SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (चू) चूणि (गोपालिक महत्तर शिष्य कृत) श्रेष्ठि देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धारे, ग्रंथांक ३३ । मोहमयीपत्तने वीर सम्वत् २४४२ । नंदो : प्रति-परिचय (क) नंदी मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र १५ व पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० करीब अक्षर हैं। यह प्रति १३१ इंच लम्बी तथा ५ इंच चौड़ी है। प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। पढ़ने में स्पष्ट व प्रायः शुद्ध है । लिपि सं० १५७६ । (ख) नंदी मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र २६ व पृष्ठ ५८ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० करीब अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है। प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट है। प्रति प्रायः शुद्ध है। लिपि सं० १६०० के करीब है। (ग) नंदी मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८७ व पृष्ठ १७४ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १६ पंक्तियां तथ। प्रत्येक पंक्ति में ७० करीब अक्षर है। यह प्रति १३३ इंच लम्बी तथा ५ इंच चौड़ी है । लिपि सं० १५७६ । (चू) चूणि मुद्रित मुनि पुण्य विजयजी द्वारा संपादित (पु) मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित नन्दी मूलपाठ (ह) मुनि पुण्यविजयजो द्वारा संपादित हारीभद्रीय टोका अनुयोगद्वार : प्रति-परिचय (क) अनुयोगद्वार मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र १७ और पृष्ठ ३४ हैं। प्रत्येक पत्र १३३ इंच लम्बा और करीब ५३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में १६ पंक्तियां हैं व प्रत्येक पंक्ति में पाठ के लगभग ७२ से ८० तक अक्षर हैं । अक्षर काली स्याही से लिखे गये हैं। प्रति के अंत में संवत् नहीं है किन्तु पत्रों को जीर्णता व लेखन शैली देखने से लगता है कि वि० सं० १५०० के लगभग लिखी गई हो। प्रति य प्रधान व संक्षिप्त पाठ की है। प्रति के अंत में लेखक की निम्नलिखित प्रशस्ति (पुष्पिका) है अनुयोगद्वाराणि समाप्तानि ।। छ ।। ग्रंथाग्रं १५०० ।। छ ।। शोधिता प्रतिरियं वा० विमलकीति गणिना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy