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________________ २८२ संपज्जलिय-संबंध संपज्जलिय (संप्रज्वलित) उ० २३।५० ।। संपराय (संपराय) द० २१५. उ० २०१४१,२८।३२ संपट्ठिय (संप्रस्थित) दसा० १०।१४ संपरिवुड (संपरिक्त) दमा० १०।१८. ५०४२ -संपडिलेह (सं+ प्रति लिख)-संपडिलेहए संपलियंक (सपर्यङ्क) प० १०६ उ० २६१४२ संपविट्ठ (सम्प्रविष्ट) प० ५४. नि० ८।११ गंपडिलेहियव्व (संप्रतिलेखितव्य) दचू० १११ संपव्व इत्तए (संप्रवजितुम्) क० ३।१४,१५,२५,२६ संपडिवज्ज (सं+प्रति+पद्)-संपडिवज्जइ ।। संपवय (सं+प्र+वज)-संपवयंति द० ६।४।४. उ० ५।७ नि० २०५३ संपडिबज्जेत्ता (संप्रतिपद्य) उ० २६।५१ संपव्वयंत (संप्रव्रजत) नि० २।५३,५४ संपडिवाइय (संप्रतिपातित) द० २।१०. संपन्वयमाण (संप्रवजत्) क० १४,१५ उ० २२०४६ संपसारय (संप्रसारक) नि०१३।५६,६० संपडिवाय (सं+प्रति+पद)---संपडिवायए संपस्सिय (संदृश्य) दचू० १११८ द०.६।३७ संपहास (संप्रहास) द० ८।४११०।११ संपणाम (सं+अर्पय)--संपणामए उ० २३३१७ संपाउण (सं+प्र+आप)-संपाउणइ संपणोल्लिया (संप्रणुद्य) ६० ५।३० उ० २६।६०.-संपाउणेज्जासि उ० १११३२ संपत्त (संप्राप्त) आ० ६।११. द० ५।१. संपाय (सम्प्रात) उ०१८॥१३ उ० ५।३२,१६।६०; २२।१५,२३; २३३८४; संपाविउकाम (संप्राप्तुकाम) द०६।१६. २६.१६; ३५।२१; ३६६६६. दसा० १०१६. दसा० १०॥३,११. प० १० प० १०,६६ संपिडिय (संपिण्डित) उ० १४१३१ संपत्ति (संपत्ति) द०६।३८. प०६६ संपिक्ख (सं++ईक्ष)-संपिक्ख इ संपधूमिय (सम्प्रधूमित) प० २२४. क० ११४३ दचू० २०१२ संपन्न (सम्पन्न) आ० ४१६. द० ६।१७।४६; संपिहित्ताण (सम्पिधाय) दसा० ६।२।१ ८।५१. उ०१२,१८१२४,३३,२११६; संपीला (संपीडा) उ० ३२।२६,३६,५२,६५,७८, २७११७; २६।१५,३६,५०. नं० गा० ३६. प० २२२ संपुच्छण (संप्रच्छन) द० ३।३. प० २८३ संपन्नया (संपन्नता) उ० २६।४६ संपुड (संपुट) ५० १५ संपमज्ज (सम+प्र+मज)-संपमज्जति संपुण्ण (सम्पूर्ण) ५० ३२,५८ दसा० १०.१० संपुन्न (सम्पूर्ण) उ० २२१७ संपमज्जित्ता (संप्रमृज्य) द० ५।८३. संपूएत्तु (संपूजयित) दसा० ४।१३ दसा० १०१० सिंपेह (सं+प्र+ईक्ष)-सपेहेइ प० १४ संपमज्जिय (संप्रमृज्य) प० २४० संपेहेत्ता (संप्रेक्ष्य) प० १४ संपय (साम्प्रत) द० ७७ संफाणिय (संफाण्य) नि० ५।१४ संपया (संपदा) उ० २०११५; २५।१८. प० ६६, सिंफुग (सं+स्पृश)-संफुसेज्जा द० ४ सू० १६ ६३ से १८,१०१,१०४,११८ से १२२,१३२ संफुसंत (संस्पृशत्) द० ४ सू० १६ से १३६,१६८ से ११८ सिंफुसाव (सं+स्पर्शय)-संफुसावेज्जा संपयावण (सम्प्रदापन) अ० ३०८।१ द० ४ सू० १६ संपयोग (संप्रयोग) दसा० ६।३ संबंध (सम्बन्ध) प० ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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