________________
चौथी आगम-कथा ग्रंथमाला में अभी तक कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं(१) दशवेकालिक वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं. १), (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं. २)।
छठी ग्रंथमाला में केवल आगम हिन्दी अनुवाद ग्रंथमाला के संस्करण के रूप में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' ग्रंथ का प्रकाशन हुआ है।
उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दशवेकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं।
प्रस्तुत प्रकाशन नवसुत्ताणि (भाग ५) में (१) आवस्सयं, (२) दसवेआलियं, (३) उत्तरज्झयणाणि, (४) नंदी, (५) अणुओगद्दाराई, (६) दसाओ, (७) कप्पो, (८) ववहारो, (६) निसीहज्झयणं-इन नी आगमों का पाठान्तर सहित मूलपाठ मुद्रित है। भूमिका में इन ग्रंथों का संक्षेप में परिचय प्राप्त है, अतः यहां इस विषय पर प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। इस खंड में प्रस्तुत नी आगमों की शब्दसूची भी संलग्न है। शोधकर्ताओं के लिए वह बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
आगम प्रकाशन कार्य की योजना में अनेक महानुभवों का सहयोग रहा है।
'नवसत्ताणि' ग्रंथ का प्रस्तुत संस्करण श्री छोटूलाल सेठिया चेरिटेबल ट्रस्ट के सौजन्य से प्रकाशित किया जा रहा है।
इस ग्रंथ का पहला संस्करण आचार्य तुलसी अमृत-महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित हुआ, दूसरा संस्करण, सन् २००० में प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में पहुंच रहा है।
आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्यश्री तुलगी और प्रधान संपादक तथा विवेचक हैं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी। इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं।
इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रंथ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है।
श्रीचंद रामपुरिया
जैन विश्व भारती १७/१/२००० लाडनूं (राज.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org