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________________ १२३ इक्कारसमं अज्झयणं (बहुस्सुयपूज्ज) १२. न य पावपरिक्खेवो न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई ॥ १३. कलहडमरवज्जए बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिसंलोणे सुविणीए त्ति वुच्चई ।। १४. वसे गुरुकुले निच्च जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियंवाई से सिक्खं लद्धमरिहई ।। १५. जहा संखम्मि पयं 'निहियं दुहओ वि" विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥ १६. जहा से कंबोयाणं आइण्णे कथए सिया । __आसे जवेण पवरे एवं हवइ बहुस्सुए ।। १७. जहाइण्णसमारूढे सूरे दढपरक्कमे । उभओ नंदिघोसेणं एवं हवइ बहुस्सुए ।। १८. जहा करेणुपरिकिण्णे कुजरे सट्ठिहायणे । बलवंते अप्पडिहए एवं हवइ बहुस्सुए ।। १६. जहा से तिक्खसिंगे जायखंधे विरायई । वसहे जूहाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २०. जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे एवं हवइ बहुस्सुए ।। २१. जहा से वासुदेवे संखचक्कगथाधरे अप्पडिहयबले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए । २२. जहा से चाउरते चक्कवट्टी महिड्ढिए । ___चउदसरयणाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। २३. जहा से सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरंदरे । सक्के देवाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए। २४. जहा से तिमिरविद्धंसे उत्तिद्रुते दिवायरे । जलते इव तेएण एवं हवइ बहुस्सुए ।। २५. जहा से उडूवई चंदे नक्खत्तारिवारिए । पडिपुणे पुण्णमासीए एवं हवइ बहुस्सुए। २६. जहा से सामाइयाणं' कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधन्नपडिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए । २७. जहा सा दुमाण पवरा जंबू नाम सुदंसणा । __ अणाढियस्स देवस्स एवं हवइ बहुस्सुए॥ १. णिसितं उभयतो (चू)। २. सामाइयंगाणं (बृपा)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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