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पंक्ति में ४४ से ४६ तक अक्षर हैं। अवचूरी पाठ के चारों तरफ लिखी हुई है। पाठ के अक्षर बड़े तथा अवचूरी के अक्षर छोटे हैं। प्रति काली स्याही से व गाथाओं की संख्या लाल स्याही से लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति (पुष्पिका) है :
संवत् १४६६ वर्षे वशाख मासे प्रतिपदायां तिथौ रविवासरे ॥ लिखितं कर्मचन्द्रेण ॥ (ग) दशवकालिक पाठ और अवचूरी (हस्तलिखित)
यह प्रति भी हमारे 'संघीय संग्रहालय' लाडनूं की है। इसके पत्र १६ व पृष्ठ ३२ हैं। प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पंक्तियां १४ व प्रत्येक पंक्ति में ५२ से ५७ तक अक्षर हैं । अवचूरी पाठ के चारों तरफ लिखी हुई है। पाठ के अक्षर बड़े तथा अवचूरी के अक्षर छोटे हैं। प्रति काली स्याही से व गाथाओं की संख्या व पद लाल स्याही से लिखे गए हैं। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति (पुष्पिका) है :
दसवेयालियं सुयक्खंधो समत्तो ॥ब।। शिवमस्तु चिरं विजीयात् ।। सं० १४०० वर्षे भाद्रपद सुदि ११ तिथौ शुक्रवासरे समस्त देशाधिदेशे श्री मालवकाख्ये तन्मध्यवत्तिन्यां महापुर्यामवंत्यां पातसाह श्री महसुंदर राज्ये पं० श्री विशाल
कीर्ति पूज्यानां पादप्रसादाद्देपाकेन लिखितमिति । (घ) दशवकालिक पाठ और अवचूरी (हस्तलिखित)
यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास 'गधया संग्रहालय', सरदारशहर की है । इसके पत्र ३२ व पृष्ठ ६४ हैं। प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा व ४१ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पंक्तियां ८ से १३ व प्रत्येक पंक्ति में २६ से ३२ तक अक्षर हैं। अवचरी पाठ के चारों तरफ लिखी हुई है। पाठ के अक्षर बड़े तथा अवचरी के अक्षर छोटे हैं। प्रति काली स्याही से व गाथाओं के संख्यांक लाल स्याही से लिखे हुए हैं। यह प्रति अनुमामत: १४ वीं शताब्दी की लिखी हई होनी चाहिए। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति (पुष्पिका) है :
इति श्री दसवैकालिक सूत्रं समाप्तं । लिखितं ॥ बा० श्री साधु विजयगणिभिः कल्याणमस्तु
सर्व-जंतोः लेखकपाठकयोः भद्रं भूयात् ।। (अचू) अगस्यसिंह स्थविर कृत (जैसलमेर भंडारस्थ) ताडपत्रीय दशवकालिक चूर्णि
इसकी फोटो-प्रिन्ट प्रति 'सेठिया पुस्तकालय', सुजानगढ़ की है । इसकी पत्र-संख्या १६५ व पृष्ठ ३३० हैं। पत्र क्रमांक संख्या १७७ से ३४२ तक है। फोटो-प्रिन्ट पत्र-संख्या ३६ तथा एक पृष्ठ में करीब ९-१० पृष्ठों के फोटो हैं । किसी में ७-८ भी हैं । प्रत्येक पत्र १४ इंच लम्बा व ३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में ४ या ५ पंक्तियां हैं। कही पंक्तियां अधूरी हैं । प्रत्येक पंक्ति में १४८ के करीब अक्षर हैं । यह फोटो-प्रिन्ट प्रति मुनि श्री पुण्यविजयजी से उपलब्ध हुई है। (जि०) जिनदासमहत्तर कृत दशवैकालिक की चूणि (मुद्रित)
श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी पेढी-मुकाम रतलाम, जैनबन्धु प्रिन्टिग प्रेस इन्दौर, वि० सं० १९८६ में प्रकाशित । पृष्ठ ३८० ।
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