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________________ २४ (च्) अनुयोगद्वारचूर्ण जिनदासगणी रचित ( मुद्रित ) यह चूर्णी मुद्रित है । इसमें मूल पाठ नहीं दिया गया है। इसका प्रकाशन वीर सं० २४५४ विक्रम सं० १९८४ में रतलाम श्री ऋषभदेवजी केसरीमलजी श्वेताम्बर संस्था ने किया है यह पत्रा - कार है । इसके पृष्ठ ६१ हैं । यह प्रति जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा (कलकत्ता) की है । (हा) अनुयोगद्वारटीका हरिभद्र सूरि कृत ( मुद्रित ) यह वृत्ति मुद्रित है। इसमें मूल पाठ नहीं दिया गया है। इसका प्रकाशन रतलाम श्री ऋषभ - देवजी केसरीमलजी श्वेताम्बर संस्था ने किया है । यह पत्राकार है । इसके पृष्ठ १२८ है । वीर सं० २४५४ वि० सं० १९८४ । (हे ) मल्लधारी हेमचन्द्रसूरि कृत अनुयोगद्वारवृत्ति । मुद्रित । पत्राकार | प्रकाशक - श्री केशरबाई ज्ञानमंदिर, पाटण । वि० सं० १९६५ । ( क्वचित् ) (हस्तलिखित आदर्श ) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । हस्तलिखित वृत्ति : - पत्र १०५ पृ० २१० है । प्रत्येक पत्र में १८ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर हैं । प्रत्येक पत्र १३ इंच चौड़ा तथा ५ इंच लम्बा है । प्रशस्ति में लिखा है— सं० १५६४ वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्लपक्षे द्वितीयायां तिथो शनिवासरे मूलनक्षत्रे श्री योधपुर वरे राज श्री सूर्यमल्ल राज्ये विजयिनी लिखितमिदं लेखक माणिक्येन चिरं नंदतु वाच्यमानम् ||श्रीः || दशाश्रुतस्कंध : प्रति- परिचय (ग) मूलपाठ (हस्तलिखित) त्रिपाठी (ग) यह प्रति हमारे 'संघीय संग्रहालय' लाडनूं की है ? इसमें मूल पाठ की तक है । दोनों तरफ टीका की पंक्तियां ४ से २४ तक है । प्रत्येक पंक्ति में अक्षर अन्त में संवत् नहीं है । यह प्रति संभवतः १७ वीं शताब्दी की होनी चाहिए । ग्रंथाग्र १०३० इतना ही लिखा हुआ है । प्रति सुंदर है । (ता) ताड़पत्रीय फोटोप्रिंट (जेसलमेर भंडार ) पज्जोसवणाकप्पो प्रति- परिचय Jain Education International (क) मूलपाठ (सचित्र ) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय की है । इसके पत्र १५३ हैं । प्रत्येक पत्र में ७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में २० से २२ तक अक्षर हैं। प्रति बड़े अक्षरों में सुन्दर लिखी हुई है । इसमें करीब ५२ सुन्दर चित्र स्वर्ण स्याही से चित्रित हैं । प्रति प्रायः शुद्ध है । प्रति के अन्त में लिपि संवत् भादवा सुदी १२ लिखा हुआ है । परन्तु संवत् के अक्षर मूल अक्षरों से मेल नहीं खाते, इसलिए यह संवत् सही नहीं लगता । प्रति की लिपि के अनुसार संभवतः १६वीं शताब्दी की होनी चाहिए । (ख) मूलपाठ (सावचूरि ) पंचपाठी यह प्रति विनयसागर जयपुर द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ७३ य प्रत्येक पत्र में 8 पंक्तियां हैं पंक्तियां १ से १६ ६३-६८ तक हैं । अन्त में शुभं भवतु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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