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________________ अपज्जोसणा-अपि ६८,६६ अपज्जोसणा (अपर्युषणा) नि० १०॥३७ अपडिकंत (अप्रतिक्रान्त) उ० १३।२६ अपडिक्कमावेत्ता (अप्रतिक्राम्य) व० ६।१० अपडिक्कमित्ता (अप्रतिक्रम्य) उ० २६।२२ अपडिग्गाहिय (अप्रतिगृहीत) क० २।१६,२० अपडिण्णत्त (अप्रतिज्ञप्त) प०२६० अपडिण्णवित्ता (अप्रतिज्ञाप्य) प० २७७ अपडिबद्ध (अप्रतिबद्ध) ५० ८० । अपडिबुज्झमाण (अप्रतिबुध्यमान) प० १५ अपडिलेहाण (अप्रतिलेख्य) द०६:५५ अपडिलोमया (अप्रतिलोमता) दसा० ४।२१ अपडिवज्जावेत्ता (अप्रतिपाद्य) व० ६।१० अपडिवाइ (अप्रतिपातिन) नं० २१. अ० ५५३ अपडिसुणित्तु (अप्रतिश्रोतृ) दसा० ३।३ अपडिसुणेत्तु (अप्रतिश्रोत) दसा० ३।३ अपडिसेवि (अप्रतिषेविन) व०२।२४,२५ अपडिहट्ट (अप्रतिहत्य) नि० २।५३ अपढम (अप्रथम) नं० २८,२६,३२ अपत्त (अप्राप्त) नि० १९२० अप्पत्तिय (अप्रोतिक) ५० ५।११२ अपत्थ (अपथ्य) उ० ७।११ अपत्थण (अप्रार्थन) उ० ३२।१५ अपत्थणिज्ज (अप्रार्थनीय) उ० २६१४८ अपत्थेमाण (अप्रार्थयत्) उ० २६।३४ अपमत्त (अप्रमत्त) नं० २३. दसा० ४।२२ अपय (अपद) अ० ८७,६०,६५४,६५८,६८०,६८४ अपर (अपर) उ०१६।१७. दसा० ६।२।३८ अपरपरिग्गहिय (अपरपरिगहीत) क० ३।३०. ० ७।२७ अपराजिय (अपराजित) उ० ३६।२१५. ५० १०२, १२७ अपराजियय (अपराजितज) अ० २५४ अपरिकम्म (अपरिकर्मन) उ० ३०।१३ अपरिणत (अपरिज्ञात) दसा०६।१३ से १६ अपरिग्गह (अपरिग्रह) उ० २१।१२ अपरिणय (अपरिणत) नि० १७।१३३ अपरिपूत (अपरिपूत) ५० २४६ अपरिभुज्जमाण (अपरिभज्यमान) नि० ३।७४ अपरिभुत्त (अपरिभुक्त) क० ३।४ अपरिमाण (अपरिमाण) नि० ८।१० अपरिमिय (अपरिमित) प० २४६ अपरिसाडय (अपरिशाटयत) द० ५९६ अपरिसाडिय (अपरिशाटित) उ० १६३५ अपरिसुद्ध (अपरिशुद्ध) आ० ४।६ अपरिहारिय (अपरिहारिक) व० २।२७,२६,३० नि० २।३६ से ४१,४४,४।११८ अपलिउंचिय (अपरिकुञ्चित) व० १।१ मे १८. नि० २०११ से १८ अपलिच्छिन्न (अपरिच्छन्न) ३० ३।१; ४।२४,२५ अपलिमंथ (अपरिमंथ) उ० २६।३५ अपवत्तणी (अप्रवर्तिनी) व० ३११२ अपसत्थ (अप्रशस्त) अ० ६७,६८,३३५,३३७ ६६७,६६६, अपसिण (अप्रश्न) नं०६० अपस्समाण (अपश्यत्) दसा० ६।२।३४ अपाइया (अपात्रिका) क० ५।१७ अपाडिहारिय (अप्रातिहारिक) क० २।२६,२७; ३।४. व०६।२,४,६,८ अपाणय (अपानक) दसा० ७।२८,३१,३३. प० ७५,८१,१०६.११३,११५,१२४,१२६, १३०,१३८,१६५,१६६,१८०,१८४ अपायच्छिण्ण (अपादच्छिन्न) नि० १४।६।१८।३८ अपायय (अपात्रक) क० ५।२० अपारिहारिय (अपारिहारिक) व. १११६ अपावभाव (अपापभाव) द० ८।६३ अपासंत (अपश्यत्) द० ६।२३ अपाहेय (अपाथेय) उ० १६१८ अपि (अपि) आ० २११. ८० २।४. उ० १।१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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