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________________ २७५ संकुचिय-संगोवित्तु संकुचिय (संकुचित) द०४; सू०६ ४०२ से ४०४ संकोडिय (संकोटित) दसा० ६।३ संखेज्जगुण (संख्येयगुण) अ० २६३ संख (शङ्क) उ० ११११५,२१, ३४18%; ३६।६१, संखेज्जाएसिय (संख्येयप्रदेशिक) अ० ६४,६८, १२८. नं० ५४।३. अनं० १३,१७. अ० ३०१, ११५,१३२,१५२,१५३,३७१ ३८५,५२२,६०४,६५५,६५६,६८१,६८५. संखेज्जय (संख्येयक) अ० ४११,५७४,५७५,५८४ दसा०६।३; १०।१७. ५० ५२,६४,७४,७५, से ५८७. नं० २० ७८,६५. नि० १७।१४० संखेज्जसमयट्टिईय (संख्येयसमयस्थितिक) अ० संखक (शंखक) प० २८ २००,२२३,४१४ संखडि (दे० संस्कृति) द० ७३६,३७. प० २५१. संखेव (रुइ) (संक्षेप) (रुचि) उ०२८।१६ क० ११४४. नि० ३।१४ संखेवरुइ (संक्षेपरुचि) उ० २८।२६ संखणग (शंखानक) उ० ३६।१२८ संग (सङ्ग) द० १०११६. उ० २।१६; ३।६; संखपाय (शंखपात्र) नि० ११११ से ३ १३।२७; १८१५३; २११११, ३२।१८, ३५१२. संखबंधण (शंखबन्धन) नि० ११।४ से ६ दसा० १०॥३३. प० ८० संखमालिया (शंखमालिका) नि० ७.१ से ३; संगम (संगम) प० ७५ १७१३ से ५ संगह (संग्रह) उ०२५।२२; ३३।१८. अनं०६, संखय (संस्कृत) उ० ४।१३ २८. अ० १४,३५,५८,८२,१०७,११३,१३१ से १३७,१३६ से १४६,१५७,१७५,१६८,२१६, संखय (संक्षय) उ० ३२।२ संखवियाण (संक्षप्य) उ० २०१५२ २१७,५५५ से ५५७,५६४,५६८,६२४,६३६, संखा (संख्या) उ० २८।१३; ३६।१६७. अ० ५०६, ६४८,६७४,७०१,७१५. व. ३।३ से ८ ५५८ से ५६०,५६२ से ५७४,६०३,६०४ संगहकत्तु (संग्रहकर्त) अ० ३०२।५ संखाईय (संख्यातीत) उ० १०१५ से ८3३४।३३ संगहणी (संग्रहणी) न० ८३ से ६१,१२३. अ० संखादत्तिय (संख्यावत्तिक) प० २५०. व० ६।४२, ३४१,३४२,६१७ संगहपरिण्णा (संग्रहपरिज्ञा) दसा० ४।३ संखिज्ज (संख्येय) उ० १०.१० से १२. नं० ७६ __संगहपरिण्णासंपदा (संग्रहपरिज्ञासम्पदा) दसा० संखिज्जकाल (संख्येयकाल) उ० ३६।१३३,१४२, ४।१३ १५२ संगहिय (संगहीत) उ० २७।१४. अ० ७१५२२ संखित्त (संक्षिप्त) प० १८७ संगहित्तु (संग्रहीत) दसा० ४१२३ संखिय (शांखिक) दसा० १०॥१८. प० ७४ संगातीत (संगातीत) दसा० १०॥३३ संखेज्ज (संख्येय) नं० १६,१७; १८।३,२३,३२, संगाम (संग्राम) उ० २।१०।६।२२,३४; २१।१७. ५०,५२,८१ से ११. १० १२३ से १२५, दसा० १०।२६ १२८,१४० से १४२,१४५,१५६,१६७ से १६६, संगल्लि (दे०) दसा० १०।१६,२४ २०८,२०९,३८७,४११,४१६,४१७,४४४, संगोफ (संगोप) उ० २२॥३५ ४४५,४६०,४६१,४६५. प० १५ संगोवंग (साङ्गोपाङ्ग) नं०६७. अ० ४६,५४८. संखेज्जइभाग (संडल्येयतमभाग) अ० १२४,१२५, ५०६ १२८,१४१,१४२,१४५.१६८,१६६,२०६, संगोवित्तु (संगोपयितृ) दसा० ४१२० ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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