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________________ (२) उत्कालिक । कालिक सूत्रों की गणना में पहला स्थान उत्तराध्ययन का और उत्कालिक सूत्रों की गणना में पहला स्थान दशवकालिक का है। दशवैकालिक : आकार और विषय-वस्तु दशवकालिक के दस अध्ययन हैं और वह विकाल में रचा गया, इसलिए इसका नाम दशवकालिक रखा गया। इसके कर्ता श्रतकेवली शय्यंभव हैं। अपने पुत्र-शिष्य मनक के लिए उन्होंने इसकी रचना की । वीर सम्वत् ७२ के आस-पास 'चम्पा' में इसकी रचना हुई। इसकं। दो चूलिकाएं हैं। अध्ययनों के नाम, श्लोक, संख्या और विषय इस प्रकार हैं :---- श्लोक सूत्र विषय धर्म-प्रशंसा और माधुकरी वृत्ति । संयम में धृति और उसकी साधना । आचार और अनाचार का विवेक । २८ २३ अध्ययन १. द्रुमपुष्पिकार २. श्रामण्यपूर्वक ३. क्षुल्लकाचार ४. धर्म-प्रज्ञप्ति या षड्जीवनिका ५. पिण्डपणा ६. महाचार ७. वाक्यशुद्धि ८, आचार-प्रणिधि ६. विनय-समाधि १०. सभिक्षु चूलिका १. रतिवाक्या जीव-संयम तथा आत्म-संयम का विचार । गवेषणा, ग्रहणषणा और भोगषणा की शुद्धि । महाचार का निरूपण । भाषा-विवेक । आचार का प्रणिधान । विनय का निरूपण । भिक्षु के स्वरूप का वर्णन । - - सग्म में अस्थिर होने पर पुन: स्थिरीकरण का ध्यदेश। विविक्ता का उपदेश। २ विविक्तचर्या नियतिकार के अनुसार दशवकालिक का समावेश चरण करणायोग में होता है । इसका फलित अर्थ यह है कि इसका प्रतिपाद्य आचार है। वह दो प्रकार का रोता है-(१) चरण-व्रत आदि और (२) करण-पिण्ड-विशुद्धि आदि । १. नंदी, सूत्र ४३ : से कि तं कालियं ? कालिय अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा----उत्तरज्झयणाई....... । से कि तं उक्कालियं ? उक्कालियं अणेगविहं पण्णतं, तं जहा----दसवेयालियं..... । २. तत्त्वार्थवत्ति श्रतसागरीय, में इसका नाम 'वक्षकुसुम' दिया है-देखिए पृ० ११ पाटि०२। ३. दशवकालिकनियुक्ति गाथा ४: अपुहुत्तपुहुत्ताई, निहिसिउं एत्थ होइ अहिगारो । चरणकरणाणुओगेण, तस्स दारा इमे हंति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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