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________________ सण्णिणाय-सत्थपारग २८७ सण्णिणाय (संनिनाव) दसा० १०.१७ सत्तरसवासपरियाय (सप्त दशवर्षपर्याय) व० सण्णिय (संहित) उ० १०।१० से १२; ३६।६६, १०॥३६ सत्तरसविह (सप्तदशविध) आ० ४।८ सण्णिवेस (सन्निवेश) अ० ५५६. दसा० १०।१८. सत्तराइंदिया (सप्तरात्रिविवा) व० १०।२०. प०५१. नि० ५।३४; १२।२०; १७।१४ दसा० ७१३,२७ से ३० सण्णिवेसपह (सन्निवेशपथ) नि० १२१२३; सत्तवण्णवण (सप्तपर्णवन) अ० ३२४ १७११४५ सत्तरि (सप्तति) उ० ३३।२१. प० १२४ सण्णिवेसमह (सन्निवेशमह) नि० १२।२१; सत्तविह (सप्तविध) उ० ३३।११; ३६७१,१५६ १७११४३ नं० ६३. अ० ३४० । सण्णिवेसवह (सन्निवेशवध) नि० १२१२२; सत्तवीस (सप्तविंशति) उ० ३६३२३८. प० १२० १७. १४४ सत्तवीसइ (सप्तविंशति) उ०३६।२३६ सण्ह (श्लक्ष्ण) उ० ३६१७१. प० २४,४२ सत्तसत्तमिया (सप्तसप्तकिका) व०६।३५ सण्णिभ (सन्निभ) दसा० १०।१५ सत्तस्स रसीभर (सप्तस्वरसीभर) अ० ३०७।७ सण्णिवेसंतर (सन्निवेशान्तर) दसा० १०।२७ सत्तहत्तरि (सप्तसप्तति) अ० ४१७४२ सण्णिसुय (संजिश्रुत) नं० ५५,६१,६४ सत्तहा (सप्तधा) उ० ३६३१५७. प० २५० सण्हसण्हिया (श्लष्णश्लक्षिणका) अ० ३६६ सत्ता (सत्ता) अ० ३६७ सतक्कत्तु (शतक्रतु) ५०८ सत्तावीस (सप्तविंशति) आ० ४।८. अ० ५८६ सत्तभिसय (शतभिषज्) अ० ३४१ सत्तावीसइविह (सप्तविशतिविध) उ० २४१२० सत्त (सत्त्व) मा० ४८; द० ४ सू० ४ से ८. सत्ति (शक्ति) द० ६८,९. दसा० १०।१४ उ० १४११८,४३, २६।१८,४२, ३२११११. सत्तिग्गह (शक्तिग्रह) नि० ६।२७ अ० ३६०।३,४३३. दसा० १०॥२६. प०६ सत्तिवण्णवण (सप्तवर्णवन) नि० ३७६ सत्त (सप्तन) आ० ४।५. उ०१०।१३. नं० १०१. सत्तु (शत्र) उ०१६।२५; २३१३६ से ३८%; अ० १३४. प० ६. दसा० १०॥३. नि० १६१०।। ३२॥१२. अ० ३१०. प०७४ सत्त (सक्त) उ० ६।११, १४१४५; ३२२६,४२, सत्तुचुण्ण (शक्तुचूर्ण) द० २७१ ५५,६८,८१,६४,१०३ सत्थ (सार्थ) उ० ३०।१७ सत्तगय (सप्तगज) अ० ३५४ सत्थ (शस्त्र) द०६।३२; ६।२५; १०।२. सत्तट्ठि (सप्तषष्टि) नं० ८२ उ० २०१२०,४४,३५।१२; ३६।२६७. नं० १२७१२. अ० ३६८. दसा० १०।२६. सत्तम (सप्तम) उ० २६१३; ३६।१६६,२४०. प० ४२ नं. ८७. अ० ३००,३०१३०४ से ३०६, ३०८,३५०. दसा० ६।१४. ५०८४,१२७, सत्थकुसल (शास्त्रकुशल) उ० २०।२२ सत्थजाय (शस्त्रजात) नि० ३।३४ से ३६४१७२ सत्तमय (सप्तमक) नं० १२७।४ से ७७; ६।४३ से ४८; ७३२ से ३७; सत्तमासिय (सप्तमासिक) दसा० ७.३,२६ ११।२६ से ३४; १५.३१ से ३६,११७ से सत्तमी (सप्तमी) व० १०।३ १२२; १७३३३ से ३८,८७ से ६२ सत्तरस (सप्तदशन्) उ० ३६।१६४ सत्थपारग (शास्त्रपारग) अ० ३०२।३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003556
Book TitleNavsuttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages1316
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size29 MB
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