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________________ सोलसमो उद्देसो ७७७ अणणुण्णवेत्ता धारयमाणो गच्छति, गच्छंतं वा सातिज्जति ॥ अतिरित्तउवहि-पदं ४०. जे भिक्ख पमाणातिरित्तं वा गणणातिरित्तं वा उवहिं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति ॥ उच्चार-पासवण-पदं ४१. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए उच्चार-पासवणं 'परिटुवेति, परिढवेंतं' वा सातिज्जति ॥ ४२. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढवेति, परिवेंतं वा सातिज्जति ।। ४३. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढुवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ।। ४४. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४५. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेति, परिवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए उच्चार-पासवणं परिटुवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ॥ ४७. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए उच्चार-पासवणं परिढुवेति परिढुवेंतं वा सातिज्जति ।। ४८. जे भिक्खू कोलावासं सि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सओस्से सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा-संताणए उच्चार-पासवणं परिट्ठवेति, परिट्ठवतं वा सातिज्जति ॥ ४६. जे भिक्खू थूणं सि वा गिहेलुयंसि वा उसुयालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले उच्चार पासवणं परिवेति, परिहवेंतं वा सातिज्जति ।। ५०. जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि वा सिलंसि वा लेलुंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकपे चलाचले उच्चार पासवणं परिढुवेति, परिढुवेंतं वा सातिज्जति ।। १. परिट्ठावेति परिट्ठावेंतं (अ, क, ग)। परिद्रावेंतं वा सातिज्जति जे खंधसि वा जाव २. सं० पा०-जे ससिणिद्धाइयंसि वा कुलियंसि अंतरिक्खजायंसि उच्चारपासवणं । वा जाव लेलुंसि वा उच्चारपासवणं परिट्ठावेति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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