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________________ आज से हजार वर्ष पहले नवांगी टीकाकार (अभयदेव सरि) के सामने कई कठिनाइयां थीं। कठिनाइयां आज भी कम नहीं हैं। किन्तु उनके होते हए भी आचार्य श्री तुलसी ने आगम-सम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया। उनके शक्तिशाली हाथों का स्पर्श पा कर निष्प्राण भी प्राणवान् बन जाता है तो भला आगम-साहित्य जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बड़ी बात है? बड़ी बात यह है कि आचार्य श्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साध-साध्वियों की असमर्थ अंगुओं द्वारा कराने का प्रयत्न किया है। सम्पादन कार्य में हमें आचार्यश्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है। किन्तु मार्गदर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है। आचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए अपना पर्याप्त समय दिया है। उनके मार्गदर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का संबल पा हम अनेक दुस्तर धाराओं का पार पाने में समर्थ हुए हैं। rivate Personal us Oy
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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