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________________ २८ प्रशस्ति में लिखा है-सम्बत् १७११ वर्षे आषाढ़ मासे कृष्ण पक्षे चतुर्दश्यां तिथौ आचार्य श्री ६ शिवजी तस्यानुचर मुनि वीरा तच्छिष्येन मुनिविष्णु दासेनालेखीयं प्रतिः स्व वाचनार्थं शुभं भूयाल्लेखकपाठकयोः श्रीरस्तुः कल्याणमस्तु (श्री) (छ) (श्री)। (ग) निशीथ मूलपाठ (तकार प्रधान) यह प्रति भी उपर्युक्त ग्रन्यालय की है। इसके पत्र १८ तथा पृ० ३६ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। बीच में बावडी है। अंतिम प्रशस्ति नहीं है, पर अनुमानित १८वीं शताब्दी की सी लगती (च) निशोथ चूणि -उपाध्याय अमर मुनि तथा मुनि कन्हैयालाल 'कमल' द्वारा सम्पादित। (शु) शुकिंग संपादित व्यवहार बृहत्कल्प निशोथसूत्राणि । शब्दान्तर और रूपान्तर ३।१ अचू व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन को दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। १. दशवकालिक : शब्दान्तर और रूपान्तर अध्ययन-१ स्थल मूलपाठ शब्दान्तर और रूपान्तर प्रति उक्किट्ठ उक्कट्ठ क,ग,ध, अचू २।२ आवियइ आवियती अचू, जिचू मुत्ता मुक्का ३१२ साहुणो साहवो अचू ४।३ अहागडेसु अहागडेहि अचू ४।३ रीयंति रीयंते घ, जिचू ४।४ पुप्फेसु पुप्फेहि अचू, जिचू ४।४ भमरा भमरो महु मधु अचू, जिचू अध्ययन-२ २।२ इत्थीओ इथिओ चाइ चागि ४।१ पेहाए पेहाइ क,ख निस्सरई नीसरई अचू, जिचू ४१४ विणएज्ज विणइज्ज क,ख,ग ५।१ आयावयाही आयावयाहि अचू, जिचू सोउमल्लं सोगमल्लं, सोगुमल्लं , क,ख,ग,घ, जिचू ५२१ २।४ अचू ४१२ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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