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________________ २७४ ३२।१६,२२,३५,४८,६१,७४,८७,१००,१०८; ३४।३२; ३५।२१ वीयरागया (वीतरागता) उ० २६१,४६ वीयरागसुय (वीतरागश्रुत) नं० ७७ वीयाव (वीजय)-वीयावए द० १०॥३. -वीयावेज्जा द० ४ सू० २१ वीयावेऊण (चीजयितुम) द० ६।३७ वीर (वीर) उ० २०१४०. नं० गा० ३,२१,२२. .. अ० ३०६,३१०. प० ३८,४२,४७,७४,१५१ वीरण (वीरण) अ० ५२३ | वीरभद्द (वीरभद्र) प० ११५ वीररस (वीररस) अ० ३१० वीरवलय (वीरवलय) दसा० १०११. प० ४२ वीरासण (वीरासन) उ० ३०।२७ वीरासणिय (वीरासनिक) दसा० ७।३०. क० ५।२३ वीरिय (वीर्य) उ० ३।१,६,११; २८१११; ३३।१५. नं० १०४,१०७. अ० ३२२. दसा० १०१३३. प०८१ वीरियंत राय (वीर्यान्तराय) अ० २८२ वीरियलद्धि (वीर्यलब्धि) अ० २८५ वीरियसंपन्न (वीर्यसम्पन्न) प० ६७ वीरियायार (वीर्याचार) २० ८१ वीस (विशति) आ० ४१८. उ० ३६.५१. नं० ६१. अनं० २८. अ० ४१७. दसा० ११. प०१०६ वीस (विस्र) दसा०६५ वीसइ (विशति) उ० ३३।२३. प० २२३ -वीसंभ (दे०)-वीसं भेज्जा व०३।११ वीसतिरातिय (विशतिरात्रिक) नि० २०१६ से २६,३३,४६,४८,५० वीसत्य (विश्वस्त) प० ३७ -वीसम (वि+श्रम्)-बीसमेज्ज द० ५६३ वीसमंत (विश्राम्यत्) द० ५।१४ वीसवासपरियाय (विशतिवर्षपर्याय) व०१०।१६, वीयरागया-वृत्तपुव्व विसस (वि+श्वस्)-वीससे उ० ४।६ वीससणिज्ज (विश्वसनीय) उ० २६।४३ वीसुंभ (दे०)-वीमुंभेज्जा क० ४१२५ वीसेढि (विश्रेणि) नं० ५४१५ वीहि (व्रीहि) क० २।१ वीही (वीथि) प० ६२ वुइय (उक्त) उ० १८।२६ वुक्कस (बुक्कस) उ० ८।१२ वुग्गह (व्युद्ग्रह) द० ७।५०. उ० १७.१२. प० २८३. नि० १३।१२; १६।१६ से २४ वुग्गहिय (व्युद्ग्राहिक, वैवाहिक) द० १०३१० बुग्गाहिय (व्युद्ग्राहित) क०४८ विच्च (वच)-वच्चइ उ० ११२. अ० ४१७. प० १८३.- वच्चंति द० ११५. उ० ८।१३. -वृच्चसि उ० १८१२१.-वोच्छं नं० गा० ४३ वुच्छित्तिनय (व्युच्छित्तिनय) नं० ६८ वुच्छिन्न (व्युच्छिन्न) प० ५८ वुच्छेय (व्यवच्छेद) नं० गा० ३६ वुझ (वह)-वुज्झइ द० ६।२० वुज्झमाण (उपमान) उ० २३।६५; ६८ वुट्ठ (वृष्ट) द० ७।५१,५२,८।६. उ० १२।३६ वुट्ठि (वष्टि) अ० ५२६ वुट्ठिकाय (वृष्टिकाय) प० २५२ से २५६ वुड्ढसावग (वृद्धश्रावक) अ० २०,२६ वुड्ढसील (वृद्धशील) दसा० ४।४ वुड्ढसेवि (वृद्धसेविन्) दसा० ४।२२ वुड्ढावास (वृद्धावास) व० ८।४ द्धि) नं० १८७,८३ वुत्त (उक्त) द०६।५,२०,४८,५४,८१२;६।३६. उ० १४।२२,२३; २०११३; २३॥३७,४७,४८, ५२,५३,६२,६७,७२,७३,७७,८२, २४१५,६, २६; २५।१६; २८।३४;३०१७; ३३१८%; ३६।४,४८,२०४. नं० ३८. दसा० ६।२।३५; १०।४,१०. प० १५,४०,४३,६३ वृत्तपुव्व (उक्तपूर्व) प० २३३ से २३५,२३७ ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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