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________________ संबंधि-संवच्छर २८३ संबंधि (सम्बन्धि) प०६६ संबद्ध (संबद्ध) उ० १९१७१. नं० १७. प० ३६ संबलिफालिया (शाल्मलिफालिका) दसा० १०१२७ संबाह (संबाध) 3० ३०।१६. अ० ३२३,५५६; क० ११६. नि० ५।३४; १२।२०; १७११४२ संबाहण (सम्बाधन) द० ३।३. प० ४२ संबाहपह (सम्बाधपथ) नि० १२।२३; १७११४५ संबाहमह (सम्बाधमह) नि० १२।२१, १७।१४३ संबाहवह (सम्बाधवध) नि० १२।२२; १७५१४४ संबाहिय (सम्बाधित) प० ४२ संबुक्कावट्ट (शम्बुकावर्त) दसा० ७।७. प० २६६ संबुद्ध (संबुद्ध) द० २।११. उ० ११४६;६।६२; १९६६; २१।१०; २२१४६ संबुद्धप्प (संबुद्धात्मन्) उ० २३।१ संभंत (सम्भ्रान्त) उ० १८१७ सभम (सम्भ्रम) अ० ३१३,३१७. दसा० १०॥१७. प० १०,७५ सिंभर (सं+स्मृ)-संभरामि आ० ४।६. -संभरे उ० १४१३३ संभव (सम्भव) आ० २।२; ५।४।२. उ०६।११, १९१२. नं० गा० १८. अ० २२७,३१८. प० १५८ संभारकड (सम्भारकृत) दसा० ६१४ संभिन्न (संभिन्न) नं० १०२. प० ६६ संभिन्नवित्त (सम्मिन्नवत्त) दच० १११३ ।। संभुज (सं+भुज् ) --संभुजंति व० २।२७. -संजति नि० १०।१४.-संभुंजेज्जा क० १३४ संभुजत (संभुजत्, संभुजान) नि० १०।१४,१६ से संभोग (सम्भोग) उ० २६।१,३४; ३२।२८,४१, ५४,६७,८०,६३. क० ४।१६ से २१. व० ७।४,५ संभोगवत्तिय (संभोगप्रत्यय) नि० ५।६४ संमय (सम्मत) उ० ३६।२६८. व० ३६ संमुच्छ (सं+ मूर्छ)-संमुच्छइ उ० १४।१८ समुच्छिम (संमूच्छिम) उ० ३६।१७०,१६५,१६८ नं० २३ संमुच्छिय ((सम्मूच्छित) द० ७।५२ संमेल (संमेल) नि० १११८१ संमोह (सम्मोह) अ० ३१३ संयत (संयत) अ० २७० संरंभ (संरम्भ) उ० २४१२१,२३,२५ सरक्खण (संरक्षण) द०६।२१ संलत्तए (संलपितुम्) दसा० ६।३ सिंलव (सं+लप्)-संलवे उ० ११२६ संलवमाण (संलपत्) प० ३६ से ३८ सिंलाव (सं+लपय-संलाविति प० ४७ संलाविता (संलाप्य) प० ४७ इसलिह (सं+लिख)-संलिहे द० ८७ -संलिहे उ० ३६।२५० संलिहित्ताण (संलिय) द० १०१ संलि हिय (संलिह्य) प० २४०,२५६ सलीणया (संलीनता) उ० ३०।८ संलुचिया (संलुञ्च्य) द०५।११४ संलेहणा (संलेखना) नं० ८६ से ८६,६१ संलेहणासुय (संलेखनाश्रुत) नं० ७७. जोनं ८ संलेहा (संलेखा) उ० ३६।२५१ संलोग (संलोक) द० ५।२५ संलोय (संलोक) उ० २४।१६,१७. प० २५७,२५८ संवच्छर (संवत्सर) दचू० २।११. उ० ३६२५१, २५३ से २५५. अ० २१६,४१५,४१७. दसा० २।३. प०७४,७६,८१,८४,१०७,१२५, २४ संभुंजित्तए (संभोक्तुम्) क० ४।५. व० ६।१० संभूय (सम्भूत) उ० १२।१; १३।२,३,११; २३।४५; २५५१. नं० गा० २४ संभोइणि (सांभोगिकी) २० ७.५ संभोइय (साम्भोगिक) व० ११३३; ५११६७।१ से ५. नि० २।४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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