________________
छत्तीसइमं अज्झयणं (जीवाजीव विभत्ती )
१६२. सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण तइयाए जहन्नेणं तिष्णेव उ १६३. दस सागरोवमा ऊ उक्कोसेण उत्थीए जहन्नेणं सत्तेव उ १६४. सत्तरस सागराऊ उक्कोसेण पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ १६५. बावीस सागरा ऊ उक्कोसेण छट्टीए जहन्नेणं सत्तर स १६६. तेत्तीस सागरा' ऊ उक्कोसेण सत्तमाए जहन्नेणं बावीसं
१६७. जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया १६८. अनंतकालमुक्को सं अंतोतं नेरइयाणं गंधओ
विजढंमि सए काए १६६. एएसि वण्णओ चैव 'संठाणादेसओ वावि”
Jain Education International
वियाहिया । सागरोवमा || वियाहिया ।
सागरोवमा ॥ वियाहिया | सागरोवमा || वियाहिया ।
सागरोवमा ॥ वियाहिया |
सागरोवमा || वियाहिया । भवे ॥ जहन्नयं । अंतरं ॥ सफासओ ।
तु
विहाणाई
सहस्ससो ||
१७०. पंचिदियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया । गब्भवक्कंतिया तहा ।
सम्मुच्छिमति रिक्खाओ' १७१. दुविहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा ।
भेए सुणेह मे ।।
खहयरा य बोद्धव्वा १७२. मच्छा य कच्छभा य सुंसुमारा य बोद्धव्वा १७३. लोएगदेसे ते सव्वे तो कालविभागं तु पपणाईया
१७४. संतई
ठिs पडुच्च साईया
१७५. एगा य पुब्वकोडीओ
उक्कोसेण
आउट्टिई जलयराणं अंतोमुहुत्तं
१७७. अनंतकालमुक्कोसं
तेसि
गाहा य पंचहा
विजढंमि सए काए
१. सागराई ( ऋ) । २. संठाणभेयओ यावि ( अ ) ।
मगरा तहा । जलय राहिया ॥
१७६. पुव्वकोडी हत्तं तु उक्कोसेण
कार्यट्टिई जलयराणं अंतोमुहुत्तं
न सव्वत्थ वुच्छं तेसि अपज्जवसिया
सपज्जवसिया
अंतोमुहुत्तं जलयराणं
वियाहिया । चउव्विहं ॥
वि य ।
वि य ।।
वियाहिया ।
जहन्निया ॥
वियाहिया । जहन्निया ||
जहन्नयं ।
अंतरं ॥
तु
३. 'तिरिक्खा य (उ) ।
४. पंचविहा ( अ ) ।
For Private & Personal Use Only
२३७
www.jainelibrary.org