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________________ निद्धय-नियम निद्धय (स्निग्धक) उ० ३६।४० निडुण (निर्धू )-निद्धणे उ० ३।११ निद्धणि ताण (निर्धूय) उ० १९८७ निद्भुणे (निधूय) द० ७।५७ निद्भूम (निधूम) ५० ३४ निनाय (निनाद) प०६४ निन्न (निम्न) उ०१२।१२. दसा० ६६ निन्नेह (निस्नेह) उ०१४।४६ निपच्चक्खाण (निष्प्रत्याख्यान) दसा० ६॥३ इनिप्पज्ज (निर-पद)-निप्पज्जइ अ० २८६ निपडिकम्मया (निष्प्रतिकर्मता) उ० १६।७५ निप्परिग्गह (निष्परिप्रह) उ० १४१४६ निपिवास (निष्पिपास) उ०१६।४४ निप्पुलाय (निष्पुलाक) द०१०।१६ निप्फंद (निस्पन्द) प० ५३ इनिप्फरज (निर--पद)-निप्फज्जइ नं० ७०. अ० ३६८ निप्फण्ण (निष्पन्न) अ० ७२,३१५,५३१ निप्फन्नमेदिणीय (निष्पन्नमेदिनीय) ५० ५६ निप्फाव (निष्पाव) अ०३८४. दसा०६।३ निबंध ( निबन्ध)-निबंधइ उ० २६५ निबद्ध (निबद्ध) नं० २५।१०,८१ से ११,१२३ निब्भय (निर्भय) उ० २६।१८ निब्भेरिय (दे०) उ०१२।२६ निभ (निभ) उ० ३४१४,६ से ८. अ० ४।१६ निभेल (निभेल) प० २६ निमंत ( निमन्त्रय)-निमंतए द० ५।३७. -निमंतेज्ज द० ५।६५ निमंतण (निमन्त्रण) उ• २०३८ निमंतण (निमन्त्रणा) अ० २३६ निमंतयंत (निमन्त्रयत्) उ० १४।११ निमंतिय (निमन्त्रित) उ० २०१५७ । निमज्जि (निमज्जितुम) उ० ३२।१०५ निमित्त (निमित्त) ८०८१५०. उ०१७।१८; २०१४५,३६।२६६. नं० ३८१६. अ० ५७३. नि० १०७,८; १३१२१ निमेस (निमेष) उ० १६७४ निम्मम (निर्मम) उ० १६८६; ३५२१ निम्ममत्त (निर्ममत्व) उ० १६।२६ निम्मल (निर्मल) उ० ३६।६०,६१. नं० गा० ६. प० २६,३१ . निम्मलत्त (निर्मलत्व) अ० ५३३ निम्मलयर (निर्मलतर) आ० २१७; १४१७ निम्माय (निर्मात) प० ४२ निम्मेर (निर्मार) दसा० ६।३ निम्मोयणी (निर्मोचनी) उ० १४।३४ निम्मोह (निर्मोह) अ० २८२ नियंठ (निर्ग्रन्थ) उ० १२।१६; १५।११; १७।१ नियंठधम्म (निर्ग्रन्थधर्म) उ०२०।३८ निय (निज) व० ७१३ नियग (निजक) उ० १२।८; २२।१३. ५० ६६ मनियच्छ (नि+यम)-नियच्छई उ० १॥६. -नियच्छंति द०६।३१ नियट्ट ( निवृत)-नियट्टई उ० २।४३. -नियटेज्ज द० ५।२३ नियडि (निकृति) द० ५।१३७. दसा० ४।२।२६ नियडि (निकृति) (मत्) द०६।२० नियडि (बहुल) (निकृतिबहुल) वसा० ६१४ नियडिल्ल (निकृतिमत् ) उ० ३४।२५ इनियत्त (नि+वत) --नियत्तेइ उ० २६८. -नियत्तेज्ज उ० २४१२१ नियत्त (निवृत्त) उ० १४।४१; १९६१ नियत्तण (नीचत्व) द० ६।४३ नियत्तण (निवर्तन) उ० २४१२६ नियत्ति (निवृत्ति) उ० ३११२ नियत्तिय (नितित) द० २११३ नियम (नियम) दच० २।४, उ० १६।५।२०। ४१; २२।४०. नं० गा० ६,१३; सू० ५४१५. अ० १२२,१२४ से १२६,१२८,१२६,१३६ से १४२,१४५,१४६,१६६,१६८ से १७०,१७३, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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