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________________ 'उत्तरकाल' वाची अर्थ संगत होने के साथ-साथ पूर्णतः व्याप्त भी है, इसलिए इस 'उत्तर' का मुख्य अर्थ यही प्रतीत होता है । उत्तराध्ययन : आकार और विषय-वस्तु उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययन हैं। यह संकलित सूत्र है । इसका प्रारम्भिक संकलन वीरनिर्वाण की पहली शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ । उत्तरकालीन संस्करण देवद्धिगणी के समय में सम्पन्न हुआ। वर्तमान अध्ययनों के नाम समवायांग तथा उत्तराध्ययन नियुक्ति में मिलते हैं । उनमें क्वचित् थोड़ा अन्तर भी हैसमवायांग' उत्तराध्ययन नियुक्ति १. विणयसुयं विणयसुयं २. परीसह परीसह ३. चाउरंगिज्ज चउरंगिज्ज ४. असंखयं असंखयं ५. अकाममरणिज्ज अकाममरणं ६. पुरिसविज्जा नियंठ (खुड्डागनियंठ') ७. उरब्भिज्जं. ओरब्भं ८. काविलिज्जं काविलिज्ज ६. नमिपव्वज्जा णमिपब्वज्जा १०. दुमपत्तयं ११. बहुसुयपूजा बहुसुयपुज्ज १२. हरिएसिज्ज हरिएस १३. चित्तसंभूयं चित्तसंभूइ १४. उसुकारिज उसुआरिज १५. सभिक्खुगं सभिक्खु १६. समाहिठाणाई समाहिठाणं १७. पावसमणिज्ज पावसमणिज्ज १८. संजइज्ज संजईज्जं १६. मियचारिता मियचारिया २०. अणाहपव्वज्जा नियंठिज्ज (महानियंठ) दुमपत्तयं १. समवाओ, समवाय ३६ । २. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा १३-१७ । ३. वही, गाथा २४३ : एसा खलु निज्जुत्ती खुड्डागनियंठस्स सुत्तस्स । ४. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा ४२२ : एसा खलु निज्जुत्ती महानियंठस्स सुत्तस्स । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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