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________________ सुहुमकिरिय-सज्जा ३५।९; ३६१७०,७७,७८,८४,८६,६२,१००, (शूरसूर) आ० ६।१,२,३,७. द० ८।६१. १०८,११०,१११,११७,११६,१२०. नं० १८. उ० २।१०।११।१७; १८१५१. अ० ३०२॥५. अ० २५४,३६६,३६७,४२०,४२१,४२४ से दसा० ६।२।३६. प० ३८,४२.४७,७८ ४२८,४३१ से ४३५,४३८ से ४४०,५०५. सूर (सूर) उ० १७।१६; २३॥१८; ३६।२०८. प० २३, २६२ से २७०. नि० ११३६,४०; नं० गा० ८,१० सू० ७१. अ० १६,२०, ५।६६ १८५।४,२५४. दसा० ६।५,७।२०. प० २७, सुहुमकिरिय (सूक्ष्मक्रिय) उ० २६७३ ३२,६६ सुहुमतराय (सूक्ष्मतरक) अ० ४१६ सूरकंत (सूरकान्त) उ० ३६७६ सुहुमपरमाणु (सूक्ष्मपरमाणु) अ० ३६८ सूरण (सूरण) उ० ३६।१८ सुहुमयरय (सूक्ष्मतरक) नं० १८१८ सूरपण्णत्ति (सूरप्रज्ञप्ति) नं० ७७. जोनं ८ सुहमसंपरायचरित्त (सूक्ष्मसंपरायचरित्र) सूरपमाणभोइ (सूरप्रमाणभोजिन्) दसा० ११३ अ० ५५३ सूरपरिवेस (सूरपरिवेश) अ० २८७ सुहमसंपरायचरित्तलद्धि (सूक्ष्मसंपरायचरित्रलब्धि) सूरमंडल (सूरमंडल) प० ३२ अ० २८५ सूराभिमुही (सूराभिमुखी) क० ५।१६ सुहुय (सुहुत) दसा० १०।३२. ५० ७८ सूरिय (सूर्य) उ० २११२३. दसा० ७॥२०. सुहेसि (सुखैषिन् ) उ० २२।१६; ३२११०५ प० २५६. क० ५।६ से ६. नि. ३१८० सुहोइय (सुखोचित) उ० १६।३४; २०।४; २११५ १०॥२५ से २८ सुहोदय (सुखोदय) दसा० १०१११. प० ४२ सूरोवराग (सूरोपराग) अ० २८७ सूइ (सूचि) नि० १।१९,२३,२७,३१,३५ सूल (शूल) उ० १६०६१. दसा० १०।१४ सूइय (सूपिक) द० ५।६८ सूलाइतय (शूलायितक) दसा० ६।३ सूइया (सूतिका) द० ५११२ सूलाभिन्न (शूलाभिन्न) दसा० ६॥३ सूई (सूचि) उ० २६॥६०. अ० ३६३,४०६. से (दे०) द० ४ सू० ६,११. उ० २।४०. नं०४. नि० १११५, २०१४ अ०८. दसा० १०१२२. क० ११६. व० १११९ सूईअंगुल (सूच्यङ्गुल) अ० ३६३,३६४,४०६, सेउक (सेतुक) ५० ५१ ४०७ सेज्जंस (श्रेयांस) अ० २२७. प०६८,१५०,१७० सूकरकरण (सूकरकरण) नि० १२।२४; १७।१४६ सेज्जा (शय्या) द० ४ सू० २३; ५८७,१०२, सूकरजुद्ध (सूकरयुद्ध) नि० १२।१५; १७॥१४७ ६।४७; ८।१७,५२, ६।३४,४५ चू० २।८. सूय (सूचय)-सूइज्जइ नं० ८२ उ० ११२२, २ सू० ३, गा० २२; १७३२,१४; -सूइज्जति नं० ८२ २४।११, २५॥३; २६।३७, ३२॥१२. अ० १६, सूयगड (सूत्रकृत) उ० ३१।१६. नं० ६५,८०,८२. ३७,६०,८४,१०६,५६६,६२६,६२८,६५०, अनं० २८. जोनं० १०. अ० ५०,५४६. ६७६,७०३. दसा० २।३।३।३४।१३. व०१०।२६ क० ११३०,३१,४२, ३।१६,२५ से २८. सूयगडधर (सूत्रकृतधर) अ० २८५ . व० ८।१ से ४,६ से ६,१२. नि० २।४६ से सूयर (सूकर) उ० ११५,६ ५५,५२२,२३,६१ से ६३,१३।१ से ११; सूयरपोसय (सूकरपोषक) नि. ६।२३ १६०१ से ३,३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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