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नय का इस प्रकार का विवेचन यहीं हुआ है । नय की प्रकृति को समझने के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है ।
मुख्य व्याख्या ग्रंथ
१. अनुयोगद्वारणि २. अनुयोगद्वारवृत्ति ३ अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति (हरिभद्रसूरि )
६. दशाश्रुतस्कन्ध
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नामबोध
प्रस्तुत आगम के दो नाम उपलब्ध हैं । नंदी' की सूची में इसका नाम 'दशा' और स्थानांग में इसका नाम 'आयारदशा' मिलता है । इसके दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'दशा' रखा गया है । प्रतिपाद्य विषय की दृष्टि से इसका नाम 'आयारदशा' है ।
रचनाकार और रचनाकाल
दशाश्रुतस्कंध चूर्णि के अनुसार इसका निर्यूहण प्रत्याख्यान पूर्व से किया गया है। इसके निर्यूह है— चतुर्दशपूर्वी आचार्य भद्रवाहस्वामी ।"
प्रस्तुत आगम की आठवीं दशा का पाठ संक्षिप्त है । उसमें 'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्युत्तरे होत्था' - इस पाठ से सूत्र का प्रारम्भ होता है और 'जाव भुज्जो भुज्जो उपदंसद' इस पाठ से पूर्ण होता है। इस 'जान' पद के द्वारा पूरा पर्युषणाकल्प यहां संगृहीत है।
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कुछ आदशों में इस संक्षिप्त पाठ के स्थान पर पूरा पर्यापणाकल्प अध्ययन लिखा हुआ मिलता है। हमने पर्युषणाकल्प को परिशिष्ट में दिया है।
प्रस्तुत अध्ययन के पांच विभाग हैं
१. महावीर चरित्र--१-१०७
२. शेष तेवीस तीर्थंकरों का चरित्र - १०५ - १८१
३. गणधरावलि - १०२-१८५
४. स्थविरावलि - १८६-२२२
५. पर्युषणाकल्प २२३-२००
हैं
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दशाgतस्कंध के मुख्य तीन व्याख्याय १. निर्मुक्ति, २ चूर्ण ३. वृत्ति प्रस्तुत अध्ययन से संबद्ध निर्मुक्ति केवल पणाकल्प की है। इससे प्रतीत होता है कि नियुक्तिकार के सामने शेर्पा विषय प्रस्तुत अध्ययन के अंगभूत नहीं थे। नियुक्तिकार के अनुसार मंगलनिमित्त उनका प्रवचन किया
१. नंदी, सूत्र ७८ ।
२. ठाणं १०।११५ ।
३. दशा० चूर्णि पत्र २ : कतरं सुत्तं ? दसाओ कप्पो ववहारो य । कतरातो उद्धृतं ? उच्यते-पञ्चवाणपुवाओ ।
४. दशाgतस्कन्धनियुक्ति गाथा १ वंदामि भवाहं, पाईणं चरिम सयलसुपनाणि ।
सुत्तस्स कारगमिसि वसासु कप्पे य ववहारे ॥
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