. of folios and pages: Lines per page: No. of letters per line : Ink (colour): Colophon : Place: Size : No. of folios and pages: Lines per page: No. of letters per line : Ink (colour): Script: Colophon : Special Information: 2. Ms DASAVAIKĀLIKA: Text and Avacurl Place: Size : No. of folios and pages: Lines per page: No. of letters per line : Ink (colour): Colophon: 73 Special information: 101 "×41" 17, 34 12-13 46 to 53 Text in Black and gathd numbers in Red. 10 Daśavaikälika samāptamiti. Special information: 3. Ms DAŠAVAIKĀLIKA: Text and Avacuri Samvat 1503 varse &şadhamase krsoa pakṣe caturthi dine saniväre. Dasavai likhitam sundara samvegagani-yogyam|| The Avacuri is scribed around the text. Order's Collection, Ladnun. 10"x4" 19, 38 13 44 to 49 Text in Black and gathä numbers in Red. The letter of the text are big while those of the Avacuri are small. Sathvat 1496 varşe vaišäkha mãse pratipadăyam tithau raviväsare. likhitam Karmacandrepa. The Avacuri is scribed around the text. Order's Collection, Ladnun. 10"x4" 16, 32 14 52 to 57 Text in Black and gathā numbers and padas in Red. Dasaveyaliya suyakkhandho samatto (a) sivamastu ciram vijlyät. śrimälavakākhye tanmadhyavarttinyam mahäpuryamavantyärh pätasaha śri mahäsundararajye pt. śri Visalakirtipüjyänärh pädaprasädäddepäkena likhitamiti. The Avacuri is scribed around the text. The letters of the text are big while those of the Avacuri are small. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 4. Ms DASAVAIKĀLIKA : Text and Avacurl. Owner, place : Sri Ganesadāsa Gadhaiya Sangrahālaya, Sardarsahar, Size : 101 'x 41" No. of folios and pages : 32, 64 Lines per page : 8 to 13 No. of letters per line : tters per line: 29 to 32 Ink (colour) : Text in Black and gătha numbers in Red. Script : The letters of the text are big while those of the Avacūri are small. Colophon: iti sri Daśavaikālika sūtram samāptam likhitam. ba. śrī sādhu vijayaganibhiḥ kalyäņamastu sarva jantoh. lekhakapāthakayoh bhad rań bhūyát. Special information : The Avacürl is scribed around the text. 5.17 Ms PL (Photoprint) DAŠAVAIKĀLIKA CORŅI by Agastyasimba sthavira (Jaisalmer Collection.) Owner, place : Sethjā Library, Sujangarh. Size : 14" x 3" No. of folios and Pages : 165, 330 Lines per page : 4 to 5 No. of letters per line : 148 Ink (colour) : Photo-print. Special information ; Some lines are incomplete. This photoprint copy was obtained from Muni Shree Punya vijayaji. 6. fre (Printed) DASAVAIKALIKA CURŅI by Jinadāsamahattara. Publisher, date : Rşabhadeva Keśarīmal Pedhi, Ratlam, Jain bandhu Printing Press, Indore, V.S. 1989. No. of folios and pages : 380 7., Et, greto DAŠAVAIKĀLIKA ȚIKĀ by Haribhadra. Publisher, publisher date : Shah Naginbhai Ghelabhai Javeri, 426, Javeri Bazar, Nirnayasāgar Press, Kolbhat gali, Bombay-23. V.S. 1974. No. of folios and pages : 286 DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED UTT ARĀDHYAYANA 1. a Ms UTTARĀDHYAYANA : Original Text with Avacūri. Place, date : Order's Collection, Ladnun. V.S. 1538. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95 Size : 101" x 44" No. of folios and pages : 96, 192 Lines per page : 6 to 14 No. of letters per line : 31 to 34 Ink (colour) : Text in Black and gatha and adhyayana numbers in Red. Script : Beautiful, correct and distinct. Colophon: iti şaţtrimsaduttarādhyayanānāmavacūri samaptāḥ śrirastu. V.S. 1538 varṣe visakha sudi 10 ravi likhitam. cira nandantu. Special information : The Avacuri is scribed around the text, The letters of the text are bigger than those of Avacūri. 2. an Ms UTTARĀDHYAYANA : Original Text. Owner, place : Collection of Mohanlal Dudhodia, Chāpar. Size : 10' x 41" No. of folios and pages : 89, 178 Lines per page : No. of letters per line : 32 to 40 Ink (colour) : Text in Black and Colophon in Red. Script : Letters bold and distinct. Colophon: Samvat 1591 varse sripattanapuravare sri jinavallabha sūri santāne sri kharataragacchena nabbongana dinakara karaņi saiddhāntika siromani śrī jinabhadra sūri śrī jinacandra sūri tatpațsapratisthita śri jinabhadra sūri pasta purvācala sahasrakarāvatāra bhagya saubhā. gya bhangi subhaga bhālasthala bhattāraka prabhu śrī śri śrī jinahansa sūri pațţe śrī śrí śrī jinamāņikya süribhiḥ sārvabhogaiḥ vā. anan danandana gaņāya prasādi kşteyam prati. 3. Ms UTTARĀDHYAYANA : Text Owner, place, date : Collection of Mohanlal Dudhodia, Chāpar. 16th century. Size : 10" x 4" No. of folios and pages : 38, 76 Lines per page: 17 No. of letters per line : 50-51 Ink (colour) : Black Script : Letters bold and distinct. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Colophon : Size : No. of folios and pages: Lines per page: Ink (colour): Colophon : 4. Ms UTTARADHYAYANA: With Text and Avacuri. Owner, place, date: Special information: Size : No. of folios and pages: 76 Lines per page : Ink (colour): iti śrīmaduttaradhyayanaśrutaskandbaḥ samaptab. paramapia pranītab... niryuktikára etanmāhātmyamah. je kir bhavasiddhīya. paritta samhsăriya ya je bhavva. te kir padhanti ee chattisam uttarajjhāye. tamha jina pannatte. anantagama pajjavehim sañjutte. abbhãe jaha jogam, guruppasäyä ahijjijjā. jo jjagavihli vahittà ce jo lihai suttam accham va. bhāsei ya bhaviyajano so palai nijjarā viulă, jassäḍhatti ee kaha visamappanti viggharahiyassa. so lakkhijjai bhavvo. puvvarisi eva bhäsanti. subham bhavatu. śrīb. 5 Ms UTTARADHYAYANA: with Original Text and Avacuri. Owner, place, date: Jain Svetämbara Terapanthi Sabha, Sardar shahr. V.S. 1500. 10" × 41" 59, 118 8 to 15 lines. Text and Avacuri in Black; Śloka numbers and lines of margin in Red. iti śri uttaradhyayanävacüriḥ samapta.. śrīrastu.. e prati bha. śrī vidyasagarasūri pūsariya śişya suyavaya karmasägare prati lidhi kalakavala rahita saha. There is a margin of one inch on both sides of the page. The text is written between the margins and the Avacuri is written around the margin. Jain Svetambara Terapanthi Sabha, Sardar shahar. V.S. 1535. 101" × 41" 79, 158 6 and 13 Text in Black; Sloka numbers and margin on both sides in Red. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Script: Colophon : Special information: 6. Ms Very old UTTARADHYAYANA: with Sarvärthasiddhi Tika. Owner, place, date: Size : No. of folios and pages: Lines per page: No. of letters per line : Script: 77 Letters of original text 14 times bigger than the letters of Avacuri. likhitä śri uttaradhyayanävacüriḥ svaparopakttyaiḥ, subham bhavatu. 1. V.S. 1535 varşa āsoja sudi 5 bhome adycha śrī. The Avacuri is written in the margins and also above and below the text. 1. Ms NANDI: Original Text. Owner, place, date: Special information: 7. (printed) SUKHABODHA TITKA by Nemicandracārya Publisher: Devacandra Lalbhai. 8. (printed-Nirnayasagara press, Bombay) BRHADVRTTI by Säntyäcārya Lalbhai Jain Puskoddhare, Publisher: Devacandra granthänka 33. Size : No. of folios and pages: Collection of Mohanlal Dudhodia of Chapar. 16th Century approximately. 1041 323, 646 (The first 16 pages not available). 15 9. Ms CORNI by Gopalika Mahattara Sisya Owner, place, date: Lines per page: No. of letters per line : Ink (colour): Script: 53-54 Tikā and the text words are of identical bold ness. The folios are decayed and brittle. DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED NANDI Śreşthi Devacandra Lalbhai. Jain Pustakoddhäre, grathänka 33. Mohamayīpattane, V.S. 2442. Shrichand Ganeshdás Gadhaiyā, Sardarshahar, V.S. 1576. 13"x5" 15, 30 15 60 Black Distinct and correct. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. Ms NANDI: Original Text. Owner, Place, date: Size : No. of folios and pages: Lines per page: No. of letters per line : Ink (colour): Script: Special information: 3. Ms NANDI: Original Text. Owner, place, date: Size: No. of folios and pages: Lines per page: No. of letters per line : 78 Shrichand Ganeshdas Gadhaiya, Library, Sardarshahar. V.S. 1600 approximately. 10"x4" 29, 58 11 40 Black Letters bold and distinct. The script is almost correct. Size : No. of folios and pages: Lines per page : No. of letters per line : Ink (colour): Colophon: Special information: Shrichand Ganeshdäs Gadhaiyä, Library, Sardarshahar. V.S. 1576. 13" x 5" 87, 174 19 70 4. NANDI: Cürni. Edited by Muni Punyavijaya. Y 5. NANDI: Original Text. Edited by Muni Punyavijaya. पु 6. NANDI: Tika by Haribhadra. Edited by Muni Punyavijaya. DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED ANUYOGADVARA 1. Ms ANUYOGADVĀRA: Original Text. Owner, place, date: Shrichand Ganeshdäs Gadhaiyä Library, Sardärshahar. V.S. 1500 approximately. 131×51" 17, 34 19 72, 80 Black Anuyogadvārāņi samāptäni. granthagram 1500. sodhita pratiriyam vā. vimalakirtiganinā. There is no mention of the date at the end but the worn-out condition of the folios and the style of writing show that it was written about V.S. 1500. The version is '' predomi nant and abridged. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. Ms ANUYOGADVĀRA: (with Bālāvabodha): Owner, place : Shrichand Ganeshdās Gadhaiya Library, Sardārshahar. Size : 91" x 41 No. of folios and pages : 162, 324 Lines per page: 18 or 19 No. of letters per line : 28-29 Ink (colour) : Text in Black, and three lines of margin in Red on each side. Script : Letters of the Text bold while those of Vär ttikā comparatively small. Colophon : iti śri Anuyogadvărasūtra Bālāvabodha samāptah. Srirmangalam bhūyāt. śriḥ. srih. srih. śrirastu. cha. Aņuogadārā samattā. cha. solasa sayāṇi cauruttarāņi honti u imammi gāhāņa / dussa hassa marutthubha chandavitta parimāņao bhaņio !! nagara mahādārā iva uvakkam däräpuoga varadārā / akkhārabindu mattă libia dukkhakkbayațțbāe // gāhā 1604 anuştubha grantha 2005 Aņuogadāram suttam samattam. cha. Śrih, samvatsare kha nidhi gaja candra pramite tapā māse kāyā tithau mārtaņdasuta väsare iyam pustikā likhitā Jayapattane. srih Śrīḥ śrīḥ Special information : The text is in the middle and in the upper and the lower margins of the Bālāvabodha, a värttikā is written. The version is a predominant and has expanded text. 3. * ANUYOGADVĀRA: Bālāvabodha with tripāthi. Owner, place : Terapanthi Sabba, Sardarshahar. Size : 10' x 43" No. of folios and pages : 175, 350 Lines perpage : 13-18 No. of letters perline : 45-47 Colophon : Aņuogadārā sammattā. cha. solasa sayāņi cauruttarāņi honti u imammi gāhānam Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Special information: 80 dusahassamaputthubha chandavitta parimanao bhapio / däräpuogavaradārā / akkharabindu mattä lihiā dukkhakkhayatthae // gähä 1604 anuştup granthägra 2005 apuogadara suttasamattam. cha. The text is in the middle and in the upper and the lower margins the Värttikä is written. The number of lines of the original text varies from 1-8, the number rising to fifteen in some pages. The version is 'a' predominant and has expanded text. Both versions'' and '' belong to the same recension. ' version appears to be belonging to some another recension. Scribing year is not mentioned. It must belong to the 16th century approximately. 4. (printed in folios) ANUYOGADVĀRA CORNI: by Jinadasa Gani. Owner: Size : No. of folios and pages: nagara mahādārā iva uvakkama Publisher, place, date: No. of pages: Special information: Original text not given 5. (printed in folios) ANUYOGADVĀRA TIKA: by Haribhadra Sūri, Publisher, place, date: Jain Svetämbara Terapanthi Mahasabha, Calcutta. Shree Rṣabhadevaji Kesarimalji Svetämbara Sanstha Ratlam, V.N.S. 2454, V.S. 1984. 91 Rşabhadevaji Keshrimalji Svetämbara Sanstha, Ratlam. V.S. 2454 or 1984 A.D. 128 No. of pages: Special information: Original text not given. 6. (printed in folios) ANUYOGADVĀRA VRTTI: by Malladhär! Hemacändra süri, Publisher: N.B. In some places a handwritten manuscript was used. Owner: Shrichand Sardarshahar. 13" x 5" 105, 210 Shri Kesharbai Gyanmandir, Patan. V.S. 1995. Ganeshdas Gadhaiya Library, Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Lines per page: No. of letters per line : Colophon : N. B. In some places a handwritten manuscript was used. DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED DASASRUTASKANDHA 1. DASĂŚRUTASKANDHA Owner, place, date: Lines per page: No. of letters per line: Script: Colophon : Special information: 2. ar Palm-leaf Photo-print DASASRUTASKANDHA: (Jaisalmer Collection). DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED Pages: Lines per page: Letters per line: Script: Colophon : Special features: 81 18 50-55 Samvat 1564 varse märgaśīrşamãse śuklapakse dvitiyāyāth tithau saniväsare mūlanakşatre śrī yodhapuravare raja śrī süryamallaräjye vijayin! likhitamidamh lekhaka māņikyena cirah nandatu vācyamānam, śrīḥ. Owner and place : Date : Pages: PAJJOSAVANAKAPPO 1. Ms. PAJJOSAVAṆĀKAPPO: Original text (illustrated). Owner and place: Date : Order's Collection, Ladnun. 17th Century probably. Text from lines 1 to 16. Tikä from lines 4 to 24 on both sides. 63-68 Beautiful Subham bhavatu, granthägra 1030. There is no mention of the date at the end. Jain Vishva Bharti, Ladnun (Mss Section). 16th Century probably. 153 7 20-22 Bold and beautiful letters. The letters of date in colophon do not match with those of the 2. PAJJOSAVANAKAPPO: with Avacuri, pañcapaДhi. Vinayasagar, Jaipur. text. Lipi Samvat 1201, Bhädava sudi 12. 52 beautiful pictures in gold ink. 16th Century approximately. 73 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Lines per page: Letters per line: Size: Script: 3. Ms. PAJJOSAVAŅĀKAPPO: Original text. 5. Owner and place: Date : 6. 7. Pages: Lines per page : Letters per line : Size : Colophon : 82 9 32 10" x 4.5" Beautiful 4. Ms. PAJJOSAVAṆĀKAPPO: Original text. Vinayasagar, Jaipur. Size: No. of folios : Lines per page: No. of letters per line: Script: 16th Century approximately. 53 (Page No. 1 not traceable). 9 40 12" x 4.5" Granthägra, 1216. Arhamh śri viraväkyänumatam suparvakṛtam yatha paryuṣaṇākhyametat. śrī kälikācāryavarena sanghe tatha caturthy śrnu pañcamita samagra desagata tasuvāraṁ pu Abridged. No mention from Nami to Ajita. Instead the mention is: athāgre caturviṁśati 24 jinānāmam uttarakālam. There is no theravali from sutra 183 to 222. PAJJOSAVANACORNI PAJJOSAVĀŅĀKAPPO: Avacüri T. f PAJJOSAVAŅĀKAPPO: Kalpa-kiraṇāvali KAPPO The description of manuscripts and printed versions used is lost, so it could not be included herein. DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED VYAVAHARA 1. Ms. VYAVAHARA: Original text. Owner, place, date: Jain Vishva Bharati, Ladnun. 17th century approximately. 10"x4" 17 13 40-43 Beautiful. There is a bävad! (art) in the middle. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Colophon Special information: 2. Ms VYAVAHARA: Original text (Tabba) Owner, place, date: No. of pages: Script: Size: No. of folios: 3. VYAVAHARA: Original Text. Owner, Place, date: Lines per page: No. of letters per line : Script: Special information: 83 Granthägra 688 vyavahara suttam samattam 688. kalyanamastu (Subham bhavalu). śri. This version mostly tallies with the '' version up to the third uddeśaka, but is similar to the palmleaf manuscripts beyond the third uddeśaka. There is no mention of the date at the end. It probably belongs to the 17th century. Jain Vishva Bharati, Ladnun, V.S. 1791. 42 Beautiful No. of pages: Script: Special information: Jain Vishva Bharti, Ladnun. 17th Cen. appro ximately. 10" x 4" 10 15 4. a VYAVAHARA: Palm-leaf photoprint, Jaisalmer Bhaṇḍāra, script v.s. 1225, Śrāvana Badi 11. 50-53 Letters small and beautiful. (arast) Bavaḍi in the centre. There is no mention of the date at the end. 5. T VYAVAHARA: Bhāṣya. (Printed) 6. VYAVAHARA, BRHATKALPA, NISITHA sütras edited by Schubring. 7. ofte VYAVAHARA: Jivaraj Ghelabhai (Printed) 8. # VYAVAHARA SÜTRA: Malayagiri Vrtti. 9. Ms. VYAVAHARA: cürpi. Owner, Place, date: Lalbhai Dalpatbhai Bhartiya Sanskriti Vidya Mandir, Ahmedabad. Date not mentioned. 257 Bold and beautiful letters It seems that it has been copied from some mutilated ms. At many places folios and lines are blank. The ms. looks old. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 NISITHA Four versions, printed and hand-written, have been utilized in constituting the text of the Niśitha. Among them 'a' and ' versions belong to a particular class and *** and to another class. Readings have been accepted after a critical consideration of all the versions and the curni We get readings sanctioned at two separate councils. In one of them the version is abridged while in the other it is expanded. The complete text is not available in any of the versions. completed almost all the readings, by following up the gaps. Most of the gaps in the Nisitha have been completed on the basis of Niśitha itself. In some places the completion has been done on the basis of the Aydracula and the Vyavahara, In many an uddelaka, completion of gaps has resulted in the inflation of the size, but the meaning has been made clearer as a consequence thereof. The reader will derive great benefit from this. We have also properly utilized the edition of Walther Schubring. His abridged text is not unscientific but it has not lessened the difficulties of the text and its readers. We have therefore preferred to expand the text by filling in the gaps. We have also kept in view the Suttagame edited by Pupphabhikkhu. But we are surprised at his method of dropping the passages repugnant to his whim. We are citing below some passages in this connection. Nistha (edited by Schubring) 1/4 ghaeņa vā vasãe vā navaṇiena vā 11/80 je bhikkhu maṁsälyam Suttagame (part II) 1/4 ghana va navaṇīeņa vā 11/727 je bhikkhu ābeņam vå. macchaiyath va mahsa-khalam va maccha-khalaṁ vā āheņa vā. 12/1 je bhikkhů koluṇapadiyae annayarim. 19/1-7 je bhikkhu viyadam. 19/7 wanting. Such manipulation destroys the authenticity of the edition. This type of foul play with the basic text is something done out of bravado. 12/740 je bhikkhu annayarim. Doubt persists even after critically constituting the text. On account of corrupt script the readings sometimes defy the attempt at determining their meaning. In the eleventh sutra of the ninth uddeŝaka the reading 'jo tamh annam' does not give any appropriate meaning. There is already the nominative 'je bhikkha that precludes the necessity of another nominative, viz. 'jo'. The expression "uvavuhaniyam' means food, etc., and therefore the term 'annam' is redundant. What remains is the expression 'tam'. The author of the curṇi has taken up 'tam' only and explained it as 'tam puna pähuḍam'. Thus the text should read 'avvocchiņṇāe tam padiggaheti. But all the words are not explained in the cúrni, and such reading is not found in any of the versions used for the edition. This is the reason Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ why we had to keep the dubious reading 'jo tam annam' intact. The scribe, in some places, makes the text inordinately abridged, for instance, 'kamajalamsi thanam säti (13/9). These words are not even preceded by any symbol indicating incompleteness. Many a difficuity and even confusion arises in the constitution of the text on account of such device of abridgement. Sutra Abridgement The forms of abridgement are variously indicated by different symbols such as Java-ambar vā jāva coyagam (15/8). evam-evam pippalagäim (1/24-26). abhilāveṇa-etena abhilavena so ceva gamao bhāniyavvo java raemtam jalagayassa nävägao pańkagayassa (3/23-27). (18/18-32). gameṇa-eteņa gameṇa ṇāvāgao samkhya-asanamh va 4 (3/5). DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS USED NISITHA 1. (photo prints) NISITHA. Owner, place, date: Owner and place, : Size : No. of folios and pages: 85 No. of folios: 2. Ms. NISITHA: Original text, cürni, (tripathi, with T prominent). Lines per page: No. of letters per line : Colophon : Owner and place, : Size : No. of folios and pages: Lines per page : No. of letters per line: Script: Palmleaf of Jaisalmer Collection. Later Half of 12th Cen. approximately. 15 3. Ms, NISITHA: Original text, vṛtti (pañcapathi, with Y prominent). Order's Collection, Ladnun. 10"x4" 15-30 11-13 52-60 Tallies mostly with the palm-leaf ms; correct and easily legible. Order's Collection, Ladnun. 10"x4" 43, 86 6 to 7 38-42 Samvvañccandra vasu muni bhumi varṣe miti āsoja kṛṣṇa aṣṭamyam tithau arkavāre śrī śrī nigora madhye śrib. śriḥ, śriḥ, śrih. (1871 v.s.). Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Colophon: 4. Ms. NISITHA: Original text, with T prominent. 5. NISITHA: curni. Editor : Owner, place: Size : No. of folios and pages: Lines per page: No. of letters per line : Special information: 6. g. NISITHA. Editor : 1/1 2/2 3/1 3/2 4/3 4/3 4/4 Location Adhyayana 1 4/4 5/1 Phonetic changes The phonetic changes approved by grammar and sanctioned as ärșa uses are important from the viewpoint of linguistics. This is why we have kept them separately from the variants. 1. DASAVAIKĀLIKA: phonetic peculiarities. Original Text ukkiṭṭharh aviyai muttā sihuno ahāgadesu riyanti pupphesu bhamară mahu Adhyayana 2 2/2 86 Samvat 1711 varse äṣädha mase kṛṣṇa pakse caturdaśyām tithau ācāryaśrī 6 śivaji tasyanucara muni viră tacchişyena muni viṣṇudāsenālekhiyaṁ prati sva vācanarthaṁ subham bhūyällekhakapāthakayoḥ śrirastu kalyāṇama stu. (śrl) (w) (ri). itthio Orders's Collection, Ladnun. 101"x4" 18,36 15 40-45 (art) Bavad in the centre. It probably belongs to the 18th century. Upadhyaya Amaramuni, and Muni Kanhaialal 'Kamal'. Schubring (including Vyavahära, and Bṛhatkalpa). Phonetic Changes ukkaltham aviyati mukka sāhavo ahāgadehimh riyante pupphehim bhamaro madhu itthio Ms. ka, ga, gha, acú acu, jicu acu acũ acu gha, jiců acü, jicũ kha aců, jicu kha Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ cāgi pehãi pisarai viņaijja āyāvayābi sogam allam, sogumallam kamābi vantagam bhuttum rãissa dicchasi, dicchisi sañjayai karanti, karinti bhogehim acū ka, kha acū, jicu ka, kha, ga acū, jicū ka, kba, ga, gha, jicu acũ, jicu acu 5/2 ga 8a ka, kha, ga kha, ga, gha ka, kha, ga, gha acū 2/4 cãi 4/1 pehāe 4/2 pissarai 4/4 viņaejja 5/1 āyāvayāhi 5/1 soumallam kamābi 6/3 vantayan 6/3 bhottum 8/1 rāyassa 9/2 dacchasi 10/2 sañjayāe 11/1 karenti 11/3 bhogesu Adhyayapa 3 1/1 sutthiappāņań 2/3 rājbhatte 4/1 nāliya pāņahā 573 nisejjā 6/3 tattănivvuda-bhoittam 9/1 dhūvanetti 9/2 vatthikamma 9/4 gāyābhanga 12/1 gimhesu 12/3 samliņā 13/1 riū 13/2 dhuyao 13/2 jiindiya 14/2 dussahājí 14/3 ittha Adhyayana 4 Aph. 9 abhikkantam, padikkantam, 10 dandam samārambhejjā " 10 karantam 11 garibāmi " 16 rājí 18 kilinceņa acū ga, jicu kha, acū kha, acũ, jicu kha kha, acu 4/3 kha sutthitappāņam rayabhatte nāliye, ņāliya pābaņā nisajjā tattaanivvuda-bhotīta dhüvaạitti batthikamma, patthikamma gāyabbhanga gimhāsu samllīņā orivú dhúa jiyandiya dūsahājí ettha kha, acu jicū acũ jicũ асӣ kha, ga ga jicu ka abhikkantam, padikantam kha dandam samărabhejjā karentam garahāmi rāyam kaliñcena acū, jică acū, jicu acũ acũ ka kha, ga, gha, jicũ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88 ” 18 ” 19 " 23 " 23 10/4 12/1 12/4 13/1 16/3 25/4 26/3 26/2 26/4 27/3 salāgāe va salāga sasiņiddbam vihuyanena pivīliyam hatthamsi vå nähii yāņāi nāhii viyāņai nivvindae havai pahoissa säissa suggai jiņam silāgāe va silága sasaņiddham, sasiņaddham vihuvaņeņa pipīliyam hatthesi vā nāhii, nāhi yānei, yāņai nāhii, nābiya viyānei nivvindiya, nivvindai bhavai pahoyassa sāyassa sugai, soggai jiņim kha, ga ka, kha, acū acū, jicu jicu acūpā kha, ga, ghā ga, acă ka, kha, ga, gha ga, acũ ka, ga, acū ka, gha kha kha gha, acū, jicū ka, gha 41 ka, ga, acŭ, jică kha hāti, jicũ acū Adhyayana- 5 (1) 3/3 vajjanto ovāyam 4/2 vijjalam 8/2 padantie 10/ 1 aņāyaņe 13/3 indiyāņi 16/2 rahassā 23/4 ayam piro 25/3 vaccassa 26/1 daga-maţtiya 27/2 ābare 28/1 āharanti 28/3 dentiyam 33/1 sasiņiddhe 34/2 kukkusa 40/4 puņutthae 42/1 pijjemāņi 45/1 daga-vāraena 46/ 1 ubbhindiyā 57/3 ummisam 67/3 mañcam 71/3 sakkuli 73/2 añimisam 73/3 atthiyam vajjento uvāyam vijalan padantie aņāyayaņe indiyājm, indiyāyam rahasā ayampuro vuccassa daga-mațți āhāre āharenti dintiyam, dantiyam . sasaņiddhe kukkasa puņatthae pejjamāņi, pajjemāņī daga-vāreņa ubbhindiyam ummisam mañca sankulim anamisati acchiyam acū ka, ga ka, kba, ga, hāți асй kha ga ka, ga, gha acū ka, kha, ga, gha ka ga gha, acū асӣ, jiсӣ ka, hāți ka, kha, ga, gha ka, acū, jicu ka, kha, ga, gha, acū kha kha, ga асӣ, jica Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 89 sambalim, sambilam dhammae haviijā roie, rovae tanha accittam nikhive avakkitteņa egao, ikkao eyam allam sogaiṁ, suggaim kba, gha gha kha kba, ga kha ka, acū ka, kha, ga açû kha, ga, gha acū gha kha, ga, acū 3/3 73/4 simbali 74/2 dhammie 77/3 bhavejjā 77/4 royae 78/4 tapham 81/2 acittań 85/1 nikkhive avvakkhitteņa 96/2 ekkao 97/3 eya 98/3 ullam 100/4 soggají Adhyayana-5(2) 1/3 dugandham 2/3 ayāvayatthā outteņa 5/2 padilehasi 5/4 garihasi 7/3 ta-ujjuyam 10/2 kiviņam 13/2 niyattie va 14/3 saccitam 21/3 nimam 22/3 opinnāgam 24/3 vihelagam 25/4 üsadham 29/1 itthiyam 32/1 attaţtha 37/1 piyā 46/1 vaya 47/2 müyayam 50/3 °hidie Adhyayana-6 13/3 mettam 18/1 lobhasseso aņuphāso duggandham āyāvayatthā ovutteņa padilehisi giribasi, girihisi, garahasi t-ojuyam kivanam niyattae 13/4 vā sacitam niyamam pannāgam vibhelagam, bihelagam ussadham itthim attaţthā piyae vai mūyagam ohjindie acũ ka, kha, ga acũ kha kha, ga, ācū kha, gha ga kha, ga acú gha, acū, jicũ kha kha kha, acũ асӣ acū ka, kha, ga, gha hāți, jicũ acu kha, ga, gha ka, gha, jicu ka, kha, ga, gha ka, kha, ga mittam lobhassesaņuphāse lobhassesaņaphāso, lobhassesaņuphāso nājo 20/2 20/4 nāyao idva ka, ga ka, kha, ga, gha iya Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 24/3 37/3 51/2 51/3 52/1 57/4 60/3 61/2 61/4 63/3 64/1 diya viiuo dhoyaņa channanti pacchão padikoho vokkanto bhilugäsu ppillāvae Ovvatta nagiņassa diva viuo, vituo dhovaņa chinnanti, chippanti pacche parikoho, palikoho vukkanto, vakkanto bhilagāsu opalāvae, oppalävae 'vatta niganassa, naganassa, nagaộissa, nigiņassa navāni pāvāņi udupasanne acũ ga, acū ka, kha, acũ ka, kba, ga, hāți асӣ асӣ ka, kha, ga ka, kha, gha kha, ga, gha, hāți ka, ga ka, ga, gha, acū асӣ acù ga gha 67/4 navāi pāvājm 68/3 uuppasanne Adhyayana-7 2/3 'nainnā 5/4 puna 8/ 1 kālammi 12/2 pandage tti 12/3 rogi tti 12/4 core tti 13/1 vattheņa 14/2 vasule tti 14/3 dammae duhae 15/2 māussiya 15/4 nattuņie 16/1 annetti 18/3 bhāinejjati 18/4 nattuniya 19/1 hale tti 21/1 manussam 22/2 sarīsivam 23/1 parivuddbe 24/3 joga tti 25/2 dhenum 27/2 toraņāņam gihāņa 31/4 darisani 32/1 phalāim 33/2 nivattimā aņāiņņā асӣ puno, punam kha, acū kālammi kha paņdaga tti, pandagu tti ka, ga, gha roga tti coru tti gha athena ka, kha, ga, gha vasula tti dummae dūhae kha māusiu, mâusiya ka, kha, ga, gha nattuņiya, nattunae, nattunii ka, kba, ga, gha annatti ga bhāyanijjati kha nattunai, nattuņii kha, ga hala tti, hare tti ga, gha, acũ maņusam, maṇasam ka, kha, ga, gha, sarisavam kha, ga parivuddha, parivūdha ka, kha, ga, acū, jicũ, hāți jogi tti kha, ga dheņū kha toraņāņi gihāņi ka, ga darisaņa kha, ga, gha phalāņi nivvadimā, nivvattimă. kha, acӣ, jiсӣ nivattimā acũ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 91 33/4 36/4 39/1 41/2 42/1 42/1 rūva tti sutittha vāhadā made payatta pakke tti sukkiyam tahevāsañjayam sāhuņo vão "vuttham antalikkhe dhunna 45/1 rūvi tti sutitthe, suttitthi pāhadā mate payatti pakka tti sukkiyam taheva'sañjatam sādhavo vāuo ovutthim antalikkham, antalikkba dhutta ka, kha, ga kba, ga, gha acú acü ka, gha ka, ga, gha kha acú acu kha 47/1 48/2 51/1 51/1 53/1 59/3 ka, kha, ga kha, gha, bāri, jicu gha Adhyayana-8 gha jicũ асй ka, kba, ga, gha acú acū acũ acu 5/ 1 9/2 9/3 9/4 14/1 16/3 18/3 19/2 20/4 23/2 25/1 25/2 29/1 35/1 39/1 40/1 40/1 40/3 41/3 42/4 46/3 48/3 49/3 53/2 55/1 58/1 nisie vihuyaņeņa viejja poggalam kayarājm appamatto padilehitta pāņatthā marihai ayampiro santuţthe suhare atintiņe pilei aniggabīyā aniggans rāiņie pauñje kummo miho aţtham piţthi ayam pira vai viggahio padicchinnam maņunnesu nisie vihuvanena vie puggalam katamāņi appamatte padilehittu pāņatthā maruhati ayam puro santuttho subhare atintane pidei aniggihiya rāyaṇie payunje kummu, kumme midhu attham pitthi ayampura vāya, vaya viggahao palicchinnam maņunnesum acū acū acü kha. gha ka, ga kha, ga, jicũ, hãţi асӣ kha, ga, hāți асӣ ka, kha, ga, gha, acu acu acū асӣ acũ kha, jicu kha gha, acū, jică ka, kha, ga, gha Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 59/3 tapho 59/4 sii 62/3 jansi 63/4 candima Adhyayana-9 (1) 2/2 appasue 6/1 pāvagam 12/1 jassantie 12/2 tassantie 14/3 buddhie 15/1 jutto 17/1 mehāvī Adhyayana-9 (2) siggharh sakkårenti heuhim vatti ohaR Adhyayana-9 (3) 2/3 15/3 20/2 23/1 23/3 3/1 3/3 8/2 10/2 niya dummaniyam apisune Adhyayana-9 (4) 2/4 ayayaṭṭhie Aph. 7 ärahamtebi Adhyayana-10 4/2 6/2 nissiyāṇam havejja vaya bohl 7/4 8/3 12/1 masine 12/2 bhāyac 18/1 vaejjäsi 18/2 jenanno Cülikā-1 Aph. 1, line 2 ittariya 1" 6 padiyāiyaṇam 92 tinho sīta janse candimi appasuya pāvakaṁ jassantiyam tassantiyarh buddhie jutte mehavi sagghamh sakkaranti heühim vitti ogha raya niya dummanayam apissune ayayatthie ārubaṁtihim nisiyāņām bhavejja vai hohii susipe bhãe vacjjähi jenannu, jenanna ittiriy& padiāyaṇam, paḍiāyayaṇam ka acū acu ka, kha, jica kha, ga acu acü acū kha ka, ga kha acu acũ kha, ga, ka, kha, gha ka, kha, hǎți kha, ga gha, jicũ ga ka, kha, ga acū aci ka, kha, ga acũ ka, acu aců acu acă kha ka, kha, ga, gha kha, acu kha, ga, gha, jicū Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 1 ** 9 1" 18 " 18 33 95 2/1 5/4 setthi 6/3 galarh 6/3 gilittä 10/4 10/4 11/4 14/4 jaya niraya sāriso 2/4 5/2 13/3 vahāya veyaittā aveiyatta pariyāya sulabhā 15/2 15/2 17[3 Cūlikā-2 duhovani "vattino payalenti pai" osanna Adhyayana-1 vinle süyare pakarenti 14/3 kuvvejja 15/4 parattha 17/3 rabasse 18/4 25/2 26/3 padissune niraṭṭham egitthie 36/1 sukade tti 36/3 sulatthe tti 40/4 totta 41/4 punotti 93 vable veittā aveittä 5/2 6/3 10/3 ekko 11/2 biyam 13/1 pāsai 13/3 pasamano 14/1 päse passe 14/4 Binnao āiņņo 2. Uttaradhyayana: Transformation of Words and Metamorphosis jahä sitthi galith galittä naraya saliso pariyāi sulabā duhovinl vittino payalanti paya usanna eko, ego vitiyam passai passamāņo viņli sûyaro pakarinti pakaranti kuvijjä paratta rahase paḍisune nirattham egatthie sukkadi tti sulaṭṭhi tti tutta pupitti punatti acu ka, kha, ga, gha ka, kha, ga gha ka ka, kha, ga, gha, häți kha, gha kha, ga ka, gha, hät ka, ga kha ka, kha, ga, gha ka, kha,ga ka, acũ ka, kha, ga, gha kha, ga, gha acu ka, kha, ga, gha, acû acũ acu acu acu acũ u, f a u T u kvacit u, Į u kvacit cũ, u Ţ u u F Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 gariham sukadam digañchão usiņappariyāveņam paisañjale a, sa, su ahākammehim săsave 42/4 garaham 44/3 sukayam Adhyayana-2 Anh. 3 digifchao 8/1 usiņa pariyāveņam 24/2 padisañjale Adhyayana-3 3/4 āhākammehim 20/4 såsae Adhyayana-4 3/2 kiccai 5/2 paratthā 6/2 visase 6/4 bhärunda 13/3 duguñchamāņo Adhyayana-5 3/2 asaií 814 bhuyaggamam 16/4 dhutte va 22,4 kammai Adhyayana--7 18/1 sají kaccai parattha vissase bhāranda dugañchamāņo u, ļ, br asayam bhüyagamam dhutte vā kamai u, , br a, u,! sai sayas ummagga a, u, ! 18/3 ummajjā Adhyayana-8 6/1 dupariccayā 16/4 i Adhyayana-9 24/4 vaddhamāņa 58/2 peccā dupariccaiya iya vaddhamāņa pecchā piccā pecca Adhyayana-10 1 paņduyae 6/1 aukkāyao 8/1 vāukkāyao 14/3 ikkikka pandurae ayakkāyao vāyakkāyao egegao ekekka acü Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16/2 ariattarh 16/2 puṇarāvi 17/1 27/1 visuiya 32/3 visohiya 35/1 akalevara Adhyayana-11 10/1 pannarasahim 10/3 niyāvatti äriyattaṇaṁ Adhyayana-12 jāṇāhi 10/3 14/3 °vihūņā 15/1 21/4 jenamhi 39/4 44/3 47/4 tubbhettha pagareha kamma patta Adhyayana-13 tume pañcālarāyā 8/2 26/3 31/1 tūranti Adhyayana-14 25/4 27/3 28/1 29/2 3/3 tahosuyaro 15/2 kicca imam 20/3 orujjhamāṇā 20/4 24/4 5/2 6/1 neva aphala saphala jäne padivajjayamo bhikkhayariyai 30/1 *vihano 32/2 pajahāmi 43/4 ragaddosa Adhyayana-15 kuo jena puna 55 Ayariattarh punaravi Ayariyattanamh visüciyā visohiurh akadevara pannarasehirh niyāvitti jāṇāha vibinā tumbettha jeņāmhi pakareha kamme patti tubbhe pañcalarayaṁ taranti tahesuyaro kiccamimarh u (ava) rajjamāņā neya ahalā sahala janai paḍivajjeyamo bhikkhayariyle bhikkhayariyāya *vihino payahāmi rigadosa kao jenam puno ž“ ” a, f a a, r acũ cũ, bị a, r a a, u, a T a a, u, r a, u, a, ! a u u, ! a a, I u a Į Į u, Į u a T f a a, u, r, ca u, f a Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12/4 Adhyayana-16 Aph. 3 vitigiccha thi 1/2 3/1 12/1 17/1 17/4 3/1 13/3 13/4 Adhyayana-18 20/4 27/2 36/2 42/2 *vaya-kaya 6/2 18/2 18/4 20/2 santhavam thihim kuiyam ruiyath niae tah&pare 53/4 havai 53/4 nīrae Adhyayana-19 20/4 22/4 23/4 chubhittä rayam peccattharb mano micchäditthl mahiḍḍhio "nisûrapo animisäe apaheo *taphae sapāheo *tanha avaujjhai tubbhehim 29/3 *pariccão 35/2 mahābharo 35/3 38/1 52/2 54/3 phälio 77/1 85/3 amma guruo ahi simbali° egabhüo 96 "vai-kaya vicikiccha itthi santhavitthihim kuviyarh ruditarh niie tahāvare chubbhitta raya piccattbarh manaṁ micchadithi mahaddhio *nisüdano nisüano bhavai nīrai animisäi apähejjo apahio apāhijjo tigh&i sapähejjo sapähijjo tinha avayajjhai tuhehim parittão mahabbharo garuo ahe sambali phädio egabbhüo amba u Į a a ******* a, ā, i u sa a, u, ! sa br sa u I a a I a ! sa u a sa u a a u u, f a a a a, u ā u Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 toham dukkhāņa pasūyai garibam uttamāi dacchasi sañjaie kvacit vakkajadā nibaņiūņa ovāyao Adhyayana-20 35/1 tato ham 37/2 duhāņa Adhyayana-21 4/2 pasavai 15/4 garaham Adhyayana-22 13/ 2 uttimãe 44/2 dicchasi 46/2 sanjayāe Adhyayana-23 26/2 vapkajada 41/2 nihantūņa 41/2 uvāyao Adhyayana-24 11/3 ābārovahio 12/2 bie 18/1 vitthinne Adhyayana-25 9/4 uttamatthao 17/2 pañjaliudā 28/3 tāyanti 32/2 siņāyao 41/4 sukko u golao Adhyayana-26 2/2 nisihiya 3/1 pañcamā 13/ 1 āsādhe māse 15/3 vaisābesu 1613 biyatiyammī 18/2 biyam ahāra uvahio bīie vicchinne a, u, 1 uttimaţthao pañjaliyada tājnti siņāio sukke u golae nissibiyā pancami āsādhamāse 'vayasābesu bīiyataiyammi bitie biiyam chatthi pasadhilao padikkamittā 26/4 chatthā 27/1 pasidhilao 41/1 padikkamittu Adhyayana-27 3/2 vihammāņo vihimmāno Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 9/2 ege'ttha egittha egattha Adhyayana-28 16/2 āņārui āņarui 34/4 evamabbhantaro emevabbhantaro evamabbbintaro Adhyayana-29 Aph. 1 royaittä, phāsaittā, pālaittā roittă, phasittă, palittā „ 1 tiraitta tirittă , 1 ārāhaittā ārāhittă , 1 garahaņayā garihaņayā 3 siddhimagge siddhimagga 5 viņaittā viņayaittā 6 'micchādamsaņa micchādarisana 8 apurakkarar apurekkāram 15 thavathui” thayathui ,,33 viņiyațţaņayãe viņivaţtaņayãe ., 73 āņāpāņu āņāpāņa , 73 veyanijjam veyaņiyam Adhyayana-30 18/1 racchăsu va ratthāsu ya 20/1 porusiņam porisiqam Adhyayana-31 5/2 tericchao terikkhao Adhyayana-32 13/1 birālā° bidālao 15/3 joggan jogam juggar 25/2 tansi kkhane tassim khane tanpim khane 29/1 pariggahe pariggahaṁmi 294 ayayai Āiyai 31/3 samāyayanto samāiyanto 37/2 akāliyam akāliyam 38/2 tansi kkhaņe tambim khane 38/4 avarajjbai avarujjhai 39/1 ruiransi ruiyansi 51/2 tansi kkhane taasi khane Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ āyālise gāhaggihie harime darisana darisane antamuhuttam a, u, I 65/2 atālise 7614 gāhaggabie 130/4 hirime 108/3 daṁsaņa Adhyayana-33 612 damsaņe 21/4 antomuhuttam Adhyayana—34 7/1 hinguluyao 19/2 sirisakusumāņam 31/4 guttihim 33/4 hunti 34/2 tettisam 60/1 anta Adhyayana--35 4/1 cittabaram 4/3 pandurulloyam 8/1 kujjā 21/1 nimmamo nirabankāro Adhyayana-36 11/1 puhattepa 36/1 gurue 55/3 bondi hingulaga sarisakusamāņam guttisu havanti tittisă anto ur a cittadharaṁ paņdarulloyam kuvvijā nimmame nirahankäre a, a, i, sa 61/1 paņdurā 99/3 musundhi 146/4 dbjókune kunkune 147/1 singiridi 147/2 napdāvatte 147/2 vinchie 147/4 virli 206/3 °disā 228/4 cauddasa 237/4 paņuvisai 240/1 auņatisam 3. NISITHA : 1/1 sātijjati puhutteņa garue bodim budim bundim paņdarā musandhi dhikune kunkaņe singidindi nandāpatte vicchue virili disi coddasa paņavisai iguņatisam są säijjai Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1/15 2/12 2/18 2/24 2/25 2/58 3/13 3/35 5/1 süie sikkagam Jahusagam payam venu "lehei paḍiyae bhagandalam *mulansi kivina 8/19 9/27 10/7 10/13 10/39 paccogilati 11/8 11/65 blbhäveti 11/80 bhütippamāṇam ggahana vägareti ādesam sapaccavayansi 12/15 bhayappa 12/25 juddhāni 12/29 therani 13/12 kakkaḍagam 13/42 aroge 13/45 osappaṁ 13/67 koha 14/1 kineti 14/4 acchejjam 14/6 padiggahamh 14/8 adhāraṇijjaṁ 14/40 udubaddharh 15/5 sacittam 16/33 nikkhivati 17/3 °paḍiyae 18/17 pibeti 100 sûcle, sütle sikkakam lahusayarh pātaṁ velu 'leheti *vadiyae bhagandaram °müle kimana gahana väkareti aesaṁ paccoilati sapaccavādansi bihāvei hütippamānam hāyaṇena °yuddhani therapi kakkadayam aroti arogi ǎrogi usappath kova kipati acchejjamh acchijjam paḍiggahakam adharaniyamh uubaddharh saccittarh nikkhiveti *vadiyae °peheti kha, ga, cũ a, ga a, ka, kha ka, ga a, ka, ga ka, kha ka kha ka, ga a ka, ga a, ka a a, ka, kha, ga a a a a kha a a kha ka ga ka, kha, ga cũ a, cũ a ka, kha a, ka, kha, ga Acknowledgement of Collaboration The tradition of councils in Jainism is very old. As many as four Councils were held before the period that ended a millennium and a half from now. After the time of Devarddhigapi, however, no well-organised council was held. The Agamas ga a, ka, ga a, ga kha kha, ga a Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 101 committed to writing in his time were disorganized to a very great extent in this long interval. A fresh council was therefore a desideratum. Acārya Sri Tulsi made an attempt at holding a consentaneous Council, but could not succeed. Ultimately we arrived at the view that our Council will serve the purpose of the consensual one, if it was based on impartial research and complete dedication to the cause of truth. We started our work in accordance with this resolution. The chief inspiration to this Council is the Acārya-Sri. The Council is a deliberative assembly headed by an eminent personality who combines in himself a variety of functions, the chief among them being teaching and instuctions, translation, investigation, critical study, sorting out correct reading, and so on. We enjoyed the active co-operation, guidance and encouragement in all these activities from the Acārya-Sri. This indeed was our strength and support for undertaking such an arduous task. Ins.ead of feeling relieved of the burden by expressing my gratitude to the Acārya-Śrī, it would be better for me to feel more burdened by the support of his blessing for the future work and responsibility. In editing the present volume of Navasuttāņi. I received sufficient cooperation from my parmanent associate Muni Sudarśanji, Muni Madhukarji and Muni Hiralalji. In the work of ascertaining the readings Muni Balchandji, Muni Maņilalji and the late Jaichandlalji Kothāri also offered assistance In proof-reading, assistance was offered by Sadhvis Vimalprajñā and Siddhaprajñā and Samaņi Kusumaprajñā in addition to Muni Sudarśanji and Muni Hiralalji. The extent of the text was determined by Muni Mohanlal (Amet). The appendices were prepared by Muni Hiralalji. I express my gratitude to all of them in appreciation of their co-operation in the completion of the work I cannot afford to forget on this occasion the services rendered by the late Madanchandji Gothi, who had a very sound knowledge of the Agamas. Had he been alive, he would have felt satisfied on the publication of this volume. The Managing Director of the Agama series, Shri Shrichandji Rampuria, ViceChancellor, Jain Viswa Bhārati has been taking interest in this work since its inception. He is ever devoted to the task of popularising the Agamic lore. After retiring from his well-established profession, he has been devoting a major part of his time to the service of Agama literature. As in the case of the volumes of the Angasuttāni, he has taken keen interest in the publication of the present volume. We feel ineffable joy and pleasure on the publication of this volume on the Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ auspicious occasion of Amṛta Mahotsava. The mention of the co-operation of the co-workers in a common enterprise is only a formality. In fact, it was a sacred duty of all of us that we have fulfilled. Tulsi Sadhana Sikhara Rajsamanda (Mewara) 102 20-12-1985 Yuvacārya Mahāprajña Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The present volume contains nine āgamas :- Avassayam; two mulasūtras : Dasaveällyam and Uttarajjhayaṇāni; two cülikāsūtras; Nandi and Anuogadaraim; four chedasûtras: Dasão, Kappo, Vavahāro and Nisihajjhayaṇam. I AVASYAKA Nomenclature This sutra is called Avasyaka. It is so called because the rules prescribed in it are to be observed compulsorily by the monastic order as well as by the laity. The following eight synonymous names of this text have been given in the Anuyogadvara 1. Avasyaka 2. Avasyakaraṇīya 3. Dhruvanigraha 4. Viśodhi Introduction In the Mülăcăra the expression Avasyaka is also found as a Avasyaka. The title Avasyaka is found in the Bhagavati, Sthānanga and Jäätädharmakatha. It appears that the Avafyaka was composed in the time of Lord. Mahavira." 4 Bhagavai, 18/207 5 Thānam, 2/105 6 Nayadhammakahão, 1/8/18/2 5. Adhyayana Şaşkavarga 6. Nyaya 7. Aradhana 8. Märga 1 Anuogadäräim 28, gāthā 2: samaneņa savaena ya, avassakāyavvam havai jamhā / anto aho nisassa u, tamhā āvassayam nāma // 2 Ibid, 28, gāthā 1: āvassayam avassakaraņijja, dhuvaniggaho visohl ya / ajjhayanachakka vaggo, não ārāhaņā maggo // 3 Mülăcăra, paricatta parabhāvam, appānam jhädi pimmalasahāvam / appasavo so hodi hu, tassa du kammam bhaṇanti äväsam // āvāsaeņa hiņo, pabbhattho hodi carapado samano / puvvattakameņa puno, tamhā āvāsaeņa kujjā // Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 Subject-Matter and Date of Composition The Avasyaka is a composite śruta consisting of six chapters (adhyayanas). In the list of the Agamas in the Nandi, there is no mention of the chapters of any particular Āgama, excepting the Avaśyaka whose chapters are mentioned there It is evident from this that up till the time of Nandi the memory of the six chapters of the Avaśyaka was alive, though the unitary character of the Avaśyaka was an accomplished fact by that time. The names of the six chapters are-(i) sâmāyika, (ii) caturvimśastava, (iii) vandanā, (iv) pratik amaņa, (v) kāyotsarga, and (vi) pratyākhyāna, In the Digambara literature, there is slight difference in the designation and order of the chapters which are-(i) samatā, (ii) stava, (iii) vandanā, (iv) pratikramana. (v) pratyākhyāna and (vi) visarga.? In the Anuyogadvāra the topics of the six chapters have been explained as follows:-3 1. Sāmāyika Abstinence from sinful activities. 2 Caturvimśastava Hymn in praise of the 24 tirthankaras. 3. Vandana Offering homage to the qualified. 4. Pratikramana Repentence for the deviations. 5. Kayotsarga Curing the lapses 6. Pratyākhyāna Appropriation of the merits. In the Avasyakanir yukti we find a detailed exposition of sāmāyika. For an elaborate information about kāyotsarga, one should consult the Kāyorsarga-śataka. Pratikramana is of six kinds : 1. Uccara pratikramana 2. Prasravana pratikramaņa 3. Ityarika pratikramaņa 4. Yāvatkathika pratikramana 5. Yatkiñcitmithya pratikramana 6. Svapnāntika pratikramana The pratikramaņa occupies the eighth place in the ten kalpas. It was not 1 Nandi, sutra 75: se kim tam avassayam ? avassayam chavviham paņpattam, ta jaha-samäiyam, cauvisatthao, vandanayam, padikkamanam, kāussaggo, paccakkha pam, se ttam āvassayam. 2 Mūläcära Arādhanā 220 : samadă thao ya vandana padikkamanam taheva nädavvam/ paccakkhāna visaggo karaniyāvāsaya chappi // 3 Anuogadārāim, 74: 1. sävajja joga virai 2. ukkittanam 3. gunavao ya padivatti / 4. khaliyassa nindaņā 5. vanatigiccha 6. guna-dhäraņā ceva // 4 Thānam, 6/125 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ compulsory in the time of Pärśva. Lord Mahāvīra made it compulsory.' Pedhälaputra Udaka was a disciple of Lord Pärkva. After coming in contact with Gaṇadhara Gautama, he accepted from Lord Mahavira the discipline of five mahavratas along with pratikramana. It has been asserted by Lord Mahavira himself that it was he who propounded the discipline of the five mahavratas together with the pratikramana. It is evident from this that the pratikramaṇa was the contribution of Lord Mahavira. The sāmāyika-avaśyaka was of course there in the discipline of Pärsiva. But it assumed the form of six dvasyakas only in the dispensation of Lord Mahāvīra who gave the contents of the sadavafyaka, which was finally given the form of a surra by the ganadharaus. 105 The Principal Commentaries The following are the principal commentaries on the Avatyaka: 1. Avatyakaniryukti, 2. Avaśyakabhāṣya, 3. Avasyakacurni, 4. Avasyakavṛtti (by Haribhadra), 5. Avafyakavetti (by Malayagiri), 6. Avaśyakaniryukti-dipika, 7. Avasyakavrtti, 8. Avasyakavivaraṇa, 9. Avadyaka-tippanakam (by Maladhari Hemacandra). II. DASAVAIKĀLIKA The Dašavalkalika and Uttaradhyayana occupy very important positions among Jaina Agamas. The Svetambara as well as the Digambara äcaryas have frequentally referred to them. In the Digambara literary tradition of the fourteen Angabahya texts the 7th and 8th are respectively Dašavaikālika and Uttarādhyayana." There are two main divisions of the Svetambara Angabahya śrutas, viz. Kālika and Utkalika which are respectively headed by the Uttaradhyayana and the Datavaikälika, 2. Dasavatkalike: Composition and Subject-Matter The Daśavaikälika was composed in ten chapters. It was so called because it was compiled 'out of season' (vikāla). The author of this sutra is śrutakevali 1 See, Thanam, 6/103, tippana, p. 702. 2 Suyagado, 2/7/38: tae nam se udae pedhälaputte samanassa bhagavao mahāvīrassa antie cäujjāmão dhammão, pañcamahavvalyam sapajikkamagam dhammam uvasampajjittäṇam viharai. 3 Thanam, 9/62: se jahāņāmae ajjo! mae samaṇānam nigganthanam pañcamahavvatie sapaḍikkamane acelae dhamme panṇatte. 4 (a) Kaşaya-pähuda (with Jayadhavala), Part 1, 13/25: dasaveyäliyam uttarajjhayanam. (b) Gommaṭasāra (Jīva-kāṇḍa), gāthā 367 : dasaveyālam ca uttarajjhayanam. 5 Nandi, sūtra 43: se kim tam kaliyam kaliyam anegaviham pannattam, tam jaha-uttarajjhayaṇāim......... se kim tam ukkaliyam? ukkiliyam apogavilam pannattam, tam jaha-dasaveyaliyam...... Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 Sayyambhava who composed the work for Manaka, the son-disciple, at Canpă, circa V.S. 72. It has two cūlikās. The tities of the adhyayanas, number of ślokas ant sütras in each adhyayana and contents thereof are as follows:-- Chapter Sloka Sutra Contents 1. Drumapuspika 5 Eulogy of the discipline and alms begging. 2. Śrāmanya pūrvaka 11 Perseverance in self-restraint and practice thereof. 3. Kșullakācāra Discrimination between good and bad behaviour 4. Dharma-prajñapti 28 23 Thoughts on abstinence from injury or Şadjivanikā to living beings and self-restraint. 5. Pindaişaņā Propriety of 'search for acceptable alms', 'examination of the alms', and 'the mode of consuming the alms.' 6. Mahācāra A comprehensive description of the duties of Nirgrantha Order. 7. Vākyasuddhi Verbal restraint 8. Ācāra praạidhi Firm resolve for the practice of the discipline. 9. Vinaya-samadhi Exposition of humility. 10. Sabhikṣu The essential characteristics of the bhikṣu. Cúlikā The Appendices 1. Rativäkya 18 Sermon for re-establishment in the discipline. 2. Viviktacarya 16 Sermon on the benefit of living in solitude. According to the author of the Niryukti, the Daśavaikālika belongs to the Anuyoga called caraṇakaraņa. The implication is that the sūtra deals with the conduct of a monk, which is two-fold, viz. (i) caraña--that is vows, and (ii) karana -- purity of alms etc.? According to the author of the Dhavalā, the Daśavaikälika relates the princi 1 Tattvārthavrtti of Srutasāgara, p. 11, footnote 2: The name has been given as "vrksakusuma". 2 Dasavaikälikaniryukti, gäthà 4: apuhuttapuhuitāim niddisium ettha hoi ahigāro / caranakaranaquogena tassa dära ime hunti // Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 107 ples of monastic conduct and alms-begging. According to the Angapannatti the subject matter of the sūtra are the rules and regulations of alms tour and the purity of alms. According to the Tattvārtha vrtti of Sruta sāgara, the Daśavaikālika describes, in ten chapters beginning with Vrksa-kusuma (Drumapuspikâ) embodying the behaviour and conduct of the monastic order. This brief description will give a broad idea of the nature of the Dasavaikālika but Ācārya Sayyambhava has explained a number of topics along with the exposition of the complete monastic code of conduct. The fundamentals of topics like Biology, Meditational discipline, etc. have also found place in this sūtra. III UTTARĀDHYAYANA This Agama is called Uttaradhyayana. 'Uttarādhyayana' is a compound word consisting of uttara and adhyayana. The phrase 'Chattisam Uttarajjhayaņā+ of the Samavāyānga does not refer to the thirty-six chapters of a single Uttarādhyayana, but it signifies chattisa uttara adhyayanas (thirty-six successive chapters). In the Nandi too we get the plural form Uttarajjhayaņāņi.In the last śloka of the Uttaradhyayana also we find the phrase Chattisar Uttarajjhāe....... The author of the Niryukti has used the word Uttaradhyayana in the plural.? The author of the cūrni has accepted a single śrutaskandha consisting of thirty-six uttarādhyayanas, but even then he bas admitted a plural application, viz. Uttarajjhayanāni. From such plural nomenclature, it follows that the Uttaradhyayana is only a conglomeration of adhyayanas, and not a monograph by a single author. The expression uttara is a relative term implying pūrva. The author of the cūrni has described the adhyayana in thtee ways, viz. 1 Satkhandägamaḥ, satprarüpaņā, 1/1/1, p. 97: dasaveyaliyam āyāra-goyara-vihim vannei. 2 Angapannatti, 3/24 : jadi gocarassa vihim:pindavisuddhim ca jam parūvehi! dasaveäliyasuttam daha kālā jatha samvuttă // 3 Tattvärthavrtti of Srutasägara, p..67 : vrkşakusumādinām daśanam bhedakathakam yatināmācārak athakañca daśavaikälikam. 4 Samavão, Samavaya 36 5 Nandi, sūtra 43. 6 Uttaradhyayana, 36/268. 7 Uttaradhyayana Niryukti, gātha 4: chattisam uttarajjhayanā. 8 Uttaradhyayanacūrni, p. 8: etesim ceva chattisāe uttarajjhayanānam samudayasamitisamägamegam uitarajjhayanabhāvasutakkhandheti labbhai, tāni puna chattisam uttarajjhayanāni imehim nämehim anugantavvāni. 9 Uttaradhyayana-curni, p. 6: viņayasuyam saultaram jivājivabhigamo niruttaro, sarvottara ityarthah, sesajjhayaņāni sauttarâni niruttaräni ya, kaham ? parīsahả viņayasuyassa uttarä сaurangijjassa tu puvvā iti käum niruttarā. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 (1) Sa uttara, that is, the first adhyayana. (2) Niruttara, that is, the thirty-sixth adhyayana. (3) Sa-uttara-niruttara viz. the intervening 34 chapters. But such exposition of the word uttara is not authentic according to the author of cürni. According to him the genuine meaning is the one propounded by the author of Niryukti, who explained that the Uttaradhyayana was so called' because it was studied after the Acaranga After the time of śrutakevali Sayyambhava (V. N. 98), (V. N. 98), however, the adhyayanas were studied after the Daśavaikälika,"-a tradition which was responsible for their being designated as uttara adhyayana. This explanation of the word uttara appears to be logical and proper. The Digambara Acaryas have also explained the connotation of uttara, from number of standpoints. Thus according to the author of Dhavald (v.s. 9th century), the Uttaradhyayana describes the uttara pada, the reply to the questions that were Hence the word uttara indicates the solution to the problem." The Angapannatti (v.s. 16th century) gives the following two meanings of Uttaradhyayana, viz. (1) Uttarakala-what was studied after some other text. (2) Uttara-the adhyayana that offered the proper solution. These explanations also throw light on the genuine relationship between uttara and adhyayanas. There are five chapters, viz. 9, 16, 23, 25 and 29, in the Uttaradhyayana, that are composed in dialogue form. There are partial dialogues in other chapters too. The meaning of the word uttara as 'solution in reply' is only partially true, and not applicable to all parts of the text. The meaning of uttarakala as temporal succession is, however, consistent as well as universally applicable to all parts of the text, and as such appears to be the principal meaning of the word uttara. 1 Uttaradhyayana-niryukti, gāthā 3: kamauttarena pagayam āyārasseva uvarimāim tu / tamhā u uttara khalu ajjhayaṇā hunti pāyavvā // 2 Uttaradhyayana-Bṛhadvṛtti, folio 5: viśeşaś cayam yatha-śayyambhavam yavadeşa kramaḥ tadā" ratastu daśavaikālikottarakālam pathyanta iti. 3 Dhavala, page 97 (Saharanpur copy, hand-written): uttarajjhayanam utrapadáņi vanpei. 4 Angapannatti 3/25-26: uttarani ahijjanti, uttarajjhayanam padam jinindehim. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 109 Uttaradhyayana : Composition and Subject Matter The Uttaradhyayana consists of thirty-six chapters. It is a compiled sutra, The initial compilation was done in the first half of the first century of V.N. The latest edition of the work was completed at the time of Devarddhigaņi. The titles of the extant adhyayanas are available, slightly changed, in the Samavāyanga and Uttarådhyayana-niryukti. Samavāyangal Uttarādhyayana-niryukti? 1. Viņayasuyam Vinayasuya 2. Parisaha Parisaha 3. Căurangijjam Caurangijjaṁ 4. Asamkhayan asaṁkhayam 5. akamamaraniijam akamamaranam 6. Purisavijja Niyantha (khuddaganiyantha) 7. Urabbhijjań Orabbhan 8. Kävilijjar Kavilijjam 9. Namipavvajjā Ņamipavvajjā 10. Dumapattayam Dumapattayam 11. Bahusuyapūjā Bahusuyapujjar 12. Hariesijjar Hariesa 13. Cittasambhūyaṁ Cittasambhūi 14. Usukārijjam Usuārijam 15 Sabhikkhugam Sabhikkhu 16. Samāhithânāim Samāhighānam 17. Pavasamaņijjań Pāvasamanijjam 18. Sanjaijjań Sanjaijjam 19. Miyacāritā Miyacāriya 20. Aņāhapavvajja Niyanthijjam (Mahāniyantha) 21. Samuddapalijjam Samuddapāltijam 22. Rahanemijjam Rahanemiyam 23. Goyamakesijjań Kesigoyamijjar 24. Samitio Samiio 25. Jannatijja Jannaijjam 26. Samayari Samāyāri 27. Khalurkijjam Khalurkijjar 28. Mokk hamaggagai Mukkhagai 1 Samavão, Samavāya 36. 2 Uttarādhyayana-niryukti, gāthā 13-17. 3 Ibid, gāthā 243 : csa khalu nijjutti khuddäganiyantha sattassa. 4 Uttarādhyayana-niryukti, gāthā 422 : esä khalu nijjutti mahāniyanthassa suttassa. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 29. Appamão Appamão 30. Tavomaggo Τανα 31. Caranavihi Carana 32 Pamāyathāņāim Pamāyathānam 33. Kammapagadi Karımappayadi 34. Lesajjhayanam Lesā 35. Anagāramagge Anagaramagge 36. Jivājīvavibhatti Jīvājīva vibhatti According to the Niryukti the contents of the thirty-six adhyayanas are as followsChapter Sloka Sutra Contents Modesty and humility. Endurance of hardships ard privation. Four rare factors of the discipline. Alertness and inalertness distinguished. Death of the wise and the unwise. Knowledge and practice. Abstinence from the delicacies. Gain and greed. Steadfastness in restraint. Discipline. 1 Ibid, gāthā 18-27 : padhame viņao bie parisaha dullahangayā taie / ahigaro ya cautthe hoi pamāyappamãetti // maranavibhatti puna pancammi vijjācarapam ca chajtha ajjhayane/ rasagehipariccão sattame atthami alābhe // nikkampayā ya navame dasame aņusāsanovamā bhaniya / ikkärasame püyä tavariddhi ceva bārasame / terasame ya niyānam aniyānam ceva hoi caudasame/ bhikkhugunā pannarase solasame bambhaguttio // påvāna vajjaņā khalu sattarase bhogiddhivijahanatthäre / eguņi aparikamme anāhayā ceva visaime // cariya ya vicittà ikkavisi bāvisime thiram caranam tevisaime dhammo cauvisaime ya samiao // bambhaguņa pannavise sāmāyāri ya hoi chavvise / sattävise asadhayā atthāvise ya mukkhagaill egunatisa avassagappamão tavo ya hoi tisaime ! caranam ca ikkatise baitisi ramāyathānāim // tettīsaime kammam cautisa.Tie ya hunti lesão / bhikkhuguņā panatise jīvājīvā ya chattise / uttarajjhayananeso pindattho vannio samasenam 7 itto ikkikkam puna ajjhayanam kittaissămi / Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Adoration of the learned. Power of penance. Ambition born of envy, and hankering for enjoyments. Absence of ambition and hankering for enjoyments. Qualifications of a monk. Self-protection for celibacy. Avoidance of sin. Renunciation of pelf and power. Abstinence from embellishment of body. Helplessness. Living in solitude. Stabilization of the conduct. Four restraints and five vows. Comportment and self-protection. Qualifications of a brāhmaṇa. Monastic deportment. Non-deceit. Emancipation. Alertness in compulsory duties. Penance Conduct. Occasions of inalertness. Karma. Leśyā. Qualification of a bhikṣu. 268 Tenets of jiva and ajīva. The author of the Niryukti has given a brief list of the contents of the Uttaradhyayana, wlich provides only a broad outline. If we go into detail, the subject matter becones vast ard varied. We find here a clear delineation of the dispensations of Lori Pārśva and Lord Mahāvīra A better and more orderly description of the doctrines of the vedika and śramanic culture through dialogues is not found in any other Agama. There is an attractive combination of religious stories, spiritual sermons and philosophical doctrines in the Uttarādhyayana whichcan be safely regarded as a text representative of the philosophy of Lord Mahāvra. Principal Commentarie: Dašavaikälika 1. Daśavaikālika-Nayukri, 2. Daśavaikālika-Bhāşya, 3. Daśavaikālika-Cúrņi 25 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 (Agastya-cūrņi), 4. Daśavaikälika-Curņi (Jinadāsa Mahattara), 5. DaśavaikälikaAvacūri, (6) Daša vaikālika-Dipikā. Uttarādhyayana--- 1. Uttaradhyayana-Niryukti, 2. Uttarādhyayana-Cūrņi, 4. UttarādhyayanaȚikā (Säntisūri), (4) Uttarādhyayana-Vrtti (Nemicandra). 4. NANDI Nomenclature The title of this Agama is Nandi which means 'bliss'. The author of the Carni has given three meanings of the word? viz. pleasure (pramoda), joy (harşa), and passion of love (kandarpa). Knowledge is the bliss par excellence. In this Agama, knowledge is described, and this is the reason why it is called Nandi. In the Visesavasyaku Bhășya knowledge is identified as bhävamangala and bhāvanandi? Knowledge is the best of all the auspicious activities and bence the designation of jñana as Nandi is a right estimation of knowledge. Date of Composition and Recitation (at Council) The history of the Council is closely bound up with the composition of this sútra. In the Cūrņi of Nandi the Council held by Skandilācārya at Mathura, called Mathuri Vacană is mentioned. The Anuyoga of Skandilācārya was prevalent in the major part of the land of the Bhärata. The author of the Cūrni had raised the question about the reason of the prevalence of the Skandilācārya's Anuyoga. He offers the solution by referring to a twelve-year terrible famine that was responsible for the suspension of scriptural study, deliberation and ponderance by the monastic order due to non-availability of the basic needs of life including food As a result the scripture was lost. There was a grand assembly of the monastic order at Mathura after the period of twelve years, when plenitude returned. Skandilācārya was the chief of the Council. The kalika-śruta (angapravişța śruta) was constituted by compiling the śruta that was retained in the memory of the learned monks among the order that assembled there. This compilation is called Council (vācană). This Council was held at Mathura, and is known as the Mathuri vācana. It was held under the leadership 1 Nandicúrni, P.1 : napdaņam nandi, nandanti va anayeti nandi, nandanti vā nandi, pamodo hariso kandappo ityarthah. 2 Visesavaśyaka Bháşya 78: mangalamadhavā nandi catuvvidhå mangalam vä sä neya / davve turasamudao, bhāvammi ya panca näņāim // 3. Nandi Therăvali, gātha 32: je si imo aņuogo payarai ajjāvi addhabharahammi / bahunagara niggayajase, te vande khandilāyarie // Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 113 of Skandilācārya and as such the śruia compiled there is called the Anuyoga of Skandilācārya According to another view, t'he śruta was not lost at that time, but only the ācāryas conversant with the Anu'yoga were dead, excepting Skandilācārya who alone was surviving. He initiated the Anuyoga in the assembly of monks at Mathura and so this Anuyoga is known as Mathuri vācanā. And the same is also known as the Anuyoga of Skandilācārya 1 In the Cūrņi of the Sthaviravali under reference, the Council of Skandilācārya alone is mentioned The Fourth Council was held by Devarddhigani who is the author of Nandisútra. The non-mention of Devarddhigani and his Council in the Sthavirāvali is but natural, Devarddhigaại held the Agama-Council in VNS 980—993 (or the 6th century of the Vikram era). The Ā gamas properly systematized at that Council and the Agamas that were known at that time were put on the list which is available in the Nandisútra. The conclusion follows from this that the Agama under reference, viz. the Nandisútra, was composed at about the 10th decade of the 10th century of VN era. According to the author of the Cürni the writer of the Nandīsūtra was Devavācaka, the disciple of Düşyagaņi. He flourished in the 10th century VN era (the second decade of the 6th century of the Vikrama era). The Nandisutra has found mention in the Āvaśyak a-niryukti 3 The Nandisütr a must have been composed by the time of the Council held by Devarddhigani. The reference to this Sūtra in the Bhagavati and the other Sutras confirms our hypothesis. But the problem still remains whether these references were incorporated by Devarddhigaại himself or by any other acāryas in later times. The abridgement of the Agamas was attempted many times. Pandit Becharadas Doshi opines that the abridgement was done by Devarddhigaņi Kaşmi1. Nandicūrni, p. 9: kaham puna tesim aņuogo ? ucyate-bārasasamvaccharie mahante dubbhikkhakäle bhattatthă annanpato phidităņam gahana-gunanā'r uppehā bhāvāto sute vippanatthe puno subhikkhakāle jāte madhuraya mahante sāhusamudae khandilayariyappamuhasanghena 'jo jam sambharati'tti evam sanghaditam kāliya sutam. jamhã ya etam madhurāe katam tamhă mădhură vāyaņā bhannati, să ya khandilayariyasammaya tti kätum tassamtiyo aņuogo bhannati. anne bhapanti jaha-sutam na nattham tammi dubbhikkhakāle je anne pahāņā anuogadharā te vinattha, ege khandilayarie sandhare, tena madhurāe anuogo puno sādhūnam pavitrito ti madhurā vāyana bhannati tassantitoya aņiyogo bhannati. The same idea is contained in Haribhadra-Vrtti of Nandi (p. 17, 18) and Nandi-Vrtti of Malayagiri (patra 51). 2. Nandi Cürni p. 13 evam katamangalovayāro therävalikame ya damsic arihesu ya damsitesu dussaganisiso desvaväyago sāhujanahitajthäe inamäha, 3. /vasyakaniryukti gåtha 102 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 śramana himself. Devarddhigaņi, asserts Pandit Becharadas, introduced some special features while embodying the Sūtras into took form. Reference was made to a particular book or place for similar excerpts recurring in the Agamas, for instance jahā uvavāie jahā pannavaņāe", and so on. The use of 'java' was made between the first and the last word instead of repeating the same excerpt recurring at different places in the same Agama, for instance,' 'ņāgakumārā jāva vibaranti”, “teņam kālenań jāva parisā niggayā”, and so on. Even though this way of inter-reference and abridgement was initiated by Devarddhigani, the process was definitely developed ia the subsequent period too. There is no uniformity of abridgement in the versions that are extant before us. In some versions a passage is shortened while in others it is fully expanded. The commentators have mentioned this phenomenon in sone places. For instance, in the Aupapātika Sūtra we find the following two passages "ayapāyāni va jāva annayarāiṁ vā" and "ayabandhaņāņi vā jāva aņņayarām ā". In the versions available to the author of the Vrtti these two passages were in their abridged form, but in other versions these passages are written in full. This tas been noticed by the author of the Vrtti. The scribes too, in many places, did not repeat the passages for the second time according to their own converience and in the subsequent versions they were blindly followed. For instance, in the Rāyapasenaiya sútra we find the reading "savviddhie akālaparihina”. This reiding does not have any sign indicating its incomplete nature, but if we supply the gap between “savviddhie" and "akāla parihiņā”, the complete passage comes o be "savviddhie savvajuttie savvabalenam savvasamudaeņam savvādareņam savvavibhūsāe savvavibhūie savvasambhameņam savvapuppba.vattha-gandha-mallālamlaregam savvadivvatumdiyasadda sannivāenam mahayı iddhie mahayā juie máhayā balenam mahayā samudaenam mabayā varatudiyayajamaga samaga paduppa āiyaraveņam samkha-panava-padaba-bheri-jhallāri-kharamuhi ava-nadaha-bheri-ihalläri-kharamuhi hudukka-munya-muimga dumdubhi nigghosa näiyakhenam niyaga parivālasaddhi samparivudi sājm sājí jāņavimănăim durudhā samāņā akālaparibiņā," It cannot be denied that the subsequent ācāryas referred to the Nandīsūtra in the other Agamas for the purpose of abridgement. But it cannot be admitted that Devarddhigani did no, follow this method of shortening while committing the Agamas to writing. There should therefore be no difficulty in admitting that the composition of the Nandīsūtta was an accomplished fact by the time the Council was convened. The Principal Commentaries :- 1. Nardi Cúrni; 2. Nandi-fikā (Haribhadia); 3. Nandi ţikā (Malayagiri). ANUYOGADVĀRA Nomenclature This is a sútra of the nature of a commentary. Anuyoga means exposition or disquisition. There is no specific subject-matter of this sútra. It indicates only the process of explaining the Agamic Sūtru. Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 115 Date and Authorship Aryarakṣitasűri is considered as the author of this text. He flourished in the second century of the Vikrama era, and was a Naiyāyika in his early carrier of a householder. He has mentioned the four instruments of knowledge of the Nyāyadarśana in his Anuyogadvāra. Contents There are four principal limbs of the process of exposition viz. (1) upakrama or introduction, (2) niksepa, (3) anugama or explanation, and (4) naya or angle of vision. In the niryuktis the principle of niksepa plays an important part. This is proved by the method followed in the Anuyogadvära. The text starts with the description of five kinds of knowledge. There is no clear mention of the concepts of svārtha and parārtha pramāņa. But the four varieties of knowledge are discussed. Uddeśa, samuddeśa and anujñā belong to the śrutajñāna. It, therefore, follows that the four varieties of knowledge are svärtha and śrutajñāna is parärtha. Aryarakṣitasűri has mentioned five jñānas and four pramânaș, but has not interrelated them. The later Jaina logicians have discarded upamāna as an independent instrument of knowledge. Even anumāna (inference) does not find place as an independent variety of pramana in the dual classification of pramāna as pratyakșa and paroksa. Inference is a category of parokșa pramāņa. Acārya Devarddhigani has given place to the four pramāņas mentioned by Aryarakṣitasūri, in the Sthânăngal and Bhagavati. Three categories of bhāvapramāņa have been recognised, viz. (1) guņa pramana, (2) naya-pramāna, (3) samkhyā pramāņa. The naya-pramāna has been explained with reference to examples of prasthaka, vasati and pradeśa. Such consideration of the nature of naya is not found anywhere else in the Agamas. This is indeed very useful in understanding the nature of naya, The Principal Commentaries -(1) Anuyogadvāra-cúrni, (2) Anuyogadvåra-vrtti, (3) Anuyogadvāra sūtra vrtti (Haribhadra süri). DASAŚRUTASKANDHA Nomenclature We get two titles of this Agama. In the Nandi list we find the title Daśā. In the Sthänānga" it is called Āyäradasă. It is called Daśā, because it has ten chapters (daśa meaning ten). From the standpoint of the contents, the title Āyaradašā 1 Thānam, 4/504. 2 Bhagavati, 5/97. 3 Nandi, sūtra 78 4 Thapam, 10/115 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 is appropriate. Date and Authorship According to the Daśāśrutaskandha-cūrni, this text was extracted from the pratyākhyānapūrva. The extraction was made by caturdaśapūrvi Ācārya Bhadrabāhu svæmni. The text of the 8th daśā of this Āgama is in an abridged form. Here the sutra starts with tenaṁ kälenam tenaṁ samaeņaṁ samane bhagave mahāvīre pañca hatthuttare hotthā' and ends with 'java bhujjo-bhujjo uvadansai'. The expression 'java' indicates the whole paryușaņākalpa. In some recensions, the entire paryusaņākalpa is found inserted here. We have given the paryușaņākalpa in an appendix. The adhyayana under reference has five divisions-(1) the biography of Mahāvīra (1-107), (2) the biography of the remaining twenty-three tirthankaras (108—181), (3) the list of gañadharas (182—185), (4) the list of sthaviras (186222), and (5) paryuşaņākalpa (223—288) The Daśāśrutaskandha has three principal commentaries--1. Niryukti, 2. Cūrņi, 3. Vrtti. For the present adhya yana, the niryukti is exclusively on the paryuşanākalpa. It appears from this that the remaining portion of the adhyayana was not as a part of it before the niryuktikara. It was explained as an auspicious text, according to him. purimacarimāņa kappo, mangalam vaddhamāṇatitthammi / iha parikahiya jiņaganaharāj therävalicarittaṁ // Cūrņi—'purimacarimāņa ya titthagarāņam esa maggo ceva, jahā--vāsāvāsam pajjosaveta vvam, padau vā vāsam mā vā. majjhimagāņam puņa bhayaņijjam. avi ya vaddhamāṇatitthammi mangalanimittam jinagañadharāvaliyā savvesiṁ ca jināņaṁ samosaraņāņi parikahijjanti. In the Cūrņi the biography of Mahāvīra is followed by the exposition of the sthavirāvali. The biographies of intermediate tirtharkaras are not explained there. On the basis of these two expositions, we can arrive at the conclusion that the paryuşaņākalpa was the basic subject matter of the adhyayana. The biography of Mahāvīra and the list of sthaviras were added at the time of the Council held 1 Daśāśrutskandha Cūrni, folio 2: kataram suttam? daśão kappo vavahāro ya. katarāto uddhrtam ? ucyate-paccakkhāņapuvvão. 2 Daśāśrutaskandha-niryukti gāthā 1: vandami bhaddabāhum, päiņam carima sayala suyanānim / suttassa kärgamisim, dasăsu kappe ya vavahäre // 3 Daśāśrutaskandha, mülaniryukti cūrni, folio 63. 4 Ibid, mūlaniryukti cūrni, folio 65. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 117 by Devarddhigani. The last sūtra of the biography of Mahāvīra and the sthavirāvali bears testimony to it-samaņassa bhagavao mahāvirassa jāva savvadukkhappahiņassa nava vasa sayājm viikkantāja dasamassa ya vāsasayassa ayam asīime samvaccharakāle gacchai. vāyaṇantare puna-ayam tenaue samvaccharakāle gacchai-iti disai. //107|| therassa ņam ajjapūsagirissa kosiyagottassa ajjaphaggumitte there antevāsi goyamasagutte //222|| There is no Cūrņi on the biography of the twenty-three tirthankarasi and the sthavirāvalia. It is clear from this that these two parts were added after the composition of this Cūrņi. Muni Punyavijayaji writes--the authors of the Niryukti and Cūrņi confirm the existence of the list of sthaviras headed by the ganadharas and the samācāri treatise through purimacarimana-kappo (N. G. 62) and the Cūrni thereon. The list of the sthe viras headed by the gañadharas that is found in the Kalpasútra today can never be accepted to have been a part of the Kalpasūtra composed by the caturda śåpūrvadhara Bhagavān Sri Bhadrabāhu svāmi. There fore it will be reasonable to say that the list was prepared when the present Kalpasūtra or the Āgamas were committed to writing by the sthaviras of those times. The most pertinent question that arises in this connection is the whereabout of the origin of the list of sthaviras that is found in the recent manuscripts written in the 16th and 17th centuries I have examined a good many palin-leaf manuscripts from Khambhat, Ahemadabad, Patan, Jaisalmer and other places but could not trace any sthavirāvali connected with the sthaviras of later times. In spite of all this, I am reluctant to admit that those portions are completely baseless. I am therefore inclined to the necessity of further research in the subject. In the niryukri there is the mention of the jinas, ganadharas and sthavirāvali but it does not follow either from the niryukti or from the cúrni that they constituted a part of the text It is possible that on the basis of their meation in the Niryukti, the jinacaritra, gañadharāvali and sthaviravali were added to the text. The Mahavira-caritra also does not find mention in the niryukti. The version of 'tha' utilised for constituting the text of the paryuşaņākalpa is an abridged one. There does not occur the description of the tirtharkaras from Nami to Ajita. It is written there instead-athāgre caturvinsati 24 jinănāṁ uttarakālam. The ganadharávali and sthavirāvali in sútras 183 to 222 are missing. In the palm-leaf manuscript 'ta', the sútras 21 to 35 are wanting. The description of dreams is short. It was expanded later on. Muni Punyavijayaji also considers the description of dreams as a later interpolation. 1 Paryusaņākalpa, sūtra 108-181. 2 Ibid, sūtra 186-222 3 Kalpasūtra, Introduction written by Muni Punyavijayaji, p. 10. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118 Among the manuscripts of the Kalpasūtra that are available to us, the one belonging to the 'Sri Santinatha Tāḍapatriya Bhandara' at Khambhat is the oldest. This was written in V.S. 1247. In this manuscript the descriptive passages concerning the fourteen dreams are totally absent. Similarly, among the six manuscripts that I have carefully utilised for my research, the 'ga' and 'cha' have a quite different, and very shortened descriptive portion related to the dreams, while in others the current description of the dreams is available word for word. In this way, three different versions of the fourteen dreams have come before me. The author of the curni and the authors of the tippana who followed him are silent about the descriptive part of dream. They do not explain a single word from the descriptive part. This certainly creates a doubt about the originality of the descriptive part. But another question in this context arises from the statement "tae pam sa tisala khattiyäni ime eyärüve orāle coddsa mahasumine päsittä pam paḍibuddha" that immediately follows the mention of the fourteen dreams on the awakening of Trisala ksatriyani after seeing them. In other words, the reference kṣatriyāṇī to the particular dreams and their greatness raises the possibility of some sort of description of the dreams in the text that preceded the passage quoted here. But until it is found in other old manuscripts, it is difficult to ascertain the exact nature of the description that might have been there. We have certainly a doubt about the originality of the descriptive part. Even then it should be noticed that the current descriptive part, howsoever later, must not be considered less than at least a thousand years old.1 From the above consideration we can easily arrive at the conclusion that the paryuşaṇakalpa was compiled in a number of stages. It is, however, a problem whether the text complied after the Council of Devarddhigani can be included in the corpus of the Agamas. If the status of Agama were granted to sutras that were compiled in later times, it will be a difficult task to draw a line of demarcation between the Agamas and the later literature. From this viewpoint the status of an Agama cannot be accorded to the paryuşaṇakalpa as a whole. This is why we have included it in an appendix to the Daśäśrutaskandha. The Principal Commentaries 1. Daśáśrutaskandha-niryukti; skandha-vrtti. 2. Daśāśrutaskandha-curņi; 3. Daśâśruta 7. 8. KALPA AND VYAVAHARA Nomenclature Both these are Chedasutras. The words paryuṣaṇakalpa, prakalpa and kalpa are very closely related. In the medieval period, Paryusaṇakalpa passed as "Kalpasara". Probably this is why the word Brhatkalpa was used for the 1 Kalpasūtra, Introduction written by Muni Punyavijayaji, p. 9-10. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 119 'Kalpasūtra' in order to distinguish it from the "Kalpasūtra”. There is another possibility of this new designation. The Kalpasūtra has two bhāsyās -Brhat and Laghu. In the expression Bșhatkalpa-bhāşya, we find Brhat referring to the Ralpa, which in later times was responsible for a new designation, viz. Bohatkalpa for Kalpasūtra. The word vyavahāra stands for confession",purification or atonement. The chedasūtra under reference was called Vyavahāra on the basis of its subject matter, viz. alocană (confession) that formed the principal part of monastic conductvyavahāra. Date and Authorship The Kalpa and Vyavahāra were extracted by the Caturdaśapūrvi Bhadrabāhu svāmi from the third vastu of the 9th Pūrva. There are six uddeśakas in the Kalpasūtra and ten in the Vyavahāra. The Principal Commentaries 1. Brhatkalpa.niryukti, 2. Brhatkalpa-bshadbhāşya, 3. Brhatkalpa-laghubhâsya, 4. Brhatkalpa-cūrņi, 5. Brhatkalpa-vstti. Vyavahāra-1. Vyavahāra-niryukti, 2. Vyavahāra-bhāsya, 3. Vyavahāra-vrtti (Malayagiri), 4. Vyavahāra-vivarana. 9. NISITHA The title of this sūtra is “Nišitha" 3 The word "Niśitha' is explained in the Bhāşya as standing for what is unmanifest orbidden. This sūtra predominantly deals with the exceptions to the general rules and so it is not open to all readers who fall in three categories : 1. Apariņāmaka-Perscos of immature intellect. 2. Pariņāmaka--Persons of mature intellect. 3. Atiparināmaka-Persons who are too intelligent and indulge in bad logic. Of the three categories, the first and the last are not entitled to read the Niśitha. A person who is incapable of keeping secret is not qualified to read the 1 Vyavahārabháşya, Udd. 2, G. 90 ; vavahāro āyoyaņā sohi pachhittameva egattha. 2 Ibid, 10/345 : savvam pi ya pachhittam, paccakkhāṇassa tatiyavatthummi / tatto vi ya nichhudha pakappakappo ya vavahäro // 3 Niśithabhăşya, śloka 65. jam hoti appagāsäm tam tu nisiham ti logasamsiddhi / jam appagásadhammam anne pi tayam nisidham till 4 Niśitha cürņi, p. 165 : puriso tiviho--pariņāmago, apariņāmago, atipariņāmago, to ettha apariņāmaga-atipariņāmagäņam padiseho. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 Nifitha. Only the monk who is capable of keeping the secret (rahasya) for ever is entitled to read it. The word rahasya in the Bhāsya indicates the upmanifest nature of the contents of the Nisitha. Authorship-The Jajna Agamas were composed in two ways-(1) Krta and (2) Niryūdha (extracted). Those Āgamas which were composed independently were called Krta, for instance, the twelve angas were composed by the gañadharas and the upanga and the like by different sthaviras. The extracted Āgamas are-(1) Daśavaikälika, (2) Āyāra-cülā, (3) Niśitha, (4) Daśāśrutaskandha, (5) Brhatkalpa and (6) Vyavahāra. Of these the Daśavaikälika was extracted by the Caturdaśapūrvi Sayyambhavasūri and the remaining five by Caturdaśapūrvi Bhadrabāhu. Composition and Subject Matter The Niśītha is the 5th cũlā of the Ācārānga. It has been recognized as an adhyayana and therefore it is also called Niśithādhya yana. It has twenty uddeśakas of which che first nineteen deal with prāyaścitta (atonement) and the 20th with the mode of imposing atonement. The contents are enlisted below. Uddeśaka Sūtrānka Prayaścitta Másika anuddhātika (gurumasa) Māsika uddhātika (laghumäsa) 56 Cāturmāsika anuddhātika (laghu caturmāsa) Cāturmasika uddhätika (guru caturmāsa) 16. 153 18. 19. 35 51 20. The division of these uddeśakas has been made on the basis of five categories, viz. (1) mäsika uddhātika, (2) māsika anuddhātiku, (3) cüturmasika uddhātika, Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 121 (4) cäturmäsika anuddhātika and (5) äropaņā. These five [categories have been called "ācāra-prakalpa-nisītha" in the Sthānanga." In fact, the atonement has only two categories -(1) másika and (2) caturmásika. The other categorires, viz dvimosika, trimâsika, pañcamasika and şanmasika are due to äropaña of the prāyaścitta, which is the main subject matter of the twenty uddeśakas. Principal Commentaries - 1. Nisitha- niryukti, 2. Niśītha-bhāşya, 3. Nišitha-cūrni (Viseșa-cūrni). The Acomplishment of the work The major part of the credit for the success in the work goes to Yuvācārya Mahāprajña who directed his whole energy and attention to do it. Otherwise this Herculean task would have proved difficult of achievement. On account of his devotion to Yoga his power of concentration always remains fresh. He has acquired a power of penetration into the mysteries of the Āgomas owing to his absolute devotion to the task. Humility, habit of hard work and complete devotion to the Guru have played a significant role in his progress. These characteristics are inborn in him, and ever since he came to me, these features have been gradually strenthened. His efficiency of work and devotion to duty have given me full satisfaction. A great number of monks participated in the work of editing the Agamas critically. I offer my blessings to all of them that their power and efficiency many ever be on the increase. I undertook this arduous task of critically editing the entire corpus of the Āgamas, depending exclusively on the strength of these monks and nuns of my Order. It is a matter of great pleasure that the completion of the great work of editing the thirty-two Agamas could be achieved in this extraordinary manner with the selfless, humble and devoted cooperation of my disciples, monks and nups. Acārya Sri Tulsi Terapantha Bhavan, Amet. 14th Nov., 1985 1 Thānam 5/148. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम आवस्सयं ०२ उपोद्घात पडम अम्झयणं नमुक्कार-सुत्तं १, सामाइय-सुत्तं २ बीयं अन्झयणं चउवीसत्थव-सुत्तं । तइयं अज्झयणं वंदणयं-सुत्तं । सू०१ चउत्थं अज्झयणं ८-१४ सामाइय-सुत्तं १, मंगलसुत्तं २, पडिक्कमण-सुत्तं ३, इरियावहिय-सुत्तं ४, सेज्जा-अइयारपडिक्कमण-सुत्तं ५, गोयर-अइयार-पडिक्कमण-सुत्तं ६, सज्झायादि-अइयार-पडिक्कमण-सुत्तं ७, एगविधादि-अइयार-पडिक्कमण-सुत्तं ८, निग्गंथपावयणे थिरीकरण-सुत्तं । १५, १६ पंचमं अज्झयणं सू०१-४ सामाइय-सुत्तं १, काउस्सग्गपइण्णा-सृत्तं २, चउवीसत्थव-सुत्तं ४ छळं अज्झयणं सू०१-११ दसपच्चक्खाण-सुत्त-१ १७, १६ परिसिझैं २, २३ समत्त-सुत्तं, थूलगपाणाइवायविरमण-सुतं, थूलगमुमावायविरमण-सुत्तं, थूलगअदत्तादाणविरमण-सत्तं. थलगअबंभचेरविरमण-सतं. थलगइच्छापरिमाण-सत्तं दिसिवय-सत्तं, उवभोगपरिभोगवय-सुत्तं अणत्थदंडविरमण-सुत्तं, सामाइय-सुत्तं, देसावगासियब्वय-सुत्तं, पोसहोववास-सुत्तं, अतिहिसंविभाग-सुतं, उवसंहार-मुत्तं, संलेहणा-सुत्तं । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ दसवेआलियं गा०५ पढमं अज्झयणं धम्म-पदं १, भमरचरिया-पदं २ २८.२६ बीयं अज्झयणं गा० ११ काम-पदं, १, चाई-पदं २, मणो-निग्गह-पदं ४, राईमई-पदं ६, निक्खेव-पदं-११ । तइयं अज्झयणं गा०१५ ३०, ३१ उक्खेव-पदं १, अणायार-पदं २, निग्गंथ-पदं ११ उउचरिया-पदं १२, निक्खेव-पदं १३ । चउत्थं अज्झयणं सू० २३ गा०२८ ३२-४० उक्खेव-पदं सू० १, जीव-पदं सू० ४, महन्वय-पदं सू० ११, पुढवी-पदं सू० १८, आउ-पदं सू० १६, तेउ-पदं सू० २०, वाउ-पदं सू० २१, वणस्सई-पदं सू० २२, तस-पदं सू० २३, संजम-पदं १, नाण-पदं १०, आरोह-पदं १४, निक्खेव-पदं २६ । पंचम अज्झयणं (उ०१) गा० १०० ४१-४६ उक्खेव-पदं १, गवेसणा-पदं-गमणं २, अणायतनं ६, गमणं १२, दिट्ठि-संजमो २३, मित-भूमि २४, गवेसणा-पदं-छड्डियं २७, दायगो २६, संहडं ३०, पुराकम्म ३२, पच्छाकम्म ३५, अणिसट्ठ ३७, गुब्विणी ३६, दायगा ४०, संकियं ४४, उब्भिन्नं ४५, दाणट्ठ ६४, पुण्ण→ ४६, वणिमठं ५१, समणठं ५३, गहणेसणा-पदं--सत्तदोसा ५५, उम्मीसं ५७, निक्खित्तं ५६ संकमो ६५, मालोहडं ६७, सचित्तं ७०, बहु-उज्झियं ७३, अपरिणतं ७६, अच्चंबिलं ७७, परिभोगेसणा-पदं-बहि-भोयणं-८२, ठाण-भोयण ८७, पडिक्कमणं ८८, आलोयणं ९०, विउसग्गो ६२, भोयणं ९५, निक्खेव-पदं १०० । पंचमं अज्झयणं (उ०.२) गा०५० ५०-५४ उक्खेव-पदं १, पुणो-गमण-पदं २, समय-पदं ४, पाण-पदं ७, कहा-पदं ८, अवलंबण-पदं ६, वणीमग-पदं १०, अकप्प-पदं १४, समुयाण-पदं २५, अदीण-पदं २६, संथव-पदं २६, माया-पदं ३१, सुरा-पदं ३६, तेण-पदं ४६, निखैव-पदं ५० । छठें अज्झयणं गा०६९ ५५-६० उक्खेव-पदं १, आयार-गोयर-पदं ४, अहिंसा-पदं , सच्च-पदं १२, अतेणग-पदं १४, बंभचेरपदं १६, अपरिग्गह-पदं १८, एगभत्त-पदं २३, भोयण-पदं २४, पुढवी-पदं २७, आउ-पदं ३०, तेउ-पदं ३३, वाउ-पदं ३७, वणस्सइ-पदं ४१, तस-पदं ४४, अप्प-पदं ४७, गिहि-भायण-पदं ५१, आसन्दी-पदं ५४, निसेज्जा-पदं ५७, सिणाण-पदं ६१, विभूसा-पदं ६५, निक्खेव-पदं ६८ । सत्तमं अज्झयणं गा०५७ ६१-६६ भासा-पदं १, संकिय-पदं ६, फरुस-भासा-पदं ११, ममत-भासा-पदं १५, नाम-गोत्त-पदं १६, Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ जाइ-पदं २१, सावज्ज-अणवज्ज-पदं ४०. आएस-पदं ४७, जहत्थ-पदं ४८, आसंसा-पदं ५०, जहत्थ-पदं ५१, निक्खेव-पदं ५४ । अट्ठमं अज्झयणं गा०६३ ६७-७२ उक्खेव-पदं १, अहिंसा-पदं ३, सुहम-पदं १३, पडिलेहण-पदं १७, परिद्वावणा-पदं १८, पइण्णचरिया-पदं १६, कसाय-पदं ३६, पइण्ण-चरिया-पदं ४०, भासा-पदं ४६, लयण-पदं ५१, इत्थी-पदं ५३, विसय-पदं ५८, सदधा-पदं ६०, निक्खेव-पदं ६१ । नवमं अज्झयणं (उ०१) गा०१७ ७३-७४ उक्खेव-पदं १, आसायणा-पदं २, आयरिय-पदं ११, निक्खेव-पदं १७ । नवमं अज्झयणं (उ०२) गा० २२ ७४-७६ दुम-पदं १, कट्ठ-पदं ३, कोव-पदं ४, विणियाविणिय-पदं ५, सिक्खा-पदं १२, निक्खेव-पदं २२ । नवमं अज्झयणं (उ०३) __ गा० १५ ७७,७८ स-पुज्ज-पदं १, जवणट्टया-पदं ४, अप्पिच्छा -पदं ५, कंटय-पदं ६, अवत्तव्व-पदं ६, गुण-पदं १०, माणरिह-पदं १३, निक्खेव-पदं १५ । नवमं अज्झयणं (उ०४) सू०७ गा०७ ७८,७६ उक्खेव-पदं सू० १, विणय-पदं सू० ४, सुय-पदं सू० ५, तव-पदं सू०६, आयार-पदं सू०७, निक्खेव-पदं गा०६। दसमं अज्झयणं गा०२१ ८०-८२ उक्खेव-पदं १, अहिंसा-पदं २, संवर-पदं ५, धुव-जोगी-पदं ६, सम्मदिट्ठी-पदं ७, असन्निहिपदं ८, छंदणा-पदं, कहा-पदं १०, भयभेरव-पदं ११, पडिमा-पदं १२, वोसट्र-चत्त-देह-पदं १३, परीसहजय-पदं १४, संजय-पदं १५, असंग-पदं १६, ठिअप्पा-पदं १७, समता-पदं १८, मत्त-पदं १६, अज्जपय-पदं २०, निक्खेव-पदं २१ । पढमा चूलिया गा०१८ ८३.८६ गयंकुस-पदं १, पच्छा-परिताव-पदं १, रतारत-पदं १०, धम्म-भट्ट-पदं १२, थिरीकरण-पदं १५, निक्खेव-पदं १८ । बिइया चूलिया गा०१६ ८७,८८ उक्खेव-पदं १, पडिसोय-पदं २, चरिया-पदं ४, संपेक्खा-पदं १२, पडिसंहरण-पदं १४, पडिबुद्ध-पदं १५, अप्परक्खा-पदं १६ । उत्तरज्झयणाणि ६१-६४ पढमं अज्झयणं गा०४८ उक्खेव-पदं १, विणय-पदं २, दंत-पदं, १५, अणसासण-पदं २७, निक्खेव-पदं ४७ । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ बीअ अभयणं सू० ३ गा० ४६ ६५-६६ उप-पदं सू० १ परीसह पदं १, दिगिछा-पदं २ पिवासा- पदं ४, सीय-पदं ६, उसिन-पदं, दंस-मसय-पदं १०, अचेल पदं १२ अरद-पदं १४, इत्थी पदं १६, चरिया-पदं १८, निसीहियापदं २० सेज्जा-पदं २२ अबको स-पदं २४, वह पदं २६, जायणा पदं २८ अलाभ-पदं ३०, राग- पदं ३२, तण- फास-पदं ३४, जल्ल-पदं ३६, सक्कार-पदं ३८, पन्ना पदं ४०, अन्नाण-पदं ४२, दंसण-पदं ४४, निक्खेव पदं ४६ | तइयं अभयणं गा० २० १००-१०१ उब- पदं १ माणुसत्त-पद ७ सुइ-पदं ८, सद्धा-पदं ६, वीरिय-पदं १०, धम्म- पदं १२, विपद २० । चत्थं अभयणं सच्च पदं २, अणसण-पदं ७, अप्पमाय-पदं ८ । पंचमं अभयणं गा० १३ गा० ३२ उपसेवयवं १, अकाम-मरण-पद ४ सकाम-मरण-पदं १७ । घट्ट अभयणं १०१-१०३ १०४ - १०६ गा० १७ सच्च पद २ नाण-वाय पद ८ अप्पमाय-पदं १२ । सत्तमं अभयणं गा० ३० १०-१११ उरब्भिज्ज -पदं १ कारिणि अम्बग-पदं ११, वणिय-पदं १४, कुसग्ग- जल-पदं २३, निक्खेव - पदं २८ । अ अभयणं १०७-१०८ गा० २० ११२-११३ दुक्ख मुत्ति-पदं १, असंग-पदं ४, अहिंसा-पदं ७ आहारपदं ११ अभियोग भावणा-पदं १३, लोभ-पदं १६, इत्थी पदं १८, निक्खेव पदं २० । नवमं अज्झयणं गा० ६२ ११४-११८ - पदं १, महिला-पदं ७, पागार पदं १७, पासाय- पदं २३, दण्ड-पदं २७, जुज्झ-पदं ३१, दाण-पदं २७ घोरासमपदं ४१, कोस-पदं ४५, काम-पदं ५० कसाय-पदं ५४, निक्लेव-पदं ५५ । दसमं अभयणं गा० ३७ ११-१२१ भव- पदं १, संसार-पदं ५, दुल्लह-पदं १६, हाण- पदं २१, उवदेस पदं २८, निक्खेव पदं ३७ । इक्कारसमं अभयणं गा० ३१ १२२-१२४ उada-पदं १, अवहुस्सुय-पदं २ असिक्खापदं ३ सिक्खा सील पदं ४, अविणीय-पदं ६, सुविशीय-पदं १०, बहुस्य-पदं १५ निक्सेव-पदं ३१ । 1 बारसमं अज्भयणं गा० ४७ १२५-१२० उक्सेब-पदं १ जन्नवाड-पदं ३ खेत-पदं १२, तालण-पदं १६ निवारण-पदं २०, Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ जक्ख-पदं २४, अणुणय-पदं ३०, अहोदाण-पदं ३५, जाइ-पदं ३७, सोहि-पदं ३८, जन्न-पदं ४०, तित्थ-पदं ४५ । तेरसमं अज्झयणं गा० ३५ . १२९-१३१ उक्खेव-पदं १, निमंतण-पदं १३, संबोहि-पदं १७, निक्खेव-पदं ३४ । चउदसमं अज्झयणं गा०५३ १३२-१३५ निक्खेव-पदं १, भिगु-पुत्त-पदं ७, भिगु-जसा-पदं २६, कमलावई-पदं ३७, निक्खेव-पदं ५१ । पनरसमं अज्झयणं गा०१६ १३६-१३७ पइण्णा-पदं १, असंग-पदं २, अहियास-पदं ३, आय-गवेसय-पदं ५, निग्गह-पदं ६. आणायार पदं ७, संथव-पदं १०, पिण्ड-पदं ११, भय-भेरव-पदं १४, उवसंत-पदं १५, निक्खेव-पदं १६ । सोलसमं अज्झयणं सू० १७ गा० १७ १३८-१४२ उक्खेव-पदं सू० १, इत्थी-कह-पदं सू० ४, सन्निसेज्जा-पदं सू० ५, चक्खु-संजम-पदं सू० ६, सोय-संजम-पदं सू०७, सइ-संजम-पदं सू० ८, पणीय-पदं सू० ९ अइमत्त-पदं सू० १०, विभूसा-पदं सू० ११, कामगुण-पदं सू० १२, बंभचेर-गुत्ति पदं गा० १-१७ । सत्तरसमं अज्झयणं गा०२१ १४३-१४४ उक्खेव-पदं १, निददासील-पदं ३, अविणय-पदं ४, संजय-मन्नया-पदं ६, अप्पमज्जण-पदं ७, दवदव-पदं ८, पडिलेहा-पदं, परिभावय-पदं १०, असंविभागी-पदं ११, विवाद-पदं १२, निसीदण-पदं १३, सेज्जा-पदं १४, विगइ-पदं १५, अत्थन्त-आहार-पदं १६, गाणंगणिय-पदं १७, पर-गेह-पदं १८, सन्नाई-पिंड पदं १६, निक्खेव-पदं २०। . अट्ठारसमं अज्झयणं गा० ५३ १४५-१४६ उक्खेव-पदं १, संबोहि-पदं १२, रायरिसि-पदं १८, निक्खेव-पदं ५१। एगणविसइमं अज्झयणं गा०६८ १५०-१५७ उक्खेव-पदं १, दुक्ख-पदं १५, धम्म-पदं १८, सार-भंड-पदं २२, महन्वय-पदं २४, दुक्कर-पदं ३१, भव-दुक्ख-पदं ४५, नरय-दुक्ख-पदं ४७, मिग-चारिया-पदं ७५, पव्वज्जा -पदं ८६, समता पदं ८८, निक्खेव-पदं ६६ । विसइमं अज्झयणं गा०६० १५८-१६२ उक्खेव-पदं १, अणाह-पदं, ८, अत्त-पदं ३६, धम्म-लोव-पदं ३८, निक्खेव-पदं ५१ । एगविसइमं अज्झयणं ___ गा०२४ १६३-१६५ उक्खेव-पदं १, महन्वय-पदं १२, चरिया-पदं १३, निक्खेव-पदं २४ । बाइसइमं अज्झयणं गा० ४६ १६६-१६६ उक्खेव-पदं १, निज्जाण-पदं ६, संवेग-पदं १५. अभिनिक्खमण-पदं २१, आसीवाय-पदं २५, राईमई-पदं २८, निक्खेव-पदं ४६ । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ तेविसइमं अज्झयणं गा० ८६ १७०-१७६ उक्खेव-पदं १, चाउज्जाम-पदं २३, अचेलग-पदं २६, विजय-पदं ३५, पास-पदं ४१, लया-पदं ४५, अग्गी-पदं ५०, दुटुस्स-पदं ५५, कुप्पह-पदं ६०, दीव-पदं ६५, नावा-पदं ७०, उज्जोयपदं ७५, ठाण-पदं ८०, निक्खेव-पदं ८८ । चविसइमं अज्झयणं. गा० २७ १७७-१७६ उक्खेव-पदं १, समिइ-पदं ४, गुत्ति-पदं २०, निक्खेव-पदं २६ । पंचविसइमं अज्झयणं गा० ४३ १८०-१८३ उक्खेव-पदं १, मुख-पदं ११, माहण-पदं १६, थुइ-पदं ३४, संबोहि-पद ३८, निक्खेव-पदं ४२ । छबीसइमं अज्झयणं गा०५२ १८४-१८७ सामायारी पदं १, चरिया-पदं ८, दिवस-चरिया-पदं ११, रत्ति-चरिया-पदं १७, पडिलेहण-पदं २०, पडिलेहण-विहि-पदं २३, आहार-पदं ३१, अणाहार-पदं ३३, विहार-पदं ३५, सज्झाय-पदं ३६, संझा-पदं ३७, पडिक्कमण-पदं ३६, निक्खेव-पदं ५२ । सत्तावीसइमं अज्झयणं गा० १७ १८८-१८९ गग्गपरिचय-पदं १, जोगवाहिस्स संसारपारगमण-पदं २, खलूकस्स सभावनिरूवण-पदं ३, अविणीयसीसस्स सभावनिरूवण-पदं ८, थेरेण गग्गेण कुसीसाणं परिहार-पदं १४, थेरस्स गग्गस्स विहार-पदं १७ । अट्ठावीसइमं अज्झयणं गा०३६ १९०-१९२ मग्ग-पदं २, नाण-पदं ४,.दव्व-पदं ६, नव-तहिय-पदं १४, सम्मत-रुइ-पदं १५, चरित्त-पदं ३२, तव-पदं ३४, निक्खेव-पदं ३५ । एगूणतीसइमं अज्झयणं सू०७४ १९३-२०२ उक्खेव-पदं १, संवेग-पदं २, निव्वेय-पदं ३, धम्म-सद्धा-पदं ३, सुस्सूसणा-पदं ४, आलोयणापदं ५, निदण-पदं ६, गरहण-पदं ७, सामाइय-पदं ८, चउव्वीसत्थव-पदं ६, वंदण-पदं १०, पडिक्कमण-पदं ११, काउस्सग्ग-पदं १२, पच्चक्खाण-पदं १३, थवथुइ-पदं १४, काल-पडिलेहणपदं १५, पायच्छित्त-परं १६, खमावण-पदं १७, सज्झाय-पदं १८, सुय-पदं २४, एगग्ग-मण-पदं २५, संजम-पदं २६, तव-पदं २७, वोदाण-पदं २८, सुहसाय-पदं २६, अप्पडिबद्ध-पदं ३०, विवित्त-पदं ३१, विनियट्टण-पदं ३२, पच्चक्खाय-पदं ३३, पडिरूव-पदं ४३, वेयावच्च-पदं ४४ सव्व-गुण-सम्पन्न-पदं ४५, वीयराग-पदं ४६, खंति-पदं ४७, मुत्ति-पदं ४८, अज्जव-पदं ४६, मद्दव-पदं ५०, सच्च पदं ५१, गुत्ति-पदं ५४, समाहारण-पदं ५७, संपन्नया-पदं ६०, इंदिय निग्गह-पदं ६३, कसाय-विजय-पदं ६८, खवणा-पदं ७३, निक्खेव-पदं ७४ । तीसइमं अज्झयणं गा०३७ २०३-२०५ उक्खेव-पदं १, तव-पदं ७, बाहिरग-तव-पदं ८, अभितर-तव-पदं ३०, निक्खेव-पदं ३७ । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । १२६ एगतीसइमं अज्झयणं गा० २१ २०६-२०७ उक्खेव-पदं १, नियत्ति-पवत्ति-पदं २, निरोध-पदं ३, वज्जण-पदं ६, जयणा-पदं ७, निक्खेव पदं २१ । बत्तीसइमं अज्झयणं गा० १०० २०८-२१६ उक्खेव-पदं १, तण्हा-पदं ६, उवाय-पदं ६, दुक्ख-पदं १६, रूव-पदं २३, सद्द-पदं ३५, गंध-पदं ४८, रस-पदं ६१, फास-पदं ७४, भाव-पदं ८७, निक्खेव-पदं १०० । तेतीसइमं अज्झयणं गा० २५ २१७-२१८ उक्खेव-पदं १, कम्म-पदं २, पयडि-पद ४, पएस-पदं १७, ठिइ-पदं १६, अणुभाग-पदं २४, निक्खेव-पदं २५ । चउतीसइमं अज्झयणं गा०६१ २१६-२२३ उक्वेव-पदं १, लेसा-पदं ३, वण्ण-पदं ४, रस-पदं १०, गन्ध-पदं १६, फास-पदं १८, परिणामपदं २०, ठाण-पदं ३३, ठिइ-पदं ३४, अहम्म-लेसा-पदं ५६, धम्म-लेसा-पदं ५७, उववात-पदं ५८, निक्खेव-पदं ६१ । पणतीसइमं अज्झयणं गा०२१ २२४-२२५ उक्खेव-पदं १, असंग-पदं २, उवस्सय-पदं ४, गिह-समारंभ-पदं ८, पायण-पदं १०, जोइ-पदं १२, सम-लेट्ठ-कंचण-पदं १३, कय-विक्कय-पदं १४, पिण्डवाय-पदं १६, समता-पदं १८, वोसटू-काय-पदं १६, संलेहणा-पदं २०, निक्खेव-पदं २१ । छत्तीसइमं अज्झयणं गा०२६८ २२६-२४४ उक्खेव-पदं १, लोकालोक-पदं २, अरूवि-अजीव-पदं ५, रूवि-अजीव-पदं १०, जीव-पदं ४८, सिद्ध-जीव-पद ४६, संसारत्थ-जीव-पदं ६८, पुढवी-पदं ७०, आउ-पदं ८४, वणस्सइ-पद ६२, तेउ-पदं १०८, वाउ-पदं ११७, बेइंदिय-पदं १२७, तेइंदिय-पदं १३६, चउरिदिय-पदं १४५, पंचिदिय-पदं १५५, नेरइय-पदं १५६, तिरिक्ख-जोणिय-पदं १७०, मणुय-पदं १६५, देव-पदं २०४, संलेहणा-पदं २५०, भावणा-पदं १५६, निक्खेव-पदं २६८ । नंदी श्लोक १ से ४४ सूत्र १ से १२७ २४७-२८० महावीर-त्थई १, संघ-त्थई ४, तित्थगरावलिआ १८, गणहरावलिआ २०, सासण-त्थुई २२, थेरावलिया २३, परिसा-पदं ४४, नाण-पदं २, पच्चक्ख-पदं ४, ओहिनाण-पदं ७, मणपज्जवनाणपदं २३, केवलनाण-पदं २६, परोक्खनाण-पदं ३४, आभिणिबोहियनाण-पदं ३७, उप्पत्तियाबुद्धिश्लो० २, बेणइया बुद्धि-श्लो० ५, कम्मया-बुद्धि-श्लो० ८, परिणामियाबुद्धि-श्लो० १०, सुयनाण-पदं ५५, दुवालसंग-विवरण-पदं ८१ । अणण्णानंदी सूत्र २८ २८१-२६५ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 जोगनंदी पढमा दसा बितिया दसा सू० १० अणुओगदाई सूत्र १ से ७१५ २६१-४२१ ना-पदं १, आवस्य - अणुओग-पदं २, आवस्सय सरूव पदं ६, आवस्सय- निक्खेव पद ७, सुयनिक्खेव पदं २६, खंध - निक्खेव पदं ५२, आवस्सयस्स अत्याहिगार अज्झयण-पदं ७४, अणुओगदार-पदं ७५, कमाणुओगदा-पदं ७६, उवक्कमाणुओगदारे आणुपव्वी-पदं १०१, नाम-वणाणुपुव्वी-पदं १०२, दव्वाणुपुव्वी-पदं १०५ अणोवणिहिय - दव्वाणुपुव्वी-पदं ११४, संगहस्स अणोवणिहय- दव्वाणुपुव्वी-पदं १३१, नेगम-ववहाराणं ओवणिहिय- दव्वाणुपुव्वी-पदं १४७, खेत्ताणुपुव्वी-पदं १५४, नेगम-ववहाराणं अणोवणिहिय-खेत्ताणुपुव्वी-पदं १५८, संगहस्स अवणि खेत्ताणुपुव्वी-पदं १७५, ओणिहिय-खेत्ताणुपुव्वी-पदं १७६, कालाणुपुव्वी-पदं १६६, नेगम-ववहाराणं अणोवणिहिय- कालाणुपुव्वी-पदं १६६, संगहस्स अणोवणिहिय-कालाणुपुव्वी-पदं २१७, ओवणिहिय - काला पुव्वी-पदं २१८, उक्कित्तणाणुपुव्वी-पदं २२६, गणणाणुपुव्वी पदं २३०, संठाणाणुपुव्वी-पदं २३४, सामायारियाणुपुथ्वी-पदं २३८, भावाणुपुव्वी-पदं २४२, उवक्क माणुओगदारे नाम-पदं २४६, एगनामं पदं २४७, दुनाम पदं २४८, तिनाम-पदं २५५, चउनाम पद २६५, पंचनाम- पदं २७०, छनाम पदं २७१, सत्तनाम ( सरमंडल ) - पदं २६८, अट्ठनाम ( वयणविभत्ति ) -पदं ३०८, नवनाम ( कव्वरस ) -पदं ३०९, दसनाम-पदं ३१६, उवक्कमणाणुओगदारे पमाण-पदं ३६६, दव्वप्पमाण- पदं ३७०, खेत्तप्पमाण-पदं ३८६, कालप्पमाण-पदं ४१३ । भावप्यमाण-पदं ५०५, उवक्कमाणुओगदारे वत्तव्वया-पदं ६०५, उवक्कमाणुओगदारे अत्थाहिगार-पदं ६१०, उवक्क -माणुओगदारे समोयार-पदं ६११, निक्खेवाणुओगदारे-पदं ६१८, निक्खेवाणुओगदारे ओहनिष्फण्ण-पदं ६१६, निक्खेवाणुओगदारे नाम निष्ण-पदं ६६, निक्खेवाणुओगदारे सुत्ताला वगनिष्फण्ण-पदं ७०६, अणुगमाणुओगदारपदं ७१०, नयाणुओगदार पदं ७१५ । तइया दसा चउत्थी दसा पंचमा दसा छट्ठा दसा सत्तमा दसा अट्ठमा दसा नवमा दसा दसमा दसा -१३० सू० ३ सू० ३ स० ३ सू० २३ सू०७ गा० १७ सू० १८ सू० ३५ सू० १ सू० २ गा० ३६ सू० ३५ २८३-२८८ ४२५, ४२६ ४२७-४२८ ४२६-४३१ ४३२-४३५ ४३६-४३६ ४४०-४४६ ४५०-४५७ ४५८ ४५-४६३ ४६४-४६१ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१ परिसिट्ठ पज्जोसणाकप्पो सू० २८८ ४६२-५६० भगवओ चवणादि नक्खत्त-पदं १, गब्भपदं २, चवण-पदं ३, देवाणंदाए सुमिणदंसण-पदं ४, उसभदत्तस्स सुमिणनिवेदण-पदं ५, उसभदत्तस्स सुमिणमहिम- निदंसण-पदं ६, देवाणंदाए सुमिणजागरिया - पदं ७, भगवओ गभसाहरण पदं ८, तिलसाए सुमिणदंसण - पदं २०, सिद्धत्थस्स सुमिनिवेदन- पदं ३६, सिद्धत्थस्स सुमिणमहिम - निदंसण-पदं ३८, तिसलाए सुमिणजागरियापदं ३६, सुमिणपाढग-निमंतण-पदं ४० सिद्धत्थस्स सुमिणफल - पुच्छा-पदं ४४, सुमिणफल-कहणपदं ८७, सिद्धस्स सुमिणपसंसा-पदं ४६, नामकरण-संकप्प-पदं ५१, भगवओ पइण्णा-पदं ५३, जम्म- पदं ५८, जम्मुस्सव- पदं ६०, नामकरण-पदं ६६, परिवार-पदं ६८, संबोह-पदं ७३, पव्वज्जा-पदं ७४, छउमत्थ- चरिया - पदं ७६, केवलणाण-लद्धि- पदं ८१, भगवओ वासावास-पदं ८२, पावाए निव्वाण-पदं ८४, गोयमस्स केवलनाण-लद्धि-पदं ८७, दीवावलि - पव्व-पदं ८८, भासरा सिमहग्गह-पदं ८६, कुंथु उप्पत्ति-पदं ६२, भगवओ धम्मस्स परिवार - पदं ६३, अंतगडभूमि-पदं १०५ उवसंहार-पदं १०६, पुरिसादाणीए पास पदं १०८, अरहअरिने मि-पदं १२६, विसतितित्थगर-पदं १४०, अरहाउसभ - पदं १६०, गणहरावलि १८२, थेरावलि १८६, - पज्जोसणाकप्पो २२३ । कप्पो पढमो उद्देसो ०४७ ५६३-५६८ तालपलंब - पदं १, मासकप्प-पदं ६, एकत्तवासविधिनिसेध-पदं १०, आवण गिहादिसु वासविधिनिसेध - पदं १२, अवंगुयदुवार - उवस्सय पदं १४ घडीमत्तय-पदं १६, चिलिमिलया - पदं १८, दगतीर - पदं १६, चित्तकम्मपदं २०, सागारिय - निस्सा-पदं २२, सागारिय उवस्सय-पदं २५, पडिबद्ध सेज्जा - पदं ३०, गाहावइकुलमज्भवास-पदं ३२, विओसवण-पदं ३४, चार पदं ३५, वे रज्ज - विरुद्ध रज्ज -पदं ३७, ओग्गह-पदं ३८, राइभोयण-पदं ४२, अद्धाण-पदं ४४, एगागिगमणपदं ४५, आरियखेत्त-पदं ४७ । बीओ उद्देस सू० २६ ५६६-५७३ उवस्सए बीज - पदं १, उवस्सए वियड - पदं ४०, उवस्सए उदग - पदं ५ उवस्सए जोइ-पदं ६, उवस्सए पईव - पदं ७, आगमणगिहादिसु वास-पदं ११, सागारिय-पदं १३, वत्थ-पदं २८, रयहरण-पदं २६ । तइओ उद्देस सू० ३४ ५७४-५७८ निग्गंथिउवस्य - पदं १, निग्गंथउवस्सय-पदं २ चम्म- पदं ३, वत्थ-पदं ७, उग्गहवत्थ - पदं ११, वत्थग्गहण - पदं १३, अहाराइणिय- वत्थादि-पदं १८, अंतरगिह- पदं २१, सेज्जा - संथारय-पदं २५, ओग्गह-पदं २८, सेणा-पदं ३३ । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ चउत्थो उद्देसो सू० ३४ ५७-५८६ पायाच्छित्त-पदं १, पव्वज्जादि अजोग-पदं ४, अवायणिज्ज- वायणिज्ज -पदं ६, दुसण्णप्पसुसणण-पदं ८, गिलायमाण-पदं १०, कालातिक्कंत भोयण-पदं १४, खेत्तातिवक्कंत भोयणपदं १३, अणेसणिज्ज-पाण- भोयण-पदं १४, कप्पट्टिय अकप्पट्ठिय-पदं १५, अण्णगण-उवसंपदापदं १६, वीसुंभवण-पदं २५, अहिगरण-पदं २६, परिहारकप्पट्ठिय-पदं २७ महानदी - पदं २६, उवस्सय पदं ३१ । पंचमो उद्देसो सू० ४१ ५८७-५६२ -पडि सेवणा-पदं १, अहिगरण-पदं ५, राईभोयण-पदं ६, उग्गाल-पदं १०, आहारविहि-पदं ११, पाणगविहि-पदं १२, मेहुणपडिसेवणा-पदं १३, बंभचेर सुरक्खापदं १५, आकुंचणपट्टादिपदं २४, पासवण - पदं ३६, परिवासिय-भोयण-पदं ३७, अहालहुसगववहार-पदं ४०, पुलागभत्तपदं ४१ । छट्टो उद्देस सू० २० ५६३-५६५ अवयण-पदं १, कप्पस्स पत्थार-पदं २, खाणुपभितिनिहरण-पदं ३, निग्गंथी अवलंबण-पदं ७, पलिमंथू - पदं १६, कप्पट्ठिति-पदं २० । ववहारो पढमो उद्देसो सू० ३३ ५६६-६०८ सई पडिसेवणा-पदं १, बहुसां पडिसेवणा-पदं ६, सई पडिसेवणा-संजोग सुत्त पदं ११, बहुसो पडिसेवणा-संजोगसुत्त-पदं १२, सई साइरेगपडिसेवणा-पदं १३, बहुसो साइरेगपडिसेवणा-पदं १४, परिहारट्ठाण - पडि सेवणा-पदं १५, परिहारिय- अपरिहारिय-पदं १६ अणुण्णाय -निग्गमणपदं २०, अणुण्णा अणणुष्णाय - पदं २३, पासत्यादिविहार-पदं २६, परपासंडलिंगग्गहण - पदं ३१, गाओ ओहावण - पदं ३२, अकिच्चट्टान-आलोयणक्कम - पदं ३३ । बीओ उद्देस सू० ३० ६०६-६१३ ठवणिज्ज-कपट्टिय-पदं १, परिहारकप्पट्ठियादीणं अनिज्जूहण-पदं ६, अणवटुप्प पारंचियाण उवटूवणा-पदं १८ सच्चपइण्ण-ववहार-पदं २४, एगपविखयस्स आयरिय उवज्झायट्टवणा-पदं २६, परिहारिया परिहारिय अण्णोष्णसंभुंजण-पदं २७, परिहारकप्पट्टियस्स विसेसविहीपदं २८ ॥ इओ उद्देस स० २६ ६१४-६१६ पदधारणविहि-पदं १, आयरिय-उवज्झायादिनिस्साए ठिति-पदं ११, पडिसेवकस्स पदधारणविहिपदं १३ । चउत्थो उद्देसो सू० ३२ ६२०-६२५ उउबद्धकाले आयरिय-उवज्झायादीणं विहारविधि - पदं १, वासावासे आयरिय उवज्झायादीणं विहारविधि - पदं ५, आयरिय-उवज्झायादीणं अण्णमण्णनिस्साए विहारविधि-पदं ६, आयरियादीणं Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ देहावसाणे अण्णस्स उवसंपज्जणाविधि - पदं ११, अहिस्स आयरिय उवज्झायत्त पदं १३, उवट्टावणविधि-पदं १५, उवसंपदा-पदं १८, आणापुव्वं चरिया- पदं १६, सेह - राइणिय-संबंध-पदं २४, राइणियनिस्साए विहरण- पदं २६ । पंचमो उद्देसो सू० २१ ६२६-६३० उउबद्धकाले पवत्तिणी - गणावच्छेइणीणं विहार विधि - पदं १, वासावासे पावत्तिणी - गणावच्छेइणीणं विहारविधि - पदं ५ पवत्तिणी-गणावच्छेइणीणं अण्णमण्णनिस्साए विहारविधि - पदं ६, पवत्तिणीगावच्छेणीणं देहावसाणे अण्णाए उवसंपज्जणाविधि - पदं ११, अरिहाए पवत्तणी -गणावच्छेइत्ति-पदं १३, आयारकप्प - पम्हुईए विधि- पदं १५ । छट्टो उद्देसो सू० ११ ६३१-६३४ यहि गमविहि-पदं १, आयरिय-उवज्झायस्स अइसेस - पदं २, गणावच्छेइयस्स अइसेसपदं ३, अगडसुयाणं एकत्तवासविहि-पदं ४, अप्पसुयस्स एगागिवास निसेध - पदं ६, बहुसुयस्स गागिवासविहाण - पदं ७, हत्थकम्मपडिसेवणा- पायच्छित्त पदं ८ मेहुगपडि सेवणा- पायच्छित्त-पदं ६, अकयपायच्छित्ताए निग्गंथीए उवट्ठावणाइनिसेध-पदं १०, कयपायच्छित्ताए निग्गंथीए उवट्ठावाइविहाण - पदं ११ । सत्तमो उद्देसो सू० २८ ६३५-६३६ अण्णगणागयाए निग्गंथीए पुच्छणाइ - विहि- निसेध-पदं १, विसंभो इयकरण - विहि-निसेध-पदं ४, निग्गंथीपव्वज्जा-विहि- निसेध-पदं ६, निम्गंथपव्वज्जा - विहि- निसेध-पदं 5 विइगिट्टदसाउद्देसणविहि- निसेध-पदं १०, विइगिट्ठकलह उवसमण - विहि- निसेध-पदं १२, सज्झाय - विहि निसेध-पदं १४, उवज्झायादि उदेसण - विहि-पदं २०, निग्गंथस्स मरणोत्तर - विधि-पदं २२, सेज्जातरठवणाविधि- पदं २३, ओग्गह- अणुण्णवणाविधि-पदं २५ । अमो उद्देसो सू० १७ ६४०-६४४ सेज्जासंथा रगगहणविधि - पदं १, थेरसामाचारी पदं ५ पाडिहारिए सेज्जासंथार-पदं ६, ओग्गहअण्णवणा-पदं १०, परिभट्टउवगरणविहि-पदं १३, अइरेगपडिग्गह- पदं १६, आहारपमाणपदं १७ । नवमो उद्देसो सू० ४६ ६४५-६५२ सेज्जातर - पदं १, भिक्खुपडिमा - पदं ३५ मोयपडिमा - पदं ३६, संखादत्तिय पदं ४२, पिंडेसणापदं ४४ । दसमो उद्देसो सू० ४१ ६५३-६६१ जवमज्भ-वइरमज्झपडिमा - पदं १, पंचत्रवहार-पदं ६, अट्ट-माण-पदं ७, धम्मपदं १२, आयरियपदं १५, अंतेवासि - पदं १७, थेरभूमि-पदं १६, सेहभूमि - पदं २०, पव्वज्जा-वय-पदं २१, आगमअज्मयणस्स कालसीमा-पदं २३, दसविहवेयावच्च पदं ४० । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमोउद्देसो १३४ निसीहझयणं सू० ५६ ६६५-६६६ हत्थकम्म-पदं १, जिंघति-पदं १०, अण्णउत्थिय-गारत्थिय-कारावण-पदं ११, अणट्ट-पदं १६, अविहि-पदं २३, पाडिहारिय-पदं २७, अण्णमण्ण-पदं ३१, अविहि-पदं ३५, अण्णउत्थियगारत्थिय-पदं ३६, पाय-पदं ४१, वत्थ-पदं ४७, अण्णउत्थिय-गारत्थिय-पदं ५५, पूतिकम्म पदं ५६ । बिइओ उद्देसो सू० ५६ ६७०-६७४ पायपुछण-पदं १, जिंघति-पदं ६, सयमेवकरण-पदं १०, लहुसग-पदं १८, कसिण-पदं २२, सयमेव-पदं २४, पडिग्गह-पदं २६, नितिय-पदं ३१, संथव-पदं ३७, भिक्खायरिया-पदं ३८, अण्णउत्थिय-गारत्थिय-अपरिहारिय-पदं ३६, भोयण-जाय-पदं ४२, पाणग-जाय-पदं ४३, बहुपरि यावण्ण-भोयण-पदं ४४, सागारिय-पदं ४५, सेज्जासंथार-पदं ४६, पडिलेहण-पदं ५६ ।। तइओ उद्देसो सू०८० ६७५-६८३ ओभासण-पदं १, भिक्खायरिया-पदं १३, पाय-परिकम्म-पदं १६, काय-परिकम्म-पदं २२, वणपरिकम्म-पदं २८, गंडादि-परिकम्म-पदं ३४, किमि-पदं ४०, णह-सिहा-पदं ४१, दीह-रोम-पदं ४२, दंत-पदं ४७, उट्ठ-पदं ५०, दीह-रोम-पदं ५६, अच्छि-पत्त-पदं ५८, अच्छि -पदं ५६, दीहरोम-पदं ६५, मल-णीहरण-पदं ६७, सीसदुवारिय-पदं ६९, वसीकरणसुत्त-पदं ७०, उच्चार पासवण-पदं ७१। चउत्थो उद्देसो सू० ११८ ६८४-६६२ अत्तीकरण-पदं १, अच्चीकरण-पदं ७, अत्थीकरण-पदं १३, कसिण-ओसहि-पदं १६, विगति-पदं २०, ठवणकुल-पदं २१, निग्गंथीए सद्धि ववहार-पदं २२, अहिगरण-पदं २४, हसण-पदं २६, पासत्थादीणं संघाडय-पदं २७, एक्कीवीसहत्थ-पदं ३७, अत्तीकरण-पदं ३६, गच्चीकरण-पदं ४४, अत्थीकरण-पदं ४६, पाय-परिकम्म-पदं ५४, काय-परिकम्म-पदं ६०, वण-परिकम्म-पदं ६६, गंडादि-परिकम्म-पदं ७२, किमि-पदं ७८, णहसिहा-पदं ७६, दीह-रोम-पदं ८०, दंत-पदं ८५, उट्ठ-पदं ८८, दीह-रोम-पदं ६४, अच्छि-पत्त-पदं ९६, अच्छि-पदं ६७, दीह-रोम-पदं १०३, मल णीहरण-पदं १०५, सीसदुवारिय-पदं १०७, उच्चार-पासवण-पदं १०८, अपरिहारिय-पद ११८ । पंचमो उद्देसो सू० ७८ ६६३-६६६ सचित्तरुक्खमूल-पदं १, संघाडि-पदं १२, पलास-पदं १४, पच्चप्पण-पदं १५, दीहसुत्त-पदं २४, दंड-पदं २५, णवग-णिवेस-पदं ३४, वीणा-पदं ३६, सेज्जा-पदं ६१, संभोगवत्तियकिरिया-पदं ६४, धारणिज्ज-परिट्ठवण-पदं ६५, रयहरण-पदं ६८ । छट्ठो उद्देसो सू०७६ ६६९-७०६ विण्णवण-पदं १, हत्थकम्म-पदं २, अवाउडि-पदं ११, कामकलह-पदं १२, लेह-पदं १३, पोसंतपिठंत-पदं १४, वत्थ-पदं १६, पाय-परिकम्म-पदं २५, काय-परिकम्म-पदं ३१, वण-परिकम्मपदं ३७, गंडादि-परिकम्म-पदं ४३, किमि-पदं ४६, णहसिहा-पदं ५०, दीह-रोम-पदं ५१, दंत Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ पदं ५६, उट्ठ-पदं ५६, दीह- रोम-पदं ६५, अच्छि - पत्त-पदं ६७, अच्छि-पदं ६८, दीह- रोम-पदं ७४, मल-णीहरण-पदं ७६, सीसदुवारिय-पदं ७८, पणीय- आहार पदं ७६ । सत्तमो उद्देसो सू० ६२ ७०७-७१८ मालिया - पदं १, लोह -पदं ४, आभरण-पदं ७, वत्थ-पदं १०, संचालन - पदं १३, पाय-परिकम्मपदं १४, काय - परिकम्मपदं २०, वण-परिकम्मपदं २६, गडांदि - परिकम्म- पदं ३२ किमि-पदं ३८, हसिहा - पदं ३६, दीह - रोम-पदं ४०, दंत-पदं ४५, उट्ठ- पदं ४८, दीह-रोम - पदं ५४, अच्छ-पत्त-पदं ५६, अच्छि - पदं ५७, दीह-रोम पदं ६३, मल-णीहरण-पदं ६५, सीसदुवारिय-पदं ६७, पुढवी-पदं ६८, दारु-पदं ७५ अंकादि-पदं ७६, आगंतारादि-पदं ७८, तेइच्छ-पदं ८०, पोग्गलादीणं अवहरण-उवहरण-पदं ८१ पसु-पक्खि पदं ८३, दाण- पडिच्छण-पदं ८६, सज्झायपदं ६०, आकार - करण-पदं ६२ । अमोउद्देस सू० १८ ७१-७२२ एगो एगित्थी ए-पद १, इत्थीमज्झगतस्स अपरिमाणकहा- पदं १०, णिग्गंथीए सद्धि-पदं ११, अंतो उवस्य पदं १२, मुद्धा भित्ति-पदं १४ । नवमो उद्देसो . सू० २६ रायपिंड-पदं १, रायंतेपुर-पदं ३, मुद्धाभिसित्त-पदं ६ | दसमो उद्देसो ० ४१ ७२८-७३१ फरुसवयण-पदं १, अनंतकाय संजुत्त-पदं ५, आहाकम्म- पदं ६, निमित्त-पद ७, सेह-पदं ६, दिसापदं ११, आदेस -पदं १३, साहिगरण- पदं १४, उग्धाइय- अणुग्धाइय-पदं १५, राईभोयण-पदं २५, उग्गाल - पदं २६, गिलाण - पदं ३०, विहार- पदं ३४, पज्जोसवणा-पदं ३६ । ७२३-७२७ एक्कारसमो उद्देस सू० ७३ ७३२-७४० पाय-पदं १, पाय- बंधण-पदं ४, अद्धजोयणमेरा-पदं ७, धम्म- अवण्ण-पदं ६, अधम्म-वण्ण-पदं १०, पाय- परिकम्मपदं ११, काय-परिकम्म पदं १७, वण-परिकम्म-पदं २३, गंडादि-परिकम्म-पदं २६ किमि - पदं ३५, नह - सिहा पदं ३६, दीह-रोम पदं ३७, दंत-पदं ४२, उट्ठ-पदं ४५, दीहरोम - पदं ५१, अच्छि - पत्त-पदं ५३, अच्छि - पदं ५४ दीह - रोम-पदं ६०, मल-णीहरण-पदं ६२, सीसवारिय-पदं ६४, बीभावण- पदं ६५, विम्हावण - पदं ६७, विप्परियास-पदं ६६, मुहवण्ण-पदं ७१, वे रज्ज - विरुद्ध - रज्ज -पदं ७२, दिया भोयण अवण्ण-पदं ७३, राईभोयण - वण्ण-पदं ७४, दिया - रत्ति भोयण-पदं ७५, परिवासित पदं ७६, संखडि-पदं ८१, णिवेयणपिड -पदं ८२, अहाछंदपदं ८३, अणल- पदं ८५, सचेल अचेल पदं ८८ पारियासिय पदं ६२, बालमरण-पदं ε३ । बारसमो उद्देसो सू० ४३ ७४१-७४८ कोणपडियाए- पदं १, पच्चखाण - भंग - पदं ३, परित्तकायसंजुत्त-पदं ४, सलोम-चम्म- पदं ५, परवत्थोच्छन्नपीढ-पदं ६, णिग्गंथीसंघाडि - पदं ७, थावरकायसमारंभ-पदं ८ रुक्खारोहण-पदं १०, गिहि-पदं ११, पूरेकम्मपदं १५ पच्छाकम्मपदं १६, चक्खुदंसण-पडिया-पदं १७, रूवासत्ति-पदं ३०, कालातिक्कंत पदं ३१, खेत्तातिवकंत पदं ३२, गोमय-पदं ३३, आलेवणजाय-पदं ३७, Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ उवहिवहावण-पदं ४१, महाणई-पदं ४३ । तेरसमो उद्देसो सू० ७५ ७४६-७५४ पुढवी-पदं १, दारु-पदं ८, अंतरिक्खजाय-पदं ६, अण्णउत्थिय-गारस्थिय-पदं १२, अप्पाणं देहति-पदं ३१, तिगिच्छा-पदं ३६, पासत्यादि-वंदण-पसंसण-पदं ४३, पिंड-पदं ६१ । चउद्दसमो उद्देसो सू० ४१ ७५५-७५९ पडिग्गह-पदं १ । पण्णरसमो उद्देसो सू० १५४ ७६०-७७३ फरुसवयण-पदं १, अंब-पदं ५, पाय-परिकम्म-पदं १३, काय-परिकम्म-पदं १६, वण-परिकम्मपदं २५, गंडादि-परिक्कम-पदं ३१, किमि-पदं ३७, णह-सिहा-पदं ३८, दीह-रोम-पदं ३६, दंत-पदं ४४, उट्ट-पदं ४७, दीह-रोम पदं ५३, अच्छि -पत्त-पदं ५५, अच्छि -पदं ५६, दीह-रोमपदं ६२. मल-णीहरण-पदं ६४, सीसवारिय-पदं ६६, उच्चार-पासवण-पदं ६७, अण्णउत्थियगारत्यिय-पदं ७६, पासत्थादीणं दाण-गहण-पदं ७८, जायणा-णिमंतणा-वत्थ-पदं ६८, पाय-परिकम्म-पदं ६६, काय-परिकम्म-पदं १०५, वण-परिकम्म-पदं १११, गंडादि-परिकम्म-पदं ११७, किमि-पदं १२३, णह-सिहा-पदं १२४, दीह-रोम-पदं १२५, दंत-पदं १३०, उट्ठ-पदं १३३, दीह-रोम-पदं १३६, अच्छि-पत्त-पदं १४१, अच्छि-पदं १४२, दीह-रोम-पदं १४८, मलणीहरण-पदं १५०, सीसवारिय-पदं १५२, उवगरणजाय-धरण-पदं १५३, उवगरणजाय-धोवण पदं १५४ सोलसमो उद्देसो सू० ५१ ७७४-७७८ सेज्जा-पदं १, उच्छ-पदं ४, अडवीजत्तागहणेसणा-पदं १२, बुसिरातिय-पदं १४, बुग्गहवक्कंत-पदं १७, विहारपडिया-पदं २६, दुगुंछिय-पदं २८, असणाइणिक्खेवण-पदं ३४, अण्णउत्थियगारत्थिय-सद्धि भोयण-पदं ३७, आसायणा-पदं ३६, अतिरित्तउवहि-पदं ४०, उच्चार-पासवण पदं ४१ । सत्तरसमो उद्देसो सू० १५२ ७७६-७६६ कोउहल्लपडिया-पदं १, पाय-परिकम्म-पदं १५, काय-परिकम्म-पदं २१, वण-परिकम्म-पदं २७, गंडादि-परिकम्म-पदं ३३, किमि-पदं ३६, णह-सिहा-पदं ४०, दीह-रोम-पदं ४१, दंत-पदं ४६, उद-पदं ४६, दीह-रोम-पदं ५५, अच्छि -पत्त-पदं ५७, अच्छि -पदं ५८, दीह-रोम-पदं ६४, मलणीहरण-पदं ६६, सीसदुवारिय-पदं ६८, पाय-परिकम्म-पदं ६६, काय-परिकम्म-पदं ७५, वण-परिकम्म-पदं ८१, गंडादि-परिकम्म-पदं ८७, किमि-पदं ६३, णह-सिहा-पदं १४, दीह-रोमपदं ९५, दंत-पदं १००, उट्ठ-पदं १०३, दीह-रोम-पदं १०६, अच्छि -पत्त-पदं १११, अच्छि -पदं ११२, दीह-रोम-पदं ११८, मल-णीहरण-पदं १२०, सीसदुवारिय-पदं १२२, अंतोओवास-पदं १२३, मालोहड-पदं १२५, मट्टियाओलित्त-पदं १२७, पुढविआदिपतिट्ठिय-पदं १२८, अच्चुसिण-पदं १३२, अपरिणय-पाणग-पदं १३३, अत्तसलाहा-पदं १३४, गानादि-पदं १३५, विततसद्द-कण्णसोय-पडिया-पदं १३६, ततसद्द-कण्णसोय-पडिया-पदं १३७, घणसद्द Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ कण्णसोयपडिया-पदं १३८, झसिरसद-कण्णसोयपडिया-पदं १३६, विविहसदद-कण्णसोय पडिया-पदं १४०, सद्दासत्ति-पदं १५२ । अट्ठारसमो उद्देसो सू०७३ ७६७-८०२ णावाविहार-पदं १, वत्थ-पदं ३३ । एगूणवीसमो उद्देसो ८०३-८०५ वियड-पदं १, सज्झाय-पदं ८, वायणा-पदं १६ । वीसइमो उद्देसो ८०६-८१२ सइं पडिसेवणा-पदं १, बहसो पडिसेवणा-पदं ६, सई पडिसेवणा-संजोगसुत्त-पदं ११, बहुसो पडिसेवणा-संजोगसुत्त-पदं १२, सई साइरेगपडिसेवणा-पदं १३, बहुसो साइरेगपडिसेवणा-पदं १४, परिहारट्ठाण-पडिसेवणा-पदं १५, वीसतिराइयारोवणा-पदं १६, पक्खियारोवणा-पदं ३०, पक्खियावीसतिराइयारोवणा-पर्व ४५। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत निर्देशिका • ° ये दो बिन्दु पाठपूर्ति के द्योतक हैं। पाठपूर्ति के प्रारंभ में भरा बिन्दु [.] और उसके समापन में रिक्त बिन्दु [°] रखा गया है । देखें-पृष्ठ २६७ सूत्र ३१ (?) कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] आदर्शों में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें-पृष्ठ ३६२ सू० ३६६ [ } आदर्शों में प्राप्त किन्तु प्रस्तुत प्रकरण में आवश्यक व्याख्यांश पाठ को कोष्ठक [ ] में रखा गया है । देखें-पृ० २६, गाथा २७ के बाद ' ' यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें-पृ० ५ x क्रॉस (x) पाठ न होने का द्योतक है । देखें-पृ० १३, टि० १४ __पाठ के पूर्व या अन्त में खाली बिन्दु () अपूर्ण पाठ का द्योतक है। देखें-पृ. ५, टि०४,५ अ, आ, इ, उ, ऋ, क, ख, ग, घ, जी, ता, पु, श, स, सु, शु, अचू, जिचू, ह, हाटी, हा, तु, चू, हे, भा, मव । देखें-सम्पादकीय प्रति परिचय अचूपा० अगस्त्य चूर्णि के पाठान्तर जिचूपा० जिनदास चूणि के पाठान्तर चूपा० चूर्णि के पाठान्तर हारिभद्रिटीका के पाठान्तर हावृपा० बृहद्वृति के पाठान्तर सुपा० सुखबोधा टीका के पाठान्तर हेपा० मल्लधारी हेमचन्द्र वृत्ति के पाठान्तर हपा० हरीभद्रीय वृत्ति के पाठान्तर मपा, मवृपा० मलयागिरि वृत्ति के पाठान्तर अणु० अणुयोगद्वार सूत्र आनि० आवश्यक नियुक्ति दिगम्बर आवश्यक हाटीपा० बृपा० दि० Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओ०सू० दसा० मा० चू० क० पू० ठा० प० भा० भग० स० सू० सं० पा० वृह० व्य० :3 श्र० प० मोवाइय सूत्र दसाओ १४० आचारचूला धावक प्रतिक्रमण पंचपाठी पूर्तस्थल ठाणं पज्जोसणाकप्पो भाष्य भगवई समवाओ सूयगडो संक्षिप्त पाठ वृहत्कल्प व्यवहार श्रमणप्रति क्रमण डावश्यक वृत्ति पंचपाठी Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवस्सयं Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपोद्घात से किं तं आवस्सयं ? आवस्सयं छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-सामाइयं चउवीसत्थओ वंदणयं पडिक्कमणं काउस्सग्गो पच्चक्खाणं । से तं आवस्सयं ।' आवस्सयस्स णं इमे अत्थाहिगारा भवंति, तं जहा १. सावज्जजोगविरई २: उक्कित्तणं ३: गुणवओ य पडिवत्ती। ४. खलियस्स निंदणा ५. वणतिगिच्छ ६. गुणधारणा चेव ॥१॥ तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति, तं जहा आवस्सयं अवस्सकरणिज्ज, धुवनिग्गहो विसोही य । अज्झयणछक्कवग्गो, नाओ आराहणा मग्गो ॥१॥ समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वं हवइ जम्हा । अंतो अहोनिसस्स उ, तम्हा आवस्सयं नाम' ॥२॥ १. नंदी० ७५ । २. अणु० ७४ । ३. अणु० २८ । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं सामाइयं नमुक्कार-सुत्तं' १. नमो अरहंताणं' नमो सिद्धाणं १. सामायिकाध्ययने नमस्कारसूत्रस्य परम्परा प्राचीना वर्तते । आवश्यकनियुक्ती कारणपूर्वकं अस्य निदर्शनमस्ति मग्गो अविप्पणासो आयारे विणयया सहायत्तं । पंचविहनमुक्कारं करेमि एएहिं हेऊहिं ।।६०३।। अरिहंति वंदणनमंसणाणि अरिहंति पूअसक्कारे । सिद्धिगमणं च अरिहा अरिहंता तेण वच्चंति ।।२१।। निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का । अव्वाबाहं सोक्खं अण हवयंती सया कालं ।।८८|| पंचविहं आयारं आयरमाण तहा पगासंता । आयारं दंसंता आयरिया तेण बुच्चंति ॥६६४|| बारसंगो जिणखातो अज्झतो कहितो वुहेहिं । तं उवइसंति जम्हा उवज्झाया तेण वुच्चंति ॥१००१॥ निव्वाणसाहए जोगे, जम्हा साहेति साहुणो । समा य सव्वभूएसु, तम्हा ते भावसाहुणो ॥१०१०।। एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सब्वेसि पढम हवइ मंगलं ॥१०१८।। आवश्यकचूणो नमस्कारसूत्रस्य परम्परावर्तित्वं निर्दिष्टमस्ति'सुत्ते य अणुगते सुत्तालावगनिप्फन्नो निक्खेवो, सुत्तफासियनिज्जुत्ती य भवति, तम्हा सुत्तं अणुगंतव्वं । तं च पंचनमोक्कारपुव्वगं भणंति पुव्वगा, इति सो चेव ताव भन्नइ' (आवश्यकसूत्र चूणि, पृ० ५०१,२) २. अरिहंताणं (क, ष); आवश्यकनियुक्तौ 'अरिहंता' इत्यपि पाठः व्याख्यातोस्ति । . द्रष्टव्यम्-आवश्यकनियुक्ति, गाथा ६१६, ६२० । mr Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवस्सयं नमो आयरियाणं' नमो उवज्झायाणं नमो लोए' सव्वसाहूणं। सामाइय-सुत्तं २. करेमि भंते ! सामाइयं-सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।' १. आइरियाणं (षट्खंडागमः खंड १, भाग १, पुस्तक १, पृ०८)। २. चूणो 'लोए' इति पदं नैव दृश्यते-'णमो सव्वसाहूणं ति संसारत्था गहिया' पृ० ५८७ । हरिभद्रीय-मलयगिरीयवृत्त्योरपि 'लोए' पदस्य व्याख्या नैव दृश्यते । ३. जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥१॥ जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ।।२।। जह मम न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । न हणइ न हणावइ य, सममणती तेण सो समणो ॥३॥ नत्थि य से कोइ वेसो, पिओ व सव्वेस चेव जीवेसु । एएण होइ समणो, एसो अन्नो वि पज्जाओ ।।४।। उरग-गिरि-जलण-सागर-नहतल-तरुगणसमोय जो होइ । भमर-मिय-धरणि-जलरुह-रवि-पवणसमो य सो समणो॥५।। तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ न होइ पावमणो । सयणे य जणे य समो, समो य माणावमाणेसु ।।६।। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं चउवीसत्थओ चउवीसत्यव-सुत्तं १. 'लोगस्स उज्जोयगरे', धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्स', चउवीसंपि' केवली ॥१॥ उसभम जिय' च वंदे, संभवमभिनंदणं' च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ सुविहिं च पुप्फदंतं', सीअल सिज्जंस' वासुपुज्जं च । 'विमलमणंतं च जिणं' धम्म संतिं च वंदामि ॥३॥ 'कुंथु अरं च मल्लि, वंदे मणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्टनेमि 'पामं तह वद्धमाणं च ॥४॥ एवं मए अभिथुआ," विहुय-रयमला पहीण-जरमरणा। चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ 'कित्तिय वंदिय मए'", जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । १. लोगस्सुज्जोयगरे (ख)। २. कित्तइस्सामि (चू)। ३. चउव्वीसंपि (क्व) ४. उसह० (दि)। ५. ०अभिनंदणं (ष)। ६. पुप्फयंतं (दि)। ७. सेयंस (दि)। ८. ०मणंत-भयवं (दि)। ६. कुंथं च जिणवरिदं, अरं च मल्लि च सुब्वयं च णमि (दि)। १०. तह पासं वड्ढमाणं च (दि)। ११. अभित्थुता (चू, ख)। १२. विहूय (क); विहुत (चू)। १३. ०महिआ (क, ष); महिता (हावृपा); ०वंदियया मे जेते (चू); हारिभद्रीयवृत्ती 'वंदियया मे' इति पाठो मूले व्याख्यातोस्ति, 'वंदिय महिया' इति पाठः पाठान्तरत्वेन निर्दिष्टोस्ति । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवस्सयं आरोग्ग'-बोहिलाभ, समाहिवरमुत्तमं दितु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा" । सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ।।७॥ ३. चंदेहि (चू, दि, ष, वृपा, हावृपा)। ४. आइच्चेहिं (चू, दि)। ५. पगासकरा (चू); पभासयरा (हावृ); पयासयरा (हावृपा)। १. आरुग्ग (क)। २. आरुग्गबोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं च मे दितु । किं नु हु निआणमेअं ति ? विभासा इत्थ कायया ।। भासा असच्चमोसा नवरं भत्तीइ भासिया एसा । न ह खीणपिज्जदोसा दिति समाहिं च बोहिं च ।। जं तेहिं दायव्वं तं दिन्नं जिणवरेहि सन्वेहिं । दसणनाणचरित्तस्स एस तिविहस्स उवएसो।। भत्तीइ जिणवराणं खिज्जति पूव्वसंचिआ कम्मा । आयरिअनमुक्कारेण विज्जा मंता य सिझंति ।। भत्तीइ जिणवराणं परमाए खीणपिज्जदोसाणं । आरुग्गबोहिलाभं समाहिमरणं च पावति ।। (आनि० १०६४-१०६८) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदणय-सुतं इच्छा (१) १. इच्छामि खमासमणो! वंदिरं, जावणिज्जाए निसीहियाए । अण्णा (२) अजाह मे मिउग्गहं' निसीहि' अहोकायं काय - संफासं खमणिज्जो भे किलामो । बापुच्छा (३) अप्प किलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कतो ? जत्तापुच्छा ( ४ ) जत्ता भे ? जवणिज्जपुच्छा (५) तइयं अभयणं वंदणयं जवणिज्जं च भे ? अवराहमणा ( ६ ) खामेमि खमासमणो ! देवसियं वइक्कमं । आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वइदुक्कडाए ' Paragas कहा माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्मा इक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि' । १. खमासवण ( चू) । २. मितोग्गहं (चू ) । ३. निस्सीह ( ख ) ; चूण एतत्पदं व्याख्यातं. न दृश्यते । हारिभद्रीयवृत्तौ अस्ति व्याख्यातमिदं ततः शिष्यो नैषेधिक्यां प्रविश्य । ४. 'अणुजाणह' एतत् क्रियापदमनुवर्तते । ५. तेत्तीसण्णयराए ( ख ) । ६. वय ० ( क ष ) । ७. उत्तरवर्ति - आदर्शषु 'देवसिओ अइआरो' इति पाठोपि लभ्यते । ८. गरहामि ( ख ) | ६. इच्छा य अणुन्नवणा अव्वाबाहं च जत्त जवणा य । अवराहखामणावि य छट्ठाणा हुंति वंदणए || ( आनि० १२१८ ) 67 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं पडिक्कमणं सामाइय-सुत्तं १. करेमि' भंते ! सामाइयं-सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणु जाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। मंगल-सुत्तं २. चत्तारि मंगलं अरहंता' मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । मोगुत्तम-सुत्तं चत्तारि लोगुत्तमा अरहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा साहू लोगुत्तमा केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। सरण-सुत्तं चत्तारि सरणं पवज्जामि अरहते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साह सरणं पवज्जामि केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि । पडिक्कमण-सुसं' ३. इच्छामि पडिक्कमिउं' जो मे देवसिओ 'अइयारो कओ" काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ' दुविचिंतियो 'अणायारो १. एत्थ सूत्ते पदं पदस्थो चालणा पसिद्धी य जधा सामाइय तधा विभासितव्वा, चोदगो भणति-एत्थ कि सामाइयसुत्तं भण्णति ? उच्यते, सामाइयगाणुस्सरणपुव्वगं पडिक्कमणंति तेणं भण्णइ (चू)। २. अरिहंता (क) सर्वत्र । ३. पडिसिद्धाणं करणे किच्चाणमकरणे य पडिक्कमणं । असद्दहणे य तहा विवरीय परूवणाए य ।। (आनि० १२७१ ४. पडिक्कमितुं (चू)। ५. अतियारो कतो (चू)। ६. दुज्झातो (चू)। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्थं अज्झयणं (पडिक्कमणं) अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो" नाणे दंसणे चरिते सुए सामाइए तिन्हं गुत्तीणं चन्हं कसायाणं पंचण्हं महत्वयाणं' छण्हं जीवनिकायाणं 'सत्तण्हं पिंडेसणाणं" अहं वयणमाऊणं नवहं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे' समणधम्मे समगाणं' जोगाणं जं खंडिय जं विराहियं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । इरियावहिय-सुतं ४. इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमणे बोयक्कमणे हरियक्कमणे" मोसा- उत्तिग-पणग-दगमट्टी-मक्कडासंताणासंकमणे" जेमे जीवा विराहिया 'एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिदिया " अभिया" वत्तिया लेसिया" संघाइया" संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया, ठाणाओ ठाणं कामिया, जोवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । सेज्जा - अइयार - पडिक्कमण-सुतं ५. इच्छामि पडिक्क मिउं पगामसेज्जाए" निगामसेज्जाए" उव्वट्टणाए " परिवट्टणाए " आउंटणाए पसारणाए छप्पइय संघट्टणाए " कुइए" कक्कराइए छीए जंभाइए 'आमोसे, सस रक्खामोसे, आउलमाउलाए सोयणवत्तियाए, इत्थी विप्परिया सिआए १. अणायारो अणिच्छितो असमणपायोग्गो (चू); असमणपाउग्गो अणायारो अणिच्छियव्वो (हावृ) । २. महव्वताणं (चू ) । ३. सत्तण्हं पाणेसणाणं (चूपा); अतोग्रे'सप्तानां पानैषणानां' केचित् पठन्ति (हावृ ) । ४. ० मादीणं ( चू) । ५. दसविधे (चू) । ६. 'समणाणं एते सामणा । के ते ? जोगा । केय ते ? तिणि गुत्तीओ जाव समणधम्मो । अण्णे पुण भणंति - समणाणं जोगाणं ति ये चान्येप्यनुक्ताः श्रमणयोगाः एतेस जोगाणं' (चू); 'ये श्रामणा योगाः, श्रमणानामेते श्रामणाः, तेषां श्रामणानां योगानाम्' [हावृ] । ७. खंडितं (चू) । ८. विराधितं (च्) । ६ ६. पडिक्कमितुं (चू) । १०. हरित० ( चू) । ११. मक्कडग + संताणगमक्कडासंताणा । अपदे सन्धिर्वर्तते । १२. एगिंदिया जाव पंचिदिया (चू) । १३. अभिहता (चू) । १४. लिसिता (चू) । १५. संघातिता (चू) । चूर्णो प्रायो यकारस्थाने तकारी विद्यते । १६. १८. १६. २०. २१. २२. १७. ० सिज्जाए (ष) । उव्वत्तणाए (चू); संथारा उवट्टणाए (ष) । परियत्तणाए (च) ; परिअट्टणाए (ष) । छप्पई संघ० (ष); चूणों एष पाठो नास्ति व्याख्यातः । कुयितं (च) ० आउल माउलताए सोवणंतिए (चू); एते य आमोसादी तिण्णि आलाबगा केइ न पति (चू) । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवस्सयं दिदिविप्परियासिआए ‘मणविप्परियासिाए पाणभोयणविप्परियासिए.' तस्स' मिच्छा मि दुक्कडं। गोयर-अइयार-पडिक्कमण-सुत्तं ६. पडिक्कमामि' गोयरचरिआए" भिक्खायरिआए' उग्घाडकवाडउग्घाडणाए 'साणा वच्छा-दारासंघट्टणाए" मंडी'-पाहुडियाए बलि-पाहुडियाए ठवणा-पाहुडियाए संकिए सहसागारे अणेसणाए' पाणभोयणाए बीयभोयणाए हरियभोयणाए 'पच्छाकम्मियाए पूरेकम्मियाए'"अदिदैहडाए" 'दग-संसट्टहडाए रय-संसट्टहडाएपरिसाडणियाए पारिट्ठावणियाए ओहासणभिक्खाए' जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए अपरिसुद्धं पडिग्गहियं परिभुत्तं वा 'जं न परिढवियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । सम्झायावि-अइयार-पडिक्कमण-सुत्तं ७. पडिक्कमामि चाउकालं सज्झायस्स अकरणयाए, उभओकालं"भंडोवगरणस्स अप्पडि लेहणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जणाए दुप्पमज्जणाए अइक्कमे वइक्कमे अइयारे अणायारे" जो मे 'देवसिओ अइयारो" कओ, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । एगविधादि-अइयार-पडिक्कमण-सुत्तं ८. पडिक्कमामि एगविहे" असंजमे । पडिक्कमामि दोहिं बंधणेहि-रागबंधणेणं दोसबंधणेणं । १. पाणभोयणविप्परियासिआए मणोविपरियासि- १२. एवं रयसंस?अभिहडंति, दगसंसट्रअभिहडंति आए (च); केइ पुण 'आउलमाउलाए (चू)। सोयणवत्तियाए' एतं आलावगं एत्थ पढंति १३. चणौं एष पाठो नास्ति व्याख्यातः । (चू)। १४. परिग्गहियं (ख); पडिगाहियं (प, श्र); २. जो मे देवसिओ अइयारो को तस्स (ष, परिगाहियं (ष)। हावृ)। १५. चूणों एष पाठो नास्ति व्याख्यातः । ३. इच्छामि पडिक्कमितुं (च)। १६. उभयो० (चू)। ४. गोअर० (ष)। १७. आधाकम्मनिमंतण पडिसुणमाणे अइकमो ५. योतिचार इति गम्यते (हावृ) । होई। ६. साणामो+वच्छाओ+ दाराओ-साणा- पयभेयाइ वइक्कम गहिए तइएयरो गिलिए। वच्छा-दारा । अत्रक पदे सन्धिर्वर्तते । (हारिभद्रीयवृत्ती उद्धृता गाथा)। ७. मंडिय (थ)। १८. एवं रातिपाति पडिक्कमणं रातियाति ८. सहसाकारे (चू); सहसागारए (ष)। अतियारं भणिज्जा (चू)। ६. अणेसणाए पाणेसणाए (प, श्र)। १६. एगविधे (च)। १०. चूणि कृता एते पदे नैव व्याख्याते । २०. यो मया देवसिकोतिचार : कृत इति गम्यते ११. चूणिकृता 'अभिहडं' इति पदं व्याख्यातम् । (हाव)। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (पडिक्कमणं) पडिक्कमामि तिहिं दंडेहि-मणदंडेणं वइदंडेणं' कायदंडेणं । पडिक्कमामि तिहिं गुत्तीहिं-मणगुत्तीए' वइगुत्तीए कायगुत्तीए । पडिक्कमामि तिहिं सल्लेहि-मायासल्लेणं निआणसल्लेणं' मिच्छादसणसल्लेणं । डिक्कमामि तिहिं गारवेहि- इड्ढीगारवेणं रसगारवेणं सायागारवेणं । पडिक्कमामि तिहिं विराहणाहि-नाणविराहणाए दंसणविराहणाए चरित्तविराहणाए। पडिक्कमामि चाहिं कसाएहि--कोहकसाएणं माणकसाएणं मायाकसारण लोभकसाएणं । पडिक्कमामि चउहि सण्णाहि-आहारसण्णाए भयसण्णाए मेहुणसण्णाए परिग्गहसण्णाए । पडिक्कमामि चउहि विकहाहि-इत्थिकहाए भत्तकहाए देसकहाए रायकहाए । पडिक्कमामि चउहि झाणेहिं--अट्टेणं झाणेणं रुद्देणं झाणेणं धम्मेणं झाणणं सुक्केणं झाणेणं । पडिक्कमामि पंचहिँ किरियाहि --काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए पारितावणियाए पाणाइवायकिरियाए'। पडिक्कमामि पंचहि कामगुणेहि-सदेणं रूवेणं गंधेणं रसेणं फासेणं । पडिक्कमामि पंचहिं महव्वएहिं-पाणाइवायाओ वेरमणं मुसावायाओ वेरमणं अदिन्नादाणाओ वेरमणं मेहुणाओ वेरमणं परिग्गहाओ वेरमणं । पडिक्कमामि पंचहिं समिईहि-इरियासमिईए" भासासमिईए एसणासमिईए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिईए 'उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमिईए"। पडिक्कमामि छहिं जीवनिकाएहिं -पुढविकाएणं आउकाएणं तेउकाएणं वाउकाएणं वणस्सइकाएणं तसकाएणं । पडिक्कमामि छहिं लेसाहि" किण्हलेसाए नीललेसाए काउलेसाए तेउलेसाए पम्हलेसाए सुक्कलेसाए। सत्तहिं भयट्ठाणेहिं । अट्टहिं मयट्ठाणेहिं । नवहिं बंभचेरगुत्तीहिं । दसविहे समणधम्मे । एगारसहिं" उवासगपडिमाहिं । बारसहिं भिक्खुपडिमाहिं । तेरसहिं १. मणो० (च)। पमाद-कसायजोगेहिं । पंचहि अणासवदारेहि २. वय० (प, श्र, ष)। संमत्त-विरति - अपमाद- अकसायित्त-अजोगि३. मणो० (च)। तेहिं पंचहि निजराणेहि-नाणदंसण४. वय० (प, श्र, ष)। चरित्ततवसंजमेहिति (चू)। ५. निदाण ० (चू); नियाणा० (प)। १०. ०समियाए (प) सर्वत्र । ६. माता० (च)। ११. सिंघाणगपारिट्ठा० (चू)। ७. पाणायवाय० (ष); पाणातिपात० (चू)। १२. लेस्साहिं (ख) । ८. पाणातिपाताओ (चू)। १३. कण्ह० (श्र)। ६. एत्थ केइ अण्णंपि पढंति-पडिक्कमामि १४. एक्कारसहिं (चू)। पंचहिं आसावदारेहि-मिच्छत्त-अविरति Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ आवस्सयं किरियाट्ठाणेहिं । 'चउद्दसहिं' भूयगामेहि पन्नरसहि' परमाहम्मिएहिं । सोलसहि' गाहासोलसएहिं । सत्तरसविहे असंजमे । अट्ठारसविहे अबंभे । 'एगूणवीसाए नायज्झयणेहि । वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं । एगवीसाए सबलेहिं । बावीसाए परीसहेहिं । तेवीसाए सुयगडज्झयणेहिं । चउवोसाए देवेहिं । पंचवीसाए" भावणाहिं । छव्वीसाए दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं । 'सत्तावीसाए अणगारगुणेहि । 'अट्ठावीसतिविहे आयारपकप्पे । “एगणतीसाए पावसुयपसंगेहि''। तीसाए मोहणीयट्ठाणेहिं । एगतीसाए सिद्धाइगुणेहि५ । बत्तीसाए जोगसंगहेहि । तेत्तीसाए" आसायणाहिं अरहंताणं" आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणं आसायणाए साहुणीणं आसायणाए सावयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए केलिपण्णत्तस्स धम्मस्स आसायणाए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स आसायणाए सव्वपाणभूयजीवसत्ताणं आसायणाए कालस्स आसायणाए सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए वापणायरियस्स आसायणाए जं वाइद्धं वच्चामेलियं' होणक्खरं अच्चक्खरं पयहीणं 'विणयहीणं घोसहीणं जोगहीणं सुठ्ठ दिन्नं दुट्ठ पडिच्छियं अकाले कओ सज्झाओ काले न कओ सज्झाओ असज्झाइए सज्झाइयं सज्झाइए न सज्झाइयं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।। निग्गंथपावयणे थिरीकरण-सुत्तं 8. नमो चउवीसाए" तित्थगराणं उसभादिमहावीरपज्जवसाणाणं" इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलं" पडिपुण्णं नेआउयं संसुद्धं सल्लगत्तणं५ सिद्धिमग्गं १. चोद्दसहि (चू); चउद्दसेहि (ष)। १४. मोहणिय० (प, ष)। २. 'अण्णे पुण एत्थ चोद्दस गुणट्ठाणाणि वि १५. सिद्धाय० (प, श्र)। पण्णेति, जतो एतेसु वि भूतग्गामा वटुंति ६. तित्तीसाए (प, श्र, ष)। त्ति। (च)। १७. आसायणाए (प, श्र)। ३. पन्नरसेहि (ख)। १८. अरिहंताणं (प, श्र, ष)। ४. सोलसेहि (प, थ) । १६. विच्चामेलियं (च)। ५. सतरसविहे (प, श्र, प)। २०. घोसहीणं जोगहीणं विणयहीणं (च); ६. संजमे (हावृ); उत्तराध्ययने (३१।१३) विणयहीणं जोगहीणं घोसहीणं (प, श्र, ष)। 'तहा अस्संजम्मि य' इति पाठो दृश्यते । २१. चउव्वीसाए (च)। स च स्वीकृतपाठस्य संवादी वर्तते । २२. तित्थयराणं (प, श्र, ष)। ७. पाठान्तरं वा एगूणवीसाहिं नायज्झयणेहि २३. उसभाइ० (प, श्र, ष)। __ एवं अन्यत्रापि द्रष्टव्यम् (हावृ)। २४. केवलियं (प, श्र, ष); भगवती (१७७) ८. एक्क० (चू)। सूत्रे 'निग्गंथे पावयणे सच्चे अणत्तरे केवले' ६. सूय० (प, श्र)। इति पाठो लभ्यते । आवश्यकणि कृतापि १०. पणवीसाए (प)। मुख्यतया 'केवलं अद्वितीयं' इति व्याख्यातम्, ११. सत्तावीसतिविहे अणगारचरित्ते (हाव)। वैकल्पिकरूपेण 'केवलिना वा पण्णत्तं केव१२. अट्टवीसाए आयारपकप्पेहिं (प, श्र, ष)। लियं' इति व्याख्यातम् । १३. एगणतीसाए पावसुअप्पसंगेहिं (ष)। २५. सल्लकत्तणं (च)। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TTS होणमग्गं। चउत्थं अज्झयणं (पडिक्कमणं) मत्तिमग्गं 'निजाणमग्गं निव्वाणमग्गं" अवितहमविसंधि सन्द एत्थं' ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतंकरेंति' । तं धम्म सद्दहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि अणुपालेमि'। तं धम्म सद्दहतो पत्तियंतो 'रोएंतो फासेतो अणपालेंतो" तस्स धम्पस्स' अब्भुट्ठिओमि' आराहणाए, विरओमि विराहणाए असंजमं परियाणामि संजमं उवसंपज्जामि', परियाणामि बंभं उवसंपज्जामि, 'अकप्पं परियाणामि कप्पं उवसंपज्जामि, अण्णाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि, 'अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि, मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि," 'अबोहि परियाणामि बोहि उवसंपज्जामि, अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि'१२ । 'जं संभरामि जं च न संभरामि, जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि'", तस्स सव्वस्स 'देवसियस्स अइयारस्स'" पडिक्कमामि । समणोहं संजय-वि रय-पडिहय-पच्चवखायपावकम्मो अणियाणो" दिट्ठिसंपन्नो मायामोसविवज्जओ।" अड् ढाइज्जेसु दीवस मुद्देसु पण्णरससु कम्मभूमीसु जावति" केइ साहू रयहरण१. णेज्जाण मग्गं णिव्वा० (ख); निव्वाणमग्गं १०. अकल्पोऽकृत्यमाख्यायते कल्पस्तु कृत्यमिति निज्जाणमग्गं (श्र)। (हावृ)। २. इत्थं (प, श्र, ष)। ११. मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि ३. करंति (श्र); करिति (ष)। अकिरियं परियाणामि किरियं उव० (चू)। ४. पालेमि अणुपालेमि (प, श्र, ष) । १२. चूणौं एतावान् पाठो नास्ति व्याख्यातः । ५. रोयंतो फासंतो पालंतो अणपालंतो (प, १३. जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि, जं श्र, ष)। संभरामि जं च न संभरामि (च)। ६. धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स (प, श्र, ष); एष १४. ४ (चू)। पाठः अर्वाचीनादर्शष्वेव लभ्यते । चणौं १५. अनिदाणे (च)। हारिभद्रीयवृत्तौ च नास्ति व्याख्यातः १६. विवज्जिओ (ख, श्र, ष); चणी समुद्धते प्राचीनादर्शष्वपि नैवलभ्यते । पाठे 'मायामोसविवज्जतो' इति दश्यते । ७. अब्भुट्टितोमि (ख, चू)। १७. पनरससु (श्र)। ८. विरतोमि (ख, चू)। १८. जावंत (प)। ६. उवसंपवज्जामि (प, श्र)। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ आवस्सयं गोच्छ'-पडिग्गहधरा पंचमहव्वयधरा अट्ठारससीलंगसहस्सधरा' अक्खयायारचरित्ता ते सव्वे सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि। खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मेत्ती" मे सव्वभूएसु', वेरं मज्झ न केणई ॥१॥ एवमहं आलोइय, निदिय गरिहिय दुगंछियं सम्म । तिविहेण पडिक्कतो, वंदामि जिणे चउवीसं ॥२॥ ६. सव्वजीवेसु (च)। ७. खम्मामि सब्वजीवाण, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्व भूदेसु, वेरं मज्झ ण केणवि ।। १. गुच्छ (प, श्र, ष)। २. ०धारा (प, श्र, ब) सर्वत्र । केइ पुण 'समुद्दपदं' 'गोच्छपडिग्गहपदं' च न पढंति, अण्णे पुण 'अड्ढाइज्जेसु दोसु दीवसमुद्दे सु' पर्टति (चू)। ३. अट्ठारसहस्ससीलंगरथधारा (प); अट्ठा रसहस्ससीलंगधारा (श्र)।।। जोए करणे सण्णा इंदिय भोमाइ समणधम्मे य । सीलंगसहस्साणं अड्ढा रसगस्स निप्फत्ती ।।१।। जे नो करिति मणसा निज्जिय आहारसण्ण सोइंदि । पुढवीकायारंभे खंतिजुआ ते मुणी बंदे ॥२॥ ४. सव्वजीवा (चू); सव्वे जीवा (श्र)। ५. मित्ती (प, श्र)। ८. अतोग्रे हारिभद्रीयवृत्ती पत्र ७९२ पाक्षिक क्षामणा पाठो दृश्यते-इच्छामि खमासमणो । उवट्रिओमि अभितरपक्खियं खामेउ, पन्नरसण्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राईण जं किंचि अपत्तियं परपतियं भत्ते पाणे विणए वेयावच्चे आलावे सलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरिभासाए जं किचि मज्झ विणयपरिहीणं सुहुमं वा बायरं वा तुब्भे जाणह अहं न याणामि तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं काउस्सगो सामाइय-सुत्तं १. करेमि' भंते ! सामाइयं-सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समण जाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । काउस्सग्गपइण्णा-सुत्तं २ इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं जो मे देवसिओ अइयारो को काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुविचितिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्ई बंभचेरगत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । ३. तस्स उत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्घायणढाए ठामि काउस्सग्गं 'अन्नत्थ ऊससिएणं" नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डएणं वायनिसग्गेणं भमलीए पित्तमच्छाए सुमेहि अंगसंचालेहिं सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं एवमाइएहिं आगारेहि अभग्गो १. आह-वेलं वेलं करेमि भंते! सामाइयंति एस्थ पुणरुत्तदोसो न? उच्यते, एवं एसोऽवि रागादिनिमित्तं वेलं वेलं ओमंजणादि करेति मंतपरियट्टणादि च, जहा वा भत्तीए णमो णमोत्ति, न य तत्थ पुणरुत्तदोसो, एवं एसोऽवि रागादिविसघातणत्थं संवेगत्यं सामाइयपत्थितो अहंति परिभावणत्थं ___ एवमादिणिमित्तं पुणो पुणो भणतित्ति ण दोसो, महागुण इति (चू पृ० २५०)। २. अथ करेमि भंते ! इत्याद्युक्त्वा कायोत्स ध्ययनप्रथमसूत्रमिदमारभ्यते (चू)। ३. अन्नत्थूससिएणं (चू, हावृ)। ४. उड्डुइएणं (ख)। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ आवस्यं अविराहिओ होज्ज' मे काउस्सग्गो जाव अरहंताणं' भगवंताणं नमोक्कारेणं' न पारेमि 'तावकायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि" । चवीसत्थव सुतं ४. TRAL 35 लोगस्स उज्जोयगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली ॥१॥ उसभमजयं च वंदे, संभवमभिनंदणं च सुमई च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च । विमलमणतं च जिणं, धम्मं संति च वंदामि ||३|| कुंथुं अरं च मल्लि, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥ एवं मए अभिथुआ, विहुय रयमला पहीण - जरमरणा । चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयं तु ॥ ५ ॥ कित्तिय वंदिय मए, जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरोग्ग-बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्येसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥७॥ १. हुज्ज (क, प, ध ) । २. अरिहंताणं (क, प, ध ) । ३. नमुक्कारेणं (क) ४. अण्णे न पठत्येवंनमालापकम् (हावृ) । ५. तं च णमो अरिहंताणंति भणित्ता पारेति, पच्छा थुति भणति, साय थुती जेहि इमं तित्यं इमाए ओसप्पिणीए देसियं णाणदंसणचरितस्स य उवदेसो तेसि महतीए भत्तीए बहुमाणतो संथवो कातव्वो, एतेण कारणेण काउस्सग्गाणंतरं चज़बीसत्थओ (च्) । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठ अज्झयणं पच्चक्खाणं दसपच्चक्खाण-सुतं' नक्कारसहि १. ‘सूरे उग्गए” नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ' चउव्विहंपि आहारं असणं पाणं 'खाइमं साइमं'', अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेण वोसिरइ । पोरिसी २. सूरे उग्गए पोरिसिं' पच्चक्खाइ चउब्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नका लेणं' दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेण वोसिरइ । पुरिम ढं ३. सूरे उग्गए पुरिमं पच्चक्खाइ चउव्विपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं, १. भगवतीसूत्रे प्रत्याख्यानस्य वर्णनस्य परंपरा प्रस्तुत परंपरातो भिन्ना वर्तते द्रष्टव्यं परिशिष्टम् । आवश्यकनियुक्तिभाष्य निर्देशानुसारेण चूण हारिभद्रीयवृत्तौ च प्रत्याख्यानस्य वर्णनपरम्परा भगवती सूत्रात् किंचित् परिवर्द्धितास्ति । तत्र सम्यक्त्वसूत्रस्य निर्देशोस्ति । द्रष्टव्यं तदेव परिशिष्टम् । २. चूर्णिकृता णमोक्कारसहितसूत्रमेव प्रथमसूत्रत्वेन निर्दिष्टम् णामणिप्फन्नो गतो । पच्चक्खायादीणि पयाणि । सुत्ताला वगनिष्पन्नो सुत्तागमो य सुत्तफासियनिज्जुती य एगतओ णिज्जंति, तत्थ सुत्ता 'संघिया यः' सिलोगो । संघितासुत्तं'णमोक्कार पच्चक्खाति, सुरे उट्ठिए चउव्विहं पि' (आवश्यक सूत्र, चूर्णि पृ० ३१२, १३) । ३. सूरे उग्गदे ( ख ); णमोक्कारं पञ्चक्खाति सूरे उट्ठिए चउव्विहं (चू); उग्गए सूरे (क, प) । ४. इदं चतुविधाहारस्यैव (आ० निर्युक्तिदीपिका, भाग ३, पत्र ३९ ) । ५. पच्चक्खामि (क, प, ष); आदर्शेषु सर्वत्र उत्तमपुरुषस्य प्रयोगो दृश्यते । ६. खातिमं सातिमं (चू) । ७. सहस्सागारेण ( प ) 1 ८. पौरुषी द्विविधाद्याहारापि स्यादिति वृद्धा:, (आ० निर्युक्तिदीपिका, भाग ३, पत्र ३८); पोरिसि पच्चक्खाति सूरे उट्ठिते चउव्विहं (च) । ६. पच्छणे (चू) । १७ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवस्सयं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। एगासणं ४. एगासणं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-- असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आउंटणपसारणेणं गुरुअब्भट्ठाणेणं पारिढाव णियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। एगट्ठाणं ५. एगट्ठाणं पच्चक्खाइ चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइम, अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं गुरुअब्भट्ठाणेणं पारिट्टावाणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। आयंबिलं ६. आयंबिलं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहार--असणं पाणं खाइमं साइम, अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं 'उक्खित्तविवेगेणं गिहत्थसंसट्टेणं" पारिट्ठावणिया गारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। अभत्तटुं ७. सूरे उग्गए अभत्तट्ठ पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं--असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति__ आगारेणं वोसिरइ। १. गिहत्थसंसदणं उक्खित्तविवेगेणं (क गालयित्वा लेपयुक्तं कृतं तेन । अच्छेन निर्मलकाञ्जिकादिना, बहलेनायामगुडि २. जति तिविहस्स पच्चक्खाति विगिचणियं (गडु) लधावनजलेन । ससिक्थेन सिक्थकप्पति, जदि चउन्विहस्स पाण गं च नत्थि पतनेन तन्दुलादिसद्भावेन च। असिक्थेन न वट्टति, जदि पुण पाणगंपि उद्धरियं ताहे वा सिक्थापनयनेन, वा शब्दाः समुच्चसे कप्पति । जदि तिविहस्स पच्चक्खाति यार्थाः । अत्र प्रकरणगाथाताहे से पाणगस्स छ आगारा–लेवाडेण 'लेवाडदक्खपाणाइ इयरसोवीरमच्छमुसिणजलं वा अलेवाडेण वा अच्छेण वा बहलेण वा बहलं धावणमायाम ससित्थं इयरसित्थविणा' ॥१॥ ससित्थेण वा असित्थेण वा वोसिरिति इत्याकारार्थः एवं विधेन पानकेन विनाऽन्यं (चूर्णि, पृष्ठ ३१९), सर्वप्रत्याख्यानानि त्रिविधमाहारं व्युत्सृजामि रात्रौ पान काहारचतुविधाहारत्यागेन क्रियन्ते । जइ तिवि- प्रत्याख्यानं न स्यात् सर्वजिननिशाभोजनस्य हस्स पच्चक्खाइ ताहे सपाणगस्स छ निषिद्धत्वात, रात्रिभोजने च मूलव्रतविराधनाआगारा कीरन्ति । पानस्य पद आकारा: भावात् । श्राद्धानामपि यद्रात्रौजलपानं तदप्यू'लेवाडेण वा' लेपयुक्तेन द्राक्षाजलादिना त्सर्गतोऽकल्प्यं, तेन निर्विकृत्यादिषु तपोविशेषेषु तक्रादिपतनेन सलेपेन जलेन च । 'अलेवा- निशासु जलं न पिबन्ति । डेण वा' लेपचोपडितभाजनादिजलस्या- (आ० नियुक्तिदीपिका, भाग ३, पत्र ३६)। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें अज्झयणं (पच्चक्खाणं) दिवसचरिमं ८. दिवसचरिमं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थ_णाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। अभिग्गहो १. अभिग्गहं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणा भोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरइ। निम्विगइयं १०. निविगइयं पच्चक्खाइ चउविपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइम, अन्नत्थ गाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसट्टेणं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरई। सक्कत्युई ११. नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थयराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्टा अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं विअट्टछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमख्यमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जियभयाणं । प्रन्थ परिमाण कुल अक्षर-५०६४ अनुष्टुप् श्लोक-१५८ अ०८ दो छच्च सत्त अट्ट सत्तट्ट य पंच छच्च पाणंमि । चउ पंच अट्ट नव य पत्तियं पिंडए नवए । दोच्चेव नमुक्कारे आगारा छच्च पोरिसीए उ । सत्तेव य पुरिमड्ढे एगासणगंमि अद्वैव ।। सत्तेगट्ठाणस्स उ अट्ठवायंबिलंमि आगारा । पंचेव अभत्तट्रे छप्पाणे चरिमि चत्तारि ॥ पंच चउरो अभिग्गहि निव्वीए अट्ट नव य आगारा । अप्पाउराण पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ।। (आनि० १५९८-१६०१)। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिझें [भगवती, ७।२६-३५] कतिविहे णं भंते ! पच्चवखाणे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा--मूलगणपच्चक्खाणे य, उत्तरगुणपच्चक्खाणे य । मूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे य, देसमूलगुणपच्चक्खाणे य । सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिवहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। देसमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-थलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थलाओ मसावायाओ वेरमणं, थलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, थलाओ मेहुणाओ वेरमणं, थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं । उत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणे य, देसुत्तरगुणपच्चखाणे य । सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते, तं जहा १, २ अणागयमइक्कंतं ३. कोडिसहियं ४. नियंटियं चेव । ५, ६. सागारमणागारं ७ परिमाणकडं ८. निरवसेसं । ६. संकेयं चेव १० अद्धाए पच्चक्खाणं भवे दसहा ॥१॥ देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. दिसिव्वयं २. उवभोगपरिभोगपरिमाणं ३. अणत्थदंडवेरमणं ४. सामाइयं ५. देसावगासियं ६. पोसहोववासो ७ अतिहिसंविभागो। अपच्छिममारणंतियसंलेहणाभूसणाराहणता । २० आवस्सयं Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिट्ठ ( आवश्यक निर्युक्ति भाष्य, गाया. २४१,२४२) तं दुविहं सुअनोसु सुयं दुहा पुव्वमेव नोपुव्वं । पुव्वसुय नवमपुव्वं नोपुव्वसुर्य इमं चेव ॥ नो अपच्चक्खाणं मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । मूले सव्वं देसं इत्तरियं आवकहियं च ॥ सम्मत्त-सुत्तं तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ, सम्मत्तं उवसंपज्जइ, नो से कप्पर अज्जभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमसित्तए वा पुव्वि अणालत्तणं आलवित्त वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउ वा अणुप्याउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिगणं वित्तीकंतारेण । से य सम्मत्ते पसत्यसमत्तमोहणियकम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे समसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पण्णत्ते । सम्मत्तस्स समणोवास एणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा - संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा परपासंडसंथवे । २१ थूलगपाणाइवायविरमण-सुत्तं थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से पाणाइवाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहासंकष्पओ अ आरंभओ अ । तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए पच्चक्खाइ, नो आरंभओ । थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा -- बंधे हे छविच्छेए अइभारे भक्त्तपाणवुच्छेए । थूलग मुसावाय विरमण - सुत्तं थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से य मुसावाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाकन्नाली गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे । थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा - सहस्सन्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कुडलेहकरणे । थूलगअदत्तादाणविरमण-सुत्तं थूलगअदत्तादाणं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से अदिन्नादाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहासचित्तादत्तादाणे अचित्तादत्तादाणे अ । थूलादत्तादाणवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा - तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धरज्जा इक्कमणे कूडतुलकूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ आवस्सयं थूलगअबंभचेरविरमण-सुत्तं परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ, से य परदारगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे। सदारसंतोसस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अणंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे। थूलगइच्छापरिमाण-सुत्तं अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चखाइ इच्छापरिमाणं उवसंपज्जइ, से परिग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य । इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे कुवियपमाणा इक्कमे। विसिवय-सुत्तं दिसिवए तिविहे पण्णत्ते-उड्ढदिसिवए अहोदिसिवए तिरियदिसिवए। दिसिवयस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-उड्ढदिसिपमाणाइक्कमे अहोदिसिपमाणाइक्कमे तिरियदिसिपमाणाइक्कमे खित्तवुड्ढी सइअंतरद्धा । उवभोगपरिभोगवय-सुत्तं उवभोगपरिभोगवए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भोअणओ कम्मओ अ। भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया' तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पउलिओसहिभक्खणया। कम्मओ णं समणोवासएणं इमाई पन्नरस कम्मादाणाई जाणियव्वाइं, तं जहा-इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिज्जे लक्खवाणिज्जे रसवाणिज्जे केसवाणिज्जे विसवाणिज्जे जंतपीलणकम्मे निल्लंछणकम्मे दवग्गिदावणया सरदहतलायसोसणया असईपोसणया । अणत्थदंडविरमण-सुत्तं अणत्थदंडे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा~-अवज्झाणारिए पमत्तायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे। अणत्थदंडवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा--- कंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए संजुत्ताहिग रणे उवभोगपरिभोगाइरेगे। सामाइय-सुत्तं सामाइयं नाम सावज्जजोगपरिवज्जणं निरवज्जजोगपडिसेवणं च । १. 'सचित्तसंमिश्राहार' इति वा पाठान्तरम् (हावृ)। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिळं सिक्खा दुविहा गाहा उववायठिई गई कसाया य । बंधता वेयंता पडिवज्जाइक्कमे पंच ॥१॥ सामाइअंमि उ कए समणो इव सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेणं बहुसो सामाइयं कुज्जा ॥ २॥ सव्वंति भाणिऊणं विरई खलु जस्स सव्विया नत्थि । सो सव्वविरइवाई चुक्कइ देसं च सव्वं च ॥ ३ ॥ सामाइयस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियन्वा, तं जहा—मणदुप्पणिहाणे वइदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सइअकरणया, सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया। देसावगासियव्यय-सुत्तं दिसिव्वयगहियस्स दिसापरिमाणस्स पइदिणं परिमाणकरणं देसावगासियं । देसावगासियस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-आणवणप्पओगे पेसवणप्पओगे सद्दाणुवाए रूवाणुवाए, बहिया पुग्गलपक्खेवे। पोसहोववास-सुतं पोसहोववासे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा -आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे। पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा----अप्पडिले हिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए अप्पडिलेहिय-दुप्पडिले हिय-उच्चारपासवणभूमीओ अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ पोसहोववासस्स सम्म अणणपालणया। अतिहिसंविभाग-सुत्तं अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दवाणं देसकालसद्धासक्कारकमजुअं पराए भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दाणं । अतिहिसंविभागस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-सच्चित्तनिक्खेवणया सच्चित्तपिहणया कालाइक्कमे परववएसे मच्छरिया य। उवसंहार-सुत्तं इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाई तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं, चत्तारि सिक्खावयाई इत्तरियाई। एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं, तं जहा--तं निसग्गेण वा अभिगमेण वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। संलेहणा-सुत्तं अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया। इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहा-इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्पओगे जीवियासंसप्पओगे मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं दुमपुफिया १. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो । देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो' ॥ २. जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आवियइ' रसं । न य पुप्फ किलामेइ सो य पीणेइ अप्पयं ।। ३. एमेए समणा मुत्ता' जे लोए संति साहणो' । विहंगमा व पुप्फेसु दाणभत्तेसणे रया ॥ ४. वयं च वित्ति लब्भामो न य कोइ उवहम्मई । अहागडेसु रीयंति" पुप्फेसु भमरा' जहा ॥ ५. महकारसमा बुद्धा जे भवंति अणिस्सिया। नाणापिंडरया दंता तेण वुच्चंति साहुणो"। -त्ति बेमि॥ १. °मुक्कट्ठ (क, ग, घ, अचू) । २. मती (अचू)। ३. आवियति (अचू, जिचू) सर्वत्र 'इ' स्थाने 'ति' विद्यते । ४. मुक्का (अचू)। ५. साहवो (अचू)। ६. अहागडेहिं (अचू)। ७. रीयंते (घ, जिचू)। ८. फुप्फेहिं (अचू, जिचू)। ६. भमरो (ख)। १०. मधु० (अचू, जिचू)। ११. साहुण (क, ख, ग)। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बो अझयणं सामण्णपुव्वयं १. 'कहं न कुज्जा" सामण्णं, जो कामे न निवारए । पए पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ ॥ २. वत्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य । अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइ' त्ति वुच्चइ ॥ ३. जे य' कंते पिए भोए, लद्धे विपिटिकुव्वई। साहीणे चयइ भोए" से हु चाइ त्ति वुच्चइ ॥ ४. समाए' पेहाए परिव्वयंतो सिया मणो निस्सरई बहिद्धा । न सा महं नोवि अहं पि तीसे इच्चेव ताओ विणएज्ज रागं ॥ ५. आयावयाही चय सोउमल्लं' कामे कमाही कमियं ख दुक्खं । 'छिदाहि दोसं विणएज्ज राग" एवं सुही होहिसि संपराए । ६. पक्खंदे जलियं जोइं 'धूमकेउं दुरासयं । नेच्छंति वंतयं भोत्तु" कुले जाया अगंधणे ।। १. कयाऽहं कुज्जा, कइऽहं कुज्जा, कहं स कुज्जा ६. समाय (अचूपा)। (अचूपा); कइऽहं कुज्जा (जिचू) ; ७. नीसरती (अचू) । कयाऽहं कुज्जा, कहं ण कुज्जा, कहं णु कुज्जा ८. ०वयाहि (अचू, जिचू)। (जिचूपा); कयाऽहं कुज्जा, कइऽहं कुज्जा, ६. सोगुमल्ल (क, ख, ग); सोगमल्लं (घ, जिच, (हाटीपा)। हाटी)। २. चागि (अचू)। . १०. कमाहि (अचू)। ३. उ (अचू)। ११. छिदाहि राग विणएहि दोसं (अचू)। ४. विप्पिट्ठि (ख); विपिट्ठ० (ग); विप्पिटुं० १२. धूमकेतुं दुरासदं (अचू)। (अचू)। १३. मुत्तं (ख); मुत्तु (ग)। ५. भोगी (अचू)। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (सामण्ण पुव्वयं) ७. घिरत्यु ' वंतं ८. अहं च मा 'कुले ६. जइ तं इच्छसि जसो कामी" जो तं जीवियकारणा । आवेउं सेयं ते मरणं भवे ॥ भोयरायस्स' तं च सि अंधगवहिणो । गंघणा" होमो संजमं निहुओ चर ॥ काहिसि भावं जा जा दच्छसि' नारिओ । अप्पा भविस्ससि || वायाइद्धो व्व West १०. तीसे सो वयणं अंकुसे जहा ११. एवं विणियति ३. कुलगंधिणो (जिचूपा) । ४. दिच्छसि ( क, ख ) । ५. हढो (क, अचू, जिचू) । १. तेऽजसो ० ( अचूपा, जिचूपा) । २. भोग० (क, ख, ग, घ, जिचू, हाटी) 1 करेंति सोच्चा संजयाए नागो धम्मे संबुद्धा' पंडिया भोगेसु जहा से सुभासयं । संपडिवाइओ || पवियक्वणा । पुरिसोत्तमो ' ॥ -त्ति बेमि ॥ २६ ६. संपण्णा ( अचू, जिचू); संबुद्धा ( अनूपा ) | ७. भोगेहिं (अचू ) । ८. पुरिसुत्तमु ( ख, ग, घ ), पुरिसुत्तिमे ( अचू); पुरिसुत्तमो (जिचू ) । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयणं खुड्डियायारकहा १. संजमे सुट्ठिअपाणं विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं ।। २. उद्देसियं कीयगडं नियागमभिहडाणि' य । राइभत्ते सिणाणे य गंधमल्ले य वीयणे । ३. सन्निही गिहिमत्ते य रायपिंडे किमिच्छए । संबाहणा' दंतपहोयणा य संपुच्छणा' देहपलोयणा य ।। ४. अट्रावए य' नालीय' छत्तस्स य धारणट्राए। तेगिच्छं पाणहा' पाए समारंभं च जोइणो॥ ५. सेज्जायरपिंडं च 'आसंदी-पलियंकए" । गिहतरनिसेज्जा य गायस्सुव्वट्टणाणि य॥ ६. गिहिणो वेयावडियं 'जा य आजीववित्तिया" । तत्तानिव्वुडभोइत्तं" आउरस्सरणाणि" य॥ ७. मूलए सिंगबेरे य उच्छृखंडे अनिव्वुडे । कंदे मूले य सच्चित्ते फले बीए य आमए । १. णियागाऽभिहडाणी (अचूपा)। ८. आसण्णं परिवज्जए (अचूपा, जिचूपा)। २. राय० (ग, जिचू)। ९. वत्तिया (ख, ग); जाइयाजीवव० (ग); ३. संवाधण (अचू)। जा य आजीविवि० (अचू)। ४. संपुच्छण (अचू); संपुच्छगो (अचूपा)। १०. तत्तअनिवुडभोती त (अचू)। ५ x (ग)। ११. आउरे सर० (अचू); आउरसर० (जिचूपा, ६. नालीए (ख); णालीया (अचू) । हाटीपा)। ७. पाधणा (अचू, जिचू); पाहणा (ख) । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (खुड्डियायारकहा) ८. सोवच्चले सिंधवे लोणे रोमालोणे' य आमए । सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए । ६. घूवणेत्ति' वमणे य वत्थीकम्म विरेयणे । अंजणे दंतवणे य गायाभंगविभूसणे ॥ १०. सव्वमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं । 'संजमम्मि य' जुत्ताणं लहुभूयविहारिणं" ॥ ११. पंचासवपरिणाया तिगुत्ता छसु संजया । पंचनिग्गहणा धीरा' निग्गंथा उज्जुदंसिणो॥ १२. आयावयंति गिम्हेसु हेमंतेसु अवाउडा । वासासु पडिलीणा संजया सुसमाहिया । १३. परीसहरिऊदंता' धुयमोहा जिइंदिया । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा 'पक्कमंति महेसिणो" ॥ १४. दुक्कराई करेत्ताणं दुस्सहाइं सहेत य । केइत्य देवलोएसु केई सिझंति नीरया ॥ खवित्ता पुव्वकम्माई संजमेण तवेण य । सिद्धिमग्गमणुपत्ता ताइणो परिनिव्वुडा॥ -त्ति बेमि॥ १५. १. रूमा० (घ, अचू, जिचू) । २. धूमणेत्ति (अचूपा)। ३. उ (अचू)। ४. संजमं अणुपालंता विहारिणो (जिचू)। ५. वीरा (अचू)। ६. गिम्हासु (अचू)। ७. रिवूदंता (अचू)। ८. अगस्त्यसिंहस्थविरेण अस्य पाठस्य स्थाने 'ते वदंति सिवं गति' अस्य चरणस्य व्याख्या कृता । तदनन्तरं मतान्तरस्य उल्लेखः कृतः -केसिंचि 'सिवं गतिं वदंती' ति एतेण फलोवदरिसणोवसंहारेण परिसमत्तमिमम ज्झतणं, इति बेमि त्ति सद्दो जं पुश्वभणितं तेसि वृत्तिगतमिदमुक्कित्तणं सिलोकदुयं । केसिंचि सूत्रम्, जेसि सूत्रं ते पढंति'सव्वदुःखपहीणट्ठा पक्कमति महेसिणो।' अगस्त्यसिंहस्थविरेण 'ते वदंति सिवं गति' अस्यैव चरणस्य व्याख्या पूर्वकृता, एतेन ज्ञायते तन्मतेन अत्रैव अध्ययनपरिसमाप्ति र्जाता। ६. परिनिव्वुड (क, ग, घ, हाटीपा); परिनि व्वुडे (ख); परिनिव्वुए (हाटी)। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं छज्जीवणिया १. सुयं मे आउसं ! तेणं' भगवया एवमक्खायं-इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपण्णत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती ।। २. कयरा खल सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपण्णत्ता ? सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती ।। ३. इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपण्णत्ता। सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मण्णत्ती, तं जहा--पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया। ४. पुढवी चित्तमंतमक्खाया' अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । ५. आऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥ ६. तेऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।। ७. वाऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥ ८. वणस्सई चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं, तं जहा-अग्गबीया मूलबीया पोरबीया खंधबीया बीयरुहा सम्मुच्छिमा तणलया वणस्सइकाइया सबीया' चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थ परिणएणं । १. तेण (अचू); आवसंतेणं, आमुसंतेणं मक्खाया (अचूपा, हाटीपा); चित्तमत्ता (हाटीपा)। अक्खाया (जिचूपा)। २. चित्तमंता अक्खाया (जिचू); चित्तमत्त- ३. सबीया, वणस्सती (अचू) । ३२ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च उत्थं अज्झयणं (छज्जीवणिया) ६. से जे पुण इमे अणेगे बहवे तसा पाणा, तं जहा-अंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा सम्मुच्छिमा उब्भिया उववाइया। जेसि केसिचि' पाणाणां अभिक्कतं पडिक्कंतं संकुचियं पसारियं रुयं भंतं तसियं पलाइयं आगइ-गइविण्णाया-जे य कीडपयंगा जा य कुंथ-पिवीलिया 'सव्वे बेइंदिया सव्वे तेइंदिया सव्वे चरिंदिया सव्वे पंचिदिया सव्वे तिरिक्खजोणिया सव्वे नेरइया सव्वे मणुया सव्वे देवा सव्वे पाणा" परमाहम्मिया' एसो खलु'छट्टो जीवनिकाओ तसकाओ त्ति पवुच्चई ।। . 'इच्चेसिं' छण्हं जीवनिकायाणं" नेव सयं दंड' 'समारंभेज्जा नेवन्नेहि दंडं समारंभावेज्जा दंडं समारंभंते. वि अन्ने न समणुजाणेज्जा" जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं 'मणणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामिातस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि" । १. अतः पूर्व जिनदासचूणों एतावान् पाठो ५. परधम्मिता (अचूपा, जिचूपा)। विद्यते - तसा चित्तमंता अक्खाया अणेग- ६.४ (अचू) । जीवा पुढो सत्ता अण्णत्थ सत्थपरिणएणं । ७. इच्चेतेहिं (अचू, जिचू)। २. संसेयणा (जिचू)। ८. इच्चेतेसु छसु जीवनिकायेसु (अचूपा)। ३. केसिं च (ख)। ६. डंडं (अचू, जिचू)। ४. सव्वे देवा सव्वे असुरा सव्वे णेरतिता सव्वे १०. समारभेज्जा ' समारभावेज्जा... समारभंते तिरिक्खजोणिता सव्वे मणुस्सा सव्वे (अचू)। पाणा (अचू); सव्वे नेरइया सव्वे तिरि- ११. समणुजाणामि (क, ख, ग)। क्खजोणिया सव्वे मणुया सव्वे देवा सव्वे १२. x (अचू) । पाणा (जिचू)। १३. अतोग्रे अगस्त्यसिंहस्थविरेण एकस्य अनिर्णीतस्य पाठस्य उल्लेखः कृतः, यथा-केति सूत्तं केति वित्तिवयणमिमं भणंति पुढविक्कातिए जीवे, ण सहहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो, ण सो उद्रावणा जोग्गो ॥१॥ एवं आउक्कातिए०२ जाव तसकातिए०६ एस अणरुहो । अयं पुण अरुहो पुढविक्कातिए जीवे, सद्दहति जो जिणेहिं पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो, सो हु उट्ठावणे जोग्गो ॥७॥ एवं आउकातिए०८ जाव तसकातिए १२॥ जिनदासचूणों प्रस्तुतपाठः सूत्ररूपेणव फलितो भवति, सीसो आह-जो एसो दंडनिक्खेदो एवं महब्वयारहणं तं किं सम्वेसि अविसे सियाणं महन्वयारुहणं कीरति ? आयरिओ भणइ-जो इमाणि करणाणि सद्दहइ तस्स महव्वयाणि समारुहिज्जति । पुढविक्काइए जीवे, ण सद्दहइ जे जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो, ण सो उवद्रावणा जोग्गो ॥१॥ एवं आउक्काइए जीवे०२ एवं जाव तसकाइए जीवे०६ एयारिसस्स पुण समारुभिज्जति, तं० पुढविक्काइए जीवे, सद्दहइ जो जिणेहिं पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो, सो उवट्ठावणा जोग्गो ॥७॥ एवं आउक्काइए जीवे०८ एवं जाव तसकाइए जीवे, सद्दहइ जो जिणेहिं पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो, सो उवट्ठावणा जोग्गो ॥१२॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ दसवेगालियं ११. पढमे भंते ! महत्वए' पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वं भंते ! पाणाइवायं पच्चक्खामि-से सुहुमं वा बायरं' वा तसं वा' थावरं वा नेव सयं पाणे अइवाएज्जा' नेवन्नेहिं पाणे अइवायावेज्जा' पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा' जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं 'मणेणं वायाए काएणं'' न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। पढमे भंते ! महव्वए 'उवट्ठिओमि सव्वाओ" पाणाइवायाओ वेरमणं ॥ १२. अहावरे दोच्चे भंते ! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मुसावायं पच्च क्खामि-से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहिं मुसं वायावेज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । दोच्चे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं ॥ १३. अहावरे तच्चे भंते ! महव्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि-से 'गामे वा नगरे वा रण्णे वा" अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा, नेव सयं अदिन्नं गेण्हेज्जा नेवन्नेहि अदिन्नं गेण्हावेज्जा अदिन्नं गेण्डते वि अन्ने न समणजाणज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तच्चे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं ॥ १४. अहावरे चउत्थे भंते ! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मेहुणं पच्चक्खामि१. महन्वए उवढिओमि (अचू); ११-१५ सूत्र- ४. अइवातेमि (अचू); एवं षोडशसूत्रपर्यन्तं पर्यन्तं एष एव पाठो विद्यते । प्रथमपुरुषस्य स्थाने उत्तमपुरुषस्य २. वातरं (अचू)। प्रयोगः । ३. अतोने अगस्त्य चूणौं एकस्य अनिर्णीतपाठस्य ५. अइवायावेमि (अचू)। उल्लेखः कृतोस्ति-'केति सत्तमिमं पढंति ६. समणुजाणामि (क, ख, ग, अचू) सर्वत्र । केति वृत्तिगतं विसेसितिं, जहा-'से तं ७. मणसा वयसा कायसा (अचू); ११ से २२ पाणातिवाते चतुम्विहे, तं जहा-दव्वतो सूत्रपर्यन्तं एष एव पाठो दृश्यते । खेत्ततो कालतो भावतो। दव्वतो छसु ८. x (अचू), ११ से १६ सूत्रपर्यन्तं एवमेव जीवनिकाएसु, खेत्ततो सव्वलोगे, कालतो वर्तते । चूणिकृता निर्दिष्टमस्ति स्वयम् - दिया वा राओ वा, भावतो रागेण वा केति 'उवदितोमि' त्ति अन्ते पढन्ति दोसेण वा।' सर्वेषु महाव्रतालापकेषु (अचू)। अनेनैव क्रमेण विमर्शनीयम् । ६. x (अचू)। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अभयणं (छज्जीवणिया ) से दिव्वं वा माणुस वा तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं सेवेज्जा नेवन्नेहि मेहुणं सेवावेज्जा मेहुणं सेवते वि अन्नेन समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । चउत्थे भंते ! महव्वए उवट्ठिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं ॥ १२ १५. अहावरे पंचमे भंते ! महत्वए परिग्गहाओ वेरमणं सव्वं भंते ! परिग्गहं पच्चक्खामि - से 'गामे वा नगरे वा रण्णे' वा 'अप्पं वा बहु वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा", नेव सयं परिग्गहं परिगे‍हेज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगेण्हावेज्जा परिग्गहं परिगेण्हंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेम करतं पि अन्नं न समजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । पंचमे भंते ! महव्वए उवट्टिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥ १६. अहावरे छट्ठे भंते ! वए' राईभोयणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! राईभोयणं पच्चक्खामि -से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राई' भुंजेज्जा नेवन्नेहिं राई भुंजावेज्जा राई भुंजंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । छट्ठे भंते ! वए उवट्ठिओमि सव्वाओ राईभोयणाओ वेरमणं ॥ १७. इच्चेयाई' पंच महव्वयाइं राईभोयणवेरमणछुट्टाई अत्तहियट्टयाए * उपसंपज्जित्ताणं विहरामि ॥ १८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडियपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा 'एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा " - से पुढवि वा भित्ति वा सिलं वा लेलुं वा ससरक्खं वा कार्य ससरक्खं वा वत्थं हत्थेण वा पाएण वा 'कट्ठेण वा किलिचेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा सलागहत्थेण वा", न १. अरणे (अबू ) । २. x ( क, ख, ग, घ, जिचू, हाटी) । ३. X ( अचू ) । ४. वए उवट्ठितोमि (अचू ) । ५. रातीभोयणं ( अचू) सर्वत्र । ६. इच्चेइयाइं ( ख, ग, घ ) ; (अ) । ७. ० हियट्ठाए (घ, जिनू) । ३५ इच्चेताणि ८. सुत्ते वा जागरमाणे गोवा ( अचू ) एवमेव ज्ञेयम् । वा एगओ वा परिसा१९ - २३ सूत्रपर्यन्तं ६. लेलं ( ख ) । १०. अंगुलियाए वा सलागाए वा कट्टेण वा कलिचेण वा (अचू); अंगुलियाए वा सलागाए वा सलागहत्थेण वा कट्ठेण वा कलिचेण वा (जिचू) । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं आलिहेज्जा न विलिहेज्जा न घट्टज्जा न भिदेज्जा अन्नं न आलिहावेज्जा न विलिहावेज्जा न घट्टावेज्जा न भिदावेज्जा अन्नं आलिहंतं वा विलिहंतं वा घट्टतं वा भिदंत वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । १६. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा-से उदगं वा ओसं वा हिमं वा महियं वा करग वा हरतणुगं वा सुद्धोदगं वा उदओल्लं वा कायं उदओल्लं वा वत्थ ससिणिद्धं वा कार्य ससिणिद्धं वा वत्थं, न आमसेज्जा न 'संफुसेज्जा न आदीलेज्जा न पवीलेज्जा' न अक्खोडेज्जा न पक्खोडेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा अन्नं न आमुसावेज्जा न 'संफुसावेज्जा न आवीलावेज्जा न पवीलावेज्जा" न अक्खोडावेज्जा न पक्खोडावेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा अन्न आमुसंतं वा 'संफुसंतं वा आवीलतं वा पवीलतं' वा अक्खोडतं वा पक्खोडतं वा आयावंतं वा पयावंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्न न समणजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । २०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा-से 'अगणि वा इंगालं वा मम्मरं वा अच्चि वा 'जालं वा अलायं वा सुद्धागणि वा उक्कं वा", न उंजेज्जा न उज्जालेज्जा" न निव्वावेज्जा अन्नं न उंजावेज्जा 'न घडावेज्जा न उज्जालावेज्जा"न निव्वावेज्जा अन्नं उजतं वा 'घट्टतं वा उज्जालंतं वा निव्वावंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं ति विहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । २१. से भिक्खू वा भिक्षुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ १. तोस्सं (अचु) । ७. अलातं वा जालं वा उक्कं वा सुद्धागणि वा २. सम्मुसेज्जा ण आपीलेज्जा ण निप्पीलेज्जा (अचू)।। (अचू)। ८. न घट्टेज्जा न भिदेज्जा न उज्जालेज्जा न ३. सम्मसावेज्जा ण आपीलावेज्जा ण निप्पीला- पज्जालेज्जा (क, ख, ग, घ)। वेज्जा (अचू)। ६. न घडावेज्जा न भिदावेज्जा न उज्जालावेज्जा ४. अण्णपि (अचू)। न पज्जालावेज्जा (क, ख, ग, घ)। ५. सम्मुस्संतं वा आपीलंतं वा निप्पीलंतं वा १०. घटुंतं वा भिदंतं वा उज्जालंतं वा पज्जालंत (अचू)। वा (क, ख, ग, घ)। ६. ४ (अचू)। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ चउत्थं अज्झयणं (छज्जीवणिया) वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–से सिएण वा विहुयणेण' वा तालियंटेण' वा पत्तेण वा' साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्थेण वा चेलेण चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा अप्पणो वा' काय बाहिरं वा वि' पुग्गलं, न फुमेज्जा न वीएज्जा अन्नं न फुमावेज्जा न वीयावेज्जा अन्नं फुमंतं वा वीयंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। २२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा-से बीएसु वा बीयपइट्ठिएसु' वा रूढेसु वा रूढपइट्ठिएसु वा जाएसु वा जायपइट्ठिएसु वा हरिएसु वा हरियपइट्ठिएसु वा छिन्नेसु वा छिन्नपइट्ठिएसु वा सच्चित्तकोलपडिनिस्सिएसु वा, न गच्छेज्जा न चिट्ठज्जा न निसीएज्जा न तुयट्टेज्जा अन्नं न गच्छावेज्जा न चिट्ठावेज्जा न निसीयावेज्जा न तुयट्टावेज्जा अन्नं गच्छंतं वा चिट्ठतं वा निसीयंतं वा तुयतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरि हामि अप्पाणं वोसिरामि। २३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा-से कीडं वा पयंगं वा कुथु वा पिवीलियं वा हत्थंसि वा पायंसि वा 'बाहुंसि वा ऊरुसि वा 'उदरंसि वा सीसंसि वा वत्थंसि वा पडिग्गहंसि वा' रयहरणंसि वा गोच्छगंसि वा उंडगंसि वा दंडगंसि वा पीढगंसि वा फलगंसि वा सेज्जंसि वा संथारगंसि वा अन्नयरंसि वा 'तहप्पगारे उवगरणजाए तओ संजयामेव पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय एगंतमवणेज्जा'२ नो णं संघायमावज्जेज्जा। १. अजयं चरमाणो" उ" पाणभ्याइं५ हिंसई" । बंधई" पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ १. विहुवर्णण (अचू)। उदरंसि वा पातंसि वा रयहरणंसि वा गोच्छ२. तालवेंटेण (अचू)। गंसि वा डंडगंसि वा कंबलंसि वा उंदुयंसि वा ३. वा पत्तभंगेण वा (क, ख, ग, घ)। पीढगंसि वा (अचू)। ४.५. ४ (अचू)। १२. तं संजतामेव एकते अवणेज्जा (अचू)। ६. बीयपइ8 सु (क, ख, ग, घ)। १३. ° माणस्स (अचू) सर्वत्र । ७. वा सच्चित्तेसु वा (क, ख, ग, घ)। १४. य (ख, ग) षष्ठ श्लोकपर्यन्तं एवमेव; ८. अहवा हत्थे सिता (अचू) । x(अचू) सर्वत्र । ६. वा कंबलंसि वा पायपुंछणंसि (क, ख, ग)। १५. ° भूताणि (अचू) सर्वत्र । १०. उदरंसि वा वत्थंसि वा रयहरणंसि वा (हाटी)। १६. हिंसतो (अचू, जिचू) षष्ठ श्लोकपर्यन्तम् । ११. बाहंसि वा उरंसि वा सीसि वा ऊरु सि वा १७. बज्झइ (अच) नवम श्लोकपर्यन्तम् । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ दसवेवालियं २. अजयं चिट्ठमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई । ___ बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ।। ३. अजयं आसमाणो उ पाणभूयाइं हिंसई । ___बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ ४. अजयं सयमाणो' उ पाणभूयाइं हिंसई । ___ बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ ५. अजयं भुजमाणो उ पाणभ्याइं हिंसई । बंधई पाक्यं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ ६. अजयं भासमाणो उ पाणभूयाई हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ ७. कहं चरे ? कहं चिट्ठ ? कहमासे ? कहं सए' ? __कहं भुंजतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ?।। ८. 'जयं चरे जयं चिट्ठ" जयमासे जयं सए । जयं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई। ६. सव्वभूयप्पभूयस्स सम्म भयाइ पासओ । पिहियासवस्स दंतस्स पावं कम्मं न बंधई ॥ १०. पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अण्णाणी कि काही? किं वा नाहिइ छेय पावगं ? ११. सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणई सोच्चा जं छेयं तं समायरे ॥ १२. जो जीवे वि न याणाइ' अजीवे वि न याणई । जीवाजीवे अयाणंतो कह सो नाहिइ संजमं ? १३. जो जीवे वि वियाणाइ" अजीवे वि वियाणई । जीवाजीवे वियाणंतो सो हु नाहिइ संजमं ।। १४. जया 'जीवे अजीवे" य दो वि एए वियाणई । तया गई बहुविहं सव्वजीवाण जाणई ॥ १५. जया गई बहुविहं सव्वजीवाण जाणई । तया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च" जाणई ॥ १. सुतमाणस्स (अचू, जिचू)। ६. करिस्सति (अचू); काहिति (जिचू) । २. सुवे (अचू) अग्रेपि । ७. याणति (अचू)। ३. जतं गच्छे जतं चिट्ठ (सू० चू०, पृ. १७०)। ८. अज्जीवे (अचू)। ४. भूताणि (अचू)। ____६. कह (अचू)। ५. पढमं नाणं ततो दया, एवं चिट्ठति सव्वसंजते । १०. विताणति (अचू)। अण्णाणी कि काहिति? किं वा णाहिति छेय- ११. जीवमजीवे (क, ख, ग, घ)। पावगं ? (सू० चू०, पृ० १५६) १२. पि (अचू)। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (छज्जीवणिया) १६. जया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणई । तया निविदए' भोए जे दिव्वे जे य माणसे ॥ १७. जया निविदए भोए जे दिव्वे जे य माणुसे । तया चयइ' संजोगं सब्भितरबाहिरं ॥ १८. जया चयइ संजोगं सब्भितरबाहिरं । तया मुंडे भवित्ताणं पव्वइए' अणगारियं ॥ १६. जया मुंडे भवित्ताणं पव्वइए अणगारियं । तया संवरमुक्किट्ठ धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ २०. जया संवरमुक्किट्ठ धम्मं फासे अणुत्तरं । तया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं ॥ २१. जया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं । तया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई । २२. जया सव्वत्तगं नाणं दसणं चाभिगच्छई। तया लोगमलोगं च 'जिणो जाणइ केवली" ॥ २३. जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली । तया जोगे निरु भित्ता सेलेसिं पडिवज्जई ॥ २४. जया जोगे निरु भित्ता सेलेसि पडिवज्जई । तया कम्म खवित्ताणं सिद्धि गच्छइ नीरओ॥ २५. जया कम्म खवित्ताणं सिद्धि गच्छइ नीरओ । तया लोग मत्थयत्थो सिद्धो हवइ सासओ ।। २६. सुहसायगस्स' समणस्स सायाउलगस्स निगामसाइस्स। : उच्छोलणापहोइस्स दुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥ २७. तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स । परीसहे. जिणंतस्स सुलहा" सुग्गइ तारिसगस्स ॥ (पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाई । जेसि पिओ तवो संजमो य खंतीय बंभचेरं च ॥") १. णिविंदति (अचू)। २. जहति (अचू, जिचू)। ३. पव्वए (ग); पव्वाति (अचू); प्रव्रजति (हाटी)। ४. फासइ (घ); पासे (अचूपा)। ५. सव्वत्थगं (जिचू)। ६. दो वि एते वियाणइ (जिचू) । ७. सुहसीलगस्स (अचू); सुहसायगस्स (अचूपा)। ८. साताकुलगस्स (अचू)। ६. निकाम० (अचू); ° सायस्स (जिचू) । १०. सुलभिता (अचू)। ११. ४ (अचू, जिचू, हाटी)। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं २८. इच्चेयं छज्जीवणियं सम्मट्टिी सया जए । दुलह' लभित्तु सामण्णं कम्मुणा न विराहेज्जासि' । -त्ति बेमि ॥ १. दुल्लभं (अचूपा) २. विराहेज्जा (अचू); विराहेज्जासि (अचूपा) । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं पिंडेसणा : पढमोद्देसो १. संपत्ते भिक्खकालम्मि' असंभंतो अमुच्छिओ। ___इमेण कमजोगेण भत्तपाणं गवेसए ।। २. से गामे वा नगरे वा गोयरग्गगओ मुणी । चरे मंदमणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण' चेयसा ।। ३. पुरओ' जुगमायाए पेहमाणो महिं चरे । वज्जंतो' बीयहरियाई पाणे य दगमट्टियं ।। ४. ओवायं विसमं खाणु विज्जलं परिवज्जए । ___ संकमेण न गच्छेज्जा विज्जमाणे परक्कमे ॥ ५. पवडते व से तत्थ पक्खलंते' व संजए । हिंसेज्ज पाणभूयाई' तसे अदुव थावरे ॥ ६. तम्हा तेण न गच्छेज्जा संजए सुसमाहिए । सह अन्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥ ७. इंगालं छारियं रासिं तुसरासिं च गोमयं । 'ससरक्खेहिं पाएहिं" संजओ तं 'न अक्कमे ॥ १. भिक्खु (क, ग)। चलं कट्ठ सिलं वा वि, इट्टालि वा वि संकमो।। २. अवखित्तेण (अचू); अविक्खित्तेण (ग)। ण तेण भिक्खू गच्छेज्जा, दिट्ठो तत्थ असंजमो । ३. सव्वतो (अचूपा); सव्वत्तो (जिचूपा)। स्वीकृत वाचनायामयं श्लोक : ६५, ६६ ४. °मादाय (अचूपा)। श्लोकयोराद्यस्य आद्यस्य चरणद्वयस्य ५. वज्जितो (अचू)। योगेन किञ्चित् परिवर्तनयुक्तो निष्पन्नो ६. पक्खुलते (अचू)। भवति । अगस्त्यसिंहस्थविरेण भिन्नवाचनाया ७. भूते य (अचू, जिचू)। उल्लेखः कृतोस्ति-अयं केसिंचि सिलोगो ८. अस्य श्लोकस्यानन्तरं अगस्त्यचूणों निम्न- उरि भणिहिति । श्लोको विद्यते ६. ससरक्खेण पाएण (अचू)। १०. नऽइक्कमे (क, ख, ग, घ)। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेवालियं ८. न चरेज्ज वासे वासंते महियाए व पढ़तीए । महावाए व वायंते तिरिच्छसंपाइमेसु वा ॥ ६. न चरेज्ज वेससामंते बंभचेरवसाणुए । बंभयारिस्स दंतस्स होज्जा तत्थ विसोत्तिया ।। १०. अणायणे चरंतस्स संसग्गीए' अभिक्खणं । होज्ज वयाणं पीला सामण्णम्मि य संसओ। ११. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । वज्जए वेससामंतं मणी एगंतमस्सिए ।। १२. साणं सूइयं गावि दित्तं गोणं हयं गयं । संडिब्भं कलहं जुद्धं दूरओ परिवज्जए । १३. अणन्नए नावणए अप्पहिटठे अणाउले'। इंदियाणि जहाभागं दमइत्ता मुणी चरे ॥ १४. दवदवस्स न गच्छेज्जा भासमाणो य. गोयरे । हसंतो नाभिगच्छेज्जा 'कुलं उच्चावयं सया ॥ १५. आलोयं थिग्गलं दारं संधिं दगभवणाणि य । चरंतो न विणिज्झाए संकट्ठाणं विवज्जए । १६. रणो गिहवईणं च रहस्सारक्खियाण" य । संकिलेसकरं ठाणं दूरओ परिवज्जए । १७. पडिकुटकुलं न पविसे मामगं" परिवज्जए । अचियत्तकुलं"न पविसे चियत्तं पविसे कुलं ।। १८. साणीपावारपिहियं अप्पणा नावपंगुरे"। कवाडं नो पणोल्लेज्जा 'ओग्गहंसि अजाइया"॥ १६. गोयरग्गपविट्ठो उ वच्चमुत्तं न धारए । __ओगासं“ फासुयं नच्चा अणुण्णविय" वोसिरे ॥ १. बंभचारि' (अचूपा); विसाणुगे (अचू); १०. वि (अचू); व (हाटी)। वसाणए (हाटी)। ११. कुलमुच्चा (अचू)। २. अणाययणे (अचू)। १२. गहवतीणं (अचू)। ३. ग्गीय (जिचू)। १३. °याणि (ख)। ४. एवं (अचू) । १४. मामकं (अचू)। ५. सूर्य (क, ख, ग, घ); सूवियं (अचू, जिचू)। १५. अच्चियत्त (अचू)। ६. संडिभं (हाटी)। १६. ण अवंगुरे (अचू)। ७. मणाविले (अचू)। १७. आगाहं सिम जाइया (अचू)। ८. जहाभावं (जिचू)। १८. ओवासं (अचू)। ६. चरेज्जा (अचू)। १६. अणुण्णाते तु (अचू); अणुण्णवित्तु (जिचू)। Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं बज्झयणं (पिंडेसणा) २०. 'नीयदुवारं तमसं' कोट्टगं परिवज्जए । अचक्खुविसओ जत्थ पाणा दुप्पडिलेहगा। २१. जत्थ पुप्फाइ बीयाई विप्पइण्णाई कोट्ठए । अहुणोवलितं उल्लं दळूणं परिवज्जए॥ २२. एलगं दारगं साणं वच्छग वावि कोट्ठए । उल्लंधिया न पविसे विऊहित्ताण व संजए । २३. असंसत्तं पलोएज्जा नाइदूरावलोयए । उप्फुल्लं न विणिज्झाए नियट्टेज्ज अयंपिरो' । २४. अइभूमि न गच्छेज्जा गोयरग्गगओ मुणी । कुलस्स भूमि जाणित्ता' मियं भूमि परक्कमे ।। २५. तत्थेव पडिलेहेज्जा भूमिभागं वियक्खणो । 'सिणाणस्स य वच्चस्स संलोगं परिवज्जए । २६. दगमट्टियआयाणं बीयाणि हरियाणि य । परिवज्जतो चिट्ठज्जा सविदियसमाहिए। २७. तत्थ से चिट्ठमाणस्स आहरे पाणभोयणं । ___अकप्पियं न इच्छेज्जा' पडिगाहेज्ज कप्पियं ॥ २८. आहरती सिया तत्थ परिसाडेज्ज भोयणं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पड़ तारिसं । २६. सम्मद्दमाणी पाणाणि बीयाणि हरियाणि य । असंजमकरि नच्चा तारिसं" परिवज्जए । ३०. साहट्ट निक्खिवित्ताणं सच्चित्तं घट्टियाण य । तहेव समणटाए उदगं संपणोल्लिया । ३१. आगाहइत्ता" चलइत्ता आहरे पाणभोयणं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ३२. पुरेकम्मेण" हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ १. णीयदुवार तमसं (अचू)। ८. समाहितो (अचू)। २. वच्छतं (अचू) । ६. गिण्हेज्जा (क, ध, हाटी); इच्छेज्ज (अचू)। ३. अयंपुरो (अचू)। १०. °करी (अचू)। ४. गाऊण (अचू)। ११. तारिसिं (हाटी)। ५. आसिणाणस्स (अचू)। १२. घट्टिऊण (अचू); घट्टियाणी (क, ख, ग)। ६. आयाणे (क, ख, ग, घ, अचू) । १३. ओगा (जिचू, हाटी)। ७. बितियाणि (अचू)। १४. पुरेकम्मकतेण (अचू)। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं ३३. एवं उदओल्ले ससिणिद्धे ससरक्खे मट्टिया उसे । हरियाले हिंगुलए मणोसिला अंजणे लोणे ॥ ३४. गेरुय वण्णिय सेडिय सोरट्ठिय पिट्ठ कुक्कुस कए य । उक्कट्ठमसंसठे संसठे चेव बोधव्वे ।। ३५. असंसद्रुण हत्थेण दवीए भायणेण वा । दिज्जमाणं न इच्छेज्जा पच्छाकम्म जहिं भवे ॥ ३६. संसद्रुण हत्थेण दवीए भायणेण वा । दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ।। ३७. दोण्हं तु भुंजमाणाणं एगो तत्थ निमंतए । दिज्जमाणं न इच्छेज्जा छंदं से पडिलेहए ।। ३८. दोण्हं तु भंजमाणाणं दोवि तत्थ निमंतए । दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ।। ३६. 'गव्विणीए उवन्नत्थं विविहं पाणभोयणं । भज्जमाणं' विवज्जेज्जा भत्तसेसं पडिच्छए ।। ४०. सिया' य समणट्ठाए गुग्विणी कालमासिणी । उट्ठिया वा निसीएज्जा निसन्ना वा पुणुट्ठए । १. ३३,३४ एते द्वे अपि सङ्ग्रहगाथे स्तः चूर्णिद्वये प्रतीयन्ते एतेषां श्लोकानां सक्षेपीकरणाय सप्तदशश्लोकाः व्याख्याताः सन्ति ... द्वे सङ्ग्रहगाथे विनिर्मिते । अर्वाचीनादर्शेषु एते १. उदउल्लेण हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा । एव प्रचलिते स्तः । हारिभद्रीयटीकायामपि एते देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पति तारिसं ।। एव व्याख्याते। २. ससिणिद्धेण हत्थेण .... २. गुम्विणीयमुवण्णत्थं (अचू)। ३. ससरक्खेण ३. भुंजमाणं (क, ख, ग, घ)। ४. मट्टियागतेण ४. चूणिद्वयेपि ४०-४३ श्लोकानां स्थाने पट्बर५. ऊसगतेण णात्मकं श्लोकद्वयं विद्यते६. हरितालगतेण सिया य समणढाए, गुम्विणी कालमासिणी। ७. हिंगोलुयगतेण , उद्विता वा णिसीएज्जा, णिसण्णा वा पुणटुए। ८. मणोसिलागतेण , देंतियं पडियाइक्खे ण मे कप्पति तारिसं ॥ ९. अंजणगतेण थणगं पज्जेमाणी, दारगं वा कुमारियं । १०. लोणगतेण तं निक्खिवित्तु रोयंतं, आहरे पाण-भोयणं । ११ गेरुयगतेण देंतियं पडियाइक्खे ण मे कप्पति तारिसं ।। १२. वणियगतेण अगस्त्यसिंहस्थविरेण 'थणगं पज्जेमाणी' .१३. सेडियगतेण अस्य श्लोकस्य व्याख्यायां एवं स्पष्टीकृतम्१४. सोरट्ठियगतेण पूव्वभणितं सुत्तसिलोगद्धं वित्तीये अनुसरि१५. पिट्ठगतेण ज्जति१६. कुक्कुसगतेण देतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पति तारिसं । १७. उक्कुटुगतेण अहवा दिवढसिलोगो। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पिंडेसणा) देतियं ४१. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । बेतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं । ४२. थणगं पिज्जेमाणी दारगं वा कुमारियं ।। तं निक्खिवित्तु रोयंतं आहरे पाणभोयणं । ४३. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं ।। देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं । ४४. जं भवे भत्तपाणं तु कप्पाकप्पम्मि संकियं । पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस ।। ४५. दगवारएण पिहियं नीसाए' पीढएण वा । लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केणई ॥ ४६. तं च उभिदिया देज्जा 'समणट्ठाए व दावए । दंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ४७. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा 'दाणट्ठा पगडं'' इमं ॥ ४८. 'तं भवे" भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४६. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा 'पुण्णट्ठा पगडं" इमं ॥ ५०. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्ख न मे कप्पड तारिसं॥ ५१. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा 'वणिमट्ठा पगडं'' इमं ।। ५२. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५३. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा 'समणट्ठा पगडं" इमं ॥ ५४. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५५. उद्देसियं कीयगडं पूईकम्मं च आहडं । अज्झोयर पामिच्चं मीसजायं च वज्जए॥ १. गिस्साए (जिचू)। २. समणट्ठाए दायगे (अचू)। ३. दाणटप्पगडं (अचू, जिचू)। ४. तारिसं (क, अचू, हाटी); अयं श्लोको जिन- दासचूणों नास्ति व्याख्यातः । ५. पुण्णट्ठपगडं (अचू, जिचू)। ६,८,१०. चूणिद्वयेपि नेते श्लोका व्याख्याताः । ७. वणिमट्ठप्पगडं (अचू, जिचू) । ६. समणटुप्पगडं (अचू, जिचू)। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं ५६. उग्गमं से पुच्छज्जा कस्सट्ठा केण वा कडं ? । सोच्चा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहेज्ज संजए ।। ५७. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । 'पुप्फेसु होज्ज उम्मीसं बीएसु हरिएसु वा ।। ५८. 'तं भवे" भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ५६. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । उदगम्मि होज्ज निक्खित्तं उत्तिंगपणगेसु वा ।। ६०. 'तं भवे५ भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६१. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । तेउम्मि' होज्ज निक्खित्तं तं च संघट्टिया दए॥ ६२. तं भवे भत्तपाण त संजयाण अकप्पियं । बेतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ६३. एवं उस्सक्किया ओसक्किया उज्जालिया पज्जालिया निव्वाविया । उस्सिचिया निस्सि चिया ओवत्तिया ओयारिया दए । १. से य (जिचू)। असणं पाणगं वा वि, खादिम सादिम तहा। २. कयं (अचू)। अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं, तं च ओसक्किया ३. पुप्फेहिं होज्ज उम्मिस्सं बीएहिं हरिएहिं वा दए । (अचू)। तं च उज्जालिया दए ४. तारिसं (क, अचू); अयं श्लोको जिनदासचूणों तं च विज्झविया , नास्ति । तं च उस्सिचिया , ५. तारिसं (क, अचू); जिनदासचूणौं 'दंतियं तं च उक्कढ़िया पडियाइक्ले न मे कप्पइ तारिसं' चरणद्वयमेव तं च निस्सिचिया विद्यते। .... तं च ओवत्तिया , ६. अगणिम्मि (अचू)। ...... तं च ओतारिया ७. अगस्त्यचूणों एष श्लोको नास्ति व्याख्यातः । जिनदासचूर्णे: पाठे सप्तपदान्येव दृश्यन्ते --- ८. अगस्त्यचूणों उस्सक्कियादिपदानां स्वतन्त्राः १. उस्सिक्किया श्लोका: वर्तन्ते, जिनदासचूर्णावपि । हारि- २. उज्जालिया भद्रीयटीकायां अर्वाचीनादर्शेषु च एकव ३. णिव्वाविया सङ्ग्रहगाथा उपलभ्यते। अगस्त्यचूर्णेः पाठः ४. उस्सिचिया एवमस्ति ५. निस्सिचिया असणं पाणगं वावि, खादिम सादिमं तहा। ६. उव्वत्तिया अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं, तं च उस्सिक्किया ७. ओयारिया। दए । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पिंडेसणा) ६४. तं भवे भत्तपाण तू संजयाण अकप्पियं । देंतिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६५. होज्ज' कळं मिलं वा वि इट्टालं वा वि एगया । ठवियं संकमट्ठाए तं च होज्ज चलाचलं ।। ६६. न तेण भिक्खू गच्छेज्जा दिट्ठो तत्थ असंजमो । __गंभीरं झुसिरं चेव सव्वि दियसमाहिए । ६७. निस्सेणि फलगं पीढं उस्सवित्ताणमारुहे । मंचं कीलं च पासायं समणद्राए व दावए । ६८. दुरूहमाणी पवडेज्जा हत्थं पायं व लूसए । पुढविजीवे' वि हिसेज्जा जेय तन्नि स्सिया जगा । ६६. एयारिसे महादोसे जाणिऊण महेसिणो । तम्हा' मालोहडं भिक्खं न पडिगेण्हति संजया ॥ ७०. कंदं मूलं पलंबं वा आमं छिन्नं व सन्निरं । तुंबागं सिंगबेरं च आमगं परिवज्जए । ७१. तहेव सत्तुचुण्णाई कोल चुण्णाइं आवणे । सक्कुलिं फाणियं पूयं अन्नं वा वि तहाविहं ।। ७२. विक्कायमाणं पसढं 'रएण परिफासियं" । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ७३. बहु-अट्टियं पुग्गल अणिमिसं वा बहु-कंटयं । अत्थियं तिदुयं बिल्लं उच्छुखंड व सिंबलिं ।। ७४. अप्पे सिया भोयणजाए बहु-उज्झिय-धम्मिए । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।। ७५. तहेवुच्चावयं पाणं अदुवा वारघोयणं । संसेइमं चाउलोदगं अहुणाधोय' विवज्जए । १. ६५-६६ श्लोकानां स्थाने अगस्त्यचूणों त्रयः पाठभेदटिप्पणम् । श्लोका विद्यन्ते, तेपि च पाठभेदान्विता सन्ति, २. पुढविक्कायं (जिचू) । यथा ३. हंदि (हाटीपा)। गंभीरं झुसिरं चेव, सविदियसमाहिते।। व, सविदियसमाहिते। ४. बुधं (अचू)। णिस्सेणी फलगं पीढं, उस्सवेत्ताण आरुहे ।। ५. रयेण परिघासियं (अचू) । मंचं खीलं च पासायं, समणट्ठाए दायगे । ६. अच्छियं (अचू) । दुरुहमाणे पवडेज्जा, हत्थं पायं विलूसए ॥ ७. च (क, ख, घ, अचू) । पढविक्कायं विहिंसेज्जा, जे वा तण्णिस्सिया जगा । ८. वालधोवणं (अच) । तम्हा मालोहडं भिक्खं, ण पडिग्गाहेज्ज संजते ॥ ९. अभिणवधोतं (अच) । द्रष्टव्यं अस्यैव अध्ययनस्य षष्ठश्लोकस्य , Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ वा । ७६. जं जाणेज्ज चिराघोयं मईए दंसणेण ' 'पडिपुच्छिऊण सोच्चा वा " जं च निस्संकियं भवे ॥ ७७. अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहेज्ज संजए । अह संकियं भवेज्जा आसाइत्ताण रोयए ॥ दलाहि मे । हत्थगम्मि नालं तण्हं नालं तहं विणित्तए ' ॥ विणित्तए । न मे कप्पइ तारिसं ॥ विमणेण पडिच्छियं । नो वि अन्नस्स दावए || ८१. एगंतमवक्कमित्ता 'अचित्तं पडिलेहिया" । जयं परिट्ठवेज्जा परिट्ठप्प पडिक्कमे ॥ ८२. सिया य गोयरग्गगओ इच्छेज्जा परिभोत्तुयं । कोट्ठगं भित्तिमूलं वा पडिलेहित्ताण फासूयं ॥ ८३. अणुणवत् मेहावी परिच्छन्नम्मि संवडे | हत्थगं संपमज्जित्ता तत्थ भुंजेज्ज संजए ॥ अट्ठियं कंटओ सिया । अन्नं वा वि तहाविहं ॥ आसएण न छड्डए । एतमवक्कमे अचित्तं पहिया । परिट्टप्प पक्किमे ॥ सेज्जमागम्म भोत्तुयं । उंडुयं" पडिलेहिया || सगासे" गुरुणो भुणी । आगओ य पडिक्कमे ।। अइयारं" जहक्कमं । भत्तपाणे व " संजए || 11 पूरं ७८. थोवमासायण ए मा मे अच्चंबिलं ७६. तं च अच्चबिलं पूरं देतियं पडियाइक्खे ८०. तं च होज्ज अकामेण तं अप्पणा' न पिबे ८४. तत्थ से भुंजमाणस्स तण - कटु सक्करं 'वा वि" ८५. तं उक्खिवित्तु न निक्खिवे हत्थे तं गहेऊणं ८६. एगंतमवक्कमित्ता जयं " परिवेज्जा ८७. सिया य भिक्खू इच्छेज्जा सपिंडपायमागम्म पविसित्ता ८८. विणण इरिया व हियमायाय" ८. आभोएत्ताण गमणागमणे १. दरिसणेण (जिचू) । २. पडिपुच्छित्ताण सोच्चाण ( अचू, जिचू) । ३. अज्जीवं (अच्) । ४. विर्णित ( अ ) । ५. अप्पा वि ( अ ) । ६. अच्चित्ते बहुफासुए (जिचू) । ७. पडि° (हाटी) । ८. भोतयं ( अ, जिचू) । नीसेसं चेव दसवे आलिय ६. चापि (हाटी) । १०. जयणाए ( अ ) । ११. उण्णयं (अचू) । १२. सगासं (अचू) । १३. रिया (अचू ); 'मायाए ( ख ) । १४. अइयारं च (क, ग, घ, हाटी) । १५. य (क, ख, ग, घ, हाटी) । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पिंडेसणा) चेयसा । अणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण गुरुसग से जं जहा गहियं भवे ॥ ६१. न सम्ममालोइयं होज्जा पुव्वि पच्छा व जं कडं । पुणो पडिक्कमे तस्स वोसट्ठो चितए इमं ॥ ६२. अहो! 'जिहि असावज्जा" वित्ती साहूण मोक्खाण हे उस्स साहु देसिया | धारणा ॥ करेत्ता जिणसंथवं । वीसमेज्ज' खणं मुणी ॥ 'हियमट्ठ लाभमट्टिओ" । साहू होज्जामि तारिओ || निमंतेज्ज तेहि सद्धि तु तओ भुंजेज्ज ६०. उज्जुपण्णो आलोए' ६३. नमोक्कारेण पारेता सज्झायं पट्टवेत्ताणं ६४. वीसमंतो' इमं चिते इ' मे अणुग्गहं कुज्जा ६५. साहवो तो चियत्तेणं जइ तत्थ केइ' इच्छेज्जा ६६. अह कोइ' न इच्छेज्जा आलोए' भायणे साहू जयं ६७. तित्तगं व कडुयं व कसायं अंबिलं व" महुरं लवणं वा । एय लद्धमन्नट्ठ" - उत्तं महु-घयं व भुजेज्ज संजए ॥ सूइयं " वा असूइयं । मंथु - कुम्मास भोयणं ॥ ६६. उप्पण्णं नाइहीलेज्जा अप्पं पि" बहु फासूयं । मुहालद्ध मुहाजीवी भुंजेज्जा दोसवज्जियं ॥ मुहाजीवी वि दुल्लहा । दो वि गच्छति सोग्गइं ॥ - ति बेमि ॥ ६८. अरसं विरसं वा वि उल्लं वा जइ वा सुक्कं १००. दुल्लहा उ" मुहादाई मुहादा मुहाजीवी १. आलोएज्ज ( अचू ) । २. जिणेहऽसावज्जा (जिचू) । ३. विस्समेज्जा (अचू ) । ४. विस्समंतो ( अचू ) । ५. हियमत्थं लाभमत्थिओ (अचू ) । ६. जदि (अचू ) । ७. कोइ (जिचू ) । ८. केति (अचू ) । जहक्क मं । भुंजए ॥ एक्कओ । अपरिसायं" ।। ९. आलोग (अचू, जिचू) । १०. साडियं (क, ख, ग, घ, जिचू ) । ११. x ( ग, घ ) । १२. लद्ध अण्णg ( अ ) । १३. सूचितं (अचू, जिचू) । १४. वा (क, ख, ग, घ, हाटी) । १५. हु (अ) । ४६ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० १. मायाइ ( ख ) ; ( अनूपा ) । २. उज्झए (हाटी) । ३. य (क, ख, ग, अचू) । ४. ट्ठे (अ) । ५. 'वृत्तेण ( अचू ); पुव्वभणिएणं (जिचू ) । ६. कालेणेव (अचू) । बीओ उद्देस १०१. डिग्ग संजए । अयावयट्ठा १०३. तओ संलिहित्ताणं लेव-मायाए ' दुगंधं वा सुगंधं वा सव्वं भुंजे न छड्डए ॥१॥ १०२. सेज्जा निसीहियाए समावन्नो व' गोयरे । भोच्चाणं जइ तेणं न संथरे ॥ २ ॥ कारणमुपपन्ने भत्तपाणं वे । विहिणा 'पुव्व - उत्तेण " इमेणं उत्तरेण य ॥३॥ १०४. कालेण निक्खमे भिक्खु 'कालेण य" पडिक्कमे । अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे ॥ ४ ॥ १०५. अकाले चरसि भिक्खू' कालं न पडिलेहसि । अप्पाणं च किलामेसि सन्निवेसं च गरिहसि ॥ ५ ॥ १०६. सइ काले चरे" भिक्खू कुज्जा पुरिसकारिय" । अलाभो त्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियास || ६ || १०७. तहेवुच्चावया पाणा भत्तट्ठाए त-उज्जयं न गच्छेज्जा जयमेव परक्कमे" ॥७॥ १०८. गोयरग्ग-पविट्ठो उ न निसीएज्ज" कत्थई । चिट्ठित्ताण व संजए ॥ ८ ॥ कवाडं वा वि संजए । गोयरग्गगओ मुणी ॥६॥ किविणं वा वणीमगं । पाणट्ठाए व संजए ॥१०॥ न चिट्ठे चक्खु - गोयरे । तत्थ चिट्ठेज्ज संजए ॥ ११ ॥ समागया । कहं च" न पबंधेज्जा १०६. अग्गनं फलिहं दारं अवलंबिया न चिट्ठेज्जा ११०. समणं" माहणं वा वि उवसंकमंत भत्तट्ठा १११. तं अइक्कमित्तु न पविसे एतमवक्कमित्ता मायाय ( ग ); मादाय ७. चरसी (जिचू) । ८. भिक्खो ( अ ) । ६. गरहसि ( अचू ) । १०. चरं (अपा) । ११. गार ( अ ) । १२. तो उज्जुयं ( अचू ) । १३. पडिक्कमे ( अचू ) । १४. य ( ग ) । १५. णिसिएज्ज ( अचू ) । दसवेआलियं १६. वा (अचू । १७. ११०., १११ श्लोकयोः स्थाने चूर्णिद्वये एक एव श्लोको विद्यते - समणं माहणं वावि, किवणं वा वणीमगं । तमतिक्कम ण पविसे, ण चिट्ठे चक्खुफासओ || Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पिडेसणा) ११२. वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा । अप्पत्तियं सिया होज्जा लहत्तं' पवयणस्स वा ॥१२॥ ११३. पडिसेहिए व दिन्ने' वा तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंक मेज्ज भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ॥१३॥ ११४. उप्पलं' पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फ सच्चितं तं च संलुंचिया दए ॥१४॥ ११५. 'तं भवे" भत्तपाणं तु संजयाण अप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥१५॥ ११६. उप्पलं' पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च सम्मद्दिया दए ॥१६॥ ११७. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥१७।। ११८. सालुयं वा विरालियं कुमुदुप्पलनालियं' । मुणालियं सासवनालियं 'उच्छुखंडं अनिव्वुडं" ॥१८।। ११६ 'तरुणगं वा पवालं रुक्खस्स तणगस्स वा । अम्नस्स वा वि हरियस्स" आमगं परिवज्जए॥१६॥ १२०. तरुणियं व छिवाडि 'आमियं भज्जियं सई"। देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥२०॥ १. लहुयत्तं (घ)। प्रयोगा उवलबभंति । यथा२. दिण्णं (अचू)। दश धर्म न जानंति धृतराष्ट्र ! निबोधनात् । ३. जिनदासचूणौं अयं श्लोकः षट्चरणात्मको मत्तः प्रमत्त उन्मत्तो, भ्रान्तः क्रुद्धः पिपासितः । लभ्यते स्वरमाणश्च भीरुश्च, चोरः कामी च ते दशः ॥१॥ उप्पलं पउमं वावि, कुमुदं वा मगदंतियं । ४. तारिसं (हाटी)। अण्णं वा पुप्फ सचित्तं तं च संलुचियादए । ५. चूणिद्वयेपि असौ श्लोकः षट्चरणात्मको दंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पति तारिसं । विद्यतेअगस्त्यसिंहस्थविरेण असौ पाठान्तररूपेण उप्पलं पउमं वा वि, कुमुदं वा मगदंतियं । उद्धृत : अण्णं वा पुष्फ सच्चित्तं तं च सम्मद्दिया दए । एतस्स सिलोगस्स प्रागेणं पच्छद्धं पढंति देंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पति तारिसं ।। देंतियं पडियाइवखे । तं कि ? संजताणं अकप्पियं पुणो ण मे कप्पति एरिसमिति ६. कुमुयं उप्प” (क, ख, ग, घ) । पुणरुत्तं, तप्परिहरणत्थं पच्छिमद्धेणेव समाण- ७. उच्छुगंडमणि (अचू) । संबंधमतीताणंत रसिलोगसंबंधतं समाणेति, ८. तहेव तरुणगं पवालं, रुक्खस्स वा तणस्स वा। तहा य दिवड्ढसिलोगो भवति, लोगे य मुग्गा- हरितस्स वा वि अण्णस्स (अचू)। यित्थपडिसमाणणेण दिवड्ढसिलोइया ६. आमिगं सतिभज्जितं (अचू, जिचू)। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं १२१. तहा कोलमणुस्सिन्न' वेलुयं कासवनालियं । तिलपप्पडगं नीम' आमगं परिवज्जए ।।२१।। १२२. तहेव चाउलं पिर्टी वियर्ड वा तत्तनिव्वुडं । तिल पिट्ठ पूइ पिन्नागं आमगं परिवज्जए ।।२२।। १२३. कविठं मालिंगं च मूलगं मूलगत्तियं । 'आमं असत्थपरिणयं" मणसा वि न पत्थए ।।२३।। १२४. तहेव फलमणि बीयमणि जाणिया । बिहेलगं पियालं च आमगं परिवज्जए ॥२४॥ १२५ समयाणं चरे भिक्खू कुलं उच्चावयं सया । नीयं कूलमइक्कम्म ऊसद" नाभिधारए ॥२५॥ १२६. अदीणो वित्तिमेसेज्जा न विसीएज्ज पंडिए । अमच्छिओ भोयणम्मि मायण' एसणारए ॥२६॥ १२७. बहु परघरे अत्थि विविहं खाइमसाइमं । न तत्थ पंडिओ कूप्पे इच्छा देज्ज परो न वा ॥२७॥ १२८. सयणासण वत्थं वा भत्तपाणं व संजए । अदेंतस्स न कुप्पेज्जा पच्चक्खे वि य दीसओ।।२।। १२६. इत्थियं पुरिसं वा वि डहरं वा महल्लगं । वंदमाणो' न जाएज्जा नो य णं फरुसं वए ॥२६॥ १३०. जे न वंदे न से कुप्पे वंदिओ न समुक्कसे । एवमन्नेसमाणस्स सामण्णमणुचिट्ठई ॥३०॥ १३१. सिया एगइओ लधु लोभेण विणिगृहई । मा मेयं दाइयं संतं द→णं सयमायए' ॥३१॥ १३२. अत्तट्ठगुरुओ लुद्धो बहु पावं पकुव्वई। दुत्तोसओ य 'से होइ२ निव्वाणं च न गच्छई ॥३२॥ १३३. सिया एगइओ लधु विविहं पाणभोयणं । भद्दगं भद्दगं भोच्चा विवण्णं विरसमाहरे ॥३३॥ १३४. जाणंतु ता इमे" समणा आययट्ठी अयं मुणी । ___ संतुट्ठो सेवई पंतं लूहवित्ती सुतोसओ ॥३४॥ १. अस्विन्नं (हाटी)। वंदमाणो (अचूपा, जिचूपा, हाटीपा) । २. नीवं (अचू)। ८. लद्धं (ख)। ३. मूलकत्तियं (अचू); मूलवत्तियं (घ, हाटी)। ६. °माइए (अचू, जिचू) । ४. आमगमसत्थ (अचू, जिचू)। १०. अत्तट्ठा (जिचू)। ५. उस्सडं (अचू); उस्सियं (अचूपा)। ११.लम्नति (अचू)। ६. मातण्णो (अचू)। १२. मति (अचू)। ७. वंदमाणं (क, ख, ग, घ, अचू, जिचू, हाटी); १३. मए (अचू) । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पिडेसणा) १३५. पूयणट्ठी' जसोकामी' माणसम्माणकामए । बहु पसवई पावं मायासल्लं 'च कुव्वई" ॥३५।। १३६. सुरं वा मेरगं वा वि अन्नं वा मज्जगं रसं । ससक्ख न पिबे भिक्खू जसं सारक्खमप्पणो ॥३६॥ १३७. पिया एगइओ तेणो न मे कोइ वियाणई। _ 'तस्स पस्सह दोसाइं नियडि च सुणेह मे ॥३७ । १३८. वड्ढई सोंडिया तस्स मायमोसं च भिक्खुणो । अयसो य अनिव्वाण' सययं च असाहुया ॥३८॥ १३६. निच्चुग्विग्गो जहा तेणो अत्तकम्मेहि दुम्मई । तारिसो मरणते वि नाराहेइ संवरं ॥३६॥ १४०. आयरिए नाराहेइ समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहति जेण जाणंति तारिसं ॥४०॥ १४१. एवं तु अगुणप्पेही गणाणं च विवज्जओ । तारिसो मरणंते वि नाराहेइ संवरं ॥४१।। १४२. तवं कुव्वइ मेहावी 'पणीयं वज्जए रसं । मज्जप्पमायविरओ तवस्सी अइ उक्कसो ॥४२॥ १४३. तस्स पस्सह कल्लाणं अणेगसाहुपूइयं । विउलं अत्थसंजुत्तं कित्तइस्सं सुणेह मे ।।४३।। १४४. एवं तु गुणप्पेहो' "अगुणाणं च विवज्जओ तारिसो मरणंते वि आराहेइ संवरं ॥४४॥ १४५. आयरिए आराहेइ समण यावि तारिसो । गिहत्था वि णं पूयंति जेण जाणंति तारिसं ॥४५।। १४६. तवतेणे वयतेणे" रूवतेणे य जे नरे । आयारभावतेणे य कुव्वइ देवकिब्बिस ॥४६॥ १४७. लद्धण वि देवत्तं उववन्नो देवकिब्बिसे । तत्था वि से न याणाइ कि मे किच्चा इम फलं? ॥४७॥ १. पूयणट्ठा (क, ख, ग, घ, हाटी)। ६. चूणिद्वयेपि एष श्लोको नास्ति व्याख्यातः । २. °गामी (अचू) । १०. पणोए वज्जए रसे (अचू, जिचू) । ३. पकुव्वइ (ख); विकुम्वइ (जिचू)। ११. पूजियं (जिचू)। ४. ससक्खो (अचू)। १२. स गुण (हाटी); अगुण (जिचूपा) । ५. तस्स सुणसु (जिचू)। १३. अगुणाण विवज्जए (अचू); अगुणाऽण ६. अणेव्वाणी (अनू)। विवज्जए (क, अचूपा, जिचूपा) । ७. अप्पक० (अचू)। १४. वतितेणे (अचू)। ८. ण आराहेति (अचू)। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ १४८. तत्तो वि से चइत्ताणं नरयं तिरिक्खजोणि वा १. महिति (अ) 1 २. जात ( अ ) | ३. माता (अचू) । एलमूययं । लब्भिही' बोही जत्थ सुदुल्लहा ||४८ || १४६. एयं च दोसं दट्ठूणं नायपुत्तेण भासियं । अणुमायं पि मेहावी मायामोस विवज्जए ॥४६॥ १५० सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहि संजयाण बुद्धाण सगासे । तत्थ भिक्खु सुप्पणिहिंदिए । तिव्वलज्ज गुणवं विहरेज्जासि ॥ ५० ॥ त्ति बेमि ॥ ४. सोधी ( अ ) | ५. हितिदिए ( अ ) । दसवेमालिय Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठमज्झयणं महायारकहा १. नाणदंसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं । गणिमागमसंपन्न उज्जाणम्मि समोसढं। २. रायाणो रायमच्चा' य माहणा अदुव खत्तिया । पुच्छंति निहुअप्पाणो 'कहं भे२ आयारगोयरो? ३. तेसि सो निहुओ दंतो सव्वभूयसुहावहो । सिक्खाए सुसमाउत्तो आइक्खइ वियक्खणो ।। ४. हंदि' धम्मत्थकामाणं निग्गंथाणं सुणेह मे । ___ आयारगोयरं भीमं सयलं दुरहिट्टियं ॥ ५. 'नन्नत्थ एरिसं' वुत्तं जं लोए परमदुच्चरं । विउलट्ठाणभाइस्स' न भूयं न भविस्सई ।। ६. सखुड्डगवियत्ताणं वाहियाणं च जे गुणा । ____ अखंडफुडिया" कायव्वा तं सुणेह जहा तहा ।। ७. दस अट्ठ य ठाणाइं जाइं बालोऽवरज्झई । तत्थ अन्नयरे ठाणे निग्गंथत्ताओ भस्सई ।। [वयछक्कं कायछक्कं अकप्पो गिहिभायणं । पलियंक निसेज्जा य सिणाणं सोहवज्जणं ॥] ८. तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं । अहिंसा निउणं दिट्ठा सव्वभूएसु. संजमो॥ १. °मत्ता (अचू)। ८. कोष्ठकान्तर्वत्तिश्लोको नियुक्तिगतो वर्तते । २. कधं तुभं (अचू)। चूणिद्वये हारिभद्रीयटीकायां च असो नियुक्ति३. हंदा (अचूपा)। श्लोकत्वेनैव व्याख्यातः, आदर्शषु असौ मूल४. हिट्ठयं (अचू)। पाठरूपेण प्रतिष्ठितोऽभूत् । ५ ण णत्थेरिसं (अवू)। ६. निउणा (क,ख,ग,घ, हाटी); निपुणा (अचू) । ६. भाविस्स (अचू)। १० सव्वजीवेसु (अचू, जिचू) । ७. °फुल्ला (अचू); °फुडा (जिचू) । ५५ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ६. जावंति लोए पाणा ते जाणमजाणं वा १०. 'सव्वे जीवा'' वि इच्छंति तम्हा पाणवहं घोरं ११. अप्पणट्ठा परट्ठा वा हिंसगं न मुसं बूया १२. मुसावाओ य लोगम्मि अविस्सासो य भूयाणं १३. चित्तमंतमवित्तं तसा अदुव थावरा । न हणे णो वि घायए ।। जो विउ न मरिज्जिउं । निग्गंथा वज्जयंति णं ॥ कोहा वा जइ वा भया । नो वि अन्नं वयावए || सव्वसाहूहि गरहिओ । तम्हा मोसं विवज्जए || अप्प वा जइ वा बहु । पि ओग्गहंसि अजाइया || नो वि गेण्हावए परं । 'नाणुजाणंति संजया" ॥ वा दुरहिट्टियं । 11 दंतसोहणमेत्तं १४. तं अप्पणा न गेहंति अन्नं वा गेण्हमाणं पि १५. अबंभचरियं घोरं पमायं नायरंति मुणी लोए भेयाययणवज्जिणो १६. मूलमेयमहम्मस्स महादोससस्यं । निग्गंथा वज्जयंति णं ।। तेल्लं सप्पि च फाणियं । न ते सन्निहिमिच्छति नायपुत्तवओरया 11 अन्नयरामवि । पव्वइए न से ॥ पायपुंछणं । १६. जं. पि वत्थं व पायं वा कंबलं : तं पि संजमलज्जट्ठा धारंति परिहरति य ॥ तम्हा मेहुणसंगिंग १७. विडमुब्भेइमं लोणं मन्ने जे सिया सन्निहोकामे गिही १८. 'लोभस्सेस' अणुफापो" १. व (क, ख, ग ) । २. सव्वजीवा (ख, अच्) । ३. पाणिवह (क, ग, घ ) । ताइणा । २०. न सो परिग्गहो वृत्तो नायपुत्तेण मुच्छा परिंग्गहो वृत्तो इइ वृत्तं महेसिणा || ४. नाणुजाज्ज संजते ( अबू ) | ५. सन्निहिं कुव्वंति (हाटी) । ६. व्यवहारभाष्यवृत्ती ( ५ / ११४) असौ श्लोको भिन्नवाचना गतो दृश्यते, व्यवहारभाष्यवृत्तिकृता लिखितमिदम् - दसवेमलिय यत् दशवेकालिके उक्तमशनं पानं खादिमं स्वादिमं तथा संचयं न कुर्यात् तथा च तद् ग्रन्थ:-- असणं पाणगं चैव, खाइमं साइमं तहा । जे भिक्खु सन्निहिं कुज्जा, गिही पव्वइए न से ॥ ७. लोभस्सेसणुफासे (क, ख, घ); लोभस्सेसणफासे (ग); लोभस्सेसणुफासो (जिचू ) । ८. निधि कामयते (हाटी); कामी (जि) । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टमउझयण (महायारकहा) २१. सव्वत्थुवहिणा बुद्धा संरक्खणपरिग्गहे । अवि अप्पणो वि देहम्मि नायरंति ममाइयं ।। २२. अहो निच्चं तवोकम्मं सव्वबुद्धेहि वणियं । जाय लज्जासमा वित्ती एगभत्तं च भोयणं ।। २३. संतिमे सुहुमा पाणा तसा अदुव थावरा । जाई राओ अपासंतो कहमेसणियं चरे? २४. उदउल्लं बीयसंसत्तं पाणा निवडिया' महि । दिया ताई विवज्जेज्जा राओ तत्थ कहं चरे ? २५. एयं च दोसं दळूणं नायपुत्तेण भासियं । सव्वाहारं न भुजंति निग्गंथा राइभोयणं ।। २६. पुढविकायं न हिसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ।। २७. पुढविकायं विहिसंतो हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ॥ २८. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । पुढविकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥ २६. आउकायं न हिसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ ३०. आउकायं विहिसंतो हिसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ।। ३१. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । आउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए । ३२. जायतेयं न इच्छंति पावगं जलइत्तए । तिक्खमन्नयरं सत्थं सव्वओ वि दुरासयं ॥ ३३. पाईणं पडिणं वा वि उड्ढं अणुदिसामवि । अहे दाहिणओ वा वि दहे उत्तरओ वि य ।। ३४. भूयाणमेसमाधाओ हव्ववाहो न संसओ ॥ तं पईवपयावट्ठा' संजया किंचि नारभे ॥ ३५. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । तेउकायसमारंभ जावज्जीवाए वज्जए । १. सारक्खण (अबू)। ५. मण्णत रा (अचू)। २. जाणि (अचू)। ६. या (हाटी)। ३. सण्णिवयिया (अचू)। ७. वियावट्ठा (अचू)। ४. दिवा (अचू)। २. अगणिका (क,घ)। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेवालियं ३६. अनिलस्स समारंभं बुद्धा मन्नति तारिसं । सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहिं सेवियं ।। ३७. तालियंटेण पत्तेण साहाविहुयणेण वा । न ते वीइउमिच्छति 'वीयावेऊण वा परं" ॥ ३८. जं पि वत्थं व पायं वा कंबलं पायपुंछणं । न ते वायमुईरंति' जयं परिहरंति य ।। ३६. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । वाउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥ ४०. वणस्सई न हिंसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ।। ४१. वणस्सइं विहिंसंतो हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्नुसे ॥ ४२. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । वणस्सइसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए । ४३. तसकायं न हिसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ ४४. तसकायं विहिसंतो हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्वुसे य अचक वुसे ॥ ४५. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं । तसकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥ जाइं चत्तारिभोज्जाइं" इसिणाहारमाईणि ताइं तु विवज्जतो' संजमं अणुपालए । ४७. पिंड सेज्जं च वत्थं च चउत्थं पायमेव य । अकप्पियं न 'इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज'' कप्पियं ॥ ४८. जे नियागं ममायंति कीयमुद्देसियाहडं । वहं ते समणुजाणंति इइ वुत्तं महेसिणा । ४६. तम्हा असणपाणाई कीयमुद्देसियाहडं वज्जयंति ठियप्पाणो निग्गंथा धम्मजीविणो ।। १. वणेण (अचू)। ६. विवज्जेत्ता (अचू)। २. नो वि वीयावए परं (क, हाटी) । ७. इच्छंति पडिग्गाहिति (अचू) । ३. वाउ (ख,घ, जिचू)। ८. अणुजाणंति (अचू, हाटी)। ४. णं (अचू)। ९. पाणाति (अचू) । ५. चत्तारि+अभोज्जाइं-चत्तारि भोज्जाई। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ अट्ठमज्झयणं (महायारकहा) ५०. कंसेसु कंसपाएसु' कुंडमोएसु' वा पुणो । __ भुंजंतो' असणपाणाइं आयारा परिभस्सइ । ५१. सीओदगसमारंभे मत्तधोयणछडणे" । जाई छन्नति' 'भूयाइं दिट्ठो तत्थ'' असंजमो॥ ५२. पच्छाकम्म पुरेकम्म सिया तत्थ न कप्पई । एयमलैं' न भुंजंति निग्गंथा गिहिभायणे ।। ५३. आसंदी-पलियंकेसु मंचमासालएसु वा । अणायरियमज्जाणं आसइत्तु सइत्तु वा ।। ५४. नासंदी-पंलियंकेसु न निसेज्जा न पीढए । निग्गंथापडिलेहाए" बुद्धवुत्तमहिट्ठगा ॥ ५५. 'गंभीरविजया एए'१२ पाणा दुप्पडिलेहगा । __आसंदी-पलियंका" य एयम→ विवज्जिया ।। ५६. गोयरग्गपविट्ठस्स निसेज्जा जस्स कप्पई । इमेरिसमणायारं आवज्जइ अबोहियं ।। ५७. विवत्ती बंभचेरस्स पाणाणं अवहे वहो । वणीमगपडिग्धाओ पडिकोहो५ अगारिणं ॥ ५८. अगुत्ती बंभचेरस्स इत्थीओ यावि संकणं । कुसोलवड्ढणं ठाणं दूरओ परिवज्जए ।। १. पातीसु (अचू)। ११. निग्गंथा+अपडिलेहाएनिग्गंथापडिलेहाए । २. कोंडकोसेसु (अवूपा; जिचूपा)। १२. गंभीर झुसिरा एते (सूत्रकृ० वृत्तिपत्र १८१)। ३. भुजति (अचू, जिचू)। १३. पलियंको (क,ग, हाटी); पलियंके (ख) । ४. आयारात् (अचू)। १४. च वहे (क. ख, ग, घ, हाटी)। सर्वेष्वपि ५. धोवण (अचू, जिचू)। __ प्रयुक्तादर्शेषु 'पाणाणं च वहे वहो' इति पाठो ६. छिन्नति (क,ख,ग); छिप्पंति (हाटी)। विद्यते । हारिभद्रीयवृत्तावपि एष एव व्याख्या७. भूताणि सो तत्थ दिट्ठो (अचू, जिचू); भूयाई तोस्ति । चणि द्वयाधारेण मूलपाठः स्वीकृतः । __ सोत्थ दिट्ठो (हाटी)। निशीथभाष्येपि अस्य समर्थनं लभ्यते-- ८. पच्छे (अबू)। बंभस्स होतऽगुत्ती, पाणाणं पि य वहो भवे अवहे। ६. एतदळं (अचू)। चरगादिपरिघातो, गिहीण अचियत्तसंकादी ।। १०. अगस्त्यसिंहस्थविरेण अस्य श्लोकस्य विषये ४०४८ (पृ० ३३०) मतान्तरस्य उल्लेखः कृतः---'एस सिलोगो १५. पलिकोधो (अचू); पडिकोधो (अचूपा)। केसिंचि व अत्थि'। जिनदासमहत्तरेण अयं । १६. वा वि (क,ख,ग, जिचू) । श्लोकः पाठान्तररूपेण व्याख्यातः । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - दसवेबानियं ५६. तिण्हमन्नयरागस्स' निसेज्जा जस्स कप्पई । जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो ।। ६०. वाहिओ वा अरोगी वा सिणाणं जो उ पत्थए' । वोक्कतो होइ आयारो जढो हवइ संजमो॥ ६१. संतिमे सुहुमा पाणा 'घसासु भिलुगासु य" । जो उ' भिक्खू सिणायंतो वियडेणुप्पिलावए' ॥ ६२. तम्हा ते न सिणायंति सीएण उसिणेण वा । जावज्जीवं वयं घोरं असिणाणमहिट्ठगा ॥ ६३. सिणाणं अदुवा कक्कं लोद्धं पउमगाणि य । गायस्सुव्वट्टणट्ठाए नायरंति कयाइ वि ।। ६४. नगिणस्स' वा वि मुंडस्स दीहरोमनहसिणो" । मेहुणा उवसंतस्स किं विभूसाए कारियं ? ६५. विभुसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं । संसारसायरे घोरे जेणं पडइ" दुरुत्तरे ।। ६६. विभूसावत्तियं चेयं बुद्धा मन्नति तारिस । सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहिं सेवियं ।। ६७. खवेंति अप्पाणममोहदंसिणो तवे रया संजम अज्जवे गुणे । धुणंति पावाइं पुरेकडाइं नवाइ पावाइं न ते करेंति ॥ ६८. सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो । उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धि विमाणाइ उति" ताइणो॥ -त्ति बेमि ॥ १.तरातस्स (अचू)। ८. अधवा (अचू)। तिनमन्नयरागस्स, निसिज्जा जस्स कप्पई। ६. णिगिणस्स (अचू)। जराए अभिभूयस्स, वाहियस्स तवस्सिणो । णग्गणस्स य मुंडस्स य, दीहलोमणखस्स य । (बृह० भाष्य भा० २, पृष्ठ ३७८)। मेहणादो विरत्तस्स, कि विभूसा करिस्सदि ? २. अरोगो (अनू)। (मूलाराधना, विजयोदया ४/३३३, पृ. ३. इच्छए (जिघू)। ६११)। ४. घसाहि भिलुगाहि य (जिचू); घसीसु भिलु- १०. °णहस्सिणो (अचू)। हासु य (अचू)। ११. भमति (अचू)। ५. य (ख)। १२. उडुप्प (अचू)। ६. °प्पलावए (हाटी)। १३. वयंति (क, ग); व जंति (अचू) । ७. "ट्ठए (अचू)। Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमज्झयणं वक्कसुद्धि १. चउण्हं खल भासाण परिसखाय पण्णवं । ___ दोण्हं तु विणयं' सिक्खे दो न भासेज्ज सव्वसो।। २. जा य सच्चा अवत्तव्वा सच्चामोसा य जा मुसा । जा या बुद्धेहिणाइण्णा' न तं भासेज्ज पण्णवं ॥ ३. असच्चमोसं सच्चं च अणवज्जमकवकसं । ___ समुप्पेहमसंदिद्ध' गिरं भासेज्ज पण्णवं ।। ४. एयं च अट्ठमन्नं वा जं तु नामेइ सासयं । स भासं सच्चमोसं पि' तं पि धीरो विवज्जइ ।। ५. वितह पि तहामुत्ति जं गिरं भासए नरो। ___ तम्हा सो पुट्ठो पावेणं किं . पुण' जो मुसं वए ? ६. तम्हा गच्छामो वक्खामो अभुग वा णे भविस्सई । ____ अहं वा णं करिस्सामि एसो वा णं करिस्सई ॥ ७. एवमाई उ जा भासा एसकालम्मि संकिया । संपयाईयमठे वा तं पि धीरो विवज्जए॥ १. विजयं (अचू); विणयं (अचूपा)। २. जा (अचू)। ३. बुद्धेहि+अणाइण्णा =बुद्धेहिणाइण्णा। ४. समुप्पेहितसं० (अचू); समुपेहिय असं० ६. वितह पि तहामुत्ति, जो तहा भासए नरो। सो वि ता पुट्ठो पावेणं, किं पुणं जो मुसं वए ? _ (वृह° भाष्यभाग २, पृ० २६०) ७. स (अचू)। ८. पुणो (अचू)। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ I १०. अईयम्मि य कालम्मी निस्संकियं भवे जं तु, फरुसा भासा सच्चा विसा न वत्तव्वा ११. त १२. तत्र काणं काणे ति वाहियं वा वि रोगि त्ति १३. एएणन्नेण वट्ठेण' आयारभावदोसण्णू® ८. अईयम्मिय कालम्मी पच्चुप्पन्नमणागए जमट्ठे तु न जाणेज्जा एवमेयं ति नो वए ॥ ६. अयम्म य कालम्मी पच्चुप्पन्नमण गए त्थ संका भवे तं तु एवमेयं ति नो वए ॥ पच्चुप्पन्नमणागए 1 'एवमेयं ति निद्दिसे" ।। गुरुभूओवघाइणी I जओ पावस्स आगमो ॥ पंडगं पंडगे त्ति वा । तेणं चोरें त्ति नो वए । परो हम्म | न तं भासेज्ज पण्णवं ॥ साणे वा वसुले त्तिय । नेवं भासेज्ज पण्णवं ।। अम्मो माउस्सिय त्तिय । 'वए नत्तुणिए" त्तिय ॥ भट्टे सामिणि गोमिणि । इत्थियं नेवमालवे" ॥ इत्थीगोत्तेण वा पुणो । आलवेज्ज लवेज्ज वा ॥ १४. तहेव होले गोले त्ति दमए दुहए वा १५. अज्जिए पज्जिए वा वि वि पिउस्सिए भाइज्जत्ति १६. हले हले त्ति अन्ने त्ति होले गोले वसुले त्ति १७. नामधिज्जेण णं ब्रूया जहारिहमभिगिज्झ १. ८,६,१०. श्लोकानां स्थाने चूणिद्वये पाठभेद एवमस्ति -- तवाणागतं अट्ठ, जं व ऽण्णऽणुवधारितं । संकितं पडुपणं वा, एवमेयं ति णो वदे ||८|| तवाणागतं अट्ठ, जं होति उवधारितं । नीसंकितं पडुप्पण्णं थावथावाए जिद्दिसे ||९|| (अ) । तं तव अईयंमि, कालंमिऽणवधारियं । जं चणं संकियं वा वि, एवमेयंति नो वए । ८ तवाणागयं अद्धं, जं होइ उवहारियं । निस्संकियं पडुप्पन्ने, एवमेयं ति निद्दिसे | 8 | (जिचू ) । २. थोवं थोवं तु निद्दिसे ( हाटीपा ) । दसवेआलियं ३. तहेव काणं काणेत्ति, पंडगं पंडगेत्ति वा । वाहियं वा वि रोगित्ति, तेणं चोरोत्ति नो वदे ॥ ( सूत्र ० चू० पृ० १४९ ) । ४. चोरो ( अ ) । ५. अयं श्लोको जिनदासचूणों नास्ति व्याख्यातः । ६. अट्ठेण ( क, ख, ग, घ ) । ७. दोसे ( अचू ) । ८. या (हाटी) । ६. नेयं ( ख ) ; न तं ( अचू, जिचू) । १०. या (अ) । ११. धूया णतुणिय ( जिचू) । १२. व आलवे ( अचू ) । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमझयणं (वक्कसुद्धि) ६३ १८. अज्जए पज्जए वा वि बप्पो चुल्लपिउ त्ति य । माउला भाइणेज्ज त्ति पुत्ते' नत्तुणिय ति य ॥ १६. 'हे हो हले त्ति अन्ने त्ति भट्टा सामिय गोमिए । होल गोल वसुले ति पुरिसं नेवमालवे ।। २०. नामधेज्जेण णं बूया पुरिसगोत्तेण वा पुणो । जहारिहमभिगिज्झ आलवेज्ज लवेज्ज वा ।। २१. पंचिंदियाण पाणाणं एस इत्थी अयं पुमं । जाव णं न विजाणेज्जा ताव जाइ त्ति आलवे ।। २२. तहेव 'मणुस्सं पसु पक्खि" वा वि सरीसिव' । थूले पमेइले वज्झे पाइमे त्ति य नो वए । २३. परिवुड्ढे ति णं ब्रूया बूया उवचिए त्ति य । संजाए पीणिए. वा वि महाकाए त्ति आलवे ।। २४. तहेव गाओ दुज्झाओ दम्मा गोरहग ति य । _वाहिमा रहजोग' त्ति नेवं भासेज्ज पग्णवं ।। २५. 'जुवं गवे" त्ति णं बूया घेणु रसदय ति य । रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे ति य । २६. तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य । ‘रुक्खा महल्ल पेहाए. नेवं भासेज्ज पण्णवं ॥ २७. अलं पासायखंभाणं तोरणाणं गिहाण य । फलिहग्गलनावाणं अलं उदगदोणिणं ।। २८. पीढए चंगबेरे" य नंगले१२ मइयं सिया । जंतलट्ठी व नाभी वा 'गंडिया व'"अलं सिया ।। २६. आसणं सयणं जाणं होज्जा वा" किंचवस्सए। भूओवघाइणि भासं नेवं भासेज्ज पण्णवं ।। १. पुत्ता (अचू)। ८. रसगवे (अबू)। २. हे भो हरे त्ति अण्ण त्ति, भट्टि सामिय ६. महव्वए (अचू, जिचू)। गोमिय ! होल गोल वसुल त्ति (अचू)। १०. रुक्खे महल्ले पेहाय (अचू) । ३. माणुसं पक्खिं पसु (जिचू)। ११. चंगबेरा (हाटी)। ४. सिरी' (अचू)। १२. णंगलं (अव)। ५. जिनदासचूणौं २३,२४ श्लोकयोविपर्ययो १३. दंडिया व (क, ख, ग); गंडिगा वा (अचू)। १४. होज्जाऽलं (अचू)। ६. °जोग्ग (अचू)। १५. किंतुवस्सए (ख)। ७. जुगंगवे (अचू)। दृश्यते। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ दसवेआलियं ३०. तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य । रुक्खा महल्ल पेहाए एवं भासेज्ज पण्णवं ।। ३१. जाइमंता इमे रुक्खा दीहवट्टा' महालया । पयायसाला विडिमा' वए दरिसणि' त्ति य ।। ३२. तहा' फलाई पक्काइं पायखज्जाई नो वए । वेलोइयाइं टालाइं वेहिमाइ त्ति नो वए॥ ३३. असंथडा इमे अंबा बहुनिव्व ट्टिमा फला । वएज्ज बहुसंभूया भूयरूव त्ति वा पुणो ।। ३४. तहेवोसहीओ पक्काओ नीलियाओ छवोइय" । लाइमा भज्जिमाओ त्ति पिहुखज्ज त्ति नो वए । ३५. रूढा बहुसंभूया थिरा 'ऊसढा वि य" । गब्भियाओ" पसूयाओ ससाराओ" त्ति आलवे ॥ ३६. तहेव संखडि नच्चा 'किच्चं कज्जति नो वए । _ 'तेणगं वा वि वज्झे त्ति सुतित्थ त्ति य आवगा"। ३७. संखडि संखडि बूया 'पणियट्ठ त्ति'५ तेणगं । बहुसमाणि तित्थाणि आवगाणं वियागरे । ३८. तहा नईओ पुण्णाओ 'कायतिज्ज त्ति'१६ नो वए । नावाहिं तारिमाओ त्ति पाणिपेज्ज त्ति नो वए । ३६, बहुवाहडा अगाहा बहुसलिलुप्पिलोदगा । बहुवित्थडोदगा यावि एवं भासेज्ज पण्णवं ॥ १. दीहा वट्टा (अचू, जिचू)। २. पडिमा (ख)। ३. दरिसणिय (अचू)। ४. तहा फलाणि पक्काणि, पायखज्जाणि णो वदे। वेलाइमाणि टालाणि, वेहिमं वेति णो वदे ।। (अचू)। ५. पाइ° (जिचू)। ६. निव्वत्तिया (अचू); °निव्वडिया (जिचू); 'बहुनिर्वत्तितफलाः' (हाटी)। ७. °तिया (अचू)। ६. विरूढा (अचू, जिचू)। है. उस्सडा ति य (अचू); उस्सिया ति य (जिचू)। १०. गम्भिणाओ (अचू)। ११. संसाराओ (हाटी)। १२. ३६-३६ अस्य श्लोकचतुष्टयस्य स्थाने अगस्त्यसिंहचूणौं तहा नदीओ° बहुपाहडा तहेव संखडि संखडि संखडि° एवं क्रमभेटो वर्तते । १३. करणियं (घ, हाटी); किच्चमेयं (जिचू)। १४. पणीतत्थं च वज्झो त्ति सुतित्थ त्ति य आपका (अचू)। १५. पणियठे त्ति (अचू), पणियट्ठति (ख,ग,घ)। १६. काकपेज्ज त्ति (अचू);कायतेज्जति (अचूपा); कायपेज्ज त्ति (जिचूपा)। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (वक्कसुद्धि) ४०. तहेव सावज्जं जोगं परस्सट्टाए निद्रियं । कीरमाणं ति वा नच्चा सावज्ज 'न लवे" मुणी ॥ ४१. सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुच्छिन्ने सुहडे महे । सुनिट्ठिए सुलढे त्ति सावज्जं वज्जए' मुणी ॥ ४२. पयत्तपक्के त्ति व पक्कमालवे पयत्तछिन्न त्ति व छिन्नमालवे । पयत्तलट्ठ ति व' कम्महेउयं 'पहारगाढ ति" व गाढमालवे ॥ ४३. सव्वुक्कसं' परग्छ वा अउलं नत्थि एरिसं । अचक्कियमवत्तव्वं" अचिंतंर चेव नो वए। ४४. सव्वमेयं वइस्सामि सव्वमेयं ति नो वए । अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ एवं भासेज्ज पण्णवं ॥ ४५. सुक्कीयं वा सुविक्कीयं अकेज्ज केज्जमेव वा । इमं गेण्ह इमं मुंच पणियं नो वियागरे ।। ४६. अप्पग्घे वा महग्घे वा कए वा विक्कए वि"वा । पणियढे समुपन्ने अणवज्जं वियागरे ।। ४७. तहेवासंजयं धीरो आस एहि करेहि वा । सय चिट्ठ वयाहि ति नेवं भासेज्ज पण्णवं ॥ ४८. बहवे इमे असाहू लोए वुच्चंति साहुणो" । न लवे 'असाहुसाहु त्ति साहु साहु त्ति' आलवे ।। ४६. नाणदसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं । , ‘एवं गुणसमाउत्तं संजय साहुमालवे ॥ ५०. 'देवाणं मणुयाणं च तिरियाणं च वुग्गहे । अमुयाणं जओ होउ मा वा होउ त्ति नो वए । ५१. वाओ वुठं व सीउण्हं खेमं घायं सिवं ति वा । कया णु होज्ज एयाणि मा वा होउ त्ति नो वए। ५२. तहेव मेहं व नहं व माणवं न देव देव त्ति गिरं वएज्जा । समुच्छिए उन्नए वा पओए वएज्ज वा वुट्ठ बलाहए त्ति ॥ १. णालवे (जिचू, हाटी) । ११. अविक्किय° (क,घ)। २. मते (अचू)। १२. अचियत्तं (क,ख,ग,घ, हाटी)। ३. ण लवे (अचू)। १३. यि (अचू)। ४,५,६,८. ण (अचू)। १४. साधवो (अचू, जिचू)। ७. गाढप्पहारंति (अचू, जिचू, हाटी) । १५. असाधु साधु ति साधु साधु ति (अचू) । ६. सव्वुक्कस्सं (अचू)। १६. एतग्गुण° (अचू)। १०. परदं (अचूपा)। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेआलियं ५३. अंतलिक्खे त्ति णं बुया 'गुज्झाणुचरिय त्ति' य । रिद्धिमंतं नरं दिस्स रिद्धिमंतं ति आलवे ।। ५४. तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा ओहारिणी जा य परोवघाइणी । से कोह लोह भयसा' व माणवो' न हासमाणो वि गिरं वएज्जा ।। ५५. 'सवक्कसुद्धि समुपेहिया मुणी' गिरं च दुटुं परिवज्जए सया । मियं अदुळं अणुवीइ भासए सयाण' मज्भे. लहई पसंसणं ॥ ५६. भासाए' दोसे य गुणे य जाणिया तीसे य 'दुदु परिवज्जए सया" । छसु संजए सामणिए सया जए वएज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं । ५७. परिक्खभासी' सुसमाहिइंदिए चउक्कसायावगए अणिस्सिए । स निझुणे धुन्नमलं पुरेकडं आराहए लोगमिणं तहा परं ।। -ति बेमि ॥ १. चरितं ति (अचू)। २. भय हास (ख, जिचू, हाटी)। ३. माणवा (ख, अचू, जिचू )। ४. सव्वक्क° (क, घ); सुन्नक्क° (ख, ग); स वक्कसुद्धि समुपेहिया सता (अचू)। ५. तु (हाटी)। ६. स ताण (अचू)। ७. भासाय (अचू)। ८. जाणए (अचू)। ६. दुट्ठाए विवज्जगो सता (अचू)। १०. परिज्जभासी (जिचू); (अचूपा)। परिच्चभासी Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमझयणं आयारपणिही १. आयारप्पणिहिं - लर्बु जहा कायव्व भिक्खुणा । ___ तं भे उदाहरिस्सामि आणुपुवि सुणेह मे ॥ २. पुढवि दग अगणि मारुय' तणरुक्ख सबीयगा । तसा य पाणा जीव त्ति इइ वुत्तं महेसिणा ।। ३. तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं' सिया । ___ मणसा कायवक्केण एवं भवइ संजए । ४. पुढवि भित्ति सिलं लेखें नेव भिंदे न संलिहे । तिविहेण करणजोएण संजए सुसमाहिए ॥ ५. सुद्धपुढवीए' न निसिए 'ससरक्खम्मि य" आसणे । __ पमज्जित्तु निसीएज्जा 'जाइत्ता जस्स ओग्गह ॥ ६. सीओदगं न सेवेज्जा सिलावुठं हिमाणि य । उसिणोदगं' तत्तफासुयं पडिगाहेज्ज संजए॥ ७. उदउल्लं अप्पणो कायं नेव पुंछे न संलिहे । __समुप्पेह तहाभूयं नो णं संघट्टए मुणी ॥ ८. इंगालं अगणिं अच्चि अलायं वा सजोइयं । न उंजेज्जा न घट्टेज्जा नो णं निव्वावए मुणी ।। ६. तालियंटेण पत्तेण साहाविहुयणेण वा । न वीएज्ज अप्पणो कायं बाहिरं वा वि पोग्गलं । १. वाऊ (अचू, हाटी)। ६. °वुट्टि (क, ख)। २. भवियब्वयं (अचू) ७. उसुणो° (अचू)। ३. °पुढवी (ख)। ८. समुप्पेहे (अचू, जिचू)। ४. ससरक्खे व (हाटी)। ६. साधाविधुणणेण (अचू)। ५. जाणित्तु जाइयोग्गहं (अचू)। १०. वीये (अचू)। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेवालियं १०. तणरुक्खं' न छिदेज्जा फलं मूलं व कस्सई । आमगं विविहं बीयं मणसा वि न पत्थए । ११. गहणेसु न चिट्ठज्जा बीएसु हरिएसु वा । उदगम्मि तहा निच्चं उत्तिंगपणगेसु वा॥ १२. 'तसे पाणे" न हिंसेज्जा वाया अदुव कम्मुणा । उबरओ सव्वभूएसु पासेज्ज विविहं जगं ॥ १३. अट्ठ सुहुमाइं 'पेहाए जाई जाणित्तु संजए" । दया हिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा ॥ १४. 'कयराइं अट्ठ सुहुमाइं जाई पुच्छेज्ज संजए" । ___इमाइं ताइं मेहावी आइक्खेज्ज वियक्खणो ।। १५. सिणेहं पुप्फसुहुमं च पाणुत्तिगं तहेव य । पणगं बीय हरियं च अंडसुहुमं च अट्ठमं ॥ १६. एवमेयाणि जाणित्ता सव्वभावेण संजए । अप्पमत्तों' जए निच्चं सव्वि दियसमाहिए ॥ १७. धुवं च पडिलेहेज्जा जोगसा पायकंबलं । सेज्जमुच्चारभूमि च संथारं अदुवासणं ।। १८. उच्चारं पासवणं खेल सिंघाण जल्लियं । फासुयं पडिलेहिता" परिट्ठावेज्ज संजए॥ १६. पविसित्तु परागारं पाणट्ठा" भोयणस्स वा । जयं चिट्टे मियं भासे 'ण य'" रूवेसु मणं करे । २०. बहु सुणेइ कण्णेहिं बहु अच्छीहिं पेच्छइ" । न य दिट्ठ सुयं सव्वं 'भिक्खू अक्खाउमरिहइ'"॥ २१. सुयं वा जइ वा दिट्ठ न लवेज्जोवघाइयं । न य केणइ" उवाएणं गिहिजोगं समायरे ॥ २२. निट्ठाणं रसनिज्जूढं भद्दगं पावगं ति वा । पुट्ठो वा वि अपुट्ठो वा लाभालाभं न निद्दिसे ।। १. रुक्खे (अचू)। ८. आदिक्खेज्ज (अचू)। २. गहम्मि (अचू)। ६. °मत्ते (अचू)। ३. तसपाणे (अचू)। १०. °लेहित्तु (अचू)। ४. मेधावी पडिलेहेत्तु संजते (अचू)। ११. पाणत्था (अचू)। ५. सय त्ति (अचू) १२. णो (अचू)। ६. जिनदासचूणौं नास्ति अयं श्लोकः । १३. पासति (अबू)। ७. कतमाणि अट्ठ सुहमाणि? जाणि पुच्छेज्ज णं १४. साधू मक्खा (अचू)। परो (अचू)। १५. केण (ख, घ); कोइ (जिचू)। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमज्झयणं (आयारपणिही ) || २३. न य भोयणम्मि गिद्धो अफासुयं न भुंजेज्जा २४. सन्निहिं च न कुव्वेज्जा मुहाजीवी २५. लहवित्ती चरे उंछं अयं पिरो । कीयमुद्दे सियाहडं 'अणुमायं पि" संजए । हवेज्ज निस्सिए || असंबद्धे सुसंतु अपिच्छे सुहरे सिया । जिणसासणं || नाभिनिवेस | अहियास ॥ अणुग्गए । आसुरत्तं न गच्छेज्जा सोच्चाणं * २६. कण्णसोक्खेहिं' सद्दहिं पेमं दारुणं कक्कसं फासं कारण २७. खुहं पिवासं दुस्सेज्जं सोउन्हं अहियासे' अव्वहिओ देहे दुक्खं २८. अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य आहारमइय सव्वं मणसा वि न २६. अतिति अचवले अप्पभासी" 'हवेज्ज उयरे दंते"" थोवं लद्ध न खिसए ॥ ३०. न बाहिरं परिभवे अत्ताणं" न Sara 'सुयलाभे न मज्जेज्जा जच्चा तव सिबुद्धि" | ३१. से जाणमजाणं वा कट्टु आहम्मियं पयं । संवरे खिप्पमप्पाणं बीयं" तं न समायरे ॥ पत्थए । मियासणे । १. अपुरो ( अ ) । २. अणुमायमवि ( अ ) । ३. सुभरे (अचू ) । ४. सोच्चाण ( अ ) । ५. निशीथ भाष्यचूर्णी (भाग ३, पृ० ४८३ ) वृहत्कल्पभाष्यवृत्ती (भाग २, पृ० २७३, २७४ ) च अस्य श्लोकस्य स्थाने पञ्चश्लोकानां सूचना लभ्यते । प्रस्तुतश्लोके प्रथमश्लोकस्य आद्यं चरणद्वयं तथा पञ्चमश्लोकस्य अन्त्यं चरणद्वयं विद्यते । पूर्णपाठ एवं स्यात् - कण्णसोक्खेहि सद्देहि, पेम्मं णाभिणिवेसए । दारुणं कक्कसं सद्दं, सोएणं अहियासए । चक्खुकतेहि रूवेहि, पेम्मं णाभिणिवेसए । दारुणं कक्कसं रूवं चक्खुणा अहियासए || घाणकंतेहि गंधेहि, पेम्मं णाभिणिवेसए । दारुणं कसं रसं, घाणेणं अहियासए || अरई भयं । महाफलं ॥ ६६ जीहकतेहि रमेहि, पेम्मं णाभिणिवेसए । दारुणं कक्कसं रसं, जीहाए अहियासए || सुहफासेहि कंतेहि, पेम्मं णाभिणिवेसए । दारुणं कक्कसं फासं, कारण अहियासए || सोक्सु° (अच्) । ६. अधियासए ( अचू ) | ७. देह (क, ग, घ ) । ८. वा ( अ ) । ६. माइयं ( क ) । १०. अप्पवादी ( अचू, जिच्) । ११. असंभवे पभूतस्स (अनु) । १२. अप्पाणं ( अचू ) | १३. सुतेण लाभेण लज्जाए जच्चा तवस बुद्धिए ( अचू, जिचू ) । १४. वितियं ( अचू) । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ هف न निण्हवे । जिइंदिए || महप्पणो । उववायए || वियाणिया । ३३. अमोहं वयणं कुज्जा आयरियस्स' तं परिगिज्भ वायाए कम्मुणा सिद्धिमग्गं आउं परिमियमप्पणो || सद्धामा रोगमप्पणो । तहप्पाणं निजुंजए || ) वाही जाव न वड्ढई | ताव धम्मं समायरे ॥ लोभ च इच्छंतो ३७. कोहो पीई पणासेइ माणो माया मित्ताणि नासेइ लोहो ३८. उवसमेण हणे कोहं माणं मायं चज्जवभावेण लोभं ३६. कोहो य माणो य अणिग्गहीया चत्तारि एए कसिणा कसाया ४०. राइणिएसु विणयं १० परंजे ' कुम्मो व्व' अल्लीण पलीणगुत्तो ४१. निद्द" च न बहुमन्नेज्जा संपहासं " मिहोकहाहिं " न रमे सज्झायम्मि ३२. अणायारं परक्कम्म नेव गूहे सुई सया वियडभावे असंसत्ते ३४. अधुवं जीवियं नच्चा विणियट्टेज्ज' भोगेसु ( बलं थामं च पेहाए खेत्तं कालं च विष्णाय ३५. 'जरा जाव" न पीलेइ जाविदिया न हायंति ३६. कोहं माणं च मायं च वमे चत्तारि दोसे उ १. आयरियाणं ( अ ) । २. विणिग्विज्जेज्ज (जिचू ) । ३. कोष्ठकवर्ती श्लोक : (अचू); विणिव्विसेज्जा चूणिद्वये हारिभद्रीयटीकायां अवचूर्यामपि च नास्ति व्याख्यातः । नापिकारणेन आदर्शेषु प्रक्षेपं प्राप्तोस्ति । ४. जाव जरा (जिचू) । ५. संतुट्ठिए (अचू, जिचू) । ६. गीया ( अचू ) । ७. विवड्ढमाणा ( अचू ) । ८. मूलाणि ( अचू ) । पाववड्ढणं । हिमपणो ॥ वियनासो | सव्वविणासो | मद्दवया जिणे । संतोसओ जिणे ॥ माया य लोभो य पवड्ढमाणा' । सिचंति मूलाई पुणब्भवस्स ।। धुवसीलयं 'सययं न हावएज्जा" । परक्कमेज्जा" तवसंजमम्मि || दसवेनालिय विवज्जए । रओ सया ॥ ६. समयं भावएज्जा (जिचू) । १०. कुम्मेव ( अ ) । ११. परक्कमेज्जा (अचू) । १२.४१, ४२ श्लोकयोः स्थाने विजयोदयायां एक एवं श्लोको दृश्यते णिद्दं ण बहु मण्णेज्ज, हासं खेडं विवज्जए । जोग्गं समणधम्मस्स, जुंजे अणलसो सदा ॥ (मूलाराधना, विजोदया ४।३०० पृ० ५१२ ) । १३. सप्पहासं ( क, ख, ग, घ, हाटी) । १४. मधुक (अ) । १५. अज्झयणम्मि (जिचू) । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमज्झयणं (आयारपणिही) ४२. जोगं च समणधम्मम्मि जुंजे अणलसो धुवं । जुत्तो य समणधम्मम्मि अट्ठ लहइ अणुत्तरं ॥ ४३. इहलोगपारत्तहियं जेणं गच्छइ सोग्गइं । बहुस्सुयं पज्जुवासेज्जा पुच्छेज्जत्थ विणिच्छयं ॥ ४४. हत्थं पायं च कायं च पणिहाय जिइंदिए । अल्लीणगुत्तो निसिए' सगासे गुरुणो मुणी ॥ ४५. न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्टओ । न य ऊरु समासेज्जा चिठेजा गुरुणंतिए । ४६. अपुच्छिओ न भासेज्जा भासमाणस्स अंतरा' । पिट्टिमंसं न खाएज्जा मायामोसं विवज्जए । ४७. अप्पत्तियं जेण सिया आसु कुप्पेज्ज वा परो । सव्वसो तं न भासेज्जा भासं अहियगामिणि' ।। ४८ दिट्र मियं असंदिद्धं पडिपून्न वियंजियं । अयपिरमणुव्विग्गं' भासं निसिर अत्तवं ।। ४६ आयारपण्णत्तिधरं दिट्ठिवायमहिज्जगं वइविक्खलियं' नच्चा न तं उवहसे" मुणी ।। ५० नक्खत्तं सुमिणं जोगं निमित्तं मत भेसजं । गिहिणो" तं न आइक्खे भूयाहिगरणं२ पयं ।। ५१. अन्नट्ठ पगडं लयणं" भएज्ज सयणासणं । उच्चारभूमिसंपन्नं इत्थीपसुविवज्जियं ॥ ५२. विवित्ता य भवे सेज्जा नारीणं न लवे" कहं । गिहिसंथवं न कुज्जा कुज्जा साहूहिं संथवं । ५३. जहा कुक्कुडपोयस्स निच्चं कुललओ भयं ॥ एवं खु बंभयारिस्स इत्थोविग्गहओ भयं । ५४ चित्तभित्ति न निझाए नारि वा सुअलंकियं । भक्खरं पिव दळूणं दिट्टि पडिसमाहरे ॥ १. धम्मस्स (अचू)। ६. वयि (अचू)। २. णिसीए (अचू)। १०. अवधसे (अचू)। ३. वऽन्तरा (अचू)। ११. गेहीण (अचू)। ४. पिट्ठीमंसं (अचू)। १२. भूताधिकरणं (अचू)। ५. अधितगामिणी (अचू)। १३. अण्णटप्पगडं लेणं (अचू) । ६. पड्डप्पन्नं जिचू)। १४. कधे (अचू)। ७. अयंपुर (अचू)। १५. सुतलं° (अचू)। ८. णिसिरे (अचू)। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेवालियं ५५. हत्थपायपडिच्छिन्नं कण्णनासविगप्पियं' । ___ अवि वाससइं नारि 'बंभयारी विवज्जए"। ५६. विभूसा इत्थिसंसग्गी पणीयरसभोयणं" नरस्सत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा ॥ ५७. अंगपच्चंगसंठाणं चारुल्लवियपेहियं । इत्थीणं तं न निज्झाए कामरागविवड्ढणं ॥ ५८. विसएसु मणण्णेसु पेमं नाभिनिवेसए । ___अणिच्चं तेसिं विण्णाय परिणाम पोग्गलाण उ॥ ५६. पोग्गलाण परीणाम' तेसिं नच्चा जहा तहा । विणीयतण्हो विहरे सीईभूएण" अप्पणा ॥ ६०. जाए सद्धाए निक्खंतो परियायट्ठाणमुत्तमं । तमेव अणपालेज्जा गुणे आयरियसम्मए । ६१. तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्ठए । सूरे व सेंणाए समत्तमाउहे" अलमप्पणो होइ अलं परेसि ।। ६२. सज्झायसझाणरयस्स ताइणो अपावभावस्स तवे रयस्स । विसुज्झई जं 'सि मलं पुरेकडं समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥ ६३. से तारिसे दुक्खसहे जिइंदिए सुएण जुत्ते अममे अकिंचणे । 'विरायई कम्मघणम्मि अवगए" कसिणब्भपुडावगमे व चंदिमा । -त्ति बेमि॥ १. विकप्पितं (अचू, जिचू) । २. दूरओ परिवज्जए (जिचू)। ३. पणीयं रस (क, ख, ग)। ४. चारुलवित (अचू, जिचू)। ५. विण्णातं (अचू)। ६. य (क, ख, ग, घ, अचू)। ७. परिणामं (अचू)। ८. सीतभू (अचू)। ९.यायत्थाण (अचू)। १०.सम्मतं (हाटीपा)। ११. 'मायुधी (अचू)। १२. से रयं (अचू)। १३. विसुज्झती पुव्वकडेण कम्पुणा (अचू); विमुच्चा पुव्वकडेण कम्मुणा (जिचू) । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं विणयसमाही १. थंभा व कोहा व मयप्पमाया गुरुस्सगासे' विणयं' न सिक्खे । __सो चेव उ तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ।। २. जे यावि मंदि ति गुरु विइत्ता डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छं पडिवज्जमाणा करेंति आसायण ते गुरूणं ।। ३. पगईए मंदा वि भवंति एगे डहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया । आयारमंता गुणसुट्टिअप्पा जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा । ४. जे यावि नागं डहरं ति नच्चा 'आसायए से'' अहियाय होइ । एवायरियं पि हु हीलयंतो नियच्छई जाइपहं खु मंदे ।। ५. आसीविसो यावि' परं सुरुट्ठो कि जीवनासाओ परं नु कुज्जा । ___आयरियपाया पुण अप्पसन्ना अबोहिआसायण नत्थि मोक्खो । ६. जो पावगं जलियमवक्कमेज्जा आसीविसं वा वि हु कोषएज्जा । ___ जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी एसोवमासायणया गुरूणं ॥ ७. 'सिया हु" से पावय नो डहेज्जा आसीविसो वा कुविओ न भक्खे । सिया विसं हालहलं न मारे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए । ८. जो पव्वयं सिरसा भेत्तुमिच्छे सुत्तं व सीहं पडिबोहएज्जा । जो वा दए सत्तिबग्गे पहारं एसोवमासायणया गुरूपं ॥ ६. 'सिया हु सीसेण गिरि पि भिदे सिया हु सीहो कुविओ न भक्खे । सिया न भिदेज्ज व सत्तिअग्गं न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए । १. गुरूण सगासे (अचू)। ६. जाति-वधं (अचू)। २. विणए (अचूपा, जियू)। ७. वा वि (क, ख, ग, जिचू) । ३. चिट्ठे (अचू, जिचू, हाटीपा)। ८. जीवि (घ); जीतणासातो (अचू)। ४. तू (अचू)। ६,१०. सियाय (अचू)। ५. आसादए सो (अचू)। ७३ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ दसवेवालियं १०. आयरियपाया पुण अप्पसन्ना अबोहिआसायण नत्थि मोक्खो । तम्हा अणाबाह सुहाभिकंखी गुरुप्पसायाभिमुहो रमेज्जा ॥ ११. जहाहियग्गी जलण नमसे नाणाहुईमतपयाभि सित्तं । एवायरियं उवचिट्ठएज्जा अणंतनाणोवगओ वि संतो ।। १२. 'जस्संतिए धम्मपयाइ" सिक्खे तस्संतिए' वेणइयं पउंजे। सक्कारए सिरसा पंजलीओ कायग्गिरा भो! मणसा य' निच्चं ।। १३. लज्जा दया संजम बंभचेरं कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसासयंति ते हं गुरू सययं पूययामि ।। १४. जहा निसंते तवणच्चिमाली पभासई केवलभारहं तु । एवायरिओ सुयसीलबुद्धिए विरायई' सुरमज्झे व इंदो।। १५. जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो नक्खत्ततारागणपरिवुडप्पा । __खे सोहई' विमले अब्भमुक्के एवं गणी सोहइ भिक्खुमज्झे ।। १६. महागरा आयरिया महेसी 'समाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए" । संपाविउकामे अणुत्तराइं आराहए. तोसए धम्मकामी । १७. सोच्चाण मेहावी सुभासियाइं सुस्सूसए आयरियप्पमत्तो । आराहइत्ताण" गुणे अणेगे से पावई सिद्धिमणुत्तरं ।। ---ति बेमि ।। बोओ उद्देसा १८. मूलाओ खंधप्पभवोर दुमस्स खवाओ पच्छा समुति साहा । साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता ' तओ से पुप्पं च फलं रसोय ॥१।। १६. एवं धम्मस्स विणओ मूलं परमो से" मोक्खो । जेण कित्ति सुयं सिग्घं" "निस्सेसं चाभिगच्छई ५ ॥२॥ १. जस्संतियं धम्मपदाणि (अचू)। २. तस्संतियं (अचू)। ३. पतुंजे (अचू)। ४. वि (ख)। ५. भारहं केवलं (अचू)। ६. बिराजते (अचूपा)। ७. सोभते (अचू)। ८. सीसमज्मे (जिचू)। ६. समाधिजोगाण सुत (अचू); समाहिजोग स्सुय (हाटी)। १०. उवट्ठितो (अचू)। ११. आराधयित्ताण (अचू)। १२. खंधो पभवो (अचू)। १३. सो (अचू)। १४. सग्धं (अचू)। १५. निस्सेसमधिग (अचू); मिस्सेसमभिग (जिचू); निस्सेसं चाधिग (हाटी)। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अभय (वियस माही) नियडी २०. जे य चंडे मिए थद्धे दुव्वाई वुझ से अविणीयप्पा कट्टु सोयगयं २१. विषयं पि जो उवाएणं चोइओ' दिव्वं सो सिरिमेज्जंति* दंडेण कुप्पई सढे । जहा ॥३॥ नरो। पडसे ॥४॥ अविणीयप्पा उववज्झा हया गया । दुहमेहता आभिओगमुवट्ठिया ॥५॥ सुविणीयप्पा उववज्झा हया गया । सुहमेहंता 'इड्ढि पत्ता " महायसा ||६|| अविणीयप्पा लोगंसि नरनारिओ । दुहमेहंता 'छाया विगलितेंदिया " ॥ ८ ॥ असब्भ वयणेहि य । 118011 विवन्नछंदा खुप्पिवासा' परिगया || ८ || सुविणीयप्पा लोगंसि नरनारिओ । सुहमेहंता 'इड्ढि पत्ता महायसा || || अविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । दुहमेहता आभिओग मुवट्टिया " सुविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । सुहमेहता इड्ढि पत्ता महायसा ।। ११ । २६. जे आर्यारियउवज्झायाणं सुस्सूसावयणंकरा 1 सि सिक्खा पवति" जलसित्ता इव" पायवा ।। १२ ।। ३०. अप्पणट्ठा परट्ठा वा सिप्पा उणियाणि " य । गिहिणो उवभोगट्ठा इहलोगस्स कारणा ।।१३।। ३१. जेण बंधं वहं घोरं 'परियावं च दारुणं" । सिक्खमाणा नियच्छति जुत्ता ते ललिइंदिया" || १४ || ६. खुपवासाहि ( क ग ) ; खुप्पिवासा य ( ख ) ; खुप्पिवासा (घ ) ; खु- पिवासाए ( अबू ) । १०. रिद्धिपत्ता ( अ ) । २२. त दीसंति २३. तव दीसंति २४. तहेव दीसंति २५. दंडसत्यपरिजुण्णा' कलुणा २६. तहेव दीसंति २७. तहेव ३. से (अच्) । ४. मेज्जती (अचू ) । दीसंति २८. तहेव १. से (अचू); सो (जिचू ) । २. चोदितो ( अ ) । दीसंति ५. अभिओगमुवागता ( अ ) । ६. इढिपत्ता ( अ ) । ७. छाया ते विगलिंदिया (क, ख, ग, घ ); ते छाया विगलिंदिया (अचू ); छाया विगलितदिया ( अनूपा ) । ८. परिणा ( अ ) । ११. अभियोगमुवत्थिता ( अ ) | १२. विवंति (अचू, जिचू) । १३. व ( अ ) । ७५ १४. पुणिताणि ( अ ) । १५. परितावण दारुणं ( अचू ) ; परितावं सुदारुणं (जिचू) । १६. ललितेंदिया (अचू) । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ३२. ते वितं गुरु पूयंति तस्स सिप्पस कारणा । नमसंति' तुट्ठा सक्का ३३. किं पुण जे सुयग्गाही आयरिया जं व भिक्खू ३४. नीयं सेज्जं गई ठाणं नीयं च पाए वंदेज्जा ३५. संघट्टत्ता काणं तहा खमेह अवराहं मे वएज्ज न ३६. 'दुग्गओ वा पओएणं" चोइओ एवं दुबुद्धि किच्चाणं वुत्तो वृत्तो ( आलवंते लवंते वा न निसेज्जाए मोत्तूणं आसणं धीरो सुस्सुसाए ३७. कालं छंदोवयारं च 'तेण तेण उवाएण"" तं तं ३८. विवत्ती अविणीयस्स संपत्ती जस्सेयं दुहओ नायं सिक्ख से अभिगच्छइ । । २१ ॥ पिसुणे नरे साहस होणपेसणे । असंविभागी न हु तस्स मोक्खो ॥ २२ ॥ सुयत्थधम्मा 'विणयम्मि कोविया'" । खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गय ।। २३ ।। -त्ति बेमि ।। डिस्सु ।। ) पडिले हित्ताण उहि । संपडिवायए ||२०|| विणियस्स य । ३६. जे यावि चंडे मइइढिगारवे अधिमे विre अकोविए ४०. निसवत्ती पुण जे गुरूणं तरित्तु ते ओहमिणं" दुरुत्तरं १. समाति (अचू ) | २. अनंत सुहका मए (अचू ) । ३. आसणं तहा (अचू) । ४. उवधिणा अवि ( अचू) । ५. दुग्गवो व पतोदेण (जिचू) । ६. रघं (अच्) । ७. किम्बाइं (जिचू, हाटीपा ) । निद्देवत्तिणो ।। १५ ।। 1 अनंत हियकामए' तम्हा तं नाइवत्तए ।। १६ ।। नीयं च 'आसणाणि य" । नीयं कुज्जा य अंजलि ।। १७ ।। वहिणामवि । पुणो त्तिय ॥ १८ ॥ वहई रहं' । पकुब्वई' ।। १६ ।। पडिस्सुणे । ( अचू ) ; पयोएण १०. तेहि तेहि उवाएहिं ( अचू ) । ११. विणए य कोविता ( अ ) । १२. तो ओघमिणं (अच्) । दसवेमालि ८. पयुंजति (अच्) । ६. कोष्ठकवर्ती श्लोक: चूणिद्वये हारिभद्रीयटीकायां अवचूर्यामपि च नास्ति व्याख्यातः । केनापि कारणेन आदर्शेषु प्रक्षेपं प्राप्तोस्ति । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ नवमं अज्झयणं (विणयसमाही) तइओ उद्देसो ४१. 'आयरियं अग्गिमिवाहियग्गी" सुस्सूसमाणो पडिजागरेज्जा। आलोइयं इंगियमेव नच्चा जो छंदमाराहयइ स पुज्जो ।।१।। ४२. आयारमट्ठा विणयं पउंजे सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं । जहोवइनें अभिक्खमाणो गुरु तु नासाययई" स पुज्जो ।।२।। ४३. राइणिएसु विणयं पउंजे डहरा वि य जे परियायजेट्ठा । नियत्तणे वट्टइ सच्चवाई ओवायवं वक्ककरे स पुज्जो ॥३॥ ४४. अण्णायउंछं चरइ विसुद्ध जवणट्ठया समुयाणं च निच्चं। अलङ्घयं नो परिदेवएज्जा लधु न विकत्थयई स पुज्जो ॥४॥ ४५. संथारसेज्जासणभत्तपाणे अप्पिच्छया अइलाभे वि संते । जो एवमप्पाणभितोसएज्जा संतोसपाहन्न रए स पुज्जो ॥५॥ ४६. सक्का सहेउं आसाए" कंटया अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ सहेज्ज कंटए वईमए कण्णसरे स पुज्जो ॥६॥ ४७. मुहुत्तदुक्खा हु हवंति कंटया अओमया ते वि" तओ सुउद्धरा" । वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ॥७॥ ४८. समावयंता वयणाभिघाया कण्णंगया दुम्मणियं जणंति । धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे जिइंदिए जो सहई स पुज्जो ॥८॥ ४६. अवण्णवायं च परम्मुहस्स पच्चक्खओ पडिणीयं च भासं । ओहारिणि अप्पियकारिणि च भासं न भासेज्ज सया स पुज्जो ॥६॥ ५०. अलोलए अक्कुहए१२ अमाई" अपिसुणे यावि अदीणवित्ती । ___नो भावए" नो वि य भावियप्पा अकोउहल्ले य सया स पुज्जो ॥१०॥ ५१. गुणेहि साहू अगुणेहिसाहू५ गिहाहि साहूगुण मुंचसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं जो रागदोसेहि समो स पुज्जो ॥११॥ १. बायरियग्गि (क, ख, ग, अचू)। ६. उ (क, ख, ग, घ)। २. आलोइय (क, ख)। १०. धि (अचू)। ३. अविकंपमाणो जो छंदमाराधयइ (अचू, ११. सुदुद्धरा (क)। जिचू)। १२. अकुहए (अचू)। ४. विकंथई (ग), विकंथयई (क, ख, घ, १३. अमादी (अचू)। __ अचू)। १४. भावदे (अचू)। ५. अविलाभे (अचू)। १५. अगुणेहि+असाहू = अगुणेहिसाहू । ६. °णमभितो° (जिचू)। १६. मुंच+असाहू =मुंचसाहू । ७. आसाय (ख)। १७. जे (अचू)। ८. अतोमता (अचू)। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ दसवेआलियं ५२. तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थी पुमं पव्वइयं गिहिं वा । नो हीलए नो वि य खिसएज्जा थंभं च कोहं च चए स पुज्जो ॥१२॥ ५३. जे माणिया सययं माणयंति जत्तेण कन्नं व निवेसयंति । ते माणए माणरिहे' तवस्सी जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो ॥१३॥ ५४. तेसिं गुरूणं गुणसागराणं सोच्चाण मेहावि सुभासियाई । चरे मुणी पंचरए' तिगुत्तो घउक्कसायावगए स पुज्जो ॥१४॥ ५५. गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी जिणमयनिउणे' अभिगमकुसले ।। धुणिय रयमलं पुरेफडं भासुरमउलं गई गय" ॥१५॥ -~-त्ति बेमि । चउत्थो उद्देसो १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमवखायं-- इह खलु थेरेहि भगवंतेहि चत्तारि विणय समाहिट्ठाणा पण्णत्ता। २. कयरे खलु ते थेरेहि भगवंतेहि चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता ? ३. इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा--१. विणयसमाही २. सुयसमाही ३. तवसमाही ४. आयारसमाही। विणए 'सुए अ तवे आयारे निच्चं पंडिया । अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंदिया ॥१॥ ४. चउव्विहा खलु विण यसमाही भवइ, तं जहा- १. अणसासिज्जंतो मुस्सूसइ २. सम्म संपडिवज्जइ' ३. वेयमाराहयइ ४. न य भवइ अत्तसंपग्गहिए । चउत्थं पयं भवइ । भवइ 'य इत्थ" सिलोगो---- पेहेइ हियाणसासण सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठए । न य माणमएण मज्जई विणयसमाही" आययट्ठिए ।२॥ ५. चउव्विहा खलु सुयसमाही भवइ, तं जहा- १. सुयं मे भविस्सइ त्ति अज्झाइयव्वं भवइ २. एगग्गचित्तो भविस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ ३. अप्पाण"ठावइस्सामि त्ति १. माणरुहे (अच)। ७. पडिवज्जइ (अचू)। २. °सिताणि (अचू)। ८. राहइ (ख, जिचू)। ३. पंचजते (अचू)। ६. चेत्थ (अचू)। ४. जिणवयणणितुणे (अचू)। १०. वीहेति (अचू)। ५. वइं (अचू, जिचू)। ११. °माधीए (अचू); °माधी (अचूपा)। ६. सुते तवे या (अचू)। १२. सुहमप्पाणं धम्मे (अचू)। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ नवमं अज्झयणं (विणयसमाही) अज्झाइयव्वं भवइ ४. 'ठिओ परं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ। चउत्थं पयं भवइ। भवइ य इत्थ' सिलोगो नाणमेगग्गचित्तोय' ठिओ ठावयई परं । सुयाणि य अहिज्जित्ता रओ सुयसमाहिए ॥३॥ ६. चउन्विहा खलु तवसमाही भवइ, तं जहा–१. 'नो इहलोगट्ठयाए तवमहिछेज्जा" २. नो परलोगट्टयाए तवमहिछेज्जा ३. नो कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्ठयाए तवमहिछेज्जा ४. नन्नत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिछेज्जा । चउत्थं पयं भवइ । भवइ य इत्थ' सिलोगो विविहगणतवोरए य निच्चं भवइ निरासए निज्जरदिए । तवसा धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए ।।४।। ७. चउन्विहा खलु आयारसमाही भवइ, तं जहा–१. नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिछेज्जा २. नो परलोगट्ठयाए आयारमहिछेज्जा ३. नो कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्टयाए आयारमहिछेज्जा ४. नन्नत्थ आरहंतेहिं.हेऊहिं आयारमहि?ज्जा । चउत्थं पयं भवइ । 'भवइ य इत्थ सिलोगो: जिणवयणरए" अतिंतिणे पडिपुण्णाययमाययट्टिए । आयारसमाहिसंवुडे भवइ य दंते भावसंघए ॥५॥ 'अभिगम चउरो समाहिओ" सुविसुद्धो सुसमाहियप्पओ। विउलहियसुहावहं पुणो कुव्वइ सो पयखेममप्पणो ॥६॥ जाइमरणाओ मुच्चई इत्थंथं च चयइ सव्वसो । सिद्धे वा भवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए ।।७।। –त्ति बेमि ।। १. थितो परं धम्मे थाव (अचू)। २. ऽत्य (अचू)। ३. तु (अचू)। ४. णो इध लोगट्ठताए तवं करोति (सूत्र०चू० पृ० ६५)। ५. ऽस्य (अचू)। ६. सिलागो पुण एत्य (अचू)। ७. °मते (अचू)। ८. अधिगतचतुरसमाधिए (अचू)। ६. इत्थत्तं (अचू)। १०. जहाति (अचू, जिचू)। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमझयणं स-भिक्ख १. निक्खम्ममाणाए' बुद्धवयणे निच्चं चित्तसमाहिओ हवेज्जा । इत्थीण वसं न यावि गच्छे वंतं नो 'पडियायई जे" स भिक्खू ।। २. पुढवि न खणे न खणावए सीओदगं न 'पिए न पियावए" । अगणिसत्थं जहा सुनिसियं तं न जले न जलावए जे स भिक्खू ।। ३. अनिलेण न 'वीए न वीयावए'५ हरियाणि न छिदे न छिदावए । बीयाणि सया विवज्जयंतो सच्चित्तं नाहारए जे स भिक्खू ।। ४. वहणं तसथावराण होइ पुढवितणकट्टनिस्सियाणं' । तम्हा उद्देसियं न भुंजे 'नो वि पए न पयावए जे स भिक्खू । ५. रोइय नायपुत्तवयणे अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पि काए । ___पंच य फासे महव्वयाइं पंचासवसंवरे जे स भिक्खू ।। ६. चत्तारि वमे सया कसाए धुवजोगी य" हवेज्ज बुद्धवयणे । ___ अहणे निज्जायरूवरयए'२ गिहिजोगं परिवज्जए जे स भिक्खू ।। ७. सम्मद्दिट्ठी सया अमूढे अत्थि हु 'नाणे तवे३ संजमे य । तवसा धुणइ पुराणपावगं मणवयकायसुसंवुडे" जे स भिक्खू ॥ १. °माणाइय (क, ख, ग); माणाय (अचूपा); °मादाय (जिचूपा)। २. °वयणं (जिचूपा)। ३. यायियती (अचू)। ४. पीए न पीयावए (ख); पिबे ण समार भेज्जा (अचू, जिचू)। ५. वियावए ण वीए (अचू, जिचू)। ६. छिदावए ण छिदे (अचू) ७. पुढविदगकट्ट' (अचू)। ८. ण पए (अचू)। ६. °वयणं (अचू)। १०. संवुडे (घ, हाटी)। ११. X (जिचू, हाटी)। १२. °रए (ख, ग)। १३. जोगे नाणे (जिचू)। १४. मणवति° (अचू)। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमज्झयणं (स-भिक्खु) ८. तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइमसाइमं लभित्ता । होहो' अट्ठो सुए परे वा तं न निहे न निहावए जे स भिक्खू । ६. तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइमसाइमं लभित्ता । छंदिय साहम्मियाण भंजे भोच्चा सज्झायरए य जेस भिक्ख ॥ १०. न य वुग्गहियं कहं कहेज्जा न य' कुप्पे निहुइंदिए पसंते । संजमधुवजोगजुत्ते उवसंते अविहेडए' जे स भिक्खू ।। ११. जो सहइ हु' गामकंटए अक्कोसपहारतज्जणाओ य । भयभेरवस संपहासे' समसुहदुक्खसहे य जे स भिक्खू ॥ १२. पडिमं पडिवज्जिया मसाणे 'नो भायए भयभेरवाई दिस्स" । विविहगणतवोरए य निच्चं न सरीरं चाभिकखई जे स भिक्खू ।। १३. असई वोसट्टचत्तदेहे अक्कुठे व हए व लूसिए वा । पुढवि समे मुणी हवेज्जा अनियाणे अकोउहल्ले" य जे स भिक्खू ।। १४. अभिभूय काएण परीसहाई समुद्धरे जाइपहाओ२ अप्पयं । विइत्तु जाईमरणं महब्भयं तवे" रए सामणिए जे स भिक्खू ॥ १५. हत्थसंजए पायसंजए वायसंजए संजइंदिए । अज्झप्परए सुसमाहियप्पा" सुत्तत्थं च वियाणई जे स भिक्खू ।। १६. उवहिम्मि अमुच्छिए अगिद्धे५ 'अण्णायउछपुल निप्पुलाए । कयविक्कयसन्निहिओ" विरए सव्वसंगावगए य जे स भिक्खू ।। १७. अलोल" भिक्खू न रसेसु गिद्धे उंछं चरे जीवियनाभिकंखे" । इड्ढि च सक्कारण पूयण च" चए' ठियप्पा अणिहे" जे स भिक्खू । १८. न परं वएज्जासि अयं कुसीले जेणन्नो" कुप्पेज्ज न तं वएज्जा । जाणिय पत्तेयं पुष्णपावं अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू ।। १. होहिति (अचू)। १४. समाहितप्पा (अचू)। २. विग्गहियं (अचू)। १५. अगढिते (अचू); अगिद्धिए (जिचू) । ३. हु (क, ख, ग)। १६. अण्णाउंछपुलाए णिप्पुलाये (अच)। ४. अविहेढए (अचू); अवहे° (क, ग)। १७. सण्णिधीहितो (अच)। ५. इह (ख)। १८. अलोलु (अचू)। ६. °कंटके (अचू)। १६. °णावकंखे (अचू); नाभिकंखी (क, ख, ग, ७. सप्पहासे (क, ख, ग, घ, जिच, हाटी)। ८. सुसाणे (अचू, जिचू)। २०. इड्ढी (अचू)। ६. ण य भाती भय-भेरवाणि दटुं (अचू) । २१. वा (अचू)। १०. अभिक° (अचू, जिचू)। २२. जहे (अचू, जिचू)। ११. अकुतूहले (अचू)। २३. अणिहिय (क); अणिहिए (ग)। १२. °वहाओ (अचू, जिचू)। २४. जेण+अन्नोजेणन्नो। १३. भवे (अचू)। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ दसवेवालियं १६. न जाइमत्ते न य रूवमत्ते न लाभमत्ते न सुएणमत्ते । मयाणि' सव्वाणि विवज्जइत्ता' धम्मज्झाणरए' जे स भिक्खू ।। २०. पवेयए अज्जपयं' महामुणी धम्मे ठिओ ठावयई परं पि । निक्खम्म वज्जेज्ज कुसीललिगं न यावि हस्सकुहए" जे स भिक्खू ।। २१. तं देहवासं असुई असासयं सया चए' 'निच्च हियट्ठियप्पा' । छिदित्तु जाईमरणस्स बंधणं उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई ।। --ति बेमि ॥ १. मताणि (अचू); मदाणि (जिच) । २. विवज्जयंतो (क, ख); विगिचधीरे (जिचू)। ३. °रए य (क)। ४. अज्जवयं (अचू)। ५. हासं कुहए (क, ख, ग, घ, जिचू) । ६. जहे (अचू, जिवू)। ७. निच्चहितेठि° (अचू)। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रइवक्का पढमा चूलिया १. इह खलु भो ! पव्वइएणं, उप्पन्नदुक्खेणं, संजमे अरइसमावन्न चित्तेणं, ओहाणप्पे हिणा अणोहाइएणं' चेव, हय रस्सि-गयंकुस-पोय पडागाभूयाई इमाइं अट्ठारस ठाणाई सम्मं संपडिले हियव्वाइं भवंति, तं जहा.--- १. हं भो ! दुस्समाए दुप्पजीवी । २. लहुस्सगा इत्तरिया' गिहीणं कामभोगा । ३. भुज्जो य साइबहुला' मणुस्सा। ४. इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ । ५. ओमजणपुरक्कारे। ६. वंतस्स य पडियाइयणं । ७. अहरगइवासोवसंपया। ८. दुल्लभे खलु भो ! गिहीणं धम्मे गिहिवासमज्झे वसंताणं । ६. आयके से वहाय होइ । १.हाविएणं (अचू)। गिहवासे ११ । मोक्खे परियाए १२ । सावज्जे २. पडागार भू० (अचू)। गिहवासे १३ । अणवज्जे परियाए १४ । बहु३. पडि° (अचू); सुप्पडि° (हाटी)। साधारणा गिहीणं काम-भोगा १५। पत्तेयं ४. दुप्पजीवं (अचू)। पुण्णपावं १६। अणिच्चे मणुयाण जीविते ५. इत्तिरिया (अचू)। कुसग्गजलबिंदुचंचले १७ । बहुं च खलु पावं ६. साय° (क, ख, ग, दी०, सादी०, अचू)। कम्मं पगडं, पावाणं च खलु भो! कडाणं ७. व (अचू)। कम्माणं पुवि दुच्चिण्णाणं दुप्परक्कंताणं ८. अतः अष्टादशस्थानपर्यन्तं अगस्त्यचूणों वेदयित्ता मोक्खो, नत्थि अवेइत्ता, तवसा वा स्थानानां क्रमभेदो विद्यते-आयंके से वधाए झोसइत्ता, अट्ठारसमं पदं भवति १८ ।। होति, संकप्पे से वधाए होति, सोवक्केसे ६. वधाए (अच)। गिहवासे । णिरुवक्केसे परियाए १० । बंधे Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SX दसवेआलियं १०. संकप्पे से वहाय होइ । ११. सोवक्केसे गिहवासे । निरुवक्के से परियाए । १२. बंधे गिहवासे । मोक्खे परियाए । १३. सावज्जे गिहवासे । अणवज्जे परिथाए। १४. बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा। १५. पत्तेयं पुण्णपावं । १६. अणिच्चे ‘खलु भो' ! मणु याण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले । १७. बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं । १८. 'पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं' पुवि दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकंताणं" वेयइत्ता मोक्खो, नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा झोसइत्ता अट्ठारसमं पयं भवइ॥ भवाय इत्थ सिलोगो १. जया य चयई धम्म अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले आयइं नावबुज्झइ ।। २. जया' ओहाविओ होइ इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्म परिब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥ ३. जया य वंदिमो होइ पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व त्या ठाणा स पच्छा परितप्पइ ।। ४. जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो । __राया व रज्जपब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ।। ५. जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्ठि व्व कब्बडे छूढो स पच्छा परितप्पइ ।। ६. जया य थेरओ होइ समइक्कंतजोव्वणो । मच्छो व्व गलं' गिलित्ता स पच्छा परितप्पइ.॥ १. X (अचू, जिचू)। (जिचू)। २. खलु भो (ख, घ)। ५. जधती (अचू); जहइ (जिचू)। ३. पावाणं च कडाणं कम्माणं (सूत्र० चू०६ जदाय (अचू) । पृ० ५२)। ७. वा (अचू)। ४. दुप्परक्कंताणं (अचू, हाटी); दुप्परि० . ८. x (अचू) । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५ रइवक्का (पढमा चूलिया) ७. जया' य कुकुडंबस्स कुतत्तोहिं विहम्मइ । हत्थी व बधणे बद्धो स पच्छा परितप्पइ ॥ ८. पुत्तदारपरिकिण्णो' मोहसंताणसंतओ । ___पंकोसन्नो जहा नागो स पच्छा परितप्पइ ।। ६. 'अज्ज आहे' गणी हुँतो भावियप्पा बहुस्सुओ। ___ जइ हं रमंतो परियाए सामण्णे जिणदेसिए । १०. देवलोगसमाणो उ परियाओ महेसिणं । रयाणं अरयाणं तु' महानिरयसारिसो' ॥ ११. अमरोवमं जाणिय सोक्खमुत्तमं रयाण परियाए तहारयाणं । निरओवमं जाणिय दुक्खमुत्तमं रमेज्ज तम्हा परियाय पंडिए । १२. धम्माउ भट्ठ सिरिओ ववेयं जण्णग्गि विज्झायमिवप्पतेयं । हीलंति णं दुविहियं कुसीला दाढुद्धियं घोरविसं व नागं ।। १३. इहेवधम्मो" अयसो अकित्ती दुन्नामधेज्ज" च पिहुज्जणम्मि । चुयस्स धम्माउ अहम्मसेविणो संभिन्न वित्तस्स य' हेटुओ गई। १४. भुंजित्तु भोगाइ पसज्झ चेयसा तहाविहं कटु असंजमं बहु । गई च गच्छे अणभिझियं" दुहं बोही य से नो सुलभा पुणो पुणो॥ १५. इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो दुहोवणीयस्स किलेसवत्तिणो" । पलिओवमं झिज्जइ सागरोवमं किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं ? १६. न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सई असासया भोगपिवास जंतुणो । न चे सरीरेण इमेणवेस्सई अविस्सई जीवियपज्जवेण मे ॥ १. असौ श्लोक: चूर्णिद्वये नास्ति व्याख्यातः ६ अवेयं (क, ग, घ, हाटी)। . हारिभद्रीयटीकायां व्याख्यातोस्ति । मुनिपुण्य- १०. विज्झायमिव+ अप्पतेयं = विज्झायमिवप्पविजयजीसम्पादिते अगस्त्यचूणिसंस्करण इति तेयं । सूचितमस्ति मुद्रितहारिभद्रीयटीकायामसौ ११. कुसीलं (अचू, जिचू)। व्याख्यातोस्ति, किन्तु तत्प्राचीनादर्शषु नासौ १२ दाढुड्ढियं (क, जिवू, हाटी)। व्याख्यातो दृश्यते। १३. इहेव+अधम्मो= इहेवधम्मो । २. परिक्किण्णो (अचू) । १४. गोत्तं (अचू, जिचू)। ३. अज्जत्तेहं (जिचूपा)। १५. उ (क, घ)। ४. य (ख)। १६ अणिहिज्झियं (क, ख, ग, घ)। ५. च (क, ख, ग, घ, हाटी)। १७. °वित्तीणो (अचू)। ६. नरय° (जिचू, हाटी); °सालिसो (अचू)। १८. मे (अचू)। ७. °मुत्तिमं (अचू)। १६. वियस्सती (अचू)। ८. परियाए (अचू)। Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवेवालियं १७. जस्सेवमप्पा उ हवेज्ज निच्छिओ' चएज्ज' देहं न उ' धम्मसासण । तं तारिसं 'नो पयलेंति" इंदिया उवेंतवाया व सुदंसणं गिरि ।। १८. इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो आयं उवायं विविहं वियाणिया । काएण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिट्ठिज्जासि॥ -त्ति बेमि॥ १. निच्छओ (ख)। २. जहेज्ज (अचू)। ३. य (अचू, जिचू)। ४. ण प्पचलेंति (अचू)। ५. उविति° (क); उवंति (ग)। ६. महिट्ठए (अचू, जिचू)। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवित्तचरिया बिइया चूलिया अणुसोयगत्तु १. चूलियं तु पवक्खामि सूयं केवलिभासियं । जं सुणित्तु सपुन्नाणं' धम्मे उप्पज्जए' मई ।। बहजणम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ।। ३. अणसोयसुहोलोगो ___ पडिसोओ आसवो' सुविहियाणं । ___अणसोओ संसारो पडिसोओ तस्स उत्तारो' ।। ४. तम्हा आयारपरक्कमेण संवरसमाहिबहुलेणं । चरिया गुणा य नियमा य होति साहूण दट्ठव्वा ।। ५. अणिएयवासो समुयाणचरिया अण्णायउंछं पइरिक्कया य । __ अप्पोवही कलहविवज्जणा य विहारचरिया इसिणं पसत्था ।। ६. आइण्णओमाणविवज्जणा य ओसन्नदिट्ठाहडभत्तपाणे' संसदकप्पेण चरेज्ज भिक्खू तज्जायसंसट्ट जई जएज्जा ।। ७. अमज्जमसासि अमच्छरीया 'अभिक्खणं निविगई गओ य" । ___ अभिक्खणं काउस्सग्गकारी सज्झायजोगे पयओ हवेज्जा ।। ८. न पडिण्णवेज्जा सयणासणाई 'सेज्जं निसेज्जं तह भत्तपाणं । गामे कुले वा नगरे व देसे ममत्तभावं" न कहिं चि" कुज्जा ।। १. सपुज्जाणं (घ); सुपुन्नाणं (हाटी)। ८. हडं भत्तपाणं (अचू); हरं भत्तपाणं २. उप्पज्जती (अचू)। (अचूपा)। ३. आसमो (अचू, हाटीपा)। १. निविगती गता य (घ, अचू); अभिक्खणि४. निप्फेडो (अचू); निग्घाडो (जिचू)। व्वीतियजोगया य (अचूपा); °क्खणं णिग्वि५. एवं (अचू, जिचू)। तिया (य) जोगो (जिचूपा)। ६. अणिययवासो (अचूपा, अव०, जिचूपा); १०. ममत्तिभावं (अचू)। अणिएयवासो (अचूपा)। ११. पि (ख)। ७. उ (जिचू)। ८७ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ दसवेआलियं ६. गिहिणो वेयावडियं न कुज्जा अभिवायणं वंदण पूयणं च' । असंकिलिट्ठोहिं समं वसेज्जा मुणी चरित्तस्स जओ न हाणी ।। १०. न या लभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एक्को वि पावाइं विवजयंतो विहरेज्ज' कामेसु असज्जमाणो ।। ११. संवच्छरं चावि परं पमाणं बीयं' च वासं न तहिं वसेज्जा । सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज भिक्खू सुत्तस्स अत्थो जह आणवेइ ।। १२. जो पुव्वरत्तावररत्तकाले संपिक्खई अप्पगमप्पएणं । कि मे कडं? किं च मे किच्चसेसं? कि सक्कणिज्जं न समायरामि ? ।। १३. किं मे परो पासइ? किं व अप्पा? किं वाहं 'खलियं न विवज्जयामि ? । इच्चेव सम्म अणुपासमाणो" अणागयं नो पडिबंध कुज्जा ।। १४. जत्येव 'पासे कइ दुप्पउतं काएण वाया अदु माणसेणं । तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा 'आइन्नओ खिप्पमिव'" क्खलीणं ।। १५. जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स धिइमओ सप्पुरिसस्स निच्चं । तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी सो जीवइ संजमजीविएणं ।। १६. अप्पा" खलु सययं रक्खियन्वो सविदिएहिं सुसमाहिएहि । अरक्खिओ जाइपहं५ उवेइ सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ ।। -त्ति बेमि ॥ ग्रन्थ परिमाण अनुष्टुप् श्लोक ६६४ २०१७ १. वा (क, ख, ग, घ, हाटी)। २. चरेज्ज (अचू)। ३. बितियं (अचू)। ४. रत्तअवरत्त° (अचू, जिचू) । ५. सारक्खती (अचू, जिचू)। ६. व (अचू)। ७. पस्सति (अचू, जिचू)। ८. च (क, ग, घ, जिचू)। ६. चाहं (क)। १०. खलितो (अचू); खलितं ण (अचूपा)। ११. °पस्समाणो (अचू)। १२. पस्से कइ दुप्पणीयं (अचू); °दुप्पणीयं (जिचू)। १३. आतिण्णो खित्त° (अचू); आइण्णओ खित्त' (जिचू); आतिण्णो खिप्प (अचूपा, जिचूपा)। १४. अप्पा हु (क, ख, ग, घ)। १५. जाति-वधं (हं) (अचू, जिचू); जाति-पधं (ह) (अचूपा, जिचूपा)। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणाणि Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं विणयसुयं १. संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो । विणयं पाउकरिस्सामि आणुपवि' सुणेह मे ॥ २. आणानिद्देसकरे गुरूणमुववायकारए । इंगियागारसंपण्णे से विणीए त्ति वुच्चई ॥ ३. आणानिद्देसकरे गुरूणमणुववायकारए । पडिणीए असंबुद्धे अविणीए त्ति वुच्चई ।। ४. जहा सुणी पूइकण्णी निक्कसिज्जइ सव्वसो । ___ एवं दुस्सीलपडिणीए मुहरी निक्कसिज्जई ।। ५. कणकुंडगं चइत्ताणं' विट्ठे भुंजइ सूयरे । एवं सीलं चइत्ताणं दुस्सीले रमई मिए । ६. सुणियाभाव" साणस्स सूयरस्स नरस्स य । __विणए ठवेज्ज अप्पाणं इच्छंतो हियमप्पणो ।। ७. तम्हा विणयमेसेज्जा सील 'पडिलभे जओ' । बुद्धपुत्त नियागट्ठी न निक्कसिज्जइ कण्हुई ।। ८. निसंते सियामुहरी' बुद्धाणं अंतिए सया । अट्ठजुत्ताणि सिक्खेज्जा निरट्ठाणि उ वज्जए ।। ६. अणुसासिओ न कुप्पेज्जा खंति सेविज्ज पंडिए । खुड्डेहिं सह संसरिंग हासं कीडं च वज्जए ।। १. आणुपुवी (चू); आणुपुदिव (चूपा)। ५. सुणिया+अभावं = सुणियाभावं । २. आणाअनिद्देसयरे (अ)। आणा+अनिद्देसकरे ६. पडिलभिज्जओ (ऋ); पडिलभेज्जओ (अ)। =आणानिद्देसकरे। ७. बुद्धउत्ते (बृ); बुद्धपुत्ते, बुद्धवुत्ते (बृपा)। ३. जहित्ताणं (बृ, चू); चइत्ताणं (बृपा) । ८. सियाअमुहरी (अ); सिया + अमुहरी --- ४. मिई (आ)। सियामुहरी। ६१ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ उत्तरज्झयणाणि १०. मा य चंडालियं कासी' बहुयं मा य आलवे । कालेण य अहिज्जित्ता तओ झाएज्ज एगगो' ।। ११. आहच्च चंडालियं कट्ट न निण्हविज्ज कयाइ वि । कडं कडे त्ति भासेज्जा अकडं नो कडे ति य॥ १२. मा 'गलियस्से व" कसं वयणमिच्छे पुणो पुणो । कसं व दट्ठमाइण्णे पावगं परिवज्जए । १३. अणासवा थूलवया कुसीला मिउं पि चंडं पकरेंति सीसा । चित्ताणुया लहु दक्खोववेया पसायए ते हु दुरासयं पि ।। १४. नापट्टो वागरे किंचि पट्टो वा नालियं वए। कोहं असच्चं कुव्वेज्जा धारेज्जा पियमप्पियं । १५. 'अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दंतो सुही होइ अस्सि लोए परत्थ य ॥ १६. वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मतो बधणेहि वहेहि य॥ १७. पडिणीयं च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा । ___ आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइ वि ॥ १८. न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्टओ। न जुंजे ऊरुणा ऊरु सयणे नो पडिस्सुणे ॥ १६. नेव पल्हत्थियं कुज्जा पक्खपिंडं व संजए । पाए पसारिए' वावि न चिठे गुरुणंतिए । २०. आयरिएहिं वाहितो" तुसिणीओ न कयाइ वि । पसायपेही" नियागट्ठी • उवचिठे गुरु सया ॥ २१. आलवंते लवंते वा न निसीएज्ज कयाइ वि । चइऊणमासणं धीरो जओ जत्तं पडिस्सुणे ।। २२. आसणगओ न पुच्छेज्जा नेव 'सेज्जागओ कया"। आगम्मुक्कुडुओ संतो पुच्छेज्जा पंजलीउडो" ।। १. कुज्जा (उ)। ८. हस्से (चू)। २. एक्कओ (अ)। ६. पसारे नो (बृ); पसारिए (बृपा)। ३. गलियस्सुव्व (उ, ऋ); गलियस्से व्व (अ)। १०. वाहित्तो (अ, आ, इ, उ) । ४. पडिवज्जए (अ, बृपा)। ११. पसायट्ठी (बृपा)। ५. अणासुणा (बृपा)। १२. जुत्तं (अ, उ) । ६. अप्पाणमेव दमए (बु, चू); अप्पा चेव दमेयव्वो १३. णिसिज्जागओ कयाइ (चू)। (बृपा)। १४. पंजलीगडे (६); पंजलीउडो (बृपा) । ७. वर (अ, उ, ऋ)। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (विणयसुयं) ६३ २३. एवं विणयजुत्तस्स सुत्तं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स वागरेज्ज जहासुयं ।। २४. मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणि वए । भासादोसं परिहरे मायं च वज्जए सया ।। २५. न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं न निरठं न मम्मयं । अप्पणट्ठा परदा वा उभयस्संतरेण वा ॥ २६. समरेसु अगारेसु ‘संधीसु य महापहे' । एगो एगित्थिए सद्धि नेव चिठे न संलवे ।। २७. जं मे बुद्धाणसासंति सीएण' फरुसेण वा । मम लाभो त्ति पेहाय पयओ तं पडिस्सुणे ।। २८. अणुसासणमोवायं दुक्कडस्स य चोयणं' । हियं तं मन्नए पण्णो वेसं होइ असाहुणो ।। २६. हियं विगयभया बुद्धा फरुसं पि अणुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं खंतिसोहिकरं' पयं ।। ३०. आसणे उवचिठेज्जा 'अणुच्चे अकुए" थिरे । अप्पट्ठाई निरुलाई निसीएज्जप्पकुक्कुए ॥ ३१. कालेण निक्खमे भिक्खू 'कालेण य" पडिक्कमे । अकालं च विज्जित्ता काले कालं समायरे ।। ३२. परिवाडीए न चिठेज्जा भिक्खू दत्तेसणं चरे । पडिरूवेण एसित्ता मियं कालेण भक्खए ।। ३३. नाइदू रमणासन्ने नन्नेसि चक्खफासओ । एगो चिट्ठज्ज भत्तट्ठा लंघिया तं नइक्कमे ।। ३४. नाइउच्चे व नीए वा नासन्ने नाइदूरओ । फासुयं परकडं पिडं पडिगाहेज्ज . संजए ।। ३५. अप्पपाणेप्पबीयंमि पडिच्छन्नमि संवडे । समय संजए भुजे जयं अपरिसा डयं ।। ३६. सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुच्छिन्ने सुहडे महे । सुणि ट्ठिए सुलढे त्ति सावज्ज वज्जए मुणी ।। १. गिहसन्धीसु महापहे (सु); गिहसंधिसु अ ७. कालेणेव (चू) । महापहेसु (बु)। ८. णाइदूरे अणासण्णे (चू)। २. सीतेण (अ); सीलेण (वृपा, चूपा)। ६. न अइक्कमे (अ)। ३. पेरणं (ब); चोयणा (चू)। १०. अप्पपाणऽप्प (अ, उ, ऋ)। ४. सुद्धिकरं (बृ)। ११. पलि० (चू)। ५. अणुच्चेऽकुक्कुए (ब)। १२.० साडियं (अ, इ सु); साडगं (चू); ६. णिरुवाए (चू)। अप्परि सार्डिर (उ, ऋ, बृ), Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणाणि ३७. रमए पंडिए सासं हयं भदं व वाहए । बालं सम्मइ सासंतो गलियस्सं व वाहए ।। ३८. 'खड्डुया मे चवेडा मे अक्कोसा य वहा य में । कल्लाणमणसासंतो' पावदिट्टि त्ति मन्नई ।। ३६. पुत्तो मे भाय नाइ त्ति साह कल्लाण मन्नई । पावदिट्ठी उ अप्पाणं सासं 'दासं व" मन्नई ।। ४०. न कोवए आयरियं अप्पाणं पि न कोवए । बुद्धोवघाई न सिया न सिया तोत्तगवेसए ।। ४१. आयरियं कुवियं नच्चा पत्तिएण पसायए । विझवेज्ज पंजलिउडो वएज्ज न पुणो त्ति य ।। ४२. धम्मज्जियं च ववहारं बुद्धेहायरियं सया । तमायरंतो ववहार गरहं नाभिगच्छई ।। ४३. 'मणोगयं वक्कगयं' जाणित्तायरियस्स उ । तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए ।। ४४. वित्ते अचोइए निच्चं 'खिप्पं हवइ सुचोइए । जहोवइळं सुकयं किच्चाई कुव्वई सया ।। ४५. नच्चा नमइ मेहावी लोए 'कित्ती से" जायए । ___'हवई किच्चाणं सरणं'' भूयाणं जगई जहा ।। ४६. पुज्जा जस्म पसीयंति संबुद्धा पुव्वसंथया । पसन्ना लाभइस्संति विउलं अट्ठियं सुयं ।। ४७. स पुज्जसत्थे सुविणीयसंसए 'मणोरुई चिट्ठइ कम्मसंपया १३ । तवोसमायारिसमाहिसंवुडे महज्जुई पंचवयाई पालिया ।। ४८. स देवगंधव्वमणस्सपूइए चइत्त देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए ।। ___-त्ति बेमि ।। १. खड्ड्डयाहिं चवेडाहिं, अक्कोसे हि वहेहि य ७. खिप्पं (बृपा, चू) । (ब्र, चू) । खड्डया मे चवेडा मे अक्कोसाय ८. पसन्ने थामवं करे (बृपा, चू)। वहा य मे (बृपा, चूपा)। ६. कित्ती य (अ, उ, बृ)। २. सासन्तं (बृ, चू)। १०. सरणं भवति किच्चाणं (चू)। ३. दासे त्ति (अ, आ, इ, उ, सु)। ११. संपन्ना (बृपा)। ४. पंजलियडो (चू)। १२. मणोरुइ (बृपा)। ५. मेहावी (बृपा)। १३. मणोरुई चिट्ठइ कम्मसंपयं (बृपा); मणिच्छियं ६. मणोरुई वक्करुइं (बृपा, चूपा)। संपयमुत्तमं गया (नागार्जुनीयाः)। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोयं अज्झयणं परीसहपविभत्ती १. सुयं मे आउसं ! तेण भगवया एवमक्खायं--इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए' परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेजा। २. कयरे ते खल बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेजा ? ३. इमे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा, तं जहा--१. दिगिछापरीसहे २. पिवासापरीसहे ३. सीयपरीसहे ४. उसिणपरीसहे ५ दंसमसयपरीसहे ६. अचेलपरीसहे ७. अरइपरीसहे ८. इत्थीपरीसहे ६. चरियापरीसहे १०. निसीहियापरीसहे ११. सेज्जापरीसहे १२. अक्कोसपरीसहे' १३. वहपरीसहे १४. जायणापरीसहे १५. अलाभपरीसहे १६. रोगपरीसहे १७. तणफासपरीसहे १८. जल्लपरीसहे १६. सक्कारपुरक्कारपरीसहे २०. पण्णापरीसहे २१. अण्णाणपरीसहे २२. दंसणपरीसहे । १. परीसहाणं पविभत्ती कासवेणं पवेइया । ___ तं भे उदाहरिस्सामि आणुपुवि सुणेह मे ।। १ दिगिछापरीसहे २. दिगिछापरिगएँ देहे तवस्सी भिक्खु थामवं । ___ न छिदे न छिदावए न पए न पयावए । ३. कालीपव्वंगसंकासे किसे धमणिसंतए । ___ मायण्णे असण-पाणस्स अदीण-मणसो चरे ।। १. भिक्खुचरियाए (ब, चू); भिक्वायरियाए ३. उक्कोस (अ, ऋ)। (बृपा) । . - ४. °परियावेण (बृ); °परितापेण (चू); °परि२. विनिहन्नेज्जा (ब)। गते (बृपा)। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬ २. पिवासापरीस हे ३. सीयपरीस हे ४. उस परोस ५. समसयपरीस हे ६. अचेल परीस हे ७. अरइपरीसहे ४. तओ पुट्ठो सीओदगं न ५. छिन्नावासु परिसुक्क मुदी' पिवासाए दोगंछी सेविज्जा वियडस्सेसणं १३. 'एगयाचेलए एयं ६. चरंतं विरयं 'नाइवेलं मुणी गच्छे ७. न मे निवारणं अत्थि अहं तु अग्गि सेवामि १४. गामाणुगामं अरई १५. अरई पिट्ठओ धम्मारामे लूहं सीयं फुसइ एगया । सोच्चाणं जिणसासणं ॥ छवित्ताणं न विज्जई । इइ भिक्खू न चितए ॥ परिदाहेण तज्जिए । ८. उसिणपरियावेणं ६. उण्हाहितत् घिसु वा परियावेणं सायं नो परिदेव ॥ मेहावी सिणाणं 'नो वि पत्थर" । गायं नो परिसिंचेज्जा" न वीएज्जा य अप्पयं ॥ १०. पुट्ठो य दंस-मसएहिं समरेव महामणी । नागो संगामसी से वा सूरो अभि परं ॥ ११. न संतसे न वारेज्जा मणं पि न पओसए । उवेहे' न हणे पाणे भुंजते मंससोणियं ॥ १२. परिण्णेहिं वत्थेहि होक्खामि त्ति अचेलए । होक्खं इइ भिक्खू न चितए ॥ होइ " सचेले यावि एगया । परिदेवए || अदुवा सचेलए धम्महियं नच्चा नाणी नो १. लद्धसंजमे (बृ, चू); लज्जासंजए, लज्जसंजमे (बृपा); लज्जसंजते ( चुपा) । २. सुप्पिवासिए (अ); सुपिवासए (ऋ) । ३. मुहद्दी ( अ, सु); मुहोदीणे ( ऋ); परिसुक्ख (चू); परिसुक्क मुहे +अदीणे = परिसुक्क मुदी । ४. सव्वतो य परिव्त्रए ( चू, बृपा) । ५. नाइवेलं विहन्निज्जा पावदिट्ठी विहन्नइ (बू, चू); नाइवेलं मुणी गच्छे सोच्चाणं जिणसासणं पंथेसु आउरे सुपिवासिए । 'तं तितिक्खे परीसहं ॥ उत्तरज्झयणाणि लज्जसंजए' । चरे ॥ रीयंतं अणगारं अणुप्पविसे तं तितिक्वे किच्चा विरए निरारंभे उवसंते अकिंचनं । परीसहं ॥ आयरक्खि । मुणी. चरे । ( बृपा, चूपा) । ६. नाभिपत्थए (बृ चू.) ; णो वि पत्थए (बृपा) । ७. परिसेविज्जा ( उ, ऋ) । ८. सम एव ( अ ) । ६. उवेह (उ, ऋ, चू) । १०. एगता अचेलगे भवति (चू); अचेलए सयं होइ ( बृपा, चूपा); एगया + अचेलए = एगयाचेलए । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (परीसहपविभत्ती) ८. इस्थीपरीसहे १६. संगो एस मणुस्साणं जाओ लोगंमि इथिओ । जस्स एया परिणाया सुकडं तस्स सामण्णं ॥ १७. एवमादाय मेहावी 'पंक भूया उ इथिओ" । नो ताहिं विणिहन्नेजा चरेज्जत्तगवेसए ॥ ६. चरियापरीसहे १८. एग एव' चरे लाढे अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि निगमे वा रायहाणिए॥ १६. असमाणो चरे भिक्खू नेव' कुज्जा परिग्गहं । असंसत्तो गिहत्थेहिं अणिएओ परिव्वए । १०. निसीहियापरीसहे २०. सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगओ। अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तासए परं । २१. तत्थ से चिट्ठमाणस्स उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेज्जा उद्वित्ता अन्नमासणं ।। ११. सेज्जापरीसहे २२. उच्चावयाहिं सेज्जाहिं तवस्सी भिक्खु थामवं । नाइवेलं विहन्नेज्जा पावदिट्ठी विहन्नई ॥ २३. पइरिक्कुवस्सयं लटुं कल्लाणं अदु पावगं । "किमेगरायं करिस्सई एवं तत्थऽहियासए । १२. अक्कोसपरीसहे २४. अक्कोसेज्ज परो भिक्खू न तेसि पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २५. सोच्चाणं फरुसा भासा दारुणा गामकंटगा। तुसिणीओ उवेहेज्जा न ताओ मणसीकरे ।। १३. वहपरीसहे २६. हओ न संजले भिक्खू मणं पि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा 'भिक्खुधम्म विचिंतए'"॥ २७. समणं संजयं दंतं हणेज्जा कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए । १. सुकरं (बृपा)। २. एवमाणाय (बू, चू); एवमादाय (बृपा, चूपा)। ३. जहा एया लहुस्सगा (बृपा, चूपा)। ४. विहन्नेज्जा (अ, सु)। ५. एगे (बृपा); एगो (चूपा)। ६. नेयं (अ)। ७. अच्छमाणस्स (बृपा, चू)। ८. उवसग्गभयं भवे (बपा, चूपा)। ६. उवट्ठित्ता (उ)। १०. कि मज्झ एग रायाए (चू)। ११. धम्ममि चितए (ब); धम्मं व चितए (बुपा)। १२. ण तं पेहे असाहुवं (ब); न य पेहे असाधुयं, एवं पेहिज्ज संजतो (बृपा); न ता पेहे असाधुवं (चू); एवं पीहेज्ज संजए (चूपा)। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ उत्तरज्झयणाणि १४. जायणापरीसहे २८. दुक्करं खल भो ! निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किचि अजाइयं ।। २६. गोयरग्गपविट्ठस्स पाणी नो सुप्पसारए । सेओ अगारवासु त्ति इइ भिक्खू न चितए ।। १५ अलाभपरीसहे ३०. परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणि दिए । लद्धे पिंडे अलद्धे वा नाणुतप्पेज्ज संजए' ।। ३१. अज्जेवाहं न लब्भामि अवि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंविखे अलाभो तं न तज्जए । १६. रोगपरीसहे ३२. नच्चा उप्पइयं दुक्खं वेयणाए दुहट्टिए । अदीणो थावए पण्णं पुट्ठो तत्थहियासए । ३३. तेगिच्छं नाभिनंदेज्जा संचिक्खत्तगवेसए । एवं' खु तस्स सामण्णं जं न कुज्जा न कारवे ।। १७. तणफासपरीसहे ३४. अचेलगस्स लूहस्स संजयस्स तवस्सिणो । तणेसु सयमाणस्स हुज्जा गायविराहणा ।। ३५. आयवस्स निवाएणं अउला हवइ वेयणा । एवं' नच्चा न सेवंति तंतुजं तणतज्जिया ॥ १८. जल्लपरीसहे ३६. किलिन्नगाए" मेहावी पंकेण व रएण वा । घिसु वा परितावेण सायं नो परिदेवए । ३७. वेएज्ज निज्जरा-पेही 'आरियं धम्मऽणत्तरं" । जाव सरीरभेउ त्ति जल्लं काएण धारए॥ १६. सक्कारपुरक्कार- ३८. अभिवायणमब्भुट्ठाणं सामी कुज्जा निमंतणं । परीसहे जे ताई पडिसेवंति न तेसि पीहए मुणी।। ३६. अणुक्कसाई अप्पिच्छे अण्णाएसी अलोलुए । 'रसेसु नाणुगिज्झज्जा'" 'नाणुतप्पेज्ज पण्णवं"। १. पंडिए (अ)। णुत्तरं (अ)। २. पडिसंचिक्खे (सु)। १०. उव्वटे (चू, बृपा); धारए (चूपा)। ३. एवं (आ, इ, चू, बृपा)। ११. अमहेच्छ (चू)। ४. तिउला (बू, चू); अतुला, विपुला वा (बृपा)। १२. सरसेसु (ब); रसेसु (बुपा)। ५. एयं (अ, उ, ऋ, बृ); एवं (बृपा)। १३. रसिएसु णातिगिज्झज्जा (चू); रसेसु नाणु ६. तन्तयं (बृपा, चूपा)। (चूपा)। ७. किलिट्ठगाए (बृपा, चूपा) । १४. न तेसि पीहए मुणी (बृ, चू); नाणुतप्पेज्ज ८. वेयज्ज (अ); वेइंतो, वेइज्ज, वेयंतो (बृपा)। पण्णवं (बपा, पा)। ६. आयरियं धम्ममणुत्तरं (स); आरियं धम्मम Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं अज्झयणं (परीसहपविभत्ती) २०. पण्णापरीसहै ४०. से नूणं मए पुव्वं कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ।। ४१. अह पच्छा उइज्जंति कम्माणाणफला कडा । एवमस्सासि अप्पाणं नच्चा कम्मविवागयं ।। २२. अण्णाणपरीसहे ४२. निरट्टगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवडो। जो सक्खं नाभिजाणामि धम्म कल्लाण पावगं । ४३. तवोवहाणमादाय पडिम पडिवज्जओ । 'एवं पि विहरओ मे" छउमं न नियट्टई ।। २२. बंसणपरीसहे ४४. नत्थि नणं परे लोए इड्ढी वावि तवस्सिणो । अदुवा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चितए । ४५. अभू जिणा अत्थि जिणा अदुवावि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु इइ भिक्खू न चितए ।। ४६. एए परीसहा सव्वे कासवेण पवेइया । जे भिक्खू न विहन्नेज्जा' पुट्ठो केणइ कण्हुई ।। -त्ति बेमि ॥ १. समक्खं (चू)। २. पडिवज्जिअ (ब); पडिवज्जओ (बृपा)। ३. एवं पि मे विहरओ (चू)। ४. णिहणेज्जा (चू)। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अभयणं चाउरंगिज्जं १. चत्तारि माणुसतं २. समावन्नाण संसारे कम्मा नाणाविहा कट्टु ३. एगया देवलोएस एगया 'आसुरं कायं" ४. एगया खत्तिओ होइ तओ कीड-पयंगो य परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो । सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ।। नाणागोत्तासु जाइसु । पुढो विस्संभिया पया ॥ नरएसु वि एगया । आहाकम्मेहिं गच्छई || तओ चंडाल बोक्सो । तओ कुंथु पिवीलिया || पाणिणो कम्म किब्बिसा । 'सव्वट्ट े सु व" खत्तिया । सम्मूढा दुक्खया बहुवे । अमाणसासु जोणीसु विणिहम्मंति पाणिणो ।। ७. कम्माणं तु पहाणार आणुपुब्वी कयाइ जीवा सोहमणुपत्ता 'आययंति मणुस्सयं ॥ ८. माणुस्सं विग्गहं लद्धं सुई धम्मस्स ५. एवमावट्टजोणीसु न निविज्जंति संसारे ६. कम्म संगेहि जं सोच्चा पडिवज्जंति तवं ६. आहच्च सवणं लद्ध सद्धा सोच्चा नेआउयं मग्गं बहवे १. देहिणो (बृपा, चू) । २. कडा (चू ) । ३. पुणो (चूपा) । ४. आसुरे काए ( चुपा) । १०० १०. सुइं च लद्धुं सद्धं च बहवे रोयमाणा वि उ । खतिमहिंसयं ॥ परमदुल्लहा । परिभस्सई || वीरियं पुण दुहं । 'नो एणं" पड़िवज्जए || ५. य ( अ ) ; वि (ऋ) । ६. सव्वट्ट इव (बृपा, चूपा) । ७. जायन्ते मणुसत्तयं ( बृपा) । ८. नोयणं (स, सु, बृ)। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ तइयं अज्झयणं (चाउरंगिज्ज) ११. माणुसत्तंमि आयाओ जो धम्म सोच्च सद्दहे । तवस्सी बीरियं लद्धं संवुडे निद्धणे रयं ।। १२. 'सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई । निव्वाणं परमं जाइ 'घयसित्त व्व'' पावए' ।। १३. विगिच' कम्मुणों हेउं जसं संचिण खंतिए । पाढवं सरीरं हिच्चा उड्ढं पक्कमई दिसं ।। १४. विसालिसेहिं सीलेहिं जक्खा उत्तरउत्तरा । महासुक्का व दिप्पंता' मन्नता अपुणच्चवं ।। १५. अप्पिया देवकामाणं कामरूवविउव्विणो । उड्ढे कप्पेसु चिट्ठति पुव्वा वाससया बहू ।। १६. तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जक्खा आउक्खए बुया । उति माणुसं जोणि से दसंगेऽभिजायई ।। १७. खेत्तं वत्थु हिरण्णं च पसवो दास-पोरुसं । चत्तारि कामखंधाणि तत्थ से उववज्जई ।। १८. मित्तवं नायव होइ उच्चागोए य वण्णवं । अप्पायंके महापण्णे अभिजाए जसोबले ।। १६. भोच्चा माणुस्सए भोए अप्पडिरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे केवलं बोहि बुझिया ।। २०. चउरंगं दुलहं मत्ता संजमं पडिवज्जिया । तवसा धूयकम्मंसे सिद्ध हवइ सासए ।। -त्ति बेमि ।। १. घयसत्तिव्व (उ); घयसित्तिव्व (ऋ, सु); घयसित्ते व (ब)। २. चउद्धा संपयं लधु इहेव ताव भायते । तेयते तेजसंपन्ने घयसित्ते व पावए ।। (नागार्जुनीयाः) । ३. विकिचि (अ, आ); विकिंच (चू); विगिंच (चूपा)। ४. कम्मणो (उ, ऋ)। ५. जलंता (चू)। ६. नाइवं (उ); नाइव्वं (ऋ) । ७. नच्चा (उ)। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं असंखयं १. असंखयं' जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । ___ एवं' वियाणाहि जणे पमत्ते कण्णू' विहिंसा अजया गहिति ॥ २. जे पावकम्मेहि धणं मणूसा समाययंती अमई गहाय । पहाय ते पास पयट्टिए' नरे वेराणबद्धा नरयं उर्वति ।। ३. तेणे जहा संधिमुहे गहीए सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । एवं पया पेच्च' इहं च लोए 'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि" ।। ४. संसारमावन्न 'परस्स अट्रा० साहारणं जं च करेइ कम्म । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उवेति । ५. वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते इममि लोए अदुवा परत्था । दीवप्पणठे व अणंतमोहे नेयाउयं दद्रुमदठ्ठमेव ।। ६. सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी न वीससे पंडिए आसुपण्णे । घोरा महत्ता अबलं सरीरं भारुडपक्खी व चरप्पमत्तो । ७. चरे पयाइं परिसंकमाणो जं किंचि पासं इह मण्णमाणो । लाभंतरे जीविय वहइत्ता पच्छा परिण्णाय मलावधंसी। १. उपनीयति जीवितं अप्पमायु, २. एणं (बृपा)। जरूपनीतस्स न सन्ति ताणा । ३. किण्णू (चू)। एतं भयं मरणे पेक्खमाणो, ४. अमय (ऋ, बृपा, चूपा)। पुआनि कयिराथ सुखावहानि ॥ ५. पइट्ठिए (उ); पयट्ठिए (ऋ)। (अंगुत्तरनिकाय भा० १, पृ० १५६) ६. पेच्छ (ब); पेच्च (बृपा) । अस्य संदर्भे प्रस्तुतसूत्रस्य ‘मा पमायए' इति ७. पि (चू, बृपा)। पाठः समालोच्यो भवति । 'असंखयं जीविय- ८. मोक्खो (ब, चू)। मप्पमायु' इति पाठस्य परिकल्पना जायते । ६. ण कम्मुणो पीहति तो कयाती (बृपा, चूपा) संभाव्यते केनापि कारणेन 'मप्पमायु' इति १०. परंपरेण (चू); परस्स अट्ठा (चूपा) । पाठः ‘मा पमायए' इति रूपे परिवर्तितोभूत् । १०२ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (असंखयं) १०३ ८. छंदं निरोहेण उवेइ मोक्खं आसे जहा सिक्खियवम्मधारी । 'पुव्वाइं वासाई" चरप्पमत्तो तम्हा. मुणी खिप्पमुवेइ मोक्खं ॥ ६. स पुत्वमेव न लभेज्ज पच्छा एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले आउयंमि' कालोवणीए सरीरस्स भए । १०. खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुट्ठाय पहाय' कामे । समिच्च लोयं समया महेसी अप्पाणरक्खी चरमप्पमत्तो। ११. मुह मुह मोह-गुणे जयंतं अणेगरूवा समणं चरंतं ॥ फासा फुसंती असमंजसं च न तेसु भिक्खू मणसा पउस्से । १२. 'मंदाय फासा बहुलोहणिज्जा'६ तहप्पगारेसु मणं न कुज्जा । रक्खेज्ज कोहं विणएज्ज माणं मायं न सेवे पयहेज्ज लोहं ।। १३. जे संखया तुच्छ परप्पवाई ते पिज्ज-दोसाणगया परज्झा । एए 'अहम्मे' त्ति दुगुंछमाणो कंखे गुणे जाव सरीरभेओ। -त्ति बेमि ॥ १. पुवाणि वासाणि (चू)। २. पुन्वमेवा (चू); पुव्वमेवं (चूपा)। ३. आउंमि (उ)। ४. पयहाहि (चू)। ५. व चरप्पमत्तो (ऋ); चरऽपमत्तो (उ)। ६. मंदाउ तहा हियस्स बहलोभणेज्जा (चूपा)। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ पंचमं अज्भयण अकाममरणिज्जं १. अण्णवंसि मोहंसि' 'ए एगे महापणे इमं तत्थ २. संतिमे य" दुवे ठाणा अक्खाया अकाममरणं चैव सकाममरणं ४. तत्थिमं कामगिद्धे ३. बालाणं असई तु मरणं सई अकामं पंडियाणं. सकामं तु उक्कोसेण ठाणं महावीरेण बाले भिसं कूराइं कामभोगेसु एगे कूडाय परे लोए चक्खुदिट्ठा इमा कामा ५. जे गिद्धे न मे दिट्ठ ६. हत्थागया इमे को जाण' परे लोए ७. जणेण सद्धि होक्खामि पढमं जहा १. महोघंसि ( बृपा) । २. एगे तरइ° (ब); एगे तिष्णे (बृपा) एगो तरति दुत्तरं (चू) ; एगो तिण्णे ( चुपा) । ३. पन्हमुदाहरे (बृपा, चूपा, सु) । तिण्णे दुरुत्तरं। मुदाहरे ॥ मारणंतिया । तहा ॥ भवे । भवे ॥ देसियं । कुव्वई ॥ कालिया जे अणागया । अस्थि वा नत्थि वा पुणो ? इइ काम-भोगाणुराणं सं ८. तओ से दंडं समारभई तसेसु गच्छई । रई ॥ अट्ठाए य अट्ठाए भूयग्गामं ६. हिंसे बाले मुसावाई माइल्ले पिसुणे सढे भुंजमाणे सुरं मंसं सेयमेयं ति मन्नई ॥ वयसा मत्ते वित्ते गिद्धेय इत्थि । मलं संचिणइ १०. कायसा दुओ सिसुणागु व्व मट्टियं ॥ बाले पगब्भई । संपडिवज्जई || थावरेसु य । विहिंस || ४. संति मेए (बृ) ; संति खलु (च्) । ५. बालाण य (ऋ) । ६. जाणाइ (चू) । Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (अकाम म रणिज्जं ) ११. तओ पुट्ठो आयकेण गिलाणो पभीओ परलोगस्स कम्माणुप्पेहि मे नरए ठाणा असीलाणं च बालाणं कूरकम्माणं पगाढा जत्थ १३. तत्थोववाइयं ठाण जहा १२. सुया आहा मेहि गच्छंतो 'सो पच्छा 'अकामनरणं १७. एयं एत्तो १८. मरणं सम १४. जहा सागडिओ जाणं विसम मग्गमोइण्णो' विउक्कम्म अहम्म पडिवज्जिया । हिच्चा महापहं । 'अक्ख भग्गंमि" सोयई ॥ १५. एवं धम्मं १६. तओ बाले मच्चुमुहं पत्ते अवे भग्गे व सोयई । से मरणंतम्मि बाले संतस्स ई भया । मरई" धुत्ते व कलिना जिए । अकाममरणं बालाणं तु पवेइयं । सकाममरणं पंडियाणं सुणेह मे ॥ पि सपुण्णाणं जहा मेयमणुस्सुयं । विष्पसष्णमणाघाय संजयाण सीओ ॥ १६. न इमं सव्वेसु भिक्खूसु" न इमं सव्वेसुगारिसु । नाणासीला अगारत्था विसमसीला य भिक्खुणो ॥ २०. संति एगेहि भिक्खुहि गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थेहि य सव्वेहिं साहवो संजभुत्तरा ॥ २१. चीराजिणं नगिणिणं" जडी-संघाडि-मुंडिण 1 एयाणि विन तायंति दुस्सील परियागयं ॥ २२. पिंडोलए " दुस्सोले नरगाओ न मुच्चई । frrary वा हत्थे वा सव्वए कम्मई दिवं ॥ २३ अगारि-सामाइयंगाई सड्ढो कारण पोसहं दुहओ पक्खं एगराय न १. तु (च्) । २. स एवं (च्) । ३. मग्गमोगाढा (च) मग्गमोगाढो (वृपा ) । ४. अक्खभग्गमि (बु); अक्वस्स भग्गे (चू) अक्खे भग्गमि (बृपा) । ५. संतसई (च्) । ६. मरिऊण अकामं तु (चू) । परितप्पई । अप्पणो || जा गई । वेयणा ॥ यस्यं । परितप्पई || फासए । हावए || ७. सुपुण्णाणं ( अ ) । ८. सुप्पसन्न मणक्वायं (बृ); सुपसन्नेहि अक्खायं ( बृपा, चू), विप्पसण्णमणाघायं (चूपा) । ६. सन्वेसि भिक्खुणं (च्) । १०. सव्वेसु + अगारिसु सव्वेसुगारि । ११. णिगिणिणं (बृ); णियणं (च्) । १२. वि (अ, चू) । १०५ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ उत्तरउझयणाणि २४. एवं सिक्खा-समावन्ने गिहवासे' वि सुव्वए । मुच्चई छवि-पव्वाओ गच्छे जक्ख-सलोगयं ।। २५. अह जे संवुडे भिक्खू दोण्हं अन्नयरे सिया । सव्वदुक्खप्पहीणे वा देवे वावि महड्ढिए । २६. उत्तराई विमोहाइं जुइमंताणुपुव्वसो । समाइण्णाइं जक्खेहिं आवासाइं जसंसिणो । २७. दोहाउया इड्ढिमंता समिद्धा कामरूविणो । अहुणोववन्न-संकासा भज्जो अच्चिमालिप्पभा ।। २८. ताणि ठाणाणि गच्छंति सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे संति परिनिव्वुडा ।। २६. तेसिं सोच्चा सपुज्जाणं संजयाण वसीमओ । न संतसंति मरणंते सीलवंता बहुस्सया ।। ३०. तुलिया विसेसमादाय दयाधम्मस्स खंतिए । विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ।। ३१. तओ काले अभिप्पेए सड्ढी तालिसमंतिए । विणएज्ज लोमहरिसं भेयं देहस्स कंखए ।। ३२. अह कालंमि संपत्ते 'आघायाय समुस्सयं" । सकाममरणं मरई तिण्हमन्नयरं मुणी ।। -त्ति बेमि ।। १. गिहिवासे (उ)। २. एगयरे (चू)। ३. सुपुज्जाणं (चू)। ४. सुत्तक्खात समाहितो (च); आघायाए समुस्सयं (चूपा)। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ8 अज्झयणं खुड्डागनियंठिज्ज १. जावंतऽविज्जापुरिसा' 'सव्वे ते दुक्खसंभवा । ___ लप्पंति' बहुसो मूढा संसारंमि अणतए ।। २. 'समिक्ख पंडिए तम्हा" पासजाईपहे बहू । ___अप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्ति भूएस कप्पए ।। ३. माया पिया पहुसा भाया भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाय लुप्तस्स सकम्मुणा॥ ४. एयमझें सपेहाए पासे समियदसणे । छिद गेहिं सिणेहं च न कंखे पुव्वसंथवं ॥ ५. गवासं मणिकुंडल पसवो दासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताण कामरूवी भविस्ससि ।। [थावर जंगम चेव धणं धण्ण उवक्खरं । पच्चमाणस्स कम्मेहि नालं दुक्खाउ मोयणे ॥] ६. अज्झत्थं सव्वओ सव्वं दिस्स पाणे पियायए । 'न हणे पाणिणो पाणे' भयवेराओ उवरए । ७. आयाणं नरयं दिस्स नायएज्ज तणामवि । __ 'दोगुंछी" अप्पणो पाएर दिन्नं भुजेज्ज भोयणं ।। १. जावंत + अविज्जापुरिसा = जावंतविज्जा- ७. गेहं (उ)। पुरिसा। ८. कोष्ठकवर्ती श्लोक: चूणौं बृहदवृत्ती सुख२. ते सव्वे दुक्खमज्जिया (नागार्जुनीयाः) । बोधायां च नास्ति व्याख्यातः । . ३. लुंपंति (चू)। ६. नो हिंसेज्ज पाणिणं पाणे (चू); नो हणे ४. तम्हा समिक्ख मेहावी (चू, बृपा); समिक्ख पाणिणं पाणे (बृपा)। ___पंडिए तम्हा (चूपा)। १०. दोगंछी (ऋ)। ५. अत्तट्ठा (बृपा, नागार्जुनीया)। ११. अप्पणो पाणिपाते (चूपा) ६. भूएहिं (चू)। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ उत्तरज्झयणाणि ८. इहमेगे उ मन्नति अप्पच्चक्खाय पावगं । __ आयरियं विदित्ताणं सव्वदुक्खा विमुच्चई ॥ ६. भणंता अकरता य बंधमोक्खपइण्णिणो । वायाविरियमेत्तेण समासासेंति अप्पयं ॥ १०. न चित्ता तायए भासा कओ विज्जाणसासणं ? विसन्ना पावकम्मेहि' बाला पंडियमाणिणो ॥ ११. जे केइ सरीरे सत्ता वण्णे रूवे य सव्वसो । मणसा कायवक्केणं सव्वे ते दुक्खसंभवा ।। १२. आवन्ना दीहमद्धाणं संसारंमि अणंतए । तम्हा सव्वदिसं पस्स अप्पमत्तो परिव्वए । १३. बहिया उड्ढमादाय नावकखे कयाइ वि । पुवकम्मखयट्ठाए इमं देहं समुद्धरे ॥ १४. विविच्च' कम्मुणो हेउं कालकंखो परिव्वए । मायं पिंडस्स पाणस्स कडं लद्धण भक्खए । १५. सन्निहिं च न कुव्वेज्जा लेवमायाए संजए । पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खो' परिव्वए । १६. एसणासमिओ लज्जू गामे अणियओ चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहि पिंडवायं गवेसए । १७. 'एवं से उदाह, अणत्तरनाणी अणत्तरदंसी अणत्तरनाणदंसणधरे । 'अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए। -त्ति बेमि । १. आयारियं (बृ); आयरियं (बृपा)। २. पावकिच्चेहि (बृपा)। ३. वयसा चेव (ब, चू); कायवक्केणं (बपा) । ४. विगिंच (अ, आ, इ, उ, बृपा)। ५. निरवेक्खी (चू)। ६. एवं से उदाहु अरहा पासे पुरिसादाणीए । भगवते वेसालिए बुद्धे परिनिव्वुडे ॥ (बृपा, चूपा) Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं उरभिज्ज १. जहाएसं समुद्दिस्स कोइ पोसेज्ज एलयं । ___ ओयणं 'जवसं देज्जा' पोसेज्जा 'वि सयंगणे ।। २. तओ से पुढे परिवूढे जायमेए महोदरे । पीणिए विउले देहे आएसं परिकखए' ।। ३. जाव न एइ आएसे ताव जीवइ से दुही । __ अह पत्तं मि आएसे सीसं छेत्तूण भुज्जई ।। ४. जहा खल से उरब्भे आएसाए समीहिए । एवं बाले अहम्मिठे ईहई नरयाउयं ॥ ५. हिंसे बाले मुसावाई अद्धाणंमि विलोवए । ____ अन्नदत्तहरे तेणे माई कण्हुहरे सढे । ६. इत्थीविसयगिद्धे य महारंभपरिग्गहे । ___भुंजमाणे सुरं मंसं परिवूढे परंदमे ।। ७. अयकक्करभोई य तुंदिल्ले चियलोहिए । ____ आउयं नरए कंसे जहाएसं व एलए। ८. आसणं सयणं जाणं वित्तं 'कामे य भुजिया । दुस्साहडं धणं हिच्चा बहु संचिणिया रयं ।। ६. तओ कम्मगुरू जंतू पच्चुप्पन्नपरायणे । ___ अय व्व आगयाएसे मरणंतंमि सोयई ।। १. जवसे देति (चू)। ६. बाले (ब); तेणे (बृपा)। २. विसयंगणे (बृपा, चू)। ७. कन्नुहरे (सु); किन्नुहरे (चू) । ३. पडि० (बृ); परि० (बृपा) । ८. सोणिए (उ, ऋ)। ४. एज्जति (चू)। ६. कामाइं (चू)। ५. कोही (बपा)। १०. पलज्जणे (बू)। Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणाणि १०. तओ आउपरिक्खीणे' 'चया देहा" विहिंसगा' । आसुरियं दिसं बाला' 'गच्छंति अवसा" तमं ॥ ११. जहा कागिणिए हेउं सहस्सं हारए नरो । __ अपत्थं अंबगं भोच्चा राया रज्जं तु हारए ।। १२. एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए । आउंकामा य दिग्विया ।। १३. अणेगवासानउया जा सा पण्णवओ ठिई । जाणि जोयंति दुम्मेहा ऊणे वाससयाउए । १४. जहा य तिन्नि वणिया मूलं घेत्तण निग्गया । एगोऽत्थ लहई लाहं एगो मूलेण आगओ। १५. एगो मूलं पि हारित्ता आगो तत्थ वाणिओ । ___ ववहारे उवमा एसा एवं धम्मे वियाणह ।। १६. माणसत्तं भवे मूलं लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ।। १७. दुहओ गई बालस्स आवई वहमूलिया । देवत्तं माणुसत्तं च जं जिए लोलयासढे ।। १८. तओ जिए सई होइ दुविहं दोग्गइं गए । दुल्लहा तस्स उम्मज्जा अद्धाए सुइरादवि ।। १६. एवं जियं सपेहाए तुलिया बालं च पंडियं । ___ मूलियं ते पवेसंति माणुसं जोणिमेंति' जे ।। २०. वेमायाहिं सिक्खाहिं 'जे नरा गिहिसव्वया । उति माणुसं जोणि कम्मसच्चा" हु पाणिणो ।। २१. जेसि तु विउला सिक्खा मूलियं 'ते अइच्छिया'१२ । सीलवंता सवीसेसा अद्दीणा जंति देवयं ।। १. आयुबले क्खीणे (चू)। २. चुओदेहा (बृ); चुयदेहो (बृपा). ३. विहिंसगो (बृ)। ४. बालो (ब)। ५. गच्छइ अवसो (ब)। ६. उ (ऋ)। ७. हारिन्ति (बपा)। ८. जिए (ब)। ६. जोणिमिन्ति (उ, चू)। १०. सुव्वया बंभचारिणो (चू); जे नरा गिहि सुव्वया (चूपा)। ११. कम्मसत्ता (बृपा, चूपा)। १२. तिउच्छिया (अ); ते उट्ठिया (चू); ते अइच्छिया (चूपा); विउट्टिया, अतिट्ठिया, अतिच्छिया (ब)। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (उरभिज्ज) १११ २२. एवमद्दीणवं' भिक्खं अगारि' च वियाणिया । कहण्णु जिच्चमेलिक्खं 'जिच्चमाणे न' संविदे ? २३. जहा कुसग्गे उदगं समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अंतिए ।। २४. कुसग्गमेत्ता इमे कामा सन्निरुद्धंमि आउए । ___कस्स हेउं पुराका जोगक्खेमं न संविदे ? २५. इह कामाणियट्टस्स अत्तठे अवरज्झई ।। 'सोच्चा' नेयाउयं मग्गं जं भुज्जो परिभस्सई । २६. 'इह काम णियट्टस्स अत्तठे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहेणं भवे देवि त्ति मे सुयं ।।" २७. इड्ढी जुई जसो वण्णो आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु तत्थ से उववज्जई ।। २८. बालस्स पस्स बालत्तं अहम्म पडिवज्जिया । चिच्चा धम्म अहम्मिठे नरए' उववज्जई ।। २६. धीरस्स पस्स धीरत्तं सव्वधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिठे देवेसु उववज्जई ।। ३०. तुलियाण बालभावं अबालं चेव पंडिए । चइऊण बालभावं अबालं सेवए मुणि ।। -त्ति बेमि । १. एवं अदीणवं (बृ, चू)। २. आगारि (उ, ऋ)। ३. जिच्चमाणं व (बू)। ४. पुरोकाउं (चू)। ५. पत्तो (बृपा, चूपा)। ६. पूइदेह निरोहेणं भवे देवे त्ति मे सुयं (चूपा)। ७. अयं श्लोक: चूणों नास्ति व्याख्यातः । ८. पडिवज्जिणो (अ, बृपा)। ६. नरएसु (अ, उ)। १०. धम्मठे (उ) Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं काविलीयं १. 'अधवे असासयाम ससाराम असासयंमि' संसारंमि दुक्खपउराए। ____ कि नाम होज्ज तं कम्मयं 'जेणाहं दोग्गइं न गच्छेज्जा । २. विजहित्त पुव्वसंजोगं न सिहं कहिचि कुव्वेज्जा । ____ असिणेह सिणेहकरेहि दोसपओसेहि' मुच्चए भिक्खू ।। ३. तो नाणदसणसमग्गो हियनिस्सेसाए सव्वजीवाणं । तेसि विमोक्खणट्ठाए भासई मुणिवरो विगयमोहो । ४. सव्वं गंथं कलहं च विप्पजहे तहाविह भिक्खू । ___'सव्वेसु कामजाएसु' पासमाणो न लिप्पई ताई ।। ५. भोगामिसदोसविसण्णे हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । __बाले य मंदिए मूढे बज्झई मच्छिया । व खेलंमि ।। ६. दुपरिच्चया इमे कामा नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं । ___ अह संति सुव्वया साहू जे तरंति 'अतरं वणिया व ।। ७. समणा मु एगे वयमाणा पाणवहं मिया अयाणता । ____मंदा निरयं गच्छंति बाला पावियाहि दिट्ठीहि ।। ८. न हु पाणवहं अणुजाणे मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहि अक्खायं जेहिं इमो साहुधम्मो पण्णत्तो ।। १. अधुवंमि मोहगहणए (नागार्जुनीयाः) । २. जेणाहं (धं) दुग्गइत्तो मुच्चेज्जा (चु, बृपा) ३. दोसपएहिं (बृ); दोसपउसेहिं (बृपा) । ४. हियनिस्सेसाय (सु, चू)। ५. तहाविहो (बृपा, चूपा) । ६. सव्वेहि कामजाएहिं (चू)। ७. सव्वे (चू)। ८. वणिया व समुई (बृपा, चू); अतरं वणिया व (चूपा)। ६. नरयं (बृपा, चू)। १०. एवायरिएहि (अ, ऋ); एवमारिएहि (आ, Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टमं अज्झयणं (काविलीयं) ११३ ६. पाणे य नाइवाएज्जा से 'समिए त्ति वुच्चई ताई । तओ से पावयं कम्मं निज्जाइ उदगं व थलाओ। १०. 'जगनिस्सिएहिं भूएहिं तसनामेहि थावरेहि च।" नो तेसिमारभे दंडं मणसा वयसा कायसा चेव ॥ ११. सुद्धसणाओ नच्चाणं तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए । १२. पंताणि चेव सेवेज्जा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वुक्कसं पुलागं वा 'जवणट्ठाए निसेवए" मंथु ।। १३. जे लक्खणं च सुविणं च अंगविज्जं च जे पउंजंति । न हु ते समणा वुच्चंति एवं आयरिएहि अक्खायं ।। २४. इह जीवियं अणियमेत्ता पन्भट्ठा समाहिजोएहि । ते कामभोगरसगिद्धा उववज्जति आसुरे काए । १५. तत्तो वि य उवट्टित्ता संसारं बहु अणुपरियडंति । बहकम्मलेवलित्ताणं बोही होइ सदुल्लहा तेसि ।। १६. कसिणं पि जो इमं लोयं पडिपण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया । १७. जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोहो पवड्ढई । दोमासकयं कज्जं कोडीए वि न निद्रियं ।। १८. नो रक्खसीसु गिज्झज्जा गंडवच्छासऽणेगचित्तासु जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेल्लंति जहा व दासेहिं ॥ १६. नारीस नो पगिज्झज्जा इत्थी विप्पजहे अणगारे । धम्मं च पेसलं नच्चा तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । २०. इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसद्धपण्णणं । तरिहिंति जे उ काहिंति तेहिं आराहिया दुवे लोग ।। –त्ति बेमि ॥ १. समीए त्ति (अ); समीइ त्ति (उ, ऋ); ५. जवणट्ठा वा सेवए (ब); जवणट्टाए णिसेवए समिय त्ति (चू)। (बृपा)। २. णिण्णाइ (चू, बृपा)। ६. आरिएहिं (अ, बृ)। ३. जगनिस्सियाण भूयाणं तसाणं थावराण य ७. अणपरिति (चू); अनुपरियटुंति (ऋ); (बृपा); जगणिसित भूताणं तसणामाणं च अनुपरियति (अ, बृ०); अनुचरंति (बृपा)। थावराणं च (चू); जगनिस्सितेसु थावरणामेसु ८. जत्थ (बृपा) । भूतेसु तसणामेसु वा (चूपा); जगनिस्सिएहिं ६. तुसिज्जा (अ, ऋ); तुसिज्ज (उ); (सं) भूएहिं तसनामेहिं थावरेहिं वा (चूपा) । तुस्से (चू)। ४. वक्कसं (चू)। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं नमिपव्वज्जा १. चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसंतमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाइ। २. जाई सरित्तु भयवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे अभिणिक्खमई नमी राया ।। ३. सो देवलोगसरिसे अंतेउरवरगओ वरे भोए । ___ जित्तु' नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई ।। ४. मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खंतो एगंतमहिडिओ भयवं ॥ ५. कोलाहलगभूयं आसी मिहिलाए पव्वयंतंमि । ___तइया रायरिसिमि नमिमि अभिणिक्खमंतंमि ॥ ६. अब्भुट्ठियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहणरूवेण इमं वयणमब्बवी ॥ ७. किण्णु भो! अज्ज मिहिलाए कोलाहलगसंकुला । ___ सुव्वंति दारुणा सद्दा पासाएसु गिहेसु य ?॥ ८. ण्यमटठं निसामित्ता देऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविदं इणमब्बवी ॥ ६. मिहिलाए चेइए वच्छे सीयच्छाए मणोरमे । पत्तपुप्फफलोवेए बहूणं बहुगुणे सया । १०. वाएण हीरमाणंमि चेइयंमि मणोरमे । दुहिया असरणा अत्ता एए कंदंति भो ! खगा ।। ११. एयमढं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसि देविदो इणमब्बवी ।। १२. एस अग्गी य वाऊ य एयं डझइ मंदिरं । भयवं! अंतेउरं तेणं कीस णं नावपेक्खसि ?। १. भोत्तूण (चूपा)। २. नावपिक्खह (अ)। ११४ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ नवमं अज्झयणं (नमिपव्वज्जा) १३. एयमढें निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविदं इणमब्बवी ॥ १४. सुहं वसामो जीवामो जेसि मो नत्थि किंचण । मिहिलाए डज्झमाणीए न मे डज्झइ किंचण ॥ १५. चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विज्जई किंचि अप्पियं पि न विज्जए । १६. बहु खु मुणिणो भई अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स एगतमणुपस्सओ ॥ १७. एयमढं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ।। १८. पागारं कारइत्ताणं गोपुरट्टालगाणि च । उस्सूलगसयग्घीओ' तओ गच्छसि खत्तिया !॥ १६. एयमलृ निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविदं इणमब्बवी।। २०. सद्ध नगरं किच्चा तवसंवरमग्गलं 'खंति निउणपागारं तिगृत्तं दुप्पधंसयं"। २१. धणुं परक्कम किच्चा जीवं च इरियं सया । धिइं च केयणं किच्चा सच्चेण पलिमंथए । २२. तवनारायजुत्तेण भेत्तणं कम्मकंचुयं । मुणी विगयसंगामो भवाओ परिमुच्चए । २३. एयमठें निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविदो इणमब्बवी। २४. पासाए" कारइत्ताणं वद्धमाणगिहाणि य । बालग्गपोइयाओ य तओ गच्छसि खत्तिया !॥ २५. एयमळं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविदं इणमब्बवी ॥ २६. संसयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं । जत्थेव गंतुमिच्छेज्जा तत्थ कुव्वेज्ज सासयं ।। २७. एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसि देविदो इणमब्बवी ॥ २८. आमोसे लोमहारे य गंठिभेए य तक्करे । नगरस्स खेमं काऊणं तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ १. उच्छूलग (स); ओमूलग (चू) । (बृपा) । २. नगरि (ब)। ४. पलिकथए (चू)। ३. खन्ति निउणं पागारं तिगुत्ति दुप्पधंसयं ५. पासायं (ऋ) । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ उत्तरज्झयणाणि २६. एयमझें निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविदं इणमब्बवी ॥ ३०. असई तु मणुस्सेहि मिच्छा दंडो पजंजई । ___ अकारिणोऽत्थ बझति मुच्चई कारओ जणो॥ ३१. एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविदो इणमब्बवी । ३२. जे केइ पत्थिवा तुब्भं' नानमंति नराहिवा ! । बसे ते ठाव इत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ! ।। ३३. एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविदं इणमब्बवी ॥ ३४. जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणज्ज अप्पाणं एस से परमो जओ ।। ३५. अप्पाणमेव जुज्झाहि किं ते जुज्मेण बज्झओ । अप्पाणमेव' अप्पाणं जइत्ता सुहमेहए । ३६. पंचिदियाणि कोहं माणं मायं तहेव लोहं च । दुज्जयं चेव अप्पाणं सव्वं अप्पे जिए जियं ।। ३७. एयमठें निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी । ३८. जइत्ता विउले जण्णे भोइत्ता समणमाहणे । दच्चा भोच्चा य जट्ठा य तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ ३६. एयम निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविदं इणमब्बवी ।। ४०. जो सहस्सं सहस्साणं मासे मासे गवं दए । तस्सावि संजमो सेओ अदितस्स वि किंचण ।। ४१. एयमठें निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविदो इणमब्बवी॥ ४२. घोरासमं चइत्ताणं अन्नं पत्थेसि आसमं । इहेव पोसहरओ भवाहि मणुयाहिवा ! ॥ ४३. एयमठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥ ४४. मासे मासे तु जो बालो कुसग्गेण तु मुंजए । न सो सुयक्खायधम्मस्स कलं अग्घइ सोलसिं ॥ १. तुझं (बृपा)। ३. जहित्ताणं (बृपा)। २. अप्पणा चेव (अ)। ४. व (अ)। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (नमिपश्वज्जा) ४५. एयमढ़ निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसि दविदो इणमब्बवी ॥ ४६. हिरण्णं सुवण्णं मणिमुत्तं कसं दूसं 'च वाहणं" । कोसं वड्ढावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ! ।। ४७. एयमट्ठ निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमो रायरिसी देविदं इणमब्बवी ।। ४८. सुवण्णरुप्पस्स उ' पव्वया भवे सिया हु केलाससमा असंखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहि' किंचि इच्छा हु आगाससमा अणंतिया ।। ४६. पुढवी साली जवा चेव हिरण्णं पसुभिस्सह । पडिपुण्णं' नालमेगस्स इइ विज्जा तव चरे ।। ५०. एयम; निसामित्ता हेऊकारणचोइओ तओ नमि रायरिसि देविदो इणमब्बवी ।। ५१. अच्छेरगमब्भुदए भोए चयसि' पत्थिवा ! । असंते कामे पत्थेसि संकप्पेण विहन्नसि ।। ५२. एयम© निसामिता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविद इणमब्बवी ।। ५३. सल्लंकामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा अकामा जंति दोग्गई ।। ५४. अहे वयइ कोहेणं माणेणं अहमा गई । माया गइपडिग्घाओ लोभाओ दुहओ भयं ।। ५५ अवउझिऊण माहणरूवं विउव्विऊण इंदत्तं । वंदइ अभित्थुणंतो इमाहि महुराहि वग्नहिं ।। ५६. अहो! ते निज्जिओ कोहो अहो! ते माणो पराजिओ। अहो! ते निरक्किया माया अहो! ते लोभो वसीकओ। ५७. अहो! ते अज्जवं साहु अहो! ते साहु मद्दवं । अहो! ते उत्तमा खंती अहो! 'ते मुत्ति उत्तमा ।। ५८. इहं सि उत्तमो भंते! पेच्चा होहिसि उत्तमो । लोगुत्तमुत्तमं ठाणं सिद्धि गच्छसि नीरओ ।। ५६. एवं अभित्थणंतो रायरिसिं स्तमाए सद्धाए । __ पयाहिणं करेंतो पुणो पुणो वंदई सक्को॥ १. सवाहणं (बृपा, चू)। ५. जहासि (बृ); चयसि (बृपा)। २. य (अ)। ६. खत्तिया (बपा)। ३. तेण (बपा)। ७. लोगुत्तममुत्तमं (बृपा) । ४. सव्वंतं (बृपा)। ८. पायाहिणं (बृ)। Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ उत्तरज्झयणाणि ६०. तो वंदिऊण पाए चक्कंकुस लक्खणे मुणिवरस्स। आगासेणुप्पइओ ललियचवलकुंडलतिरीडी ॥ ६१. नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवट्ठिओ। ६२. एवं करेंति संबुद्धा' पंडिया पवियक्खणा । विणियद्वृति भोगेसु जहा से नमी रायरिसि ।। -त्ति बेमि ॥ ३. संपन्ना (चू)। १. स (बपा)। २. सक्कं (ऋ)। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं दुमपत्तयं १. दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए । ___ एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए । २. कुसग्गे जह ओसबिंदुए थोवं चिट्ठइ लंबमाणए । ___ एवं मणयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए । ३. 'इइ इत्तरियम्मि आउए जीवियए बहुपच्चवायए' । ___ विहुणाहि रयं पुरे कडं समयं गोयम ! मा पमायए । ४. दुलहे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो समयं गोयम ! मा पमायए ।। ५. पुढविक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए॥ ६. आउक्कायमइगओ उक्कोस जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए। ७. तेउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संबसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए । ८. वाउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए। 8. वणस्सइकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालमणंतदुरंतं समयं गोयम ! मा पमायए। १०. बेइंदियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसणियं समयं गोयम ! मा पमायए ।। ११. तेइंदियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसण्णियं समयं गोयम ! मा पमायए । १. एवं मणुयाण जीविए एत्तिरिए बहुपच्चवायए। (बृपा) । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० उत्तरज्झयणाणि १२. चरिदियकायमगइओ उक्कोसं जीवो उ संबसे । कालं संखिज्जसणियं समयं गोयम ! मा पमायए । १३. पंचिंदियकायमइगओ उक्कोस जीवो उ संवसे । सत्तट्ठभवग्गहणे समयं गोयम ! मा पमायए। १४. देवे नेरइए य अइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । इक्किक्कभवग्गहणे समयं गोयम ! मा पमायए । १५. एवं भवसंसारे संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहिं । जीवो प मायबहुलो समयं गोयम ! मा पमायए । १६. लद्धण वि माणुसत्तणं आरिअत्तं पुणरावि दुल्लह । बहवे दसुयां मिलेक्खुया समय गोयम ! मा पमायए । १७. लक्ष्ण वि आरियत्तणं अहीणपंचिदियया हु दुल्लहा । विगलिंदियया हु दीसई समयं गोयम ! मा पमायए । १८. अहीणपंचिदियत्तं पि से लहे उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिसेवए' जणे समयं गोयम ! मा पमायए। १६. लद्धण वि उत्तम सुई सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिसेवए जणे समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २०. धम्म पि हु सद्दहतया दुल्लहया' काएण फासया । इह कामगुणेहि मुच्छिया समयं गोयम ! मा पमायए । २१. परिजरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते । से सोयबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २२. परिजू रइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते । से चक्खुबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २३. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते । से घाणबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए । २४. परिजरइ ते सरीरयं केसा पंडूरया हवंति ते । से जिब्भबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए। २५. परिजरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते । से फासबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए। २६. परिजरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते । से सव्वबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ।। २७. अरई गंडं विसूइया आयंका विविहा फुसंति ते । विवडइ विद्धंसह ते सरीरयं समयं गोयम ! मा पमायए॥ १. कुतित्थ (बृपा, चू)। ३. कामगुणेसु (उ, ऋ, ब); २. दुल्लहा (उ)। (बृपा)। कामगुणेहि Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ दसमं अज्झयणं (दुमपत्तयं) २८. वोछिंद सिणेहमप्पणो कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवज्जिए समयं गोयम ! मा पमायए । २६. चिच्चाण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वंतं पुणो वि आइए समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३०. अवउझिय मित्तबंधवं विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं बिइयं गवेसए समयं गोयम ! मा पमायए। ३१. न ह जिणे अज्ज दिस्सई बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३२. अवसोहिय कंटगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम ! मा पमायए । ३३. अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमेऽवगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३४. तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३५. अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धि गोयम ! लोयं गच्छसि । खेमं च सिवं अणुत्तरं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३६. बुद्धे परिनिव्वुडे चरे गामगए' नगरे व संजए । संतिमग्गं च बूहए समयं गोयम ! मा पमायए । ३७. बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमट्ठपओवसोहियं । रागं दोसं च छिदिया सिद्धिगई गए गोयमे ॥ -त्ति बेमि ॥ ३. गामे (चू)। १. च (अ, उ)। २. हु (चू)। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्कारसमं अज्झयणं बहुस्सुयपुज्जं १. संजोगा farara अणगारस्स भिक्खुगो । आवारं पाकरिस्सामि आणुपुव्वि सुणेह मे ॥ २. जे यावि होइ निव्त्रिज्जे थद्धे लुद्धे अणिग्गहे ॥ अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अब हुस्सुए । ठाणेहिं जेहिं सिक्खा न लब्भई ॥ पमाएणं रोगेणालस्सएण य । ठाणेहिं सिक्वासीले त्ति वुच्चई ॥ दंते न य मम्ममुदाहरे || ३. अह पंचहि थंभा कोहा ४. अह अट्ठहिं अहस्सिरे ५. नासीले अको सया न विसीले न सिया अइलोलुए । सच्चरए सिक्खासीले त्ति वुच्चई ॥ ६. अह चउदसहि ठाणेहिं वट्टमाणे संजए । अविणीए दुच्चई सो उ निव्वाणं च न गच्छइ ॥ ७. अभिक्खणं कोही हवइ पबंध च पवई । मेत्तिज्जमाणो वमइ सुयं लद्धूण मज्जई ॥ ८. अवि पावपरिक्खेवी अवि मित्सु सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भासइ ६. पइण्णवाई दुहिले थद्धे लुद्धे असंविभागी अचियत्ते अविणीए त्ति १०. अह पन्नरसहि ठाणेहि सुविणीए त्ति नयावत्ती अचवले अमाई ११. अप्प चाहिखाई मेत्तिज्जमाणो भयई १. वाहिक्खिव ( अ ) ; चहिक्खिवइ ( उ ) | १२२ उ पबंध च न सुयं ल न कुप्पई | पावगं ॥ अणिग्गहे । वुच्चई ॥ वुच्चई । अकुऊहले ।। कुव्वई । मज्जई ।। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ इक्कारसमं अज्झयणं (बहुस्सुयपूज्ज) १२. न य पावपरिक्खेवो न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई ॥ १३. कलहडमरवज्जए बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिसंलोणे सुविणीए त्ति वुच्चई ।। १४. वसे गुरुकुले निच्च जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियंवाई से सिक्खं लद्धमरिहई ।। १५. जहा संखम्मि पयं 'निहियं दुहओ वि" विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥ १६. जहा से कंबोयाणं आइण्णे कथए सिया । __आसे जवेण पवरे एवं हवइ बहुस्सुए ।। १७. जहाइण्णसमारूढे सूरे दढपरक्कमे । उभओ नंदिघोसेणं एवं हवइ बहुस्सुए ।। १८. जहा करेणुपरिकिण्णे कुजरे सट्ठिहायणे । बलवंते अप्पडिहए एवं हवइ बहुस्सुए ।। १६. जहा से तिक्खसिंगे जायखंधे विरायई । वसहे जूहाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २०. जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे एवं हवइ बहुस्सुए ।। २१. जहा से वासुदेवे संखचक्कगथाधरे अप्पडिहयबले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए । २२. जहा से चाउरते चक्कवट्टी महिड्ढिए । ___चउदसरयणाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। २३. जहा से सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरंदरे । सक्के देवाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। २४. जहा से तिमिरविद्धंसे उत्तिद्रुते दिवायरे । जलते इव तेएण एवं हवइ बहुस्सुए ।। २५. जहा से उडूवई चंदे नक्खत्तारिवारिए । पडिपुणे पुण्णमासीए एवं हवइ बहुस्सुए। २६. जहा से सामाइयाणं' कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधन्नपडिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए । २७. जहा सा दुमाण पवरा जंबू नाम सुदंसणा । __ अणाढियस्स देवस्स एवं हवइ बहुस्सुए॥ १. णिसितं उभयतो (चू)। २. सामाइयंगाणं (बृपा)। Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ सागरंगमा । २८. जहा सा नईण पवरा सलिला सीया नीलवंत वहा' एवं हवइ बहुस्सुए || २६. जहा से नगाण पवरे सुमहं मंदरे गिरी । नाणोसहिज्ज लिए एवं हवइ बहुस्सुए ॥ उदही raana | हवइ बहुस्सुए || अचक्किया केणइ दुप्प हंसया । खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया || उत्तमट्ठगवेसए ३०. जहा से सयंभूरमणे नाणारणपणे एवं ३१. समुद्दगंभीरसमा दुरासया सुयस पुण्णा विजलस्स ताइणो ३२. तम्हा जेणप्पाणं १. भवा (बु); वहा (बुपा ) । पुणे ( अ ) । २. सुयम हिट्ठेज्जा परं 1 चेव सिद्धि संपाउणेज्जासि ।। - त्ति बेमि ॥ ३. दुप्पहंसिया (चू ) । ४. उत्तम ( अ ) । उत्तरज्भयणाणि Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं हरिएसिज्ज १. सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो' मुणी । ___ हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइंदिओ ।। २. इरिएसणभासाए उच्चारसमिईसु य । ___ जओ आयाणनिक्खेवे संजओ सुसमाहिओ।। ३. मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खट्टा बंभइज्जम्मि जन्नवाड उवट्ठिओ। ४. तं पासिऊणमेज्जतं तवेण परिसोसियं । __पंतोवहिउवगरणं उवहसंति अणारिया ।। ५. जाईमयपडिथद्धा' हिंसगा। अजिइंदिया। अबंभचारिणो बाला इमं वयणमब्बवी ॥ ६. 'कयरे आगच्छइ" दित्तरूवे काले विगराले फोक्कनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए संकर दूसं परिहरिय कंठे ? | ७. कयरें तुम इय अदंसणिज्जे काए व आसा इहमागओसि ? । ___ ओमचेलगा पंसुपिसायभूया गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओसि? ॥ ८. जक्खो तहिं तिदुयरुक्खवासी अणुकंपओ तस्स महामुणिस्स । पच्छायइत्ता नियगं सरीरं इमाइं वयणाइमुदाहरित्था । ६. समणो अहं संजओ बंभयारी विरओ धणपयणपरिग्गहाओ। 'परप्पवित्तस्स उ" भिक्खकाले अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि ॥ १०. वियरिज्जइ खज्जइ भुज्जई य अन्न पभूयं भवयाणमेयं । जाणाहि मे जायणजीविणु' त्ति सेसावसेसं लभऊ तवस्सी । १. अणुत्तरधरो (अ, बृपा, चू)। ४. को रे (सुपा, बृपा)। २. पडिबद्धा (उ, चू, बृपा)। ५. परप्पवित्तो खलु (चू) । ३. कयरे तुम एसिध (चू); कयरे आगच्छति ६. जीवणो (बृपा, चूपा)। (चूपा); को रे आगच्छइ (बृपा)। १२५ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ उत्तरज्झयणाणि ११. उवक्खडं भोयण माहणाणं अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं । ___ न ऊ वयं एरिसमन्नपाणं दाहामु तुझं किमिहं ठिओसि ?। १२. थलेसु बीयाइ ववंति कासगा तहेव निन्नेसु य आससाए । एयाए सद्धाए दलाह मझं 'आराहए पुण्णमिणं खु खेत्तं"। १३. खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए जहिं पकिग्णा विरुहंति पुण्णा । जे माहणा जाइविज्जोववेया ताई तु खेत्ताइं सुपेसलाई । १४. कोहो य माणो य वहो य जेसि मोसं अदत्तं च परिग्गरं च । ते माहणा जाइविज्जाविहूणा ताई तु खेत्ताइ सुपावयाई॥ १५. तुब्भेत्थ भो ! भारघरा' गिराणं अटुं न जाणाह अहिज्ज वेए । उच्चावयाइं मुणिणो चरंति ताइं तु खेत्ताई सुपेसलाई॥ १६. अज्झावयाणं पडिकूलभासी पभाससे किं तु सगासि अम्हं । अवि. एयं विणस्सउ अन्नपाणं' न य णं दाहामु तुमं नियंठा! ॥ १७. समिई हि मज्झं सुसमाहियस्स गुत्तीहि गुत्तस्स जिइंदियस्स । जइ मे न दाहित्य अहेसणिज्जं किमज्ज जण्णाण लहित्थ लाहं ? ।। १८. के एत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खंडिएहिं । एय दंडेण फलेण हंता कंठम्मि घेत्तूण खलेज्ज जो णं?॥ १६. अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा। दंडेहि वित्तेहि कसेहि चेव समागया तं 'इसि तालयंति॥ २०. रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया भद्द त्ति नामेण अणिदियंगी। तं पासिया संजय हम्ममाणं कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ । २१. देवाभिओगेण निओइएणं दिन्ना मु रण्णा मणसा न झाया। नरिंददेविंदऽभिवंदिएणं जेणम्हि वंता इसिणा स एसो॥ २२. एसो हु सो उग्गतवो महप्पा जिइंदिओ संजओ बंभयारी। 'जो में तया नेच्छइ दिज्जमाणि पिउणा सयं कोसलिएण रण्णा ॥ २३. महाजसो एस महाणुभागों घोरव्वओ घोरपरक्कमो य । मा एयं हीलह अहीलणिज्जं मा सव्वे तेएण भे निद्दहेज्जा ॥ २४. एयाइं तीसे वयणाइ सोच्चा पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाई । इसिस्स वेयावडियट्ठयाए जक्खा कुमारे विणिवाडयंति ॥ २५. ते घोररूवा ठिय अंतलिक्खे असरा तहिं तं जणं तालयंति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमंते पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो ॥ १. आराधका होधिम पुण्ण खेत्तं (चू) आराहगा ५. इसिं ताडयंति (उ, ऋ)। होहिम पुण्ण खेत्तं (बृपा) । ६. जो मं (अ, आ)। २. भारवहा (बृपा)। ७. महानुभावो (बृपा, चू)। ३. भत्तपाणं (ऋ)। ८. विणिवारयति (बृपा)। ४. एयं खु (अ, उ); एयं तु (आ)। Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं अज्झयणं (हरिएसिज्ज) १२७ २६. गिरि नहेहिं खणह अयं दंतेहिं खायह । जायतेयं पाएहि हणह जे भिक्खं अवमन्नह ।। २७. आसीविसो उग्गतवो महेसी घोरव्वओ घोरपरक्कमो य । अगणि व पक्खंद पयंगसेणा जे भिक्खुयं भत्तकाले वहेह' । २८. सीसेण एवं सरणं उवेह समागया सव्वजणेण तुब्भे । जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा 'लोग पि एसो कुविओ डहेज्जा ॥ २६. अवहेडिय' पिट्ठिसउत्तमंगे पसारिया बाहु अकम्मचेर्यो । निब्भेरियच्छे रुहिरं वमते उड्ढं मुहे निग्गयजीहनेत्ते ।। ३०. ते पासिया खंडिय कट्ठभूए विमणो विसण्णो अह माहणो सो । इसि पसाएइ सभारियाओ हीलं च निदं च खमाह भते ! ॥ ३१. बालेहि मूढेहि अयाणएहिं जं हीलिया तस्स खमाह भंते ! । महप्पसाया इसिणो हवंति न हु मुणी कोवपरा हवंति ।। ३२. 'पुवि च इण्हि च अणागयं च" मणप्पदोसो न मे अत्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडियं करेंति तम्हा हु एए निहया कुमारा ॥ ३३. अत्थं च धम्म च वियाणमाणा तुब्भे न वि कुप्पह भूइपण्णा । तुब्भं तु पाए सरणं उवेमो समागया सव्वजणेण अम्हे ।। ३४. अच्चेमु ते महाभाग ! न ते किंचि न अच्चिमो। भुंजाहि सालिम कूरं नाणावंजणसंजुयं ॥ ३५. इमं च मे अत्थि पभूयमन्नं तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा । बाढं ति पडिच्छइ भत्तपाणं मासस्स ऊ पारणए महप्पा । ३६. तहियं गंधोदयपुप्फवासं दिव्वा तहि वसहारा य वटा । पहयाओ' दुंदुहीओ सुरेहिं आगासे अहो दाणं च घुळं ।। ३७. सक्खं खु दीसइ तवोविसेसो न दीसई जाइविसेस कोई । _ 'सोवागपुत्ते हरिएससाहू' जस्सेरिसा इड्ढि महाणुभागा ॥ ३८. किं माहणा ! जोइसमारभंता उदएण सोहि बहिया विमग्गहा ? । ____ जं मग्गहा बाहिरियं विसोहि न त सुदिट्ठ कुसला वयंति ।। ३६. कुसं च जूवं तणकट्ठमग्गि सायं च पायं उदगं फुसंता । पाणाइ भूयाइ विहेडयंता भुज्जो वि मंदा ! पगरेह पावं ॥ ४०. कहं चरे ? भिक्खु ! वयं जयामो ? पावाइ कम्माइ पणोल्लयामो? । ___अक्खाहि णे संजय ! जक्खपूइया ! कहं सुजठं कुसला वयंति ?॥ १. हणेह (ऋ)। च पच्छा व अणागयं च (चू)। २. एसो हु कुवो व सुहं दहेज्जा (चू)। ५. महाभागा! (अ, उ, ऋ) । ३. आवडिय (बृपा) ६. पहया (उ, ऋ)। ४. पुम्वि च पच्छा व तहेव मज्झे (बृपा); पुम्बि ७. सोवागपुत्तं हरिएससाहं (बृपा) । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणाणि असमारभंता मोसं अदत्तं च असेवमाणा । माणमायं एवं परिणाय चरंति' दंता ॥ संवरेहिं इह जीवियं traiखमाणो | सुइचत्तदेहो' महाजयं जयई जन्नसि ॥ ४३. के ते जोई ? के व ते जोइठाणे? का ते सुया ? किं व ते कारिसंग ? | हाय ते करा संति ? भिक्खु ! कयरेण होमेण हुणासि जोई ? ॥ ४४. तवो जोई जीवो जोइठाणं जोगा सुया सरीरं कारिसंग | कम्म एहा संजमजोगसंती होमं हुणामी इसिणं पसत्थं ॥ १२८ ४१. छज्जीवकाए परिग्गहं इथिओ पंचहि ४२. सुसंवुडो' वोसट्टकाओं १. चरेज्ज (बृ); चरन्ति ( बृपा) । २. सुसंवुडा (उ, सु) । ४५. के ते हरए ? के य ते संतितित्थे ? आइक्ख णे संजए ! जक्खपूइया ! ४६. धम्मे हरए बंभे संतितित्थे अणाविले जहिंसि व्हाओ विमलो विसुद्धो सुसीइभूओ ४७. एयं सिणाणं कुसलेहि दिट्ठ महासिणाणं 'जहिंसि व्हाया " विमला विसुद्धा महारिसी उत्तम ठाण ३. अणवखमाणा (उ, सु) । ४. वोकाया (उ, सु) । ५. सुइचत्तदेहा (उ, सु) । कहिंसि व्हाओ व इच्छामो नाउं रयं जहासि ? । भवओ सगासे ॥ अत्तपसन्नलेसे" । दो ॥ पजहामि इसिणं सत्थं । पत्त ॥ -त्ति बेमि ॥ ६. च (उ, ऋ) । ७. अत्तपसंतलेसे (धू), अत्तपसन्नलेसे (चुपा) । ८. सुसीलभूओ (बुपा) । ६. जहि सिणाया ( अ, उ, ऋ) । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं चित्तसम्भूइज्जं १. जाईपराजिओ खलु कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि । चुलणीए बंभदत्तो उववन्नो पउमगुम्माओ ।। २. कंपिल्ले संभूओ चित्तो पुण जाओ पुरिमतालम्मि । __ सेट्टिकुलम्मि विसाले धम्मं सोऊण पन्वइओ॥ ३. कंपिल्लम्मि य नयरे समागया दो वि चित्त-सम्भूया । ___ सुहदुक्खफलविवागं कहेंति ते एक्कमेक्कस्स ॥ ४. चक्कवट्टी महिड्ढीओ बंभदत्तो महायसो । भायरं गणं इम वयणमब्बवी॥ ५. आसिमो भायरा दो वि अन्नमन्नवसाणुगा अन्नमन्नमणरत्ता अन्नमन्नहिएसिणो ६. दासा दसणे आसी मिया कालिंजरे नगे। ____ हंसा मयंगतीरे सोवागा' कासिभूमिए । ७. देवा या देवलोगम्मि आसि अम्हे महिडिढया । ___'इमा नो" छट्ठिया जाई अन्नमन्नेण जा विणा ॥ 'कम्मा नियाणप्पगडा तुमे राय! विचितिया । तेसि फलविवागेण विप्पओगमुवागया" ६. सच्चसोयप्पगडा कम्मा मए पुरा कडा । ते अज्ज परिभुंजामो किं नु चित्ते वि से तहा?॥ १०. सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववेए । १. मयंगतीराए (अ, उ, ऋ)। ४. इमा मे (ब); इमा णो (बृपा) । २. चंडाला (उ, ऋ)। ५. ४ (चू)। ३. वि (उ)। ५ ॥ १२९ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० उत्तरज्झयणाणि ११. जाणासि संभूय ! महाणुभागं महिड्ढियं पुण्णफलोववेयं । __चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं ! इड्ढी जुई तस्स वि य प्पभूया ॥ १२. महत्थरूवा वयणऽप्पभूया गाहाऽणुगोया नरसंघमज्झे । जं भिक्खुणो सोलगुणोववेया 'इहज्जयंते समणो" म्हि जाओ। १३. उच्चोयए महु कक्के य बंभे पवेइया आवसहा 'य रम्मा" | इमं गिहंर्जिन। धणप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥ १४. नट्टेहि गीएहि यं वाइएहि नारीजणाइं परिवारयंतो' । भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू ! मम रोयई पव्वज्जा हु दुक्खं ।। १५. तं पुवनेहेण कयाणुरागं नराहिवं कामगुणेसु गिद्धं । धम्मस्सिओ तस्स हियाणपेही चित्तो इमं वयणमुदाहरित्था ॥ १६. सव्वं विलवियं गीयं सव्वं नट्टं विडंबियं । सव्वे आभरणा भारा सव्वे कामा दुहावहा । १७. बालाभिरामेसु दुहावहेसु न तं सुहं कामगुणेसु रायं ! । विरत्तकामाण तवोधणाणं जं भिक्खुणं सीलगुणे रयाणं ।। १८. नरिंद ! जाई अहमा नराणं सोवागजाई दुहओ गयाणं । जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा वसीय सोवागनिवेसणेसु ॥ १६. तीसे य जाईइ उ पावियाए वुच्छामु सोवागनिवेसणेसु । सव्वस्स लोगस्स दुगंछणिज्जा इहं तु कम्माइं पुरेकडाइं ।। २०. सो दाणि सिं राय ! महाणभागो महिड्ढिओ पुण्णफलोववेओ । चइत्तु भोगाइं असासयाई 'आयाणहेउं अभिणिक्खमाहि" ।। २१. इह जीविए राय ! असासयम्मि धणियं तु पुण्णाइं अकुव्वमाणो । से सोयई मच्चुमुहोवणीए धम्म अकाऊण परंसि लोए । २२. जहेह सीहो व मियं गहाय मच्च नरं नेइ हु अंतकाले । न तस्स माया 'व पिया व भाया कालम्मि तम्मिसहरा" भवंति ॥ २३. न तस्स दुक्खं विभयंति नाइओ न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं कत्तारमेवं अणुजाइ कम्मं ॥ १. इहज्जयंते सुमणो (बपा); इहज्जवन्ते सुमणो ६. विडंबणा (उ, चू)। (चूपा); इह+अज्जयंते = इहज्जयंते । ७. एषा गाथा चूणौं नास्ति व्याख्याता । २. ऽतिरम्मा, सुरम्मा वा (बृपा)। ८. जहेत्तु (चू)। ३. वित्तधणोववेयं (ब); धणवित्तोववेयं (चू) ६. आदाणमेवं अणुचितयाहि (५०); आदाणवित्तधणप्पभूयं (बृपा)। हेउं अभिणिक्ख माहि (चूपा); आयाणमेवा ४. परियारयंतो (अ, उ, ऋ); पवियारियंतो अणुचिंतयाहि (बुपा)। (बृपा)। १०. न पिया न भाया (उ)। ... ५. वक्क (ब); वयण (बृपा)। ११. तम्मंसहरा (उ)। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं अज्झयणं (चित्तसम्भूइज्ज) २४. चेच्चा दुपयं च चउप्पयं च खेत्तं गिहं धणधन्नं च सव्वं । ___कम्मप्पबीओ' अवसो पयाइ परं भवं सुंदर पावगं वा॥ २५. तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से चिईगयं डहिय उ पावगेणं । भज्जा य पुत्ता' वि य नायओ य दायारमन्नं अणुसंकमंति ॥ २६. उवणिज्जई जीवियमप्पमायं वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं ! । पंचालराया ! वयणं सुणाहि मा कासि कम्माइं महालयाई॥ २७. अहं पि जाणामि 'जहेह साहू"! जं मे तुम साहसि वक्कमेयं । ___भोगा इमे संगकरा हवंति 'जे दुज्जया" अज्जो! अम्हारिसेहिं ।। २८. हत्थिणपुरम्मि चित्ता, दळूणं नरवई महिड्ढियं । कामभोगेसु गिद्धणं नियाणमसुहं कडं ।। २६. तस्स मे अपडिकंतस्स इमं एयारिसं फलं । ____जाणमाणो वि जं धम्म कामभोगेसु मुच्छिओ॥ ३०. नागो जहा पंकजलावसन्नो दलृ थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो॥ ३१. अच्चेइ कालो तूरंति राइओ न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा । उविच्च भोगा पुरिसं चयंति' दुमं जहा खीणफलं व पक्खी॥ ३२. 'जइ ता सि भोगे चइउं असत्तो अज्जाइं कम्माई करेहि रायं ! । धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकंपी तो होहिसि देवो इओ विउव्वी॥ ३३. न तुझ भोगे चइऊण बुद्धी गिद्धो सि आरंभपरिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो गच्छामि रायं ! आमंतिओ सि ॥ ३४. पंचालराया वि य बंभदत्तो साहुस्स तस्स' वयणं अकाउं । __अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो॥ ३५. चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो उदग्गचारित्ततवो महेसी । अणुत्तरं संजम. पालइत्ता अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥ -त्ति बेमि ॥ १. सकम्मप्पबीओ (उ); सकम्मबीओ (ऋ); कम्मप्पबिइओ (अ). २. पुत्तो (ब)। ३. जो एत्थ सारो (बृपा, चू)। ४. अस्सिविधा (चू)। ५. जहंति (चू)। ६. जइ तंसि (उ, ऋ, बृपा); जईऽसि (चू)। ७. तस्सा (अ, आ, इ, स)। ८. उदत्त (सु, बू, चू)। Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउदसमं अज्झयणं उसुयारिज्ज १. देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी केई चुया एगविमाणवासी। ___ पुरे पुराणे उसुयारनामे खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥ २. सकम्मसेसेण पुराकएणं कुलेसु दग्गेसु' य ते पसूया । ___ निविण्णसंसारभया जहाय जिणिदमग्गं सरणं पवन्ना ।। ३. पुमत्तमागम्म कुमार दो वी पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती। विसालकित्ती य तहोसुयारो रायत्थ देवी कमलावई य ।। ४. जाईजरामच्चुभयाभिभूया' बहिविहाराभिनिविट्ठचित्ता । संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा दठूण ते कामगुणे विरत्ता ।। ५. पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरित्तु पोराणिय तत्थ जाई तहा सुचिण्णं तवसंजमं च ।। ६. ते कामभोगेसु असज्जमाणा माणुस्सएसुं जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकंखी अभिजायसड्ढा तायं उवागम्म इमं उदाहु ।। ७. असासयं दठ्ठ इमं विहारं बहुअंतरायं न य दीहमाउं । __तम्हा गिहंसि न रइं लहामो आमंतयामो चरिस्सामु मोणं ।। ८. अह तायगो तत्थ मुणीण तेसि तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयंति जहा न होई असुयाण लोगो । ६. अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे पुत्ते पडिट्ठप्प' गिहंसि जाया ! । __ भोच्चाण भोए सह इत्थियाहिं 'आरण्णगा होह मुणी पसत्था" ।। १०. सोयग्गिणा आयगुणिधणेणं मोहाणिला पज्जलणाहिएणं । संतत्तभावं , परितप्पमाणं लोलुप्पमाणं बहुहा बहुं च ।। १. उग्गेसु (उ); दत्तेसु (ब, चू)। ३. परिटुप्प (बृपा)। २. भयाभिभूए (बृपा)। ४. पच्छा वणप्पवेसं पसत्थं (चू)। १३२ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउदसमं अज्झयणं (उसुयारिज्जं) ११. पुरोहियं त कमसोऽणुणतं' निमंतयंतं च सुए धणेणं । जहक्कम कामगुणेहि चेव कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं ।। १२. वेया अहीया न भवति ताणं भुत्ता दिया निति तमं तमेणं । __ जाया य पुत्ता न हवंति ताणं को णाम ते अणुमन्नेज्ज एयं । १३ खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ।। १४. परिव्वयंते अणियत्तकामे अहो य राओ परितप्पमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे पप्पोति मच्चु पुरिसे जरं च ।। १५. इमं च मे अत्थि इम च नत्थि इमं च मे किच्च इम अकिच्चं । तं एवमेवं लालप्पमाणं हरा हरंति त्ति कहं पमाए ?॥ १६. धणं पभूयं सह इत्थियाहिं सयणा तहा कामगुणा पगामा । ___ तवं कए तप्पइ जस्स लोगो तं सव्व साहीणमिहेव तुब्भं ।। १७. धणेण किं धम्मधुराहिगारे सयणेण वा कामगुणेहि चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी बहिविहारा अभिगम्म भिक्खं ।। १८. जहा य अग्गी अरणीउसंतो' खीरे घयं तेल्ल महातिलेसू । एमेव जाया ! सरीरंसि सत्ता संमुच्छई नासइ नावचिठे। १९. नो इंदियग्गेज्म अमुत्तभावा अभुत्तभावा वि य होइ निच्चो । अज्झत्थहेउं निययस्स" बंधो संसारहेउं च वयंति बंधं ॥ २०. जहा वयं धम्ममजाणमाणा पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओरुज्झमाणा परिरक्खियंता तं नेव भुज्जो वि समायरामो॥ २१. अब्भाहयंमि लोगंमि सव्वओ परिवारिए । 'अमोहाहि पडतीहि गिहंसि न रइं लभे॥ २२. केण : अब्भाहओ लोगो ? केण वा परिवारिओ? । का वा अमोहा वुत्ता ? जाया ! चितावरो हुमि ।। २३. मच्चुणाऽब्भाहओ लोगो जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता एवं ताय ! वियाणह ।। २४. जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई । अहम्मं कुणमाणस्स अफला जंति राइओ ॥ २५. जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स सफला जंति राइओ॥ १. °णिणंतं (उ)। ५. नियय+अस्स = निययस्स । २. कामगुणेसु (बृपा)। ६. अमोहायए पुतीहिं (उ)। ३. अणुमोदेज्ज (अ)। ७. गच्छइ (चू)। ४. अरणीउ+असंतो-अरणीउसंतो। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ उत्तरज्झयणाणि २६. एगओ संवसित्ताणं' दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया ! गमिस्सामो भिक्खमाणा कुले कुले ॥ २७. जस्सत्थि मच्चणा सक्खं जस्स वत्थि' पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि सो ह कंखे सए सिया ॥ २८. अज्जेव धम्म पडिवज्जयामो जहिं पवन्ना न पुणब्भवामो । अणागयं नेव य अस्थि किंचि सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ।। २६. पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो वासिट्ठि ! भिक्खायरियाइ कालो । साहाहि रुक्खो लहए समाहि छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं । ३०. पंखाविहणो व्व' जहेह' पक्खो भिच्चाविहूणो' व्व' रणे नरिंदो । विवन्नसारो वणिओ व्व पोए पहीणपुत्तो मि तहा अहं पि ।। ३१. सुसंभिया कामगुणा इमे ते संपिडिया 'अग्गरसा पभूया" । भुंजामु ता कामगुणे पगामं पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ।। ३२. भत्ता रसा भोइ ! जहाइ णे वओ न जीवियट्ठा पजहामि भोए । लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ।। ३३. मा हू तुमं सोयरियाण संभरे जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी । भुंजाहि भोगाइ मए समाणं दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो॥ ३४. जहा य भोई" ! तणुयं भुयंगो२ निम्मोणि हिच्च पलेइ मुत्तो । ___ एमए" जाया पयहंति भोए 'ते हं " कहं नाणुगमिस्समेक्को?।। ३५. छिदित्तु जालं अबलं व रोहिया मच्छा जहा कामगुणे पहाय । घोरेयसीला तवसा उदारा धीरा हु भिक्खायरियं चरंति ॥ ३६. नहेव कुंचा समइक्कमंता तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा । पलेंति पुत्ता य पई य मज्झं 'ते हैं" कहं नाणुगमिस्समेक्का ? ॥ ३७. पुरोहियं तं ससयं सदारं सोच्चाभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुडुंबसारं विउलुत्तमं तं रायं अभिक्खं समुवाय देवी ।। ३८. वंतासी पुरिसो रायं ! न सो होइ पसंसिओ । माहणेण परिच्चत्तं धणं आदाउमिच्छसि ।। ३६. सव्वं जगं जइ तुहं सव्वं वावि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जत्तं नेव ताणाय तं तव ।। १. संवलित्ताणं (चू)। ६. संविक्खमाणो (उ, चू)। २. चऽस्थि (ऋ)। १०. चरिसामि (अ, ऋ); करिस्सामि (चू) । ३, ६. व (उ, ऋ)। ११. भोगि (बृपा)। ४. जहेव (अ, उ, ऋ)। १२. भुयंगमो (अ, बू)। ५. भिच्चुविहीणु (उ); भिच्चविहीणु (ऋ)। १३. इमेति (बृपा)। ७. अग्गरसप्पभूया (उ, ऋ)। १४. तोहं (अ); ताहं (उ, चू)। ८. होइ (ब)। १५. तोहं (अ) ; ताहं (उ, चू)। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउदसमं अज्झणं (उसुयारिज्ज) मरिहिसि रायं ! जया तथा वा एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं ४१. नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा ४२. दवग्गिणा जहा ४०. अन्ने ४३. एवमेव ' ४४. भोगे ४५. इमे उज्झमाणं न आमोयमाणा ४६. सामिसं आमिस ४७. गिद्धीवमे उरगो ४८. नागो एयं ४६. चइत्ता वयं च ५२. सासणे सत्ता रणे पोयंति मूढा कामभोगे सु बुझामो रागद्दोसग्गिणा भोच्चा वमित्ता य लहुभूयविहारिणो गच्छंति दिया फंदंति मम ५३. राया निव्विसया माहणी १. जहाय (च) । २. एवमेवं (बृ.) । य बद्धा' अचिरेणेव व्व वयं सत्ता कामेसु भविस्सामो कुललं दिस्स बज्झमाणं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामि उ नच्चाणं कामे 'सुवणा बंधण पत्थं ५०. सम्मं तवं ५१. एवं ते कमसो बुद्धा सव्वे जम्ममच्चुभउव्विग्गा संकमाणो छत्ता अप्पणी महाराय ! उसुयारि विउलं रज्ज" कामभोगे निरामिसा निन्नेहा वियाणित्ता चेच्चा. परिभऽहक्खायं घोरं धम्मं मगोरमे कामगुणे पहाय' । न विज्जई अन्नमिह किंचि || संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं । परिग्गहारंभ नियत्तदोसा "I डज्झमाणेसु रागद्दोसवसं व" सह दारगा ३. लद्धा (चू) । ४. सुवण्णपासिव्वा (अ); सुवण्णपासेब्व (उ, चू, सु); सुवण्णपासित्ता ( ऋ) । ५. रट्ठ (बृ, चू); रज्जं ( बृपा) । विगयमोहाणं पुव्वि कामकमा 1 इव ॥ हत्थऽज्जमागया । जहा इमे ॥ निरामिसं । निरामिसा || ससारवड्ढणे । चरे ॥ वए । त्ति मे सुयं ॥ दुक्ख संत गवे सिणो' तणुं सहिं गया || मुच्छिया । जगं ॥ य दुच्चए | निष्परिग्गहा ॥ कामगुणे वंरे । घोरपरक्कमा ! धम्मपरायणा | कालेण दुक्खस्संतमुवागया देवीए माहणो चैव सव्वे 11 भावणभाविया | ६. अहकामं (चुपा) । ७. परंपरा (बृपा) । 11 य पुरोहिओ । परिनिव्वुड' ।। - त्ति बेमि ॥ १३५ ८. दुक्ख संतरगवेसगा (चू) । ६. परिनिव्वुडि (अ); परिनिव्वुडु (ॠ) ; परिनिव्वुए (च्) । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्झयणं सभिक्खुयं १. मोणं चरिस्सामि' समिच्च धम्म सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । ___ संथवं जहिज्ज अकामकामे अण्णायएसी परिव्वए जे स भिक्खू ।। २. राओवरयं' चरेज्ज लाढे विरए वेयवियायरक्खिए । पण्णे अभिभय सव्वदंसी जे कम्हिचिन मच्छिए स भिक्ख ।। ३. अक्कोसवहं विइत्तु धीरे मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते । ___अव्वग्गमणे असंपहिछे जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ।। ४. पंतं सयणासणं भइत्ता सीउण्हं विविहं च दंसमसगं । ___अव्वग्गमणे असंपहिछे जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ५. नो सक्कियमिच्छई न पूयं नो वि य वंदणगं कुओ पसंसं । से संजए सुव्वए तवस्सी सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥ ६. जेण पुण जहाइ जीवियं मोहं वा कसिणं नियच्छई । नरनार पजहे सया तवस्सी न य कोऊहल उवेइ स भिक्खू। ७. छिन्नं सरं भोमं अंतलिक्खं सुमिणं लक्खणदंडवत्थुविज्ज । ____ अंगवियारं सरस्स विजयं जो विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू । ८. मंतं मूलं विविहं वेज्जचितं वमणविरेयणधूमणेत्तसिणाणं । __आउरे सरणं 'तिगिच्छियं च तं परिण्णाय परिव्वए स भिक्खू । ६. खत्तियगणउग्गरायपुत्ता माहणभोइय विविहा 'य सिप्पिणो"। नो तेसि वयइ सिलोगपूयं तं परिण्णाय परिव्वए स भिक्खू । १०. गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा अप्पव्वइएण व संथुया हविज्जा । तेसि इहलोइयफलट्ठा जो संथवं न करेइ स भिक्खू ।। १. चरिस्सामो (बू, चू)। २. रागोवरयं (ब); रातोवरयं (बपा)। ३. कम्हि वि (अ, उ, ऋ)। ४. जे (चू)। ५. तिगच्छयत्थं तं (चू)। ६. सिप्पिण्णोऽणे (बृपा)। ७. करेइ (चू)। ८. इहलोगफलट्टाए (अ, आ, इ, चू) । Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमं अज्झयणं (सभिक्खुयं) ११. सयणासणपाणभोयणं विविहं खाइमसाइमं परेसि । अदए पडिसेहिए नियंठे जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ॥ १२. जं किंचि आहारपाणं' विविहं खाइमसाइमं परेसिं लधु । जो तं तिविहेण नाणुकंपे मणवयकायसुसंवुडे स भिक्खू ।। १३. आयामगं चेव जवोदणं च 'सीयं च सोवीरजवोदगं च । नो हीलए पिंडं नीरसं तु पंतकुलाइं परिव्वए स भिक्खू ॥ १४. सद्दा विविहा भवंति लोए दिव्वा 'माणुस्सगा तहा तिरिच्छा"। भीमा भयभेरवा उराला जो सोच्चा न वहिज्जई स भिक्खू ।। १५. वादं विविहं समिच्च लोए सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पण्णे अभिभूय सव्वदंसी उवसंते अविहेडए' स भिक्खू ।। १६. असिप्पजीवी' अगिहे अमित्ते जिइंदिए सव्वओ विप्पमुक्के । अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी चेच्चा गिहं एगचरे स भिक्खू ।। -त्ति बेमि ॥ १. वाहार (अ)। २. सीयं सुवीरं च जवोदगं च (स, सु)। ३. माणुस्सया तिरिच्छा य (चू)। ४. वहिए (उ)। ५. उविहेडए (उ)। ६. असिप्पजीवे (ब)। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं बम्भचेरसमाहिठाणं १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पण्णत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गृत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा। २. कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहि दस बंभचेरसमाहिठाणा पण्णत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ? ३. इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पण्णत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा--'विवित्ताई सयणासणाई सेविज्जा', से निग्गंथे। नो इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइ सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गथे। तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गंथस्स खलु इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइ सयणासणाई सेवमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा' धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थिपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गंथे। ४. नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ, से निग्गंथे । तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, १. सेविज्जा हवइ (उ)। २. 'विवित्ताई सपणासणाई से विज्जा से निग्गन्थे' __ एष पाठश्चूणों नास्ति व्याख्यातः। ३. ४ (इ, उ)। १३८ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अज्झयणं (बम्भचेरसमाहिठाणं) दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । 'तम्हा नो इत्थीणं" कहं कहेज्जा। ५. नो इत्थीहिं' सद्धि सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से निग्गंथे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गंथस्स खलु इत्थीहिं सद्धि सन्निसेज्जागयस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धि सन्निसेज्जागए विहरेज्जा'। ६. नो इत्थीणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता, निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गंथस्स खलु इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोएमाणस्स, निज्झायमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु 'निग्गंथे नो" इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोएज्जा, निज्झाएज्जा। ७. नो इत्थीणं कुड्डंतरंसि वा, दूसंतरंसि वा, भित्तंतरंसि वा, कुइयसई वा, रुइयसदं वा, गीयसदं वा, हसियसदं वा, थणियसदं वा, कंदियसदं वा, विलवियसदं वा, सुणेत्ता हवइ से निग्गंथे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गंथस्म खलु इत्थोणं कुटुंतरंसि" वा, 'दूसतरंसि वा, भित्तंतरंसि' वा, कुइयसई वा, रुइयसदं वा, गीयसह वा, हसियसदं वा, थणियसई वा, कंदियसई वा, विलवियसई वा, सुणेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समप्पज्जिज्जा. भेयं वा लभेज्जा. उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंक हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु निग्गंथे नो इत्थीणं कुटुंतरंसि वा, दूसंतरंसि वा, भित्तंतरंसि वा, कुइयसई वा, रुइयसदं वा, गीयसई वा, हसियसदं वा, थणियसई वा, कंदियसदं वा, विलवियसई वा सुणेमाणे विहरेज्जा। ८. नो निग्गंथे पुन्वरयं, पुन्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ, से निग्गंथे । १. तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं (उ) । ५. कड्डतरंसि (अ)। २. इत्थीणं (अ, ऋ)। ६. भित्ति अंतरंसि (अ, ऋ); भित्तितरंसि ३. विहरइ (अ)। ४. नो निग्गन्थे (अ)। ७. भित्तन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा (स,चू)। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० उत्तरज्झयणाणि तं कहमिति चे ? __ आयरियाह-निग्गंथस्स खलु पुव्वरयं', पुव्वकीलियं अणुसरमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, विति गिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे पुव्वरयं पुन्वकीलियं अणुसरेज्जा। ६. नो पणीयं आहारं आहारित्ता हवइ, से निग्गंथे । तं कहमिति चे? आयरियाह--निग्गंथस्स खलु पणीयं पाणभोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गंथे पणीयं आहारं आहारेज्जा । १०. नो अइमायाए पाणभोयणं आहारेत्ता हवइ, से निग्गंथे । तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गंथस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंक हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे अइमायाए पाणभोयणं भुंजिज्जा । ११. नो विभूसाणुवाई हवइ, से निग्गंथे । तं कहमिति चे? आयरियाह-विभूसावत्तिए', विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ । तओ णं तस्स इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वां समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंक हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गंथे विभूसाणुवाई सिया। १२. नो सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ, से निग्गंथे । तं कहमिति चे ? आयरियाह-निग्गंथस्स खलु सद्दरूवरसगंधफासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दोहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गंथे सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हविज्जा । दसमे बंभचेरसमाहिठाणे हवइ। १. इत्थीणं पुव्वरयं (उ, ऋ)। २. निग्गन्थस्स खलु विभूसावत्तिए (अ) । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं अभयणं (बम्भचेरसमाहिठाणं) १. जं भवंति इत्थ सिलोगा, तं जहाविवित्तमणाइण्णं रहियं थीजणेण य । बंभचेरस्स रक्खट्ठा आलयं तु निसेवए । २. मणपल्हायजणणि कामरागविवड्ढणि बंभचेररओ भिक्खु थीकहं तु ३. समं च संथवं थीहि संकहं च बंभचेररओ भिक्खु निच्चसो चारुल्ल वियपेहियं चक्खुगिज्भं ४. अंगपच्चंगसंठाणं बंभचेररओ थीणं ५. कुइयं रुइयं गीयं हसियं बंभचेररओ थी ६. 'हासं किड्डुं रई दप्पं बंभचेररओ थीणं ७. पणीयं भत्तपाणं तु खिप्पं बंभचेररओ भिक्खू निच्चसो ८. धम्मलद्धं मियं काले जत्तत्थं १४. दुज्जए कामभोगे य संकद्वाणाणि सव्वाणि १. भिक्खु (ऋ) । २. सहभुत्ता ( अ ) ; सहसावित्ता (ऋ) ; सहसा + अवत्तासियाणि सहसावत्तासियाणि । ३. हस्सं दप्पं रई किड्डु सहमुत्ता ( बृपा) । ४. च (अ) । ५. धम्मं लद्धं (बु) धम्मलधुं, धम्मलद्ध नाइमत्तं तु भुंजेज्जा बंभचेररओ ६. विभूसं परिवज्जेज्जा सरीरपरिमंडणं बंभचेररओ भिक्खू सिंगारत्थं न १०. सद्दे रूवे य गंधे य रसे फासे पंचविहे कामगुणे निच्चसो ११. आलओ थीजणा इण्णो थीकहा संथवो चेव नारीणं १२. कुइयं रुइयं गीयं पणीयं भत्तपाणं च १३. गत्तभूसणमिट्ठ च नरस्सत्तगवेसिस्स 1 विवज्जए ॥ अभिक्खणं । परिवज्जए ॥ 1 विवज्जए ॥ थकिंदियं । सोयगिज्भं विवज्जए || सहसावत्तासियाणि य" । नाणुचिते कयाइ वि ॥ मयविवड्ढणं । परिवज्जए || पणिहाणवं । सया || 1 धारए || तहेव य । परिवज्जए || य मणोरमा । इंदियदरिसणं || तासि 'हसियं भुत्तासियाणि " य । अइमायं' पाणभोयणं । कामभोगाय दुज्जया । विसं तालउड जहा ॥ निच्चसो वज्जेज्जा' परिवज्जए । पणिहाणवं ॥ ( बृपा) । ६. नारिहि (ॠ) । ७. सहभुच्चा ( अ ) । ८. अमाणं (ऋ) । ६. वज्जिया ( ऋ) । १४१ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ उत्तरज्झयणाणि १५ धम्माराम चरे भिक्खू घिइमं धम्मसारही। धम्मारामरए दंते बंभचेरसमाहिए ॥ १६. देवदाणवगंधव्वा जक्खरक्खसकिन्नरा । बंभयारि नमसंति दुक्करं जे करंति तं ।। १७. एस धम्मे धुवे निअए सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिझंति चाणेण सिज्झिस्संति तहापरे । -त्ति बेमि ॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतरसमं अज्झयणं पावसमणिज्ज १. जे 'के इमे' पब्वइए नियंठे धम्म सुणित्ता विणओववन्ने । ___ सुदुल्लहं लहिउं बोहिलाभं विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ।। २. सेज्जा दढा पाउरणं मे अस्थि उप्पज्जई भोत्तुं तहेव पाउं । ___ जाणामि जं वट्टइ आउसु ! त्ति किं नाम काहामि सुएण भंते ! ३. जे के इमे पव्वइए निद्दासीले पगामसो । भोच्चा पेच्चा सुहं सुवई पावसमणि त्ति वुच्चई ।। ४. आयरियउवज्झाएहि सुयं विणयं च गाहिए । __ ते चेव खिसई बाले पावसमणि त्ति बच्चई ।। ५. आयरिय उवज्झायाणं सम्मं नो पडितप्पइ । ___ अप्पडिपूयए थद्धे पावसमणि त्ति वुच्चई ।। ६. सम्ममाणे पाणाणि बीयाणि हरियाणि य । ___ असंजए संजयमन्नमाणे पावसमणि त्ति वुच्चई ।। ७. संथारं फलगं पीढं निसेज्जं पायकंबलं । ___ अप्पमज्जियमारुहइ पावसमणि त्ति वुच्चई ।। ८. दवदवस्स चरई पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणे य चंडे य पावसमणि ति वुच्चई ।। ६. पडिलेहेइ पमत्ते अवसर पायकंबलं । पडिलेहणाअणाउत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १०. पडिलेहेइ पमत्ते से किंचि हु निसामिया । गुरुपरिभावए' निच्चं पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १. केइ उ (ऋ, सु, बृ); के इमे (बृपा)। ४. पडिलेहा (स)। २. मुत्तु (ऋ)। ५. गुरु परिभवइ (अ); गुरुपरिभासए (बृ); ३. वसइ (बृपा)। गुरुपरिभावए (बृपा)। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ उत्तरज्झयणाणि ११. बहुमाई पमुहरे थद्धे लद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अचियत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १२. विवादं च उदीरेइ अहम्मे अत्तपण्णहा । वुग्गहे कलहे रते पावसमणि त्ति वच्चई ॥ १३. अथिरासणे कुक्कुईए जत्थ तत्थ निसीयई । आसणम्मि अणाउत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १४. ससरक्खपाए सुवई सेज्जं न पडिलेहइ । संथारए अणाउत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १५. दुद्धदहीविगईओ आहारेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १६. अत्यंतम्मि' य सूरम्मि आहारेइ अभिक्खणं । __चोइओ पडिचोएइ पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १७. आयरियपरिच्चाई परपासंडसेवए । गाणंगणिए दुब्भूए पावसमणि त्ति वुच्चई ।। १८. सयं गेहं परिचज्ज परगेहंसि वावडे । निमित्तेण य ववहरई पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १६. सण्णाइपिंडं जेमेइ नेच्छई सामुदाणियं ।। गिहिनिसेज्जं च वाहेइ पावसमणि त्ति वुच्चई । २०. एयारिसे पंचकुसीलसंवुडे रूवंधरे मुणिपवराण हेट्ठिमे । अयंसि लोए विसमेव गरहिए न से इहं नेव परत्थ लोए । २१. जे वज्जए एए सया उ दोसे से सुव्वए होइ मुणीण मज्झे । अयंसि लोए अमयं व पूइए आराहए 'दुहओ लोगमिणं ।। -ति बेमि ॥ १. पमुहरी (इ, स, चू)। २. अत्तपण्हहा (बृ); अत्तपण्णहा (बृपा)। ३. अत्यंतमयंमि (बृपा)। ४. वावरे (बृ, सु); ववहरे (बृपा)। ५. लोगमिणं तहापरं (उ, ऋ, स, सु) । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झयणं संजइज्जं 1 १. कंपिल्ले नयरे राया उदिण्णबलवाहणे नामेणं संजए नाम मिगव्वं उवणिग्गए || २. हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेव य । पायत्ताणीए महया सव्वओ परिवारिए' ।। ३. मिए छुभित्ता हयगओ कंपिल्लुज्जाणकेसरे भीए संते मिए तत्थ वहेइ अणगारे ४. अह केसरम्मि उज्जाणे सज्झायज्झाणजुत्त ५. अप्फोवमंडवम्मि तस्सागए मिए पास ६. अह आसगओ राया हुए मिए उपासित्ता ७. अह राया तत्थ संभंतो मए उ मंदपुण्णेणं ८. आसं १. परिवार ( अ ) । २. अप्फोत (चू) । ३. खवियासवे (स) । विसज्जइत्ताणं विणएण वंदए पाए ६. अह मोणेण सो भगवं रायाणं न पडिमंतेइ अहमस्सीति कुद्धे तेएण अणगारे १०. संजओ I समुच्छिए । Tata | धम्मभाणं झियायई ॥ भाई झवियासवे' । वहेई से नराहिवे ॥ खिप्पमागम्म सो तहि । अणगारं तत्थ पासई || अणगारो रसगिद्धेण मणाहओ । घंतुणा ॥ अणगारस्स सो निवो । भगवं ! एत्थ मे खमे ॥ अणगारे झाणमस्सिए । तओ राया भयदुओ ॥ भगवं ! वाहराहि मे । डहेज्ज नरकोडिओ ॥ ४. मणा + आहओ = मणाहओ । ५. घत्तुणा (उ, चू); घम्मुणा (ऋ) । १४५ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ११. अभओ पत्थिवा ! तुब्भं अभयदाया भवाहिय । अणिच्चे जीवलोगम्मि कि हिंसाए पसज्जसि ? I १२. जया सव्वं परिच्चज्ज गंतव्वमवसस्स ते । अणिच्चे जीवलोगम्मि कि रज्जम्मि पसज्जसि ? १३. जीवियं चेव रूवं च विज्जुसंपायचंचलं जत्थ तं मुज्भसी रायं ! पेच्चत्थं नावबुज्झसे ॥ मित्ता य तह बंधवा । मयं नाणुव्वयंतिय ॥ पियरं परमदुक्खिया । बंधू राय ! तवं चरे ॥ १४. दाराणि य सुया चेव जीवंतमणुजीवंति दारे य परिरक्खिए । हट्टतुटुमलंकिया 11 सुहं वा जइ वा दुहं । गच्छई उ परं भवं ॥ अणगारस्स अंतिए । समावन्नो नराहिवो || निक्खंतो जिणसासणे । अणगारस्स अंतिए । खत्तिए परिभासइ । पसन्नं ते तहा मणो ॥ कस्सट्ठाए व माहणे ? कहूं विणीए त्ति वुच्चसि ? तहा' गोत्तेण गोयमे । विज्जाचरणपारगा ॥ अण्णाणं च महामुणी ! मेयण्णे किं पभासई ? १५. नीति मयं पुत्ता पियरो वि तहा पुत्ते १६. तओ तेणज्जिए' दव्वे कोलंतन्ने' नरा रायं ! १७. तेणावि जं कथं कम्मं कम्मुणा तेण संजुत्तो १८. सोऊण तस्स सो धम्मं महया संवेगनिव्वेयं १६. संजओ चइउं रज्जं गद्दभालिस्स भगवओ २९. चिच्चापव्वइए जहा ते 'दीसई रूवं २१. . किंनामे ? किंगोत्ते ? : कहं पडियरसी बुद्धे ? २२. संजओ नाम नामेण भाल ममायरिया २३. किरियं अकिरियं विषयं एएहिं चउहि ठाणेहि १ अभयं ( अ, आ ) । २. रज्जेण ( उ, ऋ); हिंसाए ( वृपा ) । ३. इदं सूत्रं चिरन्तनवृत्तिकृता न व्याख्यातं, प्रत्यन्तरेषु च दृश्यते इत्यस्माभिरुन्नीतम् (बृ) । ४. तेण + अज्जिए = तेणज्जिए । ५. कीलंत + अन्ने की लंतन्ने । == ६ देस्सती रूवं संपुष्णो ते जहा मणो (चू) । ७. वुच्चई (अ, ऋ, बृ) । ८. अहं (च) 1 ६. मियन्ना (चू ) । उत्तरज्झयणाणि Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं अज्झणं ( संजइज्जं ) २४. इइ पाउकरे विज्जाचरणसंपन्ने २५. पडंति नरए घोरे दिव्वं च गई गच्छंति २६. मायावुइयमेयं तु संजममाणो वि अहं २७. सब्वे ते विइया मज्भं विज्जमाणे परे लोए महापाणे जा सा पाली महापाली २८. अहमासी बुद्धे नायए परिनिव्वुडे । सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ जे नरा पावकारिणो । चरित्ता धम्ममारियं ॥ मुसाभासा निरत्थिया । वसामि इरियामि य' ।। मिच्छादिट्ठी अणारिया । सम्मं जाणामि अप्पगं ।। २६. से चु' बंभलोगाओ अप्पणी य परेसि च ३०. नाणा रुइं च छंदं च अट्ठा जे य सव्वत्था ३१. पडिक्कमामि परिणाणं अहो उट्ठिए अहोरायं ३२. जं च मे पुच्छसी काले ताई पाउकरे बुद्धे ३३. किरियं च रोयए धीरे दिट्ठीए दिट्ठसंपन्ने ३४. एयं पुण्णपयं सोच्चा भरहो वि भारहं वासं ३५. सगरो वि सागरंतं इस्सरियं केवलं हिच्चा ३६. चइत्ता भारहं वासं पव्वज्जमब्भुवगओ ३७. सणकुमारो मणुस्सिदो पुत्तं रज्जे ठवित्ताणं ३८. चइत्ता भारहं वासं संती संतिकरे लोए १. इदमपि सूत्रं प्रायो न दृश्यते ( बृ, चू) । २. चुया ( अ ) । ३. बुद्धेण (बृ.) । जुइमं वरिसस ओवमे । दिव्वा वरिससओवमा || माणुस्सं भवमागए । आउँ जाणे जहा तहा ॥ परिवज्जेज्ज संजए । इइ विज्जामणुसंचरे ॥ परमंतेहि वा पुणो । इइ विज्जा तवं चरे ॥ सम्मं सुद्धेण' चेयसा । तं नाणं जिणसासणे || अकिरियं परिवज्जए । धम्मं चर सुदुच्चरं । अत्थधम्मोवसोहियं । चेच्चा कामाइ पव्वए । भरहवासं नराहिवो । दयाए परिनिव्वुडें ॥ चक्कवट्टी महिड्दिओ । मघवं नाम महाजसो ॥ चक्कवट्टी महिड्ढिओ । सो वि राया तवं चरे । चक्कवट्टी महिडिओ । पत्तो मत्रं ॥ ४. परिनिव्वुओ (उ, ऋ) । ५. ठवेऊण ( उ, ऋ) । १४७ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ उत्तरज्झयणाणि ३६. इक्खागरायवसभो कुंथू नाम नराहिवो । विक्खायकित्ती धिइमं 'मोक्खं गओ अणुत्तरं ।। ४०. सागरंतं जहित्ताणं' 'भरहं वासं नरीसरो"। अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइमणुत्तरं ।। ४१. चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी नराहिओ । चइत्ता उत्तमे भोए महापउमे तवं चरे॥ ४२. एगच्छत्तं पसाहित्ता महिं माणनिसूरणो । हरिसेणो मणुस्सिदो पत्तो" गइमणुत्तरं ।। ४३. अन्निओ रायसहस्सेहिं सुपरिच्चाई दमं चरे । ___ जयनामो जिणक्खायं पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४४. दसण्णरज्जं मुइयं चइत्ताणं मुणी चरे । दसण्णभद्दो निक्खंतो सक्खं सक्केण चोइओ।। [नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ । चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवट्ठिओ ॥] ४५. करकंडू कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहों। नमी राया विदेहेसु गंधारेस य नग्गई। ४६. एए नरिंदवसभा निक्खंता जिणसासणे । पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं सामण्णे पज्जुवटिया । ४७, सोवीररायवसभो 'चेच्चा रज्ज' मुणी चरे। उद्दायणो" पव्वइओ पत्तो गइमणुतरं ।। ४८. तहेव कासीराया सेओ सच्चपरक्कमे । कामभोगे परिच्चज्ज पहणे कम्ममहावणं ।। ४६. तहेव विजओ राया 'अणढाकित्ति" पव्वए। रज्जं तु गुणसमिद्धं पयहित्तु महाजसो॥ १. भगवं (उ, ऋ)। रपि नोपलभ्यते । २. पत्तो गइमणुत्तरं (उ, ऋ)। ६. दुम्महा (ऋ)। ३. चइत्ताणं (उ, ऋ, स)। १०. एवं (उ, ऋ)। ४. भरहं नरवरीसरो (उ, ऋ)। ११. ठवेऊणं (उ, ऋ)। ५. अरसं (बृपा)। १२. चइत्ताण (अ, उ, ऋ)। ६. महिड्ढिओ (उ, ऋ)। १३. उदायणो (आ, उ, ऋ, बृ)। ७. गओ (अ)। १४. अणट्टा (बृ); आणट्ठा (सु)। ८. कोष्ठकवर्ती श्लोकः सर्वार्थसिद्धयां वृत्तौ च १५. आणट्टा किइ पव्वइ (बृपा) । नास्ति व्याख्यातः, 'आ, इ' संकेतितादर्शयो Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y8 अट्ठारसमं अज्झयणं (संजइज्ज) ५०. तहेवग्गं' तवं किच्चा अव्वक्खित्तेण चेयसा । महाबलो' रायरिसी अद्दाय' सिरसा सिर॥ ५१. कहं धीरो अहेऊहिं उम्मत्तो' व्व' महिं चरे ? एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा । ५२. अच्चंतनियाणखमा सच्चा मे भासिया वई। अरिंसु तरंतेगे तरिस्संति अणागया। ५३. कहं धीरे अहेऊहिं अत्ताणं परियावसे ? सव्वसंगविनिम्मुक्के सिद्ध हवइ नीरए । -त्ति बेमि ॥ स १. तहेवउग्ग (अ)। २. महब्बलो (अ, आ, ऋ); महबलो (उ)। ३. आदाय (उ, ऋ, सु, बृपा)। ४. सिरि (अ, आ, उ, ऋ, बृपा)। ५. उम्मत्तु (उ, ऋ)। ६. व (अ)। ७. एसा (बृ); सव्वा, सच्चा (बृपा)। ८. तरंतन्ने (बृपा)। ६. अणागयं (अ)। १०. अदाणं (वृ); अत्ताणं (बृपा) । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणविसइमं अज्झयणं मियापुत्तिज्जं १. सुग्गीवे नयरे रम्मे काणणुज्जाणसोहिए । राया बलभद्दो त्ति मिया तस्सग्गमाहिसी ॥ २. तेसिं पुत्ते बलसिरी मियापुत्ते त्ति विस्सुए । अम्मापिऊण दइए जुवराया दमीसरे ।। ३. 'नंदणे सो उ पासाए" कीलए' सह इथिहिं । देवो दोगुंदगो चेव निच्चं मुइयमाणसो।। ४. मणिरयणकुट्टिमतले पासायालोयणट्ठिओ । ___ आलोएइ नगरस्स चउक्कतियचच्चरे ॥ ५. अह तत्थ अइच्छंतं पासई समणसंजयं । तवनियमसंजमधरं सीलड्ढे गुणआगरं ।। ६. तं देहई मियापुत्ते दिट्ठीए अणिमिसाए उ । ___ कहिं मन्नेरिसं रूवं दिट्ठपुव्वं मए पुरा ॥ ७. साहुस्स दरिसणे तस्स अज्झवसाणम्मि सोहणे । मोहंगयस्स संतस्स जाईसरणं समुप्पन्नं ।। (देवलोग चुओ संतो माणुसं भवमागओ। सण्णिनाणे समुप्पण्णे जाइं सरइ पुराणयं ।।). ८. जाईसरणे समुप्पन्ने मियापुत्ते महिडिढए । सरई पोराणियं जाइं सामण्णं च पुराकयं ।। ६. विसएहि अरज्जतो रज्जतो संजमम्मि य । अम्मापियरं उवागम्म इमं वयणमब्बवी॥ १. उण्णंदमाणे पासाए (चू) ४. कोष्ठकवर्ती श्लोक: चूणौं वृत्तौ सर्वार्थ२. कीलिए (ऋ)। सिद्धयां सुखबोधायां च नास्ति व्याख्यातः । ३. पेहइ (ब)। 'आ, इ' संकेतितादर्शयोरपि नोपलभ्यते । Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणविस अणं (मियापुत्तिज्जं ) १५१ १०. सुयाणि मे पंच महव्त्रयाणि नरएसु दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु । निव्विणकामो मि' महण्णवाओ अणुजाणह पव्वइस्सामि अम्मो ! ॥ ११. अम्मताय ! मए भोगा भुत्ता विसफलोवमा । पच्छा कविवागा अणुबंधदुहावहा 11 १२. इमं सरीरं अणिच्चं असुइ असुइसंभवं । असासयावासमिणं दुक्खा भायणं ॥ १३. असासए' सरीरम्मि रई नोवल भामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे' फेणबुब्बुयसन्निभे १४. माणुस असारम्मि वाहीरोगाण जरामरणवत्थम्मि 11 १५. जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं अहो ! दुक्खो हु संसारो १६. खेत्तं वत्युं हिरण्णं च च आलए । खणं पि न रमामहं || रोगा य मरणाणि य । जत्थ कीसंति जंतवों ॥। पुत्तदारं बंधवा । चइत्ताणं इमं देहं गंतव्वमवसस्स मे ॥ १७. जहा किंपागफलाणं परिणामो न सुंदरो । एवं भुत्ताण भोगाणं परिणामो न सुंदरो ॥ १८. अद्धाणं जो महंत तु अपाहेओ पवज्जई | गच्छंतो सो दुही होइ छुहातण्हाए पीडिओ ॥ १६. एवं धम्मं अकाऊणं जो गच्छइ गच्छंतो सो दुही होइ वाहीरोगेहिं सपाहेओ छुहातण्हाविवज्जिओ २०. अद्धाणं जो महंतं तु गच्छतो सो सुही होइ २१. एवं धम्मं पि काऊणं गच्छंतो सो सुहा होइ २२. जहा गेहे पलित्तम्मि तस्स गेहस्स सारभंडाणि नीणेइ असारं २३. एवं लोए पलित्तम्मि जराए अप्पाणं तारइस्सामि तुभेहिं परं भवं । पीडिओ || पवज्जई । 11 जो गच्छइ परं भवं । अप्पकम्मे अवेयणे || २४. तं १. ह्म ( स ) । २. आसासए ( अ, उ ) । ३. जहियव्वे (च) । ४. जन्तुणो (आ, ऋ); पाणिणो ( उ स ) । जो पहू । अवउज्झइ || तिम्मापियरों सामण्णं पुत्त ! दुच्चरं । गुणाणं तु सहस्साइं धारेयव्वाई भिक्खुणो ॥ मरणेण य । अणुमन्निओ || ५. बंधवं (उ) । ६. बिंत + अम्मापियरो = तिम्मापियारो । ७. भिक्खुणा (बु); भिक्खुणो (बुपा) । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ उत्तरज्झयणाणि २५. समया सव्वभूएसु सत्तुमित्तेसु वा जगे । पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुक्करा' ।। २६. निच्चकालप्पमत्तेणं मुसावायविवज्जणं । भासियव्वं हियं सच्चं निच्चाउत्तेण दुक्करं ।। २७. दंतसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेसणिज्जस्स गेण्हणा अवि दुक्करं ।। २८. विरई अबंभचेरस्स कामभोगरसण्णुणा । उग्गं महव्वयं बंभं धारेयव्वं सुदुक्करं ।। २६. घणधन्नपेसवग्गेसु परिग्गहविवज्जणं' । सव्वारंभपरिच्चाओ निम्ममत्तं सुदुक्करं ।। ३०. चउन्विहे वि आहारे राईभोयणवज्जणा सन्निहीसंचओ चेव वज्जेयव्वो सुदुक्करों'। ३१. छुहा तण्हा य सीउण्हं दंसमसगवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेज्जा य तणफासा जल्लमेव य ।। ३२. तालणा तज्जणा चेव वहबंधपरीसहा दुक्खं भिक्खायरिया जायणा य अलाभया ।। ३३. कावोया जा इमा वित्ती केसलोओ य दारुणो । दुक्खं बंभवयं घोरं धारेउं अ महप्पणो।। ३४. सुहोइओ तुमं पुत्ता ! सुकुमालो सुमज्जिओ । नहु सी पभू तुमं पुत्ता ! सामण्णमणुपालिउ ॥ ३५. जावज्जीवमविस्सामो गुणाणं तु महाभरो । गुरुओ लोहमारो व्व जो पुत्ता ! होइ दुव्वहो ।। ३६. आगासे गंगसोउ व्व पडिसोओ व्व दुत्तरो । बाहाहिं सागरो चेव तरिव्वो गणोयही ।। ३७. वालुयाकवले चेव निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव दुक्करं चरिउ तवो ।। ३८. अहीवेगंतदिट्ठीए चरित्ते पुत्त ! दुच्चरे । जवा लोहमया चेव चावेयव्वा सुदुक्करं ।। ३६. जहा अग्गिसिहा दित्ता पाउं होइ सुदुक्करं । तह दुक्करं करेउं जे तारुण्णे समणत्तणं ।। १. दुक्करं (बृ, सु)। ५. पालिया (अ, आ, इ, उ, सु) । २. निच्चकाल+अप्पमत्तेणं-निच्चकालप्प- ६. कवला (अ)। मसेणं । ७. व (उ)। ३. °विवज्जणा (आ, इ, ऋ)। ८. सुदुक्करा (बृपा)। ४. सुदुक्करं (उ)। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणविसइमं अज्झयणं (मियापुत्तिज्ज) ४०. जहा दुक्खं भरेउं जे होइ वायस्स कोत्थलो । तहा दुक्खं करेउं जे कीवेणं समणत्तणं ।। ४१. जहा तुलाए तोलेउं दुक्करं मंदरो गिरी । तहा निहुयं नीसंकं दुक्करं समणत्तणं ॥ ४२. जहा भुयाहिं तरिउं दुक्करं रयणागरो । तहा अणुवसंतेणं दुक्करं दमसागरो ।। ४३. भुंज माणुस्सए भोगे पंचलक्खणए तुमं । भुत्तभोगी तओ जाया! पच्छा धम्म चरिस्ससि ।। ४४. 'तं बितम्मापियरो' एवमेयं जहा फुडं । इह लोए निप्पिवासस्स नत्थि किंचि वि दुक्करं ।। ४५. सारीरमाणसा चेव वेयणाओ अणंतसो । मए सोढाओ भीमाओ असई दुक्खभयाणि य॥ ४६. जरामरणकंतारे चाउरते भयागरे । मए सोढाणि भीमाणि जम्माणि मरणाणि य । ४७. जहा इहं अगणी उण्हो एत्तोणतगणे तहिं । नरएसु वेयणा उण्हा अस्साया वेइया मए । ४८. जहा 'इमं इहं" सीयं 'एत्तोणंतगणं तहि । नरएसु वेयणा सोया अस्साया वेइया मए ।। ४६. कंदंतो कंदुकभीसु उड़ढपाओ अहोसिरो। हुयासणे जलंतम्मि पक्कपुवो अणंतसो ।। ५०. महादवग्गिसंकासे मरुम्मि वइरवालुए । कलंबवालुयाए य दड्ढपुव्वो अणंतसो ।। ५१. रसंतो कंदुकुंभीसु उड्ढे बद्धो अबंधवो । __करवत्तकरकयाईहिं छिन्नपुव्वो अणंतसो ॥ ५२. अइतिक्खकंटगाइण्णं तो सिंबलिपायवे । खेवियं पासबढे ड्ढोकड्ढाहिं दुक्करं ॥ ५३. महाजतेसु उच्छू व जारसंतो सुभेरवं । पीलिओ मि सकम्मेहि पावकम्मो अणंतसो । ५४. कूवंतो कोलसुणएहिं सामेहिं सबलेहि य । पाडिओ फालिओ छिन्नो विप्फुरंतो' अणेगसो ॥ १. दुत्तरं (आ)। ४. इहं इमं (उ, ऋ)। २. सो बे अम्मापियरो (उ, ऋ, बृपा); तो ५. एत्तोणंतगुणा तहिं (बृपा)। बेंतम्मापियरो (बृपा) । ६. खेदियं (बृ)। ३. इत्तोणंतगुणा (बृपा)। ७. विष्फरतो (अ, ऋ)। Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ५५. असोहि अयसिवण्णाहिं भल्लीहिं छिन्नो भिन्नो विभिन्नोय ओइण्णो' ५६. अवसो लोहरहे जुत्तो जलते' चोइओ तोत्तजुत्तेहिं ५७. हुस जलतम्मि दड्ढो पक्को अवसो ५८. बला संडास तुंडेहि विलुत्तो विलवंतो हं ५६. तण्हाकिलंतो धावंतो 11 पत्तो वेरणि नदि । गयासं जलं पाहिति" चिततो खुरधाराहि विवाइओ ॥ ६०. उण्हाभितत्तो संपत्तो असिपत्तं महावणं । असिपत्तेह पडतेहि छिन्नपुव्वो अगस ॥ ६१. मुग्गरेहिं मुसंढीहि सूलेहि मुसलेहि य । भग्गगत्तेहि पत्तं दुक्खं अनंतसो || ६२. खुरेहिं तिक्खधारेहि छुरियाहि कप्पणीहि य । कपिओ फालिओ छिन्नो उक्कतों य अणेगसो" || ६३. पासे हिं कूडजालेहिं मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ" बद्धरुद्धो अ बहुसो" चेव विवाइओ || ६४. गलेहिं मगरजालेहिं मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ " फालिओ गहिओ मारिओ य अनंतसो ॥ ६५. वोदंस एहि " जालेहिं लेप्पाहि सउणो विव । गहिओ लग्गो" बद्धो य मारिओ य अनंतसो || वड्ढईहिं दुमो विव । तच्छिओ य अनंतसो || कम्मारेहिं अयं पिव | चुण्णिओ य अनंतसो || तउयाइं सीसयाणि य । आरसंतो सुभेरवं ॥ ६६. कुहाडफरसुमाईहिं कुट्टओ फालिओ छिनो ६७. चवेडमुट्ठिमाहि ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो ६८. तत्ताइं पाइओ १. असाहि (बृ); असीहि ( बृपा ) । २. उबवण्णी (ॠ) । तंबलोहाई कलकलंताई ३. जलंत (बृप') । ४. पाहं ति ( बृ) । ५. विपाडिओ (बृ); विवाइओ (बृपा) । ६., १० - अनंतसो (उ, ऋ) । ७. तख दाहिं ( उ ) । पट्टिसेहि य । पावकम्मुणा ॥ समिलाए । रोज्झो वा जह पाडिओ || चियासु महिसो विव । पावकम्मे हि पाविओ ॥ लोहतुंडेहि ढंकगिद्धेहिणंतसो पक्खिहिं । उत्तरज्झयणाणि ८.छुरीहि (ऋ) । ६. उक्कतो (बु); उक्कित्तो (बृपा, सु) । ११. गहिओ (बृपा) । १२. विवसो (उ, ऋ) ! १३. अल्लिओ (उ, ऋ)। १४. वीसंदेहिए ( उ ) ; वी संद्एहिं (इ) | १५. भग्गो ( अ ) । Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवमं अज्झणं ( मियापुत्तिज्जं ) ६६. तुहं पिवाई मंसाई खंडाई सोल्ल गाणि य । खाविओ मि' समसाई अग्गिवण्णाइं सो ॥ ७०. तुहं पिया सुरा सीहू पाइओ' मि जलतीओ ७१. निच्च' भीएण तत्थेण परमा दुहसंबद्धा वेयणा ७२. तिव्वचंडप्पगाढाओ घोराओ मेरओ य महूणि य वसाओ रुहिराणि य ॥ दुहिएण वहिएण य । वेइया मए ॥ अइदुस्सहा । महब्भयाओ भीमाओ नरएसु वेइया मए || ७३. जारिसा माणुसे लोए ताया ! दोसंति वेयणा । एत्तो अनंतगुणिया नरसु दुक्खवेणा ॥ ७४. सव्वभवे अस्साया वेयणा वेइया मए । निमेसंतरमित्तं पि जं साया नत्थि वेयणा || ७५. तं बितम्मापियरो छंदेणं नवरं पुण सामण्णे दुक्खं ७६. सो तिम्मापयरो ! मियपक्खिणं ? || एवमेयं पडिकम्मं को कुणई अरण्णे ७७. एगभूओ अरणे वा जहा उ चरई मिगो । संजमेण तवेण य ।। महारण्णम्मि जायई । को णं ताहे तिगिच्छई' ? ।। को वा से पुच्छई सुहं ? । आहरितु पणामए ? || गच्छइ गोयरं । सराणि य ।। एवं धम्मं चरिस्सामि ७८. जया मिगस्स आयंको अच्छंतं रुक्खमूलम्मि ७६. कोवा से ओसहं देई ? को से भत्तं च पाणं च ८०. जयाय से सुही होइ भत्तपाणस्स अट्ठाए तया वल्लराणि ८१. खाइत्ता पाणियं पाउं वल्लरेहिं मिगचारियं चरित्ताणं गच्छई १. वि (ऋ) । २. पज्जित (बृ.) । ३. निच्च ( अ, ऋ ) । ४. महालया ( बृपा) । ८२. एवं समुट्ठिओ भिक्खू एवमेव पुत ! पव्वया । निप्पडिकम्मया ॥ अगओ । मिगचारियं चरित्ताणं उड्ढं पक्कमई दिसं ॥ सरेहि वा । मिगचारियं ॥ १५५ ५. तत्तो ( अ ) ; इत्तो ( उ, ऋ) । ६. विच्छिई ( उ ) ; चिगिच्छई (ऋ) । ७. वा (ऋ । ८. अणेगसो ( अ, ॠ); अणिएयणे (बुपा ) । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ उत्तरज्झयमाणि ८३. जहा मिगे एग अणेगचारी अणेगवासे धुवगोयरे य । एवं मुणी गोयरियं पविट्ठ नो हीलए नो वि य खिसएज्जा ।। ८४. मियचारियं चरिस्सामि एवं पुत्ता ! जहासुहं । अम्मापिऊहिणुण्णाओ' जहाइ उवहिं तओ ।। ८५. मियचारियं चरिस्सामि सव्वदुक्खविमोक्खणि । तुब्भेहिं अम्मणुण्णाओ' गच्छ पुत्त ! जहासुहं ।। ८६. एवं सो अम्मापियरो अणुमाणित्ताण बहुविहं । ममत्तं छिदई ताहे महानागो व्व कंचुयं ।। ८७. इड्ढि' वित्तं च मित्ते य पुत्तदारं च नायओ। रेणुयं व पडे लग्गं निद्धणित्ताण निग्गओ।। ८८. पंचमहव्वयजुत्तो पंचसमिओ तिगुत्तिगत्तो य । सब्मितरबाहिरओ तवोकम्मंसि उज्जुओ।। ८६. निम्ममो निरहंकारो निस्संगो चत्तगारवो । समो य सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य॥ १०. लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा । समो निंदापसंसासु तहा माणावमाणओ ।। ६१. गारवेसु कसाएसु दंडसल्लभएसु य । नियत्तो हाससोगाओ अनियाणो अबंधणो ।। ६२. अणि स्सिओ इहं लोए परलोए अणिस्सिओ । वासीचंदणकप्पो य असणे अणसणे तहा ।। १३. अप्पसत्थेहिं दारेहिं सव्वओ पिहियासवे । अझप्पज्झाणजोगेहिं पसत्थदमसासणे ॥ ६४. एवं नाणेण चरणेण दंसणेण तवेण य । भावणाहि ‘य सुद्धाहिं" सम्मं भावेत्तु अप्पयं ।। ६५. बहुयाणि उ' वासाणि सामण्णमणपालिया । मासिएण उ' भत्तेण सिद्धि पत्तो अणुत्तरं ।। ६६. एवं करंति संबुद्धा" पंडिया पवियक्खणा । ___विणियटृति भोगेसु मियापुत्ते जहारिसी । १. अम्मापिऊहि + अणुण्णाओ= अम्मापिऊ- ५. ओ (उ); अ (ऋ)। हिंषुण्णाओ। ६. य (अ)। २. अम्म! + अणण्णाओ-अम्मणण्णाओ। ७. संपन्ना (उ, बृ)। ३. इड्ढी (उ, ऋ)। ८. जहामिसी (ब, सु)। ४. विसुदाहिं (बृ, सु)। Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणविसइमं अज्झयणं (मियापुत्तिज्ज) १५७ ६७. महापभावस्स महाजसस्स मियाइ पुत्तस्स निसम्म भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं गइप्पहाणं च तिलोगविस्सुयं ।। १८. वियाणिया दुक्खविवद्धणं धणं ममत्तबंधं च महब्भयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं धारेह निव्वाणगुणावह' महं ।। -ति बेमि ॥ १. चरितं (अ)। २. नेव्वाणु (अ)। Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसइमं अज्झयणं महानियंठिज्जं १. सिद्धाणं नमो किच्चा संजयाणं च भावओ । अत्थधम्मगई तच्चं अणुसद्धि सुणेह मे ॥ २. पभूयरयणो राया सेणिओ मगहाहिवो। विहारजत्तं निज्जाओ मंडिकुच्छिसि चेइए ।। ३. नाणादुमलयाइण्णं नाणापक्खिनिसेवियं । ___ नाणाकुसुमसंछन्नं उज्जाणं नंदणोवमं ।। ४. तत्थ सो पासइ साहं संजयं सुसमाहियं । निसन्नं रुक्खमूलम्मि सकमालं सहोइयं ।। ५. तस्स रूवं तु पासित्ता राइणो तम्मि संजए । ____ अच्चंतपरमो आसी अउलो रूवविम्हओ॥ ६. अहो! वण्णो अहो! रूवं अहो ! अज्जस्स सोमया । ____ अहो ! खंती अहो ! सुत्ती अहो ! भोगे असंगया ॥ ७. तस्स पाए उ वंदित्ता काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने' पंजली पडिपुच्छई ।। ८. तरुणो सि अज्जो! फव्वइओ भोगकालम्मि संजया । ' उवट्ठिओ' सि सामण्णे एयमळं सुणेमि ता॥ ६. अणाहो मि महाराय ! नाहो मज्झ न विज्जई । अणुकंपगं सुहिं वावि 'कंचि नाभिसमेमहं" ।। १०. तओ सो पहसिओ राया सेणिओ मगहाहिवो । एवं ते इड्ढिमंतस्स कहं नाहो न विज्जई ।। ११. होमि नाहो भयंताणं भोगे भुंजाहि संजया ! । मित्तनाईपरिवुडो माणुस्सं खु सुदुल्लहं ॥ १. गतं (अ); मई (बृपा)। ४. कंचीनाहि तमे महं (ब, स); कंची नाभिस२. निसण्णो नाइदूरंमि (आ)। मेमहं (बृपा); नाभिसमेम+ अहं = नाभि३. उवहितो (बपा)। समेमहं। १५८ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसइमं अज्झणं (महानियंठिज्जं ) १२. अप्पणा वि अणाहो सि अाहो संतो अप्पणा १३. एवं वृत्तो नरिंदो सो सुसंभंतो वयणं जहा १७. सुह जहा १८. कोसंबी अस्सुयपुव्वं साहुणा विम्हयन्निओ ॥ माणुसे भोगे' संपयग्गम्मि भवइ ? कह अणाहो १४. अस्सा हत्थी मणुस्सा में पुरं अंतेउरं च मे । भुंजामि आणा इस्सरियं च मे ॥ १५. एरिसे सव्वकामसमप्पिए 1 ' मा हु भंते ! मुसं वए " ॥ अत्थं 'पोत्थं व पत्थिवा ! । भवई साहो वा नराहिवा ! ॥ महाराय ! अव्वक्खित्तेण " चेयसा । भवई जहा मे य पवत्तियं ॥ नयरी पुराणपुरभेयणी' I १६. न तुमं जाणे अणाहस्स मे अणाहो नाम तत्थ आसी पिया मज्झ पभूयधणसंचओ "I १६. पढ 1 वए महाराय ! अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलों' दाहो 'सव्वंगेसु य" पत्थिवा ॥ २०. सत्थं जहा परमतिक्खं सरीरविवरंतरे " पवे सेज्ज‍ अरी कुद्धो एवं मे अच्छिवेयणा || अंतरिच्छं च उत्तमंगं च पीडई | घोरा वेयणा परमदारुणा ॥ मे आयरिया विज्जामंतति गिच्छ्गा" 1 सत्यकुसला" मंतमूलविसारया 11 तिमिच्छ्रं कुव्वंति चाउप्पायं जहाहियं । दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाया ॥ २१. तियं मे इंदा सणसमा २२. उवट्टिया 'अबीया " २३. ते न मे य १. कस्स (आ) । २. विहिनिओ ( अ, उ, ऋ)। ३. लोए ( अ ) । ४. संपयायम्मि ( बृपा ) | सेणिया ! मगहाहिवा ! | कह' नाही भविस्ससि ? ॥ ५. भंते! मा हु मुसं वए ( बृपा ) । ६. पोत्थं च ( अ ) ; उत्थं व ( बू) ; पोत्थं व ( बृपा) । ७. अविक्खित्तेण (ऋ) । १५६ ८. नगराण पुडभेयणं ( बृपा ) | ६. तिउलो (बृ) ; विउलो ( बुपा ) । १०. सव्वगत्तेसु (बृ); सव्वंगेसु य ( बृपा ) | ११. सरीरबीय अंतरे ( बृपा ) । १२. आविलिज्ज (उ, ऋ, बृपा) । १३. विगच्छ्गा (ऋ)। १४. अधीया ( अ ) । १५. नाना सत्थत्थ कुसला ( बृपा) । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० उत्तरज्झयणाणि २४. पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा । न य दुक्खा' विमोएइ' एसा मज्झ अणाहया ।। २५. माया य' मे महाराय ! पुत्तसोगदुहट्टिया' न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया ॥ २६. भायरों' मे महाराय ! सगा जेट्टकट्ठिगा । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाया ।। २७. भइणीओ मे महाराय ! सगा जेट्टकणिट्ठगा । न य दुक्खा' विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ।। २८. भारिया में महाराय ! 'अणुरत्ता अणुव्वया । असुपुण्णेहि नयणेहिं उरं मे परिसिंचई ।। २६. अन्नं पाणं च पहाणं च गंधमल्लविलेवणं 'मए नायमणायं वा सा बाला नोवभंजई ।। ३०. खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि" न फिट्टई । न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया ॥ ३१. तओ हं एवमाहंसु दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुभविउं जे संसारम्मि अणंतए। ३२. सई" च जइ मुच्चेज्जा वेयणा विउला इओ। खंतो दंतो निरारंभो पव्वए१२ अणगारियं ।। ३३. एवं च चितइत्ताणं पसुत्तो मि नराहिवा! । परियटुंतीए राईए वेयणा मे खयं गया । ३४. तओ कल्ले पभायम्मि आपुच्छ्त्तिाण बंधवे । खंतो दंतो निरारंभो पव्वइओऽणगारियं ॥ ३५. ततो हं नाहो जाओ अप्पणो य परस्स य । सव्वेसिं चेव भूयाणं तसाण थावराण य॥ ३६. अप्पा नई वेयरणी अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू अप्पा मे नंदणं वणं ।। ३७. अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठियसुपट्ठिओ ॥ १. दुक्खाउ (उ); दुक्खाओ (ऋ) अग्रेपि । ८. अणुरत्तमणुव्वया (उ, ऋ); अणुतरमणब्वया २. विमोयंति (ब) सर्वत्र । __ (बृपा)। ३. वि (उ)। ६. तारिसं रोगमावण्णे (बृपा)। ४. दुहद्दिया (बृपा)। १०. य (अ, आ, उ)। ५. भाया (उ)। ११. सइयं (अ); सयं (उ, बृ)। ६,७. दुक्खाउ (उ); दुक्खाओ (ऋ)। १२. पव्वइए (उ)। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विस इमं अज्झयणं (महानियंठिज्जं) १६१ ३८. इमा ह अन्ना वि अणाहया निवा! तमेगचित्तो निहओ सणेहि । नियंठधम्म लहियाण वी जहा सोयंति एगे बहुकायरा नरा॥ ३६. जो पव्व इत्ताण महन्वयाइं सम्मं नो फासयई पमाया । __अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे न मूलओ छिदइ बंधणं से ।। ४०. आउत्तया जस्स न अत्थि काइ इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाणनिक्खेवदुगुंछणाए न वोरजायं' अणुजाइ मग्गं । ४१. चिरं पि से मुडरुई भवित्ता अथिरव्वए तवनियमेहि भट्रे । चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता न पारए होई हु संपराए । ४२. 'पोल्ले व" मुट्ठी जह से असारे अयंतिए कूडकहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे अमहग्घए होइ य जाणएसु ॥ ४३. कुसीललिंगं इह धारइत्ता इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता । असंजए संजयलप्पमाणे विणिघायमागच्छइ से चिरं पि ।। ४४. 'विसं तु पीयं जह कालकूडं हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । _ 'एसे व धम्मो विसओववन्नो हणाइ वेयाल इवाविवन्नो'। ४५. जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे निमित्तकोऊहलसंपगाढे । कुहेडविज्जासवदारजीवी न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥ ४६. तमंतमेणेव उ से असीले सया दुही विप्परियासुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणि मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ॥ ४७. उद्देसियं कीयगडं नियागं न मचई किंचि अणेसणिज्जं । ___ अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता इओ चुओ गच्छइ कटु पावं ॥ ४८. न त अरी कंठछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पा'। से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छाणुतावेण दयाविहूणो॥ ४६. निरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तम8 विवज्जासमेई । इमे वि से नत्थि परे वि लोए दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए । ५०. एमेवहाछंदकुसीलरूवे मग्गं विराहेत्तु जिणुत्तमाणं । कुररी विवा भोगरसाणुगिद्धा निरट्ठसोया परियावमेई ।। १. फासइ (उ, ऋ)। २. धीरजायं (सु)। ३. पोल्लार (बृपा)। ४. संजयलाभमाणे (बृपा)। ५. विसं पिवित्ता (अ, आ); विसं पिबंती ६. एसो वि (अ); एसो व (उ)। ७. इवा विबंधणो (बृपा) ८. समेइ (अ)। ६. दुरप्पया (ऋ)। १०. एमेव + अहाछंद = एमेवहाछंद । Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ उत्तरज्भयणाणि ५१. सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं अणुसासणं नाणगुणोदवेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियंठाण वए पहेणं ॥ ५२. चरित्तमायारगुणन्निए' तओ अणुत्तरं संजम पालियाणं । निरासवे संखवियाण कम्मं उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ।। ५३. एवुग्गदंते वि महातवोधणे महामुणी महापइण्णे महायसे । महानियंठिज्जमिणं महासुयं से काहए महया वित्थरेणं ।। ५४. तुट्ठो य सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली । अणाहत्तं जहाभूयं सुठ्ठ मे उवदंसियं ॥ ५५. तुझं सुलद्धं मणुस्सजम्मं लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी ! । तुब्भे सणाहा य सबंधवा य जंभे ठिया मग्गे जिणत्तमाणं ।। ५६. तं सि नाहो अणाहाणं सव्वभूयाण संजया ! । खामेमि ते महाभाग! इच्छामि अणुसासिउं ।। ५७. पुच्छिऊण मए तुब्भं झाणविग्यो उ' जो कओ । निमंतिओ' य भोगेहिं तं सव्वं मरिसेहि मे।। ५८. एवं थुणित्ताण स रायसीहो अणगारसीहं परमाइ भत्तिए । 'सओरोहो य सपरियणो य" धम्माणरत्तो विमलेण चेयसा ॥ ५६. ऊससियरोमकूवो काऊण य पयाहिणं । अभिवांदेऊण सिरसा अइयाओ नराहिवो ।। ६०. इयरो वि. गुणसमिद्धो तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो । -त्ति बेमि ॥ । अतिर (क) १. °गुणत्तिए (अ)। २. अ (ऋ)। ३. निमंतिया (अ, आ, इ, उ) । ४. सओरोहो सपरियणो सबंधवो (अ, आ, इ) । ५. आइयो (उ)। गो मानिसको अबको र Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगविसइमं अज्झयणं समुद्दपालीयं १. चंपाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए । __महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महप्पणो ॥ २. निग्गंथे पावयणे सावए से विकोविए । पोएण ववहरते पिहुंडं नगरमागए । ३. पिहुंडे ववहरंतस्स वाणिओ देइ धूयरं । तं ससत्तं पइ गज्झ सदेसमह पत्थिओ। ४. अह पालियस्स घरणी समुइंमि पसवई । ___ अह 'दारए तहि जाए समुद्दपालि त्ति नामए । ५. खेमेण आगए चंपं सावए वाणिए घरं । संवड्ढई घरे तस्स दारए से सुहोइए । ६. बावत्तरि कलाओ य सिक्खए' नीइकोविए । जोवणेण य संपन्ने' सुरूवे पियदंसणे ।। ७. तस्स रूववइं भज्ज पिया आणेइ रूविणि । पासाए कीलए रम्मे देवो दोगुंदओ जहा ।। ८. अह अन्नया कयाई पासायालोयणे ठिओ। वज्झमंडणसोभागं वज्झं पासइ वझगं ।। ६. तं पासिऊण संविग्गों समुद्दपालो इणमब्बवी । अहोसुभाण' कम्माणं निज्जाणं पावगं इमं ॥ १०. संबुद्धो सो तहिं भगवं परं संवेगमागओ। आपुच्छऽम्मापियरो पव्वए" अणगारियं ।। १. बालए° (उ); बालए तम्मि (ऋ)। ५. अहो+असुभाण =अहोसुभाण । २. सिक्खिए (उ, ऋ, बृ); सिक्खए (बृपा)। ६. परम (उ)। ३. अप्फुण्णे (ब); सम्पन्ने (बृपा)। ७. पव्वइए (उ)। ४. संवेगं (उ, ऋ, बृ)। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणाणि ११. 'जहित्त संग च" महाकिलेसं महंतमोहं कसिणं भयावह' । परियायधम्म चभिरोयएज्जा' वयाणि सीलाणि परीसहे य । १२. अहिंस सच्चं च अतेणगं च तत्तो य 'बभं अपरिग्गहं च" । पडिवज्जिया पंच महत्वयाणि चरिज्ज धम्म जिणदेसियं विऊ ।। १३. सव्वेहि भूएहि दयाणुकंपी' खंतिक्खमे संजयबंभयारी। सावज्जजोगं परिवज्जयंतो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइंदिए । १४. कालेण कालं विहरेज्ज रठे बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न संतसेज्जा वयजोग सुच्चा न असब्भमाहु ॥ १५. उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थभिरोयएज्जा न यावि पूयं गरहं च संजए। १६. अणेगछंदा इह माणवेहिं जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ।। १७. परीसहा दुव्विसहा अणेगे सीयंति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू संगामसीसे इव नागराया ॥ १८. सीओसिणा दंसमसा य फासा आयंका विविहा फुसंति देहं । अकुक्कुओ" तत्थहियासएज्जार रयाई खेवेज्ज पुरेकडाइं॥ १९. पहाय रागं च तहेव दोसं मोहं च भिक्ख सययं वियक्खणो । मेरु व्व वाएण अकंपमाणो परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ॥ २०. अणुन्नए नावणए महेसी न यावि पूयं गरहं च संजए । स उज्जुभावं पडिवज्ज संजए निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ।। २१. अरइर इसके पहीणसंथवे विरए आयहिए पहाणवं । परमट्ठपएहि चिट्ठई छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥ २२. विवित्तलयणाइ भएज्ज ताई" निरोवलेवाइ असंथडाइं । इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं काएण फासेज्ज परीसहाई ।। १. जहित्तु संगंथ (सु); जहित्तु सग्गंथ (ब); जहित्तु संगं च, जहाय संगं च (बृपा); जहित्तुऽसग्गंथ (चू)। २. भयाणगं (बू, चू)। ३. च+अभिरोयएज्जा-चभिरोयएज्जा। ४. अब्बंभ परिग्गहं च (बृपा) ! ५. दयाणुकंपो (बृपा)। ६. रिठे (ऋ)। ७. उ (अ)। ८ मिह (बृ) । ६. सोपगरेइ (ब)। १०. उवेन्ति (बपा)। ११. अकक्करे (बृपा, चू)। १२. तत्थ+अहियासएज्जा तत्थहियासेज्जा । १३. रज्जाइं (उ)। १४. ताया (ऋ)। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ एविसइमं अज्झयणं (समुद्दपालीय) २३. सण्णाणनाणोवगए महेसी अणुत्तरं चरिउ धम्मसंचयं । अणुत्तरे' नाणधरे जसंसी ओभासई सूरिए वंतलिक्खे' ॥ २४. दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोघं समुद्दपाले 'अपुणागमं गए॥ -त्ति बेमि ॥ १. सन्नाईणं° (ऋ); सनाण° (ब); सन्नाण° (बृपा)। २. गुणुत्तरे (बृपा)। ३. वंतलिक्खं (अ)। ४. निरंज गे (ब); निरंगणे (बृपा)। ५. गइं गउ (अ, ऋ, सु, चू)। Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाइसमं अज्झयणं रहनेमिज्जं १. सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिड्ढिए । वसुदेवे ति नामेणं रायलक्खणसंजुए ॥ २. तस्स भज्जा दुवे आसी रोहिणी देवई तहा । तासिं दोण्हं पि दो पुत्ता इट्टा रामकेसवा ।। ३. सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिड्ढिए । ___ समुद्दविजए नामं रायलक्खणसंजुए ॥ ४. तस्स भज्जा सिवा नाम तीसे पुत्तो महायसो । ___ भगवं अरिट्ठनेमि ति लोगनाहे दमीसरे ॥ ५. सोरिट्टनेमिनामो' उ लक्खणस्सरसंजुओ' । ___ अट्ठसहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ।। ६. वज्जरिसहसंघयणो समचउरंसो झसोयरो । तस्स राईमई कन्नं भज्ज जायइ केसवो ।। ७. अह सा रायवरकन्ना सुसीला चारुपेहिणो । सव्वलक्खणसंपुन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा ॥ ८. अहाह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्ढियं । इहागच्छऊ कुमारो जा से कन्नं दलाम हैं ।। ६. सव्वोसहीहि एहविओ कयकोउयमंगलो दिव्वजुयलपरिहिओ आभरणेहिं विभूसिओं' ।। १०. मत्तं च गंधहत्थि' वासुदेवस्स जेट्टगं । आरूढो सोहए अहियं सिरे चूडामणी जहा ॥ १. सो+अरि? =सोरिट्ठ। ४. विभूसई (ऋ)। २. वंजणस्सर (अ, बृपा)। ५.हत्थि च (अ, आ, इ, उ)। ३. संपन्ना (उ, ऋ)। १६६ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाइसम अज्झयणं ( रहने मिज्जं ) ११. 'अह ऊसिएण " छत्तेण चामराहि य सोहिए । दसारचक्के य सो सव्वओ परिवारिओ || Teri | गगणं फुसे ॥ उत्तिमा य । पुंगव । भयदुए | सुदुक्ख ॥। सेनाए रइयाए तुरियाण सन्निनाएण दिव्वेण १२. चउरंगिणीए इड्ढी जुई नियगाओ भवणाओ निज्जाओ १३. एयारिसीए १४. अह सो तत्थ निज्जतो दिस्स पाणे वाडेहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धे सुहेसिणो । अच्छहिं ? ।। १६. कस्स अट्ठा 'इमे पाणा'" वाडेहि पंजरेहिं च १७. अह सारही तओ भणइ तुज्भं विवाहकज्जंमि १५. जीवितं तु संपत्ते मंसट्ठा पासेत्ता से महापणे सारहि एए सव्वे सन्निरुद्धा य एए भद्दा उ पाणिणो । भोयावेउ बहुं जणं ॥ १८. सोऊण तस्स' वयणं बहुपाणिविणासणं' 1 साक्कोसे जिएहि उ ।। 'हम्मिहिंति बहू" जिया । परलोगे भविस्सई ॥ महायो । चितेइ से महापणे १६. जइ मज्झ कारणा एए न मे एयं तु निस्सेसं २०. सो कुंडलाण जयलं आभरणाणि सव्वाणि पणामए || २१. मणपरिणामे य कए सव्वड्ढीए परिसा २२. देवमणुस परिवुडो निक्खमिय बारगाओ २३. उज्जाणं साहसीए १. से ओसिएण ( बृपा ) | २. बद्धरुद्धे (बृपा) । ३. बहुपाणे (बृपा) । ४. तस्स सो (उ, ऋ) । देवाय जहोइयं समोइण्णा । निक्aमणं तस्स काउं जे । सीयारयणं तओ समारूढो । रेवययं मि ओ भगवं । संपत्तो ओइण्णो उत्तिमाओ सीयाओ" । परिवुडो अह निक्खमई उचित्ताहि ।। ५. बहुपण (बृ.) । ६. हम्मति सुबह (उ, ऋ, बृ); हम्मिहिति भक्aिraar | इणमब्व || सुत्तगं च सारहिस्स बहू (बृपा) । ७. सेमाणि (ऊ, ऋ)। ८. समोडिया ( बृपा ) | ६. सीइया (ॠ) । १०. सीइयाओ (ऋ) । १६७ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ उत्तरायणाणि २४. अह से सुगंधगंधिए' तुरियं मउयकुंचिए' । सयमेव लुचई केसे पंचमुट्ठीहिं' समाहिओ। २५. वासुदेवो य णं भणइ लत्तकेसं जिइंदियं । ___इच्छियमणोरहे तुरियं पावेसू तं दमोसरा ! ।। २६. नाणेणं दंसणेणं च चरित्तेण तहेव" य । खंतीए मुत्तीए' वड्ढमाणो भवाहि य ।। २७. एवं ते रामकेसवा दसारा य बहू जणा । अरिट्ठणेमि वंदित्ता अइगया बारगापुरि ।। २८. सोऊण रायकन्ना पव्वज्ज सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणंदा सोगेण उ समुत्थया ।। २६. राईमई विचितेइ धिरत्थ मम जीवियं । जा हं तेण परिच्चत्ता सेयं पव्वइउं" मम ।। ३०. अह सा भमरमन्निभे कुच्चफणगपसाहिए । __ सयमेव लुचई केसे घिइमंता ववस्सिया" ।। ३१. वासुदेवो य णं भणइ लत्तकेसं जिइंदियं । संसारसागरं घोरं तर कन्ने ! लहुं लहुं ।। ३२. सा पव्वइया संती पवावेसी'२ तहिं बहुं । सयणं परियणं चेव सीलवंता बहुस्सुया । ३३. गिरि रेवययं" जंती वासेणुल्ला उ अंतरा । वासंते अंधयारम्मि अंतो लयणस्स सा ठिया ।। ३४.. चीवराई विसारंती जहा जाय त्ति पासिया । . रहनेमी भग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि ।। ३५. भीया य सा तहि दलृ एगंते संजयं तयं । बाहाहि काउं संगोफ वेवमाणी निसीयई ॥ ३६. अह सो वि रायपुत्तो समुद्दविजयंगओ । भीयं पवेवियं दळु इमं वक्कं उदाहरे ॥ १. सुगंधि' (ऋ, बृ)। ८. सेउं पव्वइयं (अ); सेओ पव्वइओ (उ); २. मओए (अ)। सेउं पव्वइउ (ऋ)। ३. पंचढाहिं (बृ)। ६. °संकासे (अ)। ४. पावसू (बृ)। १०. °फलग (अ)। ५. तवेण (सु)। ११. वि तवस्सिया (अ)। ६. मुत्तीए चेव (उ)। १२. पवावेती (अ)। ७. समुत्थिया (अ); समुच्छया (आ)। . १३. रवेइयं (अ)। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाइसमं अज्झयणं (रहनेमिज्ज) ३७. रहनेमो अहं भद्दे ! सुरूवे ! चारुभासिणि ! । मम' भयाहि सुयण ! न ते पीला भविस्सई ।। ३८. एहि ता भुजिमो भोए माणुस्सं खु सुदुल्लहं । 'भुत्तभोगा तओ" पच्छा जिणमग्गं चरिस्सिमो ।। ३६. दळूण रहनेमि तं भग्गुज्जोयपराइयं । राईमई असंभंता अप्पाणं संवरे तहिं ।। ४०. अह सा रायवरकन्ना सुटिया नियमव्वए । जाई कुलं च सोलं च रक्खमाणी तयं वए।। ४१. जइ सि रूवेण वेसमणो ललिएण नलकूबरो । तहा वि ते न इच्छामि जइ सि सक्खं पुरंदरो ।। [पक्खंदे जलियं जोई धूमकेउं दुरासयं । नेच्छंति वंतयं भोत्त कुले जाया अगंधणे ॥' ४२. धिरत्थ ते जसोकामी! जो तं जीवियकारणा । वंतं इच्छसि आवेळ सेयं ते मरणं भवे ॥ ४३. अहं च भोयरायस्स तं च सि अंधगवण्हिणो । मा कुले गंधणा होमो संजमं निहुओ चर ।। ४४. जइ तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारिओ । वायाविद्धो व्व हढो अट्रिअप्पा भविस्ससि ।। ४५. गोवालो भंडवालो' वा जहा तद्दव्वऽणिस्सरो । एवं अणिस्सरो तं पि सामण्णस्स भविस्ससि ।। [कोहं माणं निगिहित्ता मायं लोभं च सव्वसो । इंदियाइं बसे काउं अप्पाणं उवसंहरे ॥ ४६. तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं । ___ अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ ।। ४७. मणगुत्तो वयगुत्तो कायगत्तो जिइंदिओ। सामण्णं निच्चलं फासे जावज्जीवं दढव्वओ ।। ४८. उग्गं तवं चरित्ताणं जाया दोण्णि वि केवली । सव्वं कम्म खवित्ताण सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ।। ४६. एवं करेंति संबद्धा पंडिया पवियक्खणा । विणियटुंति भोगेसु जहा सो पुरिसोत्तमो ।। -त्ति बेमि ॥ १. मम (बपा)। संकेतितादर्शष्वपि नोपलभ्यते । २. भुत्तभोगी तओ (उ, ऋ); भुत्तभोगा पुणो ४. दंडपालो (बृपा)। ५. कोष्ठकवर्ती श्लोकः चूणौ वृत्तौ सर्वार्थसिद्धयां ३. कोष्ठकवर्ती श्लोकः चूणौ वृत्तौ सर्वार्थसिद्धयां सूख बोधायां च नास्ति व्याख्यातः, 'अ, इ, ऋ' सुखबोधायां च नास्ति व्याख्यातः, 'अ, इ,ऋ' संकेतितादर्शष्वपि नोपलभ्यते । Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेविसइमं अज्झयणं केसिगोयमिज्ज केसी १. जिणे पासे त्ति नामेण 'अरहा लोगपूइओ। ___ संबुद्धप्पा य सव्वण्ण धम्मतित्थयरे जिणे"। २. तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे । विज्जाचरणपारगे ॥ ३. ओहिनाणसुए बुद्धे सीससंघसमाउले । ___ गामाणुगामं रीयंते सावत्थि नगरिमागए ।। ४. तिदुयं नाम उज्जाणं तम्मी नगरमंडले । ____ फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए । ५. अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे । भगवं वद्धमाणो त्ति सव्वलोगम्मि विस्सुए । ६. तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे । ____ भगवं गोयमे नामं विज्जाचरणपारगे ॥ ७. बारसंगविऊ बुद्धे सीससंघसमाउले । ___ गामाणुगामं रीयंते से वि सावत्थिमागए । ८. कोट्टगं नाम उज्जाणं तम्मी नयरमंडले । फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासभुवागए ॥ ६. केसीकुमारसमणे गोयमे य महायसे । उभओ वि तत्थ विहरिसु अल्लीणा सुसमाहिया ।। १०. उभओ सीससंघाणं संजयाणं तवस्सिणं । __ तत्थ चिंता समुप्पन्ना गुणवंताण ताइणं ॥ अरिहा लोगविस्सुए। २. महिड्ढिए (अ) । सम्वन्नू सव्वदंस्सी य धम्मतित्थस्स देसए ॥ ३. अलीणा (बृपा)। (बृपा)। १७० Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेविसइमं अज्झयणं (केसिगोयमिज्ज) ११. केरिसो वा इमो धम्मो? इमो धम्मो व केरिसो ? आयारधम्मपणिही इमा वा सा व केरिसी? ॥ १२. चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ।। १३. अचेलगो य जो धम्मो जो इमो संतरुत्तरो । एगकज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं ? ॥ १४. अह ते तत्थ सीसाणं विण्णाय पवितक्कियं । समागमे कयमई उभओ केसिगोयमा ।। १५. गोयमे पडिरूवण्ण सीससंघसमाउले जेठं कुलमवेक्खंतो तिदुयं वणमागओ ॥ १६. केसीकुमारसमणे गोयमंदिस्समागयं । पडिरूवं पडित्ति सम्म संपडिवज्जई ॥ १७. पलालं फासुयं तत्थ पंचमं कुसतणाणि य । गो मस्स निसेज्जाए खिणं संपणामए ।। १८. केसीकुमारसमणे गोयमे य महायसे । उभओ निसण्णा सोहंति चंदसूरसमप्पभा ॥ १६. समागया बहू तत्थ पासंडा 'कोउगा मिगा" । गिहत्थाणं अणेगाओ साहस्सोओ समागया ।। २०. देवदाणवगंधव्वा जक्खरक्खसकिन्नरा । अदिस्साणं च भुयाणं आसी तत्थ समागमो ।। २१. पुच्छामि ते महाभाग ! केसी गोयम मब्बवी । तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ।। २२. पुच्छ भंते ! जहिच्छं ते केसि गोयममब्बवी । तओ केसी अणुण्णाए गोयम इणमब्बवी ।। २३. चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ।। २४. एगकज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं? । धम्मे दुविहे मेहावि ! कह विप्पच्चओ न ते ? ॥ २५. तओ केसि बुवंतं तु गोयमो इणमब्बत्री। पण्णा समिक्वए धम्म तत्तं तत्तविणिच्छ्य' ।। २६. पुरिमा उज्जुजडा' उ वंकजडा य पच्छिमा । ___ मज्झिमा ‘उज्जुपण्णा य"" तेण धम्मे दुहा कए ।। १. को उगासिया (ब); कोउगा मिगा (बृपा)। ४. उज्जुकडा (अ)। २. कहिं (अ)। ५. उज्जुपन्नाओ (उ, ऋ)। ३. विणिच्छियं (उ, ऋ) । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ २७. पुरिमाणं दुव्विसोझो उ कप्पो मज्झिमगाणं तु २८. साहु गोयम ! 'पण्णा ते" अन्नो वि संसओ मज्भं २६. 'अचेलगो य जो धम्मो देसिओ वद्धमाणेण ३०. एगकज्जपवन्नाणं लिंगे दुविहे ३१. केसिमेव विष्णाणेण ३२. पच्चयत्थं च ते य ते ३६. एगे जिए जत्तत्थं गणत्थं ३३. अह भवे पइण्णा नाणं च दंसणं चेव ३४. साहु गोयम ! पण्णा ते अन्नो वि संसओ मज्भं ३५. अणेगाणं सहस्ताणं अहिगच्छंति जिया पंच दसहा उ जिणित्ताणं ३७. सत्त य इइ के वृत्ते ? तओ केसिं बुवंतं तु अजिए सत्त जणित्तु जहानायं पण्णा ते मज्भं ३८. एगप्पा ४०. दीसंति मेहावि ! बुवाणं तु ३६. साहु गोयम ! अन्नो वि संसओ ह मुक्कपासो पासेण य महाजसा । विसेसे किं नु कारणं ? | कहं विप्पच्चओ न ते?" ॥ गोयमो इणमब्ववी | समागम्म धम्मसाहणमिच्छियं 11 लोगस्स नाणाविहविगप्पणं 1 च लोगे लिंगप्पओयणं ॥ उ मोक्खसब्भूयसाहणे * 1 चरितं चेव निच्छए ।। छिन्नो मे संसओ इमो । तं मे कहसु गोयमा ! ॥ मज्भे चिट्ठसि गोयमा ! | कह ते निज्जिया तुमे ? ॥ पंच जिए जिया दस । सव्वसत्तू जिणामहं || १. पन्नाए ( बृपा) । २. महामुनी (बु) ; महाजसा ( बृपा ) ३. आचेल्लको य जो धम्मो, जो वायं पुण सत्तरो । देसिदो वड्ढमाणेण, पासेण य महापणा ॥ एगधम्मे पत्ताणं, दुविधा लिंग- कप्पणा । लोए भूओ चरिमाणं दुरणुपालओ । सुविसोज्झो सुपालओ || छिन्नो मे संसओ इमो । तं मे कहसु गोयमा ! ॥ संतरुत्तरो । जो इमो उत्तरायणाणि केसी गोयमो गोयममब्बवी ! इब्बवी ! कसाया इंदियाणि य । विहरामि अहं मुणी ! ॥ छिन्नो मे संसओ इमो । तं मे कहसु गोयमा ! ॥ पासबद्धा सरीरिणो । कहं तं विहरसी ? भुणी ! ॥ उभएसि पदिट्ठाण, महं संसय मागदा || [मूलाराधना आश्वास ४ श्लो० ३३३ विजयोदाटीका पृ० ६११] ४. मोक्खे सब्भूय (अ); मुक्ख संभूय (उ, ऋ) । ५. जहित ( अ ) । Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसमं अभयणं ( के सिगोयमिज्जं ) छिदित् जहानायं ४४. साहु गोयम ! पण्णा ते अन्नो वि संसओ मज्भं ४५. अंतोहिययसंभूया ४१. ते पासे सव्वसो छित्ता निहंतॄण मुक्कपास लहुब्भूओ विहरामि ४२. पासा य इइ के वृत्ता ? केसी के सिमेव बुवंत तु गोयमो ४३. रागद्दोसादओ तिव्वा नेहपासा विहरामि हक्क ॥ छिन्नो मे संसओ इमो । तं मे कहसु गोयमा ! ॥ लया चिट्टइ गोयमा ! | सा उ उद्धरिया कहं ? ॥ उद्धरिता समूलियं । विहरामि जहानायं मुक्को मि विसभक्खणं ॥ फलेइ विभक्खीण' ४६. तं लयं सव्वसो छित्ता ४७. लया य इइ का वृत्ता ? केसी गोयममब्बवी । के सिमेव बुवंतं तु गोयमो इब्बवी ॥ ४८. भवतण्हा लया वुत्ता भीमा भीम फलोदया । तमुद्धरितु' जहानायं विहरामि महामुणी ! ॥ ४६. साहु गोयम ! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्भं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ५०. संपज्ज लिया घोरा अग्गी चिट्ठइ गोयमा ! | 'जे डहंति सरीरत्था" कहं विज्भाविया तुमे ? ॥ ५१. महामेहप्पसूयाओ गिज्भ वारि जलुत्तमं । 'सिचामि सययं सित्ता नो व डहंति मे ॥ ५२. अग्गी य इइ के वृत्ता ? के सिमेव तु ५३. कसाया अग्गिणो वृत्ता सुयधाराभिया संता ५४. साहु गोयम ! पण्णा ते अन्नो वि संसओ मज्भं ५५. अयं साहसिओ भीमो देहं " केसी बुवंतं गोयमो गोयममब्बवी । इणमब्बवी ॥ सुयसीलतवो जलं । भिन्ना हुन डहंति मे ॥ छिन्नो मे संसओ इमो । तं मे कहसु गोयमा ! ॥ दुट्ठस्सो परिधावई । जंसि गोयम ! आरूढो कहं तेण न हीरसि ? ।। ५६. पधावंतं निगिण्हामि सुयरस्सीसमाहियं F न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवज्जई ॥ १. विसभक्खीणं (बृ.) । २. तमुद्धरित्ता ( आ ) ; तमुच्छित्तु (उ, ऋ) । ३. जा डहेति सरीरस्था ( बृपा ) । उवायओ । अहं मुणी ! ॥ गोयममब्वी । इणमब्वी ॥ भयंकरा । १७३ ४. सिचामि सययं ते ओ (ते उ) (उ, ऋ, बृ) ; सिंचामि सययं देहा, सिंचामि सययं तं तु ( बृपा) । Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १७४ उत्तरज्झयणाणि ५७. अस्से य इइ के वृत्ते ? केसी गोयममब्बवी । ___केसिमेव' बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ।। ५८. मणो साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावई । तं सम्म निगिण्हामि धम्मसिक्खाए कथगं ।। ५६. साहु गोयम ! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा !॥ ६०. कुप्पहा बहवो लोए जेहिं नासंति जंतवो । अद्धाणे कह वट्टते तं न नस्ससि ? गोयमा !।। ६१. जे य मग्गेण गच्छंति 'जे य उम्मग्गपट्ठिया' । ते सव्वे विइया मज्झ तो न नस्सामह' मुणी ।। ६२. मग्गे य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी । ६३. कुप्पवयणपासंडी सव्वे उम्मग्गपट्ठिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं एस मग्गे हि उत्तमे ।। ६४. साहु गोयम ! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥ ६५. महाउदगवेगेणं वज्झमाणाण पाणिणं । सरणं गई पइट्ठा य दीवं 'कं मन्नसी ?' मुणी !।। ६६. अत्थि एगो महादीवो वारिमझे महालओ । महाउदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जई ।। ६७. दीवे य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ६८. जरामरणवेगेणं वज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो 'पइट्टा य" गई सरणमुत्तमं ।। ६६. साहु गोयम ! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो । . अन्नो वि संसओ मज्झ तं मे कहमु गोयमा ! ॥ ७०. अण्णवंसि महोहंसि नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो कहं पारं गमिस्ससि ? ॥ ७१. जा उ अस्सा विणी' नावा न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा सा उपारस्स गामिणी ।। १. तओ केसि (अ)। ५. कम्मुणसी (अ)। २. जे उम्मग्ग पइट्ठिया (अ)। ६. पतिट्ठा णं (अ)। ३. नस्सामिहं (अ)। ७. सस्साविणी (बृपा)। ४. हे (अ)। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेविसइमं अज्झयणं (केसिगोयमिज्जं ) गोयममब्बवी | इणमब्बवी ॥ वृत्ता ? केसी तु गोयमो त्ति जीवो वुच्चइ नाविओ । वृत्तो जं तरंति महेसिणो ।। छिन्नो मे संसओ इमो । तं मे कहसु गोयमा ! || चिट्ठति पाणिणो बहू । सव्वलोगंमि पाणिणं ? ।। सव्वलोगप्पभंकरो 1 सव्वलोगंमि पाणिणं ।। केसी गोयममब्बवी | इब्बवी || उज्जोयं को करिस्सइ उज्जोयं ७६. उग्गओ विमलो भाणू सो करिंस्सइ उज्जोयं इइ के वृत्ते ? बुवंतं तु गोयमो खीणसंसारो सव्वण्णू जिणभक्खरो । सव्वलोयंमि पाणिणं ॥ छिन्नो मे संसओ इमो । तं मे कहसु गोयमा ! ॥ वज्झमाणाण' पाणिणं । मं सिमणाबाहं ठाणं किं मन्नसी मुणी ? || ८१. अत्थि एगं धुवं ठाणं लोगग्गंमि दुरा | जत्थ नत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा || ८२. ठाणे यइइ के वृत्ते ? स गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो ८३. निव्वाणं ति अवाहं ति सिद्धो मं सिव अणावाहं जं चरंति ८४. तं ठाणं सासयं वासं लोगग्गंमि जं संपत्ता न सोयंति ८५. साहु गोयम ! पण्णा ते नमो ते संसयाईय ! ८६. एवं तु संसए छिन्ने 'अभिवंदित्ता भवोहंतकरा सिरसा ८७. 'पंचमहव्वयधम्मं पुरिमस्स पच्छिमंमी ७२. नावाय इइ का सिमेव नुवं तं ७३. सरीरमाहु नाव संसारो अण्णवो ७४. साहु गोयम ! पण्णा ते अन्नो वि संसओ मज्भं ७५. अंधयारे तमे घोरे ७७. भाणू य सिमेव ७८. उग्गओ सो करिस्सइ ७६. साहु गोयम ! पण्णा ते अन्नो वि संसओ मज्भं सारी माणसे दुक्खे ८०. १. पच्चमाणाण (बुपा ) । २. वंदित्तु पंजलिउडो गोतमं तु महामुणी (चू) । ३. पच्छिमस्सी ( अ ) 1 इणमब्बवी || लोगग्गमेव य । महेसिणो || दुरारुहं मुणी ॥ छिन्नो मे संसओ इमो । सव्वमुत्तमहोयही ! 11 घोरपरक्कमे । महायसं '' ।। भावओ । सुहावहे " || केसी गोयमं तु पडवज्जइ मग्गे तत्थ १७५. ४. पंचमहव्वयजुत्तं भावतो पडिवज्जिया । धम्मं पुरिमस्स पच्छिमंमि मग्गे सुहावहे ।। (चू) । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणाणि ८८. केसीगोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे । सुयसीलसमुक्करिसो महत्थत्थविणिच्छओ ॥ ८९. तोसिया परिसा सव्वा 'सम्मग्गं समुवट्टिया" । 'संथया ते पसीयंतु" भयवं केसिगोयमे ॥ -त्ति बेमि॥ २. संजुता ते पदीसंतु (चू) । १. सम्मग्गं पज्जुवट्ठिया (बृपा); सम्मत्ते पज्जु- वत्थिया (पू)। Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चविसइमं अज्झयणं पवयण-माया १. 'अट्ठ पवयणमायाओ' समिई गुत्ती तहेव य । पंचेव य समिईओ तओ गुत्तीओ आहिया ॥ २. इरियाभासेसणादाणे उच्चारे समिई इय । ____ मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य' अट्ठमा । ३. एयाओ अट्ठ समिईओ समासेण वियाहिया । __ दुवालसंगं जिणक्खायं मायं जत्थ उ पवयणं । ४. आलंबणेण कालेण मग्गेण जयणाइ य । चउकारणपरिसुद्धं संजए इरियं रिए । ५. तत्थ आलंबणं नाणं दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते मग्गे उप्पहवज्जिए॥ ६. दव्वओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा । जयणा' चउन्विहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ।। ७. दव्वओ चक्खुसा पेहे जुगमित्तं च खेत्तओ। ___कालओ जाव रीएज्जा उवउत्ते य भावओ। ८. इंदियत्थे विवज्जित्ता सज्झायं चेव पंचहा । ___ तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे उवउत्ते इरियं' रिए । ६. 'कोहे माणे य मायाए लोभे य उवउत्तया । हासे भए मोहरिए विगहासु तहेव च ।। १. अट्ठ उ पवयणमाया (चू)। ६. उवउत्तओ (अ)। २. उ (अ)। ७. कोहे य माणे य माया य लोभे य तहेव य । ३. दुप्पहवज्जिए (अ)। हास भय मोहरीए विकहा य तहेव य ॥ ४. जायणा (ऋ)। (बृपा)। ५. रियं (ऋ)। १७७ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ उत्तरज्झयणाणि १०. एयाइं अट्ठ ठाणाइं परिवज्जित्तु संजए । असावज्जं मियं काले भासं भासेज्ज पन्नवं ।। ११. 'गवेसणाए गहणे य परिभोगेसणा य जा । __ आहारोवहिसे जाए एए तिन्नि विसोहए" ।। १२. उग्गमुपायणं पढमे बीए सोहेज्ज एसणं । परिभोयंमि चउक्कं विसोहेज जयं जई ।। १३. ओहोवहोवग्गहियं भंडगं दुविहं मुणी । गिव्हतो निक्खिवंतो य पउंजेज्ज इमं विहिं ।। १४. चक्खुसा पडिले हित्ता पमज्जेज्ज जयं जई । आइए निक्खिवे जा वा दुहओ वि समिए सया ।। १५. उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उर्वाह देहं अन्नं वावि तहाविहं ।। १६. अणावायमसंलोए अणावाए चेव होड़ लोए। आवायमसंलोए आवाए चेय संलोए ।। १७. अणावायमसंलोए परस्सणुवघाइए । समे अज्झसिरे यावि अचिरकालकरं मि य ।। १८. वित्थिण्णे दूरमोगाढे नासन्ने बिलवज्जिए । तसपाणबीयरहिए उच्चाराईणि वोसिरे ।। १६. एयाओ पंच समिईओ समासेण वियाहिया । एत्तो य तओ गत्तीओ वोच्छामि अणुपुव्वसो । २०. सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा मणगुत्ती चउन्विहा ।। २१. संरंभसमारंभे आरंभे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ।। २२. सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा वइगुत्ती चउविहा ।। २३. संरंभसमारंभे आरंभे य तहेव य । वयं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ।। २४. ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपल्लंघणे इंदियाण य जुंजणे ।। २५. संरभसमारंभे आरंभम्मि तहेव य । कायं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ।। १. गवेसणाए गहणणं परिभोगेसणाणि य । आहारमुवहिं सेज्ज एए तिन्नि विसोहिय ।। (बृपा)। Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अझयणं ( पवयण - माया ) २६. एयाओ पंच समिईओ चरणस्स गुत्ती नियत्तणे वृत्ता असुत्थे २७. एया पवयणमाया जे सम्म आयरे मुणी । से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए || - त्ति बेमि ॥ य पवत्तणे । सव्वसो ॥ १७६ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचविसइमं अज्झयणं जण्णइज्जं १. माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो । जायाई जमजण्णमि जयघोसे त्ति नामओ ।। २. इंदियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुणी । __ गामाणुगाम रीयंते पत्ते वाणारसि पुरि ।। ३. वाणारसीए' बहिया उज्जाणंमि मणोरमे । फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासवागए। ४. अह तेणेव कालेणं पुरीए तत्थ माहणे । विजयघोसे त्ति नामेण जण्णं जयइ वेयवी ।। ५. अह से तत्थ अणगारे मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जण्णंमि भिक्खमट्ठा' उवट्ठिए । ६. समुवट्टियं तहिं संतं जायगो पडिसेहए । ___ न हु दाहामि ते भिक्खं भिक्खू ! जायाहि अन्नओ।। ७. जे य वेयविऊ विप्पा जण्णट्ठा य 'जे दिया" । जोइसंगविऊ जे य जे य धम्माण पारगा।। ८. जे समत्था समुद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य । तेसि अन्नमिणं देयं भो भिक्खू ! सबकामियं ।। ६. सो ‘एवं तत्थ पडिसिद्धो जायगेण महामुणी । न वि रुट्ठो न वि तुट्ठो उत्तमट्ठगवेसओ ॥ १०. नन्नठं पाणहेउं वा न वि निव्वाहणाय वा । तेसि विमोक्खणट्ठाए इमं वयणमब्बवी ।। ११. नवि जाणसि वेयमुहं नवि जण्णाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं जं च जं च धम्माण वा मुहं ।। १. वाणारसीय (अ, बृ) । ३. जिइंदिया (आ)। २. भिक्खस्स अट्ठा (बृपा)। ४. तत्थ एव (ब)। १८० Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचविसइमं अज्झयणं (जण्णइज्जं) १२. जे समत्था समुद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य । न ते तुमं वियाणासि अह जाणासि तो भण ॥ १३ तस्सक्खेवपमोक्खं च अचयंतो तहिं दिओ। सपरिसो पंजली होउं पुच्छई तं महामुणि ॥ १४. वेयाणं च मुहं बूहि बूहि जण्णाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं ब्रूहि ब्रूहि धम्माण वा मुहं ।। १५. जे समत्था समुद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य । एयं मे संसयं सव्वं साहू कहय' पुच्छिओ। १६. अग्गिहोत्तमुहा वेया जण्णट्ठी वेयसां मुहं । नक्खत्ताण मुहं चंदो धम्माणं कासवो मुहं ।। १७. 'जहा चंद गहाईया चिट्ठती पंजलीउडा । वंदमाणा नमसंता उत्तमं मणहारिणो । १८. अजाणगा जण्णवाई विज्जामाहणसंपया । गूढा' सज्झायतवसा भासच्छन्ना इवग्गिणो ।। १६. जो लोए बंभणो वुत्तो अग्गी वा महिओ जहा । सया कुसलसंदिळं तं वयं बूम माहणं ।। २०. जो न सज्जइ आगतुं पव्वयतो न सोयई । रमए अज्जवयणमि तं वयं बूम माहणं ।। २१. जायरूवं जहामटठ निद्धतमलपावगं । रागहोसभयाईयतं वयं बूम माहण ।। [तवस्सियं किसं दंत अवचियमंससोणियं । सुव्वयं पत्तनिव्वाण तं वयं बूम माहण ।' २२. तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण 'य थावरे' । जो न हिसइ तिविहेणं तं वयं बूम माहणं ।। २३. कोहा वा जइ वा हासा लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयई जो उ तं वयं बूम माहण ।। २४. चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं । न गेण्हइ अदत्तं जो तं वयं ब्रूम माहणं ।। १. कहइ (अ)। ५. महाभट्ठ (ब); जहामट्ठ (बृपा)। २. जहा चन्दे गहाईये चिठंती पंजलीउडा। ६. कोष्ठकवर्ती श्लोक: चूणौं बृहवृत्तौ सुख णमंसमाणा वंदंती उद्धत्तमणहारिणो (उद्धत्त बोधायां च नास्ति व्याख्यातः । मणगारिणो) । (बृपा)। ७. सथावरे (बृपा)। ३. मूढा (बृ); गूढा (बृपा) । ८. एयं तु (बु); विविहेण (बृपा)। ४. सुम्वइ (उ)। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ उत्तरज्झयणाणि २५. दिव्वमाणसतेरिच्छं जो न सेवइ मेहणं । मणसा कायवक्केणं तं वयं बूम माहण ।। २६. जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलित्तो' कामेहिं तं वयं बूम माहण ।। २७. अलोलुयं मुहाजीवी' अणगारं अकिंचण । तं वयं बूम माहण ।। [जहित्ता पुव्वसंजोगं नाइसंगे य बंधवे । जो न सज्जइ एएहिं तं वयं बूम माहणं ॥' २८. पसुबंधा सव्ववेया' जळं च पावकम्मुणा । न तं तायंति दुस्सीलं कम्माणि बलवंति ह ।। २९. न वि मंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो । न मणी रणवासेण कसचीरेण न तावसो॥ ३०. समयाए समणो होइ बंभचेरेण बंभणो । नाणेण य गुणी होइ तवेणं होइ तावसो ।। ३१. कम्मुणा बंभणो होइ कम्मुणा होइ खतिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। ३२. एए 'पाउकरे बुद्ध" जेहिं होड सिणायओ । सव्वकम्मविनिम्मुक्कं तं वयं ब्रूम माहणं ।। ३३. एवं गुणसमाउत्ता जे भवंति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य॥ ३४. एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे य माहणे । 'समुदाय तयं तं तु० जयघोसं महामणि ।। ३५. तुळे य विजयघोसे इणमदाहु कयंजली । :माहणत्तं जहाभूयं सुट्ठ मे उवदंसियं ।। ३६. तुब्भे जइया जण्णाणं तुन्भे वेयविऊ विऊ । जोइसंगविऊ तुब्भे तुब्भे धम्माण पारगा। ३७. तुब्भे समूत्था उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य । नमणुग्गहं करेहम्हं' भिक्खेणं'२ भिक्खउत्तमा । १. अलित्तं (आ. इ, सु) । ७. पाउकरा धम्मा (बृपा)। २. मुहाजीवि (बृपा)। ८. बंभ (ब); माहणे (बृपा) । ३. असौ श्लोको बहढती पाठान्तररूपेण ६. नओ (अ, ऋ, सु)। स्वीकृतोस्ति । १०. समादाय तयं तं व (उ); संजानो तीन ४. पसुवद्धा (बृपा)। तु (बृपा)। ५. सव्ववेया य (अ)। ११. करे अम्म (अ, इ)। ६. होइय (अ) ; होइ उ (ब) । १२. भिक्खूणं (बृ)। Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचविसइमं अज्झयणं ( जण्णइज्जं ) संसारसागरे ॥ ३८. न कज्जं मज्झ भिक्खेण खिप्पं निक्खमसू दिया ! | मा भमिहिसि भयावट्टे' घोरे' ३६. उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी भोगी भमइ संसारे अभोगी ४०. उल्लो सुक्को य दो छूढा दो व आवडिया कुड्डे यामया । गोलया जो उल्लो सोतत्थ' लग्गई || जे नरा कामलालसा । विरत्ता उन लग्गंति जहा सुक्को उ गोलभो ॥ ४१. एवं लग्गंति दुम्मेहा १. भवावत्ते ( ( बृपा) २. दीहे (बृपा) । ४३. खवित्ता ४२. एवं से विजयघोसे जयघोसस्स अंतिए । निक्खतो धम्मं 'सोच्चा अणुत्तरं ॥ पुव्त्रकम्माई संजमेण तवेण य । जयघोस विजयघोसा सिद्धि पत्ता अणुत्तर ।। - ति बेमि ॥ अणगारस्स नोवलिप्पई । विमुच ॥ 1 ३. सोत्थ (ऋ, बृ) । ४. सोच्वाण केवलं (बुपा) । १५३ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामायारी - पर्व चरिया-पदं १. होइ (उ) । २. उ ( आ, इ ) । १८४ छबीसइमं अज्झयणं सामायारी १. सामायारिं पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणि जं चरित्ताण निग्गंथा तिण्णा २. पढमा आवस्सिया नाम आपुच्छणा य तइया चउत्थी ३. पंचमा छंदणा नाम इच्छाकारो सत्तमो मिच्छुकारो य' तहक्कारो ४. अभुट्टा नवमं, दसमा मिच्छाकारो य निंदाए तहक्कारो य पडिस्सुए || उवसंपदा । गुरुपूया अच्छ दुपंच संजुत्ता' सामायारी चउब्भाए आइच्चं मि पडिले हित्ता पंजलिउडो इच्छं निओइउं भंते! १०. वेयावच्चे निउत्तेणं सज्झाए वा निउत्तेणं दिवसचरिया पर्व ११. दिवसस्स चउरो भागे तओ उत्तरगुणे कुज्जा ७. अ ' एवं ८. पुव्विल्लंमि भंडयं ६. पुच्छेज्जा पवेइया ॥ मुट्ठ वंदित्ता य तओ गुरु ॥ कि कायव्वं मए इहं ? । वेयावच्चे व सज्झाए । कायव्वं अगिला ओ | सव्वदुक्ख विमोक्खणे 11 कुज्जा भिक्खू वियक्खणो । दिणभागेसु चउसु वि ॥ 1 संसारसागरं ॥ बिइया य' निसीहिया । पडिपुच्छणा ॥ य छुट्टओ । य अट्टमो ॥ उवसंपदा । पवेइया ॥ एसा दसंगा साहूणं सामायारी ५. गमणे आवस्सियं कुज्जा ठाणे कुज्जा निसीहियं । आपुच्छणा सयंकरणे परकरणे पडिपुच्छणा ।। ६. छंदणा दव्वजाएणं इच्छाकारो य सारणे । ३. X (उ) । ४. एसा दसंगा साहूणं ( बृपा ) । Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छबीसइमं अज्मयणं (सामायारी) १८५ १२. पढम पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । तइयाए भिक्खारियं पुणो चउत्थीए सज्झायं ।। १३. आसाढे मासे दपया पोसे मासे चउप्पया। चित्तासोएसु मासेसु तिपया हवइ पोरिसी ॥ १४. अंगुलं सत्तरत्तेणं पक्खेण य दुअंगुलं । वड्ढए हायए वावि मासेणं चउरंगुलं ।। १५. आसाढबहुलपक्खे भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवइसाहेसु य नायव्वा' ओमरत्ताओ। १६. जेट्टामूले आसाढसावणे छहिं अंगुलेहि पडिलेहा । अट्टहिं बीयतियंमी तइए दस अट्टहिं चउत्थे । रत्तिचरिया-पदं १७. रत्ति पि चउरो भागे भिक्खू कुज्जा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा राइभाएसु चउसु वि ॥ १८. पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । तइयाए निद्दमोक्खं तु चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥ १६. जं नेइ जया रति नक्खत्तं तंमि नहचउब्भाए । ___संपत्ते विरमेज्जा सज्झायं पओसकालम्मि ।। पडिलेहण-पदं २०. तम्मेव य नक्खत्ते गयणचउब्भागसावसेसंमि। वेरत्तियं पि कालं पडिलेहित्ता मणी कुज्जा।। २१. पुव्वल्लंमि चउब्भाए पडिलेहिताण भंडय । गुरु वंदित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ।। २२. पोरिसीए चउन्माए वंदिताण तओ गुरु । अपडिक्कमित्ता कालस्स भायणं पडिलेहए ।। पडिलेहणविहि-पवं २३. मुहपोतियं पडिलेहिता पडिले हिज्ज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगलिओ वत्थाई पडिलेहए ।। २४. उड्ढं थिरं अतुरियं पुव्वं ता वत्थमेव पडिलेहे । तो बिइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पमज्जेज्जा ।। २५. अणच्चावियं अवलिय अणाणबंधि अमोसलि' चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणीपाणविसोहणं' ॥ . आरभडा सम्मा वज्जेयव्वा य मोसली तइया । __पप्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठा ।। १. बोद्धव्वा (आ)। ४. अमोसलं (अ) ; आमोसलि (व) । २. पुणो (अ)। ५. पाणीपाणि (ब); 'पमजणं (आ, बृपा); ३. मुहपत्ति (आ, इ, उ ऋ)। पमज्जणया (ओघनियुक्ति ४२५) । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरज्झयणाणि २७. पसिढिल पलंबलोला एगामोसा अणेगरूवधुणा। कुणइ पमाणि पमायं संकिए गणणोवगं कुज्जा ।। २८. अणूणाइरित्तपडिलेहा अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं सेसाणि उ अप्पसत्थाई ।। २६. पडिलेहणं कुणतो मिहोकहं कुणइ जणवयकहं वा । देइ व पच्चक्खाणं वाएइ सयं पडिच्छइ वा ।। ३०. पुढवीआउक्काए तेऊवाऊवणस्सइतसाणं । पडिलेहणापमत्तो छह पि विराहओ होइ ।। [पुढवीआउक्काए तेऊवाऊवणस्सइतसाणं । पडिलेहणआउत्तो छह आराहओ होइ ।।] आहार-पदं ३१. तइयाए पोरिसीए भत्तं पाणं गवेसए । छहं अन्नयरागम्मि कारणमि समुट्ठिए । ३२. वेयणवेयारच्चे इरियट्ठाए य समट्ठाए । तह पाणवत्तियाए छठं पुण धम्मचिताए । अणाहार-पद ३३. निग्गंथो धिइमंतो निग्गंथी वि न करेज्ज छहि चेव । ठाणाह उ इमेहि अणइक्कमणा य से होई ।। ३४. आयंके उवसग्गे' तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं सरीरवोच्छयणढाए विहार-पदं ३५. अवमेसं भंडगं गिझा चक्खुसा पडिलेहए । परमद्ध गोयणाओ विहारं विहरए पुणी ।। ३६. चउत्थीए पोरिसीए निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तओ कुज्जा सव्वभावविभावणं ॥ संझा-पदं ३७. पोरिसीए चउभाए वंदित्ताण तओ गुरु । पडिक्क मित्ता गालस्स सेज्जं तु पडिलेहए ।। पासवणच्चारभूमि च पडिले हिज्ज जयं जई । काउस्सग्गं तओ जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ पडिक्कमण-पर्व ३६. देसियं च अईयारं चितिज्ज अणुपुव्वसो । नाणे' दसणे चेव चरित्तम्मि तहेव य ।। ४० पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गुरु । देसियं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ।। ४१. पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वंदित्ताण तओ गुरु । ___ काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ १. अणेगरूवधुया (पा)। ४. सव्वदुक्खविमोक्खणं (बृपा) । २. एषागाथा केवलं 'अ' प्रतावेब विद्यते । ५. नागे य (आ); नाणंमि (उ)। ३. उमग्गे (उ)। Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छबीसइमं अज्झयणं (सामायारी) १८७ ४२. पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गरु । 'थुइमंगलं च काऊण' कालं संपडिलेहए । ४३. 'पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । ___तइयाए निद्दमोक्खं तु सज्झायं तु चउत्थिए । ४४. 'पोरिसीए चउत्थीए कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तओ कुज्जा अबोहेतो असंजए"। ४५. पोरिसीए चउब्भाए 'वंदिऊण तओ गुरु" । पडिक्कमित्तु कालस्स कालं तु पडिलेहए । ४६. आगए कायवोस्सग्गे सव्वदुक्ख विमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ४७. राइयं च अईयारं चितिज्ज अणुपुत्रसो । नाणंमि दसणंमी चरित्तमि तवम्मि य॥ ४८. पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गरु । राइयं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम । ४६. पडिक्कमित्तु निस्सल्लो वंदित्ताण तओ गुरु । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ५०. किं तवं पडिवज्जामि एवं तत्थ विचितए । काउस्सग्गं तु पारित्ता वंदई य तओ गुरु । ५१. पारियकाउस्सग्गो वंदित्ताण तओ गरु । तवं संपडिवज्जेत्ता' करेज्ज सिद्धाण संथवं ॥ ५२. एसा सामायारी समासेण वियाहिया । जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा संसारसागरं । -ति बेमि ।। मिक्लेव-पर्व १. सिद्धाणं संथवं किच्चा (बपा)। २. पढमा पोरसि सज्झायं बीए झाणं झियायति । ततियाए निद्दमोक्खं च चउभाए च उत्थए। (बृपा)। ३. कालं तु पडिलेहित्ता अबोहितो असंजए । कुज्जा मुणी य सज्झायं सव्वदुक्ख विमोक्खणं ।। (बपा)। ४. सेसे वंदित्तु ते गुरुं (बृपा) । ५. च पडिवज्जित्ता (म)। Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ससावीसइमं अज्झयणं खलुं किज्ज १. थेरे गणहरे गग्गे मुणी आसि विसारए । ___ आइण्णे गणिभावम्मि समाहिं पडिसंधए । २. वहणे वहमाणस्स कतारं अइवत्तई । जोए वहमाणस्स' संसारो अइवत्तई ॥ ३. खलुंके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई । ___ असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से भज्जई ।। ४. एगं डसइ पुच्छंमि एगं विधइऽभिक्खणं । ____ एगो भंजइ समिलं एगो उप्पहपट्ठिओ।। ५. एगो पडइ पासेणं निवेसइ निवज्जई । उक्कुद्दइ उप्फिडई सढे बालगवी वए । ६. माई मुद्धेण पडइ कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं । ____ 'मयलक्खेण चिट्ठई' वेगेण य पहावई ।। ७. छिन्नाले छिदइ सेल्लि दुईतो भंजए जुगं । __ से वि य सुस्सुयाइत्ता' उज्जहित्ता' पलायए ।। ८. खलुंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा । ___ जोइया धम्मजाणम्मि भज्जति धिइदुब्बला ।। ६. इड्ढीगार विए एगे एगेत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे ।। १०. भिक्खालसिए एगे एगे ओमाणभीरुए थद्धे । एगं. च' अणुसासम्मी हेऊहिं कारणेहि १. वाहयमाणस्स (अ, सु); वहणमाणस्स (ऋ)। ४. सुस्सुयत्ता (अ) । २. किलामई (ब) ; किलिस्सई (बृपा)। ५. उज्जुहित्ता (आ, बू, सु) । ३. पलयं (यलं) ते ण चिट्ठिया (बृपा)। ६. ४ (अ)। १८८ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावीसइमं अज्झयणं (खलुकिज्ज) १८९ ११. सो वि अंतरभासिल्लो दोसमेव पकुव्वई' । आयरियाणं तं वयणं पडिकूलेइ अभिक्खणं । १२. न सा ममं वियाणाइ न वि' सा मज्झ दाहिई । निग्गया होहिई मन्ने साहू अन्नोत्थ वच्चउ ॥ १३. पेसिया' पलिउंचंति ते परियंति समंतओ। रायवेट्ठि व' मन्नंता करेंति भिउडि मुहे ।। १४. वाइया संगहिया चेव 'भत्तपाणे य५ पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा पक्कमति दिसोदिसि ।। १५. अह सारही विचितेइ खलुंकेहि समागओ। कि मज्झ दुलूसीसेहिं अप्पा मे अवसीयई। १६. जारिसा' मम सीसाउ तारिसा गलिगद्दहा । गलिगद्दहे चइत्ताणं' दढं परिगिण्हई तवं ॥ १७. मिउ मद्दवसंपन्ने गंभीरे सुसमाहिए । विहरइ महिं महप्पा सीलभूएण अप्पणा ।। -त्ति बेमि ॥ १. पभासए (बृपा)। २. य (उ)। ३. पोसिया (बृपा)। ४. रायाविट्ठे (अ)। ५. भत्तपाणेण (अ, आ, इ)। ६. हि चिंतेइ (ब)। ७. तारिसा (ब)। ८. जारिसा (अ)। ६. जहित्ताणं (आ)। १०. पगिण्हामि (ब); परिगिहा (वृषा)। Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावीसइमं अज्झयणं मोक्खमग्गगई १. मोक्खमग्गगई तच्चं सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं नाणदंसणलक्खणं ॥ २. नाणं च सणं चेव चरित्तं च तवो तहा । एसमग्गो त्ति पण्णत्तो जिणेहिं वरदंसिहि ।। ३. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा । ___ 'एयं मग्गमणुप्पत्ता" जीवा गच्छंति सोग्गई ॥ ४. तत्थ पंचविहं नाणं सुयं आभिनिबोहियं । ___ ओहीनाणं तइयं मणनाणं च केवलं ॥ ५. एयं पंचविहं नाणं दव्वाण य गुणाण य । पज्जवाणं च सव्वेसिं नाणं नाणीहि देसियं ॥ ६. गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा । ___ लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ' अस्सिया भवे ॥ ७. धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गलजंतवो । एस लोगो त्ति पण्णत्तो जिणेहिं वरदंसिहि ।। ८. धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणंताणि य दव्वाणि कालो पुग्गलजंतवो । ९. 'गइलक्खणो उ' धम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो । भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं ॥ १०. वत्तणालक्खणो कालो जीवो उवओगलक्खणो । नाणेणं दंसणेणं च सुहेण य दुहेण य ॥ १. एय (अ)। ५. य (अ)। २. सव्वदंसिहिं (अ)। ६. गतिलक्खणो तु धम्मो अधम्मो ठाणलक्खणो । ३. एव (अ)। भायणं सव्वदव्वाणं भणितं अवगाहलक्खणं ।। ४. दुहमओ (अ)। (सूत्र० चू० पृ० १७४) १६० Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६१ अट्ठावीसइमं अज्झयणं (मोक्खमग्गगई) ११. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य एयं जीवस्स लक्खणं ॥ १२. सबंधयारउज्जोओ पहा 'छायातवे इ वा" । वण्णरसगंधफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ।। १३. एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य पज्जवाणं तु लक्खणं ।। १४. जीवाजीवा य बंधो य पुण्णं पावासवो तहा । संवरो निज्जरा मोक्खो संतेए तहिया नव ।। १५. तहियाणं तु भावाणं 'सब्भावे उवएसणं । भावेणं सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ।। १६. निसग्गुवएसरुई आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई किरियासंखेवधम्मरुई ॥ १७. भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च । सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो । १८. जो जिणदिटठे भावे चउविहे सहहाइ सयमेव । एमेव नन्नह ति य निसग्गरुइ त्ति नायव्वो ।। १६. एए चेव उ' भावे उवइठे जो परेण सद्दहई । छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ ति नायव्वो। रागो दोसो मोहो अण्णाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम । २१. जो सुत्तम हिज्जतो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ ति नायव्वो।। २२. एगेण अणेगाइं पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्लबिंदू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो॥ २३. सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्यओ दिळें । ‘एक्कारस अंगाई" पइण्णगं" दिट्ठिवाओ य । २४. दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सव्वाहि नयविहीहि य वित्थाररुइ ति नायन्वो ॥ १. तवे इ या (अ, ऋ); "तवुत्ति वा (ब)। ६. हु (ऋ)। २. दुहत्तं (उ)। ७. य (ऋ)। ३. सम्भावो (वेणो) वएसणे भावेण उ सद्दहणा । . य (ऋ)। __सम्मत्तं होति आहियं ॥ (बृपा) ६. इक्कारसमंगाई (उ, ऋ)। ४. उ (अ)। १०. पइण्णियं (अ)। ५. एमेय (अ, उ,ब)। Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ उत्तरज्झयणाणि विर २५. सणनाणचरित्ते तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु। जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम । २६. अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ।। २७. जो अत्थिकायधम्म सुयधम्म खलु चरित्तधम्म च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो॥ २८. परमत्थसंथवो वा सुदिपरमत्थसेवणा वा वि । वावन्नकुदसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ २६. नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दसणे उ भइयव्वं । ___सम्मत्तचरित्ताई गवं पुव्वं ब' सम्मत्तं ।। ३०. नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ ३१. निस्संकिय निक्कंखिय नित्रितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववूह थिरीकरण वच्छल्ल 'पभावणे अट्ठ" ।। ३२. सामाइयत्थ पढमं लेओवट्ठावणं भवे बीयं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ।। ३३. अकसायं अहक्खायं छउमत्थस्स जिणस्स वा । एयं चयरित्तकरं चारित्तं होइ आहियं । ३४. तवो य दुविहो वृत्तो बाहिरब्भतरो तहा । बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमभंतरो तवो। ३५. नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहे । चरित्तेण निगिण्हाइ' तवेण परिसज्झई। ३६. खवेत्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमंति महेसिणो । -त्ति बेमि ॥ १. सव्व (अ). २. च (अ, उ, ऋ)। ३. पभावणेऽद्रुते (ब)। ४. सामाइयं च (उ, ऋ)। ५. न गिण्हति (बृपा)। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झयनं सम्मत्तपरक्कमे १. सुयं मे आउसं! तेगं भगवया एवमक्खायं - इह खल सम्मत्तपरक्कमे 'नाम अज्झयणे " समणेण भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सद्दहित्ता पत्तियाइत्ता रोयइत्ता फासइत्ता पालइत्ता' तीरइत्ता किट्टइत्ता सोहइत्ता आराहइत्ता आणाए अणुपाइत्ता बहने जीवा सिज्यंति बुज्भंति मुच्चति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति । तस्स णं अयमट्ठे एवमाहिज्जइ, तं जहा संवेगे १ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निंदणया ६ गरहणया ७ सामाइए ८ Traderer & वंदणए १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थवथुइमंगले' १४ काल पडिलेहणया १४ पायच्छित्तकरणे १६ खमावणया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २० परियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ घम्मका २३ सुयस आराहणया २४ एगग्गमणसन्निवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए २६ अप्पडिबद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणियदृणया ३२ संभोगपच्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कसायपच्चक्खाणे ३६ जोगपच्चक्खाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे ३८ सहायपच्चक्खाणे ३६ १. नाम मज्झयणे ( अ, ऋ) ; नामज्झयणे (उ, स) 1 २. पाल इत्ता पूरइत्ता (अ) । ३. भगवत्यां (१७१४८) संवेगादिपदानि किञ्चित् पाठभेदयुक्तानि सङ्ख्यया न्यूनानि च लभ्यन्ते - अह भंते! संवेगे, निव्वेए, गुरुसाहम्मिसुस्यसूसणया, बालोयणया, निंदणया, नरहणया, खमावणया, विसमणया, सुयसहायता, भावे अप्पविद्धया, विणिवट्टणया, विवित्तसयणासणसेवणया, सोइंदियसंवरे जाव फासिदियसंवरे, जोगपच्चक्खाणे, सरीरपच्चक्खाणे, कसाबपच्चक्खाणे, संभोग पच्चक्खाणे, उबहिपच्चवखाणे, भत्तपच्चक्खाणे, खमा, विरागया, भावसच्चे, जोगसच्चे, करणसच्चे, मणसमग्राहरणया, वइसम न्नाहरणया, काय समन्नाहरणया, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे, नाणसंपन्नया, दंसणसंपन्नया, चरित संपन्नया, वेदणअहियासणया, मारणंतियअहियासणया । ४. वंदणे ( अ ) । ५. थयथुइमंगले ( अ, ऋ) ; थणथुइमंगले (उ) । ६. वायणा ( उ ) ; वायणाए (ऋ) । १९३ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ उत्तरज्झयणाणि भत्तपच्चक्खाणे ४० सब्भावपच्चक्खाणे ४१ पडिरूवया ४२ वेयावच्चे ४३ सव्वगुणसंपण्या ४४ वीयरागया ४५ खंती ४६ मुत्ती ४७ अज्जवे' ४८ मद्दवें ४६ भावसच्चे ५० करणसच्चे ५१ जोगसच्चे ५२ मणगुत्तया ५३ वइगुत्तया ५४ कायगुत्तया ५५ मणसमाधारणया ५६ वइसमाधारणया ५७ कायसमाधारणया ५८ नाणसंपन्नया ५६ दंसणसंपन्नया ६० चरित्तसंपन्नया ६१ सोइंदियनिग्गहे ६२ चक्खिदियनिग्गहे ६३ घाणिदिय निग्गहे ६४ जिब्भिदियनिग्गहे ६५ फासिंदियनिग्गहे ६६ कोहविजए ६७ माणविजए ६८ मायाविजए ६६ लोहविजए ७० पेज्जदोस मिच्छादंसणविजए ७१ सेलेसी ७२ अकम्मया ७३ ॥ २. संवेगेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ, अनंताणुबंधिकोहमाणमायालोभे खवेइ, कम् न बंधइ, तप्पच्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहि काऊण दंसणाराहए भवइ । दंसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ । सोहीए य णं त्रिसुद्धा तच्च पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ || ३. निव्वेएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? निव्वेएणं दिव्वमाणुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ, सव्वविसएसु विरज्जइ । सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरंभपरिच्चाय' करेइ | आरंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिदइ, सिद्धिमग्गे पडिवन्ने य भवइ ॥ 1 ४. धम्मसद्धाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? घम्मसद्धाए णं सायासोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ, आगारघम्मं च णं चयइ अणगारे णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयण संजोगाईणं वोच्छेयं करेइ अव्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेइ ॥ ५. गुरुसा हम्मिय सुस्सूसणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं विणयपडिवत्ति जणयइ । 'विणयपडिवन्ने य णं" जीवे अणच्चासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवदोग्गईओ निरु भइ, वण्ण संजलणभत्ति बहुमाणयाए मणुस्सदेवसोग्गईओ निबंधइ,'सिद्धि सोग्गई' च विसोहेइ । पसत्थाइं च णं विणयमूलाई सव्वकज्जाई साहेइ । अन्ने य बहवे जीवे विणइत्ता भवइ || ६. आलोयणाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? आलोयणाए णं मायानियाणमिच्छादंसणसल्लाणं मोक्खमग्गविग्घाणं अनंतसंसारवद्धणाणं उद्धरणं करेइ, उज्जुभावं च १. पडिवणया (ऋ) । २. संपुण्णया ( अ, आ, इ, बृ) । ३. मद्दवे ( अ, सु, बृ) । ४. अज्जवे (अ, सु, बृ) । ५. नवं च कम्मं ( अ, आ, इ ) । ६. आरंभपरिग्गह ( अ ) । ७. निव्विते (ऋ) । ८. विन्नणं (ऋ) 1 १०. बद्धमाणा ( अ ) । ११. चणं (उ, ऋ, स ) । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झयणं (सम्मत्तपरक्कमे) १९५ जणयइ। 'उज्जभावपडिवन्ने य णं' जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न बंधइ। पुव्वबद्धं च णं निज्जरेइ। ७. निंदणयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? निंदणयाए णं पच्छाणुतावं जणयइ । पच्छा णुतावेणं विरज्जमाणे करणगुणसेढिं' पडिवज्जइ। करणगुणसेढिं पडिवन्ने 'यण' अणगारे मोहणिज्जं कम्मं उग्याएइ ॥ ८. गरहणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? गरहणयाए णं अपुरक्कारं जणयइ । अपुर क्कारगए णं जीवे अप्पसत्थेहितो जोगेहितो नियत्तेइ, पसत्थजोगपडिवन्ने य णं अणगारे अणंतघाइपज्जवे खवेइ ॥ ६. सामाइएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सामाइएणं सावज्जजोगविरइं जणयइ ॥ १०. चउव्वीसत्थएणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? चउव्वीसत्थएणं सणविसोहिं जणयइ ॥ ११. वंदणएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वंदणएणं नीयागोयं कम्म खवेइ, उच्चगोयं निबंधइ। सोहग्गं च णं अप्पडिहयं आणाफलं निव्वत्तेइ, दाहिणभावं च णं जणयइ ॥ १२. पडिक्कमणेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? पडिक्कमणेणं वयछिद्दाई पिहेइ। पिहिय वयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिए' विहरइ॥ १३. काउस्सग्गेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? काउस्सग्गेणं तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसो हेइ। विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुय हियए 'ओहरियभारो व्व'" भारवहे पसत्थ ज्झाणोवगए सुहंसुहेणं विहरइ । १४. पच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरु भई। १५. थवथुइमंगलेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? थवथुइमंगलेणं नाणदंसणचरित्तबोहिलाभं जणयइ। नाणदंसणचरित्तबोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे 'अंतकिरियं कप्पविमाणो ववत्तिगं आराहणं" आराहेइ ।। १६. कालपडिलेहणाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कालपडिलेहणयाए णं नाणावर णिज्जं कम्म खवेइ॥ १. पडिवन्नएणं (ऋ)। ७. भरुव्व (उ, ऋ)। २. °सेढीए (अ); °सेढी (ब) । ८. झाणज्झाइ (बृपा)। ३. X (अ, उ); य (ऋ)।। ६. निरुम्भइ । पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जण४. नियत्तेइ पसत्थे य पवत्तइ (उ, ऋ)। यइ। इच्छानिरोहं गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु ५. अपमत्ते (बुपा)। विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ । (इ, उ) । ६. सुप्पिणिहिए (अ, उ, ऋ) ; सुप्पणिहिदिए १०. अंतकिरियं आराहणं (बृपा) । (बपा)। Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ उत्तरज्झयणाणि १७. पायच्छित्तकरणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? पायच्छित्तकरणेणं पावकम्मविसोहि ters, निरइयारे यावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवज्जमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ आयारं च आयारफलं च आराहेइ ॥ १८. खमावणयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? खमावणयाए णं पल्हायणभावं' जणयइ । पहायणभावमुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ । मित्तीभावare यावि जीवे भावविसोहि काऊण निब्भए भवइ || १६. सज्झाएण भंते ! जीवे किं जणयइ ? सज्झाएण नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ || २०. वायणाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वायणाए णं निज्जरं जणयइ, सुयस्स य ‘अणासायणाए वट्टए ं । सुयस्स अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्मं अवलंबइ | तित्थधम्मं अवलंबमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ ।। २१. पडिपुच्छणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? पडिपुच्छणयाए णं सुत्तत्थतदुभयाई विसोहेइ । कंखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिदइ ॥ २२. परियट्टणाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? परियट्टणाए णं वंजणाई जणयइ, वंजणलद्धि च उप्पाएइ ॥ २३. अणुप्पेहाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? अणुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ घणि बंधणबद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ दीहकालट्ठियाओ हस्तकालयाओ पकरेइ, तिव्वाणुभावाओ मंदाणुभावाओ पकरेइ, 'बहुपएस - गाओ अप्पपसग्गाओ पकरेइ", आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ । 'असा यावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ" अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं खिप्पामेव वीइवयइ ।। २४. धम्मकहाए' णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? धम्मकहाए णं निज्जरं जणयइ । धम्मक - हाए णं पवयणं पभावेइ । पवयणप्रभावे णं जीवे आगमिसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबंध || २५. सुयस आराहणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सुयस्स आराहणयाए णं अण्णाणं खवेइ न य संकिलिस्सइ ॥ १. पल्हाएणंतभावं (बृ.) ; पल्हायणभावं ( बृपा ) . २. अणुसज्जणा वट्ट (बृपा) । ३. चिन्हाङ्कितः पाठो बृहद्वृत्तौ नास्ति स्वीकृतः, केवलं पाठान्तररूपेण उल्लिखितोस्ति - क्वचिदिदमपि दृश्यते - बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गातो पकरेति । ४. सायायेय णिज्जं च णं कभ्मं भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ ( बृपा ) | ५. बृहद्वृत्ते व्र्व्याख्यानुसारेण 'धम्मकहाए णं निज्जरं जणयइ, आगमिसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबंधई' एतावानेव पाठो दृश्यते । तत्र 'निज्जरं जणयई' इति स्थाने पाठान्तरं व्याख्यातमस्ति - पाठान्तरतश्च प्रवचनं प्रभावयति । 'पवयणपभावे णं जीवे' इति पाठस्य नास्ति कश्चिद् उल्लेखः । Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झयणं ( सम्मत्तपरक्कमे ) १६७ २६. एगग्गमणसन्निवेसणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? एगग्गमणसन्निवेसणयाए णं चित्तनिरोहं करे || २७. संजमेण भंते ! जीवे किं जणयइ ? संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ ॥ २८. तवेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? तवेणं वोदाणं जणयइ ॥ २६. वोदाणेण भंते ! जीवे किं जगयइ ? वोदाणेणं अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंत करेइ ॥ ३०. सुहसाएणं' भंते ! जीवे किं जणयइ ? सुहसाएणं अणुस्सुयत्तं जणयइ । अणुस्सुयाए जीवे अणुकंप अणुब्भडे विगयसोगे चरितमोहणिज्जं कम्मं खवेइ || ३१. अप्पडिबद्धयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? अप्पडिबद्धयाए णं निस्संगत्तं जणयइ । निस्संगते' जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरइ ॥ ३२. विवित्तसयणासणयाए' णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? विवित्तसयणासणयाए णं चरिगुत्ति जणयइ । चरितगुत्ते य णं जोवे विवित्ताहारे दढचरिते एगंतरए मोक्खभावविन्ने अहिकम्मगंठि निज्जरेइ || ३३. विणियट्टणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? विणियट्टणयाए णं पावकम्माणं अकरणयाए अब्भुट्ठेइ, पुव्वबद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ, तओ पच्छा चाउरंत संसारकंतारं वीइवयइ ॥ ३४. संभोगपच्चक्खाणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? संभोगपच्चक्खाणेणं आलंबणाई खवेइ । निरालंबणस्स य आययट्ठिया जोगा भवंति । सएणं लाभेण संतुस्स इ, परलाभं 'नो आसाएइ" नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अभिलसइ । परलाभं अणासायमाणे अतक्केमाणे अपी हेमाणे अपत्येमाणे अणभिलसमाणे दुच्चं सुहसेज्जं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥ ३५. उवहिपच्चक्खाणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? उवहिपच्चक्खाणेणं अपलिसंयं जणइ । निरुहिए गं जीवे निक्कखे उवहिमंत रेण य न संकिलिस्सई ॥ ३६. आहारपच्चक्खाणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? आहारपच्चक्खाणं जीवियासंसप्पओगं' वोच्छ्दिइ, वोच्छिदित्ता' जीवे आहारमंतरेणं न संकिलिस्साइ ॥ १. सुहसायाणं ( अ, आ, इ, उ, ऋ); सुहसाइयाएणं (बृ); सुहसायाएणं, (वृपा) । सुहसाएणं २. निस्संत्तं गएणं (उ, ऋॠ) । ३. सयणासण सेवणयाए (आ, इ) । ४. तुस्सइ (उ, ऋ) । ५. X (उ, ऋ, बृ) । ६. एतच्च पदं क्वचिदेव दृश्यते (बृ ) । ७. जीवियासविप्पओगं ( बृपा ) । ८. वोच्छिदिय ( बृपा) । Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ उत्तरज्झयणाणि ३७. कसायपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कसायपच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ । वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ।। ३८. जोगपच्चक्खाणणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ । अजोगी' णं जीवे नवं कम्मं न बंधइ पुव्वबद्धं निज्जरेइ ॥ ३६. सरीरपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सरीपच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणत्तणं' निव्वत्तेइ । सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ । ४०. सहायपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि' य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पसद्दे अप्पझंझे अप्प कलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ । ४१. भत्तपच्चक्खाणेणं भंते ! जोवे किं जणयइ ? भत्तपच्चक्खाणेणं अणेगाइं भव सयाई निरु भइ॥ ४२. सब्भावपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सब्भावपच्चक्खाणेणं अनियर्टि' जण यइ । अनियट्टिपडिवन्ने" य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ, तं जहावेयणिज्जं आउयं नामं गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ॥ ४३. पडिरूवयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? पडिरूवयाए णं लाघवियं जणयइ । लहु भूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसथलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे" जिइंदिए विउलतवसमिइस मन्नागए यावि भवइ ।। ४४. वेयावच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वेयावच्चेणं तित्थयरनामगोत्तं कम्म निबंधइ॥ ४५. सव्वगुणसंपन्नयाए" णं भंते ! जीवे किं जणयइ? सव्वगुणसंपन्नयाए णं अपुणरावत्ति जणयइ । अपुणरावत्ति पत्तए या णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ। ४६. वीयरागयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वोयरागयाए णं 'नेहाणुबंधणाणि तण्हा१. अजोगी य (ऋ)। ७. नियट्टि (बृपा)। २. °सयगुणत्तं (उ, ऋ)। ८. x (उ, ऋ)। ३. x (उ, ऋ)। ६. य णं (उ, ऋ)। ४. X (उ, ऋ)। १०. अप्पपडिलेहे (बृपा)। ५. x (बृ)। ११. संपुण्णयाए (अ, आ)। ६. नियट्टि (बृपा)। १२. x (उ, ऋ)। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणतीसइमं अज्झयणं (सम्मत्त परक्कमे) १६६ णुबंधणाणिय वोच्छिदइ मणुण्णेसु सद्दफरिसरसरूवगंधेसु चेव विरज्जइ ॥ ४७. खंतीए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? खंतीए णं परीसहे जिणइ ॥ ४८. मुत्तीए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? मुत्तीए णं अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे __ अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ ।। ४६. अज्जवयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? अज्जवयाए णं काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जययं अविसंवायणं जणयइ। अविसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ॥ ५०. मद्दवयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? 'मद्दवयाए णं अणुस्सियत्तं जणयइ । अणुस्सियत्ते णं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाइं निट्ठवेइ" ॥ ५१. भावसच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? भावसच्चेणं भावविसोहि जणयइ। भाव विसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुठेइ, अब्भुट्टित्ता 'परलोगधम्मस्स आराहए हवइ ।। ५२. करणसच्चेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? करणसच्चेणं करणसत्ति जणयइ । करण सच्चे वट्टमाणे जीवे जहावाई तहाकारी यावि भवइ ।।। ५३. जोगसच्चेणं भंते ! जोवे कि जणयइ ? जोगसच्चेण जोगं विसोहेइ ।। ५४. मणगुत्तयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? मणगुत्तयाए णं जीवे एगग्गं जणयइ । एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ ।। ५५. वइगुत्तयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? वइगुत्तयाए णं निम्वियारं जणयइ । 'निम्वियारेणं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगज्झाणगुत्ते यावि भवई॥ ५६. कायगुत्तयाए णं भंते । जीवे कि जणयइ ? कायगुत्तयाए णं संवरं जणयइ। संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ ॥ ५७. मणसमाहारणयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? मणसमाहारणयाए णं एगग्गं जणयइ, जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ, जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निज्जरेइ ॥ १.'बंधणाणि तण्हा बंधणाणि (बृ); नेहाणुवंध- मद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाणि णि?वेति णाणि, तण्हाणुबंधणाणि (बृपा)। (बपा)। २. मणुन्नामणुन्नेसु (अ)। ५. परलोगाराहए (बृपा) । ३. अत्थलोलाणं पुरिसाणं (आ, इ, उ, ऋ, स)। ६. निम्वियारत्तं (अ, स)। ४. मद्दवयाए णं अणुस्सुअत्तं जणइ । अणुसुअप- ७. 'उ, ऋ' सङ्गेतितादर्शयोः बहवृत्तौ च तेणं जीवे मध्वयाएणं मिउ० (अ); मद्दव- 'अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते' इति पाठो लभ्यते । याए ण मिउ० (उ, ऋ, बृ) मद्दवयाए ण जीवे बहवृत्ती चिन्हितपाठस्थाने 'निम्वियारे णं जीवे अणुसियतं जणेति, अणस्सिए णं जीवे मिउ- वयगुत्तयं जणयइ' इति पाठान्तरं दृश्यते । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० उत्तरज्झयणाणि ५८. वइसमाहारणयाए णं भंते ! जोवे किं जणयइ ? वइसमाहारणयाए णं वइसाहारण दसणपज्जवे विसोहेइ, विसोहेत्ता सुलहबोहियत्तं निव्वत्तेइ दुलहबोहियत्तं निज्जरेइ ।। ५६. कायसमाहारणयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? कायसमाहारणयाए णं चरित्त पज्जवे विसोहेइ, विसोहेत्ता अहक्खायचरित्तं विसोहेइ, विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खामंतं करेइ॥ ६०. नाणसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? नाणसंपन्नायाए णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ । नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरते संसारकंतारे न विणस्सइ ॥ जहा सूई ससुत्ता पडिया वि न विणस्सइ । तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ ।। नाणविणयतवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरसमयसंधायणिज्जे' भवइ ।। ६१. दंसणसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? सणसंपन्नयाए णं भवमिच्छत्तछेयणं करेइ, परं न विज्झायइ । 'अणुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्म भावे माणे विरहइ ॥ ६२. चरित्तसंपन्नयाए णं भंते ! जोवे कि जणयइ ? चरित्तसंपन्न याए णं सेलेसोभावं जणयइ । 'सेलेसिं पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ" ।। ६३. सोइंदियनिग्गहेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? सोइंदियनिग्गहेणं मणुण्णामणुण्णेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणथइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुत्वबद्धं च निज्जरेइ ।। ६४. चक्खिदियनिग्गहेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? चक्खिदियनिग्गहेणं मणुण्णामणुण्णेसु रूवेसुरागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्म न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ । ६५. पाणिदियनिग्गहेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? घाणिदियनिग्गहेणं मणुण्णामणण्णेसु गंधेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुवबद्धं च निज्जरेइ ।। ६६. जिभिदियनिग्गहेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? जिभिदियनिग्गहेणं मणण्णामणण्णेस रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।। ६७. फासिदियनिग्गहेणं भंते ! जोवे कि जणयइ ? फासिदियनिग्गहेणं मणण्णामणण्णेस फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।। १. समयविसारए य (अ) । दसणेणं विहरइ (बृपा) । २. विज्झाइ परं अणाज्झायमाण . ४. सेलेसी पडिवन्ने विहरइ (ब); सेलेसि पडि(अ); विज्झाइ (ऋ)। वन्ने अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेति. ३. अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावेमागे अणुत्तरेणं ततो पच्छा सिझति... (बपा)। नाणदंसणेणं विहरइ (अ); अनुत्तरेणं नाण- ५. चक्खिदिएसु (अ)। . Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं अज्झयणं (सम्मत्तपरक्कमे) २०१ ६८. कोहविजएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कोहविजएणं खंति जणयइ, कोहवेयणिज्ज कम्मं न बंधइ, पुव्वबलं च निजरेइ । ६९. माणविजएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? माणविजएणं मद्दवं जणयइ, माणवेयणिज्ज कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।। ७०. मायाविजएणं भंते ! जोवे कि जणयइ ? मायाविजएणं उज्जुभावं जणयइ, माया वेयणिज्ज कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ । ७१. लोभविजएणं भंते ! जोवे किं जणयइ ? लोभविजएणं संतोसीभावं जणयइ, लोभ वेयणिज्ज कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥ ७२. पेज्जदोसमिच्छादसणविजएणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? पेज्जदोस मिच्छादसण विजएणं नाणदसणचरित्ताराहणयाए अब्भुट्टेइ। 'अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगंठिविमोयणयाए" तप्पढमयाए जहाण पुवि अट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्धाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दंसणावरणिज्ज' पंचविहं अंतरायं एए तिन्नि वि कम्मसे जूगवं खवेइ। तओ पच्छा अणत्तरं अणतं कसिणं पडिपूण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभावगं' केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ । जाव सजोगी भवइ ताव य इरियावहियं कम्मं बंधइ सुहफरिसं दुसमयठिइयं । तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए बेइयं तइयसमए निज्जिण्णं तं बद्धं पुढें उदीरियं वेइयं निज्जिण्णं सेयाले य अकम्मं चावि भवइ ।। ७३. अहाउयं पालइत्ता अंतोमुहुत्तद्धावसेसाउए' जोगनिरोहं करेमाणे सुहुमकिरियं अप्पडिवाइ सुक्कज्झाणं झायमाण तप्पढमयाए 'मणजोगं निरु भइ, निरु भित्ता वइजोगं निरु भइ, निरु भित्ता आणापाणनिरोह करेइ, करेत्ता ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारद्धाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुक्कज्माणं झियायमाणे वेयणिज्ज आउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि वि' कम्मसे जुगवं खवेइ॥ ७४. तओ ओरालियकम्माइं च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जसेढिपत्ते अफुसमाणगई उड्ढं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ १. अविहकम्मविमोयणाए (बृपा) । २. दंसणावरणं (उ, ऋ)। ३. लोगालोगस्सभावं (बृपा)। ४. निविण्णं (अ)। ५. अंतोमुहुत्तावसेसाउए (उ, ऋ, बृपा) ; अंतो- मुहुत्तअद्धावसेसाए (पा) । ६. मणजोगं निरुम्भाइ वइजोगं निरुम्भइ आणापाणुनिरोहं (ब); मणजोगं निरुम्भइ, वइजोगं निरुम्भाइ, कायजोगं निरुम्भइ आणापाण निरोहं (आ, इ)। ७. X (उ, ऋ)। ८. x (उ, ऋ)। Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ' ।। एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अज्झयणस्स अट्ठे समणेणं भगवया महावीरेणं आघविए पणविए परूविए दंसिए' उवदंसिए || -त्ति बेमि ॥ १. (क) इह च चूर्णिकृत्ता - " सेलेसीए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? अकम्मयं जणति, अम्मयाए जीवा सिज्यंति" इति पाठः, पूर्वत्र च क्वचित्किञ्चित्पाठभेदेनाल्पा एव प्रश्ना आश्रिताः, अस्माभिस्तु भूयसीषु प्रतिषु यथाव्याख्यात पाठदर्शना उत्तरभयणाणि दित्यमुन्नीतमिति (बृ.) । (ख) सेलेसीए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? अम्मयं जणति अकम्मयाए जीवा सिज्यंति बुज्भंति मुच्वंति परिनिव्वायति सव्वदुक्खाणं अंत करेंति (चू) । २. दंसिए निदंसिए (बृ) । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीसइमं अज्झयणं तवमग्गगई १. जहा उ पावगं कम्मं रागदोससमज्जियं खवेइ तवसा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण ।। २. पाणवहमुसावाया' अदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ। राईभोयणविरओ जीवो भवइ अणासवो। ३. पंचसमिओ तिगुत्तो अकसाओ जिइंदिओ। ___ अगारवो य निस्सल्लो जीवो होइ अणासवो ।। ४. एएसिं तु विवच्चासे' रागद्दोससमज्जियं । ___ 'जहा खवयइ भिक्खू" 'तं मे एगमणो" सुण ।। ५. जहा महातलायस्स सन्निरुद्ध जलागमे । __ उस्सिचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे ।। ६. 'एवं तु'' संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निजरिज्जइ ।। ७. सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरभंतरो तहा । बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमब्भतरो तवो॥ ८. अणसणमूणोयरिया भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। ___ कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होई ॥ ६. इत्तिरिया मरणकाले' 'दुविहा अणसणा" भवे । इत्तिरिया सावकंखा निरवकंखा' बिइज्जिया ॥ १. पाणिवह मुसावाए (उ, ऋ)। ५. एमेव (अ) । २. विवज्जासे (ब)। ६. काला य (उ, ऋ)। ३. खवेइ जं जहां कम्मं (उ, ऋ); खवेइ तं ७. अणसणा दुविहा (उ, ऋ, बृ) । __ जहा भिक्खू (बृ)। ८. निरवकंखा उ (सु); निरकंखा उ (ब); ४. तं मे एगमणा (स); तमेगग्गमणो (स)। निरवकंखा (बृपा)। २०३ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ उत्तरज्झयणाणि १०. जो सो इत्तरियतवो सो समासेण छविहो । सेढितवो पयरतवो घणो य तह होइ वग्गो य" ।। ११. तत्तो य वग्गवग्गो उ पंचमो छ?ओ पइण्णतवो । मणइच्छियचित्तत्थो नायव्यो होइ इत्तरिओ ।। १२. जा सा अणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया । सवियारअवियारा' कायचिठें पई भवे ।। १३. अहवा सपरिकम्मा अपरिकम्मा" य आहिया । नीहारिमणीहारी आहारच्छेओ य दोसु वि ॥ १४. ओमोयरियं पंचहा समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्तकालेणं' भावेणं पज्जवेहि य॥ १५. जो जस्स उ आहारो तत्तो ओम' तु जो करे । जहन्नेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे ।। १६ गामे नगरे तह रायहाणि-निगमे य आगरे पल्ली । खेडे कब्बडदोणमुह-पट्टणमडंबसंबाहे ॥ १७. आसमपए विहारे सन्निवेसे समायघोसे य। थलिसेणाखंधारे सत्थे संवट्टकोट्टे य ।। १८. वाडेसु व रच्छासु व घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पइ उ एवमाई एवं खेत्तेण ऊ भवे ।। १६. पेडा य अद्धपेडा गोमुत्तिपयंगवीहिया चेव । संबुक्कावट्टाययगंतु पच्चागया छट्टा ॥ २०. दिवसस्स • पोरुसीणं चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे काले । एवं . चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्वों ।। २१. अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसंतो । चउभागूणाए वा एवं कालेण ऊ भवे ।। २२. इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वाणलंकिओ वा वि । अन्नयरवयत्थो वा अन्नयरेणं व वत्थेणं ।। २३. अन्नेण . विसेसेणं वण्णेणं भावमणुमयंते उ। एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुणयन्वो । २४. दव्वे खेत्ते काले भावम्मि य आहिया उ जे भावा । एएहिं ओमचरओ पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥ १. वग्गो चउत्थो उ (अ)। २. सवियारमवियारा (उ, ऋ, सु, बू)। ३. सपडिकम्मा अपडिकम्मा (अ)। ४. ओमोयरणं (अ, ऋ, बृपा)। ५. खेत्त काले य (अ); खित्तो काले (ऋ)। ६. भावओ (अ)। ७. ऊणं (अ)। ८. संबुक्कावट्टा+आययगंतुं = संबुक्कावट्टाययगतं । ६. मुणेयव्वं (उ, ऋ)। १०. मुणेयव्वं (उ, ऋ)। . Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ तीसइमं अज्झयणं (तवमग्गगई) २५. अट्टविहगोयरग्गं तु तहा सत्तेव एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया ॥ २६. खीरद हिसप्पिमाई पणीयं पाणभोयणं । - परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं ।। २७. ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जति कायकिलेसं तमाहियं ।। २८. एगंतमणावाए इत्थीपसुविवज्जिए । सयणासणसेवणया विवित्तसयणासणं २६. एसो बाहिरगतवो समासेण वियाहिओ । अभितरं 'तवं एत्तो' वुच्छामि अणुपुत्वसो ।। ३०. पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । __झाणं च विउस्सग्गो' 'एसो अभितरो तवो" ॥ ३१. आलोयणारिहाईयं पायच्छित्तं तु दसविहं । जे भिक्खू वहई सम्मं पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३२. अब्भट्टाणं अंजलिकरणं तहेवासणदायणं गुरुभत्तिभावसुस्सूसा विणओ एस वियाहिओ।। ३३. आयरियमाइयम्मि य वेयावच्चम्मि दसविहे । आसेवणं जहाथामं वेयावच्चं तमाहियं ।। ३४. वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा । अणुप्पेहा धम्मकहा सज्झाओ पंचहा भवे ।। ३५. अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता झाएज्जा सुसमाहिए । धम्मसुक्काई झाणाइं झाणं तं तु बुहा वए । ३६. सयणासणठाणे वा जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो छ8ो सो परिकित्तिओ ।। ३७. एयं तवं तु दुविहं जे सम्म आयरे मुणी । 'से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए । -त्ति बेमि ॥ १. तवो इत्तो (उ, ऋ)। २. भाणं उस्सग्गो वि य (उ, ऋ, स)। ३. अन्भिन्तरओ तवो होइ (उ, ऋ, स)। ४. आयरिमाईए (उ, ऋ)। ५. सो खवेत्तुरयं अरओ नीरयं तु गई गए (बृपा)। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगतीसइमं अभयणं चरणविही १. चरणविहिं पवक्खामि जं चरित्ता बहू जीवा २. एगओ विरई कुज्जा असंजमे नियत्ति च ३. रागद्दोसे य दो पावे जे भिक्खू भई निच्चं ४. दंडाणं गारवाणं च १२. गच्छइ ( अ, बृपा ) । ३. x (उ, ऋ) । २०६ जे भिक्खु चयई निच्चं ५. दिव्वे य जे उवसग्गे जे भिक्खू सहई निच्चं ६. विगहा कसाय सण्णाणं जे भिक्खु वज्जई निच्चं ७. वसु इंदित्थे जे भिक्खू जयई निच्चं ८. लेसासु छसु कासु जे भिक्खु जयई निच्चं ६. fisturesमासु जे भिक्खु जयई निच्चं १०. मएसु भगुत्ती जे भिक्खू जयई निच्चं ११. उवासगाणं पडमासु जे भिक्खू जयई निच्चं । जीवस्स उ सुहावहं । तिष्णा संसारसागरं । एगओ य पवत्तणं । संजमे य पवत्तणं ॥ पावकम्मपवत्त से न अच्छइ मंडले || सल्लाणं च तियं तियं । से न अच्छइ मंडले || तहा तेरिच्छमाणुसे । से न अच्छइ मंडले || भाणाणं च दुयं तहा । से न अच्छइ' मंडले || 'समिसु किरियासु य" । से न अच्छइ मंडले || छक्के आहारकारणे । से न अच्छइ मंडले || भट्ठाणेसु सत्तसु । से न अच्छइ मंडले ॥ भिक्खुधम्मंमि दसविहे । से न अच्छइ मंडले || भिक्खूणं पडिमासु य । से न अच्छइ मंडले || ४, ५.. गच्छइ ( अ, बूपा ) । ६. समितीसु य तहेव य ( बृपा) । Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ एगतीसइमं अज्झयणं (चरणविही) १२. किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ।। १३. गाहासोलहसएहिं तहा अस्संजमम्मि य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥ १४. बंभम्मि नायज्झयणेसु ठाणेसु यसमाहिए। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छई मंडले ।। १५. एगवीसाए सबलेसु बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥ १६. तेवीसइ सूयगडे रूवाहिएसु सुरेसु' अ । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥ १७. पणवीसभावणाहि उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ।। १८. अणगारगुणेहिं च पकप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥ १६. पावसुयपसंगेसु मोहट्ठाणेसु चेव य । ___ जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥ २०. सिद्धाइगुणजोगेसु तेत्तीसासायणासु' य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥ २१. इइ एएसु ठाणेसु जे भिक्खू जयई सया । खिप्पं से सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिओ।। -त्ति बेमि ॥ १. य+असमाहिए=यसमाहिए। २. देवेसु (बृपा)। ३. पणु (अ)। ४. उ (उ, ऋ, ब)। ५. गाणि (अ)। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं अज्झयणं पमायट्ठाणं १. अच्चतकालस्स समूलगस्स सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता सुणेह एगग्गहियं हियत्थं ॥ २. नाणस्स सव्वस्स' पगासणाए अण्णाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ ३. तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा विवज्जणा बालजणस्स दूरा। 'सज्झायएगंतनिसेवणा य" सुत्तत्थसंचिंतणया धिई य॥ ४. आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं सहायमिच्छे निउणत्यबुद्धि' । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं समाहिकामे समणे तवस्सी। ५. न वा लभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एक्को वि पावाइ विवज्जयंतो' विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो । ६. जहा य अंडप्पभवा बलागा अंडं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हं मोहं च तण्हाययणं वयंति ।। ७. रागो य दोसो वि य कम्मबीयं कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥ ८. दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हओ जस्स न किंचाई। ९. रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तकामेण समूलजालं । जे जे 'उवाया पडिवज्जियव्वा" ते कित्तइस्सामि अहाणुपुवि ।। १. एगन्त (सु, बृपा)। ५. अणायरन्तो (बृपा)। २. सच्चस्स (सुपा, बृपा)। ६. तण्हा (अ)। ३. निवेसणा य (ब); निसेवणाए (बृपा)।। ७. किंचनत्थि (बृपा)। ४. निउणेह (बृपा)। ८. अपाया परि' (बृपा)। २०५ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइ अझयणं ( पमायट्ठाणं) १०. रसा पगामं न निसेवियव्वा पायं रसा दित्तिकरा दित्तं च कामा समभिद्दवंति दुमं जहा साउफलं व ११. जहा दवग्गी परिघणे वणे समारुओ नोवसमं एविदियग्गी वि पगामभोइणो न बंभयारिस्स हियाय कस्सई ॥ १२. विवित्तसेज्जासणजंतियाणं उवे । ओमासणा दमिइंदियाणं । रागसत्तू घरिसेइ चित्तं पराइओ वाहिरिवोसहि || बिराला सहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था । इत्थीनिलयस्स मज्झे न बंभयारिस्स खमो निवासो ॥ रूवलावण्णविलासहासं न जंपियं इंगियपेहियं वा । चित्तंसि निवेसइत्ता दठ्ठे ववस्से समणे तवस्सी ॥ १५. अदंसणं चैव अपत्थणं च अचितणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियभाणजोग्गं हियं सया इत्थीण रयाणं ॥ न १३. जहा एमेव १४. न बंभवए १६. कामं तु देवीहि विभूसियाहिं न चाइया खोभइउं तहा वि एगंतहियं ति नच्चा विवित्तवासो तिगुत्ता । पसत्थो ॥ मुणिणं' ठियस्स धम्मे । बालमणोहराओ ।। भवंति सेसा | अवि गंगासमाणा ।। लोगस्स गच्छइ १७. मोक्खाभिकंखिस्स वि माणवस्त संसारभीरुस्स नेयारिसं" दुत्तरमत्थि लोए जहित्थिओ १५. एए य संगे समइक्कमित्ता सुहुत्तरा चेव जहा महासागरमुत्तरिता नई भवे १६. कामाणु गिद्धिप्पभवं खु दुक्खं सव्वस्स जं काइयं माणसियं च किंचि तस्संतगं २०. जहा य किंपागफला मणोरमा रसेण वण्णेण य 'ते खुड्डए जीविय" पच्चमाणा एओवमा कामगुणा २१. जे इंदियाणं विसया मणुण्णा न तेसु' भावं निसिरे कयाइ । न यामगुण्णेसु मणं पि" कुज्जा समाहिकामे समणे २२. चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति तं रागहेउं तु अमणुण्णमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ तवस्सी ॥ मण्णमा | तं दोस १. दत्तकरा (बुपा) । २. ओमासणाए, ओमासणाई ( बृपा) । ३.वी हियं (बु, सु) । ४. बंभचेरे (उ, ऋ, बृपा) । ५. भावो (उ, ऋ । ६. मुणिणो ( अ ) । नराणं । पक्खी ॥ सदेवगस्स । वीयरागो ॥ भुज्जमाणा । विवागे ॥ ७. न तारिस (आ, इ, उ, ऋ) । ८. ते जीवियं खुदए ( अ ) ; ( बृपा ) ; C. सि ( अ ) खुद्द ए । १०. य + अमणुणेसु यामणुष्णेसु । ११. तु (अ) । २०६ ते जीवयं सुंदति जीवि (सु) । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० २३ रूवस्स चक्खुं गहणं वयंति चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस्स हे समणुण्णमाहु' दोस् हे अमणुण्णमाहुरे ॥ २४. रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिब्वं' अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे आलोयलोले समुवेड़ मच्चुं ॥ २५. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ 'उवेइ दुक्खं" । दुद्द दोसे सएण जंतू न किंचि रूवं अवरज्झई से | २६. एगंतरत्ते रूवे अतालिसे से कुणई पओसं । बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।। हिंसइणेगरू' । किलिठ्ठे ॥ aaणसन्निओगे" । अतित्तिलाभे" ॥ रुइरंसि संपीलमुवेइ दुवखस्स २७. रूवाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे चित्ते हि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तगुरू परिग्गहेण उप्पायणे २८. रूवाणुवाएण वए विओगे य कहि सुहं से ? संभोगकाले य २६. रूवे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अदत्तं ॥ अतुट्ठदोसे दुही परस्स लोभाविले आयई ३०. तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से | ३१. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले यदुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययतो रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ३२. रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? | तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कण दुक्खं ॥ ३३. एमेव रूवम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्भे वि संतो जलेण पोक्खरिणीपलासं ॥ ३५. सोयस्स सद्द पट्ठचित्तो य ३४. रूवे विरत्तो तं दोसहेउं ३६. सद्दस्स सोयं रागस्स हेउ १. तमणुण्ण माहु ( बृपा) । २. तमगुण्णमाहु ( बृपा) । ३. निच्चं ( अ ) । ४. किलेसं ( बृपा) । ५. निच्वं ( अ, बृ) । ६. समुर्वेति सव्वं (बृपा) । ७. तो ( अ ) । उत्तरज्झयणाणि वा गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुण्णमा | अमणुण्णमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। गहणं वयंति सोयस्स सद्दं समणुण्णमाहु दोसस्स हेउ गहणं वयंति । अणुष्णमाहु || ८. वाणु (सुपा, बृपा) । ९. हिंसइ + अग्रेगरूचे = हिंस इणेगरूवे | १०. वाय ( अ ) ; (सुपा, बृपा) । ११. तन्निओगे ( उ ) । १२. अतित्त (वृ); अतित्ति ( बृपा) । १३. उ ( अ ) । वाए ण (सु) ; रागेण Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीस इमं अज्झयणं ( पमायट्ठाण ) ३७. सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं रागाउरे हरिणमिगे व' मुद्धे' ३८. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं दुतदोसेण ३६. एगंतरत्ते विणासं । स एण रुइरंसि जंतू सद्दे अकालियं पावर से सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चुं || तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । न किंचि सद्दं अवरज्झई से ॥ अतालि से कुणई पओसं । मुणी विरागो || हिंसइणेगरूवे । किलिट्ठे ॥ रक्खणसन्निओगे | न लिप्पई तेण चराचरे दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले ४०. सद्दाणुगासाणुगए य जीवे चित्ते हि ते परियावेइ बाले परिग्गहेण ४१. सद्दाणुवाएण' ar विओगे य कहि सुहं से ? ४२. सद्दे अतित्ते य परिग्गहे य तुट्ठ पीलेइ अत्तगुरू उप्पायणे संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ सत्तोवसत्तो न उवेइ दोसे दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ४३. तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ४४. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले यदुही दुरं । एवं अदत्ताणि समाययंत सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ४५. सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? | तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्त्रत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ४६. एमेव सद्दम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । चित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ४७. सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगों एएण न लिप्पए भवमज्भे वि संतो ४८. घाणस्स गंध गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुण्णमाह । तं दोस अमणमा समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ४६. गंधस्स घाणं गहणं वयंति घाणस्स गंध गहणं वयंति । रागस्स हेउ समगुणमाहु दोसस्स हेउं अमणमा || ५०. गंधेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं" अकालिय पावइ से विणासं । रागाउरे ओस हिगंधगिद्धे सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ॥ ६. अतित्त' (वृ); अतित्ति (बृपा) । जलेण वा दुक्खोहपरंपरेण । पोक्खरिणीपलासं ॥ ७. उ ( अ ) । ८. असोगो ( अ ) । ४. निच्च ( अ, बृ) । ६. गंधस्स ( अ, ऋ) । ५. वाय ( अ ) ; वाए ण (सु); रागेण (सुपा, १०. निच्चं ( अ ) | बृपा) । १. निच्चं ( अ ) । २. व्व (उ, ऋ) । ३. बुद्धे ( अ ) । २११ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ उत्तरज्झयणाणि ५१. जे यावि दोसं समवेइ तिव्वं' तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू न किंचि गंधं अवरज्झई से ॥ ५२. एगंतरत्ते रुइरंसि गंधे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो । ५३. गंधाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्ठे ५४. गंधाणुवाएण' परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। ५५. गंधे अतित्ते य परिगहे. य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धिं । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं । ५६. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ५७. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो गंधे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो । ५८. गंधाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ५६. एमेव गंधम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ६०. गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६१. जिहाए रसं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुष्णमाहु । तं दोसहेउं अमणुण्णमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो।। ६२. रसस्स जिन्भं' गहणं वयंति जिब्भाए रसं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुण्णमाहु दोसस्स हेउं अमणण्णमाह ।। ६३. रसेसु' जो गिद्धिमुवेई तिव्वं' अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे बडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥ ६४. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू 'रसं न किंचि'' अवरज्झई से ।। १. निच्चं (अ, बृ)। ६. रसस्स (अ, ऋ)। २. 'वाए य (अ); वाए ण (सु); रागेण ७. निच्चं (अ)। __ (सुपा, बृपा)। ८. लोभगिद्धे (अ)। ३. अतित्त (बृ); अतित्ति (बृपा)। ६. निच्चं (अ, बृ)। ४. उ (अ)। १०. न किंचि रसं (अ) । ५. जीहा (उ, ऋ)। Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं अज्झयणं (पमायट्ठाणं) ६५. एगंत रत्ते रुइरे रखम्म अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।। ६६. रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे resored | चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेई अत्तट्ठगुरू किलिट्ठे ॥ ६७. रसाणुवाएण' परिग्गहेण उप्पायने रक्खणसन्निओगे । व विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ६८. रसे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ अतुट्ठदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ६६. तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य. । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से | ७०. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले यदुही दुरं । एवं अदत्ताणि समाययतो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो || ७१. रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? | तत्थभोगे वि किलेदुक्खं निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥ ७२. एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ पट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ७३. रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण न लिप्पई भवमज्भे वि संतो जलेण वा दुक्खोहपरंपराओ दुक्खोहपरंपरेण । पोक्खरिणीपलासं ॥ 'रागस्स हेउं समणुष्णमाहु' ७६. फासेसु जो निद्धिमुवेइ तिव्वं रागाउरे ७७ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं दुतदोसेण सएण जंतू ७८. एगंतरत्ते रुइरंसि दुक्खस्स संपीलमुवेइ ७४. कायस्स फासं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुण्णमा | तं दोस अमणमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ७५. फासस्स कायं गहणं वयंति कायस्स फासं गहणं वयंति । 'दोसस्स हे " अमणमा || अकालिय पावइ से विणासं । सोयजलावसन्ने गाहग्गहोए महिसे वरणे ॥ तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । न किंचि फास अवरज्झई से ।। फासे अतालिसे से कुई ओसं । बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो || जीवे चराचरे बाले पीलेइ हिंसइगवे । अत्तगुरू किलिट्ठे ॥ य ७६. फासाणुगासाणुगए चित्ते हि ते परितावेइ १. वाय ए ( अ ) ; वाए ण (सु); रागेण (सुपा, वृपा) । २. अतित्त (वृ); अतित्ति ( बृपा) । ३. उ (अ) । ४. तं राग हेउं तु मणुन्नमाहु ( अ ) । ५. तं दोस हेउस्स (अ ) । ६. निच्चं ( अ ) । ७. व + अरणे वरण्ये | ८. निच्च ( अ, 1 २१३ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ उत्तरज्झयणाणि ८०. फासाणुवाएण' परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे॥ ८१. फासे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेई तुढेि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ८२. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ८३. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ८४. फासाणु रत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किचि ? । तत्थोवभोगे वि किले सदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ८५. एमेव फासम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदद्विचित्तो य' चिणाइ कम्मं जं से पूणो होइ दहं विवागे ।। ८६. फासे विरतो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झेवि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ८७. मणस्स भावं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणण्णमाह । तं दोसहेउं अमणु ण्णमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो । ८८. भावस्स मणं गहणं वयंति मणस्स भावं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुण्णमाहु दोसस्स हेउं अमणुण्णमाहु । ८६. भावेसू जो गिद्धिमवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावहिए व नागे ।। १०. जे यावि दोसं समवेइ तिव्वं' तंसि क्खणे से उ उवेइ दक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू न किंचि भावं अवरज्झई से ।। ६१. एगतरत्ते रुइरंसि भावे अतालिसे से कुणइ पओस । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो । ६२. भावानुगासाणुगए य जोवे चराचरे हिसइणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले पोलेइ अत्तगुरू किलिठे ।। ६३. भावाणवाएण परिगहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। १. वाए य (अ); वाए ण (सु); रागेण ६. गए व्व (अ)। (सुपा, वृपा)। ७. निच्च (अ, वृ)। २. अतित्तौं (बृ); अतित्ति (बृपा) । ८. वाए य (अ); वाए ण (सु); रागेण ३. उ (अ)। (सुपा, बृपा)। ४. मगण (अ); भावस्स (ऋ)। ६. अतित्त (तृ); अतित्ति (बृपा) । ५. निच्चं (अ)। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बत्तीसइमं अज्झयणं (पमायट्ठाणं) २१५ ६४. भावे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ६५. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ६६. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरते । एवं अदत्ताणि समाययंतो भावे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो।। ६७. भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ६८. एमेव भावम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो य' चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ६६. भावे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्भे. वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ।। १००. एविदियत्था य मणस्स अत्था दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागिणो । ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्खं न वीयरागस्स करेंति किंचि ।। १०१. न कामभोगा समयं उति न यावि भोगा विगई उति । जे तप्पओसी य परिग्गही य सो तेसु मोहा विगई उवेइ ।। १०२. कोहं च माणं च तहेव मायं लोहं दुगुंछं अरइं रइं च । हासं भयं सोगपुमित्थिवेयं नपुंसवेयं विविहे य भावे ।। १०३. आवज्जई एवमणेगरूवे एवंविहे कामगुणेसु सत्तो। ___ अन्ने य एयप्पभवे विसेसे कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्से ।। १०४. कप्पं न इच्छिज्ज सहायलिच्छू पच्छाणुतावेय' तवप्पभावं । एवं वियारे अमियप्पयारे आवज्जई इंदियचोरवस्से ।। १०५. तओ से जायति पओयणाई निमज्जिउं मोहमहण्णवम्मि । सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा' तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ।। १०६. विरज्जमाणस्स य इंदियत्था सद्दाइया तावइयप्पगारा । न तस्स सव्वे वि मणुण्णयं वा निव्वत्तयंती अमणुण्णयं वा । १०७. एवं ससंकप्पविकप्पणासो' संजायई समयमुवट्ठियस्स । ____ 'अत्थे असंकप्पयतो" तओ से पहीयए कामगुणेसु तण्हा ।। १. उ (अ)। इ, उ, ऋ, सु, स, बृ, चू); विकप्पणासो, २. पच्छाणुतावेण (सु)। अत्थे असंकप्पयतो (बपा); बहवृत्तः पाठा३. दुक्खविमोयणाय (बृपा) । न्तरे मूलपाठत्वेन स्वीकृते । अत्रास्ति कारणं । ४. तप्पच्चया (बृपा)। पाठान्तरस्वीकारेण अर्थस्य सम्यक् प्रतिपत्ति५. वण्णाइया (बृपा)। भवति । वृत्त्यादिसम्मतः पाठः अस्वाभावि६, ७. 'विकप्पणासु, अत्थे य संकप्पयओ (अ, आ, कोस्ति, अर्थोपि नोपपद्यते । Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ उत्तरज्झयणाणि १०८. स वीयरागो कयसव्वकिच्चो खवेइ नाणावरणं खणणं । तहेव जं दंसणमावरेइ जं चंतरायं' पकरेइ कम्मं ।। १०६. सव्वं तओ जाणइ पासए य अमोहणे होइ निरंतराए । अणासवे माणसमाहिजुत्ते आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ।। ११०. सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को जं बाहई सययं जंतुमेयं । दीहामयविप्पमुक्को पसत्थो तो होइ अच्चंतसुही कयत्थो । १११. अणाइकालप्पभवस्स एसो 'सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता कमेण अच्चंतसुही भवंति ॥ त्ति बेमि ॥ १. च+अंतरायंचंतरायं । २. संसार चक्कस्स विमोक्खमग्गे (बृपा) । Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेतीसइमं अज्झयणं कम्मपयडी १. अट्ट कम्माई वोच्छामि आणपूटिव जहक्कम । ___ जेहिं बद्धो अयं जीवो संसारे परिवत्तए' ॥ २. नाणस्सावरणिज्जं सणावरणं तहा । _ वेयणिज्जं तहा मोहं आउकम्मं तहेव य ।। ३. नामकम्मं च गोयं च अंतरायं तहेव य । ____ एवमेयाइ कम्माई अद्वैव उ समासओ ।। ४. नाणावरणं पंचविहं सुयं आभिणिबोहियं । ओहिनाणं तइयं मणनाणं च केवलं ।। ५. निद्दा तहेव पयला निद्दानिद्दा य पयलपयला य । तत्तो य थीणगिद्धी उ पंचमा होइ नायव्वा ।। ६. चक्खुमचक्खुओहिस्स दसणे केवले य आवरणे । · एवं' तु नवविगप्पं नायव्वं सणावरणं । ७. वेयणीयं पि य दुविहं सायमसायं च आहियं । सायस्स उ बहू भेया एमेव असायस्स वि ।। ८. मोहणिज्जं पि दुविहं दंसणे चरणे तहा । दंसणे तिविहं वत्तं चरणे विहं भवे ।। ६. सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तमेव एयाओ तिन्नि पयडोओ मोहणिज्जस्स दंसणे ।। १०. 'चरित्तमोहणं कम्मं दुविहं तु वियाहियं । 'कसायमोहणिज्जं तु नोकसायं तहेव य । १. सुणेह मे (बृपा)। ५. चरित्त मोहणिज्जं दुविहं वोच्छामि अणुपुब्बसो २. परिभम्मए (बृपा)। (बृपा)। ३. एयं (अ)। ६. वेयणिज्जं य (बृ)। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ उत्तरज्झयणाणि ११. सोलसविहभेएणं कम्मं तु कसायजं । सत्तविहं नवविहं वा कम्मं नोकसायजं ।। १२. नेरइयतिरिक्खाउ मणुस्साउ तहेव य । देवाउयं . चउत्थं तू' आउकम्म चउव्विहं ।। १३. नाम कम्मं तु दुविहं सुहमसुहं 'च आहियं । सुहस्स उ बहू भेया एमेव असुहस्स वि ।। १४. गोयं कम्मं दुविहं उच्चं नीयं च आहियं । उच्च अट्टविहं होइ एवं नीयं पि आहियं ।। १५. दाणे लाभे य भोगे य उवभोगे वीरिए तहा । पंचविहमंतरायं समासेण वियाहियं ।। १६. एयाओ मूलपयडीओ उत्तराओ य आहिया । पएसगं खेत्तकाले य भावं चादुत्तरं सुण ।। १७. सव्वेसि चेव कम्माण पएसग्गमणंतगं गंठियसत्ताईयं अंतो सिद्धाण आहियं ।। १८. सव्वजीवाण कम्मं तु संगहे छद्दिसागयं । सव्वेसु वि पएसेसु सव्वं सव्वेण बद्धगं ।। १६. उदहोसरिनामाणं तीसई कोडिकोडिओ। उक्कोसिया ठिई होइ अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। २०. आवरणिज्जाण दुण्हं पि वेयणिज्जे तहेव य । __अंतराए य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया ।। २१. उदहीसरिनामाणं सत्तरि कोडिकोडिओ। मोहणिज्जस्स उक्कोसा अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २२. तेत्तीस सागरोवमा उक्कोसेण वियाहिया। ठिई उ आउकम्मस्स अंतोमुहुत्तं जहनिया ॥ २३. उदहीसरिनामाणं वीसई कोडिकोडिओ। नामगोत्ताणं उक्कोसा अट्ठ मुहुत्ता जहन्निया ।। २४. सिद्धाणणंतभागो य अणुभागा हवंति उ । सव्वेसु वि पएसग्गं सव्वजीवेसुइच्छियं ॥ २५. तम्हा एएसि कम्माणं अणुभागे वियाणिया । एएसि संवरे चेव खवणे य जए बुहे ॥ --त्ति बेमि ॥ १, २.X (उ, ऋ)। ६. x (उ, ऋ)। ३. वियाहियं (उ, ऋ)। ७. जीवेसइच्छियं (अ, सु); जीवे अहिच्छियं ४. य (उ, ऋ)। (स); सब जीवेसु+अइच्छियं =सव्वजीवेसु५. गण्ठियसत्ताणाइ (बपा)। इच्छियं । Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसइमं अभयणं लेसज्झयणं १. लेसज्झयणं पवक्खामि आणुपुदिव जहक्कम । छह पि कम्मलेसाणं अणुभावे सुणेह मे।। २. नामाइं वण्ण रसगध- फासपरिणामलक्खणं । ठाणं ठिई गई चाउं लेसाणं त सणेह मे ।। ३. किण्हा नीला य काऊ य तेऊ पम्हा तहेव य । ___ सुक्कलेस्सा य छट्ठा उ' नामाइं तु जहक्कम ।। ४. जीमूयनिद्धसंकासा गवरिट्ठगसन्निभा । ___ खजणंजणनयणनिभा किण्हलेसा उ वण्णओ ।। ५. नीलासोगसंकासा चासपिच्छसमप्पभा । वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ। ६. अयसीपुप्फसंकासा कोइलच्छदसन्निभा' । __ पारेवयगीवनिभा काउलेसा उ वण्णओ ॥ ७. हिंगुलुयधाउसंकासा तरुणाइच्चसन्निभा । सुयतुंडपईवनिभा तेउलेसा उ वण्णओ॥ ८. हरियालभेयसंकासा हलिद्दाभेयसंनिभा' । पम्हलेसा उ' वण्णओ ।। ६. संखंककुंदसंकासा खीरपूरसमप्पभा । रययहारसंकासा सुक्कलेसा उ' वण्णओ ।। १०. जह कडुयतुंबगरसो निबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ किण्हाए नायव्वो ।। सणास निभा १. य (उ, ऋ)। २. च्छविस (बृपा)। ३. सुयतुंडग्गसंकासा, सुयतुण्डालत्तदीवाभा (बपा)। ४. सप्पभा (अ, आ, इ) । ५. य (ऋ)। ६. खीरतूल (बृ); खीरधार, खीरपूर (बृपा) । ७,८. य (ऋ)। २१६ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० उत्तरज्झयणाणि ११. जह तिगडुयस्स य रसो तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ नीलाए नायव्वो ।। १२. जह तरुणअंबगरसो तुवरकविट्ठस्स' वावि जारिसओ। एत्तो वि अणंतगणो रसो उ काऊए नायव्वो ॥ १३. जहपरिणयंबगरसो पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणंतगणो रसो उ तेऊए नायव्वो।। १४. वरवारुणीए व रसो विविहाण व आसवाण जारिसओ। 'महुमेरगस्स व रसो एत्तो पम्हाए' परएणं" ।। १५. खज्जूरमुद्दियरसो खीररसो खंडसक्कररसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ' सुक्काए नायवो ।। १६. जह गोमडस्स गंधो सुणगमडगस्स व जहा अहिमडस्स । 'एत्तो वि'' अणंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ।। १७. जह सुरहिकुसुमगंधो गंधवासाण पिस्समाणाणं । 'एत्तो वि'१० अणतगणो पसत्थलेसाण तिण्हं पि ।। १८. जह करगयस्स फासो गोजिब्भाए व सागपत्ताणं । एत्तो वि अणंतगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥ १६. जह बूरस्स व फासो नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं । एत्तो वि अणंतगुणो पसत्थलेसाणं तिण्हं पि ।। २०. तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा । दुसओ तेयालो वा लेसाणं होइ परिणामो ।। २१. पंचासवप्पवत्तो". तीहिं अगुत्तो छसु अविरओ य । 'तिव्वारंभपरिणओ खुद्दो साहसिओ नरो१२ ॥ २२. 'निद्धंघसपरिणामो निस्संसो अजिइंदिओ । एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु परिणमे ।। २३. इस्साअमरिसअतवो अविज्जमाया 'अहीरिया य । गेद्धी पओसे य सढे पमत्ते" रसलोलुए साय गवेसए य ।। १. तुबर (अ); तुंबरु° (उ); अद्द (बृपा)। ६. पिस्समाणेणं (अ)। २. य (ऋ)। १०. एत्तो उ (अ); इत्तो वि (उ, ऋ)। ३. पम्हाउ (अ)। ११. प्पमत्तो (ब); 'प्पवत्तो (बृपा) । ४. एत्तो वि अणंतगुणो रसो उ पम्हाए नायब्बो १२. निद्धन्धसपरिणामो निस्संसो अजिइन्दिओ। _(बृपा)। (ब पा)। ५. य (ऋ)। १३. तिव्वारंभ परिणओ खुद्दो साहसिओ नरो ।। ६. मडस्स (उ, ऋ)। (बृपा)। ७. एत्तो उ (अ); इत्तो वि (उ, ऋ)। १४. अहोरियगयाय (अ)। ८. गंधाण य (बृपा)। १५. य मत्ते (बृपा)। Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसइमं अज्कयणं (लेसम्झयणं ) २४. आरंभाओ' अविरओ खुद्दो एयजोगसमाउत्तो वं कस मायारे नीललेसं पलिउंचग ओहिए २५. वंके २६. 'उप्फालगदुदुवाई य" जोसमा उत्त २७. नीयावित्ती faणीय विre २८. पियधम्मे २६. पक्कोमा अचवले दंते एयजोगसमा उत्तो ३४. 'मुहुत्तद्धं तु पसंतचित्ते दंतप्पा ३५. 'मुहुत्तद्धं तु" जहन्ना उक्कोसा होइ ठिई दधम्मे वज्जभीरू तेउलेसं ३६. 'मुहुत्तद्धं तु" जहन्ना उक्कोसा होइ ठिई साहस्सिओ तु निय डिल्ले मिच्छदिट्ठी १. आरम्भओ ( अ ) ; आरम्भा (उ, ऋ) । २. उफालदुट्टवाई ( अ ) ; उप्फासग (उ); उफाड (ऋ)। ३. हियासए, अणासए ( बृपा ) । ४. या ( अ ) । ५. साहए (बु, सु); झायए ( बुपा ) । ६. य (अ) । अमाई जोगवं य मायालोभे जोगवं तेणे काउलेसं तु यावि तु य तु ३०. तहा पयणुवाई' य उवसंते जोगसमा उत्त पहले सं ३१. अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता धम्मसुक्काणि पसंतचित्ते दंतप्पा समिए गुत्ते ३२. सरागे वीयरागे वा' उवसंते" एयजोगसमा उत्त जे सुक्कले सं ३३. असंखिज्जाणोसप्पिणीण' उस्सप्पिणीण संखाईया ' लोगा लेसाण हुति जहन्ना तेत्तीसं सागरा उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा य य नरो । परिणमे || अणुज्जुए । अणारिए || मच्छरी । परिणमे || अकुहले । उवहाणवं ॥ हिएसए' । परिणमे ॥ पण । उवहाणवं ।। जिदिए । परिणमे ॥ झाए । तिहिं ॥ जिइंदिए । परिणमे ॥ समया । ठाणाई ॥ मुहुत्तहिया | हिलेसा ॥ दस उदही पलियमसंखभागमब्भहिया । नायव्वा नीलसाए ॥ तिष्णुदही पलियम संखभागमब्भहिया । नायव्वा काउलेसाए ॥ ७. सुद्धजोगे (बृपा) । ८. असंखेज्जाणओ उसप्पिणीण ( ब ) । C. असंखेया (बृपा) । १०. मुहुत्तद्धा उ ( बृपा) । ११. मुहुत्तद्धा उ ( बृपा) । १२. मुहुत्तद्धा उ ( बृपा) । २२१ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .२२२ उत्तरज्झयणाणि ३७. 'मुहुत्तद्धं तु" जहन्ना दोउदही पलियमसंखभागमभहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा तेउलेसाए । ३८. 'मुहुत्तद्धं तुरे जहन्ना दस 'होंति सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा पम्हलेसाए ।। ३६. 'मुहुत्तद्धं तु” जहन्ना तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए ।। ४०. एसा खलु लेसाणं आहेण ठिई उ वणिया होइ । चउसु वि गईसु एत्तो लेसाण ठिइं तु वोच्छामि ।। ४१. दस वाससहस्साइं काऊए ठिई जहन्निया होइ । तिण्णुदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा ॥ ४२. तिण्णुदही पलिय- मसंख भागा जहन्नेण नीलठिई । दस उदही 'पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा ।। ४३. 'दस उदही 'पलिय- मसंखभा होइ । तेत्तीससागराइं उक्कोसा होइ किण्हाए। ४४. एसा नेरइयाणं लेसाण ठिई उ वणिया होइ । तेण परं वोच्छामि तिरियमणुस्साण देवाणं ।। ४५. अंतोमुत्तमद्धं लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ । तिरियाण नराणं वा' वज्जित्ता केवलं लेसं ।। ४६. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुव्वकोडी उ । नवहि वरिसेहि ऊणा नायव्वा सुक्कलेसाए ।। ४७. एसा तिरियनराणं लेसाण ठिई उ वणिया होइ । तेण परं वोच्छामि लेसाण ठिइ उ देवाणं ।। ४८. दस वाससहस्साई किण्हाए ठिई जहन्निया होइ । पलियमसंखिज्जइमो उक्कोसा होइ किण्हाए ।। ४६. जा किण्हाए ठिई खल उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेणं नीलाए 'पलियमसंखं तु. उक्कोसा ।। १. मुहुत्तद्धा उ (बृपा)। ७. पलियमसंखं भागं च (उ)। २. मुहुत्तद्धा उ (बृपा)। ८. 'अ' प्रतौं असौ गाथा भिन्नरूपेण दश्यते३. उदही हुंति मुहत्तमब्भहिया (उ, ऋ) । दस उदही पलियमसंख भागं च जहन्नेण कण्ह ४. मुहुत्तद्धा उ (बृपा)। लेसाए। ५. तिण्णु दही पलियमसंखभागं च उक्कोसा (सु); तेत्तीस सागराइं मुहुत्त अहिया उ उक्कोसा ॥ तिण्णुदही पलियमसंखेज्जभागं च उक्कोसा . च (उ, ऋ); तु (बृ) । (ब); उवकोसा तिन्नुदही पलियमसंखेज्ज- १०. पलियमसंखं च (उ, ऋ); पलियमसंखिज्ज भागहिया (बृपा)। ६. पलिअ असंखभागं (उ, ऋ) । Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीस इमं अज्झयणं (लेसज्झयणं) २२३ ५०. जा नीलाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमन्भहिया । जहन्नेणं काऊए पलियमसंखं च उक्कोसा ।। ५१. तेण परं वोच्छामि तेउलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइवाणमंतर- जोइसवेमाणियाणं च ।। ५२. पलिओवम' जहन्ना उक्कोसा सागरा उ दुण्हहिया' । पलियमसंखेज्जेणं होई भागेण' तेऊए ।। ५३. दस वाससहस्साई तेऊए ठिई जहन्निया होई । दुण्णुदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा ।। ५४. जा तेऊए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेणं पम्हाए दसउ मुहुत्तहियाइं च उनकोसा ।। ५५. जा पम्हाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमन्भहिया । जहन्नेणं सुक्काए तेत्तीसमुहुत्तमब्भहिया ॥ ५६. किण्हा नीला काऊ तिनि वि एयाओ अहम्मलेसाओं। एयाहि तिहि वि जीवो दुग्गइं उववज्जई बहुसो' ।। ५७. तेऊ पम्हा सुक्का तिनि वि एयाओ धम्मलेसाओ । - एयाहि तिहि वि जीवो सुग्गई उववज्जई बहुसो' । ५८. लेसाहिं सव्वाहिं पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । 'न वि कस्सवि उववाओ" परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ ५६. लेसाहिं सव्वाहिं चरमे समयम्मि परिणयाहिं तु । 'न वि कस्सवि उववाओ" परे भवे अत्थि जीवस्स ॥ ६०. अंतमृहुत्तम्मि गए अंतमुहुतम्मि सेसए चेव । लेसाहिं . परिणयाहिं जीवा गच्छंति परलोयं । ६१. तम्हा एयाण' लेसाणं अणभागे वियाणिया । अप्पसत्थाओ वज्जिता पसत्थाओ अहिछेज्जासि ।। -ति बेमि ॥ १. पलिओवमं च (अ)। (बृपा)। २. दुन्निहिया (उ, ऋ)। ८. भवइ (सु, बृ)। ३. तिभागेण (अ)। ६. न हु कस्सवि उववाओ (उ, ऋ, सु); न हु ४. अहम (अ, बृपा)। कस्सवि उववत्ति (ब); न वि कस्सवि ५. x (उ, ऋ)। (बृपा)। ६. ४ (उ, ऋ). १०. भवइ (सु, बृ)। ७. न हु कस्सवि उववाओ (उ, ऋ, सु); न हु ११. एयासि (उ, ऋ)। कस्सवि उववत्ति (ब); न वि कस्सवि १२. अहिट्ठिए (उ, ऋ) । Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. सुह जमायरंतो पणतीसइमं अभयणं अणगारमग्गगई मेगग्गमणा' मग्गं बुद्धेहि भिक्खू दुक्खाणंतकरो १. मे एगग्गमणा (उ, ऋ)। २. पवज्जामस्सिए (उ, ऋ) । २. गिहवासं मुणी । परिच्चज्ज 'पवज्जं अस्सिओ इमे संगे वियाणिज्जा' जेहिं सज्जति माणवा ॥ हिंसं अलियं चोज्जं इच्छाकामं च लोभं च ४. मनोहरं ३. तहेव संजओ सकवार्ड चित्तहरं मल्लघूवेण वासियं । पंडुरुल्लोयं मणसा वि न पत्थए । ५. इंदियाणि उ भिक्खस्स तारिसम्मि उवस्सए । दुक्कराई निवारेउ कामरागविवड्ढणे 11 ६. सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एक्कओ । पइरिक्के परकडे वा वासं तत्थभिरोय ॥ अणाबाहे इत्थीहि तत्थ संकप्पए वासं भिक्खू ७. फासूयम्मि ३. वियाणेता ( अ ) । ४. उघारेउं (बृ); निवारे (बुपा ) । २२४ देसियं । भवे ॥ अबंभसेवणं । परिवज्जए || ८. न सयं गिहाई कुज्जा णेव अन्नेहि किम्म समारंभे भूयाणं दीसई ६. तसाणं थावराणं च गिहसमारंभ तम्हा सुहुमाणं संजओ अभि ॥ परमसंजए ॥ कारए । वहो ॥ बायराण य । परिवज्जए ॥ ५. एगओ (उ, ऋ) ; एजया (बु); एक्कतो ( बृपा) । ६. परक्के (बृ); परिक्के (बुपा ) । Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसइमं अज्झयणं ( अणगारमग्गगई ) १०. तहेव १. पयय ( अ ) ; पयणेसु (ऊ) । २. पाणा ( अ ) । ३. 'काय' (उ) ४. भिक्खू वित्ती (उ, ऋ) । भत्तपाणेसु पयण' पयावणेसु य । न पये न पयावए || पाणभूयदट्ठाए नत्थि जोइसमे सत्ये १३. हिरण्णं जायरूवं च ११. जलधन्ननिस्सिया जीवा' पुढवीकट्ठनिस्सिया' 1 हम्मंति भत्तपाणेसु तम्हा भिक्खू न पायए ।। १२. विसप्पे सव्वधारे बहुपाणविणासणे I तम्हा जोई न दीवए । मणसा वि न पत्थए । विरए safarer || विक्किणंतो य वाणिओ । भिक्खू न भवइ तारिसी ॥ भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा । भिक्खावत्ती सुहावहा ॥ समलेट्ठकंचणे भिक्खू १४. किणतो कइओ होइ कयविक्कयम्मि वट्टतो १५. भिक्खयव्वं न केयव्वं कविक्कओ महादोसो १६. समुयाणं उंछमेसिज्जा जहासुत्तर्माणिदियं लाभालाभम्मि संतुट्ठे पिंडवायं 'चरे १७. अलोले न रसे गिद्धे जिन्भादंते नरसट्ठाए भुंजिज्जा जवणट्ठाए १८. अच्चणं रयणं चेव वंदणं पूयणं इड्ढीसक्कारसम्माणं मणसा वि न १९. सुक्कभाणं भियाएज्जा अणियाणे वोसकाए विहरेज्जा जाव कालस्स २०. निज्जू हिऊण आहारं कालधम्मे जहिऊण' माणुसं बोंदि पहू दुक्खे २१. निम्ममो निरहंकारो वीयरागो संपत्तो केवलं नाणं सासयं मुणी " ॥ अमुच्छिए । महाणी ॥ तहा । पत्थए । अकिंचणे । पज्जओ || उए । विमुच्चई ॥ अणासवो" । परिणि - त्ति बेमि ॥ ।। ५. गवेसए (बृपा) । ६. चइऊण ( उ, ऋ) । ७. निरासवे (चू) । २२५ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्खेव-पदं लोकालोक-पदं अवि-अजीव पदं रूवि - अजीव-पदं छत्तीसइमं अभयणं जीवाजीवविभत्ती १. जोवाजीवविभत्ति जं जाणिऊण समणे' २. जीवा चेव अजीवा य अजीव देसमागासे ३. दव्वओ खेत्तओ चेव परूवणा तेसि भवे ४. रूविणो चेवरूवी' य अरूवी दसहा वुत्ता ५. धम्मत्थिकाए तसे अहम्मे तस्स देसे य चेव ६. आगासे तस्स देसे य अद्धासमए ७. धम्माधम्मे य दोवेए लोगालोगे य आगासे ८. धम्माधम्मागासा अपज्जवसिया चैव ६. 'समए वि संतइ पप्प आएसं पप्प साईए १०. खंधाय खंधदेसा य परमाणुणो य बोद्धव्वा १. मे सुह (बृ.) । २. भिक्खु (उ, ऋ, बृ); समणे ( बृपा) । ३. चेव + अरूवी चेवरूवी । २२६ संजमे ॥ 'सुणेह मे" एगमणा इओ सम्मं जयइ एस लोए वियाहिए । अलोए से वियाहिए | कालओ भावओ तहा । जीवाणमजीवाण अजीवा दुविहा भवे । रूविणो वि चउव्विहा || तप्प से तप्प से य ॥ आहिए । आहिए || तप्पए से अरूवी य य आहिए । भवे ॥ य दसहा लोगमित्ता वियाहिया || समए समयखेत्तिए || तिन्नि वि एए अणाइया | सव्वद्धं तु वियाहिया || वियाहिए । य ॥ एवमेव " सपज्जवसिए वि तप्पएसा तहेव य । रूविणो य चउव्विहा || ४. दोएए ( उ ) ; दोवे य (ऋ); दो + अवेए = दोवेए । ५. एमेव संतई पप्प समए वि ( बृपा) । Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्झयणं (जीवाजीवविभत्ती) २२७ ११. एगत्तेण पुहत्तेण खंधा य परमाणणो । लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उ खेत्तओ।। १२. संतई पप्प तेणाई' अपज्जवसिया वि य । ठिइं पड्डच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ १३. असंखकालमुक्कोसं 'एगं समयं जहन्निया । अजीवाण' य रूवीणं ठिई एसा वियाहिया ॥ १४. अणंतकालमुक्कोसं एगं , समयं जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण अंतरेयं वियाहियं ॥ १५. वण्णओ गंधओ चेव रसओ फासओ तहा । संठाणओ य विन्नेओ परिणामो तेसि पंचहा ।। १६. वण्णओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । किण्हा नीला य लोहिया हालिद्दा सुक्किला तहा ॥ १७. गंधओ परिणया जे उ विहा ते वियाहिया । सब्भिगंधपरिणामा ब्भिगंधा तहेव य॥ १८. रसओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । तितकडुयकसाया अंबिला महुरा तहा ॥ १६. फासओ परिणया जे उ अट्ठहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेव गरुया लहुया तहा ॥ २०. सीया उण्हा य निद्धा य तहा लुक्खा य आहिया। इइ फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया ॥ २१. संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । परिमंडला ‘य वट्टा" तंसा चउरंसमायया । २२. वण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥ २३. वण्णओ जे भवे नीले भडए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ २४. वण्णओ लोहिए जे उ भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ. चेव भइए संठाणओ वि य ।। २५. वण्णओ पीयए जे उ भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। २६. वण्णओ सुक्किले जे उ भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ १. ते+अणाईतेणाई। ३. अजीवणं (उ)। २. इक्को समओ जहन्निया (उ); एगो समओ ४. वट्टा य (ऋ) । जहन्नयं (ऋ)। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ उत्तरज्झयणाणि २७. गंधओ जे भवे सुब्भी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। २८. गंधओ जे भवे दुब्भी भइए से उ वण्णओ । रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥ २६. रसओ तित्तए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य । ३०. रसओ कडुए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३१. रसओ कसाए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३२. रसओ अंबिले जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य । ३३. रसओ महुरए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३४. फासओ कक्खडे जे उ भइए से उ अण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३५. फासओ मउए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३६. फासओ गुरुए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३७. फासओ लहुए जे उ भइए से उ वण्णओ । ___ गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ३८. फासओ सीयए जे उ भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य । ३६. फासओ उण्हए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ४०. फासओ निद्धए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ४१. फासओ लुक्खए जे उ भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ।। ४२. परिमंडलसंठाणे भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।। ४३. संठाणओ भवे वट्टे भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।। IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII11 ཟླ༔ ཝཱིཙྪཱ བྷྱཱ ཙྪཱ བྷྱཱ ཉྙོ ཉྙོ བྷྱཱ བྷྱཱ ཀྐཱ བྷྱཱ བྷཱུ བྷྱཱ ཙྪཱ ཙྪཱ བྷྱཱ ཙྪཱ ཙྪཱ བྷྱཱ ཙྪཱ བྷྱཱ ཨཱ བྷྱཱ ཙྪཱ བྷྱཱ མ བྷཱུ་ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीस इमं अज्झयणं (जीवाजीवविभत्ती) २२९ ४४. संठाणओ भवे तंसे भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।। ४५. संठाणओ य चउरंसे भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ।। ४६. जे आयपसंठाणे भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥ ४७. एसा अजीवविभत्ति समासेण वियाहिया । इत्तो जीवविभत्ति वुच्छामि अणुपुव्वसो ।। जीव-पदं ४८. संसारत्था य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया' । ___ 'सिद्धा गविहा वृत्ता' तं मे कित्तयओ सुण ।। सिद्धजीव-पवं ४६. इत्थी पुरिससिद्धा य तहेव य नपुंसगा । सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिंगे तहेव य ।। ५०. उक्कोसोगाहणाए य जहन्नमज्झिमाइ य । उड्ढं अहे य तिरियं य समुद्दम्मि जलम्मि य ।। ५१. दस 'चेव नपुंसेसु' वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं समएणेगेण सिझई ।। ५२. चत्तारि य गिहिलिगे अनलिंगे दसेव य । सलिंगेण य अट्ठसयं समएणेगेण सिझई ।। ५३. उक्कोसोगाहणाए य सिज्झते जुगवं दुवे । ___ चत्तारि जहन्नाए जवमझठुत्तरं सयं ॥ ५४. चउरुड्ढलोए' य दुवे सपुद्दे तओ जले वीसमहे तहेव । सयं च अठ्ठत्तर तिरियलोए समएणेगेण उ ' सिझई उ॥ ५५. कहिं पडिहया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पइट्ठिया ? । कहिं बोंदि चइत्ताणं? कत्थ गंतूण सिज्झई ? ।। ५६. अलोए पडिहया सिद्धा लोयग्गे य पइट्ठिया । ___ इहं बोंदि चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिझई ।। ५७. बारसहिं जोयणेहिं सव्वट्ठस्सुवरि भवे । ईसीपब्भारनामा उ पुढवी छत्तसंठिया ।। १. भवंति ते (बपा)। चउरो उड्ढलोगंमि वीसपुहत्तं अहे भवे । २. तत्थाणेगविहा सिद्धा (बृपा) । सयं अट्ठोत्तरं तिरिए एग समएण सिज्झई ॥ ३. य नपुंसएस (ब)। दुवे समुद्दे सिझंति सेसजलेसु ततो जणा। ४. मज्झे अठ्ठत्तरं (अ)। एसा हु सिझणा भणिया पुव्वभावं पडुच्च उ । ५. अस्य श्लोकस्य स्थाने बहत्वृत्तो पाठान्तर- ६ तहेव य (अ)। रूपेण श्लोकद्धयं निर्दिष्टमस्ति ७. सिज्झइ धुवं (उ, ऋ)। ८. x (उ, ऋ)। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० उत्तरज्झयणाणि ५८. पणयालसयसहस्सा जोयणाणं तु आयया । तावइयं चेव वित्थिण्णा 'तिगुणो तस्सेव परिरओ'। ५६. अट्ठजोयणबाहल्ला सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायंती चरिमंते मच्छियपत्ता तणुयरी॥ ६०. अज्जुणसुवण्णगमई सा पुढवी निम्मला सहावेणं । उत्ताणगछत्तगसंठिया य भणिया जिणवरेहिं ।। ६१. संखंककुंदसंकासा पंडुरा निम्मला सुहा । सीयाए जोयणे तत्तो लोयंतो उ वियाहिओ।। ६२. जोयणस्स उ जो तस्स' कोसो उवरिमो भवे । 'तस्स कोसस्स छब्भाए सिद्धाणोगाहणा भवे"॥ ६३. तत्थ सिद्धा महाभागा लोयग्गम्मि पइट्ठिया' । भवप्पवंच उम्मुक्का सिद्धि वरगइं गया ।। ६४. उस्सेहो जस्स जो होइ भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणा तत्तो य सिद्धाणोगाहणा भवे ।। ६५. एगत्तेण साईया अपज्जवसिया वि य । अणाईया अपज्जवसिया वि य ।। ६६. अरूविणो जीवघणा नाणदंसणसण्णिया । अउलं सुहं संपत्ता उवमा जस्स नत्थि उ ।। ६७. लोएगदेसे ते सव्वे नाणदंसणसण्णिया । संसारपारनिच्छिन्ना सिद्धि वरगइं गया । संसारस्थजीव-पदं ६८. संसारत्था उ जे जीवा दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चेव थावरा तिविहा तहि ॥ ६६. पुढवी आउजीवा य तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा तेसि भेए सुणेह मे ॥ पुढवि-पदं ७०. दुविहा पुढवीजीवा उ सुहुमा बायरतहा । पज्जत्तमपज्जता एवमेए दुहा पुणो ॥ ७१. बायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया । सण्हा खरा य बोद्धव्वा सण्हा सत्तविहा तहि ।। १. तिउण साहिय पडिरयं (बृपा) । ३. तत्थ (बृ); तस्स (बृपा) । २. असो गाथा बहवृत्ती 'केचित पठन्ति' इति ४. कोसस्सवि य जो तत्थ छन्भागो उवरिमो भवे उल्लेखपूर्वकं व्याख्यातास्ति । प्रज्ञापनायां (बृपा) । [२/६४-६७] तथा औपपातिके [१६२-१९५] ५. य संट्ठिया (अ)। ईषत् प्राग्भारपृथिव्यावर्णनं गद्ये वर्तते । ६. य (ऋ)। समालोच्यगाथा तत्र नास्ति । संभाव्यते ७. लोगग्ग° (बृपा)। प्रासंगिकी गाथा मूले प्रवेशं प्राप्ता । ८. एगमेगे (बृपा)। Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ छत्तीसइमं अज्झयणं (जीवाजीवविभत्ती) ७२. किण्हा नीला य रुहिरा य' हालिद्दा सुक्किला तहा । पण्डुपणगमट्टिया खरा छत्तीसईविहा ।। ७३. पुढवी य सक्करा वालुया य उवले सिला य लोणसे । 'अयतंब-तउय' -सीसग- रुप्पसुवण्णे य वइरे य ।। ७४. हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजणपवाले । अब्भपडलब्भवालय बायरकाए मणिविहाणा ।। ७५. गोमेज्जए य रुयगे अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगयमसारगल्ले भुयमोयगइंदनीले य ।। ७६. चंदणगेरुयहंसगब्भ पुलए सोगंधिए य बोद्धव्वे । चंदप्पहवेरुलिए जलकते सूरकते य ।। ७७. एए खरपुढवीए भेया छत्तीसमाहिया । एगविहमणाणना सुहुमा तत्थ वियाहिया। ७८. सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसि वुच्छं चउव्विहं ।। ७६. संतई पप्पणाईया' अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। ८०. बावीससहस्साई वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं अंतोमुहत्तं जहनिया' । ८१. असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं तं कायं तु अमुचओ ।। ८२. अणंतकालमुक्कोसं अंतो हुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पुढवीजीवाण अंतरं ।। ८३. एएसि वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो॥ आउ-पदं ८४. दुविहा आउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो । ८५. बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से हरतणू महिया हिमे ।। ८६. एगविहमणाणत्ता सुहमा तत्थ वियाहिया । सहमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा ॥ ८७. संतइं पप्पणाईया' अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ १. X (अ)। ३. तणाई (अ)। २. अयंब तओ य (अ); अथ तय तम्ब ४. जहन्नगं (अ) । (उ, ऋ)। ५. "तेणाई (अ)। Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ उत्तरबमयमाणि ८८. सत्तेव सहस्साइं वासाणुक्कोसिया भवे । आउट्टिई आऊणं अंतोमुहुत्तं जहनिया' ।। ८९. असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायट्टिई आऊणं तं कायं तु अमुंचओ ।। १०. अणंतकालमक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए आऊजीवाण अंतरं ।। ६१. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहणाइं सहस्ससो॥ वसई-पदं ६२. दुविहा वणस्सईजीवा सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए' दुहा पुणो । ९३. बायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया । साहारणसरीरा य पत्तेगा य तहेव य॥ ६४. 'पत्तेगसरीराउ गहा ते पकित्तिया" । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वल्ली तणा तहा ।। ६५. लयावलय पव्वगा कुहुणा जलरुहा ओसहीतिणा । हरियकाया य बोद्धव्वा पत्तेया इति आहिया ॥ १६. साहारणसरीराउ गहा ते पकित्तिया । आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य॥ ६७. हिरिली सिरिली सिस्सिरिली जावई केदकंदली । पलंदूलसणकंदे य कंदली य कुडुंबए । १८. लोहि णीहू य थिहू य कुहगा य तहेव य । कण्हे य वज्जकंदे य कंदे सूरणए तहा ॥ ६६. अस्सकण्णी य बोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य । मुसुंढी य हलिद्दा य णेगहा एवमायओ । १००. एगविहमणाणत्ता सुहमा तत्थ वियाहिया। सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा ॥ १०१. संतई पप्पणाईया. अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। १. जहन्नगं (अ)। ६. तहा (अ, आ, इ, उ, सु) । २. एवमेव (अ)। ७. केलि (उ)। ३. बारसविह भेएणं पत्तेया उ वियाहिया ८. कुडुव्वए (उ, ऋ); कुहव्वए (स)। (बृपा)। ६. पुसूरणे (उ)। ४. वलया य (अ)। १०. तेणाइ (अ)। ५. पव्वया (बृ); पव्वगा (बृपा)। Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३३ छत्तीसइमं अज्झयणं (जीवाजीवविभत्ती) १०२. दस चेव सहस्साई वासाणक्कोसिया भवे । वणप्फईण' आउं तु अंतोमुहुत्तं जहन्नगं ।। १०३. अणंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं तं कायं तु अमुंचओ ।। १०४. असंखकालमक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पणगजीवाण अंतरं ।। १०५. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइ सहस्ससो।। १०६. इच्चेए थावरा तिविहा समासेण वियाहिया । इत्तो उ तसे तिविहे वच्छामि अणुपुव्वसो।। १०७. तेऊ वाऊ य बोद्धव्वा उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा तिविहा तेसि भेए सुणेह मे ।। तेउ-पर्व १०८. दुविहा तेउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ।। १०६. बायरा जे उ पज्जना गहा ते वियाहिया । इंगाले मम्मरे अगणी अच्चि जाला तहेव य ।। ११०. उक्का विज्जू य बोद्धव्वा णेगहा एवमायओ । एगविहमणाणत्ता सुहुमा ते वियाहिया ।। १११. सुहमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे' य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ।। ११२. संतई पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य । ११३. तिष्णेव अहोरत्ता उक्सोसेण वियाहिया । ___ लाउट्टिई तेऊणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया । ११४. असंखकालमुक्कोसं अंतोमहत्तं जहन्नयं । कायट्टिई तेऊणं तं कायं तु अमुंचओ ।। ११५. अणंतकालमुक्कोसं अंतोमहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए तेउजीवाण अंतरं ।। ११६. एएसि वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइ सहस्ससो॥ वार-पदं ११७. दुविहा वाउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो । १. वणस्सईण (उ, ऋ, बृ) ; वण्णप्फईण २. एगदेसे (अ) । (बुपा) । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ उत्तरज्झयणाणि ११८. बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । उक्कलियामंडलिया- घणगंजा सूद्धवाया य ।। ११६. संवट्टगवाते य गविहा' एवमायओ । एगविहमणाणत्ता सुहुमा ते वियाहिया ।। सहमा सव्वलोगम्मि लोगदेमे' य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ।। १२१. संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ १२२. तिण्णेव सहस्साइ वासाणु क्कोसिया भवे । आउट्टिई वाऊणं अंतोमुत्तं जहनिया ॥ १२३. असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायट्ठिई वाऊणं तं कायं तु अमुचओ ॥ १२४. अणंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए वाउजीवाण अंतरं ।। १२५. एएसि वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइ सहस्ससो ।। १२६. ओराला तसा जे उ चउहा' ते पकित्तिया । बेइंदियतेइंदिय चउरोपंचिंदिया चेव ।। बेइंदिय-पवं १२७. बेइंदिया उ* जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे । १२८. किमिणो सोमंगला चेव अलसा माइवाहया ॥ वासीमुहा य सिप्पीया संखा संखणगा' तहा । १२६. पल्लोयाणुल्लया चेव तहेव य वराडगा ॥ जलूगा जालगा चेव चंदणा य तहेव य ।। १३०. इह बेइंदिया एए गहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । १३१. संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ १. णेगहा (उ, ऋ)। ६. संखलगा (अ) ; संखाणगा (उ)। २. एगदेसे (अ)। ७. गल्लोया (आ); अल्लोया (ऋ)। ३. चउव्विहा (ऋ)। ८. 'उ' प्रतौ असो श्लोक: षट्चरणात्मको ४. य (अ, ऋ)। लभ्यते । अतिरिक्तं चरणद्धयं एवमस्ति-- ५. सप्पीया (आ, इ, ऋ)। एत्तो काल विभागं तु तेसि वुच्छं चउन्विहं । Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसsi मझयणं (जीवाजीव विभत्ती ) सेई दिय-पदं १३२. वासाइं बारसे व उ उक्कोसेण वियाहिया । अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तं कायं तु अमुचओ ॥ इंदिआउ १३३. संखिज्जकालमुक्कोसं बेदिका १३४. अणंतकालमुक्कोसं इंदियजीवाणं १३५. एएसिं वण्णओ चेव ठाणादेसओ वावि १३६. तेइंदिया उ जे जीवा पज्जत्तमपज्जत्ता १३७. कुंथुपिवलिउडुसा तणहारकट्ठहारा १३८. कप्पासट्ठिमिजा य सदावरी य गुम्मी य १३६. इंदगोवगमाईया लोएगदेसे से सव्वे पप्पणाईया १४०. संतई ठि पडुच्च साईया १४१. एगुणपणहोरत्ता' तेइंदियआउठिई १४२. संखिज्जकाल मुक्कोसं इंदियकायfo १४३. अनंतकालमुक्कोसं ते इंदियजीवाणं १४४. एएसि वण्णओ चेव संठाणादेसओ वावि चरिबिय-पयं १४५. चउरिदिया उजे जीवा पज्जत्तमपज्जत्ता १४६. अंधिया पोत्तिया चेव भमरे कीडपयंगे य १४७. कुक्कुडे सिंगिरीडी य डोले भिंगारी" य १. जहनिया ( अ ) । 2. रेणं ( अ ) । ३. एगूणवण्ण ( उ, ऋ)। अंतमुत्तं अंतरेयं गंधओ जहन्नयं । वियाहियं ॥ सफासओ । विहाणारं सहस्ससो ॥ दुविहा ते पकित्तिया । तेसि भए सुह मे ॥ उक्कलुद्देहिया तहा । मालुगा पत्तहारगा ॥ तिदुगा तउसमिजगा । बोद्धव्वा इंदकाइया || गहा एवमायओ । न सव्वत्थ वियाहिया || अपज्जवसिया विय । सपज्जवसिया वि य ॥ उक्कोसेण वियाहिया । अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तं कायं तु अमुचओ ॥ अंतोमुहुत्तं अंतरेयं जहन्नयं । वियाहियं ॥ गंधओ फासओ । सहस्ससो ॥ विहाणाई दुविहा ते पकित्तिया । सि भेए सुह मे ॥ मच्छिया मसगा तहा । ढिकुणे कुंकु तहा ॥ नंदावत्ते य विछिए । विरली अच्छिदेहए ॥ ४. जहन्निया (अ ) | ५. मिगिरीडी (उ, ऋ, स) । २३५ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ १४८. अच्छ माहए' अच्छिरोडए विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिजलिया जलकारी य नीया तंतवगाविय' | १४६. इइ चरिंदिया एए णेगहा एवमायओ । लोगस्स एग देसम्म ते सव्वे परिकित्तिया ॥ १५०. संत पप्पणाईया अपज्जवसिया ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया १५१. 'छच्चेव य" मासा उ उक्को सेण उरिदिआउठि" अंतोमुहुत्तं अंतोमुहुत्तं जहन्न । तं कायं तु अमुंचओ ॥ अंतोतं जहन्नयं । वियाहियं ॥ अंतरेयं गंधओ रसफासओ । १५२. संखिज्जकाल मुक्कोसं चरि दियकाठि सहसो ॥ १५३. अणंतकालमुक्कोसं 'विजढंमि सए काए १५४. एएसि वण्णओ चेद 'संठाणादेसओ वावि" विहाणाई पंचविय पर्व १५५. पंचिदिया उ जे जीवा चउव्विहा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य मणुया देवाय अहिया || १५६. नेरइया सत्तविहा पुढवीसु सत्तसू भवे । रयणाभ सक्कराभा वालुयाभा य आहिया || १५७. पंकाभा धूमाभा तमा तमतमा तहा । परिकित्तिया ॥ नेरहय-पर्व उ वियाहिया । चउव्विहं ॥ वि य । इइ नेरइया एए सत्तहा १५८. लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे . एतो कालविभागं तु वच्छं तेसि १५६ : संत इं पप्पणाईया अपज्जवसिया : टिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया १६०. सागरोत्रममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया | पढमाए जहन्नेणं दसवास सहस्सिया उक्कोसेण वियाहिया । एवं वि य ॥ 11 १६१. तिण्णेव सागरा ऊ दोच्चाए जहन्नेणं तु सागरोवमं ॥ १. साहिए ( अ ) । २. तंबगाइया (उ, ऋ) । ३. 'उ' प्रतौ असौ श्लोकः षट्चरणात्मको लभ्यते । अतिरिक्तं चरणद्वयं एवमस्ति — एतो काल विभागं तु तेसि वुच्छं चउव्विहं ॥. ४. छच्चेविउ ( अ ) । वि य । विय ॥ वियाहिया । जहनिया || उत्तरज्मयणाणि ५. चउरिदिया य आउठिई ( अ ) । ६. जहन्निया ( अ ) 1 ७. जहन्निया ( अ ) । ८. चउरिन्दियजीवाणं ( उ ) । ६. संठाणभेयओ यावि ( अ ) । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्झयणं (जीवाजीव विभत्ती ) १६२. सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण तइयाए जहन्नेणं तिष्णेव उ १६३. दस सागरोवमा ऊ उक्कोसेण उत्थीए जहन्नेणं सत्तेव उ १६४. सत्तरस सागराऊ उक्कोसेण पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ १६५. बावीस सागरा ऊ उक्कोसेण छट्टीए जहन्नेणं सत्तर स १६६. तेत्तीस सागरा' ऊ उक्कोसेण सत्तमाए जहन्नेणं बावीसं १६७. जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया १६८. अनंतकालमुक्को सं अंतोतं नेरइयाणं गंधओ विजढंमि सए काए १६६. एएसि वण्णओ चैव 'संठाणादेसओ वावि” वियाहिया । सागरोवमा || वियाहिया । सागरोवमा ॥ वियाहिया | सागरोवमा || वियाहिया । सागरोवमा ॥ वियाहिया | सागरोवमा || वियाहिया । भवे ॥ जहन्नयं । अंतरं ॥ सफासओ । तु विहाणाई सहस्ससो || १७०. पंचिदियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया । गब्भवक्कंतिया तहा । सम्मुच्छिमति रिक्खाओ' १७१. दुविहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा । भेए सुणेह मे ।। खहयरा य बोद्धव्वा १७२. मच्छा य कच्छभा य सुंसुमारा य बोद्धव्वा १७३. लोएगदेसे ते सव्वे तो कालविभागं तु पपणाईया १७४. संतई ठिs पडुच्च साईया १७५. एगा य पुब्वकोडीओ उक्कोसेण आउट्टिई जलयराणं अंतोमुहुत्तं १७७. अनंतकालमुक्कोसं तेसि गाहा य पंचहा विजढंमि सए काए १. सागराई ( ऋ) । २. संठाणभेयओ यावि ( अ ) । मगरा तहा । जलय राहिया ॥ १७६. पुव्वकोडी हत्तं तु उक्कोसेण कार्यट्टिई जलयराणं अंतोमुहुत्तं न सव्वत्थ वुच्छं तेसि अपज्जवसिया सपज्जवसिया अंतोमुहुत्तं जलयराणं वियाहिया । चउव्विहं ॥ वि य । वि य ।। वियाहिया । जहन्निया ॥ वियाहिया । जहन्निया || जहन्नयं । अंतरं ॥ तु ३. 'तिरिक्खा य (उ) । ४. पंचविहा ( अ ) । २३७ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ उत्तरज्झयणाणि १७८. 'एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो" ॥ १७६. चउप्पया य परिसप्पा दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा ते मे कित्तयओ सुण ।। १८०. एगखुरा दुखुरा चेव गंडीपयसणप्पया । हयमाइगोणमाइ- गयमाइसीहमाइणो ॥ १८१. भुओरगपरिसप्पा य परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई य एक्केक्का गहा भवे ।। १८२. लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छ तेसि चउव्विहं ।। १८३. संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। १८४. पलिओवमाउ' तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । आउट्ठिई थलयराणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। १८५. पलिओवमाउ तिण्णि उ' उक्कोसेण तु साहिया । पुव्वकोडीपुहत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। १८६. कायट्ठिई थलयराणं अंतरं तेसिमं भवे । कालमणंतमुक्कोसं अंतोमुत्तं जहन्नयं ॥ १८७. एएसि* वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ।। १.X (अ, ऋ)। २. पलिओवमाइं (उ)। ३. य (अ)। ४. 'अ, ऋ' सङ्केतितयोः प्रत्योः १८७-१८६ श्लोकानां स्थाने श्लोकद्वयमेव लभ्यते विजढंमि सए काए थलयराणं तु अंतरं । चम्मे य लोमपक्खी य तइया समुग्गपक्खिया । विततपक्खी उ (य) बोधव्वा पक्खिणो उ चउबिहा । . लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ।। 'उ' सङ्केतितायां प्रती एषां श्लोकानां स्थाने एवं पाठभेदोस्ति विजईमि सए काए थलयराणं तु अंतरं । एएसि वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ ।। संठाणादेसओ वावि विहाणाई सहस्सओ। चम्मे उ लोमपक्खी अ तइया समुग्गपक्खीया ।। विययपक्खी य बोधव्वा पक्खिणो य चउन्विहा । लोएगदेसे ते सम्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ मण्य-पदं छत्तीसइमं अज्झयणं (जीवाजीवविभत्ती) १८८. चम्मे उ लोमपक्खी य तइया समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य बोद्धव्वा पक्खिणो य चउव्विहा ।। १८६. लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो काल विभागं तु वच्छं तेसिं चउव्विहं ।। १६०. संतइ पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ १६१. पलिओवमस्स भागो असंखेज्जइमो भवे । आउट्टिई खयराणं अंतोमुहुत्तं जहनिया ॥ १६२. असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिओ । पुवकोडीपुहत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। १६३. कायठिई खहयराणं अंतरं तेसिमं भवे । कालं अणंतमुक्कोसं अंतोमहत्तं जहन्नयं ।। १६४. एएसि वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ । 'संठाणादेसओ वावि' विहाणाइ सहस्ससो।। १६५. मण्या दुविहभेया उ ते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमा य मण्या गब्भवक्कंतिया तहा। १६६. गब्भवक्कंतिया जे उ तिविहा ते वियाहिया । अकम्मकम्मभूमा य अंतरद्दीवया तहा ।। १६७. 'पन्नरस तीसइ विहा'२ भेया अट्ठवीसइं । संखा उ कमसो तेसि इइ एसा वियाहिया ।। १६८. संमुच्छिमाण एसेव भेओ होइ आहिओ। लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे वि' वियाहिया ।। १६६. संतई पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ।। २००. पलिओवमाइं तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । आउट्टिई मणुयाणं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। २०१. पलिओवमाइं तिणि उ उक्कोसेण वियाहिया' । पुवकोडीपुहत्तेणं अंतोमुहुत्तं जहनिया' ।। २०२. कायट्टिई मणुयाणं अंतरं तेसिमं भवे । अणंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ।। २०३. एएसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ। _ 'संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो।। १. संठाणभेयओ यावि (अ)। ४. तु साहिया (ऋ)। २. तीसं पन्नरस विहा (बृपा) । ५. जहन्नगं (अ)। ३. य (अ);X (उ)। ६. संठाणभेयओ यावि (अ)। Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० देव-पवं २०४. देवा चउव्विहा वृत्ता भोमिज्जवाणमंतर २०५. दसहा उ भवणवासी पंचविहा जोइसिया २०६. असुरा नागवणा दीवो हिदिसा वाया २०७. पिसायभूय जक्खा य महोरगा य गंधव्वा २०८. चंदा सूरा य नक्खत्ता दिसाविचारिणो' चेव २०६. वेमाणिया उ जे देवा कपोवगाय बोद्धव्वा २१०. कप्पोवगा बारसहा कुमारमाहिंदा २११. महासुक्का सहस्सारा आरणा अच्चुया चेव २१२. कप्पाईया उ' जे देवा गेविज्जाणुत्तरा चेव २१३. हेट्टिमाहेट्ठिमा चेव मावरिमा चेव २१४. मज्झिमामज्झिमा चेव उवरिमाहेट्ठिमा चेव १. ठिया (आ, उ, ऋ) । २. पंचविहा ( अ ) | ३. य (ऋ । ४. तहा (ऋ) । २१५. उवरिमाउवरिमा चेव विजया वैजयंता य" २१६. सव्वट्टसिद्धगा' चेव ss माणिया देवा" २१७. लोगस्स एगदेसम्म इत्तो कालविभागं तु २१८. संतई पप्पाणाईया ठिई पडुच्च साईया ते मे कित्तयओ सुण । जोइसवेमाणिया तहा ॥ अट्टहा वणचारिणो । दुविहा वेमाणिया तहा ॥ विज्जू अग्गी य आहिया । थणिया भवणवासिणो || रक्सा किन्नरा य किपुरिसा । अट्टविहा वाणमंतरा ॥ गहा तारागणा तहा । पंचहा' जोइसालया || दुविहा ते वियाहिया । कप्पाईया तहेव य ॥ सोहम्मीसाणगा तहा । बंभलोगा य लंतगा || आणया पाणया तहा । इइ कप्पोवगा सुरा || दुविहा ते वियाहिया । गेविज्जा नवविहा तहिं ॥ हेट्टिमामज्झिमा तहा । मज्झिमाहेट्टिमा तहा ।। मज्झिमाउवरिमा तहा । उवरिमामज्झिमा तहा || इय गेविज्जगा सुरा ! जयंता अपराजिया || पंचहाणुत्तरा सुरा । गहा एवमायओ ॥ ते सव्वे परिकित्तिया । वुच्छं तेसि चउव्विहं ॥ अपज्जवसिया विय । सपज्जवसिया वि य ॥ ५. x ( अ ) । ६. सिद्धिगा ( अ ) । ७. एए ( उ ऋ ) । उत्तरज्झयणाणि Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइमं अज्झयणं (जीवाजीवविभत्ती) २१६. साहियं सागरं एक्कं उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेज्जाणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥ २२०. पलिओवममेगं तु उक्कोसेण ठिई भवे । वंतराणं जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥ २२१. पलिओवमं एगं तु वासलक्खेण साहियं । पलिओवमट्ठभागो जोइसेसु जहन्निया ।। २२२ दो चेव सागराइं उक्कोसेण वियाहिया' । सोहम्मंमि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं ॥ २२३. सागरा साहिया दुन्नि उक्कोसेण वियाहिया' । ईसाणम्मि जहन्नेणं साहियं पलिओवमं । २२४. सागराणि य सत्तेव उक्कोसेण ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं दुन्नि ऊ सागरोवमा । २२५. साहिया सागरा सत्त उक्कोसेण ठिई भवे । माहिदम्मि जहन्नेणं साहिया दुन्नि सागरा ॥ २२६. दस चेव सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । बंभलोए जहन्नेणं सत्त ऊ सागरोवमा ॥ २२७. चउद्दस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । लंतगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा ।। २२८. सत्तरस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमा । २२६. अट्ठारस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ।। २३०. सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा ।। २३१. वीसं तु सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई ॥ २३२. सागरा इक्कवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं वीसई सागरोवमा ।। २३३. बावीसं सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयम्मि जहन्नेणं सागरा इक्कवीसई ।। २३४. तेवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥ १. ठिई भवे (आ, स)। ३. चोद्दसओ (अ)। २. ठिई भवे (आ, स)। Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ भवे । सागरोवमा ॥ २३५. चउवीस सागराई उक्कोसेण ठिई बिइयम्मि जहन्नेणं तेवीसं २३६. पणवीस सागराई उक्कोसेण तइयम्मि जहन्नेणं चउदीसं २३७. छव्वीस सागराई चउत्थम्मि जहन्नेणं २३८. सागरा सत्तवीसं तु पंचमम्मि जहन्नेणं ठिई भवे । सागरोवमा || भवे । उक्कोसेण ठिई सागरा पणुवीसई || उक्कोसेण ठिई भवे । छवीसई ॥ ठिई भवे । सत्तावीस ॥ भवे । सागरा उक्कोसेण सागरा उक्कोसेण ठिई २३६. सागरा अट्ठवीसं तु छट्ठम्मि जहन्नेणं २४०. सागरा प्रउणतीसं तु सत्तमम्मि जहन्नेणं सागरा २४१. तीसं तु सागराई उक्कोसेण अट्ठमम्मि जहन्नेणं सागरा २४२. सागरा इक्कतीसं तु उक्कोसेण ठिई नवमम्मि जहन्नेणं तीसई सागरोवमा ॥ भवे । २४३. तेत्तीस २४८. संसारत्थाय सिद्धा य रूविणो चेवरूवी" य उ १. जहन्ना इक्कतीसई (उ, ऋ) । २. मणुक्को ( म, ऋ)। ३. य ( अ ) । ४. जहन्नमु (ऋ, बृ) । ५. अतोग्रे 'उ' संकेतियां प्रतौ श्लोकद्वयं अतिरिक्तं लभ्यते अवसई 1 ठिई भवे । अउणतीसई ॥ सागराउ चउसुं पि विजयाईसुं २४४. अजहन्नमणुक्कोसा' महाविमाण सव्वट्ठे २४५. जा चेव उ' आउठिई देवाणं तु सा तेसि कायठिई जहन्नुक्कोसिया * २४६. अनंतकालमुक्कोसं विजमि सए काए २४७. एएसि वण्णओ चेव 'संठाणादेसओ वावि" 11 उक्कोसेण ठिई भवे । जहन्नेणे क्कतीस ' तेत्तीसं ठिई एसा सागरोवमा । वियाहिया || वियाहिया । भवे ॥ जहन्नयं । अंतोतं देवाणं हुज्ज अंतरं ॥ रसफासओ । गंधओ विहाणाइं सहस्सओ ॥ इइ जीवा वियाहिया । अजीवा दुविहा विय ॥ उत्तरज्झयणाणि अनंतकालमुक्कोसं वासपुहत्तं जहन्नगं । आणयादीण - कप्पाणं गेविज्जाणं तु अंतरं । संखिज्जसागरुक्कोसं वासपुहत्तं जहन्नगं । अणुत्तराण देवाणं अंतरं तु वियाहियं ॥ ६. संठाणभेयओ यावि ( अ ) । ७. चेव + अरूवी = चेवरूवी | Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसइ में अज्झयणं ( जीवाजीवविभत्ती ) २४६. इइ' जीवमजीवे य सव्वनयाण • अणुमए संलेहणा - पर्व २५० तओ बहूणि वासाणि इमेण कमजोगेण २५१. बारसेव उ वासाई संवच्छरं मज्भिमिया' २५२. पढमे वासचउक्कम्मि बिइ वासच उक्कम्मि २५३. एगंतर मायामं तओ संवच्छरद्धं तु २५४. 'तओ संवच्छरद्धं तु परिमियं चेव आयामं २५५. कोडीसहियमायामं मसिद्धमासिएणं तु २५६. कंदप्पमाभिओगं एयाओ दुग्गईओ २५७. मिच्छा दंसणरत्ता इय जे मरंति जीवा २५८. सम्मद्दंसणरत्ता इय जे मरंति जीवा २५६. मिच्छादंसणरत्ता इय जे मरंति जीवा २६०. जिणवणे अणुरत्ता अमला असंकिलिट्ठा 1 सोच्चा सद्दहिऊण य । रमेज्जा संजमे मुणी ॥ सामण्ण मणुपालिया अप्पाणं संलिहे मुणी ॥ संलेहुक्कोसिया भवे । छम्मासा' य जहन्निया' ॥ विगईनिज्जूहणं करे । विचित्तं तु तवं चरे ॥ कट्टु संवच्छ रे दुवे | नाइविगिट्ठ तवं विगिट्ठ तु तवं तंमि चरे ॥ १. २४१ - २६८ श्लोकानां स्थाने चूर्णां केवलं श्लोकद्वयमेव विद्यते, ततः अध्ययनपूर्तिर्जायते । बृहद्वृत्तौ ते च व्याख्याताः संति । असौ वाचनाभेदोस्ति अथवा चूर्णिनिर्माणानन्तरमेषां श्लोकानां प्रक्षेपो जातः इति अन्वेषणीयमस्ति । चूर्णितं श्लोकद्वयमित्थमस्तिजीवमजीवे एते णच्चा सद्दहिऊण य । सव्वन्नू संमतंमी जासं विदू ॥ पसत्यसन्भाणोवगए कालं किच्चाण संजए । सिद्धे वा सासए भवति देवे वावि महड्किए || चरे । संवच्छरे करे ॥" कट्टु संवच्छरे आहारेण किब्बिसियं मोहमासुरत्तं च । मरणम्मि विराहिया होंति ॥ सनियाणा हु हिंसा | तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥ अनियाणा सुक्कले समोगाढा | सुलहा तेसि भवे बोही ॥ सनियाणा कण्हलेसमोगाढा | तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥ जिणवयणं जे करेंति भावेण । होंति परित्तसंसारी ॥ मुणी । तवं चरे ॥ २. हुक्कोसतो (बृपा) । ३. मज्झमिया (ऋ) ; मज्झिमतो ( बृपा) । ४. छम्मासे ( अ ) । ५. जहन्नतो ( बृपा) । २४३ ६. वित्ति (बृ); विगई ( बूपा ) । ७. परिमियं चेव आयामं गुणुक्कस्सं मुणी चरे । तत्तो संवच्छरद्धण्णं विगिट्ठं तु तवं चरे ॥ (बुपा) । ८. खमणेणं (बृपा) । ९. कंदप्पमाभिओगं च ( अ ) । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरल्झयणाणि २६१. बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव 'य बहूणि' । मरिहिंति' ते वराया जिणवयणं जे न जाणंति ।। २६२. बहुआगमविण्णाणा समाहिउप्पायगा' य गुणगाही । एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं ॥ २६३. कंदप्पकोक्कुइयाई तह सीलसहावहासविगहाहिं' । विम्हावेतो य परं कंदप्पं भावणं कुणइ ॥ २६४. मंताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउंजंति । सायरसइड्डिहेउं अभिओगं भावणं कुणइ ॥ २६५. नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं । माई अवण्णवाई कि ब्बि सियं भावणं कुणइ ।। २६६. अणुबद्धरोसपसरो तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवि । एएहि कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ ॥ २६७, सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलप्पवेसो य । अणायारभंडसेवा जम्मणमरणाणि बंधंति ।। २६८. इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए । छत्तीसं उत्तरज्झाए भवसिद्धीयसंमए' -त्ति बेमि ।। निवखेव-पदं ग्रन्थ परिमाण अनुष्टप् श्लोक २०५० अक्षर १४ १. बहुयाणि (इ, उ, ऋ, स)। २. मरहंति (उ); मरिहंति (ऋ) । ३. मुपायगा (अ)। ४. कोक्कुयाइं (सु, ब)। ५. हसण (सु, बृ)। ६. मंतं° (अ)। ७. संवुडे (बृपा)। Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर बुई संघ-ई १. जिणवसभो नंदी १. जयइ जगजीवजोणी- वियाणओ जगगुरू जगाणंदो | 'जगणाहो जगबंधू जयइ जगप्पियामहो भयवं" ॥ २. जयइ 'सुयाणं पभवो" तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ । जयइ गुरू लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो ॥ ३. भद्दं सव्वजगुज्जोयगस्स भद्दं जिणस्स वीरस्स । भद्दं सुरासुरणमंसियस भद्दं धुयरयस्स ॥ ४. गुणभवण' - गहण ! सुयरयणभरिय ! दंसण- विसुद्ध - रत्थागा ! संघणगर ! भद्द ते, अक्खंडचरित्त' - पागारा ! ५. संजम - तव - तुंबारयस्स नमो सम्मत्त - पारियल्लस्स । अपsatara जओ, होउ' सया संघचक्कस्स ॥ ६. भद्दं सीलपडागूसियस्स तव नियम-तुरय- जुत्तस्स । संघरहस्स भगवओ, सज्झाय- सुनंदि' - घोसस्स ॥ ७. कम्मरय - जलोह - विणिग्गयस्स सुयरयण दीहनालस्स । पंचमहव्वयथिरकण्णियस्स गुणकेसरालस्स ॥ सावगजण महुअरिपरिवुडस्स जिणसूर तेयबुद्धस्स । संघपउमस्स भद्द, समणगण-सहस्सपत्तस्स ॥ ( जुम्मं ) ६. तव -संजम-मय-लंछण ! अकिरिय-राहुमुह-दुद्धरिस ! निच्चं । संघचंद ! निम्मल-सम्मत्त-विसुद्धजुहागा ! १०. परतित्थिय- गहू- पह-नासगस्स तवतेय - दित्तलेसस्स । नाज्जोस जए, भद्दं दमसंघसूरस्स ।। जय ८. सललियवसभविक्कमगती महावीरो (चूपा) । २. सुयाणप्पभवो ( ख ) । ३. चूणों 'गुण भवण'० असो गाथा षष्ठी तथा 'भद्दं सील ' ० असो च चतुर्थी विद्यते । ४. अखंडचारित (क, ख ) । ५. होइ (क, ख ) ! ६. सुणेमि (मपा, हपा ) | २४७ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ तित्थगरावलिआ गहरावलिआ सास-स्थ ११. भद्दं धिइ-वेला-परिगयस्स' सज्झायजोग-मगरस्स । अक्खोभस्स भगवओ, संघसमुद्दस्स रुदस्स ॥ १२. सम्म हंसण - वइर' - दढ - रूढ - गाढावगाढ- पेढस्स । घम्मवर - रयण-मंडिय- चामीयर - मेहलागस्स || १३. नियमूसिय- कणय - सिलायलुज्जल-जलंत - चित्तकूडस्स । नंदणवण-मणहर-सुरभि-सील-गंधुद्धमायस्स' ।। १४. जीवदया -सुंदर-कंदरुद्रिय - मुणिवर - मईद - इण्णस्स । हे उस धाउ पगलंत - रयण दित्तोस हि गुहस्स || १५. संवर-वरजल-पगलिय- उज्झर-प्पविरायमाण- हारस्स । सावग- जण पउर-रवंत - मोर-णच्चंत - कुहरस्स ॥ १६. विणय-णय' -पवर - मुणिवर - फुरंत विज्जु-ज्जलंत - सिहरस्स । 'विविहगुण - कप्परुक्खग- फलभर - कुसुमाउल - वणस्स" | १७. नाण- वररयण - दिप्पंत - कंत - वेरुलिय- विमल-चूलस्स । वंदामि वियपणओ, संघ महामंदरगिरिस्स' ॥ ( छहिं कुलयं ) १८. वंदे उसभं अजिअं, संभवमभिनंदगं सुमइ - सुपभ-सुपासं । ससि - पुप्फदंत-सी यल- सिज्जंसं वासुपुज्जं च ।। १६. विमलमणंत ' धम्मं, संति कुंथुं अरं च मल्लि च । मुणिसुव्वय-नमि-नेमिं पासं तह वद्धमाणं च || ( जुम्मं ) २०. पढमित्थ इंदभूई, बीए पुण होइ अग्गिभूइ त्ति । तइए" य वाउभूई, तओ वियत्ते सुहम्मे य ॥ २१. मंडिय - मोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य । यज्जेय पहासे य, गणहरा हुति वीरस्स || ( जुम्मं ) २२. निव्वु - पह- सासणयं, जयइ सया सव्वभावदेसणयं । कुसमय - मय - नासणयं, जिणिदवरवीरसासणयं ॥ १. परिवुडस ( ) | २. वरवर ( ख ) । ३. गंधुद्धमा (च्) । ४. मुणिगण (चू ) । ५. रत (पु) । ६. मय (चू ) । ७. विविकुल कप रुक्खगणयभरकुसुमियकुलवणस्स (चु) । ८. अतो प्रत्योः गाथाद्वयं प्राप्यते गुणरयणुज्जलकडयं, सीलसुगंधितवमंडिउद्देसं । सुयवारसंग सिहरं, संघ महामंदरं वंदे ॥ नगररहचक्कपउमे, चंदे सूरे समुद्दमेरुम्मि | जो उवमिज्जइ सययं तं संघगुणायरं वंदे ॥ चूण वृत्तौ च नास्ति व्याख्यातम् । ६. इ (पु) । १० णेमी (पु) । ११. तईए ( क, ख ) । १२. एषा गाथा चूर्णौ नास्ति व्याख्याता । नंदी Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंदी थेरावलिया २३. सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंबूनामं च कासवं । पभवं कच्चायण वंदे, वच्छं सिज्जंभवं तहा ॥ २४. जसभद्दं तुंगियं वंदे, संभूयं चेव माढरं । भद्दबाहुं च पाइणं, थूलभद्दं च गोयमं ॥ २५. एलावच्चसगोत्तं', वंदामि महागिरि सुहत्थि च । तत्तो को सियगोत्तं बहुलस्स सरिव्वयं वंदे || २६. हारियगुत्तं साइं, च वंदिमो हारियं च सामज्जं । वंदे कोसियगोत्तं संडिल्लं अज्जजीयधरं ॥ २७. तिसमुद्द-खाय- कित्ति, दीवसमुद्देसु गहिय-पेयालं । वंदे अजमुद्दे, अक्खुभिय-समुद्द-गंभीरं ॥ २८. भणगं करगं झरगं, पभावगं णाण- दंसण- गुणाणं । वंदामि अज्जमंगं, सुय - सागर - पारगं धीरं * ॥ २६. नाणम्मि दंसणम्मि य, तव विणए णिच्चकालमुज्जुत्तं । अज्जं नंदिलखमणं, सिरसा वंदे पसण्णमणं ॥ ३०. वड्ढउ वायगवंसो, जसवंसो अज्ज - नागहत्थीगं । वागरण करण-भंगी' - कम्मपयडी - पहाणाणं ॥ ३१. जच्चजण धाउस'मप्पहाण मुद्दीय - कुवलयनिहाणं । वड्ढउ वायगवंसो, रेवइनक्खत्तनामाणं ॥ ३२. अयलपुरा निक्खते, कालियसुय आणुओगिए धीरे । बंभद्दीवग-सीहे, वायगपयमुत्तमं पत्ते ॥ ३३. जेसि इमो अणुओगो, पयरइ अज्जावि अड्ढभ रहम्मि । बहुनयर - निग्गय - जसे, ते वंदे खंदिलावरिए । ३४. तत्तो हिमवंतमहंत - विक्कमे धिइ परक्कममणते" । सज्झायमणंतघरे", हिमवंते वंदिमो सिरसा ! ३५. कालियसुयअणुओगस्स धारए धारए य पुव्वाणं । हिमवतखमासमणे, वंदे णागज्जुणायरिए || १. एलावच्छस ० ( क, ख ) । २. कासवगोत्तं (चू); गुत्तं ( क, ख ) । ३. जीवधरं (चूपा) । ४. अतो प्रत्योः, गाथाद्वयं प्राप्यते वंदामि अज्जधम्मं तत्तो वंदे य भद्दगुत्तं च । तत्तोय अज्जवरं, तवनियमगुणेहिं वइरसमं ॥ वंदामि अज्जरक्खियखमणे रक्खियचरित्तसव्वस्से । रणकरंगभूओ, अणुओगो रक्खिओ जेहिं || "चूण वृत्तौ च नास्ति व्याख्यातम् । ५. अज्जा ( क ); अज्ज ( ख ) । ६. भंगिय (क, ख, ह) । ७. मुद्दिय ( क, ख ) । ८. अज्जीवि (क, ख ) । C. विक्कम (ह) । १०. महंते (ख, चू); मतं (ह) । ११. धरं (ह) । २४६ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ३६. मिउ-मद्दव-संपण्णे, अणपुट्वि वायगत्तणं पत्ते । ओह-सुय-समायारे', नागज्जणवायए वंदे॥ ३७. 'वरतविय-कणग"-चंपग-विमउल-वरकमल-गब्भ-सरिवण्णे । भविय-जण-हियय-दइए, दया-गुण-विसारए धीरे ।। ३८. अड्ढभरह-प्पहाणे, बहुविह-सज्झाय-सुमुणिय-पहाणे । अणुओगिय-वर-वसभे', नाइल-कुलवंस-नंदिकरे । ३६. 'भूयहिअ-प्पगन्भे', वंदेहं भूयदिण्णमायरिए । भव-भय-वच्छेयकरे, सीसे नागज्जणरिसीणं ॥ (विसेसयं) ४०. सुमणिय-णिच्चाणिच्चं, सुमणिय-सुत्तत्थ-धारयं निच्चं । वंदेहं लोहिच्चं, सब्भावुब्भावणा-तच्चं ॥ ४१. अत्थ-महत्थ-क्खाणि सुसमण-वक्खाण-कहण-निव्वाणि । पयईए महुरवाणिं', पयओ पणमामि दूसगणि" ॥ ४२. सुकुमाल-कोमल-तले, तेसिं पणमामि लक्खण-पसत्थे । पाए पावयणीणं, पाडिच्छगसएहिं पणिवइए ।। ४३. जे अन्ने भगवंते, कालिय-सुय-आणुओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छं । परिसा-पर्व ४४. १ सेल-घण २ कुडग ३ चालणि, ४ परिपूणग ५ हंस ६ महिस ७ मेसे य । ८ मसग ह जलूग १० बिराली, ११ जाहग १२ गो १३ भेरि १४ आभीरी"॥ १. समायरए (ह)। ६. हियअप्प० (क, ख) २. प्रत्याः षट्त्रिंशत्तमगाथानंतरं गाथायुगलमधिकं ७. खाणी (ह)। दृश्यते-- ८. सुसवण (चूपा)। गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारणिदाणं । ६. व्वाणी (ह)। णिच्चं खंतिदयाणं, परूवणे दुल्लभिदाणं ॥ १०. वाणी (ह)। तत्तो य भूयदिन्नं, निच्चं तवसंजमे अनिविण्णं । ११. दूसगणी (ह) । अतोग्रे प्रत्यो: एका गाथा पंडियजणसामण्णं, वंदामि संजमविहण्ण ॥ लभ्यते चूणौं वृत्तौ च नास्ति व्याख्यातम् । तवनियमसच्चसंजम, विणयज्जवखंतिमद्दवरयाणं । ३. वरकणगतविय (क, ख, ह); तवियवरकणग सीलगुणगद्दियाणं, अणुओगजुगप्पहाणाणं ॥ (चू)। चूणों वृत्तौ च नास्ति व्याख्याता। ४. विउल (क, ख)। १२. आभीरे (चू)। ५. वसहे (चू)। Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २५१ १. सा समासओ तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–जाणिया, अजाणिया, दुम्वियड्ढा ॥ नाण-पवं २. नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्ज वनाणं केवलनाणं । ३. तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा--पच्चक्खं च परोक्खं च ।। पच्चक्ख-पदं ४. से किं तं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दुविहं पण्णत्त, तं जहा --इंदियपच्चक्खं च' नोइंदिय पच्चक्खं च ॥ ५. से किं तं इंदियपच्चक्खं ? इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-सोइंदियपच्चक्खं चक्खिदियपच्चक्खं घाणिदियपच्चक्खं जिभिदियपच्चक्खं' फासिदियपच्चक्खं । सेत्तं इंदियपच्चक्खं ।। ६. से किं तं नोइंदियपच्चरखं ? नोइंदियपच्चक्खं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-ओहिनाण पच्चक्खं मणपज्जवनाणपच्चक्खं केवलनाणपच्चक्खं ।। मोहिनाण-पर्व ७. से किं तं ओहिनाणपच्चक्खं ? ओहिनाणपच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-भवपच्च इयं च खओवसमियं च। 'दुण्हं भवपच्चइयं", तं जहा-देवाण य, नेरइयाण य । 'दुण्हं खओवसमियं', तं जहा-मणुस्साण य, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य ॥ ८. को हेऊ खओवसमियं ? खओवस मियं-- तयावरणिज्जाणं कम्माणं उदिण्णाणं खएणं, अणुदिण्णाणं उवसमेणं ओहिनाणं समुप्पज्जइ। अहवा- गुणपडिवण्णस्स अणगारस्स ओहिनाणं समुप्पज्जइ॥ ६. तं समासओ छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-आणुगामियं अणाणुगामियं वड्ढमाणयं हाय माणयं 'पडिवाइ अप्पडिवाइ' ।। १. अतः परं प्रत्योः अतिरिक्त: पाठो लभ्यते-- असौ पाठः चूणौं वृत्त्योरपि च नास्ति व्याख्यातः । जाणिया जहा २. X (क, ख)। खीरमिव जहा हंसा, जे घुटुंति इह गुरुगुणसमिद्धा। ३. रसणेदिय (ह)। दोसे य विवज्जती, तं जाणसु जाणियं परिसं ॥ ४. से तं (क, ख) सर्वत्र । अजाणिया जहा ५. से किं तं भवपच्चइयं ? भवपच्चइयं दुष्हं जा होइ पगइमहुरा, मिय-छावय-सीहकुक्कुडयभूआ। (क, ख)। रयणमिव असंठविया, अजाणिया सा भवे परिसा ॥ ६. से कि तं खओवसमियं? खओवसमियं दण्डं दुब्वियड्ढा जहा (क, ख)। न य कत्थइ निम्माओ, न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं। ७. पडिवाइयं अप्पडिवाइयं (क, ख)। वत्थि व्व वायपुण्णो, फुट्टइ गामिल्लयवियड्ढो ।। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २५२ १०. से किं तं आणुगामियं ओहिनाणं ? आणुगामियं ओहिनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा अंतगयं च मझगयं च ॥ ११. से किं तं अंतगयं ? अंतगयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा–पुरओ अंतगयं, मग्गओ अंत गयं, पासओ अंतगयं ॥ १२. से किं तं पुरओ अंतगयं ? पुरओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुड लियं' वा अलायं वा मणि वा 'जोइं वा पईवं वा पुरओ काउं पणोल्लेमाणे-पणो ल्लेमाणे गच्छेज्जा । सेत्तं पुरओ अंतगयं ।। १३. से किं तं मग्गओ अंतगयं ? मग्गओ अंतगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुडलियं वा अलायं वा मणि वा जोइं वा पईवं वा मग्गओ काउं अणुकड्ढेमाणे -अणुकड्ढेमाणे गच्छेज्जा । सेत्तं मग्गओ अंतगयं ।। १४. से किं तं पासओ अंतगयं ? पासओ अंतगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुडलियं वा अलायं वा मणि वा जोइं वा पईवं वा पासओ काउं परिकड्ढेमाणे परिकड्ढेमाणे गच्छेज्जा । सेत्तं पासओ अंतगयं । सेत्तं अंतगयं ।। १५. से किं तं मझगयं ? मझगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुडलियं वा अलायं वा मणि वा जोइं वा पईवं वा मत्थए काउ' गच्छेज्जा । सेत्तं मझगयं ।। १६. अंतगयस्स मज्झगयस्स य को पइविसेसो ? पुरओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पुरओ चेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाइं जाणइ पासइ । मग्गओ अंतगएणं ओहिनाणेणं मग्गओ चेव संखज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । पासओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पासओ चेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ। मझगएणं ओहिनाणेणं सव्वओ समंता संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । सेत्तं आणुगामियं ओहिनाणं ।। १७. से किं तं अणाणगामियं ओहिनाणं ? अणाणुगामियं ओहिनाणं-से जहानामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्टाणं काउं तस्सेव जोइट्ठाणस्स परिपेरंतेहि-परिपेरंतेहि परिघोलेमाणे-परिघोलेमाणे तमेव जोइट्टाणं पासइ, अण्णत्थ गए न पासइ । एवमेव अणाणुगामियं ओहिनाणं जत्थेव समुप्पज्जइ तत्थेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ, अण्णत्थ गए ण पासइ । सेत्तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ।। १. चलियं (क, ख); अत्रार्थसमीक्षापूर्वकमस्मा- भिश्चू णि वृत्ति सम्मतः पाठः स्वीकृतः । २. पईवं वा जोइं वा (क, ख) सर्वत्र । ३. काउं समुव्वहमाणे-समुव्वहमाणे (क, ख)। ४. एवामेव (ख)। Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंदी १८. से किं तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं? वड्ढमाणयं ओहिनाणं-- पसत्थेसु अज्झवसाणट्ठा णेसु वट्टमाणस्स वट्टमाणचरित्तस्स', विसुज्झमाणस्स विसुज्झमाणचरित्तस्स, सव्वओ समंता ओही बड्ढइ । जावइआ तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स । ओगाहणा जहण्णा, ओहीखेत्तं जहण्णं तु ।।१।। सव्वबह अगणिजीवा, निरंतरं जत्तियं भरिज्जंस ।। देत्तं सव्व दिसागं, परमोही खेत-निद्दिट्टो ।।२।। अंगलमावलियाणं, भागमसंखेज्ज दोसु संखेज्जा । अंगलमावलियंतो, आवलिया अंगुल-पुहत्तं ।।३।। हत्थम्मि मुहत्तंतो, दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्वो । जोयण दिवसपुहत्तं, पक्खंतो पण्णवीसाओ॥४॥ भरहम्मि अद्धमासो, जंबुद्दीवम्मि साहिओ मासो । वासं च मणुयलोए, वासपुहत्तं च स्यगम्मि ॥५॥ संखेज्जम्मि उ काले, दीवसमुद्दा वि हुँति संखेज्जा । कालम्मि असंखेज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ॥६॥ काले चउण्ह वुड्ढी, कालो भइयव्वु खेत्तवुड्ढीए । वडाढीए दव्वपज्जव, भइयव्वा खेत्तकाला उ॥७॥ सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरयं हवइ खेत्तं । अंगुलसेढीमित्ते, ओसप्पिणिओ असंखेज्जा ।।८।। सेत्तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं ।। १६. से किं तं हायमाशयं ओहिनाणं ? हायमाणयं ओहिनाणं अप्पसत्थेहि अज्झवसाण टाणेहि' वट्टमाणस्स वट्टमाणचरित्तस्स, संकिलिस्समाणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स सव्वओ समंता ओही परिहायइ । सेत्तं हायमाणयं ओहिनाणं ।। २०. से कि तं पडिवाइ ओहिनाणं ? पडिवाइ ओहिनाणं-जण्णं जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जयभाग वा संखेज्जयभागं वा, वालग्गं वा वालग्गपुहत्तं वा, लिक्खं वा लिक्ख पुहत्तं वा, जूयं वा जयपुहत्तं वा, जवं वा जवपुहत्तं वा, अंगुलं वा अंगुलपुहत्तं वा, पायं वा पायपुहत्तं वा 'विहत्थि वा विहत्थिपुहत्तं वा, रयणि वा रयणिपुहत्तं वा, कुच्छि वा कुच्छिपुहत्तं वा, 'धणु वा धणुपुहत्तं वा, गाउयं वा गाउयपुहत्तं वा, जोयणं वा जोयणपुहत्तं वा, जोयणसयं वा जोयणसयपुहत्तं वा, जोयण १. वड्ढमाण (ख)। २. परिवड्ढइ (ह, म)। ३. अज्झवसाय (ख)। ४. वड्ढमाण° (क, ख, म)। ५. असंखेन्जति (ह)। ६. संखेज्जति (ह)। ७. वियत्थि वा वियत्थि (पु)। ८. धणुयं वा धणुय (पु)। Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ नंदी सहस्सं वा जोयणसहस्सपहत्तं वा, 'जोयणलक्खं वा जोयणलक्खपुहत्तं' वा जोयणकोडि वा जोयणकोडिपहत्तं वा, जोयणकोडाकोडि वा जोयणकोडाकोडिपुहत्तं वा, उक्कोसेणं लोगं वा-पासित्ताणं पडिवएज्जा । सेत्तं पडिवाइ ओहिनाणं ।। २१. से कि तं अपडिवाइ ओहिनाणं ? अपडिवाइ ओहिनाणं-जेणं अलोगस्स एगमवि आगासपएसं पासेज्जा, तेण परं अपडिवाइ ओहिनाणं । सेत्तं अपडिवाइ ओहिनाणं ॥ २२. तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दव्वओ णं ओहिनाणी जहण्णणं अणंताई रूविदव्वाइं जाणइ पासइ । उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ। खेत्तओ णं ओहिनाणी जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं जाणइ पासइ। उक्कोसेणं असंखेज्जाइं अलोगे' लोयमेत्ताई खंडाइं जाणइ पासइ । कालओ णं ओहिनाणी जहण्णेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं जाणइ पासइ । उक्कोसेणं असंखेज्जाओ 'ओसप्पिणीओ उस्सप्पिणीओ' अईयमणागयं च कालं जाणइ पासइ। भावओ णं ओहिनाणी जहण्णणं अणंते भावे जाणइ पासइ । उक्कोसेण वि अणंते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणमणंतभागं जाणइ पासइ । ओही भवपच्चइओ, गुणपच्चइओ य वण्णिओ एसो' । तस्स य बह विगप्पा, दव्वे खेत्ते य काले य॥१।। नेरइयदेवतित्थंकरा य, ओहिस्सबाहिरा' हुंति । पासंति सव्वओ खलु, सेसा देसेण पासति ॥२॥ सेत्तं ओहिनाणं ॥ मणपज्जवनाण-पवं २३. से कि तं मणपज्जवनाणं ? 'मणपज्जवनाणे णं भंते"! कि मणुस्साणं उप्पज्जइ ? अमणुस्साणं? गोयमा ! मणुस्साणं, नो अमणुस्साणं । १. जोयणसतसहस्सं वा जोयणसतसहस्सपुहत्तं (पु)। २. जाणइ पासइ (क, ख)। ३. अलोगाइ (क)। ४. लोयणमाणमेत्ताई (क, ख); लोयप्पमाणाई ७ ओहिस्स+अबाहिरा =ओहिस्सबाहिरा । ८. x (चू); धवलायामपि (षट् खण्डागम, पुस्तक १३, पृष्ठ २६५) एतत्तुल्या गाथा उद्धृतास्तिणेरइय-देव-तित्थयरोहिक्खेत्तस्स बाहिरं एदे । जाणंति सव्वदो खलु सेसा देसेण जाणंति । ६. 'नाणं भंते (क)। (म)। ५. उस्स प्पिणीओ अवसप्पिणीओ (क, ख)। ६. दुविहो (क, ख, हपा, मपा)। Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी जइ मणुस्सा - किं संमुच्छिममणुस्साणं ? गब्भवक्कं तियमणुस्साणं ? गोयमा ! नो संमुच्छिममणुस्साणं, गब्भवक्कंतियमणुस्ताणं । जइ गब्भवक्कंतियमणुस्साणं - - किं कम्मभूमिय - गन्भवक्केंतियमणुस्साणं ? अकम्मभूमि-भवक्कं तियमणस्साणं ? अंतरदीवग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं ? २५५ गोमा ! कम्मभूमि- गब्भवक्कंतियमणुस्साणं नो अकम्मभूमिय- गब्भवक्कंतियमस्साणं, नो अंतरदीवग- गब्भवक्कं तियमणुस्साणं । इ कम्मभूमि - गब्भवक्कंतियमणुस्साणं - किं संखेज्जवासाउय कम्मभूमिय- गब्भवक्कंतियमणुस्साणं ? असंखेज्जवासाउय - कम्मभूमिय-गन्भवक्कंतियमणुस्साणं ? गोयमा ! संखेज्जवासाउय कम्म भूमिय- गब्भव वकं तियमणुस्साणं, नो असंखेज्जवासा- कम्मभूमि- गभवक्कंतियमणुस्साणं । जइ संखेज्जवासा उय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं - किं पज्जत्तर्ग-संखेज्जवासाय - कम्मभूमिय-गब्भवक्कं तियमणुस्साणं ? अपज्जत्तग-संखेज्जवासा उय-कम्मभूमि - गभवक्कं तियमणुस्साणं ? गोयमा ! पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय कम्मभूमिय-गब्भवक्कं तिय- मणुस्साणं, नो अपज्जत्तग-संखेज्जवासारय कम्मभूमिय-गब्भवक्कं तियमणुस्साणं । जइ पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय - कुम्मभूमिय-गन्भवक्कं तियमणुस्साणं - किं सम्मदिट्टि - पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय - कम्मभूमि- गब्भवक्कंतियमणुस्साणं ? मिच्छदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमि- गभवक्कं तियमणुत्साणं ? सम्मामिच्छदिट्ठिपज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभू मिय-गव्भवक्कंतियमणुस्साणं ? गोयमा ! सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासा उय-कम्मभूमि- गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, नो मिच्छदिट्टि - पज्जत्तग-संखेज्जवासाज्य-कम्मभूमिय- गब्भवक्कं तियमणुस्साणं, नो सम्मामिच्छदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाज्य-कम्मभूमिय- गब्भवक्कं तियमणुस्साणं । जइ सम्म दिट्ठि-पज्जत्राग-संखेवासाज्य - कम्मभूमिय- गन्भववकंतियमणुस्साणं - किं संजय सम्मदिट्टि - पज्जत्तग-संखेज्जवासाज्य - कम्म भूमिय- गन्भवक्कंतियमणुस्साणं ? असंजय - सम्मदिट्ठि- पज्जत्तन संखेज्जवासाज्य - कम्मभूमिय- गब्भववकं तियमणुस्साणं ? संजया संजय - सम्मदिट्ठि - पज्जत्तग-संखेज्जवासाउथ-कम्मभूमि- गब्भवक्कंतियमस्सा ? गोयमा ! संजय - सम्म दिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासा उय - कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, नो असंजय सम्म दिट्ठि- पज्जत्तग-संखेज्जवासाज्य - कम्मभूमि- गब्भवक्कं तियमणुस्साणं, नो संजया संजय सम्मदिट्टि पज्जत्तग-संखेज्जवासाज्य-कम्मभूमियभवक्कं तियमणस्साणं । जइ संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमि- गभवक्कंतिय मणुस्साणं - किं पमत्तसंजय सम्मदिट्टि पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय - कम्म भूमिय-गन्भ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ वक्कंतियमणुस्साणं? अपमत्तसंजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमियगम्भवक्कंतियमणुस्साणं? गोयमा ! अपमत्तसंजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं, नो पमत्तसंजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमियगब्भवक्कंतियमणुस्साणं । जइ अपमत्तसंजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं-कि इड्ढिपत्त-अपमत्तसंजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवतियमणुस्साणं ? अणि ड्ढिपत्त-अपमत्तसंजय-सम्मदिट्टि-पज्जत्तगसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कं तियमणुस्साणं? गोयमा ! इडिढपत्त-अपमत्तसंजय-सम्मदिदि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभमियगब्भवतियमण स्साणं, नो अणिढिपत्त-अपमत्तसंजय-सम्मदिदि-पज्जत्तग-संखेज्ज वासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं मणपज्जवनाणं समुप्पज्जइ ॥ २४. तं च दुविहं उप्पज्जइ, तं जहा-उज्जुमई य विउलमई य ।। २५. तं समासओ च उव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दव्वओ णं उज्जुमई अणंते अणंतपए सिए खंधे जाणइ पासइ। ते चेव विउलमई अब्भहियतराए 'विउलतराए विसुद्धतराए" वितिमिरतराए जाणइ पासइ । खेत्तओ णं उज्जमई अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए 'उवरिमहेडिल्ले खड्डागपयरे'', उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले. तिरियं जाव अंतोमणुस्सखेत्ते अड्ढाइज्जेस दीवसमद्देसु, ‘पण्णरससु कम्मभूमीसु, तीसाए अकम्मभूमीसु, छप्पण्णए' अंतरदीवगेसु" सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ । तं चेव विउलमई अड्ढाइज्जेहिमंगुलेहि अब्भहियतरं' विउलतरं' विसुद्धतरं' वितिमिरतरं खेत्तं जाणइ पासइ। कालओ णं उज्जमई जहण्णणं पलिओवमस्स असंखिज्जयभागं', उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखिज्जयभागं अतीयमणागयं वा कालं जाणइ पासइ । तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ। भावओ णं उज्जुमई अणंते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणं अणंतभागं जाणइ पासइ । तं चेव वि उलमई अब्भहियत रागं विउलतरागं विसुद्धत रागं वितिमिरत रागं जाणइ पासाइ। १. ४ (क)। ५, ६, ७, ८. 'तरागं (पु)। २. हेट्ठिलाई खुड्डागपयराइं (चू, ह) । ६. ज्जइभागं (चू, ह)। ३. छप्पण्णाए (म)। १०. ज्जइभागं (चू, ह)। ४.४ (चू, ह)। Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंबी २५७ मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचितियत्थपागडणं । माणुसखेत्तनिबद्धं, गुणपच्चइयं चरित्तवओ ॥१॥ सेत्तं मणपज्जवनाणं । केवलनाण-पदं २६. से किं तं केवलनाणं ? केवल नाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-भवत्थकेवलनाणं च, सिद्धकेवलनाणं च ॥ २७. से किं तं भवत्थकेवलनाणं ? भवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-सजोगि भवत्थकेवलनाणं च अजोगिभवत्थकेवलनाणं च ।। २८. से किं तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं ? सजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च। अहवा-- चरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं' च अचरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च । सेत्तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं ॥ २६. से किं तं अजोगिभवत्थकेवलनाणं? अजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा- पढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं अहवा-चरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अचरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च । सेत्तं अजोगिभवत्थकेवलनाणं ।। ३०. से कि तं सिद्धकेवलनाणं ? सिद्धकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-अणंतरसिद्ध केवलनाणं च परंपरसिद्धकेवलनाणं च ।। ३१.से किं तं अणंतरसिद्ध केवलनाणं? अणंतरसिद्धकेवलनाणं पण्णरसविहं पण्णत्तं, तं जहा १. तित्थसिद्धा २. अतित्थसिद्धा ३. तित्थयरसिद्धा ४. अतित्थयरसिद्धा ५. सयंबुद्धसिद्धा ६. पत्तेयबुद्धसिद्धा ७. बुद्धबोहियसिद्धा ८. इथिलिंगसिद्धा ६. पुरिसलिंगसिद्धा १०. नपुंसगलिंगसिद्धा ११. सलिंगसिद्धा १२. अण्णलिंगसिद्धा १३. गिहि लिंगसिद्धा १४. एगसिद्धा १५. अणेगसिद्धा । सेत्तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं ॥ ३२. से किं तं परंपरसिद्ध केवलनाणं ? परंपरसिद्धकेवल नाणं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा-अपढमसमयसिद्धा, दुसमयसिद्धा, तिसमयसिद्धा, चउसमयसिद्धा जाव दससमयसिद्धा, संखेज्जसमयसिद्धा, असंखेज्जसमयसिद्धा, अणंतसमयसिद्धा। सेत्तं परंपरसिद्धकेवलनाणं । सेत्तं सिद्धकेवलनाणं॥ ३३. तं समासओ चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। १. चरिम० (चू)। २. अचरिम० (चू)। Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५ तत्थ दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ । खेत्तओ णं केवलनाणी सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ । कालओ णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ पासइ । भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । अह सव्वदव्वपरिणाम-भाव-विण्णत्ति कारणमणतं । सासयम पडिवाई, एगविहं केवलं नाणं ॥१॥ केवलनाणेणत्थे, नाउं जे तत्थ पण्णवणजोगे । ते भासइतित्थयरो, 'वइजोग तयं हवइ सेसं" ॥२॥ सेत्तं केवलनाणं । सेत्तं पच्चक्खं ।। परोकखनाण-पदं ३४. से किं तं परोवखं ? परोवखं दुदिहं पण्णत्तं, जहा -- आभिणिबोहियनाणपरोक्खं च सुयनाणपरोक्खं च ॥ ३५. जत्थाभिणिबोहियनाणं', तत्थ सुयनाणं । जत्थ सुयनाणं, तत्थाभिणिबोहियनाणं' | दोवि एयाई अण्णमण्णमणुगयाई, तहवि पुण इत्थ आयरिया नाणत्तं पण्णवयंतिअभिनिबुज्झइ त्ति आभिणिबोहियं । सुणेइ त्ति सुयं । मइपुव्वं सुयं न मई सुयपुव्विया || 1 ३६. अविसेसिया मई – मई नाणं च, मई अण्णाणं च । विसेसिया' - सम्मद्दिस्सि मई मइनाणं, मिच्छद्दिस्सि मई मइअण्णाणं || अविसेसियं" सुयं - सुयनाणं च, सुयअण्णाणं च । विसेसियं" – सम्मदिट्ठिस्स सुयं सुयनाणं, मिच्छदिट्टिस्स सुयं सुयअण्णाणं || आभिणि बोहियनाण-पदं ३७. से किं तं आभिणिबोहियनाणं ? आभिणिबोहियनाणं दुविहं पण्णत्तं तं सुयनिस्सियं च असुयनिस्सियं च ॥ ३८. से किं तं असुयनिस्सियं ? असुयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं तं जहाउप्पत्तिया वेणइया, कम्मया पारिणामिया । बुद्धी चउव्विहा वुत्ता, पंचमा नोवल भई ॥१॥ उप्पसिया बुद्धि पुण्वदिट्ठमयम वेइय-तक्खणविसुद्धगहियत्था | अव्वाहय-फलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम ||२|| १. वइजोगसुयं ( मपा, हपा) । २. पक्खनाणं ( क, ख ) 1 ३. परुक्खनाणं (क, ख ) । ४. परोक्खनाणं (क, ख ) । ५. जत्थमतिनाणं (चू) । ( क, ख ) ; सयं हवइ तेसि नंदी ६. तत्थमतिनाणं ( चू) । ७. बोहियं नाणं ( क, ख ) । ८. पुब्वं जेण ( क, ख ); पुब्वयं ( ) । ६. विसेसिया मई (क, ख, चू, ह) । १०. एवं अविसेसियं ( क, ख ) । ११. विसेसियं सुयं (नू, ह) । Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ १ भरहसिल २ पणिय' ३ रुक्खे, ४ खुड्डग ५ पड ६ सरड ७ काय ८. उच्चारे । ६ गय १० घयण ११ गोल १२ खंभे, १३ खुड्डग १४-१५ मग्गि-त्थि १६ पइ १७ पुत्ते ॥३॥ (१ भरहसिल' २ मिढ ३ कुक्कुड ४ तिल ५ वालुय ६ हत्थि ७ अगड ८ वणसंडे । ६ पायस १० 'अइया ११ पत्ते' १२ खाडहिला १३ पंचपिअरो य ।।) महुसित्थ-मुद्दि-अंके, य नाणए-भिक्खु-चेडगनिहाणे । सिक्खा य अत्थसत्थे, इच्छा य महं सयसहस्से ।।४।। वेण इया बुद्धी भरनित्थरणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला । उभओलोगफलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ।।५।। निमित्ते अत्थसत्थे य, लेहे गणिए य कूव-अस्से य । गद्दभ-लक्खण-गंठी, अगए रहिए य गणिया य ॥६॥ सीया साडी दीहं, च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स । निव्वोदए य गोणे, घोडगपडणं च रुक्खाओ ।।७।। कम्मया बुद्धी उवओगदिट्ठसारा, कम्मपसंगपरिघोलण-विसाला । साहुक्कारफलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥८॥ हेरण्णिए करिसए, कोलिय डोए" य मुत्ति-घय-पवए । तुण्णाग' वड्ढइ पूइए य, घड-चित्तकारे य ।।६।। परिणामिया बुद्धी अणुमाण हेउ-दिळंत-साहिया वयविवाग-परिणामा । हियनिस्सेयसफलवई', बुद्धी परिणामिया नाम ।।१०।। १. परिय (क)। ३. मलयगिरिणा 'तिल' पदस्य व्याख्या नास्ति २. कोष्ठकान्तर्गता गाथा वस्तुतः पूर्ववर्तिगाथायाः कृता । 'बूर्णिकारेण हरिभद्रसूरिणा च अस्या 'भरहसिल' इति पदस्य व्याख्यारूपा वर्तते। गाथाया व्याख्यानार्थमावश्यकस्य व्याख्यायाः मलयगिरिणा एतत् सूचितमपि, यथा- समर्पणं कृतम्, यथा-एताओ सव्वाओ जधा 'भरहसिलमेंढे' त्यादिका च गाथा रोहक- णमोक्कारे तधा दट्ठव्वा (नंदीचूणिः पृ० २५) संविधानसूचिका, सा च प्रागुक्तकथानकानु- तानि चावसरप्राप्तान्यपि गुरुनियोगान्न ब्रूमः, सारेण स्वयमेव व्याख्येया (नंदीवृत्तिः पत्र किन्तटावश्यके वक्ष्यामः (नंदी हरिभद्रीय वृत्तिः १५५) आवश्यकचूणौँ 'भरहसिल' पदस्य पृ० ६१); आवश्यकचूणौँ वृत्तौ च "तिल' व्याख्यानंतरं कोष्ठकान्तर्गता गाथा व्याख्या- पदं व्याख्यातमस्ति तेनास्माभिः तन्मूले तास्ति । तदनंतरं च तृतीयगाथायाः पणिया- समादृतम् । दीनि पदानि व्याख्यातानि सन्ति (आवश्यक- ४. पत्ते अइया (म)। चूणि : पृ० ५४४-४६) । आवश्यकमलय- ५. डोवे (क, ख)। गिरीयवृत्तावपि इत्थमेव विद्यते, (आवश्यक- ६. तुन्नाय (क)। मलयगिरिवृत्तिः पत्र ५१७-१६) तेनास्माभिः ७.णीसेसफल (चू, ह) 'भरहसिल-मिढ असो गाथा मूले नादता। Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६. नंदी अभए सिट्ठि-कुमारे, देवी उदिओदए' हवइ राया । साहू य नंदिसेणे, धणदत्ते सावग-अमच्चे ॥११॥ खमए' अमच्चपुत्ते, चाणक्के चेव थूलभद्दे य। नासिक्क-सुंदरीनंदे, वइरे परिणामिया बुद्धी ॥१२॥ चलणाहण-आमंडे, मणी य सप्पे य खग्गि-थूभिदे । परिणामियबुद्धीए, एवमाई उदाहरणा ।।१३।। सेत्तं असुयनिस्सियं ।। ३६. से किं तं सुयनिस्सियं' ? सुयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-उग्गहे ईहा अवाओ धारणा ।। ४०. से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- अत्थुग्गहे य वंजणुग्गहे य ॥ ४१. से किं तं वंजणुग्गहे ? वंजणग्गहे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–सोइंदियवंजणग्गहे, ___घाणिदियवंजणुग्गहे, जिभिदियवंजणुग्गहे, फासिदियवंजणुग्गहे । सेत्तं वंजणुग्गहे ॥ ४२. से कि तं अत्थुग्गहे ? अत्थुग्गहे छविहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियअत्थुग्गहे, चक्खिं दियअत्थुग्गहे, घाणिदियअत्थुग्गहे, जिभिदियअत्थुग्गहे, फासिंदियअत्थुग्गहे, नोइं दियअत्थुग्गहे ॥ ४३. तस्स णं इमे एगट्टिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा' भवंति, तं जहा १. ओगेण्हणया २. उवधारणया ३. सवणया ४. अवलंबणया ५. महा। सेत्तं उग्गहे ॥ ४४. से कि तं ईहा? ईहा छविहा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियईहा, चक्खिदियईहा, घाणिदियईहा, जिभिदियईहा, फासिदियईहा, नोइंदियईहा ।। ४५. तीसे 'णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा" भवंति, तं जहा - १. आभोगणया २. मग्गणया ३. गवेसणया ४. चिंता ५. वीमंसा । सेत्तं ईहा ।। ४६. से किं तं अवाए ? अवाए छविहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियअवाए, चक्खिदिय अवाए, घाणिदियअवाए, जिभिदियअवाए, फासिदियअवाए, नोइंदियअवाए ॥ ४७. तस्स णं इमे एगढिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा १. 'आवडणया २. पच्चावट्टणया" ३. अवाए ४. बुद्धो ५. विण्णाणे। सेत्तं अवाए॥ १. उदिएदए (क)। २. खवए (क)। ३,४. यं मतिनाणं (म)। ५. नामधेया (चू,ह)। ६. अवधारणया (क, ख)। ७,८. नामधेया (चू, ह)। ६. आउट्टणया पच्चाउट्टणया (क, ख, चू)। Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २६१ ४८. से किं तं धारणा ? धारणा छविहा पणता, तं जहा -सोइंदियधारणा, चक्खि दियधारणा, घाणिदियधारणा, जिभिदियधारणा, फासिंदियधारणा, नोइंदिय धारणा ॥ ४६. तीसे णं इमे एगढिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा' भवंति, तं जहा १. धरणा २. धारणा ३. ठवणा ४. पइट्ठा ५. कोट्ठ । सेत्तं धारणा ॥ ५०. 'उग्गहे इक्कसामइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा संखेज्ज वा कालं असंखेज्जं वा कालं' ।। ५१. एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि पडिबोहगदिद्रुतेण, मल्लगदिठ्ठतेण य ।। ५२. से किं तं पडिबोहगदिद्रुतेणं ? पडिबोहगदिह्रोणं से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहेज्जा -अमुगा! अनुग ! ति । तत्थ चोयगे पण्णवर्ग एवं वयासी ---कि एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? असंखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? एवं वदंतं चोयगं पण्णवए एवं वयासी–नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दूसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, असंखेज्जसमयपविद्वा पुग्गला गहणमागच्छंति । सेत्तं पडिबोहगदिळेंतेणं ॥ ५३. से किं तं मल्लगदिठंतेणं? मल्लगदिद्रुतेणं से जहानामए केइ पूरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदुं पक्खिविज्जा से न8, अण्णे' पक्खित्ते से वि नटू। एवं पक्खिप्पमाणेसु-पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू 'जेणं तं मल्लगं रादेहिति,' होही से उदगबिंदू जे णं तंसि मल्लगंसि ठाहिति, होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं भरेहिति, होही से उदगबिंदू जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति । एवामेव पक्खिप्पमाणेहिपक्खिप्पमाणेहिं अगंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ, ताहे 'हं' ति करेइ, नो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दाइ। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ णं धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। १. नामधेया (चू)। २. ४ (चू)। ३. इच्चेतस्स (चू)। ४. पडिबोधएज्जा (ह)। ५. अण्णे वि (क)। ६. 'जण्णं' अस्मिन् सूत्रे सर्वत्र (ह)। ७. रावेहित्ति (क, ख); 'त्ति' शब्दस्य सर्वत्र द्वित्वम् । रावेहिइ इति (म)। ८. सद्दे (क, ख)। ६. अव (क, ख)। Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ नंदी से जहानामए के इ पुरिसे अव्वत्तं सदं सुणिज्जा, तेणं 'सद्दे ति" उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दे । तओ णं अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ,' तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्ज वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रूवं पासिज्जा, तेणं रूवे ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रूवे ति ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस रूवे । तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्ज वा कालं।। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं गंध अग्घाइज्जा, तेणं गंधे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस गंधे त्ति ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस गधे । तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज वा कालं, असंखेज वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रसं आसाइज्जा, तेणं रसे ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रसे त्ति ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस रसे। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा, तेणं फासे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस फासे त्ति ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस फासे । तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पडिसंवेदेज्जा', तेणं सुमिणेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणे त्ति ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सुमिणे । तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं । सेत्तं मल्लगदिद्रुतेणं ।। ५४ तं समासओ चउम्विहं पण्णत्तं, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दव्वओ णं आभिणि बोहियनाणी आएसेणं सव्वदव्वाइं जाणइ, न पासइ । खेत्तओणं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ, न पासइ । कालओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं कालं जाणइ, न पासइ। भावओ णं आभिणिबोहि यनाणी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ, न पासइ। १. सद्दो त्ति (क, ख)। गंधं अव्वत्तं रसं अव्वत्तं फासं पडिसंवेदेज्जा। २. सद्देत्ति (चू)। ५. रूवेत्ति (क, ख) ३. अणुपविसति (चू)। ६. पासिज्जा (क, ख)। ४. अतः स्पर्शालापकपर्यन्तं चूणौँ हारिभद्रीयवृत्ती ७. सुविणोत्ति (म)। च संक्षिप्तपाठो दश्यते-एवं अव्वत्तं रूवं अम्वत्तं Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २६३ उग्गह ईहावाओ', य धारणा एव हुँति चत्तारि । बाभिणिबोहियनाणस्स भेयवत्थू समासेणं ॥१॥ "अत्थाणं उग्गहणं, च उग्गह तह वियालणं ईहं । ववसायं च अवायं, धरणं पुण धारणं विति ॥२॥ उग्गह इक्कं समयं, ईहावाया मुहुत्तमद्धं' तु । कालमसंखं संखं, च धारणा होइ नायव्वा ॥३॥ पुढें सुणेइ सइं, रूवं पुण पासइ अपुढं तु । गंधं रसं च फासं च, बद्धपुळं वियागरे ॥४॥ भासासमसेढीओ, सदं जं सुणइ मीसयं सुणइ । वीसेढी पुण सइं, सुणेइ नियमा पराघाए ।।५।। ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा । सण्णा सई मई पण्णा, सव्वं आभिणिबोहियं ॥६।। 'सेत्तं आभिणिबोहियनाणपरोक्खं॥ सुयनाण-पदं ५५. से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? सुयनाणपरोक्खं चोद्दसविहं पण्णत्तं, तं जहा-१. अक्ख रसुयं २. अणक्खरसुयं ३. सण्णिसुयं ४. असण्णिसुयं ५. सम्मसुयं ६. मिच्छसुयं ७. साइयं ८. अणाइयं ६. सपज्जवसियं १०. अपज्जवसिय ११. गमियं १२. अग मियं १३. अंगपविठं १४. अणंगपविठं ।। ५६. से किं तं अक्खरसुयं ? अक्खरसुयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-१. सण्णक्खरं २. वंज णक्खरं ३. लद्धिअक्खरं ॥ ५७. से कि तं सण्णक्खरं ? सण्णक्खरं-अक्खरस्स संठाणागिई । सेत्तं सण्णक्खरं ॥ ५८. से किं तं वंजणक्खरं ? वंजणक्खरं-अक्खरस्स वंजणाभिलावो। सेत्तं वंजणक्खरं ।। ५६. से किं तं लद्धिअक्खरं ? लद्धिअक्खरं-अक्खरलद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पज्जइ, तं जहा-सोइंदियलद्धिअक्खरं, चक्खिदियलद्धिअक्खरं, घाणिदियलद्धिअक्खरं, रसणिदियलद्धिअक्खरं, फासिंदियलद्धिअक्खरं, नोइंदियलद्धिअक्खरं । सेत्तं लद्धिअक्खरं । सेत्तं अक्खरसुयं ॥ ६०. से किं तं अणक्खरसुयं ? अणक्खरसुयं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा १. ईहअवाओ (क, ख)। २. अत्थाणं उग्गहणंमि, उम्गहो तह वियालणे ईहा। ववसायम्मि अवाओ (क, ख, हपा, मपा)। ३. मुहृत्तमंतं (हपा, मपा)। ४. मीसियं (क, ख)। ५. नाणं परोक्खं से तं मइनाणं (क, ख); से तं मइनाणं (चू)। ६. लद्धिक्खरं (ख)। ७. लद्धिक्खरं (ख)। Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ऊससियं नीससियं निच्छूढं खासियं च छीयं च । निस्सिघियमणुसारं', अणक्खरं छेलियाई || १ || सेत्तं अणक्खरसुयं ।। ६१. से किं तं सणिसुयं ? सण्णिसुयं तिविहं पण्णत्तं तं जहा - कालिओवरसेणं हेऊवएसेणं दिट्टिवाओवसेणं ॥ ६२. से किं तं कालिओवएसेणं ? कालिओवरसेणं - जस्सणं अत्थि ईहा, अपोहो, मग्गणा, गवसणा, चिता, वीमंसा - से णं सण्णीति लब्भइ । जस्स णं नत्थि ईहा, अपोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा - से णं असण्णीति' लब्भइ । सेत्तं कालिओ - एसेणं ॥ ६३. से किं तं ऊवएसेणं ? हेऊवएसेणं-जस्स णं अत्थि अभिसंधारणपुव्विया करणसत्ती - सेणं सण्णीति लब्भइ । जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुव्विया करणसत्तीसेणं असण्णीति लब्भइ । सेत्तं हेऊवएसेणं ॥ ६४. से किं तं दिट्टिवाओवएसेणं ? दिट्टिवाओवएसेणं - सण्णिसुयस्स खओवसमेणं सण्णी ( ति ? ) लब्भइ, असण्णिसुयस्स खओवसमेणं असण्णी ( ति ? ) लब्भइ । सेत्तं दिट्टिवाओवएसेणं । सेत्तं सण्णिसुयं । सेतं असण्णसुयं ॥ नंदी ६५. से किं तं सम्मसुयं ? सम्मसुयं जं इमं अरहंतेहि भगवंतेहिं उप्पण्णनाणदंसणधरे हिं तेलोक्कच हिय'- महिय-पूइएहिं तीय- पडुप्पण्णमणागयजाणएहिं सव्वष्णूहिं सव्वदरि - सीहि पणीयं दुवासंगं गणिपिडगं तं जहा -- आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ वियाहपण्णत्ती नायाघम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोववाइयसाओ पहावागरणाई विवागसुयं दिट्टिवाओ ।। ६६. इच्चेयं दुवाल संगं गणिपिडगं चोहसपुव्विस्स सम्मसुयं, अभिण्णदसपुव्विस्स सम्मसुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा । सेत्तं सम्मसुयं || ६७. से किं तं मिच्छसुयं ? मिच्छसुयं - जं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छदिट्टिहिं सच्छंदबुद्धि १. निसिंघिय० ( क, ख ) णिस्सघियं (ह) | २. अण्णी ( क, ख ) । ३. तेलुक्कनिरिक्खिय ( क, ख, ह, म); नन्दीचूण 'तेलोक्कचहिय' इति पाठो विद्यते । तत्र तस्य पर्यायवाचिनः शब्दा निर्दिष्टाः सन्तिचहितंति - चहितं प्रेक्षितं निरीक्षितं दृष्टमित्यनर्थान्तरम् । चूर्णों 'चहिय' शब्दस्य 'निरीक्षितं' पर्यायवाचीशब्दो निर्दिष्टः, स एव संभवतः सारल्यदृष्ट्या मूले स्थानं प्राप्तः । अनुयोगद्वारसूत्रे ( ५०, ५४९) पि 'तेलोक्कचहिय' इतिपाठो लभ्यते । ४. विवाह० ( क, ख ) । ५. दिट्टिवाओ अ ( क, ख ) । ६. मिच्छादिट्टिएहिं (क, ख ) 1 Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २६५ मइ-विगप्पियं, तं जहा–१ भारहं २ रामायणं ३, ४ हंभोमासुरुत्तं' ५. कोडिल्लयं ६ सगभद्दियाओ ७ घोडमुहं ८ कप्पासियं ह नागसुहुम' १० कणगसत्तरी ११ वइसे सियं १२ बुद्धवयणं १३ वेसियं १४ काविलं' १५ लोगाययं १६ सद्वितंतं १७ माढरं १८ पुराणं १६ वागरणं २० नाडगादि । अहवा- बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेया संगोवंगा। ‘एयाई मिच्छदिहिस्स मिच्छत्त-परिग्गहियाई मिच्छसुयं । एयाइं चेव सम्मदिहिस्स सम्मत्त-परिग्गहियाई सम्मसुयं"। १. यद्यपि अस्माभिः पाठशोधार्थं प्रयुक्तासु प्रतिषु 'हंभीमासुरुत्तं' पाठो नोपलभ्यते, तथापि अनुयोगद्वारस्य (४६) आधारेण असावेव पाठः समीचीनः प्रतिभाति । अन्येषु अप्रयुक्तादर्शष्वपि 'हंभीमासुरुत्त' इति पाठ एव लभ्यते। व्यवहारभाष्ये (भाग ३ पत्र १३२) 'भंभीयमासुरक्खे' इति पाठो विद्यते। मलयगिरिणा अस्य व्याख्या 'भंभ्यां आसूवृक्षे' इत्थं कृतास्ति । अस्या आधारेण ग्रन्थद्वयस्य अनुमानं जायते-एको ग्रन्थ: भं भीनामा द्विती. यश्च आसुवृक्षनामा । मूलाचारेणापि एतत् स्पष्टं भवति । तत्र 'हंभी' शब्दस्य उल्लेखो नास्ति, किन्तु 'आसुरक्व' शब्दः स्वतंत्ररूपेण गृहीतोस्तिकोडिल्ल मासुरक्खा, भारहरामायणादि जे धम्मा। होज्ज व तेसु विसुत्ती, लोइयमूढो हवदि एसो॥ (५६०, पृ० २१७)। गोम्मटसारेणापि उक्तानुमानस्य पुष्टिर्जायते। तत्र आभीत-आसुरक्षनाम्नोईयोर्ग्रन्थयोरुल्लेखो लभ्यतेआभीयमासुरक्खं, भारहरामायणादि उवएसा । तुच्छा असाहणीया, सुय अण्णाणं ति णं वेंति ॥ (जीवकाण्ड ३०३)। ललितविस्तरे (परि० १२, ३३ पद्यानन्तरं पत्र १०८) आम्भिर्य-आसूर्यनाम्नोरुभयो ग्रन्थयोः समुल्लेखः समस्ति । उपरितन पङ्कितषु समुद्धतेषु ग्रन्थेषु सर्वत्र नाम साम्यं नास्ति, तथापि तैरिति स्पष्टं जायते 'हंभीमासुरुत्तं' पाठे सूत्रकारेण ग्रन्थद्वय निक्षिप्तमस्ति । नंतयोग्रन्थयोः कश्चिद् परिचयः इदानीमुपलब्धोस्ति, तथापि इत्यनुमानं कर्तुमवकाशोस्ति-'आसुरक्खं, आसुरुक्खं' पाठयोरुल्लेख: श्रुतानुश्रुतपरंपरया कृतोस्ति, न तु ग्रन्थस्य साक्षात् परिचयं प्राप्य । अतएव तेषु ग्रन्थेषु नाम्नः संवादकत्वं नास्ति । समालोच्य ग्रन्थस्य साक्षात् परिचयाभावे निश्चयपूर्वक न किञ्चित् कथयितुं शक्यम् । यदि समालोच्यग्रन्थः असुरेण उक्तः अथवा असुरसंबंधी स्यात् तदा 'आसुरुत्त' (आसुरोक्त) इति पाठस्य स्वीकारः समीचीनो भवेत् । २. खोडमुहं (क, ख)। ३. नामसुहुम (पु)। ४. तेसियं (क, ख)। ५. कविलं (पु)। ६. अतः परं प्रत्योः एतानि अतिरिक्तानि पदानि दृश्यन्ते-'भागवयं पायंजली पुस्सदेवयं लेहं गणियं सउणरुयं' चूणों वृत्त्योश्च नैतानि व्याख्यातानि सन्ति, अनुयोगद्वारे (४६) पि नतानि दृश्यन्ते । ७. नाडइयाइं (क, ख)८. इच्चेताई सम्मदिहिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाई सम्मसुयं । इच्चेताई मिच्छदिट्रिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छसुत्तं (चू)। Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ अहवा-मिच्छदिट्ठिस्स वि एयाइं चेव सम्मसुयं । कम्हा ? सम्मत्तहेउत्तणओ। जम्हा ते मिच्छदिट्ठिया तेहिं चेव समएहिं चोइया समाणा केइ सपक्खदिट्ठीओ चयंति । सेत्तं मिच्छसुयं ॥ ६८. से कि तं साइयं सपज्जवसियं, अणाइयं अपज्जवसियं च ? इच्चेयं दुवालसंग गणिपिडगं-वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं, अवच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं ।। ६६. तं समासओ चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । खत्तओ णं-पंचभरहाई पंचएरवयाई पडुच्च साइयं सपज्जवसिय, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । कालओ णं-ओसप्पिणि उस्सप्पिणि च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नोओसप्पिणि नोउस्सप्पिणि च पडूच्च अणाइयं अपज्जवसियं । भावओ णं-जे जया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति, 'ते तया५ पडुच्च सायं सपज्जवसियं, खाओवसमियं पुण भावं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं । अहवा-भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपज्जवसियं, अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपज्जवसियं ।। ७०. सव्वागासपएसग्गं सव्वागासपएसे हि अणंतगुणियं पज्जवग्गक्खरं निप्फज्जइ ।। ७१. सव्वजीवाणं पि य णं-अक्खरस्स अणंतभागो निच्चुग्घाडिओ,' जइ पुण सो वि आवरिज्जा, तेणं जीवो अजीवत्तं पाविज्जा । सुठ्ठवि मेहसमुदए, होइ पभा चंदसूराणं । सेत्तं साइयं सपज्जवसियं । सेत्तं अणाइयं अपज्जवसियं ।। ७२. से किं तं गमियं ? (से कि तं अगमियं ?) गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं । सेत्तं गमियं । सेत्तं अगमियं ।। ७३. तं' समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-अंगपविठ्ठ", अंगबाहिरं.' च ।। १. परिणामविसेसतो (चू)। . पदस्य व्याख्यायां विकल्पद्वयं कृतम्, तत्र २. मिच्छदिट्ठिणो (चू)। द्वितीयविकल्पार्थं अहवा (अथवा) पदस्य ३. ससमएहि (क, ख)। प्रयोगः कृतः । स एव उत्तरकाले न जाने कथं ४. वमेंति (चू, ह)। मूलपाठरूपतां प्राप्तः । ५. ते तया भावे (क, ख); ते तहा (चू); ते १०. अंगपविठं च (क, ख)। तदा (चूपा)। । ११. पञ्चपञ्चाशत्तमे सूत्रे 'अंगपविट्ठ अणंग६. पज्जवक्खरं (क, ख)। पविठ्ठ' इति भेदद्वयं विद्यते । अत्र प्रतिषु ७. ग्याडियो (चू)। व्याश्याग्रन्थेषु च 'अणंगपविट्ठ' इत्यस्य स्थाने ८. जीवा (क, ख)। 'अंगबाहिरं' इति पदं लभ्यते । तथा निगम६. अहवा तं (क, ख)। चूणौं वृत्त्योश्च तं' नेपि 'अणंगपविठं' इति पदं लभ्यते । Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंदी २६७ ७४. से कि तं अंगबाहिरं ? अंगबाहिरं दुविहं पणतं, तं जहां --आवस्सयं च, आवस्स य वइरित्तं च ।। ७५. से किं तं आवस्सयं ? आवस्सयं छविहं पण्णत्तं, तं जहा—सामाइयं, चउवीसत्थओ, ___वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गों, पच्चक्खाणं । सेत्तं आवस्सयं ॥ ७६. से किं तं आवस्सयवइरित्तं ? आवस्सयवइरित्तं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-कालियं च, उक्कालियं च ।। ७७. से किं तं उक्कालियं? उक्कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा–१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं ४ महाकप्पसुयं ५ ओवाइयं ६ रायपसेणि (णइ) यं ७ जोवाभिगमो (जीवाजीवाभिगमे ?) ८ पण्णवणा ६ महापण्णवणा १० पमायप्पमायं ११ नंदी १२ अणुओगदाराइं १३ देविदत्थओ १४ तंदुलवेयालियं १५ चंदगविज्झय' १६ सूरपण्णत्ती १७ पोरिसिमंडलं १८ मंडलपवेसो १६ विज्जाचरण विणिच्छओ २० गणि विज्जा २१ झाणविभत्ती २२ मरणविभत्ती २३ आयवि. सोही २४ वीयरागसुयं २५ संलेहणासुयं २६ विहारकप्पो २७ चरणविही २८ आउ रपच्चक्खाणं २६ महापच्चक्खाणं । सेत्तं उक्कालियं ॥ ७८. से किं तं कालियं ? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा-१ उत्तरज्झयणाई २ दसाओ ३ कप्पो ४ ववहारो ५ निसीहं ६ महानिसीहं ७ इसिभासियाई ८ जंबुद्दीवपण्णत्ती ६ दीवसागरपण्णत्ती १० चंदपण्णत्ती ११ खुड्डियाविमाणपविभत्ती १२ महल्लियाविमाणपविभती १३ अंगचूलिया १४ वग्ग लिया १५ वियाहचूलिया' १६ अरुणोववाए १७ वरुणोदवाए १८ गरुलोववाए १६ धरणोववाए २० वेसमणोववाए २१ 'वेलंधरोववाए २२ देविंदोववाए' २३ उट्ठाणसुयं २४ समट्ठाणसुयं २५ नागपरियावणियाओ २६ निरयावलियाओं २७ कप्पवडंसियाओ २८ पुप्फियाओ २६ पुप्फचूलियाओ ३० वण्हिदसाओ॥ १. काउस्सग्गं (ख)। ६. निरयावलियाओ कप्पियाओ (क, ख); चूणों २. जीवाजीवाभिगमसूत्रस्य प्रारम्भवाक्ये 'थेरा एतत् पदं व्याख्यातं नास्ति । हरिभद्रसूरिभगवंतो जीवाजीवाभिगमं णामझयण मलयगिरिवृत्त्योरेतद् व्याख्यातमस्ति-कप्पिपण्णबइंसु' इति पाठोस्ति हरिभद्रसूरि-मलय- याउत्ति सौधर्मादिकल्पगतवक्तव्यतागोचरा गिरिभ्यामपि स्व-स्ववृत्तौ एवमेव विवृत ग्रन्थपद्धतयः कल्पिका उच्यन्ते। उपाङ्गानां मस्ति एतदेव नाम उपयुक्तं प्रतीयते । पञ्चवर्गेपि एतस्य उल्लेखो नास्ति-एवं ३. चंदावेज्झयं (पु)। खलु जंबू ! समणेणं भगवया महवीरेणं ४. क्खाणं एवमाइं (क, ख) । उबंगाणं पंच वग्गा पण्णत्ता, तं जहा५. विवाहा (क, ख)। (१) निग्यावलियाओ (२) कप्पडिसियाओ ६. X(चू, म)। (३) पुफियाओ (४) पुप्फचूलियाओ (५) ७. देविदोववाए वेलंधरोववाए (चू)। वण्हिदसाओ (उ० ११५) ८. नागपरियाणियाओ (चू)। Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ नंदी ७९. एवमाइयाइं चउरासोइपइण्णगसहस्साई भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइ तित्थयरस्स । तहा संखिज्जाइपइण्णगसहस्साई मज्झिमगाणं जिणवराणं । चोद्दस पइण्णगसहस्साणि भगवओ वद्धमाणसामिस्स । अहवा-जस्स जत्तिया सीसा उप्पत्तियाए, वेणइयाए, कम्मयाए', पारिणामियाएचउव्विहाए बुद्धोए उववेया, तस्स तत्तियाइ पइण्णगसहस्साई। पत्तेयबुद्धावि तत्तिया चेव । सेत्तं कालियं । सेत्तं आवस्सयवइरित्तं । सेत्तं अणंगपविट्ठ॥ ८०. से किं तं अंगपविठं ? अंगपविट्ठ दुवालसविहं पण्णत्तं, तं जहा - आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ, वियाहपण्णत्ती', नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाइ, विवागसुयं, दिट्ठिवाओ ।। दुवालसंग-विवरण-पदं ८१. से किं तं आयारे? आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणय-वेणइय सिक्खा-भासा-अभासा-चरण-करण-जाया-माया-वित्तोओ आघविज्जति । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-नाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे। आयार णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, 'संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ" । से णं अंगट्ठयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइ उद्देसणकाला, पंचासीइ समुद्देसणकाला, अट्ठारसपयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से ‘एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । सेत्तं आयारे॥ ८२. से कि तं सूयगडे ? सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ । जीवा सूइज्जति, अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइज्जति । ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ । सूयगडे णं आसीयस्स किरियावाइ-सयस्स, चउरासीइए अकिरियावाईणं, सत्तडीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं-तिण्हं तेसट्ठाणं पावादुय-सयाणं वूह किच्चा ससमए ठाविज्जइ। १. उसहस्स (चू); सिरिउसहस्स (ह); सिरि- ६. चूणौं एष पाठो व्याख्यातो नास्ति । समवाउसह (म)। यांगसूत्रेपि अभयदेवसूरिणा नैष पाठो लब्धः। २. कम्मियाए (क, ख)। समवायांगवृत्ती सूचितमिदम्- इदं च सूत्र ३. विवाह (क, ख)। पुस्तकेषु न दृष्ट, नन्द्यां तु दृश्यते इतीह ४. संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जाओ व्याख्यातमिति । निज्जुत्तीओ (चू)। ७. असीयस्स (क, ख)। ५. पंचासीती (प)। ८. पासंडिय (क, ख, म)। Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २६६ सूयगडे' णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा. संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ । अंगgory बिए' अंगे, दो सुयक्खंघा, तेवीसं अज्भयणा, तेत्तीस उद्देसणकाला, तेत्तीस समुद्दे सणकाला, छत्तीसं पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय- कड- निबद्ध-निकाइथा जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरण-करण - परूवणा आघविज्जइ । सेत्तं सूगडे ॥ ८३. से किं तं ठाणे ? ठाणे णं जीवा ठाविज्जंति, अजीवा ठाविज्जंति, जीवाजीवा ठाविज्जति । 'ससमए ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ । लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ" । ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुंडाई, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ आघविज्जति । ठाणे णं गाइया एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणग- विवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ । ठाणं परित्ता वाणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ । सेणं अंगाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंघे, दस अज्झयणा, एगवीसं उद्देसणकाला, एगवी समुद्दे सणकाला, बावर्त्तारि पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय- कड- निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण परूवणा आघविज्जइ । सेत्तं ठाणे ॥ ८४. से किं तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिज्जंति, अजीवा समासिज्जंति, जीवाजीवा समासिज्जति । ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमयपरसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जइ, अलोए समासिज्जइ, लोयालोए समासिज्जइ । समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसय-विवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघ १. सूयगडस्स (म ) । २. बिईए ( क, ख ) 1 : लोए ठाविज्जइ अलोए ठाविज्जइ लोयालोए ठाविज्जइ ससमए ठा०, परसमए ठा० ससम यपरसमयए ठा० (पु); एवं ८४, ८५ सूत्र योरपि व्यत्ययो दृश्यते । • ४. ठाणस्स (म) । ५. पयसहस्सा ( क, ख ) । Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७. नंदी विज्जइ । दुवालसविहरस' य गणि पिडगस्स पल्लवग्गे समासिज्जइ।। समवायस्स' णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए चउत्थे अंगे, एगे सुयवखंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले, एगे चोयाले पयसयसहस्से पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्ण विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आधविज्जइ । सेत्तं समवाए॥ ८५. से किं तं वियाहे ? वियाहे' णं जीवा विआहिज्जति, अजीवा विआहिज्जंति, जीवाजीवा विआहिज्जति । ससमए विआहिज्जति, परसमए विआहिज्जति, ससमय-परसमए विआहिज्जति । लोए विआहिज्जति, अलोए विआहिज्जति, लोयालोए विआहिज्जति । वियाहस्स" णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, 'संखेज्जाओ संगहणीओ', संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्ठयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साइं, दस समुद्देसगसहस्साई, छत्तीसं वागरणसहस्साइं, 'दो लक्खा अट्ठासीई पयसहस्साई पयग्गेणं", संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया, जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ। सेत्तं वियाहे ॥ ८६. से किं तं नायाधम्मकहाओ? नायाधम्मकहासु' णं नायाणं नगराइं, उज्जाणाई, चेइयाइं, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, 'धम्मायरिया, १. दुवालसंगस्स (पु)। २. समवाए (पु)। ३,४. विवाहे (क, ख)। ५. विवाहस्स (क, ख)। ६. x (क, ख)। ७. समवायांगे स्थानद्वये प्रस्तुतसूत्रस्य चतुर- शीतिसहस्राणि पदानि निरूपितानि सन्ति 'वियाहपण्णत्तीए णं भगवतीए चउरासीई पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता' (समवाय ८४।११); 'चउरासीई पयसहस्साई पयग्गेणं' (पइण्णग समवाय सू० ६३)। ८. विवाहे (क, ख)। ६. कहा (ख)। Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २७१ धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इढि विसेसा", भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाइं, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियामओ य' आघविज्जति। दस धम्मकहाणं वग्गा । तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाइ। एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाइ। एग मेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइओवक्खाइयासयाइं- एवमेव सपुव्वावरेणं अद्धट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति त्ति मक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए छठे अंगे, दो सुट वखंधा, एगूणतीसं अज्झयणा", एगूणतीसं उद्देसणकाला, एगूणतीसं समुद्देसणकाला, 'संखेज्जाई पयसहस्साई" पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कडनिबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । सेत्तं नायाधम्मकहाओ।। ८७. से किं तं उवासगदसाओ? उवासगदसासु णं समणोवासगाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया', परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्ज णया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, १. धम्मकहाओ धम्मायरिया इहलोगपरलोगिया योगेन एकोनत्रिंशदध्ययनानि सम्पद्यन्ते । रिद्धिविसेसा (पु) एवं ८७, ८८, ८६, ६१ द्रष्टव्यं समवाओ, प्रकीर्णकसमवायश्च ६४ सूत्रेष्वपि । सूत्रम् । २. x (क, ख)। ४. संखेज्जा पयसहस्सा (क, ख)। ३. चूणौं हारिभद्रीयवृत्ती मलयगिरिवृत्तौ च ५. परिच्चाया पव्वज्जाओ (क, ख); अत्र 'एगूणवीसं नातज्झयणा' इति पाठो व्याख्या- 'पव्वज्जाओ' इति पदं पूर्वसूत्राणुसरणेनवायातोस्ति । अत्र 'नात' शब्दः स्वीकृतोस्ति, तमिति प्रतीयते । समवायांगसूत्रगत-उपासकज्ञातस्य एकोनविंशतिरध्ययनानि सन्ति , दशा विवरणे 'भोगपरिच्चाया परिआया' तेनासो पाठः समीचीनोस्ति । किन्तु, पाठ- एतौ शब्दावपि न स्त: यथा-इड्ढिविसेसा, शोधनाय प्रयुक्तप्रत्योः ‘एगूणतीसं अज्झयणा' उवासयाणं च सीलव्वय-वेरमण-गुणइति पाठः प्राप्यते । अत्र 'नात' शब्दोनास्ति, पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणयाओ तेन नात्रापि कश्चिद् दोषः । ज्ञातस्य एको- सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ (पइण्णगनविशतेरध्ययनानां धर्मकथानां च दशवर्गाणां समवाय सू० ६५)। Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ नंदी देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । उवासगदसाणं' परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आधविज्जइ । सेत्तं उवासगदसाओ॥ ८८. से कि तं अंतगडदसाओ ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई, उज्जाणाइं, चेइ याई, वणसंडाई, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई', अंतकिरियाओ य आघविज्जति । अंतगडदसाणं' परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए अट्ठमे अंगे; एगे सुयक्खंधे, 'अट्ठवग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ट समुद्देसणकाला", संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविज्जंति, पण्ण विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । १. दसासु णं (पु)। २. गमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाइओ पुणबोहिलाभा (क, ख)। ३. दसासुणं (पु)। ४. अत्र समवायांगे-'दस अज्झरणा सत्त वग्गा दस उद्देसणकालो दस समुद्देसणकाला' इति पाठो विद्यते । अभयदेवसूरिणा अस्मिन् विषये ऊहापोहः कृतः, किन्तु तेन प्रस्तुता समस्या नैव समाहिता जायते । तथा च वृत्तिः-'दस अज्झयण' ति प्रथमवर्गापेक्षयव घटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात्, यच्चेह पठ्यते 'सत्त वग्ग' त्ति तत्प्रथमवर्गादत्यवर्गापेक्षया, यतोऽत्र सर्वेऽप्यष्ट वर्गाः नन्द्यामपि तथापठितत्वात्, तवृत्तिश्चेयं 'अट्ठ वग्ग' त्ति अत्र वर्गः समूहः, स चान्तकृतानामध्ययनानां वा, सर्वाणि चकवर्गगतानि युगपदुद्दिश्यन्ते ततो भणितं ___ 'अट्ठ उद्देसणकाला' इत्यादि । इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः । Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २७३ से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । सेत्तं अंतगडदसाओ। ८९. से किं तं अणुत्तरोदवाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराइ, उज्जाणाई, चेइयाइ, वणसंडाइ, समोसरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते' उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । अणुत्तरोववाइयदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए नवमे अंगे, 'एगे सुयक्खंधे, तिण्णि वग्गा, तिण्णि उद्देसणकाला, तिण्णिसमुद्देसणकाला'', संखेज्जाइ पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा. अणंता पज्जवा. परित्ता तसा. अणंता थावरा. सासय-कड-निबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ। सेत्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ। ६०. से किं तं पण्हावागरणाइं? पण्हावागरणेसु णं अठ्ठत्तरं पसिणसयं, अछुत्तरं अपसिणसयं, अछुत्तरं पसिणापसिणसयं', 'अण्णे य विचित्ता दिव्वा" विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धि दिव्वा 'संवाया आघविज्जंति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से गं अगंट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयवखंघे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, १. अणुत्तरोववाइत्ति (क, ख)। तस्त्रय एवोद्देशनकाला भवन्ति । एवमेव च २. समवायाङ्गे (पइण्णगसमवाय सूत्र ९७) अत्र नन्द्यामभिधीयन्ते, इह तु दृश्यन्ते दशेति, पाठभेदो विद्यते, यथा-'एगे सूयक्खंधे दस अत्राभिप्रायो न ज्ञायते'। अज्झयणा तिण्णि वग्गा दस उद्देसणकाला दस ३. पसिणसयं, तं जहा-अंगुटुपसिणाई बाहुपसमुद्देसणकाला'। अभयदेवसूरिणा अस्मिन् सिणाई अद्दागपसिणाई (क)। विषये न किञ्चिद् निश्चयपूवर्क लिखितम्, ४. अन्ने वि य विविहा (म); अन्ने य विविहा यथा-'इह अध्ययनसमूहो वर्गः, वर्ग (चू); अन्ने य दिव्वा विचित्ता (ह) । दशाध्ययनानि, वर्गश्च युगपदेवोद्दिश्यते इत्य- ५. संधाणा संधणंति (चूपा)। Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ सासय-कड - निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति । मंदी से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरण-करण - परूवणा आघविज्जइ । सेत्तं पण्हावागरणाई || १. से किं तं विवागसुयं ? विवागसुए णं सुकड - दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ । तत्थ णं दस दुहविवागा, दस सुहविवागा । से किं तं दुहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, निरयगमणाई, 'संसारभवपवंचा, दुहपरंपराओ", दुक्कुल पच्चायाईयो, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ । सेत्तं दुहविवागा । से किं तं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई', सुहपरंपराओ, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । सेत्तं सुहविवागा । विवागस्यस्स' णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए इक्कारसमे अंगे, दो सुयक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्दे सणकाला, संखेज्जाइ' पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा सासय-कड निबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरण- करण- परूवणा आघविज्जइ । सेत्तं विवागसुयं ॥ ९२. से किं तं दिट्टिवाए ? दिट्टिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. परिकम्मे २. सुत्ताई ३. पुव्वगए ४ अणुओगे ५. चूलिया ।। ६३. से किं तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मणुस्स सेणियापरिकम्मे ३. पुटुसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढ सेणिया परि १. दुहपरंपराओ संसारभवपवंचा (पु) । २. विवागत्ते ( g ) । Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७५ नदी कम्मे' ५. उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ७. चुया चुयसेणियापरिकम्मे ।। ६४. से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ? सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. माउगापयाई२. एगट्ठियपयाई ३. अट्ठापयाई ४. पाढो ५. आगासपयाइ'६. के उभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ६. दुगुणं १०. तिगुणं ११. केउभयपडिग्गहो १२. संसारपडिग्गहो' १३. नंदावत्तं १४. सिद्धावत्तं । सेत्तं सिद्धसेणिया परिकम्मे ।। ६५. से कि तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे ? मणुस्ससेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. माउगापयाई २. एगट्ठियपयाई ३. अट्ठापयाई ४. पाढो ५. आगासपयाई ६. के उभयं ७. रासिबद्धं ८. एगगणं ६. दुगणं १०. तिगणं ११. केउभ्यपडिग्गहो १२. संसारपडिग्गहो १३. नंदावत्तं १४. मणुस्सावत्तं । सेत्तं मणुस्स सेणियापरिकम्मे ।। ६६. से किं तं पृट्टसेणियापरिकम्मे ? पुटुसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो ३. आगासपयाइ ३. केउभूयं ४. रासिबद्ध ५. एगगुणं ६. दुगणं ७. तिगुणं ८. के उभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. पुट्ठावत्तं । सेत्तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे ।। ६७. से कि तं ओगाढसेणियापरिकम्मे ? ओगाढसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. पाढो २. आगासपयाइ ३. के उभूयं ४. रासिबद्ध ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. ओगाढावत्तं । सेत्तं ओगाढसेणियापरिकम्मे ।। १८. से किं तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ? उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो २. आगासपयाइं ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नन्दावत्तं ११. उवसंपज्जणावत्तं । सेत्तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ।। ६६. से किं तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ? विप्पजहणसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा–१. पाढो २. आगासपयाइ ३. केउभूयं ४. रासिबद्ध ५. एगगणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. विप्पजहणावत्तं। सेत्तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ।। १. ओगहण (पइण्णग समवाय सू० १०१) सर्वत्र। २. अट्ठपयाणि (पइण्णग समवाय सू० १०२)। ३. आमास० (पु) सर्वत्र । ४. परिग्गहो (क)। ५. ओगाढवत्तं (क)। Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ नंदी १००. से किं तं चयअचुयसेणियापरिकम्मे' ? चयअन्यसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो २. आगासपयाइ ३. के उभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. चुयअचुयावत्तं' । सेत्तं चुयअचुयसेणियापरिकम्मे ।। १०१. [इच्चयाई सत्त परिकम्माईछ ससमइयाणि सत्त आजीवियाणि ?' छ चउक्क णइयाई, सत्त तेरासियाई सेत्तं परिकम्मे ।। १०२. से किं तं सूत्ताई? सुत्ताईबावीसं पण्णत्ताई, तं जहा-१. उज्जुसूयं' २. परि णयापरिणयं ३. वहुभंगियं ४. विजयचरियं ५. अणंतरं ६. परंपरं ७. सामाणं' ८. संजूहं ६. संभिण्णं' १०. आहच्चायं ११. 'सोवत्थियं घंट' १२. नंदावत्तं १३. बहुलं १४. पृट्ठापुढें १५. वियावत्तं १६. एवंभूयं १७. दुयावत्तं १८. वत्त माणुप्पयं १६. समभिरूढं २०. सव्वओभई २१. पण्णासं २२. दुप्पडिग्गहं ।। १०३. इच्चेयाइ" बावीसं सुत्ताइ छिण्णच्छेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए । इच्चेयाई बावीसं सुत्ताइ अच्छिण्णच्छेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए। इच्चेयाइ" बावीसं सुत्ताइ तिगनइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए । इच्चेयाइ" बावीसं सुत्ताइ चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए। एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीइ सुत्ताइ भवंतीति मक्खाय" । सेत्तं सुत्ताई। १०४. से किं तं पुव्वगए ? पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. उप्पायपुव्वं २. अग्गेणीयं ३. वीरियं ४. अत्थिन स्थिप्पवायं ५. नाणप्पवायं ६. सच्चप्पवायं ७. आयप्पवायं ८. कम्मप्पवायं ६. पच्चक्खाणं १०. विज्जाणुप्पवायं" ११. अवंझ १२. पाणाउं" १३. किरियाविसालं १४. लोकबिंदुसारं ॥ १०५. उप्पायपुव्वस्स णं पुव्वस्स दस वत्थू, चत्तारि चूलियावत्थू" पण्णता।। १०६. 'अग्गेणीयपुव्वस्स णं चोद्दस वत्थू, दुवालस चूलियावत्थू पण्णत्ता ॥ १. चुयमचुय० (पु)। १०. भूयावत्तं (पु)। २. चुआचुयवत्तं (क)। ११, १२, १३, १४. इच्चेइयाइं (क, ख)। ३. समवायाङ्ग (पइण्णग समवाय सू० १०६) १५. मक्खाइं (क, ख)। सूत्रानुसारेणष पाठो युज्यते । नन्दीचूणि- १६. ०प्पवाइं (क, ख)। वृत्तिष्वपि पाठांशोसो दृश्यते । १७. विज्जणुप्पवादं (पु)। ४. उज्जुगं (पइण्णग समवाय सू० ११०)।। १८. अवज्झ (क)। ५. मासाणं (पु)। १६. पाणाडे (पु)। ६. भिण्णं (पइण्णग समवाय सू० ११०) । २०. चुल्लयवत्थू (म)। ७. आयच्चायं (पु)। २१. अग्गेणि (णी) यस्स णं पुवस्स (पइण्णग८. सोवत्थिप्पण्णं (पु)। ___ समवाय सू० ११४, पु) सर्वत्र । ६. वेयावच्चं (पु)। २२. चुल्लवत्थू (म)। Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २७७ १०७. वीरियपुव्वस्स णं अट्ठ वत्थू, अट्ठ चूलियावत्थू पण्णत्ता। १०८. अत्थिनत्थिप्पवायपुवस्स णं अट्ठारस वत्थू, दस चूलियावत्यू पण्णत्ता ।। १०६. नाणप्पवायपुव्वस्स णं बारस वत्थू पण्णत्ता ।। ११०. सच्चप्पवायपुव्वस्स णं दोण्णि वत्थू पण्णता ।। १११: आयप्पवायपुवस्स णं सोलस वत्थू पण्णत्ता ।। ११२. कम्मप्पवायपुवस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता ।। ११३. पच्चक्खाणपुवस्स णं वीसं वत्थू पण्णत्ता ।। ११४. विज्जाणुप्पवायपुव्वस्स णं पण्णरस वत्थू पण्णत्ता ।। ११५. अवंझपुव्वस्स णं बारस वत्थू पण्णत्ता ।। ११६. पाणाउपुवस्स णं तेरस वत्थू पण्णता ।। ११७. किरियाविसालपुनस्स णं तीसं वत्थू पण्णता।। ११८. लोकबिंदुसारपुव्वस्स णं पणुवोसं वत्थू पण्णत्ता ।। संगहनी-गाहा दस चोद्दस अट्ठ, अट्ठारसेव बारस दुवे य वत्थूणि । सोलस तीसा वीसा, पण्णरस अणुप्पवायम्मि ॥१॥ बारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुण तेरसमे, चोद्दसमे पण्णवीसाओ ॥२।। चत्तारि दुवालस अट्ठ, चेव दस चेव चुल्लवत्थूणि । आइल्लाण चउण्हं, सेसाणं चूलिया नत्थि ।।३।। सेत्तं पुव्वगए | ११६. से किं तं अणुओगे ? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-मूलपढमाणुओगे गंडियाणः ओगे य॥ १२०. से किं तं मूलपढमाणुओगे? मूलपढमाणुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुन्वभवा, देव लोगगमणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्तणाणि य, सीसा, गणा, 'गणहरा, अज्जा, पवत्तिणोओ," संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिण-मणपज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई,' अणुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो जह' देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहि जत्तियाई भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुणिवरुत्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते । एतेअण्णे य एवमाई भावा मूलपढमाणुओगे कहिया । सेत्तं मूलपढमाणुओगे । १. गणधरा य अज्जा य पवत्तिणीओ य (पु)। ३. जह य (पु)। २. वादी य (पू)। ४. एवमन्ने (क, ख)। Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ नंदी १२१. से किं तं गंडियाणुओगे ? गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ, तित्थयरगंडियाओ, चक्कवट्टिगंडियाओ, दसारगडियाओ, बलदेवगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, गणधरगंडियाओ, भद्दबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, ओसप्पिणीगंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, चित्तरगंडियाओ, अमर-नर-तिरिय-निरय-गइगमण-विविह-परियट्टणेसु,' एवमःइयाओ गंडियाओ' आघविज्जति' । सेत्तं गंडियाण ओगे । सेत्तं अणुओगे।। १२२. से किं तं चूलियाओ ? चुलियाओ-आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाण चूलिया, सेसाई पुवाइं अचूलियाई । सेत्तं चूलियाओ। १२३. दिट्टिवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए बारसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, चोद्दस पुव्वाइं, संखेज्जा वत्थू, संखेज्जा चुल्लवत्थू, संखेज्जा पाहुडा, संखेज्जा पाहुडपाहुडा, संखेज्जाओ पाहुडियाओ, संखेज्जाओ पाहुडपाहुडियाओ, संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिजति उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जति । सेत्तं दिट्ठिवाए ।। १२४. इच्चेइयम्मि दुवालसंगे गणिपिडगे अणंता भावा, अणंता अभावा, अणता हेऊ, अणंता अहेऊ, अणंता कारणा, अणंता अकारणा, अणंता जीवा, अणंता अजीवा, अणंता भवसिद्धिया, अणंता अभवसिद्धिया, अणंता सिद्धा, अणंता असिद्धा पण्णत्ता। संगहणी-गाहा भावमभावा हेऊ, महेऊ कारणमकारणा' चेव । जीवाजीवा भवियमभविया सिद्धा असिद्धा य ।।१।। १२५. इच्चेइयं वालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउ रंतं संसारकतारं अणुपरियट्टिसु । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्ट ति । इच्चेइयं दुवालसंग गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति । १. परियट्टणाणुओगेसु (क, ख)। २. X (क, ख)। ३. आषविज्जति पण्णविज्जति (क, ख)। ४. दुवालसमे (पु)। ५, मकारणे (क,ख)। ६. इच्चेतं (पइण्णग समवाय सू० १३२) सर्वत्र । Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदी २७ε इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसार कतार वीईवइंसु । इच्चेइयं दुवाल संगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवयंति । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्संति || १२६. इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्स । भवि च भवइ य, भविस्सइ य । धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए Cafe food | से जहानामए पंचत्थिकाए न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ । भुवि च भवइ य, भविस्सइ य । धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे । वामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ । भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य । धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अट्ठिए निच्चे ।। १२ १२७. से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं 'सुयनाणी उवउत्ते" सव्वदव्वाई 'जाणइ पासइ' खेत्तओ णं 'सुयनाणी उवउत्ते" सव्वं खेत्तं 'जाणइ पासइ" । कालओ णं 'सुयनाणी उवउत्ते" सव्वं कालं 'जाणइ पासइ " । भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे 'जाणइ पासइ" । संगहणी-गाहा - १. उवउत्ते सुयनाणी ( क, ख ) । २. जाणइ न पासइ (हमा, मपा) । ३. उवउत्ते सुयनाणी (क, ख ) । ४. जाणइ न पासइ (हपा, मपा) । अक्खर सण्णी सम्म, साइयं खलु सपज्जवसियं न । गमियं अंगपविट्ठ, सत्तवि एए सपविक्खा ॥१॥ आगम-सत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिट्ठ । बिति सुयनाणलंभं तं पुब्वविसारया धीरा ॥२॥ सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणइ गिण्हइ य ईहए यावि' । तत्तो अपोहए वा, धारेइ करेइ वा सम्मं ||३|| मूअं हुंकारं वा, बाढक्कार पsिपुच्छ वीमंसा । तत्तो संगपारायणं च परिणिट्ट सत्तम ॥४॥ 1 ५. उवउत्ते सुयनाणी (क, ख ) । ६,७. जाणइ न पासइ (हपा, मपा ) ८.विदिट्ठ ( क ) । ६. वावि (क, ख ) । Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० सुत्तत्थो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसओ' भणिओ। तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अणुओगे ॥५॥ सेत्तं अंगपविठं । सेत्तं सुयनाणं । सेत्तं परोक्खं' । सेत्तं नंदी॥ ग्रन्थ-परिमाण अक्षर-परिमाण १६६४१ अनुष्टुप्श्लोक-परिमाण ६२३, अक्षर ५ १. 'मीसिओ (म)। २. परोक्खनाणं (क, ख)। Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिह्र १ अणुण्णानंदी १. से किं तं अणुण्णा ? अणुण्णा छन्विहा पण्णत्ता, तं जहानामाणुण्णा ठवणाणुण्णा दव्वाणुण्णा खेत्ताणुण्णा कालाणुण्णा भावाणुण्णा ॥ २. से किं तं नामाणुण्णा ? नामाणुण्णा-जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा अणुण्ण त्ति णामं कीरइ । सेत्तं नामाणुण्णा ।। ३. से किं तं ठवणाणुण्णा ? ठवणाणुण्णा-जं' णं कट्टकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा चित्तकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघातिमे वा अक्खे वा वराडए वा एगे वा अणेगे वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा अणुण्ण त्ति ठवणा ठविज्जति । सेत्तं ठवणाणुण्णा ।। ४. णाम-ठवणाणं को पतिविसेसो ? णामं आवकहियं, ठवणा इत्तिरिया वा होज्जा आवकहिया वा ॥ ५. से किं तं दव्वाणुण्णा ? दव्वाणुण्णा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आगमतो य नोआग मतो य । ६. से किं तं आगमतो दव्वाणुण्णा ? आगमतो दव्वाणुण्णा-जस्स णं अणण्णत्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अविच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्टविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वं इति कट्ट । गमस्स एगे अणुवउत्ते आगमतो एगा दव्वाणुण्णा, दोण्णि अणवउत्ता आगमतो दोण्णि दव्वाणुण्णाओ, तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्वाणुण्णाओ, एवं १.जे (क)। २. ४ (क)। २८१ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ नंदी जावतिया अणुवउत्ता तावतियाओ दवाणुण्णाओ । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगे वा अणेगे वा अणुवउत्तो' वा अणुवउत्ता वा दवाणुण्णा वा दवाणुण्णाओ वा सा एगा दव्वाणुण्ण। । उज्जुसुअस्स एगे अणुवउत्ते आगमतो एगा दव्वाणुण्णा, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सद्दणयाणं जाणए अणुव उत्ते अवत्थू । कम्हा ? जति जाणए अणुवउत्ते ण भवति । सेत्तं आगमतो दव्वाणुण्णा ।। ७. से कि तं नो आगमतो दव्वाणुण्णा ? नो आगमतो दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जाणगसरीरदव्वाणुण्णा भवियसरीरदव्वाणुण्णा जाणगसरीरभवियसरोर वइरित्ता दवाणुण्णा ॥ ८. से कि तं जाणगसरीरदव्वाणुण्णा? जाणगसरीरदव्वाणुण्णा--'अणण्ण' त्ति पदस्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरं ववगयचुतचइयचत्तदेहं जीवविप्पजढं सिज्जागयं वा संथारगयं वा निसोहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा. अहो ण इमेणं सरीरसमस्सएणं (जिणदिठेणं भावेणं ?) 'अणुण्ण' त्ति पयं आपवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं णिदासयं उवदंसियं । जहा को दिळंतो ? अयं घयकुंभे आसो, अयं महुकुंभे आसी। सेत्तं जाणगसरीरदव्वाणुण्णा ॥ ६. से किं तं भवियसरीरदव्वाणुण्णा ? भवियसरीरदवाणुण्णा--जे जीवे जोणीजम्मण णिक्खंते इमेणं चेव 'सरीरसमुस्सएणं आदत्तेणं जिणदिद्रुणं भावेणं 'अणुण्ण' त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिळंतो? अयं घयकुंभे भविस्सति, अयं महुकुंभे भविस्सति । सेत्तं भवियसरीरदव्वाणुण्णा ।। १०. से कि तं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुण्णा ? जाणगसरीरभवियसरीर वइरित्ता दवाणुण्णा तिविंहा पण्णत्ता, तं जहा-लोइया 'कुप्पावयणिया लोउत्त रिया य॥ ११. से किं तं लोइया दव्वाणुण्णा ? लोइया दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा सचित्ता अचित्ता मीसिया ।। १२. से कि तं सचित्ता दवाणुण्णा ? सचित्ता दव्वाणुण्णा-से जहाणामए राया इ वा जुवराया इ वा ईसरे इ वा तलवरे इ वा माडंबिए इ वा कोडुबिए इ वा इब्भे इ वा सेट्ठी इ वा सेणावई इ वा सत्थवाहे इ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुझे समाणे आसं वा हत्थि वा उट्टे वा गोणं वा खरं वा घोडयं वा एलयं वा अयं वा दासं वा दासिं वा अणुजाणेज्जा । सेत्तं सचित्ता दव्वापुण्णा । १. उवउत्ता (क)। ५. आइत्तेणं (क); आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं २. सरीरगं (पु)। (अणुओगदाराइं सू० १७)। ३. अनुयोगद्वारसूत्रे (सू० १६) अत्र निम्नवति- ६. सिअ (क)। पाठो विद्यते----'वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा'। ७. लोउत्तरिया कुष्पावणिया य (क)। ४. X (क)। Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८३ परिसिळं १ (अणुण्णानंदी) १३. से किं तं अचित्ता दवाणुण्णा ? अचित्ता दव्वाणुण्णा से जहाणामए राया इ वा जुवराया इ वा ईसरे इ वा तलवरे इ वा माडंबिए इ वा कोडुबिए इ वा इन्भे इ वा सेट्ठी इ वा सेणावई इ वा सत्थवाहे इ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुठे समाणे आसणं वा सयणं वा छत्तं वा चामरं वा पडगं' वा मउडं वा हिरण्णं वा सुवण्णं वा कंसं वा दसं वा मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालरत्तरयणमादीयं संत-सार-सावइज्ज अणजा णिज्जा । सेत्तं अचित्ता दव्वाणुण्णा ।। १४. से कि तं मीसिया दव्वाणण्णा ? मीसिया दवाणुण्णा–से जहाणामए राया इ वा जुवराया इ वा ईसरे इ वा तलवरे इ वा माडंबिए इ वा कोडुबिए इ वा इन्भे इवा सेट्ठी इ वा सेणावई इ वा सत्थवाहे इ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुठे समाणे हत्थि वा मुहभंडगमंडियं, आसं वा थासग-चामरमंडियं, सकडगं दासं वा, दासि वा सव्वालंकारविभूसियं अणुजाणिज्जा। सेत्तं मीसिया दव्वाणुण्णा । सेत्तं लोइया दव्वाणुण्णा ॥ १५. से कि तं कुप्पावयणिया' दवाणुण्णा ? कुप्पावयणिया' दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–सचित्ता अचित्ता मोसिया ।। १६. से किं तं सचित्ता दव्वाणुण्णा ? सचित्ता दव्वाणुण्णा-से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा कस्सइ कम्मि-कारणे तुठे समाणे आसं वा हत्थि वा उट्टं वा गोणं वा खरं वा घोडं वा अयं वा एलगं वा दासं वा दासि वा अणुजाणिज्जा। सेत्तं सचित्ता दव्वाणुण्णा ।। १७. से कि तं अचित्ता दव्वाणुण्णा ? अचित्ता दव्वाणण्णा---से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुठे समाणे आसणं वा सयणं वा छत्तं वा चामरं वा पट्टं वा मउडं वा हिरण्णं वा सुवण्णं वा कंसं वा दूसं वा मणिमोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्तरयणमाईयं संत-सार-सावएज्ज अगुजाणिज्जा । सेत्तं अचित्ता दव्वाणुण्णा ॥ १८. से कि तं मीसिया दव्वाणुण्णा ? मीसिया दवाणुण्णा–से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुझे समाणे हत्थि वा मुहभंडगमंडियं, आसं वा थासगचामरमंडियं, सकडगं दासं वा, दासि वा सव्वालंकारविभूसियं अणुजाणिज्जा । सेत्तं मोसिया दव्वाणुण्णा । सेत्तं कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा ।। १६. से कि तं लोउत्तरिया दव्वाणुण्णा ? लोउत्तरिया दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-सचित्ता अचित्ता मीसिया ।। १. पडं (क)। २,३. वणिया (क) सर्वत्र । ४. वा वलयं वा (क)। Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ नंदी २०. से किं तं सचिता दव्वाणुण्णा ? सचिता दव्त्राणुण्णा से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा 'थेरे इ वा पवत्ती इ वा " "गणी इ वा " गणहरे इ वा गणावच्छेयए इ वा सिस्सस्स वा सिस्सिगोए वा कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे सीसं वा सिस्सिणि' वा अणुजाणेज्जा । सेत्तं सचित्ता दव्वाणुण्णा ॥ २१. से किं तं अचित्ता दव्वाणुण्णा ? अचित्ता दव्वाणुण्णा से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा थेरे इ वा पवत्ती इ वा गणी इ वा गणहरे इ वा गणावच्छेयए इ वा सिस्सस्स वा सिस्सिणीए वा कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे वत्थं वा पायं वा डिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा अणुजाणेज्जा | सेत्तं अचित्ता दव्वाणुण्णा || २२. से किं तं मीसिया दव्वाणुण्णा ? मोसिया दव्वाणुण्णा - से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा 'थेरे इ वा पवत्ती इ वा '" "गणी इ वा " गणहरे इ वा गावच्छे इ वा सिस्सस्स वा सिस्सिगोए वा कम्मि कारणे तुट्ठे समाने सिस्सं वा सिसिणि' वा सभंड-मत्तोवगरणं अणुजाणेज्जा। सेत्तं मोसिया दव्वाणुण्णा । सेत्तं . लोउत्तरिया दव्वाणुण्णा । सेतं जाणगसरोरभवियसरी रवइरित्ता दव्वाणुष्णा । तं नोआगमतो दव्वाणुण्णा । सेत्तं दव्वाण्णा ॥ २३. से किं तं खेत्ताणुण्णा ? खेत्ताणुण्णा - जो णं जस्स खेत्तं अणुजाणति, जत्तियं वा खेत्तं, जम्मि वा खेत्ते । सेत्तं खेत्ताणुण्णा ।। २४. से किं तं कालाणुण्णा ? कालाणुण्णा - जो णं जस्स कालं अणुजाणति, जत्तियं वा कालं, जम्मि वा काले अणुजाणति, तं जहा - तीतं वा पडुप्पण्णं वा अणागतं वा वसंतं हेमंतं पाउस वा अवत्थाणहेउं । सेत्तं कालाणुण्णा ॥ २५. से किं तं भावाणुण्णा ? भावाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - लोइया कुप्पावयणिया' लोउत्तरिया ॥ २६. से किं तं लोइया भावाणुण्णा ? लोइया भावाणुण्णा - से जहाणामए राया इ वा जुवराया इ वा जाव' तुट्ठे समाणे कस्सइ कोहाइभावं अणुजाणिज्जा | सेत्तं लोइया भावाण्णा || २७. से किं तं कुप्पावयणिया भावाणुण्णा ? कुप्पावयणिया भावाणुण्णा से जहाणामए hs आरिए इ वा जाव" कस्सइ कोहाइभावं अणुजाणिज्जा । सेत्तं कुप्पावयणिया भावाण्णा ॥ १. पवत्तए इ वा थेरे इ वा ( क ) । २. X ( क ) । ३. सिसिणीअं ( क ) । ४. सिस्सिणियाए (पु) । ५. पवत्तए इ वा थेरे इ वा (क) । ६. x ( क ) । ७. सिस्सिणीअं ( क ) । ८. वणिया ( क ) । ६. सूत्र १२ । १०. सूत्र १६ । Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८५ परिसिट्ठ । (अणुण्णानंदी) २८. से किं तं लोउत्तरिया भावाणुण्णा ? लोउत्तरिया भावाणुण्णा–से जहाणामए आयरिए इ वा जाव' कम्मि कारणे तुठे समाणे कालोचियनाणाइगुणजोगिणो विणीयस्स खमाइपहाणस्स सुसीलस्स सिस्सस्स तिविहेणं तिगरणविसुद्धणं भावेणं आयारं वा सूयगडं वा ठाणं वा समवायं वा वियाहपण्णत्ति' वा नायाधम्मकहं वा उवासगदसाओ वा अंतगडदसाओ वा अणुत्तरोववाइयदसाओ वा पण्हावागरणं वा विवागसुयं वा दिट्ठिवायं वा सव्वदव्व-गुण-पज्जवेहिं सव्वाणुओगं वा अणुजाणिज्जा । सेत्तं लोउत्तरिया भावाणुण्णा । सेत्तं भावाणुण्णा। गाहा किमणुण्ण ? कस्स णुण्णा ? केवतिकालं पवत्तिया णण्णा ?। आदिकर पुरिमताले, पवत्तिया उसभसेणस्स ॥१॥ अणुण्णा उण्णमणी णमणी णामणी ठवणा पभवो पभावण पयारो। तदुभय हिय मज्जाया, णाओ मग्गो य कप्पो य ॥२॥ संगह संवर णिज्जर ठिइकरणं चेव जीववुड्ढिपयं ।। पदपवरं चेव तहा, वीसमणुण्णाए णामाइं ॥३॥ १. सूत्र २० । २. विवाह (क)। Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिट्ठ २ जोगनंदी १. नाणं पंचविहं पण्णत्तं तं जहा - आभिणिबोहियनाणं सुयआणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं ॥ २. तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिज्जाई, णो उद्दिस्संति णो समुद्दिस्संति णो अणुविज्जति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ३. जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, कि अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? कि अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओगीय पवत्तइ ? गोयमा ! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ । sugar अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ४. जइ पुण अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, कि कालियस्स उद्देो समुद्देसो अण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? गोयमा ! कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पत्तइ, उक्कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ । इमं पुण पट्टवणं पडुच्च उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ५. जह् उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, कि आवस्सस्स उद्देसो समुद्दे सो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? गोयमा ! आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा गोपवत्त, आवस्सगवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ६. जइ आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं १. सामाइयस्स १. तुलना - अणुओगदाराई सूत्र १-५ । २५६ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८७ परिसिठ्ठ २ (जोगनंदी) २. चउवीसत्थयस्स ३. वंदणस्स ४. पडिक्कमणस्स ५. काउस्सग्गस्स ६. पच्चक्खा णस्स ? सव्वेसि एतेसिं उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ७. जइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं कालिय सुयस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? उक्कालियसुयस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? कालियस्सा वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, उक्कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ८. जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं १. दसवेकालि यस्स २. कप्पियाकप्पियस्स ३. चुल्लकप्पसुयस्स ४. महाकप्पसुयस्स ५. उववाइयसुयस्स ६. रायपसेणीयसुयस्स ७. जीवाभिगमस्स ८. पण्णवणाए ६. महापण्णवणाए १०.पमायप्पमायस्स ११. नंदीए १२. अणुओगदाराणं १३. देविदथयस्स १४. तंदुलवेयालियस्स १५. चंदाविज्झयस्स १६. सूरपण्णत्तीए १७. पोरिसिमंडलस्स १८. मंडलप्पवेसस्स १९. विज्जाचरणविणिच्छियस्स २० गणिविज्जाए २१. संलेहणासुयस्स २२. विहारकप्पस्स २३. वीयरागसुयस्स २४. झाणविभत्तीए २५. मरण विभत्तीए २६. मरणविसोहीए २७. आयविभत्तीए २८. आयविसोहीए २६. चरणविसोहीए ३०. आउरपच्चक्खाणस्स ३१ महापच्चक्खाणस्स ? सव्वेसि एएसि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ।। ६. जइ कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं १. उत्तरज्झय णाणं २. दसाणं ३. कप्पस्स ४. ववहारस्स ५. निसीहस्स ६. महानिसीहस्स ७. इसिभासियाणं ८. जंबुद्दीवपण्णत्तीए ६. चंदपण्णत्तीए १०. दीवपण्णत्तीए ११. सागरपण्णत्तीए १२. खुड्डियाविमाणपविभत्तीए १३. महल्लियाविमाणपविभत्तीए १४. अंगलियाए १५. वग्गचूलियाए १६. विवाहचूलियाए १७. अरुणोववायस्स १८. वरुणोववायस्स १६. गरुलोववायस्स २०. धरणोववायस्स २१. वेसमणोववायस्स २२. वेलंघरोववायस्स २३. देविदोववायस्स २४. उट्ठाणसुयस्स २५. समुद्राणसुयस्स २६. नागपरियावणियाणं २७-३१. निरयावलियाणं कप्पियाणं कप्पवडिसियाणं पुप्फियाणं पुप्फचूलियाणं (वण्हियाणं) वहिदसाणं ३२. आसीविसभावणाणं ३३. दिट्टिविसभावणाणं ३४. चारणभावणाणं ३५. सुमिणभावणाणं ३६. महासुमिणभावणाणं ३७. तेयग्गिनिसग्गाणं? सव्वेसि पि एएसि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ॥ १०. जइ अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगे य पवत्तइ, किं १. आयारस्स २.सूयगडस्स ३. ठाणस्स ४. समवायस्स ५. वियाहपण्णत्तीए ६. नायाधम्मकहाणं ७. उवासगदसाणं ८. अंतगडदसाणं ६. अणुत्तरोववाइयदसाणं १०. पण्हावागरणाणं ११. विवागसुयस्स १२. दिदिवायस्स? सव्वेसि पि एएसिं उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ । इमं पुण पट्टवणं पहुच्च इमस्स साहुस्स इमाए साहुणीए Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ नंदी (अमुगस्स सुयस्स) उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ। खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्येणं तदुभएणं उद्देसामि समुद्देसामि अणुजाणामि ।। Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई नाण-पदं १. नाणं' पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा- आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं' ओहिनाणं मण पज्जवनाणं केवलनाणं ॥ आवस्सय- अणुओग-पदं २. तत्थ चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं-'नो उद्दिस्संति, नो समुद्दिस्संति" नो अणुण्णविति, सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ३. जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, कि अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवंत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ४. जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, उक्कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्टवणं पडुच्च उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ५. जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, कि आवस्सयस उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? आवस्सयवतिरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो १. णाणं (ग)। ४. अणंगपविट्ठस्स (ग, चू) तृतीयचतुर्थसूत्रयोः २. सुअणाणं (ग)। सर्वत्र । ३. णो उद्दिसिज्जति णो समुद्दिसिज्जति (ख, ग, ५. आवस्सगस्स (ग) । २६१ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ अणुबोगदाराई अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? आवरसयस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, आवस्सयवतिरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ । इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्सयस्स अणुओगो।। आवस्सय-सरूव-पदं ६. जइ आवस्सयस्स अणओगो, आवस्सयण्णं कि अंग ? अंगाई ? सुयखंघो ? सुयखंधा? अज्झयणं ? अझयणाई ? 'उद्देसो ? उद्देसा ? आवस्सयण्णं नो अंगं नो अंगाई, सुयखंधो नो सुयखंधा, नो अज्झयणं अज्झयणाई, 'नो उद्दे सो नो उद्देसा" ।। आवस्सय-निवखेव-पदं ७. तम्हा आवस्सयं निक्खिविस्सामि, सुयं निक्खिविस्सामि, खंधं निक्खि विस्सामि, अज्झयणं निक्खिविस्सामि। जत्थय जं जाणज्जा, निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं। जत्थ वि य न जाणेज्जा, चउक्कयं निक्खिवे तत्थ ।।१।। ८. से किं तं आवस्सयं? आवस्सयं चउविहं पण्णतं, तं जहा-नामावस्सयं ठवणाव स्सयं दव्वावस्सयं भावावस्सयं ।। ६. से किं तं नामावस्सयं? नामावस्सयं-जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा 'जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा 'आवस्सए त्ति" नामं कज्जइ । 'से तं" नामावस्सयं ॥ १०. से कि तं ठवणावस्सयं? ठवणावस्सयं---जण्णं कट्टकम्मे वा 'चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा' लेप्पकम्मे वा" गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा राब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा आवस्सए त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणावस्सयं ॥ ११. नाम-ट्टवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया" वा होज्जा १. सुअखंधो (ग); सुयक्खंधो (पु)। ६. जीवाणं वा अजीवाणं वा (क, ख, ग)। २. उद्देसगो उद्देसगा (हे)। ७. आवस्स इति (क)। ३. णो उद्देसगो णो उद्देसगा (हे)। ८. से तं (हा, हे); से तं (हेपा)। ४. सु (क, ग)। ६. जं णं (ग)। ५. जत्थ बह जाणिज्जा, १०. पोत्यकम्मे वा चित्तकम्मे वा (ग)। बवरिमिदं तत्थ णिक्खिवे णियमा । ११. अत्र वाचनान्तरे अन्यान्यपि दन्तकर्मादि (दंतजत्थ बहुवं ण जाणदि, कम्मे वा सेलकम्मे वा) पदानि दृश्यन्ते (हे)। चउट्टयं णिक्खि वे तत्थ ॥१४॥ १२. अणेगो (ख, ग)। (षटखंडागमः धवला पृष्ठ ३०) १३. इत्तिरिया (क)। Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदारा कहिया वा ॥ १२. से किं तं दव्वावस्सयं ? दव्वावस्सयं दुविहं पण्णत्तं तं जहा- आगमओ य नोआगमओ य ॥ १३. से किं तं आगमओ दव्वावस्सयं ? आगमओ दव्वावस्सयं जस्स णं आवस्सए त्ति पदं 'सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं" नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं' अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलिय* पडिपुण्णं पडणघ कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायगोवगयं', से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए' परियट्टणाए धम्काए, नो अणु पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कट्टु | १४. नेगमस्स' एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, दोण्णि' अणुवउत्ता आगमओ दोणि दव्त्रावस्सयाई, तिण्णि अणुवउता आगमओ तिष्णि दव्वावस्सयाई, एवं जावइया 'अणुवउत्ता तावइयाई ताई नेगमस्स आगमओ दव्वावस्सयाई" । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स" एगो वा अणेगा" वा अणुवउत्तो वा अणुवत्ता वा आगमओ दव्वावस्तयं वा दव्वावस्सयाणि वा से एगे दव्वावस्सए । उज्जुसुयस्स" एगो अणुवत्त आगमओ एगं दव्वावस्मयं पुहत्तं" नेच्छइ । तिन्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवत्ते अवत्थू । कम्हा" ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ" । से तं आगमओ दव्वावस्सयं ॥ १५. से किं तं नोआगमओ दव्वावस्सयं । नोआगमओ दव्वावस्तयं तिविहं पण्णत्तं तं जहा - जाणगसरी रदव्वावस्तयं" भवियसरी रदव्वावस्सयं जाणगसरीर भवियसरीरवतिरित्तं दव्वावस्यं ॥ १. वा हवेज्जा (क, ग ) । २. सिक्खितं हितं जितं मितं परिजितं ( ग ) । ३. अव्वाइद्धं (चू. हेपा) । ४. अविच्चा ( क, वू)। ५. X (चु) । ६. वायणागतं ( चू); वायणोवगयं (हा ) | ७. पडिपुच्छणाए (हा ) । ८. नेगमस्स णं ( ख, ग ) । ६, १०. दो (ग) । ११. अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई ताई दव्त्रावस्सयाई (क); अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दव्वावस्ययाई (ख, ग ); अणुवउत्ता आगमतो २६३ तत्तियाइं दव्वावस्सयाई (चू ) । १२. संगहस्स णं ( ख, ग ) । १३. अणेगो ( ख, ग ) । १४. उज्जुसुत्तस्स (चू, हा) । १५. पुहुत्तं ( ख, ग ) । १६. अतः 'भवइ' पर्यन्तः पाठः चूर्णौ नास्ति व्या ख्यातः । १७. अतः परं 'क, ख, ग' संज्ञाकादर्णेषु अतिरिक्तः पाठोलभ्यते - जइ अणुवउत्ते जाणए ण भवइ तम्हा नत्थि आगमओ दव्वावस्सयं । १५. जाय ( ग ) । Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ वणुबोगद्वाराई १६. से किं तं जाणगसरोरदवावस्सयं ? जाणगसरीरदव्वावस्सयं-आवस्सए ति पयत्याहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय'-चत्तदेहं जीवविप्पजढं' सेज्जागयं वा संथारगयं वा 'निसीहियागयं वा" सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं' कोइ वएज्जा"--अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं आपवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं । जहा को दिळंतो? 'अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुभे आसी" । से तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं ।। १७. से किं तं भवियसरोरदव्वावस्सयं ? भवियसरीरदव्वावस्सयं—जे जीवे जोणिजम्मण निक्खंते इमेणं चेव 'आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं'"जिणदिट्टेणं भावेणं आवस्सए" त्ति पयं सेयकाले" सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिलैंतो? 'अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । 'से तं" भवियसरीरदव्वावस्सयं ॥ १८. से किं तं जाणगसरीर-भवियसरोर-वतिरित्तं दव्वावस्सयं? जाणगसरीर-भविय सरीर-वतिरित्तं दवावस्सयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं"। १६. से किं तं लोइयं दवावस्सयं? लोइयं दव्वावस्सयं--जे इमे राईसर-तलवर-माडंबिय कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइओ" कल्लं पाउप्पभायाए" रयणोए सुविमलाए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे"पभाए रत्तासोगप्पगास किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर नलिणिसंडबोहए, 'उट्ठियम्मि सूरे" १. चइय (बू)। ११. सरीरसमुस्सएणं आदत्तएणं (हा); सरीरसमु. २. जीवविप्पमुक्कं (हा, हे)। रसएणं आत्तएणं (हापा) सरीरस मुस्सएणं ३. सिज्जागयं (क, ख, ग)। आत्तेन आदत्तेन वा (हे)। ४. इह "निसीहियागयं वे' त्यादीन्यपि पदानि १२. जिणोवदिळूणं (क, पू, हे)। वाचनान्तरे दृश्यन्ते (हे)। १३. आवस्सय (क)। ५. सिद्धि (क, ख, ग)। १४. सेयाले (चू)। ६. अत: 'वएज्जा' पर्यन्तः पाठः चूणों नास्ति १५. अयं घयकुंभे भविस्सइ अयं महकुंभे भविस्सइ व्याख्यातः । वृत्ती अत्र एक टिप्पणमस्ति- (क)। 'पासित्ताणं कोई भणिज्ज' त्ति ग्रन्थः क्वचिद १६. से तं (क, हे) । दृश्यते, स च समुदायार्थकथनावसरे योजित १७. लोउत्तरियं (ख, ग)। एव, यत्र तु न दृश्यते, तत्राध्याहारो द्रष्टव्यः १८. पभिइओ (क); 'प्पभितओ (ख, ग)। (हे)। १६. पाउप्पभाए (ग, चू, हा) । ७. भणेज्जा (ख, ग)। २०, कोमलुम्मीलियंमि (ग) । ८. जिणोवइट्टणं (क)। २१. अहपंडुरए (ग)। १. अयं घयकुंभे आसी अयं महकुंभे आसी २२. कमलाकर (क)। २३. नलिणी (क) । १०. आत्तएणं (ख, ग)। २४. उदियंमि सूरिते (चू); उठ्ठिए सूरिए (हे)। Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओणुओगदाराई २६५ सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे' तेयसा जलंते मुहबोयण-दंतपक्खालण-तेल्ल-फणिहसिद्धत्थय-हरियालिय-अद्दाग-धूव-पुप्फ-मल्ल-गंध-तंबोल-वत्थाइयाई दवावस्सयाई काउं' तओ पच्छा रायकुलं वा देवकुलं वा 'आरामं वा उज्जाणं वा सभं वा पवं वा" गच्छंति । से तं लोइयं दव्वावस्सयं ॥ २०. से कि तं कुप्पावणियं दव्वावस्सयं ? कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं-जे इमे चरग चोरिय-चम्मखंडिय-भिक्खांड-पंडुरंग'-गोयम - गोव्वइय - गिहिधम्म - धम्मत्रितगअविरुद्ध-विरुद्ध-बुड्ढसावगप्पभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए' रयणीए" 'सूविमलाए फल्लप्पल-कमल-कोमलम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगासकिसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-नलिणसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा° जलते इंदस्स वा खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुदस्स" वा अज्जाए वारे कोद्रकिरियाए वा उवलेषण - 'सम्मज्जग-आवरिसग" - धूव-पुप्फ-गंध-मल्लाइयाई दवावस्सयाइं करेंति । से तं कुप्पावणियं दवावस्सयं ॥ २१. से किं तं लोगुत्तरियं दवावस्सयं ? लोगुत्तरियं दवावस्सयं-जे इमे समण णमुक्क जोगी छक्कायनिरणकपा हया इव उद्दामा गया इव निरकुसा घट्टा मट्रा तुप्पोट्रा पंडरपाउरणा" 'जिणाणं अणाणाए'५ सच्छंदं विहरिऊणं उभओकालं आवस्सयस्स उवटुंति" । से तं लोगुत्तरियं दवावस्सयं । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरत्तं दवावस्सयं । से तं नोआगमओ दवावस्सयं । से तं दवावस्सयं ।। २२. से किं तं भावावस्मयं ? भावावस्सयं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-आगमओ य नोआग मओ य ॥ २३. से कि तं आगमओ.भावावस्सयं ? आगमओ भावावस्सयं—जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावावस्मयं ।। २४. से किं तं नोआगमओ भावावस्सयं ? नो आगमओ भावावस्सयं तिविहं पण्णतं, तं ___ जहा–लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं ॥ १. दिणगरे (ग)। १०. सं० पा०.-रयणीए जाव जलते । २. वत्थमाइआई (क, ख)। ११. मुकुंदस्स (क)। ३. करेत्ता (क)। १२. वा दुग्गाए वा (क, ख, ग); चूणी वृत्त्योश्च ४. पवं वा आरामं वा उज्जाणं वा (क); सभं नासो पाठः सम्मतोस्ति । वा पर्व वा आरामं वा उज्जाणं वा (चू)। १३. संमज्जणावरिसण (क)। ५. चीरिक (ग)। १४. पंडुरपडपाउरणा (क, ख, ग), स्वीकृतपाठ: ६. भिक्खंडग (क); भिच्छुडग (पु)। मलधारिहेमचंद्रवृत्तिसम्मतोस्ति । ७. पंडरंग (पू)। १५. जिणाणमणाणाए (ख, ग)। ८. "प्पभितओ (वा)। १६. उवट्ठावयंति (ग)। ६. पाउप्पभाए (ग)। Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ मोगुनोगदाराई २५. से किं तं लोइयं भावावस्सयं ? लोइयं भावावस्सयं-पुव्वण्हे भारहं, अवरण्हे 'रामायणं । से तं लोइयं भावावस्सयं ॥ २६. से किं तं कुप्पावयणियं भावावस्सयं ? कुप्पावयणियं भावावस्सयं-जे इमं चरग चीरिय'-'चम्मखंडिय-भिक्खोंड - पंडुरंग-गोयम-गोव्वइय - गिहिधम्म - धम्मचितगअविरुद्ध-विरुद्ध-वुड्ढसावगप्पभिइओ° पासंडत्था इज्जंजलि-होम-जप-उदुरुक्क नमोक्कारमाइयाइं भावावस्सयाइं करेंति। से तं कुप्पावयणियं भावावस्सयं ।। २७. से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं ? लोगुत्तरियं भावावस्सयं-जण्णं इमं समणे वा समणी वा सावए' वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्टोव उत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए अण्णत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओ कालं आवस्सयं करेति । से तं लोगुत्तरियं भावावस्सय । से तं नोआगमओ भावावस्सयं । से तं भावावस्सयं ।। २८. तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति त जहा - गाहा आवस्सयं अवस्सकरणिज्ज," धुवनिग्गहो विसोही य । अज्झयणछक्क वग्गो, नाओ आराहणा मग्गो ॥१॥ समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वं हवइ जम्हा । अंतो अहोनिसस्स उ,२ तम्हा आवस्सयं नाम ।।२।। से तं आवस्सयं ।। सुय-निक्खेव-पदं २६. से किं तं सुयं ? सुयं चउव्विहं पण्णत्तं तं जहा-नामसुयं ठवणासुयं" दव्वसुयं भावसुयं ॥ ३०. से" किं तं नामसुयं ? नामसुयं-जस्स णं जीवस्स वा५. अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा° सुए त्ति नामं कज्जइ । से तं नामसुयं ।। १. सं० पा० --चीरिय जाव पासंडत्था । २. इलैंजलि (ख, चूपा) । ३. जप्प (क)। ४. उंदूरक्क (क), उंडुरुक्क (चू, हा) ५. इमे (क)। ६. सावओ (ग)। ७. तल्लेस्से (ग)। ८. भाविए एगमणे अविमणे जिणवयणधम्माण रागरत्तमणे (क)। १. अकुव्वमाणे (ग)। १०. करेंति (ख); कुर्वन्ति (हे) । ११. करणिज्ज (क. ख, ग)। १२. य (ख, ग)। १३. ठवणसुयं (क) । १४. ३०,३१,३२ सूत्राणां स्थाने 'क' प्रतौ संक्षिप्त पाठो वृत्तौ च तस्य सूचनं लभ्यते-नामट्ठवणाओ भणियामो। (क) वाचनान्तरे तु 'नामठवणाओ भणियाओ' इत्येतदेव दृश्यते (हे)। १५. सं० पा०-जीवस्स वा जाव सुए त्ति । Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओणुओगदाराई २६७ ३१. से किं तं ठवणासुयं ? ठवणासुयं-जण्णं कट्टकम्मे वा' चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सम्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा सए त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणासुयं ॥ ३२. नाम-ट्रवणाणं को पइविसेसो ? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आव कहिया वा ।। ३३. से कि तं दव्वसुयं ? दवसुयं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य ॥ ३४. से*किं तं आगमओ दव्वसुयं ? आगमओ दव्वसुयं-जस्स णं सुए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जिय मियं परिजियं' 'नामसमं घोससम अहोणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, 'नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कटु । ३५. नेगमस्स' एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं दव्वसुयं', 'दोण्णि अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दव्वसुयाई, तिणि अणवत्ता आगमओ तिण्णि दव्वसूयाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वसुयाई। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वसुयं वा दव्वसुयाणि वा, से एगे दबसुए। उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एग दव्वसुयं, पुहत्तं नेच्छइ। तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्वसुयं ॥ ३६. से किं तं नोआगमओ दव्वसुयं ? नोआगमओ दव्वसुयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा - जाणगसरीरदव्वसुयं भवियसरीरदव्वसुयं जाणगसरीर - भवियसरीर-बतिरित्तं दव्वसूयं ।। ३७. से किं तं जाणगसरीरदव्वसुयं ? जाणगसरीरदव्वसुयं-सुए'त्ति पयत्थाहिगार जाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं "जोवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसोहियागयं वा सिद्धसिलातल गयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जाअहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्टेणं भावेणं सुए ति पयं आघवियं पण्ण १.सं० पा०-कट्रकम्मे वा जाव ठवणा । ५. सं० पा०-दव्वसुयं जाव कम्हा । २. ३४,३५ सूत्रद्वयं लक्षीकृत्य वृत्ती एका टिप्पणी ६. सुय (क, ख, ग)। कृतास्ति-एतच्च काञ्चिदेव वाचनामाश्रित्य ७. सरीरं (क)। व्याख्यायते, वाचनान्त राणि तु हीनाधिकान्यपि ८. चविय (क)। दृश्यते (हे)। ६. सं० पा०-तं चेव पूव्वभणियं भाणियव्वं ३. सं० पा०-परिजियं जाव नो अणुप्पेहाए। जाव से तं । ४. नेगमस्स गं (ग)। Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० ओणुयोगदाराई वियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं । जहा को दिळंतो ? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी से तं जाणगसरीरदव्वसुयं ।। ३८. से कि तं भवियसरीरदव्वसुयं ? भवियसरोरदव्वसुयं -- जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते •'इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं सुए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिळेंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरीरदव्वसुयं ।। ३६. से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दन्वसुयं ? जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्तं दव्वसुयं-पत्तय-पोत्थय-लिहियं ।। ४०. अहवा सुयं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं' कीडयं वालयं वक्कयं ॥ ४१. से किं तं अंडयं ? अंडयं-हंसगन्भाइ । से तं अंडयं ॥ ४२. से किं तं बोंडयं ? बोंडयं-फलिहमाइ । से तं बोंडयं ॥ ४३. ते किं तं कीडयं ? कीडयं पंचविहं पण्णतं, तं जहा-पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे । से तं कीडयं ।। ४४. से किं तं वालयं ? वालयं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-उण्णिए उट्टिए मियलोमिए' कुतवे किट्टिसे' । से तं वालयं ।। ४५. से किं तं वक्कयं ? वक्कयं-सणमाइ"। से तं वक्कयं । से तं जाणगसरीर भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं । से तं नोआगमओ दव्वसुयं । से तं दव्वसुयं ।। ४६. से किं तं भावसुयं ? भावसुयं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य ।। ४७. से किं तं आगमो भावसुयं ? आगमओ भावसुयं-जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावसुयं ।। : १. सं० पा०-जहा दवावस्सए तहा भाणिपत्र अति संभाव्यते व्याख्यागतः कासशब्द: ___ जाव से तं । उत्तरकाले मूलपाठत्वेनादृतः । २. सुत्तं (क)। ७. मियलोमए (क, चू, हा)। ३. वोडयं (क); पोंडयं (हा)। ८. कोतवे (ख, ग); कोतवम् (हे)। ४. वागयं (ख, ग)। ६. किट्टसे (ख, ग)। ५. वोडयं (क)। १०. वागयं (ख, ग, हा)। ६. कप्पासमाइ (क, ख, ग); वृत्त्यो; 'फलिह' ११. अतसीमादि (हेपा); आदर्शेषु नैष पाठभेदः पाठो व्याख्यातोस्ति-फलिहमादिति कर्पा- क्वचिद् लभ्यते । सफलादि (हा); फलिहं कर्पासाश्रयम् (हे) । Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · ओणुओगदाराई २६ ४८. से किं तं नोआगमओ भावसुयं ? नोआगमओ भावसुयं दुविहं पण्णत्तं तं जहालोइयं लोगुत्तरियं ॥ ४६. से' किं तं लोइयं' भावसुयं ? लोइयं भावसुयं - जे इमं अण्णाणिएहि मिच्छदिट्ठीहि ' सच्छंदबुद्धि-मइ - विगप्पियं, तं जहा - १. भारहं २. रामायणं ३, ४. हंभीमासुरुत्त ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं' ७. सगभद्दियाओं ८. कप्पासियं ६. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं " १२. वइसे सियं १३. बुद्धवयणं” १४. काविलं " १५. लगायत १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १६. वागरणं २०. नाडगादि । अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा । से तं लोइयं भावसुयं ॥ १. लोगुत्तरियं च (क, ख, ग ) । २. द्रष्टव्यम् -- सू० ५४८, ५४६ । ३. लोइयं नोआगमतो ( क, ख, ग ) । ४. अन्नाणीहि ( क ) । ५. मिच्छादिट्टिएहिं ( ग ) । ६. हंभीमासुरक्खं ( क ) ; भीमासुरुतं ( ख ) ; भीमासुरत्तं ( ग ) ; भीमासुरुक्कं, मासु रुक्खं ( क्वचित् ) ; प्रायः सर्वेषु आदर्शेषु मुद्रित - पुस्तकेषु च १. हंभीमासुरवखं २. भीमासुरुतं ३. भीमासुरत्तं ४. भीमासुरुक्कं एते चत्वारः पाठाः एकग्रन्थरूपेण लिखिता लभ्यन्ते । व्यवहारभाष्ये (भाग ३ पत्र १३२ ) 'भीमासुरक्खे' इति पाठो विद्यते । मलयगिरिणा अस्य व्याख्या 'भंभ्यां आसुवृक्षे' इत्थं कृतास्ति । अस्या आधारेण ग्रन्थद्वयस्य अनुमानं जायते - एको ग्रन्थः भभीनामा द्वितीयश्च आसुवृक्षनामा । मूलाचारेणापि एतत् स्पष्टं भवति । तत्र 'हंभी' शब्दस्य उल्लेखो नास्ति, किन्तु 'आसुरक्ख' शब्द: स्वतंत्ररूपेण गृहीतोस्ति कोडिल्लमा सुरक्खा, भारहरामायणादि जे धम्मा । होज्ज व तेसु विसुत्ती, लोइयमूढो हवदि एसो || (५।६०, पृ० २१८ ) । गोम्मटसारेणापि उक्तानुमानस्य पुष्टि जयते । तत्र आभीत- आसुरक्षनाम्नो द्वयो ग्रन्थयोरुल्लेखो लभ्यते - - आभीयमासुरक्खं, भारहरामायणादि उवएस्सा | तुच्छा असाहणीया, सुय अण्णाणं ति णं बेंति ॥ (जीवकाण्ड ३०३) ललितविस्तरे ( परि० १२,३३ पद्यानन्तरं पत्र १०८) आम्भिर्य आसुर्यनाम्नोरुभयो ग्रन्थयोः समुल्लेखः समस्ति । उपरितनपङि क्तषु समुद्ध तेषु ग्रन्थेषु सर्वत्र नामसाम्यं नास्ति, तथापि तैरिति स्पष्टं जायते 'हंभीमासुरुतं' पाठे सूत्रकारेण ग्रन्थद्वयं निक्षिप्तमस्ति । नैतयो ग्रन्थयोः कश्चिद् परिचयः इदानीमुपलब्धोस्ति, तथापि इत्यनुमानं कर्तुमवकाशोस्ति- 'आसुरक्खं- आसुरुक्खं' पाठयोरुल्लेखः श्रुतानुश्रुतपरंपरया कृतोस्ति, न तु ग्रन्थस्य साक्षात् परिचयं प्राप्य । अत एव तेषु ग्रन्थेषु नाम्नः संवादकत्वं नास्ति । समालोच्यग्रन्थस्य साक्षात् परिचयाभावे निश्चयपूर्वकं न किञ्चित् कथयितुं शक्यम् । यदि समालोच्य - ग्रन्थः असुरेण उक्तः अथवा असुरसंबंधी स्यात् तदा 'आसुरुत्त' (आसुरोक्त ) इति पाठस्य स्वीकारः समीचीनो भवेत् । ७. को डल्लयं ( क ) । ८. घोडयमुहं ( क ) । C. सगडभद्दियाओ (क, ख ) ; सतभद्दियाओ ( ग ) । १०. कप्पाकप्पियं ( ग ) । ११. x ( ख, ग ) । १२. बुद्धसासणं (क) । १३. काविलं वेसियं ( ख, ग ) । १४. लोइयं नोआगमतो ( क, ख, ग ) । Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुबोगदाराई ५०. से किं तं लोगुत्तरियं भावसुयं ? लोगुत्तरियं भावसुयं-जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहि उप्पग्णनाणदंसणधरेहि तीय-पडुप्पण्णमणागयजाणएहिं सवण्णू हि सव्वदरिसीहिं तेलोक्कचहिय'-महिय-पूइएहि पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं, तं जहा-१. आयारो २. सूयगडो ३. ठाणं ४. समवाओ ५. वियाहपण्णत्ती' ६. नायाधम्मकहाओ ७. उवासगदसाओ ८. अंतगडदसाओ ६. अणुत्तरोववाइयदसाओ १०. पण्हावागरणाई ११. विवागसुयं १२. दिट्ठिवाओ' । से तं लोगुत्तरियं भावसुयं । से तं नोआगमओ भावसुयं । से त भावसुय ।। ५१. तस्स णं इमे एगट्ठिया 'नाणाधोसा नाणावंजणा' नामधेज्जा भवंति, तं जहागाहा 'सय सत्त"गंथ सिद्धत. सासणे आण वयण उरएसे। पण्णवण आगमे य, एगट्ठा पज्जवा सुत्ते ।। से तं सुयं ।। खंघ-निक्लेव-पदं ५२. से किं तं खंधे ? खंधे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहानामखंधे" ठवणाखंधे दव्वखंधे भावखंधे ।। ५३. ०"से किं तं नामखंधे ? नामखंधे -जस्स णं जोवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण तदुभयस्स वा तदुभयाण वा खंधे त्ति नामं कज्जइ । से तं नामखंधे ।। ५४. से कि तं ठवणाखंधे ? ठवणाखंधे जण्णं कट्टकम्मे वा वित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्ख वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा खंधे त्ति ठवणा ठविज्जइ । से तं ठवणाखंधे॥ ५५. नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो ? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवक हिया वा० ॥ १. लोगुत्तरियं नोआगमतो (क, ख, ग)। ६. दिट्ठिवाओ य (क, ख, ग)। २. पच्चुप्पन्नमनागत (ग)। ७. लोगुत्तरियं नो आगमतो (क, ख, ग)। ३. तिलुक्क (ग); प्राचीन लिप्यां वकार-चकारयोः ८. नाणावंजणा नानाघोसा (चू)। सादृश्यात् केषुचिदादर्शपु 'वहिय' इति ६. सुत तंत (चू); सुय सुत्त (चूपा) । पाठोपि दृश्यते । १०. सासण (ख, ग); पवयणे (हापा, हेपा)। ४. पूइएहि अप्पडियवरनाणदसणधरेहिं (क, ख ११. आणत्ति (ख, ग)। ग); मल्लधारिहमचन्द्रेण अस्य पाठान्तरस्य १२. आगमे वि (क)। विषये एका टिप्पणी कृता--- इदं च विशेषणं १३. नामक्खंधे (क)। कस्याञ्चिदेव वाचनायां दृश्यते, न सर्वत्र (हे)। १४. सं० पा०--नामवणाओ पुव्वभणियाणुक्कमेण ५. विवाह (क, ख, ग)। भाणिअब्बाओ। Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ५६. से किं तं दव्वखंधे ? दव्वखंधे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य॥ ५७ से किं तं आगमओ दव्वखं ? आगमओ दव्वखंधे-जस्स णं खंधे ति पदं सिक्खियं "ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोडविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए. नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कट्ट ।। ५८. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वखंधे, दोण्णि अणवउत्ता आगमओ दोण्णि दव्वखंधाई, तिणि अणुवउत्ता आगमओ तिणि दव्वखंधाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं ताई नेगमस्स आगमओ दव्वखंधाई । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुव उत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वखंधे वा दव्वखंधाणि वा, से एगे दव्वखंधे । उज्जुसुयस्स एगो अणुवउतो आगमओ एगे दव्वखंधे, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सहनयाणं जाणए अणुउवत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुउवत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्वखंघे ॥ ५६. से किं तं नोआगमओ दव्वखंधे ? नोआगमओ दव्वखंधे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा जाणगसरीरदव्वखंघे भवियसरीरदव्वखंधे जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे। ६०. से किं तं जाणगसरीरदवखंधे ? जाणगसरीरदव्वखंधे-खंधेत्ति पयत्याहिगारजा णगस्स जं सरीरयं ववगय-च्य-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगय वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा-अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्टणं भावेणं खंधे त्ति पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं । जहा को दिळंतो? अयं महुकुंभे आसो, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरीरदव्वखंधे।।। ६१ से किं तं भवियसरीरदव्वखंधे ? भवियसरीरदव्वखंधे-जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्टेणं भावेणं खंघे त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिट्टतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घय कुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरीरदव्वखंधे ॥ ६२. से कि तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे ? जाणगसरीर-भविय सरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- सचित्ते अचित्ते मोसए ।। ६३. से किं तं सचित्ते दव्वखंधे ? सचित्त दव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा—हयखध गयखंघे' किन्नरखंधे किंपुरिसखधे महोरगखंधे उसभखंधे। से तं सचित्ते दव्वखंधे। १. सं० पा०-सेसं जहा दवावस्सए तहा भाणि- ४. क्वचिद्गन्धर्वस्कन्धादीन्यधिकान्यप्युदाहरणानि यव्वं नवरं खंधाभिलाओ जाव से कि तं । दृश्यन्ते, सुगमानि च नवरं 'पसुपसयविहग२. गयखंधे नरखंधे (ख, ग) । वानरखंधे' ति क्वचिद् दृश्यते (हे)। ३. महोरगखंधे गंधव्वखंधे (क, ख, ग)। Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ अणुओगदाराई ६४. से किं तं अचित्ते दव्वखंधे ? अचित्ते दव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा - दुपएसिए खंधे तिपए सिए खंधे जाव दसपएसिए खंधे संखेज्जपए सिए' खंधे असंखेज्जपए सिए खंधे अतपसि खंधे । से तं अचित्ते दव्वखं ॥ ६५. से किं तं मीसए दव्वखंधे ? मीसए दव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा - सेणाए 'अग्गिमे खंधे'' सेणाए 'मज्झिमे खंधे' सेणाए 'पच्छिमे खंधे" । से तं मीसए दव्वखंधे ।। ६६. अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर वत्तिरित्ते दव्वखंधे तिविहे पण्णत्ते, तं जहाकसि खंधे अकसिणखंधे अणेगदवियखंधे ॥ ६७. से किं तं कसिणखंधे ? क. सिणखंधे - 'से चेव" हयखंधे गयखंधे ' ' किन्नरखंधे किंपुरिसखंधे महोरगखंधे" उस भखंधे । से तं कसिणखंधे ॥ ६८. से किं तं अकसिणखंधे ? अकसिणखंधे से चेव दुपए सिए खंधे 'तिपएसिए खंधे जाव दसपएसिए खंधे संखेज्जपए सिए खंधे असंखेज्जपए सिए खंधे अनंत एसिए खंधे । से तं असि खंधे || ६६. से किं तं अगदवियखंधे ? अणेगदवियखंधे - तस्सेव देसे अवचिए तस्सेव देसे उवचिए । सेतं अगदवियखंधे । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर- वत्तिरित्ते दव्वखंधे । से तं दव्वखंधे || ७०. से किं तं भावखंघे ? भावखंधे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -आगमओ य नोआगमओ य ।। ७१. से किं तं आगमओ भावखंधे ? आगमओ भावखधे -- जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावखंधे || * ७२. से किं तं नोआगमओ भावखंधे ? नोआगमओ भावखंधे- एएसि चेव सामाइयसाइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदय समिति-समागमेणं निष्फरणे आवस्सयसुयखंधे भावखधेत्ति लब्भइ । से तं नोआगमओ भावखंधे । से तं भावखंधे || ७३. तस्स णं इमे एगट्टिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामघेज्जा भवंति, तं जहा १. संखिज्ज २. अगम ( क ) ; अग्गखंधे (हा, हे) । ३. मज्झिमखंधे ( क) । ४. पच्छिमखंवे ( क ) । ५. सच्चेव ( ख, ग, हा) । ६. सं पा० -- गयखंधे जाव उसभखंधे । ७. सं० पा—दुपए सियाइ खंधे जाव अणतपए सिए । 5. तस्स चेव ( क ) । ९. मादी ( ग ) | १०. निष्पन्ने ( क ) ; x (ग, हा) । Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई गाहा 'गण काए य निकाए, खंधे वग्गे तहेव रासी य । पुंजे पिडे निगरे, संघाए आउल समूहे" ॥ १ ॥ से तं खंधे ॥ आवस्सयस्स अत्याहिगार-अम्झयण-पवं ७४. आवस्सयस्स णं इमे अत्याहिगारा भवंति, तं जहागाहा १. सावज्जजोगविरई, २. उक्कित्तण ३. गुणवओ य पडिवत्ती। ४. खलियस्स निंदणा ५. वणति गिच्छ ६. गुणधारणा चेव ॥१॥ आवस्सयस्स एसो, पिंडत्थो वण्णिओ समासेणं । एतो एक्केक्कं पुण, अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥२॥ तं जहा-१. सामाइयं २. चउवीसत्थओ ३. वंदणयं ४. पडिक्कमणं ५. काउस्सग्गो ६. पच्चक्खाणं ।। अणओगवार-पदं ७५. तत्थ 'पढमं अज्झयणं सामाइयं । तस्स णं इमे चत्तारि अणुओगदारा' भवंति, तं जहा–१. उवक्कमे २. निक्खेवे ३. अणुगमे ४. नए । उवक्कमाणुओगदार पर्व ७६. से किं तं उवक्कमे ? 'उवक्कमे छविहे पण्णत्ते" तं जहा–१ नामोवक्कमे २. ठवणोवक्कमे ३. दव्वोवक्कमे ४. खेत्तोवक्कमे ५. कालोवक्कमे ६. भावोवक्कमे ।। ७७. से कि तं नामोवक्कमे ? नामोवक्कमे-जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा उवक्कमे त्ति नामं कज्जइ । से तं नामीवक्कमे॥ ७८. से किं तं ठवणोवक्कमे ? ठवणोवक्कमे-जण्णं कट्टकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा उवक्कमे त्ति ठवणा ठविज्जइ । से तं ठवणोवक्कमे ।। १. गण काय निकाए वि य, २. पढममज्झयणं (क)। खंधे वग्गे तहेव रासीय । ३. अणुओगदाराणि (क)। पुंजे य पिंड णिगरे, ४. अत्र क्वचिदेवं दृश्यते--'उवक्कमे दुविहे संघाए आउल समूहे ।। (क); पण्णत्ते' इत्यादि, अयं च पाठः आधुनिकोडगण काय निकाय खंध, युक्तश्च (हे)। वग्ग रासी पुंजे य पिंड नियरे य । ५. सं० पा०-नामढवणाओ गयाओ। संघाय आकुल समूह, भावखंधस्स पज्जाया ॥(हे)। Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ अणुबोगदाराई ७९. नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो ? नामं आवक हियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा॥ ८०. से किं तं दव्वोवक्कमे ? दव्वोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—आगमओ य नोआग मओ य॥ ८१. *से किं तं आगमओ दव्वोवक्कमे ? आगमओ दव्वोवक्कमे - जस्स णं उवक्कमे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहोणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्ख लियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कटु ॥ ८२. नेगमस्स एगो अणवउत्तो आगमओ एगे दव्वोवक्कमे, दोणि अणुवउत्ता आग मओ दोण्णि दव्वोवक्कमाइं तिण्णि अणुव उत्ता आगमओ तिण्णि दव्वोवक्कमाई एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं ताई नेगमस्स आगमओ दबोवक्कमाई । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वोवक्कमे वा दव्वोवक्कमाणि वा, से एगे दव्वोवक्कमे । उज्जुसुयम्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वोवक्कमे, पुहत्त नेच्छइ । तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणवउत्ते अवत्थ। कम्हा? जइ जाणए अणव उत्ते न भवइ। से तं आगमओ दव्वोवक्कमे ॥ ८३ से कि तं नोआगमओ दव्वोवक्कमे ? नोआगमओ दव्वोवक्कमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- जाणगसरीरदबोवक्कमे भवियसरीरदव्वोवक्कमे जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ते दव्वोवक्कमे ॥ ८४. से कितं जाणगसरीरदम्वोवक्कमे? जाणगसरीरदबोक्कमे--उवक्कमे त्ति पयत्था हिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताण कोइ वएज्जाअहो णं इमेण सरीरसमुस्सएणं जिणदिद्रुणं भावेणं उवक्कमे त्ति पयं आपवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं । जहा को दिळंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी। से तं जाणगसरीरदव्वोवक्कमे ।। ८५. से किं तं भवियसरीरदव्वोवक्कमे ? भवियसरीरदव्वोवक्कमे - जे जीवे जोणिजम्मण निक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरस मुस्सएणं जिणदिट्टेणं भावेणं उवक्कमे ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्ख इ । जहा को दिळेंतो ? अयं महुकुंभे भवि... . स्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरोरदव्वोवक्कमे ।। ८६. से कि तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दम्वोवक्कमे ?°जाणगसरीर-भवियः सरीर-वतिरित्ते दव्वोवक्कमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सचित्ते अचित्ते मीसए । ८७. से किं तं सचित्ते दम्वोवक्कमे ? सचित्ते दव्योवक्कमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -. १. सं० पा०-नोआगमओ य जाव जाणगसरीर । Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३०५ 'दुपयाणं चउप्पयाणं अपयाणं" । एक्किक्के पुण दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - परिकम्मे विणाय ॥ ८८. से' किं तं दुपयउवक्कमे' ? दुपयउवक्कमे -दुपयाणं नडाणं नट्टाणं जल्लाणं मल्लाणं मुट्ठियाणं वेलंबगाणं * कहगाणं पवगाणं लासगाणं आइक्खगाणं लंखाणं मखाणं तूणइल्लाणं तुंबवीणियाणं कायाणं मागहाणं । से तं दुपयउवक्कमे' || ८६. से किं तं चउप्पयउंवक्क मे ? चउप्पयउवक्कमे - चउप्पयाणं आसाणं हत्थीणं इच्चाइ । से तं चउप्पयउवक्कमे ' ॥ ६०. से किं तं अपयउवक्कमे ? अपयउवक्कमे अपयाणं अंबाणं अंबाडगाणं" इच्चाइ । से तं अपयउवक्कमे" । से तं सचित्ते दव्वोवकम्मे ।। ९१. से किं तं अचित्ते" दव्वोववक मे ? अचित्ते दव्वोववव मे - ' खंडाईणं गुडाईणं" मच्छंडीणं" । से तं अचित्ते" दव्वोवक्कमे ॥ ९२. से किं तं मीसए दव्वोवक्कमे ? मीसए दव्वोवक्कमे - से चेव थासगआयंसगाइमंडिए" आसाइ" । से तं मीसए दव्वोवक्कमे । से तं जाणगसरीर भवियसरीर वतिरित्ते Goatara | से तं नोआगमओ दव्वोवक्कमे । से तं दव्वोवक्कमे ॥ ε३. से किं तं खेत्तोवक्कमे ? खे त्तोवक्कमे - जण्णं हलकुलियाईहि खेत्ताई उवक्कमिज्जंति, १. दुपए चउप्पर अपए (क, ख, ग ); द्विपद- १०. मलधारिहेमचन्द्र वृत्त्यनुसारेणात्र अन्ये पि शब्दा चतुष्पदा पदभेदभिन्न: (हा ) । स्वीकृतपाठः मलधारिहेमचन्द्रवृत्त्यनुसारी वर्तते । २. ८८,८६,६० एषां त्रयाणां सूत्राणां स्थाने हरिभद्रसूरिकृत व्याख्यानुसारेण आदर्शेभ्यः भिन्नः पाठ: फलितो भवति, तद्यथा--दुपयाणं घयाइणा वण्णाइकरणं, तहा कण्ण खंध-वद्धणं च । चउप्पयाणं सिक्खागुणविसेस करणं । एवं अपयाणं रुक्खा वद्धणं च अंबाइफलाणं च कोदवपलालाइ पयाणं । वत्थुणासे ( सचित्ताणं) पुरिसादीणं खग्गादीहि विणासकरणं । प्रतीयते, यथा-इहाडाम्रादयो देशप्रतीता एव, नवरं 'चाराणं' ति येषु चारकुलिका उत्पद्यन्ते ते चारवृक्षाः (हे), किन्तु नैतादृशः पाठ: क्वापि आदर्शेषु लभ्यते । ११. अपए उवक्कमे ( क, ख, ग ) । १२. सचित्त ( क, ख ) । १३ अचित्त ( क, ख ) । १४ खंडगुडादीणं ( ग ) । १५. मत्स्यंडीणं (पु) । १६. अचित्त (क, ख ) । ३. दुपए उवक्कमे (क, ख ) । ४. वेडंबगाणं ( क ) । ५. कावोयाणं ( ख ) । ६. दुपए उवक्कमे (क, ख, ग ) । ७. उप्प उवक्कमे ( क, ख ) । ८. चउप्पए उवक्कमे (क, ख, ग ) । C. अपए उवक्कमे (क, ख, ग ) । १७. थासग मंडिए ( ख, ग, हा) । १८. अस्साइ ( क ) ; मलधारिहेमचन्द्रस्य सम्मुखेस्य सूत्रस्य विस्तृतवाचना आसीत् । अत एव तत्र - तेषामश्वादीनामेकान्तानाम् — इति व्याख्या लभ्यते । वृत्तिकारेण संक्षिप्तवाचनायाः सूचनापिकृतास्ति - अत्र च संक्षिप्ततरा अपि वाचना विशेषा दृश्यन्ते ( है ) । Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ अणुओगदाराई इच्चाइ' । से तं खेत्तोवक्कमे ।। ६४. से कि तं कालोवक्कमे ? कालोवक्कमे-जण्णं' नालियाईहिं कालस्सोवक्कमणं कीरइ । से तं कालोवक्कमे ।। ६५. से किं तं भावोवक्कमे ? भावोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—आगमओ य नोआग मओ य॥ ६६. से किं तं आगमओ भावोवक्कमे ? आगमाओ भावोवक्कमे-जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावोवक्कमे ॥ ६७. से किं तं नोआगमओ भावोवक्कमे ? नोआगमओ भावोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पसत्थे य अपसत्थे य ।। ६८. "से कि तं अपसत्थे भावोवक्कमे ? अपसत्थे भावोवक्कमे-डोडिणि'-गणिया अमच्चाईणं । से तं अपसत्थे भावोवक्कमे ।। ६६. से किं तं पसत्थे भावोवक्कमे ? पसत्थे भावोवक्कमे—गुरुमाईणं । से तं पसत्थे भावोवक्कमे । से तं नोआगमओ भावोवक्कमे । से तं भावोवक्कमे । से तं उवक्कमे ॥ १००. अहवा उवक्कमे छविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. आणुपुन्वी २. नामं ३. पमाणं ४. वत्तव्वया ५. अत्थाहिगारे ६. समोयारे॥ उवाकमाणुओगवारे आपुष्वी-पदं १०१. से किं तं आणुपुव्वी ? आणुपुध्वी दसविहा पण्णत्ता, तं जहा–१. नामाणुपुव्वी २. ठवणाणुपुव्वी ३. दव्वाणुपुवी ४. खेत्ताणपुव्वी ५. कालाणुपुल्वी ६. उक्कित्तणाणुपुव्वी ७. गणणाणुपुथ्वी ८. संठाणाणुपुत्वी ६. सामायारियाणुपुत्वी' १०. भावा णुपुव्वी॥ नाम-द्रवणाणपुवी-पदं १०२. से किं तं नामाणपुवी ? "नामाणपुवी-जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तभयाण वा आणव्वी त्ति नाम कज्जह । से तं नामाणुपुवी। १. ४ (ख, ग)। २. जं णं (ख, ग)। ३. सं० पा०-तत्थ अपसत्थे डोडिणिगणिया अमच्चाईणं, पसत्थे गुरुमाईणं । मूलपाठः मल धारिवृत्याधारेण स्वीकृतोस्ति । ४. डोंडिणि (क); डोडणी (ग); मरुइणि (चू); डोड्डिणि (हा)। ५. तदेवं लौकिकोपक्रमप्रकारेणोक्त उपक्रमः; साम्प्रतं तु तमेव शास्त्रीयोपक्रमलक्षणेन प्रकारान्तरेणाभिधित्सुराह (हे) ॥ ६ सामाआराणुपुव्वी (ग)।, ७. सं० पा०--नामवणाओ तहेव । Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओदारा ३०७ १०३. से किं तं ठवणाणुपुव्वी ? ठवणाणुपुव्वी -- जण्णं कटुकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सम्भावठवणाए वा असम्भावठवणाए वा आणुपुव्वी त्तिठवणा ठविज्जइ । से तंठवणाणुव्व । १०४. नाम-वणाणं को पइविसेसो ? नामं आवकहियं ठवणा इत्तरिया वा होज्जा कहिया वा° । वी-पदं १०५. " से किं तं दव्वाणुपुब्वी ? दव्वाणुपुब्वी दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आगमओय नोआगमओ य ॥ १०६. से किं तं आगमओ दव्वाणुपुव्वी ? आगमओ दव्वाणुपुव्वी - जस्स णं आणुपुव्वी त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पुडिपुण्णघोसं कंठो विप्प मुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाएं परियट्टणाए धम्म कहाए, तो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कट्टु ॥ १०७. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगा दव्वाणुपुब्वी, दोण्णि अणुवउत्ता आगमओ दोणीओ वीओ, तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिष्णीओ दव्वाणुपुव्वीओ, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाओ ताओ नेगमस्स आगम ओ दव्वाणुपुब्वीश्रो । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वाणुपुव्वी वा दव्वाणुपुब्वीओ वा, सा एगा दव्वाणुपुब्वी । उज्जुसुयस्स गो अणुवत्त आगमओ एगा दव्वाणुपुव्वी, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ । सेतं आगम ओ ॥ १०८. से किं तं नोआगमओ दव्वाणुपुव्वी ? नोआगमओ दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जाणगसरीरदव्वाणुपुव्वी भवियसरीरदव्वाणुपुव्वी जाणगसरीर-भवियसरीर- वतिरित्ता दव्वाणुपुब्वी ॥ १०६. से किं तं जाणगसरीरदव्वाणुपुव्वी ? जाणगसरीरदव्वाणुपुब्वी - आणुपुव्वोत्त पयत्था हिगार जाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय चाविय चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता गं कोइ वएज्जा - अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं आणुपुब्वी ति पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं । जहा को दिट्ठतो ? महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरीरदव्वाणुपुव्वी ॥ ११०. से किं तं भवियसरी रदव्वाणुपुव्वी ? भवियसरी रदव्वाणुपुव्वी - जे जीवे जोणिजम्मण १. सं० पा०- ० - दव्वाणुपुव्वी जाव से किं तं । Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ अणुओगदारा निक्खते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरममुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं आणुपुव्वीत्ति पयं सेकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिट्ठतो ? अयं महुकुंभे भविस्सर, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरी रदव्वाणुपुब्वी । १११. से किं तं जाणगसरीर भवियसरीर वतिरित्ता दव्वाणुपुव्वी ? जाणगसरीरभवियसरीर - वतिरित्ता दव्वाणुपुव्वी दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - ओवणिहिया' य bafहिया || ११२. तत्थ णं जा सा ओवणिहिया सा ठप्पा ॥ ११३. तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - नेगम-ववहाराणं संगहस्स य ।। नेगम-ववहाराणं अणोवणि हिय बच्चाणुपुत्री पदं ११४. से किं तं नेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी ? नेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - १. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्त्तिणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अणुगमे ।। ११५. से किं तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ? नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयातपसि आणुपुवी चउप एसिए आणुपुब्वी जाव दसपएसिए आणुपुब्वी संखेज्जएसिए आणुपुष्वी असंखेज्जप एसिए आणुपुव्वी अणतपएसिए आणुपुब्वी । परमाणुपोग्गले अणाणुपुव्वी । दुपएसिए अवत्तव्वए । तिपएसिया आणुपुब्वीओ जाव अनंतपएसिया आणुपुव्वीओ । परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वीओ । दुपएसिया' अवत्तव्वयाई । सेतं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया || ११६. एयाए णं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए कि पओयणं ? एयाए णं नेगम-ववहा - राणं अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया कज्जइ ॥ ११७. से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ? नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कि - तणया - १. अस्थि आणुपुव्वी २. अत्थि अणाणुपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए ४. अस्थि आणुपुव्वीओ ५. अत्थि अणाणुपुव्वीओ ६. अत्थि अवत्तव्वयाइ । अहवा १. अस्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य ७ अहवा २. अस्थि आणुपुव्वी य अणावीओ ८. अहवा ३. अस्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वी य ६. अहवा ४. अस्थि आणुपुवीओ य अणाणुपुव्वीओ य. १० । अहवा १. अस्थि आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ११. अहवा २. अस्थि आणुपुव्वी य अवत्तव्वयाई' च १२. अहवा ३. अस्थि आणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य १३. अहवा ४. अथ आणुपुवीओ य अवत्तव्वयाई च १४ । अहवा १. अस्थि अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य १५. अहवा २. अस्थि अणाणुपुव्वी य १. उवणिहिया (क, ख, ग ) सर्वत्र । ३. कीरइ ( क ) । २. दुपएसियाइं ( क ) । Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०९ अणुमोगदाराई अवत्तव्वयाइं च १६. अहवा ३. अत्थि अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य १७. अहवा ४. अत्थि अणाणुपुत्वीओ य अवत्तव्वयाइच १८ । अहवा १. अस्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य.१६. अहवा २. अस्थि आणुपुत्वी य अणाणुपुवी य अवत्तव्वयाइं च २०. अहवा ३. अत्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य २१. अहवा ४. अत्थि आणुपुवो य अणाणुपुत्वीओ य अवत्तव्वयाइं च २२. अहवा ५. अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य २३. अहवा ६. अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वयाइ च २४. अहवा ७. अत्थि आणुपुव्वोओ य अणाणुपुवीओ य अवत्तव्वए य २५. अहवा ८. अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुवीओ य अवत्तव्वयाइ च २६ । (एए अट्ठ भंगा)। एवं सव्वे वि छन्वीसं भंगा। से तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ।। ११८. एयाए णं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए कि पओयणं ? एयाए णं नेगम ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कीरइ ॥ ११६. से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया १. तिपएसिए आणपुव्वी २. परमाणुपोग्गले अणाणुपुव्वी ३. दुपएसिए अवत्तव्वए ४. तिपएसिया आणुपुवीओ ५. परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वीओ ६. दुपएसिया अवत्तव्वयाई। अहवा १ तिपएसिए य परमाणुपोग्गले य आणुपुव्वी य अण।णुपुन्वो य ७. 'अहवा २. तिपएसिए य परमाणुपोग्गला य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वीओ य ८. अहवा ३. तिपएसिया य परमाणुपोग्गले य आणुपुवाओ य अणाणुपुव्वी य ६. अहवा ४. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आणुपुव्वोओ अणाणुपुव्वीओ य"१०।। अहवा १. तिपएसिए य दुपए सिए य आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ११. 'अहवा २. तिपएसिए य दुपएसिया य आणुपुन्वी य अवत्तव्वयाइं च १२. अहवा ३. तिपएसिया य दुपएसिए य आणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य १३. अहवा ४. तिपएसिया य दुपएसिया य आणुपुत्वीओ य अवत्तव्वयाइं च १४। अहवा १. परमाणुपोग्गले य दुपएसिए य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य १५. 'अहवा २. परमाणुपोग्गले य दुपएसिया य अणाणपुव्वी य अवत्तव्वयाइं च १६. अहवा ३. परमाणुपोग्गला य दुपएसिए य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य १७. अहवा ४. परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वयाई च" १८.। अहवा १. तिपएसिए य परमाणुपोग्गले य दुपएसिए य आणपुव्वो य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य १६. 'अहवा २. तिपएसिए य परमाणुपोग्गले य दुपएसिया य आणुपुन्वी य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वयाइं च २०. अहवा ३. तिपएसिए य परमाणुपोग्गला य दुपएसिए य आणुपुन्वी य अणाणुपुत्वीओ य अवत्तव्वए य २१. अहवा ४. तिपएसिए य परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य १. चउभंगो (क)। ३. चउभंगो (क)। २. चउभंगो (क)। Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० अणुओगदाराई आणुपुब्वीय अणाणुपुवीओ य अवत्तव्वयाई च २२. अहवा ५ तिपएसिया य परमाणुपोग्गले य दुपए सिए य माणुपुव्वीओ य अणाणुपुब्वी य अवत्तब्वए य २३. अहवा ६. तिपएसिया य परमाणुपोग्गले य दुपएसिया य आणुपुव्वीओ य अणाणुपुवीय अवत्तव्वयाइं च २४. अहवा ७. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य दुपएसि य आणुपुवीओ अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य २५. अहवा ८. तिपए सिया य परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य आणुपुव्वीओ य अणाणुपुब्वीओ य अवत्तव्वयाई च" २६ । से तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया || १२०. से किं तं समोयारे ? समोयारे- नेगम - ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई' कहिं समोयरंति - किं आणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति ? अणाणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति ? अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति ? नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं आणुपुव्विदव्वेहि समोयरंति, नो अणाणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अवत्तव्वयदव्वेहि समोयरंति । 'नेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाई कहिं समोयरंति - किं आणुपुव्विदव्वेहि समोयरंति ? अणाणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति ? अवत्तव्वयदव्वेहि समोयरंति ? नेगमववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाई' नो आणुपुव्विदव्वेहि समोयरंति, अणाणुपुव्विदव्बेहि समोयरंति, नो अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति । नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाई कहि समोयरंति - किं आणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति ? अणाणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति ? अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति ? नेगमववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाइं नो आणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अणाणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति, अवत्तव्वयदव्वेहि समोयरंति" । से तं समोयारे ॥ १२१. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे नवविहे पण्णत्ते, तं जहा गाहा— १. संतपयपरूवणया २ दव्वपमाणं च ३. खेत्त ५. कालो य ६. अंतरं ७ भाग ८ भाव E. नियमा अत्थि । १२२. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई कि अत्थि ? नत्थि ' ? 'नेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाई कि अत्थि ? नत्थि ? नियमा अत्थि । नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाई कि अत्थि ? नत्थि ? नियमा अत्थि " 1 १२३. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाई ? असंखेज्जाई ? अनंताई ? नो संखेज्जाइं नो असंखेज्जाई, अणंताई । ' एवं दोणि वि" || १. अट्ठ भंगा भाणियव्वा ( क ) । २. आणुपुव्वदव्वाई ( ख, ग ) । ३. एवं अणाणुपुव्विदव्वाइं अव्वत्तव्वाणि वि सट्टा सट्टाणे समोयारेयव्वाणि ( क ) । ४. खित्त ( ग ) । ४. फुसणा य । अप्पाबहुं चेव ॥१॥ ५. णत्थि ( ग ) । ६. एवं दोणि वि ( क ) । ७. एवं अणाणुपुव्विदव्वाई अवत्तव्वगदव्वाई च अनंताई भाणियव्वाई ( ख, ग ) 1 Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गदराई १२४. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई लोगस्स 'कति भागे होज्जा" - किं संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे' होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागे सु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ? एगदव्वं' पडुच्च लोगस्स' संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, सव्वलोए वा होज्जा । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । गम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाडं लोगस्स 'कति भागे होज्जा" - किं संसेज्जइभागे होज्जा" ? •असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ? एगदव्वं पडुच्व लोगस्स' नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागे होज्जा, नो सव्वलोएं होज्जा । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि || १२५. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं लोगस्स 'कति भागं फुसंति" - किं संखेज्जइभागं संति ? असंखेज्जइभागं फुसंति ? 'संखेज्जे भागे " फुसंति ? 'असंखेज्जे भागे १२ फुसंति ? सव्वलोगं फुसंति ? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागं वा फुसंति, 'असंखेज्जइभागं वा फुसंति, संखेज्जे भागे वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा फुर्सति'", सव्वलोगं वा संति । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति । ३११ गम-ववहाराणं 'अणाणुपुव्विदव्वाणं पुच्छा"" । एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागं फुसंति, असंखेज्जइभागं फुसंति नो संखेज्जे भागे फुसंति, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नो सव्वलोगं संति । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति । एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि भाणियव्वाणि" ।। १२६. नेगम-ववहारांणं आणुपुव्विदव्वाई कालओ केवच्चिरं" होंति ? एगदव्वं" पडुच्च जहणेण एगं" समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा १. x ( ख, ग ) ; अर्षत्वाद् भवति, अवगाहन्ते इति यावत् (वृ ) । २. संखेज्जइमे भागे ( क ) । ३. असंखेज्जइमे भागे ( क ) । ४. एगं दव्वं (क, ख, ग ) । ५. x ( क, ख, ग ) ६. चिन्हाङ्कितः पाठः आदर्शेषु नोपलभ्यते, किन्तु 'क' प्रतौ आनुपूर्वी प्रश्ने 'कति भागे होज्जा' इति पाठो लभ्यते स चात्रापि तथैव युज्यते, इत्यस्माभिः स्वीकृत: । ७. सं० पा० - होज्जा जाव सव्वलोए । ८. X ( क, ख, ग ) । ६. एवं अवत्तव्वगदव्वाइं भाणियव्वाई ( ख, ग ) । १०. x ( क, ख, ग ) | ११. संखेज्जभागे (क) । १२. असंखेज्जधागे ( क ) । १३. जाव ( ख, ग ) । १४. दव्वाई लोगस्स कि संखेज्जइभागं फुसंति जाव सव्वलोगं फुसंति ( ख, ग ) । १५. एवं अवत्तव्वगदव्वाई भाणियव्वाइं ( ख, ग ) । १६. केवचिरं ( ख, ग ) सर्वत्र । १७. एगं दव्वं (क, ख, ग ) । १८. एक्कं ( क ) । Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ अणुओगदाराई सव्वद्धा । 'एवं दोण्णि वि' ।। १२७. नगम-ववहाराणं आणपुग्विदव्वाणं 'अंतरं कालओ केवच्चिर'२ होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं । नाणादव्वाइ पडुच्च नत्थि अंतरं। नेगम-ववहाराणं अणाणुपुग्विदव्वाणं 'अंतरं कालओ केवच्चिरं" होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं, उवकोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं। नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदम्वाणं 'अंतरं कालओ केवच्चिर" होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं । नाणादव्वाइ पडुच्च नत्थि अंतरं ।। १२८. नेगम-ववहाराणं आणविदवाइं सेसदव्वाणं कइ भागे होज्जा-कि संखेज्जइ भागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? नो संखेज्जइभागे होज्जा, नो असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा। नेगम-ववहाराणं 'अणाणपुग्विदव्वाइं सेसदवाणं कइ भागे होज्जा-कि संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा । एवं अवतव्वगदव्वाणि वि। १२६. नेगम-ववहाराणं आणपुव्विदव्वाइं कयरम्मि भावे होज्जा-किं उदइए भावे होज्जा ? उवसमिए भावे होज्जा ? खइए भावे होज्जा ? खओवसमिए भावे होज्जा ? पारिणानिए भावे होज्जा ? 'सन्निवाइए भावे होज्जा?" नियमा साइ पारिणामिए भावे होज्जा । ‘एवं दोण्णि वि। १३०. एएसि णं" नेगम-ववहाराणं आणपुग्विदव्वाणं अणाणपुग्विदव्वाणं" अवत्तव्वग दव्वाण य दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? १. अणाणुपुग्विदव्वाइं अवत्तव्वगदम्बाइं च एवं ७. वि भाणियन्वाणि (ख, ग)। चेव भाणिअव्वाइं (ख, ग)। ८. हुज्जा (क)। २. कालओ केवच्चिरं अंतरं (क); केवतियं ६. खाइए (क)। कालं अंतरं (चू); ° केच्चिरं (हा)। १०. खाओवसमिए (क)। ३. कालओ केवइयं अंतरं (क)। ११. ४ (क, चू)। ४. कालओ केवच्चिरं अंतरं (क)। १२. अणाणुपुग्विदव्वाणि अवत्तव्वयदव्वाणि य ५. सेसगदव्वाणं (चू)। ___ एवं चेव भाणिय व्वाणि (ख, ग)। ६. अणाणुपुग्विदव्वाणं पुच्छा, असंखेज्जइभागे १३. णं भंते, (क, है)। होज्जा, सेसेसु पडिसेहो (क)। १४. दव्वाण य (क)। Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३१३ बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवाई' नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदम्वाइं दवट्ठयाए, अणाणुपुग्विदन्वाइं दव्वट्ठयाए विसेसाहियाइं, आणुपुन्धिदव्वाइं दवट्ठयाए असंखेज्जगुणाई । पएसट्ठयाए-सव्वत्थोवाइं नेगम-ववहाराणं अणाणुपुग्विदव्वाइं अपएसट्टयाए, अवत्तव्वगदव्वाइं पएसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुग्विदव्वाइं पएसट्ठयाए अणंतगुणाई । दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए-सव्वत्थोवाइं नेगमववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं दव्वट्ठयाए, अणाणुपुग्विदव्वाइं दव्वट्ठयाए अपएसट्टयाए विसेसाहियाई, अवत्तव्वगदव्वाई पएसट्ठयाए विसेसाहियाई, आणुपुग्विदव्वाई दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणाई, ताई चेव पएसट्टयाए अणंतगुणाई। से तं अणुगमे । से तं नेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दव्वाणुपुथ्वी ॥ संगहस्स अगोवणिहिय-दन्वाणपुव्वी-पदं १३१. से किं तं संगहस्स अणोवगिहिया दवाणुमुम्बो ? संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणु पुन्वी पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अणुगमे । १३२. से कि तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया-तिपएसिया' आणुपुव्वी 'चउपएसिया आणुपुत्वी जाव दसपएसिया आणपुन्वी संखेज्जपएसिया आणुपुव्वी असंखेज्जपएसिया आणुपुन्वी" अणंतपएसिया आणुपुन्वी । परमाणु पोग्गला अणाणुपुवी । दुपएसिया' अवत्तव्वए । से तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ।। १३३. एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं ? एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरू वणयाए भंगसमुक्कित्तणया कीरइ ।।। १३४. से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया? संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया--१. अत्थि आणपुव्वी २. अत्थि अणाणपुव्वी ३. अस्थि अवत्तव्वए अहवा ४. अत्थि आणुपुम्वी य अणाणपुवी य अहवा ५. अत्थि आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. अत्थि अणाणुपुत्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. अत्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य अवत्तग्वए य । एवं एए सत्त भंगा । से तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया ।। १३५. एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं ? एयाए णं संगहस्स भंगसमु क्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कीरइ ॥ १३६ से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया ? संगहस्स भंगोवदंसणया-१. तिपएसिया आण पुवी २. परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वी ३. दुपएसिया अवत्तव्वए अहवा ४. तिपए सिया य परमाणुपोग्गला य आणुपुन्वी य अणाणुपुव्वी य अहवा ५. तिपएसिया य १.गोयमा सव्वत्थोवाइं (क)। ५. दुपएसिए (ख, ग)। २. तिपएसिए (ख, ग)। ६. कज्जइ (ग)। ३. जाव (क)। ७. ४ (क)। ४. पोग्गले (क, ख, ग)। ८. संगहस्स अंगो० (ख, ग)। Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ अणुओगदारा दुपसिया य आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य अहवा ६. परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अणाणुपुब्वी य अवत्तव्वए य अहवा ७. तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य दुपए सिया य आणुपुवीय अणुपुव्वी य अवत्तव्वए य । [ एवं एए सत्त भंगा' ? ] । से तं संगहस्स भंगोवदंसणया || १३७. से किं तं समोयारे' ? समोयारे – संगहस्स आणुपुव्विदव्वाई कहिं समोयरंति ? किं आणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति ? अणाणुपुव्विदेहिं समोयरंति ? अवत्तव्वगदव्वेहि समोयरंति ? 'संगहस्स आणुपुव्विदव्वाइं आणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अणाणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अवत्तव्वगदव्वेहिं समोयरंति । एवं दोण्णि वि सट्टा समोयरंति" । से तं समोयारे ॥ १३८. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे अट्ठविहे पण्णत्त े, तं जहा गाहा १. संतपयपरूवणया, २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य । ५. कालो य ६. अंतरं ७ भाग ८. भाव अप्पाबहुं नत्थि ॥ १ ॥ १३६. संगहस्स आणुपुव्विदव्वाई कि अत्थि ? नत्थि ? नियमा अत्थि । ' एवं दोणि वि" ।। १४०. संगहस्स आणुपुव्विदव्वाई किं संखेज्जाई ? असंखेज्जाई ? अनंताई ? नो संखेज्जाई नो असंखेज्जाई नो अंणताई, नियमा एगो रासी । ' एवं दोण्णि वि" ॥ १४१. संगहस्स आणुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा - किं संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ? नो'. संखेज्जइभागे होज्जा, नो असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु . होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सव्वलोए होज्जा । ' एवं दोणि वि ॥ १४२. संगहस्स आणुपुव्विदव्वाइं लोगस्स 'कति भागं फुसंति" - किं संखेज्जइभागं फुसंति ? असंखेज्जइभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे फुसंति ? असंखेज्जे भागे फुसंति ? सव्वलोगं संति ? नो संखेज्जइभागं फुसंति", नो असंखेज्जइभागं फुसंति, नो संखेज्जे भागे फुसंति, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नियमा सव्वलोगं फुसंति । ' एवं दोणि वि" ।। १. असौ पाठः १३४ सूत्रे विद्यते । २. संगहस्स समोयारे ( क, ख, ग ) । ३. तिणि वि सट्ठाणे समोयरंति ( ग ); चिन्हाङ्कितपाठस्थाने 'ग' प्रतौ एतावानेव पाठोस्ति । असौ हरिभद्रसूरिणा पाठान्तरत्वेन उल्लिखितोस्ति पाठान्तरं वा सट्टाणे समोयरंति (हा ) | ४५. एवं तिणि वि ( ख, ग ) । ६. संगहस्स आणुपुव्विदव्वाइं नो (क, ख, ग ) ।. ७. एवं तिणि वि ( ख, ग ) । ८. ( क, ख, ग ) । • ६. सं० पा० - फुसंति जाव नियमा । १०. एवं तिणि वि ( ख, ग ) । Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३१५ १४३. संगहस्स आणुपुन्विदव्वाइं कालओ केवच्चिरं होंति ? सव्वद्धा। ‘एवं दोण्णि वि"॥ १४४. संगहस्स 'आणुपुव्विदव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिर" होइ ? नत्थि अंतरं । एवं दोण्णि वि॥ १४५. संगहस्स आणुपुग्विदव्वाइं सेसदव्वाणं कइ भागे होज्जा-किं संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागे होज्जा ? नो संखेज्जइभागे होज्जा, नो असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा तिभागे होज्जा। ‘एवं दोण्णि वि" ॥ १४६. संगहस्स आणुपुग्विदव्वाइं कयरम्मि भावे होज्जा ? नियमा साइपारिणामिए भावे होज्जा । 'एवं दोण्णि वि'। अप्पाबहु नत्थि । से तं अणुगमे । से तं संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी । से तं अणोवणि हिया दव्वाणुपुवी ॥ मोवणिहिय-बव्वाणुपुवी-पवं १४७. से किं तं ओवणिहिया दव्वाणुपुवी ? ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्वाणु पुवी पच्छाणुपुत्वी अणाणुपुवी ॥ १४८. से किं तं पुव्वाणुपुवी ? पुन्वाणुपुव्वी-धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगास त्थि काए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए' अद्धासमए । से तं पुव्वाणुपुव्वी ॥ १४६. से कि तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुव्वी—अद्धासमए •पोग्गलत्थिकाए जीवत्थि काए आगासत्थिकाए अधम्मत्विकाए धम्मत्थिकाए । से तं पच्छाणुपुवी ॥ १५.. से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुवी-एयाए चेव एगाइयाए' एगुत्तरियाए" छगच्छगयाए सेढोए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। से तं अणाणुपुव्वी॥ १५१. अहवा ओवणि हिया दव्वाणुपुवी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–पुव्वाणुपुवी पच्छाणु पुन्वी अणाणुपुवी ॥ १५२. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी-परमाणुपोग्गले दुपए सिए तिपएसिए जाव 'दसपए सिए संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए१ अणंतपएसिए । से तं पुव्वाण पुव्वी॥ १. एवं तिण्णि वि (ख, ग)। ६. पुग्गल (ग)। २. 'दव्वाइं कालओ केवच्चिरं अंतरं (क)। ७. सं० पा०—अद्धासमए जाव धम्मत्थिकाए । ३. एवं तिणि वि (ग)। ८. एतेसि (चू)। ४. १२६ सूत्राङ्क एष पाठः पूर्णोस्ति, अत्र ६. एगादियाए (ग)। संक्षिप्तः पाठो वर्तते। १०. एगोत्तराए (चू)। ५. एवं तिण्णि वि (ग)। ११. ४ (क)। Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुजोगदाराई १५३. से किं तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुत्वी-अणंतपएसिए' असंखेज्जपएसिए संखेज्ज पएसिए दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए° परमाणुपोग्गले। से तं पच्छाणु पुन्वी॥ १५४. से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुत्वी-एयाए' चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अणंत गच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवणो । से तं अणाणुपुवी । से तं ओवणिहिया दव्वाणुपुवी। ‘से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ता दव्वाणुपुवी। से तं नोआगमओ दव्वाणुपुत्वी" । से तं दवाणुपुव्वी ॥ खेत्ताणपुष्वी-पर्व १५५. से किं तं खेत्ताणुपुवी ? खेत्ताणुपुत्वी दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–ओवणिहिया य अणोवणि हिया य॥ १५६. तत्थ णं जा सा ओवणिहिया सा ठप्पा ॥ १५७. तत्थ णं जा सा अणोवणि हिया सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-नेगम-ववहाराणं संगहस्स य॥ नेगम-ववहाराणं अणोवणिहिय-खेत्ताणपुव्वी-पदं १५८. से कि तं नेगम-ववहाराणं अणोवणि हिया खेत्ताणपुवी ? नेगम-ववहाराणं अणोव णिहिया खेत्ताणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-१ अट्ठपयपरूवणया २ भंगसमु क्कित्तणया ३ भंगोवदंसणया ४ समोयारे ५ अणुगमे ।। १५६. से किं तं 'नेगम-ववहाराणं" अट्ठपयपरूवणया ? नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरू वणया-तिपएसोगाढे आणुपुव्वी 'चउपएसोगाढे आणुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे आणपुवी संखेज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी" असंखेज्जपएसोगाढे आणुपुवी। एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी। दुपएसोगाढे अवत्तव्वए । तिपएसोगाढा आणुपुव्वीओ 'चउपएसोगाढा आणपुव्वीओ जाव दसपएसोगाढा आणुपुव्वीओ संखेज्जपएसोगाढा आणुपुव्वीओ" असंखेज्जपएसोगाढा आणुपुव्वीओ। एगपएसोगाढा अणाणुपुव्वीओ। दुपएसोगाढा अवत्तव्वगाइं । से तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ॥ . १६०. एयाए णं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए कि पओयणं ? एयाए णं नेगम ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया कज्जइ ॥ १६१. से कि तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ? नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कि१. सं० पा०–अणंतपएसिए जाव परमाणु- ४. ४ (क)। पोग्गले। ५. जाव (क)। २. एतेसि (चू)। ६. जाव (क)। ३. ४ (क)। ७. कीरइ (क)। Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३१७ त्तणया-१. अत्थि आणुपुवी' २. अत्थि अणाणुपुव्वी' ३. अस्थि अवत्तव्वए । एवं दव्वाणुपुन्विगमेणं खेत्ताणुपुवीए वि ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव' से तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ॥ १६२. एयाए णं नेगम-ववहाराणं भंगसमु विकत्तणयाए किं पओयणं ? एयाए णं नेगम ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कीरइ ॥ १६३. से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया १. तिपएसोगाढे आणुपुत्वी २. एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी ३. दुपएसोगाढे अवत्तव्वए ४. तिपएसोगाढा आणुपुल्वीओ ५. एगपएसोगाढा अणाणुपुवीओ ६. दुपएसोगाढा अवत्तन्वयाइं । अहवा १ तिपएसोगाढे य एगपएसोगाढे य आणुपुत्वी य अणाणुपुन्वी य। एवं तहा चेव दवाणुपुस्विगमेणं छन्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव' । से तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ॥ १६४. से किं तं समोयारे ? समोयारे-नेगम-ववहाराणं आणुपुविदव्वाइं कहिं समो यरंति-किं आणुपुविदव्वेहिं समोयरंति ? अणाणपुग्विदग्वेहिं समोयरंति ? अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति ? 'नेगम-ववहाराणं आणुपुग्विदव्वाइं आणुपुग्विदव्वेहि समोयरंति, नो अणाणपुग्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति । एवं दोण्णि वि सट्ठाणे समोयरंति त्ति भाणियव्वं" । से तं समोयारे । १६५. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे नवविहे पण्णत्ते, तं जहागाहा १. संतपयपरूवणया', '२. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य । ५. कालो य ६. अंतरं ७. भाग ८. भाव° ६. अप्पाबहुं चेव ॥१॥ १६६. नेगम-ववहाराणं आणुपुग्विदवाई कि अस्थि ? नत्थि ? नियमा अस्थि । एवं दोण्णि वि॥ १६७. नेगम-ववहाराणं आणव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं ? अणंताइं? नो संखेज्जाइं, 'असंखेज्जाइं, नो अणंताई"। एवं दोण्णि वि ॥ १६८. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई" लोगस्स 'कति भागे होज्जा—कि संखेज्जइ१. पुन्वी य (क)। ६. अणु० सू० ११६ । २. 'पुव्वी य (क)। ७. तिणि वि सटाणे समोयरंति ति भाणियव्वं ३. व्वए य (क)। ४. अतः १६४ सूत्रपर्यन्तं 'क' प्रतौ संक्षिप्त- ८. सं० पा०-संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं । वाचना दृश्यते-एवं जहेव हेटा तहेव नेयव्वं, ६. खेत्ताणुपुव्वीदवाई (क)। नवरं ओगाढा भाणियव्वा, भंगोवदंसणया १०. नो अणंताई नियमा असंखेज्जाइं (क)। तहेव समोयारे य । ११. खेत्ताणुपुव्वीदव्वाइं (क)। ५. अणु० सू० ११७ । १२. ४ (ख, ग)। व्वाई ( कमाई (क), १२. x Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ अणुओगदाराई भागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइशागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे 'लोए वा" होज्जा। नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा। नेगम-ववहाराणं 'अणाणुपुन्विदव्वाणं पुच्छा। एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो सव्वलोए होज्जा । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि भाणियव्वाणि ॥ ६६. नेगम-ववहाराणं आणपुन्विदव्वाइं लोगस्स कति भागं फुसंति-किं संखेज्जइभागं फुसंति ? असंखेज्जइभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे फुसंति ? असंखेज्जं भागे फुसंति ? सव्वलोग फुसंति ? एगदव्वं पडुच्च संखेज्जइभागं वा फूसंति, असंखेज्जइभागं वा फुसंति, संखेज्जे भागे वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा फुसंति, देसूणं लोगं वा फुसंति । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति । अणाणुपुविदव्वाई अवत्तव्वगदव्वाइं च जहा खेत्तं नवरं फुसणा भाणियव्वा' ।। .. नेगम-ववहाराणं आणुपुविदव्वाइं कालओ केवच्चिरं होंति ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वद्धा । ‘एवं दोण्णि वि"॥ : १. नेगम-ववहाराणं 'आणपुग्विदव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिरं" होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं । नाणादव्वाई पडुच्च नत्थि अंतरं । ‘एवं दोण्णि वि'१॥ । २. नेगम-ववहाराणं आणविदव्वाइं सेसदव्वाणं कइ भागे होज्जा ? 'तिण्णि वि जहा दव्वाणुपुवीए'१२॥ । ३. नेगम-ववहाराणं आणव्विदव्वाइं कयरम्मि भावे होज्जा ? नियमा" साइपारि? एग दव्वं (क, ख, ग)। ६. दवाई कालओ केवच्चिरं अंतरं (क) । २ वा लोए (क)। १०. तिण्हं पि एगं दव्वं (ख, ग)। ३. अणाणुपुव्वीदव्वाइं अवत्तव्वगदव्वाणि य ज हेव ११. x (ख, ग)। हेद्रा तहेव नेयवाणि (क, हेपा) । १२. कि संखेज्जइभागे, एवं पुच्छा निव्वयणं च ४. अणु० सू० १६८ । जहेव हेवा तहेव नेयव्वं । अणाणपूविदव्वाई ५. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क' प्रतौ संक्षिप्तपाठो अवत्तब्वयदव्वाणि वि जहेव हेटा (क) । विद्यते-फुसणा वि तहेव । अणु० सू० १२८ । ६. तिण्हं पि एगं दव्वं (ख) । १३. १२६ सूत्रांके एष पाठः पूर्णोस्ति, अत्र संक्षिप्त: ७ x (क); तिण्हं पि नियमा (ख)। पाठो वर्तते । r. x (ख)। १४. तिण्णि वि नियमा (ख, ग)। Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई म भावे होज्जा । ' एवं दोणि वि" ॥ १७४. एएसि णं नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाणं अणाणुपुव्विदव्वाणं' अवत्तव्वगदव्वाण य दव्वट्टयाए एसट्टयाए दव्वट्ट-पए सट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसा हिया वा ? 'सव्वत्थोवाई' नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं दव्वट्टयाए, अणाणुपुव्विदव्वाइं दव्वट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्विदव्वाई दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाई । पएसट्टयाए - सव्वत्थोवाई नेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाई अपएसट्टयाए, अवत्तव्वगदव्वाई पसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्विदवाई पट्टयाए असंखेज्जगुणाई । दव्वट्ट - प एसट्टयाए – सव्वत्थोवाइं नेगमववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाई दव्वट्टयाए, अणाणु पुव्विदव्वाई दव्वट्टयाए अपएसया विसेसाहियाई, अवत्तव्वगदव्वाई पएसट्टयाए विसेसा हियाई, आणुपुव्विदव्वाइं दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाई, ताई चेव पएसट्टयाए असंखेज्जगुणाई" । से तं अणु । से तं नेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी ॥ संगहल्स अजोवणिहिय-बेतान पुम्बी-परं १७५. से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी ? जहेव' दव्वाणुपुव्वी तहेव खेत्ताणु भंगसमुक्कित्तणया कज्जति । से कि तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया ? २ अत्थि आणुपुव्वी अस्थि अणाणुपुन्वी अस्थि अवत्तव्वए । अहवा अस्थि आणुपुथ्वी य अणाणुपुव्वी य । एवं जहा दव्वाणुपुब्वीए संगहस्स तहा भाणियव्वं जाव से तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया । एआए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए कि पओअणं ? एआए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तयाए संगहस्स भंगोवदंसणया कज्जति । १. x ( ख, ग ) । २. भंते ( क ) । ३. दव्वाण य ( क ) 1 ४. ( क ) । ५. गोयमा सव्वत्थोवाइं ( क ) । ६. जहा दव्वाणुपुव्वीए तहा भाणियव्वं नवरं अतगं गत्थि ( ग ) । ७. अणु० सू० १३१-१४६ । वृत्तौ विस्तृता वाचना लभ्यते—संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुब्वी पंच विहा पण्णत्ता, तं जहा - १. अट्ठपयपरूवया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोतारे ५. अणुगमे । से कि तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? २ तिपएसोगाढे आणुपुव्वी उप सोगाढे आणुपुब्वी जाव दसपएसोगाढे आणुपुव्वी संखिज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी असंखिज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी । एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी । दुपए सोगाढे अवत्तव्वए । से तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया । एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए कि पओअणं ? एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए संगहस्स ३१ε से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया ? २ तिपएसोगाढे आणुपुव्वी एगपए सोगाढे अणाणुपुब्बी दुपसगाढे अवत्तव्वए । अहवा तिपएसोगाढे य एगपएसोगाढे य आणुपुव्वी य अणाणुपुथ्वी य । एवं जहा दव्वाणुपुव्वीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुव्वीए वि भाणिअव्वं जाव से तं संगहस्स भंगोवदंसणया । से किं तं समोआरे ? २ - संगहस्स आणुपुव्विदव्वाई कहिं समोतरंति — किं आणुपुव्विदव्वेहिं समोतरंति ? अणाणुपुब्विदव्वेहिं ? अवत्तव्वगदव्वेहिं ? तिष्णिवि Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० अणुओगदाराई पुवी वि णेयव्वा । से तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुवी। से तं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी॥ ओवणिहिय-खेत्तापुयी-पर १७६. से कि तं ओवणिहिया खेत्ताणुपुत्वी ? ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, __ तं जहा-पुव्वाणुपुत्वी पच्छाणुपुब्बो अणाणुपुवी ॥ १७७. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी–अहोलोए तिरियलोए उड्ढलोए। से तं पुव्वाणुपुवी ॥ १७८. से कि तं पच्छाणुपुष्वी ? ५च्छाण पुवी-उड्ढलोए तिरियलोए अहोलोए। से तं पच्छाणुपुवी॥ १७६. से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणु पुथ्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छ गयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुव्वी॥ १८०. अहोलोयखेत्ताणुपुव्वी' तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाणुपुव्वी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुवी ॥ १८१. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी- रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा 'पंकसटाणे समोतरंति । से तं समोआरे। से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुव्वी-एयाए से कि तं अणुगमे ? २-अट्टविहे पण्णत्ते, चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छ - तं जहा--संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं गयाए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। से तं नत्थि । संगहस्स आणुपुव्विदव्वाइं कि अत्थि ? अणाणुपुवी। नत्थि ? निअमा अस्थि । एवं तिण्णि वि । अहवा ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा सेसदारगाइं जहा दव्वाणुपुवीए संगहस्स तहा पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाणुपुची पच्छाणुपुवी खेत्ताणुपुव्वीए वि भाणिअव्वाइं जाव से तं अणाणुपुवी। अणुगमे (ख, ग); नवरं क्षेत्रप्राधान्यादत्र से कि तं पुव्वाणुपुवी? २ अहोलोए इत्यादि'तिपएसोगाढा आणुपुवी जाव असंखेज्ज- पाठः स्वीकृतपाठवत् (१७७ से १६१ सूत्रपएसोगाढा : आणुपुव्वी एगपएसोगाढा अणा पर्यन्तं) वाच्यः । अस्यां वाचनायां स्वीकृतणुपुव्वी दुपएसोगाढा अवत्तव्वए' इत्यादि वक्त- पाठस्य १९२-१६५ एतानि सूत्राणि न पठनीव्यम् (हे)। यानि । १. अतः परं केषुचिदादर्शषु भिन्ना वाचना मलधारिहेमचन्द्रसूरिणाप्यस्य पाठान्तरस्य दृश्यते-से किं तं पुवाणुपुव्वी ? पुव्वाणु- सूचना कृतास्ति-अत्र च क्वचिद्वाचनान्तरे पुव्वी-एगपएसोगाढे जाव असंखेज्जपएसो- एकप्रदेशावगाढादीनामसङ्ख्यातप्रदेशावगाढानगाढे । से तं पुव्वाणुपुवी। तानां प्रथमं पूर्वानुपूर्व्यादिभाव उक्तो दृश्यते, से कि तं पच्छापूवी? पच्छाणुपुवी- सोपि क्षेत्रानुपूर्व्यधिकारादविरुद्ध एव, सुगमअसंखेज्जपएसोगाढे जाव एग पएसोगाढे । से त्वाच्चोक्तानुसारेण भावनीय इति । तं पच्छाणुपुवी। २. अहोलोए (क, ग)। Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३२१ प्पभा धूमप्पभा तमा' तमतमा । से तं पुव्वाणुपुन्वी ॥ १८२. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी-तमतमा' 'तमा धूमप्पभा पंकप्पभा वालुयप्पभा सक्करप्पभा रयणप्पभा । से तं पच्छाणुपुवी ॥ १८३. से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुव्वी--एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए सत्तग च्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुवी। १८४. तिरियलोयखेत्ताणुपुत्वी' तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाणुपुव्वी पच्छाणुपुन्वी अणाणुपुवी॥ १८५. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वीगाहा जंबद्दीवे लवणे, धायइ-कालोय-पुक्खरे' वरुणे। खीर-घय-खोय-'नंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥१॥ 'जंबुद्दीवाओ खलु निरन्तरा सेसया असंखइमा। भयगवर-कसवरा विय. कोंचवराडाभरणमाईया" ॥२॥ आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल-तिलए य पुढवि-निहि-रयणे । वासहर-दह-नईओ विजया वक्खार-कप्पिदा ॥३॥ कुरु-मंदर-आवासा, कूडा नक्खत्त-चंद-सूरा य । देवे नागे जक्खे, भूए य सयंभुरमणे" य ॥४॥ से तं पुव्वाणुपुवी ॥ १. तमप्पभा (चू, हे)। वासः कुण्डलवरः शङ्खवरः रुचकवर इत्येवं षड् २. जाव तमतमप्पभा (क); महातमप्पभा द्वीपनामानि चूणौं लिखितानि दृश्यन्ते, सूत्रे तु (चू, हे)। 'नन्दी अरुणवरे कुण्डले रुयगे' इत्येतस्मिन् ३. सं० पा०-तमतमा जाव रयणप्पभा । गाथादले चत्वार्येव तान्युपलभ्यन्ते, अत: ४. तिरियलोगे (क)। चूणिलिखितानुसारेण रुचकस्त्रयोदशः, सूत्र५. लवणो (क)। लिखितानुसारतस्तु स एवैकादशो भवति, ६. पुक्खरो (क)। तत्त्वं तु केव लिनो विदन्तीति गाथार्थः (हे)। ७. रुयए (क)। ६.x (क, ख, ग); इयं च गाथा कस्याञ्चि८. इमे दीवणामा–णंदीस्सरवरदीवो अरुणवरो द्वाचनायां न दृश्यते एव, केवलं क्वापि वाचना दीवो अरुणावासो दीवो कुंडलो दीवो संखवरो विशेष दृश्यते, टीकाचूर्योस्तु तद्व्याख्यानदीवो रुयगवरो (चू); इमे दीवणामा, मुपलभ्यत इत्यस्माभिरपि व्याख्यातेति (हे)। तं जहा-णंदीसरो दीवो अरुणवरो दीवो जीवाजीवाभिगमे (३१७७५) प्रथमा तृतीया अरुणावासो दीवो कुंडलो दीवो (हा); तत्र चतुर्थी च अर्धा गाथा उपलभ्यते । द्वीपनामान्यमूनि, तद्यथा नन्दी-समृद्धिस्तया १०. पउमे (क)। ईश्वरो द्वीपो नन्दीश्वरः, एवमरुणवर: अरुणा- ११. सयंभूरमणे (ख, ग)। Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ अणुओगदाराई १८६. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी-सयंभुरमणे जाव' जंबुद्दीवे। से तं पच्छाणुपुव्वी॥ १८७. से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुवी। १८८. उड्ढलोयखेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाणुपुन्वी पच्छाणुपुवी अणाणुपुव्वी॥ १८६. से किं तं पुव्वाणुपुत्वी ? पुव्वाणुपुव्वी-१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए. ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ६. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा' १४. अणुत्तरविमाणा' १५. ईसिप्पन्भारा। से तं पुव्वाणुपुव्वी॥ १६१. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी-ईसिपब्भारा जाव' सोहम्मे । से तं पच्छा णुपुव्वी॥ १६१. से किं तं अणाणुपुन्वी ? अणाणुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए पन्नरस गच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुव्वी ॥ १६२. अहवा ओवणि हिया खेत्ताणुपुत्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाणुपुन्वी पच्छा__णुपुव्वी अणाणुपुव्वी॥ १९३. से किं तं पुव्वाणुपुन्वी ? पुव्वाणुपुत्वी-एगपएसोगाढे दुएपसोगाढे जाव असंखेज्ज पएसोगाढे । से तं पुव्वाणुपुव्वी॥ १६४. से किं तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुवी-असंखेज्जपएसोगाढे जाव एगपएसोगाढे । से तं पच्छाणुपुव्वी॥ १६५. से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुव्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखे ज्जगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। से तं अणाणुपुव्वी। से तं ओव__ णिहिया खेत्ताणुपुव्वी । से तं खेत्ताणुपुव्वी ॥ कालाणपुग्वी-पदं १६६. से किं तं कालाणुपुव्वी ? कालाणुपुव्वी दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-ओवणिहिया य अणोवणि हिया य॥ १६७. तत्थ णं जा सा ओवणि हिया सा ठप्पा ॥ १६८. तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–नेगम-ववहाराणं संगहस्स य॥ मेगम-ववहाराणं अणोवणिहिय-कालाणपुग्वी-पदं १६६. से किं तं नेगम-ववहाराणं अणोवणि हिया कालाणुपुव्वी ? नेगम-ववहाराणं १. अणु० सू० १८५। ४. ईसी० (क)। २,३. 'विमाणे (ख, ग)। ५. अणु० सू० १८६ । Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३२३ अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा–१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अणुगमे । २००. से किं तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ? नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया तिसमयट्ठिईए आणुपुन्वी जाव 'दससमयट्ठिईए आणुपुव्वी संखेज्जसमयट्ठिईए आणुपुव्वी" असंखेज्जसमयट्ठिईए आणुपुवी। एगसमयट्टिईए अणाणुपुव्वी। दुसमयट्ठिईए अवत्तव्वए। तिसमयट्टिईयाओ आणुपुव्वीओ जाव 'दससमयट्टिईयाओ आणुपुव्वीओ संखेज्जसमयट्ठिईयाओ आणुपुव्वीओ' असंखेज्जसमयट्टिईयाओ आणुपुव्वीओ। एगसमयट्ठिईयाओ अणाणुपुव्वीओ। दुसमयट्टिईयाओ' अवत्तव्वगाइं । से तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ॥ २०१. एयाए णं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं ? एयाए णं नेगम-ववहा राणं अट्ठपयपरूवयणाए भंगसमुक्कित्तणया कज्जइ ।। २०२. से किं तं नेगमववहाराणं भंगस मक्कित्तणया? नेगम-ववहाराणं भंगसमक्कित्तणया --१. अत्थि आणपुव्वी २. अत्थि अणाणपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए । एवं दवाणपुश्विगमेणं कालाणपुव्वीए वि ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव" । से तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ॥ २०३. एयाए णं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं ? एयाए णं नेगम ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कज्जइ॥ २०४. से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया-१ तिसमयट्टिईए आणपुव्वी २. एगसमयदिईए अणाणपुव्वी ३. दुसमयदिईए अवत्तव्वए ४. तिसमयट्टिईयाओ' आणुपुवीओ ५. एगसमयट्टिईयाओ" अणाणुपुवीओ ६. दुसमयट्टिईयाओ" अवत्तव्वगाई । अहवा १. तिसमयट्ठिईए य एगसमयट्टिईए य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य। एवं तहा चेव दव्वाणुपुश्विगमेणं छव्वीसं भंगा भाणियव्वा" जाव" । से तं नेगम ववहाराणं भंगोवदंसणया ।। २०५. से किं तं समोयारे ? समोयारे-नेगम-ववहाराणं आणुपुश्विदव्वाइं कहिं समोय रंति-'किं आणपुग्विदव्वेहिं समोयरंति–पुच्छा । नेगम-ववहाराणं आणपुब्वि दव्वाइं आणुपुग्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अणाणुपुव्विद वेहि समोयरंति, नो अवत्त१,२. x (क)। ७. अणु० सू० ११७ । ३. ट्ठिईयोइं (क, ख, ग)। ८. नेगमववहाराणं भंगोवदंसणया (ख, ग)। ४. नेगमववहाराणं भंगसमु० (ख, ग)। ६,१०,११. ट्ठिईया (क, ख, ग)। ५. कीरइ (क)। १२. एत्थ वि सो चेव गमो (क)। ६. णेयव्वा (क)। १३. अणु० सू० ११६ । Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ अणुओगदाराई व्वगदेहिं समोयति । एवं दोण्णि वि सद्वाणे समोयरंति" । से तं समोयारे ॥ २०६. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे नवविहे पण्णत्त े, तं जहा गाहा— १. संतपयपरूवणया, २. 'दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य । ५. कालों य ६. अंतरं ७ भाग ८. भाव° ६. अप्पाबहुं चेव ॥ १ ॥ २०७. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई किं अत्थि ? नत्थि ? नियमा 'अस्थि । एवं दोणि वि" ॥ २०८. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई किं संखेज्जाई ? असंखेज्जाई ? अनंताई ? नो संखेज्जाई, असंखेज्जाई, नो अणंताई । ' एवं दोणि वि" ॥ २०६. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई लोगस्स 'कति भागे होज्जा" - किं संखेज्जइभागे 'होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ?" एगदव्वं पडुच्च लोगस्स' संखेज्जइभागे वा "होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागे वा होज्जा, देणे" लोए वा होज्जा । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । ' एवं दोणि वि" ॥ २१०. " एवं " फुसणा वि२ ॥ २११. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई कालओ केवच्चिरं होंति ? एगदव्वं पहुन्च जहणेणं तिण्णि समया, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाइं पहुन्च सव्वद्धा । १. किं आणुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति अणाणुपुव्विदवेहि समय रंति अवत्तव्वगदव्वेहिं समोयरंति एवं तिणि विट्ठाणे समोयरंति त्ति भाणियव्वं (ख, ग ) । २. सं० पा० - संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं । ३. तिष्णि वि अत्थि ( ख, ग ) ४. तिष्णिविनो ( ख, ग ) । ५. x ( ख, ग ) । ६. x ( क, ख, ग ) । ७. होज्जा पुच्छा ( क ); होज्जा असंखेज्जइभागे होज्जा संखेज्जेसु जाव सव्वलोए होज्जा ( ख, ग ) । पुच्छासु होज्जा । एवं अवत्तव्वगदव्वाणि भाणियव्वाणि जहा खेत्ताणुपुब्वीए ( ख, ग ) ; अणाणुपुव्वी दव्वाणि एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा तो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा नो सव्वलोए होज्जा, नाणादव्वाई पडुच्च सव्वलोए होज्जा, आएसंतरेण वा सब्वपुच्छासु होज्जा । एवं अवत्तव्वगदव्वाणि भाणियव्वाणि । आएसंतरेण वा महखंधवज्जमण्णदव्वेसु आइल्लचउपुच्छासु होज्जा ( चू, हा); एतच्च सूत्रेषु प्रायो न दृश्यते, टीकाचूयस्त्वेवं व्याख्यातमुपलभ्यते ( है ) । ८. x ( क, ख, ग ) । ११. अणु० सू० २०६ । ६. होज्जा जाव पसूणे ( क ); पएसूणे ( चू, १२. फुसणा कालाणुपुव्वीए तहा चेव भाणियव्वा हापा, हेपा) । ( ख, ग ) । १०. एवं अणाणुपुव्वदव्वं आएसंतरेण वा सव्व Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३२५ नेगम-ववहाराणं अणाणुपुग्विदव्वाइं कालओ केवच्चिरं होंति ? एगदव्वं' पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं एक्कं समयं । नाणादव्वाइं पहुच्च सव्वद्धा। 'नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं कालओ केवच्चिरं होंति ? एगदव्वं पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं दो समयं । नाणादव्वाइं पडुच्च सव्वद्धा॥ २१२. नेगम-ववहाराणं आणुपुग्विदव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं दो समया । नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं। नेगम-ववहाराणं अणाणुपुग्विदव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं दो समया, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं । नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाणं 'अंतरं कालओ केवच्चिरं होई" ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं । २१३. 'नेगम-ववहाराणं आणुपुग्विदव्वाइं सेसदव्वाणं कइ भागे होज्जापुच्छा । जहेव खेत्ताणुपुवीए ॥ २१४. भावो वि तहेव ॥ २१५. अप्पाबहु पि तहेव णेयव्वं'" । से तं अणुगमे । से तं नेगम-ववहाराणं अणोवणि हिया कालाणुपुव्वी॥ संगहस्स अणोवणिहिय-कालाणपुग्वी-पवं २१६. से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुत्वी ? संगहस्स अणोवणिहिया कालाण पुव्वी पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-१. अट्ठपयपरूवणया २. 'भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अणुगमे । २१७. से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया एयाइं पंच वि दारा जहा खेत्ताणुपुव्वीए संगहस्स तहा कालाणुपुव्वीए वि भाणियव्वाणि, नवरं-ठितीअभिलावो जाव' । से तं अणुगमे । से तं संगहस्स अणोवणि हिया कालाणुपुब्वी । से तं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी ॥ ओवणिहिय-कालाणपुग्वी-पवं २१८. से' किं तं ओवणिहिया कालाणुपुव्वी ? ओवणिहिया कालाणुपुव्वी तिविहा पण्णता, तं जहा–पुव्वाणुपुन्वी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुव्वी ॥ १. एगं दव्वं (क, ख, ग) सर्वत्र । २. अवत्तव्वगदव्वाणं पुच्छा (क) । ३. पुच्छा (क, ख, ग)। ४. अणु० सू० १७२ । ५. अणु० सू० १७३ । ६. अणु० सू० १७४ । ७. भाग भाव बहुं चेव जहा खेत्ताणुपुवीए तहा भाणियव्वाइं जाव (ख, ग)। ८. अणु० सू० १७५ । ६. एवमाई जहेव खेत्ताणुपुव्वीए जाव (क) । १०. चूणौ वृत्त्योश्च २१८-२२० सूत्राणि पश्चाद् व्याख्यातानि सन्ति । उत्तरवर्तिसूत्रचतुष्टयं च पूर्व व्याख्यातमस्ति । किन्तु द्रव्यानुपूाः (सू० १४७-१५४) क्षेत्रानुपूाश्च (सू० १७६-१६५) क्रमानुसारेण अस्माभिः आदर्शगत एव पाठः स्वीकृतः। Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ अणुओगदाराई २१६. से किं तं पुव्वाणुपुब्वी ? पुव्वाणुपुव्वी – समए आवलिया आणापाणू' थोवे लवे मुहु' अहोरते पक्खे मासे उऊ' अथणे संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगें अडडे, अववंगे अववे, 'हुहुयंगे हुहुए", उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, 'अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे", अउयंगे अउएँ, नउयंगे नउए', पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीस पहेलियंगे सी पहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गल परियट्टे तीतद्धा" अणागतद्धा सव्वद्धा । से तं पुव्वाणुपुव्वी ॥ २२०. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी- सव्वद्धा जाव" समए । से तं पच्छाणुपुव्वी ॥ २२१. से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुव्वी - एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अनंतगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दुरूवूणो । सेतं अणाणुव्व ॥ २२२. अहवा ओव णिहिया कालाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - पुव्वाणुपुव्वी पच्छापुव्वी अणाणुपुव्वी । २२३. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी- एगसमय ट्ठईए 'दुसमयईएं तिसमयट्ठईए जाव दस समय ट्ठईए संखेज्जसमय दिईए" असंखेज्जसमय दिईए । से तं पुव्वाणुपुवी । २२४. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी - असंखेज्जसमयट्ठईए जाव एगसमयईए । से तं पच्छाणुपुव्वी ॥ २२५. से किं तं अणाणुपुब्वी ? अणाणुपुथ्वी - एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरिया असं - खेज्जगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुव्वी । से तं ओवणहिया कालापुव्वी से तं कालाणुपुव्वी ॥ उत्तिणापुवी-पर्व २२६. से किं तं उक्कत्तणाणुपुव्वी ? उक्कित्तणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहापुव्वाणपुव्वी पच्छा पुव्वी अणाणुपुव्वी ॥ २२७. से किं तं पुव्वाणुपुब्वी ? पुव्वाणुपुव्वी - उसमे अजिए 'संभवे अभिनंदणे सुमती १. आणू ० ( ० हा) । २. मुहुत्ते दिवसे ( क ) ; एकस्मिन् आदर्श 'दिवसे' पाठो विद्यते । 'ग' प्रतौ पूर्वं लिखितो नास्ति, पश्चात् केनचिद् मध्ये लिखितः । चूण वृत्त्योश्च नासौ व्याख्यातोस्ति, क्रमानुसारेण नासौ युज्यते । ५. हुहूए ( क ); हूहूअंगे हूहूए ( ग ) । ६. अत्थनिकरे ( क ) ; अत्थनिऊरंगे अत्थनिऊरे (हे) । ७. अजुए ( क ) । ८. नजुए ( क ) । ६. चूलिए ( क ) । १०. ईयद्धा । ३. उडू (ख, ग ), उद्दू (पु) । ४. 'क' प्रतौ अत्र पाठसंक्षेपोस्ति, यथा- एवं ११. अणु० सू० २१९ । अडडे अववे..." । १२. जाव ( क ) । Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ अणुओगदाराई पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते' धम्मे संत कुंथू अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमी अरिट्ठणेमी पासे वद्धमाणे । से तं पुव्वाणुपुव्वी ॥ २२८. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी - वद्धमाणे जाव' उसभे । से तं पच्छा - पुवी ॥ २२६. से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुव्वी- एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए चउवीसगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दुरूवणो । से तं अणाणुपुव्वी । से तं उक्कित्तgoat || गाणी-प २३०. से किं तं गणणाणुपुव्वी ? गणणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पुव्वाणुपुव्वी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुव्वी ॥ २३१. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी- एगो दस सयं सहस्सं दस सहस्साई सरसहस्सं' दससयसहस्साइं कोडी 'दसकोडीओ कोडिसयं दसकोडिसयाइं" । से तं पुव्वापुवी । २३२. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी - दसको डिसयाई' जाव' एगो । से तं पच्छावी ॥ २३३. से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुब्वी – एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसकोडिसयगच्छ्गयाए ं सेढीए अण्णमण्णन्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुब्वी । तं गणावी । ठाणापुवी-प २३४. से किं तं संठाणाणुपुव्वी ? संठाणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - पुव्वाणुपुवी पच्छा पुव्वी अणाणुपुव्वी ॥ २३५. से किं तं पुव्वाणुपुथ्वी ? पुव्वाणुपुथ्वी- समचउरंसे नग्गोह परिमंडले" साई" 'खुज्जे वामणे"" हुंडे । से तं पुव्वाणुपुब्वी ॥ १. अणतंती ( ग ) । २. जाव ( क ) । ३. वद्धमाणे पासे ( क ) 1 ४. अणु० सू० २२७ ॥ ५. एक्को ( ग ) । ६. लक्खं ( क ) । ७. x ( क ) । ८. कोडी ( क ) । ६. अणु० सू० २३१ । १०. कोडिंगच्छ्गयाए ( क ) । ११. नग्गोह मंडले (क) ( ख, ग ) । १२. सादि ( ग ) । १३. वामणे खुज्जे ( क ) । है ) ; निग्गोहमंडले Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ अणुओगदाराई २३६. से किं तं पच्छाणुपुत्रो ? पच्छाणुपुत्री-डंडे जाव' समचउरंसे । से तं पच्छाणु पुन्वी ॥ २३७. से किं तं अणाणुपुवी ? अगाणुपुवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छ गयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। से तं अणाणुपुवी। से तं संठाणाणु पुव्वी ॥ सामायारियाणपुब्बी-पवं २३८. से किं तं सामायारियाणुपुव्वी' ? सामायारियाणुपुन्वी तिविहा पण्णत्ता तं जहा पुव्वाणुपुवी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुव्वी ॥ २३६. से किं तं पुन्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वीगाहा इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया य निसी हिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणा ॥१॥ उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसविहा उ । –से तं पुव्वाणुपुवी ॥ २४०. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुवी-उवसंपया जाव' इच्छा। से तं पच्छा पुन्वी ॥ २४१. से किं तं अणाणपुन्वी ? अणाणुपुवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसगच्छ गयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो। से तं अणाणुपुवी। से तं सामायारि याणुपुवी॥ मावाणुपुवी-पदं २४२. से किं तं भावाणुपुव्वी ? भावाणुपुब्बी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–पुव्वाणुपुव्वी पच्छाणुपुवी अणाणपुवी ॥ २४३. से किं तं पुव्वाणुपुवी ? पुव्वाणुपुवी-उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारि णामिए सन्निवाइए । से तं पुव्वाणुपुत्वी ।।। २४४. से कि तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी-सन्निवाइए जाव' उदइए । से तं पच्छाणु पुवी। २४५. से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुव्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छ गयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुव्वी । से तं भावाणुपुवी। से तं आणुपुवी ॥ (आणुपुव्वीत्ति पदं समत्तं ।) १. अणु० सू० २३५। ४. इच्छागारो (ख, ग)। २. सामायारी आणुपुवी (ख, ग)। ५. अणु० सू० २४३ । ३. अणु० सू० ३३९ । Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुबोगदाराई ३२९ उवकमाणमोगदारे नाम-पवं २४६. से किं तं नामे ? नामे दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगनामे दुनामे तिनामे चउनामे पंचनामे छनामे सत्तनामे अट्ठनामे नवनामे दसनामे ॥ एननाम-पर्व २४७. से किं तं एगनामे ? एगनामेगाहा नामाणि जाणि काणि वि', दव्वाण गणाण पज्जवाणं च । तेसिं आगम-निहसे, नामंति परूविया सण्णा ॥१॥ -से तं एगनामे ॥ दुनाम-पवं २४८. से किं तं दुनामे ? दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अणेगक्खरिए य॥ २४६. से किं तं एगक्खरिए ? एगखरिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-ह्रोः श्री: धी: स्त्री। से तं एगक्खरिए॥ २५०. से किं तं अणेगक्खरिए ? अणेगक्खरिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा–कण्णा वीणा लता माला । से तं अणेगक्खरिए । २५१. अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य । २५२. से कि तं जीवनामे ? जीवनामे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा–देवदत्तो' जण्णदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो । से तं जीवनामे ।। २५३. से किं तं अजीवनामे ? अजीवनामे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे ।। २५४. अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–विसेसिए य अविसे सिए य । १. 'अविसेसिए दव्वे, विसेसिए जीवदव्वे य अजीवदव्वे य । २. अविसेसिए जीवदव्वे, विसेसिए नेरइए तिरिक्खजोणिए मणस्से देवे। ३. अविसेसिए नेरइए, विसेसिए रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालयप्पभाए पंकप्पभाए धूमप्पभाए तमाए तमतमाए"। अविसे सिए रयणप्पभापुढविनेरइए, विसेसिए पज्जत्तए य अपज्जत्तए य । एवं जाव अविसे सिए तमतमापुढविनेरइए, विसे सिए पज्जत्तए य अपज्जत्तए य।। १. य (ग); चि (हे)। नेरइओ तिरिक्खजोणिओ मस्सो देवो । २. वा (क)। अविसेसिओ नेरइओ, विसेसिओ रयणप्पभा३. देवदत्तं (क) सर्वत्र एकारः । पुढविनेरइओ जाव तमतमापुढविनेरइयो ४. अविसेसियं दव्वं, विसेसियं जीवदव्वं च अजीव- (क)। दव्वं च । अविसेसियं जीवदव्वं, विसेसियं Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० अणुओगदाराई ४. 'अविसेसिए तिरिक्खजोणिए, विसेसिए एगिदिए बेइंदिए तेइंदिए चउरिदिए पंचिदिए। ५. अविसे सिए एगिदिए, विसेसिए पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए। ६. अविसेसिए पुढविकाइए, विसे सिए सुहुमपुढविकाइए य बादरपुढविकाइए य । अविसेसिए सुहुमपुढविकाइए, विसेसिए पज्जत्तयसुहुमपुढविकाइए य अपज्जत्तयसुहुमपुढविकाइए य । अविसे सिए वादरपुढ विकाइए, विसेसिए पज्जत्तयबादरपुढविकाइए य अपज्जत्तयबादरपुढविकाइए य । एवं आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए य। अविसेसिय-विसेसिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तय भेदेहि भाणियव्वा'। ७. 'अविसे सिए बेइंदिए, विसेसिए पज्जत्तयबेइंदिए य अपज्जत्तयबेइंदिए य । एवं तेइंदियचउरिदियावि भाणियव्वा । ८. 'अविसे सिए पंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य" । ६. 'अविसेसिए जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए सम्म च्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य गब्भवक्कंतियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसे सिए सम्मुच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पज्जत्तयसम्मच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयसम्मच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसेसिए गब्भवक्कं तियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयगभवक्कंतियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तय गब्भवतियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य"। १०. 'अविसेसिए थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए चउप्पयथलयरपंचिदिय तिरिक्खज़ोणिए य परिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । ११. अविसेसिए चउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए सम्मच्छिम चउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य गब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचि दियतिरिक्खजोणिए.य । अविसे सिए सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरि१. अविसेसिओ तिरिक्खजोणिओ, विसेसिओ एगिदियओ जाव पंचिदिओ। अविसेसिओ ३. अविसेसिओ पंचिदियतिरिक्खजोणिओ, विसेएगिदिओ, विसे सिओ पुढविकाइओ जाव सिओ जलयरो थलयरो खयरो (क)। वणप्फइकाइओ। अविसेसिओ पुढविकाइओ, ४. अविसेसिओ जलयरो, विसेसिओ संमच्छिमो विसेसिओ सुहुमबायरपज्जत्ताइभागओ नेयव्वो। गब्भवक्कंतिओ य । अविसेसिओ संमुच्छिमो, एवं आउतेउवाउवणप्फइ (क)। विसेसिओ पज्जत्तओ य अपज्जत्तओ य । एवं २. अविसेसिओ बेइंदिओ, विसेसिओ पज्जत्तओ गब्भवक्कतिओ य (क)। य अपज्जत्तओ य । एवं तेंदियचउरिदियओ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई क्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोगिए य । अविसेसिए गब्भवक्कं तियचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तय गब्भवक्कं तियचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य" । १२. 'अविसे सिए परिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए उरपरिसप्प थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य भयपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य। एते वि सम्मच्छिमा पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य, गब्भवक्कंतिया वि पज्ज त्तगा अपज्जत्तगा य भाणियव्वा । १३. 'अविसेसिए खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए सम्मुच्छिमखहयरपंचि दियतिरिक्खजोणिए य गब्भवक्कं तियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसेसिए सम्मुच्छिमखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पज्जत्तयसम्मच्छिमखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयसम्मच्छिमखयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य। अविसे सिए गब्भवक्कंतियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयगब्भवक्कंतियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तय गब्भवक्कं तियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य" । १४. 'अविसे सिए मण स्से, विसेसिए सम्मच्छिममणुस्से य गब्भवक्कंतियमणस्से य । अविसेसिए सम्मच्छिममणुस्से, विसे सिए पज्जत्तयसम्मुच्छिममणुस्से य अपज्जत्तयसम्मच्छिममणुस्से य । अविसे सिए गब्भवक्कंतियमणुस्से, विसेसिए पज्ज त्तयगब्भवक्कंतियमणस्से य अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्से य" । १५. 'अविसे सिए देवे, विसेसिए भवणवासी वाणमंतरे जोइसिए वेमाणिए य' । १६. 'अविसेसिए भवणवासी, विसेसिए असुरकुमारे नागकुमारे सुवण्णकुमारे विज्जु१. अविसेसिओ थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणीओ, कभेदस्य उल्लेखो नास्ति । विसेसिओ चउप्पओ परिसप्पो य । समुच्छि- ५. अविसे सिओ मणुस्सो, विसेसिओ समुच्छिममगन्भवतियपज्जत्तगअपज्जत्तगओ भेओ मणुस्सो य गब्भवक्कंतियमणुस्सो य । अविसेभाणियव्वो (क)। सिओ संमुच्छिमो, विसेसिओ पज्जत्तओ २. सप्पो वि उरपरिसप्पभुयपरिसप्पसमुच्छिम- अपज्जत्तओ य । अविसेसिओ गब्भवक्कंतियगब्भवक्कतियपज्जत्तापज्जत्तभागओ भाणि- मणुस्सो, विसेसिओ कम्मभूमिगो अकम्मभूमिओ यव्वो (क)। य अंतरदीवगो य । संखेज्जवासाऊ य ३. अविसेसिओ खयरपंचिदियरिक्खजोणिओ य, असंखिज्जवासाऊ य । पज्जत्तापज्जत्त भेओ विसेसिओ समुच्छिमगम्भवक्कंतियखयर पज्जत्तापज्जत्तभेओ भाणियन्वो (क)। ६. अविसेसिओ देवो, विसेसिओ भवणवासि४. प्रज्ञापनायां (१९८४) 'सव्वाहि पज्जत्तीहि वाणमंतरजोइसियवेमाणिओ (क)। अपज्जत्तगा' इति उल्लिखितमस्ति, तत्र पर्याप्त Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ अणुओगदाराई कुमारे अग्गिकुमारे दीवकुमारे उदहिकुमारे दिसाकुमारे वाउकुमारे थणियकुमारे । सव्वेसि पि अविसेसिय-विसे सिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तयभेया भाणि यव्वा " १७. 'अविसेसिए वाणमंतरे, विसेसिए पिसाए भूए जक्खे रक्खसे किन्नरे किंपुरिसे महोरगे गंधव्वे । एतेसि पि अविसेसिय-विसे सिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तयभेया भाणि यव्वा । १८. अविसेसिए जोइसिए, विसे सिए चंदे सूरे गहे नक्खत्ते तारारूवे । एतेसि पि अविसेसिय-विसेसिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तयभेया भाणियव्वा । १६. 'अविसेसिए वेमाणिए, विसेसिए कप्पोवगे य कप्पातीतगे य"। २०. 'अविसेसिए कप्पोवगे, विसेसिए सोहम्मए ईसाणए सणकुमारए माहिंदए बंभ लोयए लंतयए महासुक्कए सहस्सारए आणयए पाणयए आरणए अच्चुयए। एतेसि पि अविसेसिय-विसेसिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तयभेदा भाणियव्वा" । २१. अविसेसिए कप्पातीतए, विसेसिए गेवेज्जए य अणुत्तरोववाइए य । २२. 'अविसेसिए गेवेज्जए, विसेसिए हेट्ठिम-गेवेज्जए मज्झिम-गेवेज्जए उवरिम गेवेज्जए । अविसेसिए हेट्ठिम-गेवेज्जए, विसेसिए हेट्ठिम-हेट्ठिम-गेवेज्जए, हेट्ठिममज्झिम-गेवेज्जए, हेट्ठिम-उवरिम-गेवेज्जए । अविसे सिए मज्झिम-गेवेज्जए, विसेसिए मज्झिम-हेट्ठिम गेवेज्जए, मज्झिम-मज्झिम-गवेज्जए, मज्झिम-उवरिम-गवेज्जए। अविसे सिए उवरिम-गेवेज्जए, विसेसिए उवरिम-हेट्ठिम-गेवेज्जए, उवरिम-मज्झिम-गेवेज्जए, उवरिम-उवरिम-गेवेज्जए। एतेसि पि सव्वेसि अविसे सिय-विसे सिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तयभेया भाणियव्वा । २३. 'अविसे सिए अणुत्तरोववाइए, विसेसिए विजयए वेजयंतए जयंतए अपराजियए सव्वट्ठसिद्धए य । एतेसि पि सव्वेसि अविसेसिय-विसेसिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तय १. अविसेसिओ भवणवासी, विसेसिओ असुर- य कप्पातीतो य (क)। कुमारो एवं नागसुवन्नाविज्जु अग्गिदीवउदहि ४. अविसेसिओ कप्पोवओ, विसेसिओ सोहम्मो दिसावायथणिओ। सव्वेसि पि अविसेसिय- य जाव अच्चुओ य । एएसि पि अविसेसियविसेसियपज्जत्तयअपज्जत्तयभेया भाणियव्वा विसेसियपज्जत्तयअपज्जत्तयभेया भाणियव्वा (क)। २. अविसे सिओ वाणमंतरो, विसेसिओ पिसाओ ५. अविसेसिओ कप्पाईओ, विसेसिओ गेविज्जओ जाव गंधव्वए । अविसेसिओ जोइसिओ, विसे- य अणुत्तरोववाईओ (क)। सिओ चंदसूरगहनखत्ता ताराओ। एएसि ६. अविसेसिओ गेविज्जओ, विसेसिओ हिट्रिमहिपि अविसेसियविसेसियपज्जत्तअपज्जत्तय भेया ट्रिमगेविज्जओ वि हिटिममज्झिमगेविज्जओ भाणियव्वा (क)। हिट्रिमउवरिमगेविज्जओ एवं भेओ नेओ ३. अविसेसिओ वेमाणिओ, विसेसिओ कप्पोवओ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३३३ भेदा भाणियव्वा"। २४. 'अविसेसिए अजीवदव्वे, विसेसिए धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थि काए पोग्गल त्थिकाए अद्धासमए य"। २५. अविसेसिए पोग्गलत्थिकाए, विसेसिए परमाणु पोग्गले 'दुपएसिए तिपए सिए जाव अणंतपएसिए य" । से तं दुनामे ॥ तिनाम-पर्व २५५. से किं तं तिनामे ? तिनामे तिविहे पण्णत्ते, 'तं जहा-दव्वनामे गुणनामे पज्जव नामे ।। २५६. से किं तं दव्वनामे ? दव्वनामे छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-धम्मत्थिकाए 'अधम्म त्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए" अद्धासमए । से तं दव्वनामे ॥ २५७. से किं तं गणनामे ? गणनामे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा–वण्णनामे गंधनामे रस नामे फासनामे संठाणनामे ॥ २५८. से किं तं वण्णनामे ? वण्णनामे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णनामे नील वण्णनामे लोहियवण्णनामे हालिद्दवण्णनामे सुक्किलवण्णनामे । से तं वण्णनामे ॥ २५६. से किं तं गंधनामे ? गंधनामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुब्भिगंधनामें य दुन्भि गंधनामे य । से तं गंधनामे ॥ २६०. से किं तं रसनामे ? रसनामे पंचविहे पण्णत्त, तं जहा–तित्तरसनामे ‘कडुयरसनामे कसायरसनामे अंबिलरसनामे महुररसनामे' । से तं रसनामे ।। २६१. से किं तं फासनामे ? फासनामे अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा-कक्खडफासनामे 'मउयफासनामे गरुयफासनामे लहुयफासनामे सीतफासनामे उसिणफासनामे निद्धफासनामे लुक्खफासनामे । से तं फासनामे ।। २६२. से किं तं संठाणनामे ? संठाणनामे पंचविहे पण्णत्त, तं जहा-परिमंडलसंठाण नामे 'वट्टसंठाणनामे तंससंठाणनामे चउरंससंठाणनामे आयतसंठाणनामे। से तं संठाणनामे । से तं गणनामे ॥ १. अविसेसिओ अणुत्तरोववाईओ, विसेसिओ ४. जाव (क)। विजयवेजयंतजयंतअपराजियसव्वसिद्धओ । ५. सुरभिगंधनामे (ख, ग) सर्वत्र । एएसि पि अविसेसियविसेसिय पज्जत्तयअप- ६. दुरभिगंधनामे (ख, ग) सर्वत्र । ज्जत्तयभेदा भाणियव्वा (क) । ७. एवं कडुय कसायंबिलमहुररसनामे (क) । २. अविसेसियं अजीवदव्वं, विसेसियं धम्मत्थि- . एवं मउयगरुयलहुयसीयउसिणनिद्धलुक्खफासकाए जाव अद्धासमए (क)। नामे (क)। ३. दुपएसिए जाव अणंतपएसिए (क)। ६. एवं वट्टतंसचउरंसआययसंठाणनामे (क)। Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ अणुओगदाराई २६३. से किं तं पज्जवनामे ? पज्जवनामे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा—एगगुणकालए 'दुगुणकालए तिगुणकालए जाव दसगुणकालए संखेज्जगुणकालए असंखेज्जगुणकालए अणंतगुणकालए। ‘एवं नील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किला वि भाणियव्वा । एगगुणसुब्भिगंधे दुगुणसुब्भिगंधे तिगुणसुब्भिगंधे जाव अणंतगुणसुब्भिगंधे । एवं दुन्भिगंधो वि भाणियव्वो । एगगुणतित्ते जाव अणंतगुणतित्ते । एवं कडुय-कसायअंबिल-महुरा वि भाणियव्वा । एगगुणकक्खडे जाव अणंतगुणकक्खडे । एवं मउय गरुय-लहुय-सीत-उसिण-निद्ध-लुक्खा वि' भाणियव्वा" । से तं पज्जवनामे ।। २६४. गाहा तं पुण नाम ति विहं, इत्थी पुरिसं नपुंसगं चेव । एएसिं तिण्हंपि य', अंतम्मि परूवणं वोच्छं ॥१॥ तत्थ पुरिसस्स अन्ता, आ ई ऊ ओ हवंति चत्तारि । ते चेव इत्थियाए", हवंति ओकारपरिहीणा ॥२॥ अंतिय इं तिय उं तिय, अंता उ नपुंसगस्स बोद्धव्वा । एएसि तिण्हंपि य, वोच्छामि निदसणे एत्तो ॥३॥ आकारंतो राया, ईकारंतो" गिरी य सिहरी य । ऊकारंतो" विण्हू, दुमो 'ओअंतो उ पुरिसाणं'५२ ॥४॥ आकारंता" माला, ईकारंता" सिरी य लच्छी य । ऊकारंता" जंबू, वह य अंता उ इत्थीणं ॥५।। अंकारंतं धन्नं, इंकारंतं नपुंसगं अच्छिं " । उंकारंतं पीलु, महुं च अंता नपुंसाणं ॥६॥ -से तं तिनामे ॥ पउनाम-पवं २६५. से कि तं चउनामे ? चउनामे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमेणं लोवेणं पयईए विगारेणं ॥ २६६. से किं ते आगमेणं ? आगमेणं-पद्मानि पयां सि कुंडानि । से तं आगमेणं ॥ १. पज्जायनामे (क, हेपा)। ६. आगारंतो (ख, ग)। २. जाव (क)। १०. ईगारंतो (ख, ग)। ३. x (ग)। ११. ऊगारंतो (ख, ग)। ४. एवं पंचवंना दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा १२. य अंता मणुस्साणं (ख, ग) । __जाव अणंतगुणलुक्खे (क)। १३. आगारंता (ख, ग)। ५. हु (क)। १४. ईगारंता (ख, ग)। ६. एए हुंति (ग)। १५. ऊगारंता (ख, ग)। ७. इत्थियाओ (ख, ग)। १६. अत्थि (ख, ग)। ८. निदरिसणं (क)। Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओदाराई ३३५ २६७. से किं तं लोवेणं ? लोवेणं - ते अत्र = तेत्र, पटो अत्र = पटोत्र, 'घटो अत्र = घटोत्र", 'रथो अत्र = रथोत्र" । से तं लोवेणं ॥ २६८. से किं तं पयईए ? पयईए- अग्नी एतौ पटू इमौ शाले एते, माले इमे । से तं यईए ॥ २६. से किं तं विगारेणं ? विगारेणं-दण्डस्य अग्रं = दण्डाग्रम्, सा आगता = सांगता, दधि इदं = दधीदम्, नदी ईहते = नदीहते, मधु उदकं = मधूदकम् 'वधू ऊंहतेवधूते" । से तं विगारेणं । से तं चउनामे || पंचनाम-पवं २७०. से किं तं पंचनामे ? पंचनामे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. नामिकं २. नेपातिकं ३. आख्यातिकं ४. औपसर्गिकं ५. मिश्रम् । अश्व इति नामिकम् । खल्विति नैपातिकम् । धावतीत्याख्यातिकम् । परीत्यौपसर्गिकम् । संयत इति मिश्रम् । से तं पंचनामे ॥ चनाम-पर्व २७१. से किं तं छनामे' ? छनामे छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - १. उदइए २. उवसमिए ३ खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए || २७२. से किं तं उदइए ? उदइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - उदए य उदयनिष्फण्णे ' य ।। २७३. से किं तं उदए' ? उदए - अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं । से तं उदए । २७४. से किं तं उदयनिप्फण्णे ? उदयनिप्फण्णे दुविहे पण्णत्त े, तं जहा - जीवोदयनिप्फण्णे य अजीवोदयनिप्फण्णे य ॥ २७५. से किं तं जीवोदयनिप्फण्णे' ? जीवोदयनिफण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहानेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, पुढविकाइए' 'आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई' 'माणकसाई मायाकसाई लोभसाई, 'इत्थवे" पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे" "नीललेसे काउलेसे तेउलेसे पम्हलेसे" सुक्कलेसे‍, मिच्छदिट्ठी अविरए असण्णी अन्नाणी आहारए छउमत्थे सजोगी" संसारत्थे असिद्धे अकेवली" । से तं जीवोदय निष्फण्णे ।। १. x ( ग ) । २. ४ ( क, ख ) । ३. बहु कहते बहूहते ( क ) । ४. छन्नामे ( ख, ग ) । ५. उदयनिष्पन्ने ( क ) । ६. उदइए ( ख, ग ) । ७. निप्पन्ने ( क ) । ८. पुढविकाइए जाव वणप्फइकाइए ( क ) ; सं० पा० - पुढविकाइए जाव तसकाइए । ६. कोहकसाए ४ (क); सं० पा० - कोहकसाई जाव लोभकसाई | १०. इत्थीवेदए ( ख, ग ) । ११. सं० पा०— कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे । १२. कण्हलेसा ६ इत्थवे ३ (क ) | १३. × ( क ) । १४. x ( ख ) ; क्वचित् ' असण्णी' क्वचित् 'असिद्धे' क्वचिच्च 'अकेवली' इति पाठो नोपलब्भते । Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ अणुबोगदाराई २७६. से किं तं अजीवोदयनिप्पण्णे ? अजीवोदयनिप्फण्णे अणेगविहे' पण्णत्ते, तं जहा ओरालियं वा सरीरं ओरालियसरीरपओगपरिणामियं' वा दव्वं, 'वेउव्वियं वा सरीरं वेउब्वियसरीरपओगपरिणामियं वा दव्वं, एवं आहारयं सरीरं तेयगं सरीरं कम्मयं सरीरं च भाणियव्वं", पओगपरिणामिए वण्णे गंधे रसे फासे। से तं अजीवोदयनिप्फण्णे । से तं उदयनिप्फण्णे । से तं उदइए' ॥ २७७. से किं तं उवस मिए ? उवसमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उवसमे य उवसम निप्फण्णे य॥ २७८. से किं तं उवसमे ? उवसमे-मोहणिज्जस्स कम्मस्स उवसमे णं । से तं उवसमे ॥ २७६. से किं तं उवसमनिप्फण्णे ? उवसमनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा–उवसंत कोहे 'उवसंतमाणे उवसंतमाए“ उवसंतलोहे उवसंतपेज्जे उवसंतदोसे उवसंतदसणमोहणिज्जे उवसंतचरित्तमोहणिज्जे उवसमिया सम्मत्तलद्धी उवसमिया चरित्तलद्धी उवसंतकसायछउमत्थवीयरागे। से तं उवसमनिप्फण्णे। से तं उवसमिए । २८०. से किं तं खइए ? खइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहां-खए" य खयनिप्फण्णे य ।। २८१. से किं तं खए'२ ? खए-अट्टण्हं कम्मपयडीणं खए णं । से तं खए" ॥ २८२. से किं तं खयनिष्फण्णे ? खयनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा–उप्पण्णनाण दसणधरे अरहा जिणे केवली, खीणआभिणिबोहियनाणावरणे ‘खीणसुयनाणावरणे खीणओहिनाणावरणे खीणमणपज्जवनाणावरणे खीणकेवलनाणावरणे अणावरणे निरावरणे खीणावरणे नाणावरणिज्जकम्मविप्पमुक्के, केवलदंसी सव्वदंसी खीणनिद्दे खीणनिद्दा निद्दे खीणपयले खीणपयलापयले खीणथीणगिद्धी" खीणचक्खुदसणावरणे 'खीणअचक्खुदंसणावरणे खीणओहिदसणावरणे खीणकेवलदसणावरणे ॥ अणावरणे निरावरणे खीणावरणे दरिसणावरणिज्जकम्मविप्पमुक्के, खीणसायवेयणिज्जे" खीणअसायवेयणिज्जे अवेयणे निव्वेयणे खीणवेयणे सभासूभवेयणिज्ज १. चउद्दसविहे (ख, ग)। १०. उवसमिए नामे (क)। २. ओरालयं (क)। ११. खइए (क)। ३. 'प्पओगपारिणामिए (क)। १२. खइए (क)। ४. एवं वेउम्वियं आहारयं तेयगं कम्मयं (क)। १३. खइए (क) । ५. परिणए (क)। १४. एवं सुयओहिमणपज्जवकेवलनाणावरणे ६. उदए (क)। ७. इहोपशान्तक्रोधादयो व्यपदेशा: क्वापि वाचना- १५. गिद्धे (ग)। विशेषे कियन्तो पि दृश्यन्ते (हे)। १६. एवं अचक्खुओहिकेवलदसणावरणे (क)। ८. जाव (ख, ग)। १७. खीणसाया (क)। ६. मोहणिज्जे उवसंतमोहणिज्जे (पु)। १८. खीणासाया (क) । Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई कम्मविप्पमुक्के, ‘खीणकोहे' •खीणमाणे खीणमाए° खीणलोहे खीणपेज्जे खीणदोसे खीणदंसणमोहणिज्जे खीणचरित्तमोहणिज्जे' अमोहे निम्मोहे' खीणमोहे मोहणिज्जकम्मविप्पमुक्के, खीणनेरइयाउए ‘खीणतिरिक्खजोणियाउए खीणमणस्साउए खीणदेवाउए" 'अणाउए निराउए खीणाउए आउकम्मविप्पमुक्के, गइ-जाइसरीरंगोवंग - 'बंधण - संघाय-संघयण - संठाण' - अणेगबोंदिवंदसंघायविप्पमुक्के खीणसुभनामे खीणअसुभनामे अणामे निण्णामे खीणनामे सुभासुभनामकम्मविप्पमुक्के', खीणउच्चागोए खीणनीयागोए अगोए निगोए खीणगोए सुभासुभगोत्तकम्मविप्पमुक्के", खीणदाणंतराए २ 'खीणलाभंतराए खीणभोगंतराए खीणउवभोगंतराए खीणवीरियंतराए" अणंतराए निरंतराए खीणंतराए अंतरायकम्मविप्पमुक्के, सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिनिव्वुडे" अंतगडे सव्वदुवखप्पहीणे । से तं खयनिप्फण्णे । से तं खइए॥ २८३. से किं तं खओवसमिए ? खओवसमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-खोवसमे य खओवसमनिप्फणे य॥ २८४. से किं तं खओवसमे ? खओवसमे-चउण्हं घाइकम्माणं खओवसमे णं५-नाणा वरणिज्जस्स दंसणावरणिज्जस्स मोहणिज्जस्स अंतरायस्स'५ 'खओवसमे णं से तं खओवसमे॥ २८५. से कि तं खओवसमनिप्फण्णे ? खओवसमनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा 'खओवस मिया आभिणिबोहियनाणलद्धी, खओवसमिया सुयनाणलद्धी, खओवसमिया ओहिनाणलद्धी, खओवसमिया मणपज्जवनाणलद्धी; खओवस मिया मइअन्नाणलद्धी, खओवसमिया सुयअन्नाणलद्धी, खओवस मिया विभंगनाणलद्धी; खओवसमिया चक्खुदंसणलद्धी, खओवस मिया अचक्खुदंसणलद्धी, खओवस मिया ओहिदसणलद्धी; खओवसमिया सम्मदंसणलद्धी, खओवस मिया मिच्छादसणलद्धी, खओवसमिया सम्ममिच्छादसणलद्धी; खओवसमिया सामाइयचरित्तलद्धी, खओवस मिया छेदोवट्ठावणचरित्तलद्धी, खओवसमिया परिहार विसुद्धियचरित्तलद्धी, १.सं० पा०-खीणकोहे जाव खीणलोहे। ८. अणेगबोंदिबिंद (ख, ग)। २. खीणदंसणमोहणिज्जे खीणचरित्तमोहणिज्जे ६. नामविप्पमुक्के (क, हे) । खीणकोहे जाव खीणलोहे खीणपेज्जे खीणदोसे १०. निग्गोए (ख, ग)। (ख, ग)। ११. उच्चनीयगोत्तौं (ख, ग)। ३. निमोहे (क)। १२. खीणदाणंतराइए (क)। ४. एवं तिरियमणुयदेवाउए (क)। १३. एवं लाभभोगउवभोगवीरियंतराए (क)। ५. अणाउए जाव विप्पमुक्के (क) । १४. परिणिव्वुए (ख, ग)। ६. x (ग)। १५. णं तं जहा (ख, ग, हे)। ७. ४ (हा); एतच्च बन्धनादिपदत्रयं क्वचिद्वा- १६. अंतराइयस्स (क)। चनान्तरे न दृश्यते (हे)। १७. x (ग)। Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ अणुओगदाराई खओवस मिया सुहमसंपरायचरित्तलद्धी, खओवसमिया चरित्ताचरित्तलद्धी; खओवसमिया दाणलद्धी, खओवसमिया लाभलद्धी, खओवसमिया भोगलद्धी, खओवसमिया उवभोगलद्धी, खओवस मिया वीरियलद्धी; खओवसमिया बालवीरियलद्धी, खओवसमिया पंडियवीरियलद्धी, खओवसमिया बालपंडियवीरियलद्धी; खओवसमिया सोइंदियलद्धी, खओवसमिया चक्खिंदियबद्धी, खोवसमिया धाणिदियलद्धी, खओवस मिया जिभिदियलद्धी, खओवसमिया फासिंदियलद्धी; खओवंस मिए आयारधरे, खओवसमिए सयगडधरे, खओवसमिए ठाणधरे, खओवस मिए समवायधरे, खओवसमिए वियाहपण्णत्तिधरे, खओवसमिए नायाधम्मकहाधरे, खओवसमिए उवासगदसाधरे, खओवसमिए अंतगडदसाधरे, खओवसमिए अणुत्तरोववाइयदसाधरे, खओवसमिए पण्हावागरणधरे, खओवसमिए विवागसुयधरे, खओवस मिए दिट्ठिवायधरे, खओवसमिए नवपुव्वी, खओवसमिए दसपुव्वी, खओवसमिए चउद्दसपुव्वी, खओवस मिए गणी, खओवसमिए वायए"। से तं खओवसमनिप्फण्णे । से तं खओवस मिए । २८६. से किं तं पारिणामिए' ? पारिणामिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साइ-पारिणामिए य अणाइ'-पारिणामिए य ॥ १. खओवसमिया आभिणिबोहियनाणलद्धी एवं खओवसमिआ सामाईयचरित्तलद्धी एवं सुयओहिमणपज्जवनाण, मइअन्नाणसुअअन्नाण- छेदोवट्ठावणलद्धी परिहारविसुद्धिअलद्धी सुहविभंगन्नाण, चक्खुअचक्खुओहिदसण, सम्म- मसंपरायचरित्तलद्धी एवं चरित्ताचरित्तलद्धी, दसणमिच्छादसणसम्मामिच्छदंसण, सामाइय- खओवसमिआ दाणलद्धी एवं लाभ भोगउवचरित्तच्छेओवट्ठावणपरिहारसुहुमसंपरायखओ- भोगलद्धी खओवस मिआ वीरिअलद्धी, एवं वसमियचरित्ताचरित्तलद्धी, खओवसमिया पंडिअवीरिअलद्धी बालवीरिअलद्धी बालपंडियदाणभोगजीरियलद्धी, खओवसमिया बाल- वीरिअलद्धी, खओवसमिया सोइंदिअलद्धी वीरियलद्धी खओवसमिया पंडियवीरियलद्धी जाव खओवसमिआ फासिदिअली खओवखओवसमिया बालपंडियवीरियलद्धी, खओ- समिए आयारधरे एवं सुअगडधरे ठाणधरे बसमिया य सोइंदियलद्धी जाव फासिदिय- समवायधरे विवाहपत्ति णायाधम्मकहा लद्धी, खओवसमिया आयारधरलद्धी जाव उवासगदसा अंतगडदसां अणुत्तरोववाइअदसा दिट्ठिवायधरे खओवसमिया नवपुव्वधरे जाव पण्हावागरणधरे खओवसमिए विवागसुअधरे चोद्दसपुव्वधरे, खओवसमिए गणी वायए खओवसमिए दिट्ठिवायधरे, खओवसमिए (क); खओवसमिआ आभिणिबोहिअणाण- णवपुवी जाव खओवसमिए चउद्दस्सपुवीधरे लद्धी जाव खओवसमिआ मणपज्जवणाणलद्धी, (ख, ग)। सओवसमिआ मतिअणाणलद्धी खओवसमिआ २. खओवसमिए नामे (क)। सुअअणाणलद्धी खओवसमिआ विभंगणाण- ३. पारिणामिए भावे (क)। लद्धी, खओवसमिआ चखुदंसणलद्धी अचखु- ४. साइय (क); सादि (ग)। दसणलद्धी ओहिदंसणलद्धी, एवं संमइंसणलद्धी ५. अणादि (क, ग)। मिच्छादसणलद्धी सम्ममिच्छादसणलद्धी, Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदराई ३३६ २८७. से किं तं साइ- पारिणामिए ? साइ- पारिणामिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा गाहा जुण्णसुरा जुण्णगुलो, जुण्णघयं जुण्णतंदुला चेव । अब्भा य अब्भरुक्खा, संभा गंधव्वनगरा य ॥ १॥ उक्कावायादिसादाहा' गज्जियं विज्जू निग्घाया' जुवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ" चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा 'पडिचंदा पडसूरा" इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा 'वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा " निरया रयणप्पभा 'सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंक पभा धूमप्पभातमा " तमतमा 'सोहम्मे' 'ईसाणे सणकुमारे माहिदे बंभलोए तए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे' अच्चुए गेवेज्जे अणुत्तरे ईसिप्प - भारा " परमाणुपोग्गले दुपए सिए" जाव अनंत एसिए" । से तं साइ"पारिणामिए । २८८. से किं तं अणाइ" - पारिणामिए ? अणाइ पारिणामिए - धम्मत्थिकाए 'अधम्मत्थि - काए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए " अद्धासमए लोए अलोए 'भवसिद्धिया अभवसिद्धिया" । से तं अणाइ पारिणामिए । से तं पारिणामिए ॥ २८. से किं तं सन्निवाइए" ? सन्निवाइए - एएसिं" चेव उदइय उवस मिय - खइय - खओवसमय - पारिणामियाणं भावाणं दुगसंजोएणं तिगसंजोएणं चउक्कसंजोएणं पंचगसंजोएणं 'जे' निप्पज्जइ" सव्वे से सन्निवाइए नामे । तत्थ णं दस् दुगसंजोगा, दस तिगसंजोगा, पंच चउक्कसंजोगा, एगे पंचकसंजोगे ॥ १. २०. तत्थ णं जेते दस दुगसंजोगा ते णं इमे - २. अस्थि नामे उदइए खयनिष्फण्णे ३. १. ( ग ) । २. गज्जिया ( क ) । ३. X ( ख ) । ४. जूवा ( क ) । ५. उग्धाया ( क ) । ६. पडिचंदया पडिसूरिया ( ग ) । ७. वासधरो गामो नगरो घरो पव्वतो पायालो भवणो ( क ) । ८. जाव ( क ) । ६. सं० पा०-- सोहम्मे जाव अच्चुए । १०. सोहम्मो जाव ईसीपन्भारो ( क ) । ११. x ( क ) । १२. वृत्तिकृतात्र वाचनान्तराणां सूचना कृतास्ति - वाचनान्तराण्यपि सर्वाण्युक्तानुसारतो भावनी अत्थि नामे उदइए उवसमनिप्फण्णे अत्थि नामे उदइए खओवसमनिष्फ यानि ( है ) । १३. साइय ( क ) ; सादीन ( ग ) । १४. अणाय ( क ) : १५. जाव ( क ) । १६. भवसिद्धया अभवसिद्धया ( क ) । १७. पारिणामिए नामे ( क ) | १८. सन्निवाइए नामे ( क ) । १६. जण्णं एएसि ( क ) । २०. जेणं ( क ) ; x ( ख, ग ) । २१. निष्फज्जइ ( ख, ग ) । २२. ये षड्विंशतिर्भङ्गा भवन्ति ते सर्वेपि सानिपातिको भाव इत्युच्यते ( है ) । २३. एक्के य ( क ) 1 २४. निष्पन्ने ( क ) सर्वत्र । Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० अणुओगदाराई ४. अत्थि नामे उदइए पारिणा मियनिप्फण्णे ५. अत्थि नामे उवसमिए खयनिप्फण्णे ६. अस्थि नामे उवसमिए खओवसमनिप्फण्णे ७. अस्थि नामे उवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ८. अत्थि नामे खइए खओवसमनिप्फणे ६. अत्थि नामे खइए पारि णामिय निप्फण्णे १६. अत्थि नामे खओवस मिए पारिणामियनिप्फण्णे ॥ २६१. १. कयरे से नामे उदइए उवसमनिप्फण्णे ? उदइए' त्ति मणुस्से' उवसंता कसाया, एस णं से नामे उदइए उवसमनिप्फण्णे । २. कयरे से नामे उदइए खयनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणुस्से खइयं सम्मत्तं, एस णं से नामे उदइए खयनिप्फण्णे। ३. कयरे से नामे उदइए खओवसमनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणुस्से खओवस मियाई इंदियाई, एस णं से नामे उदइए खओवसमनिप्फण्णे। ४. कयरे से नामे उदइए पारिणामियनिष्फण्णे ? उदइए त्ति मणुस्से पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए पारिणामियनिप्फण्णे । ५. कयरे से नामे उवस मिए खयनिप्फण्णे ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं, एस णं से नामे उवसमिए खयनिप्फण्णे। ६. कयरे से नामे उवसमिए खओवसमनिप्फण्णे ? उवसंता कसाया खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से नामे उवसमिए खओवसमनिप्फण्णे । ७. कयरे से नामे उवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ? उवसंता कसाया पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उवस मिए पारिणामियनिप्फण्णे । ८. कयरे से नामे खइए खओवसमनिप्फण्णे ? खइयं सम्मत्तं खओवसमियाई इंदियाई, एस णं से नामे खइए खओवसमनिप्फण्णे। ६. कयरे से नामे खइए पारिणामियनिप्फण्णे ? खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे खइए पारिणामियनिष्फण्णे । १०. कयरे से नामे खओवसमिए पारिणा मियनिप्फण्णे ? खओवस मियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ।। २६२. तत्थ णं जेते दस तिगसंजोगा ते णं इमे-१. अत्थि नामे उदइए उवसमिए खय निप्फण्णे २. अत्थि नामे उदइए उवसमिए खओवसम निप्फण्णे ३. अत्थि नामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ४. अत्थि नामे उदइए खइए खओवसमनिप्फण्णे ५. अत्थि नामे उदइए खइए पारिणामियनिप्फण्णे ६. अत्थि नामे उदइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ७. अत्थि नामे उवसमिए खइए खओवसमनिप्फण्णे ८. अत्थि नामे उवसमिए खइए पारिणामिय निप्फण्णे ६. अत्थिनामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे १०. अत्थि नामे खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ॥ ३. निप्पन्ने य (क) सर्वत्र । १. ओदइए (क)। २. मणूसे (क)। Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३४१ २६३. १. कयरे से नामे उदइए उवसमिए खयनिष्फण्णे ? उदइए त्ति मणस्से उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं, एस णं से नामे उदइए उवसमिए खयनिप्फण्णे । २. 'कयरे से नामे उदइए उवसमिए खओवसमनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणस्से उवसंता कसाया खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से नामे उदइए उवसमिए खओवसमनिप्फण्णे"। ३. 'कयरे से नामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणस्से उवसंता कसाया पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे। ४. 'कयरे से नामे उदइए खइए खओवसमनिप्फण्णे ? उदइए ति मणस्से खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से नामे उदइए खइए खओवसमनिप्फण्णे"। ५. 'कयरे से नामे उदइए खइए पारिणामियनिप्फण्णे ? उदइए त्ति भणुस्से खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खइए पारिणामियनिप्फण्णे" । ६. 'कयरे से नामे उदइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणस्से खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे । ७. 'कयरे से नामे उवस मिए खइए खओवसमियनिप्फण्णे ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवस मियाइं इंदियाइं, एस णं से नामे उवसमिए खइए खओवसमनिप्फण्णे। ८. 'कयरे से नामे उवसमिए खइए पारिणामिनिप्फण्णे ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उवसमिए खइए पारिणा मियनिप्फण्णे । ६. 'कयरे से नामे उवसमिए खओवसमिए पारिणा मियनिप्फण्णे ? उवसंता कसाया खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिष्फण्णे"। १०. 'कयरे से नामे खइए खओवसमिए पारिणामियनिष्फण्णे ? खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जोवे, एस णं से नामे खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे" ॥ १. एवं उदइय उवसमिय खओवसमिय (क)। २. एवं उदइय उवसमिय पारिणामिय (क)। ३. एवं उदइय खइय खओवसमिय (क)। ४. एवं उदइय खइय पारिणामिय (क)। ५. एवं उदइय खओवसमिय पारिणामिय (क)। ६. एवं उवसमिय खइय खओवसमिय (क)। ७. उवसमिय खइय पारिणामिय (क) । ८. उवसमिय खओवसमिय पारिणामिय (क)। है. खइय खओवसमिय पारिणामिय (क)। Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई २६४. तत्थ णं जेते पंच चउक्कसंजोगा ते णं इमे-१. अत्थि नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमनिप्फण्णे २. अत्थि नामे उदइए उवसमिए खइए पारिणामियनिप्फण्णे ३. अत्थि नामे उदइए उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ४. अत्थि नामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामियनिष्फण्णे ५. अत्थि नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणा मियनिप्फण्णे ।। २६५. १. कयरे से नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसम निप्फण्णे ? उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमनिप्फण्णे । २. 'कयरे से नामे उदइए उवसमिए खइए पारिणामियनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए उवसमिए खइए पारिणामियनिप्फण्णे'। ३. 'कयरे से नामे उदइए उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिष्फण्णे ? उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे । ४. 'कयरे से नामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणस्से खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खइए खओवस मिए पारिणामियनिप्फणे"। ५. 'कयरे से नामे उवस मिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे" ॥ २६६. तत्थ णं जेसे एक्के पंचगसंजोए से णं इमे—अत्थि नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्फण्णे ॥ २६७. कयरे से नामे उदइए 'उवसमिए खइए खओवसमिए' पारिणामियनिप्फण्णे ? उदइए त्ति मणुस्से उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे 'उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए" पारिणामियनिप्फण्णे | से तं सन्निवाइए। से तं छनामे ॥ १. एवं उदइय उवसमिए खइय पारिणामिय २. एवं उदइय उवसमिय खओवस मिय पारिणा- मिय (क)। ३. एवं उदइय खइय खओवसमिय पारिणामिय ४. एवं उवसमिय खइय खओवरामिय पारिणा मिय (क)। ५. एगे (क)। ६. जाव (क)। ७. जाव (क)। ८. छन्नामे (ख, ग)। Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३४३ सत्तनाम (सरमंडल)-पदं २६८. से किं तं सत्तनामे ? सत्तनामे-सत्त सरा पण्णत्ता, तं जहागाहा सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे । धेवए' चेव नेसाए, सरा सत्त वियाहिया ॥१॥ २६६. एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा-- सज्जं च अग्गजीहाए, उरेण रिसभं सरं । कंठग्गएण गंधारं, मज्झजीहाए मज्झिमं ॥१॥ नासाए पंचमं ब्रूया, 'दंतो?ण य धेवतं" । भमुहक्खेवेण नेसायं सरट्ठाणा वियाहिया ॥२॥ ३००. सत्तसरा जीव निस्सिया पण्णत्ता, तं जहा सज्जं रवइ' मयूरो, कुक्कुडो रिसभं सरं । हंसो रवइ गंधारं, मज्झिम त गवेलगा ॥१॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं । छठं च सारसा कुचा, नेसायं सत्तमं गओ ।।२।। ३०१. सत्त सरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता, तं जहा सज्ज रवइ मुयंगो, गोमुही रिसभं सरं । संखो रवइ गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी ॥१॥ चउचलणपइट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं । आडंबरो धेवइयं", महाभेरी य सत्तमं ।।२।। ३०२. एए सि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता, तं जहा सज्जेण लहइ वित्ति, कयं च न विणस्सइ । गावो 'पुत्ता य मित्ता य, नारोणं होई" वल्लहो ॥१॥ रिसभेण उ एसज्ज, सेणावच्चं धणाणि य । वत्थगंधमलंकारं, इत्थीओ सयणाणि य ॥२॥ १. रेवए (ख, ग, हा, हेपा)। ८. गजो (ठाणं ७।४१) । २. रिसहं (क, ख, ग)। ६. रिसहं (क, ख, ग)। ३. दंतोछेहि अ रेवतं (ख, ग)। १०. णदति (ठाणं ७।४२)। ४. भमुहेण चेव (ख); मुद्धाणेण य [ठाणं ११. रेवइयं (क, ख, ग)। ७।४०] । १२. वित्ती (क) । ५. वयइ (क)। १३. मित्ता य पुत्ता य (ठाणं ७।४३) । ६. णदति (ठाणं ७।४१) । १४. चेव (ठाणं ७।४२) । ७. च (ख, ग)। Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ अणुबोगदाराई गंधारे गीतजुत्तिण्णा', विज्जवित्ती' कलाहिया । हवंति कइणो पण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा ॥३॥ 'मज्झिमसरमंता उ", हवंति सुहजीविणो । खायई पियई देई, मज्झिमसरमस्सिओ' ॥४॥ 'पंचमसरमंता उ', हवंति पुहवीपती । सूरा संगहकत्तारो" अणेगगणनायगा ॥५॥ 'धेवयसरमंता उ", हवंति दुहजीविणो । 'साउणिया वाउरिया, सोयरिया य मुट्ठिया॥६॥ 'नेसायसरमंता२ उ, 'हवंति हिंसगा नरा" । जंघाचरा लेहवाहा", हिंडगा" भारवाहगा १६११० ।।७।। ३०३. एएसिं णं सत्तण्हं सराणं तओ गामा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जगामे मज्झिमगामे गंधारगामे ॥ ३०४. सज्जगामस्स णं सत्त मच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा मंगी कोरव्वीया 'हरी य", रयणी य सारकता य । छट्ठी य सारसी नाम, सुद्धसज्जा य सत्तमा ॥१॥ ३०५. मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा१. गीइजुत्तिण्णा (क)। ६. रेवयसरमंता उ (क, ख, ग); धेवतसर२. वज्जवित्ती (ख, हे, ठाणं ७।४२); मलधारि- संपण्णा (ठाणं ७।४३)। हेमचन्द्रीयवृत्तौ, स्थानाङ्गवृत्तौ च-'वर्य- १०. कलहप्पिया (ठाणं ७।४३) । वृत्तयः-प्रधानजीविकाः' इति व्याख्यातमस्ति, ११. कुचेला य कुवित्तीय, चोरा चंडाल मुट्टिया किन्तु अस्मिन् श्लोके कलाप्रधानानां शास्त्र- (क, ख, ग); साउणिया वग्गुरिया, सोयप्रधानानां च निर्देशो वर्तते, तस्मिन् प्रसङ्गेऽत्र रिया मच्छबंधा य (ठाणं ७४४३) । 'विज्जवित्ती' (वैद्यवृत्तयः) इति पाठः १२. नेसादस्सरमंता (ख, ग)। समीचीनः प्रतिभाति । आदर्शद्वये असौ लब्ध १३. होति कलहकारगा (ख, ग)। एव । वृत्तिकारयोः सम्मुखे 'वज्जवित्ती' इति १४. लेहहारा (ख, ग)। पाठः आसीत्, तेन ताभ्यां 'वर्यवृत्तयः' इति- १५. हवंति (ख)। व्याख्या कृता । १६. भारयाहिया (क) । ३. मज्झिमसरसंपण्णा (ठाणं ७।४३) । १७. चंडाला मुट्ठिया मेया, जे अण्णे पावकम्मिणो । ४. मज्झम (ग)। गोघातगा य जे चोरा, सायं सरमस्सिता ।। ५. पंचमसरसंपण्णा (ठाणं ७।४३) । (ठाणं ७।४३)। ६. पुहईवई (क)। १८. संगीतरत्नाकरे (१।४।११) 'मार्गी' इति ७. संगामकत्तारो (क्वचित्); असौ पाठभेद: नाम लभ्यते ।। प्रकरणदृष्ट्या सम्यग् प्रतिभाति । १६. कोरवी (ख, ग)। ८. नरनायगा (क)। २०. हरिया (क)। Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३४५ उत्तरमंदा रयणी, उत्तरा उत्तरायता। आसकंता' य सोवीर।, 'अभिरु हवति'' सत्तमा ॥१॥ ३०६. गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा नंदी य खुड्डिया' पूरिमा य चउत्थी य सुद्धगंधारा । 'उत्तरगंधारा वि य, पंचमिया हवइ मुच्छा उ ।।१।। सुठुत्तरमायामा, सा छट्ठी 'नियमसो उ'१० नायव्वा । अह उत्तरायता, 'कोडिमा य सा सत्तमी मच्छा'१२ ॥२।। ३०७. सत्त सरा कओ हवंति ? गीयस्स का हवइ जोणी ? कइसमया" ऊसासा ? कइ वा गीयस्स आगारा ? ||१।। सत्त सरा नाभीओ, हवंति गोयं च रुण्णजोणीयं" । पायसमा५ ऊसासा, तिणि य गीयस्स आगारा ॥२।। 'आइमिउ आरभंता, समुन्वहंता य मज्झयारंमि । अवसाणे ‘य झवेंता'१७, तिण्णि वि गीयस्स आगारा ॥३।। छद्दोसे अट्ठगणे, तिण्णि य वित्ताई दोणि भणितीओ। जो नाही सो गाहिइ, सुसिक्खिओ रंगमज्झमि ॥४॥ भीयं दुयमु प्पिच्छं", 'उत्तालं च कमसो मुणेयव्वं । काकस्सरमणुणासं, छद्दोसा होति गीयस्स" ॥५॥ पूण्णं रत्तं च अलं कियं च वत्तं च तहेव मविघुळं । महुरं समं सुल लियं, अट्ठ गुणा होति गीयस्स ॥६।। १. उत्तरासमा (क); उत्तरायसा (ख, ग)। १४. रुइय (क, ग)। २. समोकंता (क); अस्सोकंता (ठाणं ७।४६)। १५. पदसमया (ठाणं ७।४८) यावद्भिः समय ३. अभीरा होइ (क); अभीरोवा होंति (ख); वत्तस्य पाद: समाप्यते तावत्समया उच्छ्वासा अभीरूवा होति (ग)। गीते भवंति (हे)। ४. नट्ठी (क)। १६. आइमउ यारंभंता (ग)। ५. खुद्दया (क); खुद्दिमा (ठाणं ७।४७] । १७. उ झवेत्ता (क, ग); अ ज्झवित्ता (ख) । ६. उत्तरगंधारा पुण (क) । १८. दोइ (क); दो य (ठाणं ७।४८) ७. सा पंचमिया (क, ख, ग)। १६. दुयमप्पिच्छं (क); दुतं रहस्सं (चूपा, हापा, ८.४ (क, ख, ग)। हेपा, ठाणं ७।४८) । ६. छट्ठा (ग)। २०. गायतो मा य गाहि उत्तालं (ठाणं ७।४८) । १०. सव्वओ य (क)। २१. गेयस्स (क)। ११. उत्तरायना (क)। २२. सुकुमारं (चूपा, हापा) । १२. कोडिमायया सत्तमा हवइ मुच्छा (क)। २३. गेयस्स (क)। १३. कयसमया (क, ग)। Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ अणुओगदाराई उर-कंठ-सिर-विसुद्धं', च' गिज्जते' मउय-रिभिय-पदबद्धं । समतालपदुक्खेवं', सत्तस्सरसीभरं गीयं ॥७॥ अक्खरसमं पदसम, तालसमं लयसमं गहसमं च । निस्ससिउस्ससियसमं, संचारसमं सरा सत्त ॥८॥ निहोसं सारवतं च हेउजुत्तमलंकियं । उवणीयं सोवयारं च, मियं महुरमेव य॥६॥ समं अद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं । तिण्णि वित्तप्पयाराइं, चउत्थं नोवलब्भई ॥१०॥ सक्कया पायया चेव, भणितीओ होंति 'दोणि वि' । सरमंडलंमि" गिज्जंते, पसत्था इसिभासिया ॥११॥ केसी गायइ महरं ? केसी गायइ खरं च रुक्खं च ? केसी गायइ चउरं ? 'केसी य विलंबियं ? दुतं केसी ? विस्सरं पुण केरिसी ? ॥१२।। सामा" गायइ महुरं, काली" गायइ खरं च रुक्खं च । गोरी" गायइ चउर, काणा य विलंबियं, दुतं अंधा ॥ विस्सरं पुण पिंगला ॥१३॥ सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एगवीसई । ताणा एगूणपण्णासं, सरमंडलं ॥१४॥ -से तं सत्तनामे ॥ समत्तं ६ १. पसत्थं (ग)। ६. पागया (ग)। २. ४ (क)। १०. दुण्णि उ (ग)। ३. गिज्जंते (क, ख, ग)। ११. सरमंडलं वि (क) । ४. पक्खेवं (क, ग, हे); छटोसविप्पमक्कं १२. केसि विलंबं (ठाणं ७।४८) । (ख); असौ पाठः हारिभद्रीय वृत्तिमनुसृत्य १३. गोरी (क, ख, ग); आदर्शेषु प्रायः 'गोरी स्वीकृतोस्ति। गायइ महुरं' इति पाठो विद्यते । मुद्रितायां ५. गेयं (क, ख, ग)। मलधारिवृत्तौ 'गोरी गायइ महुरं' इति पाठो ६. 'ख' प्रतौ इयं गाथा अत्र नास्ति, किन्तु 'सामा मुद्रितोस्ति, किन्तु हस्तलिखितवृत्तौ 'सामा गायइ महुरं' अस्याः अनन्तरं स्थानाङ्गवत् गायइ महुरं' इति पाठो लभ्यते, स्थानाङ्ग पि किञ्चिद्वर्णभेदेन निम्नप्रकारा वर्तते (७।४८) एष एव पाठो विद्यते, तेनैव 'सामा' तंतिसमं वण्णसमं, पदसमंतालसमं च गहसमं । इति पाठः स्वीकृतः । नीससिऊससिअसमं, संचारसमं सरा सत्त ।। १४. सामा (ख)। ७. सारमंतं (ख)। १५. सामा (क, ग); काली (ख)। ८.१०, ११. एतद् गाथाद्वयं 'ख' प्रतौ नास्ति । १६. सम्मत्तं (क) । Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई अनाम ( वयविपत्ति ) - पदं ३०८. से किं तं अट्ठनामे ? अट्ठनामे--अट्ठविहा वयणविभत्ती पण्णत्ता, गाहा - सेतं अट्ठना ॥ न तइया पंचमी य अवायाणे, छुट्टी सस्सामिवायणें । सत्तमी सन्निहाणत्थे, अट्टमाssमंतणी भवे ॥२॥ तत्थ पढमा विभत्ती, निद्द से – सो इमो अहं वत्ति । बिइया पुण उवसे-भण कुणसु' इमं व तं वत्ति ॥३॥ तइया करणम्म कया - भणियं व कयं व तेण व मए वा । हंदि नमो साहाए, हवइ चउत्थी पयामि ||४|| 'अवणय ह य एत्तो", इतो वा पंचमी अवायाणें । छुट्टी तस्स इमस्स व, गयस्स वा सामिसंबंधे ॥५॥ हवइ पुण सत्तमी तं इमम्मि आधारकालभावे य । आमंतणी भवे अट्टमी उ जह हे जुवाण ! ति ॥ ६ ॥ उस | पढमा होइ, बितिया' करणम्मि कया, चउत्थी संपावणे ॥१॥ नवनाम ( कव्वरस ) - पदं ३०६. से किं तं नवनामे ? नवनामे-नव कव्वरसा पण्णत्ता, तं जहा गाहा— ३१०. वीररस लक्खणं तं जहा वीरो सिंगारो अब्भुओ य रोद्दो य होइ बोधव्वो" । वेलणओ बीभच्छो", हासो कलुणो पसंतो य ॥ १ ॥ १. बीया ( क ) । २. संपादणे ( ग ) । ३. × (क, ग ) । ४. इह प्राकृतत्वाद् दीर्घत्वम् । ५. सन्निभाणत्थे ( क ) । ६. कुण व ( ठाणं ८।२४ ) । ७. णीतं ( ठाणं ८।२४ ) | तत्थ परिच्चायम्मि य, तवचरणे" सत्तुजणविणासे य । अणु-धिति-परक्कमलिंगो" वीरो होइ ॥ १ ॥ रसो ८. अवणे गिण्हसु तत्तो ( ठाणं ८।२४) । ९. अपायाणे ( क ) । १०. बोद्धव्वो ( ख, ग ) । ११. बीभत्थो ( ग ) । १२. परिच्चागमि ( क ) । १३. दाणतवचरण ( ख, ग ) । १४. परक्कमचिन्हो ( है ) । ३४७ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ वीरो रसो जहा— सो नाम महावीरो, जो रज्जं पर्याहिऊण पव्वइओ । काम - कोह' - महासत्तु - - पक्खनिग्घायणं कुणइ ॥२॥ ३११. सिंगाररसलवखणं सिंगारो नाम रसो, रतिसंजोगाभिलाससं जणणो । मंडण - विलास - विब्बोय -हास- लीला-रमणलिंगो ॥१॥ सिंगारो रसो जहा 'महुरं विलास - ललिय", हिययुम्मादणकरें" जुवाणाणं । सदुद्दामं, दाती मेहलादाम ||२|| सामा ३१२. अब्भुतरसलक्खणं विम्रो अपुव्वो ऽनुभूयपुव्वोय जो रसो होइ । हरिसविसायुपत्तिलक्खणो अभुओ नाम ॥ १ ॥ अब्भुओ रसो जहा- ३१३. रोद्दरसलक्खणं अब्भुयतरमिह एत्तो, अन्नं किं अस्थि जीवलोगम्मि । जं जिणवयणेणत्था, तिकालजुत्ता 'वि नज्जंति ॥२॥ रोद्दो रसो जहा भयजणणरूव-सद्दंधकार' - चिता-कहासमुप्पन्नो संमोह- संभम-विसाय-मरणलिंगो रसो ३१४. वेलणय र सलक्खणं 1 भिउडी - विडंबियमुहा" ! संदट्ठो ! इय" रुहिरमोकिण्णा" ! | स प असुरणिभा" ! भीमरसिय ! अइरोद्द ! रोद्दोसि ॥२॥ -- विणओवयार-गुज्झ-गुरुदार-मेरावइक्कमुत्पन्नो रसो, वेलणओ नाम १. कोह ( ख, ग ) । २. महुरविलाससललियं ( ख, ग ) । ३. हियउम्मा (ख); हिउम्मा ( ग ) । ४. व भूयपुव्वो (हा ) । ५. सो हासविसाउप्पत्ति ( क ) । ६. जिणवयणे अत्था (ख, ग ) । ७. मुणिज्जंति ( ख, ग ) । 1 रोद्दों ॥ १ ॥ 1 लज्जासंकाकरणलिंगों ॥ १ ॥ ओगदारा ८. संधयार ( क ) ; सधगार ( ग ) । ९. रुद्दो ( क ) 1 १०. मुहो ( क ) । ११. अइ ( ख ) । १२. मोकिण्णा ( क ); माकिण्णा ( है ) । १४. णिभो ( ख, ग ) । Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३४६ वेलणओ रसो जहा कि लोइयकरणीओ', लज्जणीयतरं' लज्जिया 'मो त्ति । वारेज्जम्मि गुरुजणो, परिवंदइ जं वहूपोत्ति ॥२॥ ३१५. बीभच्छरसलक्खणं असुइ-कुणव-दुईसण-संजोगब्भासगंधनिप्फण्णो । निव्वेयविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभत्सो ॥१॥ बीभत्सो रसो जहा-- असुइमलभरियनिज्झर, सभावदुग्गंधिसव्वकालं पि । धण्णा उ सरीरकलिं, बहुमलकलुसं' विमुंचंति ॥२॥ ३१६. हासरसलक्खणं रूव-वय-वेस-भासाविवरीयविलंबणास हासो मणप्पहासो, पगासलिंगो रसो होइ ॥१॥ हासो रसो जहा पासुत्त-मसीमंडिय"-पडिबुद्धं देयरं" पलोयंती । ही ! जह थण-भर-कंपण-पणमियमझा हसइ सामा ।।२।। ३१७. करुणरसलक्खणं पियविप्पओग-'बंध-वह-वाहि'२-विणिवाय-संभमुप्पन्नो । सोइय-विल विय-पव्वाय"-रुण्णलिंगो रसो करुणो ॥१॥ करुणो रसो जहा पज्झाय-किलामिययं, बाहागयपप्पुयच्छियं बहुसो । तस्स विओगे" पुत्तिय५ ! दुब्बलयं ते मुहं जायं ॥२॥ १. लोइयकरणीयाओ (क); लोइयकिरियाओ ६. बहुमलकिलेसं (ख, ग); वृत्तिकृताप्यत्र (ख, ग, हा)। वाचनान्तरसूचना कृतास्ति-एवं वाचनान्त२. लज्जणतरगं ति (क, हा); लज्जणयतरं ति (चू) राण्यपि भावनीयानि (हे)। ३. वृत्त्योः 'भवामि' इति व्याख्यातमस्ति । अस्या- १०. मसीमंडिया (क)। नुसारेण 'होमि' इति पाठः संभाव्यते । ११. देवरं (ख, ग)। ४. वारिज्जंमि (क)। १२. बांधवव्याधि (हा)। ५. बहुप्पोत्तं (ख, ग, हे)। १३. पण्हाय (ख, ग); अत्र ‘म्ल' धातोः 'पव्वाय' ६. कुणिम (ख, ग, चू) आदेशो जातोस्ति-म्लेर्वापव्वायौ (हेम० ७. निव्वेय+अविहिंसालक्खणो-निवेयविहिंसा- ८।४।४८)। लक्खणो। १४. विओए (क)। ८. हु (ख, ग)। १५. पुत्तय (क); पुत्तया (ख, ग)। Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० ३१८. पसंतरसलक्खणं निद्दोसमण- समाहाणसंभवो अविकारलक्खणो सो, रसो पसंतो रसो जहा— सब्भाव - निव्विगारं, ही ! जह मुणिणो सोहइ, एए नव कव्वरसा, गाहाहिं मुणेयव्वा, हवंति - से तं नवनामे ॥ जो पसंतो त्ति वसनाम-पर्व ३१६. से किं तं दसनामे ? दसनामे दसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. गोणे २. नोगोणे ३. आयाणपणं ४. पडिवक्खप एणं ५. पाहण्णयाए ६. अणाइसिद्धतेणं ७. नामेण ८. अवयवेणं ६. संजोगेणं १०. पमाणेणं ॥ पसंतभावेणं । नायव्व ॥ १॥ ३२०. से किं तं गोण्णे ? गोण्णे - खमतीति खमणो, तवतीति' तवणो, जलतीति' जलणो, पवतीति पवणो । से तं गोण्णे || २. बत्तीस दोसा (क, ग ) । ३. गोणे ( ख, ग, हा) । उवसंत- पसंत-सोमदिट्ठीयं । मुहकमलं पीवरसिरीयं ॥ २ ॥ बत्तीसदोस विहिसमुप्पन्ना' । सुद्धा व मीसा वा ॥ ३॥ ३२१. से किं तं नोगोण्णे ? नोगोण्णे - अकुंतो सकुंतो, अमुग्गो समुग्गो, अमुद्दो समुद्दो, अलालं पलाल, अकुलिया सकुलिया, नो पलं असतीति' पलासो, अमाइवाहए मारवाहए, अबीयवावए बीयवावए, " नो इंदं गोवयतीति इंदगोवए । से तं नोगो ॥ ४. नोगुण्णे ( क ) ; नोगोणे ( ख, ग ) । ५. तवइत्ति ( क ) । ६. जलइत्ति ( क ) । ७. पवइत्ति ( क ) । अणुओगदाराई ३२२. से किं तं आयाणपरणं ? आयाणपणं- 'आवंती चाउरंगिज्जं असंखयं जण्णइज्जं पुरिसइज्जं एलइज्जं वीरियं धम्मो मग्गो समोसरणं आहत्तहीयं गंथे जमईयं" । सेतं आयाणपणं ॥ ३२३. से किं तं पडिवक्खपणं ? पडिवक्खप एणं - नवेसु गामागर नगर खेड- कब्बड - मडंबदो मुह-पट्टणासम-संवाह सन्निवेसेसु निविस्समाणेसु असिवा सिवा, अग्गी सीयलो, विसं महुरं कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं, जे लत्तए" से अलत्तए, जे लाउए से अलाउए, जे सुंभए से कुसुंभए, आलवंते विवलीयभासए । से तं पडिवक्खपणं ॥ १. एषा गाथा 'ख' प्रतौ नास्ति । ८. असई ( क ) । ६. ( क ) । १०. ( क ) । ११. धम्मो मंगलं चूलिया चाउरंगिज्जं असंखयं आवंती (ति) अहातत्थिज्जं (अं) अद्दई (इ) ज्जं ( ख, ग, चू, हा) । १२. रत्तए ( ख, ग ) । Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३५१ ३२४. से किं तं पाहण्णयाए ? पाहण्णयाए-असोगवणे सत्तवण्णवणे' चंपगवणे चूयवणे नागवणे पुन्नागवणे उच्छवणे दक्खवणे सालवणे । से तं पाहण्णयाए । ३२५. से किं. तं अणाइसिद्धतेणं ? अणाइसिद्धतेणं-धम्मत्थिकाए 'अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए । से तं अणाइसिद्धतेणं ।। ३२६. से किं तं नामेणं ? नामेणं--पिउपियामहस्स नामेणं उन्नामियए' । से तं नामेणं ॥ ३२७. से किं तं अवयवेणं ? अवयवेणंगाहा सिंगी सिही विसाणी, दाढी पक्खी खरी नही वाली। दुपय चउप्पय बहुपय', नंगूली केसरी ककुही ॥१॥ परियरबंधेण भडं, जाणेज्जा महिलियं निवसणेणं । सित्थेण दोणपायं', कविं च एगाए' गाहाए ॥२॥ -से तं अवयवेणं ॥ ३२८. से किं तं संजोगेणं ? संजोगे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–दव्वसंजोगे 'खेत्तसंजोगे कालसंजोगे" भावसंजोगे। ३२६. से कि तं दव्वसंजोगे ? दव्वसंजोगे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सचित्ते अचित्ते मीसए" ॥ ३३०. से किं तं सचित्ते ? सचित्ते-गोहिं गोमिए, 'महिसीहि माहिसिए, ऊरणीहिं ऊर __णिए", उट्टीहिं उट्टिए"५५ । से तं सचित्ते ॥ ३३१. से किं तं अचित्ते ? अचित्ते-छत्तेण छत्ती, दंडेण दंडी, पडेण पडी, घडेण घडी, कडेण कडी । से तं अचित्ते ।। ३३२. से किं तं मीसए ? मीसए---‘हलेणं हालिए, सगडेणं सागडिए, रहेणं रहिए, नावाए नाविए। से तं मीसए । से तं दव्वसंजोगे ॥ ३३३. से किं तं खेत्तसंजोगे ? खेत्तसंजोगे-'भारहे एरवए हेमवए हेरण्णवए हरिवासए १. सत्ति (ग)। ११. मीसे (क)। २. जाव (क)। १२. माहिसीए (ग)। ३. उन्नामिज्जइ (ग)। १३. ऊरणीए (ख)। ४. द्रष्टव्यम्-सू० ५२५ । १४. उट्टीए (ख, ग)। ५. सिखी (क)। १५. उट्टीहि उट्टिए पसूइ पसूइए ऊरणीहिं ऊरणीए ६. बहुप्पय (क); बहुपया (ख, ग) (क)। ७. कउही (क, ख); कउहीओ (ग)। १६. मिस्सए (क)। ८. दोणवायं (ख, ग)। १७. नावाए नाविए सगडेणं सागडिए रहेणं रहिए ६. इक्काए (ग)। हलेणं हालिए (क)। १०. जाव (क)। Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ अणुओगदाराई रम्मगवासए देवकुरुए उत्तरकुरुए पुव्व विदेहए अवरविदेहए", अहवा मागहए मालवए सोरट्ठए मरहट्ठए कोंकणए कोसलए। से तं खेत्तसंजोगे। ३३४. से कि तं कालसंजोगे ? कालसंजोगे-'सुसम-सुसमए सुसमए सुसम-दूसमए दूसम सुसमए दूसमए दूसम-दूसमए'', अहवा पाउसए वासारत्तए सरदए हेमंतए वसंतए गिम्हए । से तं कालसंजोगे॥ ३३५. से किं तं भावसंजोगे ? भावसंजोगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पसत्थे य अप सत्थे य ॥ ३३६. से कि तं पसत्थे ? पसत्थे-नाणेणं नाणी, दसणणं दसणी, चरित्तेणं चरित्ती । से तं पसत्थे ॥ ३३७. से किं तं अपसत्थे ? अपसत्थे-कोहेणं कोही, माणेणं माणी, मायाए मायी, लोभेणं लोभी । से तं अपसत्थे । से तं भावसंजोगे । से तं संजोगेणं ॥ ३३८. से कि तं एमाणेणं ? एमाणे च उविहे पणत्ते, तं जहा-नामप्पमाणे ठवणप्पमाणे दव्वप्पमाणे भावप्पमाणे ॥ ३३६. से कि तं नामप्पमाणे ? नामप्पमाणे-जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा पमाणे त्ति नामं कज्जइ । से तं नामप्पमाणे ॥ ३४०. से किं तं ठवणप्पमाणे ? ठवणप्पमाणे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहागाहा नवखत्त-देवय-कुले, पासंड-गणे य जीवियाहेउं । आभिप्पाइयनामे, ठवणानामं तु सत्तविहं ॥१॥ ३४१. से किं तं नक्खत्तनामे ? नक्खत्तनामे : कत्तियाहिं जाए-कत्तिए कत्तियादिण्णे" कत्तियाधम्मे कत्तियासम्मे कत्तियादेवे कत्तियादासे कत्तियासेणे कत्तियारक्खिए। 'रोहिणीहिं जाए-रोहिणिए रोहिणि दिण्णे रोहिणिधम्मे रोहिणिसम्मे रोहिणिदेवे रोहिणिदासे रोहिणिसेणे रोहिणिरक्खिए । एवं सव्वनक्खत्तेसु नामा भाणियवा। एत्थ संगहणिगाहाओ१. कत्तिय २. रोहिणि ३. मिगसिर, ४. अद्दा य" ५. पुणव्वसू य ६. पुस्से य। तत्तो य ७. अस्सिलेसा, ८. मघाओ२ ६., १०. दो फग्गुणीओ य ॥१॥ १. भारहे जाव एरवए (क)। णक्खत्तादिकं (चू)। २. कुंकणए (ख, ग)। ८. 'क' प्रतौ 'कत्तिया' स्थाने सर्वत्र 'कित्ति" पाठो ३. सुसमसुसमाए जाव दुसमदुसमाए (क)। विद्यते । ४. सरए (क)। ६. एवं जाव भरणी (क)। ५. भावसंजोगेणं (क)। १०. कित्तिए (क)। ६. संजोगे (क)। ११. ४ (ख, ग)। ७. ठवणप्रमाणं कट्टकम्मादिकं, अहवा सत्तविह- १२. मघातो (क); महाओ (ख, ग)। Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३५३ ११. हत्थो १२. चित्ता १३. साती', १४. विसाहा तह य होइ १५. अणुराहा। १६. जेट्ठा १७. मूलो' १८. पुव्वासाढा तह १६. उत्तरा चेव ॥२॥ २०. अभिई २१. सवण २२. धणिट्ठा, २३. सतभिसया २४.,२५. दो य होंति भद्दवया। २६. रेवति २७. अस्सिणि' २८. भरणि, एसा नक्खत्तपरिवाडी ॥३॥ -से तं नक्खत्तनामे ॥ ३४२. से किं तं 'देवयानामे ? देवयानामे : अग्गिदेवयाहिं जाए–'अग्गिए अग्गिदिण्णे अग्गिधम्मे अग्गिसम्मे अग्गिदेवे अग्गिदासे अग्गिसेणे अग्गिरक्खिए । एवं सव्वनक्खत्तदेवयानामा भाणियव्वा । एत्थं पि संगहणिगाहाओ'६१ अग्गि २ पयावइ ३ सोमे, ४ रुद्दे ५ अदिती ६ बहस्सई ७ सप्पे । ८ पिति भग १० अज्जम ११ सविया, १२ तट्ठा १३ वाऊ य १४ इंदग्गी ॥१॥ १५ मित्तो १६ इंदो १७ निरती', १८ आऊ १६ विस्सो य २० बंभ" २१ ‘विण्हू य"। २२ वसु २३ वरुण २४ अय २५ विवद्धी", २६ पुस्से २७ आसे २८ जमे चेव ॥२॥ -से तं देवयनामे ॥ ३४३. से किं तं कुलनामे ? कुलनामे-'उग्गे भोगे राइण्णे खत्तिए इक्खागे नाते कोरव्वे" । से तं कुलनामे ॥ ३४४. से किं तं पासंडनामे ? पासंडनामे-समणे पंडरंगे" भिक्खू" कावालिए तावसे परिव्वायगे" । से तं पासंडनामे ॥ ३४५. से किं तं गणनामे ? गणनामे–मल्ले मल्लदिण्णे मल्लधम्मे मल्लसम्म मल्लदेवे मल्लदासे मल्लसेणे मल्लरक्खिए । से तं गणनामे ॥ ३४६. से किं तं जीवियानामे" ? जीवियानामे-अवकरए उक्कुरुडए“ 'उज्झियए कज्ज वए सुप्पए"। से तं जीवियानामे ॥ १. सादी (ख, ग)। १२. विवाहा (क); अस्य स्थाने अन्यत्र 'अहि२. मूला (ख, ग)। र्बुध्नः पठ्यते (हे)। ३. सतभिसदा (ख)। १३. उग्गा भोगा राइण्णा इक्खागा नाता कोरव्वा ४. अस्सणि (क)। १४. पंडुरंगे (ख)। ५. देवतनामे (ग)। १५. ४ (ख)। ६. एवं एत्थ वि अट्ठनामे जाव जमे (क) । १६. पारिव्वायए (क); ४ (ख); परिवायए ७. बिहस्सई क)। (ग)। ८. पिउ (क)। १७. जीवियनामे (ख, ग); जीवियाहेउं (हे)। ६. निरिती (ग)। १८. उक्कडए (क); उक्कुरुडिए (ख, ग)। १०. बम्हा (ठाणं २।३२४) । १६. सुप्पए उज्झियए कज्जवए (क)। ११. विण्हुआ (ख); विण्हआ (ग)। २०. जीवियनामे (ख, ग); जीवियाहे (हे)। Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ अणुओदाराई ३४७. से किं तं आभिप्पाइयनामे ? आभिप्पाइयनामे- अंबए निंबए बबुलए पलासए सिए' पीलुए' करीरए । से तं अभिप्पाइयनामे । से तं ठवणप्पमाणे ॥ ३४८. से किं तं दव्वप्यमाणे ? दव्वप्पमाणे छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - धम्मत्थिकाए • अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए । सं तं दव्वप्पमाणे || ३४६. से किं तं भावप्पमाणे' ? भावप्पमाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - सामासिए तद्धित धाउए निरुत्तिए । ३५०. से किं तं सामासिए ? सामासिए - सत्त समासा भवंति तं जहा गाहा— १. दंदे य २. बहुव्वीही, ३. कम्मधारए ४. 'दिऊ तहा" । ५. 'तप्पुरिस ६. व्वईभावे", ७ एगसेसे य सत्तमे ||१|| ३५१. से किं तं दंदे" ? दंदे - दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, 'अश्वाश्च महिषाश्च ॥" अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम् । से तं दंदे || ३५२. से किं तं बहुव्वीही " ? बहुव्वीही-फुल्ला जम्मि" गिरिम्मि कुडय कयंबा" सो इमगिरी फुल्लिय-कुडय कयंबो" । से तं बहुव्वीही " ॥ ३५३. से किं तं कम्मधारए ? कम्मधारए - धवलो वसहो धवलवसहो, 'किहो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो" । से तं कम्मधारए ॥ ३५४. से किं तं दिगू ? दिगू -- 'तिष्णि कडुयाणि तिकडुयं", तिष्णि महुराणि तिमहुरं, तिष्णि गुणा तिगुणं, तिष्णि पुराणि तिपुरं, तिष्णि सराणि तिसरं, तिष्णि पुक्खराणि तिपुक्खरं, तिष्णि बिंदुयाणि तिबिंदुयं, तिष्णि पहा तिपहं, पंच नदीओ" १. बकुलए ( ख, ग ) । २. सिलए ( ख, ग ) । ३. पीलुअए ( ख, ग ) । ४. सं० पा० - धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए । ५. भावनामे ( क ) । ६. तद्धिए ( क ) । ७. दिगू य ( ख, ग ) । ८. तप्पुरिसे अव्वईभावे ( ख, ग ) । ६. एक्कसेसे ( ख, ग ) । १०. दंदे समासे (पु) अग्रेपि । ११. अश्वश्च महिषश्च ( ग ) । १२. बहुव्वीहिसमासे ( क ) । १३. इमंमि ( ख, ग ) । १४. कलंबा ( ख, ग ) । १५. कलंबो ( ख, ग ) । १६. बहुव्वीहिसमासे ( क ) । १७. किहो मियो किण्हमियो सेओ वडो सेअवडो रत्तो वडो रत्तवडो (क) । १८. दिगुनामे ( क ) । १६. तिष्णि कटुगा तिकटुगं ( ख ); तिण्णि कडुगानि तिकडुगं ( ग ) । २०. पुरा (ख) 1 २१. सरा ( ख ) । २२. बिंदुया ( ख ) । २३. नईओ ( क ) | Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई पंचनदं, सत्त गया सत्तगयं, नव तुरगा नवतुरगं, दस गामा दसगाम, दस पुराणि' दसपुरं । से तं दिगू॥ ३५५. से किं तं तप्पुरिसे' ? तप्पुरिसे-'तित्थे कागो तित्थकागो", वणे हत्थी वणहत्थी, वणे वराहो वणवराहो, वणे महिसो वणमहिसो ‘वणे मयूरो वणमयूरो"। से तं तप्पुरिसे ॥ ३५६. से किं तं अव्वईभावे ? अव्वईभावे-'अणुगामं अणुनदीयं अणुफरिहं अणुचरियं"। से तं अव्वईभावें ॥ ३५७. से किं तं एगसेसे ? एगसेसे-जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा, जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो। 'जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा, जहा बहवे करिसावणा तहा एगो करिसावणो । जहा एगो साली तहा बहवे साली, जहा बहवे साली तहा एगो साली"। से तं एगसेसे । से तं सामासिए" ॥ ३५८. से किं तं तद्धितए" ? तद्धितए अट्टविहे पण्णत्ते, तं जहागाहा १. कम्मे" २. सिप्प ३. सिलोए, ४. संजोग ५. समीवओ य ६. संजूहे । ७. 'इस्सरिया ८. वच्चेण य, तद्धितनामं तु अट्ठविहं ॥१॥ ३५६. से किं तं कम्मनामे ? कम्मनामे-'दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए कोला लिए' से तं कम्मनामे ।। १. पुरा (ग)। कप्पासिए कोलालिए भंडवेयालिए (क); २. दिगुसमासे (क)। तणहारए कट्ठहारए पत्तहारए दोसिए (ख, ३. तप्पुरिसे समासे (क)। ग), अत्र क्वापि 'तणहारए' इत्यादिपाठो ४. तित्थे काओ तित्थकाओ (क)। दृश्यते, तत्र कश्चिदाह-नन्वत्र तद्धितप्रत्ययो ५. वणे मोरो वणमोरो (ख, ग)। न कश्चिदुपलभ्यते तथा वक्ष्यमाणेष्वपि 'तुनाए ६. तप्पुरिसे समासे (क)। तंतुवाए' इत्यादिषु नायं दृश्यते तत्किमित्येवं७. अव्वईभावे समासे (क)। भूतनाम्नामिहोपन्यासः ? अत्रोच्यते, अस्मादेव ८. अणुणइया अणुगामो अणुफरिया अणुचरिया सूत्रोपन्यासात् तुणानि हरति-वहतीत्यादिक: (क)। कश्चिदाद्यव्याकरणदृष्टस्तद्धितोत्पत्तिहेतुभूतोऽर्थो ६. अव्वईभावे समासे (क)। द्रष्टव्यः, ततो यद्यपि साक्षात्तद्धितप्रत्ययो १०. द्रष्टव्यम्-सू० ५२८ । नास्ति तथापि तदुत्पत्तिनिबन्धनभूतमर्थमाश्रि११. एवं करिसावणो साली (क) । त्येह तन्निर्देशो न विरुध्यते, यदि तद्धितोत्पत्ति१२. समासिए (क)। हेतुरर्थोस्ति तर्हि तद्धितोपि कस्मान्नोत्पद्यत इति १३. तद्धियए (क)। चेत् ? लोके इत्थमेव रूढत्वादिति ब्रमः, १४. कम्म (क)। १५. संबूहे (हा) सर्वत्र । अथवा अस्मादेवाद्यमुनिप्रणीतसूत्रज्ञापकादेवं १६. इस्सरिअ अवच्चेण (ग)। जानीया:-तद्धितप्रत्यया एवामी केचित् प्रति१७. तणहारए कट्टहारए पत्तहारए दोसिए सोत्तिए प्रत्तव्या इति (हे)। Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ अणुओगदाराई ३६०. से कि तं सिप्पनामे ? सिप्पनामे-वत्थिए तंतिए' तुन्नाए तंतुवाए ‘पट्टकारे देअडे वरुडे मुंजकारे कट्टकारे छत्तकारे वज्झकारे पोत्थकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिमकारे" । से तं सिप्पनामे ॥ ३६१. से कि तं सिलोगनामे ? सिलोगनामे-समणे माहणे सव्वातिही । से तं सिलोग नामे ॥ ३६२. से किं तं संजोगनामे ? संजोगनामे-रण्णो' ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए", रण्णो भगिणीवई । से तं संजोगनामे ॥ ३६३. से कि तं समीवनामे ? समीवनामे-गिरिस्स समीवे नगरं गिरिनगरं, विदिसाए' समीवे नगरं वेदिसं', वेन्नाए समीवे नगरं वेन्नायडं", तगराए समीवे नगरं तग रायडं । से तं समीवनामे ॥ ३६४. से किं तं संजहनामे? संजहनामे-तरंगवतिकारे" मलयवतिकारे अत्ताणसट्रिकारे१२ बिंदुकारे । से तं संजूहनामे ॥ ३६५. से किं तं इस्सरियनामे ? इस्सरियनामे–राईसरे" तलवरे माडंबिए कोडुबिए इब्भे सेट्ठी सत्थवाहे सेणावई । से तं इस्सरियनामे ॥ . ३६६. से कि तं अवच्चनामे ? अवच्चनामे-अरहंतमाया" चक्कवट्टिमाया बलदेवमाया वासुदेवमाया रायमाया गणरायमाया"। से तं अवच्चनामे । से तं तद्धितए ॥ ३६७. से कि तं धाउए ? धाउए-भू सत्तायां परस्मैभाषा, एध" वृद्धौ, स्पर्द्ध संहर्षे, गाध प्रतिष्ठा-लिप्सयोः ग्रन्थे च, बाध लोडने । से तं धाउए। १. ४ (क)। न इत्यतो न विद्मः (हा)। २. देअहे (ख, ग) । प्रज्ञापनायां प्रथमपदे 'देयडा' ७. द्रते (ख, ग) । इति पाठो लभ्यते । वृत्तिकारेणापि 'देयडा- ८. विदिसा (ख); विदिस (ग)। दतिकाराः' इति व्याख्यातमस्ति ।' 'देअह' १. वेदिसं नगरं (ख, ग)। इति पदस्यार्थः क्वापि नोपलभ्यते । प्रतीयते १०. विनायडं (क)। लिपिदोषेण डकारहकारयोविपर्ययो जातः । ११. कारए (क) सर्वत्र । ३. वरुडे (ख, ग)। १२. सत्ताणुसट्टिकारे (ख, ग)। ४. पट्टवाए उपट्टे वरुडे मुंजकारए कट्टकारए छत्त- १३. ईसरिए नामे (क) । कारए पोत्थकारए दंतकारए सोल्लकारए १४. ईसरे (क, ख, ग)। कोट्टिमकारए (क); यच्चेह पूर्व च क्वचि- १५. अरिहंतमाया (ख, ग); तित्थगरमाया (हा, द्वाचनाविशेषेऽप्रतीतं नाम दृश्यते तद्देशान्तररूढितोऽवसेयम् (हे)। १६. मुणिमाया वायगमाया (ख, ग); गणिमाया ५. सवणे (हा); अस्मादेव सूत्रनिबंधात् वायगमाया (पु)। श्लाघार्थस्तद्धितार्थ इति (हा)। १७. एधु (ख, ग)। ६. राज्ञः श्वसुर इत्यादावप्यस्मादेव सूत्रनिबंधात १८. संहर्पण (क) । तद्धितार्थतेति, चित्रं च शब्दप्राभृतमप्रत्यक्षं च Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गदराई ३५७ ३६८. से किं तं निरुत्तिए' ? निरुत्तिए - मह्यां शेते महिषः, भ्रमति च रौति च भ्रमरः, मुहुर्मुहुर्लसति मुसलं, कपिरिव' लम्बते 'त्थेति च करोति" कपित्थं, चिच्च करोति खल्लं च भवति चिक्खल्लं, ऊर्ध्वकर्णः उलूकः, खस्य माला मेखला । से तं निरुत्तिए । से तं भावप्पमाणे । 'से तं पमाणेणं" । से तं दसनामे । से तं नामे । । ( नामेत्ति पदं समत्तं । ) उवक्कपाणुओगवारे पमाण-पदं ३६६. से किं तं पमाणे ? पमाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- १. दव्वप्यमाणे २. खेत्तप्पमाणे ३. कालप्पमाणे ४. भावप्पमाणे ॥ aratमाण-पदं ३७०. से किं तं दव्वष्पमाणे ? दव्वप्यमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पएस निष्फण्णे य विभागनिष्कण्णे य ॥ ३७१. से किं तं पएस निष्फण्णे ? पएस निष्कण्णे- परमाणुपोग्गले दुपए सिए जाव दसपएसिए संखेज्ज एसिए असंखेज्ज एसिए अनंत एसिए । से तं पएस निष्फण्णे || ३७२. से किं तं विभागनिष्कण्णे ? विभाग निष्फण्णे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. माणे २. उम्माणे ३. ओमाणे ४. गणिमे ५. परिमाणे ॥ ३७३. से किं तं माणे ? माणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - धन्नमाणप्पमाणे य रसमाणप्पमाणे य ॥ ३७४. से किं तं धन्नमाणप्यमाणे ? धन्नमाणप्पमाणे- दो 'असतीओ पसती" दो पसतीओ सेतिया, चत्तारि सेतियाओ कुलओ, चत्तारि कुलया पत्थो चत्तारि पत्थया आढगं, चत्तारि आढगाई दोणो, सट्ठि आढगाई" जहण्णए कुंभे, असीई आढगाई मज्झिमए कुंभे, आढगसतं उक्कोसए कुंभे, अट्ठआढगसतिए वाहे ॥ ३७५. एएणं धन्नमाणप्पमाणेणं किं पओयणं ? एएणं धन्नमाणप्पमाणेणं मुत्तोली-मुरवइडुर- अलिंद-ओचारसंसियाणं धन्नाणं धन्नमाणप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं" भवइ । सेतं धनमाण पमाणे ॥ ३७६. से किं तं रसमाणपमाणे ? रसमाणप्पमाणे -- धन्नमाणप्यमाणाओ चउभागविवढिए अभितर सिहाजुत्ते रसमाणप्पमाणे विहिज्जइ, तं जहा - चउसट्टिया ४, १. नेरुत्तिए ( क, ख, ग ) । २. लसतीति ( क ) । ३. कपेरिव ( ख, ग ) । ४. x ( ख ); त्थच्च ( ग ) । ५. करोति पतति च ( क ) । ६. चिदिति ( ख, ग ) । ७. से तं प्पमाणे ( क ) । ८. निष्पन्ने ( क ) सर्वत्र । ६. विभंगनिष्फण्णे (चू) सर्वत्र । १०. असईओ पसई ( क ) । ११. आढाई ( ग ) । १२. अववारिसंसियाणं ( क ); अपवारिसं०, अप चारिसं० (क्वचित्) । १३. निव्वत्ति (क) प्रायः सर्वत्र । Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई बत्तीसिया ८, सोलसिया १६, अट्ठभाइया ३२, चउभाइया ६४, अद्धमाणी' १२८, माणी २५६ । 'दो चउसट्ठियाओ" बत्तीसिया, दो बत्तीसियाओ सोलसिया, दो सोल सियाओ अट्ठभाइया, दो अट्ठभाइयाओ चउभाइया, दो चउभाइयाओ अद्धमाणी, दो अद्धमाणीओ माणी ॥ ३७७. एएणं रसमाणप्पमाणेणं किं पओयणं ? एएणं रसमाणप्पमाणेणं 'वारग-घडग करग-कल सिय-गग्गरि-दइय-करोडिय-कुंडियसंसियाणं" रसाणं रसमाणप्प माणनिवित्तिलक्खणं भवइ । से तं रसमाणप्पमाणे । से तं माणे ॥ ३७८. से किं तं उम्माणे ? उम्माणे-जण्णं उम्मिणिज्जइ, तं जहा–अद्धकरिसो करिसो, अद्धपलं पलं, अद्धतुला तुला, अद्धभारो भारो । दो अद्धकरिसा करिसो, दो करिसा अद्धपलं, दो अद्धपलाइं पलं, पंचुत्तरपलसइया तुला, दस तुलाओ अद्धभारो, बीसं तुलाओ भारो॥ ३७६. एएणं उम्माणप्पमाणेणं किं पओयणं ? एएणं उम्माणप्पमाणेणं 'पत्त-अगरु"-तगर चोयय-कुंकुम-खंड-गुल-मच्छंडियादीणं दवाणं उम्माणप्पमाणनिन्वित्ति लक्खणं भवइ । से तं उम्माणे ।। ३८०. से किं तं ओमाणे ? ओमाणे-जण्णं ओमिणिज्जइ, तं जहा–'हत्थेण वा दंडेण वा धणुणा" वा जुगेण वा नालियाए वा अक्खेण वा मुसलेण वा । गाहा 'दंडं धणुं जुगं नालियं च, अक्खं मुसलं च चउहत्थं । दसनालियं च रज्जु, वियाण ओमाणसण्णाए" ॥१॥ वत्थुम्मि हत्थमज्जं, खित्ते" दंडं धणुं च पंथम्मि । खायं च नालियाए, वियाण ओमाणसण्णाए" ॥२॥ ३८१. एएणं ओमाणप्पमाणेणं किं पओयणं ? एएणं ओमाणप्पमाणेणं खाय-चिय-रचिय करक चिय-कड-पड-भित्ति-परिक्खेवसंसियाणं दव्वाणं ओमाणप्पमाणनिवित्ति लक्खणं भवइ । से तं ओमाणे ॥ १. इदं च बहुषु वाचनाविशेषेषु न दृश्यत एव ६. पत्तागुलु (ख, ग)। (हे)। १०. ४ (चू)। २. दो चउस ट्रियाओ चउपलपमाणाओ (ख, ग)। ११. धणुक्केण (ख, ग)। ३. वारकघडककरक (ख, ग)। १२. दंडधणूजुगनालिया च अक्खमुसलं (ख, ग)। ४. ४ (क, ख, हे); क्वचित् 'कलसिए' ति १३. तोमाणसण्णाए (ख, ग) । ___ दृश्यते (हे)। १४. छित्ते (क)। ५. कक्करि (ग)। १५. तोमाणसण्णाए (ख, ग)। ६. करोडि (चू)। १६. करगचित्त (ग)। ७. कुंडियकरोडिसंसियाणं (क)। १७. पय (क)। ८. पंचपलसइया (ख, ग)। Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३८२. से किं तं गणिमे ? गणिमे-जण्णं गणिज्जइ, तं जहा-एगो दस सयं सहस्सं दससहस्साई सयसहस्सं दससयसहस्साई कोडी ॥ ३८३. एएणं गणिमपमाणेणं किं पओयणं ? एएणं गणिभप्पमाणेणं 'भितग'-भिति-भत्त वेयण'२-आय-व्वयसंसियाणं दव्वाणं गणिमप्पमाणनिवित्तिलक्खणं भवइ। से तं गणिमे ॥ ३८४. से किं तं पडिमाणे ? पडिमाणे--जण्णं पडिमिणिज्जइ, तं जहा—गुंजा कागणी निप्फावो कम्ममासओ मंडलओ सुवण्णो। पंच गुंजाओ कम्ममासओ, चत्तारि कागणीओ कम्ममासओ, तिण्णि निप्फावा कम्ममासओ, एवं चउक्कओ कम्ममासओ। बारस कम्ममासया मंडलओ, एवं 'अडयालीसाए कागणीओ' मंडलओ। सोलस कम्ममासया सुवण्णो, एवं 'चउसट्ठीए कागणोओ" सुवण्णो ॥ ३८५. एएणं पडिमाणप्पमाणेणं किं पओयणं ? एएणं पडिमाणप्पमाणेणं सूवण्ण-रजत - मणि-मोत्तिय-संख-सिल-पवालादीणं" दव्वाणं पडिमाणप्पमाणनि वित्तिलक्खणं भवइ । से तं पडिमाणे । से तं विभागनिष्फण्णे । से तं दव्वप्पमाणे ॥ खेत्तप्पमाण-पवं ३८६. से किं तं खेत्तप्पमाणे ? खेत्तप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–पएसनिप्फण्णे य विभागनिप्फण्णे" य ।। ३८७. से किं तं पएसनिप्फण्णे ? पएसनिप्फण्णे-एगपएसोगाढे 'दुपएसोगाढे तिपए सोगाढे जाव दसपएसोगाढे संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे । से तं पएसनिप्फण्णे ॥ ३८८. से किं तं विभागनिप्फण्णे ? विभागनिप्फण्णेगाहा अंगल विहत्थि रयणी, कुच्छी धणु गाउयं च बोधव्वं"। जोयण सेढी पयरं, लोगमलोगे वि य तहेव ॥१॥ ३८७. से कि तं अंगुले ? अंगुले तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-आयंगुले उस्सेहंगुले पमाणंगले । ३६०. से किं तं आयंगुले ? आयंगुले-जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो १. भतग (ग)। (ख, ग)। २. विविधभितिवेयणत्थ (चू)। ६. चउसट्ठीए (क); चउसट्ठि कागणीओ (ख, ३. व्वय निव्विसंसियाणं (क)। ४. कागिणी (क)। १०. रययतंब (क)। ५. कागण्यपेक्षया चत्तारि (ग)। ११. प्पवालाइयाणं (क)। ६. चउक्को (ख, ग)। १२. विभंगनिष्फण्णे (चू)। ७. कम्ममासओ कागण्यपेक्षयेत्यर्थः (ग)। १३. ४ (क)। ८. अडयालीसाए (क); अडयालिसं कागणीओ १४. बोद्धव्वं (ख, ग)। Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० अणुओगदाराई अंगुलेणं दुवालस अंगुलाई मुहं, नवमुहाई 'पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ", दोणीए पुरिसे माणजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ । गाहा माणम्माणप्पमाणजुत्ता', लक्खणवंजणगुणेहिं उववेया। उत्तमकुलप्पसूया, उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा ॥१॥ होंति पूण अहियपुरिसा, अट्ठसयं अंगलाण उव्विद्धा। छण्णउइ अहमपुरिसा, चउरुत्तरा' मज्झिमिल्ला उ ॥२॥ हीणा वा अहिया वा, जे खल सर-सत्त-सारपरिहीणा। ते उत्तमपुरिसाणं, अवसा पेसत्तणमुवैति ।।३।। ३६१. एएणं अंगलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, 'दो कुच्छीओ दंडं धणू जुगे नालिया अक्खे मसले'', दो धण सहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाई जोयणं ॥ ३६२. एएणं आयंगलप्पमाणेणं कि पओयणं? एएणं आयंगलप्पमाणेणं-जे णं जया मणस्सा भवंति तोस णं तया 'अप्पणो अंगुलेणं अगड-तलाग-दह-नदी-वावी पुक्खरिणी-दीहिया"-गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंति१. पमाणजुत्ते पुरिसे (क)। च एतावन्तः शब्दाः व्याख्याता उपलभ्यन्ते२. पमाणे जुत्ते (ग)। वावी-पुक्खरिणी - दीहिया - गुंजालिया सरा ३. चउत्तरा (क); चउरुत्तरं (ख)। सरपंती आराम-उज्जाण-काणण-वण-वणसंड४. अवस्स (क)। वणराई फरिहा-खाइया-चरिया-गोपुर-संघाडग५. मुविति (क)। तिक-चउक्क-चच्चर-चतुम्मुह-महापह-पहा-सभा६. दो कुच्छीओ धणू (क) । पवा-अलिंद-सरण-लेण-भंड-मत्त-उवकरण-सकड७. आयंगुलेणं (ख, ग) ।। रह-जाण-जुग्गय-थिल्ली-गिल्ली-सिविया-सद८.X (क); आयंगुलेणं (ख, ग)। माणी-लोही-लोहकडाहा (च); वावी-पुक्खरिणी६. अतः 'मत्तोवगरणमाईणि' पर्यन्तं पाठभेदा दीहिया-गुंजालिया सरा सरपंती सरसरपंती उपलभ्यन्ते-- आराम-उज्जाण-काणण-वण-वणसंड - वणराई आरामुज्जाण - काणण-वण-वणसंड-वणराईओ फरिहा-खाइया-चरिया-गोपुर-सांघाडग - तियअगड-तडाग-दह-नई-वावि-पोक्खरिणी-दीहिय. चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहा सभागुजालिया सरा सरपंतीओ सरसरपंतियाओ पवा- अलिंद-सरण - लेण-भंड-मत्त - उवगरण विलपंतीओ देवकुल-सभा-पवा - थूभ - चेइय- सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्ली-थिल्ली - सिवियाखाइय-परिहाओ पागारगट्टालय-चरिय - दार- संदमाणी-लोही-लोहकडाहा (हा); मलधारिगोपुर-संघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर - चउम्मुह- वृत्तौ केचिद् शब्दाः व्याख्याताः न सन्ति, तस्य महापह-सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि - थिल्लि- कारणं वृत्तिकृता स्वयमुपदर्शितम्-शेषं तु सीयसंदमाणिओ घर-सरण-लेण - आवणासण- यदिह क्वचित्किञ्चिन्न व्याख्यातं तत्सुगमत्वासयण-खंभ-भंड-मत्तोवगरणा लोही-लोहकडाह दिति मन्तव्यम् (हे)। कडच्छगमाईणि (क); चूणौ हारिभद्रीयवृत्तौ १०. दीहिय (ख, ग)। Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई याओ आरामज्जाण-काणण-वण-वणसंड-वणराईओ देवकुल-सभा-पवा-थूभ-खाइयपरिहाओ, पागार-अट्टालय-चरिय-दार-गोपुर-पासाय-घर-सरण-लेण-आवणसिंघाडग-तिग-च उक्क-चच्चर-चउम्मह-महापह-पह- सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सीय-संदमाणियाओ' लोही-लोहकडाह-कडुच्छुय-'आसण-सयण-खंभ' -भंड मत्तोवगरणमाईणि, अज्जकालियाइं च जोयणाई मविज्जति ।। ३६३. से समासओ ति विहे पण्णत्ते, तं जहा-सूईअंगुले' पयरंगुले घणंगुले। अंगुलायया ___ एगपएसिया सेढी सूईअंगुले। सूई सूईए गुणिया पयरंगुले। पयरं सूईए गुणितं घणंगुले ॥ ३६४. एए सि णं भंते ! सूईअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कयरे कयरेहितो अप्पे वा बहुए वा ___ तुल्ले वा विसेसाहिए वा ? सव्वत्थोवे सूईअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंखेज्जगुणे । से तं आयंगुले ।। ३६५. से किं तं उस्सेहंगले ? उस्सेहंगुले अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहागाहा परमाणू तसरेणू, रहरेणू अग्गयं च वालस्स । लिक्खा जूया य जवो, अट्ठगुणविवड्ढिया कमसो ॥१॥ ३६६. से किं तं परमाणू ? परमाणू दुविहे पण्णत्ते तं जहा-सुहुमे य वावहारिए" य ।। ३६७. 'तत्थ सुहुमो ठप्पो'१२ ॥ ३६८. 'से कि तं वावहारिए ? वावहारिए—अणंताणं सुहुम परमाणुपोग्गलाणं समुदय समिति-समागमेणं से एगे'" वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ । १. से णं भंते ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा ? नो इणमठे५ समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। २. से णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीइवएज्जा ? हंता वीइवएज्जा। १. चूणौं, हारिभद्रीय वृत्तौ च पूर्वं 'फरिहा' ७. कडिल्लय (ख, ग)। तदनन्तरं 'खाइया' व्याख्यातास्ति । अन्यान्यपि ८.४ (ख, ग)। पदानि भिन्नक्रमेण न्यस्तानि दृश्यन्ते । ६. सुइयंगुले (क)। २. फरिहाओ (ख, ग)। १०. घणंगुलाण य (क)। ३. गोपुर तोरण (पु)। ११. ववहारिए (ख, ग) सर्वत्र । ४. पहा (ख, ग); देवकूलसभादीनि पदानि १२. तत्थ णं जेसे सुहमे से ठप्पे (ख, ग, हा)। ___ क्वचिद्वाचनाविशेषे अत्रैवान्तरे दृश्यन्ते (हे)। १३. तत्थ णं जेसे ववहारिए से णं (ख, ग)। ५. सिविय (ख, ग)। १४. x (क, ख, ग) ६. संदमाणियाओ घर-सयण-लेण - आवणासण- १५. इणठे (पु)। सेअ-खंभ-भंड-मत्तोवगरणा (ख) । १६. संकमइ (हा)। Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ से णं तत्थ इहेज्जा' ? नो इणमट्ठे समट्ठे, 'नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । ३. से णं भंते ! पोक्खलसंवट्टगस्स' महामेहस्स मज्भंमज्भेणं वीइवएज्जा ? हंता वीइवएज्जा | से णं तत्थ उदउल्ले सिया ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । ४. से णं भंते ! गंगाए महानईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा ? हंता हव्वमागच्छेज्जा | से णं तत्थ विणिघायमावज्जेज्जा ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । ५. से णं भंते ! उदगावत्तं वा उदगबिंदु वा ओगाहेज्जा ? हंता ओगाहेज्जा | से णं तत्थ कुच्छेज्ज वा परियावज्जेज्ज वा ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्य सत्यं कमइ । गाहा— सत्थेण सुतिक्खेण वि, छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सक्का । तं परमाणु सिद्धा, वयंति 'आई पमाणानं ॥ १ ॥ ३६६. अणंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय समिति-समागमेणं सा एगा उसण्हसहा इवा, सहसहिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इवा, रहरेणू इ वा, (वालग्गे इवा, लिक्खा इवा, जूया इवा, जवमज्भे इ वा, अंगुले इ वा ? ) ' अट्ठ सहसहियाओ सा एगा सहसहिया, अट्ठ सहसहियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-' उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं" से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु- उत्तरकुरुगाणं मसाणं वाग्गा हरिवास - रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय- हेरण्णवयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हेमवय - हेरण्णवयाणं मणुस्साणं वालग्गा पुव्वविदेह - अव र विदेहाणं मनुस्सा से एगे वालग्गे, अट्ठ पुव्वविदेह - अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा भरहेरवयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ भरहेरवयाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जुया, अट्ठ जयाओ से एगे जवमज्भे, अट्ठ जवमज्झा से एगे उस्सेहं गुले । गदराई ४००. एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पादो, बारस अंगुलाई विहत्थी, चउवीसं अंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, छन्नउई अंगुलाई से एगे दंडे इ वा धणू इवा जुगेइ वा नालिया इ वा अक्खे इ वा मुसले इवा, एएणं धणुप्पमाणेणं दो १. दज्भिज्जा ( क ) ; नस्सेज्जा ( ख, ग ) । २. नो जाव कमइ ( क ) सर्वत्र । ३. पुक्खर० ( ख, ग ) । ४. आइप्यमाणा (क); आदिप्पमाणाणं ग) । ५. कोष्ठकवर्त्ती पाठ: भगवती (६।१३४ ) ख, सूत्रस्याधारेण स्वीकृत: । प्रकरणसादृश्यादसो अत्रापि युज्यतेस्म, किन्तु लिपिकाले संक्षेपीकरणपरम्परया कानिचित् पदानि न लिखितानीति प्रतीयते । ६. कुरूणं मणुयाणं ( ख, ग ) । Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३६३ धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाई जोयणं ।। ४०१. एएणं उस्सेहंगुलेणं किं पओयणं ? एएणं उस्सेहंगुलेणं नेरइय-तिरिक्खजोणिय मणुस्स-देवाणं सरीरोगाहणाओ' मविज्जति ॥ ४०२. नेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंच धणुसयाइं। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णणं अंगलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं धणसहस्सं ॥ ४०३. रयणप्भापुढवीए नेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सत्त धणूइं ति ण्णि रयणीओ छच्च अंगुलाई। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पण्णरस धणूइं 'दोण्णि रयणीओ बारस अंगलाई ॥ ४०४. 'एवं सव्वाणं दुविहा–भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्को सेणं दुगुणा दुगुणा । उत्तरवेउव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं दुगुणा दुगुणा। ४०५. एवं असुरकुमाराईणं जाव अणुत्तरविमाणवासीणं सगसगसरीरोगाहणा भाणियव्वा"। १. गाहणा (ख, ग)। २. अड्ढाइज्जाओ रयणीओ य (ख, ग)। ३. अत्र संक्षिप्तवाचनायाः पाठः स्वीकृतोस्ति । विस्तृतवाचनायाः विषयः मूलतः प्रज्ञापनायाः [२१] प्रतिपाद्योस्ति, अत्र स प्रासङ्गिक एव । तेनात्र संक्षिप्तवाचना पर्याप्ता परिभाव्यते । 'स, ग' प्रत्योः, मलधारिहेमचंद्रवृत्तौ च विस्तृतवाचना लभ्यते, सा चेत्थम्-सक्करप्पभापुढवीए नेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्डाइज्जाओ रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं एकतीसं धणूई रयणी य । वालुयप्पभापुढवीए नेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं एकतीसं धणू इं रयणी य । तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं बावट्टि धणूई दो रयणीओ य । एवं सव्वासिं पुढवीणं पुच्छा भाणियव्वा-पंकप्पभाए भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बाट्टि धणूई दो रयणीओ य । उत्तरवेउव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पणवीसं धणुसयं । धूमप्पभाए भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उकोसेणं पणवीसं धणूसयं । उत्तरवेउब्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं अड्डाइ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ ज्जाई धणुसयाई । तमाए भवधारपिज्जा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं अड्डाइज्जाई धणुसयाई । उत्तरवेउब्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोंसेणं पंच धणुसयाई । तमतमापुढवीए नेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्वियाय । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पंच धणुसयाई । तत्थ णं जासा उत्तरवेउब्विया सा जहणणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुसहस्सं । अणुओगदाराई असुरकुमाराणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं सत्त रयणीओ । तत्थ णं जासा उत्तरवेउब्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं । एवं असुरकुमारगमेणं जाव थणियकुमाराणं ताव भाणियव्वं । पुढविकाइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । एवं सुहुमाणं ओहियाणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं च भाणियव्वं । बादराणं ओहियाणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं च भाणियव्वं । एवं जाव बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं भाणियव्वं । वसइकाइयाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । सुहुमवणस्स इकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं तिण्हं पि जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । बादरवणस्सइकाइयाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । अपज्जत्तगाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगाणं जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । I एवं बेइंद्रियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई | अपज्जत्तगाणं जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगाणं जहणणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई । तेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिष्णि गाउयाई । अपज्जत्तगाणं जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगाणं जहणणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई । चउरिदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । अपज्जत्तगाणं जहणेणं वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगाणं जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! एवं चेव । संमुच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! एवं चेव । अपज्जत्तगसंमुच्छिम जलय रपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई गोयमा ! जहण्णेणं अंगूलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, पज्जत्तगसंमुच्छिमजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । गब्भवक्कंतियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । अपज्जत्तगगम्भवक्कंतियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगूलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगगब्भवतियजलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । चउप्पयथलयरपंचिदिय पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं छ गाउयाई। संमुच्छिमचउप्पयथलयर° पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं । अपज्जत्तगसंमुच्छिमचउप्पयथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगसंमुच्छिमचउप्पयथलयर पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं । गम्भवक्कंतियचउप्पयथलयर पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं छग्गाउयाई। अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयर° पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगगब्भवतियचउप्पथथलयर पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं छग्गाउयाई। उरपरिसप्पथलयस्पचिदिय° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । संमुच्छिमउरपरिसप्पथलयर पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणपुहुत्तं । अपज्जत्तगसंमुच्छिमउरपरिसप्पथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभा गं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगसंमुच्छिमउरपरिसप्पथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणपुद्धत्तं । गम्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयर पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । अपज्जत्तगगम्भवतियउरपरिसप्पथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगगब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयर पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। भयपरिसप्पथलयरपंचिंदिय° पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं । संमुच्छिमभुयपरिसप्पथलयर पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं । अपज्जत्तगसंमुच्छिमभुयपरिसप्पथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगसंमुच्छिमभयपरिसप्पथलयरपृच्छा । गोयमा! जहणणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । गम्भवक्कंतिय भयपरिसप्पथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपृहत्तं । अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगगब्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । खयरपंचिदिय° पुच्छा गोयमा! जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । संमुच्छिमखहयराणं जहा भुयगपरिसप्पसंमुच्छिमाणं तिसु वि गमेसु तहा भाणियव्वं । गम्भवक्क Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४०६. से समासओ तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सूईअंगुले पयरंगुले घणंगुले । 'अंगुलायया तियखहयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं घणुपुहुत्तं । अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियखयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगगब्भवक्कंतियखयर° पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं । एत्थ संगहणिगाहाओ भवंति, तं जहा जोयणसहस्स गाउयपुहुत्तं, तत्तो य जोयणपुहत्तं । दोण्हं तु घणु-पुहुत्तं, संमुच्छिमे होइ उच्चत्तं ॥१॥ जोयणसहस्स छग्गाउयाई, तत्तो य जोयणसहस्सं ।। गाउयपुत्त भुयगे, पक्खीसु भवे धणुपुहत्तं ॥२॥ [इदं च गाथाद्वयं क्वचिदेव वाचनाविशेषे दृश्यते, सोपयोगत्वात्तु लिखितम् (हे)] । मणुस्साणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं । संमुच्छिममणुस्साणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । गब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा । गोयमा! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । पज्जत्तगगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। वाणमंतराणं भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य जहा असुरकुमाराणं तहा भाणियन्वा । जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाणं । सोहम्मे कप्पे देवाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगूलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं । एवं ईसाणे कप्पे वि भाणियव्वं । जहा सोहम्मे कप्पे देवाणं पुच्छा तहा सेसकप्पदेवाणं पि पुच्छा भाणियव्वा जाव अच्चुतो कप्पोसणंकुमारे भवधारणिज्जा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं छ रयणीओ । उत्तरवेउब्विया जहा सोहम्मे । जहा सणंकुमारे तहा माहिदे वि । बंभलोग-लंतगेसु भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पंच रयणीओ। उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे । महासुक्क-सहस्सारेसु भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ। उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे । आणत-पाणत-आरण-अच्चुतेसु चउसु वि भवधारणिज्जा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि रयणीओ। उत्तरवेउब्विया जहा सोहम्मे । गेवेज्जगदेवाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! एगे भवधारणिज्जे सरीरगे पण्णत्ते, से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दो रयणीओ। अणुत्तरोववाईयदेवाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! एगे भवधारणिज्जे सरीरगे पण्णत्ते, से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं एगा रयणी । Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३६७ एगपएसिया सेढी सूईअंगुले । सूई सूईए गुणिया पयरंगुले। पयरं सूईए गुणितं घणंगुले ॥ ४०७. एएसि णं सूईअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कयरे कयरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा ? सव्वत्थोवे सूईअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंखेज्जगुणे" । से तं उस्सेहंगुले ॥ ४०८. से किं तं पमाणंगुले ? पमाणंगुले-एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठ सोवण्णिए कागणिरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए अहिगरणिसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तस्स णं एगमेगा कोडी उस्सेहंगुल विक्खंभा, तं समणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धंगुलं, तं सहस्सगुणियं' पमाणंगुलं भवइ॥ ४०६. एएणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाई पादो, 'दो पाया विहत्थी'', दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी दो कुच्छीओ धणू, दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं ॥ ४१०. एएणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं ? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं १. अप्पाबहुयं जहा आयंगुलस्स (क)। २. जंबूद्वीपप्रज्ञप्तौ (३।१२) 'चउरंगुलप्पमाणमित्तं' इति पाठो विद्यते, तवृत्तिकारः प्रस्तुतसूत्रस्य मतभेदं लक्ष्यीकृत्य यत् समीक्षितं तदित्थमस्ति यत्तु एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठसोवण्णिए कागिणीरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए अहिंगरणी संठाणसंठिए पण्णत्ते तस्स णं एगमेगा कोडी उस्सेहंगुलविक्खंभा इति श्री अनुयोगद्वारसूत्र. तवृत्ती च एतानि च मधुरतुणफलादीनि भरतचक्रवत्तिकालसंभवान्येव गृह्यन्ते अन्यथा कालभेदेन वैषम्यसम्भवे काकिणीरत्नं सर्वचक्रिणां तुल्यं न स्यात् तुल्यं चेष्यते इति व्याख्यातं तच्च विचार्यमाणं सम्यगभिप्रायविषयो न भवति यतः सूत्रे उत्सेधांगुलप्रमाणं कागिणीरत्नं भणितं तवृत्तौ च प्रमाणाङ गु- लप्रमाणं उभयमपि प्रवचनसारोद्धारादिना विसंवादियुक्त्यक्षमं च यत्तु चतुरंगुलो मणी पुणेति गाथां व्याख्यानयता श्रीमलयगिरि- णापि इहाङ गुलं प्रमाणाङ गुलमवगंतव्यं सर्वचक्रवत्तिनामपि काकिण्यादिरलानां तुल्यप्रमाणत्वात् इतिवृहत्संग्रहणीवृत्ती एतदपि प्रागवद् विचारणास्पदमेवेति बहुश्रुतः सम्यक्पर्यालोच्य यथावच्छद्धेयमिति ।। चतुरङ गुलानमाणमात्र नाधिकं न च न्यूनमिति यत्तु 'उस्सेहंगुलाविविक्खंभा' इत्यनुयोगद्वारवचनेन एकाङगुलप्रमाणत्वमुक्तं तद् वाचनाभेदहेतुकं सम्भाव्यते (हीरविजयवृत्ति पत्र २३३ हस्तलिखित)। शान्तिचन्द्रीयवृत्तावपि एष मतभेदश्चचिनोस्ति (पत्र २२६, २२७)। पुण्यसागरवृत्तावपि एषा चर्चा विद्यते (हस्तलिखितवृत्ति पत्र १०१)। ३. सहस्सगुणं (ख, ग, चू, हे)। ४. लगभइ (क)। ५. दुवालस अंगुलाई विहत्थी (ख, ग)। ६. वलीणं (ख, ग)। ७. वलीणं (ख, ग)। Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ अणुओगदाराई पब्भाराणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं 'वासहराणं पव्वयाणं" वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुदाणं आयाम-'विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जति ॥ ४११. से समासओ तिविहे पण्णत्ते, तं जहा--सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो, संखेज्जएणं लोगो गुणितो संखेज्जा लोगा, असंखेज्जएणं लोगो गुणितो असंखेज्जा लोगा। ४१२. 'एएसि णं सेढीअंगल-पयरंगल-घणंगलाणं कयरे कयरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा ? सव्वत्थोवे सेढीअंगुले, पयरंगले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंखेज्जगुणे" । से तं पमाणंगुले । से तं विभागनिप्फण्णे । से तं खेत्तप्पमाणे ॥ कालप्पमाण-पर्व ४१३. से किं तं कालप्पमाणे ? कालप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पएसनिप्फण्णे य विभागनिप्फण्णे य॥ ४१४. से किं तं पएसनिप्फण्णे ? पएसनिप्फण्णे-एगसमयट्ठिईए 'दुसमयट्ठिईए तिसमयट्ठि ईए" जाव दससमयट्ठिईए संखेज्जसमयट्टिईए असंखेज्जसमयट्टिईए । से तं पएस निप्फण्णे ॥ ४१५. से किं तं विभागनिप्फण्णे ? विभागनिप्फण्णेगाहा समयावलिय-म हुत्ता, दिवसमहोरत्त-पक्ख-मासा य । संवच्छर-जुग-पलिया, सागर-ओस प्पि-परियट्टा ॥१॥ ४१६. से किं तं समए ? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि से जहानामए तुण्णागदारए सिया तरुणे बलवं जुग जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे 'दढपाणि-पाय-पास-पिठंतरोरुपरिणते" तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू" चम्मट्ठग"-दुहण-मुट्ठिय-समाहतनिचित-गत्तकाएउरस्सबलसमण्णागए 'लंघण-पवण-जइण-वायामसमत्थे" छेए दक्खे पत्तठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महर्ति पडसाडियं वा १. वासहरपव्वयाणं (क)। ८. ओसप्पिणि (ग)। २. विक्खंभुच्चत्तुन्वेह (क); विक्खंभोच्चत्तो- ६. दढपाणिपाए पास-पिट्ठेतरोरुपरिणते (ख, __ व्वेह (ख, ग)। ३. लोगा, अणंतेणं लोगो गुणितो अणंता लोगा १०. परिघनिभबाह घणनिचियवद्रपाणिखंधे (क); (ख, ग); अनन्तश्च लोकरलोकः (हे)। परिहनिभबाहू (ख, ग)। ४. अप्पाबहुयं तं चेव (क)। ११. चम्मेदृग (क)। ५. विभंगनिष्फण्णे (चू) सर्वत्र । १२. गत्तकाए लंघण-पवण-जवण - वायाम - समत्थे (क)। ७. दिवस अहोरत्त (ख, ग)। १३. ४ (क)। Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३६६ पट्टसाडियं वा गहाय सयराह' हत्थमेत्तं' ओसारेज्जा। तत्थ चोयए पण्णवयं एवं वयासी-जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्त ओसारिए से समए भवइ ? नो इणमठे समठे। कम्हा ? जम्हा' संखेज्जाणं तंतुणं समुदय-समिति-समागमेणं एगा' पडसाडिया निष्फज्जइ', उवरिल्लम्मि, तंतुम्मि अच्छिण्णे हेट्ठिल्ले तंतू न छिज्जइ, अण्णम्मि काले उवरिल्ले तंतू छिज्जइ, अण्णम्मि काले हेट्ठिल्ले तंतू छिज्जइ, तम्हा से समए न भवइ । एवं वयंतं पण्णवयं चोयए एवं वयासी-जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पदसाडियाए वा उवरिल्ले तंतू छिण्णे से समए ? 'न भवइ । कम्हा ? जम्हा संखेज्जाणं पम्हाणं समुदय-समिति-समागमेणं एगे तंतू निप्फज्जइ, उवरिल्ले पम्हे अच्छिण्णे हेदिल्ले पम्हे न छिज्जइ, अण्णम्मि काले उवरिल्ले पम्हे छिज्जइ, अण्ण म्मि काले हेटिल्ले पम्हे छिज्जइ, तम्हा से समए न भवइ। एवं वयंतं पण्णवयं चोयए एवं वयासी-जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तस्स तंतुस्स उवरिल्ले पम्हे छिण्णे से समए ? 'न भवइ'"। कम्हा ? जम्हा अणंताणं संघायाणं समुदय-समिति-समागमेणं एगे पम्हे निप्फज्जइ, उवरिल्ले संघाए अविसंघाइए हेटिल्ले संघाए न विसंघाइज्जइ", अण्णम्मि काले उवरिल्ले संघाए विसंघाइज्जइ, अण्ण म्मि काले हेट्ठिल्ले संघाए विसंघाइज्जइ, तम्हा से समए न भवइ । 'एत्तो वि य णं"सुहुमतराए समए पण्णत्ते समणाउसो ! ४१७. असंखेज्जाणं समयाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा आवलिया त्ति वुच्चई" संखेज्जाओ आवलियाओ ऊसासो, संखेज्जाओ आवलियाओ नीसासो। सिलोगा हट्ठस्स अणवगल्लस, निरुवक्किट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसास-नीसासे, एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥१॥ सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे । लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए" ॥२॥ १. सगराह (क)। शेषः (हे)। २. हत्थमत्तं (क)। १०. नो इणमठे समठे (क)। ३. जहा (क)। ११. नो इणमठे समठे (क) । ४. ४ (क)। १२. विसंघाडिज्जइ (क)। ५. निप्पज्जइ (पु)। १३. तत्तो (क)। ६. उवरिल्ले (क)। १४. पवुच्चइ (ख, ग)। ७. हि ढिल्ले (क, ख, ग)। . १५. सत्तहत्तरीए (ख, ग)। ८. समए (क) । सर्वत्र । २६. ति आहिते (ख, ग)। ६. समए भवइ (ख, ग); स समयः किं भवतीति Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० अणुओगदाराई गाहा तिण्णि संहस्सा सत्त य, सयाई तेहत्तरि'च ऊसासा । एस मुहुत्तो भणियो, सव्वेहिं अणंतनाणीहिं ॥३॥ एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तं, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उऊ, तिण्णि उऊ अयणं, दो अयणाई संवच्छरे, पंच संवच्छराई जगे, वीसं जगाई वाससयं, दस वाससयाइं वाससहस्सं सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्सं , चउरासीइं वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे, चउरासीई पुग्वंगसयसहस्साई से एगे पुव्वे, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं से एगे तुडियंगे, चउरासीइं तुडियंगसयसहस्साई से एगे तुडिए, चउरासीइं तुडिसयसहस्साइं से एगे अडडंगे, चउरासीई अडडंगसयसहस्साइं से एगे अडडे, एवं अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंग पउमे, नलिणंगे नलिणे, 'अत्थनिउरंगे अत्थानउरे", 'अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चलियंगे चलिया, सीस हेलियंगे सीसपहेलिया। एतावताव गणिए, 'एतावए व गणियस्स विसए', 'अतो परं" ओवमिए"। ४१८. से किं तं ओवमिए ? ओवमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–लिओवमे य सागरो१. तेवतरिं (क)। एक्को छ णव ति सुण्णं छ चतु छ सुण्ण सुण्ण २. संवच्छरे (क)। णव सुण्ण सुण्ण एक्को छ सत्त अट्ठ णव चतु ३. अत्थनिऊरंगे अत्थनिऊरे (क); अत्थनीपूरंगे अद्र एक्को पण पण ति पण चतु सुण्ण छ __ अत्थनीपूरे (ख, ग)। छ सत्त सुण्ण एक्को ति एक्को अट्ट एक्कं ४. अजुए २ पजुए २ नजुए २ (क); अउअंगे च ठवेज्जा २३. पउते वीसुत्तरं सुण्णसतं ततो छ अउए पउअंगे पउए नउअंगे न उए (ख, ग)। ति णव णव पण णव एक्को अट्ठ छ एक्को चूणि-वृत्त्योश्च आधारेण एष पाठभेद: चिन्त्यो- ति ति सत्त दो ति सत्त छ दो चतु पण छ स्ति । चूणिकृता स्वीकृतपाठानुसारि व्या पण सत्त चतु दो णव पण णव अठ्ठ ति पण ख्यानं कृतमस्ति-उतंगे सुण्णसतं पंचहियं पण ति अठ्ठ णव सुण्णं अट्ठ सत्त अट्ठ ति ततो चतु अट्ठ सत्त सुण्णं सत्त सुण्णं सत्त सुण्णं एक्को सुण्णं ति दो पण एक्कं च ठवेज्जा सुण्णं दो अट्ठ पण णव पण दो ति चउ ति २४. (चूणि पृष्ठ ३६, ४०)। द्रष्टव्यं हारिणव सत्त ति णव सत्त ति णव दो ति दो णव भद्रीयवृत्ति (पृष्ठ ५५, ५६) मलधारीहेमचंद्र णव ति ति सुण्ण दो पण चउ णव छ णव पण वृत्ति पत्र १६२ । छ पण दो य ठवेज्जा २१ णउते सुण्णसतं ५. चउरासीइं सीसपहेलिअंगे सयसहस्साइं सा दसाहियं ततो छ पण अट्ठ पण चतु णव ति एगा सीसपहेलिया (ख, ग)। णव अट्ठ चतु सुण्णं अट्ठ ति ति अट्ठ चतु ६. एतावया चेव (क); एतवता चेव (ख, ग)। छ अट्ठ सत्त छ अट्ठ सत्त छ छ पण पण ति ७. एतावदेव (क); एतावता चेव (ख, ग)। पण पण अट सूण्णं सत्त णव तिति चतू एक्को ८. द्रष्टव्यम्-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः २।४ सूत्रस्य छ चतु अट्ठ पण एक्को दोण्णि य ठवेज्जा २२ पादटिप्पणम् । पउतंगे पण्णरसुत्तरं सुण्णसतं ततो चतु सुण्ण . तेण परं (क), एत्तो वरं (ख, ग)। णव एक्को पण चउ एक्को णव सुण्णं एक्को १०. ओवमिए पवत्तइ (ख, ग)। Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३७१ वमे य॥ ४१६. से किं तं पलिओवमे ? पलिओवमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-उद्धारपलिओवमे अद्धापलिओवमे खेत्तपलिओवमे य॥ ४२०. से किं तं उद्धारपलिओवमे ? उद्धारपलिओवमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमे य वावहारिए य॥ ४२१. तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे ॥ ४२२. तत्थ णं जेसे वावहारिए', से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं 'उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं'; से णं पल्ले :गाहा ‘एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय" उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं' । - सम्मठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥२॥ से णं वालग्गे" नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा', नो पलिविद्धंसेज्जा', नो पूइत्ताए" हव्वमागच्छेज्जा। तओ णं समए-समए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ। से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे । गाहा एएसि" पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज़ दसगुणिया। तं वावहारियस्स उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥१॥ ४२३. एएहिं वावहारियउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहि किं पओयणं ? एएहिं वावहारिय उद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णवण8२ पण्ण विज्जति" । से तं वावहारिए उद्धारपलिओवमे ॥ १. तदिदं वक्ष्यमाणलक्षणम् (हा); तदिदमिति लभ्यते, अतः पदविन्यासदृष्टयापि च प्रस्तुतशेषः (हे)। पाठो गाथानिबद्ध एव सम्भाव्यते । २. उव्वेहेणं (ग)। ६. सप्तरात्रिकाणाम् (हा)। ३. परिरएणं (क, हा)। ७. वालग्गा (ख, ग)। ४. ४ (क)। ८. कुहेज्जा (ख, ग); कुत्थेज्जा (चू)। ५. एगाहिय बेहिय जाव (क); एगाहिय बेआ- ६. विद्धंसेज्जा (हा)। हिअतेआहिय जाव (ख, ग); ‘एगाहियबेया- १०. पूएत्ताए (क); पूतिदेहत्ताए (चू)। हियतेआहिय' ति षष्ठीबहुवचनलोपादेकाहिक- १. एएसि णं (क) सर्वत्र । द्वयाहिक-त्रयाहिकाणाम् (हे) । एषा गाथा १२. पण्णवणा (क, ख, ग, हे); असौ पाठः जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ (२१६) विद्यते । प्रस्तुतसूत्रा- हारिभद्रीयवृत्तिमनुसृत्य स्वीकृतः । अत्र पज्ञादर्शेषु 'जाव' इति पदं दृश्यते, किन्तु वृत्तिद्वये- पना प्रज्ञाप्यते, अस्य पाठस्यापेक्षया प्रज्ञापनार्थ पि चूर्णावपि च 'जाव' इति पदं नास्ति प्रज्ञाप्यते इति पाठः समीचीनः प्रतिभाति । व्याख्यातम् । 'क' प्रतौ 'बेहिय' इति पाठोपि १३. कज्जइ (क) । Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ अणुओगदाराई ४२४. से किं तं सुहुमे उद्धारप लिओ मे ? सुहुमे उद्धारपलिओवमे से जहानामए पल्ले सिया - जोयणं आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं 'उड्ढं उच्चत्तेणं", तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले गाहा एगा हिय - बेया हि तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मट्ठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥ १॥ तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाई खंडाई कज्जइ' । ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ' असंखेज्जइभागमेत्ता 'सुहुमस्स पणगजीवस्स" सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा' । तेणं वाग्गेनो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा", नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा । तओ णं समएसमए एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे """ निट्ठिए भवइ । सेतं सुमे उद्धारप लिओ मे । गाहा एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तिं सुहुमस्स उद्धारसागरोवमस्स" एगस्स भवे परीमाणं ॥ १ ॥ ४२५. एएहिं सुहुमउद्धारपलिओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं ? एएहि सुहुमउद्धारपलिओबम- सागरो मेहिं दीव- समुद्दाणं उद्धारो घेप्पइ ॥ ४२६. केवइया णं भंते! दीव-समुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जावइया णं अड्ढाइज्जाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धारसमया" एवइया णं दीव-समुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता । से तं सुहुमे उद्धारपलिओवमे । से तं उद्धारप लिओ मे ॥ ४२७. से किं तं अद्धाप लिओ मे ? अद्धापलिओवमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - हुमे य वावहारिए य ॥ ४२८. तत्थं णं जेसे सहमे से ठप्पे ॥ ४२६. तत्थ णं जेसे बावहारिए: से जहानामए पल्ले सिया - जोयणं" आयाम - विक्खंभेणं, जोयणं ‘उड़्ढ उच्चत्तेणं", तं तिगुणं सविसेसं परिक्खवेणं, से णं पल्ले "— १. उब्वेहेणं ( ख, ग ) । 7 २. X ( क ) । ३. आहिअ जाव ( ख, ग ) । ४. जाव ( क ) । ५. कीरइ ( क ) । ६. दिट्ठीणं ओगा ( ख, ग ) । ७. सुहुमपणगजीवस्स (नू) । ८. असंखेज्जगुणा बायरपुढविक्काइयपज्जत्तसरीरपमाणा (चू ) । वृत्तिकृद्भ्यामस्य पाठस्य वृद्धवादत्वेन उल्लेखः कृतोस्ति । ६. वालग्गा (क, ख, ग ) । १०. कुहेज्जा ( ख, ग ) । ११. जाव ( क ) | १२. सागरोवमस्स उ ( क ) । १३. उद्धारसुहुमसमया ( क ) । १४. अत: 'पलिविद्धंसेज्जा' पर्यन्तं 'क' प्रतौ 'जाव' इति पदं विद्यते । १५. उब्वेहेणं ( ख, ग ) । १६. x ( क ) । Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुमोगदाराई गाहा एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय', 'उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । • सम्मठे सन्निचिते', भरिए वालग्गकोडीणं ॥१॥ से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा", नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा । तओ णं वाससए-वाससए गते' एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे 'नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ। से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे । गाहा एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। तं ‘वावहारियस्स अद्धासागरोवमस्स" एगस्स भवे परीमाणं ॥१॥ ४३०. एएहिं वावहारियअद्धापलिओवम -सागरोवमेहिं कि पओयणं ? एएहिं वावहारिय अद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं 'नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णवण8 पण्ण विज्जति'" । से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे ।। ४३१. से किं तं सुहमे अद्धापलिओवमे ? सुहमे अद्धापलिओवमे : से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं" आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं 'उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले"गाहा एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय", •उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥१॥ तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाई कज्जइ, ते णं वालग्गे दिट्ठीओगाहणाओ" असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा । तेणं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा", 'नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हन्वमागच्छेज्जा। तओ णं वाससए-वाससए गते" १. सं० पा०—तेआहिअ जाव गरिए । २. वालग्गा (ख, ग)। ३. सं० पा०-डहेज्जा जाव नो। ४. जाव (क)। ५. ४ (ख, ग)। ६. ४ (क)। ७. ववहारद्धदहिस्स उ (क)। ८. वावहारिएहिं अद्धा (ख, ग)। ६. पण्णवण्णा (ख, ग)। १०. जाव पण्णवणा कज्जइ (क)। ११. अत: 'तत्थ णं' पर्यन्तं 'क' प्रतौ 'जाव' इति पदं विद्यते । १२. उव्वेहेणं (ख, ग)। १३. X (क)। १४. सं० पा०-तेआहिअ जोव भरिए । १५. दिट्ठीणं ओगाहणाओ (ख, ग)। १६. अतः 'हव्वमागच्छेज्जा' पर्यन्तं 'क' प्रतौ 'जाव' इति पदं विद्यते । १७. वालग्गा (ख, ग)। १८. सं० पा०-डहेज्जा जाव नो। १६. ४ (क)। Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ अणुओगदाराई एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले ‘खीणे नीरए निल्लेवे" निदिए भवइ । से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे। गाहा एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया । तं 'सुहुमस्स अद्धासागरोवमस्स" एगस्स भवे परीमाणं ॥१॥ ४३२. एएहिं सुहुमअद्धापलिओवम'-सागरोवमेहि किं पओयणं ? एएहिं सुहुमअद्धापलि ओवम-सागरोवमेहि नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाई मविज्जति ।। ४३३. नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवास सहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। 'जहा पण्णवणाए ठिईपए सव्वसत्ताणं । से तं सुहमे अद्धापलिओवमे । से तं अद्धापलिओवमे ॥ १. ४ [क]। २. सुहुमद्धदहिस्स उ (क)। ३. सुहुमेहिं अद्धा (ख, ग)। ४. मणूस (ख, ग)। ५. आउयं (ख, ग)। ६. अत्र संक्षिप्तवाचनायाः पाठः स्वीकृतोस्ति । विस्तृतवाचनायाः विषयः मूलतः प्रज्ञापनायाः [पद ४] प्रतिपाद्योस्ति, अत्र स प्रासङ्गिक एव । तेनात्र संक्षिप्तवाचना पर्याप्ता परिभाव्यते । 'ख, ग' प्रत्योः मलधारिहेमचन्द्रवृत्तौ च विस्तृतवाचना लभ्यते, सा चेत्थम्-रयणप्पभापुढविणेरइआणं भंते! केवतिअं काल ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं एक्कं सागरोवमं । अपज्जत्तगरयणप्पभापुढविनेरइआणं भंते! केवइअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तगरयणप्पभापुढविनेरइआणं भंते! केवइअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एक्कं सागरोवमं अंतोमुहुत्तूणं । सक्करप्पभापूढविनेरइआणं भंते! केवइअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं सागरोवमं, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाई । एवं सेसपुढवीसु पुच्छा भाणियव्वा । वालुयप्पभापुढविनेरइआणं जहन्नेणं तिण्णि सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं। पंकप्पभापुढविनेरइयाणं जहन्नेणं सत्त सागरोवमाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं। धूमप्पभापुढविनेरइयाणं जहन्नेणं दस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं । तमापुढविनेरइयाणं जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं । तमतमापुढविनेरइयाणं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। असुरकुमाराणं भंते! केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं सातिरेग सागरोवमं । असुरकुमारीणं भंते! केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाई। Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई नागकुमाराणं भंते! केवतिअं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाई दुण्णि पलिओवमाई । नागकुमारीणं भंते! केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणं पलिओवमं । एवं जहा णागकूमाराणं देवाणं देवीण य तहा जाव थणिय कुमाराणं देवाणं देवीण य भाणिअव्वं । पुढविकाइआणं भंते! केवइअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई । सुहुमपुढविकाइआणं ओहिआणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाण य तिण्ह वि पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि अंतोमुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं । बादरपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई । अपज्जत्तगबादरपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा! जहन्नेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगबादरपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई। एवं सेसकाइआणं वि पुच्छा वयणं भाणियव्वं । आउकाइआणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई। सुहुमआउकाइआणं ओहिआणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं तिण्ह वि जहन्नेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । बादरआउकाइयाणं जहा ओहिआणं । अपज्जत्तगबादरआउकाइआणं जहन्नेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगबादरआउकाइआणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई। तेउकाइआणं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्ण राइंदिआई । सहमतेउकाइआणं ओहिआणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं तिण्ह वि जहन्नेण वि अंतोमुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । बादरतेउकाइआणं जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि राइंदिआई। अपज्जत्तगबादरतेउकाइआणं जहन्नेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगबादरतेउकाइआणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाइं अंतोमुहत्तणाई। वाउकाइआणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई । सुहुमवाउकाइआणं ओहिआणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाण य तिण्ह वि जहन्नेण वि अंतोमुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं । बादरवाउकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई। अपज्जत्तगबादरवाउकाइयाणं जहन्नेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं । पज्जत्तगबादरवाउकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई ।। वणस्सइकाइआणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साई। सुहुमवणस्सइकाइआणं ओहिआणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाण य ति ह वि जहन्नेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । बादरवणस्सइकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दसवाससहस्साई । अपज्जत्तगबादरवणस्सइकाइयाणं जहन्नेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तगबादरवणस्सइकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई। बेइंदिआणं भंते ! केवइ कालं ठिई पण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि । अपज्जत्तगबेइंदिआणं पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तगबेइंदिआणं पुच्छा । गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं अंतोमहत्तणाई । तेइंदिआणं भंते ! केवइ कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं एकूणपण्णासं राइंदिआइं। अपज्जत्तगतेइंदिआणं पुच्छा । गोयमा ! जहन्नेण वि अंतो Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ अणुओगदाराई मुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तगतेइंदिआणं पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एकूणपण्णासं राइंदिआइं अंतोमुत्तूणाई। चरिदिआणं भंते ! केवइ कोलं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहन्नेणं अंतीमुहत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा । अपज्जत्तगचउरिदिआणं पूच्छा । गोयमा ! जहन्नेण वि अंतोमूहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं । पज्जत्तगचउरिदियाण पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा अंतोमुहुत्तणा। पंचिंदिअतिरिक्खजोणिआणं भंते ! केवइअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । जलयरपंचिदिअतिरिक्खजोणिआणं भंते ! केवइअं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। समुच्छिमजलयरपंचिदिअतिरिक्खजोणिआणं पुच्छा । गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । अपज्जत्तयसंमुच्छिमजलयरपंचिदिअ० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमहत्तं । पज्जत्तयसंमुच्छिमजलयरपंचिदिअ० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तूणा । गब्भवक्कंतिअजलयरपंचिदिअ० पुच्छा । गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियजलयरपंचिदिअ० पूच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तयगब्भवक्कंतियजलयरपंचिदिअ० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुत्तूणा । चउप्पयथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाइं। संमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं चउरासीति वाससहस्साई। अपज्जत्तयसंमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतो हुत्तं । पज्जत्तयसंमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिदिय जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं चउरासीइवाससहस्साई अंतोमहत्तणाई । गब्भवतिअचउप्पयथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। अपज्जत्तगगब्भवक्कतिअचउप्पयथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तगगब्भवक्कंतिअचउप्पयथलयरपंचिदिन जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिओवमाई अंतोमुहत्तणाई। उरपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। संमुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साइं । अपज्जत्तयसंमुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचिंदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेण वि अतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं । पज्जत्तयसंमुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचिंदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साई अंतोमुहत्तणाई। गम्भवक्कतिअउरपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। अपज्जत्तगगब्भवतियउरपरिसप्पथलयरपंचिदिय जाव गोयमा ! जहन्नेणं वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तयगब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तूणा। भअपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी । संमूच्छिमभअपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं, अपज्जतयसंमच्छिमभुअपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा! जहन्नेण वि अंतोमहत्तं, Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३७७ उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं । पज्जत्तगसंमुच्छिमभुअपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा । जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साई अंतोमुत्तुणाई। गब्भवक्कंतियभुअपरिसप्पथलयरपंचिंदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्व कोडी। अपज्जत्तयगब्भवक्कंतिअभुअपरिसप्पथलयरपंचिंदिय जाव गोयमा ! जहन्नेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं । पज्जत्तयगब्भवक्कंतिअभुअपरिसप्पथलयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तूणा। खहयरपंचिंदिय जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असं खिज्जतिभागो । संमुच्छिमखहयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावत्तरि वाससहस्साई। अपज्जत्तयसंमूच्छिमखहयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेण वि अंतोमूहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगसंमुच्छिमखयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावतरि वाससहस्साइं अंतीमुहत्तणाई। गब्भवक्कंतिअखहयरपंचिदिय जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागो । अपज्जत्तगगब्भवतिअखहयरपंचिदिअ जाव गोयमा ! जहन्नेण वि अंतोमहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । पज्जत्तगगब्भवक्कंतिअखहयरपंचिदिअतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असं खिज्जइभागो अंतोमुहत्तणो । एत्थ एएसि संगहणिगाहाओ भवंति, तं जहा समुच्छिमे पुव्वकोडी, चउरासीइं भवे सहस्साई । तेवण्णा बायाला, बावत्तरिमेव पक्खीणं ॥१।। गब्भम्मि पुव्वकोडी, तिणि अ पलिओवमाइं । परमाउ उरग-भुअपुवकोडी पनिओवमासंखभागो अ॥२॥ मणस्साणं भंते ! केवइअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। संमूच्छिममणुस्साणं जाव गोयमा ! जहन्नेण वि अंतोमहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं । गब्भवक्कंतिअमणुस्साणं जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई । अपज्जत्तयगब्भवतिअमणुस्साणं जाव गोयमा ! जहन्नेणं वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तयगब्भवक्कंतिअमणूसाणं भंते ! केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहत्तणाई। वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं । वाणमंतरीणं भंते ! केवतिअं कालं ठिती पगणता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं । जोतिसियाणं भंते ! देवाणं केवतिअं० गोयमा ! जहन्नेणं सातिरेगं अट्रभागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहिअं । जोतिसिणीण भंते ! देवीणं० गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अब्भहि। चंदविमाणाणं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहिअं। चंदविमाणाणं भंते ! देवीणं० गोयमा ! जहन्नेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अब्भहि । Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ अणुओगदाराई सरविमाणाणं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समभहि । सूरविमाणाणं भंते ! देवीणं' गोयमा ! जहन्नेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहि वाससतेहिमब्भहि। गहविमाणाणं भंते ! देवाण० गोयमा ! जहन्नेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवमं । गहविमाणाणं भंते ! देवीण गोयमा ! जहन्नेणं चउब्भागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवम । नक्खत्तविमाणाणं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं । नक्खत्तविमाणाणं भंते ! देवीणं० गोयमा ! जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ।। ताराविमाणाणं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउभागपलिओवमं । ताराविमाणाणं भंते ! देवीणं केवइ कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अट्रभागपलिओवम, उक्कोसेणं साइरेगं अट्ठभागपलिओवमं । वेमाणियाणं भंते देवाणं केवतिअं कालं. गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई: वेमाणियाणं भंते ! देवीणं केवतिअं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई । सोहम्मे णं भंते ! कप्पे देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवम, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं । सोहम्मे णं भंते ! कप्पे परिग्गहियदेवीणं (ग. देवीणं) गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं । 'सोहम्मे णं अपरिग्गहियदेवीणं० गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पण्णासं पलिओवमाइं"। १. 'ग' प्रती नास्ति । ईसाणे णं भंते ! कप्पे देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाइं। ईसाणे णं भंते ! कप्पे परिग्गहियदेवीणं (ग. देवीणं) गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगं पलिओवम, उक्कोसेणं नव पलिओवमाइं । 'ईसाणे णं भंते ! कप्पे अपरिग्गहियदेवीणं० गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगं पलिओवम, उक्कोसेणं पणपण्ण पलिओवमाइं"।१-'ग' प्रतौ नास्ति । सणंकुमारे णं भंते ! कप्पे देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं दो सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइ । माहिदे णं भंते ! कप्पे देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाइं, उक्कोसेणं साइरेगाई सत्त सागरोवमाई । बंभलोए णं भंते ! कप्पे देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं सत्त सागरोवमाइं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं। एवं कप्पे कप्पे केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोअमा! एवं भाणिअव्वं । लंतए जहन्नेणं दस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं चउद्दस सागरोवमाई । महासुक्के जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं। सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं अटारस सागरोवमाइं। आणए जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई। पाणए जहन्नेणं एगूणवीसंसागरोवमाइं उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाई। आरणे जहन्नेणं वीसं सागरोवमाई. उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं । अच्चुए जहन्नेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं। हेद्विमहेट्टिमगेवेज्जविमाणेसु णं भंते ! देवाणं केवतिअं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३७६ ४३४. से किं तं खेत्तपलिओवमे ? खेत्तपलिओवमे दुविहे पणात्ते, तं जहा-सुहुमे य वाव हारिए य॥ ४३५. तत्थ णं जेसे सुहुमे से ठप्पे ॥ ४३६. तत्थ णं जेसे वावहारिए : से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं 'उड्ढं उच्चत्तेणं", तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले'गाहा एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय, उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मठे सन्निचिते, भरिए वालग्गकोडीणं ॥१॥ से णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा', 'नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलि विद्धसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा। जे णं तस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहि अप्फुन्ना, तओ णं समए-समए एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले ‘खीणे 'नीरए निल्लेवे निट्ठिए" भवइ । से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे । बावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेवीसं सागरोवमाई । हेट्टिममज्झिमगेवेज्जविमाणेसु णं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं तेवीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई । हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जविमाणेसु ण भंते । देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं चउव्वीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाइं। मज्झिमहेट्रिमगेवेज्जविमाणेसु णं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं पणवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं छब्बीसं सागरोवमाइं।मज्झिममज्झिमगेवेज्जविमाणेसु णं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं छब्बीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं। मज्झिमउवरिमगेवेज्जविमाणेसु णं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं अठ्ठावीसं सागरोवमाई । उवरिमहेट्रिमगेवेज्जविमाणेसु णं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं अदावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाई । उवरिममज्झिमगेवेज्जविमाणेसु णं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाइं। उवरिमउवरिमगेवेज्जविमाणेसू णं भंते ! देवाणं० गोयमा ! जहन्नेणं तीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं। विजयवेजयंतजयंतअपराजितविमाणेसु णं भंते ! देवाणं केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। सव्वसिद्ध णं भंते ! महाविमाणे देवाणं केवतिअं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! अजहन्न मणुक्कोसं तेत्तीसं सागरोवमाइं । १. अत: 'पूइत्ताए' पर्यन्तं 'क' प्रतौ 'जाव' इति ५. सं० पा०-डहेज्जा जाव नो। पदं विद्यते । ६. सं० पा०-खीणे जाव निट्ठिए । २. उव्वेहेणं (ख, ग)। ७. जाव परिनिट्ठिए (क)। ३. ४ (क)। ८. अतः 'पण्णविज्जइ' पर्यन्तं 'क' प्रतौ संक्षिप्त४. सं० पा-तेआहिअ जाव भरिए । पाठोस्ति-खेत्त जाव पण्णविज्जइ । Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० अणुबोगदाराई गाहा एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया । तं वावहारियस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥१॥ ४३७. एएहिं वावहारियखेत्तपलिओवम'-सागरोवमेहिं किं पओयणं ? एएहिं वावहारिय खेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णवणठं पण्ण विज्जइ । से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे ॥ ४३८. से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे ? सुहुमे खेत्तपलिओवमे : से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं', 'जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगणं सविसेसं. परिक्खेवेणं; से णं पल्ले - गाहा एगाहिय-बेयाहिय-तेयाहिय', 'उक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं । सम्मठे सन्निचिते', भरिए वालग्गकोडीणं ॥१॥ त थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाइं खंडाई कज्जइ, ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ 'असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ" असंखेज्जगुणा । ते णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा", 'नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा । जे णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना वा अणप्फुन्ना वा, तओ णं समए-समए एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे" नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । से तं सुहमे खेत्तपलिओवमे । ४३६. 'तत्थ णं चोयए पण्णवर्ग एवं वयासी-अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा, जे णं वालग्गेहिं अणप्फुन्ना ? हंता अस्थि ।। जहा को दिळंतो? से जहानामए कोट्ठए" सिया कोहंडाणं भरिए, तत्थ णं माउलिंगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बिल्ला पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं आमलगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बयरा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं चणगा" पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं मुग्गा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं सरिसवा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं गंगावालुया पक्खित्ता सा वि माया, एव १. ववहारिएहिं खेत्त (ख, ग)। नास्ति । २. पण्णवणा (ख, ग)। ८. ४ (क)। ३. अतः 'वालग्गे' पर्यन्तं "क' प्रतो 'जाव' इति ६. वालग्गा (क, ख, ग)। पदं विद्यते । १०. सं० पा०-डहेज्जा जाव नो। ४. सं० पा०—विक्खंभेणं जाव परिक्खेवेणं । ११. सं० पा०-खीणे जाव निट्ठिए । ५. X (क)। १२. एवं वयंतं पण्णवर्ग चोयए (क)। ६. सं० पा०-तेआहिअ जाव भरिए । १३. मंचए (ख, ग)। ७. अतः 'असंखेज्जगुणा' पर्यन्तः पाठः 'क' प्रतौ १४. चाणगा (ख, ग)। Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८१ अणुओगदाराई मेव एएणं दिट्टतेणं अत्थि णं तस्म पल्लस्स आगासपएसा, जे णं तेहिं वालग्गेहि अणप्फुन्ना। गाहा एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज्ज दसगणिया । तं 'मुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स" भवे परीमाणं ॥१॥ ४४०. एएहिं सुहुमखेत्तपलिओवम-सागरोवमेहिं कि पओयणं ? एएहि मुहुमखेत्तपलि ओवम-सागरोवमेहिं दिट्ठिवाए दव्वा मविज्जति ॥ ४४१. कइविहा णं भंते ! दव्वा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा' ५ ण्णत्ता, तं जहा-जीवदव्वा य अजीवदव्वा य ॥ ४४२. अजीवदव्वा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा 'अरूविअजीवदव्वा य रूविअजीवदव्वा य" ।। ४४३. अरूविअजीवदव्वा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दस विहा पण्णत्ता, तं जहा-धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसा धम्मत्थिकायस्स पएसा', 'अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसा अधम्मत्थिकायस्स पएसा, आगास त्थिकाए आगास त्थिकायस्स देसा आगासत्थिकायस्स पएसा", अद्धासमए ।। ४४४. रूविअजीवदव्वा णं भंते ! कइविहा पण्णता ? गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-खंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणपोग्गला। ते णं भंते ! कि संखेज्जा असंखेज्जा अणंता? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'ते णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा', अणंता ? गोयमा ! अणंता परमाणुपोग्गला अणंता दुपएसिया खंधा 'जाव अणंता अणंतपएसिया खंधा, से" तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-'ते णं" नो संखेज्जा, 'नो असंखेज्जा," अणंता। ४४५. जीवदव्वा णं भंते ! किं संखेज्जा असंखेज्जा अणंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो १. सुहुमखेत्तसागरस्स (क)। ७. पएसे (क)। २. सुहुमेहिं खेत्त° (ख, ग)। ८. एवं अधम्मत्थिकाए आगासस्थिकाए (क)। ३. दुविहा दव्वा (क)। ६. जाव (क); नो संखेज्जा (ख, ग)। ४. चूणौ प्रथम जीवसूत्रं तदनन्तरं च अजीवसूत्रं १०. जाव दसपएसिया खंधा संखेज्जपए असंखेज्जव्याख्यातमस्ति । 'क' प्रतावपि इत्थमेव पाठो पए (क)। लभ्यते । वृत्त्योः स्वीकृतपाठवद् व्याख्या ११. ४ (क)। लभ्यते। १२. एण?णं (ख, ग) । ५. रूवीअजीवदव्वा य अरूवीअजीवदव्वा य १३.४ (ख, ग)। (ख, ग)। १४. जाव (क)। ६. देसे (क)। Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ असंखेज्जा, अनंता । से केणट्ठेण भंते ! एवं वुच्चइ - जीवदव्वा' 'णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ? गोयमा ! असंखेज्जा नैरइया, असंखेज्जा असुरकुमारा जाव' असंखेज्जा थणियकुमारा, असंखेज्जा पुढविकाइया, 'असंखेज्जा आउकाइया, असंखेज्जा तेउकाइया, असंखेज्जा वाउकाइया ", अनंता वणस्सइकाइया, असंखेज्जा बेदिया, 'असंखेज्जा तेइंदिया”, असंखेज्जा चउरिदिया, असंखेज्जा पंचिदियतिरिक्खजोणिया, असंखेज्जा मणुस्सा', असंखेज्जा वाणमंतरा, असंखेज्जा जोइसिया, असंखेज्जा वेमाणिया, अणंता सिद्धा, से तेणट्ठेणं' गोयमा ! एवं वुच्चइ'जीवदव्वा णं" नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ॥ ४४६. कइ णं भंते ! सरीरा' पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, तं जहा --ओरालिए वेव्विए आहारए तेयए कम्मए । ४४७. नेरइयाणं भंते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरा पण्णत्ता, व्विए तेयए कम्मए ॥ अणुओगदाराई ४४८. असुरकुमाराणं भंते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरा पण्णत्ता, तं जहा - वेडव्विए तेयए कम्मए ॥ ४४६. एवं तिणि- तिणि एए चेव सरीरा जाव' थणियकुमाराणं भाणियव्वा ॥ ४५०. पुढविकाइयाणं भंते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए तेयए कम्मए ॥ १. x ( ख, ग ) । सं० पा० जीवदव्वा जाव अनंता । ४५१. एवं आउ-उ-वणस्स इकाइयाण वि एए चेव तिष्णि सरीरा भाणियव्वा ॥ ४५२. वाउकाइयाणं" भंते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि सरीरा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए ॥ ४५३. बेइंदिय-तेइंदिय चउरिदियाणं जहा पुढविकाइयाणं ॥ ४५४. पंचिदियति रिक्खजोणियाणं जहा वाउकाइयाणं ॥ २. अणु० सू० २५४ । ३. एवं आउ तेउ वाउ ( क ) ; जाव असंखेज्जा वाकाइआ ( ख, ग ) । ४५५. मणुस्साणं" "भंते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, तं जहाओलिए वेव्विए आहारए तेयए कम्मए । ४. जाव ( ख, ग ) । ५. माणुस्सा ( क ) ; मणूसा ( ख, ग ) । तं जहा - ६. एणट्ठे ( ख, ग ) । ७. x ( ख, ग ) । ८. सरीरगा ( क ) । C. अणु० सू० २५४ । १०. सं० पा० - वाउकाइयाणं जाव गोयमा । ११. सं० पा०-- मणुस्साणं जाव गोयमा । Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओदारा ४५६. वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं ॥ ४५७. केवइया' णं भंते ! ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - ' बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य" । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं 'उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा । तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं" अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणी-ओसीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ अभवसिद्धिएहि अनंतगुणा सिद्धाणं अनंतभागो ॥ ४५८. केवइया णं भंते ! वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहाबल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो । तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अनंता, अणंताहिं उस्सप्पणी - ओस्सप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, सेसं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लया तहा 'एए वि" भाणियव्वा ॥ ४५६. केवइया णं भंते ! आहारगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहाबद्धेल्या य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं सिय" अत्थि सिय" नत्थ, जइ अत्थि जहणेणं एगो वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सहस्स पुहत्तं " । मुक्केलया जहा ओरालियसरीरस्स" तहा भाणियव्वा ॥ ४६०. केवइया णं भंते ! तेयगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहाबद्धेल्लया य मक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं अनंता, अणताहि उस्सप्पणी ओसणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, दव्वओ" सिद्धेहिं अनंतगुणा सव्वजीवाणं अनंतभागूणा । तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अनंता, अताहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, व्वओ" सव्वजीवेहि अनंतगुणा जीववग्गस्स अनंतभागो ॥ ४६१. केवइया णं भंते ! कम्मगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहाबद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । जहा तेयगसरीरा तहा कम्मगसरीरा वि भाणियव्वा ॥ ४६२. नेरइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं ८. ओरालिय ( ख, ग ) । C. एहिं ( क ) । १०. सिया ( क ) । ११. सिया ( क ) । १. नेरइयाणं वेउव्त्रियतेयगकम्मगा तिष्णि-तिष्णि सरीरा भाणियव्वा ( क ) । २. इविहा ( क ) । ३. बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य ( ख, ग ) । ४. ओसप्पिणी - उस्सप्पिणीहि (ख) सर्वत्र । ५. × ( क ) । ६. x (क, ख, ग ) । ७. सेपि ( क ) । ३८३ १२. सहसपुहुत्तं ( क, ख, ग ) । १३. ओरालियसरीरा ( ख, ग ) । १४. x ( क, ख, ग ) । १५. ४ ( ख, ग ) । Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ अणुओगदाराई जहा--बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं नत्थि । तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते जहा ओहिया ओरालियसरीरा' तहा भाणियव्वा ॥ ४६३. मेरइयाणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्स प्पिणी-ओस प्पिणी हि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो । तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं बिइयवग्गमूलपडुप्पण्णं' 'अहव णं अंगल बिइयवग्गमूलघणपमाणमेत्ताओ सेढीओ। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा ॥ ४६४. नेरइयाणं भंते ! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धल्लया ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा ।। ४६५. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसि चेव वेरव्वियसरीरा तहा“ भाणियव्वा ॥ ४६६. असुरकुमाराणं भंते ! केवइया ओरालियसरीर पण्णत्ता ? गोयमा ! जहा नेरइयाणं ओरालियसरीरा तहाभाणियव्वा ॥ ४६७. असुर कुमाराणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बधेल्लया य मक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, 'असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स' असंखेज्जइभागो। तासि णं सेढोणं विक्खंभसूई अंगुल ढमवग्गमूलस्स असंखेज्जइभागो। मुक्केल्लया जहा 'ओहिया ओरालियसरीरा'" तहान भाणियव्वा ।। ४६८. 'असुरकुमाराणं भंते ! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । जहा एएसिं चेव ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा१४ ॥ ४६६. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव वेउव्वियसरीरा तहा५ भाणियव्वा ॥ - १. ओरालिय (क)। २. अणु० सू० ४५७ । ३. पडुप्पाइयं (चू)। ४. अहवा (चू); अहव ण (हेपा)। ५. अणु० सू० ४५७ । ६. ओरालिया (क, ख, ग) । ७. अणु० सू० ४५७ । ८. अणु० सू० ४६३ । ६. अणु० सू० ४६२ । १०. जहा नेरइयाणं जाव पयरस्स (क) । ११. एएसिं चेव ओरालियसरीरा (क) । १२. अणु० सू० ४५७ । १३. अणु० सू० ४६६ । १४. आहारगा जहा ओरालियसरीरा तहा भाणि यव्वा (क)। १५. अणु० सू० ४६७ । Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३८५ ४७०. जहा असुरकुमाराणं तहा' जाव' थणियकुमाराणं ताव भाणियव्वं ।। ४७१. पुढ विकाइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। एवं जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा' भाणियव्वा ।। ४७२. पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, त जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं नत्थि । 'मुक्के ल्लया जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा ॥ ४७३. आहारगसरीरा वि एवं चेव भाणियव्वा ।।। ४७४. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसि चेव ओरालियसरीरा तहा" भाणियव्वा ।। ४७५. जहा पुढविकाइयाणं एवं आउकाइयाणं तेउकाइयाण य सव्वसरीरा भाणि यव्वा ॥ ४७६. वाउकाइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । जहा पुढ विकाइयाणं ओरालिय सरीरा तहाभाणियव्वा ॥ ४७७. वाउकाइयाणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा पलिओवमस्स' असंखेज्जइभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया । 'मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरा लियसरीरयमुक्केल्लया। ४७८. आहारगसरीरा" जहा पुढविकाइयाणं वेउव्वियसरीरा तहा" भाणियव्वा ।। ४७६. तेयग-कम्मगसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा" भाणियव्वा ।। ४८०. वणस्सइकाइयाणं ओरालिय-वेउब्विय-आहारगसरीरा जहा पुढविकाइयाणं तहा" भाणियव्वा ॥ १. अणु० सू० ४६६-४६६ । ६. खेत्तपलि. (ख, ग, हे)। २. अणु० सू० २५४ । १०. x (ख, ग, हे)। ३. अणु० सू० ४५७। ११. मुक्केल्लया वेउव्वियसरीरा (ख, ग)। ४. अणु० सू० ४५७ । पू०-अणु० सू० ४५७ । ५. अणु० सू० ४७१। १२. सरीरा य (ख, ग)। ६. अणु० सू० ४७१-४७४ । १३. ४ (ख, ग)। ७. मुक्केल्लया जहा ओहियाणं एवं आउकाइयाणं १४. अणु० सू० ४७२ । तेउकाइयाणं सव्वसरीरा भाणियव्वा (क)। १५. अणु० सू० ४७४ । ८. अणु० सू० ४७१ । १६. अणु० सू० ४७१-४७३। Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ अणुओगदाराई ४८१. वणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइया तेयग-कम्मगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा' ! जहा ओहिया तेयग-कम्मगसरीरा' तहा' वणस्सइकाइयाण वि तेयग-कम्मगसरीरा भाणियव्वा॥ ४८२. बेइंदियाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा असंखेज्जाहिं उस्स प्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो। तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ, असंखेज्जाइं से ढिवग्गमलाइं । बेइंदियाणं ओरालियसरीरेहि बद्धेल्लएहिं पयरो अवहीरइ असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं कालओ, खेत्तओ अंगलपयरस्स आवलियाए य असंखेज्जइभागपलिभागेणं । मक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा" भाणियव्वा । ४८३. वेउव्विय-आहारगसरीरा" बद्धेल्लया नत्थि । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिय सरीरा तहा भाणियव्वा ॥ ४८४. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा ।। ४८५. 'जहा बेइंदियाणं तहा" तेइंदिय-चरिदियाण वि भाणियव्वं ॥ ४८६. पंचिदियतिरिक्खजोणियाण वि ओरालियसरीरा ‘एवं चेव भाणियव्वा । ४८७. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बधेल्लया य मक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ. खेत्तओ 'असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो, तासि णं सेढीणं'" विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जइभागो । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया। ४८८. आहारगसरीरा जहा बेइंदियाणं ॥ ४८६. तेयग-कम्मगसरीरा जहा ओरालिया ॥ १. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धे- __ ल्लया य मुक्केल्लया य (ख, ग)। २. कम्मसरीरा (क) ।। ३. अणु० सू० ४६०, ४६१ । ४. अवहीरइ (क)। ५. ओरालिय (ख, हा)। ६. पयरं (ख, हा)। ७. अणु० सू० ४५७ । ८. सरीरा णं (क)। ६. अणु० सू० ४५७ । १०. अणु० सू० ४८२ । ११. अणु० सू० ४८२-४८४ । १२. तहा (क) । अणु० सू० ४८२ । १३. एवं तेइंदियचउरिदियपंचिदियतिरिक्खजोणि याण वि भाणियव्वाणि (चू, हा)। १४. जीव (क)। १५. अणु० सू० ४५७ । १६. अणु० सू० ४८३ । १७. अणु० सू० ४८७ । Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८७ अणुओगदाराई ४६०. मणुस्साणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा । जहण्णपए संखेज्जा-संखेज्जाओ कोडीओ 'एगूणतीसं ठाणाई, 'तिजमलपयस्स उवरिं चउजमलपयस्स हेट्ठा", 'अहव णं" छ8ो वग्गो पंचमवग्गपडुप्पण्णो, अहव णं छण्णउइछेयणगदायिरासी। उक्कोसपए असंखेज्जा-असंखेज्जाहिं उस्स प्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ उक्कोसपए रूवपक्खित्तेहिं मणुस्सेहिं सेढी अवहीरइ, 'असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं कालओ", खेत्तओ अंगुलपढमवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण्णं । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया ॥ ४६१. मणुस्साणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं संखेज्जा, समए-समए 'अवहीरमाणा-अवहीरमाणा" संखेज्जेणं कालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया ॥ ४६२. 'मणस्साणं भंते ! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं सिय अस्थि सिय नत्थि, जइ अत्थि जहण्णेणं एगो वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं"। मक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया १२०१२ ॥ ४६३. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसि चेव ओरालिया" तहा५ भाणियव्वा ।। ४६४. वाणमंतराणं ओरालियसरीरा जहा नेरइयाणं" । ४६५. वाणमंतराणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, १. कोडाकोडीओ (ख, ग, हे)। ८. अणु० सू० ४५७ । २. x (हे)। ६. अवहीरमाणे २ (क)। ३. तेसि सामयिगाए सण्णाए निद्देसे कीरइ (चू, १०. ओरालियाणं (क, ख, ग)। अणु० सू० ४५७ । ४. 'अहव ण' मित्यस्य शब्दस्य पाठान्तरस्य ११. पुहुत्तं (क, ख, ग)। व्याख्या पूर्ववत् (हे)। १२. x (ख, ग)। ५. उक्कोसेणं (क); x (ख); उक्कोसेहिं १३. आहारगा णं जहोघियाई (चू), आहारया णं जहा ओहियाइं (हा); आहारकाणि तु ६. तीसे सेढीए कालखेत्तेहिं अवहारो मग्गिज्जइ बद्धानि मुक्तानि च यथौघिकानि (हे) । अणु० कालओ असंखेज्जाहिं उसप्पिणीहि अवहीरइ सू० ४५६ । (क); अत्र 'मग्गिज्जइ' पर्यन्त: पाठः १४. ओहिया ओरालिया (क)। चयंशो विद्यते । अस्योत्तरकाले मूलपाठरूपेण १५. अणु० सू० ४६० । प्रक्षेपो जातः । १६. अणु० सू० ४६२ । ७. पाडुप्पाडियं (चू)। हा)। Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ अणुओगदाराई तं जहा---बद्धेल्लया य मक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जाअसंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओस प्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो। तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई संखेज्जजोयण सयवग्गपलिभागो' पयरस्स । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया ।। ४६६. आहारगसरीरा दुविहा वि जहा असुरकुमाराणं ।। ४६७. वाणमंतराणं भंते ! केवइया तेयग-कम्मगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहा एएसि चेव वेउव्वियसरीरा तहा तेयग-कम्मगसरीरा वि भाणियव्वा ।। ४६८. 'जोइसियाणं ओरालियसरीरा जहा नैरइयाणं ॥ ४६६. जोइसियाणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जाअसंखेज्जाहिं उस्स प्पिणी-ओस प्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो', तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई बेछप्पण्णंगुल सय वग्गपलिभागो पयरस्स । मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया ॥ ५००. आहारगसरीरा जहा नेरइयाणं तहा“ भाणियव्वा ॥ ५०१. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसि चेव वेउव्विया तहा भाणियव्वा ॥ ५०२. वेमाणियाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहा नेरइयाणं तहा॥ ५०३. वेमाणियाणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ? गोयम पणत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जाअसंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जइभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलबीयवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण्णं, अहव णं अंगुलतइयवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ। मक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया" ।। ५०४. आहारगसरीरा जहा नेरइयाणं ॥ ५०५. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसि चेव वेउव्वियसरीरा तहा" भाणियव्वा । से तं १. असंखेज्ज (क)। ६. सं० पा०-बधेल्लया जाव तासि । २. अणु० सू० ४५७ । ७. अणु० सू० ४५७ । ३. अणु० सू० ४६८ । ८. अणु० सू० ४६४ । ४. अणु० सू० ४६५। ६. अणु० सू० ४६६ । ५. जोइसियाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा १०. अणु० सू० ४६२ । पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं ११. अणु० सू० ४५७ । जहा-जहा नेरइयाणं तहा भाणियव्वा (क)। १२. अणु० सू० ४६४ । अणु० सू० ४६२ । १३. अणु० सू० ५०३ । Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३८६ सुहुमे खेत्तपलिओवमे । से तं खेत्तपलिओवमे । से तं पलिओवमे । से तं विभाग निप्फण्णे । से तं कालप्पमाणे ॥ भावप्पमाण-पदं ५०६. से कि तं भावप्पमाणे ? भावपमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—गुणप्पमाणे नयप्प माणे संखप्पमाणे॥ ५०७. से किं तं गुणप्पमाणे ? गुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—जीवगुणप्पमाणे य अजीवगुणप्पमाणे य ।। ५०८. से कि तं अजीवगुणप्पमाणे ? अजीवगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा वण्णगुणप्पमाणे गंधगुणप्पमाणे रसगुणप्पमाणे फासगुणप्पमाणे संठाणगुणप्प माणे ॥ ५०६. से किं तं वण्णगणपमाणे ? वण्णगणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्ण गणप्यमाणे 'नीलवण्णगुणप्पमाणे लोहियवण्णगुणप्पमाणे हालिद्दवण्णगणप्पमाणे' सुक्किलवण्णगुणप्पमाणे । से तं वण्णगुणप्पमाणे ।। ५१०. से कि तं गंधगणप्पमाणे ? गंधगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधग प्पमाणे' दुब्भिगंधगुणप्पमाणे । से तं गंधगणप्पमाणे ।। ५११. से कि तं रसगणप्पमाणे ? रसगणप्यमाणे पंचविहे पण्णत्ते , तं जहा-तित्तरसा प्पमाणे 'कड्यरसगुणप्पमाणे कसायरसगुणप्पमाणे अंबिलरसगुणप्पमाणे" महुस गुणप्पमाणे । से तं रसगुणप्पमाणे ।। ५१२. से किं तं फासगुणप्पमाणे ? फासगुणप्पमाणे अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा-खड फासगुणप्पमाणे 'मउयफासगुणप्पमाणे गरुयफासगुणप्पमाणे लहुयफासगुणा माण सीयफासगुणप्पमाणे उसिणफासगुणप्पमाणे सिणिद्धफासगुणप्पमाणे तुखफास गुणप्पमाणे । से तं फासगुणप्पमाणे ॥ ५१३. से कि तं संठाणगुणप्पमाणे ? संठाणगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते, तं जह–परि मंडलसंठाणगुणप्पमाणे 'वट्टसंठाणगुणप्पमाणे तंससंठाणगणप्पमाणे चउरस्संठाणगुणप्पमाणे'' आययसं ठाणगुणप्पमाणे । से तं संठाणगुणप्पमाणे । से तं अवगुण प्पमाणे ॥ ५१४. से किं तं जोवगुणप्पमाणे ? जोवगुगप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-नणगुण प्पमाणे दंसणगुणप्पमाणे चरित्तगुणप्पमाणे ॥ ५१५. से किं तं नाणगुणप्पमाणे ? नाणगुणप्पमाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे १. संखापमाणे (क)। ५. जाव (ख, ग)। २. जाव (ख, ग)। ६. जाव (ख, ग)। ३. सुरभि० (ख, ग)। ७. जाव (ख, ग)। ४. दुरभि० ख, ग)। Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० अणुओगदाराई अणुमाणे ओवम्मे आगमे । ५१६. से किं तं पच्चक्खे ? पच्चक्खे दुविहे पण्णत्ते, तं तहा-इंदियपच्चक्खे नोइंदिय पच्चक्खे य॥ ५१७. से किं तं इंदियपच्चक्खे ? इंदियपच्चक्खे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा–सोइंदिय पच्चक्खे चक्खिंदियपच्चक्खे' घाणिदियपच्चक्खे जिभिदियपच्चक्खे फासिदिय पच्चक्खे । से तं इंदियपच्चक्खे ॥ :१८. से किं तं नोइंदियपच्चक्खे ? नोइंदियपच्चक्खे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओहिनाण पच्चक्खे मणपज्जवनाणपच्चक्खे केवलनाणपच्चक्खे । से तं नोइंदियपच्चक्खे । से तं पच्चक्खे ॥ १६. से किं तं अणुमाणे ? अणुमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–पुव्ववं सेसवं दिट्ठ साहम्मवं॥ 6. से किं तं पुव्ववं? पुववंगाहा माता पुत्तं जहा नळं, जुवाणं पुणरागतं । काई पच्चभिजाणेज्जा, पूलिगण केणई ॥१॥ तं जहा-खतेण वा वणेण वा लंछणेण वा मसेण वा तिलएण वा । से तं पुत्ववं ॥ ५२ से कि तं सेसवं ? सेसवं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-कज्जेणं कारणेणं गणेणं अवयवेणं आसएणं ॥ ५२२४ कि तं कज्जेणं ? कज्जेणं-'संखं सद्देणं, भेरि तालिएणं, वसभं ढिकिएणं, मोरं काइएणं, हयं हेसिएणं, हत्थि गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं। से तं ज्जिणं ।। ५२३. : कि तं कारणेणं ? कारणेणं-तंतवो पडस्स कारणं न पडो तंतुकारणं, वीरणा' डिस्स कारणं न कडो वीरणकारणं, मप्पिडो घडस्स कारणं न घडो मप्पिड कारणं । से तं कारणेणं । ५२४. किं तं गणेणं ? गुणणं-सुवण्णं निकसेणं, पुप्फ गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं भासाएण, वत्थं फासेणं । से तं गणेणं । १. चक्युरिदिय० (ग)। ३. मलधारिवृत्तौ 'मृत्पिण्डोदाहरणं' पूर्वं व्याख्यातं, २. हयं हेसिएणं, मोरं किक्काइएणं, गयं गुलगुला- 'वीरणोदाहरणं' च पश्चात् । इएण, रहं घणघणाइएणं, (ख, ग); वृत्त्योः ४. पिंडो (ख, ग); मिप्पिडो (पु)। 'हयं हेसिएणं' अनेन क्रमेण उदाहरणानि ५. पिंड० (ख, ग); मिप्पिड० (पु)। व्याख्यातानि सन्ति । मलधारिहेमचन्द्रेण ६. निहसेणं (क)। पाठान्तरस्योल्लेखोपि कृतोस्ति-क्वच्चित्तु ७. आसादएणं (ख, ग)। प्रथमत: शङ्ख शब्देनेत्यादि दृश्यते । Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ५२५. से' किं तं अवयवेणं ? अवयवेणं-महिसं सिंगेणं, कुक्कुडं सिहाए, हत्थि विसाणणं, वराह दाढाए, मोरं पिछेणं, आसं खुरेणं, वग्धं नहेणं, चरिं वालगुंछेणं", दुपयं मणुस्सयादि', चउप्पयं गवमादि', बहुपयं गोम्हियादि', 'वानरं नंगुलेणं", 'सीहं केसरेणं, वसहं ककुहेणं", महिलं वलयबाहाए । गाहा परियरबंधेण भडं, जाणेज्जा महिलियं निवसणेणं । सित्थेण दोणपागं, कविं च एगाए गाहाए ॥१॥ --से तं अवयवेणं ।। ५२६. से किं तं आसएणं ? आसएणं-अग्गि धूमेणं. सलिलं बलागाहिं, वुट्टि अब्भविकारेणं, कुलपुत्तं सीलसमायारेणं । इङ्गिताकारितै ईयैः, क्रियाभि र्भाषितेन च । नेत्र-वक्त्रविकारैश्च, गृह्यते"ऽन्तर्गतं मनः ॥१॥ से तं आसएणं । से तं सेसवं ॥ ५२७. से किं तं दिट्ठसाहम्मवं ? दिट्ठसाहम्मवं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-सामन्नदिटु च विसेस दिट्ठ च ॥ ५२८. से किं तं सामन्नदिट्ठ ? सामन्नदिट्ठ-जहा" एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा, जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो । 'जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा, जहा बहवे करिसावणा तहा एगो करिसावणो" । से तं सामन्नदिट्ठ॥ ५२६. से किं तं विसेसदिट्ट? विसेसदिट्ठ-से जहानामए केइ पुरिसे बहूणं पुरिसाणं मझे पुव्वदिट्ठ पुरिसं पच्चभिजाणेज्जा-अयं से पुरिसे, 'बहूणं वा करिसावणाणं मज्झे पुव्वदिट्ठ करिसावणं पच्चभिजाणेज्जा---अयं से करिसावणे"। 'से तं विसे १. द्रष्टव्यम्-सू० ३२७ । २. सीहं (हा)। ३. पिच्छेणं (ख, ग)। ४. चमरं (क)। ५. वालगंछेणं वानरं नंगलेणं सीहं केसरेणं (क); ___ वालग्गेणं (ख, ग); वालगंडेणं (पु)। ६. मणूसमाइं (क)। ७. गवादि (क)। ८. गोम्मिआदि (ख, ग)। ६. x (क, ख, ग)। १०. X (क)। ११. वलयबाहाहिं (क)। १२. नियत्थेणं (क)। १३. ज्ञायते (क)। १४. द्रष्टव्यम् सू० ३५७ । १५. एवं करिसावणो (क)। १६. पुरिसे किचि पुरिसं (ख); पुरिसे कंचि पुरिसं (ग)। १७. ४ (ख, ग)। १८. x (ख, ग)। १६. एवं करिसावणे (क)। Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ सदि । सेतं दिट्ठसाहम्मवं" ॥ ५३०. तस्स समासओ तिविहं गहणं भवइ, तं जहा - तीयकालगहणं पडुप्पण्णकालगहणं अणागयकाल गहणं ॥ ५३१. से किं तं तीयकालगहणं ? तीयकालगहणं- उत्तिणाणि वणाणि निष्फण्णसस्सं वा मेइणि, पुण्णाणि य 'कुंड - सर नदि - दह' - तलागाणि पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा - सुट्टी आसी । से तं तीयकालगहणं ॥ ५३२. से किं तं पडुप्पण्णकालग्रहणं ? पडुप्पण्णकालगहणं - साहुं गोयरग्गगयं विच्छड्डिय परभत्तपाणं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा - सुभिक्खें वट्टइ । से तं पडुप्पण्णकालग्रहणं ॥ से किं तं अणागयकाल गहणं ? अणागयकाल गहणं गाहा— ५३३. अणुओगदाराई अम्भस्स निम्मलत्तं, कसिणां य गिरी सविज्जुया मेहा । थणियं वाउब्भामो, संझा 'निद्धा य रत्ता य" ॥१॥ वारुणं वा माहिंद" वा अण्णयरं वा पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा - सुट्टी भविस्सइ । से तं अणागयकालगहणं ॥ ५३४. एएसि चैव विवज्जासे" तिविहं गहणं भवइ, तं जहा -तीय कालगहणं पडुप्पण्णकाल गहणं अणागयकालगहणं ॥ १३ ५३५. से किं तं तीयकालगहणं ? तीयकालगहणं-नित्तिणाई वणाई अनिष्फण्णसस्सं वा मे, सुक्काण कुंड - सर नदि दह" - तलागाई पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहाकुट्टी आसी । सेतं तीयकालहणं ॥ ५३६. से किं तं पडुप्पण्णकाल गहणं ? पडुप्पण्णकालगहणं - साहुं गोयरग्गगयं भिक्खं १. वृत्तिकृता से तं अणागयकालगहणं' (सू० ५३७ ) इति पाठान्तरं निगमनपाठो लब्धस्तेन इति टिप्पणी कृता यथा -- ' से तं विसेसदिट्ठ से तं दिसाहम्म' मित्येतन्निगमनद्वयं दृष्टसाधर्म्यलक्षणानुमानगतभेदद्वयस्य समर्थनान्तरं युज्यते, यदि तु सर्ववाचनास्वत्रैव स्थाने दृश्यते, तदा दृष्टसाधर्म्यवतोपि सभेदस्यानुमान विशेषत्वात् कालत्रयविषयता योजनीवातस्तामप्यभिधाय ततो निगमनद्वयमिदमकारीति प्रतिपत्तव्यम् (हे ) । २. अतीत ० ( ख, ग ) सर्वत्र । ३. उत्तिष्णाई ( क ) ; उत्तणाणि ( ख, ग ) । ४. वणाई ५. निष्पन्नसन्सस्सं ( क ) । ६. दीहिया ( ख, ग ) । ७. कुंडसराणि दहतलागाई ( क ) । ८. पउरन्नयाणं ( । 1 ६. सुभिक्खं ( क ) । १०. रत्ताय निद्धा य ( ख, ग ) । ११. महिंद ( ग ) । १२. विवज्जासे णं ( क ) ; विवच्चासे ( ख, ग ) । १३. नित्तणाई ( ख, ग ) । १४. दीहिअ ( ख, ग ) । Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई अलभमाणं' पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–दुब्भिक्खे' वट्टइ। से तं पडुप्पण्ण कालगहणं ॥ ५३७. से कितं अणागयकालगहणं ? अणागयकालगणं-'अग्गयं वा वायव्वं वा' अण्णय वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अणागयकालगहणं । से तं अणुमाणे ।। ५३८. से कि तं ओवम्मे ? ओवम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साहम्मोवणीए य वेहम्मो वणीए य॥ ५३६. से किं तं साहम्मोवणीए ? साहम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे ॥ ५४०. से किं तं किंचिसाहम्मे ? किंचिसाहम्मे-'जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो । जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो । जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो । जहा चंदो तहा कुंदो', जहा कुंदो तहा चंदो से तं किंचिसाहम्मे ॥ ५४१. से किं तं पायसाहम्मे ? पायसाहम्मे–'जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ तहा ____ गो२। से तं पायसाहम्मे ।। ५४२. से किं तं सव्वसाहम्मे ? सव्वसाहम्मे ओवम्म नत्थि, तहा वि 'तस्स तेणेव" ओवम्म५ कीरइ, जहा--अरहंतेहिं अरहंतसरिसं कयं, 'चक्कवट्टिणा चक्कवट्टिसरिसं कयं, बलदेवेण बलदेवसरिसं कयं, वासुदेवेण वासुदेवसरिसं कयं,' साहुणा साहुसरिसं कयं । से तं सव्वसाहम्मे । से तं साहम्मोवणीए ॥ ५४३. से किं तं वेहम्मोवणीए ? वेहम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—किंचिवेहम्मे १. अलहमाणं (ग)। हराणानां क्रमभेद: आधिक्यं च दृश्यते२. दुब्भिक्खं (क)। मंदरसर्षपयोः मूर्त्तत्वादिसाधात् समुद्राष्प३. धुमायंति दिसाओ, संचिक्खिय मेइणी अपडि- दयोः सोदकत्वं चंद्रकुंदयोः शुक्लत्वं नस्तमश बद्धा । वाया नेरइया खलु, कुट्रिमेवं निवे- कयोः सरीरित्वं आदित्यखद्योतकोः आकाशयंति ॥ अग्गिं वा वायं वा (ख, ग)। गमनोद्योतनादि (चू)। ४. द्रष्टव्यम् ५२६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ११. साहम्मोवणीए (क) । ५. साहम्मोवणीए (क)। १२. यथा गौस्तथा गवयः (क) । ६. साहम्मोवणीए (क)। १३. ओवम्मे (ख, ग)। ७. साहम्मोवणीए (क)। १४. तस्स तेण (क); तेणेव तस्स (ख, ग) । ८. कुमुदो (ख, ग, हे)। १५. तोवम्भ (ग)। ६. कुमुदो (ख, ग, हे)। १६. अरिहंतेहिं (ख, ग)। १०. जहा मंदरो तहा सरिसवो एवं समुद्दो गोप्पयं १७. एवं चक्कवट्रि बलदेव वासुदेव (क)। आइच्चखज्जोओ चंदकुंदो (क); चूणौं उदा Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ अणुओगदाराई पायवेहम्मे सव्ववेहम्मे ॥ ५४४. से किं तं किंचिवेहम्मे ? किं चिवेहम्मे-जहा सामलेरो न तहा बाहुलेरो, जहा बाहु लेरो न तहा सामलेरो । से तं किं चिवेहम्मे॥ ५४५. से किं तं पायवेहम्मे ? पायवेहम्मे-जहा वायसो न तहा पायसो, जहा पायसो न तहा वायसो । से तं पायवेहम्मे ॥ ५४६. से किं तं सव्ववेहम्मे ? सव्ववेहम्मे ओवम्म नत्थि, तहा वि 'तस्स तेणेव ओवम्म' कीरइ, जहा-नीचेण नीचसरिसं कयं, 'काकण कागसरिसं कयं, साणेण साणसरिसं कयं" । से तं सव्ववेहम्मे । से तं वेहम्भोवणीए । से तं ओवम्मे ।। ५४७. से किं तं आगमे ? आगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—लोइए लोगुत्तरिए य ॥ ५४८. से किं तं लोइए आगमे ? लोइए आगमे-जण्णं इमं अण्णाणिएहि मिच्छदिट्ठीहि सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं,तं जहा—१. भारहं २. रामायणं ३,४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ६. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसिय १३. बद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सद्वितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १६. वागरणं २०. नाडगादि । अहवा बावत्तरिकलाओ° चत्तारि वेया संगोवंगा । से तं लोइए आगमे ॥ ५४६. से किं तं लोगत्तरिए आगमे" ? लोगुत्तरिए आगमे-जण्णं इमं अरहतेहिं भगवंतेहि उप्पण्णनाणदंसणधरेहिं 'तीय-पप्पण्णमणागयजाणएहिं सव्वण्णाहिं सव्वदरिसीहिं तेलोक्कचहिय-महिय-पूइएहिं'' पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं, तं जहा–१. आयारो •२. सूयगडो ३. ठाणं ४. समवाओ ५. वियाहपण्णत्ती ६. नायाधम्मकहाओ ७. उवासगदसाओ ८. अंतगडदसाओ ६. अणुत्तरोववाइयदसाओ १०. पण्हावागरणाई ११. विवागसुयं° १२. दिट्ठिवाओ । से तं लोगुत्तरिए आगमे ॥ १. ४ (क, ख, ग)। ६. X (क, ख, ग)। '. तस्स तेण (क); तेणेव तस्स (ख, ग) । ७. अण्णाणीहिं (क)। ३. रोवम्म (ग)। ८. मिच्छादिट्रिएहिं (ख, ग)। ४. दारुणं दाससरिसं कयं कागेण कागसरिसं कयं ६. सं० पा०-रामायणं जाव चत्तारि । साणेण साणसरिसं कयं पाणेणं पाणसरिसं १०.४ (ख, ग)। कयं (ख, ") । चुणों 'पाणेण पाणसरिसं कयं' ११.४ (ख, ग)। एतद् उदाहरणं प्रथमं व्याख्यातमस्ति । १२. अत्र 'क' प्रतौ संक्षिप्तपाठोस्ति-भगवंतेहि 'ख, ग' प्रत्योश्च 'पाणेण पाणसरिसं कयं जाव पणीयं । इति अन्तिममस्ति । इत्यनूमीयते 'पाणेण १३. तीतपच्चुप्पन्नमनागतजाणएहिं तिलुक्कवहियपाणसरिसं कयं' अस्यैव उत्तरकाले सरलीकृतं महियपूइएहि सव्वणहिं सव्वदरिसीहिं रूपं 'नीचेण नीचसरिसं कयं' विद्यते । केषु (ख, ग)। चिदादशेष रूपद्वयमपि लिखितं लभ्यते । १४. सं० पा०-आयारो जाव दिद्विवाओ। ५. द्रष्टव्यम्-सू० ४६, ५० । १५. ४ (क, ख, ग)। Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदारा ५५०. अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुत्तागमे' अत्थागमे' तदुभयागमे' ।। ५५१. अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - अत्तागमे अनंतरागमे परंपरागमे । तित्थगराणं अत्थस्स अत्तागमे । गणहराणं सुत्तस्स अत्तागमे, अत्थस्स अनंतरागमे । गणहरसीसाणं सुत्तस्स अनंतरागमे, अत्थस्स परंपरागमे । तेण परं 'सुत्तस्स वि अत्थस्स वि" नो अत्तागमे, नो अणंतरागमे, परंपरागमे । से तं लोगुत्तरिए आगमे" । सेतं आगमे । सेतं नाणगुणप्पमाणे ॥ ५५२. से किं तं दंसणगुणप्पमाणे ? दंसणगुणप्पमाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - चक्खु - दंसणगुणष्पमाणे अचक्खुदंसणगुणप्यमाणे ओ हिदंसणगुणप्पमाणे केवलदंसण गुणप्पमाणे । चक्खुदंसणं चक्खु दंसणिस्स 'घड पड-कड रहा दिएसु" दव्वेसु । अचक्खुदंसणं अचक्खुदंसणिस्स आयभावे । ओहिदंसणं ओहिदंसणिस्स सव्वरूविदव्वेहि न पुण सव्वपज्जवेहिं । केवलदंसणं केवलदंसणिस्स 'सव्वदव्वेहिं सव्वपज्जवेह सगुणप्पमाणे । | ५५३. से किं तं चरितगुणप्पमाणे ? चरितगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्तं तं जहा - सामाइयचरित्तगुणप्पमाणे छेदोवद्वावणियच रित्तगुणप्पमाणे" परिहारविसुद्धियचरित्तगुणप्पमाणे" सुहुमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे अहक्खायच रित्तगुणप्पमाणे । सामाइयचरितगुणष्पमाणे दुविहे एण्णत्ते, तं जहा -- इत्तरिए य आवकहिए य । छेदोद्वावणियचरितगुणप्पमाणे " दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - साइयारे य निरइयारे य । परिहारविसुद्धियचरितगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा निव्विसमाणए" य निव्वटुकाइए" य । 'सुमपरायचरितगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - संकिलिस्समाणए य विसु ज्झमाणए य । अहक्खायचरितगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते तं जहा -- पडिवाई य अपडिवाई य । अवा- छउमत्थिए य के लिए य" । से तं चरित्तगुणप्पमाणे । से तं जीवगुणप्पमाणे । से तं गुणप्पमाणे ॥ १. गमे य ( क ) । २. गमे य ( क ) । ३. गमे य ( क ) । ४. सुत्तस्सावि ( क ) ; सूत्रस्यार्थस्य च ( है ) । ५. X ( ख, ग ) । ६. धडपडमाइएसु (क) 1 ७. दव्वेसु ( क ) । ८. पज्जवेसु (क) । ६. सव्वदव्वपज्जवेहिं ( क ) । ३६५ १०. छेदोवट्टावण ( ख, ग ) । ११. परिहारविसुद्ध ( ख, ग ) । १२. छेदोवट्ठावण ( ख, ग ) । १३. माणे ( क ) । १४. क ( क ) । १५. अत्र द्वयोरपि वृत्यो व्र्व्याख्यानुसारी पाठः स्वीकृतः । चूणौं 'अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणस्स' पाठः आदर्शपाठतुल्योस्ति । आदर्शेषु पूर्णः पाठ: इत्थं विद्यते - सुहुमसंपरायचरित्तगुण Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ५५४. 'से किं तं नयप्पमाणे ? नयप्पमाणे तिविहे" पण्णत्ते, तं जहा-पत्थगदिट्ठतेणं वसहिदिळंतेणं पएस दिळंतेणं । ५५५. से किं तं पत्थगदिद्रुतेणं ? पत्थग दिळंतेणं-से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडवित्तो गच्छेज्जा, 'तं च के इ पासित्ता" वएज्जा-कहिं भवं गच्छसि ? अविसुद्धो नेगमो भणति-पत्थगस्स गच्छामि । तं च केइ छिदमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं छिदसि ? विसुद्धो नेगमो भणति -पत्थगं छिदामि। तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं तच्छेसि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं तच्छेमि। तं च केइ उक्किरमाणं पासिसा वएज्जा—किं भवं उक्किरसि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं उक्कि रामि । तं च केइ लिहमाणं पासित्ता वएज्जा--किं भवं लिहसि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं लिहामि । एवं निसुद्धतरागस्स नेगमस्स 'नामाउडिओ पत्थओ"। एवमेव 'ववहारस्स वि । संगहस्स चिओ' मिओ मेज्जसमारूढो पत्थओ । उज्जु यस्स पत्थओ वि पत्थओ, मेज्जं पि" पत्थओ। तिण्हं सद्दनयाणं पत्थगाहिगारजाणओ२ पत्थओ, जस्स वा वसेणं पत्थओ निप्फज्जइ। से तं पत्थगदिट्ठतेणं । प्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पडिवाई पुरुषानुसारी क्रियाप्रयोगो व्याख्यातः । ताभ्या(°वाइए 'क') य अपडिवाई (वाइए 'क') मत्र नहि काचित् टिप्पणी कृतास्ति, येनेति य । अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते, निर्णयः कर्तुं शक्यो भवेत्-तयोः सम्मुखे तं जहा–छउमथिए य केवलिए य (क, ख, प्रथमपुरुषक्रियाप्रयोग आसीत् अथवा मध्यम पुरुषक्रियाप्रयोग: ? प्राकृते वचनव्यत्ययवत १. से कि तं नयप्पमाणे ? सत्तविहे पं तं गमे पुरुषव्यत्ययोपि जायते । संभवत: अत्र व्यत्यय संगहे ववहारो उज्जुसुए सद्दे समभिरूढे एवं- एव कृतोस्ति । भए । से किं तं नयप्पमाणे ? तिविहे (क); ५. छिज्जमाणं (क)। णयाण य विहाणेणं अणेगभेदभिण्णत्ता दिळंत- ६. विसुद्धतरो (क); । विसुद्धतराओ (हा)। भेदतो तिविहभेद त्ति (चू)। ७. तच्छमाणं (ख, ग)। २. अडविमुहे (क); असौ पाठः व्याख्याया ८. विलिह (हे) सर्वत्र ।। अनन्तरं परिवर्तितः संभाव्यते । ६. नामाउडियपत्थओ (क) । ३. तं पासित्ता के इ (ख, ग)। १०. ववहारस्स संगहस्स वि निचिओ (क) । ४. गच्छइ (क) । अस्मिन् सूत्रे अग्रिमसूत्रे च ११. पि से (ख, ग)। सर्वेष्वपि आदर्शेषु प्रथमपुरुषकर्तरि मध्यम- १२. पत्थयस्स अत्थाहिगारजाणओ (ख, ग); पुरुषक्रियाप्रयोगो दृश्यते । केवलं 'क' प्रती प्रस्थकार्थाधिकारज्ञः (है)। 'गच्छइ' इति लभ्यते । वृत्तिकृद्भ्यां प्रथम Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओदारा ३६७ ५५६. से किं तं वसहिदिट्ठतेणं ? वसहिदिट्ठतेणं - से जहानामए केइ पुरिसे कंचि' पुरिसं वएज्जा - कहिं भवं वससि ? अविसुद्धो नेगमो भणति - लोगे वसामि । लोगे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा —‘उड्ढलोए अहेलोए तिरियलोए", तेसु' सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धो नैगमो भणति - तिरियलोए वसामि । तिरियलोए जंबुद्दीवाइया सयंभुरमणपज्जवसाणा' असंखेज्जा दीव-समुद्दा पण्णत्ता, तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्ध - तराओ नैगमो भणति —– जंबुद्दीवे वसामि । जंबुद्दीवे दस खेत्ता पण्णत्ता, तं जहा - 'भर हे एरवए हेमवए हेरण्णवए हरिवस्से रम्मगवस्से देवकुरा उत्तरकुरा पुव्वविदेहे अवरविदेहे", तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति - भरहे वसामि । भरहे' दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - दाहिणड्ढभरहे य उत्तरड्ढभरहे य, 'तेसु सव्वे"" भवं वससि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति - दाहिणड्ढभ रहे" वसामि । दाहिणड्ढभरहे" अणेगाई 'गामागर - नगर - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुह-पट्टणासमसंबाह-सण्णिवेसाई'", तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ नैगमो भणतिपालिपुत्ते वसामि । पाडलिपुत्ते अणेगाई गिहाई " तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्ध - तराओ नैगमो भणति --- देवदत्तस्स घरे वसामि । देवदत्तस्स घरे 'अणेगा कोट्ठगा ", तेसु सव्वेसु भवं वससि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति - गब्भघरे वसामि । एवं विसुद्धतरागस्स" नैगमस्स वसमाणो वसइ । एवमेव ववहारस्स वि । संगह संथारसमारूढो वसइ । उज्जुसुयस्स जेसु आगासपएसेसु ओगाढो तेसु वसइ । तिह सद्दनयाणं आयभावे वसइ । से तं बस हिदिट्ठतेणं ॥ ५५७. से किं तं पएस दिट्ठतेणं ? पएसदिट्ठतेणं- नेगमो भणति - छण्हं पएसो, तं जहाधम्म एसो अधम्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो खंधपएसो देसपएसो । एवं वयंतं" नेगमं संगहो भणति - जं" भणसि छण्हं पएसो तं न भवइ । कम्हा ? जम्हा जो देसपएसो सो तस्सेव दव्वस्स, जहा को दिट्ठतो ? दासेण मे खरो कीओ 'दासो वि मे खरो वि मे", तं मा भणाहि-छहं पएसो, भणाहि १. किंचि (क ) । २. अहेलोए तिरियलोए उडलोए ( क ) । ३. एएसु ( क ) 1 ४. विसुद्धतराओ ( क ) 1 ५. सयंभू ० ( ख, ग ) । ६. भरहेरवर जाव विदेहे ( क ) । ७. सु ( क ) । ८. भरहे वासे ( क ) । ९. भरहे वासे (क, ख, ग ) । १०. एएसु दोसु ( क ) । ११. दाहिणभरहa (क) । १२. दाहिणभरह ( क ) । १३. गामाग र जाव सन्निवेसाई ( क ) । १४. घरसयाई (क) । १५. गाइ कोटगाई ( क ) । १६. विसुद्धस्स (क, ख, ग ) । १७. पदेसो ( ग ) । १८. वयं तं पनवयं ( क ) । १९. जन्नं (क) । २०. तस्स ( ख, ग ) । २१. सो य दासो खरो य मे ( क ) । Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ अणुओगदाराई पंचण्हं पएसो, तं जहा-धम्मपएसो 'अधम्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो" खंधपएसो । एवं वयंत संगहं ववहारो भणति-जं भणसि पंचण्हं पएसो तं न भवइ । कम्हा ? जई पंचण्हं गोटियाणं' केइ दव्वजाए सामण्णे, तं जहा-हिरण्णे वा सुवण्णे वा धणे वा धण्णे वा तो जुत्तं वत्तुं जहा पंचण्ह पएसो, तं मा भणाहि--- पंचण्हं पएसो, भणाहि-पंचविहो पएसो, 'तं जहा–धम्मपएसो अधम्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो'' खंधपएसो। एवं वयंतं ववहारं उज्जुसुओ भणति-जं भणसि पंचविहो पएसो, तं न भवइ। कम्हा ? जइ ते पंचविहो पएसो-एवं ते एक्केको पएसो पंचविहो-एवं ते पणवीसतिविहो पएसो भवइ, तं मा भणाहि-पंचविहो पएसो, भणा हि-भइयव्वो पएसो-सिय' धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो 'सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो। एवं वयंत" उज्जुसुयं संपइ सद्दो भणति--जं भणसि भइयव्वो पएसो, तं न भवइ। कम्हा ? जइ"ते" भइयव्वो पएसो, एवं ते-१. धम्मपएसो५ वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, २. अधम्मपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो •सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, ३. आगासपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, ४. जीवपएसो विसिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो? सिय खंधपएसो, ५. खंधपएसो वि--सिय धम्मपएसोसिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसोसिय खंधपएसो। एवं ते अणवत्था भविस्सइ, तं मा भणाहि-भइयव्वो पएसो, भणाहि-धम्मे पएसे से पएसे धम्मे, 'अधम्मे पएसे से पएसे अधम्मे, आगासे पएसे से पएसे आगासे, जीवे पएसे से पएसे नोजीवे," खंधे पएसे से पएसे नोखंधे । एवं वयं सदं संपइ समभिरूढो भणति–जं भणसि धम्मे १. जाव (क)। १२. सद्दनओ (ख, ग)। २. जइ जहा (क, ख, ग, हे); असो पाठः हारि- १३. जम्हा (हा, हे)। भद्रीयवृत्तिमनुसृत्य स्वीकृतः । १४. ४ (ख, ग)। ३. गोट्ठियाणं पुरिसाणं (ख, ग)। १५. अतः ‘एवं' पदात्पूर्व 'क' प्रती संक्षिप्तपाठो४. सामण्णे भवइ (ख, ग)। स्ति-धम्मपएसो सिया अधम्मपएसो एवं जाव ५. ४ (ख, ग)। सिया खंधपएसो अधम्मपएसो वि सिया जाव ६. भणेहि (क)। सिया खंधपएसो। ७. जाव (क) । १६. सं० पा०–अधम्मपएसो जाव सिय । ८. जम्हा (क, हा, हे)। १७. सं० पा०-आगासपएसो जाव सिय । ६. सिया (क) सर्वत्र । १८. सं० पा०-धम्मपएसो जाव सिय । १०. जाव (क)। १६. जाव (क)। ११. भणन्तम् (हे)। २०. सद्दनयं (ख, ग)। Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३९९ पएसे से पएसे धम्मे जाव खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, तं न भवइ । कम्हा ? एत्थ' दो समासा भवंति, तं जहा---तप्पुरिसे य कम्मधारए य । तं न नज्जइ कयरेणं समासेणं भणसि ? किं तप्पुरिसेणं ? किं कम्मधारएणं ? जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसओ भणाहि-धम्मे य से पएसे य सेसे पएसे धम्मे, 'अधम्मे य से पएसे य सेसे पएसे अधम्मे, आगासे य से पएसे य सेसे पएसे आगासे, जीवे य से पएसे य सेसे पएसे नोजीवे, खंधे य से पएसे य सेसे पएसे नोखंधे"। एवं वयंत समभिरूढं संपई एवंभूओ भणति-जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगग्गहणगहीयं । देसे वि मे अवत्थू, पएसे वि मे अवत्थू । से तं पएसदिळंतेणं । से तं नयप्पमाणेणं ॥ ५५८. से किं तं संखप्पमाणे ? संखप्पमाणे अट्टविहे पण्णत्ते, तं जहा--१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा ॥ ५५६. से किं तं नामसंखा ? नामसंखा-जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा संखा ति नामं कज्जइ° । से तं नामसंखा ॥ ५६०. से किं तं ठवणसंखा ? ठवणसंखा-जण्णं कट्टकम्मे वा 'चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा. लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ° । से तं ठवणसंखा ॥ ५६१. नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो ? नामं आवक हियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवक हिया वा"॥ ५६२. से किं तं दव्वसंखा ? दव्वसंखा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आगमओ य नोआ गमओ य ।। ५६३. " से किं तं आगमओ दव्वसंखा ? आगमओ दव्वसंखा-जस्स णं संखा ति पदं - १. इत्थं खलु (ख, ग)। वृत्तौ च संक्षिप्तपाठोस्ति-नामठवणाओ पुग्वं २. से (ख, ग)। वणिया। ३. जाव खंधपएसे खंधे (क)। ६. सं पा०-जीवस्स वा जाव से तं । ४. भणंतं (क)। १०. x (क)। ५. ४ (क)। ११. सं० पा०--पोत्थकम्मे वा जाव से तं । ६. एगगहणगहितं (ख, ग)। १२. नाम पाएणि (क)। ७. ठवणासंखा (ख, ग)। १३. वा होज्जा (क)। ८.५५६, ५६०, ५६१ एषां त्रयाणां सूत्राणां १४. सं० पा०-जाव से किं तं । स्थाने (ख, ग) प्रत्योः मलधारीयहेमचन्द्र Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० अणुओगदाराई सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठो विप्प मुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाएं परियट्टणाए धम्मक हाए, नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कट्टु ॥ ५६४. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगा दव्वसंखा, दोणि अणुवउत्ता आगमओ दोणी दव्वसंखाओ, तिष्णि अणुवउत्ता आगमओ तिष्णीओ दव्वसंखाओ, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाओ ताओ नैगमस्स आगमओ दव्वसंखाओ । एवमेव हारस्सवि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आग - मओ दव्वसंखा वा दव्वसंखाओ वा सा एगा दव्वसंखा । उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्त आगमओएगा दव्वसंखा, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्वसंखा ॥ ५६५. से किं तं नोआगमओ दव्वसंखा ? नोआगमओ दव्वसंखा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- जाणगसरीरदव्वसंखा भवियसरी रदव्वसंखा जाण सरीर भवियसरीरवतिरित्ता दव्वसंखा ॥ ५६६. से किं तं जाणगसरीरदव्वसंखा ? जाणगसरीरदव्वसंखा - संखा ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय चाविय चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोइ वएज्जाअहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं संखा ति पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदं सियं उवदंसियं । जहा को दिट्ठतो ? अयं महुकुंभे आसी, अयं कुंभे आसी । से तं जाणगसरीरदव्वसंखा ॥ ५६७. से किं तं भवियसरी रदव्वसंखा ? भवियसरी रदब्वसंखा - जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सरणं जिणदिट्ठेणं भावेणं संखा ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिट्ठतो ? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरी रदव्वसंखा ।। ५६८. से किं तं जाणगसरीर - भवियसरीर वतिरित्ता' दव्वसंखा ? जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ता दव्वसंखा तिविहा' पण्णत्ता', तं जहा - एगभविए बद्धाउए अभिनागोय | एगभविए णं भंते! एगभविए त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । बद्धाउए णं भंते! बद्धाउए त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी' - तिभागं । १. वतिरिते (हा, २. संखे (हा, है) । ३. तिविहे (हा, है ) । 1 ४. पण्णत्त (हा, है) । ५. अभिमुनामगोए ( क ) सर्वत्र । ६. पुब्ब कोडीए ( क ) । Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४०१ अभिमुहनामगोत्ते णं भंते! अभिमुहनामगोत्ते त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । इयाणि को नओ कं संखं इच्छइ ? नेगम'-संगह-ववहारा तिविहं संखं इच्छंति, तं जहा-एगभवियं बद्धाउयं अभिमुहनामगोत्तं च । उज्जुसुओ दुविहं संखं इच्छइ, तं जहा-बद्धाउयं च अभिमुहनामगोत्तं च । तिण्णि सद्दनया अभिमुहनामगोत्तं संखं इच्छति । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ता दव्वसंखा । ‘से तं नोआगमओ दव्वसंखा ।" से तं दव्वसंखा ॥ ५६६. से किं तं ओवम्मसंखा ? ओवम्मसंखा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-१. अत्थि संतयं संतएणं उवमिज्जइ २. अत्थि संतयं असंतएणं उवमिज्जइ ३. अत्थि असंतयं संतएणं उवमिज्जइ ४. अत्थि असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ। तत्थ १. संतयं संतएणं उवमिज्जइ, जहा– संता अरहंता संतएहिं पुरवरेहिं, संतएहिं 'कवाडेहिं संतएहिं वच्छेहि" उवमिज्जति, जहागाहा पुरवर-कवाड-वच्छा, फलिहभया 'दुंदुहि-त्थणियघोसा। सिरिवच्छंकियवच्छा, 'सव्वे वि जिणा' चउव्वीसं ॥१॥ २. संतयं असतएणं उवमिज्जइ, जहा-संताई नेरइय-'तिरिक्खजोणिय-मणुस्स"देवाणं आउयाई असंतएहिं पलिओवम-सागरोवमेहिं उवमिज्जंति । ३. असंतयं संतएणं उवमिज्जइ, जहागाहा परिजूरियपेरंतं, चलंतवेंट पडतनिच्छीरं। पत्तं वसणप्पत्तं, कालप्पत्तं भणइ गाहं ॥२॥ जह तुब्भे तह अम्हे, तुम्हें वि य होहिहा जहा अम्हे । अप्पाहेइ पडतं, पंडुयपत्तं किसलयाणं ॥३॥ नवि अत्थि न वि य होही", उल्लावो किसल-पंडुपत्ताणं । उवमा खलु एस कया, भवियजण-विबोहणट्ठाए ॥४॥ ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ-जहा खरविसाणं" तहा ससविसाणं" । से तं १. तत्थ नेगम (क्वचित्) । ८. तं जहा (ख, ग)। २. ४ (क)। ६. तुब्भे (क)। ३. अरिहंता (ख, ग)। १०. होहिया (क, ख, ग)। ४. कवाडएहि संतएहि वच्छएहिं (4)। अस्मिन् ११. होई (क) । पाठे तृतीया विभक्तिश्चिन्त्यास्ति, अर्थदृष्ट्या १२. असंतएहिं (ग)। प्रथमया भाव्यम् । १३. विसाणो (क)। ५. दुंदुही थणिय० (क)। .१४. °विसाणो (क); यथा वा शशविषाणमभाव६. वंदामि जिणे (क)। रूपं निश्चितमित्थमितरदपि (हे)। ७. तिरिक्खमणुय (क)। Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ ओवम्मसंखा || ५७०. से किं तं परिमाणसंखा ? परिमाणसंखा दुविहा पण्णत्ता तं जहा - कालियसुयपरिमाणसंखा' दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य ।। ५७१. से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा ? कालियसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा' पायसंखा' गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अणुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा । से तं कालियसुयपरिमाणसंखा || ५७२. से किं तं दिट्टिवायसुयपरिमाणसंखा ? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा – पज्जवसंखा' 'अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अणुओगदारसंखा पाहुडसंखा पाहुडियासंखा पाहुडपाहुडियासंखा वत्थुसंखा' । सेतं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा । सेतं परिमाणसंखा || ५७३. से किं तं जाणणासंखा ? जाणणासंखा - जो जं जाणई, तं जहा – सद्दं सद्दिओ, गणियं गणियओ, निमित्तं नैमित्तिओ, कालं कालनाणी, 'वेज्जयं वेज्जो" से तं जाणणासंखा || agarters ५७४. से किं तं गणणासंखा ? गणणासंखा – एक्को गणणं न उवेइ, दुप्पभिइ संखा, तं जहा - संखेज्जए असंखेज्जए अनंतए || ५७५. से किं तं संखेज्जए ? संखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । ५७६. से किं तं असंखेज्जए ? असंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - परित्तासंखेज्जए जुत्तासंखेज्जए असंखेज्जासंखेज्जए || ५७७. से किं तं परित्तासंखेज्जए ? परित्तासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोस ॥ ५७८. से किं तं जुत्तासंखेज्जए ? जुत्तासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - जहण्णए उक्कोस अजहणमणुक्कोस ॥ ५७६. से किं तं असंखेज्जासंखेज्जए ? असंखेज्जासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहाजण उक्कोस अजहण्णमणुक्कोस || पण्णत्ते, तं जहा - परित्ताणंतए जुत्ताणंतर ५८०. से किं तं अणंतए ? अनंतए तिविहे अनंताणंत ॥ १. संखाय ( ग ) । २. पद ( ग ) । ३. पाद ( ग ) । ४. सं० पा० पज्जवसंखा जाव अणुओगदार संखा । ५. वत्थुसंखा पुव्वसंखा ( क ) 1 ६. जाणइ, सो तं जाणइ ( है ) । ७. विज्जो वेज्जियं ( क ) । Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुशोगदाराई ४०३ ५८१. से किं तं परित्ताणंतए ? परित्ताणतए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा--जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए॥ ५८२. से किं तं जुत्ताणंतए ? जुत्ताणतए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए॥ ५८३. से किं तं अणंताणतए ? अणंताणंतए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-जहण्णए अजहण्ण मणुक्कोसए। ५८४. जहण्णयं संखेज्जयं केत्तियं' होइ ? दोरूवाई॥ ५८५. तेण परं अजहण्णमणक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं संखेज्जयं न पावइ ॥ ५८६. उक्कोसयं संखेज्जयं केत्तियं होइ ? उक्कोसयस्स संखेज्जयस्स परूवणं करिस्सामि : से जहानामए पल्ले सिया एग जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, 'तिण्णि जोयणसयसहस्साई सोलस सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणसयं तेरस य अंगलाई अद्धं अंगलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । से णं पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए । तओ णं तेहिं सिद्धत्थएहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारो घेप्पइ। एगे दीवे एगे समुद्दे-एगे दीवे एगे समुद्दे एवं 'पक्खिप्पमाणेहिंपक्खिप्पमाणेहि जावइया दीव-समुद्दा तेहिं सिद्धत्थएहिं अप्फुण्णा, एस णं एवइए खेत्ते पल्ले पढमा सलागा । एवइयाणं सलागाणं असंलप्पा लोगा भरिया तहा वि उक्कोसयं संखेज्जयं न पावइ । जहा को दि→तो ? से जहानामए मंचे सिया आमलगाणं भरिए, 'तत्थ एगे आमलए पक्खित्ते से माते, अण्णे वि पक्खित्ते से वि माते, अण्णे वि पक्खित्ते से वि माते"", एवं पक्खिप्पमाणेहि-पक्खिप्पमाणेहिं'" होही से आमलए जम्मि पक्खित्ते से मंचे भरिज्जिहिइ, 'होही से आमलए जे तत्थ न माहिइ'" ॥ ५८७. एवामेव उक्कोसए संखेज्जए ‘रूवं पक्खित्तं" जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं भवइ" ॥ ५८८. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं न पावइ॥ १. कत्तिल्लयं (क); केवइयं (ख, ग)। ६. से वि (ख, ग)। २. दोरूवयं (ख, ग)। १०. तत्थ अन्ने आमलगा पक्खित्ता ते वि माया ३. क्कोसाइं (क)। अन्ने वि पक्खित्ता ते वि माया (क)। ४. कित्तियं (क); केवइयं (ख, ग)। ११. 'माणे २ (ख, ग)। ५. तिण्णि जोयणलक्खाइं जंबुद्दीवपमाणं भाणियव्वं १२. होहिय (क)। (क)। १३. जे तत्थ आमलए न माहिइ (ख, ग)। ६. माणेणं २ (ग)। १४. रूवे पक्खित्ते (ख, ग)। ७. जावइया णं (ग)। १५. होइ (ग)। ८. पल्ले आइ8 (ख. ग)। Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ५८६. उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं केत्तियं' होइ ? ' जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं जहण्णयपरित्तासंखेज्जयमेत्ताणं" रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं होइ । ४०४ अहवा जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं रूवणं उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं होइ ॥ ५६०. जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? 'जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं जहण्णयपरित्तासंखेज्जयमेत्ताणं” रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं होइ । अहवा उक्कोसए परित्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं होइ । आवलिया वि तत्तिया चेव ॥ ५६१. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं न पावइ ॥ ५६२. उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? जहण्णएणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अण्णमण्णासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ । अहवा जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ ॥ ५ε३. जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? जहण्णएणं जुत्तासंखेज्जएणं, आवलिया गुणिया अण्णमणभासो पडिपुण्णो जहण्णयं' असंखेज्जासंखेज्जयं होइ । अहवा उक्कोस जुत्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ ॥ ५६४. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं न पावइ ॥ ५६५. उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? 'जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णयअसंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं" रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवणो उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ । अहवा जहण्णयं परित्ताणंतयं रूवणं उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ ॥ ५६६. जहण्णयं परित्ताणंतयं केत्तियं होइ ? 'जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णयअसंखेज्जासंखेज्जमेत्ताणं " रासीणं अण्णमण्णभासो पडिपुण्णो जहण्णयं परिताणतयं होइ । अहवा उक्कोस असंखेज्जासंखजए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं परित्ताणंतयं होइ ॥ १. केवइयं ( ख, ग ) सर्वत्र । २. जहण्णयं परित्तासंखेज्जयमेत्ताणं ( ख, ग ) । ३. जहण्णयं परित्तासंखेज्जयमेत्ताणं ( ख, ग ) । ४. कोसाई ( क ) प्रायः सर्वत्र । ५. अत्र गुणनस्य प्रकारद्वयं स्वीकृतमस्ति, आदर्शेषु मलधारीयावृत्तौ च इत्थमेव पाठोपलब्धेः । किन्तु चूणौ हारिभद्रीयवृत्तौ च 'गुणिय' इति पाठस्वीकारेण केवलमेक एव विकल्पः साक्षा त्स्वीकृत : 'अण्णमण्णमब्भासो' इति विकल्पस्य मतान्तररूपेण उल्लेखः कृतः । संभवत: उत्तरवर्त्यादर्शेषु विकल्पोपि मूलपाठरूपेण स्वीकृतोऽभूत् । अग्रिमसूत्रेष्वपि ( सू० ५३, ६०१, ६०२) एवमेव विमर्शः कार्यः । ६. जहन्नपए ( क ) । ७. जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं ( ख, ग ) । ८. जण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं ( ख, ग ) । Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४०५ ५६७. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं परित्ताणतयं न पावइ । ५६८. उक्कोसयं परित्ताणतयं केत्तियं होइ ? 'जहण्णयं परित्ताणतयं जहण्णयपरित्ता णतयमेत्ताणं" रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवणो उक्कोसयं परित्ताणतयं होइ। अहवा जहण्णयं जुत्ताणतयं रूवूणं उक्कोसयं परित्ताणतयं होइ ।। ५६६. जहण्णयं जुत्ताणतयं केत्तियं होइ ? 'जहण्णयं परित्ताणतयं जहण्णयपरित्ताणतय मेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्ताणतयं होइ। अहवा उक्कोसए परित्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्ताणतयं होइ। अभव सिद्धिया वि तत्तिया चेव' । ६००. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाइं ठाणाइं जाव उक्कोसयं जुत्ताणतयं न पावइ । ६०१. उक्कोसयं जुत्ताणतयं केत्तियं होइ ? जहण्णएणं जुत्ताणतएणं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्ताणतयं होइ। अहवा जहण्णयं अणंताणतयं रूवणं उक्कोसयं जुत्ताणतयं होइ ।। ६०२. जहण्णयं अणंताणतयं केत्तियं होइ ? जहण्णयं जुत्ताणतएणं अभवसिद्धिया गणिया अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं अणंताणतयं होइ । अहवा उक्कोसए जुत्ताणतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं अणंताणतयं होइ ।। ६०३. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाइं ठाणाई । से तं गणणासंखा ॥ ६०४. से कि तं भावसंखा ? भावसंखा–जे इमे जीवा संखगइनामगोत्ताई कम्माइं वेदेति । से तं भावसंखा। से तं संखप्पमाणे । से तं भावप्पमाणे। से तं पमाणे। (पमाणे त्ति पयं समत्तं)॥ उवक्कमाणुओगवारे वत्तव्वया-पदं ६०५. से कि तं वत्तव्वया ? वत्तव्वया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--ससमयवत्तव्वया पर समयवत्तव्वया ससमय-परसमयवत्तव्वया ॥ ६०६.से कि तं ससमयवत्तव्वया? ससमयवत्तव्वया-जत्थ णं ससमए आघविज्जपण्ण विज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदसिज्जइ उवदंसिज्जइसे तं ससमयवत्तव्वया ॥ ६०७. से कि तं परसमयवत्तव्वया ? परसमयवत्तव्वया-जत्थ णं प रसमए आधविज्जइ' •पण्णविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ° उवदंसिज्जइ। से तं परसमयवत्तव्वया ॥ १. जहण्णयं परित्ताणतयमेत्ताणं (ख, ग)। २. जहन्नयं परित्ताणतयमेत्ताणं (ख, ग) ३. होति (ख, ग)। ४. वेइंति (क)। ५. अग्धवि (क)। ६. वृत्तिद्वये पि नासौ व्याख्यातः । ७. ६०७, ६०८ एतस्य सूत्रद्वयस्य स्थाने 'क' प्रतौ संक्षिप्तपाठोस्ति-एवं परसमएवि ससमयपरसमए वि। ८. सं० पा०-आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ । Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ अणुओगदारा ६०८. से किं तं ससमय-परसमयवत्तव्वया ? ससमय-परसमयवत्तव्वया - जत्थ ससमए परसमए आघविज्जइ' 'पण्णविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदंसिज्जइ उवदंसिज्जइ । से तं ससमय-परसमयव त्तव्वया ॥ ६०६. इयाणि को नओ कं वत्तव्वयं इच्छइ ? तत्थ ' नेगम - ववहारा" तिविहं वत्तव्वयं इच्छंति, तं जहा - ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं ससमय परसमयवत्तव्वयं । दुविहं वत्तव्वयं इच्छइ, तं जहा - ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं । तत्थ णं जासा ससमयवत्तव्वया सा ससमयं पविट्ठा | जासा परसमयवत्तव्वया सा परसमयं विट्ठा | तम्हा दुवा वत्तव्वया, नत्थि तिविहा वत्तव्वया । ' तिणि सद्दनया एगं ससमयवत्तव्वयं इच्छंति", नत्थि परसमयवत्तव्वया । कम्हा ? जम्हा परसमए अणट्ठे अहेऊ असब्भावे 'अकिरिया' उम्मग्गे अणुवएसे" मिच्छादंसणमिति कट्टु, तम्हा सव्वा ससमयवत्तब्वया, नत्थि परसमयवत्तव्वया, नत्थि ससमय-परसमयवत्तव्वया । से तं वत्तव्वया ॥ वक्कमाणुओगवारे अत्याहिगार-पदं ६१०. . से किं तं अत्थाहिगारे ? अत्थाहिगारे - जो जस्स अज्झयणस्स अत्याहिगारो, तं जहा -- गाहा १. सावज्जजोगविरई २. उक्कित्तण ३. गुणवओ य पडिवत्ती । ४. खलियस्स निंदणा ५. वणतिगिच्छ ६. गुणधारणा चेव ॥१॥ - सेतं अत्याहिगारे ॥ उबक्कमाणुओगवारे समोयार-पदं ६११. से किं तं समोयारे ? समोयारे छव्विहे पण्णत्ते तं जहा - १. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे ॥ ६१२. नामट्टवणाओ गयाओ' जाव' । से तं भवियसरी रदव्वसमोयारे ॥ ६१३. से किं तं जाणग सरीर भवियसरीर - वतिरित्ते दव्वसमोयारे ? जाणगसरीर-भविय सरीरवत्तिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे । सव्वदव्वा विणं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमो १. सं० पा० - आघविज्जड़ जाव उवदंसिज्जइ । २. दव्वट्टितो ( चू); नैगमव्यवहारौ त्रिविधां वक्तव्यतामिच्छतः (हा ) ; सङग्रहस्तु सामान्यवादिनैगमान्तर्गतत्वेन विवक्षितत्वात् सूत्रगतिवैचित्र्याद्वा न पृथगुक्तः ( है ) । ३. x ( क ) । ४. तिन्हं सनयाणं ससमयवत्तव्वया (चू ) । ५. अकिरिए ( ख, ग ) । ६. उम्मग्गे अणुवएसे अकिरिया (चू ) । ७. सामाइयस्स अत्याहिगारो ( क ) । ८. पुणं वण्णियाओ ( ख, ग ) । ६. अणु० सू० ६ १७ । Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणओगदाराई ४०७ यारेणं' जहा कुंडे बदराणि, तदुभयसमोयारेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य ॥ ६१४. अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य । चउसट्ठिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं बत्ती सियाए समोयरइ आयभावे य । बत्ती सिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं सोलसियाए समोयरइ आयभावे य । 'सोलसिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अट्रभाइयाए समोपरइ आयभावे य । अट्टभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तभयसमोयारेणं चउभाइयाए समीयरइ आयभावे य । चउभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरड. तदुभयसमोयारेणं अद्धमाणीए समोयरइ आयभावे य । अद्धमाणी आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं माणीए समोयरइ आयभावे य । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे । से तं नोआगमओ दव्वसमोयारे। से तं दव्वसमोयारे॥ ६१५. से कि तं खेतसमोयारे ? खेतसमोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य। भरहे वासे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं जंबुद्दीवे दीवे समोयरइ आयभावे य । जंबुद्दीवे दीवे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं तिरियलोए समोयरइ आयभावे य। तिरियलोए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं लोए समोयरइ आयभावे य । 'लोए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अलोए समोयरइ आयभावे य ।" से तं खेत्तसमोयारे । ६१६. 'से किं तं कालसमोयारे ? कालसमोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य" । समए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं आवलियाए समोयरइ आयभावे य । 'आवलिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदभयसमोयारेणं आणापाणए समोयरइ आयभावे य। एवं जाव' सागरोवमे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं ओस प्पिणुस्सप्पिणीसु समोयरइ आयभावे य। 'ओसप्पिणुस्सप्पिणीओ आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं पोग्गलपरियट्टे समोयरइ आयभावे य । पोग्गलपरियट्टे आय१. परभावे (क)। वाससहस्से वाससतसहस्से पुव्वंगे पुव्वे तुडिअंगे २. एवं जाव अद्धमाणी (क) । तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हहअंगे हुए ३. लोए वि एवं चेव नवरं अलोए समोयरइ उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे णलिणंगे णणिले ___ आयभावे य (क);X (ख, ग)। अत्थनिपूरंगे अत्थनिपूरे अउअंगे अउए नउअंगे ४. एवं काल समोयारे वि नवरं (क)। नउए पउअंगे पउए चूलिअंगे चूलिआ सीसपहे५. अणु० सू० २१६ । लिअंगे सीसपहेलिआ पलिओवमे सागरोवमे ६. एवं आणापाणू थोवे लवे मुहत्ते अहोरत्ते पक्खे (ख, ग)। मासे उऊ अयणे संवच्छरे जुगे वाससते Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ अणुओगदाराई समोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं तीतद्धा अणागतद्धासु समोयरइ आयभावे य । तीतद्धा अणागतद्धाओ आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभय समोयारेणं" सव्वद्धाए समोयरइ आयभावे य । से तं कालसमोयारे ॥ ६१७. से किं तं भावसमोयारे ? भावसमोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य'। कोहे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं माणे समोयरइ आयभावे य । "माणे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं मायाए समोयरइ आयभावे य । माया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदु मोयारेणं लोभे समोयरइ आयभावे य। लोभे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं रागे समोयरइ आयभावे य । रागे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं मोहणिज्जे समोयरइ आयभावे य । मोहणिज्जे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अट्ठकम्मपगडीसु समोयरइ आयभावे य° । अट्ठकम्मपगडीओ आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदभयसमोयारेणं 'छव्विहे भावे" समोयरइ आयभावे य"छव्विहे भावे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं जीवे समोयरइ आयभावे य। जीवे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं जीवत्थिकाए समोयरइ आयभावे य° । जीवत्थिकाए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं सव्वदव्वेसु समोयरइ आयभावे य । एत्थ संगहणिगाहा कोहे माणे माया, लोभे रागे य मोहणिज्जे य । पगडी भावे जीवे, 'जीवत्थिय सव्वदव्वा य" ॥१॥ –से तं भावसमोयारे । से तं समोयारे । से तं उवक्कमे । ('उपक्रम इति प्रथमं द्वारं समतिक्रान्तम् ।") । निक्वेवाणयोगबार-पदं ६१८. से किं तं निक्खेवे? निक्खेवे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओहनिप्फण्णे नामनिप्फण्णे" सुत्तालावगनिप्फण्णे" ॥ १. एवं उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे अतीयद्धा अणा- ६. लोभे य (क)। गयद्धा (क)। ७. वा० (क)। २.. अतः संगहणिगाहा पर्यन्तं 'क' प्रतौ संक्षिप्त- ८. जीवत्थिकाय दव्वा य (ख, ग)। पाठोस्ति-एवं कोहे माणे माया लोभे णेयव्वं । ६. X (क)। ३. सं० पा--एवं माणे माया लोभे रागे मोह- १०. निप्फण्णे य (क)। णिज्जे। ११. निम्फण्णे य (क)। ४. उदइए भावे (चू)। १२. निप्फण्णे य (क)। ५. सं० पा०-एवं छविहे भावे जीवे । Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४०६ निक्खेवाणमोगवारे ओहनिष्फण्ण-पदं ६१६. से किं तं ओहनिप्फण्णे ? ओहनिप्फण्णे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–अज्झयणे अज्झीणे आए झवणा ।। ६२०. से किं तं अज्झयणे ? अज्झयणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-नामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झयणे भावज्झयणे । ६२१. नाम-ट्ठवणाओ गयाओ' ॥ ६२२. से' किं तं दव्वज्झयणे ? दव्वज्झयणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य ॥ ६२३. से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे ? आगमओ दव्वज्झयणे-जस्स णं अज्झयणे ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं' नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठो?विप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कटु ॥ २४. नेगमस्स एगो अणवउत्तो आगमओ एगे दव्वज्झयणे, दोणि अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दव्वज्झयणाई, तिण्ण अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्वज्झयणाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं ताई नेगमस्स आगमओ दव्वज्झयणाई। एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा 'अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वज्झयणे वा दव्वज्झयणाणि वा से एगे दव्वज्झयणे। उज्जुसुयस्स एगो अणुव उत्तो आगमओ एगे दव्वज्झयणे, पुहत्तं नेच्छइ। तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ° । से तं आगमओ दव्वज्झयणे ।। ६२५. से किं तं नोआगमओ दव्वज्झयणे ? नोआगमओ दव्वज्झयणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-जाणगसरीरदव्वज्झयणे भवियसरीरदव्वज्झयणे जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ते दव्वज्झयणे ॥ ६२६. से किं तं जाणगसरीरदव्वज्झयणे ? जाणगसरीरदव्वज्झयणे-अज्झयणे त्ति पयत्था हिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाबिय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं' 'सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोइ वएज्जा-अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं अज्झयणे त्ति पयं आघवियं •पण्ण वियं परूवियं दंसियं निदंसियं° उवदंसियं । जहा को दिळंतो ? १. पुव्ववणियाओ (ख, ग)। पू०-अणु० सू० ३. सं० पा०-परिजियं जाव एवं । ६-११। ४. सं० पा०-अणेगा वा जाव से तं । २. ६२२-६२७ एषां षण्णां सूत्राणां स्थाने 'क' ५. सं० पा०--जीवविप्पजढं जाव अहो । प्रतौ केवलं 'जाव' इति पदं दृश्यते । ६. सं० पा०-आधवियं जाव उवदंसियं । Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० अणुओगदाराई अयं महुकुंभे' आसी, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरीरदव्वज्झयणे ॥ ६२७. से किं तं भवियसरीरदव्वज्झयणे ? भवियसरीरदव्वज्झयणे–जे जीवे जोणिजम्मण निक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं अज्झयणे त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिढतो? अयं महुकंभे भवि स्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरीरदव्वज्झयणे ॥ ६२८. से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वज्झयणे? जाणगसरीर-भविय सरीर-वतिरित्ते दव्वज्झयणे-पत्तय-पोत्थय-लिहियं । से तं जाणगसरीर-भविय सरीर-वतिरित्ते दव्वज्झयणे । से तं नोआगमओ दव्वज्झयणे । से तं दबज्झयणे ॥ ६२६. से कि तं भावज्झयणे? भावज्झयणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआग मओ य॥ ६३०. से कि तं आगमओ भावज्झयणे ? आगमओ भावज्झयणे-जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावज्झयणे । ६३१. से किं तं नोआगमओ भावज्झयणे ? नोआगमओ भावज्झयणे गाहा अज्झप्पस्साणयणं, कम्माणं अवचओ उवचियाणं । अणु वचओ य नवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥१॥ से तं नोआगमओ भावज्झयणे । से तं भावज्झयणे । से तं अज्झयणे ॥ ६३२. से किं तं अज्झीणे ? अज्झीणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-नामज्झीणे ठवणझीणे दव्वज्झीणे भावज्झीणे ॥ ६३३. 'नाम-ट्ठवणाओ गयाओ" ।। ६२४. से कि तं दव्वज्झीणे ? दव्वज्झीणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआग मओ य ॥ ६३५. से किं तं आगमओ दव्वज्झीणे ? आगमओ दवज्झीणे-जस्स णं अज्झीणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजिय' नामसमं घोससम अहीणक्खरं अणच्चक्खर अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोटूविप्पमक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दम्वमिति कटु ।। ६३६. नेगमस्स एगो अगुवउतो आगमओ एगे दवझोणे, दोण्णि अणुवउत्ता आगमओ १. घयकुंभे (ख, ग)। ४. अतः परं ६३६ सूत्रपर्यन्तं 'क' प्रतौ 'जाव' २. महुकुंभे (ख, ग)। इति पदं दृश्यते । ३. दो गयाओ (क); नामवणाओ पुव्ववण्णि- ५. सं० पा०-परिजियं जाव से तं। याआ (ख, ग)। पू०-अणु० सू०६-११ । Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४११ दोण्णि दव्वज्झीणाइं, तिण्णि अणवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्वज्झीणाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं ताइं नेगमस्स आगमओ दव्वज्झीणाई । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वझीणे वा दव्वज्झीणाणि वा से एगे दव्वज्झीणे। उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वज्झीणे, पुहत्तं नेच्छइ। तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ° । से तं आगमओ दव्वज्झीणे ॥ ६३७. से कि तं नोआगमओ दव्वज्झीणे ? नोआगमओ दव्वज्झीणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-जाणगसरीरदव्वज्झीणे भवियसरीरदव्वज्झीणे जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ते दव्वज्झीणे ॥ ६३८. से किं तं जाणगसरीरदव्वज्झीणे ? जाणगसरीरदव्वज्झीणे-अज्झीणे त्ति पयत्था हिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोइ वएज्जा--अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिठेगं भावेणं अज्झीणे ति पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदं सियं । जहा को दिढतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी° । से तं जाणगसरीरदव्वज्झीणे ॥ ६३६. से कि तं भवियसरीरदव्वज्झीगे ? भवियसरीरदव्वज्झीणे -जे जीवे जोणिजम्मण निक्खंते इमेणं चेव आदतएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदि→णं भावेणं अज्झीणे त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिठ्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ° । से तं भवियसरीरदव्वज्झीणे ॥ ६४० से कि तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वज्झीणे ? जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ते दव्वज्झीणे-सव्वागाससेढी'। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वज्झीणे । से तं नोआगमओ दव्वज्झीणे । से तं दव्वज्झीणे ॥ ६४१. से किं तं भावज्झीणे ? भावज्झीणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआग मओ य॥ ६४२. से कि तं आगमओ भावज्झीणे ? आगमओ भावज्झीणे-जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावज्झीणे ।। ६४३. से कि तं नोआगमओ भावज्झीणे ? नोआगमओ भावज्झीणे गाहा भाव १. सं० पा-जहा दव्वज्झयणे तहा भाणिअव्वं जाव से तं जाणग। २. सं० पा०-जहा दव्वज्झयणे जाव से तं भविय। ३. °सेढीए (क)। Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ अणुओगदाराई जह दीवा दीवसयं, पइप्पए' 'सो य दिप्पए" दीवो । दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेंति' ॥१॥ से तं नोआगमओ भावज्झीणे। से तं भावज्झीणे । से तं अज्झीणे ॥ ६४४. से किं तं आए ? आए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–नामाए ठवणाए दवाए भावाए। ६४५. नाम-ट्ठवणाओ गयाओं॥ ६४६. से' किं तं दवाए ? दव्वाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--आगमओ य नोआगमओ य॥ ६४७. से किं तं आगमओ दवाए ? आगमओ दव्वाए-जस्स णं आए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं 'नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठो?विप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए । जम्हा? अणुवओगो दव्वमिति कट्ठ॥ ६४८. नेगमस्स •एगो अणु वउत्तो आगमओ एगे दवाए, दोण्णि अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दवाया, तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दवाया, एवं जावइया अणुवउत्ता 'तावइया ते नेगमस्स आगमओ" दव्वाया। "एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वाए वा दव्वाया वा से एगे दवाए। उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दवाए, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ° । से तं आगमओ दवाए। ६४६. से किं तं नोआगमओ दवाए ? नोआगमओ दवाए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा जाणगसरीरदव्वाए भवियसरीरदव्वाए जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वाए । ६५०. से किं तं जाणगसरीरदव्वाए ? जाणगसरीरदवाए-आए त्ति पयत्थाहिगारजाण गस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं "जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथा रगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोइ वएज्जा-अहो १. पयप्पई (क)। ६. सं० पा०-परिजियं जाव कम्हा । २. सो य दिप्पई (क); दिप्पए असो (ख, ग)। ७. सं० पा०-नेगमस्स णं जाव जावइया । ३. दीवंति (क)। ८. आगमतो तावइया ते (ख, ग)। ४. पुव्वं भणिआओ (ख, ग) । पू०-अणु० सू० ६. सं० पा०-जाव से तं। ९-११। १०. सं० पा०-जहा दव्वज्झयणे जाव से तं ५. अत: ६५२ सूत्रस्य 'से कि तं' इति पाठपर्यन्तं जाणग। 'क' प्रतौ 'जीव' इति पदं दृश्यते । Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४१३ णं इमेणं सरीरसमस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं आए त्ति पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदं सियं । जहा को दिढतो? अयं महुकंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी। से तं जाणग सरीरदव्वाए॥ ६५१. से किं तं भवियसरीरदव्वाए ? भवियसरीरदव्वाए-जे जीवे जोणिजम्मणनि क्खंते "इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं आए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिळेंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ° । से तं भवियसरीर दवाए। ६५२. से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दवाए ? जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ते दवाए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-लोइए कुप्पावयणिए लोगुत्तरिए । ६५३. से किं तं लोइए ? लोइए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सचित्ते अचित्ते मीसए । ६५४. से कि तं सचित्ते ? सचित्ते तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–दुपयाणं चउप्पयाणं अपयाणं। दूपयाणं-दासाणं दासीणं, चउप्पयाणं-आसाणं हत्थीणं, अपयाणं-अंबाणं अंबाडगाणं आए। से तं सचित्ते ॥ ६५५. से किं तं अचित्ते ? अचित्ते-सुवण्ण-रयय-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरय णाणं 'संत-सार-सावएज् स आए । से तं अचित्ते । ६५६ से किं तं मीसए ? मीसा - दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरियाउज्जालं कियाणं आए। से तं मीसए । से तं लोइए। ६५७. से' किं तं कुप्पावयणिए ? कुप्पावयणिए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए॥ ६५८. "से कि तं सचित्ते ? चित्ते तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-दुपयाणं चउपयाणं अप याणं । दुपयाणं-दासाणं दासीणं, चउप्पयाणं-आसाणं हत्थीणं, अपयाणं-अंबाणं अंबाडगाणं आए। से तं सचित्ते ।। ६५६. से कि तं अचित्ते ? अचित्ते- दुवण्ण-रयय-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरय णाणं संत-सार-सावएज्जस्स आए। से तं अचित्ते ।। ६६०. से कि तं मीसए ? मीसए-दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरियाउज्जालंकि याणं आए° । से तं मीसए । से तं कुप्पावयणिए । १. सं० पा०---जहा दव्वज्झयणे जाव से तं भविय । २. x (क, ख, ग); संत सावएज्जस्स (हा, प्रतौ संक्षिप्त पाठो विद्यते-एवं कुप्पावयणिए तिविहे णेयव्वे । ४. सं० पा०-तिण्णि वि जहा लोइए जाव से ३. ६५७-६६० एषां चतुर्णां सूत्राणां स्थाने 'क' Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ अणुओगदाराई ६६१. से किं तं लोगुत्तरिए ? लोगुत्तरिए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा–सचित्ते अचित्ते मीसए॥ ६६२. से किं तं सचित्ते ? सचित्ते-सीसाणं सिस्सिणीणं आए । से तं सचित्ते ॥ ६६३. से किं तं अचित्ते ? अचित्ते–'पडिग्गहाणं वत्थाणं कंबलाणं पायपुंछणाणं" आए। से तं अचित्ते ॥ ६६४. से किं तं मीसए ? मोसए-सीसाणं सिस्सिणियाणं सभंडमत्तोवगरणाणं आए। से तं मीसए । से तं लोगुत्तरिए । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दवाए। से तं नोआगमओ दवाए। से तं दवाए। ६६५. से किं तं भावाए ? भावाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य ।। ६६६. से किं तं आगमओ भावाए?आगमओ भावाए-जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावाए॥ ६६७. से किं तं नोआगमओ भावाए ? नोआगमओ भावाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा पसत्थे य अपसत्थे य ॥ ६६८. से किं तं पसत्थे ? पसत्थे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-नाणाए दसणाए चरिताए । से तं पसत्थे। ६६६. से किं तं अपसत्थे ? अपसत्थे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–कोहाए माणाए मायाए लोभाए। से तं अपसत्थे । से तं नोआगमओ भावाए । से तं भावाए । से तं आए। ६७०. से किं तं झवणा ? झवणा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-नामझवणा ठवणझवणा दव्वझवणा भावझवणा ।। ६७१. नाम-ट्ठवणाओ गयाओ । ६७२. से' किं तं दव्वज्झवणा ? दव्वउझवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य॥ ६७३.से किं तं आगमओ दव्वझवणा? आगमओ दव्वझवणा-जस्स णं झवणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं 'नामसमं घोसममं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठो?विप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए। कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कटु ॥ १. वत्थाणं पत्ताणं (क)। २. पुव्वं भणिताओ (ख, ग)। पू०-सू० ६- ३. ६७२-६७७ एषां षण्णां सूत्राणां स्थाने 'क' प्रतौ 'जाव' इति पदं दृश्यते । ४. सं० पा०-परिजियं जाव से तं। Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१५ दारा ६७४. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगा दव्वज्भवणा, दोण्णि अणुवउत्ता आगमओ दोणीओ दव्वज्भवणाओ, तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णीओ दव्वज्भवणाओ, एवं जावइया अण्वउत्ता तावइयो ताओ नेगमस्स आगमओ दव्वज्भवणाओ । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वज्भवणा वा दव्वज्भवणाओ वा सा एगा दव्वज्भवणा । उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगा दव्वज्भवणा, पुहत्तं नेच्छइ । तिह सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कहा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्वज्झवणा || ६७५. से किं तं नो आगमओ दव्वज्झवणा ? नोआगमओ दव्वज्भवणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जाणगसरीरदव्वज्भवणा भवियसरीरदव्वज्झवणा जाणगसरीर-भविय सरीर- वतिरित्ता दव्वज्भवणा ॥ ६७६: से किं तं जाणगसरीरदव्वज्भवणा ? जाणगसरीरदव्वज्भवणा- झवणेत्ति पयत्थाहिगार जाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय चाविय चत्तदेहं "जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोइ वएज्जा - अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं झवणे ति पयं आघवियं पणवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदसियं । जहा को दिट्ठतो ? अयं कुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरीरदव्वज्भवणा || ६७७. से किं तं भवियसरी रदव्वज्भवणा ? भवियसरीरदव्वज्भवणा-जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खते "इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं झवणेत्ति पथ सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिट्ठतो ? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ° । से तं भवियसरीरदव्वज्झवणा ॥ ६७८. से' किं तं जाणगसरीर भवियसरीर वतिरित्ता दव्वज्भवणा ? जाणगसरीर-भवियसरीर- वतिरित्ता दव्वज्भवणा "तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - लोइया कुप्पावयणिया लोगुत्तरिया ॥ ६७६. से किं तं लोइया ? लोइया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - सचित्ता अचित्ता मीसया ॥ से किं तं सचित्ता ? सचित्ता तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-दुपयाणं चउप्पयाणं अपयाणं । दुपयाणं—दासाणं दासीणं, चउप्पयाणं- आसाणं हत्थीणं, अपयाणं- ६८०. १. सं० पा०सेसं जहा दव्वज्झयणे जान से तं जाग २. सं० पा० - सेसं जहा दव्वज्भयणे जाव से तं भविय । ३. ६७८ ६९० एषां त्रयोदशानां सूत्राणां स्थाने 'क' प्रतौ एवं संक्षिप्तः पाठो विद्यते जाणग सरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वज्भवणा जहेव तिविहेण भेएणं भाणियव्वा णवरं ज्भवणत्ति आलावो । ४. सं० पा० – जहा जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दवाए तहा भाणिअत्र्वं जाव से तं । Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ अंबाणं अंबाडगाणं झवणा । से तं सचित्ता ॥ ६८१. से किं तं अचित्ता ? अचित्ता - सुवण्ण-रयय-मणि- मोत्तिय संख-सिल-प्पवाल-रत्तस्यगाणं संत-सार- सावएज्जस्स झवणा । से तं अचित्ता ॥ ६८२. से किं तं मीसया ? मीसया - दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरियाउज्जालं कियाणं भवणा । से तं मीसया । से तं लोइया ॥ अणु आगदाराई ६८३. से किं तं कुप्पावयणिया ? कुप्पावयणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा – सचित्ता अचित्ता मीसया । ६८४. से किं तं सचित्ता ? सचित्ता तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -दुपयाणं चउप्पयाणं अपयाणं । दुपयाणं - दासाणं दासीणं, चउप्पयाणं- आसाणं हत्थीणं, अयाणं - अंबाण अंबडागाणं भवणा । से तं सचित्ता ॥ ६८५. से किं तं अचित्ता ? अचित्ता - सुवण्ण-रयय-मणि-मोत्तिय संख-सिल-प्पवाल-रत्तरया संत-सार- सावएज्जस्स झवणा । से तं अचित्ता ॥ ६८६. से किं तं मीसया ? मीसया - दासाणं दासीणं आसाणं इत्थीणं समाभरियाउज्जालंकियाणं भवणा । से तं मीसया । से तं कुप्पावयणिया ॥ T ६८७. से किं तं लोगुत्तरिया ? लोगुत्तरिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - सचित्ता अचित्ता मीसया ॥ ६८८. से किं तं सचित्ता ? सचित्ता -- सोसाणं सिस्सिणीणं भवणा । से तं सचित्ता ॥ ६८. से किं तं अचित्ता ? अचित्ता - पडिग्गहाणं वत्थाणं कंबलाणं पायपुंछणागं झवणा । सेतं अचित्ता ॥ ६०. से किं तं मीसया ? मीसया-सीसाणं सिस्सिणियाणं सभंडमत्तोवगरणाणं भवणा । सेतं मीसा । से तं लोगुत्तरिया । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरिता व्वज्वणा । से तं नोआगमओ दव्वज्भवणा । से दव्वज्भवणा ॥ ६६१. से' किं तं भावज्भवणा ? भावज्भवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आगम नोआगमओ य ॥ ६६२. से किं तं आगमओ भावज्भवणा ? आगमओ भावज्भवणा- जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावज्भवणा ॥ १. ६१-६६५ एषां पञ्चानां सूत्राणां स्थाने 'क' प्रती भिन्ना वाचना विद्यते -भावज्भवणा दुविहा पं तं पसत्था भावज्भवणा कोहस्स माणस्स मायाए लोभस्स ज्भवणा । से तं ६ε३. से किं तं नोआगमओ भावज्भवणा ? नोआगमओ भावज्भवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पसत्था य अपसत्था य ॥ य पसत्था भावझवणा । से किं तं अप्पसत्था भावज्भवणा नाणज्भवणा दंसणज्भवणा चारित्तज्भवणा । से तं अप्पसत्या भावज्भवणा । Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ३६४. से किं तं पसत्था ? पसत्था चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा–कोहझवणा माणज्झ वणा मायझवणा लोभज्भवणा । से तं पसत्था ।। ६६५. से किं तं अपसत्था ? अपसत्था ति विहा पण्णत्ता, तं जहा-नाणज्झवणा दंसणज्झ वणा चरित्तज्झवणा। से तं अपसत्था। से तं नोआगमओ भावझवणा। से तं भावझवणा । से तं झवणा । से तं ओहनिप्फण्णे ॥ निक्खेवाणओगवारे नामनिप्फण्ण-पदं ६६६. से किं तं नामनिप्फण्णे ? नामनिप्फण्णे-सामाइए । ६६७. से समासओ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-नामसामाइए ठवणसामाइए दव्वसामाइए भावसामाइए॥ ६६८. 'नाम-ट्ठवणाओ गयाओ" ।। ६६६. "से किं तं दव्वसामाइए ? दव्वसामाइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य॥ ७००.से किं तं आगमओ दव्वसामाइए ? आगमओ दव्वसामाइए-जस्स णं सामाइए त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्टविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्वमिति कटु ॥ ७०१. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वसामाइए, दोणि अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दव्वसामाइयाई, तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दव्वसामाइयाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाइं ताई नेगमस्स आगमओ दव्वसामाइयाई । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वसामाइए वा दव्वसामाइयाणि वा से एगे दव्वसामाइए । उज्जसुयस्म एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वसामाइए, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्वसामाइए ॥ ७०२. से किं तं नोआगमओ दव्वसामाइए ? नोआगमओ दव्वसामाइए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-जाणगसरीरदव्वसामाइए भवियसरीरदव्वसामाइए जाणगसरीर-भविय सरीर-वतिरित्ते दव्वसामाइए॥ ७०३. से किं तं जाणगसरीरदव्वसामाइए ? जाणगसरीरदव्वसामाइए–सामाइए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं १. नामनिष्पन्ने निक्खेवे (क)। ३. सं० पा०-दव्वसामाइए वि तहेव जाव से २. दो गयाओ (क): नामठवणाओ पव्वं भणिताओ (ख, ग)। पू०-अणु० सू० ६-११ । Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ अणुगोगदाराई सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोइ वएज्जा-अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिद्रुणं भावेणं सामाइए त्ति पयं आवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं । जहा को दिळंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरीरदव्वसामाइए । ७०४. से कि तं भवियसरीरदव्वसामाइए? भवियसरीरदव्वसामाइए-जे जीवे जोणि जम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं सामाइए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को दिळंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ° । से तं भवियसरीरदव्वसामाइए। ७०५. से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसामाइए ? जाणगसरीर-भविय सरीर-वतिरित्ते दव्वसामाइए-पत्तय-पोत्थय-लिहियं । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसामाइए। से तं नोआगमओ दव्वसामाइए। से तं दव्व सामाइए॥ ७०६. से किं तं भावसामाइए ? भावसामाइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ य नोआगमओय ॥ ७०७. से किं तं आगमओ भावसामाइए ? आगमओ भावसामाइए-जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावसामाइए । ७०८. से किं तं नोआगमओ भावसामाइए ? नोआगमओ भावसामाइए गाहाजस्स सामाणिओ' अप्पा, संजमे नियमे तवे । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥१॥ जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥२॥ जह मम न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं' । न हणइ न हणावइ य, 'सममणती तेण सो समणो" ॥३॥ नत्थि य से कोइ वेसो, पिओ व सव्वेसु चेव जीवेसु । एएण होइ समणो, एसो अन्नो वि पज्जाओ ॥४॥ १. सामायिकनिरूपण-प्रसङ्ग श्रमणस्य निरूपणं अस्वाभाविकी यत् आदर्शषु प्रासङ्गिकरूपेण प्रासङ्गिकं न प्रतिभाति । आवश्यकनिर्युक्ता- लिखिता गाथा: कालान्तरेण मूलपाठरूपेण वपि सामायिकप्रकरणे सामायिकस्वामि-प्रति- प्रक्षेपं प्राप्ताः । पादकं केवलं श्लोकद्वयं विद्यते । तत्र श्रमणस्य २. तसेसु (क)। प्रतिपादकं गाथाचतुष्टयं नास्ति । द्वाभ्यामपि ३. सव्वसत्ताणं (क) । वृत्तिकाराभ्यां सामायिकश्रमणयोः सम्बन्ध- ४. समं अणइत्ति सो समणो (क)। प्रदर्शनार्थं प्रयत्नः कृतः तथापि नैषा कल्पना ५. य (क, ख, ग)। Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४१६ उरग'-गिरि-जलण-सागर-नहतल-तरुगणसमो य जो होइ। भमर-मिय-धरणि-जलरुह-रवि-पवणसमो य सो समणो ॥५॥ तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ न होइ पावमणो । सयणे य जणे य समो, समो य माणावमाणेसु ॥६॥ से तं नोआगमओ भावसामाइए । से तं भावसामाइए। से तं सामाइए। से तं नामनिप्फण्णे॥ निक्खेवाणुओगवारे सुत्तालावगनिष्फण्ण-पदं ७०६. से किं तं सुत्तालावगनिप्फण्णे' ? सुत्तालावगनिप्फण्णे - इयाणि सुत्तालावगनिप्फण्णे निक्खेवे इच्छावेइ, से य पत्तलक्खणे वि न निक्खिप्पइ, कम्हा ? लाघवत्थं । 'अओ अत्थि'' तइए अणुओगदारे अणुगमे त्ति। तत्थ निक्खित्ते इहं निक्खित्ते भवइ, इहं वा निक्खित्ते तत्थ निक्खित्ते भवइ, तम्हा इहं न निक्खिप्पइ तहिं चेव निक्खिप्पिस्सइ । से तं निक्खेवे ।। अणुगमाणुओगदार-पदं ७१०. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्ताणुगमे य निज्जुत्तिअणु गमे य ।। ७११. से किं तं निज्जुत्तिअणुगमे ? निज्जुत्तिअणुगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-निक्खेव निज्जुत्तिअणुगमे उवग्घायनिज्जुत्तिअणुगमे सुत्तफासियनिज्जुत्तिअणुगमे ।। ७१२. से किं तं निक्खेव निज्जुत्तिअणुगमे ? निक्खेवनिज्जुत्तिअणुगमे अणुगए। से तं निक्खेवनिज्जुत्तिअणुगमे ॥ ७१३. से किं तं उवग्घायनिज्जुत्तिअणुगमे ? उवग्घायनिज्जुत्तिअणुगमे-इमाहिं दोहिं दारगाहाहिं अणुगंतव्वे, तं जहा१. उद्देसे २. निद्देसे य, ३. निग्गमे ४. खेत्त ५. काल ६. पुरिसे य । ७. कारण ८. पच्चय ६. लक्खण, १०. नए ११. समोयारणा १२. णुमए ॥१॥ १३. किं १४. कइविहं १५. कस्स १६. 'कहि, १७. केसु १८. कह" १६. केच्चिरं हवइ कालं । १. चूणिकृता उदग' शब्दो व्याख्यातोस्ति, निक्षेपः इति शेष: (हे)। यथा-सारयसलिल व्व सुद्धहियतो (चू)। ५. अत्थि अओ (ख); अत्थि इओ (ग)। २. नामनिप्फण्णे निक्खेवे (क)। ६. तहिं वा (क)। ३. सुत्तालावयनिक्खेवे (क)। ७. निक्खिप्पिहत्ति (क)। अतोनन्तरं 'से तं ४. असौ पाठ: अपूर्णः प्रतिभाति । अस्य पूर्ति: सुत्तालावगनिप्फण्णे' इति निगमनं नोपलभ्यते। वृत्तौ इत्थमुपलभ्यते--करोमि भदन्त ! सामा ते-करोमि भदन्त ! सामा- ८. गाहाहिं (ग)। यिकं इत्यादीनां सूत्रालापकानां नामस्थापना- ६. कहं केसु कहिं (क)। दिभेदभिन्नो यो न्यासः स सूत्रालापकनिष्पन्नो १०. किच्चिरयं (ख); किच्चिरं (ग)। Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० २०. कइ २१. संतर २२. मविरहियं, २३. भवा २४. गरिस २५. फासण २६. निरुत्ती ॥२॥ - सेतं उवग्धायनिज्जुत्तिअणुगमे ॥ ७१४. से किं तं सुत्तफा सियनिज्जुत्तिअणुगमे ? सुत्तफासियनिज्जुत्तिअणुगमे-सुत्तं उच्चाtroi' अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं' पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायोवयं । तओ नज्जिहिति' ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा नोसामाइयपयं वा । तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिंचि' भगवंताणं केइ अत्याहिगारा अहिगया भवंति, 'केसिचि य इ अणहिगया" भवंति, तओ" तेसिं अणहिगयाणं अत्थाणं' अहिगमणट्टयाए' 'पदेणं पदं वण्णइस्सामि" गाहा— संहिता " य पदं चेव, पदत्थो पदविग्गहो । चालणा य पसिद्धी य, छव्विहं विद्धि लक्खणं ॥१॥ तं सुत्ता सियनिज्जुत्तिअणुगमे । से तं निज्जुत्तिअणुगमे । से तं अणुगमे ॥ नाणुओगवार-पदं ७१५. से किं तं नए ? सत्त मूलनया पण्णत्ता, तं जहा - नेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढ एवंभू । तत्थ - अणुगदराई गाहा— नैगेहि माणेहिं, मिणइ त्ति नेगमस्स य निरुत्ती । सेसाणं पि नयाणं, लक्खणमिणमो सुणह वोच्छं ॥ १ ॥ संग हिय-पिंडियत्थं संगहवयणं समासओ बेंति । वच्चइ विणिच्छियत्थं ववहारो सव्वदव्वे ||२|| पच्चुप्पण्णग्गाही, उज्जुसुओ नयविही मुणेयव्वो । इच्छइ विसेसियतरं, पच्चुप्पण्णं नओ सद्दो ||३|| १. उच्चारिअव्वं ( ग ) । २. अविच्चामेलियं ( क ) । ३. तत्थ निज्जहत्ति ( क ) । ४. पदं (क) सर्वत्र । ५. के सिंच णं ( ख, ग ) । ६. केइ अत्याहिगारा अणहिगया ( ख, ग ) । ७. तो (क) । ८. x (क, ख, ग ) । ट्ठा ( ख, ग ) । १०. पदं पदेण ( क, ख, ग ) 1 ११. वत्तस्सामि ( क, ख, ग, चू); वत्तइस्सामो (हा ) । १२. संहिया ( क ) 1 १३. विद्धि लक्खणं (हा, हे ) ; अत्र चूर्ण्यनुसारी पाठ: स्वीकृतः । अस्य चूर्णिगता व्याख्या समीचीनास्ति वर्द्धनं वृद्धिः व्याख्या इत्यर्थः । जम्हा सुत्तं अत्थो य विकप्पेहि अणेगधा वक्खाणकरणतो वद्धति ( चू) । १४. एत्थ ( क ) । Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुओगदाराई ४२१ वत्थओ संकमणं, होइ अवत्थ नए समभिरूढे । वंजण-अत्थ-तदुभयं', एवंभूओ विसेसेइ ।।४।। नायम्मि गिण्हियव्वे, अगिण्हियवम्मि चेव अत्थम्मि । जइयव्वमेव इइ जो, उवएसो सो नओ नाम ।।५।। सव्वेसि पि नयाण, बहु विहवत्तव्वयं निसामित्ता । तं सव्वनय विसुद्धं, जं चरणगुणट्ठिओ साहू ।।६।। -से तं नए। ग्रंथ-परिमाण अक्षर-परिमाण-६६१८६ अनुष्टुप्-श्लोक-२१६२, अक्षर---५ १. तदुभय (क)। २. उपएसो (ग)। ३. वत्तव्वयं बहुविहं (ख, ग)। ४. नए१. सोलससयाणि चउत्तराणि होति उ इममि गाहाण । दुसहस्समणुठ्ठभछंदवित्तप्पमाणओ भणिओ। २. णयरमहादारा इव, उक्कमणदाराण ओगवरदारा। अक्खरबिदुगमत्ता, लिहिया दुक्खक्खयट्ठाए ।। (ख, ग)। Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसाओ Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसाओ पढमा दसा १. सुयं मे 'आउसं ! तेणं भगवता एवम खातं---इह खलु थे रेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पण्णत्ता ॥ २. कयरे खलु ते' थेरेहिं भगवतेहिं वीसं असमाहिदाणा पण्णता ? ३. इमे खलु ते' थेरेहि भगवंतेहिं बीसं असमाहिट्ठाणा पण्णता, तं जहा....१ . दवदवचारी यावि भवति । २. अमज्जियचारी यावि भवति । ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति । ४. अतिरित्तसेज्जासणिए । ५. रातिणियपरिभासी । ६. थेरोवघातिए । ७. भूतोवघातिए । ८. संजलणं । ६. कोण" । १०. पिटिमंसिए' 'यादि भवइ । ११. अभिक्षण-अभिक्खण ओधारित्ता । १२. 'णवाई अधिकरणाई अणप्पण्णा उप्पाइत्ता २ भवइ । १३. पोराणाई अधिकरणाई खामित-विओस १. नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आय- २. आउसंतेणं (चू, वृपा); आमुसंतेणं, आवरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सब्व- संतेणं (चूपा) । साहूणं सुयं (अ, ता); चूर्णिकृता नैतद् व्याख्या- ३, ४. X (अ, क, ख)। तम्, किन्तु प्रथमसूत्रमेव आदिमंगल रूपेण ५. दवद्दव० (चू);" चारि (अ, क, ख) । उल्लिखितम्-तं च इमं मंगलनिहाणभूत ६. अपमज्जचारी (ता)। दसापढमसुत्तं । वृत्तिकृता आदिमंगलरूपेण ७. यति० (अ); "सेज्जासणिए (चू)। नमस्कारमहामंत्रसूत्रं व्याख्यातम् । तत्रैक: ८. संजलणकोहाणबंधी (ख); "कोधणे । पाठभेदो निर्दिष्टोस्ति-'नमो सव्वसाहण' ६. पिट्टीमसे (अ, ख); पदि० (च) । इति मूलपाठत्वेन तथा 'नमो लोए सब्ब- १०.x (स० २०११) साहणं' इति पाठान्त रत्वेन व्याख्यातः तद- ११. ओधारइत्ता (ता); ओहारइत्ता (स.२०११) व्याख्यायां अभय देवसुरेभगवतीवृत्तेरनुसरणं १२. उप्पाइया (क, ख)। कृतमस्ति । ४२५ Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ दसाओ विताई उदीरित्ता" भवइ। १४. 'अकाले सज्झायकारए'२ यावि भवति। १५. ससरक्खपाणिपादे । १६. 'सद्दकरे। १७. झंझकरे। १८. कलहकरे" । १६ सूरप्पमाणभोई । २०. 'एसणाए असमिते' यावि भवइ । एते' खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पण्णत्ता । -ति बेमि ॥ १. णवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाएत्ता भवइ । पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय-विओ सवियाणं पुणोदीरेत्ता (स० २०११)। २. अकालसज्झायकारए (चू, स० २०११); कारि (अ, क, ख) । ३. भेदकरे झंझकरे (क, चू, वृ); हेयकरे झंझकरे (ता); 'क' प्रतौ चूणों वृत्तौ च भेदकरे इति पाठो लभ्यते । समवायाङ्गसूत्रे (२०११) 'भेदकरे' इति पाठो नोपलभ्यते, 'अ, ख' प्रत्योरपि च। यत्र 'भेदकरे' इति पाठः स्वीकृतस्तत्र द्वादशत्रयोदशयोरसमाधिस्थानयोरेकपदीकरणेण संख्यासंघटना संगच्छते। चूणों अन्येषां असमाधिस्थानानां पाठोल्लेखो विद्यते, केवलं त्रयोदशस्य अस- माधिस्थानस्य पूर्णः पाठो नोल्लिखितः अनेनापि प्रस्तुतानुमानस्य पुष्टिर्जायते । ४. कलहकरे सद्दकरे झंझकरे (स० २०।१); कलहकरे असमाहिकारए (अ, क, ख); समवायांगसूत्रे (२०११) 'असमाहिकारए' असो पाठो नास्ति, चूणों वृत्तौ च नास्ति व्याख्यातः । अस्य सार्थकतापि न दृश्यते । चूणौ वृत्तौ च 'असमाहीए ठाणं भवतीति वाक्यशेषः' इति उल्लिखितमस्ति उत्तरकाले एतदेव 'असमाहिकारए' इति रूपे परि वर्तितम् । ५. एसणाऽसमिते (स० २०११)। ६. एवं (ख, वृ)। ७. पण्णत्ते (अ, क)। Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बितिया दसा १. सुयं मे आउस ! तेणं भगवता एवमक्खातं--इह खलु थेरेहि भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पण्णत्ता॥ २. कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पण्णत्ता ? ३. इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पण्णत्ता, तं जहा-१. हत्थकम्म करेमाणे सबले । २. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले । ३. रातीभोयणं भुजमाणे सबले। ४. आहाकम्म' भुजमाणे सबले । ५. रायपिंडं' भुंजमाणे सबले । ६. 'कीयं पामिच्चं अच्छिज्ज अणिसिटठं आहट दिज्जमाणं भुजमाणे सबले। ७. अभिक्खणं पडियाइक्खित्ताणं भुजमाणे सबले । ८. अंतो छण्हं मासाणं गणातो गणं संकममाणे सबले । ९. 'अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले । १०. अंतो मासस्स ततो माइट्टाणे करेमाणे' सबले" । ११. सागारियपिंडं भुजमाणे सबले । १२. आउट्टियाए पाणाइवायं करेमाणे सबले । १३. आउट्टियाए मुसावायं वदमाणे' सबले । १४. आउट्रियाए अदिन्नादाणं गिण्हमाणे सबले । १५. आउट्टियाए अणंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा 'सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले। १६." आउट्टियाए ससणिद्धाए पुढवीए ससरक्खाए पुढवीए ठाणं वा सेज्ज वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले । १७. आउट्टियाए चित्तमंताए" सिलाए चित्तमंताए लेलए कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्रिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउस्से" सउत्तिग"-पणग-दगमटी-मक्क १. अहा० (ख); आहारकम्मं (ता)। ६. करेमाणे (अ, क, ख) । २. सागारियपिडं (स० २१११)। १०. x (अ, वृ, स० २११)। ३. कीतं वा पामिच्चं वा पिच्छिज्जं वा अणिसट्ठ ११. सं० पा०-एवं ससणिद्धाए पुढवीए ससरक्खाए वा (ता); उद्देसियं कीयं (स० २१११)। पुढवीए। ४. अभिक्खणं २ (ख, ता)। १२. एवं (अ, क, ख)। ५. उदग० (ख)। १३. चित्तमंताए पुढवीए चित्त० (स० २१११)। ६. सेवमाणे (स० २१।१)। १४. सओसे सउदगे (ता); x (स० २१११)। ७. चूणौ नवमदशमयोः सबलयोर्व्यत्ययो दृश्यते । १५. सउत्तिगे (अ, ता, स० २१११)। ८. रायपिंडं (स० २१११)। १६. मट्टिय (अ, ख)। ४२७ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ दसाओ डासंताणए' ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले । १८. आउट्टियाए मूलभोयणं वा 'कंदभोयणं वा 'खंधभोयणं वा तयाभोयणं वा पवालभोयणं वा पत्तभोयणं वा पुष्फभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरियभोयणं वा भुजमाणे सबले । १६. अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे सबले । २०. अंतो संवच्छरस्स दस माइट्ठाणाई करेमाणे सबले । २१. 'आउट्टियाए सीतोदगaraारिएण हत्थेण वा मत्तेण वा दव्वीए भायणेण वा " असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा डिग्गाहेत्ता भुजमाणे सबले । एते' खलु थेरेहिं भगवंतेहि एक्कवीसं सबला पण्णत्ता' । १. तदेवंभूते स्थाने इति गम्यम् । 'संताणए तहपगार ( अ, क, ख, ता ) | २. ४ ( ता) । ३. x (ता); एतत्पदं चूर्णां वृत्तौ च व्याख्यातं नास्ति । ४. उदग० ( ख ) । ५. सेवमाणे (स० २१।१ ) । ६. रउग्घाइएणं ( अ, क, ख ) । ७. अभिक्खणं अभिक्खणं सीतोदय-वियड-वग्घा रिय-पाणिणा (स० २१।१ ) । ८. एवं ( वृ ) । 8. पण्णत्ते ( क ) । - ति बेमि ॥ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइया दसा १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ। २. कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ? ३. इमाओ खल ताओ थेरेहिं भगवतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, तं जधा १. सेहे रातिणियस्स पुरतो गंता भवति, आसादणा सेहस्स। २. सेहे रातिणियस्स सपक्खं गंता भवति, आसादणा सेहस्स। ३. सेहे रातिणियस्स आसन्न' गंता भवति, आसादणा सेहस्स। ४. सेहे रातिणियस्स 'पूरओ चिदित्ता५ भवति. आसादणा सेहस्स । ५. सेहे रातिणियस्स सपक्खं चिट्टित्ता भवति, आसादणा सेहस्स । ६. सेहे रातिणियस्स आसन्नं चिट्ठित्ता भवति, आसादणा सेहस्स। ७. सेहे रातिणियस्स पुरतो निसीइत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । ८. सेहे रातिणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवति, आसादणा सेहस्स। ६.सेहे रातिणियस्य आसन्न निसी १. आसन्नं (स० ३३।१)। २. पुरओ (स० ३३।१)। ३. सपक्खं (स० ३३।१)। ४. एवं एएणं अभिलावेणं सेहे (अ, क, ख); चूणौं एषां षण्णां सूत्राणां कृते ‘एवं चिट्ठण निसीयणे वि' इति संक्षिप्तपाठः सूचितोस्ति । वृत्ती बारं बारं 'एवं' इति पदं दृश्यते । आदशेषु संक्षेपसूचकः 'एवं एएणं अभिलावेणं' इति पाठोपि लिखितोस्ति, ततोग्रे पूर्णः पाठोपि लिखितः । अत्र द्वयोर्वाचनयोमिश्रणं प्रती यते। ५. अभयदेवसूरिणा समवायांगस्य (३३११) वृत्तौ दशाश्रुतस्कन्धस्य योऽर्थो गृहीतः स किञ्चिद् भिन्नवाचनासत्को दृश्यते । वृत्तिकारणलिखितम् - 'यावत्करणाद्दशाश्रुतस्कन्धानुसारेणान्या इह द्रष्टव्या: ताश्चैवमर्थतः' (वृ)। वृत्तिकृता स्वीकृतायां वाचनायां साम्प्रतिकादशेष उपलब्धवाचनातो निम्नटङ्किता भेदा दृश्यन्ते-४ आसन्नं ठिच्चा ५ पुरओ ठिच्चा ६ सपक्खं ठिच्चा, ७ आसन्नं, ८ पुरओ, सपक्खं, द्वादशत्रयोदशयोरासातनापदयोर्व्यत्ययोस्ति । १५ उवदंसेति, केषाञ्चिद् स्थानानां भेदो निम्नयन्त्रेण द्रष्टव्य : ४२६ Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० दसाओ इत्ता भवति, आसादणा सेहस्स।.१०. सेहे' रातिणियेण सद्धि बहिया वियारभूमि निक्खंते समाणे 'पुवामेव सेहतराए आयामेइ पच्छा राति णिए, आसादणा सेहस्स। ११. सेहे राति णिएण सद्धि बहिया 'विहारभूमि वा" वियारभूमि वा निक्खंते समाणे तत्थ 'पुवामेव सेहतराए" आलोएति पच्छा रातिणिए, आसा दणा सेहस्स। १२. केइ रातिणियस्स पुव्वं संलत्तए' सिया तं 'पुत्वामेव सेहतराए आलवति' पच्छा रातिणिए, आसादणा सेहस्स । १३. सेहे रातिणियस्स रातो वा विआले वा वाहरमाणस्स अज्जो ! के सुत्ते ? के जागरे ? तत्थ सेहे जागरमाणे रातिणियस्स अपडिसुणेत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । १४. सेहे असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुवामेव सेहतरागस्स आलोएइ पच्छा रातिणियस्स, आसादणा सेहस्स । १५. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुव्वामेव सेहतरागस्स पडिदंसेति पच्छा रातिणियस्स, आसादणा सेहस्स। १६. सेहे असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पूव्वामेव सेहतरागं उवणिमंतेति पच्छा रातिणियं, आसादणा सेहस्स। १७. सेहे रातिणिएण सद्धिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं 'रातिणियं अणापुच्छित्ता" जस्स स० द० २०. सेहे राइणियस्स खद्धं-खद्धं० सेहे रातिणियस्स वाहरमाणस्स तत्थगते. २१. सेहे राइणियस्स कि ति वइत्ता० सेहे रातिणियं किं ति वत्ता० २२. सेहे राइणियं तुमं ति वत्ता० सेहे रातिणियं तुमंति वत्ता० २३. सेहे राइणियं तज्जाएण-तज्जाएण. सेहे रातिणियं खद्धं-खद्धं वत्ता० २४. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स इति० सेहे रातिणियं तज्जाएण-तज्जाएण० २५. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स नो० सेहे रातिणियस्स कहं कहेमाणस्स इति० " " , कहं० , , नो० , , , परिसं० " , णो सुमणसे० " , , , तीसे० " " " " परिसं० सेज्जा संथारगं पाएणं० कहं० ३०. " , संथारए चिट्टित्ता० " " तीसे० ३१. , ... उच्चासणे चिट्टित्ता० सेज्जा संथारगं पाएणं० ३२. , , समासणे , ___" , संथारए चिद्वित्ता ३३. , , आलवमाणस्स तत्थगते० , , उच्चासणंसि वा समासणंसि वा० १. एवं एएणं अभिलावेणं सेहे (ख)। ६. सेहे पुव्वतरागं आलवेति (ता, स० ३३।१)। २. तत्थ सेहे पुव्वत्तरागं आतमति (ता)। ७. जागरति (ता)। ३. ४ (ता)। ८. आसातणा (ता)। ४. सेहे पुव्वतरागं (ता)। ६. पुव्वमेव (स० ३३।१)। ५. संलवत्तए (क, ख); संलवित्तए (स० १०. उवदंसेति (ता)। ३३।१)। ११. रायिणितं आणा० (ता)। Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइया दसा ४३१ जस्स इच्छइ तस्स- तस्स खद्धं खद्धं दलयइ, आसादणा सेहस्स । १८. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता राइणिएण सद्धि आहारेमाणे तत्थ सेहे खद्धं-खद्धं डाअं डाअं 'रसियं-रमियं ऊसढं-ऊसढं", मणुण्णं-मगुण्णं मणाम- मणाम निद्धं निद्धं लुक्ख - लुक्ख आहरेत्ता भवइ, आसादणा सेहस्स । १६. सेहे रातिणियस्स वाहरमाणस्स अपडिणित्ता भवइ, आमादणा सेहस्स । २०. सेहे रातिणियस्स वाहरमाणस्स तत्थगते चेव पडिसुणेत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । २१. सेहे रातिणियं किं ति वत्ता", भवति, आसादणा सेहस्स । २२. सेहे रातिणियं तुमंति वत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । २३. सेहे रातिणियं खर्द्ध-खद्धं वत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । २४. सेहे रातिणियं तज्जाएण तज्जाएण पडिभणित्ता' भवइ, आसादणा सेहस्स । २५. सेहे रातिणियस्स कहूं कहेमाणस्स इति एवंति वत्ता न भवति, आसादणा सेहस्स । २६. सेहे रातिणियस्प कहं कहेमाणस्स तो सुमरसीति वत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । २७. सेहे रातिणियस्स कहं कहेमाणस्स णो सुम से भवति, आसादणा सेहस्स । २८. सेहे रातिणियस्स कहं कहेमाणस्स परिसं भेत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । २६. सेहे रातिणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं आछिदत्ता' भवति, आसादणा सेहस्स । ३०. सेहे रातिणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुट्ठिताए अभिन्नाए अव्वोच्छिन्नाए अव्वोगडाए दोच्चंपि तच्चपि ' तमेव कह कहेत्ता भवति, आसादणा सेहस्स । ३१. सेहे रातिणियस्स सेज्जा - संथारगं पाणं संघट्टित्ता हत्थे अणणुण्णवेत्ता गच्छति, आसादणा सेहस्स । ३२. सेहे रातिणियस्स सेज्जा - संथारए चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवइ, आसादणा सेहस्स । ३३. सेहे रातिणियस्स उच्चासणंसि वा समासणंसि वा चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति, आसादणा सेहस्स । एताओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहि तेत्तीसं आसादणाओ पण्णत्ताओ -त्ति बेमि ॥ १. भुंजेमाणे (ता) । २. ऊसढं - ऊसढं रसितं - रसितं (स० ३३ | १ ) । ३. किती वत्ता ( अ, क ) ; किं वतित्ता ( ख ) । ४. वइत्ता ( ख ) । ५. पsिहणित्ता (ता) । ६. X ( क, ख, ग ) । ७. खेत्ता (ना) । ८. अच्छिदित्ता (ता, चू) । ६. X (स० ३३।१ ) । Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो दसा गणिसंपदा-पदं १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खातं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अट्ठविहा __गणिसंपदा पण्णत्ता॥ २. कयरा खलु (थेरेहि भगवंतेहिं ?) अट्ठविहा गणिसंपदा पण्णत्ता ? ३. इमा खल (थेरेहि भगवंतेहिं ?) अट्ठविहा गणिसंपदा पण्णत्ता, तं जधा-आयार संपदा सुतसंपदा सरीरसंपदा वयणसंपदा वायणासंपदा मतिसंपदा पओगसंपदा संगहपरिण्णा णामं अट्ठमा । ४. से कि तं आयारसंपदा ? आयारसंपदा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-संजमधव जोगजुत्ते यावि भवति, असंपग्गहियप्पा', अणियतवित्ती', वुड्डसीले' यावि भवति । से तं आयारसंपदा ॥ ५. से किं तं सुतसंपदा ? सुतसंपदा चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा-बहुसुते' यावि भवति, परिचितसुते यावि भवति, विचित्तसुते' यावि भवति, घोसविसुद्धिकारए यावि भवति । से तं सुतसंपदा ॥ ६. से कि तं सरीरसंपदा? सरीरसंपदा चउन्विहा पण्णत्ता.तं जहा-आरोहपरिणाह भवांत, अणोतप्पसरीरे, थिरसंघयण, बहुपडिपुण्णिदिए यावि भवति । से तं सरीरसंपदा ॥ ७. से किं तं वयणसंपदा ? वयणसंपदा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-आदिज्जवयणे यावि भवति, महुरवयणे यावि भवति, अणिस्सियवयणे यावि भवति, असंदिद्धभासी" १. असंगहियप्पा अ, क, ख)। ७. संपत्ते (क); आरोहपरिणाहसंपूर्णः (वृ)। २. अणिएतवत्ती (चूपा, वृपा)। ८. आदेयवयणे (ता)। ३. विसुद्धसीले (च); अपि ग्रहणाद् वुद्धसीलो तरुण- ६. अणिसिय" (अ, क)। सीलो इति चूणौं निर्दिष्टमस्ति । १०. फूडवयणे (अ, क, ख); असंदिद्धवयणे (ता); चूणों 'असंदिद्धभासी' इति पाठोस्ति । वृत्ती ४. सुत्ते (अ, क); बहुस्सुते (ता)। 'असंदिग्धवचनः स्फुटवाक्य इत्यर्थः' इति ५. सुत्ते (अ, क, ता, वृ)। व्याख्यातमस्ति । 'फुडवयणे' इति सरलः पाठः, ६. सुत्ते (अ, क, ख, ता, चू, वृ)। सम्भाव्यते उत्तरकाले प्रचलितो भवत् । ४३२ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थी दसा ४३३ यावि भवति । से तं वयणसंप्रदा॥ ८. से किं तं वायणासंपदा ? वायणासंपदा चउम्विहा पण्णत्ता, तं जहा-विजयं' उद्दिसति', विजयं वाएति, परिनिव्वावियं वाएति, अत्थनिज्जवए' यावि भवति । से तं वायणासंपदा ॥ ६. से किं तं मतिसंपदा ? मतिसंपदा चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा-ओग्गहमतिसंपदा, ईहामतिसंपदा, अवायमतिसंपदा, धारणामतिसंपदा॥ १०. से किं तं ओग्गहमती ? ओग्गहमती छविहा पण्णत्ता, तं जहा–खिप्पं ओगिण्हति, बहुं ओगिण्हति बहुविहं ओगिण्हति, धुवं ओगिण्हति, अणिस्सियं ओगिण्हति, असंदिद्धं ओगिण्हति । से तं ओग्गहमती । एवं ईहामती वि, एवं अवायमती वि ॥ ११. से किं तं धारणामती ? धारणामती छविहा पण्णत्ता, तं जहा-बहुं धरेति, बहु विधं धरेति, पोराणं धरेति, दुद्धरं धरेति, अणिस्सियं धरेति, असंदिद्धं धरेति । से तं धारणामती । से तं मतिसंपदा ॥ १२. से किं तं पओगसंपदा ? पओगसंपदा चउन्विधा पण्णत्ता, तं जहा-आतं विदाय 'वादं पउंजित्ता" भवति, परिसं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, खेत्तं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, वत्थु विदाय वादं पउंजित्ता भवति । से तं पओगसंपदा॥ १३. से किं तं संगहपरिण्णासंपदा ? संगहपरिण्णासंपदा चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा बहुजणपाओग्गताए वासावासासु खेत्तं पडिले हित्ता भवति, बहुजणपाओग्गताए पाडिहारियपीढफलगसेज्जासंथारयं ओगेण्हित्ता भवति । कालेणं कालं समाणइत्ता" भवति, अहागुरु संपूएत्ता भवति । से तं संगहपरिण्णासंपदा ॥ आयरियस्स निरिणत-पवं १४. आयरिओ अंतेवासिं इमाए चउन्विधाए विणयपडिवत्तीए विणएत्ता" निरिणत्तं गच्छति, तं जहा–आयारविणएणं, सुयविणएणं", विक्खेवणाविणएणं, दोसनिग्घा यणाविणएणं"। १५. से किं तं आयारविणए ? आयारविणए चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-संजमसामायारी ' यावि भवति, तवसामायारी यावि भवति, गणसामायारी यावि भवति, एगल्ल विहारसामायारी यावि भवति । से तं आयारविणए ॥ १. वितियं (ता)। ८. वायं (ता)। २. उद्देसति (क)। ६. परिण्णानामसंपदा (क, ख); संगहपइन्ना ३. विययं (ता)। (ता)। ४. परिणिव्ववियं (ता)। १०. समाणेत्ता (ता)। ५. ०निज्जावए (क्व)। ११. विणयित्ता (ता)। ६. अणिसियं (क)। १२. सुत० (ता)। ७. वातं पयुंजित्ता (ता)। १३. दोसविधायणताए (ता)। Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ दसामओ १६. से किं तं सुतविणए ? सुतविणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुतं वाएति, अत्थं ___वाएति, हियं वाएति, निस्सेसं वाएति । से तं सुतविणए॥ १७. से किं तं विक्खेवणाविणए ? विक्खेवणाविणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा अदि दिट्ठपुव्वगताए' विणएत्ता भवति, दिट्ठपुव्वगं साहम्मियत्ताए विणएत्ता भवति, चुयं' धम्माओ धम्मे ठावइत्ता' भवति, तस्सेव धम्मस्स हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए अणुगामियत्ताए अब्भुठेत्ता भवति । से तं विक्खेवणाविणए । १८. से किं तं दोसनिग्घायणाविणए ? दोसनिग्घायणाविणए चउविहे पण्णत्ते, तं जहा कुद्धस्स कोहं विणएत्ता भवति, दुट्ठस्स दोसं णिगिण्हित्ता भवति, कंखियस्स कंखं छिदित्ता भवति, आया सुप्पणिहिते यावि भवति । से तं दोसनिग्घायणाविणए । अंतेवासिस्स विणयपडिवत्ति-पदं १६. तस्सेवं गुणजातीयस्स अंतेवासिस्स इमा चउविवहा विणयपडिवत्ती भवति, तं जहा-उवगरणउप्पायणया, साहिल्लया, वण्णसंजलणता, भारपच्चोरुहणता ।। २०. से किं तं उवगरणउप्पायणया ? उवगरणउप्पायणया चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा अणप्पण्णाई उवगरणाइं उप्पाएत्ता भवति, पोराणाई उवगरणाइं सारक्खित्ता भवति संगोवित्ता भवति, परित्तं जाणित्ता पच्चुद्धरित्ता भवति, अहाविधि संविभइत्ता भवति । से तं उवगरणउप्पायणया ॥ २१. से किं तं साहिल्लया ? साहिल्लया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-अणलोमवइसहिते यावि भवति, अणुलोमकायकि रियता, पडिरूवकायसंफासणया, सव्वत्थेसु अपडि लोमया । से तं साहिल्लया ॥ २२. से किं तं वण्णसंजलणता ? वण्णसंजलणता चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-आहा तच्चाणं वण्णवाई भवति, अवण्णवाति पडिहणित्ता भवति, वण्णवाति अणवहइत्ता भवति, 'आया वुड्ढसेवी' यावि भवति । से तं वण्णसंजलणता॥ २३. से किं तं भारपच्चोरुहणता ? भारपच्चोरुहणता चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-असंग हियपरिजणं संगहित्ता भवति, सेहं आयारगोयरं गाहित्ता भवति, साहम्मियस्स गिलायमाणस्स अहाथामं वेयावच्चे अब्भुठेत्ता भवति, साहम्मियाणं अधिकरणंसि" १. अदि8 वाएति (अ, क, ख, ता, वृ); अदिट्ठ- ५. साहल्लता (ता)। धम्म (चू)। ६.रुभणता (ता)। २. गत्ताए (अ, ख, ता); दिट्ठधम्मताए (चू)। ७. आधा० (अ); अधा० (ख, ता)। ३. दिट्ठपुव्वगं सहेतुतं (अ, क, ख); चूणौ वृत्तौ ८. अवण्णवादि (ता) । च व्याख्यातः पाठः स्वीकृतोस्ति । अर्थसमी- ६. आयवुड्डो० (अ, क, ख)। क्षया स एवात्र संगतः प्रतीयते । आदर्शषु असौ १०. वेत्तावच्चे (अ, ता)। पाठभेद: कस्याश्चिभिन्नवाचनायाः दृश्यते। ११. अहिगरण सि (ता)। ४. ठावेत्ता (ता)। Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थी दसा ४३५ उप्पन्नंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सिए' अपक्खगाही मज्झत्थभावभूते सम्म ववहरमाणे तस्स अधिक रणस्स खामणविओसमणताए सया समियं अब्भठेत्ता भवति। कहं न साहम्मिया अप्पसद्दा अप्पझंझा अप्पकलहा अप्पतुमंतुमा संजमबहुला संवरबहुला समाहिबहुला अपमत्ता' संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणा णं एवं च णं विहरेज्जा? से तं भारपच्चोरुहणताएसा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अट्ठविहा गणिसंपदा पण्णत्ता। -त्ति बेमि॥ १. अणिस्सितोवस्सिए वासितो (अ); अणिसितोवस्सिए वसितो (क); अणिस्सितो- वस्सिए वसंतो (ख)। २. अप्पमत्ता (ता)। Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमा दसा णमो सुतदेवताए भगवतीए १. सुयं मे आउ ! तेणं भगवया एवमक्खायं -- इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस 'चित्तसमाहिठाणाई पण्णत्ताई" ॥ २. कतराई खलु ताई थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्तसमाहिद्वाणाई पण्णत्ताई ? ३. इमाई खलु (ताई ? ) थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्तसमाहिट्ठाणाई पण्णत्ताई, तं जहा४. तेणं' कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नगरे होत्था । एत्थ नगरवण्णओ भाणियव्वो' ॥ ५. तस्स णं वाणियग्गामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे दूतिपलास ए नामं चेइए होत्था | चेइयवण्णओ भाणियव्वो' ॥ ६. जितसत्तू राया । तस्स णं धारणी देवी । एवं सव्वं समोसरणं भाणितव्वं जाव' पुढवी सिलापट्टए, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया || ७. 'अज्जो ! इति" समणे भगवं महावीरे समणा' निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंत् एवं वयासी - इह खलु अज्जो ! निग्गंथाण" वा निग्गंथीण वा इरियासमिताणं भासासमिताणं एसणास मिताणं आयाणभंडमत्त निक्खेवणासमिताणं उच्चार १. ठाणा पण्णत्ता ( अ, ख ) । २. चूर्णिकारस्य मते प्रस्तुताध्ययनस्य प्रारम्भः 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' इति वाक्याज्जायते । आदर्शेषु वृत्तिकारस्याभिमते च प्रस्तुताध्ययनस्यादिवाक्यं णमो सुतदेवताए भगवतीए' एतदस्ति । एतस्यानन्तरं 'सुयं मे आउस ! ' इत्यादिवाक्यपद्धतिर्दृश्यते । ३. ओ० सू० १ । ४३६ ४. दिसाभागे ( अ, क ) । ५. ओ० सू० २-१३ । ६. ओ० सू० १४-८१ । ७. समोसरिओ (ता) । ८. अज्जोत्ति (ता) । ६. बहवे (ता) । १०. समणाण निग्गंथाण ( ता ) Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३७ पासवणखेलसिंघाणजल्ल पारिट्ठावणितासमिताणं मणसमिताणं वयसमिताणं कायसमिताणं मणगुत्ताणं' वयगुत्ताणं कायगुत्ताणं गुत्ताणं गुत्तिदियाणं गुत्तबंभयारीणं आयी आयहिताणं आयजोगीणं' आयपरक्कमाणं पक्खियपोस हि समाधिपत्ताणं झियायमाणाणं इमाई दस चित्तसमाहिट्ठाणाई असमुप्पन्नपुव्वाई समुप्पज्जिज्जा, तं जहा - १. धम्मचिता वा से असमुप्पन्नपुव्वा समुप्पज्जेज्जा सव्वं धम्मं जति । २. 'सणाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुपज्जेज्जा अहं सरामि" । ३. सुमिणदंसणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा अहातच्च सुमिणं पासित्तए' । ४. देवदंसणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा दिव्वं देवड्ढि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पात्तिए । ५. ओहिनाणे वा से असमुत्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा ओहिणा लोयं जाणित्तए । ६. ओहिदंसणे वा से असमुत्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा ओहिणा लोयं पात्तिए । ७. मणपज्जवनाणे वा से असमुत्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा अंतो मणुस्सखेत्ते अड्ढा तज्जे दीवस मुद्देसु सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगते भावे जाणितए । ८. केवलना वा से असमुत्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा 'केवलकप्पं लोयालोयं" जाणित्तए । ६. केवलदंसणे वा से असमुत्पन्नपुब्वै समुप्पज्जेज्जा ' केवलकप्पं लोयालोयं" पासित्तए । १०. 'केवलमरणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समप्पज्जेज्जा" सव्वदुक्खीणा' । पंचमा दसो १. ओयं चित्तं समादाय, झाणं समणुपस्सति । धम्मे ठिओ अविमणो, निव्वाणमभिगच्छइ ॥ २. ण इमं चित्तं समादाए", भुज्जो लोयंसि जायति । अप्पणो उत्तमं ठाणं, सण्णीनाणेण जाणइ ॥ १. मणुगुत्ताणं ( अ, ख ) । २. अतोग्रे चूण 'निगृहीतात्मानः' इत्यपि पाठो दृश्यते । ३. आयजोतीणं ( अ, ख ) । ४. सण्णिजाई सरणे वा से असमुप्पन्ने समुप्प - जेज्जा अहं सरामि अप्पणो पोराणियं जाई सुमरित्तए ( ख ) ; समुप्पज्जेज्जा पुव्वभवे सुमरित्तए (स० १०।२); द्वितीयतृतीयस्थानयोः समवायाङ्ग व्यत्ययो दृश्यते । ५. पात्तिए जाईसरणे वा से असमुप्पन्नपुब्वे समुप्पज्जेज्जा अप्पणो पोराणियं जाई सुमरितए ( अ, क,, ता, वृ) ; आदर्शेषु तृतीयस्थानादनन्तरं एतत् स्थानं लिखितमस्ति । वृत्तिकृतापि तत्रैव व्याख्यातमिदम्, किन्तु नैतद पेक्षितमिदम् । द्वितीयं स्थानं अस्यैवार्थस्य प्रतिपादकमस्ति । चूर्णिकृतापि नैतद् व्याख्यातम् । गद्यार्थप्रतिपादकेषु प्रस्तुताध्ययनस्य पद्येषु नैतद् दृश्यते । समवायाङ्गसूत्रे (स० १०।२) पि नैतद् दृश्यते । अस्य स्थानस्य स्वीकारे संख्यावृद्धिरपि जायते । 'ख' प्रतावपि नैतद् लिखितमस्ति । उक्तकारणैरिदं मूले न स्वीकृतम् । ६. केवलं लोगं (स० १०।२ ) । ७. केवलं लोयं (स० १० २ ) । ८. केवलिमरणं वा मरिज्जा (स० १०।२ ) । ६. पहाणाए (अ) । १०. समुप्परसति ( अ, क ); समुप्पज्जति ( ख ) । ११. समादाय (ख, ता ) । Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसायो ३. अहातच्चं 'तु सुविणं", खिप्पं पासइ संवुडे । __ सव्वं च ओहं तरती, दुक्खतो य विमुच्चइ ॥ ४. पंताई भयमाणस्स, विवित्तं सयणासणं । अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेंति तातिणो । ५. सव्वकामविरत्तस्स, खमतो भयभेरवं । तओ से तोधी भवति, संजतस्स तवस्सिणो । ६. तवसा अवहट्टलेसस्स', दंसणं परिसुज्झति । ___उड्ढमहेतिरियं च, सव्वं समणुपस्सति ॥ ७. सुसमाहडलेसस्स', अवितक्कस्स भिक्खुणो। ___ सव्वओ विप्पभुक्कस्स, आया जाणति पज्जवे ।। ८ जदा से णाणावरणं. सव्वं होति खयं गयं । ___ तदा लोगमलोगं च, जिणो जाणति केवली॥ ६. जदा से दंसणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं । तदा' लोगमलोगं च, जिणो पासइ केवली ॥ १०. पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिज्जे खयं गते । असेसं लोगमलोगं च, पासंति सुसमाहिया ॥ ११. जहा मत्थए" सूईए, हताए हम्मती तले । एवं कम्माणि हम्मंति, मोहणिज्जे खयं गते । १२. सेणावतिम्मि णिहते, जधा सेणा पणस्सती । एवं कम्मा पणस्संति, मोहणिज्जे खयं गते । १३. धूमहीणे जधा अग्गी, खीयती से निरिंधणे । एवं कम्माणि खीयंति, मोहणिज्जे खयं गते । १४. सुक्कमले जधा रुक्खे, सिच्चमाणे ण रोहति । एवं कम्मा न रोहंति, मोहणिज्जे खयं गते । १. सुमिणं (ता)। द्वयोर्वाचनयोः संमिश्रणं दृश्यते । चूर्णावपि २. दुखदो (अ, क, ख)। लेश्याचिषोर्द्वयोरपि पदयो व्याख्या दृश्यते । ३. पंताय (अ); पंताई (क, ख)। ७. सुसमाहितलेसस्स (अ, क, ख)। ४. विचित्तं (अ, चूपा, वृपा); विवत्तं (ख)। ८. ततो (ता)। ५. ओहिनाणं (ता); ओकारस्थाने तकारादेशः, ६. तओ (अ, क, ख); ततो (ता)। अवधिरित्यर्थः । १०. सुसमाहिते (अ, क, ख)। ६. अवहडुच्चस्स (अ); अवहडच्चस्स (ता); 'क' ११. मत्थय (अ, क, ख)। प्रतौ 'अवहटुलेसस्स अवहडुच्चस्स' इति १२. निरंधणे (ख)। Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमा दसा ४३६ १५. जधा दड्ढाण बीयाण, न जायंति पुणंकुरा । कम्मबीएसु दड्ढेसु, न जायंति भवंकुरा । १६. चिच्चा ओरालियं बोंदि, नामगोत्तं च केवली। आउयं वेयणिज्जं च, च्छित्ता' भवति नीरओ ॥ १७ एवं अभिसमागम्म, चित्तमादाय आउसो ! सेणिसोधिमुवागम्म, आतसोधिमुवेहइ ॥ -त्ति बेमि ॥ १. भवांकुरा (ख)। २. जदा (ता)। ३. चेच्चा (ता); चित्ता (चू) । ४. णीरदे (अ); णीरये (क, ख); नीरतो (चू)। ५. आता सोधिमुवागइ (अ, क); आया सोधि मुवागए (ख)। Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टा दसा १. सुयं से आउ ! तेणं भगवया एवमक्खातं - इह खलु थेरेहिं भगवंतेहि एक्कारस उवासगप डिमाओ पण्णत्ताओ ।। २. करा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहि एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ ? ३. इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा ૪૪૦ وا अरियावादी यावि भवति - नाहियवादी नाहियपणे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, णत्थि इहलोए णत्थि परलोए णत्थि माता णत्थि पिता णत्थि अरहंता णत्थि चक्कवट्टी णत्थि बलदेवा णत्थि वासुदेवा' णत्थि सुक्कडदुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, जो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति णो दुचिणा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, णो पच्चाति जीवा, त्रियादि । णत्थि सिद्धी । से एवंवादी एवंपण्णे एवंदिट्ठी एवंछंद रागमभिनिविट्ठे * यावि भवति । १. वासुदेवा नत्थि नरया नत्थि नेरइया ( अ, क, ख, ता); असौ पाठः प्रयुक्तादर्शेषु लिखितोस्ति, वृत्तौ च व्याख्यातोस्ति, तथापि अस्माभिरसौ पाठान्तरत्वेन स्वीकृतः । असौ चूण नास्ति व्याख्यातः तथा अस्मिन्नेवालापके 'नत्थि निरयादि ४' इति पाठो विद्यमानोस्ति, तथा च क्रियावादिप्रकरणे 'अत्थि वासुदेवा' इति पाठानन्तरं एतादृश: पाठो नास्ति । अस्य यदि मूले स्वीकारः स्यात् तदा द्विरुक्तता भवेत् तेनासौ पाठान्तरत्वेन स्वीकृतः । सेय भवति महिच्छे महारंभ महापरिग्गहे अहम्मिए अहम्माणुए अहम्मसेवी अहम्मिट्ठे अधम्मक्खाई अधम्मरागी' अधम्मपलोई अधम्मजीवी अधम्मपलज्जणे अधम्मसीलसमुदाचारे, अधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ, 'हण' 'छिंद' २. सुकड (ता) । ३. आदर्शषु 'निरयादि' इति पदानन्तरं 'ह्न' इति संकेतो वर्तते । असौ चतुः संख्या सूचकोस्ति । वृत्तिकृता लिखितम् — अत्र 'ह्व' शब्दोपादानात् नारकास्तिरश्चौ नरा देवाश्चत्वारो ग्राह्याः । ४. रागभिणिविट्ठे ( अ ) ; रागाभिणिविट्ठे (क); छंद रागमभिणिविट्ठे ( ख ) ; णिव्विट्ठे (ता); वृत्तौ ' एवं छंदरागे त्ति' लभ्यते । ५. X ( अ, चू) । ६. अधम्मरज्जणे (चू); अधम्मपजणे (वृपा) । Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठा दसा ४१ 'भिंद' वेकत्तए' 'लोहियपाणी पावो' चंडो रुद्दो खुद्दो साहस्सिओ" उक्कंचण-वंचणमाया-निअडी-'कवड-कूड"-साति-संपयोगबहुले दुस्सीले दुपरिचए दुरणुणेए दुव्वए" दुप्पडियानंदे निस्सीले निग्गणे निम्मेरे निपच्चक्खाणपोसहोववासे असाह सव्वाओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए, एवं" जाव" सव्वाओ कोहाओ सव्वाओ माणाओ सव्वाओ मायाओ सव्वाओ लोभाओ सव्वाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ, पेसुण्ण-परपरिवादाओ अरतिरति-मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ अपडिविरएर जावज्जीवाए, सव्वाओ ‘ण्हाणुम्मदणा-अब्भंगण-वण्णग'"विलेवण-सद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ सगड"-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीया-संदमाणिय-सयणासणजाण-वाहण-भोयण'"-पवित्थरविधीओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ आस-हत्थि-गो-महिस-गवेलय-दासी-दास-कम्मकरपोरुसाओ अपडिविरए जावज्जीवाए. सव्वाओ कय-विक्कय-मासद्धमास-रूवगसंववहाराओ अपडिविरए जावज्जी वाए, हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धन्न-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ कूडतुल-कूडमाणाओ अपडिविरए जावज्जीवाए", सव्वाओ १. वेअंतका (अ); वेअंतए (चू)। वृत्तौ च 'कसायदंडकट्ठ' एतावान् पाठो नास्ति २. ४ (अ, क, ख); वज्झो (चू)। व्याख्यातः । सूत्राकृतांगे (२।२।५८) पि एता३. पावे चंडे रुद्दे खुद्दे असमिक्खियकारी लोहित- दृशे आलापके न दृश्यतेऽसौ पाठः । उक्ता__ पाणी साहसिए (ता)। दर्शेषु 'अब्भंगण वण्णग' एते पदे न दृश्येते; ४. कूड (अ, क, ख); कवड (ता); कूडकवड चूणौं वृत्तौ च एते व्याख्याते स्तः । सूत्रकृतांगे (सू० २।२।५८) । 'अब्भंगण' पदं न दृश्यते । 'ता' प्रतौ 'कषाय' ५. सातिसय (चू)। पदं विद्यते-हाणमद्दणअब्भंगणवण्णगकषाय । ६. दचरिया (अ); दुप्परिच्चया दुचरिया (क); १४. 'सगड' पदादारभ्य 'कुडमाणाओ' इति पर्यन्त दुप्परिच्चया दुच्चरिया (ख)। पाठश्चूणों नास्ति व्याख्यातः । ७. दुव्वदा (अ, क, ख)। १५. जुग (अ, ख)। ८. प्रयुक्तादर्शषु 'चंडा' इत्यादीनि 'दुप्पडियानंदा' १६. संदमाणिया (ख); X (ता)। इत्यन्तानि पदानि बहवचनान्तानि दृश्यन्ते । १७. भोगभोयण (सू० २।२।५८)। वत्तौ चणौं च तानि एकवचनान्तानि १८. जावज्जीवाए असमिक्खियकारी (अ, क, व्याख्यातानि । ख); चूणौ वृत्तौ च नास्ति । व्याख्यातोऽसौ ६. 'निस्सीले' इत्यारभ्य ‘असाहू' इत्यन्ताः शब्दाः पाठस्तथा 'साहस्सिओ' इति पदस्य असमीचूणौं न व्याख्याताः। क्षितकारी इत्यर्थश्चूणौं वृत्ती च लभ्यते, तेन १०. अत्र 'ता' प्रतौ संक्षिप्तपाठो विद्यते-एवं जाव प्रयुक्तादर्शषु विद्यमानोपि पाठान्तरत्वेन स्वीमिच्छादसणसल्लाओ। कृतः । ११. सू० २।२।५८ । १६. ४ (अ, ख)। १२. अप्पडिविरते (ता) सर्वत्र । २०. मुत्तिका (ता)। १३. कसायदंडकट्ठण्हाणमद्दण (अ, क, ख); चूणौं २१. ४ (अ, क, ख)। पा. Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ आरंभ-समारंभाओ अपडिविरए जावज्जीवाए', सव्वाओ करण-कारावणाओ' अप डिविरए जावज्जीवाए', सव्वाओ पयण पावणाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण'- तज्जण- तालण-वह-बंध परिकिलेसाओ अपडिविरए जावज्जीवाए, जेयावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोधिआ कम्मंता" परपाण परितावणकडा कज्जंति ( ततो वि अ णं अपडिविरए जावज्जीवाऍ, ) से जहानामए केइ पुरिसे कल - मसूर तिल - मुग्ग-मास-निप्फाव - कुलत्थ- 'आलिसंदगसण-पलिमंथ एमादिएहि" अयते कूरे 'मिच्छादंडं पउंजई", एवामेव तह पगारे पुरिसज्जाते तित्तिर- वट्टा" लावय-कपोत- कपिंजल मिय-महिस- वराह-गाह-गोधकुम्भ - सिसवा दिएहिं " अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजइ" । जाविय से बाहिरिया परिसा भवति, तं जहा - दासेति वा पेसेति वा भतएति" वा भाइल्लेति" वा कम्मारएति" वा भोगपुरिसेति वा, तेसिपि य णं अण्णय रगंसि अहालघुयं सि" अवराधंसि" सयमेव गरुयं दंडं वत्तेति," तं जहा - इमं दंडे, इमं मुंडेह, इमं वज्केह इमं तालेह, इमं अंदुबंधणं" करेह, इमं नियलबंधणं करेह, इम हडिबंधणं करेह, इमं चारगबंधणं करेह, इमं नियलजुयल - संकोडियमोडितं करेह, इमं हत्थच्छिन्नं करेह, इमं पायच्छिन्नं करेह, इमं कन्नच्छिन्नं करेह, इमं नक्कच्छिन्नं करेह, इमं ओटुच्छिन्नं करेह, इमं सीसच्छिन्नं करेह, इमं मुखच्छिन्नं करेह, 'इमं मज्झच्छिन्नं करेह” इमं वेयच्छिन्नं करेह, इमं हियउप्पाडियं करेह, एवं tयण - दसण-वसण" - जिन्भुप्पाडियं करेह, इमं ओलंबितं करेह, 'इमं उल्लंबितं १. x ( अ, क ख ) । २. करावणओ ( ख ) । ३, ४. x ( अ, क, ख ) । ५. पिट्टणातो ( अ, क ) ; पिट्टणतो ( ता ) । ६. बंध वध ( अ, क ) ; वध बंधण ( ख ) । ७. कम्ता कज्जंति ( अ, क, ख ) । ८. कोष्ठकान्तर्वर्ती पाठश्चूर्णो नास्ति व्याख्यातः 1 वृत्तावस्ति व्याख्यातः, आदर्शेषु च दृश्यते । द्रष्टव्यं अंगसुत्ताणि भाग १, पृष्ठ ३६०, पादटिप्पण १६ । ६. आलिसंदजवएवमादीहिं ( अ, क, ख); आलिसिदसईणा पलिमित्था एवमातीहि (ता); आलिसिदगतीण० (चू); अतोग्रे चूर्णिकृता एतदुल्लिखितम् - एते लुतो वा मलंतो वा पीसंतो वा मुसलेणं वा उक्खले खंडितो रंधेंतो वाण तेसु दयं करेति' । दसाओ १०. मिच्छादंसणं युंजति (ता) । ११. वट्टग ( ख ) । १२. सिरीसिवेसु (ता) | १३. पतंजति (ता) । १४. 'ता' प्रती अतः 'भोगपुरिसेति' पर्यन्तं सर्वेषु पदेषु 'इति' पदं नैव विद्यते । १५. भत्तएति ( अ, क, ख ) ; भत्तए ( ता ) । १६. भाइल्लए (ता) । १७. कम्मकार एति ( क ) ; कम्माकरए ( ता ) । १८. लघुससि ( अ, ख ) । १९. अवरद्धंसि ( ख ) । २०. पयुंजति (ता) | २१. इंदुबंधणं ( अ ) ; (ख) अंदुयबंधणं ( सू० २/२/५८ ) । २२ X ( अ, क, ख, ता) । २३. वयण ( अ, क, ख ) । अदुबंधणं ( क ) ; दुबंधणं Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टा दसा करेह", इमं घंसिययं करेह, इमं घोलितयं करेह, इमं सूलाइतयं' करेह, इमं सूलाभिन्नं करेह, इमं खारवत्तियं करेह, इमं दब्भवत्तियं करेह, इमं सीहपुच्छितयं" करेह, इमं वसभपुच्छितयं करेह, इमं कडग्गिदड्ढयं करेह, इमं काकिणिमंसखाविततं करेह, इमं भत्तपाणनिरुद्धयं करेह, इमं जावज्जीवबंधणं करेह, इमं अण्णतरेणं असुभेणं कुमारेणं मारेह । जावि य से अभितरिया परिसा भवति, तं जहा—'माताति वा पिताति वा भायाति वा भगिणिति वा भज्जाति वा धूयाति वा सुण्हाति वा", तेसि पि य णं अण्णयरंसि अहालहुसगंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं डंडं वत्तेति, तं जहा-'सीतोदगंसि कायं ओबोलित्ता" भवति, 'उसिणोदगवियडेण कायं ओसिंचित्ता भवति, अगणिकाएणं कायं ओड हित्ता" भवति, जोत्तेण वा वेत्तेण वा" नेत्तेण वा कसेण वा छिवाए५ वा लताए वा पासाइं उद्दालित्ता भवति, डंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा कायं आओडेत्ता भवति । तहप्पगारे पुरिसज्जाते संवसमाणे दुमणा भवंति, तहप्पगारे पुरिसज्जाते विप्पवसमाणे सुमणा“ भवंति, तहप्पगारे पुरिसज्जाते दंडमासी दंडगरुए दंडपुरक्खडे अहिते अस्सि लोयंसि, अहिते परंसि लोयं सि । १.४ (अ, क, ख)। अस्य स्थाने 'त्वचा वा' इति लभ्यते । अनेन २. पंसितयं (ता)। ज्ञायते वृत्तिकारस्य सम्मुखे 'कसेण वा तया ३. सूलाकायतयं (अ, क, ख)। वा' इति पाठः आसीत् । सूत्रकृताङ्ग ४. सूलीभिण्णं (ख); सूलभिन्नयं (ता)। (२।२।५८) 'तया वा कसेण वा' इति पाठो ५. क्षारक्षतिकं (वृ)। दृश्यते । चूणौं 'छिवत्ति सण्हतो कसो' इति ६. बंभवत्तियं (चू); चूर्णिकृता अस्य व्याख्या व्याख्यातम् । अत्र 'छिवा' पदं गृहीतम् । सूत्रएवं कृतास्ति-बंभा अपि कप्पिज्जंति पार- कृताङ्ग (२।२।५८) 'छियाए वा' तथा दारिया । वज्झपत्तियं (सू० २।२।५८); विपाकश्रुते (१।६।१६) 'छियाण वा' इति वझवत्तिया (ओ० सू०६०)। पाठो लभ्यते । 'छिया छिवा' द्वे अपि पदे ७. सीध० (अ, क)। एकार्थके स्तः । ८. दवग्गि० (ख)। १६. आउडेब्भाते दुक्खंति ते सोत्ता (ता); ६. माता वा पिता वा भाया वा भगिणी वा आउट्टित्ता (सू० २।२।५८)। भज्जा वा पुत्ता वा धूया वा सुण्हा वा (ता)। १७. दुहया (ता)। १०. सीओदगवियहंसि (ता)। १८. सुहया (ता)। ११. तोबोलित्ता (अ, क, ख)। १६. दंडपासी (ख, सू० २।२।५८)। १२. कायंसि (ख); उसुणोदगवियडेणं (ता)। २०. डंडपुरेक्खडे (चू)। १३. उवडहित्ता (ख)। २१. पारंसि (क)। १४. वा खग्गेण वा (ता)। २२. अतोग्रे चूणौं 'संजलणे कोहणे पिट्टिमंसिते' १५. छिवाडीए (अ, क, ख); प्रयुक्तादर्शेषु 'छिवा- एतानि त्रीणि पदानि व्याख्यातानि दृश्यन्ते । डीए' पाठो लभ्यते । वृत्तौ नासौ व्याख्यातः । Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसायो 'से दुक्खेति से सोयति एवं जुरेति तिप्पेति पिट्टेति परितप्पति । से' दुक्खण-सोयण जूरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंध-परिकिलेसाओ 'अप्पडिविरते भवति । ४. एवामेव से इत्थिकामभोगेहिं 'मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने" जाव वासाई चउपंचमाई छ।समाणि वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं भुंजित्ता भोगभोगाई, पसवित्ता वेरायतणाइं, संचिणित्ता 'बहूई कूराइं" कम्माइं ओसन्न संभारकडेण कम्मुणासे जहानामए अयगोलेति वा सेलगोलेति वा उदयंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमतिवतित्ता अहे धरणितलपतिवाणे भवति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसज्जाते वज्जबहुले धुतबहुले पंकबहुले वेरबहुले ‘दंभ-निय डि-साइबहुले अयसबहुले अप्पत्तियबहुले उस्सण्णं तसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमतिवतित्ता५ अहे णरगतलपतिट्ठाणे भवति ।। ५. ते णं नरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिया निच्चंधकार तमसा ववगय-गह-चंद-सूर-नक्खत्त-जोइसपहा मेद -वसा-मंस-रुहिर-पूयपडलचिक्खिल्ल लित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्धिगंधा काउ'-अगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा। असुभा नरयस्स वेदणाओ। नो चेव णं नरएसु नरइया निदायोत वा 'पयलायति वा सुति वा ति वा धिति वा मति वा उवलभंति । ते णं तत्थ उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं चंडं 'रुक्खं दुग्गं तिव्वं दुरहियासं नरएसु नेरइया निरयवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ ६. से जहानामए रुक्खे सिया पव्वतग्गे जाते मूलच्छिन्ने अग्गे गुरुए जतो निन्नं 'जतो दुग्गं जतो विसमं ततो पवडति, एवामेव तहप्पगारे परिसज्जाते गब्भातो गभं जम्मातो जम्मं मारातो मार दुक्खातो दुक्खं दाहिणगामिए नेरइए किण्हपक्खिते ५ १. ते दुक्खेंति ते सोयंति जूरंति तिप्पंति परि- १४. अप्पत्तियदंभानियडिआसादणबहुले अयसवबहुले तप्पेंति (ता)। (ता)। २. अप्पडिविरया यावि भवंति (ता)। १५. पुढवितल० (ता)। ३. ते (ता)। १६. जोइसियपहा (क) । ४. मुच्छिया गिद्धा गढिता अज्झोववणा (ता)।। १७. मेत (अ)। ५,६. ४ (ता)। १८. विस्सा (ता); वीभच्छा (वृपा) । ७. भुंजित्तु (ता)। १६ काउण (अ); काउय (क, चू); काऊ (ख); ८. पावाइं (अ, क, ख); बहूणि पावाइं (ता)। __कण्ह (सू० २।२।६०)। ६. उस्सण्णाइं (सू० २।२१५६) । २०. x (ता)। १०. सिलोगोलेति (ता); सिला० (चू, वृ)। २१. तिव्वं दुक्खं दुगंधं दुरधियासं (ता)। ११. उदगतलंसि (ता)। २२. वेदणं (ता)। १२. धुण्णबहुले (अ, ख); धूय० (सू० २।२१५६)। २३. जतो विसमं जतो दुग्ग (ता)। १३. सायबहुले (अ, क, ख); आसायणाबहले २४. णरगातो णरगं (ता)। (वृपा) । २५. कण्हे पक्खिए (ता)। Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ट्ठा दसा आगमेस्साणं दुल्लभबोधिते यावि भवति । ७. किरियावादी' यावि भवति, तं जहा-आहियवादी आहियपण्णे आहियदिट्ठी सम्मावादी नीयावादी' संतिपरलोगवादी अत्थि इहलोगे अत्थि परलोगे अत्थि माता अत्थि पिता अत्थि अरहंता अत्थि चक्कवट्टी अत्थि बलदेवा अत्थि वासुदेवा 'अत्थि सुकडदुक्कडाणं फल वित्तिविसेसे'', सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति दूचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, सफले कल्लाणपावए, पच्चायंति जीवा, अत्थि 'निरयादि ह अत्थि" सिद्धी । से एवंवादी एवंपण्णे एवंदिट्टीच्छंद रागमभिनिविट्ठे आवि भवति । से य भवति महिच्छे जाव' उत्तरगामिए नेरइए सुक्का, क्खिते आगमेस्साणं सुलभबोधिते यावि भवति" । ८. सव्वधम्मरुई यावि भवति । तस्स णं बहूई सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासाई नो सम्म पट्रविताइ" भवति । ‘एवं दसणसावगोत्ति'१५ पढमा उवासगपडिमा ॥ ६. अहावरा दोच्चा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरुई यावि भवति । तस्स णं बहूई सील व्वय-गण-वेरमण-६च्चक्खाण-पोसहोववासाई सम्म पट्टविताई भवति । से ण सामा इयं देसावकासियं नो सम्म अणुपालित्ता" भवति । दोच्चा उवासगपडिमा । १०. अहावरा तच्चा" उवासगपडिमा-सव्वधम्मरुई यावि भवति । तस्स णं बहूई सील व्वय-गण-वेरमण-पच्चवखाण-पोसहोववासाई सम्म पट्टविताई भवंति । से णं सामाइयं देसावगासिय सम्म अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसट्ठम हिट्ठपुण्णमासिणीसू" पडिपुण्णं पोसहोववासं२२ नो सम्म अणपालित्ता भवति । तच्चा उवा सगपडिमा । ११. अहावरा चउत्था उवासगप डिमा-सव्वधम्मरुई यावि भवति । तस्स णं बहूई १. भवति सेतं अकिरियावादी भवति (अ, क, १०. सुलभबोधि (अ, क, ख)। ख) चूणौं वृत्तौ च नैष पाठो दृश्यते, नावश्य- ११. भवति सेतं किरियावादी (अ, क, ख, ता)। कोपि प्रतीयते, तेन नासौ मूले स्वीकृतः । १२. सच्चधम्मरुची (वृ); सव्वधम्मरुई (वृपा)। २. से किं तं किरियावादी (अ, क, ख); सेतं १३. गुणव्वय (अ, ख)। किरियावादी (वृ)। १४. पट्टवितपुव्वाइं (अ, क, ख)। ३. नितियावादी (ता)। १५. X (क, ख, ता); सण (चू)। ४. 'ता' प्रतौ अतः 'वासुदेवा' पदपर्यन्तं संक्षिप्त- १६. अधावरा (अ, क, ता) । पाठो विद्यते-इहलोए जाव अस्थि वासुदेवा। १७. गुणव्वय (अ, क, ख)। ५. ४ (ता)। १८. काएण अणुपालित्ता (चू)। ६. द्रष्टव्यं तृतीयसूत्रस्य नृतीयपादटिप्पणम् । १६. तिया (अ)। ७. नेरइया देवा (अ, क, ख)। २०. x (ता)। ८. मतिनिविट्ठे (अ, क, ता)। २१. चाउद्दसट्टमिउद्दिट्ट० (अ, क, ख)। ६. दसा० ६॥३-६ । २२. पोसहं (ता)। Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ दसाओ सील-व्वय'-गण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्म° पट्टविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्म अणपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसट्रीमट्रिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं° सम्म अणुपालिता भवति । से णं एगराइयं उवासगपडिमं णो सम्म अणुपालेत्ता भवति । चउत्था उवासगपडिमा ॥ १२. अहावरा पंचमा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरुई यावि भवति । तस्स णं बहुई सील' •व्वय-गण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं० सम्म पटविताई भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्म अणपालित्ता भवति । से णं चाउद्दस 'ट्रमद्दिटुपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्म अणुपालित्ता भवति । से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्म अणुपालेत्ता भवति । से णं असिणाणए" वियडभोई मउलिकडे दिया बंभचारी रत्ति परिमाणकडे । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाह वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं पंचमासे विहरेज्जा । पंचमा उवासगपडिमा ॥ १३. अहावरा छट्ठा उवासगपडिमा-सव्वधम्म' 'रुई यावि भवति । तस्स णं बहई सील व्वय-गण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति । से णं सामाइयं देसावगासियं सम्म अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्म अणुपालित्ता भवति । से णं एगराइयं 'उवासगपडिम सम्म अणपालेत्ता" भवति । से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं" बंभचारी। सचित्ताहारे" से अपरिण्णाते" भवति । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे विहरेज्जा। छटा उवासगपडिमा॥ १४. अहावरा सत्तमा उवासगपडिमा से सव्वधम्म" •रुई यावि भवति । तस्स णं बहूई १. सं० पा०-सीलव्वय जाव पट्टविताई। तद्यथा-अहासुत्ता अहाकप्पा अहामग्गा अहा२. सं० पा०-चाउद्दसट्ठ जाव अणुपालेत्ता। तच्चा सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेद ३. सं० पा०-सील जाव सम्मं । तीरेइ पूरेइ किट्टेइ अणुपालेइ आणाए आरा४. पडिलेहियाई (अ, क, ख) । हेइ। एकस्मिन् वृत्त्यादर्श 'क्वचित् पाठः ५. सं० पा०-सामाइयं तहेव । अहासुत्ते जाव आराहिता' इत्येव पाठभेदो ६. सं० पा०-चाउद्दसि तहेव । लिखितोस्ति । प्रयुक्तादर्शषु असौ पाठभेदो ७. अण्हाणए (चू)। नोपलभ्यते। ८. अतोने चूणों अन्योपि पाठो व्याख्यातोस्ति- .सं. पा०-सव्वधम्म जाव से । एवं खलु एसा पंचमा उवासगपडिमा अहासूत्ता १०. उवासगपडिममणपालेत्ता (अ. क. ख)। अहाकप्पा अहातच्चा अहामग्गा सम्मं काएणं ११. दिया वा राओ वा (अ, क, ख)। फासिता पालिता सोभिता तीरिता किट्टिता १२. सच्चित्ताहारे (ता) अग्रेपि । आराहिता आणाए अणुपालिता भवति । वृत्तौ १३. परिणाते न (अ, क, ख)। असौ पाठः पाठान्तरत्वेन स्वीकृतोस्ति, चूर्णिगत- १४. सं० पा०-सव्वधम्म जाव रातोवरातं । पाठात् तत्र किञ्चित् पाठभेदोपि दश्यते, Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૪૭ सील-व्य-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोस होववासाई सम्मं पट्ठविताइं भवति । सेणं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणी पडणं पोसहोववासं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अणुपालेत्ता भवति । से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरात बंभचारी । सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से अपरिण्णाते भवति । से णं एतारुवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं सत्तमा से विहरेज्जा | सत्तमा उवासगपडिमा || छट्ठा दसा १५. अहावरा अट्ठमा उवासगपडिमा - सव्वधम्मरुई यावि भवति' । ' तस्स णं बहूई सील - व्वय-गुण- वेरमण-पच्चवखाण-पोस होववासाई सम्मं पट्ठविताई भवंति । सेणं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसमुद्दिपुणमासणी पडण्णं पोसहोववासं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से गं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अणुपालेत्ता भवति । से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरात बंभचारी । सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभ से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से अपरिण्णाते भवति । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहणेणं' गाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं अट्ठमासे विहरेज्जा । अट्ठमा उवास - पडिमा || १६. अहावरा नवमा उवासगप डिमा' - 'सव्वधम्मरुई यावि भवति । तस्स णं बहूई सील - व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोस होववासाई सम्मं पट्ठविताई भवंति । सेणं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुणं पोसहोववासं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं एगराइयं उवासगडिमं सम्मं अणुपात्ता भवति । से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी । सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे परिण्णाते भवति, पेस्सारंभ से परिण्णाते भवति, उद्दिट्टभत्ते से अपरिण्णाते भवति । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहणेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं नवमासे विहरेज्जा | नवमा उवासगपडिमा || १७. अहावरा दसमा उवासगपडिमा – सव्वधम्मरुई यावि भवति । तस्स णं बहूई सील - व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाणं-पोसहोववासाई सम्मं पट्ठविताई भवंति । सामाइयं देसावगासियं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसमुद्दिट्ठ पुण्णमासिणी पडणं पोसहोववासं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं एगराइयं उवासग डिमं सम्म अणुपात्ता भवति । से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरात बंभचारी । सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परिण्णाते भवति, उद्दिट्टभत्ते से परिण्णा ते भवति । से णं खुरमुंड वा १. सं० पा० भवति जाव रातोवरातं । २. जाव ( अ, क, ख ) । O ३. सं० पा०—उवासगपडिमा जाद आरंभे । ४. सं० पा० - भवति उद्दिट्टभत्ते । Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४५ दसामो छिधलिधारए' वा । तस्स णं आभट्ठस्स समाभट्ठस्स' कप्पंति दुवे भासाओ भासित्तए, तं जहा-जाणं वा जाणं, अजाणं वा नोजाणं । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं दसमासे विहरेज्जा। दसमा उवासगपडिमा । १८. अहावरा एक्कारसमा उवासगप डिमा-सव्वधम्म' •रुई यावि भवति। तस्स णं बहूई सील-वय-गण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्टविताई भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्म अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसमद्दिष्ट पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्म अणुपालित्ता भवति । से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्म अणुपालेत्ता भवति । से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी । सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परिण्णाते भवति', उद्दिट्ठभत्ते से परिण्णाते भवति । से णं खुरमुंडए वा लुत्तसिरए वा गहितायारभंडगनेवत्थे 'जे इमे' समणाणं निग्गंथाणं धम्मो तं सम्म काएण फासेमाणे पालेमाणे पुरतो जुगमायाए" पेहमाणे दळूण तसे पाणे उद्धट्ट' पायं रीएज्जा, ‘साहट्ट पायं रीएज्जा", 'वितिरिच्छं वा पायं कट्ट रीएज्जा", सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा, केवलं 'से णातए १२ पेज्जबंधणे अव्बोच्छिन्ने भवति । एवं से कप्पति नायवीथिं एत्तए । 'तत्थ से'' पुवागमणेणं पुवाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलंगसूवे", कप्पति से चाउलोदणे पडिगाहित्तए नो से व पति भिलंगसूवे ५ डिगाहित्तए । 'जेसे तत्थ पुव्वागमणेणं पुवाउत्ते भिलंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पति से भिलंगसूवे पडिगा हित्तए नो से कप्पति चाउलोदणे पडिगाहित्तए। 'तत्थ से'१७ 'पुवागमणेणं दोवि पुवाउत्ताई कप्पंति से दोवि पडिगाहित्तए । तत्थ से पच्छागमणेणं दोवि पच्छाउत्ताई णो से कप्पंति दोवि पडिगाहित्तए । जेसे तत्थ पुव्वागमणेणं पुवाउत्ते से कप्पति पडिग्गाहित्तए, जेसे तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते सेसे नो कप्पति पडिग्गाहित्तए। तस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स कप्पति एवं वदित्तए-सम१. छिधत्सिधारए (अ, ख); धिहाधारए (क); ६. वायं (ता)। छिहली (चू)। १०. ४ (अ, क)। २. समाभट्ठस्स वा (ख); समाभट्ठस्स वा ११. X (ता)। समाणस्स (ता)। १२. से णायए (ता); सण्णायगे (चू); णायए ३. सं० पा०--मव्वधम्म जाव उद्दिभत्ते । ४. लोइयसिरओ (ता)। १३. वित्तए (अ, क, ख)। ५. जारिसे (ख, ता, वृ)। १४. एत्थ णं तस्स (ता)। ६. ४ (ता)। १५. भिलिंगसूवे (अ, क)। ७. जुगमादाय (ता)। १६. तत्थ णं तस्स (ता)। 5. उद्धठ्ठ (क, ख, ता)। १७. तत्थ णं तस्स (ता) अग्रेपि । Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ छट्ठा दसा णोवासगस्स पडिमाप डिवन्नस्स भिक्खं दलयह' । तं एतारूवेणं' विहारेणं विहरमाणं के इ' पासित्ता वदिज्जा–केइ आउसो ! तुमंसि वत्तव्वं सिया। समणोवासए पडिमाप डिवन्नए" अहमंसीति वत्तव्वं सिया। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं एकारस मासे विहरेज्जा । एक्कारसमा उवासगपडिमा। एयाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ॥ –त्ति बेमि। १. दलाह (ता)। २. वेतारूवेणं (ता)। ३. के (ता)। ४. तुमं (म, क, ख)। ५. पडिमापडिवज्जित्तए (अ, क, ख)। ६. अत्रापि पंचमप्रतिमाधिकारोक्तानि पदानि 'सम्मं काएण फासेति' इत्यादीनि द्रष्टव्यानि Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमादसा १. सुतं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खातं--इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खु पडिमाओ पण्णत्ताओ॥ २. कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ ? ३. इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा मासिया भिक्खुपडिमा', दोमासिया भिक्खुपडिमा, तेमासिया भिक्खुपडिमा, चउमासिया भिक्खुपडिमा, पंचमासिया भिक्खुपडिमा, छम्मासिया भिक्खुपडिमा, सत्तमासिया भिक्खुपडिमा, पढमा सत्तरातिदिया भिक्खुपडिमा, दोच्चा सत्तरातिदिया भिक्खुपडिमा, तच्चा सत्तरातिदिया भिक्खुपडिमा, अहोरातिदिया भिक्खु पडिमा, एगराइया भिक्खुपडिमा ॥ ४. मासियण्णं भिक्खपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्चं वोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जति', तं जहा-दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उत्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति ॥ ५. मासियण्णं भिक्खुपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स' अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जू हित्ता बहवे दुपय-चउप्पयसमण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुग्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए', नो अंतो एलयस्स दोवि पाए साहट्ट दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स दोवि पाए साहटु दलमाणीए, एगं पादं अंतो किच्चा एगं पादं बाहिं १. 'ता' प्रती अतः संक्षिप्तपाठो विद्यते-भिक्खु- ५. उप्पज्जंति (ता)। पडिमा जाव सत्तराति दिया । ६. पाणस्स (अ, ख, ता)। २. चियत्तं०(अ, क, ख); चियत्ते देहे (ता); ७. अण्णायउंछ (क)। चियत्तचत्तदेहे (वृ)। ८. पडिगाहेत्तए (ता)। ३. जइ (चू)। ६. पज्जमाणीए (अ), पेज्जमाणीए (क, ख)। ४. के (ता)। १०. साह? (ता) अग्रेपि । Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमा दसा ४५१ किच्चा एलु यं विक्खंभइत्ता एवं दलयति' एवं से कप्पति पडिग्गाहेत्तए, एवं 'नो दलयति एवं नो से', कप्पति पडिग्गाहेत्तए॥ ६ मासियण्णं' भिक्खपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स तओ गोयरकाला पण्णत्ता, तं जहा-आदि मज्झे चरिमे । आदि चरति, नो मज्झे चरति नो चरिमे चरति । मझे चरति, नो आदि' चरति नो चरिमं चरति । चरिमं चरति, नो आदि चरति नो मझे चरति ॥ ७. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स छविधा गोयरचरिया पण्णत्ता, __ तं जहा-पेला, अद्धपेला, गोमुत्तिया, पयंगवी हिया, संवुक्कावट्टा, गंतुंपच्चागता ।। ८. मासियण्णं भिक्खपडिम पडिवनस्स अणगारस्स जत्थ णं केइ जाणइ 'गामंसि वा जाव मडंबंसि वा" कप्पति से 'तत्थ एगरायं" वत्थए," जत्थ णं केइ न जाणइ२ कप्पति से तत्थ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए," नो से कप्पति एगरायातो वा दुरायातो वा परं वत्थए, जे तत्थ एगरायातो वा दुरायातो वा परं वसति से संतरा छेदे वा परिहारे वा ॥ ६. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पंति चत्तारि भासाओ भासि त्तए, तं जहा-'जायणी पुच्छणी अणुण्णमणी'" पुट्ठस्स वागरणी" ॥ १०. मासियण्णं भिक्खपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया पडिलेहि त्तए, तं जहा--'अहेआरामगिहंसि वा, अहेवियडगिहंसि" वा अहेरुक्खमूलगिहंसि वा ११. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया अणुण्ण वेत्तए, तं जहा-अहेआरामगिहंसि वा अहेवियडगिहंसि वा अहेरुक्खमूलगिर्हसि वा॥ १२. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया उवाइणि१. दलाति (ता)। तस्मिन् यावत् करणाव नकरादिपदकदंबक: २. से णो दलादि एवं णो (ता)। सर्वत्र योज्यम् । ३. मासियणं (क, ख) प्रायः सर्वत्र । १०. तत्थेगराइयं (अ, क); तत्थेगराइं (ख); ४. एवं चरेज्जा आदि (अ, ख)। तत्थ एगराति (ता)। ५. चरेज्जा (अ, क, ख) सर्वत्र । ११. वसित्तए (अ, क, ख) । ६. आयं (अ, ख)। १२. याणइ (ता)। ७. अद्धवेला (ता)। १३. वसित्तए (ख)। ८. विधिया (अ, ख)। १४. पुच्छणी जाणणी अण्णण्णवणी (ता)। ६. x (अ, क, ख); वृत्तौ गामंसि वा इत्यादि- १५. वाकरणी (अ, क, ख)। पदानां संकेतो लभ्यते-क्वेत्याह गामंसि वा १६. अधे० (क, ख)। ग्रसति बुद्धयादीन् गुणानिति यदि वा गम्य: १७. अधियागमणगिहं वा अधिरुक्खमूलं वा (ता)। शास्त्रप्रसिदानामष्टावशाना कराणामिति Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ दसाओ तए, "तं जहा-अहेआरामगिहंसि वा अहेवियडगिहंसि वा अहेरुक्खमूलगिहंसि वा॥ १३. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा पडिलेहित्तए, तं जहा–पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव ॥ १४. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा अणु ण्ण वेत्तए, 'तं जहा-पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव ॥ १५. मासियण्णं भिक्खपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा उवाइणि त्तए, "तं जहा---पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव ।। १६. मासियण्णं भिक्खपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स इत्थी उवस्सयं हव्वमागच्छेज्जा, सइथिए व पुरिसे, नो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ १७. मासियण्णं भिक्खुपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स केइ उवस्सयं अगणिकाएण झामेज्जा णो से कप्पति तं पडूच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। 'तत्थ णं केइ बाहाए गहाय आगसेज्जा नो से कप्पति तं अवलंबित्तए वा, पच्चवलंबित्तए वा, कप्पति से अहारियं" रीइत्तए॥ १. उवाइणत्तए (अ, क, ख)। इति पाठो लब्धः, तदाधारेणव व्याख्या कृता । २. सं० पा०-तं चेव । अत एव व्याख्यायां अस्वाभाविकता समागता ३. आधासंवडमेव (अ); अहासंवडमेव (क); लिखितं च वृत्तिकारेण-'इति स्थान विधिरुक्तः आधा० (ख)। साम्प्रतं गमनस्थानविधिमाह-तत्थ णं ति तत्र ४. सं० पा०-तं चेव । मार्गे वसत्यादौ वा कश्चिद् वधार्थ वधनिमित्तं ५. सं० पा०-तं चेव । गहायत्ति गृहीत्वा खड्गादिकमिति शेष: आग६. उवागच्छेज्जा (अ, क, ख); हव्वं उवा० च्छेत्' णो अवलंबयितुं आकर्षयितुं प्रत्यवलंब यितुं पुनः पुनरवलंबयितुं यथेाँ ईर्यामनतिक्रम्य ७. से इथिए (अ, क, ख) । गच्छेत् एतावता च्छिद्यमानोपि नातिशीघ्र ८. वा (ता)। यायादिति'। अत्र अग्निप्रज्वलनप्रकरणे बाहुं ६. उवस्सगं (अ, क, ख)। गृहीत्वा आकर्षेद् भिक्षुश्च तस्यावलंबनं प्रत्यव१०. 'ता' प्रतेस्तथा श्रीदशाश्रुतस्कंध-मूलनियुक्ति- लम्बनं च न कुर्यात्, किन्तु यथेयं अर्थात् यथा चूर्णर्मुद्रितप्रतेराधारेण असो पाठः स्वीकृतः । स्वभावं तिष्ठेत्, इति स्वभाविकोर्थोस्ति । प्रयुक्तादर्शेषु 'अ' प्रतो असौ पाठो नास्ति । चूर्ध्या अपि अस्यैव समर्थनं जायते । लिखितं लिपिकारेण पंक्ति भक्षितेति लक्ष्यते। शेषप्रति च चूर्णिकारेण--'आधारियं रियत इतिद्वये 'बाहाए गहाय आगासेज्जा' इति पाठः कभिज्जमाणो वि णातियरति' अर्थात् केनचिद् लिखितः आसीत्, किन्तु केनचित् पाठकेन तत्रैव बाहुं गृहीत्वा आकृष्यमाणोपि नातिचरति अवलिखितां वृत्तिमनुसृत्य पाठशोधनं कृतम् । तत् लम्बनादिकं न करोति । सूचयति अस्पष्टा हरितालरेखा । वृत्तिकृता ११. आधारियं (ता) अग्रेपि । क्वचिद् आदर्श 'वहाए गहाय आगच्छेज्जा' Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमा दसा ४५३ १८. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स पायंसि खाणू वा कंटए वा हीरए वा सक्करए वा अणुपविसेज्जा नो से कप्पति नीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, कम्पति से अहारियं रीइत्तए॥ १९. मासियण्णं भिक्खुपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स अच्छिसि पाणाणि वा 'बीयाणि वा" रए वा परियावज्जेज्जा नो से कप्पति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, कप्पति से अहारियं रीइत्तए॥ २०. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स जत्थेव सूरिए अत्थमज्जा तत्थेव जलंसि वा थलंसि वा दुग्गंसि वा निण्णंसि वा 'पव्वतंसि वा विसमंसि. वा गड्ढाए वा" दरीए वा कप्पति से तं रयणि तत्थेव उवातिणावेत्तए नो से कप्पति पदमपि गमित्तए, कप्पति से कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसूय-सूयमह-गंजद्ध-राग-सरिसे कमलागरसंडबोहए उट्रियम्मि सरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलंते पाईणाभिमहस्स वा पडीणाभिमुहस्स वा दाहिणाभिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा अहारियं रीइत्तए । २१. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स णो' कप्पति अणंतरहिताए पुढवीए निहाइत्तए वा पयलाइत्तए वा। केवली बूया-आदाणमेयं, से तत्थ निहायमाणे वा पयलायमाणे वा हत्थेहि भूमि परामसेज्ज्जा । 'अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए निक्खमित्तए वा । उच्चारपासवणेणं उव्वाहेज्जा" नो से कप्पति ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुन्वपडिलेहिए थंडिले उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, तमेव उवस्सयं आगम्म ठाणं ठावित्तए"॥ २२. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स नो कप्पति ससरक्खेणं काएणं गाहावइकुलं 'भत्ताए वा पाणाए वा निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा। अह पुणेवं जाणेज्जा-सस रक्खे सेअत्ताए वा 'जल्लत्ताए वा मलत्ताए वा पंकत्ताए वा विद्धत्थे", से कप्पति गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा" निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ १. सक्करा (ता)। २. ४ (ता)। ३. विसमंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा ___ गत्ताए वा (ता)। ४. रयणी (अ, क, ख) । ५. पयमवि (ता)। ६. सं० पा०-पाउप्पभायाए जाव जलंते ।। ७. णो से (अ, क, ख) । ८. भूया (ता)। ६. हत्थेणं (ता)। १०. उप्पाहिज्जा (अ, क, ख) । ११. असौ पाठः चूणों नास्ति व्याख्यातः । 'तमेव उवस्सयं आगम्म ठाणं ठावित्तए' इति पाठो नास्ति वृत्ती व्याख्यातः । १२. पिंडवायपडियाए (ता)। १३. परिणते (वृपा)। १४. पंकत्ताए वा मलत्ताए वा परिणते एवं से कप्पइ गाहा अहावहं एवेति कूलं पिंडवायपडियाए (ता)। Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ दसामो २३. मासियणं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स नो कप्पति सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा पादाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा महं वा 'उच्छोलित्तए वा पधोइत्तए" वा । णण्णत्थ लेवालेवेण वा 'भत्तामासेण वा ॥ २४. मासियणं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स नो कप्पति आसस्स वा हत्थिस्स वा गोणस्स' वा महिसस्स वा वग्घस्स वा वगस्स वा दीवियस्स वा अच्छस्स वा तरच्छस्स वा परासरस्स वा सीयालस्स वा विरालस्स वा कोकंतियस्स वा ससगस्स वा चिल्ललस्स वा सुणगस्स वा कोलसुणगस्स वा दुट्ठस्स आवदमाणस्स पदमवि पच्चोसक्कित्तए, अदुट्ठस्स आवदमाणस्स कप्पति जुगमित्तं पच्चोसक्कित्तए॥ २५. मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स नो कप्पति छायातो सीयंति नो उण्हं एत्तए, उण्हाओ उण्हंति नो छायं एत्तए, जं जत्थ जया सिया तं तत्थ अहियासए । एवं खलु एसा मासियभिक्खुपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया आणाए अणुपा लिया यावि भवति ॥ २६. दोमासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्म अणगारस्स निच्चं वोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा-दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति । 'सेसं तं चेव, नवरं दो दत्तीओ, तेमासियं तिण्णि दत्तीओ, चाउमासियं चत्तारि दत्तीओ, पंचमासियं पंच दत्तीओ, छम्मासियं छ दत्तीओ, सत्तमासियं सत्त दत्तीओ। जतिमासिया तत्तिया दत्तीओ।। २७. पढमं सत्तरातिदियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्चं वोसट्टकाएर १. अव्वोलित्तए वा पधोवित्तए (अ); उच्छा- विग्गकस्स वा चिल्ललकस्स वा। लेत्तए वा पधाइत्तए (ता)। ४. इत्तए (अ, क, ख)। २. भत्तमा० (क); x (ख, वृ)। ५. तदा विआसए (ता)। ३. चूणौं 'गोणादि' इति पदेन ज्ञायते 'आसस्स वा ६. अधाकप्पं (ता)। हत्थिस्स वा' इति पाठो नास्ति सम्मतः । ७. 'अ, क, ख' आदर्शषु 'याकार' स्थाने सर्वत्र 'ता' वर्जितादर्शेषु 'वग्घस्स' इत्यादीनि द्वित्वतकारो दृश्यते । 'सुणगस्स वा' पर्यन्तानि पदानि नैव दृश्यन्ते। ८. सोझिया (ता)। 'ता' प्रतौ पाठपद्धतिभिन्ना दृश्यते---हत्थिस्स ६. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रती संक्षिप्तपाठा वा गोणस्स वा मणसस्स वा आसस्स वा सीह- दृश्यते --एवं जाव सत्तमासिया णवरं णाणत्तं स्स वा वग्घस्स वा वगस्स वा दीवियस्स वा जति मासि तत्ति दत्तीतो भाणिअन्वाओ। अच्छस्स वा तरच्छस्स वा परासरस्स वा १०. दसा० ७१४-२५ । सिआलस्स वा विरालस्स वा सुणहस्स वा ११. चेव जाव (अ, क); जाव (ख)। कोलसूणगस्स वा कोकंतियस्स वा सासयस्स वा १२. सं० पा०-वोसटकाए जाव अहियासेति । Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमा दसा ४५५ 'चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा-दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्ख जोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति° अहियासेति॥ २८. कप्पति से चउत्थेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव' रायहाणीए वा 'उत्ताणगस्स वा पासेल्लगस्स वा" नेसज्जियस्स वा ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्वमाणस-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा ‘पयालेज्ज वा पवाडेज्ज" वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा। 'तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा कप्पति से पुव्वपडिलेयिं सि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिठवित्तए अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए। एवं खलु एसा 'पढमा सतरातिदिया१ भिक्षुपडिमा अहासुत्तं जाव" आणाए अणुपालिया यावि भवति ॥ २६. एवं दोच्चा सत्तरातिदियावि, नवरं-दंडातियस्स वा लगंडसाइस्स" वा उक्कुडु यस्स वा ठाणं ठाइत्तए । सेसं 'तं चेव'" जाव" अणुपालिया यावि भवति । ३०. एवं तच्चा सत्तरातिंदियावि भवति, नवरं-गोदोहियाए वा वीरासणियस्स वा अंबखुज्जस्स वा ठाणं ठाइत्तए । सेसं तं चेव जाव" अणुपालिया यावि भवति ।। ३१. एवं अहोरातियावि, नवरं-छठेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं" दोवि पाए साहट्ट वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए । तत्थ दिव्व-माणुस्स-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा। तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुवपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिदवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए। १. अप्पाणएणं (क)। २. वहिता (अ); बहिता (क, ख)। ३. ओ० सू० ८६ । ४. उत्ताणियस्स वा पासोल्लियस्स वा (ता)। ५. पयलिज्ज वा पवडेज्ज (अ, क, ख)। ६. से णं तत्थ (ता)। ७. उव्वाधिज्जेज्जा (ता)। ८. वा णिगिण्हित्तए वा (ता)। ६. परिदृवित्ता (ता)। १०. अधा (ता)। ११. पढमसत्तरतिदिया (ता)। १२. दसा० ७।२५। १३. लगंडमाइस्स (अ); लगडसाइस्स (क)। १४. तहेव (ता)। १५, १६. दसा० ७।२७, २८ । १७. अहोराइंदिया यावि भवति (ता)। १८. 'ईसिं' पदस्य प्रयोगः भ० ३.१०५, अंत० ३८८ सूत्रे न दृश्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य चूणिकृता 'ईसि दोवि पादे' इति पाठः उल्लिखितः, वृत्ताव पि एवमेव स्वीकृतः । १६. सं० पा०-सेसं तं चेव जाव अणुपालिया । सेसं तहेव जाव भवति (ता)। Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसाओ ४५६ एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालिया यावि भवति ॥ ३२. एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्सअणगारस्स निच्चं वोसटकाए' चित्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा-दिव्वा वा माणस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्म सहति खमति तितिक्खति° अहियासेति' ॥ ३३. कप्पइ से अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा दोवि' पाए साहटु वग्घारियपाणिस्स एगपोग्गलनिरुद्धदिहिस्स' अणिमिसनयणस्स ईसि पब्भारगतेणं कारणं अहापणिहितेहिं गत्तेहिं सव्विदिएहिं गुत्तेहिं ठाणं ठाइत्तए । तत्थ दिव्व-माणुस्स-तिरिच्छजोणिया' उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा। तत्थ से उच्चारपासवणं उन्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुवपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिटुवित्तए", अहावि हिमेव ठाणं ठाइत्तए । ३४. एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं अणणुपालेमाणस्स इमे तओर ठाणा अहियाए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए अणाणुगामियताए भवंति, तं जहा-उम्मायं वा लभेज्जा, दीहकालियं वा रोयायंकं पाउणेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ॥ ३५. एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं सम्म अणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा हियाए" 'सुभाए खमाए णिस्सेसाए° अणुगामियत्ताए भवंति, तं जहाओहिनाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, मणपज्जवनाणे वा समुप्पज्जेज्जा, केवलनाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे" समप्पज्जेज्जा । १. सं० पा०-वोसटकाए जाव अहियासेति । ७. अधा० (ता)। २. अधितासेति (ता)। ८. गुत्ते (ता); सर्वेन्द्रियैर्गुप्तः (वृ)। अत्र ३. अतः गुत्तेहि पर्यन्तं 'अ, क, ख' संकेतितादर्शषु प्रथमान्तं पदं न युक्तं स्यात् । भगवत्यां भिन्ना पाठपद्धतिर्दृश्यते-ईसि पन्भारगतेणं (३।१०५) 'गुत्तेहि' इति पाठो दृश्यते । स च काएणं एगपोग्गलटियाए दिट्रीए अणिमिसनयने युक्तोस्ति अतः तदाधारेण स एव मूले गृहीतः । अहापणितेहिं गत्तेहिं सव्विंदिएहिं गोत्ते ईसि ६. अतः 'अ, क, ख' आदर्शेषु संक्षिप्त पाठो दोवि पाए साहट वग्घारियपाणिस्स । भगवत्यां दृश्यते---तिरिच्छजोणिया जाव अहाविहिमेव । (३/१०५) स्वीकृतपाठानुसारी क्रमो लभ्यते। १०. उव्वाहिज्जेज्जा (ता)। ४. वग्धारितं पाणस्स (ता)। ११. परिद्ववेत्ता (ता)। ५. एगपोग्गलदिट्ठिस्स (ता); एगपोग्गलट्ठिय- १२. तयो (ता)। दिट्रिक्स (वृ); एगपोग्गलनिविदिट्टी (भ० १३. सं० पा०-हियाए जाव अणुगामियत्ताए । ३/१०५)। १४.x (ता)। ६. मणमिस० (ता)। Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमा दसा ४५७ एवं खलु एसा एगरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया आणाए अणुपालिया यावि भवति । एयाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ। –त्ति बेमि॥ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमा दसा १. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे होत्था, तं जहा'हत्थुत्तराहिं चुए, चइत्ता गब्भं वक्कते। हत्थुत्तराहिं गब्भातो गब्भं साहरिते। हत्थुत्तराहिं जाते। हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारितं पव्वइए । हत्यत्तराहि अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समप्पन्ने । सातिणा परिनिव्वुए भयवं जाव' भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइ ॥ –त्ति बेमि॥ १. जाव पज्जोसवणा कप्पो नाम अज्झयणं अटू सहेउयं सकारणं ससुत्तं सअत्थं सउभयं सवागरणं (क); अत्र जाव पदं अस्या एव दशायाः पर्यषणाकल्पापरसंज्ञायाः स्वतन्त्रग्रन्थस्थानं प्राप्तायाः सङग्राहकमस्ति । अस्मिनस्थाने केवलं आद्यं अन्तिमं च सूत्रमूल्लिखितमस्ति । तस्मिन् अनेके पाठाः प्रक्षिप्ता वर्तन्ते । तस्य मौलिक स्वरूपं नास्ति उपलब्धम् । इदानीं स कल्पसूत्राभिधानेन प्रसिद्धोस्ति । स च अत्र परिशिष्टरूपेण अस्माभिरुल्लिख्यते । ४५८ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमा दसा १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था-वण्णओ' । पुण्णभद्दे नाम चेइए-वण्णओ', कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया। २. अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी-एवं खलु अज्जो ! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाई, जाई इमाइं इत्थी' वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा १.जे केइ' 'तसे पाणे", वारिमझे विगाहिया' । उदएणक्कम्म मारेति, महामोहं पकुव्वति ।। २. पाणिणा" संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं । अंतोनदंतं मारेति, महामोहं पकुव्वति ।। ३. 'जायतेयं समारब्भ", बहुं ओरुभिया' जणं । __ अंतोधूमेण मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ ४. सीसम्मि जो पहणति, उत्तमंगम्मि चेतसा । विभज्ज मत्थगं फाले", महामोहं पकुव्वति । १. ओ० सू० १। जायतेयं ३ पाणिणा३ २. ओ० सू० २-१३ । सीसम्मि° ४ जायतेयं ४ ३. इथिओ (अ, क, ख)। सीसावेढेण° ५ सिस्सम्मि ५ ४. यावि (स० ३०/१)। ८. जायतेयसमारंभा (अ, क); जायतेयं समारंभ ५. तसा पाणा (ता, चू )। (ता)। ६. वगाहिया (ता)। ९. ओरुपिया (अ); ओरुलिया (क); उरुमिया ७. समवायाङ्ग केषाञ्चित् श्लोकानां व्यत्ययो (ख)। दृश्यते १०. पाले (ता)। दसा स० पाणिणा २ सीसावेढण°२ ४५६ Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० दसाओ ५. सीसावेढेण जे केइ, आवेढे ति अभिक्खणं । तिव्वासुहसमायारे', महामोहं पकुव्वति ॥ ६. पुणो-पुणो पणिहीए', हणित्ता' उवहसे जणं । फलेणं अदुव' डंडेणं, महामोहं पकुव्वति ॥ ७. गूढाचारी निगृहेज्जा', मायं मायाए छायई । असच्चवाई णिण्हाई', महामोहं पकुव्वति ।। ८. धंसेति जो अभतेणं, अकम्मं अत्तकम्मणा । अदुवा तुमकासित्ति', महामोहं पकुव्वति ।। ६. जाणमाणो परिसाए', सच्चामोसाणि भासति । अज्झीणझंझे" पुरिसे, महामोहं पकुव्वति ।। १०. अणायगस्स नयवं, दारे तस्सेव धंसिया" । विउलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चाणं पडिबाहिरं ।। ११. उवकसंतंपि झंपेत्ता, पडिलोमाहिं वहिं । भोगभोगे वियारेति, महामोहं पकुव्वति ।। [युग्मम्] १२. अकुमारभूते जे केइ, कुमारभुतेत्तिहं५ वदे । 'इत्थीहिं गिद्धे विसए', महामोह पकुव्वति ।। १. तिव्व असुभ० (अ); तिव्वं असुह० (क, ख); ६. णिण्हादी (क, ख) । तिव्वं असुभ (ता); तीव्वोऽसुभसमायारे ७. अत्तकम्मणा (अ, क, ख)। (वृं); चूया अस्य स्थाने 'तिव्वेण परिणामेण' ८. तुममकासित्ति (अ, क, ख); तुममकासीत्ति इति पाठ: संभाव्यते । अस्य श्लोकस्य अन्योपि (ता) । पाठः भिन्नः स्यात्, यथा उप्पाएति-उदीरेति, ६. परिसओ (स० ३०१)। घणं-चिक्कणं । उपलब्धपाठे वृत्तौ च एते पदे १०. सच्चमोसाण (अ, क, ख)। नैव दृश्येते। ११. अक्खीणझंझे (अ, क, ख, ता)। २. पणिहिए (स० ३०११) । १२. बाले (चू)। ३. बाले (अ, क, ख, ता); सर्वेषु प्रयुक्तादर्शेषु १३. दारं (अ, क, ख)। 'बाले' इति पदं लभ्यते, किन्तु अस्यार्थो नाव- १४. धंसई (अ, क, ख); धंसति (ता)। गम्यते। दशाश्रुतस्कन्धवृत्ती 'हत्वा विनाश्य १५. कुमारभूएत्तहं (स० ३०११)। उपहसेत्' इति व्याख्यातमस्ति । अनेन १६. इत्थी विसयसेवीए (अ); इत्थी विसया गेहीए 'हणित्ता' इति पाठः सम्भाव्यते । समवायाङ्गे (क); इत्थीविसयगेहीए (ख); इत्थीविसस (३०।१) पि 'हणित्ता' इति पाठो दृश्यते । सेवीय (ता); वसए (व, स० ३०११)। ४. अदुवा (ता)। वशकश्चस्त्रीणामेवायत्त इत्यर्थः (व) । ५. णिगूहित्ता (ता)। Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमा दसा १३. अबंभचारी जे केइ, बंभचारित्तिह' वदे । __ गद्दभे व्व गवं मझे, विस्सरं णदती णदं ।। १४. अप्पणो अहिए' वाले', मायामोसं बहुं भसे । इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] १५. जं णिस्सितो उन्वहती, जससाहिगमेण वा । तस्स लुब्भसि वित्तंसि, महामोहं पकुव्वति ।। १६. इस्सरेण अदुवा गामेण, अणिस्सरे इस्सरीकए । तस्स संपग्गहितस्स, सिरी अतुलमागता ।। १७. इस्सादोसेण आइठे, कलुसाविलचेतसे । जे अंतरायं चेतेति, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम् ] १८. सप्पी जहा अंडउडं', भत्तारं जो विहिंसइ । सेणावति पसत्थारं, महामोहं पकुव्वति ।। १६. जे नायगं व रटुस्स, नेतारं निगमस्स वा । सेटुिं च बहुरवं हंता', महामोहं पकुव्वति ।। २०. बहुजणस्स नेतारं, दीवं ताणं च पाणिणं । एतारिसं नरं हता, महामोहं पकुव्वति ॥ २१. उवट्ठियं पडिविरयं, 'संजयं सुतवस्सियं । 'वोकम्म धम्माओ भंसे," महामोहं पकुव्वइ ।। २२. तहेवाणतणाणीणं , जिणाणं वरदंसिणं । तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ।। २३. णेयाउयस्स मग्गस्स, दुठे 'अवयरई बहुं" । तं तिप्पयंतो" भावेति, महामोहं पकुव्वति ।। १. बंभचारी अहं (ख); बंभयारीत्तहं (स० १०. संजयं सुसमाहितं (अ, क, ख); भिक्खु वं ३०११) । सुतवस्सितं (ता); जे भिक्खू जगजीवनं (वृपा)। २. व (ख)। ११. विउकम्म धम्माओ भंसेति (अ, क); ३. अहियं (अ, क, ख); अहितं (ता)। विउक्कम्म धम्माओ भंसेति (ख); विउक्कम्म ४. पाले (ता)। धम्मा भंसेति (ता)। . ५. य (अ, क, ख)। १२. अवनिमं (अ, क, ता); अवग्निवं (ख)। ६. इस्सरे कते (अ, क, ख)। १३. अवहरति बहुं (अ, क, ख, ता, चूपा, वृपा); ७. चेतसा (अ, क, ख) बहु (वृ)। ८. अंडपुरं (अ); अंडपुडं (क, ता)। १४. तिप्पति ततो (अ, क, ख) । ६. हत्ता (ता)। Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ २४. आयरिय-उवज्झाएहि, सुयं विणयं च गाहिए । ते चैव खिसती बाले, महामोहं कुव्वति ॥ २५. आयरिय-उवज्झायाणं, सम्मं ण थद्धे, महामोहं sy २६. अबहुस्सुते वि जे केइ, सज्झायवायं * वयइ, २७. अतवस्सिते य जे केइ, सव्वलोग परे तेणे, २८. साहारणट्ठा' जे केइ, पभू ण कुव्वती किच्चं, २६. सढे नियडिपण्णाणे, अपणो य अबोहीए, ३१. जे य आधम्मिए जोए, सहाहे" सही हेडं, ३०. जे कहा धिकरणाई', संपउंजे सव्वतित्थाण भेयाए', महामोहं ३२. जे य माणुस्सए भोगे", सुतेणं महामोहं १. परितप्पति ( अ, क, ख ) ; पडिपूयते (ता) । २. अपरिपूयते ( अ, क, ख ) । ३. पविथति ( अ, क, ख, ता ) । ४. सब्भाववायं (दृ) समवायाङ्ग (३०1१ ) अस्माभिः प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्याधारेण 'सब्भाववायं' इति पाठ: समीचीनः प्रतिभाति इति टिप्पणीकृता, किन्तु प्रस्तुत सूत्रस्य चूर्ण्यवलोकनेन ज्ञायते स्वीकृतः पाठोपि असमीचीनो नास्ति, यथा- 'सज्झायवादं वदति - अहं विसुद्धपाढो बहुस्सुतो बा । ५. साहारणट्ठे ( अ ); साहारणंमि ( ता ) । ६. गिलाणोहमिति उपस्थितः (तू) । तवेणं पविकत्थति । पकुव्वति ॥ महामोहं f 'गिलाणम्म उवट्टिते" । 'मज्भं पेस" ण कुव्वती ॥ कलुसा उलचेतसे महामोहं संपउंजे महामोहं अदुवा तेऽतिप्पयंतो" आसयति", महामोहं ३३. इड्ढी जुती जसो वण्णो, देवाणं तेसिं अवण्णवं" बाले, महामोहं पडितप्पति' । कुव्वति ॥ पविकत्थइ | कुव्वति ॥ I पकुव्वति ॥ [ युग्मम् ] पुणो-पुणो । कुव्वति ॥ पुणो-पुण पकुव्वति ॥ पारलोइए । पकुव्वति ॥ बलवीरियं । पकुव्वति ॥ दसाव ७. मज्भं पेसे (क, ख ) ; मज्झपि से (स० ३०1१ ) । ममापि एषः मज्भं पेस । ८. तहाधिकरणाई (अ); तहाहिगरणाति (ता) । 8. भित्ताए ( अ, ख ) 1 १०. श्लाघा हेतुं इत्यर्थः ( वृ ) । ११. कामे ( ता ) । १२. अतिप्पयंती (क, ख ); तत्ति विभक्तिपरिणामात्तौ तेषु वा (वृ) । १३. आसाएति ( क ) ; आस्वादते अभिलषति आश्रयति वा (वृ ) । १४. अवणिमं ( अ, ता ) ; अवण्णिवं ( ख ) । Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमा दसा ४६३ ३४. अपस्समाणो पस्सामि, 'देवे जक्खे य गुज्झगे" । अण्णाणी जिणपूयट्ठी', महामोहं पकुव्वति ॥ ३५. एते मोहगुणा वुत्ता, कम्मंता वित्तवद्धणा' । ___जे तु भिक्खू विवज्जेत्ता, चरेज्जऽत्तगवेसए' ॥ ३६. 'जं जाणिया" इतो पुव्वं, किच्चा किच्चं बहुं जढं । तं वंता ताणि सेविज्जा, तेहिं आयारवं सिया॥ ३७. 'आयार गुत्ते" सुद्धप्पा, धम्मे ठिच्चा अणुत्तरे । ___ ततो वमे सए दोसे, विसमासी विसो जहा ॥ ३८. सुवंतदोसे सुद्धप्पा, धम्मट्ठी विदितापरे । इहेव लभते कित्ति, पेच्चा य सुगतिं वरं ॥ ३६. एवं अभिसमागम्म, सूरा दढपरक्कमा । सव्वमोहविणिम्मुक्का", जातीमरणमतिच्छिया ॥ . -त्ति बेमि ॥ १. देवा जक्खा य गुज्झगा (अ, क)। २. जणपूयट्ठी (ता)। ३. चित्तवद्धणा (अ, ख, वृपा)। ४. विवज्जेज्जा (अ, क, ख)। ५. चरेज्जऽत्तं गवेसइ (चूपा, वृपा) । ६. जंपि जाणे (अ, क, ख, ता)। ७. कताकतं (चूपा)। ८. 'आचारवान्' इत्याध्याहार्यम् (वृ); आयार___ जुत्ते (वृपा)। ६. सुचत्त (अ, क) । सुवान्तदोषः इत्यर्थः । १०. विणिमुक्का (क, ख) । Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था - वण्णओ,' गुणसिलए चेइए ॥ दसमा दसा २. रायगिहे नगरे सेणिए नाम राया होत्या - रायवण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव' चेल्लणाए सद्धि विहरति । ३. तए णं से सेणिए राया (भिभिसारे ?) अण्णया कयाइ हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ते 'सिरसा कंठे मालकडे " आविद्धमणि- सुवण्णे कप्पियहारद्धहार- तिसरय- पालंब - पलंबमाणक डिसुत्तय-सुकयसोभे' पिणिद्धगेवेज्जे अंगुलेज्जगल लियंगय-ललियकयाभरणे जाव' कप्परुक्खए चेव अलंकित - विभूसिते नरिंदे १. ओ० सू० १ । २. ओ० सू० १४, १५; वृत्तिकृता एवं जहा ओववातिए जाव' इति पाठस्य व्याख्यायां जाव पदस्य पूतौ यः पाठः उद्धृतः स एवमस्ति - 'यावत् करणात् चेल्लणाए सद्धि अणुरते अविरते इट्ठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ।' किन्तु 'ओवाइयसुत्ते' एष पाठः एवं नोपलभ्यते । तस्य पञ्चदशे सूत्रे धारिणीवर्णने एतादृश: पाठो दृश्यते— 'कोणिएणं रण्णा भिभसारपुत्तेण सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।' किन्तु चेल्लणाया वर्णने नंष पाठः संगच्छते । ૪૪ 'सेजिएण सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता' इत्यादि पाठपद्धतिः समीचीना भवेत् । ३. X ( अ, क, ख, वृ); प्रस्तुतसूत्र एव किञ्चिदने 'एवं खलु देवाणुप्पिया ! सेणिए राया भिभिसारे आणवेति' इति पाठे 'भिभिसार' इति पदं आदर्शेष्वपि विद्यते । वृत्तावपि व्याख्यातमस्ति, तेनात्रापि सम्भाव्यते । ४. सिरसा पहाते ( ख ); सिरंसि व्हाते (ता) । ५. सिरसि हाए कंठे मालकडे (वृपा) । ६. कयसोभे ( क ) । ७. ओ० सू० ६३; वृत्तो जाव पदस्य पूर्तिः कृतास्ति, किन्तु स पूरकपाठः 'ओवाइय' सूत्रस्य पाठात् किञ्चिद् भिन्नोस्ति Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव' ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! जाइं इमाई रायगिहस्स नगरस्स बहिता, तं जहा–आरामाणि य उज्जाणाणि य आएसणाणि य आयतणाणि य देवकुलाणि य सभाता य पणियगहाणि य पणियसालातो य छुहाकम्मंताणि य वाणियकम्मंताणि य 'कट्टकम्मंताणि य" इंगालकमंताणि य वणकम्मंताणि य दब्भकम्मंताणि य जे तत्थ वणमहत्तरगा' अण्णत्ता' चिट्ठति ते एवं वदह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सेणिए राया भिभिसारे आणवेति-जया णं समणे भगवं महावीरे आदिकरे तित्थकरे जाव' संपाविउकामे पुव्वाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे इहमागच्छेज्जा, तया णं तुम्भे भगवतो महावीरस्स अहाप डिरूवं ओग्गहं अणुजाणह, अणुजाणित्ता सेणियस्स रण्णो भिभिसारस्स एयमझें पियं निवेदेज्जाह । ४. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा भिभिसारेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ट'तुटु-चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण हियया करयल' 'परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं' पडिसुणंति, पडिसुणित्ता सेणियस्स रणो अंतियातो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं निगच्छंति, निगच्छित्ता जाई इमाइं रायगिहस्स बहिता आरामाणि य जाव जे तत्थ महत्तरया अण्णत्ता चिट्ठति ते एवं वदंति जाव सेणियस्स रण्णो एयमठें पियं" निवेदेज्जाह । पियं भे" भवतु। दसा० वृत्ति अंगुलिज्जग-ललियकयाभरणे नाणामणिकणगरयणवरकडगतुडियथंभियभुए अहिएरुवसस्सिरीए कुंडलउज्जोतिताणणे मोउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे मुद्दियापिंगलंगुलिए पालंबपलंबमाणसुकयपडउत्तरिज्जे। १. ओ० सू० ६३ । २. एवं कटुकम्मंताणि य (क, ख, वृ); अस्या- नन्तरं वृत्तौ आदर्शष्वविद्यमानानां केषाञ्चित् पदानामुल्लेखोस्ति, यथा-एवं दर्भवर्धवल्ल- जांगारगृहांतानि द्रष्टव्यानि। ३. वणप्पमहत्तरगा (चू)। ४. अण्णाया (ता); अण्णाता (चूपा, वृ); आज्ञप्ता इत्यर्थः। ५. भिभासारे (क, वृ); भिभसारे (ख) । ओ० सू० ६३ अंगुलिज्जग-ललियंगय-ललियकयाभरणे वरकडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए मुद्दियपिंगलंगुलीए कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबपलबमाणपडसुकयउत्तरिज्जे । ६. ओ० सू०१६। ७. निवेदेह (अ); निवेतेध (क); णिवेतेह (ख)। ८. सं० पा०-हट जाव हियया । ९. सं० पा०--करयल जाव एवं । १०. ४ (अ, क, ख) ११. महप्पियं (वृ) । १२. X (अ, क)। Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ दसाबो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वदंति, वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगता॥ ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव' गामाणुगामं दूइज्जमाणे 'सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ॥ ६. तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव' पज्जुवासेति । तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता णामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता णामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्क मित्ता एवं वदासिजस्स णं देवाणुप्पिया सेणिए राया दंसणं पीहेति, जस्स णं देवाणुप्पिया सेणिए राया दसणं पत्थेति, 'जस्स णं देवाणु प्पिया सेणिए राया दसणं अभिलसति, जस्स णं देवाणुप्पिया सेणिए राया णामगोत्तस्सवि सवणताए हट्टतुटु'- चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए भवति, से णं समणे भगवं महावीरे आदिकरे तित्थकरे जाव" सव्वण्णू सव्वदरिसी पुव्वाणपुवि चरमाणे गामाणुगामं दुइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरते इहमागते इह संपत्ते" इह समोसढे इहेव रायगिहे नगरे बहिया गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।। तं गच्छह णं देवाणप्पिया ! सेणियस्स रण्णो एयमठ्ठ निवेदेमो पियं भे भवतु त्ति कट्ट एयमठे अण्णमण्णस्स पडिसुणे ति, पडिसुणेत्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं मझमझेणं जेणेव सेणियस्स रण्णो गेहे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं करयलपरिग्गहियं" 'सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी-जस्स णं सामी दंसणं कंखइ" जस्स णं सामी दंसणं पीहेति, जस्स णं सामी दसणं पत्थेति, जस्स णं सामी दंसणं अभिलसति, जस्स णं सामी णामगोत्तस्स वि सवणताए हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए भवति° से णं समणे भगवं महावीरे गुणसिलए १. नगरस्स परिगता (अ, क, ख)। ८. सं० पा०-हट्टतुट्ठ जाव भवति । २. दसा० १०॥३। ६. णं एस (ता)। ३. सं० पा०-दूइज्जमाणे जाव अप्पाणं । १०. ओ० सू० १६। ४. ओ० सू० ५२। ११. सं० पा०-संपत्ते जाव अप्पाणं । ५. णामं गोयं (ख)। १२. ते (ता)। ६. राया भिभिसारे (अ, क)। १३. सं० पा०-करयलपरिग्गहियं जाव जएणं । ७. सं० पा०-पत्थेति जाव अभिलसति । १४. सं० पा०-कंखइ जाव से णं । Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा चेइए' 'तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । एतण्णं' देवाणुप्पियाणं पियं' निवेदेमो। पियं भे भवतु ॥ ७. तते णं से सेणिए राया तेसिं पुरिसाणं अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म हट्टतुटु' 'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता जहाँ कोणिओ जाव वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता ते पुरिसे सक्कारेति सम्माणेति विपुलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलयति, दलयित्ता पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता नगरगत्तियं सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! रायगिहं नगरं सभितर-बाहिरियं आसित्त सम्मज्जितोवलित्तं जाव' एयमाणत्तियं पच्चप्पिणति ॥ ८. तते णं से सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हय-गय-रह-जोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं" सण्णाहेहि जाव से वि पच्चप्पिणति ॥ ६. तए णं से सेणिए राया जाणसालियं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेहि, उवट्ठवेत्ता मम एतमाण त्तियं पच्चप्पिणाहि ॥ १०. तते णं से जाणसालिए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठ"तुटु-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण° हियए जेणेव जाणसाला.तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाणसालं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जाणाई" पच्चुवेक्खति, पच्चवेक्खित्ता जाणाई पच्चोरुभति, पच्चोरुभित्ता जाणाइं संपमज्जति, संपमज्जित्ता जाणाइं नीणेति, नीणेत्ता जाणाई संवट्टेति, संवदृत्ता दूसंपवीणेति, पवीणेत्ता 'जाणाइं समलंकरेति, समलंकरेत्ता जाणाई वरभंड-मंडियाइं करेति, करेत्ता" जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहणसालं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता वाहणाई पच्चुवेक्खति, पच्चुवेक्खित्ता वाहणाइं संपमज्जति, संपमज्जिता 'वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेत्ता वाहणाई णीणेति, णीणेत्ता'" दूसे पवीणेति, १. सं० पा०-चेइए जाव विहरति । २. तण्णं (अ, ता); तस्स णं (क); तेणं (ख); तं एवं णं (ओ० सू० ५३)। ३. पियट्टयाए पियं (वृ)। ४. सं० पा०—हट्ठतुटु जाव हियए। ५. ओ० सू० ५४ । ६. ओ० सू० ६०, ६१ । ७. सेण्णं (क, ख)। क. सण्णाहेह (क, ख)। ६. ओ०.सू० ५७ । १०. संपा०-हट्ठ जाव हियए। ११. जाणगं (अ, क, ख)। १२. जाणाणं दूसे (ओ० सू० ५६)। १३. चिह्नाडितपाठः 'अ. क. ता' संकेतितादर्शेष नो दृश्यते, वृत्तावपि नास्ति व्याख्यातः, किन्तु 'ओवाइय' (सू० ५९) सूत्रे असौ दृश्यते । १४. वाहणाइं जीणेइ, णीणेत्ता वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेत्ता (ओ० सू० ५९) । Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ दसायो पवीणेत्ता वाहणाइं सालंकाराइं, करेति, करेत्ता वाहणाई वरभंड-मंडिताई करेति, करेत्ता 'जाणाई जोएति, जोएत्ता वट्टमग्गं' गाहेति, गाहेत्ता पओय-ट्टि पओयधरए य समं आडहइ आडहित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वदासी-जुत्ते ते सामी ! धम्मिए जाणप्पवरे आइछे भदं तव, द्रूहाहि ॥ ११. तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे जाणसालियस्स अंतिए एयमठे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ -चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहि विहणिज्जेहिं सविदियगायपल्हायणिज्जेहिं अभिगेहिं अभिगिए समाणे तेल्लचम्मंसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहि पत्तठेहि कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं अभिगण-परिमद्दणुव्वलण-करणगुण-णिम्माएहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए-चउव्विहाए संबाहणाए संबा हिए समाणे अवगय-खेय-परिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ •अणुपविसित्ता समत्तजालाउलाभिरामे विचित्त-मणि-रयणकुट्टिमतले रमणिज्जे हाणमंडवंसि णाणामणि-रयण-भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढं सि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो-पुणो कल्लाणग-पवर-मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवर-मज्जणावसाणे पम्हलसुकुमाल-गंध-कासाइ-लूहियंगे सरस-सुरहि-गोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घ-दूसरयण-सुसंवुए सुइमाला-वण्णग-विलेवणे य आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार-तिसरय-पालब-पलबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोभे पिणद्धगेवेज्जग-अंगलिज्जग-ललियंगय-ललियकयाभरणे वरकडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूव-सस्सिरीए मुद्दियपिंगलंगुलीए कुंडल-उज्जोवियाणणे मउड-दित्तसिरए हारोत्थय-सुकय१. समलंकरेइ (ओ० सू० ५६)। पओय-धरए य सम्म आडहइ, आडहित्ता वट्ट२. जाणगं (अ, क, ख); वाहणाई जाणाई मग्गं गाहेइ गाहेत्ता (ओ० सू० ५६) । (ओ० सू० ५६); असौ पाठः वृत्त्याधारण ६. सं० पा०-करयल जाव एवं । स्वीकृतः । ७. आइट्ठा (अ, क, ख); आय8 (ता)। ३. वटुमं (अ, ख); बट्टगं (क)। ८. ग्रूहाहि (अ); गहाहि (क); गूग्गाहि ४. आरहति (अ); आहरति (क); आरुहति (ख); दुरहादि (ता); आदिष्टं ययुष्माभि (ख); एष पाठो वृत्त्याधारण स्वीकृतोस्ति । तत्र तवारोहणादौ भद्रं कल्याणं भवत्विति शेष: 'ओवाइय' सूत्रे ५६ सूत्रस्य वृत्तावपि 'आडहडू (वृ)। त्ति आदधाति नियुङ क्ते'। ६.सं० पा०-हद्रतट्र जाव मज्जणधरं । ५. वाहणाई जाणाइं जोएइ, जोएत्ता पओय-लट्रि १०. सं० पा०-अणुपविसइ जाव कप्परुक्खए। Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा रइयवच्छे पालब-पलबमाण-पड-सुकयउत्तरिज्जे णाणामणि कणग-रयण-विमलमहरिह-णिउणोविय-मिसिमिसंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-आविद्ध- वीरवलए, कि बहुणा ?° कप्परुक्खए चेव अलंकिय-विभू सिते परिंदे' 'सकोंरटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगल-जयसद्द-कयालोए° मज्जणघराओ पडिनिक्खमति, पडि निक्खमित्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणं देवि एवं वदासि-एवं खलु देवाणु प्पिए ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे जाव संपाविउकामे पुव्वाणुपुवि' 'चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे° संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । तं महाफलं देवाणु प्पिए ! तहारूवाणं अरहंताणं' 'भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जु वासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्रस्स गहणयाए ?° तं गच्छामो देवाणप्पिए ! समण भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो 'एयं णे" इहभवे य परभवे य हिताए सुहाए खमाए निस्सेयसाए' आणुगामियत्ताए भविस्सति ॥ १२. तते णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमठं सोच्चा निसम्म हट्ट"तुट्ट चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहिया सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामि ! त्ति सेणियस्स रणो एयमझें विणएणं° पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहाता कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता। 'किं ते ?" वरपायपत्तणउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडग-खड्ड-एगावली-कठमरजतिसरय-वरवलय-हेमसुत्तय-कुंडलुज्जोवियाणणा रयणभूसियंगी चीणंसुयं वत्थं परिहिता दुगुल्ल-सुकुमार-कंतरमणिज्ज - उत्तरिज्जा सव्वोउय-सुरभिकुसुमसुंदररयित-पलंब-सोहंत-कंत-विकसंत-चित्तमाला वरचंदणचच्चिया वराभरणभूसि १. सं० पा०–णरिदे जाव मज्जणघराओ। २. सं० पा०-पुवाणुपुष्वि जाव संजमेणं । ३. सं० पा०-अरहताणं जाव तं गच्छामो । ४. एतेणं (अ, क); एतं णं (ख); एएणं (ता); द्रष्टव्यं भग० ६।१३६; ओ० सू० ५२ । ५. निस्सेसाए जाव (अ, क); निस्सेयसाए जाव ८. उविहिय (अ, क, ख); वृत्तिकृता 'उपचित कटकानि' इति व्याख्यातम्, किन्तु अन्यागमानां सन्दर्भ 'ओविय' इति पाठो युक्तोस्ति । द्रष्टव्यं 'नायाधम्मकहाओ' १११।३३ सूत्रस्य त्रयोदशं पादटिप्पणम् । ६. कंठसुमरगय (अ, क); कंठसुमरगव (ख)। १०. चीणंसुया (अ, क, ख); वृत्तिकृता 'चीनां शुकं' एतत् पदं रयणभूसियंगी' अस्मात् पदात् पूर्व व्याख्यातम् । ६. सं० पा०–हट्ठ जाव पडिसुणेइ । ७. द्रष्टव्यं भ० ६।१४४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० दसाओ यंगी कालागरुधूवधू विया सिरी- समाणवेसा' बहूहिं खुज्जाहि चिलातियाहिं जाव' महत्तरवंदपरिक्खित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सेणिए राया तेव उवागच्छति ॥ १३. तए गं से सेणिए राया चेल्लणाए देवीए सद्धि धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे' ।। १४. • तए णं तस्स सेणियस्स रण्णो धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए अट्ठ मंगलया पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया, तं जहा- सोवत्थिय- सिरिवच्छणंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ-दप्पणया । तयाणंतरं च णं पुण्णकलसभिगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा दंसण - रइयआलोय-दरिसणिज्जा वाउद्धुयविजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुव्वी संपट्टिया । तयाणंतरं च णं वेरुलिय- भिसंत- विमलदंडं पलंब कोरंटमल्लदामोवसोभियं चंद्रमंडल णिभं समूसियं विमलं आयवत्तं पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकर -कम्मकर- पुरिस - पायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुवी संपट्ठियं । तयाणंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा चावग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगग्गाहा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कृवग्गाहा हडप्परगाहा पुरओ अहावी संपट्टिया | तयाणंतरं च णं बहवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो जडिणो पिछिणो हासकरा डमरकरा दवकरा चाडुकरा कंदप्पिया कोक्कुइया किड्डुकरा य वायंता य गायंता य णचंता य हसंता य भासता य सासंता य सावेंता य रक्खता य आलोयं च करेमाणा जयजयसदं पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्टिया । तयाणंतरं च णं जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं थासग - अहिलाण- चामर-गंडपरिमंडियकडीणं किंकरवरतरुणपरिग्गहियाणं अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुवीए संपट्टियं । तयाणंतरं च णं ईसीदंताणं ईसीमत्ताणं ईसीतुंगाणं ईसीउच्छंगविसालधवलदंताणं कंचनकोसी - पविट्ठदंताणं कंचणमणिरयणभूसियाणं वरपुरिसारोहग संपउत्ताणं अट्ठयं गयाणं पुरओ अहाणुपुव्वी संपट्टियं । तयानंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सदिघोसाणं सखि खिणीजालपरिक्खित्ताणं हेमवय-चित्त-तिणिस-कणग- णिज्जुत्तदारुयाणं कालायससुकयणेमि - जंतकम्माणं सुसिलिट्ठवत्तमंडलधुराणं आइण्णवरतुरगसुसंपत्ताणं कुसलन रच्छेयसार हिसुसंपग्ग हियाणं बत्तीसतोणपरिमंडियाणं १. समावेसा ( अ, क, ख ) । २. ओ० सू० ७० । ३. दुहति ( अ ) ; दुरूहति (ख); दुरुहति (ता) | ४. सं० पा०—सकोरटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उववाइगमेणं नेयव्वं जाव पज्जुवासइ । Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा ४७१ सकंकडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरण-भरिय-जुद्धसज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं । तयाणंतरं च णं असि-सत्ति-कुंत-तोमर-सूल-लउल-भिडिमाल-धणुपाणिसज्ज पायत्ताणीयं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं ।। १५. तए णं से सेणिए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्त सिरए णरसीहे णरवई परिंदे णरवसहे मणुयरायवसभकप्पे अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहि-उद्धव्वमाणोहिं वेसमणे विव णरवई अमरवइसण्णिभाए इड्ढोए पहियकित्ती हय-गय-रह-पवरजोहक लियाए चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणव गुणसिलए चेइए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। १६. तए णं तस्स सेणियस्स रण्णो भिभिसारस्स पुरओ महं आसा आसधरा उभओ पासिं णागा णागधरा पिट्ठओ रहसंगल्लि ॥ १७. तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे अब्भुग्गयभिंगारे पग्गहियतालियंटे ऊसवियसेय च्छत्ते पवीइयवालवीयणीए सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभईए सव्वविभसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडिय-सह-सण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समदएणं महया वरतुडियजमगसमगप्पव।इएणं संख-पणव-पडह-भरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडक्कमुरय-मुइंग-दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं रायगिहस्स णयरस्स मज्झमझेणं निगच्छइ ।। तए णं तस्स सेणियस्स रण्णो रायगिहस्स णगरस्स मज्झमझेण निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किदिवसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहिं हिययगमणिज्जाहिं वग्गूहि जयविजयमंगलसएहि अणवरयं अभिणंदंता य अभित्थणता य एवं वयासी-जय-जय गंदा ! जय-जय भहा ! भदं ते. अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, जियमझे वसाहि । इंदो इव देवाणं, चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं, चंदो इव ताराणं, भरहो इव मणुयाणं, बहूई वासाइं बहूई वाससयाइं बहूई वाससहस्साई बहूई वाससयसहस्साइं अणहसमग्गो हट्टतुट्ठो परमाउं पालयाहि इट्ठजणसंपरिवुडो राय गिहस्स णय रस्स अण्णेसिं च बहूणं गामागर-णयरखेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संवाह-सण्णिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्ट-गीय वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरा हि त्ति कटु जय-जय सई प उंजंति ।। १६. तए णं से सेणिए राया भिभिसारे नयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे, हिययमालासहस्सेहिं अभिणंदिज्जमाणे-अभिणं दिज्जमाणे, मणोरहमालासहस्सेहिं Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ दसाओ विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे, वयणमालासहस्सेहिं अभिथव्वमाणे-अभिथव्वमाणे, कंतिसोहग्गगुणेहिं पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे, बहूणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे, मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणे-आपडिपुच्छमाणे, भवणपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे-समइच्छमाणे रायगिहस्स णयरस्स मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ, पासित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अवहट्ट पंच रायकउहाई, तं जहा-खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयणयं, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, (तं जहा–सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए एगसाडिय-उत्तरासंगकरणेणं चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं मणसो एगत्तिभावकरणेणं) । समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आया हिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। (तं जहा-काइयाए वाइयाए माणसियाए। काइयाए-ताव संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। वाइयाए-जं जं भगवं वागरेइ एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह अपडिकूलमाणे पज्जुवासइ। माणसियाए-महयासंवेगं जणइत्ता तिव्वधम्माणुरागरत्ते° पज्जुवासइ) ॥ २०. एवं चेल्लणावि जाव महत्तरगपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवा गच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति सेणियं रायं पुरओ काउं ठितिया चेव' 'सपरिवारा अभिमहा विणएणं पंजलिकडा पज्जुवासति । २१. तए णं समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रण्णो भिभिसारस्स चेल्लणाए देवीए तीसे य महतिमहालियाए परिसाए-इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जतिपरिसाए देवपरि साए अणेगसयाए जाव' धम्मो कहितो। परिसा पडिगया । सेणितो राया पडिगतो।। निग्गंथाणं निग्गथीणं निदानकरण-पवं २२. 'तत्थ णं एगतियाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य सेणियं रायं चेल्लणं देवि पासित्ताणं इमेयारूवे अज्झथिए' 'चितिए पत्थिए मणोगए° संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं १. कोष्ठकान्तर्वर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । याणं (ता)। २. सं० पा०-चेव जाव पज्जुवासति । ५. चेल्लणि (त।)। ३. ओ० सू० ७१-८१। ६. सं० पा०-अज्झथिए जाव संकप्पे । ४. तत्थेगतियाणं (अ, क, ख); तत्थ णं अत्थेगइ Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा ४७३ सेणिए राया महिड्ढीए' •महज्जुइए महब्बले महायसे° महेसक्खे', जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धि ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति । ण मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि, सक्खं खल अयं देवे। जति' इमस्स सुचरियस्स' 'तव-नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे'' अत्थि तं' वयमवि आगमेस्साई' इमाइं 'एयारूवाइं ओरालाई" माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरामो-सेत्तं साहू। अहो णं चेल्लणा देवी महिड्ढिया 'महज्ज इया महब्बला महायसा° महेसक्खा", जा णं ण्हाया कयबलिकम्मा२ 'कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता° सव्वालंकारविभूसिता सेणिएण रण्णा सद्धि ओरालाइं" माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणी विहरति । न मे दिट्ठाओ" देवीओ देवलोगम्मि, सक्खं खलु इयं देवी । जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमिस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं५ •माण स्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणीओ विहरामो-सेत्तं साहू" । भगवओ निग्गंथाणं निग्गंथोणं संबोध-पदं २३. अज्जोत्ति ! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि--सेणियं रायं चेल्लणं देवि पासित्ता इमेतारूवे अज्झथिए 'चिंतिए पस्थिए १. सं० पा०-महिड्डीए जाव महेसक्खे । (वृपा)। २. महण्णुभावे (ता); महासोक्खे (वृपा)। ६. x (अ, क, ख); नायाधम्मकहाओ (१।१६। ३. इदं पदं अनेकेषु सूत्रेषु प्रयुक्तमस्ति । तत्र ११३) 'तो णं' इति पाठो लभ्यते । क्वचित् 'जइ' क्वचिच्च 'सइ' इति प्रयोगो ७. आगमेस्साणं (ख, ता)। लभ्यते । प्रस्तुतसूत्रे 'जइ' पदस्य द्विःप्रयोगो ८. एताई ओरालाई एयारूवाई (अ, क, ख)। विद्यते । 'ता' प्रतौ प्रथमवारं 'जई' इति पदं ९. आदर्शषु अतोनन्तरं 'जाव' इति पदं नोपलभ्यते । द्वितीयवारं तथा अग्रे सर्वत्रापि 'सइ' लम्यते । वृतिकृता अस्य सूचना कृतास्तिइति पदं प्राप्तमस्ति । 'अ, क, ख' आदर्श भोगभोगान् पूर्ववत् यावत्करणात् महड्डीया २८, २९, ३०, ३१, ३२ सूत्रेषु 'सइ' इति पदं इत्यादि पदानि द्रष्टव्यानि । दृश्यते । चूणौं 'सइ' इति पदं व्याख्यातमस्ति १०. सं० पा०-महिड्डिया जाव महेसक्खा। सतीत्ति सत: शोभनस्य वा । वृत्ती 'जइ' पद- ११. महाणुभागा (ता) । मस्ति व्याख्यातम् । नायाधम्मकहाओ १२. सं० पा०-कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकार। (१।१६।११३) 'जई' इति पदं दृश्यते । 'सइ' १३. ओरालाई जाव (अ, क, ख)। पदस्य विभक्तिरपि चिन्तनीयास्ति । १४. दिट्ठा (अ, क, ख)। ४. X (अ, क, ख)। १५. सं० पा०-ओरालाई जाव विहरामो। ५. तवनियमबंभचेरगुत्तिफलवित्तिविसेसे (अ, १६. साहूणी (अ, क, ख, वृ)। क, ख); तवनियमगुत्तिबंभचेरफलवित्तिविसेसे १७. सं० पा०-अज्झत्यिए जाव समुप्पज्जित्था । Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ दसानों मणोगए कप्पे समुप्पज्जित्था - अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए' 'महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयको उय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धि ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति । ण मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे । जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम- बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साई इमाई एयारूवाई ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरामो० -सेत्तं साहू | अहो णं चेल्लणा देवी महिड्ढिया' 'महज्जुइया महब्बला महायसा महेसक्खा सुन्दरा', जा णं व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिता सेणिएण रण्णा सद्धि ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरति । न मे दिट्ठा देवीओ देवलोगम्मि, सक्खं खलु इयं देवी । जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम- बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमिस्साई इमाई एयाख्वाइं ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजाणीओ विहरामो० - सेत्तं साहू । से नूणं अज्जो ! अत्थे समट्ठे ? हंता अत्थि || निग्गंथस्स माणुस भोगनिदाण ( १ ) - पदं २४. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते - इणमेव निग्गंथे' पावयणे सच्चे अणुत्तरे पडिपुणे केवले संसुद्धे आउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी" सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा सिज्यंति बुज्झति मुच्चति परिनिव्वायंति' सव्वदुक्खाणमंत करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिछाए" पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे' विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिष्ण कामजाए यावि विहरेज्जा । सेय रक्कमेज्जा" । से य परक्कममाणे पासेज्जा - ' से जे इमे भवंति " उग्गपुत्ता महामाया", भोगपुत्ता महामाया', एतेसि णं अण्णतरस्स अतिजायमास् वा निज्जायमाणस्स वा" पुरओ महं दासी - दास- किंकर -कम्मकर-पुरिस-पाय -- महिड्डीए जाव सेत्तं ! २. सं० पा० - महिड्डिया सुंदरा जाव सेत्तं । ३. २२ सूत्रे एतत्पदं नैव दृश्यते । ४. 'ता' प्रतौ अनुस्वारान्तः पाठो दृश्यते । 'क्व चित् इणमेव निग्गंथं पावयणं' इत्यनुस्वारान्तं दृश्यते (दृ) । ५. अवितहमविसंधि ( क ) ; अविध अविसंघी ( अ, ख ) ; अवितथं अविसंधि ( ता ) । ६. परिनिव्वुडंति (ता) | १. सं० पा०--‍ ७. दिगं छाए (ता); दुगिछाए (चू ) । ८. पुरा पुट्ठे ( अ, क, ता, चू) । ६. तावि (त । ) । १०. परिक्कमेज्जा (ता) | ११. x ( अ, क, ख ) । १२. महासाउगा ( वृ); महामाउगा (वृपा ) । १३. अतोग्रे वृत्तौ 'उभओ' इति पदं व्याख्यातमस्ति - उभओत्ति उभयस्तेषां उग्रपुत्रादीनाम् । Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७५ त्तपरिक्खित्तं' छत्तं भिगारं गहाय निगच्छति । तदणंतरं च णं पुरतो महं' आसा आसवरा' उभओ पासि नागा नागवरा' पिट्ठओ 'रहा रहवरा" रहसंगेल्लि' । सेणं उद्धरियसेयच्छत्ते" अब्भुग्गतभिंगारे पग्गहियता लियंटे' पवियन्नसेयचामरवालवीयणी' अभिक्खणं अतिजातिय - णिज्जातिय - 'सप्पभासे पुव्वावरं "" च णं ण्हाते कयबलिकम्मे" कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ते सिरसा व्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणिसुवणे कप्पियमालमउलिम उडबद्धसरीरे आसत्तोसत्तवग्घारित-सोणिसुत्त-मल्लदामकलावे अहत-वत्थ- परिहिए चंदणु क्खित्तगातसरीरे महतिमहालियाए" कूडागार - साला महतिमहालयंसि 'सर्याणिज्जंसि दुहतो उन्नते मज्झे णतगंभीरे वण्णओ १३ सव्वरातिणिएणं जोतिणा क्रियायमाणेणं इत्थीगुम्मपरिवुडे" महताहत - णट्ट-गीतवाइय-तंती-तल-ताल-तु डिय- घण-मुइंग-मद्दल पडुप्पवाइयरवेणं" ओरालाई माणुस्सगाईं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति । तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवृत्ता" चेव अब्भुट्ठेति । भण सामी" ! किं करोमो " ? किं आहरामो ? किं उवणेमो ? किं आचेट्ठामो ? कि भे हियइच्छितं " ? कि भे आसगस्स सदति ? जं" पासित्ता निग्गंथे निदाणं करेति – जइ " इमस्स सुचरियस्स तव नियम दसमा दसा १. पाइक्स (ता) । २. महा ( अ, क, ख ) । ३-४. ‘ओवाइय' सूत्रे ( सू० ६६) 'आसघर । णागधरा' इति पाठ: स्वीकृतोस्ति । 'आसवरा नागबरा' इति पाठान्तरमस्ति । ५. रधा रधवरा (ता) । ६. संगिल्ली (ता) । रधसंगिल्ली ७. ओघरिय ( अ, क, ख ) ; ऊसवियसेयच्छते ( ओ० सू० ६७ ) । ( अ, क, ख ) ; ८. तायंटे (ता) | ६. वीतिज्ज माणसेय (ता) | १०. संप्पभास पुव्वावरं ( क, ख ) ; सप्पभा सपुव्यावरं (वृ) । ११. 'अ, क, ख' प्रतिषु अतः 'सरीरे' इति पदपर्यन्तं संक्षिप्तपाठोस्ति - ' कयबलिकम्मे जाव सव्वालंकारभूसिते' । वृत्तौ — सिरसा पहाए आवद्ध मणिवणे कप्पियमालमउलिमउडबद्धसरीरे आसत्तोसत्त' इति वाक्यानि व्याख्यातानि नैव दृश्यते । १२. महल्लियाए (ता) । १३. सीहासणंसि जाव ( अ, क, ख ); अत्र जाव पदस्य कापि सार्थकता न दृश्यते । द्रष्टव्यं सूयगडो (२२०३१) । वृत्तावपि 'शयनीये' इति व्याख्यातमस्ति तथा तत्र उट्टङ्कितानि विशेषणानि 'शयनीयस्य दृश्यन्ते । द्रष्टव्यं नायाधम्मकाओ (१|१|१८ ) वृत्तिकारस्य सम्मुखीने आदर्शप एवं पाठः आसीत् — उभओ विब्बोयणे दुहओ उष्णए मज्झे नय-गंभीरे aurओ । १४. इत्थीगुम्मसद्धि संपरिवुडे (ता) । १५. अतो चूर्णी 'घणवाइतं घणा मेघा, तेसि निग्धोसो मेघरव इत्यर्थः इति व्याख्यातमस्ति । १६. अवुत्ता (ता) | १७. देवाणुप्पिया ( अ, क, ख ) । १८. चूणौं एतद् व्याख्यातं नास्ति । १६. हियं इच्छियं (क) । २०. 'जं' इति कर्मपदस्य 'एतेसि अण्णतरस्स' अनेन योगः कार्यः । २१. सइ ( अ, क, ख ) । Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसाओ बंभचरेवासस्स "कल्लाणे फल वित्तिविसेसे अत्थि, तं अहम वि आगमिस्साई इमाई एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरामि-सेत्तं साहू । एवं खलु समणाउसो! निग्गंथे निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयप्पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवति'महिड्ढिएसु जाव चिरद्वितीएसु। से णं तत्थ देवे भवति महिड्ढिए जाव भुंजमाणे विहरति । से णं ताओ देवलोगातो आउक्खएणं 'भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया', एतेसि ण अण्णतरसि कुलसि पुत्तत्ताएपच्चायाति। से णं तत्थ दारए भवति-सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे । तए णं से दारए उमुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी-दास-किंकर-कम्मकर-पुरिस-पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छति जाव किं भे आसगस्स सदति ? तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खेज्जा ? हंता आइक्खेज्जा। १. सं० पा०-तं चेव जाव साहू। २. वृत्तौ अस्य स्थाने एतादृशः पाठो दृश्यते अणालोइय अपडिक्कमिय अकरणयाए अणब्भुट्रिय अहारियं पायच्छितं तवोकम्मं अपडि. वज्जिय द्रष्टव्यं ठा० ३३३३८ । अणालोइत्ता अकरणए अणुब्भुट्टित्ता (ता)। ३. भवंति (अ, क, ता, वृ) । प्राकृतव्याकरणे (हैम० ८।३।४५,४८) तृच् प्रत्ययान्तस्य 'उववत्ता उववत्तारो' इति रूपद्वयं भवति । 'उववत्तारो' इति पदं संस्कृतदृष्ट्या बहुवचनान्तं मत्वा अस्याग्रे 'भवंति' इति क्रियापदं प्रचलितमभूत् स्थानाङ्गे (८।१०) प्येवमस्ति । तत्र वृत्तिकृता एवं टिप्पणी कृता-'उववत्तारो' त्ति वचनव्यत्ययादुपपत्ता भवतीति । भगवती (२१८०) वत्तावपि एवमेव दृश्यते-प्राकृत- शैल्या उपपत्ता भवतीति दृश्यम् । प्रस्तुतसूत्रस्य 'ख' संकेतिते प्रयुक्तादर्श 'भवति' इति क्रिया- पदं लभ्यते । अत्र कर्तृपदं एकवचनान्तमस्ति तेन 'उववत्तारो भवति' इति पाठः सङ्गच्छते। ४. ठा० ८।१०। ५. अयं पाठः अनेकस्थाने अनेकरूपेण संक्षिप्ती कृतोस्ति यथा प्रस्तुतसूत्रे देवे भवति महिड्डिए जाव चिरद्वितीए । २५ सूत्रे देवे भवति जाव भुंजमाणे विहरति । २६ सूत्र देवे भवति महिड्एि जाव विहरति । २७ सूत्रे देवे भवति महिड्डिर जाव चइत्ता । २८ सूत्र महिड्डिएसु जाव पभासेमाणे । २६ सूत्र 'तं चेव जाव सव्वं' । एवं-३० सूत्रे तं चेव जाव विहरति । ३१ सूत्र देवत्ताए उववत्तारो भवंति जाव किं । ३२ सूत्र 'सव्वं तं चेव जाव से णं'। अस्य पूर्तिः एकस्मादेव सूत्राद् जायते । द्रष्टव्यं ठाणं ८।१०। एतेन कारणेन अस्य ग्रहणं महिड्डिए जाव भुंजमाणे विहरति इति एक रूपमेवकृतम् । ६. ठितिक्खएणं (अ, क); ठितिक्खएणं भवक्ख एणं (व)। ७. पुमत्ताए (ता)। ८. ओ० सू० १४३ । ६. अइआयमाणस्स (ता)। १०. पुरओ जाव (अ, क, ख)। Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा से णं भंते ! पडिसुणेज्जा ? णो इट्ठे समत्थे', अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणयाए । से य भवइमहिच्छे महारंभ महापरिग्गहे अहम्मिए जाव' आगमिस्साणं दुल्लहबोहिए' यावि भवइ । एवं खलु समणाउसो ! तस्स णिदाणस्स इमेतारूवे पावए' फलविवागे जं णो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्मं पडिसुणेत्तए || निग्गंथीए माणुस्सभोगनिदाण ( २ ) - पदं २५. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते " - इणमेव निग्गंथे पावयणे' "सच्चे अणुत्तरे पुणे केवले संसद्धे णेआउर सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा सिज्यंति बुज्भंति मुच्चति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्टिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहि उदिष्णकाम - जाया' यावि विहरेज्जा । सा य परक्कमेज्जा | साय परक्कममाणी पासेज्जा-से जाइमा इत्थिया भवति - एगा एगजाया 'एगाभरण - पिहाणा" तेल्लपेला" इव" सुसंगो पिता" चेलपेला" इव सुसंपरिग्गहिया रयणकरंडगसमाणा । तीसे णं अतिजायमाणी " वा निज्जायमाणीए वा पुरओ महं दासी दास - किंकर -कम्मकरपुरिस - पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिगारं गहाय निगच्छति जाव" किं" भे आसगस्स सदति ? जं पासित्ता निग्गंथी निदाणं करेति – जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम""बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, अहमवि आगमिस्साई इमाई एयारूवाई ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई° भुंजमाणी विहरामि " - सेत्तं साहू" । १. समट्ठे (ता) | २. समाए (ता) | ४७७ ३. सू० २२/५८- ६१ । ४. दुलभबोही (ता) । ५. तं एवं ( अ, क, ख, ता ) । ६. x ( अ, क ) ; पाव ( ख ) | ७. पण्णत्ते तं जहा ( अ, क, ख ) । ८. सं० पा० - पावणे जाव सव्वदुक्खाणमंतं । ६. उत्तिन्नं (ता) । १०. एगाभरणा पिहणा ( अ, क ) ; एगाभरणा गाणा (ता) | ११. तेल्लकेला (ता); तेलकेला ( वृपा ) | १२. इवा ( अ, क, ख ) । १३. सुसंगोफिया (ता) । १४. चेडपेला (ता) | १५. अइयाइमाणीए ( ता ) । १६. दसा० १०।२४ । १७. किंवा (ता) | १८. सं० पा० - नियम जाव भुंजमाणी । १६. विहरिस्सा मि ( ता ) । २०. साहूणी ( अ, क, ख | Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ दसाबो एवं खल समणाउसो ! निग्गंथी निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कता' कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारा भवत्ति-महिढिएसु जाव चिरद्वितीएसु । साणं तत्थ देवे भवति-महिड्ढिए जाव' भुंजमाणे विहरति । से' णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया', एतेति णं अण्णतरंसि कुलंसि दारियत्ताए पञ्चायाति । सा णं तत्थ दारिया भवतिसूकूमालपाणिपाया जाव' सूरूवा। तते णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मक्कबालभावं विण्णय-परिणयमेत्तं जोव्वणगमणुपत्तं पडिरूवेणं सुक्केणं 'पडिरूवेणं रूवेणं" पडिरूवस्स भत्तारस्त भारियत्ताए दलयंति । सा णं तस्स भारिया भवति–एगा एगजाता 'एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला इव सुसंगोपिता चेलपेला इव सुसंपरिग्गहिया रयणकरंडगसमाणा । तीसे णं अतिजायमाणीए वा निज्जायमाणीए वा पुरतो महं दासी-दास-किंकर-कम्मकर-पुरिस-पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छति जाव किं मे आसगस्स सदति ? तीसे णं तहप्पगाराए इत्थियाए तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्म आइक्खेज्जा? हंता आइक्खेज्जा। सा णं भंते ! पडिसणेज्जा? णो इणठे समत्थे, अभविया णं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए । सा च भवतिमहिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अहम्मिया जाव" आगमिस्साए दुलभबोहिया यावि भवति । एवं खलु समणाउसो ! तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावएर फलविवागे, 'जं णो" संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणेत्तए । निग्गंथस्स इत्थीभवणनिवाण (३)-पवं २६. एवं खलु समणाउसो । मए धम्मे पण्णत्ते–इणमेव" निग्गंथे पावयणे" "सच्चे अणुत्तरे १. अणालोइत्ता अपडिक्कंता (क); अणालोएत्ता एतादृशः पूरक: पाठः क्वापि नोपलभ्यते । जाव अपडिवज्जित्ता (ता)। तेन ते पाठान्तररूपेण स्वीकृते । २. से (ता)। ८. जाव (ब, क, ख)। ३. ठा० ८।१०; द्रष्टव्यं दसा० १०२४ सूत्रस्य ९. केवलियं (ता)। पादटिप्पणम् । १०. समणयाए (ता)। ४. सा (अ, क, ख)। ११. जाव दाहिणगामिए नेरइए (म, क, ख); ५. ओ० सू० १४३ । जाव दाहिणगामिणीए नेरइए (ता); सू०६. X (अ, क)। २।२।५८-६१। ७. सं० पा०-एगजाता इट्टा कंता जाव रयण १२. पाव (अ, क, ख)। १३. जण्णो (ता)। करंडगसमाणा; एतस्यैव सूत्रस्य एतत् तुल्ये १४. इणामेव (ख)। पूर्वालापके 'इट्ठा कंता' एते पदे न स्तः । १५. सं० पा.-पावयणे तह चेव । Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा ४७९ पडिपुण्णे केवले संसद्धे णेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्टिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए' 'पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा । से य परक्कममाणे पासेज्जा-से जा इमा इथिका भवति–एगा एगजाता' 'एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला इव सुसंगोपिता चेलपेला इव सुसंपरिग्गहिया जाव' किं भे आसगस्स सदति ? । जं पासित्ता निग्गंथे निदाणं करेति-दुक्खं खलु पुमत्तणए, 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया', एतेसि णं अण्णतरेसु उच्चावएस ‘महासमरसंगामेसु" उच्चावयाइं सत्थाई उरंसि चेव पतंति,' तं दुक्खं खलु पुमत्तणए, इत्थितणयं साहू । जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहम वि' आगमेस्साई इमेयारूवाइं ओरालाई इत्योभोगाइं भुंजिस्सामि--से तं साहू। एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथे निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु• 'देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति-महिडिढएस जाव चिरट्रितीएस० । से णं तत्थ देवे भवति-महिडिढए जाव भंजमाणे विहरति" । से गं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं 'भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया', एतेसि णं अण्णतरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति" । 'सा णं तत्थ दारिया भवति-सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा । तते णं तं दारियं" 'अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विण्णय-परिणयमेत्तं जोव्वणगमणुपत्तं पडिरूवेणं सुक्केणं पडिरूवेणं रूवेणं पडिरूवस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलयंति । साणं तस्स भारिया भवति–एगा एगजाता •एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला इव सुसंगोपिता चेलपेला १.सं० पा०-दिगिछाए जाव से य । स्सामो (ता)। २. सं० पा०-एगजाता जाव किं भे। ६. अणालोइय अपडिक्कंते जाव अपडिवज्जित्ता ३. दसा० १०॥२५ । (ख); अणालोएत्ता जाव पडिवज्जेत्ता ४. महासंगामेसु (क)। (ता)। ५. पडिसंवेदेति (म, क, ख); पडिसंवेएंति १०. सं० पा०-अण्णतरेसु जाव से तं । (ता); एतत् पदं वृत्त्याधारेण स्वीकृतम् । ११. द्रष्टव्यं दसा० १०२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । 'पडिसंवेदेति' इति क्रियापदस्य कर्ता नव १२. सं० पा०-आउक्खएणं जाव अण्णतरंसि । दृश्यते । १३. सं० पा०-पच्चायाति जाव तते णं । ६. क्यमवि (अ, क, ख, ता)। १४. सं० पा०-दारियं जाव भारियत्ताए। ७. आगमेस्साणं जाव (ख)। १५. सं० पा०-- एगजाता जाव तहेव मव्वं भाणि८. भुंजिस्सामो (अ, क, ख); भुंजमाणे विहरि- यव्वं । Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० दसाबो इव सुसंपरिग्गहिया रयणकरंडगसमाणा । तीसे णं अतिजायमाणीए वा' 'निज्जायमाणीए वा पुरतो महं दासो-दास-किंकर-कम्मकर-पुरिस-पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छति जाव' किं भे आसगस्स सदति ? 'तीसे णं" तहप्पगाराए इथिकाए तहारूवे समणे वा माहणे वा' 'उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्म आइक्खेज्जा ? हंता आइक्खेज्जा। सा णं भंते ! पडिसणेज्जा ? णो इणठे समठे, अभविया णं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए । सा य भवतिमहिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अहम्मिया जाव' आगमिस्साए दुल्लभबोहिया यावि भवति। एवं खलु समणाउसो ! तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे, जं णो संचा एति केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणेत्तए ।। निग्गंथीए पुरिसभवणनिदाण (४)-पदं २७. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते- इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अण त्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे णेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए' 'पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा । सा य परक्कमेज्जा । सा य परक्कममाणी पासेज्जा-'से जे इमे भवंति° उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया'", 'एतेसि णं अण्णतरस्स अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी-दास-किंकरकम्मकर-पुरिस-पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छति जाव किं भे आसगस्स सदति? जं पासित्ता निग्गंथी निदाणं करेति-दुक्खं खलु इत्थित्तणए दुस्संचाराई गामतराई जाव" सण्णिवसंतराई । से जहानामए अंबपेसियाति वा अंबाडगपेसियाति वा मातुलुंगपेसियाति वा मंसपेसियाति" वा उच्छृखंडियाति वा संबलिफालियाति" १. सं० पा०-अतिजायमाणीए वा जाव किं भे। १०. x (अ, क)। २. दसा० १०।२४। ११. सं० पा०-महामाउया जाव किं भे। ३. अह णं भंते (ता)। १२. दसा० १०॥२४ । ४. सं० पा०-माहणे वा जाव णं पडिसुणेज्जा। १३. ओ० सू० ८६ । ५. सू० २।२।५८-६१ । १४. वृत्तौ से जहानामए' इत्यन्तरं 'मंसपेसिया' ६. तं एवं (अ, क, ख)। इति पदं व्याख्यातमस्ति । 'ता' प्रतावपि ७. फलविवागे भवति (अ, क, ख, ता)। इत्थमेव पाठविन्यासो दृश्यते--मंसपेसियाइ ८. सं० पा०-पावयणे सेसं तं चेव जाव जस्स। वा अंब अंबाडय माउलिंगपेसियाइ । ६. सं० पा०-दिगिंछाए जाव उदिण्णकामजाता। १५. संवलिवालियाइ (ता)। Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा ४८१ वा बहुजणस्स आसायणिज्जा पत्थणिज्जा' पीहणिज्जा अभिलसणिज्जा एवामेव इत्थिकावि बहुजणस्स आसायणिज्जा' •पत्थणिज्जा पीहणिज्जा अभिलसणिज्जा, तं दुक्खं खल इत्थित्तणए, पुमत्तणए साह । जइ इमस्स सरियस्स तव-नियम'बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे° अस्थि तं अहम वि आगमेस्साइं 'इमेयारूवाइं ओरालाई भोगभोगाई जिस्सा मि-से तं साहू। एवं खल समणाउसो ! निग्गंथी निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसू देवत्ताए उववत्तारो भवति-- महिड्ढिएसु जाव चिरद्वितीएसु । सा णं तत्थ देवे भवति–महिड्ढिए जाव' • जमाणे विहरति । से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता, 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता' 'महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया', एतेसि णं अण्णतरंसि कुलंसि पुत्तत्ताए" पच्चाया ति । से णं तत्थ दारए भवति–सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे । तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणय मित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी-दास-किंकरकम्मकर-पुरिस-पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छति जाव किं भे आसगस्स सदति ? तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स •तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खज्जा ? हंता आइक्खेज्जा। से णं भंते ! पडिसुणेज्जा ? नो इणठे समत्थे', अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणयाए । से य भवइ-महिच्छे" 'महारंभे महापरिग्गहे अहम्मिए जाव आगमिस्साणं दुल्लहबोहिए यावि भवति। १. पिच्छणिज्जा (ता)। ज्जित्ता (ता)। २. सं० पा०-आसायणिज्जा जाव अभिलस- ८. सं० पा०-महिड्डिए जाव चइत्ता। णिज्जा। ६. द्रष्टव्यं दसा० १०।२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. पुरिसत्तणयं (ता)। १०. सं० पा०-उग्गपुत्ता तहेव दारए जाव किं ४. सं० पा०–तवनियम जाव अस्थि । ५. इमाइं एयारूवाइं पुरिसभोगभोगाइं (ख)। ११. पूमत्ताए (ता)। ६. भुंजमाणे विहरिस्सामो (क); भुंजमाणी १२. सं० पा०—पुरिसजातस्स जाव अभविए। विहरिस्सामो (ता)। १३. केवलियं (ता)। ७. अणालोइयमपडिक्कंता (अ); अणालोइय १४. सं० पा०-महिच्छे जाव दाहिणगामिए जाव अपडिक्कंता जाव अपडिवज्जेत्ता (क); दुल्लभबोहिए। अणालोइयमपडिक्कता जाव अपडिवज्जेत्ता १५. सू० २।२।५८-६१ । (ख); अणालोइयपडिक्कता जाव अपडिव- . Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ दसाओ एवं खलु' 'समणाउसो ! तस्स' निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे, जं णो संचाएति केलिपण्णत्तं धम्म° पडिसुणेत्तए ।। निग्गंथ-निग्गंथीए परदेवीपरिचारणानिदाण (५)-पदं २८. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते-इणमेव निग्गंथे पावयणे' 'सच्चे अणुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे णेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति° । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्टिए विहरमाणे पुरा दिगिछाएं 'पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुढे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं° उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा । से य परक्कमेज्जा । से य परक्कममाणे माणस्सेहि कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा-माणस्सगा' खल कामभोगा अधवा अणितिया असासता सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-वंत-पित्त-सुक्कसोणियसमुब्भवा दुरुय-उस्सास-निस्सासा दुरुय-मुत्त-पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा । संति उड्ढं देवा देवलोगंसि । ते णं तत्थ अण्णेसिं देवाणं देवीओ अभिमुंजिय-अभिमुंजिय परियारेति, अप्पणिच्चियाओ देवीओ अभिमुंजिय-अभिजु जिय परियारेति, अप्पणामेव अप्पाणं विउन्वित्ता-विउव्वित्ता परियारेति । जति इमस्स सुचरियस्स तव •नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे अत्थि तं° अहमवि आगमेस्साई इमाइं एतारूवाइं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरामि-से तं साहू । एवं खल समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेस देवत्ताए उववत्तारो भवति–महिडिढएस जाव चिरद्वितीएस् । से णं तत्थ देवे भवति महिड्ढिए जाव भुंजमाणे विहरति । से णं तत्थ अण्णेसिं देवाणं देवीओ" १. सं० पा०--खलु जाव पडिसुणित्तए । ६. अवस्सं विप्पजहणिज्जा (अ, क) । २. जस्स (ता)। ७. अप्पणा चेव (अ, क, ख, ता)। ३. सं० पा०-पावयणे तहेव । ८. सं० पा०-तव तं चेव सव्वं भाणियन्वं जाव ४. सं० पा०-दिगिछा जाव उदिण्णकामभोगे। वयमवि । ५. अतः 'संति उड्ढं' पर्यन्तं 'ता' प्रती इत्थं ६. भवंति तं जहा (अ, क, ख)। पाउभेदोस्ति-माणुस्साणं खलु कामभोगा १०. द्रष्टव्यं दसा० १०॥२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । असुई असासया वंतासिवा पित्तासिवा खेला- ११. सं० पा०--अण्णं देवं अण्णं देवि तं चेव जाव सिवा सोणियासवा दुरुवउस्मासनिस्सासा परियारेति; आदर्शषु 'अण्णं देवं अण्णं देवि' दुरुवमुत्तपुरीसपूतिवाहपडिप्पुन्ना उच्चार- इति पाठो लभ्यते, किन्तु निदानकाले अस्माद् पासवणखेलसिंघाणगवंतपित्ता सुक्कसोणिय- भिन्नोस्ति पाठः । उभयत्रापि पाठसादृश्यमुचितं मिज्जसंभवा अधुवा अणियया सडणविद्धं- स्यात्, तेन आदर्शगतः पाठः पाठान्तरत्वेन सणधम्मा पुरंधणं अवस्सं विप्पजहणिज्जा स्वीकृतः । संति खलु सुहं । Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा • अभिजुंजिय- अभिजुंजिय परियारेति, अप्पणिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजियअभिजुंजिय परियारेति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्वित्ता- विउव्वित्ता परियारेति । सेणं तातो देवलोग़ातो' 'आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाया, भोगपुत्ता महामाउया,' एतेसि णं अण्णतरं सि कुलं सि पुमत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थ दारए भवति सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे । तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विणय-परिणयमित्ते जोव्वणगमण पत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी दास- किंकर -कम्मकर- पुरिस - पायत्त परिक्खित्तं छत्तं भिगारं गहाय निगच्छति' जाव' किं भे आसगस्स सदति ? तस्स णं तपगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा' 'उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममा इक्खेज्जा ? हंता आइक्खेज्जा | से भंते ! पडिसुजा ? हंता" पडिसज्जा | से णं भंते! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? नो इट्ठे समट्ठे, अभविए णं से तस्स धम्मस्स सद्दहणयाए ' ' " पत्तियाए' रोयणा" । से य भवति महिच्छे' 'महारंभ महापरिग्गहे अहम्मिए जाव' 'आगमेस्साए दुल्लहबोहिए यावि भवइ । एवं खलु समणाउसो ! तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे, जं जो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्मं सद्दहित्तए वा पत्तइसए वा रोइत्तए वा ॥ निग्गंथ-निग्गंथीए सगदेवीपरिचारणानिवाण (६)-पवं २६. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते' - 'इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे आउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खपहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा सिज्यंति बुज्झति मुच्चति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंधी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहि उदिष्णकामभोगे याविविरेज्जा° । से य परक्कमेज्जा से य परक्कममाणे 'माणुस्सएसु कामभोगेसु" निव्वेदं 1 १. सं० पा० – देवलोगाओ तं चैव पुमत्ताए जाव कि भे । ४८ ३ २. दसा० १० २४ । ३. सं० पा०-- माहणे वा जाव पडिसुणेज्जा । ४. सं० पा०—सद्दहणयाए जाव रोयणाए । ५. x ( अ, क, ख ) । ६. सं० पा० - महिच्छे जाव आगमेस्साए । ७. सू० २।२।५८ ६१ । ८. सं० पा० - पण्णत्ते तं चैव । C. माणुस्सएहि कामभोगेहि ( ता ) ! Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ दसाओ गच्छेजा-माणुस्सगा खलु कामभोगा अधवा अणितिया' असासता सडण-पडणविद्धसणधम्मा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-वंत-पित्त-सक्क-सोणियसमभवा दुरुय-उस्सास-निस्सासा दुरुय-मुत्त-पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा । संति' उड्ढे देवा देवलोगंसि । ते णं तत्थ णो अण्णं देवं णो अण्णं देविं अभिजुजिय-अभिमुंजिय परियारेति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेति । जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे अत्थि, तं अहम वि आगमेस्साइं इमाई एतारूवाइं दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरामि-से तं साहू। एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववतारो भवति-महिड्ढिएसु जाव चिरद्वितीएसु । से णं तत्थ देवे भवति–महिड्ढिए जाव भुजमाणे विहरति । से णं तत्थ णो अण्णं देवं णो अण्णं देवि अभिजुजियअभिजुजिय परियारेति, अप्पणिच्चियाओ देवीओ अभिमुंजिय-अभिजुजिय परियारेति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेति । से णं तातो देवलोगातो आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया', एतेसि णं अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थ दारए भवति-सुकमालपाणिपाए जाव सुरूवे । तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणय मित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी-दासकिंकर-कम्मकर-पुरिस-पायत्तपरिक्खितं छत्तं भिगारं गहाय निगच्छति जाव' किं भे आसगस्स सदति ? तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे सभणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खेज्जा ? हंता आइक्खेज्जा। से णं भंते ! पडिसुणेज्जा ? हंता पडिसुणेज्जा। से णं भंते ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? नो इणठे समठे, 'णण्णत्थरु ई, रुइमादाए" से य भवति । से जे इमे आरणिया आवसहिया' गामणियंतिया कण्हुइरह स्सिया", नो बहुसंजता" १.सं० पा०-अणितिया तहेव जाव संति । ७. केवलियं (ता)। २. संति खलु (ता)। ८. अन्नत्थरुई रुयिमायाए (ता); रुचिमात्रया ३. अप्पणा (अ, क, ख)। इत्यर्थः। ४. सं० पा०-तव तं चेव सव्वं जाव से णं । ६. आवसिया (अ, क, ख)। ५. द्रष्टव्यं दसा० १०॥२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । १०. कण्ह यिरहस्सिया (अ, क, ख) । ६. दसा० १०२४। ११. पहुसंजया (ता)। Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८५ बहुविता सव्वपाण- भूत- जीव-सत्तेसु, ते अप्पणा सच्चामोसाई एवं विडंजंति' - अहं ण हंतव्वो अण्णे हंतव्वा, 'अहं ण अज्जावेतव्वो अण्णे अज्जावेतव्वा, अहं ण परियावेत व अण्णे परियावेतव्वा, अहं ण परिघेतव्वो अण्णे परिघेतव्वा, अहं ण उद्दवेतव्व अण्णे उवेतव्वा" । एवमेव इत्थिकामेहि' मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा जाव 'वासाई चउपंचमाई छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा भुंजित्तु भोगभोगाई" कालमासे कालं किच्चा 'अण्णयरेसु आसुरिएस किब्बिसिएस ठाणेसु" उववत्तारो भवंति । ततो विमुच्चमाणा भुज्जो एलमूयत्ताए 'तमूयत्ताए जाइमूयत्ताए" पच्चायंति । एवं खलु समणाउसो ! तस्स निदाणस्स' 'इमेतारूवे पावए फलविवागे, जं० णो चाति के पिण्णत्तं धम्मं सहित्तए वा पत्तइत्तए वा रोइत्तए वा ॥ निग्गंथ-निग्गंथीए सहजदिग्वभोग-निदाण ( ७ ) - पदं दसमा दसा ३०. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते - 'इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे पडणे केले संसुद्धे आउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जानमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा सिज्यंति बुज्भंति मुच्चति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो ar fair वा सिखाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा से य परक्कममाणे माणुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेज्जा - माणुस्सा खलु कामभोगा अधुवा" 'अणितिया असासता सडण१. विप्पडिवेदेति ( अ, क, ख ) ; पयुंजंति ( ता ) ; परंजंति ( चू); सूत्रकृतांगस्य ( २/२/१४ ) तथा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तेश्चाधारेणासी पाठ: स्वीकृतः । २. एवं हंतव्वा एवं अज्जावेत्तव्वा परिघेत्तव्वा अहं ण उदवेतव्वो अन्ने य उद्दवेअव्वा य (AT) I ३. विविकामेहि (ता) | ४. x ( अ, क, ख ) ; चिह्नितः पाठः आदर्शेषु नापिकारणेन त्रुटितो जातः । चूण वृत्तौ च व्याख्यातोस्ति 'ता' प्रती किञ्चिद् पाठभेदेनासो प्राप्तोस्ति - वासाई चउपंचमाई अप्पतरो वा भुज्जतरो वा भुंजित्ता भोग भोगाई | सूत्रकृतांगे ( २।२।१४ ) एतादृश: आलापको विद्यमानोस्ति, तत्रापि असौ पाठो लभ्यते । चूणौ 'पव्वइता अणियत्तभोगासा' इति पदे उल्लिखिते स्तः; वृत्तावपि एते विद्येते । एते 'भोगभोगाई' इति पदानन्तरं सम्भाव्येते । वृत्तौ च 'भुंजित्तु' पदात् पूर्वं त्यक्त्वापि गृहवासं इति व्याख्यातमस्ति । ५. अण्णतराई असुराई किब्बिसियाई ठाणाई ( अ, क, ख ) ; सूत्रकृतांगे (२।२।१४ ) एतानि पदानि सप्तम्यन्तानि सन्ति, चूण वृत्तावपि च । ६. विमुच्चमाणा ( अ, क, ख ); वियुज्जमाणा (चू) । ७. X ( अ, क, ख ) ; सूत्रकृतांगे ( २ |२| १४ ) एते पदे स्तः, चूर्णौ वृत्तावपि च । ८. सं० पा०—निदाणस्स जाव णो । ९. सं० पा० --- पण्णत्ते जाव माणुस्सगा । १०. सं० पा०-- अधुवा तहेव संति । Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ दसाओ पडण-विद्धसणधम्मा उच्चार पासवण - खेल - सिंघाण-वंत-पित्त सुक्क सोणिय समुब्भवा दुरुय - उस्सास - निस्सासा दुरुय मुत्त-पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजह णिज्जा | संति उड्ढं देवा देवलोगंसि । ते णं तत्थ अणं देवं णो णं देवि अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, णो अप्पणिच्चि - याओ देवीओ अभिजुंजिय- अभिजुंजिय परियारेंति, जो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय - विउब्विय परियारेंति । जइ इमस्स सुचरियस्स तव - नियम' - 'बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साई इमाई एतारूबाई दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरामि - से तं साहू° । एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा अणालोइय • डिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवति - महिड्दिएसु जाव चिरद्वितीएसु । से णं तत्थ देवे भवति - महिड्दिए जाव भुंजमाणे' विहरति । से णं तत्थ णो अण्णं देवं णो अण्णं च देवि अभिजुंजियअभिजुंजिय परियारेति णो अप्पणिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेति णो अप्पणामेव अप्पाणं विउब्विय विउब्विय परियारेति । से णं ताओ देवलगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं" " ठितिक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता 'से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाज्या, भोगपुत्ता महामाया', एतेसि णं अण्णतरंसि कलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थ दारए भवति - सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे । तणं से दार उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी - दास - किंकर -कम्मकर- पुरिस - पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिगारं गहाय निगच्छति जाव' किं भे आसगस्स सदति ? तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवल पण्णत्तं धम्ममाइक्खेज्जा ? हंता आइक्खेज्जा | णं भंते ! पडणेज्जा ? हंता पडिसुणेज्जा । से णं भंते ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा° ? हंता सहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा । से णं भंते ! सील-व्वत-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा ? णो तिणट्ठे समट्ठे । से णं दंसणसावए भवति - अभिगतजीवाजीवे जाव' अट्ठिमिजप्पेमाणुरागरत्ते, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमठ्ठे सेसे १. सं० पा० तवनियम तं चैव जाव एवं । २. सं० पा० - अणालोइय तं चैव जाव विहरति । तस्स ठाणस्स अणालोइत्ता जाव अपरिवज्जित्ता (ता) । ३. द्रष्टव्यं दसा० १०।२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ४. भव्वं अन्नभव्वं ( अ, क, ख ) । ५. सं० पा० - भवक्खएणं तं चैव वत्तव्वं नवरं हंता सज्जा । ६. दसा० १०।२४ । ७. ओ० सू० १६२ । Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा ४८७ अणठे । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवति। एवं खलु समणाउसो ! तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे, जं णो संचाएति सील-व्वत-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जित्तए । निग्गंथ-निग्गंथीए समणोवासगभवण-निदाण (८)-पदं ३१. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते'-'इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे णेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनव्वायं ति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा । से य परक्कमेज्जा । से य परक्कममाणे दिव्वमाणुस्सेहिं कामभोगेहि निव्वेदं गच्छेज्जा-माणुस्सगा' कामभोगा अधुवा' 'अणितिया असासता सडणपडण-विद्धंसणधम्मा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसमुब्भवा दुरुय-उस्सास-निस्सासा दुरुय-मुत्त-पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अणितिया असासता चला चयणधम्मा पुणरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा। जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम- बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया', 'भोगपुत्ता महामाउया', एतेसि णं अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए पच्चाइस्सामि', तत्थ णं समणोवासए भविस्सामि-अभिगतजीवाजीवे जाव फासएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे विहरिस्सामि। से तं साहू। एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय° •पडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति"-'महिड्ढिएसु जाव चिरट्टितीएसु । से णं तत्थ देवे भवति । महिड्डिए जाव भुंजमाणे विहरति । से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता ‘से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महा१. सं० पा०-पण्णत्ते तं चेव सव्वं जाव से य । युज्यते । ३२ सूत्रेणाप्यस्य पुष्टिर्जायते । २. माणुस्सा खलु (ता)। ७. ओ० सू० १६२ । ३. सं० पा०-अधुवा जाव विप्पजहणिज्जा । ८. फासुयएस (ता) । ४. सं० पा०--तवनियमस्स जाव आगमेस्साणं । ६. खायम (ता)। ५. सं० पा०-महामाउया जाव पुमत्ताए। १०. सं० पा०-अणालोइय जाव देवलोएस् । ६. पच्चायंति (अ, क, ख); कर्तृपदस्य संदर्भ ११. सं० पा०-भवंति जाव कि भे। अत्र उत्तमपुरुषस्य एकवचनान्तं क्रियापदे १२. द्रष्टव्यं दसा० १०२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ दसाओ माउया, भोगपुत्ता महामाया,' एतेसि णं अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए पच्चायाति । से' णं तत्थ दारए भवति - सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे । तए णं से दारए उम्मुकबालभावे विण्णय-परिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति । तस्स णं अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासीदास-किंकर -कम्मकर-पुरिस- पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिगारं गहाय निगच्छति जाव' किं भे आसगस्स सदति ? तस्स णं तह पगारस्स पुरिसजातस्स' 'तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्म माइक्खेज्जा ? हंता आइक्खेज्जा | गं भंते! पडणेज्जा ? हंता पडसुणेज्जा | से णं भंते सज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? हंता सज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा । से णं भंते ! सील-व्य-गुण- वेरमण-पच्चक्खाण' - पोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा ? हंता पडिवज्जेज्जा । से भंते! मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वज्जा ? णो इणट्ठे समट्ठे । से णं समणोवासए भवति - अभिगतजीवाजीवे जाव पडिला भेमाणे विहरइ । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूणि वासाणि समणोवासगपरियागं पाउणति, पाउणित्ता आबाहंसि' उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णं सि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खाइ, पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति । एवं खलु समणाउसो ! तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे, जं णो संचाएति सव्वओ सव्वत्ताए" मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ॥ निग्गंथ-निग्गंथी साधुभवणट्ठं दरिद्दादिकुलुप्पत्ति - निदाण ( ६ ) - पदं ३२. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते - - • इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे पडणे केवले संसुद्धे आउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे । इत्थं ठिया जीवा सिज्यंति बुज्झति मुच्चति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति । जस्स णं धम्मस्स १. 'ता' प्रतौ अतः 'जाव' पदपर्यन्तं एवं पाठोस्ति — से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहेव जाव । २. दसा० १०।२४ । ३. सं० पा० ० - पुरिसजातस्स जाव सद्दहेज्जा । ४. सं० पा० --- सीलव्वय जाव पोसहोववासाई । ५. आपाहंसि (ता) । ६. एमेयारूवे ( ख ) । ७. सव्वा (ता) । ८. सं० पा० - पण्णत्ते जाव से य । Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा ४८६ निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुढें, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा । से य परक्कमेज्जा । से य परक्कममाणे दिव्वमाणुस्सेहि कामभोगेहिं निव्वेदं' गच्छेज्जा। माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा' अणि तिया असासता सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-वंत-पित्तसुक्क-सोणियसमुब्भवा दुरुय-उस्सास-निस्सासा दुरुय-मुत्त-पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स° विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खल कामभोगा अधुवा' 'अणितिया असासता चला चयणधम्मा° पुणरागमणिज्जा 'पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा" जइ इमस्स सुचरियस्स तव-नियम'बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल वित्तिविसेसे अत्थि, तं° अहम वि आगमेस्साणं जाई इमाइं अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्दकुलाणि वा किविणकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा 'माहणकुलाणि वा एतेसि णं अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए पच्चाइस्सामि । एस मे आता परियाए सुणीहडे भविस्सति । से तं साहू। एवं खल समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते" कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति–महिड्ढिएसु जाव चिरद्वितीएसु । से णं तत्थ देवे भवति--महिडिढए जाव भुंजमाणे विहरति । से णं तातो देवलोगातो आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्दकु लाणि वा किविणकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा माहणकुलाणि वा, एतेसि णं अण्णतरंसि कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थदारए भवति-सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे । तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणय मित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति। तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खज्जा ? हंता आइक्खेज्जा। से णं भंते ! पडिसुणेज्जा ? हंता पडिसुणेज्जा। १. णिव्वेवं (ता)। प्रतीतानि' इति व्याख्यातमस्ति । २. सं० पा०-अधुवा जाव विप्पजहणिज्जा । ७. अणालोइत्ता जाव अपडिवज्जित्ता (ता); ३. सं० पा०-अधुवा जाव पुणरागमणिज्जा। 'अ, क, ख' प्रतिषु अतः 'से णं भंते मुंडे ४. चिन्हाङ्कितपाठः ३१ सूत्रस्याधारेण स्वीकृतो- भवित्ता' पर्यन्तं संक्षिप्तपाठोस्ति-अणालोस्ति । इयपडिक्कते सव्वं तं चेव जाव से थे। ५. सं० पा०-तव-नियम जाव वयमवि । ८. द्रष्टव्यं दसा० १०॥२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. ४ (अ, क, ख); वृत्तावपि 'ब्राह्मणकुलानि Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. दसायो से णं भंते ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? हंता सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा । से णं भंते ! सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा ? हंता पडिवज्जेज्जा। से णं भंते ! मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वएज्जा ? हंता पव्वएज्जा। से णं भंते ! तेणेव भवग्गहणेणं सिझज्जा' 'बुज्झज्जा मुच्चेज्जा परिनिव्वाएज्जा सव्वदुक्खाणमंतं करेज्जा? णो इणठे समठे। से णं (अणगारे ?) भवइ । से जे इमे अणगारा भगवंतो इरियासमिता' 'भासासमिता एसणासमिता आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिता उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिता मणगुत्ता वइगत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्त बंभचारी 'सुहुतहुतासणो विव तेयसा जलंता"। से णं एतारूवेण विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणति, पाउणित्ता आबाहंसि उप्पण्णं सि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खाइ, पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति । एवं खलु समणाउसो! तस्स निदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे, जं णो संचा एति तेणेव भवग्गहणेणं 'सिज्झित्तए जाव सव्वदुक्खाणमंतं करित्तए॥ अनिदाण-पदं ३३. एवं खल समणाउसो! मए धम्मे पण्णत्ते-इणमेव निग्गंथे •पावयणे सच्चे अणत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे णेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधो सव्वदुक्खाणप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिझंति बज्झंति मच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं अणुदिण्णकामजाते यावि विहरेज्जा । से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे सव्वकामविरत्ते सव्व रागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्व सिणेहातिक्कते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंत१. सं० पा०—सिझज्जा जाव सव्वदुक्खाणं। ५. सं पा०-उप्पण्णंसि वा जाव भत्तं पच्चक्खा२. पूर्वपरिपाट्या एस पाठो युज्यते । इत्ता जाव कालमासे । ३. सं० पा०-इरियासमिता जाव बंभचारी। ६. सिझज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा ४. x (अ, क, ख); वृत्तिकृता यावत् शब्देन (अ, क, ख)। सुहुयहुयासणो, इत्येव पर्यन्तः पूर्णः पाठः ७. सं० पा०-निग्गंथे जाव से परक्कमेज्जा । सूचित: स च औपपातिके (सू० २७) ८. x (क, वृ); सव्वरागविरत्ते सव्वसंगविरत्ते द्रष्टव्यः । (ख)। Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमा दसा ૪૫ स्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं' 'अणुत्तरेणं चरित्तेणं अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेण विहारेण अणुत्तरेणं वीरिएणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेणं मद्दवेणं अणुत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणुत्तराए मुत्तीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तरा तुट्ठीए अणुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पा भावेमाणस्स अणते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुणे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा । तते णं से भगवं अरहा भवति जिणे केवली सव्वष्णू सव्वदरिसी सदेवमणुयासुरस्स' "लोगस्स परियायं जाणइ, तं जहा - आगतिं गतिं ठिति चवणं उववायं तक्कं कडं मणोमाणसियं खइयं भूत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं, अरहा अरहस्तभागी तं कालं तं मणवयकायजोर्गे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ । तणं से भगवं केवली एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे' बहूइं वासाई केवलिपरियागं पाउणति, पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएति, आभोएत्ता भत्तं पच्चक्खाति, पच्चक्खाइत्ता बहूइं भत्ताइं अणसणाए छेदेति, छेदेत्ता ततो पच्छा 'चरिमेहि ऊसासणीसासेहि सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । एवं खलु समणाउसो! तस्स अनिदाणस्स इमेयारूवे 'कल्लाणे फल विवागे", जं तेणेव भवग्गहणणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । निगमण-पदं ३४. तते णं ते बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए ' एयमट्ठ सोच्चा निसम्म 'हट्ठतुट्ठ- चित्तमाणं दिया जाव' हरिसवस - विसप्पमाण हियया " समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोएंति पडिवकमंति' निदति गरिहंति विउट्टंति विसोहेंति अकरणयाए अब्भुट्ठेति अहारिहं 'पायच्छित्तं तवोकम्मं" पडिवज्जंति ॥ ३५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवी सदेवमयासुराए परिसाए मज्झगते एवं आइक्खइ एवं भासति एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ आयातिट्ठाणे णामं अज्जो ! अज्झयणे, सअट्ठ सहेउयं" सकारणं सुतं च अत्थं च तदुभयं च भुज्जो - भुज्जो उवदंसेति ॥ -त्ति बेमि ॥ १. सं० पा० - दंसणेणं जाव परिनिव्वाणमग्गेणं । २. सं० पा० - सदेवमणुयासुराए जाव बहूइं । ३. × (अ, क, ख ) । ४. फल वित्तिविसेसे (ता) । ५. अंतियं (ता) । ६. दसा० १०।४ । ७. X ( अ, क, ख ) । ८. सं० पा० -- पडिक्कमंति जाव अहारिहं । ६. तवोकम्मं पायच्छितं ( ता ) । १०. अहे (ता) । Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिलैं पज्जोसवणाकप्पो भगवओ चवणादि-नक्षत्त-पदं १. तेणं' कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे होत्था, तं जहा हत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गम्भं वक्ते । हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए । हत्थुतराहिं जाए। हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। हत्थुत्तराहिं अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवल वरनाणदंसणे समुप्पन्ने । साइणा परिनिव्वुए भयवं ॥ गम्म-पवं २. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जेसे गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्टमे पक्खे-आसाढसुद्धे,तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्ठी-पक्खेणं' महाविजय-पुप्फुत्तर-पवरपुंडरीयाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमट्ठिइयाओ' 'आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं' अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे दाहिणद्धभरहे १. अतः पूर्व क्वचिद् निम्नाङ्कितपाठो दृश्यते- मंगलपरंपराऽविच्छेदार्थ मंगलो निबन्धभूतः नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं पंचनमस्कारो दृश्यते (दसा०वृ०)। मुनिपुण्यनमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहणं । विजयेनापि एष पाठः प्रक्षिप्त इति स्वीकृतम् । एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। (कल्पसूत्र पृ० ३)। मंगलाणं च सव्वेसि, पढम हवइ मंगलं ॥ २. पव्वइत्ता (ता)। (क,ख); ३. दिवसेणं (क, ख, ग) । नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं ४. आचारचूलायां (१५॥३) एष पाठः किञ्चिद् नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं । विस्तृतो दृश्यते-महाविजय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर(घ); पवर-पुंडरीय-दिसासोवस्थिय-वद्धमाणाओ। दशाश्रुतस्कन्धस्य अष्टमदशायाः संक्षिप्तरूपे ५. ट्ठियाओ (ग), ट्ठिईयाओ (पु)। एष मङ्गलपाठो नैव लभ्यते । तस्य चूर्णावपि ६. आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं (ख, ग); नैव व्याख्यातोस्ति । तस्य वृत्तेः सूचनानुसारेण ४ (ता)। एष पाठः क्वचिदेव दृश्यते-अत्र केषुचिदादर्शेषु ७. चई (क, पु); चुए (आयारचूला १५॥३) । ४९२ Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ४६३ इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए विइक्कंताए, सुसमाए समाए विइक्कंताए, सुसमदुस्समाए समाए विइक्कंताए, दुस्समसुसमाए समाए बहुविइक्कंताए', पंचहतरीए' वासेहिं, अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसेहि, इक्कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागकुलसमुप्पन्नेहिं कासवगोत्तेहिं' दोहि य हरिवंसकुलसमुप्पन्नेहिं गोतमसगोत्तेहिंतेवीसाए तित्थयरेहिं वीइक्कंतेहि', चरिमे तित्थकरे पुव्वतित्थकरनिद्दिठे, माहणकुंडग्गामे नगरे, उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए, 'पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयास" हत्थत्तराहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए. कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्ते ॥ चवण-पदं ३. समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था--चइस्सामित्ति जाणइ, 'चय माणे न जाणइ'', चुएमित्ति जाणइ ।। देवाणंवाए सुमिणदंसण-पदं ४. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कंते, तं रयणि च णं सा देवाणंदा माहणी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी इमेयारूवे ओराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए चोद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तं जहा१. गय २. वसह ३. सीह ४. अभिसेय ५. दाम ६. ससि ७. दिणयरं ८. झयं ६. कुंभं । १०. पउमसर ११. सागर १२. विमाणभवण १३. रयणुच्चय १४. सिहिं च ॥१॥ उसभवत्तस्स सुमिणनिवेदण-पदं ५. तए णं सा देवाणंदा माहणी 'इमेतारूवे ओराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सि१. अतोने ‘क ख, ग, घ' आदर्शषु एष पाठो ४. अतोने ‘क, ग, ता, पु' प्रतिषु 'समणे भगवं विद्यते-'सागरोवमकोडाकोडीए बायालीस- महावीरे' इति पाठोस्ति, कर्तृपदस्य पूर्वमागतवाससहस्सेहिं ऊणियाए'। असौ पाठः व्या- त्वात् नैष आवश्यकोस्ति, तेनासौ पाठान्तरत्वेन ख्यांशः प्रतिभाति । आचारचूलाया (१५॥३) स्वीकृतः । मपि नैष पाठो दृश्यते । मुनिपुण्यविजयजी- ५. पुव्वरत्तावरत्तंसि (चू)। सम्पादितपुस्तकेपि एषा टिप्पणी कृतास्ति- ६. चयमाणे ण जाणति, जतो एगसमइतो उवएतन्मध्यवर्ती पाठः तालपत्रीयेषु अन्येषु च ओगो णत्थि (चूणि, कल्पसूत्र पृ० १०२); बहुषु कद्गलादर्शषु नास्ति (कल्पसूत्र पृ० ४)। चयमाणे न जाणेइ, सुहमे णं से काले पण्णते एतैः कारणः असौ पाठान्तरत्वेन गृहीतः । (आयारचूला १५।४)। २. पंचहत्तरी (ख); पण्णहत्तरीए (आयारचूला ७. मंगल्ले जाव (ता)। १॥३)। ८. अतः परं 'ता' प्रतौ पञ्चमसूत्रवर्ती 'पडिबुद्धा' ३. कासवगुत्तेहिं (क)। पदपर्यन्तं पाठो नास्ति ! Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ पज्जोसवणाकप्पो रीए चोद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी' 'तु चित्तमाणं दिया पीइमणा परमसोमणस्सिया' हरिसवस - विसप्पमाणहियया धाराहयकलं बपुप्फगं पिव समुस्स सियरोमकूवा सुमिणोग्गहं" करेइ, करेत्ता 'सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेइ, अन्भट्ठेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलं बियाए' रायहंसस रिसीए गईए जेणेव " उसभदत्ते माहणे तेणेव' उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसभदत्तं माहणं 'जएणं विजएणं वृद्धावे, वद्धावेत्ता भद्दासणवरगया आसत्था वीसत्था करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु " एवं वयासी- एवं खलु 'अहं देवाणुपिया ! " अज्ज सय णिज्जं सि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी इमेयारूवे" ओराले जाव सस्सिए चोद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तं जहा - 'गय जाव सिहिं च" । 'एएसि णं"" देवाणुप्पिया ! ओरालाणं जाव चोद्दसन्हं महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? उसमवत्तस्स सुमिणमहिम-निदंसण-पदं ६. तए णं से उसभदत्ते माहणे देवाणंदाए माहणीए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ट - तुट्ठ- चित्तमाणं दिए जाव हरिसवस - विसप्पमाणहियए धाराहयकलं बपुप्फगं" पिव 'समुस्स सियरोमकूवे सुमिणोग्गहं करेइ, करेत्ता ईहं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता"" अपणो साभाविएणं मइपुव्वएणं" बुद्धिविण्णाणेणं 'तेसि सुमिणाणं अत्थोग्गहं करेइ, करेत्ता'" देवाणंदं माहणि एवं वयासी-ओराला गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा | कल्लाणा गं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा। सिवा धन्ना मंगल्ला सिरीया आरोग्ग-तुट्ठि - 'दीहाउ - कल्लाण- मंगल्लकारगा" णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, तं अत्थलाभो देवाणुप्पिए ! 'भोगलाभो देवाणुप्पिए ! " पुत्तलाभो १. ते सुमिणे पासइ पासित्ता ( ख, ग ) । १५.. एएसि च णं (क, ग ) । २. हट्ठट्ठा चित्तमाणंदिया सा माहणी (ता) । ३. सोमणसिया ( क, ख, ग, पु) । ४. धाराहयकयं बपुप्फगं ( क, ग, घ ) ; धाराहयकयं वयं (ता); धाराहयकलंबुयं (पु) ५. सुविणोग्गहं (ता) । ६. x ( ख, ग, पु); स्वीकृतपाठः भगवत्यां ( ११।१३३) अपि लभ्यते । ७. उट्ठाए उट्ठेति २त्ता जेणामेव (ता) | ८. तेणामेव (ता) | ६. वीसत्था सुहासणवरगया ( क, ख, ग, घ, ता ) । १०. X ( ता ) । ११. देवाणुप्पिया अहं ( ता ) 1 १२. इमे यावे (क, ग, पु) ; अयमे आरूवे ( ख ) । १३. चउद्दस ( क ) सर्वत्र । १४. ग गाहा (ता) । ܕܙ । १६. कयं पुप्फगं (क); कलंबुयं (ग, पु) १७. भगवत्यां (११।१३४ ) एष पाठः एवं विद्यते ऊसवियरोमकुवे तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिहित्ता ईहं पविसइ, पविसित्ता । 'ता' प्रतौ इहं अणुपविस अणुपविसित्ता' इति पाठो नास्ति । १८,१६.' x (ता) । २०. दीहाऊ मंगल्लकारगा ( क ) ; मंगलकारगा (घ) । २१. x ( क ) ; तं जहा ( ख, ग, घ, पु ) ; 'भगवत्यां ' (११।१३४) 'नायाधम्मकहाओ' (१।१।२० ) सूत्रे च एतादृशे प्रकरणे 'तं जहा ' इति पदं नैव दृश्यते । अत्र सम्भाव्यते 'तं' इति पदस्य प्रयोगे 'जहा' इति पदस्य प्रक्षेपो जातः । २२. X (ता) । Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ४६५ देवाणु प्पिए ! सोक्खलाभो देवाणु प्पिए ! एवं खलु तुम देवाणुप्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं 'अद्धट्ठमाण य' राइंदियाण विइक्कंताणं' सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुण्णं सुजायसव्वंगसुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं देवकुमारोवमं' दारयं पयाहिसि । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमित्ते जोव्वणगमण पत्ते 'रिउव्वेय-ज उव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय-इतिहासपंचमाणं निघंटछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेयाणं सारए पारए धारए सडंगवी सद्वितंतविसारए संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे, अण्णेसु य बहुसु बंभन्नएसु' परिव्वायएसु नएसु सुपरिनिट्टिए यावि भविस्सइ । तं ओराला" णं तुमे देवाणप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ"-मंगल्ल-कल्लाणकारगाणं तुमे देवाणु प्पिए ! सुमिणा दिट्ठा" ॥ देवाणबाए सुमिणजागरिया-पदं । ७. तए णं सा देवाणंदा माहणी उसभदत्तस्स माहणस्स अंतिए एयमह्र सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट उसभदत्तं माहणं एवं वयासी–एवमेयं देवाणु प्पिया ! तहमेयं देवाणु प्पिया ! अवितहमेयं देवाण प्पिया ! 'असंदिद्धमेयं देवाणुप्पिया" ! इच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! पडिच्छियमेयं देवाणु प्पिया ! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणु प्पिया ! सच्चे णं एसमठे ‘से जहेयं ५ तुब्भे वयह त्ति कटु ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता उसभदत्तेणं माहणेणं सद्धि ओरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ । भगवओ गम्मसाहरण-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविदे देवराया 'मघवं पागसासणे सतक्कतू सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरंदरे'" दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणसयसहस्साहिवई १. अद्धटुमाणं (क, ख, ग, घ, पु) । १२. कारगे (ता)। २. ४ (ता)। १३. दिट्ठा त्ति कटु भुज्जो-भुज्जो अणुबूहइ (क)। ३. ४ (ख, घ); देवकुमारसप्पभं (ता)। १४. x (ता)। ४. विण्णाय (क, ख, ग, घ, पु) । १५. जं णं (ता)। ५. जुव्वणग" (क, ख, ग)। १६. असौ पाठः 'ता' प्रतेराधारेण स्वीकृत:। ६. रिव्व्वेए यज्जुव्वेत अत्थव्ववेत सामवेत (ता)। चूर्णावपि इत्थमेव व्याख्यातोस्ति । भगवत्या ७. धारए (टिपा०)। (३।१०६) मपि अस्य संवादी पाठो दृश्यते । ८. संखाणे सिक्खाणे (ख, ग, पु)। 'क, ख, ग, पु' आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति६.बंभण्णेसु (ता)। वज्जपाणी पुरंदरे सतक्कतू सहस्सक्खे मघवं १०. ओराले (ता)। पागसासणे। ११. दीहाउय (क, ग, पु)। १२." Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ पज्जोसवणाकप्पो एरावणवाहणे सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइय-मालमउडे नव-हेम-चारु-चित्तचंचल-कुंडल-विलिहिज्जमाणगंडे' भासुरबोंदी' पलंबवणमालधरे सोहम्मे कप्पे सोहम्मव.सए विमाणे 'सुहम्माए सभाए" सक्कंसि सीहासणं सि निसण्णे ॥ ६. से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं', 'तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं, अण्हं अग्गम हिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणिया हिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अण्णेसिं च बहणं सोहम्मकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भद्रित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-धणमुइंग-पडुपवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ, इमं च णं केवल कप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासइ। १०. तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे माहणकुड ग्गामे नगरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्तं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ-चित्तमाणं दिए ‘णं दिए परमाणंदिए'' पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरहिकुसुम-चंचुमालइय (तणुए" ?) ऊस सियरोमकूवे 'वियसियवरकमल-नयणवयणे'१५ पयलियवरक डग-तुडिय-केऊर-मउड-कुंडल-हारविरायंतवच्छे पालंबपलबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सुरिंदे सीहासणाओ १. गल्ले महड्डिए महज्जुइए महब्बले महायसे ७) सूत्रेऽपि असौ पाठः एवमेव दृश्यते । महाणुभावे महासुक्खे (क); गल्ले (ख, ग, १०. तत्थ णं (क, ख, घ, पु) । ११. X (ख, घ); fदिए (ता)। २. भासरबोंदि (ता)। १२. धाराहयं ब (क); धाराहयकयंबसुरहिकुसुम ३. सभाए सुहम्माए (ता)। (ख, ग); कुसुमं व (घ); धाराहयनीम ४. X (ता)। सुरभि० (ता)। ५. ता 'प्रतो' अत: 'देवीण' पदपर्यन्तं सर्वाण्यपि १३. अत्र 'तणुए' इति पदं लिपिप्रमादेन अन्येन वा पदानि तृतीयाविभक्ते बहुवचनान्तानि केनापि कारणेन त्रुटितं सम्भाव्यते । एतज् ज्ञायते अन्यागमसन्दर्भेण, यथा-'भगवत्यां' ६. तावत्तासाए तावत्तीसाएहिं (ता)। (११।१३४) 'चंचुमाल इयतणुए' तथा 'नाया७. चउरासीए (पु)। धम्मकहाओ' (१।१।२०) 'चंचुमालइयतणू' ८. पडुपडहवाइयरवेणं (क, ख, ग, घ, पु); असौ इति दृश्यते । द्रष्टव्यं प० ३८ सूत्रस्य पाठ: चूस्तिथा 'ता' प्रतेराधारेण स्वीकृतः पादटिप्पणम् । अन्यत्रापि बहुषु आगमेषु (भ० ३।४; राय १४. ऊसविय० (क)। सू० ७) एतादृशस्यैव पाठस्य दर्शनात् । १५. कमलाणणणयणे (ता)। ६. विहरइ (क, घ, पु); । रायपसेणइय (सू० १६. हारविरायंतरइयवच्छे (ता) । दृश्यन्ते। Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ४९७ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ' पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वेरुलिय-वरिट्ठरिट्ठ-अंजण-निउणोविय-मिसिमिसिंतमणिरयणमंडियाओ पाउयाओ 'ओमयइ, ओमुइत्ता" एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता अंजलि-मउलियग्गहत्थे 'तित्थयराभिमुहे सत्तट्ट पयाई" अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहट्ट तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि 'निवेसेइ, निवेसेत्ता'५ ईसि पच्चुण्णमइ, पच्चुण्ण मित्ता कडग-तुडिय-थंभियाओ भुयाओ 'साहरइ, साहरित्ता' करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी-नमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं, आइगराणं तित्थगराणं सयंसबुद्धाण, पूरिसोत्तमाण पूरिससीहाण पूरिसवरपडरीयाणं' पूरिसवरगंधहत्थीणं, 'लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं चक्खु दयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं 'जीवदयाणं बोहिदयाणं१९, धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा, अप्प डिहयवरनाणदंसणधराणं वियदृछउमाणं, जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं, 'सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं१२ सिवमयल मरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्ति३ सिद्धिगइनामधयं ठाणं संपत्ताण नमो जिणाण जियभयाणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स चरमतित्थयरस्स४ 'पुव्वतित्थयरनिद्दिट्ठस्स जाव'५ संपाविउकामस्स । वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कटु समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने ॥ ११. तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अयमेयारूवे अज्झथिए 'चितिए पत्थिए१७ मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्थान एयं भूयं, न एयं भव्वं, न एयं भविस्सं-जण्णं" अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्कुलेसु वा किविणकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा माहणकुलेसु वा १. पायवीढाओ (ता)। (ता)। २. मुयति मुइत्ता (ता)। १२. X (ता)। ३. सत्तट्ठ पादाइं तित्थयराभिमुहे (ता)। १३. मपुणरावत्ति (ख, ग, घ)। ४. णिमेति णिमेतित्ता (ता)। १४. चरिम० (क, पु)। ५.णिव्वाडेतिरत्ता (ता)। १५. आदिगरस्स जाव (ता); यावत्करणात् 'सयं६. संहरतिरत्ता (ता)। संबुद्धस्स' इत्यादीनि पदानि गम्यानि । ७. सहसंबुद्धाणं (भ० ११७, ओ० सू० २१)। १६. पासइ (क, ओ० सू० २१; राय० सू० ८)। ८. पुरिसोत्तिमाणं (पु)। १७. पत्थिते चितिते (ता)। ६. पुंडरियाणं (पु)। १८, न खलु (ख, ग, घ)। १०. ४ (ता)। १६. जं नं (ग, पु)। ११. बोहिदयाणं जीवदयाणं (ख, ग); बोहिंदयाणं २०. भिक्खायर कुलेसु (घ)। Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ पज्जोसवणाकप्पो आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा। एवं खलु अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइण्णकुलेसु वा 'इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा" हरिवंसकुलेसु वा, अण्णतरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्ध जातिकुलवंसेसु आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा ॥ १२. अत्थि पुण एसे वि भावे लोगच्छेरयभूए अणंताहिं ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीहिं वीइ कंताहिं समुप्पज्जति, नामगोत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स अवेइयस्स अणिज्जिण्णस्स उदएणं, जण्णं अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा 'कि विणकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा" माहणकुलेसु वा आयाइंसु वा आयाईति वा आयाइस्संति वा, नो चेव णं जोणीजम्मण निक्खमणेणं निक्खमिंसु वा निक्खमंति वा निक्खमिस्संति वा ॥ १३. अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे माहणकुंडग्गामे नगरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधर सगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते ।। १४. तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविदाणं देवराईणं अरहते भगवंते तहप्पगारेहितो अंतकुले हिंतो वा पंतकुलेहिंतो वा तुच्छकुलेहिंतो वा दरिद्दकुलेहितो वा किविणकुलहितो वा भिक्खागकुलेहिंतो वा माहणकुलेहितो' वा तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइण्णकुलेसु वा 'इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु वा, अण्णतरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजातिकुलवंसेसु वा" साहरावित्तए। तं सेयं खलु मम वि समणं भगवं महावीरं चरम तित्थयरं पुवतित्थयरनिद्दिळं माहणक डग्गामाओ नगराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नगरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स भारियाए तिसलाए' खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरावित्तए । जे वि य णं से तिसलाए खत्तियाणीए गब्भे तं पि य णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरा वित्तए त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हरि-णेगमेसिं पायत्ताणियाहिवइं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया ! न एयं भूयं, न एयं भव्वं, न एयं भविस्सं-जण्णं अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासु१. रायकु खत्तियकुलेसु वा इक्खाग (ता)। ५. द्रष्टव्यं एकादशं सूत्रम् । २. भिक्खागकुलेसु वा, किविणकुलेसु वा (ख, घ, ६. नाय० (क, ख, ग, पु); एकादशसूत्रे 'नाय कुलेसु वा' इति पाठो नास्ति । ३. अतः परं 'क, ख, ग, घ, पु' आदर्शेषु एतावान् ७. अतोग्रे 'क, ख, ग' प्रतिषु 'जाव रज्जसिरि अतिरिक्तः पाठो दृश्यते- 'कुच्छिसि गब्भत्ताए कारेमाणेसु पालेमाणेसू' इति पाठो विद्यते । वक्कमिसु वा वक्कमति वा वक्कमिस्संति वा । ८.तिसिलाए (ता) प्रायः सर्वत्र । ४. 'ता' प्रती एतत्सूत्रं नैव दृश्यते । Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ४६६ देवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्कुलेसु वा किविणकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा माहणकुलेसु वा आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा । एवं खलु अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइण्णकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु वा, अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजातिकुलवंसेसु आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा। अत्थि पुण एसेवि भावे लोगच्छरयभूए अणंताहिं ओस प्पिणी-उस्सप्पिणीहिं विइक्कंताहिं समुप्पज्जति, नामगोत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स अवेइयस्स अणिज्जिण्णस्स उदएणं, जण्णं अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छ कुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा कि विणकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा माहणकुलेसु वा आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा, नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खमणणं निखमिसु वा निक्खमंति वा निक्खमिस्संति वा। अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे माहणकुंडग्गामे नगरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कंते । तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवराईणं अरहते भगवंते तहप्पगारेहितो अंतकुलेहिंतो वा पंतकुलेहितो वा तुच्छकुलेहिंतो वा दरिदकुलेहिंतो वा कि विणकुलेहिंतो वा भिक्खागकुलेहितो' वा माहणकुलेहितो वा तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइण्णकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु वा, अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजातिकुलवंसेसु साहरा वित्तए । तं गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं माहणकुंडग्गामाओ नगराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नगरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहराहि, साहरित्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पमेव पच्चप्पिणाहि ॥ १५. तए णं से हरि-णेगमेसी पायत्ताणिया हिवई देवे सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं वत्ते समाणे हट्ट तुट्ठ-चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयल" •परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं 'जं देवो १, २. द्रष्टव्यं एकादशं सूत्रम् । ३. वणीमग० (क, ग, पु)। ४. नाय० (क, ग, पु)। ५. कासवसगोत्तस्स (पु)। ६. सं० पा०-हछे जाव हयहियए। ७. सं० पा०—करयल जाव कटु । Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० पज्जोसवणाकप्पो आणवेइ त्ति" आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता' 'उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं' अवक्कमइ, अवक्क मित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं निसिरइ, तं जहा–रयणाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलयाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजणाणं अंजलपुलयाणं रययाणं जायरूवाणं सुभगाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परियादियति, परियादित्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वइ, विउन्वित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए ‘चवलाए चंडाए" जइणाए 'उद्धयाए सिग्घाए" दिव्वाए देवगईए 'तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमदाणं मझ मजणं बीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव जंबूहीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव माहणकंडग्गामे नगरे जेणेव उसभदत्तस्स माहणस्स गिहे जेणेव देवाणंदा माहणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 'आलोए समणस्स भगवओ महावीरस्स" पणामं करेइ, करेत्ता देवाणंदाए माहणीए सपरिजणाए ओसोवणि 'दलयइ, दल इत्ता असुहे पोग्गले अवहरइ, अवहरित्ता सुहे पोग्गले पक्खिवइ, पक्खिवित्ता 'अणुजाणउ मे भगवं !' ति कटु समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं" करयलसंपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नगरे जेणेव सिद्धत्थस्स खत्तियस्स गिहे जेणेव तिसला खत्तियाणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिसलाए खत्तियाणीए सपरिजणाए ओसोवणि दलयइ, दलइत्ता असुहे पोग्गले अवहरइ, अवह रित्ता सुहे पोग्गले पक्खिवइ, पक्खिवित्ता समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ। जे५ वि य णं तिसलाए खत्तियाणीए गब्भे, तं पि य णं देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरइ, साहरित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए। ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए उद्ध्याए सिग्घाए दिव्वाए १. देवोत्ति (ता)। ८. चंडाए चवलाए (ग); अतः परं 'ता' प्रती २. अतोने 'क, ग, घ, आदर्शषु 'सक्कस्स देवि- भिन्ना वाचना दृश्यते--छेयाए जयणाए सीहाए दस्स देवरणो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडि- सिग्याए दिव्वाए उद्धृयाए । निक्खमित्ता' एष पाठोस्ति । मुनि पुण्यविजय- ६. सिग्याए उद्ध याए (राय० सू० १०)। मतानुसारेण एष पाठः क्वचिद् दृश्यते। 'राय- १०. वीईवयमाणे-वीईवयमाणे तिरियमसंखेज्जाणं पसेणइय' (१०) सूत्रेपि स्वीकृतपाठानूसारी दीवसमुदाणं मझमझेणं (क, ख, ग, घ, प): पाठो दृश्यते। रायपसेणइय (१०) सूत्रे स्वीकृतपाठो दृश्यते । ३. उत्तरपुरच्छिम' (पु)। ११. समणस्स भगवओ महावीरस्स आलोए (ता)। ४. समोहणइ (ख, घ, ता, पु)। १२. दलाति २ ता (ता)। ५. वयराणं (घ, पु)। १३. अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पभावेणं (क, ख, ग, घ)। ६. जोइसराणं (ग, घ); जोइरसाणं (पु)। १४. खत्तियाइणीए (ता)। ७. ४ (क, घ); रयणाणं (ग)। १५. जं (घ)। Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुदाणं मझमज्झणं जोयणसाहस्सीएहिं' विग्गहेहिं 'उप्ययमाणे-उप्पयमाणे" जेणामेव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सक्कंसि सीहासणंसि सक्के देविदे देवराया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ ।। १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था 'साहरिज्जिस्सामित्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे नो जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ" । १७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जेसे वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले, तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसी-पक्खेणं बासीइराइंदिएहिं विइक्कंतेहिं तेसीइमस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणे हियाणुकंपएणं देवेणं हरिणेगमेसिणा सक्कवयणसंदिठेणं माहणकुंडग्गामाओ नगराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे नगरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरिए । १८. समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था-साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे नो जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ । १६. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरिए, तं रयणि च. णं सा देवाणंदा माहणी सयणिज्जसि सुत्तजागरा ओहीरमाणीओहीरमाणी इमे एयारूवे ओराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए चोदस महासुमिणे तिसलाए खत्तियाणीए हडे त्ति पासित्ता णं पडिबुद्धा, तं जहा—गय वसह ॥ तिसलाए सुमिणदंसण-पदं २०. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे देवाणादए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्रसगोत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरिए, तं रयणि च णं सा तिसला खत्तियाणी तंसि तारिसगंसि वासघरंसि-अभितरओ १. जोयणसयसाहस्सीएहिं (ता)। नास्ति । चूणौं अव्याख्यातमस्ति प्रकरणमिदम् । २. ओवयमाणे उप्पयमाणे (ता) । अनेन ज्ञायते 'साहरिज्जमाणे नो जाणइ' इति ३. आचारचूलायां (१५७) अस्मिन् प्रकरणे एष पाठः कस्यांश्चिदेव वाचनायामस्ति । पाठोस्ति-'साहरिज्जिस्सामित्ति जाणइ, साह- ४. अस्सोय० (ता) सर्वत्र । रिएमित्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ, ५. वासीतेहिं राइदिएहिं (ता)। समणाउसो !' 'ता' प्रती 'साहरिज्जमाणे नो ६. गाहा-द्रष्टव्यं सूत्र ४ । जाणइ' एतावान् पाठो नास्ति, अष्टादशसूत्रेपि Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो सचित्तकम्मे, बाहिरओ.दूमिय-घट्ट-मछे विचित्त-उल्लोयतले मणिरयण-पणासि यंधयारे बहुसम-सुविभत्त-भूमिभागे पंचवण्णसरससुरहिमुक्कपुप्फपुंजोवयारक लिए कालागरु-गवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-डज्झतधूव'-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए' गंधवट्टिभए, तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि-सालिंगणवट्टिए' उभओ बिब्बोयणे उभओ उन्नए मज्झे णय-गंभीरे गंगापुलिणवालुय'-उद्दालसालिसए ओयविय-खोमियदुगुल्ल पट्टपडिच्छन्ने सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणग-रूय-बूर-नवणीय-तूलफासे सुगंधवरकुसुमचुण्ण-सयणोवयारक लिए पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी इमेयारूवे ओराले जाव' चोद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तं जहा गय वसह सीह अभिसेय दाम ससि दिणयरं झयं कुंभं । पउमसर सागर विमाणभवण रयणुच्चय सिहि च ॥ १. उल्लोयचिल्लियतले (क); उल्लोयचित्तियतले रत्तुप्पलपत्तपउमनिल्लालियग्गजीहं वट्टपडिपुन्न(ख, घ); उल्लोलचिल्लियतले (ग)। पसत्थनिद्धमहुगुलियपिंगलक्खं पडिपुन्नविउल२. धूव (ता)। सुजायखंधं निम्मलवरकेसरधरं सासियसुणि३. सुगंधवरगंधिए (क, ख, ग, घ, ता)। म्मियसुजायअप्फोडियनंगूलं सोमं सोमाकारं ४. अतः 'तूलफासे' इति पदपर्यन्तं 'ता' प्रतौ लीलायंतं जंभायंतं गयणतलाओ ओपयमाणं भिन्ना वाचना दृश्यते - दुहतो उन्नते मज्झे णत- सिंहं अभिमुहं मुहे पविसमाणं पासित्ता णं गंभीरे सालिगणपट्टए गंगापुलिणवालुतोद्दाल- पडिबुद्धा १।। एक्कं च णं महं पंडरं धवलं सालिसए सुविरइयरयत्ताणे ओयवितखोमिग- सेयं संखउलविमलसन्निकासं वट्टपडिपुन्नकन्न दुग्गलपट्टपलिछण्णे रत्तंसुअसंवुते सुरम्मे आयी. पसत्थनिद्धमहुगुलियपिंगलक्खं अब्भुग्गयमल्लिणगरूवबूरणवणीततूलफासे मउए । याधवलदंतं कंचणकोसीपविट्रदंतं आणामिय५. वालुया (क, ख, ग)। चावरुयिलसंविल्लियग्गसोंड अल्लीणपमाण६. तोयविय (पु)। जुत्तपुच्छे सेयं चउदंतं हत्थिरयणं सूमिणे ७. आईणग (ख, ग, घ); आयीणग (पू)। पासित्ता णं पडिबुद्धा २॥ एक्कं च णं महं ८. तूल तुल्लफासे (क) : तूलफासे मउए (ग) । पंडरं धवलं सेयं संखउलविउलसन्निकासं वट्ट६. x (पु); प० ४। । पडिपुन्नकंठं वेल्लियकक्कडच्छं विसमुन्नयवस१०. मुनि पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादिते कल्पसूत्रे भोटें चलचवलपीणककुहं अल्लीणपमाणजुत्त इति सूचितमस्ति-'च' सङ्केतिते ताडपत्री- पुच्छं सेयं धवलं वसहं सुमिणे पासित्ता णं यादर्श स्वप्नाधिकारः सर्वथैव नास्ति 'ग' पडिबुद्धा ३।। एक्कं च णं महं सिरियाभिसेयं सङ्कतिते ताडपत्रीयादर्श तथा 'छ' सङ्क्रतिते सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ४॥ एक्कं च णं पत्रादर्श च स्वप्नाधिकारः संक्षेपेण रूपान्तरेण महं मल्लदामं विविहकुसुमोवसोहियं पासित्ता वर्त्तते-गय उसभ० गाहा ॥ एक्कं च णं महं णं पडिबुद्धा ५॥ चंदिमसूरिमगणं उभओ पासे पंडरं धवलं सेयं संखउज्जलविमलदहियणगो- उग्गयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ६-७॥ खीरफेणरयणिकरपयासं थिरलट्ठपउट्ठ एक्कं च णं महं महिंदज्झयं अणेगकुडभीपीवरसुसिलिविसितिक्खदाढाविडंबियमूहं सहस्सपरिमंडियाभिरामं सूमिणे पासित्ता गं Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो २१. तए' णं सा तिसला खत्तियाणी तप्पढमयाए तओय'-चउदंतमसिय-गलियविपुल जलहर-हारनिकर-खीरसागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहासेलपंडुरतरं समागयमहुयर-सुगंधदाण-वासिय-कवोलमूलं देवरायकुंजरं वरप्पमाणं पेच्छइ सजलघणविपुल जलहरगज्जिय-गंभीरचारुघोसं इमं सुभं सव्वलक्खणकयंबियं वरोरु ॥ २२. तओ पुणो धवलकमल-पत्तपयराइरेग-रूवप्पभं पहा-समुदओवहारेहिं सव्वओ चेव दीवयंत अइसिरिभरपिल्लणा-विसप्पंत-कंत-सोहंत-चारुककुहं तणु सुइ'-सुकुमाललोम-निद्धच्छविं थिर-सुबद्ध-मंसलोवचिय-लट्ठ-सुविभत्त-सुंदरंग पेच्छइ घणवट्ट-लट्ठउक्किट्ठ-तुप्पग्गतिक्खसिंगं दंतं सिवं समाण-सोभंत-सुद्धदंतं वसभं अमियगुण मंगलमुहं ।। २३. तओ पुणो हारनिकर-खीरसागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहासेलपंडुरगोरं रमणिज्ज-पेच्छणिज्जं थिर-लट्ठ-पउठं वट्ट-पीवर-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबियमहं परिकम्मियजच्चकमलकोमल-पमाणसोभंत-लट्ठ-ओठं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमालतालु-निल्ला लियग्गजीहं मूसागयपवरकणगताविय-आवत्तायंतवट्टविमलतडि-सरिसनयणं विसालपीवरवरोरु पडिपुण्णविमलखंधं मिउ-विसय-सुहमलक्खणपसत्थ-वित्थिण्ण-केसराडोवसोहियं ऊसिय-सुनिम्मिय-सुजाय-अप्फोडियनंगूलं सोम्मं सोम्माकारं लीलायंतं नहयलाओ ओवयमाणं नियगवयणमइवयंतं पेच्छइ सा" गाढतिक्खनहं सीहं वयणसिरीपल्लवपत्तचारुजीहं ॥ २४. तओ पुणो पुण्णचंदवयणा उच्चागय-ठाण-लट्ठ-संठियं पसत्थरूवं सुपइट्ठिय-कणग कुंभ-सरिसोवमाण-चलणं अच्चुण्णय-पीण-रइय-मंसल-उन्नय-तणु-तंब-निद्धनहं कमलपलास-सुकुमालकरचरण-कोमलवरंगुलि कुरुविंदावत्तवट्टाणुपुव्वजंघं निगूढजाणुं गयवरकरसरिसपीवरोरु चामीकररइयमेहलाजुत्त-कंत-विच्छिन्नसोणिचक्कं जच्चंजण-भमर-जलयपकर-उज्जु यसम-संहिय-तणुय-आदेज्ज-लडह-सुकुमाल-मउय-रमपडिबुद्धा ८॥ एक्कं च णं महं महिंदकुंभ १. 'ता' संकेतितादर्श २१-३५ एतानि सूत्राणि वरकमलपइट्ठाणं सुरभिवरवारिपुन्नं पउमुप्पल- नैव दृश्यन्ते । पिहाणं आविद्धकंठेगुणं जाव पडिबुद्धा ॥ २. तओ (क) : 'ततौजाः' इत्यर्थः । इक्कं च णं महं पउमसरं बहुउप्पलकुमुयन- ३. तणुसुद्ध (क, ख, घ) । लिणसयवत्तसहस्सवत्तकेसरफुल्लोवचियं सुमिणे ४. उक्किट्ठविसिट्ठ (पु)। पासित्ता णं पडिबुद्धा १०॥ एक्कं च णं सागरं ५. 'पुंडरंगं (क) । वीईतरंगउम्मीपउर सुमिणे पासित्ता णं पडि- ६. 'प्पमाण० (क); भाइयसोभंत (पु) । बुद्धा ११॥ एक्कं च णं महं विमाणं दिव्व- ७. रत्तोप्पलपत्त (1)। तुडियसहसंपणद्दियं सुमिणे पासित्ता णं पडि- ८. तडिविमल (क, ख, ग, घ)। बुद्धा १२॥ एक्कं च णं महं रयणुच्चयं सव्व- ६. 'विशद' इत्यर्थः । रयणामयं समिणे पासित्ता णं पडिबद्धा १३॥ १०. विच्छिन्न (क, ग, घ, पू)। एक्कं च णं महं जलणसिहं निद्धमं सुमिणे ११. एतत् कर्तृपदं क्वचिदेव दृश्यते पासित्ता णं पडिबुद्धा १४॥ १२. कणकमयकुंभ (क) । Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ पज्जोसवणाकप्पो णिज्जरोमराइं नाभीमंडलविसाल सत्थजघणं करयल-माइय-पसत्थतिवलियमझ' नाणामणिरयण-कणगविमल-महातव णिज्जाहरणभूसणविराइयमंगुवंगि' हारविरायंत-कुंदमालपरिणद्ध-जललितथणजुयल विमलकलसं आइय-पत्तियविभूसिएणं' सुभगजालुज्जलेणं मुत्ताकलावएणं उरत्थ-दीणारमालय-विर इएणं' कंठमणिसुत्तएण य कुंडलजुयलुल्लसंत-अंसोवसत्त-सोभंतसप्पभेणं सोभागुणसमुदएणं आणणकुडं बिएणं कमलामलविसालरमणिज्जलोयणं कमलपज्जलंतकरगहियमक्कतोयं लीलावाय-कयपक्खएणं सुविसद-कसिण-घणसण्ह-लंबंतकेसहत्थं पउमद्दहकमलवासिणि सिरि भगवई पेच्छइ हिमवंतसेलसिहरे दिसागइंदोरुपीवर कराभिसिच्चमाणि ॥ २५. तओ पुणो सरसकुसुम-मंदारदाम-रमणिज्जभूयं चंपगासोग-पुण्णाग-नाग-पियंगु सिरीस-मोग्गर-मल्लिया-जाइ-जूहियंकोल्ल-कोज्ज-कोरिंट-पत्तदमणय-णवमालियबउल-तिलय-वासंतिय-पउमुप्पल-पाडल-कुंदाइमत्त-सहकारसुरभिगंधि अणुवममणोहरेणं गंधेणं दस दिसाओ वि वासयंतं सव्वोउयसुरभिकुसुममल्ल-धवलविलसंतकंतबहुवण्णभत्तिचित्तं छप्पयमहुयरिभमरगण-गुमुगुमायंत-मिलतगुंजंतदेसभागं दामं पेच्छइ नभंगणतलाओ ओवयंतं ॥ २६. ससि च गोखीर-फेण-दगरय-रययकलसपंडुरं सुभं हिययनयणकंतं पडिपुण्णं तिमिर निकर-घणगहिर'-वितिमिरकरं पमाणपक्खंत-रायलेहं कुमुदवणविबोहयं निसासोभगं सुपरिमट्ठदप्पणतलोवमं हंस-पडु-वण्णं जोइसमुहमंडगं तमरिपुं मयणसरापूर समुद्ददगपूरगं, दुम्मणं जणं दइयवज्जियं पायएहिं सोसयंतं, पुणो सोम्मचारुरूवं पेच्छइ सा गगणमंडल-विसाल-सोम्म-चंकम्ममाणतिलगं रोहिणी-मण-हियय वल्लहं देवी पुण्णचंदं समुल्लसंतं ।। २७. तओ पुणो तमपडल-परिप्फुडं चेव तेयसा पज्जलंतरूवं रत्तासोगपगास-किसय-सग मह-गुंजद्धरागसरिसं कमलवणालंकरणं, अंकणं जोइसस्स, अंबरतलपईवं हिमपडल-गलग्गहं गहणोरुनायगं रत्तिविणासं उदयत्थमणेसु महुत्तसुहदसणं दुन्निरिक्खरूवं रत्तिमुद्धायंत -दुप्पयारपमद्दणं सीयवेगमहणं पेच्छइ मेरुगिरिसययपरियट्टयं विसालं सूरं रस्सीसहस्सपयलियदित्तसोहं ।। २८. तओ पुणो जच्चकणगलट्ठिपइट्ठियं समूहनील-रत्त-पीय-सुक्किल-सुकुमालुल्लसिय १. तिवलीय० (पु)। २. विराइयंगमंगि (पु)। ३. विभूसिएण य (पु)। ४. विराइएणं (ख, ग, घ)। ५. मोग्गरग (क, ग, पु)। ६. घणगुहिर (क, घ)। ७. सोम० (क, ख, ग, घ)।। ८. रत्तिसुद्धांत (ख, ग, घ, अ); रत्तिमुद्धंत (क, अपा); मकारस्यालाक्षणिकत्वादुद्धावतः उच्छृखलान् ल्प (क० कि०)। ६. सुक्किल्ल (क, पु)। Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५०५ मोरपिच्छकयमद्धयं,' 'धयं अहियसस्सिरीयं" फालिय-संखंक-कुंद-दगरय-रयय कलसपंडुरेण मत्थयत्थेण सीहेण रायमाणेण रायमाणं, भेत्तुं गगणतलमंडलं चेव ववसिएणं पेच्छइ सिवमउयमारुयलयाहयपकंपमाणं अतिप्पमाणं जणपिच्छणिज्ज रूवं ॥ २६. तओ पुणो जच्चकंचणु ज्जलंतरूवं निम्मलजलपुण्णमुत्तमं दिप्पमाणसोहं कमलकलाव परिरायमाणं पडिपुण्णय-सव्वमंगलभेय-समागम पवर रयण-परायंत-कमल ट्ठियं नयणभूसणकरं पभासमाणं सव्वओ चेव दीवयंतं सोमलच्छी-निभेलणं सव्वपावपरिवज्जियं सुभं भासुरं सिरिवरं सव्वोउयसुरभिकुसुम-आसत्तमल्लदामं पेच्छइ सा रयय-पुण्णकलसं ॥ ३०. 'तओ पुणो" रविकिरणतरुण'-बोहियसहस्सपत्त-सुरहितर-पिंजरजलं जलचर-पह गर-परिहत्थग-मच्छपरिभज्जमाणजलसंचयं महंतं जलंतमिव कमल-कुवलय-उप्पलतामरस-पुंडरीय-उरु-सप्पमाण-सिरिसमुदएहिं रमणिज्जरूवसोभं पमुइयंतभमरगणमत्तमहकरिगणोक्करोलिज्झमाणकमलं कादंबग-बलाहग-चक्काक'-कलहंस-सारसगव्वियसउणगणमिहुणसे विज्जमाणसलिलं पउमिणिपत्तोवलग्ग-जलबिदुनिचयचित्तं' पेच्छइ सा हिययणयणकंतं पउमसरं नाम सरं सररुहाभिरामं ॥ ३१. तओ पुणो चंदकिरणरासि-सरिससिरिवच्छसोहं चउगमण-पवड्ढमाणजलसंचयं चवलचंचलुच्चायप्पमाणकल्लोललोलंततोयं पडुपवणाहय-चलियचवलपागडतरंगरंगतभंगखोखुब्भमाण-सोभंत निम्मल उक्कडउम्मी-सहसंबंधधावमाणोनियत्त -भासरतराभिरामं महामगर-मच्छ-तिमि-तिमि गिल-निरुद्ध-तिलितिलियाभिघाय-कप्पूरफेणपसर-महानईतुरियवेगमागयभमगंगावत्त" - गुप्पभाणुच्चलंत - पच्चोनियत्त-भम माणलोलसलिलं पेच्छइ खीरोयसागरं सरयरयणिकर-सोम्मवयणा ।।। ३२. तओ पुणो तरुणसूरमंडलसमप्पभं दिप्पमाणसोभं उत्तमकंचणमहामणिसमूह-पवर तेयअट्टसहस्सदिप्पंत नहप्पईवं कणगपयरलंबमाणमुत्तासमुज्जलं" जलंतदिव्वदामं ईहामिग-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ- चमर - संसत्तकंजरवणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं गंधव्वोपवज्जमाण-संपुण्णघोसं निच्चं सजलघणविउलजलहर-गज्जियसद्दाणुणादिणा देवदंदुहिमहारवेणं सयलमविजीवलोयं पूरयंत" १. मोरपिछ० (पु)। २. ४ (ख, ग, घ, पु)। ३. पडिपुण्ण (घ, पु)। ४. पुण (क, ख, ग)। ५. रवितरुणकिरण (घ)। ६. समुदएणं (क, ख, ग, घ)। ७. लिब्भमाणकमलं (क, ग, पु)। ८. चक्क (क, ख, ग, घ)। ६. जलबिंदुमुत्तचित्तं च (पु)। १०. सहस्स० (अपा)। ११. वेगसमागय (पु)। १२. सारय० (क, ख, घ)। १३. X (पु)। १४. पलंबमाण० (पु) । १५. पपूरयंतं (पु)। Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ पज्जोसवणाकप्पो कालागरु - पवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क-डझंतधूव-वासंगउत्तम'-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं निच्चालोयं सेयं सेयप्पभं सुरवराभिरामं पिच्छइ सा सातोवभोगं विमाणवर पुंडरीयं ॥ ३३. तओ पुणो पुलग-वेरिंदनील-सासग-कक्केयण-लोहियक्ख-मरगय-मसारगल्ल-पवाल फलिह-सोगंधिय-हंसगब्भ-अंजण-चंदप्पभ-वररयणेहि महियलपइट्टियं गगणमंड लंतं पभासयंतं तुंगं मेरुगिरिसन्निगासं पिच्छइ सा रयणनियररासि ।। ३४. सिहिं च सा विउलुज्जलपिंगलमहुघयपरिसिच्चमाण-निद्धमधगधगाइयजलंतजा लुज्जलाभिरामं तरतमजोगजुत्तेहिं जालपयरेहि अण्णमण्णमिव अणुपइण्णं पेच्छइ जालुज्जलणग' अंबरं व कत्थइ पयंतं अइवेगचंचलं सिहिं ।। ३५. इमे' एयारिसे सुभे सोमे पियदंसणे सुरूवे सुविणे दळूण सयणमझे पडिबुद्धा अरविंदलोयणा हरिसपुलइयंगी। संगहणी-गाहा एए चोद्दस सुमिणे, सव्वा पासेइ तित्थयरमाया । जं रयणि वक्कमई, कुच्छिसि महायसो अरहा ।। सिखत्थस्स सुमिणनिवेदण-पदं ३६. तए णं सा तिसला खत्तियाणी इमेयारूवे ओराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए चोद्दस महासु मिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी हट्टतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हारसवस-विसप्पमाणहियया धाराहयकलबपप्फग पिव समससियरोमकूवा समिणोग्गहं करेइ, करेत्ता सयणिज्जाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढातो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव सयणिज्जे जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिद्धत्थं खत्तियं ताहिं इट्टाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरियाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं 'मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी-संलवमाणी" पडिबोहेइ॥ ३७. तए णं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणि रयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासण १. ४ (क, पु)। २. वररयण (पु)। ३. धगधगाइयपज्जलंत० (घ)। ४. तरतमजोगेहिं (क, पु)। ५. अण्णुमण्णमिव (ख, ग, घ)। ६. विभक्तिरहितपदम् । ७. एमेते (पु)। ८. x (क)। ६. रयणि च णं (क)। १०. एए (क)। ११. वग्गूहि सल्लवमाणी २ (ता)। १२. नाणामणिकणगरयण (क, ख, ग, ता)। Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०७ पज्जोसवणाकप्पो वरगया सिद्धत्थं खत्तियं ताहिं इट्ठाहिं जाव मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणीसंलवमाणी एवं वयासी-एवं खलु अहं सामी ! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि (वण्णओ) जाव' चोद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तं जहा—गयवसह । तं एतेसिं सामी ! ओरालाणं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फल वित्ति विसेसे भविस्सइ ? सिद्धत्यस्स सुमिणमहिम-निर्दसण-पदं ३८. तए णं से सिद्धत्थे राया तिसलाए खत्तियाणीए अंतिए एयमठे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-'चित्ते आणंदिए" पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरहिकुसुम-चुंचुमालइय 'तणुए ऊसविय"-रोमकूवे ते सुमिणे ओगिण्हति, ओगि ण्हित्ता ईहं 'अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अप्पणो साहाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविण्णाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थोग्गहं करेइ, करेत्ता तिसलं खत्तियाणि ताहिं इट्टाहिं जाव' मंगल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहिं वग्गूहिं संलवमाणेसंलवमाणे एवं वयासी-ओराला णं तुमे देवाणप्पिए ! सुमिणा दिट्टा । कल्लाणा णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा । एवं सिवा धन्ना मंगल्ला सस्सिरीया आरोग्गतुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगलकारगा णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, तं" अत्थलाभो देवाणुप्पिए ! भोगलाभो देवाणु प्पिए ! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए ! सोक्खलाभो देवाणु प्पिए ! रज्जलाभो देवाणु प्पिए ! एवं खलु तुमं देवाणु प्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं अम्हं कुलकेउं अम्हं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडेंसयं कुलतिलयं कुलकित्तिकरं कुलवित्तिकरं कुल दिणयरं कुलाधारं कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलपायवं कुलविवद्धणकरं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंग ससिसोमाकारं कंतं पियं सुदंसणं दारयं पयाहिसि। से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते १. प० सू० २० । भगवत्या (११।१३४) मपि एवमेव दृश्यते । २. गाहा-द्रष्टव्यं सूत्र २० । ५. पविसइ २ (ता)। ३. चित्तमाणं दिए (ख, घ)। ६. प० सू० ३६ । ४. X (क, ख, ग, घ, ता, पु); मूलपाठः ७. x (क); तं जहा (ख, ग, घ, पु); द्रष्टव्यं टिप्पणस्य आधारेण स्वीकृतः। तत्र एवं प०६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । व्याख्यातमस्ति-'धाराहय' धाराहतनीप:-- ८. अद्धट्रमाण य (पू)। कदम्बः सुरभिकुसुममिव 'चंचुमालइए' ति ६. कुलआहारं (पु); कुलआधारं (क)। पुलकिता तनु:-शरीरं यस्य स तथा । १०. अहीणसंपुण्ण (क, ख, ग, पु); अहीणपुग्न किमुक्तं भवति ? 'ऊसवियरोम' उच्छ्वसितानि (टि)। रोमाणि कूपेषु-तद्रन्ध्रषु यस्य स तथा । ११. विनाय (क, ख, ग, घ, पु) । Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ पज्जोसवणाकप्यो सूरे वीरे विक्कंते विच्छिन्नविउलबलवाहणे रज्जवई राया भविस्सइ, तं' ओराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा जाव दोच्चं पि तच्चं पि अणुवूहइ ॥ तिसलाए सुमिणजागरिया-पवं ३६. तए णं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थस्स रण्णो अंतिए एयमठे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणं दिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु 'सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी-एवमेयं सामी!तहमेयं सामी ! अवितहमेयं सामी ! असंदिद्धमेयं सामी ! इच्छियमेयं सामी ! पडिच्छियमेयं सामी ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं सामी ! सच्चे णं एसमठे से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कट्ट ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रण्णा अब्भणण्णाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुछेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 'सयणिज्जे दुरुहेइ दुरुहेत्ता" एवं वयासी-मा मेते उत्तमा पहाणा मंगल्ला महासुमिणा' अण्णेहिं पावसुमिणेहिं पडिहम्मिस्संति' त्ति कट्ट देवयगुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं लट्ठाहिं' कहाहिं सुमिणजागरियं 'पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी" विहरइ ॥ सुमिनपाढग-निमंतण-पदं ४०. तए णं सिद्धत्थे खत्तिए पच्चूसकालसमयंसि कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ! अज्ज सविसेसं बाहिरियं उवढाणसालं गंधोदयसित्त-सुइय"-सम्मज्जिओवलित्तं सुगंधवरपंचवण्णपुप्फोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क "-तुरुक्क-डज्झतधूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभयं करेह कारवेह, करेत्ता कारवेत्ता सीहासणं 'रयावेह, रयावेत्ता' ममेय माणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ॥ ४१. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल" •परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतियाओ पडि निक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं १. तं जहा (ख, ग, पु)। ६. बाहिरिज्जं (पु)। २,३. x (क, ख, ग, घ, पु) । १०. सुइ (ता); x (पु)। ४. पसत्था (ता)। ११. पवरकंदुरुक्क (ख, ग) । ५. सुमिणा (क, ख, ग, घ)। १२. धूवडझंतसुरभि (ता)। ६. पडिहिमिहि (ता)। १३. रएंति २ (ता)। ७. लद्धाहिं (ग)। १४. सं० पा०—करयल जाव कटु । ८. जागरमाणी पडिजा० (क, ख, ग, घ, पु)। Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५०६ उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं जाव' सीहासणं रयाति, रयावेत्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ४२. तए णं सिद्धत्थे खत्तिए कल्लं पाउप्पभायाए' रयणीए फुल्लप्पलकमलकोमलुम्मि ल्लियम्मि अहपंडुरे पहाए रत्तासोयपगास-किसुय-सुयमुह-'गुंजद्धरागसरिसे कमलायरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते'५ सय णिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायाम-जोग्ग -वग्गण -वामद्दण-मल्लद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंधवरतेल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं 'दप्पणिज्जेहि मयणिज्जेहि विहणिज्जेहिं" सव्वि दियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगिए समाणे तेल्लचम्मंसि णिउणेहि पडिपुण्णपाणिपायसुकुमालकोमलतलेहि पुरिसेहिं अब्भंगण"-परिमद्दणुव्वलण-करणगुणनिम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पठेहिं कुसलेहि मेधावीहिं निउणसिप्पोवगएहि" जियपरिस्समेहिं५ अट्रिसूहाए 'मंससूहाए तयासूहाए'१६ रोमसुहाएचउन्विहाए सुहपरिकम्मणाए" संबाहणाए" संबाहिए समाणे 'अवगय-परिस्समे"" अट्टणसालाओ पडि निक्खमइ, पडि निक्ख मित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, १. प० सू० ४० । ६. सुगंधतेल्ल० (क, ख, ग, घ)। २. पाउब्भवाप्पभायाए (ता)। १०. पीणणिज्जेहिं जिंघणिज्जेहि (पु)। ३. अहापंडुरे (क, ख, घ); आहापंडुरे (ग); ११. मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं (क, अधपंडरे (ता); अहपंडरे (पु)। ख, ग, घ); तिप्पणिज्जेहिं (चू)। ४. 'प्पभास (ता)। १२. अत: 'निउणसिप्पोवगएहिं' पर्यन्तं 'ता' प्रती ५. गुंजद्धरागबंधुजीवगपारावयचलणनयणपरहुय- भिन्ना वाचना दृश्यते-पडिपुण्णपाणिपादेहि सुरत्तलोयणजासुयणकुसुमरासिहिंगुलयनियराइ- सुइसुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छएहि रेयरेहंतसरिसे कमलायरसंडबोहए उट्ठि- दक्खेहिं पठेहि कुसलेहिं मेधावीहिं निउणयम्मिसूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा सिग्घोवगएहिं अब्भंगणपरिमद्दणुव्वलणकरणजलते तस्स य पहकरा परलुमि अंधयारे गुणणिम्माएहिं । बालायवकुंकुमेणं खचियव्वजीवलोए (ख, १३. अभिगण (ख)। ग, घ, टि, अ); जलंते तस्स य करपहरा- १४. ४ (ख, पु)। परद्धंमि अंधयारे बालायवककुमेण खचियव्व- १५. जियपरिस्समेहिं पुरिसेहिं (क)। जीवलोए (क) । १६. तयासुहाए मंससुहाए (ख, ग, घ)। ६. अट्टणु० (क)। १७. सुहपरिणामाए (ता)। ७. जोग (ख, घ, पु)। १८. ४ (ख, ग, घ, पु)। ६. करण (ता)। १६. अवगत पक्खेतपरिस्समो नरिंदे (ता)। Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुप्पविसित्ता समुत्त-'जाल - कलावाभिरामे " विचित्तमणिरयणकोट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि नाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि हाणपीढंसि सुहनिसन्ने पुप्फोदएहि य गंधोदएहि य उण्होदएहि य सुहोदएहि य दहिय कल्ला करण' - पवरमज्जण विहीए मज्जिए, तत्थ कोउयसएहि बहुविहेहि कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल - गंधकासातियलू हियंगे अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंवए' सरससु रहि- गोसीस - चंदणाणुलित्तगत्ते सुइमाला-वण्णगविलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार - तिसरय- पालंब - पलंबमाणक डिसुत्तसुकसोहे पद्धविज्जे अंगुलिज्जग-ल लियकयाभरणे वरकडग - तुडिय-थं भियभए अहिरू सस्सिए कुंडल - उज्जोइयाणणे' मउदित्तसिरए हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे 'मुद्दिया - पिंगलंगुलीए पालंब - पलंब माणस कय-पडउत्तरिज्जे" नाणामणि कणगरयण - विमलमहरिह - निउणोविय - मिसिमिसित विरइय-सुसिलिट्ठ विसिट्ठलट्ठ - आविद्धवीरवलए, किं बहुणा ? कप्परुक्खए विव' अलंकियविभूसिए नरिंदे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं 'सेयवरचामराहि उद्धव्वमाणीहिं" मंगलजयसद्द - कथालोए अणेगगणनायग- दंडनायग- राईसर-तलवर - माडँबिय- कोडुंबिय मंति-महामंति - गणग- दोवारिय-अमच्च - चेड - पीढमद्द - नगर निगम - 'सेट्ठि" - सेणा वइ-सत्थवाह'"दूय- संधिपालसद्धि" संपरिवुडे धवलमहामेह निग्गए इव गहगण-दिप्पंत रिक्खतारागणाण मज्भे ससिव्व पियदंसणे नरवई" मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख. मित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव " उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहा स" पुरत्याभिमु हे 'निसीयइ, निसीइत्ता" अप्पणो उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए 'अट्ठ भद्दासणाई सेयवत्थ-पच्चत्थुयाइं सिद्धत्थय-कय- मंगलोवयाराई" रयावेइ, रयावेत्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणामणिरयणमंडियं अहियपेच्छणिज्जं " महग्घवर पट्टणु१. जालाकुलाभिरामे ( क, ख, ग, घ ) ; जाल- १३. संधिपाल (ता) । मालाभिरामे ( ता ) । १४. नरवइ नरिंदे नरवसहे नरवसहकप्पे नरसीहे अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे (क, ग ) ; नरवसहे नरसीहे अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे ( ख ) ; नरवई नरिंदे नरवसहे नरसी अब्भहिए रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे (घ) । १५. जेणेव सीहासणे तेणेव (ता) । १६. सीहासणवरगते (ता) | १७. सन्निसीयत २त्ता (ता) । १८. सत्तत्थ ५१० २. कल्लाणमंगल्लकरण (घ ) । ३. सुसंबुडे (क, ख, घ ) । ४. नाणामणिकणगरयणवरकडग (क, घ, ता ) । ५. वियायणे ( क ) । ६. पालंबलंबमाणसुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलं गुलिए उज्जलनेवत्थरइतचिल्लक विरायमाणे ते दिवाकरे व्व दित्तो ( ता ) । ७. लट्ठसंठितपसत्थ (ता) | ८. चेव (ता, पु) । ६. सेयवरचामरवीयणे (ता) । १०. कोडुंबिय इब्भसेट्ठि (च्) । ११. × (चू) । १२. X (ता) । पवत्तमाणाइ सेतवत्थपञ्चत्थुताई सिद्धत्थककयमंगलोवयाराई उत्तराव्वकमणाई अभासणाई (ता) । १९. अणे (ता) । Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ग्गयं सहपट्ट-भत्तिसत - चित्तताणं' ईहामिय उस ह - तुरग-नर-मगर- विहग-वालगकिन्नर - रुरु - सरभ- चमर-कुंजर - वणलय- पउमलयभत्तिचित्तं अब्भिंतरियं जवणियं अंछावे, अंछावेत्ता नाणामणिरयणभत्तिचित्तं अत्थरय- मिउमसूरगोत्थयं सेयवत्थपच्चत्थुयं सुमउयं अंगसुहफरिसगं विसिट्ठ तिसलाए खत्तियाणीए भद्दासणं 'रयावेइ, रयावेत्ता" कोडुं बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवापिया ! अट्ठगम हा निमित्तसुत्तत्थधार विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह' ।। ४३. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया करयल ' 'परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामि ! त्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता कुंडग्गामं नगरं मज्झमज्भेणं जेणेव 'सुमिणलक्खणपाढगाणं गिहाई" तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुविणलक्खपाढ'सद्दाविति ॥ सिद्धत्थस्स सुमिणफल- पुच्छा-पदं ४४. तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविया" समाना तु चित्तमानंदिया जाव हरिसवस - विसप्पमाणहियया व्हाया कयबलिकम्मा कय- कोउय-मंगल- पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगललाई वत्थाई पवराई परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा " सिद्धत्थय- हरियालिय-कयमंगलमुद्धाणा सहि-सएहिं गेहेहितो निग्गच्छति, निग्ग च्छित्ता ' खत्तियकुंडग्गामं नगरं " मज्झमज्झेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रण्णो भवणवरवडि सग-पडिदुवारे" तेणेव उवागच्छति, उवागच्छत्ता भवणवरवडिसग पडिदुवारे एगयओ 'मिलति मिलित्ता" जेणेव बाहिरिया उट्ठाणसाला जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता करयल" "परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु सिद्धत्थं खत्तियं जणं विजएणं वद्धावेंति ॥ १. चित्तमाणं १।१।२५) । २. पच्चुत्थयं ( ता ) 1 (ता, पु); चित्तठाणं ( ना० ३. रएइ २ ता (ता) | ४. सुत्तधारए ( क ) । पाए (अपा) । ५. सद्दावेइ २त्ता एतमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चपिह (ता) | ६. सं० पा० --- करयल जाव पडिसुर्णेति । ७. कुंडपुरं (ता) । ८. सुमिणपाढगाणं घराइं ( ता ) । ६. सुविणपाढए (ता) । १०. सुविणपाढगा (ता) | ११. सावित्ता (ता) । पारए (ता, पु ); पाढए १२ x ( ता ) । १३. खत्तियकुंडग्गामस्स नगरस्स (ता) | १४. दुवारे (ता) । १५. मिलायंति एग २ त्ता (ता) । १६. सं० पा० - करयल जाव० कट्टु | ५११ Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ पज्जोसवणाकप्पो ४५. तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा सिद्धत्थेणं रण्णा 'वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्मा णिया समाणा पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ॥ ४६. तए णं सिद्धत्थे खत्तिए तिसलं खत्तियाणि जवणियंतरियं ठावेइ, ठावेत्ता पुप्फफल पडिपुण्णहत्थे परेणं' विणएणं ते सुमिणलक्खणपाढए एवं वयासि—एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्ज तिसला खत्तियाणी तंसि तारिसगंसि 'वासघरंसि जाव'' सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी इमेयारूवे ओराले चोद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तं जहा--गय-वसह। तं एतेसिं देवाणु प्पिया! ओरालाणं चोद्दसमहासुमिणाणं के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सह? सुमिणफल-कहण-पदं ४७. तए णं ते सुमिणलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिए एयम8 सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चितमाणं दिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया ते 'सुविणे ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता'" इहं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अण्णमण्णेणं सद्धिं संलाविति', संलावित्ता तेसिं सुमिणाणं लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अहिगयट्ठा सिद्धत्थस्स रण्णो पुरओ सुमिणसत्थाई उच्चारेमाणा-उच्चारेमाणा सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणु प्पिया! अम्हं सुमिणसत्थे बायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा-बावतरि" सव्वसुमिणा दिट्ठा। तत्थ णं देवाणुप्पिया! अरहतमायरो वा चक्कट्टिमायरो वा अरहंतंसि वा चक्कहरंसि" वा गब्भं वक्कममाणंसि एतेसिं" तीसाए महासुमिणाणं इमे चोद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुझंति, तं जहा—गय-वसह०५ । 'वासुदेवमायरो वा' वासुदेवं सि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णतरे सत्त महासुमिणे पासित्ताणं पडिबझंति । 'बलदेवमायरो वा' बलदेवंसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरे चत्तारि महासुमिणे पासित्ताणं पडिबझंति । . 'मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गम्भं वक्कममाणं सि" एएसिं चोद्दसण्हं महासुमि. १. ताहि इटाहि कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणा- ६. सामी (ता) । माहिं वग्गृहि उवसंगहिया (ता)। १०. सुविणसत्थंसि (ता)। २. परमेणं (ता)। ११. बाहत्तरि (पु)। ३. सयणिज्जंसि (ता); प० सू०२० । १२. पण्णत्ता (ता)। ४. ओराले जाव (ग, पु); ओराले फु (ता)। १३. चक्कवट्टिसि (ता)। ५. गाहा-द्रष्टव्यं सूत्र ४। १४. x (ता)। ६. चोद्दसण्हं महासुमिणाणं देवाणुप्पिया ओरा- १५. गाहा–द्रष्टव्यं सूत्र ४ । __ लाणं (क, ख, ग, घ, पु)। १६. तत्थ णं वासुदेव मायरोवि (ता)। ७. सुमिणोग्गहं करेंति २ (ता)। १७. तत्थ णं बलदेव मायरो वि (ता)। ८. संचालेंति संवाएंति (अपा); संसामिति २ १८. तत्थ णं मंडलिय मायरो वि (ता)। (ता)। १६. वक्ते समाणे (ख, ग, पु) । Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५१३ णाणं अण्णयरं एगं महासुमिणं पासित्ताणं पडिबज्झंति । इमे य णं देवाणु प्पिया! तिसलाए खत्तियाणीए 'सुमिणा' दिट्ठा जाव' मंगल्लकारगा णं देवाणु प्पिया! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा, तं' अत्थलाभो देवाणुप्पिया'! 'भोगलाभो देवाणु प्पिया! पुत्तलाभो देवाणुप्पिया। सोक्खलाभो देवाणु प्पिया! रज्जलाभो देवाणुप्पिया! एवं खलु देवाणु प्पिया" ! तिसला खत्तियाणी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं तुम्हं कुलकेउं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडेंसयं कुल तिलयं कुलकित्तिकरं 'कुलवित्तिकरं कुलदिणयरं कुलाधारं 'कुलनंदिकरं कुलजसकरं" 'कुलपायवं कुलविवद्धणकर". सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगणोववेयं माणम्माणप्पमाण-पडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं दारयं पयाहिइ। से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते" विच्छिण्णविपुलबलवाहणे चाउरंतचक्कवट्टी रज्जवई राया भविस्सइ, जिणे वा तेलोक्कनायए' धम्मवरचक्कवट्टी", तं ओराला णं देवाणु प्पिया! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्ल कारगा णं देवाणु प्पिया! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिट्ठा । ४८. तए णं से सिद्धत्थे राया तेसिं सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयम? सोच्चा निसम्म हतुट्ठ-चित्तमाणंदिए जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियए करयल 'परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु ते सुमिणलक्खणपाढगे एवं वयासी-एवमेयं देवाणु प्पिया! तहमेयं देवाणुप्पिया! अवितहमेयं देवाणुप्पिया! 'असंदिद्धमेयं देवाणप्पिया!'५ इच्छियमेयं देवाणुप्पिया! पडिच्छियमेयं देवाण प्पिया! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणु प्पिया! सच्चे णं एसमठे से जहेयं तुब्भे वयह त्ति कट्ट ते सुमिणे सम्मं विणएणं" पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते सुमिणलक्खणपाढए विउलेणं 'असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, १. ४ (ता)। कुलपादवं कुलतन्तुसंताण विवद्धणकर (ता); २. चोहसमहासुमिणा (क, ख, ग, घ)। कुलाधारं कुलपायवं कुलविविद्धिकरं (पु)। ३. प० सू० ३८ । ११. विइक्कते (क)। ४. ओराला फु चोद्दसमहासुमिणादिट्ठा (ता)। १२. नाणी केवलवर (ता)। ५. तं जहा (ख, पु)। १३. चाउरंतचक्कवट्टी (क); धम्मचक्कवट्टी ६. सामीति (ता)। जाव मंगलकारगाणं (ता)। ७. पुत्तलाभो सामी सोक्खलाभो भोगलाभो १४. सं० पा०-करयल जाव ते। रज्जलाभो एवं खलु सामी (ता)। १५. x (ता)। ८.४ (ता, पु)। १६. ४ (ता)। ६. णंदिकरं जसकरं (ता)। १७. ४ (ता, पु)। १०. कुलतंतुसंताणविवद्धणकरं (क); कुलाधारं Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ पज्जोसवणाकप्पो सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयति, दलइत्ता पडिविसज्जेइ ।। सिद्धत्थस्स सुमिणपसंसा-पदं ४६. तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता जेणेव 'तिसला खत्तियाणी जवणियंतरिया" तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता तिसलं खत्तियाणि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए! सुविणसत्थंसि बायालीसं सुमिणा जाव' एगं महासुमिणं पासित्ताणं पडिबुज्झति, इमे य णं तुमे देवाणुप्पिए! चोद्दस महासुमिणा दिट्ठा, तं ओराला णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा जाव जिणे वा तेलोक्कनायए धम्मवरचक्कवट्टी ॥ ५०. तए णं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थस्स रण्णो अंतिए एयमठं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टा जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल' •परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट° ते सुमिणे सम्म पडिच्छिइ, पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रण्णा अब्भणण्णाया समाणी नाणामणि रयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुठेइ, अब्भु ठेत्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंसस रिसीए गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणं अणुपविट्ठा ॥ नामकरण-संकप्प-पदं ५१. जप्पभियं च णं समणे भगवं महावीरे तं नायकुलं साहरिए तप्पभिई च णं बहवे वेसमण-कुंडधारिणो' तिरियजंभगा देवा सक्कवयणेणं से जाइं इमाइं पुरापोराणाई महानिहाणाई भवंति, तं जहा-पहीणसामियाइं पहीणसेउयाई पहीणगोत्तागाराई उच्छिन्नसामियाई उच्छिन्नसेउकाई उच्छिन्नगोत्तागाराई गामागर-नगर-खेडकव्वड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संवाह-सण्णिवेसेसु सिंघाडएसु वा तिएसु वा चउक्केसु वा चच्चरेसु वा चउम्मुहेसु वा महापहेसु वा 'गामट्ठाणेसु वा नगरट्ठाणेसु वा गामनिद्धमणेसु वा नगरनिद्धमणेसु वा आवणेसु वा" देवकुलेसु वा सभासु वा पवासु वा आरामेसु वा उज्जाणेसु वा 'वणेसु वा वणसंडेसु वा“ सुसाण-सुन्नागारगिरिकंदर-संति -सेलोवद्राण-भवण गिहेसु"वा सन्निक्खित्ताइ चिट्ठात ताईसद्धस्थ सन्निक्खित्ताई चिठंति ताई सिद्धस्थ१. जवणंतरिया (ख, घ); जवणियंतरिता ६. उच्छन्न (क, ख, ग, पु)। तिसिला खत्तियाइणीए (ता)। ७. अंतरावणेसु वा गामणिद्धवणेसु वा नगरनिद्ध२. जाव तत्थ णं मंडलियमायरोवि एतेसि चोद्द- वणेसु वा आएसणासु वा आतणेसु वा सहं महासुमिणाणं अन्नतरं (ता); (ता)। प० सू० ४७ । ८. X(ता)। ३. सं० पा०-करयल जाव ते । ६. संधि (ता)। ४. रायकुलं (क, ख, ग, घ)। १०. गिहेसु (ख, ग, घ)। ५. आज्ञाधारिणः इत्यर्थः । Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो रायभवणंसि साहरंति॥ ५२. तए णं समणस्ता भगवओ महावीरस्स अम्मापिऊणं अयमेवारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-जप्पभियं च णं अम्हं एस दारए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कंते, तप्पभिई च णं अम्हे हिरण्णेणं वड्ढामो, सुवण्णेणं वड्ढामो, धणेणं धन्नेणं रज्जेणं रट्टेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं जणवएणं जसवाएणं वड्ढामो, विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्तरयणमाइएणं संतसारसावएजेणं पिइसक्कारेणं अतीव-अतीव अभिवड्ढामो, तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्स एयाणुरूवं' गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्जं करिस्सामो 'वद्धमाणो' त्ति ॥ भगवओ पइण्णा-पदं ५३. तए णं समणे भगवं महावीरे माउअणुकंपणट्ठाए 'निच्चले निप्फंदे निरयणे" अल्लीणपल्लीणगुत्ते या वि होत्था ॥ ५४. तए णं तीसे तिसलाए खत्तियाणीए अयमेयारूवे 'अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे° समुप्पज्जित्था-हडे मे से गब्भे, मडे मे से गब्भे, चए मे से गब्भे, गलिए मे से गब्भे, एस मे गब्भे पुवि एयति इयाणि नो एयति त्ति कट्ट ओहतमणसंकप्पा चिंतासोगसागरं संपविट्ठा करयलपल्हत्थमुही' अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया झियाइ, तं पि य सिद्धत्थरायभवणं उवरयमुइंग-तंती-तल-ताल-नाडइज्जजण मणुज्जं दीण विमणं विहरइ ।। ५५. तए णं समणे भगवं महावीरे माऊए अयमेयारूवं अज्झत्थियं चितियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं पण्णं विजाणित्ता एगदेसेणं एयइ ।। १. अतोने मुनिपुण्यविजयसंपादितकल्पसूत्रे एतत् सूत्रमस्ति-'जं रणिं च णं समणे भगवं महावीरे नायकुलंसि हिरण्णेणं वड्डित्था सुवण्णणं वड्वित्था धणेणं धन्नेणं रज्जेणं रठेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंते- उरेण जणवएणं जसवाएणं ववित्था, विपुल- धणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालरत्त- रयणमाइएणं संतसारसावएज्जेणं पीइसक्कार- समृदएणं अईव-अईव अभिवडित्था ।' तत्र एतत् पादटिप्पणमपि विद्यते-पञ्चाशीतितमं सूत्रमर्वाचीनादर्शष्वेव दृश्यते न प्राचीनासु तालपत्रीयप्रतिषु अस्माकं प्रयुक्तादर्शेष्वपि नैतत् सूत्रं विद्यते, केवलं 'क' संकेतितादर्श विहाय । अत एव नैतत् स्वीकृतम् । २. पिइसक्कारसमुदएणं (पु) । ३. इमं एतारूवं (ता)। ४.४ (ता)। ५. सं० पा०-अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था। ६. करतलपलत्थाभिमुही (ता)। ७. झियायति (ता); झियायइ (पु)। ८. ४ (ता)। . जाणित्ता (ता)। Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ पज्जोसवणाकप्पो ५६. तए' णं सा तिसला खत्तियाणी' हट्टतुट्ठा जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया एवं वयासिनो खलु मे गब्भे हडे', 'नो खलु मे गब्भे मडे, नो खलु मे गब्भे चुए, नो खलु मे गब्भे गलिए, एस मे गब्भे पुव्वि नो एयइ इयाणि एयइ॥ ५७. तए णं समणे भगवं महावीरे 'गब्भत्थे चेव'' इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ नो खलु मे कप्पइ अम्मापिईहिं जीवंतेहिं मुंडे भवित्ता अगारवासाओ अणगारियं पव्वइत्तए॥ जम्म-पदं ५८. तए णं सा तिसला खत्तियाणी हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सव्वालंकारभूसिया तं गब्भं नाइसीएहिं नाइउण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाएहिं नाइअंबिलेहि नाइमहुरेहिं 'नाइनिद्धेहिं नाइलुक्खेहिं नाइउल्लेहिं नाइसक्केहिं उडभयमाणसहेहिं 'भोयणच्छायण-गंध-मल्लेहि ववगयरोग-सोगमोह-भय-परित्तासा" जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं पइरिक्कसुहाए मणाणुकूलाए विहारभूमीए'पसत्थदोहला संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला उवमाणियदोहला वुच्छिन्नदोहला विणीयदोहला 'सुहंसुहेणं आसयइ सयइ चिट्ठइ निसीयइ तुयट्टइ'" सुहंसुहेणं तं गम्भं परिवहइ॥ १. 'ता' प्रती अस्य सूत्रस्य वाचनाभेदो इत्थमस्ति (ख, टि), सव्वत्तुगभयमाण० (ग); सव्वो तते णं सा तिसला खत्तियाणी एवं वदासी यभयमाण० (घ)। नो खलु मे से हडे गब्भे जाव णो खलु मे से ११. परिस्समा (क, ख, ग)। गलिते एस मे गब्भे पुवि णो एयति इयाणि १२. चिह्नाङ्कितपाठस्य स्थाने 'ता' प्रती भिन्नाएयतित्ति कटु हट्टतुटु जाव हितया एवं वा वाचना दृश्यते-भोयायणगं मालिहं जं तस्स विहरति । गब्भस्स हियं मियं पत्थं गब्भपोसणं करेइ तं २. खत्तियाणी तं गब्भं एयमाणं चलमाणं फंदमाणं देसे य काले य आहारचाहारेमाणी उऊगयजाणित्ता (ख)। माणसुहेहिं भोयणच्छायणे उदगगंधमल्लालं३. सं० पा०-हडे जाव नो गलिए। कारेहिं विवित्तमउएहिं सयणासणेहि पइरिक्क४. एयइत्ति कटु हट्टतुट्ठ जाव हियया एवं वा सुहाई मणोणूकुलाहि वियारभमिहिं ववगयसोविहरइ (क, घ, पु)। गोगरुयपरितोरसा । ५. गब्भगते चेव समाणे (ता)। १३. अविमाणिय (क, ख, ग, घ, पु)। ६. गिण्हइ (ख, घ)। १४. तुयट्टइ विहरइ (ख, ग) इह स्थाने वाचना७. अम्मापिऊहिं (क, घ, ता); अम्मापिएहिं न्तरे 'सुहंसुहेणं' ति सुखंसुखेन यथा भवति (पु)। गर्भानाबाधया 'आसयइ' आश्रयति आश्रयणीयं ८. जीवमाणेहिं (ता)। वस्तु, 'सयइ' शेते, 'चिट्ठइ' ऊर्द्ध स्थानेन ६. ४ (ता)। तिष्ठति 'विहरइ' विचति, 'निसीयइ' उप१०. सव्वउउभयमाण० (क); सव्वत्तुभयमाण विशति, 'तुयट्टइ' शय्यायां वर्तते इति (टि)। Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५९. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जेसे गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे-चित्तसुद्धे, तस्स णं चित्तसुद्धस्स तेरसी-दिवसेणं' नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं 'अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं विइक्कंताणं 'उच्चट्ठाणगतेसु गहेसु पढमे चंदजोगे सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु जइएसु सव्वसउणेसु पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसप्पिसि मारुयंसि पवातंसि निप्फन्नमेदिणीयंसि कालंसि पमुदितपक्कीलिएसु जणवएसु" पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि हत्थुत्तराहिं. नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं 'आरोगा आरोग" दारयं पयाया ।। जम्मुस्सव-पदं ६०. जं रयणिं च णं समणे भगवं भहावीरे जाए 'सा णं रयणी" बहूहिं देवेहि य देवी हि य ओवयंतेहि य उप्पयंते हि थ' उम्पिजलमाणभूया" कहकहभूया यावि होत्था । ६१. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे जाए तं रयणिं च णं बहवे वेसमण-कुंड धारिणो तिरियजंभगा देवा सिद्धत्थरायभवणंसि हिरण्णवासं च सुवण्णवासं च रयणवासं च वइरवासं च वत्थवासं च आहरणवासं च पत्तवासं च पुप्फवासं च फलवासं च बीयवासं च मल्लवासं च गंधवासं च वण्णवासं च 'चण्णवासं च वसू हारवासं च वासिम ॥ ६२. तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए" भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं" देवेहि तित्थ यरजम्मणाभिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कुंडपुरे नगरे चारगसोहणं करेह, करेत्ता माणुम्माणवद्धणं करेह, करेत्ता कुंडपुरं नगरं सब्भिंत र-बाहिरियं आसिय-सम्मज्जियोवलेवियं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापह-पहेसु सित्त-सुइसम्मट्ठ-रत्यंतरावणवी हियं मंचाइमंचक लियं नाणाविहरागभूसियज्झयपडागमंडियं लाउल्लोइय-महियं गोसीससरसरत्तचंदण-दद्दर दिण्णपंचंगुलितलं उवचियवंदणकलसं वंदणघड-सुकय-तोरणपडिदुवारदेसभागं आसत्तोसत्त-विपुलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरहिमक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु पवरकुंदरुक्क-तुरुक्क-डज्झतधूव-मघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंध-वरगं धियं १. पक्खेणं (आचू० १५८)। ७. उप्पिजलकभूया (ता) । २. माणं (क, ख, ग, घ)। ८. वयर (क)। ३. एतच्चिन्हमध्यवर्ती पाठः अर्वाचीनास्वेव प्रतिषु ६. चुणवुटुिं च वसुधाराए वासं (ता)। दृश्यते (पु); 'ता' प्रतावपि एष पाठो नास्ति। १०. खत्तिए समणस्स भगवो महावीरस्स (ता)। ४ आरोग्गारोग्गं (क); आरुग्गा आरुग्गं (ख, ११. विमाणवासी (ख, ग, घ)। ग, घ)। १२. समज्जियोवलित्तं (क, घ) । ५. तं रयणि च णं (क, ख, ग, घ)। १३. वंदणघर (ता)। ६. य देवुज्जोए एगालोए लोए देवसण्णिवाया (क, १४. कलसं (ता)। ख, ग, घ); उज्जोविया यावि होत्था (ता)। १५. धूवडझंतसुरभि (ता)। Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ पज्जोसवणाकप्पो गंधवट्टिभूयं नड-नट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-पवग-कहग-पढग'-लासग-आइक्खगलंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणियअणेगतालायराणुचरियं करेह कारवेह, करेत्ता कार.. वेत्ता य जूयसहस्सं 'च मुसलसहस्सं च उस्सवेह", उस्सवेत्ता य मम एयमाणत्तियं पच्चप्षिणह' ॥ ६३. तए णं ते नगरगुत्तिया सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुटठा चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल' 'परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं सामि! ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति° पडिसुणित्ता 'खिप्पामेव कुंडपुरे नगरे' चारगसोहणं जाव मुसलसहस्सं च उस्सवेत्ता जेणेव सिद्धत्थे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल' 'परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि° कट्ट सिद्धत्थस्स रण्णो एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। ६४. तए णं से सिद्धत्थे राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव" सव्वोरोहेणं सव्वपुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुडियसद्दनिनाएण महया इड्ढीए महया जुतोए महया बलेणं महया वाहणेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमु हि-हुडुक्क-मुरव मुइंग-दुंदुहिनिग्घोसणादितरवेणं उस्सुक्कं उक्करं उक्किळं अदेज्ज अमेज्ज अभड१. पाढग (ख, ग, घ)। संणिणादेणं महया इड्डीए महता जुत्तीए महया २. वा आयामजामहि य सक्कारं च पूयामहिम- बलेणं महया वाहणेणं भहया समुदएणं महया ___ संजुत्तं ऊसवेह (ता)। वरतुरियजमगपडुप्पवाइरवेणं संखपणव भेरि ३. पच्चप्पिणेह (पु)। पटहझल्लरिदुंदुहिमुरवमुत्तिगखरमुहिनिग्घोस४. कोडुबियपुरिसा (क, ख, ग, घ, ता)। णाइतेणं गणियावरणाडइज्जकलियं अणे५. सं० पा० -करयलं जाव पडिसुणित्त।। गतालायराणुचरियं अणुद्धओ उत्तिंग अगि६. खत्तियपुरनगरे (ता)। लातमल्लदामं पमुतितपक्कीलितं विजयवेजइत ७. सं० पा०—करयल जाव कटु । सपुरजणजाणवयं दसरायं ठियपडियं करेह ८. तमाणत्तियं (ता)। जधव उब्विहंत तेवि एतेणं चेव मिहिणा ६. खत्तिए (ता)। करेन्ति जाव पच्चप्पिणति । तते णं से सिद्धत्थे १० अत: ६५ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रतौ भिन्ना वाचना खत्तिए दसराइयए ठियपडियाए वट्टमाणीए लभ्यते----उवागच्छइ दोच्चपि कोडुबियपुरिसे सएहि य साहस्सेहि य सयसाहस्सीएहिते जाएहिं सहावेइ २ एवं वयासी-खिप्पमिव भो देवा- दाएहि भाएहिं पितिदाणं दलयमाणे दवावेणुप्पिया ! कुंडपुरे नगरे उस्सुक्कं उक्करं माणे सइए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य उक्किट्ठ अदेज्जं अमेज्जं अभडप्पवेसं अदंड- लंभे पडिच्छेमाणे विहरइ । कोदंडिमं अधरिमं अगणिमं सव्विड्डीए सव्वबलेणं ११. १० सू० ७५, यावत्करणात् प्रथमं सव्विड्डीए सव्वसमुदाएणं सव्वायरेणं सव्वसंभमेणं सव्वपग- सव्वजुईए इत्यादि दीक्षाकालपठितं वक्ष्यमाणतीहिं सव्व विभूतीए सव्वविभूसाए सव्वतालाय- मालापकवृंदं समग्रं सव्वोरोहेणमितिपर्यन्तमत्र रेहिं सव्वनाडएहिं सव्वरोधसपरिवारेणं सव्व- ग्राह्यम् (क, कि)। पुष्फवत्यगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो प्पवेसं अडंडकोडंडिमं अधरिमं गणियावरनाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं अणुद्धयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्की लियसपुरजणजाणवयं दस दिवस इपडियं करेइ ॥ ६५. तए णं से सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइपडियाए वट्टमाणीए सइए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य, सइयय साह - स्सिए य सयस हस्सिए य लंभे पडिच्छेमाणे य पडिच्छावेमाणे य एवं वा' विहरइ ॥ नामकरण-पदं ६६. तए णं' समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरों पढमे दिवसे ठिइपडियं करेंति तइ दिवसे 'चंदसूरस्स दंसणियं" करेंति, छट्ठे दिवसे 'जागरियं" करेंति" एक्कारसमे दिवसे 'विइक्कंते निव्वत्तिए 'असुइजात -कम्मकरणे" संपत्ते बारसाहे" विउलं असण- पाणखाइम साइमं उवक्खडाविति, उवक्खडावित्ता मित्त-नाइ - नियगसयण-संबंधि-परिजणं नायए य खत्तिए य आमंतेत्ता तओ पच्छा पहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छत्ता सुद्धप्पा वेसाई मंगल्लाई 'वत्थाई पवर परिहिया " भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया तेणं मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधिपरिजणेणं 'नायएहि य खत्तिएहि य" सद्धि तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभुंजे माणा परिभाएमाणा विहरंति" । जिमियभुत्तोतरागया वियणं समाणा आयंता चोक्खा परमसुईभूया तं मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परिजणं नायए य खत्तिए य विउलेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्मार्णेति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेद मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स नायाण य खत्तियाण य पुरओ एवं वयासी - पुव्विपि य णं देवाणुप्पिया ! अम्हं एयंसि दारगंसि 'कुच्छिंसि" गब्भं वक्कं तंसि " समाणंसि इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - जप्पभिई च णं अम्हं एस दारए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कंते तप्पभिई च णं अम्हे हिरण्णेणं वड्ढामो, सुवण्णेणं धणेणं धन्नेणं जाव" संतसारसाव एज्जेणं पीइसक्कारेणं अईव अईव अभिवड्ढामो, १. x ( क ) ; चणं (घ ) । २. णं ते सिद्धत्थखत्तिए ( ता ) । ३. × (ता) । ४. चंदसूरदंसणं ( ता ) । ५. धम्मजागरियं ( क, ख, ग, घ, अ ) । ६. जागरियजागरिते (ता) । ७. असुइजम्मकम्मकरणे ( क, ख, ग, घ ) । ८. बारसाहदिवसे (क, ख, ग, घ, पु); वीति - क्कते संपत्ते बारसमे दिवसे निव्वते असुइजायकम्मकरणे संमट्ठे चोक्खे परमसुयिभूते ५१६ ( ता ) ; द्रष्टव्यं ओवाइय (१४४) सूत्रस्य 'बारसाहे' पदस्य पादटिप्पणम् । ६. पवराई वत्थाई परिहिया ( क ) ; परहिते (पु) । १०. नायखत्तिएहिं ( क, ख, ग, घ, पु) । ११. एवं वा विहरंति ( ख, ग, घ ) । १२. x (क, पु) । १३. गब्भगतंसि (ता) । १४. ५० सू० ५२ । Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० पज्जोसवणाकप्पो सामंतरायणो वसमागया य, तं जया णं अम्ह एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्स एयाणुरूवं' गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्जं करिस्सामो वद्धमाणु' त्ति ता अम्हं अज्ज मणोरहसंपत्ती जाया तं होउ णं कुमारे 'वद्धमाणे-वद्ध माणे' नामेणं ॥ ६७. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्तेणं, तस्स णं तओ नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा-अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे सहसम्मुइयाते समणे, अयले भयभेरवाणं 'परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे पडिमाणं पालए धीम" अरतिरतिसहे दविए वीरियसंपन्ने देवेहिं से ‘णामं कयं" समणे भगवं महावीरे ॥ परिवार-पदं ६८. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिया कासवगोत्तेणं, तस्स णं तओ नामधेज्जा एवमा हिज्जंति, तं जहा-सिद्धत्थे इ वा, सेज्जंसे इ वा, जसंसे इ वा ॥ ६६. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स माया वासिट्टा गोत्तेणं, 'तीसे गं" तओ नाम धेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा-तिसला इ वा, विदेहदिण्णा इ वा, पियकारिणी" इवा॥ ७०. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तिज्जे" सुपासे, जेठे भाया नंदिवद्धणे, सुदंसणा भारिया जसोया कोडिन्ना गोत्तेणं ।। ७१. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स धया कासवी" गोत्तेणं, तीसे णं दो" नामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा-अणोज्जा इ वा, पियदसणा इवा ॥ ७२. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स नत्तुई कोसिया गोत्तेणं, तीसे णं दो" नामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा–सेसवई इ वा, जसवई इ वा ।। संबोह-पदं ७३. समणे भगवं महावीरे दक्खे दक्खपतिण्णे पडिरूवे आलीणे" भद्दए विणीए नाए १. इमेतारूवे (ता)। ८. महावीरे २ (ता)। २. 'ता' प्रतौ अत: 'जाया' पर्यन्तं पाठो नास्ति। ६. तीए (ख, ग)। मुनिपुण्यवि जयजी सम्पादिते कल्पसूत्रे वद्ध- १०. पीई (ख, घ); पिइ (ग)। माणुत्ति' पाठो विद्यते शेष पाठो नास्ति। ११. पेत्तिज्जे (चू)। ३. नामेणं तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स १२. नंदिवद्धणे णामेणं (ता)। अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति वद्धमाणुत्ति १३. कासवती २ (ता)। (ग, घ)। १४. दुवे (ता)। ४. °पितीसंतिए (ता)। १५. कासवी (क, पु); कासई (ता)। ५. खंता पडिमाणं वालए (ता)। १६. दुवि (ता)। ६. डम्विए (ता)। १७. अल्लीणे (क, घ)। ७. कयणामं (ता)। Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेहे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले' तीसं वासाई विदेहंसि कट्ट (अगारमझे वसित्ता ?)' अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं, गुरुमहत्तरएहिं अब्भणुण्णाए समत्तपइण्णे पुणरवि लोयंतिएहिं जियकप्पिएहिं देवेहि (लोयंतिया जियकप्पिया देवा?) ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं 'मिय-महुर-सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं गंभीराहिं अपुणरुत्ताहिं वग्गूहिं अणवरयं अभिनंदमाणा य अभिथुव्वमाणा य एवं वयासी-जय-जय नंदा! जय-जय भद्दा, भदं ते, जय-जय खत्तियवरवसहा! बुज्झा हि भगवं लोगनाहा ! पवत्तेहि धम्मतित्थं हियसुहनिस्सेयसकर सव्वलोए सव्वजीवाणं भविस्सइत्ति कटु 'जय-जय सइं', पउंजंति ॥ पव्वज्जा-पदं ७४. पुव्विं पि य णं समणस्स भगवओ महावीरस्स माणुस्सगाओ' गिहत्थधम्माओ अणत्तरे आहोहिए" अप्पडिवाई" नाणदंसणे होत्था । तए णं समणे भगवं महावीरे तेणं अणुत्तरेणं आहोहिएणं नाणदंसणेणं अप्पणो निक्खमणकालं आभोएइ, आभोएत्ता चेच्चा हिरण्णं चेच्चा सुवण्णं 'चेच्चा धणं चेच्चा रज्जं चेच्चा रठं, एवं बलं वाहणं कोसं कोठागारं, चेच्चा पुरं चेच्चा अंतेउरं चेच्चा जणवयं चेच्चा विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्तरयणमाइयं संतसारसावतेज्ज विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता 'दाणं (दायं?) दायारे (ए?) हिं परिभाएत्ता १. नाते नातकुलनिवड्ढे (ता) । मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा'। २. सुयमाले (ता)। अत्रापि एवमेव युज्यते । ३. कोष्ठकवर्ती पाठः अपेक्षितोस्ति आचारचूलायां ६. वियं मधुरं सरिसाहिं वग्गूहिं हिययपल्हाय (१५।२६) विद्यमानत्वात् परन्तु प्रस्तुतसूत्रा- णिज्जाहि अणवरतं अभिनंदमाणा य अभित्थुदर्शषु क्वापि नोपलभ्यते । णमाणा य (ता)। ४. देवेहिं जीवकप्पीहिं (ता)। ७. लोगनाहा सयलजगजीवहियं (क, ख, ग)। ५. 'अभिनंदमाणा य अभिथुव्वमाणा य' अनयोः ८. परमहिय° (क) । विशेषणपदयोः विशेष्यपदं 'देवेहिं' विद्यते, तेन ६. मणुस्सातो (ता); माणुस्साओ (पु)। 'देवा' इति पाठः अपेक्षितः आसीत्, किन्तु १०. आभोइए (ख, ग, घ, अ); अवाधिए (ता)। न जाने कथमत्र तृतीया जाता ? एवमेव ११. ४ (ता)। अग्रिमसूत्रे 'घंटियगणा' इति पाठः अपेक्षितः १२. आहोइएणं (क); आभोइएणं (ख, ग, घ); आसीत्, किन्तु तत्रापि तृतीया विभक्तिर्दृश्यते । अवोहितेणं (ता)। ओवाइय (६८) सूत्रे एष पाठः प्रथमावि- १३. चिच्चा धन्नं चिच्चा रज्जं चिच्चा धणं भक्त्यन्तो लभ्यते 'संखिया चक्किया नंगलिया (ग)। Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ पज्जोसवणाकप्पो दायं दाइयाणं परिभाएत्ता," जेसे हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे–मग्गसिरबहले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमी-पक्खेणं पाईणगामिणीए छायाए, पोरिसीए अभिनिवाए' पमाणपत्ताए', सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं चंदप्पभाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे, संखिय-चक्किय-नंगलियमुहमंगलिय-'वद्धमाणग-पूसमाणग-घंटियगणेहिं (घंटियगणा ?) ताहिं इटाहिं कंताहिं पियाहिं मणण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहि" वग्गूहिं अभिनंदमाणा अभिथुव्वमाणा' य एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! भदंते अभग्गेहिं णाणदंसणचरित्तेहिं, अजियाई जिणाहि इंदियाइं, जियं च पालेहि समणधम्म, जिअविग्घो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमझे, निहणाहि रागदोसमल्ले तवेणं धिइधणियबद्धकच्छे, महाहि अट्टकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुवकेणं अप्पमत्तो, हराहि आराहणपडागं च वीर ! तेलोक्करंगमज्झे, पावयवितिमिरमणत्तरं केवलवरणाणं', गच्छ य मोक्खं परमपयं 'जिणवरोवदिट्टेणं मग्गेणं अकुडिलेणं' हंता परीसहच{" जय-जय खत्तियवरवसहा! 'बहूई दिवसाई बहूई पक्खाई बहूई मासाइं बहूई उऊई बहूई अयणाई बहूइं १. 'क, ख, घ' आदर्शषु 'दाणं दाइयाणं परिभाए- ५. द्रष्टव्यं ७३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । त्ता' इति पाठोस्ति । 'ता' प्रती एवं पाठोस्ति- ६. 'ता' प्रतौ अतः परं 'मियमहरसस्सिरीयाहिं' णं दायं दायिताणं परिभात्ताणं। मुनिपुण्य- पर्यन्तं एवं पाठो विद्यते-कंताहिं जाव पल्हाविजयसम्पादिते कल्पसूत्रे 'दाइयाणं परिभाएत्ता' वणिज्जाहिं अद्धसतियाहिं अपुणरुत्ताहिं। एवं पाठोस्ति । अवचूरू टिप्पणे पि च असौ ७. मिउमहुरसस्सिरीयाहिं, हिययपल्हायणिज्जाहिं व्याख्यातोस्ति । 'दायाएहि' इति पाठः सङ्ग- अद्धसईयाहि अप्पुणरत्ताहि (क) । तोस्ति । द्रष्टव्यं आयारचूला, १५॥१३ सूत्रस्य ८. अभिसंथुवमाणा (पु)। दशमं पादटिप्पणम् । 'दायाद' प्रकरणे दाणं . केवलनाणं (क); केवलं वरनाणं (पु)। इति पदं चिन्तनीयमस्ति । आयारचूला, १०. मुनिपुण्यविजयसम्पादितकल्पसूत्र 'अभग्गेहि' १५।१६ सूत्रे 'दायं' इति पदं विद्यते । अत्रापि अतः प्रारभ्य 'हंता परीसहचम' इत्यन्तः पाठः स एव पाठो युक्तोस्ति । आयारचूला १५।१६ अर्वाचीनादर्शगतो विद्यते-इति सूचितमस्ति । सूत्र 'दाइयाणं पज्जभाएत्ता' इति पाठो 'ता' प्रतावपि एष पाठो नास्ति । प्रस्तुतपाठे नास्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य प्रयुक्तादर्शषु 'ग' 'जिणवरोवदिट्टेणं मग्गेणं अकुडिलेणं' इति सतितादर्शपि एष पाठो नास्ति, कल्पकिरणा- पाठो विद्यते, किन्तु स्वयंबुद्धस्य तीर्थकरस्य वल्यां पाठद्वयमपि व्याख्यातमस्ति, किन्तु तत्र नेष पाठो युक्तोस्ति । मेघकुमारस्य प्रकरणेपि अर्थपरम्परा समीचीना नास्ति । नैष पाठः एवमस्ति-गच्छ य मोक्खं परमं २. अभिनिविट्ठाए (क, ग); अभिनिव्वट्टाए वयं सासयं च अयलं (ना०-१११११४३) (ता); अभिनिविट्टाए (पु)। भगवत्यां (६।२०८) जमालिप्रकरणे असौ ३. माणपत्ताए (ता)। पाठो लभ्यते। ४. पूसमाणा वद्धमाण ससमाण संघटियगणेहिं ११. चमू (क, ख, घ, पु)। (ता)। Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५२३ संवच्छराइं अभीए" परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे भयभेरवाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति कटु जय-जय-सई पउंजंति ॥ ७५. तए णं समणे भगवं महावीरे नयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथव्वमाणे हिययमालासहस्सेहिं ओनंदिज्जमाणे-ओनंदिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणेविच्छिप्पमाणे कंतिरूवगणेहिं पत्थिज्जमाणे-पत्थिज्जमाणे अंगुलिमालासहस्सेहिं दाइज्जमाणे-दाइज्जमाणे दाहिणहत्थेणं बहूणं नरनारिसहस्साणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे भवणपंतिसहस्साइं समतिच्छमाणेसमतिच्छमाणे तंती-तल-ताल-तुडिय-गीय-वाइयरवेणं महुरेण य मणहरेणं जयजयसद्दघोसमी सिएणं' मंजुमंजणा घोसेण 'अपडिबुज्झमाणे-अपडिबुज्झमाणे सविड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्ववाहणेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूतीए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वसंगमेणं सव्वपगतीहिं सव्वणाडएहिं सव्वतालायरेहि सव्वोरोहेणं सव्वपुप्फवत्थगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वत डियसहसण्णिणादेणं महता इड्ढीए महता जुतीए महता बलेणं महता वाहणणं महता समुदएणं वरतडिय-जमगसमग-प्पवादितेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमहिहुडुक्क'मरव-मइंग'"-दंदुभि-निग्घोसनादियरवेणं कुंडपुरं नगरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव णायसंडवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावेत्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आहरणमल्लालंकारं ओमयइ ओमुइत्ता, सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता छठेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय एगे अबीए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। छउमत्थ-चरिया-पदं ७६. समणे भगवं महावीरे संवच्छर साहियं मासं जाव चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेले पाणिपडिग्गहए। ७७. समणे भगवं महावीरे साइरेगाइं दुवालस वासाइं निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे 'जे के इ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा-दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा १. बहूणि अहोरत्ताणि पक्खाणि मासाणि उदूणि स्वीकृतः । चूणिकृता एवं व्याख्यातम्___ अयणाई संवच्छराइं अभओ (ता)। 'मंजुमंजुणा घोसेण अपडिबुज्झमाणे' त्ति ण २. अभिनंदिज्जमाणे (ता)। णज्जति को कि जंपति ? । ३. सहस्सेहिं (घ)। ७. ४ (क, ख, ग, घ, पु)। ४. समइक्कमाणे (घ); समच्छ (ता)। ८. ठवेइ (ता)। ५. मीसएणं (ता)। ६. संवच्छरियं (ता)। ६. य पडिबुज्झमाणे पडि (क, ख, ग, घ, पु); १०. पडिग्गहिए (ता)। ° परिबुज्झमाणे (ता); असी पाठः चूाधारण Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ पज्जोसवणाकप्पो अणुलोमा वा पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने' सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। ७८. तए णं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए-इरियासमिए भासासमिए एसणास मिए आयाणभंड-मत्त-निक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिठावणियासमिए ‘मणस मिए वइसमिए कायसमिए" मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते 'गुत्ते गुत्तिदिए'२ गुत्तबंभयारी अकोहे अमाणे 'अमाए अलोभे संते पसंते उवसंते परिनिव्वुडे अणासवे अममे अंकिचणे छिन्नगंथे निरुवलेवे, कंसपाइ इव मुक्कतोये, संखो इव निरंजणे, जीवो इव अप्पडिहयगई, गगणं पिव निरालंबणे, वाउव्व' अप्पडिबद्धे, सारय 'सलिलं व" सुद्धहियए, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे, कुम्मो इव गुत्तिदिए, खग्गिविसाणं व एगजाए, विहग इव विप्पमुक्के, भारुडपक्खी इव अप्पमत्ते, कुंजरो इव सोंडीरे, वसभो इव जायथामे, सीहो इव दद्धरिसे, मंदरो इव अप्पकंपे," सागरो इव गंभीरे, चंदो इव सोमलेसे, सूरो इव दित्ततेए, जच्चकणगं व जायरूवे, वसुंधरा इव सव्वफासविसहे, सुहुय-हुयासणे इव तेयसा जलंते" ॥ ७६. नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधो भवति । [से य पडिबंधे चउम्विहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ णं सच्चित्ताचित्तमीसेसु" दव्वेसु"। खेत्तओ णं गामे वा नगरे वा अरण्णे वा खेत्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा णहे वा५ । कालओ णं समए वा आवलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा महुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊ" वा अयणे वा संवच्छरे वा अण्ण १. ४ (ता)। स्थामे वसुहा। २. जिइंदिए (ता)। ८. वायुरिव (ग पु)। ३. अमायी अलोभी (ता)। ६. सलिलुव्व (ख)। ४. परिनिव्वुते (ता)। १०. खग्ग (ख)। ५. छिण्णगंथे छिण्णणाते (ता) । ११. निप्पकंपे (ख)। ६. णिरंगणे (ता)। १२ अतोने 'क, ख, ग, पु' आदर्शेषु गाथाद्वयं ७. 'ता' प्रतौ अतः 'वसंधरा' पर्यन्तं भिन्ना लभ्यते-एतेसिं पदाणं इमाओ दृष्णि संगहण वाचना दृश्यते-जच्चकणगं पिव जातरूव- गाहाओ। निभे आतरिसो वा पागडभावो जीवो इव कसे संखे जीवे, गगणे वाऊ सरयसलिले य । अप्पडियगती वायुरिव अप्पडिबद्धे गगणतलं पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ पिव निरालंबणे सारतसलिलं पिव सुद्धहियए कुंजर वसभे सीहे, णगराया चेव सागरमखोभे । पुक्खरपत्तं पिव निरुवलेवे कूम्मो इव गुत्ति- चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहययवहे ॥२॥ दिए विहग इव विप्पमुक्के भारंडपक्खी व १३. मीसएसु (क); मीसिएसु (ख, घ, पु)। अप्पमत्ते खग्गविसाणं इव एक्कजाते मंदरो- १४. दब्वेसु एवं तस्स ण भवइ (ता)। विव निप्पकंपे सागरी इव गंभीरे चंदो इव १५. वा एवं तस्स न भवइ (ता)। सोमलेस्से सूरो इव दित्ततेए कुंजरो विव १६. उदू (ता)। सोंडीरे सीहो इव दुद्धरिसे वसभो इव ज्जाय Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५२५ यरे वा दीहकालसंजोगे। भावओ णं कोहे वा माणे वा मायाए वा लोभे वा भए वा हासे वा पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादंसणसल्ले वा । 'तस्स गं भगवंतस्स नो एवं भवई'] ।। ८०. से णं भगवं वासावासवज्ज अट्ठ गिम्ह-हेमंतिए मासे गामे एगराइए नगरे पंचराइए वासीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेठ्ठकंचणे समदुराहे इहलोग-परलोग-अपडिबद्धे जीवियमरणे' निरवकंखे' संसारपारगामी कम्मसंगनिग्घायणट्ठाए अब्भुट्ठिए एवं च णं विहरइ॥ केवलणाण-लद्धि-पदं ८१. तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दसणेण अबसरेणं चरित्तेणं अण त्तरेणं आलएणं अणत्तरेणं विहारेणं अणुत्तरेणं वीणिण अत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेणं मद्दवेणं अणुत्तरेणं लाघवेणं 'अणुत्तराए खंतीए अगतराए मुत्तीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए तुट्ठीए" अणुत्तरेणं 'सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल निव्वाणमग्गेणं' अप्पाणं भावेमाणस्स दुवालस संवच्छ राई" विइककंताई तेरसमस्स संवच्छरस्स२ अंतरा वट्टमाणस्स जेसे गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे-वइसाहसुद्धे, तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमी"-पक्खेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिनिवडाए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं जंभियगामस्स नगरस्स बहिया "उजुवालियाए" नईए तीरे'१५ वियावत्तस्स चेइयस्स अदूर सामंते सामागस्स गाहावइस्स कट्ठकरणंसि सालपायवस्स अहे" गोदोहियाए 'उक्कुडुय-निसिज्जाए आयावणाए" आयावेमाणस्स छठेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने । १. संजोए एवं तस्स न भवइ (ता)। सू० ८१४)। २. एवं तस्स ण (ता)। ११. वासाइं (ता)। ३. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । १२. वासस्स (ता)। ४. समतण (घ)। १३. दसमीए (पु)। ५. समसुहदुहे (घ); समसुहदुक्खे (ता)। १४. उजुवालुयाए (ख)। ६. मरणे य (ख, ग, घ)। १५. उज्जुयालियाए नतीए तीरंसि (ता) । ७. निराकखे (ता)। १६. विजयावत्तस्स (चू); वियावत्तस्स (चूपा) । ८. कम्मसत्तु (ख, ग, घ)। १७. अधि (ता)। ६. अणुत्तराए इड्डीए (ता)। १८. उक्कडुअणेसज्निया (ता) । १०. 'सोवचइयफलपरिनिव्वाणमग्गेणं (ता, पु); १९. x (ता) । सव्वसंजमसुचरियतवफलनिव्वाणमग्गेणं (राय Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ पज्जोसवणाकप्पो भगवओ वासावास-विचरण-पदं ५२. तए णं से भगवं" अरहा 'जाए, जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी' सदेवमणु यासुरस्स लोगस्स परियायं जाणइ पासइ, सव्वलोए सव्वजीवाणं आगई गई ठिइं चवणं उववायं तक्कं मणोमाण सियं भत्तं कडं पडिसेवियं आवीकम्म रहोकम्मं अरहा अरहस्सभागी तं तं कालं मणवयणकायजोगे वट्टमाणाणं सव्व लोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ॥ ८३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे अट्ठियगामं नीसाए पढमं अंतरावासं वासावासं उवागए। चंपं च पिट्टिचंपं च नीसाए तओ अंतरावासे वासावासं उवागए। वेसालि नगरि वाणियगामं च नीसाए दुवालस अंतरावासे वासावासं उवागए। रायगिहं नगरं नालंदं च बाहिरियं नीसाए चोद्दस अंतरावासे वासावासं उवागए। छ मिहिलाए, दो भद्दियाए, एगं आलभियाए', एगं सावत्थीए, एगं पणियभूमीए' एगं पावाए मज्झिमाए हथिपालगस्स" रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं" अंतरावासं वासावासं उवागए॥ पावाए निव्वाण-पदं ८४. तत्थ णं जेसे पावाए मज्झिमाए हत्थिपालगस्स रण्णो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए। तस्स णं अंतरावासस्स जेसे वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे-कत्तियबहुले, तस्स णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसी-पक्खेणं जासा चरिमा रयणी तं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए विइक्कते समज्जाए छिन्नजाइ-जरा-मरण-बंधणे सिद्ध बुद्धे 'मत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खपहीणे। चंदे नामं से दोच्चे संवच्छरे, 'पीतिवद्धणे मासे नंदिवद्धणे पक्खे अग्गिवेसे" नाम से दिवसे उवसमेत्ति पवुच्चइ,६ देवाणंदा नाम सा रयणी निरतित्ति पव्वुचइ, अच्चे" लवे, मुहुत्ते पाणू, थोवे सिद्धे, नागे करणे, सव्वट्ठसिद्धे मुहुत्ते, साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं कालगए विइक्कते" जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ८५. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे सा णं रयणी बहूहिं देवेहि य देवी हि य ओवयमाणेहि य उप्पयमाणे हि य उज्जोविया यावि १. समणे भगवं महावीरे (क, ख, ग, घ)। १०. हत्थिवालस्स (क, ख, ग, घ, पु)। २. जिणिज्जाए (ता)। ११. पच्छिम (घ)। ३. सव्वदंसी (घ)। १२. हत्थिवालस्स (क, ख, ग, घ, पु)। ४. ४ (ता)। १३. मुक्के परिनिव्वुते अंतकडे (ता)। ५. आविकम्मं (पु)। १४. नंदिवद्धणे मासे पीतिवद्धणे पक्खे (ता)। ६.x (ता)। १५. सुव्वयग्गी (क, पु)। ७. बाहरियं (पु)। १६. ४ (ता)। ८. आलंभियाए (क, ख, ग, घ, पु)। १७. अच्ची (चू)। ६. पणीय (पु)। १८. वीतिक्कते (ता)। Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५२७ होत्था ॥ ८६. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे सा णं रयणी बहूहिं देवेहि ये देवीहि य ओवयमाणेहि य उप्पयमाणेहि य उप्पिजलमाणभूया' कहकहभूया' यावि होत्था ॥ गोयमस्स केवलणाण-लद्धि-पदं ८७. ज' रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रणिं च णं जेठुस्स गोयमस्स इंदभूइस्स अणगारस्स अंतेवासिस्स नायए पेज्जबंधणे वोच्छिन्ने अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने ॥ दीवावलि-पव्व-पवं ८८. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणि च णं नव मल्लई नव लिच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो अमावसाएं 'पाराभोयं पोसहोववासं पट्टविसु गते से भावुज्जोए दव्वुज्जोयं करिस्सामो।। भासरासिमहग्गह-पदं ८९. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणि च णं खुद्दाए भासरासी महग्गहे दोवाससहस्सट्टिई समणस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकते ॥ ६०. जप्पभिई च णं से खुद्दाए' भासरासी महग्गहे दोवाससहस्सट्टिई समणस्स भगवओ महावीरस्स जम्मनक्खत्तं संकंते तप्पभिइं च णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो 'उदिए-उदिए"पूयासक्कारे पवत्तति ॥ ११. जया णं से खुद्दाए. भासरासी महग्गहे दोवाससहस्सट्टिई समणस्स भगवओ महा वीरस्स जम्मनक्खत्ताओ वीतिक्कते भविस्सइ तया" णं समणाणं निग्गंथाणं निग्गं थीण य 'उदिए-उदिए पूयासक्कारे पवत्तिस्सति" ॥ कुंथु उप्पत्ति-पदं ६२. जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणि च १. उप्पिजलगमाणभूया (क, पु); उप्पिजलभूआ ७. नाम भासरासी (ग); भासरासी नामं (ख); उप्पिजलगभूया (ग); ओमिजलमाला (घ)। भूया (ता)। ८. खुड्डाए (पु)। २. कहकहगभूया (क, ग, पु)। ६. उदए-उदए (ख, ता)। ३. चूणों ८७,८८ सूत्रयोर्व्यत्ययो दृश्यते । १०. सं० पा०-खुद्दाए जाव जम्म० । ४. सुप्पेमपेज्जबंधणं (ता)। ११. तते (ता)। ५. अवामंसाए (चू)। १२. ४ (ता)। ६. पाराभोए पोसहे (ता)। १३. भविस्सइ (क, ग, घ)। Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ पज्जोसवणाकप्पो णं कुंथू अणुंधरी' नामं समुप्पन्ना, जा ठिया अचलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो चक्खफासं हव्वमागच्छइ, जा अट्ठिया चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य चक्खुफासं हव्वमागच्छइ, जं पासित्ता बहूहिं निग्गंथेहि निग्गंथीहि य भत्ताई पच्चक्खायाइं। से किमाहु भंते ? अज्जप्प भिई 'संजमे दुराराहए भविस्सइ ।। भगवओ धम्मस्स परिवार-पदं ६३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स इंदभूइपामोक्खाओ चोदस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था ॥ ६४. समणस्स भगवओ महावीरस्स अज्जचंदणापामोक्खाओ छत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था ॥ ६५. समणस्स भगवओ महावीरस्स संख-सयगपामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसा हस्सी अउटुिं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया होत्था ।। ६६. समणस्स भगवओ महावीरस्स सुलसा-रेवईपामोक्खाणं 'समणोवासियाणं तिण्णि" सयसाहस्सीओ अट्ठारस य सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था । ६७. समणस्स भगवओ महावीरस्स तिन्नि सया चोद्दसपुवीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं ____सव्वक्खरसन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चोद्दसपुवीणं संपया होत्था ॥ ६८. समणस्स भगवओ महावीरस्स तेरस सया ओहिनाणीणं अतिसेसपत्ताणं उक्कोसिया ओहिनाणीणं संपया होत्था । ६६. समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त सया केवलनाणीणं संभिन्नवरनाणदंसणधराणं उक्कोसिया केवलनाणिसंपया होत्था ॥ १००. समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त सया वेउव्वीणं अदेवाणं दे णं उक्कोसिया वेउव्विसंपया होत्था ॥ १०१. समणस्स भगवओ महावीरस्स पंच सया विउलमईणं अडढा समद्देसु सण्णीणं पंचिंदियाणं पज्जत्तगाणं जीवाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं" उक्कोसिया विउलमईणं संपया होत्था । १०२. समणस्स भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुराए वाए अपरा जियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ॥ १. अणुं सरीरगं धरेति अणुधरी (चू); अणुद्धरी ३. तिण्णी साविगाणं (ता)। (क, ख, ग, घ, ता, पु)। ४. दीवसमुद्देसु सण्णिपंचेदियाण पज्जत्तिगाणं २. दुराराहए सामण्णे (ता); दुराराहए संजमे भावे समणोगते जाणताणं (ता)। य Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५२६ १०३. समणस्स' भगवओ महावीरस्स सत्त अंतेवासिसयाइं सिद्धाइं जाव' सव्वदुक्खप्पही णाई, चउद्दस अज्जियासयाई सिद्धाइं॥ १०४. समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्ठ सया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं ठिइ कल्लाणाणं आगमेसिभदाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयाणं संपया होत्था । अंतगडभूमि-पदं १०५. समणस्स भगवओ महावीरस्स दुविहा अंतकडभूमी' होत्था, तं जहा-जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य । जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी चउवासपरि याए अंतमकासी॥ उवसंहार-पदं १०६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता साइरेगाई दुवालस वासाई छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, देसूणाई तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, बावत्तरि वासाइं सव्वाउयं पाल इत्ता, 'खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते" इमीसे ओसप्पिणीए दुसमसुसमाए समाए बहुवीइक्कंताए तिहिं वासेहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसेहिं पावाए मज्झिमाए हत्थिपालगस्स रण्णो रज्जुगसभाए एगे अबीए' छठेणं भत्तेणं अपाणएणं साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पच्चूसकालसमयंसि संपलियंक निसन्ने पणपन्नं अज्झयणाई कल्लाणफल विवागाइं, पणपन्नं अज्झयणाइं पावफलविवागाई, छत्तीसं च अपवागरणाई वागरित्ता पधाणं नाम अज्झयणं विभावेमाणे-विभावेमाणे कालगए वितिक्कंते समुज्जाए छिन्नजाइ-जरा-मरण-बंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंत कडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ।। १०७. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स नव वाससयाई विइक्कं ताई दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरकाले गच्छइ । वायणंतरे पुण अयं तेणउए संवच्छरकाले गच्छइ-इति दीसइ ॥ पुरिसादाणीए पास-पदं १०८. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए पंचविसाहे होत्था, तं जहा विसाहाहिं चए चइत्ता गब्भं वक्कंते । विसाहाहिं जाए। विसाहाहिं मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । विसाहाहिं अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुपन्ने । विसाहाहिं परिनिव्वुए । १. 'ता' प्रतौ एतत्सूत्र नैव लभ्यते । ६. अव्विइए (ता)। २. ५० सू० ८४। ७. अतः परं 'ता' प्रती वाचनान्तररूपेण निदिष्ट: ३. अंतगड (क) अंतकर (ता, चू) । पाठः उपलभ्यते-अयं तेणउइमे संवच्छरे ४. खीणवेयणिज्जे आउणामगोत्ते (ता)। ५. सेसएहिं (पु)। Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो १०६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे-चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स चउत्थी-पक्खेणं' पाणयाओ कप्पाओ वीसं सागरोवमट्टितीयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वाणारसीए नयरीए आससेणस्स रण्णो वामाए' देवीए पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते॥ ११०. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए तिण्णाणोवगए यावि होत्था-चइस्सामि त्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, चएमित्ति जाणइ । तेणं चेव अभिलावणं सुविणदंसणविहाणेणं सव्वं जाव' निययं गिहं अणुप्पविट्ठा जाव' सुहंसुहेणं तं गब्भं परिवहइ ॥ १११. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जेसे हेमंताणं दोच्चे मासे तच्चे पक्खे-पोसबहुले, तस्स णं पोसबहुलस्स दसमी-पक्खणं' नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं पुन्वरत्तावरत्त-कालसमयंमि विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमवागएणं 'आरोगा आरोगं दारयं पयाया। जम्मणं सव्वं पासा भिलावेणं भाणियव्वं जाव' तं होउ णं कुमारे पासे नामेणं ॥ ११२. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए दक्खे दक्खपइण्णे पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए वीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता पुणरवि लोयंतिएहिं जियकप्पिएहिं देवेहि ताहिं इट्ठाहिं जाव एवं वयासी-जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! भदं ते जाव" जय-जय सदं पउंजंति ॥ ११३. पुवि पि णं पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स माणुस्सगाओ" गिहत्थधम्माओ अणु तरे आहोहिए तं चेव सव्वं जाव" दायं दाइयाणं परिभाएत्ता जेसे हेमंताणं दोच्चे मासे तच्चे पक्खे-पोसबहुले, तस्स णं पोसबहुलस्स एक्कारसी-पक्खेणं" पुव्वण्हकालसमयंसि" 'विसालाए सिवियाए" सदेवमणुयासुराए परिसाए तं चेव सव्वं", नवरं-वाणारसिं नगरि मज्झमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव आसमपए उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असो १. दिवसेणं (ख)। २. वम्माए (क, ख, ता, पु); वमाए (ग)। ३. प० सू०१०-५० । ४. ५० सू० ५८ । ५. दिवसेणं (ख)। ६. आरोग्गा आरोग्गं (क); आरुग्गा आरुग्गं (ख, ग, घ) अरोगा आरोगं (पु)। ७. ५० सू० ६०-६६ । ८. पडिपुण्णरूवे (ता)। ६. जीय० (ता)। १०. प० सू० ७३ । ११. मणुस्सातो (ता)। १२. आहोइए (क, ख, ग, घ); आहोहियए (पु)। १३. ५० सू० ७४ । १४. दिवसेणं (क, ख, ग, घ पू)। १५. पुव्वण्ह देसकाल (ता)। १६. सालाए सीयाए (ता)। १७. प० सू०७४, ७५ । १८. वाणारसोए नयरीए मझेणं (ता) । Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५३१ गवर पायवस्स आहे' सीयं ठावेइ, ठावेत्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयति, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमायाय तिहिं पुरिसस एहिं सद्धि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्व ११४. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए तेसीइं राइंदियाइं निच्च वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे इ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा - दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा अणुलोमा वा पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहइ 'खमइ तितिक्खई" अहियासेइ ॥ ॥ ११५. तणं 'पासे अरहा पुरिसादाणीए " अणगारे जाए - इरियासमिए जाव अप्पाणं भावेमाणस्स तेसीइं राइंदियाई विइक्कताई चउरासीइमस्स राइदियस्स अंतरा माणस' जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे - चित्तबहुले," तस्स णं चित्तबहुलस्स चउत्थी-पक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि धायइपायवस्स अहे छट्ठणं भत्तेणं अपाणणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणते अणुत्तरे' 'निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने जाव' सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥ ११६. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहासुंभे" य अज्जघोसे" य, वसिट्ठे बंभयारि य । सोमे सिरिहरे चेव, वीरभद्दे" जसे " वि" य ॥ ११७. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अज्जदिण्णपामोक्खाओ सोलस समणसाहसीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था ॥ ११८. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स पुप्फचू लापामोक्खाओ अट्ठतीसं अज्जियासाहसीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था ॥ ११६. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स सुनंदपामोक्खाणं" समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी चउसट्ठि च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्या ॥ १२०. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स सुनंदापामोक्खाणं समणोवासिगाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ सत्तावीसं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था ॥ १. हेट्ठा (ता) । २. मल्लालंकाराइ ( ता ) । ८. सं० पा० - अणुत्तरे जाव केवल । ६. प० सू० ८२ । ३. तितिक्ख खमइ (ग, पु) । १०. सुभे ( ग, घ, ठा० ८१३७) । ४. से पासे भगवं ( क, ख, ग, पु); से भगवं ११. संजघोसे (ता); सुंभघोसे (स० ८८ ) | (ता) । ५. प० सू० ७८-८१ । ६. वट्टमाणे (ग, पु) । ७. चे (ता) अपि । १२. वारीभद्द (ता) । १३. जसोभद्दे (ठा० ८ ३७ ) । १४. इ (ता) । १५. सुव्वय (क, ग, घ ) । Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ पज्जोसवणाकप्पो १२१. पासस्स' णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्धदुसया चोद्दसपुवीणं अजिणाणं जिण संकासाणं सव्वक्खर' सन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चोद्दसपुवीणं संपया होत्था ॥ १२२. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स चोद्दस सया ओहिनाणीणं, दस सया केवल नाणीणं, एक्कारस स या वेउम्वियाणं, अद्धट्ठमसया विउलमईणं, छस्सया वाईणं छ सया रिउमईणं बारस सया अणुत्तरोववाइयाणं संपया होत्था । १२३. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्था, तं जहा–जुगंतक डभूमी य, परियायंतकडभूमी य। जाव चउत्थाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, तिवासपरियाए अंतमकासी ॥ १२४. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणोए तीसं वासाइं अगारवासमज्झे वसित्ता तेसीति राइंदियाइं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, देसूणाई सत्तरि वासाई केवलिपरियायं पाउणित्ता, बहुपडिपुण्णाई सतरि वासाई सामण्णपरियायं पाउणित्ता, एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालित्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते' इमीसे ओसप्पिणीए द्रसमससमाए समाए बहवीइक्कंताए जेसे वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे-सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसुद्धस्स अट्ठमी-पक्खेणं उप्पि सम्मेयसेलसिहरंसि अप्पचोत्तीसइमे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वण्हकालसमयंसि वग्धारियपाणी कालगए जाव" सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ १२५. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणियस्स कालगतस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स दुवालस वाससयाइं विइक्कंताई तेरसमस्स य वाससयस्स अयं तीसइमे संवच्छरकाले गच्छइ॥ अरह-अरिटुनेमि-पदं १२६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी पंचचित्ते होत्था, तं जहा-चित्ताहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्ते चित्ताहिं जाए। चित्ताहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । चित्ताहि अणते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवल वरनाणदंसणे समुदने । चित्ताहिं परिनिव्वुए । १२७. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जेसे वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे १. १२१,१२२ अनयोः सूत्रयोः स्थाने 'ता' प्रतौ संक्षिप्ता वाचना दृश्यते-एवं अद्भुट्ठसया चोदसपुवीणं, चोद्दस सया ओहिनाणीणं, दस सया केवलनाणीणं, एकारस सया वेउम्वियाणं, अट्ठमसया विंउलमईणं, छस्सया वाईणं, बारससया अणुत्तरोववाइयाणं । २. सं० पा०-सव्वक्खर जाव चोइसपवीणं । ३. पडिपुण्णाइं (ख, ग, घ, ता)। ४. वरिसाई (ता) । ५. वेयणिज्जे आउए णामे गोत्ते (ता)। ६. ४ (ख, ग)। ७. प० सू० १०६ । ८. सं० पा०-वक्ते जाव चित्ताहि । Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो कत्तियबहुले, तस्स णं कत्तियबहुलस्स बारसी-पक्खेणं' अपराजियाओ' महाविमाणाओ बत्तीसं सागरोवम द्वितीयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सोरियपुरे नगरे समुद्दविजयस्स रण्णो भारियाए सिवाए देवीए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि' चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए भववक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते । सव्वं तहेव सुमिणदसण-दविण संहरणाइयं एत्थ भाणियव्वं ।। १२८. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिटुनेमी जेसे वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसुद्धस्स पंचमी-पक्खेणं नवण्हं मासाणं' 'बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं वीइवकताणं पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि चित्ताहिं नक्खतेणं जोगमवागएणं 'आरोगा आरोग दारयं पयाया। जम्मणं समद्दविजयाभिलावेणं (अरिटुनेमि-अभिलावेणं ?) नेतव्वं जाव' तं होउ णं कुमारे अरिट्ठनेमी नामेणं ॥ १२६. अरहा अरिटुनेमी दक्खें 'दक्ख पइण्णे पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए तिण्णि वास सयाई अगारवासमझे वसित्ता पुणरवि लोयंतिएहिं जीयकप्पिएहिं देवेहिं तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव" दायर दाइयाणं परिभाएत्ता जेसे वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे-सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसुद्धस्स छट्ठी-पक्खेणं पुव्वण्हकालसमयंसि उत्तरकुराए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे" जाव" बारवईए नगरीए मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए" उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ", ठावेत्ता सीयाए पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचम ट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता छठेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय" एगेणं पुरिससहस्सेणं सद्धि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । १. दिवसेणं (ख)। ८. ५० सू० ६०-६६ । २. अवराइंतातो (ता)। ६. सं० पा०-दक्खे जाव तिन्नि । ३. सं० पा०--कालसमयंसि जाव चित्ताहि गब्भ- १०. वाससयाई कुमारे (क, ख, ग, घ)। त्ताए । ११. प० सू० ७३, ७४ । ४. प० सू० ३, २०-५१ । १२. दाणं (क, ख, ग, घ)। ५. सं० पा०-मासाणं जाव चित्ताहिं । १३. अणुगम्म (क, ख, ग, पु) । ६. आरोग्गा आरोग्गं (क); आरुग्गा आरुग्गं १४. प० सू०७४, ७५ । (ख, ग, घ); अरोगा अरोगं (पु)। १५. रेवइए (क); रेवए (ख, घ)। ७. १११ सूत्रे 'जम्मणं सव्वं पासाभिलावेणं भाणि- १६. ठवेइ (ता)। यव्वं' इति पाठोस्ति, अत्रापि तथैव 'जम्मणं १७. काराई (ता) । अरिट्रनेमि-अभिलावेणं नेतन्वं' इति पाठेन १८. दूसं गहाय (ता)। भवितव्यम् । Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ पज्जोसवणाकप्पो १३०. अरहा णं अरिटुनेमी चउप्पन्नं राइंदियाई निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे तं चेव सव्वं जाव' पणपन्नइमस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणस्स' जेसे वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे-आसोयबहुले, तस्स णं आसोयबहुलस्स पन्नरसी-पक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे उप्पिं उज्जितसेलसिहरे वेडसपायवस्स' अहे छठेणं' भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे •निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने जाव' सव्व लोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥ १३१. अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स अट्ठारस गणा अट्ठारस गणहरा होत्था । १३२. अरहओ णं अरिट्टनेमिस्स वरदत्तपामोक्खाओ अट्ठारस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था ॥ १३३. अरहओ णं अरिटुने मिस्स अज्जजक्खिणिपामोक्खाओ चत्तालीसं अज्जियासाह स्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था । १३४. अरहओ णं अरिट्टनेमिस्स नंदपामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अउणत्तरिं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था । १३५. अरहओ गं अरिट्टनेमिस्स महासुव्वयापामोक्खाणं समणोवासियाणं तिण्णि सयसाहस्सीओ छत्तीसं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था ॥ १३६. अरहओ णं अरिटुनेमिस्स चत्तारि सया चोद्दसपुवीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खर" 'सन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चोइसपुवीणं संपया होत्था, पन्नरस सया ओहिनाणीणं, पन्नरस सया केवलनाणीणं, पन्नरस सया वेउव्वियाणं, दस सया विउलमतीणं, अट्ठ सया वाईणं, सोलह सया अणुत्तरोववाइयाणं, पन्नरस समणसया सिद्धा, तीसं अज्जियासयाई सिद्धाइं॥ १३७. अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स दुविहा अंतकडभूमी होत्था, तं जहा-जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य । जाव अट्ठमाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, दुवासपरियाए अंतमकासी॥ १३८. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी तिण्णि वाससयाई कुमारवासमझे वसित्ता, चउप्पन्नं राइंदियाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, देसूणाई सत्त वाससयाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, पडिपुण्णाइं सत्त वाससयाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, १. ५०स०७७-८१ । ७. अट्टमेणं (क, ता)। २. पण्णपन्नगस्स (क, ख, ग, घ)। ८. सं० पा०-अणुत्तरे जाव सव्वलोए। ३. वट्टमाणे (पु)। ६. प० सू० ८२। ४. अस्सोय (क, पु)। १०. जक्खिणि (ता)। ५. ४ (क, ख, ग, घ); सहस्संबवणे (ता)। ११. सं० पा०-सव्वक्खर जाव होत्था । ६. वेडयस्स पायवस्स (ता); वडपायवस्स (पु)। १२. कुमारे अगारवासमझे (क); 'मज्झा (ता)। Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५३५ एगं वाससहस्सं सव्वाउयं पाल इत्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते' इमीसे ओसप्पिणीए दूसमसुसमाए समाए बहुवीइक्कंताए जेसे गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खेआसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स अट्ठमो-पक्खेणं उप्पि उज्जितसेलसिहरंसि पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धिं मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि नेसज्जिए कालगए जाव' सव्वदुक्खप्प हीणे ॥ १३६. अरहओ णं अरिट्टनेमिस्स कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स चउरासीइं वाससहस्साई विइक्कंताई, पंचासीइमस्स य वाससहस्सस्स नव वाससयाई विइक्कं ताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।। विसतितित्थगर-पदं १४०. नमिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव' सव्वदुक्खप्पहीणस्स पंच वाससयसहस्साई चउरासीइं च वाससहस्साइं नव य वाससयाई विइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स ___ अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १४१. मणिसुव्वयस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एक्कारस वाससय सहस्साइं चउरासीइं च वाससहस्साइं नव य वाससयाई विइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १४२. मल्लिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स पन्नटुिं वाससंयसहस्साई चउरासीइं वाससहस्साइं नव य वाससयाई विइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।। १४३. अरस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे वासकोडिसहस्से वितिक्कते, सेसं जहा मल्लिस्स। तं च एयं-पंचसट्ठि लक्खा चउरासीइसहस्सा विइक्कंता, तम्मि समए महावीरो निव्वुओ। ततो परं नववाससया विइक्कंता, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ। एवं अग्गओ जाव सेयंसो ताव दट्ठव्वं ॥ १४४. कुंथस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे चउभागपलिओवमे विइक्कते, पंचसटुिं च सयसहस्सा सेसं जहा मल्लिस्स ।। १४५. संतिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे चउभागूणे पलिओवमे विइक्कते, पन्नट्टि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ १४६. धम्मस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स तिनि सागरोवमाई विइक्कंताई, पन्न४ि च, सेसं जहा मल्लिस्स ।। १४७. अणंतस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स सत्त सागरोवमाई - १. वेयणिज्जे आउए नामे गोत्ते (ता)। २. ५० सू० १०६ । ३. प० सू० १०६। ४. लक्खा (ग)। Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ पज्जोसवणाकप्पो विइक्कंताई, पन्नटुिं च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ १४८. विमलस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स सोलस सागरोवमाइं विइक्कंताई, पन्नट्टि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥ १४६. वासुपुज्जस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स छायालीसं सागरोव माइं विइक्कंताई, सेसं जहा मल्लिस्स । १५०. सेज्जंसस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे सागरोवमसए विइक्कते, पन्न४ि च, सेसं जहा मल्लिस्स ।। १५१. सीयलस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगा सागरोवमकोडी तिवास-अड्ढनवमासाहिय-बायालीसवाससहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, एयम्मि समये वीरे निव्वुए। तओ वि य णं परं नव वाससयाइं विइक्कंताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।। १५२. सुविहिस्स णं अरहओ पुप्फदंतस्स कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स सागर कोडीओ विइक्कंताओ, सेसं जहा सीयलस्स। तं च इमं-तिवास-अद्धनवमासाहिय बायालीसवाससहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, इच्चाइ॥ १५३. चंदप्पहस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगं सागर कोडिसयं विइक्कंतं, सेसं जहा सीतलस्स। तं च इमं-तिवास-अद्धनवमासाहिय बायालीसवाससहस्सेहिं 'ऊणिया विइक्कंता, इच्चाइ॥ १५४. सुपासस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे सागरोवमकोडी सहस्से विइक्कते, सेसं जहा सीयलस्स । तं च इम-तिवास-अद्धनवमासायि बायालीसवाससहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, इच्चाइ । १५५. पउमप्पभस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स दससागरोवम कोडिसहस्सा विइक्कता, सेसं जहा सीयलस्स-तिवास-अद्धनवमासाहिय बायालीसवाससहस्सेहि ऊणिया विइक्कता. इत्तचाइयं ।। १५६. सुमइस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे सागरोवमकोडिसय सहस्से विइक्कते, सेसं जहा सीयलस्स-तिवास-अद्धनवमासाहिय-बायालीसवास सहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, इच्चाइयं ।।। १५७. अभिनंदणस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स दससागरोवमकोडी सयसहस्सा विइक्कंता, सेसं जहा सीयलस्स-तिवास-अद्धनवमासाहिय-बायालीस वाससहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, इच्चाइयं ॥ १५८. संभवस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स तीसं' सागरोवमकोडि सयसहस्सा विइक्कंता, सेसं जहा सीयलस्स-तिवास-अद्धनवमासाहिय-बायालीस वाससहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, इच्चाइयं ॥ १. ऊणगमिच्चाइं (क, ता); ऊणिगामिच्चाइ (पु)। २. वीसं (क, ता, पु) । Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५३७ १५६. अजियस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स पन्नासं सागरोवम कोडिसयसहस्सा विइक्कंता, सेसं जहा सीयलस्स–तिवास-अद्धनवमासाहिय बायालीसवाससहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, इच्चाइयं ॥ अरहउसम-पदं १६०. तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभे णं अरहा कोसलिए चउउत्तरासाढे अभीइपंचमे होत्था, तं जहा–उत्तरासाढाहिं चुए चइत्ता गब्भं वइक्कते'। 'उत्तरासाढाहिं जाए। उत्तरासादाहिं मंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। उत्तरासादाहिं अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने । अभीइणा परिनिव्वुए। १६१. तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभेणं अरहा कोसलिए जेसे गिम्हाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे—आसाढबहुले, तस्स णं आसाढबहुलस्स चउत्थी-पक्खेणं सव्वसिद्धाओ महा विमाणाओ' तेत्तीससागरोवमद्वितीयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबद्दीवे दीवे भारहे वासे इक्खागभूमीए 'नाभिस्स कुलगरस्स" मरुदेवीए भारियाए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि उत्तरासाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं आहारवक्कंतीए' •भव वक्कंतीए सरीरवक्कंतीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्ते ॥ १६२. उसभे णं अरहा कोसलिए तिण्णाणोवगए होत्था, तं जहा-चइस्सामित्ति जाणइ, चयमाणे न जाणइ, चुएमित्ति जाणइ । जं रयणि च णं उसभे णं अरहा कोसलीए मरुदेवीए कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कते, तं रयणि च णं सा मरुदेवी जाव सुमिणे पासइ, तं जहा- गय वसह, सव्वं तहेव, नवरं-'पढमं उसभं मुहेण अइंतं पासइ, सेसाओ गयं । नाभिकुलगरस्स साहइ"। सुविणपाढगा णत्थि, नाभी कुलगरो सय मेव वागरेइ ॥ १६३. तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभे अरहा कोसलिए जेसे गिम्हाण पढमे मासे पढमे १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ (२१८५) 'पंचउत्तरासाढे' इति ४. दिवसेणं (ख)। प्रतिपादकं सूत्रमस्ति, यथा—उसभेणं अरहा ५. विमाणातो (ता)। पंच उत्तरासाढे अभीइछठे होत्था, तं जहा-- ६. नाभिकुलगरस्स (ख, ग, घ)। उत्तरासाढाहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कते, उत्त- ७. मरुदेवाए (ता)। रासाढाहिं जाए, उत्तरासाढाहिं रायाभिसेयं ८. सं० पा०----आहारवक्कंतीए जाब गब्भत्ताए। पत्ते, उत्तरासाढाहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ है. अत: 'पासइ' पर्यन्तं 'ता' प्रतौ पाठ भेदोस्तिअणगारियं पव्वइए, उत्तरासाढाहिं अणते अणु- मरुदेवाए सुत्तजागरा ओहीरमाणी इमेयास्वे त्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे ओराले कल्लाणे फु चोद्दस महासुविणे पासिकेवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, अभीइणा परि- त्ताणं पडिबुद्धा। णिव्वुए। १०. गाहा--द्रष्टव्यं ५० सू० ४। २. सं० पा०-वक्कंते जाव अभीइणा। ११. ४ (ता, पु)। ३. परिनिव्वुडे (ता)। १२. ४ (ता, पु)। Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ पज्जोसवणाकप्पो पक्खे - चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स अट्ठमी पक्खेणं नवहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्टमाणं इंदियाणं' 'विइक्कंताणं पुव्वरत्ताव रत्तकालसमयंसि° आसाढाहिं नक्खत्ते जोगमुवागएणं 'आरोगा आरोगं" दारयं पयाया । तं चेव जाव देवा देवीओ य वसुहारवासं वासिसु सेसं तहेव 'चारगसोहणं माणुम्माणवड्ढणं उस्सुक्कमाईयं* ठिइपडियवज्जं " सव्वं भाणियव्वं ॥ १६४. उसभे णं अरहा कोसलिए कासवगोत्तेणं, तस्स णं पंच नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा --उसभेइ वा, पढमरायाइ वा, पढमभिक्खायरेइ वा पढमजिणेइ वा पढमतित्थकरेइ वा ॥ १६५. उसमे णं अरहा कोसलिए दक्खे दक्ख पतिष्णे पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवास मज्झे वसई, वसित्ता तेवट्ठि पुव्वसयसहस्साइं रज्जवासमज्भे वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावतरं कलाओ, चोर्वाट्ठि महिलागुणे, सिप्पसयं च कम्माणं -- तिष्णि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचाइ, अभिसिंचित्ता' पुणरवि लोयंतिएहिं जिअकप्पिएहि " सेसं तं चैव सव्वं भाणियव्वं जाद" दायं" दाइयाणं परिभाएत्ता जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे - चेत्तबहुले, तस्स णं चेत्तबहुलस्स अट्ठमी पक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे सुदंसणाए सीयाए" सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे जाव" ' विणीयं रायहाणि "" मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निगच्छत्ता जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे" "सीयं ठावेइ ठावेत्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता, सयमेव आहरणमल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव चउमुट्ठियं " १. सं० पा० -- इंदियाणं जाव आसाढाहिं । २. आरुग्गा आरुग्गं ( ख, ग, घ ); आरोग्गा आरुग्गं (पु) । ३. अतः 'भाणियव्वं' पर्यन्तं 'ता' प्रतौ भिन्ना पाठ पद्धतिरस्ति - जं रर्याणि च णं उसभे अरहा कोसलिए जाते सा णं रर्याणि बहूहिं देवेहिं देवीहि य उवतंतेहि य उप्पयंतेहि य उज्जो - विया यावि होत्था । एवं उप्पिजलक कहकभूया जं रर्याणि च णं उसमे अरहा कोसलिए जाए तं रर्याणि च णं बहवे वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगादेवा इक्खागभूमीए हिरण्णवासि व जाव वासि च । ४. उस्सुं कमाईयं ( ख ) । ५. अस्मिन् पाठे 'चारकशोधन- मानोन्मानवर्धनउच्छुल्कादि- स्थितिपतितस्य' वर्जनं कृतमस्ति तेन असो पाठः एवं युक्तः स्यात् - 'चारगसोहणमाणुम्माणवङ्कण-उस्सुक्कमा ईयठिइपडियवज्जं' । ६. प० सू० ६०-६६ । ७. वसई ( ख, ग ) । ८. रज्जे (ख, घ) । ६. अभिसिचित्ता तेसीइं पुव्वसय सहस्साइं अगारवासमभावसित्ता (ता) | (ता) । १०. जी ११.५० सू० ७३,७४ । १२. दाणं ( क, ख, घ ) । १३. सिवियाए ( क, ख, ग, घ, पु) । १४. ५० सू० ७४, ७५ । १५. विणीयरायहाणीए ( ता ) । १६. सं० पा० - अहे जाव सय मेव | १७. चउहि अट्ठाहि (ता) । Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५३६ लोयं करेइ, करेत्ता छठेणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमवागएणं उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं खत्तियाणं च चउहिं सहस्सेहिं सद्धि एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। १६६. उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जाव' अप्पाणं भावमाणस्स एक्कं वाससहस्सं विइक्कंतं, तओ णं जेसे हेमंताणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे-फग्गुणबहुले, तस्स णं फग्गुणबहुलस्स एक्कारसी-पक्खेणं पुवण्हकालसमयंसि पुरिमतालस्स नयरस्स बहिया सगडमहंसि उज्जाणंसि नग्गोहवरपायवस्स अहे अट्ठमेणं' भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं 'जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स" अणंते' 'अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने जाव' सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे° पासमाणे विहरइ॥ १६७. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीइं गणा चउरासीइं गणहरा होत्था । १६८. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चउरासीइं समण साहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था ॥ १६६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभी'-सुंदरिपामोक्खाणं अज्जियाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था । १७०. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सेज्जंसपामोक्खाणं समणोवासागाणं तिण्णि सयसाहस्सीओ पंच सहस्सा उक्कोसिया समणोवासयसंपया होत्था । १७१. उस भस्स णं अरहओ कोसलियस्स सुभद्दापामोक्खाणं समणोवासियाणं पंच सय साहस्सीओ चउप्पन्नं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था । १७२. उसभस्स" णं अरहओ कोसलियस्स चत्तारि सहस्सा सत्त सया पन्नासा चोद्दसपुव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं उक्कोसिया चोद्दसपुव्विसंपया होत्था ॥ १७३. उसभस्स णं अरहो कोसलियस्स नव सहस्सा ओहिनाणीणं उक्कोसिया संपया होत्था ॥ १७४. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीससहस्सा केवलणाणीणं उक्कोसिया संपया १. प० सू० ७७-८१ । २. छठेणं (ता)। ३. परमसुक्कं झाणं झियायमाणस्स (ता)। ४. सं० पा०—अणंते जाव पासमाणे । ५. प० सू० ८२ । ६. बंभा (ता)। ७. समुप्पभा० (ता)। ८. १७२-१७८ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रतौ संक्षिप्ता वाचना विद्यते-एवं चत्तारि सहस्सा सत्त सया पन्नासा चोद्दसपुवीए। नव सहस्सा ओहिनाणीणं । वीसं सहस्सा केवलीणं । वीसं सहस्सा छच्च सया वेउब्वियाणं । वारस सहस्सा छच्च सया पन्नासा विउलमईणं । वारस सहस्सा छच्च सया पन्नासा वाईणं । वावीसं च सहस्सा नव सया अणुत्तरोववाइयाणं । Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० पज्जोसवणाकप्पो होत्था॥ १७५. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीस सहस्सा छच्च' सयां वेउब्वियाणं उक्कोसिया संपया होत्था ॥ १७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बारस सहस्सा छच्च सया पन्नासा विउलमईणं अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु सण्णीणं पंचिंदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगए भावे जाण माणाणं पासमाणाणं उक्कोसिया विपुलमइसंपया होत्था ॥ १७७. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बारस सहस्सा छच्च सया पन्नासा वाईणं संपया होत्था॥ १७८. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीसं अंतेवासिसहस्सा' सिद्धा, चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ सिद्धाओ। बावीससहस्सा नव य सया अणुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं' 'ठिइकल्लाणाणं आगमेसि भद्दाणं उक्कोसिया संपया होत्था । १७६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स दुविहा अंतगडभूमी होत्था, तं जहा-जुगंतकड भूमी य परियायंतकडभूमी य। जाव असंखेज्जाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, अंतोमुहुत्तपरियाए अंतमकासी ॥ १८०. तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवास मज्भावसित्ताणं', तेवद्धि पुव्वसयसहस्साइं रज्जवासमझावसित्ताणं', तेसीइं पुन्वसयसहस्साई अगारवासमझावसित्ताणं, एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियागं पाउणित्ता, पडिपुण्णं पुव्वसयसहस्सं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए बहुविइक्कंताए तिहिं वासेहिं अद्धणवमेहि य मासेहिं सेसेहिं जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे-माहबहुले तस्स णं माहबहुलस्स तेरसी-पक्खेणं उप्पि अट्ठावयसेल सिहरंसि दसहिं अणगारसहस्सेहिं सद्धि चोइसमेणं भत्तेणं अपाणएणं अभीइणा नक्खत्तेणं जोगमवागएणं पुव्वण्हकालसमयंसि पलियंकनिसन्ने कालगए विइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ १८१. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स तिन्नि वासा अद्धनवमा य मासा विइक्कंता, तओ वि परं एगा सागरोवमकोडाकोडी तिवास-अद्धनवमासाहिएहिं बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया वीइक्कंता। एयम्मि समए समणे भगवं महावीरे परिनिव्वुडे । तओ वि परं नव वाससया वीइक्कंता दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १. हच्च (ख)। २. अंतेवासिसया (पु)। ३. सं० पा०-गतिकल्लाणाणं जाव भदाणं । ४. मज्झे वसित्ताणं (क, ख, ग, घ) सर्वत्र । ५. महारायमझावसित्ता (ता)। ६. संपलियंक (क, ख, ग, घ, पु)। ७. प० सू० १०६। Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५४१ गणहरावली १८२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गण हरा होत्था ॥ १८३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ–समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ? समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे इंदभूई अणगारे ‘गोयमे गोत्तेणं" पंच समणसयाई वाएइ। मज्झिमे' 'अग्गिभूई अणगारे" गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ। कणीयसे 'वाउभई अणगारे" गोयमे गोत्तणं पंच समणसयाई वाएइ। थेरे अज्ज-वियत्ते भारद्दाए' गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ । थेरे अज्जसुहम्मे अग्गिवेसायणे गोत्तेणं पंच समणसयाई वाएइ। थेरे मंडियपुत्ते वासिठे गोत्तेणं अद्धलाई समणसयाई वाए इ । थेरे मोरियपुत्ते कासवे गोत्तेणं अद्धट्ठाइं समणसयाई वाएइ । थेरे अंकपिए गोयमे गोत्तेणं, थेरे अयलभाया हारियायणे गोत्तेणंते दुन्नि वि थेरा तिन्नि-तिन्नि समणसयाई वाएंति । थेरे मेयज्जे, थेरे य पभासे-एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोत्तेणं ति न्नि-तिन्नि समणसयाइं वाएंति। से 'एतेणं अट्ठेणं" अज्जो ! एवं बच्चइ-समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एककारस गणहरा होत्था ॥ १८४. 'सव्वे वि णं एते समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारस वि गणहरा दुवाल संगिणों चोद्दसपुग्विणो समत्तगणिपिडगधरा रायगिहे नगरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं कालगया जाव" सव्वदुवखप्पहीणा । थेरे इंदभूई, थेरे अज्जसुहम्मे सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोन्नि वि परिनिव्वुया ॥ १८५. जे इमे अज्जत्ताते समणा निग्गंथा विहरंति, एए णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवच्चिज्जा । अवसेसा गणहरा निरवच्चा वोच्छिन्ना ।। थेरावली १८६. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते णं । समणस्स भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अज्जसुहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोत्ते। थे रस्स णं अज्जसहम्मस्स अग्गिवेसायणसगोत्तस्स अज्जजंबनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते। १. गोयमसगुत्तेणं (क) सर्वत्र । ७. तेणठेणं (क, ख, ग)। २. मज्झिमए (क, ख, ग)। ८. सव्वे एए (क, पु); ४ (ख, ग)। ३. अणगारे अग्गिभूई नामेणं (पु)। ६. 'ता' प्रतौ दुवालसंगिणो चोद्दसपुब्विणो समत्त४. वाउभूई नामेण (क) ; अणगारे वाउभूई गणिपिडगधरा' एतानि विशेषणानि न सन्ति । नामेणं (पु)। १०. पिडगधारगा (क, ख, ग) । ५. भारदाये (पु)। ११. प० सू० ८४। ६. पत्तेयं ते (ख, ग)। Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૪૨ पज्जोसवणाकप्पो थेरस्स णं अज्जजंबुनामस्स कासवगोत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जभवे'थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जसेज्जभवस्स मणगपिउणो वच्छसगोत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगियायणसगोत्ते ॥ १८७. संखित्तवायणाए' अज्जजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया तं जहा-थेरस्स णं अज्जजसभद्दस्स तुंगियायणसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जसंभूयविजए माढरसगोत्ते, थेरे अज्जभद्दबाहू पाईणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जथूलभद्दे गोयमसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोत्ते, थेरे अज्जसुहत्थी वासिट्ठसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिट्ठसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-सुट्ठियसुप्पडिबुद्धा कोडिय-काकंदगा वग्घावच्चसगोत्ता। थेराणं सुट्ठियसुप्पडिबुद्धाणं कोडिय-काकंदगाणं वग्यावच्चसगोत्ताणं अंतेवासी थेरे अज्जइंददिन्ने कोसियगोत्ते। थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्ज दिन्ने गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जदिनस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते। थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जाइसरस्स कोसियगोत्तस्स अंवतासी थेरे अज्जवइरे गोयमसगोत्ते। थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोयमसगोत्तस्स 'अंतेवासी थेरे अज्जवइरसेणे कोसियगोत्ते। थेरस्स णं अज्जवइरसेणस्स कोसियगोत्तस्स२ अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अज्जनाइले, थेरे अज्जपोमिले', थेरे अज्जजयंते, थेरे अज्जतावसे । थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला साहा निग्गया । थेराओ अज्जपोमिलाओ अज्जपोमिला साहा निग्गया। थेराओ अज्जजयंताओ अज्जजयंती साहा निग्गया। थेराओ अज्ज तावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया। इति । १८८. वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभद्दाओ परओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तं जहा थेरस्स णं अज्जजसमद्दस्स तुंगियायणसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा १. 'ता' प्रती संक्षिप्तवाचनायाः सूत्रं नास्ति । पाठो नास्ति । 'वित्थरवायणाए' इति पदात् 'जहा' इति पद- ३. 'पोगिले (1) सर्वत्र । पर्यतः पाठोपि नास्ति । ४. विलोइज्जइ (क, ख, ग)। २. मुनिपुण्यविजयसम्पादिते कल्पसूत्रे चिन्हितः ५. ४ (पु)। वित्थरबायजाए इति पदात् वहा' इति पद- . पाणित (४) सर्वत्र । Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो अभिण्णाया होत्था, तं जहा - थेरे अज्जभद्दबाहू पाईणसगोत्ते, थेरे अज्जसंभूयविजए माढरसगोत्ते ॥ १८६. रस्सणं अज्जभ बाहुस्स पाईणसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभाया होत्या, तं जहा - थेरे गोदासे, थेरे अग्गिदत्ते, थेरे जण्णदत्ते, थेरे सोमदत्ते कासवगोत्ते णं ॥ १०. थेरेहिंतो णं गोदासेहिंतो कासवगोत्तेहितो, एत्थ णं गोदासगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमा हिज्जंति, तं जहा तामलित्तिया, कोडीवरिसिया, पोंडवद्धणिया, दासीखब्बडिया || १६१. थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी हावा अभिण्णाया होत्था, तं जहा - नंदणभद्दे 'उवनंदभद्दे तह तीसभद्द" जसभद्दे । थेरे य 'सुमिणभद्दे, मणिभद्दे" य पुण्णभद्दे य ॥ १ ॥ थेरेय थूलभद्दे उज्जुमती जंबुनामधेज्जे य । थेरे य दीहभद्दे, थेरे तह पंडुभद्दे य ॥२॥ थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ' अहावञ्चाओ अभिण्णाताओ होत्था, तं जहा क्खा य क्खदिन्ना, भूया तह होइ भूयदिन्ना यौं । सेणा वेणा रेणा, भगिणीओ थूलभद्दस्स ||३|| १६२. थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्या, तं जहा - थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोत्ते, थेरे अज्जसुहत्थी वासिगोते ॥ ५४३ १६३. थेरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावच्छगोत्तस्स इमे अट्ठ थेरा" अंतेवासी अहावच्चा भाया होत्या, तं जहा-थेरे उत्तरे, थेरे बलिस्सहे, थेरे धणड्ढे, थेरे सिरिड्ढे, थेरे कोडिन्ने, थेरे नागे, थेरे नागमित्ते, थेरे छलुए रोहगुत्ते कोसिए गोत्तेणं । १९४. थेरेहितो णं छलुएहितो रोहगुत्तेहितो कोसियगोत्तेहितो तत्थ णं तेरासिया निग्गया । १६५. थेरेहितो णं उत्तर-बलिस्सहेहिंतो तत्थ णं उत्तर-बलिस्सहगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा - कोलंबिया, सुत्तिमत्तिया' १. उवनंदे भद्दे थेरे तह तीसभद्द ( क ); उवनंद भद्दे तीसभद्दे ( ख ) ; थेरे उवनंदे तीसभद्द (ग)। २. सुमिणभद्दे गणिभद्दे (क ) ; समुद्दभद्दे गणिभद्दे (ग) 1 ३. अंतेवासीओ (ता) । ४. X ( ता ) । ५. x ( ख, ग, घ, पु) । ६. छुलुए (क, ग ); छुलिए ( ख ) । ७. रोहपुत्तो ( ता ) 1 ८. हपुत्ते हितो (ता) । ६. सुत्तिवत्तिया ( क ) ; * Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ पज्जोसवणाकप्पो कोडंबाणी', चंदनागरी। १६६. थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिट्ठसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा थेरेत्थ अज्जरोहण, भद्दजसे मेहगणी य कामिड्ढी। सुट्ठिय-सुप्पडिबुद्धे, रक्खिय तह रोहगुत्ते य ॥१॥ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते, गणी य बंभे गणी य तह सोमे । 'दस दो य" गणहरा खलु, एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ १६७. थेरेहितो णं अज्जरोहणेहितो कासवगुत्तेहितो, तत्थ णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए । तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ, छच्च कुलाइं एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जति, तं जहा–उदंबरिज्जिया, मासपूरिया, मतिपत्तिया, पुण्णपत्तिया' । से तं साहाओ। से किं तं कुलाई ? कुलाई एवमाहिज्जंति, तं जहा पढमं च नागभूयं, बीयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ तइयं, चउत्थयं हत्थलिज्जतु ॥१॥ पंचमगं नंदिज्जं, छठं पुण पारिहासियं होइ । उद्देहगणस्सेते छच्च कुला होति नायव्वा ॥२॥ १६८. थेरेहितो णं सिरिगुत्तेहितो हारियसगोत्तेहितो, एत्थं णं चारणगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, सत्त य कुलाई एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा-हारियमालागारी, संकासिया, गवेधुया', वज्जनागरी । से तं साहाओ। से किं तं कुलाइं ? कुलाइं एवमाहिज्जंति, तं जहा पढमेत्थ वच्छलिज्जं, बीयं पुण पीईधम्मगं होइ । तइयं पुण हालिज्ज, चउत्थगं पूस मित्तेज्जं ॥१॥ पंचमगं मालिज्ज, छठें पुण अज्जवेडयं होइ । सत्तमगं कण्हसहं, सत्त कुला चारणगणस्स ॥२॥ १६६. थेरेहितो भद्दजसेहितो भारद्दायसगोत्तेहितो, एत्थ णं उडुवाडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, तिन्नि कुलाई एवमाहिज्जति । १. कोडुंबणी (ता); कोडवाणी (पु)। ५. हत्थिलिज्ज (ख, पु)। २. दो दस (ग)। ६. गवेधूया (पु)। ३. पन्नपत्तिया (क) ; सुन्नपत्तिया (ता); सुव- ७. विज्ज (क, ख, ग) : नपत्तिया (यु)। ८. वीचिधम्मकं (पु)। ४. अल्लगच्छ (ख); उल्लगं च (ग)। ६. अज्जसेडयं (क, ख); अज्जसेलयं (ग) । Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५४५ से कि तं साहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा-चंपिज्जिया, भद्दिज्जिया', काकंदिया, मेहलिज्जिया । से तं साहाओ। से किं तं कुलाइं ? कुलाइं एवमाहिज्जति तं जहा भद्दज सियं तह भद्दगुत्तियं तइयं च होइ जसभदं । एयाइं उडुवाडियगणस्स' तिन्नेव' य कुलाइं॥१॥ २००. थेरेहितो णं कामि ढिहितो कोडिलसगोत्तेहितो', एत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, चत्तारि कुलाइं एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जति तं जहा-सावत्थिया, रज्जपालिया, अंतरिज्जिया, खेमलिज्जिया। से तं साहाओ। से किं तं कुलाइं । कुलाइं एवमाहिज्जंति, तं जहा गणियं मेहिय कामड्ढियं च तह होइ इंदपुरगं च । एयाई वेसवाडियगणस्स चत्तारि" उ कुलाइं ॥१॥ २०१. थेरेहितो णं इसिगुत्तेहितो काकंदएहिंतो वासिट्ठसगोत्तेहितो, एत्थ णं माणवगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, तिन्नि य कुलाई एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? साहाओ एवमाहिज्जति, तं जहा-कासविज्जिया', गोयमिज्जिया", वासिट्ठिया, सोरट्ठिया। से तं साहाओ। से किं तं कुलाइं ? कुलाई एवमाहिज्जति, तं जहा इसिगुत्तियत्थ" पढमं बिइयं इसिदत्तियं मुणेयव्वं । तइयं च अभिजसंतं", तिन्नि कुला माणवगणस्स ॥ २०२. थेरेहितो णं सुट्टिय-सुप्पडिबुद्धेहितो कोडिय-काकदिएहितो वग्यावच्चसगोत्तेहितो, एत्थ णं कोडियगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ, चत्तारि कुलाइं एवमाहिज्जति। से किं तं साहाओ ? साहाओ एवमा हिज्जंति, तं जहा उच्चानागरि विज्जाहरी य, वइरी" य मज्झिमिल्ला य। कोडियगणस्स एया, हवंति चत्तारि साहाओ ॥१॥ १. भद्दिया (ख, ग)। ८. ४ (क)। २. ओडवाडिय' (ता)। ६. कोसंविया (ता)। ३. हुंति तिन्नेव (क, ख, ग)। १०. गोयमज्जिया (क)। ४. कुंडल (क); कुडिल (ग); कुंडिल ११. इसिगुत्तिइत्थ (क); इसिगुत्तियं च (ग, घ); इसिगोत्तियत्थ (पु)। ५. खेमिलिज्जिया (ता)। १२. जयंतं (ख, ग)। ६. कामिड्डियं (ता)। १३. उच्चनागरी (क); उच्चानागरी य (ख)। ७. हवंति चत्तारि (ख, ग)। १४. वयरी (क)। Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ पज्जोसवणाकप्पो से किं तं कुलाइं? कुलाई एवमाहिज्जति, तं जहा पढमेत्थ बंभलिज्जं, बितियं नामेण वच्छलिज्जं तु। ततियं पुण वाणिज्ज, चउत्थयं पण्हवाहणयं ॥२॥ २०३. थेराणं सुट्ठिय-सुपडिबुद्धाणं कोडिय-काकंदाणं वग्घावच्चसगोत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था. तं जहा-येरे अज्जइंददिन्ने, थेरे पियगंथे, थेरे विज्जाहरगोवाले कासवगोत्ते णं, थेरे इसिदत्ते, थेरे अरहदत्ते ।। २०४. थेरेहितो णं पियगंथेहितो, एत्थ णं मज्झिमा साहा निग्गया । २०५. थेरेहितो णं विज्जाहरगोवालेहितो, एत्थ णं विज्जाहरी' साहा निग्गया । २०६. थेरस्स णं अज्जइंद दिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्ज दिन्ने हेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते ।। २०७. थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभि ण्णाया होत्था', तं जहा-थेरे अज्जसंतिसेणिए माढरसगोत्ते, थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते॥ २०८. थेरेहिंतो णं अज्जसंतिसेणिएहितो माढरसगोत्तेहितो, एत्थ णं उच्चानागरी' साहा निग्गया। २०६. थेरस्स णं अज्जसंतिसेणियस्स माढ रसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा-थेरे अज्जसेणिए, थेरे अज्जतावसे, थेरे अज्जकुबेरे, थेरे अज्जइसिपालिते ॥ २१०. थेरेहितो णं अज्जसेणिएहितो, एत्थ णं अज्जसेणिया साहा निग्गया ॥ २११. थेरेहितो णं अज्जतावसेहितो, एत्थ णं अज्जतावसी साहा निग्गया ॥ २१२. थेरेहितो णं अज्जकुबेरेहितो, एत्थ णं अज्जकुबेरा साहा निग्गयो । २१३. थेरेहितो णं अज्जइसिपालितेहिंतो', एत्थ णं अज्जइसिपालिया साहा निग्गया ।। २१४. थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जाईसरस्स कोसियगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा-थेरे धणगिरि, थेरे अज्जवइरे थेरे अज्ज समिए, थेरे अरहदिन्ने ॥ २१५. थेरेहितो णं अज्जसमिएहितो, एत्थ णं बंभद्दी विया साहा निग्गया ॥ २१६. थेरेहितो णं अज्जवइरेहितो, गोयमसगोत्तेहितो, एत्थ णं अज्जवइरा साहा निग्गया। २१७. थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोतमसगोत्तस्स इमे तिन्नि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभि१. पन्नवाहणगं (ता); पण्णवाहणयं (पु)। ६. पालेहितो (पु)। २. अरिह (क)। ७. अज्जवयरे (क) सर्वत्र । ३. विज्जाहर (ता)। ८. बंभदीविया (ग); बंभदेवया (ता); बंभ४. वि होत्था (पु)। देवीया (पु)। ५. उच्चनागरी (क, ख, ग)। Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ण्णाया होत्था, तं जहा–थेरे अज्जवइरसेणिए, थेरे अज्जपउमे, थेरे अज्जरहे ॥ २१८. थेरेहितो णं अज्जवइरसेणिएहितो, एत्थ णं अज्जनाइली' साहा निग्गया । २१६. थेरेहितो णं अज्जपउमेहितो, एत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया। २२०. थेरेहितो णं अज्जरहेहिंतो, एत्थ णं अज्जजयंती साहा निग्गया । २२१. थेरस्स णं अज्जरहस्स वच्छसगोत्तस्स अज्जपूस गिरी थेरे अंतेवासी कोसियगोत्ते॥ २२२. थेरस्स णं अज्जपूस गिरिस्स कोसियगोत्तस्स अज्जफग्गुमित्ते थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते। वंदामि फग्गमित्तं', गोयमं धणगिरिं च वासिठें। कोच्छि' सिवभूई पि य, कोसिय दोज्जितकंटे' य॥१॥ तं वंदिऊण सिरसा, वत्तं वदामि कासवसगोत्तं । णक्खं कासवगोतं, रक्खं पि य कासवं वंदे ॥२॥ १. अज्जनाइला (ता)। २. कासिवगुत्ते (ग)। ३. अतोग्रे 'क, ख, ग' प्रतिषु असौ निम्नांकित: पाठोधिक उपलभ्यते-थेरस्स णं अज्जफग्गुमित्तस्स गोयमसगुत्तस्स अज्जधणगिरी थेरे अंतेवासी वासिट्ठसगोत्त ।। थेरस्स णं अज्जधणगिरिस्स वासिट्ठसगोत्तस्स अज्जसिवभूई थेरे अंतेवासी कुच्छसगोत्ते ॥ थेरस्स णं अज्जसिवभूइस्स कुच्छसगोत्तस्स अज्जभद्दे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥ थेरस्स णं अज्जभहस्स कासवगुत्तस्स अज्जनक्खत्ते थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥ थेरस्स णं अज्जनक्खत्तस्स कासवगुत्तस्स अज्जरक्खे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ।। थेरस्स णं अज्जरक्खस्स कासवगुत्तस्स अज्जनागे थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जनागस्स गोयमसगुत्तस्स अज्जजेहिले थेरे अंतेवासी वासिट्रसगुत्ते ।। थेरस्स णं अज्ज- जेहिलस्म वासिटुसगुत्तस्स अज्जविण्हू थेरे अंतेवासी माढरसगोत्ते । थेरस्स णं अज्ज- विण्हस्स माढरसगुत्तस्स अज्जकालए थेरे अंते- वासी गोयमसगोत्ते ।। थेरस्स णं अज्जकाल- गस्स गोयमसगुत्तस्स इमे दुवे थेरा अंतेवासी गोयमसगोत्ता-थेरे अज्जसंपलिए थेरे अज्जभद्दे ॥ एएसि दुण्ह वि थेराणं गोयमसगुत्ताणं अज्जवुड्ड थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते ॥ थेरस्स णं अज्जवुड्डस्स गोयमसगोत्तस्स अज्जसंघपालिए थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते ॥ थेरस्स णं अज्जसंघपालियस्स गोयमसगोत्तस्स अज्जहत्थी थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥ थेरस्स णं अज्जहत्थिस्स कासवगुत्तस्स अज्जधम्मे थेरे अंतेवासी सूव्वयगोत्ते ।। थेरस्स णं अज्जधम्मस्स सुव्वयगोत्तस्स अज्जसीहे थेरे अंतेवासी कासवगत्ते ।। थेरस्स णं अज्जसीहस्स कासवगुत्तस्स अज्जधम्मे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ।। थेरस्स णं अज्जधम्मस्स कासवगुत्तस्स अज्जसंडिल्ले थेरे अंतेवासी। ४. फग्गुमित्तं च (ग, पु)। ५. कुच्छ (क, ख); कुच्छिं (ग)। ६. दुज्जंतकण्हे (क, ख, ग); दुन्जिन्तिकंटे (ता)। ७. भदं (क, ख); चित्तं (५)। ८. कासवगोत्तं (ख, ग, घ, पु) । Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ पज्जोसवणाकप्पो वंदामि अज्जनागं', गोयमं जेहिलं च वासिझें । विण्हुं माढरगोतं कालगमवि गोयमं वंदे ॥३॥ गोयमगोत्तमभारं' , सप्पलयं तह य भद्दयं वंदे । थेरं च संघवालियं, कासवगोत्तं पणिवयामि ॥४॥ वंदामि अज्जहत्थि, कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण पढममासे, कालगयं चेत्तसुद्धस्स ॥५॥ वंदामि अज्जधम्म, सुव्वयं सीसलद्धिसंपन्नं । जस्स निक्खमणे देवो, छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥६॥ हत्थं कासवगोतं, धम्म सिवसाहगं पणिवयामि । सीहं कासवगोत्तं, धम्मं पि य कासवं वंदे ।।७॥ सुत्तत्थरयणभरिए , खमदममद्दवगणेहि संपन्ने । देवढिखमासमणे , कासवगोत्ते पणिवयामि ॥८॥ पज्जोसवणाकप्पो २२३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसवेइ ।। २२४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ ? जओ णं पाएणं अगारीणं अगाराइं कडियाई १. अज्जनाग च (ग, ता, पु) । तं वंदिऊण सिरसा थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्न । २. 'गुत्तकुमारं (क, ख, ग)। थेरं च अज्जब, गोअमगुत्तं नमसामि ।। ३. संपलियं (क, ख, ग); सव्वलयं (ता)। मिउमद्दवसंपन्नं, उवउत्तं नाणदंसणचरित्ते । ४. अतोग्रे स्वीकृतगाथास्थाने 'ख, ग' प्रत्योः थेरं च नंदिरं पि य, कासवगुत्तं पणिवयामि ॥ एता गाथा उपलभ्यन्ते तत्तो य थिरचरितं, उत्तमसम्मत्तसत्तसंजुत्तं । थेरं च अज्जवुडढं, गोयमगुत्तं नमसामि ॥ दूस [देसि ] गणिखमासमणं, भाढरगुत्तं नमसामि ।। तं वंदिऊण सिरसा, थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्नं । तत्तो अणुओगधरं, धीरं मइसागरं महासत्तं । थेरं च संघवालिय, कासवगुत्तं पणिवयामि || थिरगुत्तंखमासमणं, वच्छसगुत्तं पणिवयामि ।। वंदामि अज्जहथि, कासवं खंतिसागरं धीरं । तत्तो य नाणदंसणचरित्ततवसुट्रिअं गुणमहंतं । गिम्हाण पढममासे, कालगयं चेत्तसुद्धस्स ॥ थेरं कुमारधम्म, वंदामि गणि गुणोवेयं ॥ वंदामि अज्जधम्म, सुव्वयं सीललद्धिसंपन्नं । सत्तत्थरयणभरिए, खमदममवगुणेहिं संपन्ने । जस्स निक्खमणे देवो, छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥ देविड्ढिखमासमणे, कासवगुत्ते पणिवयामि ॥ हत्थं कासवगुत्तं, धम्म सिवसाहगं पणिवयामि । 'क' प्रतौ केवलं प्रारम्भिक गोथाद्वयं विद्यते । सीहं कासवगुत्तं, धम्म पि अ कासवं वंदे ।। Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५४६ उक्कंबियाई' छन्नाई 'लित्ताइं गुत्ताइं घटाई मट्ठाई सम्मट्ठाई" संपधूमियाई' खाओदगाई खातनिद्धमणाई अप्पणो अट्ठाए कयाई परिभुत्ताइं परिणामियाई भवंति । ‘से एतेण अटेणं एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइ राए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेति ।। २२५. जहा णं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ तहा णं गणहरा वि वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावास पज्जोसवेंति ॥ २२६. जहा णं गणहरा वासाणं 'सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं° पज्जोसवेंति तहा णं गणहरसीसा वि वासाणं' 'सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं° पज्जोसवेति ॥ २२७. जहा णं गणहरसीसा वासाणं 'सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं० पज्जोसवेंति तहा णं थेरा वि वासाणं' 'सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं° पज्जोसवेति ॥ २२८. जहाणं थेरा वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं० पज्जोसवेंति तहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति 'एए वि'२ णं वासाणं" 'सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेति ॥ २२६. जहा णं जे इमे अज्जताए समणा निग्गंथा वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसवेंति तहा णं अम्हं पि आयरिय-उवझाया वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसवेंति ।। २३०. जहा णं अम्हं आयरिय-उवझाया वासाणं" 'सवोसइराए मासे विइक्कते वासावासं° पज्जोसवेंति तहा णं अम्हे वि अज्जो ! वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसवेमो। अंतरा वि य से कप्पइ पज्जोस वित्तए, नो से कप्पइ तं रयणि उवाइणा वित्तए५॥ २३१. वासावासं पज्जोस वियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं उग्गहं ओगिण्हित्ता णं चिट्ठिउं अहालंदमवि उग्गहे । १. वक्कंपियाइं (ग); उक्कंपियाइं (क,घ,पु, ३. सव्वधवियाई (ता)। चू); ओकंपियाइं (ता); आयारचूला ४. खतोदगाइं (चू)। २।१० सूत्रे 'उक्कंबिए' स्वीकृतोस्ति । ५. कडाइं (क, ख, ग, घ)। शीलाङ्करिणा अस्य वृत्ती एवं व्याख्यात- ६. से तेणठेणं (क, ख, ग, घ)। मस्ति--'उक्कंबिओ' त्ति वंशादिकम्बाभि- ७-११. सं० पा०-वासाणं जाव पज्जोसवेति । रवबद्धः । १२. ते वि (क)। २. गुत्ताई घटाई लित्ताई मद्राई (क); लित्ताई १३,१४. सं० पा०-वासाणं जाव पज्जोसवेति । घट्ठाई मट्ठाई (ता, पु)। १५. उवायणावित्तए (क, ख, ग, पु)। Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो २३२. वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए' जत्थ णं नई निच्चोयगा निच्चसंदणा नो से कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए। एरवईए' कुणालाए जत्थ चक्किया' एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवं चक्किया एवं णं कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए, एवं नो चक्किया एवं णं नो कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं गंतुं पडिनियत्तए ॥ २३३. वासावासं पज्जोसविताणं अत्थेगतियाणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ दावे भंते ! एव से कप्पइ दावित्तए, नो से कप्पइ पडिगाहित्तए॥ २३४. वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगइयाणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ पडिगाहे भंते ! एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ दावित्तए । २३५. वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगइयाणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ दावे भंते ! पडिगाहे भंते ! एवं से कप्पइ दावित्तए वि पडिगाहित्तए वि ॥ २३६. वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हद्वाणं आरोग्गाणं बलियसरीराणं इमाओ नवरसविगईओ अभिक्खणं-अभिक्खणं आहारि तए, तं जहा-खीरं दहिं नवणीयं सप्पि तिल्लं गुडं महुँ मज्ज मंसं ॥ २३७. वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थेगतियाणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ अट्ठो भंते ! गिलाणस्स? 'से य वएज्जा-अट्ठो"। से य पुच्छियव्वे सिया-केवइएणं अट्ठो? से य वएज्जा-एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स। जं से पमाणं वदति से पमाणतो घेत्तव्वे । से य विण्णवेज्जा, से य विण्णवेमाणे लभिज्जा, से य पमाणपत्ते, होउ' अलाहि इति वत्तव्वं सिया। से किमाहु भंते ! एवइएणं अट्ठो गिलाणस्स । सिया णं एवं वयंत परो वएज्जापडिग्गाहेहि अज्जो ! तुमं पच्छा भोक्खसि वा पाहिसि" वा एवं से कप्पइ पडिग्गाहित्तए, नो से कप्पइ गिलाणनीसाए पडिग्गाहित्तए । २३८. वासावासं पज्जोस वियाणं अत्थि णं थेराणं तहप्पगाराइं कुलाई कडाइं पत्तियाई थेज्जाइं वेसासियाई सम्मयाई बहुमयाइं अणुमयाइं भवंति, तत्थ से नो कप्पइ १. पडियत्तए (ता, पु)। ८. x (ता)। २. एरावई (क, ख, ग, घ) । ६. होज्जा (ता)। ३. चक्किया सिया (क)। १०. पिच्चा (ता)। ४. पडिगाहेहिं (क, ख, ग, घ)। ११. दाहिसी वा पयाहिसि (ग); दाहिसि (ता); ५. हट्ठाणं तुट्ठाणं (ख, घ)। देहिसि (पु)। ६. वइज्जा (क) सर्वत्र । १२. समणाणं (ता)। ७. हंता अट्ठो (ता)। १३. जत्थ (ता)। Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५५१ अद्दक्ख' वइत्तए-अस्थि ते आउसो ! इमं वा इमं वा ? से किमाहु भंते ! सड्ढी गिही गिण्हइ वा तेणियं पि कुज्जा । २३६. वासावासं पज्जोस वियस्स निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एग गोयरकालं गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नण्णत्थ' आयरियवेयावच्चेण वा उवज्झायवेयावच्चेण वा तवस्सि-गिलाण-वेयावच्चेण वा खुड्डएण वा' अवंजणजायएणं ॥ २४०. वासावासं पज्जोस वियस्स चउत्थभत्तियस्स भिक्खुस्स अयं एवइए विसेसे-जं से पाओ निक्खम्म पूव्वामेव वियडगं भोच्चा पेच्चा पडिग्गहगं संलिहिया संपमज्जिया, से य संथरिज्जा कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तठेणं पज्जो वित्तए, से य नो संथरिज्जा एवं से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा॥ २४१. वासावासं पज्जोस वियस्स छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति दो गोयरकाला गाहा वइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा ।। २४२. वासावासं पज्जोस वियस्स अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ।। २४३. वासावासं पज्जोस वियस्स विकिट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वे वि गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ।। २४४. वासावासं पज्जोस वियस्स निच्चभत्तियस्स भिक्खस्स कप्पंति सव्वाइं पाणगाई पडिगाहेत्तए । २४५. वासावासं पज्जोसवियस्स चउत्थभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहेत्तए, तं जहा–उस्सेइमं संसेइमं चाउलोदगं" ।। २४६. वासावासं पज्जोस वियस्स छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहे त्तए तं जहा–तिलोदए तुसोदए जवोदए । २४७. वासावासं पज्जोस वियस्स अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहेत्तए, तं जहा- आयामए सोवीरए सुद्धवियडे ॥ २४८. वासावासं पज्जोस वियस्स विकिट्ठभत्तियस्स भिक्खस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे पडिगाहेत्तए, से वि य णं असित्थे 'नो वि य णं'" ससित्थे ॥ ५. चाउलधोयणं (ता)। ६. उसिणे वियडे (घ); उसिणोदए वियडे १. अद्दठ्ठ (चू)। २. अतः 'अवंजणजायएणं' पर्यन्तः पाठः 'ता' प्रतौ नास्ति । ३. वा खुड्डियाए वा (क, ख, ग, घ)। ४. अव्वंजणजायएण (क)। ७. नो चेव णं (घ)। Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ पज्जोसवणाकप्पो २४६. वासावासं पज्जोस वियस्स भत्तपडियाइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणविय.' पडिगाहेत्तए, से वि य णं असित्थे नो 'वि य णं ससित्थे, से वि य णं परिपूते नो चेव णं अपरिपूते, से वि य णं परिमिए नो चेव णं अपरिमिए । २५०. वासावासं पज्जोसवियस्स संखादत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए पंच पाणगस्स, अहवा' चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स, अहवा पंच भोयणस्स चत्तारि पाणगस्स । तत्थ णं एगा दत्ती लोणासायणमेत्तमवि' पडिग्गाहिया सिया कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तठेणं पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ २५१. वासावासं पज्जोसवियाणं नो से कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा जाव उवस्स याओ सत्तघरंतरं संखडि सन्नियट्टचारिस्स एत्तए। एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परेणं संखडि सन्नियट्टचारिस्स एत्तए। एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परंपरेण संखडिं सन्नियट्ट चारिस्स एत्तए॥ २५२. वासावासं पज्जोस वियस्स नो कप्पइ पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स' कणगफुसिय मित्तम वि वुट्टिकायंसि निवयमाणंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ।। २५३. वासावासं पज्जोस वियस्स पाणिपडिग्ग हियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ अगिहंसि पिंडवायं पडिग्गाहित्ता पज्जोसवित्तए । पज्जोसवेमाणस्स सहसा वुट्टिकाए निवइज्जा, देसं भोच्चा देसमायाय से पाणिणा पाणि परिपिहित्ता उरंसि वा णं निलिज्जिज्जा, कक्खंसि वा णं समाहडिज्जा, अहाछन्नाणि वा लयणाणि 'उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से पाणिसि दते वा दत रए वा दगफुसिया वा नो परियावज्जइ" ॥ १. उसिणोदए (ग, ता, पु);. उसिणे वियडे ५. भोयणस्सादणमित्तामवि (ता) । (घ)। ६. भिक्खुस्स जं किचि (चू)। २. चेव (क, ता)। ७. निवडिज्जा (पु)। ३. अपरिमिए"..."बहुसंपुण्णे ...."अबहुसंपुण्णे ८. पडिपिवेत्ता (ता)। (क, ख, घ); अपरिमिए से वि य णं बहुसं- ९. लेणाणि वा (क)। पुण्णे नो चेव णं अबहुसंपुण्णे (ग, पु)। १०. उबलिएज्जा निरावरिस वा रुक्खमूलं ४. 'ता' प्रतौ विकल्पद्वयस्य स्थाने विकल्पत्रयं उवासेज्जा (ता)। दृश्यते-अथवा पंच दत्तीओ भोयणस्स पडि- ११. अतः परं 'क, ख, ग, घ, पु' प्रतिषु एकमतिगाहेत्तए चत्तारि पाणगस्स । अधवा चत्तारि रिक्तं सूत्रं दृश्यते-वासावासं पज्जोसवियस्स भोयणस्स पडिगाहेत्तए चत्तारि पाणगस्स। पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि अहवा चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स । कणगफूसियमित्तं पि निवडइ नो से कप्पइ Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोस वणाकप्पो २५४. वासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गधारिस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ वग्घारियकासि गाहाव कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पवित्तिए वा, कप्पइ से अप्पवुट्ठिकार्यंसि संतरुत्तरस्स' गाहावइकुलं भत्ताए पाणाए वा निक्ख मित्तए वा वित्ति वा ॥ २५५. वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स' गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्य - निगिज्झिय वुट्टिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्तयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रूक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए । तत्थ' से पुव्वागमणेणं पुत्राउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिग्गा हित्तए, नो से कप्पइ भिलंगसूवे पडिग्गाहित्तए । तत्थ से पुव्वागमणं पुव्वाउत्ते भिलंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलंगसूवे डिग्गाहिए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिग्गाहित्तए । तत्थ से पुव्वागमणेणं दो विपुव्वाउत्ताई', कप्पंति से दो वि पडिग्गाहित्तए । तत्थ से पुब्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ताइं, नो से कप्पंति दो वि पडिग्गाहित्तए । जेसे तत्थ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पइ पडिग्गाहित्तए, जेसे तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते, से नो कप्पइ डिग्गाहित्तए || २५६. वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय-निगिज्झिय वुट्टिकाए निवएज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए, नो से कप्पर पुव्वगहिएणं भत्तपाणेणं वेलं उवाइणावित्तए । कप्पइ से पुव्वामेव वियडगं भोच्चा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय-संलि हिय 'संपनज्जिय- संपमज्जिय" एगायगं भंड कट्टु सावसेसे" सूरिए जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ तं यणि तत्थेव उवाइणा वित्तए । ५५३ २५७. वासावासं पज्जोसजियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठ निगिज्य - निगिज्झिय वुट्टिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा आहे उस सवा' 'अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा° उवागच्छित्तए । तत्थ २. निग्गंथस्स निग्गंथीए वा (क, पु) । ३. अतः सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रतौ संक्षिप्तपाठो विद्यते — एवं चउभंगो | ४. भिलिंगसूवे (क, ग, घ ) । ५. पुव्वाउत्ताइं वट्टंति (पु) । ६. पमज्जिय- पमज्जिय ( 1 ) | ७. जाव सेसे (पु) । ८. सं० पा०—उवस्सयंसि गच्छित्तए । भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा परिवसित्तए वा । एतत्सूत्रं चूर्णो व्याख्यातं नास्ति । 'ता' प्रतावपि नैव दृश्यते । अर्थमीमांसापि २५२ सूत्रात् नास्ति कश्चिद् विशिष्टोर्थः तेनैतत् पाठान्तररूपेण स्वीकृतम् । १. संतरुत्तरंसि ( क, ख, ग, घ, पु); एतत्पदं भिक्षो विशेषणमस्ति तेनात्र सङ्गतास्ति षष्ठी विभक्ति: । अत्र सप्तमी विभक्ति र्नास्ति समीचीना । वा जाव उवा Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ पज्जोसवणाकप्पो नो कप्पइ एगस्स य निग्गंथस्स एगाए य निग्गंथीए एगयओ' चिट्टित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स दोण्ह य निग्गंथीणं एगयओ चिट्ठित्तए, तत्थ नो कप्पइ दोण्ह य निग्गंथाणं एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिट्ठित्तए, तत्थ नो कप्पइ दोण्ह य निग्गंथाणं दोण्ह य निग्गंधीणं एगयओ चिट्ठित्तए, अत्थि या इत्थ केइ पंचमए खुड्डए वा खुड्डिया वा अण्णेसि वा संलोए सपडिदुवारे एवण्हं कप्पइ एगयओ चिट्ठित्तए॥ २५८. वासावासं पज्जोस वियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणपविटुस्स निगिझिय-निगिज्झिय वुट्टिकाए निवएज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए । तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिट्ठित्तए । एवं चउभंगो अस्थि या इत्थ केइ पंचमए थेरे वा थेरिया वा अण्णेसिं वा संलोए सपडिदुवारे एवण्हं कप्पइ एगयओ चिट्टित्तए ॥ २५६. एवं' चेव निग्गंथीए अगारस्स य भाणियव्वं ॥ २६०. वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'अपडिण्णत्तेणं अपडिण्णत्तस्स अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगा हित्तए। से किमाहु भंते ! ? इच्छा परो अपडिण्णत्ते भुंजिज्जा, इच्छा परो न भुजिज्जा ॥ २६१. वासावासं पज्जोस वियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा उदउल्लेण वा ससिणिद्धेण वा काएणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए। से किमाह भंते ! ? सत्त सिहायतणा तं जहा-पाणी, पाणीलेहा, नहा, नहसिहा, भमहा, अहरोट्ठा, उत्तरोट्ठा । अह पुण एवं जाणेज्जा-विगओदए से काए छिन्नसिणेहे. एवं से कप्पइ असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा आहारित्तए । २६२. वासावासं पज्जोस वियाणं इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाइं अट्ठ सुहुमाइं, जाई छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियव्वाई पासियव्वाइं पडिलेहियव्वाई भवंति तं जहा-पाणसुहमं पणगसुहम बीयसूहम हरियसुहुमं पुप्फसुहुमं अंडसुहुमं लेणसुहुमं सिणेहसुहुमं ।। २६३. से किं तं पाणसुहुमे ? पाणसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-किण्हे नीले लोहिए हालिद्दे सुक्किले । अस्थि कुंथू अणुंधरी नाम 'जा ठिया' अचलमाणा छउमत्थाणं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा नो चक्खफासं हव्वमागच्छइ, 'जा अट्रिया चलमाणा छउमत्थाणं चक्खफासं हव्वमागच्छइ" जा छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा १. एगओ (क) सर्वत्र । ५. x (चू)। २. एवं (क)। ६. अणुद्धरी (क, ख, ग, घ, ता पु)। ३. 'ता' प्रतौ एतत्सूत्रं नास्ति । ७. जट्टिया (ता)। ४. अपरिन्नएणं अपरिन्नयस्स (क, ख, ग, घ, ८. x (क, ख, ग, घ)। Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५५५ अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियव्वा पासियव्वा पडिलेहियव्वा भवइ । से तं पाणसुहुमे ॥ २६४. से किं तं पणगसुहुमे ? पणगसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-किण्हे नीले लोहिए हालिद्दे सुक्किले । अत्थि पणगसूहमे तद्दव्वसमाणवण्णए' नामं पण्णत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियब्वे पासियवे. पडिले हियव्वे भवति । से तं पणगसुहुमे ।। २६५. से किं तं बीयसुहमे ? बीयसुहमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-किण्हे जाव सुक्किले । अस्थि बीयसुहुमे कणियासमाणवण्णए नामं पण्णत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा 'अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियव्वे पासियव्वे° पडिलेहियव्वे भवइ । से तं बीयसुहुमे ।। २६६. से कि तं हरियसुहमे ? हरियसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—किण्हे जाव सुक्किले। अस्थि हरियसुहुमे पुढवीसमाणवण्णए नामं पण्णत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियव्वे पासियव्वे' पडिलेहियव्वे भवइ । से तं हरियसुहुमे ॥ २६७. से किं तं पुप्फसुहुमे ? पुप्फसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—किण्हे जाव सुक्किले। अस्थि माणवण्णए नामं पण्णत्ते, जे छउमत्थेणं निग्गंथण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियब्वे पासियव्वे पडिलेहियव्वे भवति । से तं पुप्फसुहुमे ॥ २६८. से किं तं अंडसुहुमे ? अंडसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-उद्दसंडे उक्कलियंडे पिपीलियंडे हलियंडे हल्लोहलियंडे, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा" 'अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियव्वे पासियव्वे° पडिलेहियव्वे भवइ । से तं अंडसुहुमे॥ २६६. से किं तं लेणसुहुमे ? लेणसूहुमे पंच विहे पण्यत्ते, तं जहा-उत्तिंगलेणे भिंगलेणे उज्जए तालमूलए संवुक्कावटे' नामं पंचमे, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं-अभिक्खणं जाणियव्वे पासियव्वे" पडिलेहियव्वे भवइ । से तं लेणसुहुमे ॥ २७०. से किं तं सिणेहसुहुमे ? सिणेहसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-उस्सा हिमए महिया करए हरतणुए णामं पंचमे, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए" अभि१. वण्णे (ता)। ७. सं पा०--निग्गंथीए वा जाव पडिलेहियव्वे । २. सं० पा०-निग्गंथीए वा जाव पडिलेहियवे। ८. भिगू (चू)। ३. कणिया (पु); चूणौं कल्पकिरणावल्यामपि ___ च 'कणिका' इति पदं व्याख्यातमस्ति । १०. जाव (ख, ग, घ, पु) । ४. सं० पा०—निग्गंथीए वा जाव पडिलेहियवे। ११. सं० पा०—निग्गंथीए वा जाव पडिलेहियव्वे । ५-६. जाव (ख, ग, घ, पु) । Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो क्खणं- अभिक्खणं जाणियव्वे पासियव्वे पडिलेहियव्वे भवइ । से त्तं सिणेहसुहुमे ॥ २७१. वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छेज्जा गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्त वा पविसित्तए वा, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वारं वा पवत्ति वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ 'से आपुच्छिउ " आयरियं वा जाव जं वा पुरओ काउं विहरइइच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणुष्णाए समाणे गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा' 'पाणाए वा निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा । ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्त वा पविसित्तए वा । से किमाहु भंते ? आयरिया पच्चवायं जाणंति ।। ५५६ २७२. एवं विहारभूमिं वा वियारभूमि वा अण्णं वा जं कि पि पओयणं । एवं गामाणुइज्जत ॥ २७३. वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छेज्जा अण्णयरि विगई आहारितए, नो से कप्पइ अापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ कट्टु विहर, कप्प से पुच्छित्ताणं 'आयरियं वा जाव जं वा पुरओ काउं विहरइ "इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अण्णयरिं विगई आहारितए, तं एवइयं वा एवतिक्खुतो वा । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णयरि विगई आहारितए । ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णयरि विगई आहारित्तए । से किमाहु भंते ! ? आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥ २७४. वासावासं पज्जोसविए भिक्खु इच्छेज्जा अन्नयरि तेइच्छं आउट्टित्तए "नो से कप्पइ toryच्छत्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ कट्टु विहरइ, कप्पर से आपुच्छित्ताणं आयरियं वा जाव जं वा पुरओ काउं विहरइ - इच्छामि गं भंते! तुभेहिं अब्भण्णाए समाणे अण्णर्यार तेइच्छं आउट्टित्तए, तं एवइयं वा वक्त्वा । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णयरि तेइच्छं आउट्टित्तए । य से नो वियज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णयरि तेइच्छं आउट्टित्तए । से किमाहु भत्ते ! ? आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥ १. गणावच्छेइयं (ता) | २. सो आपुच्छित्ता (ता) । ३. सं० पा० - भत्ताए वा जाव पविसित्तए । ४. थेरा (ता) । ५. चि (ता) । ६. तं चैव (ख, ग, घ, पु) 1 ७. सं० पा० तं चैव सव्वं । Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५५७ २७५. वासावासं पज्जोस विए भिक्खू इच्छेज्जा अण्णयरं ओरालं' तवोकम्म उवसंपज्जि त्ताणं विहरित्तए, 'नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ कट्ट विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ताणं आयरियं वा जाव जं वा पुरओ काउं विहरइ-इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अण्णयरं ओरालं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, तं एवइयं वा एवतिक्खुत्तो वा। ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णयरं ओरालं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णयरं ओरालं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। से किमाहु भंते! ? आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥ २७६. वासवासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छेज्जा अपच्छिममारणंतिय-संलेहणा-झूसणा' झसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरित्तए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तए, धम्मजाग रियं वा जागरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता तं चेव ॥ २७७. वासावासं पज्जोस विए भिक्खू इच्छज्जा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पाय पुंछणं वा 'अण्णयरं वा उवहिं आयावित्तए वा पयावित्तए वा, नो से कप्पई एगं वा अणेगं वा अपडिण्णवित्ता गाहावइकुलं 'भत्ताए वा पाणाए वा" निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा (निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा ?) सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए । अत्थि या इत्थ केइ अहासन्निहिए एगे वा अणेगे वा कंप्पइ से एवं वदित्तए-इमं ता अज्जो ! तुम मुहुत्तगं जाणाहि जाव ताव अहं गाहावइकुलं जाव काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए । से य से पडिसुणेज्जा एवं से कप्पइ 'गाहावइकुलं जाव काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए"। से य नो पडिसुणेज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं जाव काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए । २७८. वासावासं पज्जोस वियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अणभिग्गहिय १. अतोने क, ख, ग, घ' प्रतिषु 'कल्लाणं सिवं धन्नं मंगल्लं सस्सिरीयं महाणुभावं' एतानि पदानि दृश्यन्ते । चूणौँ वृत्ती च न व्याख्यातानि । २. सं० पा०--तं चेव सव्वं । ३. जूसणा (क, ख, ग, घ, पु)। ४. अण्णयरिं (ग, घ, पु)। ५. उवगरणजायं (ता)। ६. कप्पइ तत्थ (ता)। ७. भत्तपाणपडियाए (ता)। ८. कोष्ठकवर्ती पाठः बृहत्कल्पस्य प्रथमोद्देशकात् (४५) उट्टङ्कितोस्ति । अत्र 'ता' प्रतौ पाठ भेदोस्ति-'उच्चारपासवणं परिट्ठावित्तए'। ६. गाहावइ तं चेव (ख, ग, घ, पु)। Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ पज्जोसवणाकप्पो सेज्जासणिएणं' होत्तए। आयाणमेतं । अणभिग्गहियसेज्जासणियस्स अणुच्चाकुइयस्स अणट्ठाबंधियस्स' अमियासणियस्स अणातावियस्स असमियस्स अभिक्खणं-अभिक्खणं अप्पडिलेहणासीलस्स अप्पमज्जणासीलस्स तहा-तहा णं संजमे दुराराहए भवइ । अणायाणमेतं । अभिग्गहियसेज्जासणियस्स उच्चाकुइयस्स अट्ठाबंधियस्स मियासणियस्स आयावियस्स समियस्स अभिक्खणं-अभिक्खणं पडिलेहणासीलस्स पमज्जणासीलस्स तहा-तहा णं संजमे सुआराहए भवइ ॥ २७६. वासावासं पज्जोस वियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ उच्चारपास वणभूमीओ पडिलेहित्तए, न तहा हेमंत-गिम्हासु जहा णं वासावासेसु । से किमाह भंते! ? 'वासावासएसु णं ओसन्नं पाणा य 'तणा य" बीया य ‘पणगा य" हरियायणाय भवंति ॥ २८०. वासावासं पज्जोस वियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ मत्तगाई गिण्हित्तए, तं जहा—उच्चारमत्तए पासवणमत्तए खेलमत्तए । २८१. वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पज्जो सवणाओ गोलोमप्पमाणमित्त वि केसे तं रयणि उवाइणा वित्तए", पक्खिया आरोवणा, मासिते खुरमुंडे, अद्धमासिए कत्तरिमुंडे, छम्मासिए लोए संवच्छरिए वा थेरकप्पे ॥ २८२. वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा परं पज्जोसव णाओ अहिगरणं वदित्तए । जो णं निग्गंथो वा निग्गंथी वा परं पज्जोसवणाओ अहिगरणं वयइ, से णं अकप्पेणं अज्जो ! वयसीति वत्तव्वे" सिया। जो णं निग्गंथो वा निग्गंथी वा परं पज्जोसवणाओ अहिगरणं वयइ, से णं निज्जू हियव्वे सिया ॥ २८३. वासावासं पज्जोस वियाणं इह खल निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अज्जेव कक्खडे कडुए वुग्गहे समुप्पज्जिज्जा, सेहे राइणियं" खामिज्जा, राइणिए वि सेहं खामिज्जा, १. अणभिग्गहतसेज्जासेणियाणं (ता); "सेज्जा- व्याख्येयम् (ककि)। __ सणियं (पु)। ९. उस्सन्ने वासासु पाणा य तणा उस्सन्नं बीया य २. होइत्तए (ता)। तणा उस्सन्नं हरिय य तणा भवंति (ता)। ३. अणट्टाबंधिस्स (क, ख, ग, पु)। १०. मत्तगाओ (ता) । ४. अट्टाबंधिस्स (क, ख, ग, पु)। ११. उवाइ (य) णावित्तए अज्जेणं खुरमुंडएण वा ५. नो चेव णं (ता)। लुक्कसिरएण वा होयव्वं सिया (क, ख, ग, ६,७. x (चू)। घ, ककि, अ)। ८. हरियाणि (ख, ग, घ, ककि)। अथवा १२. 'ता' प्रती एष पाठो नास्ति । पाणायतणायत्ति प्राणानां जीवानामायतनमिति १३. वत्तव्वं (क, ख, ग, घ) । क्वचित्पांणात्ति पाठसूत्रे प्राणायतनमित्यादि १४. रायणियं (ता)। Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसवणाकप्पो ५५९ खमियव्वं खमावेयव्वं,' उवसमियव्वं उवसमावेयव्वं,' सम्मुइय'-संपुच्छणा-'बहुलेणं होयव्वं" । जो उवसमइ तस्स अत्थि आराहणा, जो न उवसमइ तस्स नत्थि आराहणा तम्हा' अप्पणा चेव उवसमियव्वं । से किमाहु भंते! ? उवसमसारं खु सामण्णं ।। २८४. वासावासं पज्जोस वियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तओ उवस्सया गिण्हित्तए, वेउव्विया पडिलेहा साइज्जिया पमज्जणा । २८५. वासावासं पज्जोस वियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अन्नयरिं दिसं वा अण दिसंवा अवगिझिय भत्तपाणं गवेसित्तए। से किमाहु भंते! ? ओसन्न समणा वासासु तवसंपउत्ता भवंति । तवस्सी दुब्बले किलंते मुच्छिज्ज वा पवडिज्ज वा तामेव दिसं वा अणु दिसं वा समणा' भगवंतो पडिजागरंति ॥ २८६. वासावास पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा जाव चत्तारि पंच जोयणाई गंतुं पडिनियत्तए", अंतरा वि से कप्पइ वत्थए, नो से कप्पइ तं रयणि तत्थेव उवाइणावित्तए । २८७. इच्चेयं" संवच्छरियं थेरकप्पं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासित्ता पालित्ता सोधित्ता" तीरित्ता किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणुपालित्ता अत्थेगइया समणा णिग्गंथा तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति बुझंति मच्चंति परिनिव्वायंति" सव्वदक्खाणमंतं करेंति. अत्थेगइया दोच्चेणं भवग्गहणणं सिज्भंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति, अत्थेगइया तच्चेणं भवग्गहणणं सिझंति जाव सव्व दुक्खाणमंतं करेंति, सत्तट्ठ भवग्गहणाई पुण" नाइक्कमंति ॥ २८८. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं" बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं 'भज्झगए चेव" एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ पज्जो १. खमेयव्वं (ता)। २. उवसामेयव्वं (ता)। ३. सुमइ (ख); समइ (ग, घ); संमुत्ति (ता)। ४. बहुलेहि भवियव्वं (ता)। ५. अम्हे (ता)। ६. वेउट्टिया (ककि)। ७. ओगिज्झिय (ग); अभिगिज्झिय (ता)। ८. समणा भगवंतो (क, ता)। ६. समणा निग्गंथा (ता)। १०. पडियत्तए (ता, पू)। ११. इच्चे इयं (क)। १२. अधातच्च (ता)। १३. सोभित्ता (क, ख, ग, घ, पु)। १४. परिनिव्वुडंति (ता)। १५. ४ (घ, पु)। १६. साविगीणं (ता)। १७. सदेवमणुयासुराए परिसाए मझगए (चू)। १८. परुवेइ अज्जो (ता)। Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० पज्जोसवणाकप्पो सवणाकप्पो 'नामं अज्झयणं" सअळं सहेउयं सकारणं 'ससुत्तं सअत्थं सउभयं सवागरणं" भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइ-त्ति बेमि। १. नामं अट्ठमं अज्झयणं (ख); नामऽज्झयणं (पु)। २. सहेउं (ता)। ३. x (ता)। ४. बेमि पज्जोसवणाकप्पदसा अट्ठमझयणं सम्मत्तं (ता)। Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कप्पो Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो तालपलंब-पदं १. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा आमे ताल लंबे अभिन्ने पडिगाहित्तए || २. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा आमे तालपलंबे भिन्ने पडिगाहित्तए || ३. कप्पइ निग्गंथाणं पक्के तालपलंबे भिन्ने वा अभिन्ने वा पडिगाहित्तए । ४. नो कप्पइ निग्गंथीणं पक्के तालपलंबे अभिन्ने पडिगाहित्तए ॥ ५. कप्पइ निग्गंथीणं पक्के तालपलंबे भिन्ने पडिगाहित्तए, से वि य विह्निभिन्ने, नो "चेव णं" अविहिभिन्ने ॥ मासकप्प - पर्व ६. से गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कब्बडंसि' वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा आगरंसि वा दोणमुहंसि वा निगमंसि वा रायहाणिसि वा आसमंसि वा सन्निवेसंसि वा संबाहंसि' वा 'घोसंसि वा अंसियंसि वा पुडभेयणंसि" वा " सपरिक्खेसि बाहिरियंसि कप्पइ निग्गंथाणं हेमंत - गिम्हासु एगं मासं वत्थए ॥ ७. से गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा सपरिक्खेवंसि सबाहिरियंसि कप्पइ निग्गंथा हेमंत गिम्हासु दो मासे वत्थए - अंतो एगं' मासं, बाहिं एवं मासं । अंतो वसमाणाणं अंतो भिक्खायरिया, बाहिं वसमाणाणं बाहिं भिक्खायरिया ॥ १. पडिग्गाहित्तए ( क, ख, ग ); पडिग्गाहेत्तए ( जी, शु) । २. ४ (क) 1 ३ कव्वडंसि (ख, जी, शु) । ४. निवेसि (पु, मतृ ) । ५ संवाहंसि (क, जी, शु) । ६. X ( क ) ; केइ घोसं पढंति । अण्णे अंसितंसि वा पदति । पुडभेदणं पि केयि पढंति (चू ) । विशेषचूणौं प्रायः एतत् तुल्य एव पाठः । ७. 'वा संकरंसि वा' कल्पभाष्ये १०६३ । भाष्यकारेण मतान्तरस्य उल्लेखः कृतः । मलयगिरिणा अस्य विवरणे एतत् विवृतमस्ति - केषाञ्चिदाचार्याणां मतेन सङ्करश्च कर्त्तव्यः, 'संकरंसि वा' इत्यधिकं पदं पठितव्यमित्यर्थः । ८. एक्कं (क, ग ); इक्कं (पु) । ५६३ Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ कप्पो ८. से गामंसि वा जाव रायहाणि सि वा सपरिक्खेवंसि अबाहिरियंसि कप्पइ निग्गंथीणं हेमंत-गिम्हासु दो मासे' वत्थाए । ६. से गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा सपरिक्खेवंसि सबाहिरियंसि कप्पइ निग्गं थीणं हेमंत-गिम्हासु चत्तारि मासे' वत्थए-अंतो दो मासे, बाहिं दो मासे । अंतो वसमाणीणं' अंतो भिक्खायरिया, बाहिं वसमाणीणं बाहिं भिक्खायरिया ॥ एगत्तवासविधिनिसेध-पवं १०. से गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए नो कप्पइ निग्गंथाण य निग्गंथीण य एगयओ' वत्थए । ११. से गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए' अभिनि क्खमणपवेसाए कप्पइ निग्गंथाण य निग्गंथीण य एगयओ वत्थए । आवणगिहादिसु वासविधिनिसेध-पवं १२. नो कप्पइ निग्गंथीणं आवणगिहंसि वा रच्छामहंसि" वा सिंघाडगंसि वा 'तियंसि वा" चउक्कंसि वा चच्चरंसि वा अंतरावणंसि वा वत्थए । १३. कप्पइ निग्गंथाणं आवणगिहंसि वा 'रच्छामुहंसि वा सिंघाडगंसि वा तियंसि वा चउक्कंसि वा चच्चरंसि वा अंतरावणंसि वा वत्थए । अवंगुयदुवार-उवस्सय-पर्व १४. नो कप्पइ निग्गंथीणं अवंगुयदुवारिए उवस्सए वत्थए । 'एगं पत्थारं अंतो किच्चा एगं पत्थारं बाहिं किच्चा ओहाडियचिलिमिलियागंसि एवण्हं कप्पइ वत्थए। १५. कप्पइ' निग्गंथाणं अवंगुयदुवारिए उवस्सए वत्थए । घडीमत्तय-पदं १६. कप्पड निग्गंथीणं 'अंतोलित्तयं" घडिमत्तयं"धारित्तए वा तए वा॥ १. मासा (पु)। सूचितम्-क्वचित्तु सूत्रादर्श 'तियंसि वा' २. मासा (पु)। इत्यपि पदं दृश्यते। ३. वसंताणं (क); वसंतीणं (ग)। ६. सं० पा०--आवणगिहंसि वा जाव अंतराव४. 'प्पवेसाए (पु)। णंसि । ५. एगतओ (क, ग); एक्कतओ (पु)। १०. एवं णं (पु, मव)। ६. अभिनिदुवाराए (जी, शु)। ११. x (क, ख)। ७. रत्थामुहंसि (ग)। १२. 'ख' संकेतितादर्श एतत् सूत्रं नास्ति । ८.४ (म); भाष्ये शृंगाटकस्य अर्थः त्रिकमिति १३. अंतोलित्तं (पु, मवृ)। कृतोस्ति-सिंघाडगं तियं खलु (भा० १४. समाहिमत्तयं अंतोलित्तयं (ख)। २३००)। अस्य विवरणे मलयमिरिणा एतत् 1 वारा पाप Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो ५६५ १७. नो कप्पइ निग्गंथाणं अंतोलित्तयं घडिमत्तयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ चिलिमिलिया-पदं १८. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चेलचिलिमिलियं' धारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ दगतीर-पदं १६. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा दगतीरंसि चिट्ठित्तए वा निसीइत्तए वा तुट्टित्तए वा निदाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारत्तए', उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिंघाणं वा परिटुवेत्तए, सज्झायं वा करेत्तए ‘धम्मजागरियं वा जागरित्तए" काउस्सग्गं वा ठाणं ठाइत्तए॥ चित्तकम्म-पवं २०. नो कप्यइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सचित्तकम्मे उवस्सए वत्थए । २१. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अचित्तकम्मे उवस्सए वत्थए । सागारिय-निस्सा-पदं २२. नो कप्पइ निग्गंथीणं सागारिय-अनिस्साए वत्थए । २३. कप्पइ निग्गंथीणं सागारिय-निस्साए वत्थए । २४. कप्पइ निग्गंथाणं सागारिय-निस्साए वा अनिस्साए" वा वत्थए । सागारिय-उवस्सय-पदं २५. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारिए उवस्सए वत्थए । २६. नो कप्पइ निग्गंथाणं इत्थिसागारिए उवस्सए वत्थए । २७. कप्पइ निग्गंथाणं पुरिससागारिए उवस्सए वत्थए । २८. नो कप्पइ निग्गंथीणं पुरिससागारिए उवस्सए वत्थए । १. चेलचेलमियं (ख); चेलचिलिमिणीयं (जी)। घटते । मलयगिरिणा 'सागारिकं निश्राय वा २. आहारमाहारेत्तए (जी, शु)।। अनिश्राय वा' इति विवृतमस्ति, किन्तु आदर्शेषु ३. झाणं वा माइत्तए (क, ख, जी, शु, मवृ); 'सागारियं' इति पाठः क्वापि नोपलभ्यते । धम्मजागरियं वा जागरित्तए झाणं वा 'अनिस्साए' अत्र 'सागारिय' इति पदं गम्यझाइत्तए (ग); धम्मजागरियं णाम झाणं मेव । ६. अतोने 'क, ग, जी, शु' आदर्शषु निम्ननिर्दिष्टं ४. करेत्तए ठाणं वा (ख); ठाणं वा (जी, शु)। सूत्र लभ्यते-कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण ५. 'सागारिय-निस्साए' इति पदं समस्तं अस्ति, वा अप्पसागारिए उवस्सए वत्थए । तेन 'सागरिय' शब्देन 'अनिस्साए' सम्बन्धो न Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ २६. कप्पइ निग्गंथीणं इत्थिसागारिए उवस्सए वत्थए || पडिबद्धसेज्जा-पदं ३०. नो कप्पइ निग्गंथाणं पडिबद्ध सेज्जाए' वत्थए || ३१. कप्पइ निग्गंथीणं पडिबद्धसेज्जाए वत्थए । गाहावइकुल मज्भवास-पदं ३२. नो कप्पइ निग्गंथाणं गाहावइकुलस्स मज्भंमज्भेणं गंतुं वत्थए ॥ ३३. कप्पइ निग्गंथीणं गाहावइकुलस्स मज्भंमज्झेणं गंतुं वत्थए । विओसवण-पदं ३४. भिक्खू अहिगरणं कट्टु तं अहिगरणं 'विओसवित्ता विओसवियपाहुडे", इच्छाए' परो आढाएज्जा, इच्छाए परो नो आढाएज्जा; इच्छाए परो अब्भुट्ठेज्जा, इच्छाए परो नो अब्भुट्ठेज्जा; इच्छाए परो वंदेज्जा, इच्छाए परो नो वंदेज्जा; इच्छाए परो संभुंजेज्जा, इच्छाए परो नो संभुंजेज्जा; इच्छाए परो संवसेज्जा, इच्छाए परो नो संवसेज्जा; इच्छाए परो उवसमेज्जा, इच्छाए परो नो उवसमेज्जा । जे उवसमइ, तस्स अत्थि आराहणा; जे न उवसमइ, तस्स नत्थि आराहणा । तम्हा अप्पणा चेव उवसमियव्वं । से किमाहु भंते ? उवसमसारं सामण्णं ॥ चार- पदं ३५. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'वासावासासु चारए" ॥ ३६. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमंत - गिम्हासु चारए' | वेरज्ज - विरुद्धरज्ज-पदं ३७. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वेरज्ज - विरुद्धरज्जंसि सज्जं गमणं सज्जं आगमणं सज्जं गमणागमणं करेत्तए । जो खलु निग्गंथो वा निग्गंथी वा वेरज्ज - विरुद्धरज्जंसि सज्जं गमणं सज्जं आगमणं सज्जं गमणागमणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ 'वि अइक्कममाणे " आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ १. पडिबद्धाए सेज्जाए ( क, ख, ग, जी, शु) अग्रिमसूत्रेपि एवमेव । २. अविओसवित्ता अविओसविय (क, ग, जी अविओसवित्ता अविओसवियावाहुडे शु) ; ( ख ) । कप्पो ३. इच्छा ( ख ) 1 ४. वासावासासुं चरए ( ग ) । ५. चरए ( ग ) । ६. वीइक्कममाणे ( क, ख, ग, जी शु); विइक्कममाणे (पु) ; मलयगिरिणा 'द्विधापि तीर्थकृतां राज्ञश्च सम्बन्धिनीमाज्ञामतिक्रामन्' इति व्याख्यातम् । अस्याधारेण 'दुहओ वि अइक्कममाणे' इति पाठः सम्भाव्यते, अर्थमीमांसयापि एष संगच्छते । Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो ५६७ ओग्गह-पदं ३८. निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविठं केइ वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पाय-पुंछणेण वा उवनिमंतेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय आयरियपायमूले ठवेत्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए । ३६. निग्गंथं च णं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खंतं समाणं केइ वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पाय-पुंछणेण वा उवनिमंतेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय आयरियपायमले ठवेत्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए ॥ ४०. निग्गंथिं च णं गाहावइकलं पिंडवायपडियाए अणप्पविटठं 'केड वत्थेण वा पडि ग्गहेण वा कंबलेण वा पाय-पुछणेण वा उवनिमंतेज्जा, कप्पइ से' सागारकडं गहाय" पवत्तिणीपायमूले ठवेत्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए॥ ४१. निग्गंथि च णं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा 'निक्खंतं समाणिं केइ वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पाय-पुंछणेण वा उवनिमंतेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय पवत्तिणीपायमूले ठवेत्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता" परिहारं परिहरित्तए ।। राइभोयाण-पदं ४२. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'राओ वा वियाले वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा" पडिग्गाहेत्तए। 'नन्नत्थ एगेणं पुव्वपडिले हिएणं सेज्जा-संथारएणं॥ ४३. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा राओ वा वियाले वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पाय-पुंछणं वा पडिग्गाहेत्तए । नन्नत्थ एगाए हरियाहडियाए, सा वि य परिभुत्ता वा धोया वा रत्ता वा घट्ठा वा मट्ठा वा संपधूमिया वा ।। अद्वाण-पदं ४४. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा राओ वा वियाले वा अद्धाणगमणं एत्तए॥ १. अर्धमागध्यां स्त्रीलिङगेपि तच्छब्दस्य षष्ठी- विभक्तेरेकवचनं 'से' इति जायते । २. तं चेव सव्वं नवरं (क, ख, ग)। ३. जाव (क, ख, ग)। ४. असणं वा ४ राओ वा वियाले वा (क: ख, ५. नन्नत्थेक्केणं सेज्जासंथारएणं पुव्वपडिलेहिएणं (क, ख, ग); वृत्तिकृता एतत् स्वतंत्रसूत्र स्वीकृतम् । अग्रिमसूत्रेपि एवमेव । ६. याइ (ख); याइं (जी, शु)। ७. परिहरित्ता (क, ख)। Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ कप्पो ___ संखडिं' वा संखडिपडियाए एत्तए॥ एगागिगमण-पवं ४५. नो कप्पइ निग्गंथस्स एगाणियस्स राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। कप्पइ से अप्पबिइयस्स वा अप्पतइयस्स वा राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ ४६. नो कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा । कप्पइ से अप्पबिइयाए वा अप्पतइयाए वा अप्पचउत्थीए वा राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहार भूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ आरियखेत्त-पदं ४७. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथोण वा पुरथिमेणं जाव अंग-मगहाओ एत्तए, दक्खि णणं जाव कोसंबीओ एत्तए, पच्चत्थिमेणं जाव थूणाविसयाओ एत्तए, उत्तरेणं जाव कुणालाविसयाओ एत्तए । एतावताव कप्पइ, एतावताव आरिए खेत्ते । नो से कप्पइ एत्तो बाहिं । तेण परं जत्थ नाणदसणचरित्ताई उस्मप्पंति । -त्ति बेमि॥ १. वृत्तिकृता एतत् पृथक्सूत्रत्वेन व्याख्यातम् ।। Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवस्सए बीज-पदं १. उवस्सयस्स अंतो वगडाए सालीणि वा वीहीणि वा मुग्गाणि वा मासाणि वा तिलाणि वा कुलत्थाणि वा गोहूमाणि वा जवाणि वा जवजवाणि वा 'उक्खिण्णाणि वा विक्खिण्णाणि" वा विइकिण्णाणि' वा विप्पकिण्णाणि वा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए । २. अह पुण एवं जाणेज्जा-नो उक्खिण्णाइं नो विक्खिण्णाइं नो विइकिण्णाइं नो विप्पकिण्णाई, रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिक डाणि वा कुलियाकडाणि' वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमंत-गिम्हासु वत्थए॥ ३. अह पुण एवं जाणेज्जा-नो रासिकडाइं नो पुजकडाइं नो भित्तिकडाइं नो कुलियाकडाई, कोट्ठाउत्ताणि वा पल्लाउत्ताणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा लित्ताणि' वा 'लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वासावासं वत्थए । उवस्सए वियड-पवं ४. उवस्सयस्स" अंतो वगडाए सुरावियडकुंभे वा सोवीरयवियडकुंभे वा उवनिक्खित्ते सिया, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए । हुरत्था य उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए', १. उक्खित्ताणि वा विक्खित्ताणि (पु, मवृ) ७. 'क, ख, ग' आदर्शेषु अस्य सूत्रस्य स्थाने उद____ अग्रिमसूत्रेपि एवमेव । __ कसूत्रमस्ति उदकसूत्रस्थाने च विकटसूत्र२. विइगिण्णाणि (जी, शु) । मस्ति । ३. कुलियकडाणि (क, ख, ग, जी, शु)। ८. अतोने 'ग', प्रतो तथा 'जी, शु' मुद्रित४. कुडिय (क); कुलिय (ग, जी, पु, शु)। पुस्तकयोः 'नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा ५. विलित्ताणि (क, ख, ग, जी, शु)। दुरायाओ वा वत्थए' इति पाठो विद्यते । परं ६. पिहियाणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि (क, नासौ अपेक्षितोस्ति, वृत्तावपि नास्ति व्याख, ग, पु, मत)। ख्यातः । Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० कप्पो जे तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसति', से संतरा छए वा परिहारे वा॥ उवस्सए उदग-पदं ५. उवस्सयस्स अंतो वगडाए सीओदगवियडकुंभे वा उसिणोदगवियडकुंभे वा उवनिक्खित्ते सिया, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए । हुरत्था य उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए', जे तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसति', से संतरा छए वा परिहारे वा॥ उवस्सए जोइ-पदं ६. उवस्सयस्स अंतो वगडाए सव्वराईए जोई झियाएज्जा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए । हुरत्था य उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए। जे तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसति से संतरा छए वा परिहारे वा ।। उवस्सए पईव-पदं ७. उवस्सयस्स अंतो वगडाए सव्वराईए पईवे दिप्पेज्जा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा अहालंदमवि वत्थए। हुरत्था य उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए। जे तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसति, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ उवस्सए असणाइ-पदं ८. उवस्सयस्स अंतो वगडाए पिंडए वा लोयए वा खीरं वा दहिं वा 'सप्पि वा नवणीए“ वा तेल्ले वा फाणियं वा पूर्व वा सक्कुली वा सिहरिणी' वा 'उक्खिण्णाणि वा विक्खिण्णाणि वा विइकिण्णाणि वा विप्पकिण्णाणि वा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए । ६. अह पुण एवं जाणेज्जा–नो उक्खिण्णाई वा विक्खिण्णाई वा विइकिण्णाई वा विपइण्णाई वा रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिकडाणि वा कुलियाकडाणि १. वसेज्जा (जी शु)। विद्यते-नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा २. अतोग्रे 'क, ख, ग, जी, शु' प्रतिषु एष पाठो दुरायाओ वा वत्थए। अग्रिमसूत्रेपि एवमेव । विद्यते-नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा ६. खीरे (क, ग)। दुरायाओ वा वत्थए। ७. दधी (क); दही (ग)। ३. वसेज्जा (क, ख, ग, जी, शु) । ८. नवणीए वा सप्पि (पु)। ४. हुरच्छा (पु); देसी भासाए कयं, जा बहिया ६. सिहिरिणी (क, ख, ग, जी, शु) । सा भवे हुरच्छा उ । (भाष्यगाथा ३४३१)। १०. उक्खित्ताणि वा विक्खित्ताणि (पु, मवृ)। ५. अतोने क, ख, ग, जी, शु' प्रतिषु एष पाठो Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ उद्देसो ५७१ वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा। कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा हेमंत-गिम्हासु वत्थए ॥ १०. अह पुण एवं जाणेज्जा-नो रासिकडाणि वा नो पुंजकडाणि वा नो भित्तिकडाणि वा नो कुलियाकडाणि वा कोट्ठाउत्ताणि वा पल्लाउत्ताणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा कुंभिउत्ताणि वा करभिउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा लित्ताणि' वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथोण वा वासावासं वत्थए । आगमणगिहादिसु वास-पदं ११. नो कप्पइ निग्गंथीण अहे आगमणगिहंसि वा वियडगिहंसि वा वसीमूलंसि वा रुक्खमूलंसि वा अब्भावगासियंसि वा वत्थए । १२. कप्पइ निग्गंथाणं अहे आगमण गिहंसि वा वियड गिहंसि वा वंसीमूलंसि वा रुक्ख मूलंसि वा अब्भावगासियंसि' वा वत्थए । सागारिय-पदं १३. एगे सागारिए पारिहारिए, दो' तिण्णि चत्तारि पंच सागारिया पारिहारिया, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसे निव्विसेज्जा ।। १४. नो' कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिंडं बहिया अनीहडं असंसट्ठ वा __ संसट्ठं वा पडिग्गा हित्तए । १५. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिडं बहिया नीहडं असंसट्ठ पडिग्गा हित्तए॥ १६. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिंडं बहिया नीहडं संसलैं पडिग्गा हित्तए । १७. 'नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिंडं बहिया नीहडं असंसलैं संसठं करेत्तए' जे खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा सागारियपिंडं बहिया नीहडं असंसठं संसठं करेइ करेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं ।। १८. सागारियस्स आहडिया सागारिएण पडिग्गाहिया, तम्हा दावए नो से कप्पइ १. विलित्ताणि (ग, जी पु, शु) । संसट्ठ पडिग्गाहेत्तए। नो कप्पइ निगंथाण २. अब्भावगासंसि (पु)। वा निग्गंथीण वा सागारियपिंडं बहिया अनी३. दोण्णि (ख, ग)। हडं असंसट्ठ पडिग्गाहेत्तए। ४. X (क, ख)। ६. X (पु); भाष्ये चूणौं मलयगिरिवृत्ती च ५. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, जी, शु' प्रतिषु द्वे एष पाठो नास्ति व्याख्यातः । सूत्र विद्यते, यथा--नो कप्पइ निग्गंथाण वा ७. पडिग्गाहिता (क, ख, ग, जी, शु)। निग्गंथीण वा सागारियपिंडं बहिया अनीहडं Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ कप्पो पडिग्गाहित्तए । १६. सागारियस्स आहडिया सागारिएण अपडिग्गाहिया', तम्हा दावए एवं से कप्पइ पडिग्गाहित्तए ॥ २०. सागारियस्स नीहडिया परेण अपडिग्गाहिया, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गा हित्तए॥ २१. सागारियस्स नीहडिया परेण पडिग्गाहिया, तम्हा दावए एवं से कप्पइ पडिग्गा हित्तए ॥ २२. सागारियस्स अंसियाओ अविभत्ताओ अव्वोच्छिन्नाओ अव्वोगडाओ अनिज्जूढाओ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गा हित्तए । २३. सागारियस्स अंसियाओ विभत्ताओ वोच्छिन्नाओ वोगडाओ निज्जूढाओ, तम्हा दावए एवं से कप्पइ पडिग्गाहित्तए । २४ सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तं सागारिओ देइ सागारियस्स परिजणो देइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहित्तए ॥ २५. सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसठे पाडिहारिए, तं नो सागारिओ देइ नो सागारियस्स परिजणो देइ सागारियस्स पूया देइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहित्तए । २६. सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसठे अपाडिहारिए, तं सागारिओ देइ सागारियस्स परिजणो देइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहित्तए॥ २७. सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तं नो सागारिओ देइ, नो सागारियस्स परिजणो देइ सागारियस्स पूया देइ तम्हा दावए एवं से कप्पइ पडिग्गाहित्तए । वत्थ-पदं २८. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'इमाइं पंच" वत्थाइं धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा-जंगिए, भंगिए, साणए 'पोत्तए तिरीडपट्टे" नाम पंचमे ॥ रयहरण-पदं २६. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाइं पंच रयहरणाई धारित्तए वा परिह१. मपडिग्गाहित्ता (जी, शु)। ३. पंचिमाणि (क, ख, ग)। २. देज्जा (ग, पु); दद्यात् (मवृ)। ४. पोत्तिए तिरीडपट्टए (ठाणं ५।१६०)। Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ उद्देसो ५७३ रित्तए वा, तं जहा–'उण्णिए उट्टिए साणए 'वच्चापिच्चिए मुंजापिच्चिए' नाम पंचमे । -त्ति बेमि ॥ १. ओण्णिए ओट्ठिए (ख, जी, शु)। २. वच्चविप्पए मुंजविप्प (क); वप्पाए विप्पए मुंजविप्पए (ख); विप्पा विप्पए मुंजविप्पिए (ग); बब्बापिच्चिए मुंजपिच्चिए (जी, शु); वच्चाचिप्पए मुंचाचिप्पए (पु, मवृ); पच्चा पिच्चिए मुंजापिच्चिए (ठाणं ५।१९१); स्थानाङगे (५११६१) 'वच्चा' स्थाने 'पच्चा' इति पाठो गृहीतोस्ति । निशीथचूणौं 'पिच्चियचिप्पिय' शब्दयोरेकार्थत्वं प्रदर्शिनमस्तिनिशीथ भाष्य, गाथा ८२०, चूणि । Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ उद्देसो निग्गंथिउवस्सय-पदं १. नो कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीणं उवस्सयंसि' चिट्टित्तए वा निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा निदाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारमाहारेत्तए, उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिंघाणं वा परिद्ववेत्तए, सज्झायं वा करेत्तए, झाणं वा झाइत्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं' ठाइत्तए॥ निग्गंथउवस्सय-पदं २. नो कप्पइ निग्गंथीणं 'निग्गंथाणं उवस्सयंसि" चिट्ठित्तए वा जाव काउस्सगं वा ठाणं ठाइत्तए॥ चम्म-पदं ३. नो कप्पइ निग्गंथीणं सलोमाइं चम्माइं अहिद्वित्तए॥ ४. कप्पइ निग्गंथाणं सलोमाइं चम्माइं अहिद्वित्तए' से वि य परिभत्ते नो चेव णं __ अपरिभुत्ते, पाडिहारिए नो चेव णं अपाडिहारिए, से वि य एगराइए नो चेव णं अणेगराइए। ५. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा कसिणाई चम्माइं धारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ ६. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अकसिणाई चम्माइं धारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ शु)। ५. धारेत्तए वा परिहरित्तए वा (क, ख, जी, १. उवस्सए आसइत्तए वा (क, ख, जी, शु); उवस्सए (ग); विशेषचूणों 'आसइत्तए वा' इति पाठो विद्यते । २. ठाणं वा (ग, जी, शु)। ३. निग्गंथउवस्सयंसि (पु, मवृ)। ४. धारेत्तए वा परिहरित्तए वा (क, ख, जी, ६. याइं (क, ख, जी, शु) सर्वत्र । ७. पडिहारिए (ख, जी, पु, शु) । ८. अपडिहारिए (ख, जी, पु, शु) । Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो ५७५ बत्य-पद ७. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा कसिणाई वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ ८. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अकसिणाई वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ ६. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अभिन्नाइं वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ १०. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा भिन्नाई वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ उग्गहवत्थ-पदं ११. नो कप्पइ निग्गंथाण उग्गहणंतगं' वा उग्गहपट्टगं' वा धारित्तए वा परिहरित्तए वा ।। १२. कप्पइ निग्गंथीणं उग्गहणंतगं वा उग्गहपट्टगं वा धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ वस्थग्गहण-पवं १३. निग्गंथीए य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठाए चेलठे समुप्पज्जेज्जा, नो से कप्पइ अप्पणो नीसाए चेलं पडिग्गाहित्तए, कप्पइ से पवत्तिणीनीसाए चेलं पडिग्गाहित्तए॥ 'नो तत्थ" पवत्तिणी सामाणा सिया, जे तत्थ सामाणे आयरिए वा उवज्झाए वा पवत्ती वा थेरे वा गणी वा गणहरे वा गणावच्छेइए वा, 'जं चण्णं पुरओ कटु विहरइ" कप्पइ से तन्नीसाए चेलं पडिग्गाहित्तए । १४. निग्गंथस्स तप्पढमयाए संपव्वयमाणस्स कप्पइ रयहरण-'गोच्छग-पडिग्गह मायाए“ तिहिं कसिणेहि वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए । से य पुवोवट्ठविए सिया, एवं से नो कप्पइ रयहरण-गोच्छग-पडिग्गहमायाए तिहिं कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए, कप्पइ से अहापरिग्गहियाई वत्थाई गहाय आयाए संपव्वइत्तए । १५. निग्गंथीए णं तप्पढमयाए संपव्वयमाणीए कप्पइ रयहरण-गोच्छग-पडिग्गहमायाए चरहिं कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए। सा य पुव्वोवट्ठविया सिया, एवं से नो कप्पइ रयहरण-गोच्छग-पडिग्गहमायाए चउहिं कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए १. 'अवग्रहानन्तकं वा' गुह्यदेशपिधानवस्त्रम् 'अव- ५. x (ख, जी, शु)। ग्रहपट्टकं वा' तस्यवाच्छादकपट्टम् (मवृ)। ६. तेसिं नीसाए (ख)। २. ओग्गहणपट्टगं (क, ख, जी, शु)। ७. निग्गंथस्स य (क, ग); निग्गंथस्स णं (जी, ३. नो य से तत्थ (क): नो यत्थ (ख); नो शु)। जत्थ (जी, शु)। ८. पडिग्गहगोच्छगमायाए (क, ख, जी, शु)। ४. समाणी (ग, जी, शु); सामाणा-सन्निहिता ६. तिहि य (क, जी, शु)। (म)। Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ संपव्वत्तए, कप्पर से अहापरिग्गहियाई वत्थाई गहाय आयाए संपव्वइत्तए । १६. नो कप्पइ' निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पढमसमोस रणुद्दे सपत्ताई चेलाई ' डिग्गा हित्तए || १७. कप्पइ निग्गंथाण डिग्गाहित्तए || वा निग्गंथीण वा दोच्चसमोस रणुद्दे सपत्ताई चेलाई अहाराइणियं वत्थादि-पदं १८. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहाराइणियाए' चेलाई पडिग्गा हित्तए । १६. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहाराइणियाए सेज्जा - संथारए पडिग्गाहि तए ॥ २०. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहाराइणियाए किइकम्मं करेत्तए । अंतर गिह-पर्व २१. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अंतर गिहंसि चिट्ठित्तए' वा निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा निद्दाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारमाहारेत्तए, उच्चारं वा पासवणं व खेलं वा सिंघाणं वा परिद्ववेत्ता, सज्झायं वा करेत्तए, झाणं वा भाइत्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं ठाइत्तए । २२. अह पुण एवं जाणेज्जा - ' वाहिए जराजुण्णे तवस्सी दुब्बले किलंते " मुच्छेज्ज वा पवडेज्ज वा, एवं से कप्पइ अंतरगिहंसि चिट्ठित्तए वा जाव काउस्सग्गं वा ठाणं ठाइत्तए | कप्पो २३. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अंतरगिहंसि जाव चउगाहं वा पंचगाहं वा आइक्खित्तए वा विभावेत्तए वा किट्टित्तए वा पवेइत्तए वा । नण्णत्थ एगणाएण वा एगवागरणेण वा एगंगाहाए वा एगसिलोएण वा । सेवि य ठिच्चा, नो चेवणं अट्ठिच्चा ॥ २४. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अंतरगिहंसि इमाई पंच महव्वयाई सभा - वणाई आइक्खित्तए वा" "विभावेत्तए वा किट्टित्तए वा° पवेइत्तए वा । नत्थ एगणाएण वा' "एगवागरणेण वा एगगाहाए वा एगसिलोएण वा । सेविय ठिच्चा, नो चेव णं अठिच्चा ॥ १. 'कम्प' त्ति आर्षत्वादेकवचनम् (मवृ) | २. चीवराई (क, ख, ग ) । ३. आहा (क, जी, शु) । ४. संथारयं (क, ख, ग, जी, शु) । ५. आसइत्तए वा जाव तुय (क, ख ) ; चिट्ठितए वा आसइत्तए ( ग ) ; आसइत्तए वा चिट्ठित्तए ( जी, शु) । ६. वाहिए थेरे तबस्सीए दुब्बले किलंते जराजुष्णे जज्जरिए ( ग ) ; जराजुण्णे वाहिए तवस्सी' (जी, शु) । ७. सं० पा० - आइक्खित्तए वा जाव पवेइत्तए । ८. सं० पा० -- एगणाएण वा जाव एगसिलोएण । Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइबो उद्देसो ५७७ सेज्जा-संथारय-पदं २५. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं' सेज्जा-संथारयं आयाए अप्प डिहट्ट संपव्वइत्तए ॥ २६. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं सेज्जा-संथारयं आयाए अविकरणं' कटु संपव्वइत्तए' ।। २७. इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारिए वा सागारियसंतिए वा सेज्जा संथारए विप्पणसेज्जा', से य अणुगवेसियव्वे सिया। से य अणुगवेस्समाणे लभेज्जा, तस्सेव पडिदायव्वे सिया। से य अणुगवेस्समाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पइ दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्ण वित्ता परिहारं परिहरित्तए । ओग्गह-पदं २८. जद्दिवसं समणा निग्गंथा सेज्जा-संथारयं विप्पजहंति, तद्दिवसं' अवरे समणा निग्गंथा हव्वमागच्छेज्जा, सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ-अहालंदमवि ओग्गहे" ।। २६. अत्थि या इत्थ केइ उवस्सयपरियावन्ने अचित्ते परिहरणारिहे, सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणु ण्णवणा चिट्ठइ-अहालंदमवि ओग्गहे ॥ ३०. से वत्थूसु अव्वावडेसु अव्वोगडेसु अपरपरिग्गहिएसु अमरपरिग्गहिएसु सच्चेव __ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ-अहालंदमवि ओग्गहे ॥ ३१. से वत्थूसु वावडेसु वोगडेसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे ___ अणुण्णवेयव्वे सिया-अहालंदमवि ओग्गहे ।। ३२. से अणुकुड्डेसु वा अणु भित्तीसु वा अणुचरियासु वा अणुफरिहासु वा अणुपंथेसु वा अणुमेरासु वा सच्चेव ओग्गहस्स पुदाणुण्णवणा चिट्ठइ-अहालंदम वि ओग्गहे ।। सेणा-पदं ३३. से 'गामस्स वा जाव रायहाणीए" वा बहिया सेणं सन्निविट्ठं पेहाए कप्पइ १. पडिहारियं (क, जी, शु)। त्रापि। २. अहिगरणं (ग, जी, शु) । ७. अणुप्पदायव्वे (क, ख, ग, जी, शु)। ३. अतोने 'क, ख,' प्रत्योः ' व' पन्योः , 'जी, शु' पुस्तकयोः 'जी. श' पस्तकयोः ८. ओगिण्डित्ता (क, ख, जी. श)। निम्ननिर्दिष्टं सूत्रं दश्यते-कप्पइ निग्गंथाण ६. जद्दिवसं च णं (क, ख, जी, शू): जंदिवसं वा निग्गंथीण वा पडिहारियं वा सागारिय- च णं (ग)। संतियं वा सेज्जासंथारयं आयाए विकरणं १०. तद्दिवसं च णं (क, ख, जी, शु); तं दिवसं कटु संपव्वइत्तए । निर्युक्तौ भाष्ये चूणों वृत्तौ च णं (ग)। च नास्ति व्याख्यातमिदम् ।। ११. उग्गहे (क, ख, ग)। ४. पडिहारिए (जी, शु)। १२. कप्पो ११६ । ५. परिभठे सिया (क, ख, ग, जी, शु)। १३. गामंसि वा जाव संनिवेसंसि (क, ख, ग, जी, ६. अणुगवेसमाणे (क, ख, ग, जी, शु) उभय- शु)। Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ कप्पो निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तद्दिवसं भिक्खायरियाए गंतूणं' पडिएत्तए नो से कप्पइ तं रयणि तत्थेव उवाइणावेत्तए । जे खल निग्गंथे वा निग्गंथी वा तं रयणि तत्थेव 'उवाइणावेइ, उवाइणावेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ 'वि अइक्कममाणे" आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ३४. से गामंसि वा जाव' सन्निवेसंसि वा कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं ओग्गहं ओगिण्हित्ताणं चिट्ठित्तए' परिहरित्तए। –त्ति बेमि ।। १. गंतुं (ख, ग, पु)। २. पडिनियत्तए (क, ख, ग, जी, शु) । ३. उवाइणाइ उवातिणतं (पु)। ४. वीइक्कममाणे (क, ख, ग, जी, शु)। ५. कप्पो १६ । ६. परिहारं परिहरित्तए (क, ख, जी, शु); चिट्ठित्तए परिहारं परिहरित्तए (ग)। Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो पायच्छित पदं १. तओ' अणुग्घाइया' पण्णत्ता, तं जहा - 'हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवमाणे " राईभोयणं भुजमाणे । २. तओ पारंचिया पण्णत्ता, तं जहा दुट्ठे पारंचिए, पमत्ते पारंचिए, अण्णमण्णं करेमाणे पारंचिए ॥ ३. तओ अणवटुप्पा पण्णत्ता, तं जहा - साहम्मियाणं तेणियं करेमाणे, अण्णधम्मियाणं तेणियं करेमाणे, हत्थादाल' दलमाणे ॥ पव्वज्जादि - अजोग्ग-पदं ४. तओ नो कप्पंति पव्वावेत्तए, तं जहा - पंडए वाइए कीवे । ५. "तओ नो कप्पंति मुंडावेत्तए सिक्खावेत्तए उवट्ठावेत्तए संभुंजित्तए संवासित्तल, • तं जहा - पंडए वाइए कीवे ॥ अवायणिज्ज-वाय णिज्ज-पदं ६. तओ नो कप्पंति वाइत्तए, तं जहा - अविणीए विगईपडिबद्धे अविओसवियपाहुडे ॥ ७. तओ कप्पंति वाइत्तए, तं जहा - विणीए नो विगईपडिबद्धे विओस वियपाहुडे || दुसण्णप्प - सुसण्णप्प-पर्व ८. तओ दुसण्णप्पा' पण्णत्ता, तं जहा दुट्ठे मूढे बुग्गाहिए || १. अतः नवसङख्याङ्कानां सूत्राणां तुलनायें द्रष्टव्यं ठाणं ३।४७१-४७६ । २. अणुघातिमा ( ठाणं ३ | ४७१ ) । ३. मेहुणं पडिसेवमाणे हत्थकम्मं करेमाणे (क, ख) ; हत्थकम्मं करेमाणे मेहुणं सेवमाणे ( ग ) । ४. तेण्णं (जी, पु, शु) उभयत्रापि । ५. परधम्मियाणं (क, ग ) । ६. हत्थतालं ( क ग ) ; हत्थायालं (जी, शु ) ; सूत्रेच तकारस्य दकारश्रुतिरार्षत्वात् ( मवृ ) ; मलयगिरिवृत्तौ पाठान्तरद्वयं सूचितमस्ति - अथवा ' हत्थालंब' ति पाठः, यद्वा 'अत्थादाणं दलमाणे' त्ति पाठः । हत्थातालं ( ठाणं ३।४७३) । ७. सं० पा० - एवं | ८. संवत्तिए (क, ख, ग, जी, शु) । ६. दुस्सण्णप्पा ( क, ख, जी, पु, शु) । ५७६ Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८. कप्पो ६. तओ सुसण्णप्पा' पण्णत्ता, तं जहा-अदुढे अमूढे अवुग्गाहिए। गिलायमाण-पदं १०. निग्गंथिं' च णं गिलायमाणि 'पिया वा भाया वा पुत्तो वा पलिस्सएज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा मेहुणपडिसेवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणग्घाइयं ॥ ११. निग्गंथं च णं गिलायमाणं 'माया वा भगिणी वा धूया" वा पलिस्सएज्जा, तं च निग्गथे साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणग्घाइयं ॥ कालातिक्कंत-भोयण-पदं १२. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पढमाए पोरिसीए पडिग्गाहित्ता पच्छिमं" पोरिसि उवाइणावेत्तए । से य आहच्च उवाइणाविए सिया, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा नो अण्णेसिं अणप्पदेज्जा, एगते २ बहुफासुए थंडिले पडिले हित्ता पमज्जित्ता परिट्टवेयव्वे सिया। तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णे सिं वा दलमाणे" आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ।। खेत्तातिक्कंत-भोयण-पदं १३. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पर अद्धजोयणमेराए उवाइणावेत्तए । से य आहच्च उवाइणाविए सिया, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा नो अण्णेसि अणुप्पदेज्जा, एगते" बहुफासुए थंडिले पडिले हित्ता पमज्जित्ता परिट्टवेयव्वे सिया। तं अप्पणा भुजमाणे अण्णेसि वा दलमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥ । अणेसणिज्ज-पाण-भोयण-पदं १४. निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविठेणं अण्णयरे अचित्ते अणे सणिज्जे पाण-भोयणे पडिग्गाहिए सिया, अत्थि या इत्थ केइ सेहतराए अणुवट्ठावियए, कप्पड़ से तस्स दाउं वा" अणुप्पदाउं वा। नत्थि या इत्थ केइ सेहतराए १. सुस्सण्णप्पा (क, ख, जी, पु, शु) । २. 'क, ग' आदर्शयोः निर्ग्रन्थसूत्रं पूर्व तदनन्तरं ' आटोयो निर्यन्थसत्रं पर्व तदनन्तरं __ च निर्ग्रन्थीसूत्रं विद्यते । ३. माया वा भगिणी वा ध्या (ख, जी, शु)। ४. निग्गंथे (ख, जी, शु)। ५. साइज्जति (क, ख, ग)। ६. पत्ते (क, ख, जी, शु)। ७. पिया वा भाया वा पुत्ते (ख, जी, शु) । ८. निग्गंथी (ख, जी, शु)। . पत्ता (ख, जी, श)। १०. पोरुसीए (क, जी, शु)। ११. चउत्थि (क, ख); चउत्थं (ग)। १२. एगंतमंते (क, ख, ग)। १३. अणुप्पदेमाणे (क, ख, ग, जी, शु) । १४. एगंतमंते (क, ख, ग)। १५. X (पु, मवृ)। Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यो उद्देस ५८ १ अणुवट्ठावियए, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा तो अण्णेसि दावए' एगंते बहुफासुए थंडिले' पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयव्वे सिया ॥ कपट्ठिय- अकपट्ठिय-पदं १५. जे कडे कपट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं, नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं । जे क े अपट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं । कप्पे ठिया पट्टिया, अकप्पे ठिया अकप्पट्टिया || अण्णगण उवसंपदा-पदं १६. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्ति वा थेरं वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य से वियरेज्जा', एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; तेय से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । १७. गणावच्छेइए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; " कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंग ज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य सेवियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । १८. आयरिय उवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नो कप्पइ आयरिय उवज्झायस्स आयरिय उवज्झायत्तं अनिक्खि १. अणुप्पदेज्जा ( क, ख, ग, जी, शु) । २. पसे (पु, मवृ ) । ३. अस्य सूत्रस्य स्थाने प्रयुक्तादर्शेषु विभिन्ना: पाठा लभ्यन्ते, यथा— जे कडे कप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं । जे कडे अप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कम्पट्ठियाणं कप्पर से अकप्पट्ठियाणं, कप्पे दिया कप्पट्ठिया अकप्पे ट्टिया अकपट्टिया (क, ग ); जे कडे कपट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, कप्पइ से अकपट्ठियाणं । जे कडे अकप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं । जे कडे अकप्पट्ठियाणं पति से अपट्ठियाणं कप्पट्टिया वि कप्पे ट्टिया कपट्टिया अकप्पे ट्ठिया वि कप्पे ट्ठिया ( ख ) ; जे कडे कप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, जे कडे कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकपट्टियाणं, जे कडे अकप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, जे कडे अकप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं कप्पट्टिया वि कप्पे ठिया कपट्टिया अप्पे ठिया अकप्पट्ठिया ( जी, शु) । ४. अणापुच्छित्ताणं ( क, ख ) । ५. वियरंति ( क, ख, जी, शु) सर्वत्रापि । ६. × (पु) । Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ कप्पो वित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए,' कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स आयरिय-उवझायत्तं निक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जिताणं विहरित्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ १६. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । जत्थत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए॥ गणावच्छइए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंगज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पद अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। जत्थुत्तरियं धम्म विणयं लभेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जि त्ताणं विहरित्तए । २१. आयरिय-उवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो कप्पइ 'आयरिय-उवज्झायस्स" आयरिय१. ४ (पु)। ४. नो से (पु)। २. नो से (पु)। ५. x (पु)। ३. x (पु)। Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए; कपइ आयरिय-उवज्झायस्स आयरिय उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता अण्णं गणं संभोगपडिया उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्प से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए; ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । २२. भिक्खू इच्छेज्जा अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, कप्पर से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं आयरियउवज्झायं उद्दिसावेत्तए; ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए । नो से कप्पइ तेसि कारणं अदीवेत्ता अण्णं आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, कप्पइ से तेसिं कारणं दीवेत्ता अण्णं आयरियउवज्झायं उद्दिसावेत्तए ॥ २३. गणावच्छेइए य इज्छेज्जा अण्णं आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, 'नो से" कप्पइ गावच्छेत्तं' अणिक्खिवित्ता अण्णं आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, कप्पइ से गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अण्णं आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेत्तए " । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरियउवज्झायं उद्दिसावेत्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं अणं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए । ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्ण आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, 'ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अणं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए" । नो से कप्पइ तेसिं कारणं अदीवेत्ता अणं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, कप्पर से तेसिं कारणं दीवेत्ता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए । २४. आयरिय-उवज्झाए य इच्छेज्जा अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, 'नो से कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्तं अणिक्खिवित्ता अण्णं आयरिय उवज्झायं उद्दिसावेतर, कप्पइ से आयरिय उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दि १. x ( ग ) । २. गणावच्छेइयस्स ( ग ) । ५८३ ३. x (क, ख, जी, शु) । ४. x (ग, पु) । Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ कप्पो सावेत्तए । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए। ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए । नो से कप्पइ तेसि कारणं अदीवेत्ता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए; कप्पइ से तेसिं कारणं दीवेत्ता अण्णं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए । वीसुभवण-पदं २५. भिक्ख य राओ वा वियाले वा आहच्च वीसुंभेज्जा, तं च सरीरगं केइ वेया वच्चकरे' इच्छेज्जा एगंते बहुफासुए पएसे परिवेत्तए, अत्थि या इत्थ केइ सागारियसंतिए उवगरणजाए अचित्ते परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारियकर्ड गहाय तं सरीरगं एगते बहुफासुए पएसे परिद्ववेत्ता तत्थेव उवनिक्खि वियव्वे सिया॥ अहिगरण-पदं २६. भिक्ख य अहिगरणं कट्ट तं अहिगरणं अविओसवेत्ता नो से कप्पइ गाहाव इकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा, गामाणुगामं वा दुइज्जित्तए, 'गणाओ वा गणं संकमित्तए, वासावासं वा वत्थए । जत्थेव अप्पणो आयरिय-उवज्झायं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतिए 'आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा अकरणयाए अब्भठेज्जा'' अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा। से य सुएण पट्टविए आइयव्वे सिया, से य सुएण नो पट्टविए नो आइयव्वे सिया। से य सुएण पट्टविज्जमाणे नो आइयइ, से निज्जूहियव्वे सिया । परिहारकप्पट्टिय-पदं २७. परिहारकप्पट्टियस्स णं भिक्खस्स कप्पइ 'आय रिय-उवज्झाएणं तद्दिवसं एगगि हंसि पिंडवायं दवावेत्तए, तेण परं नो से कप्पइ असणं वा पाणं वा खाइमं वा १. ४ (क, ख, जी, शु)। २. x (क, ख, ग, जी, शु)। ३. करा (क, जी, शु)। ४. थंडिले (जी, शु) । उभयत्रापि । ५. सागारकडं (क, ख, जी, श); सागारिकर्ड (पु)। ६. ४ (ख ग, जी, शु)। ७. आलोएत्तए पडिक्कमित्तए निदित्तए गरहित्तए विउट्टित्तए विसोहित्तए अकरणयाए अब्भु द्वित्तए (क, ख, ग, जी, शु) । ८. x (जी, शु)। ६. पडिवज्जित्तए (क, ख, ग, जी, शु) । १०. ४ (ख, जी, शु)। ११. तं दिवसं (ग)। Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो ५८५ साइमं वा दाउ वा अणुप्पदाउं वा । कप्पइ से अण्णयरं वेयावडियं करेत्तए, तं जहा - उट्ठावणं वा निसीयावणं वा तुयट्टावणं वा उच्चार- पासवण - खेल - सिंघाणविचिणं वा विसोहणं वा करेत्तए । २८. अह पुण एवं जाणेज्जा - छिन्नावाएसु पंथेसु 'आउरे भिभिए पिवासिए" तवस्सी दुब्बले किलंते मुच्छेज्ज वा पवडेज्ज वा, एवं से कप्पइ असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा दाउ वा अणुप्पदाडं वा ॥ महानदी -पदं २६. नो' कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाओ पंच महण्णवाओ' महानईओ उट्ठाओ गणियाओ वंजियाओ' अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्त वा संत्तरितए वा, तं जहा - गंगा जउणा सरयू कोसिया मही ॥ ३०. अह पुण एवं जाणेज्जा - एरावई' कुणालाए जत्थ चक्किया एगं पायं जले किच्चा एगं पाय थले किच्चा एवण्हं कप्पइ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरत्त वा संतरितए वा । जत्थ एवं नो चक्किया, एवण्हं नो कप्पइ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुतो वा उत्तरित्तए वा संतरितए वा ॥ उवस्सय-पदं ३१. से तणेसु वा तणपुंजेसु वा पलालेसु वा पलालपुंजेसु वा अप्पंडेसु अप्पपासु अपीएस अप्पहरिए अप्पुस्सेस' अप्पुत्तिग-पणग-दगमट्टिय - मक्कडा " - संताणएसु अहेसवणमायाए नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए हेमंतगम्हासु are || ३२. से तणेसु वा " "तणपुंजेसु वा पलालेसु वा पलालपुंजेसु वा अप्पंडेसु अप्पपासु अपarry अप्पहरिएस अप्पुस्सेसु अप्पुत्तिंग पणग-दगमट्टिय-मक्कडा-संतान सु उप्पिसवणमायाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए हेमंतगम्हासु वत्थए || १. वा अणुट्टावणं वा (जी, शु) । २. खेल जल (जी, शु) । ३. x ( जी, शु ) । ४. तुलना-ठाणं ५। ६८ । ५. X ( जी, शु ) । ६. विवेजियाओ (क, ख, ग ); वियंजियाओ ( ठाणं ५६८ ) । ७. स्थानाङ्ग (५।६८) 'कोसिया' पदस्य स्थाने ' एरावती' इति पदं दृश्यते । प्रस्तुत सूत्रे ' एरा वती' महानदीत्वेन न परिगणितास्ति, अतएव अग्रिमसूत्रस्य विधानमस्ति वृत्तिकृतापि एवं स्पष्टीकृतम् - यत् पूर्वसूत्रोक्त महानदीषु मासान्तद्व त्रीन् वा वारान् उत्तरीतुं न कल्पते, अस्यां तु कल्पते (मवृ) | ८. एरवई (क, जी, शु ) । ९. अप्पोस्सेसु ( ख, ग, जी, शु) । १०. मट्टिया (जी, शु) । ११. मक्कडग ( g ) । १२. सं० पा० तणेसु वा जाव संताणएसु । Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ कप्पत्तं ३३. सेतणेसु वा' 'तणपुंजेसु वा पलालेसु वा पलालपुंजेसु वा अप्पंडेसु अप्पपासु अप्पबीएस अप्पहरिएसु अप्पुस्सेसु अप्पुत्तिंग- पणग-दगमट्टिय-मक्कडा - संताणएसु अहेरयणिमुक्कमउडे नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए वासावासं वत्थए । ३४. से तणेसु वा' 'तणपुंजेसु वा पलालेसु वा पलालपुंजेसु वा अप्पंडेसु अप्पपासु अपीएस अप्पहरिएसु अप्पुस्सेसु अप्पुत्तिंग पणग-दगमट्टिय-मक्कडा - संतान सु उप्परयणिमुक्कम उडे कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहपगारे उवस्सए वासावासं वत्थए । -त्ति बेमि ॥ १२. सं० पा० तणेसु वा जाव संताणएसु । Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्दा मेहुणप डिसेवणा-पदं १. देवे' य इथिरूवं विउव्वित्ता निग्गंथं पडिग्गा हेज्जा, तं च निग्गंथे साइज्जेज्जा, मेहुणपडवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ २. देवी य इत्थवं विउव्वित्ता निग्गंथं पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथे साइज्जेज्जा, मेहुणपडि सेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ३. देवी य पुरिसरूवं विउव्वित्ता निग्गंथि पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, विपत्ता आवज्जइ चाउम्मा सिय' अणुग्घाइयं ॥ ४. देवे य पुरिसरूवं विउव्वित्ता निग्गंथि पडिग्गाहेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, मेहुणपडवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मासियं अणुग्धाइयं ॥ अहिगरण-पदं ५. भिक्खू य अहिगरणं कट्टु तं अहिगरणं अविओसवेत्ता इच्छेज्जा अण्णं गण उवसंगज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ तस्स पंच राइदियं छेयं कट्टु - परिणिaafar-परिणिव्वयि दोच्चं पि तमेव गणं पडिनिज्जाएयव्वे सिया, जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया ॥ १. 'क, ख ग', संकेतितादर्शेषु 'जी, शु' मुद्रितपुस्तकयोः पूर्वं देवसूत्रद्वयं ततश्च देवीसूत्रद्वयं विद्यते, किन्तु भाष्ये पूर्वं निर्ग्रन्थसम्बन्धिदेवदेवीसूत्रद्वयं विद्यते, यथा- देवे य इथिरूवं, काउं गिण्हे तहेव देवी य । दोसु वि य परिणयाणं, चाउम्मासा भवे गुरुगा (५६८८ ) । तदनन्तरं च निर्ग्रन्थीसम्बन्धिदेवीदेवसूत्रद्वयं विद्यते यथा एसेव गमो नियमा, निग्गंथीणं पि होइ नायव्वो नवरं पुण णाणत्तं, पुव्वं इत्थी ततो पुरिसो (५७२१) । २. चाउम्मासयं परिहारद्वाणं (ग, जी, शु ) ; निर्ग्रन्थीसूत्रद्वये 'परिहारद्वाणं' इति पदं नोक्तं तस्य कारणमिदम्, यद् निर्ग्रन्थीनां परिहारतपो न भवति, किन्तु शुद्धतप एव इति प्रबोधार्थम् । ३. इंदियाई (क, ख, ग, जी, शु ) । ५८७ Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ राईमायण-पदं ६. भिक्खू य उग्गयवित्तीए' अणत्थमियसंकप्पे संथडिए निव्वितिगिच्छे' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जाअणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्ग* तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा 'नो अइक्कमइ", तं अप्पणा भुजमा असि वा 'दलमाणे राईभोयणपडि सेवणपत्ते " 'आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारअयं ॥ ७. भिक्खु य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे संथडिए वितिगिच्छासमावन्ने असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा - अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहे तं विगिँचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कम, तं अप्पणा भुजमाणे असि वा दलमाणे राईभोयणपडि सेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मा सियं परिहारद्वाणं अणुइयं ॥ ८. भिक्ख य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे असंथडिए निव्वितिगिच्छे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जाagree सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहे तं विगिमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसि वा दलमाणे राईभोयणपडि सेवणपत्ते आवज्जइ चाउमा सियं परिहारट्ठाणं अणुग्घइयं ॥ ६. भिक्खु य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसं कप्पे असंथडिए वितिगिच्छासमावन्ने असणं गुरुकम् । ३. चतुर्गुरुकम् । ४. आपद्यते चातुमासिकं परिहारस्थानमनुद्धातिकम् । निर्युक्तिकृता गुरुलघुप्रायश्चित्तभेदः सङ्कितासङ्कितयोराधारेण कृत:, यथा- संथ संथडे या, निव्वितिगिच्छे तहेव वितिगिच्छे । काले दव्वे भावे, पच्छित्ते मग्गणा होइ ॥ अणुग्गयमणसंकप्पे, गवेसणे गहण भुंजणे गुरुगा । अह संकियम्मि भुंजति, दोहि वि लहु उग्गते सुद्धो (५७८५, ५७८६) आदर्शेषु सूत्रचतुष्टयेपि 'परिहारट्ठाण' इति पदं दृश्यते । निर्युक्तिवृत्तिकृतोः सम्मुखे उपलब्धपाठात् भिन्नपाठः आसीत् इति ज्ञायते । १. उग्गयमुत्तीए ( मवृ ) | २. निव्वितिगिछा (क, ख, ग ); निव्वितिगिछे (पु) 1 ३. आसयसि ( क, ख, ग ) 1 ४. डिग्गहियंसि (क, ग ), पडिग्गहगंसि ( ख ) ; डिग्गहए (पु) । ५. नाइक्कमइ (क, ख, ग, जी, शु) सर्वत्र सूत्रचतुष्टयेपि । ६. अणुप्पदेमाणे राईभोयणपडिसेवणपत्ते ( क ) ; अणुप्पमाणे (ख. जी, शु) सर्वत्र सूत्रचतुष्टयेपि । कप्पो ७. मलयगिरिणा प्रथम चतुर्थ सूत्रयोः परिहारस्थानं इति व्याख्यातम्, द्वितीय- तृतीयसूत्रयोरेतत् पदं नैव व्याख्यातम् - १. आपद्यते चातुर्मासिकं परिहारस्थानमनुद्धातिकम् । २. चतु Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ५८६ वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा-अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसि वा दलमाणे राईभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ उम्गाल-प १०. इह खलु निग्गंथस्स वा निग्गंथीए वा राओ वा वियाले वा सपाणे सभोयणे उग्गाले आगच्छेज्जा, तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ । तं उग्गिलित्ता पच्चोगिलमाणे राईभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मा सियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ आहारविहि-पदं ११. निग्गंथस्स य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स अंतोपडिग्गहंसि 'पाणे वा बीए" वा रए वा परियावज्जेज्जा, तं च संचाएइ विगिचित्तए वा विसोहेत्तए वा 'तं पुवामेव लाइया विसोहिया-विसोहिया" ततो संजयामेव भुजेज्ज वा पिबेज्ज वा । तं च नो संचाएइ विगिचित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा नो अण्णेसिं दावए' एगंते बहुफासुए पएसे पडिले हित्ता पमज्जित्ता परि? वेयव्वे सिया॥ पाणगविहि-पदं १२. निग्गंथस्स य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स अंतोपडिग्गहंसि दए वा दगरए वा दगफुसिए वा परियावज्जेज्जा, से य उसिणे भोयणजाए भोत्तव्वे सिया, से य सीए भोयणजाए तं नो अप्पणा भुजेज्जा नो अण्णेसि दावए, एगते बहुफासुए पएसे 'पडिलेहित्ता पमज्जित्ता" परिट्टवेयव्वे सिया । मेहुणपडिसेलणा-पवं १३. निग्गंथीए राओ वा वियाले वा उच्चारं वा पासवणं वा विगिंचमाणीए वा विसोहेमाणीए वा अण्णयरे पसुजातीए वा पक्खिजातीए वा 'अण्णयरं इंदियजायं" परामसेज्जा, तं च निग्गंथो साइज्जेज्जा, हत्थकम्मपडिसेवणपत्ता आवज्जइ मासियं" अणुग्धाइयं ॥ १. पाणाणि वा बीमाणि (पु, मवृ) । ६. अन्नयरइंदियजाए तं (जी, शु)। २. ४ (ख, ग जी, शु)। १०. चाउम्मासियं परिहारट्राणं (क, ख, ग, जी ३. अणुप्पदेज्जा (जी, शु)। श); वृत्तौ 'मासिकमनद्धातिकं स्थानं' इति ४ थंडिले (क, ख, जी, शु) । ५. परिभोत्तव्वे (जी, शु)। व्याख्यातमस्ति तथा 'परिहारट्राणं' इति पदस्य ६. अणुप्पदेज्जा (जी, शु) । निषेधोपि तत्र दृश्यते-इह निर्ग्रन्थीनां परि७. थंडिले (क, ख, ग, जी, शु) । हारतपो न भवतीति कृत्वा 'परिहारट्राणं' ति ८. x (क, ख, ग, पु) । पदं न पठनीयम् । Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६. कप्पो १४. निग्गंथीए य राओ वा वियाले वा उच्चारं वा पासवणं वा विगिंचमाणीए वा विसोहेमाणीए वा अण्णयरे पसुजातीए वा पक्खिजातीए वा अण्णयरंसि सोयंसि ओगाहेज्जा, तं च निग्गंथी साइज्जेज्जा, मेहुणपडिसेवणपत्ता आवज्जइ चाउम्मा सियं अणुग्धाइयं ॥ बंभचेरसुरक्खा-पदं १५. नो' कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, एवं गामाणुगामं वा दूइज्जित्तए, वासावासं वा वत्थए । १६. नो कप्पइ निग्गंथीए अचेलियाए होत्तए । १७. नो कप्पइ निग्गंथीए अपाइयाए होत्तए॥ १८. नो कप्पइ निग्गंथीए वोसट्ठकाइयाए होत्तए । १६. नो कप्पइ निग्गंथीए बहिया गामस्स वा जाव' संनिवेसस्स वा उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहीए एगपाइयाए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए । २०. कप्पइ से उवस्सयस्स अंतोवगडाए संघाडिपडिबद्धाए समतलपाइयाए पलंबियबाहि याए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए । २१. नो कप्पइ निग्गंथीए ठाणाययाए होत्तए। २२. नो कप्पइ निग्गंथीए पडिमट्ठाइयाए होत्तए ।। २३. नो कप्पइ निग्गंथीए–नेसज्जियाए, उक्कुडुगासणियाए वीरासणियाए, दंडासणि१. चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं (क, ख, ग, जी इत्यपि पाठो दृश्यते । शु); द्रष्टव्यं १३ सूत्रे 'मासिय' पदस्य पाद- ४. हुंतए (पु) सर्वत्र । टिप्पणम् । ५. कप्पो श६। २. अतोग्रे प्रयुक्तादर्शेषु 'जी, शु' सम्पादितपुस्तक- ६. °मुहाए (क, ख, ग, जी, शु)। योश्चनिम्ननिर्दिष्टं सूत्रं विद्यते-नो कप्पइ ७. x (ख, जी, शु) । निग्गंथीए एगाणियाए होत्तए । ८. ठाणाइयाए (क, ख, ग, जी, शु); ठाणाय३. 'क, ख, ग' प्रतिषु 'जी, शु' मुद्रितपुस्तकयोश्च तियाए (चू)। अस्य सूत्रस्य स्थाने भिन्नानि सूत्राणि दृश्यन्ते- ६. हुंतए (पु); होयए (चू)। नो कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए गाहावइकुलं १०. क, ख, ग' आदर्शषु 'जी, श' सम्पादितमुद्रितभत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पवि- पुस्तकयोश्च अस्य सूत्रस्य स्थाने विस्तृतासित्तए वा। नो कप्पइ निग्गथीए एगाणियाए वाचना दृश्यते-नो कप्पइ निग्गंथीए बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्ख- ठाणक्कडियासणियाए होत्तए । नो कप्पा मित्तए वा पविसित्तए वा। नो कप्पइ निग्ग- निग्गंथीए नेसज्जियाए होत्तए। नो कप्पइ थीए एगाणियाए गामाणुगामं दूइज्जित्तए । निग्गंथीए वीरासणियाए होत्तए। नो कप्पइ 'क, ग' आदर्शयोः 'वासावासं वा वत्थए' निग्गंथीए दंडासणियाए होत्तए। नो कप्पइ Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ५६१ याए, लगंडसाइयाए, ओमंथियाए, उत्ताणियाए, अंबखुज्जियाए, एकपासियाए होत्तए ॥ आकुंचणपट्टादि-पदं २४. नो कप्पइ निग्गंथीणं आकुंचणपट्टगं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ २५. कप्पइ निग्गंथाणं आकुंचणपट्टगं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ २६. नो कप्पइ निग्गंथीणं सावस्सयंसि' आसणंसि 'आसइत्तए वा तुयट्टित्तए" वा ॥ २७. कप्पइ निग्गंथाणं सावस्सयंसि आसणंसि आसइत्तए वा तुयट्टित्तए वा । २८. नो कप्पइ निग्गंथीणं सविसाणंसि 'पीढं सि वा फलगंसि वा आस इत्तए वा तुयट्टित्तए वा"। २६. कप्पइ निग्गंथाणं 'सविसाणंसि पीढं सि वा फलगं सि वा आसइत्तए वा तुयट्टित्तए वा ॥ ३०. नो कप्पइ निग्गंथीणं सवेंटयं लाउयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ।। ३१. कप्पइ निग्गंथाणं सवेंटयं लाउयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ३२. नोकप्पइ निग्गंथीणं सवेंटियं पायकेसरियं धारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ ३३. कप्पइ निग्गंथाणं सवेंटियं पायकेसरियं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ३४. नो कप्पइ निग्गंथीणं दारुदंडयं पायपुंछणं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ३५. कप्पइ निग्गंथाणं दारुदंडयं पायपुंछणं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ।।। पासवण-पदं ३६. नो कप्पइ निम्गंथाण वा निग्गंथीण वा अण्णमण्णस्स मोयं 'आइयत्तए वा“ आयनिग्गंथीए लगंडसाइयाए होत्तए । नो कप्पइ निम्ननिर्दिष्टं सूत्रद्वयं विद्यते-नो कप्पई निग्गंथीए ओमंथियाए होत्तए। नो कप्पइ निग्गंथीणं सनालयाई पायाइं अहिद्वित्तए । निग्गंथीए उत्ताणियाए होत्तए। नो कप्पइ कप्पइ निग्गंथाणं सनालयाइं पायाई अहिनिग्गंथीए अंबखुज्जियाए होत्तए । (नो कप्पइ द्वित्तए। निग्गंथीए एगपासियाए होत्तए-'जी, शु' ६. 'क, ख, ग' आदर्शषु ३२, ३३ सूत्रयो स्थाने इत्यधिक: पाठो दृश्यते)। ३४, ३५ सूत्रे विद्यते, ३४, ३५ सूत्रयोः स्थाने १. सावस्सकं (क, ख); सावस्सगंसि (पु)। ३२, ३३ सूत्रे विद्यते। २. चिद्वित्तए वा निसीइत्तए (ग) अग्रिमसूत्रेपि ७. मोएणं (क, ख, ग, जी, श)। ___ एवमेव । ८. 'क, ख' आदर्शयो: 'जी, शु' संपादितपुस्तक३. फलयंसि वा पीढंसि वा चिट्ठित्तए वा निसी- योश्च अस्य पदस्य स्थाने स्वतंत्र सूत्रमस्ति, इत्तए वा (क, ख, ग, जी, शु) । यथा--नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा ४. जाव निसीइत्तए वा (क, ख, जी, शु)। अण्णमण्णस्स मोए आइइत्तए, नन्नत्थ आगा५. 'क, ख' आदर्शयोः ३०, ३१ सूत्रयोः स्थाने ढेहि रोगायंकेहिं । Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९२ कप्पो मित्तए वा, नण्णत्थ 'गाढागाढेहि रोगायंकेहि ॥ परिवासियमोयण-पदं ३७. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासियस्स आहारस्स' जाव तयप्प माणमेत्तमवि भूइप्पमाणमेत्तमवि बिंदुप्पमाणमेत्तमवि आहारमाहारित्तए, नण्णत्थ 'आगाढेहिं रोगायंकेहि ॥ ३८. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासिएणं आलेवणजाएणं गायाई आलिपित्तए वा विलि पित्तए वा, नण्णत्थ आगाढेहिं रोगायंकेहिं ।। ३९. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासिएणं तेल्लेण वा घएण वा नव णीएण वा वसाए वा गायाइं अब्भंगित्तए वा मक्खित्तए वा, नण्णत्थ आगाढेहिं रोगायंकेहि ॥ अहालहुसगववहार-पदं ४०. परिहारकप्पट्ठिए भिवखू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छज्जा, से य आहच्च अइक्कमेज्जा, तं च थेरा जाणेज्जा अप्पणो आगमेणं अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया॥ पुलागमत्त-पदं ४१. निग्गंथीए य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठाए अण्णयरे पुलागभत्ते पडिग्गाहिए सिया, सा य संथरेज्जा, 'कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तठेणं पज्जोसवेत्तए, 'नो से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसित्तए।सा य नो संथरेज्जा एवं से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं 'पिंडवायपडियाए पविसित्तए"। –त्ति बेमि ।। १. गाढागाढेसु रोगायंकेसु (क, ख, ग, पु); आगाढेहि रोगायंकेहिं (जी, शु) । २. भोयणजाए (क, ख, ग)। ३. आगाढेसु रोगायंकेसु (क, पु); आगाढागा ढेसु रोगायंकेसु (ग)। ४. 'क, ख, ग' आदर्शषु 'जी, शु' सम्पादितपुस्त कयोश्च अतोग्रे निम्ननिर्दिष्टसूत्रं विद्यते, यथा-नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा कक्केण वा लोद्धेण वा पधवेण वा अण्णयरेण वा आलेवणजाएणं गायाई उव्वलेत्तए वा उव्वट्टित्तए वा, नन्नत्थ आगाढेहिं रोगायंकेहिं । ५. एवं से कप्पइ (जी, शु) । ६. ४ (क, ख, ग, जी, शु)। ७. भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसिलए वा (क, ख, ग, जी, शु)। . गधाण वा Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ण्डो उद्देसो अवयण-पदं १. नो' कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाई छ अवयणाई वइत्तए, तं जहा अलियवयणे हीलियवयणे खिसियक्यणे फरुसवयणे गारत्थियवयणे विओसवियं वा' पुणो उदीरित्तए । कप्पस्स पत्यार-पवं २. छ कप्पस्स पत्थारा पण्णत्ता, तं जहा-पाणाइवायस्स वायं वयमाणे, मुसावायस्स वायं वयमाणे, अदिण्णादाणस्स वायं वयमाणे, अविरइयावायं वयमाणे, अपुरिसवायं वयमाणे, दासवायं वयमाणे । इच्चेए 'छ कप्पस्स पत्थारे पत्थरेत्ता सम्म अप्पडिपूरेमाणे तट्ठाणपत्ते सिया ॥ खाणुपमितिनीहरण-पर्व ३. निग्गंथस्स य अहेपायंसि खाणू' वा कंटए वा हीरे वा 'सक्करे वा" परियावज्जेज्जा, तं च निग्गंथे नो संचाएज्जा नीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं निग्गंथी नीहरमाणी वा विसोहेमाणी वा नाइक्कमइ ॥ ४. निग्गंथस्स य अच्छिसि पाणे वा बीए वा रए वा परियावज्जेज्जा, तं च निग्गंथे नो संचाएज्जा नीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं निग्गंथी नीहरमाणी वा विसोहेमाणी वा नाइक्कमइ॥ ५. निग्गंथीए य अहेपायंसि खाणू वा कंटए वा हीरे वा सक्करे वा परियावज्जेज्जा, तं च निग्गंथी नो संचाएज्जा नीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं निग्गंथे नीहरमाणे वा विसोहेमाणे वा नाइक्कमइ ॥ ६. निग्गंथीए य अच्छिसि पाणे वा बीए वा रए वा परियावज्जेज्जा, तं च निग्गंथी १. तुलना-ठाणं ६।१००। ५. कप्पस्स छप्पत्यारे (जी, शु)। २. अवत्तव्वाइं (क, ख, जी, शु)। ६. खाणुए (जी, शु)। ३. वा पाहुडियं (ग)। ७. ४ (ख, जी, शु)। ४. तुलना-ठाणं ६।१०१। ८. संचाएइ (क, ख, ग, जी, शु) सर्वत्र । - ५६३ Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९४ कप्पो नो संचाएज्जा नीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं निग्गंथे नीहरमाणे वा विसोहेमाणे वा नाइक्कमइ॥ निग्गंथीअवलंबण-पदं ७. निग्गंथे निग्गंथि दुग्गंसि वा विसमंसि वा पव्वयंसि पक्खुलमाणि' वा पवडमाणि वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ॥ ८. निग्गंथे निग्गंथि सेयं सि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदयंसि वा ओकसमाणिं वा __ ओवुज्झमाणि' वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ॥ ६. निग्गंथे निग्गंथि नावं 'आरुभमाणि वा ओरुभमाणि" वा गिण्हमाणे वा अवलंब माणे वा नाइक्कमइ ।। १०. खित्तचित्तं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ॥ ११. दित्तचित्तं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ॥ १२. जक्खाइट्ठ निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ॥ १३. उम्मायपत्तं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ॥ १४. उवसग्गपत्तं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ॥ १५. साहिगरणं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ॥ १६. सपायच्छित्तं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ॥ १७. भत्तपाणपडियाइक्खियं निग्गंथिं निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ॥ १८. अट्ठजायं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ ।। पलिमंथू-पदं १६. छ" कप्पस्स पलिमंथू" पण्णता, तं जहा-कोक्कुइए संजमस्स पलिमंथू, मोहरिए १. पक्खोलमाणि (क); पयलमाणि (ग); पक्ख- अवलंबमाणे वा नाइक्कमइ । __लमाणि (जी, शु)। ७. जक्खाइट्टि (पु) । 'जी, शु' सम्पादितपुस्तकयोः २. गेण्हमाणे (क, जी, शु)। पाठसंक्षेपो विद्यते, यथा-जक्खाइट्ठ उम्मा३. उच्छुब्भुमाणि (क); ओवुब्भमाणि (जी, यपत्तं उवसम्गपत्तं साहिगरणं सपायच्छित्तं भत्तपाणपडियाइक्खिय अट्रजायं निग्गंथि ४. आरोहमाणि वा ओरोहमाणि (क्वचिद्)। निग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा ५. १०-१५ सूत्राणां ठाणं ६।२ तुलना कार्या । नाइक्कमइ। ६. 'क, ख' प्रत्योः पाठसंक्षेपो विद्यते, यथा-एवं ८. उम्मायपत्ति (पु)। दित्तचित्तं जक्खाइट्ठ उम्मायपत्तं उवसग्गपत्तं ६. अट्ठजायम्मि (पु)। साहिकरणं सपायच्छित्तं भत्तपाणपच्चआइ- १०. तुलना--ठाणं ६।१०२ । क्खितं अट्ठजायं निग्गंथि निग्गंथे गिण्हमाणे वा ११. पलिमंथा (मवृपा) । Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६५ छट्ठो उद्देसो सच्चवयणस्स पलिमंथू, 'चक्खुलोलुए' इरियावहियाए पलिमंथू, तितिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू, इच्छालोभिए' मुत्तिमग्गस्स पलिमंथू, भिज्जानियाणकरणे मोक्खमग्गस्स' पलिमंथू । सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था ॥ कप्पट्टिति-पदं २०. छव्विहा कप्पद्विती पण्णत्ता, तं जहा—सामाइयसंजयकप्पट्टिती, छेदोवट्ठावणिय संजयकप्पट्टिती, निव्विसमाणकप्पद्विती, निविट्ठकाइयकप्पद्विती, जिणकप्पद्विती, थेरकप्पद्विती। -त्ति बेमि ॥ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर १५०६५ अनुष्टप श्लोक ४७१ अक्षर २३ १. चक्खुलोलए (ख, पु, मवृ)। २. तितिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू चक्खुलो- लुए इरियावहियाए पलिमंथू (क, ख, ग, जी, (पु)। ४. भुज्जो भुज्जो नियाण (क, ख, जी, शु); भुज्जो नियाण (ग)। ५. सिद्धिमग्गस्स (क, ख, ग, जी, शु) । ६. x (क, ख)। ७. तुलना-ठाणं ६।१०३ । ३. इच्छालोलुसा (क); इच्छालोलुता (ख); इच्छालोभे (जी, श, मवृ); इच्छालोभए Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहारो Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो सई पडिसेवणा-पदं १. जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता' आलोएज्जा, अपलिउंचियं' आलोए__ माणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं ।। २. जे भिक्खू दोमासियं परिहारढाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोए माणस्स दोमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं ॥ ३. जे भिक्खू तेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं ।। ४. जे भिक्ख चाउम्मासियं परिहारदाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं ।। ५. जे भिक्खू पंचमासियं, परिहारट्टाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलो एमाणस्स पंचमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स छम्मासियं । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा 'ते चेव" छम्मासा॥ बहुसो पडिसेवणा-पदं ६. जे भिक्ख बहुसोवि मासिय परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं __ आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं ।। ७. जे भिक्खू बहुसोवि दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं १. पडिसेवेत्ता (ता)। सामान्यादेकं प्रथमं सूत्रं विवक्षितम् (व्यवहार२, ३. व्यवहारभाष्यवृत्तौ 'अपरिकुञ्च्य परिकुञ्च्य' सूत्र, मवृ, भाग २, पत्र ५३) । इति व्याख्यातमस्ति, निशीथचूणौं 'अपरि- ७. 'क, ग' आदर्शयोः सूत्रपञ्चकस्य स्थाने संक्षिकुञ्चितं परिकुञ्चितं' इति व्याख्यातं दृश्यते । प्तपाठो दृश्यते-तहेव नेयव्वं नवरं बहुसो वि उभयत्रापि नास्ति कश्चिदर्थभेदः । भाणियव्वं । 'ता' संकेतितादर्श स एवमस्ति४. तिमासियं (ख)। एवं बहसोवि पंच आलावगा मज्झिला भाणि५. तेच्चे व (ग)। यव्वा जाव ते चेव छम्मासा । ६. इह आदिमानि पंचापि सकलसूत्राणि सकलसूत्र ५९६ Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० ववहारो आलोएमाणस्स दोमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं ।। ८. जे भिक्खू बहुसोवि तेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं ॥ ६. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउं__चियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं ।।। १०. जे भिक्खू बहुसोवि पंचमासियं परिहारद्वाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स छम्मासियं । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ॥ सई पडिसेवणा-संजोगसुत्त-पदं ११. जे भिक्खू मासियं वा दोमासिय वा तेमासियं वा चाउम्मासियं' वा पंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मसियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्भासा ।। बहुसो पडिसेवणा-संजोगसुत्त-पदं १२. जे भिक्खू बहुसोवि मासियं वा बहुसोवि दोमासियं वा बहुसोवि तेमासियं वा बहसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्राणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउचिय आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा पलि उंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा। तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ।। सई साइरेगपडिसेवणा-पवं १३. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमा सियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, १. द्वितीयानि पंचसूत्राणि बहुशः शब्दविशेषितानि ३. चउमासियं (ता)। बहुशः शब्दविशेषितान्यपि बहुशः शब्दविशेषात् ४. अस्य सूत्रस्य स्थानेपि संक्षिप्तः पाठो दृश्यतेद्वितीयं सूत्रम् (व्य० मवृ, भाग २, पत्र बहुसो वि एवमेव (क, ग); एवं बहसोवि ५३)। भाणियव्वं जाव छम्मासा (ता)। २. द्विकसंयोगे त्रिकसंयोगे च दश-दश भङ्गाः, ५. यथादिमसकलसूत्रपंचकसंयोगप्रदर्शनपरं तृतीयचतुष्कसंयोगे पञ्च, पञ्चसंयोगे एकः। अत्र सूत्रमुक्तमेव अनेनैव प्रकारेण बहुशःशब्दवृत्तिकृता सूचितम्-यस्त्वेकः पञ्चसंयोगे विशेषिते द्वितीयसूत्रपंचकसंयोगप्रदर्शनपरं बहभङ्गः स साक्षात् सूत्रे गृहीत: (व्य० मत, सोवीति एतदविशेषितं चतुर्थ सूत्रं वक्तव्यम् भाग २, पत्र ५३,५४)। (व्य० म, भाग २, पत्र ५४)। Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचा उम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा छम्मासियं वा। तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा॥ बहुसो साइरेगपडिसेवणा-पदं १४. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारदाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा छम्मासियं वा । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ॥ परिहारट्ठाण-पडिसेवणा-पदं १५. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंच मासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता' करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि' पडिसेवित्ता से वि 'कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। पुग्वि पडिसेवियं पुब्वि आलोइयं, पुदिव पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुन्वि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, अपलिउंचिए अपलि चियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि 'कसिणे तत्थेव"आरुहेयव्वे सिया। १. पञ्चमसूत्रमुक्तम् (व्य० मवृ, भाग ३, पत्र ६. अपलिउंचिए अपलिउंचियमिति प्रथमभङ्गानु गतमित्युक्तम् । एतच्चोपलक्षणं, तेन द्वितीय२. अत्रापि संक्षिप्तपाठोस्ति--एवं बहुसोवि तृतीयभङ्गानुगते अपि सूत्रे वक्तव्ये । तच्चैवम् नेयव्वं (क, ग); एवं बहुसोवि जाव ते चेव -'जे भिक्खू चाउम्मासियं वा सातिरेगछम्मासा (ता) । इदानीं षष्ठं सूत्रमाह चाउम्मासियं वा' इत्यादि 'जाव' 'अपलिउं(व्य० मवृ, भाग ३, पत्र १६)। चिए अपलि उंचियं, अपलिउंचिए पलिउचियं ३. ठवावेत्ता (क); ठवेइत्ता (ख); ठवांवित्ता पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउं(ग)। चियमालोएमाणस्स सब्वमेयं साहणिय जाव ४. ठाविए (ख)। आरोहेयव्वे सिया' तृतीयभङ्गानुगतमपि सूत्रमेवं ५. य (ता)। उच्चारणीयम्, नवरं–पलिउंचिए अपलिउं६. तत्थ कसिणे (ता)। चियमालोएमाणस्सेति वक्तव्यं शेषं तथैव । ७. आरुब्भेयव्वे (ता)। चतुर्थभङ्गानुगतं तु सूत्रं साक्षादाह-(व्य० ८. तत्थ कसिणे (ता)। म, भाग ३, पत्र ४६)। Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ ववहारो १६. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि पडिसे वित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। पुट्वि पडिसेवियं पुवि आलोइयं, पुग्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुव्वि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्टविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया ॥ १७. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंच मासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, पलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि पडिसेवित्ता, से वि क सिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। पुदिव पडिसेवियं पुवि आलोइयं, पुवि पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुवि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं, पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया ॥ १८. “जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारदाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा, पलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्ज वेयावडियं । ठविए वि पडिसे वित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। पुद्वि पडिसेवियं पुब्वि आलोइयं, पुदिव पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुव्वि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं । १. सं० पा०–एवं बहुसो वि । तृतीयभङ्गानुगते सूत्रे प्राग्वद्वक्तव्ये, चतुर्थ२. सं० पा०-एवं बहुसो वि । एवं बहुश:शब्द- भङ्गानुगते सूत्रं साक्षादतिदेशत आह-एवं विशिष्टान्यपि प्रथमतश्चतुर्भङ्गविकल्पेन बहुसो वि' इति (व्य० मत, भाग ३, पत्र ४६, चत्वारि सूत्राणि वक्तव्यानि । तत्र प्रथमभङ्गानुगतसूत्रं प्रागेवातिदेशनत उक्तम् । द्वितीय Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टव णाए पट्टविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया ॥ पारिहारिय-अपारिहारिय-पवं १६. बहवे पारिहारिया' बहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए । नो से कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्ज वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए। थेरा य ण्हं से वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए। थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए, 'जो णं" थेरेहि अविइण्णे अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएइ, से संतरा छेए" वा परिहारे वा॥ अणुण्णाय-निग्गमण-पदं २०. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। 'थेरा य से सरेज्जा", कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अण्णे साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निठ्ठियंसि परो वएज्जा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कप्पति एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पति परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा व सइ, से संतरा छए वा परिहारे वा ॥ २१. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेजा। 'थेरा य नो सरेज्जा' कप्पति से निविसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसि अण्णे साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पति तत्थ विहारवत्तियं" वत्थए,कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए । तंसि च णं कारणंसि निटियंसि परो वएज्जा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छए वा परिहारे वा ॥ २२. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा, 'थेरा य से सरेज्ज १. परिहारिया (ख, ता)। ७. विहारवत्तियाए (ता)। २. चेतेत्तए (क, ख, ग), चेयइत्तए (ता)। ८. कारणपत्तियाए (ता)। ३. जोण्णं (क, ग)। ६. तंसि (क, ग, ता), तसिं (मवृ)। ४. अविदिण्णे (क, ख, ग)। १०. तं च थेरा णो सुमरेज्जा (ता)। ५. छेदं (क, ग); छेदे (ख)। ११. विहरणवत्तियाए (ता)। ६. थेरा य से वितरेज्जा (क, ग); तं च थेरा १२. कारणपत्तियाए (ता)। सुमरेज्जा (ता)। Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ ववहारो वा नो वा सरेज्जा", कप्पइ से निव्विसमाणस्स एगराइयाए पडिमाए जणं-जण्णं दिसं अण्णे साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पति तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं' वत्थए। तंसि च णं कारणं सि निट्ठियंसि परो वएज्जा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दरायं वा वत्थए. नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दरायाओ वा वत्थए । जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छए वा परिहारे वा॥ अणुण्णाय-अणणुण्णाय-पदं २३. भिक्ख य गणाओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, 'से य" इच्छेज्जा' दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'पुणो आलोएज्जा' • पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा ॥ २४. गणावच्छेइए' य गणाओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से ६ इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा ॥ २५. आयरिय-उवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा । पासत्थादिविहार-पदं २६. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म पासत्थविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'अत्थियाइं त्थ केइ'" 'सेसे, पुणो आलो १. थेरो य से सरेज्जा वा नो सरेज्जा वा (ख); तं च थेरा सुमरेज्ज वा ण सुमरेज्ज (ता)। २. विहरणपत्तियाए (ता)। ३. कारणपत्तियाए (ता)। ४. एकल्ल° (ख); एक्कल्ल (ता)। ५. से य णो संथरेज्जा (ख, ता) सर्वत्र । ६. गच्छेज्जा (क, ग)। ७. इमं च गणमुपसंपद्य पुनस्तमेकाकिविहार- प्रतिमाभङ्गमालोचयेत् (व्य० मवृ, भाग ३, पत्र ८७)। ८. अत्थियाई त्थ तस्स केइ च्छए वा परिहारे वा (ता) सर्वत्र । ६. 'ता' संकेतितमादर्श मुक्त्वा शेषेषु आदर्शषु सूत्रद्वयं संक्षिप्तं वर्तते-एवं गणावच्छेइए एवं आयरिय-उवज्झाए । १०. पासत्थविहारपडिम उवसंपज्जित्ताणं (जी, ता, शु); 'पासस्थ' लक्षणं चेदम्दंसणनाणचरित्ते तवे य अत्ताहितो पवयणे य । तेसिं पासविहारी पासत्थं तं वियाणेहि ॥ (प० भाग ३, भाष्यगाथा २२७, पत्र १११)। ११. अत्थियाइत्थ (क, ख, ग,); अत्थियाइं स्थ (जी)। Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो ६०५ ____ एज्जा पुणो पडिक्क मेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा"। २७. भिक्ख' य गणाओ अवक्कम्म अहाछंदविहार' विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाई त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा ॥ २८. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म कुसीलविहारं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा ॥ २६. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओसन्नविहार विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थियाइं त्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा ॥ ३०. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म संसत्तविहारं" विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि १. सावसेसे अत्थियाई छए वा परिहारे वा कक्ककुरुयाय लक्खणमुवजीवाति विज्जनत्थियाइं केइ सावसेसे नत्थियाइं से छेए वा मंतादी। परिहारे वा (ता) सर्वत्र । मलयगिरिवृत्ती (व्य० भाग ३, भाष्यगाथा २५२, २५३, अस्य पाठस्य किञ्चिद् भावसाम्यं दृश्यते पत्र ११७) यः पुनः सर्वथापगते चारित्रं पुनरालोचयेत् पुनः ५. ओसन्नविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं (जी, प्रतिक्रामेत् स मूलमापन्न इति मूलस्य प्रति- शु); ओसन्नविहारं उवसंपज्जित्ताणं (ता); पत्तयेऽभ्युत्तिष्ठेत् (व्य० मवृ, भाग ३, पत्र 'ओसन्न' लक्षणं रेदम्१०६)। उउबद्धपीढफलगं ओसन्नं संजयं वियाणाहि । २. 'क, ख, ग' संकेतितादर्शषु पाठसंक्षेपो दृश्यते ठवियगरइयगभोई एमेया पडिवत्तितो॥ ___ 'एवं अहाछंदो कुसीलो ओसन्नो संसत्तो। (व्य० भाग ३, भाष्यगाथा २६१, पत्र ३. अहाछंदविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं (जी, ११९)। ता, श): 'अहाछंद' लक्षणं चेदम- ६. 'ता' संकेतितादर्श एतत् सूत्रं लिखितं नैव उस्सुत्तमायरंतो उस्सुत्तं चेव पनवेमाणो । दृश्यते ।। सो अदालंदो इच्छा दो यएगटा ७. संसत्तविहारपडिम उवसंपज्जित्ताणं (जी. (व्य० भाग ३, भाष्यगाथा २३४, पत्र शु); 'संसत्त' लक्षणं चेदम् ११२)। पासत्य अहाच्छंदो कुसीलं उस्सन्नमेव संसत्तो। ४. कुसीलविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं (जी, पियधम्मो पियधम्मेसु चेव इणमो उ संसत्तो ।। शु); कुसीलविहारं उवसंपज्जित्ताणं (ता); पंचासवप्पवत्तो जो खलु तिहिं गारवेहिं पडि'कुसील' लक्षणं चेदम् बद्धो। नाणे नाणायारं जो उ विराहेइ कालमादीयं । इत्थि-गिहि-संकिलिट्ठो संसत्तो सो उ नायव्वो॥ दंसणे दंसणायारं चरणकुसीलो इमो होइ ।। (व्य० भाग ३, भाष्य गाथा २६४-२६५ पत्र कोउय भूतिकम्मे पसिणापसिणे निमित्तमा- ११६)। जीवी। Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहारो तमेव गणं उवसंपज्जित्लाणं विहरित्तए, अत्थियाइं स्थ केइ सेसे, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा ॥ परपासंडलिंगग्गहण-पदं ३१. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म परपासंडपडिम' उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नत्थि णं" तस्स तप्प त्तियं केइ छए वा परिहारे वा, नण्णत्थ एगाए आलोयणाए गणाओ ओहावण-पदं ३२. भिक्ख य 'गणाओ अवक्कम्म" ओहावेज्जा से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नत्थि णं" तस्स केइ तप्पत्तियं छए वा परिहारे वा, नण्णत्थ एगाए सेहोवट्ठावणियाए । अकिच्चट्ठाण-आलोयणक्कम-पदं ३३. भिक्ख य" अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं से वित्ता" इच्छेज्जा आलोएत्तए, जत्थेव 'अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा", 'तेसंतियं आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा, अहारिहं तवोकम्म पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा"। 'नो चेव अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, जत्थेव संभोइयं५ साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम", तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा १. क, ग, शु' संकेतितादर्शषु एतत् सूत्रं नास्ति । १४. कप्पइ से तस्संतिए आलोएत्तए वा पडिक्क२. अन्नपासंड (ता)। मित्तए वा निंदित्तए वा गरहित्तए वा विउट्टि३. नत्थियाइं (ता)। त्तए वा विसोहित्तए वा अकरणयाए अब्भुट्ठि४. ४ (ता)। तए वा अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं गडिव५. गणादवक्कम्म (ता)। ज्जित्तए वा (ख); कप्पइ से तस्स अंतिए ६. ओधरिज्जा (क, ख); ओधावेज्जा (ग); आलोएत्तए पडिक्कमित्तए निदित्तए गरहित्तए __ओहाणुप्पेही गच्छेज्जा (ता)। विउट्टित्तए अकरणयाए अब्भुट्टित्तए अहारिहं ७. नत्थियाइं (ता)। पायच्छित्तं पडिवज्जित्तए (ता)। ८. केवि (ग)। १५. संभोतितं (क)। ६. ४ (क, ग, जी, ता, शु)। १६. बहुआगमं (क, ग); उभागमं (मवृ); १०. सेहोट्ठावणिकाए (क, ग); सेहोवट्ठावणाए बब्भागमं (मवृपा)। (ता)। १७. जत्थेव णो अप्पणो आयरिउवझायं पासेज्ज ११. य गणादवक्कम्म (ता)। बहस्सुयं बहआगमं जत्थेव अन्नं आयरिउव१२. पडिसेवेत्ता (ख, ता)। ज्झायं पासेज्ज बहुस्सुयं कप्पइ से तस्संतियं १३. पासेज्ज अप्पणो पायरियउवज्झायं बहस्सूयं आलोएत्तए जाव अब्भुट्टित्तए अहारिहं पायबहुआगमं (ता)। च्छित्तं पहिवज्जित्तए (ता)। Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो 'नो चेव संभोइयं साहम्मियं 'बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा", जत्थेव अण्णसंभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेजा। 'नो चेव अण्णसंभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा , जत्थेव सारूवियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा। 'नो चेव सारूवियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव' समणोवासगं पच्छाकडं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतियं आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा। 'नो चेव समणोवासगं पच्छाकडं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव सम्मंभावियाइं चेइयाई पासेज्जा, तेसंतिए आलोएज्जा जाव पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा"। 'नो चेव सम्मभावियाई चेइयाई पासेज्जा, बहिया गामस्स वा नगरस्स वा निगमस्स वा रायहाणीए वा खेडस्स वा कब्बडस्स वा मडंबस्स वा पट्टणस्स वा दोणमुहस्स वा आसमस्स वा संवाहस्स वा संनिवेसस्स वा पाईणाभिमुहे वा उदीणाभिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वएज्जा-एवइया मे अवराहा, एवइक्खुत्तो अहं अवरद्धो, अरहंताणं सिद्धाणं अंतिए आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, १.x(क, ग, जी, शु)। अग्रे सर्वत्रापि एवं पाठसंक्षेपो वर्तते । २. जत्थेव नो संभोइयं आयरिउवज्झायं पासेज्ज बहस्सुयं बहुआगमं जत्थेव अन्नसं आयरि उ बहुस्सु बहुआगमं कप्पइ से तस्संतिए आलोत्तए जाव पडिक्कमित्तए (ता)। ३. जत्थेव णो अन्नसंभोइयं आयरियउवज्झायं पासेज्जा बहुस्सुयं बहुआगमं जत्थेव सारूवियं पासेज्ज बहुस्सुयं बहुआगमं कप्पइ से तस्संतियं आलोएत्तए वा जाव पडिक्कमित्तए वा (ता)। ४. मलयगिरिवृत्ती 'जत्थेव समणोवासगं पच्छा- कडं' एष आलापको नास्ति व्याख्यातः डा० शूब्रिगसंपादिते व्यवहारसूत्रेपि नैष पाठः स्वी. कृतोस्ति । किन्तु भाष्ये 'पच्छाकडे' इति पदं दश्यते, तस्य लिङ्गकरणविधिरपि प्रतिपादि तोस्तिसंविग्गे गीयत्थे, सरूवीपच्छाकडे य गीयत्थे । पडिक्कते अब्भुट्ठिय, असती अन्नत्थ तत्थेव ।। असतीए लिंगकरणं, सामाइय इत्तरं कितिकम्म । तत्थेव य सुद्धतवो, गवसणा जाव सुह दुक्खे ।। (व्य० भाग ३, पत्र १३५) ।। ५. जत्थेव णो सारूवियं पासेज्ज बहुस्सुयं बहु आगमं जत्थेव पच्छाकडं समणोवासयं पासेज्जा बहुस्सुयं जाव पडिवज्जित्तए (ता)। ६. x (क, ग, शु) । ७. तेसितिए (क, ग)। ८. जत्थेव णो पच्छाकडसमणोवासयं पासेज्ज बह जत्थेव सम्मभावियाई चेइयाई पासेज्ज कप्पइ से जाव पडिवज्जित्तए (ता)। Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ ववहारो अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तबोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जासि । —त्ति बेमि । १. जत्थेव नो सम्मंभावियाई चेइयाई पासेज्ज कप्पर से बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा पाईनाभिमुहस्स वा उदीणाभिमुहस्स वा ठिच्चा आलोएत्तए पडिनिदि गर अहारिहं तवोकम्मं पाअच्छित्तं पडिवज्जित्तए ( ता ) । Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोओ उद्देतो ठवणिज्ज-कप्पट्ठिय-पदं १. दो साहम्मिया एगओ' विहरंति ‘एगे तत्थ" अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं ।। २. दो साहम्मिया एगओ विहरंति, 'दो वि ते" अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसे वेत्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता एगे निव्विसेज्जा, अह पच्छा से वि निव्विसेज्जा ॥ ३. बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं ।। ४. बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, 'सव्वे वि ते'' अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसे वेत्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसा निव्विसेज्जा', अह पच्छा से वि निव्विसेज्जा ॥ ५. परिहारकप्प ट्ठिए भिक्खू गिलायमाणे अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, से य संथरेज्जा ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। से य नो संथरेज्जा अणपरिहारिएणं करणिज्ज वेयावडियं। ‘से तं अण परिहारिएणं कीरमाणं वेयावडियं" साइज्जेज्जा, से विकसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे२ सिया ॥ १. एगततो (ग, चू); एगयओ (जी, शु)। २. तत्थेगे (ता)। ३. ते दोवि (ता)। ४. तओ (ता)। ५. ते सव्वे (ता)। ६. णिव्विसंति (ता)। ७. x (ता)। ८. णिव्विसइ (ता)। ६. वेदावडियं (चू)। १०. तस्स करणिज्ज (ता)। ११. वि कीरमाणेणं (ता)। १२. आरुभेतव्वे (क, ग); आरुभेयव्वे (ता)। ६०६ Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० ववहारो परिहारकप्पट्ठियादीणं अनिज्जूहण-पदं ६. परिहारकप्पट्ठियं भिक्खु गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्ज वेयावडियं 'जाव तओ'२ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया ।। ७. अणवठ्ठप्पं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स कर णिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ ८. पारंचियं भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पाइ तस्स गणावच्छेइयस्स निजहित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ ६. खित्तचित्तं भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्ज हित्तए। · अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ च्छिा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ।। १०. दित्तचित्तं भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जू हित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्ज वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमक्को तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ ११. जक्खाइट्ठ भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज हित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ।। १२. उम्मायपत्तं भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियब्वे सिया ॥ १३. उवसग्ग पत्तं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जू हित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडिय जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ १४. साहिगरणं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निजहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमक्को, तओ १. गणाओ णिज्जूहित्तए (ता); नि! हितुमपाक ४. अहालहुस्सए (ख) । वैयावृत्त्याकरणादिना (व्य० मवृ, भाग ४, ५. ४ (ता)। पत्र २१)। ६. आदर्शषु ७-१६ सूत्रपर्यन्तं पाठसंक्षेपो विद्यते, २. से य ताओ (ता) यावत् पदानन्तरं 'से य' । यथा--एवं अणवट्टप्पं पारंचियं खित्तचित्तं दित्तइति कर्तृपदं गम्यम् । चित्तं जक्खाइट्ठ उम्मातपत्तं उवसग्गपत्तं साधि३. अह (ता)। करणं सपायच्छित्तं भत्तपाणपडियाइक्खित्तं । Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीको उद्देसो पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया । १५. सपायच्छित्तं भिक्खु गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जू हित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया। १६. भत्तपाणपडियाइक्खितं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया॥ १७. अट्ठजाय भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जू हित्तए । अगि__ लाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं 'जाव तओ' रोगायंकाओ विप्पमक्को, तओ' पच्छा तस्स अहालहुसए नाम' ववहारे पट्टवियव्वे सिया ।। अणवठ्ठप्प-पारंचियाणं उवट्ठावणा-पदं १८. अणवठ्ठप्पं भिक्खं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छइयस्स उवट्ठावेत्तए । १६. अणवटुप्पं भिक्खु गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए । २०. पारंचियं भिक्खु अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए । २१. पारंचियं भिक्खू गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए ।। २२. अणवट्ठप्पं भिक्खु अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठा वेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया ॥ २३. पारंचियं भिक्खं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठा वेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया ॥ सच्चपइण्ण-ववहार-पदं २४. दो साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा-अहं णं भंते! अमगेणं साहणा सद्धि इमम्मि कारणम्मि पडिसेवी ।' 'से य पुच्छियव्वे किं अज्जो! पडिसेवी उदाहु अपडिसेवी" ? से य वएज्जापडिसेवी, परिहारपत्ते । से य वएज्जा-नो पडिसेवी, नो परिहारपत्ते । जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेतव्वे । से किमाहु भंते! सच्चपइण्णा ववहारा॥ १. से य ताओ (ता)। २. अह (ता)। ३. ४ (ता) । ४. अणवठं (ता) सर्वत्र । 'ता' संकेतितादर्श 'अणवट्ठ भिक्खू पारंचियं भिक्खं' एतेन क्रमेण षण्णां सूत्राणां स्थाने त्रीण्येव सूत्राणि विद्यन्ते । ५. अह (क, ख, ता)। ६. इमंसी (क, ग)। ७. पडिसेवियव्वे (ता); अतोने वृत्तौ एष पाठो व्याख्यातोस्ति-पच्चयहेउं च सयं पडिसेवियं भणति (व्य ० मवृ, भाग ४, पत्र ५६) । ८. से त पुच्छितव्वे (क)। ६. कं पडिसेवी (क, ग); किं पडिसेवी (ख, जी, शु)। Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ ववहारो २५. भिक्ख य गणाओ अवक्कम्म ओहाणप्पेही वच्चेज्जा, से य 'अणोहाइए चेवर इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । तत्थ णं थेराणं इमेयारूवे विवादे समप्पज्जित्था-'इमं भो' जाणह किं पडिसेवी ? अपडिसेवी ? से य पुच्छियत्वे 'सिया कि अज्जो! पडिसेवी उदाहु अपडिसेवी" ? से य वएज्जापडिसेवी, परिहारपत्ते' । से य वएज्जा-नो पडिसेवी, नो परिहारपत्ते । जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेतव्वे । से किमाहु भंते ? सच्चपइण्णा ववहारा॥ एगपक्खियस्स आयरिय-उवज्झायट्ठवणा-पदं २६. एगपक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पति' इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए ‘वा धारेत्तए वा", जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया ॥ परिहारियापरिहारिय अण्णोष्णसं जण-पदं २७. बहवे परिहारिया बहवे अपरिहारिया इच्छेज्जा एगयओ एगमासं वा दुमासं वा तिमासं वा चउमासं वा 'पंचमासं वा"छम्मासं वा वत्थए। ते अण्णमण्णं संभुजंति, अण्णमण्णं नो संभुजंति मासं, तओ पच्छा सव्वे वि एगओ" संभुंजंति ॥ परिहारकप्पट्टियस्स विसेसविहि-पदं २८. परिहारकप्पट्टियस्स भिक्खस्स नो कप्पइ असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउं वा। 'थेरा य णं" वएज्जा-इमं ता अज्जो! तुमं एएसिं देहि वा अणुप्पदेहि वा ? एवं से कप्पइ दाउं वा अणुप्पदाउं वा । कप्पइ से 'लेवं अणु जाणावेत्तए'५ अणुजाणह भंते! लेवाए ? एवं से कप्पइ लेवं समासेवित्तए॥ २६. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू सएणं" पडिग्गहेणं बहिया अप्पणो" वेयावडियाए गच्छेजा। १. गच्छेज्जा (ख, ता, चू); वज्जेज्जा (ग, जी, १०. x (ता)। ११. जाव (क, ग)। २. अणोधाइते (क, ख, ग); अणोहाइए (जी, १२. मासं ते अन्नमन्नं संभुजंति (क, ग, ता, चू); श); x (ता); स चानवधावित एवं असं- मासं ते (ख) । यममगतं एव (व्य० मवृ, भाग ४, पत्र १३. एगततो (क, ग): एगयओ (जी, श): ६३) । एगतओ (ता)। ३. इमेणं अज्जो (ख); इमं भो अज्जो (मवृ)। १४. तं च थेरा (ता)। ४. किं पडिसेवी (क, ग, जी, शु); किं पडि- १५. एवं वदित्तए (ता)। सेवी अपडिसेवी (ख)। १६. तं (क, ग, जी, शु)। ५. ओहाविए परिहारपत्ते (ता)। १७. अणुजाणावेत्तए (क, ग, जी, शु); अणु६. ओहाविए परिहारपत्ते (ता) । जाणित्तए (ता)। ७. सच्चपतिण्णा (क)। १८. अप्पणो (ता)। ८. एकपक्खिस्स (ता)। १६. थेराणं (क, ग, जी, ता, शु); आत्मनः है कप्पति आयरियउवज्झायाण (क, ख, स्वशरीरस्य वैयावृत्त्याय भिक्षानयनायेत्यर्थ; जी, शु)। (व्य० मवृ, भाग ४, पत्र ८४)। शु)। Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ उद्देसो 'थेरा य णं" वएज्जा–पडिग्गाहेहि' णं' अज्जो! अहं पि भोक्खामि वा पाहामि वा। एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए । तत्थ नो कप्पइ अपरिहारियस्स परिहारियस्स पडिग्गहंसि असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा पायए वा, कप्पइ से सयंसि वा पडिग्गहंसि सयंसि वा पलासगंसि 'सयंसि वा कमढगंसि सयंसि वा खुव्वगंसि" पाणिसि वा उद्धट्ट-उद्धट्ट भोत्तए वा पायए वा । एस कप्पो अपरिहारियस्स परिहारियाओ।। ३०. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू थेराणं पडिग्गहेणं बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। 'थेरा य णं वएज्जा--पडिग्गाहेहि णं अज्जो! तुमं पि भोक्खसि वा पाहिसि वा । एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए । तत्थ नो कप्पइ परिहारियस्स अपरिहारियस्स पडिग्गहंसि असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा पायए वा. कप्पड से सयंसि वा पडिग्गहंसि सयंसि वा पलासगंसि 'सयंसि वा कमढगंसि सयंसि वा खुव्वगंसि" पाणिसि वा उद्धटु-उद्धटु भोत्तए वा पायए वा । एस कप्पो परिहारियस्त" अपरिहारियाओ। -त्ति बेमि ॥ १. तं चेव थेरा (ता)। २. पडिग्गाहे (क, जी, शु)। ३. ४ (क, ख, ग, जी, शु) । ४. अपरिहारिएणं (क, ख, ग, जी, शु); अप- रिहारिकेण सता (म)। ५. ४ (क, ग, जी, ता, शु) । ६. तं च थेरा (ता)। ७. पि पच्छा (क, ख, ग, जी, शु); पि णं (ता)। ८. परिहारिएणं (क, ख, ग, जी, शु); परि हारिकेण (मवृ)। ६. X (क, ग, जी, ता, शु) । १०. एसलेस (क, ग, जी)। ११. ववहारियस्स (क, ग)। Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदधारणविहि-पदं १. भिक्खु य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, भगवं च से अपलिच्छन्ने' एवं 'से नो" कप्पइ गणं धारेत | भगवं च से पलिच्छन्ने,' एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए ॥ २. भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, नो से कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, पुच्छित्ता गणं धारेत्तए । थेरा य से वियरेज्जा' एवं से कप्पइ गणं धारेतए, थेरा य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए । जण्णं' थेरेहिं अविइष्णं गणं धारेज्जा, से संतरा छेओ वा परिहारो वा ॥ rous से थे ३. तिवासपरियाए समणे निग्गथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पण्णत्तकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे' 'असबलायारे अभिन्नायारे" असं कि लिट्ठायारे" बहुस्सुए बब्भागमे " जहणणेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ" उवज्झायत्ताए उद्दिति ॥ ४. सच्चेव णं से तिवास: रियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले नो संजमकुसले 'नो पवणकुसले नो पण्णत्तिकुसले नो संगहकुसले" नो उवग्गहकुसले खयायारे सबलायारे भिन्नायारे संकि लिट्ठायारे" "अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ"" उवज्झायत्ताए उद्दति ॥ तइओ उद्देसो १. अपलिच्छते ( क ख ग ); अपलिच्छए (जी, शु); अपरिच्छदः परिच्छद रहितः (मवृ) । २. नो से ( क, ख, ग, जी, शु) । ३. भिक्खू य इच्छेज्ज गणं धारितए भगवं ( ता ) ४. पलिच्छते ( क, ख, ग ) । ५. वियरंति (ता) । ६. जं तत्थ ( ता ) | ७. अविदिन्नं ( क ख, ग, ता ) । ८. व ते साहमिया उद्वार विहति ( ख ) । ६. अक्खुयायारे ( ख, ग ); अक्खुयायारचरिते (ar) I ६१४ १०. अभिन्नायारे असबलायारे ( जी, शु) । ११. असंकिलिट्ठायारचित्ते (क, ग, जी, शु ) ; असंकिलिट्ठायारचरिते ( ख ) । १२. बहुए आगमिए ( ता ) । १३. कप्पइ बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं ( ता) | १४. जाव (क, ख, ग, ता ) । १५. संकिलिट्ठायारचित्ते (क, ग, जी, शु ) ; किलिट्ठायारचरिते ( ख, ता ) । १६. णो जहन्वेणं आयारकप्पधरे णो कप्पइ बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं ( ता ) । Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो ६१५ ५ पंचवासपरियाए' समणे निग्गंथे आयारकुसले 'संजमकुसले पवयणकुसले पण्णत्ति कुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे" बहुस्सुए बब्भागमे जहण्णणं दसा-कप्प-ववहारधरे कप्पइ 'आयरिय उवज्झायत्ताए" उद्दिसित्तए ।।। ६. स च्चेव णं से पंचवास? रियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले 'नो संजमकुसले नो पवयणकुसले नो पण्णत्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयायारे सबलायारे भिन्नायारे संकिलिट्ठायारे'५ 'अप्पसुए अप्पागमे नो कपइ आयरिय उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए॥ ७. अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले 'संजमकुसले पवयणकुसले पण्णत्ति कुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे अबिलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे' 'बहुस्सुए बब्भागमे जहणणं साण-गम वा धिरे क " आयरियताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ताए थेर ताए गणित्तार" गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए । ८. स च्चेव णं से अदुवारापरियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुराले नो संजमकुले नो पवयणकुराले नो पण्ण त्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयायारे सबलायारे भिन्नायारे संकिलिट्ठायारे अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए । ६. निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से किमाहु भंते ? अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि' कुलाणि कडाणि" पत्तियाणि थेज्जाणि" वेसासियाणि 'संमयाणि सम्मइक राणि अणुमयाणि'" बहुमयाणि भवंति, १. एवं पंचवासपरियाए जहणेणं (क, ग)। भाष्य (गा० १८३) वृत्तौ पट् पदामि व्या२. जाव असंकिलिट्ठाका रचरित्ते (ख, ता)। ख्यातानि सन्ति-विकृष्टोऽष्ट वर्षपर्याय: पुन: ३. बहूणं स बहूणं समणीणं आयरियत्ताए (ता)। सर्वाण्यपि स्थानानि वोढुं शक्नाति बहुतमवर्ष४. पंचवास जाव अप्पसुए (क, ख, ग)। पर्यायत्वात् ततस्तस्य सूत्रेणोपाध्यायत्वमा५. जाव संकिलिट्ठायारचरित्ते (ता)। चार्यत्वं गणित्वं प्रवतित्वं स्थविरत्वं गणावच्छे६. णो जहन्नेणं दसाकप्पववहारघरे णो कप्पइ दित्वं चानुज्ञातम् (व्य० भाग ४, उद्देशक ३, बहू सम बहू सम आयरियत्ताए (ता) । पत्र ३८)। ७. जाव असंकिलिट्ठायारचरित्ते (ख, ता)। ११. गणित्ताए गणहरत्ताए (ता)। ८. धरे उक्कोसेणं अणंतं चेव णवरं (क, ग)। १२. तहारूवाई (ख, ता) सर्वत्र 'ई'। ६. जहन्नेणं ठाणसमवायधरे कप्पइ बहू स बहू स १३. कयाइं (ता)। (ता) सर्वत्र । १४. धेज्जाइं (ख); च्छेज्जाणित्ति च्छेद्यानि प्रीति१०. वृत्तौ त्रीण्येव पदानि उल्लिखितानि दृश्यन्ते करतया 'गच्छ' चिन्तायां प्रमाणभूतानि । एवमेवाष्टवर्षपर्यायस्याप्याचार्योपाध्यायगणा- अथवा स्थेयानीति (व्य० भाग ४, उद्देशक ३, वच्छेदित्वोद्देशविपये द्वे सूत्रे व्याख्येये (व्य० पत्र ३६)। भाग ४, उद्देसक ३, पत्र २८); किन्तु १५. अणुमयाई संमुइकारगाई (ता)। Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ ववहारो तेहि कडेहिं तेहि पत्तिएहि तेहि थेज्जेहि' तेहि वेसा सिएहिं तेहि संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे, कप्पइ आयरिय उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तएतद्दिवसं ॥ १०. निरुद्धवासपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ 'आयरिय उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए समुच्छेयक पंसि तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अहिज्जिए' 'देसे नो अहिज्जिए", से य अहिज्जिस्सामि त्ति अहिज्जइ', एवं से कप्पइ आयरिय उवज्झायत्ताए उद्दिसि - तए । सेय अहिज्जिस्सामि त्ति नो अहिज्जइ', एवं से नो कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दित्तिएं || आयरिय उवज्झायादिनिस्साए ठिति-पदं ११. निग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स आयरिय-उवज्झाए वीसंभेज्जा', नो से कप्पइ अणायरियउवज्झायस्स होत्तए । कप्पर से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता" तओ पच्छा उवज्झायं । से किमाहु भंते ? दुसंगहिए समणे निग्गंथे, तं जहा - आयरिएणं" उवज्झाएण य ॥ १२. निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरिय उवज्झाए 'पवत्तणी य"" वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ, अणायरियउवज्झाइयाए 'अपवत्तणीए य" होत्तए । कप्पइ से वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणि । से किमाहु भंते ? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहा - आयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य" ।। पडिसेवकस्स पदधारणविहि-पदं १३. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म मेहुणधम्मं " पडिसेवेज्जा, तिष्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरितं वा" उवज्झायत्तं वा पवत्तित्तं वा थेरत्तं वा गणित्तं वा° गणावच्छेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेतए वा । तिहिं संवच्छ रेहिं 'वीइक्कतेहि १. छज्जा ( क ) । २. समुच्छेयकप्पंसि तद्दिवसं आयरियउवज्झायताए (ता) । ३. अवट्टिए (क, जी, शु) । ४. x ( क, ख, ग, जी, शु) । ५. अहिज्जेज्जा (क, ख. ग, जी, शु) । ६. अहिज्जेज्जा ( क, ख, ग, जी, शु) ७. तरुणस्स (ख, ता ) । ८. वीसुंभेज्जा (ता) । ६. पुव्वामेव (ता) । १०. उद्दिसावेत्त (ता) । ११. आयरिएण य (ता) । १२. तरुणाए ( क ग ) ; तरुबीयाए ( ख ) ; तरुणियाए आहच्च (ता) । १३. X ( क, ग, जी, ता, शु) । १४. x (क, ग, जी, ता, शु) अनाचार्योपाध्यायाया उपलक्षणमेतत् प्रवर्तिनीरहितायाश्च ( व्य० भाग ४, उद्देशक ३, पत्र ४९ ) । १५. पुव्वामेव (ता) । १६. वा ( क ) । १७. मेहुणं ( क, ख, ग, जी, शु, मवृ) । १८. सं० पा० - आयरियत्तं वा जाव गणावच्छे इयत्तं । Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ उद्देसो चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियं सि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स' पडिविरयस्स निविगारस्स" एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥ १४. गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खि वित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए' वा ॥ १५. गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि 'पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निविगारस्स', एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १६. आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १७. आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्त वा जाव गण वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियं सि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविस्यस्स निविगारस्स, एवं से कप्प इ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १८. भिक्खू य 'गणाओ अवक्कम्म ओहायई तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं 'नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छे इयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥ १६. गणावच्छेइए" गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १. गएहिं उवट्ठियस्स ठियस्स (ता) सर्वत्र । ८. गणादवकम्म (ता)। २. ४ (क, ग, जी, शु)। ६. ओहाणुप्पेही गच्छेज्जा (ता) सर्वत्र । ३. धारियत्तए (क); धारयत्तए (ख, ग)। १०. नो जाव धारित्तए (क, ग); नो से कप्पति ४. पट्ठियंसि उवट्ठियंसि (ख) । जाव धारित्तए (ख)। ५. x (जी, शु)। ११. 'क, ख, ग' संकेतितादर्शषु सूत्रचतुष्टस्य ६. पट्ठियंसि जाव उद्दिसित्तए (क, ख)। पाठसंक्षेपः एवं वर्तते-गणावच्छेइए आय७. 'क, ख, ग' संकेतितादर्शष सूत्रद्वयं संक्षिप्तं रियउवज्झाए जहेव मेहुणधम्मे तहेव ओहाविए विद्यते एवं आयरिए उवज्झाए वि । वि भाणितव्वा । Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ ववहारो २०. गणावच्छेइए' गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिवियरस्स निविगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २१. आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं अनिक्खि वित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २२. आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा, तिण्णि संवच्छ राणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दि सित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निविगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २३. भिक्खू य बहुस्सुए बब्भागमे 'बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु" माई मुसावाई असुई 'पावजीवी जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए' वा धारेत्तए वा ।। २४. गणावच्छेइए 'बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु" कारणेसु माई 'मुसा वाई असुई पावजोवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २५. आयरिय-उवज्झाए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई 'मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव" गणावच्छेइयत्तं वा उद्दि सित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २६. बहवे भिक्खुणो बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २७. बहवे गणावच्छेइया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई १. 'ता' प्रती एतत् सूत्रं अत: परवतिसूत्रं च नैव ६. बहुसो आगाढेसु (ता) सर्वत्र । दृश्यते । ७. जाव (क, ख, ग ता)। २. बहुसु आगा (ख)। ८. जाव (क, ख, ग, ता)। ३. X (ता)। ६. 'क, ख, ग' संकेतितादर्शषु सूत्रद्वयं संक्षिप्तं ४. पावकम्मोवजीविया वि भवति जावज्जीवं विद्यते---एवं बहवे गणावच्छेइया बहवे आय(ता) सर्वत्र । रियउवज्झाया। ५. उहिसावेत्तए (ता) सर्वत्र । Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो ६१६ मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसि तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।। २८. बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उहिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २६. बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसि तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। -त्ति बेमि ।। Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उउबद्धकाले आयरिय उवज्झायादीणं विहार विधि-पदं १. नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स एगाणियस्स हेमंत गिम्हासु चारए' ॥ २. कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स अप्प बिइयस्स' हेमंत गिम्हासु चारए' ॥ ३. नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्प बिइयस्स हेमंत गम्हासु चारए || ४. कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स हेमंत गिम्हासु चारण || वासावासे आयरिय उवज्झायादीणं विहारविधि-पदं ५. नो कप्पइ आयरिय उवज्झायस्स अप्प बिइयस्स वासावासं वत्थए || ६. कप्पइ आयरिय उवज्झायस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए । ७. नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए । ८. कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पच उत्थस्स वासावासं वत्थए । आयरिय उवज्झायादीणं अण्णमण्ण निस्साए विहार विधि-पदं ६. से गामंसि वा 'नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा " सन्निवेसंसि बहू आयरिय-उवज्झायाणं अप्पबियाणं' बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पतइयाणं 'कप्पर हेमंत गिम्हासु चारए' अण्णमण्णनिस्साए " ॥ चउत्थो उद्देसो १०. से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा बंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा सन्निवेसंसि वा १. चरित्र ( ख, ग ); चरिए ( जी, शु ) । २. 'बितियस्स ( क ), 'बीयस्स ( ग ) । ३. गामाणुगामं चारए (क, ता ) सर्वत्र । ४. 'क, ता' संकेतितादर्शयो: - ५, ६, ७, ८ सूत्रचतुष्टयं नवमसूत्रानन्तरं संख्याङ्कितं विद्यते । ६२० ५. जाव (क, ग, ता) । अग्रिमसूत्रेपि । ६. अप्पपीयाणं ( ता ) । ७. चरित ( ग ) । ८. कप्पइ से अन्नमन्नणीसाए हेमंतगिम्हासु गामागामं चारए (क, ता ) | Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TMT 5 UT ततन्य चउत्थो उद्देसो ६२१ बहणं आयरिय-उवज्झायाणं. अप्पतइयाणं ग्छेइयाणं अप्पचउत्थाणं 'कप्पइ वासावासं वत्थए अण्णमण्ण निस्साए"। आयरियादीणं देहावसाणे अण्णस्स उवसंपज्जणाविधि-पदं ११. 'गामाणुगामं दूइज्जमाणो भिक्खू य" जं पुरओ' कटु विहरइ 'से य" आहच्च वीसंभेज्जा', अत्थियाइं 'स्थ अण्णे" केइ उवसंपज्जणारिहे, से उवसंपज्जियव्वे । नत्थियाइं त्थ अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे, 'अप्पणो य से" कप्पाए असमत्ते 'एवं से कप्पइएगराइयाए पडिमाए 'जण्णं-जपणं" दिसं अण्णे साहम्मिया विहरंति 'तण्णं-तण्णं'१२ दिसं उवलित्तए"। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं"वत्थए, कप्पड़ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए । तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जावसाहि अज्जो" ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ १२. 'वासावासं पज्जोसविओ भिक्खू जं पुरओ कटु विहरइ'", से य आहच्च वीसं भेज्जा, अत्थियाइं त्थ 'अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे, से उवसंपज्जियव्वे । नत्थियाई त्थ अण्णे केड उवसंपज्जणारिहे. अप्पणो य से कप्पाए असमत्ते एवं से कप्पइ एगराइ याए पडिमाए जणं-जण्णं दिसं अण्णे साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए । नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा“ परिहारे वा ॥ १. कप्पइ से अन्नमन्ननीसाए वासावासं वत्थए १०. कप्पइ से (ख, ग, जी, शु)। (क, ता)। ११. जन्तु जन्नु (ग, ता)। २. भिक्खू य गामाणुगाम दुइज्जमाणे (क, ग, १२. तन्नु तन्नु (ग, ता)। ता) । १३. एत्तए (क, ता)। ३. पुरा (क, ग.)। १४. विहरणवत्तियाए (क, ता)। ४. विहरेज्ज (क, ख. ता)। १५. कारणवत्तियाए (क, ता)। ५. से (ख); ~ (ग, जी, शु)। १६. णं तुम अज्जो (ता)। ६. वीसुंभेज्जा (क, ता)। १७. भिक्खू य जं पुरा कटु वासावासं पज्जो७. तत्थ (क, ता)। ___सवेति (क, ता)। ८. यव्वे सिया (क, ता)। १८. सेसं तं चेव जाव छए वा (क, ख, ग, ता)। ६. तस्स अप्पणो (ख, ग, जी, शु)। Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ ववहारो अरिहस्स आयरिय-उवज्झायत्त-पदं १३. आयरिय-उवज्झाए गिलायमाणे अण्णयरं वएज्जा—'अज्जो! ममंसिणं" कालगयंसि समाणंसि अयं समुक्क सियव्वे'। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे'। अत्थियाइं स्थ अण्णे केइ समक्कसणारिहे से समक्कसियव्वे, नत्थियाइं स्थ अण्णे केइ समुक्कसणारिहे से चेव समक्क सियव्वे । तंसि च णं समुक्किठेसि परो वएज्जा--दुस्समुक्किट्ठ ते अज्जो" ! निविखवाहि । तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केइ छए वा परिहारे वा। जे तं" साहम्मिया अहाकप्पेणं नो 'उठाए विहरंति सव्वेसि तेसिं तप्पत्तियं छए वा परिहारे वा ॥ १४. आयरिय-उवज्झाए ओहायमाणे अण्णयरं" वएज्जा-'अज्जो ! ममंसि णं" ओहावियंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे"। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे", से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे" । अत्थियाइं त्थ अण्णे केइ समक्कसणारिहे से समक्कसियव्वे", नत्थियाइं स्थ अण्णे केइ समक्कसणारिहे से चेव समुक्क सियव्वे । तंसि च णं समुक्किठेसि" परो वएज्जा-दुस्समुक्किट्ठ ते अज्जो ! निक्खिवाहि । तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केई छए वा परिहारे वा। जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं 'नो उट्ठाए विहरंति सव्वेसि तेसिं तप्पत्तियं छए वा परिहारे वा॥ उवद्रावणाविधि-पदं १५. आयरिय-उवज्झाए सरमाणे परं 'चउरायाओ पंचरायाओ कप्पागं भिक्खं नो १. एगयरं (क, ता)। पत्र ५४)। २. ममंसि णं अज्जो (क, ता); अज्जो ममंसि १२. उवट्ठावयंति तेसिं सम्वेसिं अंतरा (क, ता)। __णं (शु)। १३. एक्कतरं (ता)। ३. यव्वे सिया (क, ता)। १४. ममंसि णं अज्जो (ता)। ४. यव्वे सिया (क, ता)। १५. "यव्वे सिया (ता); 'ख, ग' आदर्शयोः अतः ५. यव्वे सिया (क, ता)। परं 'जाव तेसि तत्पत्तियं' एवं पाठो विद्यते । ६-७. यव्वे सिया (क, ता)। १६, १७, १८. यव्वे सिया (ता)। ८. समुक्कठेसि (क, ख, ता)। १६. समुक्कट्ठसि (ता)। ६. दुस्समुक्कट्ठ (क, ख, ता); समुक्किट्ठसि २०. दुस्समुक्कठे (ता)। २१. णोवट्ठावयंति तेसिं सव्वेसिं अंतरा (ता)। १०. अज्जो देहि (क)। २२. जाव (क, ग, जी, ता, शु)। ११. x (ग, जी, शु); गतमिच्छाद्वारं सम्प्रति २३. चउरातं पंचरातं कप्पातं (क); चउराय यथाकल्पद्वारावसरस्तत्र ये गच्छसाधवस्तं पंचरायो कप्पागं (ख, जी, श); चउरातं स्वगच्छसाधु प्रतीच्छिकं च पूर्वस्थापितं यथा कप्पातं (ता)। कल्पेन नाम्युत्तिष्ठन्ति (व्य०-उद्देसक ४, Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो ६२३ उवट्ठावेइ । अत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छए वा परिहारे वा । नत्थियाइं स्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छए वा परिहारे वा ॥ १६. आयरिय-उवज्झाए असरमाणे परं चउरायाओ पंचरायाओ कप्पागं भिक्खं नो उवट्ठावेइ । अत्थियाई त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छए वा परिहारे वा । नत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से 'संतरा छए वा परि हारे वा"॥ १७. आयरिय-उवज्झाए सरमाणे वा असरमाणे वा परं* दसरायकप्पाओ कप्पागं भिक्खु नो उवट्ठावेइ । अत्थियाइं त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छए वा परिहारे वा । नत्थियाई त्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, संवच्छरं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं उद्दिसित्तए॥ उवसंपदा-पदं १८. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा तं च केइ साहम्मिए पासित्ता वएज्जा-कं अज्जो ! उवसंपज्जित्ताणं विहरसि ? जे तत्थ सव्वराइणिए तं वएज्जा। 'राइणिए तं वएज्जा-अह भंते ! कस्स कप्पाए ? जे तत्थ सव्वबहुसुए तं वएज्जा, जं वा से भगवं वक्खइ" तस्स आणा-उववाय-वयण आणापुग्वं चरिया-पदं १९. बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं चारए। 'नो ण्हं कप्पई'" थेरे अणापुच्छित्ता-एगयओ अभिनिचारियं चारए, कप्पइ हं" थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए । थेरा य" से वियरेज्जा" एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए, थेरा य से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए । 'जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिनिचारियं चरंति से संतरा छए वा १. उवट्ठावेइ कप्पाए (क, ख, ग, जी, शु); ७. साहम्मिया (क, ख, ता)। तत्र यदि तस्मिन् कल्पाके सति (मवृ)। ८. पासित्ताणं (क, ता)। २. जाव (क, ता, शु)। ९. राइणीए (ग, जी, शु)। ३. जावज्जीवं तस्स तप्पत्तियं णो कप्पति आय- १०..x (क, ख, ग, ता)। रिय-उवज्झायत्तं उद्दिसित्तए (क, ता)। ११. आख्याति (म)। ४. जाव (क, ता)। १२. चिट्ठिस्सामो (क, ख, ता) । ५. आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा (क, १३. नो से कप्पइ (क, ता); कप्पइ नो ण्हं (ग, __ ख, ग, ता)। जी, श, मवृ)। ६. संवत्सरं यावन्न कल्पते आचार्यत्वमुपदेष्टुमनु- १४. से (क, ता) सर्वत्र । ज्ञातुं संवत्सरं यावत् गणो ह्रियते इति भावः १५. य णं (ख)। . (व्य० उद्देशक ४, पत्र ६२) । १६. वितरंति (क, ता)। Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ ववहारो परिहारे वा"॥ २०. चरियापविठे' भिक्खू जाव चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा' सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे ॥ २१. चरियापविठे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा 'पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स' अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुण्णवेयव्वे सिया-अणुजाणह भंते ! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्टियं, तओ पच्छा कायसंफासं"। २२. चरियानियट्टे भिक्खू जाव चउरायाओं पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुवाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंद मवि ओग्गहे ॥ २३. चरियानियट्टे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा 'पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अण्णण्णवेयव्वे सिया-अणुजाणह भंते ! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्टियं, तओ पच्छा कायसंफासं" ॥ सेह-राइणिय-संबंध-पवं २४. दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं जहा-सेहे य राइणिए य। तत्थ सेहतराए" पलिच्छन्ने, राइणिए अपलिच्छन्ने। 'सेहतराएणं राइणिए उवसंपज्जियव्वे, भिक्खोववायं च दलयइ कप्पागं'१२ ॥ १. ४ (क, ता)। ६. चाउराय (ख)। २. चारिया (क, ता)। १०. कप्पइ से एवं वदित्तए अणुजाणह भंते ! ३. आलोयणता (क, ता)। मिउग्गहं जाव तो पच्छा कायसंफासं भिक्खु४. परं जाव (क, ता)। भावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुजाणेयव्वे ५. भिक्खू (म); भिक्खुभावस्स (मवृपा) । सिया । अहालंदमवि ओग्गहे (क, ता); पुणो ६. नितियं नेच्छइयं जं (ख)। छेयपरिहारस्स उवट्टाएज्जा कप्पति से एवं ७. कप्पइ से एवं वदित्तए अणुजाणह भंते! मिउ- वदित्तए अणुजाणह भंते ! मिउग्गहं अहालंदं ग्गहं धुवं नितियं सासयं वेउट्टियं तओ पच्छा धुवं नितियं नेच्छइयं जं विउद्रियं तओ पच्छा कायसंफासं भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चंपि कायसंफासं भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुण्णवेयव्वे सिया अहालंदमबि ओग्गहं अणुण्णवेयव्वे सिया (ख)। ओग्गहे (क, ता)। ११. सेहे (क, ता, मवृ)। ८. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः एतत्सूत्रं नैव १२. तत्थ सेहतराए पुवामेव राइणियं उवसंपज्जेदृश्यते; 'ग' संकेतितादर्श प्रस्तुतस्य पुरो ज्जा तओ पच्छा सेहं राइणिए उवसंपज्जति वर्तिनश्च सूत्रद्वयस्य स्थाने एवं पाठसंक्षेपोस्ति ओवायस्सट्टाए भिक्खू दलयइ कप्पागं (क, -एवं नियट्रे वि दो गमा। ता)। रस्तुपए का चेहं दसलिए उवरूपज्जति Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो ६२५ २५. दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, 'तं जहा-सेहे य राइणिए य । तत्थ राइणिए पलिच्छन्ने, सेहतराए अपलिच्छन्ने। इच्छा राइणिए सेहतरागं उवसंपज्जइ इच्छा नो उवसंपज्जइ, इच्छा भिक्खोववायं दलयइ कप्पागं इच्छा नो दलयइ कप्पागं" ।। राइणियनिस्साए विहरण-पदं २६. दो भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं' कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं' विह रित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ २७. दो' गणावच्छेइया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं" विहरित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ २८. दो आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुव संपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ एहं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए॥ २६. बहवे भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ ३०. बहवे गणावच्छेइया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ३१. बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसं पज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए॥ ३२. बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । -त्ति बेमि॥ १. दलाति (ख)। २. सेहे अपलिच्छण्णे राइणिए पलिच्छण्णे तओ सेहे पूव्वामेव राइणियं उवसंपज्जति तओ पच्छा राइणिए इच्छाए उवसंपज्जइ इच्छाए णो उव- संपज्जइ ओवयस्सट्टाए भिक्खू इच्छाए वंदइ कप्पागं इच्छाए नो वंदइ कप्पागं (क, ता)। ३. से (क, ता)। ४. अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं (ख, ग, जी, शु); णो ण्हमिति वाक्यालङ्कारे कल्पते अन्योन्यमुपसम्पद्य विहर्तुम् (व्य० उद्देशक ४, मव पत्र ८६)। ५. से (क, ता) सर्वत्र । ६. एवं दो गणावच्छेइया (ख); एवं दो गणा वच्छेइया एकततो (ग)। ७. अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं (ख, ग, जी, शु, मवृ)। ८. 'क, ख, ग ता' संकेतितादर्शषु पाठसंक्षेपो विद्यते-एवं आयरियउवझाया एवं बहवे साहम्मिया गणावच्छेइया आयरियउवझाया जाव विहरित्तए। Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो उउबद्धकाले पवत्तिणी-गणावच्छेहणीणं विहारविधि-पदं १. नो कप्पइ पवत्तिणीए' अप्पबिइयाए हेमंतगिम्हासु चारए । २. कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए । ३. नो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पतइयाए हेमंत गिम्हासु चारए ॥ ४. कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए' हेमंत गिम्हासु चारए ।। वासावासे पवत्तिणी-गणावच्छेदणीणं विहारविधि-पदं ५. नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतइयाए वासावासं वत्थए । ६. कप्पइ पवत्तिणीए अप्पच उत्थाए वासावासं वत्थए । ७. नो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए वासावासं वत्थए । ८. कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पपंचमाए वासावासं वत्थए । पवत्तिणी-गणावच्छेइणोणं अण्णमण्णनिस्साए विहारविधि-पवं ६. से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि' वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पतइयाणं बहणं गणा वच्छेइणीणं अप्पचउत्थाणं 'कप्पइ हेमंत गिम्हासु चारए अण्णमण्णनीसाए॥ १०. से गामंसि वा जाव सन्निवसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पचउत्थाणं बहणं गणा वच्छेइणीणं अप्पपंचमाणं 'कप्पइ वासावासं वत्थए अण्णमण्णनीसाए। १. पवित्तिणीए (क, ता)। २. गामाणुगामं चारए (क, ता) सर्वत्र । ३. अप्पचउत्थीए (ख)। ४. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः ५, ६, ७, ८ संख्या ङ्कितं सूत्रचतुष्ट्यं नवमसूत्रानन्तरं विद्यते । ५. व०४।। ६. रायहाणिसी (ग, जी, शु)। ७. गणावच्छेइयाणं (क, ता)। ८. कप्पइ से अण्णमण्णनीसाए हेमंतगिम्हास गामाणुगामे चारए (क, ता)। ९. कप्पति से अण्णमण्णणीसाए वासावासं वत्थए (क, ता): Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ६२७ पवत्तिणी-गणावच्छेइणीणं देहावसाणे अण्णाए उवसंपज्जणाविधि-पदं १.१. 'गामाणुगामं दूइज्जमाणी' निग्गंथी य जं पुरओ काउं' विहरइ सा" आहच्च वीसं भेज्जा 'अत्थियाइं त्थ" काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा'। नत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा 'तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से" एगराइयाए पडिमाए 'जण्णं-जण्णं दिसं अण्णाओ माहम्मिणीओ विहरंति' 'तण्णं-तण्णं" 'दिसं उवलित्तएनो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्टियंसि परा" वएज्जा-वसाहि अज्जे" ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए । जं तत्थ परं एग रायाओ वा दुरायाओ वा वसई५ 'से संतरा"छए वा परिहारे वा॥ १२. 'वासावासं पज्जोस विया निग्गंथी य जं पुरओ काउं" विहरइ“सा आहच्च वीसं भेज्जा अत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा"। 'नत्थियाई त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अण्णाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं-तणं दिसं उवलित्तए । नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए । तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परा वएज्जा-वसाहि अज्जे ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए । जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छए वा परिहारे वा ॥ १. दूइज्जमाणा (शु)। ८. विहरंति सेसं तहेव जाव छेदे वा (ख) । २. कटु (ख)। ६. तंणु तंणु (क, ता)। ३. णिग्गंथी य जं पुरा कटु गामाणुगामं दूइज्जति १०. एत्तए (क, ता)। सा य (क, ता)। ११. विहरणवत्तियाए (क, ता)। ४. अत्थिया इत्थ (ख) । १२. कारणवत्तियाए (क, ता)। ५. यव्वा सिया (क, ता)। १३. परो (ख, जी)। ६. अप्पणो य से कप्पाए असमत्ते एवं से कप्पति १४. णं तुमं अज्जो (क, ता); अज्जो (ग, जी)। (क. ता): अप्पणो कप्पाए असमत्ता एवं से १५. वसेज्जा (क. ता)। कप्पति (ख);तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते १६. से से अंतरा (क, ता) । कप्पइ सा (ग, जी, शु); आर्षे स्त्रीलिङ्गपि १७. कट्ट (ख) । षष्ठीविभक्त्यन्तस्य 'तत्' शब्दस्य 'से' इति १८. निग्गंथी य जं पुरा कटु वासावासं पज्जोसवइ रूपमुपलभ्यते । (क, ता)। ७. जंणु जंणु (क, ता)। १६. सं० पा०-वसंपज्जियव्वा जाव छए । Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ ववहारो अरिहाए पवत्तणी-गणावच्छेइणित्त-पदं १३. पवत्तिणी' य 'गिलायमाणी अण्णयरं" वएज्जा-'मए णं अज्जे"! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा । सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियन्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समक्क सियव्वा । अत्थियाई त्थ अण्णा काइ समक्कसणारिहा सा समक्क सियव्वा, नत्थियाई त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा । ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा-दुस्समुक्किळं ते अज्जे ! निक्खिवाहि ? तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छ ए वा परिहारे वा। 'जाओ तं" साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो 'उठाए विहरति 'सव्वासिं तासिं'" तप्पत्तियं२ छ ए वा परिहारे वा ॥ १४. पवत्तिणी य 'ओहायमाणी अण्णयरं' वएज्जा-मए" णं अज्जे" ! ओहावियाए" समाणीए इयं समक्क सियव्वा । सा य समक्कसणारिहा समक्क सियवा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्कसियव्वा । अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समक्कसणारिहा सा समुक्कसियव्वा, नथियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समक्कसियव्वा । ताए व णं समक्किट्ठाए परा वएज्जा-दुस्सम क्किळं ते अज्जे ! निक्खिवाहि तीसे णं निक्खिवमाणीए“ नत्थि केइ छए वा परिहारे वा । जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो 'उट्ठाए विहरंति१९ 'सव्वासिं तासि'२० तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा॥ १. पवित्तिणी (क, ता । १०. उवट्ठावयंति (क, ता)। २. गिलायमाणीए एकतरं (क, ता); गिलाय- ११. तासि सव्वासि (ख)। माणीए अण्णयरं (जी, शु)। १२. X (क, ता)। ३. ममंसि णं अज्जो (क, ता); अज्जो मए णं १३. ओहायमाणीए एगतरं (क, ता)। १४. ममंसि (क, ख, ता)। ४. अयं (क, ख, ग, जी, ता, शु)। १५. अज्जो (क, ख, ग, जी, ता, शु)। ५. यव्वा सिया (क, ता) सर्वत्र । १६. ओधाइयंसि (ता)। ६. परो (ख, जी)। १७. एसा (क, ख, ता)। ७. अज्जो देहि (क, ता)। १८. णिक्खिवमाणीए वा अणिक्खिवमाणीए वा ८. णिक्खिवमाणीए वा अणिक्खिवमाणीए वा (क, ता)। (क, ता)। १६. उवट्ठायंति (क, ता); अब्भुठेति (ख)। ६. तं जाओ (ता)। २०. तासि सव्वासि (ख)। Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो आया रपकप्प-पम्हुईए विधि-पदं १५. निग्गंथीए' नवडहरतरुणियाए' आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया । साय पुच्छियव्वा - केण ते अज्जे ! कारणेणं आयारपकप्पे नाम अज्झयणे परिभट्ठे ? कि आबाहेणं उदाहु पमाएणं ? सा य वएज्जा - 'नो आबाहेणं, पमाएणं । जावज्जीवं तीसे तप्पत्तियं नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसत्तए वा धारेत्तए वा " । साय वज्जा - आबाहेणं, नो पमाएणं । सा य संठवेस्सामी ति संठवेज्जा, एवं से कप्पइ' पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसत्तए वा धारेत्तए वा । साय संवेस्सामी ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा' गणावच्छेइणित्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा ॥ T १६. निग्गंथस्स नवडहरतरुणस्स' आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे सिया । से य पुच्छिवे - केण ते अज्जो ! कारणेणं आयारपकप्पे नाम अज्झयणे परिब्भट्ठे ? किं आबा उदाहु पमाएणं ? से य वएज्जा - 'नो आबाहेणं, पमाएणं । जावज्जीवं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव" गणावच्छेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा । १२ ६२६ से य वएज्जा - आबाहेणं, नो पमाएणं । से य संठवेस्सामी ति संठवेज्जा, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा । सेय संवेस्सामी तिनो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा ॥ १. 'खग, जी, शु' संकेतितादर्शेषु 'निर्ग्रन्थ' सूत्रं पूर्वं विद्यते किन्तु एतद् भाष्य-वृत्तिसम्मतं नास्ति । अत्राह शिष्यः --- पुरुषोत्तमो धर्म इति पूर्वं निर्ग्रन्थसूत्रं वक्तव्यं, पश्चान्निर्ग्रन्थीसूत्रं, पूर्वत्र वाध्ययनद्वये पूर्वं निर्ग्रन्थसूत्राण्युक्तानि पश्चान्निग्रन्थीसूत्राणि । अत्र तु केन कारणेन सूत्रविपर्ययः कृतः । सूरिराह जइ विय पुरिसादेसो पुव्वं तहवि विवज्जओ जुत्तो । जेण समणीउ पगया पमायबहुला य अथिरा य ॥६॥ यद्यपि च पुरुषोत्तमो धर्मः पूर्वत्र वाध्ययनद्वये पूर्वं पुरुषादेशस्तथाप्यत्र विपर्ययो युक्तः । केन कारणेनेत्याह-येन करणेन श्रमण्यः प्रकृतास्तथा प्रायः श्रमण्यः प्रमादबहुला अस्थिराश्च न तु श्रमणाः अध्ययनस्य च नाशः प्रायः प्रमादतस्ततः श्रमण्यधिकारादधिकृत सूत्रार्थस्थानत्वात् पूर्वं निर्ग्रन्थीसूत्रमुक्तम्, पश्चात् निर्ग्रन्थसूत्रम् ( व्य० उद्देशक ५, मवृ, पत्र ४, ५) । २. तरुणाए (ग, जी, शु) । ३. अज्जो (क, ख, जी, ता, शु); x ( ग ) | ४. x ( ख, ग, जी, शु, मट्ट) । ५. चिन्हाङ्कितः पाठः 'क, ता' प्रत्योः सूत्रान्ते वर्तते । ६. चिट्ठइ (क, ता ) । ७. चिट्ठइ (क, ता ) । ८. वा जाव (क, ता ) । ६. तरुणगस्स ( ख ) । १० x (ग, जी, शु) । ११. व ५।१५ । १२. चिन्हाङ्कितः पाठः 'क, ता' प्रत्योः सूत्रान्ते वर्तते । Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० ववहारो १७. थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिभठे सिया। कप्पई' तेसिं 'संठवेमाणाण वा असंठवेमाणाण वा आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १८. थेराणं' थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिभठे सिया। कप्पइ तेसिं सन्निसण्णाण वा संतुयद्राण वा उत्ताणयाण वा पासिल्लयाण वा आयारपकप्पं नामं अज्झयणं दोच्चं पि तच्चं पि पडिच्छित्तए वा पडिसारेत्तए वा॥ निग्गंथस्स निग्गंथीए य अण्णमण्णालोयणा-पदं १६. जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य' संभोइया सिया, नो ण्ह कप्पइ अण्णमण्णस्स अंतिए आलोएत्तए । अत्थियाइं त्थ". केई आलोयणारिहे, कप्पइ ण्हं 'तस्स अंतिए" आलोएत्तए; 'नत्थियाई त्थ केइ आलोयणारिहे एव ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स अंतिए आलोएत्तए"। निग्गंथस्स निग्गंथीए य अण्णमण्णवेयावडिय-पदं २०. जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया", नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स" 'वेयावच्चं कारवेत्तए'५ अत्थियाइं त्थ केइ वेयावच्चकरे कप्पइ ण्हं वेयावच्चं कारवेत्तए नत्थियाइं त्थ केइ वेयावच्चकरे एव ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स वेयावच्चं कारवेत्तए॥ २१. निग्गंथं च णं राओ वा वियाले वा दीहपट्ठो लूसेज्जा इत्थी वा पुरिसं" ओमज्जेज्जा पुरिसो वा इत्थि" ओमज्जेज्जा। एवं से कप्पइ, एवं से चिट्ठइ, परिहारं च णो पाउणइ-एस कप्पे थेरकप्पियाणं । एवं से नो कप्पइ, एवं से नो चिट्ठइ, परिहारं च" पाउणइ–एस कप्पे जिणकप्पियाणं । -त्ति बेमि ॥ १. चिट्ठइ (क, ता)। ११. वृत्ती एष पाठो व्याख्यातो नैव दृश्यते । २. संठवेत्ताण वा असंठवेत्ताण वा (ख,ग,जी,शु)। १२. ४ (क, ता)। ३. 'क, ता' संकेतितादर्शयोरेतस्मिन् सूत्रे वाचना- १३. से (क, ता) सर्वत्र । भेदो दृश्यते-थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पति १४. अन्नमन्नेणं (ग, जी, शु)। दोच्चं पि तच्च पि अभिणिसण्णाणं वा १५. वेयावडियं करेत्तए (क, ख, ता)। अभियद्राणं वा आयारकप्पं णाम अज्झयणं १६. अण्णे (क, ता) सर्वत्र । संठवित्तए वा पडिसारेतए वा। १७. करेत्तए (क, ता) सर्वत्र । ४. पडिपुच्छित्तए (ग, जी, शु)। १८. पुट्ठो (ख)। ५. ४ (क, ता)। १६. पुरिसस्स (ख, ग, जी, शु) । ६. दा (क, ता)। २०. ओमादेज्जा (ग, जी, शु)। ७. से (क, ता) सर्वत्र । २१. इत्थीए (ख, ग, जी, शु)। ८. अत्थिया इत्थ (ख)। २२. ओमावेज्जा (ग, जी, शु)। ९. अण्णे (क, ता)। २३. से न (जी, शु)। १०. तस्संतियं (क, ख, ता)। २४. च नो (ग, जी, शु)। Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो उद्देसो सयणगिह- गमण विहि-पदं थेरे अणापुच्छित्ता नायविहिं थेरा य से वियरेज्जा, एवं से एवं से नो कप्पइ नायविहि 1 १. भिक्खु य' इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए, नो से कप्पइ' एत्त, कप्पर से थेरे आपुच्छित्ता नायविहिं एत्तए । कप्पर नायविहिं एत्तए । थेरा य से नो वियरेज्जा, एत्तए । जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे नायविहिं एइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा । नो से कप्पइ अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स नायविहिं एत्तए । कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धि नायविहिं एत्तए । ‘तत्थ से“ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे, पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिग्गात्तए, नो से कप्पर भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए । 'तत्थ से" पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते भिलिंगसूवे, पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिग्गा हेत्तए । तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पुव्वाउत्ते कप्पइ से दो वि पडिग्गाहेत्तए । १. X ( क, ता ) । २. दशाश्रुतस्कन्ध ( ६।१८) सूत्रे 'नायवीथि' इति पाठोस्ति । 'जी' संकेतितादर्शो 'नायविहं' इति पाठो मुद्रितोस्ति । 'विह' शब्दो वीथ्यर्थवाचक एव देश्याम् । मलयगिरिवृत्तो 'विधि:' इति पदं व्याख्यातमस्ति, आदर्शेष्वपि एतदेव पदं दृश्यते । इदमपि 'वीथि' वाचकमेव स्यात् । ३. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः 'एत्तए' इति पर्यन्तं स्वीकृतपाठात् पाठविपर्ययो दृश्यते-नो से कप्पर अप्पसुयस्स अप्पागमस्स णायविहिं एत्तए, कप्पति से बहुसुयस्स बब्भागमस्स, कप्पइ से बहुसुएण सद्धि णातविहि एत्तए । णो से कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता णातविहिं एत्तए, कप्पति से थेरे आपुच्छित्ता जातविहिं एत्तए । थेरा य से वितरंति एवं से कप्पति णाय विहि एत्तए, थेरा से णो वितरंति एवं से णो कप्पति णायविहिं एत्तए । ४. अतोग्रे 'ग' प्रतौ वृत्तौ च 'जाव जं तत्थ' इति पाठसंक्षेपो दृश्यते । ५६. तस्य (क, ता) सर्वत्र । ६३१ Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ ववहारो तत्थ से पुवागमणेणं दो वि पच्छाउत्ते नो से कप्पइ दो वि पडिग्गाहेत्तए । आयरिय-उवज्झायस्स अइसेस-पदं २. आयरिय-उवज्झायस्स गणं सि पंच अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा-आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए 'निगिज्झिय-निगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा णातिक्कमति'। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चार-पासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा णातिक्कमति । आयरिय-उवज्झाए 'पभू वेयावडियं इच्छाए करेज्जा इच्छाए" नो करेज्जा। आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णातिक्कमति। आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णातिक्कमति॥ गणावच्छेइयस्स अइसेस-पवं ३. गणावच्छेइयस्स गणंसि दो अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा–गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णातिक्कमति । गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगाणिए एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णातिक्कमति ॥ टस १. अतोग्रे 'ख, जी' संकेतितादर्शयोः एतावान् अतिरिक्तः पाठो लभ्यते-जे से तत्थ पुवा- गमणेणं पुवाउत्ते से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउते नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए । दशाश्रुतस्कन्ध (६।१८) सूत्रेपि एष पाठो विद्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य मलयगिरिवृत्तौ-तत्थ से पुवागमणेणं दो वि पुवाउत्ते कप्पइ से दो वि पडिग्गाहेत्तए । तत्थ से पुवागमणेणं दो वि पच्छाउत्ते नो से कप्पइ दो वि पडिग्गाहेत्तए । एष पाठो वि व्याख्यातो नास्ति । २. णिगझिय-णिगझिय (ठाणं ५।१६६) । ३. नो अइक्कमइ (ग, जी, शु) सर्वत्र । ४. उच्चारं वा पासवणं वा (क, ख, ता) । ५. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः तृतीयातिशयः पञ्चमस्थाने वर्तते । ६. इच्छाए वेयावडियं (क, ता); वेयावडियं इच्छा (ख, ग, जी, शु); इच्छा वेयावडियं (ठाणं ५।१६६)। ७. इच्छा (ख, ग, जी, शु, ठाणं ५।१६६) । ८. (ख, ग, जी शु); मलयगिरिवृत्ती एतत् पदं नास्ति व्याख्यातम् । स्थानाङगे (५।१६६) 'एगगो वसमाणे' इति पाठो विद्यते । पञ्चमातिशयेपि एवमेव पाठभेदो दश्यते । ६. संवसमाणे (क, ता)। Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठो उद्देसो अगडसुयाणं एगत्तवासविहि-पदं ४. से' गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए' एगनिक्खमण पवेसाए नो कप्पर बहूणं अगडसुयाणं एगयओ वत्थए । अत्थियाइं स्थ केइ आयारपकप्पधरे नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकष्पधरे से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ ५. से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण - पसाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयओ वत्थए । अत्थियाइं त्थ hs आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणि संवसइ नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रर्याणि संवसइ सव्वेसि तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा । ६३३ अप्पयस्स गागिवासनिसेध-पदं ६. से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुणे 'अप्पागमस्स अप्पसुयस्स" ? बहुसुस्स एगा गिवासविहाण -पदं ७. से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण-पंवेसाए कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए उभओ' कालं भिक्खुभावं पडिजागरमाणस्स ॥ १. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः अतः सप्तमसूत्रपर्यन्तं पाठभेदो दृश्यते । स चैवम् - गणावच्छेइए एगदुवाराए एगणिक्खमणपवेसाए णो ates बहूणं अकडेसुयाणं एकतओ वत्थए । गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि वा अभिणिव्वकडाए अभिणिदुवाराए अभिणिक्खमणपवेसाए (पवेसणयाए-ता) णो कप्पइ (कप्पइता) बहूणं अकडसुयाणं एकतओ वत्थए, अथिया (त्थ-ता) आयारपकप्पधरे जे तइयं राति संवसति नत्थियाई स्थ छेए वा परिहारे वा, णत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तइयं राति संवसति सेसे अंतरा छेए वा परिहारे वा । जे गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवारा ए एगनिवखमणपवेसण - याए अभिनिव्वगडाए नो कप्पइ बहुसुयस्स य ( बहुसुयस्स बहुआगमस्स ता) भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुण अप्पसुयस्स भिक्खुस्स अप्पागमस्स | जे गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि वा अभिणिव्वगडाए अभिदुवाराए (अभिणिदुवा - राए - ता) बहुसुयस्स बहुआगमस्स भिक्खुस्स वत्थए उभओ कालं भिक्खुभावं पडजागर माणस्स । २. रायहाणिसि (ग, जी, शु, मट्ट) सर्वत्र । ३. मलयगिरिवृत्तौ एतत् पदं नास्ति व्याख्यातम् । ४. पवेसणाए ( ख, ग, जी, शु) । ५. अप्पसुयस्स अप्पागमस्स ( ख ) । ६. दुहओ (ग, जी, शु ) । Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ ववहारो हत्थकम्मपडिसेवणा-पायच्छित्त-पदं ८. जत्थ 'एए बहवे" इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति' तत्थ' से समणे निग्गंथे अण्णयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे हत्थकम्मपडिसेवणपत्ते आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ मेहणपडिसेवणा-पायच्छित्त-पवं ६. जत्थ एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति तत्थ से समणे निग्गंथे अण्णयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ अकयपायच्छित्ताए निग्गंथीए उवट्ठावणाइनिसेध-पदं १०. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा निग्गंथि खुयायार' सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं 'तस्स ठाणस्स" अणालोयावेत्ता अपडिक्कमावेत्ता' 'अहारिहं पायच्छित्तं अपडिवज्जावेत्ता" 'उवट्ठावेत्तए वा• संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ कयपायच्छित्ताए निग्गंथीए उवट्ठावणाइविहाण-पदं ११. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा निग्गंर्थि" खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । -त्ति बेमि ॥ १. (क); ते बहवे (ख); बहवे (ता)। ८. अतोने 'जी, शु' मुद्रितपुस्तकयोः एतावान् २. पण्हायंति (क, ख, ता)। अतिरिक्तः पाठो दृश्यते--अनिन्दावेत्ता अगर३. अतो 'क, ता' संकेतितादर्शयोः द्वयोः सूत्रयोः हावेत्ता अविउड़ावेत्ता अविसोहावेत्ता अकरणस्थाने एकमेव सूत्रमस्ति-तत्थ भिक्खू याए अणब्भुट्ठावेत्ता अग्रिमसूत्रेपि एवमेव । अण्णतरंसि सासयंसि (सोतयंसि-ता) ६.४ (क, ता)। अणप्पवेसित्ता सक्कपोग्गले णिग्याएति मेहण- १०. x (क, ता); पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा पडिसेवणपत्ते आवज्जति चाउमासियं परिहार- उवद्रावेत्तए वा (ख)। ट्ठाणं अणुग्घातियं । ११. अण्णगणाओ आगयं निग्गंथि (क, ता); ४. अण्णगणाओ आगतं निग्गंथि (क, ता)। निग्गंथि अण्णगणाओ आगयं (ख, ग, जी, ५. खुड्डायारं (क, ता)। ६. संकिलिट्ठायारचरित्तं (क, ख, ग, ता) संकि- १२. संकिलिट्ठायारचरित्तं (क, ख, ग, ता) संकिलिट्ठायारचित्तं (जी, शु)। लिट्ठायारचित्तं (जी, शु)। ७. दोच्चंपि (क, ता)। Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो अण्णगणागयाए निग्गंथीए पुच्छणाइ-विहि-निसेध-पदं १. 'जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया", नो कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे अणापुच्छित्ता 'निग्गंथिं अण्णगणाओ आगयं" खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकि लिट्ठायारं' 'तस्स ठाणस्स" अणालोयावेत्ता' 'अपडिक्कमावेत्ता अहारिहं° पायच्छित्तं अपडिवज्जावेत्ता 'पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभंजित्तए वा संवसत्तिए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणु दिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २. 'जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया", कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे आपुच्छित्ता 'निग्गंथि अण्णगणाओ आगयं" खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकि लिट्रायारं 'तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता 'पडिक्कमावेत्ता अहारिहं० पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता 'पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए.वा धारेत्तए वा॥ ३. 'जे" निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया", कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीओ आपच्छित्ता वा अणापच्छित्ता वा निग्गंथि अण्णगणाओ आगयं खयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता" पडिक्कमावेत्ता अहारिहं° पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए १. ४ (क, ता)। ८. अण्णगणाओ आगतं निग्गंथि (क, ता)। २. अण्णगणाओ आगयं निग्गंथि (क, ता)। . दोच्चपि (क, ता)। ३. यारचरित्तं (क, ख, ग, ता); यारचित्तं १०. सं० पा० -आलोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं । (जी, शु, मवृ)। ११. ४ (क, ता)। ४. दोच्चंपि (क, ता)। १२. 'ख' प्रतौ एतत् सूत्रं नास्ति । ५. सं० पा०-अणालोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं । १३. x (क, ता) । ६. ४ (क, ता) । १४. सं० पा०-आलोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं । ७. ४ (क, ता)। ६३५ Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहारो वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणु दिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तं च निग्गंथीओ नो इच्छज्जा', सेहिमेव नियं ठाणं ॥ विसंमोइयकरण-विहि-निसेध-पदं ४. 'जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया", नो ण्ह कप्पइ पारोक्खं पाडि एक्कं' संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पाडिएक्कं 'संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए । 'जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा-अह णं अज्जा ! तुमए" सद्धि इमम्मि कारणम्मि पच्चक्ख संभोग विसंभोगं करेमि"। से य पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ" पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। से य नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए॥ ५. 'जाओ निग्गंथीओ वा निग्गंथा वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं 'संभोइणि विसंभोइणि करेत्तए, कप्पइ ण्हं५ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणि विसंभोइणि करेत्तए। 'जत्थेव ताओ अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा-अह णं भंते ! अमुगीए अज्जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि"। साय से पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणि विसंभोइणि करेत्तए। सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणि विसंभोइणि करेत्तए॥ निग्गंथीपव्वज्जा-विहि-निसेध-पदं ६. 'नो कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथि अप्पणो अट्टाए' पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए" वा 'उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ७. कप्पइ निग्गंथाणं 'निग्गंथि अण्णेसिं अट्ठाए'" पव्वावेत्तए वा 'मुंडावेत्तए वा सेहा १. साइज्जेज्जा (क, ता)। २. सयमेव (ख); सेयमेव (जी, शु)। ३. ४ (क, ता)। ४. x (क, ता)। ५. परोक्ख (ख)। ६. पाडियक्कं (क, ख, ता)। ७. विसंभोगं (जी, शु) । ८. निग्गंथाणं (क, ता)। ९. जाव (क, ता)। १०. तुमाए (जी, शु)। ११. x. (क, ता)। १२. कप्पइ निग्गंथाणं (क, ता)। १३. नो कप्पइ निग्गंथीणं (क, ता)। १४. संभोइयं विसंभोइयं (ख, ग, जी, शु) सर्वत्र । १५. निग्गंथीणं (क, ता)। १६. परोक्षं प्रत्यक्षं (म)। १७. ४ (क, ता)। १८. अप्पणो अट्ठाए निग्गंथि (क, ता)। १६. सिक्खावित्तए वा सेहावेत्तए (ख)। २०. सिक्खावित्तए वा (क, ता)। २१. निग्गंथीणं अदाए निग्गंथि (क, ता)। २२. सं० पा०-पव्वावेत्तए वा जाव संभुंजित्तए । Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो वेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणु दिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।। निग्गंथपव्वज्जा-विहि-निसेध-पदं ८. नो कप्पइ निग्गंथीणं 'निग्गंथं अप्पणो अट्टाए" पवावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा' 'सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणु दिसं वा° उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९. कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथं अण्णेसि अट्ठाए पवावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा •सेहावेसए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा° उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ विइगिट्ठदसा-उद्देसण-विहि-निसेध-पदं १०. नो कप्पइ निग्गंथीणं विइगि 8 दिसं वा अणुदिसं वा 'उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा"। ११. कप्पइ निग्गंथाणं विइगिळं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ विइगिट्ठकलह-उवसमण-विहि-निसेध-पदं १२. नो कप्पइ निग्गंथाणं विइगिट्ठाई पाहुडाई विओसवेत्तए ॥" १३. कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठाई पाहुडाइं विओसवेत्तए । सज्झाय-विहि-निसेध-पदं १४. नो" कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइगिठे काले सज्झायं करेत्तए । १५. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अविइगिठे काले सज्झायं करेत्तए । १६. कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथ निस्साए विइगिठे काले सज्झायं करेत्तए॥ १७. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए । १८. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सज्झाइए सज्झायं करेत्तए । १. अप्पणो अट्ठाए निग्गंथं (क, ता)। ८. वितिकट्ठयं (ख); वितिगिट्ठियं (ग); २. सं० पा०--मुंडावेत्तए वा जाव उद्दिसित्तए। विइकिट्ठियं (जी, शु) । ३. निग्गंथाणं (ख, जी)। ६. विगिट्ठाई (क, ता)। ४. सं० पा०-मुंडावेत्तए वा जाव उद्दिसित्तए। १०. उवाइणावेत्तए (क, ता) अग्रिमसूत्रेपि एव५. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः निर्ग्रन्थसूत्रं पूर्वमस्ति, मेव । तदनन्तरं च निर्ग्रन्थीसूत्रं विद्यते । ११. एषां त्रयाणां (१४, १५, १६) सूत्राणां स्थाने ६. वितिकिट्टए (ख, शु); वितिगिट्टियं (ग); 'ख, ग, जी, शु' वृत्ती च सूत्रद्वयं विद्यते, विइकिट्ठियं (जी)। यथा--नो कप्पइ निग्गंथाणं विइकिट्टए काले ७. उद्दिसावेत्तए (क, ता); अग्रिमसूत्रेपि एव- सज्झायं करेत्तए । कप्पइ निग्गंथीणं विइकिट्टए मेव । काले सज्झायं करेत्तए निग्गंथनिस्साए । Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ ववहारो १६. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अप्पणो 'असज्झाइए सज्झायं" करेत्तए । ___ कप्पइ ‘ण्हं अण्णमणस्स" वायणं दलइत्तए । उवझायावि-उद्देसण-विहि-पदं २०. 'तिवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स" तीसवासपरियायाएं समणीए निग्गंथीए कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए । २१. 'पंचवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स" सट्ठिवासपरियायाए' समणीए निग्गंथीए ___ कप्पइ आयरियत्ताएउद्दिसित्तए ॥ निग्गंथस्स मरणोत्तर-विधि-पदं २२. 'गामाणुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वीसंभेज्जा" तं च सरीरगं 'केइ साह म्मिया" पासेज्जा, कप्पइ से 'तं सरीरगं मा सागारियमिति 'कट्ट थंडिले" बहुफासुए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिद्ववेत्तए"। अत्थियाइं त्थ केइ ‘साहम्मियसंतिए उवगरणजाए' परिहरणारिहे, कप्पइ से" सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरेत्तए॥ सेज्जातर-ठवणाविधि-पदं २३. सागारिए" उवस्सयं वक्कएणं पउंजेज्जा, से य वक्कइयं वएज्जा-'इमम्मि य १. असज्झाइयंसि सज्झाइयं (ता)। (व्य० उद्देशक ७, भाष्यगाथा ४०६, पत्र ७०)। २. से (क, ता)। ८. भिक्खू य गामाणुगामं दूइज्जमाणे आहच्च ३. तिवासपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ (क,ता); वीसुंभेज्जा (क, ता, चू) । तिवासपरियाए समणे निग्गंथे (ख, ग, जी, ६. साहम्मिया (क, ता); कति साहम्मिए (ग); शु) इति प्रथमान्तः पाठः आदर्शषु विद्यते। केइ साहम्मिए (जी, शु)। कल्पते इति क्रियापदयोगात् असौ षष्ठ्यन्तो १०. 'तं सरीरगं मा' इति पाठोत्र नास्ति (क, ता): युक्तः स्यात् । तेन मूले तथा स्वीकृतः । _ 'मा' इति पदं नास्ति (ग); 'मा' इति पदस्य ४. तीसं वास (ग)। स्थाने 'से न' इति पाठोस्ति (जी, शु)। ५. पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे (क, ख, ग, ११. थंडिल्ले (ग, जी, श)। जी, ता, श); अत्रापि षष्ठ्यन्तः पाठी युक्तः तेन १२. कटट तं सरीरयं एकंतमंते परिवेत्ता (क, तथा स्वीकृतः । ६. परियातियाए (चू)। १३. अचित्ते (क, ता)। ७. आयरियउवज्झायत्ताए (ग, जी, शु, मवृ); १४. से तं (क, ता)। किन्तु भाष्ये केवलं आचार्यपदमेव अधिकृत- १५. हारित्तए (ख); हारेत्तए (ग, जी, शु)। मस्ति १६. साकारिए (ता); सारिए (जी, शु) सर्वत्र । तेवरिसो तीसियाए जम्मण चत्ताए कप्पति उवज्झे। १७. x (क, ता)। बितियाए सट्ठि सयरी य जम्मण पणवास आयरितो॥ Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो ६३६ इमम्मि य" ओवासे' समणा निग्गंथा परिवसंति', से सागारिए पारिहारिए। से य नो वएज्जा, वक्काइए वएज्जा-'इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु", से सागारिए पारिहारिए। दो वि ते वएज्जा', दो वि सागारिया पारिहारिया ॥ २४. सागारिए उवस्सयं विक्किणेज्जा, से य कइयं वएज्जा-'इमम्मि य इमम्मि य ओवासे" समणा निग्गंथा परिवसंति, से सागारिए पारिहारिए । से य नो वएज्जा, कइए वएज्जा-इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु, से सागारिए पारिहारिए। दो वि ते वएज्जा, दो वि सागारिया पारिहारिया ॥ ओग्गह-अणुण्णवणाविधि-पदं २५. विहवधूया नातिकुलवासिणी', सावि ताव" ओग्गहं अणुण्णवेयव्वा"। किमंग पुण 'पिया वा भाया वा पुत्ते वा पहेवि" ओग्गहे ओगेण्हियव्वे" ॥ २६. पहिए" वि ओग्गहं अणुण्णवेयव्वे"॥ २७. से" रायपरियट्टेसु" संथडेसु अव्वोगडेसु अव्वोच्छिन्नेसु अपरपरिग्गहिएसु"सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे ।। २८. से रज्जपरियट्टेसु" असंथडेसु वोगडेसु वोच्छिन्नेसु परपरिग्गहिएसु" भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुण्णवेयव्वे । –त्ति बेमि ॥ १. अयंसि (क, ता); इमम्हि य इमम्हि य (ग, १२. पुत्ते वा पिया वा (क, ता)। जी, शु)। १३. सेय दोवि (ख, मवृ); से अ वेवि (ग); २. ओवासंसि (क, ता)। सेवि यावि (जी, शु); भाष्ये (५१२, ३. परिवसंतु (क, ता)। ५१३) प्रभवस्य अप्रभवस्य चर्चास्ति, तेन 'पह' ४. x (ख, जी, शु); 'क, ता' संकेतितादर्शयोः इति पदं स्वाभाविक प्रतीयते । 'पह' पहव' 'इमम्मि य इमम्मि य ओवासे' अस्य स्थाने एते द्वे अपि पदे एकार्थके विद्येते, तेनेति ज्ञायते 'अयंसि ओवासंसि' इति पाठो विद्यते । गृहस्वामिना प्रमाणीकृतः पुरुषो पि अवग्रहमनुअग्रिमसूत्रे पि एवमेव । ज्ञापयितव्यः । ५. वएज्जा अयंसि ओवासंसि समणा निग्गंथा १४. उग्घेतव्वे सिया (क, ता)। परिवसंतू (क, ता); वएज्जा अयं सि अयंसि १५. पहे (च) । ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु (ख) १६. 'यव्वे सिया (क, ता)। अग्रिमसूत्रेपि एवमेव । १७. से य (ख); ४ (ता)। ६. X (क, ता)। १८. रज्जपरिौं (क, ग, जी, शु) । ७. अयंसि ओवासंसि (क, ता) उभयत्रापि । १६. अपरिग्गहिएसु (ग); ४ (ता) । ८. परिवसंतु (क, ता)। २०. रायपरिौं (क, ख, ता)। ६. नीयकुल (ख); नायकुल (ग, जी, शु)। २१. 'हिएसु सुयाकडेसु (क, ता)। १०. यावि (ख, ग, जी, शु)। २२. यव्वे सिया (क, ख, जी, ता, शु) । ११. यव्वा सिया (क, ग, ता) । Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो उद्देसो सेज्जासंथारग-गहणविधि-पदं १. गाहा' उद्' पज्जोस विए । ताए गाहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए जमिणं जमिणं' सेज्जासंथारगं लभेज्जा, तमिणं-तमिणं' ममेव सिया। थेरा य से अणुजाणेज्जा, तस्सेव सिया। थेरा य से नो अणुजाणेज्जा, एवं से कप्पइ अहाराइणियाए सेज्जासंथारगं पडिग्गाहेत्तए । २. से अहालहसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिझ जाव एगाहं वा 'दुयाहं वा तियाहं वा” अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे हेमंत गिम्हासू भविस्सइ ॥ ३. से य अहालहुसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झ १. गाहत्ति वा गिहेत्ति वा घरेत्ति वा एगटू (चू); ६. ओगिझिय (ख, ग)। 'कता' संकेतितादर्शयोः इदं सूत्रं भिन्नरूपं ७.x (ग) ।। दृश्यते, यथा-गाहा उउ पज्जोसविए भिक्खू ८. मलयगिरिवृत्तौ, शुब्रिगसम्पादिते प्रस्तुतसूत्रे च य थेरे वएज्जा ताए गाहाए ताए पएसाए ताए वर्षावाससूत्रं पूर्वमस्ति तदनन्तरं च हेमन्तग्रीष्मओवासंतराए जमिणं जमिणं सेज्जासंथारयं सूत्रम् । लभेज्जा तमिणं मममेव सिया थेरा य से ६. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः सूत्रद्वयं इत्थं दृश्यतेवितरंति एवं से कप्पइ, थेरा य से नो वितरंति से अहालहुसयं सेज्जासंथारयं जाणेज्जा, जं एवं से नो कप्पति । चक्किया सिया एकेण हत्थेण गहाय जावेकाहं २. उडु (ख)। वा याहं वा तियाहं वा चउपंचाहं का सुदूर३. ४ (ख, ग, जी, शु)। मवि अद्धाणं परिवहित्तए एस मे सेज्जासंथारए ४. ४ (ख, ग)। वासावासिए भविस्सति । ५. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः इदं सूत्रं भिन्नरूपं से अहालहुसयं सेज्जासंथारयं जाणेज्जा, जं दश्यते, यथा-से अहालहुतं (सतं ---ता). चक्किया सिया एकेण हत्थेण गहाय जावेगाहं सेज्जासंथारयं जाणेज्जा जं चक्किया सिया वा दुयाहं वा तियाहं वा चउपंचाहं वा सुदूरएकेण हत्थेण गहाय दूरमवि अद्धाणं परिव- मवि अद्धाणं परिवहित्तए एस मे सेज्जासंथारए हित्तए एस मे सेज्जासंथारए उउबद्धिए वुड्डावासिए भविस्सति । भविस्सति । ६४० Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमो उद्देस ६४१ जाएगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे वासावा सासु भविस्सइ ॥ ४. से अहालहुसगं सेज्जासंथारगं गवेसेज्जा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झ जा गाहं वा दुयाहं वा तियाहं चउयाहं वा पंचाहं' वा अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे वुड्ढावासासु भविस्सइ ॥ थेर सामाचारी पदं ५. थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पइ दंडए वा भंडए वा 'छत्तए वा मत्तए वा लट्ठिया वा' चेले वा चेल चिलिमिलिया वा चम्मे वा ̈ चम्मकोसए वा चम्मपलिच्छेयणए वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए' पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा । कप्पइ हं' संनियट्टचारीणं" दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहरितए || पाडिहारिए - सेज्जासंथार-पदं ६. नो' कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं सेज्जासंथारगं दोच्चं पि ' अणुवेत्ता बहिया नीहरित्तए, कप्पइ अणुण्णवेत्ता ॥ ७. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सेज्जासंथारगं 'सव्वप्पणा अप्पिणित्ता" दोच्चं पि ओग्गहं अणणुण्णवेत्ता अहिट्ठित्तए, 'कप्पइ अणुण्णवेत्ता'" ॥ ८. नो कम्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं दोच्चं पिओग्गहं अगुण्णवेत्ता बहिया नीहरित्तए, कप्पइ अणुण्णवेत्ता ॥ १. पंचाहं दूरमवि (ख); पंचगाहं (ग, जी, शु) । २. वा भिसियं वा (ख); जयाचार्यकृतायां व्यवहारहुण्डिकायां एकादश उपकरणानि निर्दिष्टानि सन्ति तेन 'भिसिय' (पालि वेसवानी ) इति पाठस्तत्र अनुमतोस्ति । ३. मलयगिरिवृत्ती 'चेल चिलिमिलिया वा' तथा 'चम्मकोसए वा' एतावान् पाठो नास्ति व्याख्यातः । ४. मत्त वा छत्तए वा चेले वा चलचिलिमिणिया वा चम्मए वा (क, ता) | ५. भत्ताए वा पाणाए वा ( क, ख, ता ) । ६. से (क, ख, ता) । ७. संणियदृचारस्स ( क, ख ); सणियट्टचारस्स (ता) । ८. एतत् सूत्रं 'क, ता' प्रत्योरेवमस्ति नो कप्पइ निग्गंथाण वार पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारयं दोच्चं पि अणुण्णवेत्ता बहिया नीत्तिए । अतः परं नवमसूत्रपर्यन्तं पाठो नास्ति लिखित: । ६. x (क, ता ) । १०. पच्चप्पिणित्ता ( ख ) । ११. कप्पति निम्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारिय वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारयं पच्चप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता अहिट्ठित्तए (ख) । १२. अष्टम नवमसूत्रयोः स्थाने 'ग' प्रतौ 'सागारियसंतिए वि एवं चैव भाणियव्वा दो आलावगा' इति पाठोस्ति । मलयगिरिवृत्तावपि इत्थमेव व्याख्यातमस्ति एवं सागारिकसत्केपि शय्यासंस्तार के द्वावालापको वक्तव्यौ (व्य० उद्देशक ८ पत्र २५ ) । Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ ववहारो ६. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणणुण्णवेत्ता अहिट्ठित्तए, कप्पइ अणुण्णवेत्ता ॥ ओग्गहअणुण्णवणा-पदं १०. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुन्वामेव ओग्गह' ओगिण्हित्ता' तओ' पच्छा अणुण्णवेत्तए॥ ११. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुवामेव ओग्गह अणुण्णवेत्ता' तओ पच्छा ओगिण्हित्तए । १२. 'अह पुण एवं जाणेज्जा-इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो सुलभे सेज्जा संथारए त्ति कट्ट एव ण्हं कप्पइ पुवामेव' ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अणुण्णवेत्तए । मा दुहओ" अज्जोर ! वइ-अणुलोमेणं, अणुलोमेयव्वे सिया । परिभट्रउवगरणविहि-पदं १३. निग्गंथस्स णं" गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स" अण्णयरे अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भटठे सिया । तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पड से सागारकडं गहाय जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्जा 'तत्थेव एवं वएज्जा"-इमे भे" अज्जो ! कि परिणाए ? से य वएज्जा-परिणाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा-नो परिण्णाए, 'तं नो अप्पणा परि जेज्जा नो अण्णमण्णस्स" दावए"। एगते बहुफासुए थंडिले" परिटवेयव्वे सिया ॥ १४. निग्गंथस्स णं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खंतस्स अण्णयरे" १. x (ता)। १४. पविट्ठस्स (क, ता)। २. ओगिण्हित्तए (ग); अवग्रहीतुम् (मवृ)। १५. ४ (ख, ग, जी, शु, मवृ); भाष्ये 'अण्णयरे' ३. ४ (क, ता) सर्वत्र । इति पदं व्याख्यातमस्ति-अन्नयरग्गहणेण उ, ४. x (क, ता)। घेप्पइ तिविहो उ उवही य (व्य० उद्देशक ८, ५. अणुण्णवेत्तए (क); अनुज्ञापयितुम् (म)। भाष्यगाथा १६०, पत्र ३०)। ६. इह खलु निग्गंथाण वा अह पुण जाणेज्जा १६. कप्पइ से एवं वदित्तए (क, ता)। ___ दुलभे (ता)। १७. ते (क, ख, ग, ता)। ७. पाडिहारिए सेज्जा (ग, जी, शु)। १८. अन्नेसि (ख)। ८. x (क, ता)। १९. x (क, ता)। ६. पुव्वमेव (ग)। २०. एगंतमणाबाहे (क, ता)। १०. अवग्रहीतुम् (मवृ)। २१. पएसे पडिलेहित्ता (ख)। ११. वहउ (ग, जी, शु)। २२. णिक्खममाणस्स वा पविसमाणस्स वा (क, १२. X (क, ता)। १३. य (क, ता, चू)। २३. x (क, ग, जी, शु)। Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो उद्देसो ६४३ अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भठे सिया'। तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा', कप्पइ से सागारकडं गहाय पासेज्जा जत्थेव अण्णमण्णं तत्थेव एवं वएज्जा-इमे भे अज्जो ! किं परिण्णाए ? 'से य वएज्जा"-परिण्णाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयब्वे सिया' । से य वएज्जा-नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परि जेज्जा नो अण्णमण्णस्स दावए। एगंते बहुफासुए थंडिले परिवेयव्वे सिया ॥ निग्गंथस्सणं गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स अण्णयरे उवगरणजाए परिब्भठे सिया। केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय दूरमेव अद्धाणं परिवहित्तए। जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा-इमे भे अज्जो ! किं परिणाए? से य वएज्जा-परिण्णाए तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा-नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परिभुजेज्जा नो अण्णमण्णस्स दावए। एगते बहुफासुए थंडिले परिट्टवेयव्वे सिया ॥ अइरेगपडिग्गह-पदं १६. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अइरेगपडिग्गहं अण्णमण्णस्स अट्ठाए धारेत्तए वा परिग्गहित्तए वा, सो वा णं धारेस्सइ अहं वा णं धारेस्सामि अण्णो वा णं धारेस्सइ। नो से कप्पइ ते अणापुच्छिय अणामंतिय अण्णमण्णेसि दाउं वा अणप्पदाउं वा। कप्पइ से ते आपुच्छिय आमंतिय अण्णमण्णेसि दाउ वा अणुप्पदाउ वा ॥ १७. अट्ठ कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे 'समणे निग्गंथे " अप्पा१. परिहट्ठे (क) ! ७. 'क, ता' प्रत्योः एतत् सूत्रं इत्थमस्ति-कप्पति २. अतोने 'ग' प्रती 'से वि एवमेव भाणियव्वे' निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अतिरेगपडिग्गहयं इति संक्षिप्तपाठो वर्तते। दूरमवि अद्धाणं परिवहेत्तए, सो वा णं धरेस्सति ३. पासेज्ज (क, ता)। अहं वा णं धरेस्सामि अण्णो वा णं धरेस्सति ४. कप्पइ से एवं वदित्तए (क, ता)। नो से कप्पइ तस्स अपडिनिज्जावेत्ता अन्नमन्नस्स ५. अतः परं 'क, ता प्रत्योः पाठसंक्षेपो दृश्यते । दाउं वा अणुप्पदाउं वा। कप्पति तस्स पडि६. 'क, ता' प्रत्योः पाठभेदो दृश्यते--निग्गंथस्स निज्जावेत्ता अन्नमन्नस्स दाउं वा अणुप्पदाउं य गामाणुगाम दूइज्जमाणे अण्णतरे उवगरण- वा। ज्जाए परिभठे सिया तं च केइ साहम्मिया ८. 'ख' प्रती 'अदाए' इत्यनन्तरं 'दुरमवि अद्धाणं पासेज्ज कप्पति से सागारकडं गहाय दूरमवि परिवहित्तए धारेत्तए वा परिहरित्तए वा' इति अद्धाणं परिवहित्तए जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्ज पाठोस्ति । कप्पड से एवं वदित्तए इमे ते अज्जो कि ६. पमाण (क, ता)। परिणाए (परिणाए उदाहु अपरिणाए- १०. ओवाइयसुत्ते (सू० ३३) प्रायः 'आहार' इति ता) से य वएज्ज परिणाए तस्सेव पडिणि- पदं नैव दृश्यते । ज्जावेतव्वे सिया से य वएज्ज णो परिणाए ११. ४ (क, ता); निग्गंथे (ख, ग, जी, श) एकंतमणाबाहे बहुफासुए पएसे परिट्टवेयव्वे सर्वत्र। सिया। यव Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ ववहारो हारे । बारस' कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे अवड्ढोमोयरिए', सोलस कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे दुभागपत्ते । चउवीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे ओमोयरिए । 'एगतीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे किंचूणोमोयरिए बत्तीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे पमाणपत्ते । 'एत्तो एगेण वि घासेणं ऊणगं" आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे नो पकामभोइ त्ति वत्तव्वं सिया। ---त्ति बेमि ।। १. अप्पाहारे ति वत्तव्वं सिया (क, ता) सर्वत्र । २. दुवालस (ख)। ३. मोयरिया (क, ख, ग, जी, ता, शु) अपार्धाव मौदर्यः' इति व्याख्यातमस्ति मलयगिरिवृत्ती, अस्ति च श्रमणस्य विशेषणमिदम्, तेन एतदु- चितमस्ति । भगवत्या (७।२४) मपि 'अवड्डो- मोयरिए' इति पाठो विद्यते । अत्रापि तथैव स्वीकृतः । ४. x (क, ख, ग, ता), भगवत (७।२४) मपि एष पाठो नास्ति : ओवाइयसुत्ते (सू० ३३) एष पाठो विद्यते । मलयगिरिवृत्तौ च व्याख्यातोस्ति । जयाचार्यकृत---व्यवहारहण्डि कायामपि एष स्वीकृतोस्ति । ५. पमाणमेत्ते (क, ता)। ६. कवलेणं (जी, शु, मवृ)। ७. तेण परं घंसेण वा घोट्रेण वा कवलेण वा ऊणं (क, ता)। Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसो सेज्जातर-पदं १. सागारियस्स' आएसे अंतो वगडाए भुंजइ' निट्ठिए निसट्टे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । २. सागारियस्स आएसे अंतो वगडाए मुंजइ निट्ठिए निसठे अपाडिहारिए', तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ ३. सागारियस्स आएसे बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ४. सागारियस्स आएसे बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ५. सागारियस्स दासे वा' भयए वा' अंतो वगडाए भुंजइ' निट्ठिए निसठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ६. सागारियस्स दासे वा भयए वा अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ७. सागारियस्स दासे वा भयए वा बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसठे पाडिहारिए, __ तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ ८. सागारियस्स दासे वा भयए वा बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्टे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए ॥ १. सारियस्स (ग, जी, शु) सर्वत्र । २. अतोने 'क, ता' प्रत्यो: 'सागारियसंतिए उवग- रणजाए' इति पाठ अष्टमसूत्रपर्यन्तं सर्वत्रैव दृश्यते । ३. अप्पडिहारिए (ता) ४. इ वा पेसे इ वा (ख); वा पेसे वा (ग); वा वेसे वा (जी, शु) सर्वत्र । ५. इ वा भतिन्नए वा (ख); वा भतिन्नए वा (ग, जी, शु) सर्वत्र । ६. 'ग' प्रती सूत्रचतुष्टयस्य स्थाने पाठसंक्षेपो दृश्यते-एत्थ वि चउभंगो भाणियव्वो। ६४५ Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहारो ६. 'सागारियस्स नायए" सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो' एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ १०. सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ११. सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं' एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ १२. सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए ॥ १३. सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण पवेसाए अंतो' एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ १. सागारियनायए (मवृ); सारियनायए (जी, पडिग्गा। शु)। नवमसूत्रात् षोडशसूत्रपर्यन्तं 'क, ता' सागारियनायगे सिया सागारियस्स अभिणि संकेतितादर्शयोरेवं पाठभेदोस्ति-सानारियणा- अभिणिदु अभिणिक्ख सागारियस्स एगपदा यगे सिया सागारियस्स एगवगडाए एगदुवाराए सागारियं च नो उवजीवइ तम्हा दावए णो से एगनिक्खमणपवेसणयाए सिया सागारियस्त फप्पइ पडिग्गा । एगपया सागारियं च उवजीवति तम्हा दाबए सागारियणायए सिया सागारियस्स अभिनि एवं से कप्पइ पडिग्गा ।। अभिनिदु अभिनिक्ख सागारियस्स अभिनिसागारियस्स नायगे सिया सागारियस्स एक- पदा सागारियं च नो उवजीवइ तम्हा दावए वगडाए. एगदु एगनिक्खमणाए सागारियस्स एवं से णो कप्पइप। एगपया सागारियं च नो उवजीवइ तम्हा दावए सागारियनायए सिया सागारियस्स अभिणिएवं से नो कप्पइ पडिग्गा । वगडाए अभिणिदु अभिणिक्ख सागारियस्स सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिपदा सागारियं च उवजीवइ तम्हा एगवगडाए एगदु एगनिक्खमण सागारियस्स दावए एवं से नो कप्पइ पडिग्गा । आभिणिपदा सागारियं च उवजीवइ तम्हा सागारियनायए सिया सागारियस्स अभिणिदु दावए एवं से नो कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। अभिनिक्ख सागारियस्स अभिणिपदा सागारिसागारियस्स नातए सिया सागारियस्स यस्स नो उवजीवइ तम्हा दावए एवं से नो एगवगडाए एगदु एगणि सागारियस्स आभि- कप्पइप। णिपदा सागारियं च नो उवजीवइ तम्हा दावए २. अंतो सागारियस्स (ख) अग्रिमसत्रेपि एवमेव । एवं से नो कप्पइ पडिग्गा । ३. दाहिं सागारियस्स (ख) अग्रिम सूत्रेपि सागारियस्स नातए सिया सागारियस्स अभि- एवमेव । णिव्वगडाए अभिणिदुवाराए अभिणिक्खमण- ४. अंतो सागारियस्स (ख) अग्रिमसूत्रेपि पवेसणयाए सागारियस्स एगपया सागारियं च एवमेव । उवजीवइ तम्हा दावए एवं से नो कप्पड़ Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसो १४. सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण पवेसाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । १५. सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण पवेसाए बाहिं' एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ १६. सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण पवेसाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ १७. सागारियस्स' चक्कियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ १. बाहिं सागारियस्स (ख) । अग्रिमसूत्रेपि नन्तरं पाठसंक्षेपः एवमस्ति-सारियस्स एवमेव । गोलियसाला बोधियसाला दोसियसाला २. सप्तदशसूत्रात् त्रिंशत् सूत्रपर्यन्तं 'क, ता' गन्धियसाला । भाष्ये 'ख' प्रतो जीवराजसंकेतितादर्शयोरतीव संक्षिप्तः पाठोस्ति, त्रुटि सम्पादिते प्रस्तुतसूत्रे निम्नतिसूत्रद्वयं दृश्यते तोपि च सम्भाव्यते, स च यथा-सागारियस्स -सागारियस्स सोडियसाला साहारणवतेल्लियसाला एवं लोणियसाला पूवियसाला क्यपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगागोलियसाला ओदनसाला कोणियसाला दोसिय हेत्तए। साला गंधियसाला। सागारियस्स सोडियसाला निस्साहरणवक्कय'ग' प्रतावपि पाठसंक्षेपोस्ति, परं स समीचीनो पउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पहिमावर्तते-सारियस्स चक्कियसाला साहारणवक्कय- हेत्तए । वृत्तौ एतत् सूत्रद्वयं नास्ति व्याख्यापउत्ता तम्हा दावए णो से कप्पति परिगा- तम् । 'क, ग, ता' संकेतितादर्शषु, शुधिंगहेत्तए । सारियस्स चक्कियसाला णिस्साहारण- सम्पादिते प्रस्तुतसूत्रे च नैतत् सूत्रद्वयं दृश्यते । वक्कयपउत्ता तम्हा दावए एवं से कप्पति तेन नास्माभिरपि एते मूलपाठत्वेन स्वीकृते । पडिगाहेत्तए । एमेव गोलियसाला पोविय- प्रयुक्तेषु आदर्शषु शालानामानि क्वचिदल्पानि साला दोसियसाला गंधियसाला । शुबिग- क्वचिद् बहनि । तेषां यन्त्रदर्शनमेवं भवति-- सम्पादिते प्रस्तुतसूत्रे 'चक्कियासाला' सूत्रद्वयावृत्ति । भाष्ये 'क, ता' | 'ख, जी' शु० चक्रिकाशाला । तेल्लियसाला तेल्लिय० चक्कियसाला चक्किया० चक्किया० कोकिल० गोलिय० लोणिय० गोलिय० गोलिय० गोलिय० बोधिक० लोणिय० पूविय० बोधिय० पोविय० बोधिय० दौषिक० दोसिय० गोलिय० दोसिय० दोसिय० दोसिय० सोक्तिक० सुत्तिय० ओदन सोत्तिय गंधिय० गधिय० गन्धिक० बोधिय० कोणिय बोडिय० बोदिय० कप्पास० दोसिय० गंधिय० गंधिय० गंधिया सोडिय० सोडिय० १. भाष्य गाथा २३ । Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ गात् ॥ १८. सागारियस्स चक्कियसाला निस्साहा रणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ गात् ॥ १६. सागारियस गोलियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ डिगात्तए || २०. सागारियस्स गोलियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ डिगात्तए || २१. सागारियस बोधियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ गात् ॥ २२. सागारियस बोधियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पगा ॥ बहारो २३. सागारियस दोसियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ गात् ॥ २४. सागारियस दोसियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ डिगात्तए || २५. सागारियस्स सोत्तियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ डिगात्तए || २६. सागारियस सोत्तियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ गित || २७. सागारियस्स बोडियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, डिगात्तए || १. एवं से नो (क, ता) । २. अंबा (क, ता) अग्रिमसूत्रेपि एवमेव । २८. सागारियस्स बोडियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ डिगात्तए || २६. सागारियस गंधियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, गात्तए । ३०. सागारियस्स गंधियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगात्तए || ३१. सागारियस्स ओसहीओ संथडाओ, तम्हा दावए, 'नो से" कप्पइ पडिगाहेत्तए । ३२. सागारियस्स ओसहीओ असंथडाओ, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । ३३. सागारियस्स अंबफला' संथडा, तम्हा दावए, 'नो से कप्प पडगात्तए । ३. एवं से नो (क, ता ) । नो से कप्पइ नो से कप्पइ Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसो ३४. सागारियस्स अंबफला असंथडा, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । भिक्खुपडिमा -पदं ३५. सत्तसत्तमिया' णं भिक्खुपडिमा एगुणपण्णाए राइदिएहिं एगेण छन्नउएणं भिक्खासणं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं 'सम्मं कारण" फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया 'आणाए अणुपा लिया" भवइ ॥ ३६. अट्ठअट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहि भिक्खासहि अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए अणुपालिया भवइ ॥ ३७. नवनवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीए राईदिएहिं चउहिं य पंचुत्तरेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए अणुपालिया भवइ ॥ ३८. दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेणं राईदियसएणं अद्धछट्ठेहि य भिक्खा एहि अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया रिया कट्टिया आणाए अणुपालिया भवइ || मोयपडिमा पदं ६४९. ३६. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - खुड्डिया चेव' मोयपडिमा महल्लिया चेव मोयपडिमा || ४०. खुड्डियां मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पइ से पढमसरदकालसमयं सि वा चरिमनिदाहकालसमयंसि वा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स' वा वर्णसि वा वणविदुग्गंसि" वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि" वा । 'भोच्चा आरुभइ चोदस १. सत्तमसत्तमिया ( ख ) ३५ सूत्रात् ३८ सूत्रपर्यन्तं सूत्रचतुष्टयी तुलनीया – ठाणं ७।१३; ८|१०४ ६/४१; १०।१५१ । समवाओ ४६।१, ६४ १, ८११, १००।१ । २. भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पइ (क, ता.) । ३. अहासुतं अहाअत्थं ( ठाणं ७।१३) । ४. अहासम्मं (जी, शु, मवृ, चू) अग्रिमसूत्रत्रयेपि एवमेव । ५. अणुपालिया ( जी, शु); आराहिया यावि ( ठाणं ७ १३ ) ; आणाए आराहिया यावि (समवाओ ४६।१) । ६ वा (ग, जी, शु); च (मट्ठ ) । ७. वा (ग, जी, शु); च (मवृ) । ८. पढमनिदाहकाल (ग, जी, शु, मवृ); भाष्ये प्रथमशरदो ग्रहणमस्ति - पडियत्ति पुण तासि, चरमनिदाघे व पढमसरए वा ( व्यवहारभाष्य गाथा १०७ ) । स्थानाङ्गवृत्तावपि अस्य संवादो दृश्यते- -कालतः शरदि निदाघे वा ( स्थानाङ्गवृत्ति पत्र ६१ ) । ६. रायहाणीए ( मतृ ) । (ग, जी, शु); राजधान्यां १०. वणदुग्गंसि (ग, जी, शु) । ११. पव्वयदुग्गंसि (ग, जी, शु) । Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० ववहारी मेणं पारे । अभोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारेइ" । जाए' मोए आईयव्वे, दिया आगच्छ' आईयव्वे, राई' आगच्छइ नो आईयव्वे, सपाणे' आगच्छइ नो आईयव्वे, अप्पाणे आगच्छ आईयव्वे, सबीए आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए आगच्छइ आईयव्वे, ससणिद्धे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससणिद्धे आगच्छइ आईयव्वे, ससरक्खे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे आगच्छइ आईयव्वे | जाए' मोए आईव्वे तं जहा - अप्पे वा बहुए वा । एवं खलु एसा खुड्डिया मोयपडिमा अहासुत्त ● अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया ट्टा आणा अणुपालिया भवइ ॥ ४१. महल्लियणं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पइ से पढमस रदकालसमयं सि वा चरिम निदाहकालसमयंसि वा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा । 'भोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारे । अभोच्चा आरुभइ अट्ठारसमेणं पारेइ" । जाए मोए आईयव्वे", दिया आगच्छइ आईयव्वे, राई आगच्छइ नो आईयव्वे, सपाणे आगच्छइ नो आईयव्वे, अप्पाणे आगच्छइ आईयव्वे, सबीए आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए आगच्छइ आईयव्वे, ससणिद्धे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससणिद्धे आगच्छइ आईयव्वे, ससरक्खे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे आगच्छइ आईयव्वे, जाए मोए आईयव्वे, तं जहा—अप्पे वा बहुए वा । एवं खलु एसा महल्लिया मोयपडिमा अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया १. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः चिन्हाङ्कितः पाठः अग्रेतन, क्षु विद्यते । २. जाए जाए (क, ख, जी, ता, शु) । ३. आवीतव्वे सिया ( क ) ; आइयव्वे ( ख ) ; आतीयव्वे ( ग ) ; आतीतव्वे सिया (ता ) सर्वत्र | ४. अतः परवर्ती पाठो वृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । शुब्रिगसम्पादित संस्करणे पि नास्ति । 'ग' प्रतौ 'आगच्छइ आईयव्वे' अतः परवर्ती पाठो नैव विद्यते । ५. रति (क, ता ) । ६. सपाणे मत्ते (ख, जी ) सर्वत्र । ७. अतोग्रे 'क, ता' संकेतितादर्शयोः भिन्ना पाठसरणिरस्ति - भोच्चा आरुभति चोद्दसमेण णिट्ठाइ अभोच्चा आरुभति सोलसमेण णिट्ठाइ एवं खलु एसा खुड्डिया मोयपडिमा अहासुत्तं जाव अणुपालिया भवति । ८. जाए जाए ( ख ) । ६. सं० पा० - अहासुत्तं जाव अणुपालिया । १०. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः चिन्हाङ्कितः पाठः अग्रेतपङ क्षु विद्यते । ११. अतोग्रे 'क, ता' संकेतितादर्शयोः भिन्ना पाठसरणिरस्ति -- सिया दिया आगच्छद आतीतव्वे सिया रत्तिं आ णो आतीतव्वे सिया सपाणे आ णो मातीतव्वे सिया अपाणे आ आतीतव्वे सिया सबीए आगच्छइ णो आतीतव्वे सिया अबीए आ आतीतव्वे भोच्चा आरुभति सोलमेण णिट्ठाइ अभोच्चा आरुहइ अट्ठारसमेण गिट्ठाइ एवं खलु एसा महाल्लिया मोयपडिमा महासुतं जाव अणुपालिया भवति । 'ख' प्रतो पाठसंक्षेपो दृश्यते - आइयव्वे तह चेव आणाए अणुपालिया भवइ । Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसो आणा अणुपालिया भवइ' ॥ संखादत्तिय पदं ४२. संखादत्तियस्स' णं ' भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स" जावइयं जावइयं केइ अंतो पडिहंसि उवित्ता' दलज्जा' तावइयाओ ताओ' दत्तीओ वत्तव्वं सिया, तत्थ से इ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण' वा अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, 'सव्वा विणं सा "एगा दत्ती वत्तव्वं सिया । तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं पिंडं डिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया || ४३. संखादत्तियस्स" णं भिक्खुस्स पाणिप डिग्ग हियस्स" जावइयं - जावइयं केइ अंतो पाणिसि उवित्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया । तत्थ से केइ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पाणिसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं साएगा दत्ती वत्तव्वं सिया । तत्थ से बहवे भुंजमाणा सब्वे ते सयं पिंडं अंतो १. ४१ सूत्रानन्तरं 'ग' प्रती शुब्रिगसम्पादितप्रस्तुतसूत्रसंस्करणे च सूत्रचतुष्टयं दृश्यते, यथा - सागारियनायए सिया सागारियस्स एमवगडाए एगदुवारा एगनिक्खमण एवेसाए सागारियस एगवयू सागारियं च उवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिगात्तए । सागारियनायए सिया सागारियस्स एगवगडाए गदुवारा एगनिक्खमणपवेसाए सागारियस्स अभिनिवयू सागारियं च उवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए । सागारियनायए सिया सागारियस्स अभिनिव्यगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमणपवेसाए सागारियस एगवयू तम्हा दावए नो से कप्पर पsिगात्तए । सागारियनायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वTere अभिनिदुवारा अभिनिक्खमणपवेसाए सागारियस अभिनिवयू तम्हा दावए नो से कप्प पडगात्तए । २. 'क, ता' संकेतितादर्शयोरेतत् सूत्रं संक्षिप्तं विद्यते - संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स जावतियं २ परोपडिग्गहंसि दलयति तावत्तियाओ सेसे परो छव्वेण वा चेलेण वा सुप्पेण वा साहट्टु दलयति सव्वा सा एगा ६५१ दत्ती । ३. भिक्खुस्स पडिग्गघारिस्स पिंडवायपडियाए अणुवि x ( मट्ट) । ४. उवइत्तु (ग, जी, शु) । ५. दलेज्जा ( ग ) । गाहावतिकुलं (ख) ; ६. x (शु) । ७. छप्पण (ख, ग, जी, शु) । ८. चालण ( ख ) । ६. सावि णं सा (ग, जी, शु), सापि णमिति वाक्यालङ्कारे (मवृ) । १०. 'क, ता' संकेतितादर्शयोरेतत् सूत्रं संक्षिप्तं विद्यते - संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पाणिपडि. गहियस्स जावतियं जावतियं परो पाणिसि दलयति तावइयाओ तावइयाओ दत्तीओ सेसे परो छव्वेण वा चेलेण वा सुप्पेण वा साहट्टु दलयति सव्वा सा एग दत्ती । 'ग' प्रतो च पाठसंक्षेपः एवमस्ति - पाणिपडिग् गहियस्स वि एवं चैव वत्तव्वं नवरं अंतो पाणिसि उवित्ता दलज्जा । ११. हियस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स ( ख ) । Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ ववहारो पाणिसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ॥ पिडेसणा-पदं ४४. तिविहे' उवहडे पण्णत्ते, तं जहा–'सुद्धोवहडे फलिओवहडे" संसट्ठोवहडे ।। ४५. तिविहे ओग्गहिए पण्णत्ते, तं जहा--जं च ओगिण्हइ, जं च साहरइ, जं च आसगंसि पक्खिवइ ‘एगे एवमाहंसु ॥ ४६. एगे पुण एवमाहंसु दुविहे ओग्गहिए पण्णत्ते, तं जहा--जं च ओगिण्हइ, जं च आसगंसि पक्खिवइ ।। -त्ति बेमि ॥ १.क, ता' संकेतितादर्शयोः एतत् सूत्रं इत्थमस्ति -तिविहे उवहिए पं तं सुद्धोवहिए फलोवहिए संसट्ठोवहिए। २. फलिओवहडे सुद्धोवहडे (ख, ठाणं ३।३७६) । ३. X (क, ता)। ४. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः एतत् सूत्रं नैवदृश्यते । Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो अवमउभ-वइरमझपडिमा-पदं १. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ तं जहा-जवमझा य चंदपडिमा, वइरमज्झा य चंद पडिमा ॥ २. जवमज्झण्णं चंदपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं निच्चं 'वोसटकाए चत्तदेहे" जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति तं जहा-दिव्वा वा माणसा वा तिरिक्खजोणिया' वा, 'अणलोमा वा पडिलोमा वा-तत्थ अणलोमा ताव वंदेज्जा वा नमसेज्ज वा सक्कारेज्जा वा सम्माणेज्जा वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, तत्थ पडिलोमा अण्णयरेणं दंडेण वा, अट्ठीण वा, जोत्तेण वा, वेत्तेण वा कसेण वा काए आउडेज्जा-ते सव्वे उप्पण्णे सम्म सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा" । ३. जवमज्झण्ण' चंदपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स सूक्कपक्खस्स" पाडिवए कप्पड १. जवमझ च णं (क)। दुपयचउपयसमणमाहणअतिहिकीवणवणीमगे २. x (क, ख, ग, जी, ता, शु) । नो एगस्स भुंजमाणस्स नो दोण्हं भुंजमाणाणं णो ३. वोसट्ठचत्तदेहे (क, ता); वोसट्टकाए चियत्त- गुग्विणीए नो बालवच्छाए नो थणयं पेज्जेदेहे (ख, ग, जी, शु)। माणीए नो अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहटु ४. परीसहोवसग्गा (ग, जी, शु)। दलयमाणीए नो बाहिं एलुयस्स दो वि पाए ५. समुप्पज्जति (ग, जी, शु)। साहटु दलयमाणीए एगं पायं अंतो किच्चा ६. माणुस्सगा (ग, जी, शु) । एगं पायं बाहिं किच्चा एलुगं विक्खंभइत्ता ७. तेरिच्छिया (आयारचूला १५॥३४) । पग्गहियाए एसणाए दलएज्जा एवं से कप्पइ ८. ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ पडिग्गाहेत्तए । बितियाए दो दत्तीओ भोयणअहियासेइ (क, जी, ता, शु)। स्स दो पाणयस्स तइयाए तिण्णि भोयणस्स ९. 'क, ता' संकेतितादर्शयोरस्य सूत्रस्य भिन्ना तिणि पाणयस्स एवं दत्तीए परिवड्डीए जाव पाठपद्धतिरस्ति-जवमझ •णं चंदपडिम पण्णरसीए पण्णरस दत्तीओ भोयणस्स पण्णपडिवनस्स अणगारस्स कप्पइ सुद्धपक्खपडि- रसदत्तीयो पाणयस्स । बहुलपक्खपाडिवयंसि वयंसि एकादत्ती भोयणस्स एकादत्ती पाणस्स चोद्दसदत्तीओ भोयणस्स चोद्दस पाणयस्स पडिग्गाहेत्तए अन्नायउंछं सुद्धोवहियं णिज्जूहित्ता अन्नतरा उंछ सुद्धोवहडं दुपयचउप्पयसमण Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ ववहारो एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए, एगा पाणस्स', अण्णायउंछ सुद्धोवहडं निज्जहित्ता बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा, कप्पइ से एगस्स भुंजमाणस्स पडिगाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुम्विणीए नो बालवच्छाए' नो दारगं पेज्जमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहट्ट दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स दो वि पाए साहट्ट दलमाणीए । एगं पायं अंतो किच्चा एगं पायं बाहिं किच्चा एलयं विक्खंभइत्ता एवं दलयइ, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए । एवं नो दलयइ एवं से नो कप्पइ पडिगाहेत्तए । बिइज्जाए से कप्पइ दोण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, दोण्णि पाणस्स । तइयाए से कप्पइ तिण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, तिण्णि पाणस्स। चउत्थीए से कप्पइ चउ दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, चउ पाणस्स। पंचमीए से कप्पइ पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पंच पाणस्स । छट्ठीए से कप्पइ छ दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, छ पाणस्स । सत्तमीए से कप्पइ सत्त दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, सत्त पाणस्स । अट्ठमीए से कप्पइ अट्ठ दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, अट्ठ पाणस्स । नवमीए से कप्पइ नव दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, नव पाणस्स । दसमीए से कप्पइ दस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, दस पाणस्स। एगारसमीए से कप्पइ एगारस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, एगारस पाणस्स । बारसमीए से कप्पइ बारस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, बारस पाणस्स । तेरसमीए से कप्पइ तेरस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, तेरस पाणस्स । चोद्दसमीए से कप्पइ चोद्दस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, चोद्दस पाणस्स। पन्नरसमीए से कप्पइ पन्नरस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पन्नरस पाणस्स। बहलपक्खस्स पाडिवए कप्पंति चोद्दस दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, चोइस माहणकिवणवणीमए नो एकस्स भुंजमाणस्स सा जवमझा चंदपडिमा अहासुत्तं जाव अणुनो दोण्हं भुंजमाणेणं नो गुव्विणीए नो बाल- पालिता भवइ । वच्छाए नो थणयं पेज्जेमाणीए नो अंतो एलु- १०. पक्खस्स से (ख, जी, शु)। गस्स दो वि पाए साहटु दलमाणीए नो बाहि १. पाणस्स सव्वेहि दुपयचउप्पयादिएहिं आहारकएलुयस्स दो वि पाए साहटु दलमाणीए एग खोहिं सत्तेहिं पडिणियत्तेहिं (ख) । पायं अंतो किच्चा एगं पायं बाहिं किच्चा २. बालवत्थाए (ख, जी, शु) । एलूगं विक्खंभइत्ता पग्गहियाए एसणाए ३. एयाए एसणाए लभेज्जा आहारेज्जा एयाए दलएज्जा एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए । सणाए नो लभेज्जा नो आहारेज्जा (ख) । बितियाए तेरसदत्तीओ भोयणस्स तेरस दत्तीओ पाणयस्स तइयाए बारस दत्तीओ ५. अतोने 'ख' प्रतौ सव्वेहि दुपयचउप्पयादिएहिं भोयणस्स बारस पाणयस्स एवं एक्केक्क आहारकंखीहिं सत्तेहि पडिणियत्तेहिं अन्नायपरिहाणीए जाव चोद्दसमीए एगा दत्ती भोयण उंछ इत्यादि आलापक: एकदत्तिवत् लिखिस्स एगा पाणयस्स । अमावासाए असंबद्धे तोस्ति। (असंसठे-ता) या वि भवइ । एवं खलु Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो ६५५ पाणस्स । बितियाए कप्पइ तेरस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, तेरस पाणस्स। ततियाए कप्पइ बारस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, बारस पाणस्स। चउत्थोए कप्पइ एक्कारस दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, एक्कारस पाणस्स। पंचमीए कप्पइ दस दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, दस पाणस्स। छट्ठीए कप्पइ नव दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, नव पाणस्स । सत्तमीए कप्पइ अट्ठ दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, अट्र पाणस्स। अट्ठमाए कप्पइ सत्त दत्तोओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, सत्त पाणस्स । नवमीए कप्पइ छ दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए. छ पाणस्स । दसमीए कप्पइ पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, पंच पाणस्स । एक्कारसीए कप्पइ चउ दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, चउपाणस्स। बारसीप कप्पइ तिण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, तिण्णि पाणस्स । तेरसीए कप्पइ दोण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, दोणि पाणस्स। चउदसीए कप्पइ एगा दत्ती भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, एगा पाणस्स । अमावासाए से य अभत्तटठे भवइ । एवं खलु एसा जवमझचंदपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएण फासिया पालिया सोहिया तीरिया कि ट्टिया आणाए अणुपालिया भवइ ।। ४. वइरमज्झण्णं चंदपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं निच्चं' वोसट्टकाए चत्तदेहे' जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति, तं जहा-दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा अणुलोमा वा पडिलोमा वा–तत्थ अणुलोमा ताव वंदेज्जा वा नमसेज्जा वा सक्कारेज्जा वा सम्माणेज्जा वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, तत्थ पडिलोमा अण्णयरेणं दंडेण वा, अट्ठीण वा, जोत्तेण वा, वेत्तेण वा, कसेण वा, काए आउडेज्जा-ते सव्वे उप्पन्ने सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा ।। ५. वइरमज्झण्णं चंदप डिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स 'बहुलपक्खस्स पाडिवए कप्पाइ पण्णरस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पण्णरस पाणस्स। बितियाए से कइ चउद्दस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, चउद्दस पाणस्स । तइयाए कप्पइ तेरस दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, तेरस पाणस्स। एवं एगुत्तरियाए हाणीए जाव १. पाणस्स जाव नो आहारेज्जा (ख); चतुर्दशी दत्तिपर्यन्तं एष एव पाठस्तत्र दृश्यते । २. 'क, ता' प्रत्योरेतत् सूत्रं नोल्लिखितं । 'ग' प्रतौ शुब्रिगसम्पादिते प्रस्तुतसूत्रसंस्करणे च 'वइरमझचंदपडिमा' प्रतिपादकं सूत्रद्वयमपि नैव दृश्यते । ३. ४ (ख, जी)। ४. चियत्तदेहे (ख)। ५. 'ख' प्रतौ एतत् सूत्रं यवमध्यचन्द्रप्रतिमासूत्र वत् विस्ततमस्ति । ६. 'क, ता' संकेतितादर्शयो: चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने एवं पाठभेदोस्ति-कप्पइ बहुलपक्खपाडिवयंसि पण्णरस दत्तीओ भोयणस्स पण्णरस्स दत्तीओ पाणयस्स पडिग्गाहेत्तए अन्नायउंछ जाव पडिग्गहिया एसणाए दलएज्जा एवं से पडिग्गाहेत्तए। Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ ववहारो पण्णरसीए एगा दत्ती भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, एगा पाणस्स'। सुक्कपक्खस्स पाडिवए से कप्पइ दो दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, दो पाणस्स। बितियाए तिण्णि दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, तिण्णि पाणस्स । एवं एगत्तरियाए वड्ढीए जाव चोद्दसीए पण्णरस दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए, पण्णरस पाणस्स । पुण्णिमाए अभत्तठे भवइ । एवं खलु एसा वइरमज्झा चंदपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए अणुपालिया भवइ । पंचववहार-पदं ६. पंचविहे' ववहारे पण्णत्ते तं जहा-आगमे सुए आणा 'धारणा जीए"। 'जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्टवेज्जा। नो से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्टवेज्जा। नो से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्टवेज्जा। नो से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेज्जा । नो से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। 'इच्चेतेहिं पंचहिं ववहारेहिं ववहारं पट्टवेज्जा, तं जहा—आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं। जहा-जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा-तहा ववहारे पट्ठवेज्जा । से किमाहु भंते ? आगमबलिया समणा निग्गंथा। इच्चेयं पंचविहं ववहारं जया-जया जहि-जहिं तया-तया तहि-तहिं 'अणिस्सिओ वस्सियं ववहारं ववहरेमाणे समणे निग्गंथे" आणाए आराहए भवइ ।। अट्ठ-माण-पदं ७. 'चत्तारि" पुरिसजाया" पण्णत्ता"२, तं जहा-अट्ठकरे नाममेगे" नो माणकरे, १. पाणस्स अण्णायउंछं सुद्धोवहियं पग्गहियाए नास्ति । एसणाए दलएज्जा एवं से कप्पइ पडिग्गा- ८. ववहारेमाणे (ख) । हेत्तए (क, ता)। ६. अणिस्सितोवस्सिए मज्झत्थभूयभावे सम्म २. असंभठे यावि (क); असंसठे यावि (ता)। ववहारमाणे साहू (क, ता) । ३. एतत् सूत्र 'ग' प्रतौ नोल्लिखितमस्ति । १०. ७-१८ एतेषां सूत्राणां तुलनाकृते द्रष्टव्यं ठाणं, तुलनाकृते द्रष्टव्यं ठाणं ५।१२४; भगवती सूत्राङ्कसंख्या ४।४१४-४२५ । ८।३०१ । ११. पुरिसज्जाया (ग, जी, शु)। ४. जीए धारणा (क, ता)। शुब्रिगसम्पादित- १२. गणंसि चत्तारि पुरिसज्जाया परिवसंति (क, प्रस्तुतसूत्रसंस्करणे अतः परतिपाठो नास्ति । ता); चत्तारि पुरिसज्जाया गणंसि परिवसंति ५. जहेव (क, स, ता)। (चू)। ६. एएहिं (ख)। १३. नाम एगे (क, ग, ता, शु) सर्वत्र । ७. 'क, ता' संकेतितप्रत्योः चिन्हाङ्गितः पाठो Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो ६५७ माणकरे नाममेगे नो अट्टकरे, एगे अट्टकरे वि माणकरे वि, एगे नो अट्टकरे नो माणकरे॥ ८. 'चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—गणटकरे नाममेगे नो माणकरे, माणकरे नाममेगे नो गणटकरे, एगे गणट्ठकरे वि माणकरे वि, एगे नो गणट्ठकरे नो माणकरे ॥ ६. 'चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता", तं जहा—गणसंगहकरे नाममेगे नो माणकरे, माणकरे 'नाममेगे नो गणसंगहकरे, एगे गणसंगहकरे वि माणकरे वि, एगे नो गणसंगहकरे नो माणकरे" ॥ 'चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता", तं जहा-गणसोभकरे' नाममेगे नो माणकरे, माणकरे नाममेगे नो गणसोभकरे, एगे गणसोभकरे वि माणकरे वि, एगे नो गणसोभकरे नो माणकरे ।। ११. 'चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता", तं जहागणसोहिकरे नाममेगे नो माणकरे, माणकरे नाममेगे नो गणसोहिकरे, एगे गणसोहिकरे वि माणकरे वि, एगे नो गण सोहिकरे नो माणकरे । धम्म-पवं १२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं नाममेगे जहइनो धम्म, धम्म नाम मेगे जहइ नो रूवं, एगे रूवं पि जहइ धम्म पि जहइ, एगे नो रूवं जहइ नो धम्म जहइ॥ १३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-धम्मं नाममेगे जहइ नो गणसंठिति', गण संठिति नाममेगे जहइ नो धम्म, एगे गणसंठिति पि जहइ धम्म पि जहइ, एगे नो गणसंठिति जहइ नो धम्मं जहइ ॥ १४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पियधम्मे नाममेगे नो दढधम्मे, दढधम्मे नाममेगे नो पियधम्मे, एगे पियधम्मे वि दढधम्मे वि, एगे नो पियधम्मे नो दढधम्मे ।। आयरिय-पवं १५. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-पव्वावणायरिए नाममेगे नो उवट्ठावणाय१. 'ग' प्रतौ अतोने पाठ संक्षेपो दृश्यते यथा-एवं ५. गणंसि चत्तारि पुरिसज्जाया परिवसंति (क, गणटकरे वि ४ गणसंगहकरे ४, गण- ता)। सोहिकरे ४। ६. गणसोभाकरे (क); गणसोहाकरे (ता) । २. गणंसि चत्तारि पुरिसज्जाया परिवसंति ७. गणंसि चत्तारि पुरिसज्जाया परिवसंति (क, ता)। (क, ता)। ३. गणंसि चत्तारि पूरिसज्जाया परिवसंति ८. जहाति (क, ता)। (क, ता)। ६. गणद्विइं (क, ता)। ४. चउभंगो (क, ता)। Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ ववहारो रिए, उवट्ठावणायरिए नाममेगे नो पव्वावणायरिए, एगे पव्वावणायरिए वि उवट्ठावणायरिए वि, एगे नो पव्वावणायरिए नो उवट्ठावणायरिए-धम्मायरिए॥ १६. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-उद्देसणायरिए नाममेगे नो वायणायरिए, वायणायरिए नाममेगे नो उद्देसणायरिए, एगे उद्देसणायरिए वि वायणायरिए वि, एगे नो उद्देसणायरिए नो वायणायरिए-धम्मायरिए । अंतेवाति-पवं १७. चत्तारि' अंतेवासी पण्णता, तं जहा-पव्वावणंतेवासी नाममेगे नो उवट्ठावणंते वासी, उवट्ठावणंतेवासी नाममेगे नो पव्वावणंतेवासी, एगे पव्वावणंतेवासी वि उवट्ठावणंतेवासी वि, एमे नो पव्वावणंतेवासी नो उवट्ठावणंतेवासी-धम्मंतेवासी ।। १८. चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता,तं जहा-उद्देसणंतेवासी नाममेगे नो वायणंतेवासी, वायणंतेवासी नाममेगे नो उद्देसणंतेवासी, एगे उद्देसणंतेवासी वि वायणंतेवासी वि, एगे नो उद्देसणंतेवासी नो वायणंतेवासी-धम्मंतेवासी॥ बेर-भूमि-पवं १६. 'तओ' थेरभूमीओ पण्णत्ताओ" तं जहा-जातिथेरे सुयथेरे परियायथेरे' । सट्ठिवास जाए 'समणे निग्गंथे' जातिथेरे, 'ठाणसमवायधरे समणे निग्गंथे" सुयथेरे, वीस वासपरियाए 'समणे निग्गंधे" परियायथेरे । सेहभूमि-पवं २०. 'तओ सेहभूमीओ पण्णत्तओ"", तं जहा-'जहण्णा मज्झिमा उक्कोसा"। 'सत्त१. x (क, जी, ता, शु); असौ पाठः व्यवहार- ४. तिविहा थेरभूमी पण्णत्ता (क, ता)। भाष्यानुसारेण स्वीकृतः । भाष्ये धर्माचार्यस्य ५. परियागथेरे (क. ग. ता)। निरूपणमस्ति ६.४ (ग, जी, शु)। जो पुण नोभयकारी सो कम्हा भवति आय- ७. समवायंगं जाव सुयधारए (ग, जी, शु) । रियो उ। ८. x (ग, जी, शु)। भण्णति धम्मायरितो सो पूण गहितो वसमाणे ६. एतत् सूत्र 'क' प्रत्याधारेण स्वीकृतम् । वा ॥४०॥ स्थानाङ्गे (४।४२२) पि एतत् भाष्येपि स्वीकृतपाठसंवादिविवरणं लभ्यतेपदं विद्यते। सेहस्स तिण्णिभूमी जहण्ण तह मज्झिमा य २. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः एतत् सूत्रं नोल्लि- उक्कोसा। राइंदिव सत्त चउमासिया य खितमस्ति । छम्मासिया चेव ॥५२॥ 'ठाणं' सूत्र ३. 'ठाणं' सूत्रे (३।१८६, १८७) शैक्षभूमीसूत्रा- (३।१८६) पि स्वीकृतसूत्रात् पाठभेदो दृश्यते। नन्तरं स्थविरभूमी सूत्र वर्तते । 'क, ता' १०. तिविहा सेहभूमी पण्णत्ता (क, ता)। संकेतितादर्शयोरपि 'ठाण' सूत्रक्रमो दृश्यते, ११. सत्तराईदिया चाउम्मासिया छम्मासिया किन्तु व्यवहारभाष्ये, वृत्तौ तथा शेषप्रयुक्ता- (ख, ग, जी, शु); उक्कोसा मज्झिमा दर्शषु च पूर्व स्थविरभूमी सूत्रमस्ति, तेन तथा जहण्णा (ता)। स्वीकृतम् । Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो राइंदिया जहण्णा, चाउम्मासिया मज्झिमा, छम्मासिया उक्कोसा"। पम्बज्जा -वय-पदं २१. नो' कप्पड निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'खुडुगं वा खुड्डियं वा" ऊण?वासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा ॥ २२. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा साइरेगट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा ॥ आगम-अज्झयणस्स कालसीमा-पदं २३. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'खड्डगस्स वा खड्डियाए वा अवंजण जायस्स" आयारपकप्पं नाम अज्झयणं उद्दिसित्तए॥ २४. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा 'खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा वंजणजायस्स" आयारपकप्पं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए ।। २५. तिवासपरियायस्स' समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ आयारपकप्पं नामं अज्झयणं" उद्दिसित्तए । २६. 'चउवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स" कप्पइ 'सूयगडे नामं अंगे उद्दिसित्तए ॥ २७. पंचवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दसाकप्पववहारे" उद्दिसित्तिए । २८. अट्ठवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ 'ठाण-समवाए नाम अंगे'५ १. उक्कोसा छम्मासिया चाउम्मासिया मज्झ- ६. पकप्पे (ख, ग, जी, शु) । मिया सत्तराइंदिया जहनिया (ख); छम्मा- ७. अज्झयणे (ख, ग, जो, शु) अग्निम सूत्रेपि सिया उक्कोसिया चाउम्मासिया मज्झमिया एवमेव । सत्तराइणो जहन्निया-(ग, जी, शु); सत्त- ८. वंजणजायस्स खुड्डयस्स वा खुड्डियाए वा (क, राइंदिया उक्कोसा चाउम्मासिया मज्झिमा ता) । छम्मासिया जहन्ना (ता)। ___६. परियागस्स (क, ता)। २. 'क, ता' संकेतितादर्शयोरेतत् सूत्रमित्थमस्ति १०. पकप्पे (ख, ग, जी, शु)। -नो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा ११. अज्झयणे (ख, ग, जी, शु)। ऊण?वासजाययं खुड्डयं वा खुड्डिया वा उवट्ठा- १२. चउवासपरियाए (ग, जी, शु); २६ सूत्राद् एत्तए। आरभ्य ३८ सूत्रपर्यन्तं 'ग, जी, शु' संकेतिता३. खुडगस्स वा खुड्डियाए वा (ख)। दर्शषु प्रथमं पदं प्रथमा विभक्त्यन्तं विद्यते ४. 'क, ता' संकेतितादर्शयोरेतत् सूत्रमित्थमस्ति- यथा-चउवासपरियाए पंचवासपरियाए, तथा कप्पइ निग्गंथाण वा २ साइरेगट्ठवासजाययं समणस्स निग्गंथस्स एतावान् पाठो नास्ति । खुडयं वा खुडिया वा उबट्टाएत्तए। १३. सूयकडं (गडं-ता) नामज्झयणं (क, ता)। ५. अवंजणजायस्स खुडुयस्स वा खुड्डियाए वा १४. दसाकप्पववहारं नामं अज्झयणं (क, ख, ता)। (क, ता); खुडुगस्स वा खुड्डियाए वा अव्वं- १५. ठाणसमवायं नामं अज्झयणं (क, ता); जणजाययस्स (ख)। ठाणसमवाए (ग, जी, शु)। Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वबहारो उद्दिसित्तए॥ २६. दसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ वियाहे' नामं अंगे' उद्दिसित्तए॥ ३०. एक्कारसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ खुड्डिया विमाणपविभत्ती महल्लिया विमाणपविभत्ती अंगचूलिया वग्गचूलिया' वियाहचूलिया नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए । ३१. बारसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ अरुणोववाए वरुणोववाए' गरुलो ववाए ‘धरणोववाए वेसमणोववाए" वेलंधरोववाए नाम अज्झयणे उद्दिसित्तए । ३२: तेरसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ उट्ठाणसुए समुट्ठाणसुए देविंदोव वाएं नागपरियावणिए" नाम अज्झयणे" उद्दिसिसए॥ ३३. चोहसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ सुविणभावणानाम" अज्झयण" उद्दिसित्तए॥ १. वियाहपण्णत्ती (क, ता); विवाहे (ख) । गिरिवृत्तौ च एष नास्ति व्याख्यातः । किन्तु २. अज्झयणं (क, ता)। हारिभद्रीयवृत्तावेष व्याख्यातोस्ति । एतत् ३. वंगचूलिया (ख)। पाठद्वयमपि स्वीकृतम् । व्यवहारभाष्यकृता ४. अज्झयणं (क, ता); अझयणा (ग)। 'धरणोववाए' इति पाठो न स्वीकृतः, नन्दी५. ४ (क, ख, ग, जी, ता, शु)। सूत्रे एषोपि वर्तते । अस्माभिः प्रयुक्तादर्शानु६..X (क, ता); भाष्ये वृत्तौ च एकत्र नाम- सारेण एष एव (धरणोववाए) मूले स्वीकृतः । भेदः तथा क्रमभेदोपि वर्तते ७. उट्ठाणसुयं (क, ता); उट्ठाणवरियावणिए बारसवासे अरुणोववाय वरुणो य गरुलवे- (ग, जी, शु)। लंधरो। ८. समुट्ठाणसुयं (क, ता)। वेसमणुववाए य तहा य ते कप्पति उद्दि- 8. वायं (क, ता)। सिउं ॥१०॥ १०. नागपरियावणं (क, ता); नागपरियाए द्वादशवर्षपर्यायस्स अरुणोपपातो वरुणोपपातो णियाए (ख)। गरुडोपपातो वेलंधरोपपातो वैश्रमणोपपातश्च ११. अज्झयणं (क, ता); अज्झयणा (ग)। (मवृ) । 'वरुणोववाए' इति पाठः प्रयुक्ता- १२. 'क, ग, ता, शु' संकेतितादर्शेषु सूत्राणां क्रमदर्शषु क्वापि नास्ति । नन्दीसूत्रादर्शषु 'वरुणो- भेदो वर्ततेववाए' इति पाठो लभ्यते, तस्य चूया मलय ग, शु सूत्राङ्क | स्वीकृत क ३३ | सुविणभावणा० आसीविसभावणा० | सुविणभावणा० सुविणभावणा० ३४ चारणभावणा० दिट्टीविसभावणा० | चारणभावणा० दिट्टीविसभावणा० तेयनिसग्गं चारणभावणा० | आसीविसभावणा० | चारणभावणा ० ३६ | आसीविसभावणा० । सुविणभावणा० दिट्ठीविसभावणा० सूविणभावणा० ३७ । दिट्ठीविसभावणा० । तेयनिसग्गं तेयनिसग्गं १३. सिमिण (ग, जी)। १४. अज्झयणे (ग, जी, शु) । Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो ३४. पण्णरसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ चारणभावणानाम' अज्झयणं उद्दिति ॥ ३५. सोलसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ तेयनिसग्गं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए । ३६. सत्तरसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ आसी विसभावणानामं अज्झयणं उत् ॥ ३७. अट्ठारसवास परियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दिट्ठीविसभावणानामं अज्झयणे उद्दिति ॥ ३८. एगूणवीसवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पइ दिट्ठिवायनामं' अंगं उद्दिसि - तए ॥ ३६. वीसवासपरियाए समणे निग्गंथे सव्वसुयाणुवाई भवइ ॥ वसविहवेयावच्च पदं ४०. दसविहे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा-आयरियवेयावच्चे' उवज्झायवेयावच्चे थेरवेयावच्चे तवस्सिवेयावच्चे सेहवेयावच्चे गिलाणवेयावच्चे कुलवेयावच्चे गणवेयावच्चे संघवेयावच्चें साहम्मियवेयावच्चे ॥ ४१. 'आयरियवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ । एवं जाव साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ" । -त्ति बेमि ॥ १. नामे ( ग ) । २. अज्झयणे (ग, जी, शु) । ३. दिट्ठीवाए नामं (ग, जी, शु) । स्वीकृत आयरियवेयावच्चे उवज्झाय ० थेर० तवस्सि० सेह० गिलाण ० कुल ० गण० संघ ० ग्रन्थ परिमाण कुल अक्षर २७७४८ अनुष्टप् श्लोक – ८६७ अ० ४ ग, जी, शु आयरियवेयावच्चे उवज्झाय ० थेर० सेह० गिलाण ० तवस्सि ० साहम्मिय ० कुल ० गण० संघ साहम्मिय ० ६. चिन्हाङ्कितः पाठो भाष्ये वृत्तौ च नास्ति विवृतः । 'क, ता' संकेतितादर्शयोरेष पाठो नैव दृश्यते । 'ख' प्रतौ एष पाठो विस्तृतो ४. अझयणं (क, ता ) ; अंगे ( ख, ग, जी, शु) । ५. 'ग, जी, शु' संकेतितादर्शेषु स्थानाङ्ग (१० १७) च क्रमभेदो वर्तते - ६६१ ठाण आयरियवेयावच्चे उवज्झाय ० थेर० तदस्सि० गिलाण ० सेह० कुल ० गण० संघ० साहम्मिय० लभ्यते यथा 'उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ' । शेषपदानामपि एवमेव । Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं पढमो उद्देसो हत्थकम्म-पदं १. जे भिक्खू हत्थकम्मं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ २. जे भिक्ख अंगादाणं कठेण वा कलिंचेण वा अंगुलियाए वा सलागाए' वा संचा___ लेति, संचालतं वा सातिवति ॥ ३. जे भिक्खू अंगादाणं संवाहेज्ज' वा पलिमद्देज्ज' वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू अंगादाणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अन्भंगेज्ज' वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। ५. जे भिक्खू अंगादाणं कक्केण वा लोद्देण' वा पउमचुण्णेण वा हाणेण वा सिणाणेण वा 'वण्णण वा चुण्णेण वा" 'उव्वट्टेज्ज वा परिव?ज्ज" वा, उव्वटेंतं वा परिवटेंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू अंगादाणं सीतोदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं" वा सातिज्जति ।। ७. जे भिक्खू अंगादाणं णिच्छल्लेति, णिच्छल्लेंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू अंगादाणं जिंघति, जिघंत'" वा सातिज्जति ।। १. सादिज्जइ (अ, ख) अग्रेपि । ८. चुण्णेहिं वा वणेहिं वा (क, ग); चुण्णेण वा २. किलंचेण (ख)। वण्णेहिं वा (ख)। ३. सिलागाए (क, ख)। ६. उव्वट्टेइ वा परिवट्टेइ (क, ख, ग)। ४. संवाहिज्ज (अ, क)। १०. सीतोदक (अ); सीओदग (क)। ५. परिमद्दति (चू)। ११. पधोयंतं (क, ग)। ६. अभंगेइ (क, ग)। १२. जिग्पति जिग्घतं (क)। ७. लोदेन (अ.स)। १५ Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं ___६. जे भिक्खू अंगादाणं अण्णयरंसि अचित्तंसि सोयंसि' अणुप्पवेसेत्ता सुक्कपोग्गले णिग्घाएति, णिग्घायंतं वा सातिज्जति ॥ जिघति-पदं १०. जे भिक्खू ‘सचित्तपइट्टियं गंध" 'जिंघति, जिघतं" वा सातिज्जति ।। अण्णउत्थिय-गारत्थिय-कारावण-पदं ११. जे भिक्खू पदमग्गं वा, संकमं वा, अवलंबणं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा __कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू दगवीणियं 'अण्णउत्थिएण वा गारथिएण" वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति॥ १३. जे भिक्खू सिक्कगं वा सिक्कगणंतर्ग' वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति ।। १४. जे भिक्खू सोत्तियं वा रज्जुयं वा चिलिमिलि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति ।। १५. जे भिक्खू सूईए उत्तरकरणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू पिप्पलगस्स उत्तरकरणं अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति ।। १७. जे भिक्खू ‘णखच्छेयणगस्स उत्तरकरणं" अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेति, कारतं वा सातिज्जति ।। १८. जे भिक्खू 'कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं" अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा कारेति, कारेंतं वा सातिज्जति ।। १. सोयगंसि (अ, क, ख, ग)। वचनान्तं पदं दृश्यते-गिहि-अण्णतिथिएण २. 'ख' प्रतौ एतत्सूत्रस्थाने सूत्रद्वयं विद्यते-जे व (६३३) तेन मूले एकवचनान्त एव पाठः भिक्खू सचित्तगंधं जिंघति, जिंघतं वा साति- स्वीकृतः । ज्जति । जे भिक्खू सचित्तपइट्रियं गंधं जिंघति, ६. सिक्कगाणंतगं (अ)। जिंघंतं वा सातिज्जति । ७. सोतियं (अ)। ३. सचित्तगंधं (अ)। ८. x (अ)। ४. जिग्घति जिग्धंतं (अ, क)। ६. सूइए (अ); सूचीए (ख, ग); सूतीए ५. अण्णउत्थिाएहि वा गारस्थिएहिं (अ, क, ख, (च)। ग) । पूर्वस्मिन् सूत्रे 'अण्णउत्थिएण, गारत्थि- १०. णखच्छेयणगस्सुत्तर (अ); णहच्छेयणगस्स एण' इति एकवचनान्ते पदे विद्येते, अग्रिम (च)। सूत्रेष्वपि एवमेव । प्रस्तुतसूत्रस्य भाष्ये एक- ११. कण्णसोहणगस्सुत्तर (अ, क, ग) । Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमो उद्देसो अनटु-पर्व १६. जे भिक्खू अणट्ठाए सूइं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ २०. "जे भिक्खू अट्ठाए पिप्पलगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू अणट्ठाए णखच्छेयणगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू अणट्ठाए कण्णसोहणगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ अविहि-पदं २३. जे भिक्खु अविहीए सूइं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ २४. "जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ २५. जे भिक्खु अविहीए महच्छेयणगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ।। २६. जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ ° पारिहारिय-पर्व २७. जे भिक्खू पाडिहारियं सूइं जाइत्ता वत्थं सिव्विस्सामित्ति पायं सव्वति, सिन्वंत वा सातिज्जति ॥ २८. जे भिक्खू पाडिहारियं पिप्पलगं जाइत्ता वत्थं छिदिस्सामित्ति पायं छिंदति, छिदतं वा सातज्जति ॥ ६६७ २६. जे भिक्खू पाडिहारियं णहच्छेयणगं जाइत्ता नहं छिदिस्सामित्ति सल्लुद्धरणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू पाडिहारियं कण्णसोहणगं जाइत्ता कण्णमलं णीहरिस्सामित्ति दंतमलं वा णखमलं वा णीहरेति, णीहरेंतं वा सातिज्जति ।। अण्णमण्ण-पदं ३१. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए सूई जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेति, अणुष्पदेतं वा सातिज्जति ॥ ३२. 'जे भिक्खू अपणो एक्क्स्स अट्ठाए पिप्पलगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुष्पदेति अणुपदे तं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा० एवं पिप्पलयं णखच्छेयणयं कण्णसोहणयं । २. सं० पा० एवं पिप्पलयं णहच्छेयणयं कण्णसोहणयं । ३. सर्वास्वपि स्वीकृतप्रतिषु 'जे भिक्खू अप्पणी एक्कस्स अट्ठाए' इति सूत्रचतुष्टयं पूर्वं तथा 'जे भिक्खू पाडिहारियं' इति सूत्रचतुष्टयं पश्चात् वर्तते । अत्र स्वीकृतपाठो भाष्य-चूणमनुसरति । ४. णखं ( अ ) । ५. सूई जायइ ( अ ) । ६. सं० पा० एवं पिप्पलयं णहच्छेयणयं कण्णसोहणयं । Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं ३३. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए णहच्छेयणगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुष्पदेति, अणुप्पदेंतं वा सातिज्जति ॥ ३४. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए कण्णसोहणगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेति, __अणुप्पदेंतं वा सातिज्जति ॥ अविहि-पदं ३५. जे भिक्खू सूई अविहीए पञ्चप्पिणति, पच्चप्पिणंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. "जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं पञ्चप्पिणति, पञ्चप्पिणंतं वा सातिज्जति ॥ ३७. जे भिक्खू अविहीए णहच्छेयणगं पञ्चप्पिणति, पञ्चप्पिणंतं वा सातिज्जति ।। ३८. जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं पञ्चप्पिणति, पञ्चप्पिणंतं वा सातिज्जति ॥ अण्णउत्थिय-गारस्थिय पदं ३६. जे भिक्खू लाउपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा परिघट्टावेति वा 'संठवेति वा जमावेति वा', अलमप्पणो करणयाए' सुहममवि णो कप्पइ, जाणमाणे सरमाणे अण्णमण्णस्स वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति ।। ४०. जे भिक्खू दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा अण्णउत्थिएण वा गार थिएण वा परिघट्टावेति वा "संठवेति वा जमावेति वा, अलमप्पणो करणयाए सुहममवि णो कप्पइ, जाणमाणे सरमाणे अण्णमण्णस्स वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-पदं ४१. जे भिक्खू पायस्स एकं तुडियं तड्डेति, तड्डेंतं वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू पायस्स परं तिण्हं तुडियाणं तड्डेति, तड्डेंतं वा सातिज्जति ।। ४३. जे भिक्खू पायं अविहीए बंधति, बंधतं वा सातिज्जति ॥ ४४. जे भिक्खू पायं एगेण बंधेण बंधति, बंधतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्खू पायं परं तिण्हं बंधाणं बंधति, बंधतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू अतिरेगबंधणं पायं दिवड्ढाओ मासाओ परं धरेति, धरेंतं वा साति ज्जति॥ वत्व-पदं ४७. जे भिक्खू 'वत्थस्स एगं' पडियाणियं देति, देतं वा सातिज्जति ॥ १.सं० पा०–एवं पिप्पलयं णहच्छेयणयं कण्ण- ५. सं० पा०---सो चेव मग्गिल्लओ गमओ अणूसोहणयं । गंतव्वो जाव साति । २. ठावेति वा जवावेति वा (अ)। ६. परेण (ख, ग)। ३. कारणयाए (क, ग)। ७. वत्ये एगमवि (अ)। ४. परिघट्टवेइ (ग)। Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ पढमो उद्देसो ४८. जे भिक्खू वत्थस्स परं तिण्हं पडियाणियाणं देति, देंतं वा सातिज्जति ।। ४६. जे भिक्खू अविहीए वत्थं सिव्वति, सिव्वंतं वा सातिज्जति ।। ५०. जे भिक्खू वत्थस्स एगं फालिय-गंठियं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ५१. जे भिक्खू वत्थस्स पर तिण्हं 'फालिय-गंठियाणं" करेति, करेंतं वा सातिज्जति' । ५२. 'जे भिक्खू वत्थस्स परं तिण्हं फालिय-गंठीणं संसिव्वेति, संसिव्वंतं वा सातिज्जति'॥ ५३. जे भिक्खू अतज्जाएणं 'गहेति, गहेंतं" वा सातिज्जति ।। ५४. जे भिक्खू अइरेगगहियं वत्थं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेति, धरेंत वा सातिज्जति ॥ अण्णउत्थिय-गारत्थिय-पदं ५५. जे भिक्खू गिहधूम' अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा परिसाडावेति, परिसाडावेंतं वा सातिज्जति ।। पूतिकम्म-पदं ५६. जे भिक्खू पूतिकम्मं भुजति, भुंजतं वा सातिज्जति 'तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं ।। १. फालियंठियाणं (अ)। २. अतः परं 'ख' प्रतौ अन्यानि त्रीणि सूत्राणि दृश्यन्ते-जे वत्थस्स एग फालियं गंठेति गंठतं वा सातिज्जति । जे वत्थस्स परं तिण्डं फालियाणं गंठेति गंठेतं वा सातिज्जति । जे वत्थं अविहीए गंठेति गंठेतं वा साति- ज्जति । ३. x (अ)। ४. 'गहेति' इति क्रियापदस्य 'ग्रथ्नाति' इति संस्कृतरूपं विद्यते, तेन 'गहेति गंठेति' इति द्वे अपि क्रियापदे समानार्थके स्तः । ५. गिहिधूम (अ, ख)। ६.४ (चू)। Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिइआ उद्दसो पायपुंछण-पदं १. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। २. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं गेण्हति, गेण्हतं वा सातिज्जति ।। ३. 'जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ।। ४. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं वितरति, वितरेंतं वा सातिज्जति ।। ५. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभाएति', परिभाएंतं वा सातिज्जति ।। ६. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभुजति, परिभुजंतं वा सातिज्जति ॥ ७. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेति, धरेंत वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं विसुयावेति, विसुयावेत वा सातिज्जति ।। जिघति-पदं ६. जे भिक्खू अचित्तपतिट्ठियं गंधं जिंघति, जिघतं वा सातिज्जति ।। सयमेवकरण-पदं १०. जे भिक्खू पदमग्गं वा संकम वा आलंबणं वा सयमेव करेति, करेंतं वा .सातिज्जति ॥ ११. "जे भिक्खू दगवीणियं सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। १२. जे भिक्ख सिक्कगं वा सिक्कगणंतगं वा सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। १३. जे भिक्खू सोत्तियं वा रज्जुयं वा चिलिमिलि सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा०-एवं धरेति वितरति परिभाएति गणतगं वा सोत्तियं वा रज्जयं वा चिलिमिलि परि जति । सूइए उत्तरकरणं पिप्पलयस्स उत्तरकरणं २. परियाभाएति (अ)। णहच्छेयणगस्स कण्णसोहणयस्स उत्तरकरणं । ३. सं० पा...--एवं दगवीणियं सिक्कगं वा सिक्क Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीओ उद्देसो १४. जे भिक्खू सूईए उत्तरकरणं सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू पिप्पल यस्स उत्तरकरणं सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू हच्छेयणगस्स उत्तरकरणं सयमेव करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्खू कण्णसोहणयस्स उत्तरकरणं सयमेव करेति, करेतं वा सातिज्जति ॥ लहुसग पदं १८. जे भिक्खू लहुसगं फरुसं वयति, वयंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खु लहुसगं मुसं वयति, वयंतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू लहुसगं अदत्तं आदियति, आदियंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू लहुसएण सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा हत्याणि वा पादाणि वा 'दंताणि वा" मुहाणि वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज' वा, उच्छोलेंत वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ।। कसिण-पदं २२. जे भिक्खू कसिणाई चम्माई धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ २३. जे भिक्खू कसिणाई वत्थाई धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ सयमेव-पदं २४. जे भिक्खू लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा सयमेव परिघट्टेति वा संठवेति 'मावेति वा परिघट्टेतं वा संठवेतं वा जमावेंतं' वा सातिज्जति ॥ २५. "जे भिक्खू दंडगं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा सयमेव संवेति वा जमावेति वा परिघट्टेतं वा संठवेतं वा जमावेंतं वा रिट्टेति सातिज्जति ।। २६. जे भिक्खू णियग" - गवेसियं" पडिग्गहगं" धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ १. कण्णाणि वा अच्छीणि वा दंताणि वा ( अ ) ; दंताणि वा कण्णाणि वा अच्छीणि वा णहाणि वा (ख) । २. मुहं ( अ, ख ) ; आसए पोसए य अण्णे य इंदियमुहा मुहाणि (चू ) । ३. पच्छोलेज्ज ( ग ) । ४. पच्छोलेंतं ( ग ) । ५. अतः परं 'क, ख, ग' प्रतिषु एकं अतिरिक्तं सूत्रं दृश्यते - जे भिक्खु अभिण्णाई वत्थाई धरेइ धरेतं वा सातिज्जति । ६७१ ६. वा सम्मट्ठेति वा ( अ ) । ७. जवति ( अ ) ; जवेति ( क, ख, ग ) । ८. जवंतं ( अ ) ; जवेंतं ( क, ख, ग ) । ६. सं० पा० - एवं दंडगं वा लट्ठियं वा अवलेह - णियं वा वेणुसूइयं जाव जमावेंतं । १०. वेलुसूयि ( अ ) ; वेलुसूइयं ( क ) । ११. यि ( ख, ग ) । १२. गवेसितगं ( अ ) ; गवेसियगं ( क, ख, ग ) सर्वत्र । १३. पडिग्गहं ( अ ) । Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ निसीहझयणं २७. जे भिक्खू पर-गवेसियं पडिग्गहगं धरेति, धरेत वा सातिज्जति ॥ २८. जे भिक्खू वर-गवेसियं पडिग्गहगं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ।। २६. जे भिक्खू बल-गवेसियं पडिग्गहगं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू लव'-गवेसियं पडिग्गहगं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ नितिय-पदं ३१. जे भिक्खू नितियं अग्गपिंड' भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू नितियं पिंड' भुजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ ३३. 'जे भिक्खू नितियं अवड्ढे भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति" ॥ ३४. जे भिक्खू नितियं भागं भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू नितियं अवड्ढभागं' भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू 'नितियं वासं' वसति, वसंतं वा सातिज्जति ॥ संथव-पदं ३७. जे भिक्खू पुरेसंथवं वा पच्छासंथवं वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। भिक्खायरिया-पदं ३८. जे भिक्खू समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे पुरे संथुयाणि वा पच्छासंथयाणि वा कुलाई पुव्वामेव ‘पच्छा वा" भिक्खायरियाए' अणुपविसति, अणुपविसंत वा सातिज्जति ॥ अण्णउत्थिय-गारत्थिय-अपरिहारिय-पदं ३९. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिए ण वा परिहारिओ" अपरिहारिएण सद्धि गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए 'अणुपविसति वा णिक्खमति वा, अणुपविसंतं वा णिक्खमंतं वा" सातिज्जति ।। ४०. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण सद्धि १. लवं (क, ख, ग)। रिक्तं सूत्रं विद्यते--जे भिक्ख णितियं ऊण२. पिडं (अ)। भागं भुजति भुजंतं वा सातिज्जति । ३. अग्गपिंडं (अ)। ७. नितियावासं (अ, ख) । ४. x (अ, ख)। ८. पच्छामेव (अ)। ५. उवड्ढ°(ग)। है. पिंडवायपडियाए (अ, ख)। ६. अतः परं 'अ' प्रती सूत्रद्वयमतिरिक्तं विद्यते- १०. परिहारियो वा (अ, ख)। जे भिक्खू णितियं ऊणडभागं भजति, भजंतं ११. णिक्खवति वा पविसति वा णिक्खमंतं वा वा सातिज्जति । । जे णितियं ऊडभागं भुजति पविसंतं वा (अ, ख)। भंजंतं वा साति । 'क, ख' प्रत्योः एक अति Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७३ बीओ उद्देसो बहिया 'वियारभूमि वा विहारभूमि वा" णिक्खमति वा पविसति वा, णिक्खमंतं वा पविसंतं वा सातिज्जति ॥ ४१. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएहिं सद्धि गामाणुगामं दूइज्जति, दूइज्जतं वा सातिज्जति ॥ मोयण-जाय-पदं ४२. जे भिक्खू अण्णयरं भोयण-जायं प्रडिगाहेत्ता सुन्भिं-सुब्भिं भुजति, दुब्भि-दुभि मा सातिज्जति ॥ पाणग-जाय-पदं ४३. जे भिक्खू अण्णयरं पाणग-जायं पडिगाहेत्ता पुप्फयं-पुप्फयं आइयइ, कसायं-कसायं ' वा सातिज्जति ॥ बहुपरियावण्ण-भोयण-पदं ४४. जे भिक्खू मणुण्णं भोयण-जायं बहुपरियावण्णं', अदूरे तत्थ साहम्मिया संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया संता परिवसंति, ते अणापुच्छित्ता अणिमंतिया परिढवेति, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति ।। सागारिय-पदं ४५. जे भिक्खू सागारिय-पिंडं गिण्हति, गिण्हतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू सागारिय-पिंडं भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ४७. जे भिक्खू सागारिय-कुलं अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पुवामेव पिंडवाय-पडियाए अणुप्पविसति, अणुप्पविसंतं वा सातिज्जति ।। ४८. जे भिक्खू सागारिय-नीसाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासिय ओभासिय जायति. जायंतं वा सातिज्जति ॥ सेज्जासंथारय-पदं ४६. जे भिक्खू उडुबद्धियं सेज्जा-संथारयं परं पज्जोसवणाओ' उवातिणाति, उवातिणंतं वा सातिज्जति ॥ ५०. जे भिक्खू वासावासियं सेज्जा-संथारयं परं दसरायकप्पाओ उवातिणाति, उवाति णतं वा सातिज्जति ॥ ५१. जे भिक्खू उडुबद्धियं वा वासावासियं वा सेज्जा-संथारगं उवरि सिज्जमाणं पेहाए १. विहार'""वियार (क, ख) । ५. चूणौं अकारसंकेतितायां ताडपत्रीयप्रतौ एतत् २. चूणौं 'पाणगजायं' इति सूत्रं पूर्व विद्यते, सूत्र नैव दृश्यते ।। ___ 'भोयणजायं' इति सूत्रं पश्चाद् विद्यते । ६. उउ (अ, क); उडुबद्धगहितं (चू)। ३. परिट्ठावेति परिट्ठावेंतं (अ, क)। ७. पज्जोसमणाओ (अ)। ४. पडिगाहेत्ता बहुपरियावण्णं सिया (ख)। ८. समाणं (अ)। Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૦૪ निसीहज्झयणं न ओसारेति, न ओसारेंतं वा सातिज्जति ।। ५२. जे भिक्खू पाडिहारियं सेज्जा-संथारयं दोच्चं' अणणुण्णवेत्ता' बाहिं णीणेति, णीणेतं वा सातिज्जति ॥ ५३. जे भिक्खू पाडिहारियं सेज्जा-संथारयं आयाए अपडिहट्ट संपव्वयइ, संपव्वयंत वा सातिज्जति ॥ ५४. जे भिक्खू सागारिय-संतियं सेज्जा-संथारयं आयाए अविगरणं" कटु अणप्पिणित्ता' संपव्वयइ, संपव्वयंतं वा सातिज्जति ॥ ५५. जे भिक्खू पाडिहारियं वा सागारिय-संतियं वा सेज्जा-संथारयं विप्पणट्ठणं ण गवेसति ण गवसंतं वा सातिज्जति ।। पडिलेहण-पवं ५६. जे भिक्खू इत्तरियंपि' उवहिं ण पडिलेहेति, ण पडिलेहेंतं वा सातिज्जति तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं । १. ४ (क, ख); दोच्चंपि (ग)। २. अणुण्णवेत्ता (क, ख, ग) अशुद्ध प्रतिभाति । ३. अतः परं 'क, ख, ग' प्रतिषु निम्ननिर्दिष्टे द्वे सूत्र लभ्येते-जे भिक्खू सागारियसंतियं सेज्जासंथारयं अणण्णवेत्ता बाहिं जीणेति. णीणेतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू पाडिहारियं सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारयं दोच्चंपि अणुण्णवेत्ता बाहिं णीणेति, णीणेतं वा साति ज्जति । भाष्ये चूणों च नैते व्याख्याते स्तः 'अ' प्रती लिखित्वा पुनः कतिते स्तः । एतयो र्नास्ति किञ्चिद् अतिरिक्तं प्रतिपाद्यम, तेन नावश्यके प्रतिभातः । ४. अधिकरणं (क, ख, ग) अशद्धं प्रतिभाति । ५. ४ (अ) । ६. इत्तिरियंपि (अ, क, ग)। Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ उद्देसो ओभासण-पदं १. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा' परियावसहेसु वा अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा 'ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ।। २. 'जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिया वा गारत्थिया वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभा सति, ओभासंतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा 'अण्णउत्थिणी वा गारत्थिणीं" वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिणीओ वा गारत्थिणीओ वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ।। ५. जे भिक्ख आगंतारेसु वा •आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा कोउहल्ल-पडियाए पडियागतं समाणं अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ।। ६. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा १. अतः परं 'क' प्रतौ 'जाव' इति पदं दृश्यते । २. ओभासिय ओभासिय जायति जायंतं वा (अ, ___ क, ख)। ३. सं० पा०–एवं अण्णउत्थिया वा गारत्थिया वा अण्णउत्थिणी वा गारस्थिणीं वा अण्ण उत्थिणीओ वा गारस्थिणीओ वा। ४. अण्णउत्थिणी वा गारस्थिणी (क, ख, ग)। ५. आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु वा अण्ण उत्थियं वा गारत्थियं वा कोउहल्लपडियाते (क, ख, ग)। सं० पा०-आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु वा कोउहल्लपडियाए पडियागतं वा समाणं वा असणं वा ४ ओभासति २ जायति जायंतं वा साति एवं एतेण वि चत्तारि गमगा। Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ निसीहज्झयणं को उहल्ल-पडियाए पडियागता समाणा अण्णउत्थिया वा गारत्थिया वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ।। ७. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा को हल्ल-पडियाए पडियागतं समाणं अण्णउत्थिणीं वा गारत्थिणीं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा को उहल्ल-पडियाए पडियागता समाणा अण्णउत्थिणीओ वा गारत्थिणीओ वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा उत्थिण वा गारत्थिएण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता' तमेव 'अणुवत्तिय अणुवत्तिय परिवेढियपरिवेदिय परिजविय - परिजविय 'ओभासति, ओभासंतं वा" सातिज्जति ॥ १०. "जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिहिं वा गारत्थिएहिं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिह आहट्टु दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय अणुवत्तिय परिवेढियपरिवेढिय परिजविय परिजविय ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अणउत्थिणीए वा गारत्थिणीए वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभि आट्टु दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय अणुवत्तिय परिवेढियपरिवेढिय परिजविय - परिजविय अभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा उत्थिणीहि वा गारत्थिणीहिं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभि ट्टु दिज्माणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय अणुवत्तिय परिवेढियपरिवेढिय परिजविय - परिजविय अभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति ॥ भिक्खायरिया पर्व १३. जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए पविट्ठे पडियाइक्खिए" समाणे दोच्चं ' तमेव कुलं अणुष्पविसति, अणुप्पविसंतं वा सातिज्जति ॥ १४. जे भिक्खू संखडि पलोयणाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति " पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ।। १. पडियाइ क्खित्ता ( अ ) । २. उवतिय उवतिय ( अ, क ) । ३. ओभासिय ओभासिय जायति जायंतं वा ( अ, क, ख, ग ) । ४. सं० पा० - एवं एतेण चैव चत्तारि गमगा । ५. पच्चक्खिते ( अ, ख ) । ६. दोच्चपि ( ख ) । ७. पडिग्महेति ( अ, ख, ग ) । Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो ६७७ १५. जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविठे समाणे परं ति-घरंतराओ' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-परिकम्म-पवं १६ जे भिक्खू अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जतं वा पमज्जतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्खू अप्पणो पाए 'संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज" वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ।। १८. जे भिक्खू अप्पणो पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा 'अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा", अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू अप्पणो पाए लोद्धेण वा कक्केण वा 'चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदे॒ज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्ख अप्पणो पाए सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू अप्पणो पाए फुमेज्ज' वा रएज्ज वा, फुतं वा रएतं वा सातिज्जति । काय-परिकम्म-पदं २२. जे भिक्ख अप्पणो कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जतं वा सातिज्जति ॥ २३. “जे भिक्खू अप्पणो कायं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू अप्पणो कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ २५. जे भिवख अप्पणो कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज __ वा उव्वदे॒ज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा सातिज्जति ॥ १. अतः परं चूणौं 'आयाए गृहीत्वा' इति ३. संवोहेति वा पलिमद्देइ (क)। व्याख्यातमस्ति । आदर्शवू 'आयाए' इति पदं ४. मक्खेज्ज वा अब्भंगेज्ज वा (अ, क, ख): नव लभ्यते । मक्खेज्ज वा भिलिगेज्ज वा (क्वचित)। २. अत: 'फुमेज्ज वा' इति पञ्चसूत्राणां स्थाने ५. क्वचिन्नास्ति। भाष्ये सूत्रभेदो वर्तते-एतेसि पंचण्हं सुत्ताणं ६. फूमेज्ज (अ, क) । संगहगाहा ७. फूमेंतं (अ, क)। संवाहणा पधोवण, कक्कादीणुव्वलण मक्खणं वा वि। ८. सं० पा०-एतेण अभिलावेण सो चेव गमओ फमणं वा राइल्लं वा, जो कूज्जा अप्पणो पादे भाणियन्वो जाव रएंतं । ॥१४६५॥ Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ निसीहज्झयणं २६. जे भिक्खू अप्पणो कायं सीओदग वियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा धोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ २७. जे भिक्खू अप्पणो कायं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमेतं वा रतं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म पर्द २८. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा मज्जंतं वा सातिज्जति ॥ २६. "जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा संवाहतं वा पमितं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू अप्पणो कायंसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा अब्भंगेतं वा मक्खतं वा सातिज्जति ॥ ३१. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं लोद्वेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वट्टेतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू अप्पणी कायंसि वणं सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ ३३. जे भिक्खू अप्पणो कायंसि वणं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमेंतं वा रतं वा तज्जति ॥ गंडादि-परिकम्म-पदं ३४. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंड वा पिडयं' वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदेज्ज वा विच्छिंदेज्ज वा, अच्छिदंतं वा विच्छिदतं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोर्हेतं वा सातिज्जति ॥ ३६. "जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंड वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा १. सं०पा० - एयस्स पायगमओ चेव भाणियव्वो जावरतं । कायस्स वणे पि ते चेव (क) । २. पलियं ( क, ख, ग ) पिलगं (चू ) । ३. अंसि ( अ ); अंसियं ( क ) । दगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति एवं अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपेज्ज वा विलिपेज्ज वा आलिपतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति एवं अभंगित्ति वेत्यादि एवं एतेण गमएण धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वत्ति यव्वं । ६. अरयं ( अ, क, ख ); अरति ( ग ) । ४. पुव्यं ( अ ) । ५. सं० पा०—जे अप्पणो कार्यसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्ख जाव विच्छिदिया जाव पूयं वा जाव विसोहेत्ता सीतोदगवियडेण वा उसिणो Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ उद्देसो ६७६ अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोतं वा सातिज्जति ।। ३७. जे भिक्ख अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ।। ३८. जे भिक्खू अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपित्ता वा विलिंपित्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। ३९. जे भिक्खू अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपित्ता वा विलिपित्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा, धूवेंतं वा पधूवेंतं वा सातिज्जति । किमि-पदं ४०. जे भिक्खू अप्पणो' पालुकिमियं वा कुच्छिकि मियं वा अंगुलीए' णिवेसिय-णिवेसिय ___णीहरति, णीहरंतं वा सातिज्जति । णह-सिहा-पदं ४१. जे भिक्खू अप्पणो 'दीहाओ णह-सिहाओ कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति । दोह-रोम-पदं ४२. जे भिक्खू अप्पणो दीहाई जंघ-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति। ४३. जे भिक्खू अप्पणो दीहाई वत्थि-रोमाई कप्पेज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं ३. दीहाई णहसिहाई (अ)। १. ४ (अ)। २. अप्पणो अंगुलीए (अ, क, ख) । Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० निसीहज्झयणं ___ वा सातिज्जति ॥ ४४. जे भिक्खू अप्पणो दीह-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं कक्खाण-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू अप्पणो दीहाई मंसु-रोमाइं.कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ दंत-पदं ४७. जे भिक्खू अप्पणो दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ।। ४८. जे भिक्खू अप्पणो दंते' उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू अप्पणो दंते फुमेज्ज वा रएज्ज वा फुतं वा रएतं वा सातिज्जति ।। ५०. जे भिक्खू अप्पणो उठे आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमजतं वा पमज्जतं वा सातिज्जति ॥ ५१. जे भिक्खू अप्पणो उठे संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा संवाहेंतं वा, पलिमहेंतं वा सातिज्जति ।। ५२. जे भिक्खू अप्पणो उठे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अन्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। ५३. जे भिक्खू अप्पणो उठे लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उन्वटेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वदे॒तं वा सातिज्जति ।। ५४. जे भिक्खू अप्पणो उठे सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं सातिज्जति ।। ५५. जे भिक्खू अप्पणो उठे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएतं वा सातिज्जति ॥ दीह-रोम-पदं ५६. जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं उत्तरोट्ठ- रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ५७. 'जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं णासा-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा १. अच्छि (अ)। स्वीकृतासु प्रतिषु नास्ति। २. 'दंते सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण ३. सं० पा०-एवं उद्रे पायगमो भाणियव्वो। वा' इति पाठः क्वचिद् दृश्यते परमस्माभिः ४. उत्तरोट्ठाई (अ, ख)। Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ उद्देसो ६८१ संठवेंतं वा सातिज्जति॥ अच्छि -पत्त-पवं ५८. जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं अच्छि-पत्ताइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति°॥ अच्छि -पवं ५६. जे भिक्खू अप्पणो अच्छी णि आमज्जेज्ज वा 'पमज्जेज्ज वा, आमज्जतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ६०. जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदेतं वा सातिज्जति । ६१. जे भिक्खू अप्पणो अच्छी णि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं या सातिज्जति ।। ६२. जे भिक्खू अप्पणो अच्छी णि लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लो लेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटुंतं वा सातिज्जति ॥ ६३. जे भिक्ख अप्पणो अच्छीणि सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छो लेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ ६४. जे भिक्खू अप्पणो अच्छी णि फुमेज्ज वा° रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ दीह-रोम-पदं ६५. जे भिक्खू अप्पणो दीहाई भमुग-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्त वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ६६. जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं पास-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्त वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ मल-णीहरण-पदं ६७. जे भिक्ख अप्पणो कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा णीहरेज्ज वा विसो१. x (क, ख, ग)। चूर्णीगतोयं पाठ:--'जे भिक्खू दीहाओ २. सं० पा०-एवं दीहाई अच्छिपत्ताई। अप्पणो णहा' इत्यादि 'जाव अप्पणो दीहे ३. सं पा०--एवं अच्छिसु पायगमो भाणियब्वो केसे कप्पेइ' इत्यादि-छवीसं सुत्ता उच्चारे. जाव रएज्ज । यव्वा । ४. भुमग (अ, ग); भमग (क)। ६. ६७, ६८ सूत्रयोः क्रम: भाष्य-चूर्ण्यनुसारी ५. चूामन्तिमं सूत्रं-'जे भिक्खू अप्पणो दीहाई स्वीकृतः । आदर्शेषु 'कायाओ सेयं वा' केसाई कप्पेज्ज वा संठवेज वा कप्तं वा एतत्सूत्रं 'अच्छिमलं वा' अस्य सूत्रस्य अनन्तरं संठवेंतं वा सातिज्जति'-एतदस्ति । अत्र विद्यते । Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ निसीहज्झयणं हेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ ६८. जे भिक्ख अप्पणो 'अच्छिमलं वा" कण्णमलं वा दंतमलं वा 'णहमलं वा२ णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ सीसदुवारिय-पदं ६९. जे भिक्खू गामाणुगाम दूइज्जमाणे अप्पणो सीसदुवारियं करेति, करेंतं वा साति ज्जति ॥ वसीकरणसुत्त-पदं ७०. जे भिक्ख सणकप्पासाओ वा 'उण्णकप्पासाओ वा" पोंडकप्पासाओ वा 'अमिल कप्पासाओ वा वसीकरणसुत्तयं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ उच्चार-पासवण-पदं ७१. जे भिक्खू गिहंसि' वा गिहमुहंसि वा गिहदुवारंसि वा 'गिहपडिदुवारंसि वा" हेिलयंसि वा 'गिहंगणंसि वा" गिहवच्चंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिट्र वेति', परिवेंतं वा सातिज्जति ॥ ७२. जे भिक्ख मडगगिहंसि वा मडगछारियंसि वा मडगथूभियंसि वा मडगासयंसि वा मडगलेणंसि वा ‘मडगथंडिलंसि वा'" मडगवच्चंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, परिवेंतं वा सातिज्जति ।। ७३. जे भिक्ख इंगालदाहंसि वा खारदाहंसि वा गातदाहंसि वा 'तुसदाहठाणंसि वा भसदाहठाणंसि वा उच्चार वा पासवणं वा परिट्ठवेति, परिटठवेंतं वा साति ज्जति ॥ ७४. जे भिक्खू णवियासु" वा गोलेहणियासु णवियासु वा मट्टियाखाणीसु–परिभज्ज माणियासु वा अपरिभुज्जमाणियासु वा---उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति ।। १. X (अ, ख)। ६. परिवावेइ (अ, क) । २. x (अ, ख)। १०. x (अ)। ३. x (अ)। ११. तुसदाहंसि वा भुसदाहंसि वा (क, ख)। ४. x (चू)। १२. ७४, ७५ सूत्रयोः क्रमः भाष्य-चूर्ण्यनुसारी ५. सुत्ताइं (अ, क, ख); सुत्तं (ग)। स्वीकृतः । आदर्णेषु 'सेयायणंसि वा' एतत्सूत्र ६. भाष्ये चूणौं च 'गिह-गिहमुह-गिहंगण-गिह- 'णवियासु वा' असा सूत्रस्य अनन्तरं विद्यते । दुवार-गिहवच्च' एतानि पदान्येव व्याख्या- १३. भाष्ये 'अभिणवा' इति पदस्य प्रयोगो दश्यते तानि दृश्यन्ते । (१५३८); क्वचित् 'अभिणविया' इति ७. ४ (अ, ग)। पदं लभ्यते। ८. ४ (अ)। Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८३ तइओ उद्देस ७५. जे भिक्खू सेयायणंसि' वा 'पंकायतणंसि वा पणगायतणंसि वा" उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति परिट्ठवें तं वा सातिज्जति ॥ ७६. जे भिक्खू उंबरवच्चंसि वा णग्गोहवच्चंसि वा असोत्थवच्चंसि वा विलक्खुवच्चंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिद्ववेति, परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ॥ ७७. जे' भिक्खू डागवच्चंसि ' वा सागवच्चंसि वा मूलयवच्चंसि वा कोत्युभरिवच्चसि वा खारवच्चंसि वा जीरयवच्चंसि वा दमणवच्वंसि' वा मरुगवच्चंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ॥ ७८. जे भिक्खू इक्खुवणंसि वा सालवणंसि' वा कुसुंभवणंसि वा कप्पासवणंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ॥ ७६. जे भिक्खू असोगवणंसि वा सत्तिवण्णवणंसि वा चंपगवणंसि वा चूयवणंसि वा अण्णतरेसु तहप्पगारेसु" वा पत्तोवएसु पुप्फोवएसु फलोवएसु" छाओवएसु" उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ॥ ८०. 'जे" भिक्खु राओ वा वियाले वा उच्चार- पासवणेण उब्बा हिज्जमाणे सपायंसि वापरपायंसि वा उच्चार- पासवणं परिद्ववेत्ता" अणुग्गए सूरिए एडेति, एडेंतं वा सातिज्जति तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं ॥ १. सेयण हंसि (आ० चू० १०।२४ ); सेयणपहो तु णिक्का ( निशीथ भाष्य १५३९ ) । २. पंकंसि वा पणगंसि वा (क, ख, ग ) । ३. असत्थो - पिप्पलो (चू) । ४. पिलंखु ( ग ) । ५. ७७-७६ एषां त्रयाणामपि सूत्राणां चूर्णां व्याख्या नैव दृश्यते । ६. 'क, ख, ग' प्रतिषु पूर्वं 'इक्खुवणंसि' इतिपाठः, पश्चात् 'डागवच्चंसि ' पाठः । ७. हत्थंकरचच्चसि (आ० चू० १०।२६ ) | ८. दमण (क, ख ) । ६. सालि ( अ, क, ग ) 1 १०. वा अयसिवणंसि वा ( अ ) । ११. तरुप्पगारेसु (क, ख, ग ) । १२. x ( अ ) । १३. बीओएस (शु) । १४. व्याख्यानुसारेण चुर्णिसम्मतः पाठ: एवं प्रतीयते-- जे भिक्खू राओ वा वियाले वा उच्चार पासवणेण उब्बा हिज्ज माणे सपायं गहाय परपायं जाइत्ता वा उच्चार- पासवणं परिवेत्ता अणुग्गए सूरिए छड्डेति छड्डेंतं वा सातिज्जति । १५. जे भिक्खू सपायंसि वा परपायंसि वा दिया वा राओ वा वियाले वा उब्बाहिज्जमाणे सपायं गहाय परपायं जाइत्ता वा उच्चारं पासवणं वा परिवेत्ता ( क, ख, ग ) । Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो अत्तीकरण-पदं १. जे भिक्खू रायं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति ।। २. जे भिक्खू रायारक्खियं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू णगरारक्खियं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू णिगभारक्खियं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति ।। ५. जे भिक्खू देसारक्खियं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति ।। ६. जे भिक्ख सव्वारक्खियं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति ।। अच्चीकरण-पदं ७. जे भिक्खू रायं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ।। ८. जे भिक्खू रायारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ।। ६. जे भिक्खू णगरारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ।। १०. जे भिक्खू णिगमारक्खियं अच्चोकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्खू देसार क्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ।। १२. जे भिक्खू सव्वारक्खियं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति ॥ १.१-१८ एतेषां अष्टादशानामपि सूत्राणां पाठो भाष्य चूणि चाश्रित्य स्वीकृत: प्रयुक्तादर्शपू एषां सूत्राणां क्रमो भिन्नो दृश्यते-जे भिक्खू रायं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू रायं अच्चीकरेति, अच्चीकरेंतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू रायं अत्थीकरेति, अत्थीकरेंतं वा सातिज्जति । एवं रायारक्खिए वि तिन्नि आलावगा अत्तीकरेइ अच्चीकरेइ अत्थीकरेइ एवं णगरारक्खिए वि तिन्नि, णिगमारक्खिए वि तिन्नि, देसारक्खिए वि तिन्नि, सव्वारक्खिए वि तिन्नि । 'क, ख, ग', प्रतिषु देसारक्खियं सम्बन्धीनि त्रीणि सत्राणि नैव दृश्यन्ते-जे भिक्खू रायं अत्तीकरेति, अत्तीकरेंतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू रायं अच्चीकरेति, अच्ची करेंतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू रायं अत्थीकरेति, अत्थीकरेंत वा सातिज्जति । एवं रायारक्खियं णगरारक्खिय णिगमारक्खियं सव्वारक्खियं । Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसो १८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए पोसंतं वा पिट्ठतं वा भल्लायएण उप्पाएत्ता सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-विण्डेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेत्ता वा विलित्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अन्भंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं° धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा, धूवेंतं वा पधूवेंतं वा सातिज्जति ॥ वस्थ-पदं १६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए कसिणाई वत्थाई धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ २०. .' जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अहयाई वत्थाई धरेति, धरेत वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए 'घोय-रत्ताई" वत्थाइं धरेति, धरेतं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए मलिणाई वत्थाई धरेति, धरेतं वा सातिज्जति ॥ २३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए चित्ताई वत्थाई धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए° विचित्ताई वत्थाइ धरेति, धरेतं वा सातिज्जति ।। पाय-परिकम्म-पवं २५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, ____ आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ २६. "जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पाए संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, ___ संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ।। २७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्वंतं वा सातिज्जति ॥ १. एतत् सूत्रं चूणों नास्ति व्याख्यातम् । अह जे य धोय मइले, रत्ते चित्ते तधा विचित्ते य २. सं० पा०-एवं अहयाई घोयरत्ताई मलिणाई ॥२२७८॥ चित्ताई विचित्ताई। ४. 'क, ख, ग' प्रतिषु एतत्सूत्रं नैव दृश्यते । 'अ' ३. घोवरत्ताइं (अ); धोवाइं रत्ताइं (क, ख, प्रतो एतत्सूत्रं अहयाई वत्थाई इत्यस्यानन्तरं विद्यते । ग)। चूणों 'रत्त' पदं व्याख्यातं नास्ति । ५. सं० पा०-एवं तइयउद्देसो जो गमो सो च्चेव भाष्ये 'धोय-मइल-रत्त-चित्त-विचित्त' इति इह मेहुणवडियाए णेयव्वो जाव जे माउग्गापदानां क्रमो विद्यते मस्स । Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ निसीहज्झयणं २८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पाए लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वटेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वदे॒तं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पाए सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पाए फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ काय-परिकम्म-पदं ३१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदेंतं वा सातिज्जति ।। ३३. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहण-वडियाए अप्पणो कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। ३४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज़ वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा सातिज्जति ।। ३५. जे भिक्खू माउग्गामरस मेहुण-वडियाए अप्पणो कायं सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म-पदं ३७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ३८ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि वणं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदे॒तं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ ४०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वस॒तं वा Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसो ७०३ सातिज्जति ॥ ४१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि वणं सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्जा वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि वणं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ।। गंडादि-परिकम्म-पदं ४३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेण तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदेज्ज वा विच्छिदेज्ज वा, अच्छिदेंतं वा विच्छिदंतं वा सातिज्जति ।। ४४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलितं वा विलितं वा सातिज्जति ॥ ४७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेण तिक्खणं सत्थजाण अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपेत्ता वा विलिपेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा भक्खेंतं वा सातिज्जति ।। ४८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वाणीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ निसीहज्झयणं उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवण-जाएणं आलिंपेत्ता वा विलिंपेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा, धूवेतं वा पधुवेंतं वा सातिज्जति ॥ किमि-पदं ४६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पालुकि मियं वा कुच्छिकि मियं वा अंगलीए णिवेसिय-णिवेसिय णीहरेति, णोहरेंतं वा सातिज्जति ।। णह-सिहा-पदं ५०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाओ णह-सिहाओ कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। दीह-रोम-पदं ५१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाई जंघ-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। ५२. जे भिक्खू माउग्गामस्म मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाई वत्थि-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। ५३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीह-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ५४. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहण-वडियाए अप्पणो दीहाई कक्खाण-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। ५५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाइं मंसु-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। दंत-पदं ५६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ।। ५७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दंते उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ५८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अपणो दंते फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ उट-पदं ५६. जे भिक्खू माउंग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो उठे आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ।। ६०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो उठे संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसो ७०५ वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ॥ ६१. जे भिक्खू माउग्गामस्य मेहुण-वडियाए अप्पणो उठे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ ६२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो उठे लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्व तं वा सातिज्जति ॥ ६३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो उठे सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ६४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो उठे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ दोह-रोम-पदं ६५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाइं उत्तरोट्ठ-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ६६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाई णासा-रोमाई कप्पेज्ज वा ___ संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। अच्छि -पत्त-पदं ६७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाई अच्छि-पत्ताई कप्पेज्ज वा ___ संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि -पदं ६८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो अच्छी णि आमज्जेज्ज व। पमज्जेज्ज __ वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ।। ६६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो अच्छी णि संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ॥ ७०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो अच्छीणि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ ७१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो अच्छी णि लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटुंतं वा सातिज्जति ॥ ७२. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो अच्छीणि सीओदग-वियडेण वा Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।। ७३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो अच्छीणि फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएतं वा सातिज्जति ।। वोह-रोम-पर ७४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाई भमुग-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। ७५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो दीहाई पास-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संटवेतं वा सातिज्जति ।। मल-जीहरण-पवं ७६. जे भिवखू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ।। ७७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति॥ सीसवुवारिय-पदं ७८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए गामाणुगामं दूइज्जमाणे अप्पणो सीसदुवा रियं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ पनीय-आहार-पवं ७६. जे भिक्खू माउम्गामस्स मेहुण-वडियाए खीरं वा दहिं' वा णवणीयं वा सप्पि वा गुलं वा खंडं वा सक्करं वा मच्छंडियं वा अण्णयरं वा पणीयं आहारं आहारेति, आहारेंतं वा सातिज्जतितं सेवमाणे आवज्जति चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं ।। १. पुरिसाणं जो उ गमो, इत्थीवग्गम्मि होइ सो चेव । एस इत्थीणं पुरिसवग्गे वत्तव्यो-'जा भिक्खुणी एसेव अपरिसेसो, इत्थीणं पुरिस-वग्गम्मि वि पिउग्गामं मेहणवडियाए विण्णवेइ, ॥२२८६॥ उस्सग्गाववाएहिं दोसदसणेहिं अस्थो तहेव पुरिसाणं जो गमो इत्थीवग्गे भणितो जहा वत्तव्वो (चू)। 'भिक्खू माउग्गाम मेहुणबडियाए विष्णवेति' २. दधि (अ) । Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो मालिया-पदं १. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए तणमालियं' वा मुंजमालियं वा 'वेत्त मालियं वा२ "भिंडमालियं वा" मयणमालियं वा पिच्छमालिय वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा 'संखमालियं वा५ 'हड्डमालियं वा" कट्ठमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा हरियमालियं वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ २. ." जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा वेत्त मालियं वा भिडमालियं वा मयणमालियं वा पिच्छमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा कट्ठमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा हरियमालियं वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा वेत्तमालियं वा भिंडमालियं वा मयणमालियं वा पिच्छमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा कट्ठमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा, हरियमालियं वा° 'पिणद्धति पिणद्धतं" वा सातिज्जति ॥ लोह-पदं ४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अय-लोहाणि वा तंब-लोहाणि वा तउय१. भाष्ये चूणों च पदानां क्रमभेदो दृश्यते । तण ४. पिंछ (ग)। मुंज वेत्त कट्ठ मयण भेंड हड्ड दंत वराडग सिंग ५. ४ (ख)। पत्त-एतानि पदानि चूणों व्याख्यातानि ६. हडमालियं वा भडमालियं वा (ख)। दृश्यते । भाष्ये एवमस्ति ७. सं० पा०-धरेति धरेंतं वा साति पिणद्धति तण-वेत्त-मंज-कठे, भिंड-मयण-मोर-पिच्छ-हड्डमयी। पिणद्धतं वा साति । पोंडियदंते पत्तादि, करे धरे पिणिद्धे आणादी ॥२२८६।। ८. परिभुजइ परिभुंजतं (अ); पिणिधति पिणि२. एतत्पदं चूाधारेण स्वीकृतम् । घंतं (क); पिणधति पिणधंतं (ख); पिणि३. ४ (अ)। धति पिणिधंतं (ग)। Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ निसीहज्झयणं लोहाणि वा सीसग - लोहाणि वा रुप्प - लोहाणि वा सुवण्ण-लोहाणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण - वडियाए अय- लोहाणि वा तंब - लोहाणि वा तयलोहाणि वा सीसग - लोहाणि वा रुप्प - लोहाणि वा सुवण्ण-लोहाणि वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए अय- लोहाणि वा तंब - लोहाणि वा तयलोहाणि वा सीसग - लोहाणि वा रुप्प - लोहाणि वा सुवण्ण-लोहाणि वा परिभुंजति, परिभुंजंतं वा सातिज्जति ॥ आभरण-पदं ७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावली वा मुत्तावली वा कणगावली वा, रयणावली वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा, कुंडलाणि वा 'पट्टाणि वा" मउडाणि वा पलंबसुत्ताणि वा 'सुवण्णसुत्ताणि वा" करेति', 'करेंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावली वा मुक्तावली वा कणगावली वा रयणावली वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणि वा पलंबसुत्ताणि वा सुवण्णसुत्ताणि वा धरेति, धरेतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खु माउग्गामस्स मेहुण वडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावली वा मुक्तावली वा कणगावली वा रयणावली वा कडगाणि वा तुडियाणि वः केऊराणि वा कुंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणि वा पलंबसुत्ताणि वा सुवण्णसुत्ताणि वा परिभुंजति, परिभुंजंतं वा सातिज्जति ॥ वत्थ-पदं १०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए आईणाणि वा सहिणाणि वा कल्लाणि १. सं० पा० - सातिज्जति जाव परिभुंजंतं । २. चूण - कुंडल गुण मणि तुडिय तिसरिय वालंभ लंब हार अद्धहार एंगावली मुत्तावली कणगावली रयणावली पट्ट मउड - इति पदानां क्रमो दृश्यते, एषु कानिचित् पदानि आदर्शपाठेभ्यः अतिरिक्तान्यपि दृश्यन्ते । ३. x ( अ ) । ४. X ( अ ) । ५. सं० पा० - करेति जाव परिभुंजति । ६. एष पाठ: चूर्याधारेण स्वीकृतः । आचार चूलायामपि ( ५।१४, १५ ) अस्य समर्थनं लभ्यते । प्रयुक्तादर्शेषु पाठभेद: एवमस्ति — आईणाणि ( आयीणाणि - अ; आतीणाणि - क) वा आतीण - पावरणाणि (पावाराणि - अ, ग पावराणि - क) वा कंवलाणि वा कंबल - पावरणाणि वा 'कायाणि वा, काय पावरणाणि वा' (कोयव पावराणि वा-अ, कायवाणि वा कायव-पावरणाणि वा - क, ख ; कोयवाणि वा कोयव-पावराणि वा — ग ) काल- मियाणि वा णील - मियाणि वा सामाणि Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो ७०६ वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमाणि वा दुगल्लाणि वा 'तिरीडपट्टाणि वा" मलयाणि वा पत्तण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फाडिगाणि' वा कोतवाणि' वा कंबलाणि वा पावारगाणि वा कणगाणि वा कणगकताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखचियाणि वा कणगफूल्लियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा उद्दाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा नील मिगाईणगाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा करेति', 'करेंतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहण-वडियाए आईणाणि वा सहिणाणि वा कल्लाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमाणि वा दूगल्लाणि वा तिरीडपट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फाडिगाणि वा कोतवाणि वा कंबलाणि वा पावार गाणि वा कणगाणि वा कणगकताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखचियाणि वा कणगफल्लियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा उद्दाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा नीलमिगाईणगाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए आईणाणि वा सहिणाणि वा कल्लाणि वा सहिणकल्लणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमाणि वा दुगुल्लाणि वा तिरीडपट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फाडिगाणि वा कोतवाणि वा कंबलाणि वा पावारगाणि वा कणगाणि वा कणगकताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखचियाणि वा कणगफुल्लियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा उद्दाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा नीलमिगाईणगाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा° परि जति, परिभुजंतं वा सातिज्जति ॥ वा महासामाणि (मिहा-शु) वा उट्टाणि --क, ख, ग) वा कणग-खचिताणि वा कणगवा उट्टलेसाणि (लेस्साणि-अ, क, ग; चित्ताणि वा कणगविचित्ताणि वा आभरण'लास्साणि-ख) वा वग्घाणि वा विवग्घाणि विचित्ताणि वा (आहरण-अ)। वा परवंगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्ला- १. आचारचूलायां (५।१४) एतत् पदं नैव णाणि (कल्लाणि-अ, क, ख) वा खोमाणि दृश्यते। वा दुगुल्लाणि वा पत्तुण्णाणि (पल्लणाणि- २. फालियाणि (आ० चू० २१४) । अ; पत्तुल्लाणि-ख; पन्नुन्नाणि--ग) वा ३. कोयहाणि (आ० चू० ५।१४) । आवरंताणि (अवरताणि-ख) वा चीणाणि ४. कणगफुसियाणि (आ० चू० ५।१५) । वा अंसुयाणि वा कणग-कत्ताणि (कणककंताणि ५. सं० पा०-करेति जाव परि जति । Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं संचालण-पदं १३. जे भिक्खू माउग्गामं' मेहुण-वडियाए 'अक्खंसि वा उरुं सि वा उदरंसि वा थणंसि वा" गहाय संचालेति, संचालेंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-परिकम्म-पदं १४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ।। १५. "जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स पाए संवाहेज्ज वा पलि मद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ।। १६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खें वा सातिज्जति ।। १७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स पाए लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदृज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उध्वटेंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स पाए सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स पाए फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमेंतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ काय-परिकम्म-पदं २०. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिम तं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ २३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णण वा वण्णण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उन्वटुंतं वा १. माउग्गामस्स (क, ख)। वक्खंसि वा ऊरंसि वा हत्थादिएस वा। २. चूणों चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने एवं पाठः ३. सं० पा०-एवं छद्र उद्देसगमेण यवो जाव सम्भाव्यते--अक्खंसि वा उवगच्छयंसि वा जे माउ। Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो ७११ सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायं सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ २५. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म-पदं २६. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जतं वा सातिज्जति ।। २७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ।। २८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वèतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।। ३१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि वणं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ गंडादि-परिकम्म-पवं ३२. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदेज्ज वा विच्छिदेज्ज वा, अच्छिदेंतं वा विच्छिदेंतं वा सातिज्जति ।। ३३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ निसीहझयणं विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवण-जाएणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा, अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेत्ता वा विलिपेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ ३७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरेत्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवण-जाएणं आलिपेत्ता वा विलिपेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण बा अब्भंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा पधवेज्ज वा, धूवेंतं वा पधूवेंतं वा सातिज्जति ।। किमि-पदं ३८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अंगुलीए णिवेसिय-णिवेसिय णीहरति, णीहरंतं वा सातिज्जति ॥ णह-सिहा-पदं ३६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाओ णह-सिहाओ कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। दोह-रोम-पदं ४०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाइं जंघ-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।।। ४१. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाइं वत्थि-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीह-रोमाइं कप्पेज्ज वा Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो ७१३ ___ संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाइ कक्खाण-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाई मंसु-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ बंत-पदं ४५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णमस्स दंते उच्छोलेज्ज वा पधो एज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ४७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दंते फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ उटु-पदं ४८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स उठे आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ।। ४६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स उठे संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदे॒तं वा सातिज्जति ।। ५०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स उठे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ ५१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स उठे लोद्धेण वा कक्केण वा चुणेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वट्टेतं वा सातिज्जति ॥ ५२. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स उठे सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ५३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स उठे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ।। दोह-रोम-पदं ५४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाइं उत्तरो?-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ५५. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स णासा-रोमाइं कप्पेज्ज वा Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ निसीहज्झयणं संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि -पत्त-पदं ५६. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाइं अच्छि-पत्ताई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ५७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स अच्छीणि आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ५८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स अच्छीणि संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ॥ ५६. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स अच्छीणि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ ६०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स अच्छीणि लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वस॒तं वा सातिज्जति ॥ ६१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स अच्छीणि सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ६२. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स अच्छीणि फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ दीह-रोम-पदं ६३. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्ण स्स दीहाइं भमुग-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ६४. जे भिक्ख माउग्गामस्स मेहण-वडियाए अण्णमण्णस्स दीहाई पास-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्त वा संठवेंत वा सातिज्जति ॥ ६५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ ६६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णमण्णस्स अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ।। सीसवुवारिय-पवं ६७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए गामाणुगामं दूइज्जमाणे अण्णमण्णस्स सीस दुवारियं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो पुढवी-पदं ६८. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए अणंतरहियाए पुढवीए णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, णिसीयावेतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६६. "जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए ससिणिद्धाए पुढवीए णिसीयावेज्ज वा तुयट्टा___वेज्ज वा, णिसीयावेतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७०. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए ससरक्खाए पुढवीए णिसीयावेज्ज वा तुयट्टा वेज्ज वा, णिसीयावेतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७१. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए मट्टियाकडाए' पुढवीए णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७२. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए चित्तमंताए पुढवीए णिसीयावेज्ज वा तुयट्टा वेज्ज वा, णिसीयावेतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति ।। १. ६८-७४ एतेषां सप्तसूत्राणां स्थाने चूणों पञ्च- रहिता नामांतरो अंतर्वा तेन अंतरहिता सूत्राण्येव व्याख्यातानि सन्ति-अणंतरहियाए सचेतणा इत्यर्थः, सचेतणा, अहवा णो अणंपुढवीए ससिणिद्धाए पुढवीए ससरक्खाए पुढ- तेहिं रहिताओ, सहिता इत्यर्थः, इत्थं न वीए चित्तमंताए महासिलाए चित्तमंताए दीसति, ससिणिद्धा घडउऽच्छपाणियभरितो लेलूए । त्रयोदशोद्देशके पि (१-७) सप्त- पल्हत्थणो, वासं वा पडियमेत्तयं, ससरक्खा सूत्राणां स्थाने पञ्चैव सूत्राणि व्याख्यातानि वितो मट्टिता तहिं पडति य सगडमादिणा दृश्यन्ते णिज्जमाणा कुंभकारादिणा चलणं वा, चित्तअंतररहिताणंतर, ईसिं उल्ला उ होति ससणिद्धा । मंता मसिणा सिला एव सचित्ता, लेल गहिता रन्नरएण विभिन्ना, फासुगपुढवी तु ससरक्खा । (पृ० ३३६, ३३७) । प्रस्तुतसूत्रादर्शेषु ४२५८ ।। स्वीकृतानि सप्तसूत्राणि उपलभ्यन्ते । आचारअन्तरणं ववषाणं, तेण रहिता निरंतर- चूलायाः दशमाध्ययने (१४) 'मट्टियाकडाए मित्यर्थः । अधवा-पूढवी अणंतभावेण रहिता चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलुयाए' इति असंखा या जीविका पज्जत्तं संखेया वि । पाठोस्ति । अत्रापि 'चित्तमंताए पुढवीए' इति अधवा-जीए पुढवीए अंता जीएहिं रहिया पाठो नैव विद्यते । अर्थसमीक्षया 'मट्रियासा पुढवी अंतरहिया ण अंतरहिता सर्वा सचे- कडाए पुढवीए चित्तमंताए पुढवीए' एतौ तना न मिश्रा इत्यर्थः । ईसिं उल्ला ससणिद्धा, द्वावपि आलापको पुनरुक्तौ विद्येते, तथापि सेयं पुढवी अचित्ता सचित्तेण आरण्णरएण ___ आदर्शेषु स्तः इति स्वीकृती। वितिभिन्ना ससरक्खा। २. सं० पा०—एवं ससिणिद्धाए ससरक्खाए चित्तं जीवो भणितो, तेण सह गया तु होति सच्चित्ता। मट्टियाकडाए पुढवीए चित्तमंताए पुढवीए पासाणसिला रुंदा, लेलू पुण मट्टिया लेठू ॥४२५६॥ चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलूए कोला सचेयणा रुंदा महासिला, सचित्तो वा लेल्लू वासंसि वा । लेठूओ । आचारचूलायाः (११५१) चूर्णावपि ३ महियाकडाए (अ); महन्ता-रुन्दा (हस्तउक्तपञ्चपदान्येव व्याख्यातानि सन्ति-अणंत- लिखितचूणि)। Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ निसीहज्झयणं ७३. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- वडियाए चित्तमंताए सिलाए णिसीयावेज्ज वा वेज्ज वा, सियावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७४. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण वडियाए चित्तमंताए लेलए णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज निसीयातं वा तुट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ वा, दाद-पर्व ७५. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण - वडियाए कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे पाणे सबीए सहरिए 'सउस्से सउद" सउत्तिंग- पणग दग-मट्टिय-मक्कडग'-संताणगंसि णिसीयावेज्ज वा तुट्टावेज वा निसीयातं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ अंकादि-पदं ७६. जे' भिक्खु माउग्गामं मेहुण- वडियाए अंकंसि वा पलियंकंसि वा णिसीयावेज्ज वा तुट्टावेज्ज वा, णिसीयावेंतं वा तुयट्टावेतं वा सातिज्जति ॥ ७७. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- वडियाए अंकंसि वा पलियंकंसि वा णिसीयावेत्ता वा वेत्ता वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अणुग्घासेज्ज वा अणुपाएज्ज वा अणुग्घातं वा अणुपाएंतं वा सातिज्जति ॥ आगंतारादि-पर्व ७८. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- वडियाए आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा णिसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, णिसीयावेंतं वा तुट्टा वा सातिज्जति ॥ 1 ७६. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण- वडियाए आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा णिसीयावेत्ता वा तुयट्टावेत्ता वा असणं वा पाण वा खाइमं वा साइमं वा अणुग्धासेज्ज वा अणुपाएज्ज वा, अणुग्धासेंतं वा अणुपाएंतं वा सातिज्जति ॥ तेइच्छ-पर्व ८०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण - वडियाए अण्णय रं तेइच्छं आउट्टति, आउट्टंतं वा १. X ( अ, ख ) । २. मक्कड ( अ, चू) । ३. ७६, ७७ एतत्सूत्रद्वयं चूर्णां पूर्वं व्याख्यातमस्ति, ततश्च 'आगंतारेसु' इत्यालापकस्य सूत्रद्वयं व्याख्यातमस्ति । आदर्शेषु 'आगंतारेसु' इत्यालापकस्य सूत्रद्वयं पूर्वं लिखितमस्ति, ततश्च 'अंकंसि' इत्यालापको दृश्यते । मूलपाठे चूर्णिसम्मतः क्रमः स्वीकृतोस्ति । ४. सं० पा० - आगंतारेसु वा जाव परियाव - सहे । ५. सं० पा० - आगंतारेसु वा जाव परियावसहे । ६. x ( अ, ख ) । Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसो सातिज्जति ॥ पोग्गलाणं अवहरण-उवहरण-पदं ८१. जे भिक्खू माउग्गामस्स' मेहुण - वडियाए अमणुण्णाई पोग्गलाई 'अवहरति, अवहरतं " वा सातिज्जति ॥ ८२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण - वडियाए मणुष्णाई पोग्गलाई 'उवहरति, उवहरतं" वा सातज्जति ॥ ७१७ पशु-पक्खि पर्द ८३. जे भिक्खु माउग्गामस्स मेहुण - वडियाए अण्णयरं पसुजाति वा पक्खिजाति वा पायंसि वा पक्खसि वा पुंछंसि वा सीसंसि वा गहाय 'उब्विहति वा पब्विहति वा संचालेति वा, उब्विहंतं वा पव्विहतं वा संचालेंतं वा" सातिज्जति ॥ ८४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियाए अण्णयरं पसुजाति वा पक्खिजाति वा सोयंसि कट्ठे वा कलिचं वा अंगुलियं वा सलागं वा अणुप्पवेसेत्ता संचालेति, संचालेंतं वा सातिज्जति ॥ ८५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए अण्णयरं पसुजाति वा पक्खिजाति वा 'अयमित्थ' त्ति कट्टु आलिंगेज्ज वा परिस्सएज्ज वा परिचुंबेज्ज वा 'विच्छेदेज्ज वा',' आलिंगंतं वा परिस्सयंतं वा परिचुंबतं वा 'विच्छेदेतं वा " सातिज्जति ॥ दाण-पच्छिण-पदं ८६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देतं वा सातिज्जति ॥ ८७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण वडियार असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छति, पडिच्छतं वा सातिज्जति ।। ८८. "जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण - वडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछ वा देति, देतं वा सातिज्जति ॥ ८६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ सज्झाय-पदं ६०. भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए सज्झायं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ ६१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण- वडियाए सज्झायं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा १. माउग्गामं ( अ, क, ख, ग ) अग्रेपि । २. णीहरति णीहरंतं ( अ, क, ख, ग ) । ३. उवकिरति उवकिरंतं ( अ, क, ख ) । ४. संचालेति संचालेंतं वा ( अ, क, ख, ग ) 1 ५. x ( अ, क, ख, ग ) । ६. x ( अ, क, ख, ग ) । ७. सं० पा० - एवं वत्थंपि दोहि गमएहिं सज्झायं पि दोहि । Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ निसीहझयणं सातिज्जति ॥ आकार-करण-पदं ६२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अण्णयरेणं इंदिएणं आकारं करेति, करेंतं वा सातिज्जतितं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं ।। Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगो एगित्थीए पदं १. जे भिक्खु आगंतारेसु वा 'आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा et free fद्ध विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिट्ठरं असमणपाओग्गं" कहं कहेति कहेंतं वा सातिज्जति ॥ २. जे भिक्खू 'उज्जाणंसि वा ", उज्जाणगिहंसि वा, 'उज्जाणसालंसि वणिज्जाणंसि वाणिज्जा हिंसि वा 'णिज्जाणसालंसि वा" "एगो एगित्थीए " सद्धि" "विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिद्ववेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिट्ठरं असमणपाओगं कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति ।। अमोउद्देसो ३. जे भिक्खू अहंसि वा अट्टालयंसि वा 'पागारंसि वा चरियंसि वा"" दारंसि वा गोपुरंसि वा एगो एगित्थीए सद्धि विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, अण्णय रं वा अणारियं णिट्ठरं असमणपाओग्गं कहं कहेति कहेंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू 'दगमग्गंसि वा" दगपहंसि १. सं० पा०-- आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु । २. इत्थीए ( अ, ख ) । ३. अण्णमण्णय रं ( अ ) । ४. असवर्ण (अ); अस्समण ५. X ( अ ) । ६. x (ख, चू) । ७. x ( अ, क, ख, ग ) । ८. x ( चु) । ६. एकाए इत्थीए ( अ ) । ख, | वा दगतीरंसि वा दगठाणंसि वा एगो १०. सं० पा०—सद्धि जाव कहेंतं । ११. चरियंसि वा ( अ ) ; चरियंसि वा पागारंसि वा (ख) | १२. सं० पा० सद्धि जाव कहेंतं । १३. दगंसि वा दगमग्गंसि वा ( ग ); चूणौं 'दगपहंसि वा दगमग्गंसि वा दगतीरंसि वा' एतानि त्रीण्येव पदानि निर्दिष्टक्रमेण व्याख्यातानि दृश्यन्ते । ७१६ Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० निसीहज्झयण एगित्थीए सद्धि विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिढुवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिठ्ठरं असमणपाओग्गं कहं कहेति', कहेंतं वा सातिज्जति ॥ ५. जे भिक्ख सुण्णगिहंसि वा 'सुण्णसालंसि वा भिण्ण गिहंसि वा 'भिण्णसालंसि वा" 'कूडागारंसि वा कोट्ठागारंसि वा" एगो एगित्थीए' सद्धि विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिढुवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिठ्ठरं असमणपाओग्गं कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्ख तणसालंसि वा तण गिहंसि वा तुससालंसि वा तुसगिहंसि वा 'बुससालंसि वा बुसगिहंसि वा एगो एगित्थीए सद्धि विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्टवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिठ्ठरं असमणपाओग्गं कहं कहेति', कहेंतं वा सातिज्जति ।। ७. जे भिक्खू जाणसालंसि वा जाणगिहंसि वा जुग्गसालंसि वा जुग्गगिहंसि वा एगो एगित्थीए सद्धि विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिठुरं असमणपाओग्गं कहं कहेति', कहेंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू पणियसालंसि वा पणियगिहंसि वा 'परियागसालंसि वा परियागगिहंसि वा 'कुवियसालंसि वा कुवियगिहंसि वा एगो 'एगित्थीए सद्धि विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिठ्ठरं असमणपाओग्गं कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा०–सद्धि जाव कहेंतं । गोमयगिहंसि वा गोणसालंसि वा गोणगिहंसि २. चूणौं नास्ति व्याख्यातम् । वा' इति सूत्रस्य सङ्कतो व्याख्या च दृश्यते३. चूणों नास्ति व्याख्यातम् । भाष्ये २४२६; गोकरी सो गोमयं, गोणादि ४. ४ (अ)। जत्थ चिट्ठति सा गोसाला, गिहं च (चू)। ५. सं० पा०-एगित्थीए जाव साति । ६. अतः परं चूणौं-'अस्सादिया वाहणा, ताणं ६. ४ (अ, क, ख); चूर्णावपि एतत्पदद्वयं साला गिहं वा' इति व्याख्यातमस्ति, अनेन व्याख्यातं नास्ति । भाष्ये 'भसे' इति पदं 'वाहणसालंसि वा वाहणगिहंसि वा' इति पाठः लभ्यते सम्भाव्यते । उज्जाणडाल दगे, सुण्णा कूडा व तुस भुसे गोमे । १०. सं० पा०---सद्धि जाव कहेंतं गोणा जाणा पणिगा, परियाग महाकुले सेवं ।। ११.X (अ, ख); परियायसालंसि वा परियाय २४२६॥ गिहंसि वा (क, ग) ७. सं० पा०-सद्धि जाव कहेंतं । १२. कम्मंतसालंसि वा कम्मंतगिहंसि वा (चू) । ८. भाष्ये चूणौं च अतः पूर्वं 'गोमयसालंसि वा १३. सं० पा–एगो जाव साति । Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो उद्देसो ७२१ ६. जे भिक्खू गोणसालंणि वा गोणगिहंसि वा महाकुलंसि वा महागिहंसि वा एगो एगित्थीए' 'सद्धि विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा आहारेइ, उच्चारं वा पासवणं वा परिढुवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिठ्ठरं असमणपाओग्गं कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति ।। इत्थीमझगतस्स अपरिमाणकहा-पदं १०. जे भिक्खू राओ वा वियाले वा इत्थीमज्झमते इत्थीसंसत्ते इत्थीपरिबुडे अपरिमाणाए ___कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति ।। णिग्गंथीए-सद्धि-पदं ११. जे भिक्ख सगणिच्चियाए वा परगणिच्चियाए वा णिग्गंथीए सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरओ गच्छमाणे पिट्ठओ रीयमाणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोयसागरसंपविट्ठे करतलपल्हत्थमुहे' अट्टज्झाणोवगए विहारं वा करेइ, 'सज्झायं वा करेइ, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ, अण्णयरं वा अणारियं णिठुरं असमणपाओग्गं कहं कहेति°, कहेंतं वा सातिज्जति ।। अंतो उवस्सय-पदं १२. जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासयं वा अणुवासयं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं वा राति कसिणं वा राति संवसावेति, संवसावेत वा सातिज्जति । १३. जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासयं वा अणुवासयं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं वा राति कसिणं वा राति संवसावेति, तं पडुच्च निक्खमति वा पविसति वा, निक्खमंतं वा पविसंतं वा सातिज्जति॥ मुद्धाभिसित्त-पदं १४. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं' मुद्धाभिसित्ताणं समवाएसु वा पिंडनियरेसु वा' 'इंदमहेसु वा खंदमहेसु वा रुद्दमहेसु वा मुगुंदमहेसु वा भूतमहेसु वा जक्खमहेसु वा णागमहेसु वा थूभमहेसु वा, चेतियमहेसु वा रुक्खमहेसु वा गिरिमहेसु वा दरिमहेसु वा, अगडमहेसु वा तडागमहेसु वा दहमहेसु वा णदिमहेसु वा सरमहेसु वा १. सं० पा०-एगिन्थीए जाव साति । २. इत्थीपरिवुडे अपरिवुडे (अ)। ३. करतलसंपल्हत्थमुहे (क, ग)। ४. सं० पा०-करेइ जाव कहेंतं । ५. अतः परं 'क, ख, ग' प्रतिषु एकस्य सूत्रस्य संक्षिप्तपाठो लभ्यते-जे तं न पडियाइक्खति न पडि साति । चूणों 'संवास' धातोाख्यानन्तरं 'जो तं न पडिसेधेति, अण्णं वा अपडिसेधंत अणूमोयति तस्स चउगुरु'। ६. 'अ' प्रतौ एतत् सूत्रं नैव दृश्यते । ७. मुद्दियाणं (क, ख, ग); मुइतो जो उदितो उदियकुल-वंससभूतो, उभयकुलविसुद्धो (भाष्य २४६८ चूणि)। ८. पिंडमहेसु (अ, क)। ६. सं० पा०-पिडनियरेसु वा जाव असणं । Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ निसीहझयण सागरमहेसु वा आगरमहेसु वा अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवख्वेसु महामहेसु. असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्ख रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मद्धाभिसित्ताणं उत्तरसालंसि वा उत्तर गिहंसि वा रीयमाणाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्ख रण्णो खत्तियाणं'मदियाणं. मद्धाभिसित्ताणं हयसालगयाण' वा गयसालगयाण वा मंतसालगयाण वा, ‘गुज्झसालगयाण वा" मेहुणसालगयाण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभि सित्ताणं 'सन्निहि-संनिचयाओ' खीरं वा दहिं वा णवणीयं वा सप्पि वा गुलं वा खंडं वा सक्करं वा मच्छंडियं वा अण्णयरं वा भोयणजायं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्खू रण्णो 'खत्तियाणं मुदियाणं मद्धा भिसित्ताणं उस्सपिंडं वा संसपिंड वा अणाहपिंडं वा कि विणपिंडं वा वणीमगपिंडं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जतितं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं ॥ १. सं० पा०-खत्तियाणं जाव मुद्धाभिसित्ताणं। २. सं० पा०-खत्तियाणं जाव मुद्धाभिसित्ताणं । ३. हयसाला० (ख)। ४. गुज्झसालगयाण वा रहस्ससालगयाण वा (क, ख); रहस्ससालगयाण वा (ग)। ५. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । ६. सण्णिहि सण्णिचयाओ (अ)। ७. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । ८. किमणपिंडं (अ)। Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसो रायपिंड-पदं १. जे भिक्खू रायपिंडं गेण्हति, गेण्हतं वा सातिज्जति ॥ २. जे भिक्खू रायपिंडं भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ रायंतेपुर-पदं ३. जे भिक्खू रायंतेपुरं पविसति, पविसंतं वा सातिज्जति ।। ४. जे भिक्ख रायंतेपुरियं वदेज्जा—'आउसो ! रायंतेपुरिए ! णो खलु अम्हं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, इमण्हं तुमं पडिग्गहगं गहाय रायंतेपुराओ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा णीहरियं' आहट्ट दलयाहि' जो तं एवं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ।। ५. 'जं भिक्खय णं'२ रायंतेपुरिया वएज्जा-'आउसंतो ! समणा ! णो खलु तुझं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, आहरेयं पडिग्गहगं जा ते अहं रायंतेपुराओ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा णीहरियं आहट्ट दलयामि' 'जे तं एवं वदति" पडिसुणेति, पडिसुणेतं वा सातिज्जति ॥ मुद्धाभिसित्त-पदं ६. जे भिक्खू रण्णो 'खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं दोवारियभत्तं वा पसुभत्तं वा भयगभत्तं वा बलभत्तं वा कयगभत्तं वा कंतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा दमगभत्तं वा 'गिलाणभत्तं वा बद्दलियाभत्तं वा पाहुणभत्तं" वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १. अभिहडं (अ); अभिहडे (ख)। ६. दुवार हत्तं (अ); दुवारिय (क, ख, ग)। २. जे णो भिक्खु वएज्जा (अ) लिपिदोषादशुद्धं ७. भय भत्तं (क, ख, ग)। जातमिति प्रतीयते । ८. 'बलभत्तं वा कयगभत्तं वा दमगभत्तं वा पाहण३. अभिहडं (अ, ख)। ___ भत्तं वा' एतानि पदानि 'अ' प्रतौ न सन्ति । ४. जे एवं (क, ग); जे एवं वदंति (ख) । ६. बद्दलियाभत्तं वा आएसभत्तं वा गिलाणभत्तं ५. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । (चू)। ७२३ Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ निसीहज्झयणं ७. जे भिक्ख रणो खत्तियाणं' 'मु दियाणं मुद्धा भिसित्ताणं इमाइं छद्दोसाययणाई अजाणित्ता अपुच्छिय अगवेसिय परं चउराय-पंचरायाओ गाहावइकुलं' पिंडवायपडियाए णिक्खमति वा पविसति वा, णिक्खमंतं वा पविसंतं वा सातिज्जति, तं जहा–कोट्ठागारसालाणि वा भंडागारसालाणि' वा 'पाणसालाणि वा खीरसालाणि वा"गंजसालाणि वा महाणससालाणि वा ।। ८. जे भिक्ख रण्णो' 'खत्तियाणं मदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं अइगच्छमाणाण वा णिग्गच्छमाणाण वा पदमवि चक्खुदंसण-पडियाए अभिसंधारेति', अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ।। ६. जे भिक्ख रण्णो' •खत्तियाणं म दियाणं मुद्धा भिसित्ताणं इत्थीओ सव्वालंकार विभसियाओ पदमवि चक्खुदंसण-पडियाए अभिसंधारेति', अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ।। १०. जे भिक्ख रणो •खत्तियाण मदियाणं मद्धा भिसित्ताणं मंसखायाण वा मच्छ खायाण वा छविखायाण" वा बहियार णिग्गयाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा 'पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्ख रण्णो खत्तियाणं 'म दियाणं मुद्धा भिसित्ताणं अण्णयरं उववहणियं समीहियं पेहाए ताए" परिस।ए अणुट्टियाए अभिण्णाए अव्वोच्छिण्णाए ‘जो तं अण्णं पडिग्गाहेति, डिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १२. अह पुण एवं जाणेज्जा-'इहज्ज राया खत्तिए परिवुसिए'१८ 'जे भिक्खताए गिहाए ताए पएसाए ताए उवासंतर!ए विहारं वा करेति, सज्झायं वा२० •करेति, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, अण्णयरं वा अणारियं णिठ्ठरं असमणपाओग्गं कहं कहेति', कहेंतं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा०-खत्तियाणं जाव भिसित्ताणं । ११. छवियखायाण (अ); छवियाखायाण २. ४ (ख, ग, चू)। (क, ग)। ३. भांडा (ख, ग)। १२. पहिया (अ)। ४. खीरसालाणि वा पाणसालाणि वा (क, ख, १३. सं० पा०--असणं वा ४ जाव सातिज्जति । १४. सं० पा०—खत्तियाणं जाव भिसित्ताणं । ५. सं० पा० -रणो जाव भिसित्ताणं ।। १५. x (अ)। ६. अभिसंधारेति गच्छति वा (क, ख, ग)। १६. तीसे (क, ख, ग)। ७. सं० पा०-रणो जाव भिसित्ताणं । १७. जे तमण्णं (अ, ग); जो तमण्णं (ख)। ८. सव्वालंकारभूसियाओ (अ)। १८. वुसिए (अ, ख)। ६. अभिसंधारेति गच्छति वा (ख, ग)। १६. x (म)। १०. सं० पा०-रणो जाव भिसित्ताण । २०. सं० पा०-सज्झायं वा जाव कहेंतं । Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसो ७२५ १३. जे भिक्खू रणो' 'खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं बहिया जत्तासंठियाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। १४. जे भिक्खू रण्णों' 'खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं बहिया जत्तापडिणिय त्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १५.:"जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं णदिजत्तापट्ठियाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। १६. जे भिक्खु रण्णो खत्तियाणं मदियाणं मद्धाभिसित्ताणं णदिजत्तापडिणियत्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्ख रण्णो खत्तियाणं मदियाणं मद्धाभिसित्ताणं गिरिजत्तापट्टियाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। १८. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गिरिजत्तापडिणियत्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू रण्णो' 'खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं महाभिसेयंसि वट्टमाणंसि णिक्खमति वा पविसति वा, णिक्खमंतं वा पविसंतं वा सातिज्जति ।। २०. जे भिक्खू रण्णो' खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं इमा' दस अभिसेयाओ" रायहाणीओ 'उद्दिट्टाओ गणियाओ वंजियाओ" अंतोमासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा णिक्खमति वा पविसति वा, णिक्खमंतं वा पविसंतं वा सातिज्जति, तं जहाचंपा महुरा वाणारसी सावत्थी साएयं कंपिल्लं कोसंबी मिहिला हत्थिणापुरं रायगिहं॥ २१. जे भिक्खू रणो' 'खत्तियाणं म दियाणं मुद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहाखत्तियाण वा राईण वा कुराईण वा" रायपेसियाण वा ॥ १,२. सं पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । १०. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । ३. सं० पा०-एवं णदिजत्तापट्टियाणं णदिजत्ता- ११. अतः परं 'अ' प्रतौ रायसंसियाण वा' 'क, पडिणियत्ताणं गिरिजत्तापट्टियाणं गिरिजत्ता- ख' प्रत्योः ‘रायपसंसियाण वा' इति पाठो पडिणियत्ताणं । लभ्यते । आचारचूलायां (१।४१) 'रायव४,५. संपा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । संट्ठियाण वा' इति पाठो दृश्यते । 'ग' प्रतौ ६. इमाओ (शु)। चूणौं च एष पाठो नास्ति । 'संसियाणं' इति ७. अभिसेक्काओ (अ, शु)। पदस्य न स्पष्टोर्थः परिलक्ष्यते, तेन नासौ मूले ८.४ (अ); वज्जियाओ (शु) । स्वीकृतः । ६. हत्थिणपुरं (अ)। Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ निसीहज्झयणं २२. जे भिक्खु रण्णो' खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहाणडाण वा 'नट्टाण वा जल्लाण वा मल्लाण वा मुट्ठियाण वा वेलंबगाण वा कहगाण वा पवगाण वा लासगाण वा ॥ २३. जे भिक्खू रणो' 'खत्तियाणं म दियाणं मद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहाआसपोसयाण वा हत्थिपोसयाण वा महिसपोसयाण वा वसहपोसयाण वा सीहपोसयाण वा वग्धपोसयाण वा अयपोसयाण वा पोयपोसयाण वा मिगपोसयाण वा सुणहपोसयाण वा सूयरपोसयाण वा मेंढपोसयाण वा कुक्कुडपोसयाण वा तित्तिरपोसयाण वा वट्टयपोसयाण वा लावयपोसयाण वा चोरल्लपोसयाण वा हंसपोसयाण वा मऊरपोसयाण वा सुयपोसयाण वा ।। २४. जे भिक्ख रणो' खत्तियाणं मदियाणं मद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहा-आसदमगाण वा हत्थिदमगाण वा ॥ २५. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मदियाणं मद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहा आसमिठाण वा हथिमिठाण वा ॥ २६. जे भिक्खु रण्णो खत्तियाणं मदियाणं मद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहा आसारोहाण वा हत्थिआरोहाण वा ॥ २७. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं' •मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहासत्थाहाण° वा संवाहाण" वा अब्भंगाण२ वा उव्वाण" वा मज्जावयाण वा १. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । 'सत्थवाहा' इति मुद्रितमस्ति, किन्तु हस्त२. नट्टयाण वा कच्छुयाण वा दोखलयाण वा लिखितचूर्णिप्रती 'सत्थाहा' इति पाठो विद्यते, छन्नाण वा छन्नादुयाण वा (अ)। स च स्वीकृतपाठानुसारी एव । भाष्ये 'सत्थ३. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । वाहादिठाणा' इति मुद्रितमस्ति, सत्थाहा४. वा मक्कडपोसयाण वा (ग)। दिट्ठाणा' इत्यपि पदं युक्तमेव स्यात् । ५. २४. २५, २६ एतानि त्रीणि सूत्राणि 'अ' ११. संवाहवाण (अ); संवाहगाण (ख); पडिप्रतौ नैव दृश्यते । मद्दाण (चू)। ६, ७, ८. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं । १२. अभिगावयाण (ख)। ६. सं० पा०-खत्तियाणं जाव भिसित्ताणं । १३. उव्वद्रावयाण (क, ख, ग)। १०. 'अ' प्रती नैतत्पदं लभ्यते । मुद्रित चूणौं Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसो ७२७ मंडावयाण वा' छत्तग्गहाण वा, चामरग्गहाण वा 'हडप्पग्गहाण वा" परियट्टग्गहाण वा दीवियग्गहाण वा असिग्गहाण वा धणुग्गहाण' वा सत्तिग्गहाण वा 'कोंतग्गहाण वा" ॥ २८. जे भिक्खू रण्णो' 'खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहा-वरिसधराण वा कंचुइज्जाण वा दोवारियाण वा दंडारक्खियाण वा ।। २६. जे भिक्खू रण्णो 'खत्तियाणं मदियाणं मद्धा भिसित्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परस्स णीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहा-खुज्जाण वा 'चिलाइयाण वा वामणीण वा वडभीण वा बब्बरीण वा पउसीण वा जोणियाण वा पल्हवियाण वा ईसिणीण वा थारुगिणीण वा लासीण वा लउसीण वा सिंहलीण वा दमिलीण वा आरबीण वा पुलिंदीण वा पक्कणीण वा बहलीण वा मरुडीण वा सबरीण वा पारसीण वातं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मा सियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं ।। १. अतः परं चूणों कानिचिदेव पदानि व्याख्यातानि सन्ति-वस्त्रपरावर्त गृण्हन्ति जे ते परिय- ट्रगा, आभरणभंडयं हडप्पो, चावं धणुयं, असी खग्गं । २.४ (अ)। ३. वेणू' (ग)। ४. कंतगहाण वा (क); ४ (ख)। ५,६. सं० पा०-रण्णो जाव भिसित्ताणं। ७.सं० पा०-खुज्जाण वा जाव पारसीण । Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो फरुसवयण-पदं १. जे भिक्खू भदंतं आगाढं वदति, वदंतं वा सातिज्जति। २. 'जे भिक्ख भदंतं फरुसं वदति, वदंतं वा सातिज्जति । ३. जे भिक्खू भदंतं आगाढं फरुसं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ।। ४. जे भिक्ख भदंतं अण्णयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएति, अच्चासाएंतं वा सातिज्जति ॥ अणंतकाय संजुत्त-पदं ५. जे भिक्खू अणंतकायसंजुत्तं' आहारं आहारेति, आहारतं वा सातिज्जति ॥ आहाकम्म-पदं ६. जे भिक्खू आहाकम्मं भुजति, भुंजतं वा सातिज्जति ।। निमित्त-पदं ७. जे भिक्खू पडुप्पण्णं निमित्तं वागरेति, वागरेंत" वा सातिज्जति । ८. जे भिक्खू अणागयं निमित्तं 'वागरेति, वागरेंतं" वा सातिज्जति ।। सेह-पदं ६. जे भिक्खू सेहं अवहरति, अवहरंतं वा सातिज्जति ॥ १०. जे भिक्खू सेहं विप्परिणामेति, विप्परिणामेंतं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा०–एवं फरुसं । २. अणंतकायसंमिस्सं (ख); भाष्ये (२६५८), 'अणंतकायसंजुत्तं' इति पदं लभ्यते, किन्तु चूणौं 'संजुत्तं' पदं नैव लभ्यते, एवमादिसम्मिस्सं' इति व्याख्यातमस्ति । ३. वाकरेति वाकरेंतं (अ)। ४. वाकरेति वाकरेंतं (अ, क)। ५. 'अ, क' प्रत्योः 'सेहं अवहरति सेहं विप्परिणा मेति' अनयोः सूत्रयोर्व्यत्ययो लभ्यते तथा 'दिसं अवहरति दिसं विप्परिणामेति' अनयोरपि सूत्रयोर्व्यत्ययो लभ्यते । ७२८ Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो ७२६ विसा-पदं ११. जे भिक्खू दिसं अवहरति, अवहरंतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू दिसं विप्परिणामेति, विप्परिणामेंतं वा सातिज्जति ॥ आदेस-पदं १३. जे भिक्खू बहियावासियं आदेसं परं ति-रायाओ अविफालेत्ता संवसावेति', संवसा वेंतं वा सातिज्जति ॥ साहिगरण-पदं १४. जे भिक्खू साहिगरणं अविओसविय-पाहुडं अकडपायच्छित्तं परं ति-रायाओ 'विप्फालिय अविप्फालिय" संभुंजति, संभुजंतं वा सातिज्जति ॥ उग्घाइय-अणुग्घाइय-पदं १५. जे भिक्खू उग्घातियं अणुग्घातियं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू अणुग्घातियं उग्घातियं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्खू उग्घातियं अणुग्घातियं देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्खू अणुग्घातियं उग्घातियं देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू उग्घातियं सोच्चा णच्चा संभुंज ति, संभुंजतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू उग्घातिय-हेउं सोच्चा णच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू उग्घातिय-संकप्पं सोच्चा णच्चा संभुजति, सं जंतं वा सातिज्जति ।। २२. जे भिक्खू अणुग्घाइयं सोच्चा णच्चा संभुंजति, सं जंतं वा सातिज्जति ॥ १. संवसति (अ); संभुजति संभुंजतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू २. ४ (ग); चूर्णावपि 'विप्फालिय अविप्फा- उग्धाइयहेउं वा अणुग्धाइयहेउं वा सोच्चा लियं एते पदे व्याख्याते नैव स्तः । णच्चा संभुंजति संभुंजंतं वा सातिज्जति । जे ३. १६-२४ एषां षण्णां सूत्राणां स्थाने आदर्शषु भिक्खू उग्घाइयसंकप्पं वा अणुग्घाइयसंकप्पं वा द्वादश सूत्राणि लभ्यन्ते । एकविंशतिसूत्रानन्तरं सोच्चा णच्चा संभुंजति संभुंजंतं वा सातिएतत्सूत्रं विद्यते-जे भिक्खू उग्धातियं वा ज्जति । जे भिक्खू उग्घाइयं वा अणुग्घाइयं उग्घातियहेउं वा उग्घातियसंकप्पं वा सोच्चा वा उग्धाइयहेउं वा अणुग्धाइहेउं वा उग्घाइयणच्चा संभुजति, संभुजंतं वा सातिज्जति । संकप्पं वा अणुग्घाइयसंकप्पं वा सोच्चा णच्चा चतुर्विशति सूत्रानन्तरं एतानि पञ्च सूत्राणि सं जति संभुजंतं वा सातिज्जति । विद्यन्ते-जे भिक्खू अणुग्धाइयं वा अणुग्घा- ___ अस्माभिर्भाष्य-चूर्णिसम्मतः पाठः स्वीकृतः इयहेउं वा अणुग्धाइय-संकप्पं वा सोच्चा णच्चा चूणौं एते छ सुत्ता' इति स्पष्टमुल्लेखोस्ति । सं जति संभुजंतं वा सातिज्जति । जे भिक्ख द्रष्टव्यं भाष्यं (गाथा २८६८, २८६६)। उग्घाइयं वा अणुग्घाइयं वा सोच्चा णच्चा Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० निसीहज्झयणं २३. जे भिक्खू अणुग्घाइय-हेउं सोचा णच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू अणुग्घाइय-संकप्पं सोच्चा णच्चा संभंजति, संभुजंतं वा सातिज्जति ॥ राई-भोयण-पदं २५. जे भिक्खू उग्गयवित्तीए' अणत्थमिय-मणसंकप्पे संथडिए णिन्विति गिच्छा'-समावण्णे णं अप्पाणे णं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता भुजति, भुजंतं वा सातिज्जति। अह पुण एवं जाणेज्जा-अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहंसि तं 'विगिचेमाणे विसोहेमाणे' णाइक्कमइ जो तं भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्ख उग्गय वित्तीए अणथमिय-मणसंकप्पे संथडिए वितिगिच्छा-समावण्णे णं अप्पाणे णं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता भुंजति, भुतं वा सातिज्जति। अह पुण एवं जाणेज्जा-अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहंसि तं विगिचेमाणे विसोहेमाणे णाइक्कमइ जो तं भुज ति, भुजतं वा सातिज्जति ॥ २७. जे भिक्खू उग्गय वित्तीए अणथमिय-मणसंकप्पे असंथडिए णिव्विति गिच्छा-समावण्णे णं अप्पाणे णं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति। अह पुण एवं जाणेज्जा-अणुग्गए सूरिए अत्थ मिए वा से जं च मुहे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहंसि तं विगिंचेमाणे विसोहेमाणे णाइक्कमइ, जो तं भंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। २८. जे भिक्खू उग्गयवित्तीए अणत्थमिय-मणसंकप्पे असंथडिए वितिगिच्छा समावण्णे णं अप्पाणे णं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति । अह पूण एवं जाणेज्जा–अणग्गए सुरिए अत्थमिए वा से जं च महे जं च पाणिसि जं च पडिग्गहंसि तं विगिचेमाणे विसोहेमाणे णाइक्कमइ, जो तं भुंज ति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ १. उग्गयमुत्तीए (चूपा)। २. संकप्पे (अ, क, कप्पो ५॥६) सर्वत्र । ३. णिविचिगिच्छा (अ)।। ४. संभुजति (क, ख)। ५. 'क, ख, ग' प्रतिषु 'अह पुण एवं जाणेज्जा ' इत्यतः सूत्रपर्यन्तः पाठो नैव लभ्यते । ६. विगिंचिय विसोहिय तं परिवेमाणे (अ)। ७. नो अतिक्कमति धम्म (चू) । ८. सर्वेष्वपि आदर्शेषु 'अह पुण एवं जाणेज्जा' __इत्यतः सूत्रपर्यन्त: पाठो नैव लभ्यते । ६. सर्वेष्वपि आदर्शषु 'अह पूण एवं जाणेज्जा' इत्यतः सूत्रपर्यन्त: पाठो नैव लभ्यते । १०. सर्वेष्वपि आदर्शषु 'अह पुण एवं जाणेज्जा' इत्यतः सूत्रपर्यन्तः पाठो नैव लभ्यते । Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो उद्देसो उग्गाल-पदं २६. जे भिक्खू राओ वा वियाले वा सपाणं सभोयणं उग्गालं उग्गिलित्ता 'पच्चोगिलति पच्चोगिलंतं" वा सातिज्जति ॥ गिलाण-पदं ३०. जे भिक्खू गिलाणं सोच्चा ण गवेसति, ण गवेसंतं वा सातिज्जति ॥ ३१. जे भिक्खू गिलाणं सोच्चा उम्मग्गं वा पडिपहं वा गच्छति, गच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे' भिक्खु गिलाणवेयावच्चे' अब्भुट्टियस्स सएण लाभेण असंथरमाणस्स, जो तस्स न पडितप्पति, न पडितप्पतं वा सातिज्जति ॥ ३३. जे भिक्खू गिलाणवेयावच्चे अब्भुट्ठिए गिलाणपा उग्गे दव्वजाए अलब्भमाणे, जी तं न पडिया इक्खति, न पडिया इक्खतं वा सातिज्जति ॥ विहार- पदं ३४. जे भिक्खू पढमपाउसंसि गामाणुग्गामं दूइज्जति, दूइज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू वासावासंसि पज्जोसवियंसि इज्जति, दुइज्जतं वा सातिज्जति ॥ पज्जोसवणा-पदं ३६. जे' भिक्खू पज्जोसवणाए ण पज्जोसवेति ण पज्जोसवेंतं वा सातिज्जति ॥ ३७. जे भिक्खू अपज्जोसवणाए पज्जोसवेति, पज्जोसवेंतं वा सातिज्जति ॥ ३८. जे भिक्ख पज्जोसवणाए गोलोममाई पि वालाई उवाइणावेति', उवाइणावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७३१ ३६. जे भिक्खू पज्जोसवणाए इत्तिरियं पाहारं ' आहारेति, आहारेंतं वा सातिज्जति ॥ ४०. जे भिक्ख 'अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा पज्जोसवेति, पज्जोसवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४१. जे भिक्खू पढमसमोस रणुद्दे से पत्ताई चीवराई पडिग्गाहेति, पडिग्गातं वा सातिज्जति तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं ॥ १. पच्चोइलति पच्चोइलंतं ( अ, क ) । २. 'अ' प्रतौ ३२, ३३ सूत्रयोर्व्यत्ययो लभ्यते । ३. ॰वच्चे णं (क, ग) । ४. जे ( अ, क, ग) । ५. वासं ( अ, ख ) । ६. ३६, ३७ अनयोः सूत्रयोः पाठः भाष्यचूर्ण्यंनुसारेण स्वीकृतः । सर्वेष्वपि आदर्शेषु अनयोः सूत्रयोर्व्यत्ययो लभ्यते । 'ग' प्रतौ 'अपज्जोसवणाए' इति पाठस्य स्थाने 'ण पज्जोसवणाए' इति पाठो विद्यते । ७. गोलोममेई ( अ ) । ८. उवाइणइ ( अ, ख ) । ६. आहार ( क ) 1 १०. अण्णउत्थियाण वा ( अ ) | Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमो उद्देसो पाय-पदं १. जे भिक्खू अयपायाणि वा कंसपायाणि वा तंबपायाणि वा तउयपायाणि वा 'सुवण्णपायाणि वा" रुप्पपायाणि वा जायरूवपायाणि वा 'हारपुडपायाणि वा२ मणिपायाणि वा 'मत्तापायाणि वा कायपायाणि वा दंतपायाणि वा सिंगपायाणि वा चम्मपायाणि वा 'सेलपायाणि वा" 'चेलपायाणि वा" अंकपायाणि वा संखपायाणि वा वइरपायाणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ २. 'जे भिक्ख अयपायाणि वा कंसपायाणि वा तंबपायाणि वा तउयपायाणि वा सुवण्णपायाणि वा रुप्पपायाणि वा जायरूवपायाणि वा हारपुडपायाणि वा मणिपायाणि वा मुत्तापायाणि वा कायपायाणि वा दंतपायाणि वा सिंगपायाणि वा चम्मपायाणि वा सेलपायाणि वा चेलपायाणि वा अंकपायाणि वा संखपायाणि वा वइरपाया णि वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्ख अयपायाणि वा कंसपायाणि वा तंबपायाणि वा तउयपायाणि वा सुवण्णपायाणि वा रुप्पपायाणि वा जायरूवपायाणि वा हारपुडपायाणि वा मणिपायाणि वा मुत्तापायाणि वा कायपायाणि वा दंतपायाणि वा सिंगपायाणि वा चम्मपायाणि वा सेलपायाणि वा चेलपायाणि वा अंकपायाणि वा संखपायाणि वा वइरपायाणि वा परि जति, परि जंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-बंधण-पदं ४. जे भिक्ख अयबंधणाणि वा कंसबंधणाणि वा तंबबंधणाणि वा तउयबंधणाणि वा सुवण्णबंधणाणि वा रुप्पबंधणाणि वा जायरूवबंधणाणि वा हारपुडबंधणाणि _ वा मणिबंधणाणि वा मुत्ताबंधणाणि वा कायबंधणाणि वा दंतबंधणाणि वा १. x (अ)। ६. सं० पा०-धरेति धरेंतं वा साति । परि जति २. ४ (अ, क, ख, ग) । परि जंतं वा साति । ३. ४ (अ, क, ख, ग)। ७. सं० पा०-अयबंधणाणि वा जाव वइरबंध४. ४ (क, ख, ग)। णाणि । ५. ४ (अ)। ७३२ Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमो उद्देसो ७३३ सिंगबंधणाणि वा चम्मबंधणाणि वा सेलबंधणाणि वा चेलबंधणाणि वा अंक बंधणाणि वा संखबंधणाणि वा° वइरबंधणाणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति' ।। ५. 'जे भिक्ख अयबंधणाणि वा कंसबंधणाणि वा तंबबंधणाणि वा तउयबंधणाणि वा सुवण्णबंधणाणि वा रुप्पबंधणा णि वा जायरूवबंधणाणि वा हारपुडबंधणाणि वा मणिबंधणाणि वा मत्ताबंधणाणि वा कायबंधणाणि वा दंतबंधणाणि वा सिंगबंधणाणि वा चम्मबंधणाणि वा सेलबंधणाणि वा चेलबंधणाणि वा अंकबंधणाणि वा संखबंधणाणि वा वइरबंधणाणि वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्ख अयबंधणाणि वा कंसबंधणाणि वा, तंबबंधणाणि वा तउयबंधणाणि वा सुवण्णबंधणाणि वा रुप्पबंधणाणि वा जायरूवबंधणाणि वा हारपुडबंधणाणि वा मणिबंधणाणि वा मत्ताबंधणाणि वा कायबंधणाणि वा दंतबंधणाणि वा सिंगबंधणाणि वा चम्मबंधणाणि वा सेलबंधणाणि वा चेलबंधणाणि वा अंकबंधणाणि वा संखबंधणाणि वा वइरबंधणाणि बा परि जति, परिभुजंतं वा सातिज्जति ॥ अद्धजोयणमेरा-पदं ७. जे भिक्खू परं अद्धजोयणमेराओ पायवडियाए गच्छति, गच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू परं अद्धजोयणमेराओ सपच्चवायंसि पायं अभिहडं आहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। धम्म-अवण्ण-पदं ६. जे भिक्खू धम्मस्स अवण्णं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ अधम्म-वण्ण-पदं १०. जे भिक्खू अधम्मस्स वण्णं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-परिकम्म-पदं ११. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जतं वा पमजंतं वा सातिज्जति ।। १२. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदेंतं वा सातिज्जति ॥ १३. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खज्ज वा, अब्भंगतं मक्खेतं वा सातिज्जति ।। १४. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटुंत वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा०-सातिज्जति जाव परिभुजंतं ।। २. सं० पा०-एवं तइय उद्देसग णेयव्वं णवरं अण्णउत्थिय-गारत्थियाभिलावे जाव गामाणुगाम । Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ निसीहज्झयणं १५. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।। १६. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंत वा सातिज्जति ॥ काय-परिकम्म-पर्व १७. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदेंतं वा सातिज्जति ।। १६. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उज्लोलेज्ज उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उन्वटेंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायं सीओदग-वियडेण वा उसिणो दग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म-पदं २३. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि वणं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमतं वा सातिज्जति ।। २५. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणोएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्वंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उन्वटेंतं वा सातिज्जति ॥ २७. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि वणं सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमो उद्देसो ७३५ सातिज्जति ॥ २८. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि वणं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ गंडादि-परिकम्म-पदं २६. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदेज्ज वा विच्छि देज्ज वा, अच्छिदेंतं वा विच्छिदेतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा, पूयं वा सोणियं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३१. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा, पूयं वा सोणियं वा णीहरेत्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विछिदित्ता वा, पूयं वा सोणियं वा णीहरेत्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएता वा अण्णयरेणं आलेवण जाएणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ।। ३३. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा. पयं वा सोणियं वा णीहरेत्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपित्ता वा विलिपित्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ ३४. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा, पूयं वा सोणियं वा णीहरेत्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपित्ता वा विलिपित्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अन्भंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा, धूवेंतं वा पधूवेंतं वा सातिज्जति ॥ Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं किमि-पदं ३५. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अंगलीए णिवेसिय-णिवेसिय णीहरेइ, णीहरतं वा सातिज्जति ॥ णह-सिहा-पदं ३६. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाओ णह-सिहाओ कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। दोह-रोम-पदं ३७. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाइं जंघ-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठ वेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। ३८. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाइं वत्थि-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ।। ३९. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीह-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४०. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाइं कक्खाण-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४१. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाई मंसु-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ दंत-पदं ४२. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघसंतं वा सातिज्जति ।। ४३. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दंते उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ४४. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दंते फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ उट्ठ-पदं ४५. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा उढे आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जतं वा सातिज्जति ।। ४६. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा उठे संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिम तं वा सातिज्जति ।। ४७. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा उठे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमो उद्देसो ७३७ ४८. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा उट्ठे लोद्वेण वा कक्केण वा चुणेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उब्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा उट्ठे सीओदग - वियडेण वा उसिणोद - विडे वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ॥ ५०. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा उट्ठे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रतं वा सातिज्जति ॥ दीह - रोम-पदं ५१. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाई उत्तरोट- रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ५२. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाई णासा- रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ अच्छ-पत्त-पदं ५३. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाई अच्छि - पत्ताई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा कप्पेतं वा संठतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि-पदं ५४. जे भिक्ख अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छीणि आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ५५. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छीणि संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमद्देतं वा सातिज्जति ॥ ५६. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छीणि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा अब्भंगतं वा मक्तं वा सातिज्जति ॥ ५७. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छीणि लोद्वेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वतं वा सातिज्जति ॥ ५८. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छीणि सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सांतिज्जति ॥ ५६. जे भिखू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छीणि फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमेतं वा रतं वा सातिज्जति ॥ Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ निसीहज्झयणं दोह-रोम-पदं ६०. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाई भमुग-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ६१. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा दीहाइं पास-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ मल-णीहरण-पदं ६२. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ।। ६३. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ सोसवारिय-पदं ६४. जे भिक्खू गामाणुगाम दूइज्जमाणे अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा सीसदुवारियं ___करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ बीभावण-पदं ६५. जे भिक्खू अप्पाणं बीभावेति, बीभावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६६. जे भिक्खू परं बीभावेति, बीभावेत वा सातिज्जति ।। विम्हावण-पदं ६७. जे भिक्खू अप्पाणं विम्हावेति, विम्हावेतं वा सातिज्जति ॥ ६८. जे भिक्खू परं विम्हावेति, विम्हावेंतं वा सातिज्जति ॥ विपरियास-पदं ६६. जे भिक्खू अप्पाणं विप्परियासेति, विप्परियासेंतं वा सातिज्जति ।। ७०. जे भिक्खू परं विप्परियासेति, विप्परियासेंतं वा सातिज्जति ।। मुहवण्ण-पदं ७१. जे भिक्खू मुहवणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ वेरज्ज-विरुद्ध-रज्ज-पदं ७२. जे भिक्ष वेरज्ज-विरुद्ध-रज्जसि सज्जं गमणं सज्जं आगमणं सज्जं गमणागमणं ___करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ दियाभोयण-अवण्ण-पदं ७३. जे भिक्ख दियाभोयणस्स अवणं वयति, वयंत वा सातिज्जति ।। Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमो उद्देसो राइमायण - वण्ण-पदं ७४. जे भिक्खू राइभोयणस्स वण्णं वयति, वयंतं वा सातिज्जति ॥ दिया रत्ति भोयण-पदं ७५. जे भिक्खू दिया असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति ॥ ७६. "जे भिक्खू दिया असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता रति भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ७७. जे भिक्खू रत्ति असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजति, भुतं वा सातज्जति ॥ ७८. जे भिक्खू रत्ति असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता रत्ति भुंजति, भुतं वा सातिज्जति ॥ ७३६ परिवासित पर्व ७६. जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं अणागाढे' परिवासेति, परिवासेंतं वा सातज्जति ॥ ८०. जे भिक्खू परिवासियस्स' असणस्स वा पाणस्स वा खाइमस्स वा साइमस्स वा तयप्पमाणं वा भूतिप्पमाणं वा बिंदुपमाणं वा आहारं आहारेति, आहारेंतं वा सातिज्जति ॥ संखडि-पदं ८१. जे भिक्खू मंसादीयं वा मच्छादीयं वा मंसखलं वा मच्छखलं वा आहेणं वा पहेणं वा संमेलं वा हिंगोलं वा अण्णयरं वा तहप्पगारं विरूवरूवं हीरमाणं पेहाए ताए आसाए ताए पिवासाए तं रयणि अण्णत्थ उवाइणावेति, उवाइणावेंतं वा सातिज्जति ॥ णिवेयर्णापड-पर्व ८२. जे भिक्खू णिवेयणपिडं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति ॥ १. 'क, ग' प्रत्योः ७५-७६ एतानि चत्वार्यपि सूत्राणि नैव लभ्यन्ते । २. सं० पा० — एवं दिया पडिग्गाहेत्ता रत्ति भुंजति रति पडिग्गाहित्ता दिया भुंजति रत्ति पडिग्गाहेत्ता रति भुंजति । ३. x (क, ख, ग ) । ४. परिवसावेइ ( अ ) ; परियासेति (क, ख, ग ) । ५. भाष्ये चूणौ च नैतत्सूत्रं व्याख्यातं दृश्यते । बृहत्कल्पे ( ५।३७ ) एतत्सूत्रं अपवादोल्लेखपूर्वकं विद्यते । सोपवादोत्र 'अणागाढ' पदेन उल्लिखितोस्ति, तेन प्रस्तुतसूत्रस्य न कश्चिद् विशिष्टोर्थोस्ति, तथापि सर्वेषु प्रयुक्तादर्शेषु विद्यते, तेनात्र गृहीतम् । ६. पारिवा ( अ, क, ख ) । Page #874 --------------------------------------------------------------------------  Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमो उद्देसो कोलुणपडिया-पदं १. जे भिक्खू कोलणपडियाए अण्णयरि' तसपाणजाति तणपासएण वा 'मुंजपासएण वा" कट्टपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा 'रज्जुपासएण वा सुत्तपासएण वा' बंधति, बंधतं वा सातिज्जति ॥ २. "जे भिक्ख कोलणपडियाए अण्णयरिं तसपाणजाति तणपासएण वा मुंजपासएण वा कट्टपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा सुत्तपासएण वा बद्धेल्लयं मुयति, मुयंतं वा सातिज्जति ।। पच्चक्खाण-भंग-पदं ३. जे भिक्ख अभिक्खणं" पच्चक्खाणं भजति, भंजतं वा सातिज्जति ॥ परित्तकायसंजुत्त-पदं ४. जे भिक्खू परित्तकायसंजुत्तं आहारं आहारेति, आहारतं वा सातिज्जति ।। सलोमचम्म-पदं ५. जे भिक्खू सलोमाइं चम्माई 'अहिठेति, अहिद्रुतं वा सातिज्जति ।। परवत्योच्छन्नपीढ-पदं ६. जे भिक्खू तणपीढगं वा पलालपीढगं वा छगणपीढगं'' वा 'वेत्तपीढगं वा 'कट्ठ १. अण्णयरं (ख)। २. x (ग)। ३. सुत्तपासएण वा, रज्जुपासएण वा (क, ख)। ४. सं० पा०-बद्धेल्लयं वा मुयति मुयंतं वा साति। ५. अभिक्खणं-अभिक्खणं (अ)। ६. x (अ,क,ग)। ७. 'ख' प्रती एतत्सूत्रं नैव लभ्यते । ८. धरेति धरेंतं (अ, क, ख, ग,)। ६. चूणौ पदानां क्रमो भिन्नो दृश्यते-पलालमयं पलालपीढगं तणमयं तणपीढगं वेत्तासणगं वेत्तपीढगं भिसिमादि कट्ठमयं छगणपीढगं पसिद्धं । १०. छेयणपीढयं (अ)। ११. ४ (क, ख, ग)। Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ निसीहज्झयणं । पीढगं वा" परवत्थेणोच्छण्णं अहिछेति, अहिद्रुतं वा सातिज्जति ।। णिग्गंथी संघाडि-पदं ७. जे भिक्खू णिग्गंथीए' संघाडि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सिव्वावेति, सिव्वावेंतं वा सातिज्जति ॥ थावरकायसमारंभ-पदं ८. जे भिक्ख पुढवीकायस्स' कलमायमवि समारंभति, समारंभंतं वा सातिज्जति ॥ ६. एवं •आउक्कायस्स वा तेउकायस्स वा वाउकायस्स वा वणप्फइकायस्स वा कलमायमवि समारंभति, समारंभंतं वा सातिज्जति ॥ रुक्खारोहण-पदं १०. जे भिक्खू सचित्तरुक्खं दुरुहति, दुरुहंतं वा सातिज्जति ।। गिहि-पदं ११. जे भिक्खू गि हिमत्ते भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू गिहिवत्थं परिहेति, परिहेंतं वा सातिज्जति ॥ १३. जे भिक्खू गिहिणिसेज्जं वाहेति, वाहतं वा सातिज्जति ॥ १४. जे भिक्खु गिहिति गिच्छं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। पुरेकम्म-पदं १५. जे भिक्ख पुरेकम्मकडेण हत्थेण वा मत्तेण वा दवीए वा भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्ख 'गिहत्थाण वा अण्णउत्थियाण वा' सीओदग-परिभोईण' हत्थेण वा 'मत्तेण वा दवीए वा भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा •पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ चक्खुदंसणपडिया-पदं १७. जे" भिक्खू कट्टकम्माणि वा चित्तकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा दंतकम्माणि वा १. ४ (अ)। ६. सं० पा०-असणं वा ४ जाव सातिज्जति । २. निग्गंथीणं (अ)। १०. एतत्सूत्रं चूणौं 'अभिसेयठाणाणि वा अक्खा३. पुढविकायं (ख, ग)। इयठाणाणि वा' (२७) इति सूत्रानन्तरं ४. सं० पा०–एवं जाव वणप्फइकायस्स । व्याख्यातमस्ति । आचारचूलायां (१२।१) एष ५. पुरकम्मकडेण (अ, ग); पुराकम्मकडेण (ख)। एव क्रमो विद्यते, योस्माभिरादर्शानुसारेण ६. ४ (अ,क)। स्वीकृतः । प्रस्तुतसूत्रस्य चूणौं–'पत्तच्छेज्जाणि ७. परिभोयेण (क); परिभोगेण (ख); परि- वा विहाणि वा वेहिमाणि वा' एतानि पदानि ___ भोयण (ग)। व्याख्यातानि न सन्ति । द्रष्टव्यं २७ सूत्रस्य ८. सं. पा०-हत्थेण वा जाव भायणेण । अन्तिमपादटिप्पणम् । Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमो उद्देसो ७४३ मणिकम्माणि वा सेलकम्माणि वा गंथिमाणि वा 'वेढिमाणि वा" पूरिमाणि वा संघातिमाणि वा पत्तच्छेज्जाणि वा विहाणि वा वेहिमाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्ख वप्पाणि वा फलिहाणि वा उप्पलाणि वा पल्ललाणि वा उज्झराणि वाणिज्राणि वा वावीणि वा पोक्खराणि वा दीहियाणि वा 'गुंजा लियाणि वा" सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा चक्खु" "दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू कच्छाणि वा गहणाणि वा णूमाणि वा वणाणि वा वणविदुग्गाणि वा पव्वयाणि वा पव्वयविदुग्गाणि वा चक्खु' 'दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधातं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू गामाणि वा नगराणि वा खेडाणि वा कब्बडाणि वा मडंबाणि' १. x ( अ ) । २. विविहाणि ( क, ख, ग ) । ३. चूण अस्य सूत्रस्य 'वप्पाणि वा फलिहाणि वा' एते द्वे पदे व्याख्याते स्तः । अन्यः सर्वोपि व्याख्यातः पाठः स्वीकृतसूत्राद् भिन्नोस्ति — वप्पो केदारो, परिहा खातिया, नगरादिसु पागारो, रन्नो दुवारादिसु तोरणा, जगरदुवारादिसु अग्गला, तस्सेव पासगो रहसंठितो पासातो, पव्वयसंठितं उवरुवरिभूमिया हि वट्टमाणं कूडागारं कूडेवागारं कूडागारं पर्वते कुट्टितमित्यर्थः । णूमगिहं भूमिघरं रुक्खो च्चिय गिहागारो रुक्खगिहं, रुक्खे वा घरं कडं, पर्वतः प्रसिद्धः, मंडवो वियड, धूमः प्रसिद्धः, पडिमा गिहं चेतियं, लोहारकुट्टी आवेसणं, लोगसमवायठाणं आयतणं, देवकुलं पसिद्धं सद्भ्यः स्थानं सभा, गिम्हादिसु उदगप्पदाणठाणं पवा, जत्थ भंडं अच्छति तं पणियहिं, जत्थ विक्काइ सा साला । अहवा सकुड्डं गिहं, अकुड्डा साला, एवं जाणसालाओ वि, जाणा सिविगादि जत्थ णिक्खत्ता, गुहा प्रसिद्धा, एवं दब्भो पव्वगो विदन्भसारिच्छो, इंगाला जत्थ डज्भंति, कट्ठा जत्थ फट्टंति, घडिज्जति वा, सवसयणं सुसाणं गिरिगुहा कंदरं, असिवसमणद्वाणं संति, सेलो पव्वतो, गोसादि ठाणं उवद्वाणं भवणागारं वणराय मंडियं भवणं, ते चेव वणविवज्जियं गिहं चक्खुरिन्द्रियप्रीत्यर्थं दर्शनप्रतिज्ञया गच्छति । ४. X ( क, ख, ग ) । ५. सं० पा० - चक्खु जाव साति । ६. दहाणि ( ख ) । ७. अतोग्रे चूण अनेकानि पदानि व्याख्यातानि सन्ति - कूवो अगडो, तडाग दहणदि पसिद्धा, समवृता वापी, चातुरस्सा पुक्खरणी, एताओ चेव दीहियाओ, दीहिया सारणी वावि पुक्खरणीओ वा मंडलिसंठियाओ, अन्नोन्नकवाडसंजुत्ताओ गुंजालिया भन्नंति । अन्ने भांति - णिक्का अणेगभेदगता गुंजालिया। सरपंती वा एगं महाप्रमाणं सधैं, ताणि चैव बहूणि पंतीठियाणि पत्तेयवाहुजु - ताणि सरपंती, ताणि चेव बहूणि अन्नोन्नकवाड संजुत्ता णि सरसरपंती । ८. सं० पा० - चक्खु जाव साति । ६. मंडवाणि (अख) | Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ निसीहज्झयणं वा' दोणमहाणि वा, पट्टणाणि वा आगराणि वा संबाहाणि वा सण्णिवेसा णि वा, चक्खु •दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा° सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू गाममहाणि वा' •णगरमहाणि वा खेडमहाणि वा कब्बडमहाणि वा, मडंबमहाणि वा दोणमुहमहाणि वा पट्टणमहाणि वा आगरमहा णि वा संबाहमहाणि वा° सण्णिवेसमहाणि वा चक्खु 'दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा° सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू गामवहाणि वा •णगरवहाणि वा खेडवहाणि वा कब्बडवहाणि वा मडंबवहाणि वा दोणमुहवहाणि वा, पट्टणवहाणि वा आगरवहाणि वा संबाहवहाणि वा° सण्णिवेसवहाणि वा चक्ख 'दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधा रेतं वा० सातिज्जति ॥ २३. जे भिक्खू गामपहाणि वा •णगरपहाणि वा खेडपहाणि वा कब्बडपहाणि वा मडंबपहाणि वा दोणमह पहाणि वा पट्टणपहाणि आगरपहाणि वा संबाहपहाणि वा सण्णिवेसपहाणि वा चक्खु 'दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा° सातिज्जति ।। २४. जे भिक्ख आसकरणाणि वा हत्थिक रणाणि वा" 'उट्टकरणाणि वा गोण करणाणि वा महिसकरणाणि वा सूकरकरणाणि वा चक्खु२ 'दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ।। १. चूणौं अतः परं 'आगर पट्टण दोण्णिमुह आसम रायहाणी। सण्णिवेस संबाह घोस णेगम अंसिया पुडाभेयण २. सं० पा०-चक्खु जाव साति । रायहाणी' एतानि पदानि व्याख्यातानि ३. सं० पा०—गाममहाणि वा जाव सण्णिवेस । सन्ति-सुवण्णादि आगरो, पट्टणं दुविहं- ४. सं० पा०-चक्खु जाव साति । जलपट्टणं थलपट्टणं च, जलेण जस्स भंडमा- ५. सं० पा०-गामवहाणि वा जाव सण्णिवेस । गच्छति तं जलपट्टणं इतरं थलपट्टणं, दोणि ६. सं० पा०-चक्खु जाव साति । मुहा जस्स तं दोण्णिमुहं जलेण वि थलेण वि ७. गामदहाणि (अ)। भंडमागच्छति, आसमं णाम तावसमादीणं, ८. सं० पा०—गामपहाणि वा जाव सण्णिवेस। सत्थवासणत्थाणं सण्णिवेसं, गामो वा पिंडितो . सं० पा०-चक्खु जाव साति । सन्निविट्रो, जत्तागतो लोगो सन्निविट्रो सण्णि- १०. अस्य सूत्रस्य स्थाने आचारचूलायां (१२।८) वेसं भण्णति, अण्णत्थ किसि करेत्ता अन्नत्थ विस्तृतः पाठो विद्यते । वोद वसंति तं संबाहं भण्णति । घोसं गोउलं, ११. सं० पा०-हत्थिकरणाणि वा जाव मुकरवणियवग्गो जत्थ वसति तं णेगम, अंसिया करणाणि । गामततियभागादी, भंडगा धण्णा जत्थ १२. सं० पा०-चक्खु जाव साति । भिज्जति तं पुडाभेयणं, जत्थ राया वसति सा Page #879 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमो उद्देसो ७४५ २५. जे भिक्खू आसजुद्धाणि' वा' 'हत्थिजुद्धाणि वा उट्टजुद्धाणि वा गोणजुद्धाणि वा महिसजुद्धाणि वा सूकरजुद्धाणि वा चक्खु' 'दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू उज्जू हियाठाणाणि वा हयजूहियाठाणाणि वा, गयजू हियाठाणाणि वा चक्खु" "दंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ।। २७. जे' भिक्खू अभिसेयठाणाणि वा अक्खाइयठाणाणि वा माणुम्माणियठाणाणि वा महयाहय णट्ट-गीय-वादिय-तंती- तल-ताल-तुडिय-पडुप्पवाइयठाणाणि वा चक्खु" १. युद्धाणि ( ख ) सर्वत्र । चूर्णां भिन्नपदानि व्याख्यातानि सन्ति - हयो अश्वः तेषां परस्परतो युद्धं, एवमन्येषामपि । गजादयः प्रसिद्धा । शरीरेण विमध्यमः करटः, रक्तपाद: चटकः शिखिधूमवर्णः लावकः, अहिमादी प्रसिद्धा । शुत्रिगसम्पादिते पुस्तके पाठान्तरमिदम् - हय-गय-गोण- महिस- मेंढ कुक्कड - तित्तर- वट्ट लावग अहि- सूकर-लतानिजुद्धाणि वा । २. सं० पा० - आसजुद्वाणि वा जाव सूकरजुद्धाणि । ३. सं० पा० - चक्खु जाव साति । ४. गाऊज्जुया ( ख ); 'अ' प्रती सूत्रमिदमस्मिन् रूपे समुपलभ्यते - जे उज्जूहियाठाणाणि वा निज्जूहियाठाणाणि वा । भाष्येपि 'णिज्जूहितादि ठाणा ' ( ४१३४ ) इति उपलभ्यते । चूर्णो अन्येपि पाठभेदोस्ति —— गावीओ उज्जूहिताओ अडवित्तीओ उज्जुहिज्जति । अहवा गोसंखडी उज्जूहिगा भन्नति, गावीणं णिव्वेढणा परिमाणादि णिज्जूहिगा, वधुवर परिक्षणं तिमिहुज्जूहिया, वम्मियगुडएहिं हतेहि बलदरिसणा हयाणीयं गयेहि बलदरिसणा गयाणीयं, रहेहि बलदरिसणा रहाणीयं पाइक्कबलदरिसणा पाइक्काणीयं, चउसमवायो य अणियदरिसणं । चोरादि वा वज्यं णीणिज्जमाणं पेहाए । शुब्रिगसम्पादिते पुस्तके पाठान्तरमिदम् — उज्जूहियाणि वा निजूहियाणि वा मिहुजुहियाणि वा हयाणि ( हयाणियाणि) वा गयाणि ( गयाणियाणि) वा रहाणियाणि वा पायत्ताणियाणि वा अणियाणि वा अणियदंसणाणि वा एक्कं पुरिसं वज्भं नीयमाणं पेहाए । ५. सं० पा० - चक्खु जाव साति । ६. आचार चूलायां (१२।११) 'अभिसेयठाणाणि 'वा' इति पाठो नैव लभ्यते । शेषपाठः प्रस्तुत - सूत्रसदृशो विद्यते । चूणौ प्रायो भिन्न एव पाठो व्याख्यातोस्ति अक्खाणगादि आघादियं, एगस्स वलमाणं अन्नेण अणुमीयत इति माणुस्माणियं जहा धन्ने कंबलसंबला । अधवा-माणपोताओ माणुम्माणियं । विज्जादिएहिं रुक्खादी मिज्जतीति णेम्मं । अधवा -- णम्मं णट्ट सिक्खाविज्जंतस्स अंगाणि मिज्जति । गहियं कव्वा । अधवा वत्थपुप्फचम्मादिया भज्जं रुक्खादिभंगो दव्वविभागो वा । कलहो वातिगो जहा सिंघवीणं रायादीण वुग्गहो । पासा आदी जुया, सभादिसु अणेगविहा जणवाया । ७. अक्खाइया (क, ख, ग ) । ८. माणुस्माणिया (क, ख, ग ) । C. पडुप्पा (अ, क, ग) । १०. सं० पा० - चक्खु जाव साति । Page #880 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहज्झयणं दसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति' । २८. जे भिक्खू डिंबाणि वा डमराणि वा खाराणि' वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा 'बोलाणि वा" चक्ख 'दंसणपडियाए अभिसं धारेति, अभिसंधारेतं वा° सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु" इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झि माणि वा डहराणि वा-अणलं कियाणि वा सुअलंकियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा पच्चंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा, विपुलं असणं पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परिभाएंताणि वा परिभुजंताणि वा चक्खु 'दंसण पडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति। रूवासत्ति-पदं ३०. जे भिक्खू इहलोइएसु वा रूवेसु परलोइएसु वा रूवेसु दिढेसु वा रूवेसु अदिठेसु वा रूवेसु 'सुएसु वा रूवेसु असुएसु वा रूवेसु विण्णाएसु वा रूवेसु अविण्णाएसु १. चूणौं अतः परं 'कट्ठकम्माणि' इति सूत्रं अच्छंति । अहवा-अश्नुतंति भुजंतीत्यर्थः । व्याख्यातमस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य 'महयाहय' चोदमाणा गेंदुगादिसु रमते मज्जपानअंदोलगाइत्यादि पाठेपि अस्मिन्नेव सूत्रे व्याख्यातमस्ति दिसु ललते जलमध्ये क्रीडा, नष्टमृतादिषु -कटुकम्मं कोट्टिमादि, पुस्तकेषु च वस्त्रेषु वा । कंदणा, मोहनोब्भवकारिका क्रिया मोहणा पोत्थं, चित्तलेपा प्रसिद्धा, पूयादियं पुप्फमाला- मेहुणासेवणंता, सेसपदा गंथपसिद्धा। दिषु गंठिमं जहा आणंदपुरे, पुप्फपूरगादिवेढिमं ७. महामहेसु (ख)। प्रतिमा, पूरिमं स च कक्षुकादिमुकुट- ८. सं० पा०-चक्खु जाव साति । संबंधिसु वा संघाडिमं महदाख्यानकं वा ६. अतः परं भाष्ये सूत्रद्वयस्य सङ्कतो लभ्यतेमहताहतं । अहवा-महता शब्देन वादित्र- समवायादिठाणा, जत्तियमेत्ता उ आहिया सूत्ते । माहतं वाइता तंती, अन्यद्वा किंचित, हत्थत- चक्खुपडियाए तेसु, दोसा ते तं च बितियपदं । ४१३८॥ लाणं तालो कडंबादि, वादित्रसमुदयो त्रुटि:, विरूवरूवादि ठाणा, जत्तियमेत्ता उ आहिया सूत्ते । जस्स मुतिंगस्स घणसहसारिच्छो सद्दो सो चक्खुपडियाए तेसु, दोसा ते तं च बितियपदं । घणमुइंगो पटुणा सद्देण वाइतो सर्व एवेन्द्रि ४१३६॥ यार्थः चक्षुः । चूणौं च केवलं उत्तरवर्तिनः एकस्यैव सूत्रस्य २. भाष्ये चूणौं च एतत्सूत्रं नास्ति व्याख्यातम्, व्याख्यानमस्ति-अणेगरूवा विरूवरूवा, किन्तु आचारचूलायां (१२।१२) एतत्पाठ महंता महा महामहा, जत्थ महे बहु रयो जहा भेदेन सह लभ्यते। भंसुरुलाए । अहवा-जत्थ महे बहू बहुरया ३. खोराणि (ख); खराणि (ग)। मिलंति जहा सरक्खा सो बहुरयो भण्णति । ४. X (ख)। तालायरबहुला बहुणडा गलागलपुत्तपुज्जे ५. सं० पा०—चक्खु जाव साति । वेगडं भगा य बहुसढा अव्वत्तभासिणो बहुगा ६. चूणौं प्रस्तुतसूत्रस्य कानिचिद् भिन्नानि पदानि जत्थ महे मिलंति सो बहमिलक्खू महो, ते य व्याख्यातामि दृश्यन्ते-आसयंते सत्थावत्थाणि मिलक्खू दब्भभीलादि । Page #881 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमो उद्देसो ७४७ वा रूवेसु" सज्जति रज्जति गिज्झति अज्झोववज्जति, सज्जमाणं वा रज्जमाणं वा गिज्झमाणं वा अज्झोववज्जमाणं वा सातिज्जति ॥ कालातिक्कंत-पदं ३१. जे भिक्खू पढमाए पोरिसीए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवातिणावेति, उवातिणावेंतं वा सातिज्जति ॥ खेत्तातिक्कत-पदं ३२. जे भिक्ख परं 'अद्धजोयणमेराओ परेण असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवातिणावेति, उवातिणावेंतं वा सातिज्जति ।। गोमय-पदं ३३. जे भिक्ख दिवा' गोमयं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विपिज्ज __वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ।। ३४. "जे भिक्खू दिवा गोमयं पडिग्गाहेत्ता रत्ति कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज __ वा, आलिंपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ।। ३५. जे भिक्खू रत्ति गोमयं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू रत्ति गोमयं पडिग्गाहेत्ता रति कायंसि वणं आलिपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति° ॥ आलेवणजाय-पदं ३७. "जे भिक्खू दिवा आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा __विलिपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ॥ ३८. जे भिक्खू दिवा आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता रत्ति कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ।। ३९. जे भिक्खू रत्ति आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ॥ ४०. जे भिक्खू रत्ति आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता रत्ति कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ॥ १. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने चूणों 'मणुण्ण अमणुण्ण' पदे व्याख्याते स्त:-मणुण्णा जे इट्ठा, अमणुण्णा जे अणिट्ठा । २. अद्धजोयणाते (अ); भाष्ये चूणौं च 'मेरा' इति पदं नैव व्याख्यातं दृश्यते । ३. दिया (अ, ग)। ४. सं० पा०--एवं चउत्थभंगो। ५. सं० पा०-जे भिक्खू दिवा आलेवणजायं पडिगाहेति पडिगाहेंतं वा साति दिवा कायंसि वणं जाव चउभंगो। Page #882 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ निसीहज्झयणं उवहिवहावण-पदं ४१. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा उवहिं वहावेति, वहावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू तण्णीसाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ महाणई-पदं ४३. जे भिक्खू 'इमाओ पंच" महण्णवाओ महाणईओ उद्दिवाओ गणियाओ वंजियाओ अंतोमासस्स दुक्खुत्तो वा' तिक्खुत्तो वा उत्तरति वा संतरति वा, उत्तरंतं वा संतरंतं वा सातिज्जति, तं जहा-'गंगा जउणा सरऊ एरावती मही"तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं ॥ ३. गंगं जउणं सरउं एरावति महिं (अ, क, ग)। १. पंचिमाओ (अ, क, ग); पंच इमाओ (ख)। २. ४ (क, ग)। Page #883 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमो उद्देसो पुढवी-पदं १. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा सेज वा, "णिसेज्ज वा", णिसीहियं __वा चेएति, चेएतं वा सातिज्जति ॥ २. •जे भिक्ख ससिणिद्धाए पुढवीए ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्जं वा णिसीहियं वा चेएति, चेएतं वा सातिज्जति ।। ३. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्जं वा णिसीहियं वा चेएति, चेएतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्जं वा णिसीहियं वा __ चेएति, चेएतं वा सातिज्जति ।। ५. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्जं वा णिसीहियं वा चेएति, __ चेएतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्जं वा णिसी हियं वा चेएति, चेएतं वा सातिज्जति ॥ ७. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्ज वा णिसीहियं वा चेएति, चेएतं वा सातिज्जति ॥ वाह-पदं ८. जे भिक्खू कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा-संताणगंसि ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्ज वा णिसी हियं वा चेएति, चेएंतं वा सातिज्जति ।। अंतरिक्खजाय-पदं है. जे भिक्ख थणंसि वा गिहेलयंसि वा उसुकालंसि वा कामजलंसि वा 'अण्णयरंसि वा १. x (अ, क, ख, ग)। २. सं० पा०-जे एवं ससिणिद्धाए जाव कोला वासंसि वा दारुयंसि वा पतिनिस्सियंसि जाव संताणयंसि ठाणं वा जाव चेति इच्चे साति । ७४६ Page #884 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० निसीहज्झयणं तहपगारंसि अंतरिक्खजायंसि" 'दुब्बद्धे दुष्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले” ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्जं वा णिसीहियं वा चेएति, चेएतं वा सातिज्जति ॥ १०. जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अण्णयरंसि वा तह पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले ठाणं वा सेज्जं वा णिज्जं वा णिसीहियं वा चेएति, चेतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्खू खंधंसि वा फलिहंसि वा मंचंसि वा मंडबंसि वा मालंसि वा पासायंसि वाहम्मतसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे' चलाचले ठाणं वा सेज्जं वा णिसेज्जं वा णिसीहियं वा चेएति, चेतं वा सातिज्जति ॥ अण्णउत्थिय-गार त्थिय-पवं १२. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा सिप्पं वा सिलोगं वा अट्ठापदं वा कक्कडगं वा वुग्गहं वा सलाहं वा सलाहकहत्थयं वा सिक्खावेति, सिक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ १३. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा आगाढं वदति, वदतं वा सातिज्जति ।। १४. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा फरुसं वदति, वदंतं वा सांतिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा आगाढं फरुसं वदति वदतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा अण्णयरीए अच्चासायणाए अच्चा साएति, अच्चासाएंतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा कोउगकम्मं करेति, करें वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा भूतिकम्मं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं 'वागरेइ, वागरेंतं" वा १. चिन्हाङ्कितः पाठो भाष्ये चूर्णां च नास्ति व्याख्यातः । आचारचूलायां (७/११) 'अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए' इति पाठो लभ्यते । अग्रिमसूत्रद्वयेपि इत्यमेव दृश्यते । २. आदर्शेषु चिन्हाङ्कितः पाठो नैव लभ्यते, अग्रिमसूत्रेपि एक नास्ति । असौ चूर्ण्याधारेण स्वीकृतः । चूण 'दुण्णिक्खित्त' पदानन्तरं पाठ भेदोपि प्रदर्शितोस्ति — केसिंचि दुणिरिक्खियं ति आलावगो | ३. आदर्शेषु एतत्पदं नैव लभ्यते । ४. सालाहत्थयं ( अ ); सलाकहत्थयं ( ख, ग ) । ५. १६-२४ एषां षण्णां सूत्राणां स्थाने 'वागरेइ, वागरें' इति पाठस्य स्थाने आदर्शेषु 'करेइ करेंतं' इति पाठो लभ्यते । मूलपाठः भाष्यचूण्यराधारेण स्वीकृतः । Page #885 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमो उद्देसो सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्ख अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं वागरेइ, वागरेंतं वा तज्जति ॥ २१. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा 'तीतं निमित्तं" वागरेइ, वागरेंतं वा सातज्जति ॥ ७५१ २२. जे भिक्ख अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा लक्खणं वागरेइ, वागरेंतं वा तज्जति ॥ २३. जे' भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा वंजणं वागरेइ, वागरेंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा सुमिणं वागरेइ, वागरेंतं वा सातिज्जति ॥ २५. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा विज्जं पउंजति, पउंजंतं वा तज्जति ॥ २६. ""जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा मंतं पउंजति, पउंजंतं वा सातिज्जति ॥ २७. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा जोगं पउंजति, पउंजंतं वा सातिज्जति ॥ २८. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा नट्ठाणं मूढाणं बिप्परिया सियाणं मग्गं वा वेदेति, संधिवा पवेदेति, मग्गाओ" वा संधि पवेदेति, संधीओ वा मग्गं पवेदेति, पवेदेतं वा सातिज्ञ्जति ॥ २६. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा धाउं पवेदेति पवेदेंतं वा सातिज्जति ॥ ३० जे भिक्ख अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा णिहि पवेदेति, पवेदेतं वा सातिज्जति ॥ १. चूण त्रिकालनिमित्तस्य व्याख्यानं लभ्यते - अतीतकाले वट्टमाणे वा इमो ते लाभो लद्धो, अणागते वा इमं भविस्सति । कस्मिञ्चिद् आदर्श प्रस्तुतसूत्रानन्तरं अन्यदपि सूत्रद्वयं लभ्यते— जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पडुप्पण्णं निमित्तं । जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा आगमिस्सं निमित्तं । २. आदर्शषु एतत्सूत्रं नैव लभ्यते । एतच्च भाष्यचूण्यराधारेण स्वीकृतम् । ३. सिमिणं ( अ ) । ४. सं० पा० एवं मंतं जोगं । ५. x ( अ ) ; मग्गाण (क, ग ) ; मग्गेण ( ख ) । Page #886 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ निसीहज्झयणं अप्पाणं देहति-पदं ३१. जे भिक्खू मत्तए अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति ।। ३२. जे भिक्खू अदाए अप्पाणं देह ति, देहंतं वा सातिज्जति ।। ३३. •जे भिक्ख असीए अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति ॥ ३४. जे भिक्खू मणीए अप्पाणं देह ति, देहंतं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू उड्डपाणे' अप्पाणं देहति, देहतं वा सातिज्जति ।। ३६. जे भिक्खू तेल्ले अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति ।। ३७. जे भिक्खू फाणिए अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति ॥ ३८. जे भिक्खू वसाए अप्पाणं देहति, देहंतं वा सातिज्जति ।। तिगिच्छा-पदं ३६. जे भिक्खू वमणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। ४०. जे भिक्खू विरेयणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। ४१. जे भिक्खू वमण-विरेयणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। ४२. जे भिक्खू 'अरोगे य" परिकम्म' करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ पासत्यादि-वंदण-पसंसण-पदं ४३. जे भिक्खू पासत्थं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ॥ ४४. जे भिक्खू पासत्थं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. "जे भिक्खू ओसण्णं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ।। ४६. जे भिक्ख ओसण्णं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। १. 'अ' प्रतौ एतत्सूत्रं नोपलभ्यते। चूणौं प्रस्तुत ५. अरोगिय (क); आरोगिय (ख) । सूत्रस्य व्याख्यानन्तरं सङ्ग्रहगाथायाः उल्लेखः ६. पडिकम्मं (क, ख, ग)। कृतोस्ति-सेसपदाणं इमा संगहणी ७. चुणौं पासस्थालापकस्य परत: कुसीलालापकः, दप्पण मणि आभरणे, सत्थ दए भायणऽन्नत रए य । ततश्च ओसण्णालापकः, संसत्तालापकः, नितितेल्ल महु सप्पि फाणित, मज्ज वसा सुत्तमादीसु यालापक:-एष क्रमो विद्यते । ॥४३१८॥ चतुर्थोद्देशके भाष्ये चूणौं च अत: भिन्नः क्रमो अस्मिन् सङ्ग्रहे मवादीनि अनेकानि अति दृश्यतेरिक्तानि पदानि लभ्यन्ते । पासत्थोसण्णाणं, कुसील संसत्त नितियवासीणं । २. सं० पा०-एवं असीए मणीए उडूपाणे तेल्ले जे भिक्खू संघाडं, दिज्जा अहव पडिच्छेज्जा फाणिए वसाए अप्पाणं । ॥१८२८॥ ३. उदुपाणे (क); उडुपाणे (ग)। ८. सं० पा०-एवं ओसणं कुसील णितियं संसत्तं ४. 'अ' प्रतौ एतत्सूत्रं नोपलभ्यते । काहियं पासणियं मामायं संपसारयं । Page #887 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमो उद्देसो ७५३ ४७. जे भिक्खू कुसीलं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ।। ४८. जे भिक्खू कुसीलं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। ४६. जे भिक्खू नितियं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ॥ ५०. जे भिक्ख नितियं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। ५१. जे भिक्खू संसत्तं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ।। ५२. जे भिक्खू संसत्तं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। ५३. जे भिक्खू काहियं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ॥ ५४. जे भिक्खू काहियं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। ५५. जे भिक्खू पासणियं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ।। ५६. जे भिक्खू पासणियं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। ५७. जे भिक्खू मामायं वंदति, वंदंतं वा सातिज्जति ।। ५८. जे भिक्खू मामायं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। ५६. जे भिक्खू संपसारयं' वंदति, वंदंत वा सातिज्जति ।। ६०. जे भिक्खू संपसारयं पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति ।। पिंड-पदं ६१. जे भिक्खू धाइपिंडं भुजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ६२. 'जे भिक्खू दूतिपिंडं भुजति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। ६३. जे भिक्खू णिमित्तपिंडं भुजति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। ६४. जे भिक्खू आजीवियपिंड जति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। ६५. जे भिक्खू वणीमगपिंडं भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। ६६. जे भिक्ख तिगिच्छापिंडं भुज ति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ६७. जे भिक्खू कोहगिडभुजति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। ६८. जे भिक्खू माणपिडं भुजति, भुजतं वा सातिज्जति ।। ६६. जे भिक्खू मायापिडं भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। ७०. जे भिक्खू लोभपिंडं भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ १. ममायं (अ, ख); मामाइयं (क); भाष्ये वणीमग तिगिच्छा कोह माण माया लोह 'मामतो' चूणौ च 'मामाओ, मामओ' इति विज्जा मंतं जोग चूण्ण अंतद्धाण । पाठद्वयमपि लभ्यते । ४. आजीवपिंडं (चू)। २. चूणों 'संपसारिओ' इति पदं लभ्यते । ५. कोवपिडं (भाष्य, च)। ३. सं० पा०---एवं दूति निमित्तपिंड आजीविय Page #888 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसीहझयणं ७१. जे भिक्खू विज्जापिंडं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति ।। ७२. जे भिक्खू मंतपिंडं भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ ७३. जे भिक्खू जोगपिंडं भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ ७४. जे भिक्खू चुण्णपिंडं अँजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ७५. जे भिक्खू अंतद्धाणपिडं भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति - तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं ।। १. चूणों अतः परं 'चुण्णपिंडं अंतदाणपिडं जोगपिंडं' एष आलापकः क्रमो विद्यते । Page #889 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमो उद्देसो पडिग्गह-पर्व १. जे भिक्खू पडिग्गहं किणेति, किणावेति, कीयमाहटु' दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। २. जे भिक्खू पडिग्गहं पामिच्चेति, पामिच्चावेति, पामिच्चमाहटु दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू पडिग्गहं परियट्टेति, परियट्टावेति, परियट्टियमाहटु दिज्जमाणं ___ पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू पडिग्गहं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडमाहटु दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ५. जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं गणिं उद्दिसिय गणिं समुद्दिसिय तं गणि अणापुच्छिय __ अणामंतिय अण्णमण्णस्स वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा अहत्थच्छिण्णस्स अपायच्छिण्णस्स अकण्णच्छिण्णस्स अणासच्छिण्णस्स अणो?च्छिण्णस्स सक्कस्स-देति, देंतं वा सातिज्जति ।। ७. जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा' •थेरगस्स वा थेरियाए वा हत्थच्छिण्णस्स पायच्छिण्णस्स कण्णच्छिण्णस्स णासच्छिण्णस्स ओढच्छिण्णस्स' असक्कस्स-न देति, न देंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू पडिग्गहं अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्जं धरेति, धरतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू पडिग्गहं अलं थिरं धुवं धारणिज्ज न धरेति, न धरतं वा सातिज्जति ॥ १०. जे भिक्खू वण्णमंतं पडिग्गहं विवणं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १. कोयगडं (भाष्य, चू)। २. 'अ'प्रती एतत्सूत्रं नैव लभ्यते । ३. सं० पा०-खुड्डियाए वा जाव थेरियाए हत्थच्छिण्णस्स असक्कस्स । Page #890 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६ ११. जे भिक्खू विवण्णं पडिग्गहं वण्णमंतं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे' भिक्खू 'णो णवए मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कट्टु सीओदग-वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ १३. जे भिक्खू 'णो णवए मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कट्टु बहुदेवसिएण सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ १४. जे भिक्खू ' णो णवए मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कट्टु कक्केण वा लोद्वेण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू णो णवए मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कट्टु बहुदेवसिएण कक्केण वा लोद्धेण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पसंत १. १२-१६ एतानि अष्टसूत्राणि निर्युक्ति भाष्यं चूर्णि चानुसृत्य स्वीकृतानि । निर्युक्तौ यथावष्णविवच्चासं पुण, णो णवपादे पधोवणादीणि । दुग्धं सुगंध जो, कुज्जा आणमादीणि (४६३३ ) ।। भाष्ये यथा एमेव य अणवे वी, वियडे बहुदेसिक्क बहुदेसी । सुत्ता चउरो एए, एमेव य चउरो दुग्गंधे (४६४० ) ।। चूर्णौ यथा -- जहा अणवपादे चउरो सुत्ता भणिता तहा दुग्गंधे. वि चउरो सुत्ता भाणि - यव्वा । आदर्शषु एां अष्टसूत्राणां स्थाने द्वादशसूत्राणि लभ्यन्ते जे व मे पडिग्गगे लद्धेति कट्टु तेल्लेण वा घण वा णवणीएण वा बसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खंतं वा भिलिंगंतं वा साति । जे नवए मे पडिग्गहए लद्धे ति कट्टु लोण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेतं वा साति । जे व मे पडिग्गह लद्धेति कट्टु सीतोदगवियडेण वा जाव साति । जे वए मे पग्गिए लद्धेति कट्टु बहुदेवसि निसीहज्झयणं एण तेल्लेण वा जाव साति । जे जवए जाव बहुदेवसिएण लोद्वेण जाव साति । जे जवए जाव बहुदेवसिएण सीतोदगवियडेण जाव साति ( अ, क, ख, ग ) । जे जवए मे पडिग्गहगे इति कट्टु एवं दो गमा भाणियव्वा । जे सुभिगंधे पडिग्गह इति कट्टु दुब्भिगंघेण वि दो चेव गमा । जे दुभिगंधे पडिग्गह दो चेव गमा यव्वा ( अ ) ; जे जवए मे पडिग्गहे इति कट्टु एवं दो गमा भाणियव्वा । इति लद्धे दुब्भिगंधेण वि जे सुभगंधे पडिग्गहे इति कट्टु बहुदेवसिएण सीतोदगवियडेण वा जाव सांतिज्जति । जे नवए मे पडिग्गहे इति कट्टु एवं आलावगा (गमा -ख) भाणियव्वा । जे सुब्भगंधे पडिग्गह इति कट्टु दुब्भिगंधेण वि दो चेव गमा । 'जे दुब्भिगंधे पडिग्गह इति लद्धा दुब्भिगंघेण वि दो चेव गमा' (x - ख ) णेयव्वा (क, ख, ग ) । आचारचूलाया (६।३२-३६ ) षडेव सूत्राणि लभ्यन्ते । तत्रापि णो णवए' पाठो विद्यते । Page #891 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमो उद्देसो ७५७ वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू 'दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कट्ट सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ।। १७. जे भिक्ख 'दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कट बहुदेवसिएण सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्ख 'दब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कटट कक्केण वा लोद्रेण वा चण्णण वा वण्णेण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आसंघतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू 'दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे' त्ति कट्टु बहुदेसिएण' कक्केण वा लोद्धेण वा चण्णेण वा वण्णण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए' •पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयात वा पयावेतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेतं वा सातिज्जति ।। २२. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥. २३. जे भिक्ख मट्रियाकडाए पढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयातं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयावेतं वा पयावेतं वा सातिज्जति ॥ २५. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा १. बहुदेवसिएण (अ, क, ख, ग); प्रस्तुत- वा पसतीतो देसो भण्णति, तिण्हं परेण बहदेसो प्रकरणस्य भाष्ये 'बहुदेसित' पदं व्याख्यात- भण्णति । अणाहारादिकक्केण वा संवासितेण', मस्ति एत्थ एगरातिसंवासितं तं पि बहदेवसियं भवति दगकक्कादीह नवे, तेहिं बहदेसितेहि जे पादं । (निशीथ भाष्य चूणि, भाग ३, पृष्ठ ४६५) । एमेव य दुग्गंधं, धुवणुव्वटेंत आणादी ॥४६४२॥ २. सं० पा०-पुढवीए स स जाव जीवपतिट्टिते देसो नाम पसती, तिप्पति परेण वा वि बहुदेसो। सअंडे जाव संकमणं पडिग्गहगं आयावेज्ज वा कक्कादि अणाहारेण वा वि बहुदिवसवुत्थेणं ॥ पयावेज्ज वा साति । जे कूलियंसि वा जाव ४६४३ ॥ लेज़सि वा पडि अ (या-क; आ-ख) चूणी वैकल्पिक पाठरूपेण 'बहदेवसित' पदमपि साति । जे खंधंसि वा जाव पासायंसि वा व्याख्यातं दृश्यते-सुत्ते बहुदेसेण वा पाढो अन्नयरंसि वा अंतरिक्खजायंसि पडिग्गहं । बहदेवसितेण वा । एक्का पसती दो वा तिण्णि Page #892 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ २७. जे भिक्खू कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिग-पणग- दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगंसि पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयावेतं वा पयावेतं वा सातिज्जति ॥ २८. जे भिक्खू थूणंसि वा गिहेलुयंसि वा उसुकालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले पडिग्गहं आयवेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयावेंतं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले पडिग्गहं आयवेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयावेंतं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ निसीहज्झयणं ३०. जे भिक्खू खंधंसि वा फलिहंसि वा मंचंसि वा मंडबंसि वा मालंसि वा पासा सि हम्मतसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा आयावेंतं वा पयातं वा सातिज्ञ्जति ॥ ३१. जे' भिक्खू पडिग्गहाओ पुढवीकायं णीहरति, णीहरावेति णीहरियं आहट्टु देज्माणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ॥ ३२. " जे भिक्खू पडिग्गहाओ आउकायं णीहरति णीहरावेति णीहरियं आहट्ट माणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ॥ ३३. जे भिक्खू पडिग्गहाओ तेउक्कायं णीहरति, णीहरावेति णीहरियं आहट्टु देज्माणं पडिग्गाहेति, पडिग्गार्हतं वा सातिज्जति ॥ १. ३१-३६ एषां षण्णां सूत्राणां स्थाने भाष्ये चूर्णौ च एष क्रमो लभ्यते – १. तसपाणजाई २. ओसहिबीयाई ३. कंदाणि वा इत्यादि ४. पुढवीकायं ५. आउकायं ६. तेउक्कायं । द्रष्टव्यं भाष्यगाथा ४६५२-४६६७ । ३४. जे भिक्खू पडिग्गहाओ कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीजाणिवाणीहरति, णीहरावेति णीहरियं आहट्टु देज्जमाणं पडिग्गाहेति, डिग्गाहतं वा सातिज्जति ॥ २. सं० पा० – एवं आउकायं तेजक्कायं । ३. चूणौं 'खंध' पदमपि व्याख्यातमस्ति, एवं 'डाली पवाल' इति पदे अपि व्याख्याते स्तः- , जं भूमीए अवगाढं तस्स जाव मूलं फुट्टति ताव कंदो भण्णति, भूमीए उवरि जाव डाली ण फुट्टति ताव खंधो भण्णति, भूमीए उवरि जाव साला सा डाली भण्णति, डालातो जं फुट्टति तं पवालं भणति । सेसा पदा कंठा ( निशीथ भाष्य चूर्णि भाग ३ पृ० ४७२) । ४. वा हरियाणि वा ( ख ) । Page #893 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसमो उद्देसो ७५६ ३५. जे भिक्खू पडिग्गहाओ ओस हिबीयाई णीहरति', •णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं व सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू पडिग्गहाओ तसपाणजाति णीहरति णीहरावेति', 'णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३७. जे भिक्खू पडिग्गहगं 'निक्को रेति, निक्कोरावेति, निक्कोरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३८. जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अणुवासगं वा-'गामंतरंसि वा गामपहंतरंसि वा" पडिग्गहगं ओभासिय-ओभासिय जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ ३९. जे भिक्खू णायगं वा 'अणायगं वा उवासगं वा अणवासगं वा परिसामझाओ उद्धवेत्ता पडिग्गहगं ओभासिय-ओभासिय जायति, जायंतं वा सातिज्जति ।। ४०. जे भिक्खू पडिग्गहणीसाए' उडुबद्धं वसति, वसंतं वा सातिज्जति ॥ ४१. जे भिक्खू पडिग्गहणीसाए वासावासं वसति, वसंतं वा सातिज्जति तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारद्राणं उग्घातियं ।। १. सं० पा०-णीहरति जाव साति । २. सं० पा०-णीहरावेति जाव साति । ३. करेति करावेति कारियं (अ); कोरेति कोरावेति कोरियं (क, ख) । ४. पडिगामंसि वा पडियहंसि वा (चू)। ५. सं० पा०–णायगं वा जाव अणुवासगं । ६. ७. पडिग्गहगं णीसाए (अ, क, ख, ग)। Page #894 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमो उद्देसो फसवयाण-पदं १. जे भिक्खू भिक्खं आगाढं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ।। २. "जे भिक्ख भिक्खं फरुसं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू भिक्खु आगाढं फरुसं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू भिक्खं अण्णयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएति, अच्चासाएंतं वा सातिज्जति ॥ अंब-पदं ५. जे भिक्खू सचित्तं अंबं भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ।। ६. जे भिक्खू सचित्तं अंबं विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ॥ ७. जे भिक्ख सचित्तं अंबं वा अंबपेसिं' वा अंबभित्तं वा अंबसालगं वा अंबडगलं वा अंबचोयगं वा भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ।। ८. जे भिक्ख सचित्तं अंबं वा अंबपेसि वा अंबभित्तं वा अंबसालगं वा, अंबडगलं वा अंब°चोयगं वा विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं अंबं भुजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ १०. •"जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं अंबं विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ।। १. सं० पा०–एवं फरुसं आगाढं फरुसं अण्णय- विडसइ । रीए अच्चासाएति । ३. पेसियं (ख)। २. ७-१२ एषां सूत्राणां स्थाने भाष्ये चूणौं च ४. भित्ति (क, ख)। सत्राणां एष क्रमो व्याख्यातोस्ति--७. सचित्त- ५. डागलं (क); डालगं (ख) । पइट्रियं अंबं भुंजइ ८. सचित्तपइट्टियं अंबं ६. सं० पा०-अंबं वा जाव चोयगं । विडसइ ६. सचित्तं अंबं वा भुंजइ १० ७ सं पा०एवं सचित्तपइट्टिएण वि चत्तारि सचित्तं अंबं वा विडसइ ११. सचित्तपइट्रिय आलावगा णेयव्वा । अंबं वा भुंजइ १२. सचित्तपइट्ठियं अंबं वा ७६० Page #895 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमो उद्देसो ७६१ ११. जे भिक्खू सचित्त-पइट्टियं अंबं वा अंबपेसि वा अंबभित्तं वा अंबसालगं वा अंबडगलं वा अंबचोयगं वा भुंजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्ख सचित्तपइट्टियं अंबं वा अंबपेसिं वा अंबभित्तं वा अंबसालगं वा अंब डगलं वा अंबचोयगंवा विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-परिकम्म-पदं १३. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ।। १४. "जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्ख अण्णउथिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, कुमावेंतं वा रयातं वा सातिज्जति ॥ काय-परिकम्म-पदं १६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायं आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायं संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ।। २१. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेतं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेतं वा १. सं० पा०–एवं तइयउद्देसगमओ णेयव्वं जाव जे गामाणुगामं । Page #896 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ उट्टतं वा सातज्जति ॥ २३. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो कार्य सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा धोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ निसीहज्झयणं २४. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणी कायं फुमवेज्ज वा रयावज्ज वा, फुमातं वा रयावेंतं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म-पर्व २५. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणी कायंसि वणं आमज्जावेज्ज वा मज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो कार्यसि वणं संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ २७. ने भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा अप्पणो कार्यसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगा वेज्ज वा मक्खावेज्ज वा अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ २८. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो कायंसि वणं लोद्वेण वा कक्केण वा चुणेण वा वण्णेण उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टतं वा सातिज्जति ।। २६. जे भिक्ख अण्ण उत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणी कायंसि वणं सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा धोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो कार्यसि वणं फुमवेज्ज वा वेज्ज वा, फुमातं वा रयावेंतं वा सातिज्जति ॥ गंडादि-परिकम्म-पर्व ३१. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो कार्यसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेज्ज वा विच्छिदावेज्ज वा, अच्छिदावेंतं वा विच्छिदावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो कार्यसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावित्ता वा विच्छिदावित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, हरावेंतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३३. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो कार्यसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा Page #897 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमो उद्देसो विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३४. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोवावेत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेज्ज वा विलिंपावेज्ज वा, आलिंपावेंतं वा विलिंपावेंतं वा सातिज्जति ।। ३५. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोवावेत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेत्ता वा विलिंपावेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अन्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोवावेता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेत्ता वा विलिपावेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अन्भंगावेत्ता वा मक्खावेत्ता वा अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूवावेज्ज वा पधूवावेज्ज वा, धूवावेंतं वा पधूवावेंतं वा सातिज्जति ॥ किमि-पदं ३७. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पालुकिमियं वा कुच्छिकि मियं वा अंगलीए णिवेसाविय-णिवेसाविय णीहरावेति, णीहरावेंतं वा सातिज्जति ॥ णह-सिहा-पवं ३८. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाओ णह-सिहाओ कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ बीह-रोम-पदं ३६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाइं जंघ-रोमाइं कप्पावेज्ज __ वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४०. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाई वत्थि-रोमाई कप्पावेज्ज Page #898 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ निसीहझयणं वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४१ जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो दीह-रोमाई कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाइं कक्खाण-रोमाइं कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४३. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाई मंसु-रोमाइं कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ दंत-पदं ४४. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दंते आघंसावेज्ज वा पघंसावेज्ज वा, आघसावेंतं वा पघंसावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दंते उच्छोलावेज्ज वा __ पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दंते फुमावेज्ज वा रयावेज्ज __वा, फुमावेतं वा रयातं वा सातिज्जति ।। उट्ठ-पदं ४७. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो उठे आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ।। ४८. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो उठे संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो उठे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५०. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो उठे लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५१. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो उठे सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेतं वा सातिज्जति ॥ ५२. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो उठे फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमातं वा रयातं वा सातिज्जति ।। दोह-रोम-पदं ५३. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाइं उत्तरो?-रोमाइं Page #899 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमो उद्देसो ७६५ कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५४. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाइं णासा-रोमाइं कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा कप्पावेतं वा संठवावेतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि -पत्त-पदं ५५. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाई अच्छि-पत्ताई __ कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि -पदं ५६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो अच्छीणि आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ।। ५७. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो अच्छी णि संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५८. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो अच्छी णि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा, णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेत वा मक्खावेतं वा सातिज्जति ॥ ५६. जे भिक्ख अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा अप्पणो अच्छीणि लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ . ६०. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो अच्छी णि सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६१. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो अच्छी णि फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमावेंतं वा रयातं वा सातिज्जति ।। दीह-रोम-पदं ६२. जे भिक्खू अण्णउत्थिाएण वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाइं भमुग-रोमाइं कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेतं वा संठवावेंतं वा सातिज़्जति ॥ ६३. जे भिक्खू अण्णउत्थिए वा गारथिएण वा अप्पणो दीहाइं पास-रोमाइं कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ मल-णीहरण-पदं ६४. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंक वा मलं वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा णीहरावेतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६५. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो अच्छिमलं वा कण्णमलं वा Page #900 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ निसीहज्झयणं दंतमलं वा हमलं वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, णीहरावेतं वा विसोहावेतं वा सातिज्जति ॥ सोसवारिय-पदं ६६. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा गामाणुगामं वइज्जमाणे अप्पणी सीसदुवारि कारवेति, कारवेतं वा सातिज्जति ॥ उच्चार पासवण -पदं ६७. जे' भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा उच्चार पासवणं परिवेति, परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ॥ ६८. •`जे भिक्खू उज्जाणंसि वा उज्जाणगिहंसि वा उज्जाणसालंसि वा णिज्जाणंसि वाणिज्जा हिंसि वा णिज्जाणसालंसि वा उच्चार- पासवणं परिट्ठवेति, परिट्ठवें तं वा सातज्जति ॥ ६६. जे भिक्खू अट्टंसि वा अट्टालयंसि वा पागारंसि वा चरियंसि वा दारंसि वा गोपुरंसि वा उच्चार पासवणं परिद्ववेति, परिद्ववेतं वा सातिज्जति ॥ ७०. जे भिक्खु दगमग्गंसि वा दगपहंसि वा दगतीरंसि वा दगठाणंसि वा उच्चार- पासवणं परिवेति परितं वा सातिज्जति ॥ ७१. जे भिक्खू सुहिंसि वा सुण्णसालंसि वा भिण्णगिहंसि वा भिण्णसालंसि वा कूडागारंसि वा कोट्ठागारंसि वा उच्चार पासवणं परिवेति, परिद्ववेतं वा सातिज्जति ॥ ७२. जे भिक्खू तणसालंसि वा तणगिहंसि वा तुससालंसि वा तुसगिहंसि वा बुससालसि वा सहिंसि वा उच्चार पासवणं परिट्ठवेति, परिट्ठवेतं वा सातिज्जति ॥ ७३. जे भिक्खू जाणसालंसि वा जाणगिहंसि वा जुग्गसालंसि वा जुग्गगिहंसि वा उच्चारपासवणं परिवेति परिद्ववेंतं वा सातिज्जति ॥ ७४. जे भिक्खू पणियसालंसि वा पणियगिहंसि वा परियागसालंसि वा परियागगि हंसि वा कुवियसालंसि वा कुवियगिहंसि वा उच्चार- पासवणं परिद्ववेति, परिवेतं वा १. 'क, ख, ग ' प्रतिपु ६७-७५ एतानि नव सूत्राणि नैव लभ्यन्ते । एतानि 'अ' प्रतो सङ्क्षिप्तानि किञ्चिद् भिन्नानि च दृश्यन्ते । द्रष्टव्यः सङ्क्षिप्तपाठः । भाष्ये चूर्णौ च एषां सूत्राणां स्पष्टमुल्लेखो विद्यते - जे भिक्खू आता गारेसु वा इत्यादि सुत्ता उच्चारेयव्वा जाव महाकुलेसु वा महागिहेसु वा उच्चार - पासवणं परिवेति । सुत्तत्थो जहा अट्टमउद्देगे । इह णवरं -- उच्चारपासवणं ति वत्तव्वं । एतेषु ठाणेसु उच्चारमादीणि वोसिरंतस्स | आगंतागारादी, जत्तियमेत्ता उ अहिया सुत्ते । तेसूच्चारादीणि, आवरमाणम्मि आणादी ||४६५३ ।। २. सं० पा० - एवं उज्जाणंसि वा ४ अट्टालगंसि वा ४ उदगंसि वा ४ परिद्ववेइ सुण्णागारंसि वा ४ तणसालासु वा ४ जाणगिहेसु वा २ पणियगिहे वा महाकुलेसु वा महागिहेसु वा परिवे | Page #901 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमो उद्देसो ७६७ सातिज्जति ॥ ७५. जे भिक्खू गोणसालंसि वा गोणगिहंसि वा महाकुलंसि वा महागिहंसि वा उच्चार पासवणं परिट्ठवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ।। अण्णउत्थिय-गारत्थिय-पदं ७६. जे भिक्खू 'अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स" वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति' ॥ ७७. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ पासत्यादीणं दाण-गहण-पदं ७८. जे भिक्खू पासत्थस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ ७९. जे भिक्खू पासत्थस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छति, पडिच्छतं वा सातिज्जति ।। ८०. जे भिक्खू पासत्थस्स वत्थं वा' •पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ ८१. जे भिक्खू पासत्थस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छति, पडिच्छतं वा सातिज्जति ।। ८२. •जे भिक्ख ओसण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ ८३. जे भिक्ख ओसण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं व। पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ८४. जे भिक्खू ओसण्णस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ ८५. जे भिक्खू ओसण्णस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छति, १. अणउत्थिएण वा गारथिएण (अ, क) अग्रेपि गृहस्थयोः वस्त्रादीनां दान-ग्रहणसम्बन्धिएवमेव । सूत्रद्वयमस्ति । एवमेव पासत्थादिविषयकं २. अतः परं भाष्ये चूणौं च व्याख्यातसूत्राणां भिन्नः सूत्रदशकं विद्यते। क्रमो विद्यते, स च इत्थमस्ति । अशनपाना- ३. सं० पा०-वत्थं वा जाव पायपुंछणं । द्यालापके पासत्थ' सम्बन्धि दानग्रहणविषयक ४. सर्वेष्वादशेषु पञ्चस्वपि आलापकेषु वस्त्रादि सूत्रद्वयं विद्यते । एवं 'ओसण्ण-कुसील-णितिय- ग्रहणविषयकं सूत्रं नैव लभ्यते । संसत्त' सम्बन्धीनि अष्ट सूत्राण्यपि संलग्नानि ५. सं० पा०-एवं ओसण्णस्स कुसीलस्स णितिसन्ति । ततश्च वस्त्रालापके अन्यतीथिक- यस्स संसत्तस्स । Page #902 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ निसीहज्झयणं ६१. पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ८६. जे भिक्खू कुसीलस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति॥ ८७. जे भिक्खू कुसीलस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ८८. जे भिक्खू कुसीलस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, दंतं वा सातिज्जति ।। ८६. जे भिक्खू कुसीलस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ६०. जे भिक्खू णितियस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ "णितियस्स असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पडिच्छति. पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ६२. जे भिक्खू णितियस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ।। ६३. जे भिक्खू णितियस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ।। ६४. जे भिक्खू संसत्तस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ ६५. जे भिक्खू संसत्तस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ।। ६६. जे भिक्खू संसत्तस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ ६७. जे भिक्खू संसत्तस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति° ॥ जायणा-णिमंतणा-वत्थ-पदं ६८. जे भिक्ख जायणावत्थं वा णिमंतणावत्थं वा अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जतिसेय वत्थे चउण्हं अण्णयरे सिया, तं जहा-णिच्चणियंसणिए' मज्जणिए छणसविए रायदुवारिए॥ १. णिच्चा (ख, ग)। २. रायदारियं (चू)। Page #903 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ पण्णरसमो उद्देसो पाय-परिकम्म-पदं ६६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ १००. "जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदे॒तं वा सातिज्जति ॥ १०१. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। १०२. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलतं वा उव्वत वा सातिज्जति ॥ १०३. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ १०४. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पाए फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएतं वा सातिज्जति ॥ काय-परिकम्म-पदं १०५. जे भिक्ख विभूसावडियाए अप्पणो कायं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ १०६. जे भिक्ख विभूसावडियाए अप्पणो कायं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमहेंतं वा सातिज्जति ॥ १०७. जे भिक्खू विभसावडियाए अप्पणो कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ १०८. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटुंतं वा सातिज्जति ॥ १०६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायं सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ।। ११०. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएतं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म-पदं १११. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ११२. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि वणं संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, १. सं० पा०–एवं तइय उद्देसगमए जाव जे । Page #904 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७. निसीहज्झयणं संवाहेंतं वा पलिमदे॒तं वा सातिज्जति ।। ११३. जे भिक्ख विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि वणं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। ११४. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वदे॒तं वा सातिज्जति ॥ ११५. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि वणं सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ ११६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि वणं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ गंडावि-परिकम्म-पदं ११७. जे भिक्खू विभसावडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदेज्ज वा विच्छिदेज्ज वा, अच्छिदेंतं वा विच्छिदेंतं वा सातिज्जति ।। ११८. जे भिक्ख विभसावडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ।। ११६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ १२०. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति ॥ १२१. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपित्ता वा विलिपित्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। Page #905 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमो उद्देसो ७७१ १२२. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणी कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा विच्छिदित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरित्ता वा विसोहेत्ता वा सीओदग वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोएत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपित्ता वा विलिंपित्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा, धूवेंतं वा पधूवेंतं वा सातिज्जति ॥ किमि-पदं १२३. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अंगुलीए णिवेसिय- णिवेसिय णीहरति, णीहरेंतं वा सातिज्जति ॥ ह - सिहा पर्व १२४. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाओ णह - सिहाओ कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठतं वा सातिज्जति ॥ वीह - रोम-पदं १२५. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाइं जंघ- रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठतं वा सातिज्जति ॥ १२६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई वत्थि - रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठतं वा सातिज्जति ॥ १२७. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीह-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, वा संठतं वा सातिज्जति ॥ १२८. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई कक्खाण - रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ १२६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई मंसु-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठतं वा सातिज्जति ।। कप्त दंत-पदं १३०. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पसंतं वा सातिज्जति ॥ १३१. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ १३२. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमेंतं वा रतं वा सातिज्जति ॥ उच्छोलेंतं वा उ-पदं १३३. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उट्ठे आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंत Page #906 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ निसीहज्झयणं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ १३४. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उठे संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमद्देतं वा सातिज्जति ॥ १३५. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उठे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ।। १३६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उठे लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उन्वटेंतं वा सातिज्जति ।। १३७. जे भिक्ख विभसावडियाए अप्पणो उठे सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ १३८. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उठे फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा सातिज्जति ॥ दीह-रोम-पदं १३६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाइं उत्तरोढ़-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ ०. जे भिक्ख विभूसावडियाए अप्पणो दीहाइं णासा-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा. कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि -पत्त-पदं १४१. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाइं अच्छि-पत्ताई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि -पदं १४२. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो अच्छीणि आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति ॥ १४३. जे भिक्ख विभूसावडियाए अप्पणो अच्छी णि संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा, संवाहेंतं वा पलिमदे॒तं वा सातिज्जति ।। १४४. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो अच्छी णि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेंतं वा सातिज्जति ॥ १४५. जे भिक्ख विभूसावडियाए अप्पणो अच्छीणि लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णण वा वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा, उल्लोलेतं वा उव्वट्टतं वा सातिज्जति ॥ १४६. जे भिक्खू विभसावडियाए अप्पणो अच्छीणि सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ।। १४७. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो अच्छीणि फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा Page #907 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमो उद्देसो तं वा सातज्जति ॥ दीह - रोम-पदं १४८. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई भमुग-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्पेतं वा संठतं वा सातिज्जति ॥ १४६. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाइं पास-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, पेतं वा संठतं वा सातिज्जति ॥ मणीहरण-पदं १५०. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा सातिज्जति ॥ १५१. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वाणीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा णीहरेंतं वा विसोर्हेतं वा सातिज्जति ॥ सीसवारिय-पदं १५२. जे भिक्खू विभूसावडियाए गामाणुगामं दूइज्जमाणे अप्पणो सीसदुवारियं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ उवगरणजाय - धरण-पदं १५३. जे' भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपंछणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ७७३ उवगरणजाय - धोवण-पदं १५४. जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा अण्णय रं वा उवगरणजायं धोवेति, धोवेंतं वा सातिज्जति तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं ॥ १. क' प्रतौ एतत्सूत्रं नास्ति । २. 'अ, ख, ग ' प्रतिषु एतत्सूत्रं नास्ति । Page #908 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसो सेज्जा -पदं १. जे भिक्खू सागारियं' सेज्जं अणुपविसति, अणुपविसंतं वा सातिज्जति ।। २. जे भिक्खू सोदगं' सेज्जं उवागच्छति, उवागच्छंतं वा सातिज्जति ।। ३. जे भिक्खू सागणियं सेज्जं अणुपविसति, अणुपविसंतं वा सातिज्जति ॥ उच्छु-पदं ४. जे भिक्खू सचित्तं उच्छु भुजति, भुंजतं वा सातिज्जति ॥ ५. "जे भिक्खू सचित्तं उच्छु विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ।। ६. जे भिक्खू सचित्तं अंतरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडगलं वा भुजति, भुंजंतं वा सातिज्जति ॥ ७. जे भिक्खू सचित्तं अंतरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडगलं वा विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ।। ८. जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं उच्छु भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं उच्छु विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ॥ १०. जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं अंतरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं वा उच्छुसालगं वा उच्छुडगलं वा भुंजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्खू सचित्तपइट्ठियं अंतरुच्छुयं वा उच्छुखंडियं वा उच्छुचोयगं वा उच्छुमेरगं ___ वा उच्छुसालगं वा उच्छुडगलं वा विडसति, विडसंतं वा सातिज्जति ॥ अडवीजत्तागहणेसणा-पदं १२. जे भिक्खू आरण्णयाणं वगंधयाण अडवीजत्तापट्ठियाणं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। १. सागरिय (अ, ख)। गमो सो चेव इह णेयव्वो। २. स उदगं (अ)। ४. वणंधाणं (चू)। ३. सं० पा०—एवं पण्णरसे उद्देसे अंबस्स जहा ५. अडवीजत्तासंपट्रियाणं (अ, क, ख, ग)। ७७४ Page #909 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसो ७७५ १३. जे भिक्ख आरण्णयाणं वणंधयाणं अडवीजत्तापडिणियत्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ वुसिरातिय-पदं १४. जे भिक्खू वुसि रातियं अवुसिरातियं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू अवुसिरातियं वुसिरातियं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ।। १६. जे भिक्खू वुसिराइयाओ गणाओ अवुसिराइयं गणं संकमति, संकमंतं वा सातिज्जति ॥ वुग्गहवक्कंत-पदं १७. जे भिक्खू बुग्गहवक्कंताणं' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा __ सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्खू बुग्गहवक्कंताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, दंतं वा सातिज्जति ।। २०. जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबल वा पायपुंछणं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू बुग्गहवक्कंताणं वसहिं देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वसहिं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ।। २३. जे भिक्खू बुग्गवक्कंताणं वसहिं अणुपविसति, अणुपविसंतं वा सातिज्जति ।। २४. जे भिक्खू बुग्गहवक्कं ताणं सज्झायं देति, देंतं वा सातिज्जति ॥ २५. जे भिक्खू वुग्गहवक्ताणं" सज्झायं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ विहारपडिया-पदं २६. जे भिक्खू विहं अणेगाहगमणिज्जं सति लाढे विहाराए संथरमाणेसु जणवएसु विहारपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १. आदर्शेषु एतत्सूत्रं नोपलभ्यते । भाष्य-चूर्यो- ३. वुग्गह वुक्कमाणं (ख) । स्तथा नवमोद्देशकस्य १४, १६, १८ सूत्राणा- ४. सं० पा०–एवं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायमाधारेण स्वीकृतमिदं सूत्रम् । पुंछणं देति य पडि साति एवं वसहि पि दोहिं २. चूणौं 'वसुरातियं' इति पदं व्याख्यातमस्ति गमएहि णहि चेतिय अणुप्पविसति य साति । निर्यक्तिगाथायां 'बुसिरातिय' इति लभ्यते- ५. वुक्कंताणं (क, ख) । वसूमं ति व वसिमं ति व, वसति व सिम व पज्जया चरणे । तेसु रतो सिराती असिम्मि रतो असिराती ।।५४२०।। Page #910 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ निसीहज्झयणं २७. जे भिक्खू विरूवरूवाइं दसुयाययणाई अणारियाई मिलक्खूई पच्चंतियाई' सति लाढे विहाराए संथरमाणेसु जणवएसु विहारपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥ दुगुंछिय-पदं २८. जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. 'जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु वसहिं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३१. जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं उद्दिसति, उद्दिसंतं वा सातिज्जति ।। ३२. जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ ३३. जे भिक्खू दुगुंछियकुलेसु सज्झायं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ असणाइणिक्खेवण-पदं ३४. जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुढवीए णिक्खिवति, णिक्खिवंतं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा संथारए णिक्खिवति, णिक्खिवंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वेहासे णिक्खिवति, णिक्खिवंतं वा सातिज्जति ॥ अण्णउत्थिय-गारस्थियसद्धि भोयण-पदं ३७. जे भिक्खू अण्णउत्थिएहिं' वा गारथिएहि वा सद्धि @जति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ ३८. जे भिक्खू अण्णउत्थिएहि वा गारथिएहि वा सद्धि 'आवेढिय-परिवेढिए भुजति, भुजंतं वा सातिज्जति ॥ आसायणा-पदं ३६. जे भिक्खू आयरिय-उवज्झायाणं सेज्जा-संथारयं पाएणं संघठूत्ता हत्थेणं १. दसुयायणाई (अ, ग); दसूयाठाणाति (ख)। ६. अण्णउत्थीहिं (अ, क, ग)। २. मिलक्खाइं (क)। ७. गारस्थीहिं (अ, क, ग)। ३. पव्वत्तियाइं (ख)। ८. अण्णउत्थीहिं (अ, क, ग)। ४. कुले (क)। ६. गारत्थीहिं (अ, क, ग)। ५. सं० पा०-वत्थं वसहि सज्झायं उद्दिसति १०. आवेढियं परिवेढियं (क, ख)। वाएति पडिच्छति । Page #911 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसो ७७७ अणणुण्णवेत्ता धारयमाणो गच्छति, गच्छंतं वा सातिज्जति ॥ अतिरित्तउवहि-पदं ४०. जे भिक्ख पमाणातिरित्तं वा गणणातिरित्तं वा उवहिं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ उच्चार-पासवण-पदं ४१. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए उच्चार-पासवणं 'परिटुवेति, परिढवेंतं' वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढवेति, परिवेंतं वा सातिज्जति ।। ४३. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढुवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ।। ४४. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेति, परिवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए उच्चार-पासवणं परिटुवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४७. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए उच्चार-पासवणं परिढुवेति परिढुवेंतं वा सातिज्जति ।। ४८. जे भिक्खू कोलावासं सि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा-संताणए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेति, परिट्ठवतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू थूणं सि वा गिहेलुयंसि वा उसुयालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले उच्चार पासवणं परिवेति, परिहवेंतं वा सातिज्जति ।। ५०. जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकपे चलाचले उच्चार पासवणं परिढुवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ।। १. परिट्ठावेति परिट्ठावेंतं (अ, क, ग)। परिद्रावेंतं वा सातिज्जति जे खंधसि वा जाव २. सं० पा०-जे ससिणिद्धाइयंसि वा कुलियंसि अंतरिक्खजायंसि उच्चारपासवणं । वा जाव लेलुंसि वा उच्चारपासवणं परिट्ठावेति Page #912 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७८ निसीहज्झयणं ५१. जे भिक्खू खंधंसि वा फलिहंसि वा मंचंसि वा मंडवंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मतलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णि क्खित्ते अणिकंपे चलाचले° उच्चार-पासवणं परिदृवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जतितं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं । Page #913 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो कोउहल्लपडिया-पदं १. जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अण्णयरं तसपाणजाति तणपासएण वा' 'मुंजपासएण वा कट्टपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा सुत्तपासएण वा बंधति, बंधतं वा सातिज्जति ।। २. •जे भिक्ख कोउहल्लपडियाए अण्णयरं तसपाणजाति तणपासएण वा मुंजपासएण वा कट्टपासएण वा वेत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा सुत्तपासएण वा बद्धेल्लयं सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए तणमालियं' वा 'मुंजमालियं वा वेत्तमालियं वा भिडमालियं वा मयणमालियं वा पिच्छमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा कट्ठमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा हरियमालियं वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ४. "जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा वेत्तमालियं वा भिडमालियं वा मयणमालियं वा पिच्छमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्मालियं वा कटूमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा हरियमालियं वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ५. जे भिक्ख कोउहल्लपडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा वेत्तमालियं वा भिंड मालियं वा मयणमालियं वा पिच्छमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा कट्ठमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा हरियमालियं वा पिणद्धति', पिणद्धतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्ख कोउहल्लपडियाए अयलोहाणि वा •तंबलोहाणि वा तउयलोहाणि वा १. सं० पा०-तणपासएण वा जाव सुत्तपास एण। ५. सं० पा०-धरेति धरेंतं वा साति पिणद्धति २. सं० पा०-बद्धेल्लयं वा मुयति, मुयंतं वा पिणद्धतं वा साति । साति । ६. परिभुंजइ (अ, क, ख, ग)। ३. मालि (क)। ७. सं० पा०-अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलो४. सं० पा०-तणमालियं वा जाव हरियमालियं। . हाणि । ७७६ Page #914 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८० निसीहज्झयणं सीसगलोहाणि वा रुप्पलोहाणि वा. सुवण्णलोहाणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ७. 'जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अयलोहाणि वा तंबलोहाणि वा तउयलोहाणि वा सीसगलोहाणि वा रुप्पलोहाणि वा सुवण्णलोहाणि वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए अयलोहाणि वा तंबलोहाणि वा तउयलोहाणि वा सीसगलोहाणि वा रुप्पलोहाणि वा सुवण्णलोहाणि वा परि जति, परिभुजंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए हाराणि वा' •अद्धहाराणि वा एगावली वा मुत्तावली वा कणगावली वा रयणावली वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा पट्टाणि मउडाणि वा, पलंबसुत्ताणि वा सुवण्णसुत्ताणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। १०. जे भिक्खू कोउहल्लपडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावली वा मत्तावली वा कणगावली वा रयणावली वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणि वा, पलंबसुत्ताणि वा सुवण्णसुत्ताणि वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्ख कोउहल्लपडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावली वा मतावली वा कणगावली वा रयणावली वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा कंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणि वा पलंबसूत्ताणि वा, सूवण्णसूत्ताणि वा पिणद्धति, पिणद्धंतं वा सातिज्जति ।। १२. जे भिक्ख कोउहल्लपडियाए आईणाणि वा स हिणाणि वा कल्लाणि वा सहिण कल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमाणि वा दुगल्लाणि वा तिरीडपट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फाडिगाणि वा कोतवाणि वा कंबलाणि वा पावारगाणि वा कणगाणि वा कणगकताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखचियाणि वा कणगफुल्लियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा उद्दाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा किण्ह मिगाईणगाणि वा नीलमिगा ईणगाणि वा पेसाणि वा पेसले साणि वा° करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा०-धरेति धरेंतं वा साति परिभजति संक्षिप्तपाठः एवं लभ्यते-आयीणाणि वा परिभुजंतं वा साति। जाव आभरणविचित्ताणि वा। किन्तु सप्त२. सं० पा०-हाराणि वा जाव सुवण्णसुत्ताणि । मोद्देशके (१०) आदर्शगतः पाठः पाठान्तर३. सं० पा.-धरेति धरेतं वा साति परि जति रूपेण पादटिप्पणे निर्दिष्टोस्ति । तत्र मूलपरिभुजंतं वा साति । पाठ: चूणिसम्मतः स्वीकृतोस्ति । तेन प्रस्तुत४. सं० पा०-आइणादि जाव वत्थसुत्तं । आदर्शेषु पाठः सप्तोद्देशकवर्तिस्वीकृतपाठादेव सम्परितः। Page #915 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो ७८१ १३. "जे भिक्खू को उहल्लपडियाए आईणाणि वा सहिणाणि वा कल्लाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमाणि वा दुगुल्लाणि वा तिरीडपट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तुणाणि वा अंसुयाणि वा चीर्णसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फाडिगाणि वा कोतवाणि वा कंबलाणि वा पावारगाणि वा कणगाणि कणगकताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखचियाणि वा कणगफुल्लियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा उद्दाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा नोलमिगाईगाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ १४. जे भिक्खू को उहल्लपडियाए आईणाणि वा सहिणाणि वा कल्लाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमाणि वा दुगुल्लाणि वा तिरोडपट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तुण्णाणि वा असुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फाडिगाणि वा कोतवाणि वा कंबलाणि वा पावारगाणि वा कणगाणि वा कणगकताणि वा कणपट्टाणि वा कणगखचियाणि वा कणगफुल्लियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचिताणि वा उद्दाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा नील मिगाईगाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा परिभुंजति, परिभुजंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-परिकम्म-पदं १५. 'जा निग्गंथी" निग्गंथस्स पाए अग्णउत्थि एण वा गारत्थिएण वा 'आमज्जावेज्ज वा पमज्जा वेज्ज" वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ।। १६. "जा निग्गंथी निग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज वा संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ १७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिए वा गारन्थिएण वा तेल्लेण वा घरण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगा वेज्ज वा मक्खावेज्ज वा अब्भंगावेंतं वा मक्खातं वा सातिज्जति ॥ १८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा लोद्वेण वा कक्केण वा चुणेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उट्टतं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा० - धरेति परिभुंजति जाव साति । २. जे निग्थे ( अ, क ); जे निग्गंथीणि ( ख ) । 'जा निग्गंथी निग्गंथस्स' इति पाठस्य आधारो भाष्ये चूर्णां च लभ्यते जा समणि संजयाणं, गिहिणी अहवा वि अण्णतित्थीणं पादप्पमज्जणमादी, कारेज्जा आणमादीणि || भा० ५६१८ ।। इह पुण णिग्गंथीणं समणस्स अण्णतित्थिएण गारत्थि एण कारवेति त्तिविसेसो (च्) । ३. आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज ( अ, क, ख, ग ) । ४. सं० पा०-- एवं तइउद्देसगमएण णेतव्वं जाव । जे निग्गंथे निम्गंथस्य । Page #916 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८२ निसोहज्झयणं १६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोल वेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ २०. जा निग्गंथी निग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा फुमवेज्ज वा यावज्जवा, मावेंतं वा रयावेंतं वा सातिज्जति ॥ काय-परिकम्म-पर्व २१. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्य अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा मज्जा वेज्ज वा, आमज्जावें तं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ २२. जा निग्गंधी निग्गंथस्स कायं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ २३. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्य अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसा वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्य अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा लोद्वेण वा कक्केण वा चुणेण वा वणेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा तं वा सातिज्जति ॥ २५. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्य अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्य अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा फुमवेज्ज वा यावज्ज वा, फुमा वेंतं वा रयावेंतं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म-पदं २७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जा वेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ २८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कार्यसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा तेल्लेण वा घण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अभंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा लोद्वेण वा कक्केण वा चुणेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उब्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेतं वा सातिज्जति ॥ Page #917 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो ७८३ ३१. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीओदग वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमातं वा रयातं वा सातिज्जति ॥ गंडादि-परिकम्म-पदं ३३. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्यिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेज्ज वा विच्छिदावेज्ज वा, अच्छिदावेंतं वा विच्छिदावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३४. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि गंड वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावित्ता वा विच्छिदावित्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, णीहरावेंतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ।। ३५. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोयावेतं वा सातिज्जति ।। ३६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोयावेत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेज्ज वा विलिंपावेज्ज वा, आलिंपावेंतं वा विलिंपावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोयावेत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेत्ता वा विलिंपावेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ ३८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता Page #918 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८४ निसीहज्झयणं वा विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओar - वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोयावेत्ता वा अणयरेणं आलवणजाएणं आलिंपावेत्ता वा विलिपावेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेत्ता वा मक्खावेत्ता वा अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूवावेज्ज वा पधूवावेज्ज वा, धूवावेंतं वा पधूवावेंतं वा सातिज्जति ॥ किमि पदं ३६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स पालुकिमियं वा कुच्छिकिमियं वा अण्णउत्थि एण वा गारत्थि वा अंगुलीए णिवेसाविय णिवेसाविय णीहरावेति णीहरावेंतं वा सातिज्जति ॥ ह - सिहा- पर्द ४०. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाओ णह - सिहाओ अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ बीह - रोम-पर्व ४१. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई जंघ - रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४२. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई वत्थि - रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४३. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीह-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४४. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई कक्खाण-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई मंसु - रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावैतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ दंत-पदं ४६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दंते अण्णउत्थि एण वा गारत्थिएण वा आघंसावेज्ज वा पघंसावेज्ज वा, आघंसावेंतं वा पघंसावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दंते अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा उच्छोला वेज्ज वा पधोया वेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोयावेंतं वा सातिज्जति ॥ ४८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दंते अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा फुमवेज्ज वा वेज्ज वा फुमावतं वा रयावेंतं वा सातिज्जति ॥ उपदं ४६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स उट्ठे अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा Page #919 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८५ सत्तरसमो उद्देसो पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५०. जा निग्गंथी निग्गंथस्स उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५१. जा निग्गंथी निग्गंथस्स उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंत वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५२. जा निग्गंथी निग्गंथस्स उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोरेण वा कक्केण वा चण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५३. जा निग्गंथी निग्गंथस्स उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोयावेतं वा सातिज्जति ॥ ५४. जा निग्गंथी निग्गंथस्स उठे अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमातं वा रयातं वा सातिज्जति ॥ दोह-रोम-पदं ५५. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाइं उत्तरोट्ठ-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा. कप्पावेंतं वा संठवावेतं वा सातिज्जति ॥ ५६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई णासा-रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ।। अच्छि -पत्त-पदं ५७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई अच्छि-पत्ताइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ।। अच्छि -पदं ५८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जातं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज ___ वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६०. जा निग्गंथी निग्गंथस्स अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेतं वा सातिज्जति ॥ ६१. जा निग्गंथी निग्गंथस्स अच्छी णि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धेण व। कक्केण वा चण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावतं Page #920 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ निसीहज्झयणं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६२. जा निग्गंथी निग्गंथस्स अच्छी णि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीओदग वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोयावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोयावेंतं वा सातिज्जति ।। ६३. जा निग्गंथी निग्गंथस्स अच्छी णि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फुमावेज्ज वा - रयावेज्ज वा, फुमावेंतं वा रयातं वा सातिज्जति ॥ दोह-रोम-पदं ६४. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई भमुग-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा ___ कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६५. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई पास-रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ।। मल-णीहरण-पदं ६६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा. णीहरावेंतं वा विसोडावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा नहमलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, णीहरावेंतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ॥ सोसदुवारिय-पदं ६८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स गामाणगामं दूइज्जमाणस्स अण्णउत्थिएण वा गारथिएण __ वा सीसदुवारियं कारवेति, कारवेंतं वा सातिज्जति ॥ पाय-परिकम्म-पदं ६६. 'जे निग्गंथे" निग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७०. 'जे निग्गंथे निग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७१. जे निग्गंथे निग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ १. जा णिग्गंथी (अ)। २. सं० पा०-एवं मग्गिल्लगमयं सरिसं णेयं कारवेंतं साति । Page #921 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो ७८७ ७२. जे निग्गंथे निग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धे ण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ।। ७३. जे निग्गंथे निग्गंथीए पाए अण्णउत्थिए वा गारथिएण वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोदावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७४. जे निग्गंथे निग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमावेतं वा रयातं वा सातिज्जति ।। काय-परिकम्म-पदं ७५. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जातं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ।। ७६. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ।। ७७. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खा वेत वा सातिज्जति ॥ ७८. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ।। ७९. जे निग्गंथे निग्गंथीए कार्य अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ८०. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फुमावेज्ज वा - रयावेज्ज वा, फुमावेतं वा रयातं वा सातिज्जति ॥ वण-परिकम्म-पदं ८१. जे निग्गंथे निग्गंथीए सायंसि वणं अण्ण उत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जा वेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ ८२. जे निग्गंथे निग्गंधीए कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारत्थियएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ।।। ८३. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणोएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ Page #922 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८८ निसीहज्झयणं ८४. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि वणं अण्णउत्थिाएण वा गारथिएण वा लोद्धेण वा कक्केण वा चण्णेण वा वण्णण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वद्रावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ ८५. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि वणं अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सीओदग वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ८६. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि वणं अण्णउथिएण वा गारथिएण वा फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमावेंतं वा रयावेतं वा सातिज्जति ॥ गंडादि-परिकम्म-पदं ८७. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेज्ज वा विच्छिदावेज्ज वा, अच्छिदावेंतं वा विच्छिदावेंतं वा सातिज्जति ॥ ८८. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, णीहरावेतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ।। ८६. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६०. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अण्णयरेणं तिक्खणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोवावेत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिंपावेज्ज वा विलिंपावेज्ज वा, आलिंपावेंतं वा विलिंपावेतं वा सातिज्जति ॥ ६१. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थिएण वा गारत्थिरण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोवावेत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपावेत्ता वा विलिंपावेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ Page #923 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो ६२. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णउत्थि एण वा गारत्थिएण वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिदावेत्ता वा विच्छिदावेत्ता वा पूयं वा सोणियं वा णीहरावेत्ता वा विसोहावेत्ता वा सीओदगवियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलावेत्ता वा पधोवावेत्ता वा अण्णयरेणं आलवणजाएणं आलिंपावेत्ता वा विलिंपावेत्ता वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीण वा अब्भंगावेत्ता वा मक्खावेत्ता वा अण्णयरेणं आलेवणजाएणं धूवावेज्ज वा पधूवावेज्ज वा, धूवावेंतं वा पधूवावेतं वा सातिज्जति ॥ ७८६ किमि पदं ६३. जे निग्गंथे निग्गंथीए पालुकिमियं वा कुच्छि किमियं वा अण्णउत्थिएण वा गारत्थि - एण वा अंगुलीए णिवेसाविय णिवेसाविय णीहरावेति णीहरावेंतं वा सातिज्जति ॥ ह - सिहा-पदं ९४. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाओ णह - सिहाओ अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ वीह-रोम-पदं ६५. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाई जंघ - रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेतं वा सातिज्ञ्जति ॥ ६६. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाई वत्थि - रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६७. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीह-रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६८. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाई कक्खाण - रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६६. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाई मंसु-रोमाई अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पा वेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ दंत - पर्व १००. जे निग्गंथे निग्गंथीए दंते अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आघंसावेज्ज वा पघंस वेज्ज वा, आघंसावेंतं वा पघंसावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०१. जे निग्गंथे निग्गंथीए दंते अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०२. जे निग्गंथे निग्गंथीए दंते अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा फुमा वेज्ज वा रयावज्ज वा, फुमातं वा रयावेंतं वा सातिज्जति ॥ Page #924 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० निसीहज्झयणं उट्ट-पदं १०३. जे निग्गंथे निग्गंथीए उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जातं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०४. जे निग्गंथे निग्गंथीए उठे अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०५. जे निग्गंथे निग्गंथीए उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अभंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अब्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०६. जे निग्गंथे निग्गंथीए उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०७. जे निग्गंथे निग्गंथीए उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०८. जे निग्गंथे निग्गंथीए उठे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमातं वा रयातं वा सातिज्जति ॥ दोह-रोम-पदं १०६. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाइं उत्तरो?-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ ११०. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाइं णासा-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा, __ कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ।। अच्छि -पत्त-पदं १११. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाई अच्छि-पत्ताई अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ अच्छि -पदं ११२. जे निग्गंथे निग्गंथीए अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा सातिज्जति ॥ ११३. जे निग्गंथे निग्गंथीए अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा संवाहावेज्ज वा पलिमद्दावेज्ज वा, संवाहावेंतं वा पलिमद्दावेंतं वा सातिज्जति ॥ ११४. जे निग्गंथे निग्गंथीए अच्छीणि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा अब्भंगावेज्ज वा मक्खावेज्ज वा, अन्भंगावेंतं वा मक्खावेंतं वा सातिज्जति ॥ का Page #925 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो ७६१ ११५. जे निग्गंथे निग्गंथीए अच्छी णि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा लोण वा, कक्केण वा चुण्णण वा वण्णेण वा उल्लोलावेज्ज वा उव्वट्टावेज्ज वा, उल्लोलावेंतं वा उव्वट्टावेंतं वा सातिज्जति ।। ११६ जे निग्गंथे निग्गंथीए अच्छी णि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेतं वा सातिज्जति ॥ ११७. जे निग्गंथे निग्गंथीए अच्छी णि अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा फुमावेज्ज वा रयावेज्ज वा, फुमातं वा रयातं वा सातिज्जति ॥ दोह-रोम-पदं ११८. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाइं भमुग-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ।। ११९. जे निग्गंथे निग्गंथीए दीहाइं पास-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥ मल-णीहरण-पदं १२०. जे निग्गंथे निग्गंथीए कायाओ सेयं वा जल्लं वा पंकं वा मलं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, णीहरावेंतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ॥ १२१. जे निग्गंथे निग्गंथीए अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा अण्ण उत्थिएण वा गारथिएण वा णीहरावेज्ज वा विसोहावेज्ज वा, णीहरावेंतं वा विसोहावेंतं वा सातिज्जति ।। सीसवारिय-पवं १२२. जे निग्गंथे निग्गंथीए गामाणुगामं दूइज्जमाणीए अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सीसदुवारियं कारवेति, कारवेंतं वा सातिज्जति ॥ अंनेओवास-पदं १२३. जे णिग्गंथे णिग्गंथस्स सरिसगस्स 'अंते ओवासे संते" ओवासं ण देति, ण देंतं वा सातिज्जति ॥ १२४. जे णिग्गंथी णिग्गंथीए सरिसियाए' 'अंते ओवासे संते ओवासं ण देति, ण देतं वा सातिज्जति ॥ १. संते बोवासे अंते (अ, क, ख, ग)। २. सं० पा०-सरिसियाए जाव साति । Page #926 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ निसीहज्झयणं मालोहड-पदं १२५. जे भिक्खू मालोहडं' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १२६. जे भिक्ख कोट्टियाउत्तं' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उक्कुज्जिय अवकुज्जिय ओहरिय' देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ मट्टियाओलित्त-पदं १२७. जे भिक्खू मट्टियाओलित्तं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उभिदियः देज्जमाणं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ पुढविआदिपतिट्ठिय-पदं १२८. जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा' पुढविपतिट्ठियं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १२६. “जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आउपतिट्ठियं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १३०. जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा तेउपतिट्ठियं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १३१. जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणप्फतिकायपतिट्ठियं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेत वा सातिज्जति°॥ अच्चुसिण-पवं १३२. जे भिक्खू अच्चुसिणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा 'सुप्पेण वा" विहुवणेण" वा तालियंटेण वा 'पत्तेण वा" साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा १. मालोहडं जाव (अ, क, ख, ग); भाष्ये चूणौं ४. निकूज्जिय (क, ख)। च 'जाव' पदस्य किञ्चिदपि व्याख्यानं नैव- ५. x (क, ख); आचारचूलायां (१८६) लभ्यते । द्रष्टव्यं आचारचूलायाः प्रथमाध्ययन- 'उक्कुज्जिय अवउज्जिय ओहरिय' एतानि स्य ८७ सूत्रम् । त्रीणि पदानि लभ्यते । २. 'अ, ग' प्रत्योः एतत्सूत्रं नैव लभ्यते । ६. उभिदिय णिभिदिय (ग)। ३. कोट्टाउत्तं (क); कोट्ठाजुत्तं (ख); आचार- ७. वा अण्णतरं (अ, क, ख, ग)। चलायां (१८९) 'कोट्रियाओ वा कोलज्जाओ ८. सं० पा०-एवं आउ तेउपतिट्रियं वणप्फतिवा' इति पाठो लभ्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य भाष्ये कायपतिट्रियं । (५९५४) 'कोट्ठियमादीएस' इति पदं लभ्यते। ६. मुहेण वा (क); मुखेण वा (ख)। चूणौं च 'कलिंज्जो णाम वंसमयो कडवल्लो १०. धुणेण (क); धुवणेण (ख, ग)। सद्रती वि भण्णति' इति व्याख्यातमस्ति । ११. पत्तेण वा पत्तभंगेण वा (क)। किन्तु आदर्शषु एतत्पदं नैव दृश्यते । Page #927 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो ७९३ पिहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा फुमित्ता वीइत्ता आहट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेत वा सातिज्जति ॥ अपरिणयपाणग-पदं १३३. जे भिक्ख 'उस्सेइमं वा संसेइमं वा चाउलोदगं' वा 'वारोदगं वा तिलोदगं वा 'तसोदगं वा" जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा अंबकं जिय" वा सुद्धवियडं वा" अहणाधोयं अणंबिलं 'अवकंतं अपरिणयं" अविद्धत्थं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ अत्तसलाहा-पदं १३४. जे भिक्खू अप्पणो आयरियत्ताए लक्खणाई वागरेति, वागरेंतं वा सातिज्जति ।। गानादि-पदं १३५. जे भिक्ख गाएज्ज वा 'हसेज्ज वा" वाएज्ज वा 'णच्चेज्ज वा" अभिणएज्ज वा 'हयहेसियं वा हत्थिगुलगुलाइयं वा उक्कुट्ठसीहणायं" वा करेति, करेंतं वा १. अतः परं 'क, ख, ग' प्रतिषु एक अतिरिक्तं सुरा गालिज्जति जाए कंबलीए सा पच्छा सूत्रमस्ति-जे भिक्खू असणं वा ४ उसिणुसिणं उदएण धोवइ, तत्थ वि पढमाति धोवणा पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति । 'अ' मीसा, पच्छिमा सचित्ता, तम्मि सुत्तणिवातो। प्रती केवलं एतदेव विद्यते, 'अच्चुसिण' सूत्रं अहवा-बालधोवणं रलयोरेकत्वात् वारागागतत्र नास्ति । सम्भाव्यते 'क, ख, ग' प्रतिषु दुगो, सो तक्कवियडादिभावितो धोव्वइ। द्वयोवचिनयोः सम्मिश्रणं जातम् । भाष्ये चूणौं ७. अपरिणतं अवक्कंतजीवं (अ, ग): अपरिणतं च एतद् अतिरिक्तसूत्रं नास्ति व्याख्यातम् । अवक्कंतं (क, ख); चूणौं पूर्वं 'अवक्कतं' आचारचूलायामपि नैतद् लभ्यते । द्रष्टव्यं ततश्च 'अपरिणयं' व्याख्यातमस्ति । आचारआचारचूला श६६ सूत्रम् । चूलायां (१९९) 'अव्वोक्कतं अपरिणतं' इति २. उस्सेयणं वा संसेयणं (अ, ग); उस्सेयमं वा पाठो लभ्यते । संसेयमं (क)। ८. x (अ, क, ख, ग)। ३. चाउलोदणं (अ, ग)। ९. x (क, ख, ग)। ४. भसोदगं वा (अ); उसोदगं वा भुसोदगं वा १०. अभिणवेज्ज (अ, क, ख) । (ख)। ११. उक्कुटुं सीहणायं (क); उक्किट्ठसीहणायं ५. अंबकज्जियं (क, ख)। (ख); चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने चूणौं एवं ६. चूणौ चिन्हातिपाठस्य पदानि नैव व्याख्या- व्याख्यातमस्ति-पुक्कारकरणं उक्किट्रसंघयणतानि सन्ति, केवलं 'वालधोवणं' वाचनान्तर- सत्तिसंपन्नो रुट्टो तुट्ठो वा भूमी अप्फालेत्ता रूपेण निदिष्टमस्ति-जत्थ 'वालधावणं' ति सीहस्सेवणायं करेति, हयस्स सरिसं णायं आलावगो-चमरिवाला धोव्वंति तक्कादीहिं करेइ हयहेसियं । वाणरस्स सरिसं किलिपच्छा ते चमरा सुद्धोदगेण धोवंति । तत्थ किलितं करेति, अण्णं वा गयगज्जिआदिवि पढमबितियततिया मीसा, जं च पच्छिमं तं जीवरुतं करेंतस्स चउलहं आणादिया य सचित्तं, तत्थ सूत्तनिवातो। अहवा वालधोवणं दोसा। Page #928 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ निसीहज्झयणं सातिज्जति ॥ विततसद्द-कण्णसोयपडिया-पदं १३६. जे भिक्खू भेरिसद्दाणि वा पडहसदाणि वा मुरवसद्दाणि वा मुइंगसद्दाणि वा णंदिसद्दाणि' वा झल्लरिसद्दाणि वा' डमरुयसद्दाणि वा मड्डयसद्दाणि' वा सदुयसद्दाणि वा पएससद्दाणि वा गोलुकिसद्दाणि वा अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि वितताणि सद्दाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ।। ततसद्द-कण्णसोयपडिया-पदं १३७. जे भिक्खू वीणासद्दाणि वा विपंचिसद्दाणि वा तुणसद्दाणि वा बद्धीसगसद्दाणि वा पणवसद्दाणि वा तंबवीणासद्दाणि वा झोडयसद्दाणि वा ढंकुणसद्दाणि वा अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि तताणि सद्दाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥ घणसद्द-उण्णसोयपडिया-पदं १३८. जे भिक्खू तालसद्दाणि वा कंसतालसद्दाणि वा लत्तियसद्दाणि वा गोहियसहाणि वा मकरियसद्दाणि वा कच्छभिसद्दाणि वा महतिसद्दाणि वा सणालियासदाणि वा वालियासदाणि वा अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि घणाणि सद्दाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ।। झुसिरसह-कण्णसोय-पडिया-पदं १३९. जे भिक्ख संखसद्दाणि वा वंससद्दाणि वा वेणुसद्दाणि वा खरम हिसद्दाणि वा परि परिसदाणि वा वेवासद्दाणि वा अण्णयराणि तहप्पगाराणि असिराणि सदाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ विविहसह-कण्णसोयपडिया-पदं १४०. 'जे भिक्ख वप्पाणि वा फलिहाणि वा उप्पलाणि वा पल्ललाणि वा उज्झराणि वा णिज्झराणि वा वावीणि वा पोक्खराणि वा दीहियाणि वा गंजा लियाणि वा सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥ १४१. जे भिक्ख कच्छाणि वा गहणाणि वा णूमाणि वा वणाणि वा वण-विदुग्गाणि वा पव्वयाणि वा पव्वय-विदुग्गाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १. नंदिसल्लवसद्दाणि (ख, ग)। २. वा वल्लरिसद्दाणि वा (अ)। ३. मडयसद्दाणि (ख)। ४. सा धुत्त (अ, क, ख); स धुतु (ग)। १. सं० पा०-जे वप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव इहलोइएस वा सद्देसू जाव अज्झोववज्झमाणं साति । Page #929 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमो उद्देसो ७६५ १४२. जे भिक्खू गामाणि वा नगराणि वा खेडाणि वा कब्बडाणि वा मडंबाणि वा दोणमुहाणि वा पट्टणाणि वा आगराणि वा संबाहाणि वा सण्णिवेसाणि वा aurसोयडिया. अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १४३. जे भिक्खू गाममहाणि वा नगरमहाणि वा खेडमहाणि वा कब्बडमहाणि वा महाणि वा दो मुहमहाणि वा पट्टणमहाणि वा आगरमहाणि वा संबाहमहाणि वा सण्णवेसमहाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १४४. जे भिक्खू गामवहाणि वा णगरवहाणि वा खेडवहाणि वा कब्बडवहाणि वा महाणि वा दोमुहवहाणि वा, पट्टणवहाणि वा आगरवहाणि वा संबाहवहाणि वा सणिवेसवहाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १४५. जे भिक्खू गामपहाणि वा नगरपहाणि वा खेडपहाणि वा कब्बडपहाणि वा पाणि वा दोमुहपहाणि वा पट्टणपहाणि वा आगरपहाणि वा संबाहपहाणि वा सण्णिवेसपहाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १४६. जे भिक्खू आसकरणाणि वा हत्थिकरणाणि वा उट्टकरणाणि वा गोणकरणाणि वा महिसकरणाणि वा सूकरकरणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधातं वा सातिज्जति ॥ १४७. जे भिक्खू आसजुद्धाणि वा हत्थिजुद्धाणि वा उट्टजुद्धाणि वा गोणजुद्धाणि वा महिसजुद्धाणि वा सूकरजुद्धाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारें वा सातिज्जति ॥ १४८. जे भिक्खू उज्जू हियाठाणाणि वा हयजूहियाठाणाणि वा गयजू हियाठाणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १४९. जे भिक्खू अभिसेयद्वाणाणि वा अक्खाइयद्वाणाणि वा माणुम्माणियद्वाणाणि वा महाय-ट्ट - गीय- वादिय-तंती- तल-ताल-तुडिय - पडुप्पवाइयट्ठाणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति ॥ १५०. जे भिक्खू डिंबाणि वा डमराणि वा खाराणि वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा बोलाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधातं वा सातिज्जति ॥ १५१. जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झि माणि वा डहराणि वा - अणलंकियाणि वा सुअलंकियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा णच्चताणि वा हसंताणि वा रमताणि वा मोहंताणं वा, विउलं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परिभाएंताणि वा परिभुंजंताणि वा कण्णसोयपडियाए Page #930 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ निसीहज्झयणं अभिसंधारेति, अभिसंधारेतं वा सातिज्जति ॥ सद्दासत्ति-पदं १५२. जे भिक्खू इहलोइएसु वा सद्देसु परलोइएसु वा सद्देसु दिठेसु वा सद्देसु अदिठेसु वा सद्देसु सुएसु वा सद्देसु असुएसु वा सद्देसु विण्णाएसु वा सद्देसु अविण्णाएसु वा सद्देसु सज्जति रज्जति गिज्झति अझोववज्जति, सज्जमाणं वा रज्जमाणं वा गिज्झमाणं वा अझोववज्जमाणं वा सातिज्जति'तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्धातियं । १. वप्पाद्यालापकविषये चूर्णिकृता चतुर्दशसूत्राणामुल्लेखः कृतः--एते चोद्दससुत्ता जहा बारसमे उद्देसगे भणिता तहा इह पि सत्तरसमे उद्देसगे भाणियव्वा । अस्माकं त्रयोदशसूत्राणि भवन्ति । एतद् विरोधनिरासार्थ द्रष्टव्यं १२।१७ सूत्रस्य पाद टिप्पणम् । Page #931 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमो उद्देसो गावाविहार-पवं १. जे भिक्ख अणट्ठाए णावं दुरुहति, दुरुहंतं वा सातिज्जति ॥ २. जे भिक्खू णावं किणति, किणावेति, कीयमाहट्ट देज्जमाणं दुरुहति, दुरुहंतं वा ____ सातिज्जति ॥ ३. "जे भिक्खू णावं पामिच्चति, पामिच्चावेति पामिच्चमाहट्ट देज्जमाणं दुरुहति, ___ दुरुहंतं वा सातिज्जति ॥ ४. जे भिक्खू णावं परियट्टेति, परियट्टावेति, परियट्टमाहट्ट देज्जमाणं दुरुहति, दुरुहंतं __ वा सातिज्जति ॥ ५. जे भिक्खू णावं अच्छेज्जं अणिसिळं अभिहडमाहट्ट देज्जमाणं दुरुहति, दुरुहंतं वा ___ सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू थलाओ णावं जले ओकसावेति, ओकसावेंतं वा सातिज्जति ॥ ७. जे भिक्खू जलाओ णावं थले उक्कसावेति', उक्कसावेंतं वा सातिज्जति ॥ ८. जे भिक्खू पुण्णं णावं उस्सिचति, उस्सिचंतं वा सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू सण्णं' णावं उप्पिलावेति, उप्पिलावेंतं वा सातिज्जति ॥ १०. जे भिक्खू पडिणावियं कटु णावाए दुरुहति, दुरुहंतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्खू उड्ढगामिणि वा णावं अहोगामिणि वा णावं दुरुहति, दुरुहंतं वा ___ सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू जोयणवेलागामिणि वा अद्धजोयणवेलागामिणि वा णावं दुरुहति, दुरुहंतं वा सातिज्जति ॥ १. सं० पा०-एवं जो चोद्दसमे उद्देसे पडिग्गह- गमो णेयव्वो जाव अच्छेज्जं नवरं दुरुहइ २ भाणियव्वं । २. ओकसावेति (अ); उकसावेति (ख)। ३. छण्णं (अ)। ४. उप्पिणावेति (ख)। ५. पडिगाहियं (ख)। ७६७ Page #932 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ निसीहज्झयणं १३. जे भिक्खू णावं आकसावेति, ओकसावेति, खेवावेति, रज्जुणा वा कड्ढति, कड्ढेतं वा सातिज्जति ॥ १४. जे भिक्ख णावं अलित्तएण वा फिहएण' वा वंसेण वा वलेण' वा वाहेति, वाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू ‘णावाओ उदगं" भायणेण वा पडिग्गहेण वा मत्तेण वा णावाउस्सिचणेण' __ वा उस्सिचति, उस्सिचंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू णावं उत्तिंगेण उदगं आसमणि उवरुवरि कज्जलमाणि पेहाय हत्थेण वा पाएण वा आसत्थपत्तेण' वा 'कुसपत्तेण वा" मट्टियाए वा चेलकण्णेण वा पडिपिहेति, पडिपिहेंतं वा सातिज्जति ।। १७. जे भिक्ख णावागओ" णावागयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जत । १८. "जे भिक्खू णावागओ जलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। १६. जे भिक्खू णावागओ पंकगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू णावागओ थलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गहेंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू जलगओ णावागयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खजलगओ जलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २३. जे भिक्खू जलगओ पंकगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू जलगओ थलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ १. एतत्सूत्रं 'अ' प्रतौ नैव लभ्यते । ८. असत्थ (क, ख, ग)। २. पप्फिडएण (ख, ग); पहिडएण (अ)। ६. ४ (अ)। ३. जेण वाम दक्खिणं वा वालिज्जति सो चलगो १०. णावाओ (अ)। रणं पि भण्णति (चू)। ११. सं० पा०-एतेण गमेण णावागओ जलगयस्स ४. णावाउदगं (क, ख, ग)। णावागओ पंकगयस्स णावागओ थलगयस्स ५. पडिग्गहणेण (शु)। एवं जलगएण वि चत्तारि पंकगए वि चत्तारि ६. उस्सिचएण (अ, क, ख)। थलगए भाणेयव्यो। ७. पलाय (अ, ग); पेलाय (क)। Page #933 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमो उद्देसो ७६६ २५. जे भिक्खू पंकगओ णावागयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्ख पंकगओ जलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २७. जे भिक्खू पंकगओ पंकगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। २८. जे भिक्खू पंकगओ थलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू थलगओ णावागयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। ३०. जे भिक्ख थलगओ जलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। ३१. जे भिक्खू थलगओ पंकगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू थलगओ थलगयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। वत्थ-पदं ३३. जे' भिक्खू वत्थं किणति, किणावेति, कीयमाहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं __ वा सातिज्जति ॥ ३४. •'जे भिक्खू वत्थं पामिच्चेति, पामिच्चावेति, पामिञ्चमाहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू वत्थं परियट्टेति, परियट्टावेति, परियट्टियमाहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, १. ३३-७३ एतेषां सुत्राणां स्थाने भाष्यकृता चतुर्दशकोद्देशकस्य समर्पणं कृतमस्तिचोद्दसमे उद्देसे, पातम्मि उ जो गमो समक्खाओ। सो चेव निरवसेसो, वत्थम्मि वि होति अट्ठारे ॥ ६०२७॥ किन्तु चूर्णिकारेण 'सुत्ताणि पणुवीसं उच्चारेयव्वाणि जाव समत्तो उद्देसगो'। चतुर्दशोद्देशके एकचत्वारिंशत् सूत्राणि विद्यन्ते, अत्र चूर्णिकारेण पञ्चविंशति सूत्राणामुल्लेखः केन कारणेण कृतः इति न सम्यग् अवगम्यते । २. सं० पा०-एवं चोद्दसमे उद्देसे पडिग्गहे जो गमो भणिओ सो चेव इहं वत्थेण णेयव्वो जाव वासाए वसति वसं साइ णवरं तोरणं णस्थि । आदर्शषु ‘णवरं तोरणं णत्थि' इति उल्लेखो विद्यते । चतुर्दशोद्देशके 'तोरण' इति पदं नैव लभ्यते । सम्भवतः 'निक्कोरेति' इति पदस्यैव सूचकपदमस्ति 'तोरणं' । भाष्यकारेण 'सो चेव निरवसेसो' इत्युल्लिखितमस्ति, किन्तु वस्त्रे 'निकोरणस्य-मुखापनयनस्य' प्रसङ्गः कथं आपद्येत, इति चिन्तनीयमस्ति । Page #934 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० डिग्गार्हतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू वत्थं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडमाहट्टु दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, डिग्गा वा सातिज्जति ॥ निसीहज्झयणं ३७. जे भिक्खू अइरेगं वत्थं गणि उद्दितिय गणि समुद्दिसिय तं गणि अणापुच्छिय अणमंत अण्णमण्णस्स वियरति, वियरंतं वा सातिज्जति ॥ ३८. जे भिक्खू अईरेगं वत्थं खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वाअच्छ अपायच्छिण्णस्स अकण्णच्छिण्णस्स अणासच्छिण्णस्स अच्छणस्स सक्क्स्स - देति, देतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे भिक्खू अइरेगं वत्थं खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वाहत्थ च्छिण्णस्स पायच्छिण्णस्स कण्णच्छिण्णस्स णासच्छिण्णस्स ओट्ठच्छिण्णस्स असक्कस्स-न देति, न देतं वा सातिज्जति ॥ ४०. जे भिक्खू वत्थं अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्जं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ४१. जे भिक्खू वत्थं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं न धरेति, न धरेंतं वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू वण्णमंतं वत्थं विवण्णं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ४३. जे भिक्ख विवण्णं वत्थं वण्णमंतं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ ४४. जे भिक्खू ' णो णवए मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु सीओदग-वियडेण वा उसिणोदागवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्खू ' णो णवए मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु बहुदेवसिएण सीओदग-वियडेण उसोग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू' णो णवए मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु कक्केण वा लोद्वेण वा चुण्णेण वा aur वा आसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आसंघतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ ४७. जे भिक्खू ‘णो णवए मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु बहुदेव सिएण कक्केण वा लोण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ ४८. जे भिक्खू ' दुब्भिगंधे मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु सीओदग - वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४९. जे भिक्खू 'दुब्भिगंधे मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु बहुदेवसिएण सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति ॥ ५०. जे भिक्खू 'दुब्भिगंधे मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु कक्केण वा लोद्वेण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ Page #935 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमो उद्देस ८०१ ५१. जे भिक्खू 'दुब्भिगंधे मे वत्थे लद्धे' त्ति कट्टु बहुदे सिएण कक्केण वा लोण वा चुणेण वा वण्णेण वा आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति ॥ ५२. जे भिक्खू अनंतर हियाए पुढवीए वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा आयावेंतं वा पयातं वा सातिज्जति ॥ ५३. जे भिक्खू भसिणिद्धाए पुढवीए वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयावेतं वा पयातं वा सातिज्जति ॥ ५४. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा आयावेतं वा पयातं वा सातिज्जति ॥ ५५. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयात वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५६. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५७. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयात वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५८. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा आयावेतं वा यावेंतं वा सातिज्जति ॥ ५६. जे भिक्खू कोलावासंसि वा दारुए जीवपट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउद सउत्तिंग पणग- दग-मट्टिय-मक्कडा- संताणगंसि वत्थं आयावेज्ज वा पया वेज्ज वा आयावेतं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६०. जे भिक्खू थूणंसि वा गिलुयंसि वा उसुकालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले वत्थं आया वेज्ज वा पया वेज्ज वा, आयावेंतं वा पयावेतं वा सातिज्जति ॥ ६१. जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले वत्थं आयवेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयावेंतं वा पयावेतं वा सातिज्जति ॥ ६२. जे भिक्खू खंधंसि वा फलिहंसि वा मंचंसि वा मंडबंसि वा मालंसि वा पासायंसि वा हम्मतलं सि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयावेतं वा पयावेंतं वा सातिज्जति ॥ ६३. जे भिक्खू वत्थाओ पुढवीकायं णीहरति, णीहरावेति णीहरियं आहट्टु देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गातं वा सातिज्जति ॥ Page #936 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ निसीहज्झयणं ६४. जे भिक्खू वत्थाओ आउकायं णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ६५. जे भिक्खू वत्थाओ तेउक्कायं णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। ६६. जे भिक्ख वत्थाओ कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीजाणि वा णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ६७. जे भिक्खू वत्थओ ओस हिबीयाइं णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ६८. जे भिक्खू वत्थाओ तसपाणजाति णीहरति, णीहरावेति, णीहरियं आहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। ६६. जे भिक्खू वत्थं निक्कोरेति, निक्कोरावेति, निक्कोरियं आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ७०. जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अणवासगं वा-गामंतरंसि वा गामपहंतरंसि वा वत्थं ओभासिय-ओभासिय जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ ७१. जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अणुवासगं वा परिसामझाओ उद्ववेत्ता वत्थं ओभासिय-ओभासिय जायति, जायंतं वा सातिज्जति ॥ ७२. जे भिक्खू वत्थणीसाए उडुबद्धं वसति, वसंतं वा सातिज्जति ॥ ७३. जे भिक्खू वत्थणीसाए वासावासं वसति, वसंतं वा सातिज्जति - तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं ॥ Page #937 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसमो उद्देसो वियड-पदं १. जे भिक्खू वियर्ड' किणति, किणावेति, कीयमाहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ २. 'जे भिक्खू वियर्ड पामिच्चेति, पामिच्चावेति, पामिच्चमाहट्ट दिज्जमाणं __ पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ३. जे भिक्खू वियडं परियट्टेति, परियट्टावेति, परियट्टियमाहटु दिज्जमाणं पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।।। ४. जे भिक्खू वियडं अच्छेज्ज अणिसिट्ठ अभिहडमाहटु दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥ ५. जे भिक्खू गिलाणस्सट्टाए परं तिण्हं वियडदत्तीणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा __सातिज्जति ॥ ६. जे भिक्खू वियडं गहाय गामाणु गाम दूइज्जति, दूइज्जंतं वा सातिज्जति ॥ ७. जे भिक्खू वियर्ड गालेति, गालावेति, गालियमाहट्ट देज्जमाणं पडिग्गाहेति, __पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ।। सज्झाय-पदं ८. जे भिक्खू चउहि संझाहिं सज्झायं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ,तं जहा–पुव्वाए संझाए, पच्छिमाए संझाए, अवरण्हे, अड्ढरत्ते ॥ ६. जे भिक्खू कालियसुयस्स परं तिण्हं पुच्छाणं पुच्छति, पुच्छंतं वा सातिज्जति ॥ १०. जे भिक्खू दिट्ठिवायस्स परं सत्तण्हं पुच्छाणं पुच्छति, पुच्छतं वा सातिज्जति ॥ ११. जे भिक्खू चउसु महामहेसु सज्झायं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ति तं जहा इंदमहे खंदमहे जक्खमहे भूतमहे ॥ १. वियडि (ख)। २. सं० पा.-एवं पामिच्चेति परियट्रेति अच्छेज्जं अणिसठं । - ८०३ Page #938 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ निसीहझयणं १२. जे भिक्खू चउसु महापाडिवएसु सज्झायं करेति, करेंतं वा सातिज्जति, तं जहा सुगिम्हयपाडिवए' आसाढीपाडिवए आसोयपाडिवए कत्तियपाडिवए ॥ १३. जे भिक्खू चाउकालपोरिसिं सज्झायं उवातिणावेति, उवातिणावेंतं वा __ सातिज्जति ॥ १४. जे भिक्खू असज्झाइए सज्झायं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ॥ १५. जे भिक्खू अप्पणो असज्झाइयंसि सज्झायं करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।। वायणा-पवं १६. जे भिक्खू हेट्ठिल्लाइं समोसरणाइं अवाएत्ता उवरिमसुयं वाएति, वाएंतं वा __सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्खू णव बंभचेराइं अवाएत्ता उत्तमसुयं' वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्खू अपत्तं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ।। १६. जे भिक्खू पत्तं ण वाएति, ण वाएंतं वा सातिज्जति ।। २०. जे भिक्ख अपत्तं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू पत्तं ण वाएति, ण वाएंतं वा सातिज्जति ।। २२. जे भिक्खू अव्वत्तं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ।। २३. जे भिक्खू वत्तं ण वाएति, ण वाएंतं वा सातिज्जति ॥ २४. जे भिक्खू दोण्हं सरिसयाणं एक्कं संचिक्खावेति, एक्कं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ २५. जे भिक्खू आयरिय-उवज्झाएहिं अविदिण्णं गिरं आतियति, आतियंत वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ २७. जे भिक्खू अण्ण उत्थियं वा गारत्थियं वा पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ १. पडिवए (ख)। स्वीक्रतानि । सर्वेष्वपि आदर्शषु चत्वार्यव २. अस्य सूत्रस्यस्थाने 'अ' प्रती निम्ननिर्दिष्टसूत्रं सूत्राणि सन्ति-जे अव्वत्तं वाएति वाएंतं वा लभ्यते-जे चाउक्काल सज्झायं न करेति न साति । जे वत्तं ण वाएति ण वाएंतं वा साति । करेंतं वा साति । 'क, ख, ग प्रतिषु च सूत्र जे अप्पत्तं वाएति वाएंतं वा साति । जे पत्तं द्वयं लभ्यते-जे पोरिसिं सज्झायं उवातिणा- ण वाएति ण वाएंतं वा साति (अ, क, ख); वेति उवातिणावेंतं वा साति । जे चाउकालं जे अपत्तं वाएति वाएंतं वा साति । जे पत्तं ण सज्झायं न करेति न करेंत वा साति। वाएति ण वाएतं वा साति । जे अप्पत्तं वाएति ३. उवरिमसुयं (अ, क, ख, ग); एतत्पदं चुा- वाएंतं वा साति । जे पत्तं ण वाएति ण वाएंतं धारेण स्वीकृतम् । वा साति (ग)। ४. १८-२३ एतानि षट् सूत्राणि चूाधारण Page #939 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसो उसो २८. "जे भिक्खू पासत्थं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ २६. जे भिक्खू पासत्थं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ३०. जे भिक्खू ओसण्णं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ ३१. जे भिक्खू ओसण्णं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ३२. जे भिक्खू कुसीलं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ ३३. जे भिक्खू कुसीलं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ३४. जे भिक्खू णितियं वाएति, वातं वा सातिज्जति ॥ ३५. जे भिक्खू णितियं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जति ॥ ३६. जे' भिक्खू संसत्तं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति ॥ ३७. जे भिक्खू संसत्तं पडिच्छति, पडिच्छंतं वा सातिज्जतितं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घातियं ॥ १. सं० पा० एवं पासत्थं असणं कुसीलं णितियं । २. आदर्शेषु संक्षिप्तपाठे 'संसत्त' पदं नैव लिखितं ८०५ दृश्यते । 'संसत्त' सम्बन्धि सूत्रद्वयं पूर्वपद्धत्या स्वीकृतम् । Page #940 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमो उद्देसो सई पडिसेवणा-पदं १. जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोए___ माणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं ॥ २. "जे भिक्खू दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं ___ आलोएमाणस्स दोमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं । ३. जे भिक्खू तेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोए माणस्स तेमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं ।। ४. जे भिक्ख चाउम्मासियं परिहारढाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं ।। ५. जे भिक्खू पंचमासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स छम्मासियं । तेणं परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ॥ बहुसो पडिसेवणा-पदं ६. जे भिक्खू बहुसोवि मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं ___आलोएमाणस्स मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं ।। ७. जे भिक्खू बहुसोवि दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं ___ आलोएमाणस्स दोमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स तेमासियं ॥ ८. जे भिक्खू बहुसोवि तेमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं ___आलोएमाणस्स तेमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं ॥ ६. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउं२. सं० पा०-एवं ववहार पढमुद्देसगमाओ जाए पट्ठवणाए पट्ठविए णिव्विस्समाणए पडिणेयव्वो जाव दस गमा समत्ता एकत्त बहुत्त सेवेज्जा सो वि कसिणा तत्थेव आरुहेयव्वा. सोवि जाव सव्वमेयं सकयं एक्कओ साहिणत्ता सिया । ८०६ Page #941 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमो उद्देसो ५०७ चियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं ॥ १०. जे भिक्ख बहुसोवि पंचमासियं परिहारदाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं, पलिउंचियं आलोएमाणस्स छम्मासियं । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ।। सई पडिसेवणा-संजोगसुत्त-पदं ११. जे भिक्खू मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ।। बहुसो पडिसेवणा-संजोगसुत्त-पदं १२. जे भिक्ख बहुसोवि मासियं वा बहुसोवि दोमासियं वा बहुसोवि तेमासियं वा बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि . पंचमासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा, पलिउचियं आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पंचमासियं वा छम्मासियं वा। तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ।। सई साइरेगपडिसेवणा-पदं १३. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंच मासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासिय वा साइरेगपंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा छम्मासियं वा। तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ।। बहुसो साइरेगपडिसेवणा-पदं १४. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा, पलिउंचियं आलोएमाणस्स पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा छम्मासियं वा । तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा ॥ Page #942 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०८ निसीहज्झयणं परिहारट्ठाण-पडिसेवणा-पदं १५. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंच मासियं वा एएसिं परिहारट्टाणाणं अण्णयरं परिहारट्टाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि पडिसेवित्ता, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। पुट्वि पडिसेवियं पुद्वि आलोइयं, पुवि पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुट्वि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलि उंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टवणाए पट्टविए णिव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया ॥ १६. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि सातिरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारट्टाणाणं अण्णयरं परिहारदाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि पडिसेवित्ता, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। पूवि पडिसेवियं पुब्वि आलोइयं, पुवि पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पून्वि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं। अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टवणाए पट्टविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरहेयव्वे सिया ॥ १७. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंच मासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, पलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि पडिसेवित्ता, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया। पूवि पडिसेवियं पुवि आलोइयं, पुवि पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुब्वि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्टविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया ॥ १८. जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि Page #943 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमो उद्देसो 2.8 पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसि परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा, पलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि पडिसेवित्ता, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयन्वे सिया। पुचि पडिसेवियं पुवि आलोइयं, पुदिव पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । पच्छा पडिसेवियं पुन्वि आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं, पच्छा आलोइयं । अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं । पलिउंचिए पलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्टवणाए पट्टविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से विकसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया॥ वीसतिराइयारोवणा-पर्व १६. छम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा 'आदी मझवसाणे" सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सवीसतिरातिया दो मासा॥ २०. पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारदाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सवीसतिरातिया दो मासा ॥ २१. "चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीस तिरातिया आरोवणा आदी मज्झवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सवीसतिरातिया दो मासा ।। २२. "तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडि सेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया अरोवणा आदी मझेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेणं परं सवीसतिरातिया दो मासा ॥ २३. दोमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणम तिरित्तं, तेणं परं सवीसतिरातिया दो मासा ॥ २४. मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मझेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सवीसतिरातिया° दो मासा॥ २५. सवीसतिरातियं दोमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहार१. आदि मज्झे अवसाणे (क, ख, ग); आदि- राता दो मासा । जज्झाक्साणेसु (बू)। ३. सं० पा०-एवं तेमासिथं दोमासियं मासि२. सं० पा०--एवं चाउम्मासियं जाव सवीसति- यावि जाव सवीसतिराया दो मासा । Page #944 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१० निसीहज्झयणं ट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मझेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं दसराया तिण्णि मासा ॥ २६. सदसरायं तेमासियं परिहारट्ठाणं' •पट्टविए अणगारे अंतरा दोमा सियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिराितिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं चत्तारि मासा ॥ २७. चाउम्मासियं परिहारढाणं' •पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडि सेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सवीसतिराया चत्तारि मासा ॥ २८. सवीसतिरायं चाउम्मासियं परिहाट्ठाणं' •पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परि हारहाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मज्झे वसाणे सअहें सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सदसराया पंच मासा ॥ २६. सदसरायं पंचमासियं परिहारट्ठाणं •पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहार द्वागं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा आदी मज्झे वसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं छम्मासा॥ पक्खियारोवणा-पदं ३०. छम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारदाणं पडि सेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं दिवड्ढो मासो॥ ३१. "पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं दिवड्ढो मासो॥ ३२. चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं दिवड्ढो मासो । ३३. तेमासियं परिहारदाणं पट्टविए अणगारे अंतर। मासियं परिहारट्टाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं दिवड्ढो मासो॥ ३४. दोमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं ठ सहेउ १. सं० पा०-परिहारट्राणं जाव तेण परं । २. सं. पा.-परिहारट्टाणं तेण परं। ३, ४, ५ सं० पा०-परिहारट्राणं जाव तेण परं। ६. सं० पा०-एवं पंचण्हं मासा मासाणं चाउम्मासियं तेमासियं दोमासियं परिहारट्ठाणं मासियस्सवि जाव तेण परं। Page #945 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमो उद्दसो ११ अहीणम तिरित्तं, तेण परं दिवड्ढो मासो॥ ३५. मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं दिवड्ढो मासो॥ ३६. दिवड्ढमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडि सेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा' आदी मज्झेवसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं दो मासा ॥ ३७. दोमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे "अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अड्ढाइज्जा मासा ॥ ३८. अड्ढाइज्जमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडि सेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं तिण्णि मासा॥ ३९. तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अद्धट्ठा मासा ॥ ४०. अद्धटुमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं चत्तारि मासा ॥ ४१ चाउम्मासियं परिहारठाणं पठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअलैं सहउसकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अडढपंचमा मासा॥ ४२ अड्ढपंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मझवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं पंच मासा ॥ ४३. पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोहणा आदी मज्झवसाणे सअठ्ठं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अद्धछट्ठा मासा ॥ ४४. अद्धछट्ठमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं छम्मासा ।। १. सं० पा०-आरोवणा जाव तेण परं । २. सं० पा०-एवं पक्खे पक्खे आरोहेयव्वो जाब छमासा पुण्णति । Page #946 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ पक्खिया वीस तिराइया रोवणा-पर्व ४५. दोमासियं परिहारद्वाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी' 'मज्भेवसाणे सअट्ठ सहेडं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अड्ढाइज्जा मासा ॥ ४६. अड्ढाइज्जमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारद्वाणं डिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिराइया आरोवणा आदी मज्भेवसाणे अट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सपंचरातिया तिणि मासा ॥ ४७. सपंचरातेमा सियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पड सेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा' ' आदी मज्झेवसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं सवीसतिराया तिष्णि मासा ॥ ४८. सवीसतिरायतेमा सियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासिगं परिहारट्ठाणं डिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा' 'आदी मज्भेवसाणे सभट्ठे सहेडं सकारणं अहीणमतिरिक्त्तं, तेण परं सदसराया चत्तारि मासा ॥ निसीहझयण ४६. सदसरायचाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं डिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा' 'आदी मज्झेवसाणे सअट्ठ सहे सकारणं अहीणमतिरिक्तं, तेण परं पंचूणा पंचमासा ॥ ५०. पंचूणपंचम सियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा वीस तिरातिया आरोवणा आदी मज्झेवसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अद्धछट्टा मासा ॥ ५१. अद्धछट्टमासयं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडसेविता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी मज्भेवसाणे सअट्ठ सहे सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं छम्मासा ॥ C ग्रन्थ-परिमाण अक्षर-परिमाण : ७६०२१ अनुष्टुप् श्लोक परिमाण : २३७५, अक्षर : २१ १. सं० पा० - आदी जाव तेण परं । २, ३, ४, सं० पा० - आरोवणा जाव तेण परं । Page #947 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #948 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #949 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार-स्थल निर्देश अणुओगदराई संक्षिप्त-पाठ अणंतपएसिए जाव परमाणपोग्गले अणेगा वा जाव से तं अद्धासमए जाव धम्मत्थिकाए अधम्मपएसो जाव सिय आगासपएसो जाव सिय आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ आघवियं जाव उवदंसियं आयारो जाव दिट्ठिवाओ एवं छब्बिहे भावे जीवे एवं माणे माया लोभे रागे मोहणिज्जे कट्टकम्मे वा जावठवणा कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे कोहकसाई जाव लोभकसाई खीणकोहे जाव खीणलोहे खीणे जाव निट्ठिए गयखंधे जाव उसभखंधे चीरिय जाव पासंडत्था जहा जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दवाए । तहा भाणिअव्वा जाव से तं जहा दव्वज्झयणे जाव से तं जाणग° जहा दव्वावस्सए तहा भाणिअव्वं जाव से तं जाव से कि तं जाव से तं जीवदव्वा जाव अणंता जीवविप्पजढं जाव महो पूर्त-स्थल सू० १५३ सू० ६२४ सू० १४६ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ६०७,६०८ सू० ६२६ सू० ५४६ सू० ६१७ सू० ६१७ सू० ३१ सू० २७५ सू० २७५ सू० २८२ सू० ४३६,४३८ सू० ६७ सू० २६ सू० ६७८-६६० सू० ६५० सू० ३८ सू० ५६३-५६७ सू० ६४८ सू० ४४५ सू० ६२६ पूर्ति आधार-स्थल सू० १५२ सू० १४ सू० १४८ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ६०६ सू० १६ सू० ५० सू० ६१७ सू० ६१७ सू० १० समवओ ६१ सू० २७६ सू० २७६ सू० ४२२ सू० ६३ सू० २० सू० ६५२-६६४ सू० ६२६ सू० १७ सू० १३-१७ सू० १४ सू० ४४५ सू०१६ Page #950 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू०६ जीवस्स वा जाव सुए त्ति जीवस्स जाव से तं डहेज्जा जाव नो तं चेव पुव्वभणियं भाणियव्वं जाव से तं तत्थ अपसत्थे डोडिणि-गणिया अमच्चाईणं, पसत्थे गुरुमाईणं तमतमा जाव रयणप्पभा तिण्णि वि जहा लोइए जाव से तं तेआहिअ जाव भरिए दव्वसामाइए वि तहेव जाव से तं दव्वसुयं जाव कम्हा दव्वाणुपुव्वी जाव से किं त दुपएसियाइखंधे जाव अणंतपएसिए धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए धम्मपएसो जाव सिय धम्मे जाव खंधे नामट्टवणाओ गयाओ नामट्ठवणाओ तहेव नामढवणाओ पुव्वभणियाणुक्कमेण भाणिअव्वाओ नेगमस्स णं जाव जावइया नोआगमओ य जाव जाणगसरीर० पज्जवसंखा जाव अणुओगदारसंखा परिजियं जाव एवं परिजियं जाव कम्हा परिजियं जाब नो अणुप्पेहाए परिजियं जाव से तं पुढविकाइए जाव तसकाइए पोत्थकम्मे वा जाव से तं फुसंति जाव नियमा बद्धेल्लया जाव तासि रयणीए जाव जलंते रामायणं जाव चत्तारि विक्खंभेणं जाव परिक्खेवेणं संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं सेसं जहा दव्वज्झयणे जाव से तं जाणग० सेसं जहा दव्वज्झयणे जाव से तं भविय. सू० ३० सू०६ सू० ५५६ सू० ४२६,४३१,४३६,४३८ सू० ४२२ सू० ३७ सू० १६ सू० ६७,६८ दृत्ति सू० १८२ सू० १८१ सू० ६५८-६६० सू० ६५४-६५६ सू० ४२६, ४३१,४३६,४३८ सू० ४२२ सू० ६६९-७०४ सू० ६२२-६२७ सू० ३५ सू० १४ सू० १०५-११० सू० १२-१७ सू० ६८ सू० ६४ सू० ३४८ सू० १४८ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ७७-७६ सू० ६-११ सू० १०२-१०४ सू०६-११ सू० ५३-५५ सू० ६-११ सू० ६४८ सू० १४ सू०८१-८६ सू० १३-१८ सू० ५७२ सू० ५७१ सू० ६२३,६२४ सू० १३,१४ सू० ६४७ सू० १३ सू० १३ सू० ६३५,६३६,६७३,६७४ सू० १३,१४ सू० २७५ सू० २५४ सू० ५६० सू० १० सू० १४२ सू० १४१ सू० ४६६ सू० ४६३ सू० २० सू० १६ सू० ५४८ सू० ४६ सू० ४३८ सू० ४२२ सू० १६५,२०६ सू० १२१ सू० ६७६ सू० ६२६ सू० ६७७ सू० ६२७ सू० ३४ Page #951 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू० ५७-६१ सू० १३-१७ सेसं जहा दब्वावस्सए तहा भाणियव्वं नवरं। खंधाभिलावे जाव से कि तं सोहम्मे जाव अच्चुए होज्जा जाव सव्वलोए सू० २८७ सू० १२४ सू० १८६ सू० १२४ दसाओ १०।२२ १०।२३ १०।३१ १०।३० १०।३२ १०२६ १०।११ १०।२८ १०।२६ १०।२६ १०।३२ १०॥३१,३२ १०।३० १०।११ १०।२६ १०।२७ १०।३२ १०।२७ भ० २।३१ १०।२२ १०।२४ १०।२४ १०१३१,३२ १०।२८ आ० सू०६३ १०।२८ १०।२४ १०।२५ अज्झथिए जाव संकप्पे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था अणालोइय जाव देवलोएसु अणालोइय तं चेव जाव विहरति अणालोइयपडिक्कते सव्वं तं चेव जाव से णं अणितिया तहेव जाव संति अणुपविसइ जाव कप्परुक्खए अण्णं देवं अण्णं देवि तं चेव जाव परियारेति अण्णतरेसु जाव से णं अतिजायमाणीए वा जाव कि भे अधुवा जाव पुणरागमणिज्जा अधुवा जाव विप्पजहणिज्जा अधुवा तहेव संति अरहताणं जाव तं गच्छामो आउक्खएणं जाव अण्णतरंसि आसासणिज्जा जाव अभिलसणिज्जा इरियासमिता जाव बंभचारी उग्गपुत्ता तहेव दारए जाव किं भे उप्पण्णंसि वा जाव भत्तं पच्चक्खाइत्ता जाव कालमासे उवासगपडिमा जाव आरंभे एगजाता इट्ठा कता जाव रयणकरंडगसमाणा एगजाता जाव किं भे एगजाता जाव तहेव सव्वं भाणियव्वं ओरालाई जाव विहरामो कंखइ जाव से णं कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकार० करयल जाव एवं करयलपरिग्गहियं जाव जएणं खलु जाव पडिसुणित्तए १०।३१ १०।२८ १०।२८ ओ० सू० ५२ १०।२४ १०।२७ ओ० सू० २७ १०।२४ १०॥३२ १०१२५ १०।२६ १०।२६ १०।२२ १०१६ १०॥२२ १०१४,१० १०१६ १०।२७ १०।३१ ६.१५ १०।२५ १०।२५ १०।२५ १०॥२२ १०१६ १०१२२ ओ० सू० ५६ ओ० सू० २० १०।२४ Page #952 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चास जाव अणुपालेत्ता चाउसि तव चेइए जाव विहरति चैव जाब पज्जुवासति गरिदे जाव मज्जणधराओ तं चेव तं चैव तं देव जय साहू तव तं चैव सव्वं जाव से णं तव तं चैव सव्वं भाणियम्वं जाव वयमवि तवनियम जाव अस्थि तवनियम जाव वयमवि तवनियम तं चैव जाव एवं तवनियमस्स जाव आगमेस्साणं दंसणेणं जाव परिनिव्वाणमग्गेणं दारियं जाव भारिवत्ताए दिगिछाए जाव उदिष्णकामजाता दिखाए जाव से य दिगिंछा जाव उदिष्णकामभोगे जमाणे जाव अप्पाण देवलोगातो तं चैव पुमत्ताए जाव कि भे निग्रगंधे जाव से परवकमेज्जा निदाणस्स जाव णो नियम जाव भुजमाणी परचावाति जाव ते गं पडिक्कमति जाव अहारिहं पणले जाव माणुस्सगा पण्णत्ते जाव से य पण्णत्ते तं चैव पण्णत्ते तं चैव सव्वं जाव से य पत्थेति जाव अभिलसति पावयणे जाव सव्वदुक्खाणमंत पावयणे तह चेव पावयणे तहेव पावयणे सेसं तं चैव जाव जस्स ६।११ ६।१२ १०/६ १०।२० १०।११ ७/१२ ७११४, १५ १०।२४ १०/२६ १०/२८ १०/२७ १०/३२ १०१३० १०1३१ १०१३३ १०।२६ १०।२७ १०/२६ १०/२८ १०/५ १०।२६ १०।३३ १०/२६ १०।२५ દ १०.३४ १०१३० १०।३२ १०:२६ १०।३१ १०१६ १०.२५ १०।२६ १०/२८ १०।२७ ओ० सू० २२ ७० " ', ६।१० ६।११ ६३ ७।१० ७।१३ १०।२२ 37 १०१२६.२६ १०।२२ १०।२२ १०।२२ १०।२८ १०।२४ पज्जी० ८१ १०/२५ १०/२५ १०।२४ १०।२४ १०/३ १०/२४ १०।२४ १०/२४ १०।२४ १०२५ ठा० ३।३४१ १०।२८ १०/२८ १०।२८ १०/२८ १०1६ १०।२४ १०।२४ १०/२४ १०।२४ Page #953 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७/२० १०१२७ १०॥३१ १०।११ १०।३१ १०।३० ओ० सू० २२ १०।२४ १०१३० १०॥३ १०।२४ १०।२६ पाउप्पभायाए जाव जलंते पुरिसजातस्स जाव अभविएणं पुरिसजातम्स जाव सद्दहेज्जा पुव्वाणुपुब्धि जाव संजमेणं भवंति जाव कि भे भवक्खएणं तं चेव वत्तव्वं नवरं हंता सहहेज्जा भवति"...""उद्दिदुभत्ते भवति जाव रातोवरात महामाउया जाव कि भे महामाउया जाव पुमत्ताए महिच्छे जाव आगमेस्साए महिच्छे जाव दाहिणगामिए जाव दुल्लहबोहिए महिड्डिए जाव चइत्ता महिड्डिया जाव महेसक्खा महिड्डीए जाव महेसक्खे माहणे वा जाव णं पडिसुणेज्जा माहणे वा जाव पडिसुणेज्जा वोसट्टकाए जाव अहियासेति संपत्ते जाव अप्पाणं सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उववाइगमेणं नेयव्वं जाव पज्जुवासइ सदेवमणुयासुराए जाव बहूई सद्दहणयाए जाव रोयणाए सव्वधम्म जाव उद्दिट्ठभत्ते सव्वधम्म जाव रातोवरातं सव्वधम्म जाव से सामाइयं तहेव सिझज्जा जाब सव्वदुक्खाणं सील जाव सम्म सीलव्वय जाव पट्टवियाई सीलव्वय जाव पोसहोववासाई सेसं तं चेव जाव अणुपालिया हट्ठ जाव पडिसुणेइ हट्ट जाव हियए हट्ठ जाव हियया हट्टतुटु जाव भवति ६।१५ १०।२७ १०.३१ १०१२८ १०।२७ १०।२७ १०।२२ १०।२२ १०।२६ १०।२८ ७।२७,४२ १०।६ १०२४ १०।२४ १०।२४ १०।२४ १०।२५ १०१२२ भ० ११३३६ १०।२५ १०।२४ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ६४.६६ १०।१४-१६ १०.३३ १०।२८ ६।१४ गय० सू० ८१५,८१६ १०२८ ६।१६ ६.१३ ६।१२ ६।१० १०।२४ ६।१२ १०३२ ६।१२ ६।११ १०।३१ ७.३१ १०।१२ १०।१० १०१४ १०१६ ६८ १०.३० ७।२८ उवा० ११४६ १०१४ आ० सू० २० ओ० सू० २० Page #954 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हट्ठतुट्ठ जाव मज्जणघरं हब्रुवुदु जाव हियए हियाए जाय अणुगामिवताए अणते जाय पासमाणे अणुत्तरे जान केवल अणुत्तरे जाव सब्दलोए अयमेयाख्ये जाव समुप्यज्जित्वा अहे जाव सयमेव आहारवक्कंतीए जाव गन्भत्ताए उबरससि वा जाव उवागच्छितए करयल जाव कट्टु करयल जाव ते करपल जान पडिणित्ता करयल जाव पडिसुर्णेति कालसमयंसि जाव चित्ताहि गम्भताए खुद्दाए जाव जम्म० गतिकल्लाणाणं जाव भद्दाणं तं चैव सव्वं दक्खे जाव तिण्णि निग्गंधीए वा जाव पहिलेहियब्वे भत्ताए वा जाव पविसित्तए राइंदियाणं जाव आसाढाहि वक्ते जाव अभीइणा वक्कते जाव चित्ताहि सब्वक्खर जाव चोरापुब्वीणं सव्वक्खर जाव होत्था हट्ठे जाव हयहियए हडे जाव नो गलिए आत्तिए वा जाव पवेइत्तए आवणगिहंसि वा जाव अंतरायणसि एगणाएन वा जाव एगसिलोएण पज्जोसवणाकप्पो १०।११ १०/७ ७/३५ कप्पो १६६ ११५ १३० ૫૪ १६५ १६१ २५७ १५,४१,४४,६३ ४८ ६३ ४३ १२७ ६१ १७८ २७३, २७४ १२६ २६४,२६५, २६६, २७० २७१ १६३ १६० १२६ १२१ १३६ १५ ५६ ३।२४ १।१३ ३।२४ ओ० सू० ६३ १०१४ ७।३४ ११५ ८१ ८१, ११५ ५२ ७५ २ २५६ ७ ४१ ४१ २ ६० १०५ २७२ ११३ २६३ २७१ १११ १०८ १०८ ६७ ६७ ५ ५४ ३।२३ १।१२ ३।२३ Page #955 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं ४।३ ४।४ ४।३२,३३,३४ तणेसु वा जाव संताणएसु ४।३१ ववहारो ७.१ ६।१० ६।३५ ३७ ६।११ ४।१२ १११५ १।१७ ७६ १५७ ११११ ७॥४ ८.१५ अणालोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं अहासुत्तं जाव अणुपालिया ६।४० आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं ३।१३ आलोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं ७।२,३ उवसंपज्जियवा जाव छए ५।१२ एवं बहुसो वि १४१६ एवं बहुसो वि १११८ पवावेत्तए वा जाव संभुजित्तए ७१७ मुंडावेत्तए वा जाव उद्दिसित्तए ७८,६ निसीहझयणं अंबं वा जाव चोयगं १५८ अयबंधणाणि वा जाव वइरबंधणाणि अयलोहाणि वा जाब सुवण्णलोहाणि १७१६ असणं वा ४ जाव सातिज्जति ६।१०; १२११६ आइणादि जाव वत्थसुत्तं १७११२ आगंतारेसु वा जाव परियावसहेस ७७८,७६८।१ आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु वा कोउहल्लपडियाए पडियागतं समाणं असणं वा ४ ओभासति २ जायति जायंतं वा साति एवं एतेण वि चत्तारि गमगा ३३५-८ आदी जाव तेण परं २०१४५ आरोवणा जाव तेण परं २०।३६,४७-४६ आसजुद्धाणि वा जाव सूकरजुद्धाणि १२।२५ एगित्थीए जाव साति ८.५,६ एगो जाव साति ८८ एतेण अभिलावेण सोचेव गमओ भाणियन्वो जाव ३१२३-२७ एतेण गमेण णावागओ जलगयस्स णावागओ पंकगयस्स गावागओ थलगयस्स एवं जलगएण वि चत्तारि पंकगएण वि चत्तारि थलगए भाणेयव्वो १८।१८-३२ चूर्णि ३।१ ३।१-४ २०११६ २०११६ १२।२४ ८.१ ८.१ रएंतं ३।१७-२१ १८.१७ Page #956 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३।२६-३३ ३।५६-६४ ३।१७-२१ ३।१६-२१ ३१२-४ १३।३३-३८ १३।३१ ६।२०-२४ १४१३२,३३ १७।१२६-१३१ ६।१६ १४१३१ १७११२८ १५६८-७५ ५१५०-५६ ८.२-६ ५१४८ एयस्स पायगमओ चेव भाणियव्वो जाव रएंत एवं अच्छिसू पायगमओ भाणियव्वो जाव रएज्ज एवं अण्णउत्थिया वा गारत्थिया वा अण्णउत्थिणीं वा गारस्थिणी वा अण्णउत्थिणीओ वा गारत्थिगीओ वा एवं असीए मणीए उडुपाणे तेल्ले फाणिए वसाए अप्पाणं एवं अहयाई धोयरत्ताई मलिणाई चित्ताई विचित्ताई एवं आउकायं तेउरकायं एवं आउतेउपतिट्टियं वण्णप्फतिकायपतिट्ठियं एवं उजाणंसि वा ४ अट्टालगंसि वा ४ उदगंसि वा ४ परिटुवेइ सुण्णागारंसि वा ४ तणसालासु वा ४ जाणगिहेसु वा २ पणियगिहेसु वा महाकुलेसु वा महागिहेसु वा परिवेइ एवं उटणासाकक्खहत्थणहपत्तपुप्फफलबीयहरिय एवं उद्वीणि णासावीणि कक्खवी हत्थवी णहवी पत्तवी पूष्फवी फलबी बीयवी हरियवीणियं करेति एवं उठे पायगमो भाणियब्वो एवं एतेण चेव चत्तारि गमगा एवं एते वि दोहि चेव पाडिहारियसागारियगमएहिं णेयब्वा एवं ओसण्णं कुसीलं णितियं संसत्तं काहियं पासणियं मामायं संपसारयं एवं ओसण्णस्स कुसीलस्स णितियस्स संसत्तस्स एवं चउत्थ भंगो एवं चाउम्मासियं जाव सवीसतिराता दो मासा एवं चोद्दसमे उद्देसे पडिग्गहे जो गमो भणिओ सो चेव इहं वत्थेण णेयव्वो जाव वासाए वसति वसं साइ णवरं तोरणं णत्थि एवं छ? उद्देसगमेण णेयव्वो जाव जे माउ एवं जहा तइए उद्देसए गंडादीण जो गमओ नो चेव इपि णेयव्वो जाव अण्णयरेण आलेवणजाएण आलिपेज्ज वा विलिपेज्ज वा आलितं वा विलितं वा साति एवं जाव धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा ५१३८-४७ ३१५०-५५ ३।१०-१२ ५॥१६ ३।१६-२१ ३६ ५।१६-२२ ५॥१५-१८ १३।४५.६० ४।२६-३६ १२।३४-३६ २०१२१ १३।४३,४४ ४/२७,२८ १२।३३ २०११६ १८१३४-७३ ७।१५-६६ १४।२-४१ ६।२६-७७ ६।१६-१८ ३१३७-३६ Page #957 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चूणि १४१२-४ ६।१३,१४ ३३१७-६६ ३।१७-६६ ३।१७-६८ ३।१७-६८ ३।१७-६८ ३।१७-६८ २०११६ एवं जाव वणप्फइकायस्स १२।६ एवं जो चोद्दसमे उद्देसे पडिग्गहगमो यन्वो जाव अच्छेज्जं नवरं दुरुहइ २ भाणियव्वं १८।३-५ एवं णदिजत्तापट्रियाणं णदिजत्तापडिणियत्ताणं गिरिजत्तापट्टियाणं गिरिजत्तापडिणियत्ताणं ६।१५-१८ एवं तइ उद्देसगमएणं णेतव्वं जाव जे निग्गंथो निग्गंथस्स १७।१६-६८ एवं तइय उद्देसए णेयब्वं जाव गामाणुगामं ४।५५-१०७ एवं तइय उद्देसग णेयव्वं णवरं अण्णउत्थियगारत्थियाभिलावे जाव गामाणुगामं ११।१२-६३ एवं तइए उद्देसगमए जाव जे १५१००-१५१ एवं तइय उद्देसगमओ णेयव्वं जाव जे गामाणुगामं १५॥१४-६५ एवं तइय उद्देसो जो गमो सो च्चेव इह मेहुणवडियाए णेयव्वो जाव जे माउग्गामस्स ६।२६-७७ एवं तेमासियं दोमासियं मासियावि जाव सवीसतिराता दो मासा २०१२२-२४ एवं दंडगं वा लट्रियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा जाव जमात २।२५ एवं दगवीणियं सिक्कगं वा सिक्कगणंतगं वा सोत्तियं वा रज्जुयं वा चिलिमिलि सईए उत्तरकरणं पिप्पलयस्स उत्तरकरणं णहच्छेयणगस्स कण्णसोहणयस्स उत्तरकरणं २।११-१७ एवं दिया पडिग्गाहेत्ता रत्ति भुंजति रत्ति पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजति रत्ति पडिग्गाहेत्ता रत्ति भुजति ११७६-७८ एवं दीहाई अच्छिपत्ताई ३१५८ एवं दूति निमित्तपिंड आजीविय वणीमग तिगिच्छा कोह माण माया लोह विज्जा मंतं जोग चूण्ण अंतद्धाण १३।६२.७५ एवं धरेति वितरति परिभाएति परिभ जति २।३-६ एवं पंचण्हं मासा मासाणं चाउम्मासियं तेमासियं दोमासियं परिहारदाणं मासियस्सवि जाव तेण परं २०१३१-३५ एवं पक्खे पक्खे आरोहेयव्वो जाब छम्मासा पुण्णति २०१३७-४४ एवं पण्णरसे उद्देसे अंबस्स जहा गमो सो चेव इह णेयव्वो १६१५-११ २।२४ २।१० १११७५ ३१५६ १३।६१ २।१ २०।३० २०१३० १५॥६-१२; चूणि; आयार-चूला७।३६ Page #958 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं पामिच्चेति परियट्टेति अच्छेज्जं अणिसट्ठ एवं पासत्थं असणं कुसीलं णितियं एवं पिप्पलगं महच्छेयणयं कण्णसोहणयं एवं पिप्पलयं णखच्छेयणयं कण्णसोहणयं एवं पिप्पलयं णहच्छेयणयं कण्णसोहणयं एवं पिप्पलयं गच्छेयणयं कण्णसोहणयं एवं फरुसं एवं फरुसं आगाढं फरुसं अण्णयरीए अच्चास एत्ति एवं मग्गिल्लगमयं सरिसं णेयं कारवेतं साति एवं मंतं जोगं १० एवं माउग्गामाभिलावेण पढमुद्देसगमओ णेयव्वो जाव जिघति एवं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं देति य पडि साति एवं वसहि पि दोहिं गमएहिं णेहि चेतिय अणुपवसति साति एवं वत्यपि दोहिं गम एहिं सज्झायंपि दोहि एवं ववहार पढमुद्देमाओ णेयव्वो जाव दस गमा समत्ता एकत्त बहुत्त सोवि जाव सव्वमेयं सकयं एक्कओ साहणित्ता जाए पटुवणाए पट्ठविए निव्विस्समाणए पडि सेवेज्जा सो वि कसिणा तत्थेव आरुयव्वासिया एवं सचित्तपइट्टिएण वि चत्तारि आलावगा यव्वा एवं समुद्दिसति अणुजाणति वाएति पडिच्छति पट्टे एवं ससिद्धिए ससरक्खाए मट्टियाकडाए पुढवीए चित्तताए पुढवीए चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलूए कोलावासंसि वा एवं सामारियते वि एवं सो चेव रायगमओ णेयव्वो एवं देसारक्खितं सीमारक्खितं रण्णारक्खितं सव्वारक्खितं करे जाव कहें करेति जाव परिभुंजति करेति जाव परिभुजति खत्तियाणं जाव भिसित्ताणं खत्तियाणं जाव मुद्धाभिसित्ताणं खुज्जाण वा जाव पारसीण १६।२-४ १६।२८-३५ १।२४-२६ १२०-२२ १।३२-३४ १1३६-३८ १०1२ १५।२-४ १७।७०-१२२ १३।२६, २७ ६४-६ १६।१६-२३ ७१८८-६१ २०१२-१८ १५।१०-१२ ५।७-११ ७६६-७५ ५।१७, १८ ४१४०-५३ ८।११ ७७-६ ७१०-१२ ७,११,२७ ८।१५,१६ २६ १४१२-४ १६१२६, २७ १।२३ १।१६ १।३१ १।३५ १०।१ १५।१; १०।२-४ १७।१६-६८ १३।२५ ११३८ १६।१७, १८ ७।८६,८७ ववहारो १२-१८ १५/६ १५२६-८ ५।६ ७।६८ ५।१५,१६ ४११-३ ८। १ ७१७७११-३ ७ १०७१-३ ८१४ ८।१४ ओवाइयं सू० ७० Page #959 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४।६ चूर्णि १२।२० १२।२० १२।२० १२।१७ ३।३४,३५ खुड्डियाए वा जाव थेरियाए हत्थच्छिण्णस्स असक्कस्स १४१७ गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि ५१३४ गामपहाणि वा जाव सण्णिवेस १२।२३ गाममहाणि वा जाव सण्णिवेस १२।२१ गामवहाणि वा जाव सण्णिवेस° १२।२२ चक्खु जाव साति १२॥१८-२६ जे अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्ख जाव विच्छिदिया जाव पूयं वा जाब विसोहेत्ता सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति एवं अण्णयरेणं आलेवणजाएण आलिपेज्ज वा विलिपेज्ज वा आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति एवं अभंगित्ति वेत्यादि एवं एतेण गमएण धूवेज्ज वा पध्वेज्ज वत्ति णेयव्वं ३१३६-३६ जे एवं ससिणिद्धाए जाव कोलावासंसि वा दारुयंसि वा पतिनिस्सियंसि जाव संताणयंसि ठाणं वा जाव चेति उच्चे साति १३।२-८ जे भिक्खू दिवा आलेवणजायं पडिगाहेति पडिगाहेतं वा साति दिवा कायंसि वणं जाव चउभंगो १२।३७-४० जे वप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव इहलोइएसु वा सद्देसु जाव अज्झोववज्झमाणं साति १७।१४०-१५२ जे ससिणिद्धाइयंसि वा कुलियंसि वा जाव लेलँसि वा उच्चारपासवणं परिट्ठावेति परिट्ठावेंतं वा सातिज्जति जे खंधंसि वा जाव अंतरिक्खजायंसि उच्चारपासवणं १६।४२-५१ णायगं वा जाव अणुवासगं १४।३६ णीहरति जाव साति १४१३५ णीहरावेति जाव साति १४।३६ तणपासएण वा जाव सुत्तपासएण तणमालियं वा जाव हरियमालियं १७१३ दंडगं वा जाव वेणुसूइयं ५।६७ धरेति धरेंतं वा साति पिणद्धति पिणद्धतं वा साति ७।२,३ धरेति धरेंतं वा साति परिभंजति परिभंजंतं वा साति १०२,३ ७।६९-७५ १२।३३-३६ १२।१८-३० १७.१ १३।२-११ ८।१२ १४।३१ १४।३१ १२।१ ७१ ११४० ७।१ Page #960 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ साति साति धरेति धरेंतं वा साति परिभुजति परि जंतं वा १७७,८ १७.६ धरेति धरेंतं वा साति परि जति परिभुंजतं वा १७।१०,११ १७१६ धरेति धरेंतं वा साति परि जति परिभुजंतं वा साति एवं चित्ताई दारुदंडाणि वा वेणु वेत्त एवं विचित्ताणि वि दारुदंडा जाव साति ५।२६-३३ ५२५ धरेति धरेंतं वा साति पिणद्धति पिणद्धतं वा साति १७।४,५ १७।३ धरेति परि जति जाव साति १७।१३,१४ १७११२ परिहारट्टाणं जाव तेण परं २०।२६,२८-३० २०।१६ परिहारट्राणं तेण पर २०१२७ २०१६ पिंडनिय रेसु वा जाव असणं ८।१४ आ० चू० ११२४; चूणि पुढवीए स स जाव जीवपतिट्टिते सउडे जाव संकसणं डिग्गहगं आयावेज्ज वा पायावेज्ज वा साति । जे कुलियंसि वा जाव लेलसि वा पडि अ साति । खंधसि वा जाव पासायंसि वा अन्नय रंसि वा अंतरिक्खजायंसि पडिग्गहं १४।२०-३० १३।१-११ बद्धेल्लयं वा मुयति मुयंतं वा साति १२।२ १२।१ बद्धेल्लयं वा मुयति मुयंतं वा साति १७।२ १७११ रण्णो जाव भिसित्ताणं ८।१७,१८६६,८-१०,१३ १४,१६-२६,२८,२६ ८.१४ वत्थं वसहि सज्झायं उद्दसति वाएति पडिच्छति १६।२६-३३ १६।२८ वत्थं वा जाव पायपुंछणं १५।८० ७८८ सज्झायं वा जाव कहेंतं ६।१२ सद्धि जाव कहेंतं ८।२,३,४,६,७ सरिसियाए जाव साति १७.१२४ सातिज्जति जाव परि जंतं ७।४-६ ७।४।७।१०३ सातिज्जति जाव परिभुजंतं १११५,६ ११३४ सो चेव मग्गिल्लओ गमओ अणूगंतव्वो जाव साति ११४० ११३६ हत्थिकरणाणि वा जाव सूकरकरणाणि १२।२४ शु० हत्थेण वा जाव भायणेण १२।१६ १२।१५ हाराणि वा जाव सुवण्णसुत्ताणि १७६ ७१७ ८.१ ८.१ १७४१२३ Page #961 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - २ तुलनात्मक द्वादशांगी का विवरण नंदी और समवाओ दोनों में मिलता है । समवाओ का विवरणनंदी सूत्र के विवरण से विकसित है। दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है । यह संभावना अति प्रसंग नहीं है । समवाओ का विवरण नंदी की रचना के बाद लिखा गया । गणित भाग के अनन्तर अकस्मात् समायोजित प्रस्तुत विवरण सहज ही उसकी सूचना है । दोनों विवरणों के अतिरिक्त जय धवला का विवरण भी यहां प्रस्तुत है। -- नंदी सू० ८१ १. सिक्खा भासा - अभासा चरण-करण-जायामाया- वित्तीओ आघविज्जति । २. आयारे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीयो । ३. सासय- कड - निबद्ध-निकाइया । ४. परूवणा आघविज्जइ । स० ८२ ५. सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ । जीवा सूइज्जति, अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइज्जति । ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ । ६. सूयगडे णं आसीयस्स । पइण्णगसमवाय सू० ८६ - ट्ठाण -गमण - चंकमण पमाण जोगजुंजण भासा समितिगुत्ती - सेज्जोव हि भत्तपाण- उग्गमउप्पायणएसणाविसोहि सुद्धासुद्धग्गहणन्वयणियम तवोवहाणसुप्पसत्थमाहिज्जइ । आयारस णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुतीओ। - समवाओ सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० ६० सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जति अजीवा सूइज्जति जीवाजीवा सूइज्जति लोगे सूइज्जति अलोगे सुइज्जति लोगालोगे सूइज्जति । सूयगडे णं जीवाजीव - पुण्ण- पावासव संवर- निज्जरबंध-गोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जति, समणाणं Page #962 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. पावादुय-सयाणं । ८. X ६. सूयगडे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ पडिवत्तीओ । १०. बिइ । ११. सासय कडा निबद्ध निकाइया । १२. परूवणा आघविज्जइ । सू० ८३ १३. ठाणे णं जीवा ठाविज्जंति, अजीवा ठाविज्जति । ससमए ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ । लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ लोयालोए ठाविज्जइ । १४. ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुंडाई, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ, आघविज्जति । १५. ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्डीए दसद्वाणग- विवड्डियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ । १६. ठाणेणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेदा, संखेज्जा ૧૪ अचिरकालपव्व इयाणं याणं कुसमय मोह-मोहमइमोहिसंदेहजा-सहजबुद्धि - परिणाम- संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण- विसोहणत्थं आसीतस्स । दिट्ठा । जाणादिट्ठत वयण - णिस्सारं सुट्ठू दरिसयंता विविहवित्राणुगम - परमसब्भाव - गुणविसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूता सोवाणा चेव सिद्धिसुगइघरुत्तमस्स णिक्खोभनिष्पकंपा सुत्तत्था । सूयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुभगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ । दो I सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० ६१ ठाणे णं ससमया ठाविज्जंति परसमया ठाविज्जंति ससमयपरसमया ठाविज्जंति जीवा ठाविज्जंति अजीवा ठाविज्जंति जीवाजीवा ठाविज्जंति लोगे ठाविज्जति अलोगे ठाविज्जति लोगालोगे ठाविज्जति । ठाणे णं दव्व-गुण-खेत्त-काल- पज्जवपयत्थाणंसंगहणी गाहा सेला सलिला य समुह-सूरभवणविमाण आगर नदीओ । जिहओ पुरिसज्जाया, सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥ १ ॥ एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाइणं च परूवणया आघविज्जति । ठाणस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा Page #963 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #964 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #965 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार-स्थल निर्देश अणुओगदराई पूर्ति आधार-स्थल सू० १५२ सू० १४ सू० १४८ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ६०६ संक्षिप्त-पाठ अणंतपएसिए जाव परमाणुपोग्गले अणेगावा जाव से तं अद्धासमए जाव धम्मत्थिकाए अधम्मपएसो जाव सिय आगासपएसो जाव सिय आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ आघवियं जाव उवदंसियं आयारो जाव दिट्रिवाओ एवं छव्विहे भावे जीवे एवं माणे माया लोभे रागे मोहणिज्जे कटकम्मे वा जावठवणा कण्हलेसे जाव सुक्कलेसे कोहकसाई जाव लोभकसाई खीणकोहे जाव खीणलोहे खीणे जाव निट्ठिए गयखंधे जाव उसभखंघे चीरिय जाव पासंडत्था जहा जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दवाए तहा भाणिअव्वा जाव से तं जहा दव्वज्झयणे जाव से तं जाणग° जहा दवावस्सए तहा भाणिअव्वं जाव से तं जाव से कि तं जाव से तं जीवदव्वा जाव अणंता जीवविप्पजढं जाव महो पूर्त-स्थल सू० १५३ सू० ६२४ सू० १४६ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ६०७,६०८ सू० ६२६ सू० ५४६ सू० ६१७ सू० ६१७ सू० ३१ सू० २७५ सू० २७५ सू० २८२ सू० ४३६,४३८ सू० ६७ सू० २६ सू० ६७८-६६० सू० ६१७ सू० ६१७ सू० १० समवओ ६१ सू० २७६ सू० २७६ सू० ४२२ सू० ६३ सू० २० सू० ६५२-६६४ सू० ६२६ सू० १७ सू० १३-१७ सू० १४ सू० ४४५ सू० ६५० सू० ३८ सू० ५६३-५६७ सू० ६४८ सू० ४४५ Page #966 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू० ३० जीवस्स वा जाव सुए जीवस्स जाव से तं दहेजा जाव नो सू० १ सू० ५५६ सू० १ सू० ४२६,४३१,४३६,४३० सू० ४२२ तं चैव पुव्वभणियं भाणियव्वं जाय से तं तत्थ अपसत्थे डोडिणि-गणिया अमच्चाईणं, पसरथे गुरुमाईणं सू० १६ } तमतमा जाव रयणप्पभा वृत्ति सू० १८१ सू० ६५४-६५६ तिण्णि वि जहा लोइए जाव से तं तेहि जाव भरिए दव्वसामाइए वि तहेब जाब से तं दव्वसुयं जान कम्हा दव्वाणुपुव्वी जाव से कि त दुपएसियाइधे जाव अनंतपएसिए सू० ३७ सू० १७,६८ सू० १८२ सू० ६५८-६६० सू० ४२६, ४३१,४३६,४३० सू० ४२२ सू० ६६६-७०४ सू० ३५ सू० १०५-११० सू० ६८ सू० ३४८ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ७७-७६ सू० १०२-१०४ सू० ५३ ५५ सू० ६४८ धम्मस्थिकाए जाव अद्धासमए धम्मपएसो जाव सिय धम्मे जाव खंधे नामडुवणाओ गयाओ नामदुवणाओ तब नामदुबणाओ पुण्वभणियाणुवकमेण भाणिअय्याओ नेगमस्स णं जाव जावइया नोआगमओ य जाव जाणगसरीर० पज्जवसंता जाव अणुभगदारसंखा परिजियं जाव एवं परिजियं जाव कम्हा परिजियं जात्र तो अणुप्पेहाए सू० ६२२-६२७ सू० १४ सू० १२-१७ सू० ६४ सू० १४८ सू० ५५७ सू० ५५७ सू० ६-११ सू० १-११ सू० ६-११ CH सू० १४ सू० १३-१८ सू० ५७१ सू० ८१-८६ सू० ५७२ सू० ६२३,६२४ सू० ६४७ सू० ३४ सू० १३,१४ सू० १३ सू० १३ सू० ६३५,६३६,६७३,६७४ परिजियं जाव से तं पुढविकाइए जाव तसकाइए पोत्थकम्मे वा जाव से तं सू० १३, १४ सू० २७५ सू० २५४ सू० ५६० सू० १४२ सू० ४६६ फुसंति जाव नियमा बबेल्लया जाय तासि रयणीए जाव जलते रामायण जाव चतारि विक्खंभेणं जाव परिक्खेवेणं संतपयपरूवणया जाव अप्पाबहु सेसं जहा दव्वज्भयणे जाव से तं जाणग० सेसं जहा दव्वज्भयणे जाव से तं भविय० सू० २० ० ५४८ सू० १० सू० १४१ सू० ४६३ सू० १९ सू० ४६ सू० ४२२ सू० १२१ सू० ६२६ सू० ६२७ सू० ४३८ सू० १६५,२०६ सू० ६७६ सू० ६७७ त्ति Page #967 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है सेसं जहा दवावस्सए तहा भाणियव्वं नवरं खंधाभिलावे जाव से कि तं सोहम्मे जाव अच्चुए होज्जा जाव सव्वलोए सू० ५७-६१ सू० २८७ सू० १३-१७ सू० १८६ सू० १२४ सू० १२४ दसाओ अज्झथिए जाव संकप्पे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था अणालोइय जाव देवलोएस अणालोइय तं चेव जाव विहरति अणालोइयपडिक्कते सव्वं तं चेव जाव से णं अणितिया तहेव जाव संति अणुपविसइ जाव कप्परुक्खए अण्ण देवं अण्णं देवि तं चेव जाव परियारेति अण्णतरेसु जाव से णं अतिजायमाणीए वा जाव कि भे अधुवा जाव पुणरागमणिज्जा अधुवा जाव विप्पजहणिज्जा. अधुवा तहेव संति अरहताणं जाव तं गच्छामो आउक्खएणं जाव अण्णतरंसि आसासणिज्जा जाव अभिलसणिज्जा इरियासमिता जाव बंभचारी उग्गपुत्ता तहेव दारए जाव कि भे उप्पण्णंसि वा जाव भत्तं पच्चक्खाइत्ता जाव कालमासे उवासगपडिमा जाव आरंभे एगजाता इट्टा कता जाव रयणकरंडगसमाणा एगजाता जाव किं भे एगजाता जाव तहेव सव्वं भाणियव्वं ओरालाइं जाव विहरामो कंखइ जाव से णं कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकार करयल जाव एवं करयलपरिग्गहियं जाव जएणं खलु जाव पडिसुणित्तए १०।२२ १०।२३ १०।३१ १०।३० १०।३२ १०।२६ १०।११ १०१२८ १०।२६ १०।२६ १०।३२ १०।३१,३२ १०१३० १०।११ १०।२६ १०।२७ १०।३२ १०२७ भ० २।३१ १०।२२ १०।२४ १०।२४ १०।३१,३२ १०।२८ ओ० सू० ६३ १०।२८ १०।२४ १०।२५ १०।३१ १०१२८ १०१२८ ओ० सू० ५२ १०।२४ १०।२७ ओ० सू० २७ १०।२४ १०।३२ १०॥२५ १०.२६ १०।२६ १०।२२ १०॥६ १०।२२ १०१४,१० १०।३१ ६।१५ १०।२५ १०।२५ १०.२५ १०।२२ १०१६ १०१२२ ओ० सू० ५६ ओ० सू० २० १०।२४ १०६ १०।२७ Page #968 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।१० ६।११ ओ० सू० २२ चाउद्दसट्ट जाव अणुपालेता चाउद्दसि तहेव चेइए जाव विहरति चेव जाव पज्जुवासति णरिदे जाव मज्जणघराओ तं चेव तं चेव तं चेव जाव साहू तव तं चेव सव्वं जाव से गं तव तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव वयमवि तवनियम जाव अत्थि तवनियम जाव वयमवि तवनियम तं चेव जाव एवं तवनियमस्स जाव आगमेस्साणं दसणेणं जाव परिनिव्वाणमग्गेण दारियं जाव भारियत्ताए दिगिछाए जाव उदिण्णकामजाता दिगिछाए जाव से य दिगिछा जाव उदिण्णकामभोगे दूइज्जमाणे जाव अप्पाणं देवलोगातो तं चेव पुमत्ताए जाव कि भे निग्गंथे जाव से परक्कमेज्जा निदाणस्स जाव णो नियम जाव भंजमाणी पच्चायाति जाव तते णं पडिक्कमंति जाव अहारिहं पण्णत्ते जाव माणुस्सगा पण्णत्ते जाव से य पण्णत्ते तं चेव पण्णत्ते तं चेव सव्वं जाव से य पत्थेति जाव अभिलसति पावयणे जाव सव्वदुक्खाणमंतं पावयणे तह चेव पावयणे तहेव पावयणे सेसं तं चेव जाव जस्स ६।११ ६।१२ १०।६ १०.२० १०।११ ७।१२ ७।१४,१५ १०।२४ १०।२६ १०।२८ १०।२७ १०१३२ १०।३० १०॥३१ १०१३३ १०।२६ १०।२७ १०।२६ १०।२८ १०६५ १०।२८ १०।३३ १०॥२६ १०।२५ १०।२६ १०।३४ १०।३० १०॥३२ १०।२९ १०।३१ १०६ १०।२५ १०।२६ १०।२८ १०।२७ ,, ,, ६३ ७।१० ७१३ १०।२२ १०।२८,२६ १०।२२ १०१२२ १०.२२ १०।२८ १०।२४ पज्जो०८१ १०।२५ १०।२५ १०।२४ १०।२४ १०।२४ १०।२४ १०।२४ १०।२४ १०२५ ठा०३।३४१ १०।२८ १०।२८ १०।२८ १०।२८ १०१६ १०।२४ १०।२४ १०।२४ १०।२४ Page #969 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाउप्पभायाए जाव जलते पुरिसजातस्स जाव अभविएणं पुरिसजातम्स जाव सदहेज्जा पुत्रानुपुचि जाव संजमेणं भवंति जाव कि भ भवक्खणं तं चैव वत्तव्यं नवरं हंता सहेज्जा भवति....उद्दिदुभते भवति जाव रातोवरात महामाउया जाव कि भे महामाउया जाव पुमत्ताए महिच्छे जाव आगमेस्साए महि जाव दाहिणगामिए जाव दुल्लहबोहिए महिडिए जाव चइता महिड्डिया जाव महेसक्खा महिडीए जाव महसबसे माहणे वा जाव णं पडिसुणेज्जा माहणे वा जाव पडणेज्जा बोसट्टकाए जाव अहियासेति संपत्ते जाव अप्पाणं सकोरेंटमल्लदा मेणं छत्तणं घरिज्जमाणेणं उवागमेणं नेयवं जाय पज्जुवासद सदेवमणुयामुराए जाव बहूई सद्दहणवाए जाव रोवणाए सव्वधम्म जाव उद्दिभत्ते सव्वधम्म जाव रातोवरात सव्वधम्म जाव से सामाइयं तहेव सिम्भेग्ना जाव सम्वदुक्खाणं सील जाय सम्म सीलव्यय जाव पट्टवियाई सीलव्यय जाव पोसहोववासाई सेसं तं चैव जान अणुपालिया हट्ट जाय परिणे हट्ठ जाव हियए हट्ठ जाव हियया द्रुवुदु जाव भवति 북 ७/२० १०।२७ १०।३१ १०।११ १०।३१ १०/३० ६।१७ ६।१५ १०/२७ १०।३१ १०.२८ १०।२७ १०.२७ १०।२२ १०।२२ १०।२६ १०/२८ ७।२७,४२ १०/६ } १०।१४- १६ १०/३३ १०१२८ ६।१८ ६।१४ ६।१३ ६।१२ १०।३२ ६।१२ ६।११ १०.३१ ७।३१ १०।१२ १०।१० १०/४ १०/६ बो० सू० २२ १०।२४ १०.३० १०1३ १०।२४ १०/२६ ६।१६ ६।१३ १०।२४ १०।२४ १०/२४ १०।२४ १०।२५ १०।२२ भ० १।३३६ १०.२५ १०।२४ ७ ॥४ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ६४.६९ राय० सू० ८१५,८१६ १०।२८ ६।१६ ६।१३ ६।१२ ६।१० १०।२४ ६५ ६।५ १०.३० ७/२८ उवा० १।४६ ** आ० सू० २० ओ० सू० २० Page #970 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हट्ठतुट्ठ जाव मज्जणघरं हट्ठ जाव हियए हियाए जाव अणुगामियत्ताए अनंते जाय पासमाणे अणुत्तरे जाव केवल ● अणुत्तरे जाव सब्दलोए अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था अहे जाव सयमेव आहारवक्कतीए जाव गन्भत्ताए उवस्तयंसि वा जाव उबागच्छित्तए करयल जाव कट्टु करयल जाव ते करवल जाय पडिणिता करवल जान पडिसुर्णेति कालसमयंसि जाव चित्ताहि गन्भत्ताए खुद्दाए जाव जम्म० गतिकल्लाणाणं जाव भद्दाणं तं चैव सव्वं दक्खे जान तिष्णि निग्गंथीए वा जाव पडिले हियव्वे भत्ताए वा जाव पविसित्तए इंदियाणं जाव आसाढाहि वक्कते जाव अभीइणा वक्ते जाय चित्ताहि सव्वक्खर जाव चोट्स पुब्वीचं सव्वक्खर जाव होत्या हट्ठे जाव महियए हडे जाव नो गलिए आइक्खित्तए वा जाव पवेइत्तए आवणगिहंसि वा जाय अंतरावर्णसि एमनाएन वा जाव एगसिलोएण " पज्जोसवणाकप्पो १०.११ १०1७ ७३५ कप्पो १६६ ११५ १३० ૫૪ १६५ १६१ २५७ १५,४१,४४,६३ ४८ ६३ ४३ १२७ १ १७८ २७३,२७४ १२६ २६४,२६५, २६६, २७० २७१ १६३ १२६ १२१ १३६ १५ ५६ ३।२४ १।१३ ३।२४ ओ० सू० ६३ १०१४ ७३४ ११५ ८१ ८१,११५ ५२ ७५ २ २५६ ४१ ४१ २ ६० १०५ २७२ ११३ २६३ २७१ १११ १०८ १०८ ६७ ६७ ५ ५४ ३।२३ १।१२ ३।२३ Page #971 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं तणेसु वा जाव संताणएसु ४१४ ४।३२,३३,३४ ४।३१ ववहारो अणालोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं अहासुत्तं जाव अणुपालिया आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं आलोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं उवसंपज्जियवा जाव छए एवं बहुसो वि एवं बहुसो वि पवावेत्तए वा जाव संभुंजित्तए मुंडावेत्तए वा जाव उद्दिसित्तए ७.१ ६।४० ३।१३ ७।२,३ ५।१२ १११६ १११८ ७७ ७1८,8 निसीहज्झयणं ६।१० ६।३५ ३१७ ६।११ ४।१२ १११५ श१७ ७६ ७१६ १५८ १११४ १५७ ११११ ७४ ८.१५ चूणि ३३१ अंबं वा जाव चोयगं अयबंधणाणि वा जाव वइरबंधणाणि अयलोहाणि वा जाब सूवण्णलोहाणि १७१६ असणं वा ४ जाव सातिज्जति ६।१०।१२।१६ आइणादि जाव वत्थसुत्तं १७.१२ आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु ७७८,७६% १ आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु वा कोउहल्लपडियाए पडियागतं समाणं असणं वा ४ ओभासति २ जायति जायंतं वा साति एवं एतेण वि चत्तारि गमगा ३३५-८ आदी जाव तेण परं २०१४५ आरोवणा जाव तेण परं २०॥३६,४७-४६ आसजुद्धाणि वा जाव सूकरजुद्धाणि १२।२५ एगित्थीए जाव साति ८.५,६ एगो जाव साति एतेण अभिलावेण सोचेव गमओ भाणियव्वो जाव रएंतं ३।२३-२७ एतेण गमेण णावागओ जलगयस्स णावागओ पंकगयस्स णावागओ थलगयस्स एवं जलगएण वि चत्तारि पंकगएण वि चत्तारि थलगए भाणेयव्वो १८॥१८-३२ ३११-४ २०१६ २०१६ १२।२४ ८१ ८।१ ८1८ ३।१७-२१ १८।१७ Page #972 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३।२६-३३ ३१५६-६४ ३।१७-२१ ३।१६-२१ ३१२-४ ३।१ १३।३३-३८ १३१३१ ६।२०-२४ १४।३२,३३ १७।१२६-१३१ ६।१६ १४।३१ १७११२८ १५।६८-७५ ५।५०-५६ ८॥२-६ ५।४८ एयस्स पायगमओ चेव भाणियव्यो जाव रएतं एवं अच्छिसू पायगमओ भाणियवो जाव रएज्ज एवं अण्णउत्थिया वा गारस्थिया वा अण्णउत्थिणीं वा गारत्थिणी वा अण्णउत्थिणीओ वा गारत्थिगीओ वा एवं असीए मणीए उडुपाणे तेल्ले फाणिए वसाए अप्पाणं एवं अहयाइं धोयरत्ताई मलिणाई चित्ताई विचित्ताई एवं आउकायं तेउकायं एवं आउते उपतिट्टियं वण्णप्फतिकायपतिट्रियं एवं उज्जाणंसि वा ४ अट्टालगंसि वा ४ उदगंसि वा ४ परिढुवेइ सुण्णागारंसि वा ४ तणसालासु वा ४ जाणगिहेसु वा २ पणियगिहेसु वा महाकुलेसु वा महागिहेसु वा परिवेइ एवं उट्ठणासाकक्खहत्थणहपत्तपुप्फफलबीयहरिय एवं उट्ठवीणि णासावीणि कक्खवी हत्थवी णहवी पत्तवी पृष्फवी फलवी बीयवी हरियवीणियं करेति एवं उठे पायगमो भाणियव्वो एवं एतेण चेव चत्तारि गमगा एवं एते वि दोहि चेव पाडिहारियसागारियगमएहि जयव्वा एवं ओसणं कुसीलं णितियं संसत्तं काहियं पासणियं मामायं संपसारयं एवं ओसण्णस्स कुसीलस्स णितियस्स संसत्तस्स एवं चउत्थ भंगो एवं चाउम्मासियं जाव सवीसतिराता दो मासा एवं चोहसमे उद्देसे पडिग्गहे जो गमो भणिओ सो चेव इहं वत्थेण णेयव्वो जाव वासाए वसति वसं साइ णवरं तोरणं णत्यि एवं छट्र उद्देसगमेण यवो जाव जे माउ एवं जहा तइए उद्देसए गंडादीण जो गमओ नो चेव इहंपि णेयव्वो जाव अण्णयरेण आलेवणजाएण आलिपेज्ज वा विलिपेज्ज वा आलितं वा विलितं वा साति एवं जाव धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा ॥३८-४७ ३१५०-५५ ३।१०-१२ ५।१६ ३।१६-२१ ३९ ५।१६-२२ ५।१५-१८ १३१४५-६० ४।२६-३६ १२।३४-३६ २०।२१ १३।४३,४४ ४।२७,२८ १२॥३३ २०।१६ १८१३४-७३ ७१५-६६ १४॥२-४१ ६।२६-७७ ३।३७-३६ Page #973 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूणि १४।२-४ ६।१३,१४ ३।१७-६६ ३.१७-६६ ३।१७-६८ ३।१७-६८ ३।१७-६८ ३।१७-६८ २०१६ एवं जाव वणप्फइकायस्स १२ एवं जो चोद्दसमे उद्देसे पडिग्गहगमो णेयव्वो जाव अच्छेज्जं नवरं दुरुहइ २ भाणियव्वं १८॥३-५ एवं णदिजत्तापट्टियाणं णदिजत्तापडिणियत्ताणं गिरिजत्तापट्रियाणं गिरिजत्तापडिणियत्ताणं ६।१५-१८ एवं तइउद्देसगमएणं णेतव्वं जाव जे निग्गंथो निग्गंथस्स १७।१६-६८ एवं तइय उद्देसए यव्वं जाव गामाणुगाम ४१५५-१०७ एवं तइय उद्देसग यवं णवरं अण्णउत्थियगारत्थियाभिलावे जाव गामाणुगामं ११११२-६३ एवं तइए उद्देसगमए जाव जे १५।१००-१५१ एवं तइय उद्देसगमओ णेयव्वं जाव जे गामाणुगाम १५।१४-६५ एवं तइय उद्देसो जो गमो सो च्चेव इह मेहुणवडियाए णेयव्वो जाव जे माउग्गामस्स ६।२६-७७ एवं तेमासियं दोमासियं मासियावि जाव सवीसतिराता दो मासा २०।२२-२४ एवं दंडगं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा जाव जमात २।२५ एवं दगवीणियं सिक्कगं वा सिक्कगणंतगं वा सोत्तियं वा रज्जुयं वा चिलिमिलि सूईए उत्तरकरणं पिप्पलयस्स उत्तरकरणं णहच्छेयणगस्स कण्णसोहणयस्स उत्तरकरणं २।११-१७ एवं दिया पडिग्गाहेत्ता रत्ति भजति रत्ति पडिग्गाहेत्ता दिया भुजति रत्ति पडिग्गाहेत्ता रत्ति भुजति १११७६-७८ एवं दीहाई अच्छिपत्ताई ३१५८ एवं दूति निमित्तपिंड आजीविय वणीमग तिगिच्छा कोह माण माया लोह विज्जा मंतं जोग चूण्ण अंतद्धाण १३।६२-७५ एवं धरेति वितरति परिभाएति परिभजति २।३-६ एवं पंचण्हं मासा मासाणं चाउम्मासियं तेमासियं दोमासियं परिहारट्राणं मासियस्सवि जाव तेण परं २०१३१-३५ एवं पक्खे पक्खे आरोहेयवो जाव छम्मासा पुण्णति २०१३७-४४ एवं पण्णरसे उद्देसे अंबस्स जहा गमो सो चेव इह णेयव्वो १६।५-११ २।२४ २०१० १११७५ ३१५६ १३।६१ २११ २०१३० २०१३० १५॥६-१२; चूणि; आयार-चूला७४३६ Page #974 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४।२-४ १६।२६,२७ ११२३ १।१६ ११३१ ११३५ १०११ १५।१।१०।२-४ १७।१६-६८ १३१२५ ११३८ १६।१७,१८ ७८६,८७ एवं पामिच्चेति परियट्रेति अच्छेज्जं अणिसट्ठ १६।२-४ एवं पासत्थं ओसण्णं कुसील णितियं १६।२८-३५ एवं पिप्पलगं णहच्छेयणयं कण्णसोहणयं १२४-२६ एवं पिप्पलयं णखच्छेयणयं कण्णसोहणयं श२०-२२ एवं पिप्पलयं णहच्छेयणयं कण्णसोहणयं ११३२-३४ एवं पिप्पलयं णहच्छेयणयं कण्णसोहणयं ११३६-३८ एवं फरुसं १०।२ एवं फरुसं आगाढं फरुसं अण्णयरीए अच्चासएत्ति १५।२-४ एवं मग्गिल्लगमयं सरिसं णेयं कारवेंतं साति १७१७०-१२२ एवं मंतं जोगं १३।२६,२७ एवं माउग्गामाभिलावेण पढमुद्देसगमओ णेयन्वो जाव जिघति ६।४-९ एवं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं देति य पडि माति एवं वसहि पि दोहिं गमएहिं णेहि चेतिय अणुप्पविसति य साति १६।१६-२३ एवं वत्थंपि दोहिं गमएहिं सज्झायपि दोहि ७/८८-६१ एवं ववहार पढ मुद्देसगमाओ यवो जाव दस गमा समत्ता एकत्त बहुत्त मोवि जाव सब्वमेयं सकयं एक्कओ साहणित्ता जाए पट्ठवणाए पविए णिव्विस्समाणए पडिसेवेज्जा सो वि कसिणा तत्थेव आरुहेयव्वासिया २०१२-१८ एवं सचित्तपइट्रिएण वि चत्तारि आलावगा यव्वा १५॥१०-१२ एवं समुद्दिसति अणुजाणति वाएति पडिच्छति परियट्रेति ५१७-११ एवं ससिणिद्धाए ससरक्खाए मट्टियाकडाए पुढवीए चित्तमंताए पुढवीए चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलए कोलावासंसि वा ७।६९-७५ एवं सागारियसंते वि ५।१७,१८ एवं सो चेव रायगमओ णेयव्वो एवं देसारक्खितं सीमारक्खितं रण्णारक्खितं सव्वारक्खितं ४१४०-५३ करेइ जाव कहेंतं ८.११ करेति जाव परि जति ७७-६ करेति जाव परि जति ७।१०-१२ खत्तियाणं जाव भिसित्ताणं ६७,११,२७ खत्तियाणं जाव मुद्धाभिसित्ताणं ८।१५,१६ खुज्जाण वा जाव पारसीण ६।२६ ववहारो ११२-१८ १५६; १५॥६-८ ५॥६ ७।६८ ५।१५,१६ ४११-३ ८१ ७७;७१-३ ७।१०।७।१-३ ८।१४ ८।१४ ओवाइयं सू० ७० Page #975 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१६ चूर्णि १२।२० १२।२० १२।२० १२।१७ ३१३४,३५ खुड्डियाए वा जाव थेरियाए हस्थच्छिण्णस्स असक्कस्स १४१७ गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि ५१३४ गामपहाणि वा जाव सण्णिवेस १२।२३ गाममहाणि वा जाव सण्णिवेस १२।२१ गामवहाणि वा जाव सण्णिवेस १२।२२ चक्खु जाव साति १२।१८-२६ जे अप्पणो कायंसि गंडं वा पिडयं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्ख जाव विच्छिदिया जाव पूयं वा जाव विसोहेता सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज बा पधोवेज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति एवं अण्णयरेणं आलेवणजाएण आलिपेज्ज वा विलिपेज्ज वा आलिपंतं वा विलिपंतं वा सातिज्जति एवं अभंगित्ति वेत्यादि एवं एतेण गमएण धूवेज्ज वा पधवेज्ज वत्ति णेयव्वं ३॥३६-३६ जे एवं ससिणिद्धाए जाव कोलावासंसि वा दारुयंसि वा पतिनिस्सियंसि जाव संताणयंसि ठाणं वा जाव चेति उच्चे साति १३।२.८ जे भिक्खू दिवा आलेवणजायं पडिगाहेति पडिगाहेतं वा साति दिवा कायंसि वणं जाव चउभंगो १२।३७-४० जे वप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव इहलोइएसु वा सद्देसु जाव अज्झोववज्झमाणं साति १७।१४०-१५२ जे ससिणिद्धाइयंसि वा कुलियंसि वा जाव लेलूसि वा उच्चारपासवणं परिट्रावेति परिट्ठावेंतं वा सातिज्जति जे खंधसि वा जाव अंतरिक्खजायंसि उच्चारपासवणं १६।४२-५१ णायगं वा जाव अणुवासगं १४।३६ णीहरति जाव साति १४१३५ णीहरावेति जाव साति १४।३६ तणपासएण वा जाव सुत्तपासएण १७११ तणमालियं वा जाव हरियमालियं १७१३ दंडगं वा जाव वेणुसूइयं ५।६७ धरेति धरेंतं वा साति पिणद्धति पिणद्धतं वा साति ७।२,३ धरेति धरेंतं वा साति परिभंजति परिभुजंतं वा साति १११२,३ ७।६९-७५ १२।३३-३६ १२॥१८-३० १३।२-११ ८.१२ १४।३१ १४।३१ १२।१ ७१ १६४० Page #976 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साति ८।१४ घरेति धरेंतं वा साति परिभुजति परिभुजंतं वा साति १७७८ १७.६ धरेति धरेंतं वा साति परि जति परि जंतं वा १७.१०,११ १७ घरेति धरेतं वा साति परि जति परिभुजंतं वा साति एवं चित्ताई दारुदंडाणि वा वेणु वेत्त एवं विचित्ताणि वि दारुदंडा जाव साति ५।२६-३३ ५/२५ धरेति धरेत वा साति पिणद्धति पिणद्वंतं वा साति १७।४,५ १७।३ धरेति परिभुजति जाव साति १७।१३,१४ १७.१२ परिहारट्ठाणं जाव तेण परं २०१२६,२८-३० २०।१६ परिहारद्वाणं तेण पर २०१२७ २०१६ पिंडनियरेसु वा जाव असणं आ० चू० १।२४; चूर्णि पूढवीए स स जाव जीवपतिट्रिते सउडे जाव संकपणं डिग्गहगं आयावेज्ज वा पायावेज्ज वा साति । जे कुलियंसि वा जाव लेलसि वा पडि अ साति । खंधंसि वा जाव पासायंसि वा अन्नयरंसि वा अंतरिक्ख जायंसि पडिग्गह १४।२०-३० १३।१-११ बद्धेल्लयं वा मुयति मुयंतं वा साति १२।२ १२।१ बद्धेल्लयं वा मुयति मुयंतं वा साति १७२ १७११ रणो जाव भिसित्ताणं ८.१७,१८;६।६,८-१०,१३ १४,१६-२६,२८,२६ ८।१४ वत्थं वसहि सज्झायं उद्दसति वाएति पडिच्छति १६।२६-३३ १६।२८ वत्थं वा जाव पायपुंछणं १५८० ७.८८ सज्झायं वा जाव कहेंतं ६।१२ ८.१ सद्धि जाव कहेंतं ८।२,३,४,६,७ सरिसियाए जाव साति १७।१२४ १७४१२३ सातिज्जति जाव परिभुजंतं ७।४-६ ७।४।७।१०३ सातिज्जति जाव परि जंतं १११५,६ ११०४ सो चेव मग्गिल्लओ गमओ अणूगंतव्वो जाव साति ११४० ११३६ हत्थिकरणाणि वा जाव सूकरकरणाणि १२।२४ हत्थेण वा जाव भायणेण १२।१६ १२।१५ हाराणि वा जाव सुवण्णसुत्ताणि १७६ ७.७ ८१ Page #977 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-२ तुलनात्मक समवाओ द्वादशांगी का विवरण नंदी और समवाओ दोनों में मिलता है। समवाओ का विवरणनंदी सूत्र के विवरण से विकसित है। दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है। यह संभावना अति प्रसंग नहीं है। समवाओ का विवरण नंदी की रचना के बाद लिखा गया । गणित भाग के अनन्तर अकस्मात् समायोजित प्रस्तुत विवरण सहज ही उसकी सूचना है। दोनों विवरणों के अतिरिक्त जय धवला का विवरण भी यहां प्रस्तुत है : नंदी सू० ८१ पइण्णगसमवाय सू० ८६ १. सिक्खा-भासा-अभासा-चरण-करण-जाया- ट्ठाण-गमण-चंकमण-पमाण-जोगजुंजण-भासा-समितिमाया-वित्तीओ आविज्जति । गृत्ती - सेज्जोवहि - भत्तपाण-उग्गमउप्यायणएसणाविसोहि - सुद्धासुद्धग्गहण-चय - णियम - तवोवहाण सुप्पसत्थमाहिज्जइ। २. आयारे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणु- आयारस णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा ओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखे- सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीयो। ज्जाओ पडिवत्तीबो। ३. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । सासया कडा णिबदा णिकाइया। ४. परूवणा आघविज्जइ । परूवणया आधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू०८२ सू०६० ५. सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइ- सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ । जीवा ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जंति, जीवाजीवा सूइज्जति जीवाजीवा सूइज्जति लोगे सूइज्जति सूइज्जति । ससमए सूइज्जइ, परसमए अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति । सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ। ६. सूयगडे णं आसीयस्स। सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जरबंध-गोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, समणाणं Page #978 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. पावादुय-सयाणं । 5. X अचिरकालपव्व इयाणं कुसमयमोह-मोहमइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स। अण्णदिट्टिसयाणं । णाणादिळंतवयण-णिस्सारं सुट्ठ दरिसयंता विविहवित्थराणुगम-परमसब्भाव-गुणविसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूता सोवाणा चेव सिद्धिसुगइधरुत्तमस्स णिक्खोभनिप्पकंपा सुत्तत्था । सूयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ। ६. सूयगडे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखे ज्जाओ पडिवत्तीओ। १०. बिइए । ११. सासय-कडा-निबद्ध-निकाइया। १२. परूवणा आघविज्जइ । दोच्चे। सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । परूवणया आधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० ८३ १३. ठाणे णं जीवा ठाविज्जति, अजीवा । ठाविज्जति । ससमए ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ । लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ लोयालोए ठाविज्जइ । १४. ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पन्भारा, कुंडाई, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ, आषविज्जति । सू० ६१ ठाणे णं ससमया ठाविज्जंति परसमया ठाविज्जति ससमयपरसमया ठाविज्जति जीवा ठाविज्जति अजीवा ठाविज्जति जीवाजीवा ठाविजंति लोगे ठाविज्जति अलोगे ठाविज्जति लोगालोगे ठाविज्जति । ठाणे णं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जवपयत्थाणंसंगहणी गाहा १५. ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्डीए दसट्राणग-विवड़ियाणं भावाणं परूवणा आधविज्जइ। १६. ठाणेणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणु ओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सेला सलिला य समुद्द-सूरभवणविमाण बागर णदीओ। णिहमओ पुरिसज्जाया, सरा य गोत्ता य जोइ. संचाला ॥१॥ एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वय जीवाण पोग्गलाण य लोगट्राइणं च परूवणया आघविज्जति । ठाणस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा Page #979 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखे- सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ ज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडि- संगहणीओ। वत्तीओ। १७. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । १८. परूवणा आघविज्जइ । परूवणया आधविज्जति पण्ण विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू०६२ समवाए णं ससमया सूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजीवा सुइज्जति जीवाजीवा सूइज्जति लोगे सूइज्जति . अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति । सू० ८४ १६. समवाए णं जीवा समासिज्जति, अजीवा समासिज्जंति, जीवाजीवा समासिज्जंति । ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय-परसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जइ अलोए समासिज्जइ लोयालोए समासिज्जइ । २०. समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसय-विवड्डियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ। दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समासिज्जइ । समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवूड्डीय, दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्ज इ । ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समायारे आहिज्जति, तत्थ य णाणाविहप्पगारा जीवाजीवा य वण्णिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग-तिरिय-मणुय-सुरगणाणं आहारुस्सासलेस-आवास-संख-आययप्पमाणं उववायचयण-ओगाहणोहि - वेयण - विहाण-उवओग-जोगइंदिय-कसाय, विविहा य जीवजोणी विक्खंभुस्सेहपरिरय-प्पमाणं विधिविसेसा य मंदरादीणं महीधराणं कुलगर-तित्थगर-गणहराणं समत्तभरहाहिवाण चक्कीणं चेव चक्कहर-हलहराण य वासाण य निग्गमा य समाए। एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेणं अत्था समासिज्जंति । समवायस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जूत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। २१. समवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। Page #980 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२. एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे । एगे अज्झयणे एगे सुयक्खंधे। २३. संखेज्जा अक्खरा । संखेज्जाणि अक्खराणि । २४. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । २५. परूवणा आघविज्जइ। परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० ८५ २६. वियाहे णं जीवा विआहिज्जंति, अजीवा वियाहे णं ससमया वियाहिज्जंति परसमया विया विवाहिज्जंति, जीवाजीवा विआहिज्जति । हिज्जति ससमय-परसमया वियाहिज्जति जीवा ससमए विाहिज्जति, परसमए विआ- वियाहिज्जति अजीवा दियाहिज्जति जीवाजीवा हिज्जति, ससमय-परसमए विआहिज्जति ।। वियाहिज्जति लोगे वियाहिज्जइ अलोगे वियालोए विाहिज्जति, अलोए विआहिज्जति, हिज्जइ लोगालोगे वियाहिज्जइ । लोयालोए विआहिज्जति । २७.x वियाहे णं नाणाविह-सुर-नरिंद-रायरिसि-विविहसंसइय-पूच्छियाणं जिणेणं वित्थरेण भासियाणं दव्व-गुण - खेत्त-काल-पज्जव-पदेस-परिणाम-जहत्थिभाव - अणुगम-निक्खेव-णयप्पमाण-सुनिउणोवक्कमविविहप्पगार-पागड-पयंसियाणं लोगालोग-पगासियाणं संसारसमुद्द-रुंद - उत्तरण-समत्थाणं सुरपति-संपूजियाणं भविय-जणपय-हिययाभिनंदियाणं तमरयविद्धंसणाणं सुदिट्ठ-दीवभूय-ईहा-मतिबुद्धि-वद्धणाणं छत्तीससहस्समणूणयाणं वागरणाणं दंसणा सुयत्थ-बहुविहप्पगारा सीसहियत्थाय गुणहत्था । २८. वियाहस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा वियाहस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओग अणुबोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा दारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखे- सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहज्जाओ संगहणोओ संखेज्जाओ पडि- णीओ। वत्तीयो। २६. दो लक्खा अट्टासीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं । चउरासीई पयसहस्साई पयग्गेणं । ३०. संखेज्जा अक्खरा । संखेज्जाइं अक्खराई। ३१. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । ३२. परूवणा आधविज्जइ। परूवयणा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू०८६ सू० ९४ 1. समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो। रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई। 5. परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं। सूयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा। Page #981 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५. सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलामा । ३६. आघविज्जति । सुकुलपच्चायाती पुणबोहिलाभो । आधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । नाया-धम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिणसामि-सासणवरे संजमपइण्ण-पालण-धिइ-मइववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-णिसहा-णिसट्राणं, घोरपरीसह-पराजियाऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं, विसयसुह - तुच्छ - आसावस-दोस- मुच्छियाणं विराहियचरित्त- नाण-दसण-जइगुण-विविह-प्पगार-निस्सारसुण्णयाणं संसार- अपार- दुक्ख-दुग्गइ-भव-विविहपरंपरापवंचा। धीराणय जिय-परिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणियसंजम-उच्छाहनिच्छियाणं आराहिय - नाण - दंसणचरित्त-जोग-निस्सल्ल-सुद्ध-सिद्धालयमग्ग-मभिमुहाणं सुरभवण-विभाण-सुक्खाई अणोवमाई भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि ततो य कालक्कमच्चुयाणं जह य पूणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया। चलियाण य सदेव-माणुस्स-धीरकरण-कारणाणि बोधण-अणुसासणाणि-गुण-दोस-रिसणाणि । दिद्रुते पच्चए य सोऊण लोगमुणिणो जह य ठिया सासणम्मि-जर-मरण-नासणकरे। आराहिय-संजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओवेंति जह सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं । एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेण य । नाया-धम्मकहासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणु ओगदारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्टयाए छठे अंगे दो सुअक्खंधा एगूणतीसं अज्झयणा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहाचरिता य कप्पिया य । ३८. दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एग- मेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाइं । एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाई एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइओक्खाइयासयाईएवमेव सपुवावरेणं अद्भुट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति ति मक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जु दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई । एगमेगाए अक्खाइयाए पंच-पंच उवक्खाइयासयाई। Page #982 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच-पंच अक्खाइय-उवक्खाइयसयाई-एवामेव सपुव्वावरेणं अधुटाओ अक्खाइयकोडीओ भवंतीति मक्खायाओ। तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।। से णं अंगट्ठयाए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा, एगूणतीसं अज्झयणा । ३६. संखेज्जाइं पयसहस्साइं । ४०. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया। ४१. परूवणा आघविज्जइ । संखेज्जाइं पयसयसहस्साई । सासया कडा णिबद्धा निकाइया । परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० ८७ ४२. समणोवासगाणं । ४३. समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो। ४४. भोग-परिच्चाया, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, सीलव्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण - पोसहोववास-पडिवज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुल-पच्चायाईओ, पुण बोहि- लाभा, अंतकिरियाओ य आधज्जिति । ४५. x उवासयाणं । रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई। उवासयाणं च सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाणपोसहोववास-पडिवज्जणयाओ सूयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जति । उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थर-धम्मसवणागि बोहिलाभ- अभिगम - सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा ठिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमाभिग्गहग्गहण-पालणा उवसग्गाहियासणा णिरुवसग्गा य, तवा य विचित्ता, सीलव्वय - वेरमण - गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववासा, अपच्छिममारणंतियायसंलेहणा - झोसणाहिं अप्पाणं जह य भावइत्ता, बहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेयइत्ता उववण्णा कप्पवरविमाणुत्तमेसु जह अणुभवंति सुरवरविमाणवरपोंडरीएसु सोक्खाई अणोवमाइं कमेण भोत्तूण उत्तमाइं, तओ आउक्खएणं चुया समाणा जह जिणमयम्मि बोहिं लक्ष्ण य संजमुत्तमं, तमरयोघविप्पमुक्का उति जह अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं । एते अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण य । उवासगदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा ४६. उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा Page #983 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, सम्ब- संखज्जा सिलागा संखेज्जाओ निज्जुलीओ संखे ज्जाओ संगहणीओ, मंखेज्जाओ पडिवत्तीओ। ज्जाओ मंगहणीओ। ४७. संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा संखेज्जाई पयसयसहस्साई पयग्गेण संखेज्जाई अक्खरा । अक्खराई। ४८. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । मासया कडा णिबद्धा णिकाइया । ४६. परूवणा आघविज्जइ। परूवणया आविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जात दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदसिज्जति । सू०८८ ५०. समोसरणाई, रायाणो, अम्मापिय रो। रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई। ५१. परिआया। ५२. संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओव- पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जव मद्दवं च, सोअं गमणाई, अंतकिरियाओ य आघ- च सच्चसहियं, सत्तरस विहो य संजमा, उत्तम च विज्जति । बंभ, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तह अप्पमाय जोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हपि लक्खणाई । पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाण चउविहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लभी, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेय इत्ता अंतगडो मुणिवरो तमरयोघविप्पमुक्को, मोक्खसुहमणुत्तरं च ।त्ता । एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थारेणं परूवेई । ५३. अंतगडदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओग अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा दारा मखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, मंखे- संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ ज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडि- संगहणीओ। वत्तीओ। ५४. अट्ठ वग्गा अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समु- दसअज्झयणा सत्त वग्गा दस उद्देस णकाला दस इसणकाला, संखेज्जाई पयसहस्साई । समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयसयसहस्साई । ५५. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । ५६. परूवणा आघविज्जइ । परूवणया आधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० ८६ ५७. समोसरणाई रायाणो, अम्मापिय रो। ५८. परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई पडिमाओ, उवसग्गा । सू०६७ रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई । सुयपरिग्गहा तवोवहाणई परियागा। Page #984 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० अणुत्तरोववत्ति सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो । ५६. अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चा याईओ, पुणबोहिलाभा । ६०. x अणुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाई परममंगल्लजगहियाणि जिणातिसेसा य बहविसेसा जिणसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्तचरित्त - णाण - सम्मत्तसार -विविहप्पगार-वित्थरपसत्थगुण-संजुयाणं अणगारमहरिसीणं अणगारगुणाण वण्णओ, उत्तमवरतव-विसिट्ठणाण-जोगजुत्ताणं जह य जगहियं भगवओ जारिसा य रिद्धिविसेसा देवासुरमाणुसाणं परिसाणं पाउब्भावा य जिणसमीवं, जह य उवासंति जिणवरं, जह य परिकहेंति धम्मं लोगगुरू अमरनरसुरगणाणं, सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्म-विसयविरत्ता नरा जह अब्भुवेति धम्ममुरालं सजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं, जह बहूणि वासाणि अणुचरित्ता आराहिय-नाण-दसण-चरित्त-जोगा जिणवयणमणुगय-महिय भासिया जिणवराण हियएणमणुणेत्ता, जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेय इत्ता लधुण य समाहिमुत्तमं झाणजोगजुत्ता उववण्णा मुणिवरोत्तमा जह अणुत्तरेसु पावंति जह अणुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं, तत्तो य चुया कमेणं काहिति संजया जह य अंतकिरियं । एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण । अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणूओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। ६१. अणुत्तरोववाइयदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुतीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ संखे ज्जाओ पडिवत्तीओ।। ६२. तिण्णि वग्गा, तिणि उद्देसणकाला, तिण्णि समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेण संखेज्जा अक्खरा । ६३. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । ६४. गरूवणा आघविज्जह । दस अज्झयणा तिण्णि वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि । सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । परूवणया आधविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । Page #985 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू० ६० ६५. अण्णे य विचित्ता दिव्वा विज्जाइसया । ६६. x ६७. पण्हावागरणाणं परिता वायणा, संखेज्जा अणुओोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवित्तीओ । ६८. संखेज्जाई पयसहस्साई । ६६. सासय-कड - निबद्ध निकाइया । ७०. परूवणा आघविज्जइ । ७१. x स० [१ ७२. तत्थ णं दस दुहविवागा, दससुहविवागा । से कि तं दुहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, घम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, निरयगमणाई, संसारभव २१ सू० ६८ विज्जाइसया । पहा वागरणदसासु णं ससमय परसमय पण्णवयपत्तेयबुद्ध-विविहत्थ भासाभासियाणं अतिसय-गुणउवसम-णाणप्पगार-आयरिय भासियाणं वित्थरेणं वीरमसीहि विविह वित्थर भासियाणं च जगहियाणं अद्दागं गुट्ठ- बाहु-असि मणि-खोमआतिच्चमातियाणं विवि महापसिणविज्जा-मणपसिणविज्जा देवयपओगपहाण सम्भूयविगुणप्पभाव नरगणमइ अतिसय मतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगम-दुरवगाहस्स सव्वसव्वण्णुसम्मयस्स बुहजणविबोहकरस्स पच्चक्खयपच्चयकराण पण्हाणं विविह्गुणमहत्था जिणवरप्पणीया आघविज्जति । पण्हावागरणेसु णं परिता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ । - गुणप्पासियाणं विम्हयकारीगं - संखेज्जाणि पयसय सहस्साणि । सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० CE से समासओ दुविहे पण्णत्ते, तंजहा - दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव । तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि । से कि तं दुहविवागाणि ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाई संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति । Page #986 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ पवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कूलपच्चायाईयो, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जह । सेत्तं दुहविवागा। से कि तं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराई, उज्जणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया । इनिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चखाणाई पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुहपरंपराओ, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जति । सेत्तं दुहविवागाणि । से कि तं सुहविवागाणि ? सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइ रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्विविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाती अंतकिरियाओ य आघविज्जति । दुहविवागेसु ण पाणाइवाय-अलियवयण-चोरिक्ककरण-परदार-मेहुण-संसग्गयाए महतिव्वकसायइंदियप्पमाय-पावप्पओय-असुहज्झवसाण-संचियाणं कम्माणं पावगाणं पाद-अणुभागफलविवागा णिरयगति-तिरिक्खजोणि-बहविह-वसण-सय-परंपरा-पबद्धाणं, मणुयत्तेवि आगयाणं जहा पावकम्मसेसेण पावगा होति फलविवागा । वहवसणविणास · नासकण्णोळंगुटकरचरणनहच्छेयण-जिब्भछेयण-अंजण-कडग्गिदाहण-गयचलण-मलणफालण-उल्लंबण-सूललयालउडलट्ठिभंजण-तउसीसगतत्ततेल्लकलकलअभिसिंचण- कुंभिपाग-कंपण-थिरबंधण-वेह-वज्झ-कत्तण-पतिभयकर-करपलीवणादिदारुणाणि दुक्खाणि अणोवमाणि बहविविहपरंपराणूबद्धा ण मुच्चंति पावकम्मवल्लीए । अवेयइत्ता है णत्थि मोक्खो तवेण धिइ-धणिय-बद्ध-कच्छेण सोहणं तस्स वावि होज्जा। एत्तो य सुहविवागेसु सील-संजम-णियम-गुण-तवोवहाणेसु सासु सुविहिएस अणुकंपाासयप्पओगतिकाल-मइविसुद्ध-भत्तपाणाई पयतमणसा हिय-सुहनीसेस-तिव्वपरिणाम-निच्छियमई पयच्छिऊणं पओगसुद्धाइं जह य निव्वत्तेति उ बोहिलाभ, जह य Page #987 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परित्तीक रेंति नर-निरय-तिरिय-सुरगतिगमण-विपुलपरियट - अरति - भय-विसाय-सोक-मिच्छत्त-सेलसंकडं अग्णाणतमंधकार-चिक्खिल्ल-सुदुत्तारं जरमरण-जोणि-संखुभियचक्कवालं सोलस कसायसावय-पयंड-चंड अणाइयं अणवदग्गं संसारसागरमिणं, जह य निबंधंति आउगं सुरगणेसु, जह य अणुभवंति सुरगणविमाणसोक्खाणि अणोवमाणि, ततो य कालंतरच्चुआणं इहेव नर-लोगमागयाण आउ-वउ-वण्ण-रूव-जाति-कुल-जम्म-आरोग्ग-बुद्धिमेहा-विसेसा मित्तजण-सयण-धण-धण्ण-विभव-समिद्धिसार-समुदयविसेसा बहुविहकामभोगुब्भवाण सोक्खाण सुहविवागोत्तमेसु ।। अणुवरयपरंपराणुबद्धा असुभाण सुभाण चेव कम्माण भासिआ बहुविहा विवागा विवागसुयम्मि भगवया जिणवरेण संवेग-कारणत्था । अण्णेवि य एवमाइया, बहविहा वित्थरेणं अत्थपरूवणया आधविज्जति । विवागसूअस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणूओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। ७४. विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा, संखे ज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडि वत्तीओ। ७५. इक्कारसमे अंगे दो सुयक्खंधा। ७६. संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा । ७७. सासय-कड-निबद्ध-निकाइया । ७८. परूवणा आघविज्जइ । एक्कारसमे अंगे। संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि। सासया कडा णिबद्ध णिकाइया । परूवणया आघविज्जति पण्ण विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सू० १०१ ७६. सत्त तेरासियाई। सू०१०९ सत्त तेरासियाणि । एवामेव सपुवावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीति भवंतीतिमक्खायाई । सू० १२० ८०. णं । ८१. पव्वज्जाओ। ५२. उग्गा । सू० १२८ एत्थ णं । सीयाओ पव्वज्जाओ। भत्ता। Page #988 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३. केवलनाणुप्पायाओ । ८४. सीसा, गणा, गणहरा । ८५. जं च । ८६. उत्तरवेउब्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो, जह देसिओ, जच्चिरं, च कालं पाओवगया, जे जहि जत्तियाई भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुणिवरुत्तमे तमरओघ - विप्पमुक्के, मुत्रखसुहमणुत्तरं च पत्ते । ८७. कहिया सू० १२१ ८८. गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ तित्थरगडियाओ चक्कवट्टिगंडियाओ, दसारगंडियाओ बलदेवगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, गणधरगंडियाओ, भदबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, हरिवंiडियाओ, ओसप्पिणी गंडियाओ उस्सप्पिणीगं डि याओ, चित्तंतरगंडियाओ । ८. परियदृणेसु आघविज्जति । एवमाइयाओ गंडियाओ सू० १२३ ६०. सासय- कड - निबद्ध-निकाइया । ६१. परूवणा आघविज्जति । सू० १२४ २. इच्चे इम्म । ६३. पण्णत्ता । ६४. संगहणी - गाहा - २४ केवलणाणुष्पाता ं । संघयण, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो, सीसा, गणा, गणहरा यौं । जं वावि । जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पातोवगता य जे जहि जत्तियाई भत्ता छेयइत्ता अंतगडा मुणिवरुत्तमा तम-रओघ - विप्यमुक्का सिद्धि-पहमणुत्तरं च पत्ता । कहिया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति । सू० १२६ गंडाणुओगे अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा - कुलगरगंडियाओ, तित्थगरगंडियाओ, गणधरगंडियाओ, चक्कवट्टिगंडियाओ, दसारगंडियाओ, बलदेवगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, भद्दबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ चित्तंतरगंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, ओसप्पिणीगंडियाओ । परिणाणुओगे, एवमाइयाओ गंडियाओ आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति । सू० १३१ सासया कडा णिबद्धा णिकाइया । परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परुविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं दिट्टिवाए । सेत्तं दुवाल संगे गणिपिडगे । सू० १३४ एत्थ । आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति । Page #989 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. भावमभावा हेऊ, महेऊ कारणमकारणा चेव । भवियमभविया सिद्धा असिद्धाय ॥ जीवाजीवा सू० १२६ ५. इच्चेइयं । ६६. न भवइ । ७. से जहानामए पंचत्थिकाए न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ । भुवि च भवइ च भविस्सइ य । धुवे नियए सासए अक्खए अन्वर अवट्ठिए निच्चे | नंदी सू० ८१-६१ २५ सू० १३३ दुवालसंगे णं । णत्थि । से जहाणामए पंच अत्थिकाया ण कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्संति । भुवि च, भवंति य, भविस्संति य । धुवा णितिया सासया अक्खया अव्या अवट्ठिया णिच्चा । जयधवला जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पेज्जदोसविहत्ती १ गाथा १ पृ० १२२-१३२, ६३, ६४ आयारंग जदं चरे जदं चिट्ठे जदमासे जदं सए । जदं भुंजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ण वज्झइ ।। इच्चायं साहूणमाचारं वण्णेदि । आयारंगे अट्ठारहपदसहस्साणि १८००० । सूदपदं णाम अंगं ससमयं परसमयं थीपरिणामं क्लैव्यास्फुटत्व- मदनावेश -विभ्रमाऽऽस्फालनसुख - पुंस्कामितादिस्त्रीलक्षणं च प्ररूपयति । सूदयदे छत्तीसपदसहस्साणि ३६००० । द्वाणं णाम जीव-पुग्गलादीणमेगादिएगुत्त रकमेण ठाणाणि वण्णेदि - एक्को चेव महप्पा सो दुवियप्पो तिलक्खणो भणिदो चदुसंकमणाजुत्तो पंचग्गगुणप्पहाणो य ॥ छक्कापक्कमत्तो उवजुत्तो सत्तभंगिसब्भावो । अट्ठासवो वट्ठो जीवो दसट्टाणिओ भणिओ || एवमाइसरूवेण । द्वाम्म बादालीसपदसहस्साणि ४२००० । समवाओ णाम अंगं दव्व-खेत्त-काल-भावाणं समवायं Page #990 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ वहि । तत्थ दव्वसमवाओ । तं जहा, धम्मत्थियअधम्मत्थिय लोगागास एगजीवाणं पदेसा अण्णोणं सरिसा । कथं पदेसाणं दव्वत्तं ? ण; पज्जवट्ठियणयावलवणाए पदेसाणं पि दव्वत्तसिद्धीदो । सीमंतमाणुसखेत्त उडुविमाण- सिद्धिखेत्ताणि चत्तारि वि सरिसाणि, एसो खेत्तसमवाओ । समयावलिय-खण-लव-मुहुत्त दिवस पक्ख मास उडुअयण-संवच्छर-युग-पुत्र-पव्व-पल्ल-सागरोस “प्पिणिउस्सप्पणीओ सरिसाओ, एसो कालसमवाओ । केवलणाणं केवलदंसणेण समाणं, एसो भावसमवाओ । समवायम्मि चउसट्टिसहस्सा हियएगलक्खमेत्त पदाणि १६४०००। वियाहपण्णत्ती णाम अंगं सट्टिवायरणसहस्साणि छण्णउदिसहस्स छिण्णछेयणजणि ( ज्जणी ) य सुहमसुहं च वदि । विवाहपण्णत्तीए अट्ठावीस सहस्सा हियवेलक्खमेत्तपदाणि २२८००० । नाहधम्मकहाणाम अंगं तित्थयराणं धम्मकहाणं सरूवं वण्णेदि । केण कहिति ते ? दिव्वज्भुणिणा । केरिसा सा ? सव्वभासासरूवा अक्खराणक्खरप्पिया अणतत्थगन्भबीजपद - घडियसरीरा तिसंज्भूविसय छघडियासु णिरंतरं पयट्टमाणिया इयरकाले सु संसयविवज्जासाणज्भवसाय भावगयगणहरदेवं पडि माणसहावा संकरवदिगराभावादो विसदसरूवा एऊणबीस धम्म कहाकहणसहावा । छप्पण्णसहस्साहियपंचलवखमेत्तप नाहधम्मकहाए दाणि ५५६०००० । उवासयज्भयणं णाम अंगं दंसण-वय-सामाइय-पोसहोववास - सचित्त रायि भत्त बंभारंभ परिग्गहाणुमामाणमेक्कारसह मुवासयाणं धम्मेक्कारसविहं वण्णेदि । उवासयज्झयणम्मि - - सत्तरसहसायिएक्कारस लक्खपदाणि ११७०००० । अंतयsदसा नाम अंगं चउव्विहोवसग्गे दारुणे सहि Page #991 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू० ६२ २७ यूण पाडिहेरं लणणिव्वाणं गदे सुदंसणादि-दसदस-साहू तित्थं पडि वण्णेदि । अंतयडदसाए अट्ठावीस सहस्सा हियते बीस लक्खपदाणि २३२८००० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंगं चउव्विहोवसग्गे दारुणे सहियूण चउवीसहं तित्थयराणं तित्थेसु अणुत्तर विमाणं गये दस दस मुणिवसहे वण्णेदि । अणुत्तरोववादियदसाए चोदालीस सहस्सा हियबाणउदिलक्खपदाणि ६२४४००० । पण्हवायरणं णाम अंगं अक्खेवणी - विक्खेवणीसंवेणी- णिव्वेयणीणामाओ चउव्विहं कहाओ पण्हादो णट्ठ- मुट्ठि चिंता-लाहालाह- सुखदुक्ख जीवि - यमरणाणि च वण्णेदि । पहवाय रणम्मि सोलह ससहस्साहियतिणउ इ लक्खपदाणि ६३१६००० । विवायसुत्तं णाम अंग दव्व क्स्खेत्त-काल-भावे अस्सि सुहासु कम्माणं विवाय वण्णेदि । विवागसुत्तम्मि चउरासीदिलक्खायिएक्ककोडिमेत्तपदाणि १८४००००० । एदेसिमेक्कारसहं पि अंगाणं पदसमुदायमाणं चत्तारि कोडीओ पण्णारस लक्खा वे सहस्वाणि च होदि ४१५०२००० । जेणेवं तेणेक्कारसह मंगाणं वत्तव्वं ससमभो । पृष्ठ १३२-१३६ परियम्मं चंद-सूर जंबूदीव - दीवसायर- विया हपण्णतिभेएण पंचविहं । तत्थ चंदपण्णत्ती चंदविमाणाउपरिवारिड्डि-गमण हाणि वड्डि-सयलद्ध - चउत्थभागगणादीणि वण्णेदि । सूराउ मंडल परिवारिड्डिपमाण-गमणायणुप्पत्तिकारणादीणि सूरसंबंधाणि सूरपणती वण्णेदि । जंबूदीवपण्णत्ती जंबूदीवगयकुलसेल-मेरु- दह - वस्स वेइया वणसंड वेंतरावासमहाणइयाणं वण्णणं कुणइ । जा दीवसागरपण्णत्ती सा दीवसायराणं तत्थट्ठियजोयिस वण भवणावासाणं आवासं पडि संठिद अकट्टिमजिणभवणाणं च ari कुइ । जा पुण वियाहपण्णत्ती सा रूविअरू वि-जीवाजीवदव्वाणं भवसिद्धिय-अभवसिद्धि Page #992 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ याणं पमाणस्स नल्ल क्खणस्स अणंतर-परंपर सिद्धरण च अण्णेसि च वत्थूणं वण्णई कुणइ । जं सुत्तं णाम तं जीवो अबंधओ अलेवओ अकत्ता णिग्गुणो अभोत्ता सव्वगओ अणमेनो णिच्चेयणो सपयामओ परप्पयासओ णस्थि जीवो ति य णस्थिपवादं, किरियावादं अकिरियावाद अण्णाणवाद जाणवाद वेणइयवादं अणेयपयारं गणिदं च वण्णेदि । असीदि-मदं किरियाण, अक्किरियाणं च आह चुलभीदि । मत्तःण्णाणीणं वेण इयाणं च बत्तीमं ।। एदीए गाहाए भणिदिनिण्णिसय-तिसट्ठिसमयाणं वण्णणं कृणदि ति णिदं होदि । जो पुण पठमाणिओओ मो चउबीसतित्थयर-बाहरचक्कवदि णवत्रल-णवणारायण-णवपडिसत्तण पुराणं जिण-विज्जाहर-चक्रवट्टि-चारण-रायादीणं वंसे य वण्णेदि । पुब्वगयं उप्पाय-वय-धुवत्तादीणं णाणाविह-अत्थाणं वण्णाणं कुणइ । चूलिया पंचविहा जल-थल-माया-रूवायासगया त्ति । तत्थ जलगया जलत्थंभण-जलगमणहेद्रभूदमंततंत-तवच्छरणाणं अग्गित्थंभण-भक्खणासगपवणादि कारणपओए अ वण्णेदि। थलगया कुलसेल-मेरु-महीहर-गिरि वसंधरादिसू चीलगमणकारणमंत-तंत-तवच्छरणाणं वण्णणं कुणइ । मायागया पुण माहिंदजालं वण्णेदि । रूवगया हरिकरि-तुरय-रुरु-णर-तरु-हरिण-वसह-सस - पसयादिसरूवेण परावत्तणविहाणं णरिंदवायं च वण्णेदि । जा आयासगया सा आयासगमणकारणमंत-तंत तवच्छरणाणि वण्णेदि । दिढिवादे अठ्ठत्तरसदकोडीओ अट्ठसट्ठिलक्खपंचुतरछप्पणसहस्समेत्तपदाणि १०८६८५६०००२ । पृ० १५०,१५१ उप्पायपुव्वस्स दस अग्गेणियस्स चोद्दस विरियाणुपवादस्स अट्ठ अस्थिणत्थिपवादस्स अट्ठारस णाणपवादस्स बारस सच्चपवादस्स बारस आदप सू०१०५-११८ Page #993 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ वादस्स सोलस कम्मपवादस्स बीसं पच्चक्खाणपवादस्स तीसं विज्जाणुपवादस्स पण्णा रस कल्लाणपवादस्स दस पाणावायपवादस्स किरियाविसालरस दस लोगविदुसारस्स दस अत्याहियारा । एदेसु अत्थाहियारेसु एक्केक्कस अत्याहियारस्स वा पाहुडसष्णिदा वीस वीस अत्याहियारा सि पि अत्याहियाराणं एक्केक्कस्स अत्याहियारस्स चउवीसं चवीसं आणिओगद्दारसनिदा अत्याहियारा । Page #994 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #995 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-३ नवसूपाणि सद्दसूची Page #996 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दसूची संकलन कर्ता मुनि सुदर्शन दसाओ, (पज्जोसवणाकप्पो) मुनि हीरालाल अणुओगदाराई, कप्पो, ववहारो मुनिश्रीचन्द्र 'कमल' आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नंदी, निसीहज्झयणं Page #997 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवसूत्रों के प्रमाण-स्थल का संकेत बोध ៖៖៖៖៖ធំ ៖ ៖ अनं अ० उ० क० गा० जोनं ६० चू० दसा० दे० प० नि० व० अणुओगदाराई अणुण्णानंदी आवस्सयं उत्तरम्भपणाणि कप्पो गाथा जोगनंदी दसवे आलिय दसवेलियं चूलिका दसाओ देशी शब्द पज्जोसवणाकप्पो निसीहज्भवणं बबहारी सूत्र संख्या धातू Page #998 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणविधि [• अव्यय, सर्वनाम क्त्वा, तुम्, यप् प्रत्यय के रूप और धातुरूप के साक्ष्य-स्थल का निर्देश प्रायः एक बार दिया गया है। ० रूट (1) अंकित शब्द धातुएं हैं । उनके रूप नीचे डस (-) के बाद दिए गए हैं । ० संस्कृत के समान रूपों वाले प्राकृत शब्दों की छाया नहीं दी गई है। ० शब्द के बाद साक्ष्य-स्थल का प्रथम अंक अध्ययन व उद्देश का द्योतक है । इन तीन सूत्रों (न. अ. प.) में अध्ययन व उद्देशक नहीं है उसका प्रथक अंक सूत्र का द्योतक है । दूसरा अंक सूत्र या गाथा का द्योतक है और तीसरा अंक सूत्र के अन्तर्गत गाथा का द्योतक है। ० सूत्र के अन्तर्गत गाथाओं के प्रमाण प्रायः दिए गए है परन्तु जहां एक या दो संगहणो गाथाएं है वहां उसके प्रमाण उसी सूत्रांक में ही दे दिए गए हैं।] Page #999 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ-अइहील (अ) अ (च) द०६।४ गा०१.उ० १६।३३. दसा० ६७ अइमत्त (अतिमात्र) उ० १६८ अइ (अपि) उ० २।२७,४६ अइमहुर (अतिमधुर) ५० ५८ अडअंबिल (अत्याम्ल) प० ५८ अइमाय (अतिमात्र) उ०१६ सू० १०, गा० १२ अहउक्कस (अत्युत्कर्ष) द० ५।१४२ अइमुत्त (अतिमुक्त) प० २५ अडउच्च (अत्युच्च) उ० ११३४ अइया (अजिका) नं० ३८।४ अइउण्ह (अत्युष्ण) ५० ५८ अइयाय (अतियात) उ० २०१५६ अइउल्ल (अत्या) प० २८ अइयार (अतिचार) आ० ३।१; ४।३,७,६; ५॥२. अइंत (आयत्) ५० १६२ द० ५।८६ अकड़य (अतिकटुक) ५० ५८ अइरित्त (अतिरिक्त) उ०२६।२८ अइक साय (अतिकषाय) ५० ५८ अइरेग (अतिरेक) प० २२. व० ८।१६. अइक्कम (अतिक्रम) आ० ४।७ नि० ११५४; १४१५ से ७; १८।३७ से ३६ Vअइक्कम (अति+क्रम)-अइक्कमइ अइरोद्द (अतिरौद्र) अ० ३१३।२ उ० २६/२. क० ४।६. नि० १०।२५. अइलाभ (अतिलाभ) द० १।४५ --अइक्कमति प० २८७. - अइक्कमे उ० अइलुक्ख (अतिरूक्ष) ५० ५८ ११३३. -अइक्कमेज्जा क० ५।४० अइलोलुय (अतिलोलुप) उ० १११५ अइक्कमण (अतिक्रमण) आ० ३।१. क. ११३७, Vअइवत्त (अति वृत्)-अइवत्तइ उ० २७।२. २।१७, ३।३३ -अइवत्तए द०६।३३ । अइक्क मित्तु (अतिक्रम्य) द० ५।१११ अइवयंत (अतिव्रजत्) प० २३ अहक्कम्म (अतिक्रम्य) द० ५१२५ Vअइवाय (अति + पातय)-अइवाएज्जा ०४ अइगच्छमाण (अतिगच्छत्) नि० ६८ सू० ११. उ० ८18 -अइवायावेज्जा द०४ अइगय (अतिगत) उ० १०१५ से १४; २२।२७ अइच्छंत (अतिक्रामत) उ० १६०५ अइवायंत (अतिपातयत्) द० ४ सू० ११ अइच्छिय (अतिक्रान्त) उ० ३३।२४ अइविगिट्ठ (अतिविकृष्ट) उ० ३६।२५३ अइच्छिया (अतिक्रम्य) उ० ७।२१ अइवेग (अतिवेग) प० ३४ अइतिक्ख (अतितीक्ष्ण) उ० १६०५२ अइवेला (अतिवेला) उ० २।६,२२ अइतिन (अतितिक्त) ५० ५८ अइसय (अतिशय) उ० २६।३८. नं०६० अइदुस्सह (अतिदुःसह) उ० १९७२ अइसिरी (अतिश्री) प० २२ अइदूर (अतिदूर) द० ५।२३. उ० १।३३; २०१७ अइसीय (अतिशीत) ५० ५८ अइदूरओ (अतिदूरतस्) उ० १।३४ अइसुक्क (अतिशुष्क) ५० ५८ अनिद्ध (अतिस्निग्ध) ५० ५८ अइसेस (अतिशेष) दसा० १०११६. व०६।२.३ अइभूमि (अतिभूमि) द० ५।२४ V अइहील (अति+होलय)-अइहीलेज्जा अइमच (अतिमञ्च) १०६२ व०५९६ Page #1000 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अईय-अंजलि अईय (अतीत) द० ७.८ से १०. उ० २३।८५; २५।२१; ३३।१७. नं० २२ अईयार (अतिचार) उ० २६।३६,४०,४७,४८ । अईव (अतीव) ५० ६६ अउणट्ठि (एकोनषष्टि) प० ६५ अउणतीस (एकोनत्रिशत) उ० ३६।२४० अउणतीसइ (एकोनत्रिशत) उ० ३६।२४१ अउणवीस (एकोनविशति) उ० ३६।२३० अउणवीसइ (एकोनविंशति) उ० ३६।२३१ अउणतरि (एकोनसप्तति) ५० १३४ अउय (अयुत) अ० २१६,४१७ अउयंग (अयुताङ्ग) अ० २१६,४१७ अउल (अतुल) द०७।४३. उ० २।३५, २०१५, १६) ३६६६६ अओ (अतस्) अ० ७०६ अओमय (अयोमय) २०६।४६,४७ अं (अं) अ० २६४।३ अंक (अंक) उ० ३४१६३६।६१,७५. नं० ३८१४. नि० ७७६,७७. प०१५ अंकण (अङ्कन) प० २७ अंकपाय (अङ्कुपात्र) नि० ११११ से ३ अंकबंधन (अङ्कबंधन) नि० ११।४ से ६ अंकारंत (अङ्कारान्त) अ० २६४।६ अंकुर (अङ्कुर) वसा० ५।७।१५ अंकुस (अकुश) द० २।१०; चू० १ सू० १. उ० ६।६०; २२।४६ अंकोल्ल (अङ्कोल) प० २५ अंग (अङ्ग) आ० ४१६; ५।३. द० ८.५७. चू० १।१५. उ० २।३; ३१११२।४३,४४; १६।४; २०१६; २६।४; २८२१, २३. नं० ८१ से ११,१२३. अ० ६,५७१. दसा०६।२।४; १०१११, १२, २२, २४, ३५, ३८,४२,४७. ५०६,२२,३८,४७. क. १९४७. व०१०।२६,२८,२६,३८ अंगचूलिया (अङ्गचूलिका) नं० ७८. जोनं० ६. व० १०॥३०. अंगण (अङ्गन) उ० ७।१ अंगपविट्ठ (अङ्गप्रविष्ट) नं० ५५,७३, ८०, १२७, जोनं० ३,१०. अ० ३ अंगबाहिर (अङ्गबाह्य) नं० ७३,७४. जोनं० ३,४, अ० ३,४ अंगय (अंगज) उ० २२।३६ अंगय (अंगद) द० १००११ अंगविज्जा (अंगविद्या) उ०८।१३ अंगवियार (अंगविकार) उ० १५।७ अंगादाण (अङ्गादान) नि० १।२ से ६; १३ से १० अंगुल (अङगुल) उ०२६।१४,१६, नं०१८।३, २०,२२,२५. अ० ३८८।१,३८६,३६०,३६१ से ३६३,४००,४०२ से ४०४,४०६,४६३, ४६७,४८७,४६०,४६६,५०३,५८६ अंगुलपयर (अगुलप्रतर) अ० ४८२ अंगुलायय (अंगुलायत) अ० ३६३, ४०६ अंगुलि (अंगुलि) उ० २६१२३. ५०२४,६२,७५ अंगुलिया (अङ्गुलिका) द० ४ सू० १८. नि० १।२, ४।११३; ६।३; ७८४ अंगुली (अङ्गुली) नि० ३।४०, ४१७८; ६।४६%; ७१३८; ११३५; १५।३७,१२३; १७।३६,६३ अंगुलीय (अङ्गुलीक) दसा० १०।११. ५० ४२ अंगुलेज्जग (अगुलीयक) दसा० १०।३ अंगल्लिज्जग (अङगुलीयक) दसा० १०॥११.५० ४२ अंगोवंग (अङ्गोपाङ्ग) अ० २८२ । अंच (कृष्)-अंचेइ ५० १० अंचेत्ता (कृष्ट्वा ) प० १० अंछाव (कर्षय)-अंछावेइ १०४२ अंछावेत्ता (कर्षयित्वा) प० ४२ अंजण (अञ्जन) द. ३१६; ५॥३३. उ० ३४१४; ३६।७४. नं० गा० ३१. प. १०,१५,३३ अंजणपुलय (अञ्जनपुलक) प०१५ अंजलि (अञ्जलि) अ० २६. दसा० १०॥४,६,१०, Page #1001 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंजलिकरण - अंतेवासि १२,१६. ५०५, ७, १०१५, ३६, ४१, ४३,४८, ५०,६३,७५. क० १।३३ व० १।३३ अंजलिकरण ( अञ्जलिकरण ) उ० ३०|३२ अंजली ( अञ्जलि) द० ६ । ३४ अंड ( अण्ड ) द० ८११५. उ० ३२१६. दसा० २।३. प० २६२,२६८. क० ४।३१ से ३४. नि० ७ ७५; १३८ १४/२७ १६/४८ १८१५६ अंडउड ( अण्डपुट) वसा० ६।२।१६ अंडग (अण्डक) व० ८।१७ अंडय ( अण्डज ) द० ४ सू० ६. अ० ४०, ४१ अंत ( अन्त) आ० ४।६. उ० १४।५१, ५२; २२। १५, २६ । १,२६,४२,५६,६२,७४,३६५६. अ० २६४ । १. दसा० २४ से ३२, ३३. प० २६,३३,१०५, १३७, १७६,२८७ अंतकडभूमि ( अन्तकृत भूमि) प० १०५, १२३, १३७ १७६ अंतकर ( अन्तकर) उ० २३|८४ ३५।१ अंतकाल ( अन्तकाल ) उ०१३।२२ अंतरिया ( अन्तक्रिया ) उ० २६।१५. नं० ८६ से ८६, ६१ अंतकुल ( अन्तकुल) दसा० १०३२. प० ११,१२ १४ अंतग ( अन्तक) उ० ३२।१६ अंतगड ( अन्तकृत ) नं० ८८,१२० अ० २८२. प० ५४ अंतगडदसा ( अन्तकृत दशा) नं० ६५,८०,८८. अनं० २८. जोनं० १०. अ० ५०, ५४६ अंतगडदसाधर ( अन्तकृतवशाधर) अ० २८५ अंतगय ( अन्तगत ) नं० १०, ११,१४,१६ अंतद्धापिड ( अन्तर्धानपड) नि० १३।७५ अंतमुहुत्त ( अन्तर्मुहूर्त) उ० ३४।६०. अंतर ( अन्तर) उ० १६ सू० ७ १६ / ७४; २० ॥ २०, ३६।१४, ८२, ६०, १०४, ११५, १२४, १३४, १४३, १५३,१६८, १७७, १८६, १६३, २०२,२४६. अ० १२१,१२७.१३८, १४४, १६५,१७१,२०६,२१२. प० १७,६२,८१, ११५,१३०,२३०,२५१,२८६. नि० ३।१५. अंतरहि ( अन्तर्गृह) क० ३।२१ से २४ अंतरदीवग ( अन्तर्दोपज) नं० २३, २५ अंतरद्दीवय ( अन्तद्वपक) उ० ३६।१६६ अंतरभासिल्ल ( अन्तर भाषावत् ) उ० २७।११ अंतरा (अन्तरा) द० ८।४६. उ० २२।३३. नि० २०१६ से ५१ ७ अंतराय ( अन्तराय) उ० १४।७; २६।७२; ३२।१०८, ३३।३, १५, २० अ० २८२, २८४. दसा० ६।२।१७ अंत रावण (अन्तरापण ) क० १।१२, १३ अंतरावास ( अन्तरावास ) प०८३, ८४ अंतरिखजाय ( अन्तरिक्षजात ) नि० १३ ९ से ११; १४।२८ से ३०; १६।४६ से ५१; १८ /६० से ६२ अंतरिच्छ (अन्तरेच्छ) उ०२०।२१ अंतरिज्जिया ( अन्तरीया) प० २०० अंतरिया ( अन्तरिका ) १०४६, ४६ अंतरुच्छु (अन्तरिक्षक) नि० १६ ६,७,१०,११ अंतरेण ( अन्तरेण ) उ० १।२५ अंत लिक्ख ( अन्तरिक्ष) द० ७५३. उ० १२/२५; १५७ २१ २३ अंतिय (अन्तिक) व० ८।४५; ६।१२. उ० ११८, १६ ५।३१; ७।१२,१३; १८१५,१६; २५।४२. दसा० १०१४, ११, १२,३४. ५०६, ७, ३८,३६,४१,४३,४७, ४८, ५० क० ४।२६; ५।४०. व० १।३३ ५।१६ अंते ( अन्तर् ) नि० १७ १२३, १२४ अंतेउर (अन्तःपुर ) उ०६।३, १२, २०१४. प० ५२, ७४ अंतेवासि ( अन्तेवासिन् ) व० १०।१७,१८. बसा० ४१४, १६. ० ८७, १०३, १७८, १८६, १८७,१८८१५६, १९१ से १९३, १९६, २०३, Page #1002 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतेवासिणी-अकम्मया २०६, २०७, २०६, २२१. अंबपेसिया (आम्रपेशिका) दसा० १०।२७ अंतेवामिणी (अन्तेवासिनी) ५० १६१ अंबफल (आम्रफल) व०६।३३,३४ अंतो (अन्तर) उ० २२।३३; ३३।१३. नं०२५. अंवभित्त (आम्रभित्त) नि० १५७,८,११,१२ अ० २८।२. दसा० २१३, ५, ६५, ७५; अंबय (आम्रक) अ० ३४७ ६।२।३. क० १७,६,१४,१६,१७, २।१,४ से अंबर (अम्बर) प० २७.३४ ८, ५।१२,१२,२० व०६।२,३; ६।१,२,५, अंबमालय (आम्रसालक) नि० १५५७,८.११ १२ ६, ६, १०, १३, १४, ४२, ४३; १०।३. अंबाडग (आम्रातक) अ०६०, ६५४, ६५८,६८०, नि० ८।१२ से १४ अंतीमाम (अन्तर्मास) क० ४।२६,३०. अंबाडगपेसिया (आम्रातकपेशिका) दसा० १०।२७ नि० ६२०: १२।४३ अंबिल (अम्ल) द० ५।६७. उ० ३६।१८,३२. अंतोमुहुत्त (अन्तम हत) उ० २६१७३; ३३।१६, २१, २२, ३८१४५; ३६८० मे ८२,८८ से अ० २६०, २६३, ३२३, ५११. ५० ५८ ६०. १०२ से १०४, ११३ मे ११५, १२२ से अस (अंश) प०२४ १२४, १३२ ने १३४, १४१ से १४३, १५१ ।। अंसहर (अंशधर) उ० १३१२२ से १५३, १६८ १७५ से १७७, १८४ से १८६, असिया (अंशिका) क० ११६; २।२२, २३ १६१ मे १६३, २०० से २०२, २४६. अंसु (अश्रु) उ० २०१२८ अ० ५६८. प० १७६ अंसुय (अंशुक) अ० ४३. नि०७।१० से १२; अंतोमुहुत्तिय (आन्तम हुत्तिक) नं० ५० १७१२ से १४ अंतासल्लमरण (अन्त शल्यमरण) नि० १११६३ । अकंपमाण (अकम्पमान) उ० २१११६ अंतोयिय (अन्तर्ह दय) उ० २३।४५ अकंपिय (अकम्पित) नं० गा० २१. ५० १८३ अंदुवंधण (अन्दुकबन्धन) दसा०६।३ अकक्कस (अकर्कश) द०७।३ अंध (आन्ध्र) अ० ३०७१३ अकड (अकृत) उ०१।११. नि०१०।१४ अधकार (अन्धकार) अ० ३१३।१. दसा० ६१५ अकण्णच्छिण्ण (अकर्णच्छिन्न) नि० १४१६; अंधगवण्हि (अन्धकवृष्णि) द० २१८. उ० २२।४३. १८।३८ अधयार (अन्धकार) उ० २२।३३; २३।७५; अकप्प (अकल्प्य ) आ० ४।३, २२. द० २४४ २८।१२. प० २० अकप्प (अकल्प) आ० ४।६. प० २८२. क०४।१५ अंधिया (अधिका) उ० ३६।१४६ अकप्पट्टिय (अकल्पस्थित) अ०४।१५. क०४।१५ अंब (आम्र) द० ७३३. अ० ६०, ६५४, ६५८, अकप्पिय (अकल्पिक) द० ५।२७, ४१, ४३, ४८. ६८०,६८४. नि० १५१५ से १२ ५०, ५२, ५४, ५८, ६०, ६२, ६४, ११५, अंबकजिय (आम्रकाजिक) नि० १७।१३३ ११७; ६।४७ अंबखुज्ज (आम्रकुब्ज) दसा० ७।३० अकम्म (अकर्मन्) उ० २६।७२. वसा० ६।२८ अंबखुज्जिया (आम्रकुब्जिका) क० ५१२० अकम्मचे? (अकर्मचेष्ट) उ० १२।२६ अंबग (आम्रक) उ० ७।११; ३४।१२, १३ अकम्म (भूम) (अकर्मभूम) उ० ३६।१६६ अंबचोयग (आम्र'चोयग') नि० १५१७,८,११,१२ अकम्मभूमि (अकर्मभूमि) नं० २५ अंबडगल (आम्र डगल') नि० १५७,८,११,१२ अकम्मभूमिय (अकर्मभूमिक) नं० २३ अंबपेसि (आम्रपेशि) नि० १५७,८,११,१२ अकम्मया (अकर्मता) उ० २६।१ Page #1003 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकरणया - अक्खरसूय अकरणया ( अकरणता ) आ० ४।७. दसा० १०. ३४. क०४/२६. व० १।३३ अकरणया (अकरण) उ० २६।३२ अफरणिज्ज ( अकरणीय) आ० ४१३ ५।२ अकरें (अकुर्वत्) उ०६।१ अकरेमाणा ( अकुर्वत्) अ० २७ अकलेवरसेणि (अकलेवरश्रेणि) उ० १०।३५ । अकसाथ ( अकषाय) उ० २८/३२ ३०१३ ८ अकसिण ( अकृत्स्न ) अ० ६६, ६८. क० ३।६, अकाउं (अकृत्वा ) उ० १३।३४ अकाऊण (अकृत्वा) उ० १३।२१ अकाऊणं (अकृत्वा ) उ० १६ १६ अकाम ( अकाम ) द० ५।८० उ० ५।३; २५३ अकामकाम ( अकामकाम) उ० १५ १ अकाममरण ( अकाममरण) ३०५१२, १६, १७ ३६।२६१ अकाममरणिज्ज ( अकाममरणीय) उ०५ अकारण ( अकारण ) नं० १२४ अकारि (अकारिन् ) उ०९।२० अकाल ( अकाल ) आ० ४८. २०५१०४, १०५. उ० ११३१. दसा० १।३ अकालिय (अकालिक) उ० ३२/२४, ३७, ५०, ६३. ७६, ८६ अकिंचन ( अकिञ्चन ) द० ६६८; ८/६३. उ० २।१४ १४०४१ २१।२१. २५ २७ २६/४७ ३५।१६. ५०७८ अकिच्च ( अकृत्य ) उ० १४/१५. दसा० ६ २ ३६ अकिच्चट्ठाण (अकृत्यस्थान ) व० १।३३; २1१ से से ५, २४ अत्तिण ( अकीर्तन ) उ० २२११५ अकित्ति ( अकीर्ति ) ० ० ११३ अकिरिय (अक्रिय ) नं० गा अकिरिया ( अक्रिया) आ० ४१६. ३३; २६ । २६. अ० ६०६ अकिरिया ( अक्रियाक) उ०२६ । २६ उ० १८।२३ अकिरियावाद (अक्रियावादिन्) नं० ६२ अरियावादि (अक्रियावादिन) दसा० ६।३ अकुऊल (अकुतूहल) उ० ११।१० ३४५२७ अकुंत ( अकुत ) अ० ३२१ अकुक्कुय (अकुक्कुच) ३० २०२० २१।१८ अकुटिल ( अटिल ) प० ७४ अकुमारभूत ( अकुमारभूत) दसा० २।२।१२ अकुप ( अकुच) उ० १३० अकुलिया ( अकुलिका) अ० ३२१ अकुल्यमाण ( अकुर्वाण) उ० १३।२१ अकेज्ज (अक्रेय) द० ७४५ अकेवल ( अकेवलिन् ) अ० २७५ अको उहल्ल (अकोतुहल ) ४० १५० १०।१३ अकोविय (अकोविद ) ६० २३६ अकोह (अक्रोध) प० ७८ अकोहण (अक्रोधन) उ० ११५ अवकम्म (आ+ फम्) अक्कमे इ० ५७ अक्कमण ( आक्रमण ) आ० ४/४ अक्कुट ( आष्ट) द० १०।१३ अस्कुअ (अकुहक) ४० ६।५० अक्कोस ( आक्रोश ) द० १०1११. उ० ११३८, २ सू० ३; १५/३; १६।३१ v अक्कोस ( आ + ऋश् ) – अक्कोसेज्ज उ० २।२४ अक्ख (अक्ष) उ० ५।१४, १५. अनं० ३. अ० १०, २१,५४,७८, १०३, ३८०, ३६१, ४००, ५६० नि० ७।१३ अक्खय ( अक्षत) आ० ४६, ६।११. उ० ११।३० नं० १२६. अक्खय (अक्षय) प० १० अक्खयायार (अक्षताचार ) ०३२३, ५, ७ अक्खर (अक्षर) उ० २६।७३. नं० ५७, ५८,७१, ८१ से १, १२३, १२७।१. अ० ५७१, ५७२ अवखरल लिय (अक्षरलब्धिक) नं० ५६ अक्खरसम (अक्षरसम) अ० ३०७८ अक्खरसुय (अक्षरभूत) नं० ५५,४६,५६ Page #1004 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्खलिय-अग्गपिंड अक्खलिय (अस्खलित) अनं० ६. अ० १३, ३४, ५७, ८१,१०६, ५६३, ६२३, ६३५, ६४७, ६७३, ७००.७१४ Vअक्खा (आ+ ख्या) - अक्खाहि उ० १२१४० अक्खाइयओवक्खाइया (आख्यायिकोपाख्यायिका) नं० ८६ अक्खाइयट्ठाण (आख्यायिकास्थान) नि० १२।२७; १७।१४६ अक्खाइया (आख्यायिका) नं० ८६ अक्खाउं (आख्यातुम् ) द० ८।२० अक्खात (आख्यात) दसा० १।१; २।१; ४१ अक्खाय (आख्यात) द०४ सू०१ से ८; ६।४। सू० १. उ०२ सु० १; ५।२; ८1८, १३, २०; १६ सू० १; १८।४३; २३।६३; २४।३; २६।१. नं०८६, १०३. दसा० ३।१; ५१ अक्खीण (अक्षीण) प० १२, २४ अक्खुभिय (अक्षुभित) नं० गा० २७ अक्खेव (आक्षेप) उ०२५११३ Vअक्खोड (आ+स्फोटय) -अक्खोडावेज्जा द० ४ मू० १६ -अक्खोडेज्जा द० ४ ० १६ अक्खोडंत (आस्फोटयत्) द० ४ सू० १६ अक्खोभ (अक्षोभ) नं० गा० ११ अखंड (अखण्ड) नं० गा० ४ अखंडफुडिय (अखण्डास्फुटित ) द० ६।६ अखम (अक्षम) दसा० ॥३४ अगंधण (अगन्धन) द.२।६ अगड (दे० अवट) नं० ३८।३. अ० ३६२ अगडमह (अवटमह) नि० ८।१४ अगडसुय (अकृतश्रुत) व०६।४,५ अगणि (अग्नि) द०४ सू. २०; ८२,८; १०।२. उ० १२।२७; १६।४७; ३६।१०६. नं० १८।२. दसा०६।५ अगणिकाय (अग्निकाय) अ० ३६८. दसा० ६।३; ७।१७ अगमिय (अगमिक) नं० ५५,७२ अगय (अगद) नं० ३८६ अगरु (अगरु) अ० ३७६ अगवेसिय (अगवेषयित्वा) नि० २।४७; अगार (अगार) उ० १।२६. दसा० १०॥३१. प० १, १०८, ११३, १२६, १२६, १६०, १६५, २२४, २५६ अगारस्थ (अगारस्थ) उ० ५।१६ अगारधम्म (अगारधर्म) उ० २६।४ अगारव (अगौरव) उ० ३०१३ अगारवास (अगारवास) उ० २।२६. ५० ५७, १०६,११२, १२४, १२६, १८० अगारि (अगारिन) द. ६।५७. उ० ५।१६,२३; ७।२२. १० २२४,२५८ अगाह (अगाध) द० ७।३६ अगिहियव्व (अगृहीतव्य) अ० ७१५१५ अगिद्ध (अगृद्ध) द० १०।१६ अगिला (अग्लानि) व० २१६ से १७ अगिलायय (अग्लायक) उ० २६।१० अगिह (अगृह) उ० १५।१६. प० २५३ अगिहिभूय (अगृहिभूत) व० २।१८,२०,२२,२३ अगुण (अगुण) द० ५।१४४; ६।५१ अगुणप्पेहि (अगुणप्रेक्षिन्) द० ५।१४१ अगुणि (अगुणिन्) उ० २८।३० अगुन (अगुप्त) उ० ३४।२१ अगुत्ति (अगुप्ति) द०६।५८ अगोय (अगोत्र) अ० २८२ अग्ग (अग्र) द० ५।२; 81८,६. उ० ७।२३,२४; ६।४४; १०।२; २०११५. नं० ७०. अ० ४१६ दसा० ६।६. प० १०,२३. अग्ग (अग्र्य) उ०१४।३१ अग्गओ (अग्रतस) ५० १४३, १८७ अग्गजीहा (अग्रजिह्वा) अ० २६६ अम्गपिंड (अप्रपिण्ड) नि० २।३१ Page #1005 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्गबीय-अच्च अग्गबीय (अग्रबीज) द० ४ ० ८ अग्गमहिसी ( अग्रमहिषी ) प०६ अग्गमाहिती ( अग्रमहिषी) उ० १६।१ अग्गय ( अग्रक) अ० ३६५।१ अग्गला (अर्गला ) द० ५।१०६ ७ २७. उ० ६ २० अग्ग (अग्नि) द० ६ |४१. उ० २।५; ६।१२; १२/३६, १४।१०, १८, ४३; १६ ३६, ६६; २०१४७ २३ ५०, ५२, ५३ २५।१८, १६; ३२।११; ३६।२०६. अ० ३२३, ३४२।१, ४२२, ४२४, ४२६, ४३१, ४३६, ४३८, ५३६. दसा० ५।७।१३ afirकुमार (अग्निकुमार ) अ० २५४ अग्गिदत्त (अग्निदत्त) प० १८६ अग्गिदास (अग्निदास) अ० ३४२ अग्गिदिण (अग्निदत्त) अ० ३४२ अग्गिदेव (अग्निदेव ) अ० ३४२ अग्गिदेवया ( अग्निदेवता ) अ० ३४२ अग्धिम्म (अग्निधर्मन्) अ० ३४२ अग्भूइ (अग्निभूति) नं० गा० २०. अग्गम (अग्रिम) अ० ६५ अग्गिय (आग्निक) अ० ३४२ अगर वय (अग्निरक्षित) अ० ३४२ afda (अग्निवेश) प०८४ अग्निवेसण ( अग्निवेश्यायन) नं० गा० २३ अगवेसायण (अग्निवेश्यायन) प० १८३ १८६ प० १८३ अगिसम्म (अग्निशर्मन्) अ० ३४२ अग्गिण ( अग्निषेण) अ० ३४२ अग्गिहोत्त अग्निहोत्र ) उ० २५ । १६ अग्गेणीय ( अग्रायणीय) नं० १०४ १०६ अग्गेय (आग्नेय) अ० ५३७ Vaa (अर्ह) - अग्धइ उ० ६ ४४ V अग्घा ( आ + घ्रा ) -- अग्घाइज्जइ नं ५३ अग्नी ( ) अ० २०८ अग्र ( ) अ० २६९ अचक्किय ( अचकित) उ० ११।३१ क्खु (अचक्षुष्) उ० ३३।६ अचक्खुदंसण ( अचक्षुर्दर्शन) अ० ५५२ अचक्खुदंसणलद्धि ( अचक्षुर्दर्शनलब्धि) अ० २८५ अचक्खुदंसणावरण (अचक्षुदर्शनावरण) अ० २८२ अचवखुदंसणि ( अचक्षुर्दर्शनिन् ) अ० ५५२ अक्खुविस (अचक्षुविषय) द०५/२० अक्स. (अचाक्षुष ) द० ६।२७, ३० अचयंत (अशक्नुवत् ) उ० २५ । १३ अचरम ( अचरम ) नं० २८,२६ अचलमाण ( अचलत् ) प० १२,२६३ अचवल ( अचपल ) द० ८२६. उ० ११।१० ; ३४।२७. प० ५,३६,३६,५० ११ अचितण (अचिन्तन) उ० ३२ । १५ अचित्त (अचित्त) द० ५।८६१,८६. उ० २५ २४. अनं० ११.१३, १५, १७, १६, २१. अ० ६२,६४, ८६,६१,३२६.३३१, ६५३, ६५५ ६५७, ६५, ६६१, ६६३, ६७६, ६८१,६८३,६८५ ६८७, ६८६. क० ३।२६ ४।१४, २५. व० ६८, ६. नि० ११६ २६; ६।१० अचित्तकम् (अचित्तकर्मन् ) क० १।२१ अचित्तमंत (अचित्तवत् ) द० ४ ० १३, १५ अचियत्त (दे० ) द० ५।१७ ७/४३. उ० ११ ६; १७।११ अचिर (अचिर ) उ० १४।५२ अचिरकालकय (अचिरकालकृत) उ० २४|१७ अचूलिया ( अचूलिका) नं० १२२ अचेल ( अचेल) उ० २ सू० ३. ५०७६. नि० ११ ६०, ६१ अचेलग ( अचेलक ) उ० २।३४; २३ १३,२६ अचेल (अचेलक ) उ० २।१२, १३. नि० १०1८६, ६१ अचेलिया (अचेलिका) क० ५२।१६ अचाइय (अचोदित) उ० १/४४ अच्च (अर्थ्य) प० ८४ V अच्च (अचंय् ) - अच्चिमो उ० १२।३४ Page #1006 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ अच्चेमो उ० १२।३४ अच्वंत ( अत्यन्त ) उ० १८५२ २०१५ ३२।११०,१११ अवंतकाल (अस्यन्तकाल ) उ० २२|१ अच्चबिल ( अत्यम्ल) द०५०७८७२ अच्चक्खर (अस्पक्षर) आ०४६ अच्चणा ( अर्चना ) उ० ३५।१८ अच्चय (अस्थय ) उ० १० १ अच्चासाएं (अस्वाशातयत् ) नि० १०४ १३/१६; 1 १५।४ अभ्यासाय (अति + आ + शातय् ) – अब्बासाएति अच्छि (आय) दसा० २३ नि० १०/४ अच्छिण (अच्छिन्न) अ० ४१६ अच्चासायणा ( अत्याशातना) नि० १०/४; अच्छिन्नच्यनइय (अच्छिन्नच्छेदनधिक) नं १०३ अच्छित (अक्षिपत्र ) नि० ३।५८ ४६६ ६/६७ ७५६; ११५.३, १५।५५, १४१; १७५७,१११ १३।१६ १५४४ अच्चि (अचिस् ) ० ४ ० २० 515. ३६।१०१ अचिमालि (अचिमालिन् ) द०९।१४. उ० ५।२७ अच्चीकर ( अ + कृ ) अच्चीकरेति नि० ४।७ अच्चीकरैत (अर्चीकुर्वत्) नि० ४७ से १२, ४४ से ४८ अच्चण्णय ( अत्युन्नत) प० २४ अच्चय (अच्युत) उ० ३६।२११,२३३. अ० १८६, २८७ 1 अच्चुयय ( अच्युतज ) अ० २५४ अच्चमिण ( अत्युष्ण) नि० १७।१२२ अच्चे (अति + इ ) 1 \ अच्छ (आस् ) अच्छइ उ० ३१/३ अच् उ० १३३१ -अच्छहि उ० २२.१६ अच्छ (ऋक्ष) दसा० ७।२४ अच्छंत (आसीन) उ० १९७८ अच्छंद ( अच्छन्द) द०२/२ अच्छण (आसन) उ० २६।७ अच्छणजोय (अक्षणयोग) ४०८३ उ० अच्छि (अक्षि) द० ८ २० उ० १२ २६, २०११६, २०. अ० २६४।६. दसा० ७११६, २३. अच्चंत - अजाइया क० ६१४,६. नि० ३।५६ से ६४ ४ ६७ से १०२, ६६० से ७३ ७१५७ से १२: १९।५४ से ५ १५।५६ से ६१ १४२ से १४७, १७।५८ से ६३,११२ से ११७ ' अच्छिद (आ+छि) अच्छिदेज्ज नि० ३।३४ अच्छिदावित्ता (आछेद्य) नि० १५।३२ अच्छिदत्ता (आछिद्य) नि० ३।३५ अच्छिदेत (आच्छिन्दत् ) नि० ३।३४ ४१७२ ; ६।४३; ७।३२; ११।२६; १५।३१; ११७; १७।३३,८७ अच्छिमल (अनिमल) नि० ३६० ४।१०६; ६०७७ ७१६६ ११.६३ १५६५, १५१: १७/६७,१२१ अच्छिय (अक्षिक) अ० ३१७/२ अच्छरोड (दे० ) ०३६।१४० अच्छिल (दे०) उ० ३६ । १४८ अच्छिवेय (दे० ) उ० ३६।१४७ अच्छेज (आच्छेय) नि० १४४ १८५२६. १९०४ अच्छेरग (आश्चर्य) उ० ९।५१ अच्छेरयभूत (आश्चर्यभूत) १० १२,१४ अजय (अजय) द० ४१ से ६ अजय (अयत) उ० ४। १ अजष्णमणुक्कोस (अजघन्यानुत्कर्ष) अ० २११ अजष्णमणूकीसय (अजघन्यानुकर्षक ) अ० ५७५, ५७१ से ५७६,५८१ से ५८३, ५८५,५८८,५६१, ५६४, ५६ ७,६००, ६०३ 1 अजहन्न ( अजघन्य ) उ० ३६।२४४ अजाइय (अवाचित) उ० २२८ अजाइया (अयाचित्वा ) ६० ५।१८ ६।१३ Page #1007 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजाण-अज्जफग्गुमित्त २१३ अजाण (अजानत) द०६९; ८।३१. दसा०६।१७ नं० गा० ३३. ५० ५. नि० ६।१२ अजाणग (अज्ञक) उ० २५।१८ अज्ज (अर्जय)--. अज्जयंते उ० १३।१२ अजाणमाण (अजानत्) उ० १४१२० अज्जइंददिन्न (आर्यइन्द्रदत्त) प० १८७, २०३, अजाणित्ता (अज्ञात्वा) नि० ६७ अजाणिय (अज्ञात्वा) नि० २१४७, ४२१: अज्ज इसिपालित (आर्यऋषिपालित) प० २०६, १९८ अजाणिया (अज्ञिका) नं. १ अज्जकालिय (अद्यकालिक) अ० ३६२ अजिइंदिय (अजितेन्द्रिय) उ० १२१५; ३४।२२ अज्जकुवेर (आर्यकुबेर) प० २०६, २१२ अजिण (अजिन) उ० ५।२१. ५०६, १२१, अज्जोस (आर्यघोष) १० ११६ १३६,१७२ अज्जचंदणा (आर्यचन्दना) १०६४ अजिय (अजित) आ० २।२।४।२ उ०२३।३८. अज्जजंबु (आर्यजम्बू) १० १८६ नं० गा० १८. अ० २०७. दसा० १०।१८. अज्जज विवणी (आर्य:क्षिणी) ५० १३३ प० १५४,१५६ अज्जजयंत (आर्यजयन्त) प० १८७ अजीव (अजीव) द० ४।१२ से १४. उ० २८।१४ अज्ज जयंति (आर्थजयंति) प० २२० १७; ३६।१ से ४,१३,१८,२४८,२४६. अज्जजसभद्र (आर्ययशोभद्र) १० १८६ से १८८ अज्जजीयधर (आर्यजीतधर) न० गा० २६ नं० ८२ से ८५, १२४. अनं० २. अ० ६,३०, अज्जतावस (आर्यतापस) प०१८७,२०६,२११ ५३,७७,१०२,२५१,२५३,२५४,२७४,२७६, अज्जतावमी (आर्यतापसी) प० २११ ३३६,४४१ मे ४४४,५०७,५०८,५१३,५१६. अज्जत्त (अद्यत्व) प० २२८,२२६ दसा० १०॥३०,३१ अज्जथूलभद्द (आर्यस्थूलभद्र) ५० १८७,१६२ अजीवत्त (अजीवत्व) नं० ७१ अजीवनिस्सिय (अजीवनिश्रित) अ० ३०१ अज्जदिण्ण (आर्यदत्त) ५० ११७ अज्जदिन्न (आर्यदत्त) ५० १८७,२०६,२०७ अजीवविभत्ति (अजीवविभक्ति) उ०३६।४७ अजीवोदयनिप्फण्ण (अजीवोदयनिष्पन्न) अ० २७४ अज्जधम्म (आर्यधर्म) प० २२२।६ अज्जनाइल (आर्यनागिल) ५० १८७ अजोगत्त (अयोगत्व) उ०२६।३८ अज्जनाइली (आर्यनागिली) ५० २१८ अजोगि (अयोगिन) उ० २६।३८ अजोगिभवत्थकेवलनाण (अयोगिभवस्थ केवलज्ञान) अज्जनाग (आर्यनाग) प० २२२।३ अज्जनागहत्थि (आर्यनागहस्ति) नं० गा० ३० नं० २७,२६ अज्ज (आर्य) द० ६।५३. उ० १३।२७,३२; अज्जपउम (आर्यपद्म) प० २१७,२१६ १४।४५; २०१६,८. नं० गा० २६. दसा० अज्जपउमा (आर्यपदमा) प० २१६ ३।३, ५७; ६।२; १०।२३, ३५. ५० अज्जपय (आर्यपद) द०१०।२० ११७,२३०,२३७,२७७,२८२. व० श२० से अज्जपूसगिरि (आर्यपुष्य गिरि) १०२२१,२२२ २२; २।२४,२५,२८ से ३०, ४।११ से १४, अज्जपोमिल (आर्यपोमिल) ५० १८७ १८; ५।११ से १६; ७४; ८।१२ से १५. अज्जप्पभव (आर्यप्रभव) ५० १८६ नि० ४।११८ अज्जप्पभिइ (अद्यप्रभति) ५० ६२ अज्ज (अद्य) द० चू० १६. उ० २।३१. अज्जफरगुमित्त (आर्यफल्गुमित्र) प० २२२ Page #1008 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्जभद्दबाहु-अट्ट अज्जभद्दबाहु (आर्यभद्रबाहु) प० १८८,१८६ अज्जिय (अजित) उ० ११४२; १८।१६ अज्जम (अर्यमन्) अ० ३४२।१ अज्जिया (आयिका) द०७।१५. प०१४,१०३, अज्जमंगु (आर्य मङगु) नं० गा० २८ ११८,१३३,१३६,१६६,१७८ अज्जमहागिरि (आर्य महागिरि) ५० १८७,१६२, अज्जुणसुवण्णगमई (अर्जुनसुवर्णकमयी) उ० ३६।६० २२० अज्झत्थ (अध्यात्म) उ०६।६; १४।१६ अज्जय (आर्यक) द० १८ अज्झत्थिय (आध्यात्मिक) दसा० १०।२२,२३. अज्जरह (आर्यरथ) ५० २१७,२२०,२२१ प०११,५२,५४,५५,६६ अज्जरोहण (आर्यरोहण) ५० १६६,१६७ अज्झप्प (अध्यात्म) अ० ६३१११ अज्जव (आर्जव) द०६।६७. उ० ६।५७; २६।१. अज्झप्पजोगज्झाण (अध्यात्मयोगध्यान) दसा० १०॥३३. ५० ८१ उ०२६।५५ अज्जवइर (आर्यवज्र) प० १८७,२१४,२१६,२१७, अज्झप्पज्झाणजोग (अध्यात्मध्यानयोग)उ०१६।६३ २१८ अज्झप्प रय (अध्यात्मरत) द. १०।१५ अज्जवइरसेण (आर्यवज्रसेन) प० १८७,२१७,२१८ अज्झयण (अध्ययन) द. ४ सु० १ से ३. अज्जवइरा (आर्यटना) प० २१६ उ० २६।१, ७४. नं० ८१ से ६१. अज्जवभाव (आर्जवभाव) द० ८।३८ अ०६,७,७२, ७४१२, ७५, ५७१,६१०,६१६, अज्जवयण (आर्यवचन) उ० २५१२० ६२०, ६२२ से ६३१. दसा० १०॥३५. ५० अज्जवया (आर्जव) उ० २६१४६ १०६, २८८. व० ५।१५ से १८; १०।२३ अज्जवियत्त (आर्यव्यक्त) ५० १८३ से २५, ३० से ३७ अज्जवेडय (आर्यवेडय) ५० १६८।२ अज्झयणछक्कवग्ग (अध्ययनषटकवर्ग) अ० २८।१ अज्जसंतिसेण (आर्यशांतिसेन) प० २०७ से २०६ अज्जसंभूयविजय (आर्यसंभूतविजय) प० १८७, अज्झवसाण (अध्यवसान) उ० १६७. नं० १८,१६ १८८,१६१ अज्झाइयव्व (अध्येतव्य) द०६।४ सू० ५ अज्जसमिय (आर्यसमित) ५० २१४,२१५ अज्झावय (अध्यापक) उ० १२।१६,१८,१६ अज्जयसमुद्द (आर्यसमुत्र) नं० गा० २७ अज्झावसित्ताणं (अध्युष्य) ५० १८० अज्जसीहगिरि (आर्यसिंह गिरि) ५० १८७,२०७, अज्झीण (अक्षीण) अ० ६१६,६३२,६३४ से ६४३ २१४ अज्झीणझंझ (अक्षीणझञ्झ) दसा० ६VE अज्जसुहत्थि (आर्यसुहस्तिन्) ५० १८७, १६२, अज्झुसिर (अशुषिर) उ० २४।१७ १६६ अज्झोयर (अध्यवतर) द० ५।५५ अज्जसुहम्म (आर्यसुधर्मन्) प० १८३,१८४,१८६ 1 अज्झोववज्ज (अधि+उप+पद)-अज्झोवअज्जसेज्जंभव (आर्यशय्यं भव) प० १८६ वज्जति नि० १२।३० अज्जसेणिय (आर्यश्रेणिक) ५० २०९,२१० अज्झोववज्जमाण (अध्युपपद्यमान) नि० १२।३०%3 अज्जसेणिया (आर्यश्रेणिका) प० २१० १७.१५२ अज्जहत्थि (आर्यहस्तिन्) प० २१११५ अझोववन्न (अध्पुपपन्न) दसा०६।४; १०१२६ अज्जा (आर्या) नं० १२०. अ० २०. व० ७१५ अट्ट (आर्त) आ०४।८. उ० ३०।३५; ३४।३१ अज्जावेतव्व (आज्ञापयितव्य) दसा०१०।२६ अट्ट (अट्ट) नि०८।३, १५॥६६ Page #1009 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टज्झाण-अट्ठारसम अट्टज्झाण (आर्तध्यान) प० ५४. नि० ८।११ अट्टणसाला (अट्टनशाला ) दसा० १०।११. प० ४२, ६४ अट्टालग ( अट्टालक) उ० ६।१८ अट्टालय ( अट्टालक ) अ० ३६२. नि० ८३; १५.६६ अट्टिय (आर्तित ) उ० २।३२; २०/२५ अट्ठ (अष्टन् ) आ० ४ ३ ६० ६।७. उ० १०।१३. नं० ८८. अ० २७३. दसा० १०।१४. ५० १०. व० ८।१७ अट्ठ (अर्थ) आ० ५।३ । द० ३।४, १३; ४ सू० १७; ५।३०, ४०, ४७, ४६, ५१,५३,५६ ६५,६७, ७८, ९४, ६७ ६।११, १६, ३४, ५२, ५५, ६३, ७१४, ७, ८, १३, ३७, ४०, ४६; ८ ४२, ५१; ६।३०,४२,४४; ६४ । सू० ६,७; १०१८. उ० ११८, २५, ३३; ३।५; ४१४; ५८ ६४, १३; ७२५,२६; ८३, १२; ८, ११, १३, १७, १६,२३,२५,२७,२६,३१,३३,३७,३६,४१,४३, ४५,४७,५०; ११ ३२; १२।३, ६, ३५; १४/४, ३२; १५।१०; १६।१; १८।२१; १६८० ; २०१८ २२।१५, १६, २५ ५, ७, ६, १०; २६।३२, ३४; २८/३६; २६।१,७४; ३२।१०५; ३५।१०,१७. अ० ३६८, ४१६, ४२३,४३०,४३७,४४४, ४४५. बसा० ६।२।२८ १०४,६,७,११,१२,२४,२७ से ३२, ३४, ३५. प० ६, ७, ३८, ३६, ४७, ४८, ५०, ५३, ८०, १८३, २२४,२३७,२६०,२८८. क० ३।१३ ५।४१. व० ४।२१,२३; ७।६ से ६,२८; ८।१६. नि० १।३१ से ३४; १६।५; २०१६ से ५.१ अअमिया (अष्टाष्टकिका) व० ६ । ३६ अआढगसतिय (अष्टादशतिक) अ० ३७४ अट्ठग (अष्टांग) प० ४२ agefore ( अष्टक fक) अ० ४०८ अटुकर (अर्थकर ) ० १०।७ अट्ठगुण (अष्टगुण) अ० ३६५।१ १५ अट्ठजाय ( अर्थजात) क० ६।१८ अजय ( अर्थयाच) व० २।१७ अट्ठतीस (अष्टत्रिंशत् ) प० ११८ अट्ठनाम (अष्टनामन्) अ० २४६, ३०८ अट्ठय (अर्थपद) उ० १०।३७. नं० ६४,६५ अपयपरूवणा ( अर्थपदप्ररूपणा ) अ० ११४ से ११६,१३१ से १३३,१५८ से १६०,१६६ से २०१, २१६,२१७ अभाइया (अष्टभागिका) अ० ३७६,६१४ अठ्ठभाग (अष्टभाग) उ० ३६।२२१ अट्टम (अष्टम) द० ८।१५. उ० २४ २ २६ ३; ३६ । २४१. नं० ८८. अ० ३०८।२. दसा० ४ ३ ७ ३३ अट्टमभत्तिय ( अष्टमभक्तिक) प० २४२, २४७ अट्टमा (अष्टमी ) दसा० ६ । १५ अट्टमी (अष्टमी) दसा० ६।१० से १८. ५० १२४, १३८, १६३, १६५. व० १०/३ अट्ठा (अर्थ) द० |४ | मू० ६ उ० १२ २४. नं० ६८,८१ से ६१; १२३. अ० ७१४ अट्ठवासजाय ( अष्टवर्ष जात) व० १०।२१,२२ अट्ठवासपरियाय (अष्टवर्षपर्याय) व० ३।७,८; १०१२८ अट्ठविह (अष्टविध ) २६/३२, ७२ ३०।२५; ३३।१४; ३६।२०७. अ०१३८,२६१,३०८. ३५८,५१२,५५८. दसा० ४।१ से ३,२३ अट्टवीस (अष्टविंशति) उ० ३६।२३९ अट्ठवीसइविह (अष्टविंशतिविध) उ० २६।७२ अट्टहा (अष्टधा ) उ० ३६।१६, २०५ अट्ठा (अर्थ) अ० ५६६४ अट्ठाय (अष्टापद) नि० १३।१२ अट्ठाबंध ( अर्थबन्धक) प० २७८ अट्ठारस (अष्टादशन् ) आ० ४/६ ६० चू० १ सू० १. उ० ३६।२२६. नं० ८१ प०८८ व० १०।३७ अट्ठारसम (अष्टादश ) द० चू० १ सू० १ Page #1010 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसवासपरियाय-अणंतर अदारसवासपरियाय (अष्टादशवर्षपर्याय) व०१०।३७ अट्ठारसविह (अष्टादविध) आ० ४।६ अट्ठावय (अष्टापद) द० ४।३. प० १८० अट्ठावीस (अष्टविंशति) अ० ५८६ अदावीसइविह (अष्टाविंशतिविध) नं० ५१ अट्ठावीसतिविह (अष्टाविंशतिविध) आ० ४।८ अट्ठामीइ (अष्टाशीति) नं० ८५ अट्ठासीय (अष्टाशीति) व० ६।३६ अट्टि (अस्थि) दसा० ६।३; १०।३०. ५० ४२. व०१०।०,४ अट्टिअप्प (अस्थितात्मन) उ० २२१४४ अट्ठिच्चा (अस्थित्वा) क० ३।२३,२४ अट्टिय (अस्थिक) द०५४८४ अट्ठिय (अस्थित) प०६२,२६३ अट्ठिय (आर्थिक) उ० ११४६ अट्टियग्गाम (अस्थिकग्राम) ५०८३ अट्टियप्प (अस्थितात्मन्) द० २६ अडंडकोडंडिम (अदंडकोदण्डिक) १०६४ अडड (अटट) अ० २१६,४१७ अडडंग (अटटाङ) अ० २१६,४१७ अडयालीस (अष्टचत्वारिंशत्) अ० ३८४ अडवि (अटवि) अ० ५५५ अडविजत्ता (अटवियात्रा) नि० १६।१२ अड्ढ (आढ्य) उ० १६०५ अड्ढनवम (अर्धनवम) ५० १५१ अड्ढपंचम (अर्धपंचम) नि० २०।४१ अड्ढपंचमासिय (अर्धपञ्चमासिक) नि० २०४२ अड्ढभरह (अर्धभरत) नं० गा० ३३,३८ अड्ढ रत्त (अर्धरात्र) नि० १६१८ अड्ढाइज्ज (अर्धतृतीय) आ० ४।६ नं० २५ अ० ४२६. प० १०१. नि० २०१३७,४५ अड्ढाइज्जमारािय (अर्धतृतीयमासिक) नि०२०।३८, अणइक्कमण (अनतिक्रमण) उ० २६१३३ अणंगपविट्ठ (अनङ्गप्रविष्ट) नं० ५५,७६ अणंत (अनन्त) आ० २।३; ५।४।३; ६।११. उ० ४१५; १०१६; १९७३; २८८; २६ । ६,७२, ३६।१८६,१६३. नं० गा० १६, ३४; सू० २२,२५,३२,३३।१५३,८१ से ११,१२३ से १२५. अ० १२३,१२७,१४०,१५४,१६७, २०८,२२१.२२७,३६८,३६६,४१६,४४४, ४४५.४५७,४५८,४६०, दसा० ८।१,१०।३३. प० १,१०,१२,२४,८१,८७,१०८,११५,१२६, १३०,१४७.१६०,१६६ अणंतकाय (अनन्तकाय) नि०१०१५ अणंतकाल (अनन्तकाल) उ० ३६।१४,८२,६०, १०३ ११५,१२४,१३४,१४३,१५३,१६८, १७७,२०२,२४६ अणंतग (अनन्तक) उ० ३३।१७ अणंतग (दे०) वस्त्र नि०११३२०१२ अणंतगुण (अनन्तगुण) उ० १९४७,४८; ३४।१० से १३,१५ से १६. अ० १३०,२६३,४५७, ४६० अणंतगुणिय (अनन्तगुणित) नं०७० अणंतघाइ (अनन्तघातिन्) उ०२६८ अणंतणाणि (अनन्तज्ञानिन्) बसा. ६।२।२२ अणंतनाण (अनन्तज्ञान) द० ६।११ अणंतनाणि (अनन्तज्ञानिन्) अ० ४१७१३ अणंतपएसिय (अनन्तप्रदेशिक) नं० २५. अ० ६४, ६८,११५,१३२,१५२,१५३,२५४,२८७,३७१, ४४४ अणंतभाग (अनन्तभाग) उ० ३३।२४. नं०७१ अ० ४५७,४६० अणंतय (अनन्तक) उ० ६।१,१२, २०॥३१ अ० ५७४,५८० अणंतर (अनन्तर) नं. ३०,३१,१०२. दसा० १०।१४,२४,२७ से ३२, ५०२, १०६,१२७, अड्ढातिज्ज (अर्धतृतीय) दसा० ५।७ अण (अण्)-अणती अ० १७०८।३ Page #1011 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतरसित-अणवठ्ठप्प अणंतरहित (अन्तरहित) दसा०५।२१ अणच्चाविय (अनतित) उ० २६१२५ अणंतरहिय (अनन्तरहित) दसा० २।३. अणच्चासायणसील (अनत्याशातनशील) उ० २६३५ नि० ७।६८; १३।१,१४।२०।१६।४१; अणज्ज (अनार्य) द० चू० १।१ १८१५२ अणट्ठ (अनर्थ) उ० ५।८; १८।३०. अ० ६०६. अणंतरागम (अनन्तरागम) अ० ५५१ वसा० १०१३०. नि० १११६ से २२; १८६१ अणंतराय (अनन्तराय) अ० २८२ अणट्ठ (अनष्ट) उ० १८१४६ अणंतसो (अनन्तशस्) उ०१६।४५, ४६ से ५१,५३ अणबंधिय (अनर्थबन्धिक) प० २७८ ५८,६१,६४ से ६७ अणणुण्णविय (अननुज्ञाप्य) नि० ५।२३ अणंतहियकामय (अनन्तहितकामक) द०६।३३ अणणुण्णवेत्ता (अननुज्ञाप्य) दसा० ३।३. व० ८।६ अणंताणतय (अनन्तानन्तक) अ० ५८०,५८३, से ६. नि० २।५२ ६०१,६०२ अणणुपालेमाण (अननुपालयत) दसा० ७३४ अणंताणुबंधि (अनन्सानुबंधिन्) उ० २६।२ अणणसय (अननुशय) अ० ३१०।१ अणंतिया (अनन्तिका) उ०६।४८ अणण्हयत्त (अनास्नवत्व) उ० २६।२७ अणंबिल (अनाम्ल) नि० १७।१३३ अणत्थ (अनर्थ) उ०१४।१३ अणक्खर (अनक्षर)जं० ६०।१ अणत्थमिय (अनस्तमित) नि० १०१२५ से २८ अणक्खरसुय (अक्षरभुत) नं० ५५,६० अणत्यमियमंकप्प (अनस्तमितसंकल्प) क० ५।६ अणगार (अनगार) उ० १।१; २।१४,२८, ८।१६; ६।१६; ११।१; १८।४, ६ से १०, १८, १६; अणप्पिणित्ता (अनमे) नि० २।५४ २५१५,२७,४२; २६४४,७,८,४२,६२,७३; अणप्फुन्न (दे० अनापूर्ण) अ० ४३८,४३६ ३१११८. नं०२दसा० ७१४,५,६ से २७,३२ अणभिग्गहिय (अनभिगहीत) उ०२८।२६. ३५; १०॥३१. ५० ७५,७८,८७, १०८, ११३, प० २७८ ११५, १२६, १३८, १६०, १६५,१८०,१८३, अणभिज्झिय (अनभिध्यात) द० ० १।१४ १८५. २०६।४०,४१, १०१२ से ५. अणभिदुय (अनभिद्रुत) उ० ३५१७ नि० २०.१६ से ५१ अणभिलसमाण (अनभिलषत) उ० २६।३४ अणगारगुण (अनगारगुण) आ० ४८ अणलं (अनलं) नि० १११८५ से ८७; १४१८; १८१४० अणगारमग्गगइ (अनगारमार्गगति) उ० ३५ अणलंकिय (अनलङ्कत) उ० ३०।२२. अणगारसीह (अनगारसिंह) उ० २००५८ चि० १२।२६; १७।१५१ अणगारित (अनगारिक) दसा० ८।१. ५०१ अणलस (अनलस) द० ८।४२ अणगारिय (अनगारिक) दसा० १०१३१. प०५७, अणवकंखमाण (अनवकाङ्क्षत्) उ० १२।४२. १२६,१६५ प० २७६ अणगारिया (अनगारिता) द० ४११८,१६ अणवगल्ल (अनवकल्प) अ० ४१७।१ उ० १०।२६; २०।३२,३४,२१।१० अणवज्ज (अनवद्य) द० ७१३,४६; चू० १ सू० १. अणच्चक्खर (अनन्त्याक्षर) अनं० ६. अ० १३,३४, उ० १६०२७ ५७, ८१, १०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३, अणवठ्ठप्प (अनवस्थाप्य) क० ४।३. व०२।७,१५ ७०० १६,२२ Page #1012 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ अणवत्था-अणारिय अणाणुगामियत्त (अनानुगामिकत्व) वसा० ७१३४ अणाणुपुव्वी (अनानुपूर्वी) अ० ११५,११७,११६, १२०,१२२,१२४,१२५,१२७,१२८,१३०, १३२,१३४,१३६,१३७,१४७,१५०,१५१, १५४,१५६,१६१,१६३,१६४,१६८,१६६, १७४,१७६,१७६,१८०,१८३,१८४,१८७, १८८,१६१,१६२,१६५,२००,२०२,२०४, २०५,२११,२१२,२१८,२२१,२२२,२२५, २२६,२२६,२३०,२३३,२३४,२३७,२३८, २४१,२४२,२४५ अणाणुबंधि (अनानुबंधिन् ) उ० २६।२५ अणाताविय (अनातापित) ५० २७८ अणापुच्छित्ता (अनापृछ्य) दसा० ३।३. प० २७१ क० ४।१६. व० ११६. नि० २।४४ अणापूच्छिय (अनापृच्छ्य) व० ८।१६. नि० १४१५; अणवत्था (अनवस्था) अ० ५५७ अणवदग्ग (अनवदन) उ० २६।२३ अणवरय (अनवरत) दसा० १०।१८. १० ७३ अणसण (अनशन) उ० १६।६२, ३०।८,६,१२. दसा १०॥३१,३३ अणह (अनघ) दसा० १०॥१८ अगहिगय (अनधिगत) अ० ७१४ अणाइ (अनादि) उ० ३६।१२ अगाइकाल (अनादिकाल) उ० ३२।१११ अणाइण्ण (अनाचीर्ण) द० ३१,१०. उ० १६१ अणाइन्न (अनाचीर्ण) द० ७२ अणाइपारिणामिय (अनादि पारिणामिक) अ० २८६,२८८ अणाइय (अनादिक) उ० २६।२३; ३६।८. ___नं० ५५,६८,६६,७१ अणाइसिद्धंत (अनादिसिद्धान्त) अ० ३१६,३२५ अणाईय (अनादिक) उ० ३६।६५,७६, ८७,१०१ ११२,१२१,१३१,१४०,१५०,१५६,१७४, १८३,१६०,१६६,२१८ अणाउत्त (अनायुक्त) उ० १७।६,१३,१४ अणाउय (अनायुष्क) अ० २८२ अणाउल (अनाकुल) द० ५।१३ अणागतद्धा (अनागतध्व) अ० २१६,६१६ अणागय (अनागत) द०७।८,६. चू० २।१३. उ० ५।६, १२॥३२; १४।२८; १८१५२. नं० २२,२५,६५,१२५. अ० ५०,५३०,५३३, ५३४,५३७,५४६. ५० १४. नि० १०८ अणागाढ (अनागाढ) नि० १११७६ अणाघाय (अनाघात) उ० ५।१८ अणाढिय (अनादृत) उ० ११०२७ अणाण (अज्ञान) उ० २।४०,४१ अणाणत्त (अनानात्व) उ० ३६७७,८६,१००, ११०,११६ अणाणा (अनाज्ञा) अ० २१ अणाणगामिय (अनानुगामिक) नं. ६१७ अणाबाह (अनाबग्ध) द०६।१०. उ० २३।८०,८३; ३५७ अणाबाहसुहाभिकंखि (अनाबाधसुखामिकांक्षिन्) द० ६।१० अणाभोग (अनाभोग) आ० ६.१ से १० अणाम (अनामन्) अ० २८२ अणामंतिय (अनामन्त्र्य) व० ८।१६. नि० १४१५; १८१३७ अणाय (अज्ञात) उ०२०।२६ अणायग (अनायक) दसा० ६।२।१० अणायग (अज्ञातक) नि० ८।१२ से १४; १११८५, ८६; १४१३८,३६; १८७०,७१ अणायण (अनायतन) द० ५।१० अणायरिय (अनाचरित) द० ६१५३ अणायरिय (अनाचार्य) व० ३।११ अणायरिया (अनाचार्या) व० ३।१२ अणायाण (अनादान) प० २७८ अणायार (अनाचार) आ० ४।३,७; ५२. द० ६॥५६; ८।३२. उ० ३६।२६ अणारिय (अनार्य) उ० १२।४; १८।२७; ३४।२५. नि० ८।१ से ६,११,६।१२; १६।२७ Page #1013 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणालोइय- अणुकंपय अणालय (अनालोचित ) दसा० १०।२४ से ३२ अणालोयावेत्ता (अनालोच्य ) व० ६।१० अणावरण ( अनावरण) अ० २८२ अणावाय (अनापात) उ० २४ १६, १७, ३०१२८ अणाविल (अनाविल) उ० १२।४६ अणासच्छिण (अनासाच्छिन्न) नि० १४/६ १८।३८ अणासन्न ( अनासन्न ) उ० ११३३; २०१७ अणासव (अनाश्रव) उ० १।१३; ३०१२,३; ३२।१०६, ३५।२१ ५०७८ अणासा (अनाशा) दसा० २१४६ अणासाणा (अनाशातना) उ० २६१२० अणासायमाण (अवास्वादयत् ) उ० २६१३४ अगाह (अनाथ) उ० २०११, १२, १५ से १७,५६ अनाहत (अनाथत्व) उ. २०१५४ rafts ( अनाथपिण्ड ) १८ अणाया ( अनाथता) उ० २०२३ से २७,३०,३८८ अfिree (अनिकेत ) ३० २०१६ afryaara (अनिकेतवास ) ६०० २१५ अणिदिय (अनिन्दित) उ० ३५।१६ अणिदियंगी (अनिन्दिताङ्गी) उ० १२/२० अणिकंप ( अनिकम्प ) नि० १३६ से ११; १४२८ से ३०; १६/४६ से ५१; १८।६० से ६२ अणिगाम ( अनिकाम) उ० १४।१३ - अणिग्गह ( अनिग्रह) उ० १११२, ६, १७।११ affee (अनिगृहीत) ६० ८३६ अणिच्च (अनित्य ) द० ८५८ ० १ ० १. उ० १८१११,१२; १६।१२ अणिच्छियव (अनिष्टव्य) आ० ४१३ ५१२ अणिज्जिण ( अनिर्जीर्ण) प० १२,१४ अणिति (अवृद्धि ) नं० २३ अणितिय (अनित्य ) दसा० १०।२८ से ३२ अणितिय ( अनिमंत्र्य) नि० २४४ अणिमिस ( अनिमिष ) द० ५।७३. उ० १६।६. दसा० ७१३३ अणिय ( अनीक) प० है अणिट्ट ( अनिवृत ) ०७१२५,२६ अणितदित्ति (अनियतवृत्ति) दा० ४|४ अणित ( अनिवृत्त) उ० १४११४ अणिमेता (अनियम्य ) ३०८१४ afras (अनियत ) उ० ६४१६ अणियाण (अति) ४१६ ०३५१६ afores (पति) प०६ अणिल (अनिल) १४९० अट्ट ( अ ) ४० ५२७४ १४१४१८१३६ affe (after ) ०२१३.० १८१५; १६१४ अणिस्स ( अ ) ०१२३१,४४,५७,७०,८१, ८६ अभिस्तर (अवोश्वर ) ०२२१४५ अणि पाश्रित) व १०/६ अस्ति (पति) बसा० ४१२३ अस्सिय (१०७५७० १६६२. ०४९०१६ अणिस्यियण (अति) वसा० ४।७ अणिरिसर (वर) ० १२/१६ अणिस्सेस (विस्४३४ अणिह (अभि ) ०१०११३ अणीहार (अ) उ० ३०।१३ अणु (प) ० ० १२।१५ अग (अनु) नं० ० ३३,३५ सू० ६२, १२१,१२७११.०२८. जोनं० २ से १०. अ० २ से ६ अणुओगदार द्वार) नं० ७७,८१ से ६१, १२३. जो ०७५,५७१,५७२,७०६ अणुओगिय (अनुयोजित) नं० गा० ३८ V अणुकंप ( अनु + ) – अणुकंपे उ० १५।१२ अणुकंपग (अनुकम्पक) ०२०६ अणुकंपण (अनुकम्पा ) ८० ५३ अणुकंपय (अनु) २०१२ १८ २९ ३० Page #1014 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० अणुकंपा (अनुकम्पा ) प० १७ अणुकंपि (अनुकम्पिन् ) उ० १३।३२; २१ । १३ अणुकट्ठेमा (अनुकर्षत्) नं० १३ अणुकुड्डु (अनुकुड्य) क० ३।३२ अणुकूल (अनुकूल ) १०५८, ५६ अणुक्कसाइ (अनुकषाय ) उ० २१३६; १५ १६ अणुक्को (अनुक्रोश ) उ० २२।१८ arrata (अनुकi) उ० ३६।२४४ अणुग (अनुग) उ० ३२।२७, ४०,५३,६६, ६६,६२ अणुगंतव्व ( अनुगन्तव्य ) अ० ७१३ v अणुगच्छ ( अनु + गम् ) अणुगच्छइ प० १० अणुगच्छित्ता (अनुगम्य ) प० १० अगम ( अनु + गम् ) - अणुगमिस्सम उ० १४ । ३४ अणुगम (अनुगम) अ० ७५, ११४, १२१, १३०,१३१ १३८, १४६,१५८, १६५, १७४, ११६, २०६,२१५ से २१७, ७० से ७१४ अणु (अनुगत ) ० ६ । ६८. उ० ४। १३; १५।१५ ; ३२।२७,४०,५३,६६,७६, ६२. नं० ३५. अ० ७१२ arraforoa (अनुगवेषितव्य ) क० ३।२७ अणुवेसमा (अनुगवेष्यमाण) क० ३।२७ अंगाम ( अनुप्राम) अ० ३५६ v अणुज्झि ( अनु + गृध् ) – अणुगिज्भेज्जा उ० २।३६ अणुगिद्ध ( अनुगृद्ध ) उ० २०/५० अणुगिद्धि (अनुगृद्धि ) उ० ३२|१६ अणगीय (अनुगीत) उ० १३।१२ अणुग्गय (अनुद्गत) द० ८५८. क० ४१६ से ६. नि० ३१८०; १०।२५ से २८ अणुग्गह (अनुग्रह ) द० ५।६४. उ० १२।३५; २५।३७ अणुग्धाय (अनुद्धा तिक) क० १।३७; २।१७; ३।३३; ४ । १,१०,११; ५ ।१ से ४, ६ से १०, १३ १४. ० ६१८, ६ अकंपा-अगुणव अणुग्धातिय (अनुद्धातिक) नि० १।५६; ६।७८; ७६२; ८१८ ६२६; १०।१५ से १८, २२ से २४, ४१, ११।६३ Vअणुग्धास ( अनु + प्रासय् ) -- अणुग्घासेज्ज नि० ७७७ अणुग्धासेंत (अनुप्रासयत् ) नि० ७ ७७,७६ अणुचरिय ( अनुचरिक) अ० ३५६ अणुचरिय ( अनुचरित) प० ६२, ६४ अणुरिया ( अनुचरिका ) क० ३।३२ v अणुचित ( अनु + चितय् ) – अणुचिते उ० १६ ६ 1 अणुचिट्ठ ( अनु + ष्ठा ) – अणुचिट्टई द० ५।१३० अणुच्च ( अनुच्च ) उ० १।३० अणुच्चाकुइय ( अनुच्चाजित) प०२७८ V अणुजा ( अनु +या ) -अणुजाइ उ० १३।२३ V अणुजाण ( अनु + ज्ञा ) – अणुजाण प० १५. -- अणुजाणंति द० ६ १४ – अणुजाति अनं० २३. नि० ५३८ - अणुजाणह आ० ३।१. उ० १६।१०. दसा० १०३. व० २।२८ - अणुजाणामि जोनं० १० – अणुजाणिज्जा अनं० १३ – अणुजाणेज्जा अनं० १२. व० ८। १ अणुजाण (अनुजाणत्) उ० ८८ अणुजाणंत (अनुजानत् ) नि० ५८ अजाणता (अनुज्ञाय ) दसा० १०|३ अजीव ( अनु + जीव्) - अणुजीवंति उ० १८।१४ अणुज्जुय ( अनृजुक) उ० ३४।२५ अणुट्ठित (अनुत्थित) दसा० ३।३ अणुट्टिय (अनुत्थित) नि० ६।११ अणुपंत (अनुनयत् ) उ० १४।११ अणुणाद (अनुनाद ) प० ३२ अणुणास (अनुनास) अ० ३०७।५ अणुणमणी (अनुज्ञापनी ) दसा० ७६ 1 अणुण्णव (अनु + ज्ञापय् ) अणुण्ण विज्जति जोनं० २. अ० २ Page #1015 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुण्णवणा-अणुपाल २१ अणुण्णवणा (अनुज्ञापना) क० ३।२८ से ३०,३२. २।२६; ६।१०, ११; ७११ से ३, ६ से ११ क०४।२०,२२; ७।२७ अणुद्धय (अनुद्धृत) ५० ६४ | अणुण्णवित्ता (अनुज्ञाप्य) क० ३।८७ अणुंधरी (अणुंधरी) प० ६२, २६३ अणुण्णवेत्तए (अनुज्ञापयितुम्) दसा० ७।११. अणुनदीय (अनुनदीक) अ० ३५६ व०८।१० अणुन्नय (अनुन्नत) द० ५।१३. उ० २१।२० अणुण्णवेत्ता (अनुज्ञाप्य) क० १।३८. व० ७।२२ अणुन्नविय (अनुज्ञाप्य) द० ५॥१६ अणुण्णवेयव्व (अनुज्ञापयितव्य) क० ३।३१ अणुनवेत्तु (अनुज्ञाप्य) द० ५।८३ अणुण्णा (अनुज्ञा) अनं० १ से २८. जोनं० २ से अणुन्नाय (अनुज्ञात) उ० १९८४,८५; २३।२२ १०. अ० २ से ५ अणुपइण्ण (अनुप्रकीर्ण) ५० ३४ । अणुतप्प (अनु + तप्)-अणुतप्पेज्ज उ० २।३० अणुपत्त (अणुप्राप्त) दसा० १०।२४ से ३२. ५० अणुताव (अनुताप) उ० २०१४८; ३२।१०४ ६,३८,४७ अणत्तर (अनुत्तर) आ० ४।६. २०४।१६,२०, अणुपथ (अनुपथ) क० ३।३२ ८।४२; ६।१६,१७. उ० २।३७; ६।१७, ७।२७; अणुपरियट्ट (अनु+परि+अट)-अणुपरियति ६।२; १०॥३५; १३।३४,३५; १८।३८ से ४०, नं० १२५.-अणुपरिट्टिसु नं० १२५. ४२,४३,४७; १९६५,६८; २०१५२; २११२३; -अणुपरियट्टिस्संति नं० १२५.-अणपरियडंति २२।४८; २५।४२,४३, २६।२,६१,७२; उ०८।१५ ३६।२१२,२१६. नं० १२०. अ०२८७. अणुपरिहारिय (अनुपारिहारिक) व० २।५ दसा० ८।१६।२।३७; १००२४ से ३३. प. अणपविद् (अनुप्रविष्ट) दसा०६।१८. प० ५०, १,७४,८१,८७,१०८,११३,११५,१२६,१३०, ११०,२५५,२५६ से २५८. व० ८।१३. नि० १६०,१६६ ३।१५ अणुत्तरगइ (अनुत्तरगति) नं० १२० V अणुपविस (अनु+प्र+विश्)-अणुपविसइ अणुत्तरविमाण (अनुत्तरविमान) अ० १८६ दसा० १०।११. ५० ६ --अणुपविसंति प०४७ अणुत्तरविमाणवासि (अनुत्तरविमानवासिन्) अ० अणुपविसति दसा० १०।१०. नि० २।३८४०५ -अणुपविसेज्जा दसा० ७।१८ अणुत्तरोववाइय (अनुत्तरौपपातिक) नं० ८६. अ० ___२५४. ५० १०४,१२२,१३६,१७८ अणुपविसंत (अनुप्रविशत्) नि० २।३८,३६ ; अणुत्तरोववाइयत्त (अनुत्तरौपपातिकत्व) नं० ८६ ५।६१ से ६३; १६।१,३,२३ अणुत्तरोववाइयदसा (अनुत्तरौपपातिकदशा) नं० अणुपविसित्ता (अनुप्रविश्य) दसा० १०।११. ५०६ ६५,८०,८६. अनं० २८. जोनं० १०.० ५०. अणुपवेसेत्ता (अनुप्रविश्य) नि० ६।१० ५४६ अणुपस्सय (अनुपश्यत्) उ० ६।१६ अणुत्तरोववाइयदसाधर (अनुत्तरौपपातिकदशाधर) अणुपाएंत (अनुपिबत्) नि० ७७७,७६ अ० २८५. \ अणुपाय (अनु+पा)-अणुपाएज्ज नि० ७७७ अणुदिण्ण (अनुदीर्ण) नं० ८. दसा० १०॥३३ /अणुपाल (अनु+पालय)-अणुपालए द० ६।४६ अणुदिण्ण (अनुदत्त) नि० ५।६० -अणुपालज्जा द० ८।६०-अणपाले मि अणुदिसा (अनुदिशा) द० ६।३३. ५० २८५. व. आ० ४18 आग Page #1016 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अणुपाल इत्ता-अणुरूव लणपालइला (अनुपाल्प) उ०२६।१ अणपालिउं (अनुपादितुम् ) ० १६१३४ अणुप्पवेसेत्ता (अनुप्रविश्य) नि० १६ *पालितु (अनुपालयित) मा ६।६ से १८ अणुप्पेहा (अनुप्रेक्षा) उ० २६!१,२३ ; ३०।३४ अगुगलिय (अनुयालित) सार २५,२८,३१, अनं० ६. अ० १३,३४,५७,८१,१०६ ५६३, ३५.३० ६।३५ से ..?; १०१३,५ ६२३.६३५,६४७.६७३,७०० अणवालिया (अनुपाल्य) ३ १६६५ अणुप्पे हि (अनुप्रैक्षिन) उ० ५।११ अणुपालत (अनुपालयत् } आ० ४६ अणुफरिह (अनुपरिख) अ० ३५६ अग्रपालेत्तु (अनुपालयित)मा १२ से १५. अणुफरिहा (अनुपरिसा) क० ३।३२ अणुफास (अनुस्पर्श) द० ६।१८ पालेभाण (अनुपालगर) १०० ७३५ अणुबंध (अनुबन्ध) २० १६१११ अप्पासमार (अनुपश्यत्) ३०० २।१३ अणुबंधण (अनुबन्धन) उ० २६१४६ साव्य (अनुपूर्व) २०२४ ।। अणुबंधि (अनुबन्धिन् ) ६० ६।४७ अपुव्वसो (अनु पूर्व शस) २०१२६; २४११६; अणुबद्ध (अनुबद्ध) उ० ४।२; ३६।२६६ २६:३६,४७; ३०।२६:३६१४७,१०६ अणुब्भड (अनुभद) उ० २६।३० अणुवि (आनुपूर्वी) २००६ अणुभविउं (अनुभवितुम्) उ० २०।३१ अणुहि (अनुप्रेक्षिन्) उ० १३११५ अणुभाग (अनुभाग) उ० ३३।२४,२५, ३४।६१ पण (अनुत्पन्न) दसा ।।३।४।२०।१०।३१ अणुभाव (अनुभाव) उ० २६।२३; ३४।१ नि०४१२४ अभित्ति (अनुभित्ति) क० ३।३२ अणुप्पन (अनुप्राप्त) द. ३११५. उ० ३७; 1 अणुमन्न (अनु+मन)--अणुमन्नेज्ज उ० १४।१२ २८।३ अणुभनिय (अनुमत) उ० १६०२३ । अणुप्पदा (अनु-प्रदा)-अप्पदेज्जा क० अणुमय (अनुमत) उ०३६।२४६. अ०७१३।१ ४११२--अणुप्पदेति ?--अणुप्पदेहि प० २३८. व० ३६ त० २०२८ अणुमाण (अनुमान) नं० ३८।१० अ० ५१५, अणुप्पदाउं (अनुप्रदातुम् ।।१४,२७,२८. ५१६,५३७ ब० २।२८,८११६ अणुमाणित्ताण (अनुमान्य) उ० १६८६ अनुप्पदेत (अनुप्रददत) से ३४ अणुमाय (अणुमात्र) द० ५।१४६ ; ८।२४ अणुप्पवाय (अनुप्रवाद) १११ अणुमुयंत (अनुमुञ्चत् ) उ० ३०।२३ अणुप्पविटु (अनुप्रविष्ट) क० १८,४०, ३३१३; अणुमेरा (अनुमर्यादा) क० ३।३२ ४:१४; ५।११.१२,४१ अणुमोयणी (अनुमोदनी) द० ७.५४ 1 अणुप्पविस (अनु --प्र+वि)---अणुप्पविसति ___अणुरत्त (अनुरक्त) उ० २०।२८,५८; ३२।३२, दसा० १०।१०. नि० २।४.. ----अणुप्पदिसे उ० ४५,५८,७१,८४,६७ ; ३६।२६० २०१४ अणुराग (अनुराग) उ०१३।१५. दसा० १०.३० अणुप्पविसंत (अनुप्रविशत्, नि: २।४७; ३।१३; अणुराय (अनुराग) उ० ५।७ ४।१८,१६ अणुराहा (अनुराधा) अ० ३४११२ अणुप्पविसित्ता (अनुप्रविष्ण) दसा० १०॥१० नि० अणुरूव (अनुरूप) ५० ५२,६६ Page #1017 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुलित्त-अणेग २३ अणुलित (अनुलिप्त) दसा० १०।११. ५० ४२ अणुलिहंत (अनुलिखत्) दसा० १०।१४ अणुलेवण (अनुलेपन) दसा० ६।५ अणुलोम (अनुलोम) ५० ७७,११४. व० ८।१२; १०।२,४ अणुलोमकायकिरियता (अनुलोमकायक्रियता) दसा०४।२१ अणुलोमवइसहिता (अनुलोमवाक्सहित) दसा० ४१२१ अणु लोमेयव्व (अनुलोमयितव्य) व० ८।१२ अणुल्लय (दे०) उ० ३६।१२६ अणुवउत्त (अनुपयुक्त) अनं० ६. अ० १४,३५,,५८ ८२,१०७,५६४,६२४,६३६,६४८,६७४,७०१ अणुवएस (अनुपदेश) अ०६०६ अणुवओग (अनुपयोग) अनं० ६. अ० १३,३४,५७ , ८१,१०६,५६३,६२३,६२५,६४७,६७३,७०० अणुवघाइय (अनुपघातिक) उ० २४।१७ अणुवचय (अनुपचय) अ० ६३१।१ अणुवट्ठावियय (अनुपस्थापितक) क० ४।१४ अणुवत्ति (अनुवतिन्) उ० ७।२६ अणुवत्तिय (अनुवत्यं) नि० ३।६ से १२ अणुवम (अनुपम) प० २५ अणुववायकारय (अनुपपातकारक) उ० ११३ अणुवसंत (अनुपशान्त) उ०१६।४२ अणुवसंपज्जित्ताण (अनुपसंपद्य) व० ४१२६ अणुवाइ (अनुपातिन्) उ० १६ सू० १२ अणुवाय (अनुपात) उ० ३२।२८,४१,५४,६७,८० ६३ अणुवासग (अनुपासक) नि० १४॥३८,३६; १८७०,७१ अणुवासय (अनुपासक) नि० ८।१२ से १४; १११८५,८६ अणुविग्ग (अनुद्विग्न) द. ५।२,६० अणुवीइ (अनुविविच्य) द० ७।४४,४५ Vअणुवूह (अनु +बृह)--अणुवूहइ ५० ३८ अणुवूह इत्तु (अनुबहयितृ) दसा० ४।२२ Vअणुव्यय (अनु+व्रज्)-अणुव्वयाम उ० १३।३०. -अणुव्वयन्ति उ० १८।१४ अणुव्वया (अनुव्रता) उ० २०२८ अणुसंकम (अनु+संक्रम)-अणुसंकमन्ति उ० १३।२५ । अणुसंचर (अनु + सं+चर्) -अणुसंचरे उ०१८।३० अणुसट्ठि (अनुशिष्टि) उ० २०।१ । अणुसर (अनु + स्मृ)-अणुसरेज्जा उ० १६ सू० ८ अणुसरमाण (अनुस्मरत्) उ० १६ सू० ८ अणुसरित्तु (अनुस्मर्तृ) उ० १६ सू० ८ अणुसार (अनुसार) नं ६०११ । अणुसास (अनु+शास)--अणुसासंति उ० ११२७. -अणुसासम्मी उ० २७।१०. __ अणुसासयंति द०६।१३ अणुसासंत (अनुशासत्) उ०. ११३८ अणुसासण (अनुशासन) द. ६।४।२. उ० ११२८, २६; ६३१०; २०१५१ अणुसासिउं (अनुशासयितुम् ) उ० २०१५६ अणुसासिज्जत (अनुशास्यमान) द० ६।४ सू० ४ अणुसासिय (अनुशासित) उ० १६ अणुसोय (अनुश्रोत) द० चू० २।२,३ अणुस्सिन्न (अनुत्स्विन्न) द० ५।१२१ अणुस्सियत्त (अनुत्सिकत्व) उ० २६१५० अणुस्सुय (अनुश्रुत) उ० ५।१३,१८ अणुस्सुयत्त (अनुत्सुकत्व) उ० २६।३० अणुस्सुय (अनुत्सुक) उ० २६।३० अणूण (अनून) उ० २६।२८ अणूरत (अनुरक्त) उ० १३१५ अणेग (अनेक) द० ४।४ से ६; ५।१४३; ६।१७. उ० ४।११; ७।१३,८।१८; १९८३; २१११६, १७; २३।१६,३५; २८।२२; २६।४०. अनं० ३,६. अ० १०,१४,३१.३५,५४,५८,७८ ८२,१०३,१०७,२८२,३०२।५,५५६,५६०, Page #1018 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अणेग-अण्णयर ५६४,६२८,६३६,६८८,६७४,७०१. १२ दसा०१०।११.२१. ५० ८२,६२,६४,२७७ अण्णउत्थिय (अन्यथिक) नि० ११११ से १८,३६, नि०१६.२६ ४०,५५, २१३६ से ४१; ३.१,२,५,६,६,१०; अणे गक्वरिय (अनेकाक्षरिक) अ० २४८,२५० ५।१२; १०।४०; १११११ मे ६४; १२१७,१६, अणेगचारि (अनेकचारिन) उ० १६८३ ४१; १३।१२ से ३०,१५१३३ मे १६,७६,७७; अगदविय (अनेकद्रविक) अ० ६६,६६ १६।३७,३८; १७:१५ से १२२; १६।२६,२७ अणेगय (अनेकक) उ० १९८२ अण्णतर (अन्यतर) दसा० ६।३।१०।२४ से ३२. अणेगगव्य (अनेकरात्रिक) क० ३।४ प० ११.१४,४७ अणेगाव (अनेकरूप) उ० ३।२७,४०,५३,६६,७६ अण्णत्त (अन्यत्र) दसा० १०॥३,४ अण्णत्थ (अन्यत्र) नं० १७. अ० २७. दसा०७।२३. अणगम्वधणा (अनेकरूपधूनना) उ० २६।२७ प० २३६. क० ३।२३. व० १११३. अणगविह (अनेकविध) उ० ३६।४८,११६. नि० १११८१ नं० ३२६०.७७,७८. अ०६३ से ६५,२४६, अण्णधम्मिय (अन्यधामिक) क० ४।३ २५०,२५२,२५३,२६३,२७५,२७६,२७६,२८२ अण्ण मण्ण (अन्योन्य) नं० ३५. दसा० १०१६.५० २८५,२८७,३९५,५७१,५७२ अणगसिद्ध (अनेकसिद्ध) नं० ३१ ३४,४७. क० ४।२; ५॥३६. व. २२७,४१६, अणेगसो (अनेकशस्) उ० १६।५८,६०,६२,६६ १०,२६ से ३२; ५।६,१०,१६,२०७१४,१६; अणेगहा (अनेकधा) उ० ३६१६४,९६,६६,१०६, ८।१३ से १६. नि० ११३१ से ३४; ४१५४ से १०७,७११४ से ६७,१४१५; १८।३७ ११०,१३०,१३६,१४६,१८१२१६ अणेमणा (अनेषणा) आ० ४१६ अण्णब्भास (अन्योन्याभ्यास) अ० १५०,१५.४, अणेसणिज्ज (अनेषणीय) उ० २०१४७. क० ४।१४ १७६, १८३,१८७.१६१.१६५,२२१,२२५, अणोज्जा (अनवद्या) ५० ७१ २२९,२३३,२३७,२४१,२४५,५८६,५६०, अणोच्छिष्ण (अनोष्ठछिन्न) नि० १४।६।१८।३८ ५६२,५६३,५६५,५६६,५६८,५६६,६०१,६०२ अणोतप्पगरीर (अनवत्रप्यशरीर) दसा० ४।६ ___ अण्णयर (अन्यतर) अ० ५३३,५३७. दसा०६।३; अणीवणिहिया (अनौपनिधिको) अ० १११,११३, १०।३१. प० १४,४७,२७३,२७४,२७५,२७७. ११४,१३०,१३१,१४६,१५५,१५७,१५८,१७४ क० ४।१४,२७, ५।१३,१४,४१. व० ११११ से १७५,१६६,१६८,१६६,२१५ से २१७ १८,३३; २।१स ५,२४,४।१३,१४,५।१३,१४; । अणोहाइय (अनवधावित) द० चू० १ ० १. ६८,६; ८.१३ से १५,१०।२,४. नि० ११६; व० २०२५ २१४२,४३; ३३३४ से ३६; ४१२३,७२ से अण्ण (अन्य) नं० गा० ४३ सू० ५३,६०,१२०. ७७; ५१६०; ६.१०,१६,१८,४३ से ४८,७६; अ० ३०२।३, ४१६,५८६. दसा० १०।१८, ७।३२ से ३७,८०,८३,८४,६२; ८।१ से ६,११, २८,२६. ५०६,२५७,२५८,२७२. क० ३.१३; १४; ६।११,१२; १११२६ से ३४,८१,६३; ४।१२,१३,१६ से २४; ५२५ से ६,११,१२,४०. १३।६ से ११; १४।२८ से ३०; १५॥३१ से व० १२० से २२, ४।११ से १४,१८, ५।११ ३६,६८,११७ से १२२,१५३,१५४; १६६४६ से मे १४; ७।१ ग ३,७,६८।१६ ५१; १७।१,२,३३ से ३८,८७ से १२,१३६ से अण्णउत्थिणी (अन्ययूथिकी) नि० ३।३,४,७,८,११ १३६; १८।६० से ६२, २०१११ से ५१ Page #1019 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अण्णय रग-अतपन्नह अण्णयररंग ( अन्यतरक) दसा० ६।३ अण्णयरी (अन्यतरी) नि० १० १४; १२११,२; १३।१६; १५।४ अण्णा ( अन्यदा) दसा० १०/३ अणलिंगसिद्ध (अन्यलिङ्ग सिद्ध) नं० ३१ अण्णव (अर्णव) उ० ५।१; १० १३४; २३।७०, ७३ अण्णसंभोदय (अन्य सांभोगिक) व० १।३३ अण्णाउंछ ( अज्ञातोञ्छ ) दसा० ७२५ अण्णासि ( अज्ञातैषिन् ) उ० २।३६ अण्णाण ( अज्ञान) आ०४६ अण्णाणि ( अज्ञानिन् ) दसा० ६ २ ३४ अण्णाणिय ( अज्ञानिक) नं० ६७. अ० ४६, ५४८ अण्णाणिअवाइ ( अज्ञानिकवादिन् ) नं० ८२ अण्णायउंछ ( अज्ञातोञ्छ) द० ६।४४. चू० २५ व० १०१३ अण्णायउंछपुल ( अज्ञातोञ्छपुल) द० १०।१६ अण्णा एसि ( अज्ञातैषिन् ) उ० १५ १ अतक्माण ( अतर्कयत् ) उ० २६।३४ अतज्जा ( अतज्जात) नि० १।५३ अंतर ( अंतर) उ० ८/६ अतव (अतपस् ) उ० ३४।२३ अवस्ति (अतपस्विक ) दसा० ६।२।२७ अतालिस (अतादृश) उ०३२ २६,३६,५२, ६५, ७८, ६१ अतिति (दे) ०८।२६; ६४७ अतिक्कत ( अतिक्रान्त) दसा० १०।३३ V अतिकम (अति + क्रम्) - अतिकम्मति ० ६।२ अतिच्छिय ( अतिक्रान्त) दसा० ६ २३६ अतिजातिय ( अतिजा तिक) दसा० १०१२४ अतिजायमाण ( अतिजायमान) दसा० १० २४ से ३१ अतित्त (अतृप्त ) उ० ३२।२६ से ३१,३७,४२ से ४४, ५५ से ५७, ६८ से ७०, ८१ से ८३, ६४ से ६६ अतित्ति (अतृप्ति ) उ० ३२ २८,४१,५४,६७,७०, ६३ अतित्थयरसिद्ध ( अतीर्थंकरसिद्ध ) नं० ३१ अतित्थसिद्ध ( अतीर्थसिद्ध) नं० ३१ अतिदूर ( अतिदूर) नि० ४ । ११६ अतिप्पमाण ( अतिप्रमाण) प०२८ अतिप्पयंत ( अतृप्यत्) दसा० ६।२।३२ अतिरिक्त (अतिरिक्त) नि० १६/४०; २०१६ से ५.१ अतिरित्त सेज्जासणिय ( अतिरिक्तशय्यासनिक ) दसा० ११३ अतिरेग ( अतिरेक ) नि० १ ४६ ५।६८ अतिवृत्तिता ( अतिव्रज्य ) दसा० ६ |४ अतिसेसपत्त (अतिशेष प्राप्त) प०६८ अतिहि ( अतिथि) दसा० ७१५. व० १०/३ अतीत (अतीत ) दसा० १०1३३ अतीय ( अतीत ) नं० २५ अतीव (अतीव ) प० ५२ अतुट्ठि ( अतुष्टि) उ० ३२/२६, ४२, ५५,६८,८१,९४ अतुरिय ( अत्वरित) उ० २६।२४.५० ५,३६,३६, ५० २५ अतुल (अतुल ) दसा० ६ | २|१६ अग ( अस्तैन्यक ) उ० २१।१२ अतो (अस्) अ० ४१७ अत (आत्मन्) द० ४ सू० १७; ८ ३० १०१५, १८. उ० ७।२५, २६; १२/४६; १८/५३. दसा० हारा अत्त (आ) उ० ६ १० अत्तकम्म ( आत्मकर्मन् ) द० ५।१३६ अत्तगवेस (आत्मगवेषक ) उ० २।१७, ३३. दसा० ६।२।३४ अत्तगवेसि (आत्मगवेषिन् ) द० ८।५६. उ० १६।१३ अत्तगुरु ( आत्मार्थगुरु) उ० ३२।२७,४०,५३,६६ ७६,६२ अत्तट्टागुरुअ ( आत्मार्थगुरुक) द० ५।१३२ अट्ट (आत्मार्थिक ) उ० १२।११ अत्तपन्नह (आत्मप्रज्ञाह) उ०१७/१२ Page #1020 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अत्सव-अदिति अत्तव (आत्मबत्) द०८।४८ अत्याहिगार (अर्थाधिकार) अ० ७४,१००,६१०, अत्तसंपग्गहिय (संप्रगहीतात्मन) द. ६।४ सू० ४। ७१४ अत्तागम (आत्मागम) अ० ५५१ अत्थि (अस्थि) दसा० ६॥३. प० २६३. क० ३२६. अत्ताणुसट्टिकार (आत्मानुशिष्टिकार) अ० ३६४ व० ११३१ अत्थिकायधम्म (अस्तिकायधर्म) उ०२८।२७ Vअतीकर (आत्मी+कृ)-अत्तीकरेति नि० ४११ अत्तीकरेंत (आत्मीकुर्वत्) नि० ४११ से ६, ३६ से अत्थिनत्थिप्पवाय (अस्तिनास्तिप्रवाद) नं० १०४, अत्थ (अर्थ) द०१०।१५; चू० २।११. उ० १।२३; अत्थिय (अस्थिक) द०७३ १२।३३, १३।१०,१२; १६१८,६; १८।१३,३४; आत्थयाइ (अस्ति) व० ११२६ से ३०, ४१११ से २०११,१६,२३।३२,८८,२४१८,२६; २६।२१, १७, ५॥११ से १४,१६,२०, ६।४,५,७१२२ ३०।११,३२।१,३,४,१००,१०७. अ० ३१२१२. Vअत्थीकर (अर्थी । कृ) --अस्थिकरेति नि० ५५१,७०६,७१४,७१५४. वसा० ४।१६; ४।१३ १०।३५. २० ३५,२२२,२८८ अत्थीक रेत (अर्थीकूर्वत) नि०४।१३ से १६,४६ अत्थ (अत्र) द० ३।१४. उ० ७।१४. नं० गा० से ५३ ४१; सू० २५,३३,३८,५४. अनं० ८. जोनं० अत्थुग्गह (अर्थावग्रह) नं० ४०,४२ १०. दसा० १०।२३. व. ११२६ अत्योगह (अर्थावग्रह) ५० ६,३८ अत्थओ (अर्थतस्) उ० २८.२३ अथव्वणवेय (अथर्ववेद) प०६ अत्थंगय (अस्तंगत) द०८।२८ अथिर (अस्थिर) उ०१७।१३. नि० १४१८ अत्यंत (अस्तान्त) उ० १७।१६ १८।४० अत्थत्थिय (अर्थाथिक् ) दसा० १०॥१८ अदंसण (अदर्शन) उ० ३२।१५ अत्थनिउर (अर्थनिकुर) अ० २१९,४१७ अदंसणि (अदर्शनिन्) उ० २८१३० अत्थनिउरंग (अर्थनिकुराङ्ग) अ० २१६,४१७ अदंसणिज्ज (अदर्शनीय) उ० १२१७ अत्थनिज्जवय (अर्थनिर्यापक) दसा० ४८ अदटुं (अदृष्ट्वा ) उ० ४।५ अदत्त (अदत्त) उ० १२।१४,४१, १६।२७; अस्थम (अस्तम+इ) --अत्थमेज्जा बसा० २५२५, ३०१२; ३२।२६,३१,४२,४४,५५,५७, ७१२० अत्थमण (अस्तमन) ५० २७ ६८,७०,८१,८३,६४,६६. नि० २०२० अत्थ मिय (अस्तमित) क० ५।६ से ६. नि० अदत्तहारि (अदत्तहारिन्) उ० ३२।३०.४३,५६, १०।२५ से २८ ६६,८२,६५ अत्थरय (आस्तरक) ५० ४२ अदय (अददत् ) उ० १५।११ अत्थलाभ (अर्थलाम) प०६,३८,४७ अदित (अददत्) उ० ६।४० अत्थलोल (अर्थलोल) उ० २६१४८ अदिट्ठ (अदृष्ट) आ० ४।६ नं० ३८।२. वसा० अत्थविणिच्छय (अर्थविनिश्चय) द० ८।४३ ४।१७. नि० १२।३०; १७।१५२ अत्थसंजुत्त (अर्थसंयुक्त) द० ५।१४३ अदिट्ठधम्म (अदृष्टधर्मन्) द० ६।४० अत्थसत्थ (अर्थशास्त्र) नं० ३८।४ अदिण्णादाण (अदत्तादान) क० ६२ अत्थागम (अर्थागम) अ० ५५० . अदिति (अदिति) अ० ३४२११ Page #1021 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदिन्न-अधम्मरागि अदिन्न (अदत्त) द० ४ सू० १३ अट्ठम (अर्धाष्टम) प० ६ अदिन्नादाण (अदत्तादान) आ० ४।८. द०४ अद्धतुला (अर्द्धतुला) अ० ३७८ सू० १३. दसा० २।३ अद्धनवम (अर्द्धनवम) ५०२ अदिस्स (भदृश्य) उ० २३।२० अद्धपल (अर्द्धपल) अ० ३७८ अदीण (अदीन) द०५।१२६. उ० २१५,३२ अद्धपेडा (अर्द्धपेटा) उ० ३०।१६ अदीणमण (अदीमनस्) उ० २।३ अद्धपेला (अर्द्धपेटा) दसा० ७७ अदीणवित्ति (अदोनवृत्ति) द० ६।५० अद्धभार (अर्द्धभार) अ० ३७८,३६० अदीवेत्ता (अदीपयित्वा) क० ४१२१ अद्धमागी (अर्द्धमाणी) अ० ३७६,६१४ अदु (दे) द० चू० १।१८. उ० २।२३ अद्धमास (अर्धमास) दसा०६।३ अदुट्ठ (अदुष्ट) द० ७।५५. वसा० ७२४. क० ४।६ अद्धमासिय (अर्धमासिक) प० २८१ अदुव (दे०) द० ५।१५ . अद्धसम (अर्द्धसम) अ०३०७।१० अदुवा (दे०) द० ५।७५. दसा० ६।२।६ अद्धहार (अर्द्धहार) दसा० १०॥३. प०४२. नि० अदूर (अदूर) नि० २।४४ ७७ से ६; १७१९ से ११ अदूरसामंत (अदूरसामन्त) दसा० १०।१६. ५० अद्धा (दे०) उ० ७।१८; २६।२३,७३ ४२,८१ अद्धाण (अध्वन्) उ० ६।१२; ७।५; १९३१८,२०; अत्र ( ) अ० ३६७ २३॥६०. क. ११४४. ३०८२ से ४,१५ अदिति ( ) अ० ३४२।१ अद्धापलिओवम (अध्वपल्योपम) अ० ४१६,४२७, अदेंत (अददत) द०५।१२८ ४२६ से ४३३ अदेज्ज (अदेय) प० ६४ अद्धासमय ('अद्धा'समय) उ० ३६१६. अ० अदेव (अदेव) प० १०० १४८,१४६,२५४,२५६,२८८,३२५,३४८,४४३ अद्दक्खु (अदृष्ट्वा ) प० २३८ अद्धासागरोवम (अध्वसागरोपम) अ० ४२६।१, अद्दा (आर्द्रा) अ० ३४१११ ४३११ अद्दाग (दे० आदर्श) अ० १६ अधुट्ठ (अर्द्धचतुर्थ) नं० ८६. ५० १२१. नि० अद्दाय (दे०) नि० १३।३२ अद्दीण (अदीन) उ०७।२१ अद्धटुमासिय (अर्धचतुर्थमासिक) नि० २०१४० अद्दीणव (अदैन्यवत् ) उ० ७२२ अधम्म (अधर्म) उ० ७।२६; ३६१७.८. अ० ५५७. अद्ध (अर्द्ध) उ० २६।३५; ३४॥३४ से ३६,४५, दसा० ६।३. नि ११।१० ४६,३६।८,२५३ से २५५. नं०१८।५; अधम्मक्खाइ (अधर्मख्यातिन्) दसा० ६।३ ५४।३. अ० १६,२०,५८६. नि०८।१२ से १४ अधम्मजीवि )अधर्मजीविन) दस० ६।३ अद्वंगुल (अर्द्धाङ्गुल) अ० ४०८ अधम्मत्थिकाय (अधर्मास्तिकाय) अ० १४८,१४६, अद्धकरिस (अद्धकर्ष) अ० ३७८ २५४,२५६,२८८,३२५,३४८,४४३ अद्धछ? (अर्द्धषष्ठ) व० ६।३६. नि० २०।४३,५० अद्धछट्ठमासिय (अर्द्धषष्ठमासिक) नि० २०।४४,५१ अधम्मपलज्जण (अधर्मप्ररञ्जन) दसा० ६।३ अद्ध जोयण (अर्धयोजन) क० ४।१३. नि० १११७, अधम्मपलोइ (अधर्मप्रलोकिन्) दसा० ६।३ । ८; १२॥३२; १८।१२ अधम्मरागि (अधर्मरागिन्) सा० ६।३ २०।३६ Page #1022 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ अधम्मसीलसमुदाचार ( अधर्मशील समुदाचार) दसा० ६।३ अधरिम (अधरिम) प० ६४ अधारणिज्ज ( अधारणीय) नि० १४८; १८४० अधिकरण (अधिकरण) दसा० १।३४।२३; २३० अधीर (अधीर) उ० ८।६ अध्रुव (अध्रुव) द० ८ ३४. उ०८।१. नि० १४८; १८४० अनाग ( अनायक ) दसा० १२ १० अनिक्खवित्ता (अनिक्षिप्य ) क० ४।१७ अनिक्खिवित्ता ( अनिक्षिप्य ) व० ३।१४ अनिगह ( अनिग्रह) उ० २०।३६ अनिच्च ( अनित्य ) नं० गा० ४० अनिज्जूढ ( अनिर्यूढ ) क० २।२२ अनिदाण (अनिदान) दसा० १०।३३ अनिट्टेस (अनिदश) उ० १1३ अनि फण्ण ( अनिष्पन्न ) अ० ५३५ अनियट्टि ( अनिवृत्ति) उ० २६/४२,७३ अनियाण (अनिदान) द० १० १३. उ० १६६१ ; ३६।२५८ अनियाणया (अनिदानता) क० ६।१६ अनिल (अनिल) द० ६।३६; १०/३ अनिव्वाण (अनिर्वाण ) द० ५।१३८ अनिव्वुड ( अनिवृत्त) द० ३।७; ५।११८ अनिस्सा ( अनिश्रा ) क० ११२२,२४ अनtes (अति) क० २।१४ अनुभूयपुव्व ( अनुभूतपूर्व ) अ० ३१२ । १ अन्न (अन्य ) आ० १ २ ४।१५।१. द० ४ सू० १० से १६, १८ से २३, ५०६, ७१,८०,८४,६७; ११४,११६,११६, १३६; ६ । ११.१४; ७/४; १३ ; ८५११०।१८. उ० १।३३; २।२१ ; ६ ४२; १३ । २५; १४ । १४, ४०, ४२; १८१६, २०१३८; २३।२८, ३४, ३६, ४४, ४६, ५४,५६,६४,६६,७४, ७६ २४ १५; २७।१२; २६ ५; ३०।२३, २५; अधम्मसील समुदाचार- अपज्जवसिय ३२।१०३, ३५३८. नं० गा० ४३. अ० ३१२/२, ७०८१४ अन्न (दे०) द० ७६ अन्न (अन्न) उ० १२।६ मे ११,१६, ३५, २०/२६; २५८, १० अन्नओ ( अन्यतस् ) उ० २५६ अन्नत्थ ( अन्यत्र ) आ० ५।३. ५० ४।४. क० १।४२ अन्नदत्तहर ( अन्यदत्तहर) उ० ७।५ अन्नमन्न (अन्योन्य ) उ० १३ ५, ७ अन्नयर ( अन्यतर) आ० ३।१. द० ४ सू० २३; ६।७,१८,३२. उ० ५।२५.३२, ३०।२२. प० २७४२८५ अन्नय राग (अन्यतरक) द० ६।५६. उ० २६।३१ अन्नया (अन्यदा) उ० २१८ अन्नलिंग (अन्यलिङ्ग) उ० ३६।४६, ५२ अन्नहा ( अन्यथा ) उ० २८।१८ अन्ना (दे०) द० ७।१६ अन्नाण ( अज्ञान ) उ० २ मु० ३; १८।२३; २८।२०; २६/२५; ३२।२ अन्नाणि ( अज्ञानिन् ) द० ४।१० अ० २७५ अन्नायउंछ ( अज्ञातोञ्छ) द० ६/४४ अन्निय (अन्वित) उ० १८ । ४३; २०१३, ५२ अन्नेसमाण (अन्वेषयत् ) द० ५।१३० अपएसया ( अप्रवेशार्थ ) अ० १३०, १७४ अपक्खगाहि ( अपक्षग्राहिन् ) दसा० ४।२३ अपच्छिम ( अपश्चिम) नं० गा० २. ५० ८३, ८४ अपच्छिममा रणांतियमंलेहणा ( अपश्चिममारणान्तिकसंलेखना ) प० २७६ अपज्जत्त (अपर्याप्त ) उ०१४ ३६; ३६ ७०,८४, २,१०८,११७, १२७, १३६,१४५ अपज्जत्तग ( अपर्याप्तक) नं० २३. अ० २५४ अपज्जत्तय (अपर्याप्तक) अ० २५४ अपज्जवसिय (अपर्यवसित) उ०३६८,१२,६५, ७६,८७,१०१,११२, १२१,१३१, १४०, १५०, १५६,१७४,१८३,१६०,१६६,२१८. नं० ५५, Page #1023 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपज्जोसणा-अपि ६८,६६ अपज्जोसणा (अपर्युषणा) नि० १०॥३७ अपडिकंत (अप्रतिक्रान्त) उ० १३।२६ अपडिक्कमावेत्ता (अप्रतिक्राम्य) व० ६।१० अपडिक्कमित्ता (अप्रतिक्रम्य) उ० २६।२२ अपडिग्गाहिय (अप्रतिगृहीत) क० २।१६,२० अपडिण्णत्त (अप्रतिज्ञप्त) प०२६० अपडिण्णवित्ता (अप्रतिज्ञाप्य) प० २७७ अपडिबद्ध (अप्रतिबद्ध) ५० ८० । अपडिबुज्झमाण (अप्रतिबुध्यमान) प० १५ अपडिलेहाण (अप्रतिलेख्य) द०६:५५ अपडिलोमया (अप्रतिलोमता) दसा० ४।२१ अपडिवज्जावेत्ता (अप्रतिपाद्य) व० ६।१० अपडिवाइ (अप्रतिपातिन) नं० २१. अ० ५५३ अपडिसुणित्तु (अप्रतिश्रोतृ) दसा० ३।३ अपडिसुणेत्तु (अप्रतिश्रोत) दसा० ३।३ अपडिसेवि (अप्रतिषेविन) व०२।२४,२५ अपडिहट्ट (अप्रतिहत्य) नि० २।५३ अपढम (अप्रथम) नं० २८,२६,३२ अपत्त (अप्राप्त) नि० १९२० अप्पत्तिय (अप्रोतिक) ५० ५।११२ अपत्थ (अपथ्य) उ० ७।११ अपत्थण (अप्रार्थन) उ० ३२।१५ अपत्थणिज्ज (अप्रार्थनीय) उ० २६१४८ अपत्थेमाण (अप्रार्थयत्) उ० २६।३४ अपमत्त (अप्रमत्त) नं० २३. दसा० ४।२२ अपय (अपद) अ० ८७,६०,६५४,६५८,६८०,६८४ अपर (अपर) उ०१६।१७. दसा० ६।२।३८ अपरपरिग्गहिय (अपरपरिगहीत) क० ३।३०. ० ७।२७ अपराजिय (अपराजित) उ० ३६।२१५. ५० १०२, १२७ अपराजियय (अपराजितज) अ० २५४ अपरिकम्म (अपरिकर्मन) उ० ३०।१३ अपरिणत (अपरिज्ञात) दसा०६।१३ से १६ अपरिग्गह (अपरिग्रह) उ० २१।१२ अपरिणय (अपरिणत) नि० १७।१३३ अपरिपूत (अपरिपूत) ५० २४६ अपरिभुज्जमाण (अपरिभज्यमान) नि० ३।७४ अपरिभुत्त (अपरिभुक्त) क० ३।४ अपरिमाण (अपरिमाण) नि० ८।१० अपरिमिय (अपरिमित) प० २४६ अपरिसाडय (अपरिशाटयत) द० ५९६ अपरिसाडिय (अपरिशाटित) उ० १६३५ अपरिसुद्ध (अपरिशुद्ध) आ० ४।६ अपरिहारिय (अपरिहारिक) व० २।२७,२६,३० नि० २।३६ से ४१,४४,४।११८ अपलिउंचिय (अपरिकुञ्चित) व० १।१ मे १८. नि० २०११ से १८ अपलिच्छिन्न (अपरिच्छन्न) ३० ३।१; ४।२४,२५ अपलिमंथ (अपरिमंथ) उ० २६।३५ अपवत्तणी (अप्रवर्तिनी) व० ३११२ अपसत्थ (अप्रशस्त) अ० ६७,६८,३३५,३३७ ६६७,६६६, अपसिण (अप्रश्न) नं०६० अपस्समाण (अपश्यत्) दसा० ६।२।३४ अपाइया (अपात्रिका) क० ५।१७ अपाडिहारिय (अप्रातिहारिक) क० २।२६,२७; ३।४. व०६।२,४,६,८ अपाणय (अपानक) दसा० ७।२८,३१,३३. प० ७५,८१,१०६.११३,११५,१२४,१२६, १३०,१३८,१६५,१६६,१८०,१८४ अपायच्छिण्ण (अपादच्छिन्न) नि० १४।६।१८।३८ अपायय (अपात्रक) क० ५।२० अपारिहारिय (अपारिहारिक) व. १११६ अपावभाव (अपापभाव) द० ८।६३ अपासंत (अपश्यत्) द० ६।२३ अपाहेय (अपाथेय) उ० १६१८ अपि (अपि) आ० २११. ८० २।४. उ० १।१३ Page #1024 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपिसुण-अप्पडिवाइ अपिसुण (अपिशुन) द० ६।५० अपीहेमाण (अस्पृहयत्) उ० २६।३४ अपुच्छिय (अपृष्ट) द० ८।४६ अपुच्छिय (अस्पृष्ट्वा) नि० २।४७ अपुट्ट (अपृष्ट) द. ८।२२. उ०१११४. नं०५४।४ अपुट्ठवागरण (अपृष्टव्याकरण) प० १०६ अपुणच्चव (अपुनश्च्यव) उ० ३३१४ अपुणरावत्तय (अपुनरावर्तक) आ० ६।११ अपुणरावत्ति (अपुनरावृत्ति) उ० २६।४५. ५० १० अपुणरुत्त (अपुनरुक्त) ५० ७३ - अपुणागम (अपुनरागम) द० १०२१. उ० २११२४ अपुरिसवाय (अपुरुषवाद) क० ६।२ अपुब्द : अपूर्व) अ० ३१२।१।। अपुरस्कार (अपुरस्कार) उ० २९।८ अपुहत्त (अपृथक्त्व) उ० २६।१२ अपूइम (अपूज्य) द० चू० १।४ अपोह (अपोह) नं० ५४।६; ६२ Vअपोह (अप+ ऊह.)-अपोहए नं० १२७।३ अप्प (आत्मन्) आ० ११२; ३।१४।१५।१,३. द० ४ सू० १० से १६, १८ से २३; ५१८, ८०; १०५,१३६, ६।१३,१४,२१,६७, ८७,६, ३१,३४,३६,५६,६१, ६।१५,२०,२२,२०,२७, ४५;६।४११,६,१०।१५; च० १२१७; चू० २।२,१३,१६. उ० ११६,१५,१६,३६,४०, २१४१,४।१०।५।११,३०,६।२,७,८।११,१६) ६।३६,१०।२८,१११३२, १३।२४; १४।४८%; १५।१५; १८।२६; १६।२३, २०।१२,३५ से ३७,३६,४१, २१।१४; २२।३६; २३।३८; २७।१५,१७; ३४।२६,३१. अ० ३६०,३६२, ७०८।१. वसा० ४।२३; ५।७।२४; ६।२।१४; १०॥३,५,६,११२८ से ३०,३३. प० ६,३८, ४२,७४,८१,११५,१६६,२२४,२८३. क० ११३४; ३।१३,४।१२ से १४,२६; २६ से १, ११.१२,४०. व०१।३३; २।२६; ४।११,१२; ५।११,१२,७१५,६,८,१६८।१३ से १५. नि० ११३१ से ३४,३६,४०, ३११६ से ६६; ५।१२,१३; ६।२५ से ७८; १०१२५ से २८ ११।६५.६७,६६; १३३३१ से ३८; १५॥१३ से ६६,६६ से १५२; १७।१३४; १६।१५ अप्प (अल्प) द० ४ सू० १३,१५; ५।७४,६९; ६।१३; चू० २१५. उ० ११३५; १११११; १३।१२; २२२४; २६१२३. अ० १३०,१७४, ३६४,४०७,४१२. दसा० ४।२३; ५।७।४. प०४४,१२४,२५४. क०४।३१ से ३४. व० ५१ से १०६।४०,४१ अप्पकंप (अप्रकम्प) १०७८ अप्पकम्म (अल्पकर्मन्) उ०१६।२१ अप्पकलह (अल्पकलह) उ० २६।४०. वसा० ४।२३ अप्पकसाय (अल्पकषाय) उ० २६।४० अप्पकिलंत (अल्पक्लान्त) आ० ३।१ अप्पकुक्कुय (अल्पकुक्कुच) उ० ११३० अप्पग (आत्मक) द० ६।५१; चू० २।१२. उ० १८।२७ अप्पग्ध (अल्पार्घ) द० ७।४६ अप्पचउत्थ (आत्मचतुर्थ) क० १।४६. ५० ४८, १०; ५।४,६.७,६,१० अप्पच्चक्खाय (अप्रत्याख्यात) उ०६८ अप्पझंझ (अल्पझंझ) उ० २६४०. दसा० ४।३ अप्पडिचक्क (अप्रतिचक्र) नं० गा० ५ अप्पडिपूयय (अप्रतिपूजक) उ० १७१५. दसा० ६।२।२५ अप्पडिपूरेमाण (अप्रतिपूरयत्) क०६।२ अप्पडिबद्ध (अप्रतिबद्ध) उ० २६।३१. ५०७८ अप्पडिबद्धया (अप्रतिबद्धता) उ० २६।१,३० अपडिरूव (अप्रतिरूप) उ० ३.१६ अप्पडिलेह (अप्रतिलेख) उ० २६१४३ अप्पडिले हणा (अप्रत्युपेक्षना, अप्रतिलेखना) आ० ४७ अप्पडिलेहणासील (अप्रतिलेखनाशील) प० २७८ अप्पडिवाइ (अप्रतिपातिन्) उ० २६७३. नं०६ Page #1025 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्प-अबंधव ___ ३१ ३३।१. २०७४ अप्पडिविरत (अप्रतिविरत) दसा० ६।३ अप्पडिविरय (अप्रतिविरत) दसा०६।३ अप्पडिहटु (अप्रतिहत्य) क० ३।२५ अप्पडिहय (अप्रतिहत) आ० ६।११; उ० ११११८, २१; २६।११. प० ७८ अप्पडिहयवरनाणदंसणधर (अप्रतिहतवरज्ञानदर्शन घर) ५० १० अप्पण (आत्मन) द०६।११।६।३०. उ० ११२५ अप्पणिच्चिय (आत्मीय) दसा० १०१२६ अप्पणिय (आत्मीय) उ० २०४८ अप्पतइय (आत्मतृतीय) क० ११४५,४६. व० ४१४,६,७,६,१०१२,३,५,६ अप्पतर (अल्पतर) दसा० ६१४ अप्पतृमंतुम (अल्पतुमंतुम) उ० २६।४०. दसा० ४१२३ अप्पतेय (अल्पतेजस्) द० चू० १।१२ अप्पत्तिय (दे०) द०५।११२; ८।४७ अप्पत्तियबहुल (अप्रीतिबहुल, अप्रत्ययबहुल) दसा० अप्पव्व इय (अप्रवजित) उ०१५।१० अप्पसत्थ (अप्रशस्त) उ० १६६३२६।२८; २६१८३४११६,१८,६१. नं० १६. अ० ५३७ अप्पसद्द (अल्पशब्द) उ० २६।४०. दसा० ४।२३ अप्पसन्न (अप्रसन्न) द० ६।५,७,१० अप्पसुय (अल्पश्रुत) द०६।२ अप्पहिट्ट (अप्रहृष्ट) द० ५।१३ अप्पागम (अल्पागम) व० ३।४,६,८; ६।१,६ अप्पाण (आत्मन्) उ० ११६६।३४ से ३६,६१; २५।८,१२,१५,३३,३७, २६।६१; ३६।२५० अप्पाण (अप्राण) व० ६।४०,४१ अप्पाणरक्खि (आत्मरक्षिन) उ० ४।१० अप्पातंक (अल्पातङ्क) अ० ४१६ अप्पायंक अल्पातंक) उ० ३।१८ अप्पाबहु (अल्पबह) अ० १२१११,१३८।१,१४६; १६५।१,२०६।१,२१५ /अप्पाह (आ+भाष्) - अप्पाहेइ अ० ५६९।३ अप्पाहार (अल्पाहार) दसा० ५।७४. ५० ८।१७ अप्पिच्छ (अल्पेच्छ) ६० ८।२५. उ० २।३६ अप्पिच्छया (अल्पेच्छता) द० ६।४५ अप्पिणित्ता (अर्पयित्वा) 4.८७,६ अप्पिय (अप्रिय) उ० १११४; ६।१५; ११।१२; २१११५ अप्पिय (अर्पित) उ० ३।१५ अप्पियकारिणी (अप्रियकारिणी) द०६।४६ अप्पुट्ठाइ (अल्पोत्थायिन्) उ० १।३० /अप्फाल (आ+स्फालय) -अप्फालेइ दसा० १०१११ अप्फालेत्ता (आस्फाल्य) दसा० १०।१० अप्फुण्ण (दे० आपूर्ण) अ० ५८६ अप्फुन्न (दे० आपूर्ण) अ० ४३६,४३८ अप्फोडिय (आस्फोटित) ५० २३ अप्फोव (दे०) उ० १८०५ अफल (अफल) उ० १४१२४. दसा० ६।३ अफासुय (अप्रासुक) दसा० ८।२३ अप्पपंचम (आत्मपञ्चम) ५० ५।८,१० अप्पबिइय (आत्मद्वितीय) क० ११४५,४६. १० ४२,३,५,६% ५१ । अप्पभासि (अल्पभासिन्) द० ८।२६ अप्पभूय (आत्मभूत) द० ४।६ अप्पमज्जणा (अप्रमाजना) आ० ४१७. प० २७८ अप्पमज्जिय (अप्रमृज्य) उ० १७१७ अप्पमज्जियचारि (अप्रमाजितचारिन्) दसा० १।३ अप्पमत्त (अप्रमत्त) द० ८।१६, ६।१७. उ० ४।६, ८,१०, ६।१२,१६; १६ सू० १ से ३,१६।२६; २६।४३. दसा० ४१२३. प०७४,७८ अप्पमाय (अप्रमाद) उ० १३।२६ अप्पय (आत्मक) द० ११२,१०।१४. उ० २।६; ६।६; १९६४ अप्प रय (अल्परजस) द० ६।४१७. उ० ११४८ Page #1026 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ३२ अफुसमाण-अब्भुट्ठ अफुसमाण (अस्पृशत्) उ० २६।७४ अभंगिय (अभ्यङ्गिक) प० ४२ अबंधण (अबन्धन) उ० १९६१ अब्भंगेंत (अभ्यञ्जत) नि० १।४।३।१८,२४,३०. अबंधव (अबान्धव) उ० १९।५१ ३८,५२,६१; ४।५६,६२,६८,७६,६०,६६; ६१५, अवंभ (अब्रह्मन) आ० ४१८.६. उ० ३५४३ १७,२७,३३,३६,४७,६१,७०,७१६.२२,२८, अबंभचारि (अब्रह्मचारिन्) उ० १२।५. दसा ३६,५०,५६; ११।१३,१६,२५,३३,४७,५६; हा२।१३ १५।१५,२१,२७,१०१,१०७,११३,१२१,१३५ अबभचरिय (अब्रह्मचर्य) द. ६।१५ अवंभचेर (अब्रह्मचर्य) उ० १६०२८ अब्भंगेक्ता (अभ्यज्य) नि० ३।३६ अबल (अबल) उ० ४।६:१०३३; १४१३५; अब्भंतर (आभ्यन्तर) उ० २८।३४; ३०१७ २१।१४ अब्भक्खाण (अभ्याख्यान) दसा० ६।३ अवहुस्सुत (अबहुश्रुत) दसा० ६।२।२६ अब्भणुण्णाय (अभ्यनुजात) प० ३७,३६,५०,७३, अबहुस्सुय (अबहुश्रुत) उ० १११२ २७१,२७३ से २७५ अबाल (अबाल) उ० ७।३० अब्भपडल (अभ्रपटल) उ० ३६।०४ अबाह (अबाध) उ० २३१८३ अब्भपुड (अभ्रपुट) द० ८१६३ अबाहिर (अबाह्य) नं० २२।२ अब्भरुक्ख (अभ्ररुक्ष) अ० २८७।१ अबाहिरिया (अबाहिरिका) क० ११६,८ अब्भवालुय (अभ्रवालुक) उ० ३६।७४ अवीय (अद्वितीय) उ० २०१२२. ५० ७५,१०६ अब्भविकार (अभ्रविकार) अ० ५२६ अबीय (अबीज) व ६।४०,४१ अब्भहिय (अभ्यधिक) उ० ३४१३५ से ३७,४६, अबीयवावय (अबीजवापक) अ० ३२१ ५०.५४,५५. दसा० १०।१५ अबोधिय (अबोधिक) दसा० ६।३ अब्भहियतर (अभ्यधिकतर) नं० २५ अबोहि (अबोधि) आ० ४१६. द० ४।२०,२१; अब्भहियत राग (अभ्यधिकतरक) नं २५ ६५,१० अब्भावगासिय (अभ्रावकाशिक) क० २।११,१२ अबोहिय (अबोधिक) द० ६।५६. दसा० ६२।२६ अब्भास (अभ्यास) अ० ३१५॥१ अबोहेत (अबोधयत्) उ०२६।४४ अब्भ (अभ्र) द० ८।६३; ६।१५. अ० २८७११; " अब्भाह्य (अभ्याहत) उ० १४।२१ से २३ अभिग (अभ्यङ्ग) दसा० १०१११ ५३३।१ अभिगण (अभ्यङ्गन) दसा० १०।११ अब्भंगा (अभ्यञ्जक) नि० ६।२७ / अब्भंग (अभि +अङ्ग्)--अब्भं गेज्ज नि० ११४ । अभितर (अभ्यन्तर) द० ४।१७,१८. उ० ३०१२६ अब्भंगण (अभ्यञ्जन) दसा०६३.५० ४२ ३०. अ० ३७६.५० २०,४२ अभितरिय (आभ्यन्तरिक) दसा०६।३.५० ४२ Vअभंगाव (अभि---अजय) -अब्भंगावेज्ज नि० १५।३५ अब्भुग्गत (अभ्युद्गत) दसा० १०।२४ अब्भंगावेत्ता (अभ्यज्य) नि० १५॥३६ अब्भुग्गय (अभ्युद्गत) दसा० १०।१७ अभंगावेंत (अभ्यञ्जयत्) नि० १५।३५, ४६,५८; अब्भुट्ठ (अभि + उत्+ठा) -अब्भुढेइ उ० १७५१७,२३,२९,३७,५१,६०,७१,७७,८३,६१ २६।३३. दसा० १०।२४. ५० ५.--अब्भुद्रुति १०५,११४ दसा० १०।१४. -अब्भुट्ठज्जा क० ११३४. अब्भंगिन" (अभ्यजितुम्)क० ५।३६ व० ११३३ Page #1027 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभट्ठाण-अभिण्णदसपुन्वि ३३ अब्भुट्ठाण (अभ्युत्थान) आ०६।४,५. उ० २१३८; २४. १०२६२,२६६,२७८. नि० १२१३ २६।४,७; ३०। ३२ अभिक्खणं (अभीक्ष्ण) द० ५।१०, चू० २१७ अब्भुट्टित्ता (अभ्युत्थाय) उ० २६॥५१ । अभिगच्छ (अभि+ गम्)-अभिगच्छइ द० अब्भुट्ठिय (अभ्युत्थित) उ०६।६.५० ८०. नि० ६।३८. उ० ११४२. दसा० ५१७११. १०।३२,३३ --अभिगच्छई द०४॥२१.--अभिगच्छेज्जा अब्भुठेत्ता (अभ्युत्थाय) दसा० १०।७. ५० ५ द० ५।१४ अब्भठेत्तु अभ्युत्थात) दसा० ४।१७,२३ ।। अभिगत (अभिगत) दसा० १०१३०,३१ अभिगम (अभिगम) द०६।५५. उ०२८।१६ अब्भुत रस (अद्भुत रस) अ० ३१२ अब्भुदय (अभ्युदय) उ० ६।५१ अभिगम (अभिगम्य) द० ६।४।६ अब्भुय (अद्भुत) अ० ३०६।१; ३१२।१ अभिगमण (अभिगमन) दसा० १०।११,१६ अब्भुयत र (अद्भुतत्तर) अ० ३१२।१,४५७,५६६, अभिगमरुइ (अभिगमरुचि) उ० २८१२३ अभिगम्म (अभिगम्य) उ०१४।१७ अब्भुवगय (अभ्युपगत) उ०१८।३६ अभिगिज्झ (अभिगा) द० ७.१७,२० अभग्ग (अभग्न) आ० ५।३. प०७४ 1 अभिगिण्ह (अभि+ग्रह)- अभिगिण्हइ ५० ५७ अभिग्गह (अभिग्रह) आ०६।६. उ० ३०१२५. अभड (अभट) प० ६४ अभत्तट्ट (अभक्तार्थ) आ० ६१७. व. १०।३,५ ५० ५७ अभय (अभय) उ० १८।११. नं० ३८।११ अभिग्गयि (आभिग्राहिक) ५० २७८ अभयदय (अभयदय) आ०६।११. १०१० अभिघाय (अभिघात) द०६।४८. ५० ३१ अभयदाय (अभयदातृ) उ० १८।११ अभिजसंत (अभियशस्वत्) प० २०१ अभवसिद्धिय (अभवसिद्धिक) नं०६६,१२४. अ० Vअभिजा (अभिजन)-अभिजायइ उ० ३।१६ २८८,४५७,५६६,६०१,६०२ अभिजाइय (अभिजातिग) उ० ११११३ अभविय (अभव्य, अभविक) नं० १२४११. दसा० Vअभिजाण (अभिज्ञा)---अभिजाणामि उ० २१४० १०।२४ से २८ अभिजाय (अभिजात) उ० ३।१८; १४१६ अभाव (अभाव) उ० १६. नं० १२४ अभिजुजिय (अभियुज्य) दसा० १०।२८ अभासा (अभाषा) नं० ८१ अभिणंदंत (अभिनन्दत) दसा० १०।१८ अभिइ (अभिजित् ) अ० ३४१।३ अभिणंदण (अभिनंदन) अ० २२७ अभिओग (अभियोग) उ०१२।२१,३६।२६४ अभिणं दिज्जमाण (अभिनन्द्यमान) दसा०१०।१६ 1 अभिकख (अभि+काक्ष)-अभिकंखइ द० Vअभिणय (अभिणी) -अभिणएज्ज १०।१२. -अभिकखे द० १०१७ नि० १७११३५ अभिकंखमाण (अभिकाङ्क्षत) द०६।४२ अभिणिक्खम (अभि +निस+क्रम) अभिकखि (अभिकांक्षिन) उ० १४१६; ३२।१७ -अभिणिक्खमई उ०६।२.--अभिणिक्खअभिक्कंत (अभिकान्त) द० ४ सू०६ मंतंमि उ० ६५.--अभिणिक्खिमहि उ० अभिक्ख (अभीक्ष्ण) उ० १४१३७ १३।२० अभिक्खण (अभीक्ष्ण) उ० १११२,७; १६।३; १७।८, अभिण्ण (अभिन्न) नि०६।११ १५,१६:२७१४,११. दसा० ११३, २।३१०। अभिष्णदसपुदिव (अभिन्नदशवन) नं० ६६ Page #1028 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ अभिण्णात-अभिसंधार अभिण्णात (अभिज्ञात) ५० १६१ अभिनिव्वगड (दे० अभिनिर्वकर) क० २११. ५० अभिण्णाय (अभिज्ञात) प०१८८,१८६,१६१, ६॥५,६६।१३ से १६ १६३,१६६,२०३,२०७,२०६,२१४,२१६ । अभिनिसीहिया (अभिनषेधिकी) व० १३१६ अभितत्त (अभितप्त) उ० १९६० अभिनिसेज्जा (अभिनिषद्या) व०११६ अभितुर (अभि+स्वर) -अभितुर उ० १०॥३४ अभिन्न (अभिन्न) दसा० ३।३. क० १११,३,४,३९ V अभितोस (अभि+तोसय)-अभितोसएज्जा अभिन्नाचार (अभिन्नाचार) ५० ३।३,५,७ द०६।४५ अभिप्पेय (अभिप्रेत) उ० ५॥३१ अभित्थुणंत (अभिष्टुवत्) उ० ६।५५,५६. दसा० अभिभूय (अभिभूत) २०१०।१४. उ० १४१४; १०।१८ १५।१५३२॥३; ४३,५६,६६,८२,६५ अभिथुय (अभिष्टुत) आ० २।५; ॥४॥५ अभिभूय (अभिभूय) उ०२ सू०१ अभिथुव्वमाण (अभिष्ट्रयमान) दसा० १०।१६.. अभिमुह (अभिमुख) द०६।१०. दसा० १०१२०. प०७३ से ७५ प० १०. १० ११३३ /अभिधार (अभि+धारय्) -अभिधारए अभिमुहनामगोत्त (अभिमुखनामगोत्र) अ० ५६८ द० ५।१२५. उ० २।२१ Vअभिराम (अभि+रामय)-अभिरामयंति द० Vअभिनंद (अभिनंद)-अभिनंदेज्जा उ० ६.४१ २१३३ अभिराम (अभिराम) उ०१३।१७. दसा० १०।११. अभिनंदण (अभिनंदन) आ० २१२,५।४।२. नं० १८. प० २०,३० से ३२,३४,४०,४२,६२ गा० १८. प० १५७ अभिरु (अभिरु) अ० ३०५।१ अभिनंदमाण (अभिनंन्दत) प०७३,७४ Vअभिरोय (अभि+रोषय)-अभिरोएज्जा उ० अभिनिक्खंत (अभिनिष्क्रान्त) उ०६।४ २११११. -अभिरोयए उ० ३१६ अभिनिक्खमण (अभिनिष्क्रमण) व०६।५,६ V अभिलस (अभिलिष)--अभिलसइ उ०२६। अभिनिक्खमणपवेस (अभिनिष्क्रमणप्रवेश) क० ३४. -अभिलसति दसा० १०१६ ११११ अभिलसणिज्ज (अभिलषनीय) उ०१६ सू० ११. अभिनिक्खम्म (अभिनिष्क्रम्य) उ०१४।३७ दसा० १०।२७ अभिनिचारिया (अभिनिचारिका) व०४।१६ अभिलसिज्जमाण (अभिलष्यमाण) उ०१६ सू०११ अभिनिदुवार (अभिनिद्वार) क० ११११. व० ६।५, अभिलाव (अमिलाप) अ० २१७. १० ११०,१११ अभिलास (अभिलाष) अ० ३११।१ । अभिवंदिऊण (अभिवन्द्य) उ० २०१५६ अभिनिपया (दे० चुल्ली) व० ६।१०,१२,१४,१६ अभिवंदित्ता (अभिवन्ध) उ० २३८६ / अभिनिबुज्झ (अभि+नि बुध्) -अभिनि अभिवंदिय (अभिवन्दित) उ०१२।२१ बुज्झइ नं० ३५ /अभिवड्ढ (अभि+वध)-अभिवड्ढामो अभिनिवट्ट (अभिनिवर्त) प०७४,८१ प० ५२ अभिनिविट्ठ (अभिनिविष्ट) उ०१४।४. दसा० अभिवायण (अभिवादन) द० चू० २।६. उ० २०३८ Vअभिनिवेस (अभि+नि+वेशय) --अभिनि- अभिसंधार (अभि+सं+धारय)-अभिसंधावेसए द०८।२६ रेति नि०६८ Page #1029 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिसंधारण - अमुग अभिसंधारण (अभिसंधारण) नं० ६३ अभिसंधात (अभिसंधारयत्) नि० ६८, ६, १२ १७ से २६ १६ २६, २७ १७ १३६ से १५१ अभिसमागम (अभिसमागम्य ) वसा० ५।७।१७; ६२३६ / अभिसमे ( अभि + + इ ) - अभिसमेइ उ० १३।३०. अभिसमेम उ० २०१६ अभिसिंच ( अभि + सिच्) - अभिसिंचाइ १० १६५ अभिसिंचिता (अभिषिच्य ) प० १६५ अभिसिच्चमाण (अभिषिच्यमान) प० २४ अभिसित (अभिषिक्त) द० ६ ११ अभिसे (अभिषेक) नं० १२०. ५० ४,२०,६२. नि० ६।२० अभिसेयठाण ( अभिषेकस्थान) नि० १२ २७; १७ १४६ अभिहड (अभिहत) द० ३।२. नि० ३१६ से १२, १५; ११ ८; १४ | ४; १८१५, ३६; १६४ अभिहण (अभि + न्) - अभिहणे उ० २।१० अभि (अमित) आ० ४ ४. उ०२३।५३ अभिहिय ( अभिहित ) उ० २८।२७ अभी ( अभिजित् ) प० १६०,१८० अभीय ( अभीत) प० ७४ अभूइभाव (अभूतिभाव) द० ६।१ अभूत (अभूत) दसा० ६।२८ अभोगि ( अभोगिन् ) उ० २५ ३६ अभोच्चा (अभुक्त्वा ) व० ९ ४०, ४१ अभोज्ज ( अभोज्य) द० ६।४६ अमइ ( अमति ) उ० ४।२ अमग्ग ( अमार्ग) आ०४६ अमच्च (अमात्य) नं० ३८।११. अ० १८. प० ४२ अमन्चपुत्त ( अमात्यपुत्र) नं० ३८।१२ अमच्छर ( अमत्सरिन् ) द० चू० २|७ अमज्जमंसासि ( अमद्यमांसाशिन् ) द० चू० २७ अमणुण्ण ( अमनोज्ञ ) उ० २६/६३ से ६७; ३२।२१ से २३, ३५, ३६, ४८, ४६,६१,६२, ७४ ७५,८७,८८ अण्णा ( अमनोज्ञता ) उ० ३२।१०६ अमणस्स ( अमनुष्य) नं० २३ अमम (अमम) द० ६।६८, ८६३. उ० २१।२१. प० ७८ अमय (अमृत) उ० १७।२१ अमर ( अमर ) द० चू० १।११. नं १२१ अमरपरिग्गहिय ( अमरपरिगृहीत) क० ३।३० अमरवइ ( अमरपति) दसा० १०।१५ अमरिस ( अमर्ष ) उ० ३४।२३ अमल (अमल) उ० ३६।२६०. ५० २४ अमहग्घय (अमहार्घक) उ० २०१४२ अमाइ (अमायिन् ) द० ६।५० उ० ११ १०; २६/६; ३४।२७ ३५ अमावाहय ( अमातृवाहक) अ० ३२१ अमाण (अमान) प० ७८ अमाणिम ( अमान्य) द० चू० ११५ अमाणूस ( अमानुष ) उ० ३।६ अमाया ( अमाया ) प० ७८ अमावसा ( अमावास्या) प०८८ अमावासा (अमावास्या) व० १०|३ अमित्त (अमित्र) उ० १५११६, २०१३७ अमिय (अमित) उ० ३२।१०४.५० २२ अमियासणिय ( अमिताशनिक) १०२७८ अमिला (दे० ) नि० ३।७० ५।२४; ७।१० से १२; १७।१२ से १४ अमिलाय ( अम्लान) प० ६४ अमिलिय (अमिलित) अनं० ६. अ० १३, ३४, ५७,८१,१०६,५६३, ६२३, ६३५, ६४७, ६७३, ७००,७१४ अचय ( अमुञ्चत् ) उ० ३६ ८१, ८६, १०३, ११४, १२३,१३३,१४२, १५२ अमुग (अमुक) द० ७।६. नं० ५२, ५३. व० २२४; ७५ Page #1030 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ अमुग्ग-अरह अमुग्ग (अमुद्ग) अ० ३२१ अयपाय (अयस्पात्र) नि० ११११ से ३ अमुच्छिय (अमूच्छित) द० ५।१,१२६; १०।१६. अयपोसय (अजपोषक) नि० ६।२३ उ० ३५।१७ अयबंधण (अयस्बन्धन) नि० १११४ से ६ अमुन (अमूर्त) उ० १४.१६ अयल (अचल) आ० ६।११.५० १०,६७ अमुद्द (अमुद्र) अ० ३२१ अयलपुर (अचलपुर) नं० गा० ३२ अमुय (अमुक) द० ७५० अयलभाय (अचलभात) नं० गा० २१. प० १८३ अमुहरि (अमुखर) उ० ११८ अयलोह (अयस्लोह) नि० ७।४ से ६; १७।६ से ८ अयस (अयशस) ० ५।१३८; चू० १११३ अमूढ (अमूढ) द० १०७. क० ४18 अमूढदिट्ठि (अमूढदृष्टि) उ० २८।३१ अयसबहुल (अयशबहुल) दसा० ६।४ अमेज्ज (अमेय) प०६४ अयसी (अतसी) उ० १६।५५; ३४।६ अमोक्ख (अमोक्ष) उ० २८१३० अयागर (अयआकार) नि० ५।३५ अमोसली (दे०) उ० २६।२५ अयाणंत (अजानत) द०४।१२. उ० ८।१७ अमोह (अमोघ) द०८।३३. उ०१४।२१ से २३. अयाणय (अज्ञ) उ० १२।३१ अ०२८७ अर (अर) आ० २।४; १४/४. उ० १८४०. अमोह (अमोह) अ० २८२ नं० गा० १६. अ० २२७. प० १४३ अमोहण (अमोहन) उ० ३२।१०६ अरइ (अरति) ० ८।२७; चू० १ ० १. उ०२ अमोहदंसि (अमोहदशिन्) २०६।६७ सू० ३; गा०१४, १५, १०१२७, २११२१ ३२।१०२ अम्मा (दे० अम्बा) द० ७।१५. उ० १६२,६ ___ अरइय (अरतिक) नि० ३३३४ से ३९; ४७२ से से ११,२४,४४,७५,७६,८४ से ८६; २१।१०. नं० ८६ से ८६,६१ ७७; ६।४३ से ४८; ७।३२ से ३७; ११।२६ से ३४; १५॥३१ से ३६, ११७ से १२२; अम्मापिइ (अम्बापित) ५० ५७,६६,७३ १७।३३ से ३८,८७ से ६२ अम्मापिउ (अम्बापित) प० ५२,६७ अरक्खिय (अरक्षित) व० चू० २०१६ अम्मापियर (अम्बापित) सा० १०।२५,२६. अरज्जत (अरज्यत्) उ० १६॥ प० ५१,६६ अरणि (अरणि) उ०१४।१८ अम्ह (अस्मत्) आ० २।५. द०११४. उ०१११. अरण्ण (अरण्य) उ० १६७६, ७७; ३२१७६ नं० गा०६. अ० ३०८।३. दसा० १११. व० अरतिरति (अरतिरति) बसा०६।३.१०६७ ११३३ अरय (अरत) द० चू० १११०,११. उ०१७।१५ अम्हारिस (अस्मावश) उ० १३।२७ अरय (अरजस्) उ० १८१४० अय (अज) उ० ७७,६. अनं० १२. अ० ३४२।२ अरय (अरक) नं० गा० ५ अय (अयस्) उ० १२।२६,१६।६७,३६१७३ अरयंबर (अरताम्बर) १०८ अयंतिय (अयन्त्रित) उ० २०१४२ अरविंद (अरविन्द) प० ३५ अयंपिर (अजल्पित) द० ५।२३; ८।२३,४८ अरस (अरस) द० ५।६८ अयगोल (अयोगोल) दसा०६।४ अरह (अर्हत्) उ०६।१७; २३३१. नं०७६. अयण (अयन) अ० २१९,४१७. २०७४,२७६ अ० २८२. वसा० १०॥३३. ५० ३५, ८२, अयत (अयत) दसा० ६।३ १०८ से १८१ Page #1031 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरहंत अवंजणजाय अरहंत (अर्हत् ) आ० १ १ ४ २, ८ ५ ३; ६।११. उ० २६।५१. नं० ६५, १२०. अ० ५०, ३६६, ५४२, ५४६, ५६६. दसा० ६।३, ७, १०।११. ० १० से १२, १४, ४७. व० १।३३ अरहदत्त (अर्हदत्त) प० २०३ अहदिन्न ( अदत्त) प० २१४ अरि (अरि) उ०२०।२०४८ अरिट्ठग ( अरिष्टक) उ० ३४१४ अरिम (अरिष्टनेमि ) उ० २२ २७. अ० २२७ अरिनेम (अरिष्टनेमि ) आ० २।४; ५/४/४. उ० २२/४, ५. १० १२६ से १३६ अरिह (अहं) द० ८ २० उ० ३६ । २६२. बसा० १०/७०४८ Vave ( अ ) अरहर उ० ११।१४ अरिहंत (अर्हत् ) आ० २।१; ५|४|१ अरुणवर ( अरुणवर) अ० १८५।१ raara (अरुणोपपात) नं० ७८. जोनं० ६. व० १० ३१ अरु (अरुज) आ० ६ । ११.५० १० अरूवि (अरूपिन् ) उ० ३६ ४, ६, ६६, २४८. अ० ४४२, ४४३ अरोग ( अरोग) नि० १३।४२ अरोगि ( अरोगिन् ) द० ६ ६० अलं (अलम् ) द० ५।७८. उ०६।३. नि० १ ३६ अलंकरण (अलङ्करण) प० २७ अलंकार (अलङ्कार ) ६० २।२. अनं० १४, १८. अ० ३०२।२. दसा० ६।३; १०११०, १७, २२, २३.०४८, ५८, ६४,६६, ७५, ११३, १२६, १६५. नि० ६६ अलंकित (अलङ्कृत) दसा० १०/३ अलंकिय (अलङ्कृत) उ० १६ १६; ३०।२२. अ० ३०७/६, ६५६, ६६०, ६८२, ६८६. दसा० १०।११. प० ४२, ४४ अलत्तय (अलक्तक) अ० ३२३ ३७ अलद्ध (अलब्ध) उ० २।३० अयं (अलब्ध्वा ) द० ६।४४ अलब्भमाण (अलममान) नि० १०।३३ अलभमाण (अलभमान) अ० ५३६ अलस (अलस) उ० ३६।१२८ अलाउय ( अलाबुक) अ० ३२३ अलाभ ( अलाभ) द० ५।१०६ ८।२२. उ० २ सू० ३; २।३१; १४ । ३२; १६ / ६० ३५।१६ अलाभया ( अलाभता ) उ० १६।३२ अलाय ( अलात) द० ४ सू० २०; ८८. नं० १२ से १५ अलाल ( अलाल) अ० ३२१ अलाहि (अलम् ) प० २३७ अलिंद (आलिन्द) अ० ३७५ अलित्त (अलिप्त ) उ० २५।२६ अत्तिय (अरित्रक ) नि० १८ । १४ अलिय ( अलीक) उ० १।१४; ३५।३ अलवण (अलोकवचन) क० ६।१ अलोग (अलोक ) द० ४।२२, २३. उ० २६४७२; ३६ । ७. नं० २१, २२. अ० ३८८१. दसा० 41315 अलोभ (अलोभ) प० ७८ अलोय (अलोक ) उ० ३६।२, ५६० नं० ८२ से ८५. अ० २८८,६१५. दसा० ५।७ अलोल (अलोल) द० १०।१७. उ० ३५।१७ अलोलुप (अलोलुप ) द० ६५० उ० २।३६; २५।२७ अल्लीण ( आलीन) द० ८ ४०, ४४, उ० २३६. प०५३, ११२, १२६, १६५ अवउज्झ (अप् + उज्झ ) – अवउज्झइ उ० १७/६ अवउज्झिऊण ( अपोज्भ्य ) उ० ६।५५ अवउज्झिय ( अपोज्भ्य) उ० १०।३० अदुवार (दे० अपावृत्तद्वार) क० १।१४, १५ अवजण ( अव्यञ्जन) प० २३६ अवंजणजाय ( अव्यञ्जनजात ) व० १० २३ Page #1032 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ अर्वजणजायय-अवरद्ध अवंजणजायय (अव्यञ्जनजातक) प० २३६ अवण्णव (अवर्णवत्) दसा० ६।२।२२ अवंझ (अवन्ध्य) नं १०४, १०५ अवण्णवाइ (अवर्णवादिन्) उ० ३६।२६५ अवंदिम (अवन्ध) द चू० ११३ अवण्णवाति (अवर्णवादिन) दसा० ४।२२ । अवकख (अव+काक्ष)-अवकखे उ०६।१३ अवण्णवाय (अवर्णवाद) द० ६।४६ अवकरय (अवकरक) अ० ३४६ अवत्तव्व (अवक्तव्य) द० ७२,४३ अवकुजिय (अवकुब्ज्य) नि० १७।१२६ अवत्तव्वग (अवक्तव्यक) अ० १२४, १२५,१२७ अवक्कत (अपक्रान्त) नि० १११३३ १२८,१३०,१३७,१६८,१६६,१७४,२००,२०४, । अवक्कम (अव+क्रम) ---अवक्कमई प० १५. २०५,२११,२१५ -अवक्कमति दसा० १०॥६. -अवक्कमे अवत्तन्वय (अवक्तव्यक) अ० ११५,११७,११६, द० ५।८५ १२०,१२२,१३२,१३४,१३६,१५६,१६१,१६३, अवक्कम (अपक्रम)--अवक्कमेज्जाद०६।६ १६४,२००,२०२,२०४ अवक्कमित्ता (अवक्रम्य) द. ५।८१. दसा० १०॥६. अवत्तासिय (अवत्रासित) उ०१६।६ प०१५. व० ११२३ अवत्थाण (अवस्थान) अनं० २४ अवक्कम्म (अवक्रम्य) क० ४।१६. व० ११२३ अवत्थु (अवस्तु) अनं० ६. अ० १४,३५,५८, अवगम (अपगम) द० ८।६३ ८२,१०७,५५७,५६४,६२४,६३६,६४८,६७४, अवगय (अपगत) द० ७।५७, ८।६३, ६।५४; ७०१,७१५।४ १०।१६. उ० २८।३०. दसा० १०।११. अवधंसि (अपध्वंसिन्) उ० ४१७ प०४२ Vअवपंगुर (दे० अप+व)-अवपंगुरे २०५।१८ अवगाढ (अवगाढ) नं० गा० १२ 1 अवपेक्ख (अव+प्र. ईक्ष)-अवपेक्खसि उ० अवगाहिया (अवगाह्य) उ० १०॥३३ ६।१२ अवगिज्झिय (अवगृह्य) प० २८५ Vअवबुज्झ (अव+बुध)-अवबुज्झसे उ० अवचय (अपचय) अ० ६३१११ १८।१३ अवचिट्ट (अवठा )-अवचिठे उ०१४।१८ अवमन्न (अव+मन्)-अवमन्नह उ० १२।२६ अवचिय (अपचित) अ० ६६ अवमाण (अपमान) उ० १६६०. अ० ७०८६ अवच्च (अपत्य) अ० ३५८।१,३६६ अवयण (अवचन) क० ६१ अवच्चामेलिय (अव्यत्याम्रडित) अ० १३,३४, 1 अवयर (अव-1-चर)- अवयरई दसा०६।२।२३ ५७,८१,१०६,५६३,६२२,६३५,६४७,६७३, अवयव (अवयव) अ० ३१६,३२७,५२१,५२५ ७००,७१४ अवर (अपर) नं०८६,१०३. दसा. ६९ से १८. क० ३।२८. नि० २०१६ से ५१ अवडिय (अवस्थित) नं० १२६ अवड्ढभाग (अपार्धभाग) नि० २।३५ 1 अवरज्झ (अपराध)-अवरज्झई द० ६७ अवड्ढोमोयरिय (अपार्धावमोदरिका) व० ८।१७ -अवरज्झइ उ० ७२५ अवणय (अवनत) द० ५।१३. उ० २१।२० अवरण्ह (अपराल) अ० २५. नि० १६१८ अवणी (अप-णी)-अवणेज्जा द०४ सू० २३ अवरत्त (अपरात्र) प० १७,२०,५६,१०६,१११, -अवणय अ० ३०८.५ १२७,१२८,१३८,१६१,१६३ अवण्ण (अवर्ण) नि० १११६,७३ अवरद्ध (अपराद्ध) व० ११३३ Page #1033 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवररत्त-अविच्चामेलिय ३६ अवररत्त (अपररात्र) द० चू० २।१२ अवरविदेह (अपरविदेह) अ० ३६६, ५५६ अवरविदेहय (अपरविदेहज) अ० ३३३ अवराध (अपराध) दसा० ६।३ अवराह (अपराध) द०६।३५. बसा०६।३. व०११३३ Vअवलंब (अव+लम्ब्)-अवलंबइ उ० २६।२० अवलंबण (अवलम्बन) नि० ११११ अवलंबणया (अवलम्बनता) नं० ४३ अवलंबमाण (अवलम्बमान) उ० २६।२०. क०६। ७ से १८ अवलंबित्तए (अवलम्बयितुम्) वसा० ७।१७ अवलंबिया (अवलम्ब्य) २० २१०६ अवलिय (अवलित) उ० २६।२५ अवलेहणिया (अवलेखनिका) नि०११४०; २।२५; ५।१६ से २२,६७ V अवलोय (अव+लोक्)-अवलोयए ३० ५।२३ अवव (अवव) अ० २१६,४१७ अववंग (अववाङ्ग) अ० २१६,४१७ अवस (अवश) उ०७।१०।१३।२४; १८।१२; १६।१६,५६,५७,६३,६४. अ० ३६०१३ अवसन्न (अवसन्न) उ०१३।३०; ३२१७६ अवसव्वय (अपसव्यक) नं० ३८७ अवसाण (अवसान) अ० ३०७।३. वसा० १०१११. प० ४२. नि० २०११६ से ५१ Vअवसीय (अव+षद्)-अवसीय उ० १३।१८ --अवसीयई उ० २७।१५ अवसेस (अवशेष) उ० १२।१०; २६॥३५; २६७३ प०१८५,२५६. क०२।१३. व. २।४ अवसोहिय (अवशोध्य) उ० १०।३२ अवस्स (अवश्य) अ० २८१२. दसा० १०।२८ से Vअवहर (अप+ह) -अवहरइ प० १५ -अवहरति. नि. ७८१ -अवहीरइ.१० ४८२. --अवहीरंति अ० ४५७ अवहरंत (अवहरत्) नि० ७८१; १०१६,११ अवहरित्ता (अपहृत्य) प० १५ अवहाय (अपहत्य) अ० ४२२ अवहिय (अपहृत) उ० ३२।८६. अ० ४७७,४६१ अवहिय (अवहित) अ० ५०,५४६ अवहीरमाण (अपहियमाण) अ० ४७७,४६१ अवहेडिय (अवहेठित) उ० १२।२६ अवाउड (अप्रावृत) ३० ३।१२. नि० ६।११ अवाएत्ता (अवाचयित्वा) नि० १६१६ अवाय (अवाय) नं० ३६,४६,४७,५०,५३,५४।१ अवायमति (अवायमति) दसा० ४।१० अवायमतिसंपदा (अवायमति संपदा) दसा० ४६ अवायाण (अपादान) अ० ३०८।२ अवि (अपि) द० १११. उ०१।११. नं० गा० ३३. जोनं० ३. अ० २. दसा० ११३. क० ११५. व० ११६. नि. ११३६ अविइगिट्ठ (अव्यतिकृष्ट) व० ७.१५ अविइण्ण (अवितीर्ण) व० १।१६; ३।२; ४।१६; ६०१ अविओसविय (अव्यवशमित) नि० १०।१४ अविओसवियपाहुड (अव्यवशमितप्राभूत) क० अविओसवेत्ता (अव्यवशम्य) क० ४।२६ अविकरण (अविकरण) क० ३।२६ अविकार (अविकार) अ० ३१८।१ अविक्किय (अविक्रय) २०७४३ अविगरण (अविकरण) नि० २१५४ अविग्गह (अविग्रह) उ० २६/७४ अविग्घ (अविघ्न) प० ७४ अविधुट्ठ (अविधुष्ट) अ० ३०७।६ अविच्चामेलिय (अव्यत्यानंडित) अनं०६ अवस्सकरणिज्ज (अवश्यकरणीय) अ० २८।१ अवह (अवध) द० ६०५७ अवहट्ट (अपहृत्य) वसा० ५।७।६ Page #1034 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० अविज्ज-अश्व अविज्ज (अविद्य) उ० ३४।२३ अविहिंसा (अविहिंसा) अ० ३१५११ अविज्जा (अविद्या) उ० ६।१ अविहिभिन्न (अविधिभिन्न) क० ११५ अविणीय (अविनीत) द० ६।२०,२२,२४.२७,२८. अविहेडय (अविहेठक) द० १०.१० उ० ११३; १११२,६,६. क० ४१६ अवुग्गाहिय (अव्युग्राहित) क० ४१६ अविण्णाय (अविज्ञात) नि० १२।३०; १७।१५२ अवुच्छित्तिनय (अव्युच्छित्तिनय) नं० ६८ अवितक्क (अवितर्क) दसा० ५७१७ अवुसिराइय (अवृषिराजिन्) नि० १६।१६ अवितह (अवितथ) आ० ४।६. दसा० १०॥२४, अवुसि रातिय (अवृषिराजिन्) नि० १६।१४,१५ २७ से ३३. ५० ७,३६,४८,६७,१२१, १३६ । अवे (अप+इ)---अविस्सइद० ० ११६ अविदिण्ण (अविदत्त) नि० ४।२०; १६।२५ -अवेस्सइ द० च० १।१६ । अविद्धत्थ (अविश्वस्त) नि० १७।१३३ अवेइय (अवेदित) नं० ३८।२. १० १२,१४ अविस्फालिय (अविपाट्य) नि० १०।१४ अवेक्खंत (अपेक्षमाण) उ० २३।१५ अविफालेत्ता (अविपाट्य) नि० १०११३ अवेयइत्ता (अवेदयित्वा) द० चू०१ सू०१ अविभत्त (अविभक्त) क० २०२२ अवेयण (अवेदन) उ० १६।२१. अ० २८२ अविमण (अविमनस्) दसा० ५७।१ अव्वईभाव (अव्ययीभाव) अ० ३५०।१,३५६ अवियार (अविचार) उ० ३०११२ अव्व क्खित्त (अव्याक्षिप्त) द० ५।६० अविरइयावाय (अविरतिकावाद) क० ६।२ उ० १८१५०; २०११७ अविरय (अविरत) उ० ३४।२१,२४. अ० २७५ अव्वम्गमण (अव्यग्रमनस्) उ० १५॥३,४ अविरहिय (अविरहित) अ० ७१३।२. व० ८.५ अव्वत्त (अव्यक्त) नं० ५३ नि० १६०२२ अविराहिय (अविराधित) आ० ५।३ अव्वय (अव्यय) नं० १२६ अविरुद्ध (अविरुद्ध) अ० २०,२६ अव्वयि (अव्यथित) द० ८।२७ अविलंबिय (अविलम्बित) ५० ५,३६,३६,५० अव्वाइडक्खर (अव्याविद्धाक्षर) अनं ६. अ० १३, अविवच्चास (अविव्यत्यासा) उ० २६।२८ ३४,५७,८१,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७, अविवन्न (अविपन्न) उ० २०॥४४ ६७३,७०० अविसंघाइय (अविसंघातित) अ० ४१६ अव्वाबाह (अव्यावाध) आ० ६।११. उ० २६।४. अविसंधि (अविसंधि) आ० ४।६. दसा० १०२४ प० १०,१५,१७ अव्वावड (अव्यापृत) क० ३।३० अविसंवायण (अविसंवादन) उ० २६।४६ अव्वाहय (अव्याहत) नं० ३८।२ अविसारय (अविशारद) उ० २८।२६ अव्वेच्छिन्न (अव्यवच्छिन्न) 4० ७।२७ अविसुद्ध (अविशुद्ध) अ० ५५५,५५६ अव्वोगड (अव्याकृत) वसा० ३।३. क० २।२२; अविसे सिय (अविशेषित) नं० ३६. अ० २५४ ३।३०. व० ७।२७ अविस्साम (अविश्राम) उ०१६।३५ अव्वोच्छिण्ण (अव्यवच्छिन्न) नि०६।११ . अविस्सास (अविश्वास्य) द० ६।१२ अव्वोच्छिन्न (अव्यवच्छिन्न) दसा० ३।३, ६।१८. अविहि (अविधि) नि० १।२३ से २६,३५ से ३८, क० २।२२. व० ७।२७ ४३,४६,४१२२,१११,५७१ अश्व ( ) अ० २७०,३५१ Page #1035 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अश्वमहिष-असंपहिट अश्वमहिषं ( ) अ० ३५१ असंखेज्जइभाग (असंख्येयतमभाग) नं० २२. Vअस (अस)-अस्थि द० ५।१२७. उ० २१७. अ० १२४,१२५,१२८,१४१,१४२,१४५,१६८, नं. ६२. अ० ११७. क० ११३४, नि० ५।६४. १६६,२०६,४०२ से ४०४,४२४,४३१,४३८, -अत्थु आ० ६.११. प० १०. ----अमि ४५८,४६३,४६७,४७७,४८२,४८७,४६५, उ० १२।६. -अमु उ० ८७. -असि ४६६,५०३ उ०६।५८, अ० ३१३।२.-आसिमो उ० असंखेज्जइम (असंख्येयतम) उ० ३६।१६१ १३१५.---आसी उ०६।५. नं० १२६, अनं०८ असंखेज्जगुण (असंख्येयगुण) अ० १३०,१७४,२६३, अ० १६ -- मो अ० ३१४१२.--संति द० ३६४,४०७,४१२,४२४,४३१,४३८ ११३. उ० ५।२. दसा०६७. -सिया उ० असखज्जपएासय (असख्येयप्रदशिक) अ०६४,६८, ११८. अ० ३९८. नि० १५९८. --होमो द० ११५,१३२,१५२,१५३,३७१। २१८ असंखेज्जय (असंख्येयक) नं० २०. अ० ४११, अस (अश्) -असति अ० ३२१ ५७४,५७६ असइ (असकृत् ) द० १०।१३ असंखेज्जसमयदिईय (असंख्येयसमयस्थितिक) अ० असई (असकृत्) उ० ५।३; ६।३०; १६।४५ २००,२२३,२२४,४१४ असंकिलिङ्क (असंक्लिष्ट) ० ० २१६. उ० ३६॥ असंखेज्जासंखेज्जय (असंख्येयासंख्येयक) अ० २६० ५७६,५७६,५६२ से ५६६ असंकिलिटायार (असंक्लिष्टाचार) व० ३।३,५,७ असंगया (असङ्गता) उ० २०१६ असंख (असंख्य) उ० ३४।४६,५०. नं०.५४।३ असंगहिय (असंगहीत) दसा० ४।२३ असंखइम (असंख्येयतम) अ० १८५२ असंजम (असंयम) आ० ४।८,६. द० ५।२६,६३; असंखकाल (असंख्यकाल) उ० ३६।१३,८१,८६, ६१५१; चू० १११४. उ० ३११२ १०४,११४,१२३ असंजय (असंयत) द० ७.४७. उ० १७१६; असंखभाग (असंख्य भाग) उ० ३४१३५ से ३७,४१ २०१४३; २६।४४. नं० २३ से ४३,५३; ३६।१६२ असंठवेमाण (असंस्थापयत्) व० ५।१७ असंखय (असंस्कृत) उ० ४,४११. अ० ३२२ असंत (असत्) उ० ८।५१; १४।१८ असंखय (असंख्यक) उ० ४।४८ असंतय (असत्क) अ० ५६६ असंखिज्ज (असंख्येय) उ० ३४१३३ असंथड (असंस्तृत) द० ७।३३. उ० २११२२. व. असंखिज्जइम (असंख्येयतम) उ० ३४१४८ ७।२८ असंखिज्जय (असंख्येयक) नं० २५ असंथड (असंस्कृत) व०६।३२,३४ असंखेज्ज (असंख्येय) उ० ३४।५२. नं० १६,१७, असंथडिय (असंस्तत) क० ५८,६. नि० १०।२७, १८।३,२२,२३,३२,५०,५२,५३. अ० १२३ से २८ १२८,१४० से १४२,१४५,१५६,१६७ से असंथरमाण (असंस्तरत) नि० १०॥३२ १७१,१८७,१६३ से १६५,२०८,२०६,२११, असंदिद्ध (असंदिग्ध) द०७।३. दसा० ४।१०,११. २१२,२२५,३८७,४११,४१७,४२४,४३१, प० ७,३६,४८ ४३८,४४४,४४५,४५७,४५८,४६३,४६७, असंदिद्धभासि (असंदिग्धभाषिन) दसा० ४७ ४७७,४८२,४८७,४६०,४६५,४६६,५०३, असंपग्गहियप्प (असंप्रगृहीतात्मन) दसा० ४१४ ५५६. प० १५,१७९ असंपहिट्ठ (असंप्रहृष्ट) उ० १५॥३,४ Page #1036 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंबद्ध-असावज्ज असंबद्ध (असम्बद्ध) द०८।२४. नं० १७ असंबुद्ध (असंबुद्ध) उ० ११३ असंभंत (असंभ्रान्त) ५० ५।१. उ० २२।३६. १०५,३६,३६,५० असंलप्प (असंलप्य) अ० ५८६ असंलोय (असंलोक) उ० २४११६,१७ अमविभागि (असंविभागिन) द. ६।३६. उ० १२६; १७.११ असंसट्ठ (असंसृष्ट) द० ५।३४,३५. क० २।१४, १५,१७ असंसत्त (असंसक्त) २००२३,८।३२. उ० २।१६; २५।२७ असक्क (अशक्त) नि० १४१७; १८१३६ असच्च (असत्य) उ० १।१४ असच्चमोसा (असत्यमृषा) द०७।३. उ० २४।२०, २२ असच्चवाइ (असत्यवादिन) दसा० ६।२७ असज्जमाण (असजत्) ८० चू० २।१०. उ० १४१६; २६।३१, ३२१५ असज्झाइय (अस्वाध्यायिक) आ० ४१८. व० ७।१७,१६. नि० १६१४,१५ असण (अशन) आ० ६१ से १०. द० ४ सू०१६; ५।४७,४६,५१.५३,५७,५६,६१, ६।४६,५०, १०८,९. उ० २१३; १९६२. दसा० २।३; ३१३; १०॥३१. १० ४८,६६,२६०,२६१,२७६, २७७. क० ११६,४२, ३।१,२१,४।१२,१३, २४,२८%; श६ से ६. व. २०२८ से ३०. नि० २१४८, ३.१ से १२,१४,१५,४।३७,११८; ५।३,३४,३५,७७७,७६,८६,८७,८।१ से ६, ११,१४ से १६; ६।४,५,१०,१२ से १८,२१ से २६; १०।२५ से २८; ११७५ से ८०; १२।१५,१६,२६,३१,३२,४२; १५७६,७८, ७६,८२,८३,८६,८७,६०,६१,६४,९५; १६। १२; १७११८,२८,३४ से ३६,१२५ से १३२, १५१,१८१७ से ३२ असण (असन) उ० ३४१८ असणि (अशनि) उ० २०१२१ असण्णि (असं जिन्) नं० ६२ से ६४. अ० २७५ असण्णिसुय (असंजिश्रुत) नं० ५५,६४ असति (असूति) म० ३७४ असत्त (असक्त) उ० १३।३२ असत्थपरिणय (अशस्त्रपरिणत) १० ॥१२३ असबल (अशबल) उ० २६।१२ असबलायार (अशबलाचार) व० ३।३,५,७ असम (असभ्य) उ० २१।१४ असम्भवयण (असभ्यवचन) २०६।२५ असब्भाव (असभाव) अ० ६०६ प्रसन्भावठवणा (असमावस्थापना) अनं० ३. अ० १०,३१,५४,७८,१०३,५६० असमंजस (असमञ्जस) उ०४।११ असमण (अधमण) आ० ४।३२२ असमणपाओग्ग (अश्रमणप्रायोग्य) नि० ८.१ से ६, ११।१२ असमत्त (असमाप्त) व०४।११,१२,५।११,१२ असमाण (असमान) उ० २।१६ असमारभंत (असमारभमाण) उ० १२।४१ असमाहि (असमाधि) उ० २७॥३,३१३१४ असमादिटाण (असमाशिस्थाना .४ दसा० १११ से ३ असमित (असमित) दसा० ११३ असमिय (असम्यक) प० २७८ असमुपन्नपुव्व (असमुत्पन्नपूर्व) बसा० ५७,७३५ असरण (अशरण) उ०६।१० असरमाण (अस्मरत्) 4. ४११६,१७ अससणिद्ध (असस्निग्ध) व० ६।४० ४१ असस रक्ख (अससरक्ष) व०६।४०, ४१ असाय (असात) उ० ३३१७ असायवेयणिज्ज (असातवेदनीय) अ०२८२ असायावेयणिज्ज (असातवेवनीय) उ० २६।२३ असार (असार) उ० १९।१४,२२, २०१४२ असावज्ज (असावद्य) द.श६२. उ० २४११० Page #1037 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असासत - अहण असासत ( अशाश्वत ) दसा० असासय ( अशाश्वत ) द० १०।२८ से ३२ १०।२१; चू० १।१६. उ० ८|१; १३।२०, २१, १४७, १६ । १२,१३ साहु ( असाधु) द०७ ४८ ६ ५१. उ० १।२८. दसा० ६।३ असाहुया ( असाधुता ) द० ५।१३८ असाहुरूव ( असाधुरूप) उ०२०।४६ अम (असि ) उ० १६।३७,५५. दसा० १० १४. नि० १३।३३ असिग्गह (असिग्रह ) नि० ६ २७ असिणाण ( अस्नान ) द० ६६२ अणा (अस्नानक) दसा० ६।१२ से १८ असिणेह (अस्नेह) उ० ८२ असित्थ (असिक्थ ) प० २४८, २४६ असिद्ध (असिद्ध ) नं० १२४. अ० २७५ असिधारा (असिधारा) अ० ३६८ असिपत्त (असिपत्र ) उ० १६६० असिप्पजीवि ( अशिल्पजीविन् ) उ० १५ १६ असि (असित) उ० १६ । १२ असि (दे० अर्श) नि० ३।३४ से ३६ ४।७२ से ७७, ६।४३ से ४८; ७ ३२ से ३७ ११२६ से ३४; १५।३१ से ३६, ११७ से १२२; १७/३३ से ३८, ८७ से २ असिवा ( अशिवा ) अ० ३२३ असीर (अशीति) अ० ३७४. ५० १०७ असीइम ( अशीतितम) प० १५१ असील ( अशील ) उ० ५।१२; ११।५; २००४६ असुर (अशुचि) द० १०।२१. उ० १६।१२. अ० ३१५।१. दसा० ६०५. व० २।२३ से २६ असुइजातकम्म ( अशुचिजातकर्मन् ) प० ६६ असुभ (अशुभ) उ० २१।६; २४।२६. अ० २८२. दसा० ६।३, ५, ७।३४ असु (अ) उ० १४८ असुय ( अश्रुत) नं० ३८।२. नि० १२।३०; १७।१५२ ४३ असुयनिस्सिय ( अश्रुतनिश्रित) नं० ३७,३८ असुर (असुर) आ० ४।८. उ० १२ २५; ३६।२०६. नं० गा० ३. अ० ३१३।२. दसा० १०।१८, ३३. ५० ७४,८२, १०२, ११२,१२६, १६५ असुरकुमार (असुरकुमार ) अ० २५४,४०५, ४४५ ४४८, ४६६ से ४६८, ४७०, ४६६ असुह (अशुभ) उ० १०।१५; १३२८, ३३।१३ असुह ( असुख) दसा० ६।२।५ १० १५ असूइअ ( असूपिक) द० ५२६८ असेवमाण (असेवमान) उ० १२।४१ असेस (अशेष) दसा० ५।७।१० असोग (अशोक) दसा० ७।२० प० २५,२७,७५, ११३,१२६,१६५ असोगवण ( अशोकवन) अ० ३२४. नि० ३७६ अस्स ( अश्व ) उ० १।१२,३७ २० । १४; २३॥५५, ५७,५८. नं० ३८।६ अस्संजम (असंयम) उ० ३१।१३ अस्सकण्णी ( अश्वकर्णी) उ० ३६/६६ V अस्सस ( आ + श्वस् ) – अस्सासि उ० २०४१ अस्साय ( असात ) उ० १६/४७,४८,७४ अस्साविणी (अभाविणी) उ० २३।७१ अस्सिणी ( अश्विनी) अ० ३४१।३ अस्सिय (आश्रित ) द० ५।११ उ० १३ । १५; १८ ६ २८/६; ३५।२. अ० ३०२/४ अस्सिलेसा ( अश्लेषा ) अ० ३४० | १ अस्सु (अश्रुतपूर्व) उ० २०।१३ अह (अथ) द० ४ सू ११. उ० २।४१. नं० ३३ । १. अ० १६. दसा० ६।९. प० ६६. क० २।२. व० २।२. नि० ६ १२ अह (अहन् ) उ० १४ । १४. नि० १६।२६ अक्खा ( यथाख्यात) उ० १४|५०; २८|३३ अहक्खायचरित ( यथाख्यातचरित्र) उ० २६५६. अ० ५५३ अहण (अधन ) द० १०६ Page #1038 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ अहत-अहिक्खिव अहत (अहत) दसा० १०।२४ अहत्थच्छिण्ण (अहस्तच्छिन्न) नि० १४१६ १८।३८ अहपंडुर (यथापण्डर) दसा० ७।२०.५० ४२ अहम (अधम) उ० ६।५४; १३।१८।। अहमपुरिस (अधमपुरुष) अ० ३६०१२ अहम्म (अधर्म) द० ६।१६. उ० ४।१३; ५।१५; ७।२८,१४।२४; १७।१२, २८१७ से 8; ३६।५ अहम्मलेसा (अधर्मलेश्या) उ० ३४५६ अहम्मसेवि (अधर्मसेविन्) द० चू० १।१३. दसा० है।३५ से ३८,४०,४१; १०१३,५ अहाथाम (यथास्थामन्) दसा० ४।२३ अहापडिरूव (यथाप्रतिरूप) दसा० १०॥३,६ अहापणिहित (यथाप्रणिहित) दसा० ७।३३ अहापरिग्गहिय (यथापरिगहीत) क०३।१४,१५ अहाबायर (यथाबादर) प० १५ अहामग्ग (यथामार्ग) दसा०७।२५,३५. प० २८७. व०६।३५ से ३८,४०,४१; १०३,५ अहाराइणिय (यथारानिक) क०३।१८ से २०. व० ४।२६ से ३२,८१ अहारिय (यथेर्य) दसा० ७।१७ से २० अहारिह (यथाह) दसा० १०॥३४. क० ४।२६. व० ११३३; ६।१०,११; ७।१ से ३ अहालंद (यथालन्द) प०२३१. क० २११,४ से ८; ३।२८ से ३२. व० ४।२० से २३; ७।२७ अहालहुय (यथालघुक) दसा० ६।३ अहालहुसग (यथालघुस्वक) दसा० ६।३. व० ८।२ अहम्माणुय (अधर्मानुग) दसा०६।३ अहम्मिट्ठ (अमिष्ठ) उ०७।४,२८. दसा ६।३ अहम्मिय (अधार्मिक) दसा० ६।३; १०२४ से २८ अहह्य (अहत) दसा० १०।११. १० ४२. नि०६। से ४ अहर (अधर) द० चू० १ सू० १ अहरो? (अधरौष्ठ) ५० २६१ अहव (अथवा) अ० ४६३ अहवा (अथवा) उ० ३०।१३. नं० ८. अ० ४०. प०२५० अहस्सिर (अहसित) उ० १११४ अहाउय (यथायुष्) उ० ३।१६; २६।७३ अहाकप्प (यथाकल्प) दसा० ७।२५,३५. ५० २८७. व० ४।१३,१४,५।१३,१४; 8।३५ से ३५, ४०,४१; १०॥३,५ अहागड (यथाकृत) द० ११४ अहाच्छंद (यथाच्छन्द) उ० २०१५०. नि० ११॥ ८३,८४ अहाच्छंदविहार (यथाच्छन्दविहार) १० ११२७ अहाच्छन्न (यथाच्छन्न) ५०२५३ अहाणुपुव्वी (यथानुपूर्वी) उ० ३२।६. वसा० १०॥ १०,१४ अहातच्च (यथातथ्य) दसा० ५।७।३; ७।२५. व. अहालहुसय (यथालघुस्वक) क० ५।४०. २०१६ से १७; ८।१३,१४ अहावच्च (यथापत्य) ५० १८८,१८६,१६१ से १६३,१६६,२०३,२०७,२१४,२१७ अहाविधि (यथाविधि) दसा० ४।२० अहाविहि (यथाविधि) दसा० ७।२१,२८,३१,३३ अहासंथड (यथासंस्तत) दसा० ७१३ से १५ अहासन्निहिय (यथासन्निहित) ५० २७७ अहासुत्त (यथासूत्र) दसा० ७।२५,२८,३१,३५. प० २८७. व० ६।३५ से ३८,४०,४१,१०।३, अहासुहुम (यथासूक्ष्म) प० १५ अहि (अहि) उ० १६।३८; ३४।१६; ३६।१८१. अ० ३५१ अहिंसया (अहिंस्रता) उ० ३१८ अहिंसा (अहिंसा) द० १।१; ६।८. उ० २१।१२ Vअहिक्खिव (अधि+क्षिप्)-अहिक्खिवई उ० १११११ Page #1039 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिगच्छ-अहो । अहिगच्छ (अभि+गम्) ---अहिंगच्छंति उ० २३॥३५ अहिगम (अभिगम) उ० २६।६०. दसा० ६।२।१५ अहिगमण (अधिगमन) अ० ७१४ अहिगय (अधिगत) उ० २८।१७. अ० ७१४. प० ४७ अहिगरण (अधिकरण) द०८।५०.५० २८२. क० ११३४; ४।२६; ५।५. नि० ४।२४,२५ अहिगरणिया (आधिकरणिकी) आ० ४।८ अहिगरणी (अधिकरणी) अ० ४०८ अहिगार (अधिकार) उ० १४।१७. अनं० ८. अ० ५५५ अहिज्ज (अधोत्य) उ०१२।१५; १४।६ अहिज्ज (अधि+६)-अहिज्जइ व० ३।१०. -अहिज्जिस्सामि व० ३१० अहिज्जंत (अधीयान) उ० २८।२१ अहिज्जग (अभिज्ञ) द० ८।४६ अहिज्जिउं (अध्येतम) द० ४. सू० १ अहिज्जित्ता (अधोत्य) द. ६।४।३. उ०१।१० अहिज्जिय (अधीत) व० ३।१० अहिट्टग (अधिष्ठक) २०६।५४,६२ । अहिट्ठा (अधि+ठा) .-अहिट्ठए द० ८।६१. -अहिट्ठिज्जासि द० चू० १११८. -अहिछेज्जा द०६।४।६. उ० १११३२ --अहिछेज्जासि उ० ३४॥६१.-अहिछेति नि० ५।२३ अहिद्वित्तए (अधिष्ठातुम् ) क० ३।३.१०८७ अहिट्ठिय (अधिष्ठित) उ० ६।४ अहिद्वैत (अधितिष्ठत्) नि० ५।२३,७६; १२।६।। अहित (अहित) दसा० ६।३ अहितत्त (अभितप्त) उ० २६ अहिनकुलम् ( ) अ० ३५१ अहिय (अहित) द०६।४. उ०१४।१०; २२।१० ३१।१६; ३२।५; ३४।३४,३८,३६,५२,५४; ३६।१८५,१६२,२१६,२२१,२२३,२२५. दसा० ७१३४ अहिय (अधिक) आ० २७; ५।४।७. द० चू० २।१०. अ० ३६०।३. दसा० ६।२११४; १०॥ ११,२८,४२. ५० ७६,१५१ से १५६,१८१ अहियगामिणी (अहितगामिनी) द० ८।४७ अहियपुरिस (अधिकपुरुष) अ० ३६०२ अहियास (अधि +आस्)-अहियासए द० ५।१०६. उ० २।२३. दसा० ७।२५. -अह्यिासे द० ८।२७.-अहियासेज्जा व. १०।२.-अहियासेति दसा० ७।४. प० ७७ Vअहियास (अधि+सह.) -अहियासएज्जा उ० २१११८ अहिलाण (अभिलान) दसा० १०।१४ अहिवइ (अधिपति) उ०११।१६,२२२३ अहीण (अहीन) उ०१०।१७,१८. ५०६,३८,४७. नि० २०११६ से ५१ अहीणक्खर (अहीनाक्षर) अनं० ६. अ० १३,३४, ५७,८१,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३, ७०० अहीय (अधीत) उ० १४।१२ अहीरिया (अहीकता) उ० ३४।२३ अहीलणिज्ज (अहीलनीय) उ० १२।२३ अहुणाधोय (अधुनाधौत) द० ५।७५. नि० १७। १३३ अहुणोवलित्त (अधुनोपलिप्त) द० ५।२१ अहुणोववन्न (अधुनोपपन्न) उ० ५।२७ अहे (अधस्) द० ६।३३. उ० ६।५४. नं० २५ प०८१. क० २।११ अहेउ (अहेतु) उ० १८।५१,५३. नं० १२४. अ० अहेपाय (अधस्पाद) क० ६।३,५ अहेरयणिमुक्कमउड (अधोरनिमुक्तमुकुट) क० ४।३३ अहेलोय (अधोलोक) अ० ५५६ अहेसवणमाया (अधःश्रमणमात्रा) क० ४।३१ अहो (अहो) द० ५।६२. उ० ६।५६. अनं० ८. Page #1040 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहो-आउ अ० १६. दसा० १०१२३ आइक्खित्तए (आख्यातुम्) क० ३।२३ अहो (अहन्) उ० १४।१४ आइगर (आविकर) आ० ६।११. दसा० १०।५. अहो (अधस्) उ० १६।४६ प०१० अहोकाय (अध:काय) आ० ३।१ आइच्च (आदित्य) आ० २७; ५१४७. द. अहोगामि (अधःगामिन) नि० १८।११ ८।२८. उ०२६।८; ३४१७. अ० ५४० अहोनिस (अहर्निश) अ० २८२ आइट्ट (आदिष्ट) अ० ५८६ अहोरत्त (अहोरात्र) उ० ३६।११३,१४१. अ० आइट्ठ (आविष्ट) दसा० ६।२।१७; १०११० २१६,४१५।१,४१७ आइणग (आजिनक) प० २० अहोरातिदिय (अहोरात्रिदिव) दसा० ७।३ अहोरातिया (अहोरात्रिकी) दसा० ७।३१ आइण्ण (आकीर्ण) द० २।६. उ० १।१२; अहो राय (अहोरात्र) उ०१८।३१ १११६, १७, १६।११; १९५२; २०१३; अहोलोय (अधोलोक) अ० १७७,१७८,१८० २७।१. नं० गा० १४. दसा० १०।१४ आइद्ध (आविद्ध) द० २६ आ आइन्नअ (आकीर्णक) द० २।१४ आ (तावत्) द० चू० १६ आइमिउ (आदिमृदु) अ० ३०७६३ आ (आ) अ० २६४।२ आइय (आदिक) आ० ५॥३. उ०२५११७; ३०॥ आइ (आदि) आ० ४।८, ६. द०६।४६, ७७. २७, ३३; ३२।१०६. नं०७६, १२१. अ० नं० ३८।१३, ५३, ७६, १२०. अनं० २६ से १६, २०, २६, ७२, ५५६. दसा० १०॥१६. २८. दसा० १०।११ प० २४, ४२, ५२, १२७, १६३, १६५ /आइ (आ+पा)- आइए उ०१०।२६ आइयत्तए (आपातुम्) क० १३६ Vआइ (आ+दा)-आइए उ०२४।१४. आइयव्व (आदातव्य) क० ४।२६ -आइयइ नि० २।४३.---आइयइ क०४।२६ आइल्ल (आदिम) नं० ११८।३, १२२ आइ (आदि) उ०१६।२७, ५१, ६६, ६७; आईण (आजिण) नि० ७।१० से १२; १७।१२ २४।१८, २६।४, ३०।१५, १८, २६, ३१; से १४ ३१।१७; ३६।१६, ११०, ११६, १३०, आईणपावरण (आजिणप्रावरण) नि० ७.१० से १३६, १४६, १८०, १८१, २१६. अ० ४१, ४२ ४५, ४६, ६१ से १४,६८,९६, ३९२, आईय (आदिक) नं० ६०११. अनं० १७. अ० ३६८।१,४०५ १९५२ आई (दे०) व० १।२६ से ३०; ४।११ से १७; आईयव्व (आदातव्य, आपातव्य) २०६।४०, ४१ ५।११ से १४, १६, २०; ६४, ५, ७।२२ आउ (दे० अप्) द०४ सू० ५. उ०३६।६६,८४, आइक्ख (आ-+-ख्या)-आइक्ख उ० १२।४५. ८८ से १०. अ० ३४२१२, ४५१. नि०१७॥ -आइक्खइ द०६।३; दसा० १०॥३५. ५० १२६ २८८. -आइक्खे द०८।५०. –आइक्खेज्ज आउ (आयुष्) ० ८।३४. उ०७।१०, १२, १३, व० ८।१४. –आइक्खेज्जा वसा० १०।२४ २४, २७; १०१३; १४१७; १८।२६; आइक्खग (आख्यायक) अ० ८८. प० ६२ ३४१२; ३६।१०२. नं० १२०. अ० २८२. Page #1041 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आउंटण-आगमओ ४७ वसा० १०।१८, ३३ आउंटण (आकुञ्चन) आ० ४१५; ६।४ आउकम्म (आयुःकर्मन्) उ० ३२१२, १२, २२ आउकाइय (अपकायिक) द० ४ सू० ३. अ० २५४, २७५, ४४५, ४७५ आउकाय (अप्काय') आ० ४१८. द० ६।२६ से आउक्काय (अपकाय)उ० १०।६; २६।३०. नि० १२।६; १४॥३२; १८।६४ आउक्खय (आयुःक्षय) उ० ३।१६; ३२।१०६. दसा० ८।२; १०।२४ से ३२ आउज्ज (आतोद्य) अ०६५६, ६६०,६८२,६८६ vआउट्ट (आ+ वृत्)-आउट्टति नि०७।८० आउटैत (आवर्तमान) नि० ७८० आउट्टिलए (आवतितुम्) ५० २७४ आउट्टिया (आकुट्टिका) वसा० २।३ आउट्ठिइ (आयुःस्थिति) उ० ३६।८०, ८८, ११३, १२२, १३२, १३३, १४१, १५१, १६७, १७५, १८४, १६१, २००, २४५ Vाउड (आ-कुट्ट)-आउडेज्जा ५० १०२ आउत्त (आयुक्त) उ० १९२६ आउत्तया (आयुक्तता) उ० २०१४० आउय (आयुष्क) उ० ४।६; ७।४, ७, २४; २६।२३, ४२,७३. नं० २३. अ० ४३२, ५६६. वसा० ५७१६. ५० १०६, १२४, १३८, १८० आउर (आतुर) उ०२।५; १५८; ३२।२४, ३७, ५०, ६३, ७६, ८६. क० ४।२८ आउरपच्चक्खाण (आतुरप्रत्याख्यान) नं. ७७. जोनं०८ आउरस्सरण (आतुरस्मरण) ३० ३।६ आउल (आकुल) आ० ४।५. नं० गा० १६. अ० ७३।१. दसा० ६।२।२६; १०।११ आउलग (आकुलक) २०४।२६ आउस (आयुष्मत्) द० ४ सू० १, ६।४ सू० १. उ० २ सू० १; १६ सू० १; १७।२; २६।१. अ० ४१६. वसा० १११; २।१; ३३१; ४११; ५।१, ७, ६।१, १८; ७११, १०।२४ से ३३. प० २३८. नि०६।४ आउसंत (आयुष्मत्) नि० ६।५ आएस (आदेश) उ० ७.१ से ४, ६; ३६६. नं० ५४. व. ६।१ से ४ आएसण (आवेशन) दसा० १०१३ आओडेत्तु (आकुट्टित) दसा०६।३ v आकसाव (आ+कृष्)- आकसावेति नि० १८।१३ आकार (आकार) प० ३८. नि० ७।६२ आकारंत (आकारान्त) अ० २६४१४, ५ आकुंचणपट्टग (आकुञ्चनपट्टक) क० ५।२४, २५ आख्यातिकं ( ) अ० २७० आगइ (आगति) द० ४ सू० ६. ५० ८२ आगंतार (आगन्त्रागार) नि० ३।१ से १२; । ७७८, ७६; ८।१; १५६७ आगंतुं (आगन्तुम) उ० २५२० /आगच्छ (आ+गम्)-आगच्छइ उ० १२॥६. ५० ६२.५०६।४०. .-आगच्छऊ उ० २२१८. -आगच्छंति नं० ५२. -आगच्छेज्जा अ० ३६८. दसा० ७.१६. क० ३।२८ आगत (आगत) अ० २६६, ५२०११. दसा० ६।२।१६ आगति (आगति) बसा० १०॥३३ आगम (आगम) द०६।१; ७।११. उ० ३०१५; ३६।२६२. नं० १२७।२. अ०५१११,२४७।१, २६५, २६६, ५१५, ५४७ से ५५१. क० ५।४०. ० १०६ आगमओ (आगमतस्) अनं०६. अ० १२ से १४, २२, २३, ३३ से ३५,४६, ४७,५६ से ५८, ७०, ७१, ८० से ५२, ६५, ६६, १०५ Page #1042 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ से १०७, ५६२ मे ५६४. ६२२ से ६२४. ६२, ६३०, ६३४ से ६३६, ६४१, ६४२, ६४६ से ६४५, ६६५, ६६६, ६७२ से ६७४, ६६१, ६६२, ६६६ से ७०१, ७०६ ७०७ आगमण ( आगमन) आ० ४१४. द० ५८६. दसा० ६।१८. क० १।३७. नि० ११।७२ आगमणमह (आगमनगृह) ०२११ १२ आगमण (आगमनपथ) नि० ४।२३ आगतो (आगमतस् ) अनं० ५ से ७ आगमबलिय ( आगमबलिक) व० १०१६ आगमिस्स (आगमिष्यत्) उ० २९।२४. दसा० १०/२३ आगमेसिभट् ( आगमिष्यत्म) प० १०४, १७८ आगमेस्स ( आगमिष्यत्) दसा० ६१६, ७, १०।२२ ३० आगम्म ( आगम्य ) ० ५१६६.३० १२२. दसा० ७।२१ आगय (आगत) द० उ० ५२६७१E १४, १५, १०1३४; १२७, ६; १४/४५ १८५, २६, २१२, ५, १०, २३३, १५, १६ २६४४६ २७।१५. ० ३१७१२. १० २४, ३१, ६६. व० ७।१ से ३ आगर ( आकर ) उ० १६ ५, ४६; ८३. २०३२३, ५५६. बसा० ५१. ० १६. नि० १२ २० आगरपह (आकरपथ) नि० १२ २३ १७।१४५ आगरमह (आकर मह) नि० १४; १२०२१ १७।१४३ आगरवह (आकर वध ) नि० १२ २२; १७।१४४ आगरिस ( आकर्ष) अ० ७१३।२ / आगस ( आ + कृष्) आगाढ ( आगाढ) क० आगसेज्जा दसा० ७ १७ ५०३७ से ३२. ब० ३।२३ से २६. नि० १० १, ३, १३१३, १५; १५।१, ३ आगार ( आगार ) आ० ५।३. अ० ३०७/१ से ३ आगार (आकार) उ० १२ ३०।१६. नं० १०११८. १० १७११४२ ----- आगमण आढगसत आगास (आकाश) उ० १४८, ६० १२।३६ १९/३६ २८७८ ३६२,६ से ८. नं० २१, ७०. अ० ४३६,४३८, ४३१, ५५६, ५५७, ६४० आगासत्यिकाय (आकाशास्तिकाय) अ० १४८, १४९ २५४,२५६,२८८, ३२५, ३४८, ४४३ आगाप ( आकाशपद ) नं० ६४ से १०० आगाहइत्ता (आगाह्य) ० ५१२१ आगिड (आकृति) नं० ५७ / आस (आ+ घृष्) - आपसेज्ज नि० ३।४७ आघसाव (आ+घर्षय्) आघसावेज्ज नि० १५।४४ आसावंत (आघर्षयत् ) नि० १५.४४ १७।४६ १०० आमेत (आधर्यत्) नि० ३।४७ ४१६२ ६५६ ७४५; ११ ४२ १४१४, १५, १८, १९, १५ १३०; १८१४६, ४७, ५०, ५१ 1 आघव ( आ + ख्या) - आघविज्जइ नं० ८१. अ० ६०६. -- आघविज्जंति नं० ६६ आघविय ( आख्यात) उ० २६/७४ अनं० ८. अ०] १६,३७,६०,८४,१०१,५६६, ६२६,६३८ ६५०, ६७६,७०३ आघाय (आघात) २० ६२३४ आपाया (आघातयत्) उ० ५।३२ V आचिट्ठ ( आ + स्था ) - आचिट्ठामो वसा० १०।२४ आदितु (आत्) दसा० ३।३ आजीवयपिड ( आजीविकापिण्ड) नि० १३/६४ आजीववित्तिया ( आजीववृत्तिता) द० ३।६ आजीविय ( आजीविक ) नं० १०१.१०३ आडंबर (आडम्बर) अ० २०१२ V आडह ( आ + दह ) - आडहइ दसा० १० ११० आहिता (आवा) बसा० १०।१० आडोव (आटोप) प० २३ आढग ( आढक ) अ० ३७४ आढगत ( आढकशत) अ० ३७४ Page #1043 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आढा-आद्दज्ज ४६ ४२ Vआढा (आ+द)-आढाएज्जा क० ११३४ १६२,१६५,१६६,१६६,२००,२०२,२०४,२०५, आणंदिय (आनन्दित) दसा० १०॥४,६,७,१०,११, २०७ से २०६,२११ से २१३,२१५ से २१८, १२. ५० ५ से ७,१०,१५,३६,३८,३६,४१, २२२,२२५,२२६,२२६,२३०,२३३,२३४, ४४,४७,४८,६३ २३७,२३८,२४१,२४२,२४५ आणण (आनन) वसा० १०।११,१२,१५.५० २४, आणुलोमिआ (आनुलोमिका) द० ७।५६ आत (आत्मन) सा० ४।१२,१०॥३२ आणत (आनत) दसा० १०१६ आतव (आतप) उ० २८।१२. दसा० १०१२४ से आणत्तिय (आज्ञप्तिक) वसा० १०७,६. प० १४, १५,४०,४१,६२,६३ आतसोधि (आत्मशोधि) दसा० ५।७।१७ आणय (आनत) उ० ३६।२११,२३० आतिय (आ+वा)-आतियति नि० १६२५ आणयण (आनयन) अ० ६३११ आतियंत (आववत) नि० १६०२५ आणयय (आनतज) अ० २५४ आदत्त (आदत्त) अनं०६ Vआणव (आ+ज्ञापय)-आणवेइ २० चू० आदत्तय (आवत्तक) अ१७,३८,६१,८५,११०, २।११.५० १५ -आणवेति वसा० १०॥३ ५६७,६२७,६३६,६५१,६७७,७०४ आणवेमाण (आज्ञापयत्) सा० १०॥२४ आदर (आवर) बसा० १०॥१७. प०७५ आणा (आज्ञा) ८०१०११. उ० ११२,३, २०। Vादा (आ+दा)-अद्दाय उ०१८।५० १४; २८।२०२६।१,११.नं. १२५. अ० आदाउं (आदातुम् ) उ० १४१३८ ५१४१. दसा० ७।२५,२८,३१,३५; १०१४, आदाण (आदान) उ०२४१२. वसा० ७।२१ १८.५०६,१५,४१,६३,२०७. २०४।१८; आदाय (आदाय) उ० २।१७. दसा० ५।७।१७. ६।३५ से ३८,४०,४१; १०।३,५,६ प०७५ आदि (आदि) उ०२३।४३. नं०६७. अ० ४६, आणापाण (आनप्राण, आनापान) उ० २६७३ ३७६,३८५,५२५,५४८. दसा०६७,७१६. आणापाणु (आनप्राण) अ० २१६,६१६ नि० २०११६ से ५१ आणारुइ (आज्ञारुचि) उ० २८।१६,२० आदिकर (आदिकर) अनं २८।१. वसा० १०॥३, Vाणी (आ+णी) -आणेइ उ० २११७ आणुओगि (आनुयोगिन्) नं० गा० ४३ आदिगर (आदिकर) दसा० १०।११.५० १० आणुओगिय (आनुयोगिक) नं० गा० ३२ आदिज्जवयण (आदेयवचन) वसा० ४१७ आणगामिय (आनुगामिक) नं० ६,१०,१६ आदिय (आविक) अ० ५५२ आणुगामियत्त (आनुगामिकत्व) दसा० १०।११ /आदिय (आ+दा) -आदियति नि० २।२० आणुपुग्वि (आनुपूर्वी) नं० गा० ३६. दसा० १०।१४ आदियंत (आवदत्) नि० २०२० आणुपुव्वी (आनुपूर्वी) व० ८।१. उ० १।१२।१; आदीय (आदिफ) अनं० १३ ३१७,११११; ३३।१,३४।१. अ० १०० से आदेस (आदेश) नि० १०११३ १०३,१०५ से १११,११४,११५,११७,११६, आदेसओ (आदेशतस्) उ०३६८३,६१,१०५, १२०,१२२ से १३२,१३४,१३६,१३७,१३६ ११६,१२५,१३५,१४४,१५४,१६६,१७८, से १४७, १५१,१५४,१५५,१५८,१५६,१६१, १८७,१९४,२०३,२४७ १६३,१६४,१६६ से १७६,१८०,१८४,१५८, आद्देज्ज (आवेय) ५० २४ Page #1044 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० आधम्मिय ( आधामिक) दसा० ६।२।३१ आधार (आधार) अ० ३०८/६ / आनम ( आ + नम्) - आनमंति उ०६।३२ आपडिपुच्छमाण (आप्रतिपृच्छत् ) दसा० १०।१६ आपणविहि (आपणवीथि) १० ६२ आपुच्छ ( आपृच्छ्य) उ० २१।१० आपुच्छणा (आप्रच्छना) उ०२६ २, ५. अ० २३६।१ आपुच्छिउं (आप्रष्टुम् ) प० २७१ आपुच्छित्ता ( आपृच्छ्य) क० ४।१६. व० ११६ आपुच्छिताण (आपृच्छ्य ) उ० २० ३४ आपुच्छि ( आपृच्छ्य) व०८।१६ आपूर ( आपूर) प० २६. आबाह (आबाध) व० ५।१५, १६ V बाह (आ+बाध्) -आबाहंसि दसा० १०।३१ आभट्ट (आभाषित) दसा० ६।१७ आभरण (आमरण) उ० १३ १६; २२ ६, १०. अ० १८५/२, ३. बसा० १०३, ११, १२, २५. प० ४२,४४,११३, १२६. नि० ७।१० से १२; १७।१२ से १४ आभरणविचित्त (आभरणविचित्र) नि० ७।१० से १२; १७।१२ से १४ आभा (आमा) दसा० ६।५ आभिओग ( आभियोग्य) द० ६।२२,२७ ३० ३६/२५६ आभिणिबोहिय ( आभिनिबोधिक) उ० ३३।४. नं० ३५, ५४।६ आभिणिबोहियनाण (आभिनिबोधिकज्ञान) नं० ३४,३५,३७,५१,५४. जोनं० १. अ० १ आभिणिबोहियनाणलद्धि (आभिनिबोधिकज्ञान लब्धि) अ० २८५ आभिणिबोहियनाणावरण (आभिनिबोधिकज्ञाना वरण) अ० २८२ आभिणिबोहियाणि (आभिनिबोधिकज्ञानिन् ) आधम्मिय - आमिस नं० ५४ अभिबोहिय ( आभिनियोधिक) ३०२८१४ अभिप्पाय ( अभिप्रायिक) अ० ३४०।१,३४७ आभीरी (आभीरी) नं० गा० ४४ आभो ( आ + भोजय् ) - आभोएइ प० ७४ आभोएत्ता (आभोग्य) १०७४ आभोएताण (आभोग्य) व० ५।६६ आभोएमाण (आभोजयत् ) प० ९ आभोगणया (आभोगनता) नं० ४५ आम (आम) द०५/७०, १२३. क० १११,२ आमंड (दे० आमलक) नं० ३८।१३ / आमंत ( आ + मन्त्रय) आमंतयामो उ० १४७ आमंतणी (आमन्त्रणी ) अ० ३०८।१ आमंतिय ( आमन्त्रित ) उ० १३।३३ आमंतिय ( आमन्त्र्य ) व० ८।१६ आमंतेत्ता ( आमन्त्र्य) वसा० ५।७. ५० ६६ आमग (आमक) द० ३।७, ८, ५३७०, ११६,१२१, १२२,१२४; ८।१० आमज्ज ( आ + मज्) - आमज्जेज्ज नि० ३। १६ आमज्जेत (आमृजत्, आमार्जत्) नि० ३।१६,२२, २८,५०,५६; ४ ५४, ६०, ६६, ८८, ६७, ६।२५, ३१,३७,५६,६८, ७११४, २०, २६, ४८, ५७; ११। ११,१७,२३,४५,५४; १५/६६, १०५, १११, १३३,१४२ // आमज्जाव ( आ + मार्जय् ) नि० १५।१३ आमज्जावेत (आमार्जयत् ) नि० १५ १३, १६, २५, ४७,५६; १७।१५,२१, २७, ४९, ५८,६६, ७५, ८१,१०३,११२ आमय ( आमय) उ० ३२।११० आमलग ( आमलक) अ० ४३६, ५८६ आमलय ( आमलक) अ० ५८६ आमिया (आमिका ) ६० ५।१२० आमिस (आमिष ) उ० ८१५; १४ । ४६; ३२/६३ - अमज्जावेज्ज Page #1045 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमुस-आयवत्त ५१ आयमंत (आचमत्) नि० ४१११४ से ११७ आयमित्तए (आचमितुम्) क० ५।३६ आयय (आयत) द० ६।४।५. उ० ३६।२१,४६, ५८. अ० ५१३ vआयय (आ+वद्) - आययई उ० ३२।२६ आययगंतपच्चागया (आयतगत्वाप्रत्यागता) उ० ३०११६ आययट्टि (आयतार्थिन) द०५।१३४. उ० २६॥ आमुस (आ-+-मश्) – आमुसेज्जा द० ४ सू० १६ आमुसंत (आमृशत्) द० ४ सू० १६ 1 आमुसाव (आ+मर्शय) -आमुसावेज्जा द० ४ सू० १६ आमोयमाण (आमोदमान) उ. १४१४४ आमोस (आमर्ष) आ० ४।५. उ०६।२८ आय (आय) द० चू० १११८. अ० ३८३,६१६, ६४४,६४६ से ६५२,६५४ से ६५६,६५८ से ६६०,६६२ से ६६६ आय (आज) नि० ७.१० मे १२; १७।१२ से १४ आय (आत्मन्) उ०२।१५८.१६; १३।१०।१४। १०,१५॥२. नं० ८१ से ११,१२३. अ० ६१३ मे ६१७. दसा० ५७. क. ३११४,१५ आयइ (आयति) द० चू० ११ आयंक (आतङ्क) द० चू० १ सू० १. उ० ५।११, १०।२७; १६ सू० ३ से १२, १९७८,२१। १८,२६।३४. दसा० ७।३४. क० ५।३६ से ३६. व० २।१६,१७ आयंगुल (आत्मांगुल) अ० ३८६,३६०,३६२,३६४ आयंत (आचान्त) ५० ६६ आयंबिल (आचाम्ल) आ० ६६ आयंसग (आदर्शक) अ० ६२ आयगवेसय (आत्मगवेषक) उ० १५१५ आयगुत्त (आत्मगुप्त) उ० १५॥३; २१।१६ आयजोगि (आत्मयोगिन्) दसा० ५।७ आयट्ठि (आत्मार्थिन् ) दसा० ५७ आयत (आयत) अ० २६२ आयतण (आयतन) दसा० १०॥३. ५० २६१ आयपरक्कम (आत्मपराक्रम) दसा० ५७ आयप्पमाण (आत्मप्रमाण) ५० ३१ आयप्पवाय (आत्मप्रवाद) नं० १०४,१११ आयभाव (आत्मभाव) अ० ५५२,५५६,६१३ से आययट्ठिय (आयताथिक) द० ६।४।२ आययण (आयतन) द० ६।१५. उ० ३२१६ आयर (आ चर) -आयरंति द०६।१५; -आयरे उ० २४१२७ आयरंत (आचरत्) उ० ११४२, ३५११ आयरक्ख (आत्मरक्ष) प०६ आयरेमाण (आचरत्) दसा० ६२ आयरिय (आचार्य) आ० १११,४१८. द० ॥ १४०,१४५; ८।३३,६०, ६।४,५,१०,११,१४, १६,१७,२६,३३,४१. उ० ११२०,४०,४१, ४३, ८।१३; १६ सू० ३ से १२,१७१४,५, १७; १८।२२, २०१२२; २७।११।३०।३३. नं० गा० ३५,३६; सू० ३५. अनं० १६ से १८,२० से २२,२७, २८. अ० ६४३।१. दसा० ४।१४; ६।२।२४. ५० २३०,२३६, २७१,२७३ ३ २७५. क० ११३८,३६; ३।१३; ४।१६ से २४,२६,२७. व. ११२५,३३; ३१५, ६,६ से १२,१६,१७,२१,२२,२५,२८,२६; ४१ १,२,५,६,९,१०,१३ से १७,२८,३१,३२, ६। २; ७१५; १०११५,१६,४०,४१. नि०४।२०; १६॥३६; १६।२५ आयरिय (आचरित) उ० ११४२; ६।८ आयरियत्त (आचार्यत्व) व० ३।१३ से २६; ४।१७; ५११६,१७, ७।२१. नि० १७११३४ आयव (आतप) उ० २।३५ आयवत्त (आतपत्र) दसा० १०।१४ Vायम (आ+चम)-आयमति नि० ४।११४ Page #1046 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ आयविभत्ति (आत्मविभक्ति) जोनं० ५ आयविसोहि (आत्मविशोधि) नं० ७७. जोनं० आयहित (आत्महित) दसा० २७ आयहिय ( आत्महित) उ० २११२१ \ आया (आ+दा) - आयए दस० ५।१३१. आयए उ० ६४७. आययन्ति ३० ३।७ आया (आत्मन् ) दसा० ४।१८, २२, ५/७/७ आयाइ ( आ + जन्) - आयाइति प० ११. आयाइगु प० ११. आयाइति प० ११ - आयाए ( आदाय ) क० ३।१४. नि० २।५३ आयाण (आदान) द० ५।२६. उ० ६ ७ १३।२०. प० २७८ आयाणनियमेव (आदाननिक्षेप) उ० १२२: २०/४० आयाणपय ( आदानपद) अ० ३१६,३२२ आयाणमंडमत्तनिवसेवणासमिइ (आदानभाण्डाऽमत्र निक्षेपनासमिति) आ० ४८ आयाणमंडमननिवेवणासमिय (आदानभाण्डाऽमत्रनिक्षेपनासमित) दसा० ५ ७ १०३२. प० ७८ आयातिट्ठाण ( आजातिस्थान) दसा० १०|३५ आयाम (आयाम) उ०३६२५३ से २५५. अ० ४१०,४२२,४२४,४२९, ४३१, ४३६, ४३५, ५८६. नि० १७।१३३ आयाम (आयम्) आयामेद दसा० ३।३ आयामग ( आचामक) उ० १५ १३ आयामय ( आचामक ) प० २४७ आयाय (आयात) उ० ३।११ आयाय (आदाय ) द० ५८८.५० ११३ आयार ( आचार) आ० ४।६. दस० ६।५०,६०; ६०४२ २०४१ ० ७ ० २४, ३० ११।१; २०५२, २३।११; २६ । १७. नं० ६५, ८०, ८१. अनं० २८. जोनं० १० अ० ५०, ५४६. ० ३।३ से ८ आयविभत्ति आरंभ आयारगुत्त ( आचारगुप्त ) दसा० ६ |२| ३७ आवारगीयर ( आचारगोचर ) ६० ६१२,४. दसा० ४।२३ आयारधर ( आचारधर) अ० २८५ आयारपकप्प ( आचारप्रकल्प ) आ० ४।८. व० ३।१०: ५। १५ से १८ १०।२३ से २५ आयारपकप्पधर ( आचारप्रकल्पधर ) व० ३।३: ६/४, ५ आयारपणिहि ( आचारप्रणिधि) द० ८८१ आयारपणत्ति ( आचारप्रज्ञप्ति) द० ८।४६ आयारभंड ( आचारभाण्ड ) दसा० ६।१८ आयारभाव ( आचारभाव ) द० ७|१३ आयारभावतेण ( आचारभावस्तेन) द० ५।१४६ आधारमंत (आचारवत्) ४० ६३ आयारव ( आचारवत् ) इसा० १।२।३६ आधारविणय ( आचारविनय) वसा० ४११४, १५ आयारसंपदा ( आचारसंपदा) दसा० ४१३,४ आयारसमाहि (आचारसमाधि) ४० २०४, ० ३,७ 1 आयाव ( आ + तापय्) -आयावयंति द० ३।१२. आपावयाही ० २२५ - आयावेज्ज नि० १४।२०. आया वेज्जा द० ४ सू० १९ आवावण (आतापन) १०८१ आयावणा (आतापना) क० ५।१६, २० आयाययंत (आतापयत्) ४० ४ सू० १९ आयावयg (अयावदर्थ) द० ५।१०२ आयात्तिए ( आतापयितुम् ) प० २७७. क० -- ५।१६,२० आयाविय ( आतापित) प० २०८ आवावेत (आतापयत्) नि० १४:२० से ३० १८५२ से ६२ आयामाण (आतापयत्) प० १ आग्राहिण (आदक्षिण) दसा० १०१६, १६ आरंभ (आ+रम् ) - आरभे द० ६।३४ 1 आरंभ (आरम्भ ) उ० १३०३३ १४ ४१ १६ २e; Page #1047 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आरक्खिय-आलिंपंत २४१२१,२३,२५,२६।३; ३४।२१,२४. दसा० ६।३,१४ से १८ आरक्खिय (आरक्षित) द० ५।१६ आरण (आरण) उ० ३६।२११,२३२. अ० १८६, २८७ आरण्णग (आरण्यक) उ०१४६ । आरभ (आ+रभ)-आरभे उ०८।१० आरभंत (आरभमाण) अ० ३०७१३ आरणय (आरणज) अ० २५४ आरण्ण य (आरण्यक) नि०१६।१२ आरण्णिय (आरण्यिक) दसा १०।२६ आरबी (आरबी) नि० ६।२६ आरभडा (आरभटा) उ० २६।२६ आरसंत (आरसत्) उ०१६।५३,६८ आरहंत (आहत) द० ६।४। सू०७ आराम (आराम) अ० १९,३६२. दसा० १०॥३,४. प०५१,२५५ से २५८ आरामगिह (आरामगह) सा० ७.१० से १२ आरामागार (आरामागार) नि०३।१ से १२; ७७८,७६; ८।११५१६७ Vआराह (आ राधय्)–आराहए द० ७।५७. उ० १२॥१२.-आराहयइ द० ६।४१. --आराहे इ द० ५।१३६ उ० २६।१५ आराहइत्ता (आराध्य) उ० २६।१ आराहइत्ताण (आराध्य) द० ६।१७ आराहणया (आराधन) उ० २६।१,२५,५१,७२ आराहणा (आराधना) आ० ४।६. उ० २६।१५. अ० २८।१ प०७४,२८३. क० ११३४ आराहय (आराधक) उ० २९२,४६,५१,५४. व० १०१६ आराहित्ता (आराध्य) नं० १२५. प० २८७ आराहिय (आराधित) उ० ८।२० आराहिय (आराध्य) दसा० ७।२५,३५ आरिअत्त (आर्यत्व) उ० १०।१६ आरिय (आर्य) उ० २।३७, ८1८; १८।२५. द० १०१११.क० ११४७ आरियझाण (आर्यध्यान) उ० ३२।१५ आरियत्तण (आर्यत्व) उ० १०।१७ Vआरुभ (आ+रह)-आरुभइ ३०९।४० आरुभमाण (आरोहयत्) क० ६६ Vआरुह (आ+रह)-आरुहइ उ०१७७. -आरुहे द० ५।६७ आरुहेयव्व (आरोहयितव्य) २०१२१५ से १८% २।५. नि० २०११५ से १८ आरूढ (आरूढ) उ० २२।१०; २३१५५,७० आरोग (आरोग्य) ५० ५६,१११,१२८,१६३ आरोग्ग (आरोग्य) आ० २१६; ५।४।६. ५०६, ३८,४७,२३६ आरोवणा (आरोपणा) प० २८१. नि० २०१६ से ५१ आरोहग (आरोहक) दसा० १०।१४ आरोहपरिणाहसंपन्न (आरोहपरिणाहसम्पन्न) दसा० ४।६ आलइय (आलगित) ५०८ आलंबण (आलम्बन) उ० २४१४,५; २६।३४. नि. २०२० आलभिया (आलभिका) १० ८३ आलय (आलय) उ० १६११,११; १९।१४; ३६।२०८. वसा० १०॥३३. ५० ८१ Vआलव (आ+लप)-आलवति दसा० ३।३. --आलवे २०७।१६. उ० १११० -आलवेज्ज द०७।१७ आलवंत (आलपत्) उ००२१ अ० ३२३ आलसिय (आलस्थिक) उ० २७।१० आलस्स (आलस्य) उ०११॥३ Vआलिंग (आ+लिंग)-आलिंगेज्ज नि० ७१८५ आलिंगेत (आलिंगत) नि० ७८५ | आलिंप (आ-+-लिए)-आलिंपेज नि० ३।३७ आलिपंत (आलिम्पत्, आलिम्पमान) नि० ३।३७; Page #1048 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलिंपावेत्ता-आवरिय ४।७५, ६।१६,४६, ७।३५,१११३२,१२।३३ से ४०; १५॥३४.१२०; १७।३६,६० आलिंपावेत्ता (आलेप्य) नि०१५।३५ आलिंपित्तए (आलेपयितुम्) क० ५।३८ आलिपित्ता (आलिप्य) नि. ३३८ आलिंपेत्ता (आलिप्य) नि० ६।१७ आलिसंदग (आलिसंदक) दसा० ६।३ आलिह (आ+लिख)-आलिहेज्जा द० ४ सु०१० आलिहंत (आलिखत्) द०४ सू० १८ आलिहाव (आ-!-लेखय)-आलिहावेज्जा द० ४ सू० १८ आलीण (आलीन) दसा० ६।३. प०७३ आलुय (आलुक) उ० ३६।६६ आलेवणजाय (आलेपनजात) क० ५।३८. नि० ३१३७ से ३६; ४७५ से ७७, ६।१६,४६ से ४८,७।३५ से ३७; ११।३२ से ३४; १२।३७ में ४०: १५३४ से ३६, १२० से १२२; १७।३६ से ३८,६० से १२ आलोइत्तु (आलोकयित) उ०१६ सू०६ आलोइय (आलोचित) आ० ४।६।२. द० ५।६१. दसा० १०।३१. व० १११५ से १८. नि० २०१५ आलोइय (आलोकित) आ० ४।६।२. द०६४१ आलोएत (आलोकमान) नि० ५।१ आलोएत्तए (आलोचयितुम) व० १।३: ; ५।१६ आलोएमाण (आलोचमान) व० १।१ स १८. नि० २०११ से १८ V आलाय (आ+लोच)- आलोए द०५।१०. -आलोएइ दसा० ३।३.-आलाएंति दसा १०॥३४.-आलोएज्ज उ० २६।४० --आलो- एज्जा क० ४१२६. व० १११.-आलोएति दसा० ३।३.-आलोयति दसा० ३।३ आलोय (आ--लोक)--आलोएइ उ०१६।४. -आलोएज्ज नि० ५।१.-आलोएज्जा उ० १६ सू०६ आलोय (आलोक) द० ५।१५,६६. उ० ३।२४. दसा. १०१११, १४. ५० ५५.३२,४२ आलोयण (आलोकन) उ०१६।४।२१।८ आलोयणया (आलोचन) उ० २६११ आलोयणा (आलोचना) उ० २६।६६६।२६२. व० १।३१; ४।२०,२२ आलोयणारिह (आलोचनाह) उ० ३०।३१. व० ५।१६ आलोयावेत्ता (आलोच्य) व०६।११ आवइ (आपद्) उ० ७.१७ आवंती (आवन्ती) अ० ३२२ आवकहिय (यावत्कथिक) अनं० ४. अ० ११, ___३२,५५,७६,१०४,५५३,५६१ आवगा (आपगा) द० ७।३६,३७,३६ आवच्चिज्जा (आपत्यीय) प० १८५ आवज्ज (आ--पद)-आवज्जइद०६५६ क. १३७. व०६।८. नि० ११५६ --आवज्जाई उ० ३२११०३.-आवज्जेज्जा द० ४ सू० २३. अ० ३६८ आवट्ट (आवर्त) उ० ३१५, २५।३० आवट्टणया (आवर्तन) नं० ४७ आवडिय (आपतित) उ० २५।४० आवण (आपण) द० ५।७१. अ० ३६२. ५० ५१, ૬૨ आवणगिह (आपणगृह) क० १११२,१३ आवत्त (आवर्त) दसा० १०॥४. प०.३१ आवत्तायंत (आवृत्त्यमान) प० २३ आवदमाण (आपतत्) दसा० ७।२४ आवन्न (आपन्न) उ० ४।४; ६।१२ आवर (आव)—आवरिज्जा नं०७१ --आवरेइ उ० ३२।१०८ आवरण (आवरण) उ० ३३।६. वसा० १०।१४ आवरणिज्ज (आवरणीय) उ० ३३१२,२०. नं०८ आवरिय (आवृत्त) दसा० ६२,२ Page #1049 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवरिसण -आसम आवरिसण ( आवर्षण) अ० २० आवलियंत ( आवलिकान्त ) नं० १८ | ३ आवलिया ( आवलिका) नं० १८।३. सू० २२. अ० २१६,४१०, ४१५,४१७,४८२, ५६०, ५६२, ५६३,६१६ आवसह ( आवसथ ) उ० १३ १३; ३२।१३ आवसहिय ( आवसथक) दसा० १०।२६ आवस्सग (आवश्यक) जोनं० ५,६ आवस्सगवइरित्त (आवश्यकव्यतिरिक्त) जोनं ० ५,७ आवस्य (आवश्यक) नं० ७४, ७५. अ० ५ से १०, १२ से २८,७४ आवस्यवइरित्त (आवश्यकव्यतिरिक्त) नं० ७४, ७६,७६ आवस्यवतिरित्त (आवश्यक व्यतिरिक्त) अ० ५ आवस्यसुयक्बंध (आवश्यकभुतस्कंध ) अ० ७२ आवसिया (आवश्यकी ) आ० ३।१. उ० २६ २,५. अ० २३६ आकाग (आपाक) नं० ५३ आवाय (आपात ) उ० २४ । १६ आवास (आवास) ड० ५।२६; १६।१२. अ० १८५४ आवि (आविस्) उ० १।१७ आविद (आविद्ध) उ० २२/४४. बसा० १०1३, ११. ० ४२ Vv/ आविय ( आ + पा ) - आवियइ ब० १।२ आविल (आविल) उ० ३२ २६, ४२,५५,६८,८१, ६४. दा० ६२१७ आवीकम्म (आविष्कर्मन्) दसा० १०।३३. प० ८२ v आवील (आ+ पीड्) - आवीलेज्जा द० ४. सू० १६ आवलंत ( आपीडयत् ) द० ४ सू० १६ v आवीलाव ( आ + पीडय्) - आवीलावेज्ज द० ४. सू० १६ आवेउं (आपातुम् ) ब०२।७. उ० २२।४२ आवेढ ( आवेष्ट) दसा० ६ २२५ / आवेढ ( आ + वेष्ट्) - आवेढेति दसा० ६ २५ आवेदिय ( आवेष्टित ) नि० १६।३८ V आस (आस) । —आस द० ७।४७, आसे ६० ४।७ ५५ आस (अश्व) उ० ४ ८ ६ ५; ११।१६; १८।६, ८ अनं० १२,१४,१६,१८. अ० ८६,६२, ३४२।२,५२५,६५४,६५६ ६५८, ६६०, ६८०, ६८२,६८४,६८६. दसा० ६।३; ७१२४; १०।१६,२४ आसइत्तए (आसितुम् ) क० ५।२६ से २६ आसइत्तु (आसितुम्) ब० ६।५४ आसंदी (आसंदी ) द० ३।५; ६ । ५३ से ५५ आसंसा (आशंसा) उ० २६।३६ आसकता ( अश्वक्रान्ता) अ० ३०५।१ आसकरण (अश्वकरण) नि० १२ २४; १७ १४६ आसग (आस्यक) दसा० १० २४ से ३२. व० ६ ४५,४६ आसजुद्ध ( अश्वयुद्ध) नि० १२ २५; १७ । १४७ आसण (आसन) द० ५ १२८; ७ २६; ८१५, १७, ५१; ६।३४,४५ चू० २१८ उ० १।२१,२२, ३०; २१२१; ७ ८; १५ । ४, ११, १६ सू० ३; १७ १३; २६ १,३२,३०।२८,३२,३६; ३२।१२. अनं ० १३,१७. अ० ३९२. वसा० ५।७।३; ६।३. प० ५८. क० ५।२६, २७ आसणया (आसन) उ०२६।३२ ३०१२८,३२,३६; ३२।१२ असत (आसक्त) दसा० १०।२४. १० २६,६२ असत्य ( अश्वत्थ ) प० ५,३७ आसत्थपत्त (अश्वत्थपत्र) नि० १५ १६ आदमग (अश्वदमक) नि० ६ २४ आधर ( अश्वधर) बसा० १०११६ आसन्न (आसन्न ) उ० १ ३४; २४ । १८. बसा० ३।३ आसपास ( अश्वपोषक) नि० ६।२३ आसम (आश्रम) उ० ६।४२. अ० ३२३,५५६ Page #1050 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसमण-आहत दसा० १०।१८.. ५० ५१. क० ११६. ५० ११३३, ४१६,१०. नि० ५।३४ आसमण (आस्रवण) नि० १८१६ आसमपय (आश्रमपद) उ० ३०।१७. १०११३ आसमाण (आसीन) द० ४।३ आसमिठ (दे०) नि०६।२५ आसय (आस्यक) व० ५८५ आसय (आश्रय) उ० ६।२६; २८१६. अ० ५२१, ५२६ 1 आसय (आस)-आसय ५०५८. आसयति दसा०६।२।३२ आसव (आश्रव) द. ३११; १०१५; चू० २।३ उ० १८१५,१६६३; २०१४५; २८११४,१७; २६।१२, १४,५६; ३४।२१ आसव (आस्रव) द० ४६ आसव (आसव) उ० ३४।१४ आसवर (अश्ववर) दसा० १०।२४ आससा (आशंसा) उ० १२११२ आससेण (अश्वसेन) ५० १०६ आसा (आशा) द. ६।४६. उ० १२१७; १९४६१; ३२॥२७,४०,५३,६६,७६,६२. नि०१२८१ आसाइत्ताण (आस्वाद्य) द० ५७७ आसाएमाण (आस्वादयत्) ५० ६६ आसाढ (आषाढ) उ०२६।१३,१५,१६. प० १३८ आसाढा (आषाढा) ५० १६१,१६३,१६५,१६६ आसाढीपाडिवय (आषाढीप्रतिपत्) नि०१६।१२ आसादणा (आशातना) दसा० ३।३ Vासाय (आ-शातय)-आसायए २०६४. -आसाययइद०६।४२ 1 आसाय (आ+स्वाद्)-आसाएइ उ० २६।३४ -आसाइज्जा नं. ५३ आसाय (आस्वाद) अ० ५२४ आसायण (आस्वादन) द० ५७८. प० २५० आसायणा (आशातना) आ० ३।१४।८. द० ६२,५,६,१०. उ० ३१॥२०. दसा० ३३१, २,३ आसायणिज्ज (आस्वादनीय) वसा० १०।२७ आसारोह (अश्वारोह) नि०६।२६ आसालय (आशालक) द० ६।५३ आसित्त (आसिक्त) दसा० १०।२७ आसिय (आसिक्त) प० ६२ आसिय (आशित) उ०१६।१२ आसीय (आशीत) नं० ८२ आसीविस (आशीविष) द०६।५ से ७. उ० ६।५३; १२।२७. दसा० ६।२१३७ आसीविसभावणा (आशीविषमावना) जोनं० ६ व०१०॥३६ आसु (आशु) द० ८।४७ आसुपन्न (आशुप्रज्ञ) उ० ४।६ आसुर (आसुर) उ०३।३८।१४ आसुरत्त (आसुरत्व) द० ८।२५. उ० ३६।२५६. नं० ६७. अ० ४६,५४८ आसुरिय (आसुरिक) दसा० १०।२६ आसुरिया (आसुरिकी) उ०७।१०।३६।२६६ आसेवण (आसेवन) उ० ३०१३३ आसोय (अश्वयुज) उ०२६।१३. प०१७,१३० आसोयपाडिवय (अश्वयुप्रतिपत्) नि० १६।१२ 1 आह (बू)--आहंसु प० २५१; व ६।४५ आहिज्जति प०६७-आहु क० ११३४. ५० १२. व. २।२४. क० ११३४-बेमि द० ११५; उ० ११४८. क. ११४७ आहच्च (आहत्य) उ० ११११ आहच्च (आहृत्य) व० ४।११ आहच्च (दे०) उ० ३३९. क० ४।१२,१३,२५, ५४० आहच्चाय (यथात्याग) नं० १०२ आहट्ट (आहृत्य) दसा० २।३. नि. ३६ आहड (आहुत) द० ५।५५; ६।४८,४६८.२३ आहडिया (आहृतिका) क० २।१८,१६ आहत (आहत) दसा० १०॥२४ Page #1051 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहत्तहीय-इंगालकम्मत ५७ आहत्तहीय (याथातथ्य) अ० ३२२ आहारित्तए (आहर्तुम्) ५० २३६. क० ॥३७ आहम्मिय (अधार्मिक) द० ८।३१ आहारित्तु (आहर्त) उ० १६ सू० २ आहय (आहत) उ० १८७. दसा० १०।१८. ५० आहारेत (आहरत्) नि० ४११६,२०, ५१३,१४; ६,२८,३१. नि० १२।२७; १७११४६ ६७६; १०॥५,३६, ११।८०,६२; १२।४ Vआहर (आ+ह)-आहरे द० ५।२५ आहारेत्तए (आहर्तुम्) क० १३१६, ३।१,२१ -आहरामो दसा० १०।२४ आहारेत्त (आहत) उ०१६ सू० १०. दसा० ३।३ आहरण (आभरण) प० २४,६१,७५,१६५ आहारेमाण (आहरत्) उ०१६ सू० ६, १०. दसा० आहरंत (आहरत) द० ५।२८ ३॥३. ५० ५८. क० ५।६ से ६. व० ८।१७ आहरित्तु (आहृत्य) उ० १६७६ आहिय (आख्यात) उ० २४११; २८।८,३३; Vआहा (आ+रव्या).-आहिज्जइ उ० २६१ ३०।१३,२४,२५,२७,३१,३३; ३३१७,१३,१४, आहाकम्म (यथाकर्मन) उ० ३।३५१३ १६,१७; ३६१५,६,२०,७७,६५,१५५,१५६, आहाकम्म (आधाकर्मन) दसा० २।३. नि० १०१६ १७२,२०६ आहातच्च (यथातथ्य) दसा० ४।२२ आहियरिंग (आहिताग्नि) द०६।११,४१ आहार (आहार) आ०६।१ से १०. द०६।२५, आहियदि ट्ठि (आस्तिकदष्टि) दसा० ६७ ४६. उ० १२१२; १६ सू०६; १६।३०; २४।११, आहियपण्ण (आस्तिकप्रज्ञ) दसा० ६७ १५, २६।३२, ३०।१३,१५,३१४८; ३२१४; आहियवादि (आस्तिकवादिन्) दसा० ६७ ३५।२०३६।२५५. दसा० ५७।४।६।१३ से आहुति (आहुति) द०६।११ २७,१६१. क० ३.१,२१; आहेण (दे०) नि० १११८१ ५।६ से १,३७. व० ८।१७. नि० ६७६; आहेवच्च (आधिपत्य) वसा० १०।१८. ५०६ १०१५,३६; १११८०; ११४ आहोहिय (आधोवधिक) ५० ७४,११३ Vआहार (आह)-आहार नि०६।५ -आहारए द० १०॥३.-आहारेइ उ० इ (चित्) आ० ३।१. द. ११४. उ० २।४०. १७११५,-आहारेज्जा उ०१६ सू० ६. नं० १२. अनं० १२. अ० १६. क० ११३८ -आहारेति नि० ४।१६ Vइ (इ) -एइ उ० ७।३. व०६।१ एन्ति आहारग (आहारक) नं० १८।१ अ० ४५६,४६४, उ०७।१६.-एहि द०७।४७; उ० २२।३८ ४६८,४७३,४७८,४८०,४८३,४८८,४६२,४६६, नि० ४।११८ ५००,५०४ इ (इति) अ० ३६६ आहारपच्चक्खाण (आहारप्रत्याख्यान) उ० २६१, इइ (इति) द० २।४. उ०२।७. अ० ७०८ इओ (इतस्) उ० १३।३२; २०३२,४७ आहारमइय (आहारमय) द० ८।२८ इं (इं) अ० २६४।३ आहारय (आहारक) अ० २७५,२७६,४४६,४५५ इंकारंत (इकारान्त) अ० २६४१३ आहारवक्कंती (आहारावक्रान्ति) प० २,१०६, इंगाल (आङ्गार) द० ५७ १२७,१६१ इंगाल (अङ्गार) द० ४ सू० २०,८८. उ० ३६। आहारसण्णा (आहारसंज्ञा) आ० ४१८ १०६ आहाराइणिय (यथारात्निक) व० ८।१ इंगालकम्मत (अङ्गारकर्मान्त) दसा० १०।३ Page #1052 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ इंगालदाह-इड्ढि इंगालदाह (अंगारदाह) नि० ३।७३ इक्कारसम (एकादश) नं० ६१ । इंगिय (इंगित) द०६।४१. उ० ११२; ३२।१४ इक्कारमविह (एकावविध) नं०६६ से १०० इंद (इन्द्र) द०६।१४; चू० १२. उ० २०१२१. इक्खाग (इक्ष्वाकु) उ० १६॥३६. अ० ३४३ अ० २०.१८५।३,३३१,३४२. दसा० १०।१८।। इक्खागकुल (इक्ष्वाकुकुल) प०२,११,१४ इंदकाइय (इन्द्रकायिक) उ० ३६।१३८ इक्खागभूमि (इक्ष्वाकुभूमि) प० १६१ इंदगावग (इन्द्रगोपक) उ० ३६।१३६ इक्खुवण (इक्षुवन) नि० ३७८ इंदगोवय (इन्द्रगोपक) अ० ३२१ इच्चाइ (इत्यादि) अ० ८६.५० १५२ इंदग्गि (इन्द्राग्नि) अ० ३४२।१ इच्चाइय (इत्यादिक) ५० १५५ से १५७ इंदत्त (इन्द्रत्व) उ० ६.५५ इच्चेयं (इत्येतत्) द० ४।२८.५०२८७ इंदधणु (इन्द्रधनुष) अ० २८७ Vइच्छ (इष)-इच्छइ उ० १२।२२ अनं०६; इंदनील (इन्द्रनील) उ० ३६१७५. ५० ३३ अ० १४. दसा० ३।३. - इच्छं उ० २६१६. इंदपुरग (इन्द्रपूरक) ५० २००११ -इच्छंति द० ६।१०. अ० ५६८. -इच्छसि इंदभूइ (इन्द्रभूति) नं० गा० २०.५० ८७,६३, द० २।७.उ०१४।३८. -इच्छह उ० १८३,१५४ १२।२८. -इच्छामि आ० ३११; उ०२०॥ इंदमह (इन्द्रमह) नि०८।१४; १६।११ ५६; प० २७१. - इच्छामो उ० १२१४५. इंदिय (इन्द्रिय) २०५।१३,२६,६६, ८।१६,३५, -~-इच्छावेइ अ० ७०६. -इच्छिज्ज उ० १०।१५, चू० १।१७, २०१६. उ० १६ सू० ३२।१०४. -इच्छे द० ६।८; उ० १।१२. ६; गा० ११, २३।३८; २४१८,२४; ३२।११, -इच्छेज्ज उ० ३२॥४. -इच्छेज्जा द० १२,२१,१०४; ३५१५. अ० २६१,२६३,२६५, ५।२७; उ०६।२६; प० २७३. क०४।१६ २६७. दसा० ७।३३; १०१११.५० ४२,७४. इच्छंत (इच्छत्) द० ८।३६. उ० ११६ नि० ७६२ इच्छा (इच्छा) ३० ५।१२७. उ० ६।४८. नं० इंदियगाम (इन्द्रियग्राम) उ० २५२ ३८१४. अ० २३६,२४०. ५० २६०. क० इंदियगेज्झ (इन्द्रियग्राह्य) उ० १४११६ ११३४. व० ४।२५; ६।२ इंदियजाय (इन्द्रि यजात) क० ५।१३ इच्छाकाम (इच्छाकाम) उ० ३५४३ इंदियत्थ (इन्द्रियार्थ) उ० ३११७; ३२।१००,१०६ इच्छाकार (इच्छाकार) उ० २६१३,६ इंदियपच्चक्ख (इन्द्रियप्रत्यक्ष) नं. ४,५. अ० इच्छालोभिय (इच्छालोभिक) क० ६।१६ इच्छिय (इच्छित) उ० २२।२५; २३।३१; ३०।११ ५१६,५१७ दसा० १०।२४. ५० ७,३६,४८ इंधण (इन्धन) उ० १४११०; ३२।११ इज्जा (इज्या) अ० २६ इक्क (एक) उ०८।१६. नं०५४१३ इट्टाल (दे०) द० ५।१२७ इक्कग (एकक) उ० १३।२५ इट्ठ (इष्ट) उ० १६३१३; २२।२. दसा० १०।१८. इक्क्रतीस (एकत्रिंशत) उ० ३६।२४२ ५० ३६ से ३८,७३,७४,११२ इक्कतीसइ (एकत्रिंशत् ) उ० ३६।२४३ इड्डर (दे०) अ० ३७५ इक्क वीस (एकविंशति) उ०३६।२३२. प० २ इड्ढि (ऋद्धि) आ० ४।८. द० ६।२३,२६,२८, इक्कवीसइ (एकविंशति) उ० ३६।२३३ ३६; १०११७. उ० २।४४; ७।२७; Page #1053 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इति इसि भासिय १२/३७ १३।११, ११८७ २२।१३, २१, २७ ९ ३४।१५ ३६।२६४. नं० २३,५६ से ८६ ६१. दस० ६।२।३३; १०।१५,१७. प० ६४, ६५,७५ इढिमंत (ऋद्धिमत् ) उ० ५ | २७; २०।१० इणं ( एतत् ) व०८।१ इणमो ( एतत् ) अ० ७१५।१ इव्ह (इदानीम् ) उ० १२।३२ इति (इति) ६० २२. अनं० ६. अ० ६. दसा० ३३. क० १४७. व० ७।२२ इतिहास (इतिहास) प०६ इतो ( इतस्) बसा० | २|३६ इतरिय (इस्aरिक) चू० १ सू० १ ० १०१३ ३०१६ से ११. अनं० ४. अ० ११,३२५५,७६, १०४, ५५३,५६१.०२२६६।१०,११: ७।१ से ३, ६ से ९. नि० २५६; १०1३६ इति (इति) नि० ७८५ इत्तिय (ऐतावत् ) उ० ३०।१८ इत्तो ( इतस् ) उ० ३६।७८ इत्थ (अत्र ) ० २०१४, नं०गा० २०.१० २७७. क० ३।२६. नि० ७८५ इत्यं (अत्र) दसा० १०।२४ इत्थंत्य (इत्थंस्थ) ० ६०४।७ इत्थि (स्त्री) नं० ३८३ इत्थित्तणय ( स्त्रीत्व ) दसा १०।२६,२७ इत्थिया (स्त्रीका) उ० १४६.१६ ३६ ४६, ५१. ज० २६४।२. सा० १०१२६,२७. इत्थिलिंगसिद्ध (स्त्रीलिंगसिद्ध ) नं० ३१ इत्थवेय ( स्त्रीवेद ) उ० ३२।१०२. म० २७५ इत्वी (स्त्री) आ० ४५.६० २ २ ५११२९; ७।१६,१७,२१,८१५१, ५३, ५६, ५७ ६१५२; १० १ ० १ २६ २ सू० ३; २।१६,१७; ५१०७६ ११९. १२४१ १६०३ से १२: १६०३ ३०।२१ ३२।१३ से १५, १७, ५६ ३५।७. अ० २६४।१,३०२।२. दसा० ६|४; ७१६ २०२११४. ० ५२१ ६८, ६. नि० ८ । १ से १०; ६६; १२।२६ १७।१५.१ इत्थीओ (स्त्रीतस्) ६० ६५८ इत्यीका ( स्त्रीकथा) आ०४८ इत्थीरूव ( स्त्रीरूप) क० ५।१,२ इत्थीवेय ( स्त्रीवेद) उ० २६६ इत्यसागारिय (स्त्रीसागारिक) क० १०२६,२६ इब्भ ( इभ्य) अनं० १२ से १४. अ० १६,३६५ इम (इदम्) द० ४ सू० ३. उ० १।१५. नं० गा० ३३. जोनं० ४. अ० ३. दसा० १।३. प० २१. क० २।२८. व० २।२४. नि० ७।८५ इमेरिस ( एतादृश) ० ६५६ इय (इति) उ० २४ २ इय (इत) अ० ३१३।२ इयर (इतर) उ० २०६० इयाणि ( इदानीम् ) ०५६८०५४ 1 इरिय (ई) - इरियामि ४० १८।२६ इरिया (ईर्ष्या) उ० ६।२१ १२ १२ २०१४० २४२, ४, ८, २६३२ इरियासमित ( ईर्यासमित) दसा० ५।७; १०1३२ इरियासमिय ( ईर्यासमित) ५०७८, ११५ इरियावहिय ( ऐर्यापथिक) उ० २१।७२ इरियावहिया (ऐर्यापथिकी ) आ० ४/४. द० ५८८. क० ६।१६ इरिवासमिइ ( ईयसमिति) आ० ४८ इव (ब) ० २।२९. ० ११०२४. अ० २१ इस (ऋषि) ० ६४६ चू० २१५.४० १२।१६. २१, २४, ३०, ३१, ४४, ४७ २१।२२. बसा० १०।२१ इसिगुत्त (ऋषि गुप्त ) १० १९६२ २०११ इसिगुत्तिय (ऋषिप्तिक) प० २०१ इसिज्य ( ऋषिध्वज) उ० २०।४३ इसिदत्त (ऋषिदत्त) प० २०३ इसिदत्तिय (ऋऋषिदतिक) प० २०१ इतिभासि (विभाषित) नं०७८. जोनं० Page #1054 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ६. अ० ३०७।११ इस्सर (ईश्वर) दसा० १२।१६ इस्सरिय ( ऐश्वर्य ) उ० १८३५ २०१४. अ० ३५८।१,३६५ इस्सरी ( ईश्वरीकृत) दसा ६।२।१६ इस्सा ( ईर्ष्या ) उ० ३४:२३. दसा० ६।२।१७ इह (इह ) द० ४ सू० १. उ० २ सू० १. अ० ३१२।२. दसा० १।१. क० ५।१०. व० ८।१२. नि० ६।१२ इह (इह) उ० ४।३. अ० ७०६. दसा० ८।६ इहय ( इहगत ) प० १० इहभव (इहभव ) दसा० १० ११ इहलोsय ( इहलौकिक, ऐहलौकिक ) उ० १५।१० नं० ८६ से ८६, ६१. नि० १२।३०; १७।१५२ इहलोग ( इहलोक ) आ० ४ ८. ८० ८ ४३; ६३०; ६४ सू० ६,७. दसा० ६।३,७. ५०८० ई (चित्) द० ५।४५ ई (ई ) अ० २६४ २ ईकारंत (ईकारांत ) अ० २६४|४ ईसर (ईश्वर) अनं० १२ से १४. अ० १६,३६५. दसा० १०।१८. ५०६, ४२ ईसाण ( ईसान) उ० ३६।२२३. अ० १८६, २८७ ईसाग ( ईशानक) उ० ३६।२१० ईसाय ( ईशानज) अ० २५४ ईसि ( ईषत् ) उ० २६।७३ ईस ( ईषत् ) दसा ७।३१, ३३.५० १० ईसिणी ( ईशानी ) नि० ६ २६ ईसीपभार ( ईषत्प्राग्भार ) उ० ३६।५७ पारा ( ईषत्प्राग्भारा) अ० १८६,१६०, २८७ ईसी ( ईषत् ) दसा० १० १४ Vv ईह (ईह) – ईहइ उ० ७१४. – ईहए नं० १२७१३. – ईहते अ० २६६ इस्सर - उक्कस ईहा ( ईहा ) नं० ३६,४४,५०,५३,५४।१,६२. प० ६,३८, ४७ ईहामति ( ईहामति) दसा० ४११० इहामतिसंपदा ( ईहामतिसंपदा) दसा० ४।६ हामिय ( ईहामृग ) प० ३२,४२ उ उ (तु) द० ४ गा० १. उ० १८. नं० १८ । ६. अ० २८।२ Vउइ (उद् + इ ) – उइन्ति उ० २१।१६ उइज्ज (उद् + ईरय्) - उइज्जति उ० २०४१ V उईर (उद् + ईरय्) - उईरंति दस० ६।३८ उउ (ऋतु) दस० ६६८. अ० २१६,४१७. प० ७४ उ (ऋतु) दसा० १०।१२. ५० २५, २६ उं (उं) अ० २६४।३ उंकारंत (उकारान्त) अ० २६४।६ उंछ ( उञ्छ) द० ८ २३; १०।१७. उ० ३५/१६ 1 उंज ( उत् + सिच्) - उंजेज्जा द० ४ सू० २० उजंत ( उत्सिचत् ) द० ४ सू २० 1 उंजाव ( उत् + सेचय् ) – उंजावेज्जा द० ४ सू० २० उंडंग (दे०) द० ४ सू० २३ उंडय (दे० ) द० ५।८७ उंदुरुक्क (दे० ) अ० २६ उंबरवच्च ( उदुम्बर वर्चस् ) नि० ३।७६ उक्कंचण (दे०) वसा० ६।३ उक्कंबिय (दे० ) प० २२४ उक्कट्ठ (उत्कृष्ट ) द० ५।३४ उक्कड ( उत्कट ) प० ३१ उक्कत्त (उत्कृक्त) उ० १६।६२ उक्कर (उत्कर) प० ३०,६४ उक्कल (दे० ) उ० ३६ । १३७ उक्कलियंड ( उत्कलिकाण्ड ) १० २६८ उक्क लिया ( उत्कलिका) उ० ३६।११८ उक्कस ('गम्') – उक्कसावेति नि० १८/७ Page #1055 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कसावेत-उग्घातिय उक्कसावंत (गमयत्) नि० १८७ उक्कोसपय (उत्कर्षपद) अ० ४६० उक्का (उल्का) द०४ सू० २०. उ० ३६।११०. उक्कोसय (उत्कर्षक) अ० ३७४,५७५,५७७ से नं० १२ से १५ ५७६,५८१,५८२,५८५ से ६०२ उक्कालिय (उस्कालिक) नं० ७६,७७. जोनं०४,५, उक्कोसिय (उत्कृष्ट) उ० ३३।१६,३६८०,८८, ७,८. अ० ४,५ १०२,१२२,१६७,२४५,२५१ उक्कावाय (उल्कापात) अ० २८७ उक्खिण्ण (उत्कीर्ण) क० २।१,२,८,६ उक्किट (उत्कष्ट) द०११ ४।१६.२० ५० १५, उक्खित्त (उत्क्षिप्त) सा० १०।२४ २२,६४ उक्खित्तविवेग (उत्क्षिप्तविवेक) आ० ६।६,१० उक्कित्तण (उत्कीर्तन ) अ० ७४।१,१०१,२२६, उक्खिवित्तु (उत्क्षिप्य) द० ५।८५ २२६,६१०।१ उग्ग (उग्र) उ० १५।६१८१५०, १६२८,२०॥ 'उक्किर (उत ---क) उक्किरसि-अ० ५५५. ५३; २२१४८; ३०॥२७. नं० १२०. अ०३४३. -उक्किरामि अ० ५५५ प० १६५ उक्किरमाण (उत्किरत ) अ० ५५५ उग्गकुल (उपकुल) १० ११,१४ उक्कुज्जिय (उत्कुब्ज्य) नि० १७.१२६ उग्गतव (उग्रतपस्) उ० १२१२,२७ उक्कुट्ट (उत्कृष्ट) नि० १७।१३५ उग्गपुत्त (उमपुत्र) दसा. १०।२४ से ३१ उक्कुड़गासणिया (उत्कुटुकासनिका) क० ५।२३ उग्गम (उद्गम) आ० ४।६. दस० ॥५६. उ० उक्कुडुय (उत्कुटुक) उ० १।२२. दसा० ७।२६. २४।१२ प०८१ उग्गय (उद्गत) आ० ६।१,२,३,७. उ० २३।७६, । उक्कुद्द (उत्+-कूद्')-उक्कुद्दइ उ० २७।५ ७८. अ० २६६।१. ५० ४२ उक्कुरुडय (दे०) अ० ३४६ उग्गयवित्तीय (उद्गतवृत्तिक) क० ५।६ से ६. उक्कोस (उत्कर्ष) उ० ५१३,१०१५ से १४ नि० १०॥२५,२७,२८ ३३।१६,२१ से २३, ३४।३४ से ३६,४१ उग्गह (अवग्रह) नं० ३६,४०,४३,५०,५४।१. से ४३,४६,४८ से ५०,५२ से ५५; ३६।१३, प० ६,२३१ १४,५०,५३,८० से ८२,८८ से १०,१०२ से उग्गहण (अवग्रहण) नं० ५४१२ १०४,११३ से ११५, १२२ से १२४,१३२ से उग्गहणंतग (अवग्रहानन्तक) क० ३।११,१२ १३४,१४१ से १४३,१५१ से १५३,१६० से उग्गहपट्टग (अवग्रहपट्टक) क० ३।११,१२ १६८,१७५ से १७७,१८४ से १८६,१६२, उग्गहिय (अवगृहीत) नं० ५३ १६३,२०१,२०२,२१६,२२०,२२२ से २४३, उग्गाल (उद्गार) क० ५।१०. नि० १०।२६ २४५,२४६,२५१. नं० २०,२२,२५. उग्गिलित्ता (उद्गीर्य) क० ५।१०. नि० १०।२६ अ० १२६,१२७,१७०,१७१,२११,२१२,४०२ उग्धाइय (उद्घातिक) क० ४।१२,१३ से ४०४,४२२।१,४२४,४२६,४३१,४३३, उग्घाड (उद्घाट) आ० ४।६ ४३६१४३८,४५६ ३६२,५६८. दसा० ६।१२। उग्घाडण (उद्घाटन) आ० ४१६ से १८. प०६३ से १०२,१०४,११७ से १२१, उग्घाडिय (उद्घाटित) नं० ७१ १३२ से १३५,१६८ से १७६,१७८. व० उग्घातिय (उद्घातिक) नि० २१५६, ३१८०% १०१२० ४।११८५७८, ६१७६७।६२,१०।१५ से Page #1056 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ २१, १२।४३, १३ । ७५; १४१४१; १५।१५४; १६।५१; १७ । १५२; १८/७३; १६।३७ उग्धाय (उद् + घातय् ) - उग्धाएइ उ० २६७ उचिय ( उचित) अनं २८ उच्च (उच्च) उ० ३३।१४ उच्चगोय ( उच्चगोत्र ) उ० २६।११ उच्चट्ठाण ( उच्चस्थान ) प०५६ उच्चत्त ( उच्चत्व) अ० ४१०, ४२२,४२४,४२६, ४३१,४३६,४३८ उच्चय ( उच्चय) प० २० उच्चलंत ( उच्चलत् ) प० ३१ उच्चा (उच्च) प० २४, ३१ उच्चाकुइय (उच्चाकुचित) प०२७८ उच्चागोय ( उच्चगोत्र ) उ० ३११८, अ० २८२ उच्चानागरी (उच्चानागरी) प० २०२१ २०८ उक्चार ( उच्चार) दस० ८।१८. उ० २४१२, १५, १८. नं० ३८१३. ० २७६. क०१।१६; ३०१, २१; ४।२७; ५।१३,१४. व० ६१२. नि० ३।७१ से ७६, ४ । ११० से ११७; ५।४; ८ । १ से 8, ११, १२, १५६७ से ७५; १६४० से ५१ उच्चारपासवण ( उच्चारप्रस्रवण) दसा०७।२१, २८,३१,३३; १०२८ से ३२ उच्चार पासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिइ ( उच्चारप्रवणक्ष्वेल सिंघाणजल्लपारिष्ठापनिकासमिति) आ० ४८ उच्चारणपासवण खेल सिंघाणजल्लपरिद्वावणियासमित ( उच्चारप्रवणक्ष्वेल सिंघाणजल्लपरिष्ठापनिका समित) दसा० ५७; १० ३२.५० ७८ उच्चारपासवणभूमि ( उच्चारप्रस्रवणभूमि) प० २७६, नि० ४।१०८, १०६ उच्चारभूमि ( उच्चारभूमि) द० ८।१७, ५१ उ० २६।३८ २६।७३ उच्चारमत्तय ( उच्चारामत्रक) प० २८० उच्चारसमिइ (उच्चारसमिति) उ० १२ २ उच्चारिय ( उच्चारित) अ० ७१४ उच्चारेमाण ( उच्चारयत्) प० ४७ उच्चाररेयव्व उच्चारयितव्य) अ० ७१४ उच्चावय ( उच्चावच) द० ५।१४,७५, १०७, १२५. उ० २।२२; १२।१५. दसा० १०।२६ उच्चारण ( उच्चासन) दसा० ३।३ उच्चोयय ( उच्चोदय) उ० १३११३ उच्छंग ( उत्सङ्ग) प० १० १४ उच्छहय ( उत्सहमान) द० ६१४६ उच्छिण्ण ( उच्छिन्न) प० ५१ उच्छु ( इक्षु) उ० १६।५३. नि० १६/४, ५, ८, ६ उच्छुखंड ( इक्षुखण्ड) द० ३।७५।७३, ११८ उच्छुखंडिया (इखण्डका) दसा० १०/२७. नि० उग्घाय उज्जल १६६,७,१०,११ उच्छुत्रोयग ( इक्षु' चोय ' ) नि० १६।६, ७, १०, ११ उच्छोलित्तए (उत्खालयितुम् ) दसा० ७।२३ उच्छुङगल ( इक्षुडगल) नि० १६ । ६,७,१०,११ उच्छुमेरग ( इक्षुमेरक) नि० १६।६, ७, १०, ११ उच्छुसाल ( इक्षु' सालग') नि० १६।६, ७, १०, ११ उच्छुवण ( इक्षुवन) अ० ३२४ अच्छोल (दे० उत् + क्षालय् ) — उच्छोलेज्ज नि० ११६ उच्छोलेंत (दे०, उत्क्षालयत् ) नि० १।१६; २।२१; ३२०,२६,३२,३६,४८,५४,६३, V ४।५८,६४,७०,७४,८६,६२,१०१; ६७, १५, २६,३५,४१,४५, ५७, ६३, ७२ ७ १८,२४,३०, ३४,४६,५२,६१; ११।१५,२१,२७,३१,४३, ४६, ५८, १४ ।१२,१३,१६,१७ १५।१०३, १०६, ११५, ११६,१३१, १३७, १४६, १८ ।४४, ४५,४८,४६ उच्छोलेत्ता ( उत्क्षाल्य ) नि० ३।३७ उच्छोलणा ( उत्क्षालना) ब० ४।२६ उजुवालिया (ऋजुबालिका) प० ८१ v उज्जम (उद् + यम् ) – उज्जमए उ० ३२। १०५ उज्जल ( उज्वल ) नं० गा० १३. वसा० ६।५. Page #1057 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जलंत-उडुबद्ध प० २४,३४ उज्जलंत ( उज्ज्वलत्) प० २६ उज्जलणग ( उज्ज्वलनक) प० ३४ उज्जहित्ता ( उव्हाय) उ० २७/७ उज्जाण ( उद्यान) ब० ६।१; ७।२६, ३०. उ० १८/३४; १९1१; २०१३; २२/२३; २३|४, ८ २५/३. नं० ८६ से ८६, ६१. अ० १६,३६२. दसा० १०1३. प० ५१,७५,११३, १२६.१६५, १६६. नि० ८२; १५/६८ उज्जाणहि ( उद्यानगृह) नि० ८२; १५/६८ उज्जाणसाला (उद्यानशाला ) नि० ८ २; १५६८ / उज्जाल (उत् + ज्वालय् ) उज्जालेज्जा द० ४ सू० २० उज्जालंत (उज्जवालयत्) द० ४ सू० २० V उज्जालाब (उत् + ज्वालय् ) – उज्जालावेज्जा द० ४ सू० २० उज्जालिया ( उज्ज्वाल्य) द० ५।६३ उज्जित (उज्जयंत) प० १३०,१३८ उज्जुकड ( ऋजकृत) उ०१४ | ४१; १५०१ उज्जुजङ ( ऋजुजड) उ०२३।२६ उज्जुक्त ( उद्युक्त) नं० गा० २६ उज्जुदंसि ( ऋजुदर्शिन् ) द० ३।११ उज्जुप्पन्न ( ऋजुप्राज्ञ) द० ५।६० उ०२३।२६ उज्जुभाव ( ऋजुभाव ) उ० २१ २०; २६०६,७० उज्जुमइ ( ऋजुमति) द० ४।२७. नं० २४, २५ उज्जुमती ( ऋजुमती) प० १६१।२ उज्जय (उद्युत) उ० १६८८ उज्जय ( ऋजुक) दसा० ६।१८. ५० २४,२६६ उज्जयभूय ( ऋजुभूत) उ० ३।१२ उज्जुसुय (ऋजुसूत्र ) नं० १०२. अनं० ६. अ० १४,३५,५८,८२, १०७,५५५ से ५५७ ५६४, ५६८, ६०९.६२४, ६३६, ६४८, ६७४,७०१, ७१५ उज्जुसेढि (ऋजुश्रेणि) उ० २६।७४ उज्जूहियाठाण (दे० ) नि० १२ २६; १७११४६ उज्जोइय ( उद्योतित ) १०४२ उज्जोय (उद्योत ) उ० २३१७५, ७६,७८ २८।१२. नं० गा० १०. दसा० १०१११,१२ उज्जोय (उद्योग) उ० २२।३६ उज्जोयग ( उद्योतक) नं० गा० ३ उज्जोयगर ( उद्योतकर) आ० २।१; ५|४|१ उज्जोविय (उद्योतित ) दसा० १०।११, १२, १५. ६३ प० ८५ उज्झर (उज्भर) नं० गा० १५. नि० १२ १८: १७।१४० उज्झित्ता ( उज्झित्वा ) उ० १४१४६ उज्झियय ( उज्झितक ) अ० ३४६ उट्ट (उष्ट्र) अनं० १२,१६ उट्टकरण ( उष्ट्रकरण) नि० १२१२४; १७।१४६ उट्टजुद्ध ( उष्ट्र्युद्ध) नि० १२ २५; १७/१४७ उट्टिय ( औष्ट्रिक ) अ० ४४,३३०. क० २०२६ उट्टी (उष्ट्री ) अ० ३३० V उट्ठ (उत् + ष्ठा) - उट्ठए ५०५४० उट्ठ (ओष्ठ) नि० ३।५० से ५५ ४८८ से ६३; ५।३८, ५०; ६।५ से ६४; ७।४८ से ५३; ११।४५ से ५०; १५/४७ से ५२, १३३ से १३८, १७।४६ से ५४, १०३ से १०८ उद्ववीणिया (ओष्ठवणिका) नि० ५३८ उवेत्ता ( उत्थाप्य ) नि० १४।३६ उट्टाए (उत्थाय ) ० ४।१३, १४, ५।१३,१४ उट्ठाण ( उत्थानश्रुत) नं० ७८. जोनं० ६. व० १०।३२ उट्ठावण ( उत्थापन) क० ४।२७ उट्ठित्ता (उत्थाय ) उ० २।२१ उट्टिय ( उत्थित) द० ५/४० उ० १८।३१. अ० १६,२०. दसा० ७ २० ५० ४२ उड (पुट) दसा० 1२1१८ उड़ (ऋतु) प०५८ उडुबद्ध (ऋतुबद्ध) नि० १४ ४०; १८ /७२ Page #1058 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उडुबद्धिय-उत्तरायताकोडिमा उडुबद्धिय (ऋतुबद्धिक) नि० २।४६,५१ उत्तमकुल (उत्तमकुल) अ० ३६०।१ उडुय (दे०) आ० ५।३ उत्तमपुरिस (उत्तमपुरुष) अ० ३६०।१ उडुवइ (उडुपति) उ० ११२५ उत्तमट्ठ (उत्तमार्थ) उ० २०४६ उडुवाडियगण (उडुवाटिकगण) ५० १६६ उत्तमसुय (उत्तमश्रुत) नि० १६:१७ उड्डंस (दे०) उ० ३६।१३७ उत्तर (उत्तर) द०५।१०३. उ० ३।१४; १२०, उड्डपाण (दे०) नि० १३॥३५ २६; १२।१; ३३।१६; ३६।५३,५४ नं० उड़ढ (ऊर्व) द०६।३३. उ० ३।१३,१५; ६०. अ० २६०।२. दसा०७।२०.५० १५, ६।१३; १२।२६; १६४६,५१,८२; २६। ६६,१६३,२२२. क० १२४७. व. ६।३७ २४; २६।७४; ३६५०. नं० २५. अ० ४२२, Vउत्तर (उत्+त) -उत्तरति नि० १२१४३ ४२४,४२६,४३१,४३६,४३८. दसा० ५।७।६; उत्तरओ (उत्तरतस्) २० ६।३३ १०।२६,३० क० ५।१६ उत्तरंत (उत्तरत्) नि० १२।४३ उड्ढगामि (ऊर्ध्वगामिन्) नि० १८।११ उत्तरकरण (उत्तरकरण) नि०१।१५ से १८% उड्ढरेणु (ऊर्ध्वरेणु) अ० ३६६ २११४ से १७ उडढलोय (ऊर्ध्वलोक) उ० ३६।५४. अ० १७७, उत्तरकुरा (उत्तरकुरु) अ० ५५६. १० १२६ १७८,१८८,५५६ उत्तरकुरुग (उत्तरकुरुज) अ० ३६६ उड्ढिय (उद्धृत) द० चू० १११२ उत्तरकुरुय (उत्तरकुरुज) अ० ३३३ उण्ण (ऊर्ण) नि० ३७०; ५।२४ उत्तरगंधार (उत्तरगान्धारा) अ० ३०६।१ उण्णमणी (उन्नमनी) अनं० २८।२ उत्तरगामिय (उत्तरगामिक) वसा०६७ उण्णय (उन्नत) प०२० उत्तरगिह (उत्तरगृह) नि० ८।१५ उणिय (औणिक) अ० ४४. क० २।२६ उत्तरगुण (उत्तरगुण) उ० २६।११,१७ उण्ह (उष्ण) २० ७.५१; ८२७. उ०२।९% उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन) नं० ७८. जोनं ६ १५॥४; १६।३१,४७,६०, ३६।२०. दसा० उत्तरज्झाय (उत्तराध्याय) उ० ३६।२६८ ७।२५. १०५८ उत्तरड्ढभरह (उत्तराईभरत) अ० ५५६ उण्हय (उष्णक) उ० ३६।३६ उत्तरपुरत्थिम (उत्तरपौरस्त्य) बसा० ५।५. ५० उण्होदय (उष्णोदक) ५० ४२ १५,४२ उत्त (उक्त) प० २५५ उत्तरबलिस्सह (उत्तरबलिसह) प० १६५ उत्तम (उत्तम) आ० २।६; १४।६. द० उत्तरमंदा (उत्तरमन्द्रा) अ० ३०५।१ ८।६०; ६।४० चू० १।११. उ० ६।६, ५७ से उत्तरवेउन्वि (उत्तरवैकुविन्) नं० १२० ५६; १०।१८,१६; ११॥३१,३२; १२।४७; उत्तरवेउब्विय (उत्तरवैक्रिय) अ०४०२ से ४०४. १३।१०; १४१३७; १८१४१; १९६७; प० १५ २०१५०. ५२,५५; २२।१३,२३; २३१५१, उत्तरसाला (उत्तरशाला) नि०८।१५ ६३,६८; २५६,१७,३३,३७. नं० गा० ३२, उत्तरा (उत्तरा) अ० ३०५।१ सू० १२०. वसा० ५।७।२; 8२।४. ५० २६, उत्तराभिमुह (उत्तराभिमुख) बसा० ७।२० ३२,३६,७४,२२२ उत्तरायता (उत्तरायता) अ० ३०५।१ उत्तमंग (उत्तमाङ्ग) उ० १२।२६; २०।२१ उत्तरायताकोडिमा (उसरायताकोटिमा) अ० Page #1059 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरासंग-उदु १८१५६ ३०५।२ उदगबिंदु (उदकबिन्दु) अ० ३६८ उत्तरासंग (उत्तरासङ्ग) ५० १० उदगमच्छ (उदकमत्स्य) अ० २८७ उत्तरासंगकरण (उत्तरासङ्गकरण) दसा० १०।१६।। उदगावत्त (उदकावर्त) अ० ३९८ उत्तरा (साढा) (उत्तराषाढा) अ० ३४१।२ उदग्ग (उदग्र) उ०११०२०; १३।३५; १४।२ उत्तरासाढा (उत्तराषाढा) प० १६०, १६१ उदय (उदक) उ० ११३०; १२।३६,३८, २८।१२. उत्तरिज्ज (उत्तरीय) दसा० १०।११,१२. प० ४२ दसा० ६१४,१४; ६।२।१. ५० १२,२७ क० उत्तरित्तए (उत्तरीतुम) क०४।२६ ६८. नि० ७१७५; १३१८; १४।२७; १६१४८ उत्तरित्ता (उत्तीर्य) उ० ३०१८ उत्तरिय (औतरिक) क०४।१६,२०,२१ उदय (उदय) उ० २३।४८, अ० २७२,२७३ उत्तरीकरण (उत्तरीकरण) आ० ५।३ उदयनिष्फण्ण (उदयनिष्पन्न) अ० २७२,२७४ से उत्तरो? (उत्तरौष्ठ) प० २६१ २७६ उत्तरोट्ठरोम (उत्तरौष्ठरोमन) नि० ३।५६; उदर (उदर) दर ४ सू० २३. अ० ३५१. नि० ४।६४; ६।६५; ७१५४; ११४५१; १५३५३, ७।१३ १३६; १७१५५,१०६ उदहि (उदधि) उ०१०।३०३३१६,२१.२३; उत्ताणग (उत्तानक) उ० ३६१६०. ५० ७।२८ ३४१३५ से ३७,४१ से ४३,५३, ३६।२०६ उत्ताणय (उत्तानक) व०५।१८ उदहिकुमार (उदधिकुमार) अ० २५४ उत्ताणिया (उत्तानिका) क० १२३ उदार (उदार) उ० १४॥३५ उत्तार (उत्तार) द० चू० २।३ उदाहर (उद+आ+ह)-उदाहरित्था उ० उत्ताल (उत्ताल) अ० ३०७५ १२१८..-उदाहरिस्सामि द०८।१; उ०२।१. उत्तिंग (उत्तिङ्ग) आ० ४।४. द० ५।५६; ८।११, -उदाहरे उ० ५११.-उदाहु उ० १४।६ १५. दसा० २।३.१० २६६. क० ४।३१ से ३४. नि० ७७५; १३१८; १४१२७; १६। उदाहरण (उदाहरण) नं० ३८।३ ४८; १८।१६, ५६ उदाहु (उदाहृतवत्) उ०६।१७ उत्तिद्रुत (उत्तिष्ठत्) उ०११।२४ उदाहु (उताहो) व० २।२४ उत्तिण (उत्तृण) अ० ५३१ उदिण्ण (उदीर्ण) उ०१८।१. दसा० १०२४ से उत्थय (अवस्तत) दसा० १०।११,१५. प० ४२ ३२. नं०८ उदइय (औदयिक) अ० १२६,२४३,२४४,२७१, उदिय (उदित) ५० ६०,६१ २७२,२७६, २८६ मे २६७ उदियोदय (उदितोदय) नं० ३८।११ उदउल्ल (उदा) द० ६।२४; ८१७. अ० ३६८. उदीण (उदीचीन) व० १।३३ १० २६१. नि० ४।३७ उदीर (उद+ईरय)-उदीरेइ उ० १७.१२. उदओल्ल (उदा') द०४ सू० १६; ५।३३ -उदीरेति नि० ४।२५ उदग (उदक) ० ४ सू० १६:५।३०,५८,७५%; उदीरितए (उदीरयितुम) क० ६.१ ८.११. उ०७।२३; ८।६; १२।३६; २३।६५, उदीरित्तु (उदीरयितृ) दसा० ११३ ६६. नं० ५३. अ० २६६ दसा० ६१४ नि० । उदीरिय (उदीरित) उ० २६/७२ १८।१५,१६ उदीरेंत (उदीरयत्) नि० ४।२५; ५।६० उदगदोणी (उदकद्रोणी) ८० ७१२७ उदु (ऋतु) व० ८१ Page #1060 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदंवरिज्जिया-उप्पत्तिया उदुंबरिज्जिया (उदुम्बरीया) ५० १६७ उद्धट्ट (उद्धृत्य) दसा० ६।१८. व० २।२६ उद्द (दे०) नि० ७।१० से १२; १७।१२ से १४ । उद्धत्तुं (उद्धर्तुम) उ० २५।३३ उइंसंड (उदंशाण्ड) प० २६८ उद्धत्तुकाम (उद्धर्तुकाम) उ० ३२। उद्दरिय (उदप्त) नं० गा० १४ उद्धमाय (दे०) नं० गा० १३ उद्दविय (उत्त ) आ० ४१४ उद्धय (उद्धत) ५० २८ उद्दवेतव्व (उद्घावयितव्य) दसा० १०।२६ उद्धरण (उद्धरण) उ० २६।६. नि० ११२६ उद्दाम (उद्दाम) अ० २१,३११।२ उद्धरित्ता (उद्धृत्य) उ० २३।४६ उद्दायण (उद्रायण) उ० १८१४७ उद्धरित्तु (उद्धृत्य) उ० २३।४८ उददाल (उद्दाल) ५० २० उद्धरिय (उद्धृत) उ० २३।४५. दसा० १०।२४ उददालित्तु (उद्दालयित) दसा० ६।३।। उद्धाइय (उद्धावित) उ० १२।१६ उद्दिट्ट (उद्दिष्ट) दसा०६।१० से १८. क० उद्घायंत (उद्धावत्) ५० २७ ४२६. नि० ४।२५; ६।२०; १२।४३ । उद्धार (उद्धार) अ० ४२५,४२६,५८६ उद्दिट्ठभत्त (उद्दिष्टभक्त) दसा० ६।१६ से १८ उद्धारपलिओवम (उद्धारपल्योपम) अ०४१६,४२० उद्दिस (उद् +विश्)-उद्दिसति दसा० ४१८, ४२२ से ४२६ मि० श६ उद्धारसमय (उद्धारसमय) अ० ४२६ उद्दिसंत (उदि शत्) नि० ५।६; १६॥३१ उद्धारसागरोवम (उद्धारसागरोपम) अ० ४२२।१, उद्दिसावेत्तए (उद्देशयितुम) क०४।२२ ४२४।१,४२६ उद्दिसावेत्ता (उद्देश्य) व० ३।११ उद्धृय (उद्धत) ५० १५,२०,३२,४०,६२ उद्दिसित्तए (उद्देष्टुम् ) २० २।२६ उद्धृव्वमाण (उधूयमान) वसा० १०.१५. ५० उद्दिसिय (उद्दिश्य) नि० १४१५ ४२ उद्दिस्स (उद्+दिश्)-उद्दिस्संति जोनं० २. उन्नत (उन्नत) वसा० १०।२४ अ० २. --उद्देस्सामि जोनं०१० उन्नय (उन्नत) द०७१५२. प० २०,२४ उद्देस (उद्देश) उ. ३१११७. जोनं० २ से १०. उन्नामियय (उन्नामितक) अ० ३२६ अ०२ से ६,७१३।१. क० ३।१६,१७. नि० -उपगिज्झ (उप-गध)-उपगिज्झज्जा उ० १०॥४१ ८.१६ उद्देसग (उद्देशक) नं० ८५. अ० ५७१ उप्पइय (औत्पत्तिक) उ० २।३२ उद्देसण (उद्देशन) नं० ८१ से ८४, ८६ से ६१ उप्पइय (उत्पतित) उ० ६।६० उद्देसणंतेवासि (उद्देशनान्तेवासिन) व० १०१८ उप्पज्ज (उत्+पद)-उप्पज्जइ उ० १७४२. उद्देसणकाल (उद्देशनकाल) आ० ४।८ नं० २३. -उप्पज्जए द० चू० २।१. उद्देसणायरिय (उद्देशनाचार्य) व० १०१६ -उप्पज्जति ५० ७७; व० १०२ उद्देसिय (औद्देशिक) द०३।२; ५१५५; ६।४८; । उप्पण्ण (उत्पन्न) ० ५।६६, १०३; चू०१ सू० ४६% ८।२३, १०॥४. उ० २०१४७.क० १. नं० ६५. अ० ५०, २८२. ५४६. बसा. २।२४ से २७. नि० ५।६१ १०॥३१. व० १०॥२,४ उद्देहगण (उदेहगण)प० १६७ उप्पत्ति (उत्पत्ति) अ० ३१२।१ उद्देहिया (उपदेहिका) उ० ३६।१३७ उप्पत्तिया (औत्पत्तिको) नं० ३८।१,७६ Page #1061 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्पन्न-उर उप्पन्न (उत्पन्न) अ० ३१४।१,३१७।१. वसा० उब्बाहिज्जमाण (उबध्यमान) नि० ३।८० ४।२३; ७१४,२६,२७,३२. ५०७७,११४ उब्भावणया (उद्भावना) नं० गा० ४० उप्पयंत (उत्पतत्) ५० ६० उभिदिय (उभिद्य) नि० १७११२७ उप्पयमाण (उत्पतत्) १०१५,८५,८६ उभिदिया (उद्भिद्य) २०५।४६ उत्पल (उत्पल) द०५।११४,११६,११८. अ. उब्भिय (उद्भिद) ८०४ सू०६ १६,२०,१८५।३,२१६.४१७. दसा० ७।२०, उन्भेइय (उद्भेद्य) द० ६।१७ ५० ३०,४२. नि० १२॥१८; १७।१४० उभ (उभ) उ० २३॥६,१० उप्पलंग (उत्पलाङ्ग) अ० २१६,४१७ उभओ (उभयतस) आ०४७. उ० ११११७; उप्पह (उत्पथ) उ० २४१५; २७।४ २८।६. अ० २१,२७. व० ६१७. दसा० उप्पाइत्तु (उत्पादयित) दसा० ११३ १०।१६,२४ से ३१ उप्प एंत (उत्पादयत) नि० ४,२४; ६।१४ उभय (उभय) द० ४.११; ५।११२. उ० ११२५; उप्पाएत्ता (उत्पाद्य) नि० ६.१५ २३।६,१४. नं० ३८।५. दसा० १०॥३५. ५० उप्पाएत्तु (उत्पादयित) दसा० ४।२० २८८ उप्पाडिय (उत्पाटित) दसा०६३ उम्मग्ग (उन्मार्ग) आ० ४१३; श२. उ० २३६५६, 1 उप्पाय (उत+पादय)-उप्पाएइ उ० २६।१८ ६१, ६३. अ० ६०६. नि. १०३१ –उप्पाएति नि० ४।२४ उम्मज्ज (उन्मज्ज) उ० ७।१८ उपाय (उत्पाद) नं० १२० उम्मत्त (उन्मत्त) उ० १८०५१ उप्पाय (उत्पात) अ० ५३३, ५३७ उम्मद्दण (उम्मन) दसा० ६।३ उप्पायग (उत्पादक) उ० ३६।२६२ उम्माण (उन्मान) अ० ३७२,३७८,३७६,३६०. उप्पायण (उत्पादन) आ० ४।६. उ० २४।१२ प० ६,३८,४७,६२,१६३ उप्पायपुर (उत्पादपूर्व) नं० १०४,१०५ उम्मादणकर (उन्मावनकर) अ० ३१११२ उप्पि (उपरि) ५० १२४ उम्माय (उन्माद) उ०१६ सू० ३ से १२. दसा० उप्पिजलमाण (उत्पिञ्जलयत्) १० ८६ ७।३४ उप्पिरयणिमुक्कमउड (उपरिरत्निमुक्तमुकुट) क० । उम्मायपत्त (उन्मादप्राप्त) क०६।१३. व०२।१२ ४/३४ उम्मि (मि) ५० ३१ उप्पिसवणमाया (उपरिश्रवणमात्रा) क० ४।३२ Vउम्मिण (उद्+मी)उम्मिणिज्जइ अ० उप्पिच्छ (दे०) अ० ३०७१५ ३७८ । उप्पिलाव (उत् + प्लावय)-उप्पिलावए द० उम्मिलिय (उन्मीलित) अ० १६,२०. वसा० ६।६१. -उप्पिलावेति नि०१८॥ ७२०.५० ४२ उप्पिलावेंत (उत्प्लावयत्) नि० २८।६ उम्मीस (उन्मिश्र) २० ५।५७ उप्पिलोदगा (उत्पीडोदका) द० ७।३६ उम्मुक्क (उन्मुक्त) उ० ३६।६३. वसा० १०२४ से उप्फालग ('कथक') उ० ३४।२६ ३२.५० ६,३८,४७ उप्फिड (उत्प्ल व)-उप्फिडइ उ० २७।५ उयर (उदर) ८० ८।२६ उप्फुल्ल (उत्फुल्ल) द० ५।२३ उर (उरस्) उ० २०१२८. अ० २६६।१,३०७१७. उप्फेस (दे०) दसा० १०.१६ दसा० १०।२६. ५० २५३ Page #1062 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उरग-उवगरणजाय उरग (उरग) उ० १४१४७. अ० ७०८।५ उवट्ठ (उपदिष्ट) द० ६।४२. उ° ११४४; उरगपरिसप्प (उरगपरिसर्प) उ० ३६।१८१ २८.१६ उरत्थदीणारमालय (उरस्थदीनारमालक) १०२४ उवउत्त (उपयुक्त) उ० २४१७,८; २६१ उरपरिसप्प (उर:परिसर्प) अ० २५४ १२७. अ० २३,४७,७१,६६,६३०,६४२,६६६, उरभ (उरघ) उ० ७४ ६६२,७०७ उरभिज्ज (उरभ्रीय) उ०७ उवउत्तया (उपयुक्तता) उ०२४।६ उरस्स (औरस्थ) अ० ४१६ उवएस (उपदेश) अ० ५१।१,३०८।३,७१५१५ उराल (दे० उवार) उ० १५२२४; ३६।१०७ उवएसण (उपदेशन) उ० २८.१५. अ० ३०८।१ उरु (उरु) प० २१,२३,२४,२७,३० उवएसरुइ (उपदेशरुचि) उ० २८1१६,१६ उलूक (उलूक) अ० ३६८ उवओग (उपयोग) उ०२८।१०,११. नं० उल्ल (आद्र) ३० ५।२१,६८. उ० २२१३३; ३८८ २०४०.५० ५८ उवंग (उपाङ्ग) प० २४ उल्लंघण (उल्लंघन) उ० १७।८; २४।२४ उवकसंत (उपकषत्) दसा० ६।२।११ उल्लंधिया (उल्लंघ्य) द० ५२२ उवक्कम (उपक्रम) अ० ७५ से ७८,८० से १००, उल्लंबित (उल्लम्बित) बसा० ६।३ ६१७ उल्लगच्छ (उल्लगच्छ) ५० १६७११ Vउवक्कम (उप+क्रम)-उवक्कमिज्जति अ० Vउल्लव (उत+लव)-उल्लवइ उ०११२ उल्लविय (उल्लपित) उ० १६.४ उवक्कमण (उपक्रमण) अ० १४ उल्लसंत (उल्लसत्) ५०२४ उवक्खड (उपस्कृत) उ० १२।११ उल्लसिय (उल्लसित) ५० २८ Vउवखडाव (उप-+स्कारय)-उवक्खाडविति उल्लाव (उल्लाप) अ० ५६६।४ प०६६ उल्लिय (उल्लिखित) उ० १६६४ उवक्खडावित्ता (उपस्कार्य) २०६६ उल्लोइय (दे०) ५० ६२ उवक्खाइया (उपाख्यायिका) नं० ८६ उल्लोय (दे०) उ० ३५४४ उवगय (उपगत) द०६।११. उ० २१११३; उल्लोय (उल्लोक) ५० २० २६।१३,१८,३६. नं०५३. अ० ४१६; v उल्लोल (उद्+लोलय)-उल्लोलेज नि० दसा०१०।११. प०३,१६,१८,४२,५४,११०, . ३१६ १६२. नि० ८।११ उल्लोलाव (उद+लोलय)-अल्लोलावेज्ज उवगरण (उपकरण) आ० ४७.३०४ सू० २३. नि० १५५१६ उ० १२१४. अनं० २२. अ० ३६२,६६४,६६०. उल्लोलावेंत (उदलोलयत्) नि० १५१६ वसा०४।२० उल्लोलेंत (उदलोलयत्) नि० ३।१६,२५,३१,५३, उवगरणउप्पायणया (उपकरणउत्पादन) बसा. ६२; ४१५७,६३,६६,६१,१००; ६।२८,३४,४०, ४१६,२० ६२,७१,७।१७,२३,२६,५१,६०; ११११४; उवगरणजाय (उपकरणजात) क० २।२४ से २७; २०,२६,४८,५७; १५॥१०२,१०८,११४,१३६, ४।२५. व० ७।२२८।१३ से १५. निक १४५ ४।२३; १५॥१५३,१५४ Page #1063 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवग्गह-उवनिवखत्त उवग्गह (उपग्रह) व० ३।३ से ८ उवट्ठाणसाला (उपस्थानशाला) बसा० १०॥३,१२. उवग्घायनिज्जुत्ति (उपोद्घातनियुक्ति) अ० ७११, प० ४०,४१,४२,४४ उवट्ठाव (उप+स्थापय)-उवट्ठावेति निक उवघाइ (उपघातिन्) उ० ११४० १११८६ उवघाइणी (उपघातिनी) द० ७।११,२६,५४ उवट्ठावणंतेवासि (उपस्थापनान्तेवासिन्) व० Vउचिट्ठ (उप-+ठा)-उवचिट्ठएज्जा ८० १०।१७ ___११--उवचिट्ठि उ०१।२०--उवचिठ्ठज्जा उवढावयणायरिय (उपास्थापनाचार्य) व. उ० १३० १०।१५ Vउवचिण (उप+चि)-उवचिणाइ उ० उवट्ठावंत (उपस्थापयत्) नि० १११८६ २६४२३ उवट्ठावेत्तए (उपस्थापयितुम्) क० ४।७. व० उवचिय (उपचित) द० ७।२३. अ० ६६,६३१०१. २०१८ ५०२२,६२ उवट्ठिय (उपस्थित) द० ४ सू० ११ से १६; Vउवजीव (उप+जीव)-उवजीवइ व. IE ६।२२,२७. उ० १२॥३; २०१८,२२; २५५; उवजोइय (उपज्योतिष्क) उ० १२।१८ । ३२।१०७; ३५।२०. दसा० ६।२।२१; उवज्झाय (उपाध्याय) आ०१।१४।८. द. १०।२४ से ३३ ६।२६. उ० १७१४,५. अनं० १६ से १८, उवणिग्गय (उपनिर्गत) उ० १८।१ २० से २२. दसा ।।२४,२५. प० २३०, उवणिमंत (उप-नि+मन्त्रय)-उवणिमंतेति २३१,२३६,२७१. क० ३।१३;४।१६ से २४, दसा० ३।३ २६,२७. ब० ११२५,३३, ३३१० से १२,१६, /उवणी (उप-+णी)-उवणिज्जइ उ० १३।२६ १७२१२२.२५.२८.२९:४११.२.५,६६,१० -उवणेमो दसा० १०।२४ १३ से १७,२८,३१,३२, ६।२; ७१५; १०॥४०. उवणीय (उपनीत) द० चू० १।१५. उ० ४।१,६%; नि०४१२०; १६३३६; १९४२५ १३।२१. अ० ३०७४ उवज्झाइया (उपाध्यायी) ३० ३११२ Vउवदंस (उप---दर्शय)-उवदंसिज्जइ अ० उवज्झायत्त उपाध्यायत्व) क० ४।१८,२१,१४. ६०६. --उवदंसिज्जति नं०६६. ३० ३१३ से ७,९,१०,१३,१६,१७,२१,२२; -उवदंसेइ दसा० ८.१.५०२८८. -उवदं७.२० सेति दसा० १०॥३५ उवट्टित्ता (उद्धृत्य) उ० ८।१५ उवदंसिय (उपदर्शित) उ० २०१५४; २५॥३५; उवट्ठ (उप+ठा)-उवट्ठति अ० २१ २६७४. अनं० ८. अ० १६,३७,६०,८४, उवट्ठव (उप+स्थापय)-उवट्ठवेहि दसा० १०६,५६६,६२६,६३८,६५०,६७६,७०३ १०९ उवदिट्ठ (उपदिष्ट) प०७४ उवट्ठवेत्ता (उपस्थाप्य) दसा० १०९ Vउवदिस (उप-दिश)-उवदिसइ प० १६५ उवट्ठा (उप+स्थापय)-उवट्ठावेइव० ४।१५ उवदिसित्ता (उपविश्य) प० १६५ उवट्ठा (उप+ष्ठा)-उवट्ठाएज्जा व० ११२३ उवधारणया (उपधारणता) नं० ४३ उवट्ठाइ (उपस्थायिन्) द० चू० १ सू० १ उवनंदभद्द (उपनंदभद्र) ५० १६१११ उवट्ठाण (उपस्थान) ५० ५१ उवनिक्खत्त (उपनिक्षिप्त) क० २१४,५ Page #1064 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० निक्खिविव ( उपनिक्षेप्तव्य ) क० ४।२५ hi उवनिमंत ( उप + नि + मन्त्रय् ) -- उवनिमंतेज्जा क० ११३८ उवन्नत्थ ( उपन्यस्त) द० ५।३६ / उवभुंज ( उप + भुज् ) – उवभुंजइ उ० २०२६ उवभोग (उपभोग) द० ६।३० उ० ३२ ३२,४५, ५८, ७१,८४,६७, ३३।१५. ५० ३२ उवभोगंतराय ( उपभोगान्तराय) अ० २८२ उपभोगलद्धि (उपभोगलब्धि ) अ० २८५ उमा (उपमा ) द० ६६, ८ ० १।११. उ० ४ ६ ७ १५; ६।५३; १४ । ४७ १८ २८; १६।११; २०१३ ३२।२० ; ३६।६६. अ० ५६६१४. ५० ६,२६ V उवमा ( उप + मा ) -- उवमिज्जइ अ० ५६६ - उवमिज्जति अ० ५६६ उमाण ( उपमान) प० २४ उमाणि ( उपमानित) प०५८ उवयार (उपचार) द० ६।३७. अ० ३१४ । ९. प० २०, ४०, ४२,६२ उवरथ (उपरत) द० ८।१२. उ० ६६. प० ५४. व० २।१३, १५, १७, १८, २०, २२ उवरि (उपरि ) उ० ३६ । ५७. अ० ४६० नि० २।५१ उवरिम ( उपरितन ) उ० ३६।६२. नं० २५ उवरिमउवरिम (उपरितनउपरितन) उ० ३६। २१५ उवरिमउवरिमगेवेज्जय ( उपरितन उपरितनग्रैवेयज ) अ० २५४ उवरिमतल ( उपरितनतल ) नं० २५ उवरिममज्झिम (उपरितनमध्यम ) उ० ३६।२१४. अ० २५४ af (उपरितनश्रुत) नि० १६।१६ रिमट्टिम (उपरितनअधस्तन) उ० ३६ । २१४. अ० २५४ उवरिल्ल ( उपरितन ) अ० ४१६ उवनिक्खिवियव्व उववाय उवरुवरि ( उपर्युपरि) नि० १८:१६ उवल (उपल) उ० ३६।७३ उवलंभ (उप + लम्) -उवलभति दसा० ६।५ उवलग्ग (उपलग्न) प० ३० उवलद्ध (उपलब्ध) उ० २८ २४ V उवलब्भ (उप + लभ्) -- उवलब्भइ नं० ३८।१. - उबलब्भई अ० ३०७।१० √ उवलभ ( उप + लभ् ) – उवलभाम उ० १६।१३ उवलित्त (उपलिप्त ) दसा० १०।७ प० ४०, ४१ बलित्तए (उपलेप्तुम् ) व० १।२० से २२; ४।११,१२ ५।११,१२ उवलिप्प ( उप + लिप् ) – उवलिप्पई उ० २५।२६ उवलेव (उपलेप) उ० २५३६ उवलेवण ( उपलेपन) अ० २० उवलेविय ( उपलिप्त ) प० ६२ ( उववज्ज ( उप + पद्) – उववज्जइ उ० ३।१७ – उववज्जंति उ० ८।१४. दसा० ७१४ उववज्जमाण ( उपपद्यमान ) प०३२ उववज्भ (उपवाह्य) द० ६।२२, २३ उववत्ति ( उपपत्ति) नं० ८६ उववत्तु ( उपपत्त ) दसा० १०।१४ से ३२ उववत्तिग ( उपपत्तिक) उ० २६।१५ उववन्न ( उपपन्न) द० ५।१४७. उ० ६१; १३।१; १७|१; २०१४४ उववाइय ( औपपातिक) व० ४ सू ६. उ० ५।१३ उववाइयस्य ( औपपातिकश्रुत) जोनं० ८ / उवाय ( उप + पादय् ) – उववायए द० ८१३३. उ० ११४३ उववाय ( उपपाद) उ० ३४, ५८, ५६ उवत्राय ( उपपात) उ० १।२. दसा० १०।३३. Page #1065 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उववह-उवहिपचक्खाण प० ८२. व० ४।१८ ८. अ०२७७,२७८.५० ८४,२८३. क० उववह (उपवं हण) उ० २८।३१ ११३४ उववूहणिय (उपवं हणीय) नि० ६।११ उवसम (उप+शम्) -उवममइ प० २८३ उववेय (उपेत) द०६३ उ० १११३; १२।१३ __ क० ११३४.-उवसमेज्जा क० ११३४ १३।१० से १३,२०; २०१५१. नं० ७६. अ० उवरामनिप्फण्ण (उपशमनिष्पन्न) अ० २७७, ३६०।१.५० ६,३८,४७ २७६,२६०,२६१ /उवसंकम (उप-।-संकम)-उवसंकमज्ज 'उवसमावेयव्व (उपशमयितव्य) प० २८३ द० ५।११३ उवसमिय (औपशमिक) अ० १२६,२४३,२७१, उवसंकमेंत (उपसंक्रामत) द० ५।११० २७७,२७६,२८६ से २९७ उवसंत (उपशान्त) द०६।६४,६८; १०।१०. उवसमियब्व (उपशमितव्य) प० २८३. क. उ० २।१५; ६।१; १५।१५; ३४।३०,३२. १३४ अ० २७६,२६१,२६३,२६५,२६७; ३१८।२. उवसोभिय (उपशोभित) १० १०।१४ प० २४,७८. व० ३।१३,१५,१७,१८,२०,२२ उवसोहिय (उपशोभित) उ० १०॥३७; १८।३४ उवसंपज्ज (उव+सं पद)-उवसंपज्जइ उवस्यय (उपाश्रय) द० ७।२६. उ० २।२३; व० ४।२५. -उवसंपज्जामि आ० ४६ ३५१५. दसा० ७।१०,११,१२,१६,१७,२१. उवसंपज्जणसेणियापरिकम्म (उपसंपादनश्रेणिका प० २५१,२५५ से २५८,२८४. क० १३१४, परिकर्म) नं० ६३,६८ १५,२०,२१,२५ से २६; २११,४ से ८, उवसंपज्जणारिह (उपसंपादनाह) व० ४।११,१२, ३।१,२,२६. व० ६१२,३; ७१२३,२४. नि० ५।११,१२ ४।२२; ८।१२ से १४ उवमंपज्जणावत्त (उपसंपादनावत) नं०६८ उवहड (उपहृत) २०६।४४ उवसंपज्जित्ताणं (उवसंपद्य) द० ४ सू० १७. उ० उवहण (उप+हन)-उवहम्मई द० ११४ २६।३४. प० २७५. क० ४११६. २०१२३ ‘उवहर (उप+ह)--उवहरति नि० ७१८२ उवसंपज्जियब्व (उपसंपत्तव्य) व० ४।११ उवहरंत (उपहरत्) नि० ७१८२ उवसंपदा (उपसम्पदा) उ०२६।४,७ उवहस (उप+हस्)-उवहसन्ति उ० १२॥४ उवसंपया (उवसंपदा) द० चू० १ सू० १. अ° -उवहसे द० ८।४६. दसा० ६।२।६ २३६।१,२४० उवहाण (उपधान) उ० २।४३. नं० ८६ से ८६, उवसग्ग (उपसर्ग) उ० २।२१; २६।३४,३१५. नं० ८७. दसा० ७।४,२६ से २८, ३१ से ३३; उवहाणव (उपधानवत्) उ० ११।१४; ३४।२७, १०।२४ से ३३. प० ६७,७४,७७,११४. २६ ब० १०।२,४ उवहार (उपहार) प० २२ उवसग्गपत्त (उपसर्गप्राप्त) क० ६।१४. व० उवहि (उपधि) द. ६।२१, ६।३५; १०११६; २०१३ चू० २।५. उ०११४; १९४८४; २४।११, उवसत (उपशक्त) उ० ३२।२६,४२,५५,६८,८१, १५. ५० २७७. नि० २।५६; १२।४१; ६४. ५० २४ १६६४० उवसम (उपशम) द० ८।३८. उ० ३२१११. नं० उवहिपच्चक्खाण (उपधिप्रत्याख्यान) उ० २६१ Page #1066 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवाइणाव-उध्वटेंत ३५ उवाइणाव (अतिक्रम) -उवाइणावेइ क० ३।३३. -उवाइणावेति नि० १०॥३८ उवाइणावित्तए (अतिक्रमितुम्) प० २३० उवाइगाविय (अतिक्रान्त) क० ४।१२,१३ उवाइणावेत (अतिकामत) क० ३।३३. नि० १०॥ ३८; ११८१ उवाइणावत (अतिक्रमितम) क० ३१३३, ४११२, उवासग (उपासक) उ० ३१।११. नि०१४।३८, ३६; १८७०,७१ उवासगदसा (उपासकदशा) नं०६५,८०,८७. अनं० २८. अ० ५०,५४६ उवासगदसाधर (उपासकदशाधर) अ० २८५ उवासगपडिमा (उपासकप्रतिमा) आ० ४१८. दसा० ६।१ से ३,८ से १८ उवासय (उपासक) नि० ८.१२ से १४,१११८५, उवाइणित्तए (अतिक्रमितुम) दसा० ७।१२ उवागच्छ (उप-+-आ+ गम) --~उवागच्छइ दसा० १०॥६. प० ५. --उवागच्छंति दसा० १०।६. प० ४१. -उवागच्छति दसा० १०१३. नि० १६१२. --उवागच्छिज्जा प० २५३. --उवागच्छेज्जा दसा० ७।१६ उवागच्छंत (उपागच्छत् ) नि० १६।२ उवागच्छित्तए (उपागन्तुम) प० २५५ उवागच्छित्ता (उपागत्य) दसा० ८।५ उवागम्म (उपागम्य) उ० १४१६. दसा० ५।७।१७ उवागय (उपागत) उ० १३१८, १४१५२:२३१४; २५१३. प० २,१७,५६,७५,८१,८३,८४,१०६, १०६,१११,११३,११५,१२४,१२७ से १३०, १३८,१६१,१६३,१६५,१६६,१८० उवातिण (उप+आ+दा) -उवातिणाति नि० २।४६ उवातिर्णत (उपाददत् ) नि०२।४६,५० उवातिणाव (उप + आ + दापय्)-उवाति णावेति नि० १२०३१ उवातिणावेंत (उपादापयत्) नि० १२।३१,३२ उवातिणावेत्तए (अतिक्रमितम) दसा० ७२०. ५० २५६ उवाय (उपाय) द० ८।२१; ६।२१,३७; चू० १।१८ उ० ३२।६ उवायओ (उपायतस्) उ० २३।४१ उवासंतर (अवकाशान्तर) २०८।१. नि० ६।१२ उविच्च (उपेत्य) उ० १३।३१ उवित्ता (उपेत्य) व. ६।४२ उवे (उप+ई)-उवेइ द० १०२१. उ०.४१८. __अ० ५७४-उति द० ६।६८. उ० ३।१६. अ० ३६०।३-उवेमो उ० १२।३३---उवेह उ० १२।२८ उवेत (उपयत्) द० चू० १।१७ उवेय (उपेत) उ०६९ उवेह (उप+इक्ष)-उवेहइ दसा० १७१७ उवेहे उ० २।११-उवेहेज्जा उ० २।२५ उवेहमाण (उपेक्षमाण) उ०२१११५ उचट्ट (उद्+वत)-उव्वहेज्ज नि० ११५ -उव्वट्टेति नि० ६६ उन्वट्टण (उद्वर्तन) आ० ४।५. ६० ३।५; ६।६३; ६।१२ उन्वट्टा (उद्वर्तक) नि०६।२७ उव्वट्टाव (उद+वर्तय)-उव्वट्टावेज्ज नि० १५।२२ उव्वट्टावेत (उद्वर्तयत्) नि० १५२२,२८,५०, ५६; १७१८,२४,३०,५२,६१,७२,७८,८४ १०६,११५ उव्वटेत (उद्वर्तमान) नि० ११५; ३।२५,३१,५३, ६२,४।५७,६३,६६,६१,१००, ६।६,२८,३४, ४०,६२,७१, ७।१७,२३,२६,५१,६०; ११११४, २०,२६,४८,५७; १५२१०२,१०८,११४,१३६, १४५ Page #1067 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्वलण-ऊण ७३ उज्वलण (उद्वलन) दसा० १०।११. ५० ४२ उव्वह (उद्+वह.)-उव्वहती दसा० ६२।१५ उब्विम्ग (उद्विग्न) द० ५।१३६. उ० १४१५१ उव्विद्ध (उद्विद्ध) अ० ३६०।२ उठिवह (उत्+व्यध्)-उविहति नि० ७८३ उविहंत (उद्विध्यत्) नि० ७८३ उव्वेह (उद्वेध) अ० ४१० उसण्हसण्हिया (उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणका) अ० ३६६ उसभ (ऋषभ) आ० २१२; ४।६; १४।२. नं० गा० १८. अ० ६३,६७,२२७,२२८. ५० ३२, १६० से १८१ उसभदत्त (ऋषभदत्त) ५० २,५ से ७,१०,१३ से १५,१७ उसभसेण (ऋषभसेन) अनं० २८।१.५० १६८ उसह (वृषभ) १०४२ उसहसामि (ऋषभस्वामिन्) नं० ७६ उसिण (उष्ण) द०६।६२. उ०२ सू० ३;२।८; २१११८. अ० २६१,२६३,५१२. क. ५।१२ उसिणवियड (उष्णविकट) प० २४८,२४६ उसिणोदग (उष्णोदक) द०८।६. दसा०६।३; ७।२३. क० २१५. नि० ११६; २।२१, ३।२०, २६,३२,३६ से ३६,५४,६३, ४।५८,६४,१०, ७४ से ७७,६२,१०१,५।१४; ६१७,१५,२६, ३५.४१,४५ से ४८,६३,७२; ७१८,२४,३०, ३४ से ३७,५२,६१,११११५,२१,२७,३१ से ३४,४६,५८; १४।१२,१३,१६,१७; १५१७, २३,२६,३३ से ३६,५१,६०,१०३,१०६,११५, ११६, से १२२,१३७,१४६; १७।१६,२५,३१, ३५ से ३८,५३,६२,७३,७६,८५,८९ से १२, १०७,११६; १८१४४,४५,४८,४६ उसुकाल (दे०) नि० १३।९।१४।२८; १६१४६; १८६० उसुयार (इषुकार) उ० १४।१,३,४८ उसुयाररिज्ज (इषुकारीय) उ० १४ उस्स (दे० अवश्याय) उ० ३६४८५. दसा० २।३. १० २७०. क० ४।३१ से ३४. नि० ७७५ उस्सक्किया (उतवष्क्य) द० २६३ उस्सट्ठपिंड (उत्सृष्टपिण्ड) नि० ८।१८ उस्सण (दे०) दसा० ६।४ उस्सप्प (उत्+ सप्)-उस्सप्पंति क० ११४७ उस्स प्पिणी. (उत्सपिणी) उ० ३४१३३. नं० २२, ६६. अ० २१६,४५७,४५८,४६०,४६३,४६७, ४८२,४८७,४६०,४६५,४६६,५०३,६१६. १० १२,१४ उस्सप्पिणीगंडिया (उत्सपिणीगण्डिका) नं० १२१ उस्सव (उत्+श्रि)-उस्सवेह ५० ६२ उस्स वित्ताणं (उत्सृत्य) द० २६७ उस्सवेत्ता (उच्छृित्य) प० ६२ उस्सास (उच्छ्वास) वसा० १०।२८ से ३२ उस्सिन (उत्-+-सिंच्)-उस्सिचति नि० १८१८ उस्सिचंत (उत्सिचत) नि० १८१८,१५ उस्सिचण (उत्सेचन) उ० ३०।५. नि० १८।१५ उस्सिचिया (उत्सिच्य) ९० ५।६३ उस्सिय (उच्छित्य) उ० १०॥३५ उस्सीस (उच्छीर्ष) नि० ५७७ उस्सुक्क (उत्शुल्क) ५० ६४,१६३ उस्सुत्त (उत्सूत्र) आ० ४।३; ५२ उस्सूलग (दे०) उ०६।१८ उस्से इम (उत्स्वेद्य) प० २४५. नि०१७।१३३ उस्सेह (उत्सेध) उ० ३६।६४ उस्सेहंगुल (उत्सेधांगुल) अ० ३८६,३६५,३६६, उस्सहगुल (उत्सधागुल) अ° २८ ४०१,४०७,४०८ ऊ (तु) उ० १२।११ ऊ (ऊ) अ० २६४।२ ऊकारंत (ऊकारांत) अ० २६४।४ ऊण (ऊन) उ० ७।१३; ३०१२१, ३४।४६. अ० १५०,१५४,१७६,१८३,१८७,१६१,१६५, Page #1068 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ २२१,२२५,२२६, २३३, २३७, २४१,२४५, ४६०,५८६, ५६२, ५६५, ५६८,६०१. प० १४५ १८०. ० १०।२१. नि० २०१४६, ५० ऊणग ( ऊनक) व० ८।१७ ऊया (ऊनिका) प० १५१ से १५६,१८१ ऊरिया ( ऊनोदरिका ) उ० ३०१८ ऊरणिय ( औणिक ) अ० ३३० ऊरणी (दे० ) अ० ३३० ऊरु (ऊरु) द० ४ सू० २३; ८।४५. उ० १।१८. अ० ४१६. नि० ७।१३ ऊर्ध्व कर्णः ( ) अ० ३६८ ऊस (ऊस) द० ५।३३. उ० ३६।७३ ऊसढ ( उत्सृत) द० ५। १२५; ७।३५ ऊसढ ( उच्छ्रित) दसा० ३।३ ऊसविय ( उच्छ्रित्य ) वसा० १०।१५ प० ३८ ऊससिय ( उच्छ्वसित ) आ० ५।३. उ० २०१५६. नं० ६०।१. प० १० ऊसास (उच्छ्वास) अ० ३०७।१,४१७. दसा० १०:३३ ऊसिय ( उच्छ्रित) उ० २२।११. नं० गा० ६,१३ दसा० १०।१४. प० २१,२३ ऊह (ऊह ) – ऊहते अ० २६६ ए एउं (एतुम्) उ० ४।१० एकारस ( एकादशन् ) आ०४८ एक्क (एक) द० चू० २।१० उ० १३ । ३. अ० २११. नि० १।३१ एक्कय (एकक) द० ५। ६६. उ० ३५।६ एक्कवीस ( एकविंशति) दसा० २।१. नि० ४४८ एक्कसीइ ( एकाशीति) उ० ३४।२० एक्कारस ( एकादशन् ) उ० २८।२३. दसा० ११. प० १२२ एक्कारसम (एकदश) दसा० ६।१८. ५० ६६ एक्कारसवासपरियाय ( एकादशवर्षपर्याय) व १०१३० ऊण-एगट्टिय एक्कासी (एकादशी) प० ११३, १६६. व० १०/३ एक्किक्क (एकक) अ०८७ एक्केक्क ( एकैक ) अ० ७४।२ एग (एक) द० ५।३७. उ० १।२६. नं० १७. अनं० ३. अ० १०. दसा० ७१५. क० ११६. व० १।३१. नि० १।४१ एगइय (एकक) द० ५।१३१,१३३,१३७. उ० २६।२.१० २३५, २८७ एगओ (एकतस् ) उ० १४।२६; ३११२. व० २।१ से ४,२४,२७. नि० ४।११८ एगंत ( एकान्त) द० ४ सू० २३ ५।११, ८१, ८५ ८६. उ० ६४, १६, २२/३५, २६।३२; ३०१२८ ३२१२,३, १६, २६, ३६, ५२,६५,७८, ६१. दसा० १०१६. क० ४।११,१३, २५; ५।११,१२. व० ८।१३ से १५ एतदिट्ठि (एकांतदृष्टि) उ०१६।३८ एगंतर (एकांतर) उ० ३६।२५३ erraft ( एकाक्षरिक) अ० २४८, २४९ एगखुर ( एकखुर) उ० ३६।१८० एग (एकक) उ० १|१० एगगुण ( एकगुण) नं० ६४ से १०० अ० २६३ एगग्ग ( ऐका) उ० २६, ४०,५४, ५७; ३२ १; ३५।१ एगग्गचित्त ( एकाग्रचित्त) द० ६ ४ सू० ५. उ० २६ ३१,५४ गग्गमणसन्निवेसणया ( एकाग्रमनः सन्निवेशन) उ० २६।१,२६ एगग्गमण ( एकाग्रमनस् ) उ० ३०।१; ३५।१ एगग्गहणगीय (एकग्रहणगृहीत) अ० ५५७ एगचर (एकचर ) उ० १५ १६ एगचित्त ( एगचित्त) उ० २०३८ एगच्छत्त (एकछत्र ) उ० १८ ।४२ एगजाय ( एकजात ) दसा० १०।२५ प० ७८ एगट्ठ ( एकार्थ) अ० ५१।१ एगट्ठाण ( एकस्थान ) आ० ६।५ एग (एकाथिक) नं० ४३,४५,४७, ४९. अ० Page #1069 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगट्टियपय-एगीभाव ७५ २८,५१,७३ एगट्टियपय (एकाथिकपद) नं० ६४,६५ एगततो (एकतस्) दसा० १०॥६ एगतिय (एकक) दसा० १०॥२२. प० २३३,२३७ एगतीस (एकत्रिशत) आ० ४।८. व. ८।१७ एगत्त (एकत्व) उ० २८।१३; ३६।११,६५ एगदुवार (एकद्वार)क० १११०. व० ६।४,७; ६।१३ से १६ . एगनिक्खमणपवेस (एकनिष्क्रमणप्रवेश) क० १।१०. व०६।४,७; १।१३ से १६ एगपएसिय (एकप्रदेशिक) अ० ३६३,४०६ एगपक्ख (एकपक्ष) उ० १२।११ एगपक्खिय (एकपाक्षिक) व० २।२६ एगपाइया (एकपादिका) क० ५।१६ एगपासिया (एकपार्श्विका) क० ५।२३ एगपोग्गलनिरुद्धदिट्ठि (एकपुद्गलनिरुद्धदृष्टि) सा० ७.१३ एगभत्त (एकभक्त) द० ६२२ एगभविय (एकविक) अ०५६८ एगभूय (एकभूत) उ० १६७७ एगमण (एकमनस्) उ० ३०१४; ३६।१ एगमास (एकमास) व० २।२७ एगमेग (एकैक) अ० ४०६,४२२,४२४,४२६,४३१, ४३६,४३८,४३६ एगय (एकक) द० ४ सू० १८ से २३ उ० २०२० एगयओ (एकतस) क० १११०,११. ३० १११६% २।२७;४।१६,२४ से ३२, ६१४,५ एगया (एकदा) द० ५।६५. उ० २।६ एगराइय (एकरात्रिक) क० ३।४ एगराइया (एकरात्रिकी) दसा. ६।११ से १८, २२. व० ११२० से २२; ४१११,१२; ५।११, एगल्लविहारपडिमा (एकल विहारप्रतिमा) व० १२३ से २५ एगल्लविहारसामाचारी (एकलविहारसामाचारी) दसा० ४।१५ एगवगड (दे० एकवकर) क० १११०. व० ६।४, ७; हा से १२ एगविह (एकविध) आ० ४।८. उ० ३६७७,८६, १००,११०,११६. नं० ३३०१ एगवीस (एकविंशति) आ० ४१८. उ० ३१।१५, नं० ८३ एगवीसइ (एकविंशति) अ० ३०७।१४ एगसमयट्टिईय (एकसमयस्थितिक) अ० २००, २०४,२२३,२२४,४१४ एगसाडिय (एकशाटिक) प०१० एगसिद्ध (एकसिद्ध) नं० ३१ एगसेस (एकशेस) अ० ३५०।१,३५७ एगाइय (एकादिक) नं० ८३,८४ अ० १५०, १५४,१७६,१८३,१८७,१६१,१६५, २२१, २२५,२२६,२३३,२३७,२४१,२४५ एगाणिय (एकाकिन्) क० ११४५,४६, ५।१५. व०४।१, ६.१ से ३,६,७ एगामोसा (एकामर्शा) उ० २६।२७ एगायक (एकक) प० २५६ एगायग (एकक) ५० २५६ एगारस (एकादशन्) व० १०।३ एगारसमी (एकादशमी) व०१०।३ एगावली (एकावली) दसा० १०।१२ नि० ७७ से ६; १७६; से ११ एगासण (एकाशन) आ० ६।४ एगासीय (एकाशीति) २०६।३७ एगाह (एकाह) दसा० ६.१२ से १८. व. ८२ से ४ एगरातिया (एकरात्रिकी) दसा ७३५ एगराय (एकरात्र) उ० २।२३, ५।२३. दसा० ७८. क० २१४ से ७ एगाहिय (एकाहिक) अ० ४२२।१,४२४।१, ४२६।१,४३१४१,४३६.१,४३८१ एगिदिय (एकेन्द्रिय) आ० ४।४. अ० २५४ एगीभाव (एकोशाव) उ० २६।४० Page #1070 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ एगुत्तरिय ( एकोत्तरिक) नं० ८३, ८४. अ० १५०, १५४, १७६, १८३, १८७, १६१, १६५, २२१, २२५.२२६,२३३, २३७,२४१,२४५. ० १०५ एकूणतीस ( एकोनत्रिंशत् आ० ४१८. नं० ६६. अ० ४६० एकूणपण ( एकोनपञ्चाशत् ) उ० २६।१४१. व० ६।३५ एगूणपण्णास ( एकोनपञ्चाशत) अ० २७० १४ एमवीसवासपरियाय ( एकोनविंशतिवर्षपर्याय ) व० १०३५ एज्जत (आयात्) द० ६।२१. उ० १२४ √ एड (बै०) एडेति नि० ० एडेंत (दे० ) नि० ३६० एतारिस ( एतादृश) दसा० ६ २ २० एताव ( एतावत् ) अ० ४१७. क० १०४७ एतावय ( एतावत्) अ० ४१७ एतए ( एतुम् ) दसा० ६।१८ ५० २५१. क० १२४४. ० ६।१ एताव ( एतद्रूप) दसा० ६।१२.१६ एत्तिय ( एतावत् ) उ० १३।३३ एतो (इस्) उ० १९४७ २०७४।२. क० १।४७. व० ८।१७ एत्थ (अत्र ) आ० ४।६. उ० १२।१५. अ० ३४१. दसा० ५।४ प० १२७ √ एध ( ) अ० ३६७ एमेव ( एवमेव ) उ० १४।१८. अ० ७०८३ ए ( एतत् ) द० १३. ० २।१३. नं० २२११. अ० ७२. दसा० २।३. नि० २०।१५ एव (एज्) एय १० ५५ एवति ५० ५४ एय (एव) उ० २४।१६ एयारिस ( एतादृश) द० ५।६६. उ० १३।२९ १७/२०; २२।१३ ३२१७. ० ३५ एयाव ( एतद्रूप) दसा० १०३३. ५०४, ५, ११,१६, २०, ३६, ५२, ५४, ५५ ५७. व० २१२५ एखद ( ऐरावती) प० २३२ एगुतरिय एसणा एरवय ( ऐरवत ) नं० ६६. अ० ३३३,३६६, ५५६ एरावई (ऐरावती) क० ४०३०. नि० १२०४३ एरावण (ऐरावण) प०८ एरिस ( ईश ) द० ६।५ ७४३; चू० २।१५ उ० १२।११,३७ १६।६ २०१५ एलइज्ज (एडकीय) अ० ३२२ एलग (एडक) द० ५।२२. अनं० १६ एलमूयत ( एडमूकत्व) दसा०. १०।२६ एलय ( एडक) उ० ७१,७. अनं० १२ एलमूयया (एडमूकता) द० ५।१४८ एलावच्च (एलापत्य) नं० गा० २५ एलावच्छ ( एलावत्स ) प० १८७,१६२, १९३. एलिक्स (ईदक्ष ) ०७२२ एलुय ( एलुक) वसा० ७।५. व० १०।३ एव (एव) द० ४ सू० १० नं० गा० २१. उ० १।१५. अ० १७. दसा० ३।३. क० ११५. व० १।१५ एवइक्सो ( एतावत्कृत्वस् ) ० १।२३ एवश्य ( इयत् एतावत् ) आ० ४२६ ५० २३७, २४०,२७३,२७५. ० १।३३ एवं ( एवं ) आ० २।५. द० १।३. उ० १४ नं० ३८।१३. अनं० ६. अ० १४. दसा० १।१ ०८।१२. नि० ४।३८ एवंभूय ( एवम्भूत) अ० ५५७,७१५ एवंवि ( एवंविध) उ०३२।१०२ एवहं (एव) क० ११४ एवमेव (एवमेव ) ० १४।१५. अनं० ६.० १४ एवामेव ( एवमेव ) नं० १७. ० ५८७. वसा० ६।३ V एस (आ + इब्) - एसिज्जा उ० ३५।१६. - एसेज्जा ० ५।१२६. ३० १४७ एसंत (एषयत् ) उ० ३०।२१ एसकाल (एष्यत्काल) २०७७ एसज्ज (ऐश्वर्य) अ० ३०२।२ एसा (एषणा ) द० १।३; ५।१३६,१५०. Page #1071 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एसणागोयर-ओभासंत ७७ उ० ११३२, २।४; ६।१६; ८।११, १२।२; २०१४०; २४।२,१२; ३०।२५ एसणागोयर (एषणागोचर)क० ६.१६ एसणासमिइ (एषणासमिति) आ० ४।६,८ एसणासमित (एषणासमित) दसा० ५७; १०।३२ प० ७८ एसणिज्ज (एषणीय) उ० १२।१७; १६।२७; ३२।४. दसा० १०॥३१ एसणिय (एषणीय) द० ५।३६,३८; ६।२३ एसमाण (एषयत्) उ० १४।१४ एसित्ता (एषित्वा) उ० ११३२ Vएह (एध) -एहए उ०६।३५ एह (एस) उ० १२१४३,४४ एहंत (एधमान) ० ६।२२ से २४, २६ से २८ ओ ओ (ओ) अ० २६४।२ ओअंत (ओअन्त) अ० २६४।२ ओइण्ण (अवतीर्ण) उ० ५.१४; १०॥३२; १६॥५५; २२।२३ ओंकार (ओंकार) उ० २५२६ ओकसमाण (अवकृष्माण) क० ६१८ ओकसमाण (अव+कृष)--ओकसावेति नि० १८।१३ ओकार (ओकार) अ० २६४१२ ओकिण्ण (अवकीर्ण) अ० ३१३३२ ओगाढ (अवगाढ) उ० २४।१४; ३६।२५८,२५६. अ०१५६,१६३ १६३,१६४,३८७,५५६ ओगाढवत्त (अवगाढावर्त) नं. ६७ ओगाढसेणियापरिकम्म (अवगाढश्रेणिकापरिकर्मन) __ नं० ६३,९७ ओगास (अवकाश) द० ५।१६ ओगाह (अवगाह) उ० २८९ ओगाह (अव+गाह.)-ओगाहइ उ०२८।२१. -ओगाहेज्जा अ० ३६८. क० ५।१४ ओगाहणा (अवगाहना)उ० ३६।५०,५३,६२,६४. नं० १८।१. अ० ४०१. से ४०३,४०५,४२४, ४३१,४३८. ओगिज्झ (अवगृह य) व० ८२ ओगिण्ह (अव-ग्रह)-ओगिण्हति दसा० ४।१०. ५० ३८ ओगिण्हित्तए (अवग्रहीतुम्) दसा० ७।२१ व० ८।११ ओगिण्हित्ता (अवगृह्म) ५० ३८. व० ८।१० ओगेण्हणया (अवग्रहणता) नं० ४३ ओगेण्हियन्व (अवग्रहीतव्य) व० ७।२५ ओग्गह (अवग्रह) द० ५।१८; ६।१३; ८।५. दसा० १०।३५० ३६.० ११३८ से ४२; ३।२७ से ३२,३४. व०४।२० से २३; ७।२२, २५ से २८,८१५ से १२ ओग्गह (अव+ग्रह)-ओगिण्हइ व० ६।४ ओग्गहमति (अवग्रहमति) दसा० ४।१० ओग्गहमतिसंपदा (अवग्रहमतिसंपदा) दसा० ४१६ ओग्गहिय (अवगृहीत) व० ६।४५,४६ ओघ (ओघ) द०६।४०. उ० २११२४. नं० १२० ओचार (दे०) अ० ३७५ ओच्छण्ण (अवच्छन्न) नि० १२१६ ओट्ट (ओष्ठ) ५०२३ ओदृच्छिण्ण (ओष्ठछिन्न) नि० १४१७,१८१३६ ओट्ठच्छिन्न (ओष्ठछिन्न) दसा० ६।३ ओडहित्तु (अवदहित) दसा० ६।३ ओत्थय (अवस्तृत) दसा० १०।११.५० ४२ ओधारित्ता (अवधार्य) दसा० ११३ ओनंदिज्जमाण (अवनन्द्यमान) प० ७५ ओनियत्त (अपनिवृत्त) ५० ३१ ओबोलित्तु (अवबुडयित) दसा० ६।३ ओभास (अव-+-भाष)-ओभासइ उ० ओभासंत (अवभाषमान) नि० ३.१ से १२ Page #1072 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ओभासिय-ओसन्न ओभासिय (अवभाष्य) नि० २०४८ ओरुभमाण (अवरोहयत्) क० ६६ ओम (अवम) उ० ३०११५ ओरोह (अवरोध) उ०६।४; २०१५८. प०६४ ओमंथिया (दे० अवमस्तिका) क० ५२२३ ओलंबित (अवलम्बित) दसा०६।३ ओमचरय (ओमचरक) उ० ३०।२४ ओलिज्झमाण (अवलिहत्) प० ३०,७५ ओमचेलग (अवमचेलक) उ० १२१७ ओलित्त (अवलिप्त) क० २।३,१०. नि० १७।१२७ ओमचेलय (अवमचेलक) उ० १२१६ ओवग्गहिय (औपहिक) उ० २४।१३ ओमजण (अवमजन) द० चू०१ सू० १ ओवघातिक (औपघातिक) द० ८।२१ ओमज्ज (अव+मज)-ओमज्जेज्जा व० ओवणिहिया (औपनिधिको) अ० १११,११२, श२१ १४७,१५१,१५४ से १५६,१७६,१६२,१६५ ओमरत्त (अवमरात्र) उ० २६३१५ से १९७,२१८,२२२.२२५ आमाण (अवमान) द० चू० २।६. उ० २७।१०. ओवत्तिया (अपवयं) द० ५१६३ अ० ३७२,३८०,३८१ ओवमिय (औपमिक) अ० ४१७,४१८ ओमाणसण्णा (अवमानसंज्ञा) अ० ३८०१ ओवम्म (औपम्य) अ० ५१५,५३८,५४२,५४६, ओमासण (अवमाशन) उ० ३२।१२ ५५८,५६६ ओमिण (अव+मा)-ओमिणिज्जइ अ० ओवयंत (अवपतत्) प० २५ ३८० ओवयमाण (अवपतत्) प० २३,८५,९६ ओमुइत्ता (अवमुच्य) ५० ७५ ओववाइय (औपपातिक) द० ४ सू०६ ओमोयरिय (अवमौदर्य, अवमोदरिक) उ० ३०.१४. ओवहिय (औपधिक) उ० ३४।२५ व० ८।१७ ओवाइय (औपपातिक) नं०७७ ओय (ओजस्) बसा० ५।७ ओवाय (औपाय) उ० १२८ ओयण (ओदन) उ०७१ ओवाय (अवपात) ८० ॥४ ओयविय (दे०) ५० २० ओवायव (अवपातवत्) द० ६।४३ ओयारिया (अवतार्य) दस० ५।६३ ओवास (अवकाश) व० ७।२३,२४, ८।५. नि० ओरस (औरस) उ० ६।३ १७।१२३,१२४ ओराल (दे० उदार) उ०३६।१२६. दसा० १०।। ओविय (दे०) बसा० १०।११,१२. ५० १०,४२ २२ से २६.५० ४ से ६,१६,२०,३६ से ३८, ओवुज्झमाण (अपोह्यमान) क० ६।८ ४७,४६,७३,७४,२७५ ओष्ठ (ओष्ठ) अ० ३५१ ओरालिय (औदारिक) उ० २६१७४. अ० २७६, ओस (दे०) आ० ४।४. उ० १०१२ ४४६,४५०,४५२,४५५,४५७ से ४५६,४६२। ओसक्किया (अवज्वष्क्य) ८० ५।६३ से ४६४,४६६ से ४६८,४७१,४७२,४७४, ओसण्ण (अवसन) नि० ४।२६,३०; १३१४५,४६; ४७६,४७७,४८०,४८२ से ४८४,४८६,४८७, १५८२ से ८५,१६।३०,३१ ४८६ से ४६५,४६८,४६६,५०२,५०३ दसा० ओसप्पि (णी) (अवसर्पिणी) अ० ४१५०१ ५७ ओसत्त (अवसक्त) दसा० १०॥२४. प० ६२ ओलंभिय (अवरुध्य) दसा० ६।२।३ ओसन्न (अवसन) द० चू० ११८. दसा० ६४.५० ओरुज्झमाण (अवरुध्यमान) उ०१४।२० २७६,२८२ Page #1073 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओसन्न-क ७६ ओसन्नदिट्ठाहड (उत्सन्नदृष्टाहृत) द० चू० २।६ । ओसन्न विहार (अवसन्नविहार) व० १।२६ ओसप्पिणी (अवपिणी) उ० ३४॥३३. नं० १८१८; २२. अ० २१६,४५७,४५८,४६०, ४६३,४६७,४८२,४८७,४६०,४६५,४६६, ५०३,६१६. प० १२,१४,१०६,१२४,१३८, १८० ओसर (अप+स)-ओसारेज्जा अ० ४१६ ओसह (औषध) उ० १९७६; ३२।१२ ओसहि (ओषधि) दस० ७।३४. उ. ११।२६; २२१६; ३२।५०. नं० गा० १४. २०६।३१, ३२. नि० ४।१६ ओसहिबीय (ओषधिबीज) नि०१४।३५; १८।६७ ओसहीतिण (ओषधितण) उ० ३६।९५ ओसा (दे०) दस०४ सू० १६ इओसार (अप - सारय)--ओसारेति नि० ओहायमाण (अवधावत) व० ४।१४।५।१४ ओहारिणी (अवधारिणी) द०७।५४; ६।४६. उ० ११२४ ओहाव (अव+धाव)-ओहाएज्जा व० ३।१६.-ओहावइ व० ३।१८.-ओहावेज्जा व० ११३२ ओहाविय (अवधावित) ८० चू० १।२. व० ४१४; ५।१४ ओहासणभिक्खा (उवभाषणभिक्षा) आ० ४।६ ओहि (अवधि) उ० ३३१६. दसा० ५।७. ५०६ ओहिंजलिय (दे०) उ० ३६।१४८ ओहिदसण (अवधिदर्शन) अ० ५५२. दसा०२७ ओहिदंसणलद्धि (अवधिदर्शनलब्धि) अ० २८५ ओहिदसणावरण (अवधिदर्शनावरण) अ० २८२ ओहिदंसणि (अवधिदशिन्) अ० ५५२ आहिनाण (अवधिज्ञान) उ० २३।३ नं० २,८,१०, १६ से २२. जोनं० १. अ० १. दसा० ५७; ७।३५ ओहिनाणपच्चक्ख (अवधिज्ञानप्रत्यक्ष) नं० ६,७. अ० ५१८ ओहिनाणलद्धि (अवधिज्ञानलब्धि) अ० २८५ ओहिनाणावरण (अवधिज्ञानावरण) अ० २८२ ओहिनाणि (अवधिज्ञानिन) नं० २२,१२०.५० ६७,१२२,१३६,१७३ ओहिय (औधिक) अ० ४६२ से ४६४,४६७, ४७१,४७२,४७७,४८१ से ४८३,४८७,४६० से ४६२,४६५,४६६,५०३ ओहीनाण (अवधिज्ञान) उ० २८।४; ३३।४ ओहीरमाण (निद्रात्) ५०४।५ ओहोवहि (ओघोपधि) उ० २४।१३ २०५१ ओसारेत (अपसारयत्) नि० २०५१ ओसारिय (अपसारित) अ० ४१६ ओसिंचित्तु (अवसेक्त) बसा० ६।३ ओसोवणी (अवस्वापनी) १०१५ ओस्स (दे०) नि० १३८; १४।२७; १६।४८; १८१५६ ओह (ओघ) ६० ६।४०. उ० १०॥३०,१४।१७, २३१८४; ३२३३,३४,४६,४७,५६,६०,७२, ७३,८५,८६,६८,९६३४।४०. नं० गा० ३६. दसा० ५७ ओहत (अवहत) ५० २४ ओहनिप्फण्ण (ओघनिष्पन्न) अ० ६१८,६१६,६६५ ओहय (उपहत) नि० ८।११ ओहरिय (अपहृत) उ० २६।१३ ओहरिय (अवहृत्य) नि० १७४१२६ ओहाडिय (अवघाटित)क० १११४ ओहाणुप्पेहि (अवधावनोत्प्रेक्षिन) ८० चू० १११. व. २०२५ औ औपसर्गिक ( ) अ० २७० क (किम्) द० ११४. उ० २।२३. नं० ८. Page #1074 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० कइ-ककुहि अ० ११. दसा० ३।३. क० ११३६. व० ४।४८ ३३,६०. नं० १२५ कइ (क्वचित्) द० चू० २।१४ कंतारभत (कान्तारभक्त) नि० ६।६ कइ (कति) अ० १२८,१४५.१७२,२१३,३०।१, कंति (कान्ति) दसा० १०।१६. ५० ७५ ४४६,४४८,४५०,४५२,४५५,७१३।२ कंथग (कन्थक) उ० २३१५८ क इ (कवि) अ० ३०२।२ कथय (कन्थक) उ० ११।१६ कइय (ऋयिक) उ० ३५।१४. २०७।२४ कंद (कन्द) द० ३१७. उ० ३६।९७,६८. नि० कइविह (कतिविध) अ०४४१ मे ४४४, ७१३।२ १४।३४; १८१६६ कउह (ककुद) दसा० १०।१६ कंद (क्रन्द)-कन्दन्ति उ०६।१० कओ (कुतस्) उ०६।१०. अ० ३.७१ कंदंत (क्रन्दत्) उ०१६।४६ कंकड (कङ्कड) दसा० १०।१४ कंदप्प (कान्दर्प) उ० ३६।२५६,२६३ किंख (काङ्क्ष) --कंखइ दसा १०।६. ----कंखए कंदप्प (कन्दर्प) उ० ३६।२६३ उ० ५।३१. --कंखंति दसा० १०१६. -कखे कंदप्पिया (कन्दपिका) दसा० १०॥१४ उ०४।१३ कंदभोयण (कन्दभोजन) दसा० २।३ कंखा (काङ्क्षा) उ०१६ सू० ३ से १२. दसा० कंदर (कन्दर) नं० गा० १४. ५० ५१ ४१८ कंदली (कन्दली) उ० ३६।९७ कंखामोहणिज्ज (काक्षामोहनीय) उ० २६।२१ कंदिय (क्रन्दित) उ० १६ सू०७; १६३५ कंखिय (कांक्षित) दसा० ४।१८ कंदु (कन्दु ) उ० १६६४६,५१ कंचण (काञ्चन) उ० ३५॥१३. वसा० १०।१४. कंपण (कम्पन) अ० ३१६।२ प० २६,३२,८०. कंपिल्ल (काम्पिल्य) उ० १३१२,३; १८११,३. कंचनकोसी (काञ्चनकोशी) वसा० १०।१४ नि० ६।२० कंचुइज्ज (कञ्चुकीय) नि० ६२८ कंबल (कम्बल) द०६।१६,३८८।१७. अनं० कंचुय (कञ्चुक) उ०६।२२; १९८६ २१. अ० ६६३,६८६. क० ११३८ से ४१, कंटग (कण्टक) उ० १०॥३२; १९५२ ४३. नि० ५।६५; ७।१० से १२,८८,८६, कंटय (कन्टक) द० ५८४; ६।४६,४७. दसा १५१७७,८०, ८१,८४,८५,८८,८६,६२,६३, __७१८. क० ६।३,५ ६६,६७,१५३,१५४; १६।१६,२०,२६; कंठ (कण्ठ) उ० १२१६, १८,२०१४८. अ० १७।१२ से १४. ५० २७७ २६६।१, ३०७१७. दसा० १०॥३,१२ कंबोय (कम्बोज) उ०११।१६ कंठमालकड (कण्ठेमालकृत) दसा० १०१३,२४ । कंस (कांस्य) द० ६।५०. उ०६।४६. अनं० १३, कंठोठ्ठ विप्पमुक्क (कण्ठोष्ठविप्रमुक्त) अनं ६ अ० १३, १७ कंड (काण्ड) अ० ४१० ३४,५७.८१,१०६,५२३, सवाल कंसपाई (कांस्यपात्री) १० ७८ कंत (कान्त) द० २।३. नं० गा० १७. दसा० कंसपाय (कांस्यपात्र) द०६।५०. नि० ११११ से ३ १०।१२.१८. ५० ६,२२,२४,२५,२६,३०, कंसबंधण (कांस्यबन्धन) नि० १११४ से ६ ३६,३८,३६,४७,७३,७४ ककुह (ककुद) अ० ५२५. ५० २२ कतार (कान्तार) उ० १९४६; २७।२; २६।२३, ककुहि (ककुदिन) अ० ३२७।१ सताल (कांस्यताल) नि० १७१३ कंडुसग (दे०नि० ६३५,६४७,६७३, ७००, Page #1075 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कक्क-कड्ढंत ८१ कक्क (कल्क) द०६।६३. नि० ११५; ३।१६, ११३४. व. ११३३. नि. २१५४ २५,३१,५३,६२, ४१५७,६३,६६,६१,१००, कट्ठ (काष्ठ) द०४ सू० १८,५/६५,८४;६।२०; ६।६,२८,३४,४०,६२,७१, ७।१७,२३,२६, १०१४. उ०१२।३०,३६, ३५।११. नि० १२; ५१,६०; ११११४,२०,२६,४८,५७; १४।१४, ४।११३; ६।३७।८४ । १५.१८,१६; १५।१६,२२,२८,५०,५६,१०२ कट्टकम्म (काष्ठकर्मन्) अनं० ३. अ० १०,३१,५४, १०८,११४१३६,१४५; १७११८,२४,३०, ७८,१०३,५६०. नि० १२०१७ ५२,६१,७२,७८,८४,१०४,११५; १८।४६, कटुकम्मत (काष्ठकर्मान्त) दसा० १०॥३ ४७,५०,५१ कट्ठकरण (काष्ठकरण) ५० ८१ कक्क (कर्क) उ० १३।१३ कट्ठकार (काष्ठकार) अ० ३६० कक्कडग (कर्कटक) नि० १३।१२ कट्ठपासय (काष्ठपाशक) नि० १२।१,२; १७।१,२ कक्कर (कर्कर) उ० ७७ कट्ठपीढग (काष्ठपीठक) नि० १२।६ कक्कराइय (कर्करायित) आ० ४१५ कट्ठमालिया (काष्ठमालिका) नि० ७.१ से ३; १७१३ से ५ कक्कस (कर्कश) ८० ८।२६. वसा० ६।५ कक्केयण (कर्केतन) प० ३३ कट्ठसिला (काष्ठशिला) बसा० ७।१३ से १५ कक्ख (कक्ष) प० २५३. नि० ३।४५,४१८३; कट्ठहार (काष्ठहार) उ० ३६।१३७ ६।५४७।४३, १११४०; १५॥४२,१२८; १७॥ __ कड (कृत) २० ४।२०,२१,५२५६,६१ चू० १ सू० १,२।१२. उ० ११११, २।४०,४१, ४।३; ४४,६८ ६।१४; १३१६,१०,२८. नं० ८१ से ११,१२३. कक्खड (कक्खट) उ०३६।१६,३४. अ० २६१, वसा० ६।३,४।१०।२४,३३. १०८२,२३७ २६३,५१२. वसा० ६५.५० २८३ ३० ३१६७।२२; ८।१३ से १५ कक्खवीणिया (कक्षवीणिका) नि० ५।४०,५२ कड (कट) अ० २५३,३३१,३८१,५२३,५५२. कच्चायण (कास्यायन) नं० गा० २३. ५० १८६ क०४११५ कच्छ (कच्छ) नि० १२।१६,१७।१४१ कडग (कटक) वसा० १०१११,१२.५० १०,४२, कच्छ (कक्ष) प०७४ नि० ७७ से ८; १७१९ से ११ कडग्गिदड्ढय (कृताग्निदग्धक) वसा० ६।३ कच्छभ (कच्छप) उ० ३६।१७२ कडि (कटिन) अ० ३३१ कच्छभी (कच्छपी) नि० १७११३८ कडि (कटि) सा० १०।१४ कज्ज (कार्य) २०७३६. उ० ८।१७; २२।१७; । कडिय (कटित) प० २२४ २३।१३,२४,३०,२५॥३८; २६।५. अ० ५२१, कडिसुत्त (कटिसूत्र) सा० १०॥३,११. ५० ४२ ५२२ कडुच्छ्य (दे०) अ० ३६२. कज्जलमाण (दे०) नि० १८।१६ कडुय (कटुक) द० ४।१ से ६. उ० १९११ कज्जवय (३०) अ० ३४६ ३४११०३६।१८,३०. अ० २६०,२६३,३५४. कट्य (कटुक) अ० ५११ वसा० ६।५. ५० ५८,२८३ कटु (कृत्वा) द० ८।३१. उ० २११. अनं० किड्ढ़ (कृष्)-कड्ढति नि० १८।१३ ६.० १३. रसा० ६।१८. ५० ७.क० कड्ढंत (कर्षत्) नि० १८।१३ Page #1076 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ कड्ढ़ोकड्ढ-कप्प कड्ढोकड्ढ (कर्षापकर्ष) उ० १९५२ कण्हलेसा (कृष्णलेश्या) उ०३६।२५६ कणकुंडग (कणकुंडक) उ० ११५ कण्हसह (कृष्णशाखा) ५० १६८।२ कणग (कनक) नं० गा० ३७. वसा० १०॥११,१४. कण्हुई (क्वचित्) उ० ११७. दसा० १०।२६ प० २,७,२३,२४,२८,३२,४२,५२,७४,७८, कण्हुहर (कुतोहर) उ० ७.५ नि० ७.१० से १२; १७।१२ से १४ कतर (कतर) बसा० ३१२,५।२; ७२ कणग (कणक) प० २५२ कति (कति) अ० १२४,१२५,१४१,१४२,१६८, कणगकत (कनककृत) नि० ७.१० से १२,१७११२ १ ६६,२०६ से १४ कत्तरिमुंड (कर्तरीमुण्ड) ५० २८१ कणगखचिय (कनकखचित) नि० ७.१० से १२ कत्तिय (कार्तिक) उ० २६।१५. अ० ३४१. कणगपट्ट (कनकपट्ट) नि० ७.१० से १२; १७११२ १०८४ __ से १४ कत्तियपाडिवय (कातिकप्रतिपत्) नि० १६।१२ कणगफूल्लिय (कनकपुष्पित) नि०७।१० से १२; कत्तिया (कृत्तिका) अ० ३४१. प० १२७ १७।१२ से १४ कत्तियादास (कृत्तिकादास) अ० ३४१ कणगसत्तरि (कनकसप्तति) नं० ६१. अ० ४६, कत्तियादिण्ण (कृत्तिकादत्त) अ० ३४१ ५४८ कत्तियादेव (कृत्तिकादेव) अ० ३४१ कणगावलि (कनकावलि) नि० ७७ से ८; १७६ कत्तियाधम्म (कृत्तिकाधर्म) अ० ३४१ कत्तियारक्खिय (कृत्तिकारक्षित) अ० ३४१ कणय (कनक) नं० गा० १३ कत्तियासम्म (कृत्तिकाशर्मन्) अ० ३४१ कणिटुग (कनिष्ठक) उ० २०१२६,२७ कत्तियासेण (कृत्तिकासेन) अ० ३४१ कणियासमाणवण्णय (कणिकासमानवर्णक) ५० कत्तु (कर्त) उ०१३।२३, २०१३७ २६५ कत्तो (कुतस्) उ० ३२।३२,४५,५८,७१,८४,६७ कणीयस (कनीयस्) प० १८३ कत्थ (कुत्र) उ० ३६॥५५, अ० २७ कण्ण (कर्ण) द० ८।२०,२६,५५, ६।४८ कत्थ (कथ)-कत्थइ प० ३४ कण्णच्छिण्ण (कर्णछिन्न) नि० १४१७; १८।३६ कत्थइ (कुत्रचित्) द० ५।१०८, उ० २।२७ कण्णमल (कर्णमल) नि० ११३०, ३।६८, ४११०६; कन्नच्छिन्न (छिन्नकर्ण) दसा०६।३ ६।७७; ७१६६, ११।६३, १५।६५,१५१; कन्ना (कन्या) द. ६।५३. उ० २२१६ से ८,३१, १७४६७,१२१ ४० कण्णसर (कर्णशर) द० ६।४६ कनिया (कणिका) नं० गा० ७ कण्णसोय (कर्णश्रोत) नि० १७११३६ से १३६ कपि (कपि) अ० ३६८ कण्णसोहणग (कर्णशोधनक) नि०१।१८,२२,३०, कपिजल (कपिञ्जल) दसा० ६।३ ३४,४८ कपित्थ (कपित्थ) अ० ३६८ कण्णसोहणय (कणंशोधनक) नि० १।२६; २।१७ ।। कपोत (कपोत) दसा० ६।३ कण्णा (कन्या) अ० २५० किप्प (कृप)-कप्पइ द०५।२८. क० १११. व. कण्ह (कृष्ण) उ० ३६।१८ १।१६. नि० २३६.-कप्पई द०६।५२. कण्हलेस (कृष्णलेश्य) अ २७५ --कप्पंति क०४१४. व. १०१३. कप्पति Page #1077 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कप्प कमलवण व० ११२०. कप्पेज्ज नि० ३।४१ कप्प ( कल्प) आ० ४ ८, ६. उ० ३।१५; १६६२ ; २३।२७३२।१०४. नं० ७८. अनं० २८ २. जोनं० ६. अ० १८५३, ४१०. दसा० १०।१५. प० ८,१५,८०,१०६. क० ४।१५; ६२, १६. ०२।२६, ३० ४।१७ १८ ५।११,१२,२१: १०।२७. नि० २।५० कप्प ( कल्प्य ) द० ५४४ √ कप्प ( कल्पय् ) प ० ३०११० दसा० ७/३३.५० ५७. कप्पए उ० ६१२, कप्पंति इसा० ६।१७ १० २४० पति दमा० ६।१८. प० २५० कप्पद्धिति ( कल्पस्थिति) क० ६ २० कप्पद्विय ( कल्पस्थित ) क० ४।१५ कप्पणी (कल्पनी) ३० १९६२ errora ( कल्परुक्ष ) दसा० १०३, ११. ५० ४२ कल्पनाग ( कल्पवृक्षक) नं० गा० १६ कप्पवदसिया (कल्पावर्त सिंका) नं० ७८. जोनं० कप्पविमाणोववत्तिगा ( कल्पविमानोपपत्तिका ) उ० २६।१५ कप्पाईय (कल्पातीत) उ० ३६।२०१२१२ कप्पाग (कल्पाक) क० २०१३. व० २२, ४ ४ १५ से १७,२४,२५ कप्पातीतग (कल्पातीतज) अ० २५४ कप्पातीतय (कल्पातीतज) अ० २५४ कप्पाय ( करपाक ) ० ४।११,१२,१५ से १८ / कप्पा ( कल्पय् ) कष्पावेज नि० १५६२ कप्पावेत ( कल्पयत् ) नि० १५ । ६२, ६३, १७।४० से ४५,५५ से ५७,६४,६५,९४ से १९,१०६ से १११, ११८, ११९ कपास ( कार्पास) नि० ३१७०५।२४ कप्पासट्ठिमिंज (दे० ) उ० ३६ । १३८ कप्पासवण ( कार्पासवन) नि० ३१७८ कपासिय ( कार्पासिक) नं० ६७.०४९, ३५६, ५.४८ कप्पिय (कल्पिक) द० ५२७ ६४७ कप्पिय (कल्पित) ३० १९६२. बसा० १०३,२४. प० ४२ कप्पिया (कल्पिका) जोनं० ६ कपियाकपिय (कल्पिकाकल्पिक) नं० ७७. जोनं० 극 कप्पूर (कर्पूर) प० ३१ कप्पे (कल्पमान) दसा० ६।३. नि० ३१४१ से ४६, ५६ से ५८,६५,६६, ४७६ से ८१,११ से १३,१००, १०१ ६५० से ५५,६५ से ६७, ७४, ७५ ७३१ से ४४, ५४ से ४६,६३,६४; ११/३६ से ४१, ५१ से ५३,६०,६११५३३८ से ४३, ५३ से ५५,१२४ से १२६,१३६ से १४१, १४८, १४ε कप्पेमाण ( कल्पयत् ) दसा० ६।३ कप्पोवर ( कल्पोपग) उ० ३६।२०९ से २११. अ० २५४ कब्बड ( कबंट) द० चू० ११५. उ० ३०११६. अ० ३२३,५५६. दसा० १०।१८. प० ५१. क० १६. ० १।३३ ४६,१० नि० ५३४; १२।२०; १७।१४२ कब्बडप ( कर्बटपथ) नि० १२ २३; १७११४५ कब्बडमह ( कर्बट मह ) नि० १२ २१; १७/१४३ वह (क) नि० १२ २२ १७ १४४ कम ( कम ) – कमइ अ० ३१८. कमाही ब० २१५. - कम्मइ उ० ५१२२ कम (क्रम ) द० ५।१. ४. उ० ३०१५; ३२।१११ ; ३६।२५० कमठग (दे०) व० २।२१, २० कमण (कमण) आ० ४ ४ कमल ( कमल) नं० गा० ३७. अ० १६,२०, ३१८।२. बसा० ७।२० प० १०,२२ से २४, २७,२९,३०,४२ कमलवण ( कमलवन) प० २७ Page #1078 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ कमलागर-कया .३००ne कम्मभमकमं तमकमभम कमलागर (कमलाकर) अ० १६,२०. बसा० ७।२० गा० ३०. अ० २७३,२८१ कमलायर (कमलाकर) ५० ४२ कम्मप्पवाय (कर्मप्रवाद) नं० १०४,११२ कमलावई (कमलावती) उ०१४।३ उ० ३६।१६६ कमसो (क्रमशस) उ०१४।११,५१, ३६।१६७. कम्मभूमि (कर्मभूमि) आ० ४।६. नं० २५ अ० ३०७।५; ३६५।१ कम्मभूमिय (कर्मभूमिक) नं० २३ कमिय (क्रान्त) द० २१५ कम्ममासय (कर्ममाषक) अ० ३८४ कम्म (कर्मन) आ० ४।६; ५।३. द० ३।१५; ४११ कम्मय (कर्मक) उ० ८।१. अ० २७६,४४६ से से ६,२०,२१,२४,२५,२८, ६।६५, ८।१२,३३, ४४८,४५०,४५२,४५५ ६३।४०; च०१ सू०१. उ० १११७,४३, कम्मया (कर्मजा) नं०३८।१,७६ २।४०,४१, ३१२,६,७,१३, ४१२ से ४,५।११, कम्मलेसा (कर्मलेश्या) उ० ३४।१ १२; ६॥३,१०,१३,१४, ७६; ८।६,१५, ६।२२ कम्मसंपया (कर्मसंपदा) उ० ११४७ १०१४,१५; ११।३१,१२।४०,४४; १३१८ से कम्मसच्च (कर्मसत्य) उ० ७।२० १०,१६,२३,२४,२६,३२; १४१२,५,२०; १८।। कम्महेउय (कर्महेतुक) द० ७।४२ १७,४८; १९३५३,५५,५७, २०१५२, २१।६, कम्मार (कार) दसा०६।३ २२१४८, २५२२८,३१,३२,४३; २८।३६; कम्हा (कस्मात्) न०६७. अ० १३ २६।२,७,११,१६,१७,१६,२१,२३,२४,३०, कय (कृत) आ० ३।१४।३; ५२ ३०५३४. ३३,३८,४४,६३ से ७२,७४; ३०१,६; उ० ८।१७; १३।१५,३३; १४।१६; १८।१७; ३११३; ३२।७,३३,४६,५६,७२,८५,९८,१०८; २०१५७; २२।६,२१, ३२।१०८.१० ३०२।१, ३३११,१०,११,१३,१४,१७,१८,२०,२५. नं० ३०८।१,५४२,५४६,५६६।४. बसा० १०१३, ८,३८८. अ० २७८,२८२,३५८।१,३५६,६०४, ११,१२,२२,२३. प० २४,२८,४२,४४,५६, ६३१११. दसा० ५।७।११; ६।३,४,७; ६।२।८; ५८,६२,६६,६७ १०॥३४. प०१२,१४,६६,७४,८०,१६५. क० कय (क्रय) २०७।४६,१०॥१६. उ०३५॥१३ से ११२० १५. वसा०६।३ कम्मत (कर्मान्त) दसा० ६।३; ६।२।३५ कयंजलि (कृताञ्जलि) उ० २०१५४; २५॥३५ कम्मंस (कांश) उ० ३।२०; २६।४२,५६,६२, कयंब (कदम्ब) अ० ३५२ ७२,७३ कयंबिय (कदम्बित) ५० २१ कम्मकर (कर्मकर) दसा० ६।३१०।१४,२४ से कयगभत्त (कृतकभक्त) नि०६।६ ३२.५०६६ कयत्थ (कृतार्थ) उ० ३२॥११० कम्मकिब्बिस (कर्मकिल्विष) उ० ३३५ कयमइ (कृतमति) उ० २३।१४ कम्मग (कर्मक) अ०४६१,४६५,४६६,४७४,४७६, कयर (कतर) द० ४ सू० २,८।१४; ६।४ सू० २. ४८१,४८४,४८६,४६३,४६७,५०१,५०५ उ० २ सू० २; १२।६,७,४३, १६ सू० २. अ० कम्मगंठि (कर्मग्रन्थि) उ० २६।३२,७२ १२६,१३०,१४६,१७३,१७४,२६१,२६३ से कम्मधारय (कर्मधारय) ०३५०११,३५३,५५७ २६५,२६७.३६४,४०७,४१२,५५७. बसा. कम्मपगडि (कर्मप्रकृति) अ० ६१७ ११२; २।२; ४।२; ६।२ कम्मपयडि (कर्मप्रकृति) उ० २९।२३,३३. नं० कया (कवा) द० ७।५१. उ० १।२२ Page #1079 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कयाइकरेत्ता ८५ कयाइ (कदाचित्) ० ६।६३. उ० ११११. नं0 २६॥५. नं० गा० ३०; सू० ८१ से ६१,१२३ १२६. दसा० १०॥३ अ० ३०८।१; ३१४।१. दसा०६।३१०।११. कर (क)-अकासी उ०१।१०. दसा० ६।।८. ५० प० ४२,६६,८४,२७० १०५. -कज्जइ अ० ६, -कज्जति दसा० करणगुणसेढि (करणगुणश्रेणि) ऊ० २६७ ६।३. -करंति उ० १६॥१६. ---करिस्सइ करणया (करणता) नि० १।३६,४० २०७।६. उ०२।२३. -करिस्मामि द० ७६. करणसच्च (करणसत्य) उ० २६।१,५२ नं० ५१. अ० ४१६. -करिस्सामो ५० ५२ करणसत्ति (करणशक्ति) उ० २६।५२. नं० ६३ -करे ८० ८।१६, उ० २०४०.-करेइ करणिज्ज (करणीय) व. १।१५ से १८, २।१,३, उ०४१४. नं० ५३. दसा० १०.१६.५० ६. ५ से १७. नि०२०।१५ से १८ क० ११३७. नि० ८।१. –करेंति आ० ४।६. करतल (करतल) नि० ८।११ २०६।६७. उ०६।६२. अ० २०. दसा० १०। करभिउत्त (करभ्यागुप्त) क० २०१० ६. प० ६६. -करेज्ज उ० २६।३३. - करय (करग) प० २७० करेज्जा व० ६।२. –करेति अ० २७. दसा करयल (करतल) दसा० १०१४,६,१०,१२. ५० १०।१०. नि० १११. -करेमि आ० ११२. ५,७,१०,१५,२४,३६,४१,४३,४४,४८,५०, व० ७१४. -करेमो दसा० १०।२४. –करेह ५४,६३. व०१३० उ० २५॥३७. दसा. ६॥३. ५० ४०. –करेहि करवत्त (करपत्र) उ० १९५१ द०७।४७. उ० १३।३२.-काहामि उ० १७॥ २. –काहिंति उ० ८।२०. –काहिसी द. करावण (कारण) दसा० ६।३ २६. उ० २२।४४. -काही द० ४११०. करित्तए (कर्तुम्) दसा० १०॥३२. प० २७६ -कीरइ अ० ६४. -कुज्जा द० ५।६४. उ० कारस (कष) अ० २७८ १।१७. प० २३८. नि. ६।११. –कुव्वती करिसय (कर्षक) नं० ३८६. दसा० ।।२८ करिसावण (कार्षापण) अ० ३५७,५२८,५२६ कर (कर) द० ५।१६,२६. उ० ११२,३,२६;८। करीरय (करीरक) अ० ३४७ २; १३।२७; १४।८. नं० गा० ३६. ५० २४, करुण (करण) अ० ३१७११ २६ करुणरस (करुणरस) अ० ३१७ करंडग (करण्डक) दसा० १०१२५,२६ करेंत (कुर्वत्) उ० ६।५६. क० ११३७,२।१७. करंत (कुर्वत) आ० ११२,४।१;॥१. द०४ सू० नि० १११,२६,५०,५१,२।१,१० से १७,३७; १० से १६,१८ से २३ ३।६६,७०, ४।१०७; ५॥३,५,१३,२४,२५,२८, करकंडू (करकण्डु) उ० १८१४५ ३१,३६ से ४७,६६, ६।२,११,७८७।१,४,७, करकचिय (क्रकचित) अ० ३८१ १०,६७,६२; १२१,४,६४,७१, १२।१४; १३॥ १७,१८,३६ से ४२; १४११०,११,१५१५२; करकय (क्रकच) उ० १६०५१ करग (करक) द०४ सू० १६. अ० ३०७ १७।३,६,६,१२,१३५; १८।४२,४३, १६।११ करग (कारक) नं० गा० २८ करेणु (करेणु) उ०११११८, ३२।८६ करगय (क्रकच) उ० ३४११८ करेत्तए (कर्तुम) क० ३।२०. द०७४ करण (करण) २०६।२६,२६,४०,४३, ८।४. उ० करेत्ता (कृत्वा) ८० ५।६३. उ० २६७३. दसा० Page #1080 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करेत्ताणं-कसिण १०१६.५०५ करेत्ता (कृत्वा) द० ३।१४ करेमाण (कुर्वाण, कुर्वत) उ० २६॥३,७३. दसा १३; १०।१४. क० ४११,२,३. व० १०॥४१ करोडिया (करोटिका) अ० ३७७ करोति ( ) अ० ३६८ कल (कल) दसा०६।३ । कलंब (कदम्ब) उ० १६०५०. ५० ५,६,३६ कलकलंत (कलकलायमान) उ०१६।६८ कलत्त (कलत्र) उ०६।१५ कलमाय (कलमात्र) नि० १२।८,६ कलस (कलश) दसा० १०।१४. १० २४,२६,२८ कलसिय (कलशिक) अ० ३७७ । कलह (कलह) द० ५।१२ चू० २।५. उ०८४ ११।१३; १७.१२. दसा० ६।३. नि० ६।१२; १२१२८; १७।१५० कलहंस (कलहंस) प० ३० कलहकर (कलहकर) दसा० ११३ कला (कला) उ०६।४४; २११६. नं०६७. अ. ४६,५४८. प १६५ कलाव (कलाप) दसा० १०।२४. प० २४,२६, ४२,६२ कलाहिय (कलाधिक) अ० ३०२।३ कलि (कलि) उ० ५।१६. अ० ३१५।२ कलिंग (कलिङ्ग) उ०१८।४५ कलिंच (दे०) नि० ११२;४।११३; ६।३;७८४ कलिय (कलित) १० २०,४०,६२,६४ कलिय (कलिक) दसा० १०।८,१५ कलुण (करुण) द० ६।२५. अ० ३०६।१ कलुस (कलुष) द० ४।२०,२१. अ० ३१५१२. दसा० ६।२।१७ कल्ल (कल्य) उ०२०।३४. अ० १६,२०. दसा० ७।२०. ५० ४२ कल्लाण (कल्याण) द० ४।११, ५११४३. उ० श ३८,३६; २।२३.४२; ११।१२. दसा० ६।३, ७; १०।११,२२ से ३२, ५०४,५,६,१६, ३६ से ३८,४२,४६,४७,७३,७४,१०६,१७८. ३० १०॥२,४. नि० ७।१० से १२; १७११२ से १४ कल्लाणकारग (कल्याणकारक) ५०६ कल्लाणग (कल्याणक) दसा० १०१११. १०४२ कल्लाणभागि (कल्याणभागिन्) द० ६।१३ कल्लाल (कल्यपाल) अ० ३२३ कल्लोल (कल्लोल) प० ३१ कवड (कपट) दसा० ६।३ कवल (कवल) उ० १६।३७. व० ८।१७ कवाड (कपाट) आ० ४।६. द० ५।१८,१०६. उ० ३५।४. अ० ५६६ कवाल (कपाल) वसा० ६।३.५० ४२ कवि (कवि) अ० ३२७।२,५२५॥१ कविट्ठ (कपित्थ) द० ५॥१२३. ऊ० ३४।१२,१३ कविल (कपिल) उ० ८।२० कविहसिय (कपिहसित) अ० २८७ कवोल (कपोल) प० २१ कव्वरस (काव्यरस) अ० ३०६,३१८।३ कस (कश) उ० १।१२१२।१६. दसा० ६३. व० १०२,४ कसाय (कषाय) आ० ४।३,८, ५२२. १० ५६७; ७।५७; ८।३६; ६३५४; १०१६. उ० १९९१ २३॥३८,५३; ३१॥६, ३६३१८,३१. अ० २६०,२६३,२७६,२६१,२६३,२६५,२६७,५११ प० ५८. नि० २।४३ कसायज (कषायज) उ० ३३।११ कसायमोहणिज्ज (कषायमोहनीय) उ० ३३।१० कसायपच्चक्खाण (कषायप्रत्याख्यान)उ० २६१,३७ कसिण (कृष्ण) अ० ५३३।१ कसिण (कृत्स्न ) द०८।३६,६३. उ० ८।१६; १५।३,४,६; २१।११, २६७२. अ०६६, ६७,५५७. दसा० ८।१; १०१३३. ५० १,२४, ८१,८७,१०८,११५,१२६,१३०,१६०,१६६. Page #1081 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कह-काम क० ३१५,७,१४,१५. ० १।१५ से १५ २५. नि० २२२.२३ ४ १९ ८। १२ से १४ २०।१५ से १८ ६।१६ कह ( कथम् ) - कहय उ० २५०१५. २३२८. कति उ० १३०३. कहसु उ० कहे जा कहेति नि० 11 द० ० १०।१० उ० १६ सू० ४. १. काहए उ० २०१५३ कह (कथं ) ० २०१० ७२२. ०७१३२. दसा० ३।३ कह कह ( कहकह ) प ० ६०,८६ कहग (कचक) अ० कहण (कथन) नं० गा० ४१ कहा ( कथा ) द० ५।१०८; ८५२; १०।१०. ०६२.०९४२२ उ० १६ सू० ४. अ० ३१३. दसा० ३।३; ६२ ३० प० ३६. नि० ८।१ से ११; १२ कहाणग ( कथानक ) नं० ८० कहावण (कार्यापण ) उ० २०१४२ कहि (क्व, कुत्र) द० चू० २१८. उ० १६।६. अ० १२० कचि (कदाचित् उ० ८२ कहित ( कथित) दसा० ६१; १०।२१ कहिय ( कथित) दसा० ५।६ कहितु (कथपित्) उ०१६ ०४ कहिय ( कथित) नं० १२० कहेंत ( कथयत्) नि० ८१ से ११ १२ कहेतु (कथयित्) दा० २०३ कहेमाण ( कथयत् ) उ० १६ सू० ४. दसा० ३।३ काइय ( कायिक) अ० ४१३ ५।२. उ० ३२।१६ काइया ( कायिकी) आ० ४ काउ (कापोत) उ० ३४१३, १२,४१,५०,५६ कार्ड ( कर्तुम् उ० २२ २१. बसा० १०।२०. ५० २७१ काउं ( कृत्वा) उ० २२।३५. नं० १२. अ० १६. व० ५।११ काया (कायर्जुकता) उ० २६०४६ काउलेस (कापोतलेश्य) अ० २७५ काउलेसा ( कापोतलेश्या) आ० ४८. उ० ३४६, २६,३६ काउस्सग ( कायोत्सर्ग) आ० ५,५२,२.३० २६।३८,४० से ४२,४६, ४८ से ५१२६ १ १३. नं० ७५. जोनं० ६. अ० ७४. पं० २७७. क० २।१६ ३१,२१,२२ काउस्सगकारि ( कायोत्सर्गकारिन्) द० ० २१७ काऊ ( कापोत) इसा० ६।५ काऊ ( कृत्वा) उ० २०१७ काऊ ( कृत्वा) उ० ६ २८ काक ( काक) अ० ५४६ काकंद ( काकन्द ) प० २०३ काकंद ( काकन्दक) १० १८७ काकंदय ( काकवक) प० २०१ काकंदिया ( काकन्दिका ) ५० १६६,२०२ काकस्तर (काकस्वर) अ० २०७५ काकिणसखावितत ( का किणिमांसखादितक) ८७ दसा० ६।३ काग ( काक) अ० ३५५,५४६ कागणिरयण (काकिणीरत्न) अ० ४०८ araणी (काकिणी) अ० ३८४ कागिणी (काकिणी) उ० ७।११ काण (काण) द० ७।१२ काणण ( कानन) उ० १६।१. अ० ३६२ काणा (काणा ) अ० ३०७।१२ कादंबग ( कादम्बक) प० ३० काम (काम) द० २1१,५ ६ १८; ८५७; चू० १ सू० १ २ १०. उ० ३।१५ ४ १०; ५४ से ७ ७८,१२,२३ से २५ ८४, ६,१४; ε।५१,५३; १३ १०,१७,२८,२६,३४, ३५. १४/६, १३, १४,४३,४५, ४७ ४९, १६२, १३, १४, १८।३४,४८ १६ १०,२८ २०१५ २५।२६,४१; २६।३, ३२५,१०,१६,१६,१०१; ३५५. अ० ३१०१२. बसा० ५७ ५; ६४; Page #1082 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५ १०,२० से ३३ कामक्रम ( कामक्रम) उ० १४।४४ कामबंध ( कामस्कन्ध ) उ० ३११७ कामगुण (कामगुण) आ० ४५. उ० १०।२०; १३।१५,१७,३०; १४४, ११, १६, १७,३१,३५ ४०.५० १६।१० ३२।२०,८६,१०३.१०७ कामजल ( कामजल) नि० १३।६; १४।२८; १६ | ४६ १६१६० कामजात ( कामजात ) वसा० १०।३३ कामजाय ( कामजात ) बसा० १०।२४ से २७ कामढिय ( कामद्धिक) प० २०० कामत्यय (कामाधिक) दसा० १०।१८ कामदुहा (कामदुधा ) उ० २०१३६ कामय ( कामक) द० ५।१३५ कामरूवि (कामरूपिन् उ० ५।२७ ६५ कामिढि (काम) प० १६६ कामिय ( कामित) उ० २५८ ६२६. ६।१२,३५; काय (काय) आ० १०२ ३०१ ४१ ५०१.३. द० ४ ० १० से १६.१८ से २३ २६, ४०, ४३; ८१३, ७, ६,२६,४४ १०१५,७,१४ ० १।१६ २०१४. उ० २।३७ ३।३ ५।१०,२३ ६ ११; ८।१०, १४ १०/२०१५।१२ २१।२२; २४ २५ २५।२५ ३०११२,३६ ३११८, ३२।६३,७४,७५ ३६ ८१, ८६, ६०, १०२, १०४,११४,११५,१२३.१२४,१३३, १४२, १५२, १५३, १६०, १७७,२४६. अ ७३।१,४१६. वसा० ६३,१८ ७।२२,२५, ३३,३५; १०१३३. ५० २६१,२८७. व० ३५ से २८, ४०, ४१ १०२,५. नि० ३२२ से ३६, ६८ ४६० से ७७,१०६ ६।३१ से ४८,७६ ७ १० से १२, २० से ३७,६५; ११०१७ से ३४,६२; १२।३३ से ४०; १५।१६ से ३६,६४,१०५ से १२२ १५० १७।१२ से १४, २१ से ३८,६६,७५ से ६२,१२० काय ( काक) नं ३८।२ काय (दे०) अ०८८ कायकिलेस ( कायक्लेश) ४० ३०१८,२७ कायगुत्त ( कायगुप्ता) उ० १२३ २२/४७; २६५६. सा० ५४७ १०३२. ५०७८ कायगुत्तया ( कायगुप्तता) उ०२६।१,५६ कायगुत्ति ( कायगुप्ति) आ० ४१६. ०२४१२ कायजोग (काययोग) प० ८२ कायठि (कार्यस्थिति) ३०३६४८१,८६,१०३, ११४,१२२,१३३,१४२, १५२, १६७,१७६, १८६, १६३,२०२,२४५ कायतिज्ञ (कायतार्थ) २०७३८ कायदंड ( कायदण्ड) आ० ४८ कायपाय ( काचपात्र) नि० ११।१ से ३ काबंधन (काबन्धन) नि० ११०४ से ६ कायर ( कातर) उ० २०३८ २१।१७ कावोसा (कायरस) ०२६/४६ कायव्व ( कर्त्तव्य ) द० ६।६; ८१. उ० २६ ६,१०. अ० २८१२ कायसंफास (कायसंस्पर्श) आ० ३।१ व० ४।२१, २३ कामकम-कारण काय समाधारणया (कायसमाधरण) उ० २६।१, ५६ कायसमित (कायसमित) दसा० ५।७ कावसमय (कायसमित) १०७८ कार (कारम् ) कारए उ० ३५१५. कारवे उ० २।३३. कारवेति नि० १५०६६. - कारवेमि आ० १।२ – कारवेह प० ४०. कारेति नि० १।११ - --- कार (कार) व० ५।२० कारत्ताणं ( कारयित्वा ) उ० २।१६ कारण (कारण) द० २|७; ५।१०३ ६ ३०,३२. चू० ११. ० ११८, ११,१३,१७,१६,२३, २५, २७,२६,३१,३३,३७, ३९, ४१, ४३, ४५, ४७,५०; २०१२४; २२११६,४२, २३।१३,२४,३०, Page #1083 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारय-कालायस पह २४।४; २६।३१, २७।१०; २८।१, ३११८ १९६,१६६,२०२,२०६,२१५ से २१८ ३६।२६२,२६६. नं० ३३।१,१२४. अनं० १२ २२२,२२५,२३६,२५८,३००।२,३०८।६, से १४,१६ से १८,२१,२२,२८. अ० ५२१, ३१५।२,३२८,३३४,३६६,४१३,४१६,४२२, ५२३,७१३।१. दसा० १०॥३५. प० २८८. ४२४,४२६,४३१,४३३,४३६,४३८,४७७, क० ४।२२ से २४. व. ११२० से २२, २।२४; ४६१,५०५,५०६,५३० से ५३७,५६६ ३।२३ से २६; ४।११,१२,५।११,१२१५,१६; ५७३,६११,६१६,७१३. दसा ४।१३; ७१४,५. नि० २०११६ से ५१ १४; ६१४; ८।१; ६।१; १०।१,५,२४ से कारय (कारक) उ० १२,३; ६।३० ३३,३५. ५० १,२,८,१६,१७,२०, ५८,५६, कारवाहिय (कारवाहिक) दसा० १०६१८ ६२,७४,८२,८३,६३, १०६ से १०६,१११, कारवंत (कारयत्) नि०१५६६; १७.१२२ ११३ से ११५, १२४,१२६ से १२६,१३८, कारवेत्तए (कारयितुम्) ५० ५।२० १४० से १४३,१६०,१६१,१६३,१६६,१८०, कारवेत्ता (कारयित्वा) ५० ४० १८२,२२३,२७६,२८८. व० ६७; ७।१४ से कारावण (कारण) दसा० ६।३ कालओ (कालतस) उ० २४१६,७; ३६१३.नं. कारिय (कार्य) द० ६१६४ २२,२५,३३,५४,६६,१२७. अ० १२६,१२७, कारिस (करीष) उ० १२।४३,४४ १४६१४४,१७०,१७१,२११,२१२,४५७ कारुण (कारण्य) उ० ३२।१०३ ४५० ४६०,४६३,४६७,४८२,४८७,४६०, कारेंत (कारयत्) नि० ११११ से १८; ११।८७ ४६५,४६६,५०३,५६८ कारेमाण (कारयत्) बसा० १०।१८. प०६ कालकखि (कालकाङ्गिन्) उ० ६.१४ कारोडिय (कारोटिक) बसा० १०।१८ कालकूड (कालकूट) उ० २०१४४ काल (काल) आ० ४।७,८. द०५।१,१०४ से कालग (कालक) उ० २२१५. प० २२२ १०६; ७।८; ६।३७ चू० २।१२. उ० ११०, कालगत (कालगत) प० १२५ ३१,३२, ४१६; ५।३१,३२; १०१५ से १४; कालगय (कालगत) प० ८४ से ८६,६२,१०६, १२।६, ६,२७; १३१२२,३१, १४।१३,२६, ११४,१३८, से १५६,१८०,१८१, १८४,२२२. ५२; १६४८; १८।३२; १६।२६; २०१८, व० ४।१३; ५११३ ४५; २०१४; २३१५, २४१४,५,१०,२५।४; कालधम्म (कालधर्म) उ० ३५।२० २६।२०,२२,३७,४४,४५; २८७,८,१०; कालनाणि (कालज्ञानिन्) अ० ५७३ ३०११४,२०,२१,२४; ३२।२८,३१,४१,४४, कालपडिलेहणया (कालप्रतिलेखन) उ० २६१,१६ ५४,५७,६७,७०,८०,८३,६३.६६; ३३।१६।। कालमास (कालमास) वसा० ६।४; १०।२४ ३५।१६; ३६।११,१३,७८,१११,१२०,१५८, कालमासिणी (कालमासिनी) ० ५।४० १७३,१८२, १८६,१८६,१६३,२१७. नं० कालय (कालक) अ० २६३ गा०६; सू० १८१६,२२,२५,३३,५०,५३, कालागरु (कालागरु) दसा० १०.१२,३२. ५० ५४, ८१ से ११,१२०,१२५,१२७. अनं० १,२४,२८. अ० २१,२७,७६,६४,१०१, २०,३२,४०,६२ १२१,१२६,१२७,१३८,१६५,१७०,१७१, कालायस (कालायस) दसा १०।१४ Page #1084 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालालोण-किण्ह कालालोण (कालालवण) द० ३१८ किंचि (किञ्चित् आ० ३।१. द०६।३४. उ० कालिओवएस (कालिक्युपदेश) नं०६१,६२ १।१४. अ० ४२३ कालिंजर (कालिंजर) उ० १३॥६ किंचिवेहम्म (किञ्चिद्वधर्म्य) अ० ५४३,५४४ कालिय (कालिक) उ० ५।६. नं० ७२,७६,७८,७६. किंचिसाहम्म (किञ्चिद्साधर्म्य) अ० ५४३ जोनं० ४,७,६. अ०४ किंचूणोमोयरिय (किञ्चिदूनावमोदरिक) व० कालियसुय (कालिकश्रुत) नं० गा० ३२,३५,४३. ८।१७ अ० ५७०,५७१. नि० १६६ किंपागफल (किम्पाक फल) उ० १६।१७; ३२॥२० काली (काली) उ० २।३. अ० ३०७।१३ किंपुरिस (किं पुरुष) उ० ३६।२०७. अ० ६३,६७, कालोमाण (कालावमाण) उ० ३०१२० २५४ कालोय (कालोद) अ० १८५।१ किंसुय (किंशुक) अ० १६,२०. दसा० ७.२० ; कावालिय (कापालिक) अ० ३४४ ६।२।१०.५० २७,४२ काविल (कापिल) नं. ६७. अ. ४६,५४८ किच्च (कृत्य) द० ७।३६; चू० २।१२. उ० काविलीय (कापिलीय) उ०८ १११८,४४,४५,१४।१५; ३२।१०८. दसा० कावोय (कापोत) उ० १६।३३ ६।२।१० कासग (कर्षक) उ० १२।१२ Vकिच्च (कृत)-किच्चइ उ० ४।३ कासव (काश्यप) द० ४ सू० १ से ३. उ०२ सू० किच्चा (कृत्या) दसा० ५११४७. उ० २११५. १ मे ३; २११,४६; २५॥१६; २९।१. नं० नं० ८२. दसा० ६।४. प० २३. क० १११४. गा० २३. प० २२२ व० १०॥३ कासवगुत्त (काश्यपगुप्त) ५० १६७ किच्चाण (कृत्वा) ८० ८।४५ कासवगोत्त (काश्यपगोत्र) प० २,१४,१७,६७,६८, । किट्टइत्ता (कीर्तयित्वा) उ० २६१ १६४,१८६,१८६,१६०,१६७,२०३,२०६, किट्टित्तए (कोर्तयितुम् ) क० ३।२३ २२२।२ किट्टित्ता (कीर्तयित्वा) प० २८७ कासवनालिया (काश्यपनालिका) ८० ५।१२१ किट्टिय (कोतित) सा० ७।२५, ३५. व० ६।३५ कासविज्जिया (काश्यपीया) प० २०१ से ३८,४०,४१, १०१३,५ कासवी (काश्यपी) प० ७१ किट्टिस (किट्टिस) ० ४४ कासाइ (काषायिन्) दसा० १०।११ . किड्डकर (क्रीडाकर) दसा० १०।१४. कासातिय (काषायो) ५० ४२ किड्डा (क्रीडा) उ० १६।६ कासी (काशी) उ० १३१६; १८।४८. ५० ८८ काहिय (काथिक) नि० १३।५३,५४ Vकिण (क्री)--किणति नि० १८।२-किणेति किइकम्म (कृतिकर्मन) क० ३२० नि० १४११ कि (किम) द० ३.१४. उ०६७. नं० ४. अनं० १. किणंत (क्रीणत) उ०३५।१४ अ० ३. दसा० ४१४.क० /किणाव (क्रापय्)---किणावेति नि० १४११ ११३४. व. २।२४ किण्ह (कृष्ण) उ०३४।३,१०,४३,४८,४६,५६ किंकर (किङकर) दसा० १०११४,२४ से ३३ ३६।१६,२२,७२. अ० ३५३. प० २६३ से किंचण (किञ्चन) उ०६।१४,४०, ३२१८ २६७ Page #1085 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किण्हपक्खित-कीरमाण किण्हपक्खित (कृष्णपाक्षिक) सा० ६।६ किरियाविसाल (क्रियाविशाल) नं० १०४,११७ किण्हमिग (कृष्णमृग) अ० ३५३ किलंत (क्लान्त) उ० १६०५६. प० २८५. क० किण्हमिगाईण (कृष्णमृगाजिन) नि० ७१० से ३।२२; ४।२८ किलाम (क्लम) आ० ३।१ किण्हलेसा (कृष्णलेश्या) आ० ४१८. उ० ३४।४, इकिलाम (क्लमय)-किलामेइ द० ११२ २२,३४ -किलामेसि द० ५।१०५ /कित्त (कीर्तय)-कित्तइस्सं आ० २०१; ६० किलामिय (क्लमित) आ० ४।४ ५।१४३ ---कित्तइस्सामि उ० ३४९६. अ० किलामियय (क्लमितक) अ० ३१७२ ७४।२ किलिंच (दे०) ८० ४ सू० १८ कित्तयय (कीर्तयत) उ०२४।६ ; ३६।४८,१७६, १६५; २०४ किलिट्ठ (क्लिष्ट) उ० ३२।२७,४०,५३,६६,७६ ६२ कित्ति (कीति) द० ६।१६, ६।४ सू० ६,७. उ० किलिन्न (क्लिन्न) उ० २।३६ ११४५; ११३१५; १४१३; १८१३६,४६. नं० Vकिलिस (क्लिश्)-किलिस्सई उ० २७।३ गा० २७. दसा०६।२।३८ कित्तिय (कीर्तित) आ० २।६,५।४।६ किलेस (क्लेश) द० चू० १।१५. उ० २१।११; कित्ती (कोति) दसा० १०११५ ३२।३२,४५,५८,७१,८४,६७ किलेसइत्ता (क्लेशयित्वा) उ०२०।४१ किन्नर (किन्नर) उ० १६।६; २३।२०; ३६।२०७ अ० ६३,६७,२५४. ५० ३२,४२ किविण (कृपण) द० ५।११०. दसा० ७१५. व. किब्बिसिय (किल्बिसिक) उ० ३६।२५६,२६५. १०१३ दसा० १०२६ किविणकुल (कृपणकुल) दसा० १०॥३२.५० ११ किमंग (किमङ्ग) बसा० १०.११. ३० ६।६; १२,१४ किविणपिंड (कृपणपिण्ड) नि० ८।१८ ७.२५ किन्विसिय (किल्विषिक) दसा० १०।१८ किमि (कृमि) उ० ३६।१२७ किमिच्छय (किमिच्छक) द० ३।३ किस (कश) उ० २।३।। किमि राग (कृमिराग) अ० ४३ किसल (किसल) अ० ५६६।४ कियवच्छ (कृतवत्स) अ० ५६६।१ किसलय (किसलय) अ० ५६६।३ किर (किल) अ० ३६८।१ कीड (कीट) ६० ४ सू० ६,२३. उ० ३।४; किरण (किरण) प० २१,२३,३०,३१ ३६।१४६ किरिया (क्रिया) आ० ४१८,६. उ० १८२३,३३; कीडय (कोटज) अ० ४०,४३ ३१७,२२. नि० ५।६४। कीडा (क्रीडा) उ० १९ किरियाद्वाण (क्रियास्थान) ० ४१८ कीय (क्रीत) द० ६१४८,४६; ८।२३. अ० ५५७. किरिया (रुइ) (क्रियारुचि) उ. २०१६,२५ दसा० २१३. नि० १४।१।१८।२,३३; १६१ किरियारुइ (क्रियारुचि) उ २८१२५ कीय (कोच) द० ६१ किरियावाइ (क्रियावादिन्) नं० ८२ कीयगड (क्रीतकृत) द० ३।२; १५५. उ० २०१४७ किरियावादि (क्रियावादिन) दसा० ६७ कीरमाण (क्रियमाण) द० ७।४०. व० २१५ Page #1086 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ कील ( कोल) द० ५६७ कील ( क्रीड ) - कीलए उ० १६।३ - कीलंति उ० १८१६ V कीर (कृ) - कीरइ अनं० २ कीलिय ( क्रीडित ) उ० १६ सू० ८ कीव ( क्लीव) उ० १६।४०. क० ४।४, ५ / कीस ( क्लिश् ) - की संति उ० १६११५ कुइय ( कुजित ) उ० १६ सू० ७; गा० ५,१२ कुओ ( कुतस् ) उ० १५५ कुंकण (दे० ) उ० ३६।१४६ कुंकुम ( कुङ्कुम) अ० ३७६ कुंच ( क्रौञ्च ) उ० १४ । ३६. नं० ३८।७. अ० ३०० १२ कुंचिय ( कुंचित) उ० २२ २४ कुंजर ( कुञ्जर) उ० ११।१८. ० २१,३२,४२, ७८ कुंड ( कुण्ड ) नं० ८३. अ० २६६, ५३१, ५३५, ६१३ कुंडग्गाम ( कुण्डग्राम) प० ४३ कुंडधारि ( कुण्डधारिन् ) प० ५१,६१ कुंडपुर ( कुण्डपुर ) प० ६२, ६३, ७५ कुंडमोय (दे० ) द० ६।५० कुंडल ( कुण्डल) उ० ६।५; ६ । ६०; २२।२० अ० १८५।१. दसा० १०।११, १२, १५. प० ८, १०, २४,४२. नि० ७।७ से ६; १७१६ से ११ कुंडिया ( कुण्डिका) अ० ३७७ कुंत (कुन्त) दसा० १०।१४ कुंतग्गाह (कुन्तग्राह) दसा० १०।१४ कुंथु (कुन्थु ) आ० २।४; ५|४| ४. द० ४ सू० ६, २३. उ० ३।४; १८।३६; ३६।१३७. नं० गा० ६. अ० २२७ प० ४४, ६२, १४४,२६३ कुंद (कुन्द) उ० ३४।६; ३६/६१. अ० ५४०. प० २४, २५, २८ कुंदरुक्क ( कुन्दरुक) प० ६२ कुंदुरुक्क ( कुन्दरुक) प० २०३२, ४०, ६२ कुंभ (कुम्भ) अ० ३७४. ५०४,२०,२४,७८. क० २१५ कुंभी (कुम्भी) उ० १६ ४६, ५१ कुंभिउत्त (कुम्भ्यागुप्त ) क० २।१० कुकुडंब (कुकुटम्ब) द० चू० १७ कुक्कुइय ( कौकुचिक ) उ० १७|१३ कुक्कुड (कुक्कुट) द० ८।५३. उ० ३६।१४७नं० ३८।३. अ० ३००, ५२५ कुक्कुडपोसय ( कुक्कुटपोषक) नि० ६।२३ कुक्कुडी (कुक्कुटी) व०८।१७ कुक्कुस ( कुक्कुस ) द० ५।३४ कुग्गहीय ( कुगृहीत) उ० २०।४४ कुन्च (कूर्च ) उ० २२।३० √ कुच्छ ( कुथ्) - कुच्छेज्ज अ० ३६८ – कुच्छेज्जा अ० ४२२ कुच्छि (कुक्षि ) नं० २०. अ० ३८८।१,३६१,४००, ४०६ ५० २, ४, १०, १३, १४,१७,२०,३५,५२, ६६, १०६, १२७,१६१,१६२ कील-कुणंत कुच्छिकमिय ( कुक्षिकृमिक) नि० ३।४० ; ४।७८; ६।४६, ७१३८, ११।३५; १५।३७, १२३; १७३६,६३ कुट्टण ( कुट्टन) दसा० ६।३ कुट्टिम ( कुट्टिम) उ०१६ ४ कुट्टिमतल (कुट्टिमतल) दसा० १०।११ कुट्टिय (कुट्टित) उ० १६।६६,६७ कुडग (कुटक) नं० गा० ४४ कुडय ( कुटज) अ० ३५२ कुटुंब ( कुटुम्ब ) उ० १४।३७ कुडुंबय ( कुस्तुम्बक) उ० ३६।६७ कुटुंबिय ( कौटुम्बिक) प० २४ कुड्ड (कुड्य) उ० १६ सू० ७; २५॥४० कुण (कृ) – कुणई उ० ६।२६ - कुणइ अ० ३१०१२ - कुणसु अ० ३०८।३ कुणंत (कुर्वत्) उ० २६२६ Page #1087 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुणमाण-कुलियाकड कुणमाण (कुर्वाण) उ० १४१२४,२५ कुणव (दे० कुणप) अ० ३१५।१ कुणाला (कुणाला) ५० २३२. क० १।४७; ४।३० कुतत्ति (कुतप्ति) द० चू० ११७ कुतव (कौतव) अ० ४४ कुतित्थि (कुतीथिन्) उ० १०।१६ कुदंसण (कुदर्शन) उ० २८।१८ कुदिट्ठि (कुदृष्टि) उ० २८।२६ कुद्ध (क्रुद्ध) उ० १२।२०; १८।१०; २०१२०; २७।६. दसा०४।१८ कुप्प (कुप्)-कुप्पइ उ० ११।८-कुप्पई द० ६२१-कुप्पह उ० १२।३३--कुप्पे द० ५।१२७-कुप्पेज्ज द० ८।४७-कुप्पेज्जा -६० ५।१२८. उ० १६ कुप्पवयण (कुप्रवचन) उ० २३।६३ कुप्पह (कुपथ) उ० २३।६० कुप्पावयणिय (कुप्रावनिक) अनं० १०,१५,१८, २५,२७. अ० १८,२०,२४,२६,६५२,६५७, ६६०,६७८,६८३,६८६ । कुमार (कुमार) उ० १२।१६,२०,२४,३२; १४।३; १६।६७; २२।८. नं० ३८।११. दसा० ६॥३. ५० १११,१२८ कुमारग (कुमारक) उ० १४।११ कुमारभूत (कुमारभूत) दसा० ६।२।१२ कुमारवास (कुमारवास) १० १३८,१६५,१८० कुमारसमण (कुमारश्रमण) उ० २३।२,६,१६,१८ कुमारिया (कुमारिका) द० ५।४२ कुमुदवण (क मुदवन) प० २६ कुमुय (कुमुद) द० ५।११४,११६.११८. उ० १०।२८ कुम्म (कर्म) व० ८।४०. दसा० ६।३. ५० ७८ । कुम्मास (कुल्माष) द० ५।६८. उ० ८।१२ कुररी (कुररी) उ० २०५० कुराइ (दे०) नि० ६।२१ कुरु (कुरु) अ० १८५४ कुरुविंदावत्त (कुरुविन्दावर्त) प० २४ कुल (कुल) द० २।६,८; ५।१४,१७,२४,१२५ चू० २।८. उ०१३।२; १४१२,२६; २०१४० ४२; २३।१५; २५॥१. नं० गा० ३८. अ० ३४०।१. दसा० १०॥२४,२७ से ३२. १० ११, १४,१९७१२,१६८।३,१६६,२०० से २०२,२३८. क० ११३२,३३,३८,४०; ३।१३, ४।१४, २६; १११,१२,१५,४१. व० ३१६; १०।४०. नि० २।३८,३६ कुलकित्तिकर (कुलकीतिकर) ५० ३८,४७ कुलकेउ (कुलकेतु) ५० ३८,४७ कुलगर (कुलकर) ५० १६१,१६२ कुलगरगंडिया (कुलकरकण्डिका) नं० १२१ कुलजसकर (कुलयशस्कर) ५० ३८,४७ कुलतिलय (कुलतिलक) ५० ३८,४७ कुलत्थ (कुलत्थ) दसा० ६।३. क० २।१ कुलदिणयर (कुलदिनकर) ५० ३८,४७ कुलदीव (कुलदीप) ५० ३८,४७ कुलनाम (कुलनामन्) अ० ३४३ कुलनंदिकर (कुलनन्दिकर) ५० ३८,४७ कुलपव्वय (कुलपर्वत) ५० ३८,४७ कुलपायव (कुलपादप) ५० ३८,४७ कुलपुत्त (कुलपुत्र) अ० ५२६ कुलय (कुडव) अ० ३७४ कुलल (कुलल) उ० १४।१६ कुललओ (कुललतस्) द०८।५३ कुलवडेंसय (कुलावतंसक) प० ३८,४७ कुलवित्तिकर (कुलवत्तिकर) प० ३८,४७ कुलविवद्धणकर (कुलविवर्धनकर) ५० ३८,४७ कुलाधार (कुलाधार) ५० ३८,४७ कुलिय (कुलिक) अ० ६३ कुलिय (कुड्य) नि. १३।१०; १४१२६; १६।५०; १८६१ कुलियाकड (कुलिकाकृत,कुड्यीकृत) क० २।२,३ ६,१० Page #1088 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ कुवलय केरिसी कुवलय (कुवलय) न० गा० ३१. प० ३० कुहर (कुहर) नं० गा० १५ कुविय (कुपित) द०६७,६. उ०१।४१, १२॥ कुहाड (कुठार) उ० १६।६६ कुहुण (कुहन) उ० ३६।९५ कुवियगिह (कुष्यगृह) नि० ८।८; १५।७४ कुहेडविज्जा (कुहेटविद्या) उ० २०।४५ कुवियसाला (कुष्यशाला) नि० ८।८; १५।७४ ।। कूइअ (कूजित) आ० ४।५ कुवुट्टि (कुवष्टि) अ० ५३५,५३७ कूड (कट) उ० ५।५; २०१४२. नं० गा० १३; ‘कुव्व (कृ) —कुम्वइ द० ५।१४३. –कुव्वई द० सू० ८३. अ० १८५।४, ४१०. वसा०६।३ ५।१३५. उ० ११४४. – कुव्वंति उ० २०।२३. कडजाल (कटजाल) उ० १६०६३ -कुव्वती दसा० ६।२।२८. -कुव्वेज्ज उ० कूडतुला (कूटतुला) दसा० ६।३ ६।२६. .-कुव्वेज्जा द० ८।२४. उ० १११४ कूडमाण (कूटयत्) दसा० ६।३ कुस (कुश) उ० ७।२३,२४; ६।४४; १०।२ कूडसामली (कूटशाल्मली) उ० २०३६ १२।३६; २३।१७ कुसग्ग (कुशाग्र) द० चू० १ सू० १ कूडागार (कूटागार) नि० ८।५; १५॥७१ कुसचीर (कुसचीर) उ० २५।२६ कूडागारसाला (कूटागारशाला) दसा० १०।२४ उ० ५।४,१२. दसा० ६।३,४,१८ कुसपत्त (कुशपत्र) नि० १८१६ कुममय (कुसमय) नं० गा० २२ कूर (कूर) उ० १२१३४ कुसल (कुसल) द० ६।५५. उ० १२१३८,४०,४७; कूव (कूप) नं०३८।६।। २५११६. अ० ४१६. दसा० १०॥१०,१४. ५० कूवग्गाह (कूपग्राह) दसा० १०११४ ४२. व० ३।३ से ८ कूवंत (कूजत्) उ० १९५४ कुसवर (कुशवर) अ० १८५।२ केइ (केचित्) दसा० ६.२५ कुसील (कुशील) द० ६।५८; १०१८ चू० केउभूय (केतुभूत) नं० ६४ से १०० १।१२. उ० १११३; १७।२०; २०१५१.। केउभूयपडिग्गह (केतुभूतप्रतिग्रह) नं० ६४ से १०० नि०४।३१,३२; १३१४७,४८; १५८६ से केऊर (केयूर) ५० १०. नि० ७७ से ८; १७१६ ८६; १९।३२,३३ कुसीलरूव (कुशीलरूप) उ० २०१५० कुसीललिंग (कुशीललिङ्ग) द० १०।२०. उ०. केकाइय (केकायित) अ० ५२२ केच्चिरं (कियच्चिरम) अ० ७१३१ २०१४३ कुसीलविहार (कुशीलविहार) व० ११२८ केज्ज (केय) द० ७१४५ कुसुंभय (कुसुम्भक) अ० ३२३ केत्तिय (कियत्) अ० ५८४,५८६,५८६,५६०,५६२, कुसुंभवण (कुसुम्भवन) नि० ३१७८ ५६३,५९५,५६६,५६८,५९६,६०१,६०२ कुसुम (कुसुम) उ० २०१३; ३४।८,१७,१६. केदकंदली (दे०) उ० ३६।६७ नं० गा० १६. दसा० १०.१२. ५० १०,२०, केमहालिय (कियत्महत्) अ० ४०२,४०३ २५,२६,३८ केयण (केतन) उ० ६२१ कुसुमसंभव (कुसुमसम्भव) अ० ३००।२ केयध्व (क्रेतव्य) उ० ३५।१५ कुहग (कुहक) उ० ३६।६८ केरिस (कीद्दश) उ० २३।११. अ० ३०७.१२ Page #1089 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केलास-कोक्कुइय केलास (कैलास) उ० ६।४८ १०।२४ से ३३ केवइय (कियत्) अ० ४२६,४३३,४५७ से ४६४, केवलिपरियाग (केवलिपर्याय) प०८२,१०६, ४६६ से ४६८, ४७१,४७२,४७६,४७७,४८१, १३८,१८० ४८२,४८७,४६० से ४६२,४६५,४६७,४६६, केवलिपरियाय (केवलिपर्याय) १० १२४ ५०२,५०३. प० २३७ केवलिभासिय (केवलिभाषित) अ० ७०८।१ केवच्चिरं (कियतचिरम) अ० १२६,१२७,१४३, केवलिय (कैवलिक) आ० ४१६. अ० ५५३ १४४,१७०,१७१,२११,२१२,५६८ केस (क्लेश) उ० ५७; १६।१२ केवतिय (कियत) अनं० २८।१ केस (केश) उ० १०।२१ से २६; २२।२४,२५, केवल (केवल) आ० ४।६. द० ६।१४. उ० ३०,३१. प०२८१ ३।१६, १८।३५; ३३१४,६; ३४१४५; केस (कोदश) अ० ३०७।१२ ३५२१. अ० ४२३,४३०,४३७. दसा० केसर (केसर) उ० १८।३,४. अ० ५२५. १०२३ ६।१८; १०।२४ से ३२ केसरि (केशरिन्) अ० ३२७।१ केवलकप्प (केवलकल्प) दसा० ५७९. प०६ केसलाय (केशलोच) उ०१६।३३ केवलदसण (केवलर्शन) अ० ५५२. दसा० ५७ केसव (केशव) उ० २२।२,६,२७ केवलदसणावरण (केवलदर्शनावरण) अ० २८२ केसहत्थ (केशहस्त) प० २४ केवलदंसणि (केवलदर्श निन्) अ० ५५२ केसि (केशि) उ० २३१२,६,१४,१६,१८,२१,२२, केवलदंसि (केवलदशिन) अ० २८२ २५,३१,३७,४२,४७,५२,५७,६२,६७,७२,७७; केवल (नाण) (केवलज्ञान) उ० २८।४ २३१८२,८६,८८,८६ केवलनाण (केवलज्ञान) नं० २,२६,२८,३० से केसिगोयमिज्ज (केशिगौतमीय) उ० २३ ३२; ३३।१,१२०. जोनं० १. अ० १. दसा० कोइलच्छद (दे०) उ० ३४।६ ५७; ७३५ कोइला (कोकिला) अ० ३००।२ केवलनाणपच्चक्ख (केवलज्ञानप्रत्यक्ष) नं० ६. कोउग (कौतुक) उ० २३।१६ अ० ५१८ कोउगकम्म (कौतुककर्मन्) नि० १३३१७ केवलनाणावरण (केवलज्ञानावरण) अ० २८२ कोउय (कौतुक) उ० २२।६. दसा० १०१३,११,१२, केवलनाणि (केवलज्ञानिन) नं०३३. १०६६, २२,२३,२४. ५० ४२,४४,५८,६६ १२२,१३६,१७४ कोउहल्ल (कतहल) नि० ३१५ से ८; १७१ से केवलमरण (केवलमरण) वसा० ५।७ १४ केवलवरणाण (केवलवरज्ञान) प०७४ कोऊहल (कुतूहल) उ०१५।६; २००४५ केवलवरनाणदंसण (केवलवरज्ञानदर्शन)उ० २६७२. कोकणय (कोकणज) अ० ३३३ दसा० ८।१; १०१३३.५० १,८१,८७,१०८, कोकंतिय (दे०) दसा० ७।२४ ११५,१२६,१३०,१६०,१६६ कोंचवर (क्रौञ्चवर) अ० १८५।२ केवलि (केवलिन्) आ० २।१; ४।२,८; ५१४. कोंतग्गह (कुन्तग्रह) नि० ६२७ द० ४।२२,२३; चू० २।१. उ० १६ सू कोक्कुइय (कौकुचित) क० ६।१६ ३ से १२; २२।४८; २६४२,५६,६२, ३६। कोक्कुइय (कौकुचिक) दसा० १०।१४ २६५. अ० २८२. दसा० ५।७, ७१२१,३४; कोक्कुइय (कौत्कुच्य) उ० ३६।२६३ Page #1090 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ कोच्छि-कोस कोच्छि (कौत्सि)प० २२२ कोज्ज (कुब्ज) ५० २५ कोट्ट (कोट्ट) उ० ३०१७ कोट्टकिरिया (कोट्टक्रिया) अ० २० कोट्टिमकार (कुट्टिमकार) अ० ३६० कोट्टिमतल (कुट्टिमतल) प० ४२ कोट्ठ (कोष्ठ) नं० ४६ कोट्टग (कोष्ठक) द० ५।२०,८२. उ० २३१८. अ० ५५६ कोट्ठय (कोष्ठक) द० ५।२१,२२. अ०४३६ कोट्ठाउत्त (कोष्ठागुप्त) क० २।३,१० कोटागार (कोष्ठागार) उ०११२२६. ५० ५२; ७४. नि० ८।५; १५७१ कोट्ठागारसाला (कोष्ठागारशाला) नि० ६७ कोट्टियाउत्त (कोष्ठिकागुप्त) नि० १७।१२६ कोडंबाणी (कोडम्बाणी) ५० १६५ कोडाकोडि (कोटाकोटि) नं० २०. अ० ४११, ४२२।१,४२४११४२६।१४३१४१४३६११ ४२६।१,४८२.५० १८१ कोडाल (कोडाल) १०२,१०,१३,१४,१७ कोडि (कोटि) उ० ८।१७; १८।१०; ३०.६. नं० २०,८६.५० १४३,१५१ से १५६ कोडिकोडि (कोटिकोटि) उ. ३३।१६,२१,२३ कोडिन्न (कौडिन्य) १० ७०,१६३ कोडिन्ना (कौडिन्या) ५० १८३ कोडिमा (कोटिमा) अ० ३०६।२ कोडिय (कोटिक)१० १८७,२०२,२०३ कोडियगण (कोटिकगण) प० २०२ कोडिल (कोडिल) प० २०० कोडिल्लय (कौटिल्यक) नं० ६७. अ० ४६, ५४८ कोडिवरिसिया (कोटिषिका) प०१६० कोडिसय (कोटिशत) अ० २३१ कोडी (कोटी) अ० २३१,३८२,४०८४२२।१% ४२४।१; ४२६।१, ४३१११,४३६।१,४३८।१, ४६०,५६८ कोडीसहिय (कोटिसहित) उ० ३६।२५५ कोडुबिय (कौटुम्बिक) अनं० १२ से १४. अ० १६,३६५. दसा० १०॥३,३४ १०४० से ४४ कोणिय (कोणिक) दसा०६।१; १०७ कोतव (कौतव) नि० ७१० से १२; १७।१२ से १४ कोत्थल (दे०) उ० १९४० कोत्थंभरिवच्च (कुस्तुम्बरिवर्चस) नि० ३७७ कोमल (कोमल) नं० गा० ४२. अ० १६,२०. दसा० ७।२०; १०१११.५० २३, २४, ४२ कोमुई (कौमुदी) द०६।१५ कोरंट (कोरण्ट) दसा०१०।१४ कोरव्व (कौरव्य) अ० ३४३ कोरव्वीया (कौरव्या) अ० ३०४११ कोरिंट (कोरण्ट) प० २५ कोल (कोल) २० ४ सु० २२; ५।१२१. उ० १६। कोलचुण्ण (कोलचूर्ण) द० २७१ कोलसुणग (कोलशुनक) वसा० ७।२४ कोलालिय (कौलालिक) अ० ३५९ कोलावास (कोलावास) बसा० २१३. नि० ७७५; १३८१४।२७; १६१४८; १८१५६ कोलाहलग (कोलाहलक) उ० ६।५,७ कोलिय (कौलिक) नं० ३८६ कोलुणपडिया (कारुण्यप्रतिज्ञा) नि० १२।१,२ कोल्ल (दे०) प० २५ कोव (कोप) उ० १२।३१ कोवय (कोपय)-कोवए उ० ११४० कोविय (कोविद) २०६।४० उ० १५३१५ कोस (कोष) उ० ६।४६ ५० ५२,७४, २३१, २३२ कोस (क्रोश) उ० ३६।६२. अ० ५८६, क० ३१३४ Page #1091 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोलंबिया- खत्त कोलंबिया ( कौशाम्बिकी) १० १६५ कोसंबी (कौशाम्बी) उ० २०११८. क० १।४७. नि० ६।२० कोसलग ( कौशलक) प०८८ कोसलय ( कौशलज) अ० ३३३ कोसलिय ( कौशलिक) उ० १२ २०, २२. ५० १६० से १८१ को सिय (कौशिक) प० ७२,१६३, २२२।१ कोसियगोत्त ( कौशिकगोत्र ) नं गा० २५, २६. प० १८७,१६३, १६४,२०७,२१४,२२१,२२२ कोसिया (कोशिका) क० ४।२६ कोह (क्रोध) आ० ३ १ ४ ८. द० ४ सू १२; ६।११; ७ ५४; ८।३६ से ३६; ६।१; ५२. उ० १।१४, ४ । १२; ६ ३६, ५४,५६; ११।३; १२/१४; २४१६; २५।२३; ३२ १०२; ३४/२६. जोनं० २६, २७. अ० २७६, २८२, _३१०२, ३३७,६१७,६६६,६९४. दसा० १/३; ४|१८,६१३ कोहंड (कूडमाण्ड ) अ० ४३६ कोहकसाइ ( wोधकषायिन् ) अ० २७५ कोहण ( क्रोधन) उ० २७ ९ कोहfपंड ( क्रोधपिण्ड ) नि० १३।६७ कोहविजय ( क्रोधविजय ) उ०२६।१,६८ कोहवेयणिज्ज (क्रोधवेदनीय ) उ० २६/६८ कोहि ( क्रोधिन् उ० ११।७. अ० ३३७ स्व (ख) द० ६।१५. अ० ३६८ इय ( कि ) अ० १२६, २४३,२७१, २८०, २८२,२८६ से २६७. बसा० १०।३३ खओवसम ( क्षयोपशम ) नं० ६४. अ० २५३, २८४ खओवसमनिष्फण्ण ( क्षयोपशम निष्पन्न) अ० २८३, २८५, २६० से २६५ खओवसमिय ( क्षायोपशमिक) नं० ७. अ० १२६, २४३,२७१, २८३, २८५, २८६ से २६७ खंजण ( खञ्जन) उ० ३४|४ खड (खण्ड ) उ० १६ ६ ६; ३४।१५; नं० २२. भ० ३७६, ४२४,४३१, ४३८. नि० ६।७६; ८।१७ १७ खंडा (खण्ड) अ० ६१ खंड ( खण्डित) आ० ४।३; ५।२. दसा० १०।१८ खंडिय ( खण्डिक) उ० १२ १८, ३० खंत ( क्षान्त) उ० २०१३२,३४ ति ( क्षान्ति) द० ४।२७. उ० १६, २६; ३८. १३ ; ५।३०; ६।२०, ५७ २०१६ २२/२६; २६ १,४७,६८. दसा० १०।३३. प० ८१ खंतिक्खम ( क्षान्तिक्षम ) उ० २१।१३ खंतिखम ( क्षान्तिक्षम ) प० ६७,७४ खंतिसागर ( क्षान्तिसागर ) प० २२२५ खंद (स्कंद) अ० २० खंदमह (स्कन्दमह) नि० ८।१४; १६ । ११ दिलायरिय ( स्कन्दिलाचार्य) नं० गा० ३३ खंध ( स्कन्ध) द० ६११८. उ० ३६।१०,११. अ० ७,५२ से ५४, ५६ से ७३, ४४४, ५५७. दसा० २।३.५० २३. नि० १३।११, १४।३० ; १६।५१; १८।६२ खंबीय ( स्कन्धबीज ) द० ४ ०८ खंभ (स्तम्भ) ० ७।२७. नं० ३८।३. अ० ३६२ खग (खग) उ० ६।१० खग्ग (खड्ग ) नं० ३८।१३. दस० १०।१६ खग्गविसाण ( खड्गिविषाण) ५०७८ खजूर ( खर्जूर) उ० ३४।१५ खज्जोत ( खद्योत ) अ० ५४० खड्डया (खड्डुका) उ० ११३८ खण (क्षण) द० ५।१३. उ. १४ १३; १६/१४; २०१३०, ३२।२५, ३८, ५१,६४,७७, ६०, १०८ V खण ( खन् ) -- खणह उ० १२।२६ - खणे द० १०१२ / खणाव ( खनय् ) - खणावए द० १० २ खत (क्षत) अ० ५२० खत्त (क्षत्र) उ० १२।१८ Page #1092 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ वत्तिय (क्षत्रिय) द० ६४२. उ० ३४,५ ६११८, २४, २८,३२,३८,४६ १५६ १८ २० २५।३१. अ०] ३४३. ० १४, १५, १७,३६,३७,३६ से ४४,४६,४७,४१,६२,६६,७३, ७४१६५. नि० ८१४ से १९६६ से २९ खत्तियकुंडग्गाम (क्षत्रियकुण्डग्राम) प० १४, १७,४४ खत्तियकुल (क्षत्रियकुल) प० ११,१४ तिवाणी (क्षत्रियाणी) प० १४, १५, १७, २० २१,३६ से ३९,४६, ४७, ४९, ५०, ५४,५६,५.८ खद्ध (दे०) दसा० ३।३ / खम (क्षम् ) - खमइ प० ७७. -- खमति अ० ३२०. दसा० ७१४. खमाह उ० १२।३०. मिज्जा ० २८३ खमे उ० १८१८. खमेज्जा ० १०१२ – खमेह ब० । ३५ खम (क्षम ) उ० १४ । २८; १८५२ ३२।१३. दसा० ५।१७ ; ७।३५. ५० २२२८ समण (अपण) अ० ३२० खमणिज्ज ( क्षमनीय) आ० २०१ खमय ( क्षपक) नं० ३८।१२ खमा (क्षमा) अनं० २८. दसा० ४ ७ १०1११ समावण्या (क्षमापन) उ० २६।१.१८ खमावेयव्व (क्षमापयितव्य) प०२८३ खमासमण ( क्षमाश्रमण ) आ० ३।१. जोनं० १० खमियव्य ( क्षमितव्य) प० २८३ वय (क्षय) उ० ६।१३ २०१३३. नं० ८. अ० २८०,२८१. दसा० ५।७ निफण्ण ( क्षय निष्पन्न) अ० २८०, २८२, २९० से २९३ खयायार (क्षताचार ) ०३२४,६,८ खर (खर) उ० ३६०७१.७२ अनं० १२,१६. अ० ३०७ १२, ५५७ खरपुढवी ( खरपृथ्वी) उ० २६४७७ बरमुही ( खरमुखी) बसा० १०।१७ प० ६४,७५. नि० १७।१३६ खरविसाण ( खरविषाण) अ० ५६९ खत्तिय खाइम Vखल ( स्थल) क्लाहि उ० १२०७. खलेज्ज उ० १२।१८ खलिय ( स्खलित ) द० चू० २।१३. अ० ७४११, ६१०।१ खलीण ( खलिन ) द० चू० २।१४ खलु ( खलु ) द० ४ सू० १. उ० १।१५. अ० १८५२. नं० २२।२. बसा० ११. ० १३७. ० ६१२. नि० १४ खलुंक (खलंक) उ० २७।३, ८, १५ खलुंकिज्ज ( खलुंकीय) उ० २७ खल्ल (दे०) अ० ३६८ √ [व] ( क्षपय् ) - खवयर उ० ३०१४ – खवेइ उ० २९।२. खवेंति ०६/६७ वण (क्षपण) उ० ३३।२५ खवित्ता ( क्षपयित्वा ) द० ३।१५. उ० २५|४३ खवित्ताणं ( क्षपयित्वा ) द० ४।२४. उ० २२।४८ वित्तु (क्षपयित्वा ) ० ६४० उ० ११।३१ खवेऊण (अपयित्वा ) उ० २१।२४ खवेत्ता (अपयित्वा ) ०२८/३६ खहयर ( खचर) उ० ३६।१७१,१९१,१६३. अ० २५४ खाता (खादित्वा ) उ० १९८१ खाइम (खाद्य) आ० ६।१ से १०. ०४ सू० १६; ५।४७,४६, ५१, ५३, ५७,५६,६१,१२७ १०१८, ६. उ० १५।११,१२. दसा० २/३; ३०३ १०३१. १०४८, ६६, २६०,२६१, २७६, २७७. क० ११६,४२ ३१,२१; ४१२,१३,२७,२८. ० २२८ से ३० नि० २०४८ ३१ से १२, १४, १५:४३७, ११८ ५३, ३४, ३५; ७७७७१.८६.८७ ८१ से ६,११,१४ से १६; १०४, ५, १०, १२ से १८, २१ से २६; १०।२५ से २८, ११।७५ से ८० १२।१५,१६,२६,३१,३२,४२, १५/७६, ७८,७६, ८२, ८३,८६,८७, १०, ११, १४, १५, १६।१२, १७, १८, २८, ३४ से ३६ १७ १२५ से १३२,१५१ १८ ।१७ से ३२ Page #1093 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साइया-बुडिया ६९ खाइया (दे० खातिका) अ. ३६२ खाओदक (खातोवक) ५० २२४ खाओवसमिय (क्षायोपशमिक) नं०८,६६ खाडहिल (दे०) नं०३८३ खाणि (खानि) उ० १४११३ नं० गा० ४१ खाणु (स्थाणु) २० ४. उ० १४।२६. वसा० ११८ क० ६४३,५ खातनिद्धमण (खात निद्धमण') प० २२४ Vखाम (क्षमय)-खमंतु आ० ४।६।१. खामिज्जा प० २८३.--खामेमि आ० ३।१. उ० २०५६ खामण (क्षमण) वसा० ४।२३ खामिय (क्षमित) दसा० ११३. नि० ४।२५ खाय (खाद्)-खज्जइ उ० १२।१० -खाएज्जा ० ८।४६-खायइद०६६ -खायई अ० ३०२।४-खायह उ०१२।२६ खाय (ख्यात) उ० १४११. नं० गा० २७ खाय (खात) अ० ३८०।२,३८१ खाया (खादक) नि०६।१० खार (मार) नि० १२।२८; १७११५० खारदाह (क्षारवाह) नि० ३१७३ खारवच्च (भारवर्चस) नि० ३१७७ खारवत्तिय (भारप्रत्यय) बसा० ६।३ खावितत (खादितक) दसा० ६।३ खाविय (खावित) उ० १९६६ खासिय (काशित) आ० ५॥३. नं० ६०।१ खि (क्षि)-खीयंती बसा० ५।१।१३-खीयती वसा० ५७।१३ खिखिणीजाल (किङ्किणीजाल) दसा० १०।१४ -खिस (खिस्)-खिसइ उ० १७१४-खिसए। द० ८२६-खिसएज्जा द० ४।५२. उ० १९८३-खिसति दसा ।।२४ खिसियवयण (खिसितवचन) क०६।१ खित्त (क्षेत्र) अ० ३८०।२ खित्तचित्त (क्षिप्तचित्त) क०६।१०. व० । खिप्प (क्षिप्र) द०८।३१; चू० २११४. दसा० ४।१०; ५७; १०७,८. ५० १४,४२,६२,६३ खिप्पं (क्षिप्रम) उ० ११४४ । खिप्पामेव (क्षिप्रमेव) उ० २६।२३ खीण (क्षीण) उ०१३।३१; २३१७८. अ०२८२, ४२२,४२४,४२६,४३१,४३६,४३८.५० १०६ १२४,१३८,१८० खीणंतराय मीणान्तराय) अ० २८२ खीणगोय (क्षीणगोत्र) अ० २८२ खीणनाम (क्षीणनामन्) अ० २८२ खीणमोह (क्षीणमोह) अ० २८२ खीणवेयण (क्षीणवेदन) अ० २८२ खीणाउय (क्षीणायुष्क) अ० २८२ खीणावरण (क्षीणावरण) अ० २८२ खीर (क्षीर) उ० १४।१८; ३०१२६; ३४१६,१५. अ० १८५।१. दसा० ११२.५० २३६. क० २१८. नि०६७६; १७ खीरसागर (क्षीरसागर) प० २१,२३ खीरसाला (क्षीरशाला) नि० ६७ खीरोयसागर (फीरोदसागर) प० ३१ खु (खलु) द० २१५. उ० २१३३. क० ११३५ खु (क्षुत्) २०६।२५ खुज्ज (कुब्ज) अ० २३५ खुज्जा (कुब्जा) दसा० १०।१२. नि० ६।२६ खुड्ड (दे० क्षुद्र) उ० ११६. दसा० १०।१२ खुड्डग (दे० क्षुद्रक) द० ६।६ खड़ग (क्षल्लक) नं० ३८॥३. व०१०।२१ से २४ नि० १४१६,७; १८॥३८,३६ खुड्डय (दे० क्षुद्रक) उ० ३२।२०. प० २३६,२५७ खुड्डाग (क्षुल्लक) नं० २५. नि० ४।११० खुड्डागनियंट्ठिज्ज (क्षुल्लकनिम्रन्थीय) उ०६ खुड्डिया (क्षुद्रिका) अ० ३०६।१. प० २५७. व० ६।३६,४०; १०।२१ से २४. नि० १४।६ ७; १८।३८,३६ Page #1094 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुड्डियायारकहा (क्षुद्रकाचारकथा) द० ३ खुड्डियाविमाणपविभत्ति (क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति) नं. ७८. व. १०।३० खुड्डियाविमाणविभक्ति (क्षुल्लिकाविमानविभक्ति) जोनं०६ खुद्द (क्षुद्र) उ० ३४।२१,२४. दसा० ६३.१० ८६ से ६१ खुयायार (क्षुताचार) व० ६।१०,११; ७।१ से ३ खुर (खुर) अ० ५२५ खुरधारा (क्षुरधारा) अ० ३६८ खुरप्प (क्षुरप्र) वसा० ६।५ खुरमुंड (क्षुरमुण्ड) ५० २८१ खुरमुंडय (क्षुरमुण्डक) दसा० ६।१७,१८ खुरि (खुरिन्) अ० ३२७.१ खुव्वग (दे०) व० २।२६,३० खुहा (क्षुधा) द० ८।२७ खेड (खेट) उ० ३०११६. अ०.३२३,५५६. वसा० १०।१८. ५० ५१. क० ११६. व. २३३; ४।६,१०. नि० ५।३४; १२।२०; १७।१४२ खेडपह (खेटपथ) नि० १२।२३, १७।१४५ खेडमह (खेटमह) नि० १२।२११७।१४३ खेडवह (खेटवध) नि० १२।२२; १७११४४ खेत्त (क्षेत्र) उ० ३।१७; १२।१२ से १५; १३।२४; १६।१६; ३०।१४,१८,२४;३३।१६. नं० १८।१,२२।१,३३,५४,१२७. अनं० १,२३. अ०७६,६३,१०१,१२१११,१३८।१,१५५, १५८,१६१,१६५।१,१६६,१७४,१७५,१७६, १८०,१८४,१८८,१६२,१६५,२०६।१,२१३, २१७,३२८,३३३,५५६,५८६,७१३॥१. दसा० ४११२,१३. क० ११४७ खेत्तओ (क्षेत्रतस) उ०२४।६,७; ३६॥३,११. नं० २२,२५,३३,५४,६६. अ० ४५७,४५८,४६०, ४६३,४६७,४८२,४८७,४६०,४६५,४६६, ५०३ खेत्तपलिओवम (क्षेत्रपल्योपम) अ० ४१६४३४, ४३६ से ४३८,४४०,५०५ खुडियायारकहा-ट्टि खेत्तसागरोवम (क्षेत्रसागरोपम) अ० ४३६।१, ४३६१ खेम (क्षेम) ०७१५१६४ सू० ६. उ० ७॥२४; ६२८; १०।३५; २११५, २३।८०,८३ खेमलिज्जिया (खेमलिया) ५० २०० खेय (खेव) उ० १५॥१५. वसा० १०१११ खेल (क्वेल) आ० ५।३. उ० ८।५; २४।१५. दसा० १०।२७ से ३२. क० १११६; ३।१,२१,४।२७ खेलमत्त (श्वेलामत्र) ५० २८० खेलासव (वेलाधव) बसा० १०२८ से ३२ खेल्ल (खेल)-खेल्लंति उ०८।१८ खेव (क्षपय)-खेवेज्ज उ० २१।१८ खेवाव (दे०)-खेवावेति नि० १८।१३ खेविय (क्षेपित) उ० १६०५२ खोखुन्भमाण (चोभुभ्यमान) प० ३१ खोडा (३०) उ० २६।२५ खोभइउं (क्षोभयितुम) उ० ३२।१६ खोम (क्षौम) नि० ७.१० से १२; १७११२ से १४ खोमिय (भौमिक) ५० २२ खोय (खोद) अ० १८५१ गइ (गति) आ० ६।११. ६० ४.० ६,४११४, १५, ६।३४; ५५; १०।२१. चू० १ सू० १, १।१३,१४. उ० ५।१२,७१७६।५४; ११।३१; १३।३५; १८।२५,३८,४०,४२,४३, ४७; १६।६७; २०११;२३॥६५,६६,६८२८।१, ६,२६,७४, ३४।२,४०. नं० १२१. अ० २८२, ६०४. ५० ५,१०,३६,३६,७८,८२,१०४ गइय (गतिक) ५० ५० गंगा (गंगा) उ० १६।३६ ; ३२।१८. अ० ३९८, ४३६. क० ४।२६. नि० १२४३ गंगापुलिण (गङ्गापुलिन) प० २० गंगावत्त (गंगावर्त) ५० ३१ गंजसाला (गञ्जशाला) नि० ६७ गंट्ठि (ग्रन्थि) नं० ३८।६. नि० १३५२ Page #1095 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गठिय गठिभेय ( ग्रन्थिमेव ) उ० १२८ टिप (प्रथित) मि० १ ५०, ५१ गठिपसत (प्रन्थिकसत्व) उ० ३३।१७ गंड (गण्ड) उ० ८।१८ १०१२७. बसा० १० १४. ०८. नि० ३३४ से ३६४।७२ से ७७; ६।४३ से ४६ ७१३२ से ३७१२।२६ से ३४; १५।३१ से ३६ ११७ से १२२:१७:३३ से ३८,८७ से १२ गंडिया (कण्डिका) ३० ७।२८. न० १२१ डियाओग (कण्डिकानुयोग ) नं० ११६,१२१ गंडीपय ( गण्डीपद) उ० ३६।१८० तव (गन्तव्य ) उ० १५ १२:१६ १६ गंता ( गत्वा ) उ० २६ सू०७४ गंतु ( गन्तु) दसा० ३।३ गंतुं (गत्वा) ब० ७।२६. उ० ६।२६. १० २,३२. क० ११३२ तुपञ्चागत (गत्वाप्रत्यागत) इसा० ७७ गंण (गया) उ० ३६।५५ गंतृणं (गत्वा) क० ३।३३ गंध (ग्रन्थ) उ० ४1८. अ० ५१।१,३२२ गंधिम (प्रथम) अनं० ३. अ० १०,३१,५४,७८, १०३.५६०. ० १२।१७ गंध ( गन्ध) आ० ४१८. ० २१२, ३१२. उ० १२/३६ १६ ० १ २० २१ २८/१२:२९। ४६, ६५ ३२४८ से ६० ३४२,१६,१७. नं० गा० १३; सू० ५३, ५४४. अ० १६,२०, १८५३, २५७, २५६, २७६, ३०२।२,३१५।१, ५०८५१०५२४. इसा० ६३,१०११७. प० २०,२५,३२,४०,४२, ४८, ५८,६१,६२,६४,६६, ७५. नि० १।१०; २२६ गंधओ (गन्धत) उ० ३६।१५,१७,२२ से ४६, ८३,६१,१०५, ११६.१२५. १३५, १४४, १५४, १६६,१७८, १८७, १९४,२०३, २४७ गंधण (गन्धन ) ० २१८०२२४३ गंधवट्टिभूय ( गधतिभूत) प० २०,४०,६२ गंजवास (गन्धवास) उ० ३४।१७ गंधव (गरधर्व) उ० १४० १६ १६:२३।२०: ३६।२०७. अ० २५४. १० ३२ गंधव्वनगर (गन्धर्वनगर) अ० २८७ १ गंधहस्य (गन्धहस्तिन् ) उ० २२।१० गंधार (धार) उ० १८४५०२६८१, १०१ २६६१,३०० ११,३०१।१,३०२।३ गंधारगाम (गन्धारग्राम) अ० ३०३,३०६ गंधिय (गन्धिक) उ० २२४४. १०२०,४०,६२ गंधियसाला (गन्धिकशाला ) व० ६ २६, ३० गंधोदय (गन्धोदक) दसा० १० ११ प० ४० से ४२ गंभीर ( गम्भीर ) आ० २७ ५४७ ० ५६६. उ० ११।३१, २७।१७. नं० गा० २७. बसा० १०।२४. प० २०,२१,७३,७८ गंभीरविजय ( गम्भीर विच (ज) य) द० ६।५५ गगण ( गगन) उ० २२।१२. १० ३३,७८ गगणतल ( गगनतल) दसा० १०।१४. प० २८ गगणमंडल ( गगनमंडल) प० २६, ३३ गम्म (वा) उ० २७।१ गग्गरि (गगरी) अ० ३७७ गच्छ ( गम् ) गच्छ उ० १२७. ० १४ गच्छइ ४० ८।२४. उ० १६।१६. १० १०७ छ०५।१३२. ३० ३।३ गच्छति ० ५१००० ५।२८. [अ० १६- गच्छति इसा० ३१२. नि० ६।१२-गच्छसि उ० १।१८. २०५५५ गच्छह बसा० १०३ - गच्छामि उ० १३३३. अ० ५५५ गच्छामो ० ७६ दसा० १० ११ नं० १२ गच्छे ब० १००१. उ० २१६ गच्छेज्जा ० ४ ०२२ उ० २।२१. नं० १३. अ० ५५५. बसा० ६।१८. क० ५।४०० १२० --- Page #1096 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ गच्छ (गच्छ) अ० १५० १५४, १७६, १०२, १८७, १६१,१५,२२१,२२५,२२१,२३३, २३७,२४१. २४५ गच्छंत (गच्छत्) द० ४ सू० २२. उ० ५।१३; १६।१८ से २१.० ६।१२,१३,१०१३१ ११।७, १६।३६ गच्छमाण ( गच्छत् ) नि० ८।११ गच्छाव ( गमय् ) गजड़ावेज्जा द० ४ ० २२ गज्जल (दे०) नि० ७।१० से १२:१७।१२ से १४ गज्जव (गजित) अ० २६७. १०३२ गढ (गलं ) दसा० ७ २० गठित (प्रथित) वसा० ६०४ गयि (प्रथित) दसा० १०।२९ गण ( गण ) व० ६।१५. उ० १० ११ १५६; ३४/५१ ३६।२०८. नं० ० ८ सू० १२०. अ० ७३|१,३४०११ ७०८१५. दसा० २।३; १०।१८. १० २५,२७,३०, ४२,७४, ११६,१३१, १६७,१०२, १०२, १९५,१६७ से २०२. ० ४१६ से २१,२६५०५ ० १।२३ से १२: २।२२, २३, २५, २६, ३१, २, १३, १८, ४१८; ६२,३ ७१ से २१०४० नि० १६ १५ √ गण ( गणय् ) - गणिज्जइ अ० २८२ गण ( गणक) प० ४२ गणटुकर (गणार्थंकर) ब० १०१८ गणणा ( गणना ) अ० १०१,२३०, २३३, ५५.८, ५०४,६०३. नि० १६।४० गणणोवग ( गणनोपग) उ० २६/२७ गणधरगंडिया ( गणधर कण्डिका) नं० १२१ गणनाम ( गणनामन् ) अ० ३४५ गणनायग ( गणनायक) अ० ३०२५ गणराय ( गणराज ) अ० ३६६. ५०८८ गणसंगकर ( गणसंग्रहकर ) ० १०१६ गणसंद्विति ( गणसंस्थिति ) ० १०।१३ गणसमायारी ( गणसमाचारी) दसा० ४।१५ गणोभकर ( गणशोभकर) व० १०।१० गच्छ गत गणसोहिकर ( गणशोधिकर ) ० १० ११ गणहर ( गणधर ) उ० २७१ नं० गा० २१ सू० १२०. अनं० २० से २२. अ० ५५१. प० ११६,१३१,१६७,१८२ से १८६, १६६,२२५ से २२७,२७१. क० ३।१३, ४।१६ गणावच्छेणित्त ( गणावच्छेदिनीत्व) व० ५।१५ गणावच्छेदणी (गणावच्छेदिनी) १० ५२३,४,७ से १० गणावच्छेइय (गणावच्छेदक ) क० ३।१३; ४।१६ से २४. ० १।२४; २३५ से २३, ३।१४, १५, १६, २०, २४, २७, २६ ४ ३, ४, ७ से १०,२७, ३०,३२ ५।१७ ६०३ गणावच्छेदयत्त (गणावच्छेदकत्व) ४० ३२७, ८, १३ से २६ ५।१६,१७. क० ४।१५,२०,२३ गणावच्छेयय ( गणावच्देवक) अनं० २० से २२. १० २७१, २७३ से २७५ गणि ( गणिन् ) द० ६।१; ६ । १५; चू० १६. अनं० २० से २२. अ० २८५ ५० १६६,२७१. क० २०१३ : ४।१६. नि० १४।५ १८३७ गणित ( गणित्व) व० ३।७,१३ गणिपिडग ( गणिपिटक ) नं० ६५,६६,६८,८४, १२४ से १२६. अ० ५०, ५४६ पिडगधर (गणिपिटकघर ) १० १०४ गणिभाव (गणिभाव) उ० २७११ गणिम ( गण्य) अ० ३७२,३०२, ३०३ गणिय ( गणित ) नं० ३८१६. अ०४१७,५७३प० १६५. क० ४।२६. नि० ९:२० १२।४३ गणिय ( गणिक) प० २०० गणियय ( गणितक) अ० ५७३ गणिया ( गणिका) नं० ३८।६. अ० ६८. प०६४, २०० गणिविज्जा ( गणिविद्या) नं० ७७. जोनं० गणिसंपदा ( गणिसम्पदा) दसा० ४।१,२,३, २३ गत (गत ) नि० ८।१० अ० ४२६, ४३१. दसा० ५७ १०६ ७१३२. ५०५६,८५० Page #1097 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गति - गलि गति (गति) दसा० १०३३. ५० १७८ गत्त ( गात्र) उ० १६।१३; १६।६१. अ० ४१६. बसा० ७।३३; १०।११. ५० ४२ गर्भ ( गर्दभ ) नं० ३८६. दा० ६।२।१३ गद्दभाति ( गर्दभालि ) ३०१०११९,२२ गद्दह (गर्वभ) ० २७।१६ गम्भ (गर्भ) नं० गा० ३७. इसा० ६६; ८१. प० १, २, ४, १०, १४, १७, ४७, ५४, ५६,५७, ६६,१०८, ११०,१२६,१२७,१६० Toभघर (गर्भगृह) अ० ५५६ गन्भत्त ( गर्भत्व) प० १३, १५, १६, २०, ५२,६६, १०६, १२७,१६१.१६२ गरथ ( गर्भस्थ ) प० ५७ गम्भववतिय (गर्भावक्रान्तिक) उ० ३६।१७०, १९५, १६. नं० २३. अ० २५४ गब्भिय (गणित) द० ७ ३५ गम (गम्) –गमिस्ससि उ० २३।७० – गमिस्सामु उ० १४।३१ - गमिस्सामो उ० १४।२६ गम (गम) नं ८१ मे ११,१२३. अ० १६१,१६३, २०२,२०४ गमण (गमन) आ० ४४. ४०५८६० १६।३७ २६।५. नं० ८६ से ८६, ६१, १२०, १२१. दसा० १०।१५. क० १ ३७,४४. नि० ११।७२ गमणागमण ( गमनागमन) क० १।३७. नि० ११/७२ गमणिज्ज ( गमनीय) बसा० १०।१० प० ३६,७३. नि० १६।२६ गमित (गन्तुम् ) उ० १०३४. दसा० ७।२० गमिय (गमिक) नं० ५५,७२, १२७११ गय (गज ) द० ५।१२; ६।२२, २३, चू० १ सू० १. उ० ३६।१८० नं० ३८/३. अ० २१,६३,६७, २००१२,३५४. दसा० १०१८,१४,१५. १०४, ५, १९, २०, २४,४६, ४७, १६२ गव (गत) ब० २११:४० १८ से २३:५२, २४, ८२१०१. १२०, ४० चू० २१७. उ० १।२२,४३ ७।१८ १३ १०३६,३७ ११०३१,१३०१६,२५,३५ १४४२ १६ सू० ५. १८३,६,३९,११।७, ६१:२०१२३: २१।२४ २९० ३२/३३,४६,५९,७२,८५, ६८, ३३।१८ ३४।६० ; ३६।६३. नं० १७. अनं० ८. अ० १६, ३७, ६०, ८४, १०६, १५०, १५४,१७९, १०३, १८७, १६१, ११५,२२१. २२५,२२१,२३३, २३७,२४१,२४५,३०८१५, ५३२, ५३६,५६६,६१२,६२१,६२६,६३३, ६३८, ६४५,६५०, ६७१,६७६, ६६८, ७०३. दसा० ५७८, ६; १०।१५. प० ५,२३,३७, ५४,६६,७३,१८४. नि०८।१७ गयण ( गगन) उ०२६।१० गयसाला ( गजशाला) नि०८।१६ गया (गया) उ० ११/२१ गयाणीय ( गजानीक) उ० १८/२ गरण (करण) अनं० २८ गरह (ग) गरहंति बस० ५।१४० – गरहेज्जा क० ४।२६. व० १।३३ -- गरहणया ( गण ) उ० २६,१,८ गरहा (गर्हा) उ० ११४२२१४१५,२० गरहिय ( हित ) ० ६।१२. उ० १७/२० गरि (ग) गरिहंत दसा० १००३४ १०३ गरिहसि द० ५।१०५ – गरिहामि आ० १२. द० ४ सू० १० गरिहिय ( गहित) आ० ४११ ॥ २ rea (गुवक ) ० ३६।१२. अ० २६१,२६२, ५१२. दसा० ६३ गरुलोववाय (गरुडोपपात) नं० ७८. जोनं० ६. व० १०।३१ गल (गल) द० चू० १।६. उ० १६६४ गलग्रह (गलग्रह) प० २७ गलि (गलि ) उ० १।१२,३७२७११६ Page #1098 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ गलिय-गामवह गलिय (गलित) ५० २१,५४,५६ गहिय (गृहीत) ब० ५।६०. उ० १६।६४,६५. गव (गो) द०७२५. उ०६।५ ६।४०. अ० नं० गा० ५,२७ सू० ३८।२.५० २४. नि. ५२५. दसा० ६।२।१३ ११५४ गवय (गवय) अ० ५४१ गहियट्ठ (गृहीतार्थ) ५० ४७ गवल (गवल) उ० ३४।४। गहिर (गभीर) प० २६ गवेधुया (गवेधुका) ५० १९८ गहीय (गृहीत) उ० ४१३; ३२७६ गवेलग (गवेलक) अ० ३००।१ गहेऊण (गृहीत्वा) द० ५।८५ गवेलय (गवेलक) सा०६३ गहेंत (गृह्णत्) नि० ११५४ गवेस (गवेषय)-गवेसए २० ५।१. उ०६।१६. गा (गै)-गाएज्ज नि० १७११३५.--गायइ अ० -गवेसति नि० २१५५.-गवेसेज्जा व० ८२ ३०७।१२.-गाहिइ अ०३०७४४.-गिज्जंते गवसंत (गवेषयत् ) नि० २।५५; १०।३० अ० ३०७।११.-गिज्जते अ० ३०७१७ गाउय (गव्यूत) नं० १८१४, २०. अ० ३८८।१, गवेसणया (गवेषण) नं० ४५ ३६१,४००,४०६ गवसणा (गवेषणा) उ० २४।११. नं० ५४।६,६२ गाढ (गाढ) ३० ७॥४२. उ० १०४. नं० गा० गवेसय (गवेषक) उ० ११॥३२, २५२६; ३४।२३ १२. प० २३. क० ५।३६ गवेसि (गवेषिन् ) उ० १४१५१ गाणंगणिय (गाणंगणिक) उ० १७.१७ गवेसित्तए (गवेषयितुम्) ५० २८५ गात (गात्र) दसा० १०।२४ गवेसिय (गवेषित) नि० २।२६ से २६ गातदाह (गात्रवाह) नि० ३।७३ गव्विय (गवित) १० ३० गाधृ ( ) ० ३६७ गह (ग्रह)-गहिति उ० ४।१. -गहेति नि० __ गाम (ग्राम) द० ४ सू० १३,१५; ५।२; चू० ११५३ २।८. उ० २।१८, ६१६,१०।३६,३०।१६. गह (ग्रह) उ० २५।१७; ३६।२०८. नं० गा० १०. अ०२८७,३०३,३०७।१४,३२३,३५४,५५६. अ० २५४. वसा०६।५. ५० ५६ वसा० ७८,२८,३१,३३, ६।२।१६; १०।१८. गहगण (ग्रहगण) ५० २७,४२ ५० ५१,८०. क. ११६ से ११. व. ११३३; गहण (गहन) ८० ८।११. नं० गा०४. नि. ४१६,१०५९,१०, ६।४ से ७;६।४०,४१. नि० १२।१६, १७:१४१ ५।३४; १२।२०१७।१४२ गहण (ग्रहण) उ०२३।३२; २४।११; ३२।२२, गामंतर (प्रामान्तर) सा० १०॥२७. नि. २३,३५,३६,४८,४९,६१,६२,७४,७५,८७, १४।३८; १८७० ८८; ३६।२६७. नं० ५२,१२७।२. अ० ५३० गामकंटग (प्रामकण्टक) उ० २०२५ से ५३७ गामकंटय (पामकण्टक) २०१०।११ गहणया (ग्रहण) दसा० १०।११ गामणियंतिय (ग्रामनियन्त्रित) बसा० १०।२६ गहसम (ग्रहसम) अ० ३०७।८ गामनिद्धमण (ग्राम निखमण') ५० ५१ गहाय (गृहीत्वा) उ० ४।२ नं० ५३. अ०४१६. गामपह (प्रामपथ) नि० १२।२३,१७।१४५ बसा० ७।१७. क० ११३८. व० ७।२२. नि. गामपहंतर (ग्रामपथान्तर) नि० १४१३८; १८१७० ७।१३ गाममह (प्राममह) नि० १२।२१; १७।१४३ गहित (गृहीत) दसा० ६१८ गामवह (ग्रामवध) नि० १२।२२; १७४१४४ Page #1099 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामानुगाम- गिम्ह गामाणुगाम (ग्रामानुग्राम) उ० २।१३; २३ ३,७; २५२. दसा० १०३, ५, ६, ११. ५० २७२. क० ४।२६; ५।१५. व० ४।११; ५। ११ ; ७।२२; ८।१५. नि० २।३८,४१; ३।६६; ४।१०७; ६।७८ ७ ६७; ८।११; १०/३४; ११/६४; १५/६६, १५२, १७/६८, १२२; १६।६ गाम रक्खिय ( ग्रामरक्षित) नि० ४।३६, ४४, ४६ गामि ( गामिन् ) उ० १४।३३; २३:७१. बसा० १०।२६. ५०७४, ८१ गाय ( गात्र) द० ३।५; ६।६३. उ० २२६,३४,३६. दसा० १०।११.५० ४२. क० ५।३८,३६ गायंत (गायत् ) वसा० १०।१४. नि० १२/२६; १७।१५१ गायाभंग ( गात्राभ्यङ्ग) द० ३।१ गारत्थ ( अगारस्थ) उ० ५।२० गारथिणी ( अगारस्थी) नि० ३।३,४,७,८,११,१२ गारत्थिय ( अगारस्थित ) नि० १।११ से १८,३६, ४०, ५५ २।३६ से ४१, ३ १, २, ५, ६, ६, १०; ५।१२; १० ४०; ११।११ से ६४; १२ ७, ४१; १३।१२ से ३०; १५।१३ से ६६,७६,७७, १६।३७, ३८; १७ १५ से १२२; १६।२६, २७ गारत्थियवयण ( अगारस्थितवचन) क० ६।१ गारव (गौरव) आ० ४।८. द० ६।२६. उ० १६८६, ६१; २७१६; ३११४ गारविय ( गौरविक) उ० २७/६ गाल (गालय् ) - गालावेति नि० १६।७. - गालेति नि० १६७ • गालिय (गालित) नि० १६।७ गाव (दे० गो) ब० ७।२४ गावी (दे०) द० ५।१२ गाह (ग्रह) - गाहेति दसा० १०।१० गाह (ग्राह) उ० ३२|७६; ३६।१७२; बसा ६।३ गाहा (गाथा) उ० १३।१२. अ० २८,१२१, ३१८१३,३२७ २,३४१, ३४२, ५२५।१, ५६६/२ १०५ ५७१,५७२, ६१७,७१३. क० ३।२३, २४. व० ८।१ गाहावर (दे० गृहपति) १० ८१. क० १।३२,३३, ३८,४०, ३।१३; ४११४,२६; ५।११, १२, १५, ४१. ० ८।५.१३. नि० २।३६; ३।१ से १३, १५ ७ ७८ ७६८।१; ६ ७ १५/६७ गाहाइकुल (दे० गृहपतिकुल ) दसा० ६।१८; ७।२२. ५० २३६,२४०, २४२, २४३, २५०, २५२,२५४ से २५८, २७१, २७७ गाहासोलसय (गाथाषोडशक ) आ० ४।८. उ० ३१।१३ गाहित्तु (प्राहयित) वसा० ४।२३ गाहिय ( ग्राहित) उ० १७१४. बसा० ६।२।२४ गाहेत्ता ( गाहित्वा ) वसा० १० १० गिज्भ (गुघ् ) – गिज्झति नि० १२।३०. — गिज्भेज्जा उ०८।१८ गिज्झ (प्रा) उ० १६ । ४, ५ गिज्झ (गृहीत्वा ) उ० २३।५१ गिज्झमाण (गुष्यत्) नि० १२।३०; १७ । १५२ गिज्झा (गृहीत्वा ) उ० २६।३५ गिण्ह (प्रह) - गिण्हइ नं० १२७।३. प० १५. - गिण्हति नि० २।४५ – गिण्हा हि द० ६।५१ गिव्हंत (गृहृत्) उ० २४ । १३. नि० २।४५ गिण्हमाण (गृह्णत्) वसा० २।३. क० ६।७ से १८. गिहित्तए ( ग्रहीतुम् ) ५० २८० गिव्हित्ता ( गृहीत्वा ) प० १५ गिहियव्व (गृहीतव्य ) अ० ७१५।५ गिद्ध (गुड) द० ८।२३; १०।१७. उ० ५२४,५,१०; ७१६; ८११, १४; १३१५, २८, ३०, ३३; १८१७, २०१३६; ३२ ५०, ६३, ८६, ३५।१७. वसा० ६ |४; ६।२।१२; १०।२६ गिद्ध (गुध) उ० १४१४७, १६ ५८ गिद्धपिट्ठमरण (गृध्रपृष्ठमरण) नि० ११।६३ गिद्धि ( गुद्धि) उ० ३२।२४,३७,५०,६३,७६,८९ गिम्ह (ग्रीष्म) द० ३।१३. सा० ८२. ५०५६, Page #1100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ गिम्हय-गुंजालिया ८।२ ८०,८१,१०६,११५,१३८,१६१,१६३,१६५; । गिहवार (गृहद्वार) नि० ३।७१ २२२१५,२७६. क० ११६ से ६,३६; २।२,९; गिहपडिदुवार (गृहप्रतिद्वार) नि० ३७१ ४।३१,३२. २०४१ से ४,६५।१ से ४,६%3 गिहमुह (गृहमुख) नि० ३७१ गिहवइ (गृहपति) ३० ५।१६ गिम्हय (ग्रीष्मज) अ० ३३४ गिहवच्च (गृहवर्चस्) नि० ३।७१ गिरा (गिरा) द० ७।३,५,५२,५४,५५; ६।१२. गिहवास (गहवास) ० चू० १ सू० १. उ० उ० १२॥१५. ५० ३६,३७. नि. १९।२५ - ५२४; ३५।२ गिरि (गिरि) ८० हाच० १११७. उ० गिहि (गहिन) ० ३१६; ६।१८, ८५०; ११।२६; १२।२६; १९४१; २२।३३. अ० ६।३०,५२ चू० १ सू० १; चू० २।६. उ० २६४।४,३५२,३६३,५३३।१, ७०८।५ ७२०; १५।१०; १७।१६.५० २३८ गिरिकंदर (गिरिकन्दर) ५० ५१ गिहिजोग (गृहियोग) २० ८।२१; १००६ गिरिजत्ता (गिरियात्रा) नि० ६।१७,१८ गिहिणिसेज्जा (गहिमिषद्या) नि० १२।१३ गिरिनगर (गिरिनगर) अ० ३६२ गिहितिगिच्छा (गहिचिकित्सा) नि० १२।१४ गिरिपक्खंदण (गिरिप्रस्कन्दन) नि० १११६३ गिरिपडण (गिरिपतन) नि० १११६३ गिहिधम्म (गृहिधर्म) अ० २०,२६ गिरिमह (गिरिमह) नि० ८।१४ गिहिभायण (गृहिभाजन) द० ६।५२ गिलाण (ग्लान) उ० ५।११. दसा ।।२८. गिहिभूय (गृहिभूत) व० २।१६, २१ से २३ प० २३७,२३६.५० १०॥४०. नि० १०॥३३ गिहिमत्त (गृह्यमत्र) द० ३।३. नि० १२।११ से ३३, १६५ गिहिलिंग (गहिलिंग) उ० ३६।४६,५२ गिलाणभत्त (ग्लानभक्त) नि०६६ गिहिलिंगसिद्ध (गृहिलिंगसिद्ध) नं० ३१ गिलायमाण (ग्लायत) दसा० ४।२३. क० ४११०, गिहिवत्थ (गहिवस्त्र) नि० १२।१२ ११. व. २१५ से १७; ४।१३, ५।१३ गिहिसंथव (गृहिसंस्तव) द० ८।५२ गिलित्ता (गिलित्वा) द० चू० ११६ गिहेलुय (गहलुक) नि० ३७१; १३३६; १४१२८, गिल्लि (दे०) अ० ३६२. दसा० ६।३ १६।४६; १८१६० गिह (गह) द०७।२७. उ०६७,२४; १३।१३, गीत (गीत) दसा० १०।२४ २४; १४१७,६,२१,१५१६; ३५८,६. गीतजुत्तिण्ण (गीतयुक्तिज्ञ) अ० ३०२।३ अ० ५५६.५० १५,४३,५१,११०. गीय (गीत) उ० १३।१४,१६; १६ सू० ७; क० ४।२७. नि० ११५५; ३७१, ६।१२. गा० ५,१२. अ० ३०७१ से ३, ५ से ७. गिहंगण (गृहाङ्गन) नि० ३।७१ दसा० १०११८.५० ६,७५ गिहतरनिसेज्जा (गृहान्तरनिषया) द० ३।५। गीयट्ठाण (गीतस्थान) नि० १२।२७; १७॥१४६ गिहकम्म (गृहकर्मन्) उ० ३५।८ गीवा (ग्रीवा) उ० ३४।६. अ० ६१३ गिहत्थ (गृहस्थ) द० ५।१४०,१४५. उ० २।१६; गुंजंत (गुजत्) ५० २५ ५।२२,२८; २३।१६; २५।२७. ५० ७४,११३. गुंजद्ध (गुजाध) दसा० ७।२० नि० १२११६ गुंजा (गुञ्जा) अ० १६,२०,३८४ गिहत्थसंसट्ठ (गहस्थसंसष्ट) आ० ६६,१० गुंजालिया (गुजालिका) अ० ३६२. नि. Page #1101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुंजा-गुरुवायणोवगय १०७ १२११८; १७।१४० ३५. १० २८८ गुंजा (वाय) (गुंजावात) उ० ३६।११८ गुणावह (गुणावह) उ० १९६८ मुच्छ (गुच्छ) उ० ३६।१४ गुणित (गुणित) अ० ४१७ गुज्झ (गुहा) अ० ३१४११ गुणिय (गुणित) उ०७।१२; १९७३. अ० ३६३, गुज्झग (गुह्यक) द०६।२७,२८. बसा०६।२।३४. ४०६,४०८,४११,४२२,४२४,४२९,४३१,४३६, प० २७,४२ ४३६,५६२,५६३,६०१,६०२ गुज्झसाला (गुह्यशाला) नि० ८।१६ गुत्त (गुप्त) द० ८।४०,४४. उ० १२।१७; १६ सू० गुज्झाणुचरिय (गुह्यानुचरित) ८० ७१५३ १ से ३; २६।५५; ३४।३१. दसा० ५७;७। गुड (गुड) अ० ६१. प० २३६ ३३६।२।३७; १०॥३२. ५० ५३,७८,२२४ गुण (गुण) ० ४।२७; ५।१४१; ६६,६७; गुत्तबंभयारि (गुप्तब्रह्मचारिन्) उ० १६ सू० १ से ७।४६,५६; ८।६०, ६३,१७,५१,५४; ३. दसा० ५७; १०।३२. प० ७८ ६।४।४; १०।१२; चू० २१४,१०. उ० गुत्ति (गुप्ति) आ० ४।३,८,५२. उ० १२।१७; ४।११,१३; ६।६; १२११; १३।१२,१३, २०१६०; २४।१,१६,२६; २६।३४; २८।२५; १७; १४।१०,१७; १८।४६; १९३५, २४, २६।३२, ३४।३१. वसा० १०॥३३. प० ८१ ३५,३६; २०१५१,५२,६०; २५॥३३; २८१५,६,३०; २६।१,३६,४५; ३१।१८; गुत्तिदिय (गुप्तेन्द्रिय) उ० १६ सू० १ से ३. वसा० ३२१५; ३६।५८. नं० गा० ४,१६,२८,३७ ५७; १०।३२, ५०७८ सू० ८७,१२७।२. अनं० २८. अ० २१, गुप्पमाण (गुप्यत्) ५०३१ २४७।१, २५५,२५७,२६२,३ ०७।४,३५४, गुमगुमायंत (गुमगुमायत्) ५०२५ ३६०।१, ५०६ से ५१५,५२१, ५२४, ५५१ ४, ५५१ गुम्म (गुल्म) उ० ३६।१४. दसा० १०।२४ से ५५३,७१५१६. वसा०६८ से १८; ६।२। गुम्मी (गुल्मी) उ० ३६।१३८ ३५; १०।११,१६,३० से ३३. ५० ६,२२,२४, गुरु (गुरु) आ० ६१४,५, २० ५।८८,६०,७१११; ३८,४२,४७,७५,१६५,२२२ ८।४४,४५, ६।१,२,६,७,८,१०,१३,३२,४०, गुणओ (गुणतस्) द० चू० २।१०. उ० ३२।५ ४२,५४,५५. उ०११२,३,१६,२०,७६; १७॥ गुणकेसराल (गुणकेसर) नं० गा० ७ १०,२६७,८,२१,२२,३७,४० से ४२,४५, गुणगाहि (गुणग्राहिन्) उ० ३६।२६२ ४८ से ५१; ३०।३२; ३२॥३. नं० गा० २. गुणजातीय (गुणजातीय) दसा० ४।१६ दसा० ४।१३. ५० ७३ गुणत्तण (गुणत्व) उ० २६।३६ गुणधारणा (गुणधारणा) अ० ७४।१, ६१०।१।। गुरुकुल (गुरुकुल) उ०११।१४ गुणनिप्फन्न (गुणनिष्पन्न) प० ५२,६६ गुरुजण (गुरुजन) अ० ३१४।२. ५० ३६ गुणपच्चइय (गुणप्रत्ययिक) नं० २२।१,२५११ गुरुदार (गुरुदार) अ० ३१४।१ गुणप्पेहि (गुणप्रेक्षिन) द० ५।१४४ ।। गुरुय (गुरुक) उ० १६३५; ३६।३६. दसा० ६।६ गुणव (गुणवत्) द० ५।१५०. अ० ७४।१,६१०।१।। गुरुवायणोवगय (गुरुवाचनोपगत) अनं० ६.१० गुणवंत (गुणवत्) उ० २३॥ १० १३,३४,५७,८१,६६,१०६,५६३,६२३.६३५, गुणसिलय (गुणशिलक) वसा० १०।१,६,१५,१६, ६४७,६७३,७००,७१४ Page #1102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया-गोयम गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया (गुरुसार्मिकशुश्रूषण) गोच्छग (गोच्छग) द० ४ सू० २३. उ० २६॥२३. उ० २६१,५ क०३।१४,१५ गुल (गुड) अ० २८७।१,३७६. नि० ६७६; ८।१७ गोट्ठिय (गोष्ठिक) अ० ५५७ गुलगुलाइय (गुलगुलायित) अ० ५२२ गोण (गो०) द० ५।१२. उ० ३६।१८०.० ३८१७ गुब्विणी (गुर्विणी) व० ५।३६,४०. दसा० ७।५ अनं० १२. वसा० ७.२४ व०१०३ गोणकरण (गोकरण) नि. १२।२४; १७.१४६ गुहा (गुफा) नं० गा० १४,८३ गोणगिह (गोगह) नि० ८६; १५७५ गूढ (गूढ) उ० २५।१८ गोणजुद्ध (गोयुद्ध) नि० १२।२५,१७।१४७ गूढाचारि (गूढाचारिन्) बसा० ६।२१७ गोणसाला (गोशाला) नि० ८1८; १५३७५ गूिह (गृह) --गूहे द० ८।३२ गोण्ण (गौण) अ० ३१६,३२०. ५० ५२,६६ Vगेण्ह (ग्रह) -गेण्ह २०७।४५. अ० ३०८१५. गोतम (गौतम) ५० २,१६२,२१७ -गेण्हइ उ० २५।२४. गेण्हंति ०६।१४. गौत्त (गोत्र) २०७।१७,२०. उ० ३२; १८२१, -गेण्हति नि० २।२. गेण्हेज्जा द०४ सू० २२; २९४४,७३; ३३।२३. अ० २८२,६०४. १३ वसा० ५७; १०१६.५० १२,१४,६७,६६ से ७२,१०६,१२४,१३८,१८०,१८३,१९३,२२१॥ गेण्हत (गृहत्) ३० ४ सू० १३. नि० २।२; ६१ गोत्तागार (गोत्रागार) ५० ५१ गेण्हण (ग्रहण) उ० १६।२७ गोदास (गोदास) १० १८६,१६० गेण्हमाण (गहत) द० ६।१४ गोदासगण (गोदासगण) ५० १६० Vगेहाव (ग्राहय) --गेण्हावए ३०६।१४. गोदोहिया (गोदोहिका) दसा० ७.३० -गेण्हावेज्जा व० ४ सू० १३ गोधा (गोधा) दसा० ६३ गेद्धि (खि) उ० ३४।२३ गोपुर (गोपुर) उ०६।१८. अ० ३९२. नि० ८३%B गेरुय (गैरिक) ८० ५॥३४. उ० ३६७६ १५२६६ गेविज्ज (वेय) उ० ३६।२१२. ५० ४२ गोप्पय (गोष्पद) अ० ५४० गेविज्जग (प्रैवेयक) उ० ३६।२१५ गोमय (गोमय) द. २७. नि० १२१३३ से ३६ गेवेज्ज (वेय) अ० २८७, वसा० १०॥३ गोमि (गोमिन) द. ७१६ गेवेज्जग (वेयक) सा० १०।११ गोमिणी (गोमिनो) ८० ७१६ गेवेज्जय (ग्रेवेयज) अ० २५४ गोमिय (गोमिन्) अ० ३३० गेवेज्जविमाण (ग्रेवेयविमान) अ० १८६ गोमुत्ति (गोमूत्रिका) उ० ३०।१६ गोमुत्तिया (गोमूत्रिका) दसा० ७१७ गेह (गेह) उ०६।६१; १७१८; १९२२. बसा. गोमुही (गोमुखी) अ० ३००।१ १०।६.५० ४४ गोमेज्जय (गोमेदक) उ० ३६।७५ गेहि (गद्धि) उ० ६।४. दसा० ६।२।१४ गोम्हिय (दे०) अ० ५२५ गो (गो) उ० ३४।१६,१८. नं० गा० ४४. अ० गोय (गोत्र) उ० २६।४२,३३१३,१४. वसा० १०॥ ३३०,५४१. दसा०६।३ गोखीर (गोक्षीर) १० २६ गोयम (गौतम) उ० १०१ से ३७; १८।२२, २२॥ गोच्छ (गोच्छ) आ० ४।६ ५; २३१६,६,१४ से १८,२१,२२,२५,२८,३१, Page #1103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयमगोत्त-जय ३४,३५,३७,३६,४२, ४४, ४५, ४७, ४६, ५०, ५२, ५४,५५,५७,५६,६०,६२,२३।६४,६७, ६६,७०, ७२.७४,७७,७६, ८२, ८५,८६,८८,८६ नं० गा० २४, सू० २३. जोनं० ३,४. अ० २०, २६: ४०२,४०३,४२६,४३३,४४१ से ४४८, ४५०, ४५२, ४५५,४५७ से ४६४,४६६ से ४६८, ४७१,४७२,४७६, ४७७, ४८ १,४८२, ४८७, ४६० से ४६२, ४३५, ४६७, ४६६, ५०२,५०३. प० ८७, १८३, १८७,१६२, २०६, २०७, २१६, २२२।१ गोममगोत्त ( गोतमगोत्र ) प० २२२/४ गोयमिज्जिया ( गौतमीया) प० २०१ गोयर (गोचर ) द० ५।१४, १०२. उ० १६१८० गोयरकाल ( गोचरकाल) दसा० ७।६. प० २३६, २४१ से २४३ गोयरग्ग (गोचराघ्र ) ब० ५।१६, १०८ ६ ५६. उ० २२६; ३०/२५. अ० ५३२, ५३६ गोयरचरिया (गोचरचर्या) आ० ४।६. दसा० ७ ७ गोयरिया (गोचर्या) उ० १६८३ गोर (गौर) प० २३ गोरमिगाइण ( गौरमृगाजिन) नि० ७ १० से १२; १७।१२ से १४ गोरहग (दे० ) ०७२४ गोरी (गौरी) अ० ३०७ १३ गोल (दे०) द० ७११४, १६ गोल (गोल) नं० ३८/३ गोलय (गोलक) उ० २५ ४०, ४१ गोला (दे०) द० ७।१६ गोलियसाला (गोडिकशाला ) व० ६।१६।२० गोलुकि (दे० ) नि० १७।१३६ गोले हणिया (गोलेहनिका) नि० ३।७४ गोलोम (गोलोम ) प० २८१. नि० १०३८ / गोव ( गोपय् ) – गोवयति. अ० ३२१ गोवाल (गोपाल) उ० २२।४५ गोव्वइय (गोव्रतिक) अ० २०,२६ १०२ गोसीस (गोशीषं ) दसा० १०।११. ५० ४२, ६२ गोहा (गोधा ) उ० ३६।१८१ गोहिया ( गोधिका ) अ० ३०१ २. नि० १७।१३८ गोहूम ( गोधूम) क० २।१ ग्रन्थे ( ) अ० ३६७ घ घंटा ( घण्टा ) नं० १०२. बसा० १० १४ घंटिय ( घाण्टिक) प० ७४ सियय ( घर्षितक) वसा० ६ ३ घटोत्र ( ) अ० २६४ √ घट्ट (घट्ट ) - घट्टेज्जा द० ४ सू० १८ घट्टत (घट्टयत्) द० ४ सू० १८, २० घट्टाव (घट्टय्) - घट्टावेजा द० ४ सू० १८ घट्टियाण (घट्टयिश्वा) द० ५।३० घट्ट (घुष्ट) अ० २१. प० २०, २२४. क० १४३ घड (घट) नं० ३८६. अ० २५३,३३१,५२३, ५५२,६१३.५० ६२ घड (घटक ) अ० ३७७ घडि ( घटिन् ) अ० ३३१ घमित्तय (घटीमात्रक) क० १११६, १७ घण (धन) ब० ८।६३. उ० ३० | १०; ३६ ६६. अ० ४६३,५०३. वसा० १०११८,२४० ५० ६, २१,२४,२६,३२. नि० १७।१३८ घणंगुल (घनाङ्गुल) अ० ३६३, ३९४,४०६, ४०७, ४११,४१२ घणघणाइय ( घनघनायित) अ० ५२२ घट्ट (घनवृत्त) प० २२ घणवात ( घनवात) उ० ३६।११८ धत्तु ( हन्तु ) उ० १८।७ घत्थ (ग्रस्त ) उ० १६।१४ घय (घृत) द० ५। ६७. उ० ३।१२; १४११८. नं० ३८१६. अ० १८५१,२८७११. ५० ३४. क० ५।३६. नि० १४; ३१८, २४, ३०, ३८, ३६, ५२,६१; ४।५६,६२, ६८, ७६,७७, ६०, ६६; ६ | ५, १७, २७, ३३, ३९, ४७, ४८, ६१, ७० ७ १६, Page #1104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० घयकुंभ-चउक्क २२,२८,३६,३७,५०,५६; ११।१३,१६,२५, ७२; २०१२१, २२॥३१; २३।५०,७५, २५३८ ३३,३४,४७,५६,१५।१५,२१,२७,३५,३६, घोरपरक्कम (घोरपराक्रम) उ० १२।२३,२७; ४६,५८,१०१,१०७,११३,१२१,१२२,१३५, १४१५०; २३॥८६ १४४; १७।१७,२३,२६,३७.३८,५१,६०,७१, घोररूव (घोररूप) उ० १२।२५ ७७,८३,६१,६२,१०५,११४ । घोरवय (घोरवत) उ० १२।२३,२७ घयकुंभ (घृतकुम्भ) अनं० ८,६. अ० १६,१७,३७, घोरासम (घोराश्रम) उ०६।४२ ३८,६०,६१,८४,८५,१०६,११०,५६६,५६७, घोलंत (घोलत्) ५० १० ६२६,६२७,६३८,६३६,६५०,६५१,६७६, घोलितय (घोलितक) दसा० ६।३ ६७७,७०३,७०४ घोस (घोष) उ० ११।१७; ३०।१७. नं० गा. ६ घयण (दे० भाण्ड) नं० ३८।३ सू०४३,४५,४७,४६. अ० २८,५१,७३,५६६। घर (गृह) उ०६।२६; २११५; ३०।१८. अ० २८७, १,६२३. दसा० १०।१६. ५० २१,३२. क. ३२३,३६२,५५६,६१३. १०२५१. नि० ३।१५ १०६ घरणी (गृहिणी) उ० २११४ घोसविसुद्धिकारय (घोषविशुद्धिकारक) बसा० ४१५ घसा (दे०) द० ६।६१ घोससम (घोषसम) अनं० ६. अ० १३,३४,५७, घाइकम्म (घातिकर्मन्) अ० २८४ ८१,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३,७००, घाण (घ्राण) उ० १०॥२३; ३२१४८,४६ ७१४ पाणिदिय (घ्राणेन्द्रिय) नं० ४१,४२,४४,४६,४८, घोसहीण (घोषहीन) आ० ४।८ घाणिदियनिग्गह (घ्राणेन्द्रियनिग्रह) उ० २६१,६५ घाणिदियपच्चक्ख (घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष) नं. ५. अ० ५१७ घाणिदियलद्धि (घ्राणेन्द्रियलब्धि) अ०२८५ घाति (घातिन्) सा० ६४ 1 घाय (घातय) -घायए द०६९ घास (ग्रास) उ० २।३०, ८।११; ३०।२१.३० ८। घिसु (दे० ग्रीष्म) उ० २।८,३६ घुट्ठ (घुष्ट) उ० १२।३६ घेतव्व (ग्रहीतव्य) प० २३७, व० २।२४ घेत्तूण (गृहीत्वा) उ० ७।१४ घेप्प (ग्रह) -घेप्पइ अ० ४२५ घोड (घोट) अनं० १६ घोडग (घोटक) नं० ३८७ घोडमुह (घोटमुख) नं०६७. अ० ४६,५४८ घोर (घोर) द०६।१०,१५,६२,६५, ६।३१; चु० १।१२. उ० ४।६; १४१५०; १८।२५; १६।३३, च (च) आ० २।२. १० ११४. उ० १६. नं० गा. १८. अ० १७. दसा० ५७.५० ६१. क० ११५ चइउं (त्यक्त्वा ) उ०१८।१६ चइउं (त्यक्तुम्) उ० १३१३२ चइऊण (त्यक्त्वा ) उ० ७।३० चइऊणं (त्यक्त्वा ) उ० ११२१ चइत्ता (त्यक्त्वा ) उ० १४१४६ चइत्ता (च्युत्वा) दसा० ८.१. ५०१ चइत्ताणं (त्यक्त्वा ) उ० ११५ चइत्ताणं (च्युत्वा) द० ५१४८ चइत्तु (त्यक्त्वा ) उ० ११४८ चइय (च्यावित) अनं०८ चइयव्व (त्यक्तव्य) उ० १९।१३ चउ (चतुर) आ० ४१२. २०६४६. उ० ३११. नं० १८१७. जोनं० २. अ० २. बसा० ६।४. ० ८. क० श६. व. २।२७. नि० ६७ चउक्क (चतुष्क) उ० १६।४; २४।१२; ३६।२५२. Page #1105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्कनइय- चउग्विह अ० २८६, २६४, ३६२. दसा० १०।६. प० ५१, ६२. क० १।१२,१३ चक्कनइय ( चतुष्कनयिक ) नं० १०१, १०३ चक्कय ( चतुष्कक) अ० ७,३८४ चउगमण (चतुर्गमन) प० ३१ चउजमलपय (चतुर्य मलपद) अ०० ४६० चउत्थ (चतुर्थ) द० ४ सू० १४, ६।४७, ६ सू० ४ से ६. उ० २४।२०; २६१२, १२, १६,४३,४४; ३३।१२; ३६।१६३.२३७. नं०८४. अ० ३०६, ३०७,३०८. दसा० ६।११७/२८ १०८१, ८४,१२३, १२७, १३८, १६१, १६६, १९७,२०२ उत्थग (चतुर्थक) प० १६८. व० ३।१३.१५, १७, १८, २०, २२ चउत्थभत्तिय (चतुर्थभक्तिक) प० २४०२४५ उत्थय (चतुर्थक) प० ११७, २०२ चउत्थी (चतुर्थी) प० १०६, ११५, १६१. व० १० ३ चउदस ( चतुर्दशन् ) उ० ११/६ चउदसी ( चतुर्दशी) व० १०1३ उस ( चतुर्दशन् ) आ० ४८, उ० ३६।२२७. प० १०३ उस पुव्वि ( चतुर्दशपूविन्) अ०२८५ चउदसविह ( चतुर्दशविध ) नं० ९४,१०४ चउपसिय (चतुष्प्रदेशिक) अ० ११५,१३२ चउप्पन (चतुःपञ्चाशत् ) १० १३० चउप्पय ( चतुष्पद) उ० १३ ।२४; २६।१३; ३६॥ १७६. अ० ८७, ८६, २५४, ३२७, ५२५,६५४, ६५८ ६८०,६८४. दसा० ७।५ चउभाग (चतुर्भाग) उ० २६।२० चउन्भाय (चतुर्भाग) उ० २६८, १६, २१, २२,३७, ४५ चउभंग (चतुर्भङ्ग) प० २५८ चउभाइया (चतुर्भागिका) अ० ३७६,६१४ भाग (चतुर्भाग) उ० ३०।२१. अ० ३७६. ५० १४४, १४५ १११ मासिया (चातुर्मासिकी) दसा० ७१३ चरमुट्ठिय (चतुर्मुष्टिक ) ५० १६५ चउम्मुह (चतुर्मुख) अ० ३६२. दसा० १०/६. प० ५१,६२ चाह (चतुराह) व०८१४ चउर (चतुर ) अ० ३०७।१२ चउर (इंदिय ) ( चतुरिन्द्रिय) उ० ३६।१२६ चउरंगा (चतुरङ्गी) उ० ३।२० चउरंगिणी (चतुरङ्गिनी) उ० २२।१२ चउरंस (चतुरस्र ) उ० ३६।२१,४५. दसा ६।५ चउरासीइ (चतुरशीति) नं० ७६. अ० ४१७. प० ह चउरासीइम ( चतुरशीतितम) प० ११५ उरिदिय (चतुरिन्द्रिय) आ० ४।४. द० ४ सू० ६. उ० ३६।१४५,१४६; १५१,१५२. अ० २५४, ४४५,४५३,४८५ चउरिदियकाय (चतुरिन्द्रियकाय ) उ० १०।१२ चउवासपरियाय ( चतुर्वर्षपर्याय) प० १०५. व १०।२६ चविह (चतुविध) उ० ३६।१७६ चवीस ( चतुविशति ) आ० २।१. उ० ३६।२३५. अ० २२६. व० ५।१७ चवीसत्थय ( चतुविशतिस्तव) नं० ७५. जोनं० ६. अ० ७४ चवीसत्थव ( चतुविशतिस्तव) आ० २ चविध (चतुविध) दसा० ४।१२, १४ चव्विह ( चतुविध) आ० ६।१ से १. द० ६४ सू० ४ से ७. उ० १६।३०; २४।६,२०; २८ । १८; ३३।१२; ३६।४, १०, ११,७८, १११,१२०, १५५, १५८, १७३, १८२, १८८, १८६, २०४, २२७. नं० २२,२५,३३,३८,३६,५४,६६,७६, १२०, १२७. अ० ८, २६, ५२, २६५, ३२८,३३८, ३४६,३६६,४४४,५१५,५५२,५६६.६१६, ६२०,६३२,६४४,६६६, ६७०, ६६४, ६६७. दसा० ४४ से ६,१३,१५ से २३; १०।११. प० ४२, ७६ Page #1106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउव्वीस-चक्खुफासमो चउव्वीस (चतुविशति) अ० ५६६ चउव्वीसत्थय (चतुर्विशतिस्तव) उ० २९।१,१०. अ०७४ चउसट्टि (चतुःषष्टि) अ० ३८४. ५० ११६. ५० ६।३६ चउसट्ठिया (चतुःषष्टिका) अ० ३७६,६१४ चउहत्थ (चतुर्हस्त) अ० ३८० चउहा (चतुर्धा) उ० ३६।१२६ चंकम्ममाण (चक्रम्यमाण) प० २६ चंगबेर (दे०) २० ७२८ चंचल (चञ्चल) द०० १ सू० १. उ० १८।१३. प०८,३१,३४ चंचुमालइय (दे०) ५० १० चंड (चण्ड) २०६।२०,३६. उ० १११३; १७१८; १६७०. बसा० ६३,५. ५० १५ चंडाल (चण्डाल) उ० ३।४ चंडालिय (चाण्डालिक) उ०१।१०,११ चंद (चन्द्र) आ० २१७; १४१७. उ० १११२५, २३।१८, २५१६,१७, ३६।२०८. नं० गा. ६. सू० ७१. अ० १८५४,२५४,५४०. बसा० ६॥ ५,१०।१८. ५० ३१,५६,६६,७८,८४ चंदगविज्झय (चन्द्रकवेध्यक) नं० ७७ चंदण (चन्दन) उ० १६६२, ३६१७६. बसा० १० ११,१२,२४. १० ४२,६२,८० चंदनागरी (चन्द्रनागरी) ५० १६५ .... चंदपडिमा (चन्द्रप्रतिमा) ३०१०११ से ५: चंदपण्णत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति) नं० ७८. जोनं. ६ चंदपरिवेस (चन्द्रपरिवेश) अ० २८७ चंदप्पभ (चन्द्रप्रम) प०३३ चंदप्पभा (चन्द्रप्रभा) ५० ७४ चंदप्पह (चन्द्रप्रम) आ० २१२,५१४ उ० ३६७६. अ० २२७. ५० १५३ चंदमंडल (चन्द्रमण्डल) दसा० १०।१४ चंदाविज्झय (चन्द्रकवेष्य) जोनं० ८ चंदिम (चन्द्रमस्) द० ६६८,८।६३ चंदोवराग (चन्द्रोपराग) अ० २८७ चंपग (चम्पक) नंगा. ३७. १०२५ चपगवण (चम्पकवन) अ० ३२४. नि० ३१७६ चंपा (चम्पा) उ० २१११,५. बसा०६।१.५० ८३. नि० ६२० चंपिज्जिया (चम्पीया) प० १६६ चक्क (चक्र) उ०६।६०,११।२१,१४।४,२२।११. नं० गा० ५ चक्कवट्टि (चक्रवर्तिन) मा० ६।११. उ० ११।२२; १३।४,१८१३६ से ३८. अ० ३६६,४०८, ५४२. सा० ६।३,७. ५० १० से १२,१४, ४७,४६ चक्कवट्टिगंडिया (चक्रवतिकण्डिका) मं० १२१ चक्कहर (चक्रधर) ५० ४७ चक्काक (चक्रवाक) ५० ३० चक्किय (चक्रिक) बसा० १०.१८. ५०७४,२३२ चक्कियसाला (चक्रिकशाला) ० ६।१७,१८ । चक्किया (शक्नुयात्) क० ४।३०. व० ८२ से ४ चविखदिय (चक्षरिन्द्रिय) नं० ४२,४४,४६,४८, ५६ चक्खिदियनिग्गह (चक्षुरिन्द्रियनिग्रह) उ० २६१, चक्खिदियपच्चक्ख (चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष) नं० ५५. अ० ५१७ चक्खिदियलद्धि (चक्षुरिन्द्रियलम्धि) अ० २८५ .. नक्खु (चक्षुष्) उ० ५।५,१०।२२,१६।४,२४१७, १४,२६।३५,३२।२२,२३,३३१६ चक्खुगोयर (चक्षुर्गोचर) २० ५।१११ चक्खुदंसण (चक्षुर्दर्शन) अ० ५५२. नि. 83B १२।१७ से २६ चक्खुदंसणलद्धि (चक्षुर्दर्शनलब्धि) ० २८५ चक्खुदंसणावरण (चक्षुर्दर्शनावरण) अ० २८२ । चक्खुदंसणि (चक्षुर्दशनिन्) अ० ५५२ चक्खुदय (चक्षुर्वय) आ० ६।११. ५० १० . चक्खुप्फास (चक्षुस्स्पर्श) ५० २६३ । चक्खुफास (चक्षुस्स्पर्श) प०६२ चक्खफासो (चक्षुस्स्पर्शतस्) उ० ११३३ Page #1107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्लोलु-चरितमोहणिज्ज चखलोलु (चक्षुर्लोलुप) क० ६।१६ क्खु (चक्षुष) ६० ६।२७,३०,४१,४४ चच्चर ( चत्वरः) उ० १६/४. अ० ३६२. दसा० १० ६. ० ५१,६२. क० १।१२,१३ चच्चिय ( चर्चित ) दसा० १० १२ ari ( चणक) अ० ४३६ चत्त ( त्यक्त) उ० ६ १५; १६८६ चत्तदेह ( त्यक्तदेह ) उ० १२।४२. अनं ८. अ० १६, ३७, ६०, ८४, १०६, ५६६, ६२६,६३८, ६५०, ६७६,७०३. दसा० ७१४, २६, २७, ३२. व० १०१२,४ चत्तालीस ( चत्वारिंशत् ) प० १३३ चमर ( चमर) दसा० १०११५. ५०३२, ४२ चमरी ( चमरी) अ० ५२५ चमू (चमू) प० ७४ चम्म ( चन्) प० ४२. क० ३।३ से ६. व० ८५. नि० २।२२; १२५ चम्मकोय ( चर्मकोशवः) व०८१५ चम्मखंडिय ( चर्मख पिक) अ० २०, २६ चम्मपक्खि ( चर्मपक्षिन् ) उ० ३६।१८८ चम्मपलिच्छेयणय ( धर्मपरिछेदनक) न० ८५ चम्मपाय ( चर्मपात्र) नि० ११।१ से ३ चम्मपास (चर्मपाशक) नि० १२ १,२; १७ १,२ चम्मबंधण (चर्मबन्धन) नि० ११।४ से ६ मेग (चर्मेण्ट ) अ० ४१६ √चय ( त्यज् ) - चए, द० ६।५२ -- चय, ब० २।५. - चयइ, द० २।३. उ० २६/४. चयंति, उ० १३।३१. नं० ६७ - चयसि, उ० ६५१ (चय ( च्यु) – इसति, वसा० ८३ चइस्सामि, प० ३ चरितकर (चरिक्तकर) उ० २८|३३ चय (च्युत) दसा० १० । २४ से ३२ चयण ( च्यवन) वसा० १०।३२ चयमाण ( च्यवमान) प० ३,११०,१६२ (चर ( चर्) -चर, द० २८. उ० ४।६. चरई, ११३ उ० १७१८. चरंति, उ० १२।१५. व० ४।१६. चरंति, दस:० ७/६. चरसि, द० ५।१०५ – चरिज्ज, उ० २१।१२. - चरिस्ससि, ५० १६/४३ – चरिस्सामि, उ० १४।३२ – चरिस्सामु, उ० १४।७. च' रिस्सिमो, उ० २२/३८. बरे, ३० ४१७. ३० १३२. चरेज्ज, द० ५३८. उ० १७. दसा० ६/२/३५ चरंत ( चरत् ) द० ५।१०,१५. उ० २२६,४।११ चरम ( चरक) अ० २०, २६ चरण (चरण) उ० १८।२२, २४; १६६४; २३॥२ ६; २४|५, २६, २८।३०; ३३।८. नं० ८१ से १,१२३. अ० ३१०, ७१५६ ५० २४ चरणविसोहि (चरणविशोधि ) जोनं प चरणविहि (चरणविधि) उ० ३१।१. नं० ७७ चरम ( चरम ) उ० ३४।५६. नं० २८, २६. प० १०,१४ चरमाण (चरत् ) द० ४।१. उ० ३०।२०,२३. दसा० १०३,६,११ चराचर ( चराचर ) उ० ३२१२७,४०,५३,६६, ७६, ६२ चरिउ ( चरितुम् ) उ० १६३७ चरिउ ( चरित्वा ) उ० २१।२३ चरित (चरित्र) आ० ४।३, ५, ६, ५/२. ब० चू० २६. उ०१६ ३८, २०१५२,२२/२६,२३।३३, २६ ३६,४७,२८।२, ३, ११, २५, २६, ३५, २६। १२.१५,३२,५६,६०,७२. नं० गा० ४. सू० १८,१६. अ० ३३६,५१४,५५३,६६८,६९५. दसा० १०1३३. प० ७४,८१. क० १।७४ चरितगुत्त ( चरित्रगुप्त ) उ० २६।३२ चरितगुत्ति ( चरित्रगुप्ति) उ० ३६।३२ चरितधम्म ( चरित्रधर्म ) उ० २८ २७ चरितमोहण ( चरित्रमोहन ) उ० ३३|१० चरितमोहणिज्ज ( चरित्रमोहनीय) उ० २६/३०. अ० २७६, २८२ Page #1108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्तलद्धि-चारणगण चरित्तलाद्ध (चलब्धि) अ० २७६,२८५ चाइय (शकित, शक्त) उ० ३२।१६ चरित्तव (चरित्र नं० २५ चाउकाल (चतुष्काल) आ० ४१५,७. नि० १९१३ चरित्तसंपन्नया (रिस्पता) उ० २६।१,६२ चाउज्जाम (चतुर्याम) उ० २३।१२,२३ चरित्ता (चरित्वा) उ०१८२५ चाउद्दसी (चतुर्दशी) दसा० ६।१० से १८. चरित्ताचरित्तलाद्ध (चरित्ररित्रलब्धि) अ० २८५ चाउप्पाय (चतुष्पाद) 0 चरित्ताण (चरित्वा) उ० ३६० चाउमासिया (चातुर्मासिकी) दसा० ७।२६. नि० चरित्ताणं (चरित्वा) उ० १६१८ ११।६३; १२४३; १३१७५; १४।४१:१५॥ चरित्तायार (चरित्राचार) नं० ८१ १५४; १६५११७११५२; १८१७३: १६।३७; चरित्ति (चरित्रिन) अ० ३३६ २०१३,४,८,९.११ से १८,२७.२८,३२,४१,४६ चरिम (चरम) उ०२३।२७; ३६।५६,६४ सा० चाउरंगिज (चतर जोय) उ० ३. अ० ३२२ ७६,१०।३३.५० २,८४ चाउरंगिणी (चतुरङ्गिणी) दसा० १०८,१५ चरिमनिदाहकाल (चरमनिदाघकाल) व० ६।४. चाउरंत (चतुरन्त) आ० ६।११. उ० १११२२, १६४६,२६२३,३३,६०. नं० १२५.५० १०, चरिय (चरित) उ० १६।६७ चरिया (चर्या) द० चू०.२।४,५. उ० २. सू० ३. उम्मासिय (चातुर्मासिक) क० ११३७, २।१७; __अ० ३६२ ३१३३,४११०२ १३,५१ से ४, ६ से १०, चरिया (चरिका) नि० ८।३; १५२६६ १४. व० ११३,४८,६,११ से १८; ६163. चरियानियट्ट (चरिकानिवृत्त) व०४।२२,२३ नि०८।१८; ६।२६; १०१४१ चरियापविट्ठ (चरिकाप्रविष्ट) व० ४।२,२१ चाउम्मासिया (चातुर्मासकी) व० १०।२० चल इत्ता (चालयित्वा) द० ५।३१ चाउल (दे०) द० ५।१२२ चाउलोदग ('चाउल' उदा) द० ५७.५० २४५. चलंत (चलत्) अ० ५६६ नि० १३१३३ चलण (चरण) अ० ३०१ चाउलोदण ('चाउल' ओदन) दसा० ६।१८. ५० चलण (चलन) प० २४ २५५. व० ६१ चलणाहण (चरणाहनन) नं०३८।१३ चलमाण (चलत्) ५० ६२,२६३ चाडकर (चाटकर) दसा० १०१४ चाणक्क (चाणक्य) नं० ३८।१२ चलाचल (चलाचल) द०५।६५. नि०१३।६ से चामर (चामर) उ० २२।११. अनं० १३,१७. ११; १४२८ से ३०; १६।४६ से ५२; दसा० १०॥११,१४,१५,२४. ५० ४२ १८।६० से ६२ चामरगह (चामरग्रह) नि०६।२७ चलिय (चलित) ५० ३१ चाम रग्गाह (चामरग्राह) दसा० १०।१४ चवण (च्यवन) नं० १२०. दसा० १०॥३३. प० चामीकर (चामीकर) ५० २४ ८२ चामीयर (चामीकर) नं० गा० १२ चवल (चपल) उ० ६६०.५० १०,१५,३१ चारए (चरितुम) क० ११३५. व. ४।१ चवेडा (चपेटा) उ० ११३८, १६।६७ चारग (चारक) १० ६२,६३,१६३ चहिय (दे०) नं० ६५. अ० ५०,५४६ चारगबंधण (चारकबन्धन) सा०६३ चाइ (त्यागिन्) द० २।२,३ चारणगण (चारणगण) ५० १९८२ Page #1109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारणभावणा-चित्तताण चारणभावणा (चारणभावना) जनं ६. व० १०1३४ चारित ( चारित्र) उ० १३।३,२८।३३. बसा० १०/३३ चारु ( चारु) द० ८१५७. उ १६१४. ० ८,२१ से २३, २६ चारुपेहि (चारप्रेक्षिन् ) २२/७ चारुभासि ( चारुभाषिन उ० २२।३७ चालणा (चालना) अ' ७१४ चालणी ( चालनी) २० गा० ४४ चाव (चाप) दसा १०।१४ चावगाह (चापग्रह) दसा० १०।१४ चाविय (च्यावित ) अ० १६,३७,६०,८४,१०६, ५६६,६२६६३८,६५०,६७६,७०३ चावेयव्व ( चयितव्य) उ०१६।३८ चासपिच्छ (वा पिच्छ ) उ० ३४।५ चि ( चित्) द० ४ सू० ६. चू० २८. अ० ५५६, ७१४ चिइ (चिति) उ० १३।२५ / चित (चित्त) -- चितए द० ५।६१. उ० २७. - चितिज्ञ उ० २६ । ३६. - चिते ६० ५६४. चितेइ उ० २२।१८ चित्ताणं ( चिन्तयित्वा ) उ० २०१३३ चितंत ( चिन्तयत् ) उ० १६५६ चिता (चिन्ता) उ० १४।२२, २३।१० नं० ४५, ६२. अ० ३१३. प० ५४. नि० ८।११ चितिय (चिन्तित ) दसा० १० २२, २३. ५० ११, _५.२,५४,५५,६६ चिक्कण (दे० ) ० ६।६५ चिक्खल्ल (दे० ) अ० ३६८ चिक्खिल्ल (दे० ) दसा० ६।५ चिच्च (दे० ) अ० ३६८ चिच्चा ( त्यक्त्वा ) उ० ७ २८. दसा० ५।७।१६. प० २३१ चिच्चाण ( त्यक्त्वा ) उ० १०।२६ √चिट्ठ (ष्ठा) – चिट्ठ द० ७१४७. – चिट्ठइ ४० ११५ ४।१०. उ० ११४७. ० ५८. क० ३।२८. १० ४२० – चिट्टई उ० २७१६. -- चिट्ठति उ० ३।१५. दसा० १०३. प० ५१. - चिट्ठती उ० २५११७. - चिट्ठसि उ० १०१३४. – चिट्ठिस्सामि व० ४।१८. - चिट्ठे द० ४।७. उ० १।१६. -- चिट्ठेज्ज द० ५।१११. उ० १1३३. - चिट्ठेज्जा द० ४. सू० २२. उ० १।३२ चिट्ठत ( तिष्ठत्) द० ४ सू० २२ चिट्ठमाण ( तिष्ठत् ) द० ४।२; ५।२७. उ० २।२१ चिट्ठा ( चेष्टा ) उ० ३०।१२ √ चिट्ठाव ( स्थापय्) - चिट्ठावेज्जा द० ४ सू० २२ चिट्ठि ( स्थातुम् ) प० २३१ चिट्टिए ( स्थातुम् ) क० १११६ चिट्ठित्ताण ( स्थित्वा ) ६० ५११०८ चिट्ठित्तु (स्यात्) दसा० ३।३ / चिण ( चि) - चिणाइ उ० ३२ ३३ चिण्ण (चीर्ण) उ० २१ २२ चित्त (चित्त) द० १०1१; चू० १ सू० १. उ० २।१८; १४।४; २२/३४; २६।२६; ३२ १,१२, १४,३३,४६,५६,७२,८५,६८ ३४/२६. नं० गा० १३. वसा० ५७ १०१४, ६, ७, १० से १२, १४, ३४.१० ५ से ८, १०,१५,३०,३६,३८, ३६, ४१, ४४, ४७, ४८, ५०, ६३, १०६, ११५, १२६ से १३०,१६३ चित्त (चित्र) उ० ६ १०; १३१२, ३, ६, ११, १३, १५,२८,३५; ३०।११; ३२१२७, ४०, ५३, ६६, ७६, ६२. नि० ५२८ से ३०; ६।२३ चित्त (चैत्र) उ० २६।१३. १०५६ चित्तंतरगंडिया ( चित्रान्तरकण्डिका) नं० १२१ चित्तकम्म (चित्रकर्मन् ) अ० १०,३१,५४,७८, १०३, ५६०. अनं० ३, नि० १२।१६ चित्तकार ( चित्रकार) नं० ३८. अ० ३६० चित्तताण (चित्रतान) प०४२ Page #1110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ चित्तपत्तय-चेइय चित्तपत्तय (चित्रपत्रक) उ० ३६।१४८ चुचुमालइय (दे०) ५० ३८ चित्तभित्ति (चित्रभित्ति) द० ८१५४ चुडलिया (दे०) नं० १२ से १५ चित्तमंत (चित्तवत्) द० ४ सू० ४ से ८,१३,१५; चुण्ण (चूर्ण) प० २०,६१. नि० १।५; ३।१६,२५, ६।१३. उ० २५१२४. दसा० २।३. नि० ३१,५३,६२; ४१५७,६३,६६,६१,१००, ६६, ७१७२ से ७४; १३१५ से ७; १४।२४ से २६; २८,३४,४०,६२,७१; ७/१७,२३,२६,५१,६०; १६।४५ से ४७; १८१५६ से ५८ ११।१४,२०,२६,४८,५७; १४।१४,१५,१८, चित्तमाला (चित्रमाला) दसा० १०।१२ १६; १५।१६,२२,२८,५०,५६,१०२,१०८, चित्तसंभूइज्ज (चित्रसम्भूतीय) उ० १३ ११४,१३६,१४५; १७।१८,२४,३०,५२,६१, चित्तसमाहिट्ठाण (चित्तसमाधिस्थान) दसा० ५।१ ७२,७८,८४,१०६,११५; १८।४६,४७,५०,५१ से ३,७ चुण्णपिंड (चूर्णपिण्ड) नि० १३।७४ चित्तहर (चित्रगृह) उ० ३५।४ चुणिय (चूर्णित) उ० १९६७ चित्ता (चित्रा) उ० २२।२३. अ० ३४१. दसा० चुत (च्युत) अनं०८ १०।११. ५० १२६ से १३०,१३८ चुय (च्युत) द० १३,२३. उ० ३।१६; ७।१० चित्ताण्य (चित्तानुग) उ० १।१३ १४।१; १८।२६; २०१४७. अ० १६,३७,६०, चिय (चित) उ० ७।७. अ० ३८१,५५५ ८४,१०६,५६६,६२६,६३८,६५०,६७६,७०३. चियत्त (दे०) द० ५।१७,६५ दसा० ७.१७;८।१.५० १,३,५४,५६,१०८, चियत्तदेह (त्यक्तदेह) प. ७७,११४,१३०,१६६ ११०,१२६,१६०,१६२ चिया (चिता) उ०१६।५७ चुयअचुयसेणिया (च्युताच्युतश्रेणिका) नं० १०० चिरं (चिरम्) दचू० १।१६. उ० २०४१ चुयअचुयावत्त (च्युताच्युतावर्त) नं० १०० चिरकाल (चिरकाल) दचू० १ ० १. उ० १०६४ चुयाचुयसेणिया (च्युताच्युतश्रेणिका) नं० ६३ चिरद्वितीय (चिरस्थितिक) दसा० १०२४ से ३२ चुलणी (चुलनी) उ० १३।१ चिराधोय (चिराद्धौत) द० ५।७६. चू० १ चुल्लकप्पसुय (चुल्लकल्पश्रुत) नं० ७७. जोनं० ८ सू० १ चुल्ल पिउ ('चुल्ल' (क्षुल्ल) पितृ) द्र० ७१८ चिलाइया (किरातिका) नि० २६ चुल्लवत्थु ('चुल्ल'वस्तु) नं० ११८१३,१२३ चिलातिया (किरातिका) दसा० १०।१२ चूडामणी (चूडामणि) उ० २२११० चिलिमिलि (दे०) नि० ११४२०१३ चूयवण (चूतवन) अ० ३२४. नि० ३७६ चिलिमिलियाग (दे०) क० १।१४ चूला (चूडा) नं० गा० १७ चिल्लल (दे०) दसा० ७।२४ चूलियंग (चूलिकाङ्ग) अ० २१६,४१७ चीणंसुय (चीनांशुक) अ०४३. दसा० १०॥१२. चूलिया (चूलिका) दचू० २.१. नं० ६२,११८।३, नि० ७.१० से १२; १७:१२ से १४ १२२. अ० २१६,४१७ चीर (चीर) उ० ५।२१ चूलियावत्थु (चूलिकावस्तु) नं० १०५ से १०८, चीरल्लपोसय ('चीरल्ल'पोषक) नि० ६।२३ ११८ चीरिय (चोरिक) अ० २०,२६ चे (चेत्) दचू० १।१६. उ० १६ सू० ३ चीवर (चीवर) उ० २२।३४. नि० १०॥४१ चेय (चैत्य) उ०६।६,१०,२०१२. नं. ८६ से चीवरधारि (चीवरधारिन्) ५० ७६ ८६,६१. दसा० ५।५।६।११०११,६,११,१५, Page #1111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेइय-छक्क १६,३५. ५० ८१,२८८. व० ११३३; १०१२,४ चेइय (चेतित) क० २।२४ से २७ चेएंत (चेतयत) नि० ५।२,१३।१ से ११ चेएतए (चेतयितुम्) व० १११६ चेच्चा (स्यक्त्वा) उ० १३।२४. ५० ७४ चेट्ठा (चेष्टा) उ० १२।२६ चेड (चेट) प०४२ चेडग (चेटक) नं० ३८१४ चेत (चेतस्) बसा०६।२।४ चेत (चेतय')-चेतेति दसा. ६।२।१७ चेतियमह (चैत्यमह) नि० ८।१४ चेतेमाण (चेतयत्) दसा० २।३ चेत्त (चैत्र) ५० १६५,२२२॥५ चेय (चेतय')-चेएइ व० १११६. -चेएति नि० ५२ चेय (चेतस्) द० ५।२,६०; ६।६६; चू० १।१४. उ० १८॥३२,५०,२०११७,५८ चेल (चेल) ० ४ सू० २१. क० ३।१३,१६ से। १८. ५० ८।५. नि. १७११३२ चेलकण्ण (चेलकर्ण) ३० ४ सू० २१. नि. १७।१३३ ; १८:१६ . चेलचिलिमिलिया (दे०) क० १६१८. व० ८।५ चेलपाय (चेलपात्र) नि० ११११ से ३ चेलपेला (चेलपेटा) बसा० १०।२५,२६ । चेलबंधण (चेलबन्धन) नि० ११।४ से ६ चेल्लणा (चिल्लणा) दसा० १०॥२,११ से १३, २० से २३. व० ११५ चेव (चव) नं० गा० २१ चोइय (चोवित्त, नोदित) द० ६।२,४. उ०६८, ११,१३,१७,१६,२३,२५,२७,२६,३१,३३,३७, ३६,४१,४३,४५,४७,५०,६१; १७।१६; १८।४।४; १९३५६. नं०६७ चोक्ख (चोक्ष) ५० ६६ चोज्ज (चौर्य) उ० ३५४३ चोत्तीसइम (चतुःत्रिंश) ५० १२४ चोदसम (चतुर्दश) व० ६।४० चोद्दस (चतुर्दशन्) नं० ७६. ५० ४. व० १०॥३ चोद्दसपुदिव (चतुर्दशविन्) नं० ६६. ५० ६७, १२१,१२७,१३६,१७२,१८४ चोद्दसम (चतुर्दश) नं० ११८. ५० १८० चोद्दसमी (चतुर्दशी) व० १०।३ चोद्दसवासपरियाय (चतुर्दशवर्षपर्याय) व० १०।३३ चोद्दसविह (चतुर्वशविध) नं० ५५ चोद्दसी (चतुर्दशी) व० १०।५ चोयग (चोदक) नं० ५२ चोयण (चोदन) उ० ११२८ चोयय (दे०) अ० ३७६ चोयय (चोदक) अ० ४१६,४३६ चोयाल (चतश्चत्वारिंशत) नं०८४ चोर (चोर) द० २२. उ० ३२११०४ चोवट्टि (चतुःषष्टि) ५० १६५ छ (षष्) आ० ४।३. द० ३।११. उ० २६।१६. नं० १०१. अ० ७२. सा० २।३.५० १२२. क० ६१. व० ११५. नि० ६७ छउम (छद्मन्) उ० २।४३ छउमत्थ (छद्मस्थ) उ. २८।१६,३३. अ० २७५, २७६. १० ६२,२६२ से २६६,२६८ से २७० छउमत्थपरियाग (छद्मस्थपर्याय) १०१०६,१२४, १३८,१८० छउमत्थिय (छद्मस्थिक) अ०५५३ छंद (छन्द) द० २३७; ६।३७,४१. उ०४८%; १८१३०. वसा० ६३,७ छंद (छन्दस्) उ० १६७५, २१३१६ छंदणा (छन्दना) उ०२६।३,६. अ० २३६ छंदिय (छन्दिरवा) द. १०९ छक्क (षट्क) उ० ३११८ १. 'चेतय' प्राकृत् धातु है । Page #1112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छक्काय-छिंद ११८ ३० छक्काय (षट्काय) अ० २१ छप्पइया (षट्पदिका) आ० ४१५ छगणपीढग ('छगण'पीठक) नि० १२१६ छप्पय (षट्पद) प० २५ छज्जीवकाय (षडजीवकाय) उ० १२।४१ छप्पण्ण (षट्पञ्चाशत्) नं २५. अ० ४६६ छज्जीवणिका (षड्जीवनिका) द० ४ सू० १ से · छप्पुरिमा (षट्पूर्वा) उ० २६।२५ गा० २८ छब्भाय (षड्भाग) उ० ३६॥६२ छट्ट (षष्ठ) द० ४ सू० ६,१६,१७. उ० २६।६, छमा (भमा) दचू० १।२ ३२,३०११६,३६, ३४१३; ३६४१६५,३६. छम्मासिय (पाण्मासिक) प० २८१. व० ११५, नं० ८६. अ० ३००,३०४,३०६,३०८६०. १० से १४. नि० २०१५, १०, से १४,१६, दसा० ६।१३; ७।३१. १०२,६६,७,८१, १०६,११५,१३०,१६५,१६७ छम्मासिया (पाण्मासिकी) दसा० ७।३,२६. वर छ?भत्तिय (षष्ठभक्तिक) ५० २४१,२६ १०।२० छट्टय (षष्ठक) उ० २६।३; ३०।१ छलुय (षडुलूक) प० १६३,१६४ छट्ठिया (षष्ठिका) उ० १३१७ छवि (छवि) उ० २२१५.५० २२ छट्ठी (षष्ठी) प० २,१२६. व.१०१३ छविइय (छविमत) ० ७।३४ छिडु (छर्दय)-छड्डुए व० ८५ छविखाय (छविखाव) नि० ६।१० छड्डुण (छर्दन) द० ६।५१ छवित्ताण (छवित्राण) उ० २७ छणूसविय (क्षणोत्सविक) न० १५२६८ छविपन्व (छविपर्वन् ) उ० ५।२४ छगणउइ (षण्णवति) अ ३६० छवीसइ (षटुर्विशति) उ० ३६।२३८ छत्त (छत्र) द. ३१४३० २२।११, ३६१५७. छिन्व (दे०) पात्रविशेष ब० ६।४२,४३ अनं० १३,१७० ३३१. वसा० १०३,११, छविध (षडविध) दसा० ७७ १४.१५.१७.६,२४ से ३२. प०४२, छन्विह (षडविध) उ०२८।३४; ३०७,१०% २२२॥६ नं. ६,४२,४४,४६,४८,७५. अनं. १. अ० छत्तकार (छकार) अ० ३६० ७६,१००,२५६,२७१,३४८,६११,६१७,७१४. छत्तग (छ) उ० ३६१६० दसा० ४।१०,११. क० ६।२० छत्तग्गह.छत्रग्रह) नि० २।२७ छव्वीस (षड्विंशति) उ० ३६।२३७. अ० ११७ छत्तय छत्रक) ० ८५ छाओवय (छायोपग) नि० ३७६ छत्तर (षट्तल) अ. ४०८ छाय (छादय) -छायई दसा० ६२७ छ (छत्रिन्) अ. ३३१ छाय (दे०) द० ६।२४ तीस (पत्रिंशत्) उ० ३६।७७. नं० ८२. छायण (छादन) ५० ५८ प० ६४ छाया (छाया) उ० २८।१२. दसा० ७२४. ५० छत्तीसइविह (ट्त्रिंशद्विध) उ० ३६।७२ ७४१८१ छिन्न (क्षण'-छन्नंति द० ६।५१ छायालीस (षट्चत्वारिंशत्) प० १४६ छन्न (छन्न) उ० २५।१८ छारिय (क्षारिक) द० ५७ छन्नउइ (षणवति) अ० ४०० /छिद (छिद्)-छिंद उ० ६।४. दसा० ६।३. छन्नउय (तण्णवत) व० ६।३५ -छिदइ उ०२०१३९. -छिदई उ० Page #1113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छिदत-जइय ११६ २१२ १६८६. ---छिदति १२२८. -छिदसि अ० छेइत्ता (छित्वा) नं० १२० ५५५.छिदामि अ० ५५५.-छिदाहि द० २२५. छेओवट्ठाण (छेदोपस्थान) उ०२८।३२ -छिदिस्सामि नि० ११२८.--छिदे द०१२. छेत्तु (छत) उ० २०१४८ -छिदेज्जा द० ८।१० छेत्तुं (छेत्तुम्) अ० ३६८ छिदंत (छिन्दत्) नि० १।२८, छेत्तूण (छित्वा) उ० ७।३ छिदमाण (छिन्दत्) अ० ५५५ छेद (छेद) दसा० ७।८ छिदाव (छेदय)-छिदावए द० १०॥३. उ० छेद (छिद)-छेदेइ दसा० १०॥३१. –छेदेति दसा० १०॥३३३ छिदित्तु (छित्त्वा) द० १०।२१. उ० १४१३५ छेदेत्ता (छित्वा) दसा० १०।३१ छिदित्तु (छेदयितृ) दसा० ४।१८ छेदोवट्ठाणचरित्तलद्धि (छेदोपस्थापनचरित्रलब्धि) छिदिया (छित्त्वा) उ० १०॥३७ अ० २८५ छिज्ज (छिद)-छिज्जइ अ० ४१६. -छिज्जेज्ज छेदोवट्ठावणियचरित्त (छेदोपस्थापनिकचरित्र) अ० ३६८ अ० ५५३ छिण्ण (छिन्न) अ० ४१६ छेदोवट्ठावणियसंजयकप्पट्टिइ (छेदोपस्थापनिकछित्ता (छित्त्वा) उ०१४।४८. दसा०५७४१६ संयतकल्पस्थिति) क० ६।२० छिदलिधारय (दे० शिखाधारक) दसा०६।१७ छेय (छेक) द०४।१०,११. अ० ४१६ छिद्द (छिद्र) उ० २६।१२ छेय (छेद) उ० ७।१६; ३०।१३. दसा० १०१११, छिन्न (छिन्न) ८० ४ सू० २२. उ०१४।२६,४१; १४. प० ४२. व० १११६ से ३२; ३।२; १५।१.७; १६०५१,५४,५५,६०,६२,६६; ४।११ से १७, १६,२१,२३, ५१११ से १४; २३।२८,३४,३६,४४,४६,५४,५६,६४,६६,७४, ६।१,४,५ ७६,८५,८६; २५॥३४. दसा० ६।६. ५० ८४, छेयण (छेदन) उ० २६४,६१ १०६,२२४,२६१ छेयणग (छेदनक) अ० ४६० छिन्नगंथ (छिन्नग्रन्थ) ५० ७८ छेलिय (दे०) नं० ६० छिन्नच्छेयन इय (छिन्नच्छेदनयिक) नं० १०३ छिन्नसोय (छिन्नशोक) उ० २११२१ ज (यत्) आ० २१६. द० १११, उ० ११२१. नं० छिन्नाल (दे०) उ० २७१७ गा० ३३. अनं० ६. अ० ७. वसा० ३।३.५० छिन्नावाय (छिन्नापात) उ० २।५. क० ४१२८ ४. क० ११३४. व० १११. नि० १११ छिवा (दे०) दसा० ६।३ जइ (यदि) द० २।६. उ० १११७. नं० २३. छिवाडी (दे०) द० ५।१२० जोनं० ३. अ० ३. दसा० १०१२२ छीय (क्षुत्) आ० ४।५, ५॥३. नं० ६० जइ (यति) दचू० २।६ छुभित्ता (क्षिप्त्वा) उ० १८।३ जइण (जविन्) अ० ४१६. प० १५ छुरिया (क्षुरिका) उ० १९६२ जइत्ता (जित्वा) उ० ६।३५ छुहा (क्षुधा) उ० १९१८,२०,३१ जइत्ता (याजयित्वा) उ०९।३८ छुहाकम्मत (सुधाकान्त) दसा० १०।३ जइय (यष्ट) उ० २५॥३६ छूढ (लिप्त) वचू० ११५. उ० २५४४० जइय (जयिक) ५० ५६ Page #1114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० जइयव्व-जणणी जइयत्व (यतितव्य) अ० ७१५॥५ जक्खा (यक्षा) प० १६१ जउणा (यमुना) क० ४१२६. नि० १२।४३ जक्खाइट (यक्षाविष्ट) क० ६।१२. व० २।११ जउव्वेय (यजुर्वेद) ५० ६ जक्खालित्त (यक्षादीप्त) अ० २८७ जओ (यतस) द० ७.११. चू० २।६. उ० ११७, जग (10) द० ५।६८।। २१; १२२ जग (जगत्) द० ८।१२. उ० ८।१०।१४।३६, जंगिय (जाङ्गिक, जाङ्गयिक) क० २०२८ ४३; १६०२५. नं० गा० १,३ जंघा (जङ्गा) प० २४ जगई (जगती) उ० ११४५ जंघाचर (जङ्काचर) अ० ३०२।७ जगगुरु (जगदगुरु) नं० गा० १ जंधारोम (जडारोमन) नि० ३।४२, ४।८०; ६॥ जगणाह (जगन्नाथ) नं० गा० १ ५१; ७।४०; ११३७, १५॥३६ १५५; १७१४१, जगनिस्सिय (जगनिश्रित) द० ८।२४ जगप्पिरामह (जगतपितामह) नं0 गा०१ जंत (यात्) उ० २२॥३३ जगबंधु (जगद्वन्धु) नं० गा० १ जंतकम्म (यन्त्रकर्मन्) दसा० १०।१४ जगाणंद (जगानन्द) नं० गा०१ जंतलट्ठि (यन्त्रयष्टि) द० ७।२८ जघण (जघन) १० २४ जंतिय (यन्त्रित) उ० ३२३१२ जच्व (जात्य) नं० गा० ३१. वसा० १०।१४.५० जंतु (जन्तु) इचू० १।१५,१६. उ० ३।१; ७६; २३,२८,२६ १४।४२; १६।१५; २३।६०; २८.७,८,३२॥ जच्चजण (जात्याञ्जन) प० २४ २५,३८,५१,६४,७७,६०,११० जच्चकणग (जात्यकनक) प० ७८ जंपिय (जल्पित) ० ३२।१४ जच्चिरं (यच्चिरम्) नं० १२० जंबु (जम्बु) प० १६१ जट्ठ (इष्ट) उ० २०२८ जंबुद्दीव (जम्बूद्वीप) नं० १८१५. अ० १८५,१८६, जट्ठा (इष्टा) उ० ६।३८ ५५६,६१५. प० २,६,१०,१३,१५,१०६,१२७, जडि (जटित्व) उ० ५।२१ जडि (जटिन्) दसा० १०।१४ जंबुद्दीवपण्णत्ति (जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति) नं० ७८. जोनं० जढ (त्यक्त) २०६।६०. बसा० ४।२।३६ जण (जन) वचू० २।२. उ० ४।१,५७; ६।३० जंबू (जम्बू) उ० ११।२७. नं० गा० २३. अ० १०।१८,१६, १२।२५,२८,३३, १३।१४,१८% २६४।५ १६ सू० ११, गा० १,११; २२।१७,२७; जंभाइय (जम्भित) आ० ४१५; ५।३ ३२॥३,१५. नं० गा० ८,१५,३७, सु० २५. जंभियग्गाम (जम्भिकग्राम) ५०८१ अ० ३१०,५६९,७०८।६. वसा० ६२,३,१०। जक्ख (यक्ष) द० ६।२७,२८. उ० ३।१४,१६; ५।। १८. प० २६,२८,५४,६४ २४,२६; १२१७,२४,३२,४०,४५; १६।१६; जण (जनय) -जणंति द०६।४८. -जणयइ २३१२०, ३६।२०७. अ० २०,१८५१४,२५४. उ० २६२ दसा. ६।२।३४ जणइत्ता (जनयित्वा) उ० २९।५७ जक्खदिन्ना (यक्षदत्ता) ५० १६१३३ जणण (जनन) अ० ३१३ अक्खमह (यक्षमह) नि० ८।१४; १९।११ जणणी (जननी) उ० १६०२ Page #1115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जणय-जल १२१ जणय (जनक) उ० २२१८ जणवय (जनपद) उ०६।४.५० ५२,५६,७४. नि० १६।२६,२७ जणवयकहा (जनपदकथा) उ०२६।२६ जण्ण (यज्ञ) उ०६।३८,१२।१७,४२, २५४,५, ७,११,१४,३६ . जण्णइज्ज (यज्ञीय) उ०२५. अ० ३२२ जण्णग्गि (यज्ञाग्नि) वचू० १११२ जण्णदत्त (यज्ञदत्त) अ० २५२. प०१८४ जण्णवाइ (यज्ञवादिन) उ० २५।१८ जण्णवाड (यज्ञवाट) उ० १२॥३ जति (यदि) अनं० ६. दसा० १०॥२२ जति (यति) दसा० १०॥२१ जतिमासिया (यतिमासिकी) सा० ७।२६ जत्त (यन्त्र) द० ६।५३ जत्ता (यात्रा) आ० ३१. उ० १६।८; २३॥३२. नि० ६।१३,१४ जत्तिय (यावत्) उ० ३०१२०. नं० १८।२. अनं० जम्मण (जन्मन) उ० ३६।२६७. नं० १२०. अनं० ६. अ०१७,३८,६१,८५,११०,५६७, ६२७,६३६,६५१,६७७,७०४.५० १२,१४, ६२,१२८ जम्मनक्खत्त (जन्मनक्षत्र) ५० ८६ से ६१ जम्हा (यस्मात ) नं० ६७. अ० २८।२ जय (जगत) नं० गा० १० जय (यत) द० ४१८,२८,५॥६,८१,८६,६६, १०७; ६.३८,७१५६, ८।१६. उ०१॥३५; २४११२,१४,२१,२३,२५,२६३८ जय (जय) उ०९।३४; १८।४३. नं० गा० ५,९. वसा० १०१६,११,१४,१८. ५० ५, ४२,४४, ७३ से ७५,११२ Vजय (यत्)-जए द० ८।१६. उ० ३३१२५ -जएज्जा द० २।६-जयइ, उ० ३१७ जय (यज्)-जयइ, उ० १२१४२-जयामो, उ० १२१४० जय (जि)-जयइ नं० गा० १ जयंत (जयत्) उ०४।११ जयंत (जयन्त) उ०३६।२१५ जयंतय (जयन्तज) अ० २५४ जयघोस (जयघोष) उ० २५॥१,३४,४२,४३ जयणा (यतना) उ० २४१४,६ जया (यदा) द० ४।१४. उ० १४१४०. नं० ६६. ___अ० ३६०. दसा० ७।२५. व० १०६ जर (जरा) आ० २।५; ५।४।५ जरा (जरा) ० ६।५६, ८।३५. उ० ४।१; १३।२६,१४।४,१४,२३; १६।१४,१५,२३, ४६; २३।६८,८१. ५० ८४,१०६ जराउय (जरायुज) ८० ४ सू० ६ जराजुण्ण (जराजीण) क० ३।२२ जल (जल) ६० ६।२६; चू० १ सू० १. उ० १९५६; २३१५१,५३,२५।२६:३०१५ ३२।३४,४७,६०,७३,७६,८६,६६३५।११, २३ जत्थ (यत्र) द० २०. उ०५।१२. नं० १७. अ० ७.५० २३२. क० ११४७. १० ११३३ जदा (यदा) दसा० ५७७ जधा (यथा) दसा० ३।३ जप (जप) अ० २६ जप्पभिइ (यत्प्रभृति) १० ५१,५२,६६,६० जम (यम) अ० ३४२।२ जमईय (यमकीय) अ० ३२२ जमगसमग (दे० युगपत्) दसा० १०।१७. ५० ६४, जमजण्ण (यमयज्ञ) उ। २५॥१ जमल (यमल) अ० ४१६ जमाव (यम्)-जमावेति नि० ११३६ जमावंत (यच्छत्) नि० २।२४,२५ जम्म (जन्मन्) उ० १४१५१,१६१५, २०१५५. बसा० ६।६.५० १११ Page #1116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ जल-जहक्कम ३६.५०,५४,२६७. नं० गा० १५. प० २१,२६ से ३१,२३२. क० ४।३०. नि० १८१६,७ जल (ज्वल)-जलति अ० ३२० - जलावए द० १०॥२-जले द० १०२ जलइत्तए (ज्वलयितुम् ) द० ६।३३ जलंत (ज्वलत् ) उ० १११२४; १६।४६,५६,५७, ७०. नं० गा० १३,१६. अ. १६,२०. दसा ७।२०।१०।३२. प० ३०,३२,३४,४२,७८ जलकंत (जलकान्त) उ० ३६१७६ जलकारि (जलकारिन्) उ० ३६।१४८ जलगय (जलगत) नि० १८११८,२१ से २४,२६, ३६५. क० २।१ जव (जव) उ० ११११६ जवजव (यवयव) क० २।१ जवण (यापन) द. ६।४४. उ० ८।१२, ३५११७ जवणिया (यवनिका) प० ४२,४६,४६ जवमझ (यवमध्य) उ० ३६।५३. अ० ३६६ जवमज्झा (यवमध्या) व० १०।१ से ३ जवस (यवस) उ० ७.१ जवोदग (यवोदक) उ. १५॥१३. नि० १७३१३३ जवोदण (यवौदन) उ०१५।१३ जवोदय (यवोदक) प० २४६ जस (यशस्) द० ५।१३६. उ० ३।१३,१८; ७।२७. नं० गा० ३३. दसा० ४२११५. ५० जलचर (जलचर) . ३० जललित (जाज्वल्यमान) प० २४ जलण (ज्वलन) द. ६।११. उ० ३६।२६७. अ० ३२०,७०८।५ जलणपक्खंदण (ज्वलनप्रस्कन्दन) नि० ११।६३ जलणपवेस (ज्वलनप्रवेश) नि० १११६३ जलपक्खंदण (जलप्रस्कन्दन) नि० ११४६३ जलपवेस (जलप्रवेश) नि० १११६३ जलबिदु (जलबिन्दु) ५० ३० जलय (जलज) प० २४ जलयर (जलचर) उ० ३६।१७१,१७२,१७५ से १७७. अ० २५४ जलरुह (जलरुह) उ० ३६।९५. अ० ७०८१५ जलहर (जलधर) प० २१,३२ जलिय (ज्वलित) द० २।६६।६ जलूग (जलौक) उ० ३६।१२६. नं० गा० ४४ जलोह (जलौघ) नं० गा० १० जल्ल (दे०) उ०२ सू. ३, गा० ३७; १६।३१. अ० ८८.५० १२. नि० ३।६७,४।१०५; ६७६,७५६५,६२२; १११६२; १५६४, १५०; १७।६६,१२० जल्लत्त (दे०) दसा० ७।२२ जल्लिय (दे०) द०८।१८. उ० २४११५ जव (यव) उ०६।४६; १६३८. नं० २०. अ० जसंस (यशस्वत्) प०६८ जसंसि (यशस्विन्) क०६१६८. उ० ५।२६; २११२३ जसकर (यशस्कर) ५० ४७ जसभद्र (यशोभद्र) नं० गा० २४. प० १६१,१६६ जसवई (यशस्वती, यशोभती) प० ७२ जसवंस (यशोवंश) नं० गा० ३० जसवाय (यशोवाद) प० ५२ जसा (यशा) उ० १४१३ जसोकामि (यश कामिन) द० २१७; ५।१३५. उ० २२१४२ जसोया (यशोदा) प० ७० जह (यथा) दचू० २।११. उ० १०।२. नं० १२० अ०३०८६ Vजह (हा) -जहइ व०१०।१२. ---जहाइ उ० १४।३२. –जहासि उ० १२.४५. जहिज्ज उ० १५१ जहक्कम (यथाक्रम) द० ५८६,६५. उ० १४१११; २२।१२, २३।४३; २६१४०,४८; ३३।१; ३४।१, Page #1117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जहण्ण-जाईसर १२३ जहण्ण (जघन्य) नं० १८,२०,२२,२५. अ० १२६, । जहाफुड (यथास्फुट) उ० १९७६ १२७,१७०,१७१,२११,२१२,४०२ से ४०४, । जहाभाग (यथाभाग) द० ५।१३ ४३३,४५९,४६२,५६८. दसा०६।१२ से १८. जहाभूय (यथाभूत) उ०२०।५४; २५।३५ व० ३।३,५,७; १०१२० जहामट्ठ (यथामृष्ट) उ० २५।२१ जहण्णपय (जघन्यपद) अ० ४६० जहाय (हित्वा) उ० १४।२ जहण्णय (जघन्यक) अ० ३७४,५७५,५७७ से जहारिह (यथाह) द० ७।१७,२० ५७६,५८१ से ५८४,५८७,५८६,५९०, ५६२, जहावाइ (यथावादिन) उ० २६।५२ ५६३,५६५,५६६,५६८,५६६,६०१,६०२ जहासुत्त (यथासूत्र) उ० ३५।१६ जहन्न (जघन्य) उ० ३०।१५; ३४।३४ से ३६,४२, जहासुय (यथाश्रुत) उ० ११२३ ४६,४६,५०,५२,५४,५५; ३६।५०,५३,१६०, जहासुह (यथासुख) उ० १७.१; १६८४,८५ १६७,२१६,२२०,२२२ से २४३,२४५ जहाहिय (यथाहित) उ०२०।२३ जहन्नग (जघन्यक) उ० ३६।१०२ जहिऊण (हित्वा) उ० ३५।२० जहन्नय (जघन्यक) उ० ३६।१४,२१,८२,६०, जहिं (यत्र) द० ५।३५. उ० १२।१३. नं० १२०. १०३,१०४,११४,११५,१२३,१२४,१३३,१३४, ० १०॥६ १४२,१४३,१५२,१५३,१६८,१७७,१८६,१६३, जहिच्छ (यथेच्छ) उ० २३।२२ २०२,२४६ जहित्ताणं (हित्वा) उ० १८१४० जहन्निया (जघन्यिका) उ० ३३।१६,२१ से २३; जहित्तु (हित्वा) उ० २११११ ३४१४१,४३,४८,५३; ३६१३,८०,८८,८६, जहेव (यथैव) अ० १७५ ११३,१२२,१३२,१४१,१५१,१७५,१७६, जहोइय (यथोचित) उ० २२।२१ १८४,१८५,१६१,१६२,२००,२०१,२२१, जहोवइट्ट (यथोपदिष्ट) द० ६।४२ २५१ इजा (जन्) -जायइ उ० १६७८. -जायए जहा (यथा) द० ११२. उ० ११४. नं० १. अनं० उ० ११४५. —जायंति उ० ३२।१०५ ८. जोनं० १. अ० १. दसा० ११३. प० ७. जा (या) -जंति उ० ७।२१. -जाइ उ० ३।१२ क० २।२८. व० २।२२ । जाइ (जाति) द० ७।२१; ८।३०६।४७; १०।१४ जहाजाय (यथाजात) उ० २२॥३४ १६,२१. उ० ३।२; ६।१,२; १२।५,१३,१४, जहाठाण (यथास्थान) उ० ३१६ ३७; १३।१,७,१८,१६; १४१४,५; १६१८ जहाणामय (यथानामक) अनं० १२,१३,१६ से २२१४०; ३२१७. अ० २८२ १८,२० से २२,२६ से २८ जाइत्ता (याचित्वा) द० ८।५. नि० ११२७ जहाणुपुवी (यथानुपूर्वि) उ० २६१७२ जाइपह (जातिपथ) द० ६।४; १०।१४; चू० २।१६. उ०६२ जहाथाम (यथास्थामन्) उ० ३०।३३ जहानामय (यथानामक) नं० १२ से १५,१७,५२, जाइमंत (जातिमत्) द० ७।३१ ५३,१२६. अ० ४१६,४२२,४२४,४२६,४३१, जाइमूयत्त (जातिमूकत्व) दसा० १०१२६ ४३६,४३८,४३६,५२६,५५५,५५६,५८६. जाइय (याचित) उ० २।२८ दसा० ६।४; १०।२७ जाइस्सर (जातिस्मर) प० १८७,२०७ जहानाय (यथान्याय) उ० २३।३८,४३,४६,४८ जाईसर (जातिस्मर) प० २१४ Page #1118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ जाईसरण-जाय जाईसरण (जातिस्मरण) उ० १६७,८ जाणमाण (जानत्) उ० १३।२६. दसा. ६।२,६; जागर (जागर) दसा० ३।३ १०१३३. प० १२,१०१,११५,१३०,१६६, जागरमाण (जाग्रत्) द० ४ सू० १८ से २३. १७६. नि० ११३६,४० दसा० ३।३ जाणय (ज्ञ) उ० २०१४२. नं० ६५. अनं० ६. जागरित्तए (जागरितुम) प० २७६. क० १११६ अ०१४,२३,३५,४७,५०,५८,७१,८२,६६, जागरिया (जागरिका) १०६६ १०७,५४६,५५५,५६४,६२४,६३०,६३६, जाण (ज्ञा)-जाणइ द०४।११. उ० ५।६. ६४२,६४८,६६६,६७४,६६२,७०१,७०७ 'नं० १६. अ० ५७३. दसा० ५७.१०१६. जाणवय (जानपद) १०६४ -जाणई द० ४।११. --जाणंति द० ५११४०. जाणसाला (यानशाला) बसा० १०१६ से ११. उ० ३६।२६१.५० २७१. -जाणंतु द० ॥ नि० ८७; १५।७३ १३४, -जाणति दसा० ५७७. -जाणह जाणसालि (यानशालिक) दसा० १०१६ से ११ व० २।२५. -जाणामि उ० १३।२७. जाणिऊण (ज्ञात्वा) द० २६६. उ० ३६।१ -जाणासि उ०१३।११. - जाणाह उ० जाणित्तए (ज्ञातुम्) दप्ता० ५७ १२।१५. -जाणाहि उ० १२।१०.५० २७७. जाणित्ता (ज्ञात्वा) द० ५।२४. उ० ११३४. दसा० -जाणे उ०१४।२७. --जाणेज्ज द० २४७. ४।२० --जाणेज्जा द० ७८. अ० ७. वसा० ७।२२. जाणित्तु (ज्ञात्वा) द० ८।१३ क० २।२. व० ८।१२. नि. ६।१२ जाणिय (ज्ञास्वा) द० १०।१८. उ० २१११४. जाण (जानत्) द० ६।६; ८।३१. उ० ५।१४. . अ०७०८ दसा० ६।१७ जाणियव्व (ज्ञातव्य) प० २६२ जाण (यान) द० ७।२६. उ०७।८. अ. ३६२. जाणिया (ज्ञात्वा) द० ५।१२४. दसा० ६।२।३६ वसा० १०१९,१०,१३ से १५,१६ जाणिया (ज्ञिका) नं०१ जाणु (जानु) ५० १०,२४ जाणग (ज) अ० १६,३७,६०,८४,१०६,५६६, जात (जात) दसा०६।६८।१. नि. ६।५ ६२६,६३८,६५०,६७६,७०३ जाति (जाति) ५० ११,१४ जाणगसरीर (ज्ञशरीर) अनं०७,८,१०. अ० १५, जातिथेर (जातिस्थविर) व० १०१६ १६,३६,३७,५६,६०,८३,८४,१०८,१०६, जातीमरण (जातिमरण) वसा० ६२।३६ ५६५,५६६,६२५,६२६,६३७,६३८,६४६, जामाउय (जामातृक) अ० ३६२ ६५०,६७५,६७६,७०२,७०३ जाय (जात) द० २।६; ४ सू० २२,२३. उ० जाणमसरीरभवियसरीरवतिरित्त (जशरीरभव्य- ८।४; १३।२,१२,१४१६,१२,१८,२२,२६,३४; शरीरव्यतिरिक्त) अनं० ७.१०. अ० १५,१८, १६।४३; २०१३५,४०; २११४; २२।४८; २५ २१,३६,३६,४५,५६,६२,६६,६६,८३,८६,६२, २६; २७।१४. अ० ३१७,३४१,३४२. १०१, १०८,१११,१५४,५६५,५६८,६१३.६१४, ५२,६०,६१,६६,७८,८२,१०८,११५,१२६ ६२५,६२८,६३७,६४०,६४६,६५२,६६४, जाय (याग) प०६५ ६७५,६७८,६६०,७०२,७०५ -जाय (याच्) -जाएज्जा द० ५।१२६. जाणगिह (यानगृह) नि० ८।७; १५७३ --जायइ उ० २२१६. --जायति नि० १११६. जाणणा (ज्ञान) अ० ५५८,५७३ -जायाहि उ० २५॥६ Page #1119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाय-जिण जाय (जन्) जायंति इसा० ५१७. जायति दसा० ५।७ जायंत (पाचमान) नि० १।१९ से २६ २४६ १४ ३८, ३६; १८७०,७१ जायखन्ध ( जातस्कन्ध) उ० ११।१६ जायग ( याचक) उ० २५४६, ६ जायणजीवि ( याचनाजीविन् ) उ० १२।१० जायणा ( याचना ) उ० २ सू० ३; १६।३२ जायणावत्थ ( याचनावस्त्र) नि० १५०६८ जायणी ( याचनी) दसा० ७६ जायतेय ( जाततेजस् ) ० ६।२२. उ० १२/२६. दसा० | २|३ जायथाम ( जातस्थामन्) १०७८ जायमेय ( जातमेदस् ) ०७२ जायरूव ( जातरूप ) उ० २५/२१; ३५।१३. प० १५,७८ जायरुवपाय ( जातरूपपात्र) नि० ११।१ से ३ जापरूवबंधण (जातरूपबन्धन) नि० ११०४ से ६ जाया (यात्रा) उ० ११. नं० ८१ जायाइ (यायाजिन्) उ० २५।१ जारिस (पाश) उ० १२७३२७८,१६ जारिसय (यावृशक ) उ० ३४।१२ से १६ जाल (जाल) उ० १४ । ३५, ३६; १६ / ६५; ३२।६. इसा० १०।११.५० २४,४२ १६,२० जालग (दे०) उ० ३६।१२९ जाला (ज्वाला) २०४० २०. उ० ३६।१०६. १० ३४ जाव ( यावत्) आ० ५३. ६० ७१२१. उ० २।३७. नं० २५. अ० ६४. दसा० ५।६. प० १०. क० ११४७. व० २।६ जावइय ( यावत् ) नं० १८. अ० १४,३५,५८,८२, १०७,४२२,४२४, ४२६, ४२६, ४३१, ४३६, ४३८, ५६४, ५०६, ६२४,६३६, ६४८, ६७४, ७०१. ० ६१४२,४३ जावई (दे०) उ० ३६/१७ जावंत ( यावत्) आ० ४९. ४० ६९. उ० ६।१ जावज्जीव ( यावज्जीव) आ० ११२ : ४। १ ; ५ । १. द० ४ सू० १६,१८ से २३ ६।२८,३१,३५, ३६,४२,४५, ६२. उ० १६।२५,३५ २२।४७. दसा० ६।३. व० ३।१४, १६, १६, २३ से २६ ; ५।१५.१६ जावणिज्ज (यापनीय) आ० ३।१ जावतिय ( यावत्) अनं० ६ जावय ( जापक) आ० ६।११. ५० १० जाग (जाहक) नं० गा० ४४ जाहे (यदा) नं० ५३ जालंधर (जालन्धर) प० २,४,१०,१३ से १५, १७, जिण ( जिन) आ० २ । १ से ४; ४ । ६; ५।४; ६ । ११. द० ४।२२,२३, ५।६२. उ० २।४५; १०।३१; १६।१७ १८ । ४३, २०१५०, ५५ २१।१२:२२० २८२३१,५,६३,७८ २४ ३; २८११,२,७, १८,१६,२७,३३. नं० ० ३८ ० ६६. ८१ से १,१२०, १२३. अ० २१,२८२,५६६. दसा० ५।७, ८, ६।२।२२; १०१३३. ५० १०, ४७, ४६, ८२, १७, १२१,१३६,१७२ १२५ √जि (जि) जयद उ० ३१०७. जिव उ० ७।२२ - जीयति उ० ७ १३ जिम विग्ध ( जितविघ्न ) ५० ७४ जिइंदिय ( जितेन्द्रिय) व० ३।१३ ८।३२,४४,६३; ६४८, ५३ ९४१ चू० २।१५. उ० १२।१, १३,१७,२२ १५ १६, २२०२५,३१,४७ २८/४३ ३०१३, ३४/३०,३२ / जिघ (प्रा) - जिपति नि० १८ जिघंत ( जिघ्रत्) नि० ११८, १०; २२६; ६ ६ जिच्चमाण (चीयमान) उ० ७ २२ जिच्चा (चित्वा ) उ० २ ० १ से ३ v जिण (जि) जिणइ उ० २९ ४६. जिणामि उ० २३३६. जिणाहि दसा० १०।१८ १०७४, जिसे द० ८३५० २०३४. जिणेज्ज ४० ६।३४ Page #1120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ जिणंत-जीवत्थिय जिणंत (जयत) ६०४१२७ जिय (जीव) उ० २२।१८,१६ जिणकप्पट्ठिति (जिनकल्पस्थिति) क० ६।२० जियकप्पिय (जीतकल्पिक) ५० ७३,११२,१६५ जिणकप्पिय (जिनकल्पिक) व० ५।२१ जियभय (जितभय) ५०१० जिणदिट्ठ (जिनदष्ट) अनं० ६. अ० १६,१७,३७, जिहा (जिह्वा) उ० ३२०६१ ३८,६०,६१,८४,८५,१०६,११०,५६६,५६७, जीय (जीत) प० १४. व० १०६ ६२६.६२७,६३८,६३६,६५०,६५१,६७६, जीयकप्पिय (जीतकल्पिक) ५० १२६ ६७७,७०३,७०४ जीरयवच्च (जीरकवर्चस) नि० ३१७७ जिणदेसिय (जिनदेशित) दचू० ११९ जीव (जीव) आ० ४१४,८,९.द० ४ सू० ४ से १८ जिणमग्ग (जिनमार्ग) उ० २२।३८ गा० १२ से १५; १६८; ६।१०।८।२;६।५. जिणमय (जिनमत) ८० ६।५५ उ० २।२७, ३।७; ७।१६, ८।३; १०१५ से १५; जिणवयण (जिनवचन) द० ६।४।५; चू० १११८. १२।४४; २३।७३; २६।५२; २८।३,१०,११,१४ उ० ३६।२६०,२६१. अ० ३१२ १७; २६१ से ७२, ३०।२,३,२७,३१, ३२।२७, जिणवर (जिनवर) आ० २१५५१४।५. उ० ४०,५३,६६,७६,६२; ३३।१,१८,२४; ३४।५६ ३६॥६०. नं० ७६. प०७४ से ६०,३५।११; ३६।२,३,४८,६६,६८ से ७०, जिणसंथव (जिनसंस्तव) द० ५।६३ ८२,८४,६०,६२,१०४,१०८,११५,११७,१२४, जिणसासण (जिनशासन) द. ८।२५. उ० २।६; १२७,१३४,१३६,१४३,१४५,१५५,२४०, १८।१६,३२,४६ २४६,२५७ से २५६. नं० गा० १,१४; सू० जिणिद (जिनेन्द्र) उ० १४१२. नं० गा० २२ १८,७१,८२,८५,१२४,१२५. अनं०२,८,९. जिणित्ताणं (जित्वा) उ० २३॥३६ अ० ६,१६,१७,३०,३७,३८,५३,६०,६१,७७, जिणित्तु (जित्वा) उ०२३।३८ ८४,८५,१०२,१०६,११०,२५१,२५२,२५४, जित (चित) द० ८।४८. अनं० ६. अ० १३,३४, २७४,२७५,२६१,२६३,२६५,२६७,३३६, ५७,८१,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३, ४२४,४३१,४३८,४४१,४४५,४६०,५०७, ५१४,५५३,५५७,५५६,५६६,५६७,६०४, जितसत्तु (जितशत्रु) वसा० ५।६ ६१७,६२६,६२७,६३८,६३६,६५०,६५१, जिब्भा (जिह्वा) उ० १०।२४; ३२।६२; ३४।१८; ६७६,६७७,७०३,७०४,७०८. दसा० २।३; ३५॥१७. दसा० ६३ ६॥३,७; १०।२४ से ३३. प० ७३,७८,८२, जिभिदिय (जिह्वन्द्रिय) नं० ४१,४२,४४,४६,४८ १०१,१३०,१६६. नि० ७१७५; १३॥८; १४। जिभिदियनिग्गह (जिह्वन्द्रियनिग्रह) उ० २६। २७; १६।४८; १८१५६ जीव (जीव) -जीवइ दचू० २०१५. उ० ७।३. जिभिदियपच्चक्ख (जिह्वन्द्रियप्रत्यक्ष) नं० ५. -जीवामो उ०९।१४ अ० ५१७ जीवंत (जीवत्) उ०१८।१४ जिभिदियलद्धि (जिह्वेन्द्रियलब्धि) अ० २८५ जीवंत (जीवन्त) ५० ५७ जिमिय (जिमित) ५० ६६ जीवत्थिकाय (जीवास्तिकाय) अ० १४८,१४६, जिय (जित) आ०६।११. उ० ५।१६; ७।१७ से २५६,२८८,३२५,३४८,६१७ १६; ६।३६; २३।३६. दसा० १०.१८, प० ४२ जीवत्थिय (जीवास्तिक) अ० ६१७ Page #1121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवदय-जूरण १२७ जीवदय (जीवदय) आ० ६।११ जुगमाया (युगमात्रा) द० ५।३. दमा० ६१८ जीवदया (जीवदया) १० १० जुगमित्त (युगमात्र) उ० २४१७. दसा० ७।२४ जीवनिकाय (जीवनिकाय) आ० ४।३,८:५२ जुगल (युगल) दसा० ६।३ जीवनिस्सिय (जीवनिश्रित) अ० ३०० जुगव (युगपत) उ०२८।२६; २६७२.७३ : ३६।५३ जीवलोग (जीवलोक) उ० १८।११,१२. अ० ३१२ जुगब (युगवत ) अ० ४१६ जीवलोय (जीवलोक) ५० ३२ जुग्ग (युग्य) अ० ३६२. दसा० ६।३ जोवविभत्ति (जीवविभक्ति) उ० ३६।४७ जुग्गगिह (युग्यगृह) नि० ८७; १५१७३ जीववृढिपय (जीववृद्धिपद) अनं० २८।३ जुग्गसाला (युग्यशाला) नि० ८।७; १५।७३ जीवा (जीवा) उ० ६।२१ 1 जुज्झ (युध) - जुज्झाहि उ०६।३५ जीवाजीव (जीवाजीव) नं० ८२ से ८५ जुज्झ (युद्ध) उ० ६।३५ जीवाजीवविभत्ति (जीवाजीवविभक्ति) उ० ३६।१ जुण्ण (जीर्ण) उ० १४१३३. अ० २८७ जीवाभिगम (जीवाभिगम) नं० ७७. जोनं०८ जुहाग (ज्योत्स्नाक) नं गा०६ जीवि (जीविन्) उ० २०१४५ जुति (द्युति) दसा० ६।२,३३; १०।१७. ५० ६४ जीविउं (जोदितुम्) द० ६।१० जुत्त (युक्त) द. ३११०, ८१४२,६३; ६।१५. उ० जीविय (जीवित) आ० ४।४. द० २।१; ८।३४; १।८,२१,२३, ६।२२; १८।४; १६।५६,८८; १०।१७; चू० १ ० १,१६. उ० ४।१,७; ३२।१०६. नं० गा० ६. अ० ३७६,३६०, ८।१४; १०११,२,१२।२८,४२, १३।२१,२६; ५५७. दसा० १०६,१०.५० २४।३४ १४।३२; १५।६।१८।१३,२६१६०२०१४३; जुत्त (योक्त्र) उ० १६५६ २२।१५,२६,४२; २६।३६; ३२।२०. ५० ८० जुत्ताणतय (युक्तानन्तक) अ० ५८०,५८२,५६८ से जीवियट्टि (जीवितार्थिन् ) द०६।६ ६०२ जीवियय (जीवितक) उ० १०॥३ जुत्तासंखेज्जय (युक्तासंख्येयक) अ० ५७६.५७८, जीवियानाम (जीविकानामन्) अ० ३४६ ५६० से ५६३ जीवियारिह (जीविकाह) दसा० १०१७. ५० ४८ जुद्ध (युद्ध) द० ५।१२. दसा० १०।१४ जीवियाहेतु (जीविकाहेतु) अ० ३४० जुम्ह (युष्मत्) द० २८. उ० १२७. अ० ३१७. जीहा (जिह्वा) उ० १२।२६. प० २३ दसा० ३।२. व० २।२८ जुइ (द्युति) उ० ७।३७; १३।११; २२।१३. बसा० जुय (युत) उ० १६०५६ १०।१७. प०७५ जुयल (युगल) उ० २२१६,२०. अ० ४१६. दसा० जुइम (द्युतिमत) उ०१८।२८ ६।३. प० २४ जुइमंत (द्युतिमत्) ७० ५।२६ जुव (युवन्) द० ७।२५ 1 जुंज (युज्) -जुजे उ० १३१८ जुवाण (युवन्) अ० ३०८।६,३११,४१६,५२० जुंजण (योजन) उ० २४।२४ जुवराज (युवराज) उ० १६२ जुग (युग) उ०२७।७. अ० २१६,३८०,३६१. जूय (यूप) ५० ६२ ४००,४१५,४१७ जूया (यूका) नं० २०. अ० ३६५,३६६ जुगंतकडभूमि (युगान्तकरभूमि) ५० १०५,१२३, 1 जूर (खिद्) -जूरेति दसा० ६॥३ १३७,१७६ जूरण (खेदन) दसा० ६॥३ Page #1122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ जून (यूप) उ० १२।३६ जूवय (यूपक) अ० २८७ जूह (यूथ) उ० ११।१६ जूहिय ( यूथिक) प० २५ जे (दे०) उ० २२।२१ जेट्ठ (ज्येष्ठ) उ० २० २६, २७, २३।१५. प० ७०, ८७,१८३ जेट्ठग ( ज्येष्ठक) उ० २२।१० जेट्ठा ( ज्येष्ठा ) अ० ३४१ जेट्ठामूल (ज्येष्ठामूल) उ० २६।१६ • जेम (जेम्) — जेमेइ उ० १७।१६ जेहिल (जेहिल ) प० २२२ जोइ (ज्योतिष) द० २६; ३।४; ८ ६२. उ० १२। ३८ ४३, ४४; ३५।१२. क० २२६ जोइट्ठाण ( ज्योतिःस्थान ) नं० १७ जोइय (योजित ) उ० २७ २८ जोइस ( ज्योतिष् ) उ० ३४ । ५१; ३६ । २०४, २०८, २२१. नं० २५. ५० २६, २७, ६२ जो संगविउ ( ज्यौतिषाङ्गविद् ) उ० २५/७, ३६ जो इसपह ( ज्योतिष्पथ) दसा० ६।५ जोइसामयण ( ज्योतिषायन) प० ६ जोइसिय ( ज्योतिष्क, ज्योतिषिक) उ० ३६।२०५. अ० २५४, ४४५, ४५६, ४६८, ४६६ जोईरस ( ज्योतीरस) प० १५ जोएत्ता ( योजयित्वा ) दसा० १०।१० जोग (योग) आ० १ २ ४ १, ३, ५ । १, २. द० ४। २३, २४; ५।१ ; ७ ४० ; ८४, १७, ४२,५०,६१; १५, १६, ० २।१५. उ० ७/२४; १२|४४; २१।१३ २६१, ८, ३४, ३८,५२, ६०, ७३; ३१। २०; ३४।२२, २४, २६, २८, ३०, ३२, ३६ । २५०, २६४. नं० गा० ११, सू० ३८. दसा० १०। ३३. ५० २,१७,३४, ५६, ७५, ८१, ८२, ८४, १०६,१०६,१११.११३, ११५, १२४, १२७ से १३०,१३८, १६१,१६३, १६५, १६६, १८० नि० १३।२७ जोग (योग्य) नं० ३३।२ जोगपिंड ( योगपिण्ड ) नि० १३।७३ जोगय (योगक) द० ८६१ जोगव ( योगवत् ) उ० ११।१४; ३४।२७,२६ जोग संग्रह (योगसंग्रह) आ० ४८ जोगसच्च ( योगसत्य ) ३०२६।१, ५३ जोगहीण ( योगहीन ) आ० ४।८ जोगि ( योगिन् ) अनं० २८. अ० २१ जून - जोह जोग्ग (योग्य) उ० ३२/४, १५. दसा० १० ११. प० ४२ जोज्ज ( योज्य) उ० २७८ जो (योनि) उ० ३।५,६,१६, ७ १६,२०. नं० गा० १. अनं० ६. अ० १७,३८,६१,८५,११०, ३०७,५६७, ६२७,६३६, ६५१,६७७,७०४. ५० १२,१४. जोणिया (योनिका ) नि० ६ २६ जोति (ज्योतिष) दसा० १० २४ जोत (योक्त्र) दसा० ६ । ३. व० १०१२,४ जोय (योग) द० ६।२६,४०,४३. उ० २७।२. दसा० १०।१४ / जोय ( योजय् ) - जोएइ उ० २७/३. – जोएति दसा० १०।१० जोयण ( योजन) उ० २६ । ३५; ३६।५७ से ५६, ६१,६२. नं० १६ से १८,४,२० अ० ३८८, ३६१,३६२,४००, ४०६, ४११, ४२२, ४२४, ४२६,४३१, ४३६, ४३८, ४८२, ४६५, ५८६. प० १५,२३१,२३२,२८६. क० ३।३४. नि० १८ । १२ जोव्वण ( यौवन) दचू० १६. उ० २१६ प० ३८ जोव्वणग ( यौवनक) दसा० १०।२४ से ३२. प० ६,४७ जोह ( योध) उ० १११२१. दसा० १०८, १५ Page #1123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झंझकर-ठा १२६ झूसणा (जोषणा) प० २७६ झूसिय (जुष्ट) प० २७६ झोडय (दे०) नि०१७॥१३७ झोसइत्ता (शोषयित्वा) दचू० १. सू० १ टंक (ट) नं० ८३. अ० ४१० टाल (दे०) द०७३२ झंझकर (झञ्झकर) दसा० ११३ झंपेत्ता (झम्पयित्वा) दसा० ४।२।११ झय (ध्वज) प० ४,२०,६२ झया (ध्वजा) दसा० १०।१४ झरग (स्मारक) नं० गा०२८ झल्लरी (झल्लरी) अ०३०१. दसा० १०।१७. प०६४,७५. नि०१७।१६६ झवणा (क्षपणा) अ० ६१६,६७०,६७२ से ६७८, ६८० से ६८२, ६८४ से ३८६,६८८ से ६६५ झविय (क्षपित) उ० १८।५ झवेंत (क्षपयत्) अ० ३०७।३।। झसोयर (झषोदर) उ० २२१६ झिा (ध्य) -झाएज्ज. उ०१।१०.-झाएज्जा. उ० ३०३५.-झाय इ. उ० १८१५.-झायए. उ० ३४।३१ झाइत्तए (ध्यातुम्) क० ३।१ झाण (ध्यान) आ० ४१८; ५।३. उ० १८१४,६; २०१५७; २६।१२,१८,४३, २६।१३; ३०।३०, ३५, ३११६; ३२।१०६. दसा० ५।७. प० ५४, ७४. क० ३।१,२१ झाणंतरिया (ध्यानान्तरिका) ५० ८१,११५,१३०, ठप्प (स्थाप्य) जोनं० २. अ०२,११२,१५६,१६७, ३९७,४२१,४२८,४३५ ठिव (स्थापय) --विज्जइ अ० १०. -ठविज्जति अनं० ३. .-ठवेइ दसा० १०॥ १६. -ठवेज्ज उ०११६. -ठवेति नि०४॥ २३ ठवइत्ता (स्थापयित्वा) क० २।१३. २० १११५. नि० २०१५ ठवणा (स्थापना) नं० ४६. अनं० १,३,४,२८. अ०८,१०,११,२६,३१,३२,५२,५४,५५,७६, __ ७८,७६,१०१,१०३,१०४,३३८,३४०,३४७, ५५८,५६०,५६१,६११,६१२,६२०,६२१,६३२ से ६४०,६४५.६७०,६७१,६६८ ठवणाकुल (स्थापनाकुल) नि० ४१२१ ठवणापाहुडिया (स्थापनाप्राभृतिका) आ० ४।६ . ठवणिज्ज (स्थापनीय) जोनं० २. अ० २. व० १॥ १५ से १८; २।१,३,५. नि० २०।१५ से १८ ठवित्ताणं (स्थापयित्वा) उ०१८।३७ ठविय (स्थापित) द०५।६५. व. १११५ से १८. नि० २०११५ से १८ ठवेंत (स्थापयत्) नि० ४।२३; ५१७७ ठवेत्ता (स्थापयित्वा) दसा० १०।१६. क० ११३८. व० ८।५ ठवेत्तु (स्थापयित्वा) उ० ६२ -ठा (ष्ठा) -ठामि आ० ५।३. --ठाहिति नं० झाणविभत्ति (ध्यानविभक्ति) नं० ७७. जोनं०८ झाम (मा) -झामेज्जा, दसा० ७.१७ झाय (ध्यात) उ० १२।२१ झायमाण (ध्यायत्) उ० २६७३ झिझिय (दे०) क० ४१२८ झिज्झ (क्षि)-झिज्जइ उ० २०१४६ झिया (ध्मा, ध्य) -झियाइ, प० ५४. -झियाएज्जा. उ० ३५।१६. क० २।६. -झियायइ उ० १८१४ झियायमाण (ध्यायत्) उ० २६७३. दसा० ५७; १०।२४ झुसिर (शुषिर) द० २६६. नि० १७।१३६ Page #1124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ठाइ ( स्थातुम् ) आ० ५२ ठाइए ( स्थातुम् ) दसा० ७।२१. क० १।१९ ठाण (स्थान) आ० ४ ४ ५ ३ ६ ११. ० ५। १६; ६७८ ५८ १३४; १४ सू० १ से ३. चू० १ सू० १ ० ३ ० ५२,४, १२, १३, २८ १६५८ ११०३, ४, ६, १० १२४३, ४४, ४७ १६. सू० १ से ३,१२. गा० १४; १८। २३; २०५२, २३।८० से ८२, ८४; २४ । १०, २४; २६।५, ३३; २८ ६ २६ ५० २०१२७, ३६, ३१।१४, २१: ३४१२,३३. नं० १८,१६, ६५,८०,८२,८४, अनं० २८. जोनं० १०. अ० ५०, ४६०, ५४१, ५८५,५८८,५६१.५६४, ५६७, ६००,६०३. दसा० २।३; ५।७ ७ २१,२८ से ३१.३३ से ३५; १०१२४ से ३२. ५० १०,२४, ५१,५८,२७७. ० २०१६ ३१,२,२१,२२. ० ६।१०, ११७०१ से ३ १०।२८. नि० ५। २:१३।१ से ११ ठाणr ( स्थानक ) नं० ८३ ठाणधर ( स्थानघर ) अ० २८५ ठाणसमवायधर ( स्थानसमवायधर) व० ३।७; १०। १६ ठाणायया ( स्थानायतिका) क०५।२१ ( ठाव ( स्थापय् ) – ठावयई द० ९| ४ | ३. -ठाविज्जद नं० ८३. ठाविज्जति नं०८३. -ठावेद ५० ४६ ठावदत्ताणं ( स्थापयित्वा ) ३० ६६२ ठावइतु ( स्थापयितृ) दसा० ४।१७ ठावित्तए (स्वातुम् ) दसा० ७२१. प २७७ ठावेत्ता (स्थापयित्वा ) प०४६ टिइ (स्थिति) उ० ७ १३; ३३/१९,२०,२२; ३४।२, ३४ से ४२, ४४, ४४, ४० से ५०, ५३ से ५५; ३६।१२,१३,७१, ८७,१०१,११२,१२१, १३१,१४०, १५०, १५६, १७४, १०२, ११०, ११, २१८ से २२०,२२४ से २४४ ० ४३३. १०२,०२,६१ से ११,१०४, १७८ ठिकरण (स्थितिकरण) अनं० २० ठिक्लय (स्थितिक्षय) १०२ ठिइपडिया ( स्थितिपतिता) प० ६४ से ६६,१६३ ठा-दहिय ठिइय (स्थितिक) उ० २९ २३ ठिईपय ( स्थितिपद) अ० ४३३ ठिच्चा ( स्थित्वा ) उ० ३।१६. दसा० ६ २,३६. क० ३।२३. नि० ५।१ ठिति (स्थिति) अ० २१७. दसा० १।३३ ठितिक्खय (स्थितिक्षय) दसा० १०।२४ से ३२,३५ ठितव (स्थितिक) दसा १०।२०.५० १०९, १२७, १६१ ठिप (स्थित) आ० ४१९.६० ६ ४ ३ १०।२०. उ० १२।७,११,२५; १३।३२; १६/४; २०१५५ २९८ २२२२, ३३३२।१७. अनं० ६. अ० १२,३४,५७,८१,१०६,५६३, ६२३,६३५,६४७,६७३,७००, ७१५१६. दसा० ५७ १०।२४ से ३३. १० २९.१२,२६२. ० ४।१५. व० ३।१३, १५, १७, १८, २०, २२ ठिप्प (स्थितात्मन् ) ४० ६४९ १०११७,२१ ड डंड (दण्ड) दसा० ६ ३ ६ २६ / डज्झ (दह ) - डज्झइ, उ० १२ डज्मंत (बह्यमान) प० २०, ३२,४०,६२ उज्झमाण (वामान) उ० ६१४ १४/४२,४३ डमर (डमर) उ० ११।१३. नि० १२ २०६ १७।१५० डमरू (डमरूक) नि० १७।१३६ / डस (दश्) - डसई उ० २७ ४ डह (दह) हंति ४० २३०५० दहेज उ० १८१५० - दहेज्जा ५० ६१७. उ० १२/२५. अ० ३६० । डहर (दे०) ८० ५ १२६; ६ २ से ४,४३,५२. ० ३।११,१२ ५।१५,१६.१० १२ २६; १७ १५१ ड (वा) उ० १३।२५ Page #1125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डाअ-णवणीय १३१ डाअ (दे०) दसा० ३३३ डागवच्च (दे०) नि० ३१७७ डिंब (डिम्ब) नि० १२।२८; १७।१५० डोडिणी (दे०) अ०६८ डोय (दे०) नं० ३८६ डोल (दे०) उ० ३६।१४७ ढंक (ध्वांक्ष)उ० १६५८ ढंकुण (दे०) नि०१७।१३७ दिकिय (दे० गर्जन) अ० ५२२ ढिकुण (दे०) उ० ३६४१४६ ण (न) २०५।१०२. नं० १७. अनं० ६. दसा ५७ णं (दे०) द० ५।२।२६. उ० ६।१२. नं० २२. अ० ६. दसा० १०॥३. प० १६७. क० ११५. व० १११६ गंदा (नन्दा) दसा० १०।१८ गंदि (नन्दि) नि० १७।१३६ णंदिघोस (नन्दिघोष) दसा० १०।१४ णंदिय (नन्दित) ५० १० णंदियावत्त (नन्द्यावर्त्त) दसा० १०।१४ णक्ख (नख) प० २२२ णखच्छेयणग (नखछेदनक) नि० १११७,२१,२५ णखच्छेयणय (नखछेदनक) नि. ११२६,३३,३७ णखमल (नखमल) नि० ११३० णगर (नगर) नं० गा० ४. नि० १२।२०; १७।१४२ णगरपह (नगरपथ) नि० १२।२३; १७।१४५ णगरमह (नगरमह) नि० १२।२१; १७।१४३ णगरवह (नगरवध) नि० १२।२२; १७।१४४ णगरारक्खिय (नगरारक्षित) नि० ४१३,६,१५ णग्गोहवच्च (न्यग्रोधवर्चस्) नि० ३।७६ Vणच्च (नत)–णच्चेज्ज नि० १७४१३५ णच्चंत (नत्यत्) नं० गा० १५. दसा० १०।१४. नि० १२।२६; १७४१५१ णच्चा (ज्ञात्वा) उ० २१३२. नि० १०।१६ णट्ट (नाट्य) दसा० १०।२४ णट्ट (ठाण) (नाट्यस्थान) नि० १२।२७; १७.१४६ णड (नट) नि० ६।२२ णत्थ (न्यस्त) प० ४५ णत्थि (नास्ति) दसा०६।३ णत (नत) दसा० १०।२४ णद (नव) दसा० ६।२।१३ इणद (नद्) -णदती दसा० ६।२।१३ णदिजत्ता (नदीयावा) नि० ६।१५,१६ णदीमह (नदीमह) नि० ८।१४ णमंस (नमस्य)-णमंसंति दसा० १०१६. णमंसामो, दसा० १०११ णमंसण (नमस्यन) दसा० १०।११ णमंसित्ता (नमस्यित्वा) दसा० १०१६ णमंसिय (नमस्थित) नं० गा० ३ णमणी (नमनी) अनं० ३८ णमि (नमि) अ०. २२७ णय (नत) प० २० णयण (नयन) ५० ३० णयर (नगर) दसा० १०॥१७ से १६ णर गतल (नरकतल) वसा० ६।४ ण रवइ (नरपति) दसा० १०।१५ ण र वसह (नरवृषभ) दसा० १०।१५ णरसीह (नरसिंह) दसा० १०।१५ परिंद (नरेन्द्र) दसा० १०।११,१५ णव (नव) दसा० १।३. नि० ४।२४ णव (नवन्) नि० १९१७ णवग (नवक) नि० ५।३४,३५ णवणीय (नवनीत) नि० ११४; ३३१८,२४,३०,३८, ३६,५२,६१, ४१५६,६२,६८,७६,७७,६०, ६६, ६।५,१७,२७,३३,३६,४७,४८,६१,७०, Page #1126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ ७६ ७११६,२२, २८, ३६, ३७, ५०, ५६ ; ८।१७ ११।१३, १६, २५, ३३, ३४, ४७, ५६; १५।१५,२१,२७,३५,३६,४६, ५८, १०१, १०७ ११३,१२१,१२२,१३५, १४४; १७/१७, २३, २६,३७,३८, ५१,६०,७१,७७, ८३,६१,६२, १०५, ११४ णवमालिया ( नवमालिका) प० २५ णवय ( नवक) नि० १४ । १२ से १५; १५।४४ से ४७ विय ( नव्य) नि० ३।७४ ह (नख) नि० १।२६; ५/४२, ५४ णहच्छेयणग (नखछेदनक) नि० २।१६ हमल (नखमल) नि० ३।६८ ४ १०६; ६ ७७; ७६६; ११।६३; १५।६५, १५१; १७।६७, १२१ णहवीणिया (नखवोणिका) नि० ५।४२, ५४ हसिहा ( नखशिखा ) नि० ३१४१, ४,७६; ६।५०; ७३६; ११ ३६; १५३८, १२४; १७१४०, ६४ णाइय ( नावित) बसा० १०।१७ जाग (नाग) वसा० १०।१६ णागज्जुण (नागार्जुन ) नं० गा० ३५ नागधर (नागधर) दसा० १०११६ णागमह (नागमह) नि०८।१४ Nurse (नाटक) प० ७५ णाण (ज्ञान) नं० गा० २८. ५० ३,१६,१८,७४, ११०,१६२ णाणा (नाना) दसा० १० ११ ाणावरण (ज्ञानावरण) दसा० ५।७।८ णात ( ज्ञातक) दसा० ६।१८ णादित ( नावित) प० ६४ नाम ( नामन् ) उ० १४।२२. अनं० २,४,२८. वसा० ४।३; १०१६,११,३५.५० ३०,६७, २७० णामणी (नामनी) अनं ० २८ णाय (ज्ञात) अनं० २८. क० ३।२३, २४ णवमा लिया- णिच्छल णायग ( ज्ञातक) नि० ८।१२ से १४; ११ ८५, ८६; १४ ३८, ३६; १८१७०,७१ णायसंडवण (ज्ञातषण्डवन ) प० ७५ णावा (नौ) नि० १८ । १ से १६ 'णावागय ( नौगत) नि० १८।१७ से २१, २५, २६ णावापूर (दे० ) नि० ४।११७ णासाच्छिण्ण ( नासाछिन्न) नि० १४।७; १८/३६ णासारोम (नासारोमन् ) नि० ३।५७; ४।६५; ६।६७; ७५५; ११।५२; १५।५४,१४० ; १७।५६ सावणिया (नासावीणिका) नि० ५/३६, ५१ णिउण ( निपुण) दसा० १० ११ १०४२ णिक्खत (निष्क्रान्त) अनं०६ (णिक्खम ( निस् + क्रम् ) -णिक्खमति नि० २३६ णिक्खमंत (निष्क्रामत्) नि० २।३६, ४०; ६/७, १६, २० णिक्खमित्त (निष्क्रमितुम् ) नि० ६४ V णिक्खिव ( नि + क्षिप् ) - णिक्खिवति नि० १६।३४ णिक्खिवंत ( निक्षिपत् ) नि० १६।३४ से ३६ णिगम ( निगम ) नि० ५।३४ णिगमा रक्खिय ( निगमारक्षित) नि० ४ ४, १०, १६ गिति ( निगृहीत) बसा० ४।१८ णिग्गंथ (निर्ग्रन्थ) प० २६३,२८७ णिग्गंथी (निर्ग्रन्थी) प० २६३. नि०४/२२, २३; ८। ११; १२।७ णिग्गच्छमाण (निर्गच्छत् ) नि० 15 णिग्गय ( निर्गत ) नि० ६।१० / णिग्धाय ( निर् + घातय् ) - णिग्घाएति नि० १६. णिग्धायति नि० ६।१० णिग्धायंत ( निर्घातयत्) नि० १६; ६।१० णिग्घोस (निर्घोष ) दसा० १०।१७ णिच्चणियंसणिय ( नित्यनिवसनिक) नि० १५६८ ( णिच्छल (छिद) - णिच्छलेति नि० १।७ Page #1127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिच्छलेत-णूम णिच्छलेत (छिन्दत्) नि० ११७; ६।८ णिसेज्जा (निषद्या) नि० १३।१ से ११ णिज्जर (निर्जर) अनं० २८ णिस्सित (निश्रित) दसा० ६।२।१५ णिज्जाण (निर्याण) नि० ८१२; १२६८ णिस्सेस (निःश्रेयस्) दसा० ७।३५ णिज्जाणगिह (निर्याणगह) नि० ८।२; १५२६८ णिहत (निहत) दसा० ५।७।१२ णिज्जाणसाला (निर्याणशाला) नि०८।२,१५।६८ णिहि (निधि) नि०१३।३० णिज्जातिय (निर्यात्रिक) दसा० १०।२४ णीण (नी)-गीणेति दसा० १०।१०. नि०। णिज्जुत्त (निर्युक्त) दसा० १०।१४ ५२ णिज्झर (निझर) नि० १२॥१८; १७।१४० । णीणेत (नयत्) नि० २०५२ णिठ्ठर (निष्ठुर) नि. ८१ से ६,११६।१२ णीणेत्ता (नीत्वा) दसा० १०१० णिणाद (निनाद) प०७५ णीसा (निश्रा) नि० १२१४२; १४।४०,४१; १८। णिण्हाइ (निण्हविन) बसा. ६।२७ ७२,७३ णितिय (नंत्यिक) नि० १५२६० से १३; १६।३४, णीसास (नि श्वास) दसा० १०॥३३ णीहड (निसृष्ट) नि० ६।२१ से २६ णिदंसिय (निदर्शित) अनं० ८ णिदाण (निदान) दसा० १०।२४ Wणीहर (निस्+स)–णीहरति नि० ३।४०. णिभ (निभ) अ० ३१३. दसा० १०।१४ -णीहरिस्सामि नि० ११३०.--णीहरेज्ज णिमंतणावत्थ (निमन्त्रणावस्त्र) नि० १५१६८ नि० ३।३५.-णीहरेति नि० १३० णिमित्तपिंड (निमित्तपिण्ड) नि० १३॥६३ णीहरंत (निस्सरत्) नि० ३।४०, ४१७८; ६।४६; णिम्माय (निर्मात) दसा० १०।११ ७१३८,८१, ११॥३५; १५॥३७,१२३; १७।३६, णियग (निजक) नि० २।२६ णिरय (निरय) दसा०६।३ ऋणीहराव (निस्+सारय)-णीहरावेज्ज नि. णिवेयणपिंड (निवेदनपिण्ड) नि० ११०८२ १५॥३२.--णीहरावेति नि० १४१३१ णिवेस (निवेश) नि० ५।३४,३५ णीहरावेत (निस्सारयत्) नि० १२३२,६४,६५; णिवेसण (निवेशन) नि० ५३४ १७:३४,६६,६७,८८,१२०,१२१ णिवेसाविय (निवेश्य) नि० १५॥३७ णीहरावेत्ता (निस्सार्य) नि०१५।३३ णिवेसिय (निवेश्य) नि० ३४० जीहरित्ता (निस्सृत्य) नि० ३।३६ णिन्वितिगिच्छा (निविचिकित्सा) नि० १०।२५, णीहरिय (निस्सृत) नि० ६४,५; १४।३१ से ३६; १८१६३ से ६८ णिव्विसमाण (निविंशमान) नि० २०।१५,१६ णीहरेंत (निस्सरत्) नि० ११३०; ३।३५,६७,६८; णिसम्म (निशम्य) ५०७ ४।७३,१०५,१०६, ६।४४,७६,७७,७१३३, इणिसीयाव (नि+सादय)-णिसीयावेज्जा नि० ६५,६६,१११३०,६२,६३, १५।११८,१५०, ७।६८ णिसीयावेंत (निषावयत्) नि० ७६८,७६,७८ णीहु (स्निहु) उ० ३६।६८ णिसीयावेत्ता (निषाच) नि० ७७७ णु (नु) द० ७।५१. उ० ४।१ णिसीहिया (निषद्या) नि० ५।२; १३।१ से ११ णूम (दे०) नि० १२।१६; १७।१४१ २७ Page #1128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ आउ (क) दसा० १०।२४ से ३३ उर ( नूपुर ) दसा० १०।१२ गम (नैगम) अनं० ६ मि (नेमि) दसा० १० १४ यव्व ( ज्ञातव्य ) अ० १७५,२१५ याय (नर्यातक) दसा० ६।२।२३; १०।२४ से ३२ णो (नो) द० ६६; ७/६. दसा० ३/३. नि० १४ । १५ ह (दे० ) ० १ १६ हविय (स्नापित) उ० २२६ हाण ( स्नान ) उ० २० २६. दसा० ६ । ३. नि० १। ५; ६।६ हाणपीठ (स्नानपीठ) दसा० १०।११. प० ४२ हणमंडव ( स्नानमण्डप) दसा० १० ११. ० ४२ हात ( स्नात ) दसा० १० १२,२२ से २४ हाय ( स्नात) उ० १२।४५ से ४७. दसा० १० । ३, २४. ५० ४४,५८,६६ सा (स्नुषा ) उ० ६३ त त (तत्) . आ० ४1३. द० १।२. उ० १।२१. नं० गा० ४. अनं० १ जोनं० १. अ० १. दसा० १।१ प० १. क० ११५. व० ११५ त ( स्वत्) ६० २२८, तय (तृतीय) उ० २६२,१२,१८,२४,३१,४३; २६/७२ ३०१२१; ३३।४; ३६।१६२, १८८, २३६. नं० गा० २० सू० ८३,१२७/५ अ० ३०८, ४६०, ५०३, ७०६. ५० ६६ तइया ( तदा) उ० ६५ तइया (तृतीया) व० १०३, ५, ६, १० तउआगर ( आकर ) नि० ५। ३५ तउज्जुय (तदऋजुक) द० ५।१०७ तय (त्रक) उ० १९/६८ ३६ । ७३ तउपाय ( त्रकपात्र) नि० ११।१ से ३ तबंधण ( कबन्धन) नि० ११।४ से ६ आउय-तक्कर तउलोह (xyकलोह) नि० ७/४ से ६; १७६ से तउजिक (दे० त्रपुषमिञ्जक) उ० ३६।१३८ तए ( ततस् ) दसा० १०1३. ५० ५ तओ ( ततस् ) द० ४ सू० २३; गा० १०; ५/६६, १०३, ११३; ६।१८, ४७. उ० १।१० ; २४ ३४ ५८, १६, ३१, ७२, ६, १०, १८; ८, १८, २४, २८, ३२, ३८, ४६; १६ सू० ११, १८६, १६, १६।४३, ८४ २०।१०,३१, ३४,५२, २२।१७,२२, ३८; २४।१. नं० गा० २० अ० १६,५८६,७१४. दसा० २।३. १० २२ से २५, २७ से ३३. व० २६ से १७, २७, ३।११,१२; ४।२१,२३, ८।१० से १२. नि० ४।११८ तं तवग (तान्त्रक) उ० ३६ । १४८ तंतिय ( तान्त्रिक) अ० ३६० तंती ( तन्त्री) वसा० १० १८.२४. १०६,५४,७५ तंती ( ठाण) (तन्त्रीस्थान ) नि० १२।१७; १७११४६ तंतु (तन्तु) अ० ४१६,५२३ तंतुज (तन्तुज ) उ० २।३५ तंतुवाय (तन्तुवाय) अ० ३६० तंदुल ( तण्डुल) अ० २८७ तंदुलवेयालिय (तन्दुलवैचारिक) नं० ७७. जोनं० ८ तंत्र (ताम्र ) उ० १६।६८; ३६।७३. ५० २४ तंबपाय ( ताम्रपात्र) नि० ११ । १ से ३ बबंध ( बन्धन) नि० ११।४ से ६ तंबलोह (ताम्रलोह) नि० ७/४ से ६; १७/६ से तंबागर (ताम्राकर) नि० ५।३५ तंबोल ( ताम्बूल ) अ० १६ तं (त्र्यत्र) उ० ३६।२१, ४४. अ० २६२,५१३ V तक्क (तर्कय् ) - तक्केइ उ० २६/३४ तक्क (तर्क) दसा० १०१३३. ५० ८२ तक्कर ( तस्कर) उ० २८ Page #1129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तक्खण-तत्थगत तक्खण ( तत्क्षण) नं ० ३८ तगर ( तगर ) अ० ३७६ तगरा ( तगरा ) अ० ३६३ तगरायड ( तगरातट) अ० ३६३ तच्च (तृतीय) द० ४ सू० १३. उ० २६।२. दसा० ३।३; १०१४ ० १७,१११,११३, १३०,१८०. व० ५।१८ तच्च (तथ्य ) उ० २०११ २८ । १. नं० गा० ४० तच्चा (तृतीया) दसा० ६।१०, ७३,३०. ५० १०५ तच्चित्त ( तच्चित्त) अ० २७ / तच्छ (तक्ष्) - तच्छेमि अ० ५५५ - तच्छेसि अ० ५५५ तच्छिय (तक्षित ) उ० १६६६ तच्छेमाण (तक्षत् ) अ० ५५५ / तज्ज (तर्जय् ) - तज्जए उ० २।३१ तज्जण (तर्जन) दसा० ६ । ३ तज्जणा ( तर्जना ) द० १०।११. उ० १९३२ तज्जाय ( तज्जात) दसा० ३।३ तज्जायसंसट्ट (तज्जातसंसृष्ट) दच्० २०६ तज्जिय ( तजित ) उ० २८, ३५ तट्ठाणपत्त ( तत्स्थानप्राप्त) क० ६।२ तट्ठ (त्वष्ट्) अ० ३४२ तडागमह ( तडागमह) नि०८।१४ तडि (तडित् ) प ० २३ ड्ड (तन् ) - तड्डेति नि० १।४१ तत. ( तन्वत्) नि० १ ४१, ४२ तण (तृण) द० ४ सू० ८; ८४ ८२, १०; १०४. उ० २।३४, ३५ ६ ७ १२।३६; २३।१७; ३६।४. नं० ३८।७. प० २७६. क० ४।३१ से ३४ तणग (तृणक) द० ५।११६ तहि (तृणगृह) नि० ८ ६; १५७२ तपासय (तृणपाशक) नि० १२।१,२; १७११,२ तणपीढग (तृणपीठक) नि० १२/६ तणपुंज (तृणपुञ्ज) क० ४।३१ से ३४ तणफाम (तृणस्पर्श) उ० २ सू० ३; १६ । ३१ वर्णमालिया (तृणमालिका) नि० ७।१ से ३; १७।३ से ५ तणसाला (तृणशाला) नि० ८६; १५।७२ तणहार (तृणहार) उ० ३६।१३७ तण (तनु ) उ० १४।४७. ५० २४ तणुय ( तनुज ) उ० १४ । ३४ तण्य (तनुक) प० २४, ३८ तणुयर ( तनुतर) उ० ३६ ५६ तण्णीसा (तन्निश्रा ) नि० १२०४२ तन्हा (तृष्णा) द० ५७८, ७६. उ०१६।१८,२०, ३१, ५६ ; २६।४६, ३२.६, ८, ३०, ४३, ५६, ६६, ८२,६५,१०७ तत (तत ) नि० १७।१३७ ततिय (तृतीय) प० २०२ ततिया (तृतीया) व० १० ३ १३५ तते ( ततस् ) दसा० १०/६ ततो ( ततस् ) दसा० २ ३ ६ २ ३७ १० २६,३३ क० ५।४० तत्त (तप्त) उ० १६।६८ तत्त (तत्व) उ० २३ २५ तत्तनिव्वुड (तप्त निर्वृत ) द० ५।१२२ तत्तफासु ( तप्तप्राक) ६० ८६ तत्तानिव्वुडभोइत (तप्त निर्वृतभोजित्व) ० ३।६ तत्तिय ( तावत् ) नं० ७६. अ० ५६०,५६६. तत्तिय (तृतीय) दसा० ७ ६. ०६५ तत्तिव्वज्भवसाण (तत्तीव्राध्यवसाय) अ० २७ तत्तो ( ततस् ) द० ५।१४८. उ० २१।१२; ३०।११, १५. नं० गा० ३४. अ० ३४१ तत्थ (तत्र) द० ५।५. उ० २।२१. नं० १७. अनं० ६. अ० २. दसा० ३।३. ५० १०. क० २१४. व० १।१५. नि० २।४४ तत्थ ( त्रस्त ) उ० १६ । ७१ तत्थगत (तगत ) वसा० ३।३ Page #1130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्थगय-तरुणिया तत्थगय (तत्रगत) ५०१० तमा (तमा) उ० ३६।१५७. अ० १८१,१८२,२८७ तदझवसिय (तदध्यवसित) अ० २७ तमाय (तमाज) अ० २५४ तदट्ठोवउत्त (तदर्थोपयुक्त) अ० २७ तमूयत (तन्मूकत्व) दसा० १०।२६ तदप्पिय करण (तपितकरण) अ० २७ .. .. तम्मण (तन्मनस्) अ० २७ तदा (तदा) दसा० ५७ ... तममुत्ति (तन्मूति) उ० २४१८ तदुभय (तदुभय) उ० ११२३, २६।३१. अनं० २, तम्हा (तस्मात) अ० ७. क० १॥३४ व०६१ २८. जोनं० १०. अ० ६,३०,५३,७७,१०२, तय (तक) उ० २२३५,४०, २५॥३४. नं० ३७।२ ३३६,५५६,६१३ से ६१७,७१५।४. दसा० . तय (तत) उ० १४।३६ १०१३५ तय. (त्रय) अ० ३०३,३०७।१४,४४७,४४८,४५० तदुभयागम (तदुभयागम) अ० ५५० तयप्रमाण (स्वकप्रमाण) नि० १११८० तद्दव्यरामाणवण्णय (तद्रव्य समानवर्णक) प० २६४ तयप्पमाणमेत्त (त्वकप्रमाणमात्र) क० ५।३७ तद्धित नाम (तद्धितनामन) अ० ३५८ तपस्सिय (तदाश्रित) द० ६।२७,३०,४१,४४ तद्धितय (तद्धितज) अ० ३४६,३५८,३६६ तया (तदा) द० ४।१४. उ०१२।२२. नं०८. तन्निस्सिय (तनिश्रित) द० ५।६८ अ० ३६०. दसा० १०॥३. व० १०१६ तन्नीसा (तनिधा) क० ३।१३ .. तयाभायण (स्वगभोजन) दसा० २।३ तिप्प (तप्) -तप्पइ उ० १४।१६ तयासुख (त्वकसुख) दसा० १०१११.५० ४२ तप्पओसि (तत्प्रदोषिन्) उ० ३२।१०१ Vतर (तू)-अरिंसु उ० १८०५२.–तर उ० तप्पच्चइय (तत्प्रत्ययिक) उ० २६।२,६३ से ६७ । २२।३१.-तरंति उ०८।६.-तरती दसा० तप्पच्चय (तत्प्रत्यय) उ० ३२।१०५ २७।३.---सरिस्संति उ० १८१५२. तप्पढमया (तत्प्रथमता) उ० २६७२,७३. क० ३। --तरिहिति उ० ८२० १४,१५ तर (तर) दसा० १०।१४ तप्पत्तिय (तत्प्रत्यय) व० ११३१,३२, ३।१३ से तरंग (तरङ्ग) प० ३१ २६; ४.१३,१४,१७,५।१३ से १६; ६।५ तरंगवतिकार (तरङ्गवतीकार) अ० ३६४ तप्पभिइ (तत्प्रभृति) ५० ५१,५२,६६,६० तरच्छ (तरक्ष) दसा० ७।२४ तप्पुरक्कार (तत्पुरस्कार) उ० २४१८ तरतम (तरतम) प० ३४ तप्पुरिस (तत्पुरुष) अ० ३५०,३५५,५५७ तरिउ (तरितुम) उ०१६।४२ तब्भवमरण (तद्भवमरण) नि० १११६३ तरित्ता (तरित्वा, तरीत्वा, तीर्वा) द० २११२४ तब्भावनाभाविय (तद्धावनाभावित) अनं० २७ तरित्तु (तीर्वा) द० ६।४० तम (तमस) उ० ७।१०; २३१७५. नं० १२०. तरियव्व (तरितव्य) उ० १६।३६ दसा० ६१५. ५० २६,२७ तरु (तरु) अ० ७०८।५ तमंतम (तमस्तमस् ) उ० १४।१२; २०१४६ तरुण (तरुण) उ० २०१८,३४१७,१२. अ० ४१६. तमतमा (तमस्तमा) उ० ३६।१५७. अ० १८१, दसा० १०।१४. प० ३०,३२. व. ३१११,५॥ १८२,२५४,२८७ १६ तमतमाय (तमस्तमाज) अ० २५४ तरुणग (तरुणक) द० ५।११६ तमस (तामस) द० २० तरुणिया (तरुणिका) द० ५।१२०. व० ५।१५ Page #1131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरुणी तहा तरुणी (तरुणी ) ० ३।१२ तरुपचंदण (प्रस्कन्दन) नि० ११/२३ तरुपडण ( लपत न ) ० ११ १२ तल ( तल) उ० १६४ नं० गा. ४२. अनं०८. अ० १६,३७,६०,८४,१०६, ४१६, ५६६,६२६, ६३८,६५०, ६७६,७०३. दसा० ५।७।११; ६ । ४,५, १०।११,१८,२४ १०६,१०,२५ से २८, ४२,५४,६२,७५ तल (ठाण) ( तलस्थान) नि० १२२७ १७११४९ तलवर (तलवर) अनं० १२ से १४ अ० १६, ३६५. १०४२ तलाग ( तडाग) अ० ३६२, ५३१,५३५ तल्लेस (तल्लेश्य ) अ० २७ तव (तपस्) ० १११: ३।१५ ४१२७ ५०१०६, १४२ ६१.६७ ७४६; ८४०, ६१, ६२; १४ १,२:१०१७,१२,१४ ० १ सू० १. ० १। १६,४७, २४३, ३१८, २०५१२८, २०, २२, ४६ १२४,३७,४४ १३३५ १४५, ८, १६: ३५, ५० १८१५,३१,३७,४१,५० ५,३७, ७७,६४,९७; २०१४१ २२०४८ २३।५३ २५। १८,३०, ४३ २६।३४, ४७, ५०, ५१ २७/१६; २८।२,३,११,२५.३४ से ३६ २६ । १,२८,४३, ६०, ३०११,६ से ८, २९, ३०, ३७ ३२ १०४; ३६।२५२ से २५५. नं० . ५,६.६,१०,२६; सू० ८६ से ८६,६१,१२० अ० ३१०,७०८. दसा० ४।२३ ५७१३ १।२।२७ १००३,५,६, ११.२२ से ३३. ५०७४,०१,२८५ तव (त) तवति अ० ३२० --- तवण (तपन) द० ६।१४. उ० २०१५. अ० ३२० तवणिज्ज (तवनीय) प०२४ तवतेण (तपस्तेन) द० ५०१४६ तवमग्गगइ (तपोमागंगति) उ० ३० तवसमायारी ( तपः समाचारी) दसा० ४११५ तवसमाहि (तपः समाधि) ४० २०४. सू० ३.६ तवस्ति ( तपस्विन् ) ० ५।१४२ ६५६ ८३० १३७ - ५३. उ० २१२, २२, ३४, ४४, ३।११; १२। १० १५५.६, २३।१० ३२४, १४, २१. दसा ० ७५. ०२३६,२६५. ०३।२२ ४/२८. ब० १००४० तवायार (तपसाचार) नं० ८१ तविय (तापित ) नं० गा. ३७ तवोकम्म ( तपःकर्मन् ) द० ६।२२. उ० १७।१५; १६४८८. बसा० १०३४. १० २७४, २७५. क० ४।२६. व० १।३३ तवोकम्ममंडिया ( तप. कर्मकण्डिका) नं० १२१ तवोधण (तपोधन) उ० १३०१७ १८१४ २०१५३ तोममायारी (तपःसमाचारी) उ० ११४७ तस ( स ) द० ४. सू० ६,११; ५५; ६८, २३, २७,३०, ४१, ४४ ८१२, १११०१४. उ०५८ ८ १० १६८६, २०१३५ २४/१८ : २५/२२; २६/३० ३५६; ३६६८, १०६, १०७, १२६. नं० ८१ से १,१२३. अ० ७०८. दसा० ६ | ४,१८, ६०२१ सकाइ ( जसकायिक) द० ४. सू० ३. अ० २७५ तसकाय ( सका) आ० ४८. ०४. सू० ६; ६०४३ से ४५ तपाणजाति ( सप्राणजाति) नि० १२०१, २० १४ ३६ १७ १,२; १८/६८ तसरेषु (प्रसरेणु) अ० ३९५, १९९ तयि त्रसित) ६० ४. सू० ६ तह (तथा) आ० २१४. वच्० २५ ३० १८।१४. नं० गा. १६. अ० ३४१. ५० १६१ तहक्कार ( तथाकार ) उ० २६।३, ६. अ० २३६ तहप्पगार ( तथाप्रकार) उ० ४।१२. दसा० ६१३, ४,६ : १०।२४ से ३२. ५० ११,१४,२३८. क० ४३१ से ३४ नि० ३७६ ५६० ८१४ ११०८१,६३ १३ से ११: १४।२५ से ३०: १६/४१ से ५१; १७।१३७ से १४० १८/६० से ६२ तहा (तथा) द० ५।३०. ३०५०२.० गा. २३. Page #1132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ अ० ७३. दसा० ६।२।२२ तहाकारि ( तथाकारिन् ) ० २९ ५२ तहाभूय ( तथाभूत) ० ८७.०५३० तहामुत्ति ( तथामूत्ति) द० ७५ तहारूव ( तथारूप) दसा० १०।११.२४,२५. व० ३६ ताविह ( तथाविध) ० ५७१,६४ ० ११४. उ० ८ ।४; २४ । १५ तहि (त) बच्० २११.३० १२६० ७०६. ब० १०१६ तहिय ( तथ्य ) उ० २८ ।१४, १५ तहियं (तत्र) उ० १२०३६ तहेब ( तथैव द० ५।७१. उ०६।३६. अ० १७५. दसा० ६।२।२२ ता ( तावत् ) ६० ५।१३४.४० १३।२२, बसा० १०४. व० २१२८ ताइ (त्रायिन् तायिन् तादृश् ) ३० ३१, १५; ६० २०,३६,६६,६८; ८।६२. उ० ८ ४, ६, ११।३१ ; २१।२२ २३।१० ताडिय ( ताति) उ० १६/६७ ताण ( त्राण ) आ० ६।११. उ० ४।१,५; ६।३; १४ १२,३६,४०. दसा० ६।२।२० प० १० ताण (तान) अ० ३०७।१४ ताति ( त्रायिन् ) दसा० ५५७२४ तामरस (दे०) प० ३० तामलित्तिया (ताम्रलिप्तिका) प० १६० ताय ( तात) उ० १४/६,२३, १६/११,७३ / ताय ( त्राय्) तायए उ० ६ १०. तायंति उ० ५।२१ तायग ( तातक) उ० १४८ वायत्तीसग ( त्रायस्त्रशक) प० तायत्तीसय (त्रास्त्रशक) प० १ -- (तार (तार) रस्सामि उ० १२ २३ तारय (तारक) आ० ६।११. ५० १० तारा (तारा) द० ६।१५ ३० ३६/२०८. दसा० १०।१६ तारागण ( तारागण ) १० ४२ ताराव (तारारूप ) अ० २५४ तारिख (तार्थ) ० ७३८ तारिय (तारित) द० ५१४ तारिस ( तादृश) द० ५१२०,२१,३१,३२,४१,४३, ४४,४६,४८,५०,५२,५४, ५८,६०,६२,६४,७२, ७४,७६, ११५, ११७,१२०, १३ से १४१, १४४, १४५ ६३६,६६, ६३ ० १।१७. उ० २७८, १६ ३५५,१४. ५०२० तारिसग ( तादृशक ) ० ४।२६, २७. ५० ३७,४६, ४७ तारुण्ण ( तारुण्य ) उ० १६३६ V ताल (ताइय्) तालेह दा० तहाकारितावइय -- तालयंति उ० १२।१९. ६३ ताल (ताल) दसा० १०११८,२४. ० ६, ५४,७५. क० १११ से ५. नि० १७।१३८ ताल ( ठाण ) ( तालस्थान ) नि० १२१२७; १७ RE तालउड ( तालपुर ) ० ६५६. उ०१६।१३ तालण (ताडन) दसा० ६।३ तालणा (ताडना) उ० १९३२ तालमूलय ( तालमूलक) प० २६९ तालसम ( तालसम) अ० ३०७८ तालायर ( तालावर ) प० ६२,६४,७५ तालिय ( ताडित) अ० ५२२ तालियंट (तालवृन्त) वसा० १०।१७,२४. नि० १७।१३२ तालिस ( ताबुश) उ० ५३१ तालु (तालु) अ० २३ ताव ( तावत् ) आ० ५।३. ६० ७।२१. उ० ७।३. अनं० ६. अ० १७. क० ११४७. व० ७।२५ तावइय ( तावत् ) उ०३२।१०६. अ० १४,३५, ५८,८२,१०७, ५६४,६२४,६३६,६४८, ६७४, ७०१. ० ९ ४२,४३ Page #1133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तावतिय-तिन्न तावतिय ( तावत् ) अनं० ६ तावस ( तापस) उ० २५।२६, ३० अ० ३४४ ताविय ( तापित) प० २३ ताहे (तदा) उ० १९७८ नं० ५३ ति (त्रि) आ० ४१३. ६० ६५६. उ० ५।३२. नं० गा० २७. अनं० ६. अ० १४. दसा० ७५. ०६. क० २।१३. व० २।२७. नि० १४२ ति (इति) अ० २६४ तितिणिय (दे० ) क० ६ १६ तिदुग ( तिन्दुक) उ० ३६।१३८ तिंय ( तिन्दुक) द० ५।७३. उ० १२८ २३॥४, १५ तिकडुय ( त्रिकटुक) अ० ३५४ तिकालजुत्त (त्रिकालयुक्त) अ० ३१२ तिक्ख ( तीक्ष्ण) द० ६।३२. उ० ११ १६, २०; १६।६२; २०२० ३४ । ११. ५० २२, २३. नि० ३।३४ से ३६; ४।७२ से ७७; ६।४३ से ४८; ७।३२ से ३७; ११।२६ से ३४; १५।३१ से ३६; ११७ से १२२; १७।३३ से ३८,८७ से ६२ तिक्खुत्तो ( त्रिस्) दसा० १०६, १६. ५० १०, १४,२७३ से २७५. क० ४।२६,३० नि० ६/२०; १२।४३ तिग (त्रिक) अ० २८६.२६२,३९२.५० ६२ तिगडुय ( त्रिकटुक) उ० ३४ । ११ तिगनइय (त्रिकनयिक ) नं० १०३ तिगच्छ ( चिकित्स्) - तिगिच्छइ उ० १९७८ तिमिच्छग ( चिकित्सक) उ०२०।२२ तिमिच्छपिड ( चिकित्सा पिण्ड ) नि० १३।६६ तिमिच्छा ( चिकित्सा) उ०२०।२३ तिगिच्छिय ( चिकित्सित) उ० १५८ तिगुण ( त्रिगुण) नं० ६४ से १०० अ० २६३, ३५४,४२२,४२४, ४२६, ४३१, ४३६, ४३८ तिगुत्त ( त्रिगुप्त ) द० ३।११६ । १४. उ० ६ २०; ३०।३;३२।१६ १३६ तिगुत्ति ( त्रिगुप्ति) द० चू० १११८ तिगुत्तिगुत्त ( त्रिगुप्तिगुप्त ) उ० १६८८ २०।६० तिजमलपय ( त्रियमलपद) अ० ४६० तिण (इदम्) दसा० १०/३० तिण (तृण) प० ८० तिणिस (तिनिश ) दसा० १० | १४ तिण्ण (तीर्ण) आ० ६ । ११. उ० ५। १; १० ३४; २६।१५२; ३१।१ तितिक्ख ( तितिक्ष) - तितिक्खइ प० ७७. - तितिक्खएज्जा उ० २१।१५ - तितिक्खति दसा० ७।४. तितिक्खे उ० २।५. तितिक्खेज्जा व० १०।२ तितिक्खा ( तितिक्षा) उ० २।२६; २६।३४ तित्त ( तिक्त) उ० ३६।१८. अ० २६०, २६३,५११. प० ५८ तित्तग ( तिक्तक) द० ५६७ तित्तय ( तिक्तक) उ० ३६।२६ तित्तिर ( तित्तिरि) दसा० ६।३ तित्तिरपोसय ( तित्तिरिपोषक) नि० | २३ तित्तीस ( त्रयस्त्रशत् ) आ० ३।१ तित्थ (तीर्थ) द० ७।३७. उ० १२/४५,४६. नं० १२०. अ० ३५५. दसा० ६।२।३० तित्थंकर ( तीर्थंकर) नं० २२ तित्थकर ( तीर्थकर ) दसा० ८ २; १० ३,६ तित्थकाग ( तीर्थंकाक ) अ० ३५५ तित्थगर ( तीर्थंकर) आ० ४।६. अ० ५५१. बसा० १०१५, ११. प० १०, १४० तित्थधम्म ( तीर्थधर्म) उ० २६।२० तित्थयर ( तीर्थंकर) आ० २ १, ५, ५/४११, ५, ६ ११. उ० २३।१, ५; २६।४४. नं० गा० २; सू० ३३,७६. दसा० १०।१६. प० २,१०,१४, ३५,६२ तित्थय रगडिया ( तीर्थकर कण्डिका) नं० १२१ तित्थयरसिद्ध ( तीर्थकर सिद्ध) नं० ३१ तिथसिद्ध ( तीर्थसिद्ध) नं० ३१ तिन्न (तीर्ण) प० १० Page #1134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० तिपएसिय-तिब्व तिपएसिय (त्रिप्रदेशिक) अ० ६४,६८,११५,११६, तिरियलोय (तिर्यगलोक) उ० ३६।५४. अ० १७७, १३२,१३६,१५२,१५३,२५४ १७८,१८४,५५६,६१५ तिपय (त्रिपद) उ० २६।१३ तिरीडपट्ट (तिरीटपट्ट) क० २।२८. नि० ७.१० से तिपह (त्रिपथ) अ० ३५४ १२; १७।१२ से १४ तिपुक्खर (त्रिपुष्कर) अ० ३५४ तिरीडि (किरीटिन) उ०६।६० तिपुर (त्रिपुर) अ० ३५४ तिल (तिल) उ० १४११८. नं० ३८. दसा०६।३. तिप्प (तेप, तेव) --तिप्पेति दसा० ६।३ क० २११ तिप्पण (तेफ्न, तेवन) दसा० ६।३ तिलग (तिलक) प० २६ तिप्पयंत (तेपमान, तेवमान) दसा० ६।२।२३ तिलपप्पडग (तिलपपंटक) द० ५।१२१ तिबिंदुय (त्रिबिन्दुक) अ० ३५४ तिलपिट्ठ (तिलपिष्ट) द० ॥१२२ तिभाग (त्रिभाग) उ० ३६।६४. अ० १४५,५६८ तिलय (तिलक) अ० १८५,५२०. प० २५ तिमहुर (त्रिमधुर) अ० ३५४ तिलितिलिय (दे०) ५० ३१ तिमि (तिमि) ५० ३१ तिलोदग (तिलोदक) नि० १७।१३३ तिमिगिल (दे०) प० ३१ तिलोदय (तिलोदक) प० २४६ तिमिर (तिमिर) उ० १११२४. ५० २६ तिलोय (त्रिलोक) उ० १९९७ तिय (त्रिक) उ० १६।४।२०।२१:२६।१६:३०४. तिल्ल (तैल) १०२३६ क० १।१२,१३ तिवग्ग (त्रिवर्ग) नं० ३८१५ तियाह (व्यह) दसा० ६।१२ से १८.व.८२ से ४ तिवासपरियाय (त्रिवर्षपर्याय) १० १२३. व०३। तिरिक्ख (तिर्यच) उ० ३६।१५५,१७० ३,४; ७२०; १०१२५ तिविह (विविध) आ० ११२; ४११,६५१:६१४, तिरिक्खजोणि (तिर्यगयोनि) 4० ५।१४८. उ० ५. द० ४ सू० १० से १६.१८ से २३ ; ६।२६, १६।१०, २०४६ ४०,४३; ८।४. उ० १५११२,२५२२; ३३१८; तिरिक्खजोणिय (तिर्यगयोनिक) द० ४ सू० ६. ३४।२०; ३६१६८,६६,१०६,१०७,१७१,१६६. उ० २६।५. अ० २५४,२७५,४०१,४३२,४४५, नं०१,६,११,५६,६१. अनं० ७,१०,११,१५, ४५४,४८६,४८७,५६६. दसा० ७१४,२६ से १६,२५. अ० १५,१८,२४,३६,५६,६२,६६, २८,३१ से ३३. ५० ७७,११४. व० १०२,४ ८३,८६,८७,१०८,१४७,१५१,१७६,१८०, तिरिक्खजोणिय (तिर्यगयौनिक) द० ४ सू० १४ १८४,१८८,१६२,२१८.२२२,२२६,२३०, तिरिक्खजोणियाउय (तिर्यगयोनिकायुष्क) अ० २३४,२३८,२४२,२५५,२६४,३२६,३८६, २८२ ३६३,४०६,४११,४१६,५०६,५१४,५१८,५१६, तिरिक्खत्तण (तिर्यक्त्व) उ० ७।१६ ५३०,५३४,५३६,५४३,५५०,५५१,५५४, तिरिक्खाउ (तिर्यगायुष) उ० ३३।१२ ५५६,५६५,५६८,५७५ से ५८२,६०५,६०६, तिरिच्छ (तैरश्च) उ० १५।१४; २१।१६ ६१३,६१८,६२५,६३७,६४६,६५२ से ६५४, तिरिच्छसंपाइम (तिर्यसम्पातिन, सम्पातिम) ६५७,६५८,६६१,६६८,६७५,६७८ से ६८०, द० २८. उ० ३४१४४,४५,४७, ३६।५०. ६८३,६८४,६८७,६६५,७०२,७११. दसा० नं० २५,१२१. दसा० ५७।६. १० १५ १०।१६ व०६।४४,४५ तिरियजंभग (तिर्यग्जम्मक) ५० ५१,६१ तिव्व (तीव) द० ५।१५. उ० १६७२, २३।४३; Page #1135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिसंगहिय तुयट्टित्तु २६/२३, ३२।२४, २५,३७,३८, ५०, ५१,६३, ६४,७६, ७७, ८६,६०; ३४।२१. दसा० ६ १५; २५; १०११६ तिसंगहिय ( त्रिसंगृहीत ) व० ३।१२ तिसमयट्टईय (त्रिसमयस्थितिक ) अ० २००,२०४, २२३,४१४ तिसर ( विसर ) अ० ३५४ तिसरय ( त्रिसरक) दसा० १०३,११.१२. ५० ४२ तिसला ( त्रिशला ) प० १४, १५, १७, १६ से २१, ३६ से ३६,४२,४६, ४७, ४९, ५४, ५६, ५८, ६६ तीत (अतीत) अनं० २४. नि० १३।२१ तीतद्धा (अतीताध्व) अ० २१६,६१६ तीय ( अतीत ) उ० २६।१३. नं० ६५, १२५. अ० ५०,५३०,५३१,५३४,५३५,५४६. ५० १४ तीर (तीर) उ० १० ३४; १३६, ३०.५० ८१. क० १११६ तोरइत्ता ( तीरयित्वा ) उ० २६।११ ११ तीरिता (तीर्त्वा ) प० २८७ तुडिय (ठाण) (दे०) नि० १२ २७; १७११४६ तीरिय ( तीरित) दसा० ७।२५, ३५. ० ६ । ३५ से तुडियंग ( त्रुटिताङ्ग ) अ० २१६,४१७ ३८, ४०, ४१; १० १३, ५ तुण (दे० ) नि० १७।१३७ तुष्णाग (तुनवाय) अ० ४१६ तीस ( त्रिंशत् ) आ० ४।८. उ० ३६।२४१. नं० ११२. अ० ४१७. दसा० ६।२. प० ४७ तीसर (त्रिंशत् ) उ० ३३।१६ तुम्नाग (तुनवाय) नं० ३८।६. अ० ३६० तुपग्ग (दे० ) प० २२ तुप्पोट्ठ ( तुप्रोष्ठ ) अ० २१ तीसम ( त्रिंशत्तम ) प० १२५ तीस विह (शिद्विध) उ० ३६ । १९७ तीसभद्द (तिष्यभद्र ) प० १६१ तीसवासपरियाय ( त्रिशद्वर्षपर्याय) व० ७।२० तु (तु) द० ५।३७. उ० २७. नं० १८. दसा० ५/७ तुंग ( तुङ्ग) उ० १६५२. दसा० १०।१४. ५० ३३ तुंगिय ( तुङ्गिक) नं० गा० २४ तुंगियायण (तुङ्गिकायन ) ५० १८६ से १८८ तुंड (तुण्ड ) उ० ३४।७ तुंदिल्ल (तुन्दिल) उ० ७१ ७ तुंब (तुम्ब ) नं० गा० ५ ० ६२ तुंबग ( तुम्बक) उ० ३४ । १० तुंबवीणा (तुम्बवीणा) नि० १७।१३७ तुंबवीणिय ( तुम्बवीणिक) अ०८८ तुंबाग (तुम्बक ) द० ५।७० तुच्छ (तुच्छ) उ० ४।१३; १३।२५ तुच्छकुल (तुच्छकुल) दसा० १०३२. ०११, १२,१४ तुट्ठ (तुष्ट) द० ६।३२. उ० १५ १६, २०१५४; २५६, ३५. अनं० १२ से १४,१६ से १८,२१, २२,२६,२८. दसा० १०१४, ६, ७, ११,१२,१८, ३४. १० ५ से ७, १०, १५, ३६,३८,३६,४१, ४४, ४७, ४८, ५० ५६,६३ तुट्ठि (तुष्टि) उ० ३२/२६, ४२,५५,६८,८१,६४. दसा० १०१३३. प० ६,३८,४७, ८१ तुडिय (त्रुटित) अ० २१६,४१७. नि० ११४१, ४२ तुडिय (दे०) दसा० १० ११,१७,१८,२४. ५०६, १०,४२,६४,७५. नि० ७७ से ६; १७/६ से १४१ तुट्ट (स्वग् + वृत्) -- तुयट्टइ प० ५८. - तुयट्टेज्जा द० ४ सू० २२. -- तुट्टेति नि० ५।७८ तुयत (स्वग्वर्तयत्) द० ४ सू० २२ तुयट्टण ( त्वग्वर्तन) उ० २४ २४ √ तुयट्टाव (त्वग् + वर्तय्) तुयट्टावेज्ज नि० ७/६८. - तुयट्टावेज्जा द० ४ सू० २२ तुयट्टावण (स्वग्वर्तापन) क० ४।३१ तुट्टावंत (स्वग्वर्तयत् ) नि० ७।६८ से ७६,७८ तुयट्टावेत्ता (स्वग्वर्त्य ) नि० ७७७ तुयट्टित्तए ( त्वग्वतितुम् ) क० १।१६ तुयट्टित्तु (स्वग्वर्तयितृ) दसा० ३।३ Page #1136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ तुयटेंत-तेरसवासपरियाय तुयटेंत (त्वगवर्तमान) नि० ५।७८ १२।६ तुरग (तुरग) अ० ३५४. दसा० १०।१४. ५० तेउक्काय (तेजस्काय) उ० १०१७. नि० १४।३३; ३२,४२ १८।६५ तुरय (तुरग) नं० गा० ६ तेउलेस (तेजोलेश्य) अ० २७५ तुरिय (तूर्य) उ० २२।१२ तेउलेसा (तेजोलेश्या) आ० ४।८ तुरिय (त्वरित) उ०२२।२४,२५. १० १०,१५,३१ तेगिच्छ (चैकित्स्य) द० ३।४ तुरुक्क (तुरुष्क) प० २०,३२,४०,६२ तेगिच्छा (चिकित्सा) उ० २।३३ तुला (तुला) उ० १६।४१. अ० ३७८ तेण (स्तेन) द० ५।१३७,१३६; ७।१२. उ० ४।३; तुलिया (तोलयित्वा) उ० ५।३० ७।५; ३४१२६ तुलियाण (तोलयित्वा) उ० ७.३० तेणउय (त्रिनवति) प० १०७ तुल्ल (तुल्य) अ० १३०,१७४,३६४,४०७,४१२ तेणग (स्तेनक) द० ७।३६,३७ तुल्लमाण (तुल्यमान) अ० ३६० तेणिय (स्तन्य) प०२३८. क० ४१३ तुवर (तुवर) उ० ३४।१२ तेत्तीस (त्रयस्त्रिशत्) आ० ४।८. उ० ३१।२०. तुस (तुष) द० ५७ नं० ८२ अ० ४३३. दसा० ३।१.५० १६१ तुसगिह (तुषगृह) नि० ८।६; १५१७२ तेत्र ( ) अ० ३६७ तुसदाहठाण (तुषदाहस्थान) नि० ३१७३ तेमासिय (त्रैमासिक) व० ११२,३,७,८,११,१२. तुससाला (तुसशाला) नि० ८।६; १५१७२ नि० २०१२,३,७,८,११,१२,२२,२६,३३,३६ तुसिणीय (तूष्णीक) उ० १।२०; २।२५ तेमासिया (त्रैमासिकी) दसा० ७।३,२६ तुसोदय (तुषोदक) नि० १७।१३३ तेय (तेजस्) उ० ११।२४; १२।२३; १८.१०. तूणइल्ल (तूणावत्) अ० ८८. ५० ६२,६५ नं० गा० ८,१०. अ० १६,२०. दसा० ७।२० Vतूर (त्वर्) --तुरंति उ० १३।३१ १०।१५,३२. प० २७,३२,४२,७८ तूल (तूल) १० २० तेयग (तैजस) अ० २७६,४६०,४६१,४६५,४६६, ते (त्रि) दसा० ७।३ ४७४,४७६,४८१,४८४,४८६,४६३,४६७, तेइंदिय (त्रीन्द्रिय) आ० ४।४. द० ४ सू० ६. उ० ५०१,५०५ ३६।१२६,१३६,१४१ से १४३. अ० २५४, तेयग्गिनिसग्ग (तेजोग्निनिसर्ग) जोनं०६ ४४५,४५३,४८५ तेयनिसग्ग (तेजोनिसर्ग) 4० १०॥३५ तेयय (तेजस) अ० ४४६ से ४४८,४५०,४५२, तेइंदियकाय (त्रीन्द्रियकाय) उ० १०।११ तेइच्छ (चैकित्स्य) ५० २७४ तेयाल (त्रिचत्वारिंशत्) उ० ३४१२० तेइच्छा (चिकित्सा) नि० ५।८० तेयाहिय (च्याहिक) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१, तेउ (तेजस) ० ४ सू०६; ५।६१. उ० २६।३०; ४३६,४३८ ३४१३,१३,५२ से ५४,५७; ३६।१०७.१०८, तेदस (त्रयोदशन ) आ० ४।८. नं० ११६. अ० ११३ से ११५. अ० ४५१. नि० १७।१३० ५८६. ५० ६८. व० १०॥३ तेउकाइय (तेजस्कायिक) द०४ सु. ३. अ० तेरस (त्रयोदशन्) नं० ११८ २५४,२७५,४४५,४७५ । तेरसम (त्रयोदश) नं० ११८. ५० ८१,१२५ तेउकाय (तेजस्काय) आ० ४१८. द० ६॥३५. नि० तेरसवासपरियाय (त्रयोदशवर्षपर्याय) व० १०॥३२ तेरस ( नं० ११० १०२२ Page #1137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमी-थावर १४३ तेरसमी (त्रयोदशी) व० १०॥३ तोरण (तोरण) द० ७।२७. अ० ४१०. दसा० तेरसी (त्रयोदशी) ५० १७,५६,१८०. व० १०॥३ १०।१४. ५०६२ तेरासिय (त्रैराशिक) नं० १०१,१०३.८० १६४ तोलेउं (तोलयितुम् ) उ० १६०४१ तेरिच्छ (तैरश्च) उ०२५।२५; ३११५ Vतोस (तोषय) -तोसए द०६।१६ तेरिच्छिय (तैरश्चक) उ०२६।३ तोसिय (तोषित) उ० २३।८६ तेलोक्क (त्रैलोक्य) नं०६५. अ० ५०,५४६. ५० त्ति (इति) उ० ११२. नं० गा० २०. अ०६ ७४ त्थ (सं०) अ० ३६८ तेलोक्कनायय (त्रैलोक्यज्ञातक) प० ४७,४६ तेल्ल (तेल) द० ६।१७. उ० १४११८; २८।२२. अ० १६. दसा० १०।११.५० ४२. क० २१८, थंडिल (स्थण्डिल) दसा० ७।२१,२८,३१,३३. ५॥३६. नि०११४;३।१८,२४,३०,३८,३६,५२, क० ४।१२ से १४. व० ७।२२;८।१३ से १५. ६१,४१५६,६२,६८,७६,७७,६०,६६,६५, नि० ४।११० १७,२७,३३,३६,४७,४८,६१,७०, ७।१६,२२, थंभ (स्तम्भ) द० ६।१,५२. उ०११॥३. अ०६१३ २८,३६,३७,५०,५६; ११३१३,१६,२५,३३, थंभिय (स्तम्भित) दसा० १०१११. ५०१०,४२ ३४,४७,५.६; १३।३६; १५।१५,२१,२७,३५, थण (स्तन) अ० ३१६.५० २४. नि० ७।१३ ३६,४६,५८,१०१,१०७,११३,१२१.१२२, थणग (स्तनक) द० ५।४२ १३५,१४४; १७४१७,२३,२६,३७,३८,५१, थणिय (स्तनित) उ०१६ सू० ७; गा० ५; ६०,७१,७७,८३,६१,६२ १०५,११४ ३६।२०६. अ० ५३३,५६६ तेल्लचम्म (तैलचर्मन्) वसा० १०।११ थणियकुमार (स्तनितकुमार) अ० २५४,४४५, तेल्लपेला (तैलपेटा) दसा० १०॥२५,२६ ४४६,४७० तेवट्ठि (त्रिषष्टि) ५० १६५ थद्ध (स्तब्ध) द० ६।२०. उ० ११।२,६; १७१५, तेवीस (त्रयोविंशति) आ० ४१८. उ० ३१११६. ११; २७।१०. दसा० ६।२।२५ नं. ८२. ५० २ थल (स्थल) उ० ८।६; १२।१२; १३।३०. दसा० तेस? (त्रिषष्टि) नं० ८२ ७।२०. प० २३२. क० ४।३०. नि० १८६,७ तेसीइम (व्यशीत, त्र्यशीतितम) १० १७ थलगय (स्थलगत) नि० १८।२०,२४,२८ से ३२ तेसीति (त्र्यशीति) प० १२४ थलयर (स्थलचर) उ० ३६।१७१,१७६,१८४, तेहत्तरि (त्रिसप्तति) अ० ४१७।३ १८६. अ० २५४ तो (ततस ) द० ५।९५. उ० ८।३।६।६०; २३।६१; थलि (स्थलि) उ० ३०।१७ २६:२४. अ० ५५७ थवथुइमंगल (स्तवस्तुतिमङ्गल) उ० २६।१,१५ तोण (तूण) दसा० १०।१४ थामव (स्थामवत्) उ० २१२,२२ तोत्त (तोत्र) उ० १६५६ थारुगिणी (थारुकिनी) नि०६।२६ तोत्तगवेसय (तोत्रगवेषक) उ० ११४० Vथाव (स्थापय्) -थावए उ० २।३२ तोत्तय (तोत्रक) उ० २७१३ थावर (स्थावर) द० ४ सू० ११; ५५; ६।६,२३; तोधि (अवधि) दसा० ५।७।५ १०।४. उ०५८।८।१०; १९८६; २०१३५, तोमर (तोमर) दसा० १०.१४ २५।२२; ३५९,३६६६८,६६,१०६. नं० ८१ तोय (तोय) ५० २४,३१ से ६१,१२३. अ० ७०८ Page #1138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ थासग-दंडारक्खिय थेरकप्प (स्थविरकल्प) प० २८१,२८७ थेरकप्पट्टिति (स्थविरकल्पस्थिति) क०६।२० थेरकप्पिय (स्थविरकल्पिक) ० ५२२१ थेरग (स्थविरक) नि० १४१६,७,१८३८,३६ थेरत्त (स्थविरत्व) व० ३।७,१३ थेर भूमि (स्थविरभूमि) व० १०.१६ थेरभूमिपत्त (स्थविरभूमिप्राप्त) व० ५।१७,१८; थेरय (स्थविरक) दचू० ११६ थेरावलि (स्थविरावलि) ५० १८७,१८८ थेरिया (स्थविरा) प० २५८. नि० १४।६,७; १८। ३८,३६ थेरोवघातिय (स्थविरोपघातिक) दसा० ११३ थोव (स्तोक) द० ५।७८; ८।२६. उ० १०१२; ३२।१००. अ० १३०,१७४,२१६,३९४,४०७, ४१२,४१७. प० ७६,८४ थासग (स्थासक) अनं० १४,१८. अ० ६२. दसा० १०।१४ थिग्गल (दे०) द० ५।१५ थिर (स्थिर) द० ७।३५. उ० ११३०; २६।२४. नं० गा० ७. अ० ४१६. प० २२,२३. नि० ५।६५ से ६७; १४।६।१८१४१ थिरसंघयण (स्थिरसंहनन) दसा० ४।६ थिरीकरण (स्थिरीकरण) उ०२८।३१ थिल्लि (दे०) अ० ३६२. दसा० ६१३ थी (स्त्री) उ०१६।१,३ से ६,११ थीकहा (स्त्रीकथा) उ० १६१२,११ थीणगिद्धि (स्त्यानगद्धि) उ० ३३।५. अ० २८२ थीहु (स्तिभु) उ० ३६।६८ थुइ (स्तुति) उ० २६।४२ थुणित्ताण (स्तुत्वा) उ० २००५८ थूण (स्थूण) नि० १३.६; १४।२८; १६.४६%3; १८॥६० थूणा (स्थूणा) क० ११४७ थूभ (स्तूप) अ० ३६२ थूभमह (स्तूपमह) नि० ८।१४ थूभिंद (स्तूपेन्द्र) नं० ३८।१३ थूल (स्थूल) द० ४ सू० १३,१५; ७।२२ थूलभद्द (स्थूलभद्र) नं० गा० २४ सू० ३८।१२. ५० १७११२ थूलवय (स्थूलवचस्) उ० १११३ थेज्ज (स्थैर्य) ५० २३८. व० ३६ थेर (स्थविर) द०६।४ सू० १ से ३. उ०२७।१. अनं० २० से २२. दसा० १११ से ३; २११ से ३; ३।१ से ३, ४।१ से ३,२३; ५१ से ३; ६।१ से ३,१८,७।१ से ३.३५. प०१८३, १८४,१८६ से २२०,२२२,२२७,२२८,२३८, २५८,२७१. क० ३।१३,२२; ४११६; ५।४०. व०१।१६ से २२; २।२५,२८ से ३०, ३१२, ६४१६ से २३; ५।१७,१८, ६११; ८।१,५; १०।४०. नि० १२।२६; १७।१५१ दइय (दयित) उ० १६०२. नं० गा० २७. प० २६ दइया (दतिका) अ० ३७७ दंड (दण्ड) आ० ४।८. द० ४ सू० १०; ६।२१,२५ उ०५।८।८।१०; १२।१८,१६; १५७; १६। ६१; २०१६०,३११४. अ० ३३१,३८०,३६१, ४००. दसा०६।३।१०।१४. ५० १५. व० १०१२,४ दिंड (दण्डय) -दंडेह दसा० ६।३ दंडक (दण्डक) द०४ सू० २३. नि० २।२५,४॥ २३ दंडगरुय (दंडगुरुक) दसा०६।३ दंडनायग (दण्डनायक) १० ४२ दंडपुरक्खड (दण्डपुरस्कृत) दसा० ६।३ दंडमासि (दण्डमर्षिन) दसा०६।३ दंडय (दण्डक) व० ८।५. नि० ११४०,५।१६ से २२ दंडातिय (दण्डायतिक) दसा० ६।२६ दंडारक्खिय (दण्डारक्षिक) नि० ६।२८ Page #1139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दंडासणिया-दगतीर दंडासणिया (दण्डासनिका) क० ५।२३ ६।१७; १३; १९८४; २२॥२६; २३।३३; दंडि (दण्डिन्) अ० ३३१. दसा० १०।१४ २४१५; २६३६,४७; २८।१ से ३,१०,११,२५, दंत (दन्त) उ० १२।२६. दसा० ७।२३; १०।१४. २६,३५, २६।१,२,१०,१५,५८,६१,७२, ३२१ नि० २।२१, ३।४७ से ४६; ४।८५ से ८७; १०८; ३३६,८,६; ३६१६६,६७ नं० गा० ४, ६३५६ से ५८; ७।४५ से ४.५; १११४२ से ४४; २८,२६; सु० ६५. अ० ५०,२८२,३३६, १५४४ से ४६, १३० से १३२; १७१४६ से ५१४,५४६,५५२,६६८,६६५. दसा० ५।१६; ४८,१०० से १०२ १०१६,१४,३३. ५० १०,२७,६६,७४,८१,८७, दंत (दान्त) द० ११५; ३।१३; ४६; ५।६ ; ६।३; ६६,१०८,११०,११५,१२६,१३०,१६०.१६६. ८।२६६४५. उ० १११५,१६; २।२७; ११॥ क० ११४७ ४; १२१६१; १६।१५; २०१३२,३४,५३; ३४।। दसणमोहणिज्ज (दर्शनमोहनीय) अ० २७६,२८२ २७,२६,३१,३५।२७. दसा० ५।७।४; १०।१४. दंसणसंपन्नया (दर्शनसम्पन्नता) उ० २६।१,६१ प० २१,२२ दंसणसावग (दर्शनश्रावक) दसा० ६८ दंतकम्म (दन्तकर्मन) नि०१२।१७ दंसणसावय (दर्शनश्रावक) दसा० १०।३० दंसकार (दन्तकार) अ० ३६० दसणायार (दर्शनाचार) नं० ८१ दंतपक्खालण (दन्तप्रक्षालन) अ० १६ दंसणावरण (दर्शनावरण) उ० ३३।२, ६. दसा दंतपाय (दन्तपात्र) नि० ११।१ से ३ ५७६ दंतपहोयण (दन्तप्रधावन) द० ३।३ दसणावरणिज्ज (दर्शनावरणीय) उ० २६७२. दंतबंधण (दन्तबन्धन) नि० १११४ से ६ अ० २८४ दंतमल (दन्तमल) नि० १।३०; ३।६८, ४११०६; दंसमसग (दंसमशक) उ० २ सू० ३; गा० १० ६१७७; ७६६; १११६३; १५२६५,१५१, १७। सणि (दर्शनिन) अ० ३३६ ६७,१२१ दंसणिया (दर्शनिका) ५० ६६ दंतमालिया (दन्तमालिका) नि० ७.१ से ३, १७॥ दंसि (दशिन्) उ० ६।१७. दसा० ६।२।२२ ३ से ५ दंसिय (दर्शित) उ० २६।७४. अनं० ८. अ० १६, दंतवण (दे०) द. ३६ ३७,६०,८४,१०६,५६६,६२६,६३८,६५०, दंतवीणिया (दन्तवीनिका) नि० ५।३७,४६. दंतसोहण (दन्तशोधन) द०३।१३. उ० १६।२७ दक्ख (दक्ष) अ० ४१६. दसा० १०॥११. ५० ४२, दंतो? (दन्तोष्ठ) अ० २६६ ७३,११२,१२६,१६५ दंद (द्वन्द्व) अ० ३५०,३५१ दक्ख (दाक्ष्य) उ० १।१३ दंभ (बहुल) (दम्भबहुल) दसा० ६।४ दक्खपतिण्ण (दक्षप्रतिज्ञ) ५० ७३,११२,१२६, दंस (वंश) उ० १५॥४; १६।३१; २१।१८ दक्खवन (द्राक्षावन) अ० ३२४ दस (दर्शय) -दंसिज्जइ अ० ६०६. दक्खिण (दक्षिण) क० १।४७ -दंसिज्जति नं०६६. -दसति दसा० दग (दक) आ० ४१६. द० ५।४५; ८।२,६. ५० ५७।४ २६,२५३. क० १।१६; ५।१२ दंसण (दर्शन) आ० ४।३,८; ५२, ६।११. द०४। दगट्ठाण (दकस्थान) नि० ८।४; १५७० २१,२२,५१७६; ६।१७।४६. उ० २ सू०३; दगतीर (दकतीर) नि० ८।४; १५॥७० Page #1140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ दगपह ( दकपथ ) नि० ८४; १५७० दगभवण ( वकभवन ) ४० ५।१५ दगमग्ग ( दकमार्ग) नि० ८ ४; १५७० दगमट्टिया ( दकमृत्तिका) द० ५१३, २६. दसा० २।३. क० ४।३१ से ३४. नि० ७३५; १३० १४१ २७ १६४ १८५६ - दट्ठ (दृष्ट्वा ) उ० १।१२ दट्ठ (द्रष्टुम् ) उ० ३२।१४ दट्ठूण ( दृष्ट्वा ) उ० १४१४. बसा० ६।१८.५० ३५ दगमट्टी ( वकमृत्तिका) आ० ४/४ दगर (वकरजस्) प० २१,२३,२६,२०. ० ५।१२ दम (दम) ४० १८/४३ १६/४२, १३. ०गा० १० प० २२२ दगलेव ( बकलेप) दसा० २१३ दगवीणिया (दे० ) नि० १।१२; २।११ दच्चा ( दत्वा ) उ० 1३८ दच्छ (दश) दच्छसि द० २६ दट्ठव्य (द्रष्टव्य) दचू० २४ १० १४३ दट्ठ (वृष्ट्वा उ० १४॥७ दट्टू (बुवा) ० ५०२१. ४० १३।२८ दढ (वध) उ० १९५०, ५७. बसा० ५७ १५ द (बुड) उ० ११।१७ १७१२; १८५१ २७१६ २६।३२ नं० ना० १२. अ० ४१६. दसा० ६। २३६ दधम्म (बुद्धधर्म) उ० ३४१२८ ० १०।१४ दढम्वय (बुडवत ) उ० २२।४७ दण्ड ( ) अ० २६९ दण्डाग्रम् ( ) अ० २६६ दत ( दक) प० २५३ दतर ( बकरजस्) प० २५३ दत्त (दत्त) उ० १३२; ७।५ दत्ति (इति) बसा० ७1५, २६. १०२५०. ०९। ४२, ४३; १०३, ५. मि० १६/५ दद्दर (दे० वबंर ) प० ६२ दधि ( दधीदम् ( दन्त ( दन्तोष्ठम् ( दप्प (दर्प) उ० १६६ दप्पण ( दर्पण) प० २६ दप्पणय (दर्पणक) दसा० १०।१४ ) अ० २६९ ') अ० २६६ ) अ० ३५१ ) अ० ३५१ दप्पणिज्ज ( दर्पणीय) दसा० १०।११. ५० ४२ दमकम्मत ( दर्भकर्मान्ति) दसा० १०३ दम्भवत्तिय (दर्भप्रतीत) दसा० ६१३ दमहत्ता (दमयित्वा ) ०५।१२ दमगमत्त (दे०) नि० ६/६ दमणवच्च (दमनकवच) नि० ३७७ दमणय ( दमनक ) प० २५ दगपह-दल दमय (दे० ) ० ७ १४ दमिय ( दमित) उ० ३२।१२ दमिली ( द्रविडी ) नि० ६२६ दमीसर (दमीश्वर ) ० १९२२२०४,२५ दमेव्व ( दमितव्य ) उ० १।१५ दम्म (दम्य ) ६० ७१२४ दम्मंत (दम्यमान ) उ० १।१६ दया (दया) २० ४।१०९।१३. ० ५।३०; १८ ३५ २०४६ २१।१३ २६।३४ ३५।१०. नं० गा० १४,३७ दयाहिगार (दाधिकारिन् ) ६० ८१३ दरिकुल ( दरिद्रकुल) बसा० १०३२. ०११, १२,१४ दरिमह ( दरिमह ) नि०८।१४ दरिसण (दर्शन) उ० १६।१११२७ दरिसणावरण ( दर्शनावरण) अ० २८२. दरिसणावर णिज्ज ( दर्शनावरणीय) अ० २८२ दरिसणिज्ज (दर्शीय) दा० १० १४ दरिसनिय (दर्शनीय) बसा० ७।३१ दरी (दरी) दसा० ७१२० दन (बा) - दलामि उ० २२६ १२।१२. दलाहि द० ५७८ ३० ६१६ दलाह उ० - लेज्ज Page #1141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दलइत्तए-दसवासपरियाय १४७ दलइत्तए (दातुम्) व० ७१६ दव्वओ (द्रव्यतस्) उ० २४१६,७; ३०११४; ३६॥३. दलमाण (ददत) दसा० ७१५. प० ६५. क० ४।३, नं० २२,२५,३३,५४,६६,१२७. अ०४५७, १२.१३; श६ से ६. व० १०॥३ ४६०.५०७६ v दलय (दा) -दलएज्जा व० ६।४२..-दलयइ दव्वजाय (द्रव्यजात) उ० २६॥६. अ० ५५७. दसा० ३।३. ५०१५. व० ४।२४. -दलयंति नि० १०१३३ दसा० १०१२५. -दलयति दसा० ७१५. दवट्ठ (द्रव्यार्थ) अ० १३०,१७४ -दलयह दसा० ६।१८. --दलयामि नि० दव्वट्ठया (द्रव्यार्थ) अ० १३०,१७४ ६।५. –दलयाहि नि० ६।४ दव्वपमाण (द्रव्यप्रमाण) अ० १२१,१३८,१६५, दलयित्ता (दत्वा) दसा० १०१७. १० १५ दलित्तु (दलित्वा) उ० १४॥३६ दवी (दवा) द० २३२,३५,३६. दसा० २।३. दव (दव) उ० १७१८ नि० ४।३७; १२।१५,१६ दवकर (द्रवकर) बसा० १०।१४ दव्वुज्जोय (द्रव्योद्योत) ५०८८ दवग्गि (दवाग्नि) उ० १४।४२; १९५०; ३२।११ दस (दशन्) द०६।७. उ० १६ सू० १. नं० ३२. दवदव (द्रवद्रव) २० ५।१४ अ० १५६. दसा० २।३. ५० ५. व० ४।१७. दवदवचारि (द्रवद्रवचारिन्) दसा० ११३ नि०६।२० दवावेत्तए (दापयितुम्) क० ४।२७ दसंग (दशाङ्ग) उ० ३।१६ दवावेमाण (दापयत्) ५० ६५ दसकोडिसय (दशकोटिशत) अ० २३१ से २३३ दविण (द्रविण) ५० १२७ दसकोडी (दशकोटी) अ० २३१ दविय (विक) प०.६७ दसगाम (दशग्राम) अ० ३५४ दव्व (द्रव्य) उ०१८।१६; २२१४५,२८।५,६,८,९, दसगुण (दशगुण) अ० २६३ २४; ३०।१५,२४. नं० १८१७,२२,३३,५४, दसण (उप्पाडिय) (दशनोत्पाटित) दसा० ६।३ १२७. अनं. १,५ से २२,२८. अ० १,१२ से दसण्ण (दशार्ण) उ०१३।६।१८।४४ २१,२६,३३ से ३६,४५,५२,५६ से ६६,६६, दसण्णभद्द (दशार्णभद्र) उ० १८१४४ ७६,८० से ८७,६० से ६२,१०१,१०५ से दसदसमिया (दशदशकिका) व०६।३८ १११,११४,१२०,१२२ से १३१,१३७,१३६ से दसनालिया (दशनालिका) अ० ३८० १४७,१५१,१५४,१६१,१६३,१६४,१६६ से दसपएसिय (दशप्रदेशिक) अ० ६४,६८,११५,१३२, १७५,२०२,२०४ से २०५,२०७ से २०६, १५२,१५३,३७१ २११ से २१३,२४७,२५४ से २५६,२७६, दसपुर (दशपुर) अ० ३५४ । ३२८,३२६,३३२,३३८,३४८,३६६,३७०, दसपुव्वि (दशपूविन्) अ० २२५ ३७६,३८१,३८३,३८५,४४० से ४४५,५५२, दसम (दशम) उ० १६ सू० १२; २६।४. नं० ६०. ५५७,५५८,५६२ से ५६८,६११ से ६१४, दसा० ६।४.५० १३६ से १४३ ६१७,६२०,६२२ से ६२८,६३२,६३४ से ६४० । दसमा (दशमी) दसा० ६।१७ ६४४,६४६ से ६५२,६६४,६७०,६७२ से दसमी (दशमी) ५० ७४,८१,१११. ३० १०१३ ६७८,६६०,६६७,६६६ से ७०५. दसा० ६।३; दसरायकप्प (दशरात्रकल्प) नि० २।५० १०।१६. ५०७६ दसवासपरियाय (दशवर्षपर्याय) व० १०।२६ Page #1142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ दसविह-दारुण दसविह (दशविध) आ० ४।३,८; ५।२. उ० ३०। दाउं (दातुम) क० ४।१४. व० २।२८ ३१,३३; ३१।१०. अ० १०१,२३६,२४६, दाढा (दंष्ट्रा) दच० १११२. उ०११०२०. अ० ३१६,४४३. व० १०।४० __५२५. १० २३ दसवेकालिय (दशवैकालिक) नं० ७७ दाढि (दंष्ट्रिन) अ० ३२७ दसवेयालिय (दशवकालिक) जोनं० ८ दाण (दान) द. १।३;५।४७. उ० २२।३६३३। दससमयदिईय (दशसमयस्थितिक) अ० २००, १५. दसा० १०७. प०७४ २२३,४१४ दाणंतराय (दानान्तराय) अ० २८२ दससयसहस्स (दशशतसहस्र) अ० २३१,३८२ दाणलद्धि (दानलब्धि) अ० २८५ दससहस्स (दशसहस्र) अ० २३१,३८२ दाणव (दानव) उ०१६।१६; २३।२० दसहा (दशधा) उ०२३१३६; ३६।४,६,१०,२०५ दाणिमि इदानीम् ) उ० १३।२० दसा (दशा) आ० ४१८. उ० ३१११७. नं० ७८. दाम (दामन्) प० ४,२०,२५,३२ __ जोनं० ८. व. १०।२७ दाय (दर्शय) -दाएति अ० ३११ दसाकप्पववहारधर (दशाकल्पव्यवहारधर) व० ३३५ दाय (दाय) दसा० १०॥२४.५० ६५,७४,१२६, दसार (दसार) उ० २२।११,२७ १६५ दसारगंडिया (दसारकण्डिका) नं० १२१ दायग (दायक) द०५।११२ दसाहिया (दशाहिका) प० ६५ दायण (दान) उ० ३०१३२ दसुय (दस्यु) उ० १०।१६ .. दायव्व (दातव्य) दचू० २।२ दसुयाययण (दस्यु-आयतन) नि० १६।२७ दायाय (दायाद) प०७४ दह (द्रह) नं० ८३. अ० १८५,३६२,५३१,५३५ दायार (दात) ५० ७४ दिह (दह.) -दहे द०६।३३ दायि (दायिन्) अ० ४६० दहमह (द्रहमह) नि० ८।१४ दार (द्वार) द० ५१५,१०६. उ०१६६३;२०॥ दहि (दधि) उ० १७.१५; ३०१२५. प० २३६. ४५; २६।१४. अ० २१७,३६२,४१०,७१३ क०२१८. नि० ६७६८।१७ दार (दार) आ० ४।६. दचू० ११८. उ० १४।३७; दा (दा) -दए द० ५।६१. उ०६।४०. १८।१४,१६, १६।१६,८७. दसा० ६।२।१०. ~दाहामि उ० २५॥६. –दाहामु उ० १२। नि० ८।३; १५६६ ११. -दाहिई उ० २७।१२. -दाहित्थ उ० दारग (दारक) द०५।२२,४२. उ०१४१५३; २१॥ १२।१७. --दितु आ० २।६. --दिज्जाहि उ० ४. दसा० ७३५. ५० ५२,६६. व० १०१३ २०१२४. -देइ उ० १६१७६. क० २।२४. दारय (दारक) अ० ४१७. दसा० १०॥२४ से ३३. -देई अ० ३०२. -देज्ज द० ५।१३७. प०६,३८,४७,५२,५३,५६,६६,१११,१२८, -देज्जा द० ५।४६. उ० ७.१. –देति निक १।४७. -देहि व०२।२८ दारियत्त (दारिकात्व) दसा० १०।२५,२६ दाइज्जमाण (ददत्) प०७५ दारिया (दारिका) दसा० १०॥२५.२६ दाइय (दशित) द० ५।१३१ दारु (दारु) दसा० २।३ दाइय (दायिक) प०७४,११३,१२६,१६५ दारुण (दारुण) द० ८।२६६।३१. उ० २।२५; दाउ (दातृ) उ० १३।२५ ६७; १६॥३३; २०।२१ Page #1143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दारुदंड-दिणयर दारुदंड (दारुदण्ड) नि० ५।२५ से ३३ दिगु (द्विगु) अ० ३५४ दारुदंडय (दारुदण्डक) क० ५।३४,३५. नि० २।१ दिच्छ (दश) --दिच्छसि उ० २२१४४ दिज्जमान (दीयमान) द० ५।३५ से ३८. उ० दारुपाय (दारुपात्र) नि० १।३६; २।२४; १६५ १२।१२. दसा० २।३. नि०३१६ से १२,१५; दारुय (दारुक) दसा० १०११४. नि० ७७५; १३॥ ११८, १४।१ से ४; १८।३४ से ३६ ८; १४।२७; १६१४८; १८।५६ दिट्ठ (दृष्ट) ८० ५।६६; ६।६, ५१; ८।२०; Vदाव (दापय)-दावए द० ५८०. क० २।१८.. २१, ४८. उ० ५।५; १२१४७; १५।१०। व०६।१. -दावे प० २३३ १९६६; २२॥३४; २८।१८,२३. नं० ३८८, दाव (दर्शय) --दावए व०८।१३ १२७. दसा० १०१२२, २३.५० ६३८, ४७. दाव (दे०) ५० २३३,२३५ ४६ नि० १२।३०; १७४१५२ दावय (दायक) द० ५।४६,६७ दिळंत (दष्टान्त) नं० ३८.१०, ५१ से ५३. दावित्तए (दातुम्) प० २३३ अनं० ८, ६. अ० १६, १७, ३७, ३८, ६०, दास (दास) उ०१।३६ ; ३।१७; ६।५, ८।१८; ६१, ८४, ८५, १०६, ११०, ४३६, ५५४ से १३।६. अनं० १२,१४,१६,१८. अ० ५५७, ५५७, ५६६, ५.६७, ५८६, ६२६, ६२७, ६५४,६५६,६५८,६६०,६८०.६८२,६८४, ६३८, ६३६, ६५०, ६५१, ६७६, ६७७, ६८६. दसा० ६।३।१०।२४ से ३२. व० ६५ ७०३, ७०४ से ८ दिट्ठपुव्वग (दृष्टपूर्वक) दसा० ४।१७ दासवाय (दासवाद) क० ६।२ दिट्ठपुव्वगता (दृष्टपूर्वकता) दसा० ४।१७ दासी (दासी) अनं० १२,१४,१६,१८. अ०६५४, १४ दिट्ठसाहम्मव (दृष्टसाधर्म्यवत्) अ० ५१६, ५२७, ६५६,६५८,६६०,६८०,६८२,६८४,६८६. ५२६ दसा० ६।३; १०।२४ से ३२ दिट्टि (दृष्टि) आ० ४।५, ६, ५॥३. द० ८।५४. दासीखब्बडिया (दासीकर्बटिका) प० १६० उ० ८१७; १८।३३; १६६. अ० ४२४, दाह (दाह) उ० २०१६ ४३१,४३८. दसा० ६।३, ७, ७।३३. ५० ५४ दिट्ठिवाओवएस (दृष्टिवादोपदेश) नं० ६१,६४ दाहिण (दक्षिण) दसा० १०।१६. प० १०,७५ दिट्ठिवाय (दृष्टिवाद) व० ८।४६. उ० २८।२३. दाहिणओ (दक्षिणतस् ) द० ६।३३ मं०६५,७२,८०,६२,१२३. अनं० २८. जोगं० दाहिणगामि (दक्षिणगामिन) दसा०६।६ ८. अ० ५०,४४०,५४६. व. १०॥३८. नि० दाहिणड्ढभरह (दक्षिणाधभरत)अ० ५५६. ५० १० । दाहिणड्ढलोगाहिवइ (दक्षिणार्धलोकाधिपति) ५० १९१० दिट्ठिवायधर (दृष्टिवादधर) अ० २८५ दाहिणद्धभरह (दक्षिणार्धभरत) प० २ दिट्ठिवायसुय (दृष्टिवादश्रुत) अ० ५७०,५७२ दाहिणभाव (दक्षिणभाव) उ० २६।११ दिट्ठिविसभावणा (दृष्टिविषभावना) जोनं०६ दाहिणाभिमुह (दक्षिणाभिमुख) दसा० ७.२० दिट्ठीय (दष्टिक) अ० ३१८।१२ दिउ (द्विगु) अ० ३५० दिट्ठीविसभावणा (दृष्टिविषभावना) व० १०।३७ दिगिछा (दे० क्षुधा) उ० २ सू० ३ गा० २. दसा. दिण (दिन) उ० २६।११ १०।२४ से ३३ दिणयर (विनकर) अ० १६,२०. सा० ७।२०. Page #1144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० दिण्ण-दीवयंत ३८ ५०४,२०,४२ ६।२१. उ० १२१३६; १४।६; १५।१४; दिण्ण (दत्त) प० ६२ १८।२५,२८, २१।१६; २२१६,१२; २५।२५; दित्त (दप्त) द. ५।१२. उ०३२।१० २६।३; ३११५. नं०६०. दसा० ५७; ७।४, दित्त (दीप्त) उM२२१६; १६।३६. नं० गा० २६ से २८,३१ से ३३,१०॥४,१४,२८ से ३२. १०,१४. दसा० १०.१५. प० २७,४२ प० ६,१५,३२,७७,११४. व० १०१२,४ दित्तचित्त (दप्तचित्त) क० ६।११. व० २०१० दिव्विय (दिव्यक) उ० ७:१२ दित्ततेय (दीप्ततेजस्) ५० ७८ इदिस (दिश)--दिसंतु आ० २१७ दिनसिर (दीप्तशिरस) दसा. १०।११५० ४२ दिसा (दिशा) उ० ३।१३, ६।१२; ७।१०; दित्तिकर (दृप्तिकर) उ० ३२।१० १६।८२; २७।१४; ३३।१८; ३६।२०६. दसा दिन्न (दत्त) द० ५।११३. उ० ६७; १२।२१ १०॥४. प० २८५. व. २२० से २२; २।२६; दिप्प (दीप) --दिप्पा अ०६४३.----दिप्पंति अ० ४।११,१२,५।११,१२; ६।१०,११,७।१ से ६४३-दिप्पेज्जा, क० २१७ ३,६ से ११. नि० १०१११,१२ दिप्पंत (दीप्यमान) उ० ३।१४. नं० गा० १७. दिमाकुमार (दिशाकुमार) अ० २५४ प० ३२,४२ दिसाग (दिशाक) नं० १८१२ दिप्पमाण (दीप्यमान) दसा० १०।१५. ५० २६, . दिसादाह (दिशादाह) अ० २८७ दिसामोह (दिशामोह) आO ६।२,३ दिय (द्विज) उ० १४१४२,४४, २५७,१३,३३, दिसाविचारि (दिशाविचारिन) उ० ३६०२०८ दिसी (दिश) उ० २७।१४ दिया (दिवा) द० ४ सू० १८ से ३३; ६।२४. उ० दिसीभाग (दिग्भाग) दसा० ५।५. ५० १५ २६३१. दसा० ६।१२. व० ६।४०,४१. नि० दिसीभाय (दिग्भाग) प० ४२ १११७५ से ७८ दिस्स (दष्ट्वा ) ८० ७.५३. उ. ६।६ दियाभोयण (दिवाभोजन) नि० १११७३ दिस्स (दृष्ट्वा ) उ० २३।१६ दिव (दिव) उ० ५।२२ दीण (दीन) उ० ३२।१०३. ५० ५४ दिवड्ड (यार्ध, द्वयपार्ध) नि० ११४६, ५४; दीव (द्वीप) आ० ४१६; ६।११. उ० २३१६५,६७, २१७; २०।३० से ३५ ६८,३६।२०६. नं० गा० २७, सू० १८१६, दिवड्ढमासिय (यपार्धमासिक) नि० २०३६ २५. अ० ४१०,४२५,४२६,५५६,५८६,६१५. दिवस (दिवस) आ० ३।१. उ० २४।५, २६।११; दसा० ५.७; ६।२।२७. प० २,९,१०,१३, ३०१२०. नं० १८१४. अ० ४१५. ५० ५६,६४, १५,१०१,१०६,१२७,१६१,१७६ ६६,७४,८१,८४,११३,१३०,१३५,२४०,२५०. दीव (दीप) उ०४।५. अ० ६४३ व० ३९१०।३७ -दीव (दीपय)-दीवए उ० ३५।१२ दिवसंत (दिवसान्त) नं० १८।४ -दीवेंत्ति अ० ६४३ दिवसचरिम (दिवसचरम) आ० ६१८ दीव कुमार (द्वीपकुमार) अ० २५४ दिवा (दिवा) नि० १२।३३ से ३५ दीवणिज्ज (दीपनीय) प० ४२ दिवायर (दिवाकर) उ० ११।२४ दीवपण्णत्ति (द्वीपप्रज्ञप्ति) जोनं ६ दिव्व (दिव्य) द. ४ सू० १४, गा० १६,१७, दीवयंत (दीपयत्) ५० २२,२६ Page #1145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीवसागरपण्णत्ति-दुगुण दीवसागरपण्णति (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति) नं०७८ दीविय (द्वीपिक) दसा० ७।२४ दीवियग्गह (द्वीपिकग्रह) नि० ६।२७ दीवेत्ता (दीपयित्वा) क० ४।२२ दीस (दश)-दिस्सई उ०१०।३१--दीसइ उ०१०११७५० १०७-दीसंति, द० ६।२२ उ० १९७३ दीस (दृश्यमान) द० ५।१२८ दीह (दीर्घ) द०६।६४७१३१. उ० ६।१२; १४१७; २६।२३; ३२।११०. नं० गा० ७, सू० ३८१७. नि० ३।४१ से ४६; ५६ से ५८,६५, ६६; ४७६ से ८४,६४ से ६६,१०३,१०४; ५१३,२४; ६।५० से ५५,६५ से ६७,७४, ७५; ७।३६ से ४४,५४ से ५६,६३,६४; १११३६ से ४१,५१ से ५३,६०,६१; १५।३८ से ४३,५३ से ५५,६२,६३,१२४ से १२६, १३६ से १४१,१४८,१४६; १७१४० से ४५, ५५ से ५७,६४,६५,६४ से ६६,१०६ से १११,११८,११६ दीहकालिय (दीर्घकालिक) उ०१६ सू० ३ से १२ दसा० ७१३४ दीहभद्द (दीर्घमद्र) ५० १६१ दीहपट्ठ (दीर्घपृष्ठ) व० ५।२१ दीहाउ (दीर्घायुस्) ५० ६।४७ दीहाउय (दीर्घायुष्क) उ०५।२७. ५० ३८ दीहिया (दोधिका) अ० ३६२. नि० १२।१८; १७११४० . दु (द्वि) द० ४।१४. उ० ४।२. नं० ७. अ० १५०. क० २।४. व० २।२७ दुंदुभि (दुन्दुमि) प० ७५ दुंदुहि (दुन्दुभि) उ० १२।३६. अ० ५६६. दसा १०।१७.१० ३२,६४ दुक्कड (दुष्कृत) आ० ३।१; ४।३ से ८,५२२. उ० १।२८. नं. ६१. दसा० ६॥३,७ दुक्कर (दुष्कर) व० ३।१४. उ० २।२८; १६।१६; १६।२५ से २७,३७,३६,४१,४२,५२; ३५।५ दुक्कुल (दुष्कुल) नं० ६१ दुक्ख (दुःख) आ० ४।६. द० २।५; ३।१३; ८।२७; १०।११; चू० १ सू० १, गा० ११,१६. उ० २।३२; ५।२५; ६।१,८,११; ८।१,८,१३१३, १४,२३; १४।१३,३२,३३,५१,५२; १६४१०, १२,१५,३२,३३,४०,४५,६१,७३,७५,८५, ६०,६८; २०।२३ से २७,३०; २३८०; २६।१,१०,२१,३८,४१,४६,४६; २८।३६ २६।१,४,२६,३७,४२,४५,५६,६२,७४; ३२।१,७,८,१६,२५,२६,३०,३२ से ३४,३८, ३६,४३,४५ से ४७,५१,५२,५६,५८ से ६०, ६४,६५,६६,७१ से ७३,७७,७८,८२,८४ से ८६,६०,६१,६५,६७ से १००,१०५,१११; ३५।१,२०. अ० ३८२,७०८. दसा० ५७।३; ६।३,६; १०१२४ से ३३. प० ४०,८०,८४ से ८६,६२,१०३,१०६,१०७,१२४,१२५,१३८ से १५६,१८०,१८१,१८४,२८७ Vदुक्ख (दुक्ख)-दुक्खेति दसा०६३ दुक्खम (दुःक्षम) उ० २०१३१ दुक्खसह (दुःखसह) द० ८।६३ दुक्खसेज्जा (दुःखशय्या) उ० १६३१ दुक्खिय (दुःखित) उ० ३।६।१८।१५ दुक्खुत्तो (द्विस्) क० ४।२६,३०. नि०६।२०; १२।४३ दुखुर (द्विखुर) उ० ३६।१८० दुग (द्विक) अ० २८६,२६० दुगंछिय (जुगुप्सित) आ० ४।६।२ दुगुंछणा (जुगुप्सना) उ० २०।४० दुगुंछणिज्ज (जुगुप्सनीय) उ० १३।१६ दुगुंछमाण (जुगुप्समान) उ० ४।१३ दुगुंछा (जुगुप्सा) उ० ३२११०२ दुगुंछियकुल (जुगुप्सितकुल) नि० १६।२८ से ३३ दुगंध (दुर्गन्ध) ३० ॥१०१ दुगुण (द्विगुण) नं० ६४ से १००. अ० २६३,४०४ Page #1146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ . दुगुल्ल-दुन्भिगंध. दुगुल्ल (दुकूल) दसा० १०।१२.१० २०. नि. दुम्नामधेज्ज (दुर्नामधेय) दचू० १।१३ ७।१० से १२; १७।१२ से १४ दुन्निरिक्ख (दुनिरीक्ष्य) ५० २७ दुग्ग (दुर्ग) दसा० ६।५,६; ७।२०. क० ६७ दुपएसिय (द्विप्रदेशिक) अ० ६४,६८,११५,११६, दुग्गइ (दुर्गति) द० ५।११; ६।२८,३१,३५,३६, १३२,१३६,१५२,१५३,२५४,२८७,३७१, ४२,४५. उ० ३४।५६; ३६।२५६ ४४४ दुग्गंधि (दुर्गन्धि) अ० ३१५।२ दुपय (द्विपद) उ० १३।२४; २६।१३. अ० ८७, दुग्गय (दुर्गव) द० ६।३६ ८८,३२७,५२५,६५४,६५८,६८०,६८४. दसा० दुच्च (द्वितीय) उ० २६१३४ ७५ दुच्चय (दुस्त्यज) उ० १४१४६ दुपरिचय (दुष्परित्यज) दसा० ६।३ दुच्चर (दुश्चर) द. ६।५. उ० १६।२४,३८ दुप्प उत्त (दुष्प्रयुक्त) दचू० २।१४ दुच्चिण्ण (दुश्चीर्ण) दचू० १ ० १. दसा०६॥ दुप्पजीवि (दुष्प्रजोविन्) दचू० १ सू० १ ३,७ दुप्पट्ठिय (दुष्प्रस्थित) उ० २०३७ दुच्चिण्णफल (दुश्चीर्णफल) दसा० ६।३,७ दुप्पडिक्कंत (दुष्प्रतिकान्त) दचू० १ सू० १ दुज्जय (दुर्जय) उ० ६।३४,३६; १३।२७; १६।१३, दुप्पडिग्गह (दुष्प्रतिग्रह) नं० १०२ दुप्पडियानंद (दुष्प्रत्यानन्द) दसा० ६।३ दुज्झ (दोह्य) द० ७५२४ दुप्पडिलेहग (दुष्प्रतिलेख्यक) द० ५।२०, ६।५५ दुज्झाय (दुर्व्यात) आ० ४।३, ५२ दुप्पडिलेहणा (दुष्प्रतिलेखना, दुष्प्रत्युपेक्षणा) आ० दुट्ट (दुष्ट) द० ७।५५,५६. उ० २३।५५,५८%; २७। ४७ १५. दसा०४।१८, ७।२४;६२।२३. क०४। दुप्पधसय (दुष्प्रधषक) उ०६।२० २८ दुप्पमज्जणा (दुष्प्रमार्जना) आ० ४७ दुट्ठवाइ (दुष्टवादिन्) उ० ३४।२६ दुप्पमज्जियचारि (दुष्प्रमाजितचारिन्) दसा० १।३ दुटपडिच्छिय (दुष्टुप्रतीच्छित) आ० ४८ दुप्पयार (दुष्प्रचार) ५०२७ दुण्णिक्खित्त (दुनिक्षिप्त) नि० १३।६ से ११; दुप्परिच्चय (दुष्परित्यज्य) उ० ८।६ १४।२८ से ३०; १६०४८ से ५१; १८।६० से . दुप्पहंसय (दुष्प्रधर्षक) उ० ११।२०,३१ ६२ दुप्पूरय (दुष्पूरक) उ० ८।१६ दुत (द्रत) अ० ३०७।१२ दुबुद्धि (दुर्बुद्धि) द० ६।३६ दुत्तर (दुस्तर) उ० १६॥३६; ३२।१७ दुब्बद्ध (दुर्बद्ध) नि० १३।६ से ११; १४।२८ से दुत्तोसय (दुष्तोषक) द० ५।१३२ ३०; १६।४६ से ५१; १८।६० से ६२ दुईत (दुर्दान्त) उ० २७१७; ३२।२५,३८,५१,६४, दुब्बल (दुर्बल) उ० २७१८. प० २८५. क० ३। ७७,९० २२,४१२८ दुईसण (दुर्दर्शन) अ० ३१५ दुब्बलय (दुर्बलक) अ० ३१७।२ दुद्दम (दुर्दम) उ० १११५ दुभि (दुर्) उ० ३६।२८. नि० २।४२ दुद्ध (दुग्ध) उ० १७१५ दुभिक्ख (दुर्भिक्ष) अ० ५३६ दुद्धर (दुधर) बसा० ४।११ दुभिक्खभत्त (दुभिक्षभक्त) नि०६६ दुरिस (दुर्धर्ष) नंगा०६. प०७८ दुब्भिगध (दुर्गन्ध) उ० ३६।१७. अ० २५६,२६३, Page #1147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुभूय-दुविह ५१०. दसा० ६।५. नि० १४।१६ से १६; १८४८ से ५१ दुब्भूय (दुर्भूत) उ० १७ १७ दुभागपत (द्विभागप्राप्त) व०८।१७ दुम (ब्रम) ० १ २ ६ १८. उ० १० ११ ११।२७; १३।३१; १९६६; २०१३ ; ३२।१० अ० २६४। ४ दुमपत्तय (द्र मपत्रक) उ० १० दुमपुफिया ( मपुष्पिका) द० १ दुम्मइ (दुमंति) द० ५।१३६ दुम्मण (दुर्मनस् ) दसा० ६ । ३. ५० २६ दुम्मणिय ( दौर्मनस्य) द० ६१४८ दुम्मुह (द्विमुख) उ०१८।४५ दुमेह (दुर्मेधस् ) उ० ७ १३; २५/४१ दुय (ब्रत) उ० १८ ९; २२।१४. अ० ३०७५ दुय ( द्विक) उ० ३१।६ दुयावत्त (द्वयावत्तं द्विकावर्त) नं० १०२ दुयाह ( द्वाह) दसा० ६।१२ से १८ व०८।२ से ४ दुरंत ( दुरन्त) उ० १०१६; ३२ ३१,४४,५७,७०, ८३, ६६ दुरणणेय ( दुरनुनेय) दसा० ६१३ दुरणुपालय ( दुरनुपालक ) उ० २३।२७ दुरप्प (दुरात्मन्) उ० २०१४८ दुरहिट्टिय ( दुरधिष्ठित) द० ६ १४, १५ दुरहियास ( दुरध्यास, दुरधिसह ) दसा० ६।५ दुराराहय ( बुराराधक) प० १२,२७८ दुरारुह (दुरारोह) उ० २३।८१,८४ दुरासय (दुरासद) द० २।६. उ० ११।३१ दुरासय (दुराश्रय) द० ६।३२ दुरासय ( दुराशय) उ० १।१३ दुरुत्त ( दुरुक्त) द० ६४७ दुरुत्तर ( दुरुत्तर) व० ६ । ६५; ६ | ४०. उ० ५। १ दुरुद्धर (दुद्धर) द० ६/४७ दुरुय (दे०) वसा० १०।२८ से ३२ १५३ / दुरुह ( आ + रुह ) – दुरुहति नि० १२ १०. - दुरुहेइ प० ३६ दुरुहंत (आरोहत् ) नि० १२ १०; १८ । १ से ५,१० से १२ दुरुत्ता (आवा) प० ३९ दुरूढ ( आरूढ ) दसा० १०।१३ से १५ दुरूहमाण ( आरोहत् ) द० ५।६८ दुलभबोहिय ( दुर्लभबोधिक) दसा० १०।२५ दुलह (दुर्लभ) ६० ४/२६, २८. उ०१० ४ दुल्लभ (दुर्लभ) दचू० १ सू० १ दुल्लभबोधित (दुर्लभ बोधिक) दसा० ६।६ दुल्लभबोहिय ( बुर्लभबोधिक) दसा० १०।२६ दुल्लह (दुर्लभ) द० ५।१०० उ० ३।१८ से १०, २०; ७ १८; १०।१६ से १६; ३६ । २५७, २५६. नं० ६१ दुल्लहबोधिय (दुर्लभबोधिक) दसा० १० २४,२७, २८ दुल्लहबोहियत्त (दुर्लभबोधिकत्व) उ० २६५८ दुल्लहय ( दुर्लभक) उ० १० २० दुव (द्वि) उ० ८२० नं० ११८. दसा० ६।१७ दुवालस ( द्वादशन् ) अ० ३९० प० ७७ दुवालसंग ( द्वादशाङ्ग) उ० २४।३. नं० ६५,६६, ६८,१२४ से १२६. अ० ५०, ५४६. प० १८४ दुवाल संसि ( द्वादशास्त्रिक) अ० ४०८ दुवालसविह ( द्वादशविध ) नं० ८०,८४ दुवासपरियाय (द्विवर्षपर्याय) प० १३७ दुविह (द्विविध) उ० ७११८; २१।२४; २३।२४, ३०; २४ । १३; २८ ३४, ३०१७, ६, १२,३७; ३३७,८,१०,१३,१४, ३६४,१७,४८,६८,७०, ७१,८४,६२, ६३, १०८, ११७,१२७.१३६, १४५, १७०,१७१, १७६, १८१, १६५, २०५, २०६,२१२, २४८. नं० २,४,७,१०,२४,२६ से ३०, ३४, ३७,४०,७३,७४,७६. अनं० ५. अ० १२,२२, ३३,४६,४८,५६,७०, ८०, ८७, ६५, ६७, १०५, १११,११३,१५५,१५७, १६६, १६८, २४८, २५१, २५४,२५६, २७२,२७४, २७७, २८०, २८३, Page #1148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६,३३५,३७०,३७३,३८६,३६६,४०२ से. ४०४,४१३,४१८,४२०,४२७,४३४,४४१, ४४२,४५७ से ४६४,४६७,४६८,४७१,४७२, ४४६,४७७,४८२,४८७,४६० से ४६२,४६५, . .४९६,४९६,५०३,५०७,५१०,५१६,५२७, ५३८,५४७,५५३,५५६,५६२,५६८,५७०, ५८३,६०६,६१४ से ६१७,६२२,६२६,६३४. ६४१,६४६ ६६५,६६७,६७२,६६१,६६३, ६६६,७०६,७१०.५०१०५,१२३,१३७,१७६. प०६।४६ दुवियड्ढ (दुर्विदग्ध) नं० १ दुव्वय (दुर्वत) वसा० ६।३ दुव्वह (दुर्वह) उ० १६।३५ दुव्वाइ (दुर्वादिन) द० ६।२० दुन्विचितिय (विचिन्तित) आ० ४।३; ५२ दुव्विसह (दुर्विषह) उ० २१।१७ दुन्विसोज्झ (दुर्विशोध्य) उ० २३।२७ दुन्वियि (दुर्विहित) वचू० १३१२ दुसंगहिय (द्विसंगृहीत) व० ३।११ दुसमयट्रिइय (द्विसमयस्थितिक) उ० २६७२ दुसमयट्टिईय (द्विसमयस्थितिक) अ० २००,२०४, २२३,४१४ दुसमसुसमा (दुष्षमसुषमा) १० १०६ दुस्संचार (दुःसञ्चार) दसा० १०१२७ दुस्समसुसमा (दुष्षमसुषमा) प० २ दुस्सन्नप्प (दुःसंज्ञाप्य) क० ४६ दुस्समा (दुष्षमा) दचू० १ सू० १ दुस्समुक्किट्ठ (दुष्षमुस्कर्षित) व० ४।१३,१४; ५॥ दुवियड्ढ-दूर चू० २।१६. उ० २।३२; १८१७; १९७१; २०१२५,३७; २८।१०; ३२।३३,४६,५६,७२, ८५,६८,११०. नं०६१ दुहओ (द्विधा) द० ६।३८. उ० ५।१०,२३; ७।१७; ६।५४; ११।१५; १३।१८; १४१२६; १७।२१, २००४६ दसा० १०॥२४. क० ११३७, २।१७; ३।३३. व० ८।१२ दुहओ (द्विधातस) उ० २४।१४ दुहजीवि (दुःखजीविन्) अ० ३०२॥५ दुहण (द्रघण) अ० ४१६ दुहय (दुर्भग) द० ७।१४ । दुहविवाग (दुःखविपाक) नं० ६१ दुहा (द्विधा) उ० ३६७०,८४,६२,१०८,११७ दुहाकय (द्विधाकृत) उ० २३।२६ दुहावह (दुःखावह) उ० १३।१६,१७; १९।११ दुहि (दुःखिन्) उ० ७॥३; १६।१८,१६, २०१४६; ३२।२६,३१,४२,४४,५५,५७,६८,७०,८१,८३ ६४,६६ दुहिय (दुःखित) उ० ६।१०; १९७१; ३२।३१, ___४४,५७,७०,८३,६६ दुहिल (द्रोहिन्) उ० ११६ दूइज्ज (दू)-दूइज्जति नि० २।११ दूइज्जत (व्रयमाण) नि० २।४१; १०।३४,३५; १९६६ दूइज्जमाण (दू यमाण) दसा० १०।३,५,६,११. व० ४।११; ५।११,७।२२; ८।१५. नि० २१३८३१६६४।१०७; ६७८,७१६७; ८।११,१११६४; १५।६६,१५२; १७१६८,१२२ दुइज्जित्तए (द्रवितुम) प० २७२. क० ४।२६ दूतिपलासय (दूतिपलाशक) दसा० ५५ दूतिपिंड (दूतिपिण्ड) नि० १६।६२ दूमिय (धवलित') प०२० दूय (दूत) ५० ४२ दूर (दूर) उ० २४११८; ३२।३. व० ८।१५ १. हे० ४।२४ दुस्सह (दु:सह) द० ३।१४ दुस्साहड (दुःसंहृत) उ० ७।८ दुस्सील (दुःशील) उ० ११४,५; ५।२१,२२; २५॥ २६. वसा० ६।३ दुस्सीस (वाशिष्य) उ० २७८ दुस्सेज्जा (दुश्शय्या) द० ८।२७ दुह (दु:ख) २० ६।२२,२४,२७; चू० १३१४,१५; Page #1149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूरबो-देवाणंदा १५५ दूरओ (दूरतस्) २० ५।१२,१६; ६।५८ देवई (देवकी) उ० २२।२ दूस (दूष्य) उ० ६।४६; १२।६; १६ सू० ७. अनं० देवकिब्विस (देवकिल्विष) द० ५।१४६,१४७ १३,१७. दसा० १०।१०,११. ५० ४२ देवकुमार (देवकुमार) ५०६ दूसगणि (दूष्यगणिन्) नं० गा० ४१ देवकुरा (देवकुरु) अ० ५५६ । दूसमदूसमय (दुष्षमतुष्षमज) अ० ३३४ देवकुरु (ग) (देवकुरु (ज) ) अ० ३६६ दूसमय (दुष्षमज) अ० ३३४ . . देवकुरुय (देवकुरुज) अ० ३३३ दूसमसुसमय (दुष्षमसुषमज) अ० ४३४ देवकुल (देवकुल) अ० १६,३६२. वसा० १०॥३. दूसमसूसमा (दुष्षमसुषमा) ५० १२४ प०५१ दूसय (दूष्यक) व० ६।४२,४३ देवग (देवक) उ०३२।१६ देअड (दे० दतिकार) अ० ३६० देवगइ (देवगति) उ० ७.१७ देंत (वदत) नि० ११४७,४८,४।२७,२६,३१,३३, देवगति (देवगति) प० १५ • ३५,५७२।७३; ७८६,८८,१०।१७,१८, देवजुइ (देवद्युति) दसा० ५।७ १२१४२; १४१६,७; १५७६ से ७८,८०,८२, देवड्ढि (देवद्धि) वसा० ५१७ ८४,८६,८८.६०,६२,६४,९६,१६।१७,१६, देवढिखमासमण (देवद्धिक्षमाश्रमण) प० २२२ २१,२४; १७।१२३,१२४; १८।३८,३६ देवढिपत्त (देवद्धिप्राप्त) ५० १०० देतिय (ददत्) २० २८,३१,३२,४१,४३,४४, देवत्त (देवत्व) द० ५।१४७. उ० ७.१७. वसा० ४६,४८,५०,५२.५४,५८,६०,६२,६४,७२,७४, १०।२४ से ३२. ५० ७३ ७६,११५,११७,१२० देवदंसण (देवदर्शन) दसा० ५।७ देज्जमाण (दीयमान) नि० १४।३१ से ३७; देवदत्त (देवदत्त) अ० २५२,५५६ १७।१२५ से १२७,१३२; १८१२ से ५,३३,६३ देवदुंदुहि (देवदुन्दुभि) ५० ३२ से ६६; १६१ से ४,७ देवदूस (देवदूष्य) ५० ७५,११३,१२६,१६५ देय (देय) उ० २५८ देवय (दैवत) दसा० १०।११. ५० ३६.५० देयर (देवर) अ० ३१६।२ १०२,४ देव (देव) आ० ४१८. व. १११;४ सू०६; देवया (देवता) दचू ० १।३. उ० ७।२१. म० ७।५०,५२; ६।२७,२८, ६।४।७. उ०११४८%; ३४०,३४२ ३।१५; ५२५, ७।१२,२३,२६,२६१०११४; देवराय (वेवराजन्) प०८,११,१४,१५,२१ ११०२७; १२।२१,१३।७,३२,१४।१; देवलोग (देवलोक) दचू० १११०. उ०९।१,३; १६।१६; १६।३; २११७; २२।२१,२२; १३।७. नं.९१,१२०. दसा० १०॥२२ से २४ २३२२०; २६।५,३४१४४,४७, ३६।१५५, देवलोय (देवलोक) द० ३।१४. उ० ३।३. वसा २०४,२०६,२१२,२४५,२४६. नं० ७,२२।२. १०।२५ से ३२ अ० २०,१८५,२५४,२७५,४०१,४३२,५६६. देवसिय (देवसिक) आ० ३।१; ४।३,४,५,७,६; दसा० ५।७।४।६।१,२॥३३; १०।१८,२१ से ५२ ३३,३५. ५० ६,१४ से० १७,५१,६१,६२,६७, देवाउय (देवायुष्क) उ० ३३१२. अ० २८२ ७३,७४,८२,८५,८६,१०३,१०६,११२,११३, देवाणंदा (देवानन्दा) १०२ से ७,१०.१३ से १५, १२६,१६३,१६५,२२२,२८८.० ५।१,४ १७,१९,२०,८४ Page #1150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवाणप्पिय-दोणमुहमह . SE देवाणुप्पिय (देवानुप्रिय) बसा० १०।३,६ से ११. प० ५ से ७,१४,३८,४०,४२,४६ से ४६,६२, ૬૬ देवाणुभाव (देवानुभाव) दसा० ५।७ देविंद (देवेन्द्र) उ०६।८,११,१३,१७,१६,२३,२५, २७,२६,३१,३३,३७,३६,४१,४३,४५,४७, ५०; १२।२१.५० ८,११,१४,१५ देविदत्थय (देवेन्द्रस्तव) नं० ७७ देविदथय (देवेन्द्र स्तव) जोनं ८ देविंदोववाय (देवेन्द्रोपपात) नं० ७६. जोनं० ६. २०१०।३२ देवी (देवी) आ० ४।८. उ० १४१३,३७,५३; ३२।१६. नं० ३८।११. दसा० ५१६; ६।१; १०।११ से १३,२१ से २३,२८ से ३०,३५. प. ६,२६,६०,८५,८६,१०६,१२७,१६३, २८८. क० ५।२,३ देस (देश) द० २।८. उ० २१॥३; ३६१२,५,६, ११,६७,७८,८६,१००,१११,१२०,१३०,१३६, १४६,१५८,१७३,१८२,१८६,१६८,२१७. नं० २२।२. अ० ६६,४४३,४४४,५५७. १० ५५,५८,२५३. व० ३।१० देसकहा (देशकथा) आ० ४८ देसणय ((देशनक) नं० गा० २२ देसभाग (देशभाग) १०२५,६२ देसराग (दे०) नि० ७।१० से १२; १७।१२ से १४ देसारक्खिय (देशारक्षित) नि० ४।५,११,१७, ४०,४५,५० देसावकासिय (देशावकाशिक) वसा० ६६ देसावगासिय (देशावकाशिक) वसा०६।१० से १७ देसिय (देशित) ६० ५।६२; ६।२१; ८।२७; चू० १११७. उ० ५।४; १६।१७,२१११२, २३।१२, २३,२६; २८।५; ३५११. नं० १२० देसिय (देशिक) उ० १०।११।। देसिय (देवसिक) उ० २६।३६,४० देसूण (देशोन) अ० १६८,१६६,२०६. ५० १०६, १२४,१३८ देह (देह) द० ५।६२, ६।२१, ८।२७; चू० १११७. उ०११४८; १२,५॥३१; ६।१३; ७।२,१०, २६; १२।२५; १६।१६; २१११८,३३१५१; २४११५ V देह (दश)-देहइ उ० १६॥६.-देहति निक १३।३१ देहंत (पश्यत्) नि० १३।३१ से ३८ देहपलोयण (देहप्रलोकन) द० ३।३ देहवास (देहवास) द० १०।२१ दो (द्वि) आ० ४१८. उ० ५।२५. नं० २१. अनं० ६. अ० १४. दसा० ६।१८. प० ८३. क. ११७. व० २११. नि० १६।२४ दोगुछि (जुगुप्सिन) उ० २।४; ६७ दोगुंदग (वोगुन्दक) उ० १६।३ दोग्गइ (दुर्गति) उ० ७।१८; ८।१; ६।५३; २६।५ दोच्च (द्वितीय) द० ४ सू० १२. उ० ३६।१६१. वसा० ३।३;१०।४. प० ३८,५६,८१,८४, १११,११३,१२४,१२६,२४०,२५०. क० २३८ से ४१; ३।२७,३१, ५॥५,४१. ३० ११२३ से ३२; २।२५; ४।२१,२३; ५।१८; ७।२२,२८; ८.५ से ६. नि० २।५२; ३।१३; ५।२३ दोच्चसमोसरण (द्वितीयसमवसरण) क० ३।१७ दोच्चा (द्वितीया) दसा० ६१६; ७।३,२६ दोज्जितकंट (दुर्यन्तकण्ट) प० २२२ दोण (द्रोण) अ० ३७४ दोणपाग (द्रोणपाक) अ० ५२५।१ दोणपाय (द्रोणपाक) अ० ३२७।२ दोणमुह (द्रोणमुख) उ० ३०।१६. अ० ३२३,५५६. वसा० १०।१८. ५० ५१. क० ११६. व० २३३; ४१६,१०. नि० ५।३४; १२।२०; १८।१४२ दोणमुहपह (द्रोणमुखपथ) नि० १२,२३; १७।१४५ दोणमुहमह (द्रोणमुखमह) नि० १२।२१; १७।१४३ Page #1151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोणमुहवह-धम्म दोणमुहवह (द्रोणमुखवध) नि० १२।२२; १७।१४४ सा० ६।३. ५० ५२,६६.७४ दोणीय (द्रोणिक) अ० ३६० धणगिरि (धनगिरि) ५० २१४,२२२ दोमासिय (द्वैमासिक) व० १११,२,६,७,११,१२. धणड्ढ (धनाढ्य) प० १६३ नि० २०११,२,६,७,११,१२,१६ से २६,३४, धणदत्त (धणदत्त) नं० ३८।११ ३७,४५,५६ धणिट्ठा (धनिष्ठा) अ० ३४१३ दोमासिया (द्वैमासिकी) दसा० ७।३; २६ धणिय (दे०) उ० १३१२१ दोवारिय (दौवारिक) प०४२. मि० ६।२८ धणियबंधणबद्ध ('धणिय'बन्धनबद्ध) उ०२६।२३ दोवारियभत्त (दौवारिकभक्त) नि० ६६ दोस (दोष) आ० ४।८. द० २।५; ५१११,६६, धणियवद्ध ('धणिय'बद्ध) ५० ७४ धणु (धनुष) उ०६।२१. नं० २०. अ० ३८०, ८६,१३५,१३७; ६।१६,२५,२८,३१,३५,३६, ३८८,३६१.४००,४०२,४०३,४०६,५८६. ४२,४५; ७४५६८।३५; ६.५१. उ० १।२४; दसा० १०११४ ४।१३; ८।२,५; १०३७; १२।४६; १४१४१ से । धणुग्गह (धनुर्ग्रह) नि० ६।२७ ४३; १७१२१, २०१६; २३१४३,२५२१ धण्ण (धन्य) अ० ३१५ २७।११; २८।२०; २६।६३ से ६.७, ३०।१, धण्ण (धान्य) अ० ५५७ ४,३११३,३२।२,७,६,२२,२३,२५,२६,३०,३६, धन्न (धान्य) उ० ११।२६; १३।२४; १९६२६; ३८,४२,४३,४६,५१,५५,५६,६१,६२,६४,६८, ३५।१०. अ० २६४।६,३७३ से ३७६ ६६,७५,७७.८१,८२,८८,९०,६४,६५. अ० धन्न (धन्य) दसा० ६।३. ५० ४,५,६,१६,३६,३८, २७६,२८२,३०७,३१८. दसा० ४।१८, ६।३; ५२,६६,७३,७४ ६।२।१८. २०७४ धमणि (धमनि) उ०२१३ दोसण्णु (दोषज्ञ) द० ७.१३ धम्म (धर्म) आ० २।१,३,४।२,८,९; ५।४।१,३; दोसनिग्घायणविणय (दोषनिर्धातनविनय) सा० ६।११. द० १११, २।१०।४।१६,२०; ८।३५; ४।१४,१८ ६।१६,४८; १०।२०; चू० १ सू० १; गा० दोसाययण (दोषायतन) नि० ६७ १,२,१२,१३; चू० २।१. उ० ११४२; दोसिय (दौष्यिक) अ० ३५९ २।१३,३७,४२, ३।८,११,१२; ५।१५,३०; दोसियसाला (दौष्यिकशाला) व०६।२३,२४ ७।१५,२८,२६, ८।१६,२०, ६२,४४; १०।१८, दोहल (दोहद) ५० ५८ २०; ११११५; १२॥३३,४६; १३१२,१५,२१, द्रूहाहि ( ) वसा० १०।१० २६,३२; १४।१७,२०,२५,२८,४०,५०,५१, १५५१; १६ सू० ३ से १२, गा० १७,१७।१; १८।१८,२५,३३,३४; १६।१९,२१,४३,७७, Vधंस (ध्वंसय)-धंसेति दसा० ६।२।८ १८, २०११,४४,५८; २१११२,२३,२२।४६; धंसिया (ध्वंसयित्वा) दसा० ६।२।१० २३।१,५,११ से १३,२४ से २६,२६,३१,५६, धगधगाइय (धगधगायित) प० ३४ ६८,८७; २५७,११,१४,१६,३६,४२; २८७ धण (धन) उ०४।२७।८।१०।२६,३०१२।९, से ६; २६४६,५१, ३२।१७; ३६७,८. नं० २८; १३।१३,२४; १४।११,१४,१६,१७,३८, गा० १२,१६. अ० २२७,३५२,५५७. बसा० ३६; १६।२६,६८,२०।१८. अ० ३०२,५५७. ४।१७; ५।६,७।१; ६।१८७।३४।६।१, Page #1152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ धम्म-धाइपिर २।२१; १०।२१,२४ से ३३.५० १०,४७,४६, धम्मविणय (धर्मविनय) क० ४।१६ से २१ ७४.११३,१४६,२२२१७. व० १०।१२,१३. धम्मसद्धा (धर्मश्रद्धा) उ०२६।१,२,४ नि० ११६ धम्मसारहि (धर्मसारथि) आ०६।११. उ० धम्म (धर्म्य) आ० ४१८. उ० १६८; ३०।३५; १६.१५.५० १० ३४।३१ धम्मसासण (धर्मशासन) दचू० १।१७ धम्मंतेवासि (धर्मान्तेवासिन) व. १०।१७,१८ धम्मायरिय (धर्माचार्य) उ० ३६।२६५. व० धम्मकहा (धर्मकथा) उ० २६।१,२४. नं०८६ से १०।१५,१६ ५६,६१. अनं० ६. अ० १३,३४,५७,८१,१०६, धम्माराम (धर्माराम) उ० २।१५; १६।१५ ५६३,६२३,६३५,६४७,६७३,७०० धम्मिट्ठ (धर्मिष्ठ) उ० ७।२६ धम्मकामि (धर्मकामिन) द०६।१६ धम्मिय (धामिक) सा० १०६ से ११,१३ से धम्मचिंतग (धर्मचिन्तक) अ० २०,२६ १५,१६. प० ३६ धम्मचिंता (धर्मचिन्ता) उ०२६।३३. बसा० १७ धय (ध्वज) प० २८ धम्मजागरिया (धर्मजागरिका) १०२७६. क ध र (धर) आ० ४।६,६।११. ८० ८।४६. उ० १११६ ६।१७; ११।२१, १२।१,१५, १६।५; २२॥५. धम्मजाण (धर्मयान) उ० २७।८ । नं. गा. ३४ सू० ६५. अ० ५०,२८२,५४६. धम्मजीवि (धर्मजीविन्) ६० ६।४६ . प० १०,६६ धम्मज्माण (धर्मध्यान) द० १०।१६. उ० १८।४ ।। इधर (ध)-धरिज्जति उ० ३०१२७.-धरेति धम्मट्ठकहा (धर्मार्थकथा) २०६ दसा० ४।११. नि० ११४६ धम्मट्ठि (धर्माथिन्) दसा० ६।२।३८ धरण (धरण) नं० ५४. वसा० १०॥१८ धम्मतित्थ (धर्मतीर्थ) ५० ७३ धरणा (धरणा) नं. ४६ धम्मतित्थयर (धर्मतीर्थकर) उ० २३।१,५ धरणि (धरणि) अ०७०८१५. वसा० ६।४.५० १० धम्मत्थकाम (धर्मार्थकाम) द०६।३ धरणोदवाय (धरणोपपात) नं० ७८. जोनं० ६. धम्मत्थिकाय (धर्मास्तिकाय) उ०३६॥५. अ० व० १०॥३१ १४८,१४६,२५४,२५६,२८८,३२५,३४८, धरिज्जमाण (ध्रियमाण) वसा० १०॥३,११,१५. धम्मदय (धर्मदय) आ० ६।११.५० १० प०४२ धम्मदेसय (धर्मदेशक) आ० ६.११. प०१० धरिस (घष)-धरिसेइ उ० ३२॥१२ धम्मनायग (धर्मनायक) आ०. ६।११.५० १० धरत (धरत्) नि० १।४६,५४; २१३,७,२२,२३, धम्मपण्णत्ति (धर्मप्रज्ञप्ति) ३०४, सू० १ से ३ २६ से ३०; ५।२६,२६,३२,६८,७४,७५; धम्मपय (धर्मपद) द० ६।१२ ६।१६ से २४;७।२,५,६,११,११२,५; धम्म (रुइ) (धर्म (रुचि) ) उ० २८।१६ १४।८,६,१५६१५३; १६१४०; १७१४,७,१०, धम्मरुइ (धर्मरुचि) उ० २८।२७ १३; १८१४०,४१ धम्मलेसा (धर्मलेश्या) उ० ३४१५७ धवल (धवल) अ० ३५३. वसा० १०।१४. ५० धम्मवरचक्कवट्टि (धर्मवरचक्रवतिन्) ५० ४७,४६ २२,२५,४२ धम्मवरचाउरंतचक्कट्टि (धर्मवरचातुरन्तचक्र धवलवसह (धवलवृषभ) अ० ३५३ वतिन्) ५० १० धाइपिंड (धात्रीपिण्ड) नि० १३॥६१ Page #1153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाउ-धमप्पभा १५६ धाउ (धात) उ० ३४१७. २० गा० १४,३१. नि० धिइमंत (धृतिमत्) उ० २२।३०; २६।३३ १३।२६ धिइमय (धतिमत्) वचू० २।१५ धाउय (धातुज) अ० ३४६,३६७ धिति (धृति) अ० ३१०. वसा० ६।५ धाय (दे०) द० ७१५१ धिरत्थु (धिगस्तु) द० २१७. उ० २२।२६,४२ धायई (धातकी) अ० १८५।१. १० ११५ धी (धी) अ० २४६ धिार (धारय)-धारए व० ५।१६. उ० ३।३७. धीम (धीमत) ५० ६७ ।। -धारंति २०६।१६.-धारेइ न० १२७॥१. धीर (धीर) द० ३।११; ७१४,७,४७; चू० २।१४. -धारेज्जा उ० १३१४. ३० ३१२.-धारे उ० ११२१; ७।२६; १४।३५; १५॥३; १८६३३, स्सइ ३०८।१६.-धारेस्सामि व० ८।१६. ५१,५३. नं० गा० २८,३२,३७,४३, सू० -धारेह उ० १९६६ १२७. प० २२२१५ धार (धार) उ० ३११२ धीरत्त (धीरत्व) उ० ७।२६ धारइत्ता (धारयित्वा) उ० २०१४३ धारण (धारण) द० ३१४; १९२ Vधुण (धू) -धुणइ २०४।२०. -धुणंति ब० धारणा (धारणा) नं० ३६,४८,४६,५०,५३,५४. ६।६७ व० १०६ धुणिय (धूत्वा) द० ६।५५ धारणामति (धारणामति) दसा० ४।११ - घृतबहुल (धुतबहुल) दसा० ६।४ धृत्त (धूर्त) उ० ५।१६ धारणामतिसंपदा (धारणामतिसंपत) दसा० ४६ धुन्नमल (धुतमल) द० १५७ धारणिज्ज (धारणीय) नि० ५१६५ से ६७; . धुय (धुत) उ० ३।२०. नं० गा० ३ १४१६; १८१४१ धुयमोह (धुतमोह) द० ३।१३ धारय (धारक) नं० गा० ३५,४०. ५०६,४२ धुरा (धुरा) उ० १४।१७; १६६८. बसा० १०।१४ धारयमाण (ध्रियमाण) नि० १६।३६ धुव (घव) द० ८।१७,४२. उ०७।१६; १६।१७; धारा (धारा) उ०१६।३७,५६,६२,२३१५३ २०१५२; २३।८१. नं० १२६. दसा० ४।१०. धाराय (धाराहत) प० ५,६,१०,३६,३८ . व० ४।२१,२३. नि० ५१६५ से ६७; १४१६%3 धारि (धारिन्) उ० १४११७ १८०४१ धारिणी (धारिणी) दसा० ५।६; १ धारित्तए (धारयितुम्) क० १३१६ धुवगोयर (ध्र वगोचर) उ० १९८३ धारे. (धारयितुम्) उ० १६।३३ धुवजोग (ध्र वयोग) द० १०।१० धारेत्तए (धारयितुम्) ५० २।२६ धुवजोगि (ध्र वयोगिन्) २० १०।६ धारेयव्व (धारयितव्य) उ० १६।२४ धुवनिग्गह (ध्रुवनिग्रह) अ० २८ धावंत (धावत्) उ० १९५६ धुवसीलया (ध्र वशीलता) द० ८।४० धावति ( ) अ० २७० धूम (धूम) अ० ५५६. दसा० ५।७।१३; ६।२।३. धावमाण (धावत्) ५० ३१ नं० ११५५ धिइ (धति) उ० ६।२१, २७।८; ३२॥३. नं० गा० धूमके उ (धूमकेतु) द० २६६ ११,३४. ५०७४ धूमणेत्त (धूमनेत्र) उ० १५२८ धिइम (तिमत्) उ० १६।१५; १८६३६ धूमप्पभा (धूमप्रमा) अ० १८१,१८२,२८७ Page #1154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० धूमप्पभाय-नगर धूमप्पभाय (धूमप्रमाज) अ० २५४ धूमाभा (धूमामा) उ० ३६।१५७ धूमिया (दे० दूमिका) अ० २८७ धूयरा (दुहित) उ० २११३ धूया (दुहित) द० ७.१५. उ० १२।२०. वसा० ६।३. प० ७१. क० ४।११. व० ७।२५ धूव (धूप) उ० ३५।४. अ० १६,२०. वसा० १०।१२. प० २०,३२,४०,६२ धूिव (धूपय्)-धूवेज्ज नि० ३।३६ धूवणजाय (धूपनजात) नि० ३।३९; ४।७७; ६।१८,४८; ७।३७; ११।३४; १५।३६,१२२; १७१३८,६२ धूवणेत्ति (धूमनेत्र) व० ३६ धूिवाव (धूपय)-धूवावेज्ज. नि० १५॥३६, धूयावेत (धूपयत्) नि० १५॥३६; १७॥३८,६२ धूविय (धूपित) दसा० १०।१२ धूर्वत (धूपयत्) नि० ३१३६ ; ४१७७; ६।१८,४८; ___७।३७; ११॥३४; १५॥१२२; घेणु (धनु) द०७।२५. उ० २०३६ धेवइय (धवत्रिक) अ० ३०१ धेवत (धैवत) अ० २६६ धेवय (धवत) अ० २६८ धेवयसरमंत (धैवतस्वरमत्) अ० ३०२।६ धोय (धौत) द० ५७६. क० ११४३. नि० ६२१ धोयण (धावन) द० ६१५१ धोरेयसील (धौरेयशील) उ० १४१३५ Vधोव (धाव)-धोवेति नि० १५॥१५४ धोवेंत (धावत्) नि० १५१५४ नउय (नयुत) उ० ७।१३. अ० २१९,४१७ नउयंग (नयुताङ्ग) अ० २१६,४१७ नंगल (लाङ्गल) द० ७२८ नंगलिय (लाङ्गलिक) दसा० १०॥१८. प०७४ नंगुल (लागूल) अ० ५२५ नंगूल (लागूल) प० २३ नंगूलि (लायलिन्) अ० ३२७ नंद (नन्द) प० १३४ नंदण (नन्दन) उ०१६।३; २०१३,३६ नंदणभद्द (नन्दनभद्र) ५० १६१ नंदणवण (नन्दनवन) नं० गा० १३ नंदा (नन्दक) प०७३,७४,११२ नंदावत्त (नन्दावर्त) उ० ३६११४७. नं०६४ से १००,१०२ नंदि (नन्दि) उ० ११।१७ नंदिकर (नन्दिकर) नं० गा० ३८ नंदिज्ज (नन्दीय) १०१९७ नंदिलखमण (नन्दिलक्षपण) नं० गा० २६ नंदिवद्धण (नन्दिवर्धन) १०७०,८४ नंदिसेण (नन्दिषेण) नं० ३८।१२ नंदी (नन्दी) नं. ७७,१२७. जोनं० ८. अ० १८५, नकुल (नकुल) अ० ३५१ नक्कछिन्न (छिन्ननक) दसा०६।३ नक्खत्त (नक्षत्र) द. ८१५०६१५. उ० ११।२५; २५।११,१४,१६; २६।१६,२०; ३६।२०८. अ० १८५,२५४,३४०,३४१. दसा० ६।५. प० २,१७,५६,७५,८१,८४,१०६,१०६, १११,११३,११५,१२४,१२७ से १३०,१३८, १६१,१६३,१६५,१८० नक्खत्तदेवया (नक्षत्रदेवता) अ० ३४२ न (न) आ० ११२. द. ११२. उ० १७. नं० १७. अनं० ६. अ० ७. वसा० ३।३. ५० ५८. क. १३४. व० ११३१ नई (नदी) द० ७।३८. उ० ११।२८; २०१३६; ३२।१८. अ० १८५॥३. ५० ८१,२३२ नगर (नगर) द० ४ सू० १३,१५, ५२२; चू० २।८. उ० २।१८; ६।२०,२८; १०॥३६; १६।४; २१।२; ३०।१६. नं०८६ से ८६,६१. अ० २८७,३२३,३६३,५५६. दसा० ५।४,५; १०१२ Page #1155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगरगुत्तिय-नर ४.१० २,१०,१३,१५,१७,४२ से ४४,५१, ६२,६३,७५,७९ से ८१,८३,१२७,१८४, २८८.० १६. व० ११३३; ४१६,१०. नि १३४ नगरगुत्तिय (नगरगुप्तिक) दसा० १०७. प० नगरमंडल (नगरमण्डल) उ० २३।४ नगरी (नगरी) उ० २३॥३. प० ८३,११३,१२६ नगिण (नग्न) द० ६।६४ नगिणिण (नाग्न्य) उ० ५।२१ नग्गइ (नग्गति) उ० १८०४५ नग्गरुइ (नाग्न्यरुचि) उ० २०४६ नग्गोह (न्यग्नोध) प०१६६ नग्गोहपरिमंडल (न्यग्रोधपरिमण्डल) अ० २३५ नच्चा (ज्ञात्वा) द० ५।१६. उ० ११४१ नच्चाणं (ज्ञात्वा) उ० ८।११।। निज्ज (ज्ञा)-नज्जइ अ० ५५७.-नजति अ० ३१२.–नज्जिहिति अ० ७१४ नट्ट (नाट्य) उ०१३।१४,१६. दसा० १०॥१८. प०६. नि. ६।२२ नट्ट (नर्तक) अ० ८८ नट्टग (नतंक) ५० ६२ नट्ठ (नष्ट) नं० ५३. अ० ५२०. नि० १३१२८ नड (नट) अ० ८८. प० ६२ नत्तुई (नप्त्री) ५० ७२ नत्तुणिय (नप्तक) द० ७।१८ नतुणिया (नप्तका) द० ७।१५ नदंत (नदत्) वसा० ६।२।२ नदी (नदी) उ०१६।५६. अ० २६६,३५४,३६२, ५३१,५३५ नदीहते (सं०) अ० २६६ नपुंस (नपुंसक) उ० ३६०५१ नपुंसकलिंगसिद्ध (नपंसकलिङ्कसिद्ध) नं० ३१ नपुंसग (नपुंसक) उ० ३६।४६. अ० २६४ ।। नपुंसगवेद (नपुंसकवेव) उ० २६।६. अ० २७५ नपुंसवेय (नपुंसकवेद) उ० ३२।१०२ नभंगण (नभोङ्गन) ५० २५ Vनम (नम्)-नमइ उ० ११४५.-नमेइ उ० ६६१ निमंस (नमस्य)-नमंसइ दसा०१०।१६.५० १०.--नमंसति द० १११. उ०१६।१६.--- नमंसति दसा० १०.२०.-नमंसे द०६।११. ---नमज्जा व० १०२ नमसंत (नमस्यत्) उ० २५।१७ नमंसित्ता (नमस्यित्वा) दसा० १०७. ५०१० नमि (नमि) आ० २।४; ५।४. उ०६।२,३,५,८, ११,१३,१७,१६,२३,२५,२७,२६,३१,३३, ३७,३६,४१,४३,४५,४७,५०,६१,६२, १८।४५. नं० गा० १६. ५० १४० नमिपवज्जा (नमिप्रव्रज्या) उ०६ नमुक्कारसहिय (नमस्कारसहित) आ० ६।१ नमो (नमस्) आ० १३१. उ० २०११. नं० गा० ५. अ० ३०८।४.५० १० नमोक्कार (नमस्कार) आ० ५।३. द० ५।६३. अ० २६ नय (नय) उ० २८।२४; ३६।२४६. अ० ७५, ५०६,५५४,५५७,५६८,६०६,७१३,७१५. प०६ नय (नत) नं० गा० १६ नयण (नयन) उ० २०१२८; ३४।४, दसा० १०।१६.५० १०,२३,२६,२९,७५ नयण (उप्पाडिय) (नयनोत्पाटित) दसा० ६॥३ नयर (नगर) उ० १३१३; १८११; १९६९; २२।१, ३. दसा० १०११,३५. प० १६६ नयरमंडल (नगरमण्डल) उ०२३।८ नयरी (नगरी) उ०२०।१८. दसा०६।१.५०१०६ नयव (नयवत्) दसा० ६।२।१० नर (नर) द० ५।१४६,७१५,५३,८१५६; ६।२१, २४,२६,३६,४६; चू० १११८. उ० ११६; ४।२; ७।११,२०, ६।४८; १३।१०,१२,१८, Page #1156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ २२,२६; १५।६; १६।१३; १८ १०, १६, २५; २०१३८ २१।१७; २५/४१ ३२।१०,३२,४५, ५८, ७१,८४,६७, ३४ । २१, २४, ४५.४७. नं० १२१. अ० ३०२१७. दसा० २ २०; १०।१४,१६. ० ३२,४२, ७५ नरग (नरक) उ० ५।२२; ७ १६ २०१४६. दसा० ६।५ नरदेव (नरदेव ) उ० १४ ४० नरय (नरक) द० ५।१४८; चू० १६. उ० ३।३; ४।२; ५। १२; ६ ७ ७ ४, ७,२८; १३।३४; १८।२५; १६।१०, ४८,७२, ७३. दसा० ६।५ नरवइ ( नरपति) उ० १३।२८. बसा० १०।१३. प० ४२ नराहिय ( नराधिप ) उ०१८।४१ नराहिव ( नराधिप ) उ० ६।३२; १३ | १५; १८५,१८,३५,३६, २०१६,३३,५६ नारद (नरेन्द्र ) उ०१२।२१; १३।१८ १४ | ३०; २०१३. दसा० १०।३. प० ४२ नदिवसभ (नरेन्द्रवृषभ) उ०१८।४६ नरीसर ( नरेश्वर ) उ० १८।४० नलकूबर ( नलकूबर) उ० २२।४१ नलिण ( नलिन) अ० २१९,४१७ नलिणंग ( नलिनाङ्ग) अ० २१६,४१७ नलिणिसंड ( नलिनीषण्ड) अ० १६, २० नव ( नवन्) आ० ४/२. उ० २६।२५. अ० ३०६. दसा० ६।१६. प० ६. व० १०/३ नव ( नव) द० ६।६७. उ० २६।३८. अ० ३२३, ६३१. व० ३।११, १२; ५।१५,१६ नवखोडा (दे० ) उ० २६।२५ नवणीय ( नवनीत) उ० ३४११६. प० २०,२३६. क० २८५।३६ नवनवमिया ( नवनवमिका) व० ६।३७ नवतुरग (नवतुरग) अ० ३५४ नवपुव्वि (नवपूविन्) अ० २८५ नवम ( नवम ) उ० २६|४; ३६।२४२. नं० ८६ नवमा ( नवमी) दसा० ६ १६ नवमी (नवमी) व० १० । ३ नवरं (दे० नवरम् ) उ० १६७५. अ० १६९. दसा० ७।२६. प० २३ नवविह ( नवविध ) उ० २६।७२; ३३।११; ३४ २०; ३६।२१२. अ० १२१, १६५, २०६ नसंतिपरलोगवादि ( नास्तिपरलोकवादिन्) बसा ० ६।३ नरग-नागराय नह (नमस्) द० ७।५२. उ० १४ । ३६; २६ । १६; २८।६.५० ३२ नह (ख) उ० १२/२६. अ० ५२५. १० ५,७, १०,१५,२३,२४,३६, ४१, ४३, ४४, ४८, ५०, ५७,२६१ नहंसि (नखवत्) व० ६ ६४ नहतल ( नभस्तल) अ० ७०८ |४ नहयल ( नभस्तल) प० २३ नहसिहा ( नखशिखा ) प० २६१ नहि (नखिन् ) अ० ३२७ ना (ज्ञा ) - नाहिइ द० ४।१० – नाहिई उ० २०१४८. - नाही अ० ३०७ ४ नाइ (ज्ञाति) उ० १ ३६; १३/२३, २५; १६८७; २०।११. प० ६६ नाइल ( नागिल ) नं० गा० ३८ नाउं (ज्ञातुम् ) उ० १२।४५ नाउं ( ज्ञात्वा ) नं० ३३ नाग (नाग) द० २।१०; ६४; चू० ११८, १२. उ० २।१० ; १३ | ३०; १४ /४८ २२/४६; ३२८६; ३६।२०६. नं० ६० अ० २०,१८५१४. दसा० १०।१८,२४. प० २५,८४,१६३ नागकुमार ( नागकुमार) अ० २५४ नागपरियावणिया (नागपरिज्ञापनिका) नं० ७८. जोनं० ६. व० १०।३२ नागभूय ( नागभूत) प० १९७ नागमित्त (नागमित्र ) प० १९३ नागराय ( नागराज ) उ० २१।१७ Page #1157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागवण-नामधेय नागवण (नागवन) अ० ३२४ नागवर (नागवर) दसा० १०।२४ नागसुहुम (नागसूक्ष्म) नं ६७. अ० ४६,५४८ नागाज्जुण (नागार्जुन) नं० गा० ३६,३६ नाडइज्ज (नाटकीय) ५० ५४,६४ नाडग (नाटक) नं० ६७. अ० ४६,५४८ नाण (ज्ञान) आ० ४।३,८,६; १२; ६।११. १० ४।१०,२१,२२, ६।१७।४६; ६।४।३; १०१७. उ० ६।१७, ८१३; १८।३२; १६१६४; २०१५१; २११२३, २२।२६; २३।३३; २४१५, २५।३० २६॥३६,४७; २८।१ से ५,१०,११,२५,३०; २६।१५,५७,६०,६१,७२, ३२।२; ३३।२; ३५२१; ३६।६६,६७,२६५. नं० गा० १०, १७,२६,४३. सू० २,३६,६५; अनं० २८. जोनं० १,२. अ० १,२,५०,२८२,३३६,५१४, ५१५,५४६,५५१,६६८,६६५. दसा० ५७।२; १०१३३. ५० १०,७४,८१,८७,६६,१०८,११५, १२६,१३०,१६०,१६६. क० ११४७ नाणत्त (नानास्व) नं ३५ नाणधर (ज्ञानधर) उ० २११२३ नाणप्पवाय (ज्ञानप्रवाद) नं० १०४,१०६ नाणय (ज्ञायक) नं० ३८।४ नाणसंपन्नया (ज्ञानसम्पन्नता) उ० २६।१.६० नाणा (नाना) द०६।११. उ० ३।२५।१६; १०२६,३६,३०; १२॥३४; १८१३०; २०।३. नं० ४३,४५,४७,४६. अ० २८,५१,७३,१२४ से १२७,१६८ से १७१,२०६,२११,२१२. प०२४,३७,३६,४२,५० नाणापिंड (नानापिण्ड) द० ११५ नाणायार (ज्ञानाचार) नं०८१ नाणावरण (ज्ञानावरण) उ० ३२।१०८; ३३।४ नाणावरणिज्ज (ज्ञानावरणीय) उ० २६।१६,१६, ७२. अ० २८२,२८४ नाणाविह (नानाविध) उ०३।२; २३।३२. प० नाणि (ज्ञानिन्) उ० २।१३; ६।१७; २४॥५. अ० ३३६ नात (ज्ञात) अ० ३४३ नातिकुलवासिणी (ज्ञातिकुलवासिनी) व० ७४२५ नादिय (नादित) ५० ७५ नाभि (नाभि) द० ७।२८. प० १६१,१६२ नाभीमंडल (नाभीमण्डल) प० २४ नाम (नामन ) द० ४५०१ से ३. उ० ८.१,१०; ११०२७; १२।१,२०; १४।१।१७।२; १८११,२१, २२,३६,३६,४३ ; २०११८, २१।१; २२।१,३ से ५; २३।१,४; २५।४; २६।२,३,२८।२०, २५, २६,४२,४४,७३; ३३३१३,१६,२१,२३; ३४।२,३; ३६१५७. नं० गा० २३,३१ सू० ३८. अनं० १ से ३. अ० ८,६,११,२८ से ३०, ३२,५२,५३,५५,७६,७७,७६,१०० से १०२, १०४,२४६ से २४८,२५१ से २६५,२६६ से २७१,२८२,२८६ से २६८,३०४,३०७ से ३१२, ३१४,३१८,३१६,३२६,३३८ से ३४५,३४७, ३५६ से ३६६,३६८,५५८,५५६,५६१,६०४, ६११,६१२,६२०,६२१,६३२,६३३,६४४, ६४५,६७०,६७१,६९७,६६८,७१५१५. दसा० ५।५,७।१६; ६।१।१०।१,२. प० १२,१४, ६६,८४,६२,१०६,१११,१२४,१२८,१३८, १८०,१८६,१६०,१६५,१६७ से २०२,२६३ से २६६,२८८,क० २।२८,२६ ५।४०. व० १६ से १७; ११५ से १८; १०७ से १८,२३ से २६,२८ से ३८ नाम (नामय्)-नामेइ द० ७।४ नामओ (नामतस्) उ० २५४१ नामकम्म (नामकर्मन्) उ० ३३॥३ नामधिज्ज (नामधेय) द० ७।१७,२०. नं० ४३, ४५,४७,४६ नामधेज्ज (नामधेय) भ० २८,७१,७३. ५० ५२, ६६ से ६६,७१,७२,१६४,१६१ नामधेय (नामधेय) आ० ६।११. ५० १० Page #1158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ नामनिप्फण्ण-निदणा नामनिप्फण्ण (नामनिष्पन्न) अ०६१८,६९६,७०८ नालंदा (नालन्दा) प० ८३ मामय (नामक) उ० २११४ नालिया (नालिका) द० ५।११८. अ० ६४,३८०, नामसम (नामसम) अनं०६. अ० १३,३४,५७, ३६१,४०० ८१,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३,७०० नालीय (नालीक) ५० ३।४ नामाउडिय (नामाकुट्टित) अ० ५५५ नावा (नौ) २०७।२७,३८. उ०२३१७० से ७३. नामिक (सं०) अ० २७० अ० ३३२. क०६६ माय (ज्ञात, नाग) द०६।३८. उ० २०।२६. नं० नाविय (नाविक) उ० २३।७३. अ० ३३२ ८१ से ११,१२३. अ० ७१५१५. ५०१०,१४, नास (नाश) द०६।५. उ० २।२७ १७,६६,७३ Vनास (नाशय)-नस्ससि उ०२३।६०. नाय (न्याय) अ० २८ -नस्सामि उ० २३।६१.- नासइ ७. नायकुल (ज्ञातकुल) ५० ५१ १४।१८.-नासे इ द० ८।३७ नायकुलचंद (ज्ञातकुलचन्द्र) प० ७३ नासग (नाशक) नं० गा० १० नायग (नायक) सा०६।२।१६. प० २७,४२ नासण (नाशन) द० ८।३७ नायज्झयण (ज्ञाताध्ययन) आ० ४।८. उ० नासणय (नाशनक) नं० गा० २२ ३११४ नासा (नासा) द० ८।५५. अ० २६६ नायपुत्त (नागपुत्र, ज्ञातपुत्र) द० ५।१४६. उ० नासिक्क (नासिक्य) नं० ३८।१२ ६।१७. प०७३ नाह (नाथ) उ० २०१६।१२,३५,५५,५६ नायय (ज्ञातज, ज्ञातक) उ० १८।२४,३६२६८. नाहियदिट्टि (नास्तिकदृष्टि) दसा०६।३ व०६९ से १६ नाहियपण्ण (नास्तिकप्रज्ञ) दसा०६।३ नायय (नायक) ५० ६६,८७ नायिवादि (नास्तिकवाविन्) दसा० ६।३ नायव (ज्ञातिमत) उ० ३।१८ निअडि (निकृति) दसा० ६।३ नायवीथि (ज्ञातवीथि) दसा० ६।१८ निमय (नियत) उ० १६।१७ नायवीहि (ज्ञातवीथि) व० ६।१ निआणसल्ल (निदानशल्य) आ० ४।८ नायव्व (ज्ञातव्य) उ० २६।१५; २८।१८,१६,२१, निउण (निपुण) द०६।८; ६।५५; चू० २।१०. २२,२४,२६,२७, ३०।११।३३।५,६,३४।१० उ०६।२०; ३२।५. अ० ४१६. दसा० से १३,१५,३४ से ३६,४६. नं० ५४।३. अ० १०।११. प० १०,४२ ३०६,३१८. ५० १६७ निउत्त (नियुक्त) उ० २६।१० नायाधम्मकहा (ज्ञाताधर्मकथा) नं० ६५,८०,८६. निउणत्थबुद्धि (निपुणार्थबुद्धि) उ० ३२।४ अनं० २८. जोनं० १०. अनं० ५०,५४६ निओइउं (नियोजयितुम् ) उ० २६।६ नायाधम्मकहाधर (ज्ञाताधर्मकथाधर) अ० २८५ निओइय (नियोजित) उ० १२।२१ नाराय (नाराच) उ० ६।२२ निंद (निन्द)-निदंति दसा० १०॥३४.नारी (नारी) द० २।९८५२,५४,५५,६।२४, निदामि आ० १२२. द० ४ सू० १०. २६. उ० ८।१६; १३।१४; १५॥६; १६।११; निदेज्जा क०४।२६. व० ११३३ २२१४४. अ० ३०२. दसा० १०११६. ५० ७५ निंदणया (निन्दन) उ०२६।१,७ नाल (नाल) नं० गा० ७ निंदणा (निन्दना) अ० ७४,६१० Page #1159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निदा-निर्गव १६५ १४ निंदा (निन्दा) उ० १२।३०; १९६०; २६।६ -निक्खिप्पिस्सइ अ० ७०६.-निक्खिवाहि निदिय (निन्दित) आ० ४।६ व० ४।१३.-निविखविस्सामि अ० ७.--- निंब (निम्ब) उ० ३४।१० निक्खिवे द० ५।८५. अ० ७.--निक्खिवेज्जा निंबय (निम्बक) अ० ३४७ उ० २४।१४ निकर (निकर) ५० २१,२३,२६ निक्खिवंत (निक्षिपत) उ०१४।१३ निकस (निकष) अ० ५२४ निक्खिवमाण (निक्षिपत्) व० ४।१३,१४; ५।१३, निकाइय (निकाचित) नं० ८१ से ६१,१२३ निकाय (निकाय) द०४ सू० ६,१० अ० ७३ निक्खिवित्ता (निक्षिप्य) क० ४.१७. व. ३।१५ निकेय (निकेत) उ०३२।४ निक्खिवित्ताण (निक्षिप्य) उ० २६।३६ निक्कंख (निष्काङ्क्ष) उ० २६।३५ निक्खिवित्ताणं (निक्षिप्य) द० ५।३० निक्कंखिय (निष्काक्षित) उ० २८।३१ निक्खिवित्तु (निक्षिप्य) द० ५।४२ निक्कस (निस । काश)-निक्कसिज्जइउ० निक्खेव (निक्षेप) अ० ७,७५,६१८,७०६ १४.--निक्कसिज्जई उ० ११४ निक्खेवनिज्जुत्ति (निक्षेपनियुक्ति) अ०७११,७१२ निक्कोर (निर+कोरय)-निक्कोरावेति नि० निगच्छ (नि+गम)-निगच्छइ दसा०१०।१७. १४१३७.-मिकोरेति नि० १४१३७ -निगच्छंति वसा० १०॥४.-निगच्छति निक्कोरिय (निक्कोरित) नि० १४।३७; १८।६६ दसा० १०।२४ निक्खंत (निष्क्रान्त) ८० ८।६०. उ० १८।१६, निगच्छित्ता (निगत्य) दसा० १०।४ ४४,४६; २५४४२. नं० गा० ३२. अ० १७, निगम (निगम) उ० २।१८; ३०११६. दसा० ३८,६१,८५,११०,५६७,६२७,६३६,६५१, ६।२।१६.५० ४२. क० ११६. व० ११३३; ६७७,७०४. दसा० ३।३. क० ११३६,४१. ३० ४।६,१० निगर (निकर) अ०७३ निक्खम (निर+क्रम)-निक्खमई उ० २२।२३. निगामसाइ (निकामशायिन्) द०४।२६ -निक्खमंति प० १२.-निक्खमति नि० निगामसेज्जा (निकामशय्या) आ० ४१५ ८।१४.—निक्खमसू उ० २५॥३८. निगिज्झिय (निगृह्य) प० २५५ से २५८. व० निक्खमिसु प० १२.-निक्खमिस्संति प० १२. ६।२० -निक्खमे द० ५।१०४. उ० १।३१ निगिण्ह (नि+ग्रह)-निगिण्हाइ उ० २८॥३५. निक्खमंत (निष्क्रामत्) उ० ३२।५०, नि० ८।१४ -निगिण्हामि उ० २३।५६ निक्खमण (निष्क्रमण) उ० २२।२१. प० १२,१४, निगढ (निगूढ) प० २४ ७४,२२२।६. क० १।१० /निगूह (नि+-गृह)-निगूहेज्जा दसा० निक्खमित्तए (निष्क्रमितुम्) बसा० ७॥१६. ५० ६२।७ २३६. क० ११४५. व० ८।५ निगोय (निर्गोत्र) अ० २८२ निक्खमिय (निष्क्रम्य) उ० २२।२२ निग्गंथ (निर्ग्रन्थ) आ० ४।६. द. ३११,१०,११, निक्खम्म (निष्क्रम्य) २०१०।१,२०.५० २४० ६।४,१०,१६,२५,४६,५२,५४. उ०१६ सू० निविखत्त (निक्षिप्त) ८० ५१५६,६१. अ० ७०६ ३ से १२, २११२; २६।१,३३. नं० ८१. दसा० निक्खिव (नि+क्षिप)-निक्खिप्पइ अ०७०६. ५१७; ६।१८ ।२; १०१२२ से ३४. ५०६० ८।१४ Page #1160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ निग्गंथत्त-निज्जर २२० १२३ से ६२, १८५,२२८,२२६,२३१,२३२,२३६, निग्गय (निर्गत) उ०७।१४; १२।२६; १९८७%; २५१,२५५ से २५८,२६० से २७०,२७८ से २७।१२. नं० गा० ३३. दसा० ५।६।६।१. ५० २८६. क० १११ से ३,६,७,१०,११,१३,१५, ४२,१८७,१६०,१६४,१६५,१९७ से २०२, १७ से २१,२४ से २७,३०,३२,३५ से ३६, २०४,२०५,२०८,२१० से २१३,२१५,२१८ से ४२ से ४५,४७; २।१ से १०, १२,१४ से १७, निग्गहण (निग्रहण) ३० ३।११ २८,२९,३।१,२,४ से ११,१४,१६ से २१,२३ निग्गाहि (निग्राहिन) उ० २५।२ से २८,३३,३४,४१११ से १४,२६,३१ से निग्गुण (निर्गुण) दसा० ६।३ ३४,५२१,२,१० से १२,२५,२७,२६,३१,३३, निग्धाएमाण (निर्घातयत्) २०६८,६ ३५ से ३६६।१,३ से १८. व. ३।३ से ११; निग्घाय (निर्घात) अ० २८७ ५।१६,१६ से २१४६१८ से ११,७१ से ६, निग्घायण (निर्घातन) आ० ५।३. अ० ३१०।२. ११,१२,१४ से २१,२३,२४; ८१६ से १७; प० ८० १०१६,१६,२१ से ३६,४१ नि० १७।१५ से निग्घोस (निर्घोष) ५० ६४,७५ निघंटु (निघण्टु) ५०६ निग्गथत्त (निग्रन्थत्व) द० ६७ निचय (निचय) प० ३० निग्गंथी (निर्ग्रन्थी) उ० २६।३३. दसा० ५७; निचित (निचित) अ० ४१६ ६।२१०१२२,२३,२५,२७ से ३२,३४. १० निच्च (नित्य) द० ५।१३६, ६।२२; ८।३,११,१६, ६० से ६२,२३१,२३६,२५१,२५७,२५६ से ५३; ६।१२,४४; ६।४।१,४; १०११,१२,२१; २६२,२६४ से २७०,२७८ से २८६. क. चू० २०१५. उ० ११४४; २।२८; ११११४; १११,२,४,८ से १२,१४,१६,१८ से २३,२५, १३।३१; १४।१६; १५॥३; १७।१०; १६॥३, २८,२९,३१,३३,३५ से ३७,४० से ४४,४६, २६,,७१; २३१८८३१ से २०. नं० गा०६, ४७; २०१ से ११,१४ से १७,२८,२६३।१ से ४०; सू० ७१,१२६. दसा०६।५; ७१४,२६, ३,५ से १०,१२,१३,१५ से २१,२३ से २७, २७,३२. ५० ३२,७७,११४,१३०. ५० १०१२, ३३,३४,४।१०,१२,१३,२६,३१ से ३४; ५१३,४,१०,१३ से १६,२१ से २४,२६,२८,३०, निच्चभत्तिय (नित्यभक्तिक) प० २३६,२४४ ३२,३४,३६ से ३६; ६।१,३ से १८. व० निच्चल (निश्चल) उ० २२।४७. ५० ५३ ३११२,५।११,१२,१५,१६,२०, ६।१०,११, निच्चसंदणा (नित्यस्यन्दना) प० २३२ ७१ से १०,१३,१४ से २१; ८।६ से १२, निच्चसी (नित्यशस्) उ० ३।७,१०,१४ १६:१०१२१ से २४. नि० १२१७; १७।१५ से निच्चोयगा (नित्योदका) प० २३२ १२२,१२४ निच्छय (निश्चय) उ० २३।३३ निग्गच्छ (निर+गम)-निग्गच्छइ दसा० १०॥ निच्छिण्ण (निस्तीर्ण) उ०३६।६७ १६. प०७५.-निग्गच्छंति प० ४४ निच्छिय (निश्चित) वचू० १७ निग्गच्छमाण (निर्गच्छत्) बसा० १०११८ निच्छीर (निःक्षीर) अ० ५६६२ निग्गच्छित्ता (निर्गस्य) दवा० १०११६.५० ४४ ।। निच्छूढ (निष्ठ्यूत) नं० ६० निग्गत (निर्गत) दसा० १०१६ निज्जत (निर्यत्) उ० २२।१४ निग्गम (निर्गम) अ० ७१३ -निज्जर (निर्+ज)-निज्जरिज्जइ उ० ३०।६. Page #1161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ निज्जरट्ठिय-निद्धमण —निज्जरेइ उ०२६।६ ५।११,१२; १ से ८ निज्जरठ्ठिय (निर्जराथिक) द० ६।४।४ निण्ण (निम्न) दसा० ७१२० निज्जरणया (निर्जरण) उ० २६१३३ निण्णाम (निर्नामन) अ० २८२ निज्जरा (निर्जरा) द०६।४ सू० ६. उ०२८।१४; निण्हव (नि-ह) --निण्हविज्ज उ०१।११. २६२०,२४ __-निण्हवे द० ८।३२ निज्जरापेहि (निर्जराप्रेक्षिन) उ० २।३७ नितिय (नित्य) व. ४१२१,२३. नि० २।३१ से ३६ इनिज्जा (निर-+या)-निज्जइ उ० ८६ नितिय (नत्यिक) नि० ४।३३,३४; १३।४६,५० निज्जाण (निर्याण) उ० २११६ नितियावादि (नित्यवादिन) दसा० ६।३ निजाणमग्ग (निर्याणमार्ग) आ०४/६. दसा० नित्तिण (निस्तृण) अ० ५३५ | १०।२४ से ३३ नित्थरण (निस्तरण) नं० ३८१५ निज्जाय (निर्यात) उ० २०१२; २२।१३ निदंस (नि---दर्शय)-निदंसिजइ अ०६०६. निज्जायमाण (निर्यात) दसा० १०२४ से ३३ -निसिज्जंति २०६६ निज्जायरूवरयय (निर्जातरूपरजत) द० १०१६ निदंसण (निदर्शन) अ० २६४।२ निज्जिण्ण (निर्जीर्ण) उ० २६७२ निदंसिय (निशित) अ०१६,३७,६०,८४,१०६, निज्जिय (निजित) उ० ६।५६; २३।३५ ५६६,६२६,६३८,६५०,६७६,७०३ निज्जुत्ति (नियुक्ति) नं० ८१ से ६१,१२३,१२७।५. निदाण (निदान) दसा० १०।२४ से ३२ अ० ५७१,५७२ निमोक्ख (निद्रामोक्ष) उ० २६।१८,४३ निज्जुत्तिअणुगम (निर्युक्त्यनुगम) अ० ७१०,७११, निद्दह (निर्+दह)-निद्दहेज्ज उ० १२,२३ ७१४ निद्दा (निद्रा) द० ८।४१. उ० १७।३; ३३१५. निज्जूढ (निएंढ) क० २।२३ अ० २८२ निज्जूहण (नि!हण) उ० ३६।२५२ निद्दा ( निद्रा)---निहायंति दसा० ६।५ निज्जूहिऊण (नियूह्य) उ० ३५।२० निदाइत्तए (निद्रातुम) दसा० ७।२१. क० १।१६; निज्जूहित्तए (निर्दू हितुम्) व० २।६ निद्दानिद्दा (निद्रानिद्रा) उ० ३३१५. अ० २८२ मिज्जूहित्ता (निर्गृह्य) दसा० ७१५. व० १०।३ । निद्दायमाण (निद्रात्) दसा० ७।२१ निज्जूहियव्व (निर्वृहितव्य) प० २८२. क० ४।२६ निद्दिट्ट (निर्दिष्ट) नं० १८।२.५० २,१०,१४ निज्झर (निर्भर) अ० ३१५।२ निद्दिस (निर्+दिश) द० ७।१० इनिज्झा (नि+ध्य)-निज्झाए द० ८।५४. निस (निर्देश) उ० ११२. अ० ३०८,७१३. व० -निज्झाएज्जा उ०१६ सू०६ ४११८ निज्झाइत्तु (नियात) उ० १६ सू०१६ निद्देसवत्ति (निर्देशतिन्) द० ६।३२,४० निज्झायमाण (निायत्) उ०१६ सू०६ निद्दोस (निर्दोष) अ० ३०७,३१८ निट्टव (नि+ष्ठापय)-निट्ठवेइ उ० २६५० निद्ध (स्निग्ध) उ० ३४१४,५; ३६।२०. अ० २६१, निट्ठाण (निष्ठान) द० ८।२२ २६३,५३३. दसा० ३।३.५० २२,२४,५८ निट्ठिय (निष्ठित) द० ७/४०. उ० ८.१७. अ० निद्धत (निर्मात) उ० २५।२१ ४२२,४२४,४२६,४३१,४३६,४३८. क० निबंधस (०) उ० ३४१२२ २।२४ से २७. व० श२० से २२,४।११,१२; निद्धमण (दे०) प० ५१ Page #1162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निद्धय-नियम निद्धय (स्निग्धक) उ० ३६।४० निडुण (निर्धू )-निद्धणे उ० ३।११ निद्धणि ताण (निर्धूय) उ० १९८७ निद्भुणे (निधूय) द० ७।५७ निद्भूम (निधूम) ५० ३४ निनाय (निनाद) प०६४ निन्न (निम्न) उ०१२।१२. दसा० ६६ निन्नेह (निस्नेह) उ०१४।४६ निपच्चक्खाण (निष्प्रत्याख्यान) दसा० ६॥३ इनिप्पज्ज (निर-पद)-निप्पज्जइ अ० २८६ निपडिकम्मया (निष्प्रतिकर्मता) उ० १६।७५ निप्परिग्गह (निष्परिप्रह) उ० १४१४६ निपिवास (निष्पिपास) उ०१६।४४ निप्पुलाय (निष्पुलाक) द०१०।१६ निप्फंद (निस्पन्द) प० ५३ इनिप्फरज (निर--पद)-निप्फज्जइ नं० ७०. अ० ३६८ निप्फण्ण (निष्पन्न) अ० ७२,३१५,५३१ निप्फन्नमेदिणीय (निष्पन्नमेदिनीय) ५० ५६ निप्फाव (निष्पाव) अ०३८४. दसा०६।३ निबंध ( निबन्ध)-निबंधइ उ० २६५ निबद्ध (निबद्ध) नं० २५।१०,८१ से ११,१२३ निब्भय (निर्भय) उ० २६।१८ निब्भेरिय (दे०) उ०१२।२६ निभ (निभ) उ० ३४१४,६ से ८. अ० ४।१६ निभेल (निभेल) प० २६ निमंत ( निमन्त्रय)-निमंतए द० ५।३७. -निमंतेज्ज द० ५।६५ निमंतण (निमन्त्रण) उ• २०३८ निमंतण (निमन्त्रणा) अ० २३६ निमंतयंत (निमन्त्रयत्) उ० १४।११ निमंतिय (निमन्त्रित) उ० २०१५७ । निमज्जि (निमज्जितुम) उ० ३२।१०५ निमित्त (निमित्त) ८०८१५०. उ०१७।१८; २०१४५,३६।२६६. नं० ३८१६. अ० ५७३. नि० १०७,८; १३१२१ निमेस (निमेष) उ० १६७४ निम्मम (निर्मम) उ० १६८६; ३५२१ निम्ममत्त (निर्ममत्व) उ० १६।२६ निम्मल (निर्मल) उ० ३६।६०,६१. नं० गा० ६. प० २६,३१ . निम्मलत्त (निर्मलत्व) अ० ५३३ निम्मलयर (निर्मलतर) आ० २१७; १४१७ निम्माय (निर्मात) प० ४२ निम्मेर (निर्मार) दसा० ६।३ निम्मोयणी (निर्मोचनी) उ० १४।३४ निम्मोह (निर्मोह) अ० २८२ नियंठ (निर्ग्रन्थ) उ० १२।१६; १५।११; १७।१ नियंठधम्म (निर्ग्रन्थधर्म) उ०२०।३८ निय (निज) व० ७१३ नियग (निजक) उ० १२।८; २२।१३. ५० ६६ मनियच्छ (नि+यम)-नियच्छई उ० १॥६. -नियच्छंति द०६।३१ नियट्ट ( निवृत)-नियट्टई उ० २।४३. -नियटेज्ज द० ५।२३ नियडि (निकृति) द० ५।१३७. दसा० ४।२।२६ नियडि (निकृति) (मत्) द०६।२० नियडि (बहुल) (निकृतिबहुल) वसा० ६१४ नियडिल्ल (निकृतिमत् ) उ० ३४।२५ इनियत्त (नि+वत) --नियत्तेइ उ० २६८. -नियत्तेज्ज उ० २४१२१ नियत्त (निवृत्त) उ० १४।४१; १९६१ नियत्तण (नीचत्व) द० ६।४३ नियत्तण (निवर्तन) उ० २४१२६ नियत्ति (निवृत्ति) उ० ३११२ नियत्तिय (नितित) द० २११३ नियम (नियम) दच० २।४, उ० १६।५।२०। ४१; २२।४०. नं० गा० ६,१३; सू० ५४१५. अ० १२२,१२४ से १२६,१२८,१२६,१३६ से १४२,१४५,१४६,१६६,१६८ से १७०,१७३, Page #1163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियमसो निल्लेव २०७,२०६,७०८. दसा० १०॥२४ से ३२ निरहंकार (निरहङ्कार) उ० १९८६ ; ३५।२१ नियमसो (नियमशस्) अ० ३०६।२ निराउय (निरायुष्क) अ० २८२ नियय (नियत) उ० १४११६. नं० १२६ निराणंद (निरानन्द) उ० २२।२८ . नियय (निजक) प० ११० निरामिस (निरामिष) उ०१४।४१,४६,४६ नियर (निकर) ५० ३३ निरारंभ (निरारम्भ) उ० २।१५; २०१३२,३४ नियल (निगड) दसा०६।३ निरालंबण (मिरालम्बन) उ० २६।३४. ५० ७८ नियलबंधण (निगडबन्धन) दसा० ६।३ निरावरण (निरावरण) उ० २६७२. अ० २८२. नियाग (नित्याग्र) द. ३२, ६।४८. उ० २०१४७ दसा० ८।१; १०१३३. प० १,८१,८७,१०८, नियागट्ठि (नियागाथिन ) उ० १७,२० ११५,१२६,१३०,१६०,१६६ नियाण (निदान) उ०१३।१,८,२८; १५१; १८। निरासय (निराशक) द० ६।४।४ ५२; २६६,३६।२५७,२५६ निरासव (निराम्रव) उ० २०१५२; ३०१६ निरइयार (निरतिचार) उ० २६१७. अ० ५५३ निरिधण (निरिन्धन) सा० ५।७।१३ निरिणत्त (निऋणत्व) दसा०४।१४ निरंकुस (निरङ्कुश) अ० २१ इनिरुंभ (नि-रुध)-निरु भइ उ० २९५ निरंगण (निरङ्गण) उ० २११२४ निरंजण (निरञ्जन) ५०७८ निरुभित्ता (निरुध्य) द०४।२३. उ० २६७३ निरंतर (निरन्तर) नं० १८१२. अ० १८५२ निरुट्टाइ (निरुत्थायिन्) उ०१।३० निरंतराय (निरन्तराय) उ० ३२।१०६. अ० २८२ निरुत्त (निरुक्त) ५०६ निरक्किय (निराकृत) उ०६।५६ निरुत्ति (निरुक्ति) अ० ७१३,७१५ निरट्र (निरर्थ) उ० ११८,२५; २०१५० निरुत्तिय (निरुक्तिज) अ० ३४६,३६८ निरढग (निरर्थक) उ० २१४२ निरुद्ध (निरुद्ध) उ० २६१२. १० ३१ निरट्ठय (निरर्थक) उ० २०१४६ निरुद्धय (निरुद्धक) दसा० ६।३।। निरणुकंप (निरनुकंप) अ० २१ निरुद्धपरियाय (निरुद्धपर्याय) व० ३।६,१० निरति (निऋति) अ० ३४२।२. ५० ८४ निरुद्धवासपरियाय (निरुद्धवर्षपर्याय) व० ३।१० निरत्थय (निरर्थक) उ०१८।२६ निरुवक्किट्ठ (निरुपक्लिष्ट) अ०४१७ निरुवक्केस (निरुपक्लेश) दचु० १ सू०१ निरय (निरय) दचू० १।१०,११. उ० ८।७. निरुवलेव (निरुपलेप) ५०७८ नं० ६१,१२१. अ० २८७,४१०. दसा० ६।३, निरुवहिय (निरुपधिक) उ०२६।३५ निरेयण (निरेजन) ५० ५३ निरयावलिया (निरयावलिका) नं० ७८. जोनं० निरोवलेव (निरुपलेप) उ०२।२२ निरवकंख (निरवकाक्ष) उ० ३०।६. १०८० निरोह (निरोध) उ० ४।८७२६; २६।१२६, ५६,७३ निरवच्च (निरपत्य) प०१८५ निलय (निलय) उ० ३२।१३ निरवसेस (निरवशेष) नं. १२७।५. अ० ५५७ निरवेक्ख (निरपेक्ष) उ० ६।१५ इनिलिज्ज (नी-ली)-निलिज्जिज्जा प० २५३ निरस्साय (निरास्वाद) उ०१६।३७ निल्लालिय (निालित) ५० २३ निरस्साविणी (निराश्राविणी) उ० २३१७१ निल्लेव (निर्लेप) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१, Page #1164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निव-निव्वेय ४३६,४३८ १०२४ से ३३.५०८१ निव (नप) उ० १८८; २०१३८ निव्वाणि (नर्वाणी) नं० गा० ४१ निवज्ज (नि+पद्)-निवज्जई उ० २७।५।। -निव्वाव (निर्- वापय्)--निव्वावए द० ८।८ निवड (नि+पत्)-निवडइ उ० १०११ -निव्वावेज्जा द० ४ सू० २० निवडिय (निपतित) द०६।२४ निव्वावंत (निर्वापयत) द. ४ सू० २० निवय (नि+पत्)-निवइज्जा प० २५३. निव्वावार (निापार) उ०६।१५ निवएज्जा प० २५६ निव्वाविया (निर्वाप्य) ६० ५।६३ निवयमाण (निपतत्) ५० २५२ निव्वाहण (निर्वाहण) उ० २५॥१० निवसण (निवसन) अ० ३२७,५२५ /निविद (निर+विद)-निविदए द० ४।१६ निवाय (निपात) उ० २१३५ निम्विकार (निविकार) अ० ३१८।२ निवार (नि+वारय)-निवारए द० २६१ निविगइ (निविकृति) दचू० २७ निवारण (निवारण) उ० २१७ निम्विगइ (निविकृतिक) आ० ६।१० निवारेउ (निवारयितुम्) उ० ३५१५ निविगार (निविकार) ३० ३।१३,१५,१७,१८,२० निवास (निवास) उ०३२।१३ निविज्ज (निविद्य) उ० १११२ निम्विटुकाइय (निविष्टकायिक) अ० ५५३ निविज्ज (निर्+विद्)-निविज्जति उ० ३।५ निविटकाइयकप्पठिति (निविष्टकायिककल्पस्थिति) निविस्समाण (निवेश्यमान) अ० ३२३ क० ६।२० निवेद (नि-+वेदय)-निवेदेज्जाह दसा० १०॥३. निविण्ण (निविण्ण) उ० १४१२,१६।१० -निवेदेमो दसा० १०॥६. निग्विति गिच्छ (निविचिकित्स) उ०२८।३१. क० निवेस (नि+विश)-निवेसइ उ० २७१५ ५।६,८ निवेस ( निवेशय)-निवेसयंति द०६।५३. निन्वित्ति (निर्वृत्ति) अ० ३७५,३७७,३७९,३८१, -निवेसेइ १० १० ३८३,३८५ निवेसइत्ता (निवेश्य) उ० ३२।१४ निम्वियार (निविकार) उ० २६५५ निवेसण (निवेशन) उ०१३।१८,१६ -निविस (निर+विश्)-निन्विसेज्जा क. निवेसेत्ता (निवेश्य) प० १० २।१३. व० २।२ निव्वत्त (निर्+वृत्)-निव्वत्तइ उ० ३२।३२. निम्विसमाण (निविशमान) व० १११५ से १८,२१, -निव्यत्तयंती उ० ३२।१०६.-निव्वत्तेइ २२ उ० २६।४ निव्विसमाणकप्पट्ठिति (निर्विशमानकल्पस्थिति) निव्वत्तिय (निर्वतित) ५० ६६ क०६।२० निवाघाय (निर्याघात) दसा० ८।१; १०१३३. निव्विसमाणय (निविशमानक) अ० ५५३ प० १,८१,८७,१०८,११५,१२६,१३०,१६०, निन्विसय (निविषय) उ०१४।४६ निव्वुइ (निर्वृत्ति) नं० गा० २२ निव्वाण (निर्वाण) द० ५।१३२. उ० ३।१२; निव्वय (निर्वृत) उ० २६।१३. ५० १४३,१५१ ११।६।१६।१८; २१२२०; २३१८३; २८।३०. निव्वेद (निर्वेद) दसा० १०।२६ से ३१ दसा० ५।७।१ निव्वेय (निर्वेद) उ० १८।१८२६१,३. अ० निव्वाणमग्ग (निर्वाणमार्ग) आ० ४१६. वसा ३१५. दसा० १०१२८ Page #1165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निव्वेयण-निस्सेस निव्वेयण (निवेदन) अ० २८२ ५।१०२. उ० २ सू० ३; २६२,५. अनं० ८. निव्वोदय (नीवोदक) नं० ३८।७ अ० १६,३७,६०,८४,१०६,२३६,५६६,६२६, निसंत (निशान्त) द० ६।१४. उ० ११८ ६३८,६५०,६७६,७०३. दसा० २१३. नि० ५।२ निसग्ग (रुइ) (निसर्ग (रुचि) उ० २८।१६,१७ निसूरण (निषूदन) उ० १८१४२ निसग्गरुइ (निसर्गरुचि) उ० २८।१८ निसेज्जा (निषद्या) द० ३१५; ६।५४,५६,५६. निसट्ठ (निसष्ट) क० २।२४ से २७. व०१ से ८ उ० १७१७,१६; २३।१७ निसण्ण (निषण्ण) उ० २३।१८. प० ८ इनिसेव (नि+ सेव)-निसेवए उ० ८।१२ निसन्न (निषण्ण) द० ५।४०. उ. २०१४. ५० निसेवण (निषेवण) उ० ३२।३ ४२,१०६ निसेवय (निषेवक) उ० १०।१८,१६ निसम्म (निशम्य) उ० १०॥३७. दसा० १०१७. निसेविय (निषेवित) उ० २०१३ ५०६ निसेवियव (निषेवितव्य) उ० ३२।१० निसा (निशा) प० २६,८३,२३७ निस्संकिय (निःशङ्कित) द० २५६,७६;७।१०. निसामित्ता (निशम्य) उ० ६।७. अ० ७१५१६ उ०२८।३१ निसामिया (निशम्य) उ० १७।१० निस्संग (निस्सन) उ० १९८९ निसिज्जा (निषद्या) प०८१ निस्संगत (निस्सङ्गत्व) उ० २६।३१ इनिसिय ( निषद)-निसिए द०८।४४ निस्संस (नशंस) उ० ३४१२२ इनिसिर (नि+ सूज)-निसिर द० ८।४८. निस्सर (निस्+स)-निस्सरई द० २।४ निसिरइ प० १५.-निसिरे उ०३२।२१ निस्सल्ल (निःशल्य) उ० २६।४१,४६; ३०।३ निस्ससि उस्ससियसम (निःश्वसितोच्छवसितसम) निसीइत्तए (निषत्तुम्) क० १११६ अ० ३०७८ निसीइत्ता (निषद्य) दसा० १०॥३. ५० ३७ निस्सा (निश्रा) क० १।२३,२४. व० ४१६,१०; निमोइत्तु (निषत्त) दसा० ३।३ ७।१६ निमीय ( निषद)-निसीएज्ज द० ५.१०८. निस्सास (निःश्वास) द० १०१२८ से ३२ उ० ११२१.-निसीएज्जा द० ४ सू० २२. निस्साहारण (निस्साधारण) व०१०।१८,२०,२२, उ० २।२०.-निसीयइप० ३७.-निसीयई २४,२६,२८,३० उ०१७।१३.-निसीयंति प० ४५.-निसीयति निस्सिघिय (निःशियित) नं०६० दसा० १०१३ निस्सिचिया (निषिच्य) द० २६३ निसीयंत (निषीदत्) द० ४ सू० २२ निस्सिय (निश्रित) द० १०॥४. उ० ८।१०; ३५।११ निसीयण (निषदन) उ० २४।२४ निस्सील (निःशील) दसा० ६।३ निसीयाव (नि--पादय)-निसीयावेज्जा द० निस्सेणि (निःश्रेणि) द० ५।६७ ४ सू० २२ निस्सेयस (निःश्रेयस) उ० ८।५. नं० ३८१.. निसीयावण (निषादन) क० ४।२७ दसा० १०१११ निसीह (निशीथ) नं० ७८. जोनं ६ निस्से यसकर (निःश्रेयसकर) ५० ७३ निसीहि (निषद्य) आ० ३।१ निस्सेस (निःशेष) द० ६।१६ निमोहिया (निधीधिका, नषेधिको) आ० ३।१. द० निस्सेस (नि.श्रेयस) उ० ८।३. वसा० ४११६,१७ Page #1166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ निह-नेगम निह (निभ) नं० गा० ३१ निहतूण (निहत्य) उ० २३।४१ इनिहण (नि-हन)-णिहणाहि ५० ७४ निय (निहत) उ० १२।३२ निहस (निकष) अ० २४७ निहा (नि+-धा)---निहे द १०८ निहाण (निधान) नं० ३८।४ निहाव (नि+धोपय)-निहावए व० १०१८ निहि (निधि) अ० १८५।३ निहिय (निहित) उ० ११११५ निहुअप्प (निभृतास्मन्) द० ६।२ निहुइंदिय (निभृतेन्द्रिय) द० १०।१० निहुय (निभृत) द० २।८; ६।३. उ० १६।४१; २०।३८; २२।४३ नी (णी)-निति उ० १४।१२.-नेइ उ० १३।२२ नीइकोविय (नीतिकोविद) उ० २११६ नीच (नीच) अ० ५४६ भनीण (नी)-नीणेइ उ० १६।२२.-नीति दसा० १०.१० नीणेत्ता (नीत्वा) दसा० १०.१० नीम (नीप) द० ५॥१२१ नीय (नीच) द० ५।१२५; ६।३४. उ० ११३४; ३३।१४५ नीयदुवार (नीचद्वार) द० ५।२० नीया (नीचक) उ० ३६।१४८ नीयागोय (नीचगोत्र) उ०२६।११ नीयावत्ति (नीचतिन्) उ० ११।१० नीयावादि (नित्यवाविन्) दसा०६७ नीयावित्ति (नीचवृत्ति) उ० ३४।२७ नीरय (नीरजस) द० ३।१४४२४,२५. उ० ६।५८; १८१५३. अ०४२२,४२४,४२६,४३१, ४३६,४३८. दसा० ५७।१६ नीरस (नीरस) उ०१५।१३ नील (नील) उ० ३४१३,११,४२,४६,५०,५६; ३६।१६,२३,७२. अ० २५८,२६३,५०६. ५० २८,३३,२६३,२६४ नीलमिगाईण (नीलमगाजिन) नि० ७।१० से १२; १७१२ से १४ नीललेस (नीललेश्य) अ० २७५ नीललेसा (नीललेश्या) उ० ३४१५,२४,३५ नीलवंत (नीलवत) उ० १११२८ नीलासोग (नीलाशोक) उ. ३४१५ नीलिया (नोलिका) द० ७।३४ नीव (नीप) ५० १०,३८ नीसंक (निःशङ्क) उ० १९४१ नीसमिय (निःश्वसित) अ० ५।३. नं०६० नीसा (दे०) द० ॥४५ नीसा (निश्रा) व० ५।६,१०.५० ८३,२३७. क० ३।१३. नि० २।४८ नीसास (निःश्वास) अ० ४१७ नीसेस (निःशेष) ८० ५।८८ नीहड (निहत) क० २।१५ से १७ नीहडिया (निर्ह तिका) क० २।२०,२१ नीहर (निस्+सारय)-नीहरंति उ०१८।१५ नीहरमाण (निस्सारयत्) क० ६।३ से ६ नीहरित्तए (निस्सारयितुम) सा० ७.१८. क० ६३. व० ८८ नीहारि (निर्हारिन्) उ० ३०।१३ नीहास (निर्हास) उ० २२।२८ नु (नु) द० २।१. उ० ४।१ नणं (नूनम् ) उ० २।४०. दसा० १०॥२३ नेआउय (नर्यातक) आ० ४।६. उ० ३।६,४।५; ___७२५; १०।३१. नेउणिय (नैपुण्य) द० ६।३० नेग (नैक) अ० ७१५ नेगम (नैगम) अ० १४,३५,५८,८२,१०७,११३ से १२०,१२२ से १३०,१५७ से १६४,१६६ से १७४,१६८ से २०५,२०७ से २०६,२११ से २१३,२१५,५५५ से ५५७,५६४,५६८,६०६, Page #1167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेतम्व-पउंज १७३ ६२४,६३६,६४८,६७४,७०१,७१५ नोइंदियपच्चक्ख (नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष) नं० ४,६. अ० नेतब्ध (नेतंव्य) ५० १२८ ५१६,५१८ नेतु (नेतृ) दसा० ६।२।१६ नोउस्स प्पिणी (नोउत्सपिणी) नं०६६ नेत्त (नेत्र) उ० १२।२६. दसा० ६।३ नोओसप्पिणी (नोअवसर्पिणी) नं० ६६ नेत्र ( ) अ० ५२६ नोकसाय (नोकषाय) उ० ३३।१० नेमि (नेमि) नं० गा० १६ नोकसायज (नोकषायज) उ० ३३।११ नेमित्तिय (नैमित्तिक) अ० ५७३ नोखंध (नोस्कन्ध) अ० ५५७ नेिय (णी)-नेइ उ० २६।१६ नोगोण्ण (नोगौण) अ० ३१६,३२१ नेरइय (नैरयिक) द०४ सू०६; चू० १११५. नोजीव (नोजीव) अ० ५५७ उ० १०॥१४; २६५३३।१२; ३४।४४; ३६। नोसामाइय (नोसामायिक) अ० ७१४ १५५ से १५७,१६७,१६८. नं० ७,२२. अ० २५४,२७५,४०१ से ४०३,४३२,४३३,४४५, पइ (पति) उ० १४।३६. नं० ३८।३ ४४७,४५६,४६२ से ४६४,४६६,४६४,४६८, पइ (प्रति) उ० ३०।१२ ५००,५०२,५०४,५६६. दसा०६५ से ७ पइगिज्झ (प्रतिगा) उ० २११३ नेरइयाउय (नैरयिकायुष्क) अ० २८२ पइट्ठा (प्रतिष्ठा) आ० ६।११. उ० २३१६५,६८. नेवत्थ (नेपथ्य) वसा० ६।१८ नं० ४६.५० १० नेसज्जिय (नषधिक) दसा० ७२८.५० १३८ पइट्ठाण (प्रतिष्ठान) अ० ३०१ नेसज्जिया (नषधिका) क० ५२२३ पइट्ठिय (प्रतिष्ठित) द० ४ सू० २२. उ० ३६।५५, नेसाय (निषाद) अ० २६८,२६६,३०० ५६,६३. दसा० २३. प० २८,३३. नि० नेसायसरमंत (लिषादस्वरवत्) अ० ३०२७ १।१०,७१७५; १३१८; १४।२७; १५।६ से १२; नेह (स्नेह) उ० १३।१५, २३।४३, २६।४६ १६।८ से ११,४८; १८१५६,६१ नेपातिकम् ( ) अ० २७० पइण्णग (प्रकीर्णक) उ० २८।२३. नं० ७६ नो (नो) द० २।४. उ०१।११. नं० २३. अनं० पइण्णतव (प्रकीर्णतप) उ० ३०।११ ७. अ० २. दसा० ३।३. प० २३२. क० १११. पइण्णवाइ (प्रकीर्णवादिन) उ० ११६ व० १११६ पइण्णा (प्रतिज्ञा) उ० २३३३३ नोआगमओ (नोमागमतस) अ० १२,१५,२१,२२, पइण्णि (प्रतिज्ञावत्) उ०६९ २४,२७,३३,३६,४५,४६,४८,५०,५६,५६,६६, पइप्प (प्र+दीप)-पइप्पए अ० ६४३ ७०,७२,८०,८३,६२,६५,६७,६६,१०५,१०८, पइरिक्क (प्रतिरिक्त) उ. २२३; ३५॥६. प० ५८ १५४.५६२.५६५.५६८,६१४,६२२,६२५, पइरिक्कया (प्रतिरिक्तता) दच० २१५ ६२८,६२६,६३१,६३४,६३७,६४०,६४१, पइविसेस (प्रतिविशेष) नं० १६. अ० ११,३२, ६४३,६४६,६४६,६६४,६६५,६६७,६६६,६७२, ५५,७६,१०४,५६१ ६७५,६६०,६६१,६६३,६६५,६६६,७०२,७०५, पईव (प्रदीप) द० ६।३४. उ० ३४१७ नं० १२ से ७०६,७०८ १५.५० २७,३२. क० २१७ नोआगमतो (नोआगमतस) अनं० ५,७,२२ पिउंज (प्र+युज)-पउंजइ दसा० ६३. नोइंदिय (नोइन्द्रिय) नं० ४२,४४,४६,४८,५६ -परंजंति उ०८।१३. प०७३. -पउंजति N Page #1168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ परंजंत-पंच दसा०१०।१८. नि० १३३२५. -पउंजे द० पएसट्ठया (प्रदेशार्थ) अ० १३०,१७४ ८।४०.-पउंजेज्ज उ० २४।१३. -पउजेज्जा पएसनिप्फण्ण (प्रदेशनिष्पन्न) अ० ३७०,३७१, व०७।२३ ३८६,३८७,४१३,४१४ पउंजंत (प्रयुञ्जत) नि० १३१२५ से २७ पओग (प्रयोग) उ०२६।३६, ३२१४१,४४,५७,७०, पउंजमाण (प्रयुञ्जत्) उ० २०१४५. दसा० १०।१४ ८ ३,६६. अ० २७६ पउंजित्तु (प्रयोक्तृ) दसा० ४।१२ पओगसंपदा (प्रयोगसम्पदा) दसा० ४१३,१२ पउट्ठ (प्रकोष्ठ) प० २३ पओय (पयोद) द० ७॥५२ पउत्त (प्रयुक्त) द० २६७. व. ६।१७ से ३० पओय (प्रतोद) द० ६।३६ पउम (पद्म) द०५।११४,११६. नं० गा०८. पओयण (प्रयोजन) उ० २३।३२; ३२।१०५. अ० २१६,४१७ अ० ११६,११८,१३३,१३५,१६०,१६२,२०१, पउमंग (पद्मांग) अ० २१६,४२७ २०३,३७५,३७७,३७६,३८१,३८३,३८५, पउमग (पद्मक) द० ६।६३ ३६२,४०१,४१०,४२३,४२५,४३०,४३२, पउमगुम्म (पद्मगुल्म) उ० १३।१ ४३७,४४०. प० २७२ पउमचुण्ण (पद्मचूर्ण) नि० ११५; ६१६ पओयलट्ठि (प्रतोदयष्टि) दसा० १०।१० पउमद्दह (पद्मद्रह) प० २४ पओयधर (प्रतोदधर) दसा० १०।१० पउमप्पभ (पद्मप्रभ) अ० २२७. १० १५५ पओस (प्रदोष) उ० ८।२; ३२।२६,३३,३६,४६, पउमप्पह (पद्मप्रभ) आ० २।२५।४।२ ५२,५६,६५,७२,७८,८५,६१,६८,३४।२३ पउय (प्रयुत) अ० २१६,४१७ पिओस (प्रदूषय)-पओसए उ० २।११ पउयंग (प्रयुताङ्ग) अ० २१६,४१७ पओसकाल (प्रदोषकाल) उ० २६११६ पउमलया (पद्मलता) प० ३२,४२ पंक (पङ्क) दचू० ११७. उ० ११४८; २।१७,३६. पउमसर (पद्मसरस्) ५० ४,२०,३० क०६।८. नि० ३१६७;४।१०५; ६७६; पउमिणी (पद्मिनी) प० ३० ७।६५; १११६२; १५॥६४,१५०; १७।६६,१२० पउमुप्पल (पद्मोत्पल) प० २५ पंकगय (पङ्कगत) नि० १८।१६,२३,२५ से २८, पउर (प्रचुर) उ० ८।१; ३२।११. नं० गा० १५. अ० ५३२ पंकजल (पङ्कजल) उ० १३॥३० पउसी (बकुसी) नि० ६।२६ पंकत्ता (पङ्कत्व) दसा० ७।२२ Vपउस्स (प्र-द्विष)-पउस्सइ उ० १५२११. पंकप्पभा (पङ्कप्रभा) अ० १८१,१८२,२८७ -पउस्से उ०४।११ पंकप्पभाय (पङ्कप्रभाज) अ० २५४ पएस (प्रदेश) उ० ३३।१८; ३६।५,६,१०. नं० पंकबहुल (पङ्कबहुल) दसा० ६।४ २१,७०. अ० १५६,१६३,१६३,१६४,३८७, पंकाभा (पङ्काभा) उ० ३६।१५७ ४३६,४३८,४३६,४४३,४४४,२५४,५५६, पंकायतण (पङ्कायतन) नि० ३।७५ ५५७. क०४।२५,५।११,१२. व० ८।१. पंख (पक्ष) उ० १४।३० नि०६।१२ पंच (पञ्चन) आ० ४।३. द० ३।११. उ० ११४७. पएस (दे०) नि १७४१३६ नं० गा० ७. अ० २१७. दसा० ७।३. प० १. पएसग्ग (प्रदेशाप्र) उ० २६।२३, ३३।१६,१७,२४ क० २।१३. व० २।२७. नि० ६७ Page #1169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचग-पंढर पंचग (पञ्चक) अ० २८६, २६६ पंचथिकाय ( पञ्चास्तिकाय) नं० १२६ पंचनद (पञ्चनद) अ० ३५४ पंचम (पञ्चम) द० ४ सू० १५. उ० २३।१७; २६।३; ३०।११; ३३।५; ३६ । १६४. नं० ३८, ८५. अ० २६८ से ३०१, ३०८,४९०. दसा० ६४. प० १७,२५७,२७० क० २२८,२६. व० ५८,१० पंचमग (पञ्चमक) प० १६७, १९८ पंचमय ( पञ्चमक) प० २५७, २५८ पंचमसरमंत (पञ्चमस्वरवत्) अ० ३०२५ पंचमासि (पञ्चमासिक) १० १२४, ५, ६ से १८. नि० २० ४, ५, ६ से १८,२०,२६,३१,४३,५० पंचमासिया ( पाञ्च मासिकी ) दसा० ७ ३,२६ पंचमिया (पञ्चमिका) अ० ३०६ पंचमी (पञ्चमी) प० १२८. व० १०३ पंचमुट्ठिय (पञ्चमुष्टिक) प० ७५, ११३, १२६ पंचवासपरियाय ( पञ्चवर्षपर्याय) व० ३।५, ६; ७२१; १०।२७ पंचविह (पञ्चविध) उ० १६।१०; २८०४,५, २६, ७२; ३३।४,१५; ३६।२०५. नं० २,५,८१, ६२. जोनं० १. अ० १, ४०, ४३, ४४, ११४, १३१,१५८, १६६,२१६, २५७, २५८, २६०, २६२,२७०,३७२,५०८, ५०६, ५११, ५१३, ५१७, ५२१,५५३, ५५७. दसा० १०।१६. प० २६३ से २७०. व० १०/६ पंचवीस ( पञ्चविंशति) आ० ४८ पंचसट्ठि (पञ्चषष्टि) प० १४३ पंचसिक्खिय ( पञ्चशिक्षित) उ० २३।१२,२३ पंचहत्तर (पञ्चसप्तति) प० २ पंचहा (पञ्चधा ) उ० २४ ८; ३०।१४, ३४; ३६ । १५,१६,२१,८५,११८, १७२,२०८, २१६ पंचाल (पञ्चाल ) उ० १३।१३,२६,३४, १८।४५ पंचासीइ (पञ्चाशीति) नं० ८१ पंचासीइम (पञ्चाशीतितम) प० १३६ पंचा (पञ्चाह) व० ८४ पंचिदिय (पञ्चेन्द्रिय) आ० ४।४. द० ४ सू० ६; ७।२१. उ० ६ ३६; ३६ १२६, १५५, १७०. अ० २५४, ४४५,४५३, ४८६,४८७. प० ६,३८, ४७,१०१,१७६ पंचिदिकाय (पञ्चेन्द्रियकाय ) उ० १० १३ पंचिदियत्त (पञ्चेन्द्रियत्व ) उ०१०।१८ पंचिदिया (पञ्चेन्द्रियता) उ० १०।१७ पंचुत्तरपलसइय (पञ्चोत्तरपलशतिक) अ० ३७८ पंचेंद्रिय (पञ्चेन्द्रिय) नं० ७।२५. दसा० ५।७ पंजर ( पञ्जर) उ० १४।४१; २२।१४,१६ पंजलि ( प्राञ्जलि) द० ६।१२, उ०२०।७; २५।१३ पंजलिउड (प्राञ्जलिपुट) प० १६ पंजलिकड ( कृतप्राञ्जलि) उ०१४ | १ ; २६ | ε प० २० पंजलीउड ( प्राञ्जलिपुट) उ० १।२२; २५।१७ पंडग (पण्डक) द० ७/१२. उ० १६ सू० ३ पंड (पण्डक) क० ४१ ४, ५ पंडरंग (पाण्डराङ्ग) अ० ३४४ पंडिय (पण्डित) द० २।११; ५।१२६, १२७ ६।४।१ चू० १।११. उ० ११६, ३७ ४।६, ५१३, १७; ६।२; ७१६, ३० ; । ६२; १६६६; २२/४६; २४ । २७; ३०।३७; ३१।२१ पंडियमाणि (पण्डितमानिन् ) उ०६।१० पंडिवीरियलद्धि (पण्डितवीर्यलब्धि) अ० २८५ पंडु (पाण्डु) उ० ३६।७२ पंडुप (पाण्डुपत्र ) अ० ५६६/४ पंडुभद्द (पाण्डुभद्र) १० १६१।२ पंडुप (पाण्डुकपत्र ) अ० ५६६।३ १७५ पंडुयय ( पाण्डुक) उ० १० १ पंडुर (पाण्डुर) उ० ३५ ४, ३६ ६१. अ० १६ से २१. १० २३,२६,२८ पंडुरंग (पाण्डुराङ्ग) अ० २०, २६ पंडुरतर ( पाण्डुरतर) प० २१ पंडुर (पाण्डुरक) उ० १० २१ से २६ Page #1170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंत-पगाम पंत (प्रान्त) द० ५॥१३४. उ० ८।१२; १२।४; -पक्खंदे द० २६ १५॥४. दसा० ५।७।४ पक्खपिंड (पक्षपिण्ड) उ० १११६ पंतकुल (प्रान्तकुल) उ०१५।१३. दसा० १०॥३२. पक्खलंत (प्रस्खलत्) द० ॥५ प०११,१२,१४,१५ पक्खि (पक्षिन) द० ७।२२. उ० ४१६; ६।१५; पंति (पङ्क्ति) दसा० १०।१६. प० ७५ १३।३१; १४।३०; १९१५८,७६; २०१३; ३२॥ पंथ (पथिन) उ० २१५. अ० ३८०. क. ४१२८ १०३६।१८८. अ० ३२७. ५०७८ पंसुखार (पांशुक्षार) द० ३८ पक्खिजाति (पक्षिजाति) क० ५।१३,१४. नि० पंसुपिसाय (पांशुपिशाच) उ० १२।६,७ ७।८३ से ८५ पकंपमाण (प्रकम्पमान) प० २८ पक्खिणी (पक्षिनी) उ० १४।४१ पकप्प (प्रकल्प) उ० ३१११८ पक्खित्त (प्रक्षिप्त) नं० ५३. अ०४३६,४६०,५८६, पिकर (प्र+कृ)-पकरेइ उ० २६।२३. दसा० ५८७,५६०,५९३,५६६,५६६,६०२. दसा० हा२.-पकरेंति उ० १११३.-पगरेह उ० १२॥३६ पक्खिप्पमाण (प्रक्षिप्यमान) नं० ५३. अ० ५८६ पकर (प्रकर) १० २४ पक्खिय (पाक्षिक) दसा० ५।७. प० २८१. नि० पकामभोइ (प्रकामभोजिन्) २० ८।१७ २०३० से ४५,४७,४६,५१ पकिण्ण (प्रकीर्ण) उ० १२।१३ पक्खिव (प्र-क्षिप)-पक्खिवइ प० १५. व. पकित्तिय (प्रकीर्तित) उ० ३६।१६,१८,१६,२१, ६।४५.-पक्खिविज्जा नं ५३ ८५,६४,९६,११८,१२६,१२७,१३६,१४५ पक्खिवित्ता (प्रक्षिप्य) प० १५ ।। पकुव्व (प्र+कृ)-पकुव्वइ उ० १११७.-- पक्खुलमाण (प्रस्खलत्) क०६७ पकुव्वई द० २१३२.--पकुव्वति दसा० पिक्खोड (प्र+स्फोटय)-पक्खोडावेज्जा द. ६।२।१ ४ सू० १६.-पक्खोडेज्जा द० ४ सु० १६ पक्क (पक्व) द० ७।३२,३४,४२. उ० १९४४६,५७; पक्खोडंत (प्रस्फोटयत्) द० ४ सू०१६ ३४।१३. क० ११३ से ५ पगइ (प्रकृति) द०६।३ पक्कणी (पक्कणी) नि० ६।२६ पगड (प्रकृत) द० ५।४७,४६,५१,५३; ८.५१% पक्कम (प्र+क्रम् )-पक्कमई उ० ३।१३. चू० १ सू० १. उ० १३८ -पक्कमति द० ३।१३. उ०२७।१४ पगड (प्रगट) उ० १३६ पक्कीलिय (प्रक्रीडित) ५० ५६,६४ पगडि (प्रकृति) अ० ६१७ पक्ख (पक्ष) उ० ५।२३; २६।१४,१५; २७।१४. पगति (प्रकृति) प० ७५ अ० २१६,३१०,४१५,४१७. प० १७,२४,५६, पगब्भ (प्रगल्भ)-पगब्भई उ०५७ ७४,८१,८४,१०६,१११,११३,११५,१२४,१२७ पगब्भ (प्रगल्भ) नं० गा० ३६ से १३०,१३८,१६१,१६३,१६५,१६६,१८०. पगर (प्र-+-कृ)-पगरेह उ० १२।३६ नि० ७८३ पगलंत (प्रगलत्) नं० गा० १४ पक्खओ (पक्षतस्) द० ८।४५. उ० १।१८ पगलिय (प्रगलित) नं० गा० १५ पक्खंत (पक्षान्त) नं० १८१४ पगाढ (प्रगाढ) उ० ५।१२; १६७२. दसा०६५ पिक्खंद (प्र+स्कन्द)-पक्खंद उ० १२।२७. पगाम (प्रकाम) उ० १४।१३,१६,३१, ३२।१० Page #1171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पगामभोइ-पच्चोगिलंत पगामभोइ (प्रकाममोजिन् ) उ०३२।११ पगामसेज्जा ( प्रकामशय्या) आ० ४।५ पगामसो ( प्रकामशस् ) उ० १७१३ पगार (प्रकार) उ० ३२।१०६ पगास (प्रकाश) उ० २०।४२. अ० १६,२०,३१६. दसा० ७ २०, २७, ४२ पगासण ( प्रकाशन) उ० ३२२ ( गिज्भ ( प्र + गध् ) – पगिज्भेज्जा उ० ८।१६ पच्चत्थिम ( पाश्चात्य ) क० ११४७ पच्चत्य ( प्रत्यवस्तृत) प० ४२ / पञ्चप्पिण ( प्रति + अर्पय् ) - पच्चप्पिणइ प० १५. पच्चप्पिणंति प० ४१ पच्चप्पिणति दसा० १०।७. नि० १।३५ - पच्चप्पिणह प० ४०. - पच्चप्पिणाहि दसा० १०१६. प० १४. - पच्चप्पिणिस्सामि नि० ५।१५ . १७७ पच्चपिणंत ( प्रत्यर्पयत् ) नि० ११३५ से ३८ ५१ से २२ पभि ( प्रगृह्य ) उ० १४ । ५० पगिज्भिय ( प्रगृह्य ) क० ५।१६ पहिय ( प्रगृहीत) दसा ० १० १७,२४ पस ( प्र + घुष् ) - पघंसेज्ज नि० ३।४७ पसंत (प्रधर्षत् ) नि० ३।४७ ४ ८५ ६ ५६; ७/४५; ११३४२; १४ १४, १५, १८, १६; १५॥ १३०; १८/४६, ४७, ५०, ५१ पसाव ( प्र + घर्षय् ) – पघंसावेज्जा नि० १५/४४ पसावेत ( प्रघर्षयत् ) नि० १५/४४; १७।४६,१०० पच्चंग ( प्रत्यङ्ग ) द० ८५७. उ० १६।४ पच्चति ( प्रात्यन्तिक) नि० १६ २७ पच्चक्ख ( प्रत्यक्ष ) द० ५।१२८. नं० ३।४,३३. अ० ६१५,६१६,६१८. व० ७१४,५ / पच्चक्ख ( प्रति + आ + ख्या) - पच्चक्खाइ आ० ६।१. दसा० १०1३१. पच्चक्खाति दसा० १०१३३. - पञ्चक्खामि आ० १।२. द० ४ सू० ११ पच्चक्खओ ( प्रत्यक्षतस् ) द० ६/४७ पच्चखाइत्ता ( प्रत्याख्याय) दसा० १० ३२ पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) आ० ६. उ० २६ २६; २६।१,१४,३४ से ४२. नं ७५,८६ से ८६,६१, १०४,११३. जोनं० ६. अ० ७४. दसा० ६८ से १८; १०३०, ३१. नि० १२/३ पचखाय ( प्रत्याख्यात) आ० ४।६. द० ४।१८ से पच्चुवेक्खित्ता ( प्रत्युपेक्ष्य ) दसा० १०।१० २३. प० ६२ पच्चसकाल ( प्रत्यूषकाल ) प० ४०,६२,१०६ / पच्चोगिल ( प्रति + अव + गिल्) - पच्चोगिलति पञ्चणुभवमाण ( प्रत्यनुभवत्) दसा० ६।५ / पचणुहव (प्रति + अनु + भू ) --पच्चणु होइ ३० १३।२३ नि० १०।२६ पच्चो गिलत ( प्रत्यवगलत् ) नि० १०।२६ पच्चपिणित्ता ( प्रत्ययं ) नि० ५।२३ - / पच्चभिजाण ( प्रति + अभि + - ज्ञा ) - पच्चभिजाणेज्जा अ० ५.२० पच्चमाण ( पच्यमान) उ०३२।२० पच्चय (प्रत्यय) उ० २३।३२. अ० ७१३ पञ्चवलंबित्तए ( प्रत्यवलम्बितुम् ) दसा० ७।१७ पच्चवाय ( प्रत्यपाय ) प० २७१, २७३ से २७५ पच्चवायय ( प्रत्यपश्यक ) उ० १०1३ / पच्चाय ( प्रति + आ + या ) पच्चा इस्सामि दसा १००३१ - पच्चायंति दसा० ६/३. -- पच्चायाति दसा० १०।२४ पच्चायाइ ( प्रत्यायाति ) नं० ८६ से ८६,६१ पच्चावट्टणया ( प्रत्यावर्तनता) नं० ४७ / पच्चुण्णम ( प्रति + उत् + मम् ) – पच्चण्णम इ प० १० पच्चण्णमित्ता (प्रत्युन्नम्य) प० १० पच्चद्धरितु (प्रत्युद्धरित) दसा० ४।२० पच्चपण ( प्रत्युत्पन्न ) अ० ७१५।३. प० १४ पच्चप्पण्णग्गाह (प्रत्युत्पन्नग्राहिन् ) अ० ७१५।३ पच्चप्पन्न ( प्रत्युत्पन्न ) द० ७८ से १० उ० ७६ / पच्चुवेक्ख ( प्रति + उप + ईस् ) – पच्चुवेक्खेति दसा० १०।१० Page #1172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्चोगिलमाण-पज्जोसवित्तए १६५ पच्चोगिलमाण (प्रत्यवगिलत) क० ५।१० ६३,१०८,१०६,११७,११८,१२७,१३६,१४५ पच्चोनियत्त (प्रत्यवनिवृत्त) प० ३१ पज्जत्तग (पर्याप्तक) नं० २३. अ० २५४. दसा० पच्चोरुभ (प्रति+अव+ह.)-पच्चोरुभति ५१७. प० १०१,१७६ दसा० १०।१० पज्जत्तय (पर्याप्तक) नं० २५. अ० २५४ पच्चोरुभित्ता (प्रत्यवाह्य) दसा० १०।१६. प० १० पज्जय (पर्यय) उ० ३५११६ पिच्चोरुह (प्रति + अव+रह.)-पच्चोरुहइ पज्जय (प्रार्यक) द० ७.१८ दसा० १०।१६. प० १० पज्जलंत (प्रज्वलत्) प० २४,२७ पच्चोरुहिता (प्रत्यवरुह्य) दसा० १०।१६. प०१० पज्जलण (प्रज्वलन) उ० १४।१० पच्चोसक्कित्तए (प्रत्यवष्वष्कितुम्) दसा० ७.२४ पज्जलिय (प्रज्वलित) उ० १११२६ पच्छन्नकाल (प्रच्छन्नकाल) आ०६।२,३ पज्जव (पर्यव) दचू० १११६. उ० २८।५,६,१३, पच्छा (पश्चात्) द० ५।६१. उ० २।४१. अ० २६८,५७ से ५६; ३०।१४. नं० १८१७८१ १६. दसा० ३।३. प० ६६. क० १६. से ६१,१२३. अनं० २८. अ० ५१,२४७,२५५, व० १११५. नि० २०३८ २६३,५५२,५७१,५७२. दसा० ५७७१ पच्छाउत्त (पश्चादायुक्त) दसा० ६।१८. प० २५५. पज्जवग्गक्खर (पर्यवाग्राक्षर) नं०७० व०६।१ पज्जवचरय (पर्यवचरक) उ० ३०।२४ पच्छाकड (पश्चात्कृत) व० ११३३ पज्जवसाण (पर्यवसान) आ० ४।६. अ० ५५६. ५० पच्छाकम्म (पश्चात्कर्मन्) द० ५।३५; ६।५२ पच्छाकम्भिया (पश्चात्कमिका) आ० ४१६ पज्जाय (पर्याय) अ०७०८४ पच्छाणुताव (पश्चानुताप) उ० २०१४८; २६७; पज्जालिया (प्रज्वाल्य) द० ७।६३ ३२॥१०४ पज्जिया (प्रायिका) द० ७.१५ पच्छाणुतावय (पश्चानुतापक) उ० १०॥३३ पज्जुवट्ठिय (पर्युपस्थित) उ० ६६१, १८:४६ पच्छाणुपुवी (पश्चानुपूर्वी) अ० १४७,१४६,१५१, पिज्जुवास (परि+उप+आस्)-पज्जुवासइ १५३,१७६,१७८,१८०.१८२,१८४,१८६,१८८, दसा० १०११६.-पज्जुवासामो दसा० १०॥११. १९०,१६२,१६४,२१८,२२०,२२२,२२४,२२६ -पज्जुवासेज्जा द० ८।४३. व. १०१२. २२८,२३०,२३२,२३४,२३६,२३८,२४०, -पज्जुवासेति दसा० १०६ । २४२,२४४ पज्जुवासणा (पर्युपासना) दसा० १०॥११,१६ पच्छायइत्ता (प्रच्छाद्य) उ० १२१८ पच्छासंथव (पश्चासंस्तव) नि० २१३७ पिज्जोसव (परि+ वस्, परि+उप+शम्) -पज्जोसवेइ प० २२३. --पज्जोसवेंति पच्छासंथय (पश्चादसंस्तुत) नि० २।३८ प० २२५. –पज्जोसवेति प० २२४. नि० १०॥ पच्छिम (पश्चिम) उ० २३।२६,८७. अ० ६५. ३६.–पज्जोसवेमो प० २३० प० १३०,१६५. क० ४।१२. नि० १२।३१; पज्जोसवणा (पर्युषणा, पर्युपशमन) प० २८१,२८२. १६१८ नि० २।४६; १०।३६,३८,३६ पिजह (प्र+हा)-पजहामि उ०१२।४६. -पजहे उ० १५०६ पज्जोसवणाकप्प (पर्युषणाकल्प, पर्युपशमनकल्प) पिजुंज (प्र+युज्)-पजंजई उ० ६।३० ५०२८८ पज्जत्त (पर्याप्त) उ० ३६१७०,७१,८४,८५,६२, पज्जोसवित्तए (पर्युषितुम्) प० २३० Page #1173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जोसविय-पडिक्कम १७९ पज्जोसविय (पर्युषित) प० २३१ से २६१,२७१, पट्ठिय (प्रस्थित) द० २।२. उ० २३।६१,६३; २७३ से २८६. व०४।१२,५।१२;८।१. २७॥४. व० ३१३,१५,१७,१८,२०,२२. नि. नि० १०॥३५ ६।१५,१७; १६॥१२ पज्जोसवेंत (परिवसत) नि० १०३६,३७,४० पिड (पत्)-पडइ द० ६६५. उ० २७.५. पज्जोसवेत्तए (पर्यषितम) क. ५॥४१ -पडंति उ० १८.२५ पज्जोसवेमाण (परिवसत) प० २५३ पड (पट) उ०१६।८७. नं० ३८।३. अ० २५३, पज्झाय (प्रध्यात) अ० ३१७।२ ३३१,३५३,३८१,५२३,५५२. दसा० १०१११. पट (पट) अ० २६७ प०४२ पट (पटु) अ० २६८ पडंत (पतत्) द० ५।८. उ० १४१२१; १९६०. अ० ५६६२ पटोत्र ( ) अ० २६७ पडग (पटग) अनं० १३ पट्ट (पट्ट) अनं० १७. अ० ४३.५० २०,४२. नि. पडण (पतन) नं० ३८७. दसा० १०२८ से ३२ ७७ से ८; १७१९ से ११ पडल (पटल) दसा० ६।५. प० २७ पट्टकार (पट्टकार) अ० ३६० पडसाडिया (पटसाटिका) अ० ४१६ पट्टण (पत्तन) उ०३०।१६. अ० ३२३,५५६. पडह (पटह) दसा० १०।१७. ५० ६४,७५. नि० दसा० १०।१८. ५० ४२,५१. क० ११६. व. १७११३६ २३३४६,१०. नि० ५।३४; १२।२०१७॥ पडागा (पताका) दचू० १ ० १. नं० गा० ६. १४२ दसा० १०।१४. प० ६२,७४ पट्टणपह (पत्तनपथ) नि० १२।२३; १७११४५ पडि (पटिन्) अ० ३३१ पट्टणमह (पत्तनमह) नि० १२।२१,१७११४३ पिडिआय (प्रति+आ+पा (वा) )-पडियापट्टणवह (पत्तनवध) नि० १२।२२; १७।१४४ यई द० १०१ पट्टसाडिया (पट्टसाटिका) अ० ४१६ पडिएत्तए (प्रत्येतुम्') क० ३।३३ पट्टिस (पट्टिश) उ० १९५५ पडिकम्म (प्रतिकर्मन्) उ० १९७६ पट्ठ (पृष्ट) उ० ५०१ पडिकुट्ठ (प्रतिक्रुष्ट) द० ५।१७ पट्ट (प्रष्ठ) प० ४२ पिडिकूल (प्रति+कूलम्) -पडिकूलेइ पट्टव (प्र-स्थापय)-पट्टविसु प० ८८. उ० २७।११ -पट्टवेज्जा व० १०१६ पडिकूलभासि (प्रतिकूलभाषिन्) उ० १२।१६ पट्ठवणा (प्रस्थापना) जोनं० ३,४,१०. अ० ३ से ५ पडिकोह (प्रतिक्रोध) द० ६।५७ व० १२१५ से १८. नि० २०११५ से १८ पडिक्कंत (प्रतिक्रान्त) आ० ४।६. द. ४ सू० ६. पट्टविज्जमाण (प्रस्थाप्यमान) क० ४।२६ दसा० १०।२४ से ३२ पट्टवित (प्रस्थापित) दसा० ६।८ से १८ पिडिक्कम (प्रति+कम्)-पडिक्कमंति दसा० { पट्टविय (प्रस्थापित) क० ४।२६. ५० १३१५ से १०।३४.-पडिक्कमामि आ० ११२. द. ४ सू० १८. नि० २०११५ से १८ १० उ०१८।३१. पडिक्कमावेज्जाक० पट्टवियन्व (प्रस्थापयितव्य) क० ५।४० ४।२६. व० २२३.-पडिक्कमे द० २८१. उ० ११३१ पट्टिवेत्ताणं (प्रस्थाप्य) द० ५।६३ पट्टावियव्व (प्रस्थापयितव्य) व० २।६ से १७ १. प्रत्यागन्तुम् Page #1174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० पडिक्कमण-पडिणाविय पडिक्कमण (प्रतिक्रमण) आ० ४. उ० २६।१,१२. पडिग्गाहेत (प्रतिगलत) नि० ३।१४,१५,४१३७; नं. ७५. जोनं० ६. अ०७४. व० ४।२०,२२ ५।३४,३५, ८।१४ से १८६६,१०,११,१३ से पडिक्कमावेत्ता (प्रतिकाम्य) व० ६।११ १८,२१ से २६; १०.४१,१११८; १२।१५,१६; पडिक्कमिउं (प्रतिक्रमितुम्) आ० ४१३ १४।१ से ४,३१ से ३७; १५१९८; १६।१२,२८ पडिक्कमित्ता (प्रतिक्रम्य) उ० २६१३७ से ३०; १७।१२५ से १३४; १८१८ से ३६, पडिक्कमित्तु (प्रतिक्रम्य) उ० २६।४१ ६३ से ६६; १९६१ से ५,७ पडिगत (प्रतिगत) दसा० १०॥४,२१ पडिग्गाहेत्तए (प्रतिग्रहीतुम्) दसा० ७१५. क० पडिगय (प्रतिगत) दसा० ५।६,७१५६।१,७; ११४२. व० २।२६ १०२१. प० १५ पडिग्गाहेत्ता (प्रतिगह्य) दसा० २।३. नि० ४।११८ पिडिगाह (प्रति+ग्रह.)-पडिगाहे प० २३४. पडिग्घाय (प्रतिघात) द०६।५७. उ०६।५४ -पडिगाहेज्ज द० ५।२७. उ० ११३४ पडिचंद (प्रतिचन्द्र) अ० २८७ पडिगाहित्तए (प्रतिग्रहीतुम) दसा०६।१८. ५० पिडिचोय (प्रति--चोदय)-पडिचोएइ उ० २३. क० ११५ १७।१६ पडिगाहेत्तए (प्रति ग्रहीतुम) दसा० ७१५. प० २४४. पडिच्छ (प्रति+इष)-पडिच्छइ प० ७. व०६१ -पहिच्छई उ० १२।३५.-पडिच्छति पडिगाहेत्ता (प्रतिगद्य) दसा० ३।३. नि० २।४२ नि०४।२८.-पडिच्छेज्जा द० ५।३६ पडिग्गह (प्रतिग्रह) द० ४ सू० २३; ५१०१. अन० पडिच्छंत (प्रतीच्छत) नि०४।२८,३०,३२,३४,३६; २१. अ०६६३,६८९. प० २७७. क. ११३८ ५।१०।७।८७,८६,६१,१३७६,८१,८३,८५, से ४१,४३, ३३१४,१५; ५।६ से १,११. व० ८७,८६,६१,६३,६५,६७,१६।१८,२०,२२,२५, २।२६,३०८।१६, ६।४२. नि. ७1८८,८६; ३३; १६२७,२६,३१,३३,३५,३७ १०१२५ से २८3१४।१ से २६,३१ से ३७, पडिच्छन्न (प्रतिच्छन्न) द० ५८३. उ० ११३५. ४०,४१, १५७७,८०,८१,८४,८५,८८,८६,६२, ६३,६६,६७,१५३,१५४; १६।१६,२०,२६; पडिच्छमाण (प्रतीच्छत) दसा० १०११६. प०७५ १८।१५ पडिच्छावेमाण (प्रत्येषयत) प० ६५ पडिग्गग (प्रतिग्रहक) प० २४०,२५६. नि० २।२६ पडिच्छित्तए (प्रत्येषितुम्) व० ५।१८ से ३०;६।४,५; १४१३७ से ३६ पडिच्छित्ता (प्रतीष्य) प० ७ पडिग्गहधर (प्रतिग्रहधर) आ० ४१६ पडिच्छिन्न (प्रतिच्छिन्न) द०८।५५ पडिग्गहधारि (प्रतिग्रहधारिन) प० २५४. व० पडिच्छिय (प्रतीप्सित) द० ५८०. प०७,३६,४८ ६।४२ पडिच्छेमाण (प्रतीच्छत्) प० ६५ ।। पडिग्गहिय (प्रतिगृहीत) आ० ४६ पिडिजागर (प्रति+जाग)-पडिजागरंति प० पिडिग्गाह (प्रति+ग्रह)-पडिग्गाहेति नि० २८५.-पडिजागरेज्जा द०६।४१ ३।१४.-पडिग्गाहेहि प० २३७. व० २.२९ पडिग्गाहित्तए (प्रतिग्रहीतम) १० २३७. क०२।१४ पडिजागरमाण (प्रतिजाग्रत) व०६७ पडिग्गाहित्ता (प्रतिगा) प० २५३. क० ४।१२। पडिट्ठप्प (प्रतिष्ठाप्य) उ० १४६ पडिग्गाहिय (प्रतिग्रहीत) प० २५०. क० २११८, पडिण (प्रतीचीन) द० ६।३३ २१४।१४; १४१ पडियाविय (प्रतिनाविक) नि० १८।१० Page #1175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिणिक्खम-पडिमा saan (प्रति + निस् + क्रम्) - पडिणिक्ख- पडिपुच्छिऊण (प्रतिपृच्छ्य) द० ५/७६ मइ दसा० १० ११ पडिणिक्खमित्ता (प्रतिनिष्क्रम्य) दसा० १०।११ पडिणिज्जा एयव्व (प्रतिनिर्यातव्य ) व० ८।१३ पडिणियत्त (प्रतिनिवृत्त) नि० ६।१४,१६,१८ पडिणीय ( प्रत्यनीक) द० ६/४६. उ० ११३,४,१७ पडण्णव (प्रति + ज्ञापय् ) - पडिण्णविज्जा दचू० २८ / पडितप्प ( प्रति - - - तप् ) – पडितप्पइ उ० १७।५. -पडितप्पति दसा० ६।२।२५ नि० १०।३२. पडितप्पेज्जा व० ७१४ पडितप्पंत ( प्रतितपत्) नि० १०।३२ पडियद्ध ( प्रतिस्तब्ध ) उ० १२।५ / पडिस ( प्रति + दर्शय् ) – पडिदंसेति दसा० ३।३ पडिपुण्णय ( प्रतिपूर्णक) प० २६ पदिायव्व (प्रतिदातव्य) क० ३।३० परिवार (प्रतिद्वार) प० ४४,६२,२५७,२५८ fastaan (प्रति + निस् + क्रम्) -पडिनिक्खमंति दसा० १०/४. ५० ४१ पडनिमित्ता (प्रतिनिष्क्रम्य) दसा० १०/४. १० ४१ डिनिज्जा अव (प्रतिनिर्यातव्य ) क० ५/५ / पडिनियत (प्रति+नि+ वृत्) - पडिनियत्तइ उ० १४१२४ डिनियत्तए (प्रति निर्वात्ततुम् ) प० २३२ पडनिस्सिय (प्रतिनिधित) द० ४ ० २२ पपिह ( प्रतिपथ) नि० १०।३१ / पडिपिहा ( प्रतिपि + धा) – पडिपिहेति नि० १८।१६ पडिपित (प्रतिपिदधत् ) नि० १८ । १६ / पडिपुच्छ ( प्रति + प्रच्छ् ) – पडिपुच्छइ नं० १२७।३. -- पडिपुच्छई उ० २०१७ पडिपुच्छण ( प्रतिप्रच्छन) दसा० १० ११ tfsपुच्छणया ( प्रतिप्रच्छन) उ० २६।११, २१ पडिपुच्छणा (प्रतिप्रच्छना) उ०२६।२, ५ पडिपुच्छा ( प्रतिपृच्छा) नं० १२७१४. अ० २३६ डिपुण ( प्रतिपूर्ण) आ० ४१६. द० ६।४।५. उ० ८ १६; ६ ४६; ११।२५, २६, ३०, २६७२; ३२।१. अनं० ६. अ० १३, ३४,५७,८१,१०६, ५५७,५६३,५९०,५६३, ५६६, ५६६, ६०२, ६२३,६३५,६४७,६७३,७००,७१४. दसा० ६।१० से १८ ८।१; १०१११,२४ से ३३. ५० १,६,२३,२६,३८, ४२, ४६, ४७,५६,८१,८७, १०८,१११, ११५, १२४, १२६,१२८, १३०, १३८,१६३,१६६,१८० पपुण्णघोस ( प्रति पूर्णघोष ) अनं० ६. अ० १३, ३४,५७,८१,१०६, ५६३, ६२३, ६३५,६४७, ६७३,७००,७१४ १८१ पडिपुन्न ( प्रतिपूर्ण ) ०८४८ पडिप्पह (पतिपथ) उ० २७।६ पडिबंध ( प्रतिबन्ध ) दचू० २।१३. १० ७६ पडिबद्ध ( प्रतिबद्ध) क० ११३०,३१५ २० पडिबाहिर ( प्रतिबाह्य) दसा० ६।२।१० डिबुज्झ (प्रति + बुध् ) – पडिबुज्झति प० ४७ बुद्ध ( प्रतिबुद्ध) अ० ३१६. प० ४,५,१६,२०, ३५ से ३७,४६ बुद्धजीवि ( प्रतिबुद्धजीविन् ) दचू० २।१५. उ० ४६ ffeबोह (प्रति + बोधय् ) – पडिबोहएज्जा द० ६८. पडिबोहेइ प० ३६ . -- पडिबोहेज्जा नं ० ५२ पडिबोहग ( प्रतिबोधक) नं० ५१, ५२ परिभणित्तु (प्रतिभणितृ ) दसा० ३।३ डिमंत (प्रति + मन्त्रय् ) – पडिमंतेइ उ० १८०६ पडिमट्ठाइया ( प्रतिमास्थायिका) क० ५।२२ पडिमा (प्रतिमा) द० १०।१२. उ० २।४३; ३१| ६,११. नं० ८७,८६. दसा० ५।७।१०; ६।१८. प० ६७. व० १।२० से २२; ४।११,१२; ६ ३६; १०११ Page #1176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ परिमाण ( प्रतिमान) अ० ३७२,३८४,३८५ / पडिमिr ( प्रति + मा ) - पडिमिणिज्जइ अ० ३८४ पडिय ( पतित ) दचू० ११२. उ० २६।६० डियर ( प्रति + चर् ) - पडियरसी उ० १८।२१ पडियरिय ( प्रतिचर्य) द० ६।५५ पडिया ( प्रतिज्ञा ) प० २५५ से २५८. क० ११३८, ४०,४४; ३।१३; ४।१४,१६ से २१,५ ११, १२, १५,४१. ० ८५,१३. नि० २/३६,४७, ३।५ से ८, १३, १५, ४।२१; ६।७ से ६; १२।१७ से २६; १६।२६, २७; १७।१ से ४४, १३७, १५१ पडियाइक्ख ( प्रति + आ + ख्या) - पडियाइक्खे द० ५।२८ पडियाइख ( प्रति + आ + चक्ष्) -पडियाइ क्खति नि० १०|३३ पडवण्णु ( प्रतिरूपज्ञ ) उ० २३।१५ परुिवया ( प्रतिरूपता) उ० २६११, ४३ / पडिलभ ( प्रति + लम् ) – पडिलभे उ० १७ पडिला माण ( प्रतिलाभयत्) दसा० १०।३१ / पडिलेह ( प्रति + लिख) – पडिलेहइ उ० १७ १४. – पडिलेहए द० ५।३७. उ० २६।२२. - पडिलेहति नि० २।५६ - पडिलेहसि द० ५।१०५. पडिले हिज्ज उ०२६।३८. - पडिले उ० २६ । २४. – पडिलेहेइ उ० १७।६. - पडिलेहेज्जा द० ५।२५ परिमाण पडिवज्जियव्व पडिलेत (प्रतिलिखत् ) नि० २५६४।१०८, १०६ पडिलेहणया ( प्रतिलेखन) उ० २९ १,१६ पsिहणा (प्रतिलेखना) उ० १७ ९; २६ २६,३० पडिलेहणासील ( प्रतिलेखनाशील) प० २७८ पडिलेहमाण ( प्रति लिखत्, प्रत्युपेक्षमाण) क० २।४ से ७ पडिलेहा ( प्रतिलेखा) उ० २६।१६, १८ प०२८४ पडिले हित्तए ( प्रतिलेखितुम् ) दसा० ७ १०. प० २७६ पडिले हित्ता (प्रतिलिख्य) द० ८११८. उ० २४ । १४. क० ४।१२. व० ७ २२ पडिले हित्ताण (प्रतिलिख्य) द० ५।८२. उ० २६।२१ पडियाइक्खंत ( प्रत्याचक्षाण) नि० १०|३३ पडियाक्खित्ताणं ( प्रत्याख्याय) दसा० २।३ पडिले हियव्व (प्रतिलेखितव्य ) प० २६२ से २७० पडियाय (प्रत्याख्यात) नि० ३|१३ पडिलेहिया (प्रतिलिख्य ) ६० ५।८१. उ० २६।४४ पण (प्रत्थापन, प्रत्यादान ) दचू० १ सू० १ पडिलोम ( प्रतिलोम ) दसा० ६।२।११. १०७७, पडियाय ( प्रत्यागत) नि० ३।५ से ८ पडियाणिय (दे० ) नि० ११४७,४८ पडिरूव ( प्रतिरूप ) उ० १।३२:२३ । १६. दसा० १० २५, २६. ० ७३, ११२, १२६, १६५ पडिरूवकायसंफासणया ( प्रतिरूप काय संस्पर्शनता ) दसा० ४।२१ ११४. ० १०२, ४ पविक्खपय ( प्रतिपक्षपद ) अ० ३१६,३२३ / पडिवज्ज ( प्रति + पद्) -- पडिवज्जइ उ० २३।८७. पडिवज्जई द० ४।२३. उ० २३| ५६. – पडिवज्जए उ० ३।१०. – पडिवज्जंति उ० ३।८. दसा० १०।३४. पडिवज्जति दसा० १०।२४. – पडिवज्जयामो उ० १४ । २८. - पडिवज्जामि अ० २६।५०. पडिवज्जेज्जा दसा० १०।३१. क० ४।२६. व० ११३३.पडिवज्जेज्जासि व० १।३३ पडिले हित्तु (प्रति लेखितृ) दसा० ४। १३ पडिलेहिय ( प्रति लिख्य) द० ४ सू० २३. दसा० ७/२१. क० ११४२ पडिवज्ज ( प्रतिपद्य) उ० २१ २० पडिवज्जओ ( प्रतिपद्यमान ) उ० २१४३ पडिवज्जणया ( प्रतिपावना) नं० ८७ परिवज्जमाण ( प्रतिपद्यमान ) द० २1१. उ० २६।१७ पडिवज्जावेत्ता ( प्रतिपाद्य) व० ६।११ पडिवज्जियव्व (प्रतिपत्तव्य) उ० ३२ ह Page #1177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिवज्जिया-पडिहय १५३ पडिवज्जिया (प्रतिपद्य) द० १०.१२. उ० ३।२० -पडिसुणेति दसा० १०६.-पडिसुणेज्जा पडिवण्ण (प्रतिपन्न) नं०८ दसा० १०।२४. प० २७७.-पडिसुणेति पडिवत्ति (प्रतिपत्ति) उ० २३।१६, २६५. नं० नि०६।५ ८१ से ११,१२३. अ०७४,६१०. दसा० पडिसुणित्ता (प्रतिश्रुत्य) दसा० १०१४. ५० ४१ ४।१४ पडिसुर्णेत (प्रतिशृण्वत्) नि० ६।५ पडिवन्न (प्रतिपन्न) उ० २६।३,५ से ८,३२,३७, . पडिसुणेत्तए (प्रतिश्रोतुम्) दसा० १०।२४ ४२,६२. दसा० ६।१८; ७।४ से २७३२. व० पडिसुणेत्ता (प्रतिश्रुत्य) दसा० १०॥६. प० १५ ६।४०,४१, १०१२ से ५ पडिमुणेत्तु (प्रतिश्रोतृ) दसा० ३।३ पिडिवय (प्रति-+-पत)-पडिवएज्जा नं० २० पडिसूर (प्रतिसूर) अ०२८७ पडिवाइ (प्रतिपातिन) नं. ६,१०. अ० ५५३ पिडिसेव (प्रति+सेव)-पडिसेवंति उ० २।३८. पडिविरत (प्रतिविरत) दसा० १०॥२६ -पडिसेवेइ व० १११५. नि० २०११५. पडिविरय (प्रति विरत) दसा० ६।।२१. व. -पडिसेवेज्जा व० ३।१३ ।। पडिसेवणपत्त (प्रतिषेवणप्राप्त) क० ४।१०,११, ३।१३,१५,१७,१८,२०,२२ ५।१ से ४,६ से १०,१३,१४. व०६८,९ .पडिविसज्ज (प्रति+-वि+सर्जय)-पडिविसज्जेइ ५० ४८.–पडिविसज्जेति दसा० १०७ पडिसेवमाण (प्रतिषेवमान) दसा० २।३. पडिविसज्जेत्ता (प्रतिविसj) दसा० १०१७ क० ४११ पडिसेवि (प्रतिषेविन ) उ० ३६।२६६. व० २।२४, पिडिसंजल (प्रति+सं+ ज्वन्)-पडिसजले २५ उ०२।२४ पिडिसंध (प्रति+सं+घा)-पडिसंधए पडिसेवित्ता (प्रतिषेव्य) व० १११. नि० २०११ उ० २७।१ पडिसेविय (प्रतिषेवित) दसा० १०१३३. प० ८२. पडिसंलीण (प्रतिसंलीन) द० ३।१२. उ० ११११३ व. १११५ से १८. नि० २०।१५ से १८ पिडिसंविक्ख (प्रति+सं+वि+ ईक्ष) पडिसेवेत्ता (प्रतिषेव्य) व० २।१ पडिसंविक्खे उ० २।३१ पडिसेह (प्रति+सिध्)-पडिसेहए द० ६।२१. पिडिसंवेद (प्रति+सं+वेदय)-पडिसंवेदेज्जा उ० २५६ नं० ५३ पडिसेहिय (प्रतिषिद्ध) द० ५।११३. उ० १५११ पिडिसंवेय (प्रति+सं+वेदय)-पडिसंवेइज्जा पडिसेहेत्ता (प्रतिषेध्य) नि० ३६ नं. ५३ पडिसोत्त (प्रतिस्रोतस्) उ० १४१३३ पिडिसमाहर (प्रति+सं+आ+ह) पडिसोय (प्रतिस्रोतस्) दचू० २।२,३. उ० १९३६. पडिसमाहरे द० ८।५४ अ० ३६८ पडिसारेत्तए (प्रतिसारयितुम) व०५।१८ पडिस्सुण (प्रति+श्रु)-पडिस्सुणे उ० १६१८ पिडिसाहर (प्रति-सं+ह)-पडिसाहरेज्जा पडिस्सुय (प्रतिश्रुत) उ० २६।६ दचू० २।१४ पडिहणित्तु (प्रतिहन्त) दसा०४/२२ पडिसिद्ध (प्रतिषिड) उ० २५६ पडिहम्म (प्रति+हन्)-पडिहम्मिस्संति प० ३६ पडिसुण (प्रति श्रु)-पडिसुणंति दसा० १०॥४. पडिहय (प्रतिहत) आ० ४।६,६. द० ४।१८ से ५० ४१.-पडिसुणेइ दसा० १०॥१२. प० १५. २३. उ० ३६।५५,५६ २२ Page #1178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ पडीणाभिमुह-पणिहिय पडोणाभिमुह (प्रतीचीनाभिमुख) दसा० ७।२० दसा० २।३. प० २६२,२६४,२७६. पडु (पटु) दसा० १०.१८,२४. प०६,२६,३१ क० ४।३१ से ३४; ६८. नि० ७७५; पडुच्च (प्रतीत्य) उ०३६।१२. नं०६६. जोनं० ३. १३८।१४।२७; १६१४८१८१५६ ___ अ० ३. दसा० ७।१६. नि० ८।१४ पणगायतण (पनकायतन) नि० ३।७५ पडच्चमक्खिय (प्रतीत्य म्रक्षित) आ० ६।१० पणट्ठ (प्रणष्ट) उ० ४।५ पडुप्पण्ण (प्रत्युत्पन्न) नं०६५,१२५. अनं० २४. पणपन्न (पञ्चपञ्चाशत्) प० १०६ अ० ५०,४६३,४६०,५०३,५३०,५३२,५३४, पणपन्नइम (पञ्चपञ्चाश) प० १३० ५३६,५४६. नि० १०१७ पिणम (प्र-- णम)-----पणमामि नं० गा०४१ पडुपवा इथ (ठाण) (पटुप्रवादितस्थान) पणमिऊण (प्रणम्य) नं० गा० ४३ नि० १२।२७ पणमिय (प्रणत) अ० ३१६।२ पडुप्पवाइयट्ठाण (पटुप्रवादितस्थान) नि० १७।१४६ पणय (प्रणत) नं० गा० १७ पड़प्पन्न (प्रत्युत्पन्न) उ० २६।१३ पणयाल (पञ्चचत्वारिंशत् ) उ० ३६१५८ पडोल (पटोल) नि० ५।१४ पणयालीस (पञ्चचत्वारिंशत) न०६० पढग (पाठक) ५० ६२ पणव (पणव) दसा० १०॥१७. प० ६४,७५. नि० १७।१३७ पढम (प्रथम) द०४ सू० ११ गा० १०६.८. पणवीस (पञ्चविंशति) उ० ३१११७. नं. ८१ उ० ५१४; २०१६; २४११२; २६।२,१२,१८, पणवीसतिविह (पञ्चविंशतिविध) अ० ५५७ २८; २८।३२; २६।७२,३४१५८ ; ३६।१६०, पिणस्स ( प्रणश्)—पणस्संति दसा० ५७।१२. २३४,२५२. नं० गा० २० सू० २८,२६,८१, –पणस्सती दसा० ५।७।१२ १२७१५. अ० ७५,३०८,४६३,४६७,४८७, कृपणाम (अर्पय)-पणामए उ० १९७६ ४६०,५८६. ५० ५६,६६,७४,८३,१०६,११५, पणाम (प्रणाम) प० १५ १२४,१२८,१६२,१६३,१६५,१६७ से १९६, पणास (प्र+नाशय)-पणासेइ द० ८।३७ २०१,२०२,२२१. क० ४।१२. नि० १२।३१ पणासिय (प्रणाशित) प० २० पढमजिण (प्रथमजिन) प० १६४ पणिय (पण्य) द० ७.४५,४६. नं० ३८१३ पढमतित्थक र (प्रथमतीर्थकर) प० १६४ पणिय (पणित, पण्य) द०७।३७ पढमपाउस (प्रथमप्रावृष) नि० १०॥३४ पणियगिह (पण्यगृह) नि० ८।८; १५२७४ पढमभिक्खायर (प्रथमभिक्षाचर) प० १६४ पणियगेह (पण्यगृह) दसा० १०।३ पढमया (प्रथमता) दसा० १०.१४. प० २१ पणियभूमि (पणितभूमि, पण्यभूमि) प० ८३ पढमराय (प्रथमराजन्) ५० १६४ पणियशाला (पण्यशाला) दसा० १०।३. पढमसमोसरण (प्रथमसमवसरण) क० ३।१६. नि० ८1८; १५७४ नि० १०१४१ पणिवइय (प्रणिपतित) नं० गा० ४२ पढमसरदकाल (प्रथमशरत्काल) व० ६।४०,४१ पणिवय (प्रणि+पत)-पणिवयामि प० २२२ पढमा (प्रथमा) दसा०६।८।७।३,२७,२८ पणिहाणव (प्रणिधानवत्) उ० १६१८,१४ पणग (दे० पनक) आ० ४१४. द० ५१५६८।११, पणिहाय (प्रणिधाय) द० ८।४४ १५. उ० ३६७२,१०३,१०४. नं० १८.. पणिहि (प्रणिधि) उ०२३।११ अ० ७५,३०८,४६३,४६७,४८७,४६०,५८६. पणिहिय (प्रणिहित) दसा० ६२६ Page #1179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणीव-पत्तमालिया पणीय (प्रणीत) द० ५।१४२. उ० १६ सू० १, गा० ७, १२; ३०।२६. नं० ६५. अ० ५०, ५४६. नि० ६०७१ पणीवरस (प्रणीत रस ) ६०८५६ --- पल्ल ( प्र + णु) – पणुल्लेज्जा द० ५११६ पणुवीस (पञ्चविंशति) नं० ११८ पणुवीस (पञ्चविशति ) उ० ३६।२३७ √पणोल्ल ( प्र + णुव् ) - पण्णोल्लयामो उ० १२।४० पणोल्लेमाण (प्रणुदत्) नं० १२ पण (प्रात) उ० १२० १५२, १५. अ० ३०२१३. दसा० ६।३,७ पण्णत्त (प्रज्ञप्त) आ० ४१२. द० ६।४।१. उ० ८८. नं० १. अनं० १. जोनं० १. अ० १. दसा० १११. ५० ७६. क० ४।१. व० ६।२ पण्णत्ति (प्रज्ञप्ति) व० ३।३ से ६ पण्णरस (पञ्चदशन् ) आ० ४।६. नं० २५. अ० ४०३. व० १०५ पण्णरसवासपरिया (पञ्चदशवर्षपर्याय) ब० १०।३४ पण रसविह (पञ्चविध) नं० २१ पण्णरसी (पञ्चदशी) व० १०१५ पण्णव (प्रज्ञावत्) द० ७१ से ३, १३, १४, २४, २६, २६, ३०, ३६, ४४, ४७. उ० २१३६, ७|१३ पण्णव (प्र + ज्ञापय् ) - पण्णवयंति नं० ३५. - पण्णविज्जइ अ० ६०६. पण्णविज्जति नं० ६९.पण विज्जति ०४२३. - पण्णवेइ दसा० १०।३५. प० २८८ पण्णवन (प्रज्ञापक) नं० ५२ पण्णवण (प्रज्ञापन) नं. ३३.० ५१,४२३, ४३०, ४३७ पण्णवणा (प्रज्ञापना) नं० ७७. जोनं ८. अ० ४३३ पण्णव (प्रज्ञापक) अ० ४१६ पनविय ( प्रज्ञापित) उ० २६/७४ अनं ८. अ० १६,३७,६०,६४, १०१, ५६६, ६२६,६३८, ६५०,६७६,७०३ पणवीस (पञ्चविंशति) नं० १८१४ पण्णा (प्रज्ञा) उ०२ सू० ३ गा० ३२; २३।२५, २८,३४,३१,४४,४६, ५४, ५१, ६४, ६९, ७४, ७६, ८५. नं० ५४।६ पण्णाण (प्रज्ञान ) दसा० ६ २ २६ पण्णास (पन्यास) नं० १०२ पहवाहणय ( प्रश्नवानक) प० २०२ v पण्ड्राव (दे० ) पहावेति ०६८ १८५ पहावागरण ( प्रश्नव्याकरण) नं० ६५,८०,१०. अनं० २८. जोनं० १० अ० ५०, ५४६ + पहा वागरणधर ( प्रश्नव्याकरणधर ) अ० २८५ /पत (पत् ) पतंति दसा० १०।२६ पतिट्ठाण (प्रतिष्ठान ) दसा० ६२४ पतिद्विय (प्रतिष्ठित ) नि० २९ १८१२८ से १३१ पतिविसेस ( प्रतिविशेष) अनं० ४ पत्त (पत्र) द० ४ सू० २१; ६ । ३७; ८ ६; ६१८. उ० ६६; ३६ ५६. नं० गा० ३. अ० ३७६. दसा० १०।१२. प० ३०,६१,७८. नि० १४।३४; १७/१३२: १८६६ पत्त ( प्राप्त) द० ६।२३, २५, २८. उ० ५११५ ; ७३; १२।४७ ; १८३८, ४०, ४२,४३,४७; १९५६,६१,६५ २०४६ २१।१७ २२।४८. २५/२, ४३ २९०४५, ७४. नं० गा० ३२,३६; सू० २३,१२० अ० ५६६,७०६. दसा० ५०७. क० ३।१६,१७. नि० १०१४१ १६ २१ पत्त ( पात्र) उ० ६।१५. प० २२/२३ पत्तइत्तए ( प्रत्येतुम् ) दसा० १०।२८ पत्त (पत्रच्छेद्य) नि० १२।१७ पत्तद्रु ( प्राप्तार्थ) अ० ४१६. दसा० १०१११ पत्तदमणव (दमनकपत्र ) १० २५ पत्तमोयण (पत्रभोजन) दसा० २०३ पत्तमालिया (पत्रमालिका) नि० ७।१ से ३; १७।३ से ५ Page #1180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्तय-पधावेत पत्तय (पत्रक) उ० १०॥१. अ० ३६,६२८,७०५ पत्तय (प्राप्तक) उ० २६।४५ पत्तवीणिया (पत्रवीणिका) नि० ५।४३,५५ पत्तहारक (पत्रहारक) उ० ३६।१३७ पत्तिय (प्रत्य, प्रीति) उ० ११४१. प० २३८. क० ५।५ व०२।२२,२३,२६; ३६ पत्तिय (पत्रित) प० २४ पत्तिय (प्रति+इ)-पत्तियामि आ० ४१६. -पत्तिएज्जा दसा० १०॥२८ पत्तियंत (प्रतियत् आ०४६ पत्तियाइत्ता (प्रतीत्य) उ० २६१ पत्ती (पत्री) उ० १२।२४; १४१३ पत्तुण्ण (दे०) नि० ७.१० से १२; १७॥१२ से १४ पत्तेग (प्रत्येक) उ० ३६१६३,६५ पत्तेगसरीर (प्रत्येकशरीर) उ० ३६।९४ । पत्तेय (प्रत्येक) द० १०।१८; चू० १ सू० १. प० ४५ नि०४।११८ पत्तेयबुद्ध (प्रत्येकबुद्ध) नं० ७६ पत्तेयबुद्धसिद्ध (प्रत्येकबुद्धसिद्ध) नं० ३१ पत्तोवय (पत्रोपग) नि० ३१७६ पित्थ (प्र+अर्थय)-पत्थए द० ५।१२३. उ० २६.-पत्थेइ उ० २६।३४.-पत्थेति दसा० १०॥६. ५० ५८.-पत्थेसि उ० ६।४२ पत्थ (पथ्य) उ० १४:४८ पत्थ (प्रस्थ) अ० ३७४ पत्थग (प्रस्थक) अ० ५५४,५५५ पत्थड (प्रस्तट) अ० ४१० पत्थणिज्ज (प्रार्थनीय) दसा० १०॥२५ पत्थय (प्रस्थक) अ० ३७४,५५५ पत्थरेत्ता (प्रस्तार्य) क०६।२ पत्थार (प्रस्तार) ० १११४; ६२ पत्थिज्जमाण (प्रार्थ्यमान) दसा० १०॥१६. ५०७५ पत्थिय (प्रस्थित) उ० २११३ पत्थिय (प्राथित) दसा० १०॥२२,२३. प० ११, ५२,५.४,५५,६६ पत्थिव (पार्थिव) उ० ६।३२,५१,१८।११; २०।१६,१६ पत्थेमाण (प्रार्थयमान) उ० ६।५३ पद (पद) अनं०६।८. अ० १३,३४,५७,८१, १०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३,७००, ७१४. दसा० १०१२०,२४. नि०६८ पदत्थ (पदार्थ) अ० ७१४ पदपवर (पदप्रवर) अनं० २८।३ पदबद्ध (पदबद्ध) अ० ३०७७ पदमग्ग (पदमार्ग) नि० ११११, २।१० पदविग्गह (पदविग्रह) अ० ७१४ पदसम (पदसम) अ० ३०७।८ पट्ठ (प्रदुष्ट) उ० ३२।३३,४६,५६,७२,८५,९८ पदोस (प्रदोष) उ० १२॥३२ पद्मनि ( ) अ० २६६ पधाण (प्रधान) प० १०६ पधार (प्र+धारय)-पधारेंति दसा० १०१६ पधारेत्ता (प्रधार्य) दसा० १०६ पधावंत (प्रधावत्) उ० २३६५६ पिधूव (प्र--धूप)-पधूवेज्ज नि० ३।३६ पवाव (प्र+धपय)-पवावेज्ज नि० १५॥३६ पधूवावंत (प्रधूपयत् ) नि०१५।३६:१७.३८.१२ पधूवेत (प्रधूपत्) नि० ३।३६; ४१७७; ६।१८, ४८; ७१३७; ११।३४; १५२१२२ पधोइत्तए (प्रधावितुम) दसा० ७.२३ पधोएत्ता (प्रधाव्य) नि० ३।३७ पिधोव (प्रधा)-पधोवेज्ज नि० ११६ पिधोवाव (प्र+धावय)-पधोवावेज्ज नि० १५७ पधोवावेत (प्रधावयत्) नि० १५॥१७,२३,२६,३३, ४५,५१,६०; १७११६,२५,३१,३५,४७,५३, ६२,७३,७६,८५,८६,१०१,१०७,११६ पधोवेंत (प्रधावत्) नि० ११६; २।२१, ३२०,२६, ३२,३६,४८,५४,६३, ४।५८,६४,७०,७४,८६, Page #1181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्नट्ठि - पमाण २, १०१ ६७, १५, २६,३५,४१,४५,५७,६३, ७२ ७ १८, २४, ३०, ३४,४६,५२, ६१, ११।१५, २१,२७,३१,४३,४६, ५८; १४ १२, १३, १६, १७ १५१०३, १०६, ११५, ११६, १३१, १३७, १४६; १८।४४,४५,४८,४६ पन्नट्ठि (पञ्चाशीति) प० १४२ पन्नरस ( पञ्चदशन् ) आ० ४।८. उ० ११।१०. अ० १६१. ५० १३६. व० १०।३ पन्नरसमी ( पञ्चदशी) व० १०।३ पन्नरसी (पञ्चदशी) १० ८४,१३० पन्नास (पञ्चाशत् ) प० १५६ पप्प ( प्राप्य ) उ० ३६६ / पप्प ( प्र + आप ) - पप्पोति उ० १४ । १४ पप्पूय ( प्रप्लुत) अ० ३१७।२ √ पप्फोड ( प्र + स्फोटय् ) - पप्फोडे उ० २६।२४ पफोडणा (प्रस्फोटना ) उ० २६।२६ पप्फोडेमाण ( प्रस्फोटयत् ) व० ६१२ पबंध ( प्र + बन्धू ) - बंधेज्जा द० ५।१०८ पबंध ( प्रबन्ध ) उ० ११।७,११ परभट्ट (प्राष्ट) दचू० १४. उ० ८ । १४ पन्भार ( प्रारभार ) नं० ८३. अ० ४१०. दसा० ७।३३ पभंकर (प्रभाकर) उ० २३।७६ पभव (प्रभव) द० ६ १८. उ० ३२६,७,१६, १०३, १११. नं० गा० २,२३. अनं० २८ पभा ( प्रभा) उ० ५।२७; २२।७; २३।१८; ३४।५, ६. नं० ७१. अ० १६,२०. ५० ३२ पभाय (प्रभात) उ० २० ३४. अ० १६, २० पभाव ( प्रभाव ) उ० १६।६७ २६ ३४; ३२।१०४ ( पभाव ( प्र + मावय्) - पभावेइ उ० २९ २४ भाग ( प्रभावक ) उ० २६।७२. नं० गा० २८ भावण ( प्रभावन) अनं० २८।२ पभावणा (प्रभावना ) उ० २८।३१ भास ( प्र + मास् ) – भाई द० ९ | १४ ( प्रभास ( प्र + भाष्) - भासई उ०१८।२३. १८७ -- पभाससे उ० १२।१६ भास (प्रभास) प० १८३ भासमाण ( प्रभासमान) प० २६ भासयंत ( प्रभासमान ) प० ३३ पभिइ ( प्रभूति) अ० १६,२०,२६,५७४ पभीय ( प्रभीत) उ० ५।११ भु (प्रभु) उ० १६ । ३४. दसा० ६।२।२८. व० ६।२ पभूय ( प्रभूत) उ० १२ १०, ३५; १३ ११, १३ १४ १६,३१; २०१२, १८ / पमज्ज ( प्र + मृजय् ) - पमज्जेज्ज उ० २४ । १४. नि० ३।१६ – पमज्जेज्जा उ० २६।२४ पमज्जणा (प्रमार्जना) प० २८४ पमज्जणासील ( प्रमार्जनाशील ) प० २७८ मज्जाव ( प्र + माजय् ) - पमज्जावेज्ज नि० १५।१३ पमज्जावेंत ( प्रमार्जयत् ) नि० १५।१३, १६, २५, ४७,५६; १७११५, २१, २७, ४६, ५८, ६६, ७५, ८१,१०३, ११२ पमज्जित्ता ( प्रमृज्य ) क० ४।१२. व० ७।२२ पमज्जित (प्रमृज्य ) द०८५ पमज्जिय ( प्रमृज्य ) द० ४ सू० २३ पमज्जेत (प्रमृजत् प्रमाजंत्) नि० ३।१६,२२,२८, ५०, ५६; ४ । ५४, ६०, ६६, ८८, ६७, ६।२५, ३१, ३७,५६,६८, ७।१४,२०,२६,४८,५७; ११।११,१७,२३,४५, ५४; १५/६६, १०५, १११,१३३,१४२ मज्जेमाण (प्रमार्जयत् ) व० ६।२ पमत्त (प्रमत्त) उ० ४।१, ५, ६, ६ १६; १४ | १४; १७/८ से १०; २६।३०, ३४।२३. क० ४।२ पत्तसंजय ( प्रमत्तसंयत ) नं० २३ पमद्दण (प्रमर्दन) प० २७ पमाण ( प्रमाण) दचू० २।११. उ० २६।२७; २८।२४. अ० १००, ३१६, ३३८ से ३४०, ३४७ से ३४६,३६८ से ३७०, ३७३ से ३७७० Page #1182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ ३७६, ३८१,३८३,३८५, ३८६,३९० से ३६२, ३६८,४००,४०६,४१२,४१३,४१७,४६३, ५०३,५०५ से ५१५,५५१ से ५५४, ५५७, ५५८,६०४. प० ६, १५,२१,२३, ३१, ३८,४७, २३७, २८१. व० २।२४, २५; ८।१७. नि० ५।६८; १६।४० माणगुल ( प्रमाणाङ्गुल) अ० ३८६,४०८, ४१०, ४१२ पमाणतो ( प्रमाणतस् ) प० २३७ पाणपक्ख ( प्रमाणपक्ष ) प० २६ पमाणपत्त ( प्रमाणप्राप्त) प०७४,८१,२३७. व० ८।१७ माय ( प्रमाद) द० ६।१५; ६।१. उ० १०/१५ ; ११।३; १४ । १५; २०१३६; २६।२७. व० ५।१५,१६ ( पमाय ( प्र + मद्) - पमायए उ० ४।१ मायट्ठाण (प्रमावस्थान ) उ० ३२ पापमा (प्रभावप्रमाद) नं० ७७. जोनं० ८ पमुइय ( प्रमुदित) प० ३०,६४ पमुदित ( प्रमुदित) प० ५६ पमुहर ( प्रमुखर ) उ० १७।११ मेल ( प्रमेदुर, प्रमेदस्विन् ) द० ७ २२ पमोक्ख ( प्रमोक्ष) उ० २५।१३; ३२।१,१११ / मोय ( प्र + मुद्द्) -- पमोयंति उ० १४।४२ म्ह (पद्म) उ० ३४ | ३,१४,५४,५५,५७ पम्ह ( पक्ष्मन्) अ० ४१६ पहल ( पक्ष्मल) दसा० १० ११ ५० ४२ म्हलेस (पद्मलेश्य) अ० २७५ पहलेसा (पद्मलेश्या) आ० ४१८. उ० ३४८, ३०,३८ पय ( प ) द० ८१३१, ५० ६ ११ ६ ४ ० ४ से ७; गा० ६; चू० १ सू० १. उ० १ २६ ; ४।७; २६।२८ २८।२२. नं० गा० ३२; सू० ८१ से १,१२३. अनं० ८६ अ० १६, १७, ३७, ३८,६०,६१,८४,८५,१०९, ११०, माणगुल-पल ५६६,५६७,५७१,५७२, ६२६, ६२७,६३८, ६३६,६५०,६५१,६७६, ६७७,७०३, ७०४, ७१४. ५० १० पय ( पच्) -पए द० १०।४. उ० २।२. —पये उ० ३५।१० ( पयस् ) उ० ११।१५ इ (प्रकृति) नं० गा० ४१. अ० २६५,२६८ यंग (पतङ्गः ) द० ४ सू० ६,२३. उ० ३॥४; १२।२७ ३२ २४; ३६।१४६ पयंगवीहिया ( पतङ्गवीथिका ) उ० ३०।१६. दसा० ७/७ पयंत ( पचत् ) प० ३४ पग्ग (पदान) नं० ८१ से ११,१२३ पर्यट्टिय ( प्रवर्तित ) उ० ४।२ पर्याड (प्रकृति) उ० ३३।६ पयण ( पचन) उ० १२।६; ३५ | १०. दसा० ६ । ३ पयणु ( प्रतनु ) उ० ३४ २६ पयय ( प्रतनुक) उ० ३४ २६ पणुवाइ ( प्रतनुवादिन् ) उ० ३४।३० पयत्तछिन्न ( प्रयत्न छिन्न) द० ७१४२ पयत्तपक्क ( प्रयत्नपक्व ) द० ७।४२ पयत्तलट्ठ ( प्रयत्नलष्ट) द० ७१४२ पयत्याहिगार ( पदार्थाधिकार) अ० १६,३७,६०, ८४,१००, १०६,५६६, ६२६,६३८,६५०, ६७६, ७०३ पयय ( प्रयत) दचू० २।७. उ० ११२७. नं० गा० ४१ / पयर ( प्र + चर् ) - पयरद्द नं० गा० ३३ पयर ( प्रतर) अ० ३८८, ३१३,४०६, ४११,४५८, ४६३,४६७,४८२, ४८७, ४६५, ४६६, ५०३ पयर (प्रकर ) प ० २२, ३२, ३४ पयरंगुल ( प्रतरागुल) अ० ३६३, ३६४,४०६, ४०७,४११,४१२ पयरतव ( प्रतरतपस्) उ० ३०।१० ( पयल ( प्र + चल् ) - पयलायंति दसा० ६।५. — यति दचू० १।१७ Page #1183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पयलपयला-परक्कम १८९ पयलपयला (प्रचलाप्रचला) उ० ३३१५ पयावेत (प्रतापयत्) नि० १४।२० से ३०; १८१५२ पयला (प्रचला) उ० ३३॥५. अ० २८२ पयलाइत्तए (प्रचलायितुम्) दसा० ७।२१. पयासयर (प्रकाशकर) आ० २।७; ५।४७ ___ क० १।१६ पयाहिण (प्रदक्षिण) दसा० १०॥६,१६. प० ५९ पयलापयला (प्रचलाप्रचला) अ० २८२ पयाहिणा (प्रदक्षिणा) उ०६।५६; २०१७,५६ पयलायमाण (प्रचलायमान) दसा० ७२१ पर (पर) द० ५।४; ६।११,१४,३७;७।१३,४०, पयलित्तए (प्रचलितुम) दसा० ७२८ ५४,५७, ८।४७,६१, ६।५,३०, ६।४ सू० ५; पर्यालय (प्रचलित) प० १०,२७ १०।८,१८,२०; चू० २।११,१३. उ० १११६, पयस् ( ) अ० २६६ २५, २११०,२०,२४,३०,४४, ४१४; ५।५,६; कृपयह (प्र--हा)- पयहंति उ०१४।३४. १११३२; १२।६,३१; १३।२१,२४; १४११, -पयहेज्ज उ० ४।१२ १२; १८।१७,२७,२६; १६।१६,२१,२०१३५, पयहिऊण (प्रहाय) अ० ३१० ४६; २१११०; २४।१७; २५८,१२,१५,३३, पयहित्तु (प्रहाय) उ० १८।४६ ३७; २६।५,३५, २८।१६; २६।३४,६१, पयहीण (पवहीन) आ० ४।८ ३२।२६,४२,५५,६८,८१,६४; ३४।४४,४७, पया (प्रजा) उ० ३।२४।३; १३१३२. प० १६५ ५१,५८,५६, ३६।२६३. अ० ६१३. पया (दे०) व ६६,११,१३,१५ दसा०६।३; ६।२।२७. प० ४६,२३७,२५१, पयांसि ( ) अ० २६६ २६०. क० ११३४; २।२०,२१. व० श२० से पिया (प्र+या)-पयाइ उ० १३१२४ २२,४१११ से १४; ५।१३,१४. नि० २।२७, पिया (प्र-+जन्)-पयाहिइ प० ४७. ४६,५०,३।१५,८०,४।११७; ५१७३६२१ --पयाहिसि प०६ से २६% ११६६,६८,७०; १२१६,३२; १९।५, पयाण (प्रदान) अ० ३०८।४।। ६,१०,२०११६ से ५१ पयाय (प्रजात) द० ७।३१. ५० ५६,१११,१२८, परं (परम्) नं० २१. १० ४१७. दसा० ७८. प० ७६. क० ११४७. व० ११५. नि० ११४२ पयार (प्रकार) उ० ३२।१०४. अ० ३०७।१० परंदम (परंदम) उ० ७६ पयार (प्रचार) अनं० २८ परंपर (परम्पर) उ० ३२।३४,४७,६०,७३,८६, कृपयाल (प्र+चालय)-पयालेज्ज दसा० ७।२८ ६६. नं० ३०,३२,१०२. प० २५१ पियाव (पाचय)-पयावए द० १०॥४. परंपरा (परम्परा) उ० ३२।३३,४६,५९,७२,८५, -उ० २।२.-पायए उ० ३५११ ६८. नं० ६१ पियाव (प्रतापय)-पयावेज्ज नि० १४१२०. परंपरागम (परम्परागम) अ० ५५१ -पयावेज्जा द० ४ सू० १९ परकड (परकृत) उ० १।३४; ३२६ पयाव (प्रताप) द०६।३४ पयावइ (प्रजापति) अ० ३४२ परक्कम (पर-क्रम)-परक्कमे द० । पयावंत (प्रतापयत्) द० ४ सू० १६ -परक्कमेज्जा द० ८।४०. दसा० ६।१८ पयावण (पाचन) उ० ३५।१०. दसा०६।३ परक्कम (पराक्रम) दचू० २।४. उ० ६।२१; पयावित्तए (प्रतापयितुम्) प० २७७ ११।१७,१८१५१. नं० गा० ३४. अ० ३१०. १६३ Page #1184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० परक्कममाण-परिकिलेस दसा० ६।१८; ६।२।३६ परक्कममाण (पराक्रममाण) दसा० १०।२४ से ३३ परक्कम्म (परक्रम्य) द. ८।३२ परगणिच्चिया (परगणीया) नि०८।११ परगेह (परगृह) उ० १७११८ परग्ध (परार्घ) द० ७।४३ परधर (परगृह) द० ५।१२७ परज्झ (दे०) उ० ४।१३ परतित्थिय (परतीथिक) नं० गा० १० परत्थ (परत्र) उ० १४१५; ४१५; १७।२० परपरिग्गहिय (परपरिगृहीत) क० ३।३१. व०७।२८ परपरिवाद (परपरिवाद) दसा० ६।३ परपासंड (परपाषण्ड) उ० १७।१७ परपासंडपडिमा (परपाषण्डप्रतिमा) व. १।३१ परप्पवाइ (परप्रवादिन) उ० ४।१३ परभव (परभव) दसा० १०।११ परम (परम) द० ६।५।६।१६. उ० २।२६; ३।१,६,१२६।३४; १८।१५,१६७१; २०१५, २०,२१,५८%; २६।३६, ३५१७. दसा० ६।३, ५; १०४,६,७,१०,११,१२,१८,३०. प० ५, १०,१५,३८ परमंत (परमन्त्र) उ० १८।३१ परमग्गसूर (परमानशूर) द० ६।४८ परमट्ठपय (परमार्थपद) उ० २११२१ परमत्थ (परमार्थ) उ० २८।२८ परमदुच्चर (परमदुश्चर) द० ६।५ परमपद (परमपद) प०७४ परमाणु (परमाणु) उ० ३६।१०,११. अ० ११५, ११६,१३२,१३६,१५२,१५३,२५४,२८७, ३७१,३६५,३६६,३६८,४४४ परमाहम्मिय (परमधार्मिक, परमाधार्मिक) द० ४ सू०६ परमाहम्मिय (परमाषामिक) आ० ४१८. उ० ३१११२ परमोहि (परमावधि) नं० १६०२ परम्मुह (पराङ्गमुख) द० ६।४६ परय (परक) उ० ३४।१४ परलोइय (पारलौकिक) नं०८६ से ८६,६१. नि० १२।३०; १७।१५२ परलोग (परलोक) आ० ४।८. द. ६।४ सू० ६,७. उ० ५।११:२२।१६; २६।५१. दसा० ६१७. प०८० परलोय (परलोक) उ० १९६२. दसा० ६३ परसमय (परसमय) उ० २६।६०. नं०८२ से ८५. अ० ६०५,६०७ से ६०६,७१४ परसु (परशु) अ० ५५५ परस्मैभाषा ( ) अ० ३६७ पराइय (पराजित) उ० २२।३९; ३२।१२ परागार (परागार) द० ८।१४ पराघाय (पराघात) नं० ५४१५ पराजिय (पराजित) उ० ६।५६; १३।१ अपरामुस (परा+मश्)-परामसेज्जा दसा० ७।२१. क. ११३ परायंत (प्रराजमान) प० २६ परायण (परायण) उ० ७६; १४१५१ परासर (पराशर) दसा० ७।२४ परि (परि) अ० २७० परिआग (पर्याय) नं० ८६ परिआय (पर्याय) नं० ८६ से ८८,६१ परिइ (परि+इ)—परियंति उ०२७४१३ परिकंख (परि+काङ्क्ष)-परिकंखए उ०७२ परिकड्ढेमाण (परिकर्षत्) नं० १४ परिकम्म (परिकर्मन्) नं० ६२,१०१. १० ८७. ५० ४२. नि० १३१४२ परिकम्मिय (परिकमित) प० २३ परिकिण्ण (परिकीर्ण) दचू० ११७. उ० १११८ परिकित्तिय (परिकीर्तित) उ० ३०।३६; ३६।१४६,२१७ परिकिलेस (परिक्लेश) दसा० ६३ Page #1185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिक्खभासि-परिवेयव्व १९१ परिक्खभासि (परीक्ष्यभाषिन) द० ७५७ परिक्खित्त (परिक्षिप्त) दसा० १०॥१२,१४,२०, २४ से ३२ परिक्खीण (परिक्षीण) उ० ७।१० परिखेव (परिक्षेप) अ० ३८१,४१०,४२२,४२४, ४२६.४३१,४३६,४३८,५८६. क० ११६ से १ परिक्खेवि (परिक्षेपिन) उ० १११८,१२ परिगय (परिगत) द० २५. उ० २।२. __ नं० गा० ११ परिगिज्म (परिगृह) द० ८।३३. उ० ११४३ परिगिण्ह (परि-ग्रह)-परिगिण्हइ उ० २७।१६ अपरिगेण्ह (परि+ग्रह)-परिगेण्हेज्जा द० ४ सू० १५ परिगेण्हंत (परिगृह्णत्) द० ४ सू० १५ अपरिगेहाव (परि-+ग्राह्य)-परिगेण्हावेज्जा । द०४ सू० १५ परिग्गह (परिग्रह) आ० ४१८. द० ४ सू० १५; ६।२०. उ०२।१६७६,१२।६,१४, ४१ १३।३३; १४१४१; १९।२६; ३०।२,३२।२८ से ३०,४१ से ४३,५४ से ५६,६७ से ६६,८० से ८२,६३ से ६५. नं० ८६ से ८६,६१ परिग्गह (परि-+-ग्रह.)--परिग्गहे द० ६२१ परिग्गहसण्णा (परिग्रहसंज्ञा) आ० ४८ परिग्गहि (परिग्रहिन्) उ० ३२।१०१ परिग्गहित्तए (परिग्रहीतुम्) व० ८।१६ परिग्गहिय (परिगहीत) नं० ६७. दसा० १०४, ६,१०,१२,१४. प० ५ से ७,१०,१५,३६,४१, ४३,४४,४८,५०,६३. व० ११३३ परिघ (परिघ) अ० ४१६ परिघट्ट (परि-घ)-परिघट्टावेति नि० ११३६..-परिघट्टेति नि० २।२४ परिघटेंत (परिघट्टयत्) नि० २।२४,२५ परिघेतव्व (परिगृहीतव्य) दसा० १०।२६ परिघोलण (दे०) नं० ३८।८ परिधोलेमाण (परिपूर्णत) नं० १७ परिचज्ज (परित्यज्य) उ० १७११८ परिचितिय (परिचिन्तित) नं० २५ परिचितसृत (परिचितश्रत) इसा० ४१५ परिचुंब (परि | चुम्ब)—परिचुवेज्ज नि० ७१८५ परिचुंबेत (परिचुम्बत्) नि० ७८५ परिच्चज्ज (परित्यज्य) उ० १८।१२,४८; ३५।२ परिच्चत्त (परित्यक्त) उ० १४।३८, २२।२६ परिच्चय (परि- त्यज)-परिच्चयई उ०६।३ परिच्चाइ (परित्यागिन) उ० १७११७ परिच्चाग (परित्याग) नं० ८८,८६,६१ परिच्चाय (परित्याग) उ० १६।२६; २६।३. नं० ८६,८७,६१. अ० ३१० परिजण (परिजन) दसा० ४।२३. प० १५,६६. क० २।२४ से २७ परिजविय (परिजल्प्य) नि० ३।६ से १२ परिजिय (परिचित) अनं० ६. अ० १३,३४,५७, ८ १,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३,७०० परिजुण्ण (परिजीण) द० ६।२५. उ० २३१२ परिजूर (परि+-ज)-परिजूर इ उ० १०।२१ परिजूरिय (परिजीर्ण) अ० ५६६ परिठ्ठप्प (परिस्थाप्य) द० ५।८१ . परिटुप्प (परि--स्थापय्)-परिटुवेइ नि० ८.१.. –परिट्ठवेज्जा द० ५।८१.-परिट्ठवेति नि० २।४२.-परिट्रावेज्ज द० ८।१८ परिदृवित्तए (परिष्ठापयितुम्) दसा० ७।२१ परिद्रविय (परिष्ठापित) आ० ४१६ परिट्ठवेंत (परिष्ठापयत्) नि० २।४२ से ४४; ३१७१ से ७६; ४।११०,१११,५।४,६५ से ६७ ६।१२; १५६७ से ७५; १६।४१ से ५१ परिवेत्तए (परिष्ठापयितुम) क०१।१६. व० ७।२२ परिवेत्ता (परिष्ठाप्य) क० ४१२५. नि० ३८० परिटवेयव्व (परिष्ठापयितव्य) क० ४।१२. Page #1186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ व० ८।१३ परिद्वावणिया (परिष्ठापनिकी) आ० ४।६ परिट्ठा वित्तए (परिष्ठापयितुम् ) प० २७६ परिणत ( परिणत ) अ० ४१६ परिणद्ध (परिणद्ध ) प० २४ / परिणम ( परि + णम् ) – परिणमे उ० ३४।२२ परिणय ( परिणत ) द० ५।७७. उ० ३४।१३,२१, ५८ से ६०; ३६।१६ से २१. दसा० १०।२४ से ३२. ५०६, ३८, ४७ परिणयापरिणय ( परिणतापरिणत ) नं० १०२ परिणाम (परिणाम) द० ८५८. उ० १६ १७; २२।२१; ३४।२,२०,२२; ३६।१५,१७. नं० ३३,३८।१० परिणामि (परिणामित) अ० २७६ १०२२४ परिणामिया ( पारिणामिकी) नं० ३८।१० परिणिट्ठा ( परिनिष्ठा) नं० १२७१४ परिणिट्ठिय (परिनिष्ठित ) उ०२/३० परिणिव्वविय (परिनिर्वाप्य) क० ५।५ परिणिय ( परि + मिर् + वृत्) - परिणिध्वए उ० ३५।२१ परिण्णात (परिज्ञात) दसा० ६।१४ से १८ परिण्णाय (परिज्ञात) द० ३।११. उ० २०१६. ६० ८।१३ से १५ परिणाय (परिज्ञाय ) उ० ४।७ परितप्प ( परि + - तप् ) - परितप्पर द० १२. परितप्पई उ० ५।११. परितप्पति दसा० ६।३ परितप्पण (परितपन) दसा० ६।३ परितप्यमाण ( परितप्यमान) उ० १४।१०,१४ परिताव (परिताप) उ० २३६ / परिताय ( परि + तापय् ) परितावेइ उ० ३२।२७. - परियावेइ उ० ३२/४०. परितावणकर (परितापनकर) दसा० ६।३ परित (परीत ) नं० ८१ से ११,१२३,१२५. दसा० ४।२० परिद्वावणिया परिभव परित्तकाय (परीतकाय) नि० १२०४ परित्तसंसारि (परीत संसारिन् ) उ० ३६।२६० परिताणंतय ( परीतानन्तक) अ०५८०,५८१, ५६५ से ५६६ परित्तासंखेज्जय ( परीता सङ्ख्येयक) अ० ५७६, ५७७,५८७ से ५८६ परितास (परित्रास) प० ५८ परिदाह (परिवाह) उ०२८ / परिदेव ( परि + देव् ) - परिदेवए उ० २८. - परिदेवएज्जा द० ६।४४ परिधाव ( परि + धाव् ) – परिधावई उ० २३।२५ परिनिव्वव ( परि + निर् + वापय् ) —परिनिव्ववेइ उ० १२ २० परिनिव्वा ( परि + निर् + वा ) - परिनिव्वाएइ उ० २६।२९ - परिनिव्वाएज्जा दसा० १०।३२ - परिनिव्वायंति आ० ४।६. उ० २६।१. दसा० १० २४ परिनिष्वाणमग्ग (परिनिर्वाणमार्ग) दसा० १०।३३ परिनिव्वाविय (परिनिर्वापित) दसा० ४/८ परिनिव्वुड (परिनिर्वृत) उ० ५।२८; १० ३६; १४ । ५३; १८।२४, ३५. अ० २८२. ५०७८, ८४,१०६,१८१ परिनिव्य ( परिनिर्वृत) उ० ३६।२६८. दसा० ८१. प० १,१०८, १२६,१६०, १८४ परिपरि (दे० ) नि० १७ १३६ परिपिहित्ता (परिविधाय ) प० २५३ परिपूणग (दे० ) नं० गा० ४४ परिपूत ( परिपूत) प० २४६ परिपेरंत (परिपर्यन्त ) नं० १७ परिफुड ( परिस्फोट) प० २७ परिफासिय ( परिस्पृष्ट) द० ५।७२ परिभट्ट (परिभ्रष्ट) दचू० ११२. व० ५११५ से १८; ८।१३ से १५ परिभव (परिभू ) - परिभवे द० ८|३० Page #1187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिभस्तपरियार परिभस्स ( परि + श् ) - परिभस्सइ द० ६।५० - परिभस्सई उ० ३।६ परिभाएंत (परिमाजयत् ) नि० २।५; १२ ३६; १७।१५१ परिभाएता (परिभाज्य ) प०७४ परिभाएमाण ( परिमाजयत् ) प० ६६ / परिभाय ( परि + भाजय्) - परिभाएति नि० २५ परिभावय ( परिभावक ) उ० १७।१० / परिभास ( परि + माष्) - परिभासई उ० १८१२० परिभिदिय ( परिभिद्य ) नि० ५।६५ / परिभुंज ( परि + भुज् ) - परिभुजति नि० २०६ - परिभुंजामो उ० १३३६. - परिभुजेज्जा व० ८|१३ परिभुजंत (परिभुञ्जान) नि० २२६ ५।२७,३०, ३३, ७१६, ६, १२, १२/२६; १७३८, १४, १५१ परिभुंजेमाण (परिभुञ्जान) प०६६ परिभुज्जमाण (परिभुज्यमान) प०३०. मि० ३।७४ परिभुक्त (परिभुक्त) आ० ४ । ६. प० २२४. क० ११४३; ३|४ परिभोइ (परिभोजिन् ) नि० १२।१६ परिभोगेणा (परिभोगेषणा ) उ० २४|११ परिभोतुयं (परिभोक्तुम् ) द० ५।८२ परिभोय (परिभोग) उ० २४।१२ परिमंडण (परिमण्डन) उ० १६ ९ परिमंडल (परिमण्डल) उ० ३६।२१,४२. अ० २६२,५१३ परिमंडिय (परिमण्डित) दसा० १०।१४ परिमद्दण (परिमन) दसा० १०।१११०४२ परिमाण (परिमाण) अ० ५५८, ५७० से ५७२. नं० १२० परिमाणकड ( परिमाणकृत) दसा० ६।१२ परिमिय (परिमित) द० ८।३४. उ० ३६ । २५४. प० २४६ ( परिमुय ( परि + मुच्) -- परिमुच्चए उ० ६।२२ परियट्ट (परिवर्त) अ० ४१५. व० ७।२७ परिट्ट ( परि + वृत् ) - परियट्टेति नि० ५।११ परियत (परिवर्तमान) उ० २०|३३ परिट्टग्गह (परिवर्तग्रह ) नि० ६।२७ परियट्टण (परिवर्तन) नं० १२१ परियट्टणया ( परिवर्तन) उ० २६।१ परियट्टा (परिवर्तना) उ० २६।२२; ३०/३४. अनं ० ६. अ० १३, ३४,५७,८१,१०६, ५६३, ६२३,६३५,६४७,६७३, ७०० परियट्टय ( परिवर्तक) प० २७ परियट्टाव (परि + वर्तय् ) - परियट्टावेति नि० १४।३ परियट्टिय ( परिवर्तित ) नि० १४/३; १८२४, ३५; १९१३ परियत (परिवर्तमान) नि० ५।११ परियण (परिजन) उ० ६४; २०१५८; २२ ३२ परियर (परिकर) अ० ३२७, ५२५ परिया ( परि + आ + दा ) - परियादियति प० १५ १६३ परिया गहि (पर्यायगृह ) नि०८८; १५।७४ परियागसाला ( पर्यायशाला ) नि० ८८; १५७४ परियागय ( पर्यायागत) उ० ५।२१ परियाण (परि + ज्ञा ) -- परियाणामि आ० ४६ परियादित्ता ( पर्यादाय) प० १५ परिया ( पर्याय) दसा० १०।३३. प० ८२ परियायंतकड भूमि ( पर्यायान्तकर भूमि) प० १०५, १२३,१३७,१७६ परियायजेदृ ( पर्याय ज्येष्ठ) द० ९ ४३ परियायट्ठाण (पर्यायस्थान ) द०८६० परियाथेर (पर्याय स्थविर ) व० १०।१६ परियाधम्म ( पर्यायधमं ) उ०२१।११ ( परियार ( परि + चारम् ) - परियारेति Page #1188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परियाव-परिसा दसा० १०।२८.-परियारेति दसा० १०१२६ नि० २१४४.--परिवसंतु व. ७।२३ परियाव (परि-तापय)-परियावेइ परिवह (परि+वह)-परिवहइ प०५८ उ० ३२१४० परिव हित्तए (परिवोढम्) ० ८।२ परियाव (परिताप) द. ६।३१. उ० २।८; परिवाडी (परिपाटी) उ. ११३२. अ० ३४१ २०१५० परिवार (परिवार) दसा० १०।२०. ५०६ Vपरियावज्ज (परि+आ+पद)-परियावज्जइ परिवारयंत (परिवारयत्) उ०१३।१४ प०२५३.-परियावज्जेज्जा अ० ३६८. परिवारिय (परिवारित) उ० ११।२५; १४।२१ से दसा० ७।१६. क० ४।११ २३; १८१२; २२।११ परियावण्ण (पर्यापन्न) नि० २।४४ परिवास (परि---वासय)-परिवासे ति परियावन्न (पर्यापन्न) क० ३।२६ नि० १११७६ परियावस (परि+आ+वस)-परियावसे परिवासिय (परिवासित) नि० ११०८० उ० १८०५३ परिवासेंत (परिवासयत) नि०१११७६ परियावसह (पर्यावसथ) नि० ३.१ से १२; परिविस्स (परिवेष्य) उ० १४॥ ७७८,७६; ८।१;१५६७ परिवुड (परिवृत) द० ६।१५. उ० २०१११; परियाविय (परितापित) आ०४।४ २२।२२,२३. नं० गा० ८. दसा० १०॥२४,३३. परियावेतव्व (परितापयितव्य) दसा० १०१२६ नि० ८।१० परिरक्खिय (परिरक्षित) उ० १८।१६ परिवड्ढ (परिवद्ध) द० ७।२३ परिरक्खियंत (परिरक्ष्यमाण) उ० १४०२० परिवुसिय (पर्युषित) नि० ६।१२ परिरय (परिरय) उ० ३६५८ परिवूढ (परिवढ) उ० ७।२,६ परिरायमाण (परिराजमान) प० २६ परिवेढिय (परिवेष्ट्य) नि० ३६ परिवंद (परि+वन्द्)-परिवंदइ अ० ३१४ परिव्वय (परि+वज्)-परिव्वए उ०२।१६. परिवज्ज (परि + वर्जय)-परिवज्जए -परिव्वएज्जा उ० २१११५ द० ५।४. उ० १।१२.-परिवज्जेज्ज परिव्वयंत (परिव्रजत्) द० २।४. उ० २ सू०१ उ०१८।३०.–परिवज्जेज्जा उ०१६ से ३; १४।१४ परिवज्जत (परिवर्जयत्) द० ५।२६ परिव्वायग (परिव्राजक) अ० ३४४ परिवज्जण (परिवर्जन) उ० ३०१२६ परिव्वायय (परिव्राजक) प०६ परिवज्जय (परिवर्जक) द० ७१५६ परिसंकमाण (परिशङ्कमान) उ० ४७ परिवज्जयंत (परिवर्जयत्) उ० २१।१३ परिसंखाय (परिसङ्ख्याय) द० ७.१ परिवज्जित्तु (परिवर्य) उ० २४।१० परिसप्प (परिसर्प) उ० ३६।१७६,१८१. परिवज्जिय (परिवजित) प० २६ अ० २५४ परिवट्ट (परि+वृत्)-परिवटेज्ज नि० १।५. परिसह (परिषह) द० ३।१३, ४।२७. -परिवट्टेति नि० ६६ दसा० १०२४ से ३३. प० ६७,७४ परिवटेंत (परिवर्तमान) नि० ११५; ६।६ परिसा (परिषद्) द० ४ सू० १८ से २३. परिवत्त (परि+वृत्)-परिवत्तए उ० ३३१ उ० २२।२१; २३।८६; २५॥१३, दसा० ३१३; परिवस (परि+-वस)-परिवसंति व०७।२३. ४।१२; ५।६६३; ८।१६।।६; १०१६,२१, Page #1189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसाड-परीसह १६५ ३५. प० ६,७४,११३,१२६. नि०६।११; १४।३६; १८७१ परिसाड (परि-शाटय)-- परिसाडावेति नि० ११५५.-पडिसाडेइ प० १५. --परिसाडेज्ज द० ५।२८ परिसाडावेत (परिशाटयत्).नि० ११५५ पडिसाडेत्ता (परिशाट्य) प० १५ परिसिंच (परि---सिंच)-परिसिंचई उ० २०१२८.~परिसिंचेज्जा उ० २६ परिसिच्चमाण (परिसिच्यमान) प० ३४ परिसुक्क (परिशुष्क) उ० २।५ परिसुज्झ (परि+शुध्)-परिसुज्झई उ० २८३५.---परिसुज्झति दसा० ५।७६ परिसुद्ध (परिशुद्ध) उ० २४१४ परिसोसिय (परिशोषित) उ० १२१४ परिस्संत (परिश्रान्त) दसा० १०।११. ५० ४२ परिस्सम (परिश्रम) दसा० १०।११. प० ४२ ।। परिस्सय (परि+स्व)-परिस्सएज्ज नि० ७८५ परिस्सयंत (परिस्वजमान) नि० ७८५ परिहत्थग (दे०) प० ३० /परिहर (परि+ह)-परिहरंति द० ६॥१. -परिहरे उ० १२४ परिहरणारिह (परिहरणार्ह) क० ३।२६; ४।२५. व० ७.२२ परिहरित्तए (परिधातुम्) क० १११६. व० ८।५ परिहरिय (परिधाय) उ० १२१६ परिहरेत्तए (परिधातुम्) व० ७।२२ अपरिहा (परि+धा)-परिहरंति द० ६।३८. -परिहेति नि० १२।१२ परिहा (परि+हा)-परिहायइ नं० १६ परिहा (परिखा) अ० ३६२ परिहायंत (परिहीयमाण) उ० ३६।५६ परिहार (परिहार) दसा० ७८. क० ११३८ से ४१,२।४ से ७; ३।२७. व० १११६ से ३२. ३।२४।११ से १७,१६,२१,२३, ५।११ से १४,२१, ६।१,४,५,७१२२ परिहारकप्पट्ठिय (परिहारकल्पस्थित) क० ४।२५; ५१४०. व० ११२० से २२; २१५,६,२८ से ३० परिह रट्ठाण (परिहारस्थान) क० ११३७; २०१७ ३।३३, ४.१० से १३,५।१,२,६ से १०. व० १११ से १८,६८,९. नि० १२५६; २१५६, ३१८०४।११८,५७८; ६७६; ७।६२,८।१८; ६।२६; १०१४१, ११।६३; १२।४३; १३१७५; १४१४१,१५११५४; १६।५१; १७।१५२; ; १८१७३; १९३७; २०११ से ५१ परिहारपत्त (परिहारप्राप्त) व० २।२४,२५ परिहारविसुद्धियचरित्त (परिहारविशुद्धिकचरित्र) अ० ५५३ परिहारविसुद्धियचरित्तलद्धि (परिहारविशुद्धिक___ चरित्रलब्धि) अ० २८५ परिहारविसुद्धीय (परिहारविशुद्धिक) उ० २८।३ परिहारिय (पारिहारिक) व० २।२७,२६,३०; ७।२३,२४. नि० २।३६ से ४१; ४१११८ परिहिय (परिहित) उ० २२।६. दसा० १०॥१२, २४.५० ४४,६६ परिहीण (परिहीन) अ० २६४,३६०१३ परिहेंत (परिवधत्) नि० १२।१२ परी (परि+इ)-परियंति उ० २७।१३ परीणाम (परीणाम) द० ८.५६ परीत्योपसर्गिकम् ( ) अ० २७० परीमाण (परीमाण) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१, ४३६,४३६ परिवट्टण (परिवर्तन) आ० ४।५ परीसह (परीषह) आ० ४।८. उ०२ सू०१ से ३; गा० १,५,१४,१८,४६; १९३२; २११११, १७,१६,२२; २६४७; ३१।१५. ५०६७,७४ Page #1190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ परीसहपविभत्ति-पलिस्सय ५८६ परीसहपविभत्ति (परीषहविभक्ति) उ० २ पलिउंचिय (परिकुञ्चित) व० ११ से १८. परूढ (प्ररूढ) अ०४२२,४२४,४२६,४३१,४३६, नि० २०११ से १८ ४३८ पलिओवम (पल्योपम) दचू० १११५. उ०३३।४२, परूव (प्र+रूपय)-परूविज्जइ अ० ६०६. ५२,५३; ३६।१८४,१८५,१६१,२००,२०१, -परूविज्जति नं० ६६.-परूवेइ २२० से २२३. नं० २५. अ० २१९,४१८ दसा० १०१३५. प० २८८ ४१६,४७७,५०५,५६६. प० १४४,१४५ परूवणा (प्ररूपणा) उ०३६।३. नं० गा० ४३; पलिच्छन्न (परिच्छन्न) व० ३।१,४१२४,२५ स०५१,८१ से ६२,१२३. अ० २६४,४१६, पलिडिदिय (परिछिय) नि० ५।६६ पलित्त (प्रदीप्त) उ० १६।२२,२३ परूविय (प्ररूपित) उ० २६७४. अनं० ८. पलिभंजिय (परिभज्य) नि० ५।६७ अ० १६,३७,६०,८४,१०६,२४७,५६६,६२६, पलिभाग (परिभाग) अ० ४८२,४६५,४६६ ६३८,६५०,६७६,७०३ पलिमंथ (परि+मन्थ्)-पलिमंथए परोक्ख (परोक्ष) नं० ३,३४,५४,५५,१२७ उ० ६।२१ पल (पल) अ० ३२१,३७८ पलिमंथ (परिमन्थ) दसा० ६।३ पलंदु (पलाण्ड) उ० ३६।६७ पलिमंथु (परिमन्थु) क० ६।१६ पलंब (प्रलम्ब) द० ५७०. उ० २६।२७. पिलिमद्द (पलि+मर्दय)-पलिमद्देज्ज दसा० १०११२,१४. प० ८. क० १११ से ५ निक पलंबमाण (प्रलम्बमान) दसा० १०॥३,११. पलिमद्दाव (परि + मर्दय)--पलिमद्दावेज्ज पलिमटाव (D प० १०,४२ नि० १५।१४ पलंबसुत्त (प्रलम्बसूत्र) नि० ७७ से १; १७।६ से पलिमद्दावेंत (परिमर्दयत्) नि० १५५१४,२०,२६, ४८,५७; १७।१६,२२,२८,५०,५६,७०,७६, पलंबियबाहिया (प्रलम्बितबाहा) क० ५२० ८२,१०४,११३ पलाइय (पलायित) द० ४ सू० ६ पलिमहेंत (परिमर्दयत्) नि० ११३; ३।१७,२३,२६, पिलाय (परा+अय)-पलायए उ० २७१७ ५१,६०, ४१५५,६१,६७,८६,९८,६४,२६, पलायण (पलायन) उ० १४१२७ ३२,३८,६०,६६७।१५,२१,२७,४६,५८%; पलाल (पलाल) उ० २३।१७. अ. ३२१. ११११२,१८,२४,४६,५५; १५॥१००,१०६, क० ४।३१ से ३४ ११२,१३४,१४३ पलालपुंज (पलालपुञ्ज) क० ४।३१ से ३४ पलालपीढग (पलालपीठक) नि० १२१६ पलिय (पल्य) उ० ३०३५ से ३७,४३,४८ से पलास (पलाश) उ० ३२।३४,४७,६०,७३,८६, ५०,५२,३६।१६२. अ० ४१५ २६. अ० ३२१. प० २४ पलियंक (पर्यङ्क) द० ६।५३ से ५५. नि० ७७६, ७७ पलासग (पलाशक) प० २।२६,३० पलासय (पलाशक) अ० ३४७. नि० ५।१४ पलियंकय (पर्यङ्कक) द० ३१५ पिलिउंच (परि+कुञ्च)-पलिउंचंति पिलिविद्धंस (परि- वि+-ध्वंस्) उ० २७।१३ -परिविद्धंसेज्जा अ०४२२ पलिउंचग (परिकुञ्चक) उ० ३४।२५ पिलिस्सय (परि---स्व)-पलिस्सएज्जा Page #1191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पली-पवर १९७ क०४।१० पिली (परि-+इ)-पलेइ उ० १४१३४. -पलेंति उ०१४।३६ पलीण (प्रलीन) द० ८।४० पलोएंत (प्रलोकमान) नि० ५११ पलोभित्ता (प्रलोभ्य) उ० ८।१८ । पलोय (प्र+लोक)-पलोइज्जइ प० १८८. -पलोएज्जा द० ५।२३. नि० ५२१. -पलोयंति अ० ३१६ पलोयणा (प्रलोकना) नि० ३।१४ पल्ल (पल्य) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१,४३६, ४३८,४३६,५८६ पल्लंघण (प्रलडन) उ० २४।२४ पल्लल (पल्वल) नि० १२।१८; १७११४० पल्लव (पल्लव) प० २३ पल्लवग्ग (पल्लवान) नं० ८४ पल्लाउत्त (पल्यागुप्त) क० २।३,१० पल्ली (पल्ली) उ० ३०१६ पल्लीण (प्रलीन) प० ५३ पल्लोय (दे०) उ०३६।१२६ पल्हत्थ (पर्यस्त) प० ५४. नि०८।११ पल्हत्थिया (पर्यस्तिका) उ० १११६ पल्हविया (पल्हविका) नि० ६।२६ पल्हाय (प्रह्लाद) उ० १६।२ पल्हायण (प्रल्लावन) उ० २६।१८ पल्हायणिज्ज (प्रहावनीय) दसा० १०१११. प० ११,३६,४२,७३ पिव (प्लु)-पवति अ० ३२० पवंच (प्रपञ्च) उ० ३६।६३. नं. ९१ पवक्ख (प्र+वच्)-पवक्खामि दचू० २६१. उ०२६।१ पवग (प्लवक) अ०८६. प० ६२. नि० ६२२ पिवज्ज (प्र+वज्)-पवज्जई उ० १६१८. -पवज्जामि आ० ४।२ पवज्जमाण (प्रपद्यमान) प० ३२ पवज्जा (प्रव्रज्या) उ० ३५२ पिवड (प्र-+पत्)-पवडति दसा० ६६६. -पवडिज्ज प० २८५.–पवडेज्ज क० ३।२२. -पवरेज्जा द० ५।६८ पवडंत (प्रपतत्) द० ५।५,८ पवडमाण (प्रपतत्) क० ६७ पडित्तए (प्रपतितुम्) दमा० ७।२८ पवढ (प्र+वध)-पवड्ढई उ० ८।१७. - पवड्ढेति द० ६।२६ पवड्ढमाण (प्रवर्धमान) द० ८।३६. प० ३१ पवण (प्लवन) अ० ३२०,४१६ पवण (पवन) अ० ७०८१५. ५० ३१ पवत्त (प्र-वत)-पवत्तइ जोनं० २. अ० २. -पवत्तति प० ६०.-पवत्तिस्सति प० ६१ पिवत्त (प्र+वर्तय)--पवत्तेहि प० ७३ पवत्त (प्रवृत्त) उ० ३४।२१ पवत्तण (प्रवर्तन) उ० २४१२६; ३१।२,३. नं० १२० पवत्तमाण (प्रवर्तमान) उ० २४।२१,२३,२५ पवत्ति (प्रवतिन्) अनं० २० से २२. प० २७१. क० ३।१३; ४।१६ पवत्तिणित्त (प्रतिनीत्व) व० ५।१५ पवत्तिणी (प्रवत्तिनी) नं० १२०. क० ११४०,४१; ३।१३. व० ३।१२; ५॥१,२,५,६,६,१०,१३ से १४ पवत्तित्त (प्रवतित्व) व० ३।७,१३ . पवत्तिय (प्रवर्तित) उ० २०।१७. अनं० २८ पवन्न (प्रपन्न) उ० १४१२,२८, २३।१३,२४,३० पवय (प्लवक) नं ३८९ पवयण (प्रवचन) द० ५।११२. उ० २४१३; २८।२६; २६।२४. व० ३।३ से ८ पवयणमाय (प्रवचनमातृ) आ० ४।३; ५।२. उ० २४,२४६१,२७,२६।१२ पवर (प्रवर) उ० ११।१६,२०,२७ से २६; १७।२०. नं० गा० १६. दसा० १० से ११, Page #1192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ पवह-पव्यत १३ से १५,१६. प०२,२०,२३,२६,३२,४०, ४२,४४,६२,६६ पवह (प्रवह) उ० १११२८ पवा (प्रपा) अ० १६,३६२. ५०५१ पवाइय (प्रवादित) दसा० १०११७,१८,२४. प०६,६४ पवाड (प्र+पातय)-पवाडेज्ज दसा० ७।२८ पवात (प्रवात) प० ५६ पवादित (प्रवादित) प० ७५ पवाल (प्रवाल) द०५।११६. उ० ३६७४. अनं० १३,१७. अ० ३८५,६५५,६५६,६८१, ६८५. दसा० ६।३. प० ३३,५२,७४ पवालभोयण (प्रवालभोजन) दसा० २।३ पवाह (प्र+वाहय)-पवाहेहि नं. ५३ पविकत्थ (प्र+वि+कस्थ)-पविकत्थइ दसा० ६।२,२६ पविट्ठ (प्रविष्ट) द० ५।१६,१०८; ६१५६. उ० २।२६१३।३४; १९।८३. नं० ५२. अ०६०६. दसा० १०॥१४. व० ४।२०,२१. नि० ३।१३ पवितक्किय (प्रविकित) उ० २३।१४ पवित्त (प्रवृत्त) उ० १२१६ पवित्थर (प्रविस्तर) दसा० ६।३ पविभत्ति (प्रविमक्ति) उ० २।१ पवियखण (प्रविचक्षण) द० २।११. उ० ६।६२; १९६६; २२१४६ पवियन्न (प्रविकोणं) दसा० १३२४ पविरायमाण (प्रविराजमान) नं० गा० १५ पविस (प्र-विश)-पविसइ नं० ५३. -पविसति नि० २।४०.-पविसे द०५।१७ पविसंत (प्रविशत्) नि० २।४०; ८।१४; ६।३,७, १६,२० पविसित्तए (प्रवेष्टुम् ) दसा० ७।१६. प० २३६. क० ११४५. व० ८।५. नि० ६।४ पविसित्ता (प्रविश्य) द० ५।८८ पविसित्तु (प्रविश्य) द० ८।१६ पवीइय (प्रवीजित) दसा० १०॥१७ पिवीणी (प्र+वि---णी)-पवीणेति दसा० १०।१० पवीणेत्ता (प्रविणीय) दसा० १०।१० पवील (प्र+पीडय)-पवीलावेज्जा द० ४ सू० १६.-पवीलेज्जा द० ४ सू० १६ पवीलंत (प्रपीडयत्) द० ४ सू० १६ पिवुच्च (प्र+वच्)-पवुच्चइ प० ८४. -पवुच्चई द० ४ सू०६ पवेइत्तए (प्रवेदयितुम) क० ३१२३ पवेइय (प्रवेदित) द० ४ सू०१ से ३. उ० २ सू० १ से ३; गा० १,४६; ५।१७; १३:१३; २६।४, ७; २६१ पिवेद (प्र+वेदय)-पवेदेति नि० १३१२८ पवेदेंत (प्रवेदयत) नि० १३।२८ से ३० पिवेय (प्र+वेदय)-पवेयए द० १०२० पवेविय (प्रवेपित) उ० २२६३६ पवेश (प्र-विश)-पवेसंति उ० ७.१९. पवेसेज्ज उ० २०१२० पवेश (प्रवेश) उ० ३६।२६७. प० ६४. क० १११०,११. व० ६।४,७,९।१३ से १६ पव्व (पर्वन्) उ० २।३ पव्वइउं (प्रवजितुम्) उ० २२।२६ पव्वइत्तए (प्रवजितुम) प० ५७ पव्वइत्ताण (प्रव्रज्य) उ० २०३६ पव्वइय (प्रवजित) द० ४।१८,१६, ६।१८,६।५२; चू० १ सू० १. उ० १०॥२६; १३।२; १५६१०, १७११,३,१८१२०,४७; २०१८,३४; २२॥३२. अ० ३१०. दसा० ८।१. प०१,१५, १०८,११३,१२६,१२६,१६०,१६५ पव्वग (पर्वज) उ० ३६।६५ पन्वज्जा (प्रव्रज्या) उ० ६।६; १३॥१४; १८।३६; २२।२८. नं० ८६ से ८६,६१,१२० पव्वत (पर्वत) अ० २८७. दसा० ७।२० Page #1193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पव्त्रतग्ग-पसु पव्वतग्ग (पर्वताग्र) दसा० ६।६ पव्वय (पर्वत) द० ७ २६, ३०; ६८. उ० ६४८. अ० ४१०. क० ६।७. व० ६।४०, ४१. नि० १२।१६; १७ । १४१ / पव्वय ( प्र + व्रज् ) - पव्वइस्सामि उ० १६ । १०. - पव्वए उ० १८।३४. - पन्त्र एज्जा दसा० १०।३१ पश्वया उ० १६१७५ पव्ययंत ( प्रव्रजत्) उ० ६१५; २५|२० पवयविदुग्ग (पर्वत विदुर्ग ) व० ६४०, ४१. नि० १२।१६; १७ । १४१ पब्वाय ( म्लान) अ० ३१७११ √ पव्वाव ( प्र + व्राजय्) - पव्वावेति नि० ११।५५ पसमिक्ख ( प्रसमीक्ष्य ) उ० १४।११ पवावेसी उ० २२।३२ पसर (प्रसर) उ० ३६।२६६. ५० ३१ / पसर ( प्र + सु ) -- पसरई उ० २८ २२ / पसव ( प्र + सू ) - पसवई द० ५।१३५. उ० २११४ पव्वावणंतेवासि ( प्रव्राजनान्तेवासिन् ) व० १०।१७ पावणायरिय ( प्रवाजनाचार्य) व० १०।१५ पवावेंत ( प्रवाजयत् ) नि० ११।८५ पवावेत्तए ( प्रव्राजयितुम् ) क० ४।४. व० ७।६ पव्विह ( प्र + व्यध् ) - पब्विहति नि० ७१८३ पव्विहंत ( प्रविध्यत् ) नि०७।८३ पसंग (प्रसङ्गः ) नं० ३८/८ पसंगपारायण (प्रसङ्गपारायण) नं० १२७/४ पसंत (प्रशान्त) द० १०।१०. उ० ३४।२६,३१. अ० ३०६, ३१८. ५०७८ पसंतभाव ( प्रशान्तभाव) अ० ३१५।१ पसंतरस ( प्रशान्तरस) अ० ३१८ (पसंस (प्र+शंस् ) – पसंसति नि० ११८३ पसंसंत ( प्रशंसत्) नि० ११८३, ६३, १३।४४,४६, ४८, ५०, ५२, ५४,५६,५८,६० पसंसण ( प्रशंसन) द० ७।२५ पसंसा (प्रशंसा) उ० १५५; १६६० पसंसिय ( प्रशंसित ) उ० १४।३८ ( पसज्ज ( प्र + स ) – पसज्जसि उ०१८ ।११ पसज्ज (प्रस) दचू० १।१४ पढ (प्रसूत) द० ५।७२ पण (प्रसन्न ) नं० गा० २६ पसति ( प्रसुति ) अ० ३७४ १६६ पसत्य ( प्रशस्त ) दचू० २।५. उ० १२०४४,४७; १४/६; १६/६३; २६।२८ २६५, ८, १३, ४३, ३२।१३, १६, ११०, ३४ । १७,१६,६१. नं० गा० ४२ सू० १८. अ० ६७,६६३०७ ११, ३३५, ३३६.५३३, ६६७, ६६८, ६९३,६६४. प० २३, २४, ३६, ५८. क० ६।१६ पसत्थार ( प्रशास्तृ ) दसा० ६।२।१८ पसन्न ( प्रसन्न ) द० ६/६८. उ० १ ४६; १२/४६; १८/२० पसवित्ता (प्रसूय) दसा० ६ |४ ( पसा ( प्र + शास् ) – पसाहि उ० १३/१३ पसाय (प्रसाद) द० ६ १० ( पसाय ( प्र + सादय् ) – पसाएइ उ० १२।३०. - पसायए उ० १।१३ पसायपेहि ( प्रसादप्रेक्षिन् ) उ० १२० पसारण (प्रसारण) आ० ४ ५ ६ |४ पसारिय ( प्रसारित) द० ४ सू० ६. उ० १।१६; १२।२६ पसाहा ( प्रशाखा) द० ६१८ पसाहित्ता ( प्रसाध्य ) उ०१८ | ४२ पसाहिय ( प्रसाधित) उ० २२।३० सिढिल ( प्रशिथिल) उ० २६ । २६ पसिण ( प्रश्न) उ०१८।३१. नं० ६०. नि० १३०१६ परिणापसिण ( प्रश्नाप्रश्न ) नं० ६० नि० १३॥२० सिद्धि (प्रसिद्धि ) अ० ७१४ / पसीय ( प्र + षब् ) – पसीयंति उ० १।४६. - पसीयंतु आ० २।५. उ० २३१८६ पसु (पशु) द० ७ २२; ८ ५१. उ० ३ १७; ६।५; Page #1194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० पसुजाति-पाउया ६।४८; १६ सु० ३; २५।२८; ३०१२८. पहिय (पथिक) नि० ७।२६ अ० ३१३ पहियकित्ति (प्रथित कोति) दसा० १०.१५ पसुजाति (पशुजाति) क० ५।१३,१४. नि० ७।८३ पहीण (प्रहीण) आ० २।५; ४।६; ५।४,५. से ८५ द० ३।१३. उ० ५।२५,१४।२६,३०, २११२१; पसुत्त (पसुप्त) उ० २०।३३ २८।३६. अ० २८२. दसा० ५७; १०।२४ से पसुभत्त (पशुभक्त) नि० ६।६ ३३. प० ५१,८४ से ८६,६२,१०३,१०६, पसूय (प्रसूत) द० ७।३५. उ० १४१२; २३३५१. १०७,१२४,१२५,१३८ से १५६,१८०,१८१, अ० ३६० १८४ पिस्स (दश)-पस्स उ० ७।२८.--पस्सइ पहु (प्रभु) उ० १९४२२; ३५।२० द० ५।१३७.-पस्सामि दसा० ६।२।३४ पहेण (दे०) नि० ११८१ पस्स (दृष्ट्वा ) उ०६।१२। पहोइ (प्रधाविन्) द० ४।२६ पह (पथ) उ० १०॥३१,३२, २०१५१. पा (पा)-पाहामि व० २।२६.-पाहामो नं० गा० २२. अ० ३५४,३६२. दसा० १०॥६. नि० ४।११८.- पाहिं उ०१६।५६. प० ६२. व० ७।२५ पाहिसि प० २३७. व० २।३०.-पिबे पहगर (दे०) प० ३० द०५।१३६ अपहण (प्र+हन)-पहणति दसा. ६।२।४. पाइण्ण (प्राचीन) नं० गा० २४ ---पहणे उ० १८१४८ पाइम (पाक्य, पवित्रम) द० ७।२२ पहय (प्रहत) उ० १२।३६ पाइय (पायित) उ० १६१६८,७० पहरण (प्रहरण) दसा० १०।१४ पाईण (प्राचीन) द० ६।३३. प०७४,८१. पहसिय (प्रहसित) उ० २०१० व० ११३३ पहा (प्रभा) उ०२८।१२. नं० गा० ३१. पाईणाभिमुह (प्राचीनाभिमुख) दसा० ७।२० दसा० ६१५, ७।२० प० २२,४२ पाउ (प्रादुस्) अ० १६,२०. दसा० ७।२०. प०४२ पहा (प्र+हा)-पहीयए उ० ३२।१०७ पहाण (प्रधान) द०४।२७. उ० १९९७. पाउं (पातुम्) उ० १७१२ नं० गा० ३०,३८. अनं० २८. प० २६,१६५। पाउ (पीत्वा) उ० १६११ पाउकर (प्र--आ+दु+कृ)-पाउकरिपहाणमग्ग (प्रधानमार्ग) उ० १४॥३१ स्सामि उ० १११.-पाउकरे उ०१८।२४ पहाणव (प्रधानवत् ) उ० २११२१ पाउग्ग (प्रायोग्य) आ० ४।३; ५२. नि० १०॥३३ पहाणि (प्रहाणि) उ० ३१७ पाउण (प्र+आप्)-पाउणइ दसा० १०॥३०. पहाय (प्रहाय) उ०४।२ व० श२१.-पाउणति दसा० १०॥३१. पहार (प्रहार) द०६।८।१०।११ –पाउणिज्जा उ० १६ सू० ३ पहार (प्र-धारय)-पहारेत्थ दसा० १०११५ पहारगाढ (गाढप्रहार) द० ७१४२ पाउणित्ता (प्राप्य, पालयित्वा) दसा० १०॥३०. पिहाव (प्र+धाव)-पहावई उ० २७।६ प० १०६ पहास (प्रभास) नं० गा० २१ पाउन्भूय (प्रादुर्भूत) दसा० १०१४. प० १५ पहाम (प्रहर्ष) अ० ३१६ पाउया (पादुका) प० १०॥१४ Page #1195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाउरण-पाणाइवाय पाउरण (प्रावरण) उ० १७१२. अ० २१ पाउस (प्रावृष्) अनं० २४ पाउसय (प्रावड्ज) अ० ३३४ पाओ (प्रातस्) प० २४० पाओवगमण (प्रायोपगमन) नं० ८६ से ८६,६१ पाओवगय (प्रायोपगत) नं० १२०. प० २७६ पाओसिया (प्रादोषिकी) आ० ४।८ पागड (प्रकट) उ० २६ सू० ४३. प० ३१ पागडण (प्रकटन) नं० २५ पागसासण (पाकशासन) प०८ पागार (प्राकार) उ०६।१८,२०. नं० गा० ४. अ० ३६२. नि० ८।३; १५२६६ पाडल (पाटल)प० २५ पाडलिपुत्त (पाटलिपुत्र) अ० ५५६ पाडिएक्क (प्रत्येक) व० ७१४,५ पाडिच्छग (प्रतीच्छक) नं० गा० ४२ पाडिय (पातित) उ० १६।५४,५६ पाडिवय (प्रतिपद) व० १०॥३,५ पाडिहारिय (प्रातिहारिक) दसा० ४।१३. क० २।२४,२५, ३।४,२५,२७. व० ८।६,७; ६।१,३,५,७. नि० ११२७ से ३०; २१५२,५३, ५५; ५।१५,१६,१९,२०,२३ पाढव (पार्थिव) उ० ३.१३ पाढो (पृथक् ) नं०६४ से १०० पाण (प्राण) आ० ४१४,६,८. द० सू० ६,११; गा० १ से ६; ५।३,५,२०,२६,१०७; ६८, १०,२३,२४,२७,३०,४१,४४,५५,५७,६१; ७।२१; ८।२,१२,१५. उ० १।३५; २।११, ६१६८७ से १२।३६; १७।६; २२।१४, १६,२४११८; २२२२; २६।२५; २६।१८, ४३; ३५।१०,१२. दसा० २१३; ६।४;७।१६; ६।२।१. प० २७६. क० ४।३१ से ३४; ५।११; ६।४,६. नि० ७१७५; १३.८%3B १४।२७, १६।४८; १८१५६ पाण (पान) आ० ४१५; ६।१ से १०. द. ४ सू० १६; ११,२७,३१,३६,४१ से ४४,४८, ५०,५२,५४,५८,६०,६२,६४,७५,८६,१०३, ११०,११३,११५,११७,१२८,१३३; ६।४६, ५०८।१६; ६।४५; चू० २।६,८. उ० २१३; ६।१४; १२।११,१६,३५,१५।११,१२; १६ मू० ६,१० गा० ७,१२; १६७६,८०; २०१२६; २५।१०।२६।३१; २७।१४; ३०।२६; ३५।१०,११. अ० ५३२. दसा० २।३; ३१३; ६।३,१८,७।२२; ९।२।१; १०।२६,३१. प० ४८,६६,२३६ से २४३, २५०,२५२,२५४,२५६,२६० से २६३,२७१, २७७,२८५. क० १११६,४२; ३११,२१; ४/१२ से १४,२६ से २८; श६,१०,१६. व० २।२८ से ३०; १०॥३,५. नि० २।४८; ३१ से १२, १४,१५; ४।३७,११८,३३,३४,३५;७१७७, ७६,८६,८७; ८।१ से १,११,१४ से १६; ६।४,५,१०,१२ से १८,२१ से २६; १०।२५ से २६; ११७५ से ८०; १२।१५,१६,२९,३१, ३२,४२; १५३७६,७८,७६,८२,८३,८६,८७, ६०,६१,६४,६५; १६।१२,१७,१८,२८,३४ से ३६; १७।१२५ से १३२,१५१, १८।१७ से ३२ पाणग (पानक) द० ५।४७,४६,५१,५३,५७,५६, ६१; १०1८,६. दसा० ७१५. प० २४४ से २४६,२५० पाणगजाय (पानकजात) नि० २।४३ पाणय (प्राणत) उ० ३६।२११,२३१. अ० १८६, २८७. प० १०६ पाणयय (प्राणतज) अ० २५४ पाणवत्तिय (प्राणप्रत्यय) उ० २६।३२ पाणबह (प्राणवध) उ० ३०।२ पाणसाला (पानशाला) नि० ६७ पाणहा (उपानह.) द० ३४ पाणाइवाय (प्राणातिपात) आ० ४८.८० ४ सू० ११. उ०१६।२५. दसा० २।३; ६।३. क० ६२ Page #1196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ पाणाइवायकिरिया-पायपुछणय पाणाइवायकिरिया (प्राणातिपातक्रिया) आ० ४।८ ४२,४७,२२४,२३२. क० ४।३०. व०६।२; पाणाउ (प्राणायुष) नं० १०४,११६ १०॥३. नि० २।२१,३।१६ से २१; ४१५४ से पाणि (पाणि) उ० २।३६; २६।२५. अ० ४१६. ५६, ६।२५ से ३०७।१४ से १६,८३; दसा० ६।२।२; १०२४ से ३२. प० ६,३८, १११११ से १६; १५॥१३ से १८६९ से ४२,४७,२५३,२६१. क० ५।६ से ६. १०४; १६३६१७।१५ से २०,६९ से ७४; व० २।२६,३०. नि०१०।२५ से २६ १८।१६ पाणि (प्राणिन् ) उ० ३।५,६, ६।६।७।२०; पाय (पात्र) द० ६।१६,३८,४७, ८।१७. उ०६७. १०१४; २२११७,१८; २३।६५.६८,७५,७६, अनं० २१. नि० २७,२८,४१ से ४६; ७८,८०; २६॥३४. दसा० ६।२।२,२०; ३।८०; ११३७,८ १०।११. प० २५३ पाय (प्रायस्) उ० ३२।१० पाणिपडिग्गहय (पाणिप्रतिग्रहक) ५० ७६ पायए (पातुम) व० २।२६ पाणिपडिग्गहिय (पाणिप्रतिग्रहिक) प० २५२,२५३. पायं (प्रातर) उ० १२१३९ व०६।४३ पायकंबल (पावकम्बल) उ० १७७,६ पाणिपेज्जा (पाणिपेया) द० ७।३८ पायकेसरिया (पात्रकेसरिका) क० ५॥३२,३३ पाणिय (पानीय) उ० १०।२८; १९८१ पायखज्ज (पाकखाद्य) द० ७।३२ पाणीलेहा (पाणिरेखा) प० २६१ पायच्छिण्ण (पादछिन्न) नि० १४१७; १८।३६ पाणु (प्राण) अ० ४१७.५० ८४ पायच्छित्त (प्रायश्चित्त) उ० २६१३; ३०॥३०, पाताल (पाताल) अ० ४१० ३१. दसा० १०॥३,१२,२२ से २४,३४. पात्र ( ) अ० ३५१ प० ४४,५८,६६. क० ४।२६. व० ११३३; पाद (पाद) अ०४०७,४०६. दसा० ७१५,२३ । ६।१०,११,७।१ से ३. नि० १०१४ पादपीढ (पादपीठ) दसा० १०।१४ पायच्छित्तकरण (प्रायश्चित्तकरण) आ० ५।३. पामिच्च (प्रामित्य, प्रामीत्य, अपमित्य) उ० २६१,१७ द० ॥५५. दसा० २१३. नि० १४१२; १८।३, पायच्छिन्न (पावछिन्न) दसा० ६।३. ३४; १६२ पायत्त (पादात) दसा० १०।१४,२४ से ३२ /पामिच्च (प्र+आ+मि)-पामिच्चावेति पायत्ताणिय (पादातानीक) उ० १८१२ नि० १४१२.-पामिच्चेति नि० १४१२ पायत्ताणियाहिवइ (पादातानीकाधिपति) पामोक्ख (प्रमुख, प्रमुख्य) प० ६३ से ६६,११७ प०१४,१५ से १२०,१३२ से १३५,१६८ से १७१ पायपीढ (पादपीठ) ५० १०,३६,४२ पाय (पाद) द० ३।४;४ सू० १८,२३, ५७,६८; पायपुंछण (पादप्रोञ्छन) द. ४ सू० २३, ६।१६, ८।४४,५५, ६।५,१०,३४; १०।१५. ३८. अनं० २१. अ० ६६३,६८६. प० २७७. उ० १११६६६०; १२।२६,३३; १७।१४; क० ११३८ से ४१,४३; ५॥३४,३५. नि० २।१ १८१८; १९४६; २०१७. नं० गा० ४२ से ८,७८८,८६; १५७७,८०,८१,८४,८५, सू० २०. अ० ३६१,४०६,४१६,५७१,५७२. ८८,८६,६२,६३,६६,६७,१५३,१५४; १६३१६, दसा० ३।३; ६।१८,७५,१८,३१,३३; २०,२६ १०१११,१२,१६,२४ से ३२. प० २६,३८, पायपुंछणय (पादप्रोज्छनक) नि० ५।१५ से १८,६५ Page #1197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पायमूल-पावकम्म २०३ पायमूल (पादमूल) क० ११३८ से ४१ पायय (प्राकृत) अ० ३०७।११ पायव (पादप) द० ६२६. उ० १६।५२. प० ७५, ८१,११३,११५,१२६,१३०,१६५,१६६ पायवेहम्म (प्रायोवैधर्म्य) अ० ५४३,५४५ पायस (पायस) नं०३८।३. अ० ५४५ पायसम (पादसम) अ० ३०७।२ पायसाहम्म (प्रायःसाधर्म्य) अ० ५३९,५४१ पायाल (पाताल) अ० २८७ पार (पार) उ० १०१३४; २३१७०,७१, ३६।६७ -पार (पारय)-पारेइ व. ६।४०.-पारेमि आ० ५।३ पारंचिय (पाराञ्चिक) क० ४।२. व० २१८,२०, २१.२३ पारग (पारग) उ० १८१२२; २३१२,६; २५७, ३६. नं० गा० २८ पारगामि (पारगामिन) प०८० पारण (पारण) उ० २२५ पारणय (पारणक) उ० १२॥३५ पारत्त (परत्र) द० ८।४३ पारय (पारग) उ०२०।४१ पारलोइय (पारलौकिक) दसा० ६।२।३२ पारसी (पारसी) नि० ६।२६ पाराभोय (पाराभोग) प० ८८ पारिद्वावणियागार (पारिष्ठापनिकाकार) __ आ० ६।४ से ७,१० पारिणामिय (पारिणामिक) अ० १२६,२४३, २७१,२८६,२८८,२८६, २९१,२६३,२६५, २६७ पारिणामियनिष्फण्ण (पारिणामिकनिष्पन्न) ___ अ० २६० से २६७ पारिणामिया (पारिणामिकी) नं० ३८,७६ पारितावणिया (पारितापनिकी) आ० ४।८ पारित्ता (पारयित्वा) उ० २६।५० पारिय (पारित) उ० २६।४०,४२,४८,५१ पारियल्ल (दे० परिवर्त) नं० गा० ५ पारियासिय (पारिवासित) क० ५।३७ से ३६. नि० ११।१२ पारिसाडणिया (पारिशाटनिकी) आ० ४।६ पारिहारिय (पारिहारिक) क० २।१३. व० १११९; ७।२३,२४ पारिहासिय (पारिहासिक) ५० १६७।२ पारेत्ता (पारयित्वा) द० ५।६३ पारेवय (पारापत) उ० ३४५६ पारोक्ख (परोक्ष) व० ७।४,५ पाल (पालय)-पालयाहि दसा० १०।१८. -पालेहि प० ७४ । पालइत्ता (पालयित्वा) उ०१३।३५. प० १०६ पालंब (प्रालम्ब) दसा० १०॥३,११. प० १०,४२ पालय (पालक) प० ६७ पालित्ता (पालयित्वा) प० २५ पालिय (पालित) उ० २१११,४. दसा० ७।२५, ३५. व०६।३५ से ३८,४०,४१, १०३,५ पालिया (पालयित्वा) उ० ११४७ पालियाणं (पालयित्वा) उ० २०१५२ पाली (दे०) उ० १८।२८ पालुकिमिय (दे० अपानकृमिक) नि० ३।४०; ४१७८, ६४६; ७।३८; १११३५; १५॥३७, १२३; १७४३६,६३ पालेमाण (पालयत्) दसा०६।१८. प०६ पाव (पाप) आ० ५।३. द०४७ से ८, १५, १६; ५।१३१, १३५, ६।६७; ७१५, ११; ८३६; १०१८; चू० १ सू० १, २।१०. उ० १२।३६,४०; १४१२०; २०१४७; २११२४; २।२८, २८।१४,१७; २६०५६; ३११३; ३२॥५. अ० ७०८।६. दसा० ६।३. प० २६, १०६ Vपाव (प्र+आप्)-पावइ उ० ३२।२४. अ० ५८५. - पावई, द०६।१७. -पाविज्जा नं ७१. -पावेसु, उ० २२।२५ पावकम्म (पापकर्मन्) आ० ४।६. द० ४।१८ से Page #1198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ पावकारि-पासवण २३. उ० ४१२; ६।१०; १६५३,५५,५७; १२५ २५५२८; २६।१७,३३; ३०१६; ३११३ ।। पास (पाश) उ० ४१७; ६१२; १९।५२,६३, २३।४० पावकारि (पापकारिन्) उ० ४।३, १८२५ से ४३. दसा०६।३ पावग (पापक) द० ४।१०,११; ८।२२; पास (पश्यत्) द० ४१६ ६।४।४; १०७. उ० १११२; २।२३,४२; कपास (दृश्)-पास उ० ४।२.-पासइ ६।८; १११८; १३।२४, २११६; २५२१; दचू० २।१३. नं० १६. दसा० ५।७।३. ३०११ प०६.-पासई उ० १८१६.-पासउ पावग (पावक) द० ६।३२; ६।६,७. प०१०.-पासए उ० ३२।१०६.-पासंति उ० १३१२५ नं० २२. दसा० ५।७।१०.-पासिज्जा पावजीवि (पापजीविन्) व० ३।२३ से २६ नं० २१.-पासे दचु० २।१४. उ०६।४. पावदिट्टि (पापदृष्टि) उ० ११३८,३६; २१२२ -पासेइ प० ३५.--पासेज्ज द० ८।१२. पावपरिक्खेवि (पापपरिक्षेपिन्) उ० १११८,१२ -पासेज्जा दसा० १०१२४. क० ४१२६. पावय (पापक) द० ४।१ से ६. उ० ८७,६; व०२३३ १३।१६. दसा०६।३,७; १०१२४ से ३०. पासओ (पार्श्वतस्) नं० १४,१६ प०७४ पासओअंतगय (पार्श्वतस्अन्तगत) नं० ११,१४, पावय (पावक) उ० ३३१२ पावयण (प्रवचन) आ० ४१६. उ० २१०२. पासंड (पाषण्ड) उ० २३।१६. अ० ३४०,३४४ दसा० १०॥२४ से ३३ पासंडत्थ (पाषण्डस्थ) अ० २०,२६ पावयणि (प्रवचनिन्) नं० गा० ४२ पासंडि (पाषण्डिन्) उ० २३।६३ पावसमण (पापश्रमण) उ० १७१३ से १६ पासग्गाह (पाशग्राह) दसा० १०।१४ पावसमणिज्ज (पापश्रमणीय) उ०१७ पासणिय (प्राश्निक) नि० १३।५५,५६ पावसुमिण (पापस्वप्न) प० ३६ पासत्थ (पावस्थ) नि० ४।२७,२८; १३॥४३, पावसुयपसंग (पापश्रुतप्रसङ्ग) आ० ४।८. ४४; १५१७८ से ८१; १६।२८,२९ उ० ३१३१६ पासत्यविहारि (पार्श्वस्थविहारिन) व० ११२६ पावा (पावा) प० ८३,८४,१०६ पासमाण (पश्यत्) उ० ८।४. दसा० १०१३३. पावादुय (प्रावावुक) नं० ८२ प० ८२,१३०,१६६,१७६ पावार (प्रावार) द० ५।१८ पास रोम ('पास' रोमन्) नि० ३।६६; ४।१०४; पावारग (प्रावारक) नि० ७।१० से १२; १७११२ ६७५; ७।६४; ११॥६१, १२६३,१४६%) से १४ १७.६५,११६ पाविय (पापिक) उ० १६॥५७ पासवण (प्रस्रवण) द० ८।१८. उ०२४।१५; पाविया (पापिका) उ० ८७१३।१६ २६।३८. दसा० १०॥२८. प० २७६. पावेस (प्रावेश, प्रावेश्य) प० ४४,६६ क० १११६; ३।१,२१,४।२७,५।१३,१४. पास (पाव) आ० २।४।५।४. उ० १४।४७; . व० ६।२. नि० ३१७१ से ८०;४।११० से १८।५;२०१३०; २३।१,१२,२३,२६; २७।५. ११७; ५।४८।१ से ६,११; ९।१२; १५६७ नं० गा० १६. अ० २२७,४१६. ५० १०८ से से ७५; १६६४१ Page #1199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पासवणमत्तय-पिट्ठत २०५ पासवणमत्तय (प्रस्रवणामत्रक) प० २८० पिंगल (पिङ्गल) दसा० १०.११. प० ३४,४२ पासाय (प्रासाद) द० ५।६७, ७।२७. उ० ६७, पिंगला (पिङ्गला) अ० ३०७।१३ २४; १६।४; २११७,८. अ० ३६२. पिंछ (पिच्छ) अ० ५२५ नि० १३।११; १४।३०; १६।५१; १८।६२ पिंछि (पिच्छिन्) दसा० १०।१४ पासिऊण (दष्ट्वा ) उ० १२।४ पिंजर (पिञ्जर) प० ३० पासिं (पाव) दसा० १०।१६ पिंड (पिण्ड) द० ६।४७. उ० ११३४; २।३०; पासित्तए (द्रष्टुम्) दसा० ५७ ६।१४; १५।१४. अ० ७३. व० ६।४२,४३. पासित्ता (दृष्ट्वा ) उ०१८।६. अ० ५३१. नि० २।३२ दसा०६।२८. प० ४६. व० ४।१८ पिंडणियर (पिण्ड निकर) नि० ८।१४ पासित्ताणं (दृष्ट्वा ) नं० २०. अ० १६ पिंडत्थ (पिण्डार्थ) अ० ७४।२ पासित्तु (दष्टवा) उ० १२१२५ पिंडपाय (पिण्डपात) द० २८७ पासिय (दृष्ट) उ० २२॥३४ पिंडय (पिण्डक) क० २।८ पासियव्व (द्रष्टव्य) दसा० ७।२८. ५० २६२ पिंडवाय (पिण्डपात) उ०६।१६; ३५।१६. पासिया (द्रष्टवा) उ० १२०२० दसा० ६।१८. प० २५३, २५५ से २५८. पासिल्लय (पावॉय) २०५।१८ क० ११३८,४०, ३३१३, ४।१४,२७,५२११, पासुत्त (प्रसुप्त) अ० ३१६।२ १२,१५,४१. व० ८।५,१३. नि० २।३६,४७; पासेत्ता (वृष्ट्वा ) उ० २२।१५ ३।१३,१५,४१२१; ६७ पासेल्लग (पाश्वीय) दसा० ७।२८ पिडियत्य (पिण्डितार्थ) अ० ७१०२ पाहण्णया (प्राधान्य) अ० ३१६,३२४ पिंडेसणा (पिंडषणा) आ० ४।३।५।२. द. ५ पाहन्न (प्राधान्य) द० ६।४५ पिंडोग्गह (पिण्डावग्रह) उ० ३११९ पाहुए (प्राभृत) नं० १२३. अ० ५७२. व० ७.१२, पिंडोलय (पिण्डावलग) उ० ५।२२ १३. नि० १०।१४ पिच्चा (पीत्वा) प० २५६ पाहुडपाहुड (प्राभृतप्राभृत) नं० १२३ इपिच्छ (दृश, प्र+ईक्ष)-पिच्छइ प० ३२ पाहुडपाहुडिया (प्राभृतप्राभृतिका) नं० १२३. पिच्छणिज्ज (प्रेक्षणीय) प० २८ अ० ५७२ पिच्छमालिया (पिच्छमालिका) नि० ७.१ से ३; पाहुडिया (प्राभृतिका) नं० १२३. अ० ५७२. १७।३ से ५ क० २।२४ से २७ पिज्ज (प्रेयस्) उ० ४११३ पाहुणभत्त (प्राणभक्त) नि० ६।६ पिज्जेमाण (पाययन्त्) द० ५।४२ पाहेय (पाथेय) उ० १९२० इपिट्ट (पिट्) -पिट्टेति, दसा० ६।३ पि (अपि) अ० २१५. व० १०।१२ पिट्टण (पिट्टन) दसा० ६३ पिअर (पितृ) नं० ३८ पिट्ठ (पिष्ट) द० ५।३४,१२२ पिइ (प्रीति) ५० ५२ पिट्ठ (पृष्ठ) उ० १२।२६ पिउ (पित) उ० १२।२२१६२,८४. अ० ३२६ पिट्ठओ (पृष्ठतस्) द. ८.४५. उ० १११८% २११५. पिउमंद (पिचुमन्द) नि० ५।१४ दसा० १०।१६,२४. नि० ८।११ पिउस्सिया (पितृस्वस) द० ७।१५ पिठंत (दे०, पृष्ठास्त) नि०६।१४ से १८ Page #1200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ पिठंतर-पिहुज्जण पिळंतर (पृष्ठान्तर) अ० ४१६ पियंकर (प्रियङ्कर) उ० ११।१४ पिट्ठिचंपा (पृष्ठचम्पा) प० ८३ पियंगु (प्रियङ्गु) प० २५ पिट्ठिमंस (पृष्ठमांस) द० ८।४६ पियंवाइ (प्रियवादिन्) उ०११।१४ पिट्टिमंसिय (पृष्ठमासिक) दसा० ११३ पियकारिणी (प्रियकारिणी) प०६६ पिडय (पिटक) नि० ३।३४ से ३६; ४७२ से पियगंथ (प्रियग्रन्थ) प०२०३,२०४ ७७; ६।४३ से ४८ ; ७।३२ से ३७; ११।२६ पियदंसण (प्रियदर्शन) उ० २११६. दसा० १०।३. से ३४; १५।३१ से ३६, ११७,१२२; प० ६,३५,४२,४७ १७।३३ से ३८, ८७ से ६२ पियदंसणा (प्रियवर्शना) प०७१ पिणद्ध (पिनद्ध) दसा० १०।११. प० ४२ पियधम्म (प्रियधर्म) उ० ३४।२८. व० १०११४ इपिणद्ध (पि+नह,पि-+नि धा)--पिणद्धइ पियर (पितृ) उ०१८।१५; १६६,२४,४४,७५, नि० ७॥३ ७६,८६; २१।१०. नं०८६ से ८६,९१ पिणद्धत (पिनात्) नि०७३; १७१५,११ पियामह (पितामह) अ० ३२६ पिणिद्ध (पिनब) दसा० १०॥३ पियायय (प्रियात्मक) उ०६।६ पिण्णाग (पिण्याक) द० ५।१२२ पियाल (प्रियाल) द० ५।१२४ पित (पित) दसा० ६।३,७ पियाय (पायय)-पियावए द० १०१२ पिति (पित) अ० ३४२ पिलक्लवच्च (प्लक्षवर्चस्) नि० ३७६ पित्त (पित्त) दसा० १०।२८ से ३२ पिल्लण (दे०) प० २१ पितमुच्छा (पित्तमूर्छा) आ० ५।३।। पिव (इव) द० ८।५४. उ० १६।६७. ५० ५ पित्तासव (पित्तास्रव) दसा० १०॥२८ से ३२ पिवासा (पिपासा) द०८।२७; ६२५; च०११६ पित्तिज्ज (पितव्य) प० ७० उ० २ सू० ३; गा०४. दसा० १०।२४ से इपिष (पा)-पिबेज्ज क० ५।११ ३३.नि० ११८१ पिपीलियंड (पिपीलिकाण्ड) प० २६८ पिवासिय (पिपासित) क० ४।२८ पिप्पलग (पिप्पलक) नि०१।१६,२०,२४,२८,३२, पिवीलिया (पिपीलिका) द० ४ सू० ६,२३. उ० ३।४; ३६।१३७ पिप्पलय (पिप्पलक) नि० २११५ पिसाय (पिशाच) उ० ३६।२०७. अ० २५४ पिप्पलि (पिप्पलि) नि० १११६२ पिसुण (पिशुन) द० ६।३६. उ० ५६ पिप्पलिचुण्ण (पिप्पलिचूर्ण) नि० १११६२ पिस्समाण (पिष्यमाण) उ० ३४।१७ पिय (प्रिय) द० २।३. उ० १।१४; ६.१५; पिहय (दे०) नि० १८।१४ १४।५; १६६६,७०; २१११५. अ० ३१७, पिहा (पि+धा)---पिहेइ उ० २६।१२ ७०८।३. दसा० १०॥३,४,१८. प० ३६,६७,७३, पिहाण (पिधाम) दसा० १०।२५,२६ पिहिय (पिहित) द० ४।६ ५।१८,४५. पिय (पित) उ० ६.३; १३।२२; २०११८,२४; उ० १९६३; २६।१२. क० २।२,३,६,१० २११७. प० ६८. क० ४।१०.० ७.२५ पिहुंड (पिहुण्ड) उ० २११२,३ पिय (पा)-पिए द. १०१२. –पियई पिहुखज्ज (पृथुखाद्य) द० ७।३४ अ०३०२ पिहुज्जण (पृथग्जन) दचू० १११३ ७४ Page #1201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिहुण-पुट्ठ २०७ पिहुण (दे०) द० ४ सू० २१. नि. १७४१३२ पिहुणत्थ (दे०) द० ४ सू० २१. नि० १४१३२ पीइ (प्रीति) द० ८।३७. प० ६६ पीइदाण (प्रीतिदान) प०४८ पीइमण (प्रीतिमनस्) दसा० १०॥४,६,७,१० से १२. ५० ५,१०,१५,३८ पीईधम्मग (प्रीतिधर्मक) प० १६८ पीड (पीडय)-पीडई उ० २०१२१ पीडिय (पीडित) उ०१६।१८,१६ पीढ (पीठ) द० २६७. उ० १७१७. दसा० ४।१३. क० ५२८,२६ पीढग (पीठक) द० ४ सू २३ पीढग्गाह (पीठग्राह) दसा० १०।१४ पीढमद्द (पीठमर्द) प० ४२ पीढय (पीठक) द० २४५; ६.५४; ७।२८ पीण (पीणय)-पीणेइ द० ११२ पीण (पीन) प० २४ पीणणिज्ज (प्रीणनीय) दसा० १०।११.५० ४२ पीणिय (प्रोणित) द०७।२३. उ० ७।२ पीतिदाण (प्रीतिवान) दसा० १०७ पीतिवद्धण (प्रीतिवर्धन) प०८४ पीय (पीत) उ० २०१४४. प० २८ पीयय (पीतक) उ० ३६॥२५ पील (पोडय)-पीलेइ द० ८।३५. उ० ३२।२७ पीला (पोडा) द० ५।१०. उ० २२।३७ पीलिय (पीडित) उ० १९।५३ पीलु (पीलु) अ० २६४।६ पीलुय (पीलुक) अ० ३४७ पीवर (पीवर) अ० ३१८. प० २३,२४ पीह (स्पृह )-पीहए उ० २।३८. -पीहेइ उ० २६।३४. -पीहेति दसा० १०१६ पीहणिज्ज (स्पहणीय) दसा० १०।२७ पुं(वेय) (पुस्) (वेद) उ० ३२।१०२ पुंछ (पुच्छ) नि० ७।८३ पुंछ (प्र+उञ्छ)-पुंछति, नि० ४।११२. ---पुंछे द० ८।७. -पुंछेज्ज द० ८।१४ पुंछंत (प्रोञ्छत्) नि० ४.११२,११३ पुंज (पुज) अ० ७३. प० २०,६२ पुंजकड (पुजीकृत) क० २।२,३,९,१० पुंडरीय (पुण्डरीक) प० ३० पुक्खर (पुष्कर) अ० १८५, ३५४. ५० ७८ पुक्खरिणी (पुष्करिणी) अ० ३६२ पुग्गल (पुद्गल) द० ४ सू० २१; ५१७३. उ० २८७,८,१२, ३६.२० नं० ५२,५३ पुच्छ (प्रच्छ)-पुच्छ उ० २३।२२. -पुच्छई उ० १६७६.--पुच्छंति द० ६॥२. दसा १०॥६. -पुच्छति नि० १६६.-पुच्छसी उ० १८१३२० -पुच्छामि उ०२३।२१. –पुच्छेज्जा द० ५।५६. उ० ११२२ पुच्छंत (पृच्छत) नि० १६१६,१० पुच्छणा (प्रच्छना) उ० ३०॥३४. अ० १३,३४, ५७,८१,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७,६७३, ७०० पुच्छणी (प्रच्छनी) दसा० ७६ पुच्छमाण (पृच्छत्) उ० ११२३ पुच्छा (पृच्छा) अ० १२५,१६८,२०५,२१३. नि० १६६,१० पुच्छिऊण (पृष्ट्वा ) उ० २०१५७ पुच्छित्तए (प्रष्टुम्) २०७१ पुच्छित्ता (पृष्ट्वा ) दसा० १०१६ पुच्छिय (पृष्ट) उ० २०१५ पुच्छियट्ठ (पृष्टार्थ) प० ४७ पुच्छियव्व (प्रष्टव्य) प० २३७. व०२।२४,२५; ५।१५,१६ पुज्ज (पूज्य) द० ६।४१ से ४६, ४८ से ५४. उ० ११४६; ५।२६ पुज्जसत्थ (पूज्यशास्त्र) उ० ११४७ पुट्ठ (पृष्ट) द० ८।२२. उ० १११४,२५; २।४० दसा ७६ पुट्ठ (स्पृष्ट) द० ७।५. उ० २ सू० १ से ३ गा० ४, १०,३२,४६; ५।११, २९७२. नं० ५४॥३. दसा १०।२४ से ३३ Page #1202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ पुट-पुप्फग पुट्ठ (पुष्ट) उ० ७।२ पुटुसेणियापरिकम्म (पृष्टश्रेणिकापरिकर्मन) नं० ६३,६६ पुट्ठापुट्ठ (पृष्टापृष्ट) नं० १०२ पुट्ठावत्त (पृष्टावर्त) नं०६६ पुडभेयण (पुटभेदन) क० १६ पुढवि (पृथ्वी) नि० ७।६८ से ७२; १३।१ से ५; १४१२० से २४; १६॥३४, ४१ से ४५; १७।१२८; १८१५२ से ६६ पुढविकाइय (पृथिवीकायिक) द० ४ सू० ३. अ० २५४,२७५,४४५,४५०,४५३,४७२,४७५. ४७६, ४७८ से ४८० पुढविकाय (पृथिवीकाय) आ० ४१८ द०६।२६ से २८ पुढविक्काय (पृथिवीकाय) उ० १०१५ पुढविजीव (पृथिवीजीव) द० ५।६८ पुढविशिला (पृथ्वीशिला) दसा० ७.१३ से १५ पुढवी (पृथिवी) द० ४ सू० ४,१८; ८१२,४; १०१२,४,१३. उ० ६।३६; २६।३०; ३५।११; ३६।५७, ६०,६६,७०,७३,७७. ८० से ८२, १५६. नं० २५. अ० १८५,२५४, ४०३, ४१०. दसा० २।३; ७।२१ पुढवीकाय (पृथिवीकाय) नि० १२१८; १४।३१ १८१६३ पुढवीसमाणवण्णय (पृथ्वीसमानवर्णक) प० २६६ पुढवीसिलापट्टय (पृथ्वीशिलापट्टक) दसा० ५।६ पुढो (पृथग्) द० ४ सू० ४. उ० ३।२ पुण (पुनर्) द० ४ सू० ६. उ० ३३९. नं० गा० २०. जोनं० २. अ० ३. दसा० ५।७।१५. प० १४. क० २११. व०६।६. नि०६।१२ पुणब्भव (पुनर्भव) द० ८।३६ पुणरागमणिज्ज (पुनरागमनीय) दसा० १०॥३२ पुणव्वसु (पुनर्वसु) अ० ३४१ पुणो (पुनर्) उ० १११२. दसा० ६।२।६. व० २३. नि० ४।२२ पुण्ण (पुण्य) द० ४।१५,१६; २४६; १०११८; चू० १. सू० १. उ० १२।१२, १३।१०,११, २०,२१; १८७; २१।२४,२८।१४,१७ पुण्ण (पूर्ण) द० ७।३८. उ० ११॥३१; १२११३; २०।२८. अ० ३०७१६,५३१. दसा० १०।२८ से ३२. प० २६. नि० १८१८ पुण्णकलस (पूर्णकलश) दसा० १०।१४. प० २६ पुण्णचंद (पूर्णचन्द्र) प० २४,२६ पुण्णपत्तिया (पुण्णपत्तिया) प० १६७ पुण्णपय (पुण्यपद) उ० १८।३४ पुण्णभद्द (पूर्णमद्र) दसा० ६।१; १०।१५. प० १६१ पुण्णमासी (पौर्णमासी) उ० ११।२५. दसा०६।१० से १८ पुण्णाग (पुन्नाग) प० २५ पुण्णिमा (पूर्णिमा) व० १०१५ पुत्त (पुत्र) द० ७।१८; चू० ११७. उ० ११३६; ६।३; ६।२,१५,१३।२५; १४१६,१२,२६,३०, ३६,१८।१५,३७,४६,१६२,१६,२४,३४, ३५,३८,७५,८४,८५,८७,६७; २०१२५; २२।२,४. नं० ३८१३. अ० ३०२,५२०. प० १६५. क० ४।१०. व० ७२५ पुत्तग (पुत्रक) उ० १४१५ पुत्तत्त (पुत्रत्व) दसा० १०।२४,२७,३० पुत्तलाभ (पुत्रलाभ) प० ६,३८,४७ पुत्तिया (पुत्रिका) अ० ३१७ पुन्न (पुण्य) दचू० २।१ पुन्नागषण (पुन्नागवन) अ० ३२४ पुप्फ (पुष्प) द० १।२ से ४; ५।२१,५७,११४, ११६८।१५; ६।१८. उ० ६।६; १२।३६; ३४६. अ० १६,२०,५२४. दसा० १०।१७. प० २०,४०,४६,४८,६१,६२,६४,६६,७५, २६२,२६७. नि० १४॥३४; १८१६६ पुप्फग (पुष्पक) प० ५,६,३६ Page #1203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ पुप्फचूला-पुरिससीह पुप्फचूला (पुष्पचूला) प० ११८ पुप्फचूलिया (पुष्पचूलिका) नं० ७८. जोनं०६ पुप्फदंत (पुष्पदन्त) आ० २।३; ५।४. ___ नं० गा० १८. प० १५२ पुप्फभोयण (पुष्पभोजन) दसा० २।३ पुप्फमालिया (पुरुषमालिका) नि० ७.१ से ३; १७३ से ५ पुप्फय (पुष्पक) नि० २१४३ पुप्फवीणिया (पुष्पवीणिका) नि० ५।४४,५६ पुल्फिया (पुष्पिका) नं० ७८. जोनं० ६ पुप्फुत्तर (पुष्पोत्तर) प० २ पुप्फोदय (पुष्पोदक) दसा० १०।११. ५० ४२ पुप्फोवय (पुष्पोपग) नि० ३।७६ पुम (पुंस्) द० ७।२१, ६।५२ पुमत्त (पुस्त्व) उ०१४।३. दसा० १०१२६ से ३२ पुर (पुर) उ०६।४; १४११,२०।१४,१८. अ० ३५४. ५० ५२,६४,७४ पुरओ (पुरतस्) द० ५।३; ८।४५. उ० १११८. नं०१२,१६. दसा० ३।३; १०।१४,१६,१६, २०,२४ से ३२. प० ४७,६६,२७१,२७३, २७४,२७५. क. ३१३. व० ४।११,१२; ५।११,१२. नि० ८।११ पुरओअंतगय (पुरतःअन्तगत) नं० ११,१२,१६ पुरं (पुरस्) दसा० १०।२८ पुरंदर (पुरन्दर) उ० ११।२३,२२।४१. प० ८ पुरक्कार (पुरस्कार) दचू० १ सू० १ पुरतो (पुरतस) दसा० ३।३; ६।१८; १०।२४ पुरत्य (पुरस्तात् ) द० ८।२८ पुरत्थओ (पुरस्तात्) उ० ३२।३१,४४,५७,७०, ८३,६६ पुरत्थाभिमुख (पुरस्तादभिमुख) दसा० १०।३. प०१०।४२ पुरत्थिम (पौरस्त्य, पूर्व) क० १।४७ पुरवर (पुरवर) अ० ५६६ पुरा (पुरा) उ० १३१६; १४१२०; १६॥६,१३. दसा० १०१२४ से ३३. प० ५१ पुराकय (पुराकृत) उ० १४१२; १६।८ पुराकाउं (पुरस्कृत्य) उ० ७।२४ पुराण (पुराण) द०६।४।४; १०१७. उ० ८।१२; १४।१।२०।१८. नं० ६७. अ० ४६,५४८ पुरिम (पूर्व) उ० २३१२६,२७,८७,२६।२५ पुरिमड्ढ (पूर्वार्ध) आ० ६।३ पुरिमताल (पुरिमताल) उ० १३१२. अनं० २८. प० १६६ पुरिस (पुरुष) द० ५१२६,७।१६,२०. उ० ६।१; ८/६,१८; १३।३१; १४।१४,३८. ३०।२२,३६१५१. नं० १२ से १५,१७,५२, ५३,६६. अ० २६४,३५७,३६०,५२८,५२६, ५५५,५५६,७१३. दसा० ६३; ७।१६; ६।२६; १०॥३,४,७,११.१४,२४ से ३२. प० १०,४१ से ४४,११३,१२६. व० ५।२१, ६१८,६. नि० १२।२६; १७११५१ पुरिस इज्ज (पुरुषकीय) अ० ३२२ पुरिसकारिय (पुरुषकारित, पुरुषकारिय) द० ५।१०६ पुरिसजात (पुरुषजात) दसा०६।३,४,६ पुरिसजाय (पुरुषजात) व० १०१७ से १४ पुरिसजुग (पुरुषयुग) ५० १०५,१२३,१३७, १७६ पुरिसज्जाय (पुरुषजात) दसा० १०।२४,२७ से पुरिसरूव (पुरुषरूप) क० ५।३,४ पुरिसलिंगसिद्ध (पुरुषलिङ्गसिद्ध) नं० ३१ पुरिसवरगंधहत्थि (पुरुषवरगन्धहस्तिन्) अ०६।११. प० २० पुरिसवरपुंडरीय (पुरुषवरपुण्डरीक) आ० ६।११. प०१० पुरिसवेय (पुरुषवेद) अ० २७५ पुरिससागारिय (पुरुषसागारिक) क० १२२७,२८ पुरिससिद्ध (पुरुषसिद्ध) उ० ३६।४६ पुरिससीह (पुरुषसिंह) आ० ६।११. ५० १० Page #1204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० पुरिसादाणीय ( पुरुषादानीय) प० १०८ से १२५ पुरिसोत्तम ( पुरुषोत्तम) आ० ६ ११. ० २ ११. उ० २२१४६. प० १० पुरी (पुरी) उ० २२|७; २५।२,४ पुरीस ( पुरीष) दसा० १० २८ से ३२ पुरे ( पुरा ) उ० १४ । १ पुरेकड ( पुराकृत, पुरस्कृत) द० ६।६७ ७ ५७; ८६२; १५५. उ० १०/३; १३।१६; २१।१८ पुरेवम्म (पुर: कर्मन्) द० ५।३२; ६ ५३ पुरेकम्मकड ( पुरः कर्मकृत) नि० १२।१५ पुरेमिया ( पुरःकमिका) आ० ४ | ३ पुरेसंथव (पुरस्संस्तव) नि० २।३७ पुरेसं (पुरस्संस्तुत ) नि० २३८ पुरोहिय (पुरोहित) उ० १४।३, ५,११,३७,५३ पुलइय ( पुलकित ) प० ३५ पुलग ( पुलक) प० ३३ पुलय ( पुलक) उ० ३६ । ७६. ५० १५ पुलाग ( पुलाक) उ०८।१२ पुलागभत्त ( पुलाकभक्त) क० ५।४१ पुलिंदी (पुलिन्दी) नि० ६ २६ पुलिण (पुलिन) प० २० पुव्व (पूर्व) द० ३।१५. उ० १।४६; २।४०; ३१५, १६, ४८, ६; ६।१३, ८१२; १३।१५; १६ सू० ८; १६६,४६ से ५१,६०; २५|४३; २६।२४; २८१२६, ३६, २६/६, ३३, ३८, ६३ से ७१. नं० गा० ३५, सू० ३८,८६,१०५ से ११८,१२२, १२३, १२७. अ० २१६,४१७, ५२०,५६८. दसा० ३।३; ६।१८ ७।२१,२८, ३१, ३३; हा२३६; १०।३२. प० २,१०,१४, ४५, १६५, १८०,२४०,२५५,२५६. क० ११४२, ३।२८ से ३० व० ३।११,१२; ४/२०, २२; ७।२७. नि० १६८ पुव्वउत्त (पूर्वोक्त) द० ५।१०३ पुव्वंग (पूर्वाङ्ग) अ० २१६,४१७ पुव्वकोडि ( पूर्वकोटि) उ० ३४।४६; ३६।१७५, पुरिसादाणीय-पुस्स १७६,१८५,१६२,२०१ पुव्वगय ( पूर्वगत) नं० १२,१०४,११८ पुवगहिय ( पूर्वगृहीत) प० २५६ पुव्वण्ह (पूर्वाह्न) अ० २५. ५० ११३, ११५,१२४, १६६,१८० पुण्वदिट्ठ (पूर्वदृष्ट) अ० ५२६ पुव्वभव (पूर्वभव) नं० १२० पुव्रत ( पूर्व रात्र) दचू० २ १२ १० २,१७,२०, _५६,१०६,१११,१२७,१२८, १३८, १६१,१६३ पुन्वय ( पूर्वक) उ० १४८ पुव्वव (पूर्ववत्) अ० ५१६,५२० पुव्वविदेह (पूर्वविदेह) अ० ३६६, ५५६ पुव्वविदेहय ( पूर्वविदेहज ) अ० ३३३ पुव्वसंथव (पूर्वसंस्तव) उ० ६ |४ पुव्वाउत्त (पूर्वायुक्त) दसा० ६।१८. प० २५५. व० ६।१ पुन्वागमण (पूर्वागमन) दसा० ६।१८. प० २५५. व० ६।१ पुव्वाणुपुवी (पूर्वानुपूर्वी) भ० १४७, १४८, १५१, १५२,१७६,१७७, १८०, १८१, १८४, १८५, १८८, १८६, १२, १६३, २१८,२१६, २२२, २२३, २२६,२२७,२३०, २३१,२३४, २३५,२३८, २३६, २४२, २४३. दसा० १० ३,६,११ वामेव (पूर्वमेव ) दसा० ३।३. ५० २५६. क० ५।११. ० ८ । १० से १२. नि० २:३८, ४७, ४२१ पुव्वावर (पूर्वापर ) दसा० १०।२४ पुव्वासाढा (पूर्वाषाढा) अ० ३४१ पुव्वि (पूर्वम् ) द० ५।६१; चू० १ सू० १. उ० १२/३२; १४ । ५२. ५०५४,५६,६६,७४, ११३. व० १।१५ से १८. नि० २०।१५ पुब्विया ( पूर्विका ) नं० ६३ पुव्विल्ल ( पूर्व ) उ० २६।८, २१ पुवोवट्ठविय (पूर्वोपस्थापित) क० ३।१४, १५ पुस्स (पुण्य) अ० ३४१ Page #1205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्स-पेह २११ पुस्स (पूषन्) अ० ३४२ पूरिमा (पूरिमा) अ० ३०६ पुहत्त (पृथक्त्व) उ० २८।१३; ३६।११,१७६, पूरिय (पूरित) नं०५३ १८५,१६२,२०१. नं० २० अ० १४,३५,५८, पूर्व (पूप) क० २।८ ८२,१०७,५६४,६२४,६३६,६४८,६७४,७०१ पूसमाणग (पुष्यमानव) प० ७४ पुहवीपति (पृथिवीपति) अ० ३०२।४ पूसमाणय (पुष्यमानव) दसा० १०॥१८ पुहुत्त (पृथुत्व) उ० ३६५६५ पूस मित्तेज्ज (पुष्यमित्रीय) प० १६८ पुहुत्त (पृथक्त्व) अनं०६ पेच्च (प्रेत्य) उ० ४।३; ६।५८; १८।१३ पूइ (पूति) द० ५।७८,७६,१२२. उ० ७।२६ पेच्चा (प्रत्य) दसा० ६।२।३८ पूइकण्णी (पूतिकर्णी) उ० ११४ पेच्चा (पीत्वा) उ० १७।३. प० २४० पूइकम्म (पूतिकर्मन्) द० ५।५५ पेच्छ (प्र-ईक्ष)-पेच्छइ द० ८।२०. प० २२ पूइत्त (पूतित्व) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१,४३६, पेच्छणिज्ज (प्रेक्षणीय) प० २३,४२ पेच्छिज्जमाण (प्रेक्ष्यमाण) दसा० १०।१६. पूइम (पूज्य) दचू० ११४ प०७५ पूइय (पूजित) द०५।१४३. उ० ११०८; पेज्ज (प्रेयस्) अ० २७६,२८२. दसा० ६३. १२।४०,४५,१७।२१; २३।१. नं० ६५. प०७६ अ० ५०,५४९. प० ४५ पेज्जदोसमिच्छादसणविजय (प्रेयोदोषमिथ्यादर्शनपूइया (पूपिका) नं० ३८९ विजय) उ० २६ सू० १,७२ पूय (पूप) द० २७१ पेज्जबंधण (प्रयोबन्धन) दसा० ६।१८. प० ८७ पृय (य) दसा० ६५. नि० ३।३५ से ३६४१७३ पेज्जमाण (पाययत) व० १०॥३ से ७७,६५४४ से ४८% ७.३३ से ३७; ११॥३० पेडा (पेटा) उ० ३०११६ से ३४; १५॥३२ से ३६,११८ से १२२; पेढ (पीठ) नं० गा० १२ १७.३४ से ३८,८८ से १२ पेतिय (पंत्रिक) दसा० १०।२४,२७ से ३२ पूय (पूज्य) क० २।२५,२७ पेम (प्रेमन) द० ८२६,५८. दसा० १०१३० पूयट्ठि (पूजाथिन्) दसा० ६।२।३४ पेयाल (दे० प्रमाण) नं० गा० २७ सू० ३८१५ पेरंत (पर्यन्त) अ० ५६६२ पूयण (पूजन) द० १०।१७; चू० २।६. उ० ३५।१८ पेला (पेटा) दसा० ७१७ पूयणट्ठि (पूजनाथिन्) द० ५।१३५ पेस (प्रेष्य) उ० १६।२६. दसा० ६।३६।२।२८ पूया (पूजा) उ० १५१५,६; २१।१५,२०; २६७. पेस (दे०) नि० ७.१० से १२; १७४१२ से १४ प० ६०,६१ पेसत्तण (प्रेष्यत्व) अ० ३६०।३ पूयाभत्त (पूज्यभक्त) क० २।२४ से २७ पेसल (पेशल) उ० ८।१६ पूर (पूर) उ० ३४६ पेसलेस (दे०) नि० ७।१० से १२; १७।१२ से १४ पूरग (पूरक) प० २६ पेसारंभ (प्रेष्यारम्भ) दसा०६।१५ से १८ पूरयंत (पूरयत्) ५० ३२ पेसिय (प्रेषित) उ० २७।१३ पूरिम (पूरिम, पूर्य) अनं० ३. अ० १०,३१,५४, पेसुन्न (पंशुन्य) दसा० ६॥३. प० ७६ ७८,१०३,५६०. नि० १२११७ ‘पेह (प्र+ईभ)-पेहे उ० २४१७.-पेहेइ Page #1206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ द० ६४ / २. - पेहेज्ज उ० २।२७ पेहमाण (प्रेक्षमाण) द० ५।३. दसा० ६।१८ पेहा (प्रेक्षा) द० २।४. उ० ६१४ पेहाए (प्रेक्ष्य ) द० ७।२६,३०, ८।१३. क० ३।३३. नि० २।५१ पेहाय (प्रेक्ष्य ) उ० १।२७. नि० १८१६ पेहिय ( प्रेक्षित) द० ८ ५७. उ० १६ ४ ३२।१४ पोंड (दे० ) नि० ३।७० ; ५ २४ पोंडवद्धणिया (पौण्ड्रवर्धनिका) प० १६० पोखर ( पुष्कर) नि० १२ १५; १७११४० पोक्खरिणी ( पुष्करिणी) उ० ३२ ३४,४७,६०, ७३,८६,६६ पोक्खल संवट्टग (पुष्करसंवर्तक) अ० ३६८ पोग्गल ( पुद्गल ) द० ८६,५८,५६. अ० ११५, ११६,१३२, १३६, १५२, १५३,२५४, २८७, ३७१, ३६८, ३६६, ४४४. १० १५. नि० ७८१,८२ पोग्गलत्थकाय ( पुद्गलास्तिकाय) अ० १४८, १४६, २५४, २५६,२८८, ३२५, ३४८ पोग्गलपरियट्ट (पुद्गलपरिवर्त) अ० २१६,६१६ पोत्तय (दे० पोतक) क० २१२८ पोत्तिया (दे० ) उ० ३६।१४६ पोत्थकम्म (पुस्तकर्मन् ) अनं० ३. अ० १०,३१, ५४,७८,१०३,५६०. नि० १२।१७ पोत्थकार ( पुस्तकार) अ० ३६० पोत्थय (पुस्तक) अ० ३६,६२८,७०५ पोत्यग्गाह ( पुस्तकग्राह) दसा० १० १४ पोत्था ( प्रोत्था ) उ० २०१६ पोम (पद्म) उ० २५ २६ पोय (पोत) द० ८५३ चू० १ सू० १. उ० १४ । ३०; २१२ पोय पोय ( पोतपोषक) नि० ९।२३ पोयय ( पोतज) द० ४ सू० ६ पोरबीय ( पर्वबीज ) द० ४ सू० द पेहमाण- फरिस पोराण (पुराण) दसा० १ ३ ४ ११,२० प० ५१. नि० ४।२५ पोराणिया (पौराणिकी) उ० ६ ११४|५; १६८ पोरिसी (पौरुषी) आ० ६।२. उ० २६।१२,१३, १८,२२,३१,३६,३७,४३ से ४५; ३०।२१. प० ७४,८१. क० ४। १२. नि० १२।३१; १६,१३ पोरिसीमंडल ( पौरुषी मण्डल) नं० ७७. जोनं० ८ पोरुस (पौष) उ० ३।१७, ६।५. दसा० ६।३ पोरुसी ( पौरुषी) उ० ३०।२० पोरेवच्च (पौरपत्य, पौरोवृत्य) दसा० १०।१८. प० ६ पोल्ल (दे० ) उ० २०४२ / पोस ( पोष्य्) -पोसेज्ज उ० ७ १. - पोसेज्जा उ० ७।१ पोस (पौष) उ० २६।१३, १५. प० १११,११३ पोसंत (दे० ) नि० ६ १४ से १८ पोसण (पोषण) प० ५८ पोसह (पौषध) उ० ५।२३; ६ ४२ पोसहिय ( पौषधिक) दसा० ५।७ पोसहोववास (पौषधोपवास) नं० ८७. दसा० ६,३, ८ से १८; १०1३० से ३२. प० ८८ पोसिय ( पोषित) उ० २७|१४ प्रतिष्ठा ( ) अ० ३६७ फ ( फंद ( स्पन्द्) - फंदंति उ० १४ । १५ फग्गुण (फाल्गुन) उ० २६।१५. प० १६६ फग्गुणी ( फल्गुनी) अ० ३४ फग्गुमित्त ( फल्गुमित्र ) प० २२२ फणग (दे०) उ० २२/३० फणिह (दे० ) अ० १६ फरसु (परशु ) उ० १६/६६ फरिस (स्पर्श) उ० २६ सू० ४६. दसा० ६।३ Page #1207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फरिसग-फुम २१३ फरिसग (स्पर्शक) प० ४२ फालिय (स्फटिक) प० २८ फरुस (परुष) द० ५।१२६, ७.११. उ० १४२७, फास (स्पर्श) आ० ४।८. द० ८।२६. उ० ४।११, २६; २।२५. नि० २।१८; १०।२,३; १३।१४, १२; १०।२५; १६ सू० १२; गा० १०; १५; १५।२३ २१॥१८; २८।१२; २६।६७; ३२।७४ से ८६; फरुसवयण (परुषवचन) क०६।१ ३४।२,१८,१६, ३६।२०. नं० ५३,५४१४. फल (फल) द० ३।७४।१ से ६,५२१२४,१४७; अ० २५७,२६१,२७६,५०८,५१२,५२४. ७।३२,३३, ८।१०।६।१,१८. उ० २।४०, दसा० ६।५. प० २०,७८ ४१६६१२।१८, १३।३,८,१०,११,२०, फास (स्पृश)-फासए उ० ५।२३.--फासयई २६,३१; १५२१०१६।११, २३।४८; २६११, उ०२०।३६.--फासे द०४।१६. १७; ३२।१०. नं० गा० १६ सू० ३८,६१. उ० २२।४७.-फासेज्ज उ० २१।२२. दसा०६।३,७; ६।२।६।१०।२२ से ३३. -फासेमि आ० ४।। प० ४६,६१,८१,१०६. नि० १४१३४; १८१६६ फास इत्ता (स्पृष्टवा) उ० २६११ ‘फल (फल)-~फलेइ उ० २३।४५ फासओ (स्पर्शतस्) उ०३६।१५,१६,२२ से ४६, फलग (फलक) द० ४ सू० २३; श६७. ८३,६१,१०५,११६,१२५,१३५,१४४,१५४, उ० १७१७. दसा०४।१३. क० श२८,२६ १६६,१७८,१८७,१६४,२०३,२४७ फलवइ (फलवती) नं० ३८१५ फासण (स्पर्शन) अ० ७१३ फलग्गाह (फलग्राह) दसा० १०।१४ फासय (स्पर्शक) उ०१०।२० फलभोयण (फलभोजन) दसा० २।३ फासिदिय (स्पर्शन्द्रिय) नं० ४१,४२,४४,४६,४८, फलमालिया (फलमालिका) नि० ७।१ से ३; १७।३ से ५ फासिदियनिग्गह (स्पर्शेन्द्रियनिग्रह) उ. २६ फलवीणिया (फलवोणिका) नि० ५।४५,५७ फलिओवहड (फलिकोपहृत) व० ६।४४ फामिदियपच्चक्ख (स्पर्शेन्द्रियप्रत्यक्ष) नं० ५. फलिह (परिघ) द० २१०६; ७।२७. अ० ५६६. अ० ५१७ प०१५ फासिदियलद्धि (स्पर्शेन्द्रियलब्धि) अ० २८५ फलिह (स्फटिक) उ० ३६।७५. प० ३३ फासित्ता (स्पृष्ट्वा) प० २८७ फलिह (दे०) अ० ४२ फासिय (स्पृष्ट) दसा० ७।२५,३५. व० ६।३५ से फलिहा (परिखा) नि० १२।१८; १३।११; ३८,४०,४१,१०१३,५ १४।३०; १६।५१; १७।१४०; १८।६२ फासुय (प्रासुक, स्पर्शक) द० ५।१६,८२,६६;८। फलोवय (फलोपग) नि० ३१७६ १८. उ० १॥३४; २३।४,८,१७, २१३; ३५१७. फाडिग (स्फटिक) नि० ७।१० से १२; १७१२ दसा० १०॥३१ से १४ फासेंत (स्पृशत्) आ० ४६ फाणिय (फाणित) द० ५१५२. क० २।८. फासेमाण (स्पृशत्) दसा० ६।१८ नि० १३।३७ फिट्ट (भ्रश्) -फिट्टई उ० २०।३०. फाल (स्फाल) दसा० ६।२।४ फिहय (३०) नि० १८।१४ फालिय (पाटित, स्फाटित) उ० १६।५४,६२,६४, फुड (स्फुट) उ० १६।४४ ६६. दसा० १०॥२७. नि० ११५० से ५२ फुम (दे० फूत्कृ )---फुमेज्ज नि० ३१२१. Page #1208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ फुमंत बंभी --फूमेज्जा द०४ सू०२१ १२।१।१७।१ फुमंत (दे० फूत्कुर्वत्) द० ४ सू० २१ बंधण (बन्धन) आ० ४।८. द. १०।२१; चू० ११७ फुमाव (दे० फूत+कारय्) -फुमावेज्ज नि० उ० १११६; १४।४८; २०१३६. अ० २८२. १५॥१८. --फुमावेज्जा द० ४ सू० २१ दसा०६।३,१८. प० ८४,८७,१०६. नि० १४६ फुमावेत (दे० फत्कारयत्) नि० १५१८,२४,३०, बंधव (बान्धव) उ० ४।४।१०।३०; १३।२३; १८॥ ४६,५२,६१, १७।२०,२६,३२,४८,५४,६३, १४; १६।१६; २०१३४,५५ ७४,८०,८६,१०२,१०८,११७ बंधवया (बान्धवता) उ० ४।४ फुमित्ता (दे० फूत्कृत्य) नि० १७।१३२ बंधिय (बन्धित) प० २७८ फूमेंत (दे० फत्कुर्वत्) नि० ३।२१,२७,३३,४६,५५, बंधु (बन्ध) उ० १८।१५ ६४; ५:५६,६५,७१,८७,६३,१०२; ६।३०,३६, बंभ (ब्रह्मन) आ० ४।६. उ० १२१४६; १३।१३; ४२,५८,६४,७३;७।१६,२५,३१,४७,५३,६२, १६।२८, २१११२; ३१११४. अ० ३४२. ११११६,२२,२८,४४,५०,५६; १५।१०४,११०, प० १६६ ११६,१३२,१३८,१४७ बंभइज्ज (ब्रह्म ज्य) उ० १२।३ फुरंत (स्फुरत्) नं० गा० १६ बंभगृत्ति (ब्रह्मगुप्ति) उ० ३१।१० फुल्ल (फुल्ल) अ० १६,२०,३५२. दसा०७।२०. । बंभचारि (ब्रह्मचारिन्) दसा० ६११२ से १८; ६।२, फुल्लिय (फुल्लित) अ० ३५२ १३ ; १०१३२ Vफुस (स्पृश्) -फुसई उ० २।६. -फुसंति बंभचेर (ब्रह्मचर्य) द० ५।६; ६१४७,५८; ६।१३. उ०४।११. अ० १२५ उ० १६ सू० १ से १२; गा० १ से १,१५. फुस (स्पृश्) उ० २२।१२ २५।३०; २६।३४. नि० १६।१७ फुसंत (स्पृशत्) उ० १२।३६ बंभचेरगुत्ति (ब्रह्मचर्यगुप्ति) आ० ४।३,८५२ फुसणा (स्पर्शना) अ० १२१,१३८,१६५,१६६, बंभचे रवास (ब्रह्मचर्यवास) दसा० १०२२ से ३२ २०६,२१० बंभचे रसमाहिट्ठाण (ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान) उ०१६ फुसिय (पृषत) प० २५२,२५३. क० ५।१२ बंभण (ब्राह्मण) उ० २५१६,२६ से ३१ फेण (फेन) उ०१६।१३. प० २६,३१ बंभदत्त (ब्रह्मदत्त) उ०१३।१,४,३४ फोक्कनास (दे०) उ० १२।६ बंभद्दीवग (ब्रह्मद्वीपक) नं० गा० ३२ बंभद्दीविया (ब्रह्मद्वीपिका) प० २१५ बंभन्लय (ब्राह्मण्यक) ५०६ बउल (बकुल) प० २५ बंभयारि (ब्रह्मचारिन) द० ५।९; ८.५३,५५. बंध (बन्ध) द० ४।१५,१६, ६।३१; चू० १ सू० १. उ० १२।६,२२; १६ सू० ४ से १२; उ०६१६; १४।१६; १९।३२,६८,२५२८; गा० १६; २१११३; ३२।११,१३. प० ११६ २८।१४. अ० ३१७,३२७,५२५,७१४. दसा० बंभलिज्ज (ब्रह्मलीय) प० २०२ ६।३. नि० ११४४,४५, ५।७०,७२,७३ बंभलोग (ब्रह्मलोक) उ० १८।२६३६।२१०,२२६ Vबंध (बध) --बंधइ द०६।६५. उ० २६२. बंभलोय (ब्रह्मलोक) अ० १८६,२८७ -बंधई द० ४।१. -बंधति उ० ३६।२६७. बंभलोयय (ब्रह्मलोकज) अ० २५४ -बंधति नि० ११४३ बंभवय (ब्रह्मवत) उ० १६।३३; ३२।१५ बंधंत (बध्नत्) नि० ११४३ से ४५, ५७०,७१, बंभी (ब्राह्मी) ५० १६६ Page #1209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ Vबज्झ (बध)-बज्झइ उ० ८.५.-बझंति उ०६।३० बज्झ (बाह्य) उ० ३०८ बज्झओ (बाह्यतस) उ० ६।३५ बज्झमाण (बाध्यमान) उ० १४।४६; २३।८० बडिस (बडिश) उ० ३२।६३ बत्तीस (द्वात्रिंशत) आ० ४।८ नं० ८२. अ० ३१८।३. दसा० १०।१४. प०८. व० ८।१७ बत्तीसिया (द्वात्रिंशिका) अ० ३७६,६१४ बदर (बदर) अ० ६१३ बद्दलियाभत्त (बर्दलिकामक्त) नि० ६।६ बद्ध (बद्ध) दचू० ११७. उ०१४।४५; १६।५१, ५२,६३,६५; २३।४०; २६।३३,३८,६३ से ७२; ३३।१. दसा० १०।२४ बद्धग (बद्धक) उ० ३३।१८ बद्धपुट्ठ (बद्धस्पृष्ट) नं० ५४।४ बद्धाउय (बद्धायुष्क) अ० ५६८ बद्धीसग (दे०) नि०१७।१३७ ।। बधेल्लय (बद्ध) अ० ४५७ से ४६४,४६७,४६८, ४७१,४७२,४७६,४७७,४८२,४८३,४८७, ४६० से ४६२,४६५,४६६. नि० १२।२; १७।२ बप्प (दे०) द०७।१८ बबुलय (बबुलक) अ० ३४७ बब्बरी (बर्बरी) नि० ६।२६ बब्भागम (बह्वागम) क० ४।२६. व० ११३३; ३१३,५,७,२३ से २६; ६।१,६,७ बयर (बदर) अ० ४३६ बल (बल) उ० ३.१८%81४; १०२१ से २६; ११।२१; १८.१२१११४. अ० ४१६. दसा० ६।२।३३; १०।१७. प० ३८,४७,५२, ६४,७४,७५. नि० २।२६ बलदेव (बलदेव) अ० ३६६,५४२. दसा०६।३,७. प० ११,१२,१४,४७ बलदेवगंडिया (बलदेवकण्डिका) नं० १२१ बलभत्त (बलभक्त) नि०६६ बलभद्द (बलभद्र) उ० १६१ बलव (बलवत्) अ० ४१६ बलवंत (बलवत्) उ० ११।१८, २५॥२८ बलवाउय (बलव्याप्त) दसा० १०१८ बलसिरी (बलश्री) उ० १६२ बला (बलात्) उ० १६५८ बलागा (बलाका) उ० ३२॥६. अ० ५२६ बलाहग (बलाहक) ५० ३० बलाहय (बलाहक) द० ७१५२ बलिकम्म (बलिकर्मन) दसा० १०।३,१२,२२ से २४. ५० ४४,४६,५८,६६ बलिपाहुडिया (बलिप्राभृतिका) आ०४।६ बलिय (बलिक, बल्य) प० २३६ बलिस्सह (बलिस्सह) प० १६३ बलिस्सहगण (बलिस्सहगण) प० १६५ बहली (बहलो) नि० ६२६ बहव (बह) अ० ३५७. दसा० ७।५; १०।२२,२३, ३४. प० ५१. व० १११६; २।३,४,२७; ३।२६ से २६४।१६,२६ से ३२,६८,९; ६।४२,४३; १०३ बहस्सइ (बृहस्पति) अ० ३४२ बहिं (बहिर) उ० १४१४,१७ बहिता (बहिस, बहिस्तात्) दसा० १०॥३,४ बहिद्धा (बहिस्तात) द० २।४ बहिया (बहिस्, बहिस्तात्) उ०६।१३; १२.३८; २५॥३. दसा० ३।३; ५२५७।२८,३१,३३. प० ८१,१६६,२२७,२७७. क० ११३६,४१, ४५,४६; २०१४ से १७, ३१३३; ४१२६; ५।१५,२६,४०. व० ११२० से २२,३३; २।२६,३०,८६,८,१४; ६।४०,४१. नि० २।४०; ६।१०,१३,१४ बहियावासिय (बहिर्वासिक) नि० १०।१३ बहु (बहु) आ० ३।१. द०४ सू० ६,१३. उ० ३।६,६,१०,१५; ४।१२; ६।२; ७।८; ८।१५; ६६,१६,१०१३,१६,१२।१६; १४१७, १०,१३; १७।११, २०१३८, २१३१७; २२।१६; Page #1210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ बहुअट्टिय-बारस से १६,२७,३२; २३।१६,४०,६०,७५; १६६,१८०,२८३ २५।२४; २६।५२; २६।१,५,२३; ३१११; बहुलपक्ख (बहुलपक्ष) व० १०॥३,५ ३३७,१३; ३५।१२; ३६।२५०; २६१. बहुवित्थोडोदगा (बहुविस्तृतोदका) द० ७।३६ नं० गा० ३३ सू० १८,२२,६६. अ० ३१५, बहुविध (बहुविध) दसा० ४।११ ३५७,५२८,५२६. दमा० ४।१०,११,५१५; बहुविह (बहुविध) द० ४।१४,१५. उ० १६८६. ६।३,४,८ से १८; ६।२:३; १०।११,१४,१८, नं० गा० ३८. अ० ७१५॥६. दसा० ४।१०; २७,२६,३०,३३,३५. प० २,६,६,२५,३८,४२, १०।११. प० ४२ ४७,५६ से ६१,७४,७५,८५,८६,६२,१०६, बहुव्वीहि (बहुव्रीहि) अ० ३५०,३५२ १११,१२४,१२८,१३८,१६३,१८०,२८८. वहुसंभूय (बहुसम्भूत) द० ७३३,३५ व० ३।२३ से २६; ४१६,१०; ५१६,१०; ६४, बहुसम (बहुसम) द० ७।३७. प० २० ५. नि० २१४४ बहुसलिला (बहुसलिला) द० ७१३६ बहुअट्ठिय (बह्वस्थिक) द० ५७३ बहुसुन (बहुश्रुत) दसा० ४१५ बहु उज्झियधम्मिय (बहुझितर्धामक) द० ५।७४ बहुमो (बहुशस्) उ०६।१।१६।६३; ३४१५६, बहुकंटय (बहुकण्टक) द० ५।७३ ५७; ३६।२६१. अ० ३१७. व० ११६ से १०, बहुजण (बहुजन) दसा० ६।२।२०; १०।२७ १२,१४,१६,१८; ३।२३ से २६. नि० २०१६ बहुजणपाओग्गता (बहुजनप्रायोग्यता) दसा० ४।१३ से १०,१२,१४ से १८ बहुदेवसिय (बहुदैवसिक) नि० १४।१३,१५,१७, बहुस्सुय (बहुश्रुत) द० ८।४३; चू० १६. १६; १८।४५,४७,४६,५१ उ० ५।२६; ११।१५ से ३०, २२॥३२. बहुनिव्वट्टिम (बहुनिवतित) द० ७।३३ क० ४।२६. व० ११३३; ३।३,५,७,२३ से बहुपडिपुण्णिदिय (बहुप्रतिपूर्णन्द्रिय) दसा० ४।६ २६; ४।१८; ६।१,६,७ बहुपय (बहुपद) अ० ३२७,५२५ बहुस्सुयपुज्जा (बहुश्रुतपूजा) उ० ११ बहुफासुय (बहुप्राशुक, स्पर्शक) क० ४।१२ से । बहुहा (बहुधा) उ० १४।१० १४,२५; ५११,१२. व० ७।२२; ८.१३ से १५ बाढ (बाढ) उ० १२।३५ बाढक्कार (बाढकार) नं०१२७।४ बहु बाहड (बहु'बाहड') द० ७।३६ बहुभंगिय (बहुङ्गिक) नं० १०२ बादर (बादर) अ० २५४ बहुमय (बहुमत) उ० १०॥३१. प० २३८. बाधृ ( ) अ० ३६७ व०३६ बायर (बादर) द०४ सू० ११. उ०.३५।६%3 बहुमाण (बहुमान) उ० १३१४; २६।५ ३६।७०,७१.७८,८४ से ६६,६२,६३,१००, बहुय (बहुक) उ० १।१०; १९६५. अ० १३, १०८,१०६,१११,११७,११८,१२० १७४,३६४,४०७,४१२. व०६।४०,४१ बायरकाय (बादरकाय) उ० ३६१७४ बहुरव (बहुरव) दमा० ६।२।१६ बायालीस (द्वाचत्वारिंशत् ) प० ४७ बहुल (बहुल) द०६।३६,६६; चू० १ ० १; बारगा (द्वारका) उ० २२।२२ २।४. उ० १०.१५; १६ सू०१ से ३; बारगापुरी (द्वारकापुरी) उ० २२।२७ २६।१५; २६४०. नं० गा०२५ सू० १०२. बारवई (द्वारवती) प० १२६ दसा० ६।३.१० १७,७४,८४,१०६,१११, बगरस (द्वादशन) आ० ४।८. उ० ३६।५७. ११३,११५,१२७,१३०,१६१,१६३,१६५, नं० १०६. अ० ३८४. दसा० ७.१. प० ६६. Page #1211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसंगविउ बिहेलग व० ८।१७ बारसंगविउ ( द्वादशाङ्गविद् ) उ० २३।७ बारसम ( द्वादश) नं० ११८, १२३ बारसमी ( द्वादशी) व० १०।३ बारसवासपरियाय ( द्वादशवर्षपर्याय) व० १०।३१ बारसहा ( द्वादशधा ) उ० ३६।२१० बारसी ( द्वादशी) प० १२७. व० १० १३ बाल (बाल) द० ६।७; चू० ११. उ० १ ३७; २।२४ ५।३, ४, ७, ६, १२, १५ से १७, ६।१० ; ७ ४, ५, १०, १७, १६, २८ ८५, ७, ६४४; १२।५, ३१, १३।१७; १७१४, ३२३,१७,२६, २७,३६,४०, ५२, ५३, ६५,६६, ७८, ७६,६१, ६२. दसा० ७ ५; ६।२।१४ बालगवी (बालगव) उ० २७।५ बालग्गपोइय (दे०) उ० ६ २४ बालत्त ( बालत्व) उ०७२८ बालपंडियवी रियलद्धि ( बाल पण्डितवीर्यलब्धि ) अ० २८५ बालभाव (बालभाव) उ० ७।३०. दसा० १०।२४ से ३२. ५०६, ३८, ४७ बालमरण- (बालमरण) उ० ३६।२६१. निव्य११।६३ बालवच्छ ( बालवत्स) व० १०१३ बालवीरयद्धि (बालवीर्यलब्धि) अ०२८५ बाला (बाला) उ० २०२६ बावत्तरि ( द्वासप्तति) उ० २१।६. नं० ६७. अ० ४६. प० ४७ बावीस ( द्वाविंशति) आ० ४।८. उ० २ सू० १. नं० १०२. प० १७८ बासी (यशीति) प० १७ बाह (बाघ) - बाहर उ० ३२।११० बाह (बाप) अ० ३१७ बाहल्ल ( बाल्य) उ० ३६ ५६ TET ( बाहु ) उ० १९ । ३६, २२/३५. अ० ५२५. दसा० ७।१७. क० ५।१६ २१७ बाह (बहिस् सा० ६।५. क० १७. व० ६ २. नि० २५२ बाहिर (बाह्य) द० ४ सू० २१ गा० १७, १८; ८६, ३०. उ० २८।३१,३४, ३०१७ बाहिरओ (बाह्यतस् ) प० २० बाहिर (बाह्यक) उ० ३०।२६ बाहिर (बाह्य) उ० १६८८ बाहिरिय ( बाह्यक) उ० १२।३८ बाहिरिया ( बाहिरिका) दसा० ६ ३; १० ३.७,१२. प० ४१,४४,६२,८३. क० १७,६ बाहु ( बाहु) द० ४ सू० २३; चू० १ सू० १. उ० १२।२६. अ० ४१६ बाहुलेर ( बाहुलेय) अ० ५४४ बिइज्जा ( द्वितीया ) व० १०३ बिइज्जिय (द्वितीय) उ० ३०|६ बिइय (द्वितीय) उ० १०१३०; २६१२,२४; २६१७२ ३६।२३५, २५२. नं० ८२. अ० ३०८, ४६३. प० २०१. व० ५।१ बिंदु (बिन्दु) दचू० १ सू० १. उ० १०।२; २८।२२. नं० ५३. प० ३० बिंदुकार ( बिन्दुकार) अ० ३६४ बिदुप्पमाण ( बिन्दुप्रमाण ) नि० ११।८० बिदुष्पमाणमेत्त ( बिन्दुप्रमाणमात्र) क० ५।३७ बिदुय ( बिन्दुक ) अ० ३५४ बिड (बि) द० ६।१७ बितिय (द्वितीय) अ० ३०८. ५०२०२ बितिया ( द्वितीया ) व० १० ३,५ बिब्बोयण ( वे० ) प० २० बिराल ( बिडाल) उ० ३२०१३ बिराली ( बिडाली ) नं० गा० ४४ बिल (बिल) उ० २४।१८; ३२५० बिल ( बिड) नि० ११ १२ बिलपतिया ( बिलपङ्क्तिका) अ० ३६२ बिल्ल ( बिल्व ) द० ५।७३. अ० ४३६. नि० ५।१४ बिलग (बिभीतक ) द० ५।१२४ Page #1212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ बीज (बीज) नि० १४।३४; १८।६६ बीजमालिया ( बीजमालिका) नि० ७।१ से ३; १७/३ से ५ बीभच्छ ( बीभत्स ) अ० ३०६ बीमच्छरस ( वीभत्स रस ) अ० ३१५ बीभत्स ( ) अ० ३१५ / बीभाव ( भापय् ) - बीभावेति नि० ११।६५ बीभावंत ( भापयत् ) नि० ११।६५, ६६ बीय (बीज) आ० ४१४,६. ६० ३।७; ४ सू० २२; ५।३,१७,२१,२६, २६, ५७, १२४ ६ २४; ८१०, ११, १५; १०१३. उ० १ ३५; १२।१२; १७१६; २४ । १८; ३२।७. दसा० ५/७ १५; ७।१६. ० ६१,२६२,२६५, २७६. क० ४।३१ से ३४; ५। ११; ६।४, ६. नि० ७ ७५; १३८; १४।२७ १६ |४८; १८५६ बी (द्वितीय) द० ८३१; चू० २०११. उ० १३ । २४; २४ । १२; २६।१२, १६, १८, ४३; २८१३२. नं० गा० २० सू० १२७/५ अ० ५०३. प० १६७, १६८ बीयभोयण ( बीजभोजन) दसा० २/३ बीयरुइ ( बीजरुचि) उ० २८।१६,२२ बीयरुह ( बीजरह) द० ४ सू० ८ बीयवावय ( बीजवापक) अ० ३२१ atrator (बोजवtणिका) नि० ५/४६, ५८ बीस (विशति ) अ० ३७८ √ बुज्झ ( बुध् ) - बुज्झइ उ० २६।२६. - बुज्कंति आ० ४।६. उ० २६।१. दसा० १०।२४ ० २८७ - बुज्झामो उ० १४।४३.-- बुज्झाहि प० ५६. - बुज्भेज्जा दसा० १०।३२ बुझिया (बुद्ध्वा ) उ० ३।१६ बुद्ध (बुद्ध) आ० ६।११. द० १०५ ५।१५०; ६२१, २२,३६,५४,६६, ७२, ५६. उ० ११८, १७, २७, २६, ४०, ४२; ६।३; १०३६, ३७; ११ ३; १४ । ५१; १८ । २१, २४, ३२, २३३,७; २५।३२; ३५।१; ३६।२६८. नं० गा० ८. अ० २८२. प० १०,८४,१०६ बुद्धपुत्त ( बुद्धपुत्र) उ० १।७ बुद्धबोहिसिद्ध ( बुद्धबोधित सिद्ध) नं० ३१ बुद्धवयण (बुद्धवचन) द० १०।१,६. नं० ६७. अ० ४६, ५४८ बुद्धि (बुद्धि) द० ८ ३०; ६३, १४, १६. उ० ८५; १३।३३. नं ० ३८, ४७,६७, ७६, १२७ बुद्धिम ( बुद्धिमत् ) दचू० १।१८ बुद्धिविण्णाण (बुद्धिविज्ञान) प० ६,३८ बुब्बु (बुब्बुद) उ० १९।१३ बुवंत (वत्) उ० २३।२१,२५,३७,४२, ५२, ५७, ६२,६७, ७२,७७, ८२ बुवाण (ब्रुवत्) उ० २३।३१ बुसहि (बुसगृह) नि० ८ ६; १५/७२ बुससाला (बुसशाला) नि० ८|६; १५।७२ बुह (बुध) उ० ३०।३५; ३३।२५ √ब्बू ( ब ) – अब्बवी उ० ६।६. - आह उ० १६ सू० ३. - आहंसु उ० २२४५. - माह उ० १२।२५. - बित उ० १६।२४. – बिति नं० ५४. --- बूम उ० २५।१६. -- बूया द० ६।११. अ० २६६. दसा० ७।२१. नि० ४।११८. -- बूहि उ० २५।१४. -- बेंति अ० ७१५. – बेमि दसा० १।३. प० २८८. क० १।४७. व० १।३३ बूर (बूर ) उ० ३४ । १६. ५० २० √ बूह (बृंह) -- बृहए उ० १०।३६ बे (द्वि) अ० ४६६ बीज-बोंडय बेदिय ( द्वीन्द्रिय) आ० ४।४. द० ४ सू० ६. उ० ३६।१२६,१२७,१३०,१३२ से १३४. अ० २५४,४४५,४५३, ४८३, ४८५, ४८८ astrate ( द्वन्द्रयकाय ) उ० १०।१० बेंट (वृन्त) अ० ५६६।२ बेयाय (याहिक) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१, ४३६,४३८ बोंड (बोण्डज) अ० ४०, ४२ Page #1213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौदि-भगव बोंदि (दे० ) उ० ३५।२०; ३६।५५,५६. अ० २८२. दमा० ५।७।१६. प० ८ बोडियसाला (दे०) व० ६२७, २८ बोढव्य (बोद्धव्य) उ० ३६।१०,७१,७६,९५,१६, १०७,११०,१३८, १७१,१८८, २०६. नं० १५४. अ० २६४३ बोधव्व (बोद्धव्य) द० ५।३४. अ० ३०६, ३८८ बोधसाला (बोधिकशाला ) ० ६।२१,२२ बोल (दे०) नि० १२२८ १७१५० बोहय (बोधक) आ० ६।११. अ० १६,२०. दसा० ७१२० १० १०,४२ बोहि (बोधि) आ० २६ ४६ ५४६. द० ५।१४८ चू० १।१४. उ० ३।१६; ८।१५ ३६।२४७ से २५६ बोह्रिदय (बोधिदय) आ० ६।११.१० १० बोहिय ( बोधिक) प० ३० बोहित (बोधिकरव) नं० ११ बोहिलाभ ( बोधिलाभ ) उ० १७/१; २६।१५. नं० ८६ से ९,९१ भ भदणी ( भगिनी) उ० २०१२७ भइता ( भक्त्वा ) उ० १५४ भय (भाग्य) उ० ३६।२२ से ४६ भइयव्व ( भक्तव्य ) उ० २८ २६; ३६।११. नं० १८।६. अ० ५५७ भंग (भङ्गः ) ० ४ सू० २१. अ० ११७,१३४, १६१,१६३,२०२,२०४. १० ३१ भंगसमुत्तिणया ( भङ्गसमुकोर्तनता) अ० ११४, ११६ से ११८,१३१,१३३, १२५,१५० १६० से १६२,१९,२०१ से २०३,२१६ भंगिय (क) क० २२८ भंगी ( भङ्गी) नं० गा० ३० भगोवदंसणया (भङ्गोपदर्शनता) अ० ११४, ११८, ११६,१३१,१३५,१३६, १५८, १६२,१६३, १६६,२०३, २०४,२१६ ( भंज (भ) उ० २७१७ २१६ भंजई उ० २७१४. -- भंजए मंजति नि० १२१३ भजन (भजत्) नि० १२३ भंड (भाण्ड) आ० ४।७. उ० १९२२: ३६।२६७. अनं० २२. अ० ३१२,६६४,६९०. दसा० १०।१०. व० ८५ भंडग ( भाण्डक ) उ० २४ । १३ २६।३५. ०२५६ भंडय ( भाण्डक ) उ० २६।८, २१ भंडवाल ( भाण्डपाल ) उ० २२।४५ मंडदेवालय (भाचारिक) अ० ३५६ भंडागारसाला (भाण्डाकारशाला ) नि० ६ ७ भंत ( भदन्त ) आ० १ २ ४ । १ ५।१. द० ४ सू० १० से १६,१५ से २३. उ०९।५८ १२।३०; १७।२, २०११५; २३ । २२; २६।६; २९।१ से ७२. नं० गा० २३. अ० ३९४, ३६८,४०२, ४०३,४२६, ४३३, ४४१ से ४४८, ४५०, ४५२,४५५, ४५७ से ४६४,४६६ से ४६८, ४७१,४७२,४७६, ४७७,४८१,४८२, ४८७,४६० से ४६२, ४३५, ४९७, ४९६,५०२, ५०३, ५६८. दसा० १०।२४ से ३२. ५० ६२, १८३,२२४,२३३, २३४, २३५, २३७, २३८, २६०,२६२,२७१, २७३,२७५, २७६, २८३, २८५. क० १ ३४. ० २।२४, २५.२० ३६, ११, १२:४१८, २१.२३ ७५ १०१६ भंत (भ्रान्त) द० ४ सू० ६ भंस (श्) -- भं से दा० २।२१. - सेज्जा उ० १६ सू० ३. दसा० ७।३४ भक्ख ( भक्षय् ) - भक्खर उ० १1३२. भक्ते ८० ६७ भक्खण ( भक्षण) उ० २३।४६ ३६०२६७ भक्खर (भास्कर) ६०८५४. उ० २३७८ भक्खियव्व (भक्षयितव्य ) उ० २२।१५ भग (भग) अ० ३४२ भगव ( भगवत्) द० ४ सू० १ से ३ ६ ४ सू० १ उ० २ ० १ से ३ ६।१७ १६ सू० १: Page #1214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० भगंदल-भत्तिचित्त १८१८ से १०,१६; २१११,१०, २२१४,२२; २३१५,६; २६१,७४. नं० गा० ६,११; सू० ७६. अ० ४०८. दसा० १११; २०१; ३३१; ४।१,२१,७; ६६१,७११८।१६।२१०१३, ५,६,११,१६ से २३,३३ से ३५. प० १ से ४, १०,१३ से २०,५१ से ५३,५५,५७,५६ से ६१,६६ से ७८,८०,८२ से १०७,१८१ से १८४,१८६,२२३ से २२५,२८८. क० ६।१६. व० ३।१४।१० भगंदल (भगन्दर) नि० ३।३४ से ३६ ४७२ से ७७; ६।४३ से ४८; ७।३२ से ३७; ११।२६ से ३४; १५॥३१ से ३६,११७ से १२२; १७।३३ से ३८,८७ से ६२ भगवई (भगवती) प० २४ भगवंत (भगवत्) आ० ५।३; ६।११. द० ६।४ सू०१ से ३. उ०१६ सू० १ से ३. नं० गा० ४३ सू० ६५,१२०. अ० ५०,५४६, ७१४. दसा० १११ से ३; २११ से ३; ३११ से ३; ४११ से ३,२२; ५२१ से ३; ६।१ से ३, १८,७१ से ३,३५; १०३,११,३३. प०१०,१४,७६,८१,२८५ भगिणी (भगिनी) दसा० ६।३.५० १६१।३. क०४।११ भगिणीवइ (भगिनीपति) अ० ३६२ भग्ग (भग्न) उ० ५।१४,१५; १९६१२२।३४, भट्ठ (भ्रष्ट) दचू०१।१२. उ० २०४१ भड (भट) अ० ३२७,५२५ /भण (भण्)-भण उ० २५।१२. म० ३०८॥३. दसा० १०।२४.---भणइ उ० २२।१७. अ० ५६६.-भणति अ० ५५५.-भणसि अ० ५५७.-भणाहि अ० ५५७ भणंत (मणत) उ०६९ भणग (भणक) नं० गा० २८ भणिति (भणिति) अ० ३०७ भणिय (भणित) उ० ३०।२६,३६।६०. नं० १२७१५. अ० ३०८।४,४१७।३. ५० १८७ भत्त (भक्त) द० ११३; ५१,४१,४३,४४,४८,५०, ५२,५४,५८,६०,६२,६४,८६,१०३,१०७, ११०,११३,११५,११७,१२८,६।४५; चू० २।६. उ० १३; १२।२७,३५; १६७, १२; १६७६,८०,६५,२६।३१; २७।१४; २६।१,४१, ३५११०,११. नं० ८६ से ८६,६१, १२०. अ० ३८३,५३२. दसा०६।३;७।२२, २८,३१,३३; १०३१ से ३३. प० ७५,८१, १२,१०६,११३,११५,१२४,१२६,१३०.१३८, १६५,१६६,१८०,१८४,२३६,२४०,२५०, २५२,२५४,२५६,२७१,२७६,२७७,२८५. क०४।२६ भत्तकहा (भक्तकथा) आ० ४८ भत्तट्ट (भक्तार्थ) प० २४०,२५०. क० ५१४१ भत्तपडियाइक्खिय (प्रत्याख्यातभक्त) प० २४६ भत्तपाणपडियाइक्खित (प्रत्याख्यातभक्तपान) व० २।१६ भत्तपाणपडियाइक्खिय (प्रत्याख्यातभक्तपान) प० २७६. क० ६।१७ भत्तामास (भक्तामर्ष) दसा० ७।२३ भत्ति (भक्ति) उ० २०१५८; २६।५; ३०।३२. १०४२ भत्तिचित्त (भक्तिचित्र) दसा० १०।११, प० २५, ३२,३७,३६,४२,५० ३६ भिज्ज (भ)-भज्जई उ० २७।३.-भज्जंति उ० २७.८ भज्जा (भार्या) उ० ६।३; १३।२५; २११७; २२।२,४,६. दसा०६।३ भज्जिम (भर्जनीय) द० ७१३४ भज्जिय (भजित) द० ५।१२० भट्ट (भट्ट, भर्तृ) द० ७।१६ भट्टा (भट्टा, भर्तृ) द० ७१६ भट्टित्त (भर्तृत्व) दसा० १०।१८. प० ६ Page #1215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भत्त-भव २२१ भत्तु (भर्त) दसा० ६।२।१८; १०।२५,२६ भदंत (भदन्त) नि० १०१ से ४ ।। भद्द (भद्र) उ० १।३७; ६।१६; २२।१७,३७, __नं० गा० ३,४,६,८,१०,११. दसा० १०।१०. प० ७३ ७४,११२,१२६,१६५ भद्दग (भद्रक) द० ५।१३३, ८।२२ भद्दगुत्त (भद्रगुप्त) प० १९६ भद्दजस (भद्रयशस्) प० १६६,१६६ भद्दत्ता (भद्रता) उ० २६।२४ भद्दबाहु (भद्रबाहु) नं० गा० २४ भद्दबाहुगंडिया (भद्रबाहुकण्डिका) नं० १२१ भद्दय (भद्रक) प०७३,२२२१४ भद्दवय (भाद्रपद) उ० २६।१५ भद्दवया (भाद्रपदा) अ० ३४१।३ भद्दा (भद्रा) उ०१२।२०,२४,२५. दसा० १०॥१८. प०७३,७४,११२ भद्दासण (भद्रासन) दसा० १०।१४. ५० ५, __ ३७,३६,४२,४५,५० भद्दिज्जिया (भद्रीया, मद्रीयिका) प० १६६ भद्दिया (भद्रीया) प० ८३ भम (भ्रम) प० ३१ भिम (धम्)-भमइ उ० २५४३९. --भमिहिसि उ० २५३६ भममाण (भ्रमत्) प० ३१ भमर (भ्रमर) द० ११२,४. उ० २२।३०; ३६।१४६. अ० ७०८१५. प० २४,२५,३० भमली (भ्रमरी) आ० ५।३ भमुगरोम (ध्र रोमन्) नि० ३।६५; ४११०३; ६।७४, ७।६३, १११६०; १५।६२,१४८; १७।६४,११८ भमुह (5) प० २६१ भमुहक्खेव (भ्र क्षेप) अ० २६६ भय (मय) आ० ६।११. ८० ४ सू० १२, ६।११; ७१५४; ८।२७,५३; १०।११,१२. उ०१।२६; ५।१६, ६।६।६।५४; १४।२,४,५१, १५।१४; १८६; १६।४५,४६,६१,२१।१६; २२।१४; २४१६; २५।२१,२३,३८, ३२।१०२. नं० गा० ३९. अ. ३१३. दसा० ५७।५. प० ५८,६७,७४,७६ अभय (भज)–भएज्ज द० ८.५१. उ०२१२२२. -भयइ उ० १११११.-भयाहि उ० २२।३७ भयंकर (भयङ्कर) उ० २३६४३ भयंत (भदन्त) उ० २०११ भयगभत्त (भृतकमक्त) नि० ६६ भयट्ठाण (भयस्थान) आ० ४१८. उ० ३११९ भयणा (भजना) नं० ६६ भयमाण (मज्यमान) दसा० ५।७।४. ५० ५८ भयय (भृतक) व०६५ से ८ भयव (भगवत्) उ० ६।२,४,१२, २३।८६. नं० गा• १. दसा० ८।१. ५०१ भयसण्णा (भयसंज्ञा) मा० ४८ भयावह (भयावह) उ० १९९८; २११११ भर (भर) नं० गा० १६; सू० ३८।५. अ० ३१६. प०२२ भिर ()-भरिज्जसु नं० १८.- भरिज्जिहिइ अ० ५८६.-भरिहि नं० ५३ भरणी (मरणी) अ० ३४१३३ भरह (भरत) उ०१८।३४,४०. नं० १८.५,६६. अ० ३६६,५५६,६१५. दसा० १०११८ भरहवास (भरतवर्ष) उ० १८१३५ भरहसिल (भरतशिल) नं० ३८।३ भरिय (भरित) नं० गा० ४. अ० ३१५,४२२, ४२४,४२६,४३१,४३६,४३८,४३६,५८६. दसा०१०।१४. प० २२२१८ भरेउं (मर्तुम् ) उ० १९४० भल्लायय (भल्लातक) नि० ६।१४ से १८ भल्ली (भल्ली) उ० १९५५ भव (भू)-भवइ उ० २०।१५. नं० १२६. अ० १४. दसा० १२३. प० २३३. व०६।३५. -भवउ प०७४.-भवंति द. १३५. Page #1216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ भव-भायण उ० १३।२२. नं० ४७. अ० २८. दसा० ६१७. भवसिद्धिय (भवसिद्धिक) उ० ३६।२६८. प० ५१. व० ३६.-भवति अनं० ६. नं० ६६,१२४. अ० २८८ दसा० १॥३. प० २६४.-भवतु दसा० १०१४. भवित्ता (भूत्वा) उ० २०४१. दसा० ८।१. प० १ -भवामो उ०१४।२८. --भवाहि भवित्ताण (भूत्वा) उ०१४।१ उ० ६।४२.- भविस्सइ नं. १२६. भवित्ताणं (भूत्वा) द० ४।१८ अ० १७. ५० ५. व० ८।२.-भविस्सई भविय (भव्य) नं० १२४ उ०२१४५.- भविस्सति अनं० ६. भविय (भविक, भव्य) नं० गा० ३७. अ० ५६९।४ दसा० १०॥३२.-भविस्ससि उ०६५. भवियसरीर (भव्यशरीर) अनं० ७,६. अ. १५, --भविस्सामि दसा० १०॥३१.-भविस्सामु १७,३६,३८,५६,६१,८३,८५,१०८,११०, उ. १४११७.-भविस्सामो उ०१४।४५. ५६५,५६७,६१२,६२५,६२७,६३७,६३६, -भुवि नं० १२६.-भवे उ० ५।३. ६४६,६५१,६७५,६७७,७०२,७०४ अ० २३६.-भवेज्ज अ० ४३६ भविस्स (भविष्य) प० ११,१४ भव (भव) उ०६।२२; १०१४,१५,१३।२४; भव्व (भव्य) प० ११,१४ १४०; १८१७,२६; १९६१६,२१,७४; भस (भाष्)-भसे दसा० ६।२।१४ २२२४; २३१८४; २६४१,६१, ३०।६; भस्स (भ्रश)-भस्सई द०६७ ३२॥३४,४७,६०,७३,८६,६६; ३४१५८,५६; भाइणेज्ज (भागिनेय) द० ७।१८ ३६।६३,६४. अ० ७१३. दसा० ५।७।१५ भाइणेज्जा (भागिनेयी) द० ७.१५ भाइल्ल (भागिक) दसा०६।३ भव (भवत) उ० १२।१०,४५. अ० ५५५,५५६ भवंत (भवत्) द. ६।२८।१ भाउय (भ्रातृक) अ० ३६२ भवक्ख य (भवक्षय) दसा० १०२४ से ३२.५०२ भाग (भाग) उ० २६।११,१७,३४१५२; भवग्गहण (भवग्रहण) उ० १०।१३,१४, २६।२. ३६।१६१. नं० १८,२०,२५. अ० १२१,१२४, दसा० १०॥३२. ५० २८७ १२५,१२८,१३८,१४१,१४२,१४५,१६५, भवण (भवन) उ० २२।१३. नं० गा०४. १६८,१६६,१७२,२०६,२०६,२१३. प० १३०, अ० २८७,४१०. दसा० १०॥१६. प० २०, १६५. नि० २।३४ ४४,५०,५१,५४,६१,७५ भागवय (भागवत) नं० ६७ भवणवइ (भवनपति) उ० ३४।५१. प० ६२ भागि (भागिन) उ० २६४५. ५० ८२ भवणवासि (भवनवासिन) उ०३६।२०५,२०६. भाणितव्व (भणितव्य) दसा० २६ अ० २५४ भाणियव्व (मणितव्य) अ० १२५. दसा० ॥४. भवतण्हा (भवतृष्णा) उ० २३१४८ प० १११,१२७. नि० ४१३८ भवति ( ) अ० ३६८ भाणु (भानु) उ० २३१७६,७७ भवत्थकेवलनाण (भवस्थकेवलज्ञान) नं २ २६,२७ ।। भाय (भ्रात) उ० ११३६, ६।३; १३।२२. भवधारणिज्ज (भवधारणीय) अ०४०२ से ४०४ दसा०६।३. प० ७०. क० ४।१०. व०७/२५ भवपच्चइय (भवप्रत्ययिक) नं० २२ भाय (भाग) उ० २६।१७. प० ६५ भववक्कंति (भवावक्रान्ति) प० २,१०६,१२७, भाय (भी)-भायए द० १०।१२ भायण (भाजन) द० ५।३२,३५,३६,६६. Page #1217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भायर-भासा २२३ उ० १६२२; २६।२२,३६; २८६. दसा० २।३. नि. ४।३७; १२।१५,१६; १८।१५ भायर (भ्रातृ) उ० १३१४,५; २०१२६ भार (भार) उ० १०॥३३; १२।१५; १३।१६; २६।१३. अ० ३७८ भारद्दाय (भारद्वाज) प० १८३,१६६ भारपच्चोरुहणता (भारप्रत्यवरोहण) दसा० ४११६,२३ भारवह (मारवह) उ० २६।१३ भारवाहग (भारवाहक) अ० ३०२।६ भारह (भारत) द०६।१४. उ०१८।३४,३६,३८, ४१. नं० ६७. अ०२५,४६,३३३,५४८. प० २,१०,१३ से १५,१०६,१२७,१६१ भारियत्त (भार्यात्व) दसा० १०२५,२६ भारिया (भार्या) उ० १०१२६; २०१२८. दसा० १०१२५,२६. प० २,१०,१३,१४,१७, ७०,१२७,१६१ भारुंड (भारण्ड) उ० ४।६. दसा० ७८ भाव (भाव) द० २।६; च० २०८. उ०१४।१०, १९; २०११; २२१४४;२६॥३६; २८।१५,१८, १६,२४,२५,३५, २६।१८,२३,३२,६०; ३०।१४,२३,२४; ३२।२१,८७ से १६.१०२; ३३।१६,३६।२६०. नं० गा० २२ सू० २२, २५,३३,५४,६६,८१ से ६२,१२०,१२३,१२४, १२७. अनं०६,२६,२७. अ० ८,१६,१७,२२ से २७,२६,३७,३८,४६ से ५०,५२,६०,६१, ७० से ७२,७६,८४,८५,९५ से १६,१०१, १०६,११०,१२१,१२६,१३८,१४६,१६५, १७३,२०६,२१४,२४२,२४५,२८६,३०८, ३१८,३२८,३३५,३३७,३३८,३४६,३६८, ३६६,५०६,५५८,५६६,५६७,६०४,६११, ६१७,६२०,६२६,६२७,६२६ से ६३२,६३८, ६३६,६४१ से ६४४,६५०,६५१,६६५ से ६६७,६६९,६७०,६७६,६७७,६६१ से ६६३, ६६५,६६७,७०३,७०४,७०६ से ७०८. दसा० ५७; १०।३३. प० १२,१४,८२, १०१,११५,१३०,१६६,१७६ भाव (भावय)-भावए द० ६।५०.-भावेति दसा० हारा२३ भावओ (भावतस्) उ० २१।१६; २३१८७; २४१६, ७; ३६३३. नं० २२,२५,३३,५४,६६,१२७ भावणा (भावना) आ० ४१८. उ० १४।५२; १९४६४३१।१७; ३६।२६३ से २६६. क० ३।२४ भावतेण (मावस्तेन) द०५।१४६ भावसंधय (भावसन्धक) द० ६।४।५ भावसच्च (भावसत्य) उ० २६।९,५१ भावसुस्सूसा (भावशुभूषा) उ० ३०।३२ भाविय (भावित) उ० १४१५२ भावियप्प (भावितात्मन्) द० ६।५० भावुज्जुयया (मावर्जुकता) उ० २६।४६ भावुज्जोय (भावोद्योत) ५० ८८ भावेत्तु (भावयित्वा) उ० १९६४ भावेमाण (भावयत्) उ०२६।४०,६१. दसा० ४।२३; १०॥३,५,६,११,३३. प० ८१, ११५,१६६ भावोमाण (भावावमान) उ० ३०१२३ भास (भस्मन्) द० ६।३. उ० २५६१८ भास (भाष)--भासइ उ० १११८. नं० ३३. प० २८८.-भासई उ० ८।३.-भासति दसा० ६।२६.-भासेज्ज द. ७१. उ० २४११०.-भासेज्जा उ० ११११ भासंत (भाषमाण) द० ४।७. दसा० १०।१४ भासमाण (भाषमाण) द० ४।६; ५१४, ८।४६ भासय (भाषमाण) उ० ३२११ भासराशि (भस्मराशि) प० ८६ से ६१ भासा (भाषा) द० ७।१,४,७,११,२६,५६, ८।४७, ४८; ६।४६. उ० ११२४; २।२५; ६।१० १२।२।१८।२६; २०१४०; २४१२,१०. Page #1218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ नं० ५४।५, ८१. अ० ३१६. दसा० ६।१७ ; ७६ भासासमिइ ( भाषा समिति) आ० ४।८ भासासमित (भाषासमित) दसा० ५।७; १०1३२ भासास मिय ( भाषा समित) १०७८ भासित (भाषितुम् ) दसा० ६ । १७; ७१६ भासिय (भाषित) द० ५।१४६; ६।२५; चू० २।१. उ० १० ३७, १८१५२; १६/६७ ; २८।१ भासियव्व (भाषितव्य ) उ० १६।२६ भासुज्जुयया ( भाषकता ) उ० २६।४६ भासुर (मास्वर) द० ६।५५ भासुर ( भासुर) प०८, २६ भासुरतर ( भासुरतर) प० ३१ भिउडि (भृकुटि) उ० २७।१३. अ० ३१३ भिंगार (भृङ्गार) दसा० १० १४, १७, २४ से ३२ भिंगारी (दे०) उ० ३६।१४७ भिंगुलेण ( भृङ्गुलयन) १०२६१ भिडमालिया (दे० ) नि० ७१ से ३; १७।३ से ५ भिडिमाल (मिण्डिमाल, भिन्दिपाल) दसा० १०।१४ मिद ( भिद्) - भिद दसा० ६।३. -- भिदे द० ८४. – भिदेज्ज द० ६६. भिदेज्जा द० ४ सू० १८. - भिज्जेज्ज अ० ३६८ भिदंत ( भिन्दत्) द० ४ सू० १८ भदाव (भेदय्) - भिदावेज्जा द० ४ सू० १८ भिभिसार ( बिम्बसार) दसा० १० ३,४,११,१६, १७,१६,२१ भिक्ख (क्ष) उ० २५ ३७, ३८ भिक्खमाण ( भिक्षमाण) उ० १४/२६ भिक्खवत्ति (मैक्षवृत्ति) उ० ३५।१५ भिक्खा ( भिक्षा) द० ५३१,६६, १५० उ० ८|११; १२ ३, ६, १४११७; २५, ४, ६, २७।१०. अ० ५३६. दसा० ६।१८. व० ६।३५ से ३८ भिक्खागकुल (भिक्षाककुल ) दसा० १०1३२. प० ११, १२, १४ भिक्खाय ( भिक्षाद) उ० ५१२२,२८ भासासमिइ भिक्खुधम्म भिक्खायरिया (मिक्षाचर्या) आ० ४।६. उ० २ सू० १ से ३; १४।२६, ३३, ३५; १६/३२, २६।१२ ३०१८,२५. प० २३२. क० ११७ ६; ३।३३. नि० २३८ भिक्खियव्य (भिक्षितव्य ) उ० ३५।१५ भिक्खु (भिक्षु) द० ४ सू० १८ से २३ ५।६६, ८७,१०४ से १०६, १२५, १३६, १३८, १५०; ६।६१,६५; ८११,२०; ६।२५, ३३; १०११ से २१; चू० २।६,११. उ० १।१,२४,३१,३२; २ सू० १ से ३; गा० २,७,१२, १६, २२, २४, २६, २८,२६,४४ से ४६, ४|११ ; ५।१६,२०, २५; ७ २२; ८१२,४, ११, १६; ६१५, १६; ११।१,१५; १२०१, २६, ४०, ४३; १३।१२, १४, १७,३०; १५।१ से १६; १६ सू० १ से ३; गा० २, ३, ७, ६, १५; १६।२४, ८२ २१।१३, १६,१७,१६,२५६, ८, ३७, २६/११,१७,३०११, ४,२४,३१,३६; ३१।३ से २१, ३५।१,५,७, ११, १३ से १५. नं० ३८।४. म० ३४४. दसा० ५।७७; ६।२।३५. प० २३६ से २५०, २५२ से २५४,२७१, २७३ से २७७. क० ११३४; ४।१६, १६, २२, २५ से २७; ५।५ से ६, ४०. व० १।१ से १५,२० से २३,२६ से ३३; २५ से २३, २५, २६, २८ से ३०, ३१, २,१३,१८,२३,२६,२६, ४।११,१२,१५ से १८,२० से २३, २६, २७, ३२, ६।१,७, ७।२२; ६।४२,४३. नि० १११ से ५६; २०१ से ५६; ३ । १ से ८० ४। १ से ११८ ५। १ से ७६; ६।१ से ७६; ७।१ से ६२; ८।१ से १५; ६ । १ से ४, ६ से २६; १०।१ से ४१; ११ । १ से ६३; १२।१ से ४३; १३ । १ से ७५; १४/१ से ४१; १५ । १ से १५४; १६ । १ से ५१; १७।१ से १४,१२५ से १५२; १८ ।१ मे ७३; १६।१ से ३७ २०।१ से १८ भिक्खुणी (भिक्षुणी) द० ४ सू० १८ से २३ भिक्खधम्म ( भिक्षुधर्म) उ० २।३६; ३१।१० Page #1219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिक्खुपडिमा-भुज्जो २२५ भिक्खुपडिमा (भिक्षुप्रतिमा) आ० ४।८. भीय (भीत) उ०२।२१, १८।३; १६७१; दसा० ७.१ से २८,३१,३२,३५. व०६।३५ २२।३५,३६. अ० ३०७।५ से ३८ भीरु (भीरु) उ० ३२११७, ३४।२८ भिक्खुभाव (भिक्षुभाव) क० ३।३१. व० ४।२१, भीरुय (भीरुक) उ० २७।१० २३, ६७,७।२८ भुज (भुज)--भुंज उ० १६।४३.- जइ भिक्खय (भिक्षक) उ०१२।२७. नि०६।५ उ० ११५. व० ६१.-भुंजई उ० ७।३. भिक्खोंड (मिक्षोण्ड) अ० २२,२६ -भुजए उ० ६।४४.--भुजंति द० २।२. भिक्खोववायं (भिक्षोपपात) व० ४।२४,२५ नि० ११५६.- जसू उ० १२॥३५.- भुंजामि भिगुपक्खदण (भृगुप्रस्कन्दन नि० १११९३ उ० २०११४.- जामु उ०१४।३१. भिगुपडण (भृगुपतन) नि० ११६३ -- जाहि उ० १२॥३४.-- जिज्जा उ०१६ भिच्च (भृत्य) उ० १४१३० सू०१०. प० २६०.-भुजिमो उ०२२॥३८. भिज्जानियाणकरण (भिध्यानिदानकरण) - जिस्सामि दसा० १०।२६.--भुजे क०६।१६ द०५।१०१. उ० ११३५.- भुजेज्ज द० ५।८३. भिण्ण (भिन्न) नं० ६६ उ०६७. क० ५।११.-भुजेज्जा द०४ भिण्णगिह (भिन्नगृह) नि० ८।५; १५७१ सू० १६. उ० १६।८. क० ४।१२ भिण्णसाला (भिन्नशाला) नि० ८।५; १५१७१ भुंजंत (भजान) द० ४ सू०१६ गा० ७,८; भितग (भृतक) अ० ३८३ ६।५०. उ० २।११. नि० ११५६; २।३१ से भिति (भृति) अ० ३८३ ३५,४२,४६; ६।२; १०१६,२५ से २८; भित्ति (भित्ति) द०४ सू० १८; ८।४. उ०१६ १११७५ से ७८,८२; १२।११; १३।६१ से सू० ७. अ० ३८१. नि० १३।१०; १४१२६%35 ७५; १५०५,७,६,११; १६।४,६,८,१०,३७,३८ १६६५०; १८१६१ भुंजमाण (भुजान) द० ४।५. उ० ५।६; ७१६. दसा० २।३; ७।५; १०।१०,१८,२२ से ३२. भित्तिकड (भित्तिकृत) क० २१२,३,६,१० प०७६. क० ४।१,१२,१३,१६ से १. भित्तिमूल (भित्तिमूल) द० ५।८२ व० ६।४२,४३; १०।३ भिन्न (भिन्न) उ० १२।२५; १६।५५,६७; भुजाव (भोजय)-भुंजावेज्जा द० ४ सू० १६ २३।५३. क० ११२,३,५; ३।१० भुंजित्ता (भुक्त्वा) दसा० ६।४ भिन्नायार (भिन्नाचार) व० ३१४,६,८; ६।१०, भुजित्तु (भुक्त्वा ) दचू० १ सू० १. उ० ६।३. ११; ७११ से ३ ___दसा० १०।२६ भिलंगसूव (भिलिङ्गसूप) दसा ६।१८. प० २५५ भुजिय (भुक्त्वा) उ० १३।३४ भिलिंगसूव (भिलिङ्गसप) व०६१ भुजिया (भुक्त्वा) उ० ७८ भिलुगा (दे०) द०६।२१ भुज्ज (भूयस) दचू० १ सू० १ भिस (भृश) उ०१४ भुज्जतर (भूयस्तर) दसा० ६।४ भिसंत (भासमान) दसा० १०।१४ भुज्जमाण (भुज्यमान) द० ५।३६. उ० ३२०२० भीम (भीम) द० ६।४. उ० १५॥१४; १६।४५, भुज्जयर (भूयस्तर) दसा० १०।२६ ७२; २१।१६,२३।४८,५५,५८ भुज्जो (भूयस्) उ० ५।२७. दसा०५७।२. भीमरसिय (भीमरसित) अ० ३१३।२ प०२८८ Page #1220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ भुत्त ( भुक्त) द० ५।३६. उ० १४।१२,३२; १६ । १२; १६ । ११,१७; २२।३८. दसा० १०१३३. प० ६६,८२ भुक्तभोगि ( भुक्तभोगिन् ) उ० १९।४३ भुय (भुज) अ० ५६६. दसा० १०।११. प० ४२ भुय ( परिसप्प ) ( भुजपरिसर्प ) उ० ३६ । १८१ भुयंग (भुजङ्ग) उ० १४ । ३४ भुयगवर ( भुजगवर ) अ० १८५ भुपरिसप्प (भुजपरिसर्प) अ० २५४ भुयमोयग (भुजमोचक ) उ० ३६।७५ भुया (भुजा) उ० १६ । ४२. प० १० भुसदाहठाण (बुसदाहस्थान ) नि० ३।७३ भू ( ) अ० ३६७ भूइकम्म (भूतिकर्मन् ) उ० ३६।२६४ भूइपण्ण (भूतिप्रज्ञ ) उ० १२।३३ भूइप्पमाणमेत्त ( भूतिप्रमाणमात्र) क० ५।३७ भूत (भूत) दसा० १० २६ भूतमह (भूतमह ) नि० ८ । १४; ६।११ भूतिप्पमाण (भूतिप्रमाण) नि० ११।८० भूतोवघातिय ( भूतोपघातिक) दसा० १।३ भूमि (भूमि) द० ५।२४; ८।५२. उ०१३।६. दसा० ७।२१. प० ५४ भूमिभाग ( भूमिभाग) द० ५।२५. प० २० भूमिसप्पि ( भूमिसर्पिन् ) प० ५६ भूय (भूत) आ० ४८; ९ । १. द० ४। १ से ६, ९; ५१५; ६।३, ५,३४, ५१, ७ ११,२६; ८।१२,१३, ५० चू० १ सू० १. उ० १।४५; २।१७; ६।२; ८१०; ६१५; १२४६, ७,२६, ३०, ३६; १३।१२; १४ । १३; १६/२५, ८६, २०/३५, ५६; २१।१३; २३।२०; २७।१७; २९।१८,४०, ४३ ; ३५८, १०, ३६।२०८. नं० गा० ३६. अ० २०,१८५, २५४,७०८. प० ११,१६१ भूयगाम ( भूतग्राम) आ० ४।८. उ० ३१।१२ भूयन्गाम ( भूतग्राम) उ०५८ भूयत्थ ( भूतार्थ) उ० २८।१७ भुत्त- भोक्ख भूयदिण्ण ( भूतदत्त) नं० गा० ३६ भूयदिन्न ( भूतदत्त ) प ० १६१।३ भूयरुव (भूतरूप) द० ७।३३ भूसण (भूषण) उ०१६।१३. प० २४,२६ भूसणधर (भूषणधर ) प० १० भूसित ( भूषित) दसा० १० २२, २३ भूसिय ( भूषित) दसा० १०।१२, १४. ० ५८, ६२ भे ( युष्माकम् ) आ० ३।१. उ० १२।२३; २०।५५. दसा० १०४,६, २४ भे ( भोस्) व० ८।१३ से १५ भेत्तु (भेत्तृ) दसा० ३।३ भेत्तुं (मेत्तुम् ) द० 1८. अ० ३६८.०२८ भेत्तृणं ( भिश्वा) उ० १ २२ भेद (भेद ) अ० २५४ भेय ( भेव ) उ० २।१३; ४ ६, १३; ५ ३१; १६ सू० ३ से १२; ३३७, ११, १३, ३४८ ३६ ६६, ७७,१०७, १२७,१३६, १४५, १७१,१६५, १६७, १६८. नं० ५४. अ० २५४. दसा० ६ २३०. प० २६ भेयण (भवन) उ० २६/४ भेयणी ( भेदनी) उ० २०१८ भेयाययणवज्जि (भेवायतनर्वाजन् ) द० ६।१५ भैरव (भैरव) द० १०।११,१२. उ० १५।१४; २१।१६. दसा० ५।७।५. प० ६७,७४ भेरी (भेरी) नं० गा० ४४. अ० ५२२. दसा० १०।१७. प० ६४,७५. नि० १७।१३६ भेसज (भेषज ) द० ८५० भो (भोस्) द० । १२. उ० २२८. दसा० १०७. व० २।२५ भोइ (भोजिन् ) उ० ७७ भोइत्ता ( भोजयित्वा ) उ० ६१३८ भोइय ( भोगिक) उ० १५६ भोई (भवती) उ० १४।३२,३४ • भोवख (भुज् ) – भोक्खसि प० २३७. व० २।३० - भोक्खामि व० २।२६. Page #1221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोग-मउलिय - भोक्खामो नि० ४।११८ भोग (भोग) द० २ ११ ८ । ३४ चू० १ सू० १; गा० १,१४,१६. उ० ५२५, ७, ८५, १४; | ३,६२ १३ १४, २०, २७ से २६, ३१ से ३४; १४।६,१३,३३, ४३, ४४, ४६; १६।१३, १४; १८४८ १६ ११,१७,२८,४३,६६; २०१६,८,११,१४,५०,५७, २२, ४६; २५/३६; २६/३; ३२/६३,१०१; ३३।१५. नं० ८६ से ८६, ६१. अ० ३४३. दसा० ६।४; ६ २/३२; १०।१८.२७ से ३१. १०७, ६, १६५ भोगभोग (भोग्य भोग) दसा० ६।४; १०।१८, २२, २३,२७ से ३० भोगंतराय ( भोगान्तराय) अ० २८२ भोगकुल (भोगकुल ) प० ११, १४ भोगत्थिय ( भोगायिक) दसा० १०।१८ भोगपुत्त (भोगपुत्र) दसा० १०।२४ से ३१ भोगपुरिस (भोगपुरुष ) दसा० ६ १३ भोगलद्धि ( भोगलब्धि ) अ० २८५ भोगलाभ ( भोगलाभ ) प०६, ३८,४७ भोगि (भोगिन् ) उ० २५ ३६ भोच्चा ( भुक्त्वा ) द० ५।१३३. उ० ३।१६. प० २४०, व० ६४० भोच्चाण (मुक्त्वा ) उ० १४६ भोच्चाणं ( भुक्त्वा ) द० ५।१०२ भोत्तर ( भोक्तुम् ) व० २२६ भोत्तव्व ( भोक्तव्य) क० ५।१२ भोतुं ( भोक्तुम् ) द० २६. उ० १७।२ भोम (भौम) उ० १५७ भोमिज्ज (भौमेय) उ० ३६।२०४ भोमेज्ज (भौमेय) उ० ३६।२१६ भोम (भोग) द० २ ३ ४ १६, १७. उ० ३ १९; ६१३,५१; १४१६, ३२, ३४, ३७; १८१४१; २२/३८ भोयण (भोजन) आ० ४।५, ६. ६० ५।२७, २८, ३१, ३९, ४२, ६८, १२६, १३३ ६।२२; ८१६, २३,५६. उ० २।३०; ६।७; १२।११; १५ ।११; १६ सू० ६,१०; गा० १२; ३०।२६. दसा० २१३, ६।३; ७ ५. प० ५८,२५०. क० ४।१४; ५ | १०. व० १०१३.५. नि० १०।२६ भोयणजाय ( भोजनजात) द० ५।७४ क० ५।१२. नि० २१४२,४४ ८ १७ भोयणमंडव ( भोजन मण्डप) प० ६६ भोयणवेला ( भोजनवेला) प०६६ भोयराय ( भोजराज ) द०२१८. उ० २२१४३ भोयावेउं ( भोजयितुम् ) उ० २२।१७ भ्रमति ( ) अ० ३६८ भ्रमर ( ) अ० ३६८ २२७ म मइ (मति) द० ५/७६; ६।३६; चू० २।१. नं० ३५, ३६, ५४।६, ६७. अ० ४६, ५४८ अन्ना (मत्यज्ञान ) नं० ३६ मइअन्नाणलद्धि ( मत्यज्ञानलब्धि) अ० २८५ मइंद (मृगेन्द्र ) नं० गा० १४ मइनाण ( मतिज्ञान ) नं० ३६ महपुव्व ( मतिपूर्व) नं० ३५ मइपुव्वय ( मतिपूर्वक) प० ६,३८ मइय (दे०) द० ७१२८ महरा (मदिरा) अ० ५२४ मउड (मुकुट) अनं० १३,१७. दसा० १० ११, १५,२४.०८, १०, ४२. नि० ७७ से &; १७६ से ११ मउय (मृदुक) उ० २२ २४; ३६।१६,३५. अ० २६१, २६३,३०७ ७, ५१२. प० २३, २४, २८,५८ मउलि ( मौलि ) दसा० १०।२४ मउलिकड (मुकुलीकृत) दसा० ६।१२ से १८ मउलिय (मुकुलित) प० १० Page #1222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ मऊरपोसय-मक्खावेंत मऊरपोसय (मयूरपोषक) मि० ६।२३ २०१२२; ३६।२६४. नि० १३१२६ मंख (मल) अ० ८८. प० ६२ मंतपिंड (मन्त्रपिण्ड) मि० १३१७२ मंगल (मङ्गल) आ० ४।२. द० १११. उ० २२१६मंतसाला (मन्त्रशाला) नि० ८।१६ २६।४२. दसा० १०॥३,११,१२,१८,२२ से मंति (मन्त्रिन्) ५० ४२ २४. प० २२,२६,४२,४४,५८,६६. मंथु (मन्थ) द० २६८,१२४. उ० ८।१२ व० १०१२,४ मंद (मन्द) ६० ५।२; ६।२ से ४. उ० ८.७; मंगलय (मङ्गलक) दसा० १०।२४ १२।३६; १८१७; २९२३ मंगल्ल (माङ्गल्य) प० ४ से ६,१६,३६,३८,३६, मदर (मन्दर) उ०११२२६; १९४१. अ० १८५, ४४,६६,७३,७४ ५४०. प० ७८ मंगल्लकारग (माङ्गल्यकारक) प०६,३८,४७ मंदाय (मन्द) उ० ४।१२ मंगी (मङ्गी) अ० ३०४ मंदरगिरि (मन्दरगिरि) नंगा० १७ मंच (मञ्च) द० ५।६७, ६।५३. अ० ५८६. मंदार (मन्दार) प० २५ प० ६२. नि० १३।११; १४॥३०; १६॥५१; मंदिय (मन्दक) उ० ८१५ १८१६२ मंदिर (मन्दिर) उ० ६.१२ मंचाउत्त (मञ्चागुप्त) क० २१३,१० मंस (मांस) उ० २०११; ५६; ७६; १९६९; . मंजु (मञ्जु) दसा० १०।१६. ५० ६६,७५ २२।१५. दसा० ६४३,५; १०।२७. प० २३६ मंडग (मण्डक) प० २६ मंसखल (मांसखल) नि० १११८१ मंजुल (मञ्जुल) प० ३६,३७ मंसखाय (मांसखाद) नि० ४।१० मंडण (मण्डन) अ० ३११ मंसल (मांसल) प० २२,२४ मंडल (मण्डल) उ० ३१३३ से २० मंससुह (मांससुख) दसा० १०।११. प० ४२ मंडलपवेस (मण्डलप्रवेश) नं० ७७ मंसादीय (मांसादिक) नि० १११८१ मंडलप्पवेस (मण्डलप्रवेश) जोनं० ८ मंसुरोम (श्मश्रुरोमन) नि० ३।४६; ४१८४; मंडलय (मण्डलक) अ० ३८४ ६ ५५; ७१४४; ११।४१, १५१४३,१२६; मंडलिय (माण्डलिक) प०४७ १७.४५,६६ मंडलिया (मण्डलिका) उ० ३६।११८ मकरिया (मकरिका) नि० १३११३८ मंडव (मण्डप) उ० १८१५. नि० १३०११; मवकडगसंताणग (मर्कटकसन्तानक) नि० ७७५ १४।३०; १६।५१; १८१६२ मक्कडासंताणग (मर्कटकसन्तानक) नि० १३१८ मंडावय (मण्डक) नि० ६।२७ १४।२७; १८१५६ मंडिकुच्छि (मण्डिकुक्षि) उ० २०१२ मंडित (मण्डित) दसा० १०।१० मक्कडासंताणय (अर्कटकसन्तानक) दसा० २।३. मंडिय (मण्डिस) नं० गा० १२,२१. अ०६२; क० ४।३१ से ३४. नि० १६१४७ ३१६. प० १०,४२,६२ मक्कडासंताणा (मर्कटकसन्तानक) आ० ४।४ मंडियपुत्त (मण्डितपुत्र) प० १८३ मिक्ख (म्रक्ष) --मक्खेज्ज नि० ११४ मंडीपाहुडिया (मण्डीप्राभृतिका) आ० ४१६ मिक्खाव (म्रक्षय) -मक्खावेज्ज नि० १५३३५ मंत (मन्त्र) द० ८.५०, ६।११. उ० १५२८ मक्खावेत (म्रक्षयत्) नि० १५॥३५,४६,५८; Page #1223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मक्खावेत्ता-मज्म २२६ १७।१७,२३,२९,३७,५१,६०,७१,७७,८३,६१, मघमघेत (गन्ध'प्रसरत) प० २०,३२,४०,६२ १०५,११४ मघव (मघवन्) उ० १८१३६. प० ८ मक्खावेसा (म्रक्षयित्वा) नि० १५३६ मघा (मघा) अ० ३४१ मक्खित्तए (म्रक्षितुम्) क० ५।३६ मच्चु (मृत्यु) उ० ५।१५; १३१२१,२२; १४१४, मक्खेत (म्रक्षत्) नि० ११४; ३।१८,२४,३० ३८, १४,२३,२७,५१, २०१४८; २३१८१; ३२।२४, ३७ ५२.६१, ४१५६,६२,६८,७६,६०,६९; ६.५, १७,२७,३३,३६,४७,६१,७०,७१६,२२,२८, मच्छ (मत्स्य) दचू० १६. उ० १४।३५; १६।६४; ३६,५०,५६; ११११३,१६,२५,३३,४७,५६; ३२।६३; ३६।१७२. दसा० १०।१४. १५॥१५,२१,२७,१०१,१०७,११३,१२१,१३५, प० ३०,३१ १४४ मच्छंडिया (मत्स्यण्डिका) अ० ३७६. __ नि० ६७६; ८।१७ मक्खेत्ता (म्रक्षित्वा) नि० ३।३६ मच्छंडी (मत्स्यण्डी) अ०६१ मगदंतिया (दे०) द० ५।११४,११६ मच्छखल (मत्स्यखल) नि० १११८१ मगर (मकर) उ०३६।१७२. नं० गा० ११. मच्छखाय (मत्स्यखाद) नि०६।१० प० ३२,४२ मच्छरि (मत्सरिन् ) उ० ३४।२६ मगरजाल (मकरजाल) उ० १६६४ मच्छादीय (मत्स्यादिक) नि० १८१ मगह (मगध) क० ११४७ मच्छिया (मक्षिका) उ० ८।५; ३६।५६,१४६ मगहाहिव (मगधाधिप) उ० २०१२,१०,१२ मज्ज (मद)--मज्जइ द०६।४।२.-मज्जई मग्ग (मार्ग) आ० ४।६. द० ५।६; चू० २।११. उ० १११७.-मज्जेज्जा द० ८।३० उ० ३१६; १४; ७।२५, ६।२६; १०॥३१ से मज्ज (मद्य.) प० २३६ ३३; १३।३०; १४।२; २०१४०,५०,५१,५५; मज्जग (माद्यक) द० ५।१३६ २११२०; २३१५६,६१ से ६३,८७; २४१४,५; मज्जण (मज्जन) दसा० १०।११. प० ४२ २८१ से ३; २६॥३,६,१७, ३२॥३,८६,१११ मज्जणघर (मज्जनगृह) दसा० १०।११,१२. ३५॥१. नं० ३८।३. अनं० २८. अ० २८, प० ४२ ३२२. दसा० ४।२।१३।१०।१५. प०७४, मज्जणविहि (मज्जनविधि) प० ४२ १२६. नि० १३१२८ मज्जणिय (माज्जनिक) नि० १५२६८ मग्ग (मार्गय)-मग्गहा उ० १२१३८ मज्जप्पमाय (मद्यप्रमाव) द० ५।१४२ मग्गओ (दे०) नं० १३,१६ मज्जाया (मर्यादा) अनं० २८ मग्गओअंतगय ('मग्गओ' अन्तगत) नं० ११, मज्जावय (मज्जापक) नि० ४।२७ १३,१६ मज्जिय (मज्जित) दसा० १०.११. प० २१,४२ मग्गगामि (मार्गगामिन्) उ० २।२ मज्झ (मध्य) आ० ४।६।१. द० ७५५; ६।१४, मग्गणया (मार्गमा) नं० ४५ १५; चु० १ सू० १; गा० १५. मग्गणा (मार्गणा) नं० ५४१६,६२ उ० १३।१२; १७।२२; २३३५,६६:३२॥१३, मग्गदय (मार्गदय) आ० ६।११. प०१० ३४,४७,६०,७३,८६,६९; ३६॥५६. अ० ३१६, मग्गसिर (मृगशिरस्) प० ७४ १. हे० ४१७८ Page #1224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० मझमझ मण ५२६. दसा० ७१६६।२।११०।१८,२४. प० २०,२४,३५,४२,७४,१०६,११२,१२४, १२६,१३८,१६५,१८०. नि० ८।१०; ११३८६ से ६११४१३६; १८१७१; २०१६ से ५१ मझमझ (मध्यंमध्य) अ० ३६८. दसा० १०॥४, ___६,१७ से १६. ५०. १५,४३,४४,७५,११३, १२६,१६५. क. ११३२,३३ मज्भगत (मध्यगत) दसा० १०॥३५ मझगय (मध्यगत) नं० १०,१५,१६. प० २८८ मज्झच्छिन्न (मध्यछिन्न) दसा० ६।३ मज्झजीहा (मध्यजिहा) अ० २६६ मज्झत्थभाव भूत (मध्यस्थभावभूत) दसा० ४।२३ मझयार (दे०) अ० ३०७१३ मज्झिम (मध्यम) उ० २३१२६, ३६।५०. अ० ६५, २१८ से ३०१.५० १८३. व०१०।२०. नि० २।२६, १७११५१ मज्झिमउरिमगेवेज्जय (मध्यमउपरितनवेयज) अ० २५४ मज्झिमग (मध्यमक) उ० २३।२७. नं० ७६ मज्झिमगाम (मध्यमग्राम) अ० ३०३,३०५ मज्झिमगेवेज्जय (मध्यमवेयज) अ० २५४ मज्झिममज्झिमगेवेज्जय (मध्यममध्यमग्रंवेयज) अ० २५४ मझिमय (मध्यमक) उ० ३६।२५१. अ० ३७४ मज्झिमसर (मध्यमस्वर) अ० ३०२।४ मज्झिमसरमंत (मध्यमस्वरवत्) अ० ३०२।४ मज्झिमहेटिमगेवेज्जय (मध्यमअधस्तनIवेयज) अ० २५४ मज्झिमा (मध्यमा) प० ८३,८४,१०६,२०४ मज्झिमाउरिम (मध्यमउपरितन) उ० ३६।२१४ मज्झिमामज्झिम (मध्यममध्यम) उ०३६।२१४ मज्झिमाहेट्टिम (मध्यमअधस्तन) उ० ३६।२१३ मज्झिमिल्ल (मध्यम) अ० ३६०।२ मज्झिमिल्ला (माध्यमिको) प० २०२ मट्टिया (मृत्तिका) द० ५।३३. उ०५।१०३६।७२. नि० १७११२७; १८३१६ मट्टियाकड (मृत्तिकाकृत) नि० ७७१,१३४; १४२३; १६।४४; १८१५५ मट्टियाखाणि (मृत्तिकाखानि) नि० ३।७४ मट्टियापाय (मृत्तिकापात्र) नि० १२२६; २२४; ५६५ मट्टियामय (मृत्तिकामय) उ० २५४० मट्टी (मृत्तिका) आ० ४।४ मट्ठ (मृष्ट) अ० २१. प० २०,२२४. क० ११४३ मड (मृत) द० ७१४१. उ० १३६, ३४११६. प० ५४,५६ मडंब (मडम्ब) उ० ३०।१६. अ० ३२३,५५६ दसा० ७८; १०।१८. प० ५१. क० १६. व० ११३३; ४।६.१०. नि० ५।३४; १२।२०; १७.१४२ मडंबपह (मडम्बपथ) नि० १२।२३; १७३१४५ मडंबमह (मडम्बमह) नि० १२।२१, १७११४३ मडंबवह (मडम्बवध) नि० १२।२२; १७:१४४ मडग (मृतक) उ० ३४११६ मडगगिह (मृतकगृह) नि० ३१७२ मडगछारिया (मृतकक्षारिका) नि० ३।७२ मडगथंडिल (मृतकस्थण्डिल) नि० ३।७२ मडगथूभिया (मृतकस्तूपिका) नि० ३।७२ मडगलेण (मृतकलयन) नि० ३।७२ मडगवच्च (मृतकवर्चस्) नि० ३७२ मडगासय (मृतकाश्रय) नि० ३१७२ मड्डय (दे०) नि० १७११३६ मण (मनस्) आ० २२; ३।१४।१,५,६%3५१. द० १११; २।४; ४ सू०१० से १६; गा० १८ से २३; ५११२३; ६।२६,२६,४०,४३,८।३, १०,१६,२८, ६।१२; १०७; चू० १११५. उ० ११४३,४७; २।११,२६,४।११,१२; ६।११।८।१०।१२।२१,३२; १५।१२, १६।२; १८.२०; २२।२१; २३१५८,२४।२१, २०२५ ३०१११,३२।२१,८७,८८,१००३५४,१३, १८. नं०गा० २६; सू० २५. अ० २७,३१६, ३१८,७०८।६. दसा० १०१३३.५०२६,५४, Page #1225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणगपिय-मणोगय २३१ ५८,८२. नि०८।११।१०।२५ से २८ मणगपिय (मनकपितृ) प० १८६ मणगुत्त (मनोगुप्त) उ० १२॥३; २२१४७; २६।५४. दसा० ५१७; १०१३२. प० २७८ मणगुत्तया (मनोगुप्तता) उ० २६१,५४ मणगुत्ति (मनोगुप्ति) आ० ४।८. उ० २४१२,२० मणजोग (मनोयोग) उ० २६१७३ मणदंड (मनोदण्ड) आ० ४१८ मणनाण (मनोज्ञान) उ०२८।४।३३।४ मणपज्जव (नाणि) (मनःपर्यवज्ञानिन्) नं० १२० मणपज्जवनाण (मनःपर्यवज्ञान) नं० २,२३,२५. जोनं० १. अ० १. दसा० ५७; ७।३५ मणपज्जवनाणपच्चक्ख (मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष) नं० ६. अ० ५१८ मणपज्जवनाणलद्धि (मनःपर्यवज्ञानलब्धि) अ० २८५ मणपज्जवनाणावरण (मनःपर्यवज्ञानावरण) अ० २८२ मणसमाहारणया (मनःसमाधारण) उ० २६।१, मणिकम्म (मणिकर्मन्) नि० १२।१७ मणिपाय (मणिपात्र) नि० ११११ से ३ मणिबंधण (मणिबन्धन) नि० १११४ से ६ मणिभद्द (मणिभद्र) प० १६१ मणिसुत्तय (मणिसूत्रक) प० २४ मणुज्ज (मनोज्ञ) प० ५४ मणुण्ण (मनोज्ञ) द० ८।५८. उ० २६।४६,६३ से ६७,३२।२१ से २३,३५,३६,४८,४६,६१, ६२,७४,७५,८७,८८. दसा० ३।३; १०११८. प० ३६,७३,७४. नि० २।४४; ७।८२ मणुण्णया (मनोजता) उ० ३२।१०६ मणुय (मनुज) आ० ४१८. द०४ सू०६; ७१५०; चू०१ सू० १. उ० १०११,२; ३२।३४,४७, ६०,७३,८६,६६,१००; ३६।१५५,१६५,२००, २०२. नं० १८१५. दसा० १०।१५,१८,३३,३५ प०७४,८२,१०२,११३,१२६,१६५ मणुयाहिव (मनुजाधिप) उ० ६।४२ मणुस्स (मनुष्य) द० ७२; चू० १ सू० १. उ० ११४८; २।१६,७।२७; ६।३०; २०१४, ५५; २१।१६; २२।२२; २६॥५; ३४१४४. नं० ७,२३. अ० २५४,२७५,२६१,२६३,२६५, २९७,३६०,३६२,३६६,४०१,४३२,४४५,४५५, ४६० से ४६२,५२५,५६६ मणुस्सखेत्त (मनुष्यक्षेत्र) नं० २५. दसा० ५७ मणुस्सया (मनुष्यता) उ० ३१७ मणुस्ससेणियापरिकम्म (मनुष्यश्रेणिकापरिकर्मन्) नं०६३,६५ मणुस्साउ (मनुष्यायुष्) उ० ३३।१२ मणुस्साउय (मनुष्यायुष्क) अ० २८२ मणुस्सावत्त (मनुष्यावर्त) नं० ६५ (मनुष्येन्द्र) उ० १८१३७,४२ मणूस (मनुष्य) उ०४।२ मणोगत (मनोगत) प० २७ मणोगय (मनोगत) नं० २५. दसा० १०॥२२,२३. प० ११,५२,५४,५५,६६.१०१,१७६ मणसमित (मनःसमित) दसा० ५७ मणसमिय (मनःसमित) प० ७८ मणसीकर (मनी +क) -मणसीकरे उ० २।२५ मणहर (मनोहर) नंगा० १३. प० ७५ मणहारि (मनोहारिन् ) उ० २५।१७ मणा (मनाक्) उ० १८७ मणाभिराम (मनोभिराम) दसा० १०१८ मणाम (दे०) दसा० ३।३; १०।१८. प० ३६,७३, ७४ मण मणि (मणि) उ० ६।५६।४६; १६।४; ३६१७४. नं० १२ से १५,३८।१३. अनं० १३,१७. अ० ३८५,६५५,६५६,६८१,६८५. दसा०६।३ १०।११,१२,१४ प० १०,२०,२४,३७,३६, ४२,५०,५२,७४. नि०१३।३४ Page #1226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ मणोरम-मरणंत मणोरम (मनोरम) उ० ६६,१०,१४१४०; १६ उ० ११२८.-मन्नंति द०६।३६. उ०६।८. सू० ६; गा० ११; २५।३; ३२।२० मन्नसी उ०२३१६५.-मन्ने उ० १६.६. मणोरह (मनोरथ) उ० २२।२५. दसा० १०॥१६. प० ५.-मन्नेज्ज द० १०॥५ प० ७५ मन्नत (मन्यमान) उ. ३।१४; २७।१३ मणोसिला (मनःशिला) द० ५।३३. । मन्नमाण (मन्यमान) उ० १७।६ उ० ३६.७४ मप्पिड (मृत्पिण्ड) अ० ५२३ मणोहर (मनोहर) उ० १६ सू० ६; ३२।१७; ममत्त (ममत्व) दचू० २।८. उ० १६१८६,९८ ३२४. प० २५ ममाइय (ममायित) द०६।२१ मण्णमाण (मन्यमान) उ० ४७ ममाय (ममाय)-ममायंति द० ६१४८ मति (मति) दसा० ६५ मम्म (मर्म) उ० १११४ मतिपत्तिया (मतिपात्रिका) प० १६७ मम्मय (मर्मक) उ० ११२५ मतिसंपदा (मतिसम्पदा) दसा० ४।३,६ मय (मद) द०६।४।२; १०।१६. उ० १२।५; मत्त (मत्त) द० १०।१६. उ० ५।१०; २२॥१०. १६।७; २६।५०; ३१।१०. नं० गा० २२ दसा० १०११४. प० ३० मय (मृत) उ०१८।१४,१५, २७१६ मत्त (अमत्र) द०६।५. अनं० २२. अ०३६२, मय (मृग) नं० गा०६ ६६४,६६०. दसा० २।३. नि०४।३७; मयंगा (मृतगङ्गा) उ० १३१६ १२॥१५,१६; १८।१५ मयट्ठाण (मदस्थान) आ० ४८ मत्तग (अपत्रक) प० २८० मयण (मदन) प० २६ मत्तय (अमत्रक) व० ८।५. नि० १३।३१ मयणमालिया (मदनमालिका) नि० ७.१ से ३; मत्ता (मत्वा) उ० ३।२० १७।३ से ५ मत्थग (मस्तक) दसा०६।२।४ मयणिज्ज (मदनीय) दसा० १०।११. प० ४२ मत्थय (मस्तक) आ० ४।६. नं० १५. मया (माया) द० ६१ दसा ५।७।११।१०।४,६,१०,१२. ५० ५,७, १०,१५,३६,४१,४३,४४,४८,५०,६३. मयूर (मयूर) अ० ३००,३५५ व० ११३३ मर (म)-मरई उ० ५।१६.-मरंति उ० ३६।२५७.-मरिस्सामि उ०१४।२७. मत्थयत्थ (मस्तकस्थ) द० ४।२५. प० २८ -मरिहिंति उ०३६।२६१.-मरिहिसि मिद्द (मृद्)-मद्दाहि प० ७४ उ०१४।४० मद्दल (दे०) दसा० १०॥२४ मद्दव (मार्दव) द० ८।३८. उ० ६।५७; २७।१७; मरगय (मरकत) उ० ३६७५. प० ३३ २६१,५०,६६. नं० गा० ३६. दसा० १०॥३३. मरण (मरण) आ० २।५; ५।४।१. द० २७; प० ८१,२२२।८ ६।४७; १०११४,२१. उ० ५।३,१८; १९।१४, मद्दवया (मार्दव) उ० २६।५० १५,२३,४६,६०; २२।४२, २३।६८, ३०११२; मधु ( ) अ० २६६ ३२१७, ३६।२५६,२६७. अ० ३१३. मधदकम् ( ) अ० २६६ दसा० ४।२।३६. प० ८०,८४,१०६ मिन्न (मन्)-मन्नई उ० ११३८.-मन्नए मरणंत (मरणान्त) द० ५।१३६,१४१,१४४, Page #1227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मरणकाल-महता २३३ मल्लदेव (मल्लदेव) अ० ३४५ मल्लधम्म (मल्लधर्म) अ० ३४५ मल्ल रक्खिय (मल्लरक्षित) अ० ३४५ मल्लसम्म (मल्लशर्मन) अ० ३४५ मल्लसेण (मल्लसेन) अ० ३४५ मल्लि (मल्लि ) आ० २।४।५।४।४. नं० गा० १६. अ० २२७. दसा० १०॥१४. प० १४२ से १५० मल्लिया (मल्लिका) प० २५ मिव (मापय)-मविज्जति अ० ३१२ मस (मश) अ० ५२० मसग (मशक) उ०१५२४१६।३१; ३६।१४६. नं गा० ४४ मसा (मशक) उ० २१।१८ मसाण (श्मशान) द० १०१२ मसारगल्ल (मसारगल्ल) उ० ३६।७५. १० १५, उ० ५।१६,२६; ७९ मरणकाल (मरणकाल) उ० ३०१६ मरणविभत्ति (मरणविभक्ति) नं० ७७. जानं०८ मरणविसोहि (मरणविशोधि) जोनं० ८ मरहट्ठय (महाराष्ट्रज) अ० ३३३ मरिज्जिउं (मतम) द०६।१० मिरिस (मृष)-- मरिसेहि उ० २०१५७ मरु (मरु) उ०१६।५० . मरुंडी (मरुण्डी) नि० ६।२६ मरुगवच्च (मरुकवर्चस्) नि० ३७७ मरुदेवी (मरुदेवी) प०१६१,१६२ मरुपक्खंदण (मरुप्रस्कन्दन) नि० १११६३ मरुपडग (मरुपतन) नि० १११६३ मल (मल) आ० २१५; ५।४।५. द० ८.६२; ६।५५. उ० ११४८, ४७; ५११०, २५२१. अ० ३१५ मल (दे०) नि० ३१६७,४।१०५; ६१७६, ७।६५; ११।६२; १५६६,१५०; १७१६६,१२० मलत्त (दे० मलत्व) दसा० ७।२२ मलय (मलय) अ० ४३ मलय (दे०) नि० ७१० से १२; १७।१२ से १४ मलयवतिकार (मलयवतीकार) अ० ३६४ मलिण (मलिन) नि० ६।२२ मल्ल (माल्य) द० ३।२. उ०२०।२६; ३५१४. अ० १६,२०. दसा०६।३; १०.१७. प० २५,४८,५८,६१,६४,६६,७५,११३,१६५ मल्ल (मल्ल) अ०८८,३४५. ५०६२,७४. नि० ६।२२ मल्लइ (मल्लकिन्) प० ८८ मल्लग (दे०) नं० ५१,५३ मल्लजुद्ध (मल्लयुद्ध) दसा० १०।११.५० ४२ मल्लदाम (माल्यदामन्) दसा० १०॥३,११,१४, १५,२४. प० २६,४२,६२,६४ मल्लदास (मल्लदास) अ० ३४५ मल्लदिण्ण (मल्लदत्त) अ० ३४५ मसी (मषी) अ० ३१६ मसूर (मसूर) दसा० ६३ मसूरय (मसूरक) प० ४३ मह (महत्) द० ५।६६; ६।१६,१०१२०; चू० १६१०. उ० १०॥३४; १३।१२; १४।१८%; १८१२,१८; १६५०,६७,६८; २०१५३; २१।११,२४,२३१६५,६६.नं० गा० १७; सू० ३८१४. अ० ४१६. दसा० १०।१७,२४, २७.५० २४,७५. नि० १२२७,१७४१४६ महंत (महत) उ० १६।१८,१६, ३२।१०५. नं० गा० ३४; सू० १७. प० ३० महग्गह (महाग्रह) प० ८६ से ११ महग्ध (महाघ) द०७।४६. ५० ४२,४४ महज्जुइ (महाद्युति) उ० ११४७ महज्जुइय (महाद्युतिक) दसा० १०१२२,२३ महड्ढिय (महद्धिक) उ० ५।२५ महण्णव (महार्णव) उ० १६१०; ३२११०५. क० ४।२६. नि० १२।४३ महता (महत्) दसा० १०।२४. ५० ७५ Page #1228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ महति-महाफल महति (महती) दसा० १०१२१,२४ महती (महतो) नि० १७११३८ महत्तर (महत्तर) दसा० १०।१२ महत्तरग (महत्तरक) दसा० १०॥३,६,२० महत्तरगत्त (महत्तरकत्व) दसा० १०११८. ५०६ महत्तरय (महत्तरक) दसा० १०१४,७३ महत्तरागार (महत्तराकार) आ० ६.३ से १० महत्य (महार्थ) उ० २३।८८. नं० गा० ४१ महप्प (महात्मन्) द० ८।३३. उ० १२।२२,३५; १६॥३३; २१११, २७।१७. नं० गा०२ महप्पसाय (महाप्रसाद) उ० १२॥३१ महब्बल (महाबल) दसा० १०॥२२,२३ महब्भय (महाभय) द. ६।४७; १०११४. उ० १९७२ महया (महत्) दसा० १०॥१७ से १६. प. महरिह (महाह) दसा० १०।११.५० ४२ महल्ल (महत्) द० ७।२६,३० महल्लग (महत्) द० ५।१२६; ६।५२ महल्लय (महत्) द० ७।२५ महल्लिया (महत्) व० ६।३६,४१ महल्लियाविमाणपविभत्ति (महद्विमानप्रविभक्ति) नं० ७८. जोनं० ६. व० १०॥३० महव्वय (महावत) आ० ४।३,८,९५२.द० ४ सू० ११ से १५; गा० १७; १०१५. उ० १६१०,२८,८८,२०१३६; २१११२; २३।८७. नं० गा० ७. क० ३।२५ महन्वयधर (महाव्रतधर) आ० ४६ महाकप्पसुय (महाकल्पश्रुत) नं० ७७. जोन० ८ महाकाय (महाकाय) द० ७।२३ महाकुल (महाकुल) नि० ८।६; १५३७५ महागर (महाकर) द० ६।१६ महागिरि (महागिरि) नं० गा० २५ महागिह (महागृह) नि० ८।६; १५३७५ महाजंत (महायन्त्र) उ० १९५३ महाजय (महाजय) उ० १२१४२ महाजस (महायशस) उ०१२।२३; १८१३६,४६; १९९७; २३।२६ महाजुद्ध (महायुद्ध) नि० १२।२८; १७।१५० महाणई (महानदी) नि० १२।४३ महाणससाला (महानसशाला) नि० ६७ महाणुभाग (महानुभाग) उ० १२।२३,३७; १३।११,२० महातलाय (महातडाग) उ० ३०१५ महादीव (महाद्वीप) उ० २३१६६ महादोस (महाजोष) उ० ३५।१५ महानई (महानदी) अ० ३९८. प० ३१. क० ४।२६ महानाग (महानाग) उ० १९८६ महानिज्जर (महानिर्जर) उ० २६।२०. व० १०॥४१ महानिमित्त (महानिमित्त) प० ४२ महानियंठ (महानिर्ग्रन्थ) उ० २०५१ महानियंठिज्ज (महानिर्ग्रन्थीय) उ० २०,२०१५३ महानिसीह (महानिशीथ) नं०७८. जोनं. ६ महानिहाण (महानिधान) प० ५१ महापइण्ण (महाप्रतिज्ञ) उ० २०१५३ महापउम (महापद्म) उ० १८०४१ महापच्चक्खाण (महाप्रत्याख्यान) नं० ७७. जोनं० ८ महापज्जवसाण (महापर्यवसान) उ० २६।२०. व० १०॥४१ महापण्ण (महाप्रज्ञ) उ० ३।१८, २१, २२।१५,१८ महापण्णवणा (महाप्रज्ञापना) नं० ७७. जोनं ८ महापरिग्गह (महापरिग्रह) दसा०६।३।१०।२४ से २८ महापह (महापथ) उ० १२२६; ५।१४. अ० ३६२. दसा० १०१६. प० ५१,५२ महापाडिवय (महाप्रतिपत्) नि० १६।१२ महापाण (महाप्राण) उ० १८.२८ महापाली (दे०) उ०१८।२८ महाफल (महाफल) द० ८।२७. दसा० १०।११ Page #1229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाबल - महिया महाबल ( महावल ) उ० १८१५० महाभर ( महाभर ) उ० १६ ३५ महाभाग ( महाभाग) उ० १२ । ३४; २० | ५६; २३।२१; ३६।६३ महाभिसे ( महाभिषेक) नि० ९।१६ महाभेरी ( महाभेरी) अ० ३०१।२ महामंति ( महामन्त्रिन्) प०४२ महामगर ( महामकर ) प० ३१ महामणि ( महमणि) प० ३२ महामह ( महामह) नि० ८ १४; १९ | ११ महामाय ( महामातृक) दसा० १०।२४ से ३१ महामुणि ( महामुनि) उ० २।१०; १२५; १८।२३; २०१५३, २३।१२,२३,४८; २५/२, ६,१३,३४,३५११७ महामेह ( महामेघ) उ०२३।५१ अ० ३६८. प० ४२ महामोह ( महामोह) दसा० ६।२।१ महास ( महायशस् ) द० ६ २३, २६, २८. उ० १३।४; २०५३; २१ २२ २२१४, २०; २३२, ६, ६,१८,६६, २५१. दसा० १०।२२, २३. १० ३५ महाया रकहा (महाचारकथा) द० ६ महारंभ ( महारम्भ) उ० ७ ६. दसा० ६।३; १०।२४ से २८ महारण्ण ( महारण्य ) उ० १६७८ महारव ( महारव) प० ३२ महाराय (महाराज) उ० १४१४८, २०१६, १७, १६,२५ से २८,३० महारिति ( महर्षि ) उ० १२।४७ महालय (महत्) द० ७।३१. उ० १०1३२; १३।२६, २३/६६. प० १०।२४ महावण ( महावन) उ० १८१४८ महावाय ( महावात ) द०५८ महाविजय ( महाविजय) १०२ महाविदेह ( महाविदेह) नं० ६६ २३५ महाविमाण ( महाविमान) उ० ३६।२४४ प० २, १२७,१६१ महावीर ( महावीर ) आ० ४।६. द० ४ सू० १ से ३, ६।८. उ० २ सू० १ से ३; ५।४; २१।१; २६ १, ७४. नं० गा० २. अ० ३१०, ४०८. दसा० ५/७ ८।१; ६।२; १०१३, ५, ६, ११,१६ से २१,३४,३५. प० १ से ४,१०,१३ से २३, _५१ से ५३, ५५,५७,५६ से ६१,६६ से ७८, ८३ से १०७, १४३,१८१ से १८६,२२३ से २२५,२८८ महासंग्राम ( महासंग्राम) नि० १२/२८; १७ । १५० महासत्तु ( महाशत्रु) अ० ३१०।२ महासमर ( महासमर) दस० १० २६ महासागर ( महासागर ) उ० ३२|१८ महारिणाण ( महास्नान ) उ०१२/४७ महासुक्क ( महाशुक्ल) उ० ३|१४ महासुक्क ( महाशुक्र) उ० ३६।२११,२२८. अ० १८६,२८७ महासुक्कय ( महाशुक्रज) अ० २५४ महासुमिण ( महास्वप्न ) प० ४, ५,१६,२०,३६, ३७,३६,४६,४७,४६ महासुमिणभावणा ( महास्वप्नभावना) जोनं० ε महासु ( महाश्रुत) उ० २०।५३ महासुन्वा ( महासुव्रता) प० १३५ महासेल (महाल) प० २१,२३ महि (महि) द० ५|३; ६।२४. अ० ३६८ महिच्छ (महेच्छ) दसा० ६ । ३, ७, १०।२४ से २८ महिय ( महद्धिक) द० ६।४।७. उ० ११४८; ११।२२; १३४,७,११,२०,२८; १८।३६ से ३८; १६८; २२।१,३,८. दसा० १०।२२ से ३२ महिम (महिमन्) प० ६२ महिय ( महित) उ० २५१६. नं० ६५. अ० ५०, ५४६. ० ६२ महियल ( महीतल ) प ० ३३ महिया (महिका) द० ४ सू० १६; ५८. Page #1230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ महिला-माण उ० ३६।८५. अ० २८७.५० २७० महेसि (महर्षि, महेषिन्) द० ३॥१,१०,१३; महिला (महिला) अ० ५२५. ५० १६५ ५।६६; ६।२०,४८; ८।२।९।१६; चू० १६१०. महिलिया (महिला) अ० ३२७,५२५ उ०४।१०; १२।२७; १३।३५; २०१५५; महिष ( ) अ० ३५१,३६८ २०२०,२३, २३।७३,८३,२८।३६ महिस (महिष) उ० १९३५७; ३२।७६. महोदर (महोदर) उ० ७२ नं० गा० ४४. अ० ३५५,५२५. दसा० ६॥३; महोयहि (महोदधि) उ० २३८५ ७।२४ महोरग (महोरग) उ० ३६।२०७. अ० ६३,६७, महिसकरण (महिषकरण) नि० १२२२४; २५४ १५४१४६ महोह (महोघ) उ० ५१,२३।७० महिसजुद्ध (महिषयुद्ध) नि० १२।२५; १७।१४७ मा (मा) द० २।८. उ० १।१०. अ० ५५७. महिसपोसय (महिषपोषक) नि० ६।२३ व० ७२२ महिसी (महिषी) अ० ३३० ‘मा (मा)-माहिइ अ० ५८६ मही (मही) २०१८।४२,५१, २७११७. माइ (माति, मात्र) नि० १०॥३८ क० ४।२६. नि० १२।४३ माइ (मायिन) उ० ७५; १७।११; २७।६; महु (मधु) द० ५६७. उ०१३।१३; १९७० ३६।२६५. व० ३।२३ से २६ ३४॥१४. अ० २६४१६.५० ३४,२३६ बाइट्ठाण (मायिस्थान) दसा० २।३ महुअरी (मधुकरी) नं० गा० ८ माइल्ल (मायिन्) उ० ५६ महुकरी (मधुकरी) प० ३० माइवाहय (० मातृवाहक) उ० ३६।१२८ महुकार (मधुकार) द० ११५ अ० ३२१ महुकुंभ (मधुकुम्भ) अनं० ८,६. अ० १६,१७,३७, माउ (मात) प० ५३,५५ ३८,६०,६१,८४,८५,१०६,११०,५६६,५६७, माउगापय (मातृकापद) नं० ६४,६५ ६२६,६२७,६३८,६३६,६५०,६५१,६७६, माउग्गाम (मातृग्राम) नि० ६१ से ७६; ७४१ से ६७७,७०३,७०४ ६२ महुयर (मधुकर) प० २१ माउल (मातुल) द० ७.१८ महुयरी (मधुकरी) प० २५ माउलिंग (मातुलिंग) द० ५।१२३. अ० ४३६ महुर (मधुर) द० ५।६७. उ० ६।५५; ३६।१८. माउस्सिया (मातस्वस) द० ७.१५ नं० गा० ४१. अ० २६०,२६३,३०७,३११, मागह (मागध) अ० ८८ ३२३,३५४,५११. प० ३६ से ३८,५८,७३ से मागहय (मागधज) अ० ३३३ ७५ माडंबिय (माडम्बिक) अनं० १२ से १४. महरय (मधुरक) उ० ३६।३३ अ० १६,३६५. ५० ४२ महुरवयण (मधुरवचन) दसा० ४१७ माढर (माठर) नं० गा० २४; सू० ६७. अ० ४६, महुरा (मथुरा) नि० ६।२० ५४८. प० १८७,१८८,१६१,२०७ से २०६, महुसित्थ (मधुसिक्थ) नं० ३८।४ २२२ महुस्सव (महोत्सव) नि० १२।२६; १७।१५१ माण (मान) आ० ३५;४।१,८. द० ५।१३५; महेसक्ख (महेशाख्य) दसा० १०॥२२,२३ ८३६ से ३६%81४।२. उ०४।१२, ६।३६, Page #1231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माण-मायासल्ल २३७ ५४,५६; १२।१४,४१; १८१४२; १९९० १०।२८,३१,३२. प० ७७,११४ २४१६; २६।२; ३२।१०२, ३४।२६. अ० २७६, माणुस्सग (मानुष्यक) उ० ७।१२,२३; १५।१४. २८२,३३७,३७२ से ३७७,३९०,६१७,६६६, दसा० १०॥२२ से २५,२८ से ३२. ५००, ६६४,७०६।६,७१५. दसा०६।३. प०६,३८, ७४,११३ ४७,६२,१६३ माणुस्सय (मानुष्यक) उ०३।१६; १४१६; १९४३. मिाण (मानय)-माणएं द. ४५३ दसा०६।२।३२; ११२६,३० माणकर (मानकर) व० १०१७ से ११ मात (मात) अ० ५८६ माणकसाइ (मानकषायिन् ) अ० २७५ माता (मातृ) अ० ५२१. दसा० ६१३,७ माणणिज्ज (माननीय) व०४।१५ से १७ मातुलुंगपेसिया (मातुलिंगपेशिका) दसा० १०१२७ माणपिंड (मानपिण्ड) नि० १३॥६८ मामग (मामक) द० ५।१७ माणरिह (मानाह) द० ६।५३ मामाय (मामाक) नि० १३१५७,५८ माणव (मानव) द. ७.५२,५४. उ० २१११६; माय (मात) उ०२४।३. अ० ४३६ ३२।१७; ३५२ माय (मात्र) नि० १२१८,६ माणवगण (मानवगण) प० २०१ मायण्ण (मात्रज्ञ) द. ५।१२६. उ. २१३ माणविजय (मानविजय) उ० २६१६६ मायर (मात) प० ४७ माणवेय णिज्ज (मानवेदनीय) उ०२६।६६ माया (माया) आ० ३।१४।८. द. ८।३६ से माणस (मानस) दचू० १११८; २।१४. ३६. उ० ११२४;४।१२;६।३६,५४,५६; उ० १९।३,४५; २३।८०; २६।४,४५ १२।४१; १८१२६; २४१६; २६२, ३२।१०२; माणसिय (मानसिक) आ० ४।३,५१२ ३४।२३,२६. अ० २७६,२८२,३३७,६१७, उ० ३२।१६. दसा० १०॥११,१६,३३. प० ८२ ६६६,६६४. दसा०६।३६२७ माणि (मानिन्) अ० ३३७ माया (मात्रा) ८० ५।१०१. उ०६।१४,१५. माणिम (मान्य) दचू० ११५ नं० २१ माणिय (मानित) द० ६।५३ माया (मातृ) उ० ६।३,१३।२२, २०१२५. माणी (माणी) अ० ३७६,६१४ __ अ० ३६६. प० ३५,६६. क० ४।११ माणुम्माणियट्ठाण (मानोन्मानिकस्थान) माया (मायावत्) उ० ३४।२३ नि० १२।२७; १७।१४६ माया (सल्ल) (मायाशल्य) अ० २६।६ माणुस (मानुष) द०४ सू० १४; गा० १६,१७. मायाकसाइ (मायाकषायिन्) अ० २७५ उ० ३।१६; ७।१६,२०६।११०।४; मायापिंड (मायापिण्ड) नि० १३।६६ १९७३; २०।१४; २०२५; २६।३; ३११५; मायामुसा (मायामृषा) उ० ३२॥३०,४३,५६,६६, ३।२०. दसा० ७।२८. व०१०१२,४ माणुसखेत्त (मानुषक्षेत्र) नं० २५ मायामोसा (मायामृषा) आ० ४।६. द० ५।१३८, माणुसत्त (मानुषत्व) उ० ३।१,११; ७।१६,१७; १४६; ८।४६. दसा० ६।३; ६।२।१४ १०।१६; १९।१४ मायाविजय (मायाविजय) उ० २६।१,७० माणुस्स (मानुष्य) उ० ३१८; १८।२६; २०।११ मायावेयणिज्ज (मायावेदनीय) उ० २६७० २२।३८. दसा० ७१४,२६,३१ से ३३; मायासल्ल (मायाशल्य) आ० ४।६. द० ५।१३५ ८२,६५ Page #1232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० मायि-मिच्छत मायि (मायिन्) अ० ३३७ ६।७६; ७६२; २०११,६,११,१२,२४,३० से Vमार (मारय)-मारे द० ४।७.-मारेति __ दसा०६२।१.-मारेह दसा०६।३ माह (माघ) प० १८० मार (मार) दसा० ६।६ माहण (माहन, ब्राह्मण) द० ५।११०,६२. मारणंतिय (मारणान्तिक) उ०५२ उ०६।६,३८,५५, २५१,४,१८ से २७,३२, मारिय (मारित) उ० १९६६४,६५ ३४; १२।११,१३,१४,३०,३८; १४।५,३८%; मारुय (मारुत) द० ।२.५० २८,५६ ५३; १५२६; १८।२१. अ० ३६१. दसा० ७५. माल (दे०) नि० १३।११; १४।३०।१६।५१; प० २.५ से ७,१०,१३ से १५. व० १०॥३ १८१६२ माहणकुंडग्गाम (माहनकुंडग्राम, ब्राह्मणकूण्डग्राम) माल (माला) प० २४ प०२,१०,१३ से १५,१७ मालवय (मालवज) अ० ३३३ माहणकुल (माहनकुल, ब्राह्मणकुल) माला (माला) अ० २५०,२६४।५,२६८,३६८. दसा० १०॥३२. प० ११,१२,१४ दसा० १०१११,१६,२४. प० ८,४२,७५ माहणत्त (माहनत्व, ब्राह्मणत्व) उ० २५।३५ मालाउत्त (मालागुप्त) क० २।३,१० माहणी (माहनी, ब्राह्मणी) उ० १४१५३. ५० २, मालिज्ज (मालीय) प० १९८ ४ से ७,१०,१३ से १५,१७,१६,२० मालुग (दे०) उ० ३६।१३७ माय (दे०) उ० ३६।१४८ मालोहड (मालापहत) द० ५।६६. नि० १७।१२५ माहिंद (माहेन्द्र) उ० ३६।२१०,२२५. अ० १८६, मास (माष) उ० ८।१७. दसा० ६।३. क० २१ २८७,५५३ मास (मास) उ० ६।४०,४४; १२१३५; २६।१३, माहिंदय (माहेन्द्रज) अ० २५४ १४; ३६।१५१,२५१,२५५. नं० १८१५. माहिसिय (माहिषिक) अ० ३३० अ० २१६,४१५,४१७. दसा० २।३, ६॥३,१२ मिउ (मृदु) उ० १११३; २७।१७; २९।५०. से १८.५० १७,३८,४७,५६,७४,७६,८०,८१, नं० गा० ३६. प० २३,४२ ८४,१०६,१०६,१११,११३,११५,१२४,१२७ मिउग्गह (मितावग्रह) आ० ३।१ से १३८,१५१,१५२,१६१,१६३,१६५,१६६, मिओग्गह (मितावग्रह) व० ४।२१,२३ १८०,१८१,२२२ से २३०. क० ११६ से ६. मिंज (मज्जा) दसा० १०॥३० व० १:५,१० से १४,२।२७; १०१२,४. मिंढ (मेण्ढक) नं० ३८।३ नि० ११४६,५४, २१७, २०१५,१० से १४, मिग (मृग) उ० १९७७,७८; २३।१६; ३२॥३७. १६ से ५१ अ० ३५३.५० ३२ मासक्खमण (मासक्षपण) उ० २५।५ मिगपोसय (मृगपोषक) नि० ६।२३ मासपूरिया (मासपूरिफा) प० १६७ मिगचारिया (मृगचारिका) उ० १६८१,८२,८४ मासित (मासिक) प० २८१ मिगव्व (मृगव्य) उ० १८.१ मासिय (मासिक) उ० १६६५३६।२५५. मिगसर (मृगशिरस्) अ० ३४१ दसा० ७.३ से २६,३४. प० १२४,१३८, मिच्छकार (मिथ्याकार) उ० २६।३ १८४. क० ५।१३. व० १११,६,११,१२. मिच्छत्त (मिथ्यात्व) आ० ४।६. उ०१०११९%3 नि० ११५६; २१५६; ३१८०४।११८५७८% २६४२,५७,६१, ३३९. नं०६७ Page #1233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिच्छदिट्ठि - मुंजा पिच्चिय मिच्छदिट्टि ( मिथ्यादृष्टि) उ० ३४।२५. नं० २३, मियापुत्त ( मृगापुत्र) उ० १६।२,६,८,६६ ३६, ६७. अ० ४६, २७५,५४८ मियापुत्तिज्ज ( मृगापुत्रीय) उ०१६ मिच्छदिठ्ठिय ( मिथ्यादृष्टिक) नं० ६७ मियासण ( मिताशन) द० ८२६ मिच्छय ( मिथ्याश्रुत) नं० ५५,६७ मियासणिय ( मिताशनिक ) १०२७८ मिच्छा ( मिथ्या) आ० ३।१ ४ ३, ४, ५, ६, ७, ८; ५।२. द० ६।२. अ० २३६ मिच्छाकार ( मिथ्याकार) उ० २६।६ मिच्छादंड ( मिथ्यादण्ड ) उ० ६।३०. दसा० ६ ३ मिच्छादंसण ( मिथ्यादर्शन) उ० ३६ । २५७, २५६. अ० ६०६ मिच्छादंसणलद्धि ( मिथ्यादर्शनलब्धि) अ० २८५ मिच्छादंसणसल्ल ( मिथ्यादर्शनशल्य) आ० ४८. उ० २६।६. दसा० ६।३. ५० ७६ मिच्छादिट्टि ( मिथ्यादृष्टि) उ०२८।२७ मिच्छोवयार ( मिथ्योपचार) मा० ३।१ मिण (मा, मी ) -- मिणइ अ० ७१५. - मिणे उ० ७।२३ मित्त (मित्र) द० ८३७. उ० १० ३०; ११३८, १२; १३।२३; १५ १४; १६ २५, ८७; २०१११, ३७. अ० ३०२, ३४२. ५० ६६ मित्त ( मात्र ) उ० १६ / ७४; ३६।७. नं० १८८. प० २५२,२८१ मित्तव ( मित्रवत् ) उ० ३११८ मित्तिभाव ( मित्रीभाव ) उ० २६।१८ मिय ( मित) द० ५२४; ७ ५५ ८ । १६, ४८. उ० १।३२; १६८; २४ । १० ; ३२।४. अनं० ६. अ० १३, ३४,५७,८१, १०६, ३०७ ६, ५५५, ५६३, ६२३, ६३५,६४७, ६७३, ७०० प० ३६ से ३८,५८,७३,७४ मिय (मृग ) द० | २०. उ० ११५; ८ ७; ११ २०; १३६,२२; १८१३, ५, ६, १६६३, ७६, ८३; २०१११,३७. अ० ७०८।५. दसा० ६।३ मियचारिया ( मृगचारिका) उ० १६८५ मिलोमिय ( मृगलोमिक) अ० ४४ मिया ( मृगा ) उ०१६ | १,६७ मिल ( मिल ) - मिलति दसा० १०६. प० ४४ मिलंत ( मिलत् ) प० २५ मिलक्खु ( म्लेच्छ) नि० १६।२७ मिलित्ता (मिलित्वा) दसा० १०।६. प० ४४ मिलेक्खु ( म्लेच्छ) उ० १०।१६ मिश्रम् ( ) उ० २७० मिसिमित (दे० ) दसा० १०।११. प० १०, ४२ मिहिला (मिथिला) उ० ९ ४,५,७,६,१४. प० ८३. नि० ६ २० २३६ मिहूण (मिथुन) प० ३० मिहोकहा ( मिथः कथा ) द० ८।४१. उ० २६२६ मीस (मिश्र) अ० ३१८।३ मीसजाय ( मिश्रजात) द० ५।५५ मीसय ( मिश्रक) नं० ५४।५, १२७५. अनं० ११, १४, १५, १८, १९, २२. अ० ६२, ६५, ८६, १२, ३२६,३३२,६५३,६५६, ६५७, ६६०, ६६१, ६६४,६७६, ६८२, ६८३, ६८६, ६८७, ६६०. प० ७५ मुइंग ( मृदङ्ग) दसा० १०।१७, १८, २४. १० ६, ५४,६४, ७५. नि० १७।१३६ मुइय ( मुदित) उ०१८ | ४४; १६।३ / मंच (मुच् ) – मंच द० ७।४५. - मुंबई उ० २०१४७. मुच्चइ उ० २६/२६. - मुच्चई उ० ५।२२. – मुच्चए उ० ८२. - मुच्चंति उ० २६ । १. दसा० १०।२४. प० २८७. - मुच्चेज्ज उ०८१८. - मुच्चेज्जा उ० २०१३२. दसा० १०|३२ मुंजकार ( मुञ्जकार) आ० ३६० मुंजपास ( मुजपाशक ) नि० १२ १,२; १७ १,२ मुंजमालिया ( मुञ्जमालिका) नि० ७।१ से ३; १७/३ से ५ मुंजापिच्चिय (दे० ) क० २२६ Page #1234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० मुंड-मुद्दिया मुंड (मुण्ड) द० ४।१८,१६; ६१६४. दसा० ८।१ १०१३१. १० १,५,५७,७५,१०८,११३,१२६, १२६,१६०,१६५ मुंड (मुण्डय) - मुंडे हे दसा० ६।३ मुंडरुइ (मुण्डरुचि) उ० २०१४ मुडावेत्तए (मुण्डा वितुम) क० ४१५ मुडि (मुण्डिन ) दमा० १०।१४ मुंडिण (मुधिरत्व) उ० ५।२१ मुश्यि (मुण्डित) उ० २५।२६ मुक्क (मुक्त) द० ६।१५. उ० २३१४०,४१,४६; ३२।११०. अ० २१. ५० २०,२४,६२ मुक्कतोय (मुक्ततोय) प० ७८ मुक्के लय (मुक्त) अ० ४५७ से ४६४,४६७,४६८, ४७१,४७२.४७६,४७७४८२,४८३,४८७, ४६० से ४. २,४६५,४६६,५०३ मुक्ख (मोक्ष) नं० १२० मुखच्छिन्न (मुखछिन्न) दसा०६।३ गुगुंद (मुकुन्द) अ० २० मुगुंदमह (मुकुन्द मह) नि० ८.१४ मुग्ग (मुदग) अ० ४३६. दसा०६।३. क० २।१ मुग्गर (मुदगर) उ० १६०६१ मुच्छ (मूर्छ )-मुच्छिज्ज प० २८५. ~ मुच्छेज्ज क० ३।२२ मुच्छणा (मूर्च्छना) ३० ३०४ से ३०७।१४ मुच्छा (मूर्छा) द०६।२०. अ० ३०६ मुच्छित (मूछित) दसा० ६।४ मुच्छिय (मूच्छित) दचू० १।१. उ० १०।२०; १३।२६; १४१४३; १५।२; १८।३. दसा० १०।२६ -मुज्झ (मुह)-मुज्झसी उ० १८।१३ मुट्ठि (मुष्टि) उ० १६।६७; २०१४२; २२।२४. दसा० ६।३ मुट्ठिय (मौष्टिक) अ० ८८,३०२।६. नि० ६।२२ मुट्ठिय (मुष्टिक) अ० ४१६. ५० ६२ मुणालिया (मृणालिका) द० २११८ मुणि (मुनि) द० ५२,११,१३,२४,८८,६३,१०६, १३४; ६।१५; ७४०,४१,५५; ८७,८,४४, ४६; 81५४,५५; १०।१३,२०; चू० २६. उ० ११३६; २।६,१५,३८,४१८५१३२; ७।३०,६।१६,२२; १२।१,१५,३१, १४१८.६%3 १५॥३; १७४२०,२१; १८।४४,४७; १६८३; २३।३८,४०,४१,६१,६५.८०,८४; २४।१३, २७, २५।२६,३०, २६।२०,३५; २७।१; ३०१३७; ३२।१६,२६,३६,५२,६५,७८,६१; ३५॥२.१६; ३६।२४६.२५०,२५५. अ० ३१८. दसा० १०१२१ मुणिवर (मुनिवर) उ० ८।३; 81६०. नंगा० १४, १६; सू० १२० मुणिसुव्वय (मुनिसुव्रत) आ० २।४; ५।४।४. नंगा० १६. अ० २२७. प० १४१ मुणेयब्व (ज्ञातव्य) उ० ३०।२०,२३. अ०३०६।४, ३१८.३६०,७१५१३. प० २०१ मुत्त (मुक्त) आ० ६.११. द० १३. उ० १४१३४. अ० २८२. प०१० मुत्त (मूत्र) द० ५।१६. दसा० १०१२८ से ३२ मुत्ता (मुक्ता) उ० ६।४६. प० २४,३२,८४,१०६ मुत्तापाय (मुक्तापात्र) नि० १११ से ३ मुत्ताबंधण (मुक्ताबन्धन) नि० ११।४ से ६ मुत्तावली (मुक्तावलि) नि० ७७ से ६; १७।६ से मुत्ति (मुक्ति) उ० ६।५७; २०१६; २२।२६; २६।१.४८. दसा० १०१३३.५० ८१ मुत्ति (मौक्तिक) नं० ३८६ मुत्तिमग्ग (मुक्तिमार्ग) आ० ४।६. दसा० १०।२४ से ३३. क० ६।१६ मुत्तोली (दे०) अ० ३७५ मुदिय (मुदित) नि० ८।१४ से १८; ६६ से २६ मुद्दिय (मुद्रित) क० २।२,३,६,१० मुद्दिया (मृद्वीका) उ० ३४३१५ मुद्दिया (मुद्रिका) नं० ३८।४. द० १०।११. प० ४२ Page #1235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्ध-मूलिया मुद्ध (मूर्धन् ) उ० २७६ मुद्ध ( मुग्ध) उ० ३२|३७ मुद्धाण ( मूर्धन् ) प० १०, ४४ मुद्धाभित्ति (मूर्धाभिषिक्त) नि० ८।१४ से १८ १६ से २६ मुम्मुर ( मुर्मुर) द० ४ सं० २०. उ० ३६ । १०६ √ मुय (मुच्) - मुयति नि० १२/२ मुयंग ( मृदङ्गः ) अ० ३०१ मुयंत ( मुञ्चत् ) नि० १२२; १७।२ मुरय (मुरज ) दसा १०।१७ मुरव (मुरज) अ० ३७५. ५० ६४,७५. नि० १७।१३६ मुसंढी (दे० ) उ० १९६१ मुसुंढी (०) उ० ३६ ६६ मुसल ( मुसल) उ० १६।६१. अ० ३६८, ३८०, ३६१,४०० प० ६२,६३ मुसा (मृषा) द० ४ सू० १२; ६।११; ७/२, ५. उ० १ २४; २।४५; १८ २६; २०११५; २५२३. नि० २।१६ मुसावाइ (मृषावादिन्) उ० ५।६; ७१५. व० ३।२३ से २६ मुसावा (मृषावाद) आ० ४।८. द० ४ सू० १२; ६।१२. उ० १६ २६; ३०१२. दसा० २।३. क० ६१२ मुह (मुख) द० ४ सू० २१. उ० २३५ ५।१५; १२।२६; १३।२१; २०४८ २५ ११, १४, १६; २७ । १३. नं० गा० ६. अ० ३१७,३१८,३६१. दसा० ७।२३. प० २२, २३, २६,२७,१६२. क० ५/६ से ६. नि० २ २१ ४ २६; ८ ।११; १०/२५ से २८; १७।१३२ मुहरी ( मुखर ) उ० १/४ मुहवण्ण ( मुखवर्ण) नि० ११।७१ मुहवीणिया ( मुखवीणिका) नि० ५०३६,४८ मुहाजीवि ( मुधाजीविन् ) द० ५६६, १००८ २४. उ० २५।२७ मुहादाइ ( मुधादायिन् ) द० ५/१०० मुहालद्ध (सुधालब्ध) द० ५६६ मुहं (मुस्) उ० ४|११ मुहत ( मुहूर्त) उ० ४६; ३३।२३, ३४:३४ से ३६,४६,५४, ५५. नं० ५४।३ अ० २१६, ४१५,४१७. ० २७,७४,८१,८४, २७७ मुहुतंत ( मुहूर्त्तान्त ) नं० १८ |४ मुहुत्तदुक्ख ( मुहूर्त्तदुःख) ५० ६/४७ मुहुर् ( ) अ० ३६८ मूढ ( मूढ ) उ० १ २६; ६ १ ८ ५; १२/३१; १४१४३. क० ४।८. नि० १३।२८ २४१ मूय (मूक) नं० १२७४ मूल (मूल) द० ३।७; ५१७०; ६।१६; ८।१०,३६; ६।१८,१६. उ० ७ १४ से १६; १५।८; २०१२२; २६/५; ३२।७, ६, १३. अ० ३४१, ७१५. दसा० २।३; ६।६. नि० ५।७७; १४।३४; १८।६६ मूलओ ( मूलतस् ) उ० २०१३६ मुलग (मूलक) द० ५।१२३. उ० ३२।१; ३६।६६ मूलपयडि ( मूलप्रकृति) उ० ३३।१६ मूलबीय ( मूलबीज ) द० ४ सू० ८ मुहपोत्तिया ( मुखपोतिका) उ० २६।२३. नि०४।२३ मूलभोयण ( मूलभोजन ) दसा० २।३ मुहघोयण ( मुखघावन) अ०१६ मुहमंडग ( मुखभाण्डक ) अनं० १४ मुहमंगलिय ( मुखमाङ्गलिक) दसा० १०।१८. मूलय (मूलक) द० ३।७ मूलयवच्च (मूलकवर्चस् ) नि० ३।७७ मूलिय ( मूलिक) उ० ७ १७ मूलिया ( मूलिका) उ० ७ १६, २१ प० ७४ मूलगत्तिया (मूलकतिका) द० ५।१२३ मूलपढमाणुओग ( मूलप्रथमानुयोग ) नं० ११६, १२० Page #1236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ मूसग ( मूषक) उ० ३२/१३ मूमा ( भूषा) प० ५३ इणी ( मेदिनी) अ० ५३१, ५३५ मेंढपies (मेपोषक) नि० ६ २३ मेखला ( ) अ० ३६८ मेज्ज ( मेय) अ० ५५५ मेत ( मात्र ) द० ६।१३. उ० ६ । ६; ७ २४; १४ । १३. नं० २२. अ० ४१६, ४२४,४३१, ४३८, ४६३,४७७, ५०३, ५८६, ५६०, ५६५, ५६, ५६८,५६६. दसा० १०।२४ से ३२. प० ६।३६, ४७,२५०. व० ८।१७ मेत्तिज्जमाण (मित्रीयमाण) उ० ११ ७, ११ मेत्ती (मंत्री) आ० ४ ६. उ० ६ २ मेद ( मेदस्) दसा० ६।५ मेधावि ( मेधाविन्) प० ४२ मेयज्ज ( मेतायं ) नं० गा० २१. १० १८३ मेयण्ण (मेयज्ञ) उ० १८।२३ मेरग ( मैरेयक ) द० ५।१३६. उ० ३४।१४ मेरय (मेरक) उ० १६७० मेरा (दे० मर्यादा) अ० ३१४. क० ४।१३. नि० ११।७, ८; १२।३२ मेरु (मेरु) उ० २१।१६ off (मेगिरि) १० २७,२३ मेस (मेष) नं० गा० ४४ मेह (मेघ) द० ७१५२. नं० ७१. अ० ५३३ मेहराणि (मेघगणिन् ) प० १६६ मेहला (मेखला ) दसा० १०।१२. प० २४ मेहलाग ( मेखलाक ) नं० गा० १२ मेहलादाम ( मेखलादाम) अ० ३११।२ मेहलिज्जिया ( मेखलिया) प० १६६ मेहा (मेधा ) नं० ४३ महावि ( मेधाविन्) द० ५२८३,१४२,१४६; ८। १४; ६।१७, ५४. उ० ११४५; २१६, १७, ३६; ५/३०; २०१५१; २३।२४,३०. अ० ४१६. मूसग-मोह दसा० १० ११ मेहिय (मेधिक प० २०० मेहुण (मैथुन) आ० ४।८. द० ४ सू० १४; ६ । १६, ६४. उ० २।४२; २५/२५; ३०।२. दसा० २।३. क० ४।१,१०, ११; ५।१ से ४, १४. व० ६।६. नि० ६।१ से ७६; ७११ से २ मेहुणधम्म (मैथुनधर्म) व० ३।१३ से १७ मेहुणा (मैथुनसंज्ञा ) आ०४८ मेणसाला (मैथुनशाला) नि०८।१६ मो ( ) उ० ६।१४ मक्ख (मोक्ष) ० ४।१५,१६; ५ ६२, ६५, ७,६, १०,१६,२६; चू० १ सू० १. उ० ४।३, ८; ६ ६; १३ १०; १४ ६, १३; १८/३९; २३।३३; २८ ११,१४,३०, २६६, ३२, ३२१२, १७, १०६. अ० ७१४. ५० ७४ मोक्खमग्ग (मोक्षमार्ग ) क० ६ १९ मोक्खमग्गगइ (मोक्षमार्गगति) उ०२८ मोग्गर ( मुद्गर) प० २५ मोडित (मोटित ) दसा० ६ ३ मोण (मौन) आ० ५।३. उ० १४।७, ३२, ४१; १५।१; १८१६ : २०४६ मोत्तिय ( मौक्तिक ) अनं० १३,१७. अ० ३८५, ६५५,६५९,६८१,६८५. दसा० ६।३. प० ५२,७४ मोय (दे० ) क० ५/३६. व० ६।४०, ४१ मोयग ( मोचक) आ० ६ । ११. ० १० मोयपडिमा (मोय' प्रतिमा) व० ६ ३६, ४० मोर (मोर) नं० गा० १५. अ० ५२२,५२५ मोरपिच्छ ( मोरपिच्छ) प०२८ मोरियपुत्त (मौर्यपुत्र) नं० गा० २१.१० १८३ मोसली (दे० ) उ०२६।२६ मोसा (मृषा) द० ६।१२. उ० १२ १४, ४१; २४।२०, २२, ३२।३१,४४,५७,७०,८३,६६ मोह (मोह) दचू० ११८. उ० ४।५, ११; ८ ३; १४ । १०, २०, ५२; १५/६; १६/७ ; २०/६० ; १. पादपूरक अव्यय । Page #1237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोह-रणवास २४३३ २११११,१६; २८।२०; ३२।२,६ से ६,१०१, १०५,३३१२,३६।२५६. दसा० ६२।३६. प०५८ मोह (मोघ) उ० १३१३३ मोहंत (मुह्यत्) नि० १२.२६; १७।१५१ मोहट्ठाण (मोहस्थान) उ० ३°१६ मोहणिज्ज (मोहनीय) उ० ६।१; २६७,७२; ३३१८,६,२१. अ० २७८,२८२,२८४,६१७. दसा० ५।७।१० मोहणिज्जट्ठाण (मोहनीयस्थान) दसा० ६।२ मोहणिज्जत (मोहनीयत्व) दसा० ६।२ मोहणीयट्ठाण (मोहनीयस्थान) आ० ४।८ मोहरिय (मौखर्य) उ० २४१६. क० ६.१६ य (च) द० २२. उ० १।६. नं० ३८. अ० २. दसा० १३.५० २. क. ११५. व० ११६ य (यत्) नं० गा० १६ या (च) क० ३।२६ याण (जा)-याणई द० ४।१२.-याणाइ द० ४।१२ रक्ख (रक्ष)-रक्खेज्ज उ० ४।१२ रक्खंत (रक्षत्) दसा०१०।१४ रक्खण (रक्षण) उ० ३२।२८,४१,५४,६७,८०,६३ रक्खमाण (रक्षत् ) उ० २२।४० रक्खस (राक्षस) उ०१६।१६; २३।२०, ३६.२०७. अ० २५४ रक्खसी (राक्षसी) उ० ८।१७ रक्खा (रक्षा) उ० १६११ रविखय (रक्षित) उ० २।१५; १५२. ५० १६६ रक्खियध्व (रक्षितव्य) दचू० २।१६ रचिय (रचित) अ० ३८१ रच्छा (रथ्या) उ० ३०।१८ रच्छामुह (रथ्यामुख) क० १११२,१३ रजत (रजत) अ० ३८५ रज्ज (राज्य) दचू० ११४. उ० ७।११।६।२; १४।४६; १८।१२,१६,३७,४४,४६,४७,४६. ___ अ० ३१०. ५० ५२,७४,१६५. नि० ११६७२ रज्ज (रञ्ज)- रज्जति नि० १२।३० रज्जत (रज्यत्) उ० १६६ रज्जपरियट्ट (राज्यपरिवर्त) व०७।२८ रज्जपालिया (राज्यपालिका) प० २०० रज्जमाण (राज्यमान) उ० २६१४. नि० १२।३०; १७।१५२ रज्जलाभ (राज्यलाभ) प० ३८,४७ रज्जवइ (राज्यपति) प० ३८,४७ रज्जवास (राज्यवास) प० १६५,१८० रज्जु (रज्जु) अ० ३८०. नि० १८।१३ रज्जुगसभा ('रज्जुग सभा) प० ८३,८४,१०६ रज्जुपासय (रज्जुपाशक) नि० १२।१,२; १७।१,२ रज्जुय (रज्जुक) नि० १३१४, २०१३ रट्ट (राष्ट्र) उ० १८।२०,२१३१४. ___ दसा० ६।२।१६. ५० ५२,७४ रण (रण) उ० १४॥३० रण्ण (अरण्य) द० ४ सू० १३,१५. उ० १४१४२ रण्णवास (अरण्यवास) उ० २५।२६ रह (रति) उ०५।५; १४१७,२१,१६१६; १९।१३, २०२१ ३२११०२ रइय (रचित) उ० २२।१२. दसा० १०१११,१२, १४,१५. प० २४,४२ रइवक्का (रतिवाक्या) दचू० १ रएंत (रजत्) नि० ३।२१,२७,३३,४६,५५,६४; ४१५६,६५,७१,८७,६३,१०२; ६।३०,३६,४२, ५८,६४,७३,७११६,२५,३१,४७,५३,६२, १२१६,२२,२८,४४,५०,५६% १११०४,११०, ११६,१३२,१३८,१४७ रंग (रङ्ग) प०७४ रंगत (रङ्गत्) ५० ३१ रंगमझ (रङ्गमध्य) अ० ३०७।४. ५० ७४ रक्स (रक्स) प० २२२ Page #1238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ रण्णारक्खिय-रयत्ताण रण्णारक्खिय (अरण्यारक्षित) नि० ४।४२,४७, रय (रजस्) आ० २।५; ४१६; ५।४।५. द० ४१२०, ५२ २१; ५१७२; ६।५५. उ० २।३६; ३।११; रति (रति) अ० ३११. दसा० ६।५ ७।८; १०३; १२।४५; २१११८. नं० गा० ३, रत्त (रक्त) उ० १७.१२; ३२।२६,३६,५२,६५, ७; सू० १२०. दसा० ७।१६; १०।११,१२. ७८,६१; ३६२५७ से २५६. अ० ३०७१६, प० २३ से २५,३०,४२. क० ५।११; ६॥४,६ ३५३,५३३. दसा० ७।२०।१०।३०. प० २७, रय (रत) द० ११३,५; ४।२७; ५।१२६; ६।१, २८,४२,५२,६२. क० ११४३. नि०६।२१ १७,६७; ७।४६; ८.४१,६२, ६।४५,५४; रत्त (रात्र) उ० २६।१४. अ० ४२२.४२४,४२६, ६।४।३ से ५; १०१६,१२,१४,१६%) ४३१,४३६,४३८ चू० १११०,११. उ० ६।४२; १११५; १३।१७; रत्तंसुय (रक्तांशुक) प० २० १६ सू० ८; गा० २ से ६,१५, २६।३२; रत्तपड (रक्तपट) अ० ३५३ ३२।१५ रत्तरयण (रक्तरत्न) अनं० १३,१७. अ० ६५५, रिय (रञ्ज)-रएज्ज नि० ३।२१ ६५६,६८१,६८५. प०७४ रयण (रत्न) उ० १११२२,३०; १९।४; २०१२; रत्तासोग (रक्ताशोक) अ० १६,२०. प० २७ २२।२२. नं० गा० ४,७,१२,१४,१७. रत्तासोय (रक्ताशोक) प० ४२ __ अ० १८५॥३. दसा० १०१११,१२,१४,२५,२६. रत्ति (रात्रि) उ० २६।१७,१६. दसा०६।५,१२. प० १०,१५,२०,२४,२६,३३,३७,३६,४२,५०, प० २७. नि० ११७६ से ७८%१२।३४ से ५२,६१,७४,२२२ ३६,३८ से ४० रयणप्पभा (रत्नप्रभा) नं० २५. अ० १८१,१८२, रत्तुप्पल (रक्तोत्पल) प० २३ २५४,२८७,४०३ रत्था (रथ्या) प० ६२ रयणप्पभाय (रत्नप्रभाज) अ० २५४ रत्थाग (रथ्याक) नं० गा० ४ रयणा (रचना) उ० ३५॥१८ रथो ( ) अ० २६७ रयणागर (रत्नाकर) उ० १९४२ रथोत्र ( ) अ० २६७ रयणाभा (रत्नाभा) उ० ३६।१५६ रम (रम)-रमई उ० ११५.- रमए उ०११३७. रयणावलि (रत्नावलि) नि० ७१७ से १७१९ से -रमंतो दचू० श६.-रमाम उ० १६१४. १२ -रमे द० ८।४१. उ० १४।४१.-रमेज्ज रयणि (रत्नि) नं० २०. अ० ३८८,३६१,४००, दचू० १।११.-रमेज्जा द० ६।१०. उ० २४६ ४०३,४०६ रमंत (रममाण) नि० १२१२६; १७४१५१ रयणी (रजनी) उ० १४॥२३ से २५. अ० १९, रमण (रमण) अ० ३११ २०,३०४,३०५. दसा० ७।२०.५० ४,१६, रमणिज्ज (रमणीय) दसा० १०।११,१२. प० २३ २०,३५,४२,६०,६१,८४ से ८६,६२,१६२, से २५,३०,४२ २३०,२५६,२८१,२८६. क० ३१३३. व० ६३५. रम्म (रम्य) उ० १३।१३; १४।१; १९।१; २११७ नि० ५।१५ से १८; १११८१ रम्मगवस्स (रम्यकवर्ष) अ० ५५६ रयणीकर (रजनीकर) प०३१ रम्मगवास (रम्यकवर्ष) अ० ३६६ रय णुच्चय (रत्नोच्चय) प० ४,२० रम्मग वासय (रम्यकवर्षज) अ० ३३३ रयत्ताण (रजस्त्राण) प० २० Page #1239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयय-राइभोयण २४५ रयय (रजत) उ० ३४।६. अ० ६५५,६५६,६८१, रसपरिच्चाय (रसपरित्याग) उ० ३०१८ ६८५. प० १५,२१,२३,२५,२६,२८,२६ रसय (रसज) द० ४ सू०६ रयह रण (रजोहरण) आ० ४।६. द० ४ सू० २३, रसविगइ (रसविकृति) प० २३६ ५।६८ से ७८. क० २।२६; ३।१४,१५. रसिय (रसित) दसा० ३।३ नि०४।२३ रस्सि (रश्मि) दचू० १ सू० १. उ०२३१५६. रियाव (रञ्जय) रयावेइ प० ४२.-रयाति प० २७ प० ४१.-रयावेज्ज नि० १११८.-रयावेह रह (रथ) द० ६।३६. नं० गा० ६. अ० २५३, प० ४० ३३२,३६२,५२२,५५२. दसा०६।३; १०८, रयावेत (रञ्जयत) नि० १५५१८,२४,३०,४६, १४ से १६,२४ ५२,६१, १७४२०,२६,३२,४८,५४,६३,७४, रह (रहस्) उ० १११८,१२ ८०,८६,१०२,१०८,११७ रहजोग्ग (रथयोग्य) द० ७१५४ रयावेत्ता (रचयित्वा) प० ४० रहने मि (रथनेमि) उ० २२।३४,३७.३६ रयित (रचित) दसा० १०।१२ रहनेमिज्ज ( रथनेमीय) उ० २२ रयुग्घाय (रज उद्घात) अ० २८७ रहरेणु (रथरेणु) अ. ३६५,३६६ रव (रव) दसा० १०।१७,१८,२४. प० ६,६४,७५ रहस्स (रहस्य) द० ५।१६. उ०११७ रिव (रु)-रवइ अ० ३०० रहस्स (ह्रस्व) द० ७.२५. उ० २६।७३ रवंत (रवत्) नं० गा० १५ रसस्सिय (राहस्यिक) दसा० १०।२६ रवि (रवि) अ० ७०८।१. प० ३० रहाणीय (रथानीक) उ० १८.२ रस (रस) आ० ४।८. द० ११२; ५।१३६,१४२; रहिय (रहित) उ० १६।१; २४।१८ ६।१८; १०।१७. उ० २।३६; ११,१४; रहिय (रथिक) नं० ३८. अ० ३३२ १४।३१,३२; १६ सू० १२; गा० १०; १८।३, रहोकम्म (रहःकर्मन) दसा० १०।३३. प० ८२ ७; २०१३६,५०; २७।६।२८।१२, २६।४६, राइ (रात्रि) द० ४ सू० १६. उ० १०११; ६६।३०।२६,३२।१०,२०,६१ से ७३; १३।३१; १४।२४,२५,२०।३३; २६।१७. ३४१२,१० से १५,२३; ३५।१७; ३६।८३, व०६।४०,४१ ११,१०५,११६,१२५,१३५,१४४,१५४,१६६, राइ (राजन) उ० २०१५. नि०६।२१ १७८,१८७,१९४,२०३,२४७,२६४. नं० ५३, राइंदिय (रात्रिंदिव) प०६,१७,३८,४७,५६,१११, ५४१४. अ० २५७,२६०,२७६,३१० से ३१८, ११४,११५,१२४,१२८,१३०,१३८,१६३. ३७३,३७६,३७७,५०८,५११,५२४. क० ५।५. व० ६।३५ से ३८ दसा०६।३ राइणिय (रानिक) द०८।४०६।४३. रसओ (रसतस) उ० ३६।१५,१८,२२ से ४६ दसा० ३।३. प० २८३. व० ४११८,२४,२५ रसंत (रसत्) उ० १६०५१ राइण्ण (राजन्य) अ० ३४३. प० १६५ रसणिदिय (रसनेन्द्रिय) नं० ५६ राइण्णकुल (राजन्यकुल) प० ११,१४ रसण्णु (रसज्ञ) उ० १६।२८ राइभत्त (रात्रिभक्त) द० ३।२ रसदया (रसदा) द०७।२५ राइभोयण (रात्रिभोजन) द० ६।२५. रसनिज्जूढ (नियंढरस) द० ८।२२ नि० १६७४ Page #1240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ राइय-रायवेट्रि राइय (रात्रिक) उ० २६।४७,४८. प०८० राईभोयण (रात्रिभोजन) द० ४ सू० १६,१७. उ० १६।३०, ३०१२. क० ४११; ५२६ से १० राईमई (राजीमती) उ० २२:६,२६,३६ राईसर (र जेश्वर) प० ४२ राओ (रात्रौ) द० ४ सू० १८ से २३; ६२३,२४. उ०१४।१४; २६।३१. क०१४२ से ४६; ४।२५; ५।१०,१३,१४. व० ५।२१. नि० ३१८०८।१०।१०।२६ राओवरय (राज्युपरत) उ० १५२ राग (राग) आ० ४१८. द० २१४,५; ८।५७; ६।५१. उ० १०॥३७; १४१२८,४२,४३; १६।२; २१.१६:२३४३, २५।२१, २८।२०; २६।६३ से ६७,३०११,४; ३११३; ३२।२,७, ६.१२,२२ से २४,३५ से ३७,४८ से ५०; ६१ से ६३,७४ से ७६,८७ से ८६ ३५५. अ० १६,२०,६१७. दमा० ६३,७; ७।२०; १०।३३. प० २७,४२,६२,७४ रागि (रागिन) उ० ३२॥१००,१०५ राढामणि (राढामणि) उ० २००४२ रात (रात्र) दसा० ३।३ राति (रात्रि) नि० ८।१२ से १४ रातिणिय (रानिक) दसा० ३।३; १०।२४ रातिणियपरिभासि (रारिनकपरिभाषिन) दसा० १२३ रातीभोयण (रात्रिभोजन) दसा० २।३ रातोवरात (राज्यपरात्र) दसा०६।१३ से १८ राम (राम) उ० २२।२,२७ रामायण (रामायण) नं० ६७. अ० २५,४६,५४८ राय (राजन्) द० ५।१६, ६।२; चू० १।४. उ०७।११६।२,३,१२।२० से २२; १३१८, ११,१७,२०,२१,२६,३२ से ३४; १४१३,३७, ३८,४०,५३,१८११,६,७,९,१३,१५,१६, ३७,४३,४५ ४७ से ४६; १६।१, २०१२,१०, ५४,२२।१,३,७,४०.नं. ३८.११,८६ से । ८६,६१. अनं० १२ से १४. अ० १९,२६४, ३६२,३६५,३६६,४०८. दसा० ५।६।६।१ १०१२ से ४,६ से ११,१३ से २०,२२. प० ३७ से ४०,४२ से ४५,४७,४८.५०,५१, ५४,६१६३ से ६६,८३,८४,१०६,१०६,१२७, १६५,२२३ से ३०. नि० ४।१,७,१३; ८।१४ से १८६६ से २६ राय (रात्र) दसा० ७।८. क० २।४ से ७. व०१०२० से २२; ४।११,१२,१५ से १७, २० से २३,५।१११२, ६।२,३. नि० २।५०; ६७; १०।१३,१४ रायलेहा (राजलेखा) प० २६ रायंतेपुर (राजान्तःपुर) नि०६।३ से ५ रायंतेपुरिया (राजान्त पुरिका) नि० ६।४,५ रायकण्णा (राजकन्या) उ० २२१२८ रायकहा (राजकथा) आ० ४।८ रायकुल (राजकुल) अ० १६ रायगिह (राजगह) दसा० १०१ से ४,६,७,१७ से १६,३५. प० ८३,१८४,२८८. नि. ६२० रायदुवारिय (राजद्वारिका) नि० १५२६८ रायपरियट्ट (राजपरिवर्त) व० ७।२७ रायपसेणिय (राजप्राश्निक) नं० ७७ रायपसेणीयसुय (राजप्राश्निकश्रुत) जोनं० ८ रायपिंड (राजपिण्ड) द० ३।३. दसा० २।३. नि० ६१,२ रायपुत्त (राजपुत्र) उ० १५१६; २२।३६ रायपेसिय (राजप्रेष्य) नि० ६।२१ रायभवण (राजभवन) ५० ५४,६१ रायमच्च (राजामात्य) द० ६।२ रायमाण (राजमान) प० २८ रायरिसि (राषि ) उ०६।५,६,८,११,१३,१७, १६,२३,२५,२७,२६,३१,३३,३७,३६,४१,४३, ४५,४७,५०,५२,५६,६२; १८.५० राजवरसिरि (राज्यवरश्री) नं० १२० रायवसभ (राजवृषम) उ० १८॥३६,४७ रायवेट्ठि (राजवेष्टि) उ० २७।१३ Page #1241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायसीह-रूव २४७ रायसीह (राजसिंह) उ० २००५८ राजहंस (राजहंस) ५० ५,६,३६,३६.५० रायहाणी (राजधानी) उ० २०१८; ३०।१६. दसा० ७।२८,३१,३३, प० १६५. क० ११६ से ११; ३।३३. व० १।३३; ४.६,१०. नि० ५। ३४; 8२० रायारक्खिय (राजारक्षित) नि० ४१२,६,१४ राव (दे०) -रावेहिइ, नं० ५३ रासि (राशि) द० ५१७. अ०७३,१४०,४६० ५८६,५६०,५६५,५६६,५९८,५९६. प० ३१, रुंद (दे० विस्तीर्ण) नं० गा० ११ रिंभ (रुध) -रंभई, उ० ३१॥३ रुक्ख (रुक्ष) द० ५।११६ ; ७.२६,३०,३१; ८.२, १०. उ० १२१८; १४।२६; ३६।१४. नं०३८। ३. अ० ३०७.१२. दसा० ५७।१४; ६।५,६. नि० १२।१० रुक्खम ह (सक्षमह) नि० ८।१४ रुक्खमूल (रुक्षमूल) उ० २।२०; १६७८; २०१४; ३५॥६. प० २५३,२५५ से २५८. व.० २.११, १२. नि० २१ से ११ रुक्खमूलगिह (रुक्षमूलगृह) दसा० ७१० से १२ रुक्खसमाणवण्णय (रुक्षसमानवर्णक) प० २६७ रुट्ठ (रुष्ट) उ० २५६ रुद्द (रौद्र) आ० ४।८. उ० ३०।३५; ३४।३१ . रुद्द (रुद्र) अ० २०,३४२. दसा०६।३ रुद्दमह (रुद्रमह) नि० ८।१४ रुद्ध (रुख) उ० १६०६३ रुप्प (रुप्य) द० ८।६२. उ० ६।४८, ३६१७३ रुप्पपाय (रूप्यपात्र) नि० ११.१ से ३ रुप्पबंधण (रूप्यबंधन) नि० १११४ से ६ रुप्पलोह (रूप्यलोह) नि. ७।४ से ६; १७६ रासिकड (राशीकृत) क० २।२,३,६,१० रासिबद्ध (राशिबद्ध) नं०६४ से १०० राहु (राहु) नं० गा०६ रिउ (रिपु) द० ३।१३ रिउमइ (ऋजुमति) प० १२२ रिउव्वेय (ऋग्वेद) प०६ रिक्ख (ऋक्ष) प० ४२ रिट्ट (रिष्ट) ५० १०,१५ रिद्धि (ऋद्धि) नं०६१ रिद्धिमंत (ऋद्धिमत्) द०७५३ रिपु (रिपु) प० २६ रिभिय (रिभित) अ० ३०७१७ रिसभ (ऋषभ) अ० २६८ से ३०२ रिसि (ऋषि) उ०१६६६६. नं० गा० २९ ‘री (री)-रिए उ० २४४ रीइत्तए (रीयितुम्) दसा० ७।१७ वरीय (री) -रीयंति द० ११४. ----रीएज्जा उ० २४१७. दसा० ६।१८ रीयंत (गेयमाण) उ० २।१४; २३॥३,७; २५।२ रीयमाण (रीयमाण) नि० ८।११,१५ रुइ (रुचि) उ० ११४७; १८।३०; २८।२५. दसा० १०॥२६ रुइय (रुदित) उ० १६ सू० ७; गा० ५,१२ रुइर (रुचिर) उ० ३२।२६,३६,५२,६५,७८,६१ रुय (रुत) द० ४ सू०६ रुयग (रुचक) उ०३६।७५, न० १८।५. अ. १८५ रुरु (रुरु) प० ३२,४२ रुहिर (धिर) उ० १२।२५,२६; १६.७०,३६॥ ७२. अ० ३१३. दसा०६५ रूढ (रूढ) द० ४ सू० २२, ७३५. नं० गा० १२ ख्य (दे० रूत) प० २० रूव (रूप) आ० ४१८. द० ८।१६; १०।१६. उ० ३३१५, ४१११; ६।११६।६,५५; १२१६१३ १२; १६ सू० १२; गा० १०; १८।१३,२० १६।६; २०१५,६; २२१४१; २६१४३,४६,६४; ३१११६; ३२।१४,२२ से २६,२८ से ३४. नं० ५३,५४१४. अ० १५०,१५४,१७६,१८३, १८७,१६१,१६५,२२१,२२५,२२६,२३३,२३७, Page #1242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ रूवंधर-लंधिया २४१,२४५.३१३,३१६,४६०,५८४,५८७,५८६, रोमसुह (रोमसुख) दसा० १०१११. ५० ४२ ५६०,५६२,५६३,५६५,५६६,५६८,५६६,६०१, रोमालोण (रोमालवण) द० ३।८ ६०२. दसा० ६॥३,१२,१०१११, ५,२६. प० रोय (रोग) दसा० ७१३४ १५,२२,२४,२६ से ३०४२,७५. व० १०।१२. रोय (रुच)--रोएइ उ० २८।१७-रोएज्जा नि० १२।३०; १७।१५२ दसा० १०।२८.-रोयई उ० १३।१४. रूवंधर (रूपधर) उ० १७१२० ..-रोएमि आ० ४।६.-रोयए द० ५७७. रूवग (रूपक) दसा. ६।३,५ उ० १८१३३ रूवतेण (रूपस्तेन) द० ॥१४६ रोयइत्ता (रोचयित्वा) उ० २६।१ स्वप्पभ (रूपप्रभ) ५० २२ रोयंत (रोचमान) द० ५।४२. उ०२८।२० रूववई (रूपवती) उ० २११७ । रोयण (रोचन) दसा० १०।२८ रूवि (रूपिन) उ० ३६।४,१०,१३,१४,२४८. नं० रोयमाण (रोचमान) उ० ३।१० २२. अ० ४४२,४४४,५५२ रोस (रोष) उ० ३६।२६६ रूविणी (रूपिनी) उ० २११७ रोह (मह)-रोहंति दसा० ५।७।१४. रेणा (रेणा) ५० १६१।३ ---रोहति दसा० ५७।१४ रेणय (रेणुक) उ० १९८७ रोहगुत्त (रोहगुप्त) ५० १६३,१६४,१६६ रेवइनक्खत्त (रेवतीनक्षत्र) नं० गा० ३१ रोहिणिदास (रोहिणीदास) अ० ३४१ रेवई (रेवती) प० ६६ रोहिणिदिण्ण (रोहिणीदत्त) अ० ३४१ . रेवती (रेवती) अ० ३४१ रोहिणिदेव (रोहिणीदेव) अ० ३४१ रेवयय (रेवतक) उ० २२।२२,२३. १० १२६ रोहिणिधम्म (रोहिणीधर्म) अ० ३४१ रोइत्तए (रोचितुम्) दसा० १०२८ रोहिणिय (रौहिणेय) अ० ३४१ रोइय (रोचयित्वा) द० १०१५ रोहिणिरक्खिय (रोहिणीरक्षित) अ० ३४१ रोएत (रोचमान) आ० ४१६ रोहिणिसम्म (रोहिणीशमन) अ० ३४१ रोग (रोग) उ० २ सू० ३; १११३; १६ सू० ३ से रोहिणिसेण (रोहिणीषण) अ० ६४१ १२; १९।१४,१५,१६. ५० ५८. क० ५।३६ से रोहिणी (रोहिणी) उ० २२।२, ३४।१०. ३६. व० २१६ से १७ अ० ३४१. प० २६ रोगि (रोगिन) ६० ७११२ रोहिय (रोहित) उ० १४॥३५ रोज्झ (दे०) उ० १९५६ रौति ( ) अ० ३६८ रोद्द (रौद्र) अ० ३०६,३१३ रोदरस (रौद्ररस) अ० ३१३ रोम (रोमन) द०६१६४. प० २४. नि० ३१४४, लइया (लतिका) उ० २६१२३ ४५,४१८२,८३, ६१५३,५४;७।४२,४३, ११।। लउय (लकुच) दसा० १०११४ ३६,४०; १५।४१,४२,१२७,१२८; १७।४३, ४४, लउसी (लउसी, लाओसी) नि० ६।२६ ६७,६८ लंख (लङ्ग) अ० ८८. प० ६२ रोमकूव (रोमकप) उ० २०५६. ५० ५.६,१०, लंघण (लङ्कन) अ० ४१६ ३६,३८ लंधिया (लवयित्वा) उ० १॥३३ Page #1243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लंछण-लव लंडण (सान) नं० गा० ९. अ० ५२० लंखिय ( लाञ्छित ) क० २१२,३,९,१० लंतग (लान्तक) उ० ३६।२१०,२२७ तय ( लाग्तक) अ० १८१, २०७ लंतयय ( लान्तकज) अ० २५४ संबंत (लम्बमान) १० २४ लंबमाण (लम्बमान) प०३२ लंबमाणय ( लम्बमानक) उ० १० २ लंभ (लाभ) नं० १२७।२. प० ६५ लक्ख (लक्ष) दचू० २१२. उ० २७६ ३६।२२१. नं० २०८५ ५० १४३ लक्खण (लक्षण) उ० ८ १३; १ ६०; १५७; २०४५२२१,३,५,७ २८१,६,९ से १३: ३४ । २. नं० गा० ४२ सू० ३८६ अ० ३१० से ३१५, ३७५, ३७७,२७९,३८१,३८३, २८५, ३६०,७०६,७१३ से ७१५. ५०६,२१,२३, ३८,४२,४७. नि० १३२२; १७१३४ लक्खणय ( लक्षणक) अ० १६।४३ लगंडसाइ (लगण्डशायिन् ) दसा० ७।२६ लडसाइया (लगण्डशायिका) क० ५२३ लग्ग (लग्न) उ० १९०६५,८७ / लग्ग (लम्) -लग्गई उ० २५/४० - लवंति उ० २५।४१ लच्छी (लक्ष्मी) अ० २६४१५. दसा० १०।१५. प० २६ सज्जनीयर (सज्जनीयतर) अ० ३१४ लज्जा ( लज्जा) द० ५ १५०; ६ १६; ६ १३. उ० २४, ० ३१४ लज्जासम ( लज्जासम) ६० ६।२२ लज्जिय ( लज्जित) अ० ३१४।२ लम्जु ( लज्जावत्) उ० ६।१६ लट्ठ (लष्ट) दसा० १०।११. प० २२ से २४, ३६, ४२ लट्टिग्गाह (वष्टिप्राह) दसा० १०।१४ लट्ठिया (यष्टिका) व० ८५. नि० १४० २।२५ ४।२३; ५।१६ से २२,६५ लह (०) प० २४ लता (लता) अ० २५०. दसा० ६३ लत्तय ( लक्तक) अ० ३२३ लतिया (०) नि० १७११३८ लद्ध (लब्ध) द० २।३; ५।६७; चू० २।२. उ० २।३०; १६८. नि० १४।१२ से १६; १८४४ से ५१ लट्ठ (पार्थ) प० ४७ द्धि (ल) प० २२२ लद्धिअक्खर ( लब्ध्यक्षर ) नं० ५६, ५६ लघुं (लकवा) द० ५।१३१. उ० २।२३ लधुं ( लब्धुम् ) उ० ११।१४ लक्षूण ( लब्ध्वा ) द० ५।१४७. उ० ६।१४ लप्पमाण (लपत्) उ० २०:४३ (लभ (लम्) -लम्भइ उ० ११३. नं० ६२. अ० ७२. – लब्भामि उ० २।३१ - लब्मामो द० १०४ - लमही द० ५।१४८. लभक उ० १२।१० लभते दसा० ६।२।३८. -भिज्जा प० २३७. लभे उ० ४५. सक्न उ० ४१६ - भेजा दच्० २।१०. उ० १६ सू० ३. दसा० ७।३४. व० ८१ - २४६ लभित्ता ( लब्ध्वा ) द० १०1८ लभित्तु (लकवा) द० ४।२८ लम्बते ( ) अ० ३६८ लवण (लयन) द० ८५१. उ० २१ २२ २२।३३. प० २५३ लयसम ( लयसम) अ० ३०७८ लया (लता) द० ४ ०८. उ० २०१३ २३०४५ से ४८ ३६९४,९५. प० २० ललिइंदिय (ललितेन्द्रिय) द० ६।३१ ललिय (ललित) उ० १।६०२२०४१. अ० ३११. दसा० १०१३, ११. प० ४२ ललियंग्य (ललिताङ्गक) दसा० १०१२,११ (लव (लप्) लवे द० ७१४०. वेज्ज द० ७ १७. उ० १।२५ Page #1244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० लव-लीला लव (लव) अ० २१६,४१७. प० ८४ लवंत (लपत्) उ० ११२१ लवगवेसिय (लवगवेषित) नि० २।३० लवण (लपन) द० ५।९७ लवण (लवण) अ० १८५,५२४ लविय (लपित) द० ८।५७ लिस (लस्)-लसति अ० ३६८ लसण (लशुन) उ० ३६१६७ लह (लभ)-लहइ द० ८।४२. उ० ७।१४. अ० ३०२.-लहई द० ७.५५.- लहए उ०१४।२९.-लहामो उ० १४१७. -लहित्थ उ० १२।१७.-लहे उ०१०११८ लहिउं (लब्ध्वा ) उ० १७११ लहियाणं (लब्ध्वा ) उ० २०१३८ लहु (लघु) उ० १११३; २२।३१ लहुअप्पभक्खि (लघ्वल्पमक्षिन्) उ० १५॥१६ लहुत्त (लघुत्व) द० ॥११२ लहुन्भूय (लघुभूत) उ० २३।४०,४१ लहुभूय (लघुभूत) उ० १४१४४; २९४३ लहुभूयविहारि (लघुभूतविहारिन्) उ० ३।१० लहुय (लघुक) उ० ३६।१६,३७. अ० २६१,२६३, ५१२ लहुसग (लघुक) नि० २०१८ से २० लहुसय (लघुक) नि० २।२१ लहुस्सग (लघुस्वक) दचू. १ सू० १ लाइम (लवनीय) द० ७३४ लाइय (दे०) प० ६२. क० ५११ लाउपाय (अलाबुपात्र) नि० ११३६ लाउय (अलाबुक) अ० ३२३. क० ५।३०,३१।। लाउयपाय (अलाबुपात्र) नि० २।२४; ५।६४ लाधव (लाघव) अ० ७० ६. दसा० १०॥३३. प०८१ लाघविय (लाघव) उ० २६।४३ लाढ (३०) उ० २।१८; १५२,३ नि० १६।२६, २७ लाभ (लाम) आ० २।६; ५।४।६. द० ८।२२,३०; १०।१६. उ० ११२७; २।३१७१६,१४।३२; १९६०; २०१५५; २६।३४; ३२।२८,४१,५४, ६७,८०,६३, ३३।१५, ३५।१६. नि० १०॥३२ लाभंतर (लाभान्तर) उ०४७ लाभंत राय (लाभान्तराय) अ० २८२ लाभत्थिय (लामाथिक) दसा० १०११८ लाभमट्ठिय (लामाथिक) द० ५।६४ लाभय (लाभय)-लाभइस्संति उ० ११४६ लाभलद्धि (लाभलब्धि) अ० २८५ लालपयमाण (लालप्यमान) उ० १४१५ लालसा (लालसा) उ० २५४१ लावण्ण (लावण्य) उ० ३२।१४ लावय (लावक) दसा० ६।३ लावयपोसय (लावकपोषक) नि०६।२३ लासग (लासक) अ० ८८. ५० ६२. नि० ६।२२ लासी (ल्हासी) नि० ६।२६ लाह (लाम) उ० ७।१४।८।१७; १२।१७ लिंग (लिङ्ग) उ० २३।३०,३२, २६।४३. अ० ३१०,३११,३१३,३१४,३१६,३१७,५२० लिप (लिप्)-लिप्पई उ० ८।४.-लिप्पए उ० ३२।३४ लिक्खा (लिक्षा) नं० २०. अ० ३६५,३६६ लिच्छइ (लिच्छवि) १०८८ लिच्छु (लिप्सु) उ० ३२।१०४ लित्त (लिप्त) उ० ८।१५. दसा० ६.५.५० २२४. क० २।३,१० लित्तय (लिप्तक) क० १११६,१७ लिप्सा ( ) अ० ३६७ इलिह (लिख)-लिहति नि०६।१३.-लिहसि अ० ५५५. लिहामि अ० ५५५ लिहमाण (लिखत्) अ० ५५५ लिहाव (लेहय्)-लिहावेति नि० ६।१३ लिहिय (लिखित) अ० ३६,६२८,७०५ लीला (लीला) अ० ३११. प० २४ Page #1245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोलायंत-लोगायत २५१ लीलायंत (लीलायमान) प० २३ लंच (लुञ्च)-लुचई उ० २२।२४ लुप (लुप्)-लुप्पंति उ० ६३१ लुक्ख (रूक्ष) उ० ३६।२०. अ० २६१,२६३, ५१२. दसा० ३।३. ५० ५८ लुक्खय (रुक्षक) उ० ३६।४१ लुत्त (लुप्त) उ० २२।२५,३१ लुत्तसिरय (लुप्तशिरोज) दसा० ६।१८ लुद्ध (लुब्ध) द० ५।१३२. उ० ६।४८; १११२, ६; १७१११ लुपंत (लुप्यमान) उ० ६॥३ Vलुम्भ (लुम्)-लुब्भसि दसा० ६।२।१५ इल्स (लषय)-लूसए द० ५।६८.-लूसेज्जा व० ०२१ लूसिय (लूषित) द० १०.१३ लूह (रक्षा) उ० २१६,३४ लूहवित्ति (रूक्षवृत्ति) द० ५।१३४,८।२५ लूहिय (रूक्षित) दसा० १०॥११. प० ४२ लेठ्ठ (लेष्टु) उ० ३५।१३.५०८० लेण (लयन) अ० ३६२. प० २६२,२६६ लेप्पकम्म (लेप्यकर्मन) अनं० ३. म० १०,३१, ५४,७८,१०३,५६० लेप्पकार (लेप्यकार) अ० ३६० लेप्पा (लिप्या) उ० १९६५ लेल (लेष्ट) द०४ सू०१८,८।४. दसा० २।३, ६३. नि० ७१७४; १३१७,१०,१४१२६ १६।५०; १८१६१ लेलुय (लेष्टुक) नि० १३१७; १४१२६; १६।४७; १८५८ लेव (लेप) द० २४५,१०१. उ० ६३१५८।१५. व. २०२८ लेवालेव (लेपालेप) आ० ६१६,१०. दसा० ७।२३ लेस (लेश्य) दसा० ५।७।६,७ लेसज्झयण (लेश्याध्ययन) उ० ३४; ३४१ लेसा (लेश्या) आ० ४१८. उ० १२१४६; ३११८ ३४.२,१६ से २०,३३,४०,४४,४५,४७,५८ से ६१. नं० गा० १० लेसिय (लेशित) आ० ४।४ लेह (लेख) नं० ३८।६. प० १६५. नि० ६।१३ लेहवाह (लेखवाह) अ० ३०२।७ लोइय (लौकिक) अनं० १०,११,१४,२५,२६. अ० १८,१६,२४,२५,४८,४६,५४७,५४८, ६५२,६५३,६५६,६१८,६७६,६८२ लोइयकरणी (लोकिककरणी) अ. ३१४ लोउत्तरिय (लोकोत्तरिक) अनं० १०,१६,२२,२५, २८ लोकबिंदुसार (लोकबिन्दुसार) नं० १०४.११८ लोग (लोक) आ० १११; २।१,६; ४१८,५१४; ६।११. द. ४।२२,२३,२५, ६।१२,७१५७; ६।२४; चू० २।३. उ० २।१६।८।२०।६।१, ५८; १२।२८१३।१६; १४१८,१६,२१ से २३; १७।२१, १३।१,५,३२,७५; २८१७; २६७२, ३२।१६, ३४।३३, ३६७,१००, १११,१२०,१३०,१३६,१४६,१५८,१७३, १८२,१८६,१६८,२१७. नं० गा० २ सू० २०,३८।५. अ० १२४,१२५,१४१,१४२, १६८,१६६,२०६,३८८,४११,४५७,४६०, ५५६,५८६. दसा० ५१७1८६२।२७; १०१३३.५० १२,१४,८२ लोगग्ग (लोकाप) उ. २३१८१,८३,८४; २६३६ लोगनाह (लोकनाथ) आ० ६.११. उ० २२॥४. प० १०,७३ लोगपईव (लोकप्रदीप) आ०६।११. उ० २३१२, ६.५० १० लोगपज्जोयगर (लोकप्रद्योतकर) आ० ६।११. प०१० लोगपाल (लोकपाल) प०६ लोगहिय (लोकहित) आ० ६।११. प० १० लोगायत (लोकायत) अ० ४६,५४८ Page #1246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ लोगायय-लोहियक्ख १६५ लोगायय (लोकायत) नं० ६७ ७८,८६. नं० १८१५,२२,८२ से ८५. लोगुत्तम (लोकोत्तम) आ० ४।२; ६।११. प० १० अ० १२४,१६८,२०६,२८८,६१५. लोगुत्तरिय (लोकोत्तरिक) अ० १८,२१,२४,२७, दसा० ५७।२ ४८,५०,५४७,५४६,५५१,६५२,६६१,६६४, लोय (लोच) प० ७५,११३,१२६,१६५,१८१ ६७८,६८७,६६० लोयंत (लोकान्त) उ० ३६।६१ लोडने ( ) अ० ३६७ लोयंतिय (लोकान्तिक) प०७३,११२,१२६, लोढ (दे०) द० २४५ लोण (लवण) द० ३।८. प० २५०. नि० ११६२ लोयग्ग (लोकाग्र) उ० ३६।५६,६३ लोद्द (लोध्र) नि० ११५ लोयय (दे० लोचक) क० २।८ लोद्ध (लोध्र) द. ६१६३. नि० ३।१६,२५,३१, लोयालोय (लोकालोक) नं० ८२ से ८५. ५३,६२,४१५७,६३,६६,६१,१००; ६३६, दसा० ५७ २८,३४,४०,६२,७१, ७।१७,२३,२६,५१,६०, लोयण (लोचन) प० २४,३५ ११।१४,२०,२६,४८,५७; १४।१४,१५,१८, लोल (लोल) उ० ३२।२४. प. ३१ १६; १५।१६,२२,२८,५०,५६,१०२,१०८, लोलंत (लोलत्) ५० ३१ ११४,१३६,१४५; १७११८,२४,३०,५२,६१, लोलया (लोलता) उ० ७।१७ ७२,७८,८४,१०६,११५; १८।४६,४७,५०,५१ लोला (लोला) उ० २६।२७ लोभ (लोभ) आ० ३।१; ४१८. द० ५।१३१; लोलुप्पमाण (लोलुप्यमान) उ० १४।१० ६।१८८।३६ से ३६. उ० ६।५४,५६ ; लोलुय (लोलुप) उ० ३४।२३ २४१६; २६।२; ३२।२६,३०,४२,४३,५५,५६, लोव (लोप) अ० २६५,२६७ ६८,६६,८१,८२,६४,९५, ३४।२६; ३५॥३. अ० ३३७,६१७,६६६,६६४. दसा०६।३ लोह (लोम) द० ४।१२,७३५४. उ० ४।१२; ८।१७; ६।३६,२५२३; ३२१८,१०२. लोभकसाइ (लोभकषायिन्) अ० २७५ नि० ७।४ से ६१७।६ से ८ लोभपिंड (लोभपिण्ड) नि० १३१७० लोभविजय (लोभविजय) उ० २९७१ लोहकडाह (लोहकटाह) अ० ३६२ लोभवेयणिज्ज (लोभवेदनीय) उ० २६७१ लोहणिज्ज (लोभनीय) उ० ४।१२ लोभि (लोभिन्) अ० ३३७ लोहतुंड (लोहतुण्ड) उ० १९५८ लोम (लोमन) प० २२. नि० १२१५ लोहभार (लोहमार) उ० १९।३५ लोमपक्खि (लोमपक्षिन्) उ० ३६।१८८ लोहमय (लोहमय) उ० १६।३८ लोमहरिस (लोमहर्ष) उ० ५।३१ लोहरह (लोहरथ) उ० १६५६ लोमाहार (लोमाहार) उ०६।२८ लोहविजय (लोमविजय) उ० २६।१,७१ लोय (लोक) द० ११३; ६।५,६,१५, ७.४८,५७; लोहि (दे०) उ० ३६६८ चू० २।१५. उ० १।१५,४५, २।४४; ४।३,५, लोहिच्च (लोहित्य) नं० गा० ४० १०; १५,६८।१६; १०॥३५; १२।१३; लोहिय (लोहित) उ०७७; ३६।१६,२४. १३१२१,१५५१४,१५; १७।२०,२१,१८१२७, अ० २५८,२६३,५०६.५० २६३ ३८; १६।२३,४४,७३,६२,२०१४६; २३।४०, लोहियक्ख (लोहिताक्ष) उ० ३६७५. प० १५, ६०,७८, २५॥१६३२१७; ३६।२,११,६७, Page #1247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहियपाणि-वंदणग २५३ लोहियपाणि (लोहितपाणि) दसा० ६।३ लोही (लोही) अ० ३६२ व (वा) द० ५।५. उ० ११२०. अ० ३०८ व (इव) द० ११३. उ० १११२ व (च) उ० १५।१०. व० ५।१३ वइ (वाच्) आ० ३।१. उ० १८।५२. व० ८।१२ वइक्कंत (व्यतिक्रांत) आ० ३१ वइक्कम (व्यतिक्रम) आ० ३।१,४१७. अ० ३१४ वइगुत्त (वाग्गुप्त) उ० २६०५५. दसा० १०॥३२. प०७८ वइगुत्ति (वाग्गुप्ति) आ० ४।८. उ० २४१२३ वइजोग (वाग्योग) उ० २६१७३. नं० ३३।२ वइत्तए (वक्तुम् ) प० २३८. क० ६।१ वइत्तु (वदित) दसा० ३।३ वइदंड (वाग्दण्ड) आ० ४८ वइदेह (वैदेह) उ० १६१ वहमय (वाङ्मय) द० ६।४६ वइर (वज्र) उ० ३६४७३. नं० गा० १२ सू० ३८॥ १२. प० १५,६१ वइरपाय (वज्रपात्र) नि० ११११ से ३ वइरबंधण (वज्रबन्धन) नि० १११४ से ६ वइरमज्झा (वज्रमध्या) व० १०११,४,५ वइरवालुय (वज्रवालुक) उ० १९५० वइरागर (वज्राकर) नि० ५।३५ वइरी (वज्रा) प० २०२ दइविक्ख लिय (वागविस्खलित) द० ८।४६ वइसमाधारणया (वचस्समाधारण) उ० २६।१ वइसमाहारणया (वचस्समाधारण) उ० २६।५८ वइसमिय (वारसमित) प० ७८ वइसाह (वैशाख) उ० २६।१५. ५०८१ वइसेसिय (वैशेषिक) नं० ६७. अ० ४६,५४८ वइस्स (वैश्य) उ० २५॥३१ वइस्स (वेष्य) उ० ३२॥१०३ वंक (वक्र) उ० ३४१२५ वंकजड (वक्रजड) उ० २३।२६ वंचण (वञ्चन) दसा० ६।३ वंचित्र (वञ्चित) उ० २।४४ वंजण (व्य ञ्जन) उ० १२।३४. नं० ४३,४५.४७, ४६,५३. अ० २८,५१,७३,३६०,७१५॥४. ५० ६,३८,४७. नि० १३।२३ वंजणक्खर (व्यञ्जनाक्षर) नं० ५६,५८ वंजणजाय (व्यञ्जनजात) व. १०।२४ वंजणल द्धि (व्यञ्जनलब्धि) उ० २६।२२ वंजणाभिलाव (व्यञ्जनाभिलाप) नं० ५८ वंजणुग्गह (व्यञ्जनावग्रह) नं ४०,४१.५१ वंजिय (व्यजित) क० ४।२६. नि०६।२०; १२॥ ४३ वंत (वान्त) द० २१७; १०।१. चू० १ सू० १. उ० १०।२६; १२।२१, २२।४२. दसा० १०॥३२ वंतय (वान्तक) द० २।६।। वंतर (व्यन्तर) उ० ३६।२२० वंता (वान्स्वा) दसा. ६।२।३६ वंतासव (वान्तास्रव) दसा० १०।२८ से ३२ वंतासि (वान्ताशिन) उ०१४।३८ वंद (वृन्द) अ० २८२. दसा० १०.१२ विंद (वन्द)-वंदइ उ० ६।५५. दसा० १०।१६. प० १०.-वंदए उ० १८१८.-वंदंति दसा० १०॥६.-वंदति नि० ११८४.--वंदामि आ. २॥३. नं० गा० १७. ५० १०.-वंदामो दसा० १०।१२.-वंदिमो नं० गा० २६.-वंदे आ० १२. द. ५।१३०. नं० गा० १८. प० २२२ -वंदेज्जा द०६।३४. क० ११३४. व० १०१२ वंदंत (वन्दमान) नि० ११८४; १३।४३,४५,४७, ४६,५१,५३,५५,५७,५६ वंदण (वन्दन) दचू० २।६. उ० २६१,११; ३५१८. जोनं० ६. दसा० १०१११ वंदणकलस (वन्दनकलश) प० ६२ वंदणग (वन्दनक) उ० १५१५ Page #1248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ वंदणय ( वन्दनक) आ० ३. नं० ७५. अ० ७४ वदमाण ( वन्दमान) द० ५।१२६. उ० २५।१७ वंदिउं ( वन्दितुम् ) आ० ३।१ वंदिऊण ( वन्दित्वा ) उ० ६।६ १० २२२ वदित्ता ( वन्दित्वा ) उ० २०1७. दसा० १०।६ वंदित्ताण ( वन्दित्वा ) उ० २६।२२ वंदित्तु ( ववित्वा) उ० २६।२१ बंदिम ( वन्द्य) दचू० १।३ वंदिय ( वन्दित) आ० २२६ : ५/४६. ६० ५।१३०. प० ४५ वंस (वंश) नं०गा० ३८. प० ११,१४. नि० १७/१३६; १८ । १४ वसीमूल (वंशीमूल) क० २।११,१२ वक्क (वाक्य) द० ८ ३; उ० १ ४३; ६ । ११; १३।२७; १४|११ ; २२।३६; २५।२५ arat (अवक्रयिक) व० ७।२३ वक्कंत (अवक्रान्त) दसा० ८१. ० १, ४, १०, १३, १४,५२,६६,१०८, १०६, १२६,१२७, १६०,१६१. नि० १६ । १६ से २४ / वक्कंत ( अव + क्रम् ) - वक्कं ते प० १. -वक्कमइ प० ३५ वक्ककर ( वाक्यकर) द० ६।४३ वक्कममाण (अवक्रमत् ) प० ४७ वक्कय (वल्कज) अ० ४०, ४५ arra (अवक्रय) व० ७।२३; ६ । १७ से ३० वक्कसुद्ध ( वाक्यसुद्धि) द० ७ वक्खा ( व्या+ख्या ) - वक्खइ व० ४।१८ वक्खाण (व्याख्यान ) नं० गा० ४१ वक्खार ( वक्षस्कार ) अ० १८५ । ३,४१० वर्ग ( बुक) दसा० ७।२४ वगड (दे० वकर) क० २ १,४ से ५ ५।२० वग्ग (वर्ग) उ० १३।२३, १६।२६; ३०११०; नं० ८६,८८,८६ अ० ७३, ४६०, ४६०, ४६५, ४६६ वग्गचूलिया ( वर्गचूलिका) नं० ७८. जोनं० ६. व० १०।३० वग्गण ( वल्गन ) दसा० १०।११; प० ४२ वग्गमूल ( वर्गमूल ) अ० ४६३, ४६७, ४८२, ४८७, ४६०, ५०३ वंदणय-वज वगवग्ग ( वर्गवर्ग) उ० ३०।११ वग्गु ( वाच्) उ० | ५५; दसा० ६।२।११; १०।१८ वग्ध ( व्याघ्र ) अ० ५२५; नि० ७ १० से १२; १७।१२ से १४. दसा० ७।२४ वग्घपोसय ( व्याघ्रपोषक) नि० ६।२३ वग्घारिय (दे० व्यापारित) दसा० २ ३; १०।२४. प० ६२, २५४ वग्धारिपाणि ( ' दग्धारिय' पाणि) दसा० ७ ३१, ३३. प० १२४ वग्घावच्च (व्याघ्रापत्य) प० १८७, २०२, २०३ ( वच्च ( वज्) - वच्चइ उ० १४ । २४. अ० ७ १५२. - वच्चउ उ० २७।१२. — बच्चेज्जा व० २।२५ वच्च (वर्चस्) द० ५।१६,२५ वच्चापिच्चिय (दे०) क० २ २६ वच्चामेलिय (व्यस्यास्त्र डित) आ० ४।८ वच्छ ( वस्स) आ० ४।६. दसा० ७ ५; १० ११, १५. ५०१०१४२ वच्छ ( वक्षस् ) उ० ८।१८. ० ५६९ वच्छ ( वत्स्य) प० १८६,२२१ वच्छ ( वात्स्य) नं० गा० २३ वच्छ (वृक्ष) उ० ६| वच्छग (वत्सक) द० ५।२२ वच्छ लिज्ज ( वत्सलीय) १०१६८,२०२ वच्छल्ल (वात्सल्य ) उ० २८|३१ V वज्ज (वर्जय् ) – वज्जई उ० ३१।६. - वज्जए द० ५।११; उ० १८. वज्जयंति द० ६।१०. - वज्जेज्ज द० १०१२०. - वज्जेज्जा उ० १६।१४ वज्ज (अवध) उ० ३४।२८ वज्ज ( वज्यं) प० ८०, १६३ Page #1249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंजंत-वणवराह २५५ वज्जंत (वर्जयत) द० ५।३ वज्जकंद (वज्रकन्द) उ० ३६।६८ वज्जण (वर्जन) उ० १६।३०; २८०२८ वज्जनागरी (वचनागरी) प० १९८ वज्जपाणि (वज्रपाणि) उ० १११२३. प०८ वज्जबहुल (वज्रबहुल) दसा० ६।४ वज्जय (वर्जक) उ० ११।१३ वज्जरिसह (वज्रऋषम) उ० २२६ वज्जित्ता (वयं) उ० ३०३५ वज्जिय (वजित) द० ५६६. उ० १०।२८ २४१५,१८.५० २६ वज्जेयव्व (वर्जयितव्य) उ० १६३० वज्झ (वध्य) द० ७।२२,३६. उ० २१८ विज्झ (वध)-वज्झेह रसा०६।३ वज्झकार (वकार) अ० ३६० वजमग (वध्यक) उ० २११८ वज्झमंडण (वध्यमण्डन) उ० २११८ 1 वट्ट (वृत्)-वट्टइ द० ६।४३. उ० १७१२. अ० ५३२.--बट्टए उ० २६।२० वट्ट (वृत्त) द० ७३१. उ०३६।२१,४३. अ० २६२,५१३. दसा० ६।५. प० २३,२४, वडेंसग (अवतंसक) दसा० १०।१४ विड्ढ (वर्ध)-वड्ढइ द०५।१३८. उ० ३२।३०. नं० १८.-वड्ढउ नं० गा० ३०.--वड्ढए उ०२६।१४. --वड्ढामो प० ५२ वड्ढइ (वर्धकि) उ०१६।६६. नं० ३८६ वड्ढण (वर्धन) द० ५।११; ६।२८,३१,३५,३६, ४२,४५,५८, ८।३६; उ० १४।४७. प० १६३ वड्ढमाण (वर्धमान) उ० २२।२६. नं० १८ वड्ढमाणय (वर्धमानक) नं०६,१८,१९ वड्ढावइत्ताण (वर्धयित्वा) उ० ६।४६ वढि (वृद्धि) व० १०॥५ वण (वन) द० ७२६,३०. उ० २०१३६; २३।१५; ३२।११. नं० गा० १६. अ० ३५५, ३६२,५३१,५३५. व० ६।४०,४१. नि० १२।१६; १७।१४१. दसा० १०॥३. प०५१ वण (व्रण) अ० ५२०. नि० ३।२८ से ३३; ४१६६ से ७१; ६।३७ से ४२; ७।२६ से ३१; ११॥२३ से २८; १२॥३३ से ४०; १५२५ से ३०,१११ से ११६; १७।२७ से ३२,८१ से ८६ वणंधय (वनन्धय) नि० १६।१२ वणचारि (वनचारिन् ) उ० ३६।२०५ वणतिगिच्छा (व्रणचिकित्सा) अ०७४,६१० वणप्फइ (काय) (वनस्पतिकाय) उ० ३६।१०२ वणप्फइकाय (वनस्पतिकाय) नि० १२। वणप्फतिकाय (वनस्पतिकाय) नि० १७।१३१ वणमयूर (वनमयूर) अ० ३५५ वणमहिस (वनमहिष) अ० ३५५ वणमालधर (वनमालघर) प०८ वणराइ (वनराजि) अ० ३६२ वणलया (वनलता) प० ३२,४२ वणवराह (वनवराह) अ० ३५५ वदृत (वर्तमान) उ० २३१६०३५।१४ वट्टमग्ग (वृत्तमार्ग) दसा० १०।१० वट्टमाण (वर्तमान) उ० १११६; २६।२०,५१, ५२. नं० १८,१६. दसा० १०॥३३. प० १७,६५,८१,८२,११५,१३०,१६६; नि०६।१६ वट्टयपोसय (वर्तकपोषक) नि० ६।२३ बट्टा (वर्तक) दसा० ६।३ वडभी (वडभी) नि० ६।२६ वडिसग (अवतंसक) प० ४४ वडिया (प्रतिज्ञा) नि०६१ से ७९% ७.१ से १२; १११७; १९६ से १५४ Page #1250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५.६ वणविदुम्ग ( वनवदुर्ग) व० ९ ४०, ४१. नि० १२।१६, १७।१४१ वड ( बनवण्ड) नं० ३८३,०६ से ८६,११. अ० ३६२. प० ५१ वसई (वनस्पति) द० ४ सू० ८ ६।४० से ४२. उ० २६।३० artaइकाइय ( वनस्पतिकायिक) द० ४ सू० ३. अ० २५४, २७५, ४४५, ४५१, ४८०,४८१ वणस्सइकाय (वनस्पतिकाय) आ० ४८. उ० १०१६ वणहत्थि (वनहस्ति) अ० ३५५ वणिमय ( वनीपक) द० ५।५१, दा० ७५ वणिव (वणिज् ) उ० ७११४ ६६ १४१३० वणीमंग (वनीपक) ६० ५।११०,११२. ० १०१३ वणीमगपिंड (वनीपकपिण्ड) नि० ८।१८; १३६५ वणीमय (वनीपक) द० ६।५७, व० १०१३ वण (वर्ण) द० ९४ सू० ६,७. उ० ६।११: ७।२७ १३२६, १९५५,६१ २०१६: २८।१२; २६।५; ३०।२३; ३२ २०; ३४।२. अ० २५७, २५८, २७६,५०८,५०६. दसा० ६ |५०; ६।२।३३. प० २०, २५, २६, ४०,६१,६२. नि० १०५३।१६,२५,३१,५३, ६२, ४५७, ६३,६६,६१,१००; ६।६, २८, ३४, ४०,६२,७१; ७११७,२२,२९,५१,६०, ११।१०, १४, २०, २६,४८,५७,७४; १४ । १४, १५, १८, १६, १५ १६,२२,२८,५०,५६,१०२, १०८, ११४, १३६, १४५; १७ १८,२४,३०,५२,६१, ७२,७८,८४,१०६, ११५ १६४६, ४७, ५०, ५१ वण्ण (वर्णय् ) वण्णस्यामि अ० ७१४ aur ( वर्णक ) दसा० ५०४, ५, ६ १०; १० १,२ यष्णओ (वर्णतस् ) उ० ३४१४ वण्णग (वर्णक) दसा० ६।३; १०।११. प० ४२ वष्णमंत (वर्णवत्) नि० १४:१० ११ १६४२, ४३ वण्णव (वर्णवत्) उ० ३।१८ वर्णविदुग्ग-वत्व वणवा (वर्णवादिन्) दा० ४।२२ वणवाति ( वर्णवादिन् ) दस० ४।२२ वण्णसंजणता (वर्णसंज्वलन) दसा० ४।१९,२१,२२ वणिय ( वर्णित ) द० ६।२२. उ० ३४ । ४०, ४४, ४७. नं० २२. अ० ७४ वणिया (वणिका) द० ५।३४ वहिदा ( वृष्णिदशा) नं० ७८. जोनं ० ६ वपुंगव ( वृष्णिपुंगव ) उ० २२।१३ बत्त ( व्यक्त) अ० ३०७१६. नि० १६।२३ वत्त ( वर्त) दसा० १०।१४. प० २२२ वत्त (बुत) - वतेति दसा० ६।३ वत्तणा ( वर्तना) उ० २८।१० वत्तमाणप (वर्तमानपद) नं० १०२ वक्तव्व ( वक्तव्य ) द० ७ ११. व० ८ १७; ६।४२, ४३. दसा० ६।१८. १० २३७,२८२ वत्तवया (वक्तव्यता) अ० १००, ६०५ से ६०९, ७१५६ वति (वृत्ति) दचू० १ १५ वत्तिय (वर्तित ) आ० ४ ४ वत्तिय (प्रत्यय) व० १२० से २२ ४१११,१२: ५।११,१२. दा० ६३ बत्तियागार (वर्तिताकार) आ० ६२ से १० यत्तु ( वक्तृ) दसा० ३।३ बत्तुं वक्तुम्) अ० ५५७ वत्थ (वस्त्र) द० २।२४ सू० १५, १६, २३; ५।१२८ ६।१६,३८, ४७. उ० २।१२; २६।२३, २४ ३०।२२. अनं० २१. अ० १९,१८५३, ३०२, ५२४,६६३,६०१. दसा० १०।१२,२४. प० ४२, ४४, ४८, ६१, ६४,६६, ७५, २७७, २८६. क० ११३८ से ४१,४३; २।२५ ३७ से १०, १४, १५. नि० १।२७, २८, ४७ से ५२, ५४; २०२३ ५।६५ ६।१९ से २४७८८,८१ १२ ६ १५।७७,८०,८१,८४,८५,८८,०१, १२, २,९६ से १८१५३, १५४; १६ १६, २०, २६; १८।३३ से ७३ Page #1251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वत्थए-वय २५७ वत्थए (वस्तुम्) दसा० ७८. क० ११६. व० १२० वत्थघर (वस्त्रधर) प०८ वत्थिकम्म (वस्तिकर्मन) द. ३१६ वत्थिय ( वस्त्रिक) अ० ३६० वत्थिरोम (वस्तिरोमन) नि० ३.४३,४१८१; ६१५२; ७४१,१११३८१५४०,१२६; १७.४२,९६ वत्थु (वस्तु) नं० ५४,१०५ से ११८,१२३. अ० ३८०,५७२,७१५.४. दसा० ४।१२ वत्थ (वास्तु) उ० ३।१७; १६।१६. क. ३०,३१ वत्थविज्जा (वास्तुविद्या) उ० १५७ वत्यविणास (वस्तुविनाश) अ० ५७ विद विद्)-वएज्जा नि० ६५.-वदति दसा० १०॥३.-वदति नि० ४१११८. प० २३७. -वदह दसा० १०॥३.-वदासी दसा०६।२. -~-वदिज्जा दसा० ६।१८.-वदे दसा० ६।२।१२.–वदेज्जा नि०१४ वदंत (ववत्) नं० ५२. नि० ४।११८; ५।६४; ९।४; १०१ से ३,१५,१६,१११९,१०,१३।१३ से १५; १५३१ से ३,१६३१३,१४ वदमाण (वदत्) दसा० २।३ वदित्तए (वदितम) दसा० ६.१८. प० २७७ वदित्ता (वदित्वा) दसा० १०१४ वद्ध (बद्ध) उ० २६६ वद्धण (वर्धन) उ० २६६. दसा०६२।३५. १० वधू ( ) अ० २६६ वधूहते ( ) अ० २६६ वन्न (वर्ण) नं० गा० ३७ वप्प (वप्र) नि० १२।१०; १७:१४० Vवम (वम)-वमइ उ० १११७.-वमे द० ८।३६. दसा० ।।३७ ।। वमंत (वमत्) उ० १२।२५,२६ वमण (वमन) उ०११८. नि० १३१३६,४१ वमित्ता (वान्स्वा) उ० १४१४४ वम्मधारि (वर्मधारिन्) उ० ४१८ (वय (वच्)-वएज्जा द० ४ सू० १२. -वक्खामो द० ७१६-वच्छं उ०२६।११. -वृच्छामु उ० १३।१६.-वृच्छामि उ० ३०।२६.-वोच्छामि अ० २६४ Vवय (वद)-वए द० ५।१२६. उ०१११४. -वएज्ज द० ७।३३. उ० १२४१.-वएज्जा द० ७५२. अ० १६. २०१२०. प० २३७. -वयइ उ० १५१९. दसा० ४।२।२६. ५० २८२. व० २।२४. नि० २।१८.-वयंति उ. १२।३८. अ० ३९८.-वयति नि० २।१८. वयसि प० २८२. वयह प०७.-वयासि दसा० ५७.-वयासी उ०१४॥८.नं. ५२. अ० ४१६. प०७ वय (वत) द० ४ सू० १६,५११०६७,६२. उ० ११४७; २०१४१; २११११, २२।४०; २९।१२; ३११७ वय (वचस्) ८० ५।१४६, ६।१७,२६,२६,४०, ४३; १०१७. उ० ५।१०।८।१०।१४१८ १५॥१२; २४१२३, २६४५८ विय (व)-वए उ० १४१४८.-वयह उ. ६।५४.-वयाहि द० ७४४७ वय (वयस्) उ० १४।३२,२०११६. नं० गा० २५ सू० ३८।१०. अ० ३१६. दसा० १०१३३ वय (व्यय) उ० ३२।२८,४१,५४,६७,८०,९३. ६२ वद्धमाण (वर्धमान) आ० २।४; १४१४. उ० ६।२४; २३१५,१२,२३,२६. नं० गा० १६. अ० २२७,२२८. दसा० १०।१४,१८. ५० ५२,६६, वद्धमाणग (वर्षमानक) प० ७४ वद्धमाणसामि (वर्द्धमानस्वामिन्) नं ७६ विद्धाव (वर्धय)-वद्धावेइ प० ५.--वद्धावेंति दसा० १०१६. प०४४ वढ़ावेत्ता (वर्धयिस्वा) दसा० १०॥६. प० ५ Page #1252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ क्यंत-ववहार अ० ३८३ ६।२।२२ वयंत (वदत्) द० ४ सू० १२. अ० ४१६,५५७. वरदत्त (वरदत्त) प० १३२ नि० २११८,१६६।११; १११७३,७४. ५० _ वराडग (वराटक) उ० ३६।१२६ २३७ वराडय (वराटक) अनं० ३. अ० १०,३१,५४, वयगुत्त (वचोगुप्त) उ० १२।३, २२।४७. ७८,१०३,५६० दसा०५७ वराय (वराक) उ० ३६.२६१ वयगुत्तया (वचोगुप्तता) उ० २६।१,५५ वराह (वराह) अ० ३५५,५२५. दसा० ६१३ वयगुत्ति (वचोगुप्ति) उ० २४१२ वरिट (वरिष्ठ) प० १० वयजोग (वचोयोग) उ० २१।१४ वरिस (वर्ष) उ० १८।२८; ३४।४६ वरिसधर (वर्षधर) नि० ६२८ वयण (वचन) द० २।१०८।३३; ६।२६,४८; वरुड (दे० ) अ० ३६ १०१५. उ० १११२; ६।६; १२१५,८,१६,२४; वरुण (वरुण) अ० १८५,३४२ १३।४,१२,१५,२६,३४; १६.६; २०११३; वरुणोववाय (वरुणोपपात) नं०५८ जोनं ६. २२।१८,४६,२५।१०; २७।११. अ० ५१, ७१५. दसा० १०१४,१६.५० १०,१५,१७,२३, व०१०।३१ ३१,४१,४३,५१,६३,७५,८२. व० ४।१८ बल (वल) नि० १८।१४ वलय (वलय) उ०३६१६५. अ० ५२५. दसा० वयण (वदन) प० १०,१५,२३,२४ १०११२. प० ४२ वयणंकर (वचनकर) द० ६।२६ वलयमरण (वलन्मरण, वलयमरण) नि० ११।६३ वयणविभत्ति (वचनविभक्ति) अ० ३०८ वल्लर (दे०) उ. १६८०,८१ वयणसंपदा (वचनसंपदा) दसा० ४।३,७ वल्लह (वल्लभ) अ० ३०२. प० २६ वयतेण (वचस्तेन) द० ५।१४६ वल्ली (वल्ली) उ० ३६।६४ वयत्थ (वयस्थ) उ० ३०।२२ विव (व)-ववन्ति उ० १२॥१२ वयमाण (वदत्) उ० ८७. क० ६२ ववगय (व्यपगत) अनं० ८. अ० १६,३७,६०, वियाव (वादय)-वयावए द०६।११ ८४,१०६,५६६,६२६,६३८,६५०,६७६,७०३. वयसमित (वचस्समित) दसा० ५७ दसा० ६।५. प० ५८ वर (वर) आ० २।६,७,५।४।६,७; ६।११. उ० ववरोविय (व्यपरोपित) आ० ४।। १११६ ; ६।३१४।५०; २२१७,४०, ३४।१४. ववसाय (व्यवसाय) नं० ५४।२ नं० गा० १२,१५,१७,२२,३७,३८. दसा० ववसिय (व्यवसित) प० २८ ८।१; ६।२।२२; १०।१० से १२,१४,१५,१७, विवस्स (वि+अव-+सो)-ववस्से उ० ३२।१४ २४. ५० ५,१०,२०,२१,२३,२४,३२,३३,३७, ववस्सिय (व्यवसित) उ० २२।३० ४०,४२,४४,४७,४६,६२,६४,६६,७३ से ७५, विवहर (वि-+ अव---ह)-ववहरइ उ० १७११८ ६६,२२२. नि० २०२८ ववहरंत (व्यवहरत्) उ० २११२,३ वर (पर) उ० १४,२२ ववहरमाण (व्यवहरत्) दसा० ४१२३ वरगइ (वरगति) उ० ३६.६३,६७ ववहरेमाण (व्यवहरत्) व० १०१६ वरदसि (वरदशिन्) उ० २८।२,७. दसा० ववहार (व्यवहार) आ० ४।८. उ० ११४२; Page #1253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववेय-वहण २५६ ७.१५. नं० ७८. जोनं ६. अ० १४,३५.५८, नि० ११४;३।१८,२४,३०,३८,३६,५२,६१; ८२,१०७,११३ से १२०,१२२ से १३०,१५७ ४।५६,६२,६६,७६,७७,६०,६६; ६१५,१७,२७, से १६४,१६६ से १७४,१९८ से २०५,२०७ ३३,३६,४७,४८,६१,७०, ७।१६,२२,२८,३६, से २०९,२११ से २१३,२१५,५५५ से ५५७, ३७,५०,५६; ११।१३.१६,२५,३३,३४,४७, ५६४,५६८,६०६,६२४,६३६,६४८,६७४, ५६; १३।३८; १५।१५,२१,२७,३५,३६,४६, ७०१,७१५. क० ५।४०. व. २।६ से १७, ५८,१०१.१०७.११३,१२१,१२२,१३५,१४४; २४,२५; १०१६,२७ १७।१७,२३,२६ ३७,३८,५१,६०,७१,७७,८३. ववेय (व्यपेत) दचू० १११२ ६१,६२,१०५ वस (वश) द० २११; १०.१ उ०६।३२; १४।४२. वसाणुग (वशानुग) उ० १३३५ अ० ५५५. दसा० १०॥४,६,७,१०,११. प०५ वसाणय (वशानुग) द० २६ से ७,१०,१५.३६,३८,३६४१,४३,४४,४७, वसिटु (वशिष्ठ) प० ११६ ४८,५०,५६,६३,६६ वसित्ता (उषित्वा) प० १०६ वस (वस)-वसइ अ० ५५६. व० ११२०. प० वसीव य (वशीकृत) उ०६.५६ १६५.--वसति दसा० ७८. क० २।४. नि. वसीक रणसुत्तय (बशीकरणसूत्रक) नि० ३१७०; २॥३६.-वससि अ० ५५६.-वसामि अ० ५५६. उ०१८।२६. क० २।४ .-वसामो उ०। वसु (वसु) अ० ३४२ ६।१४.-वसाहि व० ११२०. दसा० १०.१८. वसुंधरा (वसुन्धरा) प० ७८ प०७४.-वसे उ०११।१४.-वसेज्जा वसुदेव (वसुदेव) उ० २२।१ द० २६ वसुल (दे०) द० ७.१४,१६ वसंत (वसत्) दचू० १ सू० १. अनं० २४. वसुला (दे०) द० ७।१६ नि० २।३६, १४१४०,४१, १८७२,७३ वसुहा (वसुधा) उ० २०१६० वसंतय (वसन्तज) अ० ३३४ वसुहारा (वसुधारा) उ० १२॥३६. प० ६१,१६३ वस?मरण (वशार्तमरण) नि० १११६३ वस्त्र ( ) अ० ३५१ वसण (उप्पाडिय) (वषण, उत्पाटित) दसा० ६।३ वस्त्रपात्रम् ( ) अ० ३५१ वसण (व्यसन) अ० ५६६ वस्स (वश्य) उ० ३२।१०४ वसभ (वषम) नं० गा० ३८. अ० ५२२. दसा० वह (वघ) ६० ६।१०,४८,५७, ६।१,३१. चू० सू० १०।१५. प० २२,७८ १. उ० १११६,३८,२ सू० ३,७१७; वसभपुच्छितय (वृषभपुच्छितक) दसा० ६१३ ८७,८3१२।१४; १५॥३,१४; १६।३२; वसमाण (वसत्) अ० ५५६. ५० १६५. क० ११७, ३५२८. अ० ३१७. दसा०६।३ ६. व०६।२,३. नि० २।३८ वसह (वृषभ) उ० ११३१६. अ० ३५३ ५२५. प. वह (वह)-वहई द० ४।३६. उ० ३०३१ ४,१६,२०,३७,४६,४७,७३,७४१६२ प० २२२.-वहेइ उ. १८१५.--वहेह उ० वसहपोसय (वृषभपोषक) नि० ६।२३ १२।२७ वमहि (वसति) उ० १४।४८; ३२।१३. अ.. ५५४, वह (व्यथ)-वहिज्ज उ० २१११७.-वहिज्जइ __ ५५६. नि० १६।२,२२,३० उ० १५।१४.-वहेइ उ० १८।३ वसा (वसा) उ०१९७०. दसा० ६।५. क ० ५।३६. वहण (हनन) द० १०।४ Page #1254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० वहण-वामणी • श२३ वहण (वहन) उ० २७।२ वाएत्तए (वाचयितुम) व० ७१ वहमाण (वहमान) उ० २७१२ वागर (वि+आ+कृ)-वागरे उ० १११४. विहाव (वाह.)--वहावेति नि० १२१४१ -वागरेइ नि० १३।१६.५० १६२. वहावेत (वाहयत्) नि० १२।४१ - वागरेति नि० १०१८.-वागरेज्ज उ० वहिय (व्यथित) उ० १९७१ वहू (वधू) अ० १६४१५ वागरण (व्याकरण) नं० गा० ३० सू०६७,८५. वहूपोत्ती (दे०) अ० ३१४१६ अ० ४६,५४८. प०६,१०६.२८८. क० ३।२३, वा (बा) द० ४।११. उ० २१४. नं० १२. अनं० २४ ६. अ० ६. दसा० ५७. क० १११. व० ११५. वागरणी (व्याकरणी) दसा० ७६ नि० ११ वागरमाण (व्याकुर्वाण) ५०६७,१२१,१३६ वा (इव) दच० ११२. उ०२।१० वागरित्ता (व्याकृत्य) प० १०६ वाइ (वादिन्) नं० १२०. ५० १०२,१२२,१३६, वागरेंत (व्याकूर्वत) नि० १०७,८3१३।१६ से १७७ २४; १७॥१३४ वाइत्तए (वाचयितुम) क०४।६,७ वाघाय (व्याघात) उ० १४१८ वाइद्ध (व्याविद्ध) आ० ४८ वाड (वाट) उ० २२।१४,१६,३०।१८ वाइय (वाचिक) आ० ४।३; ५२२. दसा० १०॥१८, वाणमंतर (वाणष्यन्तर) उ० ३४।५१; ३६।२०४, १६,२४. प०६,७५. क० ४।४,५ २०७. अ० २५४,४४५,४५६,४६४,४६५, वाइय (वादित्र) उ० १३।१४ ४६७.५० ६२ वाइय (वाचित) उ० २७।१४ वाणारसी (वाराणसी) उ० २।२,३. प० १०६, वाउ (वायु) द० ४ सू० ७. उ०६।१२; २६।३०; ११३. नि०६।२० ३६।१०७,११७,१२२ से १२४. अ० ३४२, वाणिज्ज (वाणिज्य) प० २०२ ४२२,४२४,४२६,४३१,४३६,४३८. प० ७८ वाणिय (वाणिज) उ०७।१५, २१११,३,५; ३५।१४ वाउकाइय (वायुकायिक) द०४ सू० ३. अ० २५४, वाणियकम्मत (वाणिजकर्मान्त) दसा० १०१३ २७५,४४५,४५२,४५४,४७६,४७७ वाणियगाम (वाणिजग्राम) प० ८३ वाउकाय (वायुकाय) आ० ४।८. द० ६॥३६. वाणियग्गाम (वाणिजग्राम) दसा० ५४,५ नि० १२६ वाणी (वाणी) नं० गा० ४१ वाउकुमार (वायुकुमार) अ० २५४ वात (वात) दसा० १०१२४ से ३३ वाउक्काय (वायुकाय) उ० १०८ वाद (वाद) उ०१५।१५. दसा० ४।१२ वाउद्धय (वायूद्धृत) दसा० १०।१४ वादि (वादिन) दसा० ६॥३,७ वाउमाम (वातोद्धाम) अ० ५३३ वादिय (ठाण) (वाद्यस्थान) नि०१२।२७; वाउभूइ (वायुभूति) नं० गा० २०.५० १८३ १७.१४६ वाउरिय (वागुरिक) अ० ३०२।६ वानर (वानर) अ० ५२५ वाएंत (वाचयत्) नि० ॥४८ से ५६; ७६०; वाम (वाम) ५० १० १६।३२१९१६ से २२,२४,२६,२८,३०,३२, वामण (वामन) अ० २३५ ३४,३६ वामणी (वामनी) नि० ६।२६ Page #1255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वामद्दण-वावहारिय २६१ वामद्दण (व्यामर्दन) दसा० १०॥११.५० ४२ वामा (वामा) प० १०६ वाय (वाच) द. १०।१५. उ० १४१७,४३ वाय (वादय)--वाएज्ज नि० १७।१३५ वाय (वात) द० २६६।३८, ७।५१ चू० १११७. उ०६।१०।१६।४०; २१११६; २२१४४; ३६।२०६ वाय (वाद) क० ६२ -वाय (वाचय)-वाएइ उ० २६।२६. प० १८३ -वाएति दसा० ४।८. नि० २९.--वायइ दसा० ६।२।२६.--वाएंति प० १८३. । वायंत (वात) द० २८ वायंत (वाचयत्) नि० ५६ वायंत (वादयत्) नि० १२।२६; १७।१५१. दसा० १०।१४ वायग (वाचक) नं० गा० ३२ वायगत्त (वाचकत्व) नं० गा० ३६ वायगवंस (वाचकवंश) नं० गा० ३०,३१ वायणंतर (वाचनान्तर) प० १०७ वायणंतेवासि (वाचनान्तेवासिन्) व० १०१८ वायणया (वाचन) उ० २६१ वायणा (वाचना) उ० २६।२०; ३०।३४. नं० ८१ से ८५,६१,१२३. व० ७१६ वायणायरिय (वाचनाचार्य) आ० ४१८. व० १०१६ वायणासंपदा (वाचनासंपदा) दसा० ४।३,८ वायनिसग्ग (वातनिसर्प) आ० ५।३ वायय (वाचक) अ०२८५ वायव्व (वायव्य) मा ५३७ वायस (वायस) अ० ५४५ वाया (वाच) आ०४।१,५३१. द. ४ सू०१० से १६,१८ से २३; ८।१२,३३; ६।४७. चू० २१८, २०१४ वायाम (व्यायाम) अ० ४१६. दसा० १०१११. प०४२ वायाव (वादय)-वायावेज्जा द० ४ सू० १२ पवार (वारय)-वारेज्ज उ० २०११ वारग (वारक) अ० ३७७ वारधोयण (वारधावन) द० ५।७५ वारय (वारक) द० २४५ वारि (वारि) उ० २३॥५१,६६; २५।२६. दसा० ६।२।१ वारुण (वारुण) अ० ५३३ वारुणी (वारणी) उ० ३४।१४ वारेज्ज (दे० विवाह) अ० ३१४ वारोदक (वारोदक) नि० १७॥१३३ वाल (बाल) अ० ३६५. नि० १०॥३८. दसा० १०।११ वालग (वालग) ५० ३२,४२ वालगुंछ (बालगुञ्छ) अ० ५२५ वालग्ग (बालाग्र) नं० २०. अ० ३६६,४२२, ___४२४,४२६,४३१,४३६,४३८,४३६ वालग्गपोइया (दे०) उ०६।२४ वालय (बालज) अ० ४०,४४. व० ६।४२,४३ वालवीयण (बालवीजन) दसा० १०।१७,१६ वालवीयणी (बालवीजनी) दसा० १०।२४ वालि (बालिन्) अ० ३२७ वालुयप्पभा (बालुकाप्रमा) अ० १८१,१८२, वालुयप्पभाय (बालुकाप्रभाज) अ० २५४ वालुया (बालुका) उ०१६।३७,३६१७३. अ० ४३६. प० २० वालुयाभा (बालुकामा) उ० ३६।१५६ वावड (व्यापृत) क० ३।३१ ‘वावड (वि+मा+पृ)-वावडे उ० १७११८ वावन्न (व्यापन्न) उ० २८१२८ वावर (वि+आ+पृ)-वावरे उ० ३०॥३६ वावहारिय (व्यावहारिक) अ० ३६६,३६८,४२०, ४२२,४२३,४२७,४२६,४३०,४३४,४३६, ४३७ Page #1256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ वावहारियपरमाणु-विआहा वावहारियपरमाणु (व्यावहारिकपरमाणु) अ० वामावासिय (वर्षावार्षिक) नि० २।५०,५१ ३६६ वासि (वासिन्) ५० २४ वावी (वापी) अ० ३६२. नि० १२।१८; १७।१४० वासि? (वाशिष्ठ) प० १४,१७,१६,६६,१८३, वास (वर्ष) द० ५१८, चू०२।११. उ० ३।१५; १८७,१६२.१६६,२०१,२२२ ४।८;७।१३, १२॥३६; १८.३४,३६,३८,४०, वासिट्टिया (वाशिष्ठिका) प० २०१ ४१, १६९५; २२।३३,३४१४१,४८,५३; वासिट्टी (वाशिष्ठी) उ० १४१२६ ३६।८,८८,१०२,१२२,१३२.१६०,२१६ से वासिय (वासित) उ० ३५१४. प० २१ २२१,२५० से २५२. न० १८१५,२३. अ० वासी (वासी) उ० १६६२.५०८० २१६,२८७,४१०,४१७,४२६. दसा०६।४; वासीमुह (दे०) उ० ३६।१२८ १०११८,२६ से ३३. प० २,१४.१५,१७,५७, वासुदेव (वासुदेव) उ०११।२१, २२१८,१०,२५, •७३,७७,८४,८६ से ६१,१०६,१०७,१०६, ३१. अ० ३३६.५४२. दसा०६।३,७. ११२,१२४,१२५,१२८ से १३०,१३७ से प० ११,१२,१४,४७ १४३,१५१ से १५६,१६१,१६६,१८०,१८१, वासुदेवगंडिया (वासुदेवकण्डिका) नं० १२१ २२३ से २३० वासुपुज्ज (वासुपूज्य) आ० २।३।५।४।३. नं० गा० १८. अ० २२७. प० १४६ वास (वास) दचू०१ सू० १. उ०१४।२९%) वाह (वाह) अ० ३७४ १६४८३; २६।४,८,८४; २५:३; ३५१६,७. -वाह (वाहय्)-वाहेइ उ० १७।१६. नि० २०३६ __-वाहेति नि० १२।१३ विास (वास्)-वासिंसु प० ६१ वाहण (वाहन) उ०६।४६; १८।१. दसा० ६।३; वासंग (व्यासंग) ५० ३२ १०।१०,१६. प०८,३८,४७,५२,६४,७४,७५ वासंत (वर्षत्) द० ५।८. उ० २२०३३ वाहणसाला (वाहनशाला) दसा० १०११० वासंतिय (वासन्तिक) प० २५ वाह्य (वाहक) उ० ११३७; १०।३३ वासघर (वासगृह) प० २०,४६ वाहर (वि---आ+ह)-वाहराहि उ०१८।१० वासधर (वर्षधर) अ० २८७,४३१,४३३,६१५ वाहरमाण (ब्धाहरत्) दसा० ३।३ वासयंत (वासयत्) प० २५ वाहि (व्याधि) द० ८।३५. उ० १६।१४,१६; वाससइ (वर्षशतिका) द० ८।५५ २३८१; ३२।१२. अ० ३१७ वासहर (वर्षधर) अ० १८५॥३,४१० वाहित्त (व्याहृत) उ० १।२० वासा (वर्षा) द० ३।१२. प० ६१,१६३,२८५ वाहिम (वाह्य) द० ७।२४ वासारत्तय (वर्षा रात्रज) अ० ३३४ वाहिय (वाहित) द०६।६,५६,६०,७१२ वासि (वासिन्) उ० १२।८; १४।१ उ. १९०६३ वासावास (वर्षावास) दमा० ४।१३. प० ८०,८३, वाह्यि (व्याधित) क० ३१२२ ८४.२२३ से २६२,२७१ से २८६. क० ११३५; वाहेंत (वाहयत) नि० १२।१३; १८:१४ १३,१०,४१२६,३३।३४; ५।१५. व० ४।५ से वि (अपि) दसा० ६।२. क० ११३७. व० १११५ ८,१०,१२; ८।३; १०॥३. नि० १०.३५; विभाल (विकाल) दसा० ३।३ १४१४१,१८१७३ विआहा (वि+आ+ख्या)-विआहिज्जति Page #1257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विइकन-विक्कंभसुइ २६३ नं० ८५.-विआहिज्जति नं० ८५ विउविय (विक्रिय) दसा० १०।२६,३० विइक्कंत (व्यतिक्रान्त) प० २,६,१२,१४,१७, विउस्सग्ग (व्युत्सर्ग) उ० ३०।३०,३६ ३८,४७,५६,६६,८१,८४,१०७,१११,११५, विउहित्ताण (व्यूह्य) द० ५२२ १२५,१३८ से १५९,१६३,१६६,१८०,१८१, विओग (वियोग) उ० ३२।२८,४१,५४,६७,८०, २२३ से २३० ६३. अ० ३१७ विइकिण्ण (व्यतिकीर्ण) क० २।१,२,८,६ विओसमणता (व्यवशमन) दसा० ४।२३ विइगिट्ठ (विकृष्ट, व्यतिकृष्ट) व० ७।१० से १४, विओसवित (व्यवसित, व्यवशमित) दसा० ११३ विओसवित्ता (व्यवशाम्य) क० ११३४ विइत्ता (विदित्वा) द० ६२ विओसविय (व्यवशमित) क० ६।१. नि० ४.२५ विइत्तु (विदित्वा) द०१०।१४. उ० १५।३ विओस वियपाहुड (व्यवशमितप्राभृत) क० ११३४; विइय (विदित) उ० १२।१३,१८।२७, २३।६१ ४७ विउ (विद्वस्) उ० २१।१२; २५॥३६ विओसवेत्तए (व्यवशमितुम, वितोषयितुम् ) व० ७.१२,१३ विउंज (वि+युज्)-विउंजंति दसा० १०।२६ विछिय (वृश्चिक) उ० ३६।१४७ विउक्कम (व्युत्क्रम्य) उ० ५।१५ विध (व्य)-विधइ उ० २७।४ विउट्ट (वि+कुट्ट)-विउट्टे ज्जा क० ४।२६. विहणिज्ज (वं हणीय) दसा० १०।११. ५० ४२ व० ११३३. -वउटैंति दसा० १०॥३४ विकत्तु (विकर्त) उ० २०१३७ विउट्टछ उम (विवृत्तछान्) आ० ६।११ विकत्थ (वि+कत्य)-विकत्थई द. ६।४४ विउल (विपुल) द० ५।१४२; ६।४।६. विकप्पणा (विकल्पना) उ० ३२११०७ उ० ११४६; ७२,२१६।३८; १०१३०; विकसंत (विकसत्) दसा० १०११२ १११३१; १४।३७,४६; २०११६,३२,५२; विकहा (विकथा) आ० ४१८ २६।४३. दसा० ६।५; ६।२।१०।१०।११,१८. विकिट्ठभत्तिय (विक्लिष्टभक्तिक) प० २४३,२४८ प०६,३२,३४,३८,४८.६६ विकोविय (विकोविद) उ० २११२ विउलट्ठाणभाइ (विपुलस्थानमागिन् ) द०६३५ विक्कत (विक्रान्त) ५० ३८,४७ विउलतर (विपुलतर) नं० २५ विक्कम (विक्रम) नं० गा० ३४ विउलतराग (विपूलतरक) नं० २५ विक्कय (विक्रय) द०७।४६; १०।१५. विउलमइ (विपुलमति) नं० २४,२५. प० १०१, उ०३५॥१३ से १५. दसा० ६.३ १२२,१७६ विक्कायमाण (विक्रीयमाण) द० ५७२ विउलमति (विपुलमति) प० १३६ विक्किण ( विकी)-विक्कणेज्जा विउवित्ता (विकृत्य) क० ५१ व० ७।२४ विउव्व (वि+कृ, वि+कुर्व)--विउव्वई विक्किणंत (विक्रोणत्) उ० ३५।१४ प०१५ विक्खंभ (विष्कम्भ) अ० ४०८,४१०,४२२,४२४, विउव्वि (विकरण) उ० ३।१५ ४२६,४३१,४३६,४३८,५८६ विउवि (वधियो) उ० १३॥३२ विक्खंभइत्ता (विष्कभ्य) व०१०१३. दसा० ७५ विउव्विऊण (विकृत्य) उ० ६।५५ विक्खंभसुइ (विष्कम्मशुचि) अ० ४६३, ४६७, विउव्वित्ता (विकृत्य) दसा० १०।२७. ५० १५ ४८२,४८७,४६५.४६६,५०३ Page #1258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ विक्खाय-विज्ज विक्खाय (विख्यात) उ० १८१३६ विचित (वि+चिन्तय)-विचितए उ० २।२६. विक्खिण्ण (विकीर्ण) क० २।१,२,८,९ -विचितेइ उ० २२।२९ विक्खित्ता (विक्षिप्ता) उ० २६।२६ विवितिय (विचिन्तित) उ० १३८ विक्खेवणाविनय (विक्षेपणाविनय) दसा० ४।१४।। विचित्त (विचित्र) उ० ३६।१४८,२५२. नं० ६०. दसा० १०।११. प० २०,४२. नि० ५।३१ से विक्खोभइत्ताणं (विक्षोभ्य) दसा. ६।२।१० ३३; ६।२४ विगइ (विकृति) उ० १७।१५; ३२।१०१; विचित्तसुत (विचित्रश्रुत) दसा० ४।५ ३६।२५२. प० २३६,२७३ विच्छड्डइत्ता (विच्छद्य) प०७४ विगइपडिबद्ध (विकृतिप्रतिबद्ध) क० ४।६,७ विच्छड्डिय (विच्छदित) अ० ५३२ विगोदय (विगतोदय) प० २६१ ििवच्छिद (वि-छिद)-विच्छिदेज्ज नि. विगति (विकृति) नि० ४१२० ३१३४.-विच्छेदेज्ज नि० ७।८५ विगप्प (विकल्प) उ० ३३१६. नं० २२ विच्छिदावित्ता (विछेद्य) नि० १५५३२ विगप्पण (विकल्पन) उ० २३।३२ विच्छिदित्ता (विछिद्य) नि० ३।३५ विगप्पिय (विकल्पित) द० ८५५. नं०६७. अ० विच्छिदेंत (विछिन्दत्) नि० ३।३४; ४।७२; ४९,५४८ ६।४३,७१३२; ११२२६; १५॥३१,११७; विगय (विगत) उ० १२२६; ८।३;६।२२; १४१५२; १७४३३,८७ २०१६०; २६।३० विच्छिण्ण (विस्तीर्ण) प० ४७ विगराल (विकराल) उ० १२१६ विच्छिण्ण (विच्छिन्न) प० २४,३८ विनिदियया (विकलेन्द्रियता) उ० १०।१७ विच्छिप्पमाण (विस्पृश्यमान) दसा० १०।१६. विगलितेंदिय (विकलितेन्द्रिय) द०६।२४ । प० ७५ विगहा (विकथा) उ० २४।६; ३१।६; ३६।२६३ विच्छेदेत (विछिन्दत्) प० ५,४४,७४,८१. नि० विगार (विकार) अ० २६५,२६६ ७८५ विगाहिय (विगाह्य) दसा० ६।२।१ विजढ (वित्यक्त) उ० ३६।८२,६०,१०४,११५, विगिच (वि+विच)-विगिंच उ० ३।१३ १२४,१५३,१६८,१७७,२४६ विगिवण (विवेचन) क० ४१२७ विजय (विजय) उ० २६।६८ से ७०. अ० विगिचमाण (विविञ्चत्) क० ५।६ से १०,१३, १८५॥३,४१०. दसा० ४।८,१०१६,१४,१८ १४. व०६।२ विजय (विचय) उ० १५७; १८४६. विजयघोस (विजयघोष) उ० २५४,५,३४,३५, विगिचित्तए (विवेक्तुम) क० ५।११ ४२,४३ विगिचेमाण (विविञ्चत्, विविञ्चान) नि० विजयचरिय (विजय चरित्र) नं० १०२ १०।२५ से २८ विजयय (विजयज) अ० २५४ विगिट्ठ (विकृष्ट) उ० ३६।२५४ विजहित्तु (विहाय) उ० ८।२ विगोवइत्ता (विगोप्य) प०७४ विजाण (वि+ज्ञा)-विजाणेज्जा द०७२१ विग्गह (विग्रह) उ० ३१८. प०१५ विजाणित्ता (विज्ञाय) प० ५५ विग्गहओ (विग्रहतस) द० ८।५३ विज्ज (विद)-विज्जई उ० २१७.-विज्जए विग्घ (विघ्न) उ० २०१५७; २६. प०७४ उ०६।१५ Page #1259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्जमाण-विणिवाड विज्जमाण (विद्यमान) द० ५।४. उ० १८।२७ विज्जल ( विज्जल ) ६० ५५४ विज्जवित्ति (वैद्यवृत्ति) अ० ३०२१३ विज्जा (विद्या) उ० ६ । १०; १२।१३,१४; १५७; १८।२२, २४, ३०, ३१, २०२२; २३२, ६, २५।१८. नं ० ६० नि० १३।२५ विज्जा ( विदित्वा ) उ० ६४६ विज्जाचरणविणिच्छय ( विद्याचरणविनिश्चय) नं० ७७. जोनं ८ विजापवाय ( विद्यानुप्रवाद) नं० १०४, ११४ विज्जापिंड ( विद्यापिड ) नि० १३।७१ विज्जाहरगोवाल ( विद्याधरगोपाल ) प० २०३, २०५ विज्जाहरी ( विद्याधरी) प० २०२,२०५ विज्जु (विद्युत् ) उ० १८ ११३; २२ ७; ३६ । ११०; २०६. नं० गा० १६. अ० २८७ विज्जुकुमार (विद्युत्कुमार) अ० २५४ विभव (वि + ध्यापय्) -- विज्झवेज्ज उ० १४१ विज्झाय (वि + ध्ये) - विज्झायइ उ० २९।६१ विज्झाय ( विध्यात) दचू० १।१२ विज्झाविय ( विध्यापित) उ०२३।५ विट्ठा ( विष्ठा ) उ० १।५ विडंबिय ( विडम्बित ) उ० १३।१६. १० २३ fasबियमुह ( विडम्बितमुख) अ० ३१३।२ / विडस (वि + दंश् ) – विडसति नि० १५१६ विडसंत (विदंशत्) नि० १५६, ८, १०, १२, १६ ५, ७, ९, ११ विडिम ( विटपिन् ) द० ७।३१ विणइत्तु (विनेतृ) उ० २६।५ विणएत्ता (विनीय) दसा० ४।१४ विणइत्तु ( विनीय ) उ० १४।२८ वित्तु (विनेतृ) दसा ४।१७, १८ विणय (विजय) द० ५६८ ७ १; ८ ३७,४०; ११६,२१,३६,४०, ४२, ४३, ६/४/११. उ० १ १,६,७, २३; १७११४; १८१८, २३; २८।२५; २६५, ६०, ३० ३०, ३२, ३४।२७, नं० गा० १६, १७,२६,सू०३८१५,८१. अ० ३१४. दसा० ६ २ २४; १०१४, १२,२०. प० १५, ४१, ४३,४६,४८.६३ विणयपडिवत्ति (विनयप्रतिपत्ति) दसा० ४।१४, १६ विणसमाहि (विनयसमाधि) द० ६; ६१४. २६५ सू० १,४ दिणयसुय (विनयश्रुत) उ०१ विजयहीण ( विनयहीन ) आ० ४।८ / विणस्स (वि + नश्) - विस्मइ उ० २६|६०; अ० ३०२ - विणस्सउ उ० १२।१६ विणा (विना) उ० १३।७ २८ ३ विणास ( विनाश ) ३०३२ २४,३७,५०,६३,७६, ८६. अ० ३१० प० २७ विणासण ( विनाशन) द० ८।३७. उ० २२।१८. ३५:१२ विनिगूह (वि + न + - गृह) - विणिगूहई द० ५।१३१ विणिग्गय (विनिर्गत) नं० गा० ७ विणिधाय (विनिधात) उ० २०१४३. अ० ३६८ विणिच्छिय (विनिश्चय) द० ८४३. उ० २३।२५, -- विणिच्छ (विनिश्चयार्थ ) प०४७ विणिच्छियत्थ (विनिश्चयार्थ ) अ ७१५ विणिज्झा (वि + न + ध्यै ) – विणिज्भाए द० ५।१५ विणित्तए (विनेतुम् ) द०५७८ विणिमुक्क (विनिर्मुक्त) दसा० ६ २,७६ विणिय ( विनीत) द० ६३८; अनं० २८ विणियट्ट (वि + न + वृत्) - विणियति द० २।११. उ० ६।६२ – विनियटेज्ज द० ८|३४ विणियट्टणया (विनिवर्तन) उ० २६।१,३३ / विणिवाड (वि + न + पातय्) - विणिवाडयंति उ० १२।२४ Page #1260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .२६६ विणिवाय (विनिपात) अ० ३१७ विहिण (वि + न + हन् ) – विणिहन्नेज्जा उ० २।१७ - विणिहम्मति उ० ३।६ / विणी (वि + णी) - विणएज्ज द० २१४. उ० ४।१२ विणीय ( विनीत) उ० १ २; १८।२१ ३४२७. प० ५८, ७३, ११२,१२६,१६५. क० ४.७ विणीयतह ( विनीततृष्णा ) ३० ८५६ विणायण ( विनोदन) उ० ३२।१०५ विष्णत्ति (विज्ञप्ति) नं० ३३ fara ( विज्ञक) दसा० १०।२४ से ३२; प० ६,३८, ४७ / विष्णव (वि + ज्ञपय्) - विष्णवेति नि० ६ १. - विष्णवेज्जा प० २३७ विष्णवेत (विज्ञपयत् ) नि० ६ । १ विष्णवेमाण ( विज्ञापयत् ) प० २३७ विष्णाण (विज्ञान) नं ० ४७ विष्णाय (विज्ञात) नं० ८१ से १,१२३. नि १२।३०; १७ १५२ विug (विष्णु) अ० २६४, ४, ३४२. १० २२२ वितत ( वितत) नि० १७।१३६ /वितर (वि + तृ) - वितरति नि० २।४ वितरंत ( वितरत् ) नि० २२४ वितह ( वितथ) द ७।४ वितिक्कत (व्यतिक्रान्त) प० १०६,१४३ वितिगच्छा (विचिकित्सा) उ० १६ । ३ से १२. क० ५।७, ६. नि० १०।२६, २८ वितिमिर (वितिमिर) उ० २६।७२ ५० ५६, ७४ वितिमिरकर (वितिमिरकर) प० २६ वितिमिरतर (वितिमिरतर) नं० २५ वितिमिरतराग (वितिमिरतरक) नं २५ वितिरिच्छ ( वितिर्यञ्च ) दसा० ६।१८ वित्त ( वेत्र) उ० १२।१६ वित्त (वित्त) उ० १ ४ ४ ४ ५ ५ । १०; ७ ८; १६८७. दसा० ६ २ ३५ विणिवाय विपुल / वित्तास (वि + त्रासय् ) -- वित्तासए उ० २।२० वित्त (वृत्ति) द० ११४; ५।६२,१२६; ६।२२. उ० १६।३३. नं ८१. अ० ३०२. दसा० ६।३ वित्थर ( विस्तर) उ० २०१५३ वित्थरवायणा ( विस्तृत वाचना ) प० १८८ वित्थाररुइ ( विस्ताररुचि) उ० २८।१६,२४ वित्थिष्ण ( विस्तीर्ण) उ० २४|१८ ३६।५८; प० २३ विदाय (विज्ञाय ) दसा ० ४।१२ विदित ( विदित) दसा० ६१२३८ विदित्ताणं ( विदित्वा ) उ० ६१८ विदिसा ( विदिशा) अ० ३६३ विदेह (विदेह) उ० १८।४५. ५०७३ विदेहजच्च (विदेहजाल ) प ०७३ विदेहदिण्णा (विदेहदत्ता) प० ६६ विदेहदिन (विदेहदत्त ) प ०७३ विदेहसूमाल (विदेहसुकुमाल ) प० ७३ विद्ध (बुद्ध) उ० ३२/३ विद्धंस (वि + ध्वंस् ) – विद्धंसइ उ० १०।२७ विद्धंस ( विध्वंस) उ० ११।२४ विद्वंसण ( विध्वंसन) दसा० १०।२८ से ३२ विद्धत्थ ( विध्वस्त) दसा० ७।२२ विद्धि ( वृद्धि ) अ० ७१४ विधि (विधि) दसा० ६ ३ विनिम्मुक्क (विनिर्मुक्त) उ०१८।५३; २५।३२ विन्नाण (विज्ञान) उ० २३।३१; ३६।२६२ विन्नाय (विज्ञाय ) द० ८५८. उ० २३|१४ विन्नाय (विज्ञात) द० ४ सू० ६ विन्नेय ( विज्ञेय ) उ० ३६।१५ विपचि (विपचि) नि० १७।१३७ विपक्ख ( विपक्ष ) उ० १४।१३ / विपरिधाव (वि + परि + धाव्) - विपरिधावइ उ० २३।७० विविकुव्व (वि + पृष्टी + कृ ) - विपिट्ठिकुव्वइ द० २१३ विपुल ( विपुल) नि० १२ २६; १७ १५१. Page #1261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपुलमति-विभूसावत्तिय २६७ दसा० १०१७. प० २१,४७,४८,५२,६२,७४। विप्परियासिआ (विपर्यासिका वैपर्यासिका) विपुलमति (विपुलमति) प० १७६ आ० ४।४ विप्प (विप्र) उ० १४१६; २५१,७ विप्परियासेत (विपर्यासयत्) नि० ११॥६६,७० विपइण्ण (विप्रकीर्ण) द० श२१. क. ६ विप्पलाव (विप्रलाप) उ० १३१३३ विपकिण्ण (विप्रकीर्ण) क० २।१,२,८ विष्पवसमाण (विप्रवशत) दसा०६३ विप्पओग (विप्रयोग)उ० १३१८. अ० ३१७ विप्पसण्ण (विप्रसन्न) उ० ५।१८ विपच्चअ (विप्रत्यय) उ० २३॥२४,३० विप्पसीअ (वि+प्र+षद)-विप्पसीएज्ज विप्पजद (विप्रत्यक्त) अनं० ८. अ०१६,३७,६०, उ०५।३० ८४,०६,५६६,६२६,६३८,६५०,६७६,७०३ ।। विप्फालिय (विपाट्य) नि०१०।१४ विप्पजहणसेणिया-परिकम्म (विप्रहाणश्रेणिका विष्फालिय (विस्फारित) नि० ४।२६ परिकर्मन्) नं ६३,६६ विप्फुरंत (विस्फुरत्) उ० १९५४ विबाहण (विबोधन) अ० ५६६।४ विप्पजहणा (विप्रहाण) उ० २६१७४ विप्पजहणावत्त (विप्रहाणावर्त) नं०६६ विबोहय (विबोधक) प० २६ विप्पजहणिज्ज (विप्रहाणीय) दसा० १०२८ से विब्बोय (दे०) अ० ३११ विभंगनाणलद्धि (विभङ्गज्ञानलब्धि) अ० २८५ ‘विप्पजहा (वि+प्रहा )-विप्प हे उ० ८।४. विभज्ज (विभज्य) दसा० ६।२।४ –विप्प जहंति क० ३।२८ विभत (विभक्त) क० २१२३ विभत्ति (विभक्ति) अ० ३०८।३ विप्प जहित्ता (विप्रहाय) उ० २६१७४ विप्पण? (विप्रणष्ट) नि० २०५५ विभय (वि+भज)-विभयंति उ०१३।२३ विभाग (विभाग) उ० २८।१३,३६।११,७८,१११ विप्पणस (वि--प्र-नश)-विप्पणसेज्जा १२०,१५८,१७३,१५२,१८६,२१७ क० ३।२७ विभागनिफण्ण (विभागनिष्पन्न) अ० ३७०,३७२, विप्पमुच (वि+प्र-+-मुच्)-विप्पमुच्चइ उ० ३८५,३८६,३८८,४१२,४१३,४१५,५०५ २४।२७ विभावण (विभावन) उ० २६।३६ विप्पमुक्क (विप्रमुक्त) उ० १११; ६।१६; ११।१; १५।१६; २०१६०; २१२२४; ३२।११०. नं. विभावित्तए (विमावयितुम् ) क० ३।२३ १२०. अ० २८२. दसा० ५७७. प० ७८, विभावेमाण (विभावयत्) ५० १०६ व० २।६ से १७ विभिन्न (विभिन्न) उ० १६४५५; ३२।६३ विप्पमुच्चमाण (विप्रमुच्यमान) दसा० १०।२६ विभूइ (विभूति) दसा० १०॥१७ विप्परिणाम (वि+परि+णमय)-विपरि- विभूति (विभूति) प० ७५ णामेति नि० १०१० विभूसण (विभूषण) द. ३।६ विप्परिणामेंत (विपरिणमयत्) नि० १०११०,१२ विभूसा (विभूषा) द० ६।६४; ८।५६. उ० विप्परियास (विपर्यास) उ० २०४६ १६६. प० ६४,७५. नि० १५१६६ से १५४ विप्परियास (वि+परि+अस्) विभूसाणुवाइ (विभूषानुपातिन्) उ०१६ सू० ११ -विपरियासे ति नि० १११६६ विभूसावत्तिय (विभूषावृत्तिक) उ० १६ सू० ११ विपरियासिय (विपर्यस्त) नि० १३।२८ विभूसावत्तिय (विमुषाप्रत्यय) द०६।६५,६६ Page #1262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ विभूसित-वियाण विभूसित (विभूषित) दसा० १०१३,२२,२२ विभूसिय (विभूषित) उ० १६; सू० ११; २२।६; ३२।१६. अनं० १४,१८. दसा० १०१११,१७. ५० २४,४२,५४. नि० ६९ विमउल (विमुकुल) नंगा० ३७ विमग्ग (वि+मार्गय)-विमग्गहा उ० १२।३८ विमण (विमनस) द० ५।८०. उ० १२१३०. प०८ विमल (विमल) आ० २।३; ५॥४॥३. द०६६८% ।१५. उ० १२१४६,४७, २०१५८; २३१७६. नंगा० १७,१६. अ० २२७. दसा० १०१११, १४. प० २३,२४,४२,१४८ विमाण (विमान) द. ६६८. उ०१४।१. अ० ४१०. ५० ८,१५,२०,३२ विमाणभवण (विमानभवन) प० ४ विमाणवास (विमानवास) ५०६ विमुंच (वि+मुच)-विमुच्चई ठ०६८ ‘विमुच (वि+मुच्)-विमुचंति अ० ३१५. -विमुच्चाइ दसा० ५७३ विमोक्खण (विमोक्षण) उ० ८।३।१४।४; १९८५; २५।१०।२६।१,१०,२१,३८,४१, ४६,४६ विमोय (वि+मोचय)-विमोएइ उ० २०१२४. -विमोयंति उ० २०१२३ विमोयणा (विमोचन) उ० २६७२ विमोह (विमोह) उ० ५।२६ विम्हय (विस्मय) उ० २०१५,१३ विम्हयकर (विस्मयकर) ३० ३१२ विम्हाव (वि-न-स्मापय)-विम्हावेति नि० वियक्खण (विचक्षण) द० ५।२५; ६।३; ८।१४. उ० २१११६; २६।११,१७ वियट्टछउम (विवृत्तछम) प० १० वियड (विकट, विकृत) द० ५१२२, ६।६१. उ० २१४. दसा० ६।३;७।२३. क. २॥५. नि० १११६; २।२१, ३।२०,२६,३२,३६ से ३६,५४,६३,४१५८,६४,७०,७४ से ७७,६२, १०१,२१४६७,१५,२६,३५,४१,४५ से ४८,६३,७२,७।१८,२४,३०,३४ से ३७,५२, ६१,११११५,२१,२७,३१ से ३४,४६.५८%; १४।१२,१३,१६,१७; १५॥१७,२३,२६,३३ से ६६,५१,६० १०३,१०६,११५,११६ से १२२, १३७,१४६; १७११६,२५,३१,३५ से ३८,५३, ६२,७३,७६,८५,८६ से १२,१०७,११६; १८१४४,४५,४८,४६१६१ से ७ वियडग (विकटक) प० २४०,२५६ वियडगिह (विकटगृह) दसा० ७.१० से १२. ५० २५५ से २५८. क०२।११,१२ वियडभाव (विकटभाव) द० ८।३२ वियहभाइ (विकटमोजिन) दसा० ६।१२ से १८ वियत्त (व्यक्त) द० ६।६. नं०गा० २० विययपक्खि (विततपक्षिन) उ०३६।१८८ वियर (वि+त)-वियरति नि० २३९. -वियरिज्जइ उ० १२६१०.–वियरेज्जा प० २७१. क० ४।१६. व० १११६ वियरंत (वितरत्) नि० ११३६,४०; १४१५; १८१३७ वियसिय (विकसित) प०१० वियागर (वि+आ+)-वियागरे द० ७.३७. नं० ५४।४ इवियाण (वि+ज्ञा)-वियाण अ० ३८०. -वियाणई द० ४।१३.-वियाणह उ० ७.१५. -वियाणाइ उ० २७१२.-वियाणासि उ० २५॥१२.–वियाणाहि उ० ४११. -वियाणिज्जा उ० ३५।२ विम्हावेत (विस्मापयत्) उ० ३६।२६३. नि० ११६७,६८ विय (व्यक्त) द० ८।४८ Page #1263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वियाणंत-विस्वस्व २६९ वियाणंत (विजानत्) द० ४.१३ विरज्ज (विरञ्ज)--विरज्जइ उ०२६।३ वियाणमाण (विजानत्) उ० १२।२३ विरज्जमाण (विरज्यमान) उ० २६३ वियाणय (विज्ञापक) नं० गा० १ विरत्त (विरक्त) उ० १३११७,३५; १४१४; वियाणित्ता (विज्ञाय) द. ५॥११. उ०१४।५० २०४१; ३२।३४,४७,६०,७३,८६,६६. दसा. वियाणिया (विज्ञाय) द० ८।३४. उ० ७.२२ ५७१५; १०१३३ वियाणेत्ता (विज्ञाय) उ०.२५२२२ -विरम (वि--रम)-विरमेज्जा उ० २६११६ वियार (विकार) उ० ३२।१०४ विरय (विरत) आ० ४।६. द० ४ सू० १५ से ३३. ‘वियार (वि+चारय) - वियारेति दसा० उ० २।६,१५,४२; १२।६; १५२२; २०१६०; ६।२।११ २११२०,२१, ३०१२; ३५॥१३ वियारभूमि (विचारभूमि) दसा० ३।३. प० २७२, विरली (दे०) ० ३६।१४७ २७.. क० १.३६,४१,४५,४६,४।१६; विरस (विरस) द० ५६८,१३३,१४२; १०।१६ ५।१५. व० ८।१४. नि० २।४० विराइय (विराजित) प० २४ वियाल (विकाल) क० ११४२ से १६५।२५; विराग (विराग) उ० ३२।२६,३६,५२,६५,७८, ५।१०,१३,१४. व० ५।२१. नि० ३.८०; ८।१०।१०।२६ विराय (वि+राजय)-विरायइ उ० ११३१५. वियालणा (विचारणा) नं० ५४ -विरायई द० ८।६३ वियावत्त (व्यावतं) प० ८१ विरायंत (विराजमान) प० १०,२४ वियाह (व्याख्या) नं०८५. व. १०१२६ विराल (विडाल) दसा० ७।२४ वियाहचूलिया (व्याख्याचूलिका) नं० ७८. विरालिया (विरालिका) द०५।११८ व० १०१३० -विराह (वि+राधय)-विराहेज्जासि द०४।२८ वियाहपण्णत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति) नं. ६५,८०. विराहणा (विराधना) आ० ४।४,८,९. उ० २३४ अनं० २८. जोनं १०. अ. ५०,५४६ विराहय (विराधक) उ० २६।३० वियाहपण्णत्तिधर (व्याख्याप्रज्ञप्तिधर) अ० २८५ विराहित्ता (विराध्य) नं० १२५ वियाहिय (व्याख्यात) उ०६।१७; २४१३,१६) विराहिय (विराधित) आ० ४।३,४,५।२. उ० २६।५२२८।१५; ३०।१२,१४,२६,३२; ३६२५६ ३२११११; ३३।१०,१५,२०, ३६।२,८,९,१३, विराहेत्तु (विराध्य) उ० २०१४६,५० १४,१७,४७,५६,६१,६८,७१,७७,८६,६३, विरिय (वीर्य) उ० ६।२६ १००,१०६,१०६,११०,११३,११६,१३०, विरुद्ध (विरुद्ध) अ० २०,२६ १३२,१३४,१३६,१४१,१४३,१५१,१५३, विरुद्धरज्ज (विरुद्धराज्य) क० ११३७. १५५,१५८,१६० से १६७,१७३,१७५,१७६ नि० १११७२ १५२,१८४,१८६,१९६ से १९८,२०१,२०६, विरुह ( विरह.)-विरुहंति द०६।१८. २१२,२२२,२२३,२४४,२४५,२४८. अ० २९८, उ० १२११३ २६६,४१७ विरूवरूव (विरूपरूप) दसा० १०।२४ से ३३. विरइ (विरति) उ० १६०२५,२८, २९।६; ३१२२ नि० ८।१४; १११८१ १२।२९१६।२७ विरइय (विरचित) दसा० १०।११. प० २४,४२ १७४१५१ Page #1264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० विरेयण (विरेचन) द० ३१६. उ० १५८. नि० १३।४०, ४१ विलंबणा ( विडम्बना ) अ० ३१६ विलवंत ( विलपत्) उ० १६५८ विलंबिय ( विलम्बित ) अ० ३०७ १२ विलविय ( विलपित) उ० १३ | १६; १६ सू० ७. अ० ३१७ विलसंत ( विलसत् ) प० २५ विलास ( विलास ) उ० ३२।१४. अ० ३११ विलिप (वि + लिप् ) – विलिपेज्ज नि० ३।३७ विपिवेत्ता (विलय) नि० १५/३५ विलिपित्त ( विलेपतुम् ) क० ५।३८ विपत्ता (विलय) नि० ३।३८ विलिपे ( विलिम्पत्) नि० ३।३७; ४।७५; ६।१६,४६, ७ ३५; ११।३२; १२ । ३३ से ४० ; १५३४, १२० १७/३६, ६० विलिपेत्ता (विलिप्य) नि० ६।१७ विलिह (वि + लिख ) — विलिहेज्जा द० ४ सू० १८ विलिहंत ( विलिखत्) द० ४ सू० १८ विलिहाव (वि + लेखय्) - विलिहावेज्जा द० ४ सू० १८ विलिहिज्जमाण (विलिह्यमान) प०८ विलुत्त ( विलुप्त ) उ० १६५८ विलेवण ( विलेपन) उ० २०१२६. दसा० ६ ३; १०।१० प० ४२ विलोक्य ( विलोपक) उ० ७१५ faa (इव) उ० १९।५७. प० ६७ विवग्ध ( विव्याघ्र ) नि० १० से १२; १७।१२ से १४ विवच्चास (विव्यत्यास ) उ० ३०|३ विवज्ज (वि + वर्जय्) - विवज्जए द० ५।१५. उ० १६।२. -- विवज्जयामि दच्० २।१३. - विवज्जेज्जा द० ५।३६ विवज्जइत्ता ( विवज्यं) द० १०।१६ विवज्जत ( विवर्जयत्) ब० ६ ४६ विरेयण- विवागसुयधर विवज्जण ( विवर्जन) दचू० २१५,६. उ० १९ २६, २७,२६; ३०२६; ३२/२, ३ विवज्जय ( विवर्जक) आ० ४।६. द० ५१४१, १४३ विवज्जयंत ( विवर्जयत् ) द० १०1३. चू० २।१०. उ० ३२।५ विवज्जास (विपर्यास) उ० २०।४६. अ० ५३४ विवज्जित्ता (विवर्ज्य ) उ० १।३१ विवज्जिअ ( विवर्जित) उ० १६ २०; ३०।२८ विवज्जिय (विवर्जित) द० ६।५५ ८५१ विवज्जेत्ता ( विवयं) ५० ५।१०४. दसा० ६।२।३५ √ विवड (वि + पत्) - विवडइ उ० १०।२७ विवड्ढण (विवर्धन) द० ८ ५७. उ० १६ २,७; ३५।५ fass ( विधत) नं० ८३, ८४. अ० ३७६, ३६५ विवरण (विवर्ण) द० ५।१३३. नि० १४।१०,११; १८।४२,४३ विवण्णछंद ( विपन्न छन्दस्) द० ६।२५ विवत्ति ( विपत्ति) द० ६ ५७; ३८ विवद्धण ( विवर्धन) उ० १६६८ विवद्धि (विर्वाद्ध) अ० ३४२।२ विवम्न ( विपन्न) उ० १४ । ३० विवर ( विवर) उ० २०२० विवरीय (विपरीत) अ० ३१६ विवलीयभासय (विपरीतभाषक) अ० ३२३ विवाइय ( विपादित) उ० १६ ५६,६३ विवाग ( विपाक ) उ० १० १४; १३ ३, ८, १६ ११ ; ३२२०, ३३,४६,५६,७२,८५,६८. नं० ३८।१०; ६१. दसा० १०।२४ से ३३. प० १०६ विवागय ( विपाकक) उ० २१४१ विवागस्य ( विपाकश्रुत) नं० ६५,८०, ९१. अनं० २८. जोनं० १०. अ० ५०, ५४६ विवागसुधर ( विपाकभुतघर ) अ० २८५ Page #1265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवाद-विसुद्ध २७१ विवाद (विवाद) उ० १७.१२. व० २।२५ विसम (विषम) द० ५।४. उ० ५।१४,१६; विवाह (विवाह) उ० २२०१७ १०१३३. अ० ३०७।१० दसा० ६।६७।२०. विवाहचलिया (विवाहचलिका) जोनं ६ क०६७ विविच्च (विविच्य) उ०६।१४ विसय (विषय) द० ८।५८. उ० ७।६; १९६९; विवित्त (विविक्त) द० ८।५२. उ० १६ सू० ३. २०१४४; २६।३ ; ३२।२१. अ० ४१७ गा० १,२१,२२; २६।१,३२; ३०१२८; दसा० ६।२।१२. प० २३. क. ११४७ ३२।१२. दसा १७१४. प० ५८ विसल्लीकरण (विशल्यीकरण) आ० २३ विवित्तचरिया (विविक्तचर्या) दचू०२ विसह (विषह) प० ७८ । विवित्तवास (विविक्तवास) उ० ३२॥१६ विसाएमाण (विस्वादमान) प०६६ विविह (विविध) द० ५।३६,१२७,१३३, ६ २७, विसाण (विषाण) अ० ५२५ ३०,४१,४४,८।१०,१२; ६।४।४; १०१८, विसाणि (विषाणिन) अ० ३२७ ६,१२; चू० १११८. उ० १०।२७; १५१४,८, विसाय (विषाद) अ० ३१२,३१३ ६,११,१२,१४,१५:२१।१८; ३२।१०२, विमारंत (विसारयत) उ० २२।३४ ३४।१४. नं० गा० १६ सू.. ८४,१२१. प० ४२ विसारय (विशारद) उ० २०।२२; २७।१. विवेग (विवेक) उ० ४।१०।। नं० १२७. ५०६ विस (विष) द० ८।५६; ६।६. चू० १।१२. विसाल (विशाल) उ०१३।२; १४।३. उ० ६।५३; १६।१३; १७।२०१६।११; नं० ३८१८. दसा० १०।१४.५० २३,२४, २०१४४; २३।४६; ३६।२६७. अ० ३२३. २६,२७ दसा० ६।२।३७ विसाला (विशाला) प० ११३ विसंघाय (वि--सं+घातय)-विसंघाइज्जइ विसालिस (विसदृश) उ० ३।१४ अ० ४१६ विसाहा (विशाखा) अ० ३४१. प० १०८,१०६, विसंभोइणी (विसम्भोगिनी) व०७।५ १११,११३,११५,१२४ विसंभोइय (वसंभोगिक) व०७।४ विसिट्ठ (विशिष्ठ) दसा० १०।११. प० २३,४२ विसंभोग (विसम्भोग) व० ७।४,५ विसीदंत (विषीदत्) द० २।१ विसज्जइत्ता (विसृज्य) उ० १८१८ V विसीय (वि+षद्)–विसीयई उ० ४६. विसण्ण (विषण्ण) उ० ८।५।१२।३० -विसीएज्ज द० ५।१२६ विसत्थ (विश्वस्त) प० ५,३७ विसील (विशील) उ० १११५ विसन्न (विषण्ण) उ० ६।१० विसुज्झ (वि--- शुध)-विसुज्झई द० ८।६२ विसप्प (विसर्पत) उ० ३५॥१२ विसुज्झमाण (विशुध्यमान) नं० १८ । विसप्पंत (विसर्पत) प० २२ विसुज्झमाणय (विशुध्यमानक) अ० ५५३ विसप्पमाण (विसर्पत) दसा० १०१४,६,७,१० से विसुद्ध (विशुद्ध) द०६।४४. उ० ३।१६; १२।४६, १२. ५० ५ से ७,१०,१५,३६,३८,३६,४१, ४७; २६२,१३,४३,७२. नं० गा० ४,९ ४३,४४,४७,४८,५०,५६,६३ सू० ३८. अनं० २८. अ० ३०७,५५५,५५६, विसभक्खण (विषभक्षण) नि० ११।६३ ७१५॥६. दसा० ५।७।११।१०।११. प० ११, विसभक्खि (विषभक्ष्य) उ० २३।४५ १४,५६ Page #1266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ विसुद्धतर-विहर विमुद्धतर (विशुद्धतर) नं० २५ विसोहिया (विशोध्य) उ० १०॥३२. क० ५:११ विसुद्धत राग (विशुद्धतरक) नं० २५. ५० ५५५, विसोहीकरण (विशोधिकरण) आ० ५।३ ५५६ विसोहेंत (विशोधयत्) नि० ३१३५,६७,६८, विसुद्धतराय (विशुद्धतरक) अ० ५५५,५५६ ४।७३,१०५,१०६,६।४४,७६,८७,७:३३, विसुद्धपण्ण (विशुद्धप्रज्ञ) उ० ८।२० ६५,६६; १११३०,६२,६३, १५२११८,१५०, विस्याव (दे०)-विसुयावेति नि० २०८ १५१ विसुयावेत (दे०) नि० २०८ विसोहेत्तए (विशोधयितुम) दसा०७।१८. विसूइआ (विसूचिका) उ० १०।२७ क० ५।११ विसेस (वि+शेषय)-विसेसेइ अ० ७१५५४ ।। विसोहेत्ता (विशोध्य) उ० २६.५८. नि० ३१३६ विसेस (विशेष) उ० ५।३०; १२।३७; १८॥५१; विसोहेमाण (विशोधयत) क० ५.६ से १०,१३, .२३।१३,२४,३०, ३०।२३; ३२।१०३. १४,६।३ से ६. व० ६२. नि० १०२५ से नं० ८६ से ८६,६१. प० २४० २८ विसेसओ (विशेषस) अ० ५५७ विस्स (विश्व) अ० ३४२।२ विसेसाहिय (विशेषाधिक) अ० १३०,१७४, ३६४,४०७,४१२,५८६ विस्स भिय (विश्वभृत्) उ० ३।२ विस्सर (विश्वर) अ० ३०७।१२. दसा० ६।२।१३ विसेसिय (विशेषित) नं० ३६. अ० २५४ विसे सियतर (विशेषिततर) अ०७१५।३ विस्सुय (विश्रुत) उ० १६२,६७; २३।५ विसोग (विशोक) उ० ३२।३४,४७,६०,७३,८६, विह (दे०) नि० १२॥१७; १६।२६ विहंगम (विहंगम) द० ११३ विसोत्तिया (विस्रोतसिका) द० ५६ विहग (विहग) उ० २०१६०. ५० ३२,४२,७८ विसोह (वि+शोधय्)---विसोहए विहत्यि (विहस्ति) नं० २०. अ० ३८८,३६१, उ० २४।११.-विसोहेइ उ० २६।५. ४००,४०६ –विसोहेंति दसा० १०॥३४.–विसोहेज्ज विहन्न (वि+हन्)-विहन्नइ उ० २।२२. उ० २४/१२. नि. ३३३५.-विसोहेज्जा -विहन्नसि उ०९।५१.-विहन्नेज्जा क०४।२६. व. ११३३.-विसोहावेज्ज उ०२ सू०१ नि. १५॥३२ विहम्म (वि+हन्)-विहम्मइ दचू० ११७ विसोहण (विशोधन) उ० २६।२५. क० ४।२७ । विहम्ममाण (विघ्नत्) उ० २७१३ विसोहावेत (विशोषयत्) नि० १२३२,६४,६५; विहर (वि+ह)-विहरइ उ०२०१६०. १७:३४.६६,६७,८८,१२०,१२१ दसा० ६।३.१०७.क. ३।१३. व०४१११. विसोहावेत्ता (विशोध्य) नि० १५॥३३ -विहरए उ०२६३५.-विहरंति विसोहि (विशुद्धि, विशोधि) उ० १२१३८ व० ११२०. दसा० ६१५.५० ६६.-विहरति २६।२,१०,१७,१८,५१. अ०२८ दसा० १०॥२.-विहरसि व० ४।१८. विसोहिठाण (विशोधिस्थान) द० ६।१३ -विहरसी उ०२३३४०.-विहरामि द०४ विसोहित्तए (विशोधयितुम्) दसा० ७॥१६ सू० १७. उ०२३॥३८. वसा० १०२५. Page #1267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहरमाण-वीयरागभाव २७३ उ० २३।३८. दसा० १०॥२५.-विहरामो विहिंस (वि---हिंस)-विहिंसइ उ०५८. दगा० १०१२२.-विहरिंसु उ० २३।९. दसा० ६।२।१८ -विहरिस्सामि उ० १४।४६. दसा० १०॥३१. विहिंसग (विहिंसक) उ० ७।१० -विहरे द०८१५६-विहरेज्ज दचू० २।१०. विहिंसत (विहिंसत्) द०६।२७,३०,४१,४४ उ० १७।१. ----विहरेज्जा उ० १६ सू० १. विहिभिन्न (विधिभिन्न) क० १।५ व० ११२३. दसा० ४।२३. -विहरेज्जासि विहुण (वि+ध)-विहुणाहि उ० १०॥३ द० ५।१५० विहुय (विधुत) आ० २।५; ५।४।५ विहरमाण (विहरत्) दसा० ६।१२ से १८; १०।३, विहुयण (विधुवन) द० ४ सू० २१; ६।३७; १९ - ११,२४ से ३३ विहुवण (विधुवन) नि० १७१३२ विहरु (विहरत्) उ० २।४३ विहूण (विहीन) उ० १२।१४; १४।३०; २०.४८%; विहरिऊणं (विहृत्य) अ० २१ २८/२६ विहरित्तए (विहर्तुम्) क० ४।१६. व० ११२३ विहेडयंत (विहेठयत) उ० १२।३६ विहरित्तु (विह) उ० १६ सू० ५ वीइक्कत (व्यतिक्रान्त) प० १०६,१२४,१२८, विहवा (विधवा) व० ७।२५ १३८,१८१. व०३।१३,१५,१७,१८,२०,२२ विहाण (विधान) उ०३६।७४,८३,६१,१०५, वीइत्ता (वीजयित्वा) नि० १७।१३२ ११६,१२५,१३५,१४४,१५४,१६६,१७८, वीइय (वीजित) दसा. १०११ १८७,१६४,२०३,२४७. ५० ११० वीइवय (वि+अति+वज)-बीईवइंस विहार (विहार) उ० १४।४,७,१७,३३; २६।३५; नं० १२५.–वीइबएज्जा अ० ३६८. ३०।१७. दसा० ६।१२ से १८; १०१३० -वीइवयइ उ० २६।२३.-वीईवइस्संति से ३३. प० ८१. १० ११२० से २२; ४।११, नं० १२५.-वीईवयंति नं० १२५ १२,५।११,१२. नि०८।१ से १,११; ६।१२; वीइवयमाण (व्यतिवमत्) ५० १५ १६।२६,२७ वीदंसय (विदंशक) उ०१६६५ विहारकप्प (विहारकल्प) नं० ७७. जोनं० ८ वीणग्गाह (वीणग्राह) दसा० १०॥४ विहारचरिया (विहारचर्या) दचू० २।५ वीणा (बीणा) अ० २५०. नि० १७४१३७ विहारजत्ता (विहारयात्रा) उ० २०१२ वीणीय (विनीत) ५० ६२,१२६ विहारभूमि (विहारभूमि) दसा० ३३३ प० ५८, वीतिक्कंत (व्यतिक्रान्त) प० ६१,१०६ २७२,२७७. क० ११३६,४१,४५,४६; ४।२६; वीमंसा (विमर्श) नं० ४५,५४।६,६२,१२७।४ ५।१५. व० ८।१४. नि० २।४० वीय (व्यज्)-वीए द० १०॥३.-वीएज्ज विहारि (विहारिन) उ० १४१४४ द० ८९.-वीएज्जा द०४ सू० २१. विहि (विधि) द० ५१०३. उ०२४।१३, २८।२४ उ० २६ नं० १२७।५. अ० ३१८।३,७१५।३. वीयंत (व्यजत्) द० ४ सू० २१ दसा० १०।११ वीयण (वीजन) द० ३।२ विहि (वि+धा)-विहिज्जइ अ० ३७६ वीय राग (वीतराग) जोनं० ८. अ० २७६ विहिंस (विहिन). उ० ४।१ वीयरागभाव (वीतरागभाव) उ० २६।३७; Page #1268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ ३२।१६,२२,३५,४८,६१,७४,८७,१००,१०८; ३४।३२; ३५।२१ वीयरागया (वीतरागता) उ० २६१,४६ वीयरागसुय (वीतरागश्रुत) नं० ७७ वीयाव (वीजय)-वीयावए द० १०॥३. -वीयावेज्जा द० ४ सू० २१ वीयावेऊण (चीजयितुम) द० ६।३७ वीर (वीर) उ० २०१४०. नं० गा० ३,२१,२२. .. अ० ३०६,३१०. प० ३८,४२,४७,७४,१५१ वीरण (वीरण) अ० ५२३ | वीरभद्द (वीरभद्र) प० ११५ वीररस (वीररस) अ० ३१० वीरवलय (वीरवलय) दसा० १०११. प० ४२ वीरासण (वीरासन) उ० ३०।२७ वीरासणिय (वीरासनिक) दसा० ७।३०. क० ५।२३ वीरिय (वीर्य) उ० ३।१,६,११; २८१११; ३३।१५. नं० १०४,१०७. अ० ३२२. दसा० १०१३३. प०८१ वीरियंत राय (वीर्यान्तराय) अ० २८२ वीरियलद्धि (वीर्यलब्धि) अ० २८५ वीरियसंपन्न (वीर्यसम्पन्न) प० ६७ वीरियायार (वीर्याचार) २० ८१ वीस (विशति) आ० ४१८. उ० ३६.५१. नं० ६१. अनं० २८. अ० ४१७. दसा० ११. प०१०६ वीस (विस्र) दसा०६५ वीसइ (विशति) उ० ३३।२३. प० २२३ -वीसंभ (दे०)-वीसं भेज्जा व०३।११ वीसतिरातिय (विशतिरात्रिक) नि० २०१६ से २६,३३,४६,४८,५० वीसत्य (विश्वस्त) प० ३७ -वीसम (वि+श्रम्)-बीसमेज्ज द० ५६३ वीसमंत (विश्राम्यत्) द० ५।१४ वीसवासपरियाय (विशतिवर्षपर्याय) व०१०।१६, वीयरागया-वृत्तपुव्व विसस (वि+श्वस्)-वीससे उ० ४।६ वीससणिज्ज (विश्वसनीय) उ० २६।४३ वीसुंभ (दे०)-वीमुंभेज्जा क० ४१२५ वीसेढि (विश्रेणि) नं० ५४१५ वीहि (व्रीहि) क० २।१ वीही (वीथि) प० ६२ वुइय (उक्त) उ० १८।२६ वुक्कस (बुक्कस) उ० ८।१२ वुग्गह (व्युद्ग्रह) द० ७।५०. उ० १७.१२. प० २८३. नि० १३।१२; १६।१६ से २४ वुग्गहिय (व्युद्ग्राहिक, वैवाहिक) द० १०३१० बुग्गाहिय (व्युद्ग्राहित) क०४८ विच्च (वच)-वच्चइ उ० ११२. अ० ४१७. प० १८३.- वच्चंति द० ११५. उ० ८।१३. -वृच्चसि उ० १८१२१.-वोच्छं नं० गा० ४३ वुच्छित्तिनय (व्युच्छित्तिनय) नं० ६८ वुच्छिन्न (व्युच्छिन्न) प० ५८ वुच्छेय (व्यवच्छेद) नं० गा० ३६ वुझ (वह)-वुज्झइ द० ६।२० वुज्झमाण (उपमान) उ० २३।६५; ६८ वुट्ठ (वृष्ट) द० ७।५१,५२,८।६. उ० १२।३६ वुट्ठि (वष्टि) अ० ५२६ वुट्ठिकाय (वृष्टिकाय) प० २५२ से २५६ वुड्ढसावग (वृद्धश्रावक) अ० २०,२६ वुड्ढसील (वृद्धशील) दसा० ४।४ वुड्ढसेवि (वृद्धसेविन्) दसा० ४।२२ वुड्ढावास (वृद्धावास) व० ८।४ द्धि) नं० १८७,८३ वुत्त (उक्त) द०६।५,२०,४८,५४,८१२;६।३६. उ० १४।२२,२३; २०११३; २३॥३७,४७,४८, ५२,५३,६२,६७,७२,७३,७७,८२, २४१५,६, २६; २५।१६; २८।३४;३०१७; ३३१८%; ३६।४,४८,२०४. नं० ३८. दसा० ६।२।३५; १०।४,१०. प० १५,४०,४३,६३ वृत्तपुव्व (उक्तपूर्व) प० २३३ से २३५,२३७ ३६ Page #1269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वुसिरातिय-वेयाल २७५ वुसि रातिय (वृषिराजिन्) नि० १६। १३, १४।१५ वेणुसूई (वेणुसूची) नि० ५।१६ से २२ वसीम (वषीमत) उ०५।१८,२६ वेत्त (वेत्र) दसा० ६।३. व० १०।२,४ वुह (व्यूह) नं० ८२ वेत्तदंड (वेत्रदण्ड) नि० ५।२५ से ३३ वूहइत्ता (बहयित्वा) उ० ४१७ वेत्तपासय (वेत्रपाशक) नि० १२।१,२; १७।१,२ वृद्धि ( ) अ० ३६७ वेत्तपीढग (वेत्रपीठक) नि० १२।६ वेइय (वेदित) उ०१६।४७,४८,७१,७२,७४; Vवेद (वेदय)-वेदेति अ० ६०४ २९७२ वेदणा (वेदना) दसा० ६।५ वेइया (वेदिका) उ० २६।२६. अ० ४१० वेदिस (वैदिश) अ० ३६३ वेउट्टिया (दे) व० ४।२१,२३ वेन्ना (वेन्ना) अ० ३६३ वेउब्विय (वैक्रिय) अ० २७६,४४६ से ४४८, वेन्नायड (वेन्नातट) अ० ३६३ ४५२,४५५,४५८,४६३,४६५,४६७,४६६, वेमाणिय (वैमानिक) उ० ३४१५१, ३६।२०४, ४७२,४७७,४७८,४८०,४८३,४८७,४६१, २०५,२०६,२१६. अ० २५४,४४५,४५६, ४६५,४६७, ४६६,५०१,५०३,५०५. ५०२,५०३. प० ६,६२ प० १००,१२२,१३६,१७५,२८४ वेमाया (विमात्रा) उ० ७।२० वेउव्वियसमुग्घाय (वैक्रियसमुद्धात) प० १५ . Vवेय (वेदय)—वेएइ उ० २७॥३.-वेएज्ज वेंटय (वृन्तक) क० ५।३० से ३३ उ० २।३७ वेकत्तय (विकतक) दसा०६३ वेय (वेद) द० ६।४ सू० ४. उ० १२।१५,१४१६, वेग (वेग) उ० २३१६५,६६,६८; २७।६. प० २७, १२,२५।११,१४,१६,२८. नं०६७. अ० ४६, ५४८. प०६ वेजयंत (वैजयन्त) उ० ३६।२१५. दसा० १०॥१४ ।। वेयइत्ता (वेदयित्वा) दचू० १ ० १ वेजयंतय (वैजयन्तज) अ० २५४ वेयकाल (वेदकाल) उ० ४।४ वेज्ज (वैद्य) अ० ५७३ वेयछिन्न (छिन्नवेद) दसा० ६।३ वेज्जचिंता (वैद्यचिन्ता) उ० १५१८ वेयण (वेतन) अ० ३८३ । वेज्जय (वैद्यक) अ० ५७३ वेयणा (वेदना) उ० २।३२,३५; ३।६; ५।१२; वेडस (वेतस) प० १३० १६।३१,४५,४७,४८,७१,७३,७४, २०१६ वेढा (वेष्टा) नं०८१ से ११. अ० ५७१,५७२ से २१,३१ से ३३; २३१९१२६।३२। वेढिम (वेष्टिम) अनं० ३. अ० १०,३१,५४,७८, वेयणिज्ज (वेदनीय) उ० २६।४२,७३; ३३१२, १०३,५६०. नि० १२॥१७ २०. अ० २८२. दसा० ५७।१६. प० १०६, वेणइय (वैनयिक) द० ६।१२. नं० ८१ १२४,१३८,१८० वेणइयवाइ (वनयिकवादिन) नं० ८२ वेयणीय (वेदनीय) उ० ३३१७ वेणइया (वनयिकी) नं० ३८,७६ वेयरणी (वैतरणी) उ० १६०५६; २०१३६ वेणा (वेणा) प० १६१।३ वेयवि (वेदवित्) उ०२५२४ वेणु (वेणु) नि० १७।१३६ वेयविय (वेदवित्) उ० १४१८; १२२ वेणुदंड (वेणुदण्ड) नि० ५।२५ से ३३ वेधविउ (वेदवित) उ० २५७,३६ वेणुसूइया (वेणुसूचिका) नि० १।४०; २।२५ वेयाल (वेताल) उ० २०।४४ Page #1270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ वेयावच्च-वोसट्टकाइय वेयावच्च (वैयावृत्य) उ० २६।६,१०,३२; २६।१, वेस (द्वेष्य) उ० १।२८,२६. अ० ७०८।४ ४,४३०।३०,३३. व० ५।२०; १०१४०,४१. वेसमण (वैश्रमण) उ० २२।४१. अ० २०. दसा० ४।२३. प० २३६. नि० १०॥३२३३; दसा० १०।१५. ५० ५१,६१ १११८७ वेसमणोववाय (वैश्रमणोपपात) नं० ७८. वेयावच्चकर (वैयावत्यकर) क० ४।२५. जोनं० ६. व० १०॥३१ व० ५।२० वेसवाडियगण (वेसवाडियगण) प० २०० वेयावडिय (वैयापृत्य) द० ३।६. चू० २।६. वेसालिय (वैशालिक) उ०६।१७ उ० १२।२४,३२. क० ५।४०. व० ११५ से। वेससामंत (वेशसामन्त) द० ५।६,११ १८,२० से २२; २।१,३,५ से १७,२६,३०; । वेमाली (वैशाली) प० ८३ ६।२. नि० २०११५ से १८ वेसासिय (वैश्वासिक, विश्वास्य) व० ३१६. वेर (वर) आ० ४६. द० ६।४७. उ०४।२; प० २३८ ६६. नि० १२।२८; १७।१५० वेसिय (वैश्य,वैशिक) नं० ६७ वेर (वज्र) प० ३३ वेसिय (वैशिक) अ० ४६,५४८ वेरज्ज (वैराज्य) क. ११३७. नि०११७२ वेस्स (द्वेष्य) उ० १३।१८ वेरत्तिय (वैरात्रिक) उ० २६।२० वेहम्मोवनीय (वैधोपनीत) अ० ५३८,५४३,५४६ वेरबहुल (वैरबहुल) दसा० ६।४ वेहास (विहायस्) नि० १६।३६ वेरमण (विरमण) आ० ४।८. द० ४ सू०११ से वेहासमरण (वैहायसमरण) नि० ११६३ १७. नं० ८७. दसा० ८ से १८; १०१३० से . वेहिम (वैध्य, द्वैधिक) द० ७।३२. नि० १२॥१७ ३२ वोकम्म (व्युपक्रम्य) दसा० ६।२।२१ वेरायतण (वैरायतन) दसा० ६।४ वोक्कत (व्युत्क्रान्त) द० ६।६० वेरुलिय (वैडूर्य) उ० २०१४२; ३४१५; ३६७६. वोक्कस (बोक्कस) उ० ३।४ नं० गा० १७. दसा० १०.१४. प० १०,१५ वोगड (व्याकृत) क० २।२३, ३।३१. व०७।२८ वेलंधरोववाय (वेलन्धरोपपात) नं० ७८. जोनं० ६. वोच्चत्य (व्यत्यस्त) उ० ८।५ व० १०॥३१ वोच्छिद (वि-- उत्+छिद्)-वोच्छंद वेलबग (विडम्बक) अ० ८८; प० ६२. उ०१०।२८.-बोच्छिंदइ उ० २६३ नि० ६।२२ वोच्छिंदित्ता (व्यवच्छिद्य) उ० २६।३६ वेलणय (ब्रीडनक) अ० ३०६,३१४,३१७ वोच्छ (वच)-वुच्छामि उ० ३०१२६. वेलणयरस (ब्रीडनकरस) अ० ३१४ -वोच्छामि उ० २४।१६ वेला (वेला) नं० गा० ११. अ० ४१०. प० २५६ वोच्छिन्न (व्यवच्छिन्न,व्युच्छिन्न) प० ८७, वेलागामिण (वेलागामिन्) नि० १८।१२ १८५. क० २।२३. व० ७।२८ वेलुय (वेणुक) द० ५।१२१ वोच्छेय (व्युच्छेद) उ० २६।४ वेलोइय (वेलोचित) द० ७।३२ वोच्छेयण (व्यवच्छेदन) उ० २६।३४ वेवमाण (वेपमान) उ० २२॥३५ वोदाण (व्यवदान) उ० २६।१,२८,२६ वेवा (३०) नि० १७:१३६ वोसट्ठ (व्यसृष्ट) द० ५।६१. नि० ५।७५ वेस (वेष) अ० ३१६. दसा० १०।१२ वोसट्टकाइय (व्युत्सृष्टकायिक) क० ५।२१ Page #1271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वोस?काय-संकुल २७७ वोस?काय (व्युत्सष्टकाय) उ० १२१४२; ३५।१६. संकट्ठाण (शंकास्थान) द० ५।१५ दसा० ७।४,२६,२७,३२. ५० ७७,११४,१३०, संकण (शङ्कन) द०६३५८ १६६. व० १०।२,४ संकप्प (संकल्प) द० २।१ चू० १ सू० १. उ० वोसट्टचत्तदेह (व्युत्सष्टत्यक्तदेह) द० १०।१३ ६।५१; ३२।१०७. दसा० १०.२२,२३. ५० वोसिर (वि+उत् + सृज्)-वोसिरइ आ० ६ ११,५२,५४,५५,६६. नि०८।११,१०।२१,२४ से २८ सू० १. द० २१६. उ० २४।१८.-वोसिरामि आ० ११२. द० ४ सू० १० -संकप्प (सं+कल्पय)--संकप्पए उ० ३५७ व्व (इव) द० २६. उ० ३।१२ संकप्पय (संकल्पयत् ) उ०३२११०७ संकम (संक्रम) द० ५।४,६५. नि० ११११, २।१० सिंकम (सं+क्रम)---संकमति नि० १६।१५ शाला ( ) अ० २६८ संकमत (संक्रमत्) नि० १६।१५ शेते ( ) अ० ३६८ संकमण (संक्रमण) आ० ४।४. अ० ७१।४ श्री ( ) अ० २४६ संकममाण (संक्रामत्) दसा० २।३ संकमाण (शंकमान) उ० १४।४७ स (स) आ० ४।८. द० ४ सू० ८. उ० ११२. नं० संकमित्तए (संक्रमितुम्) क० ४।२६ ८६. अ० ६६४. दसा० १११. क० ११६. नि० संकरदूस (संकरदूष्य) उ० १२।६ संकहा (संकथा) उ०१६।३ ७७५ संका (शङ्का) द० ७।६. उ० २।२१,१६. सू०३ स (दे० अप्प) व ३४ से १२,१६।१४. अ० ३१४ स (स्व) उ० ४।३; ६।३,४; 8२६; १४।२,५; संकास (संकाश) उ० २।३; ५।२७; १६।५०; १६५३,६६; २११३; ३२।१०७. नि० ३०८० ३४।४ से;३६।६१. प० ६७,१२१,१३६, स (सह) दसा० १०.१०.५०६ १७२ स (सत्) उ० ५।२६; १२।२९; नि० १६।२६,२७. संकामिय (संक्रामित) आ० ४।४ दसा० ६१८ संकासिया (संकाशिका) ५० १६८ सइ (सदा) उ० ७।१८ संकिय (शहित) आ० ४।६. द० ५।४४,७७; सइ (स्मृति) नं० ५४१६ ७७. उ० २६।२७ सई (सकृत्) द० ५।१२. उ० ५१३ संकिलिट्ठायार (संक्लिष्टाचार) व० ३१४,६,८; सइकाल (स्मृतिकाल) द० ५।१०६ ६।१०,११; ७१ से ३ सइत्तु (शयितुम्) द० ६।५३ -संकिलिस्स (संक्लिश)--संकिलिस्सइ उ० सइय (शतिक) प० ६५ २६।५ सईण (दे०) दसा० ६।३ संकिलिस्समाण (संक्लिश्यमान) नं० १६ सउण (शकुन) उ० १६।६५. ५० ३०,५६ संकिलिस्समाणय (संक्लिश्यमानक) अ० ५५३ सउणरुय (शकुनरुत) प० १६५ संकिलेस (संक्लेश) द० ५।१६ संकेत (संक्रान्त) प० ८६,६० संकुल (संकुल) उ०६७ Page #1272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७५ संकुचिय-संगोवित्तु संकुचिय (संकुचित) द०४; सू०६ ४०२ से ४०४ संकोडिय (संकोटित) दसा० ६।३ संखेज्जगुण (संख्येयगुण) अ० २६३ संख (शङ्क) उ० ११११५,२१, ३४18%; ३६।६१, संखेज्जाएसिय (संख्येयप्रदेशिक) अ० ६४,६८, १२८. नं० ५४।३. अनं० १३,१७. अ० ३०१, ११५,१३२,१५२,१५३,३७१ ३८५,५२२,६०४,६५५,६५६,६८१,६८५. संखेज्जय (संख्येयक) अ० ४११,५७४,५७५,५८४ दसा०६।३; १०।१७. ५० ५२,६४,७४,७५, से ५८७. नं० २० ७८,६५. नि० १७।१४० संखेज्जसमयट्टिईय (संख्येयसमयस्थितिक) अ० संखक (शंखक) प० २८ २००,२२३,४१४ संखडि (दे० संस्कृति) द० ७३६,३७. प० २५१. संखेव (रुइ) (संक्षेप) (रुचि) उ०२८।१६ क० ११४४. नि० ३।१४ संखेवरुइ (संक्षेपरुचि) उ० २८।२६ संखणग (शंखानक) उ० ३६।१२८ संग (सङ्ग) द० १०११६. उ० २।१६; ३।६; संखपाय (शंखपात्र) नि० ११११ से ३ १३।२७; १८१५३; २११११, ३२।१८, ३५१२. संखबंधण (शंखबन्धन) नि० ११।४ से ६ दसा० १०॥३३. प० ८० संखमालिया (शंखमालिका) नि० ७.१ से ३; संगम (संगम) प० ७५ १७१३ से ५ संगह (संग्रह) उ०२५।२२; ३३।१८. अनं०६, संखय (संस्कृत) उ० ४।१३ २८. अ० १४,३५,५८,८२,१०७,११३,१३१ से १३७,१३६ से १४६,१५७,१७५,१६८,२१६, संखय (संक्षय) उ० ३२।२ संखवियाण (संक्षप्य) उ० २०१५२ २१७,५५५ से ५५७,५६४,५६८,६२४,६३६, संखा (संख्या) उ० २८।१३; ३६।१६७. अ० ५०६, ६४८,६७४,७०१,७१५. व. ३।३ से ८ ५५८ से ५६०,५६२ से ५७४,६०३,६०४ संगहकत्तु (संग्रहकर्त) अ० ३०२।५ संखाईय (संख्यातीत) उ० १०१५ से ८3३४।३३ संगहणी (संग्रहणी) न० ८३ से ६१,१२३. अ० संखादत्तिय (संख्यावत्तिक) प० २५०. व० ६।४२, ३४१,३४२,६१७ संगहपरिण्णा (संग्रहपरिज्ञा) दसा० ४।३ संखिज्ज (संख्येय) उ० १०.१० से १२. नं० ७६ __संगहपरिण्णासंपदा (संग्रहपरिज्ञासम्पदा) दसा० संखिज्जकाल (संख्येयकाल) उ० ३६।१३३,१४२, ४।१३ १५२ संगहिय (संगहीत) उ० २७।१४. अ० ७१५२२ संखित्त (संक्षिप्त) प० १८७ संगहित्तु (संग्रहीत) दसा० ४१२३ संखिय (शांखिक) दसा० १०॥१८. प० ७४ संगातीत (संगातीत) दसा० १०॥३३ संखेज्ज (संख्येय) नं० १६,१७; १८।३,२३,३२, संगाम (संग्राम) उ० २।१०।६।२२,३४; २१।१७. ५०,५२,८१ से ११. १० १२३ से १२५, दसा० १०।२६ १२८,१४० से १४२,१४५,१५६,१६७ से १६६, संगल्लि (दे०) दसा० १०।१६,२४ २०८,२०९,३८७,४११,४१६,४१७,४४४, संगोफ (संगोप) उ० २२॥३५ ४४५,४६०,४६१,४६५. प० १५ संगोवंग (साङ्गोपाङ्ग) नं०६७. अ० ४६,५४८. संखेज्जइभाग (संडल्येयतमभाग) अ० १२४,१२५, ५०६ १२८,१४१,१४२,१४५.१६८,१६६,२०६, संगोवित्तु (संगोपयितृ) दसा० ४१२० ४३ Page #1273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संघ-संजय २७६ संघ (संघ) उ० १३।१२, २३।३,७,१०,१५; ३६।२६५. नंगा० ४,५,६,८ से ११,१७; सू० १२०. व०१०।४० संघट्ट (सं-घट्ट )-संघट्टए द० ८७ संघट्टइत्ता (संघटय) द०६।३५ संघट्टण (संघट्टन) आ० ४१५,६ संघट्टित्ता (संघटय) दसा० ३।३ संघट्टिय (संघट्रित) आ० ४।४ संघट्टिय (संघटय) द० ५।६१ संघट्टेत्ता (संघटय) नि० १६॥३८ संघयण (संहनन) उ० २२।६. अ० २८२ संघवालिय (संघपालित) प० २२२ संघाइम (संघातिम, संघात्य) अ० १०,३१,५४, ७८,१०३,५६० संघाइय (संधातित) आ० ४।४ संघाडय (दे०) नि० ४।२७ से ३६ संघाडी (संघाटी) उ० ५।२१. क० ५।२०. नि. ५॥१२,१३; १२१७ संघातिम (संघातिम,संघात्य) अनं० ३. नि० १२।१७ संघाय (संघात) द० ४; सु० २३. अ० ७३,२८२, ४१६,५७१,५७२ संघायणिज्ज (संघातनीय) उ० २६।६० संचय (संचय) उ० १०॥३०; १६।३०; २०१८; २११२३. प० ३०,३१ सिंचाय (सम+शक)-संचाएइ क० ५।११. -संचाएज्जा क०६।३.-संचाएति दसा० १०।२४ संचारसम (सञ्चारसम) अ० ३०७८ संचाल (संचाल) आ० ५।३ संचाल (सं+चालय)-संचालेति नि० ११२ संचालेंत (संचालयत्) नि० ११२, ६।३; ७।१३, ८३,८४ संचिक्ख (सं+ष्ठा)-संचिक्खे उ० २।३३ -संचिक्खावेति नि०१६।२४ संचिक्खमाण (संतिष्ठमान) उ०१४।३२ संचिक्खाबेंत (संस्थापयत्) नि० १६।२४ Vसंचिण (सं+चि)-संचिणइ उ० ५।१०. -संचिणु उ० ३।१३ सचितण (संचिन्तन) उ० ३२।३ संचिणित्ता (संचित्य ) दमा० ६।४ मंचिणिया (संचित्य) उ० ७1८ संचिय (संचित) उ० ३०।६ संछन्न (संछन्न) उ० २०१३ मंजइंदिय (संयतेन्द्रिय) द० १०.१५ संजइज्ज (संजयीय) उ० १८ संजणण (सञ्जनन) अ० ३११ संजत (संयत) दमा० ५७१५; १०।२६ संजम (संयम) आ० ४।६. द० १११; २।८; ३।१; १०४।१२,१३,२७, ६।१,८,१६,४६,६०,६७; ७।४६; ८।४०,६१; ६।१३,१०१७,१०; चू०१ सू० १. उ० १११६; ३३१,२०, २०,२८%; ६।४०; १२।४४; १३।३५; १४।५; १६ सू०१ से ३; १६६५,६.३७,७७, २०१५२; २२१४३; २५.४३; २६।३२; २८॥३६; २६।१,२७,४०, ५४; ३११२; ३६।१,२४६. नं० गा० ५,९. अ० ७०८. दसा० ४।२३,१०॥३,५,६,११, ३५. प० ८१,६२,२७८. क०६।१६. व० ३१३ से ८ संजमजीविय (संयमजीवित) दचू० २।१५ संजमधुवजोगजुत्त (संयमध्र वयोगयुक्त) दसा० ४।४ संजमबहुल (संयमबहुल) दसा० ४।२३ संजममाण (संयच्छत्) उ० १८.२६ संजमसमायारी (संयमसमाचारी) दसा० ४।१५ संजय (संजय) उ० १८।१,१०,१६,२२ संजय (संयत) आ० ४।६. द० २।१०; ३।११,१२; ४ सू० १८ से २३. गा १०; २५ से ७, २२,४१,४३,४८,५०,५२,५४,५६,५८,६०,६२, ६४,६६,७,८३,८६,१०१, १०८ से १११, ११३,११५,११७,१२८,१५०,६११४,२६,२६, Page #1274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० संजल-संतरित्तए ३४,४०,४३,७१४६,५६, ८।३,४,६,१३,१४, मंठवेमाण (संस्थापयत) व०५।१७।। १६,१८,२४; १०।१५. उ० १६१६,३४,३५; संठाण (संस्थान) द० ८।५७. उ० १६।४; २।४,२७,३०,३४; ५।१८,२६; ६।१५; १०३६, २८.१३; ३६।२१,४२,४६,८३. नं० ५७. १११६,१२१२,६,२०,२२,४०,४५; १५:५; अ० १०१,२३४,२३७,२५७,२६२,२८२,४०८, १७१६,१८।३०; १६०५२०११,४,५,८,११, ५०८,५१३. दसा०६५ ४३,५६, २०१३,१५,२०,२२३५,४६; संठाणओ (संस्थानतस्) उ० ३६।१५,२२ से ४१, २३।१०; २४१४,१०,३०१६; ३५॥३,७,९. ४३ से ४५,६१,१०५,११६,१२५,१३५,१४४, नं० २३. दसा०६।१८%, 8२।२१. क० ५।११ १५४,१६६,१७८,१८७,१६४,२०३,२४७ संजल (सं-ज्वल)-संजले उ० २।२४ संठिय (संस्थित) उ० ३६।५७,६०. अ० ४०८. संजलण (संज्वलन) उ० २६४५. दसा० ११३ दसा०६।५. प० २४. नि०६।१३ सिंजा (सं+जन्)-संजायई उ० ३२।१०७ संड (षण्ड) ५० ४२ संजाय (संजात) द० ७.२३ संडासतुड (सदंशतुण्ड) उ० १६०५८ संजुत्त (संयुक्त) उ०१८।१७; २६।७, २८।१. संडिब्भ (दे०) ८० ॥१२ नि० १०१५; १२।४ संडिल्ल (शाण्डिल्य) नं० गा० २६ संजुय (संयुत) उ० १२।३४; १४।२६; २२।१,३,५ संत (सत्) द० ५।१११; ६।५३. उ० १।२२; संजूह (संयूथ) नं०१०२. अ० ३५८,३६४ ।। १६७; २०।१२; २२।३२; २३३५३; २५२६; संजोएमाण (संयोजयत्) उ० २६६१ ३२।३४,४७,६०,७३,८६,६६. अनं० १३,१७. अ० ५६६,६५५,६५६,६८१,६८५. संजोग (संयोग) द० ४।१७,१८. उ० १.१; ८।२; नि० २।४४; १७।१२३,१२४ ११।१; २८।१३; २६४. अ० २८६,२६०, २६२,२६४,३११,३१५,३१६,३२८,३२६, संत (श्रान्त) उ० १८।३. दसा० १०.११. ५० ४२ ३३२ से ३३५,३३७,३५८,३६२ संत (शान्त) प० ७८ संजोय (संयोग) अ० २८६,२६६ संतइ (सन्तति) उ० ३६।६,१२,७६,८७,१०१, संज्झा (सन्ध्या) अ० २८७,५३३. नि० १६१८ ११२,१२१,१३१,१४०,१५०,१५६; ३६।१७४, Vसंठव (सं+स्थापय)-संठवेज्ज नि०३।४१. १८३,१६०,१६६,२१८ ---संठवेज्जा व० ५।१५.-संठवेति संतत्त (संतप्त) उ० १४३१० नि० ११३६.-संठवेस्सामि व०५।१५ संतपयपरूवणया (सत्पदप्ररूपण) अ० १२१,१३८, संठवेंत (संस्थापयत्) नि० २।२४,२५; ३।४१ से १६५,२०६ ४६,५६ से ५८,६५,६६,४।७९ से ८४,६४ से संतय (सन्तत) दचू० ११८. उ० २।३ ९६,१०३,१०४,६५० से ५५,६५ से ६७, संतय (सत्क) अ०५६६ ७४,७५; ७१३६ से ४४,५४ से ५६,६३,६४; संतर (सान्तर) अ० ७१३१२. दसा० ७।८. १११३६ से ४१,५१ से ५३,६०,६१,१५॥३८ क० २।४ से ७. व० १११६ से २२,३१२, से ४३,५३ से ५५,६२,६३,१२४ से १२६, ४।११,१२,१५,१६,१६; ५।११,१२,६।१४ १३६ से १४१,१४८,१४६; १७:४० से ४५, संतर (संत)-संतरति नि०१२।४३ ५५ से ५७,६४,६५,६४ से ६६,१०६ से १११; संतरंत (संतरत्) नि० १२।४३ ११८,११६ संतरित्तए (सन्तरीतुम्) क० ४।२६ Page #1275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संतरुत्तर-संपग्गहित २८१ संतरुत्तर (सान्तरोत्तर) उ० २३॥१३,२६. प० २५४ वसंतस (सं+त्रस्)-संतसंति उ० ५।२६. -संतसे उ० २।११.-संतसेज्जा उ० २११२४.-संतस्सइ उ० ५।१६ सत (सत्) ५० ५२,६६,७४ संताण (सन्तान) आ० ४।४. दचू० ११८. उ० १४१४१ संताणग (सन्तानक) नि० ७१७५; १३।८; १४।२७; १६।४८; १८१५६ संताणय (सन्तानक) क० ४।३१ से ३४ संति (शांति) आ० २१३; ५।४।३. उ० १२१४३. से ४६; १८॥३८. नं० गा० १६. अ० २२७. प० १४५ संति (गिह) (शान्तिगृह) प० ५१ संतिकर (शान्तिकर) उ० १८:३८ संतिमग्ग (शान्तिमार्ग) उ० १०॥३६ संतिय (सत्क) क० ३।२६,२७; ४१२५. व० १॥३३; ७१२२; ८1८,६. नि० २।५४,५५ ५१७,१८,२१ से २३. ५०६७ संतुट्ठ (संतुष्ट) द० ५।१३४. उ० ३५।१६ । संतुयट्ट (संत्वग्वर्तित) व० ५।१८ । संतुस्स (सं+तुष)-संतुस्सइ उ० २६.३४. -संतुस्से उ० ८।१६ संतोस (सन्तोष) द० ९४५ संतोसओ (सन्तोषतस्) द० ८।३८ संतोसीभाव (संतोषीभाव) 30 २६७१ संथड (संस्तृत) व० ७१७; ६।३१,३३ संथडिय (संस्तृत) क० ५।६,७. नि० १०।२५,२६ सिंथर (सं-स्तृ)-सथर द० ५।१०२. -संथरेज्जा क० ५१४१ मंथरमाण (संस्तृण्वत्) नि० १६।२६,२७ संथरिज्ज (संस्तीर्य) प० २४० संथव (संस्तव) उ० १५५१,१०; १६॥३,११; २११२१,२६०५१, २०२८ संथार (संस्तार) द० ८।१७।६।४५. उ० १७७; २३।४,८; २५॥३. अनं० ८. अ० १६,३७,६०, ८४,१०६,५५६,५६६,६२६,६३८,६५०,६७६, ७०३ संथारग (संस्तारक) द० ४ सू० २३. व० ८।१ से ४,६ से ६. दसा० ३।३,७१३ से १५. नि० २।५१ संथारय (संस्तारक) उ० १७।१४. दसा० ३।३; ४।१४. क. ११४२, ३।१६,२५ से २८. व०८।१२. नि० २।४६,५०,५२ से ५५; ५।२३; १६।३५,३६. संथुय (संस्तुत) उ० ११४६; १५।१०।२३।८६ संदट्ठोटु (संदष्टौष्ठ) अ० ३१३१२ संदमाणिया (स्यन्दमानिका) ब० ३६२ बसा० ६६३ संदिट्ठ (संदिष्ट) उ० २५॥१६. प० १७ संधाव (सं+धाव)--संधावइ उ० २०१४६ संधि (सन्धि) द० ०१५. उ० ११२६. नि० १३१२८ संधिपाल (संधिपाल) ५० ४२ संधिमुह (सन्धिमुख) उ० ४।३ संनिचय (संनिचय) नि० ८।१७ संनिभ (संनिम) उ० १६।१३; २२।३०; ३४।४,६ से ८ संनियट्टचारि (संनिवृत्तचारिन्) व० ८।५ संनिवेस (सन्निवेश) क० ५।१६. व० १॥३३; ६।४०,४१ संनिवेसणया (सन्निवेशन) उ० २६१,२६ संपइ (संप्रति) उ० १०॥३१. अ० ५५७ संपउंज (सं+प्र+यूज)-संपउंजे दसा० ६२।३० संपउत्त (सम्प्रयुक्त) दसा० १०।१४. ५० २८५ सिंपगर (सं+ +कृ)-संपगरेइ उ० २१११६ संपगाढ (संप्रगाढ) उ०२०।४५ संपग्गहित (सम्प्रगृहीत) दसा० ६।२।१६ Page #1276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ संपज्जलिय-संबंध संपज्जलिय (संप्रज्वलित) उ० २३।५० ।। संपराय (संपराय) द० २१५. उ० २०१४१,२८।३२ संपट्ठिय (संप्रस्थित) दसा० १०।१४ संपरिवुड (संपरिक्त) दमा० १०।१८. ५०४२ -संपडिलेह (सं+ प्रति लिख)-संपडिलेहए संपलियंक (सपर्यङ्क) प० १०६ उ० २६१४२ संपविट्ठ (सम्प्रविष्ट) प० ५४. नि० ८।११ गंपडिलेहियव्व (संप्रतिलेखितव्य) दचू० १११ संपव्व इत्तए (संप्रवजितुम्) क० ३।१४,१५,२५,२६ संपडिवज्ज (सं+प्रति+पद्)-संपडिवज्जइ ।। संपवय (सं+प्र+वज)-संपवयंति द० ६।४।४. उ० ५।७ नि० २०५३ संपडिबज्जेत्ता (संप्रतिपद्य) उ० २६।५१ संपव्वयंत (संप्रव्रजत) नि० २।५३,५४ संपडिवाइय (संप्रतिपातित) द० २।१०. संपन्वयमाण (संप्रवजत्) क० १४,१५ उ० २२०४६ संपसारय (संप्रसारक) नि०१३।५६,६० संपडिवाय (सं+प्रति+पद)---संपडिवायए संपस्सिय (संदृश्य) दचू० १११८ द०.६।३७ संपहास (संप्रहास) द० ८।४११०।११ संपणाम (सं+अर्पय)--संपणामए उ० २३३१७ संपाउण (सं+प्र+आप)-संपाउणइ संपणोल्लिया (संप्रणुद्य) ६० ५।३० उ० २६।६०.-संपाउणेज्जासि उ० १११३२ संपत्त (संप्राप्त) आ० ६।११. द० ५।१. संपाय (सम्प्रात) उ०१८॥१३ उ० ५।३२,१६।६०; २२।१५,२३; २३३८४; संपाविउकाम (संप्राप्तुकाम) द०६।१६. २६.१६; ३५।२१; ३६६६६. दसा० १०१६. दसा० १०॥३,११. प० १० प० १०,६६ संपिडिय (संपिण्डित) उ० १४१३१ संपत्ति (संपत्ति) द०६।३८. प०६६ संपिक्ख (सं++ईक्ष)-संपिक्ख इ संपधूमिय (सम्प्रधूमित) प० २२४. क० ११४३ दचू० २०१२ संपन्न (सम्पन्न) आ० ४१६. द० ६।१७।४६; संपिहित्ताण (सम्पिधाय) दसा० ६।२।१ ८।५१. उ०१२,१८१२४,३३,२११६; संपीला (संपीडा) उ० ३२।२६,३६,५२,६५,७८, २७११७; २६।१५,३६,५०. नं० गा० ३६. प० २२२ संपुच्छण (संप्रच्छन) द० ३।३. प० २८३ संपन्नया (संपन्नता) उ० २६।४६ संपुड (संपुट) ५० १५ संपमज्ज (सम+प्र+मज)-संपमज्जति संपुण्ण (सम्पूर्ण) ५० ३२,५८ दसा० १०.१० संपुन्न (सम्पूर्ण) उ० २२१७ संपमज्जित्ता (संप्रमृज्य) द० ५।८३. संपूएत्तु (संपूजयित) दसा० ४।१३ दसा० १०१० सिंपेह (सं+प्र+ईक्ष)-सपेहेइ प० १४ संपमज्जिय (संप्रमृज्य) प० २४० संपेहेत्ता (संप्रेक्ष्य) प० १४ संपय (साम्प्रत) द० ७७ संफाणिय (संफाण्य) नि० ५।१४ संपया (संपदा) उ० २०११५; २५।१८. प० ६६, सिंफुग (सं+स्पृश)-संफुसेज्जा द० ४ सू० १६ ६३ से १८,१०१,१०४,११८ से १२२,१३२ संफुसंत (संस्पृशत्) द० ४ सू० १६ से १३६,१६८ से ११८ सिंफुसाव (सं+स्पर्शय)-संफुसावेज्जा संपयावण (सम्प्रदापन) अ० ३०८।१ द० ४ सू० १६ संपयोग (संप्रयोग) दसा० ६।३ संबंध (सम्बन्ध) प० ३१ Page #1277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबंधि-संवच्छर २८३ संबंधि (सम्बन्धि) प०६६ संबद्ध (संबद्ध) उ० १९१७१. नं० १७. प० ३६ संबलिफालिया (शाल्मलिफालिका) दसा० १०१२७ संबाह (संबाध) 3० ३०।१६. अ० ३२३,५५६; क० ११६. नि० ५।३४; १२।२०; १७११४२ संबाहण (सम्बाधन) द० ३।३. प० ४२ संबाहपह (सम्बाधपथ) नि० १२।२३; १७११४५ संबाहमह (सम्बाधमह) नि० १२।२१, १७।१४३ संबाहवह (सम्बाधवध) नि० १२।२२; १७५१४४ संबाहिय (सम्बाधित) प० ४२ संबुक्कावट्ट (शम्बुकावर्त) दसा० ७।७. प० २६६ संबुद्ध (संबुद्ध) द० २।११. उ० ११४६;६।६२; १९६६; २१।१०; २२१४६ संबुद्धप्प (संबुद्धात्मन्) उ० २३।१ संभंत (सम्भ्रान्त) उ० १८१७ सभम (सम्भ्रम) अ० ३१३,३१७. दसा० १०॥१७. प० १०,७५ सिंभर (सं+स्मृ)-संभरामि आ० ४।६. -संभरे उ० १४१३३ संभव (सम्भव) आ० २।२; ५।४।२. उ०६।११, १९१२. नं० गा० १८. अ० २२७,३१८. प० १५८ संभारकड (सम्भारकृत) दसा० ६१४ संभिन्न (संभिन्न) नं० १०२. प० ६६ संभिन्नवित्त (सम्मिन्नवत्त) दच० १११३ ।। संभुज (सं+भुज् ) --संभुजंति व० २।२७. -संजति नि० १०।१४.-संभुंजेज्जा क० १३४ संभुजत (संभुजत्, संभुजान) नि० १०।१४,१६ से संभोग (सम्भोग) उ० २६।१,३४; ३२।२८,४१, ५४,६७,८०,६३. क० ४।१६ से २१. व० ७।४,५ संभोगवत्तिय (संभोगप्रत्यय) नि० ५।६४ संमय (सम्मत) उ० ३६।२६८. व० ३६ संमुच्छ (सं+ मूर्छ)-संमुच्छइ उ० १४।१८ समुच्छिम (संमूच्छिम) उ० ३६।१७०,१६५,१६८ नं० २३ संमुच्छिय ((सम्मूच्छित) द० ७।५२ संमेल (संमेल) नि० १११८१ संमोह (सम्मोह) अ० ३१३ संयत (संयत) अ० २७० संरंभ (संरम्भ) उ० २४१२१,२३,२५ सरक्खण (संरक्षण) द०६।२१ संलत्तए (संलपितुम्) दसा० ६।३ सिंलव (सं+लप्)-संलवे उ० ११२६ संलवमाण (संलपत्) प० ३६ से ३८ सिंलाव (सं+लपय-संलाविति प० ४७ संलाविता (संलाप्य) प० ४७ इसलिह (सं+लिख)-संलिहे द० ८७ -संलिहे उ० ३६।२५० संलिहित्ताण (संलिय) द० १०१ संलि हिय (संलिह्य) प० २४०,२५६ सलीणया (संलीनता) उ० ३०।८ संलुचिया (संलुञ्च्य) द०५।११४ संलेहणा (संलेखना) नं० ८६ से ८६,६१ संलेहणासुय (संलेखनाश्रुत) नं० ७७. जोनं ८ संलेहा (संलेखा) उ० ३६।२५१ संलोग (संलोक) द० ५।२५ संलोय (संलोक) उ० २४।१६,१७. प० २५७,२५८ संवच्छर (संवत्सर) दचू० २।११. उ० ३६२५१, २५३ से २५५. अ० २१६,४१५,४१७. दसा० २।३. प०७४,७६,८१,८४,१०७,१२५, २४ संभुंजित्तए (संभोक्तुम्) क० ४।५. व० ६।१० संभूय (सम्भूत) उ० १२।१; १३।२,३,११; २३।४५; २५५१. नं० गा० २४ संभोइणि (सांभोगिकी) २० ७.५ संभोइय (साम्भोगिक) व० ११३३; ५११६७।१ से ५. नि० २।४४ Page #1278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ सवच्छरिक संसार १३६ से १४३,१५१,१८१,२८१. व० ३।१३, संवाहवेत (संवायत् ) नि० १५।१४,२०,२६,४८, १५,१७,१८,२०,२२,४।१७ ५७; १७११६,२२,२८,५०,५६,७०,७६,८२, संवच्छरिक (सांवत्सरिक) प०२८७ १०४,११३ संवट्ट (संवर्त) उ० ३०।१७ संवाहेंत (संवाहयत) नि० ११३; ३।१७,२३,२६, सिंवट्ट (सं+वत्)--संवट्टे ति दसा० १०११० ५१,६०,४१५५,६१,६७,८६,६८; ६।४,२६, संवट्टगवात (संवतंकवात) उ० ३६।११६ ३२,३८,६०,६६; ७।१५,२१,२७,४६,५८; सिंवड्ढ (सं-+-वृध)-संवड्ढइ उ० २११५ ११।१२,१८,२४,४६,५५; १५।१००,१०६, । संवय (सं-वच)--समुवाय उ० १४१३७ ११२,१३४,१४३ संवर (संवर) द० ४।१६,२०, ५॥१३६,१४१, संविग्ग (संविग्न) उ० २१९ १४४,१०१५. चू० २।४. उ० ६।२०, १२।०२० संविद (सं+विद)-विदे उ० ७।२२ १६ सू०१ से ३;२८।१४,१७, २६।४०,५६; मंविभइत्तु (संविभक्त) दसा० ४।२० ३३।२५. नं० गा० १५. अनं० २८ संवर (सं+वृ)--संवरे द० ८।३१. मंवुड (संवृत) द० ५।८३; ६।४।५. उ० १।३५, ४७; ३।११।५।२५; १७।२०. दसा० ५७३ उ० २२।३६ संवेग (संवेग) उ०१८।१८, २१।१०।२६।१,२ संवरबहुल (संवरबहुल) दसा० ४।२३ मंसग्गी (संसर्ग) द०५।१०।६।१६८१५६. संववहार (संव्यवहार) दसा० ६।३ संवस (सं-+-वस्)--संवसइ व० ६।५. उ० १९ -संवसति नि०११।८८.-संवसे उ०१०१५. संसट्ठ (संसृष्ट) आ० ४।६. द० ५।३४,३६. -संवसेज्जा क० ११३४ क० २११४,१६,१७ संवसंत (संवसत्) नि० १११८८ से ६१ संसट्ठकप्प (संसृष्टकल्प) दचू० २।६ संवसमाण (संवसत्) दसा० ६।३ संसट्ठपिंड (संसृष्टपिण्ड) नि० ८।१८ संवसाय (सं+वासय)---संवसावेति संसट्ठोवहड (संसृष्टोपहृत) व० ६।४४ नि० ८।१२ संसत्त (संसक्त) द०६।२४. उ० १६ सू० ३. संवसावित्तए (संवासयितुम) क० ४१५ प० ३२. नि० ४१३५,३६, ८.१०; १३३५१, संवसावेत (संवासयत) नि० ८।१२ से १४; ५२; १५।१४ से ६७; १९३६,३७ १०।१३ संसत्तविहार (संसक्तविहार) व० ११३० । संवसित्तए (संवस्तुम) व०६।११; ७.१ से ३,६.६ संसय (संशय) द० ५।१०।६।३४. उ०१४७; संवसित्ताणं (समुष्य) उ० १४१३६ ६।२६; २३।२८,३४,३६,४४,४६,५४,५६,६४, संवहण (संवहन) द० ७।२५ ६६,७४,७६,८५,८६; २॥१५,३४ संवाय (संवाद) नं० ६० संसर (सं+स)-संसरइ उ० १०.१५ संवाह (संबाध) दमा० १०११८. ५० ५१. संसार (संसार) दचू० २।३. उ० ३१२,५,४।४; व० ११३३, ४१६,१० ६।१,१२; ८११,१५; १०।१५; १४१२,४,१३, संवाह (सं+वाहय)---संवाहेज्ज नि० ११३. १६,४७; १६।१५,२०।३१, २२।३१; २३ ७३, -संवाहावेज्ज नि० १५।१४ ७८,२४।२७, २५।३८,३६; २६।१,५२; २७४२; संवाहण (संबाधन) दसा० १०।११ २६।३,६,२३,३३,६०, ३०३७; ३१११,२१; संवाय (संबाधक) नि०६२७ ३२।१७; ३३।१,३६६६७. नं० ११,१२५. Page #1279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसारत्थ-सचेल २८५ प०८० सक्कराभा (शर्करामा) उ० ३६।१५६ समारस्थ (संसारस्थ) उ० ३६।४८,६८,२४८. सककार (सत्कार) उ० ३५।१८. ५० ५२,६६,६० अ० २७५ संसारपडिग्गह (संसारप्रतिग्रह) नं०६४ से १०० सक्कार (सत्+कृ)-सक्कारए द०६।१२. संमारमायर (संसारसागर) द० ६१६५ -सक्कारेइ प०४८.-सक्कारेंति द० ४।३२ संसिय (संश्रित) अ० ३७५,३७७,३८१,३८३ प० ६६.-सक्कारेज्जा व० १०१२. सिंसिव्व (सं+सीव) संसिव्वेति नि० ११५३ -सक्कारेति दसा० १०७.-सक्कारेमो मंसिव्वेंत (संसीवत) नि० ११५३ दसा० १०।११ मंसुद्ध (संशुद्ध) आ० ४१६. दसा० १०।२४ से ३३ सक्कारण (सत्करण) द०१०।१७ संसे इम (संस्वेदज) द० ४।६. नि. १७।१३३ मक्कारपुरक्कार (सत्कारपुरस्कार) उ० २ सू० ३ सक्कारिय (सत्कारित) प० ४५ संसे इम (संस्वेदज,संस्वेद्य) द० ५७५. प० २४५ सक्कारेत्ता (सत्कृत्य) दसा० १०७. प० ४८ संहरण (संहरण) प० १२७ सक्किय (सत्कृत) उ० १२५ सहर्ष ( ) अ० ३६७ सक्कुलि (शकुलि) द० २७१. क० २।८ संहिता (संहिता) अ० ७१४ सक्ख (सख्य) उ०१४।२७ संहिय (संहित) ५०२४ सकय (सकृत्) नि० २०११५ से १८ सक्खं (साक्षात्) उ० २।४२ सग (स्वक) उ० २०१२६,२७. अ० ४०५ सकय (स्वकृत) व० १११५ से १८ सगड (शकट) अ० ३३२,३६२. दसा० ६।३ सकाम (सकाम) उ० ५।३ सगडग (शकटक) अनं० १४ सकाममरण (सकाममरण) उ० ५।२,१७,३२ सगडमुह (शकटमुख) प० १६६ सकुंत (शकुन्त) अ० ३२१ सगणिच्चिया (स्वगणीया) नि० ८।११ सकुलिया (दे० शकुनिका) अ० ३२१ सगद्दिया (शकभद्रिका) नं० ६७. अ० ४६,५४८ सकोरंट (सकोरण्ट) दसा० १०॥३,११,१५ सगर (सगर) उ० १८१३५ सकोरेंट (सकोरण्ट) प०४२ सगास (सकाश) द० ५८८,६०,१५०, ८१४४; सक्क (शक) उ०६।६,५९,६१,१११२३; ६१. उ० १२।१६,४५ १८।४४. प०८,११,१४,१५,१७,५१ सगोत्त (सगोत्र) नंगा० २५. प० १४,१७,१६, सक्क (शक्त) अ० ३६८. नि० १४।६।१८।३८ १८६ से १८८,१६२,१६३,१६.६,१६८ से सक्क (शक्य) द०६।४६ २०३,२०६ से २०६,२१५ सिक्क (शक्)-सक्केइ उ० ४।१० सचित्त (सचित्त) अनं० ११,१२,१५,१६,१६,२०. सक्कणिज्ज (शकनीय) दचू० २११२ अ० ६२,६३,८६,८७,६०,३२६,३३०,६५३, सक्कय (संस्कृत) अ० ३०७।११ ६५४,६५७,६५८,६६१,६६२,६७६,६८०, सक्कर (शर्करा) दसा० ७।१८. ०६।३,५ ६८३,६८४,६८७,६८८. दसा०६।१३ से १८ सक्करप्पभा (शर्कराप्रभा) अ० १८१,१८२,२८७ नि० १११०,५१ से ११,२५ से २७; सक्करप्पभाय (शर्कराप्रभाज) अ० २५४ १२।१०; १५५ से १२; १६।४ से ११ सक्करा (शर्करा) द० ५८४. उ० ३४११५; सचित्तकम्म (सचित्रकर्मन) प० २०. क० ११२० ३६।७३. नि० ६१७६; १७ सचेल (सचेल) उ० २।१३. नि० ११८८,८६ Page #1280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ सचलय (सचेलक) उ० २।१२. नि० १११८८, १० सच्च (सत्य) आ० ४।६. उ० ६ २; ६ | २१; ११/५; १३६; १८ २४, ५२; १६।२६; २१।१२२१२५. दसा० १०।२४ से ३३. प० ७,३९,४८,८१ सच्चपणा (सत्यप्रतिज्ञा ) व० २३२४, २५ सच्चपरक्कम ( सत्यपराक्रम) उ०१८।२४,४८ सच्चयवाय (सत्यप्रवाद) नं० २०४,११० सच्चामोसा (सत्यामृषा ) द० ७/४ सच्चर ( सत्परत) ५०९५३ सच्चययण (सत्यवचन) क०६।१९ सच्चाइ (सत्यवादिन् ) ६० १४३ सच्चा (सत्या) द० ७ २, ३, ११. उ० २४ २०, २२ सच्चामोसा (सत्यामु) ० ७२. उ० २४ २०, २२. दसा० २६; १०२६ सच्चित्त (सचित) द० ३।७४ ० २२ ५।३०, ११४,११६; १०१३ सच्छंद (स्वच्छन्द) नं० ६७. अ० २१, ४९, ५४८ सजोइय (सज्योतिष्) द०६८ सजोगि ( सयोगिन् ) उ०२१।७२. अ० २७५ सजो गिभवत्थ केवलनाण (सयोगिभवस्थ केवलज्ञान ) नं० २७, २८ / सज्ज ( स ) – सज्जइ उ० २५/२०. - - सज्जति उ० ३५।२. सञ्जति नि० १२।३० सज्ज (षड्ज) अ० २९८ से ३०२ सज्जं (सद्यस्) क० १।३७, नि० ११।७२ सज्जगाम ( षड्जग्राम) अ० ३०३,३०४ सज्जमाण (सजत्) नि० १२।३० १७ १५२ सम्झाइय ( स्वाध्यायिक) आ० ४८. व० ७ १८ सम्झाइय ( स्वाध्यायित) आ० ४८ - सभाण ( सबुध्यान) द०६६२ सम्झाय ( स्वाध्याय) आ० ४।७५ ६० ५।२३; ८ ४१,६१,६२; १०१६ चू० २७. उ० १८।४; २४/८; २५ १८ २६ ६, १०, १२, १८, १६,२१,३६,४३,४४ २६ १,१२ ३०१३०, सलय -सण्णिणाण ३४, ३२ । ३. नं० गा० ६,११,३४, ३८. प० २७६, २७७. क० १।१६; ३।१,२१. व० ७। १४ से १६. नि० ५५ से ११७:२०, ११; ८१ से १ ११ १ १२ १६।२४,२५,३१ से ३३; १६८, ११ से १५ सज्झायकारक ( स्वाध्यायकारक ) दसा० १३ सज्झायवाय ( स्वाध्यायवाद) दसा० २२६ सद्वाण ( स्वस्थान) अ० १३७,१६४,२०५ सट्टि ( षष्टि) अ० ३७४ सट्ठितंत ( षष्टितंत्र ) नं० ६७. अ० ४६, ५४८. प० ६ सद्विवासजाय ( षष्टिवर्षजात) व० १०।१६ सद्विवासपरिया (षष्टिवर्षपर्याय) व० ७।२१ सद्विहायण ( षष्टिहायन) उ० ११।१८ सडंगवी (षडङ्गविद्) १०६ सडण ( शाटन ) दसा० १०।२८ से ३२ सड्ढा (श्रद्धा) उ० १४।६ सड्ढि ( श्रद्धिन् ) उ० ५।२३,३१.१० २३८ सठ ( शठ) द० १२०. उ० ५२; ७१५.१७; २७/५; ३४ । २३. दसा० ६।२।२६ सण ( शण, सण ) उ० ३४।८. अ० ४५. नि० ३।७० ; ५।२४ सकुमार ( सनत्कुमार) उ० १८३७ ३६।२१०, २२४. अ० १८१, २०७ सर्णकुमारय ( सनत्कुमारज) अ० २५४ सणप्पय ( सनखपद) उ० ३६ । १८० सालिय (दे० ) नि० १७ १३८ सणाह ( सनाथ) उ० २०/१६,५५ सण ( सन्न) नि० १८६ सण्णक्खर (संज्ञाक्षर ) नं० ५६, ५७ सण्णा (संज्ञा ) आ० ४८. उ० ३१६. अ० २४७ सण्णाण (संज्ञान) उ० २१ २२ / सण्णाह ( सं + नह ) - सण्णाहेहि दसा० १०८ सण (संज्ञिन्) नं० ६२ से ६४. दसा० ५०७. प० १०१,१७६ सणगाण (संज्ञिज्ञान ) दा० ५७१२ Page #1281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सण्णिणाय-सत्थपारग २८७ सण्णिणाय (संनिनाव) दसा० १०.१७ सत्तरसवासपरियाय (सप्त दशवर्षपर्याय) व० सण्णिय (संहित) उ० १०।१० से १२; ३६।६६, १०॥३६ सत्तरसविह (सप्तदशविध) आ० ४।८ सण्णिवेस (सन्निवेश) अ० ५५६. दसा० १०।१८. सत्तराइंदिया (सप्तरात्रिविवा) व० १०।२०. प०५१. नि० ५।३४; १२।२०; १७।१४ दसा० ७१३,२७ से ३० सण्णिवेसपह (सन्निवेशपथ) नि० १२१२३; सत्तवण्णवण (सप्तपर्णवन) अ० ३२४ १७११४५ सत्तरि (सप्तति) उ० ३३।२१. प० १२४ सण्णिवेसमह (सन्निवेशमह) नि० १२।२१; सत्तविह (सप्तविध) उ० ३३।११; ३६७१,१५६ १७११४३ नं० ६३. अ० ३४० । सण्णिवेसवह (सन्निवेशवध) नि० १२१२२; सत्तवीस (सप्तविंशति) उ० ३६३२३८. प० १२० १७. १४४ सत्तवीसइ (सप्तविंशति) उ०३६।२३६ सण्ह (श्लक्ष्ण) उ० ३६१७१. प० २४,४२ सत्तसत्तमिया (सप्तसप्तकिका) व०६।३५ सण्णिभ (सन्निभ) दसा० १०।१५ सत्तस्स रसीभर (सप्तस्वरसीभर) अ० ३०७।७ सण्णिवेसंतर (सन्निवेशान्तर) दसा० १०।२७ सत्तहत्तरि (सप्तसप्तति) अ० ४१७४२ सण्णिसुय (संजिश्रुत) नं० ५५,६१,६४ सत्तहा (सप्तधा) उ० ३६३१५७. प० २५० सण्हसण्हिया (श्लष्णश्लक्षिणका) अ० ३६६ सत्ता (सत्ता) अ० ३६७ सतक्कत्तु (शतक्रतु) ५०८ सत्तावीस (सप्तविंशति) आ० ४।८. अ० ५८६ सत्तभिसय (शतभिषज्) अ० ३४१ सत्तावीसइविह (सप्तविशतिविध) उ० २४१२० सत्त (सत्त्व) मा० ४८; द० ४ सू० ४ से ८. सत्ति (शक्ति) द० ६८,९. दसा० १०।१४ उ० १४११८,४३, २६।१८,४२, ३२११११. सत्तिग्गह (शक्तिग्रह) नि० ६।२७ अ० ३६०।३,४३३. दसा० १०॥२६. प०६ सत्तिवण्णवण (सप्तवर्णवन) नि० ३७६ सत्त (सप्तन) आ० ४।५. उ०१०।१३. नं० १०१. सत्तु (शत्र) उ०१६।२५; २३१३६ से ३८%; अ० १३४. प० ६. दसा० १०॥३. नि० १६१०।। ३२॥१२. अ० ३१०. प०७४ सत्त (सक्त) उ० ६।११, १४१४५; ३२२६,४२, सत्तुचुण्ण (शक्तुचूर्ण) द० २७१ ५५,६८,८१,६४,१०३ सत्थ (सार्थ) उ० ३०।१७ सत्तगय (सप्तगज) अ० ३५४ सत्थ (शस्त्र) द०६।३२; ६।२५; १०।२. सत्तट्ठि (सप्तषष्टि) नं० ८२ उ० २०१२०,४४,३५।१२; ३६।२६७. नं० १२७१२. अ० ३६८. दसा० १०।२६. सत्तम (सप्तम) उ० २६१३; ३६।१६६,२४०. प० ४२ नं. ८७. अ० ३००,३०१३०४ से ३०६, ३०८,३५०. दसा० ६।१४. ५०८४,१२७, सत्थकुसल (शास्त्रकुशल) उ० २०।२२ सत्थजाय (शस्त्रजात) नि० ३।३४ से ३६४१७२ सत्तमय (सप्तमक) नं० १२७।४ से ७७; ६।४३ से ४८; ७३२ से ३७; सत्तमासिय (सप्तमासिक) दसा० ७.३,२६ ११।२६ से ३४; १५.३१ से ३६,११७ से सत्तमी (सप्तमी) व० १०।३ १२२; १७३३३ से ३८,८७ से ६२ सत्तरस (सप्तदशन्) उ० ३६।१६४ सत्थपारग (शास्त्रपारग) अ० ३०२।३ Page #1282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ सत्थपरिणय-सपंचराय सत्थपरिणय (शस्त्रपरिणत) द०४ सू० ४ से ८ सत्थवाह (सार्थवाह) अनं० १२ से १४. अ० १६, ३६५. प० ४२ सत्थाह (सार्थवाह) नि०६।२७ सत्थोपाडण (शस्त्रावपाटन) नि० १११६३ सद (षद्)-सदति दसा० १०१२४ सदसराय (सदसरात्र) नि० २०१२५,२६,२८,२६. ४८,४६ सदावरी (शतावरी) उ० ३६११३८ सदुय (दे०) नि० १७।१३६ सद्द (शब्द) आ० ४।८. द० ८।२६; ६।४ सू० ६, ७; १०।११. उ० ६७; १५।१४;१६ सू० ७, १२. गा० १०,२१।१४; २८।१२; २६।४६; ६३; ३२१३५ से ४७,१०६. नं० ५३,५४।४. अ० ३११,३१३,५२२,५५७,५७३,७१५. दसा० ६।३; १०१११,१४,१७,१८. प० ३२, ४२,६४,७३ से ७५,११२. नि० ५१६०; १७।१३६ से १४०,१५२ सिद्द (शब्दाय)-सद्दाविति प० ४३. - सद्दावेद दसा० १०॥३. प० १४.-सद्दावेति दसा० १०18.--सद्दावेह प० ४२ सद्दकर (शब्दकर) दसा० ११३ सद्दणय (शब्दनय) अन० ६ सद्दनय (शब्दनय) अ० १४,३५,५८,८२,१०७, ५५५,५५६,५६४,५६८,६०६,६२४,६३६, ६४८, ६७४,७०१ सिद्दह (श्रत्+धा)-सद्दहइ उ० २८।१६. -सद्दहाइ उ० २८।१८.-सद्दहामि आ० ४।६.-सद्दहे उ० ३।११. ---सद्दहेज्जा दसा० १०॥३२ सद्दहंत (श्रद्दधत्) आ० ४।६. उ० २८।१५ सद्दहंतया (श्रद्धधत्) उ० १०।२० सद्दहणा (श्रद्धान) उ०१०।१६; २८।२८ सद्दहिऊण (श्रद्धाय) उ० ३६।२४६ सद्दहित्तए (श्रद्धातुम) दसा १०१२६ सद्दहित्ता (श्रद्धातुम्) उ० २६।१ सदाविय (शब्दायित) प० ४४ सद्दावेत्ता (शब्दयित्वा) दसा० १०१३. प० १४ सद्दिय (शाब्दिक) अ० ५७३ सद्धम्म (सद्धर्म) उ० ३।१६ सद्धा (श्रद्धा) द० ८।६०. उ० ३।१,६,१०, ६।२०, ५६; १२॥१२; १४।२८ सद्धि (सार्द्धम) द. ५१६५. उ० १।२६. नं० १०. दसा० ३।३. प० ७. व. २।२४. नि० २०३६ सन्ना (संज्ञा) नं० ५४१६ सन्नाइपिंड (स्वज्ञातिपिण्ड) उ० १७।१६ सन्निओग (सन्नियोग) उ० ३२।२८,४१,५४,६७. ८०,६३ सन्निक्खित्त (सन्निक्षिप्त) प० ५१ सन्निचित (सन्निचित) अ० ४२२,४२४,४२६, ४३१,४३६,४३८ सन्निगास (सन्निकाश) प० ३३ सन्निनाय (सन्निनाद) उ० २२।१२ सन्नियट्टचारि (सन्निवृत्तचारिन् प०२५१ सन्निर (दे०) द० ५७ सन्निरुद्ध (सन्निरुद्ध) उ० ७।२४; २२।१४,१६; ३०१५ सन्निवाइय (सान्निपातिक) अ० १२६,२४३,२४४, २७१,२८६,२६७ सन्निविट्ठ (सन्निविष्ट) क० ३।१३३ सन्निवेस (सन्निवेश) द० २१०५. उ० ३०११७. अ० ३२३. क० १११६; ३।३४. व० ४।६,१०. ५१६,१०, ६।४ से ७; ६।४०,४१ सन्निसण्ण (सन्निषण्ण) व० ५।१८ सन्निसन्न (संनिषण्ण) प० १० सन्निसेज्जा (सन्निषद्या) उ० १६ सू० ५ सन्निहाणत्थ (सन्निधानार्थ) अ० ३०८।२ सन्निहि (सन्निधि) द० ३।३; ६।१७,१८,८।२४. उ०६।१५; १६।३०. नि० ८।१७ सन्निहिओ (सन्निधितस्) द० १०।१६ सपंचरातिय (सपंचरात्रिक) नि० २०१४ सपंच राय (सपंचरात्र) नि० २०४७ Page #1283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपक्ख-समण २८३ सपक्ख (सपक्ष) दसा० ३।३ सपक्ख दिट्ठि (स्वपक्षदृष्टि) नं० ६७ सपच्चवाय (सप्रत्यवाय) नि० १११८ सपज्जवसिय (सपर्यवसित) उ० ३६।६,१२,७६, ८७,१०१,११२,१२१,१३१,१४०,१५०,१५६, १७४,१८३,१६०,१९६,२१८. नं०५५,६८, ६६,७१,१२७ सपडिवक्ख (सप्रतिपक्ष) नं० १२७ सपरिक्कम (सपरिकर्मन) उ. ३०।१३. नि० ५।६३ सपाण (सप्राण) व० ६।४०,४१ । सपाहुडिया (सप्राभृतिका) नि० ५।६२ सपुण्ण (सपुण्य) उ० ५।१८ । सपेहाए (संप्रेक्ष्य) उ० ७१६ सप्प (सर्प) उ० ३२।५०. नं० ३८।१३. अ० ३४२ सप्पमाण (शप्यमान) प० ३० सप्पलय (संपलित) प० २२२॥४ सप्पि (सपिस्) द०६।१७. उ० ३०।२६. दसा० ६।२।१८. प० २३६. क० २।८. नि० ६७६; ८.१७ सप्पुरिस (सत्पुरुष) वचू० २०१५ सफल (सफल) उ०१३।१०; १४१२५. दसा० ६७ सबरी (शबरी) नि० ६।२६ सबल (शबल) आ० ४१८. उ० १६४५४,३२१५. दसा० २।१ से ३ सबलायार (शबलाचार) व०३।४,६,८,६।१०, ११; ७.१ से ३ सबीय (सबीज) द० ४ सू० ८. दसा० २।३. व० ६।४०,४१ सबीयग (सबीजक) द० ८।२ सब्भाव (सद्भाव) उ० २८.१५, २६।१,४२. नं० गा० ४०. अ० ३१८।२ सब्भावठवणा (सद्भावस्थापना) अनं० ३. अ० १०,३१,५४,७८,१०३,५६० ।। सभितर (साभ्यम्तर) उ०१६।८८. दसा० १०१७ प०६२ सब्भूय (सद्भूत) उ०२३।३३ ) अ० १६,३६२. दसा० १०१३. प०८,५१ सभारियाय (समार्याक) उ०१२।३० सभाव (स्वभाव) अ० ३१५३२ सभिक्खु (सभिक्षु, सद्भिक्षु) द० १० सभिक्खूय (सभिक्षुक) उ० १५ सम (सम) द० ११५:२।४।६।५१, १०१५,११, १३. चू० २।१०. उ० २।१०।५।१४; ७१२३, ६।४८; ११५३१; १६६३ ; १६८६,६०%; २०।२१; २३।१८, २४।१७; २६।३७; ३२१५, २२,३५,४८,६१,७४,८७, ३४।५,६; ३५।१२, १३. नं० गा० ३१. अ० ३०७।३,५,६,६४३, ७०८.५० २४,३२,८० सम (श्रम) उ० २७.१५ समइक्कत (समतिक्रान्त) दचू० ११६ समइक्कमंत (समतिकामत) उ०१४।३६ समइक्कमित्ता (समतिक्रम्य) उ० ३२।१८ समइच्छमाण (समतिक्रामत्) दसा० १०.१६ समं (समम्) दचू० २६ समंतओ (समन्ततस्) उ० २७।१३ समंता (समन्तात्) नं० १६,१८,१६. प० २३१, २३२. क० ३।३४ समग्ग (समग्र) उ० ८।३. दसा० १०१८ समचउरंस (समचतुरस्र) उ० २२।६. अ० २३५, २३६ समज्जिय (समजित) उ० ३०१,४ समट्ठ (समर्थ) अ० ३६८,४१६. दसा० १०॥२३, २६,२८ से ३२. प० २२४ समण (शमन) अ०७०८।३ से ५ समण (समनस्) अ० ७०८।६ समण (श्रमण) आ० ४।३,६; ५।२. द० ११३;४ सू० १ से ३. गा० २६; २३०,४०,४६,५३, ६७,११०,१३४,१४०,१४५. उ०२ सू०१ से Page #1284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० समणत्त-समलंकर ३; २।२७; ४।११; ८७,१३; ६।३८; १२।६; समणोवासिगा (श्रमणोपासिका) प० १२० १३।१२; १४।१७; १९।५।२५।२६,३०, समणोवासिया (श्रमणोपासिका) प०६६,१२०, २६।१,७४; ३२।४,१४,२१; ३६।१. १३५,१७१ नं० गा० ८ सू० ८१. अ० २१,२७,२८,३४४, समतिच्छमाण (समतिकामत) प० ७५ ३६१,४०८,४१६. दसा० ५७; ६।१८७।५; समत्त (समस्त) नं० १२०. दसा० १०.११. ८।१६।२; १०।३,५,६,११,१६,२० से ३५. प०१८४ प०१ से ४,१०,१३ से २०५१ से ५३,५५, समत्त (समाप्त) द० ८।६१. उ० २६।४३. ५७,५६ से ६१,६६ से ७३,७५ से ७८,८३ से अ० ३०७।१४ १०७,११७,१३२,१३६,१६८,१८२ से १८६, समत्तपइण्ण (समाप्तप्रतिज्ञ) प० ७३ २२३ से २२५,२२८,२२६,२८५,२८७,२८८. समत्थ (समर्थ) उ० २५८,१२,१५,३३,३७. क० ३।२८. व० ३।३ से ११,६।८,६; ७२०, नं० ३८॥ ५. अ० ४१६. दसा० १०।२४,२५, २१,२३,२४, ८।१७; १०॥३,६,१६,२५ से ३६, २७ ४१. नि०६।५ समन्नागय (समन्वागत) उ० २६।४३ समप्पिय (समपित) उ० २०११५ समणत्त (श्रमणत्व) उ० १६॥३६ से ४१ सिमभिद्दव (सं+अभि+)-समभिद्दवंति समणधम्म (श्रमणधर्म) आ०४।३,८५२. द० ८।४२. प०७४ उ० ३२।१० समणी (धमणी) अ० २७. व० ३।१२; ७२०,२१. समभिरूढ (समभिरूढ) नं० १०२. अ० ५५७, दसा० १०॥३५. प० २८८ समणुगम्ममाण (समनुगम्यमान) दसा० १०।१५. समय (समक) उ० ११३५ प०७४,१२६,१६५ समय (समय) उ० १०।१ से ३६; २६७२,७४; समणुजाण (सं-+ अनु+ज्ञा)-समणुजाणंति ३४।३३,४६,५०,५४,५५,५८,५६; ३६७,६, द०६।४८.-समणुजाणामि आ०१।२. द०४। १३,१४,५१,५२,५४. नं० १८,२८,२६,३२, सू० १०.-समणुजाणेज्जा द० ४ सू० १० ५२,५४।३, ६७. अ० १२६,१२७,१७०,१७१, समणुण्ण (समनोज्ञ) नि० २।४४ २११,२१२,२१६,२२०,३०७,४१५ से ४१७, /समणुपस्स (सम्+अनु+दश्)-समणुपस्सति ४२२,४२४,४३६,४३८,४७७,४६१,५६८,६१६. दसा० ५।७।१० दसा० ५।४।८।१,६।१,१०।१,५,३५. १०१, समणोवासग (श्रमणोपासक) नं० ८७. २,८,१६,१७,२०,४०,५६,६२,८३,६३,१०६, दसा० ६।१८. व० १३३ १०८,१०६,१११,११३,११५,१२४,१२६ से समणोवासगपरियाय (श्रमणोपासकपर्याय) १२६,१३८,१४३,१५१,१६०,१६१,१६३, १६६,१८० से १८२,२२३,२२८. व०६।४०,४१ दसा० १०॥३० से ३२ । समणोवासय (श्रमणोपासक) दसा० १०॥३१. समयखेत्तिय (समयक्षेत्रिक) उ० ३६।७ प० ६५,११६,१३४,१७० समया (समता) उ० ४।१०; १६।२५; २५।३०; समण्णागय (समन्वागत) अ० ४१६ ३२।१०१,१०७ समतलपाइया (समतलपादिका) क० ५।२० समर (स्मर) उ० १२२६ समतालपदुक्खेव (समतालपदोत्क्षेप) अ० ३०७७ /समलंकर (सम्+अलं--कृ)-समलंकरेति ७१५ Page #1285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समलंकरेत्ता-समासओ २६१ दसा० १०।१० समायय (सम्+आ+दद् )-समाययन्ती समलंकरेत्ता (समलंकृत्य) दसा०.१०।१० उ० ४।२ समवाय (समवाय) नं० ६५,८०,८४. अनं० २८. समाययंत (समाददान) उ० ३२।३१,४४,५७,७०, जोनं० १०. अ० ५०,५४६. ज० १०।२८. ८३,६६ नि० ८।१४ सिमायर (सं+आ+चर)-समायरामि समवायधर (समवायधर) अ० २८५ दचू० २।१२.-समायरामो उ०१४।२०. समसेढी (समवेणि) नं० ५४१५ -समायरे द० ४.११. उ० १४३१. समाइण्ण (समाकीणं) उ० ५।२६ समायरेमाण (समाचरत) दसा० ६२ समा (समा) प० २,१०६,१२४,१३८,१८० समायार (समाचार) उ० ३४।२५. नं० गा० ३६. समाउत्त (समायुक्त) द० ७।४६. उ०२५१३३; दसा०६।२।५ ३४।२२,२४,२६,२८,३०,३२. दसा० १०।१४ समारभ (सं+आ+रभ)--समारभई समाउल (समाकुल) उ० २२।३,७,१५ उं० ५८ समागम (समागम) उ० २३।१४,२०,८८. समारंभ (समारम्भ) द० ३।४; ६१२८.३१,३५, अ० ७२,३६८,३६६,४१६,४१७. प० २६ ३६,३६,४२,४५,५१. उ०२४।२१,२३,२५; समागम्म (समागम्य) उ० २३।३१ ३५१८,६. दसा०६।३ समागय (समागत) द० ५।१०७. उ० १२।१६, समारंभ (सं+आ+रम)-समारंभति २८,३३, १३।३; २३:१९; २७।१५. प० २१ नि० १२१८.-समारंभेज्जा द० ४ सू० १०. समाण (सत) नं० ६७. अनं० १३,१४,१६ से १५, समारंभंत (समारभमाण) द०४ सू० १०. २१,२२,२६,२८. अ० ७१४. दसा० ३।३; उ० १२।३८. नि० १२१८,६ ६।४; १०॥४,१०,११,१४,२५. ५० ५,१५,२२, समारब्भ (समारभ्य) दसा० ६।२।३ ३६,३७,३६,४१ से ४५,५०,६२,६३,६६,२७१, समारुय (समारुत) उ० ३२।११ २७३,२७४. क० ११३६,४१. व०४।१३,१४; समारूढ (समारूढ) उ०११११७,२२।२२. ५।१३,१४. नि० २१३८, ३१५ से ८; १३।१५ अ० ५५५,५५६ समाण (समान) दचू० १३१०. उ० ३२॥१८. समावण्ण (समापन्न) नि० १०॥२५ से २८ दसा० १०।१२,२५,२६. प० ८०,२६४ से समावन्न (समापन्न) द० ५।१०२. चू० १ ० १. २६७ उ० ३।२,५।२४; १८१८ समाणइत्ता (समाप्त,समानेतृ) दसा० ४।१३ समाणं (समं) उ० १४॥३३ समावयंत (समापतत्) द० ६।४८ समादाय (समादाय) उ०६।१५. दसा० ५७ समास (सं+आ+ अस्)-समासिज्जइ नं०८४. समाधि (समाधि) दसा० ५७ -समासिज्जति नं०८४ समाभट्ठ (समाभाषित) दसा०६।१७ समास (समास) उ० २४।३,१६,२६।५२; समाभरिय (समाभृत) अ० ६५६,६६०,६८२, ३०।१०,१४,२६; ३३११५३६।४७,१०६. नं० ५४. २०७४,३५०,५५७ समाय (समाज) उ० ३०।१७ समासओ (समासतस्) उ० ३३।३. नं० १,३,६, Page #1286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ २२,२५,३३,५४,६९, ७३,८१,६२,१२७. अ० ३९३,४०६,४११,५३०, ६६७, ७१५।२ / समासास ( सं + आ + श्वस् ) -- समासासेंति उ० ६१६ समासेज्ज ( समाश्रित्य ) ८०८१४५ समासेवित्तए (समासेवितुम् ) व० २२८ / समाहड ( सं + आ + ह) – समाहडिज्जा प० २५३ समाहत ( समाहत) अ० ४१६ समाहाण (समाधान) अ० ३१८ समाहि (समाधि) आ० २१६; ५|४|६; ६।२ से १०. द० ६।१६; ६।४ सू० १ से ७. गा० २ से ६ चू० २।४. उ० १।४७ ; १४ २६; १६ सू० १ से ३,१२; २७|१; ३२।१०६; ३६।२६२ समाहिकाम ( समाधिकाम) उ० ३२/४, २१ समाहिजोग ( समाधियोग) उ०८।१४ समाहिपत्त ( प्राप्तसमाधि) दसा० १०३१,३२ समाहिबहुल ( समाधिबहुल) दसा० ४।२३ समाहिय ( समाहित ) द० ५।२६, ६६; ८ १६; १०।१. उ० १६ १५; २२ २४; २३१५६; २६/४० समिइ ( समिति ) आ० ४।८. उ० १२ १७; २४ । १ से ३, १६, २६, २८/२५; २९ ४३; ३११७ समिक्a (समीक्ष्य ) उ० ६२ सक्खि ( सं + ईक्ष्) -- समिक्खए उ० २३।२५ समिच्च ( समेत्य ) उ० ४।१०; १५।१,१५ समिति ( समिति) अ० ७२,३६८,३६६,४१६, ४१७ समिद्ध (समृद्ध ) उ०५।२७; १४ । १; १८ ४६; २०६० समय ( समित) उ० ६ १६; ८ ६; १६८८; २४ । १४; ३४१३१. दसा० ४।२३. प० ७८, २७८ समिदंसण ( सम्यक दर्शन ) उ० ६ |४ समासास - समुद्द समिरिय (समीरित) द० ८६२ समिला (दे० शम्या ) उ० १६ ५६ २७ ४ समीव ( समीप ) अ० ३५८, ३६३ समीहिय ( समीहित) उ०७।४. नि० ६।११ समुक्करिस ( समुत्कर्षं ) उ०२३२८८ / समुक्कस ( सं + उत् + कृष्) -समुक्कसे द० ५।१३० समुक्कसणारिह (समुत्कर्षणार्ह) व० ४।१३, १४; ५।१३,१४ समुक्कसियध्व ( समुत्कर्षयितव्य) व० ४।१३, १४; ५।१३,१४ समुक्किट्ठ ( समुत्कषित ) व० ४।१३, १४, ५१३, १४ समुग्ग ( समुद्ग ) अ० ३२१ समुपक्खि ( समुद्गपक्षिन् ) उ० ३६।१८८ समुच्छिन्नकिरिय (समुच्छिन्नक्रिय) उ० २६।७३ समुच्छेयकप्प (समुच्छेदकल्प ) व० ३।१० समुज्जल ( समुज्ज्वल) प०३२ समुज्जाय ( समुद्यात) प० ८४, १०६ समुट्ठाण (समुत्थानश्रुत) नं० ७८. जोनं० e. व० १०।३२ समुट्ठाय ( समुत्थाय ) उ० ४११० समुट्टिय ( समुत्थित) उ० १६८२२६।८, ३१ समुत्ता (समुक्ता ) प० ४२ समुत्थ (समुत्थ ) नं० ३८ ५ समुत्थ्य ( समवसृत) उ० २२ २८ समुदय ( समुदय) नं० ७१. अ० ७२,३६८, ३६६, ४१६,४१७. दसा० १०।१७ प० २२, २४, ३०,६४, ७५ समुदाय ( समुदाय) उ० २५ ३४ समुदाय (समुदाहृत) उ० ३६।२० समुह (समुद्र) आ० ४।६. उ० ७ २३; ११।३१ ; २१।४, २४, ३६ ५, ५४. नं० गा० ११,२७, सू० १८/६,२५. अ० ३२१, ४१०, ४२५,४२६, ५४०,५५६,५८६. दसा० ५।७ प० १५, २६, १०१,१७६ Page #1287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुद्दपाल-सम्मत्त २६३ समुद्दपाल (समुद्रपाल) उ० १२११४,६,२४ समुद्दपालीय (समुद्रपालीय) उ० २१ समुद्दविजय (समुद्रविजय) उ० २२।३,३६; १० १२७,१२८ सिमुद्दिस्स (सं+उद्+दिश)-समुद्दिसंति नि० ५७.-समुद्दिस्संति जोनं० २. अ०२. —समुद्देसामि जोनं० १० समुद्दिसंत (समुद्दिशत्) नि० ५७ समुद्दिसिय (समुद्दिश्य) नि० १४१५; १८।३७ । समुद्दिस्स (समुद्दिश्य) उ० ७.१ समुद्देस (समुद्देश) जोनं० २ से १०. अ० २ से ५ समुद्देसग (समुद्देशक) नं० ८५ समुद्देसण (समुद्देशन) नं० ८१ से ८४,८६ से ६१ समुद्धत्तुं (समुद्धर्तम) उ० २५।८ समुदर (सं+उद्+ह)-समुद्धरे द० १०।१४. उ०६।१३ समुपेहिया (समुत्प्रेक्ष्य) द० ७१५५ समुप्पज्ज (सं+उत्+पद)-समुप्पज्ज इ नं० ८. दसा० ५।७. ५० २८३.--समुप्पज्जति प० ११.-समुप्पज्जिज्जा उ०१६ सू० ३. -समुप्पज्जित्था दसा० १०॥२२. प० ११ व० २।२५.-समुप्पज्जेज्जा दसा० ७।२८. क० ३।१३ समुप्पन्न (समुत्पन्न) द० ७४६. उ० १६७,८%; २३।१०. अ० ३१३,३१६,३१८।३. दसा० ८।१.५० १,२,८,५५,८१७९७,६२, १०८,११५,१२६,१३०,१६०,१६६ समुप्पाड (सं--उत्+पावय)-समुप्पाडेइ उ० २६१७२ समुप्पेह (समुत्प्रेक्ष्य) द० ७३ समुन्भव (समुद्भव) दसा० १०।२८ से ३२ समुयाण (समुदान) द०५।१२५; ६।४४ चू० २।५. उ० ३५॥१६ समुल्लसंत (समुल्लसत्) प० २६ समुवट्ठिय (समुपस्थित) उ० २३।८६; २५६ समुविच्च (समुपेत्य) उ० ३२।१११ समुवे (सं+उप-1-इ)-समवेइ उ० ३२।२ -समुवेंति द० ६।१८. समुन्वहंत (समुद्वहत) अ० ३०७३ ' . समुस्सय (समुच्छ्य ) द०६।१६. उ० ५।३२. __ अनं० ८,६ समुस्ससिय (समुच्छ्वसित) प० ५,६ समूलिया (समूलिका) उ० २३।४६ समूससिय (समुच्छ्वसित) प० ३६ समूसिय (समुच्छ्रित) दसा० १०।१४ समूह (समूह) अ० ७३. प० २८,३२ समोइण्ण (समवतीर्ण) उ० २२।२१ सिमोयर (सं+अव+त)-- समोयरइ अ० ६१४. --समोयरंति अ० १२० समोयार (समवतार) अ० १००,११४,१२०,१३१, १३७,१५८,१६४,१६६,२०५,२१६,६११ से ६१७ समोयारणा (समवतारणा) अ. ७१३ समोसढ (समवसूत) द. ६।१. दसा' ५।६; है। १; १०१६ समोसरण (समवसरण) नं० ८६ से ८६, ६१; म० ३२२. दसा० ५।६. नि० १९१६ समोहण (सम्+अव+हन)-समोहणइ प०१५ समोहणित्ता (समवहत्य) प० १५ सम्म (श्रम)-सम्मइ उ० ११३७ सम्म (सम्यक) आ० ४।६।२. द० ४।६. उ० १४१५०. नं० १२७. दसा० ४।२३. प०७. क० ६.२. व०६।३५ सम्मंभाविय (सम्यग्भावित) व० ११३३ सम्मग्ग (सन्मार्ग) उ० २३॥६३,८६; सम्मज्जण (सम्मार्जन) अ० २० सम्मज्जिय (सम्माजित) दसा० १०७. प० ४०,४१,६२ सम्मट्ट (सम्मष्ट) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१, ४३६,४३८. प० ६२,२२४ सम्मत्त (सम्यक्त्व) आ० ४।६. उ० १४।२६; २८।१५,२१,२२,२८,२६; २६।४३,५७, ३३१६ Page #1288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मत्तपरक्कम-सयणिज्ज नं० गा० ५,८,सू०६७. अ० २६१,२६३, २६५,२६७ सम्मत्तपरक्कम (सम्यक्त्वपराक्रम) उ० २६; २६१,७४ सम्मत्तलद्धि (सम्यक्त्वलब्धि) अ० २७६ सम्मदिट्ठि (सम्यकदृष्टि) नं० २३,३६,६७ सम्मइंसण (सम्यग्दर्शन) उ० ३६।२५८ नं० गा० १२ सम्ममणलद्धि (सम्यगदर्शनलब्धि) अ० २८५ सम्ममाण (संमर्दयत्) द० ५।२६. उ० १७६ सम्मदा (समर्वा) उ० २६।२६ सम्मद्दिट्ठि (सम्यकदाष्टि) द० ४।२८; १०१७. नं० ३६ सम्मद्दिया (संमद्य) द० ५।११६ सम्ममिच्छादसणलद्धि (सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धि) अ०२८५ सम्मय (सम्मत) द० ८।६०. प० २३८ सम्मवादि (सम्यग्वादिन्) दसा०६।३ सम्माण (सम्मान) द० ५।१३५. उ० ३५११८. सम्माण (सं-1-मानय)-सम्माणेइ प० ४८ -सम्माणेति प० ६६ -सम्माणेज्जा व० १०१२ –सम्माणेति दसा० १०७ -सम्माणेमो दसा० १०।११ सम्माणिय (सम्मानित) ५० ४५,५८ सम्माणेत्ता (सम्मान्य) दसा० १०१७. प० ४८ सम्मामिच्छत्त (सम्यमिथ्यात्व) उ० ३३९ सम्मसुय (सम्यक्श्रुत) नं० ५५,६५ से ६७,६६ सम्मामिच्छदिट्टि (सम्यमिथ्यावृष्टि) नं० २३ सम्मावादि (सम्यक्वादिन) दसा० ६७ सम्मइ (सन्मति) ५० २८३ सम्मुइकर (सम्मुदिकर) व० ३१६ सम्मच्छिम (सम्मूर्छिम,सम्मूर्च्छनज) द० ४ ०८,६ अ० २५४ सम्मूढ (सम्मूढ) उ० ३।६ सम्मेय (सम्मेव) प० १२४ सय (सत्) द० ५।६,१०६, ७।५५ सय (शत) उ० ३।६,१५;७।१३;१८।२८; २६४१; ३४।२०; ३६।५१,५३,५४,५८. नं० गा० १४. अ० २१९,२३१,३८२,३६०, ४१७,४६५,४६६,६४३. दसा० १०१११, १४,१८,२१. प० ४२,६७ से १०४,१०७, १२१,१२२,१२४,१२५,१२६,१३४,१३६, १३८ से १४४,१५१,१५८,१६५ १७२,१७६ से १७८,१८०,१८१,१८३. व०६।३५ से ३६ मय (स्वक) उ०७।१; १७११८, २६।३४; ३२२५, ३८,५१,६४,७७,६०; ३६०८२,६०.१०४,११५, १२४,१५३,१६८,१७७,२४६. दसा० ६।३; ६।२।३७; १०।२४,२७ से ३२. प० ३६,४४, ५०,७५,११३,१२६,१६२,१६५. व० २।२६,३०६।४२,४३. नि० १०३२ सिय (शी)-सय द० ७।४७. -सयइ प० ५८, -सये द० ४७ सयं (स्वयं) द० ४।सू० १० से १६; ११३३. उ० १२।२२; १३।२३; २२।२४,३०; २६॥५,२६; २८।१८, ३५१८. नि० २।१ से १७,२४,२५, ६।११ सयंबुद्धसिद्ध (स्वयंबुद्धसिद्ध) नं० ३१ सयंभूरमण (स्वयंभूरमण) उ० ११३० अ० १८५१४,१८६,५५६ । सयंसंबुद्ध (स्वयंसंबुद्ध) प०१० सयग (शतक) प० ६५ सयग्घी (शतघ्नी) उ० ६।१८ सयण (शयन) द० २।२; ५।१२८;७।२६८।५१. दचू० २१८. उ० १।१८;७८; १५४,११; १६ सू० ३; २६।१,३२; ३०१२८,३६. अनं० १३,१७. अ० ३०२,३६२. दसा० ५।७।४; ६।३. प० २० सयण (स्वजन) २०१४।१६,१७, २२॥३२. अ० ७०८।६. प० ३५,६६ सयणिज्ज (शयनीय) दसा० १०॥२४. प०४,५,१६, २०,२१,३६,३७,३६,४२ Page #1289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयपाग सरीरय सपाग ( शतपाक) दमा० १०।११.१०४२ सयमाण ( शयान) द० ४।४. उ० २।३४ सयय ( सतत ) द० ५।१३८; ८ ४०; ६।१३,५३, ५५. ० २।१६. ३० २१।१६ २३०५१: ३२।११० १० २७ समराह (दे०) ब० ४१६ सयल (सकल) द० ६०४. १० ३२ सयसहस्स ( शतशहत्र) नं० ३८।४. अ० २१९, २३१,२६२,४१७,५०६. दसा० १०।१८ १०८ साहस्तिय ( शतसाहसिक) ५०९,६५,१२० सयसाहस्सी ( शतसाहस्री ) प० ६५, १६, ११६, १३४,१३५, १६, १७०, १७१ सया (सवा) द० ११. ७० ११५. नं० गा० ५. दसा० ४।२३ सर (शर) दसा० १०।१४. १०२६ सर (स्म) सरई ३० ११. सरामि वसा० ५७. सरेज्ज नं० २।२२. सज्जा ब० १।२०. - सर (स्वर) उ० १५७ २२५. अ० २९८३०२, ३०७, ३६० सर (सरस् ) उ० १२००,८१. अ० ३५४,३९२, ५३१,५३५. १०३०. नि० १२।१८ १७।१४ सरक ( सरयू) क० ४।२६. नि० १२।४३ सरट्ठाण (स्वरस्थान ) अ० २९९ सरड (सरट) नं० ३८ सरण (शरण) आ० ४।२६।११.४० १२४५; १२।२८, ३३; १४१२; १५१८ २०/४५; २३।६५, ६८. अ० ३६२. प० १० सरणदय ( शरणदय) आ० ६।११. १० १० सरदय ( शरबज) अ० ३३४ सरपंतिया (सरःपक्तिका) अ० ३९२. नि० १२। १८; १७११४० सरभ (शरभ प० ३२,४२ सरमंडल (स्वर मण्डल) अ० २०७।११ सरमह (सरोमह) नि० १४ २६५ सरमाण ( स्मरत्) व० ४।१५,१७. नि० १२१, ४० सरय (शरद) प० ३१ सरसरपंतिय ( सरःसरःपक्तिका) अ० ३९२. नि० १२।१६ १७ १४० सरलक्क्षण (स्वरलक्षण) अ०३०२ सररुह (सरोग्रह) प० ३० सरस ( सरस ) दसा० १०।११ प० २०,२५,२७, ४२,६२ सराग ( सराग ) उ० ३४।३२ सरि ( सहक् ) उ० ३३।१६,२१,२३. नं० गा० २५, ३७ सरितु (स्मृत्वा ) उ० १२ सरिस ( सदृश ) उ० २।२४, ६ ३. अ० १६,२०, ५४२, ५४६. दसा० ७२० १० ५,२३, २४, २७,३१,३६,३६,४२, ५० सरिसंग ( सदृशक ) fr० १७।१२३ सरिस ( ) नि० १७।१२४; १६ २४ सरिसव ( सर्षप) अ० ४३६,५४० सरीर (शरीर) द० १०।१२; चू० १११६. उ० ३०१३ ४१६,९,१३ ६ ११ १२२८, ४४ १४॥ १५ १६ सू० ११. गा० १ १९।१२,१३; २०१ २०; २३।७३; २६ । ३४; २६ । १,३६. अनं० ७ से १० अ० २७६,२८२,३१५, ४०१ से ४०३, ४०५,४२४,४३१, ४३८, ४४६ से ४५२, ४५५, ४५७ से ४६९, ४७१ से ४८४,४६६ से ५०५. दसा० १०।२४ प० ६.३०, ४४, ४७, १२७,२३६ सरीरग ( शरीरक) उ० १३।२५. ०४१२५ " व० ७।२२ सरीरत्य ( शरीरस्थ) उ० २३०५० सरीरभेय (शरीरमेव ) उ० २।३७ सरीर (शरीरक) उ० १०।२१ से २७. अ० १६, ३७,६०,८४,१०६, ५६६, ६२६,६३८, ६५०, ६७६,७०३ Page #1290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरीरवक्कंती-सव्वधम्माइक्कमण सरीरवक्कंति (शरीरावक्रान्ति) प० २,१०९,१२७, से २५ सवीसतिराय (सविशति रात्र) नि० २०।२७,२८, सरीरसपदा (शरीरसम्पदा) दसा० ४।३,६ ४७,४८ सरोरसमुस्सय (शरीरसमुच्छ्य) अ० १६,१७,३७, सवीसेस (सविशेष) उ० ७।२१ ३८,६०,६१,८४,८५,१०६,११०,५६६,५६७, सव्व (सर्व) आ० १११. द० ३।१०. उ० २१२८. ६२६,६२७,६३८,६३६,६५०,६५१,६७६, नं० गा० ३. अनं० १४. जोनं० ६. अ० ११७. ६७७,७०३,७०४ व० १११५. नि० २०११५. दसा०६।३. ५०६ सरीरि (शरीरिन् ) उ० २३।४० सव्वओ (सर्वतस्) द०६।३२; ७।१. उ० ६६ सरीसिव (सरीसृप) द० ७।२२ ६।१६; १४।२१,१५११६; १८।२१६१६३; सलागा (शलाका) द० ४ सू० १८. अ० ५८६. २१॥२४; २२।११।३।१२. न० १६,१८,१६. नि० ११२,४१११३; ६॥३,८१८४ दसा० ५।६,७; १०।३१. प० २२,२३,२६, २३२. क० ३।३४. सलाह कहत्थय (श्लाघाहस्तक) नि० १३।१२ सव्वओभद्द (सर्वतोभद्र) नं० १०२ सलाहा (श्लाघा) नि०१३।१२ सव्वकालिया (सर्वकालिका) आ० ३।१ सलिंग (स्वलिंग) उ० ३६।४६,५२ सलिगसिद्ध (स्वलिङ्गसिद्ध) न० ३१ सव्वक्खरसन्निवाइ (सर्वाक्षरसन्निपातिन) सलिल (सलिल) उ० १११२८. अ० ५२६. प० ६७,१२१,१३६ प०३०,३१,७८,७६ सव्वगुणसंपन्नया (सर्वगुणसंपन्नता) उ० २६।४५ सलोगया (सलोकता) उ० ५।२४ सन्वट्ठ (सर्वार्थ) ३६।५७,२४४ सलोम (सलोम) क० ३१३,४ सब्वट्ठसिद्ध (सर्वार्थसिद्ध) प०८४११६१ सल्ल (शल्य) आ० ४।८. उ० ६।५३; १६६१; सव्वदसिद्धग (सर्वार्थसिद्धक) उ०३६।२१६ २६.६३११४. नि० ११२६ सव्वदसिद्धय (सर्वाथसिद्धज) अ० २५४ सल्लकत्तण (शल्यकर्तन) आ० ४१६. दसा० सवण्ण (सर्वज्ञ) आ०६।११. उ० २३।१,७८. १०।२४ से ३३ नं० ६५. अ० ५०,५४६. दसा० १०१६,३३. सवक्कसुद्धि (स्ववाक्यशुद्धि) द० ७.५५ १० १०,८२ सवण (श्रवण) उ० ३।६. अ० ३४१॥३. दसा० सव्वत्त (सर्वत्र) दसा० १०॥३१ १०।६,११,२४ से २७ सव्वत्तग (सर्वत्रग) द० ४।२१.२२ सवणया (श्रवणता) नं० ४३ सव्वत्थ (सर्वत्र) द०६।२१. उ० १८१३०. अ० सविउ (सवितृ) अ० ३४२ ३०७।१०. क० ६.१६; दसा०४।२१ सविज्जविज्जा (स्वविद्यविद्या) द०६१६६ सव्वदसि (सर्वदशिन) उ० १५२,१५. अ० २८२ सविज्जुय (सविद्युत् ) अ० ५३३ सव्वदरिसि (सर्वदशिन ) आ० ६।११. नं० ६५. सवियार (सविचार) उ० ३०।१२ __ अ० ५०,५४६. दसा० १०१६,३३. ५० १०,८२ सविसाण (सविषाण) क० ५२८,२६ सव्वद्धा (सर्वाध्वन,सध्विा ) उ० ३६।८. सविसेस (सविशेष) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१, __ अ० १२६,१४३,१७०,२११,२१६,२२०,६१६ ४३६,४३८. प० ४०,४१ सम्वधम्मरुइ (सर्वधर्मरुचि) दसा० ६ से १८ गवीमतिरातिय (सविंशतिरात्रिक) नि० २०।२० सव्वधम्माइक्क मण (सर्वधर्मातिक्रमण) आ० ३॥१ Page #1291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सव्वप्पण-सहस्ससो २९७ सवप्पण (सर्वात्मन्) ब० ६७,६ सव्वभक्खि (सर्वभक्षिन) उ० २०१४७ सव्वभाव (सर्वभाव) ८० ८।१६ सव्वराइणिय (सर्वरात्रिक) व० ४।१८ सव्वराईय (सार्वरात्रिक) क० २१६,७ सव्ववेहम्म (सर्ववैधh) अ० ५४३,५४६ सव्वसाहम्म (सर्वसाधयं) अ० ५३६,५४२ सव्वसुयाणुवाइ (सर्वश्रुतानुपातिन्) व० १०॥३६ सव्वसो (सर्वशस्) द. ७।१८।४७; ६।४.७. ___ उ० ११४; ६।११; २३१४१, ४६; २४।२६ सव्वातिहि (सर्वातिथि) अ० ३६१ सव्वारक्खिय (सर्वारक्षित) नि० ४१६,१२,१८, ४३,४८,५३ सव्वुक्कस (सर्वोत्कर्ष) द० ७।४३ ससंक (शशाङ्क) प० २१,२३ ससणिद्ध (सस्निग्ध) व० ६।४०,४१ ससत्ता (ससत्वा) उ० २१।३ ससमय (स्वसमय) उ० २६।६०.नं०८१ से ८५, १०१,१०३. अ० ६०५,६०६,६०८,६०६,७१४ ससमयपरसमय (स्वसमयपरसमय) नं० ८१ से ८५ ससक्ख (स्वसाक्ष्य) ६० ५।१३६ ससग (शशक) दसा० ७।४ ससरक्ख (ससरक्ष) आ० ४१५. द० ४ सू० १८, ५७, ३३,८१५. उ०१७।१४. दसा० २।३; ७।२२. २०१४०,४१. नि० ७७०,१३।३; १४।२२; १६।४३; १८१५४ ससरक्खपाणिपाद (ससरक्षपाणिपाव) दसा० १।३ ससविसाण (शशविषाण) अ० ५६६ ससार (ससार) द० ७.३५ ससि (शशिन्) द० ६३१५. नं० गा० १८. दसा० १०॥३. ५०४,६,२०,२६,३८,४२,४७ ससिणिद्ध (सस्निग्ध) द०४ सू० १६. दसा २॥३. ५० २६१. नि० ७।६६; १३३२; १४१२१ १६।४२; १८१५३ ससित्थ (ससिक्थ) प० २४८,२४६ ससुरय (श्वशुरक) अ० ३६२ सस्स (सस्य) अ० ५३१,५३५ सस्सामिवायण (स्वस्वामिवचन) अ० ३०८२ सस्सिरिय (सश्रीक) दसा० १०।११.५० ४ से ६, १९,२८,३६,३८,४२.७३,७४ सह (सह) द० १०।११. उ० १६; ।४६; १२।१८; १४१६,१६,५३; १९३,२११२१. प० ३१,६७ सिह (सह.)-सहइ प० ७७. -सहई द० ६।४८. उ० ३११५. -सहति दसा० ७१४. -सहे द०१०।११. सहेज्ज द० ६।४६. -सहेज्जा उ० २११६. व० १०२ सहकार (सहकार) प० २५ सहसंबुद्ध (स्वयंसंबुद्ध) आ० ६।११. उ० ६२ सहसम्मुइ (स्वसम्मति) उ० २८।१७. प० ६७ सहसा (सहसा) उ० १६।६. प० २५३ सहसागार (सहसाकार) आ० ४।६६।१ से १० सहस्स (सहस्त्र) आ० ४।६. उ०७।११, १२, ९।३४,४०; १८१४३; १९२४; २२।५, २३।३५; ३४।४१,४८,५३; ३६०५८,८०,१८,१०२,१२२. नं० २०,७६,८१ से ६१,१२३. अ०.२१६, २३१,३८२,३६१,४००,४०२,४०६,४१७१३, ४३३. दसा० १०।१८,१६. प० २७,३०,३२, ४२,६२,६३,७५,८६,९०,६१,६५,९६,११६, १२६,१३४,१३५,१३८,१४० से १४४,१५१ से १५६,१६५,१७० से १७८,१८०,१८१ सहस्सक्ख (सहस्राम) उ० १११२३. ५० ८ सहस्सगुणिय (सहस्रगुणित) अ० ४०८ सहस्सपत्त (सहस्रपत्र) नं० गा० ८ सहस्सपाग (सहस्रपाक) दसा० १०।११. ५० ४२ सहस्सपुहत्त (सहस्रपृथक्त्व) अ० ४५६,४६२ सहस्सरस्सि (सहस्ररश्मि) अ० १६,२०. दसा० ७।२०.५० ४२ सहस्ससो (सहस्रशस्) उ. ३६८३,६१,१०५, Page #1292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ सहस्सार-सागवच्च ११६,१२५,१३५,१४४,१५४,१६६,१७८, से २६; १०१२५ से २८; ११७५ से ८०; १८७,१६४,२०३,२४७ १२।१५,१६,२६,३१,३२,४२; १५७६,७८, सहस्सार (सहस्रार) उ० ३६।२११,२२६. ७६,८२,८३,८६,८७,६०,६१,६४,६५; अ० १८६,२८७ १६।१२,१७,१८,२८,३४,३५,३६; १७।१२५ सहस्सारय (सहस्रारज) अ० २५४ से १३२,१५१; १८।१७ से ३२ सहस्सिया (सहस्रिका) उ० ३६।१६०,२१६,२२० साइय (सादिक) नं० ५५,६८,६६,७१,१२७ सहा (श्लाघा) दसा० ६।२।३१ साइयार (सातिचार) अ० ५५३ सहाय (सहाय) दचू० २०१०. उ० २६।१,४०; साइरेग (सातिरेक) नं० ८५. प० ७७,१०६. ___३२।४,५,१०४ व० १११३ से १८, १०२२. नि० २०।१३ से सहाव (स्वभाव) उ० ३६।६०,२६३ सहिण (श्लक्ष्ण) नि० ७।१० से १२; १७।१२ से साईय (सादिक) उ० ३६१६,१२,६५,७६,८७, सहिणकल्लाण (श्लक्ष्णकल्याण) नि० ७१० से १०१,११२,१२१,१३१,१४०,१५०,१५६, १२; १७:१२ से १४ १७४, १८३,१६०,१६६,२१८ सहिय (सहित) उ० १५५१,५,१५ साउ (स्वादु) उ० ३२।१० सही (सखी) दसा० ४।२।३१ साउणिय (शाकुनिक) अ० ३०२।६ सहेउं (सोढम्) द० ६।४६ साउय (स्वादुक) अ० ३२३ सहेत्तु (सहित्वा) द० ३३१४ । साएय (साकेत) नि० ६।२० साइ (साचि) दचू० १ सू० १ सागडिय (शाकटिक) उ० ५।१४. अ० ३३२ साइ (स्वाति) नं० गा० २६. प० १,८४,१०६ सागणिय (साग्निक) नि०१६।३ साइ (सादि) अ० २३५ सागता ( ) म० २६६ साइज्ज (स्वाद)---साइज्जइ क० ११३७. सागपत्त (शाकपत्र) उ० ३४६१८ -~-साइज्जेज्जा क० ४।१०. व. २१५ सागर (सागर) आ० २१७; ५।४१७. द० ६।५४. साइज्जिय (स्वादित) प० २८४ उ० १६।३६,४२; २२।३१२५३८% २६।१, साइपारिणामिय (सादिपारिणामिक) अ० १२६, ५२; ३१११, ३४।३४,३८,३६,४३,५२; १४६,१७३,२८६,२८७ ३६।१६१,१६२,१६४ से १६६,२१६,२२२ से साइबहुल (सातिबहुल) दसा० ६।४ २४३. नं० गा० २८. अ० ४१५,७०८।५. साइम (स्वाद्य) आ० ६।१ से १०. द० ४ सू० प० ४,२०,५४,७८ नि० ८।११ १६; ५।४७,४६,५१,५३,५७,५६,६१,१२७; १०८,६. उ०१५।११,१२. दसा० २।३; सागरंगम (सागरङ्गम) उ० ११।२८ ३।३; १०।३१. प० ४८,६६,२६०,२६१,२७६, सागरंत (सागरान्त) उ० १८१३५,४० २७७. क० १११६, ४२, ३।१,२१, ४११२,१३, सागरपण्णत्ति (सागरप्रज्ञप्ति) जोनं०६ २७,२८,५२६ से १.व. २०२८ से ३०. नि० सागरमह (सागरमह) नि० ८।१४ २०४८; ३।१ से १२,१४,१५, ४१३७,११८; सागवच्च (शाकवर्चस्) नि० ३।७७ ५।३,३४,३५; ७१७७,७६,८६,८७, ८।१ से ६, सागारकड (सागारकृत) क० ११३८ से ४१. ११, १४ से १६; ६।४,५,१०,१२ से १८,२१ व० ७२२,८।१३ से १५ Page #1293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सागारिय-सामुद्द २६६ सागारिय (सागारिक) क० १।२२ से २५, २०१३, १८ से २७; ३।२६,२७, ४।२५. व० ७।२२ से २४; ८1८,९८१ से ३४. नि० २।४८,५४, ५५; ५११७,१८,२१ से २३;१६३१ सागारियकड (सागारिककृत) क० ४।२५ सागारियकुल (सागारिककूल) नि० २।४७ सागारियपिंड (सागारिपिंड) दसा० २।३; क० २०१४ से १७. नि० २।४५,४६ सागारियागार (सागारिकाकार) आ० ६।४,५ सागरोवउत्त (साकारोपयुक्त) उ० २६७४ सागरोवम (सागरोपम) दचू० १।१५. उ० ३३।२२,३६।१६० से १६६,२२४,२२६ से २३०,२३२,२३४ से २३६,२४२,२४४. अ० २१६,४१८,४२३,४२५,४३०,४३२,४३३, ४३७,४४०,५६६,६१६. प० २,१०६,१२७, १४६ से १५६,१६१,१८१ साडी (साटी) नं० ३८७ साण (श्वान) आ० ४१६. द० ५।१२,२२. उ० ११६. अ० ५४६ साणय (सानक) क० २।२८,२६ साणी (शाणी) द० ५॥१८ साणुप्पाय (३०) नि० ४११०८ सात (सात) प० ३२ साति (साचि) दसा० ६।३ साति (स्वाति) अ० ३४१।२. दसा० ८।१ सातिज्ज (स्वाद)–सातिज्जति नि० ११ साभाविय (स्वाभाविक) प०६ साम (श्याम) उ० १९५४ सामइय (सामयिक) नं० ५०,७५ सामंत (सामन्त) द० २६,११. प० ६६ सामज्ज (श्यामार्य) नं० गा० २६ सामणिय (श्रामण्य) द० ७।५६ सामण्ण (श्रामण्य) द० २११,४।२८,१०,१३०. चू० १६. उ० २।१६,३३, ६।६१:१८।४६; १६८,२४,३४,७५,६५, २०१८२२४५,४७; ३६।२५०. अ० ५५७. प० २८३. क० ११३४ सामण्णपरियाय (श्रामण्यपर्याय) दसा० १०॥३२. ५० १०६,१२४,१३८,१८० सामण्णपुव्वय (श्रामण्यपूर्वक) द० २ सामन्नदिट्ठ (सामान्यदृष्ट) अ० ५२७,५२८ सामलेर (शाबलेय) प० ५४४ सामवेय (सामवेद) प०६ सामा (श्यामा) अ० ३०७।१३,३११,३१६ सामाइय (सामायिक) आ० १, ११२,४।१,३; ५।१,२. उ०२८।३२. जोनं० ६. अ० ७२, ७४,७५,६६६ से ७०८, ७१४. दसा० ६६ से १८ सामाइय (सामाजिक) उ० ११।२६ ।। सामाइयंग (सामायिकाङ्ग) उ० ५।२३ सामाइयचरित्त (सामायिकचरित्र) अ० ५५३ सामाइयचरित्तलद्धि (सामायिकचरित्रलब्धि) अ० २८५ सामाइयसंजयकप्पट्ठिति (सामायिकसंयतकल्पस्थिति) क०६।१० सामाग (श्यामाक) ५० ८१ सामाचारी (सामाचारी) उ० २६; २६।१,४,७, ५२. अ० २३६ सामाण (सामान) नं० १०२ सामाण (सन्निहित) क० ३।१३ सामाणिय (सामानिक) अ० ७०८. ५०६ सामायारिय (सामाचारिक) अ०१०१,२३८,२४१ सामासिय (सामासिक) अ० ३४६,३५०,३५७ सामि (स्वामिन् ) उ० २।३८. दसा० ५।६६।१; १०४,६,१०,१२,२४. ५० ३७,३६,४१,४३, सामिणी (स्वामिनी) द०७।१६ सामित्त (स्वामित्व) दसा० १०॥१८. प०६ सामिय (स्वामिक) द०७११६. प०५१ सामिसंबंध (स्वामिसम्बन्ध) अ० ३०८।५ सामुदाणिय (सामुदानिक) उ० १७।१६ सामुद्द (सामुद्र) द० ३८ Page #1294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माय-मामवनालिया सावएज्ज (स्वापतेय) अनं० १७. अ० ६५५,६५६, ६८१,६८५. प० ५२,६६ मावकंख (सावकाङ्क्ष) उ० ३०६ सावग (श्रावक) नं० गा०८,१५ सू०३८।११ दसा० १०॥३५ सावज्ज (सावध) आ० १।२,४।१५।१. द० ६।३६,६६, ७।४०,४१,५४. चू० १ सू० १. उ० ११२५,३६; २१११३. दसा ६॥३ सावज्जजोग (सावधयोग) उ० २६18 सावज्जजोगविरइ (सावद्ययोगविरति) अ० ७४, माय (सात) द० ४।२६. उ० २१८,३६; १६७४; २७६; २६।४; ३३१७ ; ३४।२३; ३६।२६४ सायं (सायम्) उ० १२१३६ सायग (स्वादक, शायक) द० ४।२६ सायवेयणिज्ज (सातवेदनीय) अ० २८२ साया (साता) आ० ४।८ सार (सार) उ० १४।३०,३७; १६।२२; २०१२४. नं० ३८१८. अनं० १३,१७. अ० ३६०३, ६५५,६५६,६८१. ५० ५२,६६,७४,२८३. क० १३४ सारइय (शारदिक) उ० १०१२८ सारकंता (सारकान्ता) अ० ३०४ सारक्ख (संरक्षत्) द० ५१३६ सारक्खित्तु (संरक्षयित) दसा० ४।२० सारण (सारण) उ० २६१६ सारय (सारग) ५०६ सारय (शारद) ५०७८ सारवंत (सारवत्) अ० ३०७।६ सारस (सारस) अ० ३००।२. प० ३० सारसी (सारसी) अ० ३०४।१ सारहि (सारथि) उ० २२।१५,१७,२०; २७११५. दसा० १०४ सारिख (सदृश) दचू० ११० सारीर (शारीर) उ० १९४५; २३८०; २९।४, सावण (श्रावण) उ० २६।१६. ५० १२४,१२८, १२६ सावतेज्ज (स्वापतेथ) प० ७४ सावत्थिया (श्रावस्तिका) प० २०० सावत्थी (श्रावस्ती) उ० २३१३,७. १० ८३. नि० ६।२० सावय (श्रावक) आ० ४।८. उ० २१११,२,५ अ० २७,२८. प० २८८ सावसेस (सावशेष) उ० २६।२० सावस्सय (सावश्रय) क० ५।२६ साविया (श्राविका) आ० ४।८. अ० २७. दसा० १०॥३५. प०२८८ सावंत (श्रावयत्) दसा० १०।१४ सास (शासत्) उ० ११३७ सास (शास्यमान) उ० ११३६ सासंत (शासत्) उ० ११३७. दसा० १०११४ सासग (सस्यक) उ० ३६१७४. प० ३३ सासण (शासन) उ० १४१५२; १९६३. अ० ५१ सासणय (शासनक) नं० गा० २२ सासय (स्वाशय) द० ७।४ सासय (शाश्वत) द० ४।२५; ६।४।७. उ० ११४८; ३।२०; १६।१७; २३।८४; ३५।२१. नं० ३३, ८१ से ११,१२३,१२६ सासयवाइय (शाश्वतवादिक) उ०४९ सासवनालिया (सर्षपनालिका) द०५।११८ सारूविय (सारूपिक) व० ११३३ साल (श्याल) अ० ३६२. प. ८१ सालवण (शालवन) अ० ३२४. नि० ३१७८ साला (शाला) द० ७॥३१ सालि (शालि) उ० ६।४६. अ० ३५७, क० २।१ सालिंगणवट्टय (सालिंगनवर्तक) प० २० सालिम (शालिमत्) उ० १२१३४ सालिसय (सदशक्) प० २० मालुय (शालुक) द० ५१११८ गावइज्ज (स्वापतेय) अनं० १३ Page #1295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साह-सिंगबेरचण्ण ३०१ साह (साध)-साहिज्जइ अ० ५३१ १६०,१९५.१९७ से २०२,२०४,२०५,२०८, ‘साह (कथ्)-साहइ प० १६२ २१०,२११ से २१५,२१८ से २२०. वसाह (साधय्)--साहसि उ० १३१२७ नि० १७।१३२ -साहेइ उ०२६५ साहाभंग (शाखामंग) नि० १७।१३२ साहग (साधक) प० २२२ साहारण (साधारण) दचू० १ सू० १. साहटु (संहृत्य) द० ५।३०. दसा०६।१८. उ० ४।४।२६।५८. दसा० ६२।२८. प० १०. व० १०॥३ व०६।१७,१६,२१,२३,२५,२७,२६ साहण (साधन) द० ५।१२. उ० २३।३१,३३ साहारणसरीर (साधारणशरीर) उ० ३६।६३, साहणिय (संहत्य) व० १११५. नि० २०११५ से साहाविय (स्वाभाविक) प० ३८ साहम्मिणी (सार्धामनी) व० ५।११ से १४ साहिय (साधिक) नं० १८१५ साहम्मिय (सार्धामक) द. १०१६. दसा० ४।२३.। साहिय (साधित) नं० ३८।१० क० ४।३. व० ११२० से २२, ३३, २०१ से ४, साहिगरण (साधिकरण) क० ६।१५. व. २११४. २४; ४११ से १४,१८,१६,२४,२५,७।२२; नि० १०११४ ८.१३,१५,१०॥४०,४१. नि० २१४४ साहिल्लया (सहाय्य) दसा० ४।१६,२१ साहम्मियत्त (सार्मिकत्व) दसा० ४।१७ साहीण (स्वाधीन) द० २।३. उ० १४११६ साहम्मोवणीय (साधोपनीत) अ० ५३८,५३९, साहु (साधु) आ० १३१; ४१२,८,९. द० ११३,५; ५४२ ५१५,६२,६४ से ६६.१४३; ६।१२; ७।४८, साहर (सं+ह)-साहरइ प० १०. व०६।४५. ४६% ८.५२; ६।५१. चू० २।४. उ० ११३६% -साहरंति प० ५१. साहराहि प० १४. ५।२०, ८१६; ६।५७; १२३७; १३।२७,३४; -साहरिएमि प०१६. –साहरिज्जिसामि १९७; २०१४,१३; २३१२८,३४,३६,४४,४६, प०१६ ५४,५६,६४,६६,७४,७६,८५; २५।१५; साहरावित्तए (संहारयितुम्) प० १४ २६१४; २७।१२; ३६।२६५. नं० ३८।११. साहरिज्जमाण (संहियमाण) ५० १६,१८ जोनं० १०. अ० ५३२,५३६,५४२,७१५॥६. साहरित (संहृत) दसा० ८।१. प० १ दसा० १०।२२ से ३२. व० २।२४ साहरित्ता (संहृत्य) प० १४ साहुक्कार (साधुकार) नं० ३८८ साहरिय (संहृत) प० १,१७,५१ साहुणी (साध्वी) आ० ४१८. जोनं० १० साहस (साहस) द० ६।३६ साहुधम्म (साधुधर्म) उ० ८।८ साहसिय (साहसिक) उ० २३।५५,५८, ३४।२१ साहुवयण (साधुवचन) आ० ६२,३ साहस्सिय (साहसिक) उ० ३४१२४. दसा०६३ सिंग (शङ्ग) उ० ११।१६. अ० ५२५. प० २२ साहस्सी (साहस्री) उ० २२।२३; २३:१६. ५०६, सिंगपाय (शृंगपात्र) नि० १११ से ३ । १५,६५,६३ से १६,११७,११८,१६२,१३३, सिंगबंधण (शृंगबन्धन) नि० ११४ से ६ १३५,१६८ से १७१,१७८ सिंगबेर (शंगबेर) द० ३।७; ५७०. उ० ३६।९६. सिगबर (शुगर) साहा (शाखा) द०४ सू० २१, ६।३७,८१६; नि० ११११६ ६।१८. उ० १४१२६. ० ३०८।४. प० १८७, सिंगबेरचुण्ण (शृंगबेरचूर्ण) नि० १११६२ Page #1296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ सिंगमालिया-सिद्ध सिंगमालिया (शृगमालिका) नि० ७.१ से ३; १७.३ से ५ सिंगार (गार) उ० १६।६. अ० ३०६,३११ सिंगार रस (शृङ्गाररस) अ० ३११ सिंगि (शृङ्गिन) अ० ३२७ सिंगिरीडी (दे०) उ० ३६।१४७ सिंघाडक (शृङ्गाटक) अ० ३६२ सिंघाडग (शृङ्गाटक) क० १।१२,१३. दसा० १०॥६.५०६२ सिंघाडय (शृङ्गाटक) प० २५१ सिंघाण (सिंघाण) द० ८।१८. उ० २४.१५. क० १११६; ३।१,२१; ४।२७. दसा० १०।२८ से ३०,३२. प० ७८ सिंच (सिंग) --सिंचंति द० ८।३६. -सिंचामि उ० २३१५१ सिंधव (सैन्धव) द० ३।८ सिंबलि (शाल्मलि) द० २७३. उ० १६५२ सिंहली (सिंहली) नि० ६।२६ सिक्कग (शिक्यक) नि० १११३, २०१२ सिक्ख (शिक्ष)-सिक्खइ अनं ६. अ० १७. -सिक्खए उ० २११६. -सिक्खिस्सइ अनं० ६. अ० १७. -सिक्खे द० ७.१. -सिक्खेज्जा उ० श. सिक्खमाण (शिक्षमाण) द० ६।३१ सिक्खा (शिक्षा) द०६।३. उ० ५।२४;७१२०, २१; ११॥३,१४; २३१५८. नं० ३८१४,८१. दसा० १०॥२४ से ३३ सिक्खाकप्प (शिक्षाकल्प) प०६ सिक्खाव (शिक्षय)-सिक्खावेति नि० १३।१२ सिक्खावेंत (शिक्षयत्) नि० १३०१२ सिक्खावेत्तए (शिक्षयितुम्) क० ४१५ सिक्खासील (शिक्षाशील) उ० १२४,५ सिक्खिऊण (शिक्षित्वा) द० ५।१५० सिक्खित्ता (शिक्षित्वा) उ० ५।२८ सिखिय (शिक्षित) उ० ४।८. अनं० ६. अ० १३, ३४, ५७,८१,१०६,५६३,६२३,६३५,६४७, ६७३, ७०० सिग्घ (श्लाघ्य) द० ६।१६. प० १५ सिच्चमाण (सिच्यमान) दसा० ५।७।१४ सिज्जंभव (शय्यंभव) नं० गा० २३ सिज्जंस (श्रेयांस) आ० २।३; ५।४।३. नं० गा० १८ सिज्जमाग (सिध्यमान) नि० २१५१ सिज्जा (शय्या) उ०२३।४,८. अनं०८ सिज्म (सिध)-सिभइ उ० २६२. -सिज्झई उ० ३६।५१. -सिझंति आ० ४।६. द० ३।१४. उ०१६।१७. दसा० १०॥२४. प० २८७. -सिझते उ० ३६।५३. -सिज्झति दसा० १०१३३. -सिज्झिस्संति उ० १६।१७. -सिझज्जा दसा० १०॥३२ सिज्झित्तए (सेदधं) दसा० १०॥३२ सिट्ठ (श्रेष्ठ) उ० १२।४२ सिट्टि (वेष्ठिन्) नं० ३८।११ सिढिल (शिथिल) उ० ४१६; २६।२३ सिणय (शणक) अ० ३४७ सिणाण (स्नान) द. ३२,५२५, ६।६०,६३. उ० २।६; १२।४७; १५४८. नि० ११५, ६।६ इसिणाय (स्ना)-सिणायंति द०६।६२ सिशीयंत (स्नात) द०६।६१ सिणायय (स्नातक) उ० २५।३२ सिणिद्ध (स्निग्ध) अ० ५१२ सिणेह (स्नेह) द०८।१५. उ०६।४८२; १०।२८. दसा० १०॥३३. प० २६१,२६२, २७० सित्त (सिक्त) द० २६. उ० ३।१२; २३३५१. प०४०,४१,६२ सित्थ (सिक्थ) उ० ३०।१५. अ० ३२७,५२५ सिद्ध (सिद्ध) आ० १।१; २।६,७; ४१२,८; Page #1297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धाइगुण-सिलायल ५४१६,७. द० ४१२५ ९०४७.४० १२४८ ३।२०; १२।११; १६ १७ १८५३; २०११; २६।५१ २ ३६; ३३।१७, २४ ३६०४८, ४६, ५५,६६,६२ से ६४,२४८. नं० २६।३० से ३२, १२०, १२४. अ० २८२,३६८, ४४५, ४५७, ४६०. व०. १।३३. प० ८४,१०३, १०६,१३६, १७८ सिद्धाइगुण (सिद्धाविगुण) आ० ४ ८. उ० ३१।२० सिद्धत (सिद्धान्त) अ० ५१ सिद्धत्य ( सिद्धार्थ ) ५० १४, १५, १७, २६ से ५१, ५४,६१ से ६५.६८ सिद्धत्यय ( सिद्धार्थक ) अ० १६,५८६ सिद्धत्वण (सिद्धार्थवन) १० १६५ सिद्धसिला (सिद्धशिला) अनं० ८. अ०१६,२७. ६०,८४,१०१, ५६६, ६२६,६३८,६५०,६७६, ७०३ सिद्धसेणियापरिकम्म (सिद्धश्रेणिकापरिकर्मन् ) नं० १३,९४ सिद्धावत (सिधावर्त) नं० १४ सिध (शिद्धि) आ० २७; ५।४।७. ० ४ । २४, २५; ६६६; ६/१७. उ० ६५८; १०/३५; ११।३२; १६६५ २२/४८ २३८३; २५।४३ २६।३,५३६०६२,६७. दस० ६१३, ७. १०७४, १०४ सिविर (बीवर) प० २९ सिद्धिगर (सिद्धिगति) आ० ६।११. उ० १०३७ सिरिहर (श्रीधर ) प० ११६ १३।३५. प० १० सिद्धिह (सिधिपथ) नं० १२० सिद्धिमग्ग (सिद्धिमागं ) मा० ४।६. द० ३।१५; ८३४. दसा० १०।२४ से ३३ सिप्प ( शिल्प) द० ९ ३०, ३२. अ० ३५८, ३६०, ४१६. दा० १०१११. ० ४२, १६५. नि० १३।१२ सिप्पि (शिल्पिन् ) उ० १५६ सिप्पी ( शुक्ति) उ० ३६।१२८ सिय ( सित) द० ४ सू० २१ सिय (स्वात्) उ० २९ २२.४०४५६, ४६०, ४९२, ५५७ सिया (स्यात्) द० २२४ ५ २८, ४०,७४,८२,८४, ११२,१३१,१३३; ६।१८५२ ७२८ ३ २५,४७, ६७, ६. उ० ६।४८. अ० ३६८, ४१६,४२२. दसा० ३३ ६४६ ७२५; २३६. क० २१४,५, ३।१३,२७,३१, ४ । १२ से १४,२५.२६ ५५, ११, १२, ४०, ४१; ६२. ० १।१५ से १८ २५ से १७,२२,२३,२५, २६ ४।२१.२३ ५।१५ से १५ ७११ से ५; १,१२ से १५, १७ ६१६ से १६,४२,४३; १०१६ ३०३ सिर (शिरस) आ० ४१९.६० ११८, १२. उ० १५५०; १६४६, २०१५६; २२1१० ; २३४५६ नं० गा० २६,२४,४३. अ० ३०७७, दसा० १०३,१२,२४. ५० १५,२२२ सिरय ( शिरस्क) दसा० १०।१५. ०४२ सिरसावत ( शिरसाव ) दसा० १०२४, ५, १०, १२, प० ५,७, १०, १५, ३९, ४१, ४३, ४४, ४८,५०, ६२. ० १।३३ सिरिगुप्त ( श्रीगुप्त ) प० १९६,१९८ सिरि (ध्याय) प० १९३ सिरिली (दे०) उ० ३६।१७ सिरिवच्छ (श्रीवत्स) अ० ५६९. दसा० १०।१४. प० ३१ सिरी (श्री) द० | २१. चू० १।१२. अ० २६४/५. दसा० २।१६; १०।१२. प० २३, २४, ३० सिरीय ( श्रीक) अ० ३१८ सिरीस (शिरीष) उ० ३४ । १२. १०२५ सिरीसव ( सरीसृप ) दसा० ६३ सिल (शिला) अ० ३८५, ६५५, ६५६, ६८१,६८५ सिला (शिला) द० ४ सू० १८ ५६५ ८४,६. उ० ३६।७३. अनं ० १३ १७. दसा० २।३; ६३. प० ५२, ७४. नि० ७७३; १३ ६,१०; १४ २५, २६; १६/४६, ५०; १८५७, ६१ सिलायल ( शिलातल) नं० गा० १३ Page #1298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ सिलेस-सीलव्वय सिलेस (श्लेष) द० २४५ ४८,६३,७२; ७।१८,२४,३०,३४ से ३७,५२, मिलोग (श्लोक) द० ६।४ सू० ४ से ७. चू० १ ६१,११११५,२१,२७,३१ से ३४,४६,५८; सू० १. उ० १५१६,१६ सू० १२. नं० ८१, १२।१६; १४।१२,१३,१६,१७; १५।१७,२३॥ ६१,१२३. अ० ३६१,५७१,५७२. क० ३।२३, २९, ३३ से ३६,५१,६०,१०३,१०६,११५, २४. नि० १३।१२ ११६ से १२२,१३७,१४६; १७११६,२५,३१, सिलोय (श्लोक) अ० ३५८ ३५ से ३८,५३,६२,७३,७६,८५,८६ से १२, सिव (शिव) आ० ६।११. द० ७.५१. १०७,११६,१८१४४,४५,४८,४६ उ० १०॥३५; २३।८०,८३. अ० २०.५० ४ से सीओदय (शीतोदक) द०६।५१८१६; १०२ ६,१०,१६,२२,२८,३६,३८,७३,७४,२२२१७ सीत (शीत) अ० २६१,२६३ सिवभूइ (शिवभूति) प० २२२ सीतल (शीतल) अ० २२७. प० १५३ सिवा (शिवा) उ. २२१४. अ. ३२३. प० १२७ सीतोदक (शीतोदक) नि० ११६ सिविया (शिबिका) ५० ११३ सीमारक्खिय (सीमारक्षित) नि० ४१४१,४६,५१ सिव्व (सीव)-सिव्वति नि० ११२७. सीय (शीत) द० ३।६२; ७१५१; ८।२७. -सिव्विस्सामि नि० ११२७ उ० ११२७, २ सू० ३; २।६; १५।५,१३; सिव्वत (सीवत्) नि० १२२७,४६ १६।३१,४८; २१११८, ३२१७६; ३६।२०. सिव्वाव (सेवय)-सिव्वावेति नि० ५।१२ अ० ५१२. प०२७,५८. क० ५२१२ सिव्वावेत (सेवयत्) नि० ५।१२; १२१७ इसीय (सद)-सीयंति उ०२०॥३८.दसा०७।२५ सिसुणाग (शिशुनाग) उ० ५।१० सीयच्छाय (शीतच्छाय) उ० SIE सिस्स (शिष्य) अनं०.२१,२२ । सीयपिंड (शीतपिण्ड) उ० ८.१२ सिस्सणी (शिष्या) अनं० २० से २२,२८ सीयय (शीतक) २०३६।३८ सिस्सिणी ( " ) अ० ६६२,६६४,६८८,६६० सीयल (शीतल) नं० गा० १८. अ० ३२३. सिस्सिरिली (दे०) उ० ३६।६७ ५० १५१,१५२,१५४ से १५६ सिहंडि (शिखण्डिन्) दसा० १०।१४ सीया (सीता) उ० १११२८; ३६।६१ सिहर (शिखर) नं० गा० १८. प० २४,१२४, सीया (शीता) नं० ३८१७ १३०,१३८,१८० सीया (शिविका) उ०२२।२२,२३. अ० ३९२. सिहरि (शिखरिन) नं० ८३. अ० २६४।४,४१० दसा० ६।३. प० ७४,७५,११३,१२६,१६५ सिहरिणी (शिखरिणी) क० २१८ सीयाल (शृगाल) दसा० ७।२४ सिहा (शिखा) उ० १६।३६. अ० ३७६,५२५ सील (शील) आ० ४१६.६।१४,१६. उ० ११५,७; सिहि (शिखिन) द० ४।३. अ. ३२७.५० ४,५, ३।१४।५।१६ १३।१२,१७; १४।५,३५; २०,३४ १७१३; १९३५,२११११, २२।४०; २३।५३, सीअल (शीतल) आ० २।३; ५।४।३ ८८२७।१७; २६।५; ३६।२६३. नं० गा०६। सीईभूय (शीतीभूत) द. ८.५६ सीओदग (शीतोदक) उ० २।४. दसा० ७२३. सीलवंत (शीलवत) उ० ५।२६, ७।२१, २२।३२ क० २१५. नि० २।२१, ३।२०,२६,३२,३६ से सीलव्वत (शीलवत) दसा० ६।८ से १८; १०१३० ३६,५४,६३, ४।५८,६४,७०,७४ से ७७,६२, १०१; ५॥१४; ६।७,१५,२६,३५,४१,४५ से सीलब्बय (शीमवत) नं० ८७ Page #1299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलस मायार- सुक्कलेसा सीलसमायार ( शीलसमाचार) अ० ५२६ सीस (शिष्य) उ० १।१३,२३; २१।१; २३।२,३,६, ७, १०, १४, १५, २७१५, १६. नं० गा० ३६ सू० ७६, १२०. अनं० २०. अ० ५५१,६६२, ६६४,६८८, ६६०. प० १६६,२२२, २२६, २२७ सीस (शीर्ष) द० ४ सू० २३, ६६. उ० २।१० ; ७|३; १२।२८ २१।१७. दसा० ६।२।४. नि० ५/६६ ७ ८३ सीसओ ( शीर्षतस् ) नं ० ५३ सीसंग (सीसक) उ० ३६।७३ सीगलोह (सीसकलोह) नि० ७२४ से ६; १७६ से सीसछिन्न (छिन्नशीषं) दसा० ६।३ सीसवारिया ( शोषद्वारिका ) नि० ३।६९; ४|१०७; ६ ७८ ७ ६७ ११ ६४; १५/६६, १५२; १७६८, १२२ सीसपहेलियंग ( शीर्षप्रहेलिकाङ्ग) अ० २१६,४१७ सीस पहेलिया ( शीर्षप्रहेलिका ) अ० २१९, ४१७ सीसय ( सीसक) उ० १६६८ सीसागर ( सोसाकर) नि० ५।३५ सीह (सिंह) द० ८,६. उ० ११ २०; १३ ।२२; २१।१४; ३६।१८० अ० ५२५. नं० गा० ३२. प० ४,२०,२३,२८,७८, २२२ सीहकण्णी ( सिंहकर्णी) उ० ३६ ९९ सीहणाय ( सिंहनाद) नि० १७ १३५ सीहोस (सिंहपोषक) नि० ६।२३ सहासन (सिहासन) दसा० १०1३, ७, १४, २४. प० ८,१०,१५,४० से ४२,४६ सी (सीधु) उ० १६।७० अलंकिय (स्वलंकृत) ६० ८५४. नि० १२ २६; १७।१५१ सुमाराय ( स्वाराधक) प० २७८ सुइ (शुचि) द० ८३२. उ० १२।४२. दसा० ५।७।११; १०।११. प० २२,४२,६२,६६ सुइ ( श्रुति) उ० ३।१, ८, १०, १०११८,१६ सुइय ( शुचिक) प० ४०.४१ सुइर (सुचिर ) उ० ७ १८ सुउद्धर (सूद्धर) द० ६।४७ सुउमाल ( सुकुमार) दसा० १०।११ सुए ( श्वस् ) द० १०१८. उ० २।३१; १४/२७ सुंदर (सुन्दर) उ० १३ । २४; १६ । १७. नं० गा० १४. दसा० १०।१२. प० ६,२२, २४,३८,४७ सुंदरी (सुन्दरी) प० १६६ सुंदरीनंद ( सुन्दरीनन्द ) नं० ३८ १२ सुंभ (शुभ) प० ११६ ३०५ सुभय ( सुम्भक ) अ० ३२३ सुंसुमार ( सुंसुमार, शिशुमार ) उ० ३६ । १७२ सुकड ( सुकृत) द० ७७४१. उ० १।३६. नं० ६१. दसा० ६१३,७ सुकड (सुकर) उ० २।१६. सुकय ( सुकृत) उ० ११४४. दसा० १० ३,११,१४, १५. प० ४२,६२ सुकहिय ( सुकथित) उ० १०/३७ सुकुमार ( सुकुमार) दसा० १०।१२ सुकुमाल ( सुकुमार) उ० १६।३४; २०१४. नं० गा० ४२. दसा० १०।११,२४ से ३२. प० ६,२२ से २४,२८,३८,४२, ३७ सुकुल (सुकुल) नं० ८६ से ८६,६१ सुक्क ( शुक्ल) आ० ४।८. उ० ३० । ३५; ३४ । १५, ३१,५५, ५७. दसा० १०।२५,२६. प० ७४ सुक्क (शुक्र) दसा० १०।२८ से ३२ सुक्क (शुष्क) द० ५।६८. उ० २५४०, ४१. अ० ५३५ सुक्कझाण ( शुक्लध्यान ) उ० २६/७३ ; ३५।१६ सुक्क पक्ख ( शुक्लपक्ष ) व० १०1३, ५ सुक्क पक्खित ( शुक्लपाक्षिक) दसा० ६।७ सुक्कपोग्गल (शुक्रपुद्गल ) व० ६८, ६. नि० ११६; ६।१० सुक्क मूल (शुष्कमूल) दसा० ५०७ १४ सुक्कलेस ( शुक्ल लेश्य ) अ० २७५ सुक्कलेसा ( शुक्ललेश्या) आ० ४१८. उ० ३४ ३, Page #1300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६,३२,३६,४६, ३६।२५८ सुक्किल (शुक्ल) उ० ३६।१६,२६,७२. अ० २५८, २६३,५०६. प० २८,२६३ से २६७ सुक्कीय (सुक्रोत) द० ७.४५ सुग (शुक) प० २७ सुगंध (सुगन्ध) द० ५।१०१. उ० २२।२४. दसा० १०॥११.५० २०,२१,४०,४२,६२ सुगति (सुगति) दसा० ४।२।२८ सुगिम्हपाडिवय (सुग्रीष्मप्रतिपत) नि० १९२२ सुग्गइ (सुगति) द० ४।२६,२७. उ० ३४।५७ सुग्गीव (सुग्रीव) उ० १६१ सुरिय (सुचरित) दसा० १०।२२ से २७,३३. प०५१ सुचिण्ण (सुचीर्ण) उ० १३।१०; १४१५. दसा०६।३,७ सुचिण्णफल (सुचीर्णफल) दसा० ६।३,७ सुचिर (सुचिर) उ० २७६ सुचोइय (सुचोदित) उ० ११४४ सुच्चा (श्रुत्वा) उ० २१।१४ सुच्छिन्न (सुछिन्न) द० ७१४१. उ० ११३६ सुज? (स्विष्ट) उ० १२।४० सुजह (सुहान) उ० ८।६ सुजाय (सुजात) प० ६,२३,३८,४७ सुट्टिअप्प (सुस्थितास्मन) द. ३११।३ सुट्ठिय (सुस्थित) उ० २२॥४०.५० १८७,१९६, २०२,२०३ सुठ्ठ (सुष्ठ) उ० २०१५४. नं० ७१ सुठुतरमायामा (सुष्ठुतरायामा) अ० ३०६।२ सुटठदिण्ण (सुष्ठवत्त) आ० ४१८ सुण (श्रु)-सुण उ० २४१६.--सुणइ नं० ५४१४.-सुणह अ० ७१५. - सुणाहि उ० १३।२६. -सुणिज्जा नं० ५३.-सुणेइ द० ८।२०. नं० ३५.-सुणेज्जा द० ५१४७. -सुणेमि उ० २०।८.-सुणेह द० ५।१३७. उ० १६१. -सुणेहि उ० २०।३८. सुक्किल-सुत्तफासियनिज्जुत्ति -सुव्वंति उ० ६७ सुणग (शुनक) उ० ३४।१६. दसा० ७.२४ सुणय (शुनक) उ० १९५४ सुणहपोसय (शुनकपोषक) नि०६।२३ सुणिट्ठिय (सुनिष्ठित) उ० १।३६ सुणित्ता (श्रुत्वा) उ० १७१ सुणित्तु (श्रुत्वा) दचू० २।१ सुणिया (श्रुत्वा) उ० १०६ सुणी (शुनी) उ० १४. दसा० १०॥३२ सुणेत्ता (श्रुत्वा) उ० १२११६ सुणेत्तु (श्रोतृ) उ० १६ सू०७ सुणेमाण (शृण्वत्) उ० १६ सू० ७ सुण्णगिह (शून्यगृह) नि० ८।५; १५७१ सुण्णसाला (शून्यशाला) नि० ८।५; १५७१ सुण्हा (स्नुषा) दसा० ६।३।। सुतिक्ख (सुतीक्ष्ण) अ० ३९८ सुत (श्रुत) दसा० ४।१६; ७।१; ९।२।१६ सुतवस्सिय (सुतपस्विक,सुतपस्थित) दसा० ।।२१ सुतविणय (श्रुतविनय) दसा० ४११६ सुतित्थ (सुतीर्थ) द० ७।३६ सुतसंपदा (श्रुतसंपदा) दसा० ४१३,५ सुति (श्रुति) दसा० ६५ सुतिक्ख (सुतीषण) अ० ३९८ सुतोसय (सुतोषक) द० ५।१३४ सुत्त (सुप्त) द० ४ सू० १८ से २३; 81. उ० ४।६. नं० ५२. दसा० ३३ सुत्त (सूत्र) द० १०।१५, चू० २०११. उ० १।२३ २३१८५; २६।२१,६०. नं० ६२, १०२,१०३. जोनं० १०. अ० ५१,५५१, ७१४. दसा० १०॥३५,४२. ५०, २२२,२२८. नि० ५२१३,२४ सुत्त (रुइ) (सूत्ररुचि) उ० २८।१६ सुत्तग (सूत्रक) उ० २२।२० सुत्तजागरा (सुप्तजागरा) प० ४,५,१६,२०,४६ सुत्तपासय (सूत्रपाशक) नि० १२३१,२; १७:१,२ सुत्तफासियनिज्जुत्ति (सूत्रस्पशिकनियुक्ति) Page #1301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुत्तय-सुप्पसारय अ० ७११,७१४ सुत्तय (सूत्रक) नि० ३१७० सुत्तरुइ (सूत्ररुचि) उ० २८.२१ सुत्तत्थ (सूत्रार्थ) नं० गा० ४० सू० ३८।५; १२७।५ सुत्तपरिवाडी (सूत्रपरिपाटी) नं० १०३ सुत्तागम (सूत्रागम) अ० ५५० सुत्ताणुगम (सूत्रानुगम) अ० ७१० सुत्तालावगनिप्फण्ण (सूत्रालापकनिष्पन्न) अ० ६१८,७०६ · सुत्तिमत्तिया (सूक्तिमतिका) प० १६५ सुदंसण (सुदर्शन) दचू० १११७. ५० ३८,१६५ सुदंसणा (सुदर्शना) उ० ११११२७. प० ७० सुदिट्ट (सुदृष्ट) उ० १२॥३८; २८।२८ सुदुक्कर (सुदुष्कर) उ०१६।२८ से ३०,३८,३६ सुदुक्खिअ (सुतुःखित) उ० २२।१४ सुदुच्चर (सुदुश्चर) उ० १८।३३ सुदुल्लह (सुदुर्लम) द० ५।१४८. उ० ८।१५; १७१; २०१११, २२॥३८ सुद्द (शूद्र) उ० २५१३१ सुद्ध (शुद्ध) द० ५।५६. उ० ३।१२; ८।११; १८१३२; १९६४; ३२।१०६. प० २२,५६, ८१,८४ सुद्धगंधारा (शुद्धगान्धारा) अ० ३०६।१ सुद्धसज्जा (शुद्धषड्जा) अ० ३०४।१ सुदपुढवी (शुद्धपृथिवी) द० ८।५। सूद्धप्पा (शवात्मन) दसा० ६।२।३७ सुद्धप्पावेस (शुद्धप्रावेश',शुद्धात्मवेश) प० ४४, ६६,७८,८१,१२४,१२८,१२६,१३८,२२२ सुद्धवाय (शुद्धवात) उ० ३६।११८ सुद्धवियड (शुद्धविकट) प० २४७. नि० १७।१३३ सुद्धहियय (शुद्धहृदय) प० ७८ सुद्धागणि (शुद्धाग्नि) द०४ सू० २० सुद्धोदग (शुद्धोदक) द० ४ सू १६ सुद्धोदय (शुद्धोदक) उ० ३६।८५. दसा० १०।११. प०४२ सुद्धोवहड (शुद्धोपहत) दसा० ७१५. व० ६।४४; १०॥३. सुनंद (सुनन्द) ५० ११६ सुनंदा (सुनन्दा) प० १२० सुनंदि (सुनन्दि) नं० गा०६ सुनिट्ठिय (सुनिष्ठित) द० ७।४१ सुनिम्मिय (सुनिमित) प० २३ सुनिसिय (सुनिशित) द० १०।२ सुन्नागार (शून्यागार) उ० २।२०; ३५॥६. प० ५१ सुपइट्ठिय (सुप्रतिष्ठित) ५० २४ सुपक्क (मुपक्व) द० ७।४१. उ० ११३६ सुपट्ठिय (सुप्रस्थित) उ० २०।३७ सुपण्णत्त (सुप्रज्ञप्त) द० ४ सू० १ से ३ सुपरिनिट्ठिय (सुपरिनिष्ठित) प०६ सुपरिमट्ठ (सुपरिमृष्ट) प० २६ सुपरिच्चाइ (सुपरित्यागिन्) उ० १८।४३ सुपालय (सुपालक) उ० २३।२७ सुपावय (सुपापक) उ० १२११४ सुपास (सुपाव) आ० २।२५४।२. नं० गा० १८. अ० २२७. प०७०,१५४ सुपिवासिय (सुपिपासित) उ०२।५ सुपुण्ण (सुपुण्य) उ० ५।१८ सुपेसल (सुपेशल) उ० १२।१३,१५ सुम्प (सूर्प) नि० १७।१३२ सुप्पडिबुद्ध (सुप्रतिबुद्ध) प० १८७,१६६,२०२, २०३ सुप्पणिहिदिय (सुप्रणिहितेन्द्रिय) ६० ५।१५० सुप्पणिहित (सुप्रणिहित) दसा० ४।१८ सुप्पणिहिय (सुप्रणिहित) उ० २६।१२ सुप्पभ (सुप्रभ) नं० गा० १८ सुप्पय (सूर्पक) अ० ३४६ सुप्पसारय (सुप्रसारक) उ० २।२६ १. शुद्धप्रावेश्य Page #1302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ सुप्पिय-सुयमुह सुप्पिय (सुप्रिय) उ० १११८ सुबद्ध (सुबद्ध) प० २२ सुब्भि (सु) उ० २६।२७. नि० २।४२ सुब्भिगंध (सुगंध) उ० ३६।१७. अ० २५६,२६३, सुभ (शुभ) आ० ३३१. अ० २८२. दसा० ७।३५. प० २१,२६,२९,३५,११६ सुभग (सुभग) प० १५,२४ सुभद्दा (सुभद्रा) प० १७१ सुभनाम (शुभनामन्) अ० २८२ सुभासिय (सुभाषित) द० २।१०।९।१७,५४. उ० २०१५१; २२।४६ सुभिक्ख (सुभिक्ष) अ० ५३२ सुभेरव (सुभैरव) उ० १६०५३ सुमइ (सुमति) आ० २।२,५।४।२. प० १५६. नं० गा०८ सुमउय (सुमृदुक) प० ४२ सुमज्जिय (सुमज्जित) उ० १६०३४ सुमण (सुमनस्) अ०७०८।६. दसा० ६।३ ।। सुमति (सुमति) अ० २२७ सुमर (स्मृ)-सुमरसि दसा० ३।३ सुमह (सुमहत्) उ० ११।२६ सुमहग्घ (सुमहाघ) दसा० १०।११. ५० ४२ सुमिण (स्वप्न) द० ।५०. उ० १५१७. नं० ५३. दसा० ५।७. प० ५ से ७,१०,३५,३८,४७,४८ से ५०,१२७,१६२. नि० १३१२४ सुमिणजागरिया (स्वप्नजागरिका) प०३६ सुमिणदंसण (स्वप्नदर्शन) दसा० ५७ सुमिणलक्खणपाढक (स्वप्नलक्षणपाठक) ५० ४३ से ४८ सुमिणभद्र (स्वप्नभद्र) प० १६१ सुमिणसत्थ (स्वप्नशास्त्र) प० ४७ सुमुणिय (सुज्ञात) नं० गा० ३८,४० सुय (सूत्र) अ० ४० सुय (सुत) उ० १३।२३; १४।११,३७ सुय (श्रुत) आ० ४।३,८; ५२२. द०४ सू०१७ ८२०,२१,३०,६३: ।।३,१४,१६,१६: ४ सू० १,५. गा०३।१०।१६; चू० २११. उ० ११४६; २ सू०१; ५।१२; ७।२६; १११७, ११,१५,३१,३२; १४१४८; १६ सू० १,१७१२, ४; १६।१०; २३।३,५३,५६,८८, २८।२१; २६।१,२०,२५; ३३१४. नं० गा० २,४,२८, ३६,४३ सू० ३५,३६,६६,७२,८६ से ८६,६१. जोनं० ७. अ० ७,२६ से ३१,३३ से ३६,४५ से ५१. दसा० १११,२।१३।१४।१५।१; ६।१; ६।२।२४. क० ४।२६. व० १०१६. नि० १२।३०; १७।१५२ सुय (शुक) उ० ३४१७ सुयअण्णाण (श्रुतअज्ञान) नं० ३६ सुयअन्नाणलद्धि (श्रताज्ञानलम्धि) अ० २८५ सुयक्खाय (स्वाख्यात) द०४ सू० १ से ३. उ० ६।४४ सुयक्खंध (श्रुतस्कन्ध) नं० ८१ से ६१,१२३. ___ अ० ६,५७१ सुय (नाण) (श्रुतज्ञान) उ० २८।४ सुयगडज्झयण (सूत्रकृताध्ययन) आ० ४१८ सुयग्गाहि (श्रुतवाहिन्) द० ६।३३ सुयणु (सुतनु) उ० २२।३७ सुयत्थधम्म (सूत्रार्थधर्म) द०६।४० सुयथेर (श्रुतस्थविर) व० १०।१६ सुयदेवया (श्रुतदेवता) आ० ४।८ सुयधम्म (श्रुतधर्म) उ० २८।२७ सुयनाण (श्रुतज्ञान) उ० २८।२३. नं० २,३४,३५, ३६,५५,१२७. जोनं० १ से ३. अ०१ से ३ सुयनाणलद्धि (श्रृतज्ञानलब्धि) अ० २८५ सुयनाणावरण (श्रुतज्ञानावरण) अ० २८२ सुयनाणि (श्रुतज्ञानिन्) नं० १२०,१२७ सुयनिस्सिय (श्रुतनिश्रित) नं० ३७,३६ सुयपुब्विया (श्रुतपूविका) नं० ३५ सुयप सय (शुकपोसक) नि० ६।२३ सुयमुह (शुकमुख) अ० १६,२०. दसा० ७।२०. प०४२ Page #1303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नं० १०. अनं० १३,१७. अ० ३८४,३८५, ५२४,५५७,६५५,६५६,६८१,६८५. दसा० ६।३; १०१३,२४. प० ४२,५२,६१, ६६,७४ - सुवण्ण (सुपर्ण) उ० १४१४७; ३६।२०६ सुवण्णकुमार (सुपर्णकुमार) अ० २५४ सुवण्णगमय (सुवर्णकमय) उ० ३६।६० सुवण्णपाय (सुवर्णपात्र) नि० ११११ से ३ सुवण्णबंधण (सुवर्णबन्धन) नि० १११४ से ६ सुवण्णलोह (सुवर्णलोह) नि० ७।४ से ६; १७१६ से ८ सुवण्णसुत्त (सुवर्णसूत्र) नि० ७१७ से ६; १७।६ से ११ सुयविणय-सुव्वय सुयविणय (श्रुतविनय) दसा० सुयसमाहि (श्रुतसमाधि) द० ६।४ सू० ३,५. गा०२ सुया (सुता) उ० १८।१४ सुया (बुव) उ० १२१४३ सुर (सुर) द० ६।१४. उ० १२।३६; ३१३१६; ३४१५१; ३६।२११,२१५,२१६. नं० गा० ३ । सुरवर (सुरवर) प०३२ सुरक्खिय (सुरक्षित) दचू० २।१६. उ० १११२६ सुरभि (सुरमि) नं० गा० १३. दसा० १०।१२. प० २५,२६ सुरम्म (सुरम्य) प० २० सुरलोग (सुरलोक) उ० १४११ सुरहि (सुरभि) उ० ३४।१७. दसा० १०।११. ५० १०,२०,३८,४२,६२ सुरहितर (सुरभितर) ५० ३० सुरा (सुरा) द० २१३६. उ० ५।९; ७.६; १९७०. अ० २८७ सुरावियडकुंभ (सुराविकटकुम्भ) क० २।४ सुरिंद (सुरेन्द्र) प०८,१० सुरु? (सुरुष्ट) द० ६५ सुरूव (सुरूप) उ० २११६; २२।३७. ___दसा० १०।२४ से ३२. प० ६,३५,४७ सुलट्ठ (सुलष्ट) द० ७४१. उ० ११३६ सुलद्ध (सुलब्ध) उ० २०१५५ सुलभ (सुलम) दचू० १३१४. व० ८।१२ सुलभबोधि (सुलभबोषि) दसा० ६७ सुललिय (सुललित) अ० ३०७।६ सुलसा (सुलसा) प०६६ सुलह (सुलम) द० ४।२७. उ० ३६।२५८ सुलहबोधियत्त (सुलभबोधिकरव) उ० २६।५८ ‘सुव (स्वप्)-सुवइ उ० १७१३ सुवंत (स्वपत्) दसा० ४।२।३८ सुवण्ण (सुवर्ण) उ० ६।४६,४८, ३६।७३. सुवण्णागर (सुवर्णाकर) नि० ५।३५ सुवयण (सुवचन) दसा० १०।११ सुविक्किय (सुविक्रीत) द०७।४५ सुविण (स्वप्न) उ० ८।१३; २०।४५. दसा० ५७।३. प० ३५,४२,४४,४७,११० सुविणपाढक (स्वप्नपाठक) प० १६२ सुविणभावणा (स्वप्नभावना) व० १०।३३ सुविणलक्खणपाढक (स्वप्नलक्षणपाठक) ५० ४८ सुविणसत्थ (स्वप्नशास्त्र) प० ४६ सुविणीय (सुविनीत) द०६।२३,२६,२८. उ० ११४७; ११११०,१३ सुविभत्त (सुविभक्त) प० २०,२२ सुविमल (सुविमल) अ० १६,२० सुविम्हिय (सुविस्मित) उ० २०११३ सुविरइय (सुविरचित) प० २० सुविसद (सुविशद) प० २४ सुविसुद्ध (सुविशुद्ध) द० ६।४।६ सुविसोज्झ (सुविशोध्य) उ० २३॥२७ सुविहि (सुविधि) आ० २।३; ५।४।३. अ० २२७. प० १५२ सुविहिय (सुविहित) दचू० २।३ सुबुट्टि (सुवृष्टि) अ० ५३१,५३३ । सुव्वय (सुव्रत) उ० ५।२२,२४; ७।२०।८।६; Page #1304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० सुसंगोपित-सुहम १५१५; १७।२१. प०७४,८१,२२२ सुस्सूस (शुश्रूष्)-सुस्सूसइ द० ६।४।२. सुमंगोपित (सुसंगोपित) दसा० १०।२५,२६ नं० १२७-सुस्सूसए द० ६।१७ सुसंतुट्ठ (सुसंतुष्ट) द० ८।२५ सुस्सूसमाण (शुश्रूषमाण) द० ६।४१,४२ सुसंपउत्त (सुसंप्रयुक्त) दसा० १०।१४ सुस्सूसा (शुश्रूषा) द० २६ सुमंपग्गहिय (सुसम्प्रगृहीत) दसा० १०।१४ सुह (सुख) द० ४।२६, ६।२३,२६,२८; १०११; सुसंपरिग्गहिय (सुसम्परिगृहीत) दसा० १०।२५,२६ । चू० २।३. उ० ७।२७; ६।१४,३५; १३।३,१७; सुसंभंत (सुसम्भ्रान्त) उ० २०११३ १४।३२; १७१३, १८।१७; १९७८,६०; सुमंभिय (सुसंभृत) उ० १४१३१ २०१३७, २८।१०, २६।४,१३,३७; ३२।२८, सुसंवुड (सुसंवृत) द० १०१७. उ० २।४२; ३२,४१,४५,५४,५८,६७,७१,८०,८४,६३,६७; १२।४२; १५॥१२ ३६६६६. नं० ६१,१२०. दसा० ४।१७; सुमंवुय ( , ) दसा० १०।११. प० ४२ १०।११.५० १५,४२,५८,७३,८० सुसण्णप्प (सुसंज्ञाप्य) क० ४१६ सुह (शुभ) उ० १०११५; ३३।१३; ३६।६१. सुसमण (सुश्रमण) नं० गा० ४१ प० २७,४२ सुसमदुस्समा (सुषमनुष्षमा) प० २ सुहंसुह (सुखंसुख) दसा० १०॥३,५,६,११. सुममदूनमय (सुषमनुष्षमज) अ० ३३४ प० ५८,११० सुपमदूसमा (सुषमदुष्षमा) प० २ सुहजीवि (सुख जोविन्) अ० ३०२।४ सुसमय (सुषमज) अ० ३३४ सुहड (सुहृत) द० ७।४१. उ०१२३६ सुसमसुसमय (सुषमसुषमज) अ० ३३४ सुहत्थि (सुहस्तिन्) नं० गा० २५. प० १६६ सुममसुसमा (सुषमसुषमा) प० २ सुहफरिस (सुखस्पर्श) उ०२६७२ सुसमा (सुषमा) प० २ सुहम्म (सुधर्मन्) नं० गा० २०,२२ सुसमाउत्त (सुसमायुक्त) द० ६।३ सुहम्मा (सुधर्मा) प०८ सुसमाहड (सुसमाहृत) दमा० ५।७७ सुहर (सुभर) द० ८।२५ सुहविवाग (सुखविपाक) नं० ६१ सुसमाहिइंदिय (सुसमाहितेन्द्रिय) द० ७।५७. उ० २१।१३ सुहसाय (सुखसात) उ० २६।१,३० सुहसेज्जा (सुखशय्या) उ० २६।३४ सुसमाहिय (सुसमाहित) द० ३।१२; ५।६; ६।२६, सुहावह (सुखावह) द० ६।३, ६।४।६. २६,४०,४३,८१४;६।४।६; १०।१५; चू० उ० १६१९८; २३८७; ३०१२७,३१११, २११६. उ०१२।२,१७,२०१४;२३।९% ३५।१५ २७।१७;३०॥३५. दसा० ५७।१० सुहासण (सुखासन) प० ३७,६६ सुसाण (श्मसान) उ० २।२०; ३५।६. ५० ५१ सुहासिय (सुभाषित) उ० १२।२४ सुसिक्खिय (सुशिक्षित) अ० ३०७।४ सुहि (सुखिन्) द० २१५. उ० १।१५; १९।२०, सुसिलिट्ठ (सुश्लिष्ट) दसा० १०।११,१४. २१,८०; २६।३६; ३२।११०,१११ प० २३,४२ सुहि (सुहृद्) उ० २०१६ सुसीइभूय (सुशीतीभूत) उ० १२१४६ सुहुत्तर (सुखोत्तर) उ० ३२।१८ सुसील (सुशील) उ० २२।७. अनं० २८ सुहुम (सूक्ष्म) आ० ५।३. द० ४ सू० ११; सुस्सुया इत्ता (सूरकार्य) उ० २७७ ६।२३,६१, ८।१३ से १५. उ० २८।३२; Page #1305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहुमकिरिय-सज्जा ३५।९; ३६१७०,७७,७८,८४,८६,६२,१००, (शूरसूर) आ० ६।१,२,३,७. द० ८।६१. १०८,११०,१११,११७,११६,१२०. नं० १८. उ० २।१०।११।१७; १८१५१. अ० ३०२॥५. अ० २५४,३६६,३६७,४२०,४२१,४२४ से दसा० ६।२।३६. प० ३८,४२.४७,७८ ४२८,४३१ से ४३५,४३८ से ४४०,५०५. सूर (सूर) उ० १७।१६; २३॥१८; ३६।२०८. प० २३, २६२ से २७०. नि० ११३६,४०; नं० गा० ८,१० सू० ७१. अ० १६,२०, ५।६६ १८५।४,२५४. दसा० ६।५,७।२०. प० २७, सुहुमकिरिय (सूक्ष्मक्रिय) उ० २६७३ ३२,६६ सुहुमतराय (सूक्ष्मतरक) अ० ४१६ सूरकंत (सूरकान्त) उ० ३६७६ सुहुमपरमाणु (सूक्ष्मपरमाणु) अ० ३६८ सूरण (सूरण) उ० ३६।१८ सुहुमयरय (सूक्ष्मतरक) नं० १८१८ सूरपण्णत्ति (सूरप्रज्ञप्ति) नं० ७७. जोनं ८ सुहमसंपरायचरित्त (सूक्ष्मसंपरायचरित्र) सूरपमाणभोइ (सूरप्रमाणभोजिन्) दसा० ११३ अ० ५५३ सूरपरिवेस (सूरपरिवेश) अ० २८७ सुहमसंपरायचरित्तलद्धि (सूक्ष्मसंपरायचरित्रलब्धि) सूरमंडल (सूरमंडल) प० ३२ अ० २८५ सूराभिमुही (सूराभिमुखी) क० ५।१६ सुहुय (सुहुत) दसा० १०।३२. ५० ७८ सूरिय (सूर्य) उ० २११२३. दसा० ७॥२०. सुहेसि (सुखैषिन् ) उ० २२।१६; ३२११०५ प० २५६. क० ५।६ से ६. नि. ३१८० सुहोइय (सुखोचित) उ० १६।३४; २०।४; २११५ १०॥२५ से २८ सुहोदय (सुखोदय) दसा० १०१११. प० ४२ सूरोवराग (सूरोपराग) अ० २८७ सूइ (सूचि) नि० १।१९,२३,२७,३१,३५ सूल (शूल) उ० १६०६१. दसा० १०।१४ सूइय (सूपिक) द० ५।६८ सूलाइतय (शूलायितक) दसा० ६।३ सूइया (सूतिका) द० ५११२ सूलाभिन्न (शूलाभिन्न) दसा० ६॥३ सूई (सूचि) उ० २६॥६०. अ० ३६३,४०६. से (दे०) द० ४ सू० ६,११. उ० २।४०. नं०४. नि० १११५, २०१४ अ०८. दसा० १०१२२. क० ११६. व० १११९ सूईअंगुल (सूच्यङ्गुल) अ० ३६३,३६४,४०६, सेउक (सेतुक) ५० ५१ ४०७ सेज्जंस (श्रेयांस) अ० २२७. प०६८,१५०,१७० सूकरकरण (सूकरकरण) नि० १२।२४; १७।१४६ सेज्जा (शय्या) द० ४ सू० २३; ५८७,१०२, सूकरजुद्ध (सूकरयुद्ध) नि० १२।१५; १७॥१४७ ६।४७; ८।१७,५२, ६।३४,४५ चू० २।८. सूय (सूचय)-सूइज्जइ नं० ८२ उ० ११२२, २ सू० ३, गा० २२; १७३२,१४; -सूइज्जति नं० ८२ २४।११, २५॥३; २६।३७, ३२॥१२. अ० १६, सूयगड (सूत्रकृत) उ० ३१।१६. नं० ६५,८०,८२. ३७,६०,८४,१०६,५६६,६२६,६२८,६५०, अनं० २८. जोनं० १०. अ० ५०,५४६. ६७६,७०३. दसा० २।३।३।३४।१३. व०१०।२६ क० ११३०,३१,४२, ३।१६,२५ से २८. सूयगडधर (सूत्रकृतधर) अ० २८५ . व० ८।१ से ४,६ से ६,१२. नि० २।४६ से सूयर (सूकर) उ० ११५,६ ५५,५२२,२३,६१ से ६३,१३।१ से ११; सूयरपोसय (सूकरपोषक) नि. ६।२३ १६०१ से ३,३६ Page #1306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेज्जायरपिंड-सेवा सेज्जायरपिंड (शय्यातरपिण्ड) द० ३।५ सेय (श्रेयस्) द० २१७; ४ सू० १ से ३. सेज्जासणिय (शय्यासनिक) प० २७८ उ० २।२६५/६६।४०; १८१४८२२।२६, सेट्टि (श्रेष्ठिन) द० १।५. उ० १३१२. अनं० १२ ४२. प० १४,३२,४२ से १४. अ० १६,३६५. दसा०६।२।१६. सेयंस (श्रेयांस) प० १४३ प० ४२ सेयकाल (एष्यत्काल) अनं० ६. अ० १७,३८,६१, मेडिया (सेटिका) द० ५।३४ ८५,११०,५६७,६२७,६३६,६५१,६७७,७०४ सेढि (श्रेणि) नं० १८१८. अ० १५०, १५४,१७६, सेयप्पभा (श्वेतप्रभा) प० ३२ १८३,१५७,१६१,१६५,२२१,२२५,२२६, सेयायण ('सेव'आयतन) नि० ३१७५ २३३,२३७,२४१,२४५,३८८,३६३,४०६, सेयाल (दे०) उ० २६७२ ४११,४५८,४६३,४६७,४८२,४८७,४६०, सेल (शैल) नं० ८३. अ० ४१०. प० २४,५१, ४६५,४६६,५०३,६४० १२४,१३०,१३८,१८० सेढिअंगुल (श्रेण्यङ्गुल) अ० ४११,४१२ सेलकम्म (शैलकर्मन्) नि० १२।१७ सेढितव (श्रेणितप) उ० ३०।१०।। सेलगोल (शैलगोल) दसा० ६।४ सेणा (सेना) द० ८।६१. उ० १२।२७. अ० ६५. सेलघण (शैलघन) नं० गा० ४४ दसा० ५।८।१२; १०।१५. ५० १६१. सेलपाय (शलपात्र) नि० ११११ से ३ क० ३।३३ सेलबंधन (शलबन्धन) नि० १११४ से ६ सेणाखंधार (सेनास्कन्धावार) उ० ३०११७ सेलेसी (शैलेशी) द० ४।२३,२४. उ० २६१,७३ सेणावइ (सेनापति) अनं० १२ से १४. अ० १६, सेल्ली (३०) उ० २७१७ ३६५. १० ४२ सेव (सेव)-सेवइ उ० २५४२५.-सेवई मेणावच्च (सेनापत्य) अ० ३०२. दसा १०।१८. द० ५।१३४.-सेवए उ० ७।३०.-सेवंति प०६ उ० २।३५.--सेवामि उ०२१७.--सेविज्ज मेणावति (सेनापति) दसा० ५।७।१२;६।२।१८ उ० १६.-सेविज्जा उ० २।४. सेणि (श्रेणि) दसा० ५७।१७ दसा० ६।२।३६.--सेवे उ० ४।१२. सेणित (श्रेणिक) दसा० १०।२१ -सेवेज्जा द० ४ सू० १४. उ० ८।१२ सेवंत (सेवमान) द. ४ सू० १४ सेणिय (श्रेणिक) उ० २०१२,१०,१२,५४. सेवण (सेवन) उ० २८१२८; ३५॥३ दसा० १०१२ से ४,६ से २३ सेवणया (सेवन) उ० २६।१; ३०१२८ सेत (श्वेत) अ० ३५३ सेतपड (श्वेतपट)अ० ३५३ सेवमाण (सेवमान) उ० १६ सू० ३. सेतिया (सेतिका) अ० ३७४ नि० ११५६; २१५६, ३।८०, ४११८, ५७८; सेना (सेना) उ०२२।१२ ६३७६; ७/६२,८।१८, ६।२६; १०४१; . सेय (श्वेत) दसा० १०.१५,१७. नि० १५,९८ ११।६३; १२।४३; १३।७५; १४१४१; सेय (सेक) क०६८ १५।१५४; १६।५१; १७।१५२; १८१७३; सेय (स्वेद) दसा० ७।२२. नि० ३।६७; ४।१०५; १६।३७ ६७६;७।६५; १११६२; १५।६४,१५०%; सेवय (सेवक) उ० १७१७ १७.६६ सेवा (सेवा) उ० ३२।३;३६२६७ Page #1307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवाय सोमणस्स / सेवा (सेवय्) - सेवावेज्जा द० ४ सू० १४ सेविज्जमाण (सेवमान) प० ३० सेवित्ता (सेवित्वा) व० १।३३ सेवित्तु (सेवितृ) उ० १६ सू० ३ सेविय (सेवित) द० ६।३७, ६६ सेस (शेष) द० ५।३६; चू० २।१२. उ० १२ १०; १४/२ २६ २८ २८।२६; ३१।१८. न० २२, ३३, ११८, १२२. अ० १२८, १४५, १७२,२१३, ४५८, ७१५. दसा० ७।२६, २६.३०; १० ३०, ३३. १० २,१०६, १४४ से १५६, १६२,१६५, १५०. व० १।२६ से ३० सेस (शेषक) उ० ३४।६०. अ० १८५ सेसव ( शेषवत् ) अ० ५१६,५२१, ५२६ सेसवर ( शेषवती) प० ७२ सेह (शैक्ष) दसा० ३।३४।२३. प० २८३. व० ४। २४, २५; १०।४० नि० १०१६, १० सेहत राग ( शैक्षत रक) दसा० ३।३. व० ४।२५ सेहत राय ( शैक्षतरक) दसा० ३।३. क० ४।१४. व० ४।२४, २५ भूमी (शैक्षभूमि) व० १० २० सेहावेत्तए ( शिक्षयितुम् ) व० ७।६, ६ सेहि' (०) व० ७।३ सेहोवद्वाणवणिया (शैक्षोपस्थापनिका) व० १।३२ सोइंदिय ( श्रोत्रेन्दिय ) उ० २६ । १,६३. नं० ४१, ४२, ४४, ४६,४८,५६ सोइंदियपच्चक्ख ( श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष ) नं० ५. अ० ५१७ सोइंदियलद्धि ( श्रोत्रेन्द्रियलब्धि) अ० २८५ सोइय ( शोचित) अ० ३१७ सोउं (श्रोतुम् ) उ० ३६।२६२ सोउण ( श्रुत्वा ) उ० १३१२ सोउमल्ल ( सौकुमार्य) ५० २।१५ सोंडिया ( शौण्डिता ) द० ५।१३८ सोंडीर (शौण्डीयं ) प० ७८ सोक्ख (सौख्य) द० ८ २६; चू० १।११. १. सेहियो गतः (देशी ८ / १ ) ; ३१३ उ० १४ । १३, २६/४; ३२/२ सोक्खलाभ ( सौख्यलाभ ) प०६,३८, ४७ सोग ( शोक) उ० १६ / ६१ २० २५ २२ २८ २६।३०; ३२।१०२. ५०५४,५८ सोगंधिय (सौगन्धिक) उ० ३६ / ७६. १० १५,३३ सोग्गड ( सुगति) द० ५ १०० ८ । ४३. उ०२८ ३; २६/५ सोच्च ( श्रुत्वा ) उ० ३।११ सोच्चा ( श्रुत्वा द० २।१० उ०२ सू० १० दसा० १०1७ प० ६. क० ५।४०. नि० १०।१६ सोच्चाण ( श्रुत्वा ) द० ६।१७. उ० २०५१ सोच्चाण ( श्रुत्वा ) द० ८२५. उ० २२६ सोढ (सोढ) उ०१६ ४५,४६ सोणिचक्क (भोणिचक्र) प० २४ सोणिय ( शोणित) उ० २।११. दसा० १० २८ से ३२. नि० ३ । ३५ से ३६; ४।७३ से ७७; ६।४४ से ४८, ७।३३ से ३७, ११।३० से ३४; १५।३२ से ३६,११८ से १२२; १७/३४ से ३८८८ से ६२ सोणिसुत्त ( श्रोणिसूत्र ) दसा० १० २४ सोत्तिय (सौत्रिक) अ० ३५६. नि० १ १४; २१३ सोत्तियसाला (सौत्रिकशाला ) १० ६।२५, २६ सोदग (सोवक) नि० १६ । २ सोधि ( शोधि) दसा० ५। ७ १७ सोधित्ता ( शोधयित्वा ) १०२८७ सोभंत (शोभायमान) १० २२ से २४,३१ सोभग ( शोभक ) प० २६ सोभा (शोभा) दसा० १० ३,११ ५० २४,३०, ३२ सोभाग ( शोभाक ) उ० २१८ सोम (सोम) अ० ३४२. ५० ११६, १९६ सोम ( सौम्य ) अ० ३१८. ५०२६.३५ सोमंगल ( वे० ) उ० ३६।१२८ सोमणस्स (सौमनस्य) दसा० १०१४, ६ से ८, १० से १२ Page #1308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौमणस्सिय-स्पर्द्ध सोमणस्सिय (सौमनस्थित) प० ५,६,१०,१५,३८ सोवच्चल (सौवर्चल) द० ३८ सोमदत्त (सोमदत्त) अ० २५२. ५० १८६ सोवण्णिय (सौणिक) अ० ४०८ सोमभूइय (सोमभूतिक) प० १६७ सोवत्थिय (सौवस्तिक) नं. १०२. दसा० १०।१४ सोमया (सोमता) उ० २०१६ सोवयार (सोपचार) अ० ३०७।९ सोमलेस (सोमलेश) प० ७८ सोवाग (श्वपाक) उ० १३१६,१८,१६ सोमा (सोमा) ५० ५६ सोवागकुल (श्वपाककुल) उ० १२११ सोमाकार (सौम्याकार) प० ६,३८,४७ सोवागपुत्त (श्वपाकपुत्र) उ०१२।३७ सोम्म (सौम्य) प० २३,२६,३१ सोवीर (सौवीर) उ०१५।१३,१८१४७. प०२४७. नि० ७.१३३ सोम्माकार (सौम्याकार) प०. २३ सोवीरयवियडकुंभ (सौवीरकविकटकुम्भ) सोय (शुच्)-सोयई उ० ५।१४.-सोएज्जा क०२।४ द०५।१०६. सोयंति उ० २३॥८४. सोवीरा (सौवीरा) अ० ३०५ -सोयति दसा०६३ सोसण (शोषण) उ० ३०१५ सोय (बोत्र) उ० १०१२१; १६३५३२॥३५,३६. सोसयंत (शोषयत्) प० २६ दसा० ।।२ सोह (शुभ)- सोहइ अ० ३१८.-सोहई सोय (शौच) उ० १३६ . द०६।१५.-सोहए उ० २२।१०.-सोहंति सोय (शोक) उ० १४।१०; २०१५०. नि० ८।११ उ०२३।१८ सोय (स्रोतस) द० २०. उ० १६३६. सोह (शोधय)- सोहेज्ज उ० २४।१२ क० ५।१४. व०६८,९. नि. १६६।१०% सोह (शोभ) प० २७,२६,३१,४२ ७१८४ सोहइत्ता (शोधयित्वा) उ० २६।१ सोयणवत्तिया (स्वप्नप्रत्यया) आ० ४१५ सोहंत (शोभमान) दसा० १०।१२. प० २२ सोयरिय (सोवयं) उ० १४१३३ सोहग्ग (सौभाग्य) उ० २६११. दसा० १०.१६ सोयरिय (शोकरिक) अ० ३०२१६ सोहण (शोभन) उ० १६७. प०६२,६३,१६३ सोयामणि (सौदामिनी) उ० २२।७ सोहम्म (सौधर्म) उ० ३६।२१०,२२२. अ० १८६, १६०,२८७.५० ८,१५ सोरट्ठय (सौराष्ट्रज) अ० ३३३ सोहम्मकप्पवासि (सौधर्मकल्पवासिन) प०६ सोरट्ठिया (सौराष्ट्रिका) द० ५॥३४. ५० २०१ सोहम्मय (सौधर्मज) अ० २५४ सोरियपुर (सोरियपुर) उ० २२।१,३. प० १२७ सोहम्मवडेंसय (सौधर्मावतंसक) प०८,१५ सोलस (षोडश) आ० ४।८. उ० ६।४४. सोहि (शोधि) द० ५।१५०. उ० २२६; ३७, नं० १११. अ० ३८४. प० ११५. व० ८।१७।। १२,१२।३८; २६२ सोलसम (षोडश) व. १४०,४१ सोहिय (शोभित) उ०१६।१२२।११ सोलसवासपरियाय (षोडशवर्षपर्याय) व० १०॥३५ सोहिय (शोधित) व०६।३५ से ३८,४०,४१; सोलसविह (षोडशविध) उ० ३३।११ १०॥३,५. दसा० ७२५,३५. प० २३ सोलसिया (षोडशिका) अ० ३७६,६१४ स्तन ( ) अ० ३५१ सोल्लग (शूल्यक) उ० १९५६ स्तनोदरम् ( ) अ० ३५१ सोवक्केस (सोपक्लेश) दचू० १ ० १ स्त्री ( ) अ० २४६ सोचिय (सोपचित) दसा १०॥३३. ५० ८१ स्पर्द्ध ( ) अ० ३६७ Page #1309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४।४५. जोनं० १०. अ० ३४१,३८०,४१६. हं (हं) दचू० १ सू० १ दसा० २।३, ३।३;७।२१,२३,१०।१६. हंत (हन्त) दसा० ४।२।१६; १०।२३,२४. प० ७४ प० १०,२४,४६,७५,२२२ व० ८.२ से ४. हंतव्व (हन्तव्य) दसा० १०१२६ नि० २।२१; ४।३७; १२।१५,१६; १६।३६; हंता (हन्त) अ० ३९८,४३६ १७॥१३२; १८१६ हंता (हत्वा) उ० १२।१८ हत्थकम्म (हस्तकर्मन्) दसा० २।३. क० ४११०; हत्तु (हंत) दसा० ६।२।१६,२० ५।१३. २०६८ नि० १११; ६२ हंदि (दे०) द० ६।४. अ० ३०८।४ हत्थग (हस्तक) द. ५७८,८३ हंभी (हम्भी,भम्भी) नं० ६७. अ० ४६,४५८ हत्थच्छिण्ण (हस्तछिन्न) नि० ४१७; १८३६ हंस (हंस) उ० १३.६; १४॥३३,३६; २७।१४. हत्थछिण्ण (हस्तछिन्न) दसा० ६।३ नं० १८१४. अ० ३००. प० २६ हत्थमेज्ज (हस्तमेय) अ० ३८०१२ हंमगम्भ (हंसगर्म) उ० ३६१७६. अ० ४१. हत्थलिज्ज (हस्तलीय) प० १९७ प० १५,३३ हत्थवीणिया (हस्तवीणिका) नि० ५५४१,५३ हंसपोसय (हंसपोषक) नि०६।२३ हत्थादाल (हस्ताताल) क० ४।३ हट्ट (हृष्ट) उ० १८।१६. अ० ४१७. हत्थि (हस्तिन) दचू० ११७. उ० २०११४. दसा० १०॥४,६,७,१०,११,१८,३४. ५० ५ से नं० ३८१३. अनं० १२. अ० ८६,३५५,५२२, ७,१०,१५,३६.३८,३६,४१,४३,४४,४७,४८, ५२५,६५४,६५६,६५८,६६०,६८०,६८२, ५०,५६,६३,२३६ ६८४,६८६. दसा० ६।३; ७।२४ हड (हृत) आ० ४।६. दसा० १०॥३२. प० १६, हत्थिआरोह (हस्त्यारोह) नि० ६।२६ ५४,५६ हत्यिकरण (हस्तिकरण) नि० १२।२४; १७।१४६ हड (हढ) द० २६ हत्थिगुलगुलाइय (हस्तिगुलगुलायित) हडप्पग्गह (हडप्पग्रह) दसा० १०।१४. नि० ६।२७ नि० १७४१३५ हडिबंधण (हडिबन्धन) दसा० ६।३ हत्यिजुद्ध (हस्तियुद्ध) नि० १२।२५; १७११४७ हडमालिया (दे०) नि० ७.१ से ३; १७३३ से ५ । हत्थिणपुर (हस्तिनापुर) उ० १३।१,२८ हढ (हट) उ० २२१४४ हत्थिणापुर (हस्तिनापुर) नि० ६।२० ‘हण (हन्)-धायए द० ६।६. हत्थिदमग (हस्तिवमक) नि० ६।२४ -हण दसा०६।३.-हणे द०६।९. हत्थिपालग (हस्तिपालक) प० ८३,८४,१०६ उ० २।११.-हणइ उ० १२।२६. हत्थिपिप्पली (हस्तिपिप्पली) उ० ३४।११ अ०७०८।३.-हणसि अ० ३१३।२. हत्थिपोसय (हस्तिपोषक) नि०६।२३ -हणाइ उ० २०४४.-हणावइ हत्थिर्मिठ (हस्तिमिठ') नि. ९२५ अ० ७०८।३.-हणेज्जा उ० २।२७ हत्थुत्तर (हस्तोत्तर) दसा० ८।१. ५० १,२,१७, हणित्ता (हत्वा) दसा० ६।२।६ ५६,७५,८१ हत (हत) दसा० ५।७।११ Vहम्म (हन)-हम्मति उ० ३२५१. हत्थ (हस्त) द० ४ सू० १८,२१,२३; ५॥३२,३५, दसा० ५।७।११.---हम्मती दसा० ५।७।११. ३६,६८,८५८।४४,५५; १०।१५. उ० ५।६; -हम्मिहिंति उ०२२।१६ Page #1310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ हम्मतल (हम्यंतल) नि० १३।११; १४ | ३०; १६।५१; १८६२ हम्माण ( हन्यमान) उ० १२।२० हय ( ) द० ५। १२; ६ । २२, २३ चू० १ सू० १. उ० ११३७, १८।३; ३६।१८० अ० २१,६३, ६७,५२२. दसा० १०८, १५ हय ( हत ) द० १०।१३. उ० २।२६; १८/६; ३२८ हयजूहियाठाण ( हययूथिकास्थान ) नि० १२।२६; १७।१४८ हमसाला ( हयशाला ) नि० ८।१६ हयहेसिय ( हयहेसित ) नि० १७।१३५ हयाणीअ ( हयानीक) उ०१८।२ हर (हर) उ० ७५; १४ १५ हर (ह) - हरइ उ० १३/२६ . - हरति उ० १४।१५. – हराहि प० ७४. -- हरेज्जा अ० ४२२ हरतणु (दे० ) उ० ३६।८५ हरतजुग (दे० ) द० ४ सू० १६ हरतय (दे० ) प० २७० हरय ( हद) उ० १२/४५,४६ हरि (हरित् ) अ० ३०४ हरिएस (हरिकेश ) उ० १२।३७ हरिएसबल (हरिकेशबल) उ० १२।१ हरिएसिज्ज (हरिकेशीय) उ० १२ हरिण (हरिण) उ० ३२ । ३७ हरिगमेसि (हरिणंगमेषिन् ) प० १४, १५, १७ हरिय ( हरित) आ० ४।४,६. द० ४ सू० २२; ५।३, २६, २७, ५७, ११६; ८११, १५; १०1३. उ० १७१६. दसा० २।३. १०२६२,२६६, २७६. नि० ७ ७५; १३८; १४।२७; १६ ४८; १८५६ हरियकाय ( हरितकाय) उ० ३६।९५ हरियभोयण ( हरितभोजन) दसा० २।३ हरियमालिया (हरितमालिका) नि० ७।१ से ३; १७।३ से ५ हरियवीणिया (हरितवणिका) नि० ५२४७।५६ हरियाल (हरिताल) द० ५।३३. उ० ३४।८; ३६॥७४ हरियालिया ( हरितालिका) अ० १६. प० ४४ हरियाहडिओ ( हताहतिका) क० १४३ हरिवंसकुल (हरिवंशकुल ) प० २,११,१४ हरिवंसगंडिया (हरिवंशकण्डिका) नं० १२१ हरिवरस (हरिवर्ष) अ० ५५६ हरिवास (हरिवर्ष) अ० ३६६ हरिवासय ( हरिवर्षज) अ० ३३३ हम्मतल - हसंत हरिस (हर्ष) अ० ३१२. दसा० १० ४, ६, ७, १०, ११. ५०५ से ७,१०,१५, ३५, ३६, ३८, ३६, ४१,४३,४४,४७,४८,५०,५६,६३ रिसेण (हरिषेण) उ० १८ ।४२ हल (हल ) द० ७ १६. म० १३,३३२ हला (हला) द० ७।१६ हलद्दा (हरिद्रा ) उ० ३४ ८; ३६/६६ हलियंड (दे० ) प० २६८ हल्लोहलियंड (दे० ) प० २६८ √ हव (भू ) - हवइ उ० १।४४. नं० १८१८. अ० २८. - हवंति द० ६।४७. उ० १०।२१. नं० ८६. अ० २६४. - हवति अ० ३०५. - - हविज्जा उ० १५ १० अ० ४२२. - हवेज्ज द० ८।२४. - हवेज्जा द० १०।१. उ० १६ सू० ३. हव्व (अर्वाच्) उ० २६।२. अ० ३६८, ४२२,४२४, ४२६,४३१. दसा० ७।१६. ५० ६२,२६३. क० ३१२८ हववाह (हव्यवाह) द० ६।३४ √ हस (हस् ) - हसइ अ० ३१६. - हसति नि० ४।२६. - हसेज्ज नि० १७ १३५ हसंत (हसत्) द० ५। १४. दसा० १०।१४. नि० ४।२६; १२।२६; १७।१५१ Page #1311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हस्स-हिरण्ण ३१७ हस्स (ह्रस्व) उ० २६।२३ हस्सकुहय (हास्यकुहक) द० १०।२० हा (हा)-हायइ उ० १०।२१.-हायए उ०२६।१४ हाणि (हानि) द० २।६. व. १०१५ - हाय (हा)--हायंति द० ८।३५ हायण (हायन) दसा० १०।१४ हायमाणय (हायमानक) नं० ६,१६ हार (हार) उ० ३४१६. नं० गा० १५. दसा० १०।३,११,१२,१५. ५० १०,२१,२३, २४.३२,४२. नि० ७७ से ८; १७९ से ११ हारपुडपाय (हारपुटपात्र) नि० ११११ से ३ । हारपुडबंधण (हारपुटबंधन) नि० १११४ से ६ वहार (हारय)-हारए उ० ॥११ हारित्ता (हारयित्वा) उ० ७.१५ ।। हारिय (हारित) नं० गा० २६. प० १९८ हारियगुत्त (हारितगोत्र) नं० गा० २६ हारियमालागारी (हारितमालागारी) प० १६८ हारियायण (हारितायन) प० १८३ हालहल (हालहल) द०६७ हालिज्ज (हालीय) प० १९८ हालिद्द (हारिद्र) अ० २५८,२६३,५०६. प० २६३,२६४ हालिद्दा (हारिद्रा) उ० ३६।१६,७२ हालिय (हालिक) अ० ३३२ इहाव (हापय)-हावए उ०५।२३.-हावएज्जा द० ८।४० हास (हास) द० ४ सू० १२. उ० १९।१६।६; १९६९; २४।६; २०२३; ३२।१४,१०२; ३६।२६३. अ० ३०६,३११,३१६ हासकर (हासकर) दसा० १०।१४ हासमाण (हसत्) द० ७१५४ हासरस (हासरस) अ० ३१६ हिएसय (हितैषक) उ० ३४।२८ हिएसि (हितैषिन्) उ० १३।५ हिंगलय (हिंगुलक) द० ५।३३ हिंगुलुय (हिंगुलुक) उ० ३४।७; ३६१७४ हिंगोल (दे०) नि० ११८१ हिंडग (हिण्डक) अ० ३०२१७ हिंस (हिंस्र) उ० ५।६; १५ हिंस (हिन्स)-हिंसइद० ४।१. उ० २५४२२. -हिसंति द०६।२६.-हिंसेज्ज द० २५. -हिंसेज्जा द० ८।१२ हिंसग (हिंसक) द०६।११. उ० १२१५; ३६।२५७. अ० ३०२१७ हिंसा (हिंसा) उ० १८।११; ३५।३ हिच्च (हित्वा) उ० १४१३४ हिच्चा (हित्वा) उ० ३.१३ हित (हित) दसा० १०।११ हिम (हिम) द० ४ सू० १६८।६. उ० ३६।८५. प० २७ हिमवंत (हिमवत्) नं० गा० ३४. प० २४ हिमवंतखमासमण (हिमवत्क्षमाश्रमण) नं० गा० ३५ यि (हित) द० ४ सू० १७; ५।६४; ७.५६; ८.३६,४३, ६।४।२,६; १०।२१. उ० १६,२८, २६२।१३,८३,५,१३।१५; १६२६; ३२।१,११,१५,१६. नं० गा० ३६, सू० ३८।१०. अनं २८ हियइच्छिय (हृदयेष्ट) दसा० १०।२४ हियउप्पाडिय (हृदयोत्पाटित) दसा० ६।३ हियय (हृदय) उ० २३१४५; २९।१३. नं० गा० ३७. अ० ३११. दसा० १०४,६,७, १० से १२,१८. प० ५ से ७,१०,१५,२६,३०, ३६,३८,३६,४१,४३,४४,४७,४८,५०,५६,६३, ७३,७५ हिरण्ण (हिरण्य) उ० ३।१७; ६।४६,४६; १६।१६; ३५॥१३. अनं० १३,१७. अ०. ५५७. दसा० ६॥३. ५० ५२,६१,६६,७४ Page #1312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ हिरण्णागर-हेमवय हिरण्णागर (हिरण्याकर) नि० ५।३५ हे (हे) द०७।१९. अ० ३०८१६ हिरिम (होमत्) उ० ११।१३; ३२।१०३ हेउ (हेतु) द० ५।६२।३७; ६।४ सू० ७. हिरिल (दे०) उ० ३६।६७ उ० ३।१३; ६।१४; ७११,२४; ६८,११,१३, ही (ही) अ० ३१६,३१८ १७,१६,२३,२५,२७,२६,३१,३३,३७,३६,४१, हीण (होन) उ० ३६।६४. अ० ३६०१३ ४३,४५,४७,५०; १३।२०; १४११६; २५।१० होणक्खर (होनाक्षर) आ० ४८ २६।३४;२७।१०; ३२२२,२३,३५,३६,४८, हीणपेसण (होनप्रेषण) द० ६।३६ ४६,६१,६२,७४,७५,८७,८८,१००, ३६४२६४. वहीर (ह)-हीरसि उ० २३॥५५ नं० गा० १४, सू० ८३८।१०,१२४. अनं० २४. दसा०६।२।३१. नि. १०१२०, हीर (होर) क० ६।३,५ २३; २०१६ से ५१ हीरमाण (ह्रियमाण) उ० ६।१०. नि० १११८१ हेउजुत्त (हेतुयुक्त) अ० ३०७६ हीरय (होरक) दसा० ७१८ हेउत्तण (हेतुत्व) नं०६७ नदील होलय)-हीलए द० ६।५२. उ०१५।१३. हेउय (हेतक) दसा० १०॥३५. प० २८८ -हीलति द० ६।२.-हीलह उ० १२।२३ हेउवएस (हेतूपदेश) नं० ६११६३ हीलणा (होलना) द० ६७,६ हे? (अधस्) दचू० १११३. अ० ४६० हीलयंत (होलयत्) द० ६।४ हेट्ठिम (अधस्तन) उ० १७४२० हीला (होला) उ० १२।३० हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जय (अधस्तनउपरितमप्रवेयज) हीलिय (होलित) द० ६।३. उ० १२।३१ अ० २५४ हीलियवयण (होलितवचन) क० ६।१ हेट्ठिमगेवेज्जय (अषस्तनप्रैवेयज) अ० २५४ हु (खलु) द० २१३. उ० १११३ हेट्ठिममज्झिमगेवेज्जय (मषस्तनमध्यमवेयज) बहु (मू) हुंति उ० २८।३०. नं० गा० २१. ___ अ० २५४ -हज्ज उ० ३६२४६.-हज्जा उ० २।३४. हेट्टिमहे ट्ठिमगेवेज्जय (अपस्तनमधस्तनबेयस -हुमि उ० १४१२२ अ० २५४ हेट्ठिमाउवरिम (अधस्तनपरितन) उ० ३६।२१३ हुं (ई) नं. ५३ हेट्ठिमामज्झिम (अधस्तनमध्यम) उ० ३६।२१३ हुंकार (हुंकार) नं० १२७।४ हुंड (हुण्ड) अ० २३५,२३६ हेट्ठिमाहेट्ठिम (अधस्तनअधस्तन) उ० ३६।११३ हेदिल्ल (अधस्तन) नं० २५. अ० ४१६. हुड़क्क (दे०) दसा० १०।१८. ५० ६४,७५ नि० १६१६ . ‘हुण (ह)-हुणामि उ० १२।४४.-हुणासि हेम (हेम) १०८ उ० १२१४३ हेमंत (हेमन्त) द०३।१२. अनं २३. प०७४,८०, हुतासण (हुताशन) दसा० १०।३२ १११,११३,११६,१८०,२७६. क. ११६ से , हुत्त (वे०) अ० ५५५ ३६; २२,६; ४१३१,३२. व. ४११ से ४,९%3B हुयासण (हुताशन) उ० १९।४६,५७. प० ७८ ५।१ से ४,६; २ हुरत्था (दे० बहिर्) क० २।४ से ७ हेमंतय (हेमन्तज) अ० ३३४ हुहुय (हुहुक) अ० २१६,४१७ हेमवय (हैमवत्) अ० ३३३,३६६,५५६. हुहुयंग (हुहुकाङ्ग) अ० २१६,४१७ दसा० १०।१४ Page #1313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमसुत्त-ह ३१९ हेमसुत्त (हेमसूत्र) दसा० १०।१२ -होमो द० २।८. उ० २२।४४.-होह हेरण्णिय (हैरण्यिक) नं० ३८९ उ०१४।६.-होहि नं० ५३. अ० ५६६. हेरण्णवय (हरण्यवत) अ० ३३३,३६६,५५६ -होहिइ उ० २७।१२.-होहिसि द० २१५. हेसिय (हेषित) अ० ५२२ - उ० ६।५८.-होहिहा अ० ५६६. हो (5)-अहोत्था उ० २०१६.-हवइ हो (हो) द०७:१६ द० ४१२५. हुंति उ० २८.३०.-होइ होउं (भवितुम्) उ० २५।१३ द०४११. उ० १११५. नं० गा० २०. होउकाम (भवितुकाम) दचू० २।२ अ० १२७. दसा० ५७६. प० १६७. होत्तए (भवितुम्) प० २७८. क० ५।१६. -होई अ० २०२.-होउ द० ७१५०. व०३।११ नं० गा० ५. प० १११.-होंति द० २।४. होम (होम) उ० १२१४३,४४. अ० २६ उ० ३४।३८. अ० १२६. प० १९७.-होक्ख होयव्व (भवितव्य) प० २८३ द० २११२.-होक्खामि द० २०१२-होज्ज होयव्यय (भवितव्य) द० ८।३ आ० ५।३. द. ५॥५७. उ०८।१.-होज्जा होल (दे०) द० ७।१४,१६ अनं० ४. द० ५९. अ० ११.- होज्जामि होला (दे०) द० ७.१६ द० ५९४.-होति दसा० ५।७।८.-होत्था ह ( ) अ० २४६ दसा० ५१४. ५० १६.-होमि उ० २०१११. कुल शव्व १५५०५ Page #1314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #1315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज से हजार वर्ष पहले नवांगी टीकाकार (अभयदेव सरि) के सामने कई कठिनाइयां थीं। कठिनाइयां आज भी कम नहीं हैं। किन्तु उनके होते हए भी आचार्य श्री तुलसी ने आगम-सम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया। उनके शक्तिशाली हाथों का स्पर्श पा कर निष्प्राण भी प्राणवान् बन जाता है तो भला आगम-साहित्य जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बड़ी बात है? बड़ी बात यह है कि आचार्य श्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साध-साध्वियों की असमर्थ अंगुओं द्वारा कराने का प्रयत्न किया है। सम्पादन कार्य में हमें आचार्यश्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है। किन्तु मार्गदर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है। आचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए अपना पर्याप्त समय दिया है। उनके मार्गदर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का संबल पा हम अनेक दुस्तर धाराओं का पार पाने में समर्थ हुए हैं। rivate Personal us Oy Page #1316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित आगम साहित्य वाचना-प्रमुख : गणाधिपति तुलसी संपादक : विवेचक : आचार्य महाप्रज्ञ * अंगसुत्ताणि (मूलपाठ, पाठान्तर-सहित) भाग-१ (आयारों, सूयगडो, ठाणं, समवाओ) भाग-२ (भगवई-विआहपण्णत्ती) भाग-३ (नायाधम्म कहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं) उवंगसुत्ताणि (मूलपाठ, पाठान्तर-सहित, शब्द-सूची) (खण्ड-१) ओवाइयं, राइपसेणइयं, जीवाजीवाभिगमे) (खण्ड-२) पण्णवणा, जंबुद्दीवपण्णती, चंदपण्णत्ती, सुरपण्णत्ती, निरयावलियाओ, कप्पवडिसियाओ पुफ्फियाओ, पुफ्फचुलियाओ, वण्हिदसाओ) * आगम शब्द कोश अंगसुत्ताणि तीनों भागों की समग्र शब्द-सूची मूल, छाया, हिन्दी अनुवाद एवं टिप्पण सहित दसवेआलियं उत्तरज्झयणाणि सूयगडो ठाणं * समवाओ * अनुओगदाराई नंदी भगवई * आयारो भाष्य (मूलपाठ, संस्कृत भाष्य, हिन्दी अनुवाद तथा टिप्पण) * आयारो (मूलपाठ, हिन्दी अनुवाद टिप्पण) * दसवेआलियं (गुटका) * उत्तरज्झयणाणि (गुटका) * गाथा (आगमों के आधार पर भगवान महावीर का जीवन और दर्शन रोचक शैली में) * भगवती की जोड़, भाग-१, 2, 3, 4, 5, 6, 7, * निरुक्ति पंचक * व्यवहार भाष्य