SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 731
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्यो उद्देस ५८ १ अणुवट्ठावियए, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा तो अण्णेसि दावए' एगंते बहुफासुए थंडिले' पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयव्वे सिया ॥ कपट्ठिय- अकपट्ठिय-पदं १५. जे कडे कपट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं, नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं । जे क े अपट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं । कप्पे ठिया पट्टिया, अकप्पे ठिया अकप्पट्टिया || अण्णगण उवसंपदा-पदं १६. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्ति वा थेरं वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य से वियरेज्जा', एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; तेय से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । १७. गणावच्छेइए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; " कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंग ज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ते य सेवियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । १८. आयरिय उवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, 'नो कप्पइ आयरिय उवज्झायस्स आयरिय उवज्झायत्तं अनिक्खि १. अणुप्पदेज्जा ( क, ख, ग, जी, शु) । २. पसे (पु, मवृ ) । ३. अस्य सूत्रस्य स्थाने प्रयुक्तादर्शेषु विभिन्ना: पाठा लभ्यन्ते, यथा— जे कडे कप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं । जे कडे अप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कम्पट्ठियाणं कप्पर से अकप्पट्ठियाणं, कप्पे दिया कप्पट्ठिया अकप्पे ट्टिया अकपट्टिया (क, ग ); जे कडे कपट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, कप्पइ से अकपट्ठियाणं । जे कडे अकप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं । जे कडे अकप्पट्ठियाणं Jain Education International पति से अपट्ठियाणं कप्पट्टिया वि कप्पे ट्टिया कपट्टिया अकप्पे ट्ठिया वि कप्पे ट्ठिया ( ख ) ; जे कडे कप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, जे कडे कप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकपट्टियाणं, जे कडे अकप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, जे कडे अकप्पट्ठियाणं कप्पइ से अकप्पट्ठियाणं कप्पट्टिया वि कप्पे ठिया कपट्टिया अप्पे ठिया अकप्पट्ठिया ( जी, शु) । ४. अणापुच्छित्ताणं ( क, ख ) । ५. वियरंति ( क, ख, जी, शु) सर्वत्रापि । ६. × (पु) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy