SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक में नौ आगम हैं। उनमें प्रथम है आवस्सयं, दो मूलसूत्र हैं-दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, दो चूलिकासूत्र हैं--नंदी, अणुओगदाराइं और चार छेदसूत्र हैं-दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहज्झयणं । १. आवश्यक नामबोध प्रस्तुत सूत्र का नाम आवश्यक है । साधु और श्रावक के लिए यह अवश्य करणीय होता है, इसलिए इसका नाम आवश्यक है। अनुयोगद्वार में इसके आठ पर्यायवाची नाम बतलाए गए हैं:१. आवश्यक ५. अध्ययन षट्कवर्ग २. अवश्यकरणीय ६. न्याय ३. ध्र वनिग्रह ७. आराधना ४. विशोधि ८. मार्ग मूलाचार में आवश्यक का एक नाम आवासक भी मिलता है। आवश्यक यह नाम भगवती १. अणुओगदाराई २८, गा० २: समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वं हवइ जम्हा । अंतो अहो निसस्स उ, तम्हा आवस्सयं नाम । २. वही, २८ गा०१: आवस्सयं अवस्सकरणिज्ज, धुवनिग्गहो विसोही य । अज्झयणछक्क वग्गो, नाओ आराहणा मग्गो॥ मूलाचार, परिचत्ता परभावं, अप्पाणं झादि णिम्मलसहावं । अप्पसवो सो होदि ह, तस्स द् कम्म भणंति आवासं ॥ आवासएण होणो, पन्भट्ठो होदि चरणदो समणो । पुम्वत्तकमेण पुणो, तम्हा आवासएण कुज्जा ॥ ४, भगवई, १८१२०७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy