________________
स्थानाङ्ग' और ज्ञाताधर्मकथा' में मिलता है । ज्ञाताधर्मकथा के प्रसंग से प्रतीत होता है कि आवश्यक भगवान् महावीर के शासनकाल में निर्मित आगम है। विषयवस्तु और रचनाकाल
आवश्यक एक श्रुतस्कन्ध है, उसके छ: अध्ययन है। नन्दी की आगम सूची में किसी भी आगम के अध्ययनों के नाम निर्दिष्ट नहीं है. केवल आवश्यक के अध्ययनों के नाम ही निर्दिष्ट हैं। इससे सहज ही कल्पना होती है कि आवश्यक का एक ग्रंथ के रूप में संयोजन हो जाने पर भी नन्दी की रचना के समय तक उनके स्वतन्त्र अस्तित्व की स्मृति बनी रही। छह अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं-१. सामायिक २. चतुविशस्तव ३. वन्दना ४. प्रतिक्रमण ५. कायोत्सर्ग ६. प्रत्याख्यान'।
दिगम्बर साहित्य में अध्ययनों के नाम और क्रम में किंचित् भेद भी मिलता है-१. समता २. स्तव ३. वंदना ४. प्रतिक्रमण ५. प्रत्याख्यान ६. विसर्ग ।
अनुयोद्वार में इन छह अध्ययनों के छह अधिकार (विषय वस्तु) बतलाए गए हैं। १. सामायिक
सावद्ययोग विरति २. चतुर्विशस्तव
उत्कीर्तन ३. वंदना
गुणवान की प्रतिपत्ति ४. प्रतिक्रमण
स्खलना की निंदा ५. कायोत्सर्ग
व्रण-चिकित्सा ६. प्रत्याख्यान
गुणधारण सामायिक का विशद वर्णन आवश्यक नियुक्ति में उपलब्ध है । कायोत्सर्ग की विशद जानकारी के लिए कायोत्सर्गशतक द्रष्टव्य है। प्रतिक्रमण के छह प्रकार
१. ठाणं, २१०५। २. नायाधम्मकहाओ, शा१कार । ३. नंदी, सूत्र ७५ :
से कि तं आवस्सयं? आवस्सयं छम्विहं पण्णत्तं, तं जहा-सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंक्षणयं,
पडिक्कमणं. काउस्सगो, पच्चक्खाणं । सेतं आवस्सयं । ४. मूलाचार आराधना २२०:
समदा थओ य वंवण पडिक्कमणं तहेव णावव्वं ।
पच्चक्खाण विसग्गो करणीयावासया छप्पि ॥ ५. अनुओगदाराई ७४:
१. सावज्ज जोग विरई २. उक्कित्तणं ३. गुणवओ य पडिवत्ती।
४. खलियस्स निदंणा ५. वणतिगिच्छ ६. गुणधारणा चेव ।। ६. ठाणं, ६१२५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org