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________________ ३५. सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलामा । ३६. आघविज्जति । सुकुलपच्चायाती पुणबोहिलाभो । आधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । नाया-धम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिणसामि-सासणवरे संजमपइण्ण-पालण-धिइ-मइववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-णिसहा-णिसट्राणं, घोरपरीसह-पराजियाऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं, विसयसुह - तुच्छ - आसावस-दोस- मुच्छियाणं विराहियचरित्त- नाण-दसण-जइगुण-विविह-प्पगार-निस्सारसुण्णयाणं संसार- अपार- दुक्ख-दुग्गइ-भव-विविहपरंपरापवंचा। धीराणय जिय-परिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणियसंजम-उच्छाहनिच्छियाणं आराहिय - नाण - दंसणचरित्त-जोग-निस्सल्ल-सुद्ध-सिद्धालयमग्ग-मभिमुहाणं सुरभवण-विभाण-सुक्खाई अणोवमाई भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि ततो य कालक्कमच्चुयाणं जह य पूणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया। चलियाण य सदेव-माणुस्स-धीरकरण-कारणाणि बोधण-अणुसासणाणि-गुण-दोस-रिसणाणि । दिद्रुते पच्चए य सोऊण लोगमुणिणो जह य ठिया सासणम्मि-जर-मरण-नासणकरे। आराहिय-संजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओवेंति जह सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं । एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेण य । नाया-धम्मकहासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणु ओगदारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्टयाए छठे अंगे दो सुअक्खंधा एगूणतीसं अज्झयणा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहाचरिता य कप्पिया य । ३८. दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एग- मेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाइं । एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाई एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइओक्खाइयासयाईएवमेव सपुवावरेणं अद्भुट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति ति मक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जु दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई । एगमेगाए अक्खाइयाए पंच-पंच उवक्खाइयासयाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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