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________________ रायसीह-रूव २४७ रायसीह (राजसिंह) उ० २००५८ राजहंस (राजहंस) ५० ५,६,३६,३६.५० रायहाणी (राजधानी) उ० २०१८; ३०।१६. दसा० ७।२८,३१,३३, प० १६५. क० ११६ से ११; ३।३३. व० १।३३; ४.६,१०. नि० ५। ३४; 8२० रायारक्खिय (राजारक्षित) नि० ४१२,६,१४ राव (दे०) -रावेहिइ, नं० ५३ रासि (राशि) द० ५१७. अ०७३,१४०,४६० ५८६,५६०,५६५,५६६,५९८,५९६. प० ३१, रुंद (दे० विस्तीर्ण) नं० गा० ११ रिंभ (रुध) -रंभई, उ० ३१॥३ रुक्ख (रुक्ष) द० ५।११६ ; ७.२६,३०,३१; ८.२, १०. उ० १२१८; १४।२६; ३६।१४. नं०३८। ३. अ० ३०७.१२. दसा० ५७।१४; ६।५,६. नि० १२।१० रुक्खम ह (सक्षमह) नि० ८।१४ रुक्खमूल (रुक्षमूल) उ० २।२०; १६७८; २०१४; ३५॥६. प० २५३,२५५ से २५८. व.० २.११, १२. नि० २१ से ११ रुक्खमूलगिह (रुक्षमूलगृह) दसा० ७१० से १२ रुक्खसमाणवण्णय (रुक्षसमानवर्णक) प० २६७ रुट्ठ (रुष्ट) उ० २५६ रुद्द (रौद्र) आ० ४।८. उ० ३०।३५; ३४।३१ . रुद्द (रुद्र) अ० २०,३४२. दसा०६।३ रुद्दमह (रुद्रमह) नि० ८।१४ रुद्ध (रुख) उ० १६०६३ रुप्प (रुप्य) द० ८।६२. उ० ६।४८, ३६१७३ रुप्पपाय (रूप्यपात्र) नि० ११.१ से ३ रुप्पबंधण (रूप्यबंधन) नि० १११४ से ६ रुप्पलोह (रूप्यलोह) नि. ७।४ से ६; १७६ रासिकड (राशीकृत) क० २।२,३,६,१० रासिबद्ध (राशिबद्ध) नं०६४ से १०० राहु (राहु) नं० गा०६ रिउ (रिपु) द० ३।१३ रिउमइ (ऋजुमति) प० १२२ रिउव्वेय (ऋग्वेद) प०६ रिक्ख (ऋक्ष) प० ४२ रिट्ट (रिष्ट) ५० १०,१५ रिद्धि (ऋद्धि) नं०६१ रिद्धिमंत (ऋद्धिमत्) द०७५३ रिपु (रिपु) प० २६ रिभिय (रिभित) अ० ३०७१७ रिसभ (ऋषभ) अ० २६८ से ३०२ रिसि (ऋषि) उ०१६६६६. नं० गा० २९ ‘री (री)-रिए उ० २४४ रीइत्तए (रीयितुम्) दसा० ७।१७ वरीय (री) -रीयंति द० ११४. ----रीएज्जा उ० २४१७. दसा० ६।१८ रीयंत (गेयमाण) उ० २।१४; २३॥३,७; २५।२ रीयमाण (रीयमाण) नि० ८।११,१५ रुइ (रुचि) उ० ११४७; १८।३०; २८।२५. दसा० १०॥२६ रुइय (रुदित) उ० १६ सू० ७; गा० ५,१२ रुइर (रुचिर) उ० ३२।२६,३६,५२,६५,७८,६१ रुय (रुत) द० ४ सू०६ रुयग (रुचक) उ०३६।७५, न० १८।५. अ. १८५ रुरु (रुरु) प० ३२,४२ रुहिर (धिर) उ० १२।२५,२६; १६.७०,३६॥ ७२. अ० ३१३. दसा०६५ रूढ (रूढ) द० ४ सू० २२, ७३५. नं० गा० १२ ख्य (दे० रूत) प० २० रूव (रूप) आ० ४१८. द० ८।१६; १०।१६. उ० ३३१५, ४१११; ६।११६।६,५५; १२१६१३ १२; १६ सू० १२; गा० १०; १८।१३,२० १६।६; २०१५,६; २२१४१; २६१४३,४६,६४; ३१११६; ३२।१४,२२ से २६,२८ से ३४. नं० ५३,५४१४. अ० १५०,१५४,१७६,१८३, १८७,१६१,१६५,२२१,२२५,२२६,२३३,२३७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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