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________________ संतरुत्तर-संपग्गहित २८१ संतरुत्तर (सान्तरोत्तर) उ० २३॥१३,२६. प० २५४ वसंतस (सं+त्रस्)-संतसंति उ० ५।२६. -संतसे उ० २।११.-संतसेज्जा उ० २११२४.-संतस्सइ उ० ५।१६ सत (सत्) ५० ५२,६६,७४ संताण (सन्तान) आ० ४।४. दचू० ११८. उ० १४१४१ संताणग (सन्तानक) नि० ७१७५; १३।८; १४।२७; १६।४८; १८१५६ संताणय (सन्तानक) क० ४।३१ से ३४ संति (शांति) आ० २१३; ५।४।३. उ० १२१४३. से ४६; १८॥३८. नं० गा० १६. अ० २२७. प० १४५ संति (गिह) (शान्तिगृह) प० ५१ संतिकर (शान्तिकर) उ० १८:३८ संतिमग्ग (शान्तिमार्ग) उ० १०॥३६ संतिय (सत्क) क० ३।२६,२७; ४१२५. व० १॥३३; ७१२२; ८1८,६. नि० २।५४,५५ ५१७,१८,२१ से २३. ५०६७ संतुट्ठ (संतुष्ट) द० ५।१३४. उ० ३५।१६ । संतुयट्ट (संत्वग्वर्तित) व० ५।१८ । संतुस्स (सं+तुष)-संतुस्सइ उ० २६.३४. -संतुस्से उ० ८।१६ संतोस (सन्तोष) द० ९४५ संतोसओ (सन्तोषतस्) द० ८।३८ संतोसीभाव (संतोषीभाव) 30 २६७१ संथड (संस्तृत) व० ७१७; ६।३१,३३ संथडिय (संस्तृत) क० ५।६,७. नि० १०।२५,२६ सिंथर (सं-स्तृ)-सथर द० ५।१०२. -संथरेज्जा क० ५१४१ मंथरमाण (संस्तृण्वत्) नि० १६।२६,२७ संथरिज्ज (संस्तीर्य) प० २४० संथव (संस्तव) उ० १५५१,१०; १६॥३,११; २११२१,२६०५१, २०२८ संथार (संस्तार) द० ८।१७।६।४५. उ० १७७; २३।४,८; २५॥३. अनं० ८. अ० १६,३७,६०, ८४,१०६,५५६,५६६,६२६,६३८,६५०,६७६, ७०३ संथारग (संस्तारक) द० ४ सू० २३. व० ८।१ से ४,६ से ६. दसा० ३।३,७१३ से १५. नि० २।५१ संथारय (संस्तारक) उ० १७।१४. दसा० ३।३; ४।१४. क. ११४२, ३।१६,२५ से २८. व०८।१२. नि० २।४६,५०,५२ से ५५; ५।२३; १६।३५,३६. संथुय (संस्तुत) उ० ११४६; १५।१०।२३।८६ संदट्ठोटु (संदष्टौष्ठ) अ० ३१३१२ संदमाणिया (स्यन्दमानिका) ब० ३६२ बसा० ६६३ संदिट्ठ (संदिष्ट) उ० २५॥१६. प० १७ संधाव (सं+धाव)--संधावइ उ० २०१४६ संधि (सन्धि) द० ०१५. उ० ११२६. नि० १३१२८ संधिपाल (संधिपाल) ५० ४२ संधिमुह (सन्धिमुख) उ० ४।३ संनिचय (संनिचय) नि० ८।१७ संनिभ (संनिम) उ० १६।१३; २२।३०; ३४।४,६ से ८ संनियट्टचारि (संनिवृत्तचारिन्) व० ८।५ संनिवेस (सन्निवेश) क० ५।१६. व० १॥३३; ६।४०,४१ संनिवेसणया (सन्निवेशन) उ० २६१,२६ संपइ (संप्रति) उ० १०॥३१. अ० ५५७ संपउंज (सं+प्र+यूज)-संपउंजे दसा० ६२।३० संपउत्त (सम्प्रयुक्त) दसा० १०।१४. ५० २८५ सिंपगर (सं+ +कृ)-संपगरेइ उ० २१११६ संपगाढ (संप्रगाढ) उ०२०।४५ संपग्गहित (सम्प्रगृहीत) दसा० ६।२।१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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