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में रखना एक समस्या है। यदि हम उत्तरवर्ती संकलनों को आगम की मान्यता दें तो आगम और उत्तरवर्ती साहित्य में भेदरेखा खींचना हमारे लिए कठिन हो जाता है। इस दृष्टि से हम "पर्युषणाकल्प" के समग्र रूप को आगम की कोटि में नहीं रख पाते। इसीलिए उसे दशाश्रुतस्कंध आगम के एक परिशिष्ट के रूप में रखा है। मुख्य व्याख्या-ग्रंथ १, दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति २. दशाश्रुतस्कंधचूणि ३. दशाश्रुतस्कंधवृत्ति ।
७,८. कल्प और व्यवहार नामबोध
ये दोनों छेदसूत्र हैं। पर्युषणाकल्प, प्रकल्प और कल्प-ये तीन नाम बहुत निकटवर्ती हैं। मध्यकाल में पर्युषणाकल्प 'कल्पसूत्र' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। संभवत: इसीलिए 'कल्पसूत्र' के लिए 'बृहत्कल्प' नाम प्रसिद्धि में आ गया । एक दूसरी संभावना पर भी ध्यान आकर्षित होना है कि कल्पसूत्र पर दो भाष्य लिखे गए-बृहत् और लघु । बृहत्कल्पभाष्य-इसमें कल्प के साथ बृहत्भाष्य का उल्लेख है किन्तु उत्तरकाल में वह 'बृहत्' शब्द कल्प के साथ जुड़ गया और कल्पसूत्र का नाम बृहत्कल्प हो गया।
व्यवहार का अर्थ है-आलोचना शुद्धि या प्रायश्चित्त ।' आलोचना के आधार पर आलोच्य छेदसूत्र का नाम व्यवहार रखा गया । रचनाकाल और रचनाकार
___ कल्प और व्यवहार-इनका नवें पूर्व की तीसरी वस्तु से नि!हण किया गया है। निर्वृहणकार हैं चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु स्वामी।
कल्पसूत्र के छह और व्यवहार के दस उद्देशक हैं ।
मुख्य व्याख्या ग्रन्थ
कल्प-१. बृहत्कल्पनियुक्ति, २. बृहत्कल्पबृहद्भाष्य, ३. बृहत्कल्पलघुभाष्य ४. बृहत्कल्पचूणि, ५. बृहत्कल्पवृत्ति ।
व्यवहार--१. व्यवहारनियुक्ति, २. व्यवहारभाष्य, ३. व्यवहारवृत्ति (मलयगिरि), ४. व्यवहारविवरण।
१. व्यवहारभाष्य उद्दे० २, गा०६०
ववहारो आलोयणा सोही पच्छित्तमेव एगद्रा। २. वही, १०॥३४५ : सव्वं पिय पच्छित्तं, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थुम्मि । तत्तो वि य निच्छुढा पकप्पकप्पो य ववहारो॥
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