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________________ चउत्थो उद्देसो ६२५ २५. दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, 'तं जहा-सेहे य राइणिए य । तत्थ राइणिए पलिच्छन्ने, सेहतराए अपलिच्छन्ने। इच्छा राइणिए सेहतरागं उवसंपज्जइ इच्छा नो उवसंपज्जइ, इच्छा भिक्खोववायं दलयइ कप्पागं इच्छा नो दलयइ कप्पागं" ।। राइणियनिस्साए विहरण-पदं २६. दो भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं' कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं' विह रित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ २७. दो' गणावच्छेइया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं" विहरित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ २८. दो आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुव संपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ एहं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए॥ २६. बहवे भिक्खुणो एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥ ३०. बहवे गणावच्छेइया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । ३१. बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसं पज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए॥ ३२. बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया एगयओ विहरंति, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णमणुवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ ण्हं अहाराइणियाए अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । -त्ति बेमि॥ १. दलाति (ख)। २. सेहे अपलिच्छण्णे राइणिए पलिच्छण्णे तओ सेहे पूव्वामेव राइणियं उवसंपज्जति तओ पच्छा राइणिए इच्छाए उवसंपज्जइ इच्छाए णो उव- संपज्जइ ओवयस्सट्टाए भिक्खू इच्छाए वंदइ कप्पागं इच्छाए नो वंदइ कप्पागं (क, ता)। ३. से (क, ता)। ४. अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं (ख, ग, जी, शु); णो ण्हमिति वाक्यालङ्कारे कल्पते अन्योन्यमुपसम्पद्य विहर्तुम् (व्य० उद्देशक ४, मव पत्र ८६)। ५. से (क, ता) सर्वत्र । ६. एवं दो गणावच्छेइया (ख); एवं दो गणा वच्छेइया एकततो (ग)। ७. अण्णमण्णं उवसंपज्जित्ताणं (ख, ग, जी, शु, मवृ)। ८. 'क, ख, ग ता' संकेतितादर्शषु पाठसंक्षेपो विद्यते-एवं आयरियउवझाया एवं बहवे साहम्मिया गणावच्छेइया आयरियउवझाया जाव विहरित्तए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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