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________________ पंत-पगाम पंत (प्रान्त) द० ५॥१३४. उ० ८।१२; १२।४; -पक्खंदे द० २६ १५॥४. दसा० ५।७।४ पक्खपिंड (पक्षपिण्ड) उ० १११६ पंतकुल (प्रान्तकुल) उ०१५।१३. दसा० १०॥३२. पक्खलंत (प्रस्खलत्) द० ॥५ प०११,१२,१४,१५ पक्खि (पक्षिन) द० ७।२२. उ० ४१६; ६।१५; पंति (पङ्क्ति) दसा० १०।१६. प० ७५ १३।३१; १४।३०; १९१५८,७६; २०१३; ३२॥ पंथ (पथिन) उ० २१५. अ० ३८०. क. ४१२८ १०३६।१८८. अ० ३२७. ५०७८ पंसुखार (पांशुक्षार) द० ३८ पक्खिजाति (पक्षिजाति) क० ५।१३,१४. नि० पंसुपिसाय (पांशुपिशाच) उ० १२।६,७ ७।८३ से ८५ पकंपमाण (प्रकम्पमान) प० २८ पक्खिणी (पक्षिनी) उ० १४।४१ पकप्प (प्रकल्प) उ० ३१११८ पक्खित्त (प्रक्षिप्त) नं० ५३. अ०४३६,४६०,५८६, पिकर (प्र+कृ)-पकरेइ उ० २६।२३. दसा० ५८७,५६०,५९३,५६६,५६६,६०२. दसा० हा२.-पकरेंति उ० १११३.-पगरेह उ० १२॥३६ पक्खिप्पमाण (प्रक्षिप्यमान) नं० ५३. अ० ५८६ पकर (प्रकर) १० २४ पक्खिय (पाक्षिक) दसा० ५।७. प० २८१. नि० पकामभोइ (प्रकामभोजिन्) २० ८।१७ २०३० से ४५,४७,४६,५१ पकिण्ण (प्रकीर्ण) उ० १२।१३ पक्खिव (प्र-क्षिप)-पक्खिवइ प० १५. व. पकित्तिय (प्रकीर्तित) उ० ३६।१६,१८,१६,२१, ६।४५.-पक्खिविज्जा नं ५३ ८५,६४,९६,११८,१२६,१२७,१३६,१४५ पक्खिवित्ता (प्रक्षिप्य) प० १५ ।। पकुव्व (प्र+कृ)-पकुव्वइ उ० १११७.-- पक्खुलमाण (प्रस्खलत्) क०६७ पकुव्वई द० २१३२.--पकुव्वति दसा० पिक्खोड (प्र+स्फोटय)-पक्खोडावेज्जा द. ६।२।१ ४ सू० १६.-पक्खोडेज्जा द० ४ सु० १६ पक्क (पक्व) द० ७।३२,३४,४२. उ० १९४४६,५७; पक्खोडंत (प्रस्फोटयत्) द० ४ सू०१६ ३४।१३. क० ११३ से ५ पगइ (प्रकृति) द०६।३ पक्कणी (पक्कणी) नि० ६।२६ पगड (प्रकृत) द० ५।४७,४६,५१,५३; ८.५१% पक्कम (प्र+क्रम् )-पक्कमई उ० ३।१३. चू० १ सू० १. उ० १३८ -पक्कमति द० ३।१३. उ०२७।१४ पगड (प्रगट) उ० १३६ पक्कीलिय (प्रक्रीडित) ५० ५६,६४ पगडि (प्रकृति) अ० ६१७ पक्ख (पक्ष) उ० ५।२३; २६।१४,१५; २७।१४. पगति (प्रकृति) प० ७५ अ० २१६,३१०,४१५,४१७. प० १७,२४,५६, पगब्भ (प्रगल्भ)-पगब्भई उ०५७ ७४,८१,८४,१०६,१११,११३,११५,१२४,१२७ पगब्भ (प्रगल्भ) नं० गा० ३६ से १३०,१३८,१६१,१६३,१६५,१६६,१८०. पगर (प्र-+-कृ)-पगरेह उ० १२।३६ नि० ७८३ पगलंत (प्रगलत्) नं० गा० १४ पक्खओ (पक्षतस्) द० ८।४५. उ० १।१८ पगलिय (प्रगलित) नं० गा० १५ पक्खंत (पक्षान्त) नं० १८१४ पगाढ (प्रगाढ) उ० ५।१२; १६७२. दसा०६५ पिक्खंद (प्र+स्कन्द)-पक्खंद उ० १२।२७. पगाम (प्रकाम) उ० १४।१३,१६,३१, ३२।१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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