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________________ ५१ धवला ला के अनुसार दशर्वकालिक आचार और गोचरी की विधि का वर्णन करने वाला सूत्र है ।' गणपति के अनुसार इसका विषय गोचर - विधि और पिण्ड - विशुद्धि है ।" तत्त्वार्थवृत्ति श्रुतसागरीय में इसे कुसुम आदि का भेद कथक ओर यतियों के आधार का कथक कहा है । उक्त प्रतिपादन से दशर्वकालिक का स्थूल रूप हमारे सामने प्रस्तुत हो जाता है, किन्तु आचार्य शय्यभव ने आचार-गोचर की प्ररूपणा के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का निरूपण किया है । जीव-विद्या, योग-विद्या आदि के अनेक सूक्ष्म बीज इसमें विद्यमान हैं । उत्तराध्ययन - प्रस्तुत आगम का नाम 'उत्तराध्ययन' है । इसमें दो शब्द हैं- 'उत्तर' और 'अध्ययन' | समवायांग के — 'छत्तीसं उत्तरज्भयणा" इस वाक्य में उत्तराध्ययन के 'छत्तीस अध्ययन' प्रतिपादित नहीं हुए हैं, किन्तु 'छत्तीस उत्तर अध्ययन' प्रतिपादित हुए हैं। नंदी में भी 'उत्तरज्भयणाणि' यह बहुवचनात्मक नाम मिलता है। उत्तराध्ययन के अंतिम श्लोक में छत्तीसं उत्तरज्झाए - ऐसा बहुनाम मिलता है।' निर्मुक्तिकार ने 'उत्तराध्ययन' का हवन में प्रयोग किया है ।" चूर्णिकार ने छत्तीस उत्तराध्ययनों का एक श्रुतस्कन्ध ( एक ग्रन्थ रूप) स्वीकार किया है। फिर भी उन्होंने इसका नाम बहुवचनात्मक माना है। भी इस बहुवचनात्मक नाम से यह फलित होता है कि उत्तराध्ययन अध्ययनों का योग मात्र है, एक कर्तृक एक ग्रन्थ नहीं 'उत्तर' शब्द 'पूर्व' सापेक्ष है। चूर्णिकार ने प्रस्तुत अध्ययनों की तीन प्रकार से योजना १. षड्खंडागमः सत्प्ररूपणा (१।१।१), पृ० ६७ : दसवेयालियं आयार-गोयर - विहिं वण्णेइ । २. अंगपण्णत्ति, ३।२४ : जदि गोचरस्स विहि, पिंडविशुद्धि च मं परवेहि । दसवेलियसुतं दह काला जत्थ संवृत्ता ॥ ३. तस्वार्थवृत्ति श्रुतसागरीय, पृष्ठ ६७ : बृक्षकुसुमादीनां दशानां भेदकथकं यतीनामाचारकथनं च दशर्वकालिकम् । ४. समवाओ, समवाय ३६ । ५. नंदी, सूत्र ४३ ॥ ६. उत्तराध्ययन ३६।२६८ । ७. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा ४ - छत्तीसं उत्तरज्भयणा । ८. उत्तराध्ययनचूर्णि पृष्ठ ८: ऐसि चेद छत्तीसाए उत्तणा स्मुदगसमितिसमागमेणं उत्तरण्झयणभावसुतक्खंधेति लम्भ, साणि पुण । छत्तीसं उत्तर भणाणि इमेहि नामेहिं अणुगंतव्वाणि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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