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________________ २६ (ग) व्यवहार मूलपाठ यह प्रति भी उपर्युक्त ग्रन्थालय की है । इसके पत्र १० व प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं, और प्रत्येक पंक्ति में ५०-५३ तक अक्षर हैं। प्रति महीन व सुन्दर लिखी हुई है। बीच में बावड़ी है । इसकी लम्बाई १० व चौड़ाई ४ इंच है । अन्त में लिपि संवत् नहीं है । अनुमानत: १७वीं शताब्दी की होनी चाहिए । (ता) ताड़पत्रीय फोटोप्रिंट जैसलमेर भंडार लिपि संवत् १२२५ श्रावण बदी - ११ (भा) भाष्य । मुद्रित ( शु०) (शुब्रिंग) सम्पादित व्यवहार, बृहत्कल्प, निशीथ सूत्राणि ( जी०) जीवराज घेलाभाई मुद्रित (मवृ) व्यवहार सूत्र मलयगिरिवृत्तिः । (चू०) चूर्ण (हस्तलिखित) . यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर अहमदाबाद की है । इसके पत्र २५७ हैं । प्रति बड़े अक्षरों में सुन्दर लिखी है । प्रति किसी खंडित प्रति से लिखी हुई प्रतीत होती है | अनेक जगह खाली पत्र व पंक्तियां रिक्त हैं । प्रति प्राचीन लगती है । लिपि संवत् नहीं है । निशोथ निशीथ के पाठ - संशोधन में चार आदर्श प्रयुक्त किए गए हैं। उनमें 'अ' और 'ख' संकेतित आदर्श एक वर्ग के हैं और 'क' और 'ग' एक वर्ग के हैं। इस सभी आदर्शों तथा चूर्ण के संदर्भ में समीक्षापूर्वक पाठ स्वीकार किया गया है। निशीथ की दो वाचनाएं मिलती हैं। एक में पाठ संक्षिप्त है और दूसरी में कुछ विस्तृत । पूरा पाठ प्रयुक्त किसी भी आदर्श में नहीं है । हमने प्रायः सभी पाठ पूर्ण किए हैं। निशीथ के अधिकांश पाठ निशीथ से ही पूर्ण किए गए हैं। कहीं-कहीं उनकी पूर्ति आयार-चुला और व्यवहार से की गई है । कई उद्देशकों में सदृश पाठ - पूर्ति करने से आगम का आकार बढ़ा है, किन्तु उससे आशय की स्पष्टता हुई है । पाठक को इससे बहुत सुविधा होगी। डॉ० वाल्टर सुबिंग द्वारा सम्पादित निशीथ का भी हमने यथास्थान उपयोग किया है । उनकी संक्षिप्त शैली अवैज्ञानिक नहीं है, किन्तु उससे पाठ और पाठक की जटिलता कम नहीं होती। इसलिए हमने विस्तृत शैली का अनुसरण किया है। पुप्फभिक्खु द्वारा सम्पादित सुत्तागम को भी हमने सामने रखा है, किन्तु उसे देख कर बहुत आश्चर्य और खेद हुआ। निशीथ में जहां-जहां पुप्फभिक्खु को भावना के प्रतिकूल पाठांश थे, वे सब उन्होंने निकाल दिए । उदाहरण स्वरूप कुछ पाठांश प्रस्तुत किए जा रहे हैं निशीथ (शुबिंग द्वारा सम्पादित) १४ घण वा वसाए वा नवणीएण वा ११।८० जे भिक्खू मसाईयं वा मच्छाइयं वा मंस-खलं वा मच्छ-खलं वा आहेण वा० Jain Education International सुत्तागम (भाग-२) घण वा णवणीएण वा० १/४ ११।७२७ जे भिक्खु आहेणं वा० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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