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________________ गुंजा-गुरुवायणोवगय १०७ १२११८; १७।१४० ३५. १० २८८ गुंजा (वाय) (गुंजावात) उ० ३६।११८ गुणावह (गुणावह) उ० १९६८ मुच्छ (गुच्छ) उ० ३६।१४ गुणित (गुणित) अ० ४१७ गुज्झ (गुहा) अ० ३१४११ गुणिय (गुणित) उ०७।१२; १९७३. अ० ३६३, गुज्झग (गुह्यक) द०६।२७,२८. बसा०६।२।३४. ४०६,४०८,४११,४२२,४२४,४२९,४३१,४३६, प० २७,४२ ४३६,५६२,५६३,६०१,६०२ गुज्झसाला (गुह्यशाला) नि० ८।१६ गुत्त (गुप्त) द० ८।४०,४४. उ० १२।१७; १६ सू० गुज्झाणुचरिय (गुह्यानुचरित) ८० ७१५३ १ से ३; २६।५५; ३४।३१. दसा० ५७;७। गुड (गुड) अ० ६१. प० २३६ ३३६।२।३७; १०॥३२. ५० ५३,७८,२२४ गुण (गुण) ० ४।२७; ५।१४१; ६६,६७; गुत्तबंभयारि (गुप्तब्रह्मचारिन्) उ० १६ सू० १ से ७।४६,५६; ८।६०, ६३,१७,५१,५४; ३. दसा० ५७; १०।३२. प० ७८ ६।४।४; १०।१२; चू० २१४,१०. उ० गुत्ति (गुप्ति) आ० ४।३,८,५२. उ० १२।१७; ४।११,१३; ६।६; १२११; १३।१२,१३, २०१६०; २४।१,१६,२६; २६।३४; २८।२५; १७; १४।१०,१७; १८।४६; १९३५, २४, २६।३२, ३४।३१. वसा० १०॥३३. प० ८१ ३५,३६; २०१५१,५२,६०; २५॥३३; २८१५,६,३०; २६।१,३६,४५; ३१।१८; गुत्तिदिय (गुप्तेन्द्रिय) उ० १६ सू० १ से ३. वसा० ३२१५; ३६।५८. नं० गा० ४,१६,२८,३७ ५७; १०।३२, ५०७८ सू० ८७,१२७।२. अनं० २८. अ० २१, गुप्पमाण (गुप्यत्) ५०३१ २४७।१, २५५,२५७,२६२,३ ०७।४,३५४, गुमगुमायंत (गुमगुमायत्) ५०२५ ३६०।१, ५०६ से ५१५,५२१, ५२४, ५५१ ४, ५५१ गुम्म (गुल्म) उ० ३६।१४. दसा० १०।२४ से ५५३,७१५१६. वसा०६८ से १८; ६।२। गुम्मी (गुल्मी) उ० ३६।१३८ ३५; १०।११,१६,३० से ३३. ५० ६,२२,२४, गुरु (गुरु) आ० ६१४,५, २० ५।८८,६०,७१११; ३८,४२,४७,७५,१६५,२२२ ८।४४,४५, ६।१,२,६,७,८,१०,१३,३२,४०, गुणओ (गुणतस्) द० चू० २।१०. उ० ३२।५ ४२,५४,५५. उ०११२,३,१६,२०,७६; १७॥ गुणकेसराल (गुणकेसर) नं० गा० ७ १०,२६७,८,२१,२२,३७,४० से ४२,४५, गुणगाहि (गुणग्राहिन्) उ० ३६।२६२ ४८ से ५१; ३०।३२; ३२॥३. नं० गा० २. गुणजातीय (गुणजातीय) दसा० ४।१६ दसा० ४।१३. ५० ७३ गुणत्तण (गुणत्व) उ० २६।३६ गुणधारणा (गुणधारणा) अ० ७४।१, ६१०।१।। गुरुकुल (गुरुकुल) उ०११।१४ गुणनिप्फन्न (गुणनिष्पन्न) प० ५२,६६ गुरुजण (गुरुजन) अ० ३१४।२. ५० ३६ गुणपच्चइय (गुणप्रत्ययिक) नं० २२।१,२५११ गुरुदार (गुरुदार) अ० ३१४।१ गुणप्पेहि (गुणप्रेक्षिन) द० ५।१४४ ।। गुरुय (गुरुक) उ० १६३५; ३६।३६. दसा० ६।६ गुणव (गुणवत्) द० ५।१५०. अ० ७४।१,६१०।१।। गुरुवायणोवगय (गुरुवाचनोपगत) अनं० ६.१० गुणवंत (गुणवत्) उ० २३॥ १० १३,३४,५७,८१,६६,१०६,५६३,६२३.६३५, गुणसिलय (गुणशिलक) वसा० १०।१,६,१५,१६, ६४७,६७३,७००,७१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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