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मासिक उद्घातिक (लघु मास) चातुर्मासिक अनुद्घातिक (गुरु चतुर्मास)
चातुर्मासिक उद्घातिक (लघु चतुर्मास)
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इन उद्देशकों का विभाजन (१) मासिक उद्घातिक (२) मासिक अनुद्घातिक (३) चातुर्मासिक उद्घातिक (४) चातुर्मासिक अनुद्घातिक और (५) आरोपणा-इन पांच विकल्पों के आधार पर किया गया है । स्थानांग में इन्हीं पांच विकल्पों को 'आचार-प्रकल्प" निशीथ कहा गया है।'
वस्तुतः प्रायश्चित्त के दो ही प्रकार हैं-(१) मासिक और (२) चातुर्मासिक । द्विमासिक, त्रिमासिक, पंचमासिक और पाण्मासिक-ये प्रायश्चित्त आरोपण से बनते हैं। बीसवें उद्देशक का मुख्य विषय आरोपणा है। मुख्य व्याख्या ग्रंथ
१. निशीथनियुक्ति २. निशीथभाष्य ३. निशीथचूणि (विशेष चूणि) कार्य-संपूर्ति
इसके संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अहर्निश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरूतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलत: योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकडने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रमपरायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण-भाव ने इनकी प्रगति में बडा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है।
१. ठाणं ५॥१४८ ॥
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