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________________ ३१० सुसंगोपित-सुहम १५१५; १७।२१. प०७४,८१,२२२ सुस्सूस (शुश्रूष्)-सुस्सूसइ द० ६।४।२. सुमंगोपित (सुसंगोपित) दसा० १०।२५,२६ नं० १२७-सुस्सूसए द० ६।१७ सुसंतुट्ठ (सुसंतुष्ट) द० ८।२५ सुस्सूसमाण (शुश्रूषमाण) द० ६।४१,४२ सुसंपउत्त (सुसंप्रयुक्त) दसा० १०।१४ सुस्सूसा (शुश्रूषा) द० २६ सुमंपग्गहिय (सुसम्प्रगृहीत) दसा० १०।१४ सुह (सुख) द० ४।२६, ६।२३,२६,२८; १०११; सुसंपरिग्गहिय (सुसम्परिगृहीत) दसा० १०।२५,२६ । चू० २।३. उ० ७।२७; ६।१४,३५; १३।३,१७; सुसंभंत (सुसम्भ्रान्त) उ० २०११३ १४।३२; १७१३, १८।१७; १९७८,६०; सुमंभिय (सुसंभृत) उ० १४१३१ २०१३७, २८।१०, २६।४,१३,३७; ३२।२८, सुसंवुड (सुसंवृत) द० १०१७. उ० २।४२; ३२,४१,४५,५४,५८,६७,७१,८०,८४,६३,६७; १२।४२; १५॥१२ ३६६६६. नं० ६१,१२०. दसा० ४।१७; सुमंवुय ( , ) दसा० १०।११. प० ४२ १०।११.५० १५,४२,५८,७३,८० सुसण्णप्प (सुसंज्ञाप्य) क० ४१६ सुह (शुभ) उ० १०११५; ३३।१३; ३६।६१. सुसमण (सुश्रमण) नं० गा० ४१ प० २७,४२ सुसमदुस्समा (सुषमनुष्षमा) प० २ सुहंसुह (सुखंसुख) दसा० १०॥३,५,६,११. सुममदूनमय (सुषमनुष्षमज) अ० ३३४ प० ५८,११० सुपमदूसमा (सुषमदुष्षमा) प० २ सुहजीवि (सुख जोविन्) अ० ३०२।४ सुसमय (सुषमज) अ० ३३४ सुहड (सुहृत) द० ७।४१. उ०१२३६ सुसमसुसमय (सुषमसुषमज) अ० ३३४ सुहत्थि (सुहस्तिन्) नं० गा० २५. प० १६६ सुममसुसमा (सुषमसुषमा) प० २ सुहफरिस (सुखस्पर्श) उ०२६७२ सुसमा (सुषमा) प० २ सुहम्म (सुधर्मन्) नं० गा० २०,२२ सुसमाउत्त (सुसमायुक्त) द० ६।३ सुहम्मा (सुधर्मा) प०८ सुसमाहड (सुसमाहृत) दमा० ५।७७ सुहर (सुभर) द० ८।२५ सुहविवाग (सुखविपाक) नं० ६१ सुसमाहिइंदिय (सुसमाहितेन्द्रिय) द० ७।५७. उ० २१।१३ सुहसाय (सुखसात) उ० २६।१,३० सुहसेज्जा (सुखशय्या) उ० २६।३४ सुसमाहिय (सुसमाहित) द० ३।१२; ५।६; ६।२६, सुहावह (सुखावह) द० ६।३, ६।४।६. २६,४०,४३,८१४;६।४।६; १०।१५; चू० उ० १६१९८; २३८७; ३०१२७,३१११, २११६. उ०१२।२,१७,२०१४;२३।९% ३५।१५ २७।१७;३०॥३५. दसा० ५७।१० सुहासण (सुखासन) प० ३७,६६ सुसाण (श्मसान) उ० २।२०; ३५।६. ५० ५१ सुहासिय (सुभाषित) उ० १२।२४ सुसिक्खिय (सुशिक्षित) अ० ३०७।४ सुहि (सुखिन्) द० २१५. उ० १।१५; १९।२०, सुसिलिट्ठ (सुश्लिष्ट) दसा० १०।११,१४. २१,८०; २६।३६; ३२।११०,१११ प० २३,४२ सुहि (सुहृद्) उ० २०१६ सुसीइभूय (सुशीतीभूत) उ० १२१४६ सुहुत्तर (सुखोत्तर) उ० ३२।१८ सुसील (सुशील) उ० २२।७. अनं० २८ सुहुम (सूक्ष्म) आ० ५।३. द० ४ सू० ११; सुस्सुया इत्ता (सूरकार्य) उ० २७७ ६।२३,६१, ८।१३ से १५. उ० २८।३२; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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