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सृष्टिखण्ड] .मार्कण्डेयजीके दीर्घायु होनेकी कथा और श्रीरामका पुष्करमें पिताका श्राद्ध करना .
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आयु निश्चित की है, उसमें अब केवल छ: महीने और ब्रह्माजीने उनसे पूछा-'तुमलोग किस कामसे यहाँ शेष रह गये हैं। मैंने यह सची बात बतायी है। इसके आये हो तथा यह बालक कौन है ? बताओ।' ऋषियोंने लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये।
कहा-'यह बालक मृकण्डुका पुत्र है, इसकी आयु क्षीण भीष्म ! उस सिद्ध ज्ञानीकी बात सुनकर बालकके हो चुकी है। इसका सबको प्रणाम करनेका स्वभाव हो पिताने उसका उपनयन-संस्कार कर दिया और गया है। एक दिन दैवात् तीर्थयात्राके प्रसङ्गसे हमलोग कहा-'बेटा ! तुम जिस-किसी मुनिको देखो, प्रणाम उधर जा निकले। यह पृथ्वीपर घूम रहा था । हमने इसकी करो।' पिताके ऐसा कहनेपर वह बालक अत्यन्त हर्षमें ओर देखा और इसने हम सब लोगोंको प्रणाम किया। भरकर सबको प्रणाम करने लगा। धीरे-धीरे पाँच महीने, उस समय हमलोगोंके मुखसे बालकके प्रति यह वाक्य पचौस दिन और बीत गये। तदनन्तर निर्मल स्वभाववाले निकल गया-'चिरायुर्भव, पुत्र ! (बेटा ! चिरजीवी सप्तर्षिगण उस मार्गसे पधारे । बालकने उन्हें देखकर उन होओ।)' [आपने भी ऐसा ही कहा है। अतः देव ! सबको प्रणाम किया। सप्तर्षियोंने उस बालकको आपके साथ हमलोग झूठे क्यों बनें ?' 'आयुष्पान् भव, सौम्य !' कहकर दीर्घायु होनेका ब्रह्माजीने कहा-ऋषियो ! यह बालक मार्कण्डेय आशीर्वाद दिया। इतना कहनेके बाद जब उन्होंने उसकी आयुमें मेरे समान होगा। यह कल्पके आदि और अन्तमें आयुपर विचार किया, तब पाँच ही दिनकी आयु शेष भी श्रेष्ठ मुनियोंसे घिरा हुआ सदा जीवित रहेगा।
पुलस्त्यजी कहते हैं-इस प्रकार सप्तर्षियोंने ब्रह्माजीसे वरदान दिलवाकर उस बालकको पुनः पृथ्वीतलपर भेज दिया और स्वयं तीर्थयात्राके लिये चले गये। उनके चले जानेपर मार्कण्डेय अपने घर आये और पितासे इस प्रकार बोले-'तात ! मुझे ब्रह्मवादी मुनिलोग ब्रह्मलोकमें ले गये थे। वहाँ ब्रह्माजीने मुझे दीर्घायु बना दिया। इसके बाद ऋषियोंने बहुत-से वरदान देकर मुझे यहाँ भेज दिया। अतः आपके लिये जो चिन्ताका कारण था, वह अब दूर हो गया। मैं लोककर्ता ब्रह्माजीकी कृपासे कल्पके आदि और अन्तमें तथा आगे आनेवाले कल्पमें भी जीवित रहूँगा । इस पृथ्वीपर पुष्कर तीर्थ ब्रह्मलोकके समान है; अतः अब मैं वहीं जाऊँगा।' ___मार्कण्डेयजीके वचन सुनकर मुनिश्रेष्ठ मृकण्डुको बड़ा हर्ष हुआ। वे एक क्षणतक चुपचाप आनन्दकी
साँस लेते रहे। इसके बाद मनके द्वारा धैर्य धारण कर जानकर उन्हें बड़ा भय हुआ। वे उस बालकको लेकर इस प्रकार बोले-'बेटा ! आज मेरा जन्म सफल हो ब्रह्माजीके पास गये और उसे उनके सामने रखकर गया तथा आज ही मेरा जीवन धन्य हुआ है; क्योंकि उन्होंने ब्रह्माजीको प्रणाम किया। बालकने भी ब्रह्माजीके तुम्हें सम्पूर्ण जगत्की सृष्टि करनेवाले भगवान चरणोंमें मस्तक झुकाया। तब ब्रह्माजीने ऋषियोंके समीप ब्रह्माजीका दर्शन प्राप्त हुआ। तुम-जैसे वंशधर पुत्रको ही उसे चिरायु होनेका आशीर्वाद दिया। पितामहका पाकर वास्तवमें मैं पुत्रवान् हुआ हूँ। वत्स ! जाओ, वचन सुनकर ऋषियोंको बड़ी प्रसन्नता हुई। तत्पश्चात् पुष्करमें विराजमान देवेश्वर ब्रह्माजीका दर्शन करो।