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________________ प्रमाणविधि [• अव्यय, सर्वनाम क्त्वा, तुम्, यप् प्रत्यय के रूप और धातुरूप के साक्ष्य-स्थल का निर्देश प्रायः एक बार दिया गया है। ० रूट (1) अंकित शब्द धातुएं हैं । उनके रूप नीचे डस (-) के बाद दिए गए हैं । ० संस्कृत के समान रूपों वाले प्राकृत शब्दों की छाया नहीं दी गई है। ० शब्द के बाद साक्ष्य-स्थल का प्रथम अंक अध्ययन व उद्देश का द्योतक है । इन तीन सूत्रों (न. अ. प.) में अध्ययन व उद्देशक नहीं है उसका प्रथक अंक सूत्र का द्योतक है । दूसरा अंक सूत्र या गाथा का द्योतक है और तीसरा अंक सूत्र के अन्तर्गत गाथा का द्योतक है। ० सूत्र के अन्तर्गत गाथाओं के प्रमाण प्रायः दिए गए है परन्तु जहां एक या दो संगहणो गाथाएं है वहां उसके प्रमाण उसी सूत्रांक में ही दे दिए गए हैं।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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