________________
छठो उद्देसो
अगडसुयाणं एगत्तवासविहि-पदं
४. से' गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए' एगनिक्खमण
पवेसाए नो कप्पर बहूणं अगडसुयाणं एगयओ वत्थए । अत्थियाइं स्थ केइ आयारपकप्पधरे नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकष्पधरे से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥
५. से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण - पसाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयओ वत्थए । अत्थियाइं त्थ hs आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणि संवसइ नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रर्याणि संवसइ सव्वेसि तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा ।
६३३
अप्पयस्स गागिवासनिसेध-पदं
६. से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुणे 'अप्पागमस्स अप्पसुयस्स" ?
बहुसुस्स एगा गिवासविहाण -पदं
७. से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण-पंवेसाए कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए उभओ' कालं भिक्खुभावं पडिजागरमाणस्स ॥
१. 'क, ता' संकेतितादर्शयोः अतः सप्तमसूत्रपर्यन्तं पाठभेदो दृश्यते । स चैवम् - गणावच्छेइए एगदुवाराए एगणिक्खमणपवेसाए णो ates बहूणं अकडेसुयाणं एकतओ वत्थए ।
गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि वा अभिणिव्वकडाए अभिणिदुवाराए अभिणिक्खमणपवेसाए (पवेसणयाए-ता) णो कप्पइ (कप्पइता) बहूणं अकडसुयाणं एकतओ वत्थए, अथिया (त्थ-ता) आयारपकप्पधरे जे तइयं राति संवसति नत्थियाई स्थ छेए वा परिहारे वा, णत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तइयं राति संवसति सेसे अंतरा छेए वा परिहारे वा । जे गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवारा ए एगनिवखमणपवेसण -
Jain Education International
याए अभिनिव्वगडाए नो कप्पइ बहुसुयस्स य ( बहुसुयस्स बहुआगमस्स ता) भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुण अप्पसुयस्स भिक्खुस्स
अप्पागमस्स |
जे गामंसि वा जाव सण्णिवेसंसि वा अभिणिव्वगडाए अभिदुवाराए (अभिणिदुवा - राए - ता) बहुसुयस्स बहुआगमस्स भिक्खुस्स वत्थए उभओ कालं भिक्खुभावं पडजागर
माणस्स ।
२. रायहाणिसि (ग, जी, शु, मट्ट) सर्वत्र । ३. मलयगिरिवृत्तौ एतत् पदं नास्ति व्याख्यातम् । ४. पवेसणाए ( ख, ग, जी, शु) । ५. अप्पसुयस्स अप्पागमस्स ( ख ) । ६. दुहओ (ग, जी, शु ) ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org