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________________ नियमसो निल्लेव २०७,२०६,७०८. दसा० १०॥२४ से ३२ निरहंकार (निरहङ्कार) उ० १९८६ ; ३५।२१ नियमसो (नियमशस्) अ० ३०६।२ निराउय (निरायुष्क) अ० २८२ नियय (नियत) उ० १४११६. नं० १२६ निराणंद (निरानन्द) उ० २२।२८ . नियय (निजक) प० ११० निरामिस (निरामिष) उ०१४।४१,४६,४६ नियर (निकर) ५० ३३ निरारंभ (निरारम्भ) उ० २।१५; २०१३२,३४ नियल (निगड) दसा०६।३ निरालंबण (मिरालम्बन) उ० २६।३४. ५० ७८ नियलबंधण (निगडबन्धन) दसा० ६।३ निरावरण (निरावरण) उ० २६७२. अ० २८२. नियाग (नित्याग्र) द. ३२, ६।४८. उ० २०१४७ दसा० ८।१; १०१३३. प० १,८१,८७,१०८, नियागट्ठि (नियागाथिन ) उ० १७,२० ११५,१२६,१३०,१६०,१६६ नियाण (निदान) उ०१३।१,८,२८; १५१; १८। निरासय (निराशक) द० ६।४।४ ५२; २६६,३६।२५७,२५६ निरासव (निराम्रव) उ० २०१५२; ३०१६ निरइयार (निरतिचार) उ० २६१७. अ० ५५३ निरिधण (निरिन्धन) सा० ५।७।१३ निरिणत्त (निऋणत्व) दसा०४।१४ निरंकुस (निरङ्कुश) अ० २१ इनिरुंभ (नि-रुध)-निरु भइ उ० २९५ निरंगण (निरङ्गण) उ० २११२४ निरंजण (निरञ्जन) ५०७८ निरुभित्ता (निरुध्य) द०४।२३. उ० २६७३ निरंतर (निरन्तर) नं० १८१२. अ० १८५२ निरुट्टाइ (निरुत्थायिन्) उ०१।३० निरंतराय (निरन्तराय) उ० ३२।१०६. अ० २८२ निरुत्त (निरुक्त) ५०६ निरक्किय (निराकृत) उ०६।५६ निरुत्ति (निरुक्ति) अ० ७१३,७१५ निरट्र (निरर्थ) उ० ११८,२५; २०१५० निरुत्तिय (निरुक्तिज) अ० ३४६,३६८ निरढग (निरर्थक) उ० २१४२ निरुद्ध (निरुद्ध) उ० २६१२. १० ३१ निरट्ठय (निरर्थक) उ० २०१४६ निरुद्धय (निरुद्धक) दसा० ६।३।। निरणुकंप (निरनुकंप) अ० २१ निरुद्धपरियाय (निरुद्धपर्याय) व० ३।६,१० निरति (निऋति) अ० ३४२।२. ५० ८४ निरुद्धवासपरियाय (निरुद्धवर्षपर्याय) व० ३।१० निरत्थय (निरर्थक) उ०१८।२६ निरुवक्किट्ठ (निरुपक्लिष्ट) अ०४१७ निरुवक्केस (निरुपक्लेश) दचु० १ सू०१ निरय (निरय) दचू० १।१०,११. उ० ८।७. निरुवलेव (निरुपलेप) ५०७८ नं० ६१,१२१. अ० २८७,४१०. दसा० ६।३, निरुवहिय (निरुपधिक) उ०२६।३५ निरेयण (निरेजन) ५० ५३ निरयावलिया (निरयावलिका) नं० ७८. जोनं० निरोवलेव (निरुपलेप) उ०२।२२ निरवकंख (निरवकाक्ष) उ० ३०।६. १०८० निरोह (निरोध) उ० ४।८७२६; २६।१२६, ५६,७३ निरवच्च (निरपत्य) प०१८५ निलय (निलय) उ० ३२।१३ निरवसेस (निरवशेष) नं. १२७।५. अ० ५५७ निरवेक्ख (निरपेक्ष) उ० ६।१५ इनिलिज्ज (नी-ली)-निलिज्जिज्जा प० २५३ निरस्साय (निरास्वाद) उ०१६।३७ निल्लालिय (निालित) ५० २३ निरस्साविणी (निराश्राविणी) उ० २३१७१ निल्लेव (निर्लेप) अ० ४२२,४२४,४२६,४३१, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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