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________________ अपिसुण-अप्पडिवाइ अपिसुण (अपिशुन) द० ६।५० अपीहेमाण (अस्पृहयत्) उ० २६।३४ अपुच्छिय (अपृष्ट) द० ८।४६ अपुच्छिय (अस्पृष्ट्वा) नि० २।४७ अपुट्ट (अपृष्ट) द. ८।२२. उ०१११४. नं०५४।४ अपुट्ठवागरण (अपृष्टव्याकरण) प० १०६ अपुणच्चव (अपुनश्च्यव) उ० ३३१४ अपुणरावत्तय (अपुनरावर्तक) आ० ६।११ अपुणरावत्ति (अपुनरावृत्ति) उ० २६।४५. ५० १० अपुणरुत्त (अपुनरुक्त) ५० ७३ - अपुणागम (अपुनरागम) द० १०२१. उ० २११२४ अपुरिसवाय (अपुरुषवाद) क० ६।२ अपुब्द : अपूर्व) अ० ३१२।१।। अपुरस्कार (अपुरस्कार) उ० २९।८ अपुहत्त (अपृथक्त्व) उ० २६।१२ अपूइम (अपूज्य) द० चू० १।४ अपोह (अपोह) नं० ५४।६; ६२ Vअपोह (अप+ ऊह.)-अपोहए नं० १२७।३ अप्प (आत्मन्) आ० ११२; ३।१४।१५।१,३. द० ४ सू० १० से १६, १८ से २३; ५१८, ८०; १०५,१३६, ६।१३,१४,२१,६७, ८७,६, ३१,३४,३६,५६,६१, ६।१५,२०,२२,२०,२७, ४५;६।४११,६,१०।१५; च० १२१७; चू० २।२,१३,१६. उ० ११६,१५,१६,३६,४०, २१४१,४।१०।५।११,३०,६।२,७,८।११,१६) ६।३६,१०।२८,१११३२, १३।२४; १४।४८%; १५।१५; १८।२६; १६।२३, २०।१२,३५ से ३७,३६,४१, २१।१४; २२।३६; २३।३८; २७।१५,१७; ३४।२६,३१. अ० ३६०,३६२, ७०८।१. वसा० ४।२३; ५।७।२४; ६।२।१४; १०॥३,५,६,११२८ से ३०,३३. प० ६,३८, ४२,७४,८१,११५,१६६,२२४,२८३. क० ११३४; ३।१३,४।१२ से १४,२६; २६ से १, ११.१२,४०. व०१।३३; २।२६; ४।११,१२; ५।११,१२,७१५,६,८,१६८।१३ से १५. नि० ११३१ से ३४,३६,४०, ३११६ से ६६; ५।१२,१३; ६।२५ से ७८; १०१२५ से २८ ११।६५.६७,६६; १३३३१ से ३८; १५॥१३ से ६६,६६ से १५२; १७।१३४; १६।१५ अप्प (अल्प) द० ४ सू० १३,१५; ५।७४,६९; ६।१३; चू० २१५. उ० ११३५; १११११; १३।१२; २२२४; २६१२३. अ० १३०,१७४, ३६४,४०७,४१२. दसा० ४।२३; ५।७।४. प०४४,१२४,२५४. क०४।३१ से ३४. व० ५१ से १०६।४०,४१ अप्पकंप (अप्रकम्प) १०७८ अप्पकम्म (अल्पकर्मन्) उ०१६।२१ अप्पकलह (अल्पकलह) उ० २६।४०. वसा० ४।२३ अप्पकसाय (अल्पकषाय) उ० २६।४० अप्पकिलंत (अल्पक्लान्त) आ० ३।१ अप्पकुक्कुय (अल्पकुक्कुच) उ० ११३० अप्पग (आत्मक) द० ६।५१; चू० २।१२. उ० १८।२७ अप्पग्ध (अल्पार्घ) द० ७।४६ अप्पचउत्थ (आत्मचतुर्थ) क० १।४६. ५० ४८, १०; ५।४,६.७,६,१० अप्पच्चक्खाय (अप्रत्याख्यात) उ०६८ अप्पझंझ (अल्पझंझ) उ० २६४०. दसा० ४।३ अप्पडिचक्क (अप्रतिचक्र) नं० गा० ५ अप्पडिपूयय (अप्रतिपूजक) उ० १७१५. दसा० ६।२।२५ अप्पडिपूरेमाण (अप्रतिपूरयत्) क०६।२ अप्पडिबद्ध (अप्रतिबद्ध) उ० २६।३१. ५०७८ अप्पडिबद्धया (अप्रतिबद्धता) उ० २६।१,३० अपडिरूव (अप्रतिरूप) उ० ३.१६ अप्पडिलेह (अप्रतिलेख) उ० २६१४३ अप्पडिले हणा (अप्रत्युपेक्षना, अप्रतिलेखना) आ० ४७ अप्पडिलेहणासील (अप्रतिलेखनाशील) प० २७८ अप्पडिवाइ (अप्रतिपातिन्) उ० २६७३. नं०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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