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________________ सूत्र ३७ २१ ३६ अध्ययन श्लोक विषय ३० तप। चारित्र। १११ प्रमाद-स्थान । २५ कर्म । लेश्या । भिक्षु के गुण । २६८ जीव और अजीव का प्रतिपादन । नियुक्तिकार ने उत्तराध्ययन के प्रतिपाद्य के संक्षिप्त संकेत प्रस्तुत किए हैं। इनसे एक स्थूल-सी रूपरेखा हमारे सामने आ जाती है । विस्तार में जाएं तो उत्तराध्ययन का प्रतिपाद्य बहुत विशद है। भगवान् पार्श्व और भगवान महावीर की धर्म-देशनाओं का स्पष्ट चित्रण यहां मिलता है । वैदिक और श्रमण संस्कृति के मतवादों का संवादात्मक शैली में इतना व्यवस्थित प्रतिपादन अन्य आगमों में नहीं है । इसमें धर्म-कथाओं, आध्यात्मिक-उपदेशों तथा दार्शनिक-सिद्धान्तों का आकर्षक योग है। इसे भगवान् महावीर की विचार-धारा का प्रतिनिधि सूत्र कहा जा सकता है। मुख्य व्याख्या ग्रंथ दशवैकालिक १. दशवैकालिकनियुक्ति, २. दशवकालिकभाष्य, ३. दशवकालिकचूणि (अगस्त्यचूणि), ४. दशवकालिकचूणि (जिनदास महत्तर), ५. दशवकालिकअवचूरि, ६. दशवैकालिकदीपिका । उत्तराध्ययन १. उत्तराध्ययन नियुक्ति, २. • उत्तराध्ययनचूणि, ३. उत्तराध्ययनटीका (शांतिसूरि), ४. उत्तराध्ययनवृत्ति (नेमिचन्द्र)। ४. नंदी नामबोध प्रस्तुत आगम का नाम नन्दी है । नन्दी शब्द का अर्थ है-आनन्द । चूर्णिकार ने इसके तीन अर्थ किये हैं'---प्रमोद, हर्ष और कन्दर्प । ज्ञान सबसे बड़ा आनन्द है। प्रस्तुत आगम में ज्ञान का वर्णन है, इसलिए इसका नाम नन्दी रखा गया है। विशेषावश्यक भाष्य में भाव मंगल या भाव नंदी कहा गया है। ज्ञान सबसे बड़ा मंगल होता है, इस अवधारणा के आधार पर किया गया नामकरण १. नंदीचूणि, पृ० १ : णंदणं णंदी, णंदंति वा अणयेति गंदी, गंदंति वा गंदी, पमोदो हरिसो कंदप्पो इत्यर्थः । २. विशेषावश्यक भाष्य ७८ : मंगलमधवा गंदी चतुविधा मंगलं वा सा णेया । दवे तुरसमुदओ, भावम्मि य पंच णाणाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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